
समरजीत दीपा को जीजान से चाहता था, इसलिए उसे पत्नी पर विश्वास था. लेकिन उसे इस बात की भनक तक नहीं लगी कि उस के विश्वास को धता बता कर वह क्या गुल खिला रही है. कहते हैं कि कोई भी गलत काम ज्यादा दिनों तक छिपाया नहीं जा सकता. एक न एक दिन किसी तरीके से वह लोगों के सामने आ ही जाता है.
दीपा की आशिकमिजाजी भी एक दिन समरजीत के सामने आ गई. हुआ यह था कि एक बार समरजीत की रात की ड्यूटी लगी थी. वह शाम 7 बजे ही घर से चला गया था. दीपा को पता था कि पति की ड्यूटी रात 8 बजे से सुबह 8 बजे तक की है. जब भी पति की रात की ड्यूटी होती थी, दीपा प्रेमी को रात 10 बजे के करीब अपने कमरे पर बुला लेती थी. मौजमस्ती करने के बाद वह रात में ही चला जाता था. उस दिन भी उस ने अपने प्रेमी को घर बुला लिया.
रात 11 बजे के करीब समरजीत की तबीयत अचानक खराब हो गई. ड्यूटी पर रहते वह आराम नहीं कर सकता था. वह चाहता था कि घर जा कर आराम करे. लेकिन उस समय घर जाने के लिए उसे कोई सवारी नहीं मिल रही थी. इसलिए उस ने अपने एक दोस्त से घर छोड़ने को कहा. तब दोस्त अपनी मोटरसाइकिल से उसे उस के कमरे के बाहर छोड़ आया.
समरजीत ने जब अपने कमरे का दरवाजा खटखटाया तो प्रेमी के साथ गुलछर्रे उड़ा रही दीपा दरवाजे की दस्तक सुन कर घबरा गई. उस के मन में विचार आया कि पता नहीं इतनी रात को कौन आ गया. प्रेमी को बेड के नीचे छिपने को कह कर उस ने अपने कपड़े संभाले और बेमन से दरवाजे की तरफ बढ़ी.
जैसे ही उस ने दरवाजा खोला, सामने पति को देख कर वह चौंक कर बोली, ‘‘तुमऽऽ, आज इतनी जल्दी कैसे आ गए?’’
‘‘आज मेरी तबीयत ठीक नहीं है इसलिए ड्यूटी बीच में ही छोड़ कर आ गया.’’ समरजीत कमरे में घुसते हुए बोला.
कमरे में बेड के नीचे दीपा का प्रेमी छिपा हुआ था. दीपा इस बात से डर रही थी कि कहीं आज उस की पोल न खुल जाए. समरजीत की तो तबीयत खराब थी. वह जैसे ही बेड पर लेटा, उसी समय बेड के नीचे से दीपा का प्रेमी निकल कर भाग खड़ा हुआ. अपने कमरे से किसी आदमी को निकलते देख समरजीत चौंका. वह उस की सूरत नहीं देख पाया था. समरजीत उस भागने वाले आदमी को भले ही नहीं जानता था, लेकिन उसे यह समझते देर नहीं लगी कि उस की गैरमौजूदगी में यह आदमी कमरे में क्या कर रहा होगा.
वह गुस्से में भर गया. उस ने पत्नी से पूछा, ‘‘यह कौन था और यहां क्यों आया था?’’
‘‘पता नहीं कौन था. कहीं ऐसा तो नहीं कि वह चोर हो. कोई सामान चुरा कर तो नहीं ले गया.’’ दीपा ने बात घुमाने की कोशिश करते हुए कहा और संदूक का ताला खोल कर अपना कीमती सामान तलाशने लगी.
तभी समरजीत ने कहा, ‘‘तुम मुझे बेवकूफ समझती हो क्या? मुझे पता है कि वह यहां क्यों आया था. उसे जो चीज चुरानी थी, वह तुम ने उसे खुद ही सौंप दी. अब बेहतर यह है कि जो हुआ उसे भूल जाओ. आइंदा यह व्यक्ति यहां नहीं आना चाहिए. और न ही ऐसी बात मुझे सुनने को मिलनी चाहिए.’’
पति की नसीहत से दीपा ने राहत की सांस ली. समरजीत तबीयत खराब होने पर घर आराम करने आया था, लेकिन आराम करना भूल कर वह रात भर इसी बात को सोचता रहा कि जिस दीपा के लिए उस ने अपना गांव छोड़ा, उसे पत्नी बनाया, उसी ने उस के साथ इतना बड़ा विश्वासघात क्यों किया. वह इस बात को अच्छी तरह जानता था कि जब कोई भी महिला एक बार देहरी लांघ जाती है तो उस पर विश्वास करना मूर्खता होती है.
अगले दिन जब वह ड्यूटी पर गया तो वहां भी उस का मन नहीं लगा. उस के मन में यही बात घूम रही थी कि दीपा अपने यार के साथ गुलछर्रे उड़ा रही होगी. घर लौटने के बाद उस ने अपने भाइयों अरविंद और धर्मेंद्र से दीपा के बारे में बात की. यह बात उस ने अपने मामा नरेंद्र को भी बताई.
उन सभी ने फैसला किया कि ऐसी कुलच्छनी महिला की चौकीदारी कोई हर समय तो कर नहीं सकता. इसलिए उसे खत्म करना ही आखिरी रास्ता है. दीपा को खत्म करने का फैसला तो ले लिया, लेकिन अपना यह काम उसे कहां और कब करना है, इस की उन्होंने योजना बनाई.
काफी सोचनेसमझने के बाद उन्होंने तय किया कि दीपा को दिल्ली में मारना ठीक नहीं रहेगा, क्योंकि लाख कोशिशों के बाद भी वह दिल्ली पुलिस से बच नहीं पाएंगे. अपने जिला क्षेत्र में ले जा कर ठिकाने लगाना उन्हें उचित लगा.
समरजीत को पता था कि दीपा सुलतानपुर जाने के लिए आसानी से तैयार नहीं होगी. उसे झांसे में लेने के लिए उस ने एक दिन कहा, ‘‘दीपा, सुलतानपुर के ही नगईपुर में मेरे मामा रहते हैं. उन के कोई बच्चा नहीं है और उन के पास जमीनजायदाद भी काफी है. उन्होंने हम दोनों को अपने यहां रहने के लिए बुलाया है. तुम्हें तो पता ही है कि दिल्ली में हम लोगों का गुजारा बड़ी मुश्किल से हो रहा है. इसलिए मैं चाहता हूं कि हम लोग कुछ दिन मामा के घर पर रहें.’’
पति की बात सुन कर दीपा ने भी सोचा कि जब उन की कोई औलाद नहीं है तो उन के बाद सारी जायदाद पति की ही हो जाएगी. इसलिए उस ने मामा के यहां रहने की हामी भर दी.
23 दिसंबर, 2013 को समरजीत दीपा को ट्रेन से सुलतानपुर ले गया. उस के साथ दोनों भाई अरविंद और धर्मेंद्र भी थे. जब वे सुलतानपुर स्टेशन पहुंचे, अंधेरा घिर चुका था. नगईपुर सुलतानपुर स्टेशन से दूर था. नगईपुर गांव से पहले ही समरजीत के मामा नरेंद्र का आम का बाग था. प्लान के मुताबिक नरेंद्र उन का उसी बाग में पहले से ही इंतजार कर रहा था. बाग के किनारे पहुंच कर तीनों भाइयों ने दीपा की गला घोंट कर हत्या कर दी और बाग में ही गड्ढा खोद कर लाश को दफना दिया.
जिस गड्ढे में उन्होंने लाश दफन की थी, जल्दबाजी में वह ज्यादा गहरा नहीं खोदा गया था. नरेंद्र को इस बात का अंदेशा हो रहा था कि जंगली जानवर मिट्टी खोद कर लाश न खाने लगें. ऐसा होने पर भेद खुलना लाजिमी था इसलिए इस के 2 दिनों बाद नरेंद्र रात में ही अकेला उस बाग में गया और वहां से 20-25 कदम दूर दूसरा गहरा गड्ढा खोदा. फिर पहले गड्ढे से दीपा की लाश निकालने के बाद उस ने उसे उसी की शाल में गठरी की तरह बांध दिया.
उस गठरी को उस ने दूसरे गहरे गड्ढे में दफना कर उस के ऊपर आम का एक पेड़ लगा दिया ताकि किसी को कोई शक न हो. दीपा को ठिकाने लगाने के बाद वे इस बात से निश्चिंत थे कि उन के अपराध की किसी को भनक न लगेगी. यह जघन्य अपराध करने के बाद अरविंद और धर्मेंद्र पहले की ही तरह बनठन कर घूम रहे थे. उन को देख कर कोई अनुमान भी नहीं लगा सकता था कि उन्होंने हाल ही में कोई बड़ा अपराध किया है.
गांव के ज्यादातर लोगों को पता था कि दीपा दिल्ली में समरजीत के साथ पत्नी की तरह रह रही है. जब उन्होंने समरजीत को गांव में अकेला देखा तो उन्होंने उस से दीपा के बारे में पूछा.
जब दीपा के पिता रामसनेही को भी जानकारी मिली कि समरजीत के साथ दीपा गांव नहीं आई है तो उस ने उस से बेटी के बारे में पूछा. तब समरजीत ने उसे झूठी बात बताई कि दीपा एक महीने पहले उस से झगड़ा कर के दिल्ली से गांव जाने की बात कह कर आ गई थी.
समरजीत की यह बात सुन कर रामसनेही घबरा गया था. फिर वह बेटी की छानबीन करने दिल्ली पहुंचा और बाद में दिल्ली के पुल प्रहलादपुर थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दी.
इस के बाद ही पुलिस अभियुक्तों तक पहुंची. पुलिस ने समरजीत, अरविंद, धर्मेंद्र और मामा नरेंद्र को अपहरण कर हत्या और लाश छिपाने के जुर्म में गिरफ्तार कर 9 जनवरी, 2013 को दिल्ली के साकेत न्यायालय में महानगर दंडाधिकारी पवन कुमार की कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.
—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित
मोनिका को नींद सताने लगी थी. रात काफी बीत चुकी थी. गुनगुनी सर्दी की शुरुआत थी. बाहों में सिहरन महसूस होने पर उस ने अपने कमरे में इधरउधर चहलकदमी करते पति से कहा, ”हरप्रीत वार्डरोब से चादर निकाल देना, हलकी हलकी ठंड लग रही है.’’
”अरे, खुद उठ कर निकाल लो न अपनी पसंद का! कौन सा चाहिए तुम्हें?’’ हरप्रीत बोला.
”तुम वहीं पर तो हो, कोई भी दे दो न यार! अब चादर में पसंद नापसंद की क्या बात है?’’ मोनिका बोली और बुदबुदाने लगी, ”पता नहीं क्या हो गया है इसे, हर बात को काटता रहता है.’’
”फिर बोली कुछ..? अपना काम खुद क्यों नहीं करती?’’ नाराजगी के साथ हरप्रीत बोला.
”अरे, तुम नाराज क्यों हो रहे हो, चादर ही तो मांगी है, कोई प्रौपर्टी नहीं मांग रही.’’
”प्रौपर्टी की बात कहां से आ गई अब? देखो, मेरा दिमाग खुद खराब चल रहा है, परेशान हूं… ऊपर से तुम ने प्रौपर्टी की बात छेड़ दी.’’ हरप्रीत बोला.
”चल, छोड़ यार! चादर मैं खुद ही निकाल लेती हूं. अब तुम्हारे दिमाग में क्या चल रहा है, मैं क्या जानूं?’’ मोनिका सांस खींचती हुई बोली. तब तक हरप्रीत कमरे से बाहर जाने लगा.
”बच्चे सो चुके हैं…रात भी अधिक हो रही है, मैं समझती हूं तुम्हारी बेचैनी. मम्मी और पापाजी से जो भी बात करनी है, कल दिन में आराम से कर लेना, अभी इतना बेचैन होने की क्या जरूरत है?’’ बेड पर अधलेटी मोनिका पास लेटे बच्चे का हाथ अपनी कमर से हटाती हुई बोली.
उस की पूरी बात सुने बगैर हरप्रीत कमरे से बाहर निकल गया. इसी बीच रसोई में बरतनों के जमीन पर गिरने की आवाजें आने लगीं.
मोनिका ने हरप्रीत को आवाज लगाई, ”हरप्रीत, जा कर देखो, लगता है तुम्हारे मेंटल भाई पर फिर दौरा पड़ा है. रसोई में बरतन फेंक रहा है. मैं कैसे जा सकती हूं रात को जेठ के सामने. मां को जा कर बोल दो.’’
हरप्रीत ने उस की बात सुनी या नहीं, मोनिका को नहीं मालूम, लेकिन कुछ समय में मोनिका को सास की आवाज सुनाई दी. वह समझाती हुई बोल रही थी, ”देख बेटा, रात को हंगामा नहीं करते, तुझे जो चाहिए कल सुबह पापाजी से बोलना. जा, अभी जा कर सो जा.’’
दरअसल, हरप्रीत सिंह से 2 साल बड़ा भाई गगनदीप सिंह मानसिक तौर पर बीमार था. उस पर बीचबीच में दौरे पड़ते थे. वह जब भी परेशान होता, सीधा रसोई में जा कर गुस्से से बरतनों को इधरउधर फेंकने लगता था. घर में पड़ा पूरा दूध पी जाता था या सब्जियां खा जाता था.
उस की मेंटल प्रौब्लम के बारे में नातेरिश्तेदार और मोहल्ले वाले, सभी जानते थे. इस कारण उस की शादी नहीं हुई थी. जबकि छोटा भाई हरप्रीत शादीशुदा था और उस के 2 बच्चे भी थे. उस का अपना एक छोटा से परिवार था.
पंजाब के जालंधर शहर में लांबड़ा थाने के अंतर्गत टावर इनक्लेव में 58 वर्षीय जगबीर सिंह 2 साल पहले ही परिवार समेत शिफ्ट हुए थे, वहीं 10 मरले में छोटा मकान बनाया था और परिवार के साथ रह रहे थे.
वह सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करते और उन का बड़ा बेटा 32 साल का गगनदीप सिंह घर पर ही रहता था. उस की मानसिक हालत ठीक नहीं होने के कारण वह कुछ नहीं करता था. जबकि छोटा बेटा हरप्रीत सिंह शादीशुदा था.
हरप्रीत पर भी अपने परिवार की जिम्मेदारियां आ चुकी थीं. उस के जिम्मे कोई ठोस काम नहीं था, जिस से परिवार की अच्छी परवरिश कर सके. इस कारण पत्नी से हमेशा तकरार होती रहती थी.
उस के सामने दूसरी समस्या भाई के पागलपन को ले कर भी थी. उस के खर्चे भी थे. इस बात पर उस की पिता के साथ भी तनातनी होती रहती थी. वह कुछ अपना काम करना चाहता था. इसलिए उसे पूंजी की जरूरत थी.
हरप्रीत चाहता था कि पिता जगबीर सिंह और मां अमृतपाल कौर मकान उस के नाम कर दें, ताकि वह कोई अपना कामधंधा कर सके, किंतु मातापिता मकान उस के नाम पर लिखने के लिए राजी नहीं हो रहे थे.
कुछ समय बाद जब घर में शोरगुल बंद हुआ, तब मोनिका ने हरप्रीत को आवाज दी. हरप्रीत आ कर कमरे में सिर पकड़ कर बैठ गया. मोनिका नाराजगी के अंदाज में बोली, ”यह सब रोजरोज की बात पसंद नहीं है. जल्द कुछ करो, वरना मैं अब यहां नहीं रहने वाली.’’
”अब मैं इस हालत में क्या कर सकता हूं, भाई को ले क र सभी परेशान हैं.’’ हरप्रीत बोला.
”तुम कोई कोशिश ही नहीं कर रहे हो. मेरा तो इस घर में अब दम घुटने लगा है.’’ मोनिका शिकायती लहजे में बोली.
”क्यों, ऐसी भी क्या आफत आ गई है?’’ हरप्रीत बोला.
”तुम्हें क्या पता मैं यहां कितना डरडर कर रहती हूं, जब तुम घर में नहीं होते हो.’’ मोनिका बोली.
”डर! किस बात का?’’ हरप्रीत ने सवाल किया.
”डर तुम्हारे मेंटल भाई से! और क्या?’’ मोनिका चिढ़ती हुई बोली.
”क्यों, क्या किया उस ने? कोई बदतमीजी की क्या?’’
”हमेशा घूरता रहता है. उस की नजर गंदी है. जब भी सामने आता है, मैं डर जाती हूं,’’ मोनिका बोली.
”अच्छा, यह बात है. अभी पिताजी से बात करता हूं.’’ हरप्रीत बोला.
”पिता से क्या बात करोगे, वे कम हैं क्या? उन की भी वैसी ही आदत है. किसी न किसी बहाने से मुझे छूने की कई बार कोशिश कर चुके हैं.’’ मोनिका बिफरती हुई बोली.
हरप्रीत यह सुन कर आश्चर्य से बोला, ”यह तुम ने पहले तो कभी नहीं बताया.’’
”क्या करती बता कर, दोनों मर्द हैं, एक कुंवारा, वासना का भूखा और ससुरजी किसी वासना के प्यासे से कम हैं. हमेशा पानी मांगते हैं और गिलास पकड़ने के बहाने हाथ सहला देते हैं. एक दिन तो उन्होंने हद ही कर दी थी, रसोई जाते समय पीछे से कंधे पर हाथ रख दिया था. हाथ पीठ तक ले जाने लगे थे.’’ मोनिका अब रुआंसी हो गई थी.
”अच्छा! तो घर में यह सब चल रहा है और मुझे कुछ पता नहीं. अभी मां से भी बात करता हूं.’’ हरप्रीत अब गुस्से में आ चुका था.
”नहींनहीं, मां से यह सब कुछ नहीं कहो, उन लोगों से कुछ कहना है तो मकान अपने नाम करवाने की बात करो.’’ मोनिका बोली.
”उस के लिए मैं कोशिश में हूं, मौका देख कर फिर बात करूंगा. आज फिर भाई पर दौरा पड़ गया है.’’ हरप्रीत बोला.
”वह सब मैं कुछ नहीं जानती हूं. मैं अब यहां एक पल रहने वाली नहीं हूं…’’ मोनिका बोली.
”थोड़ा तो सब्र करो.’’ हरप्रीत बोला.
”नहींनहीं, मुझे कुछ नहीं सुनना है. मैं कल सुबह ही बच्चों को ले कर मायके चली जाऊंगी.’’ मोनिका नाराजगी दिखाती हुई बोली और वार्डरोब से अपने कपड़े निकालने लगी.
उस रात हरप्रीत की मोनिका के साथ काफी बहस हो गई. हालांकि उन के बीच सिर्फ तूतूमैंमैं हो कर ही रह गई, लेकिन इस का गुस्सा हरप्रीत के जेहन में लबालब भर चुका था.
सुबह होते ही मोनिका अपने बच्चों को ले कर मायके चली गई. हरप्रीत की नींद खुली तब उस ने मोनिका और बच्चों को घर में नहीं पा कर समझ गया कि उस ने बीती रात जो कहा, वह कर दिया.
गुरुवार तारीख 19 अक्तूबर, 2023 का दिन था. हरप्रीत ने भारी मन से दिनचर्या की शुरुआत की. खुद चाय बनाई और रसोई में मोनिका उस के लिए जो कुछ पका कर गई थी, उसे खाया और सीधा अपने पिता के पास जा पहुंचा.
जाते ही मकान अपने नाम करने का पुराना राग छेड़ दिया. इसे ले कर उन के बीच बहस होने लगी. पिता ने साफ लहजे में उन के जिंदा रहते मकान किसी के नाम करने से इनकार कर दिया. मां ने भी हां में हां मिलाई. उन के बीच काफी समय तक बहस होती रही. बहस का कोई नतीजा नहीं निकल पा रहा था.
हरप्रीत बीती रात से ही गुस्से से भरा हुआ था. मन बेचैन था. घर का माहौल तनाव से भरा हुआ था. अचानक उसे क्या सूझी, 19 अक्तूबर को दोपहर करीब 2 बजे हरप्रीत तमतमाया हुआ पिता की दोनाली लाइसेंसी बंदूक उठा लाया और सीधे पिता पर तान दी. मकान अपने नाम न लिखने पर अंजाम बुरा होने की धमकी दी.
अचानक हरप्रीत के इस तेवर को देख कर उस की मां तुरंत बंदूक के सामने आ गई. उसे डांटते हुए समझाने की कोशिश की, लेकिन तब तक हरप्रीत पर गुस्से का उबाल ले चुका था. उस ने बंदूक का ट्रिगर दबा दिया. ‘धांय’ की आवाज के साथ गोली उस की मां को जा लगी. वह घायल हो कर वहीं जमीन पर गिर गई.
उस की हालत देख कर पिता मां को संभालने के लिए उस की ओर मुड़े, लेकिन तब तक हरप्रीत ने दोनाली की दूसरी गोली दाग दी. उस से पिता भी जख्मी हो गए.
गोलियों की आवाज सुन कर हरप्रीत का बड़ा भाई गगनदीप दौड़ता हुआ वहां आ गया. हरप्रीत तब तक आक्रामक बन चुका था, जबकि जख्मी मांबाप कराहने लगे थे. हरप्रीत उन के कराहने पर और आक्रामक बन गया. उस ने दनादन दोनाली में गोलियां लोड कर घायल मांबाप पर दोबारा चला दी.
उस के भाई ने उसे पकड़ने की कोशिश की, लेकिन तब तक हरप्रीत ने बंदूक में गोली भरी और भाई पर दाग दी. भाई को भी गोली लगी और वह वहीं ढेर हो गया.
बापबेटे के झगड़े में कौन मरा और कौन बचा, इस की परवाह किए बगैर हरप्रीत ने तुरंत अपने बचाव की योजना बना डाली. हत्या की घटना को दुर्घटना में बदलने के लिए वह रसोई में घुसा. गैस का चूल्हा औन कर सिलेंडर खोल दिया. चुपचाप मकान में बाहर से ताला लगा कर स्कूटी से फरार हो गया.
उसी दिन अंधेरा होने के काफी समय बाद गोलियों की आवाज सुनते ही पड़ोसी अपने घर से निकल आए. वह जगबीर सिंह के घर की तरफ गए, क्योंकि आवाज उधर से ही आई थी.
उसी समय जगबीर सिंह के घर में सन्नाटा और अंधेरा देख कर किसी ने जालंधर (ग्रामीण) के लांबड़ा थाने में इस वारदात की सूचना दे दी. सूचना मिलते ही एसएचओ रमन कुमार मौके पर पहुंच गए. जब उन्होंने वहां 3 लाशें देखीं तो तुरंत सूचना एसपी (ग्रामीण) मुखविंदर सिंह भुल्लर और डीएसपी (करतारपुर) बलवीर सिंह को दे दी. दोनों अधिकारी मौके पर पहुंच गए.
मौके पर घर में 3 शव खून से लथपथ पड़े हुए थे. पुलिस ने उन्हें अपने कब्जे में ले लिया और आगे की काररवाई शुरू कर दी. काररवाई पूरी कर के तीनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. अगली काररवाई हत्यारे के गिरफ्तारी की थी.
पड़ोसियों से पूछताछ में पता चला कि जगबीर सिंह का बेटा हरप्रीत लापता है. पुलिस ने उस की तलाशी के लिए पूरे शहर में नाकेबंदी करवा दी. पड़ोसियों ने बताया उस की बीवी और 2 बच्चों को सुबह ही सामान ले कर घर से जाते देखा गया है.
पुलिस ट्रिपल मर्डर को ले कर छानबीन कर रही थी. उसी रात हरप्रीत आत्मसमर्पण करने के लिए थाने जा रहा था, तभी रास्ते में ही पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया. उसे थाने ले जाया गया, जहां उस ने आत्मसमर्पण कर दिया और वारदात की सारी घटना के बारे में विस्तार से बताया. साथ ही उस ने हत्या में इस्तेमाल लाइसेंसी बंदूक भी पुलिस को सौंप दी. यह जघन्य वारदात करने का कारण उस ने घरेलू झगड़ा और मकान का विवाद बताया.
जांच में पुलिस के सामने हत्या से संबंधित कई तथ्य सामने आए. पड़ोसियों ने बताया कि आरोपी हरप्रीत सिंह अकसर परिवार में झगड़ा करता रहता था. वारदात के 2 दिन पहले भी दुकान से 2 हजार रुपए का सामान उधार लेने को ले कर परिवार के साथ बहस हुई थी.
पोस्टमार्टम रिपोर्ट और वारदात की जांच करने वाले डीएसपी बलजीत सिंह के अनुसार, घटना के दौरान कुल 7 राउंड गोलियां चली थीं. पिता जगबीर सिंह को 5 गोलियां और मां अमृतपाल कौर को एक गोली और भाई गगनदीप सिंह को एक गोली गोली लगी थी. सभी की घटनास्थल पर ही मौत हो गई थी.
हरप्रीत ने पुलिस को बताया कि उसे इस वारदात को ले कर उसे जरा भी मलाल नहीं है. वह हत्याकांड को अंजाम देने के बाद क्यूरा मौल चला गया था. वहीं उस ने ‘फुकरे’ फिल्म देखी और आत्मसमर्पण के लिए लौट रहा था, तभी पकड़ लिया गया.
इतनी बड़ी घटना के बारे में उस ने चौंकाने वाली बात बताई. उस ने कहा कि उस का पिता पत्नी को शारीरिक संबंध बनाने के लिए कहता था, जिस के बारे में उसे मालूम हो गया था. इस बात की जानकारी उस के पिता को भी हो गई थी. इस जानकारी के बाद से ही वह अपने परिवार के साथ नहीं रहना चाहता था और अलग रहने के लिए कह रहा था.
उस ने बताया कि उस की मां का भी कहीं अफेयर चल रहा था, जिस की रिकौर्डिंग उस के पास है. उस के भाई की भी उस की पत्नी पर गलत निगाह रहती थी. इसलिए उस ने परिवार के सदस्यों से घर की संपत्ति में से उस का हिस्सा देने के लिए कहा था.
उस ने कहा कि पहले तो घर वाले उन की बात से सहमत थे, लेकिन बाद में वे कहने लगे कि अगर वह घर छोड़ देगा तो उन का खयाल कौन रखेगा. इसी बात को ले कर हरप्रीत की घर वालों से बहस हो गई.
हरप्रीत के बयानों के आधार पर पुलिस ने आईपीसी की धारा 302 और आर्म्स ऐक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया. फिर कोर्ट में पेश करने के बाद उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक आगे की जांच जारी थी.
मध्य प्रदेश के जिला ग्वालियर के अशोक नगर में स्थित त्रिकाल चौबीसी जैन मंदिर हिंदुस्तान भर में प्रसिद्ध है. इस के अलावा यहां उत्पन्न होने वाले शरबती गेहूं की वजह से इस शहर की विश्व भर में पहचान है. इसी शहर में वार्ड नंबर 15 के अंतर्गत आने वाले हिरियन टपरा पठार मोहल्ला में सौरभ जैन अपने परिवार के साथ रहता था.
पेशे से सौरभ सेल्समैन का काम करता था, अत: सुबह 10 बजे खाना खा कर घर से निकलने के बाद उस का देर रात को ही घर लौटना होता था.
रिचा ने अपने अच्छे व्यवहार से अपनी सास और देवर का मन मोह लिया था. ससुराल में रिचा की सभी तारीफ करते थे, इस से रिचा बेहद ख़ुश थी, रिचा ने अपने दिल में ढेरों सपने संजोए थे. वह दुनिया की वे सब खुशियां पाना चाहती थी, जो एक लड़की चाहती है.
शादी के बाद सौरभ और रिचा बेहद खुश थे. शादी के 9 साल कब बीत गए,पता ही नहीं चला. इसी बीच रिचा एक बेटे की मां बन गई, बेटा पैदा होने के बाद घर में खुशी और बढ़ गई. रिचा का समय बच्चे के लालनपालन में व्यतीत होने लगा.
रिचा अपने जीवनसाथी के साथ ख़ुश थी, लेकिन कोरोना काल में फेसबुक पर चैटिंग के दौरान दीपेश भार्गव से दोस्ती हो जाने के बाद रिचा के व्यवहार में अचानक काफी बदलाव आ गया था, जिस के चलते घर में हर समय कलह रहने लगी.
सौरभ को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि रिचा उस के और उस के घर वालों के साथ ऐसा व्यवहार क्यों कर रही है. ऐसी स्थिति में आखिरकार वह क्या करे. रोजरोज की किचकिच से परेशान हो कर सौरभ ने एक दिन अपनी मां को रिचा के बदले व्यवहार के बारे में बताया. मां ने बेटे को ही समझाया कि आज नहीं तो कल सब ठीक हो जाएगा.
समय अपनी गति से गुजरता रहा, लेकिन रिचा के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया. दिन प्रतिदिन पति पत्नी में कलह बढ़ती ही गई. रिचा के व्यवहार को देख कर सौरभ सोचता था कि इस से तो वह बिना शादी के ही हंसीखुशी से जीवन गुजार लेता.
27 वर्षीय रिचा जैन बालाजी धाम कालोनी में रहने वाले 35 वर्षीय सौरभ जैन की पत्नी थी. बात तकरीबन 3 साल पुरानी 2020 में कोरोना महामारी में लगे लौकडाउन के समय की है. उसी दौरान रिचा की विदिशा के भटौली निवासी दीपेश भार्गव से फेसबुक पर चैटिंग के दौरान दोस्ती हो गई थी.
रिचा के कहने पर एक दिन दीपेश भार्गव रिचा से मिलने अशोक नगर आया. रिचा के बात करने के खुले लहजे और उस की खूबसूरती से वह बहुत ज्यादा प्रभावित हुआ. उस पर अपना प्रभाव जमाने के लिए गजब के चालाक दीपेश ने खुद को एक बड़े रईस परिवार से ताल्लुक रखने वाला बताया.
उस ने अपने पिता का विदिशा में बहुत बड़ा इलेक्ट्रौनिक शोरूम होना भी बताया. दीपेश ने रिचा को अपनी बातों के जाल में फंसा कर अपना दोस्त बना लिया था. जैसेजैसे समय गुजरता गया, रिचा और दीपेश की सोच में बदलाव आता गया.
धीरेधीरे उन की दोस्ती प्यार में बदल गई. दोस्ती और प्यार तक तो ठीक था, लेकिन दोनों के कदम मर्यादा की दीवारों को लांघ चुके थे. उन के बीच शारीरिक संबंध तक बन गए थे. हालात बिगड़ने तब शुरू हुए, जब दीपेश रिचा से मिलने उस के घर भी आने लगा और रुकने भी लगा.
अभी तक तो रिचा और दीपेश के संबंध सौरभ और उस के घर वालों से पूरी तरह छिपे हुए थे, क्योंकि रिचा ने ससुराल वालों को दीपेश को अपना मुंहबोला भाई बताया. सौरभ का बेटा भी दीपेश को मामा कहता था, अत: शुरुआत में दीपेश की खूब आवभगत हुई थी.
इसी रिश्ते की आड़ में पति की गैरमौजूदगी में मौका मिलते ही रिचा और दीपेश अपनी हसरतें पूरी कर लेते थे, क्योंकि सौरभ और उस के घर वालों के मन में रिचा के प्रति अविश्वास जैसी कोई बात नहीं थी. हालांकि रिश्तों के विश्वास के मामले में सौरभ अपने ही घर में पत्नी से धोखा खा रहा था.
ऐसी बातें छिपी नहीं रहतीं, एक दिन सौरभ ने रिचा और दीपेश को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया तो उस ने रिचा को जम कर लताड़ा और उसे ऊंचनीच समझाई तो मौके की नजाकत को समझते हुए रिचा ने दीपेश से अपने रिश्ते खत्म करने की बात कह कर झूठी कसमें भी खा लीं और वादा किया कि वह आइंदा ऐसा कुछ भी नहीं करेगी, लेकिन वह उस पर लंबे समय तक कायम नहीं रह सकी.
कसमें और वादे मात्र दिखावा थे, बात आईगई हो गई. उधर रिचा और दीपेश का प्यार परवान चढ़ा तो रिचा का मोह अपने पति से भंग होने लगा. इतना ही नहीं, उस ने पति के साथ बेवफाई कर डाली. रिचा ने घर से भाग कर लिवइन रिलेशनशिप में रहने का फैसला भी कर लिया था.
पति के पास वापस क्यों आई रिचा
31 मार्च 2022 को मौका मिलते ही रिचा अपने 8 वर्षीय बेटे को अपने साथ ले कर प्रेमी दीपेश के साथ ससुराल से भाग गई. तकरीबन 2 महीने तक रिचा और दीपेश लिवइन रिलेशनशिप में रहे.
एक दिन रिचा ने अपने पति सौरभ को फोन कर के कहा, ”मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है, वहीं तुम्हारा बेटा शौर्य भी तुम्हारे पास जाने की हठ करता है. उसे दीपेश के पास रहना कतई अच्छा नहीं लगता. मैं और तुम्हारा बेटा तुम्हारे पास वापस लौटना चाहते हैं.’’
भोलाभाला सौरभ अपनी फरेबी पत्नी के शैतानी दिमाग में मच रही साजिश को नहीं समझ सका, बल्कि रिचा के अंदर आए इस बदलाव से वह काफी खुश हुआ. कोमल दिल के सौरभ ने पत्नी को माफ कर दिया और नए तरीके से जिंदगी शुरू करने का ख्वाब देखने लगा. वह पत्नी रिचा और बेटे शौर्य को पुन: अपने साथ रखने को तैयार हो गया.
रिचा के प्रेमी के पास से लौट कर आने के बाद सौरभ सोचता था कि सब कुछ पहले की तरह ठीक हो जाएगा, मगर ऐसा नहीं हुआ. ठीक होने के बजाए घर में कलह बढ़ गई. रोजरोज की कलह से परेशान हो कर सौरभ रिचा के दबाव में घर वालों से नाता तोड़ कर अशोक नगर के ही हिरियन के टपरा में किराए पर कमरा ले कर रहने लगा.
यहां पर कुछ दिन रहने के बाद बालाजी धाम और फिर कोलुआ रोड पर रहने पहुंच गया था. यहीं पर रिचा ने अनेक बार ‘दृश्यम’ फिल्म देखने के बाद प्रेमी के साथ मिल कर पति की हत्या की वारदात को अंजाम देने की योजना बनाई.
इसी योजना के तहत घर वालों से नाता तोड़वाने के बाद उस के हिस्से में मिली 5 बीघा जमीन की जनवरी, 2023 में साढ़े 11 लाख रुपए में बिकवा दी. फिर पति के नाम एक ट्रैक्टर फाइनेंस कराने के बाद पति का जीवन बीमा भी करा दिया. शेष बची रकम अपने नाम करा ली.
किस तरह से दिया हत्या को अंजाम
ट्रैक्टर और जीवन बीमा पालिसी के पैसे हड़पने के लालच में रिचा ने अपने पति के घर वालों से पति का नाता तुड़वाने के साथ ही बोलचाल भी बंद करा दी थी. हालांकि सौरभ मां के बुलाने पर रिचा से छिप कर अपनी मां से मिलने घर पर आता रहता था. सौरभ का छोटा भाई विनीत भी जब तब सौरभ के दोस्तों से सौरभ के हालचाल पूछ लिया करता था.
इत्तफाक से फरवरी माह में सौरभ के हाथ में फै्रक्चर हो गया तो अपनी योजना को अंजाम देने के लिए रिचा ने अशोक नगर के ही दिनेश शर्मा की स्विफ्ट डिजायर कार भोपाल के लिए बुक की.
21 फरवरी, 2023 की सुबह रिचा अपने पति को बेहतर इलाज कराने जाने के बहाने कार ले कर अशोक नगर से पति को ले कर भोपाल के लिए निकली. सौरभ को क्या पता था कि पत्नी और उस के प्रेमी के मन में क्या चल रहा है. खतरे से अंजान सौरभ ने सहज भाव से भोपाल चलने की हामी भर दी.
जैसे ही कार विदिशा जिले के शमशाबाद स्थित कोलुआ गांव में पहुंची, रिचा ने ड्राइवर से यह कहते हुए कार रोकने को कहा कि अब हम लोगों का इरादा बदल गया है. आज सिरोंज में रुकने के बाद दूसरे वाहन से भोपाल जाएंगे, इसलिए तुम अपने पैसे ले लो और अशोक नगर वापस लौट जाओ.
पैसे ले कर ड्राइवर के जाते ही रिचा और उस का प्रेमी सौरभ को सुनसान जगह पर ले गए. फिर दोनों ने बड़ी बेरहमी से पत्थर से सौरभ का सिर कुचल कर मौत के घाट उतार दिया और उस के बाद सौरभ की लाश विदिशा जिले के शमशाबाद की एक खंती में फेंक दी.
इस के बाद वह ससुराल वालों को बिना कुछ बताए प्रेमी के साथ लंबे समय के लिए उज्जैन, अयोध्या, खाटूश्यामजी, शिरडी की तीर्थयात्रा पर निकल गई.
तीर्थयात्रा से लौट कर वह और प्रेमी के साथ सिरोंज में रहने लगी. कुछ समय बाद रिचा के मातापिता भी उस के साथ रहने लगे. रिचा ने 5 जून को बोगस पंचनामा और मृत्यु प्रमाणपत्र तक बनवा लिया. 5 महीने बाद घर वालों को सौरभ की मौत का पता उस वक्त चला, जब रिचा 10 जुलाई, 2023 को अपने बेटे शौर्य की टीसी लेने के लिए पति का मृत्यु प्रमाणपत्र ले कर उस के स्कूल पहुंची.
तब टीचर ने रिचा से बेटे की अचानक टीसी निकलने की वजह पूछी तो रिचा ने बताया कि शौर्य के पिता का एक्सीडेंट हो जाने से निधन हो गया है, इस वजह से टीसी चाहिए.
सौरभ की हत्या की बात कैसे आई सामने
वह शिक्षिका सौरभ के पैतृक घर के पड़ोस में ही रहती थी. इसलिए उसे रिचा की बात पर भरोसा नहीं हुआ तो उस ने रिचा से कहा कि टीसी तो आप को कल मिल सकेगी. स्कूल से लौटने पर शिक्षिका ने सौरभ की मां को बताया कि आज सौरभ की पत्नी रिचा स्कूल आई थी. बता रही थी कि सौरभ का एक्सीडेंट हो जाने से निधन हो गया है.
यह सुनते ही मां सन्न रह गई. सौरभ की मां ने किसी तरह अपने आप को संभाला और अपने छोटे बेटे विनीत को इस बारे में बताया. विनीत को भी विश्वास नहीं हुआ कि उस के भाई का निधन हो गया है. वह असलियत का पता लगाने के लिए दूसरे दिन अपने भतीजे शौर्य के सेंट थामस स्कूल जा पहुंचा.
जैसे ही सौरभ की पत्नी रिचा बेटे की टीसी लेने स्कूल पहुंची, विनीत ने भाभी से पूछा कि भैया कहां हैं?
रिचा ने बेझिझक हो कर बताया कि उन का तो 21 फरवरी, 2023 को ही ऐक्सीडेंट में निधन हो गया. उन का वहीं पर अंतिम संस्कार कर दिया था.
भाभी के मुंह से यह सुन कर विनीत दंग रह गया. उस से ज्यादा बहस करने के बजाय विनीत ने अपने रिश्तेदारों को इकट्ठा किया और सीधे अशोक नगर के एसपी अमन सिंह राठौड़ से मिलने उन के कार्यालय में जा पहुंचा.
विनीत ने उन्हें बताया, ”सर, मुझे पिछले 5 महीने से अपने बड़े भाई के बारे में कुछ भी पता नहीं चल रहा है. मुझे अपनी भाभी और उन के प्रेमी दीपेश भार्गव पर शक है कि दोनों ने मिल कर उन की हत्या कर दी है.’’
एसपी ने मामले की गंभीरता को देखते हुए इस मामले का जल्द से जल्द खुलासा करने की जिम्मेदारी कोतवाल नरेंद्र त्रिपाठी को सौंप दी. त्रिपाठी के नेतृत्व में एएसआई अवधेश रघुवंशी, हैडकांस्टेबल शैलेंद्र रघुवंशी तथा टीम के सदस्यों ने कड़ी से कड़ी जोड़ कर फरार रिचा और उस के प्रेमी को गंज बासौदा से गिरफ्तार कर लिया.
उन से थाने में पूछताछ की गई तो पूछताछ के दौरान रिचा और उस के प्रेमी दीपेश ने एक नहीं, कई झूठ बोले थे. उन में सब से बड़ा झूठ तो यही बोला था कि सौरभ की हत्या करने के बाद उस के शव के टुकड़े करने के बाद बालाजी कालोनी में मकान की छत पर जला दिए थे, लेकिन पुलिस की पड़ताल के दौरान उक्त स्थान पर शव जलाए जाने का कोई सबूत नहीं मिला.
फिर रिचा के प्रेमी ने बताया कि सौरभ का अंतिम संस्कार अशोक नगर के श्मशान घाट में किया था. श्मशान घाट का रिकौर्ड देखने पर यह बात भी झूठी साबित हुई, क्योंकि वहां के रजिस्टर में सौरभ का नाम दर्ज नहीं था.
कोतवाल नरेंद्र त्रिपाठी ने रिचा और दीपेश की बताई कहानी पर भरोसा न कर के विदिशा, सागर और गुना पुलिस से 21 फरवरी से 23 मार्च के बीच मिली अज्ञात लाशों के संबंध में वायरलैस पर मैसेज भेज कर जानकारी ली.
इस पर शमशाबाद पुलिस ने बताया कि 23 फरवरी को किसी युवक का शव मिला था. वह फोटो सौरभ के भाई को दिखाए तो फोटो देखते ही उस ने शव की शिनाख्त बड़े भाई सौरभ जैन के रूप में कर दी.
शव की शिनाख्त हो जाने के बाद कोतवाल नरेंद्र त्रिपाठी ने उन दोनों से फिर से पूछताछ की. इस बार सख्ती बरती तो दोनों टूट गए और उन्होंने सौरभ की हत्या की बात कुबूल कर ली. पुलिस ने रिचा और दीपेश के खिलाफ सौरभ की हत्या का मामला दर्ज कर दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया.
शातिर दिमाग रिचा और दीपेश भार्गव को उम्मीद थी कि सौरभ की हत्या पहेली बन कर रह जाएगी और वे कभी नहीं पकड़े जाएंगे. उधर अशोक नगर एसपी अमन सिंह राठौड़ ने केस का खुलासा करने वाली पुलिस टीम को पुरस्कृत करने की घोषणा की है.
पुलिस ने लाश का मुआयना किया तो उस के गले पर कुछ निशान पाए गए. इस से अनुमान लगाया कि दीपा की हत्या गला घोंट कर की गई थी. मौके की जरूरी काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए सुलतानपुर के पोस्टमार्टम हाऊस भेज दिया और चारों अभियुक्तों को गिरफ्तार कर के दिल्ली ले आई.
थाना पुल प्रहलादपुर में समरजीत, अरविंद, धर्मेंद्र और इन के मामा नरेंद्र से जब पूछताछ की गई तो दीपा और समरजीत के प्रेमप्रसंग से ले कर मौत का तानाबाना बुनने तक की जो कहानी सामने आई, वह बड़ी ही दिलचस्प निकली.
उत्तर प्रदेश के जिला सुलतानपुर के थाना कूंड़ेभार में आता है एक गांव धनजई, इसी गांव में सूर्यभान सिंह परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटे धर्मेंद्र, अरविंद और समरजीत थे. अरविंद और धर्मेंद्र शादीशुदा थे. दोनों भाई दिल्ली में ड्राइवर की नौकरी करते थे. समरजीत गांव में ही खेतीकिसानी करता था. वह खेती किसानी करता जरूर था, लेकिन उसे अच्छे कपड़े पहनने का शौक था.
वह जवान तो था ही. इसलिए उस का मन ऐसा साथी पाने के लिए बेचैन था, जिस से अपने मन की बात कह सके. इसी दौरान उस की नजरें दीपा से दोचार हुईं. दीपा रामसनेही की 20 वर्षीया बेटी थी. दीपा तीखे नयननक्श और गोल चेहरे वाली युवती थी. दीपा उस की बिरादरी की नहीं थी, फिर भी उस का झुकाव उस की तरफ हो गया. फिर दोनों के बीच बातों का सिलसिला ऐसा शुरू हुआ कि वे दोनों एकदूसरे के करीब आते गए.
दोनों ही चढ़ती जवानी पर थे, इसलिए जल्दी ही उन के बीच शारीरिक संबंध बन गए. एकदूसरे को शरीर सौंपने के बाद उन की सोच में इस कदर बदलाव आया कि उन्हें अपने प्यार के अलावा सब कुछ फीका लगने लगा. उन्हें ऐसा लग रहा था, जैसे उन की मंजिल यहीं तक हो.
मौका मिलने पर दोनों खेतों में एकदूसरे से मिलते रहे. उन के प्यार को देख कर ऐसा लगता था, जैसे भले ही उन के शरीर अलगअलग हों, लेकिन जान एक हो. उन्होंने शादी कर के अपनी अलग दुनिया बसाने तक की प्लानिंग कर ली. घर वाले उन की शादी करने के लिए तैयार हो सकेंगे, इस का विश्वास दोनों को नहीं था. इस की वजह साफ थी कि दोनों की जाति अलगअलग थी और दूसरे दोनों एक ही गांव के थे.
घर वाले तैयार हों या न हों, उन्हें इस बात की फिक्र न थी. वे जानते थे कि प्यार के रास्ते में तमाम तरह की बाधाएं आती हैं. सच्चे प्रेमी उन बाधाओं की कभी फिक्र नहीं करते. वे परिवार और समाज के व्यंग्यबाणों और उन के द्वारा खींची गई लक्ष्मण रेखा को लांघ कर अपने मुकाम तक पहुंचने की कोशिश करते हैं.
समरजीत और दीपा भले ही सोच रहे थे कि उन का प्यार जमाने से छिपा हुआ है, लेकिन यह केवल उन का भ्रम था. हकीकत यह थी कि इस तरह के काम कोई चाहे कितना भी चोरीछिपे क्यों न करे, लोगों को पता चल ही जाता है. समरजीत और दीपा के मामले में भी ऐसा ही हुआ. मोहल्ले के कुछ लोगों को उन के प्यार की खबर लग गई.
फिर क्या था. मोहल्ले के लोगों से बात उड़तेउड़ते इन दोनों के घरवालों के कानों में भी पहुंच गई. समरजीत के पिता सूर्यभान सिंह ने बेटे को डांटा तो वहीं दूसरी तरफ दीपा के पिता रामसनेही ने भी दीपा पर पाबंदियां लगा दीं. उसे इस बात का डर था कि कहीं कोई ऐसीवैसी बात हो गई तो उस की शादी करने में परेशानी होगी.
कहते हैं कि प्यार पर जितनी बंदिशें लगाई जाती हैं, वह और ज्यादा बढ़ता है यानी बंदिशों से प्यार की डोर टूटने के बजाय और ज्यादा मजबूत हो जाती है. बेटी पर बंदिशें लगाने के पीछे रामसनेही की मंशा यही थी कि वह समरजीत को भूल जाएगी. लेकिन उस ने इस बात की तरफ गौर नहीं किया कि घर वालों के सो जाने के बाद दीपा अभी भी समरजीत से फोन पर बात करती है. यानी भले ही उस की अपने प्रेमी से मुलाकात नहीं हो पा रही थी, वह फोन पर दिल की बात उस से कर लेती थी.
एक बार रामसनेही ने उसे रात को फोन पर बात करते देखा तो उस ने उस से पूछा कि किस से बात कर रही है. तब दीपा ने साफ बता दिया कि वह समरजीत से बात कर रही है. इतना सुनते ही रामसनेही को गुस्सा आ गया और उस ने उस की पिटाई कर दी. रामसनेही ने सोचा कि पिटाई से दीपा के मन में खौफ बैठ जाएगा. लेकिन इस का असर उलटा हुआ. सन 2012 में दीपा समरजीत के साथ भाग गई.
समरजीत प्रेमिका को ले कर हरिद्वार में अपने एक परिचित के यहां चला गया. तब रामसनेही ने थाना कूंडे़भार में बेटी के गायब हेने की सूचना दर्ज करा दी.
चूंकि गांव से समरजीत भी गायब था. इसलिए लोगों को यह बात समझते देर नहीं लगी कि दीपा समरजीत के संग ही भागी है. तब रामसनेही ने गांव में पंचायत बुला कर पंचों की मार्फत समरजीत के पिता सूर्यभान सिंह पर अपनी बेटी को ढूंढ़ने का दबाव बनाया.
आज भी उत्तर प्रदेश और हरियाणा के कुछ गांवों में पंचों की बातों का पालन किया जाता है. सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए कई मामलों में पंचायतों के फैसले सही भी होते हैं. अपनी मानमर्यादा और सामाजिक दबाव को देखते हुए लोग पंचों की बात का पालन भी करते हैं. पंचायती फैसले के बाद सूर्यभान सिंह ने अपने स्तर से समरजीत और दीपा को तलाशना शुरू किया. बाद में उसे पता लगा कि समरजीत और दीपा हरिद्वार में हैं तो वह उन दोनों को हरिद्वार से गांव ले आया.
दोनों के घर वालों ने उन्हें फिर से समझाया. समरजीत और दीपा कुछ दिनों तक तो ठीक रहे, इस के बाद उन्होंने फिर से मिलनाजुलना शुरू कर दिया. फिर वे दोनों अंबाला भाग गए. वहां पर समरजीत की बड़ी बहन रहती थी. समरजीत दीपा को ले कर बहन के यहां ही गया था. उस ने भी उन दोनों को समझाया. उस ने पिता को इस की सूचना दे दी. सूर्यभान सिंह इस बार भी उन दोनों को गांव ले आए.
बेटी के बारबार भागने पर रामसनेही और उस के परिवार की खासी बदनामी हो रही थी. अब उस के पास एक ही रास्ता था कि उस की शादी कर दी जाए. लिहाजा उस ने उस की फटाफट शादी करने का प्लान बनाया. वह उस के लिए लड़का देखने लगा.
दीपा को जब पता चला कि घर वाले उस की जल्द से जल्द शादी करने की फिराक में हैं तो उस ने आखिर अपनी मां से कह ही दिया कि वह समरजीत के अलावा किसी और से शादी नहीं करेगी. उस की इस जिद पर मां ने उस की पिटाई कर दी.
इस के बाद 27 फरवरी, 2013 को दीपा और समरजीत तीसरी बार घर से भाग गए. इस बार समरजीत उसे दिल्ली ले गया. दक्षिणपूर्वी दिल्ली के पुल प्रहलादपुर गांव में समरजीत के भाई धर्मेंद्र और अरविंद रहते थे. वह उन्हीं के पास चला गया. बाद में समरजीत और दीपा ने मंदिर में शादी कर ली. फिर उसी इलाके में कमरा ले कर पतिपत्नी की तरह रहने लगे.
पुल प्रहलादपुर में रामसनेही के कुछ परिचित भी रहते थे. उन्हीं के द्वारा उसे पता चला कि दीपा समरजीत के साथ दिल्ली में रह रही है. खबर मिलने के बावजूद भी रामसनेही ने उसे वहां से लाना जरूरी नहीं समझा. वह जानता था कि दीपा घर से 2 बार भागी और दोनों बार उसे घर लाया गया था. जब वह घर रुकना ही नहीं चाहती तो उसे फिर से घर लाने से क्या फायदा.
समरजीत के भाई अरविंद और धर्मेंद्र ड्राइवर थे. जबकि समरजीत को फिलहाल कोई काम नहीं मिल रहा था. उस की गृहस्थी का खर्चा दोनों भाई उठा रहे थे. समरजीत भाइयों पर ज्यादा दिनों तक बोझ नहीं बनना चाहता था, इसलिए कुछ दिनों बाद ही एक जानकार की मार्फत ओखला फेज-1 स्थित एक सिक्योरिटी कंपनी में नौकरी कर ली. उस की चिंता थोड़ी कम हो गई.
दोनों की गृहस्थी हंसीखुशी से चल रही थी. चूंकि समरजीत सिक्योरिटी गार्ड के रूप में काम कर रहा था, इसलिए कभी उस की ड्यूटी नाइट की लगती थी तो कभी दिन की. वह मन लगा कर नौकरी कर रहा था. जिस वजह से वह पत्नी की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दे पा रहा था. इस का नतीजा यह निकला कि पास में ही रहने वाले एक युवक से दीपा के नाजायज संबंध बन गए.
”अजी सुनते हो? मेरा जी सुबह से ही न जाने क्यों घबरा रहा है. कई बार देवांश को फोन लगा चुकी हूं, लेकिन उस का फोन लग ही नहीं रहा. कभी स्विच्ड औफ तो कभी नौट रीचेबल बता रहा है.’’ सीमा परेशान होते हुए बोली.
पत्नी के मुंह से इतना सुनना था कि रामकिशोर यादव तपाक से बोल पड़े, ”तुम भी न बेवजह परेशान होने के साथ दूसरों को भी परेशान कर के रख देती हो.
”अरे बेटा है, अभी 2 दिन ही तो हुए हैं उसे वाराणसी गए कि तुम बेवजह परेशान होने लगी. लड़की तो है नहीं, जो उस की इतनी फिक्र किए जा रही हो. अरे भाई, अपने पुराने यार दोस्तों से मिलने चला गया होगा. मोबाइल बंद है या हो सकता है कि चार्ज न हो. इस में परेशान होने की वाली भला कौन सी बात है?’’
इतना कह कर रामकिशोर अखबार और चश्मा टेबल पर रख कर पत्नी की तरफ घूम गए. फिर भी सीमा का मन नहीं माना तो पति के पास आ कर बोली, ”एक बार आप भी देखें तो उस का मोबाइल लगातार स्विच्ड औफ ही आ रहा है. आज उसे बनारस गए 3 दिन हो गए हैं.’’
पत्नी की बात सुन कर रामकिशोर ने बेवजह पत्नी से बहस करने के बजाए जेब से मोबाइल निकाल कर बेटे देवांश का नंबर मिलाया तो वह स्विच औफ बता रहा था. कई बार नंबर मिलाने पर भी जब काल नहीं लगी तो उन्होंने सोचा कि हो न हो मोबाइल डिस्चार्ज ही हो गया होगा, इस वजह से वह बंद है. फिर वह पत्नी की ओर मुखातिब होते हुए बोले, ”लग रहा है देवांश का मोबाइल चार्ज नहीं है इस वजह से स्विच्ड औफ बता रहा है, चार्ज होते ही बात हो जाएगी.’’
पत्नी को दिलासा दे कर रामकिशोर हाथ में जूट का झोला ले कर रोजमर्रा का सामान लेने के लिए मार्केट की ओर निकल गए थे.
उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले के मऊ दरवाजा थाना क्षेत्र के कुइयावूट बाईपास निवासी रामकिशोर यादव पेशे से शिक्षक हैं. परिवार में पत्नी, इकलौते बेटे सहित उन का भरापूरा परिवार था.
उन का 22 वर्षीय इकलौता बेटा देवांश यादव बीएससी थर्ड ईयर की पढ़ाई दिल्ली में रह कर कर रहा था. रामकिशोर और उन की पत्नी इकलौते बेटे पर जान छिड़कते थे. 27 मई, 2023 से ही देवांश का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ जा रहा था. 25 मई, 2023 को वाराणसी जाने की बात कह कर वह घर (फर्रुखाबाद) से निकला था.
मार्केट से सामान ले कर घर लौटने के बाद रामकिशोर ने पत्नी के कुछ बोलने से पहले ही बेटे देवांश का नंबर डायल किया तो उस समय भी वह स्विच्ड औफ आ रहा था. तभी उन के दिमाग में बेटे के दोस्त श्रीवत्स का खयाल आ गया. फिर उन्होंने श्रीवत्स से संपर्क किया तो पता चला कि श्रीवत्स की देवांश से 26 मई, 2023 की शाम बात हुई तो उस ने (देवांश) बताया था कि वह वाराणसी के अस्सी क्षेत्र स्थित पैराडाइज होटल में कमरा ले कर ठहरा है.
27 मई को श्रीवत्स ने फिर फोन किया तो देवांश का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ था. श्रीवत्स ने होटल के रिसैप्शन पर फोन किया तो पता लगा कि देवांश अपने कमरे में नहीं है. उस का लैपटाप और बैग उस के कमरे में ही हैं. इस के बाद श्रीवत्स ने देवांश की परिचित बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) की छात्रा अनुष्का को फोन किया तो अनुष्का ने बताया कि देवांश से उस की लड़ाई हुई थी, इसलिए वह उस के बारे में नहीं जानती.
बेटे को तलाशने गए वाराणसी
श्रीवत्स से बेटे के बारे में इतनी जानकारी पाने के बाद रामकिशोर और उन की पत्नी सीमा को उस की ज्यादा चिंता होने लगी. इकलौते बेटे को ले कर तरहतरह की आशंकाएं मनमस्तिक में कौंधने लगी थीं.
बहरहाल, इस के बाद भी देवांश के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो वह और उन की पत्नी 29 मई, 2023 को बिना देर किए वाराणसी आ गए. वाराणसी आने के बाद वह पैराडाइज होटल जहां देवांश ठहरा था तथा उस के दोस्त आदि से बेटे के बारे में कोई जानकारी न मिलने पर भेलूपुर थाने में उस की गुमशुदगी दर्ज कराने पहुंच गए.
पुलिस ने कोई काररवाई करने के बजाए उन की तहरीर ले कर रख ली. रामकिशोर और उन की पत्नी बेटे को खोजने के लिए वाराणसी के गलीमोहल्लों से ले कर होटलों की खाक इस उम्मीद के साथ छानते रहे कि कहीं कोई बेटे की खबर मिल जाए.
देवांश के दोस्त और वाराणसी की गलियों को भी खंगालने पर जब कोई जानकारी नहीं हासिल हुई तो रामकिशोर पत्नी को ले कर कानपुर के लिए रवाना हो गए, जहां देवांश की परिचित छात्रा अनुष्का तिवारी का घर था. कानपुर में उन्हें कोई जानकारी तो नहीं मिली, बल्कि अनुष्का के घर वालों से रामकिशोर और उन की पत्नी को फटकार जरूर मिल गई.
आहत रामकिशोर ने फिर से वाराणसी आ कर भेलूपुर थाने के एसएचओ से मिले. उन्होंने आरोप लगाया कि अनुष्का के घर वालों ने ही देवांश को मारपीट कर हत्या कर उस का शव गायब कर दिया है.
रामकिशोर की तहरीर के आधार पर पुलिस ने कानपुर आउटर की रहने वाली और बीएचयू, वाराणसी की परास्नातक की छात्रा अनुष्का तिवारी, उस के पिता सौरभ तिवारी और चाचा सौजन्य तिवारी के खिलाफ भादंवि की धारा 364, 504, 506 के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली.
मुकदमा दर्ज होने के बाद भी पुलिस हाथ पर हाथ रख कर बैठी रही. उधर देवांश का कोई पता न चलने पर रामकिशोर और उन की पत्नी की हालत बिलकुल बिगड़ने लगी थी. इसी बीच उन की मुलाकात युवा फाउंडेशन से जुड़ी सामाजिक कार्यकत्री सीमा चौधरी से हो गई.
सीमा चौधरी से मिलने के बाद रामकिशोर को आशा की उम्मीद नजर आने लगी. उन्हें लगा कि अब उन की इस लड़ाई में जरूर कुछ न कुछ बात आगे बढ़ेगी.
सीमा चौधरी के साथ रामकिशोर पत्नी को ले कर सीधे वाराणसी से लखनऊ आ गए. सीमा चौधरी के साथ लखनऊ में वह अपर पुलिस आयुक्त (मुख्यालय एवं अपराध) संतोष कुमार सिंह से मिले. रामकिशोर ने अपर पुलिस आयुक्त को देवांश के गायब होने की बात विस्तार से बता दी.
लखनऊ में अपर पुलिस आयुक्त (मुख्यालय एवं अपराध) संतोष कुमार सिंह को आपबीती सुनाने का असर यह हुआ कि वाराणसी पुलिस जो अभी तक हाथ पर हाथ धरे बैठी थी, अचानक से सक्रिय हो गई.
इस केस को सुलझाने के लिए डीसीपी (काशी) आर.एस. गौतम ने एक पुलिस टीम बनाई. इस टीम में एसआई चौकी इंचार्ज (अस्सी) राजकुमार वर्मा, वरुण कुमार शाही, ज्ञानमती तिवारी, दुर्गेश कुमार सरोज, कमांड सेंटर सिगरा, सर्विलांस टीम के इंसपेक्टर अंजनी पांडेय आदि शामिल थे.
मुकदमा दर्ज होने के बाद भी देवांश की कोई खोजखबर न मिलने से रामकिशोर और उन की पत्नी सीमा पुलिस से खिन्न थे तो वहीं दूसरी ओर मामले की विवेचना में लगे चौकी इंचार्ज (अस्सी) राजकुमार वर्मा देवांश का पता लगाने के लिए उस होटल में पहुंच गए, जहां देवांश ठहरा हुआ था. उन्होंने वहां जा कर पता लगाने से ले कर उस के दोस्त से भी पूछताछ की, लेकिन कोई खास सफलता नहीं मिली.
देवांश आखिरकार गया तो गया कहां?
यह गुत्थी सुलझने के बजाय उलझती जा रही थी. जांच अधिकारी को देवांश के साथ पढ़ी अनुष्का पर ही शक हो रहा था. इस आशंका से उन्होंने उच्च अधिकारियों को अवगत कराया तो उन्होंने इस केस को हर हाल में सुलझाने और जल्द से जल्द देवांश, चाहे जिस भी हाल में हो, को ढूंढने के निर्देश दिए.
उच्चाधिकारियों की हिदायत का असर यह हुआ कि देवांश प्रकरण में तेजी आ गई. संभावित स्थानों पर मुखबिरों को भी लगा दिया गया था. इसी बीच पुलिस टीम द्वारा जुटाए गए साक्ष्यों से देवांश की परिचित छात्रा अनुष्का घेरे में आ रही थी.
इस के बाद पुलिस ने बिना कोई देर किए कानपुर के आवास विकास निवासी 21 वर्षीया अनुष्का तिवारी को हिरासत में ले लिया. उस से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने जौनपुर के गोला बाजार निवासी 21 वर्षीय राहुल सेठ और 25 वर्षीय शादाब आलम को भी गिरफ्तार कर लिया.
तीनों से पूछताछ की गई तो पता चला कि देवांश इस समय जीवित नहीं है, उस की हत्या कर दी गई है.
देवांश की हत्या की जो वजह सामने आई, वह प्रेम त्रिकोण की एक कहानी निकली—
नए प्रेमी के साथ बनाई खूनी योजना
देवांश यादव और अनुष्का तिवारी ने कानपुर नगर के सरस्वती ज्ञान मंदिर इंटर कालेज में कक्षा 6 से 9 तक साथसाथ पढ़ाई की थी, जिस से दोनों एकदूसरे से प्यार करने लगे थे. खुशमिजाज किस्म का देवांश अनुष्का पर जान छिड़कता था. वह पढ़लिख कर कुछ बनने की तमन्ना पाले आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली आ गया तो अनुष्का ने वाराणसी की राह थाम ली थी.
दोनों ने ही अलगअलग शहरों की राह पकड़ ली थी, लेकिन वे एकदूसरे को दिलोजान से चाहते थे. फुरसत मिलने पर दोनों काफीकाफी देर तक वीडियो काल कर एकदूसरे का दीदार करने के साथ भविष्य की कल्पनाओं में भी खो जाया करते थे. देवांश यादव जहां अपने प्यार के प्रति गंभीर और पूरे विश्वास में जी रहा था, वहीं अनुष्का वाराणसी आने के बाद से बदलने लगी थी. इस बदलाव का कारण भी कोई और नहीं बल्कि राहुल सेठ का साथ था, जिस से दोस्ती बढ़ने के बाद अनुष्का देवांश को नजर अंदाज करने लगी थी. राहुल सिंह भी वाराणसी में पढ़ाई कर रहा था.
अब अकसर देवांश जब भी अनुष्का से बात करना चाहता था तो वह या तो कोई बहाना बना कर टाल देती या उस की काल ही रिसीव नहीं करती थी. अनुष्का के अंदर अचानक से आए इस बदलाव को देख कर देवांश मन ही मन परेशान होने लगा था. उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरकार अनुष्का के अंदर यह परिवर्तन अचानक से कैसे आ गया है? समय बीतने के साथ अनुष्का के अंदर पहले से काफी कुछ बदलाव आ गया था.
अपने प्यार के अंदर अचानक से आए बदलाव को देख कर वह उदास रहने लगा था. मई महीने में कुछ दिनों की छुट्टी ले कर वह दिल्ली से अपने घर फर्रुखाबाद गया था. कुछ दिन घर रुकने के बाद वह 25 मई, 2023 को वाराणसी घूमने की बात कह कर वाराणसी आ गया था. वाराणसी आने के बाद उस ने अस्सी क्षेत्र के पैराडाइज होटल में एक कमरा बुक करा लिया था.
राहुल और शादाब ने पूछताछ में बताया कि देवांश यादव अनुष्का तिवारी से जबरदस्ती मिलना चाहता था और उसे परेशान करता था, जिस के कारण अनुष्का काफी परेशान चल रही थी. देवांश यादव की हरकतों से परेशान हो कर तीनों ने देवांश यादव की हत्या की योजना बनाई.
तय योजना के मुताबिक अनुष्का ने पहले देवांश को वाट्सऐप काल कर के वाराणसी बुलाया. 25 मई को जब देवांश वाराणसी आया तो उस ने पैराडाइज होटल में कमरा ले लिया. इसी दौरान उस की अनुष्का से मुलाकात भी हुई. अनुष्का ने योजना के तहत देवांश का भरोसा जीत लिया था.
अनुष्का से मिलते हुए देवांश ने कहा, ”तुम्हें पता है कि तुम्हारे बगैर मैं नहीं जी सकता.’’
देवांश की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि अनुष्का बीच में ही उस की बात काटते हुए उत्साह से उस का हाथ पकड़ कर अपने हाथों में लेते हुए बोली, ”मैं भी कैसे जीती हूं तुम्हें क्या पता? पढ़ाई की वजह से मैं बात नहीं कर पा रही थी तो तुम कुछ और ही सोचने लगे थे.’’
”अरे… अरे ऐसी बात नहीं है अनुष्का, तुम जिस दिन बात नहीं करती हो उस दिन मेरा मन किसी काम, पढ़ाईलिखाई में भी नहीं लगता.’’
कुछ देर अनुष्का के साथ बिताने के बाद देवांश होटल के अपने कमरे में चला गया था. अनुष्का के प्रति देवांश जहां पूरी तरह से आश्वस्त हो चला था तो वहीं अनुष्का के मन में चल रही साजिश से वह पूरी तरह से अनजान था.
27 मई, 2023 को अनुष्का ने साजिश के तहत देवांश को अस्सी नाला पुलिया के पास बुलाया, जहां पहले से ही वह इटिओस कार के साथ खड़ी थी. देवांश के करीब पहुंचे ही अनुष्का ने कार का दरवाजा खोल कर पीछे की सीट पर अपने बगल में देवांश को भी बैठा लिया.
गाड़ी शादाब चला रहा था, जबकि राहुल सेठ स्कूटी से कार के पीछेपीछे चल रहा था. कार में बैठने के बाद अनुष्का ने मैंगो जूस देवांश को पीने के लिए दिया, जिसे पीते ही देवांश झपकी लेने लगा था.
दरअसल, देवांश के जूस में अनुष्का ने नींद की गोलियों का पाउडर डाल दिया था, जिसे पीते ही कुछ देर बाद देवांश लुढ़क गया था. देवांश के बेहोश होने पर कार को तेजी से चंदौली की ओर दौड़ा दिया गया था कि इसी बीच देवांश के शरीर में हलचल होती देख अनुष्का घबरा गई. एक सुनसान जगह देख कर शादाब ने गाड़ी रोकी और अनुष्का के साथ मिल कर सड़क के किनारे पड़ी गिट्टियों पर देवांश को पटक दिया. तभी राहुल सेठ ने पेचकस से देवांश के गले और सीने में अनगिनत वार कर उस की हत्या कर दी. फिर उस की लाश को फेंक कर चलते बने.
जहां पर देवांश की लाश को फेंका गया था, वहां सड़क कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा था. देवांश को मौत की नींद सुलाने के बाद उन्होंने उस के मोबाइल को बिहार की ओर जा रहे एक ट्रक पर फेंक दिया और वापस वाराणसी लौट आए थे. देवांश की हत्या करने के बाद उस की लाश को जिस स्थान पर फेंका गया था, वह चंदौली जिले के सिंघीताली पुलिया के पास का था.
उधर एक युवक की लाश मिलने की जानकारी होने पर चंदौली पुलिस शव को कब्जे में ले कर छानबीन में जुटी हुई थी, लेकिन कोई जानकारी नहीं हो पाई थी. युवक की हत्या क्यों हुई, किस ने और क्यों की, यह रहस्य बना हुआ था, लेकिन वाराणसी जिले के भेलूपुर थाना पुलिस ने इस त्रिकोणीय प्रेम प्रसंग हत्याकांड का खुलासा करते हुए प्रेमिका सहित 3 को गिरफ्तार कर परतदरपरत देवांश हत्याकांड मामले का खुलासा खुदबखुद होता चला गया. हत्यारे प्रेमीप्रेमिका और एक अन्य युवक को भेलूपुर पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर डीसीपी (काशी) आर.एस. गौतम व एडीसीपी चंद्रकांत मीणा के सामने पेश किया तो उन्होंने प्रैस कौन्फ्रैंस कर केस का खुलासा कर दिया.
अभियुक्तों की निशानदेही पर पुलिस ने आलाकत्ल पेचकस व घटना में प्रयुक्त स्कूटी के साथ ही मृतक देवांश की चप्पलें, फटी हुई टीशर्ट का टुकड़ा, लोअर, कड़ा व कलावा भी बरामद कर लिया.
पुलिस ने हत्या के आरोपी राहुल सेठ, शादाब आलम और अनुष्का तिवारी को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
समरजीत करीब एक साल बाद दिल्ली से अपने भाइयों अरविंद और धर्मेंद्र के साथ गांव धनजई लौटा तो मोहल्ले वालों ने उस में कई बदलाव देखे. उस के पहनावे और बातचीत में काफी अंतर आ चुका था. उस का बातचीत का तरीका गांव वालों से एकदम अलग था. इस से गांव वाले समझ गए कि दिल्ली में उस का काम ठीकठाक चल रहा है. धनजई गांव उत्तर प्रदेश के जिला सुलतानपुर के थाना कूंड़ेभार में पड़ता है.
देखने से ही लग रहा था कि समरजीत की हालत अब पहले से अच्छी हो गई है, लेकिन गांव वाले एक बात नहीं समझ पा रहे थे कि जब वह गांव से गया था तो गांव के ही रहने वाले रामसनेही की बेटी दीपा को भगा कर ले गया था. लेकिन उस के साथ दीपा दिखाई नहीं दे रही थी.
दरअसल, दीपा और समरजीत के बीच काफी दिनों से प्रेमसंबंध चल रहा था. जिस के चलते वह और दीपा करीब एक साल पहले गांव से भाग गए थे. बाद में रामसनेही को पता लगा कि समरजीत दीपा के साथ दक्षिणपूर्वी दिल्ली के पुल प्रहलादपुर गांव में रह रहा है.
गांव के ही लड़के के साथ बेटी के भाग जाने की बदनामी रामसनेही झेल रहा था. उसे जब पता लगा कि समरजीत के साथ दीपा नहीं आई है तो यह बात उसे कुछ अजीब सी लगी. बेटी को भगा कर ले जाने वाला समरजीत उस के लिए एक दुश्मन था. इस के बावजूद भी बेटी की ममता उस के दिल में जाग उठी. उस ने समरजीत से बेटी के बारे में पूछ ही लिया.
तब समरजीत ने बताया, ‘‘वह तो करीब एक महीने पहले नाराज हो कर दिल्ली से गांव चली आई थी. अब तुम्हें ही पता होगा कि वह कहां है?’’
यह सुन कर रामसनेही चौंका. उस ने कहा, ‘‘यह तुम क्या कह रहे हो? वो यहां आई ही नहीं है.’’
‘‘अब मुझे क्या पता वह कहां गई? आप अपनी रिश्तेदारियों वगैरह में देख लीजिए. क्या पता वहीं चली गई हो.’’
समरजीत की बात रामसनेही के गले नहीं उतरी. वह समझ नहीं पा रहा था कि समरजीत जो दीपा को कहीं देखने की बात कह रहा है, वह कहीं दूसरी जगह क्यों जाएगी? फिर भी उस का मन नहीं माना. उस ने अपने रिश्तेदारों के यहां फोन कर के दीपा के बारे में पता किया, लेकिन पता चला कि वह कहीं नहीं है. बात एक महीना पुरानी थी. ऐसे में वह बेटी को कहां ढूंढ़े. बेटी के बारे में सोचसोच कर उस की चिंता बढ़ती जा रही थी. यह बात दिसंबर, 2013 के आखिरी हफ्ते की थी.
समरजीत के साथ उस के भाई अरविंद और धर्मेंद्र भी गांव आए थे. रामसनेही ने दोनों भाइयों से भी बेटी के बारे में पूछा. लेकिन उन से भी उसे कोई ठोस जवाब नहीं मिला. 10-11 दिन गांव में रहने के बाद समरजीत दिल्ली लौट गया.
बेटी की कोई खैरखबर न मिलने से रामसनेही और उस की पत्नी बहुत परेशान थे. वह जानते थे कि समरजीत दिल्ली के पुल प्रहलादपुर में रहता है. वहीं पर उन के गांव का एक आदमी और रहता था. उस आदमी के साथ जनवरी, 2014 के पहले हफ्ते में रामसनेही भी पुल प्रहलादपुर आ गया.
थोड़ी कोशिश के बाद उसे समरजीत का कमरा मिल गया. उस ने वहां आसपास रहने वालों से बेटी दीपा का फोटो दिखाते हुए पूछा. लोगों ने बताया कि जिस दीपा नाम की लड़की की बात कर रहा है, वह 22 दिसंबर, 2013 तक तो समरजीत के साथ देखी गई थी, इस के बाद वह दिखाई नहीं दी है.
समरजीत ने रामसनेही को बताया था दीपा एक महीने पहले यानी नवंबर, 2013 में नाराज हो कर दिल्ली से चली गई थी, जबकि पुल प्रहलादपुर गांव के लोगों से पता चला था कि वह 22 दिसंबर, 2013 तक समरजीत के साथ थी. इस से रामसनेही को शक हुआ कि समरजीत ने उस से जरूर झूठ बोला है. वह दीपा के बारे में जानता है कि वह इस समय कहां है?
रामसनेही के मन में बेटी को ले कर कई तरह के खयाल पैदा होने लगे. उसे इस बात का अंदेशा होने लगा कि कहीं इन लोगों ने बेटी के साथ कोई अनहोनी तो नहीं कर दी. यही सब सोचते हुए वह 6 जनवरी, 2014 को दोपहर के समय थाना पुल प्रहलादपुर पहुंचा और वहां मौजूद थानाप्रभारी धर्मदेव को बेटी के गायब होने की बात बताई.
रामसनेही ने थानाप्रभारी को बेटी का हुलिया बताते हुए आरोप लगाया कि समरजीत और उस के भाइयों, अरविंद व धर्मेंद्र ने अपने मामा नरेंद्र, राजेंद्र और वीरेंद्र के साथ बेटी को अगवा कर उस के साथ कोई अप्रिय घटना को अंजाम दे दिया है. थानाप्रभारी धर्मदेव ने उसी समय रामसनेही की तहरीर पर भादंवि की धारा 365, 34 के तहत रिपोर्ट दर्ज कराकर सूचना एसीपी जसवीर सिंह मलिक को दे दी.
मामला जवान लड़की के अपहरण का था, इसलिए एसीपी जसवीर सिंह मलिक ने थानाप्रभारी धर्मदेव के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में इंसपेक्टर आर.एस. नरुका, सबइंसपेक्टर किशोर कुमार, युद्धवीर सिंह, हेडकांस्टेबल श्रवण कुमार, नईम अहमद, राकेश, कांस्टेबल अनुज कुमार तोमर, धर्म सिंह आदि को शामिल किया गया.
उधर दिल्ली में रह रहे समरजीत और उस के भाइयों को जब पता चला कि दीपा का बाप रामसनेही पुल प्रहलादपुर आया हुआ है तो तीनों भाई दिल्ली से फरार हो गए. पुलिस टीम जब उन के कमरे पर गई तो वहां उन तीनों में से कोई नहीं मिला.
चूंकि तीनों आरोपी रामसनेही के गांव के ही रहने वाले थे, इसलिए पुलिस टीम रामसनेही को ले कर यूपी स्थित उस के गांव धनजई पहुंची. लेकिन घर पर समरजीत और उस के घर वालों में से कोई नहीं मिला.
अब पुलिस को अंदेशा हो गया कि जरूर कोई न कोई गड़बड़ है, जिस की वजह से ये लोग फरार हैं. गांव के लोगों से बात कर के पुलिस ने यह पता लगाया कि इन के रिश्तेदार वगैरह कहांकहां रहते हैं, ताकि वहां जा कर आरोपियों को तलाशा जा सके. इस से पुलिस को पता चला कि सुलतानपुर और फैजाबाद के कई गांवों में समरजीत के रिश्तेदार रहते हैं. उन रिश्तेदारों के यहां जा कर दिल्ली पुलिस ने दबिशें दीं, लेकिन वे सब वहां भी नहीं मिले.
दिल्ली पुलिस ने समरजीत के सभी रिश्तेदारों पर दबाव बनाया कि आरोपियों को जल्द से जल्द पुलिस के हवाले करें. उधर बेटी की चिंता में रामसनेही का बुरा हाल था. वह पुलिस से बारबार बेटी को जल्द तलाशने की मांग कर रहा था. समरजीत या उस के भाइयों से पूछताछ करने के बाद ही दीपा के बारे में कोई जानकारी मिल सकती थी. इसलिए दिल्ली पुलिस की टीम अपने स्तर से ही आरोपियों को तलाशती रही.
9 जनवरी, 2014 को पुलिस को सूचना मिली कि समरजीत सुलतानपुर के ही गांव नगईपुर, सामरी बाजार में रहने वाले अपने मामा के यहां आया हुआ है. खबर मिलते ही पुलिस नगईपुर गांव पहुंच गई. सूचना एकदम सही निकली. वहां पर समरजीत, उस के भाई अरविंद और धर्मेंद्र के अलावा उस का मामा नरेंद्र भी मिल गया.
चूंकि दीपा समरजीत के साथ ही रह रही थी, इसलिए पुलिस ने सब से पहले उसी से दीपा के बारे में पूछा. इस पर समरजीत ने बताया, ‘‘सर, नवंबर, 2013 में दीपा उस से लड़ झगड़ कर दिल्ली से अपने गांव जाने को कह कर चली आई थी. इस के बाद वह कहां गई, इस की उसे जानकारी नहीं है.’’
‘‘लेकिन पुल प्रहलादपुर में जहां तुम लोग रहते थे, वहां जा कर हम ने जांच की तो जानकारी मिली कि दीपा 23 दिसंबर, 2013 को दिल्ली में ही तुम्हारे साथ थी.’’ थानाप्रभारी धर्मदेव ने कहा तो समरजीत के चेहरे का रंग उड़ गया.
थानाप्रभारी उस का हावभाव देख कर समझ गए कि यह झूठ बोल रहा है. उन्होंने रौबदार आवाज में उस से कहा, ‘‘देखो, तुम हम से झूठ बोलने की कोशिश मत करो. दीपा के साथ तुम लोगों ने जो कुछ भी किया है, हमें सब पता चल चुका है. वैसे एक बात बताऊं, सच्चाई उगलवाने के हमारे पास कई तरीके हैं, जिन के बारे में तुम जानते भी होगे. अब गनीमत इसी में है कि तुम सारी बात हमें खुद बता दो, वरना…’’
इतना सुनते ही वह डर गया. वह समझ गया कि अगर सच नहीं बताया कि पुलिस बेरहमी से उस की पिटाई करेगी. इसलिए वह सहम कर बोला, ‘‘सर, हम ने दीपा को मार दिया है.’’
‘‘उस की लाश कहां है?’’ थाना प्रभारी ने पूछा.
‘‘सर, उस की लाश बाग में दफन कर दी है.’’ समरजीत ने कहा तो पुलिस चारों आरोपियों के साथ उस बाग में पहुंची, जहां उन्होंने दीपा की लाश दफन करने की बात कही थी. समरजीत के मामा नरेंद्र ने पुलिस को आम के बाग में वह जगह बता दी. लेकिन उस जगह तो आम का पेड़ लगा हुआ था. नरेंद्र ने कहा कि लाश इसी पेड़ के नीचे है.
उन लोगों की निशानदेही पर पुलिस ने वहां खुदाई कराई तो वास्तव में एक शाल में गठरी के रूप में बंधी एक महिला की लाश निकली. उस समय रामसनेही भी पुलिस के साथ था. लाश देखते ही वह रोते हुए बोला, ‘‘साहब यही मेरी दीपा है. देखो न इन्होंने मेरी बेटी का क्या हाल कर दिया. मुझे पहले ही इन लोगों पर शक हो रहा था. इन के खिलाफ आप सख्त से सख्त काररवाई कीजिए, ताकि ये बच न सकें.’’
वहां खड़े गांव वालों ने तसल्ली दे कर किसी तरह रामसनेही को चुप कराया. गांव वाले इस बात से हैरान थे कि समरजीत दीपा को बहुत प्यार करता था, जिस के कारण दोनों गांव से भाग गए थे. फिर समरजीत ने उस के साथ ऐसा क्यों किया?
ओमप्रकाश जितना सीधासादा था, उतना ही मेहनती भी था. गांव में इधरउधर बैठने के बजाय वह अपने खेती के काम में लगा रहता था. उस के खेतों में अच्छी पैदावार होती थी. इसी वजह से गांव के लोग उस की पीठ पीछे भी तारीफ करते थे. ओमप्रकाश के घर के पास ही संतोष रावत रहता था. शादीशुदा होते हुए भी दूसरी महिलाओं से नजदीकी बढ़ाना उस की आदत में शुमार था.
एक दिन वह ओमप्रकाश के घर गया. वहां उस की पत्नी सुनीता मिली. वह उस से ओमप्रकाश की तारीफ करते हुए बोला, ‘‘भाभी, तुम भैया को ऐसा क्या खिलाती हो कि दिनरात खेतों में जुटे रहते हैं, फिर भी नहीं थकते. मेरे घर वाले कहते हैं कि मेहनत करने का सबक ओमप्रकाश से सीखो.’’
पति की प्रशंसा सुन कर सुनीता मुसकराई, लेकिन बोली कुछ नहीं. संतोष ने समझा कि वह पति की तारीफ सुन कर मन ही मन गदगद हो रही है. इसलिए उस ने ओमप्रकाश की तारीफ के पुल बांधना जारी रखा.
‘‘सुबह से देर शाम तक खेत में ही तो जुटे रहते हैं. जबकि आदमी को घर की तरफ ध्यान देना भी जरूरी होता है. घर में जो काम करना चाहिए, वह तो करते नहीं.’’ सुनीता ने कहा.
संतोष के दिमाग में बिजली सी कौंधी. वह सोचने लगा कि ऐसा कौन सा काम है, जो भैया घर पर नहीं करते. जिज्ञासा शांत करने के लिए वह बोला, ‘‘भाभी, मैं तुम्हारी बात समझा नहीं. ऐसा कौन सा काम है जो भैया नहीं करते?’’
मन की भड़ास निकालने के लिए सुनीता ने जैसे ही मुंह खोला, तभी उस की जेठानी कमला आ गई. वे दोनों आपस में बतियाने लगीं तो संतोष वहां से चला गया.
ओमप्रकाश उत्तर प्रदेश के जिला बाराबंकी के गांव सलोनीपुर मजरा खिजना का रहने वाला था. उस का विवाह करीब 6 साल पहले सीतापुर के महमूदाबाद थाना के जसमंडा गांव की रहने वाली सुनीता से हुआ था. सुनीता खूबसूरत थी, इसलिए उस से शादी कर के ओमप्रकाश बहुत खुश था. बाद में सुनीता 2 बेटों और 1 बेटी की मां बनी.
संतोष ओमप्रकाश को बड़ा भाई मानता था. ओमप्रकाश भी छोटा भाई मान कर उस का पूरा खयाल रखता था. इसी वजह से संतोष उस के घर आताजाता रहता था. सुनीता और संतोष में खूब पटती थी. उन के बीच हंसीमजाक भी चलता रहता था.
सुनीता द्वारा कही गई बात संतोष के जेहन में घूम रही थी. वह समझ गया था कि सुनीता ओमप्रकाश से संतुष्ट नहीं है. अगर वह संतुष्ट होती तो पति की तारीफ सुन कर खुश हो जाती और कुछ न कुछ जरूर कहती. वह किस वजह से असंतुष्ट थी, यह तो वही जानती होगी. लेकिन संतोष का मन कह रहा था कि वह दैहिक रूप में असंतुष्ट होगी. लेकिन ऐसा होता तो उस के आंगन में 3 बच्चे नहीं खेल रहे होते.
संतोष ने काफी सोचा, लेकिन वह सुनीता की असंतुष्टि का कारण नहीं जान पाया. हकीकत जानने के लिए अगले दिन दोपहर में वह सुनीता के घर जा पहुंचा.
उस समय सुनीता घर में अकेली थी. संतोष उस के पास जा कर बैठ गया. दोनों ने मुसकान बिखेर कर एकदूसरे के प्रति मन की खुशी जाहिर की. बातचीत का सिलसिला जुड़ा तो संतोष के मन की बात होंठों पर आ गई, ‘‘भाभी, कल तुम जो बात कह रही थीं, कमला भाभी के आ जाने की वजह से अधूरी रह गई थी. आखिर वह क्या बात है?’’
सुनीता ने गहरी नजरों से संतोष को देखा. फिर वह मुसकरा कर बोली, ‘‘लगता है कि कल से तुम इसी उधेड़बुन में लगे हो.’’
‘‘नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं है, लेकिन कोई बात अधूरी रह जाए तो मन को मथती रहती है.’’ संतोष बोला.
‘‘उसी बात को जानने के लिए बेचैन हो?’’ सुनीता ने पूछा.
‘‘हां भाभी,’’ संतोष बोला.
‘‘मान लो, मैं बता भी दूंगी तो उस से क्या फायदा होगा? जो काम वह नहीं करते, उसे तुम कर दोगे?’’ सुनीता ने उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा.
सुनीता की आंखों में छाए नशे और बातों से संतोष अच्छी तरह समझ गया कि वह क्या चाहती है. इसलिए वह भी उसी अंदाज में बोला, ‘‘भाभी, मैं तुम्हारी हर तरह की सेवा करने को मैं तैयार हूं. कुछकुछ तुम्हारी भावनाओं को समझ भी रहा हूं.’’
‘‘संतोष सोच लो, तुम शादीशुदा हो. बीवी के होते हुए तुम मेरे लिए टाइम निकाल पाओगे?’’
‘‘उस की चिंता मत करो. उसे भनक तक नहीं लगेगी. सच तो यह है कि भाभी, मैं तुम्हें बहुत दिनों से प्यार करता हूं, लेकिन तुम से कहने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था.’’ संतोष ने सुनीता के नजदीक आते हुए कहा.
उस समय कमरे में उन दोनों के अलावा कोई और नहीं था. इसलिए दोनों खुद पर काबू न रख सके और उन्होंने अपनी हसरतें पूरी कर लीं. अवैध संबंधों की राह बहुत ढलवां होती है. कोई भी आदमी इस पर एक बार कदम रख देता है तो वह फिसलता ही जाता है. संतोष और सुनीता ने शादीशुदा होते हुए भी ऐसे रास्ते पर कदम रखा था, जिस का खामियाजा हमेशा गलत ही होता है. दोनों ही अपनेअपने जीवनसाथी को धोखा दे कर अपना स्वार्थ पूरा करते रहे. उन्होंने वासना की आग में सारी मर्यादाओं को जला कर राख कर दिया.
पाप की गठरी अधिक दिनों तक बंधी नहीं रहती. एक न एक दिन उस की गांठ खुल ही जाती है. धीरेधीरे दोनों के नाजायज संबंधों की भनक गांव के लोगों को भी लग गई. गांव में अपनी बदनामी होते देख सुनीता संतोष से दूरी बनाने लगी. लेकिन संतोष उस का पीछा छोड़ने को तैयार नहीं था. वह जबतब उस के यहां आता रहा.
इसी साल मार्च में ओमप्रकाश का भांजा विकास घर आया. 18 साल का विकास उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के गांव इब्राहीमपुर में रहता था. विकास शारीरिक रूप से मजबूत था.
उसे देख कर पथभ्रष्ट हो चुकी सुनीता के मन में लालच के बीज अंकुरित होने लगे. इस से पहले भी उस ने विकास को कई बार देखा था, लेकिन इस बार उस की सोच बदल गई थी. सुनीता ने विकास की खूब आवभगत की. वह कई दिनों तक मामा के घर रुका रहा. इस दौरान सुनीता विकास के इर्दगिर्द मंडराती रही. मौका देख वह उस से हंसीमजाक भी करती थी.
कुछ दिन रुकने के बाद जब विकास वापस जाने लगा तो सुनीता विकास का हाथ थाम कर बोली, ‘‘विकास, अब कब आओगे?’’
मामी के इस तरह हाथ पकड़ने से विकास के शरीर में सनसनाहट सी दौड़ गई. उस का मन तो कर रहा था कि वह वहां से अभी न जाए, लेकिन पापा का फोन आ गया था, जिस से उसे वहां से उसी समय जाना पड़ रहा था. उस ने सुनीता को मन की बात बताते हुए कहा, ‘‘मामी, वैसे तो मेरा यहां से जाने का मन नहीं कर रहा है. लेकिन मैं जल्दी ही लौट आऊंगा.’’
‘‘ठीक है, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी.’’
विकास ने मामी के खूबसूरत चेहरे पर नजरें जमाईं तो उस की आंखों में प्यार का मूक आमंत्रण था.
विकास अपने घर तो वापस आ गया, लेकिन उस के मनमस्तिष्क में मामी का खूबसूरत बदन और उस के द्वारा कहे शब्द ही घूम रहे थे. उस का घर पर भी मन नहीं लग रहा था. कुछ दिनों बाद ही वह अपने मन में मामी की नजदीकी हासिल करने के सपने संजोए उस के घर आ गया.
विकास को आया देख सुनीता की खुशी का ठिकाना न रहा. वह अब जल्द ही अपनी हसरतें पूरी करना चाहती थी. एक दिन उस ने विकास से पूछा, ‘‘विकास क्या तुम ने किसी लड़की से प्यार किया है?’’
‘‘क्यों.’’ विकास ने मुसकरा कर पूछा.
‘‘बताओ तो सही.’’ कह कर सुनीता विकास के करीब आ गई.
‘‘एक है, लेकिन पता नहीं वह भी मुझ से प्यार करती है या नहीं.’’
‘‘तुम्हें उस के सामने प्यार का इजहार करना चाहिए.’’ सुनीता ने कहा.
‘‘सोचा कहीं बुरा न मान जाए. अच्छा मामी यह बताओ, अगर उस की जगह तुम होती तो क्या करतीं?’’
‘‘मेरे ऐसे भाग्य कहां.’’ कह कर सुनीता उदास हो गई.
‘‘फिर भी बताओ तो सही. तुम्हारा क्या जवाब होता?’’
‘‘तो मैं तुम्हारे गले में बांहों का हार पहना देती. मगर विकास तुम यह मुझ से क्यों पूछ रहे हो?’’ सुनीता ने मासूमियत से पूछा.
‘‘क्योंकि वह और कोई नहीं, तुम ही हो. मैं तुम से प्यार करता हूं और तुम्हें बांहों में भर कर खूब प्यार लुटाना चाहता हूं.’’ विकास की आंखों में वासना के लाल डोरे उभर आए थे.
‘‘बिलकुल बुद्धू हो, औरत की आंखों की भाषा पढ़ना भी नहीं जानते.’’
सुनीता की बात सुन कर विकास ने उसे अपनी बांहों में भर कर उस के चेहरे को चूम लिया. सुनीता ने भी उसे अपने अनुभव के जलवे दिखाने शुरू कर दिए. कुछ ही देर में उन के बीच ऐसे संबंधों ने जन्म ले लिया, जिसे समाज अवैध कहता है.
विकास का वहां ज्यादा दिनों तक रहना रिश्तों में शक पैदा कर सकता था, इसलिए कुछ दिनों बाद वह वहां से चला गया और थोड़ेथोड़े दिनों बाद मामी से मिलने आने लगा. इस तरह उन का यह खेल लंबे समय तक चलता रहा. ओमप्रकाश को इस की भनक तक न लगी. 24 अगस्त, 2013 को सीतापुर जिले की महमूदाबाद थाना पुलिस को गांव याकूबनगर के पास एक आदमी की लाश पड़ी होने की सूचना मिली.
लाश की खबर मिलते ही थानाप्रभारी सुभाषचंद्र तिवारी अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. लाश याकूबनगर से पैतेपुर गांव जाने वाली सड़क पर पड़ी थी. उन्होंने देखा कि उस की गरदन पर गहरे घाव थे, जबकि बाकी शरीर पर भी कई जगह चोटों के निशान थे. घाव किसी धारदार हथियार के लग रहे थे. वहां पर तमाम लोग इकट्ठा थे. पुलिस ने उन से लाश की शिनाख्त करानी चाही, लेकिन कोई भी उसे नहीं पहचान सका. थानाप्रभारी ने आवश्यक काररवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला चिकित्सालय, सीतापुर भेज दिया.
अगले दिन समाचारपत्रों में लाश मिलने का समाचार फोटो सहित छपा, इस के बावजूद लाश की शिनाख्त के लिए कोई थाने नहीं आया. लाश की शिनाख्त होने के बाद ही केस की काररवाई संभव थी. इसलिए पुलिस यह पता लगाने में जुट गई कि कहीं आसपास के जिलों के किसी थाने से इस हुलिया का आदमी तो लापता नहीं है. पुलिस की इस काररवाई का भी कोई नतीजा नहीं निकला.
13 सितंबर को देशराज रावत नाम का एक आदमी थाना महमूदाबाद पहुंचा. उस ने बताया कि वह बाराबंकी के बड्डूपुर थानाक्षेत्र में सलोनीपुर गांव का रहने वाला है. उस का बेटा संतोष 23 अगस्त से गायब है.
थानाप्रभारी सुभाषचंद्र तिवारी ने याकूबनगर के पास से जो अज्ञात लाश बरामद की थी, उस के कपड़े और फोटो देशराज को दिखाए. कपड़े और फोटो देखते ही देशराज रोने लगा. उस ने कहा कि यह सब सामान उस के बेटे का ही है. लाश की शिनाख्त होने पर थानाप्रभारी ने राहत की सांस ली. उन्होंने देशराज रावत से मालूमात की तो उस ने बताया कि संतोष 23 अगस्त को घर से गायब हुआ था. गांव में ही रहने वाले ओमप्रकाश की पत्नी सुनीता के साथ उस के नाजायज संबंध थे. उस ने शक जताया कि उस के बेटे की हत्या सुनीता या उस के घर वालों ने की होगी.
देशराज रावत से अहम जानकारी मिलने के बाद इंसपेक्टर सुभाषचंद्र तिवारी ने अपनी तहकीकात शुरू की तो इस बात की पुष्टि हो गई कि संतोष और सुनीता के बीच अवैध संबंध थे. उन्हें यह भी पता चला कि संतोष के गायब होने के एक दिन पहले ही वह अपने मायके आ गई थी. उस का मायका महमूदाबाद थानाक्षेत्र के जसमंडा गांव में था. संतोष की लाश उस के गांव से कुछ दूर मिलने से जाहिर होता था कि उस की हत्या में सुनीता का हाथ हो सकता है.
पुलिस सुनीता की तलाश में जुट गई और मुखबिर की सूचना पर उसे 19 सितंबर को मोतीपुर गांव से गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर उस से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उस ने संतोष की हत्या करने का जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि संतोष की हत्या में उस के साथ उस का भांजा व प्रेमी विकास और उस का जेठ सियाराम भी शामिल था.
पूछताछ में सुनीता ने बताया कि संतोष उस के गले की हड्डी बनता जा रहा था. उस की वजह से वह पूरे गांव में बदनाम हो गई थी, लेकिन वह था कि उस का पीछा छोड़ने को तैयार नहीं तैयार था. उस से पीछा छुड़ाने के लिए उस ने उसे मौत के घाट उतारने की योजना बनाई.
यह सब अकेली सुनीता के बस की बात नहीं थी. इस के लिए उस ने विकास को तैयार करने का मन बनाया. उस ने रोते हुए विकास से कहा, ‘‘विकास, संतोष ने मेरा जीना हराम कर दिया है. जहां भी जाती हूं, उस की वजह से मुझे बदनामी झेलनी पड़ती है. वह मेरा किसी हाल में पीछा नहीं छोड़ रहा है.’’
सुनीता को रोते देख कर विकास का दिल भर आया. उस ने कहा, ‘‘रोओ मत मामी, मैं हूं न. अगर वह तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ रहा तो उसे यह दुनिया ही छोड़नी पड़ेगी.’’ कहते हुए विकास के चेहरे पर कठोरता आ गई.
यह देख कर सुनीता मन ही मन खुश हुई, लेकिन फिर संभल कर बोली, ‘‘तुम सही कह रहे हो, यही एक तरीका है. लेकिन इस के लिए मेरे जेठ यानी तुम्हारे बड़े मामा सियाराम को भी तैयार करना होगा. तीन लोगों के साथ होने से संतोष बच के नहीं निकल पाएगा.’’
विकास ने सहमति दे दी. इस के बाद उस ने बड़े मामा सियाराम से बात की और घर की इज्जत को बचाने का वास्ता दे कर उसे साथ देने के लिए राजी कर लिया. फिर तीनों ने बैठ कर संतोष को ठिकाने लगाने की योजना बनाई.
योजनानुसार 22 अगस्त, को सुनीता अपने बच्चों के साथ विकास और सियाराम को ले कर अपने मायके आ गई. 23 अगस्त को सुनीता ने संतोष को फोन कर के मिलने के लिए गांव जसमंडा बुलाया. सुनीता के बुलाने पर संतोष तुरंत बाराबंकी से बस द्वारा लखनऊ होते हुए पहले सीतापुर के कस्बा महमूदाबाद पहुंचा और वहां से सुनीता द्वारा बताई गई जगह पर पहुंच गया.
विकास और सियाराम उस जगह पर पहले ही छिप कर बैठ गए थे. उस समय रात के करीब 9 बज रहे थे. वादे के अनुसार सुनीता संतोष को निश्चित जगह पर मिल गई और उस से बातें करती हुई चलने लगी. वह याकूबपुर गांव के पास पहुंचे ही थे कि अंधेरे का फायदा उठा कर पीछेपीछे आ रहे विकास और सियाराम ने संतोष को दबोच कर जमीन पर गिरा लिया. इस के बाद उन्होंने बांके से उस पर ताबड़तोड़ वार करने शुरू कर दिए. कुछ ही देर में संतोष की मौत हो गई. बांके को वहीं पास की झाडि़यों में छिपा कर तीनों वहां से फरार हो गए.
अगले दिन 20 सितंबर को विकास और सियाराम को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर उन से पूछताछ की. उन्होनें भी अपना जुर्म कुबूल कर लिया. थानाप्रभारी सुभाषचंद्र तिवारी ने सुनीता, विकास और सियाराम के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर के उन्हें मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.
— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
जिस दिन मल्लिका को प्रवीण के साथ जाना था, वह सास से बाजार जाने की बात कह कर घर से निकली थी. सुबह की निकली मल्लिका जब रात तक घर नहीं लौटी तो सास ने उस की तलाश शुरू की. घर में कोई था नहीं, इसलिए फोन कर के खासखास रिश्तेदारों को बुला लिया. जब मल्लिका का कुछ पता नहीं चला तो कृष्णा को फोन किया गया.
पत्नी के लापता होने की सूचना मिलते ही कृष्णा आ गया. उस ने पत्नी की गुमशुदगी दर्ज करा दी तो पुलिस भी मल्लिका की तलाश करने लगी.
प्रवीण मल्लिका को ले कर पहले जरार में रह रही अपनी बहन के यहां गया. बहन प्रीति ने जब मल्लिका के बारे में पूछा तो प्रवीण ने बताया कि यह उस की पत्नी है. उस ने उस से शादी कर ली है. खूबसूरत मल्लिका को देख कर प्रीति बहुत खुश हुई. उस ने भाई और कथित भाभी मल्लिका की खूब आवभगत की.
बहन के घर रहते हुए प्रवीण ने मल्लिका के साथ नागपुर जाने की योजना बनाई. 18 अक्टूबर, 2014 को छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस से उस ने रिजर्वेशन भी करवा लिया. लेकिन न जाने क्यों उस ने रिजर्वेशन कैंसिल करा दिया और मल्लिका को ले कर रुनकता स्थित अपने कमरे पर आ गया.
मल्लिका ने रुनकता स्थित प्रवीण का कमरा और क्लिनिक देखा तो सन्न रह गई. वह जो सोच कर प्रवीण के साथ आई थी, यहां उस का एकदम उलटा था. प्रवीण की असलियत जान कर वह बेचैन हो उठी. उस ने गाड़ीबंगला, नौकरचाकर का जो सपना देखा था, उस सब पर पानी फिर गया था.
मल्लिका समझ गई कि उस के साथ धोखा हुआ है. लेकिन अब वह फंस चुकी थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे. सिर्फ शारीरिक सुख से तो जिंदगी बीत नहीं सकती थी, इसलिए वह इस बात पर विचार करने लगी कि आगे क्या किया जाए.
प्रवीण अगले दिन मल्लिका को ताजमहल दिखाने ले गया. वहां उस ने उस के साथ फोटो भी खिंचवाए. प्रवीण शायद मल्लिका के मन की बात भांप गया था, इसलिए वह उसे समझाने लगा कि जल्दी ही वह दूसरा मकान ले लेगा. बाजार में कोई अच्छी सी दुकान ले कर बढि़या क्लिनिक खोल लेगा. अभी तक वह अकेला रहता था, इसलिए उसे किसी बात की चिंता नहीं थी, लेकिन उस के आ जाने से उसे चिंता होने लगी है.
दीवाली पर प्रवीण मल्लिका के साथ अपनी बहन के यहां जरार गया, लेकिन अगले ही दिन वापस आ गया. प्रवीण की लाख कोशिश के बावजूद मल्लिका का मन बदल चुका था. वह समझ गई थी कि यहां जल्दी कुछ बदलने वाला नहीं है. उसे बेटे की भी याद आने लगी थी. उसे अपनी गलती का अहसास हो गया था, इसलिए उस ने जरार से रुनकता आते समय रास्तें में ही प्रवीण से कह दिया था कि इस स्थिति में वह उस के साथ नहीं रह सकती.
घर पहुंच कर मल्लिका वापस जाने की तैयारी करने लगी. प्रवीण उसे समझाने लगा कि अब वह उस के बिना अकेला नहीं रह पाएगा. प्रवीण को इस बात की भी चिंता सता रही थी कि मल्लिका अपने साथ जो लाखों के गहने और नकद ले आई है, उसे भी अपने साथ ले जाएगी. फिर तो इतनी मेहनत कर के भी वह कंगाल का कंगाल रह जाएगा.
25 अक्टूबर को भैया दूज थी, इसलिए क्लिनिक बंद थी. पूरा दिन प्रवीण मल्लिका को समझाता रहा, लेकिन किसी भी तरह मल्लिका रुकने को तैयार नहीं थी. प्रवीण को मल्लिका के जाने की उतनी चिंता नहीं थी, जितनी चिंता उस के गहनों और रुपयों को साथ ले जाने की थी. इसलिए उस ने सोच लिया कि भले ही उसे मल्लिका की हत्या करनी पड़े, लेकिन वह साथ लाया माल मल्लिका को ले नहीं जाने देगा.
यही सोच कर वह रात 8 बजे के आसपास मुस्तकीम की दुकान से कोल्ड ड्रिंक की 2 बोतलें खरीद लाया. मल्लिका की नजर बचा कर उस ने एक बोतल में नशे की दवा मिला दी. इस के बाद उस बोतल को मल्लिका को दे कर दूसरी बोतल खुद पीने लगा. कोल्ड ड्रिंक पीते हुए भी उस ने मल्लिका से कहा कि वह जिद छोड़ दे.
लेकिन मल्लिका ने साफसाफ कह दिया कि अब वह यहां रुक कर जिंदगी बरबाद करने वाली नहीं है. इस के बाद प्रवीण चुप हो गया. कोल्ड ड्रिंक पी कर मल्लिका बेहोश हो गई तो खिड़की दरवाजा बंद कर के प्रवीण ने बांका से मल्लिका का गला रेत दिया. बेहोश होने की वजह से मल्लिका चीख भी नहीं सकी.
गुस्से में प्रवीण ने मल्लिका की हत्या तो कर दी, लेकिन लाश देख कर परेशान हो उठा कि अब क्या करे. उसे पुलिस और कानून का डर सताने लगा.
पुलिस से बचने के लिए उस ने कहीं और भाग जाने का विचार किया. लाश को कंबल से ढक कर वह कमरे से बाहर निकल कर दरवाजे पर ताला लगा कर सड़क पर चलने लगा. मल्लिका के कुछ गहने और 15 सौ रुपए नकद उस के पास थे. वह उन्हीं से कहीं दूर जा कर अपनी गृहस्थी बसाना चाहता था. लेकिन उसे लग रहा था कि वह कहीं भी चला जाए, पुलिस और कानून से बच नहीं पाएगा.
सुबह किसी ने कस्बे से थोड़ी दूर पर रेल की पटरी के किनारे एक क्षतविक्षत लाश देखी. पुलिस को सूचना दी गई तो थाना सिंकदरा के थानाप्रभारी आशीष कुमार सिंह पुलिस बल के साथ वहां पहुंच गए. मृतक के पास एक बैग था, जिस की तलाशी में कुछ कपड़े और गहने के साथ 15 सौ रुपए मिले. इस के बाद मृतक की तलाशी में उस की जेब से आधार कार्ड मिल गया, जिस से उस की शिनाख्त हो गई. वह लाश किसी और की नहीं, रुनकता कस्बे में क्लिनिक चलाने वाले डा. प्रवीण विश्वास की थी.
पुलिस को जब बताया गया कि इस के घर में इस की नवविवाति पत्नी भी है तो थानाप्रभारी ने उसे सूचना देने के लिए एक सिपाही को भेजा. कमरे में बाहर से ताला बंद था. अब सवाल यह था कि उस की पत्नी कहां गई. किसी ने खिड़की की झिरी से झांक कर देखा तो अंदर एक महिला की लाश दिखाई दी. पुलिस ने ताला तोड़वाया तो पता चला कि अंदर पड़ी लाश उस की नवविवाहिता पत्नी की थी.
पुलिस ने काररवाई कर के दोनों लाशें पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दीं. प्रवीण के कमरे में मिली डायरी से उस के बहनोई श्रवण विश्वास का फोन नंबर मिल गया तो पुलिस ने उसे फोन कर के डा. प्रवीण की आत्महत्या और उस की पत्नी की हत्या की सूचना दे दी. श्रवण पत्नी प्रीति के साथ रुनकता पहुंचा. इस के बाद पुलिस ने उसी की ओर से प्रवीण के खिलाफ मल्लिका की हत्या का मुकदमा दर्ज करने के बाद आत्महत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.
पुलिस को डा. प्रवीण विश्वास के पास से एक मंगलसूत्र, एक जोड़ी कान के टौप्स, 2 जोड़ी बच्चों के चांदी के कड़े और 15 सौ रुपए नकद मिले थे. मल्लिका कान में टौप्स, गले में चेन, अंगूठियां और नाक में जो कील पहने थी, वे उस के शरीर पर मौजूद थे.
पुलिस ने मल्लिका के पास से मिले मोबाइल फोन से एक नंबर मिलाया, संयोग से वह उस के पति कृष्णा का था. बातचीत के बाद पुलिस ने जब उसे मल्लिका की हत्या की सूचना दी तो उस ने जल्दी से जल्दी आगरा पहुंचने की बात कही.
कृष्णा ने कहा ही नहीं, बल्कि अगले दिन अपने चाचा विश्वजीत के साथ आगरा आ पहुंचा. उस ने आगरा में ही मल्लिका का अंतिम संस्कार कर दिया. उस का कहना था कि मल्लिका अपने साथ लाखों के गहने और नकदी ले कर आई थी. डा. प्रवीण के घर वालों ने भी उस का आगरा में ही अंतिम संस्कार कर दिया था. इस तरह स्वार्थ में अंधे प्रवीण ने प्यार की हत्या तो की ही, आत्महत्या कर के अपने साथ एक और घर बरबाद कर दिया.