मासूम से दुश्मनी : चचेरे भाई ने ले ली जान – भाग 2

3 दिन बाद आई मौत की खबर

25 सितंबर, 2018 की सुबह 10 बजे थानाप्रभारी नवीन कुमार सिंह क्षेत्र के एक कुख्यात अपराधी की फाइल का निरीक्षण कर रहे थे, तभी उन के मोबाइल पर एक काल आई. उन्होंने काल रिसीव की तो दूसरी तरफ से पूछा गया, ‘‘आप इंसपेक्टर साहब बोल रहे हैं?’’

‘‘जी हां, मैं इंसपेक्टर राजपुर नवीन कुमार सिंह बोल रहा हूं, कहिए क्या बात है?’’

‘‘सर, यहां बंबे में एक लाश उतरा रही है. आप जल्दी आइए.’’

‘‘लाश स्त्री की है या पुरुष की?’’

‘‘सर, लाश न स्त्री की है न पुरुष की. देखने से लगता है लाश किसी 10-12 साल के बच्चे की है.’’

‘‘बच्चे की लाश?’’ सुनते ही थानाप्रभारी नवीन कुमार सिंह का माथा ठनका. नवीन सिंह ने एसआई देशराज सिंह, हेडकांस्टेबल सुरेशचंद्र तथा आकाश के पिता सुनील विश्नोई को साथ लिया और राजपुर स्थित बंबे पर पहुंच गए. वहां काफी भीड़ जुटी थी, लोग तरहतरह की चर्चाएं कर रहे थे.

इंसपेक्टर नवीन कुमार सिंह भीड़ को हटा कर बंबे के किनारे पहुंचे. उन्होंने बंबे में तैरती लाश को बाहर निकलवाया. सुनील विश्नोई ने जब लाश देखी तो वह फफक कर रोते हुए बोला, ‘‘साहब, लाश मेरे बेटे आकाश की है.’’ रोते हुए ही उस ने बेटे की हत्या की खबर अपने घर वालों को दी. सुनते ही उस के घर में कोहराम मच गया.

आकाश की लाश की शिनाख्त होने के बाद नवीन कुमार सिंह ने अपहृत आकाश की हत्या करने और लाश मिलने की सूचना पुलिस अधिकारियों को दे दी. सूचना मिलते ही पुलिस कप्तान राधेश्याम विश्वकर्मा और सीओ (अकबरपुर) अर्पित कपूर घटनास्थल पर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने लाश का मुआयना किया.

ऐसा लग रहा था जैसे आकाश की हत्या गला दबा कर की गई हो. या फिर उसे पानी में डुबो कर मारा गया हो. उस के शरीर पर चोटों के निशान नहीं थे.

एसआई देशराज सिंह ने शव को माती स्थित पोस्टमार्टम हाउस भेज दिया. इस के साथ ही आज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज अपहरण के मामले में हत्या की धारा भी जोड़ दी गई. पोस्टमार्टम के बाद आकाश की लाश उस के घर वालों को सौंप दी गई. उसी शाम उस का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

पुलिस इस मामले को काफी संवेदनशील मान कर चल रही थी. हालांकि आकाश एक छोटे व्यवसाई का बेटा था, फिर भी पुलिस को डर था कि कहीं व्यापारी इस के विरोध में न उतर आएं. इसी के मद्देनजर पुलिस अधिकारी सुनील के सीधे संपर्क में थे और उसे आश्वासन दे रहे थे कि जल्दी ही हत्यारों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा.

एसपी राधेश्याम विश्वकर्मा ने आकाश के अपहरण और हत्या के मामले की तह तक पहुंचने के लिए सीओ (अकबरपुर) अर्पित कपूर की निगरानी में एक पुलिस टीम बनाई.

इस टीम में राजपुर थानाप्रभारी नवीन कुमार सिंह, हेडकांस्टेबल सुरेशचंद्र, कांस्टेबल राकेश कुमार, स्वाट टीम प्रभारी रोहित तिवारी, सर्विलांस सेल के राजीव कुमार, प्रहलाद सिंह, मोहित तिवारी, अनूप कुमार तथा प्रशांत को शामिल किया गया.

आकाश के गायब होने के बाद, उस के घर वालों के पास फिरौती के लिए कोई फोन नहीं आया था. न ही पत्र के माध्यम से कोई सूचना आई थी. इस से स्पष्ट था कि उस का अपहरण फिरौती के लिए नहीं किया गया था. इस से पुलिस टीम को लग रहा था कि आकाश की हत्या दुश्मनी या किसी अन्य वजह से की गई होगी.

2 लोगों पर जताया शक

आकाश के पिता सुनील विश्नोई का पान, तंबाकू से संबंधित सामान सप्लाई करने का व्यवसाय था. पुलिस ने सोचा कि हो न हो उस की किसी दुश्मनी का खामियाजा उस के बेटे को भुगतना पड़ा हो. इसलिए इंसपेक्टर नवीन कुमार सिंह ने सुनील विश्नोई से पूछा कि उस की किसी से कोई रंजिश वगैरह तो नहीं है.

‘‘सर, हम लोग छोटे व्यवसाई हैं. रंजिश की बात तो दूर अगर कोई हम से नाराज हो कर चार बातें कह भी जाए तो हम सुन कर चुप रह जाते हैं.’’ सुनील विश्नोई ने दिमाग पर जोर डाल कर बताया कि 3 साल पहले कस्बे के 2 युवकों से उस का माल जबरदस्ती छीनने को ले कर विवाद हुआ था. उन्होंने उसे सबक सिखाने की धमकी भी दी थी.

सुनील विश्नोई के बयान के आधार पर पुलिस बिना देरी किए उन युवकों के घर पहुंच गई. दोनों युवकों को थाने लाया गया पुलिस टीम ने दोनों से अपने तरीके से पूछताछ की. पूछताछ में दोनों बेकसूर लगे तो उन्हें छोड़ दिया गया.

मतलब जांच जहां से शुरू हुई, वहीं आ कर रुक गई. पुलिस अधीक्षक राधेश्याम व सीओ अर्पित कपूर पुलिस टीम के सीधे संपर्क में थे. उन के दिशा निर्देश के बाद टीम ने आकाश के पिता सुनील विश्नोई और मां रानी से पुन: बात की.

दरअसल, पुलिस टीम को जांच आगे बढ़ाने के लिए कहीं से कोई क्लू नहीं मिल रहा था. इसलिए टीम को शक हुआ कि कहीं हत्यारा विश्नोई परिवार का कोई करीबी तो नहीं है. क्योंकि ऐसे लोग अपना काम आसानी से कर जाते हैं और उन पर किसी को शक भी नहीं होता है.

पुलिस टीम ने सुनील, उस की पत्नी रानी व अन्य लोगों से आकाश के गुम होने के बाद परिवार वालों की गतिविधियों के बारे में पूछताछ की. हालांकि इस बात पर सुनील व कुछ अन्य घर वालों ने ऐतराज भी किया. उन का सगा सबंधी या पारिवारिक सदस्य ऐसा क्यों करेगा? लेकिन जब पुलिस टीम ने उन्हें समझाया तो वे पिछली बातें याद करने के लिए दिमाग पर जोर डालने लगे.

कुछ देर बाद सुनील विश्नोई ने बताया कि जब वे लोग आकाश को तलाश कर रहे थे तो घर वाले 2-2, 3-3 के ग्रुप में थे. लेकिन शिवम सब से अलग अकेला घूम रहा था. इतना ही नहीं वह कुछ घबराया हुआ भी दिख रहा था. पति की बात खत्म होते ही रानी ने बताया कि घटना वाली रात जब वह आकाश को देखने शिवम के घर गई थीं तो उस ने उसे दरवाजे पर ही रोक दिया था और खुद घर में देखने चला गया था.

सुनील विश्नोई के मकान के तीसरे नंबर का मकान शिवम का था. पुलिस शिवम के घर पहुंची. उस से पूछताछ की गई तो उस ने कहा, ‘‘आकाश मेरा चचेरा भाई था. मैं उसे बहुत प्यार करता था. भला मैं उस के साथ ऐसा कैसे कर सकता हूं? उसे ढूंढने के लिए मैं ने रात दिन एक कर दिया और आप उसे मारने की बात कह रहे हैं.’’

शिवम ने बिना घबराए जिस तरह अपनी बात कही, उस से पुलिस को लगा कि शायद शिवम सच बोल रहा है. अत: पुलिस ने उसे हिदायत दे कर छोड़ दिया. शिवम पुलिस की पकड़ से बच तो गया, लेकिन अब उसे डर सताने लगा. इसी डर से वह घर में किसी को बिना कुछ बताए फरार हो गया.

एक हत्या ऐसी भी : कौन था मंजूर का कातिल? – भाग 1

मेरी पोस्टिंग सरगोधा थाने में थी. मैं अपने औफिस में बैठा था, तभी नंबरदार, चौकीदार और 2-3 आदमी  खबर लाए कि गांव से 5-6 फर्लांग दूर टीलों पर एक आदमी की लाश पड़ी है. यह सूचना मिलते ही मैं घटनास्थल पर गया. लाश पर चादर डली थी, मैं ने चादर हटाई तो नंबरदार और चौकीदार ने उसे पहचान लिया. वह पड़ोस के गांव का रहने वाला मंजूर था.

मरने वाले की गरदन, चेहरा और कंधे ठीक थे लेकिन नीचे का अधिकतर हिस्सा जंगली जानवरों ने खा लिया था. मैं ने लाश उलटी कराई तो उस की गरदन कटी हुई मिली. वह घाव कुल्हाड़ी, तलवार या किसी धारदार हथियार का था.

मैं ने कागज तैयार कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने का प्रबंध किया. लाश के आसपास पैरों के कोई निशान नहीं थे, लेकिन मिट्टी से पता लगता था कि मृतक तड़पता रहा था. खून 2-3 गज दूर तक बिखरा हुआ था.

इधरउधर टीले टीकरियां थीं. कहीं सूखे सरकंडे थे तो कहीं बंजर जमीन. घटनास्थल से लगभग डेढ़ सौ गज दूर बरसाती नाला था, जिस में कहींकहीं पानी रुका हुआ था. मैं ने यह सोच कर वहां जा कर देखा कि हो न हो हत्यारे ने वहां जा कर हथियार धोए हों. लेकिन वहां कोई निशानी नहीं मिली.

मैं मृतक मंजूर के गांव चला गया. नंबरदार ने चौपाल में चारपाई बिछवाई. मैं मंजूर के मांबाप को बुलवाना चाहता था, लेकिन वे पहले ही मर चुके थे. 2 भाई थे वे भी मर गए थे. मृतक अकेला था. एक चाचा और उस के 2 बेटे थे. मैं ने नंबरदार से पूछा कि क्या मंजूर की किसी से दुश्मनी थी.

पारिवारिक दुश्मनी तो नहीं थी, लेकिन पारिवारिक झगड़ा जरूर था. नंबरदार ने बताया, मंजूर की उस के चाचा के साथ जमीन मिलीजुली थी, पर एक साल पहले जमीन का बंटवारा हो गया था. मंजूर का कहना था कि चाचा ने उस का हिस्सा मार लिया है, इस पर उन का झगड़ा रहता था.

‘‘उन की आपस में कभी लड़ाई हुई थी?’’

नंबरदार ने बताया, ‘‘मामूली कहासुनी और हाथापाई हुई थी. मृतक अकेला था. उस का साथ देने वाला कोई नहीं था. दूसरी ओर चाचा और उस के 3 बेटे थे, इसलिए वह उन का मुकाबला नहीं कर सकता था.’’

‘‘क्या ऐसा नहीं हो सकता था कि मंजूर ने उन से झगड़ा मोल लिया हो और उन्होंने उस की हत्या कर दी हो?’’

अगर झगड़ा होता तो गांव में सब को नहीं तो किसी को तो पता चलता. नंबरदार ने जवाब दिया, ‘‘मैं गांव की पूरी खबर रखता हूं. हालफिलहाल उन में कोई झगड़ा नहीं हुआ.’’

‘‘मंजूर के चाचा के लड़के कैसे हैं, क्या वह किसी की हत्या करा सकते हैं?’’

‘‘उस परिवार में कभी कोई ऐसी घटना नहीं हुई. लेकिन किसी के दिल की कोई क्या बता सकता है.’’ नंबरदार ने आगे कहा, ‘‘आप कयूम पर ध्यान दें. वह 25-26 साल का है. वह रोज उन के घर जाता है. मंजूर की पत्नी के कारण वह उस के घर जाता है. लोग कहते हैं कि मंजूर की पत्नी के साथ कयूम के अवैध संबंध हैं. लेकिन कुछ लोग यह भी कहते हैं कि वे दोनों मुंहबोले बहनभाई की तरह हैं.’’

‘‘कयूम शादीशुदा है?’’

‘‘नहीं,’’ नंबरदार ने बताया, ‘‘उस की पूरी उमर इसी तरह बीतेगी. उसे किसी लड़की का रिश्ता नहीं मिल सकता. एक रिश्ता आया भी था लेकिन कयूम ने मना कर दिया था.’’

‘‘रिश्ता क्यों नहीं मिल सकता?’’

‘‘देखने में तो ठीक लगता है, लेकिन उस के दिमाग में कुछ कमी है. कभी बैठेबैठे अपने आप से बातें करता रहता है. उस का बाप है, 3 भाई हैं 2 बहनें हैं. चौबारा है, अच्छा धनी जमींदार का बेटा है.’’

‘‘क्या तुम विश्वास के साथ कह सकते हो कि कयूम के मंजूर की बीवी के साथ अवैध संबंध थे?’’ मैं ने पूछा, ‘‘मैं शकशुबहे की बात नहीं सुनना चाहता.’’

‘‘मैं यकीन से नहीं कह सकता.’’

‘‘इस से तो यह लगता है कि कयूम ने मृतक को दोस्त बना रखा था.’’

‘‘बात यह भी नहीं है,’’ नंबरदार ने कहा, ‘‘मैं ने मंजूर से कहा था कि इस आदमी को मित्र मत बनाओ. कोई उलटीसीधी हरकत कर बैठेगा. वैसे भी लोग तरहतरह की बातें बनाते हैं.’’

‘‘उस की पत्नी का कयूम के साथ कैसा व्यवहार होता था?’’ मैं ने पूछा.

नंबरदार ने कहा, ‘‘मंजूर ने मुझे बताया था कि उस की पत्नी कयूम से बात कर लेती है. वास्तव में बात यह है जी, मंजूर कयूम के परिवार के मुकाबले में कमजोर था और अकेला भी, इसलिए वह कयूम को अपने घर से निकाल नहीं सकता था.’’

‘‘मृतक के कितने बच्चे हैं?’’

‘‘शादी को 10 साल हो गए हैं, लेकिन एक भी औलाद नहीं हुई.’’ नंबरदार ने बताया.

यह बात सुन कर मेरे कान खड़े हो गए, ‘‘10 साल हो गए लेकिन संतान नहीं हुई. कयूम उन के घर जाता है, मृतक को यह भी पता था कि कयूम उस की पत्नी से कुछ ज्यादा ही घुलामिला है. लेकिन मृतक में इतनी हिम्मत नहीं थी कि अपने घर में कयूम का आनाजाना बंद कर देता.’’

मैं ने इस बात से यह निष्कर्ष निकाला कि मृतक कायर और ढीलाढाला आदमी था और इसीलिए उस की पत्नी उसे पसंद नहीं करती थी. पत्नी कयूम को चाहती थी और कयूम उस पर मरता था. दोनों ने मृतक को रास्ते से हटाने का यह तरीका इस्तेमाल किया कि कयूम उस की हत्या कर दे.

2 आदमियों ने विश्वास के साथ बताया कि मृतक की पत्नी के साथ उस के अवैध संबंध थे और उन दोनों ने मृतक को धोखे में रखा हुआ था. मैं ने अपना पूरा ध्यान कयूम पर केंद्रित कर लिया, उस की दिमागी हालत से मेरा शक पक्का हो गया. मैं ने कयूम से पहले मृतक की पत्नी से पूछताछ करनी जरूरी समझी.

मेरे बुलाने पर वह आई तो उस की आंखें सूजी हुई थीं. नाक लाल हो गई थी. वह हलके सांवले रंग की थी, लेकिन चेहरे के कट्स अच्छे थे. आंखें मोटी थीं. कुल मिला कर वह अच्छी लगती थी. उस की कदकाठी में भी आकर्षण था.

मैं ने उसे सांत्वना दी. हमदर्दी की बातें कीं और पूछा कि उसे किस पर शक है?

उस ने सिर हिला कर कहा, ‘‘पता नहीं, मैं नहीं जानती कि यह सब कैसे हुआ, किस ने किया.’’

‘‘मंजूर का कोई दुश्मन हो सकता है?’’

‘‘नहीं, उस का कोई दुश्मन नहीं था. न ही वह दुश्मनी रखने वाला आदमी था.’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘मंजूर घर से कब निकला?’’

‘‘शाम को घर से निकला था.’’

‘‘कुछ बता कर नहीं गया था?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘क्या शाम को हर दिन इसी तरह जाया करता था?’’

‘‘कभीकभी, लेकिन उस ने कभी नहीं बताया कि वह कहां जा रहा है.’’

‘‘तुम्हें यह तो पता होगा कि कहां जाता था?’’ मैं ने पूछा, ‘‘दोस्तों यारों में जाता होगा. वह जुआ तो नहीं खेलता था?’’

‘‘नहीं, उस में कोई बुरी आदत नहीं थी.’’

‘‘आमना,’’ मैं ने कहा, ‘‘तुम्हारे पति की हत्या हो गई है. यह मेरा फर्ज है कि मैं उस के हत्यारे को पकड़ूं. तुम मेरी जितनी मदद कर सकती हो, दूसरा कोई नहीं कर सकता. अगर तुम यह नहीं चाहती कि हत्यारा पकड़ा जाए तो भी मैं अपना फर्ज नहीं भूल सकता. अगर कोई राज की बात है तो अभी बता दो. इस वक्त बता दोगी तो मैं परदा डाल दूंगा. आज का दिन गुजर गया तो फिर मैं मजबूर हो जाऊंगा.’’

‘‘आप अफसर हैं, जो चाहे कह सकते हैं. लेकिन आप ने यह गलत कहा कि मैं अपने पति के हत्यारे को पकड़वाना नहीं चाहती. मैं ने आप से पहले ही कह दिया है कि मुझे कुछ पता नहीं, यह सब किस ने और क्यों किया है?’’

‘‘एक बात बताओ, मंजूर ने किसी और औरत से तो रिश्ते नहीं बना लिए थे. कहीं ऐसा तो नहीं कि उस औरत के रिश्तेदारों ने उन्हें कहीं देख लिया हो?’’

‘‘नहीं, वह ऐसा आदमी नहीं था?’’ आमना ने जवाब दिया.

‘‘तुम यह बात पूरे यकीन के साथ कह सकती हो?’’

‘‘हां, वह इस तरह की हरकत करने वाला आदमी नहीं था.’’

मेरे पूछने पर उस ने 3 आदमियों के नाम बताए, जिन्हें मैं ने पूछताछ के लिए बुलवा लिया. उन तीनों से मैं ने कहा कि जो मृतक का सब से घनिष्ठ मित्र हो, वह मेरे सामने बैठ जाए.

मासूम से दुश्मनी : चचेरे भाई ने ले ली जान – भाग 1

स्कूल से घर लौटने के बाद आकाश ने अपना बैग मेज पर रखा और फौरन बाहर की तरफ दौड़ लगा दी. मां रानी ने उसे कई आवाजें  दीं, लेकिन वह यह कहते हुए घर से निकल गया कि खेलने जा रहा है. आकाश अकसर स्कूल से लौटने के तुरंत बाद खेलने चला जाता था. थोड़ी देर खेल कर वह घर लौट आता था. इसलिए रानी उस की ओर से ध्यान हटा कर घर के काम में लग गई. यह 21 सितंबर, 2018 की शाम 4 बजे की बात है.

आकाश आधे एक घंटे में खेल कर घर लौट आता था. लेकिन उस दिन जब वह साढ़े 6 बजे तक नहीं लौटा तो रानी को उसे बुलाने के लिए घर से निकलना पड़ा. घर से कुछ ही दूरी पर पार्क था. पार्क में जो बच्चे खेल रहे थे, उन में आकाश नहीं था. रानी ने बच्चों से आकाश के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि आकाश कुछ देर पहले बच्चों के साथ क्रिकेट खेल रहा था.

आकाश जिन बच्चों के साथ क्रिकेट खेल रहा था, वह भी रानी के पासपड़ोस में रहते थे. रानी उन बच्चों के घर गई तो उन्होंने बताया कि कुछ देर पहले वे खेलबंद कर के घर लौट आए थे. आकाश वहीं रह गया था.

रानी ने अपनी बेटी राधा को साथ लिया और पार्क में खेलने वाले बच्चों और पार्क के आसपास रहने वाले लोगों से आकाश के बारे पता करने लगी. लेकिन आकाश का कोई पता नहीं लगा. मायूस हो कर घर लौटी रानी ने आकाश के लापता होने की बात अपने पति सुनील विश्नोई को बताई.

सुनील उस समय बाजार में था. बेटे के लापता होने की खबर मिली तो वह आननफानन में घर आ गया. फिर वह भी बेटे को ढूंढने के लिए घर से निकल पड़ा. रानी और उस की बेटी राधा कस्बे की गलियों में आकाश को खोजने लगीं. लेकिन आकाश का कोई पता नहीं लगा, पतिपत्नी दोनों परेशान थे. अचानक रानी ने सोचा कि कहीं आकाश खेल कर शिवम के घर तो नहीं चला गया.

शिवम विश्नोई, रानी के जेठ विनोद विश्नोई का बेटा था. उस का घर रानी के घर से 2 घर छोड़ कर था. घबराई हुई रानी शिवम के घर पहुंची और आकाश के बारे में पूछा. शिवम ने बताया, ‘‘चाची, आकाश आया जरूर था, लेकिन थोड़ी देर बतिया कर चला गया था.’’

तब तक 9 बज चुके थे और रात गहराने लगी थी. आकाश का जब कुछ पता नहीं चला तो उस के पिता सुनील विश्नोई ने पुलिस कंट्रोल रूम के 100 नंबर पर फोन कर के बता दिया कि राजपुर कस्बे की गली नंबर 9 से 12 साल का एक लड़का गायब हो गया है. राजपुर कस्बा कानपुर देहात जिले के थाना राजपुर क्षेत्र में आता है. पुलिस कंट्रोल रूम ने लड़के के गायब होने की सूचना थाना राजपुर को दे दी.

सूचना मिलते ही एसआई देशराज सिंह हेडकांस्टेबल सुरेशचंद्र को साथ ले कर राजपुर कस्बे स्थित सुनील के घर पहुंच गए. सुनील विश्नोई और उस की पत्नी रानी घर पर थे. शिवम भी उन के साथ था. उन्होंने आकाश के गायब होने की जानकारी उन्हें दी. एसआई देशराज सिंह सुनील विश्नोई का बयान दर्ज कर के थाने लौट आए.

थानाप्रभारी नवीन कुमार सिंह उस समय थाने पर मौजूद थे. एसआई देशराज सिंह ने 12 वर्षीय आकाश के गुम होने की जानकारी उन्हें दे दी. उन्होंने अज्ञात लोगों के खिलाफ अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करवा दी और इस मामले की जांच देशराज सिंह को ही सौंप दी.

एसआई देशराज सिंह आकाश की खोजबीन में जुट गए. सूचना पा कर रानी के मातापिता भी आ गए. उन्होंने रानी से कहा कि वह एक बार ठीक से देख लें कि वह घर में ही तो नहीं सो गया है. रानी ने घर के सारे कमरे छान मारे लेकिन आकाश नहीं मिला. आकाश कहीं शिवम के घर न सो गया हो, यह सोच कर रानी शिवम के घर गई तो वह दरवाजे पर ही मिल गया.

रानी ने जब उस से आकाश को घर में देखने की बात कही तो वह बोला, ‘‘चाची, वैसे तो आकाश यहां से चला गया था, फिर भी तुम कहती हो तो मैं एक बार और देख लेता हूं.’’

शिवम घर में चला गया, जबकि रानी दरवाजे पर ही खड़ी रही. कुछ देर बाद शिवम ने बाहर आ कर बताया कि आकाश यहां नहीं है.

फिरौती के लिए नहीं हुआ अपहरण

इधर इंसपेक्टर नवीन कुमार सिंह ने आकाश अपहरण पर गहन विचारविमर्श किया. उन के विचार से आकाश का अपहरण फिरौती के लिए नहीं किया गया था. क्योंकि सुनील विश्नोई की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि उस के बेटे का अपहरण 2-4 लाख की फिरौती के लिए किया जाता. दूसरे फिरौती की बात इसलिए भी गले नहीं उतर रही थी, क्योंकि अभी तक अपहर्त्ता का कोई फोन नहीं आया था.

नवीन कुमार सिंह का अनुमान था कि आकाश का अपहरण किसी और कारण से किया गया है. यह कारण क्या हो सकता है, इस का पता लगाना जरूरी था. फिर भी इंसपेक्टर नवीन कुमार सिंह ने पुखरायां, घाटमपुर, भीमसेन रेलवे स्टेशन के अलावा कानपुर देहात के सभी प्रमुख बस अड्डों पर छानबीन के लिए आकाश के फोटो के साथ अलगअलग पुलिस टीमें रवाना कर दीं.

एसआई देशराज सिंह थाना क्षेत्र के नदी, नालों और सड़क किनारे की झाडि़यों पार्कों आदि में इस आशंका से आकाश को खोज कर रहे थे कि कहीं किसी ने उस की हत्या न कर दी हो.

कस्बा राजपुर में सड़क किनारे एक शिव मंदिर था. मंदिर के पास वाले मैदान में बच्चे खेलते थे. पुलिस आकाश की खोज में वहां भी गई, लेकिन उस का पता नहीं चला. पुलिस ने नमाज के समय मसजिद से आकाश के हुलिए सहित उस के गुम होने की सूचना प्रसारित कराई, पर कोई सफलता नहीं मिली.

उधर आकाश के लापता होने से विश्नोई परिवार की आंखों की नींद उड़ी हुई थी. घर के सभी लोगों को इस बात की चिंता सता रही थी कि उन की आंखों का चिराग पता नहीं कहां और किस हाल में होगा. वे लोग पूरी रात बैठे रहे. उन के दिमाग में तरहतरह के खयाल आ रहे थे.

अंधेरा छंटते ही वे लोग फिर 2-2, 3-3, के ग्रुप में आकाश की खोज में निकल पड़े. उधर पुलिस ने आकाश के गुम होने की सूचना उस के हुलिए के साथ कानपुर देहात जनपद के सभी थानों को दे दी थी.

ज्योंज्यों समय बीतता जा रहा था त्योंत्यों  सुनील और उस की पत्नी रानी की चिंता बढ़ती जा रही थी. दोनों की समझ में नहीं आ रहा था कि आकाश चला कहां गया? रानी बेटे के गम में सब से ज्यादा दुखी थी. उस का रोरो कर बुरा हाल था. उस ने खानापीना भी छोड़ दिया था.

धीरेधीरे 3 दिन बीत गए, लेकिन अब तक आकाश का पता न तो घर वाले लगा पाए थे और न ही पुलिस को सफलता मिली थी. पुलिस आकाश की खोज में जीजान से जुटी थी. उस ने क्षेत्र के हर रेलवे स्टेशन व बस अड्डे पर आकाश की फोटो सहित सूचना चस्पा कर दी थी.

पुलिस आपराधिक प्रवृत्ति के युवकों को पकड़ कर थाने लाई और उन से सख्ती से पूछताछ की. लेकिन आकाश के बारे में कोई जानकारी हासिल नहीं हुई. आखिर पुलिस को मजबूरन उन युवकों को रिहा करना पड़ा. पुलिस का मुखबिर तंत्र भी आकाश का पता लगाने में नाकाम रहा.

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