कहीं पे निगाहें, कही पे निशाना – भाग 2

पुलिस ने फायजा के मोबाइल के वाट्सऐप को चैक किया तो वह दोनों ही नंबरों पर चैटिंग करती थी. जिस से यह साफ हो गया था कि फायजा एक साथ प्यार की 2 नावों पर सवार हो कर यात्रा कर रही थी. यानी फायजा का एक साथ 2 युवकों के साथ चक्कर चल रहा था.

इस जानकारी के मिलते ही पुलिस ने घटनास्थल की सारी काररवाई पूरी कर शव पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि चाकू के हमले से ही शरीर के कई अंग कट गए थे, जो उस की मौत का कारण भी बने थे.

पोस्टमार्टम हो जाने के बाद पुलिस ने उस का शव उस के घर वालों को सौंप दिया था. इस केस में मृतका के अब्बू नन्हे की ओर से हसन के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई. जिस के बाद पुलिस ने आरोपी की धरपकड़ के लिए 2 पुलिस टीमों का गठन किया.

पुलिस की एक टीम ने उसी वक्त आरोपी को गिरफ्तार करने के लिए उत्तराखंड के सितारगंज में उस के आवास पर दबिश दी. लेकिन वह घर से फरार मिला. उस के बाद भी पुलिस ने उस की कई संभावित ठिकानों पर छापा मारा. लेकिन वह पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ सका. फिर पुलिस ने उस की खोजखबर के लिए मुखबिर लगा दिए.

3 अगस्त, 2022 को पुलिस को एक मुखबिर ने सूचना दी. आरोपी हसन कहीं जाने की फिराक में रामपुर के विलासपुर रोड पर पुल के नीचे खड़ा हुआ है. इस जानकारी के मिलते ही पुलिस ने आरोपी को चारों ओर से घेरने के बाद गिरफ्तार कर लिया.

हसन को गिरफ्तार कर पुलिस उसे मिलक थाने ले आई. पुलिस ने उस से इस हत्याकांड की बाबत जानकारी ली. हसन ने पुलिस के सामने आते ही आसानी से अपना अपराध स्वीकार कर लिया. पुलिस पूछताछ के दौरान इस हत्याकांड की जो हकीकत सामने आई, वह इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश के जिला रामपुर के मिलक कोतवाली क्षेत्र में आता है एक गांव जालिफ नगला. इसी गांव में नन्हे अपने परिवार के साथ रहता था. नन्हे का रेडीमेड कपड़े का कारोबार था. वह आसपास के गांव व शहरों में लगने वाले बाजारों में फड़ लगा कर कपड़े बेचता था. नन्हे की एक ही बेटी थी फायजा.

बीवी आसिफा को मिला कर घर में मात्र 3 प्राणी थे. कपड़े के व्यापार से नन्हे को अच्छी आमदनी थी. उसी आमदनी के सहारे ही नन्हे ने गांव में अच्छा मकान बनवा लिया था.

घर की आर्थिक स्थिति मजबूत होने के कारण नन्हे ने अपनी बेटी फायजा को बहुत ही शौक से पालापोसा था. नन्हे ने बेटी के भविष्य को देखते हुए उसे अच्छी शिक्षा दिलाने की कोशिश की. लेकिन ज्यादा लाड़प्यार में पली होने के कारण वह इंटरमीडिएट तक ही पढ़ पाई थी. उस के बाद उस ने आगे की पढ़ाई बंद कर दी और जौब की तलाश में जुट गई.

फायजा ने कंप्यूटर कोर्स भी कर रखा था, जिस से वह हर वक्त लैपटाप पर कुछ न कुछ करती रहती थी. साल 2021 में उस की मुलाकात एक व्यक्ति से हुई. वह व्यक्ति आयुष्मान कार्ड बनाने वाली एक संस्था से जुड़ा था. उसी के मार्फत फायजा को भी उसी संस्था में आयुष्मान कार्ड बनाने का काम मिल गया. वह उसी संस्था के माध्यम से अलीगढ़ में संविदा पर काम करने लगी थी.

घर छोड़ कर अलीगढ़ काम करना फायजा को उचित नहीं लगा. उस का वहां पर मन नहीं लगा तो एक महीने बाद ही वह अपने घर वापस चली आई थी.

फायजा के गांव में ही हसन का एक दोस्त था राशिद. राशिद के साथ हसन की पक्की दोस्ती थी. उसी दोस्ती के सहारे उस का राशिद के घर आनाजाना था. फायजा के घर के पास ही राशिद का घर था. उसी आनेजाने के दौरान एक दिन उस की नजर फायजा पर पड़ी.

चूंकि फायजा के अब्बू रेडीमेड कपड़े के व्यवसाय से जुड़े थे. इसी कारण वह हर रोज नएनए लिबास में नजर आती थी. फायजा देखने में तो सुंदर थी ही, ऊपर से उस का पहननाओढ़ना  ऐसा था कि उस की खूबसूरती में चार चांद लग जाते थे.

हसन उसे देखते ही मन ही मन चाहने लगा. एक दिन फायजा किसी काम से राशिद के घर गई तो उस वक्त हसन भी आया हुआ था. हसन ने उसे करीब से देखा तो उस का दिल बेकाबू हो गया.

राशिद यह तो जानता था कि हसन फायजा के रंगरूप पर मर मिटा है. उस दिन मौका मिला तो राशिद ने हसन की मुलाकात अपने दोस्त के रूप में कराई. उस के घर से जाते ही हसन अपने दिल को थाम कर बैठ गया. हसन ने राशिद से फायजा का मोबाइल नंबर भी ले लिया था.

अगले ही दिन हसन ने फायजा के मोबाइल पर काल कर के अपना परिचय देते हुए बातचीत आगे बढ़ाई. उस दिन हसन ने काफी देर तक फायजा से मोबाइल पर बात की. दोनों पहले ही राशिद के घर पर एकदूसरे से मुखातिब हो चुके थे. इसी कारण दोनों को आगे बात बढ़ाने में टाइम नहीं लगा था.

बातों ही बातों में हसन ने फायजा के सामने दोस्ती की पेशकश की तो उस ने स्वीकार कर ली. फायजा के दोस्ती कुबूलते ही हसन का दिल बागबाग हो उठा. उसे फायजा से ऐसी उम्मीद नहीं थी कि वह इतनी जल्दी उस से दोस्ती कर लेगी. फिर हसन उस से मिलने के लिए बेताब रहने लगा था.

वह जल्दी ही उस से मिलने की आस लिए राशिद के घर जा पहुंचा. हसन के आने की खबर पाते ही फायजा भी तुरंत उस से मिलने राशिद के घर जा पहुंची. फायजा को सामने पा कर हसन को बहुत खुशी हुई. अब उस के नजरिए में भी पहले के मुकाबले काफी बदलाव आ गया था.

दूसरी मुलाकात में ही दोनों के बीच प्यार अंकुरित हो चुका था. उस के बाद दोनों मोबाइल पर प्यार भरी बातें करने लगे थे. फिर एक दिन ऐसा भी आया कि हसन उस से सीधा मिलने उस के घर भी जाने लगा था.

उस ने अपने अब्बूअम्मी से उस का परिचय देते हुए बताया कि उस की मुलाकात अलीगढ़ में काम करने के दौरान हुई थी. वह अभी भी वहीं पर जौब करता है. वह वहीं पर उस की फिर से जौब लगवाने की कोशिश कर रहा है.

यह सुन कर उस के अब्बूअम्मी को बहुत खुशी हुई. उस के बाद फायजा को अपने घर वालों की तरफ से उस के साथ आनेजाने की पूरी छूट मिल गई थी.

जब प्यार में आया ट्विस्ट – भाग 1

जैसेजैसे दिन ढलता जा रहा था, वैसेवैसे नीतू की चिंता भी बढ़ती जा रही थी. वह बारबार पति अरुण के मोबाइल फोन पर उस से संपर्क करने की कोशिश कर रही थी, लेकिन फोन बंद होने की वजह से संपर्क नहीं हो पा रहा था. दरअसल, अरुण घर से यह कह कर निकला था कि वह जरूरी काम से किसान नगर तक जा रहा है, घंटे-2 घंटे बाद वापस आ जाएगा.

लेकिन उसे गए 5 घंटे बीत गए थे और वह वापस नहीं आया था. उस का फोन भी बंद था, जिस से नीतू की धड़कनें बढ़ गई थीं. यह 16 जुलाई, 2022 की बात है.

अरुण जब रात 10 बजे तक घर वापस नहीं आया तो नीतू ने जेठ कुलदीप को फोन कर घर बुला लिया. नीतू ने पति के घर वापस न आने की बात कुलदीप को बताई तो उस के माथे पर भी बल पड़ गए. कुलदीप ने अरुण के कुछ खास दोस्तों से फोन पर संपर्क किया, लेकिन अरुण के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. कुलदीप और नीतू रात भर जागते रहे और दरवाजे की तरफ टकटकी लगाए रहे.

सुबह हुई तो नीतू के अड़ोसपड़ोस वालों को भी जानकारी हुई कि अरुण बीती रात घर नहीं आया. पड़ोसियों ने नीतू को धैर्य बंधाया कि चिंता मत करो, अरुण जल्द ही घर वापस आ जाएगा, लेकिन नीतू को चैन कहां था. उस ने जेठ कुलदीप को साथ लिया और सुबह करीब 9 बजे थाना पनकी पहुंच गई.

थाने में उस समय एसएचओ अंजन कुमार सिंह मौजूद थे. नीतू ने उन्हें बताया कि वह पनकी कलां में अपने पति अरुण कुमार के साथ किराए के मकान में रहती है. उस के पति राजमिस्त्री हैं. कल दोपहर बाद किसी का फोन आने पर वह घर से चले गए थे. उस के बाद वापस घर नहीं आए. उसे किसी अनहोनी की आशंका है.

एसएचओ अंजन कुमार सिंह ने नीतू की बात गौर से सुनी. फिर शक के आधार पर अरुण की गुमशुदगी दर्ज कर ली तथा अरुण के बारे में कुछ खास जानकारी उस के भाई कुलदीप तथा नीतू से हासिल की. उन्होंने अरुण का मोबाइल फोन नंबर भी ले लिया. उस के बाद भरोसा दे कर नीतू को वापस घर भेज दिया.

अंजन कुमार सिंह ने अरुण की गुमशुदगी तो दर्ज कर ली, लेकिन उस का पता लगाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. इस की वजह यह थी कि अरुण कोई मासूम बच्चा तो था नहीं, जो उस के अपहरण की आशंका होती.

दूसरे वह राजमिस्त्री था. सोचा कि वह किसी अन्य राजमिस्त्री के घर जश्न में डूबा होगा. अकसर ऐसी दावतें होती रहती हैं. अरुण भी जश्न मना कर 1-2 दिन में अपने आप आ ही जाएगा.

लेकिन जब 2 दिन बीत जाने पर भी अरुण वापस घर नहीं आया तो पुलिस एक्टिव हुई. अंजन कुमार सिंह ने अरुण के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो एक ऐसा नंबर सामने आया, जिस पर अरुण अकसर बात करता था.

इस मोबाइल नंबर के बारे में जानकारी जुटाई गई तो पता चला कि यह नंबर कानपुर देहात जिले के थाना गजनेर के सपई गांव की युवती सीमा का है.

एसएचओ अंजन कुमार सिंह तब पुलिस टीम के साथ सपई गांव पहुंचे और सीमा से पूछताछ की. सीमा ने बताया कि वह राजमिस्त्री अरुण कुमार को जानती है. अरुण की उस के गांव में रिश्तेदारी है. रिश्तेदार के घर आतेजाते उस की मुलाकात अरुण से हुई थी. मुलाकातें दोस्ती में बदलीं, फिर दोस्ती प्यार में बदल गई.

प्यार परवान चढ़ा तो उन के बीच की दूरियां भी खत्म हो गईं और उन का शारीरिक रिश्ता बन गया. लेकिन उन के प्यार में दरार तब पड़ी, जब अरुण ने उसे धोखा दे कर किसी और लड़की से शादी रचा ली. शादी के बाद उस ने अरुण से दूरियां बना ली थीं.

‘‘लेकिन तुम्हारी फोन पर तो उस से बात होती रहती थी,’’ एसएचओ ने सीमा से पूछा.

‘‘हां सर, फोन पर बात होती रहती थी,’’ सीमा ने जवाब दिया.

‘‘16 जुलाई, 2022 की दोपहर बाद क्या तुम ने अरुण से बात की थी?’’ अंजन कुमार सिंह ने पूछा.

सीमा कुछ क्षण सोचती रही फिर बोली, ‘‘सर, उस रोज मैं ने तो अरुण से बात नहीं की थी, लेकिन संदीप कश्यप ने मेरे फोन से अरुण से बात की थी. वह उसे मकान का ठेका और एडवांस पैसे दिलाने की बात कर रहा था.’’

‘‘यह संदीप कौन है? उस ने तुम्हारे फोन से अरुण को फोन क्यों किया?’’

‘‘सर, संदीप इसी गांव का रहने वाला है. हमारी उस से दोस्ती है. कभीकभी वह उस से मिलने घर आ जाता है. उस दिन वह उस से मिलने घर आया था. तभी उस ने उस के फोन से अरुण से बात की थी. अरुण की दोस्ती संदीप से है. उस का संदीप के घर आनाजाना बना रहता है. लेकिन सर, अरुण के विषय में आप मुझ से क्यों पूछ रहे हैं?’’ सीमा बोली.

‘‘इसलिए कि अरुण को किसी ने फोन कर बुलाया. उस के बाद अरुण घर नहीं पहुंचा. उसी का पता हम लगा रहे हैं.’’ अंजन कुमार सिंह ने सीमा को बताया.

यह सुनते ही सीमा ने सिर पकड़ लिया. उस के मन में तरहतरह की आशंकाएं उमड़ने लगीं.

सीमा ने जो जानकारी दी थी, उस से एक बात साफ थी कि मामला अवैध रिश्तों का है. और अवैध रिश्तों में कुछ भी संभव है. अत: संदीप कश्यप पुलिस की निगाह में चढ़ा तो एसएचओ अंजन कुमार सिंह उस के घर जा पहुंचे.

वह पुलिस जीप से जैसे ही उतरे, वैसे ही चबूतरे पर बैठा एक युवक तेजी से भागा. पुलिस ने पीछा कर कुछ दूरी पर उसे दबोच लिया.

उस युवक ने अपना नाम अमित कुमार कश्यप उर्फ गुड्डू निवासी गांव सपई जनपद कानपुर देहात बताया. दबिश में संदीप कश्यप तो नहीं मिला, लेकिन शक होने पर पुलिस अमित उर्फ गुड्डू को पूछताछ के लिए थाना पनकी ले आई.

प्रेमिका का छलिया प्रेमी से इंतकाम – भाग 1

उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले का एक बड़ी आबादी वाला कस्बा है भोगांव. इसी भोगांव कस्बे के भीमनगर मोहल्ले में मोहरपाल सिंह सपरिवार रहते थे. उन के परिवार में पत्नी विमला के अलावा 2 बेटे नीरज, सूरज तथा एक बेटी दिव्या उर्फ अंजलि थी. मोहरपाल सिंह गल्ले का व्यापार करते थे. उसी व्यापार से वह परिवार का भरणपोषण करते थे. वह एक इज्जतदार व्यक्ति थे. उन की आर्थिक स्थिति मजबूत थी.

मोहरपाल सिंह तीनों बच्चों में दिव्या उर्फ अंजलि सब से छोटी थी. दिव्या गोरी, तीखे नाकनक्श और बड़ीबड़ी आंखों वाली खूबसूरत लड़की थी. जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही उस की शोखियां एवं चंचलता और बढ़ गई थी. उस ने नैशनल पोस्ट ग्रैजुएट कालेज से बीए की डिग्री हासिल कर ली थी. वह सरकारी नौकरी पाना चाहती थी. इस के लिए उस ने तैयारी भी शुरू कर दी थी.

लेकिन एक ग्रामीण कहावत है कि जब बेटी हुई सयानी, फिर पेटे नहीं समानी. मोहरपाल सिंह और उन की पत्नी विमला को भी जवान बेटी दिव्या उर्फ अंजलि की शादी की चिंता सताने लगी थी. वह उस के लिए घरवर ढूंढने लगे थे. कुछ समय बाद एक खास रिश्तेदार के माध्यम से उन्हें एक लड़का देशदीपक पसंद आ गया.

देशदीपक के पिता प्रमोद कुमार, फिरोजाबाद जिले के गांव दयापुर में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी शिवाला देवी के अलावा 2 बेटे देशराज व देशदीपक थे. वह बड़े काश्तकार थे.

बड़े बेटे देशराज की मौत हो चुकी थी. छोटा बेटा देशदीपक अभी कुंवारा था. वह बड़ा ही होनहार था. वर्ष 2018 में वह उत्तर प्रदेश पुलिस में सिपाही पद पर भरती हुआ था. हाथरस में प्रशिक्षण पाने के बाद 28 जनवरी, 2019 को उस की पहली तैनाती कानपुर के बिल्हौर थाने में हुई थी.

चूंकि प्रमोद कुमार की आर्थिक स्थिति मजबूत थी और उन का बेटा सरकारी मुलाजिम भी था. इसलिए मोहरपाल सिंह ने देशदीपक को अपनी बेटी दिव्या के लिए पसंद कर लिया. दिव्या और देशदीपक ने भी एकदूसरे को देख कर अपनी सहमति जता दी. उस के बाद 22 अप्रैल, 2022 को दिव्या उर्फ अंजलि का विवाह देशदीपक के साथ धूमधाम से हो गया.

नईनवेली दुलहन बन कर अंजलि ससुराल पहुंची तो खुशियां पैर में घुंघरू बांध कर छमछम कर नाचने लगीं. अंजलि हृष्टपुष्ट स्मार्ट पति पा कर जहां खुश थी, वहीं देशदीपक भी खूबसूरत बीवी पा कर अपने भाग्य पर इतरा उठा था. शिवाला देवी व प्रमोद कुमार भी सभ्य, सुशील व पढ़ीलिखी बहू पा कर खुश थे.

ग्रामीण परिवेश में नईनवेली दुलहन को मर्यादाओं में रहना पड़ता है. जैसे बड़ों के सामने घूंघट डाल कर जाना. नजरें झुका कर धीमी आवाज में बातें करना. झुक कर पैर छूना तथा पति से सब के सामने न बतियाना आदि. अंजलि भी इन मर्यादाओं का पालन करती थी. रात में तो वह अपने कमरे में पति से खुल कर बतियाती थी, लेकिन दिन में उसे सावधानी बरतनी पड़ती थी.

लगभग एक महीने तक अंजलि अपने पति देशदीपक के साथ खूब मौजमस्ती से रही, लेकिन उस के बाद पति की छुट्टियां खत्म हुईं तो वह वापस चला गया. तब अंजलि का दिन तो कामकाज में कट जाता था, लेकिन रात काटे नहीं कटती थी. हालांकि वह दिनरात में कई बार मोबाइल फोन पर पति से बात करती थी और पूछती थी, ‘तुम कहां हो? खाना खाया कि नहीं? अपने कमरे पर हो या ड्यूटी पर?’ पति रूम पर होता तो वह वीडियो कालिंग कर उस से घंटों बतियाती और रस भरी बातें करती.

देशदीपक बिल्हौर थाने से 500 मीटर की दूरी पर ब्रह्मनगर मोहल्ले में रेस्टोरेंट संचालक रमेशचंद्र प्रजापति के मकान में किराए पर रहता था. वह अपनी नईनवेली पत्नी से बहुत प्यार करता था. वह जब रूम पर होता तो वीडियो कालिंग कर उस से खूब बतियाता था.

बातचीत के दौरान अंजलि भावुक होती तो वह कहता, ‘‘अरे पगली, तू रोती क्यों है. जैसे ही छुट्टी मिलेगी, मैं तेरे पास आ जाऊंगा. तू परेशान मत हो.’’

हर रोज की तरह पहली जून, 2022 को भी अंजलि ने दोपहर साढ़े 12 बजे पति से फोन पर बात की और पूछा कि खाना अभी खाया या नहीं. इस पर उस ने जवाब दिया कि वह खाना खाने होटल पर जा रहा है. पति से बातचीत करने के बाद अंजलि घरेलू काम में व्यस्त हो गई.

शाम 3 बजे जब अंजलि आराम करने कमरे में पहुंची तो उस ने फिर से पति को काल लगाई लेकिन इस बार देशदीपक ने काल रिसीव नहीं की. कुछ देर बाद अंजलि ने फिर काल की तो फोन बंद होने का संदेश मिला. अंजलि ने सोचा कि शायद वह खाना खा कर सो गए होंगे और फोन स्विच औफ कर लिया होगा.

पलंग पर लेटी अंजलि कुछ देर करवटें बदलती रही. लेकिन जब उसे सुकून नहीं मिला तो उस ने फिर से मोबाइल फोन पर पति से संपर्क करने का प्रयास किया. पर वह असफल रही. पति का मोबाइल फोन इस बार भी बंद मिला.

अंजलि समझदार भी थी और धैर्यवान भी. लेकिन जब उस का धैर्य जवाब दे गया तो वह अपनी सास के कमरे में जा पहुंची और बोली, ‘‘मम्मी, मैं उन को कई बार काल कर चुकी हूं, लेकिन उन का फोन बंद है. मेरा तो जी घबरा रहा है.’’

सास शिवाला देवी बहू के सिर पर हाथ रख कर बोलीं, ‘‘धैर्य रखो बहू. पुलिस की नौकरी है. कहीं व्यस्त होगा. फोन बंद कर लिया होगा. तुम अच्छा सोचो. बुरे खयाल मन में मत लाओ.’’

शिवाला देवी ने बहू को धैर्य तो बंधा दिया था, लेकिन वह स्वयं भी घबरा गई थीं. शाम 5 बजे जब पति प्रमोद कुमार घर आए तो उन्होंने सारी बात उन्हें बताई. इस पर प्रमोद कुमार ने तुरंत बेटे को काल लगाई. लेकिन उस का फोन बंद था. अंजलि भी काल पर काल कर रही थी. पर सफलता नहीं मिल रही थी.

अब तो ज्योंज्यों समय बीतता जा रहा था, त्योंत्यों घर के लोगों की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं. रात 12 बजे तक प्रमोद कुमार 25-30 बार काल कर चुके थे. लेकिन हर बार एक ही संदेश मिल रहा था कि आप जिस नंबर से संपर्क करना चाहते हैं, वह स्विच्ड औफ या बंद है या फिर नेटवर्क एरिया से बाहर है.

प्रमोद कुमार के एक रिश्तेदार नीरज बाबू थे. वह बिल्हौर थाने में एसआई पद पर तैनात थे. सुबह 4 बजे उन्होंने नीरज बाबू के मोबाइल नंबर पर काल की. प्रमोद कुमार ने भर्राई आवाज में कहा, ‘‘नीरज बाबू, कल दोपहर बाद से देशदीपक से उस के मोबाइल फोन पर बात नहीं हो पा रही है. उस का फोन बंद है. आप पता करो कि वह कमरे पर है या नहीं. हम सब को घबराहट हो रही है.’’

‘‘आप चिंता न करें. हम अभी कमरे पर जा कर उस का पता लगाते हैं,’’ नीरज बाबू ने कहा.

2 जून, 2022 की सुबह 5 बजे एसआई नीरज बाबू एक सिपाही के साथ ब्रह्मनगर स्थित देशदीपक के रूम पर पहुंचे तो उस के कमरे के बाहर ताला लटक रहा था और अंदर कमरे में पंखा चलने की आवाज सुनाई दे रही थी. सिपाही रामवीर ने खिड़की से झांक कर देखा तो उस के मुंह से चीख निकल गई.

चारपाई पर सिपाही देशदीपक का खून से तरबतर शव पड़ा था. नीरज बाबू ने तत्काल सिपाही देशदीपक की हत्या की खबर उस के पिता प्रमोद कुमार तथा पुलिस महकमे को दी.

सिपाही देशदीपक की हत्या की खबर से पुलिस महकमे में सनसनी फैल गई. सूचना पाते ही बिल्हौर के थानाप्रभारी अरविंद कुमार सिंह तथा एसएसआई आलोक तिवारी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पहुंच गए. उन के पहुंचने के कुछ देर बाद ही एसपी (आउटर) तेजस्वरूप सिंह, डीएसपी राजेश कुमार तथा एडीजी (कानपुर जोन) भानु भास्कर भी आ गए.

डर के शिकंजे में : विनीता को क्यों देनी पड़ी जान – भाग 1

4जून, 2019 की बात है. उस समय सुबह के यही कोई 10 बजे थे. नवी मुंबई के उपनगर पनवेल के इलाके में सुकापुर-मेथर्न रोड पर स्थित वीरपार्क होटल के मैनेजर गणेशबाबू अपने केबिन में बैठे थे. तभी होटल के एक वेटर ने आ कर उन से जो कहा, उसे सुन कर वह चौंक उठे.

वेटर ने उन्हें बताया कि कमरा नंबर 104 के कस्टमर ने दरवाजा अंदर से बंद कर रखा है. वह दरवाजा नहीं खोल रहा, जबकि उस ने कई बार दरवाजा भी खटखटाया और आवाजें भी दीं.

कमरे के अंदर कस्टमर था और वह दरवाजा नहीं खोल रहा था, यह बात चौंकाने वाली थी. तभी मैनेजर को याद आया कि कमरा नंबर-104 के कस्टमर को तो अब तक चैकआउट कर देना चाहिए था. क्योंकि उस ने कमरा सिर्फ 12 घंटे के लिए बुक किया था. फिर ऐसा क्या हुआ कि उस ने न तो कमरा खाली किया और न ही कोई सूचना दी.

मैनेजर ने कमरे के इंटरकौम पर उस कस्टमर से संपर्क करने की कोशिश की. लेकिन कई बार कोशिश करने के बाद भी जब कस्टमर ने कमरे में रखा इंटरकौम नहीं उठाया तो वह परेशान हो गए और स्वयं उस वेटर को ले कर कमरा नंबर 104 के सामने जा पहुंचे. उन्होंने कई बार कमरे की घंटी बजाई. साथ ही आवाज दे कर भी कमरे के अंदर ठहरे कस्टमर की प्रतिक्रिया जानने की कोशिश की, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.

आखिरकार उन्होंने कमरे की मास्टर चाबी मंगा कर कमरे का दरवाजा खोला. लेकिन कमरे के अंदर का दृश्य देख कर उन के होश उड़ गए. कमरे में 2 लाशें थीं, उन में एक शव महिला का था जो बिस्तर पर था और दूसरा पुरुष का, जो पंखे से झूल रहा था.

मामला संगीन था, अत: उन्होंने बिना देर किए इस की जानकारी खांडेश्वर पुलिस थाने के प्रभारी नागेश मोरे को दे दी. मामला 2 लोगों की मौत का था, इसलिए थानाप्रभारी ने मामले की सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों के साथसाथ पुलिस कंट्रोल रूम को भी दे दी और इंसपेक्टर संदीप माने, वैभव लोटे और सहायक महिला पुलिस इंसपेक्टर सुप्रिया फड़तरे को साथ ले कर घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए.

जब तक पुलिस होटल वीरपार्क पहुंची तब तक होटल के कर्मचारी और वहां ठहरे कस्टमर कमरे के बाहर जमा हो चुके थे. होटल के मैनेजर गणेशबाबू ने थानाप्रभारी को बताया कि यह जोड़ा शाम के करीब 8 बजे आया था और सुबह 8 बजे तक उन्हें कमरा खाली कर देना था, मगर ऐसा नहीं हुआ. 2 घंटे और निकल जाने के बाद जब होटल के वेटर ने दरवाजा खटखटाया तो कोई जवाब नहीं मिला. मास्टर चाबी से दरवाजा खोला तो दोनों इसी अवस्था में मिले.

इस के बाद पुलिस कमरे के अंदर गई. पूरे कमरे का सरसरी तौर पर निरीक्षण किया. पुलिस ने मृत व्यक्ति के शव को पंखे से नीचे उतारा. पहले तो उन्हें लगा कि दोनों ने ही आत्महत्या की होगी, लेकिन जब दोनों शवों की बारीकी से जांच की तो मामले की हकीकत कुछ और ही निकली.

दोनों लाशें हत्या और आत्महत्या की तरफ इशारा कर रही थीं. महिला की उम्र यही कोई 30-32 साल के आसपास थी, जबकि पुरुष की उम्र 45-50 के करीब थी. महिला का चेहरा झुलसा हुआ था और गले पर निशान था.

होटल का रजिस्टर चैक करने पर पता चला कि महिला का नाम वनिता चव्हाण और पुरुष का नाम रावसाहेब दुसिंग था. आमतौर पर ऐसे लोग अपना नामपता सही नहीं लिखवाते, लेकिन होटल के मैनेजर ने बताया कि उन की आईडी में भी यही नाम है.

इस के बाद पुलिस ने आईडी ले कर उन के परिवार वालों को मामले की जानकारी दे दी.

उसी दौरान नवी मुंबई के डीसीपी अशोक दुधे और एसीपी रवि गिड्डे भी घटनास्थल पर पहुंच गए. उन के साथ क्राइम ब्रांच और फोरैंसिक टीम भी थी. फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल पर सबूत जुटाने शुरू कर दिए. टीम का काम खत्म होने के बाद पुलिस ने घटनास्थल की बारीकी से जांच की.

कमरे में नायलौन की रस्सी के अलावा 2 बोतल पैट्रोल और एक लीटर किसी कैमिकल का खाली डब्बा मिला.

रावसाहेब ने नायलौन की रस्सी में पंखे से लटक कर आत्महत्या की थी. जबकि कैमिकल का उपयोग वनिता का चेहरा झुलसाने में किया गया था. लेकिन ये लोग पैट्रोल क्यों ले कर आए थे, यह पता नहीं चला. पुलिस यही मान रही थी कि रावसाहेब शायद अपनी साथी महिला की हत्या कर सबूत नष्ट करना चाहता होगा, लेकिन उसे इस का मौका नहीं मिला था.

पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई पूरी करने के बाद दोनों शव पोस्टमार्टम के लिए पनवेल के रूरल अस्पताल भेज दिए. अब तक इस मामले की खबर मृतकों के परिवार वालों को मिल चुकी थी. वे रोतेबिखलते खांडेश्वर थाने पहुंच गए.

थानाप्रभारी ने अस्पताल ले जा कर दोनों शव दिखाए तो उन्होंने उन की शिनाख्त कर ली. बाद में पोस्टमार्टम होने पर शव घर वालों को सौंप दिए गए.

दोनों मृतकों के परिजनों से की गई पूछताछ और जांच के बाद मामले की जो कहानी सामने आई, उस का सार कुछ इस प्रकार था—

वनिता चव्हाण सुंदर व महत्त्वाकांक्षी महिला थी. उस का पुश्तैनी घर महाराष्ट्र के जनपद बीड़ के एक छोटे से गांव में था. मगर उस का परिवार रोजीरोटी की तलाश में मुंबई के उपनगर चैंबूर वाशी में आ कर बस गया था.

वनिता का बचपन मुंबई के खुशनुमा माहौल में बीता था. उस की शिक्षादीक्षा सब मुंबई में ही हुई थी. उस के पिता की मृत्यु हो गई थी. घर में बड़ा भाई और मां थी. घर की पूरी जिम्मेदारी उस के बड़े भाई के कंधों पर थी. इसीलिए भाई ने सोचा कि वह पहले बहन वनिता की शादी करेगा. उस के बाद अपने विषय में सोचेगा.

चाहत का वो अंधेरा मोड़ – भाग 1

राजस्थान के जिला हनुमानगढ़ के गांव बड़ोपल का रहने वाला युवा राजेंद्र बावरी बीते 3-4 साल से फोटोग्राफर का काम कर रहा था. हालांकि उस के नैननक्श साधारण थे, पर उस की व्यावहारिकता, बौडी लैंग्वेज व खिलखिला कर हंसने की आदत उसे निखरानिखरा रूप देती थी.

राजेंद्र ने माणकथेड़ी गांव में फोटोग्राफी की दुकान खोल रखी थी, पर वह मोबाइल फोटोग्राफी को ज्यादा पसंद करता था. रंगीन तबीयत का धनी राजेंद्र विपरीत लिंगी को पहली मुलाकात में ही दोस्त बना लेता था. शादियों में उस के पास एडवांस बुकिंग रहती थी.

अक्तूबर 2021 में राजेंद्र बावरी नजदीक के एक गांव में विवाह समारोह की फोटो कवरेज के लिए आया हुआ था. वधू वक्ष से जानपहचान व सजातीय होने के कारण राजेंद्र बेहिचक कैमरा उठाए अंदरबाहर आजा रहा था. बारात दरवाजे पर पहुंच चुकी थी.

रिबन कटाई की रस्म होने को थी. गले में कैमरा लटकाए राजेंद्र ने एक स्टूल पर खड़े हो कर अपनी पोजीशन ले ली थी. घोड़ी से उतर कर दूल्हा मुख्य दरवाजे पर पहुंच चुका था. अंदर से वधू के परिजन महिलाओं व सहेलियों का समूह भी दरवाजे पर आ जुटा था.

प्लेट में कैंची ले कर आई युवती के चेहरे पर टपक रहे नूर व लावण्य को देखते ही राजेंद्र सुधबुध खो बैठा. क्रीम कलर के प्लाजो सूट (गरारा शरारा) में सजधज के वहां पहुंची युवती का गेहुंआ रंग भी दमक रहा था.

राजेंद्र ने महसूस किया कि युवती पर पड़ने वाली फ्लैश लाइट दोगुनी रिफ्लेक्ट हो रही थी. युवती की मांग भरी हुई थी. कैमरे के क्लिक स्विच पर गई राजेंद्र की अंगुली एकबारगी रुक सी गई थी. महिलाओं का झुंड लंबाचौड़ा था. पर राजेंद्र के कैमरे के फोकस में वही युवती बारबार आ रही थी.

युवती ने फ्लैश की बौछारों को महसूस कर लिया था. रिबन कटाई रस्म संपन्न होते ही युवतियां आंगन में लौट गईं.

स्टूल से उतर कर राजेंद्र भी कैमरा उठाए आंगन की तरफ बढ़ा चला था. बाहर डीजे पर ‘जादूगर सैयां, छोड़ मेरी बहियां…’ गाना वातावरण में मादकता बढ़ा रहा था. सामने आ रही युवती को देखते ही राजेंद्र का चेहरा दमक उठा था और अंगुली क्लिक कर चुकी थी. फ्लैश के प्रकाश में नहाई युवती मुड़ी और उस के सामने आ कर प्रश्न दाग दिया, ‘‘आप ने मेरी फोटो क्यों खींची?’’

‘‘मैडम, दिल के हाथों मजबूर हो गया था,’’ राजेंद्र ने कहा.

‘‘अपने दिल व दिमाग को काबू रखो. आप का दिल तो मेरा मोबाइल नंबर भी मांग सकता है. अगर ऐसा किया तो सीखचों के पीछे भिजवा दूंगी, समझे?’’ बनावटी गुस्सा जाहिर करते हुए युवती ने कहा.

राजेंद्र भी कहां चूकने वाला था. जेब से कलम निकाल कर अपनी हथेली आगे करते हुए कहा, ‘‘बंदे को राजेंद्र कहते हैं. प्यार से लोग मुझे राजू कहते हैं. मैं माणकथेड़ी में दुकान करता हूं. प्लीज, नंबर लिख दो. दिल नंबर के लिए बेकाबू हो रहा है.’’

माणकथेड़ी का नाम सुनते ही चेहरे पर चौंकने वाले भावों के साथ खुशी दमक उठी थी. युवती ने फुरती से कलम पकड़ कर अपना नंबर राजेंद्र की हथेली पर लिख दिया.

‘‘यह नंबर हथेली पर नहीं, अब दिल में छप गया है.’’ राजेंद्र मुसकराते हुए बोला.

‘‘सिर्फ नंबर या मैं भी… मैं माणकथेड़ी की बहू हूं.’’ कह कर युवती आंगन में लौट गई.

एकांत में हुए इस वार्तालाप व संक्षिप्त मुलाकात ने दोनों के दिलोदिमाग में खुशी की हिलोरें भर दी थीं.

शादी संपन्न होते ही राजेंद्र माणकथेड़ी लौट आया था. उसी शाम राजेंद्र ने युवती को वीडियो काल लगा दी. अंजान नंबर को देखते ही युवती ने काल रिसीव कर ली. वह बोली, ‘‘राजेंद्र बाबू, अभी बिजी हूं. रात के 10 बजे मैं आप को काल करूंगी.’’

कहने के साथ ही युवती ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

राजेंद्र व युवती ने एकदूसरे के नंबर दिल में उतारने के साथ ही दोस्त व सहेली के फरजी नाम से सेव कर लिए थे. राजेंद्र अपने फन में माहिर था. वहीं युवती भी इस फन में इक्कीस थी.

2 अंजान युवकयुवती एक संक्षिप्त मुलाकात के बाद घनिष्ठता के बंधन में बंध चुके थे. 2 दिन बाद युवती भी माणकथेड़ी लौट आई थी.

युवती का नाम गोपी (काल्पनिक) था. वह रावतसर तहसील के गांव 12 डीडब्ल्यूडी निवासी सोहनलाल की बेटी थी और इसी साल उस की माणकथेड़ी के धोलूराम बावरी से शादी हुई थी. मैट्रिक पास गोपी के ख्वाब ऊंचे थे.

अपने किए वादे के अनुसार, रात के 10 बजे गोपी ने राजेंद्र को फोन किया. दोनों मोबाइल पर लंबे समय तक बतियाते रहे, ‘‘गोपी, तुम्हें विधाता ने मेरे लिए बनाया था पर उस से कहीं चूक रह गई होगी, जिस से तुम धोलू के पल्ले बंध गई.’’

राजेंद्र ने कहा तो गोपी के तनमन के तार झनझना उठे थे. उस की चुप्पी को पढ़ते हुए राजेंद्र ने कहा, ‘‘देखो गोपी, मैं तुम्हारा कान्हा तो नहीं पर कान्हा से कम भी नहीं रहूंगा.’’

‘‘देखो राजू, शादीब्याह तो किस्मत के तय किए होते हैं. प्रेम प्रणय को बुलंदियां देना तो प्रेमियों के ही हाथों में होता है.’’ गोपी ने राजेंद्र के सामने जैसे दिल खोल कर रख दिया था. आखिरी कथन ने दोनों प्रेमियों के भविष्य की मंजिल तय कर दी थी. गोपी ने यह भी बता दिया था कि वह रात के 10 बजे के बाद ही फोन कर पाएगी.

राजेंद्र की दुकान पनघट के रास्ते में थी. पानी लाने या अन्य किसी बहाने गोपी राजेंद्र के दीदार कर लेती थी. घूंघट प्रथा सख्त होने के बावजूद गोपी चोरीछिपे अपना चेहरा राजेंद्र को दिखा देती थी.

मोहब्बत पर भारी पड़ी सियासत – भाग 1

पटना में हिंदुस्तान अखबार के दफ्तर से लौटते वक्त शाम को विशाल कुमार सिन्हा कुछ ज्यादा ही थकामांदा महसूस कर रहा था. उस का दिमाग एक रिपोर्टिंग के सिलसिले में बुरी तरह से

भन्ना गया था. राजनीति और सत्ता की आड़ में अवैध काम की एक खबर से वह पिछले 4-5 दिनों से तिलमिलाया हुआ था. उस से भी अधिक बेचैनी उस खबर को रोकने के लिए पड़ने वाले दबाव को ले कर थी, जो एक खास करीबी के खिलाफ थी.

इस कारण मानसिक तौर पर बेहद थक चुका था. दिमाग में अस्थिरता थी. अलगअलग बातें एकदूसरे पर हावी होने को बेचैन थीं. वैसे वह जब भी इस हालत में होता था, तब अकसर पुराने फिल्मी गाने सुन लिया करता था.

विशाल की यह स्थिति बात जुलाई की है. उस रोज भी उस ने अपनी दिमागी थकान को दूर करने के लिए कान में लीड लगा ली थी. मोबाइल के म्यूजिक स्टोर से वह अपने मनपसंद गाने सर्च करने लगा था. पसंद का वही गाना मिल गया था, जिसे कई बार सुन चुका था, ‘न सिर झुका के जिओ, न मुंह छुपा के जिओ!’

महेंद्र कपूर के इस गाने से उस का मूड थोड़ा बदल चुका था. उस गाने के खत्म होते ही मोहम्मद रफी का गाना बज उठा, ‘मतलब निकल गया है तो पहचानते नहीं…यूं जा रहे हैं ऐसे कि जानते नहीं…’

इस गाने ने उस के दिमाग में एक बार फिर से हलचल पैदा कर दी थी. उस के दिमाग में अचानक अपनी मकान मालकिन वंदना सिंह की तसवीर उभर गई. वह चौंक गया. उस से जुड़ी हालफिलहाल की कुछ बातें और पुरानी यादें एकदूसरे से टकराने लगीं. वह गानों को भूल कर उस के बारे में सोचने लगा.

वह कह रही थी, ‘दम है तो कर के दिखाओ… यह लो मेरा रिवौल्वर. अगर तुम ने वह कर दिखाया, तब समझूंगी कि तुम कितने दमखम वाले हो. अपने वादे पर चलने वाले हो.’

इन बातों के दिमाग में घूमते ही विशाल के चेहरे का रंग बदलने लगा. दिमाग में गाने के बोल ‘मतलब निकल गया है तो…’ भी वंदना के चेहरे, बंदूक और उस की मोहक अदाओं के साथ घूमने लगे थे.

खैर, घर देर शाम विशाल खगौल स्थित किराए के मकान में पहुंचा. सीधा अपने कमरे में चला गया.

घर पर रक्षाबंधन त्यौहार को ले कर इकलौती बहन वैशाली भी ससुराल से आई हुई थी. विशाल के कमरे में पानी का गिलास ले कर गई. भाई का उतरा हुआ चेहरा देख पूछ बैठी, ‘‘क्या हुआ भैया? कुछ परेशान दिख रहे हो?’’

‘‘नहींनहीं, कुछ नहीं. रास्ते में बहुत जाम था न,’’ विशाल कतराता हुआ बोला.

‘‘नहीं भैया, तुम्हारी सूरत तो कुछ और बता रही है. उस चुड़ैल के साथ कुछ बात हुई क्या?’’ वैशाली ने उस के मन को कुरेदने की कोशिश की.

‘‘नहीं तो. कई दिनों से उस से कोई बात नहीं हुई,’’ विशाल बोला.

‘‘थोड़ी देर पहले ही उस की बहन का बेटा आया था. कुछ सामान दे गया है. पैक्ड है. सिर्फ तुम्हें ही देने को बोला है.’’ वैशाली बोली.

‘‘पैक्ड है…’’ विशाल चौंकता हुआ बोला. फिर मन में सोचने लगा, ‘‘क्या हो सकता है उस में…’’

‘‘हां, वहां रखा है तुम्हारे कंप्यूटर टेबल पर, प्रिंटर के बगल में…’’ यह कहती हुई वैशाली पानी का गिलास रख कर चली गई.

उस के जाने के बाद विशाल पानी पीने लगा. गिलास उसी टेबल पर रखने गया, जहां पैकेट काली पौलीथिन में रखा था. उसे बाहर निकाल कर पैकेट को टटोलने लगा, ‘क्या हो सकता है?’

उसे ले कर मन में कई विचार आ रहे थे. फिर न जाने क्या हुआ जो उस ने पैकेट खोले बगैर पौलीथिन में ही रख दिया. कुछ समय में ही वैशाली ने आवाज लगाई, ‘‘भैया, खाना खाने आ जाओ.’’

‘‘अभी आया,’’ कहता हुआ वह कमरे से निकल कर रसोई से सटे डायनिंग टेबल लगे कमरे में चला गया. वहां परिवार के दूसरे लोग पहले से बैठे थे.

वह जदयू नेता थी. इलाके के लोगों से ले कर सत्ता के गलियारे तक में वह अच्छी पकड़ बनाए हुए थी. विधवा थी. उस के किशोर उम्र के बच्चे भी थे.

बनठन कर रहती थी. रौब से दंबगई अंदाज में घूमतीफिरती थी. बौडीगार्ड के रूप में उस के परिवार का कोई न कोई सदस्य हमेशा उस के साथ रहता था. कभी भाई, तो कभी कोई और…

बिहार के प्रतिष्ठित अखबार के पत्रकार होने के नाते वह विशाल और उस के परिवार की करीबी बनी रहती थी, किंतु पिछले कई हफ्ते से उन के बीच किसी बात को ले कर मतभेद हो गया था. जिस कारण विशाल मानसिक तनाव में चल रहा था.

दरअसल, एक रोज वंदना सिंह अपने भाई मिथलेश सिंह, अभिषेक सिंह, अपनी मां और बेटे के साथ घर पर आई थी. सभी ने विशाल को रास्ते से हटाने की बात कहते हुए धमकी दी थी. उन लोगों की धमकी के बाद से परिवार के दूसरे लोग तनाव में आ गए थे. वे परेशान रहने लगे थे. अनहोनी की आशंका उन के मन को खाए जा रही थी.

उस रोज खाने के टेबल पर घर के सभी सदस्यों ने चुपचाप खाना खाया और अपनेअपने कमरे में चले गए. विशाल उन की चुप्पी का मतलब अच्छी तरह से समझ रहा था. उसे वंदना का रिश्तेदार एक पैकेट दे गया था, इस कारण परिवार में सभी को लग रहा था कि विशाल ने उन के सलाह की उपेक्षा कर दी है. वंदना गिफ्ट दे कर अपने झांसे में लेना चाहती है.

कहीं पे निगाहें, कही पे निशाना – भाग 1

पहली अगस्त, 2022 को शाम के करीब 6 बजे का समय था. रामपुर जिले के गांव जालिफ नगला की रहने वाली आसिफा और उन की बेटी फायजा ही उस समय घर पर थी. उस दिन फायजा का दोस्त हसन भी उस से मिलने आया हुआ था. इसलिए वह उसी के साथ बैठी थी. थोड़ी देर पहले ही उस ने हसन को चायनाश्ता कराया था. हसन अकसर फायजा से मिलने आता रहता था. उसी समय आसिफा को कोई काम याद आया तो वह दूसरी मंजिल पर चली गई.

वहां जाते ही आसिफा अपने काम में लग गई. आसिफा को काम में लगे कोई आधा घंटा हुआ था, तभी नीचे से फायजा के चीखने की आवाज आई. बेटी के चीखने की आवाज सुनते ही आसिफा पागलों की तरह नीचे की ओर दौड़ी. नीचे आने के बाद उस ने जो मंजर देखा, उसे देखते ही उस की भी चीख निकल गई.

हसन के हाथ में चाकू था. वह उसी चाकू से फायजा पर बेरहमी से वार कर रहा था. चाकू के अनगिनत वार से फायजा के सारे कपड़े खून से तरबतर हो गए थे. बेटी की हालत देख आसिफा ने हसन के हाथ से चाकू छीनने की कोशिश की. लेकिन हसन उन्हें धक्का दे कर भाग गया. उस ने कभी सोचा भी नहीं था कि जो हसन उस की बेटी को जी जान से चाहता है, आज वही उस की जान का दुश्मन बन जाएगा.

हसन के घर से भागते ही आसिफा ने फायजा को संभालने की कोशिश की. लेकिन अधिक खून निकल जाने के कारण वह बेहोश हो गई थी. जब आसिफा को लगा कि फायजा की जान खतरे में है तो उस ने घर के बाहर आ कर सहायता के लिए जोरजोर से चिल्लाना शुरू किया.

अचानक आसिफा के रोनेचिल्लाने की आवाज सुन कर पड़ोसी उस के घर पर जमा हो गए थे. आसिफा ने तभी इस की सूचना अपने पति नन्हे को दी. घर पहुंच कर नन्हे ने गांव वालों की सहायता से बेटी को किसी तरह से अस्पताल पहुंचाया.

लेकिन अस्पताल में डाक्टरों ने उसे देखते ही मृत घोषित कर दिया था. उस के बाद उस के घर वाले शव ले कर घर चले आए थे. फायजा के शव को घर लाते ही गांव वालों ने इस की सूचना थाना मिलक पुलिस को दे दी.

कुछ ही देर में एसएचओ सत्येंद्र कुमार सिंह नन्हे के घर पहुंच गए. पुलिस ने घर वालों से घटना के बारे में पूछताछ की. मृतका फायजा की अब्बू और अम्मी ने पुलिस को बताया कि उत्तराखंड के सितारगंज निवासी हसन के साथ फायजा की गहरी दोस्ती थी. उसी दोस्ती के कारण हसन अकसर उन के घर फायजा से मिलने आताजाता रहता था.

आज भी वह उस से मिलने आया हुआ था. उसी दौरान उस ने उस की हत्या कर दी. हसन ने फायजा की हत्या क्यों की, यह उन की समझ में भी नहीं आ रहा.

इस से यह तो साफ हो ही गया था कि हत्यारा हसन ही होगा, क्योंकि उस के बाद वह वहां से फरार भी हो गया था. इस के बावजूद भी पुलिस इस हत्याकांड को ले कर जल्दबाजी में कोई ठोस निर्णय नहीं लेना चाहती थी.

क्योंकि ऐसे मामलों में कई बार प्रेम संबंधों के कारण औनर किलिंग का मामला भी निकल आता है. यही सोच कर पुलिस ने फायजा के घर की बारीकी से जांचपड़ताल की. फायजा के शरीर पर चाकुओं के गहरे घाव थे. पुलिस ने नन्हे के घर की हर जगह जांचपड़ताल की. जिस से साफ जानकारी मिली कि हसन

द्वारा हमला करने के दौरान फायजा

अपने बचाव के कारण इधरउधर भागी थी, जिस के कारण पूरे घर में खून पड़ा हुआ था.

फायजा के घर वालों के अनुसार, उन दोनों के बीच काफी समय से प्रेम संबंध चला आ रहा था. दोनों अलगअलग क्षेत्रों में रहते थे. इसी कारण उन के बीच मोबाइल पर भी बात होती होगी. यही सोच कर पुलिस ने फायजा का मोबाइल मांगा तो उस के घर वालों ने बताया कि हत्या के बाद से ही उस का मोबाइल नहीं मिल रहा. इन दोनों के बीच की सच्चाई जानने के लिए मोबाइल का मिलना जरूरी था.

फायजा के घर वालों के साथ पुलिस ने भी उस के मोबाइल को इधरउधर तलाशने की कोशिश की, लेकिन वह कहीं भी न मिल सका.

इस घटना की सूचना पाते ही एडिशनल एसपी डा. संसार सिंह और सीओ धर्म सिंह मार्छाल भी मौके पर पहुंच गए थे. दोनों ने नन्हे के घर पहुंचते ही उन से घटना की सारी जानकारी जुटाई. मृतका के मोबाइल से पुलिस को केस से संबंधित जानकारी मिल सकती थी, इसलिए पुलिस को जब उस का मोबाइल फोन नहीं मिला तो उस नंबर पर काल लगाने की कोशिश की तो वह बंद आ रहा था.

एकबारगी तो पुलिस को शक हुआ कि शायद हसन ही उस का मोबाइल अपने साथ ले गया होगा. लेकिन फिर भी पुलिस ने मोबाइल का पता लगाने के लिए डौग स्क्वायड टीम को मौके पर बुला लिया.

मृतका के शव को सुंघा कर उसे छोड़ा गया तो उस की सहायता से मोबाइल उसी कमरे के एक कोने में पड़े कपड़ों के नीचे मिल गया. फायजा का मोबाइल मिलते ही पुलिस ने उस की काल डिटेल्स निकाली तो उस के मोबाइल पर ऐसे 2 नंबर मिले, जिन पर वह रातदिन कईकई बार  बात करती थी. इन में एक नंबर हसन का था और दूसरा लखनऊ निवासी किसी अन्य युवक का.

तनु की त्रासदी : जिस्म की चाहत ने पहुंचा दिया मौत के पास – भाग 1

24 साल की तनु का रंग हालांकि बहुत साफ नहीं था, लेकिन कुदरत ने उसे कुछ इस तरह गढ़ा था कि जो भी उसे देखता, एक ठंडी आह भरने से खुद को रोक नहीं पाता था. सांवले सौंदर्य की मालकिन तनु के जिस्म की कसावट और फिगर देख मनचले गहरी सांसें लेते हुए फिकरे कसते थे तो खुद को शरीफजादा कहलाने और दिखलाने वाले भी उस की खिलती जवानी का नेत्रपान चोरीछिपी ही सही, करते जरूर थे.

किसी भी लड़की की छवि ऐसी जैसी कि ऊपर बताई गई है, यूं ही नहीं मन जाती, बल्कि इस में खुद उस के स्वभाव का भी बड़ा हाथ होता है. तनु खुले स्वभाव की लगभग उच्छृंखल युवती थी, जो किसी बंधन में नहीं बंधतीं. लेकिन एक ऐसे मजबूत सहारे की जरूरत उसे हमेशा महसूस होती रहती थी, जो उसे दुनियाजहान की दुश्वारियों से महफूज रखे.

आमतौर पर तनु जैसी महत्त्वाकांक्षी युवतियां जो सपने देखती हैं, उन्हें किसी भी शर्त पर या कोई भी जोखिम उठा कर पूरे करना भी जानती हैं. पर इस के लिए जो कीमत उन्हें चुकानी पड़ती है, वह कभीकभी इतनी भारी पड़ जाती है कि सौदा अंतत: उनके लिए घाटे का साबित होता है. तब उन के पास हाथ मलने और अपनी नादानियों पर पछताने के सिवाय कुछ भी नहीं रह जाता. जिंदगी को कुछ इसी तरह हलके में लेने की कीमत तनु ने कैसे चुकाई, यह जानने से पहले तनु के बारे में जान लेना जरूरी है.

इंदौर के गोयलनगर स्थित अड़ोसपड़ोस अपार्टमेंट में रहने वाली तनु राजौरिया की उम्र तब महज 11 साल थी, जब उस की मां का निधन हो गया था. इस उम्र में लड़कियां शारीरिक और मानसिक बदलावों के दौर से गुजरते हुए तनाव में रहती हैं. ऐसे में मां की कमी उन्हें और असुरक्षित बना देती है. यही तनु के साथ भी हुआ.

तनु के पिता श्याम सिंह राठौर ने दूसरी शादी नहीं की. लेकिन इस बात का अंदाजा उन्हें था कि इस उम्र की बेटी की परवरिश कर पाना उन के लिए आसान नहीं है. लिहाजा उन्होंने उसे अपनी साली यानी तनु की मौसी अनीता के पास भेज दिया. अनीता श्याम सिंह की इस उम्मीद पर खरी उतरीं कि सौतेली मां से बेहतर सगी मौसी होती है.

तनु को पालनेपोसने में अनीता ने न कोई कसर रखी, न भेदभाव किया. लेकिन तनु जैसेजैसे बड़ी होती गई, वैसेवैसे अपनी मरजी की मालकिन होती गई. अनीता ने तो अपनी तरफ से पूरी कोशिश की थी कि अपनी दिवंगत बहन की बेटी को बेहतर संस्कार दें, पर जवान होती तनु के सपने आम लड़कियों से कुछ हट कर थे. मौसी के घर कौशल्यापुरी में तनु ने जवानी में कदम रखा तो उस के इर्दगिर्द लड़कों की भीड़ जमा होने लगी.

तनु हर किसी को भले घास नहीं डालती थी, लेकिन उस की खूबसूरती के चर्चे हर कहीं होने लगे थे. वजह थी एक छरहरी युवती का भरे मांसल बदन का होना, उस की लंबी नाक और बड़ीबड़ी आंखें और पतले होंठों पर पसरी एक शोख मुसकराहट किसी का भी दिल धड़का देने के लिए काफी थी.

हालत यह थी कि मोहल्ले का हर लड़का तनु की नजदीकियां पाने को बेताब रहने लगा. लेकिन कोई भी तनु के तयशुदा पैमानों पर खरा नहीं उतर रहा था. उसे जो बातें अपने सपने के हीरो में चाहिए थीं, वे आखिरकार उसे दिखीं चंदन राजौरिया में.

चंदन कांग्रेस का छोटामोटा नेता और पेशे से प्रौपर्टी ब्रोकर था. वह दबंग भी था, जिस से दूसरे लड़के उस से खौफ खाते थे. 2-4 मुलाकातों में ही तनु ने उसे और उस ने तनु को दिल दे दिया. आजकल की लड़कियों को जैसे लड़के भाते हैं, चंदन ठीक वैसा ही था. माशूका का खयाल रखने वाला, उस पर पैसे लुटाने वाला और सजसंवर कर रहने वाला. लच्छेदार बातों और वादों में भी वह माहिर था.

तनु अब हवा में उड़ने लगी थी, पर उस की शुरू होती प्रेमकथा के किस्से शायद उड़तेउड़ते पिता श्याम सिंह के कानों तक पहुंच गए थे, इसलिए उन्होंने बेटी की शादी अहमदाबाद के एक तेल, गुड़ व्यापारी से न केवल तय कर दी, बल्कि कर भी दी. तनु और चंदन प्यार के रास्ते पर अभी इतने दूर नहीं पहुंचे थे कि वापस न लौट पाएं. तनु शादी कर के अहमदाबाद चली गई तो चंदन अपनी नेतागिरी और प्रौपर्टी डीलिंग के छोटेमोटे कामों में लग गया. पर दोनों ही एकदूसरे को भूल नहीं पाए.

ससुराल में तनु का मन नहीं लगा. वजह जैसी जिंदगी और पति उसे चाहिए था, वह उसे नहीं मिला. दुकानदार पति सुबह दुकान पर चला जाता तो देर रात को लौटता था. अकेली वह खीझ उठती. तनु के लिए शादीशुदा जिंदगी के मायने होटलिंग, शौपिंग और मौजमस्ती भर थे, जो पूरे नहीं हुए तो वह पति से बातबात पर कलह करने लगी. इस से जल्दी ही दांपत्य टूटने की कगार पर आ पहुंचा. यही वह चाहती भी थी, लेकिन इस की वजह कुछ और थी.

वजह था उस का पूर्व प्रेमी चंदन राजौरिया. शादी के बाद पहली बार विदा हो कर तनु मायके इंदौर आई तो चंदन से सामना होने पर दबा प्यार जाग उठा. कहां वह बोर दुकानदार पति और कहां यह बिंदास चंदन.

चालाक चंदन ने जल्दी ही तनु की इस कशमकश भांप ली और उस की गदराई जवानी हासिल करने का उसे यह सुनहरा मौका लगा. लिहाजा पहले तो उस ने तनु की ख्वाहिशों को हवा दी और फिर उन्हें पूरा करने के लिए शादी की पेशकश कर डाली.

तनु के लिए तो यह अंधा क्या चाहे, दो आंखें जैसी बात थी. पर चंदन से शादी करने के लिए जरूरी था पति से तलाक हो, जो आजकल खासतौर से नई पत्नियों के लिए मुश्किल काम नहीं है. तनु दोबारा अहमदाबाद गई तो चंदन के प्यार में महक रही थी. उस ने पति से की जाने वाली कलह की तादाद बढ़ा दी. फलस्वरूप तलाक मांगा तो पति को भी मानो मुंहमांगी मुराद मिल गई. क्योंकि वह तनु की बेहूदा हरकतों और रोजरोज की कलह से आजिज आ चुका था.

तलाक के बाबत तनु ने पति से 5 लाख रुपए मांगे तो उस ने खुशीखुशी दे कर पत्नी से छुटकारा पा लिया. तनु इंदौर वापस आई तो चंदन और उस की मां शादी के लिए तैयार बैठे थे. पति से लिए 5 लाख रुपए उस ने चंदन को दे दिए. कुछ दिनों बाद चंदन ने वादा निभाते हुए उस से शादी कर ली. चंदन की मां राजकुमारी से उस की अच्छी पटरी बैठती थी.

ब्लैकमेलिंग का साइड इफेक्ट

‘‘रजनी, क्या बात है आजकल तुम कुछ बदलीबदली सी लग रही हो. पहले की तरह बात भी नहीं करती.

मिलने की बात करो तो बहाने बनाती हो. फोन करो तो ठीक से बात भी नहीं करतीं. कहीं हमारे बीच कोई और तो नहीं आ गया.’’ कमल ने अपनी प्रेमिका रजनी से शिकायती लहजे में कहा तो रजनी ने जवाब दिया, ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है, मेरे जीवन में तुम्हारे अलावा कोई और आ भी नहीं सकता.’’

रजनी और कमल लखनऊ जिले के थाना निगोहां क्षेत्र के गांव अहिनवार के रहने वाले थे. दोनों का काफी दिनों से प्रेम संबंध चल रहा था.

‘‘रजनी, फिर भी मुझे लग रहा है कि तुम मुझ से कुछ छिपा रही हो. देखो, तुम्हें किसी से भी डरने की जरूरत नहीं है. कोई बात हो तो मुझे बताओ. हो सकता है, मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकूं.’’ कमल ने रजनी को भरोसा देते हुए कहा.

‘‘कमल, मैं ने तुम्हें बताया नहीं, पर एक दिन हम दोनों को हमारे फूफा गंगासागर ने देख लिया था.’’ रजनी ने बताया.

‘‘अच्छा, उन्होंने घर वालों को तो नहीं बताया?’’ कमल ने चिंतित होते हुए कहा.

‘‘अभी तो उन्होंने नहीं बताया, पर बात छिपाने की कीमत मांग रहे हैं.’’ रजनी बोली.

‘‘कितने पैसे चाहिए उन्हें?’’ कमल ने पूछा.

‘‘नहीं, पैसे नहीं बल्कि एक बार मेरे साथ सोना चाहते हैं. वह धमकी दे रहे हैं कि अगर उन की बात नहीं मानी तो वह मेरे घर में पूरी बात बता कर मुझे घर से निकलवा देंगे.’’ रजनी के चेहरे पर चिंता के बादल छाए हुए थे.

‘‘तुम चिंता मत करो, बस एक बार तुम मुझ से मिलवा दो. हम उस की ऐसी हालत कर देंगे कि वह बताने लायक ही नहीं रहेगा. वह तुम्हारा सगा रिश्तेदार है तो यह बात कहते उसे शरम नहीं आई?’’ रजनी को चिंता में देख कमल गुस्से से भर गया.

‘‘अरे नहीं, मारना नहीं है. ऐसा करने पर तो हम ही फंस जाएंगे. जो बात हम छिपाना चाह रहे हैं, वही फैल जाएगी.’’ रजनी ने कमल को समझाते हुए कहा.

‘‘पर जो बात मैं तुम से नहीं कह पाया, वह उस ने तुम से कैसे कह दी. उसे कुछ तो शरम आनी चाहिए थी. आखिर वह तुम्हारे सगे फूफा हैं.’’ कमल ने कहा.

‘‘तुम्हारी बात सही है. मैं उन की बेटी की तरह हूं. वह शादीशुदा और बालबच्चेदार हैं. फिर भी वह मेरी मजबूरी का फायदा उठाना चाहते हैं.’’ रजनी बोली.

‘‘तुम चिंता मत करो, अगर वह फिर कोई बात करे तो बताना. हम उसे ठिकाने लगा देंगे.’’ कमल गुस्से में बोला.  इस के बाद रजनी अपने घर आ गई पर रजनी को इस बात की चिंता होने लगी थी.

ब्लैकमेलिंग में अवांछित मांग

38 साल के गंगासागर यादव का अपना भरापूरा परिवार था. वह लखनऊ जिले के ही सरोजनीनगर थाने के गांव रहीमाबाद में रहता था. वह ठेकेदारी करता था. रजनी उस की पत्नी रेखा के भाई की बेटी थी.

उस से उम्र में 15 साल छोटी रजनी को एक दिन गंगासागर ने कमल के साथ घूमते देख लिया था. कमल के साथ ही वह मोटरसाइकिल से अपने घर आई थी. यह देख कर गंगासागर को लगा कि अगर रजनी को ब्लैकमेल किया जाए तो वह चुपचाप उस की बात मान लेगी. चूंकि वह खुद ही ऐसी है, इसलिए यह बात किसी से बताएगी भी नहीं. गंगासागर ने जब यह बात रजनी से कही तो वह सन्न रह गई. वह कुछ नहीं बोली.

गंगासागर ने रजनी से एक दिन फिर कहा, ‘‘रजनी, तुम्हें मैं सोचने का मौका दे रहा हूं. अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी तो घर में तुम्हारा भंडाफोड़ कर दूंगा. तुम तो जानती ही हो कि तुम्हारे मांबाप कितने गुस्से वाले हैं. मैं उन से यह बात कहूंगा तो मेरी बात पर उन्हें पक्का यकीन हो जाएगा और बिना कुछ सोचेसमझे ही वे तुम्हें घर से निकाल देंगे.’’

रजनी को धमकी दे कर गंगासागर चला गया. समस्या गंभीर होती जा रही थी. रजनी सोच रही थी कि हो सकता है उस के फूफा के मन से यह भूत उतर गया हो और दोबारा वह उस से यह बात न कहें.

यह सोच कर वह चुप थी, पर गंगासागर यह बात भूला नहीं था. एक दिन रजनी के घर पहुंच गया. अकेला पा कर उस ने रजनी से पूछा, ‘‘रजनी, तुम ने मेरे प्रस्ताव पर क्या विचार किया?’’

‘‘अभी तो कुछ समझ नहीं आ रहा कि क्या करूं. देखिए फूफाजी, आप मुझ से बहुत बड़े हैं. मैं आप के बच्चे की तरह हूं. मुझ पर दया कीजिए.’’ रजनी ने गंगासागर को समझाने की कोशिश की.

‘‘इस में बड़ेछोटे जैसी कोई बात नहीं है. मैं अपनी बात पर अडिग हूं. इतना समझ लो कि मेरी बात नहीं मानी तो भंडाफोड़ दूंगा. इसे कोरी धमकी मत समझना. आखिरी बार समझा रहा हूं.’’ गंगासागर की बात सुन कर रजनी कुछ नहीं बोली. उसे यकीन हो गया था कि वह मानने वाला नहीं है.

रजनी ने यह बात कमल को बताई. कमल ने कहा, ‘‘ठीक है, किसी दिन उसे बुला लो.’’

इस के बाद रजनी और कमल ने एक योजना बना ली कि अगर वह अब भी नहीं माना तो उसे सबक सिखा देंगे. दूसरी ओर गंगासागर पर तो किशोर रजनी से संबंध बनाने का भूत सवार था.

सुबह होते ही उस का फोन आ गया. फूफा का फोन देखते ही रजनी समझ गई कि अब वह मानेगा नहीं. कमल की योजना पर काम करने की सोच कर उस ने फोन रिसीव करते हुए कहा, ‘‘फूफाजी, आप कल रात आइए. आप जैसा कहेंगे, मैं करने को तैयार हूं.’’

रजनी इतनी जल्दी मान जाएगी, गंगासागर को यह उम्मीद नहीं थी. अगले दिन शाम को उस ने रजनी को फोन कर पूछा कि वह कहां मिलेगी. रजनी ने उसे मिलने की जगह बता दी.

अपने आप बुलाई मौत

18 जुलाई, 2018 को रात गंगासागर ने 8 बजे अपनी पत्नी को बताया कि पिपरसंड गांव में दोस्त के घर बर्थडे पार्टी है. अपने साथी ठेकेदार विपिन के साथ वह वहीं जा रहा है.

गंगासागर रात 11 बजे तक भी घर नहीं लौटा तो पत्नी रेखा ने उसे फोन किया. लेकिन उस का फोन बंद था. रेखा ने सोचा कि हो सकता है ज्यादा रात होने की वजह से वह वहीं रुक गए होंगे, सुबह आ जाएंगे.

अगली सुबह किसी ने फोन कर के रेखा को बताया कि गंगासागर का शव हरिहरपुर पटसा गांव के पास फार्महाउस के नजदीक पड़ा है. यह खबर मिलते ही वह मोहल्ले के लोगों के साथ वहां पहुंची तो वहां उस के पति की चाकू से गुदी लाश पड़ी थी. सूचना मिलने पर पुलिस भी वहां पहुंच गई. पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और गंगासागर के पिता श्रीकृष्ण यादव की तहरीर पर अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया.

कुछ देर बाद पुलिस को सूचना मिली कि गंगासागर की लाल रंग की बाइक घटनास्थल से 22 किलोमीटर दूर असोहा थाना क्षेत्र के भावलिया गांव के पास सड़क किनारे एक गड्ढे में पड़ी है. पुलिस ने वह बरामद कर ली.

जिस क्रूरता से गंगासागर की हत्या की गई थी, उसे देखते हुए सीओ (मोहनलाल गंज) बीना सिंह को लगा कि हत्यारे की मृतक से कोई गहरी खुंदक थी, इसीलिए उस ने चाकू से उस का शरीर गोद डाला था ताकि वह जीवित न बच सके.

पुलिस ने मृतक के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवा कर उस का अध्ययन किया. इस के अलावा पुलिस ने उस की सालियों, साले, पत्नी सहित कुछ साथी ठेकेदारों से भी बात की. एसएसआई रामफल मिश्रा ने काल डिटेल्स खंगालनी शुरू की तो उस में कुछ नंबर संदिग्ध लगे.

लखनऊ के एसएसपी कलानिधि नैथानी ने घटना के खुलासे के लिए एसपी (क्राइम) दिनेश कुमार सिंह के निर्देशन में एक टीम का गठन किया, जिस में थानाप्रभारी अजय कुमार राय के साथ अपराध शाखा के ओमवीर सिंह, सर्विलांस सेल के सुधीर कुमार त्यागी, एसएसआई रामफल मिश्रा, एसआई प्रमोद कुमार, सिपाही सरताज अहमद, वीर सिंह, अभिजीत कुमार, अनिल कुमार, राजीव कुमार, चंद्रपाल सिंह राठौर, विशाल सिंह, सूरज सिंह, राजेश पांडेय, जगसेन सोनकर और महिला सिपाही सुनीता को शामिल किया गया.

काल डिटेल्स से पता चला कि घटना की रात गंगासागर की रजनी, कमल और कमल के दोस्त बबलू से बातचीत हुई थी. पुलिस ने रजनी से पूछताछ शुरू की और उसे बताया, ‘‘हमें सब पता है कि गंगासागर की हत्या किस ने की थी. तुम हमें सिर्फ यह बता दो कि आखिर उस की हत्या करने की वजह क्या थी?’’

रजनी सीधीसादी थी. वह पुलिस की घुड़की में आ गई और उस ने स्वीकार कर लिया कि उस की हत्या उस ने अपने प्रेमी के साथ मिल कर की थी.

उस ने बताया कि उस के फूफा गंगासागर ने उस का जीना दूभर कर दिया था, जिस की वजह से उसे यह कदम उठाना पड़ा. रजनी ने पुलिस को हत्या की पूरी कहानी बता दी.

गंगासागर की ब्लैकमेलिंग से परेशान रजनी ने उसे फार्महाउस के पास मिलने को बुलाया था. वहां कमल और उस का साथी बबलू पहले से मौजूद थे. गंगासागर को लगा कि रजनी उस की बात मान कर समर्पण के लिए तैयार है और वह रात साढ़े 8 बजे फार्महाउस के पीछे पहुंच गया.

रजनी उस के साथ ही थी. गंगासागर के मन में लड्डू फूट रहे थे. जैसे ही उस ने रजनी से प्यारमोहब्बत भरी बात करनी शुरू की, वहां पहले से मौजूद कमल ने अंधेरे का लाभ उठा कर उस पर लोहे की रौड से हमला बोल दिया. गंगासागर वहीं गिर गया तो चाकू से उस की गरदन पर कई वार किए. जब वह मर गया तो कमल और बबलू ने खून से सने अपने कपड़े, चाकू और रौड वहां से कुछ दूरी पर झाड़ के किनारे जमीन में दबा दिया.

दोनों अपने कपड़े साथ ले कर आए थे. उन्हें पहन कर कमल गंगासागर की बाइक ले कर उन्नाव की ओर भाग गया. बबलू रजनी को अपनी बाइक पर बैठा कर गांव ले आया और उसे उस के घर छोड़ दिया. कमल ने गंगासागर की बाइक भावलिया गांव के पास सड़क किनारे गड्ढे में डाल दी, जिस से लोग गुमराह हो जाएं. पुलिस ने बड़ी तत्परता से केस की छानबीन की और हत्या का 4 दिन में ही खुलासा कर दिया. एसएसपी कलानिधि नैथानी और एसपी (क्राइम) दिनेश कुमार सिंह ने केस का खुलासा करने वाली पुलिस टीम की तारीफ की.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में रजनी परिवर्तित नाम है.