मां और बेटियां खतरनाक सीरियल किलर

महाराष्ट्र के कोल्हापुर की सीरियल किलर बहनों के नाम से कुख्यात सीरियल किलर्स रेणुका शिंदे और सीमा गावित अपनी मां अंजनाबाई गावित के कहने पर अपराध करती थीं. मां ही अपनी बेटियों से मासूम बच्चों का अपहरण कर उन से अपराध करवाती थी. वह दोनों बेटियों को अपनी सुरक्षा के लिए हथियार के रूप में इस्तेमाल करती थी. जब मकसद पूरा हो जाता था, तब बच्चों की बेरहमी से हत्या कर देती थीं. उन 3 सीरियल किलर मां बेटियों ने कोई 2-4 नहीं, बल्कि कुल 42 मासूम बच्चों को तड़पा तड़पा कर मार डाला.

सनसनीखेज हत्याओं की शृंखला ने कोल्हापुर और आसपास के इलाकों को सालों तक आतंकित रखा. लोगों ने अपने बच्चों को शाम के बाद अकेले बाहर निकलने से पूरी तरह से रोक दिया था.

उन का भयानक कृत्य 3 दशक के बाद एक बार फिर लोगों के सामने आया. 3 दशक पहले भी यह केस बहुत चर्चा का विषय बना था. पुलिस रिकौर्ड के अनुसार दोनों बहनों ने 13 बच्चों का किडनैप किया, 9 बच्चों की हत्या कर दी. वे बेरहमी से बच्चों को मारने के बाद बच्चों के शव पर डिजाइन बनातीं, फिर जश्न मनाती थीं. इन सीरियल किलर बहनों ने अपनी मां के साथ मिल कर हैवानियत की हद पार कर दी थी.

आइए बताते हैं कि इन दोनों बहनों ने अपनी मां के साथ मिल कर किस तरह अपने आपराधिक जीवन की शुरुआत छोटे अपराधों से कर बच्चों का अपहरण कर उन की हत्या तक के रास्ते को तय किया.

कोल्हापुर निवासी अंजनाबाई एक ड्राइवर शिंदे के प्यार में पड़ गई और अपने घर से निकल गई. उस ने ड्राइवर से शादी कर ली. उस से 1973 में एक बेटी रेणुका शिंदे हुई. बेटी पैदा होने के बाद ड्राइवर पति ने अंजनाबाई को छोड़ दिया. तब वह अपनी बेटी को ले कर पुणे आ गई. यहां उस ने पूर्व सैनिक मोहन गावित से दूसरी शादी कर ली. अंजनाबाई को उस से 1975 में दूसरी बेटी सीमा गावित पैदा हुई, लेकिन दूसरे पति मोहन ने भी अंजनाबाई को छोड़ दिया.

ऐसे हुई अपराध की शुरुआत

मोहन ने प्रतिमा नाम की दूसरी महिला से शादी कर ली. अब अंजनाबाई के सामने अपना व बेटियों के पेट भरने की समस्या सामने आ गई. अपनी आजीविका चलाने के लिए उस ने अपराध की दुनिया में कदम रखा. इस में उस ने दोनों बेटियों और बड़ी बेटी रेणुका के पति किरण को भी शामिल कर लिया. रेणुका के एक बेटा सुधीर हुआ.

Mother Anjnabai (File Photo)

एक दिन रेणुका ने मंदिर में चोरी की और जब पकड़ी गई तो बेटे को आगे कर उस पर सारा इलजाम डाल दिया. लोगों ने रहम कर बेटे और मां को छोड़ दिया. यहीं से रेणुका और उस की मां व बहन को बच्चों के सहारे अपराध करने का आइडिया मिला. तब अंजनाबाई अपनी दोनों बेटियों के साथ मिल कर चोरियां और झपटमारी करने लगी.

ये लोग भीड़भाड़ वाले स्थानों, मंदिरों से 5 साल से कम उम्र के बच्चों को चुरा लिया करतीं और फिर इन्हीं बच्चों को गोद में ले कर चोरी और झपटमारी के काम में निकल जाती थीं, लेकिन जैसे ही कोई इन्हें ऐसा करते रंगे हाथों पकड़ता, ये फौरन अपने पास मौजूद बच्चे को जमीन पर पूरी ताकत से पटक देतीं.

इस से लोगों का ध्यान चोरी से हट कर बच्चे पर चला जाता और बस उसी समय मौके का फायदा उठा कर ये भीड़ के चंगुल से बच निकलती थीं. ये इसी तरह बच्चों के सहारे छोटीमोटी चोरी, पाकेट काटना, चेन स्नैचिंग जैसी घटनाओं को अंजाम देती थीं.

ये सिलसिला लंबे समय तक चलता रहा. ये तीनों इसी तरह बच्चों के सहारे गुनाहों को अंजाम देतीं और मौका मिलते ही उन्हें मौत की नींद सुला देती थीं. ये तीनों बच्चों को मारने और उन पर जुल्म ढाने के मामले में इतनी आगे निकल गईं कि अच्छेअच्छों का दिल कांप जाए.

रेणुका शिंदे और सीमा गावित इन दोनों बहनों ने अपनी मां के साथ मिल कर जून, 1990 से अक्तूबर 1996 के बीच इन 6 सालों में पुणे, ठाणे, कोल्हापुर, नासिक जैसे शहरों सेे दरजन भर बच्चों का अपहरण किया. वे 5 साल से छोटे बच्चों का अपहरण करती थीं. बच्चों के अपहरण के बाद उन्हें भीड़भाड़ वाली जगहों पर ले जाती थीं, जहां तीनों में से कोई एक लोगों का सामान चुराने की कोशिश करती, अगर चोरी के समय पकड़ी जाती तो वे या तो बच्चे के माध्यम से सहानुभूति जगाने की कोशिश करतीं या बच्चे को चोट पहुंचा कर लोगों का ध्यान भटका देती थीं.

ये अपहृत किए बच्चों से भी चोरी करवाती थीं. जब बच्चा इन के काम का नहीं रहता तो अपहृत बच्चे की बाद में नृशंस तरीके से हत्या कर देती थीं. इन में से 9 बच्चों को दोनों बहनों व उन की मां ने रोंगटे खड़ी कर देने वाली दर्दनाक मौत की नींद सुलाया. उन्होंने मारने के ऐसे तरीके अपनाए, जिन्हें सुन कर ही दिल दहल जाए.

125 आपराधिक मामले थे दर्ज

मां और बेटियों पर करीब 125 आपराधिक मामले दर्ज थे. इन में छोटीमोटी चोरी जैसी घटनाएं तो शामिल थीं, लेकिन ये इन महिलाओं की खौफनाक कहानी का बहुत छोटा सा हिस्सा था. 90 के दशक में इन्होंने चोरी से हत्या की दुनिया में कदम रखा. तब बड़ी बेटी रेणुका की उम्र 17 साल और छोटी बेटी सीमा की उम्र 15 साल थी, जब इन्होंने अपनी मां के साथ मिल कर पहले बच्चे की हत्या की थी.

दूसरे पति की बेटी को भी बनाया निशाना

पति मोहन की दूसरी पत्नी प्रतिमा से 2 बेटियां थीं. अंजनाबाई प्रतिमा से दिल ही दिल बेहद नफरत करती थी. लेकिन अपना मकसद पूरा करने के लिए अंजनाबाई व दोनों बहनों ने उस से दोस्ती का नाटक कर उस के घर में घुसपैठ कर ली. इस के चलते उस ने प्रतिभा की 9 साल की बेटी क्रांति को निशाना बनाया. उन्होंने उस का अपहरण कर हत्या कर दी और लाश गन्ने के एक खेत में दबा दी. इस का शक प्रतिमा को अंजनाबाई और उस की दोनों बेटियों पर था, इसलिए उस ने तीनों के खिलाफ पुलिस में बेटी के किडनैपिंग की शिकायत दर्ज कराई.

इन तीनों महिलाओं का इरादा प्रतिमा की दूसरी बेटी का अपहरण करना भी था, लेकिन पुलिस ने इन के मनसूबों को नाकाम कर दिया. ये महिलाएं 14वें बच्चे को अपना शिकार बनातीं, इस से पहले ही पुलिस इन तक पहुंच गई थी.

पुलिस ने नवंबर, 1996 में तीनों महिलाओं को एक बच्चे के अपहरण के आरोप में नासिक से गिरफ्तार कर लिया. उन के घर पर छापे मारे गए तो कई बच्चों के कपड़े और खिलौने मिले. इस के बाद ही कोल्हापुर पुलिस ने इन हत्यारिनों के घिनौने खेल का परदाफाश कर दिया. पूरे 6 साल तक महाराष्ट्र और गुजरात में घूमघूम कर ये बच्चों को मारती रहीं. अनगिनत मासूमों के मांबाप अपने कलेजे के टुकड़ों के लापता होने पर रोते रहे.

अपहरण के बाद हत्या

पकड़े जाने के बाद जब छानबीन शुरू की तो पुलिस के सामने रोंगटे खड़ी करने वाली जानकारी के साथ ही हैरतअंगेज कारनामे सामने आए. दोनों बहनों ने जब राज उगलने शुरू किए तो हर कोई दंग रह गया. इन महिलाओं ने बताया कि उन्होंने कई शहरों से 13 बच्चों का अपहरण किया था, जिन में से 9 की निर्मम हत्या कर दी गई थी. जबकि छोटी बहन सीमा ने पुलिस को पूरी सच्चाई बताई कि उन्होंने अब तक 42 बच्चों की हत्या की है.

गरीब बच्चों के मांबाप ने बच्चा गायब होने पर पुलिस से शिकायत नहीं की थी, इस के चलते इन पर केवल 13 बच्चों का अपहरण और 9 की हत्या का आरोप लगा. दोनों बहनों के गिरफ्त में आने के बाद रेणुका के पति किरण शिंदे ने सरकारी गवाह बन कर पुलिस की मदद की. वह इन लोगों के क्राइम में शामिल नहीं था, लेकिन इन की हकीकत भलीभांति जानता था. बाद में पुलिस ने उसे छोड़ दिया.

मुंबई के अलगअलग हिस्सों से बच्चों के अपहरण व हत्या के मामले में दोनों बहनों समेत मां अंजनाबाई को मास्टरमाइंड बताया गया था.

क्रूरता की हुई इंतहा

महाराष्ट्र में 90 के दशक में दोनों बहनें रेणुका व सीमा अपनी मां अंजनाबाई के साथ मिल कर मासूम बच्चों का अपहरण करती थीं. फिर उन्हें अपराध की दुनिया में धकेल दिया जाता था. इन बच्चों से भीख मंगवाने, चोरी कराने जैसे काम कराती थीं. मकसद पूरा हो जाने, अपराध की दुनिया में पुराने हो जाने और लोग जब उन बच्चों को पहचानने लगते थे तो ये महिलाएं उन की हत्या कर देती थीं. 13 बच्चों के अपहरण व उन की हत्या करने का आरोप इन पर लगा था.

बच्चों की हत्या की दर्दनाक कहानी

इन महिलाओं ने 2 साल के एक बच्चे का अपहरण कर के पहले तो कई दिनों तक उसे भूखा रखा. मासूम अपनी मां को याद कर बहुत रोता था. इस के चलते उस बच्चे को इतना पीटा कि उस की मौत हो गई.

संतोष नाम के एक बच्चे का भी इन्होंने अपहरण कर लिया. वह मात्र डेढ़ साल का था. एक शाम जब ये महिलाएं कहीं जा रही थीं तब बच्चा रोने लगा. बच्चे के रोने से लोगों का ध्यान उन पर जाएगा, इस डर से उन्होंने बच्चे का सिर जमीन और लोहे की रौड पर तब तक पटका, जब तक कि बच्चे ने उन की गोद में ही दम नहीं तोड़ दिया. इस के बाद बच्चे के शव को सुनसान जगह में फेंक दिया.

ऐसे ही 18 महीने के एक बच्चे की भी इन महिलाओं ने बेरहमी से हत्या की थी. पहले बच्चे का गला घोंट दिया गया. उस के शव को एक पर्स में ठूंसा और उस पर्स को एक सिनेमाहाल के टायलेट की शेल्फ में छोड़ दिया. इतना ही नहीं हत्या के बाद इन बहनों ने भेलपूरी खाते हुए मूवी का आनंद भी लिया.

अपहरण किया गया 3 साल का पंकज नाम का एक बच्चा इन महिलाओं के साथ रह रहा था. पंकज घर के आसपास के लोगों से बात करने की हिम्मत करने लगा था, ताकि वह उन महिलाओं के चंगुल से बाहर निकल सके. इस बात की जानकारी होते ही इन्होंने पंकज को पंखे से उलटा लटका दिया और दीवार में तब तक उस का सिर पटका, जब तक उस की मौत नहीं हो गई.

ये महिलाएं गरीबों के बच्चों की आड़ में चोरी को अंजाम देतीं और पकड़े जाने पर इमोशनल तरीका अपना कर बच जाती थीं.

जेल में हुई मां की मौत

नवंबर 1996 में पुलिस ने तीनों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया. तीनों के विरुद्ध गंभीर आपराधिक मामले दर्ज थे. रेणुका का पति किरण इन मामलों में मुख्य गवाह बन गया तो उस के खिलाफ सारे मामले हटा दिए गए. गिरफ्तारी के एक साल बाद ही दिसंबर 1997 में अंजनीबाई की जेल में ही मौत हो गई.

156 गवाह कोर्ट में हुए पेश

मांबेटियों को काननू की नजर में गुनहगार ठहराया जाना पुलिस के लिए कोई आसान काम नहीं था. इस के लिए सीआईडी ने अपनी पूरी ताकत लगा दी थी. उस ने कई अहम परिस्थितिजन्य साक्ष्य एकत्र ही नहीं किए बल्कि 156 गवाह अदालत के समक्ष पेश किए. इन गवाहों में सब से अहम गवाह एक मासूम भी था, जो इन के चंगुल से भागने में सफल हो गया था.

पुलिस ने इन के खिलाफ 12 मामलों में ही एफआईआर दर्ज की थी. लिहाजा इतने ही मामलों में उन के विरुद्ध चार्जशीट दाखिल की गई.

राज्यपाल ने 2013 में खारिज की दया याचिका

कोल्हापुर के सत्र न्यायालय ने 2001 में दोनों बहनों शिंदे और गावित को मौत की सजा सुनाई थी. बौंबे हाईकोर्ट ने 2004 में और सुप्रीम कोर्ट ने 31 अगस्त, 2006 में सजा बरकरार रखी. दोनों बहनों ने 2008 में महाराष्ट्र के तत्कालीन राज्यपाल को दया याचिका भेजी, जो 2012-13 में खारिज हो गई. फिर तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के सामने दया की गुहार लगाई. राष्ट्रपति ने भी 2014 में इन की दया की अरजी ठुकरा दी.

सरकार की देरी से मौलिक अधिकार का हनन

साल 1996 से पुणे की यरवडा जेल में बंद दोनों बहनों रेणुका और सीमा ने बौंबे हाईकोर्ट में फांसी देने की सजा पर देरी से अमल होने पर एक अपील दायर की थी, जिस में दोनों बहनों ने दया याचिकाओं के निपटान में बिना वजह देरी किया जाना जीवन के मूल अधिकार का उल्लंघन बताया. वे 25 सालों से कस्टडी में हैं और लगातार मौत के भय में जी रही हैं. ऐसी देरी जीवन जीने के मौलिक अधिकार का हनन करती है.

हाईकोर्ट के मौत की सजा पर मुहर लगाने के बाद हम 13 सालों से भी ज्यादा समय से पलपल मौत के डर में जी रही हैं. इतना लंबा समय जेल की सलाखों के पीछे बिताना उम्रकैद काटने जैसा है. लिहाजा अदालत हमारी रिहाई का आदेश दे.

cPolice Hirasat me Seema and Renuka (2)

फाइल को खिसकने में लगे 7 साल

कोर्ट ने कहा कि एक ओर केस फाइलें इलैक्ट्रौनिक माध्यमों से भेजी जा रही हैं, लेकिन इस मामले में दया याचिका की फाइल राज्य से केंद्र तक पहुंचने में 7 साल लग गए. कानूनन अगर दया याचिका पर बिना कारण देरी की जाती है तो मौत की सजा कम की जा सकती है. अपराधियों के मूल अधिकारों का उल्लंघन तो किया ही, इन के अपराधों से पीडि़तों के साथ भी अन्याय हुआ.

केंद्र सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि उस की ओर से देरी नहीं हुई. राज्य सरकार से मिली दया याचिका को बिना देरी किए राष्ट्रपति के पास निर्णय के लिए भेज दिया था. राष्ट्रपति ने इस दया याचिका को 10 महीने में खारिज कर दिया था.

फांसी की सजा बदली उम्रकैद में

18 जनवरी, 2022 को उच्च न्यायालय ने अपना निर्णय दिया. जस्टिस नितिन जामदार व जस्टिस सारंग कोटवाल ने अपने निर्णय में कहा कि राष्ट्रपति ने भी दया याचिका 2014 में नकार दी थी. फिर भी उन्हें 7 साल तक फांसी पर न चढ़ाना शर्मनाक और सरकारी मशीनरी का अपने कर्तव्य का परित्याग करने समान है. व्यवस्था लापरवाही से भरी रही है. इसीलिए हमें फांसी को उम्रकैद में बदलना पड़ रहा है.

2 जजों की बेंच ने इन दोनों बहनों की रिहाई का फैसला महाराष्ट्र सरकार पर छोड़ दिया है. कहा है कि 25 साल से वे जेल में बंद हैं. इन दोनों बहनों को छोड़ दिया जाए या नहीं, इस पर राज्य सरकार फैसला ले. सरकार व अधिकारी अपना कर्तव्य नहीं निभा सके. ढीला व धीमा सिस्टम पीडि़तों को पूरा न्याय नहीं दिला पाया.

ऐसी महिलाओं को फांसी की सजा मिलने पर भी फांसी के फंदे पर न लटकाया जाना उन गरीबों की बदकिस्मती ही कहेंगे, जिन के बच्चों को इन महिलाओं ने दर्दनाक मौत दी.

यदि दिल दहलाने वाली इन सीरियल किलर बहनों को साल 2001 में कोर्ट ने जब फांसी की सजा दी थी. इस फांसी की सजा को साल 2014 में राष्ट्रपति ने माफी देने से इंकार कर दिया था. इस के बावजूद महाराष्ट्र राज्य व केंद्र सरकार ने इन कलयुगी पूतनाओं को फांसी पर नहीं चढ़ाया. यदि सजा के बाद फंदे पर लटका दिया जाता तो भारतीय इतिहास में पहला अवसर होता जब किसी महिला को फांसी पर लटकाया गया होता.

सीरियल किलिंग का यह केस भारत ही नहीं, दुनिया के सब से खतरनाक एवं दर्दनाक मामलों में एक था. इस समय दोनों बहनें रेणुका और सीमा पुणे की यरवदा जेल में बंद हैं.

बेटे के हत्यारों के लिए मां बनी रणचंडी

यह कहानी आंध्र प्रदेश की है. आंध्रप्रदेश के मध्य में आता है पल्नाडु जिला. तेलुगु इतिहास में सतवाहन राजाओं के साम्राज्य के पतन के समय पल्लव वंश के राजा ने यहां कृष्णा नदी की घाटी में स्वतंत्र राज्य की स्थापना की थी, इसलिए इस क्षेत्र को पल्लवनाडु के रूप में जाना जाता है, जो आज बिगड़तेबिगड़ते पल्नाडु हो गया है. इस जिले का मुख्यालय नरसारावपेट है.

नरसारावपेट शहर की एसआरकेटी कालोनी में मध्यमवर्गीय लोग रहते हैं. 40 वर्षीया जान बी पठान भी इसी कालोनी में रहती थी. मेहनत मजदूरी करने वाली जान बी का गठा शरीर होने की वजह से वह 30 साल की ही लगती थी. जान बी के पति का नाम शब्बीर था. करीब 15 साल पहले एक दुर्घटना में उस की मौत हो गई थी.

पति की मौत के बाद हिम्मत हारने के बजाय जान बी ने मेहनत कर के अपने 2 बेटों को अच्छी तरह पालापोसा. 17 साल के बड़े बेटे का नाम सुभान तो 16 साल के छोटे बेटे का नाम इलियास था. ये दोनों भी अपनी जिम्मेदारी समझते हुए मां के काम में मदद करने लगे थे.

अधेड़ उम्र का प्यार

साल 2020 में इसी कालोनी में 36 साल का शेख बाजी रहने आया. दिखने में फिल्मी हीरो जैसा सुंदर शेख बाजी टपोरी था और इस इलाके में उस ने एक दबंग के रूप में अपनी छवि बना रखी थी. अकसर छोटेमोटे झगड़ों में उस का नाम आता रहता था.

शेख बाजी शादीशुदा था. उस के परिवार में पत्नी मोबीना के अलावा एक बेटी और 2 बेटे थे. रंगीनमिजाज इस दबंग की नजर जान बी पर पड़ी तो जम कर रह गई. मदद करने के बहाने उस ने जान बी के घर में प्रवेश किया तो जान बी को प्रभावित करने के लिए छोटीमोटी आर्थिक मदद भी करने लगा. विधवा जान बी ने शुरूशुरू में तो उसे कोई खास तवज्जो नहीं दी, पर शेख बाजी ने धैर्यपूर्वक दाना डालना चालू रखा.

करीब 6 महीने में उस की मेहनत रंग लाई और आखिर जान बी को भी उस से प्यार हो गया तो उस ने उसे खुद को समर्पित कर दिया.

इस तरह की बातें छिपी तो रहती नहीं. फिर जान बी का बड़ा बेटा होशियार था और दुनियादारी समझने लगा था. उसे अपनी मां के इस प्रेम संबंधों की जानकारी हो गई. पर वह अपनी मां को क्या कह सकता था? पिता की मौत के बाद मेहनत मजदूरी कर के मां ने ही दोनों बेटों को पालापोसा था. ऐसे में मां से कुछ कहने की उन की हिम्मत नहीं थी.

पर कालोनी में इन के दोस्त थे. कभी वे इस बात की चर्चा कर के सुभान की हंसी उड़ाते तो गुस्से से उस के दिमाग की नसें फूलने लगतीं और खुली मुट्ठी कस जाती. दोस्त मां के बारे में उल्टीसीधी बातें कह कर मजाक उड़ाते तो सुभान को इस तरह तकलीफ होती जैसे उस के कानों में कोई गरम सीसा डाल रहा हो.

सुभान ने धमकाया मां के प्रेमी को

दिल में लगी आग जब बेकाबू होने लगी तो सुभान ने जबरदस्त हिम्मत की. बीच बाजार में जरा भी डरे और शरम किए बगैर उस ने बाजी शेख का कालर पकड़ कर धमकाते हुए कहा, “अब फिर कभी मेरे घर में कदम रखा तो ठीक नहीं होगा. यह जो मैं कह रहा हूं, इसे हलके में मत लेना. अगर अब तुम मेरे घर आए तो अपने पैरों से चल कर नहीं जा पाओगे.”

शेख बाजी सन्न रह गया. 17 साल के लडक़े की हिम्मत देख कर वह सहम गया. कुछ बोले बगैर वह वहां से चला गया. घर जा कर उस ने जब सुभान की धमकी पर विचार किया तो उसे लगा कि अगर जान बी से संबंध रखना है तो इस लडक़े को रास्ते से हटाना होगा. फिर उस ने सुभान को निपटाने का उपाय भी सोच लिया.

शेख बाजी ने अपने जिगरी दोस्त अल्लाह कासिम से बात की. इस के बाद दोनों ने बैठ कर योजना बनाई. इस के बाद 8 अगस्त, 2021 को शेख बाजी जान बी के गेट पर आया और सुभान को बाहर बुलाया.

सुभान बाहर आया तो बाजी ने कहा, “तुम्हारे लिए एक काम ढूंढा है. दूध की एक डेयरी में तुम्हारे लिए नौकरी की बात की है. तुम अभी मेरे साथ चलो.”

सुभान उस के साथ चल पड़ा. दोनों डेयरी के पास पहुंचे तो अल्लाह कासिम वहां एक मिल्क वैन के पास खड़ा था. उस समय वहां आसपास कोई नहीं था. कासिम ने सुभान को पकड़ लिया तो शेख बाजी ने छुरी से सुभान का गला रेत दिया. जब उन्हें विश्वास हो गया कि सुभान मर गया है तो उन्होंने लाश को उठा कर उसी मिल्क वैन में डाल दी.

रात तक सुभान घर नहीं आया तो जान बी छोटे बेटे इलियास को ले कर उसे खोजने निकली. उसे पता था कि शेख बाजी उसे अपने साथ ले गया था, इसलिए सब से पहले वह उस के घर गई. शेख बाजी ने कहा, “वह तो 15 मिनट बाद ही हमारे पास से चला गया था.”

“हमारे यानी?” जान बी ने तुरंत पूछा, “तुम्हारे साथ और कौन था?”

अब तो बाजी के मुंह से निकल गया था, इसलिए उसे सच बताना पड़ा, “अल्लाह कासिम हमारे साथ था.”

हत्यारों को सजा देने की खाई कसम

मांबेटे निराश हो कर घर लौट आए. अगले दिन सुबह मिल्क वैन से सुभान की लाश मिली तो पूरे इलाके में सनसनी फैल गई. पोस्टमार्टम करा कर पुलिस ने सुभान की लाश जान बी को सौंप दी.

सुभान के दोस्तों ने जान बी को बताया कि सुभान ने बाजी को धमकी दी थी, इसलिए यह काम उसी ने किया होगा. जान बी ने शेख बाजी और अल्लाह कासिम के खिलाफ बेटे की हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया. पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार किया. पर दोनों ने न तो अपना अपराध स्वीकार किया और न ही वह छुरी बरामद कराई, जिस से सुभान की हत्या की थी. पुलिस को कोई चश्मदीद गवाह भी नहीं मिला था. फिर भी पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

crime-ranchandi-maa

जान बी पर तो दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था. 17 साल के बेटे को खोने का गम उसे साल रहा था. पर उस की रगों में पठानी खून बहता था. सुभान के जनाजे पर सिर रख कर उस ने बिलखते हुए सभी के बीच प्रतिज्ञा ली, “मैं पठान की बेटी हूं. जिन लोगों ने मेरे बेटे को मारा है, उन लोगों को मार कर ही मुझे चैन मिलेगा.”

जान बी का छोटा भाई हुसैन अब बहन के घर रहने आ गया था. 8 अगस्त को सुभान की हत्या हुई थी. 10 अगस्त को पुलिस ने बाजी शेख और अल्लाह कासिम को गिरफ्तार किया था. नवंबर के पहले सप्ताह में दोनों जमानत पर छूट कर बाहर आ गए.

शेख बाजी ने जान बी को प्यार किया था. इस बीच अनुभव के आधार पर उस ने जान बी की आक्रामकता को भांप लिया था. उस के द्वारा की गई प्रतिज्ञा भी जगजाहिर थी. इसलिए शेख बाजी घबरा गया था. उस ने पल्नाडु शहर छोड़ दिया और वहां से 50 किलोमीटर दूर चिल्कालुरीपेट गांव में रहने चला गया. अल्लाह कासिम को जान बी की आक्रामकता का पता नहीं था, इसलिए वह बिंदास पल्नाडु में घूमता रहा.

जान बी ने एक आरोपी को मारा बीच बाजार में

जान बी के जीवन का अब एक ही उद्देश्य था, बेटे को मारने वाले शेख बाजी और अल्लाह कासिम को खत्म करना. बहन की मदद के लिए उस का छोटा भाई हुसैन भी तैयार था. बड़े भाई सुभान की हत्या का बदला लेने के लिए जूनून छोटे भाई इलियास पर भी सवार था.

20 दिसंबर, 2021 की शाम इलियास ने अल्लाह कासिम को देखा. सिनेमा थिएटर के जंक्शन के पास एक दुकान के बरामदे में वह बैठा था. उसे देख कर ही लग रहा था कि उस ने खूब शराब पी रखी है. इलियास भागते हुए घर गया और यह बात उस ने मां और मामा को बताई. मटन काटने का छुरा दुपट्टे में छिपा कर जान बी घर से निकली. उस के पीछेपीछे हुसैन और इलियास भी चल पड़े.

थिएटर जंक्शन पर भीड़ की परवाह किए बगैर तीनों ने दुकान के बरामदे में बैठे अल्लाह कासिम को घेर लिया. जान बी की आंखों में उतरा खून देख कर वह घबराया, पर भागने का कोई रास्ता नहीं था. एक आदमी को 3 लोगों ने घेर रखा है, यह देख कर लोगों की भीड़ इकट्ठा होने लगी.

जान बी ने हुसैन और इलियास से कहा, “तुम दोनों इस के हाथ पैर पकड़ो.”

जान बी का इतना कहना था कि हुसैन और इलियास ने अल्लाह कासिम के हाथ पैर पकड़ कर दबोच लिया. जान बी ने दुपट्टे में लपेटा छुरा निकाला. उस की आंखों के सामने बेटे सुभान की लाश का दृश्य था. उस ने दांत भींच कर पूरी ताकत से अल्लाह कासिम के गले में छुरा घुसेड़ दिया.

यह दृश्य देख कर वहां खड़े लोग स्तब्ध रह गए. इस के बाद जान बी ने खचाखच लगातार 4 वार किए. फिर तो अल्लाह कासिम का खेल खत्म हो गया. जान बी ने उस की लाश पर थूक कर संतोष की सांस ली.

इस बीच किसी ने पुलिस को फोन कर दिया था. जान बी वहां से जाती, उस के पहले ही पुलिस आ गई. हंसते हुए जान बी ने खुद को पुलिस के हवाले करते हुए कहा, “मैं ने अपने बेटे के हत्यारे को खत्म कर दिया. अब आप को मुझे जहां ले जाना हो, ले चलिए.”

थाने में भी जान बी ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था. पुलिस ने इलियास और हुसैन को भी गिरफ्तार कर लिया था. इलियास नाबालिग था, इसलिए उसे बाल सुधार गृह भेज दिया गया. बाकी जान बी और हुसैन को जेल भेज दिया था.

जान बी ने प्रेमी को दी प्यार की डोज

दिसंबर, 2021 को जान बी ने अल्लाह कासिम का कत्ल किया था. अप्रैल, 2022 को वह और हुसैन जमानत पर बाहर आ गए. उस ने इलियास को भी छुड़ा लिया था. अभी उस की प्रतिज्ञा अधूरी थी. सुभान के हत्यारे शेख बाजी का पता कर के उसे और खत्म करना था.

हृदय में घुट रही दुश्मनी की तासीर जैसेजैसे पुरानी होती है, उतनी ही तीव्र होती जाती है. शेख बाजी की तलाश में जान बी दिनरात एक किए हुए थी. काफी मेहनत के बाद आखिर जनवरी, 2023 में शेख बाजी के बारे में उस ने पता कर ही लिया. उसे उस का फोन नंबर भी मिल गया था. जान बी को पता था कि उसे जाल में फंसाने के लिए त्रियाचरित्र ही काम आएगा.

जान बी ने अल्लाह कासिम की हत्या कर दी है, पल्नाडु से 50 किलोमीटर दूर चिल्कालुरीपेट गांव में रह रहे शेख बाजी ने सुना तो वह घबरा गया था.

जान बी ने उसे फोन किया, “मैं जानती हूं कि हमारे संबंध ऐसे थे कि तुम मेरे बेटे का अहित कभी नहीं कर सकते थे. सुभान की हत्या करने वाले अल्लाह कासिम को मैं ने खत्म कर दिया है. तुम्हारे लिए तो मेरे दिल में अभी भी पहले वाला ही प्यार है. उस समय भी तुम्हारे इश्क में पागल थी और अभी भी वही हाल है.”

इसी के साथ मीठी हंसी हंसते हुए उस ने कहा, “जब इच्छा हो, मुझे फोन कर के नरसारावपेट आ जाना. जब तुम्हें आना होगा, इलियास और हुसैन को पैसे दे कर पिक्चर देखने भेज दूंगी.”

जान बी के साथ एकांत पाने के चक्कर में शेख बाजी उस की मीठीमीठी बातों में फंस गया. उसे लगा कि जान बी अभी भी उस के प्यार में पागल है. वह नरसारावपेट आया तो हुसैन और इलियास घर में ही थे. मुसकराते हुए जान बी ने उसे चायनाश्ता कराया. इसी तरह शेख बाजी 4 बार नरसारावपेट आया. जान बी को पता था कि शेख बाजी खतरनाक गुंडा है. इस की हत्या करना अल्लाह कासिम की हत्या करने जैसा आसान नहीं है.

प्रेमी का गला रेत कर मिली शांति

21 जून, 2023 को फोन कर के जान बी ने शेख बाजी को निमंत्रण दिया कि आज उस के भाई हुसैन का जन्मदिन है. इसलिए शाम को वह जरूर आए. शेख बाजी ने खुशीखुशी आने के लिए हां कर दी.

शहर से थोड़ी दूर एक सुंदर स्थान पर आयोजित जन्मदिन की पार्टी में जान बी, शेख बाजी, हुसैन और इलियास के अलावा हुसैन के 2 दोस्त गोपीकृष्ण और हरीश भी थे. हुसैन ने बोतल खोली और बाजी को जम कर शराब पिलाई. शराब के साथ चिकन के भी तरहतरह के आइटम खाने के लिए थे. पेट भर चिकन खाने और जम कर शराब पीने के बाद शेख बाजी विरोध करने लायक नहीं रहा था.

aropi-shekh-baji

इलियास और हुसैन ने उस के हाथपैर पकड़ लिए तो मटन काटने वाला छुरा ले कर जान बी पूरी आक्रामकता से उस पर टूट पड़ी. सुभान की गला कटी लाश उस की आंखों के सामने नाच रही थी. रणचंडी बनी जान बी लगातार शेख बाजी के गले पर छुरे से वार करती रही.

शेख बाजी खत्म हो गया, फिर भी जुनून में पागल जान बी के हाथ रुक नहीं रहे थे. तब हुसैन ने उस का हाथ पकड़ कर खींचते हुए कहा, “बाजी, यह खत्म हो चुका है.”

वे साथ में एक डिब्बे में पैट्रोल भी ले कर आए थे. शेख बाजी की लाश पर पैट्रोल डाल कर उसे जला दिया. पैट्रोल कम था, इसलिए लाश आधी ही जली. अधजली लाश को गड्ढे में धकेल कर जान बी सीधे थाने पहुंची.

उस ने एसआई बालांगी रेड्डी और सर्किल इंसपेक्टर भक्तवत्सला के सामने अपना अपराध स्वीकार करते हुए कहा कि उस ने अपने बेटे सुभान के हत्यारे शेख बाजी की हत्या कर दी है.

पुलिस ने लाश बरामद कर के पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी. पुलिस ने 22 जून, 2023 को जान बी, इलियास, हुसैन, गोपीकृष्ण और हरीश को गिरफ्तार किया. पूछताछ के बाद पुलिस ने छुरा, पैट्रोल वाला डिब्बा भी बरामद कर लिया था.

इस के बाद सभी को अदालत में पेश किया, जहां से इन्हें जेल भेज दिया गया. जान बी को सजा की चिंता बिलकुल नहीं है. क्योंकि जेल जाते समय बेटे की हत्या का बदला लेने का संतोष उस के चेहरे पर साफ झलक रहा था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में इलियास परिवर्तित नाम है.

जलन में जल गया पूरा परिवार

रांची में एक जगह है कोकर. वैसे तो यह इंडस्ट्रियल एरिया है, लेकिन इसी से लगा कुछ रिहाइशी इलाका भी है. रांचीझारखंड की राजधानी है, इसलिए इस शहर का विकास तेजी से हो रहा है. कोकर चौक से कांटा टोली की ओर जाने वाली सडक़ पर एक हाउसिंग सोसायटी है, जिसे लोग रिवर्सा अपार्टमेंट के नाम से जानते हैं. यह काफी ऊंची और शानदार बिल्डिंग है. जब इमारत बड़ी और सुंदर होगी तो उस में रहने वाले भी बड़े लोग ही होंगे.

इसी रिवर्सा अपार्टमेंट के फ्लैट नंबर 1002 में डा. सुकांत सरकार अपने परिवार के साथ रहते थे. डा. सुकांत सरकार डाक्टर तो थे ही, आर्मी से रिटायर भी थे, इसलिए लोग उन की काफी इज्जत करते थे. समाज में उन की अच्छी प्रतिष्ठा थी. इस की एक वजह यह भी थी कि वह सामाजिक आदमी थे और हर छोटेबड़े का सम्मान करते थे. मिलनसार स्वभाव वाले होने की वजह से हर किसी से मिलतेजुलते और बातचीत करते रहते थे. इसीलिए लोग उन्हें काफी मानसम्मान देते थे.

उन का बेटा था सुमित सरकार, जो नोएडा की एक बड़ी कंपनी में ऊंचे पर पर नौकरी करता था. सुमित ने नोएडा में अपना मकान ले रखा था. नोएडा में अपना मकान होने की वजह से डा. सुकांत सरकार पत्नी के साथ कभी रांची में रहते थे तो कभी बेटे के पास नोएडा जा कर रहते थे. इस तरह इस परिवार का नोएडा और रांची आनाजाना लगा रहता था. सब से बड़ी बात तो यह थी उन के यहां किसी चीज की कमी नहीं थी.

साल 2006 में डा. सुकांत सरकार ने खूब धूमधाम से बेटे सुमित का विवाह कोलकाता की मधुमिता के साथ किया. मधुमिता पढ़ीलिखी संस्कारी लडक़ी थी, इसलिए ससुराल आ कर उस ने घर को संभाल लिया. फिर परिवार ही कौन बड़ा था. कुल 4 लोगों का ही तो परिवार था. सब पढ़ेलिखे व्यवस्थित थे.

मधुमिता एक अच्छी, कुशल और संस्कारी बहू साबित हुई थी, इसलिए पति ही नहीं, सासससुर भी उसे प्यार तो करते ही थे, उस का सम्मान भी करते थे. उसे वे बेटी की तरह रखते थे. अब घर में वही सब होता था, जो वह चाहती थी. वह भी इस बात का खयाल रखती थी कि उस से ऐसा कोई काम न हो, जिस से घर के किसी सदस्य को किसी तरह की ठेस पहुंचे. वह कभी सासससुर के साथ रांची में रहती तो कभी पति के साथ नोएडा में. कुछ सालों बाद उसे एक बेटी पैदा हुई, जिस का नाम रखा गया शमिता.

इस परिवार में सब बढिय़ा चल रहा था. छोटा परिवार था, इसलिए सभी हंसीखुशी से रहते थे. ऐसे में ही 9 अक्तूबर, 2016 को इसी रिवर्सा अपार्टमेंट के फ्लैट नंबर 1002 से यानी सुकांत सरकार के फ्लैट से एक भयानक खबर निकल कर बाहर आई और वह खबर यह थी कि सुकांत सरकार के फ्लैट में एक साथ 5 लोगों की मौत हो गई है और सुकांत सरकार बुरी तरह घायल हैं.

रांची शहर में फैल गई थी सनसनी

जिन लोगों की मौत हुई थी, उन में सुकांत सरकार की 60 साल की पत्नी अंजना सरकार, उन का 35 साल का बेटा सुमित सरकार, सुकांत सरकार के भतीजे पार्थिव की पत्नी मोमिता सरकार और बेटे की बेटी शमिता तथा भतीजे की बेटी सुमिता शामिल थी.

इस तरह अचानक 5 लोगों की मौत और घर के मुखिया के बुरी तरह से घायल होने की खबर से अपार्टमेंट में ही नहीं, पूरे रांची शहर में सनसनी फैल गई थी. इस घटना के बारे में जिस ने भी सुना था, वह हक्काबक्का रह गया था. एक तरह से यह बहुत ही दुखद और दिल दहलाने वाली घटना थी.

इस की जानकारी लोगों को तब हुई, जब पुलिस अपार्टमेंट पर पहुंची थी और पुलिस को सूचना सुकांत सरकार के इसी शहर में रहने वाले भांजे ने दी थी. हुआ यह था कि भांजे ने पहले मामा सुकांत सरकार को फोन किया. जब उन का फोन नहीं उठा तो उस ने परिवार के अन्य लोगों को फोन किया. जब अन्य किसी का भी फोन नहीं उठा तो उसे चिंता हुई.

किसी एक का फोन न उठे तो सोचा जा सकता है कि वह कहीं व्यस्त होगा, इसलिए फोन नहीं उठा रहा है. लेकिन जब घर में कई लोग हों और किसी का भी फोन न उठे तो चिंता होगी ही. उस से रहा नहीं गया और वह मामा सुकांत सरकार के घर जा पहुंचा. घर का दरवाजा अंदर से बंद था. उस ने घंटी बजाई, दरवाजा नहीं खुला तो उस ने दरवाजा खटखटाया. जब दरवाजा खटखटाने पर भी नहीं खुला तो उस ने पुलिस को सूचना दी.

सूचना मिलते ही थाना सदर पुलिस रिवर्सा अपार्टमेंट के फ्लैट नंबर 1002 पर पहुंच गई. पुलिस ने किसी तरह दरवाजा खोला. दरवाजा खुलने पर जब सभी अंदर गए तो अंदर का दृश्य भयानक था. घर के अंदर एक कमरे में 5 लाशें पड़ी थीं, जिन में सुकांतो के बेटे, पत्नी, भतीजे की पत्नी और 2 बच्चियों की लाशें थीं. पर इन के शरीर पर किसी भी तरह की चोट वगैरह का कोई निशान नहीं था.

दूसरे कमरे में अकेले सुकांत सरकार ऐसे थे, जिन की सांसें अभी चल रही थीं. पर वह बुरी तरह घायल थे. उन का पूरा शरीर खून से लथपथ था. उन के पास एक बड़ा सा चाकू पड़ा था. चाकू पर भी खून लगा था. साफ लग रहा था उसी चाकू से उन पर वार हुए थे.

पुलिस ने तुरंत सुकांत सरकार को अस्पताल भिजवाया कि शायद समय पर इलाज मिलने से उन की जान बच जाए, पर अस्पताल पहुंचने के कुछ समय बाद जीवन और मौत के बीच संघर्ष करते हुए आखिर उन की भी सांसें थम गईं यानी उन की भी मौत हो गई थी. इस तरह एक ही परिवार के 6 लोगों की एकाएक मौत हो गई थी.

पुलिस को मिले बहू द्वारा प्रताडि़त करने के सबूत

पुलिस ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. फोरैंसिक टीम को बुला कर सारे साक्ष्य एकत्र कराए. इस के बाद बाकी की पांचों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया गया. अब पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार था. क्योंकि उसी से पता चलता कि इन लोगों की मौत कैसे हुई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने पर पता चला कि जिन 5 लोगों की पहले मौत हुई थी, उन्हें एनेस्थेसिया की ओवरडोज तो दी ही गई थी, साथ ही उन्हें इंजेक्शन से कोई जहर भी दिया गया था. अकेले सुकांत सरकार ऐसे थे, जिन के पेट पर चाकू के 14 घाव थे और इसी वजह से उन की मौत सब से बाद में अस्पताल जा कर हुई थी.

पुलिस ने परिवार वालों से पूछताछ शुरू की. इस पूछताछ में पता चला कि जिस समय यह घटना घटी थी, सुकांत सरकार की बड़ी बहू यानी सुमित सरकार की पत्नी मधुमिता सरकार नोएडा में थी. इसलिए वह बच गई थी. जबकि उस के पति की रांची में होने की वजह से मौत हो गई थी.

फ्लैट की तलाशी में पुलिस को कुछ ऐसे कागजात मिले थे, जिस से साफ पता चल रहा था कि यह पूरा परिवार बहू की प्रताडऩा से परेशान था. परिवार वालों से पूछताछ में भी यह बात सामने आई थी. आगे की जांच और पूछताछ में जो कहानी निकल कर सामने आई थी, वह बहुत ही अजीबोगरीब थी.

जैसा कि शुरू में बताया गया है कि जब मधुमिता इस घर में ब्याह कर आई थी तो इस घर में वह ढेरों खुशियां ले कर आई थी. क्योंकि मधुमिता एक बहुत अच्छी बहू साबित हुई थी. हर किसी का खयाल रखने वाली, हर किसी की हर बात सुनने वाली. जिस तरह वह हर किसी का खयाल रखती थी, उसी तरह घर का हर सदस्य उस का भी खयाल रखता था. उस के बातव्यवहार से सरकार परिवार उस पर अपनी जान छिडक़ता था.

छोटी बहन के देवरानी बनने पर हुई कलह शुरू

मधुमिता की एक छोटी बहन थी मोमिता, जो कोलकाता के एक आश्रम में रहती थी. क्योंकि घर में उन की मां नहीं थी. मधुमिता ने जब यह बात अपनी ससुराल वालों को बता कर उसे अपने साथ अपने घर लाने को कहा तो चूंकि मधुमिता ने खुद को अच्छी बहू साबित कर दिखाया था, इसलिए उस की ससुराल वाले उसे बहन को अपने घर लाने से मना नहीं कर सके. उन्होंने कहा था कि वह अपनी बहन को बिलकुल ले आए. वह भी उन के घर एक बेटी की तरह रहेगी.

ससुराल वालों से परमिशन मिलने के बाद मधुमिता अपनी छोटी बहन मोमिता को अपने घर ले आई थी. मोमिता भी कभी रांची तो कभी नोएडा में बहनबहनोई के साथ रहने लगी थी. धीरेधीरे मोमिता ने भी अपनी बड़ी बहन की ही तरह अपने बातव्यवहार और कामों से सरकार परिवार का दिल जीत लिया.

उस ने सरकार परिवार का ऐसा दिल जीता कि सरकार परिवार ने उसे भी अपनी बहू बनाने का फैसला कर लिया. इस के बाद सुकांत सरकार ने मोमिता का विवाह अपने भतीजे पार्थिव सरकार के साथ करा दिया. इस तरह मधुमिता की छोटी बहन मोमिता सुकांत सरकार के घर की दूसरी बहू बन गई. मोमिता का विवाह भले ही सुकांत सरकार के भतीजे पार्थिव के साथ हुआ था, पर वह रहती थी सुकांत सरकार के परिवार के साथ ही.

पार्थिव अलग रहता था, इसलिए कभी वह अपने चाचा के घर आ जाता था तो कभी मोमिता अपने पति के साथ उस के घर रहने चली जाती थी. उस का आनाजाना लगा रहता था, लेकिन वह ज्यादातर सुकांत सरकार के परिवार के साथ ही रहती थी  इस तरह सुकांत सरकार के परिवार में अब 7 लोग हो गए थे. वह खुद, उन की पत्नी अंजना, बेटा सुमित, दोनों बहुएं और दोनों बहुओं की एकएक बेटियां.

धीरेधीरे एक समय ऐसा आ गया, जब सरकार परिवार छोटी बहू यानी मधुमिता की छोटी बहन मोमिता पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान रहने लगा. यानी लोग उस से ज्यादा प्यार करने लगे, उस का ज्यादा खयाल रखने लगे. अब घर में चलती भी उसी की ज्यादा थी. घर में मधुमिता से उस की तुलना होने लगी.

घर में जब उस का मानसम्मान ज्यादा होने लगा तो मधुमिता को इस से जलन होने लगी. इस की वजह यह थी कि मोमिता ने अपने कामों और बातव्यवहार से सब का दिल जीत लिया था. सभी के लिए वह हर वक्त एक पैर पर खड़ी रहती थी. कहा भी जाता है कि काम प्यारा होता है शरीर नहीं. यह बात सच साबित हुई थी.

मधुमिता छोटी बहन को समझने लगी दुश्मन

बस, यहीं से दोनों बहनों, जो अब जेठानी और देवरानी बन चुकी थीं, के बीच नफरत ने जन्म ले लिया. जिस की लपेट में धीरेधीरे पूरा परिवार आ गया. मधुमिता यानी सुमित की पत्नी इस जलन की लपटों में कुछ इस तरह झुलसी कि उस ने अपने पति और अपनी ही सगी बहन पर यह इलजाम लगा दिया कि उस के पति के अपने छोटे भाई की पत्नी मोमिता के बीच अवैध संबंध हैं.

इस नाजायज संबंधों की बात यहीं तक सीमित नहीं रही, आगे चल कर मधुमिता यह भी कहने लगी कि मोमिता के नाजायज संबंध अपने ससुर यानी उस के ससुर सुकांत सरकार से भी हैं. जब इस तरह के झूठे इलजाम एक प्रतिष्ठित परिवार के लोगों पर लगाया जाएगा तो सोचिए उस परिवार पर क्या बीतेगी, परिवार वालों का क्या हाल होगा? बहू द्वारा लगाए गए इस इल्जाम से पूरा सरकार परिवार हिल गया था.

इतना ही नहीं, मधुमिता बारबार दहेज उत्पीडऩ का केस दर्ज कराने की भी धमकी देने लगी थी. वह खुद तो धमकी देती ही थी, कई एनजीओ यानी स्वयंसेवी संस्थाओं की ओर से भी सरकार परिवार को चेतावनियां या यह कहिए कि धमकियां दी जाने लगी थीं कि वे लोग मधुमिता को परेशान न करें.

इस तरह की बातें कर के एक तरह से सरकार परिवार को डराया जाने लगा था. अकसर उन के घर पुलिस भी आने लगी थी, जो कभी समझाती तो कभी कहती कि आप लोग पढ़ेलिखे प्रतिष्ठित लोग हैं, फिर भी बहू को परेशान करने जैसी ओछी हरकत करते हैं.

कभीकभी उन लोगों को थाने भी जाना पड़ता था, जहां उन्हें जलील किया जाता, बेइज्जती की जाती. मधुमिता ने पति, सासससुर पर कई मुकदमे दर्ज करवा दिए थे, जिन में दहेज उत्पीडऩ और प्रताडि़त करने वाले थे.

बहू की प्रताडऩा से परेशान हुआ परिवार

सुकांत सरकार ही नहीं, उन का पूरा परिवार इस तरह की बातों से शर्मिंदगी महसूस करता. क्योंकि वह जो सफाई देते, उन की बातों पर कोई विश्वास नहीं करता. इस से पूरा परिवार दिमागी रूप से इतना परेशान रहने लगा था. उन की कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि वे क्या करें.

कभी वे सभी मधुमिता से पूछते भी कि वह ऐसा क्यों कर रही है तो वह कोई जवाब भी नहीं देती थी. इस तरह कभी घर की अच्छी कही जाने वाली बहू ने ही पूरे परिवार की जिंदगी में उथलपुथल मचा दी थी. एक तरह से सभी का जीना हराम कर दिया था.

और इसी सब का परिणाम आया था 9 अक्तूबर, 2016 को, जब घर के 6 लोगों ने एक साथ मौत को गले लगा लिया था. एक दिन पहले सुकांतो सरकार ने संकेत भी दिया था कि अगर घर के हालात ऐसे ही रहे तो वह कुछ ऐसा कर गुजरेंगे कि कोई सोच भी नहीं सकता.

लेकिन किसी को न तो पता था और न ही विश्वास था कि इस घर से एक साथ 6 लाशें उठेंगी यानी और 6 लोगों की जान चली जाएगी. लेकिन 9 अक्तूबर को कुछ ऐसा ही हुआ. इस तरह 6 लोगों का मौत को गले लगाना दिल दहलाने वाली घटना थी.

पुलिस जांच में घर में जो कागजात मिले थे, उन से मौतों की वजह का पता चल गया था. इन मौतों का सारा इलजाम घर की बड़ी बहू मधुमिता पर लगाया गया था. उसी की ओर इशारा किया गया था कि यह जो कुछ भी हुआ है, उसी की वजह से हुआ है.

जांच में पता चला था कि सभी की रजामंदी के बाद डा. सुकांत सरकार ने ही सभी को पहले एनेस्थेसिया की ओवरडोज का इंजेक्शन लगाया था. बच्चियां किस के सहारे रहेंगी, इसलिए उन्हें भी एनेस्थेसिया का इंजेक्शन लगा दिया गया था. एनेस्थेसिया का इंजेक्शन लगाने के बाद जहर का भी इंजेक्शन लगाया गया था, जिस से कोई न बचे. इस के बाद डा. सुकांत सरकार ने खुद पर चाकू से 14 वार किए थे.

7 साल बाद पुलिस के हत्थे चढ़ी बड़ी बहू

इस मामले की जांच में लगी पुलिस ने कागजों में जो लिखा था, रिश्तेदारों तथा परिचितों से इस बारे में पूछताछ की तो पता चला कि इन मौतों के लिए मधुमिता ही जिम्मेदार है. पुलिस के हाथ जो सबूत लगे थे, उस से साफ हो गया था कि मधुमिता की ही वजह से पूरे परिवार की मौत हुई थी. उसी की प्रताडऩा से तंग आ कर परिवार ने मौत को गले लगाने का निर्णय लिया था.

इस के बाद पुलिस ने मधुमिता पर आत्महत्या के लिए मजबूर करने का मुकदमा दर्ज किया और उसे गिरफ्तार करने नोएडा जा पहुंची. क्योंकि पुलिस के पास नोएडा का ही पता था. पर वह वहां से फरार हो चुकी थी. पुलिस मामले की जांच करते हुए सबूत भी जुटाती रही, साथ ही मधुमिता को गिरफ्तार करने की कोशिश भी करती रही.

कभी इस मामले की फाइल धूल खाती रहती तो कभी कोई अधिकारी मधुमिता को गिरफ्तार करने की कोशिश में नोएडा में छापा मार देता, क्योंकि पुलिस के पास उस का केवल वहीं का पता था. लेकिन इधर पुलिस को पता चला कि मधुमिता कोलकाता में रह रही है. पुलिस ने जब उस की तलाश कोलकाता में शुरू की तो उस का सही पता ही नहीं मिल रहा था. कभी पता मिल भी जाता तो पुलिस के पहुंचने से पहले वह ठिकाना बदल चुकी होती.

लेकिन जून, 2023 में पुलिस को उस का कोलकाता का सही पता मिल गया तो रांची पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. पहले उसे कोलकाता की अदालत में पेश किया गया, जहां से ट्रांजिट रिमांड पर उसे रांची लाया गया है. रांची में उसे सिविल कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया है.

पुलिस अब एक एनजीओ की संचालिका गिताली चंद्रा के बारे में जांच कर रही है कि इस मामले में उन की तो कोई भूमिका नहीं थी.

कलयुगी बेटा : मां के बुढ़ापे का सहारा बना हत्यारा

मेनगेट का ताला खुला देख कर राधा समझ गई कि मनीष आ गया है, क्योंकि घर की चाबियां मनीष के पास भी होती थीं. उतने बड़े घर में मांबेटा ही रहते थे, इसलिए दोनों अलगअलग चाबियां रखते थे कि किस को कब जरूरत पड़ जाए.

राधा ने अंदर आ कर बाजार से लाया सामान किचन में रखा और हाथमुंह धोने के लिए बाथरूम की ओर बढ़ी. वह मनीष के कमरे के सामने से गुजरी तो अंदर से मनीष के साथ लड़की के हंसने की आवाज उसे सुनाई दी. उस के कदम वहीं रुक गए और माथे पर बल पड़ गए.

वह होंठों ही होंठों में बड़बड़ाई, ‘‘मनीष आज फिर नेहा को ले आया है. इस का मतलब यह हुआ कि वह मानने वाला नहीं है.’’

बेटे की इस मनमानी से नाराज राधा उस के कमरे में घुस गई. अंदर उस ने जो देखा, उस से एक बार उसे पलट कर बाहर आना पड़ा. अंदर पड़े बैड पर नेहा अपनी दोनों बांहें मनीष के गले में डाले गोद में बैठी थी.

राधा को देख कर दोनों भले ही अलग हो गए थे, लेकिन उन के चेहरों पर शरम की परछाई तक नहीं थी. वे कमरे से बाहर आए तो राधा ने कहा, ‘‘तू आज फिर इस लड़की को घर ले आया. मैं ने कहा था न कि मुझे यह लड़की बिलकुल पसंद नहीं है, इसलिए इसे घर मत ले आना.’’

‘‘मम्मी, नेहा आप को भले नहीं पसंद, पर मुझे तो पसंद है. आप तो जानती हैं कि मैं इसे बहुत प्यार करता हूं, इसलिए शादी भी इसी से करूंगा.’’ मनीष ने राधा के नजदीक जा कर कहा.

‘‘अगर तुम्हें अपने मन की करना है तो करो. लेकिन जिस दिन तुम ने इस लड़की से शादी की, उसी दिन तुम से मेरा संबंध खत्म.’’ राधा ने गुस्से में कहा.

मांबेटे के इस झगड़े से नेहा खुद को काफी असहज महसूस कर रही थी. इसलिए वह मनीष के पास जा कर बोली, ‘‘मनीष, अभी मैं जा रही हूं. कल कहीं बाहर मिलना, वहीं बाकी बातें करेंगे.’’

नेहा की इस बात से राधा को तो गुस्सा आया ही, मां ने प्रेमिका का अपमान किया था, इसलिए मनीष को भी गुस्सा आ गया था. उस ने चीखते हुए कहा, ‘‘मम्मी, नेहा से शादी करने में तुम्हें परेशानी क्या है, क्या तुम मेरी खुशी के लिए इतना भी नहीं कर सकती?’’

‘‘मैं ने तो तुम्हारी खुशी के लिए न जाने क्याक्या किया है, क्या तुम मेरी खुशी के लिए उस लड़की को नहीं छोड़ सकते?’’ राधा ने व्यंग्य से कहा.

‘‘नेहा को छोड़ना मेरे लिए आसान नहीं है. अगर आसान होता तो मैं कब का छोड़ देता.’’

‘‘इस का मतलब तुम मुझे छोड़ सकते हो, उसे नहीं. सोच लो, तुम्हें दोनों में से एक का ही साथ मिलेगा. चाहे मां के साथ रह लो या उस लड़की के साथ. अगर तुम ने उस लड़की से शादी की तो मेरा तुम से कोई संबंध नहीं रहेगा. मैं तुम्हें अपने इस घर में भी नहीं रहने दूंगी. यही नहीं, मेरे पास जो कुछ भी है, उस में से भी तुम्हें एक कौड़ी नहीं दूंगी.’’ इस तरह राधा ने अपना निर्णय सुना दिया.

मां की इन बातों से मनीष परेशान हो उठा. क्योंकि पिता की मौत के बाद सारी संपत्ति की मालकिन उस की मां ही थी. उस के लिए इस से भी बड़ी चिंता की बात यह थी कि वह पूरी तरह मां पर ही निर्भर था. अगर मां हाथ खींच लेती तो वह पाईपाई के लिए मोहताज हो जाता. जबकि बिना शराब के उसे नींद नहीं आती थी. सिगरेट तो वह पलपल में पीता था.

मनीष ही नहीं, राधा भी कम परेशान नहीं थी. वह उस का एकलौता बेटा था. 5 बेटियों के बाद वह न जाने कितनी मन्नतें मांगने के बाद पैदा हुआ था. बेटा पैदा होने पर राधा और उन के पति लालाराम की खुशी का ठिकाना नहीं रहा था.   लेकिन बेटे से उन्होंने जो उम्मीदें पाल रखी थीं, अधिक लाडप्यार ने उन उम्मीदों पर पानी फेर दिया था. बेटे की ही चिंता में राधा को नींद नहीं आ रही थी. देर रात तक करवट बदलते हुए किसी तरह वह सोई तो फिर सुबह उठ नहीं पाई.

सुबह मनीष उठा तो मां नहीं उठी थी. जबकि हमेशा वह उस से पहले उठ जाती थी. उस ने मां के कमरे में जा कर देखा, वहां की स्थिति देख कर वह सन्न रह गया. राधा की खून में डूबी लाश पड़ी थी. मां को उस हालत में देख कर वह घबरा गया.

उस ने तुरंत थाना जगदीशपुरा पुलिस को मां की हत्या की सूचना दी. इस के बाद उस ने पड़ोस में रहने वाले डा. प्रदीप श्रीवास्तव को मां की हत्या के बारे में बताया. इस के बाद तो यह खबर पूरी कालोनी में फैल गई.

मनीष की एक बहन स्नेहलता उसी कालोनी में रहती थी. मनीष ने उसे भी मां के कत्ल की सूचना दे दी थी. आते ही वह मनीष से लिपट कर रोने लगी. वह उसे झिंझोड़ कर पूछने लगी, ‘‘भैया, किस ने किया मम्मी का कत्ल, उस ने किसी का क्या बिगाड़ा था?’’

‘‘दीदी, मैं तो खाना खा कर सो गया था. सुबह उठा तो मम्मी को इस हालत में पाया?’’ रोते हुए मनीष ने कहा.

लोग बहनभाई को सांत्वना दे रहे थे. राधा के अन्य रिश्तेदारों को भी उस के कत्ल की सूचना दे दी गई थी. नजदीक रहने वाले रिश्तेदार आ भी गए थे.

थाना जगदीशपुरा के थानाप्रभारी आदित्य कुमार भी पुलिसबल के साथ आ गए थे. उन की सूचना पर एएसपी शैलेश कुमार पांडेय भी आ गए थे. राधा की लाश जमीन पर पड़ी थी. उस के सिर, गरदन और चेहरे पर किसी धारदार हथियार से वार किए गए थे. गले पर अंगुलियों के भी निशान थे.

राधा की उम्र 65 साल के आसपास थी. शरीर पर सारे गहने मौजूद थे. कमरे का भी सारा सामान अपनी जगह था. यह देख कर सभी एक ही बात कह रहे थे कि आखिर इस बुढि़या ने किसी का क्या बिगाड़ा था, जो इस की हत्या कर दी गई. जबकि उस का जवान बेटा घर में ही दूसरे कमरे में सो रहा था. पूछने पर मनीष ने पुलिस को बताया था कि मम्मी शायद चीख भी नहीं पाई थी, क्योंकि अगर वह चीखी होतीं तो उस की आंख जरूर खुल जाती.

हत्या लूट के इरादे से नहीं हुई थी, यह अब तक की जांच में साफ हो चुका था. मेनगेट पर ताला राधा ही बंद करती थी. पूछताछ में मनीष ने कहा था कि हो सकता है रात में वह ताला लगाना भूल गई हों.

घटनास्थल के निरीक्षण के दौरान थानाप्रभारी आदित्य कुमार ने देखा था कि वाशबेसिन में खून लगा है. इस का मतलब हत्यारे ने हत्या करने के बाद अपने हाथ वाशबेसिन में धोए थे. इस के अलावा पुलिस को वहां से ऐसा कोई सुबूत नहीं मिला था, जिस से हत्यारे तक पहुंचा जा सकता.

मां की हत्या पर मनीष जिस तरह रो रहा था, वह लोगों को एक तरह का नाटक लग रहा था. ऐसा लग रहा था, जैसे वह यह साबित करना चाहता है कि मां की हत्या का उसे बहुत दुख है. पुलिस को भी कुछ ऐसा ही अहसास हुआ था. क्योंकि परिस्थितियां मनीष को ही शक के दायरे में ला रही थीं. पूछताछ में पुलिस को कुछ ऐसी बातें पता चलीं थीं, जिस से वही शक के दायरे में आ रहा था.

बहरहाल, पुलिस ने काररवाई को आगे बढ़ाते हुए लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. इस के बाद थाने लौट कर थानाप्रभारी आदित्य कुमार ने अज्ञात के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया.

आदित्य कुमार को पूरी संभावना थी कि हत्या के इस मामले में कहीं न कहीं से मृतका का बेटा जरूर जुड़ा है, फिर भी उन्होंने उसे हिरासत में नहीं लिया था. वह सुबूत जुटा कर ही उसे गिरफ्तार करना चाहते थे. आगे क्या हुआ, यह जानने से पहले आइए थोड़ा मनीष के बारे में जान लें.

आगरा के थाना जगदीशपुरा की विजय विहार कालोनी की कोठी नंबर 27 में रहने वाले लालाराम का बेटा था मनीष. लालाराम ने यह कोठी आगरा में तहसीलदार रहते हुए बनवाई थी. उन के परिवार में पत्नी राधा, 5 बेटियां स्नेहलता, अनीता, प्रेमलता, हेमलता और सुनीता थी.

बेटे के चक्कर में ही उन्हें ये 5 बेटियां हो गई थीं. इसीलिए लालाराम इतने पर भी नहीं रुके थे. आखिरकार छठवीं संतान के रूप में उन के यहां बेटा मनीष पैदा हुआ था. मनीष के पैदा होतेहोते लालाराम और राधा काफी उम्रदराज हो गए थे. उम्र के तीसरे पन में बेटा पा कर पतिपत्नी फूले नहीं समाए थे. एक तो मनीष बुढ़ापे में पैदा हुआ था, दूसरे 5 बेटियों के बाद, इसलिए वह मांबाप का बहुत लाडला था. इसी लाडप्यार में वह बिगड़ता चला गया.

जैसेजैसे बेटियां सयानी होती गईं, लालाराम उन की शादियां करते गए. अच्छी नौकरी में थे, इसलिए उन्होंने सारी बटियों की शादी ठीकठाक घरों में की थीं. उन के 3 दामाद रेलवे में थे, एक बैंक में तो एक प्राइवेट नौकरी में था. बेटे को भी वह पढ़ालिखा कर किसी काबिल बनाना चाहते थे, लेकिन बेटे का मन पढ़ने में कम, आवारागर्दी में ज्यादा लगता था. खर्च के लिए पैसे मिल ही रहे थे, इसलिए उस के दोस्त भी तमाम हो गए थे.

मनीष पढ़ ही रहा था, तभी लालाराम नौकरी से रिटायर हो गए थे. दुर्भाग्य से रिटायर होने के कुछ ही दिनों बाद वह एक ऐसी दुर्घटना का शिकार हुए, जिस की वजह से कोमा में चले गए. यह सन 2005 की बात है. राधा ने पति का बहुत इलाज कराया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.

पिता के कोमा में चले जाने के बाद मनीष और ज्यादा आजाद हो गया. राधा के लिए परेशानी यह थी कि वह बेटे को संभाले या पति की देखभाल करे. पति की देखभाल के चक्कर में मनीष उस के हाथ से पूरी तरह निकल गया. आखिर कोमा में रहते हुए सन 2010 में लालाराम की मौत हो गई. पति की मौत के बाद राधा को लगा कि बेटा तो है ही, उसी के सहारे बाकी का जीवन काट लेगी.

लेकिन मनीष मां का सहारा नहीं बन सका. क्योंकि पति की मौत के बाद जब राधा का ध्यान बेटे पर गया तो उसे उस की असलियत का पता चला. उसे पता चला कि बेटा सिगरेट का ही नहीं, शराब का भी आदी हो चुका है. यही नहीं, नेहा नाम की लड़की से उस का प्रेमसंबंध हो गया है, जिस से वह शादी करना चाहता है.

जबकि राधा इस शादी के लिए कतई तैयार नहीं थी. इस की वजह यह थी कि वह लड़की उस की जाति की नहीं थी. बेटे की हरकतों से से राधा बहुत परेशान रहती थी. ऐसे में बेटियां ही उसे थोड़ा सुकून पहुंचा रही थीं. जबकि मनीष को बहनों का आनाजाना भी अच्छा नहीं लगता था. क्योंकि बहनें उसे रोकती टोकती तो थीं ही, मां को भी उसे पैसे देने से रोकती थीं.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार राधा पर धारदार हथियार से तो हमला किया ही गया था, उस का गला भी दबाया गया था. स्थितियों से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि कातिल कोई नजदीकी ही था. शायद वह गला दबा कर पूरी तरह निश्चित हो जाना चाहता था कि उस में जान नहीं रह गई है.

मनीष ने पुलिस को बताया था कि वह रात में शराब पी कर सोया था, इसलिए न तो उसे चीख सुनाई दी थी, न खटरपटर की आवाज. उस ने सफाई तो बहुत दी थी, लेकिन पुलिस को उसी पर संदेह था. इसलिए पुलिस ने अपने मुखबिरों से उस के बारे में पता लगाने को कह दिया था.

मुखबिरों ने थानाप्रभारी आदित्य कुमार को बताया था कि मां-बेटे में अकसर झगड़ा होता रहता था. इस की वजह मनीष की आवारागर्दी थी. लालाराम अपनी सारी संपत्ति राधा के नाम कर गए थे. शायद उन्हें बेटे पर पहले से ही संदेह था.

पुलिस ने अब तक जो सुबूत जुटाए थे, वे मनीष को ही दोषी ठहरा रहे थे. थानाप्रभारी आदित्य कुमार पुलिस बल के साथ उस के घर जा पहुंचे. पुलिस को देख कर मनीष का चेहरा उतर गया. जब सिपाहियों ने उस का हाथ पकड़ कर साथ चलने को कहा तो वह बोला, ‘‘मुझे कहां चलना है?’’

‘‘थाने और कहां, साहब तुम से कुछ पूछताछ करना चाहते हैं.’’ सिपाहियों ने कहा.

‘‘लेकिन मैं ने तो सब कुछ पहले ही बता दिया है,’’ मनीष ने कहा, ‘‘अब क्या पूछना है?’’

‘‘अभी तो तुम से और भी बहुत कुछ पूछना है.’’ कह कर सिपाहियों ने उसे गाड़ी में बैठा दिया.

मनीष को थाने ला कर पूछताछ शुरू हुई. पहले तो वह वही बातें बताता रहा, जो शुरू में बता चुका था. जबकि आदित्य कुमार उस से वह पूछना चाहते थे, जो उस ने सचमुच में किया था. लेकिन यह इतना आसान नही था. उन्होंने जब उसे जुटाए सुबूतों के आधार पर घेरना शुरू किया तो वह फंसने लगा.

जब वह आदित्य कुमार के सवालों में पूरी तरह से फंस गया तो फूटफूट कर रोने लगा. फिर उस ने अपनी मां की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद उस ने पुलिस को मां की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी.

मनीष बिगड़ तो चुका ही था, उस के दोस्त भी वैसे ही थे. राधा का सोचना था कि वह उस की शादी कर दे तो शायद उस में सुधार आ जाए. उस के पास किसी चीज की कमी तो थी नहीं, इसलिए उसे अच्छा रिश्ता मिल सकता था. लेकिन तभी राधा को पता चला कि मनीष का शाहगंज की रहने वाली किसी लड़की से चक्कर चल रहा है. वह लड़की दूसरी जाति की थी, इसलिए राधा किसी भी स्थिति में उस से मनीष की शादी नहीं करना चाहती थी.

इस की एक वजह यह भी थी कि उस लड़की यानी नेहा के घर वालों को मनीष और उस के संबंधों का पता नहीं था. ऐसे में अगर शादी हो जाती तो हंगामा भी हो सकता था. इसलिए राधा इस झंझट में नहीं पड़ना चाहती थी. जबकि मनीष अपनी जिद पर अड़ा था. यही वजह थी कि एक दिन वह नेहा को ले कर घर आ गया.

तब राधा ने दोनों को डांटा ही नहीं था, बल्कि नेहा को चेतावनी भी दी थी कि अगर वह नहीं मानी तो वह उस की शिकायत उस के पिता से कर देगी. इस के बाद उस ने यह बात अपनी बड़ी बेटी और दामाद को बताई तो उन्होंने कहा कि वे मनीष को समझा देंगे.

26 फरवरी को राधा की अनुपस्थिति में मनीष फिर नेहा को घर ले आया. संयोग से राधा घर आ गई और नेहा को मनीष की बांहों में देख लिया तो वह भड़क उठी. उस ने दोनों को डांटाफटकारा ही नहीं, नेहा को अपमानित कर के भगा दिया और मनीष को अपनी संपत्ति से बेदखल करने की धमकी दे दी.

मनीष न तो नेहा को छोड़ना चाहता था और न ही मां की संपत्ति को. उसे यह भी पता था कि मां वसीयत बनवाने के लिए वकील से सलाह ले रही है. इसलिए उसे लगा कि अगर मां ने सचमुच उसे संपत्ति से बेदखल कर दिया तो वह कहीं का नहीं रहेगा. वह यह भी जानता था कि मां जो ठान लेती है, कर के मानती है.

अगर राधा सारी संपत्ति बेटियों के नाम कर देती तो मनीष का भविष्य अंधेरे में फंस जाता. अपने भविष्य को बचाने के लिए उस ने गहराई से विचार किया तो उसे लगा कि अगर मां न रहे तो उस की संपत्ति भी उसे मिल जाएगी और वह नेहा से शादी भी कर सकेगा.

इस के बाद उस ने तय कर लिया कि वह मां की हत्या कर के अपना रास्ता साफ कर लेगा. रात का खाना खा कर मनीष लेट गया. उसे मां की हत्या करनी थी, इसलिए उसे नींद नहीं आ रही थी. दूसरी ओर बेटे की चिंता की वजह से राधा को भी नींद नहीं आ रही थी.

करवट बदलते बदलते राधा को नींद आ गई तो मनीष को मौका मिल गया. राधा के सोते ही मनीष ने पहले से छिपा कर रखा हंसिया उठाया और राधा के कमरे में जा पहुंचा. सो रही राधा के चेहरे पर उस ने वार किया तो राधा चीखी. मनीष ने झट उस का मुंह दबा दिया तो वह बेहोश हो गई. इस के बाद उस ने 2-3 वार और किए.

मनीष ने देखा कि मां अभी मरी नहीं है तो उस ने गला दबा दिया. राधा का खेल खत्म हो गया. उस ने रास्ते का कांटा तो निकाल फेंका, लेकिन अब उसे पुलिस का डर सताने लगा. वह पुलिस से बचने का उपाय सोचने लगा.

काफी सोचविचार कर मनीष ने खून लगे कपड़े उतार कर छिपा दिए. इस के बाद मोटरसाइकिल निकाली और देर तक आगरा की सड़कों पर बेमतलब घूमता रहा. सड़क पर घूमते हुए ही उस ने खुद को बचाने के लिए एक कहानी गढ़ डाली.

सुबह सब से पहले उस ने मां की हत्या की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दी. इस के बाद अपना पक्ष मजबूत करने के लिए उस ने पड़ोसी डा. प्रदीप श्रीवास्तव को घटना के बारे में बताया. इस के बाद कालोनी में ही रहने वाली बहन स्नेहलता को सूचना दी.

पुलिस ने मनीष की निशानदेही पर उस के घर से वह हंसिया बरामद कर लिया, जिस से उस ने मां की हत्या की थी. उस के वे कपड़े भी मिल गए थे, जिन्हें वह हत्या के समय पहने था. पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे आगरा की अदालत में उसे पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक मनीष जेल में था. अब दुविधा उस की बहनों के सामने है कि वे एकलौते भाई को बचाएं या मां के हत्यारे को सजा दिलाएं.

शादी के नाम पर ऐसे होती है ठगी

मासूम की लाश पर लिखी सपनों की इबारत – भाग 4

जब रुद्राक्ष रोते हुए अपने घर जाने की जिद करने लगा तो अंकुर ने उसे क्लोरोफार्म युक्त रुमाल सुंघा कर बेहोश कर दिया. रुद्राक्ष के बेहोश होने पर अंकुर ने पुनीत हांडा के घर फोन कर के रुद्राक्ष के अपहरण करने की बात कही और 2 करोड़ रुपए की फिरौती मांगी. पुनीत ने अपने पास इतनी बड़ी रकम नहीं होने की बात कही तो उस ने कहा कि सुबह तक जितनी रकम का इंतजाम हो सके, कर लेना.

इस के बाद अंकुर बेहोश रुद्राक्ष को बारां रोड स्थित महालक्ष्मीपुरम के अपने अपार्टमेंट में ले गया. तब तक रुद्राक्ष को धीरेधीरे होश आने लगा था. अंकुर ने उसे फिर क्लोरोफार्म सुंघा दिया और हाथपैर बांध कर उसे अपार्टमेंट में लिटा दिया. इस के बाद वह ताला लगा कर अपने घर गया और खाना खाया.

दशहरा हालांकि गुजर चुका था, लेकिन कोटा में 10 अक्टूबर तक के लिए दशहरा मेला लगा था. उस रात यानी 9 अक्तूबर को मेले में विजयश्री रंगमंच पर भोजपुरी नाइट का आयोजन किया गया था, जिस में भोजपुरी गायिका रुचि सिंह और राकेश मिश्रा के गीतों की प्रस्तुति होनी थी. अंकुर पत्नी के साथ दूसरी कार से दशहरा मेला में भोजपुरी प्रोग्राम देखने चला गया.

जब वह दशहरा मेला देखने गया, तब तक पुलिस को रुद्राक्ष के अपहरण की सूचना मिल चुकी थी और पुलिस ने नाकेबंदी भी शुरू कर दी थी. इस से अंकुर को खतरा महसूस होने लगा. वह घर वापस पहुंचा और सब से पहले अपनी माइक्रा निशान कार के शीशों पर लगी काली फिल्म हटाई. क्योंकि इस कार से वह पकड़ में आ सकता था.

उस वक्त उस का दिमाग बड़ी तेजी से चल रहा था. आगे की योजना के लिए उस ने अपने एक भाई की ईको स्पोर्ट्स कार ली और बारां रोड स्थित अपने अपार्टमेंट पहुंच कर बेहोश रुद्राक्ष को उस कार में डाल लिया. तब तक आधी रात हो चुकी थी. रुद्राक्ष उस समय तक बेहोश था, लेकिन उस की सांसें चल रही थीं. अंकुर फिरौती की बात भूल चुका था. अब उसे खुद के बचाव की सूझ रही थी. इसलिए रुद्राक्ष को नहर में फेंक दिया.

उस वक्त चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था. एकबार छपाक की आवाज हुई और सब कुछ शांत हो गया. कहां क्या हुआ, किसी को पता तक नहीं चला. घर वापस आ कर अंकुर चैन की नींद सो गया.

उसी रात पुलिस उस के फ्लैट पर उस की कार का सत्यापन करने आई, लेकिन उस ने एक पुलिस अधिकारी से फोन करवा कर पेपर अगले दिन दिखाने की बात कही और पल्ला झाड़ लिया.

कोटा में रुद्राक्ष के अपहरण को ले कर भड़के लोगों के गुस्से और पुलिस की हलचल देख कर अंकुर के लिए खतरा बढ़ता रहा था. इसलिए वह 10 अक्टूबर की रात कोटा से दिल्ली चला गया. दिल्ली से वह लखनऊ पहुंचा और 11 व 12 अक्टूबर को अपने भाई अनूप के पास रहा. इस दौरान उस ने अपने मोबाइल छोड़ दिए और दूसरी सिमों का इस्तेमाल करता रहा. कोटा में चल रही पुलिस की गतिविधियों की टोह लेने के लिए वह सोशल मीडिया का सहारा लेता था.

लखनऊ से वह 13 अक्टूबर की रात को वापस कोटा आ गया. कोटा आने पर उसे पता चला कि उस पर पुलिस का शिकंजा लगातार कसता जा रहा है. इसलिए वह 14 अक्टूबर को ही फिर कोटा से भाग खड़ा हुआ. पुलिस को उस के पास मौजूद मोबाइल नंबर का पता चल चुका था. इसी नंबर को ट्रेस करते हुए पुलिस उसे तलाश रही थी. अंकुर ने वह मोबाइल कोटा से पटना जाने वाली ट्रेन के टायलेट में रख दिया और खुद कोटा के रेलवे यार्ड में खड़ी एक ट्रेन में छिप गया, जबकि पुलिस उसे मोबाइल की लोकेशन वाली ट्रेन में तलाशती रही.

कुछ घंटों बाद अंकुर उसी ट्रेन से जिस में वह छिपा था, कोटा के डकनिया रेलवे स्टेशन पहुंचा और वहां पास के एक सैलून में सिर का मुंडन करवा कर रतलाम जाने वाली ट्रेन से निकल गया. उसी दिन देर रात कोटा पुलिस ने प्रेस कौन्फ्रैंस कर के रुद्राक्ष के कातिल अंकुर की पहचान कर लिए जाने की जानकारी प्रेस को दी और दावा किया कि अंकुर को जल्द पकड़ लिया जाएगा.

अंकुर कोटा से रतलाम, गुजरात, उड़ीसा व नागपुर सहित कई शहरों में होता हुआ अपने भाई अनूप के पास लखनऊ पहुंचा. इस बीच, पुलिस की डेढ़ दर्जन टीमें उसे देश भर में तलाश करती रहीं. दीपावली के दिन 23 अक्टूबर को वह कानपुर पहुंचा. कानपुर में वह भुवनेश्वर निवासी सुशांत राजगढि़या के नाम से होटल में रुका था. सुशांत का आईडी कार्ड उस ने ट्रेन में सफर के दौरान उड़ाया था. इसी होटल से वह पुलिस के हत्थे चढ़ा.

पुलिस ने दोनों भाइयों को मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर के पहले 10 दिन के रिमांड पर लिया. बाद में उन का दोबारा रिमांड लिया गया. कथा लिखे जाने तक पुलिस मामले की जांच कर रही थी. पुलिस को दोनों भाइयों के कई कारनामों का पता चला है.

दोनों के खिलाफ पुलिस ने काफी सुबूत जुटा लिए हैं. पुलिस इस मामले को फास्ट टै्रक कोर्ट में ले जाएगी, ताकि अपराधियों को जल्द से जल्द सजा मिल सके.

रुद्राक्ष का कातिल भले ही पकड़ा गया, लेकिन पुनीत व श्रद्धा हांडा को उस ने ऐसा गम दिया है, जो जिंदगी भर नहीं भुलाया जा सकता. वे कहते हैं कि मासूम रुद्राक्ष ने अंकुर का क्या बिगाड़ा था, जो उस ने हमारा खुशहाल जीवन उजाड़ दिया. उन का कहना है कि हत्यारे को जिस दिन फांसी होगी, उसी दिन वे दिवाली मनाएंगे.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मासूम की लाश पर लिखी सपनों की इबारत – भाग 3

रुद्राक्ष की हत्या हुए 15 दिन से ज्यादा बीत चुके थे. दीपावली का त्योहार भी निकल गया था. एडीजी (अपराध) अजीत सिंह शेखावत इस मामले को ले कर चिंतित भी थे और बेचैन भी. वह ठीक से सो तक नहीं पा रहे थे. उन्हें जयपुर से कोटा आए कई दिन हो गए थे. पुलिस महानिदेशक ओमेंद्र भारद्वाज उन से रोजाना रिपोर्ट ले रहे थे. मुख्यमंत्री कार्यालय के अधिकारी भी लगातार उन से संपर्क बनाए हुए थे. पुलिस की विफलता और लोगों में बढ़ता जनाक्रोश मीडिया में सुर्खियां बना हुआ था.

शेखावत की परेशानी वाजिब थी. मामला एक मासूम के अपहरण और हत्या का था, जिस में अपराधी अंकुर पाडि़या की हकीकत भी पता चल चुकी थी और पुलिस ने उस के खिलाफ सुबूत भी जुटा लिए थे. लेकिन अंकुर पुलिस को चकमा पर चकमा दे रहा था. पुलिस डालडाल रहती, तो वह पातपात चलता. पुलिस उस की चालों को समझ ही नहीं पा रही थी.

पुरानी कहावत है कि बकरे की मां आखिर कब तक खैर मनाएगी. इस मामले में भी यही हुआ. घटना के 18 दिनों बाद आखिर 27 अक्टूबर को अंकुर पुलिस के हत्थे चढ़ ही गया. उसे उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में एक होटल से गिरफ्तार कर लिया गया.

होटल में वह फर्जी नाम से रुका हुआ था. संयोग से अंकुर के भाई अनूप से की गई पूछताछ में उन के कारनामों और भविष्य की साजिशों का ऐसा घिनौना चेहरा सामने आया कि पुलिस भी हतप्रभ रह गई.

रुद्राक्ष का अपहरण कर के उस की हत्या करने वाला मुख्य आरोपी अंकुर इतना शातिर था कि वह आत्महत्या की झूठी कहानी गढ़ कर राजस्थान से बाहर ऐश की जिंदगी जीने के सपने देख रहा था. उस ने अपना हुलिया भी बदल लिया था. पहचान छिपाने के लिए उस ने सिर के बाल कटवा लिए थे और दाढ़ी बढ़ा ली थी.

पूछताछ में हुए खुलासे के बाद पुलिस ने अंकुर का लिखा एक सुसाइड नोट बरामद किया, जिस में उस ने लिखा था कि मुझे पैसों के लिए प्रताडि़त किया गया. इस के बाद कुछ लोगों ने गुमराह कर के मुझ से रुद्राक्ष के अपहरण और हत्या का अपराध करवाया. रुद्राक्ष को अगवा करने के बाद मैं ने उन्हें सौंप दिया था. मैं ने अपराध किया है, इसलिए अब मैं जिंदा नहीं रहना चाहता. मैं खुद को खत्म कर रहा हूं. पुलिस व मेरे परिवार को जब तक यह ‘सुसाइड नोट’ मिलेगा, तब तक मेरी लाश चंबल में कहीं दूर बह चुकी होगी.

हकीकत में अंकुर का आत्महत्या करने का कोई इरादा नहीं था. वह इस सुसाइड नोट के जरिए पुलिस और लोगों को गुमराह करना चाहता था. अंकुर का मानना था कि सुसाइड नोट के आधार पर पुलिस मान लेती कि उस की मौत हो चुकी है. इस के बाद वह अपने भाई अनूप की तरह किसी बड़े शहर में नाम बदल कर अपना बिजनेस शुरू करता.

अंकुर ने इस सुसाइड नोट में पुलिस व जनता को भावुक करने के लिए यह भी लिखा था कि वह अपने मातापिता व पत्नी से माफी मांगता है. उस ने जो काम किया, उस की वजह से मातापिता व उस की पत्नी को दुखी होना पड़ा, इस के लिए वह क्षमा चाहता है. अंकुर ने प्लास्टिक सर्जरी करवा कर अपना चेहरा बदलवाने का प्लान भी बना लिया था, ताकि जिंदगी भर वह किसी की पहचान में न आए.

उस का इरादा था कि मामला शांत हो जाने के बाद वह भारत से भाग कर फ्रांस में जा बसेगा और दूसरी शादी कर लेगा.

अंकुर जैसा ही शातिर उस का भाई अनूप था. अनूप के खिलाफ राजस्थान के विभिन्न पुलिस थानों में 39 केस दर्ज थे. इन में ज्यादातर मामले ठगी के थे, जिन में से कई मामलों में उसे सजा भी हो चुकी थी. वह जयपुर सेंट्रल जेल में बंद था. 18 नवंबर, 2009 को कोटा से पेशी पर लौटते समय अनूप पुलिस टीम को चकमा दे कर भाग गया था.

पुलिस हिरासत से भाग कर कई महीने इधरउधर रहने के बाद अनूप लखनऊ में बस गया था. उस ने उत्तर प्रदेश में फरजी ड्राइविंग लाइसेंस भी बनवा लिया था. फिलहाल वह लखनऊ स्थित गोमतीनगर के विराम खंड के एक मकान में नाम बदल कर रह रहा था. मकान मालिक व अड़ोसपड़ोस के लोगों को उस ने खुद को दिल्ली निवासी बता कर अपना नाम संतोष बताया था. जिस मकान में वह रहता था, उस का किराया 20 हजार रुपए महीने था.

लखनऊ में अनूप एक मोबाइल शौप पर मैनेजर की नौकरी करता था. उस के घर काम करने वाली नौकरानी रानी ने पुलिस को बताया कि अनूप की एक गर्लफ्रैंड है, दोनों की मुलाकात एक मौल में होम एप्लांसेस की दुकान में हुई थी. अनूप के ठाठबाठ व रईसी रहनसहन देख कर वह उस से इंप्रेस हो गई थी. अपनी गर्लफ्रैंड को वह महंगी गाडि़यों में घुमाता था. अनूप के घर पर आए दिन पार्टियां होती रहती थीं. व्हाट्स एप पर अनूप ने अपने प्रोफाइल स्टेटस पर खुद को किंगसाइज लाइफ शो कर रखा था.

पूछताछ में यह भी खुलासा हुआ कि अनूप पाडि़या लखनऊ में रहते हुए देह व्यापार के लिए रशियन लड़कियों की सप्लाई करता था. इस के लिए वह अपने ग्राहकों से 30 हजार से 50 हजार रुपए तक लेता था.

रशियन लड़कियां वह दिल्ली के एक दलाल के मार्फत लखनऊ बुलवाता था. दिल्ली से हवाई जहाज से लखनऊ आने के बाद ये लड़कियां अनूप के बताए ठिकाने पर चली जाती थीं. लड़कियों को सप्लाई करने के लिए वह हर बार अलग ड्रेस कोड तय करता था, ताकि एयरपोर्ट पर आने के बाद वह खुद या उस का एजेंट लड़की को आसानी से पहचान सके. रशियन लड़कियों के वीजा की व्यवस्था दिल्ली का दलाल करता था.

दोनों भाई ठगी करने में माहिर थे. अंकुर ने एक कोचिंग संस्थान में फेकल्टी के विभागाध्यक्ष रहे गोपाल चतुर्वेदी से जमीन के नाम पर 55 लाख रुपए ठग लिए थे. इस के लिए उस ने गोपाल से उदयपुर में पार्टनरशिप में 5 करोड़ रुपए की जमीन खरीदने की बात तय की थी. अंकुर ने गोपाल को वह जमीन दिखा भी दी थी. इतना ही नहीं, उस ने रजनीश जिंदल के नाम से एक फरजी इकरारनामा बनवा कर गोपाल से 55 लाख रुपए ले भी लिए थे.

बाद में जमीन मालिक से मिलवाने के लिए अंकुर गोपाल को दिल्ली ले गया और होटल ली-मेरेडियन में उन्हें रजनीश जिंदल के बजाय अपने भाई अनूप से मिलवा दिया. अनूप ने गोपाल चतुर्वेदी को अपना परिचय रजनीश जिंदल के रूप में दिया और उदयपुर की जमीन खुद की बताई. बाद में इस जमीन के फर्जीवाड़े की बात सामने आने पर गोपाल को दोनों ठग भाइयों की असलियत पता चली. इस संबंध में कोटा के बोरखेड़ा थाने में मुकदमा दर्ज है.

अंकुर ने पूछताछ में पुलिस को बताया कि महंगे शौक और सट्टेबाजी के कारण उस पर एक करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज हो गया था. कर्ज चुकाने के लिए ही उस ने रुद्राक्ष का अपहरण करने की योजना बनाई थी. इस के लिए वह दिल्ली के गफ्फार मार्केट से 8 नए मोबाइल सिम खरीद कर लाया था. इस के बाद उस ने क्लोरोफार्म का इंतजाम किया.

रुद्राक्ष का अपहरण करने के लिए उस ने पार्क की कई दिनों तक रैकी की थी. इस बीच उस ने रुद्राक्ष को बहकाफुसला कर उस से उस के परिवार के बारे में पूछ लिया था. चौकलेट के चक्कर में रुद्राक्ष उस से काफी घुलमिल गया था.

9 अक्टूबर की शाम को रुद्राक्ष हनुमान मंदिर पार्क में पहुंचा और वहां मौजूद बच्चों के साथ खेलने लगा. इसी दौरान अंकुर पाडि़या भी वहां पहुंच गया. थोड़ी देर बातचीत के बाद वह रुद्राक्ष को बड़ी चौकलेट दिलाने के बहाने पार्क से बाहर ले आया. पार्क के बाहर उस की माइक्रा निशान कार खड़ी थी. वह रुद्राक्ष को उसी में बैठा कर चल दिया. उस ने पहले उसे चौकलेट दिलाई, फिर थोड़ी देर कार से उसे इधरउधर घुमाता रहा.

जाना अनजाना सच : जुर्म का भागीदार – भाग 3

जिस कमरे में अनवर मुझे ले गया, उस में हलका अंधेरा था. मैं ने देखा, एक कोने में एक लड़का फैल्ट हैट पहने म्यूजिक सुन रहा था. मैं अनवर की अम्मी के सीने से लग कर उन के मुंह से अपने लिए दुलहन शब्द सुनने को बेताब थी.

‘‘अम्मी को जल्दी बुलाइए न,’’ कह कर मैं अनवर को हैरानी से देखने लगी. दिल में तूफान सा छाया हुआ था जो अनवर की अम्मी के दीदार से ही शांत हो सकता था. बाहर अंधेरा स्याह होता जा रहा था.

‘‘अम्मी गुसलखाने में हैं.’’ अनवर ने मुझे कुरसी पर बैठा कर गिलास थमाते हुए कहा, ‘‘तब तक कोक पियो.’’ अनवर की आंखों का बदलता रंग देख कर मैं ने जल्दी से कोक पी लिया. लेकिन यह क्या, मुझे सब कुछ धुआंधुआं सा लगने लगा. मैं होश खोती जा रही थी.

तभी अनवर ने मेरे गाल पर एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया. उस वक्त उस की आंखें बारूद उगल रही थीं. यह इंतकाम की आग थी. वह गुस्से में बोला, ‘‘मैं मवाली हूं, गुंडा हूं, बदचलन हूं. यही कहा था ना तेरी मां ने.’’

धीरेधीरे मैं पूरी तरह बेहोश हो गई, विरोध की कतई क्षमता नहीं थी. अनवर की दुलहन बनने का मेरा ख्वाब टूट चुका था. जब मुझे थोड़ाथोड़ा होश आना शुरू हुआ तो मुझे अनवर और उस के साथी की हंसी सुनाई दी. अनवर का दोस्त थोड़ी दूर गलियारे में उस से कह रहा था, ‘‘अनवर, आज जैसा मजा पहले कभी नहीं आया.’’

अनवर और उस के दोस्त की जहरीली हंसी मेरे दिल में नश्तर की तरह चुभ रही थी. मैं लड़खड़ाते हुए उठी, पूरा बदन दर्द से बेहाल था. मेरे कपड़े, मेरा लहूलुहान जिस्म, मेरी तबाही की कहानी कह रहे थे. मैं चुपचाप बाहर आ गई. बाहर से स्कूटर ले कर मैं घर लौट आई. तब तक पूरा शहर अंधेरे के आगोश में डूब चुका था. गनीमत यह थी कि अब्बू टुअर पर थे. इस काली रात की कहानी जानने वाला मेरे अलावा कोई नहीं था.

मैं ने जब अम्मी को बताया तो वह चीख पड़ीं, मुझे बुरी तरह डांटा, पीटा. मैं सारी रात सिसकती रही. उस के बाद हर रात मेरी सिसकियां अंधेरों में घुटती रहीं. मम्मी भी किटी पार्टियां अटैंड करना, सैरसपाटा, शौपिंग सब भूल गई थीं. मेरी जैसी मांओं के लिए, जिन के पास अपने बच्चों की देखभाल का वक्त न हो, इस से बड़ी सजा और हो भी क्या सकती थी?

अम्मी ने मुझे सख्त हिदायत दी थी कि इस राज को परदे में ही रखूं. फिर जल्दीबाजी में मेरी शादी मेराज से कर दी गई थी. मेरी पसंदनापसंद या मरजी के बारे में पूछना भी मुनासिब नहीं समझा गया था. मैं होमली लड़की थी. शादी की बात आई तो नए अरमान फिर से जेहन में करवट लेने लगे. शौहर के कदमों के नीचे औरत का स्वर्ग होता है. मैं उसी स्वर्ग की कल्पना करने लगी.

मेरा निकाह हो गया. मैं सुहागसेज पर बैठी अपने शौहर के आने का बेताबी से इंतजार कर रही थी, मेरी आंखों में भावी जीवन के गुलाबी सपने तैर रहे थे. तभी किसी के कदमों की आहट पास आती सुनाई दी तो मैं खुद में सिमट गई. मैं ने घूंघट की ओट से देखा तो मेराज की सुनहरी शेरवानी से सजा फूलों सा महकता व्यक्तित्व नजर आया. उन्होंने धीरे से करीब आ कर मेरा घूंघट पलटा तो ऐसे चौंके जैसे किसी नागिन को देख लिया हो.

मुझे पर टेढ़ी नजर डाल कर मेराज बाहर चले गए. बस, उस दिन के बाद हम दोनों के बीच एक अदृश्य सी दीवार बन गई. हम ने सालों साथ गुजारे तो सिर्फ इसलिए क्योंकि दो बड़े परिवारों की इज्जत का मामला था. हम साथ रह कर भी नदी के दो किनारे बने रहे. मैं देवर और ननदों को पालने, बड़ा करने में लगी रही और मेराज बिजनैस में. मैं चाह कर भी नहीं जान पाई कि मेराज को मुझ से क्या शिकायत थी, वह मुझ से क्यों दूर रहना चाहते थे. अब तक यही स्थिति थी.

रात गहरा रही थी. नैनी झील के किनारे लगी लाइटों की रोशनी पानी की लहरों पर लहराती हुई बड़ी अच्छी लग रही थी, लेकिन अब उसे देखने का मन नहीं था. मैं मेराज के सीने से लिपटी उन में अपने हिस्से का प्यार खोज रही थी. मन चाह रहा था, सालों की चाह आज ही पूरी कर लूं.

तभी मेराज गंभीर स्वर में बोले, ‘‘क्या तुम किसी अनवर को जानती हो?’’

अनवर का नाम सुन कर मैं एक ही झटके में खयालों से बाहर आ गई. मैं ने डर कर कांपती आवाज में पूछा, ‘‘क्यों, आप उसे कैसे जानते हैं?’’

‘‘क्योंकि वह मेरा जिगरी दोस्त था. जिस रोज तुम उस के पास आई थीं, मैं ही कैप लगाए म्यूजिक सुन रहा था. अंधेरे की वजह से तुम मुझे पहचान नहीं सकी थीं. आगे क्या हुआ, तुम जानती ही हो. जब हमारा निकाह हुआ, मुझे भी मालूम नहीं था कि जिसे मेरा जीवनसाथी बनाया जा रहा है, वह तुम हो. यही वजह थी कि सुहागरात में घूंघट उठाते वक्त मैं चौंक गया था. गलती अनवर की थी और मैं उस में भागीदार था. इस के बावजूद मेरे मन में तुम्हें ले कर दुर्भावना बनी रही कि तुम्हें मेरी बीवी नहीं होना चाहिए था. लेकिन अब मेरी सोच बदल गई है. गलत मैं था, तुम नहीं.’’

लंबी खामोशी जब टूटती है तो उस की गूंज भी देर तक सुनाई देती है. डाल से बिछड़े पत्ते की तरह मैं बद्हवास थी, तभी इन का कोमल स्वर सुनाई दिया, ‘‘तुम ने वहां आ कर जो भूल की थी, उस में मैं भी तो बराबर का गुनहगार हूं.’’ इन के सीने से लगी मैं कांप रही थी. हम दोनों ही शर्मसार थे और एकदूसरे की चाहत में बेताब भी.

सपना का अधूरा सपना – भाग 3

अभिनय ने आर्यसमाज मंदिर में विधिविधान से सपना से शादी कर के सभी को मिठाई खिलाई. इस के बाद प्रार्थना को उस के घर भेज दिया और सपना को साथ ले कर लोहियानगर स्थित अपने घर आ गया. अभिनय के घर वालों ने सपना को बहू के रूप में स्वीकार कर के उस का भव्य स्वागत किया.

प्रार्थना घर पर पहुंची तो उसे अकेली देख कर घर वालों ने सपना के बारे में पूछा. जब उस ने कहा कि बाजार में सपना उसे चकमा दे कर भाग गई है तो घर वाले बौखला उठे. उन्होंने तुरंत सपना को फोन किया. जब सपना ने बताया कि उस ने अभिनय से शादी कर ली है और अब वह उसी के यहां रहेगी तो कुंवरपाल सपना को समझाने लगा कि उस के इस कदम से उस की कालोनी और समाज में बड़ी बदनामी होगी, इसलिए वह वापस आ जाए.

लेकिन जब सपना ने साफसाफ कह दिया कि अब वह किसी भी सूरत में अभिनय को छोड़ कर नहीं आ सकती तो खीझ कर कुंवरपाल ने फोन काट दिया. इस के बाद पतिपत्नी ने प्रार्थना की जम कर पिटाई की. इस तरह सपना की करनी की सजा प्रार्थना को भोगनी पड़ी.

अगले ही दिन कुंवरपाल ने अपने दोनों सालों नंदकिशोर तथा राधाकिशन को बुलाया और उन से पूछा कि अब क्या किया जाए? एक बार उन के मन में आया कि क्यों न वे अभिनय को मार दें. लेकिन जब इस बात पर उन्होंने गहराई से विचार किया तो उन्हें लगा कि इस मामले में अभिनय की क्या गलती है, भाग कर शादी तो सपना ने की है, इसलिए जो सजा दी जाए, उसे दी जाए. इस तरह सपना घर वालों की आंखों का कांटा बन गई.

कुंवरपाल अकसर फोन कर के सपना को समझाता और धमकी देता रहता था कि उस ने जो किया है, वह ठीक नहीं किया है, वह वापस आ जाए, इसी में उस की भलाई है. अगर उस ने उस का कहना नहीं माना तो वह उसे छोड़ेगा नहीं, भले ही उसे पूरी उम्र जेल में बितानी पड़े. इस तरह सिर नीचा कर के जीने से तो अच्छा है, वह पूरी जिंदगी जेल में ही काट दे.

अभिनय के घर वालों ने सपना को बहू के रूप में स्वीकार तो कर लिया था, लेकिन अभिनय के पिता शिशुपाल सिंह जादौन के मन में एक कसक थी कि वह अपने बेटे की शादी धूमधाम से नहीं कर सके. इसलिए वह चाहते थे कि सपना के घर वाले उस की शादी धूमधाम से कर दें. सपना जानती थी कि उस का बाप ऐसा कतई नहीं करेगा, इसलिए उस ने ससुर से कह दिया कि ऐसा होना नामुमकिन है.

शिशुपाल सिंह को लगा कि बेटे की शादी धूमधाम से नहीं हो सकती तो वह अपने घर इस शादी की दावत कर के अपने परिचितों और रिश्तेदारों को बता दें कि उन के बेटे ने प्रेम विवाह कर लिया है. वह दावत की तैयारी कर रहे थे कि एक दिन कुंवरपाल पत्नी उर्मिला और साली के साथ उन के घर आ पहुंचा.

कुंवरपाल और उस की पत्नी ने सपना और उस की ससुराल वालों से कहा कि जो हो गया, सो हो गया. अब वे अपनी बेटी की शादी सामाजिक रीतिरिवाज के अनुसार धूमधाम से करना चाहते हैं. इसलिए शादी की तारीख तय कर के वे सपना को अपने साथ ले जाना चाहते हैं.

सपना मांबाप के साथ घर जाना तो नहीं चाहती थी. लेकिन अभिनय और उस के ससुर शिशुपाल सिंह ने समझाबुझा कर उसे कुंवरपाल के साथ भेज दिया.

आखिर वही हुआ, जिस बात का सपना को डर था. घर आने के बाद कुंवरपाल सपना को इस बात के लिए राजी करने लगा कि उस ने एटा के जिस लड़के के साथ उस की शादी तय की है, वह उस के साथ शादी कर ले. सपना इस के लिए तैयार नहीं थी. उस का कहना था कि एक बार उस ने अभिनय से शादी कर ली है तो वह अब किसी दूसरे से शादी क्यों करे.

25 जुलाई की शाम को भी कुंवरपाल ने सपना से एटा वाले लड़के से शादी करने की बात कही. लेकिन सपना ने साफ मना कर दिया. इस के बाद रात का खाना खा कर जब घर के सभी लोग सो गए तो कुंवरपाल दबे पांव सपना के कमरे में पहुंचा. अंदर से सिटकनी बंद कर के उस ने एक बार फिर सपना को शादी के लिए मनाना चाहा. लेकिन सपना नहीं मानी तो वह उसे मनाने के लिए करंट लगाने लगा. इसी करंट लगाने में सपना बेहोश हो गई.

सपना का इस तरह बेहोश हो जाना कुंवरपाल को खतरे की घंटी लगा. उस ने सोचा कि अब इस का जिंदा रहना ठीक नहीं है, इसलिए उस ने उस की गर्दन और हाथ पर तार लपेट कर प्लग में लगा दिया, जिस से सपना तड़पतड़प कर मर गई.

सपना को मौत के घाट उतार कर कुंवरपाल ने यह बात पत्नी उर्मिला को बताई तो वह सन्न रह गई. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उस का पति इतना घिनौना काम भी कर सकता है. कुंवरपाल ने गुस्से में सपना को मार तो डाला, लेकिन अब उसे अपने किए पर पछतावा हो रहा था. अब उसे जेल जाने का भी डर सताने लगा था. उस समय रात के 2 बज रहे थे.

पुलिस से बचने के लिए उस ने अन्य बच्चों को जगाया और उन्हें घर से बाहर कर के सपना के मोबाइल फोन का स्विच औफ कर दिया. उन्होंने बच्चों को इस बात की जानकारी नहीं होने दी कि सपना के साथ क्या हुआ है. घर में बाहर से ताला लगा कर कुंवरपाल पत्नी और अन्य बच्चों के साथ फरार हो गया.

पूछताछ के बाद उत्तर कोतवाली पुलिस ने अपनी ही बेटी की हत्या के आरोप में कुंवरपाल सिंह यादव को जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक बाकी कोई गिरफ्तार नहीं हुआ था. पुलिस उन की तलाश कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

फरेब के जाल में फंसी नीतू – भाग 3

एक समझदार ससुर की तरह बाबूलाल मऊ नीतू के मायके पहुंचा और दुनिया की ऊंच नीच और इज्जत दुहाई देते उसे मना कर वापस ले आया. यह पिछले साल नवरात्रि की बात है. नीतू दोबारा ससुराल आ गई. पत्नी क्यों मायके चली गई थी और फिर वापस क्यों आ गई और सेक्स से अंजान रामजी को इन बातों से कोई सरोकार नहीं था.

हालात देख बाबूलाल के मन में पाप पनपा और उस ने नीतू से नजदीकियां बढ़ानी शुरू कर दीं. किसी नएनवेले आशिक की तरह बाबूलाल नीतू की हर पसंदनापसंद का खयाल रखने लगा तो नीतू भी उस की तरफ झुकने लगी. आखिर उसे भी पुरुष सुख की जरूरत थी, जिसे वह कहीं बाहर से हासिल करती तो बदनामी भी होती और गलत भी वही ठहराई जाती.

देहसुख का अघोषित अनुबंध तो बाबूलाल और नीतू के बीच हो गया लेकिन पहल कौन और कैसे करे, यह दोनों को समझ नहीं आ रहा था. मियांबीवी राजी तो क्या करेगा काजी वाली बात इन दोनों पर इसलिए लागू नहीं हो रही थी कि दोनों के बीच कोई काजी था ही नहीं. दोनों भीतर ही भीतर सुलगने लगे थे पर शायद लोकलाज का झीना सा परदा अभी बाकी था.

यह परदा भी एक दिन टूट गया जब आंगन में नहाती नीतू को बाबूलाल ने देखा. उस के दुधिया और भरे मांसल बदन को देखते ही बाबूलाल के जिस्म में चीटियां सी रेंगी तो सब्र ने जवाब दे दिया. एकाएक उस ने नीतू को जकड़ लिया.

नीतू ने कोई एतराज नहीं जताया. वह तो खुद पुरुष संसर्ग के लिए बेचैन थी. उस दिन जो हुआ नीतू के लिए किसी मनोकामना के पूरी होने से कम नहीं था. बाबूलाल को भी सालों बाद स्त्री सुख मिला था, सो वह भी निहाल हो गया.

अब यह रोजरोज का काम हो गया था. दोनों को रोकनेटोकने वाला कोई नहीं था. रामजी जैसे ही बिस्तर पर आ कर सोता था, नीतू सीधे बाबूलाल के कमरे में जा पहुंचती थी.

उम्र और रिश्तों का लिहाज नाजायज संबंधों में नहीं होता और आमतौर पर उन का अंत में किसी तीसरे का रोल जरूर रहता है. पर इन दोनों पर यह बात लागू नहीं थी. ससुर की मर्दानगी पर निहाल हो चली नीतू ने एक दिन बाबूलाल से साफ कह दिया कि अब मुझ से शादी करो नहीं तो…

इस ‘नहीं तो’ में छिपी धमकी बाबूलाल को समझ आ रही थी और मजबूरी भी, लेकिन जो जिद नीतू कर रही थी उसे वह पूरी नहीं कर सकता था. अब जा कर बाबूलाल को समाज और रिश्तों के मायने समझ आए. समझाने और मना करने पर नीतू झल्लाने लगी थी, जिस से बाबूलाल घबराया हुआ रहने लगा था. नीतू की लत तो उसे भी लग गई थी पर उस पर लदी शर्त उस से पूरी करते नहीं बन रही थी.

साफ है बाबूलाल बहू के जिस्म को तो भोगना चाहता था लेकिन समाज को ठेंगा बता कर उसे पत्नी बनाने की बात सोचते ही उस के पैरों तले से जमीन खिसकने लगती थी. जितना वह समझाता था नीतू उसी तादाद में एक बेतुकी जिद पर अड़ती जा रही थी.

अब बाबूलाल नीतू से बचने के बहाने ढूंढने लगा था, जिन में से एक उसे मिल भी गया था कि फसल पक रही है, इसलिए उसे चौकीदारी के लिए खेत पर सोना पड़ेगा. इस के लिए उस ने खेत में झोपड़ी भी डाल ली थी.

नीतू जब शहर से मजदूरी कर लौटती थी तब तक बाबूलाल खेत पर जा चुका होता था. कुछ दिन ऐसे ही बिना मिले गुजरे तो नीतू का सब्र जवाब देने लगा. वैसे भी वह महसूस रह रही थी कि बाबूलाल अब उस में पहले जैसी दिलचस्पी नहीं लेता. 25 मार्च को नीतू जब सहेलियों के साथ लौटी तो उसे याद आया कि अगले दिन उसे मायके जाना है.

मायके जाने से पहले वह अपनी प्यास बुझा लेना चाहती थी. इसलिए सीधे खेत पर पहुंच गई और बाबूलाल को इशारा किया कि आज रात वह यहीं रुकेगी तो बाबूलाल के हाथ के तोते उड़ गए, क्योंकि रात में दूसरे किसान तंबाकू और बीड़ी के लिए उस के पास आते रहते थे.

समझाने की कोशिश बेकार थी फिर भी बाबूलाल ने दूसरे किसानों के आनेजाने की बात बताई तो नीतू ने खुद अपने हाथों से अपने कपड़े उतार लिए और धमकी देते हुए बोली, ‘‘खुले तौर पर मुझ से बीवी की तरह पेश आओ नहीं तो पुलिस में रिपोर्ट लिखा दूंगी.’’ उस दिन सुबह वह बाबूलाल से कह भी रही थी कि रात में घर पर ही मिलना.

रोजरोज की धमकियों और परेशानियों से तंग आ गए बाबूलाल को कुछ नहीं सूझा तो उस ने बेरहमी से नीतू की हत्या कर दी और स्तनों को खरोंचा, जिस से मामला सामूहिक बलात्कार का लगे. नीतू का गुप्तांग भी उस ने इसी वजह के चलते जलाया था.

नीतू की हत्या पर वह उस की लाश को कंधे पर उठा कर ले गया और आम के बाग में फेंक आया. पुलिस को दिए शुरुआती बयान में वह रामजी को फंसा देना चाहता था जिस से खुद साफ बच निकले. पर ऐसा नहीं हो पाया.

ससुर बहू के अवैध संबंधों का यह मामला अजीब इस लिहाज से है कि इसे और ज्यादा ढोने की हिम्मत नीतू में नहीं बची थी और वह अधेड़ ससुर को ही पति बनाने पर उतारू हो आई थी यानी राजकुमार, हेमामालिनी, कमल हासन और पद्मिनी कोल्हापुरे अभिनीत फिल्म ‘एक नई पहेली’ की तर्ज पर वह अपने ही पति की मां बनने तैयार थी.

बड़ी गलती बाबूलाल की है जिस की सजा भी वह भुगत रहा है. उस ने पहले पागल बेटे की शादी करा दी और जब बेटा बहू की शारीरिक जरूरतें पूरी नहीं कर पाया तो खुद पाप की दलदल में उतर गया.

नीतू रखैल की तरह नहीं रहना चाह रही थी. साथ ही वह दुनियादारी की परवाह भी नहीं कर रही थी, इसलिए उस से छुटकारा पाने के लिए बाबूलाल को उस की हत्या ही आसान रास्ता लगा पर कानून के हाथों से वह भी नहीं बच पाया.