UP Crime: दबंगई का तेजाब

UP Crime: एडवोकेट मनी बिश्नोई अपने फार्महाउस में काम करने वाले हरिसिंह की बेटी राधिका पर बुरी नजर रखता था. एक दिन उस ने जबरदस्ती करनी चाही, जिस का राधिका ने विरोध किया…

मुरादाबाद से 30 किलोमीटर दूर हरिद्वार रोड पर स्थित है कस्बा कांठ. इसी कस्बे के मोहल्ला पट्टीवाला में नए साल 2015 के पहले दिन दबंगई का एक ऐसा खेल खेला गया, जिस की गूंज मीडिया द्वारा पूरे देश में पहुंच गई. गौर करने वाली बात तो यह है कि इंसानियत को शर्मसार करने वाली इस घटना को रफादफा करने की पुलिस ने पूरी कोशिश की थी. बात पहली जनवरी, 2015 को दोपहर के समय की है. राधिका सैनी अपने घर में कपड़े सिल रही थी. उस समय वह घर में अकेली थी. राधिका बीए द्वितीय वर्ष में पढ़ रही थी. उस के घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, इसलिए वह खाली समय में घर पर ही कपड़े सिल लिया करती थी, जिस से कुछ पैसों की आमदनी हो जाती थी.

उसी समय कांठ का ही रहने वाला मनी बिश्नोई नाम का एक युवक उस के घर आ गया. वह वकील था. अपने घर में अचानक उसे देख कर वह डर गई. इस से पहले कि वह उस से कुछ कहती, मनी ने उस के साथ छेड़छाड़ शुरू कर दी. राधिका ने इस का विरोध किया, लेकिन वह नहीं माना. राधिका ने शोर मचाने की धमकी दी तो मनी ने अपने साथ लाए डिब्बे का तेजाब उस के मुंह पर उड़ेल दिया. तेजाब की जलन से राधिका चीखनेचिल्लाने लगी. उस की नानी प्रेमवती सैनी उस समय घर के बाहर बैठी कुछ औरतों से बातें कर रही थीं. जैसे ही उन्होंने राधिका के चीखने की आवाज सुनी, वह तेजी से घर की तरफ भागीं. घर से उन्होंने मनी बिश्नोई को भागते देखा, उस के हाथ में प्लास्टिक का एक डिब्बा था. उन्होंने कमरे में राधिका को दर्द से छटपटाते देखा.

उस का चेहरा जैसे उधड़ा हुआ था. कमरे से तेजाब की गंध भी आ रही थी. वह समझ गईं कि मनी ही उस के ऊपर तेजाब डाल कर भागा है. प्रेमवती ने उसी समय शोर मचा दिया तो मोहल्ले के तमाम लोग घर में आ गए. प्रेमवती ने सब को बता दिया कि मनी राधिका के ऊपर तेजाब डाल कर भाग गया है. मनी बिश्नोई का घर थोड़ी ही दूर पर था. वह दबंग परिवार से था, इसलिए सब कुछ जानते हुए भी किसी की हिम्मत नहीं हुई कि कोई उस के यहां जा कर शिकायत करे. खबर मिलते ही राधिका के पिता हरिसिंह सैनी और मां भारती सैनी भी घर पहुंच गईं. वे मनी बिश्नोई के फार्महाउस पर ही काम करते थे. बेटी की हालत देख कर उन का दिल कांप उठा. वे शिकायत करने के लिए दौड़ेदौड़े मनी बिश्नोई के घर गए और उस के पिता अनिल बिश्नोई से इस हादसे की शिकायत की.

अनिल बिश्नोई ने बेटे की करतूत को गंभीरता से लेने के बजाय उलटे जवाब दिया, ‘‘ऐसी कौन सी बड़ी बात हो गई, जो मुंह फाड़े जा रहे हो. बेटे ने गलती कर दी है तो तुम्हारी बेटी का इलाज करवा दूंगा और मनी को भी डांट दूंगा.’’  अनिल ने उन्हें धमकाते हुए कहा, ‘‘यदि कोई पूछे तो बता देना कि टौयलट में रखी तेजाब की बोतल धोखे से गिर गई थी. याद रखो, तुम ने मेरा नमक खाया है यदि नमकहरामी की तो अंजाम बुरा होगा. मैं जो कह रहा हूं, उसी में तुम्हारी भलाई है. इसलिए जो मैं कह रहा हूं, एक कागज पर मुझे लिख कर दे दो और हां, ध्यान रखो कि तुम पुलिस के पास गए तो तुम्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ सकता है.’’

हरिसिंह अपनी पत्नी के साथ उस के फार्महाउस पर काम करते थे. इसलिए जैसा उस ने कहा, मजबूरी में उन्होंने उसे लिख कर दे दिया. उधर तेजाब की जलन से राधिका बुरी तरह तड़प रही थी. वह छटपटा रही थी. अनिल बिश्नोई उस का इलाज कराने के लिए एक निजी चिकित्सक के पास ले गया. वह काफी झुलस चुकी थी. उस की हालत गंभीर बनी हुई थी. डाक्टर ने प्राथमिक उपचार करने के बाद राधिका को सरकारी अस्पताल ले जाने की सलाह दी. लेकिन अनिल उसे मुरादाबाद के सरकारी अस्पताल ले जाने के बजाय उसे उस के घर छोड़ आया. राधिका की हालत गंभीर होने के बावजूद भी उस का इलाज न कराना गांव वालों को भी बुरा लगा. मोहल्ले के कुछ असरदार और पढ़ेलिखे लोगों ने हरिसिंह को थाने जाने की सलाह दी.

यह बात हरिसिंह की भी समझ में आ गई तो वह पत्नी को ले कर थाना कांठ पहुंच गए. थानाप्रभारी को उन्होंने बेटी पर तेजाब डालने वाली बात बताई तो थानाप्रभारी ने मनी बिश्नोई के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर के राधिका को कांठ के सरकारी अस्पताल में भरती करा दिया. उस की गंभीर हालत देख कर कांठ के अस्पताल से उसे मुरादाबाद के सरकारी अस्पताल भेज दिया गया. उस की हालत गंभीर होने की वजह से पुलिस ने कोर्ट में उस के बयान भी नहीं कराए. हालत में सुधार होने पर 2 जनवरी को कोर्ट में बयान कराना था. अनिल को जब पता चला कि हरिसिंह ने उस के बेटे के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी है तो उसे बहुत बुरा लगा. उस ने धमकी दी कि यदि उस ने रिपोर्ट वापस नहीं ली तो पूरे परिवार को खत्म कर देगा.

इतना ही नहीं, 2 जनवरी को अनिल अपने 25-30 समर्थकों के साथ हरिसिंह के घर पहुंच गया और अपनी हेकड़ी दिखाते हुए परिवार को धमकाया तथा उसी समय राधिका के छोटे भाई सचिन का अपहरण कर के ले गया. जाते समय अनिल ने यह धमकी दी थी कि 2 जनवरी, 2015 को राधिका ने कोर्ट में हमारे खिलाफ बयान दिया तो सचिन की हत्या कर दी जाएगी. इस धमकी पर राधिका ही नहीं, उस के घर वाले भी डर गए. भाई की जान बचाने के लिए राधिका ने कोर्ट में वही बयान दिया, जैसा अनिल बिश्नोई चाहता था. उस ने कोर्ट में कहा कि टौयलट में रखा तेजाब उस के ऊपर धोखे से गिर गया था, जिस से वह झुलस गई.

जब मनी के घर वालों को पता चला कि राधिका ने उन के पक्ष में ही बयान दिया है तो वे बहुत खुश हुए. अब उन्हें तसल्ली हो गई कि पुलिस भी उन का कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी. पक्ष में बयान देने के बावजूद भी उन्होंने सचिन को रिहा नहीं किया. हरिसिंह ने उस से अपने बेटे को रिहा करने की गुहार लगाई, तब कहीं जा कर 2 दिनों बाद उस ने उसे आजाद किया. उधर मीडिया द्वारा यह तेजाब कांड सुर्खियों में आया तो कई सामाजिक संगठन कांड के विरोध में सामने आ गए. सैनी समाज हरिसिंह के साथ जुड़ गया. मुरादाबाद की समाजसेविका व अधिवक्ता सीता सैनी ने हरिसिंह के परिवार वालों से मुलाकात की और उन्हें विश्वास दिलाया कि वह उन्हें हर तरह का सहयोग देने को तैयार हैं और जब तक उस दरिंदे को सजा नहीं मिल जाती, वह भी चुप नहीं रहेंगी. उन्होंने डरीसहमी राधिका की भी हिम्मत बंधाई और शांत न बैठने की सलाह दी.

उधर मुरादाबाद के सरकारी अस्पताल में भरती राधिका की हालत दिनबदिन बिगड़ती जा रही थी. उस का संक्रमण बढ़ रहा था, जिस की वजह से अस्पताल के डाक्टरों ने भी हाथ खड़े कर दिए. उन्होंने सुझाव दिया कि यदि राधिका का अच्छा इलाज करवाना है तो उसे दिल्ली के बड़े अस्पताल ले जाएं. पीडि़त लड़की के घर वालों की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वे उसे दिल्ली ले जाएं. मगर इस काम में राष्ट्रीय मानवाधिकार संरक्षक समिति के सदस्य आगे आए. वे 18 जनवरी, 2015 को राधिका को मुरादाबाद से दिल्ली ले गए और दिल्ली के डा. राममनोहर लोहिया अस्पताल में उन्होंने उसे एडमिट करवा दिया. सीता सैनी और अन्य लोगों के समझाने पर राधिका और उस के घर वालों की उम्मीद जागी कि अब शायद उन्हें न्याय मिलेगा.

फिर 9 जनवरी, 2015 को राधिका के मातापिता ने सीता सैनी के साथ मुरादाबाद के एसएसपी लव कुमार से मुलाकात कर के कहा कि राधिका ने 2 जनवरी को कोर्ट में जो बयान दिया था, वह अपने भाई की जान बचाने के लिए डर की वजह से दिया था. उन्होंने कोर्ट में फिर से बयान दर्ज कराने की मांग की. साथ ही गुहार लगाई कि इस केस की जांच कांठ के थानाप्रभारी के बजाय अन्य किसी अधिकारी से कराई जाए. उन की मांग पर एसएसपी ने यह मामला एसपी (ग्रामीण) प्रबल प्रताप सिंह के हवाले कर दिया और भरोसा दिया कि पीडि़त परिवार की सुरक्षा की जाएगी. घर वालों की मांग पर एसएसपी ने मामले की जांच कांठ के थानाप्रभारी से हटा कर कांठ के सीओ राहुल कुमार को सौंप दी.

एसएसपी के आदेश देते ही कांठ पुलिस हरकत में आ गई. सीओ राहुल कुमार ने अभियुक्त मनी बिश्नोई की गिरफ्तारी के लिए एक पुलिस टीम उस के घर भेज दी. लेकिन उस के घर पर कोई नहीं मिला. घर के सभी लोग फरार हो चुके थे. इस के बाद पुलिस को चकमा दे कर अभियुक्त मनी बिश्नोई ने मुरादाबाद के एसीजेएम-5 के न्यायलय में आत्मसमर्पण कर दिया, जहां से उसे 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. चूंकि अनिल बिश्नोई एक दबंग व्यक्ति था. अपने वकील बेटे के जेल जाने पर वह अपनी बेइज्जती महसूस कर रहा था. इसलिए थाने में दर्ज कराई रिपोर्ट वापस कराने के लिए वह हरिसिंह सैनी को धमकियां देने लगा. हरिसिंह ने इस की शिकायत सीओ से की तो उन्होंने केस में पीडि़त परिवार को धमकाने और अपहरण की धाराएं बढ़ा दीं.

पुलिस को अभियुक्त मनी से पूछताछ भी करनी थी. इसलिए जांच अधिकारी ने अदालत में दरख्वास्त की तो अदालत ने उसे 6 घंटे के पुलिस रिमांड पर दे दिया. रिमांड अवधि में उस से पूछताछ के बाद तेजाब का खाली डिब्बा भी पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया. उस ने राधिका के ऊपर तेजाब फेंकने की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश के महानगर मुरादाबाद के बंगला गांव निवासी हरिसिंह सैनी की शादी करीब 22 साल पहले कांठ के पट्टीवाला मोहल्ले की भारती के साथ हुई थी, जिस से उस के 2 बेटियां व एक बेटा पैदा हुआ. राधिका परिवार में बड़ी बेटी थी. हरिसिंह पहले मुरादाबाद की ही एक पीतल फर्म में काम करता था. काम मंदा होने पर वह परेशान हो गया’ तब वह अपनी सास प्रेमवती के कहने पर बीवीबच्चों के साथ अपनी ससुराल कांठ चला गया. कांठ के ही अलगअलग स्कूलकालेज में उस ने अपने बच्चों का दाखिला करा दिया. प्रेमवती ने अपनी बेटी भारती और दामाद हरिसिंह की कांठ में ही अनिल बिश्नोई के फार्महाउस में नौकरी लगवा दी.

खेतों में दोनों पतिपत्नी मेहनतमजदूरी कर के जो कमा रहे थे, उस से उन के परिवार की गाड़ी चल रही थी. बच्चों की पढ़ाई भी ठीक चल रही थी. राधिका बीए द्वितीय वर्ष में पढ़ रही थी. 19 साल की राधिका पढ़ाई में होशियार थी. घर पर उस का जो खाली समय बचता था, उस में वह छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ा देती और कपड़े सिल लिया करती थी. जबकि उस के मातापिता अनिल बिश्नोई के फार्महाउस पर काम करने निकल जाते थे. वैसे तो उन्हें खाना देने के लिए उस के छोटे भाईबहन चले जाते थे, लेकिन कभीकभी राधिका भी उन्हें खाना देने फार्महाउस चली जाती थी. उसी दौरान अनिल बिश्नोई के बेटे एडवोकेट मनी बिश्नोई की नजर उस पर पड़ी तो वह उस के पीछे पड़ गया.

राधिका उस के मंसूबों को समझ गई थी, लेकिन वह उस का विरोध इसलिए नहीं कर रही थी कि वह एक दबंग आदमी का बेटा था और दूसरे उस के मांबाप भी उस के यहां काम करते थे. राधिका के चुप रहने पर मनी की हिम्मत और बढ़ गई. अब वह उस से अश्लील मजाक करने लगा. किसी न किसी बहाने उस ने उस के घर भी आना शुरू कर दिया. वहां भी वह उसे ही टकटकी लगाए देखता रहता था. एक दिन राधिका ने मनी की शिकायत अपने मातापिता से कर दी. मातापिता मनी से तो कुछ कह नहीं सकते थे, इसलिए उन्होंने उस बिगड़ैल की शिकायत उस के पिता अनिल बिश्नोई से की. बेटे द्वारा अपने नौकर की बेटी का पीछा करने की बात अनिल बिश्नोई को भी बुरी लगी. उन्होंने मनी को बहुत डांटा और कहा कि यह कदम उठाने से पहले वह कम से कम अपना और उस का स्तर तो देख लेता.

परंतु बेटे के ऊपर तो राधिका को पाने का जुनून सवार था, लिहाजा पिता की डांट और समझाने का उस पर कोई असर नहीं हुआ. वह उसे हासिल करने की जुगत में लगा रहा. कालेज आतेजाते समय वह उसे परेशान करता. इस की शिकायत हरिसिंह ने फिर से अनिल से की. बेटे की शिकायतें सुनसुन कर अनिल भी परेशान हो गया. तब उस ने मनी की यह सोच कर शादी कर दी कि बीवी के आने पर उस की नकेल कस जाएगी. लेकिन अनिल की यह सोच भी गलत साबित हुई. शादी होने के बावजूद भी वह राधिका को परेशान करता रहा. दिसंबर, 2014 के आखिरी सप्ताह में एक दिन उस ने राधिका को रास्ते में रोक लिया और उस ने धमकी दी कि यदि उस ने उस के साथ शादी नहीं की तो उस के पूरे परिवार को खत्म कर देगा.

डरीसहमी राधिका ने कोई जवाब नहीं दिया. घर आ कर उस ने यह बात अपने घर वालों को बता दी. जिस की शिकायत हरिसिंह ने फिर से अनिल बिश्नोई से की. तब अनिल बिश्नोई ने भी मनी को डांटा. इस से मनी और ज्यादा बौखला गया. उस ने घटना से 2 दिनों पहले राधिका को कालेज जाते समय रास्ते में रोक कर कहा कि अगर तू मेरी नहीं हुई तो तेरा चेहरा बिगाड़ दूंगा. राधिका उस की हरकतों से परेशान हो चुकी थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. उसे उस से निजात कैसे मिले. पहली जनवरी, 2015 को दोपहर के समय वह अपने घर में बैठी कपड़े सिल रही थी. उस के मांबाप अपने काम पर गए हुए थे, तभी मनी बिश्नोई तेजाब का डिब्बा ले कर उस के यहां पहुंचा. उस ने राधिका के साथ छेड़छाड़ शुरू कर दी. राधिका के विरोध करने पर जब उसे लगा कि उस का मकसद पूरा नहीं होगा तो उस ने डिब्बे में भरा तेजाब उस के चेहरे पर उड़ेल दिया.

अभियुक्त मनी बिश्नोई से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने रिमांड अवधि खत्म होने से पूर्व ही उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया. कथा संकलन तक उस की जमानत नहीं हो सकी थी और राधिका का दिल्ली के डा. राममनोहर लोहिया अस्पताल में इलाज चल रहा था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, राधिका परिवर्तित नाम है.

True Crime Hindi: दौलत बनी दुश्मन

True Crime Hindi: ललिता शर्मा मशहूर हरियाणवी गायिका थी. उस के पति मोनू शेख को शराब पीने की लत थी. घर के नौकर सलमान के साथ उस के शराब पीने पर ललिता को ऐतराज था, इस से खिन्न हो कर सलमान ने अपने दोस्त के साथ ऐसी खौफनाक साजिश रची कि…

दिन निकलते ही एरा गार्डन के फ्लैट संख्या एन-103 के बाहर आसपास के दर्जनों लोगों की भीड़ जमा हो गई थी. वजह यह थी कि उस फ्लैट में रहने वाले दंपति की किसी ने धारदार हथियार से गोद कर हत्या कर दी थी. हत्यारों ने घर में लूटपाट भी की थी. जिन की हत्या हुई थी, उन में 35 वर्षीया ललिता शर्मा उर्फ नाजिया शेख व उस का पति मोनू शेख था. ललिता शर्मा हरियाणवी रागिनी की जानीमानी गायिका थी. बाहर खड़े लोगों के चेहरों पर इस वारदात की दहशत साफ दिखाई दे रही थी. उसी समय किसी ने इस की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी.

एरा गार्डन थाना ब्रह्मपुरी क्षेत्र में आता है. यह एक पौश कालोनी है, इसलिए सूचना मिलते ही थानाप्रभारी रणबीर सिंह यादव सीनियर एसआई अजय कुमार, मनोज शर्मा, एसआई चंदगीराम, कांस्टेबल निशांत चौधरी, सुरेंद्र यादव, नौशाद अली व नजर अब्बास के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. यह फ्लैट पहली मंजिल पर था. पुलिस जब फ्लैट में पहुंची तो वहां का नजारा दिल दहला देने वाला था. बिस्तर पर ललिता खून से लथपथ पड़ी थी जबकि नीचे उस के पति की लाश पड़ी थी. देख कर ही लग रहा था कि हत्यारों ने दोनों पर किसी भारी चीज व धारदार हथियार से वार किए थे. ललिता की गरदन को धारदार हथियार से गोदा गया था. देखने से ही लग रहा था कि मृतका गर्भवती थी और वह हत्यारों से संघर्ष नहीं कर सकी थी, जबकि उस के पति ने संघर्ष किया था.

बेडरूम में लगी अलमारी व उस के अंदर की तिजोरी खुली हुई थी. इस के अलावा घर का सामान इधरउधर बिखरा हुआ था. दोहरे हत्याकांड की खबर मिलने पर मेरठ जोन के आईजी आलोक शर्मा, एसएसपी एस.एस. बघेल, एसपी (सिटी) ओमप्रकाश सिंह आदि भी मौके पर पहुंच गए थे. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो रसोई की सिंक में खून के निशान मिले. प्रथमदृष्टया लगा कि हत्याएं लूटपाट के लिए की गई हैं. वहीं पर मीट काटने वाला छुरा, जेनरेटर का हैंडल, शराब की खाली बोतल और 2 गिलास मिले. इस से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि शराब पीने के बाद हत्यारों ने इसी छुरे व जेनरेटर के हैंडल से दोनों की हत्याएं की होंगी.

पुलिस ने घटनास्थल की जरूरी काररवाई पूरी कर के लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. घटना के वक्त दंपति का 6 वर्षीय बेटा अयान ही जिंदा बचा था. वह डरासहमा लोगों के बीच खड़ा था. पुलिस ने लोगों से पूछताछ की तो एक व्यक्ति ने बताया, ‘‘साहब, अयान को पता है कि हत्याएं किस ने की हैं.’’

उस की बात सुन कर पुलिस अधिकारी चौंके, ‘‘क्या?’’

‘‘जी साहब.’’ वह व्यक्ति पूरे विश्वास से बोला.

उस की बात सुनसुन कर एसएसपी को हत्या की गुत्थी सुलझती नजर आई. उन्होंने अयान से प्यार से पूछताछ की तो उस ने जो कुछ बताया, उसे सुन कर सभी के रोंगटे खड़े हो गए. अयान के अनुसार, हत्याएं घर के नौकर सलमान ने अपने दोस्त आदिल के साथ मिल कर उस के सामने ही की थीं. हत्यारे उसे भी खत्म कर देना चाहते थे, लेकिन उन्हें उस पर दया आ गई थी. साथ ही उन्होंने उसे डराधमका दिया था कि वह किसी को कुछ न बताए. हत्या का पता लोगों को सुबह अयान से ही चला था. पुलिस ने लोगों से पूछताछ के आधार पर सलमान व आदिल के नामपते नोट कर लिए. सलमान थाना लिसाड़ी गेट क्षेत्र के मोहल्ला ऊंचा सद्दीकनगर में रहता था, जबकि आदिल एरा गार्डन में ही एक प्रौपर्टी डीलर के यहां एजेंट था. पुलिस ने दोनों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

एसएसपी एस.एस. बघेल ने थानाप्रभारी के नेतृत्व में एक पुलिस टीम को दोनों की तलाश में लगा दिया. ललिता हरियाणा की मशहूर गायिका थी. हरियाणा के अलावा अन्य प्रदेशों में भी उस की धूम थी. हरियाणा में ललिता के घर वालों को भी पुलिस ने हत्या की खबर भिजवा दी. पुलिस टीम ने दोनों आरोपियों के घरों में दबिश दी. वे अपने घरों से लापता मिले. पुलिस जांच में पता चला कि सलमान को 3 साल पहले ही ललिता ने अपने बेटे अयान की देखभाल के लिए नौकरी पर रखा था. इसी बीच आदिल उस का दोस्त बन गया था. ललिता के घर से एक मोटरसाइकिल भी गायब थी. अयान ने पुलिस को बताया कि वे दोनों उस के पापा की मोटरसाइकिल भी ले गए थे. पुलिस ने पूरे जिले में मोटरसाइकिल का नंबर वायरलैस पर फ्लैश करा कर चैकिंग अभियान चलाने के निर्देश दिए.

पुलिस को उम्मीद थी कि दोनों हत्यारे जिले से बाहर नहीं भागे होंगे. इसी बीच पुलिस को सूचना मिली कि नूरनगर फाटक वाली रोड पर 2 संदिग्ध युवक मोटरसाइकिल पर घूम रहे हैं. सूचना पा कर थानाप्रभारी रणबीर सिंह चेकिंग के लिए पहुंच गए. पुलिस के पास मोटरसाइकिल नंबर था ही. थोड़ी देर बाद उसी नंबर की एक मोटरसाइकिल पर 2 लड़के आए. पुलिस ने उन दोनों को रोक कर उन से पूछताछ की तो पता चला कि दोनों सलमान व आदिल हैं और वह मोटरसाइकिल वही है, जो उन्होंने ललिता शर्मा के घर से लूटी थी. जामातलाशी के दौरान उन के पास से सोने के आभूषण व नकदी भी मिली. पुलिस ने पूछताछ की तो उन्होंने अपने जुर्म का इकबाल कर लिया. थाने में जब उन से पूछताछ की तो इस दोहरे हत्याकांड की एक बेहद चौंकाने वाली कहानी सामने आई.

आखिर एक अचार बेचने वाले की बेटी का गायिका से शुरू हुआ जिंदगी का सफर प्रेम विवाह से होता हुआ मौत की दहलीज तक कैसे पहुंचा? दरअसल, ललिता शर्मा उर्फ नाजिया शेख मूलरूप से हरियाणा के हिसार जिले के हांसी क्षेत्र के रहने वाले रूपचंद की बेटी थी. रूपचंद साधारण व्यक्ति थे. उस के परिवार में ललिता के अलावा 5 और भी बच्चे थे. वह अचार बना कर बेचने का काम कर के किसी तरह परिवार की गाड़ी खींच रहे थे. ललिता को बचपन से ही गाने का शौक था. वह वक्तबेवक्त कुछ न कुछ गुनगुनाती रहती थी. एक बार कालेज के प्रोग्राम में उसे स्टेज पर गाने का मौका मिला तो उस ने जम कर तालियां बटोरीं. कार्यक्रम खत्म होने के बाद एक शिक्षक ने उस की तारीफ करते हुए कहा, ‘‘ललिता, तुम्हारी आवाज बहुत अच्छी है. तुम अभ्यास करो. मुझे उम्मीद है कि एक दिन तुम बहुत ऊंचे मुकाम पर जाओगी.’’

शिक्षक की सलाह को ललिता ने गंभीरता से लिया. वह अपने गायन पर और भी ज्यादा ध्यान देने लगी. अब कालेज में कोई भी प्रोग्राम होता तो वह झूम कर गाती. ललिता के परिवार की माली हालत बहुत अच्छी नहीं थी. वह चाहती थी कि यदि इसी गायन से उसे थोड़ीबहुत आमदनी होने लगे तो परिवार की हालत सुधर जाए. लगातार अभ्यास करने पर उस की गायिकी सुधरती गई. उस के पास गायिकी का हुनर था. 22 साल की उम्र में ही उस ने कालेज के स्टेज से निकल कर गायिकी को अपना कैरियर बनाने की ठान ली. उस ने कोशिश भी की, सफलता इतनी आसानी से नहीं मिलती, यह बात उसे बहुत जल्द समझ में आ गई. लेकिन उस ने हिम्मत नहीं हारी. उस ने कोशिश करनी नहीं छोड़ी.

कहते हैं, कोशिशें लगातार की जाएं तो कामयाबी जरूर मिलती है. इलाके की एक जागरण मंडली ने उसे अपने साथ रख लिया. जागरण में वह भजन गाने लगी. इस से उसे कुछ पैसे भी मिल जाया करते थे. यानी यहां से उसे अपने हुनर के पैसे मिलने शुरू हो गए. इस से उस के हौसले और बढ़ गए. वह ऊंचाइयों पर जाना चाहती थी. इसी दौरान उस ने हरियाणवी रागिनी जगत में पहचान बनाने के प्रयास किए तो कुछ लोगों से उस के संपर्क हो गए. मौका मिला तो उस ने ‘जीव जंतु और पशे पखेरू नाच्चे दुनिया सारी’ नामक रागिनी गाई. इस से उसे एक नई पहचान मिली. लोगों ने इसे खूब पसंद किया. इस के बाद उसे रागिनी समारोह में बुलाया जाने लगा. वह धीरेधीरे सफलता की सीढि़यां चढ़ रही थी. धीरेधीरे उस की रागिनियों में मांग बढ़ने लगी.

ललिता युवावस्था में ही गायिका बन गई. जिस परिवेश में वह पलीबढ़ी थी, वहां बेटियों की फिक्र करना आम बात है. उस के पिता को उस की शादी की फिक्र होने लगी. वह चाहते थे कि समय रहते उस की शादी हो जाए तो ठीक रहेगा. इस बारे में उन्होंने ललिता से बात की तो ललिता ने फिलहाल शादी के लिए मना कर दिया. वह कोई मुकाम हासिल करने के बाद ही शादी करना चाहती थी. पिता को उस की बात समझ में आ गई. ललिता अपने कार्यक्रमों में अकेली ही जाती थी. बेटी को कोई परेशानी न हो, इस के लिए रूपचंद ने अपने पड़ोस में रहने वाले मोनू शेख से बात की. मोनू कार चलाता था. उन्होंने उसे ललिता के साथ आनेजाने के लिए तैयार कर लिया. ललिता भी इस से खुश थी.

कहते हैं, जब सफलता मिलती है तो फिर रुकती नहीं. ललिता के साथ भी यही हुआ. उस की रागिनी की सीडी बना कर बाजार में बेची जाने लगीं. इस से उसे अच्छे पैसे भी मिलने लगे. कुछ सालों में ही दर्जनों सीडियां बाजार में आ गईं. कई छोटीबड़ी कंपनियों ने उस की आवाज को रेकार्ड कर के बेचा. इस के बाद तो हरियाणा में रागिनी गायिका के रूप में ललिता का नाम सम्मान के साथ लिया जाने लगा. जब आमदनी बढ़ी तो उस के परिवार की दशा भी सुधर गई. परिवार व नातेरिश्तेदार भी ललिता की प्रगति से बेहद खुश थे. ललिता रागिनी जगत में तेजी से उभरता सितारा थी. कहते हैं, जिंदगी में कब कौन सा मोड़ आ जाए, इस बात को कोई नहीं जानता. ललिता के साथ अकसर बाहर सफर में मोनू शेख रहता था. वह ललिता की हमउम्र था.

वक्त के साथ दोनों का झुकाव एकदूसरे की तरफ हो गया. दोनों साथ रहते थे और खूब बातें किया करते थे. धीरेधीरे आंखों के रास्ते दोनों एकदूसरे के दिल में उतर गए. मोनू पहला शख्स था, जिस ने उस के दिल के दरवाजे पर दस्तक दी थी. एक दिन बातोंबातों में मोनू ने अपने प्यार का उस से इजहार भी कर दिया. प्यार का इजहार हुआ तो दोनों एकदूसरे को देखने को बेकरार रहने लगे. मोनू ललिता का सब से विश्वासपात्र साथी था. समय के साथ दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. यह बात अलग थी कि अपने इस प्यार को दोनों ने जमाने से छिपाए रखा. ललिता ने हरियाणा के अलावा उत्तर प्रदेश, राजस्थान व अन्य स्थानों पर सैकड़ों कार्यक्रम किए, हर जगह मोनू साथ रहा.

ललिता अपनी प्रगति और मोनू के प्यार, दोनों से ही बहुत खुश थी. प्यार में डूबा मोनू भी उस के साथ जीनेमरने की कसमें खाता. हालांकि दोनों अलगअलग धर्मों के थे, इस के बावजूद भी उन्होंने शादी करने का फैसला कर लिया. दोनों एक ही मोहल्ले में रहते थे. जाहिर है, यह बात किसी को भी अच्छी लगने वाली नहीं थी. निस्संदेह ऐसे रिश्ते छिपाए नहीं छिपते. धीरेधीरे क्षेत्र में दोनों को ले कर चर्चाएं होने लगीं. रूपचंद को यह बात नागवार गुजरी. उन्होंने मोनू को इसलिए रखा था कि वह सुरक्षित रहे, लेकिन वे दोनों प्रेम डगर पर चल निकले थे. उन्होंने इस बात को ले कर ललिता को फटकारा तो उस ने दो टूक कह दिया कि वह मोनू से प्यार करती है.

इस पर रूपचंद बोले, ‘‘ठीक है, तुम कलाकार बन गई हो, लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि कुछ भी करो. अब तुम मोनू के साथ जाना बंद कर दो.’’

‘‘मैं ऐसा नहीं कर सकती.’’ ललिता का टका सा जवाब सुन कर रूपचंद सकते में आ गए. रूपचंद ने जमाना देखा था. उन्होंने बेटी को जमाने की ऊंचनीच समझाई. वह जिस समाज में रह रहे थे, वहां ऐसी बातों को गंभीरता से लिया जाता था. इसलिए उन्होंने बेटी को काफी समझाने की कोशिश की.

ललिता और मोनू शादी करने का फैसला कर चुके थे, जबकि घरों में रहते हुए यह मुमकिन नहीं था. ललिता अपने परिवार के लिए मुश्किलें पैदा नहीं करना चाहती थी, इसलिए सन 2007 में दोनों ने घर छोड़ दिया. रूपचंद ने बेटी को बहुत समझाया, लेकिन जब वह अपने निर्णय पर अटल रही तो उन्होंने उस से रिश्ते तोड़ लिए. ललिता और मोनू मेरठ जा कर मोहल्ला तीरगरान में रहने लगे. ललिता ने मोनू से निकाह कर के अपना नाम नाजिया शेख रख लिया. जबकि गायिकी के क्षेत्र में उस का पुराना नाम ही चलता रहा. उसे इसी नाम से पहचान मिली थी, इसलिए वह गायन के क्षेत्र में अपना नाम बदलना नहीं चाहती थी. ललिता के पास खूब पैसा आ रहा था. उस के पास लग्जरी कार थी. उसे सोने के गहने पहनने का भी बहुत शौक था. विवाह के एक साल बाद ललिता ने एक बेटे को जन्म दिया. दोनों ने बेटे का नाम अयान शेख उर्फ अनु शर्मा रखा. दिन हंसीखुशी से बीत रहे थे. ललिता गायिकी के क्षेत्र में नाम और दाम दोनों कमा रही थी.

ललिता की इस कमाई ने मोनू को नकारा बना दिया था. कहते हैं, इंसान के पास जब पैसा आता है तो साथसाथ बुरी आदतें भी आ जाती हैं. मोनू के साथ भी यही हुआ. उसे महंगी शराब पीने की लत लग गई. ललिता ने शुरूशुरू में तो कुछ नहीं कहा, बाद में उस ने मोनू को टोकना शुरू कर दिया. लेकिन ऐसी आदतें आसानी से पीछा नहीं छोड़तीं. ललिता ने सोचा कि शायद मोनू का खाली रहना ही सब से बड़ी परेशानी है. भविष्य की सोचते हुए उस ने उसे प्रौपर्टी के काम में लगा दिया. अयान को ललिता व मोनू, दोनों ही बहुत प्यार करते थे. 2 साल पहले ललिता ने एरा गार्डन में प्रथम तल पर फ्लैट नंबर 103 खरीद लिया था. वक्त के साथ जैसेजैसे पैसा आता रहा, ललिता उसे प्रौपर्टी में लगाती रही. उस ने करोड़ों की प्रौपर्टी बना ली. उस के शरीर पर हर वक्त लाखों रुपए का सोना रहता था.

ललिता की रागिनियों की सीडियां बाजार में हाथोंहाथ बिक रही थीं. ललिता प्रोग्राम करने के लिए अकसर बाहर जाती रहती थी. इसलिए बेटे की देखभाल के लिए उस ने मेरठ के लिसाड़ी गेट थानाक्षेत्र के मोहल्ला ऊंचा सद्दीकनगर निवासी बाबू कुरैशी के बेटे सलमान उर्फ सेम को बतौर नौकर रख लिया था. सलमान अच्छा लड़का था. बहुत जल्द उस ने अपने व्यवहार से पतिपत्नी दोनों का दिल जीत लिया. सलमान घर का नौकर था, मोनू उसे भेज कर अपने लिए शराब मंगा लिया करता था. हालांकि इस बात पर ललिता मोनू व सलमान दोनों को ही डांट देती थी. सलमान की दोस्ती एरा गार्डन में एक प्रौपर्टी डीलर के हमउम्र एजेंट आदिल उर्फ आदि से थी. इसी नाते कभीकभी वह भी ललिता के घर आ जाता था.

मोनू की शराब की लत से ललिता परेशान थी. उस ने उसे कई बार समझाया भी, लेकिन वह उस की बात को एक कान से सुन कर दूसरी से निकाल देता था. ललिता को पता चला कि मोनू सलमान से शराब मंगाता है तो उस ने एक दिन सलमान को भी फटकार दिया. इसी दौरान ललिता गर्भवती हो गई. इतने लंबे अरसे में मोनू व ललिता का अपने परिवारों से संपर्क नहीं हुआ था. ललिता की बहन पिंकी भी गायिकी के क्षेत्र में आ गई थी. इस नाते उस की ललिता से बातें हो जाया करती थीं. अयान मातापिता के अलावा सभी रिश्तेदारों से अनजान था, क्योंकि वह कभी किसी रिश्तेदारी में नहीं गया था. मोनू की शराब की लत के अलावा ललिता को कोई परेशानी नहीं थी. मोनू खुद शराब पीता था, यहां तक तो ठीक था. हालात तब बिगड़े, जब मोनू सलमान को भी अपने पास बिठा कर शराब पिलाने लगा.

शराब के मामले में नौकर को बराबर का दरजा मिल रहा था, इस बात से सलमान खुश था. एक दिन ललिता ने अपनी आंखों से यह देखा तो उसे एकाएक भरोसा नहीं हुआ. उस ने सलमान को खूब डांटाफटकारा. पहले भी ऐसे कई मौके आए थे, जब उस ने ललिता की डांट खाई थी. सलमान मोनू को तो पसंद करता था. लेकिन डांटने की आदत के चलते ललिता को पसंद नहीं करता था. फलस्वरूप वह अंदर ही अंदर उस से खार खाने लगा. 6 अप्रैल, 2015 की शाम मोनू, सलमान व आदिल ने शराब की महफिल सजा ली. ललिता ने यह देखा तो जम कर हंगामा किया. मजबूरन करीब 8 बजे उन्हें महफिल खत्म करनी पड़ी. सलमान व आदिल वहां से चले गए. आदिल सलमान को अपने घर ले गया. वह जिस प्रौपर्टी डीलर के यहां नौकरी करता था, उसी के फ्लैट में रहता भी था. इस से फ्लैट की भी देखभाल हो जाती थी.

ललिता के लिए सलमान के मन में पहले ही बहुत गुस्सा था. उस दिन मस्ती में खलल पड़ने से उस का गुस्सा अंगार बन गया. फलस्वरूप उस ने मन ही मन एक खतरनाक योजना तैयार कर ली. ललिता लाखों में खेलती थी, घर में भी लाखों रुपए रहते थे. सलमान ने सोचा कि यदि उसे रास्ते से हटा दिया जाए तो अमीर बन जाएगा. उस ने उसी रात आदिल के साथ मिल कर ललिता को रास्ते से हटा कर लूट की योजना बना ली. आदिल भी लालच और दोस्ती में उस का साथ देने के लिए तैयार हो गया. रात करीब साढ़े 9 बजे दोनों दोबारा ललिता के घर पहुंचे तो ललिता उन्हें देख कर भड़क गई.

‘‘मेमसाहब, इस को माफ कर दो. यह अपनी गलती पर बहुत रो रहा था.’’ आदिल ने भोलेपन से कहा.

ललिता उन के खतरनाक इरादों से अनजान थी. वह नहीं जानती थी कि भोलेपन का नाटक कर के उसे झांसे में लिया जा रहा है. सो उस ने कह दिया, ‘‘ठीक है, अब कभी ऐसी गलती नहीं करना.’’

‘‘खुदा की कसम, अब कभी ऐसा नहीं होगा.’’ सलमान ने तुरंत कान पकड़ते हुए कहा.

उसे समझा कर ललिता बैडरूम में चली गई. कुछ देर बाद उसे नींद आ गई. मोनू व अयान पहले ही सो चुके थे. सब सो गए, लेकिन सलमान व आदिल नहीं सो सके. सलमान व आदिल करीब 12 बजे रसोई में पहुंचे और वहां बैठ कर दोनों ने शराब पी. दोनों पर नशा हावी होने लगा तो उन्होंने रसोई से मीट काटने वाला छुरा ले लिया. आदिल इस बीच बाहर से जेनरेटर स्टार्ट करने वाला हैंडल ले आया था. इस के बाद दोनों बैडरूम में दाखिल हो गए. ललिता, मोनू व अयान एक ही बिस्तर पर सो रहे थे.

सलमान ने डे्रसिंग टेबल से अलमारी की चाबी निकाली और उसे खोल कर लूटपाट शुरू कर दी. इस बीच ललिता की आंखें खुल गईं तो दोनों उस की तरफ दौड़े. सलमान ने ललिता के बाल पकड़े और मुंह दबा कर उसे दबोच लिया, जबकि आदिल ने छुरे से उस की गरदन और शरीर के अन्य हिस्सों पर एक के बाद एक कई वार कर दिए. अचानक हुए हमले का ललिता विरोध नहीं कर सकी. उस की घुटीघुटी सी चीख निकली और लहूलुहान हो कर उस ने दम तोड़ दिया. इस बीच मोनू जाग गया. पत्नी का ऐसा हश्र देख कर उस के होश उड़ गए. मोनू खड़ा हुआ और दोनों से भिड़ गया.

सलमान व आदिल के सिर पर खून सवार था, उन्होंने जेनरेटर के हैंडल से मोनू के सिर पर प्रहार किया. वार होते ही मोनू नीचे गिर गया और तड़प कर कुछ ही देर में उस ने भी दम तोड़ दिया. इस बीच अयान की आंखें भी खुल गईं, लेकिन वह दहशत में कुछ नहीं बोला. दोनों ने उसे घूर कर देखा.

‘‘इस का क्या करें?’’ आदिल ने सलमान से पूछा तो वह बोला, ‘‘बच्चा है, डरा हुआ है. यह किसी को कुछ नहीं बताएगा, समझा देते हैं.’’

‘‘किसी को कुछ मत बताना वरना तुझे भी ऐसे ही मार देंगे.’’ सलमान ने डरेसहमे अयान को धमकी दी. इस के बाद दोनों ने गहने व नकदी लूटी और रसोई में जा कर हाथ धोए. तत्पश्चात अयान को साथ ले कर उन्होंने घर में खड़ी मोटरसाइकिल भी निकाल ली. अयान को ले कर आदिल ने फिर कहा, ‘‘इसे साथ ले चलते हैं, मार कर कहीं नहर में फेंक देंगे.’’

‘‘नहीं, इस ने अपनी आंखों से खूनखराबा देखा है. यह किसी को कुछ नहीं बताएगा.’’ सलमान ने आदिल को समझाया. अयान को वहीं छोड़ कर दोनों मोटरसाइकिल ले कर फरार हो गए.

उन के चले जाने पर अयान ने बाहर आ कर शोर मचा दिया. शाम होतेहोते सलमान व आदिल पुलिस की गिरफ्त में आ गए. दूसरी तरफ पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया कि ललिता के गर्भ में पल रहे 7 महीने के शिशु की भी मौत हो चुकी थी. आरोपियों के कब्जे से पुलिस ने ललिता के यहां से लूटे गए आभूषण व नकदी भी बरामद कर ली थी. विस्तृत पूछताछ के बाद पुलिस ने दोनों अभियुक्तों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. उधर अयान की सुपुर्दगी को ले कर मोनू व ललिता के परिजन आगे आ गए. अयान किसी को नहीं पहचानता था. दोनों परिवारों में उसे ले कर खींचतान होने लगी. मामला पेचीदा होने पर पुलिस ने अयान को बाल सदन भेज दिया. अदालती आदेश पर ही अब उस की सुपुर्दगी होगी.

कथा लिखे जाने तक किसी भी आरोपी की जमानत नहीं हो सकी थी. शराब की लत में मोनू ने नौकर को इस तरह सिर पर न चढ़ाया होता और ललिता ने दौलत की चकाचौंध न दिखाई होती तो शायद ऐसी नौबत कभी नहीं आती. True Crime Hindi

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Inspiring Hindi Stories: मुट्टी भर कालिख

Inspiring Hindi Stories: शमा को लगता था कि कोई आदमी गलत काम करता है तो उस की सजा उस की आने वाली पीढ़ी को भुगतनी पड़ती है. आखिर उस के साथ ऐसा क्या हुआ कि यह बात झूठी साबित हुई. मैं सुरैया खाला के मोहनजोदड़ो जैसे वजूद की खुदाई कर के उस में दबी भावनाओं के उस खजाने को बाहर निकालना चाहती थी, जो किसी सुरक्षित की हुई ममी की तरह उन के अंदर सोई हुई थी. समझ में नहीं आता था कि इतनी सुंदर, समझदार और हुनरमंद खाला अपनी सारी इच्छाओं, भावनाओं और खुशियों को मन के अंधेरे कोने में बंद कर के क्यों बैठी रह गईं? कोई भी अपने जीवन मे ंआने वाले उजाले को रोकने के लिए दीवार नहीं बनाता, तब खाला ने ऐसा क्यों किया? उन का वजूद दीवार नहीं, बल्कि एक चट्टान की तरह था, जिस से टकराटकरा कर जिंदगी की सारी खूबसूरती और खुशियां दम तोड़ गई थीं.

यूं तो खाला अपने लिए अंधेरा और दूसरों के लिए सूरज थीं. उन की मीठीमीठी आवाज, हंसमुख चेहरा और पवित्र मुसकान मुझे ही नहीं, मेरे परिवार के हर आदमी को दीवाना बनाए हुए थी. मैं ने जब से होश संभाला था, कभी भी किसी भी आदमी से उन के लिए बुराई का एक भी शब्द नहीं सुना था. पिताजी उन का बहुत आदर करते थे, मम्मी उन की इस हद तक प्रशंसक थीं कि घर में होने वाले हर अहम काम में उन की राय जरूर लेती थीं. यही हाल परिवार के अन्य लोगों का भी था. खाला ने शादी नहीं की थी. मम्मी से उन के बारे में मुझे यही मालूम हुआ था कि जवानी में वह बहुत सुंदर थीं. अपनी बुद्धिमानी, हाजिर जवाबी और हंसमुख स्वभाव की वजह से अपने समय में वह मोहल्ले की अन्य लड़कियों में अपनी विशिष्ट छाप रखती थीं.

उन के पिताजी के मेरे दादाजी से बहुत अच्छे संबंध थे. दोनों में गहरी दोस्ती थी. खाला मेरी सगी खाला नहीं थीं, वह मम्मी की दूर के रिश्ते से बहन लगती थीं, लेकिन वह मम्मी को सगी बहन की तरह मानती थीं और उन से बड़े प्रेम और आत्मीयता से पेश आती थीं. इस के बावजूद उन्होंने मम्मी को भी कभी नहीं बताया था कि उन्होंने शादी क्यों नहीं की थी? सुना है, शुरूशुरू में उन के विवाह से इनकार को उन का बचपना और जिद समझ कर अहमियत नहीं दी गई थी. लेकिन जब उन के इनकार की वजह से कई अच्छे रिश्ते हाथ से निकल गए तो उन के अम्मीअब्बू को चिंता हुई. बेटी का गौर से जायजा लिया तो उसे एकदम बदली हुई पाया. चंचलता, चपलता और जीवन की उमंग जैसे उन में रह ही नहीं गई थी.

मम्मी का कहना था कि 20-22 साल की उम्र में ही खाला ने स्वयं को गंभीरता, प्रौढ़ता और पवित्रता के एक ऐसे आवरण से ढक लिया था, जिसे उन के अम्मीअब्बू ही नहीं, पूरा परिवार मिल कर भी नहीं हटा सका. उन की दिलचस्पी धर्म की ओर बढ़ गई थी. पांचों वक्त की नमाज पढ़ने के अलावा वह धार्मिक ग्रंथों को पढ़ कर अपना समय बिताया करती थीं. उन के अम्मीअब्बू उन्हें बहुत प्यार करते थे, क्योंकि वह उन की एकलौती बेटी थीं. उन से बड़े 2 भाई थे, जो अपनी एकलौती बहन पर जान छिड़कते थे. इसी प्रेम का नतीजा था कि वे लोग जबरदस्ती अपना कोई निर्णय खाला पर नहीं थोप सके थे. इसी का नतीजा था कि हमेशाहमेशा के लिए वह अकेली रह गईं.

उन का चरित्र इतना पवित्र और साफ था कि कोई उन पर झूठा आरोप भी लगाने का साहस नहीं कर सकता था. सब ने यही मान लिया था कि उन का ध्यान मजहब की ओर हो गया है और वह उसी के सहारे अपना जीवन गुजारना चाहती हैं. इस बात को ध्यान में रख कर घर वालों की गुजारिश कम होती गई. उन के अम्मीअब्बू जब तक जीवित रहे, विवाह के लिए कोशिश करते रहे, लेकिन खाला की ‘ना’ को ‘हां’ नहीं करवा सके. खुद टूट कर मिट्टी में मिल गए. उन के जाने के बाद भाई बहन के लिए छाया बने. भाइयों की भी हार्दिक इच्छा थी कि उन की बहन विदा हो कर अपने घर चली जाए. मगर बहन तैयार नहीं हुई तो उन्होंने भी दबाव नहीं डाला और उन की इच्छा को स्वीकार कर लिया. वैसे तब तक खाला के सिर में चांदी के तार झिलमिलाने लगे थे और रिश्ते आने बंद हो गए थे.

जीवन तरहतरह के रूप बदलबदल कर आगे बढ़ता रहा. परिवार में आने वाली पीढ़ी ने जवान हो कर जिन खाला को देखा, वह 50-55 साल की एक मजहबी औरत थीं. खाला का घर हमारे घर से ज्यादा दूर नहीं था. समझदार होते ही मैं खाला के घर पढ़ने जाने लगी थी. वह मोहल्ले के बहुत सारे बच्चों को पढ़ाती थीं. उन के दोनों भाई विदेश चले गए थे, लेकिन खाला को खर्च के लिए नियमित पैसे भेजते रहते थे. वैसे भी वह आर्थिक रूप से सुदृढ़ थीं. एक नौकरानी उन के घर काम करने आती थी. उस का नाम रेशमा था. इतनी उम्र होने के बाद भी उन के चेहरे पर कठोरता नहीं थी. बड़ीबड़ी आंखों में हर पल एक सच्चाई, पवित्रता का उजाला चमकता रहता था. सुर्ख व सफेद चेहरे पर इतनी पवित्रता होती थी कि देखने वाले की निगाह अपने आप झुक जाती थी. माथे पर सिजदे का निशान उन की इबादत का गवाह था.

उन का लहजा इतना मीठा था कि अगर कभी वह किसी गलत बात पर डांटती भी थीं तो बुरा नहीं लगता था. मैं ने खाला से बहुत कुछ सीखा था. छोटी थी तो स्कूल से आते ही उन के घर भाग जाती थी. लेकिन मैट्रिक करने के बाद जब मैं ने कालेज जौइन किया तो खाला के घर आनाजाना थोड़ा कम हो गया. फिर भी जब मुझे समय मिलता, मम्मी से पूछ कर खाला के यहां चली जाती थी. मैं जब भी उन के यहां जाती, उन्हें इबादत करते हुए पाती. मुझे देख कर वह अपनी इबादत से उठ कर मुझे अपने पास बिठा लेतीं और मुसकराते हुए शहद जैसे मीठे लहजे में पूछतीं, ‘‘शमा बेटी, मम्मी ठीक हैं?’’

वह हमेशा केवल मम्मी की ही खैरियत पूछती थीं. जवाब में मैं कहती, ‘‘खाला, मम्मी तो ठीक हैं, आप कैसी हैं?’’

वह मीठी आवाज में कहतीं, ‘‘मैं भी ठीक हूं.’’

इस के बाद मैं शुरू हो जाती. कालेज के किस्से, घर की छोटीछोटी बातों से ले कर और न जाने कहांकहां की कितनी बातें कर डालती. मेरी समस्या यह थी कि मम्मीपापा की एकलौती बेटी होने की वजह से घर में कोई बात करने वाला नहीं था. मम्मी मेरी बातों में कोई भी दिलचस्पी नहीं लेती थीं. पापा मम्मी की तुलना में मुझे ज्यादा चाहते थे, इसलिए मेरी बातें वह बड़े ध्यान से सुनते थे. लेकिन उन के पास सिर्फ छुट्टी वाले दिन ही समय होता था. आम दिनों में वह अपने बिजनैस में उलझे रहते थे. यही वजह थी कि मैं खाला के पास जाने के लिए बेचैन रहती थी और उन से खुल कर अपने दिल की हर बात कह डालती थी. जब तक उन से एकएक बात न बता देती, मुझे चैन न मिलता.

मेरी जिंदगी खाला के लिए आईने की तरह थी. उन की भी जिंदगी मेरे सामने खुली किताब की तरह थी. लेकिन मैं उस किताब का वह पन्ना पढ़ना चाहती थी, उस लड़की की कहानी जानना चाहती थी, जिस का नाम सुरैया था और अब उस सुरैया पर खाला का लेबल चिपका दिया गया था. अब बच्चाबूढ़ाजवान हर कोई उन्हें खाला कह कर पुकारने लगा था. अक्सर बात मेरे होंठों तक आतेआते रुक जाती थी. एक अनजाना सा रौब मुझ पर छा जाता और मैं खाला के गुजरे जीवन में झांकतेझांकते लौट आती. मैं सोचती थी कि जो राज खाला ने आज तक किसी पर नहीं खोला, किसी को हवा तक नहीं लगने दी, भला मुझे कल की लड़की को कैसे बता सकती थीं. लेकिन फिर विचार आता कि किसी बात की तह तक पहुंचने के लिए जिस लगन की आवश्यकता होती है, हो सकता है दूसरों में वह लगन न रही हो.

बहरहाल, कारण जो भी रहा हो, मैं दिनरात जब भी खाला से मिलती, मेरे दिल में यही इच्छा होती कि किसी तरह दरवाजा खुल जाए और मैं उस रहस्य को देख लूं, जिस ने उन के जीवन की धारा बदल दी थी. एक दिन बातोंबातों में अचानक मुझे एक बात सूझ गई. मैं ने कहा, ‘‘खाला मैं ने एक कहानी लिखी है.’’

‘‘कैसी कहानी?’’

‘‘वैसी ही कहानी, जैसी होती है. और आप को पता है मेरी वह कहानी एकदम सच्ची है.’’ मैं ने बड़े विश्वास से कहा.

उन्होंने मुसकराते हुए कहा, ‘‘शमा बेटा, तुम ने कहानी लिखी है. मगर सुनाने से पहले यह तो बता दो किस की है?’’

‘‘आप की कहानी है खाला.’’ मैं ने दिल कठोर कर के कहा.

खाला ने हैरानी से मुझे देखते हुए कहा, ‘‘मेरी कहानी, तुम क्या जानो मेरी कहानी. मेरी तो कोई कहानी ही नहीं है शमा बेटा. बिलकुल सीधीसादी, आकाश जैसी साफ नजर आने वाली है मेरी जिंदगी.’’

‘‘नहीं खाला, आप की जिंदगी आकाश की तरह जरूर है, लेकिन उस आकाश पर बादल का एक झीना सा टुकड़ा भी है और यह उसी बादल के टुकड़े के पीछे छिपी सच्चाई की कहानी है.’’

उन्होंने कुछ कहना चाहा, लेकिन मैं ने रोक दिया, ‘‘प्लीज खाला एक मिनट, मेरी पूरी बात तो सुन लीजिए. उस के बाद मुझे जी भर कर डांट लीजिएगा या मार लीजिएगा. लेकिन आज मैं आप से वह बात जरूर कहूंगी, जिसे सोचसोच कर मेरा दिमाग फटने लगता है.

‘‘खाला हर दृश्य के पीछे कोई न कोई भूमिका जरूर होती है. आंसू आंखों में तभी आते हैं, जब दिल को कोई दुख पहुंचता है. हंसी भी होंठों तक बिना कारण नहीं पहुंचती. हर बात, हर काम का कोई न कोई कारण जरूर होता है. इसलिए मैं नहीं मानती कि आप ने जो यह संन्यास लिया है, यह बिना किसी वजह के है. मैं वही कारण जानना चाहती हूं.

‘‘आप से मुझे सिर्फ प्रेम ही नहीं, श्रद्धा भी है. और जब किसी से अत्यधिक श्रद्धा और अत्यंत प्रेम हो तो वह अपना ही रूप नजर आता है, मैं अपने रूप से पूर्ण परिचय प्राप्त करना चाहती हूं. आप ने मुझे बचपन से इतना प्यार दिया है कि कोई मां भी नहीं दे सकती. फिर आखिर आप मुझे वह राज, वह दुख मुझ से क्यों नहीं बांट सकतीं, जो आप अकेली ढो रही हैं?’’ मैं ने खाला के दोनों हाथ थाम कर कहा.

हंसीहंसी में शुरू होने वाली बात अत्यंत गंभीर मोड़ पर आ गई थी. खाला ने बड़ी गंभीर स्वर में कहा, ‘‘तुम ने क्या कहानी लिखी है?’’

‘‘मैं ने बहुत सोचविचार कर कहानी लिखी है कि कुछ ऐसा ही हुआ होगा. एक लड़की, जो गुडि़या की तरह सुंदर थी. मां उसे संभालसंभाल कर रखती थीं और उस के लिए किसी प्यारे से गुड्डे की खोज में थीं कि अचानक गुडि़या का दिल एक बहुत सुंदर राजकुमार को देख कर धड़क उठा. वह गुडि़या उसी राजकुमार के स्वप्न देखने लगी. मुलाकातें हुईं. वादे किए गए, वचन दिए गए, कसमें खाई गईं, वह सब हुआ, जो इस जुनून में होता है.

‘‘लेकिन राजकुमार गुडि़या को छोड़ कर दूर देश चला गया, कभी वापस न आने के लिए, सब वादे, कसमें तोड़ कर. इस के बाद गुडि़या ने सब त्याग दिया. अपने दिल के सारे दरवाजे बंद कर के बैठ गई. किसी की भी दस्तक पर दरवाजा नहीं खोला. ऐसा ही हुआ था ना खाला जान.’’

मैं ने डरतेडरते खाला की ओर देखा. उन का चेहरा सफेद पड़ गया था. वह जैसे गहराई से बोलीं, ‘‘हां शमा बेटा, कुछ ऐसा ही हुआ था. मगर अंजाम तुम्हारी सोच से भी ज्यादा भयानक था. बहुत भयानक, बहुत तकलीफदेह.’’

‘‘अंजाम, क्या अंजाम हुआ था. मेरी कहानी पूरी कर दें खाला, प्लीज.’’ मैं ने उत्सुकता से कहा.

‘‘अंजाम यह हुआ था कि एक दिन गुडि़या घर में अकेली थी, अचानक वह आ गया, जिस के लिए गुडि़या के दिल में सब से ऊंचा स्थान था. लेकिन उस दिन वह इंसान नहीं, शैतान बन कर आया था. उस ने गुडि़या की नेकनामी और इज्जत को शोकेस से उतार कर कीचड़ में फेंक दिया. गुडि़या का उजला लिबास, सुंदर बाल और मासूम चेहरा, सब के सब गंदगी में लिथड़ गए.

‘‘वह मर्द था, अत्याचारी और जालिम, जबरदस्ती छीन लेने वाला लुटेरा, जबकि गुडि़या मासूम, कमजोर और अकेली लड़की थी. उस लड़की का सब कुछ छीन कर वह उस की जिंदगी से निकल गया और दूसरी लड़की से शादी कर ली. इस तरह कहानी खत्म हो गई. लड़की ने अपने रौंदे हुए शरीर को समेट कर खुद को तनहाइयों को सौंप दिया. क्योंकि वह धोखेबाज नहीं बनना चाहती थी. धोखा देना और धोखा खाना नहीं चाहती थी.’’

खालाजी खामोश हो गईं. मैं भी गूंगी बनी बैठी थी. थोड़ी देर बाद मैं संभल कर दुखी मन से बोली, ‘‘मुझे क्षमा कर दें खाला, मैं ने बेकार ही जिद कर के आप को दुखी कर दिया.’’

‘‘नहीं बेटी, सब संयोग से होता है. जिस के हिस्से में जितने दुख होते हैं, वे उसे मिल कर रहते हैं.’’ खाला उदास लहजे में बोलीं.

‘‘खाला, वह आदमी भी तो मांबहन वाला होगा, उस की जवान बेटी भी होगी? देख लीजिएगा, जो कुछ उस ने किया है, वही उस की औलाद या बहन के साथ होगा. बड़ेबूढ़े कहते हैं कि भाई या बाप का गुनाह उस की बहन या बेटी के साथ जरूर दोहराया जाता है. आप देख लीजिएगा उस की…’’

‘‘ना… बेटी ना, खाला ने मेरे मुंह पर हाथ रख कर नरमी से कहा, ‘‘पागल, यह सब सिर्फ कहने की बातें हैं. लोग बकवास करते हैं. अरे जो गुनाह करेगा, वही उस की सजा भोगेगा. किसी के गुनाह की सजा दूसरे को कैसे मिलेगी? ऐसा सोचना भी गुनाह है बेटी.’’

मैं उन की बात से सहमत नहीं थी, लेकिन उस समय बहस के मूड में नहीं थी, इसलिए बात बदल कर बोली, ‘‘अच्छा खाला, यह बताइए कि वह व्यक्ति मेरे परिचितों में से है, मेरा मतलब…?’’

खाला ने मुझे डांटते हुए कहा, ‘‘बस, अब इस बारे में कोई बात मत करना, मेरी इबादत का समय हो रहा है. अब तुम उधर बैठ कर किताबें पढ़ो.’’

खाला उठ खड़ी हुईं. मैं सिर झुका कर बुकशेल्फ के पास जा कर बैठ गई. मुझे पता था कि अब अगर मैं ने कुछ और कहा तो वह सचमुच नाराज हो जाएंगी. वैसे भी मेरे दिमाग की फांस निकल चुकी थी. फर्स्ट ईयर का अंतिम पेपर दे कर निकली तो दिमाग काफी हलकाफुलका था. कालेज से लौटते समय मैं घर जाने के बजाय सीधे खाला के घर चली गई, क्योंकि परीक्षा की वजह से लगभग 15-20 दिनों से मैं उन के घर नहीं गई थी. उन के आने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता था, क्योंकि वह बहुत मजबूरी में ही घर से निकलती थीं. मैं ने जब से होश संभाला था, कभी उन्हें अपने घर की दहलीज पार करते नहीं देखा था. वह किसी और के यहां भी नहीं जाती थीं, इसलिए कुछ कहनासुनना बेकार था.

मैं खाला के यहां पहुंची तो वह सब्जी बना रही थीं. किताबें मेज पर रख कर मैं ने कहा, ‘‘खाला, मैं एक खुशखबरी लाई हूं.’’

‘‘एक खुशखबरी मेरे पास भी है.’’ खाला ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘अच्छा, फिर जल्दी से सुना दें.’’ मैं ने उन के हाथ से कलछी ले कर कहा.

‘‘पहले तुम सुनाओ.’’ उन्होंने कहा.

‘‘खाला, मेरे पेपर बहुत अच्छे, बल्कि शानदार और जोरदार हुए हैं. अब आप बताइए.’’ मैं ने सब्जी चलाते हुए उन की ओर देखा. वह बहुत खुश थीं. उन्होंने कहा, ‘‘शमा बेटा, 11 तारीख को राहिल आ रहा है अमेरिका से.’’

‘‘शमीम चाचा का बेटा राहिल?’’ मेरी आंखों के सामने 12-13 साल का राहिल घूम गया. दुबलापतला, बांस की तरह लंबा, बेहद बेवकूफ. वह खाला के बड़े भाई शमीम का बेटा था. उस से छोटी बहन सबीला मेरी सहेली थी. मैं सबीला और राहिल मोहल्ले के दूसरे बच्चों के साथ खाला के बड़े से आंगन में खूब खेलते थे.

खाला की आवाज मुझे गुजरे वक्त से निकाल लाई. उन्होंने कहा, ‘‘शमा बेटा, रेशमा के साथ मेरे बराबर वाला कमरा ठीक करवा दो. उसे आने में 3 दिन ही रह गए हैं, पलक झपकते बीत जाएंगे. अभी परदे भी सीने हैं.’’

मैं उन के गले में बांहें डाल कर लाड से बोली, ‘‘माई स्वीट हार्ट खाला, आप चिंता न करें. मैं यह सब काम बहुत अच्छे से कर लूंगी, परदे भी सिल जाएंगे. कमरा भी ठीक हो जाएगा. हम अपनी प्यारी खाला के भतीजे का स्वागत भव्य तरीके से करेंगे, क्योंकि अब मैं फुरसत में हूं.’’

खाला ने सच ही कहा था, 3 दिन पलक झपकते बीत गए और वह पल आ गया, जब राहिल हमारे सामने बैठा कौफी पी रहा था. वह इतना बदल गया था कि पहचान में ही नहीं आ रहा था. बचपन के दुबलेपतले, लंबे बेवकूफ लड़के ने एक लंबेचौड़े, स्वस्थ और आकर्षक व्यक्ति का रूप धारण कर लिया था. उस की आंखों में चंचलता और आश्चर्य बसा हुआ था. मुझे देख कर वह बनावटी हैरानी से बोला, ‘‘फूफी, यह रेशमा कौन सा टौनिक पीती रही, जो इतनी सुंदर नजर आ रही है?’’

‘‘अरे बावला हुआ है क्या, यह शमा है, जो तेरे साथ खेला करती थी.’’ खाला ने घूरते हुए कहा.

‘‘अच्छा तो तुम शमा हो?’’ उस ने गौर से मेरी ओर देखते हुए कहा.

‘‘जी हां, मैं शमा हूं. वही शमा जो बचपन में आप की पिटाई किया करती थी.’’ मैं ने गंभीरता से कहा.

खाला जोर से हंसी.

‘‘यह पिटाई वाली बात तो मुझे याद नहीं है.’’ राहिल सिर खुजाते हुए बोला.

‘‘कोई बात नहीं, यहां रहेंगे तो धीरेधीरे सब याद आ जाएगा.’’ मैं ने धीरे से कहा.

राहिल ने मुसकरा कर कौफी का कप मुंह से लगा लिया.

‘‘अच्छा बच्चों, तुम बातें करो. मैं अभी आती हूं.’’ खाला ने उठते हुए कहा.

राहिल मुझ से और मैं राहिल से बहुत जल्दी घुलमिल गए. उस के आने से खाला के घर में मेरी दिलचस्पी के सामान बढ़ गए थे, क्योंकि अब मैं वहां कार्ड्स, कैरम, लूडो, बैडमिंटन और ऐसे ही छोटेमोटे बहुत से गेम खेल सकती थी. फिल्मों पर लंबीलंबी बहसें कर सकती थी. और सब से बढ़ कर अमेरिका के रहनसहन और समाज के बारे में काफी जानकारी हासिल कर सकती थी. कालेज बंद था, जिस से रातदिन बड़े दिलचस्प अंदाज में गुजर रहे थे. कभी राहिल मेरे घर आ जाता तो कभी मैं खाला के घर चली जाती. जिंदगी अचानक बहुत सुंदर और मजेदार हो गई थी. लेकिन धीरेधीरे राहिल के व्यवहार में बदलाव आने लगा. अब वह अकेले में कुछ रोमांटिक होने की कोशिश करने लगा. लेकिन मैं उस की इस कोशिश को हमेशा मजाक का रंग दे देती थी.

मैं सीरियस नहीं होना चाहती थी, क्योंकि मुझे पता था कि मम्मी कभी यह बात पसंद नहीं करेंगी. भले ही रिश्ता तय नहीं था, लेकिन मम्मी अपनी सहेली के लड़के समीर को बहुत पसंद करती थीं और उन की सहेली भी मुझे बहुत चाहती थीं. समीर की पसंदगी का भी मुझे पता था. वह इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए बाहर गया हुआ था. उस के आने तक मेरी पढ़ाई पूरी हो जाएगी. उस के बाद घर वाले हमें एक बंधन में बांध देंगे. यह सब मुझे पता था, इसलिए राहिल की आंखों में झांक कर उस की भावनाओं को पढ़ने की कोशिश मैं क्यों करती? मैं उस से मिलने के लिए केवल समय गुजारने के लिए बेचैन रहती थी. वह एक अच्छा दोस्त था. उस की बातें बड़ी दिलचस्प होती थीं.

वह मिमिक्री करने में भी एक्सपर्ट था. कभीकभी वह अपने अमेरिकी पड़ोसियों की मिमिक्री इस खूबी से करता कि हंसतेहंसते मेरी आंखों में पानी आ जाता. खाला पहले की ही तरह लंबीलंबी इबादतों में लगी रहती थीं. एक दिन मैं खाला के घर गई तो राहिल आम दिनों की अपेक्षा उस दिन कुछ गंभीर नजर आ रहा था. उस ने मेरे सामने बैठ कर कहा, ‘‘ऐ लड़की, तुम्हारे बारे में कुछ सुना है.’’

‘‘क्या सुन लिया मेरे बारे में?’’ मैं ने पूछा. मुझे उस की गंभीरता, बल्कि किसी हद तक दुख भरी शक्ल देखदेख कर हंसी आ रही थी.

‘‘देखो, प्लीज मेरा मजाक मत उड़ाओ. मुझे सचसच बताओ कि क्या तुम्हारा रिश्ता बचपन में ही तय हो गया था?’’ राहिल ने चिंतित हो कर पूछा.

अब मैं भी थोड़ा गंभीर हो गई. मैं ने कहा, ‘‘हां राहिल, तुम ने ठीक सुना है. मेरा रिश्ता बचपन में ही तय हो गया था. समीर पढ़ाई पूरी कर के आ जाए तो शादी भी हो जाएगी.’’ मैं ने कहा.

‘‘तुम खुश हो इस रिश्ते से?’’

‘‘हां, क्यों नहीं. अम्मीअब्बू का फैसला बेहतर होता है राहिल.’’ मैं ने सहजता से कहा.

कुछ देर तक वह गूंगा सा मेरे सामने बैठा मुझे देखता रहा, उस के बाद उठा और तेजी से कमरे से निकल गया.

मैं हैरानपरेशान सी अपने घर आ गई. मुझे राहिल की सोच पर गुस्सा भी आ रहा था और दुख भी हो रहा था. ये मर्द भी कितने अजीब होते हैं. अगर दोस्त या भाई समझ कर उन के निकट जाओ तो तुरंत गलत मतलब निकाल लेते हैं. जरूरी नहीं कि जिस से अंडरस्टैंडिंग हो, हंसीमजाक चलता हो, प्रेम भी उसी से किया जाए. मैं ने सोचा था कि छुट्टियों के दिन यूं ही हंसतेबोलते गुजर जाएंगे, लेकिन राहिल ने मूड खराब कर दिया. अगले 2-3 दिनों तक न तो राहिल हमारे घर आया और न ही मैं उस के यहां गई. चौथे दिन खाला ने रेशमा को भेज कर मुझे बुलवाया.

‘‘क्या बात है बेटा, तुम ने आना छोड़ दिया? राहिल भी तुम्हारे यहां नहीं जाता. तुम दोनों में लड़ाई हो गई क्या?’’  खाला ने प्यार से पूछा.

मैं ने सारी बातें उन्हें बता कर कहा, ‘‘अब आप ही बताइए खाला, एक तो मुझ से इस तरह की उलटीसीधी बातें करता है, फिर खुद ही रूठ जाता है.’’

‘‘कोई बात नहीं शमा बेटा, तुम चिंता न करो, मैं उसे समझा दूंगी. मेरा ख्याल है 1-2 दिन में वह खुद ही ठीक हो जाएगा.’’ खाला ने मुसकरा कर मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए कहा.

न जाने खाला के समझाने का असर था या मेरी साफगोई का कि राहिल एक बार फिर पहले की ही तरह मुझ से मिलने लगा. जिंदगी एक बार फिर दिलचस्प और सुंदर हो गई. समय तेजी से गुजर रहा था. मेरा कालेज खुल गया और राहिल के जाने का दिन भी नजदीक आ गया. उस के जाने में केवल 3 दिन बाकी थे, जब मैं उस दिन शाम को खाला के घर जा पहुंची. उस दिन अन्य दिनों की अपेक्षा घर में सन्नाटा पसरा हुआ था.

मुझे लगा, खाला नमाज पढ़ रही होंगी और राहिल घर में नहीं होगा. मैं लौटने के बारे में सोच रही थी कि तभी राहिल ने कहा, ‘‘शमा, जरा इधर तो आना.’’

राहिल की आवाज सुन कर मैं पलटी. वह बैड पर अधलेटा कुछ पढ़ रहा था. मेरी ओर देखते हुए उस ने किताब बंद कर के कहा, ‘‘बड़े सही मौके पर आई हो शमा, मैं तुम्हारे ही यहां आने वाला था.’’

‘‘हैरानी हो रही है, तुम्हारे होते हुए यहां इतना सन्नाटा है.’’ मैं ने उस से किताब लेते हुए कहा.

‘‘दिल में भी सन्नाटा उतर आया है न?’’ वह धीरे से बोला.

मैं किताब पलटने लगी. वह अंगे्रजी की रोमांटिक नौवेल थी.

‘‘तुम यह नौवेल मत पढ़ो. अच्छे बच्चे खराब हो जाते हैं ऐसी किताबें पढ़ कर.’’ राहिल ने मेरे हाथ से किताब छीन कर कहा.

‘‘तभी तो तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है.’’ मैं कमरे की अव्यवस्था को आलोचनात्मक नजरों से देखते हुए बोली, ‘‘चलो तुम नहा लो, तब तक मैं तुम्हारा यह कमरा ठीक कर देती हूं.’’

मैं उठ कर किताबें शेल्फ में लगाने लगी. चंद पल खामोशी से गुजर गए. मैं ने पलट कर देखा, राहिल खड़ा था. मैं ने कहा, ‘‘तुम अभी गए नहीं?’’

आगे के शब्द मेरे मुंह में ही अटक गए. क्योंकि राहिल मेरे बगल में खड़ा मुझे विचित्र निगाहों से घूर रहा था. उस के चेहरे पर कोई ऐसी बात थी, जिस से डस्टर मेरे हाथ से गिर गया.

‘‘खुलेखुले बालों में तुम बहुत अच्छी लगती हो.’’ उस ने हाथ बढ़ा कर मेरे बालों को छूते हुए कहा.

‘‘यह क्या बदतमीजी है राहिल?’’ मैं ने उस का हाथ झटक दिया. तभी मेरी निगाह बंद दरवाजे पर पड़ी. जब मैं आई थी, तब दरवाजा खुला था. लेकिन इस समय दोनो पट बंद थे.

‘‘तुम घबरा क्यों रही हो?’’ राहिल मुझे ध्यान से देखते हुए बोला.

वह मेरी ओर बढ़ रहा था. जबकि मैं पीछे नहीं हट सकती थी, क्योंकि पीछे बुकशेल्फ थी.

‘‘हटो मेरे सामने से, मैं खाला के पास जा रही हूं.’’ मैं ने दोनों हाथ बढ़ा कर उसे हटाने की कोशिश की.

लेकिन रहिल ने मेरे दोनों हाथों को पकड़ कर आवारगी से हंसते हुए कहा, ‘‘फूफी तो 2 घंटे बाद आएंगी. वह रेशमा के साथ डाक्टर के यहां गई हैं. इस समय घर में केवल मैं और तुम ही हैं. यहां तनहाई भी है.’’

उस की ये बातें सुन कर मेरी आंखों के सामने अंधेरा छा गया. मैं रुआंसी हो कर चीखी, ‘‘राहिल, मुझे घर जाने दो, छोड़ो मुझे. खाला, अरे ओ खाला…’’

यह जानते हुए भी कि खाला घर में नहीं हैं, मैं उन्हीं का नाम ले कर चीखने लगी. बेबसी आंसू बन कर मेरी आंखों में चमकने लगी थी. मैं दुआ कर रही थी. शायद दिल की गहराइयों से निकलने वाली दुआ स्वीकार हो गई. अचानक दरवाजा खुला. सामने खाला अपने चिरपरिचित सफेद लिबास में खड़ी थीं. उस क्षण मुझे वह आकाश से उतरने वाली देवी सी लगीं. दरवाजा खुलते ही राहिल की बांहों का घेरा खुद ही टूट गया था. मैं भाग कर खाला के पास गई और उन की छाती पर सिर रख कर सिसकने लगी. उन से लिपट कर यही लग रहा था, जैसे मैं ने किसी मजबूत किले में पनाह ले ली हो.

खाला को पहली बार मैं ने इतने क्रोध में देखा था. वह कांप रही थीं. उन का चेहरा लाल हो रहा था. वह गरज कर बोलीं, ‘‘पापी, थोड़ी देर के लिए तनहाई पाते ही इंसान से शैतान बन गया. अब तो तुझे अपना भतीजा कहते हुए भी मुझे शरम आएगी. मैं तुझे कितना ऊंचा और अच्छे किरदार का लड़का समझती थी, मगर वह भूल थी मेरी. आखिर तू भी तो मर्द है ना, औरत को कमजोर चिडि़या समझ कर झपटने वाला बाज, दूर हो जा मेरी नजरों से. मैं आज के बाद तेरे वजूद से घृणा करूंगी. अब कोई रिश्ता नहीं रहा तेरे और मेरे बीच.’’

राहिल सिर झुकाए कमरे से निकल गया.

‘‘खाला.’’ मेरे होंठ कांपे. हाथ से आंसू साफ करते हुए मैं ने उन की ओर देखा, ‘‘देख लीजिएगा खाला, राहिल ने जैसा मेरे साथ किया है, वैसा ही सबीला के साथ कोई करेगा, तब इसे अहसास होगा कि इज्जत और सम्मान क्या चीज होती है. उस की बहन की जिंदगी में भी ऐसा जरूर होगा.’’

खाला ने मेरे मुंह पर हाथ रख दिया.

‘‘मैं बद्दुआ नहीं देती, मगर यह तो दस्तूर है कि जैसी करनी वैसी भरनी. राहिल जैसा आवारा आदमी जब किसी मासूम लड़की को बरबाद कर सकता है तो उस की बहन या बेटी के आगे भी यह बरबादी जरूर आएगी. जो व्यक्ति किसी दूसरे की बहन या बेटी की इज्जत का ख्याल नहीं करता, उस की अपनी बहन या बेटी कैसे सुरक्षित रह सकती है.’’ मैं जोश में बोली.

‘‘यह सोच बिलकुल गलत है शमा और आज यह बात साबित भी हो गई कि यह सोच गलत है.’’ खाला ने सामने दीवार की ओर देखते हुए धीमे से कहा.

‘‘कैसे साबित हो गया खाला?’’ मैं उन के सामने जा खड़ी हुई. मेरी आंखों में हैरानी थी.

खाला ने मेरी ओर देखा. उन का चेहरा किसी अनदेखी आंच में धीरेधीरे सुलग रहा था और जब वह बोलीं तो उन की आवाज में चिंगारियां भरी हुईं थीं. उन्होंने कहा, ‘‘शमा, तुम्हें याद होगा कि एक बार पहले भी मैं ने तुम से कहा था कि दुनिया में इतना अन्याय नहीं है कि किसी के पाप की सजा बरसों बाद उस की मासूम औलाद को भुगतना पड़े. आज तुम्हारी इज्जत एक शैतान से बच जाना, उसी का उदाहरण है.’’

मैं हैरान सी खाला को देख रही थी. उन की बात मेरी समझ में नहीं आई. वह चुप थीं, मगर उन के शब्द मेरे दिमाग में गूंज रहे थे. अचानक उन्होंने रहस्य से परदा हटा दिया था. सच्चाई सामने आ गई थी. मुझे उस लड़की की कहानी याद आ गई, जो खाला ने मेरे जोर देने पर सुनाई थी. खाला की बात का मतलब समझते ही मेरा सिर चकराने लगा था, नजरों के सामने अंधेरा छा गया था. मैं खाला की दफन सच्चाइयों को बाहर निकालना चाहती थी, लेकिन मुझे नहीं मालूम था कि वह सच्चाई तमाचे की तरह मेरे अपने चेहरे पर पड़ेगी. घबरा कर मैं ने दीवार का सहारा ले लिया और फटी आंखों से खाला को ताकने लगी, जिन की आंखों में आंसू झिलमिला रहे थे. मैं ने उन आंसुओं में एक छवि उभरते देखी.

सौम्य चेहरा, ममता लुटाती आंखें और सफेद दाढ़ी, ‘पापा.’ मेरे कांपते होंठों पर यह शब्द आ कर थम गया, जम गया. मुझे ऐसा लगा, जैसे इस पवित्र नाम में छिपी पवित्रता दम तोड़ रही है और खाला के आंसुओं में उभरने वाले पवित्र चेहरे पर कालिख भरा हाथ फेर दिया हो. Inspiring Hindi Stories

Love Crime: मौत को न्यौता देती मौहब्बत

Love Crime: प्रतिभा और बबलू की जाति तो अलग थी ही, सामाजिक और आर्थिक असमानता भी थी. फिर भी दोनों में प्यार ही नहीं हुआ, वे शादी के लिए घर से भाग भी गए थे. तब उन के विवाह में अड़चन कहां आई?

बबलू और प्रतिभा का कोई जोड़ नहीं था. दोनों की जाति में ही नहीं, सामाजिक और आर्थिक स्तर में भी काफी फर्क था. बस एक ही बात मेल खाती थी, वह थी उम्र. दोनों ही जवानी की दहलीज पर खड़े थे. शायद इसी वजह से दोनों में प्यार हो गया था. प्यार भी ऐसा कि दोनों अपने प्यार के लिए कुछ भी करने को तैयार थे. बबलू उत्तर प्रदेश के जिला एटा के थाना मारहरा के गांव मोहिनी के रहने वाले वीरपाल जाटव का बेटा था. वीरपाल कोई बड़े आदमी नही थे. उन के पास खेती की थोड़ी जमीन थी. उसी की कमाई से 5 बेटों और एक बेटी को पालापोसा. जवान होने पर 2 बेटे राजाराम और प्रमोद दिल्ली चले गए. कमानेधमाने लगे तो वीरपाल ने उन की शादियां कर दीं. शादियों के बाद वे अपनेअपने परिवार को भी दिल्ली ले गए.

उन दोनों से छोटा बबलू गांव में ही रहता था और ड्राइविंग सीख कर किसी की जीप चलाता था. उस से छोटे बंटी और कुलदीप वीरपाल की खेती में मदद करते थे. वीरपाल की पत्नी जावित्री देवी घरपरिवार को ठीक से संभाल रही थी. प्रतिभा भी इसी गांव के रहने वाले विजय प्रताप बघेल की बेटी थी. उन की आर्थिक स्थिति काफी ठीकठाक थी. उन की अपनी कुछ गाडि़यां थीं, जो किराए पर चलती थीं. इस के अलावा वह ब्याज पर भी रुपए देते थे, खेती होती ही थी. विजय प्रताप के परिवार में पत्नी भूदेवी के अलावा 2 बेटियां प्रतिभा, प्रिया और 2 बेटे ललित तथा अंकित थे.

विजय प्रताप के पास किसी चीज की कमी तो थी नहीं, इसलिए वह बच्चों को पढ़ालिखा कर किसी काबिल बनाना चाहते थे. इंटर पास करने के बाद प्रतिभा ने बीएससी करने की इच्छा जाहिर की तो विजय प्रताप ने उस का दाखिला पड़ोस के गांव रामनगर स्थित डिग्री कालेज में करवा दिया. यह 3 साल पहले की बात है. प्रतिभा कालेज तांगे से आतीजाती थी. एक दिन उसे तांगा नहीं मिला तो वह पैदल ही कालेज के लिए चल पड़ी. वह कुछ दूर ही गई थी कि एक जीप उस के पास आ कर रुक गई. उस ने पलट कर देखा तो जीप उस के गांव का बबलू चला रहा था. उस ने कहा, ‘‘आज तांगा नहीं मिला क्या, जो तुम पैदल ही कालेज जा रही हो? खैर कोई बात नहीं, आओ बैठो, मैं तुम्हें छोड़ देता हूं. मैं उधर ही जा रहा हूं.’’

एक ही गांव का होने की वजह से प्रतिभा बबलू को अच्छी तरह जानती थी, लेकिन कभी बातचीत नहीं हुई थी, क्योंकि कभी मौका ही नहीं मिला था. एक तो कालेज के लिए देर हो रही थी, दूसरे बबलू गांव का ही था, इसलिए उस के साथ जीप में बैठने में उसे कोई बुराई नजर नहीं आई. वह चुपचाप बैठ गई. कुछ दूर जाने के बाद बबलू ने कहा, ‘‘आप भाग्यशाली हैं, जो पढ़ रही हैं. मेरे घर में पढ़ाईलिखाई का माहौल ही नहीं था, इसलिए मैं नहीं पढ़ पाया. आप मन लगा कर खूब पढि़एगा.’’

‘‘आप पढ़ नहीं पाए तो क्या हुआ, गाड़ी तो चला लेते हैं. ईमानदारी से कोई भी काम करने में बुराई नहीं है.’’

‘‘गाड़ी तो चला लेता हूं, लेकिन न पढ़ पाने का अफसोस तो रहता ही है. रही काम करने की बात तो जिंदगी गुजारने के लिए आदमी को कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा.’’

‘‘अफसोस करने की जरूरत नहीं है, किसी पढ़ीलिखी लड़की से शादी कर लेना, यह कमी भी पूरी हो जाएगी.’’ बबलू की बात पर हंसते हुए प्रतिभा ने कहा.

प्रतिभा की इस बात पर पहले तो बबलू खूब हंसा, उस के बाद हांफते हुए बोला, ‘‘जब मैं पढ़ालिखा नहीं हूं तो भला कोई पढ़ीलिखी लड़की मुझ से क्यों शादी करेगी?’’

‘‘क्यों नहीं करेगी, देखने में तो अच्छेखासे हो, शक्ल भी बुरी नहीं है. अगर कपड़े अच्छे पहने होते तो टीवी के धारावाहिकों के हीरो जैसे लगते. अब जीप रोक दो, मेरा कालेज आ गया.’’ प्रतिभा ने कहा.

बबलू ने जीप रोकी तो प्रतिभा उतर कर कालेज चली गई. लेकिन उस की बातों ने बबलू पर कुछ ऐसा असर किया कि उस ने मन ही मन तय कर लिया कि इस बार वेतन मिलेगा तो वह अपने लिए अच्छेअच्छे कपड़े जरूर बनवाएगा. उस ने सोचा ही नहीं, वेतन मिला तो उस ने 2 जोड़ी अच्छेअच्छे कपड़े सिलवा भी डाले. उन्हें पहन कर वह प्रतिभा के कालेज जाने वाले रास्ते पर खड़ा हो गया. प्रतिभा आई तो उस ने रोक लिया, ‘‘अब देखो, कैसा लग रहा हूं?’’

‘‘एकदम हीरो लग रहे हो.’’ कह कर प्रतिभा खिलखिला कर हंस पड़ी. उस की इस हंसी ने बबलू के दिल की धड़कन बढ़ा दी. बस इसी के बाद प्रतिभा उसे अच्छी लगने लगी. उस का मन यही करने लगा कि वह उसे ही देखता रहे. अब वह उस की एक झलक पाने के लिए उस के घर और कालेज के इर्दगिर्द मंडराने लगा. वह उस से दिल की बात कहना चाहता था, लेकिन जाति की ऊंचनीच और आर्थिक असमानता उस की जुबान बंद किए थी.

बबलू भले ही दिल की बात नहीं कह पा रहा था, लेकिन समझदार और पढ़ीलिखी प्रतिभा उस की भावनाओं को अच्छी तरह समझ रही थी. वह जानती थी कि एक जवान लड़का किसी जवान लड़की के इर्दगिर्द क्यों मंडराता है? लेकिन वह यह भी जानती थी कि उन की जाति का जो भेद है, वह समाज में ऐसा हंगामा खड़ा करेगा कि उन का प्यार मंजिल तक पहुंच नहीं पाएगा. इसलिए वह चाहते हुए भी बबलू के नजदीक नहीं आ रही थी. प्रतिभा को जब भी बबलू मिलता, वह बच कर निकल जाती. उसे लगता कि बबलू उस से कुछ कहना चाहता है. वह यह भी जानती थी कि वह क्या कहना चाहता है, पर वह मजबूर थी. लेकिन जब उस ने देखा कि बबलू मन की बात कह न पाने की वजह से उदास रहने लगा है तो उसे उस पर दया आने लगी.

इस का नतीजा यह निकला कि उस का दिल पसीजने लगा. आखिर एक दिन बबलू उस के सामने पड़ा तो अपने आप ही उस के होंठों पर मुसकान आ गई. प्रतिभा की यह मुसकान बबलू के लिए हैरान करने वाली थी. उसे लगा, प्रतिभा के मन में भी उस के लिए प्यार पैदा हो गया है. उस की हिम्मत बढ़ी और एक दिन मौका मिलते ही उस ने प्रतिभा से दिल की बात कह दी. जब प्रतिभा ने भी कहा कि वह भी उस से प्यार करती है तो बबलू को मानो जमाने की सारी खुशियां मिल गईं. इस के बाद दोनों चोरीछिपे मिलनेजुलने लगे. लेकिन उन के दिल में हमेशा यह डर बना रहता कि कोई देख तो नहीं रहा है. इस के अलावा इस से भी बड़ा डर इस बात का था कि उस के परिवार वाले बबलू को स्वीकार करेंगे या नहीं? क्योंकि वह उस के लिए जिस तरह के रिश्ते की तलाश कर रहे थे, बबलू में वैसा एक भी गुण नहीं था.

एक तो बबलू उस से नीची जाति का था, दूसरे पढ़ालिखा भी नहीं था. कमाई भी कुछ खास नहीं थी. घरपरिवार भी वैसा ही था. ऐसे में किसी भी कीमत पर उस के घर वाले उस की शादी बबलू के साथ करने को राजी नहीं होते. प्रतिभा इसी ऊहापोह में खोई रहती. बेटी को परेशान देख कर कभीकभी भूदेवी पूछ भी लेतीं, ‘‘क्या बात है प्रतिभा, आजकल तू कुछ उखड़ीउखड़ी रहती है? मैं देख रही हूं, तेरा मन भी पढ़ाई में नहीं लग रहा है. इधर तू कालेज से भी देर से आने लगी है?’’

‘‘मम्मी परीक्षाएं नजदीक आ गईं हैं न, इसलिए देर तक पढ़ाई होती है.’’ प्रतिभा ने मां को समझा दिया.

भूदेवी को लगा, बेटी ठीक ही कह रही होगी. लेकिन जब उन्हें किसी परिचित से पता चला कि प्रतिभा कई बार उसे मारहरा में वीरपाल के बेटे बबलू के साथ दिखाई दी है तो भूदेवी सन्न रह गईं. उन की बेटी किसी नीच जाति के लड़के के साथ घूमती है.

उस दिन शाम को प्रतिभा घर आई तो भूदेवी ने पूछा, ‘‘कहां थी, जो इतनी देर हो गई?’’

‘‘कालेज में मम्मी, भूख लगी है खाना दो.’’

भूदेवी ने गाल पर जोरदार तमाचा मार कर कहा, ‘‘क्या कहा कालेज में थी? मुझ से झूठ बोल रही है. मुझे पता है कि तू मारहरा में जाटवों के लड़के के साथ घूम रही थी. तू परिवार की नाक कटाने पर तुली है. अभी तो सिर्फ मुझे पता है, अगर तेरे बाप को पता चल तो वह तुझे काट कर रख देंगें.’’

प्रतिभा समझ गई कि मां को सब पता चल गया है. फिर भी उस ने असलियत छिपाने की एक और कोशिश की, ‘‘मम्मी, बबलू गांव का है. कभी कोई सवारी नहीं मिलती और वह रास्ते में मिल जाता है तो उस की गाड़ी से आ जाती हूं.’’

भूदेवी को लगा कि हो सकता है प्रतिभा ठीक ही कह रही हो. मान लीजिए आते समय बबलू मिल जाता हो और वह उस के साथ आ जाती हो. इस में कुछ गलत भी नहीं है. उस ने बेटी को गहरी नजरों से देखते हुए कहा, ‘‘प्रतिभा जमाना बहुत खराब है. लोग कुछ का कुछ मतलब निकाल लेते हैं. इसलिए अच्छा यही होगा कि तुम बबलू के साथ मत आया करो.’’

प्रतिभा ने सिर हिला कर हामी भर दी. लेकिन वह यह भी समझ गई कि अब से उसे बहुत सतर्क रहना होगा. इस के बाद जब वह मौका मिलने पर बबलू से मिली तो सारी बात उसे बता दी. इस के बाद उस ने कहा, ‘‘जब तक उचित समय नहीं आ जाता, तब तक हमें अपने प्यार को सब से छिपा कर रखना होगा, वरना हमें मिलने नहीं दिया जाएगा.’’

प्यार तो वैसे भी दीवाना और जुनूनी होता है. प्रतिभा और बबलू का प्यार भी कुछ ऐसा ही हो गया था. लेकिन लोग उन के बीच दीवार बने हुए थे. अब तक विजय प्रताप को भी प्रतिभा और बबलू के संबंधों के बारे में पता चल गया था. यह परेशान करने वाली बात थी, क्योंकि समाज में इज्जत की बात थी. इसलिए उस ने पत्नी से साफसाफ कह दिया कि प्रतिभा का कालेज जाना एकदम बंद. अगर पढ़ना है तो घर पर बैठ कर पढ़े. उस दिन के बाद प्रतिभा नजरों के घेरे में कैद हो गई. कालेज जाना ही नहीं, घर से बाहर जाना तक बंद कर दिया गया. घर न हुआ जैसे कैदखाना हो गया. विजय प्रताप अब अपने मोबाइल का भी खास ध्यान रखने लगे थे, इसलिए प्रतिभा बबलू से बात भी नहीं कर पाती थी.

आखिर एक दिन मौका मिला तो प्रतिभा ने फोन कर के बबलू को बताया कि घर में सभी लोगों को उन के प्यार के बारे में पता चल गया है, इसलिए उसे घर में बंद कर दिया गया है. घर वालों ने उस की जिंदगी को नरक बना दिया है. पापा हमेशा उस पर नाराज होते रहते हैं. कासगंज वाला मकान किराएदारों से खाली करवा रहे हैं, शायद अब उसे वहीं रखा जाएगा. उस के बाद तो मिलनाजुलना और मुश्किल हो जाएगा.

‘‘प्रतिभा तुम चिंता मत करो. मैं तैयारी कर रहा हूं. हम दोनों भाग चलेंगे और अलीगढ़ में कोर्टमैरिज कर लेंगे. शादी होने के बाद कोई हमारा कुछ नहीं कर पाएगा.’’ बबलू ने कहा.

प्रतिभा को पूरा विश्वास था कि बबलू जो कह रहा था, वह कर के दिखाएगा और सचमुच बबलू ने वह कर दिखाया. वह प्रतिभा को भगा ले गया. प्रतिभा के भागने के बाद तो गांव में जैसे जलजला आ गया. विजय प्रताप की जाति के लोग इकट्ठा हुए और वीरपाल को पकड़ कर कहा, ‘‘किसी भी तरह, कहीं से भी ला कर प्रतिभा को हमारे हवाले कर दो, वरना ठीक नहीं होगा.’’

प्रतिभा और बबलू अलीगढ़ में कोर्टमैरिज कर पाते, उस के पहले ही अलीगढ़ पुलिस ने दोनों को पकड़ लिया. बबलू को पुलिस ने जेल भेज दिया और प्रतिभा को विजय प्रताप के हवाले कर दिया. प्यार के पंछी बबलू को भले ही जेल भेज दिया गया था, लेकिन इस से उस का जुनून कम होने के बजाय और बढ़ गया. गांव में जो बदनामी हुई थी, उस से बचने के लिए विजय प्रताप परिवार को ले कर कासगंज की गंगेश्वर कालोनी स्थित अपने मकान में रहने आ गया था. यहां आने पर मजबूत लोहे की छड़ों का मुख्य गेट लगवाया गया, पूरे मकान को लोहे की मजबूत सरियों से कैदखाने की तरह बनवा दिया गया. लेकिन प्रतिभा के दिल से बबलू नहीं निकल सका तो नहीं निकल सका. जैसेजैसे बंदिशें बढ़ती गईं, वैसेवैसे प्यार भी बढ़ता गया.

छह महीने बाद बबलू जमानत पर छूट कर बाहर आया तो उसे पता चला कि प्रतिभा अब गांव में नहीं, कासगंज में रहती है. अब दोनों के बीच करीब 10 किलोमीटर की दूरी थी, लेकिन प्यार करने वालों के लिए यह दूरी कुछ भी नहीं थी. प्रतिभा को पता चला कि बबलू जेल से बाहर आ गया है तो वह उस से मिलने के लिए छटपटाने लगी. जैसे ही विजय प्रताप का मोबाइल उस के हाथ लगा, उस ने बबलू को फोन कर दिया, ‘‘बबलू, मैं तुम्हारे बिना जिंदा नहीं रह सकती. तुम आ कर किसी भी तरह मुझ से मिलो.’’

कासगंज आने के बाद विजय प्रताप और भूदेवी थोड़ा निश्चिंत हो गए थे कि बबलू यहां कहां मिलने आएगा. वे बेटी के लिए ठीकठाक रिश्ता तलाशने में लगे थे. लेकिन उन की यह निश्चिंतता अधिक दिनों तक कायम नहीं रह सकी. क्योंकि प्रतिभा ने प्रेमी को मिलने के लिए कासगंज बुला लिया था. बबलू ने प्रतिभा को आश्वासन दिया था कि जीतेजी कोई उसे उस से अलग नहीं कर सकता. जल्दी ही वह उसे फिर भगा कर ले जाएगा. इस बार वह ऐसी जगह भगा कर ले जाएगा, जहां कोई उसे ढूंढ़ नहीं पाएगा. इस बार बबलू ने मिलने का एक अलग रास्ता निकाल लिया था. वह प्रतिभा को नींद की गोलियां ला कर दे जाता, जिन्हें प्रतिभा दूध या खाने में मिला कर घर वालों को खिला देती. इस के बाद घर के सभी लोग गहरी नींद सो जाते तो दोनों निश्चिंत हो कर रात में मिलते.

ऐसा ही काफी दिनों तक चलता रहा. इसी के साथ बबलू पैसे इकट्ठा करता रहा कि वह प्रतिभा को भगा कर ले जाए तो उसे कोई परेशानी न हो. मतलब भर के पैसे हो गए तो दोनों ने 14 नवंबर को भागने का निश्चय कर लिया. लेकिन 14 नवबर को जैसे ही प्रतिभा बैग ले कर घर से निकलने लगी, उस का भाई ललित कुमार जाग गया. उसे इस तरह बाहर जाते देख उस ने कहा, ‘‘कहां जा रही हो दीदी, तुम्हारी वजह से पूरा परिवार परेशान है? हम लोग गांव छोड़ कर यहां आ गए, इस के बावजूद तुम्हारी समझ में कुछ नहीं आ रहा है.’’

‘‘ललित मुझे जाने दो, मैं बबलू के बिना जिंदा नहीं रह सकती.’’ प्रतिभा ने कहा.

ललित ने मेनगेट की चाबी उस से छीन ली और मम्मीपापा को जगा दिया. प्रतिभा को इस तरह जाते देख विजय प्रताप और भूदेवी हैरान रह गए. उन्होंने तो सोचा था कि अब सब कुछ ठीक हो गया है. लेकिन यहां तो मामला और बिगड़ गया था. विजय प्रताप ने प्रतिभा की खूब पिटाई की. लेकिन उस ने भी साफ कह दिया कि वे लोग चाहे जो कर लें, शादी वह बबलू से ही करेगी. बेटी की इस बगावत ने मांबाप को बेचैन कर दिया. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि वे इस का क्या करें. इस के बाद उसे हमेशा ताले में बंद कर के रखा जाने लगा. इस तरह प्रतिभा के भागने के सारे रास्ते बंद कर दिए गए.

इतनी बंदिशों में भी बबलू ने एक मोबाइल फोन प्रतिभा तक पहुंचा दिया था, जिस से उन की बातें हो जाती थीं. लेकिन मिलना नहीं हो पाता था. इस तरह उन का प्यार सिसकसिसक कर दम तोड़ रहा था. दूसरी ओर मांबाप परेशान थे, क्योंकि उन्हें कोई अच्छा रिश्ता नहीं मिल रहा था. एक ओर विजय प्रताप प्रतिभा के लिए लड़का ढूंढ़ रहे थे, दूसरी ओर वह बबलू के साथ भागने की तैयारी में लगी थी. उसे मौके की तलाश थी. लेकिन घर वालों ने उस की सख्ती से निगरानी शुरू कर दी थी, जिस से उसे मौका नहीं मिल रहा था. ऐसा नहीं था कि सिर्फ प्रतिभा के घर वाले ही परेशान थे, इस प्रेम प्रकरण से बबलू के घर वाले भी काफी परेशान थे. वे नहीं चाहते थे कि बबलू कुछ ऐसा करे, जिस से उन्हें परेशानी का सामना करना पड़े. वे उसे रोक भी रहे थे, लेकिन बबलू मान ही नहीं रहा था.

तमाम पाबंदी के बावजूद 8 फरवरी की रात दीवार फांद कर बबलू विजय प्रताप के घर की छत पर पहुंच गया. सीढि़यों पर ताला बंद था, इसलिए वह रोशनदान के रास्ते घर के अंदर दाखिल हुआ. विजय प्रताप जाग रहे थे. उन्हें पदचाप की आवाज सुनाई दी तो उन्होंने अपने दोस्त दिलीप को फोन कर के घर आने को कहा. दिलीप पेट्रोल पंप पर सेल्समैन था. विजय प्रताप के बुलाने पर थोड़ी ही देर में वह अपने दोस्त सत्यपाल के साथ उन के घर आ गया. इस के बाद वे प्रतिभा को दरवाजा खोलने को कहा. लेकिन प्रतिभा ने दरवाजा नहीं खोला.  काफी परेशान होने के बाद भी जब प्रतिभा ने दरवाजा नहीं खोला तो विजय प्रताप ने कहा कि वह दरवाजा खोल दे, बबलू को कुछ नहीं कहा जाएगा. तब झांसे में आ कर प्रतिभा ने दरवाजा खोल दिया. दरवाजा खुलते ही सभी ने बबलू को दबोच लिया और दूसरे कमरे में ले जा कर पिटाई शुरू कर दी.

प्रतिभा ने विरोध किया तो उसे मारपीट कर दूसरे कमरे में बंद कर दिया गया. अब वे सोचने लगे कि बबलू का किया क्या जाए, क्योंकि वे समझ गए थे कि यह किसी भी तरह उन की बेटी का पीछा छोड़ने वाला नहीं है. यही सोचतेसोचते सवेरा हो गया. उसी बीच मौका पा कर बबलू ने अपने मोबाइल से भाई को फोन कर दिया कि वह कासगंज में प्रतिभा के घर में फंस गया है. उस की जान खतरे में है. घर वाले मदद के लिए चल पड़े, लेकिन वे पहुंच पाते, उस के पहले ही विजय प्रताप और उस के साथियों ने गोली मार कर बबलू की हत्या कर दी और परिवार सहित घर छोड़ कर भाग गए.

अब तक सवेरा हो गया था, प्रतिभा किसी तरह कमरे से बाहर निकली और सीधे कोतवाली कासगंज जा पहुंची. जब उस ने कोतवाली में ड्यूटी पर तैनात सिपाहियों को बताया कि उस के घर वालों ने गोली मार उस के प्रेमी की हत्या कर दी है तो कोतवाली में हड़कंप मच गया. तुरंत कोतवाली प्रभारी को सूचना दी गई. घटनास्थल के लिए निकलने से पहले उन्होंने इस घटना की जानकारी सीओ ए. के. सिंह और एएसपी आर.एम. भारद्वाज को दे दी. कुछ ही देर से कोतवाली प्रभारी विजय बहादुर सिंह, सीओ ए.के. सिंह, एएसपी आर.एम. भारद्वाज गंगेश्वर कालोनी स्थित विजय प्रताप के घर पहुंच गए थे. घर में कोई नहीं था. प्रतिभा कोतवाली प्रभारी के साथ थी. उस की निशानदेही पर कमरे में पड़े बैड के नीचे से बबलू की लाश बरामद कर ली गई.

इस के बाद घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भिजवा दिया गया. घटनास्थल की काररवाई निपटा कर पुलिस अधिकारी कोतवाली वापस आ गए. बबलू के घर वालों को रास्ते में ही पता चल गया था कि उस की हत्या हो चुकी है, इसलिए वे सभी सीधे कोतवाली आ गए थे. इस के बाद प्रतिभा के बयान और मृतक बबलू के पिता वीरपाल की तहरीर के आधार पर उस की हत्या का मुकदमा विजय प्रताप, दिलीप, सत्यपाल और भूदेवी के खिलाफ दर्ज कर लिया गया. चूंकि बबलू एससी था, इसलिए हत्या के इस मामले में एससी एक्ट भी लगा दिया गया.

कोतवाली पुलिस ने तुरंत मोहिनी गांव में छापा मार कर प्रतिभा की मां भूदेवी, पिता विजय प्रताप और हत्या में शामिल दिलीप को गिरफ्तार कर लिया. लेकिन सत्यपाल फरार होने में कामयाब हो गया. पुलिस ने तीनों अभियुक्तों को कासगंज ला कर एसपी विनय कुमार यादव के सामने पेश किया, जहां की गई पूछताछ में तीनों ने बबलू की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. पूछताछ के बाद कोतवाली पुलिस ने विजय प्रताप, भूदेवी और दिलीप को कासगंज की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. दिलीप की जल्दी ही शादी होने वाली थी, लेकिन अब वह हत्या के आरोप में जेल पहुंच गया है. पुलिस चौथे अभियुक्त सत्यपाल की तलाश कर रही है. कथा लिखे जाने तक वह पकड़ा नहीं गया था. Love Crime

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारि

Suicide Case: कमला पसंद मालिक की बहू दीप्ति ने किया सुसाइड

Suicide Case: एक ऐसा मामला सामने आया है, जिस ने पूरे भारत को झकझोर कर रखा दिया है. जहां देश के मशहूर पान मसाला कंपनी के मालिक ‘कमला पसंद’ और ‘राजश्री’ के मालिक कमल चौरसिया की बहू दीप्ति चौरसिया ने आत्महत्या कर ली. आखिर ऐसी क्या वजह थी कि इतनी बड़ी कंपनी की बहू को आत्महत्या करनी पड़ी. चलिए जानते हैं इस परिवार से जुड़ी पूरी स्टोरी को, जो आप को बताएगी पूरा सच.

यह दर्दनाक घटना दिल्ली के वसंत विहार से सामने आई है. यहां दीप्ति चौरसिया ने अपने घर में फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली. शव को सबसे पहले उस के पति हरप्रीत चौरसिया ने फंदे पर लटका देखा. इस के बाद वह पत्नी को अस्पताल ले गया, जहां डॉक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस को दीप्ति के पास एक डायरी मिली, जिस में दीप्ति ने अपने पति से होने वाले झगड़े के बारे में लिखा था.

दीप्ति ने डायरी में लिखा, ‘अगर रिश्ते में प्यार और भरोसा नहीं तो फिर उस रिश्ते में जीने की वजह क्या है. अब मैं और सहन नहीं कर सकती.’

पुलिस के मुताबिक, दीप्ति का पूरा परिवार अलगअलग घरों में रहता है. आप को बता दें कि दीप्ति चौरसिया की शादी 2010 में हरप्रीत चौरसिया से हुई थी. बताया जा रहा है कि हरप्रीत ने 2 शादियां की थीं. दीप्ति का 14 साल का बेटा है. वहीं दूसरी पत्नी दक्षिण सिनेमा में काम करती है. उस की भी एक बेटी है. दीप्ति के भाई ऋषभ ने मीडिया को बताया है कि हरप्रीत के कई महिलाओं से अवैध संबंध हैं. 2011 में पता चला कि बहन के साथ जीजा और सास मारपीट करते थे. जब मारपीट हुई तो हम अपनी बहन को कोलकाता ले आए थे, लेकिन सास उसे वापस ले गई थी. फिर भी उस के साथ मारपीट की.

भाई ने बताया कि बहन मुझ से कहती थी मुझे रोज प्रताड़ित किया जाता है. भाई ने कहा मुझे नहीं पता कि मेरी बहन ने सुसाइड किया या मारी गई है. मैं ने अपनी बहन से 2 दिन पहले बात की थी. मुझे सिर्फ इंसाफ चाहिए. दक्षिणपश्चिम दिल्ली के वसंत विहार थाने की पुलिस पूरे मामले की जांच कर रही है. Suicide Case

Contract Killing: सुहाग मिटाने की सुपारी

Contract Killing: सुमन के संबंध धीरज से बने तो उसे अपना पति कांटे की तरह चुभने लगा. इस कांटे को निकालने के लिए उस ने ऐसी कोन सी चाल चली कि प्रेमी उस के झांसे में आ गया. उत्तर प्रदेश के जिला अलीगढ़ के थाना मडराक के गांव नोहटी के रहने वाले सरदार सिंह का बड़ा बेटा रामजीलाल पढ़लिख कर जानवरों का इलाज करने लगा था तो उस से छोटा राजवीर खेती के कामों में उन की मदद करने लगा था. रामजीलाल की जानवरों के इलाज की दुकानदारी ठीकठाक चलने लगी तो उस के विवाह के लिए लोग आने लगे.

कई लड़कियां देखने के बाद घर वालों ने उस के लिए अलीगढ़ की सुमन को पसंद किया. शादी के बाद सुमन ससुराल आई तो जल्दी ही उस ने घर की सारी जिम्मेदारियां संभाल लीं. जिस से गांव में उस की गिनती अच्छी बहुओं में होने लगी. उस के बाद राजवीर की भी शादी हो गई. उस की पत्नी तेजतर्रार थी, उस की घर में किसी से नहीं पटी तो राजवीर उसे ले कर अलग मकान में रहने लगा. धीरेधीरे परिवार बढ़ने लगा. रामजीलाल और सुमन 5 बच्चों के मातापिता बने, जिन में 3 बेटियां और 2 बेटे थे. सरदार सिंह गांव के खातेपीते किसान थे. उन के पास खेती की काफी जमीन थी. सुखीसंपन्न होने की वजह से सब कुछ बढि़या चल रहा था.

लेकिन समय कब बदल जाए, कहा नहीं जा सकता. रामजीलाल की डाक्टरी बढि़या चल रही थी. कमाई भी अच्छी थी. बच्चे अच्छे से पढ़लिख रहे थे. लेकिन रामजीलाल ने उसी बीच अधिक कमाई के लिए एक ऐसा काम शुरू किया, जो उन के लिए नुकसानदायक ही नहीं सिद्ध हुआ, बल्कि जिंदगी ले डूबा. साल भर पहले रामजीलाल ने ब्याज पर रुपए देने के लिए अपनी कुछ जमीन 9 लाख रुपए में बेच दी. उसी बीच उस की मुलाकात धीरज से हुई. वह पड़ोसी गांव देदामई के रहने वाले सत्यवीर का बेटा था. वह उस के गांव किसी जानवर के इलाज के लिए गया था.

धीरज को पता था कि रामजीलाल ब्याज पर रुपए देता है. इसलिए उस ने कहा, ‘‘तुम रुपए तो ब्याज पर देते ही हो, मेरी बहन की शादी है, अगर कुछ रुपए मुझे भी ब्याज पर दे देते तो मेरी बहन की शादी अच्छे से हो जाती.’’

रामजीलाल ने कुछ सोचविचार कर कहा, ‘‘इस तरह की बातें यहां नहीं हो सकतीं. ऐसा करो, तुम मेरे घर आ जाओ. वहां बैठ कर आराम से बातें करेंगे.’’

धीरज को लगा कि रामजीलाल उसे पैसा देना चाहता है, इसीलिए उस ने उसे घर बुलाया है. अगले दिन वह रामजीलाल के घर पहुंच गया. उस ने रामजीलाल से पूछा, ‘‘डाक्टर साहब, आप ने कुछ सोचा?’’

‘‘किस बारे में?’’ रामजीलाल ने पूछा.

‘‘अरे वही पैसे के बारे में. मैं ने आप से बहन की शादी के लिए कुछ पैसों के लिए कहा था न.’’

‘‘अच्छा पैसा, वह तो मिल जाएगा. बताओ कितना पैसा चाहिए?’’

‘‘डाक्टर साहब, अगर 3 लाख रुपए मिल जाते तो मेरा काम हो जाता.’’ धीरज ने कहा.

रामजीलाल ने ब्याज पर रुपए देने के लिए ही जमीन बेची थी. रुपए उस के पास थे ही, इसलिए उस ने कहा, ‘‘रुपए तो मैं दे दूंगा, लेकिन समय से ब्याज देने के साथ रुपए भी जल्दी लौटाने की कोशिश करना.’’

‘‘डाक्टर साहब पैसा जल्दी लौटा दूंगा तो मेरा ही फायदा होगा न, इसलिए मैं कोशिश करूंगा कि जितनी जल्दी हो सके, आप के कर्ज से मुक्ति मिल जाए.’’ धीरज बोला.

इस के बाद रामजीलाल ने पत्नी को बुला कर 3 लाख रुपए लाने को कहा तो उस ने पूछा, ‘‘इतने रुपयों का क्या करोगे?’’

रामजीलाल ने धीरज की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘इन्हें पैसों की जरूरत है, इसलिए मैं इन्हें ब्याज पर ये रुपए दे रहा हूं. बहन की शादी करने के बाद धीरेधीरे यह मेरे रुपए लौटा देंगे.’’

रामजीलाल रुपए ब्याज पर देता ही था, इसलिए सुमन ने कोई ऐतराज नहीं किया. वह अंदर गई और रुपए ला कर दे दिए. रामजीलाल ने लिखापढ़ी कर के धीरज को रुपए दे दिए. धीरज का काम हो गया तो वह खुश हो कर चला गया. रामजीलाल को अपनी दुकानदारी से ही समय नहीं मिलता था, इसलिए वह अपने खेतों को पट्टे पर देता था. दूसरी ओर धीरज खेत पट्टे पर ले कर खेती करता था. धीरज से संपर्क बना रहे, इस के लिए रामजीलाल ने अपने खेत उस को पट्टे पर दे दिए. इस तरह उस का रामजीलाल के यहां आनाजाना हो गया.

रामजीलाल सुबह निकल जाता था तो अकसर देर शाम को ही लौटता था. इस बीच घर के काम सुमन और बच्चों को देखने पड़ते थे. लेकिन जब से धीरज उस के घर आनेजाने लगा था, जरूरत पड़ने पर वह उस की मदद कर देता था. बदले में सुमन उसे चायनाश्ता करा देती थी. खाने का समय होता तो खाना भी खिला देती. ऐसे में ही किसी दिन धीरज ने कहा, ‘‘भाभी, आप कितना काम करती हैं. इस के बावजूद डाक्टर साहब आप की परवाह नहीं करते?’’

सुमन ने उसे तिरछी नजरों से देखते हुए कहा, ‘‘यह तुम कैसे कह सकते हो वह हमारी परवाह नहीं करते. हमारे लिए ही तो वह सुबह से शाम तक भागते रहते हैं. जब शादी हो जाएगी तो तुम्हें भी अपने परिवार के लिए इसी तरह भागदौड़ करनी पड़ेगी.’’

दरअसल, रामजीलाल के घर आतेजाते धीरज का दिल सुमन पर आ गया था. इसलिए वह उसे फंसाने के लिए चारा डालने लगा था. सुमन की इस बात से वह निराश तो हुआ, लेकिन हिम्मत नहीं हारा. एक दिन सुमन को घर का सामान खरीदने के लिए बाजार जाना था. वह तैयारी कर रही थी कि तभी धीरज आ गया. सुमन को तैयार होते देख उस ने पूछा, ‘‘कहीं जा रही हो क्या भाभी?’’

‘‘घर का सामान खरीदना है, बाजार जा रही हूं. डाक्टर साहब के पास तो समय है नहीं, इसलिए मुझे ही जाना पड़ रहा है.’’ सुमन ने कहा.

‘‘आप अकेली क्यों जा रही हैं. मैं चलता हूं न आप के साथ.’’

सुमन को भला क्यों ऐतराज होता. वह धीरज के साथ मोटरसाइकिल से बाजार पहुंच गईं. सामान खरीद कर थैला धीरज ने उठाया तो सुमन हंसते हुए बोली, ‘‘इतने दिन शादी के हो गए, डाक्टर कभी मेरे साथ बाजार नहीं आए.’’

‘‘आप न होती तो शायद डाक्टर को रोटी भी न मिलती.’’ धीरज ने कहा.

धीरज सुमन को ले कर घर पहुंचा तो सुमन ने कहा, ‘‘मैं खाना बनाने चल रही हूं. अब खाना खा कर जाना.’’

धीरज बाहर बरामदे में पड़ी चारपाई पर लेट गया. सुमन ने उसे पहले चाय पिलाई. उस के बाद खाना बना कर खिलाया. धीरज मन ही मन सोचने लगा कि सुमन के दिल में जरूर उस के लिए कोई नरम कोना है, तभी तो वह उस का इतना खयाल रखती है. सवाल यह था कि वह उस के दिल की बात जाने कैसे? उसी दौरान धीरज अलीगढ़ गया. वहां हाथ से बनी चीजों की प्रदर्शनी लगी थी. वह प्रदर्शनी देखने गया तो वहां उसे एक दुकान पर एक जोड़ी झुमके पसंद आ गए.  उस ने उन्हें खरीद लिया. अगले दिन दोपहर को वह रामजीलाल के घर पहुंचा तो सुमन घर में अकेली मिल गई. सुमन ने धीरज को बैठाया, चायपानी पिलाया. इस के बाद उस ने झुमके की पुडि़या सुमन को थमा दी. सुमन ने पुडि़या खोली, झुमके देख कर बोली, ‘‘झुमके तो अच्छे हैं. किस के लिए लाए हो?’’

‘‘आप भी भाभी कमाल करती हैं. आप के हाथ में दिए हैं तो आप के लिए ही होंगे. कौन मेरी लुगाई बैठी है कि उस के लिए लाऊंगा.’’

‘‘मेरे लिए क्यों खरीद लाए भई?’’ सुमन ने कहा.

‘‘अच्छे लगे, इसलिए खरीद लाया. अब जरा पहन कर दिखाइए.’’

सुमन हंसते हुए अंदर गई और झुमके पहन कर बाहर आई तो धीरज बोला, ‘‘अरे भाभी, यह तो आप पर बहुत फब रहे हैं.’’

‘‘क्यों झूठी तारीफ करते हो.’’ शरमाते हुए सुमन ने कहा.

‘‘सच कह रहा हूं भाभी, डाक्टर साहब देखेंगे तो वह भी यही कहेंगे.’’

सुमन ने आह भरते हुए कहा, ‘‘डाक्टर साहब के पास इतना समय कहां है कि वह मुझे देख कर मेरी तारीफ करें. वह तो सिर्फ जानवरों को देखते हैं और उन्हीं की तारीफ करते हैं.’’

धीरज मुसकराया, क्योंकि सुमन की कमजोर नस उस के हाथ में आ गई थी. उस की समझ में आ गया कि पतिपत्नी के बीच पतली सी दरार है, जिसे वह कोशिश कर के चौड़ी कर सकता है. इस के बाद धीरज सुमन के करीब जाने की कोशिश करने लगा. सुमन को भी उस का आनाजाना और उस से बातें करना अच्छा लगने लगा था. लेकिन धीरज को अपनी मंजिल नहीं मिल रही थी. उसी बीच रामजीलाल ने धीरज से अपने रुपए लौटाने को कहा. धीरज इस से परेशान हो गया, क्योंकि उस के पास लौटाने के लिए रुपए नहीं थे.

सही बात तो यह थी कि अब उस की नीयत खराब हो चुकी थी. वह रामजीलाल के रुपए नहीं लौटाना चाहता था. इसलिए वह सुमन को जरिया बना कर रामजीलाल के रुपए मारने के बारे में सोचने लगा. ऐसा तभी संभव था, जब सुमन उस के कब्जे में आ जाती. लेकिन दिल की बात वह सुमन से कहने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था. एक दिन दोपहर को धीरज सुमन के घर पहुंचा तो सुमन ने कहा, ‘‘क्या इधरउधर मारेमारे फिरते हो, शादी क्यों नहीं कर लेते?’’

‘‘शादी…? भाभी अभी कुछ दिनों पहले ही तो मैं ने अपनी बहन की शादी की है. आप को तो पता ही है कि उस के लिए मैं ने डाक्टर साहब से कर्ज लिया था. अभी वही नहीं दे पाया. पहले उस से तो उऋण हो जाऊं, उस के बाद अपने बारे में सोचूं.’’

डाक्टर साहब के पैसों की चिंता मत करो.’’ सुमन ने तिरछी नजरों से ताकते हुए कहा, ‘‘तुम मुझे बहुत डरपोक लगते हो. जो मन में है, वह भी नहीं कह सकते.’’

‘‘भाभी, मैं ने आप की बात का मतलब नहीं समझा.’’

‘‘रात को आना, डाक्टर साहब आज रात घर में नहीं रहेंगे, तब समझा दूंगी.’’ सुमन ने मुसकराते हुए कहा.

धीरज का दिल एकदम से धड़क उठा. वह भाग कर घर गया और नहाधो कर रात होने का इंतजार करने लगा. लेकिन सूर्य था कि अस्त ही नहीं हो रहा था. किसी तरह शाम हुई तो वह गांव से चल पड़ा. नोहटी पहुंचतेपहुंचते अंधेरा हो चुका था. रामजीलाल के घर पहुंच कर उस ने धीरे से दरवाजा खटखटाया. सुमन ने दरवाजा खोला तो वह चोरों की तरह अंदर आ गया. घर में सन्नाटा था. शायद बच्चे सो चुके थे. सुमन उस का हाथ पकड़ कर अपने कमरे में ले गई. वासना से वशीभूत सुमन भूल गई कि वह पति से बेवफाई करने जा रही है. धीरज को पता था कि सुमन ने उसे यहां क्यों बुलाया है. वह पलंग पर बैठ गया तो उस से सट कर बैठते हुए सुमन ने कहा, ‘‘मुझे तुम से प्यार हो गया है धीरज.’’

‘‘लेकिन डाक्टर साहब, अगर उन्हें पता चल गया तो…?’’

‘‘किसी को कुछ पता नहीं चलेगा. तुम भी तो मुझ से प्यार करते हो न?’’

धीरज ने कुछ कहने के बजाय सुमन को बांहों में समेट लिया तो वह उस से लिपट गई. इस के बाद दोनों ने वह गुनाह कर डाला, जिस का अंजाम आगे चल कर बुरा ही होता है. रात दोनों की अपनी थी, क्योंकि घर का मुखिया घर में नहीं था, इसलिए उन्हें कोई डर नहीं था. लेकिन वे जिस दलदल में उतर गए थे, उस से वे चाह कर भी बाहर नहीं आ सकते थे. सुबह होते ही धीरज चला गया. दोपहर को रामजीलाल आया तो सुमन औंधे मुंह चारपाई पर लेटी थी. उसे समझते देर नहीं लगी कि पत्नी की तबीयत ठीक नहीं है. उसे क्या पता कि वह रात की थकान उतार रही है.

धीरेधीरे सुमन और धीरज का प्यार परवान चढ़ने लगा. मौकों की कमी नहीं थी. रामजीलाल जानवरों के इलाज के लिए दूसरे गांवों में जाता ही रहता था. उसी बीच सुमन धीरज को घर बुला कर रंगरलियां मना लेती. डाक्टर को भले ही कुछ पता नहीं चल रहा था, लेकिन अगलबगल वाले तो देख ही रहे थे. पड़ोसियों को समझते देर नहीं लगी कि रामजीलाल की गैरमौजूदगी में धीरज के आने का मतलब क्या हो सकता है.

आखिर एक दिन किसी पड़ोसी ने रामजीलाल को रोक कर कह ही दिया, ‘‘भाई, कामकाज में इतना बिजी रहते हो कि घर का भी खयाल नहीं रख सकते?’’

‘‘मैं समझा नहीं, आप कहना क्या चाहते हैं?’’ डाक्टर ने पूछा.

‘‘मेरा मतलब धीरज से है, आजकल वह तुम्हारे घर के कुछ ज्यादा ही चक्कर लगा रहा है.’’

पड़ोसी की बात सुन कर रामजीलाल सन्न रह गया. वह तुरंत घर पहुंचा और सुमन से पूछा, ‘‘धीरज यहां आता है क्या?’’

‘‘नहीं तो, किस ने कहा?’’ सुमन ने लापरवाही से कहा.

‘‘अगर अब आए तो उसे मना कर देना. गांव में उसे ले कर तरहतरह की चर्चाए हो रही हैं. मैं नहीं चाहता कि बिना मतलब हमारी बदनामी हो.’’

सुमन ने कोई जवाब नहीं दिया. रामजीलाल इस बात को ले कर काफी परेशान था. वह महसूस कर रहा था कि पिछले कुछ समय से सुमन का व्यवहार उस के प्रति उपेक्षापूर्ण रहने लगा है. कहीं वह गुमराह तो नहीं हो गई. लेकिन उस ने आंखों से कुछ नहीं देखा था, इसलिए कोई फैसला कैसे कर सकता था. सुमन ने फोन कर के धीरज को सतर्क कर दिया कि वह कुछ दिनों तक उस से मिलने न आए, क्योंकि डाक्टर को शक हो गया है. अगले कुछ दिन ठीकठाक गुजर गए तो रामजीलाल लापरवाह हो गया. इस के बाद सुमन ने एक दिन धीरज को फोन कर के बुला लिया, क्योंकि उस दिन रामजीलाल को बाहर जाना था.

लेकिन रास्ते में रामजीलाल की तबीयत खराब हो गई, जिस से वह आधे रास्ते से ही लौट आया. गांव में घुसते ही पड़ोसी ने बताया कि धीरज घर के अंदर है. बेचैन रामजीलाल पड़ोसी की छत से घर के अंदर घुसा तो सुमन को धीरज की बांहों में पाया. रामजीलाल ने धीरज को पकड़ना चाहा, लेकिन वह छुड़ा कर भाग गया. इस के बाद उस ने सुमन की जम कर पिटाई की. मारपीट कर गुस्सा शांत हुआ तो वह सिर थाम कर बैठ गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह इस चरित्रहीन औरत का क्या करे. अगर वह उसे उस के मायके भेज देता है तो बच्चों का क्या होगा, अपना कामकाज छोड़ कर वह उस की रखवाली भी नहीं कर सकता था.

सुमन ने खुद को संभाला और सोचने लगी कि उसे क्या करना चाहिए? अब वह धीरज को किसी भी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहती थी और रामजीलाल का घर भी नहीं छोड़ना चाहती थी. क्योंकि जो सुखसुविधा यहां थी, वह धीरज कभी नहीं दे सकता था. वह तो वैसे ही कर्जदार था. उस ने पति से माफी मांगते हुए कहा कि उस से गलती हो गई, अब ऐसी गलती फिर कभी नहीं होगी. रामजीलाल के पास पत्नी को माफ करने के अलावा कोई दूसरा उपाय नहीं था, इसलिए उस ने पत्नी को माफ कर के समझाया कि इस सब से बदनामी तो होगी ही, अपना ही घर बरबाद होगा.

दूसरी ओर धीरज की अब सुमन से मिलने जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी. लेकिन सुमन ने उस से कहा कि वह उस के बिना जीने की कल्पना भी नहीं कर सकती. उस के बिना उस का जीवन नीरस हो जाएगा. दोनों ने अब घर के बाहर मिलनेजुलने का प्रोग्राम बनाया. बहाना कर के सुमन अलीगढ़ चली जाती, जहां उस से मिलने के लिए धीरज आ जाता. लेकिन वहां भी गांव के कई लोगों की नजरों में वे आ गए, जिस से रामजीलाल को इस की जानकारी हो गई. उस का विश्वास पत्नी पर से उठ गया था, वह उस के साथ अक्सर मारपीट करने लगा. इस के बाद रामजीलाल ने धीरज से अपने रुपए लौटाने को कहा. जबकि धीरज अब उस के रुपए लौटाने के मूड में नहीं था. एक दिन सुमन और धीरज मिले तो सुमन ने कहा, ‘‘धीरज, चलो हम कहीं दूर जा कर अपनी दुनिया बसा लेते हैं.’’

‘‘हम अपनी दुनिया तो बसा लेंगे, पर खाएंगेपहनेंगे क्या? इस के लिए हमें कुछ और सोचना होगा.’’ धीरज ने कहा.

रामजीलाल की गृहस्थी में ग्रहण लग चुका था. गांव वाले चुगली करते रहते थे. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपनी इस चरित्रहीन पत्नी का क्या करे. उसे अपने बच्चों का भविष्य बरबाद होता दिखाई दे रहा था. पतिपत्नी के लड़ाईझगड़े का असर बच्चों पर भी पड़ रहा था. जबकि सुमन रामजीलाल से छुटकारा पाना चाहती थी. उसी बीच एक रात रामजीलाल ने सुमन को फोन से बातें करते सुना तो मोबाइल छीन कर नंबर चैक किया. वह नंबर धीरज का था. उस ने कहा, ‘‘इतना सब होने पर भी तुम बाज नहीं आ रही हो?’’

सुमन ने कोई जवाब नहीं दिया तो रामजीलाल को गुस्सा आ गया. उस ने सुमन को पीटते हुए कहा, ‘‘चरित्रहीन औरत, अब तू विश्वास लायक नहीं रही.’’

इस के बाद रामजीलाल ने मोबाइल का सिम निकाल कर तोड़ दिया. इस पर सुमन ने कहा, ‘‘यह तुम ने अच्छा नहीं किया.’’

पत्नी की इस हिमाकत से रामजीलाल ने फिर उस की पिटाई कर दी. इस के बाद तो सुमन ने तय कर लिया कि अब वह रामजीलाल को जिंदा नहीं छोड़ेगी. अगले दिन उस ने धीरज को फोन किया, ‘‘अब तुम्हारा क्या इरादा है, साफसाफ बताओ?’’

‘‘मेरी हालत तुम जानती ही हो, तुम्हीं बताओ मैं क्या करूं? डाक्टर अपने रुपए मांग रहा है. मेरी समझ में नहीं आ रहा कि मैं क्या करूं?’’

‘‘देखो धीरज, मैं तुम्हारी वजह से रोजरोज तो पिट नहीं सकती, इसलिए अब फैसला लेने का समय आ गया है. या तो तुम मुझे छोड़ दो या फिर कुछ ऐसा करो कि हम चैन से जी सकें.’’

‘‘तुम्हीं बताओ मुझे क्या करना चाहिए?’’ धीरज ने पूछा.

‘‘तुम कुछ ऐसा करो कि तुम्हें डाक्टर के 3 लाख रुपए भी न लौटाने पड़ें और मुझे उस से छुटकारा भी मिल जाए. उस के बाद हम चैन की जिंदगी गुजार सकते हैं.’’

‘‘लेकिन यह होगा कैसे?’’

‘‘सब आराम से हो जाएगा, तुम अपने साथियों के साथ डाक्टर को ठिकाने लगा दो. यह हमारे बीच दीवार की तरह है, यह अब मुझे बरदाश्त नहीं हो रहा है.’’

‘‘लेकिन कोई मुफ्त में यह काम क्यों करेगा. पैसों की जरूरत होगी, जो मेरे पास है नहीं.’’

‘‘पैसे मैं दे दूंगी. ढाई लाख रुपए मेरे पास है.’’

सौदा बुरा नहीं था. धीरज मन ही मन खुश हो गया. कर्ज से भी छुटकारा मिल जाएगा और प्रेमिका के साथ उस की संपत्ति भी मिल जाएगी. वह मजे करेगा. रामजीलाल को जिंदगी से छुटकारा दिलाने की योजना बन गई. धीरज अब ऐसे लोगों को तलाशने लगा, जो उस का साथ दे सकें. उस ने अपने दोस्त दिलीप तोमर को पैसों का लालच दे कर तैयार कर लिया. दिलीप के अलावा उस ने अपने गांव के सौरभ चमन और चरन सिंह को भी शामिल कर लिया. इस के बाद डाक्टर रामजीलाल की मौत का फरमान जारी कर दिया गया. वह इस बात से पूरी तरह बेखबर था. वह तो मोबाइल का सिम तोड़ कर निश्चिंत था कि सुमन अब धीरज से बात नहीं कर पाएगी. लेकिन वह नहीं जानता था कि घायल शेरनी कितनी खतरनाक होती है.

दूसरी ओर सुमन अपने व्यवहार में बदलाव ला कर पति का विश्वास जीतने की कोशिश कर रही थी. रामजीलाल को लगा कि सब कुछ ठीक हो गया है. जबकि अब मामला और बिगड़ गया था. सुमन अब जल्दी से जल्दी रामजीलाल को मरवा कर निश्चिंत हो कर धीरज के साथ मौज करना चाहती थी. 8 फरवरी, 2015 को रामजीलाल घर पर ही था. तभी कुछ लोगों ने आ कर कहा कि नहलोई के रामेश्वर पंडित की भैंस बीमार है. उसे देखने के लिए उसे चलना है. शाम का समय था, रामजीलाल ने कहा, ‘‘आज तो मैं नहीं चल सकता, कल सुबह आ जाऊंगा.’’

‘‘नहीं डाक्टर साहब, भैंस बहुत ज्यादा बीमार है. नहलोई कौन सा ज्यादा दूर है. फिर आप को मोटरसाइकिल से ही तो चलना है.’’ उन्होंने कहा तो रामजीलाल तैयार हो गया. उस ने सुमन से बैग लाने को कहा.

सुमन ने बैग थमाते हुए कहा, ‘‘जितनी जल्दी हो सके लौट आना.’’

दोनों लोग रामजीलाल की मोटरसाइकिल पर बैठ गए. मोटर-साइकिल चल पड़ी तो 2 अन्य लोग दूसरी मोटरसाइकिल से उस के पीछे लग गए. देदामई और नहलोई के बीच एक बंबा है. वहां धीरज को देख कर रामजीलाल का माथा ठनका. साथ आए लोगों ने उस की मोटरसाइकिल रोकवा ली और उसे घेर कर खड़े हो गए.

‘‘यह सब क्या है?’’ रामजीलाल ने पूछा.

लड़कों ने हंसते हुए कहा, ‘‘अभी पता चल जाएगा.’’

रामजीलाल समझ गया कि उस के साथ धोखा हुआ है. उस ने भागने की कोशिश की, लेकिन लड़कों में से किसी ने उस की कनपटी पर गोली मार दी. रामजीलाल गिर गया तो उन्होंने ईंटों से उस की खोपड़ी फोड़ दी. जब रामजीलाल की मौत हो गई तो सभी भाग खड़े हुए. रामजीलाल की लाश रात भर वहीं पड़ी रही. मोटरसाइकिल एक ओर खड़ी थी. सुबह कुछ लोगों ने लाश देखी तो पहचान लिया कि यह तो डा. रामजीलाल की लाश है. तुरंत थाना सासनी पुलिस को सूचना दी गई. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी अरविंद प्रताप सिंह पुलिस बल के साथ रवाना हो गए. रामजीलाल के घर वालों को भी सूचना दे दी गई थी. थोड़ी ही देर में पूरा गांव वहां पहुंच गया. लोग हैरान थे कि आखिर रामजीलाल जैसे सीधेसादे आदमी को किस ने मार दिया.

लाश के कपड़ों की तलाशी में पुलिस को कुछ रुपए, गैस की कापी, पर्स आदि मिले, जिस से स्पष्ट हो गया था कि मृतक की हत्या लूट के लिए नहीं की गई थी. उस की मोटरसाइकिल भी खड़ी थी. पंचनामा कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर पुलिस थाने आ गई और मृतक के भाई राजीवर की ओर से हत्या का मुकदमा अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज कर लिया. राजवीर से पूछताछ में पता चला कि देदामई के धीरज कश्यप को रामजीलाल ने 3 लाख रुपए उधार दिए थे, जिन्हें वह लौटा नहीं रहा था. इस के लिए रामजीलाल और धीरज में कहासुनी भी हुई थी.

थानाप्रभारी अरविंद प्रताप सिंह को हत्या की वजह काफी नहीं लगी. अंतिम संस्कार के बाद वह रामजीलाल के घर पहुंचे तो सुमन का चेहरा पीला पड़ गया. वह रोने का नाटक करने लगी. सुमन के हावभाव ने उन्हें शक में डाल दिया. अरविंद प्रताप सिंह ने मुखबिरों का सहारा लिया. जिन से पता चला कि धीरज घर से गायब है. उसी बीच एक मुखबिर ने बताया कि रामजीलाल की पत्नी और धीरज के बीच नाजायज संबंध थे, जिस का डाक्टर विरोध कर रहा था. अब थानाप्रभारी को डाक्टर की हत्या का मजबूत कारण मिल गया. धीरज के ठिकानों पर छापा मारा गया, लेकिन वह पकड़ में नहीं आया. कोई अपराधी आखिर पुलिस से कब तक बच सकता है. मुखबिर की सूचना पर 14 फरवरी, 2015 को अलीगढ़ से धीरज और उस के साथी दिलीप तोमर को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया.

पूछताछ में पहले तो धीरज पुलिस को गुमराज करता रहा, लेकिन एसपी दीपिका तिवारी ने जब सख्ती से पूछताछ की तो उस ने स्वीकार कर लिया कि सुमन के साथ उस के नाजायज संबंध थे. उसी ने डाक्टर की हत्या के लिए उकसाया था और ढाई लाख की सुपारी भी दी थी. इस के बाद उस ने दिलीप तोमर, सौरभ चमन और चरन सिंह के साथ मिल कर रामजीलाल की हत्या कर दी थी. सुमन को पता चला कि पुलिस ने धीरज को गिरफ्तार कर लिया है तो उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. पुलिस उस की गिरफ्तारी के लिए घर पहुंची तो वह रोने का नाटक करने लगी. उसे गिरफ्तार कर के थाने लाया गया तो उस ने भी धीरज के साथ अपने संबंधों को स्वीकार करते हुए बताया कि धीरज और उस के बीच पति कांटे की तरह गड़ रहा था, इसलिए उस ने उस कांटे को निकलवा दिया था.

उसे क्या पता था कि वह मौज करने के बजाय जेल चली जाएगी. पुलिस ने गिरफ्तार सुमन, धीरज और दिलीप तोमर को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया, बाकी अभियुक्तों की तलाश कर रही है. Contract Killing

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Hindi Stories: बस एक बेटा चाहिए

Hindi Stories: मेहनतमजदूरी कर के जीविका चलाने वाली शंकरी की 3 बेटियां थीं, चौथा बच्चा पेट में था. आखिर उस की ऐसी कौन सी मजबूरी थी कि वह बच्चे पर बच्चे पैदा किए जा रही थी. जिस तरह उस बूढ़े बरगद के पेड़ की उम्र का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता था, उसी तरह उस के नीचे बायस्कोप लिए खड़ी उस औरत, जिस का नाम शंकरी था, की उम्र का भी अंदाजा लगाना आसान नहीं था. वह चला तो बायस्कोप रही थी, लेकिन उस का ध्यान लोहे के 4 पाइप खड़े कर के साड़ी से बने झूले में सो रही अपनी 2 साल की बेटी पर था.

अगर झूले में लेटी बेटी रोने लगती तो वह बायस्कोप जल्दीजल्दी घुमाने लगती. बायस्कोप देखने वाले बच्चे शोर मचाते तो वह कहती, ‘‘लगता है, बायस्कोप खराब हो गया है, इसीलिए यह तेजी से घूमने लगा है.’’

बायस्कोप का शो खत्म कर के शंकरी बेटी को गोद में ले कर चुप कराने लगती. लेकिन बायस्कोप देखने वाले बच्चे उस से झगड़ने लगते. झगड़ते भी क्यों न, उन्होंने जिस आनंद के लिए पैसे दिए थे, वह उन्हें मिला नहीं था. औरत बच्चे के रोने का हवाला देती, फिर भी वे बच्चे न मानते. उन्हें तो अपने मनोरंजन से मतलब था, उस के बच्चे के रोने से उन्हें क्या लेनादेना था. शंकरी उन्हें समझाती, दोबारा दिखाने का आश्वासन भी देती, क्योंकि उसे भी तो इस बात की चिंता थी कि अगर उस के ये ग्राहक बच्चे नाराज हो गए तो उस की आमदनी बंद हो जाएगी. लेकिन उस की परेशानी यह थी कि वह बेटी को संभाले या ग्राहक. बेटी को भी रोता हुआ नहीं छोड़ा जा सकता था.

शंकरी के चेहरे पर मजबूरी साफ झलक रही थी. बच्चों की जिद पर मजबूरन उसे बच्ची को रोता छोड़ कर बायस्कोप के पास जाना पड़ता, क्योंकि बायस्कोप देखने वाले बच्चे उस का ज्यादा देर तक इंतजार नहीं कर सकते थे. शंकरी की अपनी बच्ची रोती रहती और वह दूसरों के बच्चों का मनोरंजन कराती रहती. बच्ची रोरो कर थक जाती लेकिन वह उसे गोद में न ले पाती. वह उसे तभी गोद में उठा पाती, जब उस के ग्राहकों की भीड़ खत्म हो जाती. ग्राहकों के जाते ही वह दौड़ कर बच्ची को गोद में उठाती, प्यार करती और झट से साड़ी के पल्लू के नीचे छिपा कर दूध पिलाने लगती. तब उस के चेहरे पर जो सुकून होता, वह देखने लायक होता.

शंकरी ने बच्ची को प्यार करने के लिए अपना घूंघट थोड़ा खिसकाया तो थोड़ी दूर पर बेटी को मेला दिखाने आई संविधा की नजर उस के चेहरे पर पड़ी. उस का गोरा रंग धूप की तपिश से मलिन पड़ गया था. अभी भी गरम सूरज की किरणें पेड़ों की पत्तियों के बीच से छनछन कर उस के चेहरे पर पड़ रही थीं. भूरे बालों को उस ने करीने से गूंथ कर मजबूती से बांध रखा था. आंखों में काजल की पतली लकीर, माथे पर बड़ी सी गोल बिंदी, गोल चेहरा, जिस में 2 बड़ीबड़ी आंखें, जो दूध पीते बच्चे को बड़ी ममता से निहार रही थीं. कभीकभी उस की आंखें बेचैनी से उस ओर भी घूम जातीं, जो उस का बायस्कोप देखने के लिए उस के इंतजार में खड़े थे.

जैसे ही बेटी ने दूध पीना बंद किया, शंकरी के चेहरे पर आनंद झलक उठा. बच्ची अभी भी उस की गोद में लेटी थी और अधखुली आंखों से उसे ताकते हुए अपनी नन्ही हथेलियों से उस के माथे और गालों को सहला रही थी. औरत ने गौर से बच्ची को देखा, उस के चेहरे पर आनंद की जगह दुख की बदली छा गई. उस की आंखों से आंसू की 2 बूंदें टपक पड़ीं, जो बच्चे के चेहरे पर गिरीं. उस ने जल्दी से साड़ी के पल्लू से आंखों को पोंछा. बच्ची अब तक नींद के आगोश में चली गई थी.

शंकरी ने तमाशा देखने वालों को देखा. वे सभी उसे ही ताक रहे थे. उस ने बहुत हलके से बच्ची को झूले में लिटाया. बरगद के नीचे मक्खियों और कीड़ों की भरमार थी, इसलिए बच्ची को उन से बचाने के लिए एक बारीक कपड़ा उस के चेहरे पर डाल दिया, जिस से बच्ची आराम से सोती रहे. जैसे ही वह बच्ची के पास से हटी, बच्ची फिर रोने लगी. उस के रोने से वह बेचैन हो उठी. उस ने बायस्कोप के पास से ही रोती बच्ची को देखा, लेकिन मजबूरी की वजह से वह उसे उठा नहीं सकी. बायस्कोप देखने वाले बच्चों से पैसे ले कर उन्हें बैठा दिया. बच्ची रोती रही, 1-2 बार तो ऐसा लगा जैसे उस की सांस रुक गई है, लेकिन वह रोतीरोती सो गई.

थोड़ी देर बाद एक छोटी लड़की, जो 4 साल के आसपास रही होगी, सो रही बच्ची के पास से गुजरती हुई शंकरी के पास आ कर उस की साड़ी का पल्लू मुंह में डाल कर लौलीपाप की तरह चूसने लगी. वह शायद शंकरी की झूले में लेटी बेटी से बड़ी थी. उस की लार से शंकरी की साड़ी का पल्लू गीला हो गया. शंकरी की यह दूसरी बेटी घुटने तक लाल रंग का फ्रौक पहने थी. उस के पैर धूल से अटे हुए थे, आंखें पीली, मैलेकुचैले बाल, जो बूढ़े टट्टू की पूंछ की तरह बंधे हुए थे. उन में से कुछ खुले बाल उस के मटमैले चेहरे पर बिखरे हुए थे. लड़की ने शंकरी से उस के कान में फुसफुसा कर कुछ कहा. उस ने ऐसा न जाने क्या कहा कि शंकरी ने खीझ कर उसे कोहनी से झटक दिया. लड़की रोते हुए जमीन पर लेट गई, जिस से उस का पूरा शरीर धूल से अट गया.

तमाशा देखने वाले बच्चे इन सभी चीजों से बेपरवाह और बेखबर अपनी आंखें बायस्कोप के छोटे से गोल शीशे पर जमाए बक्से के अंदर का नजारा देख रहे थे, जो शायद उन्हें कुछ इस तरह मजा दे रहा था, जैसे वे सिनेमाहाल में कोई फिल्म देख रहे हों. यह उन के जोश और दीवानगी से पता चल रहा था. झूले में लेटी बच्ची एक बार फिर रोने लगी. शंकरी ने बगल में जमीन पर लोट रही बेटी को 5 रुपए का सिक्का दिखाया तो वह तुरंत  उठ कर खड़ी हो गई और शरीर पर चिपकी धूल को झाड़ते हुए मां के हाथ से सिक्का झपट लिया. उस के चेहरे पर आंसुओं की लकीरें साफ दिखाई दे रही थीं. हाथ में सिक्का आते ही वह उत्साह और खुशी से उछलतीकूदती रोती हुई छोटी बहन के पास आई और उसे झूले से उठा कर अपनी छोटी सी कमर के सहारे गोद में ले कर थोड़ी दूरी पर स्थित एक छोटी सी दुकान की ओर चल पड़ी.

शंकरी बायस्कोप जरूर चला रही थी, लेकिन उस का ध्यान कहीं और ही था. उसी समय उस के पास एक अन्य लड़की आई, जिस की उम्र बामुश्किल 6 साल रही होगी. उस की पीली रंग की सलवारसमीज मैल की वजह से काली पड़ चुकी थी. कुछ पल मांबेटी आपस में कानाफूसी करती रहीं, उस के बाद वह लड़की वहीं मां के पास बैठ गई और अपने धूल भरे पैर मजे से हिलाने लगी. लेकिन उस की पीली आंखें बहुत कुछ कह रही थीं. वह पैर हिलाते हुए वहां घूमने आए ताजा चेहरे वाले बच्चों और उन के मांबाप को ललचाई नजरों से ताक रही थी, क्योंकि वे अपने बच्चों की बड़ी से बड़ी इच्छाएं पूरी कर रहे थे.

तमाशा देखने वाले बच्चे जब चले गए तो वह आ कर मां के पास बैठ गई. मां उस के सिर पर हाथ फेरते हुए मुसकराई. बायस्कोप देखने वाले बच्चे उस में देखे गए तमाशे के बारे में चर्चा करते हुए हंस रहे थे. उसी बीच हवा का एक ऐसा झोंका आया, जिस से उस औरत का आंचल उड़ गया. उस के उभरे हुए पेट पर संविधा की नजर पड़ी, शायद वह गर्भवती थी. संविधा ने उभार से अंदाजा लगाया, कम से कम 6 महीने का गर्भ रहा होगा. अपने कमजोर शरीर के पेट पर उस छोटे से उभार के साथ शंकरी मुश्किल से बेटी के साथ जमीन पर बैठ गई. उस की इस 6 साल की बेटी ने प्यार से उसे मां कहा तो वह बेटी की आंखों में झांकने लगी.

उसी समय धोतीकमीज पहने और सिर पर मैरून रंग की पगड़ी बांधे एक आदमी मांबेटी के पास आ कर बैठ गया. उस के बैठते ही लड़की उसे बापू कह कर उस से चिपक गई और उस के गालों तथा मूंछों को सहलाने लगी. लेकिन उस आदमी ने उस की ओर ध्यान नहीं दिया. वह शंकरी से बातें करने में व्यस्त था. संविधा को समझते देर नहीं लगी कि वह आदमी शंकरी का पति है. वह आदमी उसी को देख रहा था, जबकि उस की नजरें अपने चारों ओर घूमते लोगों पर टिकी थीं. लड़की अपनी बांहें बापू के गले में डाल कर झूल गई तो वह उसे झटक कर उठ खड़ा हुआ और मेले की भीड़ में गायब हो गया.

लड़की संविधा के पास आ कर खड़ी हो गई. उस की नजरें उस के हाथ में झूल रही पौलीथिन में रखे चिप्स के पैकेट पर जमी थीं. वह उन चीजों को इस तरह ललचाई नजरों से देख रही थी, जैसे जीवन में कभी इन चीजों को नहीं देखा था. उस की तरसती आंखों में झांकते हुए संविधा ने चिप्स का पैकेट उसे थमाते हुए पूछा, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’

अब उस की नजरें संविधा की बेटी के लौलीपाप पर जम गई थीं, जिसे वह चूस रही थी. वह उसे इस तरह देख रही थी, जैसे उस की नजरें उस पर चिपक गई हों. संविधा ने उस का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए कहा, ‘‘लौलीपाप खाओगी?’’

उस ने मुसकराते हुए हां में सिर हिलाया. संविधा ने पर्स में देखा कि शायद उस में कोई लौलीपाप हो, लेकिन अब उस में लौलीपाप नहीं था. संविधा को लगा, अगर उस ने लड़की से कहा कि लौलीपाप नहीं है तो उसे दुख होगा. इसलिए उस ने पर्स से 10 रुपए का नोट निकाल कर उसे देते हुए कहा, ‘‘जाओ, अपने लिए लौलीपाप ले आओ.’’

लड़की मुसकराते हुए 10 रुपए के नोट को अमूल्य उपहार की तरह लहराती हुई मेले की ओर भागी. लड़की के जाते ही संविधा शंकरी को देखने लगी. वह काफी व्यस्त लग रही थी. वह बायस्कोप देखने वालों को शो दिखाते हुए सामने से गुजरने वालों को बायस्कोप देखने के लिए आवाज भी लगा रही थी. 4 साल की उस की जो बेटी अपनी छोटी बहन को ले कर गई थी, अब तक मां के पास वापस आ गई थी. उस ने बरगद के पेड़ के चारो ओर बने चबूतरे पर छोटी बहन को बिठाया और अपना हाथ मां के सामने कर दिया, जिस में वह खाने की कोई चीज ले आई थी. शायद वह उसे मां के साथ बांटना चाहती थी. अब तक बड़ी बेटी भी आ गई थी. उस ने भी अपनी मुट्ठी मां के सामने खोल कर अंगुली से संविधा की ओर इशारा कर के धीमे से कुछ कहा.

शंकरी ने संविधा की ओर देखा. नजरें मिलने पर वह मुसकराने लगी. उस परिवार को देखतेदेखते अचानक संविधा के मन में उस के प्रति आकर्षण सा पैदा हो गया तो उस के मन में उन लोगों के बारे में जानने की उत्सुकता पैदा हो गई. शायद शंकरी के लिए उस के दिल में दया पैदा हो गई थी. उस की स्थिति ही कुछ ऐसी थी, इसीलिए संविधा उस की कहानी जानना चाहती थी. धीरेधीरे संविधा शंकरी की ओर बढ़ी. उसे अपनी ओर आते देख शंकरी खड़ी हो गई. उसे लगा, शायद संविधा बेटी को बायस्कोप दिखाने आ रही है, इसलिए उस ने बायस्कोप का ढक्कन खोलने के लिए हाथ बढ़ाया. संविधा ने कहा, ‘‘मुझे इस मशीन में कोई दिलचस्पी नहीं है. मैं तो आप से मिलने आई हूं.’’

संविधा की इस बात से शंकरी को सुकून सा महसूस हुआ. वह चबूतरे पर खेल रही छोटी बेटी के पास बैठ गई. संविधा ने उस की तीनों बेटियों की ओर इशारा कर के पूछा, ‘‘ये तीनों तुम्हारी ही बेटियां हैं?’’

‘‘जी.’’ शंकरी ने जवाब दिया.

‘‘ये कितनेकितने साल की हैं?’’

शंकरी ने हर एक की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘6 साल, 4 साल और सब से छोटी डेढ़ साल की है.’’

इस के बाद उस के उभरे हुए पेट पर नजरें गड़ाते हुए संविधा ने पूछा, ‘‘शायद तुम फिर उम्मीद से हो?’’

‘‘जी.’’ उस ने लंबी सी सांस लेते हुए कहा.

‘‘कितने महीने हो गए?’’

‘‘6 महीने.’’

संविधा शंकरी को एकटक ताकते हुए उस की दुख भरी जिंदगी के बारे में सोचने लगी, शायद यह बच्चे पैदा करने को मजबूर है. यह कितनी तकलीफ में है. उस की परेशानियों को देखते हुए संविधा ने पूछा, ‘‘तुम्हारी उम्र कितनी होगी?’’

‘‘मेरी…’’ उस ने अनुमान लगाने की कोशिश की, लेकिन विफल रही तो नजरें झुका लीं.

संविधा को आघात सा लगा. उस ने उस के दुख और मजबूरी भरे जीवन की अपने शानदार और ऐशोआराम वाले जीवन से तुलना की, तब उसे लगा कि इस दुनिया में शायद दुख ज्यादा और सुख कम है. उस ने पूछा, ‘‘आप हर साल एक बच्चा पैदा कर के थकी नहीं?’’

‘‘इस के अलावा मेरे पास कोई दूसरा उपाय नहीं है.’’ शंकरी ने ठंडी आह भरते हुए जवाब दिया.

‘‘आप बहुत बहादुर हैं. मेरे वश का तो नहीं है.’’

‘‘मेरी मजबूरी है. मेरे पति चाहते हैं कि उन का एक बेटा हो जाए, जिस से उन के परिवार का नाम चलता रहे.’’

‘‘नाम चलता रहे..?’’ संविधा ने उसे हैरानी से देखते हुए कहा. उस पर उसे तरस भी आया. क्योंकि उस की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि उस के जो बच्चे थे, उन्हें ही वह ठीक से पालपोस सकती. जबकि सिर्फ नाम चलाने के लिए वह बच्चे पर बच्चे पैदा करने को तैयार थी. संविधा को झटका सा लगा था. वह उस से कहना चाहती थी कि आजकल लड़के और लड़कियों में कोई अंतर नहीं रहा. दोनों बराबर हैं. उस की केवल एक ही बेटी है, जिस से वह और उस के पति खुश हैं. लड़कियां लड़कों से ज्यादा बुद्धिमान और प्रतिभाशाली निकल रही हैं. वे मातापिता की बेटों से ज्यादा देखभाल करती हैं. देखो न लड़कियां पहाड़ों पर चढ़ रही हैं, उन के कदम चांद पर पहुंच गए हैं.

लेकिन वह कह नहीं पाई. उस के मन में आया कि वह उस से पूछे कि अगर इस बार भी बेटी पैदा हुई तो..? क्या जब तक बेटा नहीं पैदा होगा, वह बच्चे पैदा करती रहेगी? अगर उसे बेटा पैदा ही नहीं हुआ तो वह क्या करेगी? इस तरह के कई सवाल संविधा के मन में घूम रहे थे. उस की गरीबी और बेटा पाने की चाहत के बारे में सोचते हुए उसे लगा, अगर यह इसी तरह बच्चे पैदा करती रही तो इस की हालत तो एकदम खराब हो जाएगी. अचानक उस ने पूछा, ‘‘तुम्हारे पति क्या करते हैं?’’

‘‘वह लोकगीत गाते हैं.’’ शंकरी ने कहा.

‘‘लोकगीतों का कार्यक्रम करते हैं?’’

‘‘नहीं, मेलों या गांवों में घूमघूम कर गाते हैं.’’

संविधा को याद आया कि जब वह मेले में प्रवेश कर रही थी तो कुछ लोग चादर बिछा कर ढोलक और हारमोनियम ले कर बैठे थे. वे लोगों की फरमाइश पर उन्हें लोकगीत और फिल्मी गाने गा कर सुना रहे थे.

संविधा समझ गई कि ये लोग कहीं बाहर से आए हैं. उस ने पूछा, ‘‘लगता है, तुम लोग कहीं बाहर से आए हो? अपना गांवघर छोड़ कर कहीं बाहर जाने में तुम लोगों को बुरा नहीं लगता?’’

‘‘हमारे पास इस के अलावा कोई दूसरा रास्ता भी तो नहीं है.’’

‘‘क्यों? जहां तुम लोग रहते हो, वहां तुम्हारे लिए कोई काम नहीं है?’’

‘‘काम और कमाई होती तो हम लोग इस तरह मारेमारे क्यों फिरते?’’

‘‘लेकिन तुम लोग अपने यहां खेती भी तो कर सकते हो?’’ संविधा ने सुझाव दिया.

‘‘कैसे मैडम, हमारी सारी जमीनों पर दबंगों और महाजनों ने कब्जा कर लिया है. क्योंकि हम ने उन से जो कर्ज लिया था और उसे अदा नहीं कर पाए.’’

‘‘तुम लोगों ने अपनी सुरक्षा और अधिकारों के लिए संघर्ष क्यों नहीं किया?’’

‘‘मैडम, हम बहुत कमजोर लोग हैं और वे बहुत शक्तिशाली. उन के पास पैसा भी है और ताकत भी. हम उन से दुश्मनी कैसे मोल ले सकते हैं.’’

‘‘लेकिन तुम लोग यह सब सह कैसे लेते हो?’’ ‘‘हम बहुत ही असहाय और बेबस लोग हैं.’’ शंकरी ने लंबी सांस ले कर जमीन पर खेल रही बच्ची का मुंह साड़ी के पल्लू से साफ करते हुए कहा.

संविधा के दिमाग में तमाम सवाल उठ रहे थे, लेकिन उसे लगा कि बुद्धिमानी इसी में है कि वह उस से उन सवालों को न पूछे. चेहरे से शंकरी अभी जवान लग रही थी, लेकिन हालात की वजह से चेहरा पीला और सूखा हुआ था. शायद ऐसा गरीबी और बच्चे पैदा करने की वजह से था. संविधा ने पूछा, ‘‘तुम्हारी शादी कितने साल में हुई थी?’’

‘‘मेरी…’’ उस ने अनुमान लगाने की कोशिश की, मगर नाकाम रही.

‘‘तुम यहां कब आई?’’

‘‘जब यह मेला शुरू हुआ.’’

‘‘तुम लोगों के दिन कैसे गुजरते हैं?’’

‘‘सुबह जहां रहते हैं, वहां की साफसफाई करते हैं. दोपहर को ही रात का भी खाना बना लेते हैं, क्योंकि हमारे पास उजाले की व्यवस्था नहीं है. उस के बाद अपने काम में लग जाते हैं. लड़कियां टोलियों में नाचनेगाने क काम करती हैं. शादीशुदा महिलाएं मेरी तरह बायस्कोप दिखाती हैं तो कुछ कठपुतली का नाच दिखाती हैं. कुछ मेहंदी लगाने का भी काम करती हैं.’’

संविधा ने इधरउधर देखा. दूरदूर तक कोई इमारत नहीं थी. मैदान पर मेले में आए दुकानदारों के तंबू लगे थे. मन में जिज्ञासा जागी तो उस से पूछा, ‘‘तुम पूरे दिन इसी तरह बिना आराम के काम करती हो. ऐसे में तुम्हारे बच्चों की देखभाल कौन करता है?’’

‘‘मेरी बड़ी बेटी इन दोनों बेटियों को संभाल लेती है.’’

‘‘इन का खानापीना और नहानाधोना?’’

‘‘बड़ी बेटी छोटी को नहला देती है, बीच वाली खुद ही नहा लेती है.’’

संविधा ने अपनी 8 साल की बेटी पर नजर डाली, उस के बाद शंकरी की एकएक कर के तीनों बेटियों को देखा. छोटी बेटी अभी भी मां के पास चबूतरे पर खेल रही थी. संविधा ने सोचते हुए एक लंबी सांस ली. कुछ देर वह शंकरी और उस की बेटियों को देखती रही. उस का दिल उन के लिए सहानुभूति से भर गया. उस ने पर्स से 10-10 रुपए के 2 नोट निकाले और खेल रही लड़कियों को थमा दिए. इस के बाद वह चलने लगी तो देखा, कुछ बच्चे उधर आ रहे थे. उन्हें आते देख कर शंकरी अपने बायस्कोप के पास जा कर खड़ी हो गई, लेकिन उस की नजरें चबूतरे पर खेल रही बेटी पर ही जमी थीं.

शाम को संविधा घर पहुंची तो उस के दिलोदिमाग में शंकरी और उस की बेटियां ही छाई थीं. वह भी एक औरत थी, इसलिए उस ने प्रार्थना की कि काश! उस के गमों का सिलसिला खत्म हो जाए और उस की इच्छा पूरी हो जाए. इस बार उसे बेटा पैदा हो जाए. Hindi Stories

अनुवाद: एम.एस. जरगाम

Crime Story Hindi: भैरवी क्रिया के चक्रव्यू में मोनिका

Crime Story Hindi: प्रतिष्ठित परिवार की मोनिका शादी के 5 साल बाद भी मां नहीं बन सकी तो वह एक तथाकथित तांत्रिक के चक्कर में फंस गई. उस तांत्रिक ने उसे भैरवी क्रिया के चक्रव्यूह में ऐसा फांसा कि मोनिका घर की रही न घाट की. अपने घर पर लोहड़ी मनाने के बाद मोनिका 14 जनवरी, 2015 को अपने पति के पास चली गई थी. उस का पति गुरदीप इंडियन नेवी में नौकरी करता था. वह उस समय मुंबई में रह रहा था. ससुराल में केवल सासससुर रह गए थे. मुंबई आने के बाद भी वह सासससुर से फोन पर बात कर के हालचाल लेती रहती थी. मोनिका का मायका राजपुरा की रौशन कालोनी में था. वहां उस की विधवा मां सुनीता रानी रहती थी.

29 जनवरी, 2015 को मोनिका ने अपने ससुर के मोबाइल पर फोन करना चाहा तो उन का फोन स्विच्ड औफ मिला. मोनिका ने कई बार उन का नंबर मिलाया, लेकिन हर बार फोन स्विच्ड औफ ही मिला. इस पर मोनिका ने अपनी मां सुनीता को फोन कर के कहा कि वह किसी मुद्दे पर अपने सासससुर से बात करना चाहती है, मगर उन का मोबाइल स्विच्ड औफ आ रहा है. उस ने अपनी मां से कहा कि वह उस की ससुराल जा कर पता लगाए कि वहां कोई फिक्र वाली बात तो नहीं है. उस वक्त रात काफी हो चुकी थी. सुनीता भी अपने घर में अकेली थीं, इसलिए अकेली होने की वजह से वह बेटी की ससुराल नहीं गईं.

अगले दिन घर और रसोई का काम निपटाने के बाद दोपहर करीब 11 बजे वह अपने समधी के यहां पहुंचीं तो घर के बाहर वाला लकड़ी का दरवाजा खुला था. वह ड्योढ़ी में पहुंचीं तो वहां एक जोड़ी चप्पलें उलटीसीधी पड़ी थीं, वहीं पर एक टोपी भी पड़ी थी. तभी उन्होंने तेज बदबू का भभका महसूस किया. सुनीता ने अपने समधी और समधिन को कई आवाजें दीं. जब अंदर से कोई जवाब नहीं आया तो वह उन के बैडरूम में चली गईं. वहां असहनीय बदबू फैली थी. तभी उन की नजर बैड पर गई तो वह चीख पड़ीं. वहां मोनिका के ससुर खेमचंद और सास कमलेश की लाशें पड़ी थीं. लाशें देखते ही वह तुरंत घर से बाहर निकल आईं और शोर मचा दिया.

शोर सुन कर पासपड़ोस के लोग वहां आ गए. सुनीता ने उन्हें समधी और समधिन की लाशें कमरे में पड़े होने की जानकारी दी. उसी दौरान अपनी बेटी मोनिका और अन्य रिश्तेदारों को भी उन्होंने इस मामले की खबर दे दी. वहां मौजूद लोगों में से किसी ने केएसएम पुलिस चौकी में फोन कर के इस डबल मर्डर की सूचना दे दी. डबल मर्डर की सूचना मिलते ही चौकी प्रभारी महिमा सिंह, हेडकांस्टेबल नाथीराम और भाग सिंह के साथ राजपुरी के बनवाड़ी इलाके में खेमचंद के घर पहुंच गए. वहां एक ही कमरे में 2 लाशें पड़ी देख कर वह भी चौंके. उन्होंने थाना सिटी के थानाप्रभारी शमिंदर सिंह को दोहरे हत्याकांड की जानकारी दी तो वह भी एसआई सतनाम सिंह, एएसआई राकेश कुमार, हेडकांस्टेबल जसविंदर पाल, कुलवंत सिंह और महिला कांस्टेबल परमजीत कौर को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए.

जिस मकान में यह घटना हुई थी, वह पुराने स्टाइल का मकान था. थानाप्रभारी जैसे ही  लकड़ी के बड़े दरवाजे से मकान में घुसे, असहनीय बदबू से बेहाल हो गए. नाक पर रूमाल रख कर वह आगे बढ़े तो उन्होंने बैडरूम में बिस्तर पर एक आदमी और एक औरत की लाश पड़ी देखी. पूछने पर पता चला कि मृतक 70 वर्षीय खेमचंद और उन की 65 वर्षीया पत्नी कमलेश हैं. लाशों के मुआयने में लग रहा था कि उन दोनों को गला घोंट कर मारा गया था. निस्संदेह उन की हत्या कई दिनों पहले की गई थी, क्योंकि लाशें गलने लगी थीं. बैडरूम का सामान भी इधरउधर बिखरा पड़ा था. अलमारियों का सामान बिखरा होने के साथसाथ लौकर भी खुला पड़ा था, जो पूरी तरह खाली था. पहली ही नजर में लग रहा था कि यह डबल मर्डर लूटपाट की खातिर हुआ होगा.

कमरे में फर्श पर कोल्डड्रिंक के खाली कैन, सिगरेट के टुकड़ों के अलावा वहां एल्युमिनियम की पन्नी भी पड़ी थी. ऐसी पन्नियों का उपयोग नशेड़ी नशीला पदार्थ लेने के लिए करते हैं. इस से यह बात जाहिर हो रही थी कि अपराधी अव्वल दर्जे के नशेड़ी थे. जिस इत्मीनान से यह सब हुआ था, उस से लग रहा था कि अपराधी संभवत: मृतकों के परिचित रहे होंगे. मामला गंभीर था, इसलिए सूचना मिलने पर पटियाला के एसएसपी गुरमीत चौहान, एसपी (डिटेक्टिव) जसकरण सिंह तेजा, डीएसपी (सिटी) राजेंद्र सिंह सोहल और सीआईए इंसपेक्टर विक्रमजीत सिंह बराड़ भी घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने भी लाशों और घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया.

मौके पर पहुंची डौग स्क्वायड और फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट टीम एवं एफएसएल टीम ने भी मौके की काररवाई पूरी की. घटनास्थल पर मौजूद सुनीता, जो राजपुरा की रौशन कालोनी में रहती थी, बताया कि मरने वाले उन के समधीसमधिन हैं. उन की बेटी मोनिका उन के बेटे कुलदीप से ब्याही है. दोनों की शादी 5 साल पहले हुई थी. सुनीता ने यह भी बताया कि मोनिका का पति गुरदीप इंडियन नेवी में नौकरी करता है और मुंबई में रहता है. मोनिका बीचबीच में अपने सासससुर की सेवा करने के लिए मुंबई से राजपुरा आती रहती थी. गुरदीप चाहता था कि मांबाप भी मुंबई में उस के साथ रहें, लेकिन वे वहां जाने को तैयार नहीं थे.

पुलिस ने पंचनामा कर के दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भिजवा कर सुनीता की तहरीर पर अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का केस दर्ज कर लिया. मौके से कोई ऐसा सुबूत नहीं मिला  था, जिस के सहारे हत्यारों तक पहुंचने में  पुलिस को मदद मिलती. पुलिस के लिए यह एक संगीन मामला था. एसएसपी गुरमीत चौहान ने इसे गंभीरता से लेते हुए एक विशेष टीम का गठन कर के इंसपेक्टर शमिंदर सिंह को आदेश दिया कि वह इस केस को जल्द से जल्द सुलझाए. टीम की अगुवाई डीएसपी राजेंद्र सिंह सोहल कर रहे थे.

घटनास्थल से जो सुबूत मिले थे, उन से घटना में किसी नशेड़ी के शामिल होने की उम्मीद थी, इसलिए पुलिस टीम ने इलाके के तमाम नशेडि़यों को उठा कर उन से पूछताछ शुरू की. मगर वे सब बेकसूर निकले. इस परिवार के अनेक परिचितों को भी संदेह के दायरे में रख कर उन से मनोवैज्ञानिक पूछताछ की गई, लेकिन परिणाम वही ढाक के तीन पात रहा. गुरदीप को अपने मातापिता की हत्या की खबर मिली तो वह भी पत्नी मोनिका के साथ राजपुरा आ गया. आते ही उस ने जिले के पुलिस अधिकारियों से मुलाकात कर के जल्द से जल्द केस का खुलासा कर हत्यारों को गिरफ्तार करने की मांग की.

पुलिस टीम के ऊपर इस केस को खोलने का काफी दबाव था. काफी कोशिश के बावजूद भी पुलिस को हत्यारों के बारे में कोई पता नहीं लगा तो पुलिस ने अपने मुखबिरों का सहारा लिया. 4 दिनों बाद एक मुखबिर ने पुलिस टीम को एक महत्त्वपूर्ण जानकारी दी. उस ने बताया कि मोनिका सिकंदर नाम के तांत्रिक के पास जाया करती थी. तांत्रिक भी उस के यहां आता था. कई बार तो वह तांत्रिक देर रात को भी उस के घर आता था और भोर में वहां से चला जाता था. इस जानकारी के बाद इंसपेक्टर शमिंदर सिंह को शक हो गया कि हो न हो, मोनिका और तांत्रिक के बीच कोई चक्कर रहा हो. संभव है, मोनिका ने ही अपने संबंधों में बाधक बने सासससुर को रास्ते से हटवा दिया हो.

इंसपेक्टर ने इस बारे में डीएसपी राजेंद्र सिंह सोहल से बात की तो उन्होंने सिकंदर सिंह को हिरासत में ले कर पूछताछ करने को कहा. सिकंदर सिंह पंजाब के जिला फतेहगढ़ साहिब के कस्बा नारायणगढ़ का रहने वाला था. पुलिस टीम उस के यहां दबिश डालने के लिए निकल गई. लेकिन तांत्रिक अपने घर से गायब मिला. उधर मोनिका भी भूमिगत हो गई थी. इस से ये लोग पूरी तरह शक के दायरे में आ गए. अब पुलिस ने उन्हें सरगर्मी से तलाशना शुरू कर दिया. पुलिस की मेहनत रंग लाई. 5 फरवरी, 2015 को एक गुप्त सूचना के आधार पर राजपुरा के एक मकान में दबिश दे कर वहां छिपे 4 लोगों को गिरफ्तार कर लिया. इन में मोनिका भी थी. अन्य 3 लोगों ने अपने नाम सिकंदर, गुरप्रीत और रणजीत बताए.

मौके पर हुई प्रारंभिक पूछताछ में उन तीनों ने खेमचंद व उन की पत्नी कमलेश रानी की हत्या किए जाने की बात भी स्वीकार कर ली. उन्होंने यह भी बताया कि दोनों कत्ल उन्होंने मोनिका के कहने पर ही किए थे  थाने में इन चारों से दोहरे हत्याकांड के बारे में पूछताछ की तो सैक्स अपराध की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली –

सिकंदर सिंह पंजाब के फतेहगढ़ साहिब के कस्बा नारायणगढ़ निवासी दलबीर सिंह का बेटा था. दलबीर सिंह फौजी थे और गांव में उन के पास खेती की अच्छीखासी जमीन थी. वह चाहते थे कि सिकंदर भी भारतीय सेना में भरती हो कर देशसेवा करे. लेकिन सिकंदर को न फौज में जाना पसंद था और न ही खेतों में काम करना. वह आवारा घूमता रहता था. इसी बीच पता नहीं कैसे वह एक तांत्रिक के संपर्क में आया और फिर उस से थोड़ीबहुत तंत्रविद्या सीख कर खुद भी तांत्रिक बन गया. उस ने घर के एक कमरे में अपनी गद्दी जमा ली. पहले उस के पास स्थानीय लोग ही आते थे. धीरेधीरे उस का प्रचार होने लगा तो आसपास के क्षेत्रों से भी लोग अपनी समस्याएं ले कर उस के पास पहुंचने लगे.

मोनिका भी अपनी समस्या ले कर उस के पास आई थी. 5 साल पहले उस की शादी पंजाब के राजपुरा में स्थिति बनवाड़ी इलाके में रहने वाले खेमचंद के बेटे गुरदीप से हुई थी. गुरदीप इंडियन नेवी में नौकरी करता था. मोनिका की शादी हुए 5 साल हो गए थे, लेकिन वह किसी वजह से मां नहीं बन पाई थी. मोनिका और गुरदीप ने अपना इलाज भी कराया और तांत्रिकों, मौलवियों से मिली, लेकिन उस की कोख नहीं भरी. किसी के द्वारा उसे तथाकथित तांत्रिक सिकंदर के बारे में पता चला तो वह अपनी समस्या के समाधान के लिए उस के पास पहुंच गई. खूबसूरत मोनिका को देख कर सिकंदर का मन डोल गया. उस ने पहले तो झाड़फूंक करने के अलावा उस से कुछ उपाय करवाए.

इस से मोनिका को कोई फायदा नहीं हुआ तो सिकंदर ने उसे एक दिन समझाया कि भैरवी क्रिया से वह निश्चित रूप से मां बन जाएगी. मगर यह क्रिया वह उस की अनुमति के बिना नहीं करेगा. इस का असर भी तभी होगा, जब वह उसे पूरा सहयोग करेगी. मोनिका उस की बात समझ तो चुकी थी, फिर भी उस ने उस क्रिया के बारे में उस से पूछा तो सिकंदर ने उसे विस्तारपूर्वक समझा दिया. सिकंदर ने कहा कि इस क्रिया में आधी रात के वक्त विशेष पूजा के दौरान पहले दोनों वस्त्रहीन होंगे, उस के बाद वह इसी अवस्था में उस की सवारी कर के संतान योग की विधि वाला पाठ करेगा.

मोनिका जानती थी कि यह क्रिया कर के वह पति को धोखा दे रही है, लेकिन संतान पाने के लिए वह सब कुछ करने को तैयार थी. लेकिन समस्या यह थी कि घर में सासससुर को छोड़ कर आधी रात में वह सिकंदर के यहां नहीं जा सकती थी. अपनी यह समस्या उस ने सिकंदर को बताई, साथ ही यह भी कहा कि अगर वह भैरवी क्रिया उस के घर पर ही आ कर करे तो ज्यादा ठीक रहेगा. जिस रात वह यह क्रिया करेगा, उस रात वह अपने सासससुर के खाने में नींद की गोलियां मिला देगी. जब वे गहरी नींद में सो जाएंगे तो यह क्रिया बिना किसी रुकावट के पूरी हो जाएगी.

सिकंदर उस की बात मान गया. तब निर्धारित रात को मोनिका ने ऐसा ही किया. सासससुर को नींद की गोली मिला खाना खिलाने के बाद उस ने सिकंदर को फोन कर दिया. जब तक वह मोनिका के घर पहुंचा, सासससुर गहरी नींद के आगोश में जा चुके थे. अब एक कमरे में मोनिका और सिकंदर निर्वस्त्र बैठे थे. कुछ देर मंत्र उच्चारण के बाद सिकंदर भैरवी क्रिया करने में लीन हो गया. क्रिया खत्म होने के बाद मोनिका निश्चिंत हो गई कि अब वह मां बन जाएगी. वह गर्भवती होगी या नहीं? यह बाद की बात थी. फिलहाल इस क्रिया से सिकंदर के लिए मौजमस्ती का एक नया द्वार खुल गया था. सिकंदर ने उसे बता दिया कि जब तक वह गर्भवती न हो जाए, यह क्रिया चलती रहेगी.

मोनिका अपने सासससुर के खाने में जो नींद की गोलियां मिलाती थी, एक रात पता नहीं कैसे उस दवा की मात्रा कम रह गई, जिस से मोनिका के सासससुर आधी रात में उस वक्त जाग गए, जब उन की बहू तांत्रिक सिकंदर के साथ वासना का खेल खेलने में लीन थी. दोनों ने बहू को इस हालत में देखा तो उन के होश उड़ गए. आहट होने पर तांत्रिक वहां से भाग गया. उस के भागने के बाद उन्होंने मोनिका को बहुत बुराभला कहा. साथ ही इस सब के बारे में अपने बेटे गुरदीप को बताने की धमकी भी दी. मोनिका डर गई. अपनी गलती मानते हुए उस ने सासससुर के पैरों पर गिर कर माफी मांगते हुए वादा किया कि वह भविष्य में ऐसी गलती कभी नहीं करेगी. इस सब में उस ने कसूर भी तांत्रिक का ही निकाल दिया.

बात उछलती तो बदनामी अपनी ही होती, यह सोच कर खेमचंद और कमलेश कड़वा घूंट पी कर फिलहाल चुप हो गए. उन्होंने बहू की हरकत बेटे को नहीं बताई. सासससुर तो चुप बैठ गए, मगर मोनिका चुप बैठने वालों में नहीं थी. उसे लगा कि सासससुर उस के रास्ते में बाधक बने रहेंगे. इसलिए उस ने उन्हें ठिकाने लगाने की ठान ली. इस बारे में उस ने सिकंदर से बात की तो वह यह काम करने को तैयार हो गया. क्योंकि उन के न होने पर उसे बेखौफ हो कर अय्याशी करने का मौका मिलता. पड़ोस के गांव बरौंगा के रहने वाले गुरप्रीत सिंह उर्फ काली व रणजीत सिंह से सिकंदर की दोस्ती थी. दोनों ही आवारा थे. पैसों का लालच दे कर सिकंदर ने दोनों को अपनी योजना में शामिल कर लिया.

मोनिका नहीं चाहती थी कि किसी को उस पर शक हो. इसलिए योजना बनाने के बाद वह लोहड़ी से अगले दिन अपने पति के पास मुंबई चली गई. 23 जनवरी, 2015 को सिकंदर ने अपने साथियों के साथ मिल कर खेमचंद व उन की पत्नी कमलेश रानी की हत्या कर दी. हत्या को लूट का रूप देने के लिए उन्होंने अलमारी व तिजोरी में रखे 25-30 हजार रुपयों के अलावा सारी ज्वैलरी भी निकाल ली और घर का सामान बिखेर दिया. वहां नशा लेने में प्रयोग की जाने वाली एल्युमिनियम की पन्नी व सिगरेट के टुकड़े भी डाल दिए. जिस से लगे की लूटपाट नशेडि़यों ने की है. पुलिस ने चारों अभियुक्तों से पूछताछ करने के बाद उन्हें न्यायालय में पेश कर 4 दिनों की पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में उन से चोरी किए 2 लाख रुपए के आभूषणों के अलावा नकदी भी बरामद कर ली.

रिमांड अवधि पूरी होने पर उन्हें फिर से न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया. कथा संकलन तक विवेचनाधिकारी इंसपेक्टर शमिंदर सिंह ने इन आरोपियों के खिलाफ आरोपपत्र तैयार कर अदालत में प्रस्तुत कर दिया था. Crime Story Hindi

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Cyber Fraud: एटीएम कार्डो से ठगी

Cyber Fraud: झारखंड के जिला जामतारा में करीब ढाई हजार ऐसे कोचिंग सेंटर हैं, जहां एटीएम के माध्यम से की जाने वाली ठगी सिखाई जाती है. मुरादाबाद पुलिस ने इस जिले के 2 ठगों को पकड़ा तो यह बात खुली. कृपया सावधान रहें आजकल सब से ज्यादा ठगी एटीएम के जरिए से होती है. कोई भी बड़ा अधिकारी ट्रांसफर के बाद जब नई जगह चार्ज लेता है तो अपने अधीन आने वाले विभागों, अफसरों और विभागीय फाइलों को अपने नजरिए से देखता, समझता है और जरूरी निर्देश देता है. गत दिनों मुरादाबाद आ कर डा. रामसुरेश यादव ने जब एसपी सिटी का पदभार संभाला तो उन्होंने भी यही किया. इस काररवाई में उन्हें पता चला कि मुरादाबाद में कई मामले ऐसे हुए हैं, जिन में ठगों ने फरजी बैंक अफसर बन कर एटीएम के माध्यम से कई लोगों के साथ ठगी की है.

ठगी के इस मामले को पुलिस की साइबर शाखा देख रही थी. डा. रामसुरेश यादव ने इस संबंध में एसएसपी लव कुमार से बात की. वह भी इस बात से सहमत हुए कि पुलिस को ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए तत्काल काररवाई कर के उन लोगों तक पहुंचना चाहिए, जो फरजी बैंक अधिकारी बन कर लोगों से फोन पर उन के बैंक एकाउंट और एटीएम कार्ड की जानकारी लेते हैं और उन के एकाउंट से पैसा निकालते हैं. एसएसपी से बात होने के बाद डा. रामसुरेश यादव ने उन केसों का अध्ययन किया, जिन में लोगों को इस तरह ठगा गया था.

नागफनी थानाक्षेत्र में रहने वाले अधिवक्ता वैभव अग्रवाल और उन की पत्नी हेमलता का आईसीआईसीआई बैंक की सिविल लाइंस ब्रांच में जौइंट एकाउंट था. 14 मई को जब वह कोर्ट जा रहे थे तो करीब सवा 10 बजे उन के मोबाइल पर एक फोन आया. वैभव ने फोन रिसीव किया तो दूसरी ओर से फोन करने वाले ने खुद को आईसीआईसीआई बैंक का अफसर बता कर कहा कि उन्होंने बैंक को अपना पैन नंबर नहीं दिया है, इसलिए तत्काल पैन कार्ड की कौपी जमा करा दें. इस पर वैभव ने एकदो दिन में कौपी जमा कराने को कह दिया. फोन करने वाले ने कहा कि उन का खाता अपडेट करना है, जिस के लिए उन्हें कुछ जरूरी जानकारी चाहिए. उस वक्त वैभव की कुछ समझ में नहीं आया और उन्होंने पूछने वाले को वांछित जानकारी दे दी.

वैभव ने गाड़ी चलातेचलाते ट्रैपिँक की टेंशन में जानकारी तो दे दी, लेकिन उन्हें कुछ संदेह हुआ. संदेह होते ही वह बैंक की ओर दौड़े. बैंक जा कर उन्होंने मैनेजर फैजान अब्बासी से पूरी बात बता कर तुरंत खाता ब्लौक करने को कहा, लेकिन अब्बासी ने उन की बात पर ध्यान नहीं दिया. इस के बाद वैभव के फोन पर 4 मैसेज आए, जिन में उन के एकाउंट से 50-50 हजार रुपए निकाले जाने की जानकारी दी गई थी. उस समय वैभव के एकाउंट में 2 लाख 10 हजार रुपए पड़े थे, जिन में से 2 लाख रुपए निकाल लिए गए थे. इस के बाद वह फिर बैंक गए और बैंक मैनेजर को मोबाइल के मैसेज दिखा कर अविलंब खाता ब्लौक करने को कहा. आरोप के अनुसार, बैंक मैनेजर ने खाता ब्लौक करने में आनाकानी की.

इस पर वैभव ने अपने साथियों को सूचना दे कर बुला लिया. तत्पश्चात वह अधिवक्ता राकेश वशिष्ठ, धर्मवीर सिंह, आदेश कुमार को साथ ले कर थाना सिविल लाइंस पहुंचे और बैंक प्रबंधक फैजान अब्बासी के खिलाफ धोखाधड़ी और अमानत में खयानत का आरोप लगा कर आईपीसी की धारा 420, 406 और आइटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. वैभव का कहना था कि अगर समय रहते उन का खाता ब्लौक कर दिया गया होता तो उन के साथ यह धोखाधड़ी नहीं होती. यह मामला चूंकि एक अधिवक्ता से जुड़ा था, इसलिए पुलिस भी तुरंत हरकत में आ गई. पुलिस ने तुरंत बैंक जा कर पूछताछ की तो बैंक ने स्टेट बैंक औफ इंडिया के 4 खातों के नंबर उपलब्ध कराए, जिन में वैभव के खाते से रकम ट्रांसफर की गई थी.

पुलिस ने स्टेट बैंक जा कर पूछताछ की तो पता चला कि उन खातों में ट्रांसफर हुई रकम निकाल ली गई है. ये सभी खाते झारखंड के थे. बाद में यह मुकदमा विवेचना के लिए साइबर सेल को ट्रांसफर कर दिया गया. इस मामले में साइबर विशेषज्ञों का मानना था कि शातिर ठगों ने पहले वैभव अग्रवाल के बैंक खाते में औनलाइन सेंध लगाई होगी, उस के बाद उन का कोड बदलने की प्रक्रिया अपनाई होगी. इस तरह का यह पहला मामला सामने आया था, वरना इस से पहले जो ठगियां हुई थीं, वे एटीएम की जानकारी ले कर हुई थीं.

इस से पहले स्टेशन के सामने रेलवे की डबल स्टोरी बिल्डिंग में रहने वाले नदरुल हसन को एटीएम कार्ड की जानकारी ले कर ठगा गया था. मई के पहले हफ्ते में रेलवे कर्मचारी नदरुल हसन के मोबाइल पर एक महिला का फोन आया. उस ने खुद को बैंक अधिकारी बताते हुए कहा, ‘‘देखिए, आप के बैंक एकाउंट में प्रौब्लम आ गई है. हमें उसे अपडेट करना है, वरना आप का एटीएम कार्ड काम करना बंद कर देगा.’’

यह सुन कर नदरुल घबरा गए. उन्होंने उस महिला को अपने बैंक एकाउंट से संबंधित सारी जानकारी दे दी. एटीएम कार्ड का सीक्रेट कोड भी बता दिया. इस के चंद मिनट बाद नदरुल हसन के मोबाइल पर उन के एकाउंट से 12,300 रुपए कटने का मैसेज आ गया. इस से वह समझ गए कि उन के साथ धोखाधड़ी हुई है. उन्होंने 3 मई, 2015 को इस मामले की रिपोर्ट थाना कोतवाली में लिखा दी. इस से पहले 2 दिसंबर, 2014 को भी थाना कटघर में एक ऐसी ही रिपोर्ट दर्ज हुई थी. यह रिपोर्ट सूरजनगर निवासी वीर सिंह ने लिखाई थी. दरअसल वीर सिंह को मुंबई से एक तथाकथित बैंक अफसर का फोन आया था. उस ने वीर सिंह से कहा था, ‘‘आप का एटीएम बंद होने वाला है. अगर आप चाहते हैं कि एटीएम काम करता रहे तो हमें आप का खाता अपडेट करना पड़ेगा.’’

‘‘इस के लिए मुझे क्या करना होगा?’’ वीर सिंह ने पूछा तो फोन करने वाले ने उन से उन के खाते और एटीएम के बारे में पूरी जानकारी मांग ली, एटीएम का सीक्रेट कोड भी. इस के 5 मिनट बाद ही वीर सिंह के मोबाइल पर उन के खाते से 46,400 रुपए कटने का मैसेज आ गया. ठगे जाने का अहसास हुआ तो वीर सिंह ने थाना कटघर में रिपोर्ट दर्ज करा दी. यही सब अनीता के साथ भी हुआ था. चांदपुर के हिंदू इंटर कालेज की शिक्षिका अनीता मुरादाबाद के जिला चिकित्सालय के परिसर में रहती हैं. 23 फरवरी, 2015 को अनीता के मोबाइल पर किसी तथाकथित बैंक अफसर का फोन आया. उस ने अनीता से कहा, ‘‘आप का एटीएम कार्ड बंद हो गया है. अगर आप चाहती हैं कि आप का एटीएम चालू रहे तो हमें आप का एकाउंट अपडेट करना पड़ेगा.’’

‘‘उस के लिए मुझे क्या करना होगा?’’ अनीता ने पूछा तो फोन करने वाले ने उन से उन का खाता नंबर से ले कर उन के एटीएम कार्ड से जुड़ी सारी जानकारी मांग ली. फोन बैंक से ही आया होगा, यह सोच कर अनीता ने सब कुछ बता दिया. इस के चंद मिनटों बाद ही उन के एकाउंट से 11,300 रुपए कट गए. फोन पर इस रकम के निकलने का मैसेज आया तो अनीता को ठगे जाने का अहसास हुआ. बाद में उन्होंने थाना कोतवाली में इस की रिपोर्ट लिखा दी. एसएसपी लव कुमार के आदेश पर ये सारे मामले जांच के लिए साइबर सेल को सौंप दिए गए थे. साइबर सेल ने अपने स्तर पर जांच की तो पता चला कि जिन नंबरों से फोन किए गए थे, वे सब झारखंड के थे. यानी यह काम झारखंड में बैठेबैठे किया जा रहा था.

जब इन मामलों की फाइलें नवनियुक्त एसपी सिटी रामसुरेश यादव के सामने आईं तो उन्होंने इन मामलों की तह तक जाने का फैसला किया. इस के लिए उन्होंने साइबर सेल और क्राइम ब्रांच की एक संयुक्त टीम बनाई. इस टीम में इंसपेक्टर देवप्रकाश शुक्ल, संजय कुमार सिंह, धर्मेंद्र यादव, एन.के. भटनागर, सबइंसपेक्टर राजकुमार शर्मा, रघुराज सिंह और साइबर सेल के ललित सैनी, दीपक कुमार और अंकित कुमार को शामिल किया गया. इस टीम ने यह पहले ही पता कर लिया था कि जिन नंबरों से ठगे गए लोगों को फोन किए गए थे, वे सब पटना से खरीदे गए थे.

पुलिस टीम 15 मई, 2015 को पटना के लिए रवाना हुई. पटना पहुंच कर मुरादाबाद की इस पुलिस टीम ने पटना रेलवे स्टेशन के सामने एमसी बुद्ध मार्ग पर जनरल स्टोर चलाने वाले यशोवर्धन पंकज को पकड़ा. उस की मोबाइल की दुकान और साइबर कैफे भी था. जिन सिम नंबरों से फोन आए थे, वे यशोवर्धन पंकज की दुकान से ही खरीदे गए थे. यशोवर्धन ने सिम खरीदने वालों के आईडी प्रूफ की कौपी पुलिस को मुहैया करा दी. लेकिन जब पुलिस टीम ने उन आईडी प्रूफों की छानबीन की तो वे सभी फरजी पाए गए. दरअसल पंकज शातिर व्यक्ति था. उस ने पुलिस के पहुंचने से पहले ही एंट्री रजिस्टर और कंप्यूटर रिकौर्ड गायब कर दिया था. बहरहाल पुलिस ने पंकज को पर्सनल बांड पर छोड़ दिया.

जब पंकज से कुछ हासिल नहीं हो सका तो पुलिस टीम ने मुरादाबाद फोन कर के कुछ जानकारियां लीं. पता चला कि रेलवे कालोनी में रहने वाले नदरुल हसन और सूरजनगर निवासी वीर सिंह के बैंक खातों से जो पैसा ट्रांसफर हुआ था, वह झारखंड के जिला जामतारा के करमाटांड स्थित स्टेट बैंक औफ इंडिया के खाताधारक सुधीर मंडल के खाते में औनलाइन गया था. यह सूचना मिलते ही पुलिस टीम जिला जामतारा स्थित करमाटांड जा पहुंची. वहां स्थित स्टेट बैंक औफ इंडिया से सुधीर मंडल का पता मिल गया. वह गांव गुनीडीह का रहने वाला था. हालांकि वह जगह नक्सलवादी क्षेत्र में थी. लेकिन पुलिस टीम ने हिम्मत नहीं हारी. उस ने गांव गुनीडीह जा कर सुधीर मंडल को धर दबोचा.

प्राथमिक पूछताछ में उस ने बताया कि इस काम में गांव सियाटांड निवासी नेपाल मंडल भी उस का साथ देता था. पुलिस टीम ने सियाटांड जा कर नेपाल मंडल को भी गिरफ्तार कर लिया. इन दोनों से वे फरजी सिम तो बरामद हो ही गए, जिन से नदरुल हसन और वीर सिंह को फोन किए गए थे, साथ ही 4 मोबाइल फोन और औनलाइन खरीदा गया सोनी कंपनी का एक हैंडीकैम भी बरामद हुआ. साथ ही कई एटीएम कार्ड भी. पुलिस दोनों को जामतारा की अदालत में पेश कर के ट्रांजिट वारंट पर मुरादाबाद ले आई. पूछताछ के बाद दोनों को 21 मई को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया गया. पुलिस के अनुसार, झारखंड के करमाटांड और नारायणपुर थानाक्षेत्र में एटीएम ठगों का गढ़ है. इस क्षेत्र के करीब ढाई हजार युवा एटीएम से ठगी के धंधे में लगे हैं, जिन में लड़कियां भी शामिल हैं.

इन लड़कियों की हिंदी और अंगरेजी पर अच्छी पकड़ है. यह एक ऐसा गढ़ है, जहां एटीएम के माध्यम से ठगी की बाकायदा ट्रेनिंग दी जाती है यानी कोचिंग दी जाती है. कोचिंग में न केवल फोन पर बात करना सिखाया जाता है, बल्कि अफसरों की तरह बात करने के तरीके की बारीकियां भी सिखाई जाती हैं. यह एक ऐसा इलाका है, जहां एटीएम से ठगी कुटीर उद्योग का रूप ले चुकी है. पहले इस क्षेत्र के लोग जहरखुरानी गिरोह के रूप में काम करते थे. इस धंधे में पकड़धकड़ बढ़ गई तो ये लोग एटीएम ठगी के धंधे से जुड़ गए. इस इलाके में 10 साल से ले कर 30-35 साल तक के किशोर, युवा और जवान इस काम में लगे हुए हैं. इन लोगों को यहां एटीएम तोड़ू के नाम से जाना जाता है. सुबूत न होने से स्थानीय पुलिस इन का कुछ नहीं बिगाड़ पाती.

दरअसल, सौफ्टवेयर डेवलपमेंट का मुख्य केंद्र कोलकाता यहां से महज 150 किलोमीटर दूर है. वहां काम की तलाश में गए कुछ युवाओं ने यह तकनीक सीखी और अपने क्षेत्र में लौट कर लोगों को कोचिंग दी. अब ये लोग एयरटेल मनी, औक्सीजन वौलेट, वोडाफोन एमपेसा आदि का प्रयोग कर के एटीएम कार्डधारक के खाते की रकम ट्रांसफर कर लेते हैं. इस क्षेत्र के युवा घर बैठे इसी तरह हर महीने 20-30 हजार रुपए, कभी तो लाखों कमा लेते हैं. इन लोगों का यह धंधा पूरे भारत में चलता है. यही वजह है कि इस इलाके में आए दिन किसी न किसी प्रदेश की पुलिस आरोपियों की तलाश में आती रहती है. वैसे यहां के धंधेबाजों का उस्ताद कोलकाता निवासी पिंटू चौधरी को बताया जाता है, लेकिन वह पुलिस के हाथ नहीं लग रहा है. Cyber Fraud

 

Love Story: अधूरी मोहब्बत

Love Story: कामरान की शादी उस की चचेरी बहन सदफ से बचपन में ही तय हो गई थी, चाचाचाची भी तैयार थे, अंत में ऐसा क्या हुआ कि उस की शादी सदफ से होने के बजाए किसी और से हो गई, जो उसे जरा भी पसंद नहीं करती थी…

चाय का पहला घूंट लेते हुए मैं ने सदफ से फरमाइश की, ‘‘दुआ करो कि मैं कामयाब हो जाऊं.’’ उस ने गुलाबी होंठों पर शरमीली मुसकराहट लाते हुए कहा, ‘‘आप को यह कहने की जरूरत नहीं है. मैं रातदिन आप के लिए, आप की कामयाबी के लिए दुआ करती रहती हूं.’’

यह सच भी था. मुझे उस से कहने की जरूरत नहीं थी. वह मेरी मंगेतर थी. मेरी दादी ने सदफ के पैदा होने के कुछ दिनों बाद ही ऐलान कर दिया था, ‘‘यह मेरे कामरान की दुलहन बनेगी.’’

दादी की इस बात को भले किसी बंधन में नहीं बांधा गया था, पर सब के दिलों में यह बात बैठ गई थी कि कामरान की शादी सदफ से होगी. मंगनी वगैरह इसलिए नहीं की गई थी, क्योंकि चाचा और हमारा परिवार एक ही मकान में रहता था. हमारे उस पुश्तैनी मकान में ऊपर वाले हिस्से में चाचा रहते थे और नीचे वाले हिस्से में हम लोग. दोनों घरों में बच्चे बराबर थे. हम दो 2 भाई और एक बहन थी. जबकि चाचा की सिर्फ 3 बेटियां थीं. सदफ चाचा की बड़ी बेटी थी. हमारा गुजरबसर आराम से हो रहा था. लेकिन इधर साल भर से हमारे घर के हालात बिगड़ रहे थे. अचानक हार्टअटैक से अब्बा की मौत हो गई थी. वह सरकारी हाईस्कूल में टीचर थे. फंड की रकम और पेंशन मिलने में समय लग रहा था.

घर के हालात रोजबरोज बिगड़ते जा रहे थे. नौकरी की दौड़धूप करने के साथसाथ मैं एक कोचिंग सेंटर में अंग्रेजी और अर्थशास्त्र पढ़ा रहा था, जिस से थोड़ी मदद मिल जाती थी, थोड़ीबहुत मदद चाचा कर देते थे. 8-9 महीने की दौड़भाग के बाद पेंशन मिलने लगी. फंड भी मिल गया था. पर ढेरों खर्च मुंह बाए खड़े थे. छोटा भाई मैट्रिक में था और बहन मिडिल क्लास में थी. किसी तरह काम चल रहा था कि अम्मी बीमार हो गईं. उन्हें बे्रस्ट कैंसर हुआ था. फंड से मिलने वाली रकम उन के इलाज में खर्च हो गई. औपरेशन होने के बाद भी सेहत में कोई खास फर्क नहीं पड़ा. हालात बद से बदतर होते जा रहे थे. चाचा भी परेशान रहते थे. आखिर वह कितनी मदद करते. उन पर भी 3 बेटियों की जिम्मेदारी थी. इस के बावजूद इस मुसीबत में वह पूरा साथ दे रहे थे. चाची ज्यादा वक्त अम्मी के पास ही बिताती थीं. खाना पकाने का काम सदफ संभाल रही थी.

उस रोज नौकरी का इंटरव्यू देने जाना था. सदफ की दुआओं के साथ मैं घर से निकल रहा था तो उस की नजर मेरे जूतों पर पड़ी. उस ने कहा, ‘‘शूज तो बड़े शानदार हैं, ब्रांडेड लगते हैं?’’

मैं बौखला सा उठा. सच था, इतने कीमती ब्रांडेड शूज मेरे पास कहां से आ सकते थे? मैं ने कहा, ‘‘इंटरव्यू के लिए एक दोस्त से मांग कर लाया हूं.’’

यह कहते हुए मेरी नजरें झुक गई थीं. आंख मिला कर झूठ बोलना मेरे बस की बात नहीं थी. एच.एच. बिल्डर्स के औफिस में दाखिल होते हुए मैं उम्मीद और नाउम्मीदी के बीच झूल रहा था. मैं ने एकाउंट विभाग के लिए आवेदन किया था. 4-5 लोग वहां पहले से बैठे थे. मेरा नाम पुकारा गया. केबिन में पहुंचने पर थ्रीपीस सूट पहने एक व्यक्ति ने कहा, ‘‘प्लीज सिट डाउन.’’

उस की पर्सनालिटी कुछ खास नहीं थी, पर कपड़े व स्टाइल शानदार थी. कुरसी पर बैठ कर मैं ने फाइल उस की ओर बढ़ा दी. उस की नजरें मेरे ऊपर ही टिकी थीं. उस की तेज निगाहों से मुझे घबराहट सी हो रही थी. उस ने ठहरी हुई आवाज में कहा, ‘‘मि. कामरान अहमद, आप ने जो शूज पहने हैं, इन्हें कहां से हासिल किए हैं?’’

मुझे लगा, मेरे कानों में किसी ने बम फोड़ दिया है. पहले की ही तरह मैं उस से झूठ नहीं बोल सका. लेकिन सच बोलना भी आसान नहीं था. मैं ने इंटरव्यू की खूब तैयारी कर रखी थी, पर पहले ही सवाल ने मुझे लाजवाब कर दिया था. मेरे दिमाग में धमाका सा हुआ कि यहां सच बोलना ही बेहतर है. मैं ने हिम्मत कर के कहा, ‘‘सर, आप का यह सवाल हैरान करने वाला है. क्योंकि आप ने मेरी हैसियत और जूतों के फर्क को समझ लिया. इन्हें खरीदना मेरे वश की बात नहीं है. सर, मैं झूठ नहीं बोलूंगा कि मैं ने दोस्त से मांगे हैं. क्योंकि दोस्त भी हैसियत के मुताबिक ही होते हैं.’’

जूतों की हकीकत बताने से पहले मैं ने अपनी गरीबी, बाप की मौत, मां की बीमारी और भाईबहन की जिम्मेदारी के बारे में सब संक्षेप में बता कर कहा, ‘‘सर, यह नौकरी मेरे लिए बेहद जरूरी है. विज्ञापन के हिसाब से योग्यता भी थी और तैयारी भी अच्छी थी. बस मुझे अपने आप को सलीके से पेश करना था.’’

‘‘जब हालात ठीक थे, तब का यह सूट था, लेकिन जूते फट चुके थे. कल मैं जुम्मे की नमाज पढ़ने मसजिद गया था, वहां मुझे ये जूते नजर आ गए. मेरा मसला हल हो गया. किसी बुरी नीयत से नहीं, सिर्फ इंटरव्यू के लिए मैं ने ये जूते उठाए थे. इरादा यही था कि इंटरव्यू के बाद इन्हें वहीं रख आऊंगा. पता नहीं था कि अल्लाह के घर से की गई पहली चोरी का हिसाब इतनी जल्दी और इस जगह देना होगा.’’

इंटरव्यू लेने वाले ने मेरी पूरी बात ध्यान से सुनी. कुछ देर खामोशी से मुझे परखता रहा. मैं नजरें झुकाए बैठा था. अचानक उस ने कहा, ‘‘तुम्हारे इस सच ने मुझे खुश कर दिया. तुम कितना भी झूठ बोलते, मुझे धोखा नहीं दे सकते थे. मैं कोई नमाजी आदमी नहीं हूं. लेकिन कल मैं एक पार्टी को प्रोजेक्ट दिखाने गया था, रास्ते में नमाज का समय हो गया. वह नमाज के पाबंद थे, उन के साथ मुझे भी नमाज पढ़ने मसजिद जाना पड़ा. वापस आया तो मेरे जूते गायब थे.’’

वह दोस्तों की तरह अपनी परेशानी बता रहे थे. मैं ने जल्दी से कहा, ‘‘सौरी सर, मैं ने बड़ी मजबूरी में आप के जूते चुराए थे.’’

‘‘इट्स ओके, जो हुआ सो हुआ. शायद इसी तरह हमारी मुलाकात होनी थी. इस में तुम्हें समझने का मौका तो मिल गया. तुम्हारे सच से मैं प्रभावित हूं. क्या तुम पाबंदी से नमाज पढ़ते हो?’’

‘‘नहीं सर, जुम्मेजुम्मे हाजिरी लगा देता हूं.’’ मैं ने कहा.

‘‘मि. कामरान अहमद, तुम से बात कर के मुझे लग रहा है कि तुम ही वह व्यक्ति हो, जिस की मुझे जरूरत है. मैं ने नौकरी के लिए तुम्हें सिलेक्ट कर लिया है. 3 महीने तुम टे्रनिंग पर रहोगे. तुम्हारा काम अच्छा हुआ तो तुम परमानेंट कर दिए जाओगे. तब तुम्हारी तनख्वाह बढ़ने के साथ अन्य सुविधाएं भी मिलने लगेंगी.

मुझे लगा, खुशी से कहीं मेरी धड़कनें न रुक जाएं. जिन जूतों की वजह से मुझे यह नौकरी मिली थी, मेरी नजर उन जूतों पर पड़ी तो मैं ने कहा, ‘‘सर, ये शूज…’’

‘‘अब इन्हें तुम रख लो, तुम्हारे पैरों में ये बहुत जंच रहे हैं.’’ उस ने लापरवाही से कहा.

‘‘तुम थोड़ी देर बाहर बैठो, मैं तुम्हारा अपाइंटमेंट लेटर तैयार कराए देता हूं. लेटर ले कर ही घर जाना.’’

उस दिन एच.एच. बिल्डर्स के औफिस से अपाइंटमेंट लेटर ले कर निकला तो मैं हवा में उड़ रहा था. घर में इस खुशखबरी ने मुसकानें बिखेर दीं. चाचा ने उसी समय मिठाई मंगाई. सदफ का चेहरा खुशी से खिला हुआ था. अम्मी भी खुदा का शुक्र अदा कर रही थीं. रात को हम सभी की चाचा के यहां दावत थी, क्योंकि शाम को चाचा की दूसरे नंबर की बेटी सफिया को देखने कुछ लोग आ रहे थे. वह पूरा दिन बड़े हंगामे और खुशी में गुजरा. अब्बा के मरने के बाद पहली बार हम सभी ने इस तरह खुशी मनाई थी. एच.एच. बिल्डर्स के औफिस में पहला दिन बहुत अच्छा गुजरा. चीक एकाउंटैंट सुहैल साहब बड़े दोस्ताना अंदाज में काम समझाते रहे. तसल्ली भी देते रहे कि आगे भी उन का सहयोग मिलता रहेगा. मैं उन फाइलों को देखनेसमझने में लगा रहा, जो मुझे दी गई थीं. 12 बजे के करीब इंटरकौम बजा. बौस मुझे याद कर रहे थे. मेरे बौस वही थे, जिन के जूते चुरा कर मैं पहने बैठा था.

मैं केबिन में पहुंचा तो उन के बगल में एक 20-21 साल की लड़की बैठी थी. बौस ने हमारा परिचय कराया, ‘‘यह एच.एच. बिल्डर्स की औनर और मेरी भतीजी हानिया हसन हैं.’’

मैं ने जल्दी से सलाम किया. वह लापरवाही से सिर हिला कर खिड़की से बाहर देखने लगी. बौस फसील साहब ने आगे कहा, ‘‘हानिया बीकौम कर रही है. आगे एमबीए करने का इरादा है. अपनी पढ़ाई की वजह से औफिस को ज्यादा समय नहीं दे पाती, इसलिए फिलहाल यहां की सारी जिम्मेदारी मुझे ही संभालनी पड़ती है.’’

मैं मुलाजिम था, मुझे औपचारिकता तो निभानी ही थी. मैं ने कहा, ‘‘आप से मिल कर बड़ी खुशी हुई.’’

उस ने मेरी बात का जवाब देने की कौन कहे, मेरी ओर देखा तक नहीं. बौस ने कहा, ‘‘हानिया, यह कामरान अहमद हैं. इन्हें मैं ने एकाउंट डिपार्टमेंट में रखा है. इन्होंने आज ही ज्वाइन किया है.’’

उस ने बेमन से कहा, ‘‘गुड, अच्छा अंकल अब मैं चलूंगी. मुझे काम से कहीं जाना है.’’

‘‘ठीक है बेटा, जाओ.’’ फसील साहब ने कहा. हानिया चली गई.

उस के जाने के बाद फसील साहब ने कहा, ‘‘मेरे बड़े भाई इनायत हसन की 2 साल पहले एक रोड एक्सीडैंट में मौत हो गई थी. उन की पत्नी हानिया के पैदा होते ही गुजर गई थी. भाई साहब ने दूसरी शादी नहीं की थी. बड़े लाडप्यार से हानिया की परवरिश की. यही वजह है कि उन की मौत के 2 साल के बाद भी हानिया अभी तक संभल नहीं पाई है. उन्हीं की याद में डूबी रहती है. इसलिए हमेशा उखड़ीउखड़ी रहती है. इसे ले कर मैं बहुत परेशान रहता हूं.’’

हानिया ने मेरे साथ जो रूखा व्यवहार किया था, उसी की वजह से वह यह सब बता रहे थे. मैं ने कहा, ‘‘सौरी सर, यह सुन कर बड़ा अफसोस हुआ. हानिया मैडम के लिए मांबाप दोनों को खो देने का बहुत बड़ा सदमा है. लेकिन समय बड़ा मरहम होता है, धीरेधीरे सारे जख्म भर देगा. आप परेशान न हों.’’

‘‘तुम ठीक ही कह रहे हो. मैं सोचता हूं कि कोई अच्छा सा लड़का देख कर इस की शादी कर दूं, ताकि शौहरबच्चों में अपना दुख भूल जाए.’’ फसील साहब ने कहा. इस के बाद हम कामकाज और एकाउंट की बातें करने लगे.

शाम को घर पहुंचा तो सभी ने मुझे अच्छी नौकरी की मुबारकबाद दी. अम्मी बहुत खुश थीं. मैं ने कहा, ‘‘आप सभी दुआएं करें कि मैं खूब तरक्की करूं.’’

रात के खाने के बाद मैं ने चाची से पूछा, ‘‘जो लोग सफिया को देखने आए थे, उन का क्या जवाब आया?’’

कुछ देर चुप रहने के बाद चाची बोलीं, ‘‘बेटा उस में एक पेच फंस गया है.’’

मैं ने कहा, ‘‘चाची, अगर लंबेचौड़े दहेज की डिमांड हो तो आप साफ मना कर दें.’’

‘‘नहीं बेटा, ऐसी कोई बात नहीं है. खातेपीते खानदानी लोग हैं. दरअसल बात कुछ और है. वे हमारे घर रिश्ता करने को तैयार तो हैं, लेकिन उन्हें सफिया के बजाय सदफ ज्यादा पसंद है.’’

चाची की बात सुन कर मैं सन्न रह गया. अम्मी के चेहरे पर भी परेशानी झलकने लगी. चाची ने कहा, ‘‘बड़ी होने की वजह से पहला हक सदफ का ही है, पर हम लोग इसलिए सोच में पड़ गए, क्योंकि बड़ी अम्मा ने सदफ का रिश्ता बचपन में तुम्हारे साथ जोड़ दिया था. लेकिन उस के बाद इस बात पर कोई चर्चा ही नहीं हुई. बच्चों के बड़े होने पर उन के खयाल भी बदल जाते हैं, इसलिए हम उलझन में है कि क्या जवाब दें?’’

मेरी अम्मी तड़प उठीं. उन्होंने जल्दी से कहा, ‘‘बच्चों के बड़े होने पर भले रुझान बदल जाते हैं, पर मुझे तो सदफ बहू के रूप में कल भी पसंद थी, आज भी पसंद है. रही बात कामरान की तो सामने बैठा है, अभी पूछ लेते हैं. क्यों कामरान तुम्हारा इस बारे में क्या खयाल है?’’

मैं ने कहा, ‘‘मैं आप बड़ेबुजुर्गों की रजा में राजी हूं. सदफ आप को पसंद है तो वह मेरी भी खुशी है.’’

‘‘जीते रहो बेटा, तुम ने मेरा मान रख लिया. तुम मेरे मरहूम भाई की निशानी हो, किसी और के मुकाबले तुम्हें दामाद बना कर मुझे ज्यादा खुशी होगी.’’ इतना कहते हुए चाचा ने भावुक हो कर मुझे गले लगा लिया.

चाची ने कहा, ‘‘अब साफ हो गया कि सदफ की शादी कामरान से ही होगी. हम उन्हें मना कर देते हैं. कामरान सैटल हो जाए तो मंगनी भी कर देते हैं ताकि सब को इस बात का पता चल जाए.’’

दरवाजे के पीछे सदफ के गुलाबी हुए चेहरे को देख कर मैं निहाल हो गया. एच.एच. बिल्डर्स में मेरी नौकरी बढि़या चल रही थी. मैं अच्छी तरह से ऐडजस्ट हो गया था. काम भी मेहनत और लगन से कर रहा था. मेरे प्रति फसील साहब का व्यवहार अच्छा और नरम था. दिन में एक बार उन से मुलाकात जरूर हो जाती थी. हम दोनों एकदूसरे के हालात से अच्छी तरह वाकिफ थे. मुझे पता चल गया था कि कंपनी में फसील साहब के 10 प्रतिशत शेयर थे. 90 प्रतिशत शेयर के मालिक उन के भाई इनायत हसन थे. दरअसल इनायत हसन को हानिया की मां की ओर से काफी दौलत मिली थी. वह चाहते तो करोबार अलग कर लेते, लेकिन उन्होंने इसी कारोबार में पैसा लगाया, जिस से उन के शेयर बढ़ गए थे. भाई के मरने के बाद वही उन की कंपनी संभाल रहे थे.

उन्हें अपनी भतीजी हानिया से बेहद प्यार था. जल्द ही अच्छा लड़का देख कर वह उस की शादी करना चाहते थे. हानिया जैसी दौलतमंद लड़की से शादी के लिए कोई भी तैयार हो सकता था. खैर, मुझे इन बातों से क्या मतलब था? मेरी अच्छीभली नौकरी चल रही थी, जिस से मेरी जिंदगी खुशी से गुजर रही थी. उस दिन मैं अपनी केबिन में बैठा रोज के काम निपटा रहा था. छुट्टी होने में कुछ ही पल बाकी थे कि फसील साहब ने मुझे अपनी केबिन में बुला कर कहा, ‘‘आओ कामरान, इस वक्त मैं ने तुम्हें एक जरूरी काम से बुलाया है. तुम्हें जरा हानिया के साथ इस के घर तक जाना होगा. दरअसल इस का ड्राइवर आज छुट्टी पर है. वह गाड़ी ड्राइव कर के यहां तक तो आ गई, पर अचानक उस की तबीयत खराब हो गई है, इसलिए मैं नहीं चाहता कि यह अकेली घर जाए. तुम्हें तकलीफ तो होगी, लेकिन…’’

‘‘नो सर, इस में तकलीफ कैसी. मैं इन के साथ चला जाता हूं.’’ मैं ने कहा.

‘‘जाओ बेटा हानिया, कामरान के साथ चली जाओ. अब मुझे चिंता नहीं होगी.’’

बिना कुछ कहे हानिया उठी और दरवाजे की तरफ बढ़ गई. मैं उस के पीछेपीछे चल रहा था. ड्राइविंग मुझे आती थी, मगर उस ने मुझे मौका नहीं दिया. खुद ड्राइविंग सीट पर बैठ गईं और सपाट चेहरे से मुझे पीछे बैठने का हुक्म दिया. मुझे गुस्सा तो बहुत आया, पर क्या करता. हानिया ने झटके से गाड़ी आगे बढ़ा दी. साफ लग रहा था कि चाचा के कहने पर मजबूरी में वह मुझे अपने साथ ले जा रही थी. 7-8 मिनट के बाद उस ने गाड़ी रोक दी और दोनों हाथों से सिर थाम कर इस तरह बैठ गई, जैसे उसे चक्कर आ रहे हों. मैं ने कहा, ‘‘आर यू ओके मैम?’’

उस की तरफ से कोई जवाब नहीं आया. मैं जल्दी से नीचे उतरा और खिड़की से उसे देखा. उस के चेहरे पर पसीना और तकलीफ साफ झलक रही थी. मैं ने कहा, ‘‘मैम, आप को क्या हो रहा है?’’

उस ने धीमी आवाज में कहा, ‘‘मैं ड्राइव नहीं कर सकूंगी. तुम कार चलाओ.’’

वह पिछली सीट पर चली गई. मैं ने ड्राइविंग सीट संभाल ली. मैं ने हमदर्दी से पूछा, ‘‘आप को किसी डाक्टर के पास ले चलूं?’’

उस ने सपाट लहजे में कहा, ‘‘नहीं, मैं सीधे घर जाना चाहती हूं.’’

कोठी का रास्ता उस ने गाइड कर दिया. घर पहुंच कर उस ने मुझे जाने की इजाजत दे दी. बाहर निकल कर मैं ने फसील साहब को फोन कर के हालात बता दिए. उन्होंने कहा, ‘‘हानिया का बीपी अकसर लो हो जाता है, इसलिए मैं उसे गाड़ी चलाने की इजाजत नहीं देता. कामरान तुम्हारा बहुतबहुत शुक्रिया. तुम ने उसे खैरियत से घर पहुंचा दिया. अब तुम अपने घर चले जाओ.’’

मुझे कोई आटो वगैरह नहीं मिला तो मैं पैदल चल कर बसस्टाप पर पहुंचा ही था कि मेरे छोटे भाई जिबरान का फोन आ गया, ‘‘भाई, अम्मी की तबीयत खराब हो गई है. हम उन्हें अस्पताल ले आए हैं. आप सीधे यहीं आ जाइए.’’

भाई की आवाज में घबराहट थी. उस ने अस्पताल का नाम बता दिया था. अम्मी की बीमारी का सुन कर मैं परेशान हो गया. आटो पकड़ा और सीधे अस्पताल जा पहुंचा. मेरी छुट्टी के 2 दिन बड़ी मुश्किल में गुजरे, अम्मी की हालत काफी खराब थी. डाक्टर के मुताबिक उन का मर्ज एक बार फिर फैलने लगा था. उन्हें तकलीफ काफी दिनों से थी, पर उन्हें पता था कि फंड का पैसा पहले ही खत्म हो चुका है, इसलिए वह अपना दर्द हम सभी से छिपाती रहीं. जब वह बेसुध हो गईं तो उन्हें अस्पताल लाना पड़ा. उन के इलाज के लिए काफी ज्यादा पैसों की जरूरत थी, जबकि हमारे पास मुश्किल से 4-5 हजार रुपए थे. किसी से कर्ज भी नहीं मिल सकता था. चाचा भी हम जैसे ही थे. नौकरी नई थी. लाखों रुपए एडवांस में कौन देता? जायदाद कुछ नहीं थी, गहने भी ज्यादा नहीं थे. एक यही घर था, जिस में हम रहते थे और उस का ऊपर का हिस्सा चाचा का था.

अगर मैं घर बेचने की सोचता तो चाचा के भी सिर से छत छिन जाती. जवान बेटियों को ले कर वह कहां जाते? इस परेशानी में कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था. चाचा ने अस्पताल पहुंच कर मुझे जबरदस्ती घर भेज दिया. मैं चुपचाप जा कर लेट गया. सदफ दूध और खाना ले कर आई, पर मेरी तो भूखप्यास जैसे मर चुकी थी. उस के बहुत आग्रह पर 2-4 निवाले खा सका. सदफ ने कहा, ‘‘मैं आप से कुछ कहना चाहती हूं, पर आप वादा करें कि मेरी बात मान लेंगे. मैं ताई अम्मा के इलाज के लिए कुछ देना चाहती हूं.’’

यह कहते हुए उस ने एक पोटली मेरे सामने रख दी. मैं ने पोटली खोली तो उस में कुछ हजार रुपए, सोने की 4 चूडि़यां और एक सेट था. उस ने ट्यूशन की कमाई से यह सब जमा किया था. उस ने कहा, ‘‘यह सब बेच कर आप ताई अम्मा का औपरेशन करा दीजिए.’’

‘‘सदफ, तुम पागल हो गई हो क्या? मैं तुम्हारी इतनी मेहनत से जोड़ी गई ये चीजें कैसे ले सकता हूं? ट्यूशन के अलावा सिलाईकढ़ाई कर के तुम ने एकएक पाई जोड़ कर यह सब बनवाया है. तुम इसे संभाल कर रखो, चाची ने यह तुम्हारे दहेज के लिए रखा है.’’

‘‘मुझे दहेज का क्या करना है? मुझे कौन सा ब्याह कर के बाहर जाना है? भले रकम कम है, पर कुछ तो मदद मिल ही जाएगी.’’

मुझे उस की मासूमियत पर बड़ा प्यार आया. कितनी ईमानदारी से अपनी सारी पूंजी मेरे हवाले कर रही थी. मैं ने बड़े प्यार से कहा, ‘‘सदफ, मैं तुम्हारे जज्बों और ईमानदारी की कद्र करता हूं. पर मेरी मोहब्बत में इस हद तक मत जाओ कि रुसवा हो जाओ. मैं तुम्हारे ये गहने नहीं ले सकता.’’

‘‘तो क्या ताई अम्मा का औपरेशन नहीं कराओगे. मुझ से उन की तकलीफ देखी नहीं जाती.’’ सदफ रोते हुए बोली.

अगले दिन औफिस पहुंचा तो मैं काफी परेशान था. फसील साहब ने मुझे देख कर पूछा, ‘‘क्या बात है कामरान, आज तुम काफी परेशान लग रहे हो? कोई परेशानी है तो मुझे बताओ.’’

किसी हमदर्द को पा कर मेरी बरदाश्त की हद जवाब दे गई. मैं ने उन से अम्मी की हालत और इलाज की समस्या के बारे में बताया तो उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘कामरान, तुम्हें मुझ से पहले ही बात करनी चाहिए थी. बेकार ही 2 दिन परेशानी उठाते रहे.’’

मैं उन की इस बात पर हैरान रह गया. उन्होंने मुझे हैरान देख कर कहा, ‘‘हैरान क्यों हो रहे हो? तुम्हारी समस्या हमारी समस्या है. तुम परेशान रहो, यह मुझे अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘बहुतबहुत शुक्रिया सर, 20-25 दिनों की नौकरी में मैं एडवांस मांगने की हिम्मत कैसे कर सकता था? आप ने मेरे दुख को समझ कर मदद के लायक समझा, आप बहुत महान हैं सर.’’

‘‘तुम्हें इतने दिनों में अंदाजा हो जाना चाहिए था कि हमारी नजरों में तुम्हारा एक खास महत्त्व है. दूसरे लोगों के मुकाबले मेरे दिल में तुम्हारी जगह खास है.’’ फसील साहब ने प्यार से कहा.

‘‘यह तो आप की मेहरबानी है सर, वरना मैं किस काबिल हूं?’’ मैं ने बड़ी नम्रता से कहा.

‘‘कामरान, इंटरव्यू में तुम से ज्यादा काबिल लोग थे, पर मैं ने तुम्हें तुम्हारी सच्चाई, ईमानदारी और शराफत की वजह से चुना था. तुम ने सच बोला था, जो मुझे बहुत अच्छा लगा था. मुझे लगा कि तुम वही इंसान हो, जिस की मुझे तलाश है. नौकरी देने का मकसद यह था कि मैं तुम्हें अच्छी तरह से परख सकूं, वरना पहली मुलाकात में ही मैं ने तुम्हें अपनी भतीजी हानिया के लिए पसंद कर लिया था.’’

उन्होंने जैसे मेरे सिर पर बम फोड़ दिया था. मैं बौखला गया, ‘‘सर… सर, आप यह क्या कह रहे हैं?’’

‘‘गलत नहीं कह रहा हूं,’’ हानिया मुझे बहुत प्यारी है. मैं उस का जीवनसाथी एक ऐसे आदमी को बनाना चाहता हूं, जो उस का खूब खयाल रखे और उस की कद्र करे, प्यार करे. ये सारे गुण मुझे तुम्हारे अंदर नजर आए. मुझे यकीन है कि हानिया तुम्हारे साथ बहुत खुश रहेगी.’’

‘‘सर, मैं किसी तरह भी मिस हानिया के काबिल नहीं हूं. मुझ से कहीं ज्यादा अच्छे लोग उन से शादी करने को तैयार हो जाएंगे. उन के आगे मेरी क्या हैसियत है?’’

‘‘मैं जानता हूं, पर उन सब की नजर हानिया से ज्यादा उस की दौलत पर रहेगी. भाई साहब की मौत के बाद वह मानसिक रूप से काफी परेशान रहती है. उसे मैं ने बड़े प्यार से पाला है. बड़ा खयाल रखा है उस का. मुझे तुम्हारे जैसा लड़का चाहिए, जो उस के नाजनखरे उठा सके. इस सब के बदले उस का सब कुछ तुम्हारा है.’’

मैं समझ गया कि उन्हें ऐसा दामाद चाहिए, जो उन की भतीजी के पीछे हाथ बांधे गुलामों की तरह उस का हुक्म बजाता रहे. मेरी स्थिति उन के सामने थी. अम्मी के इलाज के लिए मुझे एक बड़ी रकम की जरूरत थी. मेरी मजबूरी वह जान गए थे. मैं पढ़ालिखा, स्मार्ट, शरीफ और खानदानी था. आसानी से वह मुझे अपने सोशल सर्किल में शामिल कर सकते थे.

‘‘किस सोच में डूब गए कामरान. यह एक बहुत अच्छी औफर है. तुम्हारी सारी मुश्किलें खत्म हो जाएंगी. हानिया दौलतमंद और खूबसूरत लड़की है. उस की जिंदगी में आते ही तुम्हारी सारी मुसीबतें खत्म हो जाएंगी. मां का इलाज, भाई की पढ़ाई और बहन की शादी शानदार तरीके से हो जाएगी. तुम खुद ऐश की जिंदगी जियोगे.’’

‘‘सर, मुझे सोचने के लिए थोड़ा वक्त चाहिए.’’ आखिर मैं ने हिम्मत कर के कह दिया.

‘‘जितनी मोहलत चाहो, ले सकते हो. लेकिन जितनी देर करोगे, तुम्हारी मां की तकलीफ उतनी ही बढ़ेगी.’’

मैं अपनी केबिन में आ कर बैठ गया. अजीब उलझन थी, कुछ समझ में नहीं आ रहा था. एक ओर मां का इलाज था, दूसरी ओर मेरी मोहब्बत. एक ओर मेरी गरीबी थी, दूसरी ओर दौलत और ऐशभरी जिंदगी. मैं क्या फैसला करूं? औफिस से सीधे अस्पताल पहुंचा. अम्मी की तकलीफ उसी तरह थी. डाक्टरों का कहना था कि ट्रीटमेंट जल्द से जल्द शुरू होना चाहिए. जिस में लाखों रुपए लगने थे. अम्मी की हालत देख कर दिमाग कह रहा था कि फसील साहब का औफर मान लेना चाहिए. पर दिल सदफ के प्यार में रो रहा था. अगर मैं ने राह बदल ली तो उस पर कयामत टूट पड़ेगी. उस की मोहब्बत अनमोल थी.

अस्पताल से घर आ कर मैं सारी रात जागता रहा. दिमागी उलझनों से तंग आ कर मैं ने सुबह चाचा के सामने बैठ कर उन्हें शुरू से अंत तक की सारी बात यानी फसील साहब का औफर, दौलत की रेलमपेल, अम्मी का इलाज, ऐश भरी जिंदगी सब कुछ बता दिया. पूरी बात सुन कर चाचा गंभीर हो गए. काफी देर बाद उन्होंने कहा, ‘‘बेटा, तुम्हारा क्या फैसला है?’’

मैं ने आंसू भरी आंखों से कहा, ‘‘चाचा, मैं कोई फैसला नहीं कर पा रहा हूं, इसलिए सब कुछ आप से बता दिया है. सदफ से मैं ने जो वादा किया है, उसे तोड़ना बड़ा मुश्किल है. मेरे इस फैसले से वह टूट जाएगी.’’

‘‘कामरान बेटे, सदफ की चिंता तुम बिलकुल मत करो. वह बहादुर लड़की है, सब बरदाश्त कर लेगी. भाभी के इलाज के लिए वह घर बेचने की बात कर रही थी, वह यह सदमा आसानी से सह लेगी. भाभी की जान बचाने के लिए वह कोई भी कुरबानी दे सकती है. भाभी के भले के लिए तुम निश्चिंत हो कर हानिया के हक में फैसला कर दो.’’

‘‘चाचा मैं बहुत मजबूर हूं. अगर मैं ने फसील साहब को मना कर दिया तो मेरी नौकरी भी जाएगी. मैं जानता हूं कि सदफ जान दे देगी, पर उफ न करेगी.’’

‘‘इसीलिए तो मैं कह रहा हूं कि तुम सब भुला कर उन की बात मान लो. हमारी तरफ से बेफिकर हो जाओ. हमें कोई शिकायत नहीं है. वक्त सारे जख्म भर देगा. तुम्हारे और सदफ के रिश्ते की बात अभी घर में ही है, बाहर किसी को मालूम नहीं है, कोई कुछ नहीं कहेगा.’’

फसील साहब ने ‘हां’ सुनते ही शादी की जल्दी मचा दी. एक हफ्ते के अंदर की तारीख तय कर दी गई. मेरे पास इनकार की गुंजाइश नहीं थी. मेरे हां करते ही अम्मी के इलाज के लिए मनचाहा पैसा फसील साहब ने दे दिया था, जिस से उन का इलाज शुरू हो गया था. इस से इतना फायदा हुआ था कि मेरी शादी में वह घंटे भर के लिए आई थीं. उन की आंखों में खुशी के बजाय उदासी थी, क्योंकि उन्होंने तो सदफ को बहू के रूप में देखा था. सभी दुखी थे, पर मजबूरी ऐसी थी कि कोई भी खुल कर ऐतराज नहीं कर सकता था.

सदफ समेत चाचा के परिवार के सभी लोग शादी में शामिल हुए थे. सभी मेरा हौसला बढ़ाते रहे, सदफ भी आंसू पी कर मुसकराती रही. सचमुच वह बड़ी सब्र और हिम्मत वाली थी. शादी में शहर के तमाम बड़ेबड़े लोग आए थे. मैं ने अपने कुछ ही दोस्तों को भी बुलाया था, क्योंकि हानिया का ताल्लुक जिस क्लास से था, उस में मेरे रिश्तेदार मिसफिट होते. विदाई का वक्त आया तो दुलहन के बजाय दूल्हे की विदाई हुई. विदा हो कर मैं हानिया की शानदार कोठी में आ गया. फसील साहब ने मुझ से कहा था कि मेरी ख्वाहिश पर मेरे परिवार के लिए शानदार मकान का इंतजाम हो जाएगा, क्योंकि मेरे परिवार का उस कोठी में रहना हानिया के नाजुक मिजाज को पसंद नहीं आएगा. इसलिए मुझे अकेले ही उस कोठी में रहना होगा.

कोठी रोशनी से जगमगा रही थी. हानिया की कीमती कार, जिसे शोफर चला रहा था, से उतर कर मैं पोर्च में खड़ा हो गया. दूसरी गाड़ी में फसील साहब, उन की बीवी और खूबसूरत बेटी तूबा थी. तूबा हानिया से एकदम अलग थी. वह हंसमुख और मिलनसार थी. वह मुझ से हंसीमजाक भी कर रही थी. वही हानिया का हाथ पकड़ कर उसे बैडरूम में ले गई. अंदर आ कर फसील साहब ने कहा, ‘‘कामरान, मेरी लाडली भतीजी तुम्हारे हवाले है. तुम इस का खयाल रखना. इस की हर गलती को अनदेखा कर देना. यह घर, कंपनी अब तुम दोनों की है. हम तो मेहमानों की तरह आएंगे और चले जाएंगे. हर काम के लिए नौकर मौजूद हैं. बस तुम्हारी वजह से हानिया को कोई तकलीफ न पहुंचे.’’

‘‘सर, आप तसल्ली रखें. मैं पूरा खयाल रखूंगा.’’

तूबा हंस कर बोली, ‘‘आप अब हमारे रिश्तेदार हैं, सर न कहें. पापा आप के भी अंकल हैं, आप मेरे दूल्हाभाई हैं.’’

उन के जाने के बाद एक नौकरानी मुझे हानिया के बैडरूम में ले गई. कीमती फरनीचर और फूलों से सजा कमरा बेहद रोमांटिक लग रहा था, पर उस खूबसूरत कमरे में दुलहन नहीं थी. 10-12 मिनट बाद वह बाथरूम से बाहर आई. मेरा मुंह खुला का खुला रह गया. उस की सारी सजधज गायब थी. वह नहाईधोई कौटन की नाइटी पहने हुए थी. उस ने मेरी तरफ देखा तक नहीं. डे्रसिंग टेबल के सामने बैठ कर चेहरे व हाथों पर क्रीम लगाने लगी. इस के बाद उठी और बेडरूम से जुड़े दूसरे कमरे में चली गई. उस ने न मुझे देखा, न मुझ से बात की. ऐसा व्यवहार शायद ही किसी दुलहन ने अपने दूल्हे के साथ किया होगा. वह बारबार मेरी तौहीन कर रही थी. अपमान से मैं तिलमिला उठा, पर क्या करता. यह सोच कर दिल को समझाया कि मांबाप के मरने की वजह से ऐसी हो गई है. मुझे ही इसे डिप्रेशन से निकालना है.

मैं ने उठ कर बगल वाला दरवाजा खोला. अंदर हलका उजाला था. वह स्टडीरूम था, जिस में पडे़ सोफे पर हानिया हाथ में एक तसवीर लिए बैठी थी. मैं ने इतने धीरे से दरवाजा खोला था कि उसे पता नहीं चला था. वह तसवीर देखदेख कर रोते हुए उसे प्यार कर रही थी. मुझे लगा कि यह उस के पापा की तसवीर होगी. दिल चाहा कि उसे बांहों में भर कर तसल्ली दूं. मैं आगे बढ़ा तो मेरी आहट पा कर वह ऐसी चौंकी, जैसे बिच्छू ने डंक मार दिया हो. हानिया ने मेरा बढ़ा हाथ तेजी से झटकते हुए कहा, ‘‘बिना इजाजत मेरे कमरे में आने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?’’

वह गुस्से में बहुत जोर से चिल्लाई थी. तसवीर उस ने सीने से लगा ली थी. मैं ने भी तुनक कर जवाब दिया, ‘‘मैं तुम्हारा शौहर हूं हानिया, जिस से मेरा हक बनता है कि मैं तुम्हारी इजाजत के बिना तुम्हारे कमरे में आ सकता हूं.’’

‘‘किसी गलतफहमी में मत रहिएगा मिस्टर. यह मेरा घर है, जिस पर सिर्फ मेरा हक है. जो यहां रहेगा, मेरी मरजी के मुताबिक रहेगा. जिसे यह न कुबूल हो, वह यहां से जा सकता है.’’ हानिया ने बड़े तैश में बदतमीजी से कहा. अपमान का घूंट पी कर मैं बाहर लौन में चला गया. मेरे वश में होता तो उसी पल मैं हानिया हसन और उस की कोठी को लात मार कर चला आता. पर मेरे पैरों में मजबूरी की जंजीर पड़ी थी. काफी देर तक लौन में टहलता रहा. दिल को समझाया कि अगर अम्मी का इलाज कराना है तो इस बददिमाग, बदमिजाज लड़की को बरदाश्त करना ही पड़ेगा. थोड़ा सह कर कुछ होशियारी से काफी माल समेट कर हानिया को छोड़ दूंगा. उस के बाद अच्छी जिंदगी गुजारूंगा. हो सकता है सदफ भी मुझे मिल जाए.

शाम को फसील साहब परिवार के साथ आए तो उन के सामने हानिया बिलकुल नौर्मल थी, हंसबोल रही थी. फसील साहब ने मुझ से कहा कि मुझे हानिया को अपने घर वालों से मिलाने ले जाना चाहिए. मेरे घर जाते हुए हानिया के चेहरे पर बेजारी थी. रास्ते में ही उस ने कह दिया था, ‘‘मैं वहां ज्यादा देर नहीं ठहरूंगी.’’

जब हम वहां पहुंचे तो कुछ मेहमान आए हुए थे. शीमा, सफिया हमें देख कर बहुत खुश हुईं. आवाज सुन कर चाचा बाहर आए और बड़े मानसम्मान से हमें ड्राइंगरूम में ले गए. वहां 3 औरतें, 2 मर्द बैठे थे, जिन में एक अधेड़ था और एक जवानस्मार्ट युवक. चाचा ने परिचय कराते हुए कहा, ‘‘ये वही लोग हैं, जो सदफ से रिश्ता करने का इसरार कर रहे थे. इन लोगों ने दोबारा फोन कर के आग्रह किया तो मैं ने इन्हें बुला लिया. भाभी की मरजी पूछ ली है, उन का भी कहना है कि आज ही सदफ की मंगनी सादगी से कर दी जाए.’’

मैं सोच रहा था कि हानिया से छुटकारा पा कर सदफ को पा लूंगा, लेकिन मेरा यह ख्वाब टूट कर चकनाचूर हो गया था. अम्मी ने कहा, ‘‘यह सदफ के लिए बहुत अच्छा रिश्ता है. देर करने से क्या फायदा, आज ही मंगनी की रस्म कर लेते हैं.’’

सदफ को ड्राइंगरूम में लाया गया. वह गुलाबी सूट में गजब ढा रही थी. उसे उस खूबसूरत नौजवान, जिस का नाम आतिफ विकास था, के पास बिठा दिया गया. आतिफ की अम्मी ने सदफ को अंगूठी पहना कर मंगनी की रस्म पूरी की. चाचा आतिफ को कैश का लिफाफा देने लगे तो उस ने मना करते हुए कहा, ‘‘मैं मिठाई के सिवा और कुछ नहीं लूंगा.’’

इस के बाद जोरदार खातिर शुरू हुई. मुझे छोड़ कर बाकी सभी खुश थे. मैं वापसी के लिए उठ गया, हानिया तो तैयार ही बैठी थी. एक तसल्ली थी कि सदफ को अच्छा लड़का, तथा शरीफ और बढि़या घरपरिवार मिल गया था. दिन हानिया की बदतमीजी व रुखाई के साथ गुजर रहे थे. मेरे पास 2 ही काम थे, औफिस के काम देखना और अम्मी के इलाज के लिए दौड़धूप करना. मैं ने अम्मी से घर बदलने के बारे में कहा तो उन्होंने साफ मना कर दिया था. वह चाचा के साथ उसी पुराने मकान में रहना चाहती थीं. फसील साहब पहले की ही तरह मेहरबान थे. मैं ने उन्हें हानिया के रूखे और बदतमीजी भरे रवैये के बारे में नहीं बताया था कि अभी हम अजनबी की तरह थे. कभी मुझे लगता कि वह किसी को पसंद करती है. लेकिन वह पूरे दिन अपने कमरे में बंद रहती थी. अचानक एक दिन बिना कुछ बताए वह तूबा के साथ अपनी सहेली की शादी अटैंड करने दुबई चली गई.

सदफ की शादी हो गई थी. आतिफ ने दहेज लेने से साफ मना कर दिया था. हानिया की गैरहाजिरी में मैं ने दुबई में बिजनैस डील का बहाना बनाया. अम्मी का इलाज जारी था. अम्मी के इलाज के अलावा कुछ लाख मैं ने अपने एकाउंट में जमा कर लिए थे. फसील साहब मुझ पर अंधा यकीन करते थे. मैं जी खोल कर पैसे खर्च कर रहा था. अपनी बेइज्जती भुलाने और तनहाई का गम गलत करने के लिए मैं ने शराब पीनी शुरू कर दी थी. आवारागर्दी करते हुए उस रात मैं करीब एक बजे घर पहुंचा तो खास नौकरानी सोनिया जाग रही थी. उस ने खाने के लिए पूछा तो मैं ने कौफी लाने को कहा. जाते हुए सोनिया एक डायरी दे कर बोली, ‘‘यह हानिया बीबी की डायरी है, इसे वह एक सहेली के घर भूल आई थीं. उस ने वापस भेजी है. उन का कमरा बंद है, आप संभाल कर रख दें.’’

पता नहीं मेरे दिल में क्या आया कि मैं डायरी खोल कर पढ़ने लगा. शुरू में हानिया का डैडी से लगाव, उन की मौत के बाद उन के गम में डूबे रहने का विवरण था. सच में वह बाप से बहुत प्यार करती थी. उस के बाद कामरान नाम के किसी लड़के का जिक्र था. वह उस के डैडी के वकील और दोस्त रुस्तम मलिक का बेटा था. कामरान ने उस के दुख में उस का बहुत साथ दिया था. उसे गम से बाहर निकाल कर नई जिंदगी की राह पर लाया था. यही हमदर्दी धीरेधीरे मोहब्बत में बदल गई थी और हानिया कामरान को टूट कर चाहने लगी थी. मोहब्बत इतनी बढ़ी कि जल्दी ही दोनों सारी हदें पार कर गए.

इस का परिणाम यह निकला कि हानिया गर्भवती हो गई. हानिया इस बारे में कामरान से कोई बात कर पाती, कामरान एक रोड एक्सीडेंट में मारा गया. सदमे ने हानिया को दीवाना बना दिया. वह अपने महबूब की जुदाई सह नहीं पा रही थी. उस की कजिन तूबा उस के इस मोहब्बत की राजदार थी. उस के जरिए यह इत्तला चाची को मिली तो उन्होंने अबार्शन की सलाह दी, पर हानिया किसी कीमत पर अपनी मोहब्बत की निशानी मिटाने को तैयार नहीं थी. इस के बाद तय किया गया कि खानदान की इज्जत बचाने के लिए किसी काठ के उल्लू की तलाश की जाए. और उल्लू वही बन सकता था, जो हालात और मजबूरी का मारा हो. चाचा ने लाडली भतीजी का गुनाह छिपाने के लिए बड़ी आसानी से मुझे ढूंढ लिया. इत्तफाक से मेरा नाम भी कामरान था. उस के होने वाले बच्चे को वही नाम मिलता, जो उस के असली बाप का था. इसलिए हानिया मुझ से शादी के लिए राजी हो गई थी.

वह अभी तक अपने महबूब के गम में तड़प रही थी. उस रात तसवीर भी उसी की थी. कितनी आसानी से चाचाभतीजी ने एक ‘गुलाम’ शौहर खरीद लिया था. इस तरह उल्लू बनाए जाने पर मुझे बेहद गुस्सा आया. मैं ने उसी वक्त फसील साहब को फोन किया. फोन उठा कर उन्होंने कहा, ‘‘इतनी रात को फोन, कामरान तुम्हारी तबीयत तो ठीक है?’’

‘‘रात होगी तुम्हारे लिए, मेरी तो अभी आंख खुली है. मैं तुम चाचाभतीजी का दिमाग ठीक करना चाहता हूं. तुम ने मुझे धोखा दिया, बदकिरदार लड़की मुझे पकड़ा दी.’’

गुस्से और नशे से मेरी आवाज फट रही थी. इस के बाद नशे में ही मैं बिस्तर पर ढेर हो गया. सुबह मेरी आंख मुंह पर पानी पड़ने से खुली. कुछ देर तो मामला मेरी समझ में ही नहीं आया. मैं पलकें झपकाझपका कर पुलिस वालों को देख रहा था, जो मुझे घेरे खड़े थे. उन्हीं के साथ गम में डूबे फसील साहब भी थे.

‘‘इसे गिरफ्तार कर लो.’’ मुझे होश में देख कर पुलिस इंसपेक्टर ने कहा.

मैं ने घबरा कर जल्दी से कहा, ‘‘मुझे किस जुर्म में गिरफ्तार किया जा रहा है, अंकल आप मुझे अरैस्ट क्यों करवा रहे हैं? घर की बात घर में ही सुलझ जाती.’’

मुझे रात की बदतमीजी याद आ गई थी.

‘‘बकवास बंद कर कमीने. मैं अपनी भतीजी हानिया का कत्ल किसी सूरत में माफ नहीं कर सकता.’’ फसील साहब मुझे नफरत से देखते हुए दहाड़े. मुझ पर जैसे आसमान टूट पड़ा. हानिया दुबई में थी, यहां उस का कत्ल कैसे हो गया? मैं ने कुछ कहना चाहा, पर पुलिस वाले मुझे घसीटते हुए बाहर ले आए. हवालात के फर्श पर पड़ा मैं बुरी तरह से कराह रहा था. यहां मेरी अच्छीखासी पिटाई की गई थी. यहीं मुझे पता चला कि हानिया आज सुबह ही दुबई से वापस आई थी. मुझ पर इलजाम था कि मैं ने गुस्से और नशे में छुरे से उसे कत्ल कर दिया था, क्योंकि मुझे पता चल गया था कि वह शादी से पहले से गर्भवती थी. किसी और का गुनाह मेरे सिर थोपा जा रहा था. मैं पुलिस वालों से लाख दुहाइयां देता रहा कि कत्ल मैं ने नहीं किया, पर मेरी किसी ने नहीं सुनी. जबकि मैं तो यह भी नहीं जानता था कि वह आज आने वाली थी.

मैं दिन भर भूखाप्यासा, चोटें सहलाता फर्श पर पड़ा रहा. देर रात जब सन्नाटा हो गया तो एक हवलदार ने मेरे पास आ कर धीरे से कहा, ‘‘तुम्हारे चाचा ससुर ने कहा है कि तुम्हारे खिलाफ सख्त से सख्त काररवाई की जाए. तुम्हारे खिलाफ साजिश रची गई है. कल अदालत में पेश करने के लिए पक्के सुबूत तैयार कर लिए गए हैं, तुम्हें फंसाने की पूरी योजना बना ली गई है.’’

‘‘हवलदार साहब, मैं बेकुसूर हूं. मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मेरे साथ यह क्या हो रहा है? मुझ पर झूठा इलजाम लगाया जा रहा है.’’

‘‘मैं जानता हूं. कल अदालत में पेशी के बाद तुम्हें बचाने की योजना बन गई है, उसे मैं तुम्हें कल बताऊंगा. अभी मैं तुम्हारे लिए खाना लाता हूं.’’

उस ने मुझे भरपेट खाना खिलाया और एक सिगरेट भी पिलाई. चाय और दर्द की गोलियां भी दीं. मेरी समझ में नहीं आया कि आखिर वह मुझ पर इतना मेहरबान क्यों है? अदालत में जब मेरे मामले की सुनवाई शुरू हुई तो हालात इस तरह से बयान किए गए. एच.एच. बिल्डर्स के शेयर होल्डर फसील हसन ने मुझे एक शरीफ, मेहनती और ईमानदार आदमी समझ कर मुझे नौकरी दी और मेरे साथ भतीजी की शादी कर दी कि मैं हानिया का बहुत खयाल रखूंगा, पर हालात बहुत खराब हो गए. लालच में आ कर मैं मां के इलाज के नाम पर रकम अपने एकाउंट में डालता रहा. हानिया के साथ मेरा व्यवहार बहुत बुरा था. वह तंग आ कर दुबई चली गई. बीवी की गैरमौजूदगी में मैं आवारागर्दी करने लगा और खूब शराब पीने लगा.

घरेलू नौकरानी सोनिया का बयान था कि हादसे की रात मैं नशे में धुत घर आया. जब वह कौफी देने बैडरूम में आई तो उस ने मुझे हानिया की डायरी पढ़ते देखा, जो उस ने रखने को दी थी. वह खामोशी से चली गई. सुबह की फ्लाइट से हानिया लौटी तो उस ने हमारे बैडरूम से लड़नेझगड़ने की आवाजें सुनीं. फिर उसे हानिया की 2 चीखें सुनाई दीं, डर के मारे वह अंदर नहीं आई, पर उस ने फसील साहब को फोन कर दिया. उन के आने पर सभी दरवाजा खोल कर अंदर पहुंचे तो उन्होंने मुझे जूते समेत बिस्तर पर सोता पाया. बेडरूम बुरी तरह अस्तव्यस्त था. फसील साहब ने स्टडीरूम में जा कर देखा तो वहां खून में लथपथ हानिया की लाश पड़ी थी. उन्होंने फौरन पुलिस को फोन किया और पुलिस ने आ कर मुझे गिरफ्तार कर लिया.

मेरे खून की जांच से पता चला कि मैं ने खूब शराब पी रखी थी, इसलिए भागने के बजाय वहीं सो गया था. पुलिस ने डायरी भी सुबूत के रूप में पेश की थी. मैं पत्थर बना सब सुन रहा था. अदालत ने सुबूतों के आधार पर मुझे एक हफ्ते के लिए पुलिस रिमांड पर दे दिया था. पुलिस मुझे बाहर ले आई. वह हमदर्द हवलदार मेरे साथ था. उस ने मेरा हाथ पकड़ कर जोर से कहा, ‘‘मुलजिम को पेशाब करने के लिए टायलेट जाना है.’’

इस के बाद सिपाही मुझे टायलेट की ओर ले कर चल पड़े. उस ने धीरे से कहा, ‘‘टायलेट के रोशनदान की सलाखें निकाल दी गई हैं. उस से पीछे की ओर निकल जाना. बाहर नीले रंग की कार तुम्हारा इंतजार कर रही है. बचने का यही एक मौका है.’’

मैं अंदर चला गया. पर मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं? फिर खयाल आया कि फरार हो कर शायद मैं खुद को बचा सकूं. बाहर नीले रंग की कार खड़ी थी. मेरे बैठते ही वह हवा से बातें करने लगी. मेरे लिए यह पहेली थी कि मुझे कौन भगा रहा था और क्यों? पर यह भी सच था कि मेरे खिलाफ भरपूर साजिश रची गई थी. सजा ही मेरा नसीब थी. मैं ने ड्राइवर से कहा, ‘‘भाई, तुम मुझे कहां लिए जा रहे हो?’’

‘‘आप के एक हमदर्द के पास. वहां पहुंच कर आप को सब पता चल जाएगा.’’

अलगथलग इलाके में एक घर के आगे जा कर कार रुकी. दरवाजा एक स्मार्ट सी औरत ने खोला. उस ने शोख रंग की साड़ी पहन रखी थी. माथे पर बिंदिया और मांग में सिंदूर था. वह मुझे ड्राइंगरूम में ले आई, जहां एक स्मार्ट आदमी बैठा पाइप पी रहा था. उस ने मुझे देख कर कहा, ‘‘आओ कामरान अहमद बैठो, मैं हूं रुस्तम मलिक, बैरिस्टर, बदनसीब कामरान मलिक का दुखियारा बाप. मेरे ही कहने पर आप को मुसीबत से निकाल कर यहां लाय गया है.’’

‘‘आप ने मेरी मदद क्यों की, मैं यह जानना चाहता हूं?’’ मैं ने पूछा.

‘‘इंसानियत के नाते, हमदर्दी की वजह से. मैं नहीं चाहता था कि कोई और बेगुनाह फसील के जाल में फंस कर मेरे बेटे की तरह मारा जाए.’’

‘‘आप के मुताबिक यह सब फसील साहब ने करवाया है?’’

‘‘उस के सिवा और कौन करवाएगा? उसे ही कुरबानी के लिए एक बकरे की जरूरत थी. मेरे दोस्त इनायत हसन की एकलौती बेटी हानिया कंपनी के 90 प्रतिशत शेयर की मालकिन थी. वसीयत के अनुसार हानिया की औलाद कुल जायदाद की मालिक होती. मैं उस का लीगल एडवाइजर था. भतीजी की जायदाद पर कोई हक न मिलने से फसील बहुत गुस्से में था.

‘‘अगर उस का बेटा होता तो वह हानिया की शादी उस से करवा देता. मेरे बेटे कामरान मलिक की बचपन की दोस्ती मोहब्बत में बदल गई. हानिया और कामरान एकदूसरे को टूट कर चाहने लगे. फसील ने इलजाम लगाया कि हानिया को बेटे की मोहब्बत में फंसा कर मैं उस की दौलत पर कब्जा करना चाहता हूं.

‘‘मेरा बेगुनाह बेटा एक रोड एक्सीडेंट में मारा गया. वह बहुत ज्यादा नशे में था. बाद में मुझे पता चला कि एक्सीडेंट के पहले वह फसील के घर पर था, जहां उसे बहुत ज्यादा शराब पिलाई गई थी. पर मैं कुछ नहीं कर सकता था. हानिया कामरान की मौत से पागल सी हो गई. वह कामरान की निशानी को जन्म देना चाहती थी. उस का बच्चा सारी दौलत का मालिक होता. हानिया से तुम्हारी शादी हो गई. हानिया ने शादी सिर्फ इसलिए की थी कि इज्जत के साथ बच्चा इस दुनिया में आ सके. लेकिन तुम्हारे हाथों हानिया के कत्ल का सुन कर मैं हैरान रह गया.

‘‘मुझे पता है कि यह झूठ और साजिश है, इसीलिए मैं ने तुम्हें बाहर निकाला है. पुलिस तुम्हारे पीछे लगी है. अब एक ही रास्ता है कि तुम फसील से सच्चाई निकलवाओ. उस से अपना जुर्म किसी भी सूरत में उगलवाओ. इस काम में मैं तुम्हारी हर तरह से मदद कर सकता हूं, आगे तुम जानो.’’

जब मैं ने सुकून से सोचा तो फसील की सारी साजिश मेरी समझ में आ गई. अब मुझे उस से सच उगलवाना था. मेरी जरूरत का सारा सामान रुस्तम मलिक ने मंगवा दिया, जिस में एक पिस्तौल भी था. रात 12 बजे मैं उस के घर से निकला. मैं फसील के घर 3-4 बार जा चुका था. मैं पीछे की ओर से गया. कुत्तों की हलकी सी आवाज सुन कर मैं ने जहर लगे गोश्त के टुकड़े अंदर उछाल दिए. फिर मैं लौन में कूद गया. कुत्ते जमीन पर पड़े दर्दनाक आवाजें निकाल रहे थे. चौकीदार कुत्तों के पास आया तो उस के पीछे पहुंच कर मैं ने पिस्तौल के हत्थे से मार कर उसे बेहोश कर दिया. उस के हाथपैर रस्सी से बांध दिए. लौन के पास की ग्लासवाल काट कर मैं अंदर पहुंच गया.

पहले मैं तूबा के कमरे में गया. वह सो रही थी. क्लोरोफौर्म में डूबा रूमाल उस की नाक पर रख दिया. इस के बाद फसील के बैडरूम के सामने पहुंचा. दरवाजा लौक था. पिस्तौल की नाल दरवाजे पर रख कर ट्रिगर दबा दिया. दरवाजा खोल कर अंदर घुसा तो दोनों हड़बड़ा कर उठ बैठे. मैं ने पिस्तौल तान दी. वह घबरा कर बोला, ‘‘यह क्या बदतमीजी है कामरान?’’

‘‘तू ने अपनी मासूम भतीजी का जो खून किया है, उस का हिसाब तुझे अभी देना होगा?’’

‘‘बकवास मत करो. हानिया का खून मैं ने नहीं, तू ने किया है. मसजिद से जूते चुराने वाला दो कौड़ी की औकात वाला आदमी मुझ पर इलजाम लगाता है.’’

मैं गुस्से से चीखा, ‘‘यह सारा ड्रामा तेरा रचा है कमीने. तू ने जानबूझ कर सोनिया के हाथों हानिया की डायरी भिजवाई थी. जिस से सुबह उस का कत्ल हो जाए तो पुलिस मुझे कातिल समझे. मुझे तो यह भी पता नहीं था कि हानिया कब दुबई से लौटी? मुझे तो नींद से जगा कर गिरफ्तार किया गया था. तू सच बोल दे, वरना…’’

‘‘बेवकूफ, मैं उसे क्यों मारूंगा?’’

‘‘हानिया के कत्ल के बाद एक तू ही तो उस का सगा चाचा बचता, मुझे फांसी पर लटकवाने के बाद तू ही उस की सारी दौलत और जायदाद का वारिस होता.’’

‘‘नहीं, हानिया के कत्ल के बाद मुझे कुछ नहीं मिल सकता. अगर वह अपने बच्चे के जन्म तक जिंदा रहती तो मुझे फायदा होता, क्योंकि मैं उस के बच्चे का संरक्षक होता. बच्चे और प्रापर्टी की देखभाल मुझे ही करनी होती. अब तो सिवाए 10 प्रतिशत के मुझे कुछ नहीं मिल सकता.’’

मैं सोच में पड़ गया. यानी कि फसील का कत्ल से कोई ताल्लुक नहीं था. तो फिर कातिल कौन हो सकता है? एकदम मुझे सोनिया का खयाल आया. उसी ने उस रात मुझे डायरी दी थी, मेरे खिलाफ झूठा बयान भी दिया था. मैं उस के बारे में सोचने लगा. फसील ने कहा, ‘‘कोठी तो सील है, वह अपने घर पर होगी. और जो कुछ मैं ने किया था, अपने खानदान की इज्जत बचाने को किया था.’’

जैसे ही मैं बंगले से बाहर निकला, चारों ओर से पुलिस ने मुझे घेर लिया. मजबूरन मुझे सरेंडर करना पड़ा. पुलिस वैन की आगे की सीट पर सादा लिबास में चाचा का दामाद यानी सदफ का शौहर आतिफ विकास बैठा था. उसे देख कर मैं दंग रह गया. आतिफ विकास के हाथों गिरफ्तार हो कर मैं थाने पहुंचा. मुझे अलग कमरे में ले जा कर बड़ी नम्रता से उन्होंने कहा, ‘‘आप को इस तरह गिरफ्तार करने के लिए मुझे बड़ा अफसोस है, पर कानूनी तकाजे पूरे करने थे. चाचा आप के लिए बहुत परेशान थे. उन्हीं के कहने पर मैं ने यह केस अपने हाथों में लिया है कि आप पर कत्ल का झूठा इलजाम लगा कर जो साजिश की गई है, उस से आप को बाहर निकाल सकूं.

‘‘लेकिन आप ने अदालत से फरार हो कर केस को खराब कर लिया है. मैं ने मुखबिरों से पता कर लिया था कि आप कहां मिल सकते हैं? मैं फसील के यहां पहुंच गया. आप का केस गौर से स्टडी करने के बाद मुझे नौकरानी सोनिया पर संदेह हो रहा है. आखिर वह आप के खिलाफ क्यों बोल रही थी?

‘‘आप की उस से कोई दुश्मनी तो नहीं थी. उस की गवाही आप को कातिल साबित कर सकती थी. नशे में आप ने बीवी का कत्ल कर दिया और नशे की ज्यादती की वजह से भाग नहीं सके. मैं इस बात को नहीं मानता. कातिल सब से पहले घटनास्थल से दूर भागता है, पर आप तो पुलिस वालों को अपने बैडरूम में सोए हुए मिले थे.

‘‘बस इसी बुनियाद पर मैं ने सोनिया को गिरफ्तार करवा लिया है. पहले तो वह झूठ बोलती रही, पर उस ने देखा कि बचने का कोई रास्ता नहीं है तो उस ने सच उगल दिया. वह हानिया की खास नौकरानी थी. उसे मालूम था कि हानिया कब दुबई से आ रही है. उसी ने उस आदमी को खबर कर दी थी, जिस से पैसे लिए थे.

‘‘हानिया कत्ल कर दी गई. उस के बाद झूठी गवाही देने पर उसे मजबूर किया गया, तब वह घबराई. इधर आप फसील को कातिल समझ कर उस के बंगले पर पहुंच गए और वहां से मैं ने आप को गिरफ्तार कर लिया, मेरे आदमी आप की तलाश में वहां तैनात थे.’’ आतिफ ने सारी बात डिटेल से बता दी.

‘‘सोनिया को बहकाने वाला आदमी कौन है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘अभी यह पता नहीं चला है. सोनिया के अनुसार सारी बात फोन पर हुई थी, रकम एक खास जगह पर रख कर बता दी गई थी. एक बात और बताऊं, हानिया के कत्ल का फैसला बहुत पहले हो चुका था. कुरबानी का बकरा तुम्हें बनाया गया. यह कत्ल बच्चा पैदा होने के बाद होना था, इस से किसे फायदा हो सकता था?’’

‘‘इस में हानिया के अंकल को फायदा था.’’ मैं ने कहा.

‘‘बिलकुल सही, पर उस से पहले किसी और ने काम कर दिखाया. फसील का प्लान फेल हो गया. यह बात मुझे तूबा ने बताई थी कि फसील हानिया को रास्ते से हटा कर बच्चे के जरिए सारी दौलत हासिल करना चाहता था. पर बच्चे के दुनिया में आने से पहले कत्ल किसी और ने कर दिया.’’

‘‘आप के खयाल से उस की मौत से किसे फायदा हो सकता था?’’

‘‘पहले आप यह बताइए कि आप को फरार किस ने करवाया? आप खुद फरार नहीं हो सकते थे.’’ आतिफ ने पूछा.

‘‘मेरी मदद रुस्तम मलिक, जो हानिया के वकील हैं, ने की थी. वह नहीं चाहता था कि उस के बेटे कामरान मलिक की तरह मैं भी बेगुनाह किसी साजिश में फंस कर मारा जाऊं.’’ मैं ने बताया.

‘‘यानी वह अपने बेटे के कातिल को तुम्हारे हाथों सजा दिलवाना चाहता था?’’ आतिफ ने सोच कर कहा.

इस के बाद आतिफ केस सुलझाने में जीजान से जुट गए. उन्होंने मेरे लिए थाने में काफी अच्छा इंजताम करवा दिया था. केस का खुलासा करने के बाद आतिफ ने मुझे जो बताया, वह इस तरह था. हानिया की दौलत के लालच में बैरिस्टर रुस्तम मलिक ने ही अपने बेटे कामरान मलिक को उस के पीछे लगाया था. उस ने उसे मोहब्बत के जाल में फंसा लिया. फसील उस की चालाकी समझ गया था. वह इस शादी के लिए कतई राजी नहीं था. संयोग से वह एक्सीडेंट में मर गया. इस में फसील का हाथ नहीं था.

कामरान की मौत के बाद फसील को सच्चाई का पता चला तो उसने यह योजना बनाई कि हानिया मर जाती है तो मैं फांसी चढ़ जाता. बच्चे के संरक्षक के तौर पर सारी जायदाद वह हासिल कर लेता. यह रुस्तम से बरदाश्त नहीं हुआ. उस ने साजिश रच कर हानिया का पत्ता कटवा दिया. मुझ से हमदर्दी जता कर फसील नाम का कांटा निकालने को भेजा. अगर उस रात मैं फसील को मार देता तो 2 कत्लों के इलजाम में जेल में होता. हानिया के बेऔलाद मरने पर सारी प्रौपर्टी ट्रस्ट में जाती, जिस की देखभाल रुस्तम मलिक करता और उस से पूरा फायदा उठाता. क्योंकि वह बहुत कमीना और शातिर आदमी था. उसे अपने बेटे की निशानी से भी कोई प्यार नहीं था. दौलत के लिए उस ने हानिया का कत्ल करवा दिया था. उस बेचारी ने दौलत की वजह से ही धोखा खाया और मारी भी गई.

मैं अपनी अम्मी को भी नहीं बचा सका. वह कैंसर से नहीं मरी, मेरे ऊपर कत्ल का इलजाम लगने से हार्टफेल की वजह से मरी. आतिफ विकास की मेहनत और केस की सच्चाई के सामने आने से मैं रिहा हो गया. रुस्तम मलिक ने किराए के कातिल से हानिया का कत्ल करवाया था. इस के सुबूत भी मिल गए थे. सोनिया ने भी सच उगल दिया था. शुक्र था कि मैं रुस्तम के जाल में नहीं फंसा. इस घटना को घटे 4 साल हो गए हैं. आतिफ की मदद से मुझे अच्छी नौकरी मिल गई है. सदफ 2 प्यारेप्यारे बच्चों की मां है. मेरा भाई स्कौलरशिप पर मैडिकल कालेज में है. बहन की मंगनी हो गई है. मैं चाचा के साथ हूं, जो पहले की ही तरह मुझ से मोहब्बत करते हैं. शादी करने पर जोर देते हैं, पर अब किसी को देने के लिए मेरे पास कुछ नहीं है. Love Story