पुनर्जन्म : कौन था मयंक का कातिल? – भाग 5

कई सालों तक तो मेजर को सुभाषिनी के बारे में कोई जानकारी ही नहीं मिली. लेकिन यह भी जिद्दी स्वभाव के थे. जैसेतैसे इन्होंने सुभाषिनी की नई ससुराल का पता लगा ही लिया. तब तक वह मयंक की मां बन चुकी थी. वह काफी बड़ा हो गया था.

मेजर चौहान बदला लेने के लिए सालों तक सुभाषिनी और तोमर परिवार पर नजर रखे रहे. लंबी अवधि गुजर जाने के बाद भी इन के बदले की आग ठंडी नहीं हुई. इस की वजह यह भी थी कि सुभाषिनी की वजह से इन का बेटा किसी और का हो गया था और ये चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते थे. बेटे की वजह से ही इन्होंने शादी तक नहीं की. इन्हें बदले का मौका तब मिला, जब तोमर परिवार ने शिकार का प्रोग्राम बनाया.’’

‘‘अंधेरा होने पर झाडि़यों में छिपे मेजर ने अपने रिवाल्वर से गोली चला दी, लेकिन गोली सुभाषिनी को नहीं मयंक को लगी और वह नीचे गिर गए.’’ नीरव बोल उठा.

‘‘मेजर चौहान ने भी यही समझा था, क्योंकि इन के गोली चलाने के तुरंत बाद सुरबाला की चीखपुकार गूंज उठी थी. उसी वक्त मेजर ने दूसरा फायर किया, वह हवाई फायर था, जो इन्होंने मयंक को तेंदुए से बचाने के लिए किया था. दूसरे लोगों ने भी कुछ हवाई फायर किए थे.’’

‘‘इस का मतलब यह हुआ डैड कि मेजर चौहान ने मयंक की हत्या नहीं की थी, बल्कि वह नींद के झोंके में मचान से गिर कर तेंदुए का शिकार हो गए थे.’’ नीरव बोला.

‘‘सच्चाई का खुलासा तो रजत ही कर सकता है.’’ त्रिलोचन ने रजत पर निगाह डाली तो माता पिता के बीच में बैठा रजत मुसकराने लगा.

‘‘एक्जैक्टली डैड,’’ विप्लव ने कुर्सी के हत्थे पर हाथ मारा, ‘‘आखिर रजत, मयंक का ही तो पुनर्जन्म है, इसे तो पूरी सच्चाई मालूम होगी.’’

‘‘अपराधी इसी बात से तो डर गया था, उसे लगा कि रजत ने सुरबाला को सच्चाई बता दी है, तभी उस ने सुरबाला की जान लेने की कोशिश की थी. जब वह कामयाब नहीं हुआ तो उस ने मौका पा कर रजत की हत्या करनी चाही. हालांकि हम ने रजत की सुरक्षा का पूरा इंतजाम किया था, लेकिन हमलावर तोमर परिवार के पुश्तैनी मकान के चप्पे चप्पे से वाकिफ था.

‘‘वह गुप्त रास्ते से उस कमरे में दाखिल हुआ और अपनी समझ के हिसाब से रजत को चाकू मार कर उसी रास्ते से गायब भी हो गया. इसे नियति का खेल ही कहेंगे कि रजत और सुकुमार ने सोने के पहले अपने बिस्तर बदल लिए थे. जिस की वजह से हमलावर ने सुकुमार को रजत समझा.’’

‘‘मतलब, कोई घर का ही आदमी है जो पहले मयंक का दुश्मन था और अब रजत का दुश्मन बन बैठा.’’ वहां मौजूद रजत के पिता मनोहर अग्रवाल ने पहली बार मुंह खोला.

‘‘चाचाजी, मेरी तफ्तीश कहती है कि सुरबालाजी के ऊपर हमला करने की कोशिश सुखदेवी ने की थी, आई मीन मिसेज धुरंधर तोमर.’’ इंसपेक्टर अनिल ने पासा फेंका.

‘‘यह आप क्या कह रहे हैं, दरोगाजी…?’’ सुखदेवी उछल कर उठ खड़ी हो गई, ‘‘मैं बहू के ऊपर हमला क्यों करूंगी, इस से मुझे क्या मिलेगा…?’’

‘‘जिस तरह से सुरबाला ने रजत को अपनाया, उस से आप के मन में डर बैठ गया था कि अब तक जिस जायदाद का वारिस आप का बेटा था, अब उस का आधा हिस्सा कहीं रजत को न मिल जाए.’’

‘‘इंसपेक्टर साहब,’’ अभी तक चुप बैठे धुरंधर का धैर्य जाता रहा, ‘‘मेरी पत्नी के खिलाफ आप के पास क्या सबूत हैं?’’

‘‘आप की पत्नी ‘संदली एहसास’ नामक टैल्कम पाउडर का इस्तेमाल करती हैं. सुरबालाजी के शयन कक्ष में जो तलवार पाई गई थी. उस पर उस पाउडर के कण मिले हैं.’’

‘‘प्लीज, अब यह मत कहिएगा कि अपने बेटे को छुरा भी हम ने ही मारा है…’’ धुरंधर आजिज आ कर बोले.

‘‘इंस्पेक्टर साहब, आप सुखदेवी जी के ऊपर नाहक आरोप लगा रहे हैं.’’ त्रिलोचन ने दखल दिया, ‘‘हमारा ध्यान भटकाने के लिए अपराधी द्वारा चली गई नायाब चाल थी यह.’’

‘‘तो फिर अपराधी कौन है डैड?’’ नीरव बोला, ‘‘आप ने रजत से तो पूछा ही नहीं कि पिछले जन्म में उस की मृत्यु कैसे हुई थी?’’

प्रत्युत्तर में त्रिलोचन ने अपने बैग से पालिथीन की एक थैली निकाली, जिस में एक नरमुंड रखा था. पारदर्शी थैली में दिख रहे नरमुंड के माथे की ओर इशारा करते हुए त्रिलोचन बोले, ‘‘यह छेद देख रहे हैं आप लोग, यह मयंक की खोपड़ी है और इस के माथे में यह गोली का निशान. मयंक की मौत गोली लगने से हुई थी.’’ कहते हुए त्रिलोचन ने अपनी जेब से कोई चीज निकाली, ‘‘और यह रही वह गोली.’’

‘‘यह तो राइफल की गोली है…’’ मेजर चौहान के मुंह से अनायास निकल गया.

‘‘हां मेजर, अब आप उस अपराधबोध से मुक्त हो गए होंगे, जिसे आप पिछले कई सालों से ढोते आ रहे थे?’’

‘‘जी’’ मेजर का गला भर्रा गया, ‘‘मैं अपने आप को मयंक का हत्यारा समझता था और मुझे इतनी ग्लानि हुई थी कि अपना रिवाल्वर उसी जंगल में फेंक आया था.’’

‘‘चाचाजी, घटनास्थल पर उस वक्त 2 राइफलें थीं.’’ अनिल बोला.

‘‘जी हां, और फोरेंसिक रिपोर्ट से साफ हो गया है कि यह गोली जिस राइफल से चली थी. वह थी मैनलिकर सूनर.’’

‘‘लेकिन… मैं ने तो तेंदुए को भगाने के लिए हवाई फायर किए थे, ताकि वह नीचे गिरे मयंक को नुकसान न पहुंचाए.’’ बलराम तोमर त्रिलोचन को लक्ष्य करते हुए बोले.

‘‘हवाई फायर हवा में किए जाते हैं तोमर साहब, नाक की सीध में नहीं.’’ त्रिलोचन का स्वर सख्त हो उठा.

‘‘आप कहना क्या चाहते हैं कि मयंक का हत्यारा मैं हूं?’’ तोमर साहब क्षुब्ध हो कर कांपने लगे.

‘‘जी हां.’’ त्रिलोचन का स्वर दृढ़ था.

‘‘त्रिलोचन तुम सठिया गए हो, तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है…’’ बलराम तोमर दहाड़ उठे, उन के गुस्से का ठिकाना न रहा, ‘‘मैं अपने बेटे की हत्या क्यों करूंगा?’’

‘‘क्योंकि मयंक आप का बेटा नहीं था.’’

बलराम तोमर अवाक रह गए.

‘‘मैं ने तो पहले ही कहा था डैड कि धुरंधर और सुभाषिनी…’’

‘‘शटअप विप्लव.’’ त्रिलोचन आंखें तरेरते हुए बोले, ‘‘मयंक, मेजर चौहान का बेटा था.’’

‘‘डैड, आप इस नतीजे पर कैसे पहुंचे?’’ विप्लव पूछे बिना न रह सका.

‘‘बर्नेट अस्पताल के रजिस्टर में मयंक की जन्मतिथि लिखी हुई है, जिस के हिसाब से बलराम और सुभाषिनी की शादी के सात महीने बाद ही मयंक का जन्म हो गया था. रजिस्टर में इसे नार्मल डिलीवरी के तौर पर दर्ज किया गया था, जिसे बाद में सुभाषिनी ने रिश्वत दे कर ‘प्रीमैच्योर डिलीवरी’ करवा दिया था.’’

‘‘मतलब, सुभाषिनी बलराम तोमर के साथ शादी होने के पहले से गर्भवती थीं?’’ मनोहर अग्रवाल का सवाल था.

त्रिलोचन ने आगे कहा, ‘‘इस की सूचना सुभाषिनी ने अपने पूर्व पति मेजर चौहान को पत्र द्वारा भेजी भी थी. उसी दौरान मेजर चौहान लापता हो गए थे और वह पत्र भेजने वाले के पते पर लौट आया था.’’ त्रिलोचन ने बैग में हाथ डाल कर एक अंतर्देशीय पत्र निकाला, जो पीला पड़ चुका था.

रेशमा की हंसी ने बुलाई मौत

उत्तर प्रदेश के महानगर मुरादाबाद के डीआईजी निवास के नजदीक गौतम नगर की गली नंबर-9 में नन्हे अपनी पत्नी रेशमा और ढाई साल के बेटे व मां के साथ 2 कमरों के मकान में रहता था. 8 मई, 2023 की रात 11 बजे की बात है. नन्हे के पड़ोस में रहने वाली नाजमा की रसोई के शेड पर रात के करीब 11 बजे कुछ गिरने की आवाज आई, जिस से रसोई के ऊपर की सीमेंट की चादरें तक टूट गईं. नाजमा समझी कि घर में चोर आ गए, उस ने अपने परिवार के लोगों को उठाया और जोर से ‘चोर…चोर’ कहते हुए शोर मचा दिया.

शोर सुन कर आसपास के घरों से लोग निकल आए. उन्होंने तभी देखा कि नन्हे अपनी पत्नी रेशमा के बाल पकड़ कर खींचता हुआ अपने घर में ले गया था. उधर नाजमा व अन्य लोगों ने देखा कि रसोई का शेड टूटा हुआ नीचे पड़ा है, वहां पर खून भी पड़ा था. इस के अलावा जिधर से नन्हे अपनी पत्नी रेशमा को घसीट कर ले गया था, वहां पर खून की बूंदें दिखाई दे रही थीं. इकट्ठा हुए लोग यह जानने के लिए नन्हे के घर पहुंच गए थे कि आखिर हुआ क्या है.

खून देख कर लोगों को हुआ शक

नन्हे के घर का गेट अंदर से बंद था. लोगों ने नन्हे को आवाज लगाई और गेट खोलने को कहा. नन्हे बोला कुछ नहीं हुआ मेरी पत्नी रेशमा ने गुस्से में अपनी कलाई की नस काट ली है, वह अस्पताल गई है. पड़ोसी नाजमा ने आवाज दी, ‘‘नन्हे गेट तो खोल, तूने मेरी रसोई का शेड तोड़ दिया है, उसे अब कौन बनवाएगा.’’

इस के बाद नन्हे ने अपने घर का गेट खोल दिया. गेट खुलते ही वहां मौजूद लोग अंदर घर में दाखिल हो गए. उन्होंने नन्हे की पत्नी रेशमा को पूरे घर में तलाशा, वह नहीं मिली. लोगों ने इतना जरूर देखा कि मकान के सेप्टिक टैंक (गटर) के पास खून की बूंदें व खून साफ करने के निशान थे. लोगों को मामला गंभीर दिखा तो उसी समय किसी ने थाना सिविल लाइंस को फोन कर दिया.

उस समय एसएचओ गजेंद्र सिंह रात्रि गश्त की तैयारी कर रहे थे ड्राइवर गाड़ी में बैठा उन के आने का इंतजार कर रहा था. एसएचओ कमरे से बाहर आए. तभी ड्ïयूटी औफिसर ने उन्हें डीआईजी साहब के बंगले के पास गौतम नगर गली नंबर 9 में लोगों की भीड़ जमा होने की सूचना दी.

यह सुन कर एसएचओ सीधे गौतम नगर चले गए. पुलिस को देखते ही लोग अपनेअपने घरों में चले गए. कुछ लोग छतों पर खड़े हुए थे. एसएचओ गजेंद्र सिंह ने पूछा कि नन्हे का घर कौन सा है? लोगों ने इशारे से बताया, ‘‘साहब वो है.’’

नन्हे के मकान का गेट खुला था. पुलिस जब उस के घर में पहुंची तो घर में जगहजगह खून बिखरा पड़ा था. एक छोटा दोढाई साल का बच्चा सोता मिला. पूरा घर खाली था. पुलिस को देख नन्हे के घर में कुछ बुजुर्ग लोग भी आ गए थे. उन्होंने बताया, ‘‘साहब, नन्हे व उस की पत्नी रेशमा में झगड़ा हुआ था, सेप्टिक टैंक के पास ज्यादा खून पड़ा है.’’

एसएचओ गजेंद्र सिंह ने एक सिपाही से कह कर गटर का ढक्कन उठवाया तो उस में कंबल व अंदर कपड़े पड़े थे. उन्हें हटा कर देखा तो वहां मौजूद पुलिस व लोग सन्न रह गए. गटर के अंदर रेशमा की खून से लथपथ लाश पड़ी हुई थी. पुलिस ने शव को गटर से बाहर निकाला. रेशमा का गला काटा गया था.

नन्हे आया पुलिस हिरासत में

इस हत्याकांड की सूचना एसएचओ गजेंद्र सिंह ने अपने उच्च अधिकारियों को दी. सूचना मिलते ही मुरादाबाद के एसएसपी हेमराज मीणा, एसपी (सिटी) अखिलेश भदौरिया, सीओ अर्पित कपूर भी घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने भी घटनास्थल की जांच की.

पुलिस के आने से पहले हत्यारा नन्हे घर से भाग गया था. एसएसपी हेमराज मीणा ने सीओ अर्पित कपूर के नेतृत्व में एक पुलिस टीम का गठन किया. पुलिस टीम आरोपी नन्हे की तलाश में जुट गई. पुलिस को 9 मई, 2023 को सफलता मिल गई.

मुखबिर की सूचना पर टीम ने भीमराव अंबेडकर पुलिस अकादमी के केंद्रीय पुलिस अस्पताल के सामने से नन्हे को उस समय धर दबोचा, जब वह बाहर भागने की फिराक में था. थाना सिविल लाइंस में उच्च अधिकारियों के सामने नन्हे से पूछताछ की गई तो उस ने पत्नी की हत्या करने का जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने पत्नी रेशमा के मर्डर की जो कहानी बताई, इस प्रकार निकली—

रेशमा नन्हे की थी दूसरी बीवी

मुरादाबाद शहर के गौतम नगर निवासी नन्हे की पहली शादी काशीपुर निवासी नाजनीन से हुई थी. नन्हे ईरिक्शा चलाता था. पहली पत्नी नाजनीन से 2 बेटियां पैदा हुईं. किसी वजह से दोनों के बीच अकसर झगड़ा होने लगा तो एक दिन गुस्से में नाजनीन अपनी छोटी बेटी को ले कर अपने मायके काशीपुर चली गई. उस ने नन्हे के साथ रहने को मना कर दिया. बड़ी बेटी नन्हे की बड़ी बहिन के पास है.

पत्नी के वापस न आने की शिकायत नन्हे ने थाना सिविल लाइंस में भी की. पुलिस ने नाजनीन को काशीपुर से थाने बुलाया. थाने में ही नाजनीन ने पति के साथ न रहने की बात दोहरा दी. तब नन्हे ने उसे तलाक दे दिया. यह बात करीब ढाई साल पहले की है.

पत्नी से तलाक के बाद नन्हे अकेला हो गया. फिर करीब 2 साल पहले जिला बिजनौर के कस्बा नेहटौर के कासमपुर लेखराज बाग निवासी रेशमा से निकाह कर लिया था. रेशमा भी पहले से शादीशुदा थी. उस के भी 2 बच्चे थे.

रेशमा की पहले लव मैरिज हुई थी. बदायूं निवासी कन्हैया नाम के युवक के पिता नेहटौर, बिजनौर में लेखराज बाग में आम के बाग की रखवाली करते थे. आम के बाग में कन्हैया भी अपने पापा के साथ ही रहता था.

कन्हैया गठे शरीर का गबरू इंसान था. वह गांव में स्थित दुकान से अकसर घरेलू खानेपीने का सामान लेने जाता था. वहीं पर खूबसूरत रेशमा से उस की आखें चार हुईं. दोनों ही एकदूसरे को चाहने लगे. बाग का एकांत क्षेत्र दोनों के मिलने के लिए काफी मुफीद था. नैन मटक्का होतेहोते दोनों में शारीरिक संबंध बन गए थे.

अवैध संबंध हो जाने के बाद एक दिन कन्हैया व रेशमा दोनों गायब हो गए थे. उस के बाद दोनों ने लव मैरिज कर ली थी. रेशमा उस के साथ हंसीखुशी रह रही थी. वह 2 बच्चों की मां बन चुकी थी. बाद में रेशमा अकसर अपने मायके में रहने लगी थी. यह बात कन्हैया को पसंद नहीं थी. जिस कारण कन्हैया व रेशमा में झगड़ा रहने लगा था. रेशमा का बड़ा बेटा अपने पिता कन्हैया से बहुत लगाव रखता था.

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रेशमा ने भी छोड़ रखा था पहला पति

रेशमा के अब्बू मेहंदी हसन का पहले ही इंतकाल हो चुका था. रेशमा का छोटा बेटा उस समय गोद में था. उस के बाद से रेशमा अपनी ससुराल नहीं गई थी. कन्हैया व रेशमा के बीच संबंध बिलकुल खत्म हो गए थे.

उधर रेशमा की अम्मी नसीमा ने अपने एक परिचित की मदद से नन्हे की मां छोटी से संपर्क साधा कि तुम्हारा बेटा भी अपनी पहली पत्नी नाजनीन को तलाक दे चुका है, मेरी बेटी रेशमा भी अपने पहले पति से अलग हो गई. इसलिए क्यों न नन्हे और रेशमा का निकाह कर दिया जाए.

करीब 2 साल पहले नन्हे ने नेहटौर जिला बिजनौर की रेशमा से निकाह कर लिया. नन्हे रेशमा को पा कर बहुत खुश था, क्योंकि रेशमा बला की खूबसूरत थी. नन्हे रेशमा से बहुत प्यार करता था. नन्हे ईरिक्शा चला कर ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाने में लगा रहता था. थकाहारा नन्हे घर आ कर खाना खा कर सो जाता था.

रेशमा कहीं अपने घर या रिश्तेदारों में हंसहंस कर फोन पर बात करती तो नन्हे को शक पैदा होता था कि उस का किसी गैरमर्द से जरूर कोई चक्कर चल रहा है. इसी बात को ले कर अकसर नन्हे और रेशमा में झगड़ा होता रहता था. शक आदमी को पागल बना देता है, ऐसा ही नन्हे के साथ हुआ था. नन्हे द्वारा पत्नी के चरित्र पर शक करने के बाद रेशमा ने भी नन्हे से दूरी बनानी शुरू कर दी. नन्हे रेशमा की बेवफाई से परेशान था. सुंदर होना भी उस के लिए एक अभिशाप बन गया था.

आदमी की फितरत ही कुछ ऐसी होती है कि सुंदर पत्नी यदि किसी से हंस कर बात कर ले या फोन पर ज्यादा परिवार वालों से बात कर ले तो वह शक करने लगता है. नन्हे के मन में शक ज्यादा गहराने लगा था. घर में आए दिन झगड़े होने लगे थे.

पति को होने लगा रेशमा पर शक

8 मई, 2023 की रात करीब 11 बजे से पहले भी रेशमा के चरित्र को ले कर दोनों में झगड़ा हुआ था. नन्हे का शक इतना बढ़ गया था कि वह कुछ भी करने को तैयार था. उस दिन नन्हे की मां अपनी छोटी लडक़ी शहनाज की ससुराल काशीपुर, उत्तराखंड गई हुई थी. घर में रेशमा के पहले पति कन्हैया से पैदा ढाई साल का बेटा ही मौजूद था.

उस दिन नन्हे खाना खा कर सोने चला गया था. उस की पत्नी रेशमा भी अपने बच्चे के साथ दूसरे कमरे में सोने चली गई थी. उधर नन्हे की नींद जैसे कोसों दूर हो चुकी थी. उसे नींद नहीं आ रही थी. मन में तरहतरह के विचार आ रहे थे.

वह उठा व घर में रखा छुरा उठा कर दूसरे कमरे में सो रही रेशमा के पास पहुंच गया. उस ने उस की गरदन जैसे ही छुरा से रेतनी शुरू की रेशमा की नींद खुल गई. पूरा जोर लगा कर रेशमा ने नन्हे को पलंग से नीचे गिरा दिया और वह कमरे से बाहर आ गई थी.

घायल अवस्था में छत से कूद गई थी रेशमा

जान बचाने का रास्ता नहीं था. घायल रेशमा भाग कर मकान की सीढिय़ों पर चढ़ गई. वहां से उस ने बराबर में रहने वाली नाजमा के घर में छलांग लगा दी. वह घर में न गिर कर गली में गिर गई. ठीक उसी समय नन्हे भी पीछा करते हुए वहां पहुंचा. उस ने भी पड़ोसी के घर में छलांग लगा दी. वह नाजमा की रसोई, जिस की छत सीमेंट के चादरों की थी, पर जा कर गिरा. उस के कूदते ही रसोई का शेड धड़ाम से टूट कर नीचे गिरा. बहुत जोर की आवाज हुई.

शोर सुन कर नाजमा ने समझा कि घर में चोर आ गए हैं, उस ने शोर मचा दिया. चोरचोर सुनते ही पड़ोसी लोग अपनेअपने घरों से निकल आए. नाजमा और पड़ोसियों ने देखा नन्हे रेशमा के बाल पकड़ कर खींचते हुए अपने घर में ले गया. वहां घायल रेशमा नन्हे के पैरों पर पड़ कर अपनी जान की भीख मांगने लगी. नन्हे पर भूत सवार था. उस ने एक झटके में रेशमा का गला रेत कर मौत के घाट उतार दिया.

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आननफानन में नन्हे ने अपने सेप्टिक टैंक (गटर) का ढक्कन उठा कर रेशमा के शव को उस में डाल कर ऊपर से कंबल व अन्य कपड़े डाल दिए. जो खून घर में पड़ा था जो उसे दिखाई दिया, उसे उस ने साफ कर दिया था.

मोहल्ले वाले जब पुलिस बुलाने की कोशिश कर रहे थे तो पुलिस के आने से पहले ही नन्हे फरार हो गया था. पुलिस ने रेशमा की हत्या की सूचना उस के मायके वालों को दी. रेशमा की अम्मी नसीमा सूचना मिलते ही अपने बड़े बेटे नाजिम व छोटी बेटी व बहनोई को ले कर मुरादाबाद आ गई. रेशमा की लाश देख कर घर के लोगों का रोरो कर बुरा हाल था.

रेशमा की अम्मी नसीमा ने थाना सिविल लाइंस में नन्हे के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवाई. पोस्टमार्टम के बाद रेशमा का शव अपने घर नेहटौर ले कर चली गई थी. साथ में रेशमा का ढाई साल का बेटा भी अपने साथ ले गई थी. वहां जा कर उन्होंने रेशमा को दफन कर दिया था. नन्हे से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे 9 मई, 2023 को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

रोशन न हो सका चोरी का चिराग

हरिद्वार में बेलवाला पुलिस चौकी के फोन की घंटी कुछकुछ देर बाद बज रही थी. 3 बार पहले भी लंबी रिंग के बाद बंद हो चुकी थी. तभी चौकी इंचार्ज प्रवीण रावत वहां पहुंच गए. पास खड़े सिपाही ने उन्हें सैल्यूट मारा. अपनी कुरसी पर बैठने से पहले रावत नाराज होते हुए बोले, “इतनी देर से फोन की घंटी बज रही है, उठाते क्यों नहीं हो?

“उसी का फोन है साहब जी…! सिपाही तुरंत खीजता हुआ बोला.

“किसका? रावत ने पूछा.

“जी साहब जी, उसी लेडी रेखा का! जिस का बच्चा 9 दिनों से लापता है! सिपाही बोला.

“रेखा का है, तो क्या हुआ? उसे जवाब नहीं देना है क्या? तब तक फोन की घंटी बंद हो चुकी थी.

“साहब जी, वह सुबह से दरजनों बार फोन कर चुकी है…मैं उसे जवाब देतेदेते तंग आ गया हूं…बारबार वही रट लगाए रहती है-मेरा बाबू कब मिलेगा… भूखा होगा…मेरा दूध कब पिएगा बाबू!

“अरे, वह मेरे मोबाइल पर भी कई बार कौल कर चुकी है….मैं ने उसे बात कर समझा दिया है. बोल दिया है कि उस का बच्चा जल्द उसे मिल जाएगा.’’ यह कहते हुए रावत अपनी कुरसी पर बैठ गए. वह अपने बगल में रखी फाइल के पन्ने पलटने लगे. तभी फिर फोन पर रिंग होने लगा. इस बार रावत ने ही फोन का रिसीवर उठाया.

“हैलो! बोलो…तुम्हें तो मैं ने आधा घंटा पहले ही बता दिया था न!… तुम्हारे बच्चे की तलाशी के लिए हम ने पुलिस की 4 टीमें लगा दी हैं…अभी मैं उन की ही रिपोर्ट देख रहा हूं. मैं मानता हूं कि बच्चे के बिना आप बेचैन हैं लेकिन बारबार फोन करने से बच्चा तो मिलेगा नहीं. तुम परेशान मत हो, जल्द तुम्हारा बच्चा मिल जाएगा…पुलिस पर भरोसा रखो और अपना भी ख्याल रखो…रोना-बिलखना बंद करो….!’’ यह कहते हुए रावत ने फोन कट कर दिया.

फोन पर रेखा को आश्वसन देने के बाद चौकी इंचार्ज ने पास रखे गिलास का पानी पी लिया और सिपाही से चाय मंगवाने के लिए कहा. सिपाही ने तुरंत औफिस अटेंडेंट को चाय के लिए आवाज लगा दी और रावत  फाइल देखने लगे. कुछ समय में चाय भी आ गई. चाय पर नजर डालते हुए रावत बोले,”अरे, बिस्कुट नहीं मंगवाया’’

“जी सर’’ कह कर सिपाही चुपचाप वहीं खड़ा रहा. रावत बोले “एक पैकेट कोई बिस्कुट ले आओ, और हां, दरोगाजी को यहां आने के लिए बोलते जाना.’’

“जी सर!’’ कहता हुआ सिपाही चला गया.

थोड़ी देर में रावत अपने सामने बैठे एसआई को फाइल के पन्ने पलटते हुए कुछ समझाने लगे. दरअसल, वह फाइल फोन करने वाली लेडी रेखा के बच्चे के लापता होने से संबंधित थी.

हर की पौड़ी से हुआ बच्चा चोरी

रेखा का बच्चा 17 जून, 2023 की आधी रात से ही गायब था. इस की जानकारी उसे 18 जून की सुबह 5 बजे तब हुई, जब वह सो कर उठी. गरमी का मौसम होने के कारण 38 वर्षीया रेखा अपने 6 माह के बेटे अभिजीत के साथ घर के बाहर सोई हुई थी. सुबह उस की नींद खुली तब उस ने पाया कि बेटा पास में नहीं था.

बच्चे को नहीं पा कर उस ने बगल में ही सो रहे अपने पति शिव सिंह को जगाया. रेखा का देवर भोटानी भी उस से कुछ दूरी पर ही सोया हुआ था. बच्चे अभिजीत के लापता होने के कारण तीनों घबरा गए. वे समझ नहीं पा रहे थे कि बच्चा आखिर गया कहां?

वह घुटने और हाथ के बल ही चल पाता था. उसे रेखा ने अपने और पति के बीच में सुलाया था. बिछावन भी जमीन से ऊंचाई पर था. वहां से वह खुद नहीं उतर सकता था. उन्हें यह समझते देर नहीं लगी कि उन का बच्चा किसी ने चुरा लिया है.

यह घटना उत्तराखंड में हरिद्वार स्थित हर की पौडी के निकट ऊर्जा निगम कार्यालय के परिसर की है. धार्मिक स्थान होने के कारण उस समय स्थानीय लोग हर की पौड़ी के निकट पूजाअर्चना और गंगा आरती देखने में व्यस्त थे. चारों ओर लाउडस्पीकरों से भजन और मंदिरों से घंटे घड़ियाल की तेज आवाज आ रही थी. यह स्थान हरिद्वार नगर कोतवाली की रोडी बेलवाला पुलिस चौकी के अंतर्गत आता है.

रेखा अपने पति शिव सिंह और देवर भोटानी के साथ आसपास के क्षेत्र में बच्चे की तलाश करने लगी. वे एकदम बदहवास से हो गए थे. रेखा काफी बदहवास थी. बारबार दुपट्टे से आंखों से आंसू पोछे जा रही थी. जब भी उन्हें आसपास कोई छोटा बच्चा दिखता उसे गौर से देखने लगती.

हर की पौड़ी के निकट वे एक घाट से दूसरे घाट पर घूमघूम कर बच्चे को तलाश करते रहे, मगर उन्हें उन का बच्चा नहीं मिला. उस बारे में कोई जानकारी भी नहीं मिली. जबकि वह सैकड़ों रहागीरों से अपने बच्चे के बारे में पूछ चुकी थी.

इसी प्रकार 3 घंटे बीत चुके थे. अंत में वे तीनों थक हार कर रोडी बेलवाला पुलिस चौकी गए. वहां पर चौकी प्रभारी प्रवीण रावत से मिल कर अपनी परेशानी बताई. उन्होंने प्रवीण रावत को बच्चा चोरी होने की शिकायत दर्ज कर उस की तलाशी की गुहार लगाई.

अपने इलाके से बच्चा चोरी होने की बात सुन कर प्रवीण रावत चौंक पड़े. उन से बच्चे के बारे में पूरी जानकारी लेने के बाद रावत ने उस स्थान पर जा कर मुआयना किया जहां तीनों रात में सोए थे. इस के बाद रावत ने वहां पर आसपास रहने वाले लोगों से बच्चे के बारे में पूछताछ की. रावत ने रेखा के मोबाइल से बच्चे की कई तस्वीरें अपने मोबाइल में वाट्सएप करवा लीं.

बच्चे को तलाशने में जुटी पूरे जिले की पुलिस

जब प्रवीण रावत को लापता बच्चे के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली, तब उन्होंने इस मामले की जानकारी कोतवाल हरिद्वार भावना कैंथोला को भी दी. भावना कैंथोला ने सब से पहले बच्चे अभिजीत के चोरी होने की जानकारी सीओ (सिटी) जूही मनराल, एसपी सिटी स्वतन्त्र कुमार तथा एसएसपी अजय सिंह को भी दे दी. रावत ने इस मामले में उन का काररवाई से संबंधित आदेश और दिशानिर्देश भी मांगा.

अजय सिंह के निर्देश पर भावना कैंथोला ने बच्चा चोरी की घटना का बच्चे के हुलिए सहित प्रसारण हरिद्वार पुलिस कंट्रोल के वायरलैस द्वारा करवा दिया. इस के बाद कैंथोला ने कुछ पुलिसकर्मियों को बच्चे की तलाश में रेलवे स्टेशन तथा स्थानीय बस अड्डों पर भी भेज दिया.

बच्चे के परिजन तथा पुलिस वाले शाम तक बच्चे की तलाश करते रहे, मगर शाम तक पूरा हरिद्वार छान लेने के बाद भी पुलिस को लापता बच्चे के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाई. हालांकि हरिद्वार पुलिस पिछले 6 माह में लापता 3 बच्चों को सकुशल बरामद कर उन के परिजनों को सौंप चुकी थी. रेखा का लापता बेटे की उम्र मात्र 6 माह ही थी. इसे देखते हुए एसएसपी अजय सिंह ने उस की सकुशल बरामदगी करने के लिए मेला नियंत्रण कक्ष में अपने अधीनस्थ कर्मचारियों की एक मीटिंग बुलाई.

इस मीटिंग में एसपी (सिटी) स्वतंत्र कुमार, सीओ जूही मनराल, कोतवाल नगर भावना कैंथोला, एसपी (क्राइम) रेखा यादव, सीआईयू प्रभारी रणजीत तोमर तथा एसएसपी के जन संपर्क अधिकारी विपिन चंद पाठक शामिल हुए थे. बैठक में ही गहन विचार विमर्श हुआ कि बच्चे की तलाशी किस प्रकार से की जाय. इसी के साथ एकमत से एक निर्णय लिया गया.

साथ ही अजय सिंह ने सीआईयू प्रभारी को सब से पहले ऊर्जा निगम की कालोनी से ले कर रेलवे स्टेशन व बस अड्डे जाने वाले मार्ग पर लगे सीसीटीवी कैमरे चेक करने का निर्देश दिया. इस के बाद उन्हें वहां पर बच्चे के लापता होने वाले स्थान का साइट से डाटा जुटाने के निर्देश दिए.

कोतवाल भावना कैंथोला ने रेखा के देवर भोटानी पुत्र धर्म सिंह निवासी अंबेडकर नगर, थाना विजय नगर गाजियाबाद उत्तर प्रदेश की तहरीर पर बालक अभिजीत के चोरी होने का मुकदमा भादंवि धारा 363 के अंतर्गत अज्ञात चोरों के खिलाफ दर्ज कर लिया.

इस प्रकरण की विवेचना थानेदार सुनील रावत को सौंपी गई थी. भोटानी ने पुलिस को बताया कि वह अपने भाई शिव सिंह, भाभी रेखा तथा अपने 6 माह के भतीजे अभिजीत के साथ गत 15 जून, 2023 को हरिद्वार घूमने के लिए आया था. इसी दौरान 17 व 18 जून 2023 की मध्य रात्रि में उस का भतीजा चोरी हो गया.

तकनीकी जांच के सहारे आगे बढ़ती रही जांच इस तरह तमाम जानकारी के बाद सीआईयू प्रभारी रणजीत तोमर, सीआईयू के सिपाहियों सतीश नौटियाल और निर्मल बच्चा चोरी वाली जगह पर इस्तेमाल किए गए मोबाइल नंबरों की जानकारी जुटाने में लग गए.

इस के साथ ही भावना कैंथोला ने घटनास्थल से ले कर रेलवे स्टेशन व रोडवेज बस स्टैंड तक लगे लगभग डेढ़ सौ सीसीटीवी कैमरों की फुटेज को चेक किया. हरिद्वार में चूंकि बस स्टैंड व रेलवे स्टेशन आमनेसामने ही हैं. अत: वहां पर लगे कैमरों की फुटेज को पुलिस चेक करने में जुट गई.

इस तरह से की गई गहन छानबीन के तहत तोमर ने संदिग्ध मोबाइल नंबरों को चेक किया. उन्होंने पाया कि कुछ मोबाइल नंबर ऐसे भी थे, जो घटनास्थल के पास भी चले थे और हरिद्वार रोडवेज बस स्टैंड के पास भी उन नंबरों से बातचीत हुई थी. इस के अलावा हर की पौड़ी के निकट कुछ लोग बाद में रेलवे स्टेशन से व बसों द्वारा वापस जाते दिखाई दिए.

वापस जा रहे इन लोगों की छानबीन करने के लिए पुलिस की 4 टीमों का गठन किया था. इन टीमों को संदिग्ध लोगों के मोबाइल की जानकारी करने के लिए लगाया गया था. इस के अलावा पुलिस ने कुछ मुखबिरों को भी लगा दिया था. हरिद्वार जिले की आधी से ज्यादा पुलिस फोर्स बच्चे की तलाश में जीजान से जुट गई थी. फिर भी एक सप्ताह बीत जाने पर भी कोई सुराग नहीं मिल पाया था.

इधर बच्चे के लापता होने के गम में रेखा का रोरो कर बुरा हाल हो गया था. वह बारबार पुलिस को फोन कर बच्चे के बारे में पूछती रहती थी. उस की स्थिति विक्षिप्तों जैसी हो गई थी. पति और देवर भी बारबार थाने का के चक्कर लगा रहे थे. वे अपने स्तर से भी बच्चे की तलाशी के लिए हर की पौड़ी, रेलवे स्टेशन, बाजार, बस स्टैंड आदि जगहों पर दिन में कई बार चक्कर काट चुके थे. यहां तक कि लक्ष्मण झूला तक जा चुके थे.

जांचपड़ताल से मिली जानकारियों के आधार पर तैयार हो चुकी मोटी फाइल का अध्ययन करते हुए रावत को कुछ मोबाइल नंबरों पर संदेह हुआ. वे नंबर शक के दायरे में इसलिए आ गए थे, क्योंकि घटना के दिन कुछ समय बाद ही वह स्विच्ड औफ हो गए थे. पुलिस की 2 टीमें उन मोबाइल नंबरों की जानकारी जुटाने में लगी हुई थी.

वह 29 जून, 2023 का दिन था. सीआईयू प्रभारी रणजीत तोमर और कोतवाल भावना कैंथोला को भी बच्चा चोरी के मामले में एक मोबाइल नंबर पर शक हो रहा था. उन्होंने उस मोबाइल नंबर के बारे में पूरी जानकारी जुटाने की योजना बनाई.

वह मोबाइल नंबर दिल्ली के थाना छावला निवासी प्रसून कुमार पुत्र प्रमोद कुमार का निकला. उन के बारे में आगे की जानकारी लेने के लिए पुलिस की 2 टीमें दिल्ली जा पहुंचीं. जल्द ही उन का पता मालूम हो गया.

स्थानीय लोगों ने हरिद्वार पुलिस को बताया कि प्रसून कुमार दिल्ली में सुरक्षा गार्ड की नौकरी करता है. उस की बीवी प्रीति काफी अरसे से दिल्ली के कुतुब विहार क्षेत्र में एक ब्यूटी पार्लर चलाती है. इस के अलावा हरिद्वार पुलिस को यह भी जानकारी मिली थी कि कुछ दिन पहले प्रीति ने एक पुत्र को जन्म दिया था.

हरिद्वार पुलिस पहुंची दिल्ली

यह जानकारी मिलते ही हरिद्वार पुलिस दिल्ली के दंपति प्रसून और प्रीति के घर जा धमकी. इस से पहले उन्होंने उन के मोबाइल नंबर की लोकेशन का विश्लेषण किया. उस से पता चला कि वे बच्चा गायब होने वाले दिन हरिद्वार में थे.

इस बारे में हरिद्वार पुलिस टीम ने एसएसपी अजय सिंह से विचार विमर्श किया. इस के बाद अजय सिंह ने उन्हें आगे की छानबीन के निर्देश दिए. हरिद्वार पुलिस प्रसून के मोबाइल नंबर की लोकेशन के आधार पर दिल्ली के मकान नं. 422, कुतुब विहार, गोयल डेरी जा धमकी और उसे गिरफ्तार कर लिया.

प्रसून से जब पुलिस ने बच्चा चुराने की बाबत सख्ती से पूछताछ की, तब उस ने जल्द ही अपना अपराध स्वीकार लिया. साथ ही इस में अपनी पत्नी का हाथ होना बताया.

इस के बाद हरिद्वार पुलिस ने प्रसून की निशानदेही पर उस के घर में सोए बच्चे अभिजीत को बरामद कर लिया. साथ ही दूसरी आरोपी प्रसून की पत्नी प्रीति को महिला सिपाही गुरप्रीत ने हिरासत में ले लिया. बच्चा समेत बच्चा चोर दंपति को जांच टीम हरिद्वार ले आई.

इस तरह से हरिद्वार पुलिस ने बच्चा चोरी की गुत्थी को सुलझा लिया था. बच्चे के लापता होने के 14वें दिन रेखा व शिव सिंह को उन का बच्चा सौंप दिया.

हरिद्वार में आने के बाद प्रसून व प्रीति से एसएसपी अजय सिंह ने बच्चा चुराने की सिलसिलेवार जानकारी ली. इस पूछताछ में प्रीति ने पुलिस से कुछ भी नहीं छिपाया और बच्चा चुराने की घटना को पुलिस के सामने सचसच ब्यान कर दिया. प्रीति ने हरिद्वार पुलिस को जो जानकारी दी, वह इस प्रकार है-

सास के तानों से परेशान हो कर चुराया बच्चा

प्रीति चौडा गांव, जिला संभल, उत्तर प्रदेश की रहने वाली है. प्रसून उस का दूसरा पति है. इस से 16 साल पहले उस की शादी दिल्ली निवासी प्रवीण कुमार से हो चुकी थी. प्रवीण से उस के 2 बच्चे हुए. कुछ दिन बाद प्रवीण से प्रीति का मनमुटाव हो गया और उन के बीच तलाक हो गया. पहले पति से तलाक होने के बाद प्रीति ने भविष्य में संतान नहीं होने के लिए औपरेशन भी करा लिया था.

जब प्रसून से उस की दूसरी शादी हुई तब 2 साल बाद उसे ससुराल में ताने मिलने लगे. सास ने उस की नाक में दम कर दिया. प्रीति ने सास को अपने औपरेशन के बारे में जानकारी नहीं दी थी. परिवार के वारिस न होने के कारण सास के ताने दिनप्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे थे. एक दिन तो सास ने बच्चा नहीं होने के कारण उसे घर से ही निकाल दिया.

बच्चे की लालसा में प्रीति अकसर परेशान रहने लगी थी. उस का 12 जून, 2023 को अपने पति प्रसून के साथ दिल्ली से हरिद्वार जाना हुआ. उस ने हरिद्वार में रह कर कोई छोटा बच्चा चुराने की योजना बना रखी थी.

17 जून, 2023 की आधी रात को उसे तब मौका मिल गया जब उस ने ऊर्जा निगम परिसर में एक महिला को अपने बच्चे के साथ बेसुध अवस्था में सोते हुए देखा. मौका मिलते ही प्रीति ने चुपचाप बच्चे को गोद में उठा लिया और अपने पति के साथ बस द्वारा दिल्ली चली गई.

इतनी बात बताते बताते प्रीति भावुक हो गई. इस के बाद इस घटना के विवेचक सुनील रावत ने प्रीति के यह बयान रिकौर्ड कर लिए. बाद में पुलिस ने प्रीति के कब्जे से वह मोबाइल फोन जिस में बच्चा चोरी से संबंधित बातचीत रिकौर्ड हुई थी, बरामद कर लिया.

एसएसपी अजय सिंह ने मेला नियंत्रण कक्ष में एक प्रैसवार्ता आयोजित कर बच्चे अभिजीत की चोरी की घटना के खुलासे की जानकारी सार्वजनिक कर दी. अगले दिन पहली जुलाई, 2023 को पुलिस ने प्रसून व प्रीति को कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पुनर्जन्म : कौन था मयंक का कातिल? – भाग 4

रात आधी से ज्यादा गुजर गई थी. इंस्पेक्टर अनिल कार्तिकेय आरामकुर्सी पर जरूर बैठे थे, किंतु उन की आंखों में नींद नहीं थी. त्रिलोचन की हिदायत के अनुसार उन्होंने रजत के कमरे के बाहर 2 सिपाहियों को पहरे पर लगा दिया था और स्वयं भी उस कमरे के दरवाजे पर निगाहें जमाए हुए थे. कमरे के अंदर जीरो पावर के बल्ब की रोशनी थी. कमरे में लेटे रजत और सुकुमार सो चुके थे.

अचानक ही कमरे के अंदर से किसी की चीख उभरी. अनिल उछल कर कमरे की ओर भागे. दोनों सिपाही भी हड़बड़ा कर अंदर की ओर दौड़े. एक सिपाही ने लाइट जला दी. अंदर लोमहर्षक दृश्य था. रजत सफेद चादर ओढ़े करवट के बल लेटा था, उस की पीठ में चाकू घुसा हुआ था.

‘‘रजत…’’ इंसपेक्टर की लगभग चीत्कार सी निकल गई.

‘‘मैं यहां हूं अंकल…’’ दूसरे पलंग से दबीदबी सी आवाज सुनाई दी. अनिल ने देखा चादर के नीचे दुबका रजत सहमी हुई आंखों से उन की ओर ही ताक रहा था.

‘‘माइ गौड, तो क्या यह सुकुमार है?’’ अनिल के मुंह से निकला.

तभी बाहर गोली चलने के साथ ही 2 आदमियों के दौड़ने की पदचाप सुनाई दी. त्रिलोचन हांफते हुए अंदर दाखिल हुए.

‘‘गजब हो गया चाचाजी,’’ अनिल की असहज आवाज उभरी, ‘‘किसी ने सुकुमार को…’’

‘‘सुकुमार को?’’ त्रिलोचन के मुंह से हैरत से निकला. वह सुकुमार की नब्ज टटोलते हुए बोले, ‘‘इंस्पेक्टर, जल्दी करो. इसे तुरंत अस्पताल पहुंचाना होगा.’’

आननफानन में सुकुमार को अस्पताल पहुंचा दिया गया. सुखनई के जंगल में भीड़ जमा थी. त्रिलोचन के साथ कुछ पुलिस वाले और एक क्रेन थी.

‘‘इंस्पेक्टर साहब,’’ त्रिलोचन ने अनिल को संबोधित किया, ‘‘आप की ड्यूटी क्रेन ड्राइवर के बगल में रहेगी. जैसे ही आप का मोबाइल बजे, आप क्रेन को ऊपर खींचने का इशारा कर दीजिएगा.’’

‘‘आप खतरा क्यों मोल ले रहे हैं चाचाजी? आप कहें तो किसी सिपाही को खाई में उतार देता हूं.’’

‘‘धन्यवाद, मैं यह काम खुद करना चाहता हूं. और नीरव, जब तुम्हारा मोबाइल बजे तो समझना कि क्रेन को रोकना है, विप्लव के मोबाइल के बजने का मतलब होगा कि क्रेन को नीचे जाना है.’’ त्रिलोचन ने दोनों बेटों के ऊपर गहरी नजर डाली. इस के बाद उन्होंने मास्क पहना और क्रेन की रस्सी के सहारे सुखनई नदी के कगार पर उगे घने जंगल के अंदर झूल गए.

कगार की दीवार पर लंबवत उगे पेड़ पतले लेकिन काफी घने थे. त्रिलोचन कुछ ही देर में उस अबूझ खाई में अदृश्य हो गए. अनिल का मोबाइल बजा और त्रिलोचन को धीरेधीरे ऊपर खींचा गया. लोगों की नजर उन पर पड़ी तो रोंगटे खड़े हो गए. त्रिलोचन के हाथों में एक कंकाल था.

कंकाल पर चिथड़ा चिथड़ा कपड़े झूल रहे थे. आंखों की जगह 2 गड्ढे नजर आ रहे थे. बड़ा ही भयावह दृश्य था.

दूसरे दिन सारे लोग हाल में जमा थे, त्रिलोचन अंदर आए तो सब की नजरें उन की ओर उठ गईं, उन्होंने बड़ा सा एक काला बैग थाम रखा था. त्रिलोचन ने वहां मौजूद लोगों के सामने अपना स्थान ग्रहण किया ही था कि उन्हें धुरंधर और उन की पत्नी सुखदेवी ने आ घेरा, ‘‘त्रिलोचनजी, हमारा बेटा कैसा है? कहां है वह उसे किस अस्पताल में रखा गया है?’’

त्रिलोचन ने एक पर्ची पर कुछ लिख कर सुखदेवी को थमा दी. पतिपत्नी ने पर्ची पर नजर डाली, फिर नासमझों की तरह अपनी जगह पर जा बैठे.

‘‘लेडीज ऐंड जेटलमेन,’’ त्रिलोचन उठ कर खड़े होते हुए बोले, ‘‘आज सच्चाई सब के सामने आ जाएगी. मयंक की हत्या हुई थी या उस की मौत एक हादसा थी, इस रहस्य पर से परदा उठने वाला है,’’ तभी एक व्यक्ति हाल में दाखिल हुआ.

‘‘मेजर चौहान, आप आगे आ जाइए.’’ त्रिलोचन का इशारा पा कर मेजर चौहान अगली पंक्ति में जा बैठे. वह वहां मौजूद ज्यादातर लोगों के लिए अपरिचित थे, पर उन्हें देख कर सुभाषिनी के चेहरे का रंग उड़ गया था.

‘‘जस दिन मयंक की मौत हुई, उस शाम को एक शिकार पार्टी सुखनई के जंगल में आदमखोर तेंदुए को मारने के लिए पहुंची थी.’’ त्रिलोचन ने कहना शुरू किया, ‘‘जहां मचान बनाए गए थे, वहां पर ज्यादातर पतले पेड़ थे, अत: एक पेड़ पर एक आदमी के बैठने के लिए मचान बनाया गया था. बलराम तोमर और उन की पत्नी सुभाषिनी के मचान पासपास के पेड़ों पर थे, उन से कुछ दूरी पर लगभग उसी स्थिति में मयंक और सुरबाला के मचान थे. धुरंधर तोमर का मचान मयंक के बाईं ओर वहां से लगभग 20 फुट दूर था.’’

उन्होंने आगे कहा, ‘‘बलराम तोमर के पास मैनलिकर सूनर राइफल थी, धुरंधरजी चेक राइफल से लैस थे, मयंक डी.बी. गन लिए था और सुभाषिनीजी के पास माउजर व सुरबाला के पास प्वाइंट 32 बोर का रिवाल्वर था. ये इन लोगों के पारिवारिक हथियार थे.’’

त्रिलोचन ने सामने बैठे बलराम तोमर से पूछा, ‘‘मैं ने ठीक कहा न तोमर साहब?’’

‘‘बिलकुल ठीक.’’ तोमर साहब ने सहमति व्यक्त की.

‘‘शिकारियों की इस टोली के अलावा वहां एक और शिकारी मौजूद था.’’ यह  कहते हुए त्रिलोचन की नजर मेजर चौहान के ऊपर जा ठहरी, ‘‘एम आई राइट मेजर?’’

मेजर की निगाहें झुक गईं. त्रिलोचन आगे बोले, ‘‘मेजर ने अपनी जीप जंगल में काफी पीछे छोड़ दी थी और वहां से पैदल चलते हुए घटनास्थल पर पहुंच गए थे. इस के बाद यह मचानों से कुछ दूरी पर मौजूद एक झुरमुट में छिप कर अंधेरा होने का इंतजार करने लगे.’’

‘‘आप ने काफी हिम्मत दिखाई थी मेजर, आप झाडि़यों में छिप कर आदमखोर का इंतजार कर रहे थे?’’ अनिल के स्वर में तारीफ थी.

‘‘नहीं इंसपेक्टर साहब,’’ उस ने अनिल की ओर गर्दन घुमाई, ‘‘मेजर वहां तेंदुए का नहीं, एक इंसान का शिकार करने पहुंचे थे.’’

त्रिलोचन की बात सुन कर हाल में मौजूद हर शख्स चौंक गया.

‘‘यह किस की हत्या करना चाहते थे डैड?’’ विप्लव ने पूछा.

‘‘अपनी पूर्व पत्नी सुभाषिनी की.’’

लोग हैरान थे. सुरबाला की समझ में कुछ नहीं आया. वह बुदबुदाई, ‘‘अम्मा और इन की पूर्व पत्नी…?’’

‘‘मैं स्पष्ट करता हूं.’’ त्रिलोचन ने कहा, ‘‘सुभाषिनी की पहली शादी मेजर चौहान से हुई थी. शादी के कुछ दिनों बाद मेजर को कश्मीर जाने का अर्जेंट आदेश मिला. फलस्वरूप इन्हें कश्मीर में अपनी नई तैनाती पर जाना पड़ा. वहां शत्रु सेना बारबार घुसपैठ करने की कोशिश कर रही थी. इन्हें वहां गए कुछ ही दिन हुए थे कि एक दिन अचानक इन की चौकी पर हमला हुआ. मेजर के कई साथी शहीद हो गए. दुश्मन मेजर को जबरन बंधक बना कर अपने साथ ले गए.’’

हाल में एकदम सन्नाटा छा गया. त्रिलोचन पलभर रुक कर आगे बोले, ‘‘मेजर के लापता होने की खबर पा कर सुभाषिनी बेहाल हो गईं. सब से बड़ा झटका इन के मांबाप को लगा. मेजर के जिंदा होने की संभावना न के बराबर थी. इधर एक दूसरी समस्या उठ खड़ी हुई थी, अत: सुभाषिनी के मातापिता को उन के पुनर्विवाह का निर्णय लेना पड़ा.’’

त्रिलोचन सुभाषिनी पर एक नजर डाल कर आगे बोले, ‘‘फिर सुभाषिनी की बलराम तोमर से शादी कर दी गई, तोमर साहब विधुर थे. शादी के 2-3 हफ्ते बाद तोमर साहब को दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा, वहां इन के चाचाजी गुजर गए थे और उन्हें उन की जमीन जायदाद का प्रबंध करना था.’’ तोमर साहब एकटक उन्हीं की ओर देख रहे थे.

त्रिलोचन ने पूछा.  ‘‘आप कुछ कहना चाहते हैं?’’

‘‘आप की जानकारी जबरदस्त है.’’

‘‘धन्यवाद, हां तो, मैं बता रहा था कि तोमर साहब को विदेश में कई महीने गुजारने पड़े. जब मयंक का जन्म हुआ और सुभाषिनी जी ने फोन पर उन्हें खबर दी तो उन की खुशी का ठिकाना न रहा. वह लौट आए.’’

त्रिलोचन ने बैग से एक पुरानी पत्रिका निकाली. उन्होंने देखा, विप्लव आतुरता से उन की ओर देख रहा था. उन्होंने पूछा, ‘‘हां, बोलो विप्लव.’’

‘‘डैड, मेरी पड़ताल से साबित हुआ है कि धुरंधर और सुभाषिनी कालेज में सहपाठी थे और दोनों के बीच रोमानी रिश्ते थे और बाद में भी…’’ वह कुछ कहतेकहते रुक गया.

सुभाषिनी का चेहरा रंगहीन हो गया और धुरंधर तोमर दांत पीसते हुए उठ खड़े हुए.

‘‘विप्लव, डोंट जंप टू द कन्क्लूजन. मेरी नजर में ये दोनों पाक दामन हैं.’’ त्रिलोचन के इस कथन का धुरंधर पर खासा असर हुआ और वह शांत हो कर अपनी कुर्सी पर बैठ गए.

‘‘मेरी बात अधूरी रह गई थी, मैं आप को बताना चाहता हूं कि कुछ समय बाद मेजर चौहान दुश्मन की गिरफ्त से छूट आए थे. लेकिन जब तक वह आए तब तक सुभाषिनी और तोमर साहब की शादी हो चुकी थी. इस का नतीजा यह निकला कि मेजर चौहान ने सुभाषिनी को बेवफा समझा, क्योंकि इन्होंने मेजर का इंतजार नहीं किया था और गर्भवती होने की वजह से दूसरी शादी के लिए राजी हो गई थीं. हालांकि ऐसा इन्होंने मजबूरी में किया था, लेकिन मेजर की नजरों में यह कुसूरवार थीं. इसलिए इन्होंने अपनी पूर्व पत्नी से बदला लेने का फैसला कर लिया.

पुनर्जन्म : कौन था मयंक का कातिल? – भाग 3

उस हादसे को कई साल बीत गए थे. लेकिन आज अचानक रजत के रूप में मयंक सुरबाला के सामने आ गया था. सुरबाला अभी पुरानी यादों से उबर भी नहीं पाई थी कि उस का मोबाइल बज उठा. उस ने उठने की कोशिश करते हुए मोबाइल कान से लगाया.

‘‘सुरबालाजी,’’ उधर से आवाज आई, ‘‘त्रिलोचन बोल रहा हूं, आप सुन रही हैं न?’’

‘‘जी, जी हां.’’

‘‘आप की जान को खतरा है. अपने कमरे के दरवाजे और खिड़कियां ठीक से बंद कर लीजिए और बाहर मत निकलिएगा.’’ इस के साथ ही संपर्क टूट गया. सुरबाला चेतावनी को ठीक से समझ भी नहीं पाई थी कि उस ने किसी को अंदर आते देखा. उस काली छाया के हाथ में हथियार जैसी कोई चीज मौजूद थी. सुरबाला भयभीत हो कर जोर से चीखी और गिरती पड़ती दूसरे दरवाजे से निकल कर सीढि़यों की ओर भागी. छाया हथियार ताने हुए उस के पीछे झपटी. लेकिन सास के कमरे में चली जाने की वजह से वह बच गई.

त्रिलोचन के 2 बेटे थे, नीरव और विप्लव. उन्होंने उन दोनों को अपने जासूसी के पेशे से जोड़ रखा था. विप्लव और नीरव अपनेअपने तरीके से पिता की मदद करते थे.

नीरव ने अपने सामने बैठे व्यक्ति का गौर से मुआयना किया और अपने शब्दों पर जोर देते हुए बोला, ‘‘मेजर चौहान, आप उस रात कहां थे जिस समय मयंक की हत्या हुई थी?’’

‘‘अपने घर पर, और कहां?’’

‘‘लेकिन हमारी तफ्तीश बताती है कि आप उस रात सुखनई के जंगल में मौजूद थे…’’ नीरव ने देखा, चौहान चौंक गए थे. नीरव ने बिना मौका दिए अगला सवाल दाग दिया, ‘‘क्या करने गए थे वहां?’’

‘‘शिकार…’’

‘‘जानवर का या इंसान का?’’

‘‘व्हाट डू यू मीन?’’ मेजर तैश में आ कर चिल्ला पड़े, ‘‘ठीक है, आप जासूस हैं. लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि आप मेरे ऊपर कोई भी आरोप लगा दें.’’

नीरव पर उन के चिल्लाने का कोई असर नहीं पड़ा. उस ने अपने बैग में हाथ डाल कर एक रिवाल्वर निकाली और सामने पड़ी मेज पर रख दी. रिवाल्वर बुरी तरह जंग लगी हुई थी. उसे देख मेजर के चेहरे पर विचित्र भाव उभर आए.

‘‘यह हथियार हमें उसी जंगल में मिला है और मुझे यकीन है कि यह आप का वही लाइसेंसी रिवाल्वर है, जिस की गुमशुदगी की रिपोर्ट आप ने जीतपुर थाने में दर्ज कराई थी. इस के चैंबर में अभी भी 2 खाली कारतूस मौजूद हैं. निस्संदेह आप को इस बात की जानकारी होगी कि उस रात उस जंगल में एक इंसान की जान चली गई थी.’’

मेजर के चेहरे का रंग उड़ गया, वह कुर्सी पर गिर से पड़े. नीरव ने उन से पूछताछ जारी रखी.

बरामदे में बैठे चाय पी रहे त्रिलोचन सामने बैठी पत्नी से पूछा, ‘‘विप्लव कहां है?’’

‘‘साहबजादे सो रहे हैं.’’

‘‘आप उसे बिगाड़ रही हैं, यह कोई सोने का वक्त है?’’ त्रिलोचन को गुस्सा आ गया. वह चाय का प्याला थामे विप्लव के कमरे में जा पहुंचे. उन्होंने झटके से बेटे के ऊपर से चादर खींच ली. उसी वक्त गर्म चाय की कुछ बूंदें छलक कर विप्लव की पीठ पर गिर गईं.

‘‘आ…’’ विप्लव बौखला कर उठ बैठा और अपनी पीठ सहलाने लगा.

‘‘मैं ने तुम्हें एक काम दिया था?’’

‘‘डैड, आज आप का काम हो जाएगा. लेकिन रिमाइंड करवाने का आप का यह तरीका कुछकुछ पुलिसवालों की थर्ड डिग्री जैसा है. प्लीज, आगे से ऐसा मत करिएगा.’’

त्रिलोचन मुसकुराते हुए बाहर निकल गए. चाय का प्याला उन्होंने मेज पर रखा और अपना बैग ले कर चले गए. उन का रुख बर्नेट अस्पताल की ओर था. अस्पताल में त्रिलोचन को अपने टारगेट तक पहुंचने में देर नहीं लगी.

‘‘बड़े मियां, मैं ने सुना है कि आप शायरी बहुत अच्छी करते हैं.’’ त्रिलोचन ने बर्नेट अस्पताल के उस बूढ़े क्लर्क की तारीफ की. साथ ही वह बारीकी से उस रजिस्टर के पन्ने भी निहार रहे थे, जिस के आधे से ज्यादा पृष्ठ जर्जर हो गए थे.

‘‘अमां लानत भेजिए हुजूर.’’ वह रद्दी की टोकरी में पीक थूकता हुआ बोला, ‘‘कम्बख्त यह भी कोई करने लायक काम है.’’

त्रिलोचन समझ गए कि जश्न अली बहुत काइयां है और उन के ऊपर निगाह जमाए हुए है. उस के रहते कुछ संभव नहीं होगा.

‘‘मुआफ करिएगा, एक जरूरी फोन आ रहा है.’’ त्रिलोचन मोबाइल कान से लगाते हुए बाहर निकल गए. बाहर आ कर उन्होंने अपने घर का नंबर डायल किया. मिनट भर बाद शैलजा ने फोन उठाया तो वह धीरे से बोले, ‘‘एक लैंडलाइन नंबर लिख लो और इस नंबर पर फोन कर के फोन उठाने वाले को कुछ देर उलझाए रखो.’’

पलभर बाद ही अंदर के कमरे में रखा टेलीफोन बज उठा. घंटी की आवाज सुन कर जश्न अली बुदबुदाया, ‘‘लीजिए, यह कम्बख्त भी घनघनाने लगा.’’

त्रिलोचन इसी मौके की ताक में थे, उन्होंने साथ लाए कैमरे से उस खास पेज का फोटो ले लिया.

विप्लव धुरंधर के सामने बैठा था. धुरंधर के चेहरे पर नागवारी के भाव थे. उन्होंने विप्लव को घूर कर देखा और नाराजगी भरे स्वर में बोले, ‘‘आप का पूरा परिवार ही हमारे पीछे पड़ गया है. पहले आप के पिताजी ने अच्छीखासी नौटंकी की, अब आप आ गए.’’

‘‘नौटंकी कौन कर रहा है, यह जल्दी ही पता चल जाएगा. फिलहाल तो यह बताइए कि आप अपनी भाभी सुभाषिनीजी को कब से जानते हैं?’’

‘‘जब से बड़े भैया से उन की शादी हुई.’’ धुरंधर ने बेलाग जवाब दिया.

‘‘पक्का?’’

‘‘आप कहना क्या चाहते हैं?’’

‘‘मैं कहना यह चाहता हूं…’’ विप्लव ने धुरंधर के चेहरे पर नजर जमा दी, ‘‘कि आप दोनों उस से भी काफी पहले से एकदूसरे को जानते हैं.’’

‘‘यह आप के दिमाग की उपज है?’’

‘‘नहीं जी, मेरा दिमाग इतना उपजाऊ कहां है. यह तो लखनऊ के उस कालेज की पत्रिका की उपज है, जहां आप दोनों साथसाथ पढ़ते थे.’’ विप्लव ने हाथ में थामी हुई पत्रिका खोल कर धुरंधर के आगे रख दी. बीच के पन्ने पर एक समूह फोटो छपी थी, जिस में सुभाषिनी और धुरंधर पासपास खड़े थे. फोटो देख कर धुरंधर की निगाह झुक गई. विप्लव ने धुरंधर से कई बातें पूछीं और लौट आया.

हफ्ता भर बाद बलराम तोमर ने अपने हवेलीनुमा घर में शानदार दावत का आयोजन किया. जिस बड़े हाल में आयोजन था, उस के बीचोबीच एक बड़ा सा बैनर लगा था, जिस में लिखा था, ‘मयंक तुम्हारे आने की खुशी में आज पूरा घर खुश है.’

रजत अपने मातापिता के साथ बैठा मुसकरा रहा था. उस ने धुरंधर के बेटे सुकुमार से दोस्ती कर ली थी और उस से बतिया रहा था. सुरबाला की नजर त्रिलोचन पर पड़ी तो वह तुरंत उन के पास आ पहुंची. उस के हाथ में प्लास्टर बंधा हुआ था.

‘‘उस दिन आप की मेहरबानी से बच गई, सीढि़यों से गिरने पर हाथ जरूर टूटा गया, लेकिन जान…’’

‘‘खतरा अभी टला नहीं है.’’ त्रिलोचन के स्वर में उस के लिए चेतावनी थी.

‘‘मैं उस दिन से सासू मां के साथ ही सोती हूं.’’

रात के 10 बजतेबजते खानापीना खत्म हो गया.

‘‘आज सब को यहीं विश्राम करना है.’’ बलराम तोमर ने मेहमानों से कहा तो त्रिलोचन बोले, ‘‘हम आप से माफी चाहते हैं, एक जरूरी काम है, जिसे रात में खत्म करना है, वरना हम ठहर जाते.’’

त्रिलोचन ने तोमर साहब से अनुमति ली तो नीरव और विप्लव भी उठ खड़े हुए.

‘‘और हां, आप सब के लिए एक आवश्यक सूचना है.’’ त्रिलोचन ने पलटते हुए घोषणा की, ‘‘रजत को अपने पिछले जन्म की वे तमाम बातें भी याद आ गई हैं, जिन पर अभी तक परदा पड़ा हुआ था. इस सब पर हम कल चर्चा करेंगे. मेहरबानी कर के इस बारे में रजत को अभी तंग न करें.’’

त्रिलोचन अपने दोनों बेटों विप्लव और नीरव के साथ चले गए.

सपना का अधूरा सपना

पुनर्जन्म : कौन था मयंक का कातिल? – भाग 2

आगे वाली गाड़ी से रजत, उस के मातापिता तथा त्रिलोचन के उतरते ही पत्रकारों और टीवी चैनलों के रिपोर्टरों ने घेर लिया. रजत को देखने वालों की भीड़ पत्रकारों से ज्यादा बेताब थी तभी पुलिस की जीप आ पहुंची. जीप के रुकते ही कई सिपाही फुर्ती से उतरे और लोगों को धकियाते हुए रास्ता बनाने लगे.

‘‘चाचाजी, मुझे माफ करिएगा.’’ इंसपेक्टर अनिल ने आगे बढ़ कर त्रिलोचन का रास्ता लगभग रोकते हुए कहा, ‘‘मैं आप को यह सब नहीं करने दूंगा.’’

‘‘क्या नहीं करने देंगे इंस्पेक्टर साहब?’’ त्रिलोचन ने हैरानी से पूछा.

‘‘इस तरह से किसी के घर में घुसना गलत है, अतिक्रमण है यह…’’

‘‘इन लोगों को गिरफ्तार कर लीजिए दरोगाजी, ये हमारे खिलाफ साजिश करने आए हैं…’’ अचानक एक तेज आवाज गूंज उठी. त्रिलोचन ने मुड़ कर देखा, सफेद कुर्ता धोती पहने ऊंचातगड़ा एक आदमी भीड़ को चीर कर उन के सामने आ खड़ा हुआ. उस ने कंधे पर दोनाली बंदूक टांग रखी थी. त्रिलोचन और अनिल कुछ कहने ही वाले थे कि रजत अपनी मां से हाथ छुड़ा कर दौड़ा और उस व्यक्ति से जा कर लिपट गया.

‘‘चाचा, मैं आ गया…’’ रजत की आवाज में खुशी उमड़ी पड़ रही थी. वह व्यक्ति कुछ कहता या पूछता, इस के पहले ही रजत अपने मातापिता से मुखातिब हुआ, ‘‘मम्मी… पापा… ये मेरे चाचा हैं. धुरंधर चाचा.’’

धुरंधर तोमर के चेहरे पर हैरानगी उभर आई. वह चाह कर भी बच्चे को झिड़क नहीं सके.

‘‘आप ने इस बच्चे को आज से पहले कभी देखा है?’’ इंसपेक्टर अनिल ने पूछा.

‘‘नहीं, कभी नहीं.’’ धुरंधर के मुंह से निकला.

‘‘इस के मांबाप को जानते हैं?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘तो फिर यह आप को कैसे जानता है?’’ धुरंधर कुछ कह पाते, इस के पहले ही एक महिला टीवी रिपोर्टर की आवाज गूंज उठी, ‘‘देखा आप ने, रजत यानी मयंक ने अपने पिछले जन्म के चाचा को पहचान लिया है.’’

‘‘जाहिर है, आप मुझे भी नहीं जानते?’’ त्रिलोचन धुरंधर की ओर उन्मुख हुए.

‘‘बिलकुल नहीं.’’

‘‘तो फिर आप किस आधार पर कह रहे हैं तोमर साहब कि आप के खिलाफ ये लोग साजिश कर रहे हैं?’’ इंसपेक्टर अनिल ने कहा.

‘‘यह तमाशा साजिश नहीं तो और क्या है?’’ धुरंधर को गुस्सा आ गया.

‘‘तो फिर आप इस का पर्दाफाश क्यों नहीं कर देते?’’ त्रिलोचन के स्वर में चुनौती थी.

‘‘मैं ने पुलिस को इसीलिए यहां बुलाया है.’’

‘‘तो ठीक है, पुलिस के सामने सारी जांचपड़ताल हो जाने दीजिए, सच्चाई सामने आ जाएगी.’’ कहते हुए त्रिलोचन अनिल की ओर मुड़े, ‘‘अगर यह सचमुच पूर्वजन्म का मयंक है तो यह इस अंजान गांव में हम सब को अपने पिछले जन्म के घर जरूर ले चलेगा.’’

अनिल ने मौन सहमति दी.

‘‘मयंक, अपने घर चलो.’’ त्रिलोचन का इशारा पाते ही रजत बेधड़क एक ओर बढ़ गया. उस के पीछे विशाल जनसमुदाय था.

सचमुच कमाल हो गया. रजत बेखौफ अपने पूर्व जन्म के घर में जा घुसा. उस ने अपने मातापिता यानी बलराम तोमर और सुभाषिनी को न केवल पहचाना, बल्कि उन से लिपट कर खूब रोया भी. उस ने अपनी चाची यानी धुरंधर तोमर की पत्नी सुखदेवी और दूसरे परिजनों को भी आसानी से पहचान लिया.

हद तो तब हो गई, जब उस ने सैकड़ों लोगों के बीच बैठी अपनी पत्नी सुरबाला को जा पहचाना. फिर भी सुरबाला को यकीन नहीं हुआ, धुरंधर तोमर की तरह उस के भी मन में अविश्वास के बादल घुमड़ रहे थे.

‘‘मुझे ऐसे विश्वास नहीं होगा. मुझे ऐसी कोई बात बताओ, जिसे मेरे अलावा सिर्फ मेरे पति जानते थे.’’ उस की अविश्वास भरी नजरें रजत के मासूम चेहरे पर ठहर गईं.

वह कई पलों तक कुछ सोचता रहा, फिर अचानक बोला, ‘‘तुम्हारी पीठ पर नीचे की ओर दाहिनी तरफ एक तिल है.’’

सुन कर सुरबाला भौंचक्की सी रह गई. यह सुन कर वहां मौजूद तमाशबीनों के मुंह भी खुले रह गए. फिर न जाने क्या हुआ कि सुरबाला रजत को गोद में उठा कर रो पड़ी.

‘‘तुम मुझे छोड़ कर क्यों चले गए थे…?’’ उस के आंसू उमड़उमड़ कर बहने लगे.

सब से मिलनेमिलाने के बाद रजत उसी शाम अपने मातापिता के साथ शहर लौट गया. वह सुरबाला से वादा कर गया था कि अगले हफ्ते फिर आएगा. उस रात बलराम तोमर के घर में कोई नहीं सो पाया. रजत अनेक झंझावात छोड़ गया था, जिन्होंने तोमर परिवार को सारी रात जगाए रखा.

बलराम तोमर खानदानी रईस थे. दोनों भाइयों का संयुक्त परिवार था. तीन सौ एकड़ जमीन के अलावा एक चीनी मिल भी थी. दोनों भाइयों के बीच सिर्फ एक चश्मओचिराग था, धुरंधर तोमर का 6-7 वर्षीय पुत्र सुकुमार. रजत उसे इसलिए नहीं पहचान पाया था, क्योंकि उस का जन्म मयंक की मौत के कई सालों बाद हुआ था.

मयंक की मौत की वह रात सुरबाला को आज भी ज्यों की त्यों याद थी.

तोमर परिवार ने एक एडवेंचर प्रोग्राम बनाया था, जिस में महिलाओं को भी शामिल किया गया था. उसी के तहत सुरबाला अपने पति, सासससुर व चचिया ससुर धुरंधर के साथ शिकार पर गई थी. यह उस के लिए पहला और आखिरी एडवेंचर था. सुखनई के जंगल में उन दिनों एक आदमखोर तेंदुए ने आतंक मचा रखा था. वह 20 किलोमीटर के दायरे में कई इंसानी जिंदगियां लील चुका था. इसी वजह से सरकार ने तोमर परिवार को उसे मारने की इजाजत दे दी थी.

तेंदुए को मारने के लिए तोमर परिवार ने जंगल में तीन मचान बनाए थे. अंधेरा घिरतेघिरते सभी लोग मचानों पर चढ़ कर बैठ गए. नीचे चारे के तौर पर एक बकरा बांध दिया गया था.

जिस मचान पर सुरबाला और मयंक बैठे थे, उस के ठीक सामने वाले मचान पर उस के सासससुर यानी बलराम तोमर और सुभाषिनी बैठे थे. धुरंधर तोमर का मचान उन से लगभग 20 फुट दूर बाईं ओर था. तीनों मचानों के नीचे बंधा बकरा साफ नजर आ रहा था, लेकिन जैसेजैसे अंधेरा घिरता गया, बकरे का अक्स धूमिल होता गया.

रात गहराने लगी थी, सुरबाला की पलकें नींद से बोझिल हो गई थीं. वह अपने आप को जगाए रखने की भरसक कोशिश कर रही थी. बकरा पता नहीं क्यों खामोश हो गया था. तभी अचानक गोली चलने, तेंदुए के गरजने और मयंक के नीचे गिरने की घटनाएं एक साथ घटीं.

तेंदुआ मयंक को बुरी तरह झंझोड़ने में लगा था. इतना दिल दहलाने वाला दृश्य था कि सुरबाला के हाथ से टार्च छूट कर नीचे गिर गई. इस के बाद किसी ने गोली नहीं चलाई. तेंदुआ मयंक को खींचता हुआ जंगल में गायब हो गया. जब उन लोगों को होश आया तो ताबड़तोड़ हवाई फायरिंग की गई. लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. रात भर उन लोगों की नीचे उतरने की भी हिम्मत नहीं हुई.

सुबह उन लोगों ने मयंक की तलाश में वन विभाग और पुलिस वालों के साथ पूरा जंगल छान मारा, लेकिन नाकामी ही हाथ लगी. सुरबाला का रोरो कर बुरा हाल था. बाद में भी काफी खोजबीन की गई, पर मयंक की लाश नहीं मिली.

मासूम की लाश पर लिखी सपनों की इबारत

पुनर्जन्म : कौन था मयंक का कातिल? – भाग 1

खबर चौंकाने वाली थी इसलिए उन्होंने अखबार को कस कर पकड़ते हुए उसे फिर से पढ़ना शुरू किया. वह ‘मयंक ने पुनर्जन्म  लिया.’ शीर्षक को उन्होंने 2-3 बार पढ़ा.

खबर में छपा था, ‘शहर के कपड़ा व्यवसायी मनोहर अग्रवाल का 6 वर्षीय पुत्र रजत अपने आप को पूर्व जन्म का मयंक बताता है. उस का कहना है कि वह पिछले जन्म में नाहरगढ़ निवासी बलराम तोमर का पुत्र मयंक था. सुबूत के तौर पर उस ने कई घटनाएं बयान की हैं. उस का कहना है कि उस का घर नाहरगढ़ में है और उस के मातापिता और पत्नी सुरबाला उस का इंतजार कर रही होंगी. वह रोजाना नाहरगढ़ जाने की जिद करते हुए अपने मांबाप से कहता है कि अगर उसे उस के असली घर नहीं पहुंचाया गया तो वह खुद ही वहां चला जाएगा.’

तोमर साहब इस के आगे नहीं पढ़ सके. वह अखबार थामे घर के अंदर दौड़े.

‘‘अरे कहां हो तुम…’’ उन्होंने असंयत आवाज में अपनी पत्नी सुभाषिनी को पुकारा, ‘‘जरा यह समाचार पढ़ो.’’ वह ड्राइंगरूम में दाखिल हुए तो सुभाषिनी टीवी देखने में तल्लीन थीं.

‘‘टीवी बाद में देखना, पहले यह खबर पढ़ो.’’ तोमर साहब ने अखबार पत्नी के आगे फैला दिया.

‘‘आप पहले टीवी देखिए…’’ सुभाषिनी ने अखबार पर ध्यान न दे कर कंपकंपाती आवाज में कहा, ‘‘देखिए, क्या आ रहा है.’’

तोमर साहब ने अखबार को भूल कर टीवी की ओर देखा.

‘‘पुनर्जन्म की ऐसी रोमांचक घटना इस के पहले आप ने शायद ही कहीं देखीसुनी होगी.’’ टीवी पर रिपोर्टर की पुरजोर आवाज गूंज रही थी.

‘‘अद्भुत बच्चा है रजत… रजत तुम्हारा नाम क्या है?’’ रिपोर्टर ने पास बैठे बच्चे की ओर माइक बढ़ाया तो टीवी स्क्रीन पर फैले उस के चेहरे का क्लोजअप तैश से भर उठा. वह झुंझलाते हुए बोला, ‘‘कितनी बार बताऊं आप को? मैं ने कहा न, मेरा नाम रजत नहीं, मयंक है. मयंक तोमर.’’

‘‘और आप के मातापिता का नाम?’’ रिपोर्टर ने अगला प्रश्न किया.

‘‘बलराम तोमर और सुभाषिनी.’’ बच्चे ने झटके से जवाब दिया.

‘‘सुना आप ने.’’ सुभाषिनी का गला भर्रा गया, ‘‘हमारा लाडला लौट आया…’’ कहती हुई वह बाहर को भागीं. तोमर साहब स्तब्ध खड़े हुए थे. पूरा माजरा अकल्पनीय सा था.

‘‘बहू… ओ बहू…’’ सुभाषिनी ने उत्तेजित स्वर में पुकारते हुए जोरों से बाथरूम का दरवाजा खटखटाया.

मिनट भर बाद बाथरूम का दरवाजा खुला और अधभीगे कपड़ों में बाहर झांकते सुरबाला ने पूछा, ‘‘क्या हुआ अम्मां? आप इतनी परेशान क्यों हैं?’’

‘‘चल कर पहले टीवी देखो,’’ वह सुरबाला को लगभग घसीटती हुई ड्राइंगरूम की ओर ले गईं. टीवी पर अभी भी वही समाचार चल रहा था. तोमर साहब पूर्ववत आंखें फाड़े समाचार देख रहे थे.

संवाददाता की आवाज गूंज रही थी, ‘‘विश्वास करना कठिन है, लेकिन यह सच है कि हर तरह से यह साबित हो रहा है कि कल का मयंक ही आज का रजत है…’’

अब तक सुरबाला की भी समझ में सब कुछ आ गया था. इस खबर को देखसुन कर उस का मुंह खुला रह गया. सुभाषिनी बाहर निकल गई थीं. वह वापस लौटीं तो साथ में उन के देवर धुरंधर थे.

‘‘भाभी, आप इन टीवी वालों को नहीं जानतीं. विज्ञापन हासिल करने के लिए ये उलटीसीधी खबरें फैलाते रहते हैं. कितने दुख की बात है कि ये अंधविश्वास से लड़ने के बजाय ऐसी बातों को बढ़ावा दे रहे हैं…’’ धुरंधर तोमर भाभी के मुंह से यह खबर सुन कर गुस्से में बोले, ‘‘आप तो पढ़ीलिखी हैं फिर भी…’’

‘‘पहले आप खबर तो देख लीजिए.’’

‘‘ननकू, हमारा मयंक वापस आ गया.’’ तोमर साहब छोटे भाई को देखते ही खुशी से चिल्ला उठे.

‘‘टीवी वालों की इस बकवास से मैं सहमत नहीं हूं बड़े भैया.’’ धुरंधर बेलाग स्वर में बोले, ‘‘भाभी तो शायद अपनी ममता के चलते अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं कर रहीं, कम से कम आप तो…’’

‘‘तुम कहना क्या चाहते हो ननकू?’’ उन्होंने छोटे भाई को झिड़कने वाले अंदाज में कहा, ‘‘टीवी वाले, अखबार वाले और वहां मौजूद सारे लोग अंधविश्वास फैला रहे हैं? और अगर इसे सच भी मान लिया जाए तो सवाल यह है कि यह बच्चा कैसे वे सारी बातें बता रहा है, जो एकदम सच हैं.’’

‘‘मुझे तो यह कोई साजिश लग रही है. जरूर इस के पीछे कोई खतरनाक इरादे वाला शख्स है.’’ धुरंधर बोले.

‘‘पहले ठीक से खबर तो देख लो ननकू. सच्चाई को समझने की कोशिश करो… आखिर वहां हमारा कौन दुश्मन बैठा है, जो साजिश…’’

‘‘इस का पता तो पुलिस लगाएगी कि वह शातिर शख्स कौन है, जिस की निगाह हमारी जायदाद पर जमी हुई है.’’

‘‘इस सब से हमारी जायदाद का क्या लेनादेना है?’’ तोमर साहब छोटे भाई की बात सुन कर हैरान हुए.

‘‘आप कितने भोले हैं बड़े भैया.’’ धुरंधर बड़े भाई की बुद्धि पर तरस सा खाते हुए बोले, ‘‘यह लड़का जो मयंक होने का दावा कर रहा है, कल को हमारी संपत्ति का वारिस नहीं बन बैठेगा?’’

तोमर साहब के माथे पर बल पड़ गए, शायद इस पहलू की ओर उन्होंने अभी तक ध्यान नहीं दिया था.

‘‘आप देखिए टीवी, मैं तो कोतवाली जा रहा हूं.’’ कहते हुए धुरंधर बाहर निकल गए.

इंस्पेक्टर अनिल कार्तिकेय ने एसपी के औफिस में प्रवेश किया तो एसपी साहब बड़े गौर से एक फाइल देख रहे थे, जिस में अखबारों की कतरनें लगी हुई थीं.

‘‘सर, आप ने मुझे बुलाया?’’ इंसपेक्टर की आवाज से उन का ध्यान भंग हो गया.

‘‘यह त्रिलोचन कौन है और उस का असली कामधंधा क्या है?’’ एसपी ने नजरें उठा कर अनिल की ओर देखते हुए पूछा.

‘‘त्रिलोचन…?’’

‘‘वही जो अपने आप को जासूस कहता है…’’

‘‘अच्छा, आप त्रिलोचनजी की बात कर रहे हैं, वह बहुत सम्मानित व्यक्ति हैं सर.’’

‘‘आप का यह सम्मानित व्यक्ति एक रईस आदमी के खिलाफ साजिश कर रहा है.’’

‘‘जी?’’ इंस्पेक्टर अनिल चौंके.

‘‘ऐसा क्या किया है चाचाजी ने?’’

‘‘अच्छा तो त्रिलोचन आप के चाचा हैं?’’ एसपी की सख्त नजर इंसपेक्टर अनिल के चेहरे पर जम गई.

‘‘नहीं सर, मेरा मतलब वह…’’

‘‘सुनो इंस्पेक्टर, पुलिस की वर्दी पहनने के बाद सारे रिश्तेनाते भूल जाना चाहिए. हमारा काम है कानून तोड़ने वालों को सलाखों के पीछे भेजना.’’ एसपी का स्वर काफी सख्त था.

‘‘उन्होंने कानून तोड़ा है?’’

‘‘तोड़ने वाला है.’’ एसपी साहब इंस्पेक्टर को कतरन वाली फाइल थमाते हुए बोले, ‘‘लगता है आप को न तो अखबार पढ़ने का वक्त मिलता है, न ही टीवी देखने का.’’

‘‘जी सर, ड्यूटी के चलते कभीकभी…’’

‘‘आईसी तो कल आप को यह ड्यूटी नाहरगढ़ में करनी है, जहां त्रिलोचन पूरे तामझाम के साथ रजत नाम के लड़के को ले कर पहुंचने वाला है. वह यह साबित करने की कोशिश कर रहा है कि रजत नाहरगढ़ के जानेमाने व्यक्ति बलराम तोमर का पुत्र मयंक है, वह मयंक जो सालों पहले मर चुका है.’’

‘‘लेकिन सर, हमारे पास ऐसी कोई शिकायत…’’

‘‘शिकायत इसी फाइल में है.’’ एसपी ने फाइल अनिल के हाथ में थमाते हुए कहा, ‘‘बलराम तोमर के छोटे भाई धुरंधर तोमर ने लिखित शिकायत की है.’’

गाडि़यों का काफिला नाहरगढ़ पहुंचा तो लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी. आसपास के गांवों के भी हजारों लोग आ गए थे. सभी रजत की एक झलक पाने को बेताब थे.

जुर्म है बेटी का बाप होना

प्रीति मेरी एकलौती बेटी थी, मेरे न रहने पर मेरी करोड़ों की प्रौपर्टी उसी की थी, फिर भी उस की ससुराल वालों ने पैसे के लिए ही उसे मार डाला था. कोई मैं ही अकेला बेटी का बाप नहीं हूं. मेरी तरह यह पूरी दुनिया बेटी के बापों से भरी  पड़ी है. कम ही लोग हैं, जिन्हें बेटी नहीं है. लेकिन बेटी को ले कर जो दुख मुझे मिला है, वैसा दुख बहुत कम लोगों को मिलता है. यह दुख झेलने के बाद मुझे पता चला कि बेटी होना कितना बड़ा जुर्म है और उस से भी बड़ा जुर्म है बेटी का बाप होना.

अपनी मेहनत की कमाई खाने वाला मैं एक साधारण आदमी हूं. मैं ने सारी उम्र सच्चाई की राह पर चलने की कोशिश की. हेराफेरी, चालाकी, ठगी या गैरकानूनी कामों से हमेशा दूर रहा. कभी कोई ऐसा काम नहीं किया, जिस से दूसरों को तकलीफ पहुंचती. ईमानदारी और मेहनत की कमाई का जो रूखासूखा मिला, उसी में संतोष किया और उसी में अपनी जिम्मेदारियां निभाईं.

प्रीति मेरी एकलौती बेटी थी. वह बहुत ही सुंदर, समझदार और संस्कारवान बेटियों में थी. वह दयालु भी बहुत थी. सीमित साधनों की वजह से सादगी में रहते हुए उस ने लगन से अपनी पढ़ाई की. पढ़ाई पूरी होते ही उसे बढि़या नौकरी भी मिल गई. नौकरी लगते ही मैं उस के लिए लड़के की तलाश में लग गया.

जल्दी ही मेरी तलाश खत्म हुई और मुझे उस के लायक बढि़या लड़का मिल गया. बेटी की खुशी और सुख के लिए मैं ने अपनी हैसियत से ज्यादा खर्च कर के धूमधाम से उस की शादी की. हालांकि लड़के वालों का कहना था कि उन्हें कुछ नहीं चाहिए. उन्हें जिस तरह की पढ़ीलिखी और गुणवान लड़की चाहिए थी, प्रीति ठीक वैसी है. इसलिए उसे एक साड़ी में विदा कर दें.

लेकिन मैं बेटी का बाप था. मैं अपनी बेटी को खाली हाथ कैसे भेज सकता था. मैं ने अपनी लाडली बेटी को हैसियत से ज्यादा गहने, कपड़ा लत्ता और घरेलू उपयोग का सामान दे कर विदा किया. बारातियों की आवभगत में भी अपनी हैसियत से ज्यादा खर्च किया, जिस से कोई बाराती कभी मेरी बेटी को ताना न मार सके.

शादी होने के बाद प्रीति ने नौकरी छोड़ दी थी. उस का ससुराल में पहला साल बहुत अच्छे से बीता. अपनी लाडली को खुश देख कर हम सभी बहुत खुश थे. उसी बीच प्रीति को एक कंपनी में अच्छी तनख्वाह पर नौकरी मिल गई. उस का पति पहले से बढि़या नौकरी कर रहा था.

सब कुछ बहुत बढि़या चल रहा था. अचानक न जाने क्या हुआ कि प्रीति के पति के सिर पर नौकरी छोड़ कर अपना कारोबार करने का भूत सवार हो गया. वह कारोबार कर के करोड़पति बनने के सपने देखने लगा. कारोबार के लिए उसे जितनी बड़ी रकम की जरूरत थी, उतने पैसे उस के पास नहीं थे. तब उस ने प्रीति से मदद करने को कहा.

प्रीति के पास पैसे कहां थे. उस से मदद मांगने का मतलब था, वह मायके से मोटी रकम मांग कर लाए. इस तरह प्रीति की ससुराल वाले बहाने से दहेज में मोटी रकम मांगने लगे. प्रीति हमारी बेटी थी, उसे हमारी औकात अच्छी तरह पता थी. फिर वह उसूलों पर चलने वाली लड़की थी. उस ने साफसाफ कह दिया, ‘‘मैं अपने मांबाप से एक कौड़ी भी नहीं मांगूंगी, क्योंकि यह एक तरह से दहेज है और दहेज लेना तथा देना दोनों ही गैरकानूनी है.’’

प्रीति सीधीसादी लड़की थी. उस का कहना था कि पतिपत्नी जितना कमाते हैं, उस में वे आराम से अपना गुजरबसर कर लेंगे. परिवार बढ़ेगा तो तरक्की के साथ वेतन भी बढ़ेगा. इसलिए उन्हें इसी में संतुष्ट रहना चाहिए.

लेकिन प्रीति के पति के मन में करोड़ों की कमाई का भूत सवार हो चुका था. इसलिए वह कुछ भी मानने को तैयार नहीं था. बस फिर क्या था, पतिपत्नी के रिश्तों में खटास आने लगी. उन के बीच दरार पड़ गई, जो दिनोंदिन चौड़ी होती चली गई. उन के बीच प्यार तो उसी दिन खत्म हो गया था, जिस दिन प्रीति ने मुझ से पैसा मांगने से मना कर दिया था.

फिर एक दिन ऐसा भी आया, जब प्रीति के पति ने उस पर हाथ उठा दिया. एक बार हाथ उठा तो सिलसिला सा चल पड़ा. फिर तो पति ही नहीं, उस के घर के जिस भी व्यक्ति का मन होता, वही मेरी बेटी को अपमानित ही नहीं करता, बल्कि जब मन होता, पीट देता.

मैं ने जिंदगी में कोई गैरकानूनी काम नहीं किया था. लेकिन जब मुझे बेटी की प्रताड़ना का पता चला तो मैं बेचैन हो उठा. इंसान बच्चों के लिए ही कमाता है. अपनी सारी जिंदगी उन्हीं की खुशी में होम कर देता है. जिंदगी में वह जो बचाता है, उन्हीं के लिए छोड़ जाता है.

मेरे पास इतनी रकम नहीं थी कि मैं प्रीति की ससुराल वालों की मांग पूरी कर देता. मैं ने पत्नी से सलाह की. पत्नी ही मुझे क्या सलाह देती. उस ने बस यही कहा, ‘‘हमारे पास पुश्तैनी जमीन के अलावा कुछ नहीं है. इसे बेच कर उन लोगों की मांग पूरी कर दो. जब बेटी ही नहीं रहेगी तो हम इस का क्या करेंगे. आखिर यह सब सुखदुख के लिए ही तो है. दुख की इस घड़ी में इसे बेच कर झंझट खत्म कर दो.’’

किसी किसान के लिए जमीन सब कुछ होती है. उसे मांबाप कह लो या रोजीरोटी, वही उस के लिए सब कुछ है, उस से उस के परिवार का ही गुजरबसर नहीं होता, बल्कि उसी की बदौलत और न जाने कितने अन्य लोग पलते हैं. लेकिन अब अपनी खुशी या जिंदगी की चिंता कहां रह गई थी. अब चिंता बेटी की खुशी और जिंदगी की थी.

मैं ने तय कर लिया था कि जितनी जल्दी हो सकेगा, अपनी बिटिया की खुशी के लिए यानी उस पर होने वाले जुल्मों को बंद करवाने के लिए अपनी जमीन बेच कर उस की ससुराल वालों की मांग पूरी कर दूंगा. क्योंकि मुझे लगने लगा था कि उस की ससुराल वाले अब उस की जान ले कर ही मानेंगे.

मैं ने निश्चय किया था कि जमीन बेच कर प्रीति की ससुराल वालों की मांग पूरी कर दूंगा, उसी के अनुसार मैं ने जैसे ही जमीन बेचने की घोषणा की, लेने वालों की लाइन लग गई. लोग मुंहमांगी कीमत देने को तैयार थे. इस की वजह यह थी कि मेरी जमीन मुख्य सड़क के किनारे थी.

लेकिन मेरी वह जमीन बिकतेबिकते रह गई. दरअसल, प्रीति के दुख से हम पतिपत्नी काफी दुखी थे. हम दोनों मानसिक रूप से काफी परेशान थे. परेशानी से निजात पाने के लिए इंसान ऐसी जगहों पर जाना चाहता है, जहां किसी बात की चिंता न हो. चिंता से निजात पाने और उस का हल ढूंढ़ने के लिए मैं भी पत्नी को ले कर किसी एकांत जगह के लिए निकल पड़ा.

एक बस उत्तराखंड के लिए जा रही थी. मेरे मोहल्ले के भी कई लोग उस बस से जा रहे थे. मैं भी पत्नी के साथ उसी में सवार हो गया. लेकिन कुदरत ने वहां ऐसा तांडव मचाया कि हम लोगों को लगा कि अब कोई भी जीवित नहीं बचेगा. लेकिन सेना के जवानों ने हम सभी को बचा लिया. हम सभी को मौत के मुंह से बाहर खींच लाए. हमें तो सेना के जवानों ने बचा लिया, लेकिन दूसरी ओर प्रीति को कोई नहीं बचा सका.

दरअसल, प्रीति की ससुराल वालों को पता था कि मैं पत्नी के साथ उत्तराखंड घूमने गया हूं. जब उन्हें पता चला कि वहां भीषण प्राकृतिक आपदा आई है और उस में हम लोग फंस गए हैं तो उसी बीच उन लोगों ने प्रीति को इस तरह प्रताडि़त किया यानी मारा पीटा कि वह मर गई.

हम लोग आपदा में फंसे थे. फोन भी नहीं मिल रहा था, इसलिए प्रीति की ससुराल वालों ने हत्या को कुदरती मौत बता कर उस का अंतिम संस्कार कर दिया. पड़ोसियों में खुसुरफुसुर जरूर हुई, लेकिन किसी ने बात का बतंगड़ नहीं बनाया. उन्होंने अपना काम आसानी से कर डाला. प्रीति अपनी मौत मरी है, यह साबित करने के लिए उन्होंने उस की एक सहेली को बुला लिया था. सहेली को क्या पड़ी थी कि वह किसी तरह की कानूनी काररवाई करती. फिर उसे कुछ पता भी नहीं था.

हां, तो इस तरह मेरी बेटी प्रीति को मार दिया गया. एक सीधेसादे कत्ल को कुदरती मौत बता कर उन्होंने उस का अंतिम संस्कार भी कर दिया. मेरे घर लौट कर आतेआते उस के सारे कामधाम कर दिए गए थे. मैं ने थाने में प्रीति की हत्या की रिपोर्ट तो दर्ज करा दी, लेकिन मेरे पास उन के खिलाफ ऐसा कोई भी सुबूत नहीं है कि मैं दावे के साथ कह सकूं कि उन लोगों ने प्रीति की हत्या की है.

सुबूत न होने की वजह से पुलिस भी इस मामले की जांच आगे नहीं बढ़ा पा रही है. बहरहाल मैं कानून पर भरोसा करने वालों में हूं, इसलिए मुझे पूरा भरोसा है कि उन लोगों को उन के किए की सजा जरूर मिलेगी.

प्रीति ही मेरी एकलौती बेटी थी. मेरे पास करोड़ों की प्रौपर्टी है, अब वह मेरे किस काम की. प्रीति की ससुराल वालों को सोचना चाहिए था कि हमारे न रहने पर वैसे भी सब कुछ उन्हें ही मिलने वाला था. फिर वे उस का चाहे जैसे उपयोग करते. लेकिन उन्हें संतोष नहीं था.

अब मुझे लगता है कि बेटी सचमुच पराई होती है. अपनी होते हुए भी हम उसे अपनी नहीं कह सकते. तमाम नियमकानून हैं, अधिकार हैं, लेकिन लगता है कि वे सब सिर्फ कहनेसुनने के लिए हैं. अगर नियमकानून ही होते तो लोग उन से डरते. जिस तरह प्रीति मारी गई, शायद उस तरह बेटियां न मारी जातीं. अब मुझे लगता है कि बेटी का पैदा होना ही जुर्म है, उस से भी बड़ा जुर्म है बेटी का बाप होना.

—कथा सत्य घटना पर आधारित