कहीं पे निगाहें, कही पे निशाना – भाग 3

दोनों के बीच प्यार की राह खुली तो दोनों एक साथ जीनेमरने की कसमें खाने लगे थे. फायजा को हसन के प्यार में किसी भी तरह से हल्कापन नजर नहीं आया था. उस के बाद दोनों के बीच विश्वास बढ़ा तो हसन भी उस पर पैसा लुटाने लगा था.

हसन ने कई बार फायजा को उस की पसंद का मोबाइल भी ले कर दिया, ताकि वह उस के संपर्क में बनी रहे. हसन कुछ ही समय में उस का इतना दीवाना बन बैठा कि उस ने एक दिन अपने सीने पर फायजा का नाम ही गुदवा लिया था.

फायजा भी उसे दिलोजान से प्यार करती थी. इंस्टाग्राम पर वह कभीकभार अपनी फोटो शेयर करती तो हमेशा ही उसे नाजिम नाम के युवक की तरफ से जरूर लाइक और कमेंट मिलता था. नाजिम से जुड़ते ही उस ने फेसबुक और इंस्टाग्राम पर उस की कुंडली खंगाली.

पता चला कि नाजिम लखनऊ शहर से था और एक प्राइवेट कंपनी में जौब करता था. नाजिम देखने में सुंदर था. यही कारण था कि कुछ ही दिनों में नाजिम और फायजा के बीच वाट्सऐप, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर हायहैलो होने लगी. धीरेधीरे नाजिम के प्रति उस की उत्सुकता बढ़ी और बात दोस्ती तक जा पहुंची.

नाजिम से दोस्ती का हाथ बढ़ाते ही उस ने हसन से बात करनी कुछ कम कर दी थी. हसन जब कभी भी फायजा को फोन मिलाता तो उस का फोन व्यस्त मिलता था. उस के बाद वह कई बार उस से मिलने उस के घर पर भी गया. लेकिन उस ने देखा कि उस का व्यवहार उस के प्रति काफी बदल गया है.

खाली वक्त में फायजा सोशल मीडिया पर समय गुजारने लगी थी. कुछ ही समय में उस ने वाट्सऐप व फेसबुक पर ढेरों दोस्त बना लिए थे. वाट्सऐप व फेसबुक पर उसे बोरियत होने लगी तो उस ने इंस्टाग्राम पर भी अपना एकाउंट बना लिया था. उस के बाद वह इंस्टाग्राम पर भी अपने फोटो शेयर करने लगी.

हसन उस के गांव से काफी दूर का रहने वाला था, जिस के कारण वह उस पर हर वक्त तो नजर रख नहीं सकता था. फिर भी उस की नजर फायजा के फेसबुक और इंस्टाग्राम पर जरूर जमी रहती थी. जिस के कारण ही उसे उस की हकीकत का पता चल सका कि वह नाजिम की ओर फिसलती जा रही है.

उस के बदले हालात देखते ही हसन के तनबदन में आग लग गई. उसे सब से ज्यादा अफसोस इस बात का था कि उस ने फायजा पर विश्वास कर के उस पर अपनी गाढ़ी कमाई के 6-7 लाख रुपए बरबाद कर दिए थे. फिर भी उसे बेवफाई ही हाथ लगी थी.

पहली अगस्त, 2022 को हसन ने कई बार उस के मोबाइल पर फोन मिलाया, लेकिन हर बार उस का मोबाइल व्यस्त ही आया. जिस के कारण उस के दिमाग में एक शैतान जाग उठा.

उस ने उसी दिन तय कर लिया कि आज आर या पार. आज वह फायजा से फैसला कर के ही रहेगा कि उसे उस के साथ रहना है या फिर किसी और के साथ.

यही सोच कर वह शाम के कोई 5 बजे उस के घर पहुंच गया था. फायजा के घर पहुंचते ही उस ने प्रश्न किया, ‘‘फायजा, तुम्हारे दिल में क्या चल रहा है, आज मुझे साफसाफ बताओ? आज सुबह से ही मैं तुम्हें कई बार फोन मिला चुका हूं लेकिन तुम ने एक बार भी मेरा फोन रिसीव नहीं किया. मैं ने कई बार वाट्सऐप पर मैसेज भी भेजा, लेकिन तुम ने उस का भी कोई जवाब नहीं दिया. मुझे आज साफसाफ बताओ कि तुम मुझ से क्या चाहती हो?’’

इस से पहले कि फायजा उस के सवालों का कोई जबाव दे पाती, उस की अम्मी आ गई. आसिफा के आते ही हसन शांत हो गया. मां आते ही फायजा हसन को साथ ले कर दूसरी मंजिल पर चली गई. हसन का गुस्सा देख कर उस ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘हसन, जैसा तुम सोच रहे हो वैसा कुछ भी नहीं है. मैं कल भी तुम्हें प्यार करती थी और आज भी करती हूं. लेकिन किसी काम के चलते मैं तुम्हारा फोन रिसीव नहीं कर सकी. इस में परेशान होने वाली क्या बात है?’’

फायजा की बात सुनते ही हसन का गुस्सा शांत हो गया. उस के बाद उसे लगा कि कहीं न कहीं उस के मन का ही वहम है. उस के बाद दोनों छत से नीचे चले आए.

छत से आने के बाद दोनों ने एक साथ बैठ कर चाय पी. उसी समय उस ने फायजा को खर्च के लिए 3 हजार रुपए भी दिए. काफी देर हो जाने के कारण हसन अपने घर के लिए निकलने ही वाला था, तभी फायजा के मोबाइल पर किसी की काल आई. स्क्रीन पर उभर रहे नाम को देखते ही फायजा ने काल डिसकनेक्ट कर दी. उस के बाद वह उसे विदा करने के लिए घर के दरवाजे पर आ गई.

हसन अभी उस के घर से निकला भी नहीं था कि उसी समय फिर से फायजा के मोबाइल पर फिर से फोन आ गया. उस ने सोचा हसन चला गया होगा. यही सोच कर उस ने नाजिम को फोन मिला दिया. फिर वह उस से बात करने लगी.

हसन को इसी पल का इंतजार था. वह चुपके से दबे पांव गेट के पास आया और उस की बात सुनने लगा. उस की बातों से हसन को लगने लगा था कि वह वाकई उस के साथ प्यार का खेल खेल रही है. उस वक्त दोनों के बीच जो बातें उस ने सुनीं, उन्हें सुन कर उस के तनबदन में आग लग गई.

उस ने उसी समय अपने बैग में रखा चाकू निकाला और सामने फोन पर बात कर रही फायजा पर अनगिनत वार कर डाले. लहूलुहान होने के बावजूद भी फायजा चीखतीचिल्लाती अपने बचाव के लिए घर के अंदर भागी.

लेकिन कुछ ही पलों में वह बेहोश हो कर नीचे गिर पड़ी. उस की चीखपुकार सुन कर उस की अम्मी आसिफा नीचे आ गई थी. उस के बाद हसन आसिफा को धक्का मार कर वहां से भाग गया.

आरोपी हसन से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे आईपीसी की धारा 452, 302 के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.  द्य

—कहानी में कुछ पात्रों के नाम काल्पनिक हैं.

प्रेमिका का छलिया प्रेमी से इंतकाम – भाग 3

पुलिस पूछताछ में प्यार, धोखा और प्रतिशोध की सनसनीखेज कहानी प्रकाश में आई.

बिहार के सीवान जिले में एक छोटा सा गांव है-बड़वा खुर्द. इसी गांव में भृगुनाथ सैनी अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी भूरी के अलावा एक बेटा और 2 बेटियां मनसा और लालसा थीं. भृगुनाथ सीधासादा किसान था. मेहनत कर वह अपने परिवार का भरणपोषण करता था.

भाईबहनों में लालसा सब से छोटी थी. घर के लोग उसे लाली कह कर पुकारते थे. लालसा उर्फ लाली बेहद खूबसूरत थी. उस की सुंदरता सब की निगाहों की केंद्र बन गई थी. गांव की जिस गली से वह गुजरती, लोग उसे देखते रह जाते. गांव के कई लड़के उस की सुंदरता का बखान करते थे. लेकिन लालसा उन को पास न फटकने देती थी.

लालसा उर्फ लाली पढ़ने में तेज थी. उस ने बसंतपुर के कालेज से हाईस्कूल की परीक्षा पास कर ली थी और इंटरमीडिएट की पढ़ाई में जुट गई थी. लालसा को मोबाइल का शौक था. वह फेसबुक व इंस्टाग्राम पर अपने वीडियो बना कर डालती थी, जिसे युवक खूब लाइक करते थे. लालसा दूसरों के वीडियो भी देखती और लाइक भी करती थी.

लालसा और देशदीपक की दोस्ती एकदूसरे के वीडियो देख कर ही हुई. दरअसल, देशदीपक को भी फेसबुक और इंस्टाग्राम पर अपने वीडियो डालने का शौक था. दोनों के बीच दोस्ती हुई तो दोनों ने एकदूसरे का मोबाइल नंबर ले लिया.

इस के बाद उन की मोबाइल फोन पर बात होने लगी. कभी लालसा देशदीपक को फोन करती तो कभी देशदीपक लालसा को. उन के बीच अब रसभरी बातें भी होने लगी थीं.

प्यारमोहब्बत का दायरा बढ़ा तो दोनों फेस टू फेस मिलने को लालायित हो उठे. देशदीपक ने एक रोज बातचीत के दौरान अपने पास बुलाने का आमंत्रण लालसा को दिया तो वह राजी हो गई.

देशदीपक ने तब उसे बताया कि मैं बिल्हौर (कानपुर) थाने में सिपाही पद पर तैनात हूं और कस्बा के ब्रह्मनगर मोहल्ले में रमेशचंद्र प्रजापति के मकान में किराए पर रहता हूं. तुम कानपुर आ जाओ, मैं तुम्हें कानपुर सेंट्रल स्टेशन पर मिल जाऊंगा.

‘‘लेकिन मैं तो सीवान (बिहार) की रहने वाली हूं. बसंतपुर थाने का बड़वा खुर्द मेरा गांव है. हम दोनों के बीच दूरी बहुत है. इतनी दूर आना संभव कैसे होगा?’’ लालसा ने मजबूरी जाहिर की.

‘‘जब दिल की दूरियां मिट गईं तो जमीनी दूरी कोई मायने नहीं रखती. तुम ट्रेन से कानपुर आ जाओ. मैं तुम्हारा बेसब्री से इंतजार कर रहा हूं,’’ देशदीपक ने लालसा को समझाया.

इस बातचीत के लगभग एक सप्ताह बाद एक रोज लालसा उर्फ लाली कानपुर आ गई. उस ने फोन पर आने की जानकारी दी तो देशदीपक मोटरसाइकिल से कानपुर सेंट्रल स्टेशन पहुंच गया.

लालसा प्रथम श्रेणी वेटिंग रूम में उस का इंतजार कर रही थी. देशदीपक वेटिंगरूम पहुंचा और खूबसूरत लालसा को देखा तो पहली ही नजर में वह उस के दिल में रचबस गई. लालसा भी हैंडसम देशदीपक को देख कर खुश हुई.

उस रोज देशदीपक लालसा को अपने किराए वाले रूम में ले गया. वहां दोनों के बीच खूब प्यारभरी बातें हुईं. देशदीपक ने लालसा से शादी करने का वादा किया और कभी न साथ छोड़ने की कसम खाई. रात में दोनों बंद कमरे में एक ही चारपाई पर लेटे तो वे अपने पर काबू न रख सके और दोनों के बीच शारीरिक रिश्ते बन गए. लालसा 3-4 दिन देशदीपक के साथ रही और दिनरात मस्ती में डूबी रही.

अवैध रिश्ता एक बार कायम हुआ तो समय के साथ बढ़ता ही गया. देशदीपक जब भी लालसा को बुलाता, वह दौड़ी चली आती. शारीरिक मिलन के दौरान लालसा शादी करने की बात कहती तो देशदीपक कोई न कोई बहाना बना देता.

इसी बीच देशदीपक ने मिलन के दौरान की अश्लील फिल्म मोबाइल फोन द्वारा बना ली, जिस की जानकारी लालसा को नहीं हुई. लालसा महीने में एक बार जरूर उस से मिलने बिल्हौर आती थी. फिर 2-3 दिन मौजमस्ती कर चली जाती थी.

लालसा को आनेजाने का खर्चा देशदीपक ही देता था. वह प्रतियोगी परीक्षा का बहाना बना कर घर से निकलती थी. जिस से घरवालों को शक नहीं होता था.

एक रोज शादी को ले कर लालसा और देशदीपक में तूतूमैंमैं हुई तो लालसा ने शारीरिक मिलन से इंकार कर दिया. तब देशदीपक ने उसे धमकाया कि उस के पास उस की अश्लील फिल्म है. मिलन से इंकार करोगी तो अश्लील फिल्म को सार्वजनिक कर देगा.

यह सुन कर लालसा घबरा गई और फिल्म डिलीट करने की मनुहार करने लगी. देशदीपक ने ब्लैकमेलिंग कर लालसा से शारीरिक भूख तो मिटा ली लेकिन अश्लील फिल्म डिलीट नहीं की. इस के बाद तो यह सिलसिला ही बन गया. ब्लैकमेलिंग कर वह लालसा को बुलाता और उस के साथ संबंध बनाता.

इधर 22 अप्रैल, 2022 को घरवालों ने देशदीपक की शादी दिव्या उर्फ अंजलि से कर दी. शादी की जानकारी लालसा को नहीं हुई. उसे तो तब पता चला, जब वह मई के पहले हफ्ते में देशदीपक से मिलने आई.

उसे देशदीपक तो नहीं मिला, लेकिन उस की शादी हो जाने की खबर मिल गई. शादी की जानकारी मिली तो उसे गहरी चोट पहुंची. वह समझ गई कि प्रेमी ने उस के साथ छल किया है. देशदीपक छलिया प्रेमी निकला.

गुस्से से भरी लालसा ने उसी समय देशदीपक से फोन पर बात की, ‘‘मैं ने सुना है कि तुम ने शादी कर ली है और नईनवेली दुलहन के साथ खुशियों में डूबे हो.’’

‘‘हां लालसा, तुम ने सच सुना है,’’ देशदीपक ने जवाब दिया.

‘‘लेकिन शादी का वादा तो तुम ने मुझ से किया था,’’ लालसा ने पूछा.

‘‘हां, किया था. लेकिन मजबूरी में शादी करनी पड़ी,’’ देशदीपक ने जवाब दिया.

‘‘कैसी मजबूरी?’’ लालसा ने पूछा.

‘‘घरवालों की. उन्होंने मेरी शादी कर दी. मैं उन्हें मना नहीं कर सका.’’

‘‘तुम ने मेरी जिंदगी बरबाद कर अच्छा नहीं किया,’’ लालसा गुस्से से उबल पड़ी.

 

दूसरे रोज लालसा अपने गांव लौट आई. अब वह प्यार के प्रतिशोध में रातदिन जलने लगी. आखिर उस ने निश्चय किया कि वह देशदीपक को मिटा कर ही चैन की सांस लेगी. पर इतना बड़ा काम वह अकेले नहीं कर सकती थी. अत: उस ने अभिषेक की मदद लेना उचित समझा.

जब प्यार में आया ट्विस्ट – भाग 2

थाने में जब उस से अरुण के बारे में पूछा गया तो वह साफ मुकर गया. उस ने अरुण को जाननेपहचानने से ही इंकार कर दिया. लेकिन जब उस पर सख्ती की गई तो वह टूट गया. उस के बाद अमित उर्फ गुड्डू ने जो कुछ पुलिस को बताया, उसे सुन कर पुलिस चकित रह गई.

अमित ने बताया कि अरुण कुमार अब इस दुनिया में नहीं है. संदीप व उस के भाई पवन ने 16 जुलाई, 2022 की शाम ही गोली मार कर उस की हत्या कर दी और शव को गंगरौली गांव के बाहर नदी किनारे खेत में दफन कर दिया था. किसी को शक न हो इसलिए खेत को ट्रैक्टर से जोत दिया था.

19 जुलाई, 2022 की सुबह 10 बजे एसएचओ अंजन कुमार सिंह पुलिस दल के साथ गंगरौली गांव स्थित उस खेत पर पहुंचे, जहां अरुण के शव को दफनाया गया था. अब तक युवक की हत्या कर शव को दफनाए जाने की खबर सपई व गंगरौली गांव में फैल गई थी, जिस से सैकड़ों लोग वहां आ गए थे. पुलिस की सूचना पर अरुण की पत्नी नीतू, भाई कुलदीप व पिता रामकुमार भी खेत पर मौजूद थे.

लगभग 12 बजे अमित कुमार उर्फ गुड्डू को पुलिस कस्टडी में खेत पर लाया गया. फिर उस की निशानदेही पर मिट्टी हटा कर शव को गड्ढे से बाहर निकाला गया. शव को देख कर कुलदीप व रामकुमार फूटफूट कर रोने लगे.

कुलदीप ने पुलिस को बताया कि शव उस के भाई अरुण कुमार का है. पति का शव देख कर नीतू भी दहाड़ मार कर रोने लगी. पुलिस ने किसी तरह उसे शव से दूर किया.

एसएचओ अंजन कुमार सिंह ने अरुण कुमार की हत्या किए जाने तथा शव को खेत से बरामद करने की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी तो एसीपी दिनेश कुमार शुक्ला, डीसीपी (क्राइम) सलमान ताज पाटिल तथा एसपी (कानपुर आउटर) तेजस्वरूप सिंह मौका ए वारदात आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने बारीकी से शव का निरीक्षण किया. अरुण की उम्र 28 वर्ष के आसपास थी. उस की हत्या सीने पर गोली मार कर की गई थी. पुलिस अधिकारियों ने मृतक के घर वालों तथा हत्या के आरोप में पकड़े गए युवक अमित उर्फ गुड्डू से भी हत्या के संबंध में पूछताछ की.

शव निरीक्षण व पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारियों ने एसएचओ अंजन कुमार सिंह को आदेश दिया कि वह शव को पोस्टमार्टम हाउस भेजें तथा रिपोर्ट दर्ज कर अन्य आरोपियों को गिरफ्तार करें. गिरफ्तारी में कोई प्रभावशाली व्यक्ति बाधा पहुंचाए तो उसे भी कानून की गिरफ्त में ले लें. किसी कीमत पर उसे बख्शा न जाए.

अधिकारियों का आदेश पाते ही अंजन कुमार सिंह ने शव को पोस्टमार्टम हेतु माती भेज दिया. इस के बाद थाने वापस आ कर मृतक की पत्नी नीतू की तहरीर पर आईपीसी की धारा 302/201 के तहत संदीप, अमित कुमार व पवन के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली.

अमित की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने ताबड़तोड़ काररवाई कर संदीप को भी गिरफ्तार कर लिया. संदीप की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त तमंचा भी बरामद कर लिया. जिसे उस ने नदी किनारे झाडि़यों में छिपा दिया था. तीसरा आरोपी पवन पुलिस के हाथ नहीं आया.

चूंकि संदीप और अमित कुमार ने अरुण की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया था और संदीप ने हत्या में इस्तेमाल तमंचा भी बरामद करा दिया था, अत: एसएचओ अंजन कुमार सिंह ने उन दोनों को गिरफ्तार कर लिया. संदीप और अमित से की गई पूछताछ में त्रिकोण प्रेम की सनसनीखेज कहानी सामने आई.

उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर से करीब 20 किलोमीटर दूर एक कस्बा है-चौबेपुर. यह कस्बा गल्ला और पशु व्यवसाय के लिए जाना जाता है. यहां का पशु मेला दूरदराज के गांवों तक मशहूर है.

इसी चौबेपुर कस्बे से 5 किलोमीटर दूर बेला-बिधुना रोड पर एक गांव बसा है पसेन. हरेभरे पेड़ों के बीच बसा यह गांव अपनी अलग ही छटा बिखेरता है. इसी पसेन गांव में रामकुमार कुरील अपने परिवार के साथ रहते थे.

उन के परिवार में पत्नी कमला के अलावा 2 बेटे कुलदीप तथा अरुण थे. रामकुमार कुरील अपने खेत में सब्जियां उगाते थे और कस्बे में ले जा कर बेचते थे. सब्जी के इस व्यवसाय में उन्हें जो आमदनी होती थी, उसी से अपने परिवार का भरणपोषण करते थे.

रामकुमार कुरील चाहते थे कि उन के दोनों बेटे पढ़लिख कर सरकारी नौकरी करें. लेकिन उन की यह तमन्ना पूरी न हो सकी. कारण उन के दोनों बेटों का मन पढ़ाई में नहीं लगा और वे 10वीं कक्षा भी पास नहीं कर पाए.

पढ़ाई बंद करने के बाद कुलदीप तो पिता के काम में हाथ बंटाने लगा, लेकिन अरुण का मन गांव में नहीं लगा. वह गांव छोड़ कर कानपुर शहर आ गया. यहां वह मेहनतमजदूरी करने लगा. एक रोज अरुण की मुलाकात राजमिस्त्री राम अचल से हुई. वह उसी की जाति का था सो दोनों में खूब पटने लगी. राम अचल ने उसे राजमिस्त्री का काम सिखाया और उसे मजदूर से राजमिस्त्री बना दिया.

अरुण तेजतर्रार नौजवान था. उस ने राजमिस्त्री के साथसाथ मकान बनाने के ठेके भी लेने लगा. उस काम में उसे अच्छी आमदनी होने लगी.

कुछ समय बाद अरुण ने अपने भाई कुलदीप को भी गांव से बुला लिया. अब दोनों भाई कानपुर शहर के पनकी कलां मोहल्ले में किराए पर रहने लगे. अरुण ने 8-10 लोगों का एक समूह बना लिया. वे सभी उस के साथ काम करते थे.

अरुण कुमार अच्छा कमाने लगा तो उस का रहनसहन भी बदल गया. अब वह ठाटबाट से रहता और पिता के हाथों पर भी चार पैसा रखता.

अरुण की रिश्तेदारी कानपुर देहात जिले के सपई गांव में थी. वहां उस की बुआ ब्याही थी. बुआ के घर अरुण का आनाजाना लगा रहता था. बुआ उस की खूब आवभगत करती थी, सो वह उन से प्रभावित था.

बुआ के घर आतेजाते एक रोज अरुण की मुलाकात सीमा से हुई. सीमा का घर उस की बुआ के घर से कुछ दूरी पर था. उस के पिता रजोल किसान थे. 3 भाईबहनों में सीमा सब से बड़ी थी.

डर के शिकंजे में : विनीता को क्यों देनी पड़ी जान – भाग 2

महाराष्ट्र की सामाजिक प्रथा के अनुसार लड़के वाले वर ढूंढने नहीं जाते, बल्कि वरपक्ष लड़की की तलाश करता है. ऐसे में जब वनिता के लिए ज्ञानेश्वर चव्हाण का रिश्ता आया तो वनिता के परिवार वालों ने उसे सहर्ष स्वीकार कर लिया था.

24 वर्षीय ज्ञानेश्वर चव्हाण सेना में था. उस की पोस्टिंग दिल्ली में थी. वह भी वनिता के गृह जनपद बीड़ का रहने वाला था. उस का परिवार संपन्न और संभ्रांत था. किसी चीज की कोई कमी नहीं थी. ज्ञानेश्वर के पिता गांव के बड़े किसान थे.

सब कुछ तय होने के बाद वनिता के परिवार वालों ने अपने पुश्तैनी गांव पहुंच कर वनिता और ज्ञानेश्वर की सगाई कर जल्द ही शादी भी कर दी.

शादी के बाद जब ज्ञानेश्वर अपनी ड्यूटी पर लौटा तो वह कुछ दिनों के लिए पत्नी वनिता को भी अपने साथ ले गया. शुरुआती दौर का उन का दांपत्य जीवन काफी सुखमय रहा. जिस तरह ज्ञानेश्वर वनिता जैसी सुंदर पत्नी पा कर खुश था, उसी तरह वनिता भी ज्ञानेश्वर से शादी कर के खुद को भाग्यशाली समझ रही थी.

ज्ञानेश्वर सुबह अपनी ड्यूटी पर चला जाता था और वनिता अपने घर के कामों में व्यस्त हो जाती थी. देखतेदेखते 2-3 साल कैसे निकल गए, पता ही नहीं चला. इस बीच वनिता एक बेटी और एक बेटे की मां बन गई.

समय अपनी गति से चल रहा था. दोनों बच्चे धीरेधीरे बड़े हो रहे थे. इस के पहले कि वे अपने बच्चों का दाखिला स्कूल में करवा पाते, अचानक ज्ञानेश्वर का ट्रांसफर हो गया. ज्ञानेश्वर के ट्रांसफर की वजह से वनिता को दिल्ली से मुंबई आना पड़ा.

वनिता मुंबई आ कर अपने भाई और मां के साथ रहने लगी थी. उस ने वहीं पास के एक अच्छे स्कूल में बच्चों का दाखिला करा दिया. समयसमय पर ज्ञानेश्वर वनिता और बच्चों से मिलने मुंबई आता रहता था.

सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. दोनों अपनी जिंदगी में खुश थे कि अचानक उन की जिंदगी में एक ऐसा तूफान आया जिस ने वनिता और ज्ञानेश्वर के जीवन को तहसनहस कर दिया. वनिता की जिंदगी में रावसाहेब दुसिंग नाम के एक व्यक्ति की एंट्री हो गई. रावसाहेब से वनिता की मुलाकात सन 2010 में हुई थी.

45-46 साल का रावसाहेब दुसिंग आशिकमिजाज रंगीन तबीयत का आदमी था. वह अपनी पत्नी और 3 बच्चों के साथ मुंबई के सायन कोलीवाड़ा के प्रतीक्षानगर में रहता था. उस का पुरानी कारों को खरीदनेबेचने का कारोबार था. इस धंधे में उसे अच्छी कमाई होती थी.

अपराधी प्रवृत्ति के रावसाहेब दुसिंग का रहनसहन उस की सारी बुराइयों को दबा कर रखता था. वह ब्रांडेड कपड़ों के साथ हाथ में सोने का मोटा ब्रेसलेट, गले में वजनदार चेन पहने रहता था.

वनिता और रावसाहेब की मुलाकात वनिता की एक सहेली महानंदा के साथ राशन की दुकान पर हुई थी. उसी समय दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर दे दिए थे. रावसाहेब तो वैसे भी आशिकमिजाज था. पहली मुलाकात में ही उस ने वनिता को अपने दिल में बसा लिया था, इसलिए उस ने नजदीकियां बढ़ाने के लिए वनिता से फोन पर बात करनी शुरू कर दी.

दोनों तरफ से बातों का सिलसिला शुरू हुआ तो दायरा बढ़ता गया. फोन पर दोनों हंसीमजाक भी करने लगे.

एक दिन रावसाहेब ने उस से कहा, ‘‘वनिताजी, अगर आप को सेकेंडहैंड कार की जरूरत हो तो मुझे बता देना, मेरे पास बढि़या पुरानी कारें आती हैं. मैं आप को सस्ते दाम में दे दूंगा.’’

‘‘जी नहीं, मैं सेकेंडहैंड चीजों को यूज नहीं करती. मुझे नई चीजों में मजा आता है.’’ वनिता ने भी उसी के अंदाज में जवाब दिया.

वनिता की बातों के पीछे छिपे व्यंग्य को रावसाहेब अच्छी तरह समझ गया था. वह बोला, ‘‘अरे मैडम, एक बार सेकेंडहैंड को यूज कर के तो देखो. मैं वादा करता हूं कि आप नई चीजों को भूल जाओगी.’’

रावसाहेब की बात ने वनिता के मन को रोमांचित कर दिया. उस ने कहा, ‘‘अगर ऐसी बात है तो मैं उस का ट्रायल लूंगी. बोलो, कब आना है ट्रायल लेने.’’

‘‘जब आप चाहो,’’ रावसाहेब ने हंस कर कहा और मिलने की जगह भी बता दी.

तय समय के अनुसार रावसाहेब अपनी कार ले कर वनिता से मिला. वनिता के साथ कार से वह इधरउधर की सैर करता रहा. हंसीमजाक के साथ उन के 2-3 घंटे कब गुजर गए, पता नहीं चला. फिर वह वनिता को अपने एक दोस्त के खाली पड़े फ्लैट में ले कर गया.

फ्लैट के बैडरूम का माहौल देख कर वनिता को अपनी सुहागरात याद आ गई. वहां के माहौल में वह अपने आप को संभाल नहीं पाई. वैसे भी वह कई महीनों से पति के मिलन से दूर थी.

रावसाहेब तो वैसे ही मंझा हुआ खिलाड़ी था. वनिता उस से इतनी प्रभावित हो चुकी थी कि उस ने उस समय रावसाहेब की किसी बात को नहीं टाला. इस तरह उस दिन दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कर लीं.

उन के बीच एक बार जब मर्यादा की सीमा टूटी तो वह टूटती ही चली गई. इस के बाद तो जब भी मौका मिलता था, दोनों एकांत में मिल लेते थे.

पति ज्ञानेश्वर चव्हाण की अनुपस्थिति में वनिता और रावसाहेब के बीच यह खेल काफी दिनों तक चलता रहा. लेकिन ऐसी बातें ज्यादा दिनों तक छिपी नहीं रहतीं. एक दिन किसी तरह ज्ञानेश्वर चव्हाण को यह जानकारी मिली तो उस ने रावसाहेब को आड़े हाथों लिया और उसे वनिता से दूर रहने की चेतावनी दी.

लेकिन रावसाहेब तो अपराधी प्रवृत्ति का था, इसलिए वह ज्ञानेश्वर की धमकी से नहीं डरा बल्कि ज्ञानेश्वर चव्हाण से उलझ बैठा.

जिस का नतीजा यह हुआ कि मामला थाने तक पहुंच गया. पुलिस ने दोनों को समझाया और चेतावनी दे कर छोड़ दिया.

इस के बाद भी उन का झगड़ा खत्म नहीं हुआ. कई बार लड़ाईझगड़ा होने के बाद भी रावसाहेब ने वनिता का पीछा नहीं छोड़ा, जबकि पति के समझाने के बाद वनिता ने प्रेमी से दूरी बना ली थी. वह उस से मिलना तो दूर फोन पर बात तक नहीं करती थी. पर रावसाहेब उसे छोड़ना नहीं चाहता था.

चाहत का वो अंधेरा मोड़ – भाग 2

इश्क और मुश्क कभी छिपाए नहीं रखे जा सकते. यही उन दोनों प्रेमियों के साथ हुआ था. किसी ने गोपी के पति धोलू तक बात पहुंचा दी थी. शांतिप्रिय व खुद में मस्त रहने वाले धोलू के लिए यह खबर विचलित करने वाली साबित हुई.

कोई राह नहीं सूझी तो उस ने अपने बड़े साले इंद्रपाल, जो दबंग प्रवृत्ति का था, के साथ यह बात साझा कर ली. अगले दिन इंद्रपाल माणकथेड़ी पहुंच गया.

उस ने अपनी बहन गोपी को समझाया और राजेंद्र की दुकान पर पहुंच गया. उस ने राजेंद्र को ओछी हरकत से बाज आने व भविष्य में देख लेने की धमकी दे डाली. वहां से लौटते समय इंद्रपाल गोपी का मोबाइल फोन भी छीन ले गया.

दोनों प्रेमियों के बीच कई महीने तक बात होनी तो दूर दर्शन तक दुर्लभ हो गए. होली के दिन रंग में सराबोर हुआ राजेंद्र गोपी तक एक मोबाइल फोन पहुंचाने में सफल हो गया था. अब सावधानी के साथ दोनों प्रेमी 3-4 दिनों के अंतराल से बात करने लगे थे. लेकिन यह बात किसी तरह इंद्रपाल को पता चल गई.

24 जून को इंद्रपाल के ममेरे भाई की शादी थी. बारात में इंद्रपाल, राधेश्याम, मांगीलाल, सोनू आदि दोस्तों की ड्राइवरों के साथ लड़ाई हो गई. उक्त सभी पुलिस से बचने के लिए अपने जीजा धोलू के पास जा पहुंचे. वहां पर बहन और राजेंद्र की हकीकत जान कर इंद्रपाल का खून खौल उठा. पर धोलू ने कोई लफड़ा नहीं करने की हिदायत दे डाली थी.

2 महीने गुजर चुके थे. राजेंद्र की गुस्ताखी उसे अशांत किए हुए थी. पर उसे कोई राह नहीं सूझ रही थी. उस की योजना थी कि राजेंद्र को किसी अज्ञात स्थान पर बुला कर उस की जबरदस्त पिटाई की जाए, पर राजेंद्र को बुलाने की कोई तरकीब नहीं सूझ रही थी.

अगले ही पल उस की आंखें चमक उठीं. संगरिया में उस की एक महिला दोस्त संजू धानक रहती थी. संजू इंद्रपाल के लिए शरीर तो क्या जान देने को भी तैयार रहती थी. उस ने उसी समय संजू को राजेंद्र का मोबाइल नंबर दे कर राजेंद्र को प्रेम जाल में फांसने को कह दिया.

इंद्रपाल ने संजू को यह भी समझा दिया कि वह राजेंद्र को यह विश्वास दिला दे कि गोपी उस की पक्की सहेली है और वह उसी के कहने पर खुद को राजेंद्र को सौंप रही है.

संजू ने उसी समय राजेंद्र को फोन किया. राजेंद्र ने काल रिसीव कर कहा, ‘‘हैलो, कौन बोल रहे हैं? किस से बात करनी है?’’

सामने नारी कंठ की मीठी व आकर्षक आवाज में जवाब मिला, ‘‘प्यारे जीजाजी, घबराओ मत. हम भी आप को चाहने वाले हैं.’’ राजेंद्र की घबराहट भांप कर उस ने खुलासा कर दिया, ‘‘देख यार जीजा, मैं संजू और गोपी 2 बदन एक जान हैं. उसी ने आप का नंबर मुझे दिया है. वह कई दिन आप से संपर्क नहीं कर पाएगी,’’ संजू ने कहा.

‘‘संजू, मैं तो डर गया था. गोपी मेरा कितना खयाल रखती है.’’

‘‘देखो जीजाजी, जब भी आप को महिला बदन की तलब लगे, मुझे घंटी मार देना. लेकिन याद रखना, मैं 10-12 दिन में एक बार ही मिल सकूंगी. मेरी मजबूरी है.’’ संजू ने राजेंद्र को फांसने के लिए पासा फेंक दिया था.

प्रणय निवेदन का पासा फेंकने में संजू वास्तव में गोल्ड मैडलिस्ट थी. हकीकत यह थी कि विवाहिता संजू जो एक बच्चे की मां थी, पति से खटपट होने के कारण 2 साल से संगरिया स्थित पीहर में रह रही थी. गुजरबसर के लिए वह एक कपड़े की दुकान पर सेल्सगर्ल के रूप में काम कर रही थी.

इंद्रपाल के प्लान के मुताबिक, संजू अपने फोन में रिकौर्ड हर बातचीत इंद्रपाल तक पहुंचा देती थी. अब राजेंद्र संजू की सैक्सी बातों से प्रभावित हो कर उस का गुलाम बन चुका था.

इंद्रपाल का प्लान अब सही राह पकड़ चुका था. वह अपनी बहन गोपी का बचाव करने के लिए संजू को मोहरे के रूप में इस्तेमाल कर रहा था. 16 जुलाई, 2022 को इंद्रपाल ने अपने दोस्तों राधेश्याम जीतराम, सोनू, मांगीलाल व एक नाबालिग प्रेम को अपनी ढाणी में बुला लिया.

इंद्रपाल ने संजू से कह दिया कि वह राजेंद्र को किसी तरह 17 जुलाई को रावतसर स्थित खेतरपाल मंदिर बुला ले. संजू ने ऐसा ही किया. उस ने 17 जुलाई की सुबह ही राजेंद्र को फोन कर कहा, ‘‘यार, आज मिलन का मूड है. मैं फ्री हूं. दोपहर तक रावतसर के खेतरपाल मंदिर पहुंच जाओ. वहां होटल में मौजमस्ती के लिए कमरा आराम से मिल जाता है.’’

हालांकि उस दिन राजेंद्र की शाम के समय एक समारोह की बुकिंग थी पर संजू से मिलने की चाहत में उस ने हां कर दी.

प्रेमिका का छलिया प्रेमी से इंतकाम – भाग 2

पुलिस अधिकारियों ने मौके पर डौग स्क्वायड टीम तथा फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. थानाप्रभारी के इशारे पर सिपाही रामवीर ने हथौड़े से कमरे का ताला तोड़ा. उस के बाद पुलिस अधिकारियों ने कमरे में प्रवेश किया.

कमरे में प्रवेश करते ही पुलिस अधिकारी चौंक गए. सिपाही देशदीपक की हत्या बड़ी बेरहमी से की गई थी. पूरा शव खून से लथपथ चारपाई पर पड़ा था. उस की गरदन पर किसी तेज धार वाले हथियार से कई वार किए गए थे. जिस से उस की गरदन आधे से ज्यादा कट गई थी. किसी नुकीली चीज से भी वार किया गया था.

देखने से ऐसा लग रहा था कि किसी भारी प्रतिशोध के चलते उस की हत्या की गई थी. मृतक की उम्र 28 वर्ष के आसपास थी.

डौग स्क्वायड टीम ने घटनास्थल पर खोजी कुत्ता छोड़ा तो वह शव व अन्य सामान को सूंघ कर भौकता हुआ कमरे से बाहर निकला और बाजार होता हुआ रेलवे पटरी तक गया. टीम ने वहां हत्या से संबंधित सबूत खोजने का प्रयास किया, लेकिन सफलता नहीं मिली. उस के बाद टीम वापस आ गई.

मौकाएवारदात पर फोरैंसिक टीम भी मौजूद थी. टीम ने कमरे की सघन तलाशी ली तो शराब की एक खाली बोतल, सैक्सवर्द्धक दवाएं, स्प्रे व कंडोम का पैकेट मिला. मृतक का मोबाइल फोन व पर्स गायब था.

टीम ने बिस्तर, चारपाई, दरवाजे की कुंडी व शराब की बोतल से फिंगरप्रिंट लिए तथा बरामद सामान को सुरक्षित कर लिया. सैक्स उपयोगी सामान मिलने से पुलिस अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि सिपाही की हत्या शायद अवैध संबंधों के चलते हुई है.

अब तक सिपाही देशदीपक की निर्मम हत्या की खबर कस्बा बिल्हौर में फैल गई थी. भारी भीड़ घटनास्थल पर उमड़ पड़ी थी. सुरक्षा के मद्देनजर पुलिस अधिकारियों ने बिल्हौर कस्बा में पुलिस फोर्स की गश्त बढ़ा दी थी.

पुलिस टीमें अभी निरीक्षण कर ही रही थीं कि सूचना पा कर मृतक सिपाही के घर वाले घटनास्थल पर आ गए. इस के बाद तो वहां कोहराम मच गया. प्रमोद कुमार व उन की पत्नी शिवाला देवी बेटे का शव देख कर दहाड़ें मार कर रोने लगे. मृतक की पत्नी दिव्या उर्फ अंजलि भी पति का शव देख कर बिलख पड़ी. साथ आए अन्य परिजनों की आंखों से भी आंसू बहने लगे.

रोतेबिलखते घरवालों को एसपी (आउटर) तेजस्वरूप सिंह व डीएसपी (बिल्हौर) राजेश कुमार ने धैर्य बंधाया और बड़ी मुश्किल से शव से दूर किया. एडीजी भानु भास्कर ने मृतक सिपाही के मातापिता से वादा किया कि वह जल्द ही हत्या का परदाफाश कर हत्यारों को हथकड़ी पहनाएंगे.

घटनास्थल की प्रारंभिक काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने सिपाही देशदीपक के शव को पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय अस्पताल कानपुर भिजवा दिया. 3 डाक्टरों के एक पैनल ने शव का पोस्टमार्टम किया. पोस्टमार्टम के बाद शव को घर वालों को सौंप दिया गया.

घर वाले देशदीपक के शव को पैतृक गांव दयापुर ले कर आए. पुलिस की टुकड़ी शव के साथ आई थी, जिस ने अंतिम संस्कार से पहले सलामी दी.

इधर एडीजी (कानपुर जोन) भानु भास्कर ने सिपाही हत्याकांड को बड़ी गंभीरता से लिया. हत्या के खुलासे के लिए उन्होंने स्वाट, सर्विलांस टीम सहित 6 टीमों का गठन किया और खुलासे की कमान एसपी (आउटर) तेजस्वरूप सिंह को सौंपी. भानु भास्कर ने हत्या का खुलासा करने वाली टीम को 50 हजार रुपए का ईनाम देने का ऐलान भी किया.

एसपी (आउटर) तेजस्वरूप सिंह ने पुलिस की 2 टीमों के साथ सब से पहले मकान मालिक रमेशचंद्र प्रजापति तथा उस मकान में रहने वाले अन्य किराएदारों से पूछताछ की.

पूछताछ से पता चला कि सिपाही देशदीपक के कमरे से एक युवक व एक युवती को आतेजाते देखा था. युवती दुपट्टे से मुंह ढंके रहती थी, जबकि युवक अंगौछे से. लेकिन किसी ने उन से टोकाटाकी नहीं की थी.

किराएदारों से पूछताछ के बाद एसपी तेजस्वरूप सिंह ने साइबर सेल को सिपाही देशदीपक के मोबाइल फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाने का आदेश दिया. साइबर सेल ने तब पिछले 6 महीने की काल डिटेल्स निकलवाई.

सिपाही देशदीपक के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स का अध्ययन पुलिस की 2 टीमों ने किया. एक टीम को बुधवार दोपहर (यानी पहली जून को) 12:26 बजे एक फोन की लोकेशन देशदीपक के घर के पास मिली. इस संदिग्ध नंबर की जानकारी जुटाई गई तो पता चला कि यह नंबर सीवान (बिहार) का है. इस नंबर पर देशदीपक की अकसर बात होती रहती थी.

पुलिस ने जांच आगे बढ़ाई और उस नंबर की लोकेशन ट्रेस की तो लोकेशन सीवान जिले के बसंतपुर (खोड़ी पाकर) की मिली. टीम ने इस की जानकारी एसपी तेजस्वरूप सिंह को दी.

तेजस्वरूप सिंह ने तब एसआई मंसूर अहमद की अगुवाई में एक पुलिस टीम सीवान (बिहार) भेज दी. लगभग साढ़े 5 सौ किलोमीटर का सफर तय करने के बाद मंसूर अहमद टीम के साथ सीवान जिले के बसंतपुर थाना पहुंचे और थानाप्रभारी मुकेश कुमार को अपने आने का मकसद बताया.

मुकेश कुमार ने उस संदिग्ध नंबर की जानकारी जुटाई तो पता चला यह नंबर लालसा कुमारी पुत्री भृगुनाथ सैनी निवासी बड़वा खुर्द के नाम दर्ज है.

पुख्ता जानकारी मिलने के बाद मंसूर अहमद ने अपनी टीम के साथ थाना बसंतपुर पुलिस के सहयोग से बड़वा खुर्द गांव में भृगुनाथ सैनी के घर छापा मारा और उस की बेटी लालसा कुमारी उर्फ लाली को हिरासत में ले लिया. उस के पास से पुलिस ने मृतक सिपाही देशदीपक का मोबाइल फोन भी बरामद कर लिया. उसे थाना बसंतपुर लाया गया.

थाने में जब उस से पूछताछ की गई तो उस ने सिपाही देशदीपक की हत्या करने की बात स्वीकार की और यह भी बताया कि हत्या में उस का साथ भाई के बेटे अभिषेक सैनी ने दिया था.

अभिषेक सैनी सारण जिले के मशरक थाना के दक्षिण टोला का रहने वाला है. यह जानकारी मिलते ही पुलिस टीम ने दक्षिण टोला (मशरक) से अभिषेक सैनी को भी गिरफ्तार कर लिया.

4 जून, 2022 को एसआई मंसूर अहमद अपनी टीम के साथ सिपाही के हत्यारों को गिरफ्तार कर थाना बिल्हौर लौट आए और गिरफ्तारी की सूचना पुलिस अधिकारियों को दी. सूचना पाते ही एसपी (आउटर) तेजस्वरूप सिंह तथा डीएसपी राजेश कुमार भी थाना बिल्हौर आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने लालसा कुमारी उर्फ लाली तथा अभिषेक सैनी से पूछताछ की तो दोनों ने सहज ही सिपाही देशदीपक की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. यही नहीं, दोनों ने हत्या में प्रयुक्त चाकू, चापड़ तथा खून से सने कपड़े भी खाली पड़े प्लौट से बरामद करा दिए.

हत्या का खुलासा होते ही एसपी तेजस्वरूप सिंह ने प्रैसवार्ता की और आरोपियों को मीडिया के समक्ष सिपाही देशदीपक की हत्या का खुलासा किया.

चूंकि हत्यारों ने हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया था और आलाकत्ल भी बरामद करा दिया था, अत: थानाप्रभारी अरविंद कुमार सिंह ने मृतक के पिता प्रमोद कुमार को वादी बना कर भादंवि की धारा 302 के तहत लालसा कुमारी तथा अभिषेक के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली तथा उन्हें विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया.

मोहब्बत पर भारी पड़ी सियासत – भाग 2

असल में विशाल के परिवार वाले उसे कई बार हिदायत दे चुके थे कि वह वंदना से संबंध तोड़ ले.

विशाल के पिता रेलवे में नौकरी करते थे. रिटायर हो चुके थे. उस के बाद से ही वंदना सिंह के मकान में करीब 3 साल से किराए पर रह रहे थे. वंदना के पति स्व. मनोज कुमार सिंह लोक जनशक्ति पार्टी के नेता थे, जिन की 4 साल पहले आकस्मिक मृत्यु हो चुकी थी. विशाल की वंदना और उस के पति से जानपहचान तभी से थी.

पत्रकारिता के सिलसिले में उन की मुलाकातें अकसर होती रहती थीं. वे उस के लिए खबरों के स्रोत भी थे. इस कारण विशाल उन के राजनीतिक मतलब की खबरें भी छाप दिया करता था.

पति की आकस्मिक मौत के बाद वंदना दिवंगत पति की तरह ही राजनीति में सक्रिय हो गई थी. उस के बाद दोनों का विभिन्न कार्यक्रमों में मिलनाजुलना होने लगा था. इस बीच वे समय निकाल कर अपनी कुछ अंतरंगता की बातें भी कर लेते थे.

वंदना को बातबात पर विशाल से मशविरा लेना अच्छा लगता था. विशाल से बातें करने पर उस के दिल को सुकून मिलता था. छोटेबड़े काम के लिए विशाल को फोन कर दिया करती थी. विशाल भी इनकार नहीं कर पाता था.

इस तरह वंदना विशाल के काफी करीब आ चुकी थी. एक तरह से दोनों के बीच गहरा प्रेम संबंध कायम हो चुका था, जिसे उन्होंने दुनिया की नजरों से छिपाए रखा था. इस की जानकारी सिर्फ विशाल की बहन वैशाली को ही थी.

उस के माध्यम से परिवार के दूसरे लोग भी वंदना और विशाल के प्रेम संबंध के बारे में जान गए थे. उन्हें यह भी मालूम हो गया था कि वंदना और विशाल गुपचुप विवाह बंधन में भी बंध चुके हैं, लेकिन अपने रिश्तेदारों और दोस्तों के बीच इस का खुलासा नहीं किया था.

उधर जैसेजैसे वंदना और विशाल के बीच निकटता बढ़ती गई, वैसेवैसे दोनों अलग तरह के तनाव में भी घिरने लगे. विशाल कुछ ज्यादा ही तनाव में रहने लगा था. दिनप्रतिदिन वंदना उस पर हावी होती जा रही थी. अपने मतलब की खबरें छपवाने से ले कर कारोबार के सिलसिले में हाथ बंटाने के लिए कहती रहती थी.

यहां तक कि अटके हुए सरकारी कामकाज के लिए विशाल पर संपर्क का फायदा उठाने के लिए भी दबाव बनाती थी. ऐसा नहीं होने पर विशाल को ताने दिया करती थी. कई बार इस संबंध में उन के बीच तूतूमैंमैं भी हो जाती थी.

विशाल को वंदना द्वारा दबाव बना कर काम करवाने का तरीका अच्छा नहीं लगता था. उसे अपने पत्रकारिता के करिअर को ले कर भी चिंता रहती थी, जिसे बेदाग बनाए रखने और किसी भी राजनीतिक दल के समर्थक होने के आरोप से बचाए रखना चाहता था. सब से बड़ी उलझन अनैतिक काम को सहयोग देने से बचने को ले कर भी थी.

उन्हीं दिनों बिचौलिया का काम करने वाले एक व्यक्ति ने किसी खबर को ले कर हद ही कर दी थी. उस ने खबर को नहीं छापने का दबाव बनाया था. खबर अवैध तरीके से शराब की बोतलें छिपाए जाने की थी. इस की भनक मीडिया को लग चुकी थी.

अधिकतर मीडिया वाले इस मसले पर चुप्पी साधे हुए थे. उस  व्यक्ति ने विशाल को खबर को जैसे भी हो, छपने से रोकने के लिए कहा था. जबकि जवाब में विशाल ने बताया कि खबर का छपना, नहीं छपना संपादक पर निर्भर है. वह नहीं लिखेगा तब कोई और लिख देगा.

इस पर उस व्यक्ति ने तेवर दिखाते हुए धमकी दी कि उस के ऊपर वंदना सिंह का हाथ है, तब विशाल भी थोड़ा सहम गया. उस के साथ के संबंध को ले कर बड़ी दुविधा में पड़ गया था. उसे वंदना के बिजनैस, होटल और दुकानों के बारे में पता था. जिन की देखभाल पति के निधन के बाद उस के भाई और दूसरे रिश्तेदार करते थे. इस में विशाल भी अप्रत्यक्ष तौर पर सहयोग करता था.

उसी रोज ही इस खबर को ले कर वंदना और उस के भाइयों के साथ काफी तीखी बहस हो गई थी. बात विशाल के घर तक जा पहुंची. इसी सिलसिले में वंदना अपने भाइयों के साथ विशाल के घर पहुंची. उस ने विशाल के परिवार के सदस्यों को धमकी दी.

खैर, बात आईगई हो गई. खबर किसी तरह की पुलिस काररवाई नहीं होने के कारण नहीं छप पाई. लेकिन दोनों के प्रेम संबंधों में दरार जरूर पड़ गई. वंदना और उस के भाइयों की निगाह में विशाल जरूरत का नहीं लगा. यह बात विशाल ने भी महसूस की कि वंदना न केवल उस से कतराने लगी है, बल्कि आक्रामक तेवर भी दिखाने लगी है. यहां तक कि वह गोलीबंदूक की भी बातें करने लगी थी.

विशाल वंदना के इस बदले हुए व्यवहार को ले कर भी तनाव में रहने लगा था. वह दोहरे मानसिक उत्पीड़न के दौर से गुजर रहा था. एक तरफ प्रेम संबंध के जगजाहिर होने का दिमाग पर पड़ने वाला दबाव था, तो दूसरी ओर वंदना के व्यवहार में बदलाव था. उस ने महसूस किया कि वंदना उसे दूध में गिरी मक्खी समझने लगी है.

इसी बीच विशाल को पता चला कि पति की मौत के पीछे वंदना सिंह का ही हाथ था. साथ ही यह भी मालूम हुआ कि वह किसी और युवक से भी वह प्यार करती है. उस का अफेयर शुभम कुमार सिंह से होने की जानकारी मिलने पर विशाल और भी विचलित हो गया. शुभम डा. कौशल सिंह का छोटा भाई है.

इसे ले कर उस ने वंदना से बात की. वंदना ने विशाल की भावना को ठुकराते हुए कहा कि तुम जब मेरे काम में मुझे मदद नहीं कर सकते तो तुम से कोई उम्मीद कैसे रख सकती हूं. अभी शुभम का इलाज चल रहा है. उस की मुझे जरूरत है, मैं जानती हूं कि आने वाले दिनों में वही मेरे साथ हमदर्दी रखेगा.

यह बात विशाल के दिल में चुभ गई. उस ने भावुक हो कर कह दिया यदि ऐसा हुआ तब वह अपनी जान दे देगा. इसे भी वंदना ने हंसी में उड़ा दिया और बोली, ‘‘जाजा, बहुत देखे हैं तेरे जैसे…!’’

‘‘मैं जो कह रहा हूं कर दूंगा…’’ विशाल गंभीरता से बोला.

तनु की त्रासदी : जिस्म की चाहत ने पहुंचा दिया मौत के पास – भाग 2

चंदन से शादी के बाद उस के 2 साल अच्छे से गुजरे, ठीक वैसे ही जिस तरह से वह पहली शादी के पहले सपने देखा करती थी. पर यह शादी नहीं एक सौदा था, जिस के तहत तनु ने अपने पहले पति से गुजारे के लिए लिए गए 5 लाख रुपए बतौर दहेज चंदन को दे रखे थे.

लेकिन यहां भी दोनों के बीच वादविवाद और झगड़े होने लगे. चंदन का मकसद तनु की जवानी और खूबसूरती भोगना था, जो पूरा हो गया था. एक साल बाद ही इन के यहां एक बेटी हुई, जिस का नाम विनी रखा गया. चंदन का बदलता बर्ताव और बेरुखी देख कर तनु को समझ आने लगा कि इस से अच्छा तो वह दुकानदार पति ही था, जो उस का पूरा ध्यान रखता था.

झगड़े इतने बढ़ गए कि दोनों का साथ रहना दूभर हो गया. ऐसे में सास राजकुमारी ने तनु की परेशानी हल की. उस ने उसे समझाया कि जब चंदन से नहीं पट रही है तो उसे तलाक दे दो और एवज में 10 हजार रुपए हर महीने लेती रहो.

तनु के मायके वालों का जी उस की हरकतों के चलते पहले ही उचट चुका था, लिहाजा उन्होंने उस की दूसरी शादी के विवाद में न कोई दखल दिया और न ही दिलचस्पी दिखाई. चंदन को तलाक दे कर तनु अलग गोयलनगर के अपार्टमेंट अड़ोसपड़ोस के फ्लैट नंबर 103 में बेटी के साथ रहने लगी.

रिश्तों की ऐसी सौदेबाजी टीवी धारावाहिकों में ही देखने को मिलती है. तनु ने पहले पति से एकमुश्त 5 लाख रुपए लिए थे और दूसरे से 10 हजार रुपए महीना ले रही थी. एक तरह से यह देह की या यौनसुख की कीमत वसूलने जैसी बात थी, जिस का कोई अफसोस या ग्लानि उसे नहीं थी.

अब तनु आजाद थी, पर जल्दी ही यह आजादी उसे खलने लगी. इंदौर जैसे औद्योगिक शहर में एक अकेली लड़की का बिना किसी सहारे के रहना नामुमकिन नहीं तो मुश्किल जरूर है. गोयलनगर में शिफ्ट होने के बाद भी चंदन उस से मिलने आया करता था.

न जाने किस जादू के जोर से दोनों के बीच के विवाद सुलझ गए थे. अड़ोसपड़ोस अपार्टमेंट के अड़ोसियोंपड़ोसियों से तनु ने चंदन का परिचय पति के रूप में ही कराया था. लिहाजा सभी यह सोचते थे कि दोनों पतिपत्नी हैं और चंदन अकसर काम के सिलसिले में बाहर रहता है.

तन की भूख फिर से दूसरे पति से बुझने लगी तो तनु चंदन के पांवों में बिछने लगी और इस तरह बिछने लगी कि जब चंदन ने अपनी दूसरी शादी की बात उसे बताई तो उस के चेहरे पर शिकन तक नहीं आई. शिकन तो दूर की बात, सन 2015 की इस अनूठी शादी में विचित्र किंतु सत्य जैसी बात यह हुई थी कि आमंत्रण पत्र में तनु का नाम बतौर चंदन की बहन छपा था.

जाने क्या खिचड़ी तनु, चंदन और राजकुमारी के बीच पकी, जो तनु अपने दूसरे पति की दूसरी शादी में बहन की हैसियत से शामिल हुई और बारात में जम कर नाची भी. इतना ही नहीं, चंदन की सुहाग की सेज भी उस ने अपने हाथों से सजाई. किसी भी तरह के साहित्य में शायद ही ऐसी किसी घटना का वर्णन देखने को मिले, जो इंदौर की इस शादी में घटित हुआ था.

शादी के बाद भी चंदन गोयलनगर में तनु के पास आताजाता रहा और तनु की हर तरह की जरूरत भी पूरी करता रहा. 10 हजार रुपए महीने तो वह उसे दे ही रहा था. तनु अपनी तनहाई से समझौता कर के संतुष्ट हो चली थी. लेकिन चंदन के मन में उसे ले कर कुछ और ही चल रहा था, जो अब तक उस की रगरग से वाकिफ हो चुका था. चंदन का असली धंधा क्या था, इस का अंदाजा तनु को नहीं था. वह तो उसे प्रौपर्टी ब्रोकर समझती रही थी, जिस के एक बड़े कांग्रेसी नेता से अच्छे संबंध थे.

चंदन का एक दोस्त था महिम शर्मा. वह पेशे से वैसा ही पत्रकार था, जैसा कि चंदन नेता यानी कहने भर के लिए. फिर भी दोनों में अपनेअपने धंधे की ठसक भी थी और पैसा भी अच्छाखासा था. दरअसल, चंदन और महिम दोनों मिल कर एक गिरोह चलाते थे, जिस का काम लोगों को, खासतौर से व्यापारियों को फांस कर उन्हें ब्लैकमेल करना था. इस के लिए कई खूबसूरत लड़कियां इन दोनों ने पाल रखी थीं, जिन का काम सोशल मीडिया के जरिए व्यापारियों को फंसाना होता था.

शिकार जब जाल में फंस जाता था तो ये लड़कियां किसी लौज, होटल या फ्लैट में उसे बुलाती थीं और उस के साथ वैसी ही वैरायटी वाली सैक्सी हरकतें करती थीं, जैसी ब्लू फिल्मों में दिखाई जाती हैं. नई तकनीकों से अंजान व्यापारी इन लड़कियों के साथ सैक्स का लुत्फ तो उठाते थे, पर इस बात का अहसास उन्हें नहीं होता था कि उन की हरकतें कैमरे में कैद हो रही हैं, जो एक बार अगर दुनिया के सामने आ जाएं तो उन की इज्जत धूल में मिल जाना तय थी.

इसी से बचने के लिए कितने ही व्यापारी चंदन और महिम को पैसा दे चुके थे, इस का ठीकठाक हिसाबकिताब शायद ही कोई दे पाए, क्योंकि अधिकांश क्या, सभी व्यापारी अपनी ब्लू फिल्में देख कर पसीनेपसीने हो उठते थे और डरते भी थे कि अगर ये वायरल हो गईं तो वे कहीं के नहीं रहेंगे. घरगृहस्थी तो चौपट होगी ही, समाज और रिश्तेदारारी में भी छीछालेदर होगी. इसलिए वे चुपचाप इन दोनों को मुंहमांगा पैसा दे देते थे.

इस काम में एकलौती दिक्कत इन दोनों को यह थी कि जिस लड़की को ये चारे के रूप में इस्तेमाल करते थे, उसे खासी रकम देनी पड़ती थी और एक नया राजदार भी बनाना पड़ता था,जो एक तरह का खतरा ही था. चंदन और महिम ब्लैकमेलिंग के इस धंधे के खासे विशेषज्ञ हो चुके थे और मन ही मन उन अधेड़, जवान और बूढ़ों की हालत पर हंसते भी थे, जो कमसिन लड़कियों के जिस्म की चाहत में आ कर गाढ़ी कमाई उन्हें दे जाते थे.

चंदन का ध्यान जब इस तरफ गया कि अगर तनु उन के गिरोह में शामिल हो कर काम करने को तैयार हो जाए तो बात सोने पे सुहागा वाली होगी. उस पर बुरी तरह मरने वाली तनु न केवल भरोसेमंद थी, बल्कि उस का मांसल सैक्सी जिस्म उस की दूसरी खूबी थी, जिस की ब्लैकमेलिंग के धंधे में खासी अहमियत होती है.

चंदन को यह तो समझ में आ गया था कि पैसों के बाबत तनु ज्यादा मुंह नहीं फाड़ेगी, लेकिन अपनी पूर्वपत्नी को इतना तो वह जानने ही लगा था कि वह इस काम के लिए कभी तैयार नहीं होगी. वह जैसी भी थी, पर उस के अपने कुछ उसूल थे, जिन से ब्लैकमेलिंग की बात मेल नहीं खाती थी. बिस्तर में चंदन के मुताबिक कुलाटियां खाने वाली तनु इस काम के लिए आसानी से तैयार होगी, इस में उसे शक था.

इस के बाद भी उसे कोशिश करने में हर्ज महसूस नहीं हुआ. उस के खुराफाती दिमाग में आइडिया यह आया कि तनु को एक मर्द की जरूरत तो है ही, इसलिए क्यों न महिम का चक्कर उस से चलवा दिया जाए. इस से होगा यह कि अगर महिम और तनु के बीच जिस्मानी ताल्लुक कायम हो गए तो आसानी से तनु को शीशे में उतारा जा सकता है. इस बाबत उस ने पहले महिम का परिचय तनु से करवाया और फिर खुद धीरेधीरे उस से किनारा करने लगा.