एक हत्या ऐसी भी : कौन था मंजूर का कातिल? – भाग 5

मैं 2 घंटे बाद अपने औफिस आया, गामे शाह अभी नहीं आया था. आमना आ चुकी थी. मैं ने उस से कहा, ‘‘आमना, मेरे दिल में तुम्हारे लिए हमदर्दी पैदा हो गई थी, लेकिन तुम ने सच फिर भी नहीं बोला और कहा कि पता नहीं मंजूर कहां गया था. जबकि तुम ने ही उसे रशीद के पास भेजा था.’’

आमना की हालत रशीद की तरह हो गई. मैं ने उस का हाथ अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘आमना, अब भी समय है. सच बता दो. मैं मामले को गोल कर दूंगा.’’

‘‘अब यह बताओ, तुम्हारा पति अपने दुश्मन के पास गया था, वह सारी रात वापस नहीं लौटा. क्या तुम ने पता करने की कोशिश की कि वह कहां गया है और क्या रशीद ने उस की हत्या कर के कहीं फेंक न दिया हो?’’

आमना का चेहरा लाश की तरह सफेद पड़ गया. मैं ने उस से 2-3 बार कहा लेकिन उस ने कोई जवाब नहीं दिया.

‘‘तुम कयूम को बुला कर उस से कह सकती थी कि मंजूर बाग में गया है और वापस नहीं आया. वह उसे जा कर देखे.’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘तुम ने ऐसा क्यों किया?’’

मुझे उस की हालत देख कर ऐसा लगा जैसे उस का दम निकल जाएगा.

‘‘तुम ने मंजूर को सलाह दी थी कि वह शाम को बाग में जाए. उस की हत्या के लिए तुम ने रास्ते में एक आदमी बिठा रखा था ताकि जब वह लौटे तो वह मंजूर की हत्या कर दे. वह आदमी था कयूम.’’

वह चीख पड़ी, ‘‘नहीं…नहीं, ऐसा बिलकुल नहीं है.’’

‘‘क्या रशीद ने उस की हत्या की है?’’

‘‘नहीं…’’ यह कह कर वह चौंक पड़ी.

कुछ देर चुप रही. फिर बोली, ‘‘मैं घर पर थी, मुझे क्या पता उस की हत्या किस ने की?’’

‘‘मेरी एक बात सुनो आमना,’’ मैं ने उस से प्यार से कहा, ‘‘मुझे तुम से हमदर्दी है. तुम औरत हो, अच्छे परिवार की हो. मैं तुम्हारी इज्जत का पूरा खयाल रखूंगा. मुझे पता है कि हत्या तुम ने नहीं की है. आज का दिन मैं तुम्हें अलग किए देता हूं. खूब सोच लो और मुझे सच सच बता दो. तुम्हें इस केस में बिलकुल अलग कर दूंगा. तुम्हें गवाही में भी नहीं बुलाऊंगा.’’

उस की हालत पतली हो चुकी थी. उस ने मेरी किसी बात का भी जवाब नहीं दिया. मैं ने कांस्टेबल को बुला कर कहा, इस बीबी को अंदर ले जाओ और बहुत आदर से बिठाओ. किसी बात की कमी नहीं आने देना. पुलिस वाले इशारा समझते थे कि उस औरत को हिरासत में रखना है.

गामे शाह आ गया. मेरा अनुभव कहता था कि हत्या उस ने नहीं की है. लेकिन हत्या के समय वह कुल्हाड़ी ले कर कहां गया था? मैं ने उसे अंदर बुला कर पूछा कि कुल्हाड़ी ले कर कहां गया था.

उस ने एक गांव का नाम ले कर बताया कि वह वहां अपने एक चेले के पास गया था. मैं ने एक कांस्टेबल को बुलाया और गामे शाह के चेले का और गांव का नाम बता कर कहा कि वह उस आदमी को ले कर आ जाए.

‘‘जरा ठहरना हुजूर, मैं उस गांव नहीं गया था. बात कुछ और थी.’’ उस ने कहा.

वह बेंच पर बैठा था. मैं औफिस में टहल रहा था. मैं ने उस के मुंह पर उलटा हाथ मारा और सीधे हाथ से थप्पड़ जड़ दिया. वह बेंच से नीचे गिर गया और हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया.

असल बात उस ने यह बताई कि वह उस गांव की एक औरत से मिलने गया था, जिसे उस से गांव से बाहर मिलना था. कुल्हाड़ी वह अपनी सुरक्षा के लिए ले गया था. अब हुजूर का काम है, उस औरत को यहां बुला लें या उस से किसी और तरह से पूछ लें. मैं उस का नाम बताए देता हूं. किसी की हत्या कर के मैं अपने कारोबार पर लात थोड़े ही मारूंगा.

दिन का पिछला पहर था. मैं यह सोच रहा था कि आमना को बुलाऊं, इतने में एक आदमी तेजी से आंधी की तरह आया और कुरसी पर गिर गया. वह मेज पर हाथ मार कर बोला, ‘‘आमना को हवालात से बाहर निकालो और मुझे बंद कर दो. यह हत्या मैं ने की है.’’

वह कयूम था.

वह खुशी और कामयाबी का ऐसा धचका था, जैसे कयूम ने मेरे सिर पर एक डंडा मारा हो. यकीन करें, मुझ जैसा कठोर दिल आदमी भी कांप कर रह गया.

मैं ने कहा, ‘‘कयूम भाई, थोड़ा आराम कर लो. तुम गांव से दौड़े हुए आए हो.’’

उस ने कहा, ‘‘नहीं, मैं घोड़ी पर आया हूं, मेरी घोड़ी सरपट दौड़ी है. तुम आमना को छोड़ दो.’’

वह और कोई बात न तो सुन रहा था और न कर रहा था. मैं ने प्यार मोहब्बत की बातें कर के उस से काम की बातें निकलवाई. पता यह चला कि मैं ने आमना को जब हिरासत में बिठाया था तो किसी कांस्टेबल ने गांव वालों से कह दिया था कि आमना ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया है और उसे गिरफ्तार कर लिया गया है. गांव का कोई आदमी आमना के घर पहुंचा और आमना के पकड़े जाने की सूचना दी. कयूम तुरंत घोड़ी पर बैठ कर थाने आ गया.

‘‘कयूम भाई, अगर अपने होश में हो तो अकल की बात करो.’’

उस ने कहा, ‘‘मैं पागल नहीं हूं, मुझे लोगों ने पागल बना रखा है. आप मेरी बात सुनें और आमना को छोड़ दें. मुझे गिरफ्तार कर लें.’’

कयूम के अपराध स्वीकार करने की कहानी बहुत लंबी है. कुछ पहले सुना चुका हूं और कुछ अब सुना रहा हूं. मंजूर रशीद से बहुत तंग आ चुका था. वह गुस्सा अपने अंदर रोके हुए था. एक दिन आमना ने कयूम से कहा कि रशीद की हत्या करनी है. उसे खूब भड़काया और कहा कि अगर रशीद की हत्या नहीं हुई तो वह मंजूर की हत्या कर देगा.

कयूम आमना के इशारों पर नाचता था. वह तैयार हो गया. मंजूर से बात हुई तो योजना यह बनी कि रशीद बाग से शाम होने से कुछ देर पहले घर आता है. अगर वह रात को आए तो रास्ते में उस की हत्या की जा सकती है. उस का तरीका यह सोचा गया कि मंजूर रशीद के बाग में जा कर नाटक खेले कि वह दुश्मनी खत्म करने आया है और उसे बातों में इतनी देर कर दे कि रात हो जाए. कयूम रास्ते में टीलों के इलाके में छिप कर बैठ जाएगा और जैसे ही रशीद गुजरेगा तो कयूम उस पर कुल्हाड़ी से वार कर देगा.

यह योजना बना कर ही मंजूर रशीद के पास बाग में गया था. कयूम जा कर छिप गया. अंधेरा बहुत हो गया था. एक आदमी वहां से गुजरा, जहां कयूम छिपा हुआ था. अंधेरे में सूरत तो पहचानी नहीं जा सकती थी, कदकाठी रशीद जैसी थी.

कयूम ने कुल्हाड़ी का पहला वार गरदन पर किया. वह आदमी झुका, कयूम ने दूसरा वार उस के सिर पर किया और वह गिर कर तड़पने लगा.

कयूम को अंदाजा था कि वह जल्दी ही मर जाएगा, क्योंकि उस के दोनों वार बहुत जोरदार थे. पहले वह साथ वाले बरसाती नाले में गया और कुल्हाड़ी धोई. फिर उस पर रेत मली. फिर उसे धोया और मंजूर के घर चला गया.

वहां उस ने अपने कपड़े देखे, कमीज पर खून के कुछ धब्बे थे जो आमना ने तुरंत धो डाले. कुल्हाड़ी मंजूर की थी. आमना और कयूम बहुत खुश थे कि उन्होंने दुश्मन को मार गिराया.

उस समय तक तो मंजूर को वापस आ जाना चाहिए था. तय यह हुआ था कि मंजूर दूसरे रास्ते से घर आएगा. वह अभी तक घर नहीं पहुंचा था. 2-3 घंटे बीत गए. तब आमना ने कयूम से पूछा कि उस ने रशीद को पहचान कर ही हमला किया था. उस ने कहा कि वहां से तो रशीद को ही आना था, ऐसी कोई बात नहीं है कि वह गलती से किसी और को मार आया हो.

जब और समय हो गया तो उस ने कयूम से कहा कि जा कर देखो गलती से किसी और को न मारा हो. वह माचिस ले कर चल पड़ा. जा कर उस का चेहरा देखा तो वह मंजूर ही था.

कयूम दौड़ता हुआ आमना के पास पहुंचा और उसे बताया कि गलती से मंजूर मारा गया. आमना का जो हाल होना था वह हुआ, लेकिन उस ने कयूम को बचाने की तरकीब सोच ली.

उस ने कयूम से कहा कि वह अपने घर चला जाए और बिलकुल चुप रहे. लोगों को पता ही है कि रशीद की मंजूर से गहरी दुश्मनी है. मैं भी अपने बयान में यही कहूंगी कि मंजूर को रशीद ने ही मारा है.

कयूम को गिरफ्तार कर के मैं ने आमना को बुलाया और उसे कयूम का बयान सुनाया. कुछ बहस के बाद उस ने भी बयान दे दिया.

उन्होंने जो योजना बनाई थी, वह विफल हो गई. आमना का सुहाग लुट गया. लेकिन उस ने इतने बड़े दुख में भी कयूम को बचाने की योजना बनाई. मंजूर को लगा था कि वह रशीद की इस तरह से हत्या कराएगा तो किसी को पता नहीं चलेगा कि हत्यारा कौन है.

मैं ने आमना और कयूम के बयान को ध्यान से देखा तो पाया कि आमना ने पति की मौत के दुख के बावजूद अपने दिमाग को दुरुस्त रखा और मुझे गुमराह किया. कयूम को लोग पागल समझते थे, लेकिन उस ने कितनी होशियारी से झूठ बोला.

मैं ने हत्या का मुकदमा कायम किया. कयूम ने मजिस्ट्रैट के सामने अपराध स्वीकार कर लिया. मैं ने आमना को गिरफ्तार नहीं किया था और कयूम से कहा था कि आमना का नाम न ले. यह कहे कि उसे मंजूर ने हत्या करने पर उकसाया था. कयूम को सेशन से आजीवन कारावास की सजा हुई, लेकिन हाईकोर्ट ने उसे शक का लाभ दे कर बरी कर दिया.

जीजा साली का जुनूनी इश्क

मोहब्बत का स्याह रंग : डाक्टर ने की हैवानियत की हद पार – भाग 3

पत्नी के सामने सच्चाई आने के बाद डी.पी. सिंह की स्थिति बड़ी विचित्र हो गई. वह न तो पत्नी को छोड़ सकता था और न प्रेमिका से पत्नी बनी राखी के बिना रह सकता था. उस की हालत 2 नावों के सवार जैसी थी. इस के बावजूद वह दोनों नावों को डूबने नहीं देना चाहता था. डी.पी. सिंह किसी निष्कर्ष पर पहुंचता, इस से पहले ही पहली पत्नी ऊषा ने डी.पी. सिंह के खिलाफ कैंट थाने में मुकदमा दर्ज करा दिया.

भले ही ऊषा ने उस के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया था, डी.पी. सिंह ने इस की कोई परवाह नहीं की. वजह यह थी कि राखी मां बनने वाली थी. राखी और डी.पी. सिंह दोनों इसे ले कर काफी खुश थे. आने वाले बच्चे के भविष्य को ले कर संजीदा थे. समय आने पर राखी ने हौस्पिटल में बेटी को जन्म दिया. लेकिन वह मां की गोद तक जाने से पहले ही दुनिया छोड़ गई. बेटी की मौत ने राखी को झकझोर कर रख दिया. नवजात शिशु की मौत का असर डी.पी. सिंह पर भी पड़ा.

डाक्टर को होने लगा गलती का पछतावा

डी.पी. सिंह को अपने किए का पश्चाताप होने लगा था. वक्त के साथ स्थितियां बदल गईं. उसे लगने लगा कि राखी की खूबसूरती महज एक छलावा था. असल जीवनसाथी तो ऊषा है. अब डा. डी.पी. सिंह अपनी भूल सुधारने के लिए पत्नी की ओर आकर्षित होने लगा. उस ने अपनी भूल सुधारने के लिए ऊषा से एक मौका मांगा, साथ ही वादा किया कि अब ऐसा कभी नहीं होगा.

पति के वादे पर ऊषा को भरोसा नहीं था. सालों तक वह उस की पीठ पीछे रंगरलियां मनाता रहा था. यहां तक कि उसे भनक तक नहीं लगने दी थी. यही सब सोच कर ऊषा ने उसे माफ नहीं किया बल्कि फैसला पति पर छोड़ दिया.

दूसरी ओर डी.पी. सिंह ने राखी से बिलकुल ही मुंह मोड़ लिया. डी.पी. सिंह में पहले से काफी बदलाव आ गया था. लेकिन राखी को यह मंजूर नहीं था कि उस का पति उसे छोड़ कर पहली पत्नी के पास जाए.

राखी ने डी.पी. सिंह को चेतावनी दे दी कि अगर वह उसे छोड़ कर पहली पत्नी के पास गया तो इस का परिणाम भुगतने को तैयार रहे. जब उस ने प्यार के लिए अपना घरबार सब छोड़ दिया तो वह रिश्ता तोड़ने से पहले अच्छी तरह सोच ले.

राखी की चेतावनी ने डा. डी.पी. सिंह के संपूर्ण अस्तित्व को हिला कर रख दिया. वह जानता था कि राखी जिद्दी स्वभाव की है, जो ठान लेती है, कर के रहती है. घरगृहस्थी को बचाने के लिए डी.पी. सिंह धीरेधीरे राखी से किनारा करने लगा.

राखी समझ गई थी कि डी.पी. सिंह उस से बचने के लिए किनारा कर रहा है. डी.पी. सिंह ने भले ही राखी से दूरी बनानी शुरू कर दी थी, लेकिन उस के खर्चे में कमी नहीं की थी. उसे वह उस की मुंहमांगी रकम देता था.

राखी मांगने लगी अपना हक

यह अलग बात है कि राखी रुपए नहीं, अपना पूरा हक चाहती थी. उसे दूसरी औरत बन कर रहना मंजूर नहीं था. वह पत्नी का पूरा अधिकार चाहती थी. जबकि डी.पी. सिंह पहली पत्नी ऊषा को छोड़ने के लिए तैयार नहीं था. राखी उस पर दबाव बनाने लगी थी कि वह ऊषा को हमेशा हमेशा के लिए छोड़ कर उस के पास आ जाए. लेकिन डी.पी. सिंह ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया था.

राखी ने सोच लिया था कि वह तो बरबाद हो गई है, पर उसे भी इतनी आसानी से मुक्ति नहीं देगी. डाक्टर को सबक सिखाने के लिए साल 2017 के शुरुआती महीने में राखी ने राजधानी लखनऊ के चिनहट थाने में डा. डी.पी. सिंह के खिलाफ अपहरण और गैंगरेप का मुकदमा दर्ज करा दिया.

यही नहीं उस ने गोरखपुर के महिला थाने में भी डा. सिंह के खिलाफ महिला उत्पीड़न का मुकदमा दर्ज कराया. एक साथ 2-2 मुकदमे दर्ज होते ही डा. सिंह के होश उड़ गए. गैंगरेप का मुकदमा दर्ज होते ही डी.पी. सिंह की शहर ही नहीं, पूर्वांचल भर में थूथू होने लगी. इस के चलते हौस्पिटल बुरी तरह प्रभावित हो गया. मरीज उस के क्लीनिक पर आने से कतराने लगे.

गैंगरेप केस ने डी.पी. सिंह की इज्जत पर बदनुमा दाग लगा दिया था. लोग उसे हिकारत भरी नजरों से देखने लगे और उस पर अंगुलियां उठने लगीं. इस से उस की सामाजिक प्रतिष्ठा की खूब छिछालेदर हुई. अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए डी.पी. सिंह ने राखी से केस वापस लेने को कहा और उसे मुंहमांगी रकम देने का औफर दिया.

राखी ने उस के सामने सरस्वतीपुरम कालोनी की उस आलीशान कोठी की रजिस्ट्री अपने नाम कराने की शर्त रखी, जिस में वह रह रही थी. वह कोठी करोड़ों की थी. इस के लिए डी.पी. सिंह तैयार नहीं हुआ. उस ने बात टाल दी.

धी रेधीरे डा. डी.पी. सिंह का राखी से मोह खत्म हो गया. दोनों के बीच का प्यार टकराव में बदल गया. कल तक जिस राखी की गंध डी.पी. सिंह की रगों में खून के साथ बहती थी, अब वह दुर्गंध बन गई थी. टकराव की स्थिति में डी.पी. सिंह का जीना मुश्किल हो गया था. उस की पलपल की खुशियां छिन गई थीं. राखी द्वारा पैदा की गई दुश्वारियों से डी.पी. सिंह बौखला गया और उसे रास्ते से हटाने की योजना बनाने लगा.

राखी को हो गया फौजी मनीष से प्यार

इस बीच राखी के जीवन में एक नई कहानी की कड़ी जुड़ गई थी. सरस्वतीपुरम कालोनी में जहां राखी रहती थी, उसी के पड़ोस में मनीष कुमार श्रीवास्तव नाम का एक खूबसूरत और स्मार्ट युवक रहता था. वह आर्मी का जवान था और अपने एक रिश्तेदार के घर अकसर जाताआता था. वह मूलरूप से बिहार के गया जिले का रहने वाला था.

डी.पी. सिंह से रिश्ते खराब होने के बाद राखी अकेलापन दूर करने के लिए मनीष से नजदीकियां बढ़ाने लगी. मनीष भी राखी की खूबसूरती पर फिदा हो गया. थोड़ी मुलाकातों के बाद दोनों एकदूसरे के करीब आ गए. अंतत: फरवरी 2018 में राखी और मनीष ने कोर्टमैरिज कर ली.

शादी के बाद राखी मनीष के साथ गया चली गई. उस ने मनीष से अपने अतीत की सारी बातें बता दीं. मनीष समझदार और सुलझा हुआ इंसान था. वह राखी को समझाता रहता था. मनीष को पत्नी की अतीत की कहानी सुन कर उस के साथ सहानुभूति हो गई. उस ने राखी को समझाया कि जो बीत गया, उसे याद करने से कोई फायदा नहीं है. उसे बुरा सपना समझ कर भुला दो.

किस्तों वाली सुपारी : शादीशुदा का प्यार पड़ा जान पर भारी

एक हत्या ऐसी भी : कौन था मंजूर का कातिल? – भाग 4

रात को मैं थाने आ गया, जिन की जरूरत थी, उन सब को थाने ले आया. उन में रशीद भी था. रशीद मेरे लिए बहुत खास संदिग्ध था.

रात काफी हो चुकी थी. मैं आराम करने नहीं गया, बल्कि रशीद को लपेट लिया. उस की ऐसी हालत हो गई जैसे बेहोश हो जाएगा. मैं ने अपना सवाल दोहराया, तो उस की हालत और बिगड़ गई.

मैं ने उस का सिर पकड़ कर झिंझोड दिया, ‘‘तुम मंजूर के जाने के बाद जब बाग से निकले तो तुम्हारे हाथ में कुल्हाड़ी थी और तुम ने मुझे बताया कि सूरज डूबते ही तुम घर आ गए थे. मुझे इन सवालों का संतोषजनक जवाब दे दो और जाओ, फिर मैं कभी तुम्हें थाने नहीं बुलाऊंगा.’’

उस ने बताया, ‘‘हत्या करने से मुझे कुछ नहीं मिलना था. हुआ यूं था कि वह सूरज डूबने से थोड़ा पहले मेरे पास आया था. मैं उसे देख कर हैरान हो गया. मुझे यह खतरा नहीं था कि वह मेरे साथ झगड़ा करने आया था, सच बात यह है कि मंजूर झगड़ालू नहीं था.’’

‘‘क्या वह कायर या निर्लज्ज था?’’ मैं ने पूछा.

‘‘नहीं, वह बहुत शरीफ आदमी था. अब मुझे दुख हो रहा है कि मैं ने उस के साथ बहुत ज्यादती की थी. परसों वह मेरे पास आया था, मैं क्यारियों में पानी लगा रहा था. मंजूर ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे कमरे के ऊपर ले गया. मैं समझा कि वह मुझ से बंटवारे की बात करने आया है. मैं ने सोच लिया था कि उस ने उल्टीसीधी बात की तो मैं उसे बहुत पीटूंगा, लेकिन उस ने मुझ से बहुत नरमी से बात की.

‘‘उस ने कहा, ‘हम लोग एक ही दादा की संतान हैं. हमें लड़ता देख कर दूसरे लोग हंसते हैं. मैं चाहता हूं कि हम सब भाइयों की तरह से रहें.’ मैं ने उस से कहा कि बाद में फिर झगड़ा करोगे तो उस ने कहा, ‘नहीं, मैं ये सब बातें भूल चुका हूं.’ वह रात होने तक बैठा रहा और जाते समय हाथ मिला कर चला गया.

‘‘मैं उस के जाने के आधे घंटे बाद बाग से निकला. उस वक्त मेरे हाथ में एक डंडा था, वह मैं आप को दिखा सकता हूं. मेरा रास्ता वही था, जहां मंजूर की लाश पड़ी थी. मैं उस जगह पहुंचा और माचिस जला कर देखा तो वह मंजूर की लाश थी. हर ओर खून ही खून फैला था.

‘‘मैं ने माचिस जला कर दोबारा देखा तो मुझे पूरा यकीन हो गया. दूर जहां से घाटी ऊपर चढ़ती है, मैं ने वहां एक आदमी को देखा. मैं उस के पीछे दौड़ा, हत्यारा वही हो सकता था. लेकिन वह अंधेरे में गायब हो चुका था. आगे खेत थे, मुझे इतना यकीन है कि वह आदमी गांव से ही आया था.’’

‘‘तुम ने यह बात पहले क्यों नहीं बताई?’’

‘‘यही बात तो मुझे फंसा रही है,’’ उस ने कहा, ‘‘मेरा फर्ज था कि मैं आमना को बताता, फिर अपने घर वालों को बताता. शोर मचाता, थाने जा कर रिपोर्ट करता, लेकिन मुझे एक खतरा था कि मंजूर की मेरे साथ लड़ाई हुई थी. सब यही समझते कि मैं ने उसे मारा है.

‘‘पैदा करने वाले की कसम, हुजूर मैं ने सारी रात जागते हुए गुजारी है. जब आप ने बुलाया तो मेरा खून सूख गया कि आप को पता लग गया है कि मरने से पहले मंजूर मेरे पास आया था.’’

मैं ने कहा, ‘‘दुश्मनी के कारण बहुत से होते हैं, हत्याएं हो जाती हैं.’’

‘‘हां हुजूर, जमीन के बंटवारे के अलावा मैं ने आमना पर भी बुरी नजर रखी थी. उस की इज्जत पर भी हाथ डाला था. मंजूर की जगह कोई और होता तो मेरी हत्या कर देता. सच बात तो यह है कि हत्या मेरी होनी थी, लेकिन मंजूर की हो गई.’’

मैं उठ कर बाहर गया और एक कांस्टेबल से कहा कि वह आमना को ले कर आ जाए. फिर अंदर जा कर रशीद का बयान सुनने लगा. वह सब बातें खुल कर कर रहा था. मुझे आमना से यह पूछना था कि वास्तव में उस ने मंजूर को रशीद के पास भेजा था, जबकि उस ने यह कहा था कि उसे पता ही नहीं था कि मंजूर कहां गया था.

‘‘एक बात सच सच बता दो रशीद, आमना कैसे चरित्र की है?’’

‘‘आप ने लोगों से पूछा होगा आमना के बारे में, सब ने उसे सज्जन ही बताया होगा. मेरी नजरों में भी आमना एक सज्जन महिला है, क्योंकि उस ने मुझे दुत्कार दिया था. लेकिन उस ने अपनी संतुष्टि के लिए एक आदमी रखा हुआ है, वह है कयूम.’’

‘‘कयूम तो पागल है.’’

‘‘पागल बना रखा है,’’ उस ने कहा, ‘‘लेकिन अपने मतलब भर का.’’

‘‘मैं ने सुना है कि उसे कोई भी अपनी बेटी का रिश्ता नहीं देता, क्योंकि वह पागल है?’’

‘‘यह बात नहीं है हुजूर, बेटियों वाले इसी गांव में हैं. वे देख रहे हैं कि कयूम आमना के जाल में फंसा हुआ है.’’

बहुत से सवालों के जवाब के बाद मुझे यह लगा कि रशीद सच बोल रहा है, लेकिन फिर भी मुझे इधरउधर से पुष्टि करनी थी. रशीद यह भी कह रहा था कि उसे हवालात में बंद कर के तफ्तीश करें.

गामे के 3 आदमी थाने में बैठे थे, मैं ने उन्हें बारी बारी बुला कर पूछा कि हत्या की पहली रात गामे कहां था और क्या उन्हें पता है कि मंजूर की हत्या गामे शाह या तुम में से किसी ने की है.

मैं ने पहले भी बताया था कि ऐसे लोगों से थाने में पूछताछ दूसरे तरीके से होती है. ये तीनों तो पहले ही थाने के रिकौर्ड पर थे. मैं ने एक कांस्टेबल और एक एएसआई बिठा रखा था. मैं एक से सवाल करता था और फिर उन्हें इशारा कर देता था, वे उसे थोड़ी फैंटी लगा देते थे.

सुबह तक यह बात सामने आई कि गामे शाह दूसरी औरतों की तरह आमना को भी खराब करना चाहता था. गामे शाह ने उन तीनों को तैयार करना चाहा था कि वे मंजूर की हत्या कर दें, लेकिन वे तैयार नहीं हुए. उस के बाद वह आमना का अपहरण कर के उसे बहुत दूर पहुंचाना चाहता था, लेकिन हत्या कोई मामूली बात नहीं थी, जो ये छोटेमोटे जुआरी करते.

कोई भी तैयार नहीं हुआ तो गामे शाह ने कहा कि वह खुद बदला लेगा. तीनों ने बताया कि उस शाम जब वे गामे शाह के मकान पर गए तो वह घर पर नहीं मिला. वे वहीं बैठ गए. बहुत देर बाद गामे शाह आया तो उस के हाथ में कुल्हाड़ी थी. उन्होंने उस से पूछा कि वह कहां गया था, उस ने कहा कि एक शिकार के पीछे गया था. इस के अलावा उस ने कुछ नहीं बताया.

मोहब्बत का स्याह रंग : डाक्टर ने की हैवानियत की हद पार – भाग 2

राखी प्राय: रोज ही पिता को देखने जाती थी. जब भी वह अस्पताल में होती तो डा. डी.पी. सिंह ज्यादा से ज्यादा समय उस के पिता के बैड के आसपास चक्कर लगाता रहता. राखी को यह देख कर खुशी होती कि डाक्टर उस के पिता के इलाज को ले कर गंभीर हैं. वह उन का कितना ध्यान रख रहा है.

2-3 दिन में ही राखी समझ गई कि डा. डी.पी. सिंह जब भी चैकअप के लिए पिता के बैड के आता है तो उस की नजरें पिता पर कम, उस पर ज्यादा टिकती हैं. उस की नजरों में आशिकी झलकती थी. डी.पी. सिंह भी गबरू जवान था. साथ ही स्मार्ट भी. पिता की तीमारदारी में डी.पी. सिंह की सहानुभूति देख कर राखी भी उस के आकर्षक व्यक्तित्व पर फिदा हो गई. वह भी डी.पी. सिंह को कनखियों से देखा करती थी. जब दोनों की नजरें आपस में टकरातीं तो दोनों ही मुसकरा देते.

राखी ने भी खोल दिया दिल का दरवाजा

कह सकते हैं कि राखी और डी.पी. सिंह दोनों के दिल एकदूसरे की चाहत में धड़कने लगे. अंतत: मौका देख कर एक दिन दोनों ने अपने अपने प्यार का इजहार कर दिया. बाली उमर की कमसिन राखी डी.पी. सिंह को दिल से मोहब्बत करने लगी जबकि डी.पी. सिंह राखी को दिल से नहीं, बल्कि उस की खूबसूरती से प्यार करता था.

कई दिनों के इलाज से हरेराम श्रीवास्तव स्वस्थ हो कर अपने घर लौट गए. पिता के हौस्पिटल से डिस्चार्ज होने के बाद राखी किसी न किसी बहाने हौस्पिटल आ कर डी.पी. सिंह से मिलने लगी. सालों तक दोनों एक दूसरे की बाहों में बाहें डाले प्यार के झूले पर पेंग बढ़ाते रहे. आलम यह हो गया कि एकदूसरे को देखे बिना दोनों को चैन नहीं मिलता था.

डा. डी.पी. सिंह के दिल के पिंजरे में कैद हुई राखी ने उस के अतीत में झांका तो उसे ऐसा लगा जैसे उस के पैरों तले जमीन खिसक गई हो. राखी के सपनों का महल रेत की दीवार की तरह भरभरा कर ढह गया. क्योंकि डी.पी. सिंह पहले से शादीशुदा था. उस ने यह बात छिपा कर रखी थी. राखी को जब यह सच्चाई दूसरों से पता चली तो उसे गहरा धक्का लगा. वह डाक्टर से नाराज हो कर गोंडा चली गई. वहां वह बीएड की पढ़ाई करने लगी.

डा. डी.पी. सिंह राखी के अचानक मुंह मोड़ लेने से तड़प कर रह गया. वह समझ नहीं पा रहा था कि अचानक राखी उस से रूठ क्यों गई. डी.पी. सिंह से जब राखी की जुदाई बरदाश्त नहीं हुई तो उस ने राखी से बात की, ‘‘क्या बात है राखी, तुम अचानक रूठ कर क्यों गईं? जाने अनजाने में मुझ से कोई भूल हो गई हो तो मुझे माफ कर दो.’’

‘‘मैं माफी देने वाली कौन होती हूं,’’ राखी तुनक कर बोली.

‘‘अरे बाप रे बाप, इतना गुस्सा!’’ मुसकराते हुए डी.पी. सिंह ने कहा.

‘‘ये गुस्सा नहीं दिल की टीस है, जो आप ने दी है डाक्टर साहब.’’ राखी के चेहरे पर दिल का दर्द छलक आया.

आश्चर्य से डा. डी.पी. सिंह ने कहा, ‘‘मैं ने तुम्हारे दिल को ऐसी कौन सी टीस दे दी कि तुम मुझ से रूठ गईं और शहर छोड़ कर चली गईं. तुम अच्छी तरह जानती हो कि मैं तुम से कितना प्यार करता हूं.’’

‘‘डाक्टर साहब, आप इतनी बड़ी बड़ी बातें कर रहे हो. ये बताओ, आप ने अपनी जिंदगी की इतनी बड़ी सच्चाई मुझ से क्यों छिपाई? आप ने मुझे यह क्यों नहीं बताया कि आप शादीशुदा हो.’’

‘‘हां, यह सच है कि मैं शादीशुदा हूं. यह भी सच है कि मुझे तुम्हें यह सच्चाई पहले बता देनी चाहिए थी लेकिन…’’

‘‘लेकिन क्या?’’ बीच में बात काटते हुए राखी बोली.

‘‘बताने का मौका ही नहीं मिला,’’ डा. सिंह ने सफाई दी, ‘‘मैं तुम्हें अपने जीवन की यह सच्चाई बताने वाला था, लेकिन बताने का मौका नहीं मिला. इस बात का मुझे दुख है.’’

‘‘तो फिर अब यहां क्या लेने आए हैं?’’

‘‘अपने प्यार की भीख. मैं तुम से अपने प्यार की भीख मांगता हूं राखी. तुम मेरा प्यार मुझे लौटा दो. मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकता. फिर मैं यहां से चला जाऊंगा.’’

‘‘ठीक है, लेकिन मेरी भी एक शर्त है.’’ राखी बोली.

‘‘क्या शर्त है तुम्हारी?’’

‘‘यही कि आप को मुझ से शादी करनी होगी. मेरी यह शर्त मंजूर है तो बताओ?’’

‘‘मुझे तुम्हारी यह शर्त मंजूर है. मैं तुम से शादी करने के लिए तैयार हूं. शादी के बाद तुम्हें पत्नी की नजरों से बचा कर ऐसी जगह रखूंगा, जहां तुम पर किसी की नजर न पड़ सके.’’

राखी ने सभी गिलेशिकवे भुला दिए.

राखी बन गई डाक्टर की दूसरी पत्नी

सन 2011 के फरवरी में राखी और डा. डी.पी. सिंह ने परिवार वालों से छिप कर गोंडा जिले के आर्यसमाज मंदिर में प्रेम विवाह कर लिया. प्रेमी प्रेमिका दोनों पतिपत्नी बन गए. लेकिन यह बात राखी के परिवार वालों से ज्यादा दिनों तक छिपी नहीं रही.

राखी के पिता हरेराम श्रीवास्तव को बेटी द्वारा एक शादीशुदा आदमी से शादी करने की बात पता चली तो उन्हें गहरा सदमा पहुंचा. वह इस सदमे को सहन नहीं कर सके और उन की मौत हो गई. उस के बाद राखी के परिवार वालों ने उस से हमेशा हमेशा के लिए रिश्ता तोड़ लिया.

शादी के बाद डी.पी. सिंह ने दूसरी पत्नी राखी के रहने के लिए गोरखपुर के शाहपुर क्षेत्र की पौश कालोनी सरस्वतीपुरम में एक आलीशान मकान खरीद दिया. राखी इसी मकान में रहती थी. हौस्पिटल से खाली होने के बाद डी.पी. सिंह राखी से मिलने उस के पास आता था. घंटों साथ बिता कर वह पहली पत्नी ऊषा सिंह के पास चला जाता था. उस के साथ कुछ समय बिता कर रात में राखी के पास आ जाता.

पहली पत्नी को पता चल गई डाक्टर की हकीकत 

डी.पी. सिंह की पहली पत्नी ऊषा सिंह देख समझ रही थी कि उस के पति के स्वभाव और रहनसहन में काफी तब्दीलियां आ गई हैं. वह उस में पहले की अपेक्षा कम दिलचस्पी ले रहा था. रात रात भर घर से गायब रहता था. वह रात में कहां जाता था, उसे कुछ भी नहीं बताता था. वह बताता भी तो क्या.

हालांकि वह जानता था कि जिस दिन यह सच पहली पत्नी ऊषा को पता चलेगा तो उस की खैर नहीं. आखिरकार डी.पी. सिंह का अंदेशा सच साबित हुआ. ऊषा को पति पर शक हो गया और उस ने पति की दिनचर्या की खोजबीन शुरू कर दी.

ऊषा से पति की सच्चाई ज्यादा दिनों नहीं छिप पाई. आखिर पूरा सच उस के सामने खुल कर आ गया. उस ने भी तय कर लिया कि अपने जीते जी वह अपने सिंदूर का बंटवारा हरगिज नहीं करेगी. या तो सौतन को मार देगी या खुद मर जाएगी.

इस बात को ले कर पतिपत्नी के बीच विवाद खड़ा हो गया. दूसरी औरत राखी को  ले कर ऊषा ने पति को आड़े हाथों लिया तो डी.पी. सिंह की बोलती बंद हो गई. वह हैरान था कि उस की सच्चाई पत्नी तक कैसे पहुंची, जबकि उस ने इस राज को काफी गहराई तक छिपा रखा था.

एक हत्या ऐसी भी : कौन था मंजूर का कातिल? – भाग 3

रात आधी से अधिक बीत चुकी थी. मेरे सामने एक जटिल विवेचना थी. मैं थोड़ा सा आराम करने के लिए लेट गया. मेरे बुलाए गामे शाह के तीनों आदमी आ गए थे. उन से भी मुझे पूछताछ करनी थी. ऐसे लोगों से जांच थाने में ही होती है. मैं ने उन्हें यह कह कर थाने भेज दिया कि मेरा इंतजार करें.

सुबह मेरी आंख खुली. नाश्ते के बाद मैं ने सब से पहले रशीद को बुलवाया. वह भी सुंदर जवान था. मैं ने उसे अपने सामने बिठाया, वह घबराया हुआ था. उस की आंखें जैसे बाहर को आ रही थीं.

मैं ने कहा, ‘‘तुम ही कुछ बताओ रशीद, मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूं. मंजूर की हत्या किस ने की है?’’

‘‘मैं क्या बता सकता हूं सर,’’ उस के मुंह से ये शब्द मुश्किल से निकले थे.

‘‘इतना मत घबराओ, जो कुछ तुम्हें पता है, सचसच बता दो. मुझे जो दूसरों से पता चलेगा वह तुम ही बता दो. फिर देखो, मैं तुम्हें कितना फायदा पहुंचाता हूं.’’

‘‘मैं कुछ नहीं जानता सर,’’ उस ने आंखें झुका लीं.

‘‘ऊपर देखो, तुम सब कुछ जानते हो. तुम्हें बोलना ही पड़ेगा. मंजूर अपना हिस्सा लेने की कोशिश कर रहा था, तुम ने सोचा इसे दुनिया से ही उठा दो.’’

‘‘नहीं सर,’’ वह तड़प कर बोला, जैसे उस में जान आ गई हो. वह अपने आप को निर्दोष साबित करने लगा.

हत्या के जितने भी कारण बताए गए थे. मैं ने एकएक कर के उस के सामने रखे. वह सब से इनकार करता रहा. मैं ने जब उस से पूछा कि हत्या के समय वह कहां था तो उस ने बताया कि वह घर पर ही था.

‘‘सूरज डूबने के कितनी देर बाद घर आए थे?’’

‘‘मैं तो सूरज डूबते ही घर आ गया था.’’

‘‘इस से पहले कहां थे?’’

‘‘बाग में.’’

चूंकि वह मेरी नजरों में संदिग्ध था, इसलिए मैं ने उस से खास तरह की पूछताछ की. रशीद से जो बातें हुईं, मैं ने उन्हें अपने दिमाग में रखा और बाहर आ कर चौकीदार से कहा कि रशीद के बाग में जो मजदूर काम करता है, उसे और उस की पत्नी को ले आए.

रशीद को मैं ने बाहर बिठा दिया और उस के बाप को बुलाया. बाप आ गया तो मैं ने उस से पूछा, ‘‘हत्या के दिन रशीद घर किस समय आया था?’’

उस ने बताया कि वह सूरज डूबने के बाद आया था.

‘‘एक घंटा या 2 घंटे बाद?’’

‘‘डेढ़ घंटा समझ लें.’’

यह रशीद का बाप था, इसलिए मैं उस से उम्मीद नहीं रख सकता था कि वह सच बोलेगा.

रशीद का नौकर जो बाग में रहता था, मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम इन लोगों के रिश्तेदार नहीं हो, नौकर हो. इन के गले की फांसी का फंदा अपने गले में मत डलवाना. मैं जो पूछूं, सचसच बताना. तुम जानते हो कल रात मंजूर की हत्या हुई है. शाम को रशीद बाग में था, क्या यह सही है?’’

‘‘हां हुजूर, वह बाग में ही था.’’

‘‘पहले तो वह अकेला ही था,’’ मजदूर ने जवाब दिया, ‘‘पनेरी लगानी थी. रशीद हमारे साथ था, फिर मंजूर आ गया था.’’

‘‘कौन मंजूर?’’ मैं ने हैरानी से कहा.

‘‘वही मंजूर सर, जिस की हत्या हुई है.’’

मुझे ऐसा लगा, जैसे अंधेरे में रोशनी की किरन दिखाई दी हो.

‘‘हां, फिर क्या हुआ?’’ मैं ने इस आशा से पूछा कि वह यह कहेगा कि उन की लड़ाई हुई थी.

‘‘मंजूर रशीद को अलग ले गया.’’ मजदूर ने कहा, ‘‘फिर वे चारपाई पर बैठे रहे.’’

‘‘कितनी देर बैठे रहे?’’

‘‘सूरज डूबने तक बैठे रहे.’’

‘‘तुम में से किसी ने उन की बातें सुनीं?’’

‘‘नहीं हुजूर, हम दूर क्यारियों में पनेरी लगा रहे थे. जब अंधेरा हो गया तो हम काम छोड़ कर अपने कोठों में चले गए.’’

‘‘ये बताओ, क्या वे ऊंची आवाज में बातें कर रहे थे? मेरा मतलब क्या वे झगड़ रहे थे?’’

‘‘नहीं हुजूर, वे तो बड़े आराम से बातें कर रहे थे. जब अंधेरा हुआ तो दोनों ने हाथ मिलाया और मंजूर चला गया.’’

‘‘…और रशीद?’’

‘‘वह कुछ देर बाग में रहा, उस ने हम से पनेरी के बारे में पूछा और फिर वह भी चला गया.’’

‘‘तुम ने उसे जाते हुए देखा था? उस के हाथ में कुल्हाड़ी थी?’’

‘‘नहीं हुजूर,’’ उस ने जवाब दिया, ‘‘जाने से पहले वह कमरे में गया था. जब वापस आया तो अंधेरा हो गया था. उस के हाथ में क्या था, हमें दिखाई नहीं दिया.’’

मैं ने उस की पत्नी को बुला कर उस से पूछा कि क्या मंजूर पहले कभी बाग में आया था. उस ने बताया कि परसों से पहले वह तब आया था, जब उन का झगड़ा चल रहा था. मैं ने उस से पूछा कि रशीद जब बाग से निकल रहा था तो क्या उस के हाथ में कुल्हाड़ी थी?

‘‘हां थी हुजूर.’’

‘‘अंधेरे में तुम्हें कैसे पता चला कि उस के हाथ में कुल्हाड़ी है?’’

‘‘डंडा होगा या कुल्हाड़ी होगी. अंधेरे में साफसाफ नहीं दिखा.’’

मैं ने मजदूर को अंदर बुलाया और कुछ बातें पूछ कर जाने दिया. उस के बाद मेरे 2 मुखबिर आ गए. उन्होंने वही बातें बताईं जो मुझे पहले पता लग गई थीं. उन्होंने विश्वास के साथ कहा कि आमना चरित्रवान औरत है. कयूम के बारे में बताया कि वह दिमागी तौर पर कमजोर है, लेकिन बात खरी करता है. उन्होंने भी रशीद पर शक किया.

उन में से एक ने कहा, ‘‘जनाब, आप गामे शाह को भी सामने रखें. कयूम और मंजूर ने उसे ऐसी फैंटी लगाई थी कि वह काफी देर तक बेहोश पड़ा रहा था. वह बहुत जहरीला आदमी है, बदला जरूर लेता है.’’

‘‘लेकिन उस ने कयूम से तो बदला नहीं लिया?’’

‘‘वह कहता था कि मंजूर को ठिकाने लगा कर उस की बीवी का अपहरण करेगा.’’

उस समय तक मृतक का अंतिम संस्कार हो चुका था. मैं ने मंजूर की पत्नी को बुलवाया. उस की आंखें सूजी हुई थीं. लेकिन मुझे पूछताछ करनी थी. अभी तक मुझे आमना और कयूम पर ही शक था.

‘‘मैं तुम्हें परेशान नहीं करना चाहता आमना. यह समय पूछने का तो नहीं है, लेकिन मैं केस की जांच कर रहा हूं. मैं चाहता हूं कि तुम से यहीं कुछ पूछ लूं, नहीं तो तुम्हें थाने में आना पड़ता, जो अच्छा नहीं होता. तुम जरा अपने आप को संभालो और मुझे बताओ कि मंजूर और रशीद की दुश्मनी का क्या मामला था?’’

उस ने वही बातें बताईं जो पहले बता चुकी थी.

‘‘क्या रशीद ने तुम्हारे साथ कोई छेड़छाड़ की थी?’’ मैं ने आमना से पूछा. उस ने बताया कि 2 बार की थी. मैं ने तंग आ कर यह बात अपने पति को बता दी थी. कयूम को भी पता लग गया. दोनों उस का वही हाल करना चाहते थे जो उन्होंने गामे शाह का किया था.

‘‘मैं ने सुना है कि वह रशीद के बाग में गया था. वह वहां से निकला तो लेकिन घर नहीं पहुंचा. क्या तुम्हें पता है कि वह रशीद के बाग में गया था?’’

आमना ने जवाब दिया, ‘‘नहीं, वह बताता भी कैसे. आप के कहने के मुताबिक वह वहां से निकला तो लेकिन घर नहीं पहुंच सका. जाहिर है, रशीद ने उस की हत्या कर दी थी.’’

‘‘यह तो तुम कभी नहीं बताओगी कि कयूम के साथ तुम्हारे संबंध कैसे थे?’’

उस कहा, ‘‘मैं तो बता दूंगी, लेकिन आप यकीन नहीं करेंगे. वह मेरा भाई है.’’

‘‘आमना…सच्ची बात कहनी है तो खुल कर कहो. कयूम के साथ तुम्हारे संबंध कैसे हैं, मेरा इस से कुछ लेना देना नहीं. मैं ने मंजूर के हत्यारे को पकड़ना है. क्या तुम्हारे दिल में वैसी ही मोहब्बत है, जैसी कयूम के दिल में तुम्हारे लिए है.’’

‘‘नहीं,’’ आमना ने कहा, ‘‘जब वह महज 12-13 साल का था, तभी से हमारे यहां आता था. अब वह जवान हो गया है. मुझे डर था कि मेरा शौहर आपत्ति करेगा, लेकिन उस ने कोई आपत्ति नहीं की. मैं ने कयूम से कहा था, जवान औरत से जवान आदमी की मोहब्बत किसी और तरह की होती है. कयूम ने मेरी ओर हैरानी से देखा और देखते ही देखते उस की आंखों में आंसू आ गए.

‘‘वह मुझ से 4-5 साल छोटा है. मैं ने उसे अपने गले से लगा लिया तो वह हिचकियां ले कर रोने लगा. मैं ने उसे चुप कराया. वह बोला, ‘आमना, यह कहने से पहले मुझे जहर दे देती.’ इस मोहब्बत को देख कर लोगों ने उसे रिश्ते देने बंद कर दिए.

‘‘मैं ने उस से कहा, मैं तुम्हारा किसी और जगह रिश्ता करवा दूंगी. उस ने दोटूक जवाब दिया, जब तक तुम जिंदा हो, मैं कहीं शादी नहीं कर सकता. अगर किसी लड़की से मेरी शादी हो भी जाती है और वह मुझे अच्छी लगती है तो मैं उसे पत्नी नहीं समझूंगा, क्योंकि उस में मुझे तुम दिखाई दोगी और मैं तुम्हें बहुत पवित्र समझता हूं.’’

मैं ने आमना को जाने की इजाजत दे दी, लेकिन अपने दिमाग में उसे संदिग्ध ही रखा.

मासूम से दुश्मनी : चचेरे भाई ने ले ली जान – भाग 3

थानाप्रभारी नवीन सिंह को जब मुखबिर के जरिए पता चला कि शिवम फरार हो गया है तो उन का माथा ठनका. उन्होंने इस बाबत जब शिवम के पिता विनोद विश्नोई से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि शिवम बहुत परेशान था. वह खाना भी ठीक से नहीं खा पा रहा था. कोई बात पूछने पर उलझ जाता था. फिर अकस्मात कहीं चला गया. वह कहां गया और किस हालत में है उन्हें नहीं पता.

यकीन नहीं था भाई ही ऐसा करेगा

शिवम पर शक गहराया तो पुलिस टीम उस के पीछे पड़ गई. सर्विलांस सेल प्रभारी राजीव कुमार ने उस के मोबाइल फोन के नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया. स्वाट टीम प्रभारी रोहित तिवारी भी शिवम की टोह में जुट गए. पुलिस टीम ने अपने खास मुखिबर भी शिवम की सुरागरसी में लगा दिए.

उस की लोकेशन कभी रनियां में मिलती तो कभी पुखरायां में. बारबार लोकेशन बदलने से वह पुलिस की पकड़ में नहीं आ रहा था.

10 नवंबर, 2018 की दोपहर थानाप्रभारी नवीन कुमार सिंह, एसपी द्वारा गठित टीम के साथ विचारविमर्श कर रहे थे, तभी उन्हें एक मुखबिर द्वारा सूचना मिली कि शिवम, राजपुर औरैया रोड स्थित एक ढाबे पर मौजूद है.

मुखबिर की सूचना महत्त्वपूर्ण थी, इसलिए उन्होंने बिना देर किए पुलिस टीम के साथ मुखबिर की निशानदेही पर ढाबे पर छापा मारा. पुलिस को आया देख कर शिवम भागा, लेकिन पुलिस टीम ने उसे दबोच लिया. शिवम को थाना राजपुर लाया गया.

थाने पर जब शिवम ने आकाश की हत्या के संबंध में पूछा गया तो वह रिश्तों की दुहाई दे कर पुलिस को गुमराह करने की कोशिश करने लगा. लेकिन जब पुलिस ने सख्ती की तो वह टूट गया.

उस ने हत्या का राज खोलते हुए बताया कि आकाश ने उस की बहन को बदनाम किया था. बदनामी न करने के लिए उस ने आकाश को बहुत समझाया. वह नहीं माना तो उस ने उसे अपहृत कर के बंबे में डुबोडुबो कर मार डाला. हालांकि वह आकाश को बहुत चाहता था और उस की हत्या नहीं करना चाहता था.

गिरफ्तारी के बाद पुलिस टीम ने घटना को रिक्रिएट किया. रिक्रिएशन के दौरान शिवम ने जिस तरह आकाश का अपहरण किया तथा जिस तरह उसे बंबे में डुबो कर मारा, सब कर के दिखाया. इस से यह बात स्पष्ट रूप से साबित हो गई कि शिवम ही आकाश का हत्यारा था. थानाप्रभारी नवीन कुमार सिंह ने आकाश की हत्या का राज खोलने तथा हत्यारे को पकड़ने की जानकारी एसपी राधेश्याम को दे दी.

चूंकि अभियुक्त शिवम ने आकाश की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था. इसलिए थानाप्रभारी नवीन कुमार सिंह ने शिवम को अपहरण व हत्या की धारा 363, 302 आईपीसी के तहत विधिवत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस की जांच और अभियुक्त शिवम के बयानों से पूरी साजिश का पता चल गया.

कानपुर देहात जनपद का कस्बा राजपुर कानपुर मुख्यालय माती से लगभग 30 किलोमीटर दूर है. सुनील विश्नोई राजपुर कस्बे में अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी रानी के अलावा 2 बेटे आकाश, अंशु और एक बेटी राधा थी. सुनील सीधासादा व्यवसाई था. व्यवसाय से ही वह अपने परिवार का पालनपोषण करता था.

सुनील विश्नोई पानतंबाकू से संबंधित चीजों का व्यवसाय करता था. यह सामान वह अकबरपुर, पुखरायां, भोगनीपुर व रनियां आदि कस्बों में पान की दुकानों व जनरल स्टोर्स पर सप्लाई करता था. इस के अलावा वह आसपास के बाजारों में भी अपना सामान बेचता था. इस काम में उसे अच्छी कमाई हो जाती थी.

सुनील विश्नोई का 12 वर्षीय पुत्र आकाश पढ़ने में जितना तेज था, उस से कहीं ज्यादा शरारती भी था. पढ़ाई के साथसाथ वह अपने पिता के व्यवसाय में हाथ बंटाता था. आकाश की मां रानी व बहन राधा भी काम में हाथ बंटाती थीं.

पतिपत्नी नहीं समझ पाए शिवम की नीयत

सुनील के घर से 2 मकान आगे उस का बड़ा भाई विनोद रहता था. विनोद किसान था. खेती की उपज से वह अपने परिवार का पालनपोषण करता था. विनोद के बेटे का नाम शिवम था. वह खेती के कामों में अपने पिता का हाथ बंटाता था. विनोद गुस्सैल स्वभाव का था. इसलिए मोहल्ले के लोग उसे पसंद नहीं करते थे.

सुनील और विनोद दोनों भाइयों में खूब पटती थी. दोनों का एकदूसरे के घरों में आनाजाना व उठनाबैठना था. सुनील का बेटा आकाश व विनोद का बेटा शिवम चचेरे भाई थे. उन में भी खूब पटती थी. दोनों एक दूसरे के घरों में बेरोकटोक आतेजाते थे.

शिवम की बहन मोहल्ले के एक युवक से प्यार करती थी. दोनों चोरीछुपे मिलते थे. एक रोज आकाश ने दोनों को हंसते बतियाते और अश्लील हरकत करते देख लिया.

आकाश ने प्रेमप्रसंग वाली बात पहले मां रानी को बताई फिर मोहल्ले के अन्य लोगों को भी बता दी. इस से यह बात पूरे क्षेत्र में फैल गई. शिवम को जानकारी हुई तो उस ने आकाश को फटकारा और आइंदा जुबान बंद रखने को कहा. लेकिन आकाश नहीं माना.

बहन के प्रेमप्रसंग को ले कर शिवम की बदनामी हो रही थी. उस का गली से निकलना दूभर हो गया था. उस ने आकाश को सबक सिखाने की ठान ली और उचित समय का इंतजार करने लगा.

21 सितंबर, 2018 को जब आकाश स्कूल से लौटा और खेलने के लिए पार्क में पहुंचा तो उस पर शिवम की नजर पड़ गई. जब आकाश खेल चुका तो शिवम ने उसे बुलाया और बहलाफुसला कर अपने साथ कस्बे के बाहर बंबे पर ले आया.

कुछ देर वह आकाश से बतियाता रहा, फिर अकस्मात उस का गला दबाने लगा. आकाश छटपटाने लगा तो शिवम ने उसे बंबे में धकेल दिया और डुबोडुबो कर मौत के घाट उतार दिया. हत्या करने के बाद उस ने शव को पत्थर से दबा दिया और वापस घर आ गया.

इधर आकाश खेल कर घर वापस नहीं आया तो उस की मां रानी को चिंता हुई. वह उसे खोजने घर से निकल पड़ी.

आकाश तो किसी को नहीं मिला लेकिन 4 दिन बाद उस की लाश बंबे में उतराती मिली. पूछताछ के बाद पुलिस ने शिवम को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मोहब्बत का स्याह रंग : डाक्टर ने की हैवानियत की हद पार – भाग 1

गोरखपुर पुलिस लाइंस स्थित मनोरंजन कक्ष खबर नवीसों से खचाखच भरा हुआ था. सामने कुरसी पर स्पैशल  टास्क फोर्स (एसटीएफ) के आईजी अमिताभ यश और एसएसपी डा. सुनील गुप्ता बैठे हुए थे. चूंकि पत्रकार वार्ता का आयोजन आईजी यश ने किया था, इसलिए ये वार्ता और भी खास लग रही थी. पत्रकारों के मन में एक अजीब सा कौतूहल था. ऐसा लग रहा था जैसे एसटीएफ के हाथ कोई बड़ा मामला लगा है और उसी के खुलासे के लिए लखनऊ से आए अमिताभ यश ने प्रैस वार्ता आयोजित की हो.

थोड़ी देर बाद पत्रकारों के मन से कौतूहल के बादल छंट गए, जब उन के सामने 3 आरोपियों को कतारबद्ध खड़ा किया गया. उन में से एक आरोपी गोरखपुर शहर का जाना माना डाक्टर और आर्यन हौस्पिटल का संचालक डा. डी.पी. सिंह उर्फ धीरेंद्र प्रताप सिंह था.

वार्ता शुरू करते हुए एसटीएफ आईजी अमिताभ यश ने सनसनीखेज खुलासा करते हुए कहा, ‘‘यह पत्रकारवार्ता 6 महीने पहले 2 जून, 2018 को नेपाल के पोखरा से रहस्यमय तरीके से गायब हुई गोरखपुर की सरस्वतीपुरम कालोनी निवासी राजेश्वरी उर्फ राखी श्रीवास्तव केस से जुड़ी हुई है, जिस की लाश 4 जून, 2018 को पोखरा की एक गहरी खाई से बरामद की गई थी.’’

नेपाल पुलिस ने मृतका का पोस्टमार्टम करवाया था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उस का पेट फटने के कारण मौत की पुष्टि हुई थी. इधर 4 जून, 2018 को राखी के भाई अमर प्रकाश श्रीवास्तव ने बिहार के गया निवासी अपने बहनोई मनीष सिन्हा पर गोरखपुर के शाहपुर थाने में राखी के अपहरण और जान से मारने की धमकी का मुकदमा दर्ज करवाया था. मनीष सिन्हा ने खुद को बेगुनाह बताते हुए मामले की जांच एसटीएफ से कराए जाने की मांग की थी.

मुकदमे से संबंधित विवेचना की फाइल एसटीएफ के पास आई तो जांच शुरू की गई. नेपाल पुलिस ने भारतीय पुलिस से मृतका के फोटो साझा करते हुए केस का खुलासा करने में मदद मांगी थी. फोटो को एसटीएफ के तेजतर्रार सिपाही शुक्ला ने पहचान लिया. वह राखी श्रीवास्तव की तसवीर थी.

जांचपड़ताल में पता चला कि राखी श्रीवास्तव आर्यन हौस्पिटल के संचालक डा. डी.पी. सिंह की दूसरी पत्नी थी. 7 साल पहले दोनों ने आर्यसमाज मंदिर में शादी की थी. शादी के बारे में डाक्टर की पहली पत्नी ऊषा सिंह को जानकारी नहीं थी. जब जानकारी हुई तो परिवार में हड़कंप मच गया.

आगे चल कर डा. डी.पी. सिंह और राखी के बीच संबंधों को ले कर टकराव पैदा हो गया. राखी की उम्मीदें और डिमांड लगातार बढ़ती जा रही थीं. इस सब के चलते डाक्टर राखी से पीछा छुड़ाना चाह रहा था.

आईजी ने आगे बताया, ‘‘राखी ने शहर के कैंट थाने में डी.पी. सिंह के खिलाफ रेप और धमकी देने का मुकदमा भी दर्ज कराया था. हालांकि बाद में दोनों ने सुलह कर लिया था. फरवरी 2018 में राखी ने मनीष सिन्हा से दूसरी शादी कर ली थी, लेकिन इस के बावजूद डा. डी.पी. सिंह और राखी श्रीवास्तव के बीच रिश्ता बना रहा. इस के बावजूद राखी की डिमांड बढ़ती जा रही थी.

‘‘राखी की डिमांड से तंग आ कर डा. डी.पी. सिंह ने राखी की हत्या की साजिश रच डाली. बीते 4 जून, 2018 को राखी नेपाल के पोखरा घूमने गई थी. इस की जानकारी मिलने पर डा. डी.पी. सिंह अपने 2 कर्मचारियों देशदीपक निषाद और प्रमोद सिंह के साथ किराए की स्कौर्पियो से नेपाल गया. जहां उस ने राखी से मुलाकात कर उसे अपने झांसे में ले लिया.

‘‘डा. डी.पी. सिंह ने राखी को शराब पिलाई और नशे की गोली दे कर बेहोश कर दिया. बेहोशी की हालत में डी.पी. सिंह ने राखी को अपने दोनों कर्मचारियों के साथ पहाड़ी से नीचे खाई में फेंक दिया, जहां सिर और पेट में चोट आने से उस की मौत हो गई. बाद में डी.पी. सिंह अपने दोनों साथियों के साथ फरार हो गया. इस हाईप्रोफाइल मामले की जांच में स्थानीय पुलिस के साथ एसटीएफ भी लगी थी. ऐसे में गहराई से मामले की जांच किए जाने पर डा. डी.पी. सिंह और राखी के पहले के संबंधों की तह तक जाने पर हत्याकांड का खुलासा हो पाया.’’

पत्रकारों के पूछे जाने पर डा. डी.पी. सिंह और दोनों कर्मचारियों देशदीपक निषाद तथा प्रमोद सिंह ने अपना अपना जुर्म कबूल करते हुए राखी श्रीवास्तव हत्या में संलिप्तता स्वीकार ली. पत्रकारवार्ता के बाद पुलिस ने तीनों आरोपियों को अदालत में पेश किया. अदालत ने तीनों आरोपियों को जेल भेजने का आदेश दिया. तब पुलिस ने तीनों को गोरखपुर जिला जेल भेज दिया. यह 21 दिसंबर, 2018 की बात है.

आरोपियों के इकबालिया बयान और पुलिस जांचपड़ताल के बाद इस केस की हाईप्रोफाइल प्रेम कहानी कुछ ऐसे सामने आई—

गोरखपुर के कैंट थाना क्षेत्र की पौश कालोनी बिलंदपुर में विद्युत विभाग से सेवानिवृत्त इंजीनियर हरेराम श्रीवास्तव अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में कुल जमा 6 सदस्य थे, जिन में 2 बेटे और 2 बेटियां थीं. उन के चारों बच्चों में राजेश्वरी सब से छोटी थी. सब उसे प्यार से राखी कहते थे.

चारों भाईबहनों में राखी सब से अलग थी. उस के काम करने का तरीका, उठनेबैठने और पढ़नेलिखने का सलीका, बातचीत करने का अंदाज सब कुछ अलग था. परिवार में सब से छोटी होने की वजह से घर वाले उसे प्यार भी बहुत करते थे.

राखी मांबाप की दुलारी तो थी ही, बड़ा भाई अमर प्रकाश भी उसे बहुत चाहता था. बहन में जान बसती थी बड़े भाई अमर की. जिद्दी स्वभाव की राखी लाड़प्यार में भाई से जो मांगती थी, अमर कभी इनकार नहीं करता था.

राखी पर मोहित हो गया था डा. डी.पी. सिंह

सन 2006 की बात है. राखी के पिता हरेराम श्रीवास्तव बीमार थे. उन्हें इलाज के लिए आर्यन हौस्पिटल में इलाज के लिए भरती कराया गया था. यह हौस्पिटल घर के पास तो था ही, पूर्वांचल का जानामाना भी था. बेहतर इलाज और नजदीक समझते हुए अमर प्रकाश ने पिता को डा. डी.पी. सिंह के हौस्पिटल में भरती करा दिया. पिता की तीमारदारी के लिए घर वाले अस्पताल आतेजाते रहते थे. राखी भी आतीजाती थी.

करीब साढ़े 5 फीट लंबी राखी छरहरी तो थी ही ऊपर से गठीला बदन, गोरा रंग, गोलमटोल चेहरा, नागिन सी लहराती चोटी, झील सी गहरी आंखों से वह बला की खूबसूरत दिखती थी. डा. डी.पी. सिंह उर्फ डा. धीरेंद्र प्रताप सिंह की नजर जब राखी पर पड़ी तो उस का मन राखी में ही उलझ कर रह गया. एक तरह से वह उस के दिल में समा गई.

जिंदगी के रंग निराले : कुदरत का बदला या धोखे की सजा?