25 लाख की फिरौती नहीं मिलने पर जिगरी दोस्त को मार डाला

विपिन यादव लवकुश का जिगरी दोस्त था. विपिन चाहता तो अपनी मेहनत और लगन से कोई काम कर के अच्छे पैसे कमा सकता था, परंतु उस ने दोस्त लवकुश की आस्तीन का सांप बन कर ऐसी गहरी साजिश रची कि वह कहीं का रहा… 

इंतजार करतेकरते कई दिन बीत चुके थे, पर लवकुश अभी तक घर लौट कर नहीं आया था. ज्योंज्यों समय बीतता जा रहा था त्योंत्यों नाहर सिंह की चिंता बढ़ती जा रही थी. उन की पत्नी सीमा सिंह भी चिंतित थी. बेटे की याद में उन्होंने खानापीना तक छोड़ दिया था. दरअसल, नाहर सिंह का 20 वर्षीय बेटा लवकुश ड्राइवर था. वह दूध कलेक्शन करने वाली एक कंपनी की गाड़ी चलाता था. कई दिनों से वह घर नहीं आया था. वैसे तो लवकुश रोजाना ही देर रात तक घर वापस जाता था. कभीकभी उसे जब देर हो जाती तो वह घर फोन कर के इस की सूचना दे देता था. लेकिन इस बार तो कई दिन बीत चुके थे. तो वह घर आया और ही उस ने कोई सूचना दी थी.

कहीं लवकुश के साथ कोई अप्रिय घटना तो नहीं हो गई, इस तरह के अनेक विचार नाहर सिंह के मस्तिष्क में घूमने लगे थे. उन्होंने बेटे की खोज में रातदिन एक कर दिया था. रिश्तेनाते में जहां भी वह जा सकता था, फोन कर के उन सभी से पूछासाथी दोस्तों में भी उस की तलाश की. पर उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. नाहर सिंह बेटे के बारे में जानकारी लेने के लिए उस की दूध कंपनी भी गए. वहां पता चला कि लवकुश कई रोज से काम पर नहीं रहा है. यह मई, 2018 के अंतिम सप्ताह की बात है. वह कई दिन से ड्यूटी पर नहीं जा रहा है तो आखिर वह गया कहां, यह बात नाहर सिंह की समझ में नहीं रही थी, जब कहीं भी उस का पता नहीं चला तो नाहर सिंह थाना अकबरपुर पहुंच गए. थानाप्रभारी ऋषिकांत शुक्ला को उन्होंने अपने 20 वर्षीय बेटे के कई दिनों से लापता होने की जानकारी दे दी.

नाहर सिंह की बात सुनने के बाद थानाप्रभारी ऋषिकांत शुक्ला ने उन्हें धैर्य बंधाया और कहा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि आप का बेटा अपने यारदोस्तों के साथ कहीं घूमनेफिरने निकल गया हो. यदि ऐसा है तो वह 2-4 दिन में घूमफिर कर वापस जाएगा. फिर भी आप उस का हुलिया आदि लिख कर दे दीजिए हम भी उसे तलाशेंगे और यदि आप को भी उस के बारे में कोई सूचना मिले तो थाने कर बताना. आश्वासन पा कर बुझे मन से नाहर सिंह घर वापस गए. दरवाजे पर टकटकी लगाए उन की पत्नी सीमा सिंह खड़ी थी. देखते ही बोली, ‘‘लवकुश का कुछ पता चला. कहां है वह.’’

‘‘नहीं, अभी तो पता नहीं चला, पुलिस को सूचना दे दी गई है, वह भी अपने स्तर से उसे ढूंढेगी.’’ नाहर सिंह ने बताया. 10 जून, 2018 की शाम नाहर सिंह चौपाल पर बैठे थे. वहां मौजूद सभी लोग लवकुश के बारे में ही बातें कर रहे थे. तभी नाहर सिंह के मोबाइल फोन पर काल आई. जैसे ही उन्होंने काल रिसीव की तो दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘तुम्हारा बेटा लवकुश हमारे पास है. उस की जान की सलामती चाहते हो तो जल्द से जल्द 25 लाख रुपए का इंतजाम कर लो.’’ इतना कहने के बाद फोनकर्ता ने फोन काट दिया. नाहर सिंह हैलोहैलो कहते रह गए.

फिरौती के मांगे 25 लाख रुपए नाहर सिंह ने जब फोन चेक किया तो पता चला कि वह काल लवकुश के फोन से ही की गई थी. इस से उन्हें विश्वास हो गया कि उन का बेटा अपहर्त्ताओं के ही चंगुल में है. उस के बाद तो नाहर सिंह के घर में कोहराम मच गया. अब यह स्पष्ट हो गया था कि फिरौती के लिए लवकुश का अपहरण किया गया है. परिवार के सभी लोग बहुत चिंतित हो गए. सभी को इस बात की चिंता हो रही थी कि पता नहीं लवकुश किस हाल में होगा.

इस के ठीक 10 मिनट बाद अपहर्त्ता ने नाहर सिंह को पुन: फोन कर के कहा, ‘‘पुलिस को इस बारे में कुछ भी बताया तो तुम्हारे बेटे की सेहत के लिए यह अच्छा नहीं होगा. ध्यान रहे कि ज्यादा चालाक बनने की गलती करना.’’

‘‘भाई आप कौन बोल रहे हैं? क्या बिगाड़ा है मैं ने आप का. मैं आप के हाथ जोड़ता हूं, पैर पड़ता हूं. मेरे बेटे को कुछ मत करना.’’ घबराहट भरे स्वर में उन्होंने उस से विनती की.

‘‘तो अपना समय घर में बैठ कर बरबाद मत करो. फटाफट रुपयों का बंदोबस्त करने में जुट जाओ. इस के लिए चाहे गहने बेचो या फिर जमीन. क्योंकि मेरे पास अधिक समय नहीं है.’’ अपहर्त्ता ने कहा. 25 लाख कोई मामूली रकम नहीं होती, इतनी बड़ी रकम जल्द जुटा पाना नाहर सिंह के लिए संभव नहीं था. लिहाजा अपने घर वालों से सलाहमशविरा कर ने के बाद उन्होंने पुलिस को सारी बातें बताना जरूरी समझावह अपने बड़े बेटे धीरेंद्र सिंह के साथ थाना अकबरपुर पहुंच गए. उन्होंने थानाप्रभारी ऋषिकांत शुक्ला को अपहर्त्ता का फोन आने तथा 25 लाख रुपए की फिरौती मांगने की बात बताई. साथ ही यह भी बताया कि अपहर्त्ता उन के बेटे के ही मोबाइल से फोन कर रहे हैं.

अपहरण और फिरौती की बात सुन कर थानाप्रभारी ऋषिकांत शुक्ला चौंक पडे़े उन्होंने तत्काल नाहर सिंह की तहरीर पर अज्ञात अपहर्त्ताओं के खिलाफ लवकुश के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर ली और घटना की जानकारी वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दे दी. अब वह गंभीरता से मामले की जांच में जुट गए. उन्होंने नाहर सिंह से पूछा, ‘‘आप की किसी से रंजिश या जमीनी विवाद तो नहीं है, जिस के चलते उन लोगों ने बेटे को अगवा कर लिया हो और वो फिरौती मांग रहे हों.’’

नाहर सिंह कुछ देर दिमाग पर जोर डालते रहे फिर बोले, ‘‘मेरी रंजिश भी है और जमीनी विवाद भी, लेकिन रंजिश और जमीनी विवाद घरेलू हैं. यकीनन तो कुछ नहीं कह सकता पर शक जरूर है.’’

‘‘खुल कर सारी बात बताओ.’’ श्री शुक्ला ने कहा.

नाहर सिंह ने जताया शक

‘‘सर, मुझे ससुराल में 4 बीघा जमीन मिली थी. जिस की कीमत लाखों में है. जाहिर है कि मेरे सालों को जमीन खटकती होगी. रही बात रंजिश की तो वह बड़े बेटे की ससुराल से है. एक साल पहले बेटे की पत्नी प्रीति लड़झगड़ कर मायके चली गई थी. उस ने उत्पीड़न का आरोप लगा कर हम लोगों को परेशान किया. प्रीति का साथ उस की मां रेखा तथा पिता रामसिंह ने भी दिया, शक है कि इन्हीं लोगों का अपहरण में हाथ हो सकता है.’’ नाहर सिंह ने बताया. नाहर सिंह के साले शक के दायरे में आए तो थानाप्रभारी ने उन्हें थाने बुला लिया और उन से हर दृष्टिकोण से पूछताछ की लेकिन ऐसा कोई क्लू नहीं मिला, जिस से लगे कि लवकुश का अपहरण उन्होंने किया है. उन्हें यह कह कर पुलिस ने घर भेज दिया कि जरूरत पड़ने पर उन से आगे भी पूछताछ की सकती है.

नाहर सिंह के बड़े बेटे धीरेंद्र सिंह की ससुराल वाले भी संदेह के घेरे में थे. अत: थानाप्रभारी ने धीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रीति, सास रेखा ससुर रामसिंह को थाने बुलवा लिया. प्रीति, रेखा और रामसिंह से अलगअलग की गई पूछताछ के बाद थानाप्रभारी ऋषिकांत शुक्ला को लगा कि वह तीनों निर्दोष हैं. अत: उन्होंने तीनों को थाने से जाने दिया. रिपोर्ट दर्ज हुए अब तक एक सप्ताह बीत चुका था. थानाप्रभारी करीब एक दरजन लोगों से पूछताछ कर चुके थे. लवकुश अपहरण फिरौती का मामला एसपी राधेश्याम के संज्ञान में भी था और क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ था. मीडिया में भी यह मामला सुर्खियां बटोर रहा था.

एसपी राधेश्याम ने अपहरण फिरौती के इस मामले के खुलासे के लिए एक स्पैशल पुलिस टीम का गठन किया. इस टीम में थानाप्रभारी ऋषिकांत शुक्ला, स्वाट टीम प्रभारी रोहित कुमार, सर्विलांस प्रभारी राजीव कुमार के साथ आधा दरजन विश्वसनीय सिपाहियों को शामिल किया गया. टीम का निर्देशन सीओ अर्पित कपूर को सौंप दिया गया. पुलिस टीम ने जांच शुरू की तो चौंकाने वाली बातें सामने आने लगीं. पता चला कि गांव का एक युवक विपिन यादव लवकुश का गहरा दोस्त है. लवकुश के घर वाले उस पर अटूट विश्वास करते हैं और उसे अपना हितैषी मानते हैं. लवकुश को ढूंढने में वह नाहर सिंह के साथ साए की तरह लगा रहा. नाहर सिंह जहां भी बेटे की खोज में गए विपिन उन के साथ लगा रहा. नाहर सिंह उन के परिवार को धैर्य बंधाने में भी उस की अहम भूमिका रही.

शक के दायरे में आया विपिन यादव एक चौंकाने वाली बात यह भी पता चली कि विपिन ने दबाव के साथ नाहर सिंह को यह सलाह भी दी थी कि वह ससुराल वाली जमीन बेच कर लवकुश को अपहर्त्ताओं के चंगुल से छुड़ा लें. इस के लिए वह जमीन का रेट मालूम करने घाटमपुर भी गया था. वह नाहर सिंह को उकसाता था कि बेटे से बढ़ कर जमीन नहीं है. जब लवकुश ही नहीं आएगा तो जमीन क्या चाटोगे. इधर सर्विलांस प्रभारी राजीव कुमार ने अपहृत लवकुश के मोबाइल को सर्विलांस पर लगा दिया था. उस की लोकेशन मुक्तापुर गांव तथा आसपास की मिली. इस से जाहिर हो रहा था कि अपहर्त्ता मुक्तापुर गांव या फिर पासपड़ोस का है

राजीव कुमार ने एक बात और चौंकाने वाली बताई कि अपहर्त्ता लवकुश के मोबाइल में दूसरा सिम डाल कर अपने अन्य साथियों से बात करता है. शायद वह पुलिस की गतिविधियों की जानकारी उन्हें देता है. इन सब बातों से मुक्तापुर गांव का विपिन यादव भी शक के घेरे में गया. फिर सीओ अर्पित कपूर के निर्देश पर पुलिस टीम ने मुक्तापुर गांव में छापा मार कर विपिन यादव को गिरफ्तार कर लियाथाना अकबरपुर ला कर जब उस से लवकुश के अपहरण के संबंध में पूछा गया तो वह साफ मुकर गया और बोला, ‘‘साहब, लवकुश मेरा जिगरी दोस्त है. भला मैं उस का अपहरण क्यों करूंगा. मैं तो उस की खोज में रातदिन लगा हूं. उस के पिता की हर संभव मदद करता हूं.’’

विपिन ने स्वीकारा अपराध साधारण पूछताछ में विपिन यादव ने कुछ नहीं बताया तो थानाप्रभारी ऋषिकांत शुक्ला ने पुलिसिया अंदाज में उस से पूछताछ शुरू की. वह ज्यादा देर टिक सका और बोला, ‘‘साहब, मुझे मत मारो मैं सब कुछ आप को बता दूंगा.’’

‘‘तो बताओ लवकुश कहां है? उसे तुम ने कहां बंधक बना कर रखा है?’’ श्री शुक्ला ने पूछा.

‘‘साहब, लवकुश अब इस दुनिया में नहीं है. मैं ने अपने साथी शिवम, पंकज दुर्गेश की मदद से लवकुश की हत्या कर दी और उस का मोबाइल फोन अपने पास रख लिया था. फिर उसी मोबाइल से फिरौती मांगी थी.’’

पुलिस ने विपिन यादव की निशानदेही पर उस के घर से लवकुश का मोबाइल फोन तथा एक अन्य मोबाइल फोन बरामद कर लिया. दूसरा फोन लूट का था. इस के बाद पुलिस टीम ने रात में ही छापा मार कर विपिन यादव के दोस्त शिवम यादव, पंकज यादव दुर्गेश को हिरासत में ले लिया. पूछताछ में सभी ने बिना हीलाहवाली के अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. जब विपिन यादव की गिरफ्तारी की सूचना नाहर सिंह को मिली तो वह थाने पहुंच गए. उन्होंने पुलिस से गुहार लगाई कि विपिन बेकसूर है. वह तो उन के परिवार का हितैषी है उसे इस मामले में फंसाया जाए. लेकिन पुलिस ने जब सारी हकीकत बताई तो नाहर सिंह भौचक्के रह गए. वह माथा पकड़ कर बैठ गए. सोचने लगे कि यह तो बड़ा ही खतरनाक आस्तीन का सांप निकला. इस के बाद तो उन के घर में कोहराम मच गया.

अब पुलिस को आरोपियों की निशानदेही पर लवकुश की लाश बरामद करनी थी. लिहाजा वह चारों आरोपियों नाहर सिंह को ले कर अमृतसर के लिए रवाना हो गई. क्योंकि उन्होंने वहीं पर लवकुश की हत्या कर लाश ठिकाने लगाई थी. थानाप्रभारी आरोपियों को फतेहपुर गांव के बाहर नहर किनारे खेत पर ले गए जहां उन्होंने लवकुश की हत्या की थी. लेकिन पुलिस को वहां कुछ भी नहीं मिला. पूछताछ से पता चला कि यह स्थान अमृतसर (रूरल) जिले के जंडियाला थाना क्षेत्र में आता है. इस के बाद पुलिस टीम थाना जंडियाला पहुंची टीम ने वहां मौजूद थानाप्रभारी हरसन दीप सिंह को लवकुश की हत्या वाली बात बताई.

थानाप्रभारी हरसनदीप सिंह ने अकबर पुर पुलिस को एक युवक की लाश के फोटो दिखाते हुए कहा कि इस युवक की लाश 30 मई, 2018 को फतेहपुर गांव के बाहर नहर किनारे खेत में मिली थी. युवक की गला घोंट कर हत्या की गई थीथाने पर सूचना फतेहपुर गांव के सरपंच तरसेम सिंह ने दी थी. उसी की तहरीर पर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज है. फोटो देख कर फफक पड़े नाहर सिंह नाहर सिंह ने जब वह फोटो देखा तो वह फफक कर रो पड़े और बताया कि यह फोटो उन के बेटे लवकुश की है. अकबरपुर पुलिस थाने से मृतक की फोटो एफआईआर की प्रति आदि ले कर वापस लौट आई. इस के बाद थानाप्रभारी ने सारी जानकारी एसपी राधेश्याम को दी. पुलिस अधिकारियों ने आननफानन में प्रैस कौन्फै्रंस कर के मामले का खुलासा कर दिया.

चूंकि लवकुश के हत्यारोपी अपहर्त्ताओं ने अपना जुर्म कबूल कर लिया था. अत: थानाप्रभारी ऋषिकांत शुक्ला ने मृतक के पिता नाहर सिंह को वादी बना कर भादंवि की धारा 364/302 आईपीसी के तहत विपिन यादव, पंकज यादव, शुभम यादव दुर्गेश के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और उन्हें विधि सम्मत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस पूछताछ में दोस्त की गहरी साजिश का जो परदाफाश हुआ, वह चौंकाने वाला था. उत्तर प्रदेश के कानपुर (देहात) जनपद के अकबरपुर थाना अंतर्गत एक गांव मुक्तापुर पड़ता है. रूरा और अकबरपुर जैसे 2 बडे़  कस्बों के बीच पड़ने वाले इस गांव के लोग काफी संपन्न हैं. वह या तो व्यापार करते हैं या फिर अपनी खेती. इसी मुक्तापुर गांव में संपन्न किसान नाहर सिंह रहते थे. उन के परिवार में पत्नी सीमा सिंह के अलावा 2 बेटे धीरेंद्र सिंह लवकुश थे.

नाहर सिंह के पास अच्छीखासी खेती की जमीन थी. जिस में अच्छी उपज होती थी. इस के अलावा उन्हें ससुराल में भी 4 बीघा जमीन मिली थी. कुल मिला कर उन की आर्थिक स्थिति अच्छी थी. बड़ा होने पर धीरेंद्र सिंह पिता के साथ खेती कार्य में हाथ बंटाने लगा. बाद में नाहर सिंह ने उस की शादी मूसानगर निवासी राम सिंह की बेटी प्रीति से कर दी. प्रीति खूबसूरत चंचल थी जबकि धीरेंद्र सिंह सीधासादा था. प्रीति दिखावे में तो उस की पत्नी थी, लेकिन उस ने मन से धीरेंद्र को अपना पति स्वीकार नहीं किया था. इस की वजह यह थी कि धीरेंद्र अपने काम में व्यस्त रहने की वजह से उस की भावनाओं को नहीं समझता था.

इस के बाद छोटीछोटी बातों को ले कर पतिपत्नी में कलह होने लगी. कलह ने जब विकराल रूप धारण किया तो प्रीति ससुराल से नाता तोड़ कर मायके में रहने लगी. गांव में लवकुश का एक दोस्त था विपिन यादव. दोनों में गहरी दोस्ती थी. लवकुश विपिन दोनों शराब के लती थे. अकसर दोनों की महफिल जमती रहती थी. एक रोज शराब पीने के दौरान लवकुश ने विपिन को बताया कि उस के पिता को ससुराल में जो 4 बीघा जमीन मिली है उस की कीमत बढ़ रही है. वह अब 25-30 लाख से कम नहीं है.

विपिन के मन में गया था लालच विपिन यादव साधारण किसान लल्ला यादव का बेटा था. घर से उसे खर्च के लिए फूटी कौड़ी नहीं मिलती थी. छुटपुट काम से वह जो कमाता था वह शराब तथा अय्याशी में खर्च कर देता था. पैसा रहने पर वह परेशान रहता था. विपिन ने जब 25-30 लाख की बात लवकुश के मुंह से सुनी तो उस के मन में लालच समा गया, फिर वह लालच की चाह में अमीर होने के तानेबाने बुनने लगा. विपिन का एक दोस्त शिवम था. शिवम, रूरा निवासी बबलू यादव का बेटा था. शिवम अमृतसर की एक फैक्ट्री में काम करता था. शिवम महत्त्वाकांक्षी था. वह जल्द रईस बनना चाहता था. लेकिन फैक्ट्री की नौकरी से उस का खर्चा भी पूरा नहीं होता था. एक रोज रूरा में विपिन की मुलाकात शिवम से हुई. वह छुट्टी ले कर अमृतसर से आया था.

दोस्त का अपहरण कर के कर दी हत्या बातचीत के दौरान शिवम ने रईस बनने की इच्छा जाहिर की तो विपिन ने भी उस की हां में हां मिलाई. पर रईस कैसे बना जाए, इस पर विचार करने के लिए जब दोनों सिर जोड़ कर बैठे तो वे इस नतीजे पर पहुंचे कि सीधे तरीके से तो बड़ी रकम हाथ आने से रहीइस के लिए कोई गलत रास्ता अपनाना पड़ेगा. वह गलत रास्ता क्या हो इस के लिए दोनों ने काफी सोचविचार के बाद किसी अमीरजादे के बच्चे का अपहरण कर के लाखों रुपए फिरौती वसूलने का मंसूबा बनाया. विपिन ने शुभम को बताया कि उस का दोस्त लवकुश संपन्न किसान नाहर सिंह का बेटा है. यदि उस का अपहरण कर फिरौती मांगी जाए तो 20-25 लाख रुपया आसानी से मिल सकता है. नाहर सिंह को ससुराल में 4 बीघा जमीन मिली है, जिसे बेच कर वह फिरौती दे सकता है

यह सुन कर शुभम की आंखों में चमक गई. फिर दोनों ने मिल कर लवकुश के अपहरण हत्या कर फिरौती वसूलने की योजना बनाई. इस योजना में शुभम ने अपने दोस्त सवायज पुरवा (नरवल) निवासी पंकज यादव तथा अहिरन पुरवा (रनियां) निवासी दुर्गेश को भी शामिल कर लिया. दोनों पैसों के लालच में साथ देने को तैयार हो गए. योजना के तहत 28 मई, 2018 को विपिन यादव उस के दोस्त शुभम, दुर्गेश तथा पंकज लवकुश को घुमाने के बहाने अमृतसर ले गए. 29 मई की शाम को सभी ने अमृतसर के जंडियाला में शराब पी फिर अंधेरा होने पर वह सब लवकुश को नहर किनारे खेत में ले गए और अंगौंछे से गला घोंट कर हत्या कर दी

उस का मोबाइल फोन विपिन ने अपने पास रख लिया. इस के बाद सभी वापस गए और अपनेअपने घरों में रहने लगे. कुछ दिनों बाद उस के घर वालों को विपिन ने लवकुश के मोबाइल से ही 25 लाख रुपए फिरौती की मांग की. तब नाहर सिंह ने थाना अकबरपुर जा कर रिपोर्ट दर्ज करा दी. इस के बाद पुलिस सक्रिय हुई और लवकुश के अपहरण हत्या का परदाफाश कर उस के दगाबाज दोस्त उस के साथियों को बंदी बनाया.

25 जून, 2018 को थाना अकबरपुर पुलिस ने अभियुक्त विपिन यादव, शुभम यादव, पंकज यादव तथा दुर्गेश को माती कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया. जहां से माती जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक सभी अभियुक्तों की जमानत लोअर कोर्ट से खारिज हो गई थी. वे सब जेल में हैं.

   — कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

भाभी ने चचेरे देवर के साथ मिलकर की पति की हत्या

जब कोई पूरी योजना बना कर किसी की हत्या करता है, उस की सोच यह होती है कि वह पकड़ा नहीं जाएगा. लेकिन कानून के शिकंजे से बचना आसान नहीं होता. सरिता और बलराम ने भी…   

त्तर प्रदेश के मीरजापुर जिले में मीरजापुरइलाहाबाद मार्ग से सटा एक गांव हैमहड़ौरा. विंध्यक्षेत्र की पहाड़ी से लगा यह गांव हरियाली के साथसाथ बहुत शांतिप्रिय गांवों में गिना जाता है. इसी गांव के रहने वाले बंसीलाल सरोज ने रेलवे की नौकरी से रिटायर होने के बाद बड़ा सा पक्का मकान बनवाया, जिस में वह अपने पूरे परिवार के साथ रहते थेउन के भरेपूरे परिवार में पत्नी, 2 बेटे, एक बेटी और बहू थी. गांव में बंसीलाल सरोज के पास खेती की जमीन थी, जिस पर उन का बड़ा बेटा रणजीत कुमार सरोज उर्फ बुलबुल सब्जी की खेती करता था. खेती के साथसाथ रणजीत अपने मामा के साथ मिल कर होटल भी चलाता था

जबकि छोटा राकेश सरोज कानपुर में बिजली विभाग में नौकरी करता था. वह कानपुर में ही रहता था. महड़ौरा में 9-10 कमरों का अपना शानदार मकान होने के साथसाथ बंसीलाल के पास गांव से कुछ दूर सरोह भटेवरा में दूसरा मकान भी थारात में वह उसी मकान में सोया करते थे. बंसीलाल के परिवार की गाड़ी जिंदगी रूपी पटरी पर हंसीखुशी से चल रही थी. घर में किसी चीज की कमी नहीं थी. दोनों बेटे अपनेअपने पैरों पर खड़े हो चुके थे, जबकि वह खुद इतनी पेंशन पाते थे कि अकेले अपने दम पर पूरे परिवार का खर्च उठा सकते थे.

बड़ा बेटा रणजीत कुमार सुबह होने पर खेतों पर चला जाता था, फिर दोपहर में उसे वहां से होटल पर जाना होता था. जहां से वह रात में वापस लौटता था और खापी कर सो जाता था. यह उस की रोज की दिनचर्या थी. रणजीत की 3 बेटियां थीं. 10 साल की माया, 7 साल की क्षमा और 3 साल की स्वाति. वह अपनी बेटियों को दिलोजान से चाहता था और उन्हें बेटों की तरह प्यार करता थाउस की बेटियां भी अपनी मां से ज्यादा पिता को चाहती थीं. व्यवहारकुशल, मृदुभाषी रणजीत गांव में सभी को अच्छा लगता था. वह जिस से भी मिलता, हंस कर ही बोलता था. खेतीकिसानी और होटल के काम से उसे फुर्सत ही नहीं मिलती थी. उसे थोड़ाबहुत जो समय मिलता था, उसे वह अपने बीवीबच्चों के साथ गुजारता था.

सोमवार 19 मार्च, 2018 का दिन था. रात होने पर रणजीत कुमार रोज की तरह होटल से घर आया तो उस की पत्नी सरिता उसे खाने का टिफिन पकड़ाते हुए बोली, ‘‘लो जी, दूसरे मकान पर बाबूजी को खाना दे आओ. आज काफी देर हो गई है, बाबूजी इंतजार कर रहे होंगे. आप खाना दे कर आओ तब तक मैं आप के लिए खाने की थाली लगा देती हूं.’’

पत्नी के हाथ से खाने का टिफिन ले कर रणजीत दूसरे मकान पर चला गया, जहां उस के पिता बंसीलाल रात में सोने जाया करते थे. उन का रात का खाना अकसर उसी मकान पर जाता था. रणजीत उन्हें खाना दे कर जल्दी ही लौट आया और घर कर खाना खाने बैठ गया. खाना खाने के बाद वह अपने कमरे में सोने चला गया. रणजीत की मां, पत्नी सरिता, बहन सोनी और रणजीत की तीनों बेटियां बरांडे में सो गईं. रणजीत बना निशाना रणजीत सोते समय अपने कमरे का दरवाजा खुला रखता था. उस दिन भी वह अपने कमरे का दरवाजा खुला छोड़ कर सोया था. देर रात पीछे से चारदीवारी फांद कर किसी ने रणजीत के कमरे में प्रवेश किया और पेट पर धारदार हथियार से वार कर के उसे मौत की नींद सुला दिया

उस पर इतने वार किए गए थे कि उस की आंतें तक बाहर गई थीं. रणजीत की मौके पर ही मौत हो गई थी. आननफानन में घर वाले उसे अस्पताल ले कर भागे, लेकिन वहां डाक्टरों ने रणजीत को देखते ही मृत घोषित कर दियाभोर में जैसे ही इस घटना की सूचना पुलिस को मिली वैसे ही विंध्याचल कोतवाली प्रभारी अशोक कुमार सिंह पुलिस टीम के साथ गांव पहुंच गए. वहां गांव वालों का हुजूम लगा हुआ था. अशोक कुमार सिंह ने इस घटना की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी. इस के बाद उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया. घर के उस कमरे में जहां रणजीत सोया हुआ था, काफी मात्रा में खून पड़ा हुआ था. मौकाएवारदात को देखने से यह साफ हो गई कि जिस बेदर्दी के साथ रणजीत की हत्या की गई थी, संभवत: वारदात में कई लोग शामिल रहे होंगे

यह भी लग रहा था कि या तो हत्यारों की रणजीत से कोई अदावत रही होगी या किसी बात को ले कर वह उस से खार खाए होंगे. इसी वजह से उसे बड़ी बेरहमी से किसी धारदार हथियार से गोदा गया था. खून के छींटे कमरे के साथसाथ बाहर सीढि़यों तक फैले थे. इंसपेक्टर अशोक कुमार सिंह ने आसपास नजरें दौड़ा कर जायजा लिया तो देखा, जिस कमरे में वारदात को अंजाम  दिया गया था, वह कमरा घर के पीछे था. संभवत हत्यारे पीछे की दीवार फांद कर अंदर आए होंगे और हत्या कर के उसी तरह भाग गए होंगे. इसी के साथ उन्हें एक बात यह भी खटक रही थी कि हो हो इस वारदात में किसी करीबी का हाथ रहा हो. घटनास्थल की वस्तुस्थिति और हालात इसी ओर इशारा कर रहे थे. ताज्जुब की बात यह थी कि इतनी बड़ी घटना होने के बाद भी घर के किसी मेंबर को कानोंकान खबर नहीं हुई थी.

बहरहाल, अशोक कुमार सिंह ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर मृतक रणजीत के बारे में जानकारी एकत्र की और थाने लौट आए. उन्होंने रणजीत के पिता बंसीलाल सरोज की लिखित तहरीर के आधार पर अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत केस दर्ज कर के जांच शुरू कर दी. रणजीत की हत्या होने की खबर आसपास के गांवों तक पहुंची तो तमाम लोग महड़ौरा में एकत्र हो गए. हत्या को ले कर लोगों में आक्रोश था. आक्रोश के साथसाथ भीड़ भी बढ़ती गई. महिलाएं और बच्चे भी भीड़ में शामिल थेआक्रोशित भीड़ ने गांव के बाहर मेन रोड पर पहुंच कर इलाहाबाद मीरजापुर मार्ग जाम कर दिया. दोनों तरफ का आवागमन बुरी तरह ठप्प हो गया. गुस्से के मारे लोग पुलिस के विरोध में नारे लगाने के साथ मृतक के हत्यारों को गिरफ्तार करने और उस की बीवी को मुआवजा दिलाने की मांग कर रहे थे.

धरना बना जी का जंजाल इस की जानकारी मिलने पर विंध्याचल कोतवाली की पुलिस वहां पहुंच गई, जहां भीड़ जाम लगाए हुए थी. जाम के चलते इंसपेक्टर अशोक कुमार सिंह ने धरने पर बैठे गांव वालों को समझाने का प्रयास किया, लेकिन वे किसी भी सूरत में पीछे हटने को तैयार नहीं थे. अपना प्रयास विफल होता देख उन्होंने अपने उच्चाधिकारियों को वहां की स्थिति बता कर पुलिस फोर्स भेजने को कहा, ताकि कोई अप्रिय घटना घट सके. वायरलैस पर सड़क जाम की सूचना प्रसारित होते ही पड़ोसी थानों जिगना, गैपुरा और अष्टभुजा पुलिस चौकी के अलावा जिला मुख्यालय से पहुंची पुलिस और पीएसी ने मौके पर पहुंच कर मोर्चा संभाल लिया. कुछ ही देर में पुलिस अधीक्षक आशीष तिवारी सहित अन्य पुलिस और प्रशासन के अधिकारी भी मौके पर पहुंच गए

अधिकारियों ने ग्रामीणों को विश्वास दिलाया कि रणजीत के हत्यारों को जल्द से जल्द गिरफ्तार कर लिया जाएगा. काफी समझाने के बाद ग्रामीण मान गए और उन्होंने धरना समाप्त कर दिया. इस के साथ ही धीरेधीरे जाम भी खत्म हो गया. जाम समाप्त होने के बाद विंध्याचल कोतवाली पहुंचे पुलिस अधीक्षक आशीष तिवारी ने रणजीत के हत्यारों को हर हाल में जल्दी से जल्दी गिरफ्तार कर के इस केस को खोलने का सख्त निर्देश दिया. पुलिस अधीक्षक के सख्त तेवरों को देख कोतवाली प्रभारी अशोक कुमार और उन के मातहत अफसर जीजान से जांच में जुट गएअशोक कुमार सिंह ने इस केस की नए सिरे से छानबीन करते हुए मृतक रणजीत के पिता बंसीलाल से पूछताछ करनी जरूरी समझी. इस के लिए वह महड़ौरा स्थित बंसीलाल के घर पहुंचे, जहां उन्होंने बंसीलाल से एकांत में बात की

इस बातचीत में उन्होंने रणजीत से जुड़ी छोटी से छोटी जानकारी जुटाई. बंसीलाल से हुई बातों में एक बात चौंकाने वाली थी जो रणजीत की पत्नी सरिता से संबंधित थी. पता चला उस का चालचलन ठीक नहीं था. इस संबंध में रणजीत के पिता बंसीलाल ने इशारोंइशारों में काफी कुछ कह दिया था. पिता से मिला क्लू बना जांच का आधार इस जानकारी से इंसपेक्टर अशोक कुमार सिंह की आंखों में चमक गई. उन्होंने पूछताछ के लिए मृतक रणजीत की पत्नी सरिता और उस के चचेरे भाई बलराम सरोज को थाने बुलाया. लेकिन इन दोनों ने कुछ खास नहीं बताया. दोनों बारबार खुद को बेगुनाह बताते रहे

बलराम रणजीत का भाई होने का तो सरिता पति होने का वास्ता देती रही. दोनों के घडि़याली आंसुओं को देख कर इंसपेक्टर अशोक कुमार ने उस दिन उन्हें छोड़ दिया, लेकिन उन पर नजर रखने लगे. इसी बीच उन के एक खास मुखबिर ने सूचना दी कि सरिता और बलराम भागने के चक्कर में हैं. मुखबिर की बात सुन कर अशोक कुमार सिंह ने बिना समय गंवाए 29 मार्च को महड़ौरा से सरिता को थाने बुलवा लिया. साथ ही उस के चचेरे देवर बलराम को भी उठवा लिया. थाने लाने के बाद दोनों से अलगअलग पूछताछ की गईपूछताछ के लिए पहला नंबर सरिता का आया. वह पुलिस को घुमाने का प्रयास करते हुए अपने सुहाग का वास्ता दे कर बोली, ‘‘साहब, आप कैसी बातें कर रहे हैं, भला कोई अपने ही हाथों से अपने सुहाग को उजाड़ेगा? साहब, जरूर किसी ने आप को बहकाया है. आखिरकार मुझे कमी क्या थी, जो मैं ऐसा करती?’’

उस की बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि इंसपेक्टर अशोक कुमार सिंह बोले, ‘‘देखो सरिता, तुम ज्यादा सती सावित्री बनने की कोशिश मत करो, तुम्हारी भलाई इसी में है कि सब कुछ सचसच बता दो वरना मुझे दूसरा रास्ता अख्तियार करना पड़ेगा.’’ लेकिन सरिता पर उन की बातों का जरा भी असर नहीं पड़ा. वह अपनी ही रट लगाए हुई थी. अशोक कुमार सिंह सरिता के बाद उस के चचेरे देवर बलराम से मुखातिब हुए, ‘‘हां तो बलराम, तुम कुछ बोलोगे या तुम से भी बुलवाना पड़ेगा.’’

‘‘मममतलब. मैं कुछ समझा नहीं साहब.’’

‘‘नहीं समझे तो समझ आओ. मुझे यह बताओ कि तुम ने रणजीत को क्यों मारा?’’

‘‘साहब, आप यह क्या कह रहे हैं, रणजीत मेरा भाई था, भला कोई अपने भाई की हत्या क्यों करेगा? मेरी उस से खूब पटती थी. उस के मरने का सब से ज्यादा गम मुझे ही है. और आप मुझे ही दोषी ठहराने पर तुले हैं.’’

उस की बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि अचानक इंसपेक्टर अशोक कुमार का झन्नाटेदार थप्पड़ उस के गाल पर पड़ा. वह अपना चेहरा छिपा कर बैठ गया. अभी वह कुछ सोच ही रहा था कि इंसपेक्टर अशोक कुमार सिंह बोले, ‘‘बलराम, भाई प्रेम को ले कर तुम्हारी जो सक्रियता थी, वह मैं देख रहा था. तुम्हारा प्रेम किस से और कितना था, यह सब भी मुझे पता चल चुका है. तुम ने रणजीत को क्यों और किस के लिए मारा, वह भी तुम्हारे सामने है.’’ 

 उन्होंने सरिता की ओर इशारा करते हुए कहा तो बलराम की नजरें झुक गईं. उसे इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि उस की बनाई कहानी का अंत इतनी आसानी से हो जाएगा और पुलिस उस से सच उगलवा लेगीतीर निशाने पर लगता देख इंसपेक्टर अशोक कुमार सिह ने बिना देर किए तपाक से कहा, ‘‘अब तुम्हारी भलाई इसी में है, दोनों साफसाफ बता दो कि रणजीत की हत्या क्यों और किसलिए की, वरना मुझे दूसरा तरीका अपनाना पड़ेगा.’’

खुल गया रणजीत की हत्या का राज सरिता और बलराम ने खुद को चारों ओर से घिरा देख कर सच्चाई उगलने में ही भलाई समझी. पुलिस ने दोनों को विधिवत गिरफ्तार कर के पूछताछ की तो रणजीत के कत्ल की कहानी परत दर परत खुलती गई. बलराम ने अपना जुर्म कबूल करते हुए बताया कि जाने कैसे रणजीत को उस के और सरिता के प्रेम संबंधों की जानकारी मिल गई थीफलस्वरूप वह उन दोनों के संबंधों में बाधक बनने लगा. यहां तक कि उस ने बलराम को अपनी पत्नी से मिलने के लिए मना कर दिया था. इसी के मद्देनजर सरिता और बलराम ने योजनाबद्ध तरीके से रणजीत की हत्या की योजना बनाई. योजना के मुताबिक बलराम ने घर में घुस कर बरामदे में सोए रणजीत की चाकू घोंप कर हत्या कर दी

बलराम की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में इस्तेमाल किया गया चाकू घर से 2 सौ मीटर दूर गेहूं के खेत से बरामद कर लिया. सरिता और बलराम ने स्वीकार किया कि जिस चाकू से रणजीत की हत्या की गई थी, उसे बलराम ने हत्या से एक दिन पहले ही गांव के एक लोहार से बनवाया था. पुलिस ने उस लोहार से भी पूछताछ की. उस ने इस की पुष्टि की. पुलिस लाइन में आयोजित पत्रकार वार्ता के दौरान पुलिस अधीक्षक आशीष तिवारी ने खुलासा करते हुए बताया कि रणजीत सरोज की पत्नी के अवैध संबंध उस के चचेरे भाई बलराम से पिछले 5 वर्षों से थे. रणजीत ने दोनों को एक बार रंगेहाथों पकड़ा था. उस वक्त घर वालों ने गांव में परिवार की बदनामी की वजह से इस मामले को घर में ही दबा दिया था. साथ ही दोनों को डांटाफटकारा भी था.

रणजीत ने बलराम को घर में आने से मना भी कर दिया था. इस से सरिता अंदर ही अंदर जलने लगी थी. उसे चचेरे देवर से मिलने की कोई राह नहीं सूझी तो उस ने बलराम के साथ मिल कर पति की हत्या की योजना तैयार की ताकि पिछले 5 सालों से चल रहे प्रेम संबंध चलते रहेंपकड़े जाने पर दोनों ने पुलिस और मीडिया के सामने अपना जुर्म कबूल करते हुए अवैध संबंधों में हत्या की बात मानी. दोनों ने पूरी घटना के बारे में विस्तार से बताया. रणजीत हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने के बाद पुलिस ने पूर्व  में दर्ज मुकदमे में अज्ञात की जगह सरिता और बलराम का नाम शामिल कर के दोनों को जेल भेज दिया.

  

बाइक रोक कर प्रेमिका के मुंह में कट्टा घुसेड़ मारी गोली

शीला ने अपने पति दिनेश से जिस दुर्गेश के लिए बेवफाई की, उस लालची प्रेमी दुर्गेश ने उस के साथ ऐसा विश्वासघात किया, जिस की शीला ने कभी कल्पना नहीं की थी. उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर के थाना कैंपियरगंज के थानाप्रभारी चौथीराम यादव रात की गश्त से लौट कर लेटे ही थे कि उन के फोन की घंटी बजी. बेमन से उन्होंने फोन उठा कर कहा, ‘‘हैलो, कौन?’’

‘‘सर मैं टैक्सी ड्राइवर किशोर बोल रहा हूं.’’ दूसरी ओर से कहा गया.

‘‘जो भी कहना है, सुबह थाने में कर कहना. अभी मैं सोने जा रहा हूं.’’

सर, जरूरी बात हैमोहम्मदपुर नवापार सीवान के पास सड़क के किनारे एक औरत की लाश पड़ी है. उस के सीने से एक छोटा बच्चा चिपका है. अभी बच्चा जीवित है.’’ किशोर ने कहा. लाश की बात सुन कर थानाप्रभारी की नींद गायब हो गई. उन्होंने कहा, ‘‘ठीक है, मैं पहुंच रहा हूं. मेरे आने तक तुम वहीं रहना. बच्चे का खयाल रखना.’’

‘‘ठीक है सर, आप आइए. आप के आने तक मैं यहीं रहूंगा.’’

कह कर किशोर ने फोन काट दिया.

सूचना गंभीर थी, इसलिए थानाप्रभारी चौथीराम यादव ने तुरंत इस घटना की सूचना अधिकारियों को दी और खुद जल्दीजल्दी तैयार हो कर सबइंसपेक्टर विनोद कुमार सिंह, कांस्टेबल रामउजागर राय, अवधेश यादव और जगरनाथ यादव के साथ घटनास्थल की ओर चल पड़े. अब तक उजाला फैल चुका था. घटनास्थल पर काफी लोग जमा हो चुके थे. घटनास्थल पर पहुंचते ही थानाप्रभारी चौथीराम यादव ने सब से पहले उस बच्चे को उठाया, जो मरी हुई मां के सीने से चिपका सो रहा था. स्थिति यही बता रही थी कि वह मृतका का बेटा था. उठाते ही बच्चा जाग गया. वह बिलखबिलख कर रोने लगा. चौथीराम ने उसे एक सिपाही को पकड़ाया तो वह उसे चुप कराने की कोशिश करने लगा

पहनावे से मृतका मध्यमवर्गीय परिवार की लग रही थी. उस की उम्र यही कोई 25 साल के आसपास थी. उस के मुंह और सीने में एकदम करीब से गोलियां मारी गई थीं. मुंह में गोली मारी जाने की वजह से चेहरा खून से सना था. घावों से निकल कर बहा खून सूख चुका था. मृतका की कदकाठी ठीकठाक थी. इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि हत्यारे कम से कम 2 तो रहे ही होंगे. पुलिस ने घटनास्थल से 315 बोर के 2 खोखे बरामद किए थे. खोखे वही रहे होंगे, जो 2 गोलियां मृतका को मारी गई थीं. घटनास्थल पर मौजूद लोग लाश की शिनाख्त नहीं कर सके थे. इस का मतलब मृतका वहां की रहने वाली नहीं थी

पुलिस लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने की काररवाई कर रही थी कि अचानक वहां एक युवक आया और लाश देख कर जोरजोर से रोने लगा. उस के रोने का मतलब था, वह मृतका का कोई अपना रहा होगा. पुलिस ने उसे चुप करा कर पूछताछ की तो पता चला कि वह मृतका का भाई दीपचंद था. मृतका का नाम शीला था. कल सुबह वह ससुराल से अपने बेटे को ले कर मायके जाने के लिए निकली थी. शाम तक वह घर नहीं पहुंची तो उसे चिंता हुई. सुबह वह उसी की तलाश में निकला था. यहां भीड़ देख कर वह रुक गया. पूछने पर पता चला कि यहां एक महिला की लाश पड़ी है. वह लाश देखने आया तो पता चला वह लाश उस की बहन की है. उस के साथ उस का बेटा कृष्णा भी था.

पुलिस ने कृष्णा को उसे सौंप दिया. दीपचंद ने फोन द्वारा घटना की सूचना पिता वृजवंशी को दी तो घर में कोहराम मच गया. गांव के कुछ लोगों को साथ ले कर वृजवंशी भी वहां पहुंच गया, जहां लाश पड़ी थीबेटी की लाश और मासूम नाती कृष्णा को रोते देख वृजवंशी भी बिलखबिलख कर रोने लगा. उस से रहा नहीं गया और उस ने नाती को दीपचंद से ले कर सीने से चिपका लिया. घटनास्थल की सारी काररवाई निपटा कर पुलिस दीपचंद के साथ थाने गई. थाने में उस की ओर से शीला की हत्या का मुकदमा अज्ञात के खिलाफ दर्ज कर लिया गया. यह 23 जनवरी, 2014 की बात है.

मुकदमा दर्ज होने के बाद थानाप्रभारी चौथीराम यादव ने जांच शुरू की. हत्यारों ने सिर्फ शीला की हत्या की थी, उस के बच्चे को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया था. इस का मतलब उस का जो कुछ था, वह शीला से ही था. उसे सिर्फ उसी से परेशानी थी. ऐसे में उस का कोई प्रेमी भी हो सकता था, जो उस से पीछा छुड़ाना चाहता रहा हो. शीला की ससुराल गोरखपुर के थाना गुलरिहा के गांव बनरहा सरहरी में थी. थानाप्रभारी चौथीराम दीपचंद को ले कर शीला की ससुराल जा पहुंचे. बनरहा पहुंचने में उन्हें करीब 2 घंटे का समय लगा. शीला की ससुराल में उस की सास और ससुर थे. पूछताछ में उन्होंने बताया कि 22 जनवरी, 2014 को शीला अपने मुंहबोले भाई पप्पू और उस के दोस्त के साथ मोटरसाइकिल से मायके के लिए निकली थी. कृष्णा को भी वह अपने साथ ले गई थी.

इस के अलावा वे और कुछ नहीं बता सके थे. पूछताछ में सासससुर ने यह भी बताया था कि पप्पू अकसर उन के यहां आता रहता था. चौथीराम यादव ने दीपचंद से पप्पू के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि पप्पू उसी के गांव का रहने वाला था. वह आवारा किस्म का लड़का था. थानाप्रभारी बनरहा से सीधे दीपचंद के गांव अहिरौली जा पहुंचे. पप्पू के बारे में पता किया गया तो घर वालों ने बताया कि वह 22 जनवरी, 2014 को नौतनवा जाने की बात कह कर घर से निकला था. तब से लौट कर नहीं आया है. दीपचंद की मदद से पप्पू और शीला का मोबाइल नंबर मिल गया था. पुलिस ने दोनों नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि 22 जनवरी की सुबह शीला ने पप्पू को फोन किया था. उस के बाद पप्पू का मोबाइल फोन बंद हो गया था. काल डिटेल्स से यह भी पता चला कि दोनों में रोजाना घंटों बातें होती थीं. इस से साफ हो गया कि दोनों में संबंध थे. पप्पू ने ही किसी बात से नाराज हो कर दोस्त की मदद से शीला की हत्या की थी.

जांच कहां तक पहुंची है, थानाप्रभारी चौथीराम इस की जानकारी क्षेत्राधिकारी अजय कुमार पांडेय और पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण) डा. यस चेन्नपा को भी दे रहे थे. पप्पू के बारे में जब घर वालों से कोई जानकारी नहीं मिली तो थानाप्रभारी ने उस के बारे में पता करने के लिए उस के मोबाइल को सर्विलांस पर लगवा दियाआखिर 2 फरवरी, 2014 को घटना के 10 दिनों बाद पुलिस ने मुखबिर के जरिए पप्पू और उस के दोस्त को मोटरसाइकिल सहित लोरपुरवा के पास से उस समय गिरफ्तार कर लिया, जब दोनों नेपाल की ओर जा रहे थे. पुलिस पप्पू और उस के दोस्त अवधेश को थाने ले आई. तलाशी में पुलिस को अवधेश के पास से 315 बोर का देशी तमंचा और कारतूस भी मिले. पुलिस ने दोनों चीजों को अपने कब्जे में ले लिया. जबकि पप्पू उर्फ दुर्गेश के पास से सिर्फ 2 सिम वाला मोबाइल फोन मिला था

पुलिस दोनों से अलगअलग पूछताछ करने लगी. दोनों ने पहले तो शीला की हत्या से इनकार किया, लेकिन पुलिस के पास उन के खिलाफ इतने सुबूत थे कि ज्यादा देर तक वे अपनी बात पर टिके नहीं रह सके और सच्चाई कुबूल कर के शीला की हत्या की पूरी कहानी उगल दी. इस पूछताछ में पप्पू और अवधेश ने शीला की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस प्रकार थी. जिला महाराजगंज के थाना पनियरा के गांव अहिरौली में रहता था वृजवंशी. उस के परिवार में पत्नी फूलवासी के अलावा कुल 7 बच्चे थे. शीला उन में पांचवें नंबर पर थी. वृजवंशी के पास इतनी खेती थी कि उसी से उन के इतने बड़े परिवार का गुजरबसर हो रहा था. लेकिन बेटे बड़े हुए, उन्होंने काफी जिम्मेदारियां अपने कंधों पर ले ली थीं. बेटों की शादियां हो गईं तो बेटों की मदद से वृजवंशी बेटियों की शादियां करने लगा.

शीला जवान हुई तो वृजवंशी को उस की शादी की चिंता हुई. बाप और भाई उस के लिए लड़का ढूंढ पाते उस के पहले ही वह गांव में ही बचपन के साथी दुर्गेश उर्फ पप्पू से आंखें लड़ा बैठी. दोनों साथसाथ खेलेकूदे ही नहीं थे, बल्कि एक ही स्कूल में पढ़े भी थे. दुर्गेश उर्फ पप्पू के पिता दूधनाथ भी खेती किसानी करते थे. उस के परिवार में पत्नी के अलावा एकलौता बेटा पप्पू और 3 बेटियां थीं. एकलौता होने की वजह से पप्पू को घर से कुछ ज्यादा ही लाडप्यार मिला, जिस की वजह से वह बिगड़ गया. जैसेतैसे उस ने इंटरमीडिएट कर के पढ़ाई छोड़ दी. इस के बाद गांव में घूमघूम कर आवारागर्दी करने लगा. शीला और पप्पू के संबंधों की जानकारी गांव वालों को हुई तो इस से वृजवंशी की बदनामी होने लगी. तब उसे चिंता हुई कि बात ज्यादा फैल गई  तो बेटी की शादी होना मुश्किल हो जाएगा. अब इस से बचने का एक ही उपाय था, शीला की शादी. वह उस के लिए लड़का ढूंढने लगा. क्योंकि अब देर करना ठीक नहीं था.

उस ने कोशिश की तो गोरखपुर के थाना गुलरिहा के गांव बनरहा का रहने वाला दिनेश उसे पसंद गया. उस ने जल्दी से शीला की शादी उस के साथ कर दी. शीला विदा हो कर ससुराल गई. दिनेश मुंबई में रहता था. कुछ दिन पत्नी के साथ रह कर वह मुंबई चला गया. शीला को उस ने बूढ़े मांबाप के पास उन की सेवा के लिए छोड़ दिया, ताकि किसी को कुछ कहने का मौका मिले. क्योंकि उन्हें तो पूरी जिंदगी साथ रहना है. शीला भले ही 2 बच्चों की मां बन गई थी, लेकिन पति के परदेस में रहने की वजह से वह अपने पहले प्यार दुर्गेश उर्फ पप्पू को कभी नहीं भूल पाई. शादी के बाद भी वह प्रेमी से मिलती रही. शीला का मुंहबोला भाई बन कर वह उस की ससुराल भी आता रहा. उस के सासससुर पप्पू को उस का भाई समझते थे, इसलिए उस के आनेजाने पर कभी रोक नहीं लगाई. जबकि भाईबहन के रिश्ते की आड़ में दोनों कुछ और ही गुल खिला रहे थे

पप्पू ने बातचीत के लिए शीला को मोबाइल फोन खरीद कर दे दिया था. सासससुर रात में सो जाते तो शीला मिस्डकाल कर देती. इस के बाद पप्पू फोन करता तो दोनों के बीच घंटों बातें होतीं. शीला को कई बार पप्पू से गर्भ भी ठहरा, लेकिन पप्पू ने हर बार उस का गर्भपात करा दिया. बारबार गर्भपात कराने से तंग कर शीला उस के साथ रहने की जिद करने लगी. जबकि पप्पू को शीला से नहीं, सिर्फ उस की देह से प्रेम था. शीला जब भी उस से साथ रखने के लिए कहती, वह कोई कोई बहाना बना देता. शीला जब उस पर जोर डालने लगी तो वह दूर भागने लगा. उस का कहना था कि घर वाले उसे रहने नहीं देंगे. अपना अलग घर है नहीं. तब शीला ने पप्पू को 1 लाख रुपए जमीन खरीद कर घर बनाने के लिए दिए. इस की जानकारी तो शीला के पति को थी, सासससुर को.

पप्पू ने पैसे तो लिए, लेकिन उस ने जमीन नहीं खरीदी. जब भी शीला जमीन और घर के बारे में पूछती, वह कोई कोई बहाना बना देता. जब शीला को लगने लगा कि पप्पू उसे बेवकूफ बना रहा है तो वह बेचैन हो उठीवह समझ गई कि उस से बहुत बड़ी भूल हो गई है. जिस के लिए उस ने घरपरिवार के साथ विश्वासघात किया, वह उस के साथ विश्वासघात कर रहा है. उस ने ठान लिया कि वह ऐसे आदमी को किसी कीमत पर नहीं बख्शेगी. वह पप्पू से अपने रुपए मांगने लगी. शीला ने जब पैसे के लिए पप्पू पर दबाव बनाया तो वह विचलित हो उठा. उस की समझ में गया कि शीला उस की नीयत जान गई है. अब उस की दाल गलने वाली नहीं है. शीला के पैसे उस ने खर्च कर दिए थे

लाख रुपए की व्यवस्था वह कर नहीं सकता था. इसलिए शीला से पीछा छुड़ाने के लिए उस ने एक खतरनाक योजना बना डाली. शीला की हत्या करना उस के अकेले के वश का नहीं था, इसलिए उस ने एक पेशेवर बदमाश अवधेश से बात कीअवधेश महाराजगंज के थाना पनियरा के गांव खजुही का रहने वाला था. पप्पू से उस की दोस्ती भी थी. पनियरा थाने में उस के खिलाफ हत्या, हत्या के प्रयास, दुष्कर्म, लूट और राहजनी के कई मुकदमे दर्ज थे. योजना के मुताबिक, अवधेश ने 315 बोर के देशी कट्टे का इंतजाम किया. इस के बाद दोनों को मौके की तलाश थी. 22 जनवरी, 2014 की सुबह 7 बजे शीला ने पप्पू को फोन कर के पूछा कि इस समय वह कहां है, तो उस ने कहा कि इस समय वह शहर में है. कुछ देर में उस के पास पहुंच जाएगा

इस के बाद शीला ने फोन काट दिया. जबकि सही बात यह थी कि पप्पू उस समय नौतनवा में मौजूद था. उस ने शीला से झूठ बोला था. शीला से बात करने के बाद उस ने अपना मोबाइल बंद कर दिया. दुर्गेश उर्फ पप्पू को वह मौका मिल गया, जिस की तलाश में वह था. उस ने अवधेश को तैयार किया और मोटरसाइकिल से शीला की ससुराल बनरहा 11 बजे के आसपास पहुंच गया. शीला उसी का इंतजार कर रही थी. चायनाश्ता करा कर शीला मायके जाने की बात कह कर उन के साथ निकल पड़ी. उस ने सास से कहा था कि 2-1 दिन में वह लौट आएगी

दिन में कुछ हो नहीं सकता था. इसलिए पप्पू को किसी तरह रात करनी थी. इस के लिए वह कुसुम्ही के जंगल स्थित बुढि़या माई के मंदिर दर्शन करने गया. वहां से निकल कर वह सब के साथ शहर में घूमता रहा. अचानक रात साढ़े 8 बजे पप्पू को कुछ याद आया तो उस ने मोबाइल औन कर के फोन किया. उस समय वह चिलुयाताल के मोहरीपुर में था. इस के बाद वे कैंपियरगंज पहुंचे. रात साढ़े 10 बजे के करीब पप्पू सब के साथ मोहम्मदपुर नवापार पहुंचा तो ठंड का मौसम होने की वजह से चारों ओर सुनसान हो चुका था. पप्पू ने अचानक मोटरसाइकिल सड़क के किनारे रोक दी. शीला ने रुकने की वजह पूछी तो पप्पू ने कहा कि पेशाब करना है. पेशाब करने के बहाने वह थोड़ा आगे बढ़ गया तो अवधेश शीला के पास पहुंचा और कमर में खोंसा तमंचा निकाला और उस के सीने से सटा कर ट्रिगर दबा दिया.

गोली लगते ही शीला के मुंह से एक भयानक चीख निकली. तभी उस ने कट्टे की नाल उस के मुंह में घुसेड़ कर दूसरी गोली चला दी. इसी के साथ बच्चे को गोद में लिए हुए शीला जमीन पर गिरी और मौत के आगोश में समा गई. उस का मासूम बेटा सीने से चिपका सोता ही रहा. अपना काम कर के पप्पू और अवधेश चले गए. टैक्सी ड्राइवर किशोर सुबह उधर से गुजरा तो उस ने सड़क किनारे पड़ी शीला की लाश देख कर थानाप्रभारी चौथीराम यादव को सूचना दी.

पुलिस ने हत्या में इस्तेमाल की गई मोटरसाइकिल, 315 बोर का तमंचा और मोबाइल फोन बरामद कर लिया था. थाने की सारी काररवाई निबटा कर थानाप्रभारी चौथीराम ने पप्पू और अवधेश को अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.    

पत्‍नी को मारकर जमीन में दफनाया और उस पर लगाया आम का पेड़

घर वालों के लाख मना करने के बाद भी दीपा ने गांव के ही दूसरी जाति के युवक समरजीत से शादी कर ली. इस के बाद दीपा ने ऐसा क्या किया कि प्रेमी से पति बने समरजीत ने उस की हत्या कर लाश जमीन में दफना कर उस पर आम का पेड़ लगा दिया. समरजीत करीब एक साल बाद दिल्ली से अपने भाइयों अरविंद और धर्मेंद्र के साथ गांव धनजई लौटा तो मोहल्ले वालों ने उस में कई बदलाव देखे. उस के पहनावे और बातचीत में काफी अंतर चुका था. उस का बातचीत का तरीका गांव वालों से एकदम अलग था. इस से गांव वाले समझ गए कि दिल्ली में उस का काम ठीकठाक चल रहा है. धनजई गांव उत्तर प्रदेश के जिला सुलतानपुर के थाना कूंड़ेभार में पड़ता है.

देखने से ही लग रहा था कि समरजीत की हालत अब पहले से अच्छी हो गई है, लेकिन गांव वाले एक बात नहीं समझ पा रहे थे कि जब वह गांव से गया था तो गांव के ही रहने वाले रामसनेही की बेटी दीपा को भगा कर ले गया था. लेकिन उस के साथ दीपा दिखाई नहीं दे रही थी. दरअसल, दीपा और समरजीत के बीच काफी दिनों से प्रेमसंबंध चल रहा था. जिस के चलते वह और दीपा करीब एक साल पहले गांव से भाग गए थे. बाद में रामसनेही को पता लगा कि समरजीत दीपा के साथ दक्षिणपूर्वी दिल्ली के पुल प्रहलादपुर गांव में रह रहा है. गांव के ही लड़के के साथ बेटी के भाग जाने की बदनामी रामसनेही झेल रहा था. उसे जब पता लगा कि समरजीत के साथ दीपा नहीं आई है तो यह बात उसे कुछ अजीब सी लगी. बेटी को भगा कर ले जाने वाला समरजीत उस के लिए एक दुश्मन था.

इस के बावजूद भी बेटी की ममता उस के दिल में जाग उठी. उस ने समरजीत से बेटी के बारे में पूछ ही लिया. तब समरजीत ने बताया, ‘‘वह तो करीब एक महीने पहले नाराज हो कर दिल्ली से गांव चली आई थी. अब तुम्हें ही पता होगा कि वह कहां है?’’ यह सुन कर रामसनेही चौंका. उस ने कहा, ‘‘यह तुम क्या कह रहे हो? वो यहां आई ही नहीं है.’’

‘‘अब मुझे क्या पता वह कहां गई? आप अपनी रिश्तेदारियों वगैरह में देख लीजिए. क्या पता वहीं चली गई हो.’’

समरजीत की बात रामसनेही के गले नहीं उतरी. वह समझ नहीं पा रहा था कि समरजीत जो दीपा को कहीं देखने की बात कह रहा है, वह कहीं दूसरी जगह क्यों जाएगी? फिर भी उस का मन नहीं माना. उस ने अपने रिश्तेदारों के यहां फोन कर के दीपा के बारे में पता किया, लेकिन पता चला कि वह कहीं नहीं है. बात एक महीना पुरानी थी. ऐसे में वह बेटी को कहां ढूंढ़े. बेटी के बारे में सोचसोच कर उस की चिंता बढ़ती जा रही थी. यह बात दिसंबर, 2013 के आखिरी हफ्ते की थी. समरजीत के साथ उस के भाई अरविंद और धर्मेंद्र भी गांव आए थे. रामसनेही ने दोनों भाइयों से भी बेटी के बारे में पूछा. लेकिन उन से भी उसे कोई ठोस जवाब नहीं मिला. 10-11 दिन गांव में रहने के बाद समरजीत दिल्ली लौट गया.

बेटी की कोई खैरखबर मिलने से रामसनेही और उस की पत्नी बहुत परेशान थे. वह जानते थे कि समरजीत दिल्ली के पुल प्रहलादपुर में रहता है. वहीं पर उन के गांव का एक आदमी और रहता था. उस आदमी के साथ जनवरी, 2014 के पहले हफ्ते में रामसनेही भी पुल प्रहलादपुर गयाथोड़ी कोशिश के बाद उसे समरजीत का कमरा मिल गया. उस ने वहां आसपास रहने वालों से बेटी दीपा का फोटो दिखाते हुए पूछा. लोगों ने बताया कि जिस दीपा नाम की लड़की की बात कर रहा है, वह 22 दिसंबर, 2013 तक तो समरजीत के साथ देखी गई थी, इस के बाद वह दिखाई नहीं दी है. समरजीत ने रामसनेही को बताया था दीपा एक महीने पहले यानी नवंबर, 2013 में नाराज हो कर दिल्ली से चली गई थी, जबकि पुल प्रहलादपुर गांव के लोगों से पता चला था कि वह 22 दिसंबर, 2013 तक समरजीत के साथ थी. इस से रामसनेही को शक हुआ कि समरजीत ने उस से जरूर झूठ बोला है. वह दीपा के बारे में जानता है कि वह इस समय कहां है?

रामसनेही के मन में बेटी को ले कर कई तरह के खयाल पैदा होने लगे. उसे इस बात का अंदेशा होने लगा कि कहीं इन लोगों ने बेटी के साथ कोई अनहोनी तो नहीं कर दी. यही सब सोचते हुए वह 6 जनवरी, 2014 को दोपहर के समय थाना पुल प्रहलादपुर पहुंचा और वहां मौजूद थानाप्रभारी धर्मदेव को बेटी के गायब होने की बात बताई. रामसनेही ने थानाप्रभारी को बेटी का हुलिया बताते हुए आरोप लगाया कि समरजीत और उस के भाइयों, अरविंद धर्मेंद्र ने अपने मामा नरेंद्र, राजेंद्र और वीरेंद्र के साथ बेटी को अगवा कर उस के साथ कोई अप्रिय घटना को अंजाम दे दिया है. थानाप्रभारी धर्मदेव ने उसी समय रामसनेही की तहरीर पर भादंवि की धारा 365, 34 के तहत रिपोर्ट दर्ज कराकर सूचना एसीपी जसवीर सिंह मलिक को दे दी.

मामला जवान लड़की के अपहरण का था, इसलिए एसीपी जसवीर सिंह मलिक ने थानाप्रभारी धर्मदेव के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में इंसपेक्टर आर.एस. नरुका, सबइंसपेक्टर किशोर कुमार, युद्धवीर सिंह, हेडकांस्टेबल श्रवण कुमार, नईम अहमद, राकेश, कांस्टेबल अनुज कुमार तोमर, धर्म सिंह आदि को शामिल किया गया. उधर दिल्ली में रह रहे समरजीत और उस के भाइयों को जब पता चला कि दीपा का बाप रामसनेही पुल प्रहलादपुर आया हुआ है तो तीनों भाई दिल्ली से फरार हो गए. पुलिस टीम जब उन के कमरे पर गई तो वहां उन तीनों में से कोई नहीं मिला. चूंकि तीनों आरोपी रामसनेही के गांव के ही रहने वाले थे, इसलिए पुलिस टीम रामसनेही को ले कर यूपी स्थित उस के गांव धनजई पहुंची. लेकिन घर पर समरजीत और उस के घर वालों में से कोई नहीं मिला.

अब पुलिस को अंदेशा हो गया कि जरूर कोई कोई गड़बड़ है, जिस की वजह से ये लोग फरार हैं. गांव के लोगों से बात कर के पुलिस ने यह पता लगाया कि इन के रिश्तेदार वगैरह कहांकहां रहते हैं, ताकि वहां जा कर आरोपियों को तलाशा जा सके. इस से पुलिस को पता चला कि सुलतानपुर और फैजाबाद के कई गांवों में समरजीत के रिश्तेदार रहते हैं. उन रिश्तेदारों के यहां जा कर दिल्ली पुलिस ने दबिशें दीं, लेकिन वे सब वहां भी नहीं मिले. दिल्ली पुलिस ने समरजीत के सभी रिश्तेदारों पर दबाव बनाया कि आरोपियों को जल्द से जल्द पुलिस के हवाले करें. उधर बेटी की चिंता में रामसनेही का बुरा हाल था. वह पुलिस से बारबार बेटी को जल्द तलाशने की मांग कर रहा था.

समरजीत या उस के भाइयों से पूछताछ करने के बाद ही दीपा के बारे में कोई जानकारी मिल सकती थी. इसलिए दिल्ली पुलिस की टीम अपने स्तर से ही आरोपियों को तलाशती रही9 जनवरी, 2014 को पुलिस को सूचना मिली कि समरजीत सुलतानपुर के ही गांव नगईपुर, सामरी बाजार में रहने वाले अपने मामा के यहां आया हुआ है. खबर मिलते ही पुलिस नगईपुर गांव पहुंच गई. सूचना एकदम सही निकली. वहां पर समरजीत, उस के भाई अरविंद और धर्मेंद्र के अलावा उस का मामा नरेंद्र भी मिल गयाचूंकि दीपा समरजीत के साथ ही रह रही थी, इसलिए पुलिस ने सब से पहले उसी से दीपा के बारे में पूछा. इस पर समरजीत ने बताया, ‘‘सर, नवंबर, 2013 में दीपा उस से लड़झगड़ कर दिल्ली से अपने गांव जाने को कह कर चली आई थी. इस के बाद वह कहां गई, इस की उसे जानकारी नहीं है.’’

‘‘लेकिन पुल प्रहलादपुर में जहां तुम लोग रहते थे, वहां जा कर हम ने जांच की तो जानकारी मिली कि दीपा 23 दिसंबर, 2013 को दिल्ली में ही तुम्हारे साथ थी.’’ थानाप्रभारी धर्मदेव ने कहा तो समरजीत के चेहरे का रंग उड़ गयाथानाप्रभारी उस का हावभाव देख कर समझ गए कि यह झूठ बोल रहा है. उन्होंने रौबदार आवाज में उस से कहा, ‘‘देखो, तुम हम से झूठ बोलने की कोशिश मत करो. दीपा के साथ तुम लोगों ने जो कुछ भी किया है, हमें सब पता चल चुका है. वैसे एक बात बताऊं, सच्चाई उगलवाने के हमारे पास कई तरीके हैं, जिन के बारे में तुम जानते भी होगे. अब गनीमत इसी में है कि तुम सारी बात हमें खुद बता दो, वरना…’’

इतना सुनते ही वह डर गया. वह समझ गया कि अगर सच नहीं बताया कि पुलिस बेरहमी से उस की पिटाई करेगी. इसलिए वह सहम कर बोला, ‘‘सर, हम ने दीपा को मार दिया है.’’

‘‘उस की लाश कहां है?’’ थाना प्रभारी ने पूछा.

‘‘सर, उस की लाश बाग में दफन कर दी है.’’ समरजीत ने कहा तो पुलिस चारों आरोपियों के साथ उस बाग में पहुंची, जहां उन्होंने दीपा की लाश दफन करने की बात कही थी. समरजीत के मामा नरेंद्र ने पुलिस को आम के बाग में वह जगह बता दी. लेकिन उस जगह तो आम का पेड़ लगा हुआ था. नरेंद्र ने कहा कि लाश इसी पेड़ के नीचे है. उन लोगों की निशानदेही पर पुलिस ने वहां खुदाई कराई तो वास्तव में एक शाल में गठरी के रूप में बंधी एक महिला की लाश निकली. उस समय रामसनेही भी पुलिस के साथ था. लाश देखते ही वह रोते हुए बोला, ‘‘साहब यही मेरी दीपा है. देखो इन्होंने मेरी बेटी का क्या हाल कर दिया. मुझे पहले ही इन लोगों पर शक हो रहा था. इन के खिलाफ आप सख्त से सख्त काररवाई कीजिए, ताकि ये बच सकें.’’

वहां खड़े गांव वालों ने तसल्ली दे कर किसी तरह रामसनेही को चुप कराया. गांव वाले इस बात से हैरान थे कि समरजीत दीपा को बहुत प्यार करता था, जिस के कारण दोनों गांव से भाग गए थे. फिर समरजीत ने उस के साथ ऐसा क्यों किया?

पुलिस ने लाश का मुआयना किया तो उस के गले पर कुछ निशान पाए गए. इस से अनुमान लगाया कि दीपा की हत्या गला घोंट कर की गई थी. मौके की जरूरी काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए सुलतानपुर के पोस्टमार्टम हाऊस भेज दिया और चारों अभियुक्तों को गिरफ्तार कर के दिल्ली ले आई. थाना पुल प्रहलादपुर में समरजीत, अरविंद, धर्मेंद्र और इन के मामा नरेंद्र से जब पूछताछ की गई तो दीपा और समरजीत के प्रेमप्रसंग से ले कर मौत का तानाबाना बुनने तक की जो कहानी सामने आई, वह बड़ी ही दिलचस्प निकली. उत्तर प्रदेश के जिला सुलतानपुर के थाना कूंड़ेभार में आता है एक गांव धनजई, इसी गांव में सूर्यभान सिंह परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटे धर्मेंद्र, अरविंद और समरजीत थे. अरविंद और धर्मेंद्र शादीशुदा थे. दोनों भाई दिल्ली में ड्राइवर की नौकरी करते थे. समरजीत गांव में ही खेतीकिसानी करता था. वह खेतीकिसानी करता जरूर था, लेकिन उसे अच्छे कपड़े पहनने का शौक था.

वह जवान तो था ही. इसलिए उस का मन ऐसा साथी पाने के लिए बेचैन था, जिस से अपने मन की बात कह सके. इसी दौरान उस की नजरें दीपा से दोचार हुईं. दीपा रामसनेही की 20 वर्षीया बेटी थी. दीपा तीखे नयननक्श और गोल चेहरे वाली युवती थी. दीपा उस की बिरादरी की नहीं थी, फिर भी उस का झुकाव उस की तरफ हो गया. फिर दोनों के बीच बातों का सिलसिला ऐसा शुरू हुआ कि वे दोनों एकदूसरे के करीब आते गएदोनों ही चढ़ती जवानी पर थे, इसलिए जल्दी ही उन के बीच शारीरिक संबंध बन गए. एकदूसरे को शरीर सौंपने के बाद उन की सोच में इस कदर बदलाव आया कि उन्हें अपने प्यार के अलावा सब कुछ फीका लगने लगा. उन्हें ऐसा लग रहा था, जैसे उन की मंजिल यहीं तक हो. मौका मिलने पर दोनों खेतों में एकदूसरे से मिलते रहे. उन के प्यार को देख कर ऐसा लगता था, जैसे भले ही उन के शरीर अलगअलग हों, लेकिन जान एक हो.

उन्होंने शादी कर के अपनी अलग दुनिया बसाने तक की प्लानिंग कर ली. घर वाले उन की शादी करने के लिए तैयार हो सकेंगे, इस का विश्वास दोनों को नहीं था. इस की वजह साफ थी कि दोनों की जाति अलगअलग थी और दूसरे दोनों एक ही गांव के थे. घर वाले तैयार हों या हों, उन्हें इस बात की फिक्र थी. वे जानते थे कि प्यार के रास्ते में तमाम तरह की बाधाएं आती हैं. सच्चे प्रेमी उन बाधाओं की कभी फिक्र नहीं करते. वे परिवार और समाज के व्यंग्यबाणों और उन के द्वारा खींची गई लक्ष्मण रेखा को लांघ कर अपने मुकाम तक पहुंचने की कोशिश करते हैं. समरजीत और दीपा भले ही सोच रहे थे कि उन का प्यार जमाने से छिपा हुआ है, लेकिन यह केवल उन का भ्रम था. हकीकत यह थी कि इस तरह के काम कोई चाहे कितना भी चोरीछिपे क्यों करे, लोगों को पता चल ही जाता है. समरजीत और दीपा के मामले में भी ऐसा ही हुआ. मोहल्ले के कुछ लोगों को उन के प्यार की खबर लग गई.

फिर क्या था. मोहल्ले के लोगों से बात उड़तेउड़ते इन दोनों के घरवालों के कानों में भी पहुंच गई. समरजीत के पिता सूर्यभान सिंह ने बेटे को डांटा तो वहीं दूसरी तरफ दीपा के पिता रामसनेही ने भी दीपा पर पाबंदियां लगा दीं. उसे इस बात का डर था कि कहीं कोई ऐसीवैसी बात हो गई तो उस की शादी करने में परेशानी होगी. कहते हैं कि प्यार पर जितनी बंदिशें लगाई जाती हैं, वह और ज्यादा बढ़ता है यानी बंदिशों से प्यार की डोर टूटने के बजाय और ज्यादा मजबूत हो जाती है. बेटी पर बंदिशें लगाने के पीछे रामसनेही की मंशा यही थी कि वह समरजीत को भूल जाएगी. लेकिन उस ने इस बात की तरफ गौर नहीं किया कि घर वालों के सो जाने के बाद दीपा अभी भी समरजीत से फोन पर बात करती है. यानी भले ही उस की अपने प्रेमी से मुलाकात नहीं हो पा रही थी, वह फोन पर दिल की बात उस से कर लेती थी.

एक बार रामसनेही ने उसे रात को फोन पर बात करते देखा तो उस ने उस से पूछा कि किस से बात कर रही है. तब दीपा ने साफ बता दिया कि वह समरजीत से बात कर रही है. इतना सुनते ही रामसनेही को गुस्सा गया और उस ने उस की पिटाई कर दी. रामसनेही ने सोचा कि पिटाई से दीपा के मन में खौफ बैठ जाएगा. लेकिन इस का असर उलटा हुआ. सन 2012 में दीपा समरजीत के साथ भाग गई. समरजीत प्रेमिका को ले कर हरिद्वार में अपने एक परिचित के यहां चला गया. तब रामसनेही ने थाना कूंडे़भार में बेटी के गायब हेने की सूचना दर्ज करा दीचूंकि गांव से समरजीत भी गायब था. इसलिए लोगों को यह बात समझते देर नहीं लगी कि दीपा समरजीत के संग ही भागी है. तब रामसनेही ने गांव में पंचायत बुला कर पंचों की मार्फत समरजीत के पिता सूर्यभान सिंह पर अपनी बेटी को ढूंढ़ने का दबाव बनाया.

आज भी उत्तर प्रदेश और हरियाणा के कुछ गांवों में पंचों की बातों का पालन किया जाता है. सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए कई मामलों में पंचायतों के फैसले सही भी होते हैं. अपनी मानमर्यादा और सामाजिक दबाव को देखते हुए लोग पंचों की बात का पालन भी करते हैं. पंचायती फैसले के बाद सूर्यभान सिंह ने अपने स्तर से समरजीत और दीपा को तलाशना शुरू किया. बाद में उसे पता लगा कि समरजीत और दीपा हरिद्वार में हैं तो वह उन दोनों को हरिद्वार से गांव ले आया. दोनों के घर वालों ने उन्हें फिर से समझाया. समरजीत और दीपा कुछ दिनों तक तो ठीक रहे, इस के बाद उन्होंने फिर से मिलनाजुलना शुरू कर दिया. फिर वे दोनों अंबाला भाग गए. वहां पर समरजीत की बड़ी बहन रहती थी. समरजीत दीपा को ले कर बहन के यहां ही गया था. उस ने भी उन दोनों को समझाया. उस ने पिता को इस की सूचना दे दी. सूर्यभान सिंह इस बार भी उन दोनों को गांव ले आए.

बेटी के बारबार भागने पर रामसनेही और उस के परिवार की खासी बदनामी हो रही थी. अब उस के पास एक ही रास्ता था कि उस की शादी कर दी जाए. लिहाजा उस ने उस की फटाफट शादी करने का प्लान बनाया. वह उस के लिए लड़का देखने लगादीपा को जब पता चला कि घर वाले उस की जल्द से जल्द शादी करने की फिराक में हैं तो उस ने आखिर अपनी मां से कह ही दिया कि वह समरजीत के अलावा किसी और से शादी नहीं करेगी. उस की इस जिद पर मां ने उस की पिटाई कर दी. इस के बाद 27 फरवरी, 2013 को दीपा और समरजीत तीसरी बार घर से भाग गए. इस बार समरजीत उसे दिल्ली ले गया. दक्षिणपूर्वी दिल्ली के पुल प्रहलादपुर गांव में समरजीत के भाई धर्मेंद्र और अरविंद रहते थे. वह उन्हीं के पास चला गया. बाद में समरजीत और दीपा ने मंदिर में शादी कर ली. फिर उसी इलाके में कमरा ले कर पतिपत्नी की तरह रहने लगे.

पुल प्रहलादपुर में रामसनेही के कुछ परिचित भी रहते थे. उन्हीं के द्वारा उसे पता चला कि दीपा समरजीत के साथ दिल्ली में रह रही है. खबर मिलने के बावजूद भी रामसनेही ने उसे वहां से लाना जरूरी नहीं समझा. वह जानता था कि दीपा घर से 2 बार भागी और दोनों बार उसे घर लाया गया था. जब वह घर रुकना ही नहीं चाहती तो उसे फिर से घर लाने से क्या फायदा. समरजीत के भाई अरविंद और धर्मेंद्र ड्राइवर थे. जबकि समरजीत को फिलहाल कोई काम नहीं मिल रहा था. उस की गृहस्थी का खर्चा दोनों भाई उठा रहे थेसमरजीत भाइयों पर ज्यादा दिनों तक बोझ नहीं बनना चाहता था, इसलिए कुछ दिनों बाद ही एक जानकार की मार्फत ओखला फेज-1 स्थित एक सिक्योरिटी कंपनी में नौकरी कर ली. उस की चिंता थोड़ी कम हो गई.

दोनों की गृहस्थी हंसीखुशी से चल रही थी. चूंकि समरजीत सिक्योरिटी गार्ड के रूप में काम कर रहा था, इसलिए कभी उस की ड्यूटी नाइट की लगती थी तो कभी दिन की. वह मन लगा कर नौकरी कर रहा था. जिस वजह से वह पत्नी की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दे पा रहा था. इस का नतीजा यह निकला कि पास में ही रहने वाले एक युवक से दीपा के नाजायज संबंध बन गए. समरजीत दीपा को जीजान से चाहता था, इसलिए उसे पत्नी पर विश्वास था. लेकिन उसे इस बात की भनक तक नहीं लगी कि उस के विश्वास को धता बता कर वह क्या गुल खिला रही है. कहते हैं कि कोई भी गलत काम ज्यादा दिनों तक छिपाया नहीं जा सकता. एक एक दिन किसी तरीके से वह लोगों के सामने ही जाता है.

दीपा की आशिकमिजाजी भी एक दिन समरजीत के सामने गई. हुआ यह था कि एक बार समरजीत की रात की ड्यूटी लगी थी. वह शाम 7 बजे ही घर से चला गया था. दीपा को पता था कि पति की ड्यूटी रात 8 बजे से सुबह 8 बजे तक की है. जब भी पति की रात की ड्यूटी होती थी, दीपा प्रेमी को रात 10 बजे के करीब अपने कमरे पर बुला लेती थी. मौजमस्ती करने के बाद वह रात में ही चला जाता था. उस दिन भी उस ने अपने प्रेमी को घर बुला लिया.  रात 11 बजे के करीब समरजीत की तबीयत अचानक खराब हो गई. ड्यूटी पर रहते वह आराम नहीं कर सकता था. वह चाहता था कि घर जा कर आराम करे. लेकिन उस समय घर जाने के लिए उसे कोई सवारी नहीं मिल रही थी. इसलिए उस ने अपने एक दोस्त से घर छोड़ने को कहा. तब दोस्त अपनी मोटरसाइकिल से उसे उस के कमरे के बाहर छोड़ आया.

समरजीत ने जब अपने कमरे का दरवाजा खटखटाया तो प्रेमी के साथ गुलछर्रे उड़ा रही दीपा दरवाजे की दस्तक सुन कर घबरा गई. उस के मन में विचार आया कि पता नहीं इतनी रात को कौन गया. प्रेमी को बेड के नीचे छिपने को कह कर उस ने अपने कपड़े संभाले और बेमन से दरवाजे की तरफ बढ़ी. जैसे ही उस ने दरवाजा खोला, सामने पति को देख कर वह चौंक कर बोली, ‘‘तुम, आज इतनी जल्दी कैसे गए?’’

‘‘आज मेरी तबीयत ठीक नहीं है इसलिए ड्यूटी बीच में ही छोड़ कर गया.’’ समरजीत कमरे में घुसते हुए बोला. कमरे में बेड के नीचे दीपा का प्रेमी छिपा हुआ था. दीपा इस बात से डर रही थी कि कहीं आज उस की पोल खुल जाए. समरजीत की तो तबीयत खराब थी. वह जैसे ही बेड पर लेटा, उसी समय बेड के नीचे से दीपा का प्रेमी निकल कर भाग खड़ा हुआ. अपने कमरे से किसी आदमी को निकलते देख समरजीत चौंका. वह उस की सूरत नहीं देख पाया था. समरजीत उस भागने वाले आदमी को भले ही नहीं जानता था, लेकिन उसे यह समझते देर नहीं लगी कि उस की गैरमौजूदगी में यह आदमी कमरे में क्या कर रहा होगावह गुस्से में भर गया. उस ने पत्नी से पूछा, ‘‘यह कौन था और यहां क्यों आया था?’’

‘‘पता नहीं कौन था. कहीं ऐसा तो नहीं कि वह चोर हो. कोई सामान चुरा कर तो नहीं ले गया.’’ दीपा ने बात घुमाने की कोशिश करते हुए कहा और संदूक का ताला खोल कर अपना कीमती सामान तलाशने लगीतभी समरजीत ने कहा, ‘‘तुम मुझे बेवकूफ समझती हो क्या? मुझे पता है कि वह यहां क्यों आया था. उसे जो चीज चुरानी थी, वह तुम ने उसे खुद ही सौंप दी. अब बेहतर यह है कि जो हुआ उसे भूल जाओ. आइंदा यह व्यक्ति यहां नहीं आना चाहिए. और ही ऐसी बात मुझे सुनने को मिलनी चाहिए.’’

पति की नसीहत से दीपा ने राहत की सांस ली. समरजीत तबीयत खराब होने पर घर आराम करने आया था, लेकिन आराम करना भूल कर वह रात भर इसी बात को सोचता रहा कि जिस दीपा के लिए उस ने अपना गांव छोड़ा, उसे पत्नी बनाया, उसी ने उस के साथ इतना बड़ा विश्वासघात क्यों किया. वह इस बात को अच्छी तरह जानता था कि जब कोई भी महिला एक बार देहरी लांघ जाती है तो उस पर विश्वास करना मूर्खता होती है. अगले दिन जब वह ड्यूटी पर गया तो वहां भी उस का मन नहीं लगा. उस के मन में यही बात घूम रही थी कि दीपा अपने यार के साथ गुलछर्रे उड़ा रही होगी. घर लौटने के बाद उस ने अपने भाइयों अरविंद और धर्मेंद्र से दीपा के बारे में बात की. यह बात उस ने अपने मामा नरेंद्र को भी बताई

उन सभी ने फैसला किया कि ऐसी कुलच्छनी महिला की चौकीदारी कोई हर समय तो कर नहीं सकता. इसलिए उसे खत्म करना ही आखिरी रास्ता है. दीपा को खत्म करने का फैसला तो ले लिया, लेकिन अपना यह काम उसे कहां और कब करना है, इस की उन्होंने योजना बनाई. काफी सोचनेसमझने के बाद उन्होंने तय किया कि दीपा को दिल्ली में मारना ठीक नहीं रहेगा, क्योंकि लाख कोशिशों के बाद भी वह दिल्ली पुलिस से बच नहीं पाएंगे. अपने जिला क्षेत्र में ले जा कर ठिकाने लगाना उन्हें उचित लगा. समरजीत को पता था कि दीपा सुलतानपुर जाने के लिए आसानी से तैयार नहीं होगी. उसे झांसे में लेने के लिए उस ने एक दिन कहा, ‘‘दीपा, सुलतानपुर के ही नगईपुर में मेरे मामा रहते हैं. उन के कोई बच्चा नहीं है और उन के पास जमीनजायदाद भी काफी है. उन्होंने हम दोनों को अपने यहां रहने के लिए बुलाया है. तुम्हें तो पता ही है कि दिल्ली में हम लोगों का गुजारा बड़ी मुश्किल से हो रहा है. इसलिए मैं चाहता हूं कि हम लोग कुछ दिन मामा के घर पर रहें.’’

पति की बात सुन कर दीपा ने भी सोचा कि जब उन की कोई औलाद नहीं है तो उन के बाद सारी जायदाद पति की ही हो जाएगी. इसलिए उस ने मामा के यहां रहने की हामी भर दी. 23 दिसंबर, 2013 को समरजीत दीपा को ट्रेन से सुलतानपुर ले गया. उस के साथ दोनों भाई अरविंद और धर्मेंद्र भी थे. जब वे सुलतानपुर स्टेशन पहुंचे, अंधेरा घिर चुका था. नगईपुर सुलतानपुर स्टेशन से दूर था. नगईपुर गांव से पहले ही समरजीत के मामा नरेंद्र का आम का बाग था. प्लान के मुताबिक नरेंद्र उन का उसी बाग में पहले से ही इंतजार कर रहा था. बाग के किनारे पहुंच कर तीनों भाइयों ने दीपा की गला घोंट कर हत्या कर दी और बाग में ही गड्ढा खोद कर लाश को दफना दिया.

जिस गड्ढे में उन्होंने लाश दफन की थी, जल्दबाजी में वह ज्यादा गहरा नहीं खोदा गया था. नरेंद्र को इस बात का अंदेशा हो रहा था कि जंगली जानवर मिट्टी खोद कर लाश खाने लगें. ऐसा होने पर भेद खुलना लाजिमी था इसलिए इस के 2 दिनों बाद नरेंद्र रात में ही अकेला उस बाग में गया और वहां से 20-25 कदम दूर दूसरा गहरा गड्ढा खोदा. फिर पहले गड्ढे से दीपा की लाश निकालने के बाद उस ने उसे उसी की शाल में गठरी की तरह बांध दियाउस गठरी को उस ने दूसरे गहरे गड्ढे में दफना कर उस के ऊपर आम का एक पेड़ लगा दिया ताकि किसी को कोई शक हो. दीपा को ठिकाने लगाने के बाद वे इस बात से निश्चिंत थे कि उन के अपराध की किसी को भनक लगेगी. यह जघन्य अपराध करने के बाद अरविंद और धर्मेंद्र पहले की ही तरह बनठन कर घूम रहे थे. उन को देख कर कोई अनुमान भी नहीं लगा सकता था कि उन्होंने हाल ही में कोई बड़ा अपराध किया है.

गांव के ज्यादातर लोगों को पता था कि दीपा दिल्ली में समरजीत के साथ पत्नी की तरह रह रही है. जब उन्होंने समरजीत को गांव में अकेला देखा तो उन्होंने उस से दीपा के बारे में पूछाजब दीपा के पिता रामसनेही को भी जानकारी मिली कि समरजीत के साथ दीपा गांव नहीं आई है तो उस ने उस से बेटी के बारे में पूछा. तब समरजीत ने उसे झूठी बात बताई कि दीपा एक महीने पहले उस से झगड़ा कर के दिल्ली से गांव जाने की बात कह कर गई थी. समरजीत की यह बात सुन कर रामसनेही घबरा गया था. फिर वह बेटी की छानबीन करने दिल्ली पहुंचा और बाद में दिल्ली के पुल प्रहलादपुर थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दी.

इस के बाद ही पुलिस अभियुक्तों तक पहुंची. पुलिस ने समरजीत, अरविंद, धर्मेंद्र और मामा नरेंद्र को अपहरण कर हत्या और लाश छिपाने के जुर्म में गिरफ्तार कर 9 जनवरी, 2013 को दिल्ली के साकेत न्यायालय में महानगर दंडाधिकारी पवन कुमार की कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

   —कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

 

फेसबुक पर लड़की से दोस्‍ती ने ली सुदीप की जान

सलोनी नाबालिग थी और सुदीप 19 साल का. दोनों की फेसबुक पर दोस्ती हुई तो तथाकथित प्यार के नाम पर पश्चिम बंगाल के मालदा और लखनऊ की दूरियां सिमट गईं और सुदीप लखनऊ गया. इस के बाद जो हुआ उस ने 2 परिवारों को बरबाद कर दिया.    

रोमिला अपनी बेटी सलोनी के साथ लखनऊ के इंदिरा नगर मोहल्ले में रहती थी. उस का 3 मंजिल का मकान था. पहली दोनों मंजिलों पर रहने के लिए कमरे थे और तीसरी मंजिल पर गोदाम बना था, जहां कबाड़ और पुरानी चीजें रखी रहती थीं.ईसाई समुदाय की रोमिला मूलत: सुल्तानपुर जिले की रहने वाली थी. उस ने जौन स्विंग से प्रेम विवाह किया था. सलोनी के जन्म के बाद रोमिला और जौन स्विंग के संबंध खराब हो गएरोमिला ने घुटघुट कर जीने के बजाय अपने पति जौन स्विंग से तलाक ले लिया. इसी बीच रोमिला को लखनऊ के सरकारी अस्पताल में टैक्नीशियन की नौकरी मिल गई. वेतन ठीकठाक था. इसलिए वह अपनी आगे की जिंदगी अपने खुद के बूते पर गुजारना चाहती थी

स्विंग से प्यार, शादी और फिर तलाक ने रोमिला की जिंदगी को बहुत बोझिल बना दिया था. कम उम्र की तलाकशुदा महिला का समाज में अकेले रहना सरल नहीं होता, इस बात को ध्यान में रखते हुए रोमिला ने अपने को धर्मकर्म की बंदिशों में उलझा लिया. समय गुजर रहा था, बेटी बड़ी हो रही थी. रोमिला अपनी बेटी को पढ़ालिखा कर बड़ा बनाना चाहती थी. क्योंकि अब उस का भविष्य वही थी. सलोनी कावेंट स्कूल में पढ़ती थी, पढ़ने में होशियार. रोमिला ने लाड़प्यार से उस की परवरिश लड़कों की तरह की थीसलोनी भी खुद को लड़कों की तरह समझने लगी थी. वह जिद्दी स्वभाव की तो थी ही गुस्सा भी खूब करती थी. जन्म के समय ही कुछ परेशानियों के कारण सलोनी के शरीर के दाएं हिस्से में पैरालिसिस का अटैक पड़ा था, लेकिन उम्र बढ़ने के साथ उस का असर करीबकरीब खत्म हो गया था.

सलोनी बौबकट बाल रखती थी. उस की उम्र हालांकि 15 साल थी पर वह अपनी उम्र से बड़ी दिखाई देती थी. वह लड़कों की तरह टीशर्ट पैंट पहनती थी. सलोनी के साथ पढ़ने वाले लड़केलड़कियां स्मार्टफोन इस्तेमाल करते थे. सलोनी ने भी मां से जिद कर के स्मार्टफोन खरीदवा लियारोमिला जानती थी कि आजकल के बच्चे मोबाइल पर इंटरनेट लगा कर फेसबुक और वाट्सएप जैसी साइटों का इस्तेमाल करते हैं जो सलोनी जैसी कम उम्र लड़की के लिए ठीक नहीं है. लेकिन एकलौती बेटी की जिद के सामने उसे झुकना पड़ा. रोमिला सुबह 8 बजे अस्पताल जाती थी और शाम को 4 बजे लौटती थी. सलोनी भी सुबह 8 बजे स्कूल चली जाती थी और 2 बजे वापस आती थी. कठिन जीवन जीने के लिए रोमिला ने बेड की जगह घर में सीमेंट के चबूतरे बनवा रखे थे. मांबेटी बिस्तर डाल कर इन्हीं चबूतरों पर सोती थीं

रोमिला को अस्पताल से 45 हजार रुपए प्रतिमाह वेतन मिलता था. इस के बावजूद मांबेटी का खर्च बहुत कम था. रोमिला जो खाना बनाती थी वह कई दिन तक चलता था. मोबाइल फोन लेने के बाद सलोनी ने इंटरनेट के जरीए अपना फेसबुक पेज बना लिया था. वह अकसर अपने दोस्तों से चैटिंग करती रहती थी. इसी के चलते उस के कई नए दोस्त बन गए थे. उस के इन्हीं दोस्तों में से एक था पश्चिम बंगाल के मालदा का रहने वाला सुदीप दास. 19 साल का सुदीप एक प्राइवेट फैक्ट्री में काम करता थाउस के घर की हालत ठीक नहीं थी. उस का पिता सुधीरदास मालदा में मिठाई की एक दुकान पर काम करता था. जबकि मां कावेरी घरेलू महिला थी. उस का छोटा भाई राजदीप कोई काम नहीं करता था. सुदीप और उस के पिता की कमाई से ही घर का खर्च चलता था.

सुदीप और सलोनी के बीच चैटिंग के माध्यम से जो दोस्ती हुई धीरेधीरे प्यार तक जा पहुंची. नासमझी भरी कम उम्र का तकाजा था. चैटिंग करतेकरते सुदीप और सलोनी एकदूसरे के प्यार में पागल से हो गए. स्थिति यह गई कि सुदीप सलोनी से मिलने के लिए बेचैन रहने लगा. दोनों के पास एकदूसरे के मोबाइल नंबर थे. सो दोनों खूब बातें करते थे. मोबाइल पर ही दोनों की मिलने की बात तय हुई. सितंबर 2013 में सुदीप सलोनी से मिलने लखनऊ गया. सलोनी ने सुदीप को अपनी मां से मिलवाया. रोमिला बेटी को इतना प्यार करती थी कि उस की हर बात मानने को तैयार रहती थी. 2 दिन लखनऊ में रोमिला के घर पर रह कर सुदीप वापस चला गया

अक्तूबर में सलोनी का बर्थडे था. उस के बर्थडे पर सुदीप फिर लखनऊ आया. अब तक सलोनी ने सुदीप से अपने प्यार की बात मां से छिपा कर रखी थी. लेकिन इस बार उस ने अपने और सुदीप के प्यार की बात रोमिला को बता दी. सलोनी और सुदीप दोनों की ही उम्र ऐसी नहीं थी कि शादी जैसे फैसले कर सकें. इसलिए रोमिला ने दोनों को समझाने की कोशिश की. ऊंचनीच दुनियादारी के बारे में बताया. लेकिन सुदीप और सलोनी पर तो प्यार का भूत चढ़ा थारोमिला को इनकार करते देख सुदीप बड़े आत्मविश्वास से बोला, ‘‘आंटी, आप चिंता करें. मैं सलोनी का खयाल रख सकता हूं. मैं खुद भी नौकरी करता हूं और मेरे पिताजी भी. हमारे घर में भी कोई कुछ नहीं कहेगा.’’

बातचीत के दौरान रोमिला सुदीप के बारे में सब कुछ जान गई थी. इसलिए सोचविचार कर बोली, ‘‘देखो बेटा, तुम्हारी सारी बातें अपनी जगह सही हैं. मुझे इस रिश्ते से भी कोई ऐतराज नहीं है. पर मैं यह रिश्ता तभी स्वीकार करूंगी जब तुम कोई अच्छी नौकरी करने लगोगे. आजकल 10-5 हजार की नौकरी में घरपरिवार नहीं चलते. अभी तुम दोनों में बचपना है.’’

‘‘ठीक है आंटी, मैं आप की बात मान लेता हूं. लेकिन आप वादा करिए कि आप उसे मुझ से दूर नहीं करेंगी. जब मैं कुछ बन जाऊंगा तो सलोनी को अपनी बनाने आऊंगा.’’ सुदीप ने फिल्मी हीरो वाले अंदाज में रोमिला से अपनी बात कही. इस बार सुदीप सलोनी के घर पर एक सप्ताह तक रहा. इसी बीच रोमिला ने सुदीप से स्टांप पेपर पर लिखवा लिया कि वह किसी लायक बन जाने के बाद ही सलोनी से शादी करेगा. इस के बाद सुदीप अपने घर मालदा चला गया. लेकिन लखनऊ से लौटने के बाद उस का मन नहीं लग रहा था. जवानी में, खास कर चढ़ती उम्र में महबूबा से बड़ा दूसरा कोई दिखाई नहीं देता. कामधाम, भूखप्यास, घरपरिवार सब बेकार लगने लगते हैं. सुदीप का भी कुछ ऐसा ही हाल था. उस की आंखों के सामने सलोनी का गोलगोल सुंदर चेहरा और बोलती हुई आंखें घूमती रहती थीं. वह किसी भी सूरत में उसे खोने के लिए तैयार नहीं था

जब नहीं रहा गया तो 10 दिसंबर, 2013 को सुदीप वापस लखनऊ आया और रोमिला को बहकाफुसला कर सलोनी को मालदा घुमाने के लिए साथ ले गया. हालांकि सलोनी की मां रोमिला इस के लिए कतई तैयार नहीं थी. लेकिन सलोनी ने उसे मजबूर कर दिया. दरअसल मां के प्यार ने उसे इतना जिद्दी बना दिया था कि वह कोई बात सुनने को तैयार नहीं होती थी. रोमिला के लिए बेटी ही जीने का सहारा थी. वह उसे किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहती थी. इस लिए वह सलोनी की जिद के आगे झुक गई. करीब ढाई माह तक सलोनी सुदीप के साथ मालदा में रही.

मार्च, 2014 में सलोनी वापस गई. सुदीप भी उस के साथ आया था. बेटी का बदला हुआ स्वभाव देख कर रोमिला को झटका लगा. सलोनी उस की कोई बात सुनने को तैयार नहीं थी. पति से अलग होने के बाद रोमिला ने सोचा था कि वह बेटी के सहारे अपना पूरा जीवन काट लेगी. अब वह बेटी के दूर जाने की कल्पना मात्र से बुरी तरह घबरा गई थी. लेकिन हकीकत वह नहीं थी जो रोमिला देख या समझ रही थी. सच यह था कि सलोनी का मन सुदीप से उचट गया था. उस का झुकाव यश नाम के एक अन्य लड़के की ओर होने लगा था. जबकि सुदीप हर हाल में सलोनी को पाना चाहता था. वह कई बार उस के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश कर चुका था. यह बात मांबेटी दोनों को नागवार गुजरने लगी थी

रोमिला ने अस्पताल से 1 मार्च, 2014 से 31 मार्च तक की छुट्टी ले रखी थी. उस ने अस्पताल में छुट्टी लेने की वजह बेटी की परीक्षाएं बताई थीं. 7 अप्रैल, 2014 की सुबह रोमिला के मकान के पड़ोस में रहने वाले रणजीत सिंह ने थाना गाजीपुर कर सूचना दी कि बगल के मकान में बहुत तेज बदबू रही है. उन्होंने यह भी बताया कि मकान मालकिन रोमिला काफी दिनों से घर पर नहीं है. सूचना पा कर एसओ गाजीपुर नोवेंद्र सिंह सिरोही, सीनियर इंसपेक्टर रामराज कुशवाहा और सिपाही अरूण कुमार सिंह रोमिला के मकान पर पहुंच गएदेखने पर पता चला कि मकान के ऊपर के हिस्से में बदबू रही थी. पुलिस ने फोन कर के मकान मालकिन रोमिला को बुला लिया. वहां उस के सामने ही मकान खोल कर देखा गया तो पूरा मकान गंदा और रहस्यमय सा नजर आया. सिपाही अरूण कुमार और एसएसआई रामराज कुशवाहा तलाशी लेने ऊपर वाले कमरे में पहुंचे तो कबाड़ रखने वाले कमरे में एक युवक की सड़ीगली लाश मिली.

पुलिस ने रोमिला से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह लाश मालदा, पश्चिम बंगाल के रहने वाले सुदीप दास की है. वह उस की बेटी सलोनी का प्रेमी था और उस से शादी करना चाहता था. जब सलोनी ने इनकार कर दिया तो सुदीप ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली. रोमिला ने आगे बताया कि इस घटना से वह बुरी तरह डर गई थी. उसे लग रहा था कि हत्या के इल्जाम में फंस जाएगी. इसलिए वह घर को बंद कर के फरार हो गई थी. पुलिस ने रोमिला से नंबर ले कर फोन से सुदीप के घर संपर्क किया और इस मामले की पूरी जानकारी उस के पिता को दे दी. लेकिन उस के घर वाले लखनऊ कर मुकदमा कराने को तैयार नहीं थे. कारण यह कि वे लोग इतने गरीब थे कि उन के पास लखनऊ आने के लिए पैसा नहीं था. इस पर एसओ गाजीपुर ने अपनी ओर से मुकदमा दर्ज कर के इस मामले की जांच शुरू कर दी. प्राथमिक काररवाई के बाद सुदीप की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया.

8 अप्रैल 2014 को सुदीप की लाश की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद जो सच सामने आया, वह चौंका देने वाला था. इस बीच सलोनी भी गई थी. रोमिला और उस की बेटी सलोनी ने अपने बयानों में कई बातें छिपाने की कोशिश की थी. लेकिन उन के अलगअलग बयानों ने उन की पोल खोल दी. एसपी ट्रांसगोमती हबीबुल हसन और सीओ गाजीपुर विशाल पांडेय पुलिस विवेचना पर नजर रख रहे थे जिस से इस पूरे मामले का बहुत जल्दी पर्दाफाश हो गया. मांबेटी से पूछताछ के बाद जो कहानी सामने आई वह कुछ इस तरह थी. 13 मार्च, 2014 की रात को सलोनी अपने कमरे में किसी से फोन पर बात कर रही थी. इसी बीच सुदीप उस से झगड़ने लगा. वह गुस्से में बोला, ‘‘मैं ने मांबेटी दोनों को कितनी बार समझाया है कि मुझे खीर में इलायची डाल कर खाना पसंद नहीं है. लेकिन तुम लोगों पर मेरी बात का कोई असर नहीं होता.’’

उस की इस बात पर सलोनी को गुस्सा गया. उस ने सुदीप को लताड़ा, ‘‘तुम मां से झगड़ने के बहाने तलाश करते रहते हो. बेहतर होगा, तुम यहां से चले जाओ. मैं तुम से किसी तरह की दोस्ती नहीं रखना चाहती.’’

‘‘ऐसे कैसे चला जाऊं? मैं ने स्टांपपेपर पर लिख कर दिया है, तुम्हें मेरे साथ ही शादी करनी होगी. बस तुम 18 साल की हो जाओ. तब तक मैं कोई अच्छी नौकरी कर लूंगा और फिर तुम से शादी कर के तुम्हें साथ ले जाऊंगा. अब तुम्हारी मां चाहे भी तो तुम्हारी शादी किसी और से नहीं करा सकती.’’ सुदीप ने भी गुस्से में जवाब दिया.

‘‘मेरी ही मति मारी गई थी जो तुम्हें इतना मुंह लगा लिया.’’ कह कर सलोनी ऊपर चली गई. वहां उस की मां पहले से दोनों का लड़ाईझगड़ा देख रही थी.

‘‘सुदीप, तुम मेरे घर से चले जाओ.’’ रोमिला ने बेटी का पक्ष लेते हुए चेतावनी भरे शब्दों में कहा तो सुदीप उस से भी लड़नेझगड़ने लगा. यह देख मांबेटी को गुस्सा गया. सुदीप भी गुस्से में था. उस ने मांबेटी के साथ मारपीट शुरू कर दी. जल्दी ही वह दोनों पर भरी पड़ने लगा. तभी रोमिला की निगाह वहां रखी हौकी स्टिक पर पड़ीरोमिला ने हौकी उठा कर पूरी ताकत से सुदीप के सिर पर वार किया. एक दो नहीं कई वार. एक साथ कई वार होने से सुदीप की वहीं गिर कर मौत हो गई. सुदीप की मृत्यु के बाद मांबेटी दोनों ने मिल कर उस की लाश को बोरे में भर कर कबाड़ वाले कमरे में बंद कर दिया. इस के बाद अगली सुबह दोनों घर पर ताला लगा कर गायब हो गईं. पुलिस को उलझाने के लिए रोमिला ने बताया कि वह यह सोच कर डर गई थी कि सुदीप का भूत उसे परेशान कर सकता है. इसलिए, वे दोनों हवन कराने के लिए हरिद्वार चली गई थीं

सलोनी ने भी 14 मार्च को अपनी डायरी में लिखा था, ‘आत्माओं ने सुदीप को मार डाला. हम फेसबुक पर एकदूसरे से मिले थे. आत्माओं के पास लेजर जैसी किरणें हैं. वह हमें नष्ट कर देंगी. आत्माएं हमें फंसा देंगी.’ सलोनी ने इस तरह की और भी तमाम अनापशनाप बातें डायरी में लिखी थीं. रोमिला भी इसी तरह की बातें कर रही थी. पुलिस ने अपनी जांच में पाया कि मांबेटी हरिद्वार वगैरह कहीं नहीं गई थी बल्कि दोनों लखनऊ में इधरउधर भटक कर अपना समय गुजारती रही थीं. वे समझ नहीं पा रही थीं कि इस मामले को कैसे सुलझाएं, क्योंकि सुदीप की लाश घर में पड़ी थी. बहरहाल, उस की लाश की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद इस बात का खुलासा हो गया था कि मामला आत्महत्या का नहीं बल्कि हत्या का था. गाजीपुर पुलिस ने महिला दारोगा नीतू सिंह, सिपाही मंजू द्विवेदी और उषा वर्मा को इन मांबेटी से राज कबूलवाने पर लगाया

जब उन्हें बताया गया कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सुदीप की मौत का का कारण सिर पर लगी चोट को बताया गया है, तो वे टूट गईं. दोनों ने अपना गुनाह कबूल कर लिया. रोमिला की निशानदेही पर हौकी स्टिक भी बरामद हो गई. 8 अप्रैल, 2014 को पुलिस ने मां रोमिला को जेल और उस की नाबालिग बेटी सलोनी को बालसुधार गृह भेज दिया. जो भी जैसे भी हुआ हो, लेकिन सच यह है कि फेसबुक की दोस्ती की वजह से सुदीप का परिवार बेसहारा हो गया हैपुलिस उस के परिवार को बारबार फोन कर के लखनऊ कर बेटे का दाह संस्कार कराने के लिए कह रही थी. लेकिन वे लोग आने को तैयार नहीं थे. सुदीप की लाश लखनऊ मेडिकल कालेज के शवगृह में रखी थी. एसओ गाजीपुर नोवेंद्र सिंह सिरोही ने सुदीप के पिता सुधीर दास को समझाया और भरोसा दिलाया कि वह लखनऊ आएं, वे उन की पूरी मदद करेंगे. पुलिस का भरोसा पा कर सुदीप का पिता सुधीर दास लखनऊ आया. बेटे की असमय मौत ने उस का कलेजा चीर दिया था

सुधीर दास पूरे परिवार के साथ लखनऊ आना चाहता था लेकिन उस के पास पैसा नहीं था. इसलिए परिवार का कोई सदस्य उस के साथ नहीं सका. वह खुद भी पैसा उधार ले कर आया थासुधीर दास की हालत यह थी कि बेटे के दाह संस्कार के लिए भी उस के पास पैसा नहीं था. जवान बेटे की मौत से टूट चुका सुधीर दास पूरी तरह से बेबस और लाचार नजर रहा था. उन की हालत देख कर गाजीपुर पुलिस ने अपने स्तर पर पैसों का इंतजाम किया और सुदीप का क्रियाकर्म भैंसाकुंड के इलेक्ट्रिक शवदाह गृह पर किया. सुदीप की अभागी मां कावेरी और भाई राजदीप तो उसे अंतिम बार देख भी नहीं सके.

क्रियाकर्म के बाद पुलिस ने ही सुधीर के वापस मालदा जाने का इंतजाम कराया. गरीबी से लाचार यह पिता बेटे की हत्या करने वाली मांबेटी को सजा दिलाने के लिए मुकदमा भी नहीं लड़ना चाहता. अनजान से मोहब्बत और उस से शादी की जिद ने सुदीप की जान ले ली. सुदीप अपने परिवार का एकलौता कमाऊ बेटा था. उस के जाने से पूरा परिवार पूरी तरह से टूट गया है. सलोनी और सुदीप की एक गलती ने 2 परिवारों को तबाह कर दिया है.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है. कथा में आरोपी सलोनी का नाम परिवर्तित है.

  

कोबरा से डसवाने वाली प्रेमिका

15 जुलाई, 2023 की सुबह सैर पर निकले कुछ लोगों की नजर नाले के पास खड़ी एक कार पर पड़ी. पोलो कार वहां पर काफी समय से खड़ी थी. कार स्टार्ट थी, लेकिन काफी समय से न तो उस कार में कोई आया और न ही कार से बाहर निकला. कार के सभी शीशे भी पूरी तरह से बंद थे. इस कार को इस तरह से खड़े देख वहां पर राहगीर जमा हो गए थे.

तभी एक व्यक्ति ने हिम्मत जुटाई और कार का दरवाजा खोला तो उस कार की पिछली सीट पर एक व्यक्ति बैठा हुआ था. लेकिन कार का दरवाजा खुलने के बाद भी उस व्यक्ति ने किसी तरह की प्रतिक्रिया नहीं की, जिस से लोगों का शक हुआ. वहां पर मौजूद लोगों ने उस व्यक्ति को कई बार आवाज लगाई, लेकिन उस की तरफ से कोई उत्तर नहीं मिला.

तब तक वहां पर काफी भीड़ इकट्ठी हो गई थी. उसी भीड़ में मौजूद एक व्यक्ति ने उसे पहचानते हुए बताया कि वह रामबाग कालोनी रामपुर रोड हल्द्वानी का होटल मालिक अंकित चौहान पुत्र धर्मपाल चौहान है. अंकित की पहचान होते ही उस के एक परिचित ने उस के छोटे भाई अभिमन्यु को सूचना दी. साथ ही वहां पर मौजूद लोगों ने हल्द्वानी कोतवाली में फोन कर इस की सूचना दे दी थी.

अंकित के इस हालत में मिलने की सूचना पाते ही उस का छोटा भाई अभिमन्यु और कोतवाल हरेंद्र चौधरी पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए थे. पुलिस ने कार खोल कर स्थिति का जायजा लिया. पुलिस ने अंकित चौहान को आवाज देते हुए हिलाया तो वह सीट पर ही लुढक़ गया. उस की नाक के पास हाथ लगा कर सांस चैक की तो उस की सांस नहीं चल रही थी.

पुलिस की मदद से भाई अभिमन्यु अंकित को ले कर सीधा सुशीला तिवारी अस्पताल गया, जहां पर उसे देखते ही डाक्टरों ने मृत घोषित कर दिया. उस के बाद अंकित के शव को मोर्चरी ले जाया गया. जहां पर उस की मौत की खबर सुन कर परिचितों के साथसाथ सगेसंबंधियों की भीड़ लग गई. अंकित के पापा की कई साल पहले किसी बीमारी के चलते मौत हो गई थी.

घर में मां ऊषा देवी के अलावा भाईबहन रहते थे. 5 दिन पहले ही अंकित की मां ऊषा देवी अपनी बेटियों के साथ माता वैष्णो देवी के दर्शन के लिए गई हुई थी. उस वक्त सभी कटरा के पास थे. अंकित की मौत की सूचना पाते ही वे वहां से घर की तरफ वापस चल पड़े.

उधर पुलिस उस के शव को मोर्चरी में रखवा कर सीधे उस की कार के पास पहुंची. पुलिस ने गहनता से कार की जांचपड़ताल की. जिस वक्त सूचना पर पुलिस कार के पास पहुंची थी, कार स्टार्ट थी और एसी भी चल रहा था. लेकिन उस जांचपड़ताल के दौरान पुलिस को ऐसी कोई संदिग्ध वस्तु नहीं मिली, जिस से अंकित की मौत का पता चल सके.

जांच के दौरान पुलिस को कार से 53 हजार रुपए नकद और एक मोबाइल फोन भी मिला था. मोबाइल अंकित का ही था.  शुरुआती जांच में पुलिस ने अनुमान लगाया कि अंकित की मौत कार्बन मोनोआक्साइड गैस से हुई होगी. लेकिन इस के बावजूद भी पुलिस संशय में थी कि अंकित पिछली सीट पर क्यों बैठा था? उस वक्त उस की कार भी लौक नहीं थी. उस के सभी शीशे भी पूरी तरह से बंद थे.

इस में भी सब से बड़ा सवाल यह उठता था कि अगर अंकित पिछली सीट पर बैठा था तो उस की कार कौन चला रहा था. अंकित के पिछली सीट पर बैठे होने से यह तो पक्का हो ही गया था कि उस कार में उस के अलावा भी कोई दूसरा व्यक्ति रहा होगा.  पुलिस ने अपनी काररवाई कर मृतक की लाश का पंचनामा भर कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया था.

पोस्टमार्टम के दौरान डाक्टरों को मृतक के शरीर पर किसी भी तरह के निशान नहीं मिले. लेकिन उस के दोनों ही पैरों पर एक जैसे सर्पदंश जैसे निशान जरूर नजर आए थे. जिस से कयास लगाया जा रहा था कि अंकित वहां पर पेशाब करने गाड़ी से उतरा होगा और उसी दौरान उस के पैरों में सांप ने काट लिया हो. लेकिन इस बात के भी 2 पहलू थे. अगर सांप काटता तो एक ही पैर में काटता. लेकिन उस के दोनों ही पैरों में एक जैसे ही निशान मिले थे. जिस से अंकित की मौत का मामला उलझता ही जा रहा था.

सोमवार को पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली. जिस में साफ लिखा गया था कि अंकित की मौत सांप के काटने से ही हुई थी. लेकिन इस बात को उस के घर वाले बिलकुल भी मानने को तैयार नहीं थे. कारण वही था कि अगर उस के पैर में सांप ने ही काटा था तो एक ही सांप ने उस के दूसरे पैर में ठीक उसी जगह पर कैसे काटा? उस के बाद उस की मौत का दूसरा पहलू यह भी था कि वह पिछली सीट पर क्यों बैठा पाया गया?

इस मामले को ले कर मृतक अंकित चौहान की बहन ईशा चौहान की तरफ से पुलिस को एक लिखित तहरीर दी गई थी, जिस के आधार पर पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ हत्या का केस दर्ज कर लिया.

व्यापारियों के दबाव में आई पुलिस

अंकित के घर वालों के साथसाथ कुछ व्यापारियों की जिद के आगे पुलिस की एक न चली. व्यापारियों के दबाव के चलते नैनीताल के एसएसपी पंकज भट्ट ने तत्काल अधीनस्थों के साथ एक मीटिंग की. उस के बाद पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टरों से मृत्यु के कारणों के संबंध में चर्चा करने के बाद पुलिस अन्य पहलुओं को ले कर फिर से उस की जांच में जुट गई.

केस के खुलासे के लिए एसएसपी पंकज भट्ट ने एक पुलिस टीम का गठन किया. टीम में कोतवाल हरेंद्र चौधरी, एसएसआई विजय मेहता, महेंद्र प्रसाद, मंगलपड़ाव चौकीप्रभारी जगदीप नेगी, एसआई कुमकुम धानिक, मंडी चौकीप्रभारी गुलाब कांबोज, इसरार नबी, घनश्याम रौतेला, चंदन नेगी, अरुण राठौर, बंशीधर जोशी, छाया, एसओजी प्रभारी राजवीर नेगी, कुंदन कठावत, त्रिलोक रौतेला, दिनेश नागर, अनिल गिरि, भानुप्रताप व अशोक को शामिल किया.

जिस जगह अंकित की कार खड़ी पाई गई थी, उस से काफी दूरी पर एक सीसीटीवी कैमरा लगा हुआ था. पुलिस ने उस की फुटेज निकाल कर चैक की तो रात के 12 बजे के समय घटनास्थल पर एक कार की लाइट दिखाई दी थी. जिस के कुछ समय बाद ही कार की लाइट बंद हो गई थी. उस के बाद उस कार के पास एक और कार आ कर रुकी, जो थोड़ी देर बाद ही वहां से चली गई थी.

मृतक के दोनों पैरों में एक ही जैसे 2 निशान मिलने से पुलिस को भी शक था कि कहीं किसी ने जानबूझ कर तो सांप से कटवा कर उस की हत्या तो नहीं कर दी. उसी शक की बुनियाद पर पुलिस ने अपनी जांच आगे बढ़ाई. पुलिस ने फिर से मृतक के घर वालों से पूछताछ की.

घर वालों ने बताया कि रामपुर रोड छठ पूजा स्थल के पास रामबाग कालोनी से शुक्रवार की देर शाम वह अपनी कार सेनिकला था. लेकिन देर रात तक वह घर नहीं पहुंचा. घर वालों ने उस का देर रात तक इंतजार किया. अंकित कई बार होटल में ही सो जाता था. जिस के कारण उन्हें उस की कोई चिंता नहीं थी. उस के साथ उस रात क्या हुआ पता नहीं.

यह सब जानकारी जुटाने के बाद पुलिस के पास एक ही रास्ता बचा था. वह था अंकित के मोबाइल की काल डिटेल्स खंगालना. पुलिस को पूरी उम्मीद थी कि उस की मौत का राज जरूर उस के मोबाइल से ही मिल सकता है. यही सोच कर पुलिस ने अंकित के मोबाइल की काल डिटेल्स खंगाली तो उस में एक फोन नंबर ऐसा सामने आया, जिस पर अंकित की सब से ज्यादा बातें होती थीं. वह नंबर था हल्द्वानी के बरेली रोड गोरापड़ाव क्षेत्र में रहने वाली माही आर्या उर्फ डौली का. लेकिन वह उस वक्त बंद आ रहा था.

उस के बाद पुलिस ने माही के फेसबुक और इंस्टाग्राम पर सर्च किया तो सभी अकाउंट बंद मिले. इस केस की तह तक जाने के लिए पुलिस को एक छोटा सा क्लू मिला तो पुलिस ने माही के मोबाइल की भी काल डिटेल्स निकलवाई. जिस से जानकारी मिली कि कई दिन से उस की लगातार 2 मोबाइल नंबरों पर बातें हो रही थीं. उस में एक नंबर था दीप कांडपाल का और दूसरा रमेश नाथ का. इन नंबरों के मिलते ही पुलिस ने इन को डायल किया तो ये दोनों नंबर भी बंद पाए गए.

काल डिटेल्स से मिली सफलता

इन दोनों नंबरों के बंद आने से पुलिस को एक आशा की किरण दिखाई दी. पुलिस को लगा कि जरूर अंकित की मौत का राज इन्हीं 2 फोन नंबरों में छिपा हुआ है. इस तरह से कड़ी से कड़ी जोड़ते हुए पुलिस ने दीप कांडपाल की काल डिटेल्स खंगाली तो उस में भी एक ऐसा नंबर मिला, जिस पर वह हर रोज बातें करता था.

पुलिस उसी नंबर पर काल कर किसी तरह से उस के पास पहुंचने में कामयाब हो गई. उस युवक ने बताया कि वह दीप कांडपाल के साथ मिल कर शराब का कारोबार करता है. दीप कांडपाल दिल्ली, हरियाणा से शराब ला कर हल्द्वानी और उस के आसपास के क्षेत्र में सप्लाई करता है.

पुलिस ने उस युवक को अपनी गिरफ्त में ले कर पूछताछ की तो उस ने बताया कि माही आर्या अंकित चौहान की गर्लफ्रैंड है. वह हर रोज रात में उसी से मिलने जाता था. हर रात वह उसी के साथ खातापीता था. शराब पीने के बाद वह गालीगलौज भी करता था, जिस से माही आर्या तंग आ गई थी. उस के बाद से ही दोनों के संबंधों में खटास आने लगी थी.

पुलिस ने रमेशनाथ, दीप कांडपाल और माही के फोन नंबरों को पहले ही सर्विलांस पर लगा रखा था. सभी नंबर काफी समय से बंद चल रहे थे. लेकिन अचानक ही रमेश नाथ का मोबाइल औन हुआ. उसी दौरान पुलिस को उस की लोकेशन मिल गई. लोकेशन मिलते ही पुलिस आननफानन में उस के पीछे लग गई.

पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए रमेश नाथ को बरेली से गिरफ्तार कर लिया. रमेश नाथ एक सपेरा था. सपेरे को गिरफ्तार कर पुलिस ने उस से कड़ी पूछताछ की. उस ने अंकित हत्याकांड का खुलासा कर दिया. रमेश नाथ ने स्वीकार किया कि अंकित की हत्या उस के द्वारा लाए गए सांप से कटवा कर ही की गई थी.

सपेरे रमेश नाथ ने बताया कि वह हल्द्वानी में मानपुर पश्चिम में किराए के मकान में रहता है. वहीं से वह घरघर जा कर मांगने, खाने व सांप पकडऩे का काम करता है. रमेश नाथ ने पुलिस को जानकारी देते हुए बताया कि अब से लगभग 7-8 महीने पहले एक युवक ने उसे माही उर्फ डौली से मिलवाया था.

युवती को किसी ज्योतिष ने बताया था कि उस पर कालसर्प योग है, जिस के उपचार के लिए किसी जहरीले नाग की पूजा करनी होगी. उस के बाद उस का कालसर्प योग खत्म हो जाएगा. सपेरे ने उस वक्त माही की मांग पर उसे एक सांप ला कर दिया था. जिस के बाद से सपेरे का उस के घर आनाजाना शुरू हो गया था.

सपेरा रमेश नाथ ने खोला मुंह

माही के घर पर अंकित चौहान, दीप कांडपाल, नौकर रामऔतार और नौकरानी ऊषा का आनाजाना लगा रहता था. उसी दौरान एक दिन अंकित को छोड़ कर सभी माही के घर पर मौजूद थे. उसी दौरान दीप कांडपाल ने उसे बताया, “अंकित ने माही को परेशान कर रखा है. माही अब अंकित को प्यार नहीं करती. माही अब मुझ से प्यार करती है, लेकिन अंकित फिर भी उसे तंग करता रहता है. कभी भी वह उस के घर आ जाता है और शराब पी कर मारपीट करता है. उस ने इस का जीना हराम कर रखा है.

“माही की परेशानी को देख कर मुझे गुस्सा भी आ जाता है. मन करता है कि उस का खेल खत्म ही कर दूं. लेकिन पुलिस हम पर शक करके तुरंत ही गिरफ्तार कर लेगी. इसलिए हम चाहते हैं कि तुम हमें एक जहरीला सांप ला कर दे दो, जिस से कटवा कर हम उस की हत्या कर सकें. जिस से लोगों को लगे कि सांप के काटने से अंकित की मौत हो गई.”

इस काम के बदले माही ने उसे, नौकर रामऔतार व नौकरानी ऊषा को 10-10 हजार रुपए भी दिए.

यह जानकारी मिलते ही पुलिस ने माही के नौकर और उस की नौकरानी की तरफ ध्यान दौड़ाया. पुलिस दिनरात एक कर के नौकर रामऔतार के पीछे पड़ी तो उस का कनेक्शन पीलीभीत से जुड़ा हुआ मिला. पुलिस जैसेतैसे कर के रामऔतार के घर पहुंची तो पता चला कि वह नेपाल भाग गया है. इस जानकारी के मिलते ही पुलिस टीम नेपाल पहुंची.

नेपाल पहुंचते ही पुलिस ने वहां के तमाम होटल और कैसीनो भी छान मारे. लेकिन कहीं भी रामाऔतार का पता नहीं चल सका. उस के बाद नेपाल की सीमा पर भी निगरानी रखी,लेकिन कहीं भी कोई सफलता नहीं मिली. उस के बाद पुलिस टीम ने इन चारों की तलाश में दिल्ली व पीलीभीत में डेरा डाल दिया. साथ ही पुलिस ने माही समेत चारों पर 25-25 हजार का इनाम भी घोषित कर दिया था.

आरोपियों तक पहुंचने के लिए पुलिस ने पहले ही मुखबिरों को लगा रखा था. उसी दौरान 23 जुलाई, 2023 को पुलिस को एक मुखबिर से सूचना मिली कि दीप कांडपाल और उस की प्रेमिका माही आर्या पुलिस की पकड़ से बचने के लिए रुद्रपुर की कोर्ट में सरेंडर करने जा रहे हैं.

यह जानकारी मिलते ही पुलिस और एसओजी की टीम ने घेराबंदी कर दोनों को कोर्ट में पेश होने से पहले ही गिरफ्तार कर लिया. दोनों को गिरफ्तार कर पुलिस टीम उन्हें हल्द्वानी कोतवाली ले आई. कोतवाली लाते ही माही आर्या ने सहज ही अपना जुर्म कुबूल कर लिया. उस ने स्वीकार किया कि उस ने ही सपेरे से सांप मंगा कर अंकित को कटवाया था, जिस के कारण ही उस की मौत हुई थी.

पुलिस के सामने उस ने अपनी जिंदगी की जो फाइल खोल कर रखी, उस से इश्क, सैक्स, धोखा और कत्ल की लंबी कहानी उभर कर सामने आई.

स्कूल टाइम में ही बहक गई थी माही

नैनीताल जिले के हल्द्वानी शहर से रामपुर रोड पर लगभग 3 किलोमीटर दूर एक गांव पड़ता है प्रेमपुर लोश्यानी. माही आर्या उर्फ डौली का जन्म इसी गांव के एक साधारण परिवार में हुआ था. भले ही माही आर्या ने एक साधारण परिवार में जन्म लिया था. लेकिन जितनी देखनेभालने में वह खूबसूरत थी, उस से कहीं ज्यादा महत्त्वाकांक्षी भी थी. गरीबी में जन्म लेने के बाद उस का पालनपोषण भी आर्थिक तंगी में ही हुआ. लेकिन उस की खूबसूरती ने गरीबी के आगे भी हार नहीं मानी थी.

जैसेजैसे उस ने जवानी की दहलीज पर कदम रखा, उस की सुंदरता में और भी निखार आता गया. जिस के कारण वह आसपड़ोसियों की भी चहेती बनी हुई थी. गरीबी से लड़तेझगड़ते उस ने किसी तरह से हाईस्कूल पास कर लिया. लेकिन हालात से हार कर उसे अपनी आगे की पढ़ाई बंद करनी पड़ी.

हाईस्कूल तक आतेआते कई युवक उस की खूबसूरती के दीवाने बन गए थे. उन सब में उस का सब से ज्यादा चहेता था विपिन कुमार (काल्पनिक नाम). स्कूल में सब से ज्यादा उस का टाइम उसी के साथ व्यतीत होता था. विपिन उस के दुखदर्द को भलीभांति समझता था.

यही कारण था कि माही सब से ज्यादा उसी पर विश्वास करती थी, जिस के कारण दोनों के बीच गहरी दोस्ती हो गई थी. उसी दोस्ती के सहारे माही ने उसे अपना जीवनसाथी बनाने का प्रण भी कर लिया था. उसी दौरान दोनों के बीच अवैध संबंध भी स्थापित हो गए थे. यह सिलसिला दोनों के बीच काफी समय चलता रहा. लेकिन उन की यह प्रेमगाथा जल्दी ही जगजाहिर हो गई. जिस के कारण माही पर उस के घर वालों की पाबंदी लग गई और उस की आगे की पढ़ाई पर रोक लग गई.

आगे की पढ़ाई पर रोक लगते ही माही तिलमिला उठी. वह विपिन के वियोग में घुटघुट कर जीने लगी. उस के बाद भी दोनों ने जैसेतैसे मोबाइल के द्वारा संपर्क बनाए रखा. अपने घर वालों की पाबंदी से तंग आ कर माही ने विपिन पर घर से भागने का दबाव बनाया तो उस ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया.

विपिन ने अपने घर वालों से माही के साथ शादी करने की बात रखी तो उन्होंने उसे अपनाने से साफ मना कर दिया. यह बात सुनते ही माही को जिंदगी का सब से बड़ा झटका लगा. जब उस के घर वालों को पता चला कि वह अभी भी विपिन की पीछे पड़ी हुई है तो उन्होंने उसे घर से निकाल दिया. यह 2008 की बात है.

माही के साथ हुआ गैंगरेप

उस के बाद वह जिंदगी और मौत से संघर्ष करते हुए इधरउधर भटकने लगी. उस वक्त उस की खूबसूरती ही उस के लिए अभिशाप बन गई थी. घर वालों ने ठुकराया तो वह हल्द्वानी आ गई. हल्द्वानी आते ही उस के साथ गैंगरेप की घटना घटी. जिस से आहत हो कर उस ने अधिक मात्रा में नींद की गोलियां खा लीं.

उस की हालत बिगड़ गई. लेकिन जैसे ही उसे होश आया तो उस ने अपने को एक बूढ़ी औरत के घर में पाया. उस के ठीक होने तक उस बूढ़ी औरत ने उस की खूब सेवा की. बूढ़ी औरत की तरफ से सहानुभूति मिलते ही वह उसी के पास रहने लगी. लेकिन कुछ ही दिन बाद उसे पता चला कि वह उस औरत के पास आने के बाद एक दलदल में फंस कर रह गई.

हालांकि वह औरत बड़े लोगों के यहां पर काम कर के अपनी गुजरबसर करती थी. लेकिन उस के कुछ ऐसी औरतों से भी संबंध थे, जो जिस्मफरोशी के धंधे से जुड़ी थीं. माही ने जिंदगी से हार मानने हुए उन्हीं औरतों के साथ काम करना शुरू कर दिया. जहां पर रह कर माही की आर्थिक स्थिति सुधरी तो उसे पैसे का लालच आने लगा.

उसी धंधे के सहारे वह कुछ ही दिनों में पैसों में खेलने लगी और जल्दी ही उस ने शहर के बड़ेबड़े लोगों के साथ मजबूत संबंध बना लिए थे. उसी दौरान उस पर शहर के एक नामीगिरामी कांग्रेस नेता की कृपा बरसी और वह मकान मालिक बन बैठी.

उस कांग्रेसी नेता ने उस से खुश हो कर हल्द्वानी के गोरापड़ाव में उस का मकान ही बनवा दिया था. मकान बनते ही माही उस घर में अकेली ही ठाटबाट से रहने लगी थी. यही नहीं, उस ने अपने घर के कामकाज के लिए एक नौकरानी और नौकर भी रख लिया था.

कालगर्ल माही के ठाटबाट और रहनसहन से हल्द्वानी के पूर्व सभासद का बेटा भी उस के संपर्क में आया. वह माही की सुंदरता पर रीझ गया और उस ने उस के साथ दोस्ती करने के बाद उस से शादी भी कर ली थी. सभासद के बेटे के साथ शादी करने के बाद वह कुछ दिन अपनी ससुराल में रही.

लेकिन शादी के बाद भी उस की पुरानी हरकतें छूटने को तैयार नही थीं. जिस से उस के ससुराल वाले बुरी तरह से तंग आ चुके थे. यही कारण रहा कि कुछ ही दिनों में उसे शादी जैसा बंधन अखरने लगा. उस के बाद वह ट्रांसपोर्ट नगर स्थित अपनी ससुराल छोड़ कर गोरापड़ाव में अपने घर आ कर रहने लगी थी.

जिस्म परोस कर कमाने लगी पैसे

अपनी ऊंची ख्वाहिशों के कारण माही समाज में अकेली ही रह गई थी. उस ने अपने जिस्म को बेच कर इतना पैसा  कमा लिया था कि वह ऐशोआराम की जिंदगी जी रही थी. एक बार वह जिस्मफरोशी के धंधे में उतरी तो उस ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. अपने जिस्म के बूते पर उस ने जो चाहा उसे हासिल कर लिया. उसी वक्त उस ने एक कार खरीदने का मन बनाया.

कार खरीदने का मन बनाते ही उस ने पुरानी कार की तलाश शुरू कर दी थी. अंकित चौहान पुरानी कार खरीदनेबेचने का काम करता था. वह कार खरीदने के लिए उस से मिली. माही की खूबसूरती देखते ही अंकित चौहान भी उस का दीवाना हो गया. उसी बहाने से अंकित चौहान ने उस का मोबाइल नंबर भी ले लिया था.

फिर दोनों में जल्दी ही दोस्ती भी हो गई. धीरेधीरे दोनों की नजदीकियां बढ़ीं तो वह भी उस के घरेलू कामों में उस की सहायता करने लगा था. अंकित हर रोज रात को माही के पास जाता था. वहीं पर रात का खाना खाता और उस के साथ ही रात रंगीन करता था. माही को पता था कि अंकित बहुत बड़ी प्रौपर्टी का मालिक है. उस के पास उस का अपना होटल भी है.

यही सोच कर उस ने उस के साथ शादी करने का मन बनाया. उस ने कई बार उस से शादी करने वाली बात भी कही, लेकिन उस ने एक कान से सुन कर दूसरे कान से बाहर निकाल दिया. जिस से माही को लगने लगा था कि वह केवल उस की देह का ही दीवाना है.

उसी दौरान माही को जानकारी मिली कि वह उस के साथसाथ किसी अन्य युवती से भी प्यार करता है. यह जानकारी मिलते ही माही परेशान हो उठी. फिर माही ने उस से पूरी तरह से पीछा छुड़ाने का मन बना लिया था. लेकिन इस के बावजूद अंकित उस पर अपना ही अधिकार जमाता था. हर रात उसी के साथ खातापीता और फिर उसे मारनेपीटने भी लगा था.

अंकित के व्यवहार से वह समझ गई कि वह उस से किसी भी कीमत पर शादी करने वाला नहीं. वह केवल उस के शरीर का ही उपयोग कर रहा है. उस के बाद धीरेधीरे उस के मन में अंकित के प्रति नफरत पैदा हो गई थी.

दीप कांडपाल बना नया प्रेमी

साल 2016 में उस की मुलाकात मोटाहल्दू निवासी दीप कांडपाल से हुई. दीप कांडपाल शराब बेचने का अवैध धंधा करता था. उस के साथ ही वह प्रौपर्टी खरीदनेबेचने का काम भी करता था. उस के पास काफी रुपयापैसा था. दीप कांडपाल भी उस की खूबसूरती पर इस कदर लट्टू हुआ कि उसे देखते ही पहली मुलाकात में उस से दोस्ती कर ली.

दीप कांडपाल से दोस्ती होते ही माही ने अंकित की अनदेखी करना शुरू कर दिया था. माही के लिए मर्द बदलना कपड़े बदलने के बराबर हो चुका था. कुछ ही दिनों में उस ने दीप कांडपाल के साथ भी संबंध बना लिए. वह भी उस के घर आनेजाने लगा था. यही नहीं, दीप कांडपाल ने उसे प्रौपर्टी डीलिंग के काम में अपने साथ रख लिया था.

माही ने पहले से ही अपने घर के काम के लिए ऊषा, उस के पति रामऔतार को रख रखा था. ऊषा ही माही के घर के कामकाज करने के साथ ही उस का खाना भी बनाती थी. माही के घर के सामने ही एक खाली प्लौट पड़ा हुआ था. ऊषा ने वहीं पर एक झोपड़ी डाल कर अपना बसेरा बना लिया था. अंकित ऊषा से बुरी तरह से चिढ़ता था. उस का भी एक कारण था कि ऊषा हर वक्त उसी के घर पर पड़ी रहती थी.

अंकित की मारपीट से बचने के लिए वह कभीकभी खाना भी वहीं पर खाती थी, जिस के कारण वह ऊषा देवी और उस के पति को अपनी अय्याशी में बाधा मानता था. जबकि उस से तंग आ कर दीपू कांडपाल, रामऔतार व उस की पत्नी ऊषा से उस की घनिष्ठता बढ़ गई थी.

अंकित से परेशान एक दिन माही ने किसी ज्योतिष को अपना हाथ दिखाया. तब उस ज्योतिष ने माही का हाथ देखते हुए बताया कि उस पर कालसर्प दोष चल रहा है, उस से छुटकारा पाने के लिए उसे कालसर्प दोष की पूजा करानी होगी. उस के लिए एक जहरीले नाग की जरूरत होगी.

अब से लगभग 8 महीने पहले माही की मुलाकात सपेरे रमेश नाथ से हुई. रमेश नाथ गलीगली घूम कर अपनी रोजीरोटी चलाता था. रमेश नाथ से मिल कर उस ने उस से एक जहरीला सांप लाने को कहा. रमेश नाथ जंगल से एक सांप पकड़ कर लाया. उस के बाद माही ने अपने घर में कालसर्प दोष की पूजा कराई. जिस के बाद उस ने रमेश नाथ को अपना गुरु मान लिया था.

रमेश नाथ तभी से बराबर उस के संपर्क में बना हुआ था. उसी आनेजाने के दौरान माही ने सपेरे रमेश नाथ के साथ भी अबैध संबंध बना लिए थे. वही पर रमेश नाथ की मुलाकात दीप कांडपाल, ऊषा और उस के पति रामऔतार से हुई.

अंकित नहीं छोड ऱहा था माही का पीछा

हालांकि माही ने अंकित से बात करना बिल्कुल ही बंद कर दिया था, इस के बावजूद अंकित उस का पीछा छोडऩे को तैयार न था. अंकित से तंग आ कर एक दिन माही स्कूटी से उस के घर के पास पहुंची और उस से कहा कि वह आज उस के घर वालों से उस की शिकायत करने आई है.

यह बात सुनते ही अंकित ने उसे उस वक्त तो समझाबुझा कर वापस भेज दिया. लेकिन कुछ ही दिनों में वह फिर से अपनी हरकतों पर आ गया. अंकित ने सोचा यह सब उस की नौकरानी ऊषा ही करा रही है. अंकित ने उस पर शक किया. उस के बाद उस ने खाली प्लौट के मालिक से शिकायत कर कहा कि वह बंगालन है वह आप के प्लौट पर टोनाटोटका भी करा सकती है. यह बात सुनते ही उस प्लौट के मालिक ने अपने प्लौट से उस की झोपड़ी हटवा दी.

इस मामले में दीप कांडपाल और अंकित में भी मनमुटाव हो गया था. झोपड़ी हटने के बाद ऊषा और उस का पति रामऔतार माही के घर पर ही रहने लगे थे. इस सब से तंग आ कर माही ने दीप कांडपाल के साथ मिल कर अंकित को मारने का प्लान बनाया.

अंकित को मौत की नींद सुलाने की योजना बनते ही माही और दीप कांडपाल ने एक टीवी सीरियल देखना शुरू किया. जिस से उन्हें सहज ही अंकित को मौत देने का कोई उचित तरीका मिल सके. सीरियल देख कर उन्हें सब से अच्छा तरीका सांप से कटवा कर मौत की नींद सुलाने का अच्छा लगा. उन के लिए सांप की व्यवस्था करने के लिए रमेश नाथ मौजूद था.

माही ने तुरंत ही रमेश नाथ को फोन कर के अपने घर बुला लिया. उस के बाद माही, दीप कांडपाल, ऊषा, रामऔतार और रमेश नाथ सब एक हो गए. जब अंकित को मौत की नींद सुलाने का पक्का प्लान बन गया तो माही ने रमेश नाथ से एक सांप की व्यवस्था करने को कहा.

उसी दौरान 6 जुलाई, 2023 को रमेश को फोन पर किसी ने बताया कि पंचायतघर के पास ब्यूटीपार्लर में एक सांप घुसा हुआ है. यह जानकारी मिलते ही रमेश नाथ ने मौके पर जा कर कोबरा प्रजाति का वह सांप पकड़ कर अपने पास रख लिया. यह बात उस ने माही और दीप कांडपाल को भी बता दी.

कोबरा से डसवा कर प्रेमी को दी मौत

सांप की व्यवस्था होते ही माही ने 8 जुलाई, 2023 को अंकित को मौत की नींद सुलाने का प्लान बनाया. क्योंकि उस दिन अंकित का बर्थडे था. उस दिन अंकित माही के घर पहुंचा और वहां पर मौजूद सभी लोगों के साथ शराब पी कर मौजमस्ती की. लेेकिन उस दिन ये लोग अंकित को मारने में नाकामयाब रहे.

उस के बाद 14 जुलाई को योजनानुसार माही ने अंकित को अपने घर बुलाया. उस दिन माही के घर दीप कांडपाल, सपेरा रमेश नाथ, नौकरानी ऊषा और उस का पति रामऔतार सभी मौजूद थे. माही ने सपेरे रमेश नाथ, ऊषा और उस के पति को इस मामले में सहयोग करने के लिए 10-10 हजार रुपए भी दिए.

अंकित के आने से पहले माही ने चारों को मंदिर वाले कमरे में रहने को कहा था. अंकित के आते ही वह उसे ले कर अपने बैडरूम में चली गई. माही ने वहीं पर पहले से ही जहर मिली शराब रख रखी थी. अंकित के साथ प्यार का नाटक करते हुए उस ने उसे जहरीली शराब पिला दी. जिस के पीते ही वह बेहोश हो गया.

अंकित के बेहोश होते माही ने चारों को बाहर बुला लिया. माही ने चारों आरोपियों की सहायता से उसे बैड पर उलटा लिटा कर उस के ऊपर एक कंबल डाल दिया. उस को उलटा लिटाते ही दीप कांडपाल ने उस के हाथ पकड़े और ऊषा व उस के पति ने उस के पैर पकड़े. उस के बाद सपेरे ने कोबरे से उस के पैर में डसवाया. फिर सभी उस के खत्म होने का इंतजार करने लगे.

लेकिन 10 मिनट गुजर जाने पर भी अंकित के शरीर में यूं ही हलचल होती रही. जिस के बाद फिर से दूसरे पैर में कोबरा से डसवा दिया, ताकि वह जल्दी खत्म हो जाए. इस के कुछ देर बाद ही अंकित की मौत हो गई.

लाश नहीं लगा सके ठिकाने

अंकित की हत्या करने के बाद उस की लाश को भुजियाघाट के पास फेंकने की योजना थी. अंकित की मौत हो जाने के बाद उस के शव को उसी की कार की पिछली सीट पर डाला. दीप कांडपाल कार चला रहा था. रमेश नाथ अगली सीट पर बैठा था.

रात के 11 बजे दोनों कार में शव डाल कर भुजियाघाट पहुंचे, लेकिन उस वक्त वहां पर कुछ कारें खड़ी थीं. जिस के कारण उन्हें वहां पर शव फेंकने का मौका नहीं मिला. इस की जानकारी दीप कांडपाल ने माही को दी और फिर कार को ले कर तीनपानी रेलवे क्रौसिंग के पास पहुंचे.

माही ने पहले ही दिल्ली के लिए कार बुक कर रखी थी. दीप कांडपाल से बात होते ही माही नौकर नौकरानी को साथ ले कर रेलवे क्रौसिंग पर पहुंची. उस के बाद अंकित की कार का एसी औन कर कार स्टार्ट कर के छोड़ दी. बाद में सभी आरोपी दिल्ली के लिए बुक कार से फरार हो गए.

माही की एक बहन की शादी दिल्ली में हुई थी. दिल्ली पहुंचते ही माही ने अपनी बहन से कहा कि हम 5 लोग तेरे घर पर आ रहे हैं. लेकिन उस की बहन उस की हरकतों को अच्छी तरह से जानती थी. इसी कारण उस ने उसे अपने घर आने से मना कर दिया.

उस के बाद पांचों ने रात दिल्ली में गुजारी और अगले ही दिन बस से बरेली पहुंचे. जहां पर पहुंचते ही सपेरा रमेश नाथ अपने गांव भोजीपुरा जाने की बात करने लगा. रमेश के अलग होने से पहले ही माही ने उस से कहा था कि वह अपना मोबाइल बंद ही रखे अन्यथा उस के कारण हम मुसीबत में भी फंस सकते हैं.

बरेली से नौकर नौकरानी दीप कांडपाल और माही को साथ ले कर अपने घर चले गए. उस के बाद वहां से नेपाल भाग गए. इन चारों से अलग होते ही रमेश नाथ ने अपना मोबाइल औन कर लिया था. उस ने सोचा था कि अगर किसी की काल भी आई तो वह उसे उठाएगा ही नहीं. लेकिन उसे पता नहीं था कि मोबाइल औन होते ही पुलिस उस के पास पहुंच जाएगी.

दुनिया में सब से ज्यादा शातिर इंसान का दिमाग ही होता है. जिस को चाहे जैसे यूज करो. इस केस की मास्टमाइंड रही जहरीली प्रेमिका माही उर्फ डौली ने भी यही सोचा था कि वह अंकित को सांप से कटवा कर पाकसाफ बच जाएगी. लेकिन पुलिस के लंबे हाथों से वह नहीं बच पाई.

इस मर्डर केस का खुलासा करने वाली टीम को एसएसपी पंकज भट्ट ने 5 हजार रुपए बतौर पुरस्कार देने की घोषणा की.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बेवफाई का बवंडर

बेवफाई की लाश

कालेज फीस के लिए बने अपराधी

”काय बोले? डाक्टर साहेब चा मुलगा मिलता नाही है?’’ शकुनबाई ने आश्चर्य से अपनी पड़ोसन से पूछा.

”हां, शकुनबाई. पर तुम तो उन्हीं के घर पर काम करती हो. तुम्हें अभी तक नहीं पता?’’ पड़ोसन भी आश्चर्य से शकुनबाई की तरफ देखते हुए बोली.

”हां पाम, मेरा काम तो 12 बजे ही खतम हो गया था तो मैं मैडम को बोल कर आ गई थी. उस बखत मैडम नहाने को गई थी और बाबा सो गया था. मैं ने बाबा को आधा घंटा पहले ही दालभात खिला दिया था.’’ शकुनबाई ने पड़ोसन को बताया.

”हां, मगर अब तो 4 बज रहे हैं. 2 साल का बच्चा इतनी देर में कहां जा सकता है?’’ पड़ोसन के स्वर में दुख झलक रहा था.

”देवाची शप्पथ बहुत सुंदर और नाजुक बच्चा है. मैं अभी डाक्टर के घर को जाती.’’ शकुनबाई बोली.

डा. ईनामदार अपने क्षेत्र के प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित डाक्टर थे. वह प्राइवेट प्रैक्टिस ही करते थे. शिशु रोग विशेषज्ञ होने के कारण उन के ज्यादातर पेशेंट बच्चे ही थे.

अब तक आसपास के क्षेत्र में यह बात आग की तरह फैल चुकी थी कि डाक्टर साहब का 2 साल का बच्चा अचानक गायब हो गया है. शकुनबाई जब तक डाक्टर के घर पहुंचती, तब तक पुलिस आ चुकी थी.

”ओ देवा ई काय झाला रे.’’ शकुन घर के अंदर घुसते समय रो रही थी. वह डाक्टर साहब की पत्नी के सीने से चिपक गई. यह काफी स्वाभाविक भी था, क्योंकि बच्चे के जन्म के समय से ही वह उसे संभालती आई है. कई बार तो बच्चा अपनी मां के पास न जा कर शकुनबाई के साथ ही रहता था.

”यह कौन है?’’ पुलिस इंसपेक्टर दिवाकर शर्मा ने डाक्टर से पूछा.

”यह हमारी सर्वेंट है और मेरी शादी के काफी पहले से हमारे यहां ही काम कर रही है.’’ डा. ईनामदार ने बताया.

”आप के घर और कितने सर्वेंट्स हैं?’’ इंसपेक्टर ने अगला प्रश्न किया.

”क्लीनिक पर कंपाउंडर और रिसैप्शनिस्ट सहित कुल 3 और घर पर शकुनबाई के अलावा एक माली है, जो हफ्ते में 2 बार आता है.’’ डाक्टर ने बताया, ”शकुनबाई सुबह 8 बजे आ जाती है और दोपहर को 12 बजे तक अपना काम खत्म कर के चली जाती है. शाम को 5 बजे आ जाती है और 7-8 बजे तक काम कर के चली जाती है.’’

”क्या आज माली आया था?’’ इंसपेक्टर ने फिर पूछा.

”नहीं साहब, माली नहीं आया था.’’ डा. ईनामदार ने जवाब दिया.

”हूं.’’ इंसपेक्टर ने हुंकार भरी, ”तुम्हारा नाम क्या है और तुम्हारे घर में और कौनकौन हैं?’’ इंसपेक्टर शकुनबाई की तरफ मुखातिब हो कर बोला.

”अपन चा नाव शकुनबाई है और मेरा मरद इधरइच एक फैक्ट्री में काम करता है. हमारे 3 बेटे हैं और तीनों ही अभी पढाई करते हैं. बड़ा लड़का अभी 17 बरस का है. वो जब 3 महीने का था, मैं तभी से इधरीच नौकरी कर रही हूं. इस लड़के ने अभी बड़ी परीक्षा पास करी है, कालेज में जाने के वास्ते.’’ शकुन बाई बोल रही थी.

”बड़ी क्लास मतलब?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

”जी, इस के बेटे का अभीअभी एंट्रेंस एग्जाम के थ्रू इंजीनियरिंग कालेज में एडमिशन हुआ है. यह उसी के एडमिशन की बात कर रही है.’’ डा. ईनामदार ने बताया.

”अच्छा अच्छा. और बाकी के दोनों लड़के क्या करते हैं?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

”मंझला वाला अभी 8 किलास में पढ़ता है और सब से छोटा वाला 5वीं किलास में है.’’ शकुनबाई बोली.

”तुम हनी को कब और कैसे छोड़ कर गई थी?’’ इंसपेक्टर ने फिर पूछा.

पुलिस को शकुनबाई पर क्यों हुआ शक

”मैडम ने हनी बाबा को नहलाने के बाद मुझे दे दिया और कहा कि इसे दालभात खिला दो. मैं ने हनी बाबा को दालभात खिला दिया, उस के बाद बाबा को नींद आने लगी तो मैं ने उसे सुला दिया.

”2 बजे मेरा मरद फैक्टरी से खाना खाने आता है, इसी कारन मई चली गई. उस समय मैडम नहा रही थी.’’ शकुन बाई ने बताया, ”मैं रोज ऐसा ही करती हूं.’’

”तुम्हारा घर कहां है?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

”ये रोड पार करने के बाद अगली रोड के पास जो चाल है, मैं उधरिच रहती हूं.’’ शकुन बाई ने बताया.

”मैडम की और इस बाई की कभी आपस में कुछ कहासुनी हुई है क्या?’’ इंसपेक्टर ने डाक्टर से पूछा.

”नहीं साहब, इस पर शक करना बेकार है. ये लोग काफी समय से रह रहे हैं यहां. इस के तीनों लड़के भी दोपहर से ही हनी को ढूंढ रहे हैं.’’ डाक्टर ने बताया.

”आप तीनों लड़कों को बुलवा दीजिए.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

”साहब ये रहे तीनों लड़के.’’ एक सिपाही तीनों लड़कों को कुछ ही देर में ले कर आ गया.

”क्या नाम है तुम्हारा और तुम्हारे छोटे भाइयों का?’’ इंसपेक्टर ने सब से बड़े लड़के से पूछा.

”जी, मेरा नाम श्याम राव है. यह मंझले वाले का गोपाल राव और सब से छोटे वाले का नाम कृष्णा राव है.’’ लड़के ने जवाब दिया.

”तुम्हारा ही एडमिशन पौलिटेक्निक में हुआ है न?’’ इंसपेक्टर ने श्याम राव से पूछा.

”जी, इंजीनियरिंग में.’’ श्याम राव ने जवाब दिया.

”तुम ने हनी को कहां कहां पर खोजा था?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

”जी, हम ने सभी संभावित दिशाओं में लगभग एकएक किलोमीटर तक खोजा था.’’ श्याम राव ने जवाब दिया.

”ठीक से याद कर लो, तुम ने हनी को कहांकहां खोजा था, वरना मुझे याद दिलाने के लिए तुम्हारी 2-4 हड्डियाँ तोडऩी पड़ेंगी.’’ अब तक शांत बैठा इंसपेक्टर एकदम गुस्से में आ गया और वह कड़क और रौबीली आवाज में बोला.

”इंसपेक्टर साहब, कृपया मेरे घर में मारपीट न करें. मेरी पत्नी की हालत वैसे ही खराब हो रही है.’’ डाक्टर विनती करते हुए बोला.

”ठीक है डाक्टर साहब, मैं सब से छोटे लड़के से पूछता हूं. अगर सही जवाब नहीं मिला तो मैं इन सब को थाने ले जाऊंगा. वैसे भी इस सस्पेंस कहानी में सिर्फ 3 ही पात्र हैं. इसलिए मुझे लगता है कि मेरा जवाब यहीं पर मिल जाएगा.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

”हां, बेटे छोटू, क्या नाम है तुम्हारा?’’

”मेरा नाम कृष्णा राव है साहब.’’ छोटा लड़का बोला.

”तुम्हें तुम्हारी उम्र पता है छोटू?’’ इंसपेक्टर ने नरमी से पूछा.

”है साहब, 9 साल.’’ कृष्णा राव बोला.

”तुम्हारा बड़ा भाई बोल रहा था कि तुम ने हनी बाबा को सभी जगह पर देख लिया है.’’ इंसपेक्टर अपनी नरमी कायम रखते हुए बोला.

”जी साहब, सभी जगह देख लिया है.’’ कृष्णा राव ने जवाब दिया.

”तुम्हारे हिसाब से ऐसी कौन सी जगह है, जहां पर तुम लोगों ने नहीं देखा?’’ इंसपेक्टर ने प्रश्न पूछने का अपना अंदाज बदल कर पूछा. इंसपेक्टर को पूरा भरोसा था कि कृष्णा राव इस ढंग से पूछे प्रश्न के जाल में फंस जाएगा.

”साहब, थिएटर के पीछे जो सेफ्टी टैंक है, उस में किसी ने नहीं देखा.’’ कृष्णा राव सचमुच उस जाल में फंस कर बोला.

”तीनों लड़कों को गाड़ी में बिठाओ और चलो थिएटर.’’ इंसपेक्टर बोला, ”आप भी चलिए, डाक्टर साहब.’’

सेफ्टी टैंक में मिली हनी की लाश

डाक्टर के घर से लगभग 800 मीटर दूर एक चौराहा पार करने के बाद एक थिएटर था. जल्दी सब लोग वहां पर पहुंच गए. वहां पर 3 सेफ्टी टैंक थे. बीच वाले सेफ्टी टैंक के ऊपर की फर्श ताजीताजी हटी हुई लग रही थी. इंसपेक्टर ने तुरंत ही उस के अंदर आदमी उतारे. कुछ ही देर में हनी की लाश उन के हाथों में थी.

”हां, तो श्याम राव, बताओ तुम ने यह काम कैसे और क्यों किया? इतने सालों का विश्वास क्यों तोड़ा?’’ इंसपेक्टर श्याम राव की तरफ मुखातिब हो कर बोला.

”मगर इंसपेक्टर साहब, आप को कैसे मालूम हुआ कि यह काम श्याम राव ने ही किया है.’’ डा. ईनामदार बच्चे की लाश को छाती से चिपकाते हुए रोतेरोते बोले.

”डाक्टर साहब, इस कहानी में जैसा कि मैं ने पहले भी बोला था कि सिर्फ 3 ही किरदार थे आप, आप की पत्नी और शकुनबाई. हम चाहते तो शकुनबाई को उसी समय गिरफ्तार कर लेते. मगर ऐसा करने पर हम असली कातिल और उस के मोटिव तक कभी नहीं पहुंच पाते. फिर दिल को छूने वाली मनोरंजक कहानी सामने नहीं आ पाती. क्योंकि कोई भी मां अपने बच्चों को मुसीबत में डालना नहीं चाहेगी.

”यही कारण था कि हम ने पहले श्याम राव से पूछताछ की तथा मंझले लड़के को छोड़ कर सब से छोटे लड़के से पूछताछ की. अगर हम मंझले लड़के से भी पूछताछ करते तो शायद छोटा लड़का सतर्क हो जाता. और वह भी सीखे सिखाए जवाब ही देता.’’ इंसपेक्टर डाक्टर को समझाता हुआ बोला.

”मुझे कितना विश्वास था शकुनबाई के परिवार पर. वह पिछले 17 सालों से हमारे यहां परिवार के सदस्य की तरह काम कर रही है.’’ डा. ईनामदार के स्वर में नफरत झलक रही थी.

”खैर. हां, तो श्याम राव तू कुछ बोलेगा या इन सिपाहियों को बोलूं यहीं पर सबक सिखाने को?’’ इंसपेक्टर अपने लहजे में बोला.

”साहब, मेरा एडमिशन इंजीनियरिंग कालेज में हुआ है. दाखिले के लिए शुरू में ही 25 हजार रुपए देने थे. इतने पैसे हमारे पास नहीं थे. पिताजी ने अपनी फैक्ट्री में बात की तो उन्होंने 10 हजार रुपए देने की स्वीकृति दे दी थी.

”मां ने डाक्टर साहब से बात की तो डाक्टर साहब ने यह कहते हुए मना कर दिया कि जब इतनी बड़ी फैक्ट्री वाले 10 हजार दे रहे हैं तो वह उसे 15 हजार कैसे दे सकते हैं. वह अधिकतम 5 हजार रुपयों की ही मदद कर सकते हैं.

”रुपयों के कारण मेरे भविष्य का सपना चौपट हो जाता. इसी कारण मैं ने मां के साथ मिल कर यह प्लान बनाया. इस प्लान के बारे में मेरे पिताजी तक को मालूम नहीं था.

”मेरे दोनों भाइयों को इस योजना में शामिल करना बहुत जरूरी था, क्योंकि हनी इन दोनों के साथ हंसता खेलता था. मां ने मुझे बता दिया था कि मैडम 11-साढ़े 11 बजे तक नहाती है. इस के बाद आधे घंटे तक पूजा करती है.

”इसी दौरान मां हनी को खाना खिला कर सुला देती है और वापस घर आ जाती है. हनी रोजाना करीब 3 से 4 घंटे सोता था. इन्हीं 4 घंटों में हम अपनी योजना पूरी कर सकते थे.’’ श्याम राव बता रहा था.

क्यों की गई हनी की हत्या

”यहां तक तो ठीक है. तुम्हारी योजना हनी के अपहरण करने की थी, मगर यह हत्या तो तुम्हारी योजना का हिस्सा नहीं रही होगी?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

”हां साहब, हत्या की बात तो हमारी योजना में शामिल नहीं थी, लेकिन मैं ने अब तक आप को जो बताया, वह योजना का एक हिस्सा ही था. दूसरे हिस्से में इस में एक व्यक्ति और शामिल था. उस का नाम है सरस खान.’’

”सरस खान? कौन है यह सरस खान?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

”थिएटर का प्रोजेक्टर औपरेटर.’’ श्याम राव  ने  बताया, ”वह मेरा मित्र है और उस की ड्यूटी रात के 12 बजे तक रहती है. उसे भी बाजार का कुछ पैसा चुकाना था. इसी कारण उस ने यह आइडिया दिया था. दोपहर 12 बजे का शो चालू होने के बाद वहां रखना भी बहुत आसान था.

”मैडम से इतना तो पता चल ही गया था कि हनी बाबा पिक्चर बहुत शांत हो कर देखता है. योजना के अनुसार सोते हुए हनी बाबा को ले कर प्रोजेक्टर रूम में जाना था. वहां पर गोपाल राव और कृष्णा राव रहते थे, जो उसे बहलाते रहते.

”इस बीच मैं घर आ कर मां के हाथों से बाबा के अपहरण की एक चिट्टी डाक्टर साहब के पास पहुंचा देता. हम सिर्फ 17 हजार रुपयों की ही मांग करते.

”इतनी कम मांग के लिए डाक्टर साहब पुलिस में नहीं जाते और हमारा काम भी बिना किसी शक के हो जाता. यह पैसा उन्हें कृष्णा राव के हाथ शाम 6 बजे का शो खत्म होने के बाद पहुंचाना था. शो खत्म हो जाने की भीड़ में यह सब काम आसानी से पूरा हो जाता. इन 17 हजार में से 15 हजार मुझे और 2 हजार सरस खान को रखने थे.’’ श्याम राव ने बताया.

”अभी भी यह नहीं बताया कि हत्या क्यों और कैसे की.’’ इंसपेक्टर ने बोला.

थिएटर तक क्यों नहीं पहुंचा हनी

”रोजाना जब मां डाक्टर साहब के घर का काम खत्म कर के निकलती थी, उस समय अमूमन मैडम या तो नहा रही होती थी या पूजा कर रही होती थी. ऐसे में मां बाहरी दरवाजे को सिर्फ अटका कर निकल जाती थी.

”उस दिन मैं घर के आसपास ही था. मां ने बाहर निकलते समय मुझे इशारा कर दिया था. मैं तुरंत ही हनी बाबा के कमरे में घुस कर पलंग के पीछे छिप गया.

”मैडम नहा कर निकली और हनी बाबा के कमरे में आई. हनी बाबा को सोता देख निश्चिंत हो कर पूजा करने चली गई. अब हम पर शक करने की संभावना भी समाप्त हो गई थी.

”मौका देख कर मैं सोते हुए हनी बाबा को ले कर घर से बाहर आ गया. हमारे प्लान का सब से खास हिस्सा पूरा हो चुका था. योजना के अगले हिस्से के तहत मुझे सोते हुए हनी बाबा को ले कर थिएटर के प्रोजेक्टर रूम में जाना था.

”मगर थिएटर के पिछवाड़े में पहुंचते ही या तो तेज धूप के कारण या पैदल चलने के कारण लग रहे झटकों से हनी बाबा जाग गया और वह मचल कर जोरजोर से रोने लगा. ऐसी अवस्था में उसे प्रोजेक्टर रूम में ले जाने पर थिएटर के मैनेजर और गेटकीपर जैसे लोगों को पता चल जाता.

”इसी कारण हम उसे वहीं पर सेफ्टी टैंक के ऊपर बैठ कर चुप कराने लगे, मगर वह लगातार रोए ही जा रहा था. तब तक गोपाल राव और कृष्णा राव भी वहां पर आ गए. थिएटर का पीछे वाला इलाका सुनसान ही रहता है.

”हनी बाबा के इस तरह जोरजोर से रोने के कारण हम तीनों घबरा गए. उसे डराने के मकसद से कृष्णा राव ने फर्शी का एक बड़ा सा टुकड़ा उठा लिया. मगर हनी बाबा चुप ही नहीं हो रहा था.

”तब गुस्से में आ कर कृष्णा राव ने उस पर फर्शी के उस टुकड़े से वार कर दिया. यह वार हनी बाबा की कनपटी पर लगा. कुछ देर तड़पने के बाद वह शांत हो गया. शायद वह बेहोश हो गया था.

”यह देख कर हम तीनों घबरा गए और सेफ्टी टैंक के कवर वाली फर्शी हटा कर उसे उस में फेंक दिया. इस के बाद टैंक को फिर से ढंक दिया.’’ श्याम राव ने विस्तार से पूरी घटना बता दी.

यह कहानी सुनने के बाद इंसपेक्टर दिवाकर शर्मा ने आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

बेवफाई का बवंडर – भाग 3

लगभग साल भर बाद अबू फैजल काठमांडू से वापस घर आया तो पड़ोसियों ने शाहरुख और रुखसार की शिकायत उस से की तो उस का माथा ठनका. उस ने इस बारे में पत्नी से बात की.

उस ने सकुचाते हुए कहा, ‘‘रुखसार एक बात पूछूं?’’

‘‘एक नहीं, चार पूछो.’’ वह बोली.

‘‘मुझे तुम्हारे और किसी अजनबी के बारे में जो बातें सुनने को मिली हैं. क्या वह सच हैं?’’

‘‘क्या बात?’’

‘‘यही कि तुम्हारे किसी शख्स के साथ नाजायज संबंध हैं.’’

‘‘कहने वालों के मुंह में कीड़े पड़ें. मैं बताती हूं कि वह शख्स शाहरुख है. वह नौबस्ता में रहता है. बाजार में उस से मुलाकात हुई थी. शाहरुख हमारी मदद करता है, अपने रिजवान को प्यार करता है और बुरी नजर रखने वालों से हमें बचाता है, इसलिए लोग हम से जलते हैं और वे तुम्हारे कान भर रहे हैं.’’

अबू फैजल ने उस समय सहज ही अपनी बीवी पर भरोसा कर लिया, लेकिन उस के मन में शक का कीड़ा रह जरूर गया था. इस शक की वजह से उस ने दोबारा काठमांडू जाने का विचार त्याग दिया और जाजमऊ की उसी जूता फैक्ट्री में फिर से काम करने लगा, जिस में पहले करता था.

पति के नेपाल नहीं जाने पर रुखसार भी सतर्क हो गई और उस ने अपने प्रेमी शाहरुख को भी सतर्क कर दिया. अब दोनों सतर्कता के साथ मिलते.

लेकिन होशियारी के बावजूद एक रोज अबू फैजल ने अपने ही घर में शाहरुख और रुखसार को आपत्तिजनक स्थिति में पकड़ लिया. उस रोज शाहरुख तो भाग गया, लेकिन रुखसार भाग कर कहां जाती. अबू फैजल ने उस की जम कर पिटाई की. रंगेहाथ पकड़े जाने के बावजूद रुखसार ने माफी नहीं मांगी, बल्कि उस ने घर में कलह करनी शुरू कर दी.

वह चीख चीख कर उस से बात कर रही थी. कलह से परेशान अबू फैजल ने रुखसार को समझाया और शाहरुख से संबंध तोड़ने की सलाह दी. उस समय तो रुखसार चुप हो गई. अबू फैजल ने सोचा कि पत्नी ने उस की बात मान ली है लेकिन उस ने बाद में प्रेमी से मिलना जारी रखा.

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अबू फैजल अपने स्तर से पत्नी को सही राह पर लाने में सफल नहीं हुआ तब उस ने सास को सारी बातें बता कर मदद मांगी. सास शमशाद बेगम ने भी हर तरह से रुखसार को समझाया, मगर जिस राह पर वह चल पड़ी थी उस से कदम पीछे खींचने को वह तैयार न थी.

रुखसार की हठधर्मी और मनमानी के चलते अबू फैजल से उस के मतभेद बढ़ते गए. फिर घर में झगड़े भी शुरू हो गए. रोजरोज के झगड़े से तंग आ कर एक दिन रुखसार ने शौहर का घर छोड़ दिया और मायके जा कर रहने लगी. यह 20 जनवरी, 2019 की बात है.

29 जनवरी, 2019 को अबू फैजल ससुराल पहुंचा तो उसे पता चला कि रुखसार अपने प्रेमी शाहरुख के साथ यहां से भाग गई है. अबू फैजल अपनी सास और साले के साथ रुखसार को खोजने लगा. वह उसे ढूंढते हुए गल्लामंडी स्थित शाहरुख के घर पहुंचे. रुखसार वहां मौजूद थी.

शमशाद बेगम बेटी को समझाबुझा कर घर ले आई. अबू फैजल गुस्से से लाल था. वह रुखसार पर हाथ उठाता, उस के पहले ही सास ने उसे रोक दिया. अबू फैजल पत्नी को अपने साथ घर ले जाना चाहता था, लेकिन रुखसार जाने को राजी नहीं हुई.

पहली फरवरी, 2019 की सुबह करीब 8 बजे अबू फैजल अपनी फैक्ट्री चला गया. उस रोज शमशाद बेगम की छोटी बेटी की तबीयत कुछ खराब थी. अत: दोपहर बाद वह बेटी को ले कर दवा लेने चली गई. उधर अबू फैजल फैक्ट्री गया जरूर लेकिन उस का मन काम में नहीं लगा और लंच के बाद वह घर की ओर निकल पड़ा.

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शाम लगभग 3 बजे अबू फैजल ससुराल पहुंचा. उस समय घर पर उस की बीवी रुखसार व बेटा रिजवान था. उस ने रिजवान को 10 रुपए दिए और घर के बाहर भेज कर दरवाजा भीतर से बंद कर दिया. रुखसार घर में सजीसंवरी बैठी थी. अबू फैजल को शक हुआ तो वह गुस्से से ताना कसते हुए बोला, ‘‘सजसंवर कर क्या अपने यार से मिलने जा रही हो?’’

‘‘हां,जा रही हूं. रोज जाऊंगी, तुम से देखते बने तो देखो, वरना आंखें फोड़ लो.’’ रुखसार भी गुस्से से बोली.

‘‘बदचलन, बदजात एक तो चोरी ऊपर से सीनाजोरी.’’ कहते हुए अबू फैजल पत्नी को पीटने लगा.

इसी दौरान उस की नजर सामने रखे सिलबट्टे पर पड़ी. लपक कर उस ने सिल का पत्थर उठाया और रुखसार के सिर और चेहरे पर वार करने लगा. दर्द से रुखसार चीखने चिल्लाने लगी.

इसी समय शमशाद बेगम बेटी शबनम के साथ दवा ले कर वापस घर आ गई. उस ने घर का दरवाजा बंद पाया और अंदर से चीख सुनी तो उस ने दरवाजा पीटना शुरू कर दिया.

अबू फैजल ने दरवाजे पर दस्तक तो सुनी, लेकिन उस के हाथ थमे नहीं. उस के हाथ तभी थमे, जब रुखसार खून से लथपथ हो कर जमीन पर पसर गई और उस की सांसें थम गईं.

बीवी की हत्या करने के बाद अबू फैजल ने खून सना पत्थर शव के पास फेंका और दरवाजा खोला. सामने सास को देख कर वह बोला, ‘‘मैं ने तुम्हारी बेटी को मार डाला है. अब तुम चाहो तो मुझे भी मार डालो.’’

कहते हुए वह तेजी से भाग गया और थाने पहुंच गया. थाने पहुंच कर कार्यवाहक एसओ रविशंकर पांडेय को उस ने सारी बात बता दी.

हत्यारोपी अबू फैजल से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने 2 फरवरी, 2019 को उसे कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उसे जिला कारागार भेज दिया गया. कथा संकलन तक उस की जमानत स्वीकृत नहीं हुई थी. मासूम रिजवान अपनी नानी शमशाद बेगम के संरक्षण में था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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