Crime Story: ब्लैकमेलर

Crime Story: मनोरमा और राजकमल दोनों ही उच्च श्रेणी के डांसर्स थे. लेकिन राजकमल की महत्त्वाकांक्षाओं ने ऐसा जोर मारा कि वह अपनी पत्नी के साथ अपराध के जाल में फंस गया. मोहन मोहंती, मोना और नरसिंह आखिर कैसे पहुंचे उन तक?

एम 3 ग्रुप का चीफ मोहन मोहंती मुंबई लेखा परीक्षक के औफिस के पास स्थित मथीरन की पहाडि़यों पर ट्रैकिंग के लिए जाने की योजना बना रहा था, लेकिन समूह के एक निदेशक दिनेश मूलचंदानी का फोन आ गया. निदेशक ने उसे इमरजेंसी मीटिंग के लिए बुलाया था. फोन आने के एक घंटे के भीतर वह निदेशक के आलीशान बंगले पर पहुंच गया. मोहन दिनेश मूलचंदानी के बंगले में प्रविष्ट हुआ तो दिनेश और उस की पत्नी उसे स्टडी रूम में ले गए और कमरे का दरवाजा बंद कर लिया. दोनों परेशानी के आलम में थे और काफी घबराए हुए थे. सोनिया ने कुछ कहने की कोशिश की लेकिन उस के शब्द गले में अटक कर रह गए. दिनेश मूलचंदानी से भी कुछ नहीं बोला जा रहा था.

उन्होंने एक फोटो और एक कागज का टुकड़ा मोहन के हाथ में थमा दिया. मोहन ने फोटो पर एक नजर डाल कर कागज पर लिखी इबारत को पढ़ना शुरू किया. लिखा था— तुम इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि फोटो बेहद शर्मनाक है. मैं मानता हूं कि यह कारनामा कंप्यूटर के किसी आधुनिक सौफ्टवेयर की मदद से किया गया है, लेकिन है शानदार. मुझे अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि तुम इसे गलत साबित नहीं कर पाओगे. अगर कोशिश भी करोगे तो काफी दिन लग जाएंगे और तब तक तुम्हारे परिवार की इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी. इस लिए एक अच्छे आदमी की तरह इसे अपनी किस्मत समझ कर स्वीकार कर लो.

आगे लिखा था— नताशा पूरे सम्मान के साथ डोली में बैठ कर अपनी ससुराल जाएगी, लेकिन यह तुम्हारे हाथ में है. वैसे हमारा कंप्यूटर एक्सपर्ट आजकल खाली है, वह ऐसी कई तस्वीरें बना सकता है. मुझे उम्मीद है कि एक शरीफ पिता की तरह तुम मानसिक रूप से तैयार हो जाओगे. पैसा कहां पहुंचाना है, इस के लिए जगह और समय बाद में बताया जाएगा. मोहन ने जिज्ञासा भरी एक नजर फोटोग्राफ पर डाली. जैसा कि पत्र में लिखा गया था, दिनेश और सोनिया की सब से बड़ी बेटी नताशा मूलचंदानी अपनी ही उम्र के एक लड़के के साथ आपत्तिजनक हालत में बिस्तर पर दिखाई दे रही थी. जिस का अधिकतर हिस्सा चादर से ढका हुआ था, केवल चेहरा, कंधे और पैर दिखाई पड़ रहे थे. मोहंती ने नोटिस किया कि फोटो में कंधे और पैर नंगे थे.

दिनेश मूलचंदानी फट पड़ा, ‘‘ब्लैकमेलर ने धमकी दी है कि अगर पैसा नहीं दिया गया तो ऐसे कुछ फोटोग्राफ्स हमारे समधी के यहां भेज देगा. मोहंती तुम जानते हो कि आज से 14 दिन बाद नताशा की शादी होने वाली है. पता नहीं उस का अगला लेटर कब आ जाए.’’

इस बीच सोनिया की हालत कुछ सुधर गई थी और वह बोलने लायक हो गई थी. उस ने लगभग रोते हुए कहा, ‘‘मेरी बेटी की जिंदगी बर्बाद हो जाएगी. मेहरबानी कर के कोई चांस मत लो, इस मक्कार आदमी को वह दे दो जो वह चाहता है ताकि मामला यहीं खत्म हो जाए.’’

‘‘मैडम, पैसे देना समस्या का समाधान नहीं है. वक्तवक्त पर ब्लैकमेलर की मांग बढ़ती जाएगी. मुझे 3 दिन का समय दीजिए. देर शाम तक मैं आप को सारी रिपोर्ट दे दूंगा, उस के बाद आप को तय करना होगा कि क्या करना है.’’ मोहंती ने आश्वासन देने की कोशिश की.

सोनिया और दिनेश के दिल में मोहन के लिए बेहद सम्मान था, इसीलिए उन्होंने सब से पहले इन स्थितियों से निपटने के लिए उसे ही बुलाया था. उस की बातों से सोनिया को कुछ तसल्ली हो गई थी, उस ने मोहन से नाश्ते के लिए कहा, लेकिन मोहन ने मना कर दिया. जिस लिफाफे में फोटोग्राफ और पत्र आया था, उसे ले कर मोहन अपने औफिस की ओर चल दिया. रास्ते से ही उस ने अपनी सचिव मोना और अपने असिस्टेंट नरसिंह को फोन कर के तुरंत औफिस पहुंचने के लिए कहा. जैसी कि उम्मीद थी, मोना ने मना कर दिया, ‘‘शनिवार को औफिस क्यों? अगर तुम किसी मामले में मेरे साथ विचारविमर्श करना चाहते हो तो यह फाइव स्टार होटल या कौफी शौप में भी हो सकता है.’’

मोहन के पास इस के अलावा कोई चारा नहीं था कि मीटिंग की जगह बदले. फलस्वरूप 30 मिनट बाद वे तीनों ताजमहल होटल की कौफी शौप की एक टेबल पर बैठे कौफी पी रहे थे. मोहन ने उन दोनों को पत्र और तसवीर दिखाने के बाद पूरी कहानी सुनाई. फिर कहा, ‘‘ब्लैक मेलर ने खुद स्वीकार किया है कि तस्वीरें नकली हैं. फिर भी अगर ये तसवीरें नताशा की ससुराल भेज दी जाएं तो उस की जिंदगी बर्बाद हो जाएगी. हमें सोमवार की शाम तक हर हालत में ब्लैकमेलर को ढूंढ निकालना है. मैं मानता हूं कि हमारे पास समय कम है, लेकिन हमें यह करना होगा.’’

‘‘हमारे पास किसी मामले को आराम से हल करने का समय कब होता है? और यह हमेशा शनिवार की सुबह ही क्यों होता है? अब, मेरा पूरा हफ्ता बरबाद हो जाएगा.’’ मोना बड़बड़ाई.

मोहन ने मोना की बड़बड़ाहट को नजरअंदाज कर दिया, वह जानता था कि अगर एक बार मोना ने तगड़ा सा नाश्ता कर लिया तो उस में अगाथा क्रिस्टी की आत्मा समा जाएगी. इस के लिए उस ने मोना को नाश्ते का आर्डर देने को कहा. नरसिंह राव को लोग ‘आइसबर्ग’ के नाम से पुकारते थे. मोहन की नजर में वह जितना समझदार और स्मार्ट नजर आता था, वह उस की मूल योग्यता और स्मार्टनैस का केवल दसवां हिस्सा भर ही था. नरसिंह ने करीब 6 साल पहले मोहन का औफिस ज्वाइन किया था. उस समय औफिस का प्रशासनिक विभाग आए दिन औफिस में होने वाली चोरियों से परेशान था. हर दूसरे दिन औफिस से कोई कीमती चीज या किसी का महंगा मोबाइल फोन गायब हो जाता था.

प्रशासनिक विभाग के प्रभारी ने इस की शिकायत मोहन से की, तो उस ने यह मामला नरसिंह के हवाले कर दिया. इस के चौथे दिन ही नरसिंह ने बता दिया कि चोर सैमुअल है. जब मोहन ने उस से पूछा कि वह ऐसा किस आधार पर कह रहा है और कैसे साबित करेगा कि वह चोर है, तो नरसिंह ने चोर को रंगेहाथों पकड़ने की अनुमति मांगी. उस ने अपनी योजना भी मोहन को बता दी. अगले दिन नरसिंह ने लंचटाइम में नया लेकिन सस्ता सा चाइनामेड फोन औफिस की टायलेट के पास रख छोड़ा. जैसी कि उम्मीद थी, एक घंटे बाद फोन वहां नहीं था. दो घंटे बाद मोहन और नरसिंह सैमुअल के केबिन में जा कर उस के सामने बैठ गए. नरसिंह ने अपने फोन से एक नंबर डायल किया तो अचानक मोबाइल की घंटी बज उठी. आवाज सैमुअल के लैपटौप बैग से आ रही थी. विश्वास से भरे नरसिंह ने बैग खोला और मोबाइल फोन बाहर निकाल लिया.

ऐसा लगा जैसे सैमुअल गूंगा हो गया हो. उस ने सफाई देने की कोशिश की, ‘‘यह मोबाइल फोन मुझे टायलेट के पास मिला था और मैं प्रशासनिक औफिस में जमा कराने जाने ही वाला था.’’

नरसिंह ने अपनी बात पर जोर दे कर कहा, ‘‘नहीं जनाब, आप उसे साथ ले कर कहीं नहीं जाने वाले थे. अगर ऐसा होता तो आप फोन से सिम कार्ड नहीं निकालते. लेकिन दुर्भाग्य से आप यह नहीं जान पाए कि चीन के बने फोन थोड़े अलग तरह के होते हैं. इस मोबाइल फोन में दो सिम हैं. इन दो सिमों में से एक सिम छिपा रहता है.’’

उसी दिन सैमुअल को कंपनी से निकाल दिया गया. मोहन आश्चर्य में रह गया, उस ने नरसिंह से पूछा कि सैमुअल पर उस ने कैसे फोकस किया? इस के जवाब में उस ने बताया कि जिसजिस दिन चोरियां हुईं थीं. मैं ने उन दिनों का औफिस में ड्यूटी पर आने वालों का रिकौर्ड खंगाला. मैं ने देखा कि जिस दिन सैमुअल औफिस नहीं आता था, उस दिन चोरी नहीं होती थी. इस का मतलब था कि चोरी सैमुअल ही करता था. मोहन ने नरसिंह को शाबाशी दी और प्यार से उस का नाम ‘आइसबर्ग’ रख दिया. नाश्ता आ चुका था और मोना उस के साथ पूरापूरा न्याय कर रही थी. आश्चर्यचकित मोहन सोच रहा था कि इतना मक्खन, पनीर, क्रीम, इडली और इतने मीठे रस मोना की बौडी में ठहर क्यों नहीं रहे हैं. उसे अपनी तरफ निहारते हुए देख कर मोना ने कहा, ‘‘मोहन, मेरी कैलोरीज गिनना बंद करो और नाश्ते का मजा लो नहीं तो कपंनी का पैसा बरबाद होगा.’’

मोहन और आइसबर्ग ने भी मोना का साथ देना शुरू कर दिया. जब मोना भरपेट खा चुकी तो उस ने एक कप कौफी का और्डर दिया और धमकी वाले पत्र और फोटो में खो गई. मोहन ने आंखें चमकाते हुए आइसबर्ग को देखा, दोनों जानते थे कि जल्द ही अब कुछ पता लगने वाला है. करीब 10 मिनट पत्र का परीक्षण करने, पढ़ने और सोचने के बाद मोना ने बोलना शुरू किया, ‘‘ऐसा लगता है कि ब्लैकमेलर का कुछ न कुछ संबंध कुमाऊं क्षेत्र है, पत्र में लिखे गए शब्द दाज्यू का मतलब है आदणीय बड़े भाई, जो कुमाऊं में बोला जाता है.’’

‘‘बहुत खूब.’’ मोहन ने मोना की हिम्मत बढ़ाई.

‘‘फोटोग्राफ इंडिया में ही खींचा गया है. यह बात मैं इस आधार पर कह सकती हूं क्योंकि जिस चादर में जोड़ा लिपटा हुआ है, वह बौंबे डाइंग की है. नरसिंह लड़के लड़की की त्वचा का रंग देखो, यह भी किसी चीज की ओर इंगित कर रहा है.’’ कहते हुए मोना ने फोटो आइसबर्ग के हाथ में थमा दी.

‘‘त्वचा का रंग? मुझे देखने दो.’’ आइसबर्ग ने एक मिनट तक फोटो को ध्यान से देखने के बाद कहा, ‘‘बहुत अच्छा पकड़ा, केवल लड़की का चेहरा ही नहीं बल्कि लड़के का चेहरा भी बदला गया है. आम तौर पर कंधों का रंग चेहरे से अधिक गोरा होता हे, लेकिन इस फोटो में चेहरे कंधों से अधिक गोरे हैं.’’

‘‘शाबाश मोना, आइसबर्ग अब तुम्हारी बारी है. देखते हैं, तुम्हें क्या मिलता है.’’ मोहन ने आइसबर्ग को चुनौती देने वाले अंदाज में कहा. आइसबर्ग ने तुरंत धमकी वाला पत्र और फोटोग्राफ ले लिए. और गौर से देखने लगा. कंप्यूटर संबंधी चीजों का अध्ययन करने के बाद वह फोटो को गौर से देखते हुए बोला, ‘‘इस पत्र और फोटो में जो कागज इस्तेमाल किया गया है वह जनता कंपनी का एक्सएल साइज है. लेबल के जिस कागज पर पता लिखा गया है, वह कैमलिन ब्रांड का है और बहुत ही अच्छी क्वालिटी का है.’’

निस्संदेह ये तीनों चीजें महंगी और अच्छी गुणवता वाली हैं, लेकिन जिस प्रिंटर पर प्रिंट निकाला गया है, वह इंक जेट प्रिंटर से निकाला गया है. प्रिंट की गुणवत्ता से पता चलता है कि इस में रीफिल्ड कार्टि्रज इस्तेमाल किया गया है.’’

‘‘बहुत अच्छा, इस के अलावा और कुछ?’’ मोहन ने सराहना भरे लहजे में कहा.

‘‘हां, पत्र में शायद गोथिक फौंट का इस्तेमाल किया गया है, यह फोंट इंक का खर्च 30 प्रतिशत तक कम कर देता है. कार्टि्रज के खर्च को कम करने के लिए फौंट का साइज भी 11 के बजाय 10 रखा गया है, जिस से पता चलता है कि ब्लैकमेलर को कागज के कीमती होने की पूरी जानकारी है.’’ आइसबर्ग ने निष्कर्ष निकाला.

मोहन आइसबर्ग के विश्लेषण पर हामी भरते हुए मोना की ओर देख कर बोला, ‘‘तुम दोनों ने बहुत अच्छा विश्लेषण किया है. अब जो मैं ने देखा है उस की ओर आते हैं. लिफाफे पर लगी डाकघर की मुहर को देखो, यह शहर के ही नेहरू नगर के डाकघर की मुहर है. यह तो तुम्हें पता ही होगा कि नेहरू नगर क्षेत्र में एक बहुत बड़ी रिहाइश कुमाऊं के लोगों की है. दस साल पहले आए भूकंप में जो तबाही हुई थी, उस से प्रभावित लोगों को नेहरू नगर में फ्लैट आवंटित किए गए थे.

‘‘अब हम इस घटना को अपनी विश्लेषणात्मक दृष्टि से देखते हैं. लेकिन याद रहे कि यह धारणा बगैर किसी सबूत की होगी. सबूतों के लिए हमारे पास 2 दिन हैं.’’ मोहन ने टिप्पणी करते हुए अपनी बात कहना जारी रखी, ‘‘इस सब के पीछे नेहरू नगर में रहने वाला कोई कुमाऊंनी जोड़ा है. इस जोड़े ने अपने ही फोटोग्राफ का इस्तेमाल किया है और अपने चेहरे की जगह पर नताशा और किसी दूसरे लड़के के चेहरे पेस्ट किए हैं. इस के लिए उन्होंने मार्फिंग सौफ्टवेयर का इस्तेमाल किया है. यह मार्फिंग सौफ्टवेयर शायद फैंटामार्फ 5 या मारफेस होगा, जो इन लोगों ने अपने घर पर कंप्यूटर में लगा रखा होगा. निस्संदेह वह किसी नामी कंपनी में काम करता है, जहां से इतनी महंगी चीजें चुरा कर घर के इंकजेट प्रिंटर से प्रिंट निकालता है.’’

आइसबर्ग ने बीच में टोका, ‘‘मोहनजी, इस तस्वीर को जितनी खूबसूरती से मार्फ किया गया है, उस से लगता है कि यह फैंटामार्फ 5 सौफ्टवेयर से किया गया है. यह सौफ्वेयर कार्ड द्वारा भुगतान कर के इंटरनेट से डाउनलोड किया जा सकता है लेकिन मुझे लगता है कि यह डाउनलोड नहीं किया गया है. संभव है यह पायरेटेड हो और शहर के कंप्यूटर मार्केट से खरीदा गया हो.’’

मोना भी पीछे रहने वाली नहीं थी, उस ने भी चरचा में भाग लेते हुए कहा, ‘‘हमें यह भी पता लगाना है कि नताशा की तसवीर ब्लैकमेलर के पास कैसे पहुंची? यह काम घर के किसी आदमी का है या उस ने नताशा की तसवीर कहीं से उठा कर ऐसा किया है?’’

मोहन को अच्छा लगा कि उसे इतने अच्छे सहायक मिले, वह बोला, ‘‘अब हमारा आज का काम यह है आइसबर्ग कि तुम कंप्यूटर मार्केट जाओ और सौफ्टवेयर बेचने वालों के बारे में पता करो. मोना तुम मूलचंदानी के घर जाओ और पता करने की कोशिश करो कि नताशा का फोटो ब्लैकमेलर के पास कैसे पहुंचा? मैं नेहरू नगर जा कर वहां से जानकारी प्राप्त करने की कोशिश करता हूं.’’

मोना के चेहरे पर एक नजर डालते हुए मोहन ने घोषणा की, ‘‘दोपहर 2 बजे हम फिर यहीं मिलेंगे और अपनी दिन भर की जानकारी पर डिस्कस करेंगे. अब तक मोना पर अगाथा क्रिस्टी की आत्मा पूरी तरह से हावी हो चुकी थी और फाइव स्टार होटल के महंगे लंच में उस की कोई दिलचस्पी नहीं रह गई थी. उस ने कहा, ‘‘नहीं मोहन, हम औफिस में मिलेंगे. मामला गंभीर है और हम नहीं चाहते कि लोग अनुमान लगाएं कि एम 3 चंदानी समूह में कुछ ऐसावैसा हुआ है. मैं औफिस में ही लंच की व्यवस्था कर लूंगी.’’

मोना ने धमकी वाला पत्र और तसवीरें अपने पर्स में डाल लीं, फिर तीनों अपनेअपने रास्ते चले गए. निदेशक मूलचंदानी का बंगला होटल के सब से नजदीक था, इसलिए मोना सब से पहले अपने लक्ष्य पर पहुंच गई. एक दिन पहले तक नताशा की शादी को ले कर वहां पर बहुत गहमागहमी थी, मगर आज सारी तैयारियां रुकी सी लग रही थीं. दिनेश और सोनिया मोहन द्वारा किसी खबर का इंतजार कर रहे थे. मोना के आने से उन के चेहरे पर कुछ राहत के आसार दिखाई दिए. सोनिया ने मोना का हाथ अपने हाथ में ले कर बड़े अपनेपन से पूछा, ‘‘तुम्हें कुछ पता चला क्या?’’

‘‘सोनिया मैडम, आप चिंतित न हों. हमारे बड़े सर मोहनजी अपना काम कर रहे हैं. अब तो ब्लैकमेलर को चिंता करनी चाहिए. मैं आप से जानना चाहती हूं कि उस हरामजादे के पास नताशा का फोटो कैसे पहुंचा?’’ मोना ने नताशा के फोटो के संबंध में और भी कई सवाल पूछे.

एमके बाजार को लोग कंप्यूटर से संबंधित सामान के लिए देश की सब से बड़ी मार्केट कहते हैं. आमतौर पर माना जाता है कि अगर कहीं भी कोई सौफ्टवेयर या हार्डवेयर बना है तो वह यहां मिल जाता है. असल या पाइरेटेड किसी भी रूप में. वहां पर तमाम दुकानें तो थीं ही, लेकिन इस के साथ कई लड़के भी घूम कर कारोबार करते थे. ये सभी जवान थे, अधिकतम 25 साल की उम्र तक के. उन में से कोई भी ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था. रहे होंगे ज्यादा से ज्यादा दसवीं पास. ये लोग डुप्लीकेट हार्डवेयर और पायरेटेड सौफ्टवेयर का व्यापार करते थे, इसलिए उन की कोई स्थाई दुकान नहीं थी.

वहां पर मोहन के कुछ जानकार थे. उन्हें मोहन के सहयोगी नरसिंह के आगमन के बारे में भी पता लग गया और उस के उद्देश्य के बारे में भी. नरसिंह वर्मा से मिला, वह वहां काम करने वाले लोगों में सब से पुराना था और अब वहां के इज्जतदार दुकानदारों में था. उस के पास कई अच्छी कंपनियों की एजेंसियां थीं. उन में से कई एजेंसियां उसे मोहन की सिफारिश पर ही मिली थीं.

‘‘मैं एक ऐसे खरीदार को ढूंढ़ रहा हूं जिस ने मार्फिंग सौफ्टवेयर खरीदा हो. मुझे विश्वास है कि यह सौफ्टवेयर यहां के किसी लड़के से पिछले 2-3 सप्ताह के अंदर खरीदा गया है.’’ नरसिंह ने वर्मा से कहा.

वर्मा एक अजीब सी नजर उस के चेहरे पर डाल कर बोला, ‘‘नरसिंह, मुझे तुम से ऐसी मूर्खतापूर्ण बात की उम्मीद नहीं थी. हम दिन भर में दर्जनों सौफ्टवेयर बेचते हैं और तुम हम से उस आदमी की पहचान बताने को कह रहे हो जिस ने हम से 2-3 सप्ताह पहले सौफ्टवेयर खरीदा था.’’

नरसिंह ने इस बात को अनसुना कर के कहना जारी रखा, ‘‘ज्यादा उम्मीद यही है कि वह कुमाऊं का रहने वाला रहा होगा और वहीं के लोगों जैसा दिखता होगा.’’

‘‘नरसिंह, तुम मेरे लड़कों को जानते हो, वे कश्मीरी या बंगाली में बात नहीं कर पाते. तुम उन से बात करोगे तो वे सोचेंगे कि कुमाऊं गूगल कोई नया सौफ्टवेयर है.’’ वर्मा ने यह बात बड़ी उदासीनता से कही थी, लेकिन नरसिंह के चेहरे पर छाई हुई निराशा को देख कर उस ने उस की मदद करने का फैसला किया.

‘‘वैसे तो तुम जो सोच रहे हो, वह भूसे के ढेर में से सुई निकालने जैसा है, फिर भी मैं किसी ऐसे खरीदार के बारे में जानने की कोशिश करता हूं.’’

वर्मा ने पूरे बाजार में यह संदेश पहुंचा दिया और थोड़ी देर में उस के पास तमाम तरह की जानकारी आ गईं. मसलन एक स्टूडेंट जैसा लड़का आया था, वह पैसे के बारे में बहुत चर्चा कर रहा था.  एक आर्किटेक्ट ने सौफ्टवेयर खरीदा था, वह पायरेटेड सौफ्टवेयर का बिल मांग रहा था. एक क्लर्क था जो खरीद पर कमीशन मांग रहा था. तरहतरह की जानकारी आईं, लेकिन कोई भी काम की नहीं थी. नरसिंह समझ गया कि उस की सारी मेहनत बेकार गई, फिर भी उस ने वर्मा को धन्यवाद दिया और उस से गर्मजोशी से हाथ मिलाते हुए कहा कि अगर इस बारे में कुछ भी पता लगे तो से सूचना जरूर दे दें. इस के बाद वह दुकान से निकल आया.

उधर मोहन ने शहर के दूसरे हिस्से नेहरू नगर में अपनी कार एक दुकान के सामने रोकी. इस दुकान पर एवन कंप्यूटर का बोर्ड टंगा हुआ था. यह पता उसे जस्ट डायल सेवा से लगा था कि एवन कंप्यूटर मेंटनेंस का ठेका लेता है. दुकान में प्रवेश करते ही मोहन को अंदाजा हो गया कि उस दुकान का कंप्यूटर से कोई ज्यादा लेनादेना नहीं है, बस दुकान पर कंप्यूटर मेंटनेंस का बोर्ड ही लगा था. दुकान में कंप्यूटर से जुड़ी अगर कोई चीज थी तो वह माउस और पैड ही थे. वास्तव में यह एक तरह से कंप्यूटर स्टेशनरी की दुकान थी. दूसरी दुकान तिकरोडील (पंजीकृत) कंप्यूटर थी, जिस पर पंजीकृत काफी बड़ा लिखा था. लेकिन मोहन को निराशा ही मिली. इस दुकानदार का भी कंप्यूटर से कोई लेनादेना नहीं था, उस का असली काम विदेशों में अवैध तरीके से सस्ती काल कराना था.

यह सब देख कर मोहन पर थोड़ी खीझ सवार होने लगी थी, लेकिन फिर भी वह उस तीसरी दुकान पर पहुंचा, जिस का पता जस्ट डायल से मिला था. दुकान के बाहर लगे बोर्ड पर बड़े अक्षरों में ‘24 कैरेट कंप्यूटर्स’ लिखा हुआ था. दुकान के नाम से पता लगता था कि निश्चय ही उस का मालिक सामान की गुणवत्ता पर ध्यान देता होगा. इसीलिए उस ने दुकान का नाम 24 कैरेट रखा है. वैसे भी यह दुकान सही रूप से कंप्यूटर की दुकान थी. इस दुकान पर कंप्यूटर्स की रिपेयरिंग होती थी. मोहन को अंदर आते देख दुकानदार ने समझा कि शायद वह उस का नया ग्राहक है, इसलिए उस ने गर्मजोशी से मोहन का स्वागत किया, लेकिन जब मोहन ने अपने आने की मूल वजह बताई तो उस के उत्साह पर पानी पड़ गया.

मौके की नजाकत को समझते हुए मोहन ने वादा किया कि वह उस के बहुमूल्य समय की कीमत जरूर चुकाएगा. फिर उस से पूछा, ‘‘क्या वह इस क्षेत्र में किसी ऐसे व्यक्ति को जानता है जिस के घर पर कंप्यूटर और प्रिंटर हो, और वह अपने इंकजेट प्रिंटर में रीफिल कार्टि्रज इस्तेमाल करता हो?’’

‘‘नेहरू नगर जैसे पिछड़े क्षेत्र में कौन असली कार्टि्रज इस्तेमाल करेगा. वह इतनी महंगी होती है कि इस क्षेत्र का रहने वाला कोई भी वहन नहीं कर सकता. क्योंकि कालोनी में अधिकांश क्लर्क और छोटे दुकानदार ही रहते हैं.’’

‘‘क्या तुम ऐसे किसी पहाड़ी आदमी को जानते हो, जो कुमाऊं क्षेत्र का रहने वाला हो और ऐसे प्रिंटर का उपयोग करता हो?’’

‘‘हमारे यहां कौन आएगा? ये सारे क्लर्क और दुकानदार जानते हैं कि कंप्यूटर, प्रिंटर कैसे रिपेयर किया जाता है. इस क्षेत्र में कंप्यूटर मरम्मत की 17 दुकानें हैं और सारे के सारे इस क्षेत्र से जाने या यह काम छोड़ने की सोच रहे हैं.’’

मोहन ने तीसरा सवाल पूछने का विचार छोड़ दिया और दुकानदार को अपने विजिटिंग कार्ड के साथ सौ रुपए का नोट थमा कर दुकान से बाहर आ गया. मोहन और नरसिंह दोनों निराशा भरी थकान के साथ औफिस पहुंचे. उन्हें लग रहा था कि उन की अब तक की सारी मेहनत बेकार गई. अब वे यह सोच कर परेशान हो रहे थे कि इस मामले को कैसे आगे बढ़ाएं. पहली नजर में सौफ्टवेयर बेचने वाले के माध्यम से फैंटामोर्फ 5 सौफ्टवेयर के खरीदार तक पहुंचना अथवा कंप्यूटर मरम्मत की दुकान के माध्यम से प्रिंटर तक पहुंचना, दोनों ही आइडिए बेकार साबित हुए थे. जासूसी के बारे में प्रसिद्ध कहावत है कि अगर सौ बातों में एक बात भी काम की मिल जाए, तो खुद को भाग्यशाली समझो. बस यह सोच कर उन्हें थोड़ी तसल्ली हुई.

अब सारा दारोमदार मोना पर था. सारी उम्मीदें उसी से जुड़ी थीं, क्योंकि उन्हें विश्वास था कि हमेशा की तरह वह इस बार भी उन्हें निराश नहीं करेगी और हुआ भी ऐसा ही. उस ने जांच का सारा रुख ही पलट दिया. जब उस ने कमरे में प्रवेश किया तो उस के हाथों में सब के लिए बर्गर के पैकेट थे.

‘‘मोहन, मुझे लगता है कि इस धमकी वाले पत्र का कोई न कोई संबंध जरूर मलायका डांस इंस्टीट्यूट से है. नताशा मूलचंदानी. पिछले कई वर्षों से इस संस्थान में शास्त्रीय नृत्य सीख रही है. यह संस्थान हर साल अपनी कामों की एक रिपोर्ट प्रकाशित करता है, जिस में उन के कार्यों और डांस सीखने वालों के बारे में छापा जाता है. इस में कई प्रशंसकों के विज्ञापन भी प्रकाशित किए जाते हैं.’’

मोना ने कहना जारी रखा, ‘‘मैं यह जानना चाहती थी कि नताशा की यह खास फोटो ब्लैकमेलर के पास कैसे पहुंची. मैं ने नताशा से इस तसवीर को देख कर याद कर के बताने को कहा कि उस ने इस तरह की तसवीर कहां और कब खिंचाई थी. उस ने याद कर के बताया कि यह फोटो डांस इंस्टीट्यूट की वार्षिक पत्रिका में छपी थी. यह सुन कर सोनिया मैडम संस्थान की पत्रिका उठा लाईं और सौभाग्य से यह तसवीर उस में मिल गई. लेकिन इस पत्रिका से एक नहीं 2 तस्वीरें ली गई थीं.’’

मोहन और नरसिंह दोनों एकसाथ बोल पड़े, ‘‘वाह, क्या बात है. तुम्हारे कहने का मतलब है कि तुम्हें मैगजीन में दोनों फोटो मिल गईं?’’

‘‘हां, नताशा का चेहरा भी इसी मैगजीन से लिया गया है, और लड़के का चेहरा भी इसी पत्रिका से. यह फेयर क्रीम का विज्ञापन ध्यान से देखो, मौडल का चेहरा ब्लैकमेलर के मार्फ किए गए फोटोग्राफ से मिलता है.’’ कहते हुए मोना ने संस्थान की पत्रिका का एक पृष्ठ खोल कर सामने रख दिया. मोहन और नरसिंह ने पत्रिका में छपे नताशा और मौडल के चेहरे को कई बार बहुत बारीकी से देखा और उन की तुलना धमकी वाले पत्र के साथ आए फोटोग्राफ्स से की. मोना का निशाना बिलकुल सही जगह लगा था.

‘‘मेरे पास बताने के लिए एक चीज और है. दरअसल, धमकी वाले पत्र के साथ आई तसवीर किसी डांस शो के ठीक बाद खींची गई थी.’’

‘‘मोना ने सब वे से लाए बर्गर के पैकेट को खोलते हुए कहना जारी रखा,’’ धमकी वाले पत्र को ध्यान से देखो और बताओ कि मैं ने यह कैसे जाना?  मोहन और राव ने सब वे के बर्गर भूल कर आंखें फाड़फाड़ कर फोटो को अपनी माइक्रोस्कोपिक नजरों से देखना शुरू किया. लेकिन उन्हें ऐसा कुछ नजर नहीं आया, जिस के आधार पर वह कह सकते कि फोटो किसी डांस शो के ठीक बाद खींची गई थीं.

‘‘लड़कों की सोच हमेशा एक जैसी ही रहेगी, वह किसी सैक्सी फोटोग्राफ को देखेंगे और उन के मस्तिष्क का खून शरीर के दूसरे हिस्से की ओर दौड़ना शुरू हो जाएगा.’’ मोना ने दोनों का अजीब सा मजाक उड़ाते हुए कहा, ‘‘इस फोटो में छिपे दोनों लोगों के पैरों को देखो, लड़की के पैर लाल रंग से रंगे गए हैं, लेकिन लड़के के पैर बिलकुल साफ हैं. दरअसल भरतनाट्यम में लड़की के पैरों पर लाल रंग का आलता लगाना मेकअप का ही एक हिस्सा माना जाता है.’’

‘‘और हां, अब बेवकूफों की तरह मुझे देखना बंद कर के जल्दी से बात खत्म करो, हमें काम करना है.’’ मोना ने आदेश दिया, जिसे उन दोनों ने मान लिया.

मोना ने अपना लंच खत्म किया और गिलास से पानी का घूट भरते हुए बोली, ‘‘हम मान लेते हैं कि ब्लैकमेलर का कुछ न कुछ संबंध मलायका डांस इंस्टीट्यूट से जरूर है. नताशा ने मुझे बताया कि इंस्टीट्यूट में इस वक्त 57 छात्र हैं, लेकिन इन में से केवल 18 ही सीनियर ऐज ग्रुप के हैं शेष 39 ऐसी योजना तैयार करने के हिसाब से बहुत छोटे हैं.’’

नरसिंह ने उस की बात से प्रभावित होते हुए कहा, ‘‘क्या तुम चाहती हो कि मैं इंस्टीट्यूट के लड़कों की जांच करूं?’’

‘‘नहीं, इस से कोई फायदा नहीं होगा.’’ मोना ने उसे आइसबर्ग कह कर चिढ़ाते हुए कहा.

‘‘क्या तुम मुझे यह बात समझा सकती हो कि इस से कोई मदद क्यों नहीं मिलेगी?’’ जवाब में नरसिंह ने थोड़े गुस्से में पूछा.

‘‘सीधी सी बात है, मेरे आइसबर्ग, बहुत सीधी.’’ मोना ने बिलकुल शरलक होम्स की नकल उतारते हुए कहा, ‘‘मैं ने पहले ही पता कर लिया है. नताशा ने मुझे बताया है कि इस समय इंस्टीट्यूट में केवल 2 ऐसे बौय स्टूडेंट हैं जो सीनियर एज ग्रुप में हैं. वे दोनों भाई हैं और मुंबई के एक धनीमानी परिवार से संबंधित हैं. वे ऐसे अपराध में शामिल नहीं हो सकते. एक बात और, फोटो में दिखाई देने वाला लड़का स्टूडेंट नहीं हो सकता.’’

‘‘बहुत खूब मोना, पहली बात तो वार्षिक पत्रिका और फिर पांवों पर मौजूद लाल रंग का आलता. इस से यह बात तो निश्चित है कि पत्र लिखने वाले का संबंध मलायका इंस्टीट्यूट से जरूर है. हमें शाम को इंस्टीट्यूट चलना चाहिए.’’ मोहन ने कहा. शाम को मोहन और मोना दोनों इंस्टीट्यूट पहुंचे. दोनों ही मुंबई के बाहरी इलाके में अरब सागर के किनारे बने हुए लाल रंग के पुराने शैली के बंगले की सुंदरता देख कर बहुत प्रभावित हुए. रिसेप्शन पर उन्होंने इंस्टीट्यूट के मालिक और शिक्षक केशव कमल से मिलने की इच्छा जताई. रिसेप्शन पर बैठी महिला ने बहुत ही आदर से बात की और उन्हें कुछ देर इंतजार करने को कहा, क्योंकि गुरु जी डांस क्लास में थे.

अपनी आदत के अनुसार मोहन ने वहां के कक्षों का निरीक्षण शुरू कर दिया और मोना रिसैप्शनिस्ट से बातें करने में व्यस्त हो गई. दीवार पर करीने से लगे फोटोग्राफ्स, प्रमाणपत्र और अखबारों की कटिंग का मुआयना करने के बाद मोहन ने निष्कर्ष निकाला कि गुरूजी की उम्र तकरीबन 63 साल होगी, और उन का संबंध उत्तर प्रदेश के फैजाबाद के भरत नाट्यम परिवार से रहा होगा. वह बंगला सेठ सीताराम नवल का बनवाया हुआ था. दीवार पर लिखी इबारतों से यह भी पता लगता था कि मलायका, सेठ सीताराम की लड़की का नाम था, जो गुरूजी की शिष्य थी और उसे डांस में महारत हासिल थी. लेकिन दुर्भाग्य से करीब 20 साल पहले उस की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी. उस की मृत्यु के बाद सेठजी ने उस की याद में डांस इंस्टीट्यूट स्थापित किया और इस के लिए नाममात्र किराए पर अपना यह बंगला गुरू जी को दे दिया था.

निरीक्षण करने के बाद मोहन मोना के पास आया और वे दोनों सिर जोड़ कर बैठ गए. मोहन ने मोना से कहा, ‘‘गुरूजी इस संस्थान को पिछले कई सालों से चला रहे हैं और इस बंगले में ही अपनी पत्नी, बेटी और दामाद के साथ रहते हैं. दामाद राजकमल संस्थान में भरतनाट्यम सिखाने के साथसाथ प्रशासनिक मामले भी देखता है. यह बंगला सेठ सीताराम नवल परिवार के माध्यम से चलाए जाने वाले एक ट्रस्ट की संपत्ति है.’’

जब वे दोनों बातें कर रहे थे, तो उन्होंने एक व्यक्ति को अपनी ओर आते हुए देखा. उस के पहनावे से अनुमान होता था कि वे ही गुरू केशव कमल जी हैं. उस व्यक्ति ने पास आ कर बड़े सभ्य तरीके से अपना परिचय दिया, ‘‘नमस्कार, मेरा नाम केशव कमल है और मैं इस संस्थान में भरतनाट्यम सिखाता हूं. बताइए, मैं आप की क्या मदद कर सकता हूं?’’

मोहन ने अपना परिचय एक कंपनी के प्रतिनिधि के रूप में देते हुए कहा कि उन की कंपनी सांस्कृतिक कार्यक्रम कराती है. अपने आने का उद्देश्य बताते हुए मोहन बोला, ‘‘गुरू जी, हमारा समूह अगले महीने वार्षिक कार्यक्रम करने जा रहा है. हमारा इरादा है कि अन्य कला प्रदर्शनों के साथ इस में एक भारतीय शास्त्रीय नृत्य का कार्यक्रम भी रखा जाए, क्योंकि हमारे इस कार्यक्रम में हमारे विदेशी कस्टमर भी बतौर अतिथि शामिल होंगे. हमारी इच्छा है कि इस कार्यक्रम में आप के संस्थान के छात्र अपना प्रदर्शन करें.’’

‘‘बहुत अच्छा विचार है, यह हमारे लिए बड़ी खुशी की बात होगी. हमारे स्टूडेंट्स विभिन्न अवसरों पर अपनी कला का प्रदर्शन करते रहते हैं, इसलिए कार्यक्रम की तैयारी की कोई समस्या नहीं होगी. इस के लिए आप के पास कोई विचार हो तो बता दीजिए.’’

मोहन ने उत्तर में कहा, ‘‘मैं चाहता हूं कि हम कल आप के संस्थान आएं और प्रदर्शन देख कर ही फाइनल फैसला करें. क्या ऐसा हो सकता है कि आप अपने स्टूडेंट्स को कल फोन कर के बता दें, क्योंकि कल रविवार है?’’

‘‘रविवार का होना कोई मुद्दा नहीं है, हमारी साप्ताहिक छुट्टी सोमवार को होती है. वैसे भी हम कलाकार हैं, अगर जरूरत हो तो सप्ताह भर बिना छुट्टी के काम करते हैं.’’

मोहन ने मेहनताने के बारे में पूछा तो गुरू जी बोले, ‘‘पैसे के लेनदेन का मामला मेरा दामाद राजकमल ही देखता है. कल जब आप आएंगे तभी यह मामला भी तय हो जाएगा. इस समय वह क्लास ले रहा है.’’

अगली सुबह, मोहन मोना और नरसिंह तीनों संस्थान पहुंचे, जहां गुरूजी और उन के परिवार ने उन का बड़ी गर्मजोशी से स्वागत किया. गुरूजी की बेटी मनोरमा ने उन्हें नाश्ते के लिए कहा लेकिन उन्होंने बड़ी खूबसूरती से मना कर दिया. सभी मुख्य हाल में पहुंचे, जहां पहले से ही लड़के और लड़कियां डांस का अभ्यास कर रहे थे. वे सब वहां पर बिछी कुर्सियों पर बैठ गए. मोहन के अनुरोध पर कमल और मनोरमा ने अपने लड़केलड़कियों का परिचय कराना शुरू कर दिया. मोना व उस के साथियों को उन के लड़के व लड़कियों में कोई ऐसी बात नहीं दिखाई दी, जिस से उन पर किसी तरह का संदेह किया जा सके. वे सभी बहुत अच्छे परिवारों से संबंध रखते थे, जिस से अनुमान होता था कि उन में से कोई भी इस तरह की घटिया हरकत में शामिल नहीं हो सकता. मोना उन से डांस थीम का विवरण पूछने लगी.

मोहन अपने मोबाइल से सारे स्टूडेंट्स की तसवीरें लेने लगा. उस ने राजकमल और संस्थान के 2 सीनियर स्टडेंट से भी फोटो खिंचवाने को कहा. तीनों हंसीखुशी राजी हो गए. मोहन ने तुरंत वह तस्वीरें एमएमएस के माध्यम से एम के बाजार के दुकानदार वर्मा को भेज दीं. राजकमल ने सलाह दी, ‘‘मैडम, हमारे पास कई डांस थीम हैं. वैसे हमारा सब से प्रसिद्ध कृष्ण लीला का डांस है, जो कृष्ण की कई लीलाओं को डांस के माध्यम से दर्शाता है. इस के अलावा हमारे पास पूरी रामलीला का कौन्सेप्ट भी है, इस में डांस के माध्यम से ही मंच पर पूरी रामलीला दिखाई जाती है.’’

‘‘क्या आप के पास भारतीय संस्कृति पर कोई डांस तैयार है? हम कुछ ऐसा चाहते हैं, जिस में भारत के डांस की कई विधाएं प्रदर्शित हो सकें.’’ मोहन ने पूछा.

‘‘यह अच्छा विचार है.’’ मनोरमा ने कहा, ‘‘हम एक कार्यक्रम तैयार कर सकते हैं, जिस में भारतीय विधाओं का मिलाजुला रूप हो, जैसे कि भरतनाट्यम, कथकली, कुचिपुड़ी, ओडिसी और कथक.’’

मोना ने कह दिया, ‘‘हां, हमें कुछ इसी तरह का चाहिए. इस में आप गरबा और लावनी को भी शामिल कर सकते हैं.’’

मोना ने फिर खुशी व्यक्त करते हुए कहा, ‘‘कितना दिलचस्प होगा यह, बहुत मजा आएगा.’’

‘‘बिलकुल सही कहा मैडम, हमारी शादी भी डांस की वजह से ही हुई थी, अब हमारी इच्छा है कि हम अपने कौशल को दुनिया के सामने पेश करें.’’ मनोरमा ने एक ठंडी सांस लेते हुए कहा.

इस के बाद उन्होंने लगभग एक घंटे तक स्टूडेंट्स के कोरस का प्रदर्शन देखा और उन की सराहना की. नरसिंह यानी आइसबर्ग हाल में आया तो मोहन ने उस के चेहरे की प्रतिक्रिया देखी और समझ गया कि उसे कोई विशेष बात पता चली है. अचानक, आइसबर्ग खड़ा हो कर बोला, ‘‘मैं जानता हूं कि राज कमल जी और उन की पत्नी मनोरमा बहुत उच्चकोटि के नर्तकों में हैं. मैं ने 8 महीने पहले भोलाभाई सभागार में उन का कृष्ण लीला वाला कोरस देखा था. कितना अच्छा नृत्य था.’’

आइसबर्ग का इशारा समझते हुए मोहन ने राजकमल से कहा, ‘‘क्या वह इस कार्यक्रम की सीडी देख सकते हैं, यदि संभव हो तो?’’ यह सुनते ही मनोरमा अपना लैपटौप उठा लाई और डांस की क्लिपिंग दिखानी शुरू कर दी. मोहन और मोना दोनों को इस में वह नजर आ गया जो आइसबर्ग उन्हें दिखाना चाहता था. चूंकि अब वहां रुकने का कोई कारण नहीं बचा था, इसलिए मोहन ने उन के इंस्टीट्यूट का एक कार्यक्रम कराने पर सहमति जताते हुए मेहनताने की बात की. राज कमल ने एक लाख रुपए प्रति कार्यक्रम के हिसाब से अपनी फीस बता दी. मोहन ने भी इस धन राशि पर अपनी सहमति दे दी.

चूंकि मोहन आसानी से राजी हो गया था, इसलिए मनोरमा ने कुछ अग्रिम के लिए इशारा किया ताकि विश्वास हो जाए कि बात पक्की हो गई है. मोना ने अपना पर्स खोला और हजारहजार के नोटों की शक्ल में 10 हजार रुपए मनोरमा के हाथ पर रख दिए. जैसे ही वे लोग इंस्टीट्यूट से बाहर आए और अपनी कार में बैठे, मोना ने आइसबर्ग को चिढ़ाते हुए कहा, ‘‘मुझे उम्मीद है कि तुम ने कुछ ऐसा पता लगा या होगा जो दस हजार रुपए से ज्यादा कीमती होगा. तुम्हारे चमकते चेहरे को देख कर ही मैं ने यह पैसा खर्च किया है.’’

‘‘मोना, तुम जानती हो, हमारे पास उस से अधिक है, जितने की हमें उम्मीद थी. अब ब्लैकमेलर का पता चल चुका है, बस हमें जा कर उसे पकड़ना बाकी है.’’

मोहन जो उस समय कार ड्राइव कर रहा था, वह भी उन की इस नोक झोंक मे शामिल होते हुए बोला, ‘‘मुझे भूख लग रही है, हम पहले ताज चल रहे हैं और वहीं लंच करते वक्त अपनी जानकारी पर विचार करेंगे.’’

जासूसों की यह टीम सीधे ताज के भोजन कक्ष में गई और कुर्सियों पर कब्जा जमा लिया. मोना और मोहन को इस बात का पूरा विश्वास हो गया था कि राज कमल और मनोरमा ही इस मामले के सूत्रधार हैं, लेकिन वह आइसबर्ग से उसे मिली जानकारी के बारे में जानना चाहता था. एम के बाजार के वर्मा ने फोन कर के बताया था कि कुछ दिन पहले उस के लड़कों ने राजकमल को एम के बाजार में देखा था. वह फैंटामार्फ 5 सौफ्टवेयर तलाश रहा था. लड़के को चेहरा इसलिए याद रह गया क्योंकि राज कमल उस समय अजीब ड्रेस में था, उस ने शर्ट के साथ भरत नाट्यम के दौरान पहले जाने वाली धोती बांध रखी थी.

आइसबर्ग ने अपना मुंह खोला, ‘‘मैं बाहर गया और संस्थान का औफिस चेक किया. सौभाग्य से मुझे वह सारी चीजें मिल गईं, जिन की हमें तलाश थी. पुराना सा इंकजेट प्रिंटर जिस में रीफिल कार्टि्रज पड़ी हुई थीं. महंगी स्टेशनरी और कंप्यूटर, जिस में गोथिक फौंट भी इंस्टौल्ड था, के साथ मुझे राजकमल और मनोरमा का वह मूल फोटो भी मिल गया जिस पर नताशा और पुरुष मौडल चेहरे चिपकाए गए थे.’’

‘‘और इस डांस वीडियो में जो मनोरमा हमें दिखाई दी थी, उस में महिला के रंग और पुरुष के सादे पैर साफ दिखाई दे रहे थे. यह तो मेरी समझ में आ गया कि फोटो शो के बाद ही खींचा गया था. जबकि मैं यह नहीं समझ पा रही हूं कि उन्होंने ऐसी बेवकूफी क्यों की?’’ मोना ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘इस के पीछे राजकमल का मन रहा होगा, उस ने अपनी पत्नी को यह कह कर बहकाया होगा कि हम दोनों बहुत अच्छे डांसर्स हैं और अगर हमें एक बार भी अंतर्राष्ट्रीय मंच पर प्रदर्शन करने का मौका मिल गया तो फिर हमें रोकने वाला कोई नहीं होगा. इस तरह इंटरनेशनल टूर के लिए राशि की व्यवस्था करने के लिए मनोरमा भी इस अपराध में भागीदार बन गई होगी.’’ आइसबर्ग ने टिप्पणी की. चूंकि दिनेश मूलचंदानी को भेजी गई नताशा के फोटो की मूल कापी मिल गई थी, इसलिए ब्लैकमेलिंग का कोई डर नहीं था. मोहन ने यह बात मूलचंदानी परिवार को बता दी कि वे लोग निश्चिंत हो कर शादी करें. इस के बाद उस ने राजकमल और मनोरमा को कुछ इस तरह डराया कि वे चुप रहने के अलावा कुछ न कर सके. Crime Story

 

Emotional Movies: मार्गरिटा विद ए स्ट्रा

Emotional Movies: शारीरिक विकलांगता पर ‘गुजारिश’ और ‘अमु’ जैसी फिल्में पहले भी बन चुकी हैं, इन में ‘गुजारिश’ बडे़ बजट की थी और ‘अमु’ छोटे बजट की लेकिन दर्शकों ने दोनों को लगभग नकार दिया था. लेकिन ‘मार्गरिटा विद ए स्ट्रा’ पक्षाघात से पीडि़त एक ऐसी लड़की की कहानी पर आधारित फिल्म है जिसे देखने का मोह कोई नहीं छोड़ सकता…

हाल ही में प्रदर्शित हुई फिल्म ‘मार्गरिटा विद ए स्ट्रा’ लीक से हट कर बनी फिल्म है, जिस का आधार है पक्षाघात से पीडि़त एक लड़की लैला. हिंदी और अंगरेजी में बनी इस फिल्म का प्रीमियर हालांकि टोरंटो फिल्म फेस्टिवल में गत वर्ष 8 सितंबर को हो चुका था, लेकिन कुछ कारणों से भारत में यह हाल ही रिलीज हुई. इस फिल्म की खासियत है अभिनेत्री कल्कि कोचलिन का जबरदस्त अभिनय. यह फिल्म एनईटीपीएसी (नेटवर्क फौर द प्रमोशन औफ एशियन सिनेमा) का अवार्ड पहले ही जीत चुकी है. पिछले साल इस पुरस्कार को जीतने वाली यह अकेली भारतीय फिल्म थी. केवल यही नहीं, पिछले साल ही एस्टोनिया में हुए ‘टैलिन ब्लैक नाइट्स फिल्म फेस्टिवल’ में इस फिल्म की नायिका कल्कि कोचलिन को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का अवार्ड भी मिला था.

फिल्म ‘मार्गरिटा विद ए स्ट्रा’ सेरेब्रल पल्सी (पक्षाघात) से पीडि़त एक युवती की कहानी है, जो व्हीलचेयर पर रहती है और उसे खानेपीने, बोलने और अन्य सामान्य गतिविधियों में भी भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. लेकिन उस के सपने सामान्य युवतियों से कहीं ऊंचे हैं. वह व्हीलचेयर पर ही अपने घर, कालेज और फ्रैंडस के साथ समय गुजारती है. उस के घर में मां है, पिता हैं और एक छोटा भाई मोनू है, जो उस का हर तरह से खयाल रखते हैं. उस के पिता म्यूजिक लवर हैं और लैला को उन से ही गाने लिखने की प्रेरणा मिलती है. लैला दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्र है, साथ ही प्रतिभाशाली गीतकार भी. वह एक बैंड के लिए गाने लिखती है. बैंड की संयोजक नीमा से उस की अच्छी दोस्ती है. इस के बावजूद लैला को लगता है कि कोई उसे प्यार नहीं करता बल्कि उसे दूसरों से अलग समझा जाता है.

आगे की स्टडी के लिए लैला को न्यूयार्क विश्वविद्यालय में एडमिशन मिल जाता है और वह अपनी मां (रेवती) के साथ वहां जा कर मैनहट्टन में रहने लगती है. वहां रहते हुए उसे उस की बंग्लादेशी दोस्त खानम से प्यार हो जाता है. धीरेधीरे दोनों के बीच समलैंगिक रिश्ते बन जाते हैं. लेकिन शारीरिक दुर्बलताएं और पारिवारिक रिश्तों की कशमकश किस तरह उस के प्यार और जीवन में आड़े आती हैं, इसे बडे़ ही मार्मिक ढंग से फिल्माया गया है. इस के अलावा कल्कि और सयानी गुप्ता (खानम) पर फिल्माया गया इंटीमेट सीन भी गजब बन पड़ा है. सही मायनों में देखा जाए तो मार्गरिटा विद ए स्ट्रा फिल्म नहीं, बल्कि ऐसा रस है, जिसे बूंदबूंद पीने पर ही मजा आता है. इस फिल्म में कल्कि का अभिनय रोमरोम को रोमांचित कर जाता है. उस का अधूरापन उस के चेहरे के हावभावों और आंखों से टपकता है. जिसे कैमरामैन ने बड़ी खूबसूरती से उभारा है.

शोनाली बोस द्वारा निर्मित, निर्देशित और लिखित ‘मार्गरिटा विद ए स्ट्रा’ भले ही शारीरिक रूप से कमतर एक ऐसी लड़की की कहानी है, जो आसमान छूना चाहती है. लेकिन इस फिल्म में कई दृश्य कविता की तरह हैं, जैसे मां अपनी जवान बेटी को स्नान कराती है. जब बेटी अपनी निजता की बात करती है तो मां इस तरह का व्यवहार करती है, जैसे वह उसे जानती ही न हो. इसी तरह बाद में जब बीमार और लाचार मां को बेटी नहलाती है तो उस वक्त मांबेटी का नाजुक रिश्ता नग्न हो कर फिर सामने आता है, जो शारीरिक नहीं बल्कि रिश्तों की नाजुक डोर से बंधा है.

इंसान की जिंदगी में ऐसे मानवीय मोड़ आते रहते हैं, जब मांबेटी अथवा बापबेटे में से किसी एक को इस तरह की भूमिकाएं निभानी पड़ती हैं. लेकिन शोनाली बोस ने जिस तरह इन दृश्यों को फिल्माया है, वह बिलकुल कविता की तरह हैं. ऐसी ही स्थितियों में पता चलता है कि वस्त्र इंसान के लिए ही नहीं बल्कि रिश्तों के लिए भी कितने महत्त्वपूर्ण हैं. वैसे यहां स्पष्ट कर दें कि इस फिल्म को शोनाली बोस ने अपनी और अपने रिश्ते की बहन मालिनी की हकीकत भरी जिंदगी के इर्दगिर्द बुना है. फिल्म के अंत में बीमारी के चलते जब हीरोइन की मां मर चुकी है और उस का अपना प्रेमसंबंध टूट चुका है तो वह ब्यूटीपार्लर जा कर अपना शृंगार कराती है और एक रेस्तरां में जा बैठती है.

वहां एक फ्रैंड का फोन आने पर वह कहती है कि किसी के साथ डेट पर जा रही है. जबकि वह वहां प्रसन्नता के मूड में बैठी मार्गरिटा पी रही होती है. इस दृश्य को देख कर लगता है कि जीवन इसी का नाम है. संभवत: इसीलिए इस फिल्म का नाम ‘मार्गरिटा विद ए स्ट्रा’ रखा गया है. कमतरी के बावजूद लैला अपने जीवन को उत्सव की तरह मनाती है, ताकि जीवन में सकारात्मकता और हौसला बना रहे. कल्कि ने अपने करेक्टर की इस सोच को अपने अभिनय से जीवंत कर दिया है. भावनात्मकता से लबरेज इस फिल्म का एक दृश्य यह भी है कि फिल्म के शुरू के दृश्यों में हकलाने वाली नायिका मां के आलाप से स्वर मिलाने की कोशिश करती है.

जबकि मां की शोकसभा में वह अपने खुद के संगीत की सीडी बजाती है. इस से लगता है जैसे मांबेटी का स्वर एक ही हो. ऐसा ही दृश्य तब भी है, जब लैला अस्पताल में मरणासन्न मां के सिरहाने बैठी है. इसे देख कर लगता है जैसे वह बेटी नहीं, मां की भूमिका निभा रही हो. इस फिल्म की लैला सिख पिता और मराठी मां की बेटी है. पतिपत्नी दोनों में खानेपीने को ले कर नोकझोंक जरूर होती है, लेकिन उन के बीच प्यार की कोई कमी नहीं है. सच तो यह है कि फिल्म में रेवती ने मां की भूमिका को जिस तरह जीवंत किया है, वह काबिलेतारीफ है. कल्कि के अभिनय का तो कहना ही क्या. इस में कोई दो राय नहीं कि इस अभिनय के लिए मिले पुरस्कार से कल्कि कोचलिन स्वयं नहीं, बल्कि पुरस्कार गौरवान्वित हुआ है.

आजकल लीक से हट कर छोटीछोटी तमाम फिल्में बन रही हैं, जिन में से कुछ को पसंद भी किया जाता है. यह एक अच्छी शुरुआत है. लेकिन ‘मार्गरिटा विद ए स्ट्रा’ न तो इतनी छोटी फिल्म है और न ही इसे उस श्रेणी की फिल्मों में रखा जा सकता है. इस तरह की फिल्में दशकों में एकदो बार ही बन पाती हैं. यह फिल्म पूरे परिवार के साथ देखी जा सकती है और हर क्लास की कसौटी पर खरा उतरने का दम रखती है.

फिल्म की निर्माता, निर्देशक शोनाली बोस के बारे में इतना ही कहा जा सकता है कि उन्होंने एक ऐसी बेहतरीन फिल्म बनाई है, जिसे दशकों तक याद किया जाएगा. इस फिल्म के कलाकारों कल्कि कोचलिन ही नहीं बल्कि रेवती, सयानी गुप्ता, हुसैन दलाल, कुलजीत सिंह और मल्हार खुशबू वगैरह सभी ने बेहतरीन अभिनय किया है. शोनाली बोस ने फिल्म की धीमी रफ्तार के बावजूद अपने निर्देशन के बूते पर कहीं भी फिल्म को पटरी से नहीं उतरने दिया है. Emotional Movies

Rashtrapati Bhavan: तुर्की में बना विश्व का सबसे बड़ा राष्ट्रपति भवन

Rashtrapati Bhavan: भारत, अमेरिका और फ्रांस के राष्ट्रपति भवन की खूबियों    की तरह तुर्की में बने नए राष्ट्रपति भवन ने भी दुनिया की आलीशान इमारतों में प्रमुख स्थान हासिल कर लिया है. इतना ही नहीं, यह दुनिया के सब से बड़े लग्जरी पैलेस के रूप में जाना जाता है. दशकों पूर्व विशाल राष्ट्रपति भवन की बात आती थी तो भारत के राष्ट्रपति भवन का नाम लिया जाता था. यह भवन पहले वायसराय हाउस था. इस का निर्माण 1912 में शुरू हो कर 1929 में पूरा हुआ, यानी 2 लाख वर्गफुट में बने इस भवन के 340 कमरों को बनाने में 18 साल लगे थे.

इस विशाल भवन को बनाने में 70 करोड़ ईंटें और 30 लाख क्यूबिक फुट स्टोन का इस्तेमाल किया गया था. इस के निर्माण व वास्तुकला में भारतीय, रोमन, बौद्ध, मुगल और यूरोपियन कलाकारों की मेहनत दिखाई देती है. 26 जनवरी, 1950 को जब डा. राजेंद्र प्रसाद देश के पहले राष्ट्रपति बने, तब इस वायसराय हाउस को राष्ट्रपति भवन का नाम दिया गया था. विश्व के प्रमुख राष्ट्रपति भवनों की चर्चा होती है तो वाशिंगटन स्थित अमेरिकी राष्ट्रपति भवन व्हाइट हाउस का नाम भी प्रमुखता से लिया जाता है. 14 हजार 280 वर्गफुट में बनी इस इमारत के बनने की शुरुआत सन 1792 में हुई थी और यह 9 साल में बन कर तैयार हुआ था.

इस भवन में 132 कमरे हैं. मेहमानों के ठहरने के लिए यहां 16 गेस्टरूम हैं. पूरी इमारत एक्वा क्रीक सैंडस्टोन से बनी है. यह खास तरह का पत्थर होता है, जो भूरे व सफेद रंग का होता है. सन 1812 के युद्ध में ब्रिटिश सेना ने भवन को जला दिया था. बाद में इस क्षतिग्रस्त इमारत का पुनर्निर्माण सन 1829 तक पूरा हुआ. इस भव्य भवन के पत्थरों की पुताई पर 1136 लीटर आयल पेंट खर्च होता है.

अमेरिका के व्हाइट हाउस के बाद फ्रांस के राष्ट्रपति भवन ‘पैलेस द एल्सी’ की भी सफेद सोने की नक्काशी की वजह से अलग पहचान है. फ्रांस की राजधानी पैरिस में स्थित यह भवन पहले एक होटल था. इस का निर्माण 1718 से 1722 तक किया गया था. सन 1871 के बाद यह होटल राष्ट्रपति भवन कहलाया. इस भवन में 3 फ्लोर हैं, 7 बडे़ हाल हैं, जिन की साजसज्जा में भारी मात्रा में सफेद सोने की नक्काशी की गई है. उस नक्काशी में फ्रांस की संस्कृति साफ दिखाई देती है. लेविश डेकोरेशन व यूनिक फर्निशिंग इस भवन को फ्रांस के सब से प्रेस्टीजियस पैलेस में शुमार करती है.

अब बात आती है तुर्की के राष्ट्रपति भवन की. अंकारा में 32 लाख वर्गफुट पर बने राष्ट्रपति भवन ‘एके सराय’ में 1150 कमरे हैं. इस हिसाब से यह दुनिया का सब से बड़ा राष्ट्रपति भवन है. जितने कमरे हैं, यहां उतने ही सुरक्षा गार्ड तैनात रहते हैं, जबकि प्रेसीडेंशियल पैलेस में 40 सुरक्षा गार्ड थे.

यह विशाल भवन तुर्की के प्रभावशाली नेता रचैप तैय्यप एर्दोआन ने अदालती आदेशों को दरकिनार करते हुए बनवाया था. वे प्रधानमंत्री थे और अगस्त, 2014 में राष्ट्रपति का चुनाव जीत गए थे. इस विशाल पैलेस की लेविश डिजाइन पर ही उन्होंने 3 हजार 800 करोड़ रुपए खर्च किए थे. इतने बड़े खर्चे पर देश की जनता में आक्रोश पनप गया था.

बहरहाल, खर्च पर देश में कितना भी होहल्ला मचा हो, इस भवन की वजह से तुर्की की पूरे विश्व में अलग पहचान बन गई है. दुनिया के सब से बड़े इस लग्जरी पैलेस को तुर्की में व्हाइट हाउस कहा जाता है. Rashtrapati Bhavan

 

UP Crime News: भोली सी दुलहन – शादी के 7 दिनों बाद पति का मर्डर

UP Crime News:  यह घटना रिश्तों पर बड़ा सवाल खड़ा करती है. शादी के महज़ 7 दिनों बाद एक नवविवाहिता ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर पति की हत्या करवा दी. सोचने वाली बात यह है कि ऐसा क्या हुआ कि नईनई शादी के बावजूद पत्नी ने इतना बड़ा कदम उठा लिया? क्या था इस पूरे मामले के पीछे छिपा सच? जानने के लिए पढ़ें पूरी कहानी.

यह शर्मनाक मामला यूपी के बस्ती जिले के परसरामपुर थाना क्षेत्र के बेदीपुर गांव का है. यहां शादी के सिर्फ 7 दिनों बाद रुखसाना ने अपने पति अनीश की हत्या अपने प्रेमी रिंकू से करवा दी. अनीश को गंभीर हालत में अयोध्या के अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. पुलिस जांच में कई चौंकाने वाले खुलासे सामने आए, जिन्होंने सभी को हैरान कर दिया.

आप को बता दें कि 20 नवंबर, 2025 गुरुवार शाम अनीश अपने घर के बाहर टहल रहा था. तभी रिंकू बहाने से उस के पास आया. इस के बाद वह उसे कुछ दूरी तक बातों में उलझा कर ले गया और गोली मार दी. गंभीर रूप से घायल अनीश को पहले श्रीराम चिकित्सालय अयोध्या ले जाया गया, फिर हालत गंभीर होने पर उसे मैंडिकल कालेज रेफर कर दिया गया, लेकिन डॉक्टर उसे बचा नहीं पाए.

पुलिस ने वारदात के समय आसपास मौजूद लोगों से पूछताछ के बाद आरोपी की तलाश शुरू की. पुलिस ने 20 नवंबर, 2025 की ही देर रात को आरोपी रिंकू सिंह को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस की थोड़ी सख्ती के बाद उस ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया और हत्या की पूरी कहानी बताई.

अनीश की शादी 13 नवंबर, 2025 को रुकसाना से हुई थी, लेकिन रुकसाना का पहले से ही रिंकू सिंह से अफेयर चल रहा था. शादी के बाद भी दोनों आपस में बात करते रहे. 19 नवंबर को रुकसाना ने प्रेमी रिंकू सिंह के साथ मिलकर अनीश की हत्या की साजिश रची. रिंकू ने अनीश को रास्ता पूछने के बहाने रोक लिया और माथे पर गोली मार दी. जिस से अनीश की मौके पर ही मौत हो गई.

एसपी अभिनंदन ने बताया कि पुलिस ने रुकसाना और उस के प्रेमी रिंकू सिंह को गिरफ्तार कर लिया है .रुकसाना का रिंकू के साथ कई सालों से प्रेमप्रसंग चल रहा था. उन्होंने बताया कि रुकसाना ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर पति अनीश की हत्या की साजिश रची. पुलिस ने दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर उन्हें जेल भेज दिया है. UP Crime News

Crime Story: हवाई जहाज वाली चोरनी – पैसे की लत्त में बनी चोर

Crime Story: अप्रैल, 2019 महीने की बात है. मुंबई के लोअर परेल के एनएम जोशी मार्ग स्थित पुलिस स्टेशन में एक महिला ने रिपोर्ट दर्ज कराई कि वह परेल के ही फिनिक्स मौल के ‘जारा’ शोरूम में शादी के लिए खरीदारी करने गई थी. खरीदारी करने के बाद उस ने बिल अदा करने लिए सामान वाला अपना बैग बेटे को थमा दिया. संयोग से उसी समय बेटे के मोबाइल फोन पर किसी का फोन आ गया तो बेटा वहीं रखी कुरसी पर बैग रख कर मोबाइल फोन पर बात करने लगा.

फोन पर बात करने में उस का बेटा इस तरह मशगूल हो गया कि उसे बैग का खयाल ही नहीं रहा. फोन कटा तो उसे बैग की याद आई.पता चला कि बैग अपनी जगह पर नहीं है. वह इधरउधर देखने लगा. बैग वहां होता तब तो मिलता. जिस समय वह फोन पर बातें करने में मशगूल था, उसी बीच कोई उस का बैग उठा ले गया था. उस के बैग में 13 लाख के गहने, नकद रुपए और मोबाइल फोन मिला कर करीब 15 लाख रुपए से ज्यादा कीमत का सामान था.यह कोई छोटीमोटी चोरी नहीं थी. इसलिए एमएम जोशी मार्ग थाना पुलिस ने इस मामले की रिपोर्ट दर्ज कर मामले को गंभीरता से लेते हुए तुरंत जांच शुरू कर दी. मौल में जा कर गहन छानबीन के साथ वहां ड्यूटी पर तैनात सिक्योरिटी गार्डों के अलावा एकएक कर्मचारी से विस्तार से पूछताछ की गई.

सीसीटीवी फुटेज भी खंगाली गई, पर कोई ऐसा संदिग्ध पुलिस की नजर में नहीं आया, जिस पर उसे शक होता. पुलिस अपने हिसाब से चोरी की वारदात की जांच करती रही, पर उस चोर तक नहीं पहुंच सकी.मुंबई पुलिस का एक नियम यह है कि मुंबई में कोई भी बड़ी वारदात होती है तो थाना पुलिस के साथसाथ मुंबई पुलिस की अपराध शाखा (क्राइम ब्रांच) भी थाना पुलिस के समांतर जांच करती है. चोरी की इस वारदात की जांच कुर्ला की अपराध शाखा की यूनिट-5 को भी सौंपी गई. क्राइम ब्रांच के डीसीपी ने इस मामले की जांच सीनियर इंसपेक्टर जगदीश सईल को सौंपी. सीनियर इंसपेक्टर जगदीश सईल ने इंसपेक्टर योगेश चव्हाण, असिस्टेंट इंसपेक्टर सुरेखा जवंजाल, महेंद्र पाटिल, अमोल माली आदि को मिला कर एक टीम बनाई और चोरी की इस घटना की जांच शुरू कर दी.

अपराध शाखा की इस टीम ने भी मौके पर जा कर सभी से पूछताछ की और सीसीटीवी फुटेज ला कर अपने औफिस में ध्यान से देखनी शुरू की.सीसीटीवी फुटेज में अपराध शाखा की यह टीम उस समय की फुटेज को बड़े गौर से देख रही थी, जिस समय महिला का बैग चोरी हुआ था. काफी कोशिश के बाद उन्हें भी ऐसा कोई संदिग्ध नजर नहीं आया, जिस पर वे शक करते. सीसीटीवी फुटेज और पूछताछ में क्राइम ब्रांच को कोई कामयाबी नहीं मिली तो यह टीम चोर तक पहुंचने के अन्य विकल्पों पर विचार करने लगी.तमाम विकल्पों पर विचार करने के बाद एक विकल्प यह भी सामने आया कि मुंबई में इस के पहले तो इस तरह की कोई वारदात नहीं हुई है. जब इस बारे में पता किया गया तो पता चला कि इस के पहले सन 2016 में दादर के शिवाजी पार्क स्थित लैक्मे शोरूम में भी इसी तरह की एक वारदात हुई थी.

उस चोरी में भी कोई गहनों और रुपयों से भरा बैग इसी तरह उठा ले गया था. इसी तरह की 3 चोरियों का और पता चला. वे तीनों चोरियां भी इसी तरह से की गई थीं. इस के बाद जगदीश सईल की टीम ने जिस दिन दादर के लैक्मे शोरूम में चोरी हुई थी, उस दिन की सीसीटीवी फुटेज हासिल की और उसे ध्यान से देखना शुरू किया. यह टीम फुटेज में उस समय पर विशेष ध्यान दे रही थी, जिस समय चोरी होने की बात कही गई थी.

पुलिस टीम शोरूम में आनेजाने वाले एकएक आदमी को गौर से देख रही थी. इसी तरह ध्यान से फिनिक्स मौल के जारा शोरूम की भी सीसीटीवी फुटेज देखी गई तो इस टीम को एक ऐसी औरत दिखाई दी, जो दोनों ही फुटेज में थी. जिस समय चोरी होने की बात कही गई थी, उसी समय दोनों फुटेज में उस महिला को देख कर पुलिस की आंखों में चमक आ गई. इस से पुलिस को लगा कि चोरी की वारदातों में इसी महिला का हाथ हो सकता है. महिला की फोटो मिल गई, तो पुलिस उस का पताठिकाना तलाशने में लग गई. यह काम इतना आसान नहीं था. किसी अंजान महिला को मुंबई जैसे शहर में मात्र फोटो के सहारे ढूंढ निकालना भूसे के ढेर से सुई तलाशने जैसा था.

अखबारों में भी फोटो नहीं छपवाया जा सकता था. अपना फोटो देख कर वह महिला गायब हो सकती थी. चुनौती भरा काम करने में अलग ही मजा आता है. जगदीश सईल की टीम ने भी इस चुनौती को स्वीकार कर महिला की उसी तस्वीर के आधार पर तलाश शुरू कर दी. पहले तो इस टीम ने जहांजहां चोरी हुई थी, उन शोरूमों के मालिकों और कर्मचारियों को महिला की वह फोटो दिखाई कि कहीं यह उन के शोरूम में खरीदारी करने तो नहीं आती थी या यह उन की ग्राहक तो नहीं है. इस मामले में पुलिस टीम को तब निराश होना पड़ा, जब सभी ने कहा कि इनकार कर दिया. एक फोटो के आधार पर किसी को खोज निकालना पुलिस के लिए आसान नहीं था. लेकिन इंसपेक्टर जगदीश सइल की टीम ने इस नामुमकिन काम को मुमकिन कर दिखाया.

मोबाइल नंबर हो तो पुलिस उसे सर्विलांस पर लगा कर अपराधी तक पहुंच जाती है, पर यहां तो महिला का नंबर ही नहीं था.अब पुलिस को उस के मोबाइल नंबर पता करना था, जो बहुत मुश्किल काम था. पर पुलिस ने इस मुश्किल काम को आखिर कर ही दिखाया. जगदीश सइल की टीम ने इस के लिए चोरी के समय दोनों मौलों में जितने भी मोबाइल नंबर सक्रिय थे, सारे नंबर निकलवाए. इस के बाद पूरी टीम ने नंबर खंगालने शुरू किए. काफी मशक्कत के बाद इन नंबरों में एक नंबर ऐसा मिला, जो दोनों मौलों में चोरी होने के समय सक्रिय था. बाकी कोई भी नंबर ऐसा नहीं था, जो दोनों मौलों में चोरी के समय सक्रिय रहा हो.

पुलिस को उस नंबर पर शक हुआ तो पुलिस ने उस नंबर के बारे पता लगाना शुरू किया. नंबर मिलने के बाद पता लगाना मुश्किल नहीं था. जिस कंपनी का नंबर था, उस कंपनी से नंबर के मालिक के बारे में तो जानकारी मिल ही गई, उस का पता ठिकाना भी मिल गया. पुलिस को मिली जानकारी के अनुसार वह नंबर बेंगलुरु की रहने वाली मुनमुन हुसैन का था. मामला एक महिला से जुड़ा था, इसलिए पुलिस जल्दबाजी में कोई ऐसा कदम नहीं उठाना चाहती थी, जिस से बाद में बदनामी हो. इसलिए पुलिस पहले उस महिला के बारे में सारी जानकारी जुटा कर पूरी तरह संतुष्ट हो जाना चाहती थी कि वारदातें इसी महिला द्वारा की गई हैं या नहीं.

इस के लिए जगदीश सइल ने सीसीटीवी फुटेज में मिली फोटो, फोन नंबर और कंपनी द्वारा मिला पता बेंगलुरु पुलिस को भेज कर उस के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त की. पता चला कि महिला संदिग्ध लगती है. इस के बाद मुंबई पुलिस ने बेंगलुरु जा कर वहां की पुलिस की मदद से उस महिला को गिरफ्तार कर लिया.  मुंबई ला कर उस महिला से विस्तार से पूछताछ की गई तो पता चला कि सारी चोरियां उसी ने की थीं. इस के बाद उस ने अपनी जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी.

46 वर्षीय मुनमुन हुसैन उर्फ अर्चना बरुआ उर्फ निक्की मूलरूप से मध्य कोलकाता के तालतला की रहने वाली थी. उस का असली नाम अर्चना बरुआ है. वह पढ़नेलिखने में तो ठीकठाक थी ही, साथ ही सुंदर भी थी. उस की कदकाठी जैसे सांचे में ढली हुई थी. इसलिए उस ने सोचा कि क्यों न वह मौडलिंग में अपना कैरियर बनाए. काफी कोशिश के बाद भी जब उसे मौडलिंग का कोई काम नहीं मिला तो उस ने एक ब्यटूपार्लर में काम सीखा और वहीं नौकरी करने लगी.वहां वेतन इतना नहीं मिलता था कि उस के खर्चे पूरे होते, इसलिए अपने खर्चे पूरे करने के लिए उस ने सब की नजरें बचा कर ब्यूटीपार्लर में आने वाली महिलाओं के पर्स से रुपए चोरी करने शुरू कर दिए.

इस में वह सफल रही तो उस ने बाहर चोरी करने का विचार किया. पर इस में वह पहली बार में ही पकड़ी गई. वह दक्षिण कोलकाता के भवानीपुर स्थित एल्गिन शौपिंग मौल में मोबाइल फोन और सौंदर्य प्रसाधन का सामान चोरी कर रही थी कि किसी सेल्समैन की नजर उस पर पड़ गई और वह पकड़ी गई. इस के बाद उस ने एक बार और प्रयास किया. इस बार भी वह पकड़ी गई तो अखबारों में उस की फोटो छप गई, जिस से वह काफी बदनाम हो गई थी. इस के अलावा पुलिस भी उस के पीछे पड़ गई थी, जिस से उसे कोलकाता छोड़ना पड़ा.

अर्चना कोलकाता छोड़ कर मुंबई आ गई. वह एक अच्छी मौडल बनना चाहती थी, इसलिए मुंबई आ कर एक बार फिर उस ने मौडलिंग के क्षेत्र में भाग्य आजमाने की कोशिश की. वह मौडल बन कर नाम और शोहरत कमाना चाहती थी. अपना भविष्य उज्ज्वल बनाने के लिए अर्चना मुंबई में जीजान से कोशिश करने लगी. पर मुंबई तो मायानगरी है. यह मोह तो सभी को लेती है, पर जरूरी नहीं कि यहां आने वाले हर किसी का भाग्य बदल जाए. जिस का भाग्य बदल देती है, वह तो आसमान में उड़ने लगता है, बाकी यहां तमाम लोग ऐसे भी हैं, जो स्ट्रगल करते हुए अपनी जिंदगी बरबाद कर लेते हैं.

ऐसा ही कुछ अर्चना के साथ भी हुआ. चाहती तो थी वह मौडल बनना, पर समय ने उस का साथ नहीं दिया और काम की तलाश करतेकरते एक दिन ऐसा आ गया कि उस के भूखों मरने की नौबत आ गई. उस के लिए अच्छा यह था कि उस का गला सुरीला था और वह अच्छा गा लेती थी. अर्चना को जब कहीं कोई काम नहीं मिला तो वह बीयर बार में गाने लगी. यहां उस ने अपना नाम निक्की रख लिया. निक्की के नाम से अर्चना पेट भरने के लिए बार में गाती तो थी, पर उसे यह काम पसंद नहीं आया. फिर वह अपना भाग्य आजमाने बेंगलुरु चली गई. वह गाती तो अच्छा थी ही, इसलिए वह वहां एक आर्केस्टा के साथ जुड़ गई. उसे ब्यूटीपार्लर का भी काम आता था, इसलिए एक ब्यूटीपार्लर में भी काम करने लगी. यहां उस ने अपना नाम मुनमुन हुसैन रख लिया था.

ब्यूटीपार्लर में काम करते हुए और स्टेज पर अंग प्रदर्शन करते हुए उसे लगा कि आखिर इस तरह वह कब तक भटकती रहेगी. उसे एक जीवनसाथी की जरूरत महसूस होने लगी थी, जो उसे प्यार भी करे और जीवन में ठहराव के साथ सहारा भी दे. वह अकेली अपनी जिम्मेदारी उठातेउठाते थक गई थी. अर्चना बरुआ उर्फ निक्की उर्फ मुनमुन हुसैन ने जीवनसाथी की तलाश शुरू की तो जल्दी ही उसे इस काम में सफलता मिल गई. वह सुंदर तो थी ही. आर्केस्ट्रा के किसी प्रोग्राम में उसे देख कर एक व्यवसाई का दिल उस पर आ गया.

मुनमुन को एक प्रेमी की तलाश थी ही, जो उस का जीवनसाथी बन सके. उस ने उस व्यवसाई को अपने प्रेमजाल फांस कर उस से शादी कर ली. जल्दी ही वह एक बेटी की मां भी बन गई. पर जल्दी ही बेटी और शादी, दोनोें ही मुनमुन को बोझ लगने लगी. क्योंकि इस से उस की आजादी और मौजमस्ती दोनों ही छिन गई थीं. बेटी की देखभाल करना और उस के लिए दिन भर घर में कैद रहना उस के वश में नहीं था. वह बेटी की देखभाल उस तरह नहीं कर रही थी, जिस तरह एक मां अपने बच्चे की करती है. यह बात उस के व्यवसाई पति को अच्छी नहीं लगी तो वह मुनमुन पर अंकुश लगाने लगा. मुनमुन हमेशा अपना जीवन आजादी के साथ जिया था. पति की रोकटोक उसे अच्छी नहीं लगी. एक तो बेटी के पैदा होने से वैसे ही उस की आजादी छिन गई थी, दूसरे अब पति भी उस पर रोकटोक लगाने लगा था.

उसे यह सब रास नहीं आया तो वह पति से अलग हो गई. पति से तलाक होने के बाद एक बार फिर मुनमुन रोजीरोटी के लिए ब्यूटीपार्लर में काम करने के साथ आर्केस्ट्रा में गाने लगी. मुनमुन के खर्चे भी बढ़ गए थे और आगे की जिंदगी यानी भविष्य के लिए भी वह कुछ करना चाहती थी. इन दोनों कामों से वह जो कमाती थी, इस से किसी तरह उस का खर्च ही पूरा हो पाता था. भविष्य की चिंता में उस ने एक बार फिर चोरी करनी शुरू कर दी. क्योंकि चोरी करने का उसे पहले से ही अभ्यास था.जिस ब्यूटीपार्लर में वह काम करती थी, उस ने वहीं से चोरी करना शुरू किया. उस के बाद तो मुनमुन होटल, मौल और विवाहस्थलों तथा शादी वाले घरों में जा कर चोरी करने लगी. ब्यूटीपार्लर मे चोरी करने पर वह पकड़ी नहीं गई थी, इसलिए उस का हौसला बढ़ गया था.

जैसेजैसे वह चोरी करने में सफलता प्राप्त करती गई, वैसेवैसे उस की हिम्मत बढ़ती गई. बस फिर क्या था, आर्केस्ट्रा में काम करने के साथसाथ उस ने चोरी को भी अपना व्यवसाय बना लिया. क्योंकि पहली चोरी में ही उस के हाथ 10 लाख रुपए से ज्यादा का माल लग गया गया था. कोलकाता में कई बार पकड़ी जाने की वजह से उसे कोलकता छोड़ना पड़ा था, इसलिए उस ने तय किया कि वह बेंगलुरु में चोरी नहीं करेगी. वह बेंगलुरु में चोरी करने के बजाए अन्य महानगरों में जा कर चोरी करेगी. इसी के साथ मुनमुन ने यह भी योजना बनाई कि वह सुबह जाएगी और दिन में चोरी कर के शाम तक वह शहर छोड़ देगी.

पूरी योजना बना कर मुनमन हाईप्रोफाइल महिला बन कर हवाई जहाज से अन्य शहरों में जा कर चोरियां करने लगी. वह सुबह मुंबई या हैदराबाद हवाई जहाज से जाती और किसी शोरूम या किसी बड़े होटल में किसी को अपना शिकार बना कर रात तक बेंगलुरु के अपने घर वापस आ जाती. अब तक पुलिस के सामने उस ने 9 चोरियों का खुलासा किया है. वह जब भी चोरी करती थी, कम से कम 10 लाख का माल तो होता ही था. वह 10 से 20 लाख के बीच ही चोरी करती थी. चोरी से ही उस ने करोड़ों की संपत्ति बना ली थी. मुनमुन द्वारा चोरी किए गए गहने नए होते थे, इसलिए अगर वह उन्हें बेचने जाती तो दुकानदार को उस पर शक हो सकता था. वह उस से हजार सवाल करता. संभव था पुलिस को भी सूचना दे देता.

इसलिए उस ने इस से बचने का तरीका यह निकाला कि वह गहने बेचने के बजाय अपने घर में किसी को कोई बड़ी बीमारी होने का बहाना बना कर वह उन्हें गिरवी रख कर बदले में मोटी रकम ले लेती थी. इस के बाद वह उस के पास उन्हें कभी वापस लेने नहीं जाती थी. अपराध शाखा पुलिस ने पूछताछ और साक्ष्य जुटा कर मुनमुन हुसैन उर्फ अर्चना बरुआ उर्फ निक्की को थाना एनएम जोशी मार्ग पुलिस को सौंप दिया. थाना पुलिस ने अपनी काररवाई पूरी कर मुनमुन को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. पुलिस को मुनमुन हुसैन के पास से 15 लाख रुपए के गहने भी बरामद हुए थे. Crime Story

Crime Stories: ढाई महीने में मिली सजा ए मौत

Crime Stories: राजस्थान के हनुमानगढ़ का रहने वाला सुरेंद्र माडि़या एक तो कामचोर था, दूसरा नशेड़ी भी. दारू के नशे में वह सब कुछ भूल जाता था. उसे न अपनेपराए का जरा भी खयाल रहता था और न ही सामाजिक संस्कार और रिश्ते के प्रति मानमर्यादा. एक रात उस के लिए अनैतिकता का दलदल बन गई थी. जिस में गिरते ही वह धंसता चला गया. बात 15 सितंबर, 2021 की है. उस दिन सुरेंद्र को मजदूरी में और दिन की तुलना में कुछ अधिक पैसे मिल गए थे, जिस से वह बेहद खुश हो गया था. इस खुशी में वह सीधे शराब के ठेके पर जा पहुंचा. 2 दिन से उसे तलब लगी हुई थी. उस ने सूखे कंठ को जी भर कर गीला करने की लालसा पूरी कर ली थी. फिर लड़खड़ाते कदमों से किसी तरह अपने मिट्टी और फूस पराली के बने कच्चे घर टपरे पर जा पहुंचा था. उस में वह अकेला ही रहता था.

उस के आगेपीछे कोई कहने सुनने वाला नहीं था. कुछ साल पहले जब से उस के बड़े भाई ने आत्महत्या कर ली थी, तब से वह और भी बेफिक्र और अपनी मरजी का मालिक बन गया था. हनुमानगढ़ जिलांतर्गत पीलीबंगा तहसील से करीब 20 किलोमीटर दूर गांव दुलमाना में मेघवाल समुदाय के सुरेंद्र को सभी मांडिया कह कर बुलाते थे. वहीं वह मवेशी पालने और उस की चरवाही करने वाली 60 वर्षीया एक विधवा भी अकेली रहती थी. मांडिया के टपरे से आधे किलोमीटर पर वह भी उस जैसी ही कच्चे टपरे में रहती थी. वह उसे अच्छी तरह जानती पहचानती थी. सुरेंद्र का आना जाना उस के घर से हो कर ही होता था. खाली समय में उस के साथ बैठ कर गप्पें मारता रहता था. सुरेंद्र उन्हें सम्मान से चाची कह कर बुलाता था.

उस रोज सुरेंद्र ने इतनी अधिक दारू पी ली थी कि उसे घर लौटते हुए पता ही नहीं चला कि रात की शुरुआत हो चुकी है. एक राहगीर से पूछा, ‘‘भाई तेरे पास घड़ी है क्या? बता दो जरा कितना समय हुआ है? लगता है रात बहुत हो गई है मुझे घर जाना है.’’

‘‘अरे तू क्या करेगा समय जान कर नशेड़ी, कौन तुझे कोई गाड़ी पकड़नी है इस वक्त, अभी ज्यादा रात नहीं हुई है, 9 बजे हैं, 9…’’ सुरेंद्र की हालत देख कर राहगीर ने कमेंट किया. वह उसे पहचानता था.

‘‘मेरा घर आ गया क्या?’’ सुरेंद्र ने फिर पूछा.

‘‘जब तुझे अपना घर पहचानने का भी होश नहीं रहता, तब इतनी दारू क्यों पी लेते हो?’’ राहगीर उसे नसीहत देता हुआ आगे बढ़ गया.

सुरेंद्र अपने लड़खड़ाते कदमों से बुदबुदाने लगा, ‘‘लगता है मेरा घर आ गया, लेकिन यहां ढोरमवेशी किस ने बांध दिए? जरूर किसी की कारस्तानी होगी?’’

दरअसल, सुरेंद्र अभी वृद्धा के घर के पास ही पहुंचा था, जिसे अपना घर समझ बैठा था. उसी के मवेशी बाहर बंधे थे. बगैर आगापीछे ध्यान दिए वह सीधे बिना दरवाजे वाले उस टपरे में घुस गया. अंदर चारपाई पर वृद्धा नींद में लेटी थी. दीए की धीमी रोशनी में उस की नजर औरत के अस्तव्यस्त कपड़ों पर गई. उस के भीतर वासना का हैवान जाग उठा. उस महिला को वह चाची कह कर बुलाता था, उस की चारपाई पर जा बैठा. कामुक नजरों से निहारने लगा. वह कच्ची नींद में थी. इसी बीच हलचल से वह जाग गई. जागते ही पूछ बैठी, ‘‘कौन है भाई?’’

‘‘अरे, धीरे बोल मैं हूं माडि़या’’ सुरेंद्र ने कहा.

‘‘बेटा, इतनी रात गए क्यों

आया है, कोई बात है का?’’ वृद्धा ने सवाल किया.

‘‘भाभी, रात को अकेली औरत के पास कोई मर्द क्यों आता है…समझ जा.’’

सुरेंद्र का इतना कहना था कि विधवा गुस्से से बोल पड़ी. उस ने चारपाई पर नजदीक बैठे सुरेंद्र को धकेल दिया, ‘‘क्या बोला, भाभी? मैं तेरी भाभी लगती हूं? जरा भी लाजशर्म है या नहीं, तूने दारू पी रखी है. नशे में कुछ भी बक देगा. कुछ भी करेगा, अभी तुझे बताती हूं.’’ इसी के साथ विधवा गुस्से में तेजी से चारपाई से उठी. तुरंत चारपाई के नीचे से डंडा निकाल कर तान दिया.

hindi-manohar-social-crime-story

सामने सिर पर डंडे और विधवा के तमतमाए चेहरे को देख कर सुरेंद्र का आधा नशा उतर चुका था. उस का गुस्सा कम होने के बजाय बढ़ता ही जा रहा था. बिफरती हुई बोली, ‘‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई रात को मेरे घर में घुसने की? ठहर, अभी मैं अपने देवर को फोन कर बुलाती हूं. वही तुम्हारी अच्छी तरह से मरम्मत करेगा.’’

गुस्से में दहाड़ती विधवा का विरोध देख कर सुरेंद्र की सिट्टीपिट्टटी गुम हो गई. जैसेतैसे कर वह विधवा के चंगुल से छूटा और वहां से भागने को हुआ. इस डर से कहीं विधवा अपने देवर को फोन न कर दे, चारपाई पर सिरहाने रखा उस का मोबाइल ही ले कर भाग गया. मोबाइल ले कर भागता देख विधवा भी उस के पीछे दौड़ी, लेकिन जब तक सुरेंद्र ने अपने घर की ओर दौड़ लगा दी और अंधेरे में गुम हो गया था. भागता हुआ सुरेंद्र अपने घर आ गया था. रात को खटका सुन कर उस की मां जाग गई. पिता बंसीलाल नींद में खर्राटे भर रहे थे. मां ने देर रात आने पर डांटा, तो उस ने बताया कि वह एक दोस्त के घर गया हुआ था. और फिर वह चारपाई पर जा कर पसर गया, लेकिन उसे नींद नहीं आ रही थी.

एक तरफ विधवा का गुस्सा बारबार ध्यान में आ रहा था, दूसरी तरफ लेटी अवस्था में उस के अस्तव्यस्त कपड़े में झांकती देह का दृश्य झिलमिलाता हुआ एकदूसरे में गड्डमड्ड हो रहे थे. उस ने जैसे ही आंखें बंद कीं तो दिमाग में फिर वासना का कीड़ा कुलबुलाने लगा.

सोचने लगा, ‘‘…अगर थोड़ी सख्ती दिखाता तो शायद वह उस के कब्जे में आ जाती, आत्मसमर्पण कर देती.’’

इसी विचार से वह बिस्तर से उठा और फिर से विधवा के घर की ओर चल पड़ा. दूसरी तरफ विधवा अपना मोबाइल लेने के लिए बदहवास हालत में नजदीक रह रहे अपने देवर बनवारी मेघवाल के घर जा पहुंची.

भाभी की हालत देख कर बनवारी चौंका, ‘‘भाभी, इतनी रात गए क्यों आई हो?’’ विधवा ने सिलसिलेवार ढंग से सारा वाकया सुनाया. इसी के साथ उस ने बताया कि माडि़या उस का फोन ले कर भाग गया है.

बनवारी बोला, ‘‘भाभी, आप यहीं अपनी देवरानी के साथ सो जाओ. सुबह माडि़या की खबर लूंगा. मोबाइल भी उस से लूंगा.’’

‘‘ नहीं भैया, मेरे घर पशु बंधे हैं, इसलिए अपने घर पर ही जा कर सोऊंगी.’’ विधवा बोली.

थोड़ी देर में विधवा अपने घर आ गई. सुरेंद्र पहले से ही उस के घर में आ कर छिपा हुआ था. वह जैसे ही बिछावन पर लेटने को हुई, सुरेंद्र ने उसे दबोच लिया. महिला ने सुरेंद्र की पकड़ से बचने की कोशिश की, लेकिन उस की हवस का शिकार होने से नहीं बच पाई. किसी तरह सुरेंद्र के कब्जे से मुक्त हुई. तब उस ने लात मार कर उसे जमीन पर गिरा दिया. सुरेंद्र ने पास पड़ी प्लास्टिक की रस्सी महिला के गले में डाल दी. विधवा अपना बचाव नहीं कर पाई, जबकि सुरेंद्र ने पूरी ताकत से रस्सी को खींच दिया. कुछ पल में ही महिला की मौत हो गई. उस की मौत हो जाने के बाद सुरेंद्र ने उस के साथ जी भर कर दोबारा मनमानी भी की. किंतु जैसे ही उस पर से वासना का भूत शांत हुआ, वह डर गया.

कभी खुद को देखने लगा, तो कभी विधवा की लाश को इतना तो समझ ही गया था कि उस के द्वारा एक नहीं, बल्कि 2-2 गुनाह हो गए थे. डरा हुआ सुरेंद्र अपने बचाव के तरीके खोजने लगा. वह सीधा अपने चाचा राजाराम के घर गया. उन्हें जगा कर उन के पांव पकड़ लिए. गिड़गिड़ाते हुए बचाने की गुहार करने लगा. उस के अपराध के बारे में सुन कर राजाराम भी सन्न रह गए. उन्होंने उसे संभालाते हुए भरोसा दिया, ‘‘बेटा, जो हुआ उसे खत्म नहीं किया जा सकता, लेकिन रात बहुत हो गई है, जा कर तू सो जा. कल सुबह सारा मामला सुलटा दूंगा.’’

माडि़या वहां से अपने घर चला आया. राजाराम अपने 2 साथियों श्योपत और सहदेव को ले कर बनवारी के घर गए. उसे सारी बात बताई. सुबह होने पर बनवारी लाल मेघवाल गांव के कुछ लोगों के साथ पीलीबंगा पुलिस स्टेशन गया. उस ने सुरेंद्र के खिलाफ लिखित प्राथमिकी दर्ज करवा दी. थानाप्रभारी इंद्रकुमार ने सुरेंद्र के खिलाफ भादंसं की धारा 302, 376, 450 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. इस मामले को एसपी प्रीति जैन ने गंभीरता से लेते हुए इंद्रकुमार को ही जांच अधिकारी नियुक्त कर दिया. इंद्रकुमार ने कुछ घंटे बाद ही आरोपी सुरेंद्र को गांव दुलमाना से गिरफ्तार कर लिया. घटनास्थल से सबूत के तौर पर कदमों के निशान, रस्सी, वीर्य लगे वृद्धा के कपड़े, बालों के गुच्छे आदि इकट्ठा कर लिए. लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया.

विभिन्न साक्ष्यों का डीएनए टेस्ट करवा कर आरोपी के साथ मेल भी करवा लिया गया. इस लंबी प्रक्रिया को पूरी करने में पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए 7 दिनों में केस की चार्जशीट तैयार कर अदालत में दाखिल कर दी. हनुमानगढ़ जिला मुख्यालय स्थित सत्र न्यायालय में 29 नवंबर, 2021 को काफी गहमागहमी थी. सब की निगाहें उस फैसले पर टिकी थीं, जिस के लिए साक्ष्यों और गवाहों से संबंधित दस्तावेज काफी कम समय में जुटा लिए गए थे. लोगों को आश्चर्य इस बात को ले कर था कि रेप और हत्या के इस मामले का फैसला काफी कम समय में आने वाला है, जिसे मात्र 74 दिन पहले ही अदालत में दाखिल किया गया था.

सब कुछ समय से हो रहा था. पुलिस गाड़ी अभियुक्त सुरेंद्र उर्फ माडि़या को जिला जेल से ले कर अदालत पहुंच गई थी. वहां उसे अस्थाई अभियुक्त बैरक में बंद कर दिया था. पुलिस बरामदे में सुस्ताने लगी थी. कुछ समय में ही जिला न्यायाधीश संजीव मागो अदालत पहुंच गए थे. वह अपने चैंबर से निकल कर न्याय की कुरसी पर जा बैठे थे. अदालत की काररवाई शुरू हो चुकी थी. पेशकार के कहने पर हरकारे ने सुरेंद्र बनाम स्टेट की आवाज लगा दी थी. सब कुछ नियम से हो रहा था. अदालत के कठघरे में मुलजिम सुरेंद्र हाजिर हो चुका था. वह हाथ बांधे सिर झुकाए खड़ा था. न्यायाधीश ने अपने सामने रखे केस से संबंधित दस्तावेज उठाते हुए कहा, ‘‘काररवाई शुरू की जाए.’’

अभियुक्त पक्ष के वकील अलंकार सिंह से पहले लोक अभियोजक उग्रसेन नैन ने मामले पर रोशनी डालते हुए कहा—

योर औनर इस केस में पीडि़ता एक विधवा और गरीब औरत थी. उस की उम्र 60 साल के करीब थी. वह आजीविका के लिए मवेशी पालती थी. वह अपने घर में अकेली रहती थी. घटना की रात को अभियुक्त सुरेंद्र जबरन उस के घर में घुस गया था. उस ने उस के साथ जोरजबरदस्ती की और उस के साथ रेप का प्रयास किया. जब उस ने विरोध किया, तब उस ने उसे रस्सी से गला घोंट कर मार डाला. उस के बाद उस ने विधवा वृद्धा के साथ मनमानी की. उग्रसेन ने आगे कहा, अभियुक्त सुरेंद्र ने हत्या के साथसाथ अमानवीय कृत्य भी किया है. ऐसा व्यक्ति समाज के लिए भी गंभीर खतरा है. ऐसा व्यक्ति समाज में रहने के लायक नहीं है.

अत: हुजूर से दरख्वास्त है कि वर्तमान दंड व्यवस्था के अनुरूप आजीवन कारावास की सजा एक सामान्य नियम है. किंतु इस जघन्य मामले में अभियुक्त ने निर्मम तरीके से अपराध को अंजाम दिया है, वह एक दुर्लभ मामला बन गया है. इसलिए इस मामले को असाधारण की श्रेणी में रखते हुए मृत्युदंड दिया जाए. इसी के साथ उन्होंने पुलिस द्वारा जुटाए गए सारे दस्तावेज न्यायाधीश के सामने प्रस्तुत कर दिए.लोक अभियोजक का इतना कहना था कि अदालत में सन्नाटा पसर गया. सब की निगाहें अब अभियुक्त के वकील की दलील और उस के अनुरूप न्यायाधीश के फैसले पर टिक गईं. न्यायाधीश महोदय ने भी मामले को गंभीरता से लेते हुए बचाव पक्ष के वकील अलंकार सिंह को अपना तर्क रखने का मौका दिया, लेकिन वह अपना कोई पक्ष नहीं रख पाए.

हालांकि उन्होंने 14 अदालती उदाहरण दे कर सुरेंद्र को अपराध से मुक्त करने की अपील की. उन्होंने अपने तर्क में सिर्फ इतना कहा कि उसे सुधरने का एक मौका दिया जाए. जबकि जिला अभियोजन पक्ष ने 47 पन्ने का दस्तावेजी साक्ष्य पेश किया था. हालांकि घटना का कोई चश्मदीद नहीं था, पर बनवारी लाल और राजाराम ने सुरेंद्र को बचाने की कोशिश की. फिर भी सारे साक्ष्य सुरेंद्र के खिलाफ थे. यहां तक कि विधवा का मोबाइल फोन भी पुलिस ने सुरेंद्र के घर से बरामद कर लिया था. इन सारे तथ्यों को ध्यान में रखते हुए न्यायाधीश ने अहम फैसला सुनाने से पहले इस तरह के मामले से संबंधित सजा के बारे में कुछ बातें भी बताईं. सुरेंद्र पर लगे सभी धाराओं का अलगअलग विश्लेषण करते हुए अंत में उन्होंने धारा 302 की भी पुष्टि कर दी.

इसी के साथ उसे रेप, हत्या, अप्राकृतिक कृत्य, मारपीट आदि के दंड के साथ सजाएमौत की साज सुना दी. उल्लेखनीय है कि भारत में सजाएमौत के लिए फांसी दी जाती है. उसे तत्काल जिला जेल भेजे जाने से पहले उसे उच्च न्यायालय, उच्चतम न्यायालय और राष्ट्रपति से गुहार लगाने का अधिकार भी दे दिया. इस फैसले पर प्रदेश के डीजीपी अजीत सिंह ने इस केस की तेज गति से जांच कर ठोस सबूत पेश करने वाले पुलिस जांच टीम की सराहना की. Crime Stories

True Crime: मोह में मिली मौत – विदेश जाने का चढ़ा खुमार

True Crime: 19 जनवरी, 2022 को अमेरिका से लगी कनाडा सीमा के पास मिनेसोटा राज्य के एमर्शन शहर के नजदीक कनाडा की ओर मेनिटोबा रौयल कैनेडियन माउंटेन पुलिस (आरसीएमपी) ने अमेरिका में चोरीछिपे यानी अवैध रूप से घुस रहे 7 लोगों को गिरफ्तार किया था. इन लोगों से पता चला कि इन के 4 लोग और थे, जो पीछे छूट गए हैं. पीछे छूट गए लोगों की तलाश में जब आरसीएमपी के जवानों ने सीमा की तलाशी शुरू की तो उन्हें सीमा के पास बर्फ में ढके 4 शव मिले. आरसीएमपी के जवानों ने जिन 7 लोगों को गिरफ्तार किया था, वे गुजरात के गांधीनगर के आसपास के रहने वाले थे. इस से उन जवानों ने अंदाजा लगाया कि ये मृतक भी शायद उन्हीं के साथी होंगे.

बर्फ में जमी मिली चारों लाशों में एक  पुरुष, एक महिला, एक लड़की और एक बच्चे की लाश थी. ये लाशें सीमा से 10 से 13 मीटर की दूरी पर कनाडा की ओर पाई गई थीं. मेनिटोबा रायल कैनेडियन पुलिस ने लाशों की तलाशी ली तो उन के पास मिले सामानों में बच्चे के उपयोग में लाया जाने वाला सामान मिला था. अंदाजा लगाया गया कि इन की मौत ठंड से हुई है. बर्फ गिरने की वजह से उस समय वहां का तापमान माइनस 35 डिग्री सेल्सियस था. अगले दिन जब यह समाचार वहां की मीडिया द्वारा प्रसारित किया गया तो भारत के लोग भी स्तब्ध रह गए थे.

खबर में मृतकों के गुजरात के होने की संभावना व्यक्त की गई थी, इसलिए उस समय गुजरात से कनाडा गए लोगों के भारत में रहने वाले परिजन बेचैन हो उठे. सभी लोग कनाडा गए अपने परिजनों को फोन करने लगे. उसी समय गांधीनगर की तहसील कलोल के गांव डिंगुचा के रहने वाले बलदेवभाई पटेल का बेटा जगदीशभाई पटेल भी अपनी पत्नी, बेटी और बेटे के साथ कनाडा गया था. इसलिए उन्हें चिंता होने लगी कि कहीं उन का बेटा ही तो सीमा पार करते समय हादसे का शिकार नहीं हो गए. उन का बेटे से संपर्क भी नहीं हो रहा था. सच्चाई का पता लगाने के लिए उन्होंने कनाडा स्थित दूतावास को मेल किया, पर कुछ पता नहीं चला. पता चला 9 दिन बाद.

पुलिस को चारों लाशों की पहचान कराने में 9 दिन लग गए थे. 9 दिन बाद 27 जनवरी, 2022 को आरसीएमपी की ओर से रोब हिल द्वारा अधिकृत रूप से भारतीय उच्चायोग को सूचना दी गई कि चारों मृतक भारत के गुजरात राज्य के जिला गांधीनगर के डिंगुचा गांव के रहने वाले थे. चारों मृतक एक ही परिवार के थे. उन की पहचान बलदेवभाई पटेल के बेटे जगदीशभाई पटेल (39 साल), बहू वैशाली पटेल (37 साल), पोती विहांगी पटेल (11 साल) और पोते धार्मिक पटेल (3 साल) के रूप में हुई थी. यह परिवार 12 जनवरी को कनाडा जाने की बात कह कर घर से निकला था और वहां पहुंच कर फोन करने की बात कही थी.

यह परिवार उसी दिन कनाडा के टोरंटो शहर पहुंच गया था. इस के बाद यह परिवार 18 जनवरी को मैनिटोबा प्रांत के इमर्शन शहर पहुंचा था और 19 जनवरी को पूरे परिवार की लाशें मेनिटोबा प्रांत से जुड़ी अमेरिका कनाडा सीमा पर कनाडा सीमा में 12 मीटर अंदर मिली थीं. दूसरी ओर जब पता चला कि यह परिवार अवैध रूप से अमेरिका में घुस रहा था तो गुजरात के डीजीपी आशीष भाटिया ने पटेल परिवार को गैरकानूनी रूप से विदेश भेजने से जुड़े लोगों से ले कर पूरी जांच की जिम्मेदारी सीआईडी क्राइम ब्रांच की एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग ब्रांच को सौप दी. जिस के लिए डिप्टी एसपी सतीश चौधरी के नेतृत्व में टीम गठित कर जांच शुरू भी कर दी गई थी.

विदेशमंत्री एस. जयशंकर ने भी इस घटना को गंभीरता से लिया. जिस की वजह से भारत, अमेरिका और कनाडा की जांच एजेसियां इस मामले की संयुक्त रूप से जांच करने लगीं. पता चला है कि अमेरिका की पुलिस ने डिंगुचा गांव के पटेल परिवार के 4 सदस्यों सहित 11-12 अन्य लोगों को अवैध रूप से सीमा पार कराने के आरोप में फ्लोरिडा के स्टीव शैंड नामक एजेंट को गिरफ्तार किया था. चारों लाशें कनाडा में थीं. अंतिम संस्कार के लिए के लिए जब उन्हें भारत लाने की बात चली तो पता चला कि एक लाश लाने में करीब 40 लाख रुपए का खर्च आएगा. मतलब करोड़ों का खर्च था. इसलिए तय हुआ कि चारों मृतकों का अंतिम संस्कार कनाडा में ही करा दिया जाए.

और फिर किया भी यही गया. चारों मृतकों का अंतिम संस्कार वहीं करा दिया गया. चूंकि अमेरिका, कनाडा में पटेल बहुत बड़ी संख्या में रहते हैं, इसलिए मृतकों का अंतिम संस्कार करने में कोई दिक्कत नहीं आई थी. क्योंकि इस परिवार की मदद के लिए पटेल समाज आगे आ गया था. इतना ही नहीं, अमेरिका और कनाडा के रहने वाले पटेलों ने जगदीशभाई पटेल के परिवार के लिए 66 हजार डालर की रकम इकट्ठा भी कर के भेज दी है. जगदीशभाई पटेल गुजरात के जिला गांधीनगर की तहसील कलोल के गांव डिंगुचा के रहने वाले थे. उन के पिता बलदेवभाई पटेल पत्नी मधुबेन और बड़े बेटे महेंद्रभाई पटेल के साथ डिंगुचा में ही रहते हैं. उन के साथ ही बड़े बेटे का परिवार भी रहता है.

बलदेवभाई गांव के संपन्न आदमी थे. उन के पास अच्छीखासी जमीन, इसलिए उन्हें किसी चीज की कमी नहीं थी. बड़े बेटे महेंद्रभाई की शादी पहले ही हो गई थी. जगदीश भी गांव के स्कूल में नौकरी करने लगा तो पिता ने उस की भी शादी कर दी. शादी के बाद जब जगदीशभाई को बिटिया विहांगी पैदा हुई तो वह बेटी की पढ़ाई अच्छे से हो सके, इस के लिए पत्नी वैशाली और बेटी विहांगी को ले कर कलोल आ गए थे. जगदीश ने गांव की अपनी स्कूल की नौकरी छोड़ दी थी. कलोल में परिवार के खर्च के लिए उन्होंने बिजली के सामानों की दुकान खोल ली थी. कलोल आने के बाद उन्हें बेटा धार्मिक पैदा हुआ था. सब कुछ बढि़या चल रहा था. बेटी विहांगी 11 साल की हो गई थी तो बेटा 3 साल का हो गया था. इस बीच उन्हें न जाने क्यों विदेश जाने की धुन सवार हो गई.

दरअसल, गुजरात और पंजाब में विदेश जाने का कुछ अधिक ही क्रेज है. डिंगुचा गांव में करीब 7 हजार की जनसंख्या में से 32 सौ से 35 सौ के आसपास लोग विदेश में रहते हैं. इसी वजह से इस गांव के लोगों में विदेश जा कर रहने का बड़ा मोह है.

manohar-social-crime-story

ऐसा ही मोह जगदीश के मन में भी पैदा हो गया था. तभी तो वह एक लाख डालर (75 लाख) रुपए खर्च कर के एजेंट के माध्यम से अमेरिका जाने को तैयार हो गए थे. वह चले भी गए थे, पर उन के और उन के परिवार का दुर्भाग्य ही था कि बौर्डर पर बर्फ गिरने लगी और उन का पूरा परिवार ठंड की वजह से काल के गाल में समा गया. यह कोई पहली घटना नहीं है. इस तरह की अनेक हारर स्टोरीज इतिहास के गर्भ में छिपी हैं. मात्र कनाडा ही नहीं, मैक्सिको की सीमा से भी लोग गैरकानूनी रूप से अमेरिका में प्रवेश करते हैं. आज लाखों पाटीदार (पटेल) यूरोप और अमेरिका में रह रहे हैं.

अमेरिका विश्व की महासत्ता है. सालों से गुजरातियों ने ही नहीं, दुनिया के तमाम देशों के लोगों में अमेरिका जाने का मोह है. क्योंकि अमेरिका में कमाने के तमाम अवसर हैं. गुजरात के पटेल सालों से अमेरिका जा कर रह रहे हैं. अमेरिका की 32 करोड़ की आबादी में आज 20 लाख से अधिक भारतीय हैं, जिन में 10 लाख लोग पाटीदार हैं. गैरकानूनी रूप से किसी को भी अमेरिका ही नहीं बल्कि किसी भी देश में नहीं जाना चाहिए. कलोल के पास के डिंगुचा गांव के पटेल परिवार की करुणांतिका जितना हृदय को द्रवित करने वाली है, उतनी ही आंखें खोलने वाली भी है.

एक समय अमेरिका में 10 लाख रुपए में गैरकानूनी रूप से प्रवेश हो जाता था. लेकिन अब यह एक करोड़ तक पहुंच गया है. इस धंधे को कबूतरबाजी कहा जाता है. इस तरह के कबूतरबाज रोजीरोटी की तलाश और अच्छे जीवन की चाह रखने वाले गुजराती परिवारों के साथ धोखेबाजी करते हैं और इस के लिए तमाम एजेंट गुजरात में भी हैं. अमेरिका या कनाडा से फरजी स्पांसर लेटर्स मंगवा कर विजिटर वीजा पर उन्हें अमेरिका में प्रवेश करा देते हैं और फिर वे सालों तक गैरकानूनी रूप से अमेरिका में रहने के लिए संघर्ष करते रहते हैं. उन्हें कायदे की नौकरी न मिलने की वजह से होटलों या रेस्टोरेंट में साफसफाई या वेटर की नौकरी करनी पड़ती है.

यह एक तरह से दुर्भाग्यपूर्ण ही है. सोचने वाली बात यह है कि जो लोग करोड़ों रुपए खर्च कर के चोरीछिपे अमेरिका जाते हैं, वे 50 या सौ करोड़ की आसामी नहीं होते. वे बेचारे वेटर और क्वालिटी लाइफ की तलाश में अपना मकान, जमीन या घर के गहने बेच कर जाते हैं. इस की वजह यह होती है कि देश में उन के लिए नौकरी नहीं होती. वे बच्चों को अच्छी शिक्षा या अच्छा इलाज दे सकें, उन के पास इस की व्यवस्था नहीं होती. ऐसा ही कुछ सोच कर जगदीशभाई ने भी 75 लाख रुपए खर्च किए. पर उन का दुर्भाग्य था कि अच्छे जीवन की तलाश में उन्होंने जो किया, वह उन का ही नहीं, उन के पूरे परिवार का जीवन लील गया.

रोजगार और अच्छे भविष्य के लिए गुजराती अमेरिका, कनाडा और आस्ट्रेलिया जैसे देशों में जान को खतरे में डाल कर गैरकानूनी रूप से घुसते हैं. जब इस बारे में पता किया गया तो जो जानकारी मिली, उस के अनुसार एजेंट को पैसा वहां पहुंचने के बाद मिलता है. गुजरात से हर साल हजारों लोग गैरकानूनी रूप से विदेश जाते हैं. इस में उत्तर गुजरात तथा चरोतर के पाटीदार शामिल हैं. विदेश जाने की चाह रखने वाले परिवार मात्र आर्थिक ही नहीं, सामाजिक और शारीरिक यातना भी सहन करते हैं. इस समय इमिग्रेशन की दुनिया में कनाडा का बोलबाला है. जिन्हें कनाडा हो कर अमेरिका जाना होता है या कनाडा में ही रहना होता है, उन के लिए कनाडा के वीजा की डिमांड होती है. इस समय जिन एजेंटों के पास कनाडा का वीजा होता है, उस में स्टीकर के लिए वे ढाई लाख रुपए की मांग करते हैं.

गैरकानूनी रूप से विदेश जाने के लिए सब से पहले समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति से बात की जाती है. अगर कोई स्वजन विदेश में है तो उस से सहमति ली जाती है. इस के बाद तांत्रिक से दाना डलवाने यानी धागा बंधवाने का भी ट्रेंड है. तांत्रिक की मंजूरी के बाद एजेंट को डाक्यूमेंट सौंप दिए जाते हैं. यहां हर गांव का एजेंट तय है. एजेंट समाज की संस्था या मंडल से संपर्क करता है. मंडल या संस्था एक व्यक्ति या परिवार का हवाला लेता है, जहां रुपए की डील तय होती है. अगर समाज का प्रतिष्ठित व्यक्ति एजेंट का हवाला नहीं लेता तो जमीन, घर लिखाया जाता है. एक व्यक्ति का एक करोड़ रुपया और कपल का एक करोड़ 30 लाख रुपया एजेंट लेता है. अगर बच्चे या अन्य मेंबर हुए तो यह रकम बढ़ जाती है.

डील के बाद समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति की भूमिका शुरू होती है. समाज का प्रतिष्ठित व्यक्ति रुपए की जिम्मेदारी लेता है तो एजेंट डाक्यूमेंट का काम शुरू करता है. यह स्वीकृति किसी भी कीमत पर बदल नहीं सकती. अगर बदल गई तो समाज में परिवार की बहुत बेइज्जती होती है. एजेंट पहले कानूनी तौर पर वीजा के लिए आवेदन करता है. रिजेक्ट होने के बाद गैरकानूनी रूप से खेल शुरू होता है. जिस देश के लिए वीजा आन अराइवल होता है, उस देश के लिए प्रोसेस शुरू होता है. वहां पहुंचने पर विदेशी एजेंट मनमानी शुरू कर देता है. महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार तक करता है.

कभीकभी तो रातदिन सौ किलोमीटर तक पैदल चलाता है. माइनस 40 डिग्री सेल्सियस तापमान में सुनसान जंगलों और बर्फ पर संघर्ष करना पड़ता है. अगर कोई ग्रुप से छूट गया या पीछे रह गया तो उस का इंतजार नहीं किया जाता. उसे उस के हाल पर छोड़ दिया जाता है. जैसा जगदीशभाई और उन के परिवार के साथ हुआ. इस स्थिति में कभीकभी मजबूरी में बर्फ, जंगल या फायरिंग रेंज में आगे बढ़ना पड़ता है. ऐसे में अमेरिकी बौर्डर पर पहुंच कर 3 औप्शन होते हैं. पहला औप्शन है अमेरिकी सेना के समक्ष सरेंडर कर देना. दूसरा औप्शन होता है कि वह अपने देश में सुरक्षित नहीं है और तीसरा औप्शन है कि अमेरिका में अपने सोर्स से छिपे रहना.

इस के बाद कंफर्मेशन होने के बाद पेमेंट होता है. अमेरिका में कदम रखते ही दलाल एक फोन करने देता है. समाज के उस प्रतिष्ठित व्यक्ति से सिर्फ ‘पहुंच गया’ कहने दिया जाता है. इस कंफर्मेशन के बाद भारत में दलाल को रुपए मिल जाते हैं. समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति को 5 से 10 प्रतिशत मिला कर देने की डील होती है. पास में पैसा न हो और अमेरिका जाना हो तो समाज की मंडली से आर्थिक मदद मिलती है. अमेरिका पहुंच कर रकम मंडल में जमा करा दी जाती है. करीब 100 करोड़ जितनी रकम का हवाला पड़ गया है. ईमानदारी ऐसी कि यह रकम समय पर अदा कर दी जाती है. ऐसा ही कुछ जगदीशभाई पटेल के भी मामले में हुआ था. पर वह अमेरिका में कदम नहीं रख पाए.

अमेरिका-कनाडा की सीमा पर काल के गाल में समाए जगदीशभाई पटेल और उन के परिवार वालों के लिए 7 फरवरी, 2022 को उन के गांव डिंगुचा में शोक सभा का आयोजन किया गया. जगदीशभाई और उन के परिवार के लिए पूरा देश दुखी है. पर इस हादसे के बाद क्या कबूतरबाजी बंद होगी? कतई नहीं. लोग इसी तरह जान जोखिम में डाल कर विदेश जाते रहेंगे. क्योंकि विदेश का मोह है ही ऐसा. True Crime

Suspense Story: मौडल सोनिका चौहान की मौत हादसा या हत्या?

Suspense Story: फिल्म या टीवी इंडस्ट्री भले ही किसी भी भाषा से जुड़ी हुई हो, ग्लैमर इस इंडस्ट्री की पहली शर्त है. जहां ग्लैमर होता है, वहां और भी बहुत कुछ होता है. अंधेरेउजाले के दृश्य रच कर सिनेमा या टीवी के परदे पर लाने वालों के अपनी जिंदगी के असल दृश्य कभीकभी तो रंगीन न हो कर इतने काले होते हैं कि जिन्हें देख कर इंसानियत भी शरमा जाए. लेकिन पैसे का चक्कर ऐसे दृश्यों की कालिख को ढंक लेता है. यह भी कह सकते हैं कि ग्लैमर को देखने की चाह चाहे दर्शक की हो, ग्लैमर के मोहरों की हो या प्रस्तुतकर्ता की, अपना रंग तो दिखाती ही है. भले ही पीछे का परदा सफेद हो या काला. इसी चमक से पैसा बरसता है.

कभी घरघर में पहचानी जाने वाली कलर्स के सीरियल ‘बालिका वधू’ की आनंदी यानी प्रत्यूषा बनर्जी ग्लैमर के अंधेरों में खो गई. कब, कैसे, क्यों जैसे सवाल कुछ दिन तक उछलते रहे, फिर सब कुछ शांत हो गया. प्रत्यूषा का बौयफ्रैंड राहुल राज जैसे संदेह के दायरे में आया, वैसे ही निकल भी गया. बस इतना समझ लीजिए कि प्रत्यूषा को ग्लैमर के पीछे का अंधेरा निगल गया और उस प्यारी सी लड़की के लिए कोई कुछ न कर सका. टौलीवुड यानी बंगला फिल्म एंड टीवी इंडस्ट्री का सच भी इस से जुदा नहीं है. कौन जाने इस इंडस्ट्री की खूबसूरत लड़की सोनिका सिंह चौहान की मौत के पीछे का सच भी कुछ ऐसा ही हो. क्योंकि वह भी तो ग्लैमर के अंधेरों से निकल कर मौत के अंधेरे में समाई है.

धीरेधीरे सोनिका सिंह की पहचान बनती गई. सोनिका ने कोलकाता टीवी और फिल्म इंडस्ट्री में बतौर मौडल, एंकर, चैनल वी की वीजे, एनडीटीवी प्राइम और स्टार स्पोर्ट्स की एंकर के रूप में काम किया. जाहिर है कुछ स्टार पुत्र या पुत्रियों की बात छोड़ दें तो ज्यादातर अभिनेता, अभिनेत्री अथवा मौडल शहर या ग्रामीण क्षेत्रों के आम परिवारों से आते हैं. सोनिका सिंह भी एक मध्यमवर्गीय  परिवार से आई थी. उस के पिता विजय सिंह रौयल कलकत्ता टर्फ क्लब में सर्विस करते थे और मां शरोन सिंह घरेलू महिला थीं. विजय सिंह चौहान ने क्रिश्चियन शरोन से लवमैरिज की थी.

सोनिका सिंह ने कोलकाता में रहते हुए शुरुआती पढ़ाई ला मार्टिनियर स्कूल से की और फिर माउंट कार्मेल कालेज से आगे की पढ़ाई पूरी की. सोनिका सिंह खूबसूरत थी, इसलिए ग्लैमर की दुनिया से जुड़ना चाहती थी. यही सोच कर उस ने 2013 के मिस इंडिया कंप्टीशन में भाग लिया. इस में वह फाइनलिस्ट रही. इस के बाद उस ने मौडलिंग शुरू की. ग्लैमर इंडस्ट्री में रहते ही उस की दोस्ती टौलीवुड के एक्टर विक्रम चटर्जी से हुई. पश्चिम बंगाल के कोलकाता का रहने वाला विक्रम चटर्जी 2012 से टौलीवुड से जुड़ा था. उस ने बंगाली फिल्मों से ले कर बांग्ला सीरियल्स तक में काम किया था. एक तरह से वह टौलीवुड का जानापहचाना चेहरा था.

उस ने जी बांग्ला के सीरियल ‘सात पाके बांधा’, स्टार जलसा के बांग्ला सीरियल ‘सोखी’, ईटीवी के बांग्ला चैनल पर 2013 में आए ‘बिगबौस’, 2014 में जी टीवी पर आए ‘इंडियाज बेस्ट सिनेस्टार की खोज’, जी टीवी के सीरियल ‘डोली अरमानों की’ और कलर्स बांग्ला के सीरियल ‘ब्योमकेश’ में काम किया.

फिल्मों की बात करें तो विक्रम चटर्जी ने मैनाक भौमिक की फिल्म ‘बैडरूम’, बाप्पादित्य बंद्योपाध्याय की फिल्म ‘इलार चार अध्याय’, अग्निदेव चटर्जी की फिल्म ‘3 कन्या’, मैनाक भौमिक की फिल्म ‘अमी आर अमार गर्लफ्रैंड’, एसके की फिल्म ‘मिस्टेक’, कौशिक चक्रवर्ती की फिल्म ‘सोनो एकती प्रीमर गाल्यो बोली’, देवार्ती गुप्ता की फिल्म ‘होई छोई’, अशोक पार्टी की फिल्म ‘अमी शुधु चेयनची टुमे’, पौंपी घोष मुखर्जी की ‘गोगोलर कीर्ती’, अंजान दास की फिल्म ‘अजाना बातास’, सुराजीत धर की ‘बिट्टू’ और प्रीतम डी. गुप्ता की फिल्म ‘साहेब बीवी गोलाम’ में काम किया था.model sonika chauhan case murder or accident

विक्रम चटर्जी और सोनिका सिंह की दोस्ती टौलीवुड में काम करते हुए ही हुई थी. धीरेधीरे दोनों घनिष्ठ मित्र बन गए थे. घटना से 6 महीने से दोनों रिलेशनशिप में थे. 29 अप्रैल, 2017 को विक्रम और सोनिका फाइवस्टार होटल में होने वाली एक पार्टी में शामिल होने के लिए साथसाथ गए. ग्लैमर इंडस्ट्री से जुड़ी पार्टियां अमूमन देर से शुरू होती हैं और देर रात तक चलती हैं. इन पार्टियों में पीना ज्यादा होता है, खाना कम. मौजमस्ती व डांस वगैरह भी खूब होता है. इस पार्टी में भी ऐसा ही हुआ. विक्रम और सोनिका सिंह घर जाने के लिए पार्टी से सुबह साढ़े 3 बजे निकले.

कोरोला एल्टीस कार विक्रम की थी, उसी ने ड्राइविंग सीट संभाली. सोनिका चौहान साथ बैठी थी. विक्रम के सिर पर शराब का नशा चढ़ा था. स्टीयरिंग संभालते ही उस ने कार को इस तरह दौड़ाना शुरू कर दिया जैसे किसी रेस में भाग ले रहा हो. नतीजतन रासबिहारी एवेन्यू के पास कार का एक्सीडेंट हो गया. इस एक्सीडेंट में सोनिका चौहान की मौत हो गई, जबकि विक्रम को भी कुछ चोटें आईं. सिर्फ इतनी चोटें कि उसे मरहमपट्टी के बाद छुट्टी दे दी गई. अस्पताल से छुट्टी मिलते ही विक्रम लापता हो गया.model sonika chauhan case murder or accident

पुलिस ने घटनास्थल का मुआयना किया तो पता चला कि एक्सीडेंट के समय विक्रम ने कार सोनिका चौहान की ओर झुका दी थी, जिस की वजह से उस की ओर का एयरबैग भी नहीं खुला था. प्राथमिक जांच के बाद कोलकाता पुलिस ने विक्रम के खिलाफ भादंवि की धारा 304ए (लापरवाही से मौत) और धारा 279 (लापरवाही से गाड़ी चलाना) के अंतर्गत केस दर्ज कर लिया और उसे पूछताछ हेतु बुलाने के लिए सम्मन जारी कर दिया. लेकिन विक्रम पुलिस के पास आने के बजाय बीमारी के नाम पर एक प्राइवेट अस्पताल में भरती हो गया. उधर सोनिका सिंह को उस की मां की इच्छा पर क्रिश्चियन धर्मानुसार कब्रिस्तान में दफनाया गया.

विक्रम के सामने न आने पर इस मामले ने तूल पकड़ना शुरू कर दिया. सोनिका के दोस्त सोशल साइटों पर विक्रम के खिलाफ आवाज उठाने लगे. सोनिका की खास दोस्त सतारूपा पाइने ने अपनी फेसबुक पोस्ट पर लिखा— टौलीवुड के अभिनेता की नशाखोरी की वजह से एक अनमोल लड़की की मौत हो गई. वह शराब या किसी अन्य ड्रग के नशे में था. क्या मुझे इस मामले की जांच के लिए हाईकोर्ट में पीआईएल दाखिल करनी चाहिए?

सोनिका की एक अन्य दोस्त फैशन डिजाइनर नवोनिल दास ने अपनी फेसबुक पोस्ट पर लिखा— विक्रम, तुम्हें साथ बैठे व्यक्ति या सड़क पर चल रहे लोगों की सुरक्षा को ले कर जरा भी फिक्र नहीं थी. तुम अंधाधुंध गाड़ी चला रहे थे, जो इस एक्सीडेंट की वजह बनी. रफ्तार को आदमी खुद चुनता है, इस के लिए तुम नशे के प्रभाव को दोष नहीं दे सकते. तुम्हारे पास किसी की मौत का कारण बनने का कोई अधिकार नहीं है. जीवन के लिए तुम्हारे दिल में जरा भी सम्मान नहीं है, भले ही वह तुम्हारा अपना जीवन हो.

इस से कुछ ही दिन पहले मार्च में बांग्ला लोकगायक कालिका प्रसाद भट्टाचार्य की बर्धवान जिले में एक सड़क हादसे में मौत हो गई थी. उस समय कालिका प्रसाद की एसयूवी को ड्राइवर चला रहा था. हादसे के बाद पुलिस ने ड्राइवर को गिरफ्तार कर लिया था. ग्लैमर इंडस्ट्री से जुड़े इन हादसों ने कोलकाता के लोगों को स्तब्ध कर दिया था. क्योंकि ये हादसे तब हुए थे, जब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सड़क सुरक्षा पर जागरूकता के लिए ‘सेफ ड्राइव, सेव लाइफ’ नाम से अभियान चला रखा था. बहरहाल, जब सोनिका चौहान की मौत के मामले में दबाव बढ़ना शुरू हुआ तो पुलिस विक्रम चटर्जी की गिरफ्तारी की कोशिश में जुट गई.

आखिरकार गरदन पर कानून की तलवार लटकती देख विक्रम ने 5 मई शुक्रवार को कोलकाता की बंकसाल कोर्ट के मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रैट की अदालत में सरेंडर कर दिया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. बाद में वह जमानत पर बाहर आ गया. सोनिका चौहान की मौत के मामले को ले कर चूंकि काफी हंगामा हुआ था, इसलिए पुलिस इस मामले की गंभीरता से जांच कर रही है. यह भी जानने की कोशिश की जा रही है कि सोनिका चौहान की मौत का कोई अन्य एंगल तो नहीं है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी इस मामले की जांच में कोई कोताही न बरतने का निर्देश दिया है.

उधर विक्रम चटर्जी को कई बार उस कब्रिस्तान में सोनिका सिंह की कब्र के पास देखा गया, जहां वह गुलाब के फूल ले कर जाता था. हालांकि सोनिका के घर वाले उस के इन आंसुओं को घडि़याली आंसू बताते हैं. सोनिका सिंह के पिता विजय सिंह ने कोलकाता के पुलिस कमिश्नर को पत्र लिख कर मांग की है कि इस मामले का गंभीरता से अन्वेषण कराएं, ताकि सच्चाई सामने आ सके. उन्हें विक्रम चटर्जी की बातों पर यकीन नहीं है. बहरहाल, विक्रम चटर्जी की लापरवाही से हुए एक्सीडेंट की वजह से ही सही एक उभरती अदाकारा अकाल काल के गाल में समा गई. Suspense Story

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Crime Stories: पहली ही रात भागी दुल्हन

Crime Stories: 26 साल के छत्रपति शर्मा की आंखों में नींद नहीं थी. वह लगातार अपनी नईनवेली बीवी प्रिया को निहार रहा था. जैसे ही प्रिया की नजरें उस से टकराती थीं, वह शरमा कर सिर झुका लेती थी. 20 साल की प्रिया वाकई खूबसूरती की मिसाल थी. लंबी, छरहरी और गोरे रंग की प्रिया से उस की शादी हुए अभी 2 दिन ही गुजरे थे, लेकिन शादी के रस्मोरिवाज की वजह से छत्रपति को उस से ढंग से बात करने तक का मौका नहीं मिला था.

छत्रपति मुंबई में स्कूल टीचर था. उस की शादी मध्य प्रदेश के सिंगरौली शहर के एक खातेपीते घर में तय हुई थी और शादी मुहूर्त 23 नवंबर, 2017 का निकला था. इस दिन वह मुंबई से बारात ले कर सिंगरौली पहुंचा और 24 नवंबर को प्रिया को विदा करा कर वापस मुंबई जा रहा था. सिंगरौली से जबलपुर तक बारात बस से आई थी. जबलपुर में थोड़ाबहुत वक्त उसे प्रिया से बतियाने का मिला था, लेकिन इतना भी नहीं कि वह अपने दिल की बातों का हजारवां हिस्सा भी उस के सामने बयां कर पाता.

बारात जबलपुर से ट्रेन द्वारा वापस मुंबई जानी थी, जिस के लिए छत्रपति ने पहले से ही सभी के रिजर्वेशन करा रखे थे. उस ने अपना, प्रिया और अपनी बहन का रिजर्वेशन पाटलिपुत्र एक्सप्रैस के एसी कोच में और बाकी बारातियों का स्लीपर कोच में कराया था. ट्रेन रात 2 बजे के करीब जब जबलपुर स्टेशन पर रुकी तो छत्रपति ने लंबी सांस ली कि अब वह प्रिया से खूब बतियाएगा. वजह एसी कोच में भीड़ कम रहती है और आमतौर पर मुसाफिर एकदूसरे से ज्यादा मतलब नहीं रखते. ट्रेन रुकने पर बाराती अपने स्लीपर कोच में चले गए और छत्रपति, उस की बहन और प्रिया एसी कोच में चढ़ गए. छत्रपति की बहन भी खुश थी कि उस की नई भाभी सचमुच लाखों में एक थी. उस के घर वालों ने शादी भी शान से की थी.

जब नींद टूटी तो…

कोच में पहुंचते ही छत्रपति ने तीनों के बिस्तर लगाए और सोने की तैयारी करने लगा. उस समय रात के 2 बजे थे, इसलिए डिब्बे के सारे मुसाफिर नींद में थे. जो थोड़ेबहुत लोग जाग रहे थे, वे भी जबलपुर में शोरशराबा सुन कर यहांवहां देखने के बाद फिर से कंबल ओढ़ कर सो गए थे. छत्रपति और प्रिया को 29 और 30 नंबर की बर्थ मिली थी.

जबलपुर से जैसे ही ट्रेन रवाना हुई, छत्रपति फिर प्रिया की तरफ मुखातिब हुआ. इस पर प्रिया ने आंखों ही आंखों में उसे अपनी बर्थ पर जा कर सोने का इशारा किया तो वह उस पर और निहाल हो उठा. दुलहन के शृंगार ने प्रिया की खूबसूरती में और चार चांद लगा दिए थे. थके हुए छत्रपति को कब नींद आ गई, यह उसे भी पता नहीं चला. पर सोने के पहले वह आने वाली जिंदगी के ख्वाब देखता रहा, जिस में उस के और प्रिया के अलावा कोई तीसरा नहीं था.

जबलपुर के बाद ट्रेन का अगला स्टौप इटारसी और फिर उस के बाद भुसावल जंक्शन था, इसलिए छत्रपति ने एक नींद लेना बेहतर समझा, जिस से सुबह उठ कर फ्रैश मूड में प्रिया से बातें कर सके. सुबह कोई 6 बजे ट्रेन इटारसी पहुंची तो प्लैटफार्म की रोशनी और गहमागहमी से छत्रपति की नींद टूट गई. आंखें खुलते ही कुदरती तौर पर उस ने प्रिया की तरफ देखा तो बर्थ खाली थी. छत्रपति ने सोचा कि शायद वह टायलेट गई होगी. वह उस के वापस आने का इंतजार करने लगा.

ट्रेन चलने के काफी देर बाद तक प्रिया नहीं आई तो उस ने बहन को जगाया और टायलेट जा कर प्रिया को देखने को कहा. बहन ने डिब्बे के चारों टायलेट देख डाले, पर प्रिया उन में नहीं थी. ट्रेन अब पूरी रफ्तार से चल रही थी और छत्रपति हैरानपरेशान टायलेट और दूसरे डिब्बों में प्रिया को ढूंढ रहा था. सुबह हो चुकी थी, दूसरे मुसाफिर भी उठ चुके थे. छत्रपति और उस की बहन को परेशान देख कर कुछ यात्रियों ने इस की वजह पूछी तो उन्होंने प्रिया के गायब होने की बात बताई. इस पर कुछ याद करते हुए एक मुसाफिर ने बताया कि उस ने इटारसी में एक दुलहन को उतरते देखा था.

इतना सुनते ही छत्रपति के हाथों से जैसे तोते उड़ गए. क्योंकि प्रिया के बदन पर लाखों रुपए के जेवर थे, इसलिए किसी अनहोनी की बात सोचने से भी वह खुद को नहीं रोक पा रहा था. दूसरे कई खयाल भी उस के दिमाग में आजा रहे थे. लेकिन यह बात उस की समझ में नहीं आ रही थी कि आखिरकार प्रिया बगैर बताए इटारसी में क्यों उतर गई? उस का मोबाइल फोन बर्थ पर ही पड़ा था, इसलिए उस से बात करने का कोई और जरिया भी नहीं रह गया था. एक उम्मीद उसे इस बात की तसल्ली दे रही थी कि हो सकता है, वह इटारसी में कुछ खरीदने के लिए उतरी हो और ट्रेन चल दी हो, जिस से वह पीछे के किसी डिब्बे में चढ़ गई हो. लिहाजा उस ने अपनी बहन को स्लीपर कोच में देखने के लिए भेजा. इस के बाद वह खुद भी प्रिया को ढूंढने में लग गया.

भुसावल आने पर बहन प्रिया को ढूंढती हुई उस कोच में पहुंची, जहां बाराती बैठे थे. बहू के गायब होने की बात उस ने बारातियों को बताई तो बारातियों ने स्लीपर क्लास के सारे डिब्बे छान मारे. मुसाफिरों से भी पूछताछ की, लेकिन प्रिया वहां भी नहीं मिली. प्रिया नहीं मिली तो सब ने तय किया कि वापस इटारसी जा कर देखेंगे. इस के बाद आगे के लिए कुछ तय किया जाएगा. बात हर लिहाज से चिंता और हैरानी की थी, इसलिए सभी लोगों के चेहरे उतर गए थे. शादी की उन की खुशी काफूर हो गई थी.

प्रिया मिली इलाहाबाद में, पर…

इत्तफाक से उस दिन पाटलिपुत्र एक्सप्रैस खंडवा स्टेशन पर रुक गई तो एक बार फिर सारे बारातियों ने पूरी ट्रेन छान मारी, लेकिन प्रिया नहीं मिली. इस पर छत्रपति अपने बड़े भाई और कुछ दोस्तों के साथ ट्रेन से इटारसी आया और वहां भी पूछताछ की, पर हर जगह मायूसी ही हाथ लगी. अब पुलिस के पास जाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था. इसी दौरान छत्रपति ने प्रिया के घर वालों और अपने कुछ रिश्तेदारों से भी मोबाइल पर प्रिया के गुम हो जाने की बात बता दी थी.

पुलिस वालों ने उस की बात सुनी और सीसीटीवी के फुटेज देखी, लेकिन उन में कहीं भी प्रिया नहीं दिखी तो उस की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर ली. इधर छत्रपति और उस के घर वालों का सोचसोच कर बुरा हाल था कि प्रिया नहीं मिली तो वे घर जा कर क्या बताएंगे. ऐसे में तो उन की मोहल्ले में खासी बदनामी होगी. कुछ लोगों के जेहन में यह बात बारबार आ रही थी कि कहीं ऐसा तो नहीं कि प्रिया का चक्कर किसी और से चल रहा हो और मांबाप के दबाव में आ कर उस ने शादी कर ली हो. फिर प्रेमी के साथ भाग गई हो. यह खयाल हालांकि बेहूदा था, जिसे किसी ने कहा भले नहीं, पर सच भी यही निकला.

पुलिस वालों ने वाट्सऐप पर प्रिया का फोटो उस की गुमशुदगी के मैसेज के साथ वायरल किया तो दूसरे ही दिन पता चल गया कि वह इलाहाबाद के एक होटल में अपने प्रेमी के साथ है. दरअसल, प्रिया का फोटो वायरल हुआ तो उसे वाट्सऐप पर इलाहाबाद स्टेशन के बाहर के एक होटल के उस मैनेजर ने देख लिया था, जिस में वह ठहरी हुई थी. मामला गंभीर था, इसलिए मैनेजर ने तुरंत प्रिया के अपने होटल में ठहरे होने की खबर पुलिस को दे दी.

एक कहानी कई सबक

छत्रपति एक ऐसी बाजी हार चुका था, जिस में शह और मात का खेल प्रिया और उस के घर वालों के बीच चल रहा था, पर हार उस के हिस्से में आई थी. इलाहाबाद जा कर जब पुलिस वालों ने उस के सामने प्रिया से पूछताछ की तो उस ने दिलेरी से मान लिया कि हां वह अपने प्रेमी राज सिंह के साथ अपनी मरजी से भाग कर आई है. और इतना ही नहीं, इलाहाबाद की कोर्ट में वह उस से शादी भी कर चुकी है. बकौल प्रिया, वह और राज सिंह एकदूसरे से बेइंतहा प्यार करते हैं, यह बात उस के घर वालों से छिपी नहीं थी. इस के बावजूद उन्होंने उस की शादी छत्रपति से तय कर दी थी. मांबाप ने सख्ती दिखाते हुए उसे घर में कैद कर लिया था और उस का मोबाइल फोन भी छीन लिया था, जिस से वह राज सिंह से बात न कर पाए.

4 महीने पहले उस की शादी छत्रपति से तय हुई तो घर वालों ने तभी से उस का घर से बाहर निकलना बंद कर दिया था. लेकिन छत्रपति से बात करने के लिए उसे मोबाइल दे दिया जाता था. तभी मौका मिलने पर वह राज सिंह से भी बातें कर लिया करती थी. उसी दौरान उन्होंने भाग जाने की योजना बना ली थी. प्रिया के मुताबिक राज सिंह विदाई वाले दिन ही जबलपुर पहुंच गया था. इन दोनों का इरादा पहले जबलपुर स्टेशन से ही भाग जाने का था, लेकिन बारातियों और छत्रपति के जागते रहने के चलते ऐसा नहीं हो सका. राज सिंह पाटलिपुत्र एक्सप्रैस ही दूसरे डिब्बे में बैठ कर इटारसी तक आया और यहीं प्रिया उतर कर उस के साथ इलाहाबाद आ गई थी.

पूछने पर प्रिया ने साफ कह दिया कि वह अब राज सिंह के साथ ही रहना चाहती है. राज सिंह सिंगरौली के कालेज में उस का सीनियर है और वह उसे बहुत चाहती है. घर वालों ने उस की शादी जबरदस्ती की थी. प्रिया ने बताया कि अपनी मरजी के मुताबिक शादी कर के उस ने कोई गुनाह नहीं किया है, लेकिन उस ने एक बड़ी गलती यह की कि जब ऐसी बात थी तो उसे छत्रपति को फोन पर अपने और राज सिंह के प्यार की बात बता देनी चाहिए थी.

छत्रपति ने अपनी नईनवेली बीवी की इस मोहब्बत पर कोई ऐतराज नहीं जताया और मुंहजुबानी उसे शादी के बंधन से आजाद कर दिया, जो उस की समझदारी और मजबूरी दोनों हो गए थे.

जिस ने भी यह बात सुनी, उसी ने हैरानी से कहा कि अगर उसे भागना ही था तो शादी के पहले ही भाग जाती. कम से कम छत्रपति की जिंदगी पर तो ग्रहण नहीं लगता. इस में प्रिया से बड़ी गलती उस के मांबाप की है, जो जबरन बेटी की शादी अपनी मरजी से करने पर उतारू थे. तमाम बंदिशों के बाद भी प्रिया भाग गई तो उन्हें भी कुछ हासिल नहीं हुआ. उलटे 8-10 लाख रुपए जो शादी में खर्च हुए, अब किसी के काम के नहीं रहे.

मांबाप को चाहिए कि वे बेटी के अरमानों का खयाल रखें. अब वह जमाना नहीं रहा कि जिस के पल्लू से बांध दो, बेटी गाय की तरह बंधी चली जाएगी. अगर वह किसी से प्यार करती है और उसी से शादी करने की जिद पाले बैठी है तो जबरदस्ती करने से कोई फायदा नहीं, उलटा नुकसान ज्यादा है. यदि प्रिया इटारसी से नहीं भाग पाती तो तय था कि मुंबई जा कर ससुराल से जरूर भागती. फिर तो छत्रपति की और भी ज्यादा बदनामी और जगहंसाई होती.

अब जल्द ही कानूनी तौर पर भी मसला सुलझ जाएगा, लेकिन इसे उलझाने के असली गुनहगार प्रिया के मांबाप हैं, जिन्होंने अपनी झूठी शान और दिखावे के लिए बेटी को किसी और से शादी करने के लिए मजबूर किया. इस का पछतावा उन्हें अब हो रहा है. जरूरत इस बात की है कि मांबाप जमाने के साथ चलें और जातिपांत, ऊंचनीच, गरीबअमीर का फर्क और खयाल न करें, नहीं तो अंजाम क्या होता है, यह प्रिया के मामले से समझा जा सकता है. – कथा में प्रिया परिवर्तित नाम है. Crime Stories