Jawaharlal Nehru: फिर आया जिन्न बाहर नेहरू – बोस के रिश्तों का

लेखक – एम.जेड. बेग, Jawaharlal Nehru: देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा महान देशभक्त सुभाषचंद्र बोस के घर वालों की आईबी से जांच कराने के मामले ने राजनैतिक रूप लेना शुरू कर दिया है. जब बात उठी है तो नेताजी के रहस्यमय तरीके से गायब होने की भी इस बार जांच हो ही जानी चाहिए. पिछले दिनों एक पत्रिका में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई, जिस में बताया गया था कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने आजाद हिंद फौज के संस्थापक और महान देशभक्त सुभाषचंद्र बोस के परिवार की निगरानी भारतीय खुफिया जांच एजेंसी आईबी से कराई थी और यह निगरानी नेहरू की मृत्यु के 4 साल बाद तक होती रही. इस रिपोर्ट के प्रकाशित होते ही भारतीय राजनीति में एक उबाल सा आ गया.

रिपोर्ट के अनुसार सन 1948 से ले कर 1968 तक आईबी के लोग नेताजी सुभाषचंद्र बोस  के परिवार वालों की निगरानी करते रहे. वे इस बात की पूरी रिपोर्ट प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजते थे कि नेताजी के रिश्तेदारों से मिलने कौन आया, कितनी देर रुका. उन के पते पर जो भी पत्र आता था, उसे पहले आईबी वाले खोल कर पढ़ते थे, उस के बाद ही वह पत्र संबंधित व्यक्ति तक पहुंचता था. नेताजी जैसे महान देशभक्त के परिवार के लोगों की निगरानी भारत सरकार द्वारा करवाना अवश्य ही अचरज भरी बात थी. वैसे तो सभी जानते हैं कि सुभाषचंद्र बोस और नेहरू व गांधी के बीच बहुत गहरे मतभेद थे. इस निगरानी प्रकरण को समझने के लिए हमें स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व के घटनाक्रम को देखना होगा. क्योंकि इस सारे प्रकरण की असली जड़ें तो वहीं हैं.

23 जनवरी, 1897 को कटक के एक मशहूर वकील जानकीनाथ बोस के घर में पैदा हुए बच्चे को ही लोग आज सुभाषचंद्र बोस के नाम से जानते हैं. 14 भाईबहनों में नौवें नंबर के सुभाषचंद्र बोस शुरू से ही होनहार थे. हर इम्तहान में वह कामयाबी की एक नई दास्तान लिखते गए. यहां तक कि सन 1920 में भारत की सिविल सर्विस के लिए दिए गए इम्तहान में भी वह मैरिट में चौथे नंबर पर रहे, जोकि एक भारतीय के लिए बहुत बड़ी बात थी. लेकिन जलियांवाला बाग की घटना से व्यथित हो कर उन्होंने सिविल सर्विस छोड़ दी और 1921 में भारत लौट आए. भारत आ कर वह गांधीजी से प्रभावित हो कर कांग्रेस में शामिल हो गए. लेकिन जल्द ही उन के गांधीजी से वैचारिक मतभेद हो गए.

असहयोग आंदोलन में भाग लेने के कारण जिस समय सुभाषचंद्र बोस जेल में थे, उस समय गांधीजी ने लार्ड इरविन के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिस की एक शर्त थी कि असहयोग आंदोलन को वापस लेना होगा. यह बात सुभाषचंद्र बोस को नागवार लगी. यहीं से गांधीजी और सुभाषचंद्र बोस के बीच मतभेद उभर कर सामने आने लगे. सुभाषचंद्र बोस पूर्ण स्वतंत्रता से पहले असहयोग आंदोलन वापस नहीं लेना चाहते थे और ऐसी स्थिति में तो बिलकुल ही नहीं, जबकि उन्हीं दिनों भगत सिंह और उन के साथियों को फांसी दी गई थी. लार्ड इरविन और गांधीजी के समझौते के अनुसार, सन 1937 में हुए प्रांतीय असेंबलियों के चुनाव में कांग्रेस 7 राज्यों में विजयी हुई. सन 1938 के हरीपुरा में हुए कांग्रेस अधिवेशन में सुभाषचंद्र बोस को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिया गया. कांग्रेस का अध्यक्ष बनते ही सुभाषचंद्र बोस ने भारत के भविष्य के लिए योजनाएं बनानी शुरू कर दीं.

सुभाषचंद्र बोस ने कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद पूर्ण स्वतंत्रता का नारा दिया. वह चाहते थे कि ब्रिटिश सरकार को 6 महीने का इस बात का अल्टीमेटम दिया जाए कि या तो वह भारत को स्वतंत्र कर दे अन्यथा परिणाम भुगतने को तैयार रहे. यहीं से गांधी व नेहरू और नेताजी के बीच मतभेद हो गए. इस के विपरीत सुभाषचंद्र बोस की ख्याति और विश्वसनीयता भारत के जनमानस में बढ़ती गई. यह वह समय था, जब यूरोप में अशांति बढ़ती जा रही थी और आने वाले समय में एक और विश्वयुद्ध की संभावनाएं बढ़ती जा रही थीं. सुभाषचंद्र बोस की दूरगामी दृष्टि यह देख रही थी कि निकट भविष्य में युद्ध होगा और अंगरेज भारतीयों को भी इस युद्ध की भट्ठी में झोंक देंगे. इसलिए वह चाहते थे कि भारत जल्द से जल्द पूर्ण स्वतंत्र हो जाए जिस से होने वाले युद्ध की विभीषिका से भारतीय सुरक्षित रह सकें.

जबकि गांधीजी और नेहरू की सोच यह थी कि जिस तरह ब्रिटिश हुकूमत धीरेधीरे भारतीयों को अधिकार दे रही है, इसी तरह चलती रहनी चाहिए. गांधीजी ने नई साजिश रचनी शुरू कर दी. सुभाषचंद्र बोस का राजनीतिक प्रभाव कम करने के लिए 1939 में जब कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव का समय आया तो गांधीजी ने चाहा कि सुभाषचंद्र बोस चुनाव में भाग न लें. वह डा. पट्टाभि को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने के पक्षधर थे. मगर सुभाषचंद्र बोस चुनाव में खड़े हुए और गांधीजी के भरपूर विरोध के बावजूद भी भारी मतों से दोबारा कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए. डा. पट्टाभि सीतारमय्या की हार को गांधीजी ने अपनी हार माना, क्योंकि उन्हें जिताने में उन की प्रतिष्ठा दांव पर जो लगी थी.

सुभाषचंद्र बोस दोबारा अध्यक्ष चुन तो लिए गए, लेकिन बाकी पूरी कार्यकारिणी पर गांधीजी का प्रभाव था. इसलिए कांग्रेस कार्यकारिणी ने सुभाषचंद्र बोस की राह में रोड़े अटकाने शुरू कर दिए. एक दिन तो ऐसा हुआ कि पूरी कार्यकारिणी ने त्यागपत्र दे दिया. सुभाषचंद्र बोस के लिए नई कार्यकारिणी का चुनाव कराना आसान नहीं था. हालात इतने बिगड़ गए कि उन के लिए काम तक करना मुश्किल हो गया. आखिर उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे कर कांग्रेस को भी अलविदा कह दिया. इस के बाद उन्होंने अपना एक अलग दल फारवर्ड ब्लौक का गठन किया. संगठन को मजबूत करने के लिए उन्होंने भारतीयों को इकट्ठा करना शुरू किया, ताकि एक बड़े संग्राम की शुरुआत की जा सके. इस से ब्रिटिश हुकूमत हरकत में आ गई. उन की गतिविधियों को देखते हुए हुकूमत ने उन्हें जेल में बंद कर दिया. जेल में उन का स्वास्थ्य खराब हो गया तो उन्हें उन के घर में ही नजरबंद कर दिया गया.

सन 1941 में सुभाषचंद्र बोस योजना बना कर कलकत्ता के अपने घर से गायब हो गए और अफगानिस्तान होते हुए जर्मनी पहुंच गए. वहां वह उस समय के जरमन शासक एडोल्फ हिटलर से मिले. उस समय विश्वयुद्ध चल रहा था और सिंगापुर में रासबिहारी बोस ने भारत की आजादी के लिए एक सेना का गठन किया हुआ था, जिस को आजाद हिंद फौज के नाम से जाना जाता था. तब सन 1943 में सुभाषचंद्र बोस जर्मनी से सिंगापुर आ गए और आजाद हिंद फौज की कमान उन्होंने संभाल ली. आजाद हिंद फौज को ले कर नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने भारत की ओर पेशकदमी शुरू कर दी. उन्होंने इसी फौज की बदौलत अंडमान व निकोबार द्वीप समूह को अंगरेजी शासन से मुक्ति दिलाई. जनवरी, 1944 में आजाद हिंद फौज का मुख्यालय रंगून में स्थापित किया और 18 मार्च, 1944 को बर्मा की सीमा पार करते हुए आजाद हिंद फौज भारत पहुंच गई.

कहा जाता है कि विश्वयुद्ध के समय ब्रिटिश हुकूमत में कभी सूर्य अस्त नहीं होता था. यानी धरती के इतने बड़े भूभाग पर अंगरेजों का शासन था कि कहीं न कहीं दिन होता ही था. इतना बड़ा साम्राज्य होने के कारण अंगरेज एक तरह से आलसी हो चुके थे. यही वजह थी कि जब जापानियों ने सिंगापुर पर आक्रमण किया तो अंगरेज वहां से बिना लड़े ही भाग खड़े हुए. बाद में भारतीय लोगों से सुसज्जित सेना को लड़ने के लिए सिंगापुर भेजा. भारतीय सेना ने जापानी सेना से लोहा लिया. नेताजी का अंदेशा सही साबित हुआ, क्योंकि उन का यही मानना था कि जब भी युद्ध होगा, अंगरेज स्वयं न लड़ कर भारतीयों को ही युद्ध के मोरचे पर भेजेंगे.

सुभाषचंद्र बोस के कांग्रेस से परिस्थितिवश विदा होने से एक बात साफ हो गई थी कि कांग्रेस में वही होगा, जो गांधीजी और नेहरू चाहेंगे. और शायद यही सोच आगे चल कर भारत के विभाजन की वजह बनी. क्योंकि सुभाषचंद्र बोस की कांग्रेस से विदाई और अंगरेज सरकार द्वारा उन्हें नजरबंद करने के बाद ही मुसलिम लीग और जिन्ना का उदय हुआ. सुभाषचंद्र बोस चाहते थे कि भारत में कुछ ऐसा ही हो, जैसा तुर्की के अतातुर्क मुस्तफा कमाल पाशा ने किया था. खिलाफत खत्म कर के वह देश में केवल एक भाषा चलाना चाहते थे, जिस से पूरा देश एक सूत्र में बंध जाए. देश में सारे धर्मों को बराबर सम्मान दिया जाना चाहिए और किसी को कोई आरक्षण नहीं, केवल योग्यता ही मापदंड हो. जबकि गांधीजी ने खिलाफत खत्म करने का विरोध किया.

सुभाषचंद्र बोस ने जब सिंगापुर में आजाद हिंद फौज की कमान संभाली तो उस समय जापानी आगे बढ़ते ही जा रहे थे और अंगरेज पीछे भागते जा रहे थे. अंगरेजों के भागने का सिलसिला उस वक्त थमा, जब अमेरिका ने 6 और 9 अगस्त, 1945 को हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए. इस के कुछ दिनों बाद ही अंगरेज सरकार ने घोषणा की कि 18 अगस्त, 1945 को ताइपे में जिस विमान में आग लगी थी, उस में नेताजी सुभाषचंद्र बोस भी थे. यानी विमान में आग लगने से नेताजी की मृत्यु हो गई. इसी के साथ शुरू हो गया यह विवाद कि क्या सचमुच उस समय सुभाषचंद्र बोस उस विमान में मौजूद थे भी या नहीं?

15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतंत्र तो हो गया, मगर इस बात पर संशय बरकरार रहा कि नेताजी की मृत्यु हो चुकी है या वह अभी जीवित हैं. नेताजी का रहस्य जानने के लिए भारत सरकार ने कई बार आयोग बिठाए, मगर उन सब का नतीजा कुछ खास नहीं निकला. लोग दावे करते रहे कि नेताजी ताइपे विमान हादसे में नहीं मरे थे. कुछ लोग कहते थे कि वह जापान की हार के बाद मंचूरिया होते हुए रूस चले गए थे, जहां स्टालिन ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था. चूंकि ब्रिटिश शासन और नेहरू व स्टालिन तीनों ही नहीं चाहते थे कि सुभाषचंद्र बोस भारत आएं, जिस से कि इन तीनों के हित प्रभावी हों. क्योंकि वे जानते थे कि नेताजी की भारत में उपस्थिति एक राजनीतिक हलचल पैदा कर देगी. दूसरी तरफ कुछ लोगों का दावा था कि सुभाषचंद्र बोस फैजाबाद के एक आश्रम में गुमनामी बाबा की हैसियत से रह रहे हैं.

सच्चाई कुछ भी हो, मगर यह बात तय है कि आधिकारिक तौर पर 18 अगस्त, 1945 के बाद से उन का कोई पता नहीं है. इस सच्चाई को कोई भी इनकार नहीं कर सकता कि भारतीय राजनीति में 1940-50 के दशक में यदि नेहरू को कोई चुनौती दे सकता था तो वह सुभाषचंद्र बोस ही थे. हाल ही में सामने आए दस्तावेजों से भी यह बात साबित होती है कि जवाहरलाल नेहरू भी शायद यह नहीं मानते थे कि वास्तव में सुभाषचंद्र बोस की मृत्यु हो चुकी है. उन्हें डर था कि सुभाषचंद्र बोस कभी भी प्रकट हो सकते हैं. उन के सामने आने से नेहरू के लिए बहुत ही ज्यादा परेशानियां खड़ी हो जातीं.

नेहरू को सत्ता संभालने की जल्दी थी, इसलिए उन्होंने अपने हाथ में सत्ता लेते समय अंगरेज शासन से कई समझौते किए थे. उन में से एक यह भी था कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी अगर आजाद हिंद फौज का कोई ऐसा व्यक्ति भारत सरकार के हाथ लगता है, जिस पर ब्रिटिश हुकूमत ने केस कर रखा है तो उस व्यक्ति को ब्रिटिश सरकार को सौंपना होगा. ऐसे व्यक्तियों में सुभाषचंद्र बोस का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है. आज भारत को स्वतंत्र हुए 7 दशक होने को हैं. अब शायद इस बात का महत्त्व नहीं है कि सुभाषचंद्र बोस की विमान हादसे में मृत्यु हुई या नहीं? मगर तत्कालीन कांग्रेस सरकार के रवैए से यह सवाल उठ खड़े होते हैं कि क्या वास्तव में भारत को स्वतंत्र कराने में कांग्रेस का हाथ था या इस के पीछे और कोई दूसरे कारण थे, जिस की वजह से अंगरेजों ने भारत को बहुत जल्दी में स्वतंत्रता प्रदान कर दी.

अब भारत सरकार को चाहिए कि नेताजी से संबंधित सारी जानकारी सार्वजनिक करे. क्योंकि भारतीयों का यह अधिकार है कि वह सच्चाई और सुभाषचंद्र बोस की महिमा को जाने.  एक बार इंग्लैंड के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटली, जोकि भारत की स्वतंत्रता के समय इंग्लैंड के प्रधानमंत्री थे, से भारत की आजादी के बाद जब बंगाल के राज्यपाल चटर्जी ने उन से सवाल किया था कि भारत को आजादी दिलाने में गांधीजी के भारत छोड़ो आंदोलन की क्या भूमिका थी तो अटली का जवाब था कि बहुत ही कम. अर्थात कुछ और दूसरे कारण थे, जिन की वजह से अंगरेजों को भारत छोड़ना पड़ा. नेहरू ने सुभाषचंद्र बोस के परिवार की निगरानी कराई या नहीं, मगर अब समय आ गया है कि सारी वास्तविकता लोगों के सामने लाई जाए.

 

Firozabad Crime: प्यार की राह का रोड़ा – पति को बनाया पराया

Firozabad Crime: घटना उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद के थाना टूंडला के गांव नगला राधेलाल की है. 30 अक्तूबर की सुबह जब हरभेजी सो कर उठी तो बराबर के कमरे में उन्हें कोई हलचल नहीं दिखी. उस कमरे में उन का बेटा गब्बर बहू विवेक कुमारी उर्फ लालपरी तथा पोते अनुज के साथ सोया था. गब्बर के 2 बच्चे हरभेजी के साथ ही सोए थे. हरभेजी जब गब्बर के कमरे में गईं तो अंदर का दृश्य देखते ही उन के मुंह से चीख निकल गई.

उन का 40 वर्षीय बेटा गब्बर पंखे से बंधे फंदे पर लटका हुआ था, उस के पैर कमरे के फर्श को छू रहे थे. गब्बर के चेहरे से खून टपक रहा था. मां हरभेजी ने बहू लालपरी को आवाज लगाई, लेकिन वह कमरे में नहीं मिली. न ही वहां उस का बेटा अनुज था. बहू की तलाश की गई पर उस का कोई पता नहीं चला. इस घटना से परिवार में कोहराम मच गया. मां के रोने की आवाज सुन कर उन के और बेटे भी वहां आ गए. कुछ ही देर में मोहल्ले के लोग वहां जमा हो गए. उसी दौरान किसी ने आत्महत्या करने की सूचना पुलिस को फोन द्वारा दे दी.

सूचना पर थानाप्रभारी बी.डी. पांडेय फोर्स सहित घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने शव के साथ मकान का भी निरीक्षण किया. सूचना मिलने पर सीओ डा. अरुण कुमार सिंह भी वहां आ गए. निरीक्षण के उपरांत पुलिस ने निष्कर्ष निकाला कि गब्बर ने आत्महत्या नहीं की बल्कि उस की पीटपीट कर हत्या करने के बाद शव को फंदे पर लटकाया गया है. गब्बर के साथ कमरे में उस की पत्नी ही सोई थी, जो वहां से फरार थी, इसलिए पूरा शक पत्नी पर ही था. अब सवाल यह था कि शव को अकेले पत्नी पंखे पर नहीं लटका सकती. इस काम में किसी ने उस की मदद जरूर की होगी.

पुलिस ने कमरे की तलाशी ली तो वहां एक ऐसी मैक्सी मिली, जिस पर खून लगा हुआ था. पता चला कि वह मैक्सी मृतक की पत्नी लालपरी की थी. लालपरी के कुछ कपड़े और अन्य सामान कमरे से गायब थे. इस से अंदाजा लगाया गया कि वह पति की हत्या के बाद अपना सामान व अपने साथ सोए बच्चे को ले कर फरार हो गई है. पुलिस ने घर वालों से पूछताछ की तो पता चला कि रात को पतिपत्नी में किसी बात को ले कर झगड़ा हुआ था. झगड़े के समय लालपरी का प्रेमी स्वामी उर्फ सुम्मा भी वहां मौजूद था. स्वामी टूंडला थाने के गांव बन्ना का रहने वाला था. उस समय परिवार के लोगों ने दोनों को समझाबुझा कर झगड़ा शांत करा दिया था. इस के बाद वे अपने कमरे में सोने के लिए चले गए थे.

मृतक के भाई योगेश ने पुलिस को बताया कि शादी के पहले से ही लालपरी के स्वामी से अवैध संबंध थे. मौके की जांच करने के बाद पुलिस ने गब्बर की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल फिरोजाबाद भेज दी. पुलिस ने मृतक के भाई योगेश की ओर से विवेक कुमारी उर्फ लालपरी व उस के प्रेमी स्वामी उर्फ सुम्मा के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली. रिपोर्ट दर्ज होने के बाद पुलिस नामजद आरोपियों की तलाश में जुट गई. पुलिस ने कई संभावित स्थानों पर दबिश भी दी, लेकिन उन का कोई पता नहीं लगा. तब पुलिस ने मुखबिरों का जाल फैला दिया.

लालपरी की शादी गब्बर से हो जरूर गई थी लेकिन वह उसे शुरू से ही पसंद नहीं था. वह अपने घर वालों की मरजी का विरोध भी नहीं कर सकी थी. यानी घर वालों की वजह से उस ने गब्बर से शादी कर जरूर ली थी लेकिन उस के दिल में तो उस का प्रेमी बसा था. यही वजह थी कि वह प्रेमी को शादी के बाद भी भुला न सकी. प्रेमी स्वामी उस के पति की गैरमौजूदगी में उस के घर आनेजाने लगा. जब पति काम पर चला जाता तो मौका देख कर लालपरी प्रेमी को फोन कर बुला लेती थी. इस के बाद दोनों ऐश करते थे लेकिन ऐसी बातें ज्यादा दिनों तक छिपी तो नहीं रहतीं.

लालपरी व स्वामी के संबंधों की जानकारी मोहल्ले के साथ ससुराल के लोगों को भी हो गई. इस की भनक जब गब्बर को लगी तो उस ने कई बार पत्नी को समझाया, लेकिन लालपरी की समझ में कुछ नहीं आया. इस बात को ले कर दोनों में कई बार झगड़ा भी हुआ, पर उस ने प्रेमी से मिलनाजुलना जारी रखा. घटना के 3 सप्ताह बाद भी लालपरी और उस के प्रेमी स्वामी के बारे में पुलिस को कोई जानकारी नहीं मिली थी. 21 नवंबर, 2018 को पुलिस को एक जरूरी सूचना मिली कि लालपरी और उस का प्रेमी इस समय टूंडला से लगभग 6 किलोमीटर दूर स्थित एफएच मैडिकल कालेज में मौजूद हैं. थानाप्रभारी बी.डी. पांडेय ने एसआई नेत्रपाल शर्मा के नेतृत्व में तुरंत एक पुलिस टीम वहां भेज दी.

पुलिस को अस्पताल में स्वामी घायलावस्था में उपचार कराते मिला, जबकि उस की प्रेमिका लालपरी अस्पताल में उस की देखभाल कर रही थी. पता चला कि स्वामी एक सप्ताह पहले सड़क हादसे में घायल हो गया था. उस के सिर में गहरी चोट लगी थी. उस की प्रेमिका उसे गंभीर हालत में उपचार के लिए एफ.एच. मैडिकल कालेज ले कर आई थी. लेकिन उपचार के दौरान दोनों के बीच अस्पताल में ही किसी बात को ले कर झगड़ा हो गया था. झगड़े में वे दोनों गब्बर की हत्या को ले कर एकदूसरे पर आरोप लगा रहे थे.

करीब 3 सप्ताह पहले हुई गब्बर की हत्या की जानकारी मीडिया द्वारा अस्पताल के स्टाफ को मिल चुकी थी. उन की बातों से वहां के स्टाफ को यह शक हो गया कि गब्बर हत्याकांड में ये लोग शामिल हैं. इसलिए उन्होंने पुलिस को सूचना दे दी थी. पुलिस ने दोनों हत्यारोपियों को हिरासत में ले लिया. स्वामी और उस की प्रेमिका लालपरी को थाने ले जा कर उन से पूछताछ की गई. हत्यारोपियों की गिरफ्तारी की खबर पा कर सीओ डा. अरुण कुमार सिंह भी वहां पहुंच गए. उन के सामने थानाप्रभारी बी.डी. पांडेय ने लालपरी और स्वामी से पूछताछ की तो उन्होंने गब्बर की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उन्होंने गब्बर की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी-

रोजाबाद जिले के गांव नगला राधेलाल के रहने वाले गब्बर की शादी करीब 9 साल पहले विवेक कुमारी उर्फ लालपरी से हुई थी. बाद में वह 3 बच्चों का बाप बन गया. गब्बर के पास खेती की थोड़ी जमीन थी, उस से बमुश्किल परिवार का गुजारा होता था. तब खाली समय में गब्बर राजमिस्त्री का काम कर लेता था. शादी से पहले ही लालपरी के पैर बहक गए थे. बन्ना गांव के रहने वाले स्वामी उर्फ सुम्मा से उस का चक्कर चल रहा था. करीब एक साल पहले की बात है. लालपरी का अपने प्रेमी स्वामी के साथ रंगरेलियां मनाते हुए अश्लील वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था. इस से गब्बर और उस के परिवार की बड़ी बदनामी हुई थी.

इस के बाद गब्बर को मोहल्ले के लोगों के ताने सुनने पड़े थे. गब्बर ने पत्नी से कहा कि वह स्वामी से संबंध खत्म कर ले, लेकिन वह इतनी बेशर्म हो चुकी थी कि उलटे पति से ही झगड़ने लगती थी. एक बार वह पति से झगड़ कर बन्ना स्थित कांशीराम कालोनी में जा कर रहने लगी थी. कुछ समय बाद जब लालपरी का गुस्सा शांत हो गया तो वह पति के घर लौट आई. वहां वह कुछ दिनों तक तो ठीक से रही लेकिन बाद में उस ने प्रेमी से मिलनाजुलना फिर शुरू कर दिया. पति जब उसे टोकता तो उसे उस की बात बुरी लगती थी. एक तरह से उसे पति रास्ते का कांटा नजर आने लगा. उस कांटे से वह हमेशा के लिए निजात पाना चाहती थी, ताकि प्रेमी के साथ चैन से रह सके.

एक दिन उस ने इस सिलसिले में प्रेमी से बात करने के बाद पति को ठिकाने लगाने की तरकीब खोजी. लालपरी ने एक बार पति को मारने के लिए उस के खाने में जहर मिला दिया. जहर का असर होते ही गब्बर सिंह की हालत बिगड़ गई. घर वाले उसे इलाज के लिए तुरंत आगरा ले गए और उसे एक अस्पताल में भरती करा दिया. परिवार वालों को लालपरी पर शक तो था, लेकिन वे यह भी सोच रहे थे कि कहीं खाने में छिपकली तो नहीं गिर गई. बहरहाल, उन्होंने इस की जानकारी पुलिस को नहीं दी. उन्होंने लालपरी से इस बारे में पूछताछ की तो उस ने कहा कि हो सकता है उस की लापरवाही से खाने में कोई छिपकली वगैरह गिर गई हो. इस के लिए लालपरी ने घर वालों से माफी मांग ली.

अस्पताल से पति के घर वापस आने के बाद लालपरी ने रोरो कर गब्बर से भी माफी मांग ली. यह सब लालपरी का ड्रामा था. सीधेसादे गब्बर ने पत्नी को इस घटना के बाद भी माफ कर दिया और खुद पत्नी की तरफ से बेफिक्र हो गया. लालपरी भले ही अपने मतलब के लिए पति से माफी मांग लेती थी, लेकिन हकीकत यह थी कि वह दबंग थी. सीधेसादे गब्बर पर वह अकसर हावी रहती थी. स्वामी से उस के संबंधों को ले कर पति जब उस पर नाराज होता तो वह उलटे उस की शिकायत थाने में कर आती थी. कई बार वह पति व ससुरालियों के खिलाफ मारपीट की थाने में शिकायत दर्ज करा चुकी थी. इस के चलते पति व ससुराल वाले उस का कोई विरोध नहीं कर पाते थे.

समाज को दिखाने के लिए उस ने करवाचौथ का व्रत भी रखा था. लेकिन वह अब पति से हमेशा के लिए छुटकारा पाना चाहती थी. इस बारे में उस ने अपने प्रेमी स्वामी के साथ एक अंतिम योजना तैयार कर ली थी. 29 अक्तूबर, 2018 को स्वामी लालपरी के घर आया. गब्बर ने स्वामी से तो कुछ नहीं कहा, लेकिन पत्नी से झगड़ने लगा. स्वामी और घर वालों ने दोनों को समझा कर शांत कराया. उसी समय लालपरी ने स्वामी से कह दिया था कि इस कांटे को आज रात ही निकाल देना है. प्रेमिका की बात सुन कर स्वामी वहां से चला गया.

उस रात लालपरी अपने 6 साल के बेटे अनुज के साथ पति के कमरे में ही सोई थी. उस ने कमरे के दरवाजे की कुंडी नहीं लगाई. जब गब्बर गहरी नींद में सो गया तो लालपरी ने फोन कर के प्रेमी को बुला लिया. दोनों ने मिल कर सोते हुए गब्बर को दबोच लिया और मारपीट की, फिर गला दबा कर हत्या कर दी. हत्या करने के बाद इसे आत्महत्या का रूप देने के लिए दोनों ने उस की लाश पंखे पर लटका दी. उस ने अपने प्रेम संबंधों की राह में रोड़ा बने पति को हटा दिया. पुलिस ने स्वामी उर्फ सुम्मा और लालपरी से पूछताछ के बाद उन्हें गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया.

लालपरी ने प्यार की खातिर अपने घर को ही नहीं, अपनी मांग के सिंदूर को भी उजाड़ लिया. बच्चों के सिर पर भी मांबाप का साया नहीं रहा. बिलखते हुए बच्चों को देख कर लोग लालपरी को कोस रहे थे कि प्रेमी के साथ जाना था तो ऐसे ही चली जाती, पति को क्यों मार डाला. Firozabad Crime.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Crime Stories: अपमान और नफरत की साजिश

Crime Stories: पहली मई, 2019 की बात है. दिन के करीब 12 बजे का समय था, जब महाराष्ट्र के अहमदनगर से करीब 90 किलोमीटर दूर थाना पारनेर क्षेत्र के गांव निधोज में उस समय अफरातफरी मच गई, जब गांव के एक घर में अचानक आग के धुएं, लपटों और चीखनेचिल्लाने की आवाजें आनी शुरू हुईं. चीखनेचिल्लाने की आवाजें सुन कर गांव वाले एकत्र हो गए. लेकिन घर के मुख्यद्वार पर ताला लटका देख खुद को असहाय महसूस करने लगे.

दरवाजा टूटते ही घर के अंदर से 3 बच्चे, एक युवक और युवती निकल कर बाहर आए. बच्चों की हालत तो ठीक थी, लेकिन युवती और युवक की स्थिति काफी नाजुक थी. गांव वालों ने आननफानन में एंबुलेंस बुला कर उन्हें स्थानीय अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने उन का प्राथमिक उपचार कर के उन्हें पुणे के सेसूनडाक अस्पताल के लिए रेफर कर दिया. साथ ही इस मामले की जानकारी पुलिस कंट्रोल रूम को भी दे दी.

पुलिस कंट्रोल रूम से मिली जानकारी पर थाना पारनेर के इंसपेक्टर बाजीराव पवार ने चार्जरूम में मौजूद ड्यूटी अफसर को बुला कर तुरंत इस मामले की डायरी बनवाई और बिना विलंब के एएसआई विजय कुमार बोत्रो, सिपाही भालचंद्र दिवटे, शिवाजी कावड़े और अन्ना वोरगे के साथ अस्पताल की तरफ रवाना हो गए. रास्ते में उन्होंने अपने मोबाइल फोन से मामले की जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी.

जिस समय पुलिस टीम अस्पताल परिसर में पहुंची, वहां काफी लोगों की भीड़ जमा हो चुकी थी. इन में अधिकतर उस युवक और युवती के सगेसंबंधी थे. पूछताछ में पता चला कि युवती का नाम रुक्मिणी है और युवक का नाम मंगेश रणसिंग लोहार. रुक्मिणी लगभग 70 प्रतिशत और मंगेश 30 प्रतिशत जल चुका था. अधिक जल जाने के कारण रुक्मिणी बयान देने की स्थिति में नहीं थी. मंगेश रणसिंग भी कुछ बताने की स्थिति में नहीं था.

इंसपेक्टर बाजीराव पवार ने मंगेश रणसिंग और अस्पताल के डाक्टरों से बात की. इस के बाद वह अस्पताल में पुलिस को छोड़ कर खुद घटनास्थल पर आ गए.

घटना रसोईघर के अंदर घटी थी, जहां उन्हें पैट्रोल की एक खाली बोतल मिली. रसोईघर में बिखरे खाना बनाने के सामान देख कर लग रहा था, जैसे घटना से पहले वहां पर हाथापाई हुई हो.

जांचपड़ताल के बाद उन्होंने आग से बच गए बच्चों से पूछताछ की. बच्चे सहमे हुए थे. उन से कोई खास बात पता नहीं चली. वह गांव वालों से पूछताछ कर थाने आ गए. मंगेश रणसिंग के भाई महेश रणसिंग को वह साथ ले आए थे. उसी के बयान के आधार पर रुक्मिणी के परिवार वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर मामले की जांच शुरू कर दी.

इस मामले में रुक्मिणी का बयान महत्त्वपूर्ण था. लेकिन वह कोई बयान दर्ज करवा पाती, इस के पहले ही 5 मई, 2019 को उस की मृत्यु हो गई. मंगेश रणसिंग और उस के भाई महेश रणसिंग के बयानों के आधार पर यह मामला औनर किलिंग का निकला.

रुक्मिणी की मौत के बाद इस मामले ने तूल पकड़ लिया, जिसे ले कर सामाजिक कार्यकर्ता और आम लोग सड़क पर उतर आए और संबंधित लोगों की गिरफ्तारी की मांग करने लगे. इस से जांच टीम पर वरिष्ठ अधिकारियों का दबाव बढ़ गया. उसी दबाव में पुलिस टीम ने रुक्मिणी के चाचा घनश्याम सरोज और मामा सुरेंद्र भारतीय को गिरफ्तार कर लिया. रुक्मिणी के पिता मौका देख कर फरार हो गए थे.

पुलिस रुक्मिणी के मातापिता को गिरफ्तार कर पाती, इस से पहले ही इस केस ने एक नया मोड़ ले लिया. रुक्मिणी और मंगेश रणसिंग के साथ आग में फंसे बच्चों ने जब अपना मुंह खोला तो मामला एकदम अलग निकला. बच्चों के बयान के अनुसार पुलिस ने जब गहन जांच की तो मंगेश रणसिंग स्वयं ही उन के राडार पर आ गया.

मामला औनर किलिंग का न हो कर एक गहरी साजिश का था. इस साजिश के तहत मंगेश रणसिंग ने अपनी पत्नी की हत्या करने की योजना बनाई थी. पुलिस ने जब मंगेश से विस्तृत पूछताछ की तो वह टूट गया. उस ने अपना गुनाह स्वीकार करते हुए रुक्मिणी हत्याकांड की जो कहानी बताई, वह रुक्मिणी के परिवार वालों और रुक्मिणी के प्रति नफरत से भरी हुई थी.

23 वर्षीय मंगेश रणसिंग गांव निधोज का रहने वाला था. उस के पिता चंद्रकांत रणसिंग जाति से लोहार थे. वह एक कंस्ट्रक्शन साइट पर राजगीर का काम करते थे. घर की आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं थी. फिर भी गांव में उन की काफी इज्जत थी. सीधेसादे सरल स्वभाव के चंद्रकांत रणसिंग के परिवार में पत्नी कमला के अलावा एक बेटी प्रिया और 3 बेटे महेश रणसिंग और ओंकार रणसिंग थे.

मंगेश रणसिंग परिवार में सब से छोटा था. वह अपने दोस्तों के साथ सारा दिन आवारागर्दी करता था. गांव के स्कूल से वह किसी तरह 8वीं पास कर पाया था. बाद में वह पिता के काम में हाथ बंटाने लगा. धीरेधीरे उस में पिता के सारे गुण आ गए. राजगीर के काम में माहिर हो जाने के बाद उसे पुणे की एक कंस्ट्रक्शन साइट पर सुपरवाइजर की नौकरी मिल गई.

वैसे तो मंगेश को पुणे से गांव आनाजाना बहुत कम हो पाता था, लेकिन जब भी वह अपने गांव आता था तो गांव में अपने आवारा दोस्तों के साथ दिन भर इधरउधर घूमता और सार्वजनिक जगहों पर बैठ कर गप्पें मारता. इसी के चलते जब उस ने रुक्मिणी को देखा तो वह उसे देखता ही रह गया.

20 वर्षीय रुक्मिणी और मंगेश का एक ही गांव था. उस का परिवार भी उसी कंस्ट्रक्शन साइट पर काम करता था, जिस पर मंगेश अपने पिता के साथ काम करता था. इस से मंगेश रणसिंग का रुक्मिणी के करीब आना आसान हो गया था. रुक्मिणी का परिवार उत्तर प्रदेश का रहने वाला था. उस के पिता रामा रामफल भारतीय जाति से पासी थे. सालों पहले वह रोजीरोटी की तलाश में गांव से अहमदनगर आ गए थे. बाद में वह अहमदनगर के गांव निधोज में बस गए थे. यहीं पर उन्हें एक कंस्ट्रक्शन साइट पर काम मिल गया था.

बाद में उन्होंने अपनी पत्नी सरोज और साले सुरेंद्र को भी वहीं बुला लिया था. परिवार में रामा रामफल भारतीय के अलावा पत्नी, 2 बेटियां रुक्मिणी व 5 वर्षीय करिश्मा थीं.

अक्खड़ स्वभाव की रुक्मिणी जितनी सुंदर थी, उतनी ही शोख और चंचल भी थी. मंगेश रणसिंग को वह अच्छी लगी तो वह उस से नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश करने लगा.

मंगेश रणसिंग पहली ही नजर में रुक्मिणी का दीवाना हो गया था. वह रुक्मिणी को अपने जीवनसाथी के रूप में देखने लगा था. उस की यह मुराद पूरी भी हुई.

कंस्ट्रक्शन साइट पर रुक्मिणी के परिवार वालों का काम करने की वजह से मंगेश रणसिंग की राह काफी आसान हो गई थी. वह पहले तो 1-2 बार रुक्मिणी के परिवार वालों के बहाने उस के घर गया. इस के बाद वह मौका देख कर अकेले ही रुक्मिणी के घर आनेजाने लगा.

मंगेश रुक्मिणी से मीठीमीठी बातें कर उसे अपनी तरफ आकर्षित करने की कोशिश करता. साथ ही उसे पैसे भी देता और उस के लिए बाजार से उस की जरूरत का सामान भी लाता. जब भी वह रुक्मिणी से मिलने उस के घर जाता, उस के लिए कुछ न कुछ ले कर जाता. साथ ही उस के भाई और बहन के लिए भी खानेपीने की चीजें ले जाता था.

मांबाप की जानपहचान और उस का व्यवहार देख कर रुक्मिणी भी मंगेश की इज्जत करती थी. रुक्मिणी उस के लिए चायनाश्ता करा कर ही भेजती थी. मंगेश रणसिंह तो रुक्मिणी का दीवाना था ही, रुक्मिणी भी इतनी नादान नहीं थी. 20 वर्षीय रुक्मिणी सब कुछ समझती थी.

वह भी धीरेधीरे मंगेश रणसिंग की ओर खिंचने लगी थी. फिर एक समय ऐसा भी आया कि वह अपने आप को संभाल नहीं पाई और परकटे पंछी की तरह मंगेश की बांहों में आ गिरी.

अब दोनों की स्थिति ऐसी हो गई थी कि एकदूसरे के लिए बेचैन रहने लगे. उन के प्यार की ज्वाला जब तेज हुई तो उस की लपट उन के घर वालों तक ही नहीं बल्कि अन्य लोगों तक भी जा पहुंची.

मामला नाजुक था, दोनों परिवारों ने उन्हें काफी समझाने की कोशिश की, लेकिन दोनों शादी करने के अपने फैसले पर अड़े रहे.

आखिरकार मंगेश रणसिंग के परिवार वालों ने उस की जिद की वजह से अपनी सहमति दे दी. लेकिन रुक्मिणी के पिता को यह रिश्ता मंजूर नहीं था. फिर भी वह पत्नी के समझाने पर राजी हो गए. अलगअलग जाति के होने के कारण दोनों की शादी में उन का कोई नातेरिश्तेदार शामिल नहीं हुआ.

एक सादे समारोह में दोनों की शादी हो गई. शादी के कुछ दिनों तक तो सब ठीकठाक चलता रहा, लेकिन बाद में दोनों के रिश्तों में दरार आने लगी. दोनों के प्यार का बुखार उतरने लगा था. दोनों छोटीछोटी बातों को ले कर आपस में उलझ जाते थे. अंतत: नतीजा मारपीट तक पहुंच गया.

30 अप्रैल, 2019 को मंगेश रणसिंग ने किसी बात को ले कर रुक्मिणी को बुरी तरह पीट दिया था. रुक्मिणी ने इस की शिकायत मां निर्मला से कर दी, जिस की वजह से रुक्मिणी की मां ने उसे अपने घर बुला लिया. उस समय रुक्मिणी 2 महीने के पेट से थी. इस के बाद जब मंगेश रणसिंग रुक्मिणी को लाने के लिए उस के घर गया तो रुक्मिणी के परिवार वालों ने उसे आड़ेहाथों लिया. इतना ही नहीं, उन्होंने उसे धक्के मार कर घर से निकाल दिया.

रुक्मिणी के परिवार वालों के इस व्यवहार से मंगेश रणसिंग नाराज हो गया. उस ने इस अपमान के लिए रुक्मिणी के घर वालों को अंजाम भुगतने की धमकी दे डाली.

बदमाश प्रवृत्ति के मंगेश रणसिंग की इस धमकी से रुक्मिणी के परिवार वाले डर गए, जिस की वजह से वे रुक्मिणी को न तो घर में अकेला छोड़ते थे और न ही बाहर आनेजाने देते थे.  रुक्मिणी का परिवार सुबह काम पर जाता तो रुक्मिणी को उस के छोटे भाइयों और छोटी बहन के साथ घर के अंदर कर बाहर से दरवाजे पर ताला डाल देते थे, जिस से मंगेश उन की गैरमौजूदगी में वहां आ कर रुक्मिणी को परेशान न कर सके.

इस सब से मंगेश को रुक्मिणी और उस के परिवार वालों से और ज्यादा नफरत हो गई. उस की यही नफरत एक क्रूर फैसले में बदल गई. उस ने रुक्मिणी की हत्या कर पूरे परिवार को फंसाने की साजिश रच डाली.

घटना के दिन जब रुक्मिणी के परिवार वाले अपनेअपने काम पर निकल गए तो अपनी योजना के अनुसार मंगेश पहले पैट्रोल पंप पर जा कर इस बहाने से एक बोतल पैट्रोल खरीद लाया कि रास्ते में उस के दोस्त की मोटरसाइकिल बंद हो गई है. यही बात उस ने रास्ते में मिले अपने दोस्त सलमान से भी कही.

फिर वह रुक्मिणी के घर पहुंच गया. उस समय रुक्मिणी रसोईघर में अपने भाई और बहन के लिए खाना बनाने की तैयारी कर रही थी. घर के दरवाजे पर पहुंच कर मंगेश रणसिंग जोरजोर दरवाजा पीटते हुए रुक्मिणी का नाम ले कर चिल्लाने लगा. वह ताले की चाबी मांग रहा था.

दरवाजे पर आए मंगेश से न तो रुक्मिणी ने कोई बात की और न दरवाजे की चाबी दी. वह उस की तरफ कोई ध्यान न देते हुए खाना बनाने में लगी रही.

रुक्मिणी के इस व्यवहार से मंगेश रणसिंग का पारा और चढ़ गया. वह किसी तरह घर की दीवार फांद कर रुक्मिणी के पास पहुंच गया और उस से मारपीट करने लगा. बाद में उस ने अपने साथ लाई बोतल का सारा पैट्रोल  रुक्मिणी के ऊपर डाल कर उसे आग के हवाले कर दिया.

मंगेश की इस हरकत से रुक्मिणी के भाईबहन बुरी तरह डर गए थे. वे भाग कर रसोई के एक कोने में छिप गए. जब आग की लपटें भड़कीं तो रुक्मिणी दौड़ कर मंगेश से कुछ इस तरह लिपट गई कि मंगेश को उस के चंगुल से छूटना मुश्किल हो गया. इसीलिए वह भी रुक्मिणी के साथ 30 प्रतिशत जल गया.

इस के बावजूद भी मंगेश का शातिरपन कम नहीं हुआ. अस्पताल में उस ने रुक्मिणी के परिवार वालों के विरुद्ध बयान दे दिया. उस का कहना था कि उस की इस हालत के लिए उस के ससुराल वाले जिम्मेदार हैं.

उस की शादी लवमैरिज और अंतरजातीय हुई थी. यह बात रुक्मिणी के घर वालों को पसंद नहीं थी, इसलिए उन्होंने उसे घर बुला कर पहले उसे मारापीटा और जब रुक्मिणी उसे बचाने के लिए आई तो उन्होंने दोनों पर पैट्रोल डाल कर आग लगा दी.

अपमान और नफरत की आग में जलते मंगेश रणसिंग की योजना रुक्मिणी के परिवार वालों के प्रति काफी हद तक कामयाब हो गई थी. लेकिन रुक्मिणी के भाई और उस के दोस्त सलमान के बयान से मामला उलटा पड़ गया.

अब यह केस औनर किलिंग का न हो कर पति और पत्नी के कलह का था, जिस की जांच पुलिस ने गहराई से कर मंगेश रणसिंग को अपनी हिरासत में ले लिया.

उस से विस्तृत पूछताछ करने के बाद उस के विरुद्ध भादंवि की धारा 302, 307, 34 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. कानूनी प्रक्रिया पूरी करने के बाद रुक्मिणी के परिवार वालों को रिहा कर दिया गया. Crime Stories

Real Crime Story: इश्क में फिर बहा खून

Real Crime Story: पासपड़ोस में रहने के कारण दीपक और जावित्री को एकदूसरे से कब प्यार हो गया, पता ही नहीं चला. एक दिन जावित्री के पिता वीरपाल ने उन दोनों को ऐसी हालत में देखा कि वह अपने गुस्से को कंट्रोल नहीं कर सका और फिर…

जावित्री जैसे ही स्कूल जाने के लिए साइकिल से निकली, रास्ते में इंतजार कर रहे दीपक ने अपनी साइकिल उस के पीछे लगा दी. जावित्री ने दीपक को पीछे आते देखा तो उस ने साइकिल की गति और तेज कर दी. दीपक ने भी अपनी साइकिल की रफ्तार बढ़ाई और कुछ देर में जावित्री की साइकिल के आगे अपनी साइकिल इस तरह खड़ी कर दी कि अगर जावित्री ने पूरी ताकत से ब्रेक न लगाई होती तो उस की साइकिल से टकरा जाती. साइकिल संभालते हुए जावित्री खीझ कर बोली, ‘‘देख नहीं रहे हो मैं स्कूल जा रही हूं. एक तो वैसे ही देर हो गई है, ऊपर से तुम ने रास्ता रोक लिया. अभी किसी ने हम दोनों को इस तरह देख लिया तो बिना मतलब का बात का बतंगड़ बनने लगेगा.’’

‘‘जिसे जो कहना है, कहता रहे. मुझे किसी की परवाह नहीं है.’’ दीपक ने अपनी यह बात इस तरह अकड़ कर कही, जैसे सचमुच उसे किसी का कोई डर नहीं है.

जावित्री को स्कूल जाने के लिए देर हो रही थी. इसलिए वह बेचैन थी. उस ने दीपक को देखा, उस के बाद विनती के स्वर में बोली, ‘‘दीपक, मुझे सचमुच देर हो रही है, बिना मतलब स्कूल में झूठ बोलना पड़ेगा. अभी जाने दो, मैं तुम से बाद में मिल लूंगी, तब जो बात कहनी हो, कह देना’’

जावित्री की विनती पर दीपक नरम पड़ गया. साइकिल हटाते हुए उस ने जावित्री के सुंदर मुखड़े को देखते हुए कहा, ‘‘जावित्री, तुम मेरी आंखों में देखो, प्यार का सागर लहराता नजर आएगा. तुम्हें पता है, तुम्हारे प्यार में मैं सब कुछ भूल गया हूं. दिनरात सिर्फ तुम्हारी ही यादों में खोया रहता हूं.’’

‘‘वह सब ठीक है दीपक, लेकिन तुम्हें पता होना चाहिए कि हम एक ही गांव में रहते हैं. हमारे और तुम्हारे घरों के बीच ज्यादा दूरी भी नहीं है. अगर हम दोनों इसी तरह प्यारमोहब्बत की पींगे बढ़ाते रहे तो मोहल्ले वालों से यह बात छिपी नहीं रहेगी. तुम मेरे पापा को तो जानते ही हो, वह बातबात में गुस्सा हो जाते हैं. कही उन्हें हम दोनों के प्रेम की भनक लग गई तो मैं बदनाम हो जाऊंगी. उस के बाद मेरे पापा मेरी क्या गत बनाएंगे, तुम सोच भी नहीं सकते.’’

‘‘जावित्री, मैं तुम्हें सपने में भी बदनाम करने के बारे में नहीं सोच सकता. तुम मेरा प्यार हो और प्यार के लिए लोग न जाने क्याक्या करते हैं. एक तुम हो कि जरा सी बदनामी से डर रही हो. मैं तुम से मिलने और 2 बातें करने के लिए कितने तिकड़म भिड़ाता हूं. तब कहीं जा कर तुम से मुलाकात होती है. जबकि तुम बदनामी का बहाना कर के मुझ से पीछा छुड़ाना चाहती हो. मैं तुम्हें भला क्यों बदनाम होने दूंगा. तुम्हें मालूम होना चाहिए कि मैं ने तय कर लिया है कि मैं शादी तुम्हीं से करूंगा. तुम्हारे अलावा मेरी दुलहन कोई दूसरी नहीं हो सकती. तब बदनामी कैसी?’’

दीपक की बातों के जवाब मे लंबी सांस ले कर जावित्री बोली, ‘‘अच्छा अब बस करो. मुझे स्कूल जाना है. वैसे ही देर हो चुकी है. अब और देर मत करो.’’

कह कर जावित्री साइकिल पर चढ़ी और चल पड़ी तो दीपक ने पीछे से मुसकराते हुए कहा, ‘‘अभी तो प्यार की शुरुआत है, इसलिए मिलने के लिए थोड़ा समय निकाल लिया करो.’’

जावित्री बिना कुछ बोले चली गई. दीपक अकसर जावित्री के स्कूल जाने वाले रास्ते पर खड़ा हो कर उस का रास्ता रोकता और कभी प्रेम से तो कभी थोड़ा गुस्से से अपने प्रेम का मनुहार करता. उत्तर प्रदेश के महानगर बरेली के फतेहगंज पश्चिमी थाना कस्बा के मोहल्ला लोधीनगर में वीरपाल मौर्य रहता था. उस के पास खेती की थोड़ी जमीन थी, जिस पर खेती कर के वह अपने परिवार का भरणपोषण कर रहा था. परिवार में पत्नी कमला देवी और 4 बेटियां थीं. सभी अववाहित थीं. जावित्री सब से छोटी थी. वह अपनी अन्य बहनों से ज्यादा खुबसूरत और चंचल थी. घर में सब से छोटी होने की वजह से मांबाप भी उसे ज्यादा प्यार करते थे.

जावित्री उम्र के उस पायदान पर खड़ी थी, जब शरीर में अनेक बदलाव आते हैं और दिल में उमंग की लहरें हिचकोले लेने लगती हैं. लोग उसे गहरी नजरों से देखने लगे थे. वह उन नजरों को पहचानने भी लगी थी. लेकिन दीपक उन सब से अलग था, उस की नजरें हमेशा उसे प्यार से देखती थीं. उस की आंखों में उस के लिए अलग तरह की चाहत थी. दीपक भी कम स्मार्ट और खूबसूरत नहीं था. वह भिठौरा मोहल्ले में रहता था. जावित्री और उस के घर के बीच की दूरी दो, ढाई सौ मीटर रही होगी. दीपक के पिता कांताप्रसाद मौर्य उर्फ पप्पू मेहनतमजदूरी करते थे. घर में पिता के अलावा मां रामवती और 2 बड़े भाई थे.

वीरपाल और कांताप्रसाद का ही नहीं, पूरे परिवार का एकदूसरे के यहां आनाजाना था. इसी आनेजाने में जवान हो रही जावित्री पर दीपक की नजर पड़ी तो बरबस वह उस की ओर खिंचने लगा. घर में अन्य लोगों के होने की वजह से दीपक जावित्री से मन की बात कर नहीं पाता था. इसलिए वह इस फिराक में रहने लगा कि जावित्री अकेले में मिल जाए. संयोग से एक दिन ऐसा ही मौका उस के हाथ लग गया. जावित्री के घर वाले किसी समारोह में शामिल होने के लिए गए थे. जावित्री घर पर ही रह गई थी. इस बात का पता चलते ही किसी बहाने से दीपक उस के घर पहुंच गया. दरवाजे पर दस्तक दी तो जावित्री ने दरवाजा खोला. दीपक को देखते ही वह बोली, ‘‘सभी लोग शादी में गए हैं, घर में कोई नहीं है.’’

जावित्री की बात खत्म होते ही दीपक ने कहा, ‘‘जावित्री, मैं घर वालों से नहीं, सिर्फ तुम से मिलने आया हूं. चाचा से मिलना होता तो बाहर ही मिल लेता.’’

‘‘ठीक है, अंदर आ जाओ और बताओ मुझ से क्या काम है?’’ बगल होते हुए ही जावित्री बोली.

दीपक अंदर आ कर कमरे में खड़ा हो गया. तभी जावित्री ने कहा, ‘‘अब बताओ, मुझ से क्या काम है?’’

दीपक जावित्री को घूरते हुए बोला, ‘‘दरअसल, मैं बहुत दिनों से तुम से अकेले में मिलना चाहता था. क्योंकि मैं तुम्हें चाहने लगा हूं. मुझे तुम से प्यार हो गया है. दिल नहीं माना तो तुम से मिलने चला आया.’’

दीपक आगे कुछ और कहता, जावित्री को हंसी आ गई. उस ने हंसते हुए ही कहा, ‘‘आतेजाते तुम मुझे जिस तरह से देखते थे, उसी से मुझे तुम्हारे दिल की बात का पता चल गया था.’’

‘‘इस का मतलब तुम भी मुझे पंसद करती हो. तुम्हारी बातों से तो यही लगता है कि जो मेरे दिल है, वही तुम्हारे दिल में भी है.’’

दीपक कुछ और कहता, जावित्री झट से बोली, ‘‘मम्मीपापा के आने का समय हो रहा है. वह कभी भी आ सकते हैं, इसलिए तुम अभी यहां से चले जाओ. मुझे जैसे ही मौका मिलेगा, मैं तुम से बात कर लूंगी.’’

जावित्री के यह कहने के बावजूद भी दीपक वहीं खड़ा रहा और उस की खूबसूरती का बखान करता रहा. जावित्री को इस बात का डर था कि कहीं उस के मम्मीपापा न आ जाएं, इसलिए उस ने दीपक का हाथ पकड़ कर उसे  बाहर कर के अंदर से दरवाजा बंद कर लिया. लेकिन जातेजाते दीपक ने जावित्री को याद करा दिया कि उस ने बाहर मिलने का वादा किया है. जावित्री वादे को नहीं भूली और अगले दिन स्कूल जाते समय रास्ते में हमेशा की तरह दीपक दिखाई दिया तो इशारे से समझा दिया कि स्कूल से लौटते समय वह उस से मिलेगी. दीपक समय से पहले ही जावित्री के लौटने वाले रास्ते पर खड़ा हो कर उस का बेसब्री से इंतजार करने लगा.

जावित्री स्कूल से लौटी तो दीपक से उस की मुलाकात हुई. दीपक के प्यार को स्वीकार करते हुए उस ने कहा, ‘‘हमें इस बात का खयाल रखना होगा कि हमारे प्यार को किसी की नजर न लगे. इस के लिए हमें सावधान रहना होगा. दीपक जावित्री के हाथों को अपने हाथों में ले कर बोला, ‘‘तुम भी कैसी बातें करती हो, कौन प्रेमी चाहेगा कि उस की प्रेमिका की रुसवाई हो. तुम मुझ पर पूरा भरोसा रखो, मैं कोई भी ऐसा काम नहीं करूंगा, जिस से तुम्हारा सिर नीचा हो.’’

समय बीतता रहा, लोगों की नजरों से बच कर दोनों मिलते रहे. जल्दी ही दोनों का प्यार इतना गहरा हो गया कि वे एकदूसरे के लिए कुछ भी कर सकते थे, यहां तक कि जान भी दे सकते थे, पर एकदूसरे से कतई अलग नहीं हो सकते थे. लेकिन उन के यह प्रेमिल संबंध ज्यादा दिनों तक छिपे नहीं रह सके. दोनों के ही घर वालों तक उन के संबंधों की बात पहुंच गई. रिश्तेदारों को पता चला तो वे भी नाराज हो उठे. उस दिन जिंदगी में पहली बार वीरपाल ने बेटी को मारने के लिए हाथ उठाया. उस ने जावित्री की खूब पिटाई की. कमला ने किसी तरह पति को शांत कर के जावित्री को सामने से हटाया.

इस के बाद वीरपाल सीधे कांताप्रसाद के घर गया और उसे हिदायत दी कि वह दीपक को रोके वरना ठीक नहीं होगा. दीपक मिला तो वीरपाल ने उसे भी समझाया, लेकिन वह नहीं माना. इस के बाद वीरपाल और उस का भाई राजेंद्र तनाव में रहने लगे. उन्हें चिंता थी कि जावित्री और दीपक के प्रेमसंबधों की बात खुल गई तो समाज में उन की बड़ी बदनामी होगी. लेकिन ऐसी बातें कहां छिपती हैं. घर वालों ने दीपक पर अंकुश लगाने की कोशिश की तो पूरे समाज में बात फैल गई. एक दिन वीरपाल के चाचा प्रेमशंकर दीपक को रोक कर समझाने लगे तो वह उस से भिड़ गया. इस पर प्रेमशंकर ने उसे थप्पड़ मार दिया. उस समय तो दीपक खून का घूंट पी कर चला गया. लेकिन अगले दिन जब प्रेमशंकर घर के बाहर बैठे थे तो दीपक अपने दोस्तों के साथ वहां पहुंचा और बेल्टों से उन्हें जम कर पीटा. इस तरह उस ने अपने अपमान का बदला ले लिया.

प्रेमशंकर ने थाना फतेहगंज पश्चिमी में दीपक और उस के दोस्तों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए तहरीर दी, लेकिन पुलिस ने कोई काररवाई नहीं की. प्रेमशंकर के साथ घटी घटना की जानकारी वीरपाल को हुई तो उस ने कुछ दिनों बाद दीपक के दोस्तों से मारपीट की. अब तक जावित्री और दीपक का मिलना आम हो गया था. इस बात से वीरपाल बेहद खफा रहता था. ढाई महीने पहले उस ने वार्ड मेंबर को बीच में डाल कर एक पंचायत बुलाई. पंचायत ने दीपक को जावित्री से मिलने से मना किया तो उस ने भरी पंचायत में कह दिया कि यह संभव नहीं है. वह जावित्री से हरगिज दूर नहीं रह सकता. इस पर वीरपाल भड़क उठा और पंचायत के सामने ही दीपक को लातघूंसों से मारा.

इस के बाद दीपक दिल्ली चला गया. मार्च में होली पर घर लौटा तो 10 दिनों के लिए कांवर लेने हरिद्वार चला गया. वहां से वह 15 मार्च को लौटा. उस का एक दोस्त था सोनू, जो ट्रैक्टर मैकेनिक था और वीरपाल के मकान में किराए पर रहता था. 24 मार्च को उस की बेटी का नामकरण संस्कार था, जिस में दीपक को भी निमंत्रण दिया गया था. 24 मार्च की रात दीपक दावत में पहुंचा, लेकिन वहां से वह लौट कर नहीं आया. दावत में जावित्री भी थी, वह भी गायब हो गई थी. अगले दिन दोनों के घर वालों ने उन की तलाश शुरू की. जब वे नहीं मिले तो दोनों के घर वाले थाना फतेहगंज पश्चिम पहुंचे. वीरपाल ने दीपक के खिलाफ जावित्री के अपहरण की रिपोर्ट लिखवाई तो कांताप्रसाद ने वीरपाल, राजेंद्र, प्रेमशंकर और कमला देवी के खिलाफ दीपक के अपहरण का मुकदमा दर्ज करा दिया. एकदूसरे के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा कर वे अपनेअपने घर लौट आए.

6 अप्रैल को भिठौरा के एक तालाब में एक बोरा तैरता दिखाई दिया, जिस में से इंसानी पैर बाहर निकले थे. मोहल्ले वालों ने इस बात की जानकारी थाना फतेहगंज पश्चिमी पुलिस को दी. थानाप्रभारी अखिलेश सिंह यादव छुट्टी पर थे, इसलिए थाने का प्रभार देख रहे एसआई अवधेश कुमार पुलिस बल के साथ उस तालाब के किनारे पहुंचे. उन्होंने बोरे को तालाब से निकलवाया तो उस में से एक लड़की की लाश बरामद हुई. लोगों ने उस लाश की शिनाख्त जावित्री के रूप में की. लाश के साथ बोरे से 8 ईंटें भी बरामद हुईं. अनुमान लगाया गया कि लाश को पानी में डुबोने के लिए लाश के साथ बोरे में ईंटें भी रखी गई थीं. लाश सड़ गई तो बोरा तालाब की सतह पर आ गया. जावित्री के घर वाले भी वहां मौजूद थे.

पुलिस ने उन से पूछताछ की तो वे जावित्री की हत्या का आरोप दीपक पर लगाने लगे. उसी बीच एसआई अवधेश कुमार के इशारे पर सिपाहियों ने वीरपाल के मकान का मुआयना किया तो वहां से पुलिस को जो सुराग मिले, वे कुछ और ही कहानी कह रहे थे. एक तो जिस तालाब में जावित्री की लाश मिली थी, वह वीरपाल के मकान के ठीक पीछे था. इस के अलावा जिस तरह के बोरे में जावित्री की लाश मिली थी, उसी तरह के धान भरे हुए बोरे वीरपाल के घर में रखे थे. बोरे से ईंटें बरामद हुई थीं, उसी मार्का की ईंटें वीरपाल के घर में लगी थीं. लेकिन पुलिस ने उस समय वीरपाल से कुछ नहीं कहा, उन्होंने घटनास्थल की अन्य काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

इसी बीच घटना की जानकारी मिलने पर थानाप्रभारी अखिलेश यादव थाने आ गए. उन्होंने पूरी घटना पर गंभीरता से विचार किया. इस के बाद पुलिस ने वीरपाल और उस के भाई राजेंद्र को हिरासत में ले लिया और पूछताछ शुरू कर दी. वीरपाल का कहना था कि दीपक ने उस की बेटी की हत्या की है. लेकिन जब सुबूतों का हवाला देते हुए उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने जावित्री की हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया. हत्या में उस का भाई राजेंद्र और लाश ठिकाने लगाने में उस का साढ़ू राजाराम और साथी टेनी उर्फ अरविंद ने साथ दिया था. राजाराम और टेनी भिठौरा में ही रहते थे. पुलिस ने उसी दिन टेनी को भी गिरफ्तार कर लिया. राजाराम घर से फरार था.

उस ने थानाप्रभारी को बताया कि दीपक खुद गायब नहीं हुआ, बल्कि उसे गायब कर के उस की हत्या कर दी गई है. जो बाप अपनी बेटी की हत्या कर सकता है, उस के लिए दीपक का कत्ल करना कोई बड़ी बात नहीं है. इस के बाद पुलिस ने 8 अप्रैल को सभी से अलगअलग पूछताछ की तो उन्होंने दीपक और जावित्री की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली—

24 मार्च को दीपक सोनू के यहां दावत में पहुंचा तो वहां जावित्री से उस की मुलाकात हो गई. दीपक ने उसे इशारे से पीछे आने को कहा. जावित्री सब की नजरें बचा कर उस के पीछेपीछे चली गई. उधर वीरपाल को जावित्री नहीं दिखी तो उस ने दीपक के बारे में पता किया. वह भी वहां नहीं था. वह समझ गया कि दीपक उस की बेटी को अपने साथ कहीं ले गया है. उस ने वहां मौजूद अपने भाई राजेंद्र को यह बात बताई और उसे साथ ले कर उस की खोज में निकल पड़ा. कुछ ही दूरी पर उन्हें एक खंडहर में दोनों आपत्तिजनक स्थिति में मिल गए. उन्हें उस स्थिति में देख कर उन का खून खौल उठा. दोनों भाइयों ने दीपक को पकड़ लिया और उस की पिटाई करने लगे. जावित्री घर की ओर भागी कि वह लोगों को दीपक को बचाने के लिए बुला लाए. वीरपाल और राजेंद्र ने दीपक को पीटपीट कर अधमरा कर दिया.

इस के बाद ईंटों से उस का सिर और चेहरा कुचल कर मार डाला. तभी जावित्री लौट कर आ गई. उस ने दीपक को मरा पाया तो वह बगावत पर उतर आई. उस ने कहा कि वह सब कोबता देगी कि दीपक की हत्या उन्होंने की है. वह उन्हें सजा दिलवा कर रहेगी. इस पर दोनों भाइयों ने जावित्री को पकड़ लिया और बेल्ट से उस का गला कस कर उसे भी मार डाला. रात 12 बजे वीरपाल ने मोहल्ले में ही रहने वाले साढू राजाराम और उस के साथ काम करने वाले टेनी को फोन कर के बुलाया. दोनों के आने पर उस ने उन्हें पूरी बात बता कर मदद मांगी. इस के बाद वह घर गया और धान के 2 बोरे ले आया. एक बोरे में उस ने जावित्री की लाश भरी और दूसरे में दीपक की.

जावित्री की लाश वाला बोरा वीरपाल, राजाराम और टेनी घर ले गए और उस में 8 ईंटें डाल कर बोरे का मुंह बंद करके घर के पीछे वाले तालाब में फेंक दिया. वजन की वजह से बोरा तलहटी में बैठ गया. इस के बाद टेनी अपने घर चला गया. राजाराम वहां से अपने छोटे भाई के घर गया और मोटरसाइकिल ले आया. राजाराम और राजेंद दीपक के लाश वाले बोरे को ले कर मोटरसाइकिल से नेशनल हाईवे पर मीरगंज के पहले भखड़ा नदी के पुल पर ले गए और ऊपर से ही बोरे को नीचे फेंक दिया. नदी सूखी थी, इसलिए लाश जमीन पर जा गिरी. वे घर लौट आए और घर से फावड़ा ले कर फिर वहां पहुंचे. नदी में बने टापू पर करीब तीन फुट गहरा गड्ढा खोद कर उस में दीपक की लाश वाला बोरा गाड़ दिया और घर लौट आए.

वीरपाल ने तो अपने हिसाब से सब कुछ बड़े अच्छे तरीके से किया था. लेकिन बेटी की लाश ने पानी के ऊपर आ कर उस की चुगली कर दी तो पुलिस के हाथ उस तक पहुंच ही गए. उस की निशानदेही पर पुलिस ने भखड़ा नदी में बने मिट्टी के टापू से दीपक की लाश बरामद कर ली और पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. पुलिस ने दीपक के अपहरण के मुकदमे में हत्या और साक्ष्य छिपाने की धाराएं जोड़ कर सभी अभियुक्तों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त ईंटें, बेल्ट और फावड़ा बरामद कर लिया. 9 अप्रैल को पुलिस ने वीरपाल, राजेंद्र और टेनी को सीजेएम की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. 10 अप्रैल को पुलिस ने राजाराम को भी गिरफ्तार कर कर के जेल भेज दिया. Real Crime Story

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Gorakhpur Crime: जानवर सी सोच वाला आदमी

Gorakhpur Crime: डा. पूनम और डा. धन्नी कुमार जो भी कर रहे थे, उदयसेन के भले के लिए कर रहे थे, लेकिन भाई और भाभी की अच्छाई भी उसे बुरी लगी. इस के बाद खुन्नस में उस ने जो किया, अब शायद उस की पूरी जिंदगी जेल में ही बीतेगी  गोरखपुर की अदालत संख्या-3 में अपर सत्र न्यायाधीश श्री पुर्णेंदु कुमार श्रीवास्तव कीअदालत में 4 हत्याओं का आरोपी उदयसेन गुप्ता फैसला सुनने के लिए कठघरे में खड़ा हुआ तो उस के चेहरे पर जरा भी शिकन नहीं थी. सरकारी वकील जयनाथ यादव जहां सामने कठघरे में खड़े मासूम से दिखने वाले उदयसेन को शातिर अपराधी बता कर अधिक से अधिक सजा देने की गुहार लगा रहे थे, वहीं बचाव पक्ष के वकील रामकृपाल सिंह उसे निर्दोष बताते हुए साजिशन फंसाए जाने की बात कर रहे थे.

इस मामले में क्या फैसला सुनाया गया, यह जानने से पहले आइए हम यह जान लें कि यह उदयसेन गुप्ता कौन है और उस ने 4 निर्दोष लोगों की हत्या क्यों की? हत्या जैसा जघन्य अपराध करने के बावजूद उसे अपने किए पर मलाल क्यों नहीं था? दिल दहला देने वाली इस कहानी की बुनियाद 12 साल पहले पड़ी थी. उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर की कोतवाली शाहपुर के बशारतपुर स्थित मोहल्ला रामजानकीनगर में चंद्रायन प्रसाद गुप्ता परिवार के साथ रहते थे. वह विद्युत विभाग में अधिशासी अभियंता थे. उन के परिवार में पत्नी शुभावती के अलावा 4 बच्चे, जिन में बेटी पूनम, बेटा संतोष, बेटी सुमन और बेटा अभय कुमार गुप्ता उर्फ चिंटु थे.

चंद्रायन प्रसाद के बच्चे समझदार थे, सभी पढ़ने में भी ठीक थे. पूनम पढ़लिख कर डाक्टर बन गई तो उस से छोटा संतोष बीटेक की पढ़ाई करने दिल्ली चला गया. पूनम के डाक्टर बनने के बाद उन्होंने जिला कुशीनगर के फाजिलनगर के रहने वाले डा. धन्नी कुमार गुप्ता के साथ उस का विवाह कर दिया. इस के बाद घर में मात्र 4 लोग ही रह गए. उस समय सुमन गोरखपुर विश्वविद्यालय से एमएससी कर रही थी तो अभय जुबली इंटर कालेज में बारहवीं में पढ़ रहा था. परिवार के दिन हंसीखुशी से कट रहे थे. 28 दिसंबर, 2006 को पूनम मांबाप का हालचाल जानने के लिए सुबह से ही फोन कर रही थी, लेकिन न मोबाइल फोन उठ रहा था और न ही लैंडलाइन. धीरेधीरे 10 बज गए और फोन नहीं उठा तो पूनम को चिंता हुई.

उस ने दिल्ली में बीटेक कर रहे छोटे भाई संतोष को फोन कर के पूरी बता कर कहा कि वह फोन कर के पता करे कि घर में कोई फोन क्यों नहीं उठा रहा है?

‘‘ठीक है, अभी पता कर के बताता हूं कि क्या बात है?’’ संतोष ने कहा और पिता के मोबाइल तथा घर के नंबर पर फोन किया. जब उस का भी फोन किसी ने रिसीव नहीं किया तो उस ने मोहल्ले के अपने परिचित प्रशांत कुमार मिश्रा को फोन कर के अपने घर भेजा कि वह पता कर के बताए कि घर वाले फोन क्यों नहीं उठा रहे हैं. संतोष के कहने पर प्रशांत अपने साथी सोनू के साथ उस के घर पहुंचा और बाहर से जोरजोर से आवाज लगाने लगा. उस की आवाज सुन कर आसपड़ोस के लोग भी इकट्ठा हो गए. कई बार आवाज लगाने पर भी अंदर से कोई आवाज नहीं आई तो दोनों चारदीवारी फांद कर अंदर जा पहुंचे. बाहर बरामदे से कमरे के अंदर उन्हें जो भयानक दृश्य दिखाई दिया, उस से वे कांप उठे. मकान के अंदर चंद्रायन प्रसाद गुप्ता, उन की पत्नी शुभावती, बेटी सुमन और बेटा अभय खून से लथपथ पड़े थे.

प्रशांत ने घटना की सूचना मोबाइल फोन से संतोष को दी. घर के सभी लोगों की हत्या की बात सुन कर वह सन्न रह गया. उस ने चाचा रवींद्र प्रसाद गुप्ता को फोन किया. वह चौरीचौरा के रामपुर बुजुर्ग गांव में रहते थे. पड़ोसियों ने घटना की सूचना कोतवाली शाहपुर पुलिस को दी तो तत्कालीन कोतवाली प्रभारी कमलेश्वर सिंह पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्हीं की सूचना पर एसपी (सिटी) रामचंद्र यादव, सीओ हरिनाथ यादव, डौग स्क्वायड और फिंगर एक्सपर्ट की टीमों के साथ पहुंच गए. जांच में पुलिस ने पाया कि शुभावती और चंद्रायन प्रसाद की सांसे चल रही हैं, जबकि सुमन और अभय की मौत हो चुकी है. पुलिस ने दोनों को अस्पताल भिजवा दिया.

पुलिस ने घटनास्थल और लाशों का बारीकी से निरीक्षण कर के सारे साक्ष्य जुटाने के बाद दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. घटनास्थल की स्थिति से साफ था कि हत्यारों का उद्देश्य सिर्फ हत्या करना था. क्योंकि लूटपाट के लक्षण नहीं दिखाई दे रहे थे. अगर थोड़ीबहुत लूटपाट हुई भी थी तो कोई बताने वाला नहीं था. चंद्रायन प्रसाद का मोबाइल फोन गायब था. घटनास्थल की सारी काररवाई निपटाने के बाद चंद्रायन प्रसाद के भाई रवींद्र प्रसाद की ओर से हत्याओं का मुकदमा अज्ञात के खिलाफ दर्ज कर लिया गया. कोतवाली प्रभारी कमलेश्वर सिंह ने जांच शुरू की. उम्मीद थी कि अगर दोनों में से कोई भी बच गया तो हत्यारों तक पहुंचने में आसानी रहेगी. लेकिन शुभावती ने अगले ही दिन दम तोड़ दिया.

चंद्रायन प्रसाद भी इस हालत में नहीं थे कि वह कुछ बता सकते. 6 महीने बाद नोएडा के एक अस्पताल में चंद्रायन प्रसाद ने भी बेहोशी की हालत में ही दम तोड़ दिया था. इस हत्याकांड के खुलासे के लिए पुलिस की 2 टीमें गठित की गई थीं. जांच में पता चला कि मृतक सुमन को उस की सगी मौसी का बेटा प्यार करता था और वह उस से विवाह करना चाहता था. जबकि सुमन और उस के घर वालों को यह रिश्ता मंजूर नहीं था. डेयरी कालोनी में रहने वाली मृतका सुमन की मौसी के बेटे को पुलिस ने हिरासत में ले लिया. कई दिनों तक पुलिस उस से पूछताछ करती रही, लेकिन पुलिस को उस से काम की कोई बात पता नहीं चली. पुलिस को जब लगा कि वह निर्दोष है तो उसे हिदायत दे कर छोड़ दिया गया.

घर वालों से पुलिस को कोई उम्मीद नहीं थी. यह हत्याकांड पुलिस के लिए चुनौती बना हुआ था. पुलिस के लिए उम्मीद की किरण चंद्रायन प्रसाद गुप्ता का मोबाइल फोन था. पुलिस उसी के चालू होने की राह देख रही थी. आखिर 19 जनवरी को वह मोबाइल चालू हो गया. पुलिस को सर्विलांस के माध्यम से पता चला कि उस की लोकेशन कुशीनगर के सुकरौली बाजार है. पुलिस ने वहां जा कर सत्यप्रकाश गुप्ता को पकड़ लिया. सत्यप्रकाश से पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि यह मोबाइल फोन उस के साले उदयसेन गुप्ता ने उसे दिया था. इस के बाद फाजिलनगर से उदयसेन गुप्ता को हिरासत में ले लिया गया. पुलिस द्वारा हिरासत में लिए जाते ही उस ने कहा, ‘‘आप लोग काफी दिनों बाद सही आदमी तक पहुंचे हैं. मैं ने ही वे हत्याएं की थीं.’’

उदयसेन गुप्ता की बात सुन कर पुलिस दंग रह गई. पुलिस उसे गोरखपुर ले आई. थाने में की गई पूछताछ में उस ने उन हत्याओं के पीछे की जो वजह बताई, उस से साफ हो गया कि उस ने मात्र खुन्नस की वजह से वे हत्याएं की थीं. उस के बताए अनुसार हत्या के पीछे की कहानी कुछ इस प्रकार थी. उत्तर प्रदेश के जिला कुशीनगर के फाजिलनगर निवासी चांदमूरत गुप्ता के 3 बेटों में उदयसेन सब से बड़ा था. चांदमूरत काफी रसूख वाले थे. वह अकूत धनसंपदा के मालिक भी थे. उदयसेन शुरू से ही उग्र स्वभाव का था. वह गोरखपुर के मोहद्दीपुर में किराए का कमरा ले कर अकेला ही रहता था और पंडित दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय गोरखपुर से एमकौम की पढ़ाई कर रहा था.

चंद्रायन प्रसाद गुप्ता की बड़ी बेटी पूनम की शादी इसी उदयसेन गुप्ता के बड़े पिता के बेटे डा. धन्नी कुमार गुप्ता से हुई थी. उदयसेन के पिता 5 भाई थे. पांचों भाइयों का परिवार एक साथ एक में ही रहता था. परिवार में डा. धन्नी कुमार के पिता का काफी मानसम्मान था. उन की मर्जी के बिना कोई काम नहीं होता था. उदयसेन भाभी पूनम का काफी सम्मान करता था, इसलिए वह भी उसे बहुत मानती थीं. पैसे वाले बाप का बेटा होने की वजह से उदयसेन काफी बिगड़ा हुआ था. डा. धन्नी कुमार जब भी गोरखपुर आए, उदयसेन को घर से लाए रुपयों से अपने 4 दोस्तों के साथ मौजमस्ती करते देखा. इस के बाद उन्होंने इस बात की शिकायत अपने चाचा से कर दी. जब ऐसा कई बार हुआ तो उदयसेन को भाई से नफरत होने लगी.

भाई से चिढ़े उदयसेन ने एक दिन भाभी पूनम से कहा कि पापा बंटवारे के लिए कह रहे थे, लेकिन वह बड़े पापा से कहने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि वह अपने अन्य भाइयों से डरते हैं कि कहीं उन के परिवार की हत्या कर के उन की संपत्ति न हड़प लें. पूनम ने यह बात डा. धन्नी कुमार को बताई तो क्षुब्ध हो कर उन्होंने अपने पापा से बात की. तब उन्होंने चांदमूरत को बुला कर उन से बात की. बड़े भाई की बात सुन कर चांदमूरत को जैसे काठ मार गया, क्योंकि उन्होंने इस तरह की कोई बात कही ही नहीं थी. कहने की छोड़ो, इस तरह की बात उन्होंने सोची ही नहीं थी. बेटे की इस बेहूदगी से उन का सिर झुक गया था.

इस के लिए उन्होंने पूरे परिवार के सामने उदयसेन को जलील ही नहीं किया, बल्कि जम कर पिटाई भी की. इस के बाद उस से परिवार वालों से माफी भी मंगवाई. मरता क्या न करता, उदयसेन ने सब से माफी मांगी. लेकिन इस सब से उस ने खुद को काफी अपमानित महसूस किया. उदयसेन गोरखपुर आ गया. उस के साथ जो हुआ था, इस सब के लिए वह डा. धन्नी कुमार और डा. पूनम को दोषी मान रहा था. इसलिए उस ने उन से अपने अपमान का बदला लेने का मन बना लिया. वह उन दोनों की हत्या कर देना चाहता था. उस ने दोनों की हत्या की कई बार कोशिश भी की, लेकिन अपने इस खतरनाक मंसूबे में कामयाब नहीं हुआ.

भैया और भाभी की हत्या करने में असफल होने के बाद उस ने दोस्तों से मदद मांगी. तब उस के दोस्तों ने उसे समझाया कि यह सब जो भी हुआ है, वह पूनम भाभी की वजह से हुआ है, इसलिए सजा उसे ही मिलनी चाहिए. अगर तुम ने उस की हत्या कर दी तो उसे सजा का पता कैसे चलेगा, इसलिए तुम उस के किसी ऐसे को मार दो कि वह जब तक जिंदा रहे, उस की याद में तड़पती रहे. शातिर उदयसेन को पूनम के मायके वालों की याद आ गई. उस ने उस के मायके वालों को निशाने पर लिया और तय कर लिया कि जो भी करेगा, अकेले करेगा. उसे पता था कि पूनम के मायके में मातापिता और एक बहन तथा एक भाई रहता है. लेकिन कभी वह उन के यहां गया नहीं था. योजना बनाने के बाद पहली बार वह 27 दिसंबर, 2006 की शाम उन के यहां पहुंचा.

दामाद का चचेरा भाई था, इसलिए उसे काफी सम्मान दिया गया. बढि़या खाना बना कर खिलाया गया. खाने के बाद बैठक के बैड को खिसका कर एक फोल्डिंग बिछाई गई. फोल्डिंग पर अभय लेटा तो बैड पर उदयसेन सोया. चंद्रायन प्रसाद पत्नी के साथ अपने कमरे में चले गए तो सुमन अपने कमरे में जा कर सो गई. जब सभी सो गए तो उदयसेन उठा और चंद्रायन प्रसाद  के कमरे की सिटकनी बाहर से बंद कर दी और साथ लाए पेचकस से अभय की हत्या कर दी. नफरत की आग में जल रहे उदयसेन ने अभय की हत्या तो कर दी, पर बाद में उसे खयाल आया कि अब उस की पूरी जिंदगी जेल में कटेगी, क्योंकि पूरे घर को पता है कि इस कमरे में अभय के साथ वही सोया था. खुद को जेल की सलाखों के पीछे जाने से बचाने के लिए उस ने सभी को खत्म करने का मन बना लिया.

इस के बाद उस ने चंद्रायन प्रसाद के कमरे के बाहर की सिटकनी खोली तो खट की आवाज सुन कर अंदर से उन्होंने पूछा, ‘‘कौन है?’’

जवाब में उदयसेन ने कहा, ‘‘बाबूजी, मैं उदयसेन, जरा देखिए तो अभय को न जाने क्या हो गया है?’’

बेटे के बारे में सुन कर चंद्रायन प्रसाद उस के कमरे में पहुंचे और झुक कर देखने लगे, तभी उदयसेन ने पेचकस से उन पर भी हमला कर दिया. वह जोर से चीखे तो उन की इस चीख से शुभावती और सुमन की आंखें खुल गईं. दोनों भाग कर कमरे में आईं तो देखा चंद्रायन प्रसाद फर्श पर पड़े तड़प रहे थे और उदयसेन उन की पीठ पर सवार उन की कनपटी पर पेचकस से वार कर रहा था. मांबेटी के होश उड़ गए. चंद्रायन प्रसाद को बचाने के लिए मांबेटी उदयसेन पर टूट पड़ीं. सुमन उस के बाल पकड़ कर खींचने लगी तो शुभावती कमीज पकड़ कर खींचने लगीं. इस तरह तीनों गुत्थमगुत्था हो गए. उदयसेन को लगा कि उस का बचना मुश्किल है तो उस ने मांबेटी पर भी हमला बोल दिया.

मांबेटी निहत्थी थीं और उस के पास पेचकश था. उसी से उस ने मांबेटी को भी बुरी तरह से घायल कर दिया. वे दोनों भी घायल हो कर फर्श पर गिर पड़ीं तो उस ने एकएक के पास जा कर देखा कि कौन जीवित है और कौन मर गया? चंद्रायन प्रसाद, सुभावती और सुमन की सांसें चल रही थीं. उदयसेन अपने खिलाफ कोई भी सुबूत नहीं छोड़ना चाहता था. उस ने पैंट की जेब से ब्लेड निकाली और चारों का गला काटने की कोशिश की. जब उसे लगा कि चारों मर गए हैं तो उस ने बाथरूम में नहाया, क्योंकि उस के कपड़ों में ही नहीं, शरीर में भी खून लग गया था.

अपने कपड़े उस ने पौलीथिन में रख लिए और अभय के कपड़े पहन कर चारदीवारी फांद कर बाहर आ गया. चलते समय उस ने चंद्रायन प्रसाद का मोबाइल फोन और अलमारी में रखे कुछ रुपए और गहने निकाल कर पौलीथिन में रख लिए थे. रात उस ने रेलवे स्टेशन पर गुजारी. स्टेशन पर जाते हुए उस ने गहने निकाल कर कपड़ों की पोटली महाराजगंज की ओर जा रहे एक ट्रक पर फेंक दी थी. मोबाइल फोन का सिम निकाल कर उस ने रास्ते में फेंक दिया था. रात स्टेशन पर बिता कर सुबह 7 बजे वह मोहद्दीपुर स्थित अपने कमरे पर आ गया. सुबह अखबारों से पता चला कि चंद्रायन प्रसाद बच गए हैं तो उसे जेल जाने का डर सताने लगा. उस ने अस्पताल जा कर उन्हें मारने की कोशिश की, लेकिन पुलिस सुरक्षा सख्त होने की वजह से वह उन तक पहुंच नहीं सका.

उदयसेन गुप्ता ने अपना अपराध स्वीकार कर ही लिया था. पुलिस ने आरोप पत्र तैयार कर के अदालत में दाखिल कर दिया. 9 सालों तक यह मुकदमा चला. पुलिस ने उस के खिलाफ ठोस सबूत पेश किए. उसी का नतीजा था कि उदयसेन को 4 हत्याओं का दोषी ठहराते हुए 30 मार्च, 2015 को आजीवन कारावास के साथ 1 लाख रुपए जुर्माना की सजा सुनाई गई. कथा लिखे जाने तक अभियुक्त उदयसेन जेल में बंद था. उस के वकील रामकृपाल सिंह उस की जमानत के लिए हाइकोर्ट जाने की तैयारी कर रहे थे. Gorakhpur Crime

कथा अदालत के फैसले पर आधारित.

Hindi Crime Stories: एक थी प्रिया

Hindi Crime Stories: डा. प्रिया की शादी हुए 5 साल हो गए थे, लेकिन उन के और डा. कमल के संबंध पतिपत्नी की तरह नहीं बन पाए थे. आखिर इस की वजह क्या थी, आगे इस का परिणाम क्या हुआ?  दिल्ली के थाना नबी करीम पुलिस की जीप 18 अप्रैल की रात करीब 2 बजे पहाड़गंज स्थित होटल प्रेसीडेंसी पहुंची तो मैनेजर बाहर ही मिल गया. थानाप्रभारी जीप से जैसे ही उतरे, मैनेजर ने उन के पास आ कर कहा, ‘‘इंस्पेक्टर साहब, हमारे होटल के कमरा नंबर 302 में ठहरी डा. प्रिया वेदी  के कमरे में कोई हलचल नहीं हो रही है. हमें डर लग रहा है कि उस में कोई अनहोनी तो नहीं हो गई?’’

‘‘डा. प्रिया वेदी कौन हैं, होटल में कब से ठहरी हैं?’’ थानाप्रभारी ने पूछा, ‘‘वह अकेली ही थीं या उन के साथ कोई और भी था?’’

‘‘सर, आज ही दिन के साढ़े बारह बजे के आसपास वह अकेली ही आई थीं. सामान के नाम पर उन के पास एक ट्रौली बैग था. पहचान पत्र के रूप में उन्होंने राजस्थान ट्रांसपोर्ट अथौरिटी की ओर से जारी किया गया ड्राइविंग लाइसेंस दिया था.’’

‘‘वह जब से आईं, बाहर बिलकुल नहीं निकलीं?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘कमरे में जाने के बाद से उन्होंने न तो रूम अटेंडेंट को बुलाया है और न ही कमरे से बाहर निकली हैं. सर, जब वह यहां आई थीं तो कुछ तनाव में लग रही थीं. रिसैप्शन पर ही मैं ने उन्हें ठंडा पानी मंगा कर पिलाया था, ताकि वह रिलैक्स महसूस करें. मैं ने उन से पूछा भी था, पर उन्होंने कुछ बताया नहीं था. वैसे भी किसी से उस की व्यक्तिगत बातों के बारे में ज्यादा नहीं पूछा जा सकता.’’

‘‘इस बीच आप ने उन के बारे में पता करने की कोशिश नहीं की?’’

‘‘सर, आधी रात तक जब उन के कमरे से किसी तरह की सर्विस की कोई काल नहीं आई तो मैं ने रूम अटेंडेंट को भेजा कि जा कर मैडम से पूछ लो कि उन्हें कोई परेशानी तो नहीं है. लेकिन बारबार बेल बजाने के बाद भी जब उन्होंने दरवाजा नहीं खोला तो मुझे शक हुआ और मैं ने पुलिस को सूचना दे दी.’’ मैनजर ने एक ठंडी सांस ले कर कहा.

‘‘चलो, मुझे वह कमरा दिखाओ, जिस में डा. प्रिया वेदी ठहरी हुई हैं.’’

मैनेजर पुलिस टीम को तीसरी मंजिल स्थित कमरा नबंर 302 पर ले गया. थानाप्रभारी ने कमरे का दरवाजा खुलवाने की काफी कोशिश की. जब दरवाजा खुलवाने की उन की हर कोशिश नाकामयाब हो गई तो उन्होंने कहा, ‘‘अब कमरे का दरवाजा तोड़ने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है.’’

मैनेजर ने रिसैप्शन से 2-3 कर्मचारियों को बुलवा लिया तो उन्होंने कमरे के दरवाजे पर जोरजोर धक्के दिए, जिस से अंदर लगी सिटकनी उखड़ गई और दरवाजा खुल गया. अंदर जाने पर कमरे में पड़ा बैड खाली मिला. कमरे से अटैच बाथरूम खोला गया तो उस में डा. प्रिया खून से लथपथ पड़ी थीं. उन के एक हाथ की नस कटी थी तो दूसरे में ड्रिप लगी थी. होटल मैनेजर ने बताया कि यही डा. प्रिया वेदी हैं. थानाप्रभारी ने डा. प्रिया की नब्ज देखी तो वह थम चुकी थी. उन में जीवन का कोई भी लक्षण नहीं था. थाना नबी करीम पुलिस डा. प्रिया की लाश का निरीक्षण कर ही रही थी कि उन के मोबाइल की लोकेशन के आधार पर थाना डिफेंस कालोनी पुलिस भी उन के घर वालों के साथ होटल प्रेसीडेंसी पहुंच गई.

घर वालों ने भी उस लाश की शिनाख्त डा. प्रिया के रूप में कर दी. उन्होंने बताया कि यह दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में एनेस्थीसिया की सीनियर रेजीडेंट थीं और अपने पति डा. कमल वेदी के साथ एम्स के आयुर्विज्ञाननगर में रहती थीं. पुलिस ने कमरे की तलाशी ली तो डा. प्रिया वेदी का लिखा साढ़े 3 पेज का एक सुसाइड नोट मिला. होटल के कमरे का हर सामान अपनी जगह रखा था. डा. प्रिया का भी सामान सुरक्षित था. इस से साफ लग रहा था कि यह हत्या का नहीं, खुदकुशी का ही मामला है. पुलिस ने जरूरी काररवाई के बाद डा. प्रिया वेदी की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. इतनी काररवाई निपटातेनिपटाते सुबह हो गई थी.

19 अप्रैल को पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने डा. प्रिया की लाश घर वालों को सौंप दी तो उसी दिन उन्होंने उस का अंतिम संस्कार कर दिया. अंतिम संस्कार में एम्स के भी कई डाक्टर शामिल हुए थे. वे डा. प्रिया की मौत को ले कर तरहतरह की बातें कर रहे थे. उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि डा. प्रिया वेदी ने आत्महत्या की है. उन का कहना था कि वह बहुत ही हंसमुख और मिलनसार थीं. साथी डाक्टरों से उन के काफी अच्छे संबंध थे. उन का कहना था कि उन्होंने अपने दिल में छिपे दर्द का  कभी किसी को अहसास नहीं होने दिया. डा. प्रिया एम्स में अगस्त, 2014 से एनेस्थीसिया की सीनियर रेजीडेंट के पद पर काम कर रही थीं. उन के पति डा. कमल वेदी भी एम्स में ही स्किन के डाक्टर थे. वह डा. कमल से एक साल जूनियर थीं.

होटल के कमरे में पुलिस को जो सुसाइड नोट मिला था, उस में डा. प्रिया ने पति पर समलैंगिक होने का आरोप लगाया था. पुलिस की शुरुआती जांच में यह बात सामने भी आई है कि डा. प्रिया ने खुदकुशी करने से पहले अपने फेसबुक एकाउंट पर कई बातें लिखी थीं. डा. प्रिया ने फेसबुक पर लिखा था कि मैं पिछले 5 सालों से डा. कमल वेदी के साथ शादीशुदा जिंदगी बिता रही हूं, लेकिन हमारे शारीरिक संबंध नहीं बने, जो कि दांपत्य के लिए जरूरी होते हैं. शादी ही इसी के लिए होती है. मुझे एक फर्जी ईमेल आईडी मिली थी, जिस के द्वारा मेरे पति समलैंगिकों से बातें करते थे. मुझे जब इन सब बातों का पता चला तो मुझे प्रताडि़त किया जाने लगा.

उसी दिन डा. प्रिया के घर वालों ने दिल्ली के नबी करीम पुलिस थाने में डा. कमल के खिलाफ दहेज प्रताड़ना एवं अन्य धाराओं के तहत मामला दर्ज करा दिया. दिल्ली पुलिस ने शुरुआती जांच में मिले साक्ष्यों एवं डा. प्रिया के घर वालों के बयान के आधार पर 19 अप्रैल को डा. कमल को गिरफ्तार कर लिया. डा. प्रिया कौन थीं, कितने संघर्षों के बाद डाक्टर बन कर उन्होंने पिता का सपना पूरा किया था? इतना संघर्ष कर के जीवन को संवारने वाली डा. प्रिया ने आखिर आत्महत्या क्यों की? यह सब जानने के लिए हमें जयपुर से शुरुआत करनी होगी.

राजस्थान की राजधानी जयपुर, जो गुलाबी नगर के नाम से मशहूर है, के चांदपोल बाजार में एक छोटी सी गली है, जिसे गोविंदरावजी का रास्ता कहते हैं. इसी रास्ते में कान महाजन बड़ के पास रामबाबू वर्मा रहते हैं. वह टेलरिंग यानी कपड़ों की सिलाई की दुकान से गुजरबसर करते थे. उन के 3 बच्चे थे, सब से बड़ा बेटा विजय, उस से छोटी बेटी प्रिया और सब से छोटा बेटा लोकेश. उन के तीनों ही बच्चे पढ़ाईलिखाई में काफी होशियार थे. रामबाबू वर्मा खुद तो ज्यादा नहीं पढ़ सके थे, लेकिन वह बच्चों को पढ़ालिखा कर बड़ा आदमी बनाना चाहते थे. यही उन का सपना भी था, जिसे पूरा करने के लिए वह जम कर मेहनत कर रहे थे. उन का चूनेमिट्टी का मकान था. सीमित आय थी. जाहिर है, घर के हालात बहुत अच्छे नहीं थे. कपड़ों की सिलाई की आमदनी से किसी तरह परिवार की दालरोटी चल रही थी. बच्चे पढ़ने लगे तो खर्च बढ़ता गया.

लेकिन रामबाबू ने हिम्मत नहीं हारी. वह बच्चों को पढ़ाने के लिए दिन दूनी और रात चौगुनी मेहनत करने लगे. पत्नी भी उन का साथ देती थीं. इस तरह बच्चों की पढ़ाई के लिए पतिपत्नी न दिन देख रहे थे न रात. पतिपत्नी की दिनरात की मेहनत रंग लाई और बड़े बेटे विजय का सिलेक्शन मैडिकल में हो गया. प्रिया उस से छोटी थी. भाई के सिलेक्शन के बाद उस ने भी डाक्टर बनने का मन बना लिया. पढ़ाई में वह तेज थी ही, भाई का सपोर्ट मिला तो उस ने भी मातापिता को निराश करने के बजाय उन के सपनों में रंग भर दिया.

प्रिया ने प्रीमैडिकल टैस्ट पास कर लिया. बड़ा बेटा विजय मैडिकल की पढ़ाई कर ही रहा था. रामबाबू वर्मा के लिए 2 बच्चों की मैडिकल की पढ़ाई का खर्च वहन करना मुश्किल था. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. बैंक से बच्चों की पढ़ाई के लिए कर्ज लिया, लेकिन उन की पढ़ाई में कोई रुकावट नहीं आने दी. प्रिया का अजमेर के जेएलएन मैडिकल कालेज में दाखिला हुआ था. वह पूरी लगन से एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही थी. बीचबीच में वह घर भी आती रहती थी. इस तरह चांदपोल की गली में प्रिया आइडियल गर्ल बन गई थी. क्योंकि पुराने से मकान में रह कर गरीबी में पलबढ़ कर वह डाक्टरी की पढ़ाई कर रही थी.

आखिर वह दिन भी आ गया, जब प्रिया एमबीबीएस की डिग्री हासिल कर के डाक्टर बन गई. रामबाबू वर्मा के लिए वह सब से ज्यादा खुशी का दिन था. उन का सब से बड़ा सपना पूरा हो गया था. बड़े बेटे विजय के डाक्टर बनने से ज्यादा खुशी उन्हें प्रिया के डाक्टर बनने से हुई थी. इस के बाद 24 अप्रैल, 2010 को उन्होंने प्रिया की शादी डा. कमल वेदी से कर दी. डा. कमल वेदी राजस्थान के सीकर जिले के लक्ष्मणगढ़ के रहने वाले महेश वेदी के बेटे थे. परिवार वालों की सहमति से दोनों की शादी धूमधाम से हुई थी. रामबाबू वर्मा के लिए खुशी की बात थी कि उन्हें डाक्टर बेटी के लिए डाक्टर दामाद भी मिल गया था. वह निश्चिंत थे कि बेटी को कोई परेशानी नहीं होगी.

दोनों की जोड़ी खूब जमेगी. प्रिया भी अपने ही पेशे का जीवनसाथी मिलने से खुश थी. वह जानती थी कि एक डाक्टर की भावना को दूसरा डाक्टर ही अच्छी तरह समझ सकता है. बेटी को डाक्टर बना कर और उस की शादी कर के रामबाबू वर्मा  एक बड़ी जिम्मेदारी से मुक्त हो गए थे. अब उन के ऊपर छोटे बेटे लोकेश की जिम्मेदारी रह गई थी. लोकेश भी पढ़ाई में तेज था. वह बैंक की नौकरियों की तैयारी कर  रहा था. वह भी अपने प्रयासों में सफल हो गया और उसे बैंक में नौकरी मिल गई. फिलहाल वह कोटा में एक बैंक में प्रोबेशनरी अफसर है. डा. कमल वेदी को उसी बीच सन 2012 में दिल्ली के एम्स में नौकरी मिल गई. वह एम्स में स्किन के डाक्टर हैं. इस के बाद सन 2014 में डा. प्रिया भी एम्स में एनेस्थीसिया की सीनियर रेजीडेंट के रूप में तैनात हो गईं. पतिपत्नी को एम्स के आयुर्विज्ञाननगर में रहने के लिए मकान भी मिल गया था.

डा. प्रिया को भले ही एम्स में पति डा. कमल के साथ नौकरी मिल गई थी, लेकिन वह खुश नहीं थीं. डा. प्रिया के मायके वालों के अनुसार डा. कमल ने प्रिया को कभी पति का प्यार नहीं दिया. वह अपने वैवाहिक जीवन को ले कर परेशान रहती थी. जब इस बात की जानकारी रामबाबू को हूई तो उन्होंने कमल के पिता महेश वेदी से बात की. महेश वेदी ने रामबाबू को भरोसा दिलाया कि जल्दी ही सब ठीक हो जाएगा. डा. कमल ने भले ही प्रिया के वैवाहिक जीवन के सुनहरे सपनों को चूरचूर कर दिया था, लेकिन प्रिया अपने पति कमल से बेहद प्यार करती थी. वह न तो पति को छोड़ना चाहती थी और न ही अपने परिवार को टूट कर बिखरने देना चाहती थी.

करीब ढाई साल पहले रामबाबू वर्मा को जब बेटी पर हो रहे जुल्मों की जानकारी मिली तो प्रिया ने उन्हें मां की कसम दिला  कर चुप करा दिया था. वह चुपचाप मानासिक और शारीरिक अत्याचार सहन करती रही. डा. प्रिया ने फेसबुक पर पोस्ट लिख कर अपना दर्द बयां किया था. उन्होंने लिखा था कि शादी के 6 महीने बाद ही मुझे यकीन हो गया था कि मेरा पति डा. कमल समलैंगिक है और उस के कई लोगों के साथ समलैगिक संबंध हैं. उनहोंने लोगों के नाम भी फेसबुक पर लिखे थे. उन्होंने जब कमल के लैपटौप में उस के समलैंगिक संबंधों के सबूत दिखाए तो कमल ने कहा कि किसी ने उस का एकाउंट हैक कर के इस तरह की चीजें डाल दी हैं.

डा. प्रिया ने आगे लिखा था कि मैं सच जान चुकी थी. फिर भी मैं कमल से बेहद प्यार करती थी, लेकिन वह मेरे प्यार को समझ नहीं पाए. अगर हमारे समाज में ऐसे लोग हैं तो कभी उन से शादी मत कीजिए. अपने जीवन के अंतिम समय से कुछ घंटे पहले डा. प्रिया ने फेसबुक पर जो स्टेटस अपडेट किया था, उस में डा. कमल को गुनहगार बताया था. उन का कहना था कि वह कमल से बेहद प्यार करती थीं, इस के बावजूद उस ने उसे छोटीछोटी चीज के लिए तरसाया. केवल एक महीने पहले उस ने खुद को समलैंगिक माना. इस सब के बावजूद वह उस की मदद करना चाहती थीं, लेकिन वह उसे टौर्चर करता रहा.

इसी फेसबुक पेज पर डा. प्रिया ने एक रात पहले के वाकए का जिक्र करते हुए लिखा था, ‘तुम ने मुझे इतना अधिक टौर्चर किया है कि अब तुम्हारे साथ सांस भी नहीं ले सकती. तुम इंसान नहीं, राक्षस हो, क्योंकि तुम ने मेरी खुशी छीन ली. तुम्हारे जैसे लोग केवल लड़की और उस के घर वालों की भावनाओं से खेलते हैं. डा. कमल, मैं ने तुम से कभी कुछ नहीं चाहा था, क्योंकि मैं तुम्हें बेहद प्यार करती थी, जबकि तुम ने कभी मेरे प्यार की अहमियत नहीं समझी. कमल तुम मेरे गुनहगार हो. 18 अप्रैल की सुबह डा. प्रिया जब उठीं तो बेहद तनाव में थीं. बीती रात ही डा. कमल ने उस से झगड़ा किया था. वह फ्रेश हुईं और एक ट्रौली बैग में जरूरी सामान रख कर कुछ देर वह सोचती रहीं, फिर एकाएक मन को कठोर कर के अस्पताल में इमरजेंसी ड्यूटी होने की बात कह कर घर से निकल पड़ीं.

सुबह करीब साढ़े 9 बजे प्रिया ने जयपुर में अपने पिता को फोन किया कि प्लीज पापा, जल्दी आ जाओ. आप नहीं आओगे तो मेरा मरा मुंह देखोगे. उसी दिन सुबह करीब 11 बजे प्रिया ने कोटा में रहने वाले अपने छोटे भाई लोकेश को फोन कर के यही बातें कही थीं. प्रिया की बातों से उस के घर वालों की चिंता बढ़ गई थी. रामबाबू वर्मा तुरंत घर वालों के साथ दिल्ली के लिए रवाना हो गए थे. दूसरी ओर कोटा से छोटा भाई लोकेश भी अपने एक कजिन के साथ दिल्ली के लिए चल पड़ा था. रास्ते से उन्होंने कई बार प्रिया को फोन किए, लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिला. इस बीच प्रिया का भी कोई फोन नहीं आया.

जब रामबाबू वर्मा, लोकेश और उन के अन्य रिश्तेदार दिल्ली पहुंचे तो रात हो चुकी थी. प्रिया के बारे में जब उन्हें कोई सही सूचना नहीं मिली तो सभी थाना डिफेंस कालोनी पहुंचे और प्रिया की गुमशुदगी दर्ज करने का अनुरोध किया. पुलिस ने गुमशुदगी दर्ज कर प्रिया के मोबाइल के आधार पर उस की लोकेशन पता की तो वह पहाड़गंज इलाके में मिली. इस से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि वह पहाड़गंज में होंगी. पुलिस ने प्रिया के पति डा. कमल एवं घर के अन्य लोगों से भी बात की. वे भी प्रिया के बारे में कुछ नहीं बता सके थे. इस के बाद पुलिस मिली मोबाइल लोकेशन के आधार पर रामबाबू वर्मा, लोकेश एवं डा. कमल आदि को साथ ले कर पहाड़गंज के होटल प्रेसीडेंसी पहुंच गई, जहां डा. प्रिया की लाश मिली.

पूछताछ में पता चला कि डा. प्रिया एवं डा. कमल के रिश्तों में इतनी दूरियां आ चुकी थीं कि इसी साल 26 जनवरी को जब जयपुर में प्रिया के छोटे भाई लोकेश की शादी थी तो उस में केवल प्रिया ही गई थी. लेकिन प्रिया ने अपने व्यवहार से किसी को इस बात की भनक नहीं लगने दी थी कि हालत यहां तक पहुंच चुकी है. बहरहाल, डा. प्रिया की मौत ने अनेक सवाल खड़े कर दिए हैं. उस के घर वाले प्रिया को इंसाफ दिलाने की मांग कर रहे हैं. जयपुर के स्टैच्यू सर्किल पर प्रिया की याद में कैंडल मार्च भी निकाला गया. फेसबुक पर तेजी से वायरल होने के बाद डा. प्रिया का सुसाइड नोट उस में से हटा दिया गया. डा. प्रिया का वाल पोस्ट उस की मौत के बाद करीब साढ़े 3 हजार लोगों ने शेयर किया था. इस के बाद फेसबुक ने प्रिया की प्रोफाइल को रिमेंबरिंग प्रिया वेदी कर दिया, साथ ही उन का वाल पोस्ट फेसबुक से हटा दिया. Hindi Crime Stories

 

Crime Stories: एक और निर्भया

लेखक – कस्तूरी रंगाचारी    

Crime Stories: बलात्कार अक्षम्य अपराध है, लेकिन कभीकभी हकीकत जानने के बाद भी लोग इसे छिपाने की कोशिश करते हैं. इस से बलात्कारियों के हौसले बढ़ते हैं. विद्या के साथ भी ऐसा ही कुछ हो रहा था, लेकिन…

कालेज से आते ही मैं ने और भइया ने मम्मी को परेशान करना शुरू कर दिया था. हम ने उन से गरमगरम पकौड़े बनाने के लिए कहा था. मम्मी पकौड़े बनाने की तैयारी कर रही थीं, तभी नीचे से तेजतेज आती आवाजें सुनाईं दीं.

‘‘ये कैसी आवाजें आ रही हैं?’’ कहते हुए रमेश भइया बालकनी की ओर भागे. उन के पीछेपीछे मैं और मम्मी भी बालकनी में आ गए. हम ने देखा, हमारी बिल्डिंग के नीचे एक जीप खड़ी थी, जिस से 4 लोग आए थे. वे स्वाति दीदी के फ्लैट के बाहर खड़े उन्हें धमका रहे थे. वे शक्लसूरत से ही गुंडेमवाली लग रहे थे. दरवाजा बंद था. इस का मतलब वह अंदर थीं, क्योंकि अब तक उन के औफिस से आने का समय हो गया था. यह बात पक्की थी कि वह उन गुंडों की धमकी को सुन रही थीं. कुछ देर तक नीचे से धमकाने के बाद भी जब दीदी बाहर नहीं आईं तो उन्हें लगा कि अब उन्हें उन के सामने आ कर धमकाना चाहिए. वे सीढि़यां चढ़ने लगे. उन के जूतों की आवाज स्वाति दीदी के दरवाजे की ओर बढ़ रही थी.

रमेश दरवाजे की ओर बढ़ तो मैं भी उस के पीछेपीछे चल पड़ी. मैं ने पीछे से पुकारा, ‘‘तुम दोनों कहां जा रहे हो?’’

‘‘वे सभी स्वाति दीदी के फ्लैट के सामने आ गए हैं,’’ रमेश ने हैरानी से कहा, ‘‘वह घर में अकेली होंगी. हमें उन की मदद के लिए जाना चाहिए, पता नहीं वे लोग क्या चाहते हैं? उन की बातों से साफ लग रहा है कि वे किसी अच्छे काम के लिए नहीं आए हैं.’’

‘‘तो क्या तुम दोनों उन गुंडेमवालियों से निपट लोगे?’’ मम्मी ने कहा.

‘‘भले ही निपट न पाएं, पर इन स्थितियों में कुछ तो करना ही होगा. हम घर में बैठ कर तमाशा तो नहीं देख सकते.’’ रमेश ने कहा.

मम्मी हमें रोक पातीं, इस से पहले ही हम दोनों दरवाजा खोल कर बाहर आ गए. जीप से आए चारों आदमी स्वाति दीदी के दरवाजे के सामने खड़े हो कर दरवाजा खोलने के लिए कह रहे थे. उन का सरगना दरवाजे पर ठोकर मारते हुए कह रहा था. ‘‘जल्दी दरवाजा खोल कर बाहर आओ, वरना हम दरवाजा तोड़ देंगे.’’

‘‘हमारे नेता को बदनाम करने का अंजाम तो तुम्हें भुगतना ही पड़ेगा.’’ उस के पीछे खड़े दूसरे आदमी ने कहा.

अब तक मैं और रमेश वहां पहुंच चुके थे. रमेश ने कहा, ‘‘तुम लोग यहां क्या कर रहे हो, क्यों इतना शोर मचा रखा है?’’

उन में से एक आदमी ने पलट कर रमेश को घूरते हुए कहा, ‘‘तू अपना काम कर न, क्यों बेकार में बीच में पड़ रहा है.’’

रमेश भइया कुछ कहते, तब तक स्वाति दीदी का दरवाजा खुल गया. मैं ने उन की ओर देखा सलवार सूट पहने वह आराम से दरवाजे पर खड़ी थी. उस स्थिति में भी उन के चेहरे पर शांति झलक रही थी, साफ लग रहा था कि उन्हें इन लोगों से जरा भी डर नहीं लग रहा है. वह उन गुंडों की ओर देखते हुए मुसकरा रही थी. दरवाजे पर दीदी को देख कर उन चारों में से एक आदमी ने आगे आ कर कहा, ‘‘आप ने हमारे नेता का अपमान किया है, सरेआम उन की खिल्ली उड़ाई है. अब उस का अंजाम तो तुम्हें भुगतना ही होगा.’’

स्वाति दीदी उसी तरह खामोशी से खड़ी उन्हें देख रही थीं. उस आदमी की बात पूरी  होते ही उन्होंने पूछा, ‘‘कौन हैं तुम्हारे नेताजी, जिन का मैं ने अपमान कर दिया है?’’

‘‘मूलचंदजी, जिन्होंने कल रेप वाले मामले में बयान दिया था.’’

रेप की बात सुन कर मुझे लगा, जैसे किसी ने गरम सलाख मेरे शरीर पर रख दी हो. मन किया, यहां से चली जाऊं, लेकिन उस समय स्वाति दीदी उन चारों से घिरी थीं, इसलिए मजबूरन मुझे रुकना पड़ा. स्वाति दीदी ने बहुत ही ठंडे स्वर में कहा, ‘‘अच्छा तो तुम लोग मूलचंद के आदमी हो.’’

‘‘जी. अब तुम्हें उन से माफी मांगनी होगी.’’

‘‘माफी किस बात की?’’

‘‘जब हमारे नेताजी ने कहा कि जिस लड़की के साथ बलात्कार हुआ, वह खुद इस के लिए जिम्मेदार थी, तो तुम ने हमारे नेताजी को गलत बताया. उस के बाद से सारे चैनल तुम्हारी इसी बात को बारबार दोहरा रहे हैं, जिस से हमारे नेताजी झूठे साबित हो रहे हैं. अखबारों ने इसे प्रमुखता से छापा है.’’

‘‘उन्होंने जो कहा, वह गलत था, इसलिए मैं ने विरोध किया है.’’

‘‘उन के खिलाफ मीडिया में बयान दे कर तुम ने हमारे नेता का अपमान नहीं किया?’’

‘‘मैं ने उन का अपमान नहीं किया, बल्कि उन्हें सही राह दिखाई है. 15 साल की लड़की के साथ बलात्कार हुआ है, जो दसवीं में पढ़ रही थी. उस समय वह ट्यूशन पढ़ कर घर आ रही थी. शाम के 5 बज रहे थे, दिनदहाड़े उन लोगों ने उस का अपहरण कर लिया और सुनसान में ले जा कर उस के साथ बलात्कार किया. ऐसे में उस बच्ची की गलती कैसे कही जा सकती है?’’

एक 15 साल की लड़की, जो स्कूल में पढ़ रही थी, उस के साथ बलात्कार हुआ था. वह मुझ से केवल एक साल छोटी थी. मुझे लगा, एक बार फिर वह गरम सलाखें मेरे शरीर पर रख दी गईं. मेरे मुंह से कुछ निकलने वाला था कि मैं ने मुंह पर अपना हाथ रख लिया. स्वाति दीदी ने हैरानी से मेरी ओर देखा, ‘‘बेटा, क्या बात है?’’

मैं ने एक आदमी को हटाते हुए कहा, ‘‘कुछ नहीं दीदी, मुझे घर जाना चािहए.’’

मैं अपने फ्लैट की ओर बढ़ी. मैं दरवाजे के पास पहुंची ही थी कि मैं ने सुना, स्वाति दीदी कह रही थीं, ‘‘क्या तुम्हारी कोई बहन स्कूल नहीं जाती है? उस के साथ ऐसा हो जाए तो? वैसे मैं तुम्हें बता दूं कि मैं ने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन कर दिया है.’’

मैं घर आई तो मम्मी काफी शांत थीं. मुझे पता था कि पापा आएंगे तो वह हमारी शिकायत जरूर करेंगी कि हम लोगों ने उन की बात नहीं मानी और उन के मना करने के बाद भी हम स्वाति दीदी की मदद करने चले गए. जबकि वे गुंडे थे. मैं उन की ओर ध्यान दिए बगैर अपने कमरे में चली गई. रमेश मेरे आने के एक घंटे बाद आया. उस के आते ही मैं ने पूछा, ‘‘पुलिस आ गई थी?’’

‘‘नहीं, पुलिस नहीं आई. स्वाति दीदी ने पुलिस बुलाई ही कहां थी. वह तो उन्होंने गुंडों को सिर्फ डराने के लिए कहा था.’’ रमेश ने स्वाति दीदी की बुद्धि की सराहना करते हुए कहा, ‘‘जैसे ही उन्होंने पुलिस का नाम लिया, चारों गुंडे तुरंत भाग निकले थे.’’

रमेश ने बताया कि उन गुंडों के जाने के बाद स्वाति दीदी उसे अपने फ्लैट में ले गई थीं.

खूबसूरत और शांत स्वभाव की स्वाति दीदी 2 महीने पहले ही हमारे पड़ोस वाले फ्लैट में रहने आई थीं. रमेश उन से बहुत प्रभावित था, मुझे भी वह पसंद थीं. बातचीत से ही वह पढ़ीलिखी और बुद्धिमान लगती थीं. रमेश अपने और स्वाति दीदी के बीच हुई बातचीत बताने को बेचैन था. उस ने कहा, ‘‘जानती हो वह वकील और एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं. वह एक ऐसी सामाजिक संस्था की सदस्य हैं, जो रेप की शिकार महिलाओं को न्याय दिलाने का काम करती है. इस के अलावा वह रेप की शिकार मासूमों को समाज में उन का स्थान दिलाने में भी मदद करती हैं. उन की संस्था का नाम है ए सेकेंड लाइफ यानी एएसएल.’’

थोड़ी खामोशी के बाद उस ने कहा, ‘‘रेप महिलाओं के साथ होने वाला सब से खतरनाक अपराध है. लेकिन इस बात को समझ कर रेप की शिकार मासूमों की काउंसलिंग करा कर उन में आत्मविश्वास वापस लाने में मदद करने के बजाय हम उन के बारे में अफवाहें फैला कर उन्हें बदनाम करते हैं.’’

‘‘रमेश, मुझे तुम्हारी इन बातों में कोई दिलचस्पी नहीं है.’’ कह कर मैं ने उसे चुप कराना चाहा, क्योंकि मैं नहीं चाहती थी कि वह रेप के बारे में बातें करे. लेकिन रमेश ने मेरी बात पर ध्यान ही नहीं दिया. उस ने कहा, ‘‘एएसएल के सदस्य पीडि़त के साथ खड़े हो कर उस के जीवन को फिर से सामान्य बनाने की कोशिश करते हैं. हम सभी को भी यह काम करना चाहिए.’’

रमेश क्षण भर के लिए रुका. उसी बीच मैं ने जल्दी से कहा, ‘‘मैं ने कहा न, इन बातों में मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है. रेप कितने शर्म की बात है.’’

रमेश ने जैसे मेरी बात सुनी ही नही. उस ने आगे कहा, ‘‘मैं भी एएसएल का सदस्य बनने की सोच रहा हूं.’’

‘‘इस का मतलब तुम भी रेप पीडि़तों की मदद करना चाहते हो? लगता है स्वाति दीदी से तुम्हें कुछ ज्यादा ही लगाव हो गया है?’’ मैं ने कहा, ‘‘ओह माई गौड! रमेश, वह उम्र में तुम से काफी बड़ी हैं. तुम उन्हें दीदी कहने के बजाय उन का नाम ले रहे हो. मालूम है न, वह तुम से कम से कम 8 या 9 साल बड़ी होंगी?’’

‘‘उम्र का इस मामले से क्या संबंध?’’ रमेश जोर से हंसा, ‘‘उम्र तो एक गिनती है.’’

इस तरह मैं ने बात का रुख स्वाति दीदी की ओर मोड़ दिया और रेप की बात समाप्त करने में कामयाब हो गई. लेकिन अपने मन से इस बात को नहीं निकाल सकी कि जब पापा को इस बारे में पता चलेगा तो वह हमें डाटेंगे जरूर, क्योंकि हम ने ऐसे मामले में टांग अड़ाई थी, जिस का संबंध हम लोगों से बिलकुल नहीं था. हम ने खुद को खतरे में डाला था लेकिन न जाने क्या सोच कर मम्मी ने इस मामले में हम बहनभाई को बचा लिया था. मुझे रमेश पर खतरा मंडराता दिखाई देर रहा था. अब वह अक्सर स्वाति दीदी के घर जाने लगा था. वह उन के घर घंटों बैठा रहता. एएसएल की बैठकों में भी जाने लगा था. उस की इन हरकतों का मम्मीपापा में से किसी को पता नहीं था.

कभी आने में देर हो जाती तो वह कोई न कोई कहानी सुना देता, कभी कहता कि वह अपने किसी दोस्त की बर्थडे पार्टी में चला गया था तो कभी किसी सहपाठी की बीमारी का बहाना बना देता. उस के इन बहानों पर मुझे यह सोच कर कोफ्त होती कि बच्चे मातापिता को कितनी आसानी से बेवकूफ बना लेते हैं. मांबाप को लगता है कि वे अपने बच्चों के बारे में सब कुछ जानते हैं, जबकि सच्चाई यह है कि वे अपने बच्चों की असलियत के नजदीक तक नहीं पहुंच पाते. वे अपने असली बच्चों की आदतों, रुचियों, हरकतों के बारे में नहीं जान पाते. एक दिन सारे के सारे न्यूज चैनलों पर एक ही खबर दिखाई जा रही थी कि एक लड़की देर रात जब काम से घर लौट रही थी तो 4 लड़कों ने बस अड्डे से उस का पीछा किया. जब वह सुनसान जगह पर पहुंची तो वे उसे झाडि़यों में खींच ले गए और उस का मुंह बंद कर के उस के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया.

लेकिन वह बहादुर लड़की निर्भया की तरह थी. इतनी तकलीफ और दर्द में भी उस ने होश नहीं खोया. उस स्थिति में भी उस ने हर एक बलात्कारी की सूरत अपने दिमाग में बैठा लीथी. उस ने यह भी याद रखा कि वे क्या बातें कर रहे थे. उन में से किसी ने अपने साथी को चिंटू कहा तो दूसरे ने उसे डांट कर चुप करा दिया. उन में से एक के गाल पर लंबे घाव का निशान था, जबकि 2 लोगों ने अपने चेहरों पर उस के सामने ही कपड़ा बांधा था, लेकिन उस ने उन का चेहरा अच्छी तरह से देख लिया था. उन लफंगों की मनमरजी से लड़की की हालत बहुत खराब हो गई थी, जब उन्हें लगा कि लड़की बेहोश हो गई है या मर चुकी है, तब उन्होंने किसी जगह का नाम लिया था. उस जगह पर वे तब तक छिपे रहने की बात कर रहे थे, जब तक यह मामला ठंडा नहीं पड़ जाता.

चारों लड़कों के जाने के बाद, लड़की ने हिम्मत बटोरी और लड़खड़ाती हुई किसी तरह पास के एक मकान तक पहुंच गई. उस की हालत देख कर लोगों ने पुलिस बुलाई, जिस ने उसे अस्पताल पहुंचाया. लड़की ने अपने ऊपर हुए जुल्म की पूरी कहानी विस्तार से सुना दी. साथ ही उन चारों लड़कों के हुलिए बता कर उन की आपस की बातचीत भी बता दी. इस के बाद पुलिस उन चारों की तलाश में लग गई. ऐसा लग रहा था जैसे समाचार चैनल और अखबार वालों के पास दूसरा कोई समाचार ही नहीं था. हर जगह बस उसी लड़की को ले कर हायतौबा मची थी. हर कोई सिर्फ रेप के बारे में ही बातें कर रहा था. स्टूडेंट्स और औरतें प्रदर्शन कर रही थीं, सभाएं कर रही थीं, कैंडल लाइट मार्च निकाले जा रहे थे. बहसें हो रही थीं कि औरतें कैसे सुरक्षित रह सकती हैं.

लोग इस बारे में भी चर्चा कर रहे थे कि क्या रेप करने वालों को फांसी की सजा देनी चाहिए, जिस से इस तरह की घटनाएं रोकी जा सकें. जैसे ही कोई अभियुक्त पकड़ा जाता, शोरशराबा मचता. धीरेधीरे चारों अभियुक्त पकड़े गए. जैसेजैसे उस लड़की के बारे में टीवी और अखबारों में खबरें आ रही थीं, मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी. हर कोई इतनी बेशर्मी से क्यों बातें कर रहा था, मेरी समझ में नहीं आ रहा था. स्वाति दीदी की संस्था भी इस मामले में लगी थी. दीदी और रमेश भी लगे हुए थे. एएसएल के सदस्य जुलूस निकाल रहे थे, मीडिया के माध्यम से बयान जारी किए जा रहे थे. अब तक रमेश को लगने लगा था कि वह अपनी हरकतों को मम्मीपापा से छिपा नहीं सकता, इसलिए एक दिन उस ने पापा को बता दिया कि वह एएसएल से जुड़ गया है और उस के कार्यक्रमों में भाग ले रहा है.

पापा ने मेरी ओर देख कर कहा, ‘‘यह तो अच्छी बात है. सामाजिक कार्यों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेना ही चाहिए. तुम भी विरोध में भाग लो. इस बुराई के खिलाफ लड़ो और ऐसा बुरा काम करने वालों को सजा दिलवाओ.’’

मैं चुप बैठी रही. पापा को शायद मेरी इस चुप्पी पर हैरानी हुई कि मैं ने यह क्यों नहीं कहा कि रमेश के साथ जाऊंगी. इस की वजह यह थी कि रेप की बात सुन कर मेरा दिमाग घूम जाता था. अगले कुछ दिनों तक इसी तरह चलता रहा. यही लग रहा था कि शहर में रेप के अलावा और कोई मुद्दा नहीं है. मैं इस सब से बहुत दूर रहती थी क्योंकि ‘रेप’ शब्द मुझे बीमार सा कर देता था, इसलिए मैं ने अखबार पढ़ना और टीवी देखना भी बंद कर दिया था. मैं उस जगह से हट जाती थी, जहां लोग रेप के बारे में बातें कर रहे होते थे. मैं उस दिन स्कूल भी नहीं गई थी, जिस दिन पुलिस यह बताने आने वाली थी कि लड़कियों को अपनी सुरक्षा कैसे करनी चाहिए. मम्मी से मैं ने कह दिया था कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है.

एक शनिवार को रमेश ने मेरे कमरे में आ कर कहा, ‘‘वृंदा जल्दी तैयार हो जा. आज एएसएल एक सेमिनार करवा रहा है और हमें उस में अधिक से संख्या में पहुंचना चाहिए. इसलिए तुम भी चलो.’’

‘‘मैं नहीं जा सकती.’’ मैं ने बड़ी बेरुखी से कहा.

‘‘क्यों नहीं जा सकती भई? मैं देख रहा हूं इधर तुम कुछ बदलीबदली सी रहती हो. पहले तो तुम ऐसे कामों में मेरे साथ बड़े जोशोखरोश से भाग लेती थीं, अब ऐसा क्या हो गया, जो जाने से मना कर रही हो? जबकि यह लड़कियों का ही कार्यक्रम है.’’

‘‘मुझे पढ़ना है.’’

‘‘मुझ से बहाना बनाने की जरूरत नहीं है, तुम आलसी और स्वार्थी हो गई हो. तुम घर से बाहर निकलना ही नहीं चाहती. किसी के दुख तकलीफ में उस का साथ नहीं देना चाहती.’’

‘‘तुम्हें जो सोचना है सोचते रहो, मुझे नहीं जाना तो नहीं जाना.’’

रमेश मुझे घूरता हुआ गुस्से में तेजी से मेरे कमरे से चला गया. उस पूरे दिन वह घर से बाहर ही रहा. मैं अपने कमरे में अकेली पड़ी रही, अगले दिन स्कूल की छुट्टी थी, इसलिए सोचा चलो पड़ोस में रहने वाली सहेली के यहां चली जाऊं. जैसे ही मैं दरवाजे से बाहर निकली एक आवाज ने मुझे रोक लिया. स्वाति दीदी अपने दरवाजे पर खड़ी थीं. मैं अपने चेहरे पर मुसकान लाते हुए उन की ओर मुड़ी. उन्होंने कहा, ‘‘वृंदा यहां आओ.’’

‘‘मुझे तुम से कुछ बात करनी है.’’

‘‘दीदी, अभी मैं अपनी एक दोस्त से मिलने जा रही हूं.’’ मैं ने उन से बचने के लिए कहा.

‘‘चली जाना, पहले इधर आओ. आज तुम्हारे सकूल की छुट्टी है ना?’’

मैं मना नहीं कर सकी और चेहरे पर झूठी मुसकान लिए बोझिल कदमों से स्वाति दीदी के घर की ओर बढ़ी. वह बड़े प्यार से मुझे अंदर ले गई. अंदर पहुंच कर उन्होंने कहा, ‘‘तुम से बात किए हुए काफी समय हो गया. सुनाओ, आजकल क्या चल रहा है, तुम क्या कर रही हो?’’

‘‘कुछ खास नहीं, आजकल आप बहुत व्यस्त हैं न, इसलिए मैं आप के यहां नहीं आई.’’ मैं ने कहा.

लेकिन तुरंत ही मुझे अपने इन शब्दों पर अफसोस हुआ, क्योंकि मैं नहीं चाहती थी कि वह रेप के बारे में बातें करें, पर मैं जो गलती कर गई थी, उस से तय था कि वह उस बात का उल्लेख जरूर करेंगी.

‘‘हां, आजकल मैं थोड़ा व्यस्त हूं. दरअसल वह भयानक रेप था,’’ स्वाति दीदी ने मुझ पर नजरें गड़ा कर कहा, ‘‘लेकिन तुम रेप के खिलाफ होने वाले आंदोलनों में भाग क्यों नहीं लेती, क्या बात है वृंदा?’’ रमेश कह रहा कि तुम उस दिन स्कूल भी नहीं गई थीं, जिस दिन पुलिस तुम्हारे स्कूल में यह बताने आई थी कि लड़कियों को अपनी सुरक्षा कैसे करनी चाहिए?’’

‘‘हां, नहीं गई थी.’’

‘‘क्यों? पुलिस ने जो बातें बताई थीं वे लड़कियों के लिए काफी महत्त्वपूर्ण थीं. उस से लड़कियों को अपनी सुरक्षा करने में मदद मिलेगी.’’

अब मैं चुप नहीं रह सकी. मैं ने कहा, ‘‘सच दीदी, क्या ऐसा हो सकता है? लेकिन मुझे तो ऐसा नहीं लगता. अगर किसी इंसान या लड़के के अंदर छिपा वहशी जानवर किसी औरत या लड़की को नुकसान पहुंचाना चाहे तो ऐसा करने से क्या उसे रोका जा सकता है, क्या वह ऐसा नहीं करेगा?’’

स्वाति दीदी ने मेरी ओर हैरानी से देखा. उस के बाद एकएक शब्द पर जोर देते हुए बोलीं, ‘‘यह सच है कि शारीरिक रूप से पुरुष औरत से अधिक मजबूत होते हैं, लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि लड़कियां मजबूर और बेबस हैं. वह यह तो सीख ही सकती हैं कि अपनी सुरक्षा कैसे की जाए? अगर उन में लगन और इच्छाशक्ति है तो वह खुद को वहशी जानवरों से जरूर बचा सकती हैं.’’

‘‘नहीं बचा सकती दीदी. बहादुर से बहादुर और मजबूत से मजबूत लड़की भी ऐसा नहीं कर सकती. कोई और भी कुछ नहीं कर सकता. क्योंकि हर कोई उसे अपने नीचे दबाना चाहता है.’’

मेरी इन बातों से मेरा डर बाहर आ गया. मेरी आंखों से आंसू बहने लगे. मैं ने जल्दी से खुद पर काबू पाने की कोशिश की, क्योंकि मुझे पता था कि अगर मैं चुप नहीं हुई तो दीदी को पता चल जाएगा कि मेरे साथ कुछ बुरा हो रहा है. लेकिन न मैं खुद पर काबू रख पाई और न दीदी को मूर्ख बना पाई, क्योंकि ये दोनों ही काम मेरे लिए बहुत मुश्किल थे. मेरी हालत देख कर वह जल्दी से उठ कर मेरे पास आईं और मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए चिंतित स्वर में पूछा, ‘‘क्या बात है वृंदा, मुझे बताओ तुम्हारे साथ क्या हुआ? अगर तुम मुझे सब बता दोगी तो तुम्हारे दिल और दिमाग से बोझ हट जाएगा. उस के बाद तुम काफी आराम महसूस करोगी.’’

‘‘नहीं दीदी, मुझे कोई परेशानी नहीं है, मैं ने सिसकते हुए कहा, ‘‘मैं तो किसी दूसरे के बारे में सोचसोच कर परेशान हूं.’’

‘‘यह सच नहीं है.’’ दीदी ने मेरा हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, ‘‘तुम्हारे साथ जरूर कुछ हुआ है, जिसे तुम छिपा रही हो. तुम्हारे साथ, जरूर यौन हिंसा जैसा कुछ हुआ है. वृंदा, मुझे बताओ तुम्हारे साथ क्या हुआ है?’’

मैं कुछ बोल नहीं सकी, क्योंकि हिचकियां लेले कर रोने से मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे. दीदी ने खींच कर मुझे सीने से लगा लिया. वह धीरेधीरे मेरी पीठ पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोलीं, ‘‘मुझे बताओ न वृंदा, क्या बात है? अपनी बात कह कर तुम बहुत शांति महसूस करोगी.’’

मैं ने खड़ी हो कर घबराई आवाज में कहा, ‘‘मुझे अब जाना चाहिए.’’

मैं दरवाजे की ओर बढ़ी, लेकिन आंखों में आंसू होने के कारण मुझे रास्ता दिखाई नहीं दिया, जिस से मैं लड़खड़ा गई. दीदी ने आगे बढ़ कर मेरा हाथ थाम लिया और मुझे सोफे पर बैठा कर गंभीर स्वर में कहा, ‘‘तुम्हारे साथ भी बलात्कार जैसा कुछ हुआ है क्या?’’

अब मैं चुप नहीं रह सकती थी. मैं ने कहा, ‘‘नहीं दीदी, मेरे साथ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. लेकिन मेरी सब से अच्छी सहेली विद्या, जो मेरी क्लासमेट भी है. उस के साथ रेप हुआ है. एक नहीं, 2 लड़कों ने उस के साथ जबरदस्ती की है.’’

दीदी ने एक लंबी सांस ले कर जल्दी से पूछा, ‘‘कब और कैसे हुआ यह सब?’’

दीदी की प्रतिक्रिया से मुझे डर सा लग रहा था, मैं जल्दी से थूक गटक कर बोली, ‘‘दीदी, यह तीन महीने पहले की बात है. वह दोनों लड़कों में से एक लड़के, जिस का नाम महेश है को जानती थी. वह उस के पड़ोस के फ्लैट में ही रहता था. महेश उस का पड़ोसी ही नहीं था, उस के पिता विद्या के पिता के साथ भागीदारी में कारोबार करते हैं. वह उसे अक्सर छेड़ा करता था. लेकिन इस बात को न महेश के मातापिता जानते थे और न ही विद्या के.’’

‘‘विद्या ने कभी किसी से उस की शिकायत भी नहीं की?’’

‘‘नहीं, उस की चुप्पी ने महेश को हिम्मत बढ़ा दी और एक दिन मौका मिलने पर महेश ने दोस्त के साथ मिल कर उस के साथ जबरदस्ती कर डाली.’’

‘‘यह सब कैसे हुआ?’’ स्वाति दीदी ने पूछा.

अब तक मेरी आंखों के आंसू थम गए थे. मैं उन्हें सब बता देना चाहती थी, जो मेरे अंदर दबा था, वह भी जो अपराधबोध महसूस कर रही थी. मैं ने कहना शुरू किया, ‘‘उस दिन वह स्कूल से घर आई तो उस के घर में ताला लगा था. उसे इस बात पर कोई हैरानी नहीं हुई, क्योंकि कभीकभी ऐसा होता रहता था. उस की मम्मी कहीं जाती थी, तो ताला लगा कर चाबी महेश के घर छोड़ जाती थीं. विद्या ने चाबी लेने के लिए महेश के घर की डोरबेल बजा दी, क्योंकि उस समय महेश कालेज में होता था. घर में सिर्फ उस की मां ही होती थी.’’

‘‘लेकिन जब महेश ने दरवाजा खोला तो विद्या को झटका सा लगा. तभी महेश ने पलट कर कहा, ‘मम्मी, विद्या आई है चाबी लेने.’

विद्या को उस की मम्मी की आवाज सुनाई नहीं दी, इस के बावजूद किसी तरह का संदेह नहीं हुआ. महेश अंदर गया और वहीं से बोला, ‘‘विद्या तुम्हें मम्मी बुला रही हैं.’’

विद्या जैसे ही अंदर हौल में आई, महेश ने लपक कर दरवाजा बंद कर दिया. दरवाजा बंद करने की आवाज सुन कर विद्या पलटी. लेकिन अब वह फंस चुकी थी. उस के दिमाग में खतरे की घंटियां बजने लगीं. वह कुछ कर पाती या कहती, इस से पहले ही महेश उस के पास आया और उस का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘तुम मूर्ख की मूर्ख ही रहीं. तुम्हें बता दूं कि मेरी और तुम्हारी मम्मी दिनभर के लिए बाहर गई हैं. इस वक्त मैं अपने दोस्त के साथ घर में अकेला हूं. तुम उस से मिलोगी? सचिन, जरा यहां तो आना.’’

महेश के मुंह से शराब की बदबू आ रही थी. विद्या ने चीखना चाहा, लेकिन दूसरे लड़के को देख कर उस की चीख गले में घुट कर रह गई. वह हाथ में बीयर की बोतल लिए था यानी वह भी पिए हुए था.  मैं थोड़ी देर के लिए चुप हुई. उस के बाद फिर कहना शुरू किया, ‘‘दोनों लड़कों ने उसी हाल में विद्या के साथ मनमानी की. उस के बाद वे सलाह करने लगे कि अब उन्हें क्या करना चाहिए. सलाहमशविरे के बाद उन्होंने विद्या के फ्लैट का दरवाजा खोला और उसे अपने फ्लैट से उठा कर उस के फ्लैट में पहुंचा दिया. इस बीच सचिन बाहर खड़ा निगरानी करता रहा कि कोई उन्हें देख तो नहीं रहा. बिल्डिंग में हर मंजिल पर 2 ही फ्लैट हैं, इसलिए वे अपने उद्देश्य में आसानी से सफल हो गए.

‘‘विद्या को उस के फ्लैट में छोड़ कर जाने से पहले महेश ने उसे धमकी दी कि अगर उस ने किसी को कुछ बताया तो उसी की बदनामी होगी. पापा का साझे का जो कारोबार है वह भी बंद हो जाएगा. इसलिए उस ने किसी से कुछ नहीं कहा.’’ मैं ने स्वाति दीदी को पूरी बात बता दी.

‘‘जब उस ने तुम्हें यह बात बताई तो तुम ने उसे क्यों नहीं समझाया कि उसे यह बात अपने मातापिता को बता देनी चाहिए?’’ दीदी ने उत्तेजित लहजे में कहा, ‘‘जानती हो, उस के चुप रहने से महेश और सचिन मौका मिलने पर फिर वैसा कर सकते हैं.’’

मैं खामोश बैठी रही. दीदी ने कुछ देर तक मेरे बोलने का इंतजार किया, जब मैं नहीं बोली तो उन्होंने पूछा, ‘‘अब विद्या कैसी है, वह इस सदमे से उबर गई है या अभी उस पर उस का असर है?’’

मैं ने उन के सवाल का जवाब नहीं दिया तो दीदी ने जोर डालते हुए पूछा, ‘‘वृंदा, मुझे बताओ न इस घटना का उस पर क्या असर पड़ा है. वह पहले की तरह पढ़लिख और खेलकूद रही है?’’

मुझे अपना दम घुटता हुआ सा महसूस हुआ. मेरा सिर घूमने लगा और फिर से मेरी आंखों में आंसू बहने लगे. मैं ने आंसुओं को पोंछते हुए कहा, ‘‘पहले के मुकाबले अब वह काफी चुपचुप रहती है, पढ़ाई में भी उस का ध्यान नहीं लगता. दरअसल, उस दोपहर उस के साथ जो हुआ, उस ने उस के बारे में मुझे बता तो दिया लेकिन साथ ही कहा कि इस बारे में मैं किसी को कुछ न बताऊं. इसलिए मैं ने किसी को कुछ नहीं बताया.’’

‘‘और तुम चुप रह गईं,’’ दीदी ने ताना सा मारा, ‘‘तुम ने अपने दोस्त की मदद करने की कोशिश नहीं की?’’

‘‘मैं उस के साथ होने वाली जबरदस्ती के बारे में किसी से कैसे बता सकती थी? सचमुच मैं ने उसे पूरी तरह से बर्बाद होने दिया? मैं ने उस समय भी कुछ नहीं किया, जब मेरे सामने ही उस के साथ दोनों जुर्म ढा रहे थे. मदद करने के बजाय मैं ने शर्म से अपना चेहरा दोनों हाथों से छिपा लिया था. मदद के लिए गुहार लगाने के बजाय रो रही थी.’’

इस के बाद मैं ने दीदी को आगे की वह शर्मनाक घटना भी सुना दी, ‘‘उस दिन एक प्रोजेक्ट बनाने के लिए मैं स्कूल से सीधे विद्या के घर गई. उस के दरवाजे का ताला बंद था. वह चाबी लेने बराबर वाले फ्लैट में अंदर गई. मैं बाहर खड़ी हो कर इंतजार करने लगी. पलभर बाद मुझे उस की चीख सुनाई दी. मैं दरवाजे से सट कर खड़ी हो गई. अंदर महेश और सचिन जो बातें कर रहे थे, वे मुझे साफ सुनाई दे रही थीं. मुझे उन के मजे लेने की वे सिसकारियां भी सुनाई दे रही थीं, जो विद्या को नोचतेखसोटते हुए उन के मुंह से निकल रही थीं. मैं ने उन के भद्दे कमेंट्स भी सुने, जो वे विद्या के कपड़े उतारते हुए कर रहे थे.

‘‘मैं इस तरह सकते में आ गई कि मुझे सांस लेने में तकलीफ होने लगी थी. विद्या का विरोध धीरेधीरे कमजोर पड़ता जा रहा था, और फिर उस की आवाज खामोश हो गई. उस के बाद उन्होंने वह सबकुछ किया जो उन्हें करना था.’’

‘‘तुम ने कुछ भी नहीं किया?’’ दीदी ने मरे से स्वर में पूछा, ‘‘तुम ने तब भी कुछ नहीं किया, जब यह सब कुछ हो रहा था?’’

‘‘हां, दीदी यह सच है कि मैं ने कुछ नहीं किया.’’ मैं ने लगभग चीखते हुए कहा, ‘‘मुझे लकवा सा मार गया था. मैं ने आंखों से देखा तो नहीं, लेकिन जो कुछ भी हुआ, उसे कानों से सुना.’’

‘‘उस के बाद क्या हुआ?’’ दीदी ने उत्तेजित हो कर पूछा.

‘‘दीदी, मुझे होश तब आया जब महेश और सचिन ने विद्या को उस के फ्लैट में छोड़ने की बात की. वे उसे धमकी दे रहे थे कि अगर उस ने किसी को कुछ बताया तो उस की इज्जत मिट्टी में मिला देंगे. भय के मारे मैं दौड़ती हुई सीढि़यां उतरने लगी. नीचे वाले फ्लोर पर आ कर मैं काफी देर कांपती हुई खड़ी रही. मैं दौड़ कर विद्या के फ्लैट के बाहर पहुंची और घंटी बजाई. विद्या ने दरवाजा नहीं खोला, तो मैं ने उस का नाम ले कर पुकारा. मेरी आवाज पहचान कर उस ने दरवाजा खोला.

‘‘जिस लड़की ने दरवाजा खोला, उस का नाम तो विद्या था, लेकिन मुझे विश्वास नहीं हो रहा था, वह विद्या ही है. उस के ऊपर जो कयामत गुजरी थी, उस से वह मृतक की तरह लग रही थी. मैं फूटफूट कर रोने लगी और उसे गले से लगा कर उस से माफी मांगने लगी कि मैं उस के लिए कुछ नहीं कर सकी.

मैं ने रोते हुए कहा, ‘‘मुझे बहुत दुख है विद्या कि मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर सकी. मुझे तुम्हारी मदद के लिए शोर मचाना चाहिए था, पुलिस को बुलाना चाहिए था.’’

‘‘भगवान का शुक्र है कि तुम ने ऐसा नहीं किया,’’ विद्या ने मरी सी आवाज में कहा, ‘‘और वादा करो कि आगे भी किसी से कुछ नहीं कहोगी.’’

‘‘लेकिन तुम्हें पुलिस के पास जाना चाहिए, मम्मीपापा से बताना चाहिए.’’

‘‘नहीं.’’

‘‘क्यों… मान लो तुम्हें किसी तरह की बीमारी हो गई या गर्भवती हो गई तो…?’’

‘‘तुम मेरे साथ डाक्टर के पास चलना. मैं अपना इलाज करा लूंगी या अबार्शन करा लूंगी. इस के अलावा मेरे पास कोई दूसरा उपाय नहीं है. लेकिन तुम किसी और से यह बात कहना मत.’’ मैं ने उस से वादा किया था. दीदी, इसलिए मैं ने किसी से कुछ नहीं बताया.

‘‘न विद्या गर्भवती हुई और न ही उसे किसी प्रकार की बीमारी?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘लेकिन अभी भी वह उसी रेपिस्ट के पड़ोस में रहती है?’’

‘‘जी.’’

‘‘इस के बाद उस ने फिर दोबारा उस से संपर्क करने की कोशिश नहीं की?’’

‘‘जहां तक मुझे पता है, नहीं.’’

‘‘वह घर के अंदर कैसा महसूस कर रही है, तुम ने यह जानने की भी कोशिश नहीं की? तुम ने उसे किसी काउंसलर के पास जाने को भी नहीं कहा.’’

‘‘नहीं’’

‘‘उसे ही नहीं, तुम्हें भी काउंसलर के पास जाना चाहिए.’’

‘‘मुझे क्यों? मेरे साथ क्या हुआ है?’’

‘‘तुम भी अपने दोस्त के साथ हुए हादसे की वजह से सदमे में हो. तुम्हें अपराधबोध हो रहा है. तुम ने अपने दोस्त की मदद नहीं की. तुम्हें भी काउंसलिंग की जरूरत है.’’

मैं ने दीदी की ओर ताकते हुए कहा, ‘‘हां दीदी, मुझे और विद्या, दोनों को मदद की जरूरत है.’’

‘‘दीदी अपने काम पर लग गईं. उन्होंने सब से पहले मेरे मम्मीपापा और रमेश से वह सब कुछ बताया. मेरे मम्मीपापा हैरान रह गए. उन्हें जैसे होश ही नहीं रहा, जबकि भाई तो गुस्से से पागल हो गया. वह खुद पर आरोप लगाने लगा कि उस की समझ में यह बात क्यों नहीं आई कि मेरे व्यवहार में बदलाव आ गया है.’’

इस के बाद दीदी ने विद्या को बहाने से अपने घर बुलवाया. उस के आने पर दीदी और मेरे मम्मीपापा ने उस से बात की. पहले तो विद्या पागलों की तरह इस तरह की किसी बात से इनकार करती रही. लेकिन जल्दी ही वह टूट गई और मेरी मम्मी की बाहों में रोते हुए उस ने अपने ऊपर होने वाले अत्याचार की पूरी कहानी सुना दी. दीदी ने उस की यह बात मान ली कि उस के मम्मीपापा को इस बारे में कुछ नहीं बताएंगी. लेकिन एएसल के सदस्यों ने महेश और सचिन को पकड़ कर कहा कि उन्होंने एक नाबालिग के साथ दुष्कर्म किया है, इसलिए पुलिस से शिकायत कर के उन्हें कड़ी से कड़ी सजा दिलाई जाएगी. लेकिन वे अपना अपराध लिखित में स्वीकार कर के वादा करें कि अब वे ऐसा नहीं करेंगे तो उन्हें माफ किया जा सकता है.

दोनों ने वही किया, जैसा एएसएल के सदस्यों ने कहा. इस के बाद स्वाति दीदी ने दोनों की काउंसलिंग कराई. विद्या की भी काउंसलिंग कराई गई. कई सत्र के बाद विद्या रेप के सदमे से उबरी. इस से उस का खोया आत्मविश्वास वापस आ गया. अब मैं भी खुद को काफी बेहतर महसूस कर रही हूं, लेकिन मुझे नहीं लगता कि मैं कभी इस अपराधबोध से उबर सकूंगी कि मैं ने तब अपनी दोस्त की मदद नहीं की, जब उसे मेरी सब से ज्यादा जरूरत थी. Crime Stories

 

Emotional Hindi Story: एक बेबसी एक अफसाना

Emotional Hindi Story: बरसों बाद जमील अपने पुराने घर के दरवाजे पर खड़ा था. इस के बावजूद वह अपने घर की सांकल खटका कर अपनी मां से क्यों नहीं मिल सका. हर किसी की नजरें उस के थिरकते पैरों पर टिकी थीं. लाल बौर्डर का गुलाबी अनारकली कुर्ता, काला पैजामा और काला सितारे जड़ा दुपट्टा लहरालहरा कर वह लशकारे मार रहा था. उस के दोनों साथियों की आवाजें जोश में बुलंद हो रही थीं. तालियों की थाप ने एक समां सा बांध रखा था. उन के फिल्मी गाने की लय मदहोश करने वाली थी, इसलिए सुनने वालों के भी कदम थिरक रहे थे.

औरतें और मर्द दूल्हे के सिर पर बेल उतार कर रुपए उन दोनों की झोलियों में डाल रहे थे. कदमों की थिरकन ऐसी थी, जैसे पांवों में बिजली भरी हो. अब तक गोरे खूबसूरत चेहरे पर पसीने के कतरे चमकने लगे थे. अचानक सुर रुक गए, कदम थम गए और वह थकी सी दरवाजे से टिक कर बैठ गई. उसे भीड़भाड़, रुपएपैसे और इस तमाशे से घबराहट सी होने लगी. किसी मेहरबान हाथ ने उस का थका चेहरा देख कर शरबत का गिलास पकड़ा दिया. शरबत पी कर उसे ताजगी सी महसूस हुई. वह चुपचाप दरवाजे से बाहर निकल गई. खानापीना बाकी था. उन्हें भी खा कर जाने के लिए कहा गया था.

शादी ठेकेदार के बेटे की थी. उन्हें खास खबर भिजवा कर पेटलाद से बड़ौदा बुलवाया गया था. अच्छीखासी कमाई की उम्मीद थी. लेकिन बड़ौदा की जमीन पर कदम रखते ही जैसे उस का दिल बेकाबू होने लगा था. एक अजीब सी उदासी उस की रगरग में उतरने लगी थी. गलियां जानीपहचानी थीं, वह घना बरगद का पेड़, उस के पास पुराने मकान की ड्योढ़ी, लकड़ी के दरवाजे, लंबी, जंग लगी सांकल, वह दरवाजे से टेक लगा कर बैठ गई. अंदर ही अंदर घुटती बेआवाज सिसकियां आंसुओं के रूप में उमड़ पड़ीं. जुदाई का अनकहा दुख प्यासी ड्योढ़ी को भिगोने लगा. लाख दिल चाहा कि सांकल बजा दे, पर हिम्मत नहीं हुई. इस दरवाजे से निकलने का मंजर एक बार फिर आंखों के आगे ताजा हो गया.

इस दुनिया में मर्द औरत के अलावा एक तीसरी जिंस भी है. उन्हें क्यों बनाया गया, इस का राज तो बनाने वाला ही जाने. उन का अस्तित्व दुनिया वालों में कभी मजाक तो कभी घृणा तो कभी तरस की वजह बनता है. लोग इन्हें किन्नर, जनखा, हिजड़ा वगैरहवगैरह कह कर बुलाते हैं. इन किस्मत के मारों की अपनी कोई खुशियां नहीं होतीं. न उन की शादी होती है न बालबच्चे. हां, ये बेचारे दूसरों की शादियों या जन्म पर नाचगा कर दुआएं दे कर जरूर खुशियां हासिल करते हैं, उन्हीं खुशी में अपने अरमान पूरे करते हैं, दुआएं दे कर नजराना वसूल करते हैं. ज्यादातर लोग खुशी से इनाम देते हैं. कभीकभी झिड़कियां और गालियां भी मिलती हैं, पर इन की रोजीरोटी ही नाच, गाना और दुआएं देना है.

आज से 18-19 साल पहले इसी ड्योढ़ी के अंदर एक हंसतीमुसकराती मां एक गोरेचिट्टे, खूबसूरत बच्चे को रेशमी कपड़े पहनाए गोद में लिए बैठी थी और किन्नर नाचगा कर दुआएं दे कर नजराना वसूल रहे थे. सारे घर में खुशी का माहौल था. मेहमान खानेपीने में व्यस्त थे. खाने की खुशबू, लोगों से उसे जो बधाइयां मिल रही थीं, उस से बच्चे की मां मैमूना के चेहरे पर बेटे की मां होने का गर्व और ममता का नूर था. पहले बच्चे के जन्म पर जी भर कर खुशियां मनाई गईं. उस का जन्म शानदार याद बन गया. दूसरा बेटा सजल जमील के एक साल बाद पैदा हुआ. मैमूना को अहसास हो गया कि जमील में कुछ गड़बड़ है. वह आम बच्चों की तरह नहीं है. शरम और हिचक से वह जमील को सब से छिपा कर तैयार करती, किसी पर कुछ जाहिर न होने देती.

उस के बारे में सोचसोच कर दुखी होती, लेकिन जमाल का चेहरा देख कर दिल खुश हो जाता. गोरा रंग बड़ीबड़ी कजरारी आंखें, खड़ी नाक, गुलाब की पंखुडि़यों की तरह नाजुक गुलाबी होंठ, ऐसी मोहनी सूरत कि निगाह हटाने को जी न चाहे. इतना खूबसूरत बच्चा तीसरी जिंस से ताल्लुक रखता है, यह सोच कर उस का दिल खून के आंसू रोता. इस के बाद बच्चे की मोहनी अदाएं, मीठी आवाज सुन कर खुद को बहला लेती. जमील 5 साल का हुआ तो मैमूना ने बड़े अरमानों से उस का दाखिला सरकारी स्कूल में करा दिया. पर उस के दिल में यही डर बना रहता कि कोई उसे कुछ कह न दे. कुछ वक्त तो ठीकठाक गुजरा, लेकिन उस के बाद जब भी जमील स्कूल से आता, उस की आंखें गीली रहतीं. अनमने ढंग से थोड़ाबहुत खाना खाता तो कभी मां के आंचल में मुंह छिपा कर सिसकने लगता. उस के लिए मां की गोद पेड़ की घनी छांव की तरह थी.

जब बच्चे गलियों में खेलते, मस्ती करते, खामोश उदास जमील मां के पास बैठा काम में उस की मदद करता या चुपचाप कमरे में पड़ा रहता. उसे अहसास हो गया था कि वह दूसरे बच्चों से अलग है. उन के मजाक और तानों ने शायद उस चेता दिया था. ऐसे लोग जिन्हें समाज न मर्दों में गिनता है न औरतों में, उन के लिए पता नहीं क्यों जिंदगी का दायरा इतना तंग हो जाता है, जबकि न वे किसी का कुछ बिगाड़ते हैं न किसी को कुछ तकलीफ पहुंचाते हैं, फिर भी न जाने क्यों उन के लिए लोगों की नजरों में नफरत होती है. 3-4 सालों में ही स्कूल जमील के लिए एक दहशतगाह बन गया. जहां उस के मासूम जेहन पर अश्लील वाक्यों और तानों के हथौड़े पड़ते रहते थे.

कभी उस की चाल का तो कभी उस की आवाज का मजाक बनाया जाता. कभी उस की कमर पकड़ कर गोलगोल घुमा दिया जाता. आखिर उस की हिम्मत जवाब दे गई और उस ने मां से साफसाफ कह दिया कि अब वह स्कूल नहीं जाएगा. मैमूना उस का दुख समझती थी. सोचा कुछ दिनों में समझाबुझा कर राजी कर लेगी. मगर उस पर कयामत तब टूटी, जब छोटे बेटे सजल ने उस से कहा, ‘‘मैं भाई के साथ स्कूल नहीं जाऊंगा. अगर भाई उस स्कूल में पढ़ेगा तो मैं पढ़ाई छोड़ दूंगा. सब लड़के उस के साथ मेरा भी मजाक उड़ाते हैं, आप भाई को घर पर ही रखो.’’

यह सुन कर मैमूना सन्न रह गई. उस दिन देर रात तक मैमूना और उस का शौहर आसिम इस मसले का हल ढूंढ़ते रहे, पर मायूसी के सिवा कुछ हाथ न आया. आसिम भी जमील को बहुत प्यार करता था. उसे जमाने की गरम हवा से बचा कर रखना चाहत था. पर समस्या ऐसी थी कि वह कुछ करने में नाकाम था सिवाय आंसू भरी आंखों से देखने के. अब तो हमदर्दी भी बेअसर लगती थी. जमील ने स्कूल जाना बंद कर दिया था. अब वह सिर्फ मसजिद जाता था. मौलाना उसे बहुत पसंद करते थे. वह उसे कुरानशरीफ के साथसाथ दूसरी किताबें भी पढ़ाते थे, पर वहां भी कभी कोई मिल जाता, जो उस के दिल को चोट पहुंचा देता.

कभीकभी जमील जिंदगी से बेजार हो कर कहता, ‘‘अम्मी, आप ने मुझे क्यों पैदा किया? काश! पैदा होते ही मुझे मार दिया होता तो आज मुझे ये कष्ट नहीं सहने पड़ते. आखिर मेरे साथ ऐसा क्या हुआ है, जो लोग मुझे छेड़ते हैं, परेशान करते हैं? सजल को तो कोई कुछ नहीं कहता, वह तो अच्छा है.’’

मैमूना के पास बेटे के इन सवालों का कोई जवाब नहीं होता. उस दिन शाम को वह मसजिद से पढ़ कर लौट रहा था तो कुछ आवारा लड़कों ने उसे घेर लिया और छेड़ने लगे, ‘‘ओए जमीले जरा मटक कर दिखा. क्या लचक है तेरी कमर में क्या नजाकत है, क्या हुस्न है.’’

वह उन से जान छुड़ा कर ड्योढ़ी में दाखिल हुआ. हांफता हुआ वह दहलीज पर बैठ गया. उस का चेहरा आंसुओं से भीगा हुआ था. मां ने दौड़ कर उसे सीने से लगाया, आंचल से आंसू पोंछे. फिर दरवाजा खोल कर उन लड़कों पर चिल्लाने लगी, जो अपनी मस्ती में बरगद के नीचे खडे़ कहेकहे लगा रहे थे. वह कह रही थी, ‘‘नामुरादों, क्यों मेरे बच्चे के पीछे पड़े हो, उस मासूम ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? खुदा का शुक्र अदा करो कि उस ने तुम्हें ठीकठाक पैदा किया, उस के अधूरे बंदों का क्यों मजाक उड़ाते हो?’’

जमील मां की बांहों में बेहोश हो गया. उसे तेज बुखार चढ़ गया. कई दिनों तक वह बुखार में तपता रहा. दूसरी ओर जमील की ज्यादा देखभाल और लाडप्यार से सजल का दिमाग अलग खराब रहता. धीरेधीरे उस की चिढ़ नफरत में बदल गई थी. मैमूना जैसे तलवार की धार पर खड़ी थी. वह उसे कैसे समझाए, कैसे अपनी मजबूरी बताए? काश! वह अपने मासूम बेगुनाह बच्चे को अपने सीने में छिपा सकती. बुखार के बाद से जमील काफी खामोश रहने लगा. वह घर में पड़ा रहता. मौलाना अकसर उस से मिलने आते, उसे दुनिया के दूसरे दुखी लोगों के बारे में बताते. अच्छीअच्छी जानकारी दे कर उसे ढांढ़स बंधाते. धीरेधीरे वह मसजिद जाने लगा और मौलाना से पढ़ने भी लगा. मांबाप ने राहत की सांस ली.

वक्त अपनी रफ्तार से गुजरता रहा. उस दिन सजल को किसी ने जमील के नाम से छेड़ दिया. फिर तो उस ने सारा घर सिर पर उठा लिया. जमील को बहुत बुराभला कहा. मैमूना ने बड़ी मुश्किल से उसे शांत किया. जमील उदास आंखों से आसमान देखता रहा, दिल ही दिल खुदा से शिकवा करता रहा. अजान की आवाज सुन कर वह मसजिद चला गया. दरवाजे पर शोर सुन कर मैमूना दौड़ी आई. दरवाजा खोला तो देखा 2-3 किन्नर खड़े थे. उन्होंने जमील को गोद में उठा रखा था. उसे कई जगह चोटें लगी थीं, नाक और मुंह से खून बह रहा था. उन्होंने बताया कि जमील नमाज पढ़ कर लौट रहा था तो कुछ बदमाश बच्चों ने उसे तंग करना शुरू कर दिया. बच्चों ने उसे नाचने के लिए कहा. जमील से बरदाश्त नहीं हुआ तो उस ने उन्हें पत्थर उठा कर मार दिया.

बस फिर तो कयामत आ गई. सब ने मिल कर जमील को पीटना शुरू कर दिया. उन्होंने देखा तो दौड़ कर उसे उन लड़कों से छुड़ाया और उठा कर यहां ले आए. मैमूना ने उन की मदद से उसे चारपाई पर लिटाया. उस के जख्मों को साफ कर के दवा लगाई. हल्दी डाल कर दूध पिलाया. आसिम भी खबर पा कर दुकान से भागा आया. बेटे को जख्मी और बेहाल देख कर परेशान हो गया. जमील बेबसी से मांबाप और उन किन्नरों को देख रहा था. सब खामोश और उदास थे. उन में से एक बड़ी उम्र का किन्नर अदब से बोला, ‘‘यह बच्चा हमारी तरह है, इसे आप के समाज के लोग जीने नहीं देंगे. यह हमारी अमानत है, इसे आप हमें दे दीजिए. इसे हम बड़े प्यार से रखेंगे. हमारे बीच बच्चे को कुछ अलग होने का अहसास भी नहीं होगा. यह हमारे साथ रचबस जाएगा, वरना यहां यह पिटता रहेगा और घुटघुट कर जीता रहेगा.’’

वह मैमूना और आसिम के आगे हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया. मैमूना बिलख उठी, ‘‘मैं अपने दिल के टुकड़े को कैसे तुम्हें दे दूं, मैं इस के बिना कैसे रहूंगी?’’

सजल चीख पड़ा, ‘‘अम्मी इसे जाने दो, यहां यह न खुद सुख से रहेगा और न हमें रहने देगा. हमेशा हमारी जिंदगी में परेशानी और जिल्लत बना रहेगा.’’

वही किन्नर फिर बोला, ‘‘साहब, आप क्यों इस मासूम बच्चे की जिंदगी नरक बना रहे हैं. यहां इसे सिवाय दुख के और कुछ नहीं मिलेगा. यह हमेशा हीनभावना में घुटता रहेगा.’’

आसिम ने भर्राई आवाज में कहा, ‘‘मैमूना, जमील को इन के साथ जाने दो. शायद वहां यह इन सब के साथ खुश रह सके. यहां तो हम इसे नफरत और तिरस्कार के अलावा और कुछ नहीं दे सकते. यही इस का नसीब है. हम कुदरत से नहीं लड़ सकते.’’

जमील को मैमूना ने सीने से लगा लिया. रो कर कहने लगी, ‘‘नहीं…नहीं, मैं अपने लाल को किसी को नहीं दे सकती.’’

आसिम ने उठ कर उस से जमील को अलग करते हुए कहा, ‘‘मैमूना, तुम्हारी ममता जमील को बरबाद कर देगी, इसे जाने दो.’’

जमील को खूब प्यार करने के बाद आसिम ने उसे किन्नरों को सौंप दिया. उन्होंने बड़े प्यार से किसी कीमती चीज की तरह उसे समेट लिया. जमील फटीफटी आंखों से अपनी किस्मत का फैसला होते देख रहा था, पर जुबां चुप थी, आंसू बह रहे थे. तीनों किन्नर उसे संभाल कर रिक्शे पर बैठ कर चले गए. ड्योढ़ी पर बैठी मां सिसकती रही. जहां वे लोग जमील को ले कर गए थे, वह कस्बा पेटलाद का पुराना सा मोहल्ला था. लकड़ी के फाटक वाला एक बड़ा सा पुराना घर था. एक अधेड़ उम्र किन्नर ने दरवाजा खोला. उस ने सफेद सादी सी साड़ी पहन रखी थी. जब उसे जमील के बारे में बताया गया तो वह प्यार से आगे बढ़ी और जमील का माथा चूम कर गले से लगाते हुए बोली, ‘‘मेरी सोहनी, मेरे चांद परेशान न हो, मुझे अपनी मां समझ. यह दुनिया बड़ी जालिम है. यह हमारा मजाक तो बना सकती है, पर हमें चैन से जीने नहीं दे सकती.’’

जमील के दिमाग में एक कौंध सा लपका, ‘‘क्या अब मुझे इन्हीं लोगों की तरह रहना होगा?’’ उस का मासूम दिल लरज उठा. फिर एक ढांढ़स सी बंधी कि जब लड़के की तरह जीना मुमकिन नहीं तो यही सही. भीगी आंखों से उस ने इस सच को स्वीकार कर लिया. जिंदगी का यही रूप सही.

‘‘न…न मेरी सोहनी रोते नहीं, यह कुदरत की तरफ से एक इम्तहान है, इस में तुझे कामयाब होना है, मुकाबला करना है. खुदा ने तुझे कुछ गुण भी दिए हैं. यह खूबसूरती यह मासूमियत, जिस्म में लचक.’’ एक बुजुर्ग किन्नर ने उसे तसल्ली दी.

अब जमील की जिंदगी एक नए ढर्रे पर चल पड़ी. धूमधाम से उस का नया नाम रखा गया, ‘सोहनी.’ ढेर से रेशमी रंगबिरंगे कपड़े दिलाए गए. मेकअप का सामान, आर्टीफिशियल गहने भी. इन चीजों से उस का हुस्न लड़कियों को मात देता था. एक डांस मास्टर रखा गया, जिस ने उसे अलगअलग अंदाज के डांस सिखाए. एक तो जमील खूबसूरत था, दूसरे नाजुक जिस्म और होशियार भी, इसलिए जल्दी ही नाचगाने में निपुण हो गया. इस के बाद वह किन्नरों के साथ जाने की तैयारी करने लगा. उस के लिए बढि़या कपड़े बनवाए गए, गहने लाए गए. किसी बड़े आदमी के यहां बरसों बाद बच्चा हुआ था, वे जमील को वहां ले कर गए.

उस के हसीन नाजुक जिस्म, उस के नाचगाने और अदाओं ने धूम मचा दी. खूब महफिल जमी. उस के डांस की फरमाइश किसी हाल न रुक रही थी. आखिर वह थक कर बैठ गई. उस दिन उन की आमदनी हजारों में हुई, कपड़े भी मिले. दूसरे किन्नर भी नाच रहे थे, पर जो बात जमील में थी, वह किसी और में न थी. वह उन लोगों के लिए बहुत लकी साबित हुआ. उन के यहां धन की बरसात होने लगी. उस घर में कुल 6 किन्नर रहते थे. बुर्जुग का नाम चंपा था, जो उन सब की गुरु थी. किन्नरों की बिरादरी का भी एक निजाम होता है. बड़ी उम्र का किन्नर दल का मुखिया होता है, उसे सब गुरु कहते हैं, साथ रहने वाले उस के चेले कहलाते हैं.

जब गुरु बनाया जाता है तो पगड़ी बांधने की रस्म होती है. दावत रखी जाती है, जिस में उन्हीं के बिरदारी के लोगों को बुलाया जाता है. मेहमान तोहफे और पैसे भेंट में देते हैं. शानदार जश्न होता है, जिस में नाचगाने की महफिल भी जमती है. गुरु का काम घर चलाना, खर्च देखना, चेलों को ट्रेंड करना होता है. बीमार पड़े तो दवा इलाज की भी जिम्मेदारी उसी की होती है. प्रोग्राम की तैयारी करवाना, कपड़ों का इंतजाम करना, सब वही करता है. खर्च के बाद हर एक की कमाई का हिसाब रखना, उन के पैसे जमा करना यानी कि पूरा मैनेजमेंट वही देखता है. सब से अच्छी बात यह है कि उन के यहां न कोई हिंदू होता है, न कोई मुसलमान. वहां सब एक हैं. सभी अधूरेपन के धागे से बंधे एक दूसरे के सुखदुख के साथी होते हैं.

कुछ अरसा जमील अपसेट रहा, फिर उस ने अपनी असलियत के साथ जीने का हुनर सीख लिया. उस के रूप और अच्छे नाचगाने की वजह से काफी कमाई होती थी, जो उस के नाम से बैंक में जमा हो रही थी. आज भी वह हाथ बढ़ा कर पैसे नहीं लेता था, उस के साथी ही पैसे जमा करते थे. आज सवेरे जब वह टैक्सी में बैठा तो उसे पता नहीं था कि वे लोग बड़ौदा जा रहे हैं. यहां पहुंच कर उस के जख्म हरे हो गए थे. उसी के मोहल्ले में ठेकेदार के यहां शादी थी. नाचगाने के बाद वह बेहाल, बेखुद सा अपने घर की ड्योढ़ी पर बैठा सिसक रहा था. उस के कांपते हाथों में इतनी ताकत नहीं थी कि वह हाथ उठा कर सांकल खटका देता.

वह फिर से दुखियारी मां को नया गम नहीं देना चाहता था. पीछे टैक्सी से गुलाबी और लाली उतर कर आगे आईं और उसे बांहों में समेट कर गाड़ी में बैठाया. जमील हसरत से अपने घर के दरवाजे को देखता रहा, जो किस्मत ने उस के लिए कब का बंद कर दिया था. Emotional Hindi Story

Love Story: एक बहन ऐसी भी

Love Story: आरती जिस अनमोल को प्यार करती थी, उस की बड़ी बहन पूजा भी उसी से प्यार करती थी. जबकि अनमोल सिर्फ आरती से प्यार करता था. अंत में पूजा ने ऐसा क्या किया कि अनमोल न उस का हो सका और न आरती का  पूजा ने अपनी छोटी बहन को डांटने वाले अंदाज में कहा, ‘‘आरती, मैं ने तुम से कितनी बार कहा कि पड़ोसियों के घरों में ताकझांक मत किया करो, पर तुम हो कि सुनती ही नहीं हो.’’

‘‘नहीं दीदी, मैं ताकझांक नहीं कर रही थी. बिल्ली रसोई की ओर जा रही थी, मैं तो उसे भगा रही थी.’’ आरती ने अपनी सफाई में कहा तो पूजा हलके गुस्से में बोली, ‘‘जानती हूं, कौन सी बिल्ली थी और कौन सा बिल्ला. तुम जल्दी से तैयार हो जाओ, टयूशन का वक्त हो गया है. और हां, सीधे जाना और सीधे लौट आना. रास्ते में बिल्लीबिल्ले का खेल मत खेलना, समझी.’’

आरती बड़बड़ाती हुई कमरे में चली गई और पूजा घर के कामों में लग गई. 17 वर्षीया आरती शर्मा और 20 वर्षीया पूजा शर्मा, दोनों सगी बहनें थीं. दोनों में बहुत प्रेम था. दोनों बहनों की तरह नहीं, बल्कि सखीसहेलियों की तरह मिलजुल कर रहती थीं, मिलबांट कर खाना, मिलबांट कर पहनना, सब कुछ साथसाथ चलता था. लेकिन पिछले करीब 2 महीनों से दोनों बहनें एकदूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाती थीं, खास कर पूजा को आरती. आरती पूजा की आंखों में हर समय खटकती रहती थी, इसीलिए दोनों बहनों में छोटीछोटी बात को ले कर तकरार होने लगती थी. ऐसे में छोटी होने के नाते आरती को ही चुप रह जाना पड़ता था.

लुधियाना के औद्योगिक क्षेत्र ढंडारी खुर्द में वीरेंद्र शर्मा का परिवार रहता था. शर्माजी के परिवार में पत्नी संजू शर्मा व 3 बेटियां क्रमश: पूजा, आरती और कुसुम तथा 10 साल का एक बेटा था. वीरेंद्र शर्मा मूलत: समस्तीपुर, बिहार के निवासी थे. कई साल पहले वह यहां काम की तलाश में आए थे. बाद में जब उन्हें एक इलैक्ट्रिकल फैक्ट्री में काम मिल गया तो उन्होंने किराए का मकान लेकर अपनी पत्नी और बच्चों को भी लुधियाना बुलवा लिया. फिलहाल वह मकान नंबर 950, नजदीक सुजीत सिनेमा, बलदेव सिंह दा बेहड़ा, ढंडारी कला, लुधियाना में रह रहे थे. वीरेंद्र शर्मा ने अपनी पत्नी संजू को भी पास की एक एक्सपोर्ट गारमेंट की फैक्ट्री में अच्छे मासिक वेतन पर लगवा दिया था. परिवार का गुजरबसर बड़े मजे से हो रहा था. पूजा और आरती 10वीं में पढ़ रही थीं. छोटी बेटी कुसुम भी सातंवी में थी. घर में किसी प्रकार की कमी नहीं थी.

वीरेंद्र शर्मा की बड़ी बेटी पूजा पढ़ाई के साथसाथ एक डाक्टर के क्लिनिक पर नर्सिंग एंड कंपाउंडर का काम भी सीख रही थी. शर्मा दंपति के काम पर चले जाने के बाद पूजा ही छोटी बहनों एवं भाई का ख्याल रखती थी. उन के खानपान से ले कर स्कूल भेजने तक का जिम्मा उसी पर था, जिसे वह बखूबी निभा रही थी. लेकिन इन दिनों अपनी छोटी बहन आरती को ले कर पूजा काफी परेशान थी. उस की इस परेशानी का कारण था अनमोल. अनमोल जिस दिन शर्मा परिवार के पड़ोस में रहने आया था, उसी दिन से पूजा की मुश्किलें बढ़ गई थीं. अनमोल 20 साल का सुदंर और स्मार्ट युवक था, स्वभाव से हंसमुख और मिलनसार. वह मूलत: गया, बिहार का रहने वाला था और लुधियाना के फोकल प्वाइंट क्षेत्र की किसी फैक्ट्री में काम करता था.

अपने अच्छे व्यवहार के कारण वह जल्दी ही पूरे मोहल्ले वालों से घुलमिल गया था. मोहल्ले की कई जवान लड़कियां उसे पसंद करती थीं. जबकि अनमोल किसी की ओर आंख तक उठा कर नहीं देखता था. वह बस अपने काम से मतलब रखता था. सुबह जल्दी उठ कर वर्जिश करना, फिर स्नान वगैरह से फारिग हो कर खाना बनाना और साढ़े 8 बजे तक काम पर चले जाना. शाम को 7 बजे काम से लौट कर खाना बनाना, अपने कमरे में बैठ कर टीवी देखना, खाना और उस के बाद सो जाना. अनमोल की रोजाना की यही दिनचर्या थी. छुट्टी वाले दिन भी अधिकांश समय वह अपने कमरे में बैठ कर गुजारता था. आरती ने जब से अनमोल को देखा था, तभी से वह उस की दीवानी बन गई थी. उस की नजरें अक्सर अनमोल का पीछा किया करती थीं.

सुबह काम पर जाने से ले कर, छत पर एक्सरसाइज करने तक आरती अनमोल को देखा करती थी, इस के बावजूद अभी तक उसे अनमोल से बात करने का एक भी मौका नहीं मिला था. उस के मन में यह डर भी बना हुआ था कि कहीं अनमोल उस की किसी बात का बुरा न मान जाए. कमोबेश यही हालात अनमोल की भी थी. वह भी मन ही मन आरती को चाहने लगा था. आरती भी इतनी खूबसूरत थी कि कोई भी उसे देख कर नजरअंदाज नहीं कर सकता था. गोरा रंग, गोल चेहरा, पूरी पीठ पर घने बाल, गुदाज शरीर और गजगामिनी जैसी चाल. मोहल्ले के कई युवक उसे देख कर आहें भरा करते थे, परंतु आरती केवल अनमोल की ओर आकर्षित थी.

चाहत दोनों ओर थी. आखिर एक दिन अनमोल के दिल ने आरती के दिल की बात सुन ली. उस दिन अनमोल के मकान मालिक घर पर नहीं थे. आरती का परिवार भी कहीं गया हुआ था. दोनों अपनेअपने घरों में अकेले थे. आरती को यह मौका सही लगा. वह अपनी नोटबुक उठा कर गणित का एक सवाल पूछने के बहाने अनमोल के कमरे पर जा पहुंची. आरती को इस तरह अपने सामने, अपने कमरे में देख कर अनमोल चौंका. उस ने अपनी घबराहट पर काबू पा कर आरती से पूछा.‘‘आप,आप यहां..?’’

‘‘जी हां, आप से मिलना चाहती थी, इसलिए चली आई.’’

‘‘अच्छा किया आपने. आइए बैठिए.’’ अनमोल ने कहा तो आरती कमरे में बिछे एकमात्र तख्त पर बैठते हुए बोली,‘‘अनमोलजी, सच कहूं, मैं आई तो गणित का सवाल पूछने के बहाने हूं, पर सच्चाई यह है कि मैं आप से दोस्ती करना चाहती हूं,’’ आरती ने अनमोल की आखों में झांकते हुए कहा, ‘‘बताइए, करेंगे मुझ से दोस्ती?’’

आरती द्वारा दिए गए इस खुले निमंत्रण से अनमोल गदगद हो उठा. वह आरती के पास आ कर पर बैठ गया और उस का हाथ अपने हाथ में ले कर बोला, ‘‘आरती, मैं तुम्हें दिल की गहराइयों से प्यार करता हूं. अगर तुम मुझ से शादी करने का वादा करो तो मुझे तुम्हारी दोस्ती स्वीकार है, मैं केवल टाइम पास करने के लिए तुम से दोस्ती नहीं करना चाहता.’’

अनमोल की बातें सुन कर आरती जैसे उस की दीवानी हो गई. उस ने अपने आप को अनमोल की बाहों के  हवाले करते हुए मन की गहराइयों से कहा, ‘‘मैं मरते दम तक अपना प्यार निभाऊंगी अनमोल.’’

उस दिन के बाद से आरती और अनमोल के बीच प्रेम का अटूट बंधन बंध गया. इस के बाद आरती के स्कूल जाते समय रास्ते में, अनमोल के काम पर जाने या वापस लौटते वक्त, फिर सुबह छत पर उस के वर्जिश करते समय, जहां कहीं भी मौका मिलता, दोनों मिल लेते. इस मामले में दोनों बहुत ऐहतियात बरतते थे कि किसी को उन के प्रेम की भनक न लगे. पर इश्कमुश्क ऐसी चीजें हैं, जो कभी छिपाए नहीं छिपतीं. आखिर एक दिन उन दोनों की प्रेम कहानी की भनक आरती की बहन पूजा को लग ही गई. एक बार अनमोल के मकान मालिक 2 दिनों के लिए शहर से बाहर गए हुए थे. शर्मा दंपति अपनेअपने काम पर चले गए. पूजा की छोटी बहन और भाई स्कूल गए हुए थे. दोपहर बाद पूजा डाक्टर के क्लिनिक पर चली गई. घर पर केवल आरती ही थी. उस दिन अनमोल ने भी काम से छुट्टी ले रखी थी और अपने कमरे पर आरती का इंतजार कर रहा था.

पूजा के क्लिनिक पर चले जाने के बाद आरती अनमोल के कमरे पर पहुंच गई. अंदर से कमरे का दरवाजा बंद कर के दोनों एकदूसरे की बाहों में समा गए. जब 2 युवा दिल एकदूसरे की बाहों में सिमट कर एक साथ धड़कने लगते हैं तो सारी दूरियां खुद ब खुद खत्म हो जाती हैं. आरती और अनमोल के साथ भी यही हुआ. सारे बंधन तोड़ कर अनमोल और आरती एकाकार हो गए. इत्तफाक से उस दिन किसी वजह से पूजा क्लिनिक से घर लौट आई . उस वक्त घर पर आरती नहीं थी.

‘घर खुला छोड़ कर कहां चली गई यह लड़की?’ बड़बड़ाते हुए पूजा आरती को खोजने के लिए घर से बाहर निकल आई. तभी अचानक उस की नजर साथ वाले मकान पर गई. पूजा ने देखा, आरती अनमोल के कमरे से बाहर निकल रही थी. उस के पीछे अनमोल भी था. आरती के बाल और कपड़े अस्तव्यस्त थे. आरती की हालत देख कर पूजा को समझते देर नहीं लगी कि आरती अनमोल के साथ बंद कमरे में कौन सा खेल खेल कर निकली है. पूजा को खड़ा देख कर अनमोल अपने कमरे में लौट गया, जबकि आरती सिर झुकाए अपने घर आ गई. पूजा ने आरती को आड़े हाथों लिया और साथ ही कभी फिर अनमोल से न मिलने की चेतावनी दी.

पूजा ने उसे कलमुंही, बदचलन और बेशरम तक कहा. आखिर अपने अपमान से तिलमिला कर आरती ने अपने और अनमोल के संबंधों के बारे में सब कुछ उजागर करते हुए कह दिया, ‘‘दीदी, मैं कोई आवारा या बदचलन नहीं हूं. मैं अनमोल से प्यार करती हूं और हम दोनों शादी करना चाहते हैं.’’

‘‘अच्छा, अपनी अय्याशी को प्यार का नाम दे कर प्रेम शब्द को ही बदनाम करने लगी. अभी तू इतनी बड़ी नहीं हुई है कि अपनी शादी के फैसले खुद ही करने लगी,’’ पूजा ने चीखते हुए कहा, ‘‘एक बात कान खोल कर सुन ले. तेरी या मेरी शादी वहीं होगी, जहां मम्मीपापा चाहेंगे.’’

अनमोल को ले कर दोनों बहनों में खूब तकरार हुई. बढ़तेबढ़ते बात यहां तक पहुंच गई कि आरती ने चुनौती दे दी कि वह अनमोल से शादी कर के दिखाएगी. जबकि पूजा कह रही थी कि उस के जीते जी उस का यह सपना पूरा नहीं होगा. दरअसल, आरती को अनमोल से मिलने के लिए रोकना पूजा का फर्ज नहीं, बल्कि स्वार्थ था. वह अनमोल पर बुरी तरह से फिदा थी और चाहती थी कि उस की शादी अनमोल से हो जाए. अपने इसी स्वार्थ की वजह से पूजा ने आरती और अनमोल के संबंधों को ले कर अपने मम्मीपापा के कान भरने शुरू कर दिए. उन्होंने भी आरती को खूब बुराभला कहा और घर से बाहर निकलने पर पाबंदी लगा दी.

दरअसल, आरती पटना में अपने दादादादी के पास रह कर पढ़ती थी. यहां वह केवल एग्जाम की तैयारी के लिए आई थी, ताकि पढ़ने में आसानी रहे. पटना में आरती के एग्जाम 17 मार्च को शुरू होने थे. 13 मार्च, 2015 को आरती को अपने पिता वीरेंद्र शर्मा के साथ एग्जाम देने पटना जाना था. इस के लिए अभी एक, डेढ़ महीने का समय था. इसलिए वीरेंद्र शर्मा ने पूजा को सख्त निर्देश दे कर आरती पर नजर रखने का जिम्मा सौंप दिया. कहते हैं, प्रेमियों पर अगर अंकुश लगा दिया जाए तो उन की भावनाएं और ज्यादा भड़कती हैं. यही हाल आरती का भी हुआ. हर वक्त पूजा द्वारा रोकटोक करने से आरती इतना परेशान हो गई कि एक दिन दोपहर के समय वह पूरी तैयारी के साथ अनमोल की फैक्ट्री जा पहुंची.

उस ने अनमोल को सब कुछ साफसाफ बता कर कहा ‘‘अनमोल, मैं रोजरोज के लड़ाईझगड़ों से तंग आ चुकी हूं. इसलिए आज मैं हमेशा के लिए अपना घर छोड़ कर तुम्हारे पास आ गई हूं. हम दोनों शादी कर के अपनी अलग दुनिया बसाएंगे, जहां रोकनेटोकने वाला कोई नहीं होगा.’’

आरती का इरादा जानने के बाद अनमोल घबरा गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि उसे कैसे समझाए. ऐसा नहीं था कि अनमोल आरती से प्यार नहीं करता था. वह वाकई उसे बहुत चाहता था, वह उस से अलग रहने की कल्पना तक नहीं कर सकता था, लेकिन जैसा आरती कह रही थी, ऐसा करने के लिए उस ने अभी सोचा नहीं था. अनमोल चाहता था कि यह शादी आरती के मातापिता के आशीर्वाद से हो. लेकिन जब आरती अपनी जिद पर अड़ी रही तो वह उसे अपने एक दोस्त के घर ले गया. 2 दिनों तक दोनों उस दोस्त के घर ठहरे. इस बीच वह आरती को हर तरह से समझाने का प्रयास करता रहा. उस ने आरती से वादा किया कि जल्द ही वह अपने मातापिता से बात कर के उन्हें उस के मम्मीपापा के पास भेजेगा. इस वादे के बाद आरती अपने घर वापस लौटने को तैयार हो गई.

इधर आरती के लापता होने से शर्मा दपंति परेशान थे, सब से अधिक पेरशानी पूजा को थी. उसे डर था कि कहीं आरती और अनमोल शादी न कर लें. खैर, सब मिल कर आरती को ढूंढते रहे. इसी बीच 2 दिनों बाद आरती सकुशल घर लौट आई तो सब ने चैन की सांस ली. शर्मा दंपति ने तय किया कि आरती पर अब भविष्य में इतनी सख्ती न की जाए. लेकिन पूजा अपनी हरकतों से बाज नहीं आई. मौका मिलते ही वह आरती को जलीकटी सुनाने से बाज नहीं आती थी. बहरहाल वक्त इसी तरह गुजरता रहा. आरती और अनमोल का छिपछिप कर मिलना जारी रहा, दोनों मोबाइल फोन पर भी आपस में बातें कर लिया करते थे. चाह कर भी पूजा आरती का कुछ नहीं बिगाड़ पा रही थी.

28 फरवरी, 2015 की बात है. प्रदीप सिंह अपने घर से खेतों की ओर जा रहा था. रास्ते में उस के ताऊ बलदेव सिंह का मकान पड़ता था. हालांकि बलदेव सिंह इस मकान में नहीं रहते थे. यह मकान उन्होंने वीरेंद्र शर्मा को किराए पर दे रखा था. इस मकान की देखभाल का जिम्मा उन्होंने अपने भतीजे प्रदीप सिंह को सौंप रखा था. प्रदीप सिंह जब अपने ताऊ के घर के पास पहुंचा तो उस ने मकान के अंदर चीखनेचिल्लाने की आवाजें सुनीं.

‘‘बचाओ… बचाओ, मार दिया… ओह.’’ का शोर सुन कर वह रुक गया. तभी उस ने देखा वीरेंद्र शर्मा की बड़ी बेटी तेजी से मकान से निकल कर एक ओर चली गई. उस के पीछे शर्मा की छोटी बेटी कुसुम चिल्लाते हुए निकली, ‘‘पूजा ने आरती को मार डाला, बचाओ.’’

शोर सुन कर प्रदीप सिंह ने मकान के भीतर जा कर देखा तो आरती रसोई में फर्श पर खून से लथपथ पड़ी थी. उस के शरीर पर गहरेगहरे घाव साफ दिखाई दे रहे थे. आरती की छोटी बहन कुसुम जोरजोर से रो रही थी. प्रदीप सिंह ने नीचे झुक कर आरती की नब्ज टटोल कर देखी, वह मर चुकी थी. समय व्यर्थ न करते हुए प्रदीप सिंह ने तुरंत इस घटना की सूचना थाना फोकल प्वाइट को दी, साथ ही उस ने वीरेंद्र शर्मा को भी आरती की मौत के बारे में बता दिया. वह अभी फोन कर के हटे ही थे कि अस्पताल की एंबुलैंस वहां आ गई. दरअसल पुलिस को गुमराह करने के लिए पूजा ने ही 108 नंबर पर एंबुलैंस के लिए फोन किया था कि उस की छोटी बहन आरती गिर कर घायल हो गई है.

कुछ ही देर में थाना फोकल प्वाइंट के थानाप्रभारी इंसपेक्टर सुरेंद्र सिंह पुलिस चौकी ढडारी के इंचार्ज एएसआई जोगिदंर सिंह, चौकीइंचार्ज ईश्वर कालोनी एएसआई जसबीर सिंह, हेडकांस्टेबल जसपाल सिंह, कांस्टेबल बलजीत कुमार व लेडी कांस्टेबल किरनपाल घटनास्थल पर पहुंच गए. घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया गया. मृतका आरती के शरीर पर अनगिनत गहरे घाव थे, जिन में से उस समय भी खून रिस रहा था. घाव देख कर ऐसा लगता था, जैसे मृतका की हत्या गहरी रंजिश और नफरत के तहत की गई थी. जिस छुरी से उस की हत्या की गई थी, वह भी घटनास्थल से बरामद हो गई थी. कुछ ही देर में क्राइम टीम व डीसीपी जसवंत संधु, एसीपी रूपेंद्र कौर तथा मृतका के मातापिता भी घटनास्थल पर पहुंच गए थे. क्राईम टीम ने कई कोणों से लाश के फोटो लिए और कई जगह से फिंगरप्रिंट उठाए.

सुरेंद्र सिंह ने मृतका के पिता वीरेंद्र शर्मा और मां संजू शर्मा के बयान लिए गए. वीरेंद्र शर्मा के अनुसार, मृतका आरती के पड़ोस में रहने वाले युवक अनमोल के साथ प्रेमसंबंध थे. घटना वाले दिन से पहले 27 फरवरी को अनमोल उन के पड़ोस वाला कमरा खाली कर के कहीं चला गया था. इसी बात को ले कर आरती की अपनी बड़ी बहन पूजा के साथ तकरार हुई थी. शायद वैसा आज भी हुआ हो और उसी झगड़े में आरती की हत्या हो गई हो. बहरहाल, सुरेंद्र सिंह ने मृतका के पिता व पड़ोसियों के बयान दर्ज करने के बाद लाश को अपने कब्जे में ले कर लाश पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भिजवा दी. थाने लौट कर सुरेंद्र सिंह ने इस मामले को पूजा को नामजद करते हुए हत्या का मुकदमा दर्ज कर उस की तलाश शुरू कर दी.

अपनी बहन आरती की हत्या कर के पूजा घटनास्थल से फरार तो हो गई थी, पर उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह कहां जाए? क्योंकि उस समय उस के पास एक भी पैसा नहीं था. यह बात सुरेंद्र सिंह भी अच्छी तरह जानते थे. वह यह भी समझते थे कि अक्सर बिना पैसे वाले लोग ट्रेन में ही यात्रा करते हैं. इसलिए उन्होंने एएसआई जसबीर सिंह को ढंडारी रेलवे स्टेशन की ओर भेजा. इंसपेक्टर सुरेंद्र सिंह का अनुमान सही निकला. ढंडारी रेलवे स्टेशन के पास से ही एएसआई जसबीर सिंह ने पूजा को गिरफ्तार कर लिया.

थाने में हुई पूछताछ में पूजा ने स्वीकार कर लिया कि गुस्से में उसी ने अपनी छोटी बहन आरती की हत्या की थी. पूजा ने बताया कि आरती के पड़ोस में रहने वाले अनमोल के साथ प्रेमसंबंध थे. आरती के संबंध का पूरा परिवार विरोध करता था. पिताजी की इच्छा थी कि आरती पढ़लिख कर उच्चशिक्षा प्राप्त करे. 17 मार्च, 2015 को आरती के एग्जाम पटना सरकारी स्कूल में होने वाले थे. पिताजी उसे ले कर 13 मार्च को पटना जाने वाले थे. अनमोल ने जब हमारे पड़ोस वाला कमरा खाली किया तो हमें संदेह हुआ कि कहीं आरती और अनमोल की यह कोई चाल न हो. अनमोल ने शायद किसी योजना के अंतर्गत कमरा खाली किया है.

अब दोनों घर से भाग जाना चाहते हैं. क्योंकि इस घटना से लगभग डेढ़ महीना पहले आरती कहीं चली गई थी. अनमोल भी 2 दिन अपने घर से गायब रहा था. 2 दिनों बाद आरती घर लौट आई थी. हमें संदेह था कि आरती अनमोल, दोनों घर से भागने की नीयत से गायब हुए थे और किन्हीं कारणों से वापस लौट आए थे. इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए जब अनमोल ने अपना कमरा खाली किया तो हमें संदेह हुआ कि यह आरती और अनमोल के घर से भागने की योजना है. यह बात मैं ने मातापिता को बता कर अपना संदेह व्यक्त किया और उसी दिन से मैं आरती पर नजर रखने लगी. अनमोल के कमरा बदलने के बाद आरती लगातार फोन द्वारा अनमोल से संपर्क बनाए रही.

घटना वाले दिन भी सुबहसुबह काफी देर आरती फोन पर किसी से बातें करती रही. मुझे यकीन था कि वह फोन अनमोल का ही था. उस के बाद मैं नहाने के लिए बाथरूम में गई. नहाने के लिए जैसे ही मैं कपड़े उतारने लगी, तभी जिद कर के आरती जबरदस्ती नहाने बैठ गई. उस ने कहा.‘‘सौरी दीदी, मुझे जरा जल्दी है, कहीं जाना है.’’

उस की यह बात सुन कर मुझे विश्वास हो गया कि आरती अनमोल के साथ भाग जाने वाली है. अभी मैं यह सोच ही रही थी कि तभी आरती के फोन पर किसी का फोन आया. नहाना छोड़ कर आरती फोन सुनने लगी. मैं ने आरती को यह कहते सुना, ‘तुम थोड़ा इंतजार करो, मैं तैयार हो कर अभी आती हूं.’

यह सुनते ही मेरा संदेह विश्वास में बदल गया. मैं ने आरती से पूछा, ‘‘क्या तुम अनमोल के साथ कहीं भाग जाना चाहती हो?’’

मेरी बात सुन कर आरती आगबबूला हो गई, जैसे उस की चोरी पकड़ी गई हो. उस ने चिल्लाते हुए कहा, ‘तुम ऐसे ही मेरा पीछा करोगी तो नहीं भागना होगा, तब भी भाग जाऊंगी.’ आरती की इस विद्रोही भाषा से मेरे तनबदन में आग लग गई. मैं ने आव देखा न ताव, पास में पड़ी सब्जी काटने वाली छुरी उठा कर आरती पर अंधाधुंध वार कर के उस की हत्या कर दी. जो लड़की कुल की मर्यादा को कलंकित करे, उस का मर जाना ही बेहतर है. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, आरती के शरीर पर कुल 20 घाव थे. सब से घातक घाव वे थे जो आरती के पेट पर किए गए थे. इन्ही घावों की वजह से आरती के फेफड़े फट गए थे और हार्ट पंक्चर हो गया था, जिस से उस ने दम तोड़ दिया था.

पूछताछ के बाद एसआई अश्विनी कुमार ने 1 मार्च, 2015 को पूजा को सीजीएम रणजीव कुमार की आदलत में पेश कर के 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. हत्या में प्रयुक्त छुरी पहले ही बरामद हो चुकी थी, सो रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद पूजा को 3 मार्च, 2015 को अदालत में दोबारा पेश किया गया, जहां से उसे न्यायिक अभिरक्षा में जिला कारगार भेज दिया गया. Love Story

कथा पुलिस सुत्रों पर आधारित.

 

Gujarat Crime Story: पूत जब बना कपूत

Gujarat Crime Story: अदनान की बुरी आदतों से परेशान हो कर पिता ने उसे घर से ही नहीं निकाल दिया, बल्कि अपनी जायदाद से भी बेदखल कर दिया. इस के बाद अपना हक पाने के लिए अदनान ने जो किया, क्या वह उचित था.रोज की तरह शुक्रवार 20 मार्च, 2015 की रात लगभग 8 बजे फर्नीचर सामग्री के व्यापारी खुजेमा बैगवाला अपनी दुकान बंद कर के मोटरसाइकिल से सैफीनगर स्थित अपने घर की ओर चल पड़े. अलग मोटरसाइकिल से उन के 2 कर्मचारी भी उन के साथसाथ चल रहे थे. 57 वर्षीय खुजेमाभाई ने जैसे ही अपने मोहल्ले में प्रवेश किया, अचानक एक मोटरसाइकिल उन के बराबर में आई, जिस पर 2 लोग सवार थे. मोटरसाइकिल चला रहे व्यक्ति ने हेलमेट पहन रखा था, जबकि पीछे बैठे व्यक्ति ने अपने चेहरे पर कपड़ा बांध रखा था.

उस के पीछे एक अन्य मोटरसाइकिल पर अपने चेहरों पर कपड़े बांधे 2 युवक और चल रहे थे. दोनों मोटरसाइकिलें खुजेमाभाई के करीब आईं तो उन चारों में से किसी ने चिल्ला कर कहा, ‘यही है खुजेमा?’ उस का इतना कहना था कि खुजेमाभाई कुछ समझ पाते, उन के बगल चल रही मोटरसाइकिल पर पीछे बैठे व्यक्ति ने तमंचा निकाला और उन पर गोली चला दी. गोली खुजेमाभाई के बाएं कान के पास लगी. गोली लगते ही वह मोटरसाइकिल सहित सड़क पर गिर पड़े और बेहोश हो गए.

आसपास के लोग मामला समझ पाते, खुजेमाभाई पर हमला करने वाले दोनों मोटरसाइकिल सवार फरार हो गए. खुजेमाभाई के साथ चल रहे उन के दोनों कर्मचारी घबरा गए. तुरंत भीड़ लग गई. एंबुलैंस को फोन किया गया. एंबुलैंस आई, साथ आए डाक्टर ने खुजेमा की जांच की. गोली बाईं ओर कान के पास लगी थी, जिस से खून बह रहा था. खुजेमा की सांस चल रही थी. उन्हें तुरंत घटनास्थल से मात्र एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित इंदौर के चोईराम अस्पताल ले जाया गया. खुजेमाभाई को तुरंत भरती कर के औपरेशन की तैयारी शुरू कर दी गई. घटना की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को भी दे दी गई थी, जिस से घटनास्थल से संबंधित थाना जूनी के थानाप्रभारी पवन सिंघल तो अस्पताल पहुंचे ही, अन्य पुलिस अधिकारी भी धीरेधीरे वहां पहुंचने लगे. अस्पताल के डाक्टरों ने तुरंत औपरेशन कर के खुजेमाभाई के कान के पास फंसी गोली, जो खोखे सहित थी, निकाल लिया था.

खुजेमाभाई पर हमले की खबर जैसेजैसे सैफीनगर मोहल्ले में फैलती गई, लोग इकट्ठा होते गए. सैफीनगर में लगभग 95 प्रतिशत बोहरा समाज के लोग रहते हैं और खुजेमाभाई भी बोहरा समाज के ही हैं. खुजेमाभाई न केवल एक बड़े और प्रतिष्ठित व्यापारी थे, समाज में भी उन की काफी इज्जत थी. वह मृदुभाषी होने के साथ समाज की सेवा के लिए भी हमेशा सब से आगे रहते थे. यही वजह थी कि पूरी रात उन की समाज के लोग अस्पताल में मजमा लगाने के साथसाथ वे पुलिस से जल्दी से जल्दी हमलावरों की गिरफ्तारी की मांग करते रहे.

अगले दिन यानी 21 मार्च, दिन शनिवार की सुबह जब डाक्टरों ने खुजेमाभाई को खतरे से बाहर बताया तो उन के घर वालों को ही नहीं, समाज और पुलिस की भी जान में जान आई. अस्पताल में खुमेजाभाई का हालचाल पूछने वालों का तांता लगा था. लेकिन डाक्टरों ने साफ कह दिया था कि अभी वह किसी से नहीं मिल सकते. केवल घर के 2 लोग ही उन के पास रह सकते थे. वह भी इस शर्त पर कि कोई भी खुजेमाभाई से बात नहीं करेगा. इस के बावजूद अस्पताल के बाहर उन के समाज के लोगों की भीड़ लगी थी. बोहरा समाज के दबाव की वजह से पुलिस तेजी से हरकत में आ गई थी. थानापुलिस एवं क्राइम ब्रांच की टीमें जांच में जुट गई थीं. फोरेंसिक एक्सपर्ट डा. सुधीर शर्मा ने खुजेमाभाई के कान के पास से निकली गोली देखी तो वह सिहर उठे. गोली खोखा समेत थी.

उन्होंने बताया कि यह गोली जिस तमंचे से चलाई गई थी, उस में कोई खराबी थी, वरना अगर यह गोली सही तरीके से सही तमंचे से चली होती तो खुजेमाभाई के सिर के परखच्चे उड़ जाते. ऐसी गोली को ‘बर्स्ट बोल’ कहा जाता है. यह गोली पिस्टल से निकल कर आदमी के शरीर से टकराती है तो बम की तरह फट जाती है. उस स्थिति में आदमी का बचना बेहद मुश्किल होता है. 2 दिनों बाद खुजेमाभाई को आईसीयू से प्राइवेट वार्ड में शिफ्ट किया गया तो वह स्वयं को काफी अच्छा महसूस कर रहे थे. इस के बाद डाक्टरों ने मिलने की इजाजत दे दी थी, लेकिन बात करने और एक समय में 2 से अधिक लोगों के अंदर जाने से साफ मना कर दिया था.

पुलिस अपने हिसाब से हमलावरों तक पहुंचने की पूरी कोशिश में लगी थी. दूसरी ओर बोहरा समाज के जो लोग पुलिस के आला अधिकारियों से ज्ञापन देने की तैयारी कर रहे थे, तभी उन्हें एक बड़ा झटका तब लगा, जब समाज में हो रही यह खुसुरफुसुर उन के कानों में पड़ी कि खुजेमाभाई पर परिवार के ही किसी सदस्य ने हमला किया है या फिर किराए के हमलावरों से कराया है. इस के बाद समाज के लोगों ने पुलिस अधिकारियों से मिलने का अपना कार्यक्रम स्थगित कर दिया. थानाप्रभारी पवन सिंघल को जांच के दौरान अपने किसी मुखबिर से पता चला था कि खुजेमाभाई का बड़ा बेटा अदनान इस घटना के लिए जिम्मेदार हो सकता है.

क्योंकि उस की अपने पिता से गहरी अनबन चल रही थी. इस के बाद पवन सिंघल ने अदनान को उस के घर से उठवा लिया. थाने में उस से पूछताछ की गई तो वह अकड़ गया, ‘‘मेरे ही बाप को गोली मारी गई है और आप लोग हमलावरों को पकड़ने के बजाय मुझे ही पकड़ लाए हैं.’’

लेकिन ज्यादा समय तक अदनान की अकड़ कायम नहीं रह सकी. जब पुलिस ने अपने सवालों से उसे घेरा तो वह टूट गया. उस ने पिता को जान से मरवाने की जो साजिश रची थी, उस का अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद उस ने पिता की हत्या की जो साजिश रची थी, उस की पूरी कहानी पुलिस को सुना दी, जो कुछ इस तरह थी. इंदौर के मोहल्ला सैफीनगर में रहने वाले बोहरा समाज के खुजेमा बैगवाला की 3 संतानें थीं, 27 साल का बड़ा बेटा अदनान, उस से छोटा 22 साल का अली अकबर और सब से छोटी 12 साल की बेटी. खुजेमाभाई का फर्नीचर सामग्री का विशाल शोरूम इंदौर के महंगे इलाके सपना संगीता रोड पर था, जिस में फोम, रैक्सीन, कपड़े आदि मिलते थे.

उन के इस शोरूम का नाम एलिगेंट फोम एंड फर्निशिंग प्रा.लि. था. खुजेमा ने अपनी सूझबूझ से कारोबार में दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की की थी. कई नौकरों और अपने बड़े बेटे अदनान के साथ वह अपने इस शोरूम को चला रहे थे. कारोबार बढि़या चल रहा था, किसी चीज की कमी नहीं थी. दौलत की रेलमपेल थी. लेकिन कभीकभी अधिक पैसा भी अभिशाप बन जाता है. कुछ ऐसा ही खुजेमाभाई के साथ भी हुआ. उन का बड़ा बेटा अदनान गलत संगत में पड़ गया. उस की गलत आदतों और अनापशनाप खर्च को देख कर खुजेमाभाई चिंतित रहने लगे थे.

उन्होंने अदनान को खूब समझाया कि वह गलत संगत और गलत आदतें छोड़ दे. पिता के आगे वह आज्ञाकारी बेटे की तरह सिर झुकाए उन की हिदायतें सुनता रहता और भविष्य में कोई गलत काम न करने की बात भी कहता, लेकिन आगे से हटते ही वह सब भूल जाता. परेशान हो कर खुजेमाभाई ने अदनान पर आर्थिक पाबंदियां लगानी शुरू कर दीं. इस से अदनान सुधरने के बजाए और उग्र हो गया. परिणामस्वरूप बापबेटे में तकरार होने लगी. उसी बीच अदनान को एक लड़की से प्यार हो गया और वह उस से शादी करने के बारे में सोचने लगा. उस ने अपनी यह इच्छा मांबाप को बताई तो उन्होंने साफ मना कर दिया.   इस की वजह थी अंधविश्वास. वैसे तो वह लड़की उन्हीं की बिरादरी की थी, लेकिन उन्हें कहीं से पता चला था कि उस के घर वाले जादूटोना करते हैं, इसीलिए उन्होंने शादी से मना कर दिया था. यह सन 2012 की बात थी.

खुजेमाभाई ने अदनान को भले ही पैसे देने बंद कर दिए थे, लेकिन उस के खर्च में कोई कमी नहीं आई थी. अब वह अपने खर्च के लिए जानपहचान वालों से कर्ज लेने लगा था. कुछ दिनों बाद कर्ज देने वालों के तकादे आने लगे तो परेशान हो कर खुजेमाभाई ने अदनान को अपनी प्रौपर्टी से बेदखल कर दिया. वह सब कुछ बरदाश्त कर सकते थे, लेकिन बदनामी उन्हें बरदाश्त नहीं थी. घरपरिवार से बेदखल होने के बाद अदनान को अपना भविष्य अंधकारमय लगने लगा. उस के पास बैंक में भी ज्यादा पैसे नहीं थे. घर से निकाले जाने के बाद सब से पहले तो उस ने अपने रहने के लिए एक बेडरूम का छोटा सा फ्लैट किराए पर लिया.

इस के बाद अपने बचपन के अजीज दोस्त अली असगर से सलाहमशविरा कर के साझे में कोई कारोबार करने का विचार किया. आखिर थोड़ीबहुत जो पूंजी थी, उस से दोनों ने रियल एस्टेट एम.सी. एक्स एवं कपड़ों का कारोबार करने की बात की. अली असगर भी अच्छी हैसियत वाला था. उस के पिता हकीम थे. हकीमी शफाखाना यूनानी के नाम से इंदौर की घनी आबादी वाले मारोठया बाजार में उन का यह शफाखाना पुरखों के समय से चला आ रहा था. चूंकि यहां भी बोहरा समाज की आबादी एवं दुकानें अधिक हैं, इसलिए इसे बोहरा बाजार के नाम से भी जाना जाता है. उन के इस शफाखाने की एक शाखा मुंबई में भी है, जहां अली असगर के पिता हकीम सादिक अली हर महीने की 5 से 10 तारीख तक मरीजों को देखते हैं.

संयोग से अदनान और अली असगर का कारोबार चल निकला. ठीकठाक कमाई होने लगी तो अदनान ने किराए का फ्लैट छोड़ कर अपना एक बड़ा फ्लैट खरीद लिया. इस के बाद अपने परिवार की इच्छा के खिलाफ अपनी प्रेमिका से शादी कर ली और हनीमून मनाने के लिए स्विटजरलैंड गया. इतना सब होने के बाद भी अदनान की बुरी आदतों ने पीछा नहीं छोड़ा. जबकि दोस्त और पार्टनर अली असगर ने भी उसे बहुत समझाया, लेकिन उस पर दोस्त के समझाने का भी जरा असर नहीं हुआ. हालांकि कारोबार में होने वाले फायदे को वे आधाआधा बांट लेते थे. अदनान अपने हिस्से से ही अपनी जरूरी और गैरजरूरी जरूरतें पूरी करता था.

अदनान ने एक आल्टो कार एवं हर्ले डेविडसन मोटरसाइकिल खरीद ली थी. इस के बाद 2 बातें हुईं. एक तो उन के कारोबार में नुकसान होने लगा, दूसरे इस नुकसान की भरपाई के लिए वे कर्ज लेने लगे. धीरेधीरे यह कर्ज बढ़तेबढ़ते 75 लाख रुपए तक पहुंच गया. अली असगर ने तो अपनी साख बचाए रखी, लेकिन अदनान बुरी आदतों की वजह से अपनी साख नहीं बचा सका. नुकसान और कर्ज की वजह से उन का साझे का यह कारोबार बंद हो गया. कर्ज देने वालों के तकादे बढ़ने लगे तो अदनान परेशान रहने लगा. तब अली असगर ने उसे सलाह दी कि वह पिता से माफी मांग कर कर्ज चुकाने के लिए पैसा या जायदाद में हिस्सा मांग ले. अदनान अकेला नहीं जाना चाहता था, इसलिए उस ने उस से भी साथ चलने को कहा. लेकिन अली असगर ने यह कह कर मना कर दिया कि इस मामले में वह बीच में नहीं पड़ना चाहता.

मरता क्या न करता, अदनान पत्नी को साथ ले कर जायदाद में हिस्सा मांगने अपने पिता के घर पहुंच गया. लेकिन खुजेमाभाई ने साफ कह दिया कि न वह हिस्सा देंगे और न किसी तरह की मदद ही करेंगे. उन्होंने अदनान की पत्नी को भी बहू मानने से मना कर दिया था. अदनान मायूस हो कर लौट आया. यह 4-5 महीने पहले की बात थी. मायूसी और परेशानियों ने खतरनाक मनसूबों को जन्म देना शुरू कर दिया. खुजेमाभाई के पास बड़ा कारोबार ही नहीं, अथाह धनदौलत और काफी जमीनजायदाद थी. उन्हें अपने छोटे बेटे अली अकबर से भी कम ही उम्मीद थी. वह भी शानोशौकत से रहता था. वैसे खुजेमाभाई को इतनी जल्दी मायूस नहीं होना चाहिए था,  क्योंकि अली अकबर अभी बच्चा ही तो था. लेकिन खुजेमाभाई उस से ज्यादा अपने वफादार मैनेजर हुसैन पर भरोसा करते थे.

कहने को तो हुसैन खुजेमाभाई का नौकर था, लेकिन अब वह परिवार का एक अहम सदस्य बन चुका था और एकएक पाई का हिसाब रखता था. खुजेमाभाई और हुसैन ने अपने कारोबार पर ऐसी पकड़ बना रखी थी कि एक तिनका भी इधर से उधर नहीं हो सकता था. जब अदनान को पता चला कि उस के पिता अपनी सारी संपत्ति का वारिस मैनेजर हुसैन को बनाने वाले हैं तो उस का दिमाग खराब हो गया. फिर जैसी कहावत है कि ‘विनाश काले विपरीत बुद्धि’ वैसा ही अदनान ने पिता खुजेमाभाई को रास्ते से हटाने की योजना बना डाली.

अदनान ने बाजार में पिता की हैसियत का लाभ लेते हुए एक कारोबारी से 5 लाख रुपए उधार लिए. ये रुपए उस ने एक ऐसे गिरोह को देने के लिए लिए थे, जो रुपए ले कर हत्याएं करता था. उस ने उन रुपयों में से उस गैंग को पिता की हत्या के लिए ढाई लाख रुपए एडवांस दे दिए. बाकी रकम काम होने के बाद देने की बात हुई. उस गैंग ने रुपए तो ले लिए, पर काम नहीं किया. अदनान उन से जब भी काम की बात करता, वे यही कहते कि उस का काम हो जाएगा. अदनान उन से जबरदस्ती भी नहीं कर सकता था. मजबूर हो कर अदनान ने किसी दूसरे गिरोह से बात की. इस दूसरे गिरोह से खुजेमा के मुनीम सुरेश यादव ने बात कराई थी. किसी बात से नाराज हो कर वह खुन्नस में अदनान से मिल गया था.

खुजेमा की हत्या करने के लिए सुरेश अदनान को निमरानी गांव के एक बाबा के पास ले गया, जो जादूटोना से ले कर हत्या तक करवाता था. बाबा ने अदनान को धरमपुरी के रहने वाले कुख्यात गुंडे इदरीस का मोबाइल नंबर दे दिया. इदरीस ने अदनान को इंदौर के पिपली बाजार के रहने वाले विशाल उर्फ सोनू पहलवान से मिलवाया. सोनू ने खुजेमा भाई की हत्या के लिए 25 लाख रुपए मांगे. एडवांस में भी उस ने आधे पैसे देने को कहा, तब अदनान ने अपनी आल्टो कार एवं हर्ले डेविडसन मोटरसाइकिल को 3 लाख रुपए में बेच कर, बाकी रुपए इधरउधर से ले कर 12 लाख रुपए की व्यवस्था कर के सोनू को दे दिए.

पैसे मिलने के बाद सोनू ने अपने गुर्गों को तैयार किया और खुद भी कार से खुजेमाभाई की रेकी करने लगा. पूरी तैयारी कर लेने के बाद 20 मार्च, 2015 को खुजेमाभाई की हत्या की तैयारी कर ली गई. उस दिन उन की निगरानी में करीब दरजन भर लोग लगे थे. खुजेमाभाई का घर दुकान से कोई डेढ़ किलोमीटर दूर था. 8 बजे दुकान बंद कर के वह घर के लिए रवाना हुए. उन के निकलते ही मुनीम सुरेश यादव ने अदनान को सूचना दे दी कि खुजेमाभाई रवाना हो गए हैं, उन के साथ अलग मोटरसाइकिल से 2 कर्मचारी भी हैं. खुजेमाभाई अपने घर पहुंचते, उस के पहले ही शूटरों ने अपना काम कर दिया. यह संयोग ही था कि तमंचा और गोली ने धोखा दे दिया. पूछताछ में पता चला कि देशी पिस्तौल और 25 कारतूस अदनान ने इदरीस के माध्यम से जिला धार के गांव गुजरी के रहने वाले प्रताप सिंह से 50 हजार रुपए में खरीदा था. देशी पिस्तौल 315 बोर का था.

लेकिन इदरीस ने प्रताप सिंह को मात्र 15 हजार रुपए ही दिए थे. प्रताप सिंह पुलिस में वांटेड था और उस पर 5 हजार रुपए का इनाम था. उधर जब डाक्टरों ने खुजेमाभाई को पूरी तरह खतरे से बाहर बताया तो अदनान सन्न रह गया. उस के किए पर पानी फिर गया था. शूटरों से पिस्तौल और बचे कारतूस वापस लिए और खुद ही पिता को मारने का निश्चय ही नहीं किया, बल्कि पिस्तौल ले कर अस्पताल गया भी, लेकिन भीड़ लगी होने के कारण वह अपने इरादे में कामयाब नहीं हुआ. अदनान मौके की तलाश में था. लेकिन वह अपना काम कर पाता, उस के पहले ही पकड़ा गया. अदनान के पकड़े जाने के बाद मात्र 24 घंटे में थानाप्रभारी पवन सिंघल ने इस घटना में शामिल विशाल पहलवान, प्रताप सिंह, इदरीस, शहनवाज, मोहम्मद आसिफ, अब्दुल मन्नान, मुनीम सुरेश यादव को गिरफ्तार कर लिया, जबकि अली असगर, मोंटी, शूटर सलमान शेख एवं राजू दूधवाला फरार हो गए.

अली असगर पर आरोप है कि उस ने पिता की हत्या के लिए सुपारी देने के लिए अदनान को 5 लाख रुपए उधार दिए थे. पुलिस ने पूछताछ के बाद पकड़े गए सभी अभियुक्तों को अदालत में पेश किया, जहां बाकी आरोपियों को तो जेल भेज दिया, लेकिन अदनान और विशाल उर्फ सोनू को साक्ष्य जुटाने के लिए 3 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया गया. रिमांड अवधि के दौरान अदनान और विशाल की निशानदेही पर इंदौर से 80 किलोमीटर दूर धरमपुरी से अदनान की वह सफेद रंग की आल्टो कार, जिस का नंबर एमपी09सी ई4616 था, को बरामद कर लिया गया.

पुलिस ने वह देशी पिस्तौल और कारतूस भी बरामद कर लिए थे, जिस से खुजेमाभाई पर गोली चलाई गई थी. रिमांड समाप्त होने पर पुलिस ने अदनान एवं विशाल उर्फ सोनू पहलवान को पुन: अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें भी जेल भेज दिया गया. 30 मार्च, 2015 को शूटर सलमान शेख और मोहम्मद जीशान को भी गिरफ्तार कर लिया गया. ये दोनों कुछ दिनों तक शहर से बाहर कहीं छिपे थे. जब उन्हें लगा कि शायद उन का नाम सामने नहीं आया है, तब वे अपनेअपने घर वापस आ गए थे. उन के घर आते ही पुलिस ने छापा मार कर उन्हें पकड़ लिया था. पुलिस ने वह मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली थी, जिस पर सवार हो कर शूटरों ने उन पर गोली चलाई थी.

पुलिस की अब तक की जांच में पता चला है कि खुजेमाभाई की हत्या की योजना में अदनान की मदद उस के दोस्त अली असगर ने भी की थी. यह बात उन के फोन के काल डिटेल्स से पता चली है. पुलिस अन्य अभियुक्तों की भी काल डिटेल्स निकलवा कर जांच कर रही है. शूटर सलमान शेख, इंदौर के नंदलाल पुरा, कबूतर खाना का रहने वाला था. जीशान और शूटर शेख ने अपना अपराध स्वीकार कर के मामले से जुड़ी सारी बातें विस्तार से पुलिस को बता दी हैं. दोनों ने बताया है कि उन्होंने जो भी किया है, वह अदनान, अली असगर और विशाल उर्फ सोनू पहलवान के कहने पर किया है. 31 मार्च को बजरिया के रहने वाले उन के साथी शहनवाज उर्फ गोलू कुरैशी को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. पुलिस ने इन तीनों को भी अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया है.

अली असगर और राजू दूधवाला अभी पुलिस की गिरफ्त से दूर हैं. कथा लिखे जाने तक जेल गए मुजरिमों में से किसी की भी जमानत नहीं हुई थी. पुलिस फरार अभियुक्तों की तलाश कर रही थी. Gujarat Crime Story

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.