Crime Story: डंस गया देहधंधे की कमाई का सांप

Crime Story: मानो ने देह की कमाई से जो रुपए कमाए थे, उस पर उस की एक परिचित कीर्ति देवी की नजर पड़ गई. फिर उन रुपयों को हड़पने के लिए उस ने जो किया, बेचारी मानो जान से गई…

मनजीत कौर उर्फ मानो पति शीशपाल सिंह को छोड़ कर अंबाला शहर के काजीवाड़ा में अकेली ही रहती थी. आसपड़ोस के लोग उसे एक धार्मिक और समाजसेवी औरत के रूप में जानते थे. इस की वजह यह थी कि वह गरीबों की काफी मदद करती थी और पीर की मजार पर भी नियमित जाती थी. मानो के घर के ठीक सामने वाली गली में रहते थे बलदेव राज. 13 दिसंबर, 2012 की सुबह 9 बजे बलदेव राज बगीचे से घूम कर लौट रहे थे तो उन्हें मानो के घर के सामने कुछ लोग खड़े दिखाई दिए. पूछने पर पता चला कि मानो का कत्ल हो गया है और उस की लाश घर के अंदर पड़ी है.

उत्सुकतावश बलदेव राज भी उस के घर चले गए. अंदर वाले कमरे में बिछी चारपाई पर मानो का शव पड़ा था. उस के बाएं कान, नाक और मुंह से खून रिस रहा था. गले पर नीला निशान था. कमरे का सामान भी इधरउधर बिखरा पड़ा था. बलदेव राज मोबाइल लिए थे. उन्होंने तुरंत इस की सूचना पुलिस को दे दी. थोड़ी ही देर में चौकी नंबर 3 से एसआई महावीर सिंह 2 सिपाहियों के साथ वहां आ पहुंचे. घटनास्थल की स्थिति देख कर उन्होंने इस घटना की जानकारी थाना सिटी को दे दी. चौकी नंबर 3 इसी थाने के अंतर्गत आती थी.

सूचना मिलते ही थानाप्रभारी सिपाहियों के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. घटनास्थल पर पहुंचते ही उन्होंने सब से पहले बलदेव राज के बयान के आधार पर तहरीर भिजवा कर अपराध क्रमांक 509 पर भादवि की धाराओं 302, 20 व 120 बी के तहत अज्ञात अपराधियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया. इस के बाद घटनास्थल की अन्य तमाम काररवाई निपटा कर मौके पर मौजूद लोगों के बयान दर्ज किए गए. उस के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भिजवा दिया गया, जहां डाक्टरों ने पोस्टमार्टम के बाद मौत की वजह दम घुटना बताया.

मानो के 2 बेटे थे, जिन में से एक नशामुक्ति केंद्र में दाखिल था तो दूसरा देवेश हत्या के एक मामले में अंबाला जेल में सजा भुगत रहा था. दरअसल अंबाला शहर के जगाधरी गेट पुली से कुमाहार मोहल्ला को जाने वाली सड़क पर सरकारी अनाज का डिपो था. डिपो पर बलदेव उर्फ बल्ली निवासी काजीवाड़ा नौकरी करता था. 23 अक्टूबर, 2010 की बात है. दोपहर में डिपो पर सरकारी गेहूं आया था, जिसे बल्ली करीने से रखवाने लगा. तभी देवेश वहां आ गया. बल्ली उस के पड़ोस में रहता था, इसलिए उस पर वह अपना काफी अधिकार मानता था. आते ही उस ने कहा कि उसे 50 किलोग्राम गेहूं तुरंत चाहिए. बल्ली ने उस से डिपो के मालिक से बात करने को कहा. उस ने मालिक से बात की तो डिपो के मालिक हिमांशु ने उसे समझाया कि सरकारी गेहूं ऐसे नहीं दिया जाता, यह राशनकार्ड पर दर्ज सदस्यों के हिसाब से दिया जाता है.

इस पर देवेश हिमांशु से झगड़ा करने लगा. जरा ही देर में झगड़ा इतना बढ़ गया कि देवेश ने कपड़ों में छिपा कर रखा चाकू निकाल कर हिमांशु पर हमला कर दिया. बल्ली ने किसी तरह बीचबचाव कर के हिमांशु को बचाया. उसी बीच मौका पा कर देवेश भाग खड़ा हुआ. हिमांशु बुरी तरह घायल हो गया था. पुलिस को सूचना दी गई. पुलिस ने उसे सिविल अस्पताल में भरती करवा कर उस के बयान के आधर पर थाना अंबाला सिटी में भादंवि की धाराओं 323, 324, 307 व 506 के तहत मुकदमा दर्ज करा कर देवेश को गिरफ्तार कर लिया. बाद में हिमांशु की मौत हो गई तो इस मुकदमें में धारा 302 भी जोड़ दी गई.

देवेश पर कत्ल का मुकदमा चला, जिस में उसे सजा हो गई. वह अंबाला की जेल में सजा भुगत रहा है. जब उसे अपनी मां की हत्या की सूचना मिली तो मां का अंतिम संस्कार करवाने के लिए जेल प्रशासन से अनुमति मांगी, क्योंकि उस का भाई नशामुक्ति केंद्र में था. पुलिस उसे साथ ले कर आई और अंतिम संस्कार करा कर साथ ले कर चली गई. मानो की हत्या का मामला पुलिस के लिए सिरदर्द था, क्योंकि इस मामले में उस के पास कोई सुराग नहीं था. हत्यारों का पता लगाने की पुलिस ने काफी कोशिश की, मगर पुलिस के हाथ कोई सुराग नहीं लग पाया. इस से मीडिया में पुलिस की काफी किरकिरी हो रही थी. स्थानीय लोग भी इस बात से काफी खफा थे कि पुलिस के हाथ मानो के हत्यारों तक क्यों नहीं पहुंच पा रहे हैं.

मानो के पड़ोसियों ने एक बात नोट की थी कि उस की मौत के बाद उस के यहां आनेजाने वाले तमाम लड़केलड़कियां न जाने कहां गायब हो गए थे. वह एक धार्मिक एवं सामाजिक महिला के रूप में मशहूर थी, जबकि अब उस के यहां कोई नहीं आजा रहा था. यह बात पुलिस को भी बताई गई थी. इस के बावजूद तमाम रहस्य वहीं के वहीं थे. मैं उन दिनों अंबाला और पंचकूला जिले का संयुक्त रूप से पुलिस कमिश्नर था. थाना पुलिस मामलों को हल करने में असमर्थ रही तो मैं ने इस केस को हल करने का जिम्मा सीआईए (क्रिमिनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी) को सौंप दिया.

सीआईए के इंचार्ज इंसपेक्टर कुलभूषण ने मामले की जांच की जिम्मेदारी मिलते ही फाइल मंगा कर अब तक की जांच को गौर से अध्ययन किया. उस के बाद अपनी एक विशेष टीम बना कर मानो हत्याकांड की जांच में जुट गए. उन्होंने जेल में बंद मानो के बेटे देवेश से संपर्क किया और उस से यह जानने की कोशिश की कि किसी पर शक तो नहीं है. उस ने 4 लोगों के नाम लिए, जिन में एक उस हिमांशु का सगा भाई आशीष था, जिस की हत्या के आरोप में वह सजा काट रहा था. दूसरा था इनायत अहमद, निवासी रामनगर कालोनी अंबाला शहर, जो स्मैक के केस में जेल में बंद था. जेल में ही एक बार उस का देवेश से काफी झगड़ा हुआ था. तब उस ने उसे धमकी दी थी कि वह चाहे तो जेल में बैठेबैठे उस का खानदान तबाह कर सकता है.

तीसरा आदमी था जूनियर जौनी, निवासी जग्गी कौलोनी, अंबाला शहर और चौथा महेश निवासी कैथमाजरी, अंबाला शहर. पुलिस ने इन चारों लोगों को सीआईए के पूछताछ केंद्र में बुला कर मनोवैज्ञानिक तरीके से गहन पूछताछ की. पूछताछ में चारों निर्दोष पाए गए. अब मानो हत्याकांड का मामला फिर वहीं का वहीं आ कर अटक गया था. सीआईए के पास गए इस केस को 3 महीने से ज्यादा का समय गुजर गया. इस बीच शक के आधार पर जाने कितने लोगों से पूछताछ कर ली गई, लेकिन अपराधियों का कोई सुराग पुलिस के हाथ नहीं लगा. जो मुखबिर इस काम पर लगाए गए थे, वे भी किसी काम के नहीं निकले. जो थोड़ीबहुत सूचनाएं लाए भी, वे सब गलत साबित हुईं.

सीआईए जिला पुलिस की एक ऐसी अहम इकाई होती है, जहां पर न केवल सुयोग्य पुलिसकर्मियों को तैनात किया जाता है, पूछताछ के तमाम वांछित साधन भी थानों के मुकाबले काफी ठीकठाक मुहैया कराए जाते हैं. यही वजह है कि किसी केस को हल करने में जब थाना पुलिस फेल हो जाती है तो केस सीआईए के हवाले कर दिया जाता है. ऐसे में सीआईए मामले को चुनौती की तरह लेती है और हर हाल में मामले को हल कर लेती है. मानो मर्डर केस एक ऐसी चुनौती बन गया था कि फिलहाल सीआईए के पास भी इस चुनौती का कोई तोड़ नहीं था. समूचा सीआईए विभाग हैरान था कि मानो को कत्ल करने वाले आखिर कौन लोग थे, जिन के बारे में पुलिस को कहीं से कोई जानकारी नहीं मिल रही थी.

उस दिन संयोग ही था कि एसआई गुरदयाल सिंह एक समारोह में गए थे और कुछ शराबियों ने खुद ही मानो मर्डर केस से पर्दा उठाने की बात कर दी. मजे की बात यह थी कि मानो मर्डर केस हल करने के लिए जिस विशेष टीम का गठन किया गया था, गुरदयाल सिंह उस टीम के वरिष्ठ सदस्य थे. फरवरी, 2013 के अंतिम सप्ताह में गुरदयाल सिंह अपने किसी रिश्तेदार के यहां किसी समारोह में गए थे. वहां ज्यादातर लोगों को मालूम नहीं था कि वह पुलिस में हैं. उन्होंने वरदी भी नहीं पहन रखी थी. शगुन डालने के बाद उन का कौफी पीने का मन हुआ तो वह बेयरे से कौफी मंगवा कर पीने के लिए एक किनारे खाली जगह पर जा कर बैठ गए.

वहीं से कुछ दूरी पर कुछ लोग शराब पीते हुए आपस में बातें कर रहे थे. अचानक गुरदयाल सिंह का ध्यान शराब पी रहे लोगों की बातों पर चला गया. बातें उन के कानों में क्या पड़ीं, उन्होंने उन की बातें सुनने के लिए कान खड़े कर लिए. उन में से एक कह रहा था, ‘‘यार, मानो के मरने से ऐश के सारे रास्ते बंद हो गए, क्या एक से बढि़या एक लड़की सप्लाई करती थी. मजे की बात यह कि उस पर किसी को शक नहीं होता था. वह एक धार्मिक और दयालु औरत थी, सोशल वर्कर थी, अपने भले के लिए लड़केलड़कियां उस के यहां आते हैं, आम लोग उस के बारे में यही सब जानते थे.’’

‘‘अपने ग्राहकों के अलावा अन्य किसी को अहसास नहीं होने देती थी कि वह देहधंधे से जुड़ी लड़कियां सप्लाई करती है.’’ दूसरे आदमी ने कहा.

इस के बाद तीसरे ने कहा, ‘‘जो भी था, उस के पास एकदम मस्त लड़कियां थीं, मस्ती का खेल खेलने के सब गुर जानती थीं. मानो का मर्डर क्या हुआ, साली सब की सब भाग कर न जाने कहां छिप गईं. अरे अपना धंधा तो मत चौपट करो, कहीं और अड्डा जमा कर पहले जैसी कमाई करती रहो, हम रंगीनमिजाजों का काम चलता रहे, कहीं कोई टकर जाए तो उसे समझाऊं. लेकिन पता नहीं सब कहां गायब हो गईं’’‘‘दरअसल, मानो हत्याकांड का रहस्य न खुल पाने से वे घबरा गई हैं. कहीं शक की वजह से पुलिस उन्हें पकड़ न ले, यही सोच कर वे इधरउधर भाग गई हैं. वैसे है न कमाल की बात कि दुनिया जानती है कि मानो की हत्या किस ने की? लेकिन पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी है.’’ पहले वाले ने कहा.

‘‘नहीं यार, ऐसा कैसे हो सकता है. तुम्हें शायद पता नहीं कि यह मामला पुलिस के लिए भारी सिरदर्दी बना हुआ है. पुलिस के बड़े अफसरों ने यह केस थाना से ले कर दूसरी किसी एजेंसी, मेरा ख्याल है सीआईए को दे रखा है. पुलिस की तो नींद उड़ा रखा है इस केस ने और तुम कह रहे हो कि कातिलों के बारे में दुनिया जानती है. 4 महीने हो गए हैं मानो का कत्ल हुए.’’

‘‘तो तुम्हें क्या लग रहा है कि मैं झूठ बोल रहा हूं? मैं जो कह रह हूं, एकदम सही कह रहा हूं.’’

‘‘ऐसा है तो बताओ जरा कौन हैं मानो के कातिल?’’

अपने इस साथी के सवाल पर उस आदमी ने गर्दन घुमा कर इस बात का जायजा लिया कि आसपास कोई उन की बातें तो नहीं सुन रहा. गुरदयाल सिंह अंधेरे में बैठे थे, शायद इस वजह से वह उन्हें दिखाई नहीं दिए. आश्वस्त हो कर उस ने कहा, ‘‘पीर की मजार पर जाते रहते हो न?’’

‘‘हां… हां, वहां तो हम लोग अक्सर जाया करते हैं. मानो भी तो वहां की परम भक्तिन थी, मजार पर जा कर लंगर लगवाया करती थी, गरीबों को कपड़े व पैसे भी दान किया करती थी. वहीं एक औरत आती है, जिसे सब माई कहते हैं.’’

‘‘हां… हां, माई के साथ उस का बेटा रहता है, वह भी अपनी मां के साथ वहां आने वालों की सेवा करता है.’’

‘‘बिलकुल सही पहचाना. उन्हीं लोगों ने मारा है मानो को.’’

‘‘इस का मतलब माई और उस के बेटे ने मानो को मारा है?’’

‘‘और लोग भी हो सकते हैं, लेकिन मेरी जानकारी के हिसाब से ये दोनों इस कत्ल में शामिल थे.’’

यह सुन कर गुरदयाल सिंह के हाथ जैसे बटेर आ गई. उन्होंने अंधेरे में ही एक किनारे जा कर धीमी आवाज में इंसपेक्टर कुलभूषण के मोबाइल पर बात की. इंसपेक्टर ने डीसीपी अशोक कुमार के नोटिस में बात लाई और डीसीपी ने दिशानिर्देश के लिए मेरा फोन मिला दिया. मैं ने सुझाव दिया कि शराबियों पर अभी बिलकुल हाथ मत डालना. मजारों पर अच्छे लोगों के अलावा बुरे लोग भी आते हैं, स्वार्थ की खातिर वह डेरा भी डाल देते हैं. मगर ऐसी जगहें पवित्र होती हैं और वहां का माहौल बड़ा नाजुक होता है. वहां पर पुलिस न भेज कर मुखबिरों का सहारा लिया जाए. मुखबिर जो जानकारियां ला कर दें, पहले उन की जांच की जाए, उस के बाद आगे की योजना बनाई जाए.

ऐसा ही किया गया. हालांकि इस बीच गुरदयाल सिंह ने किसी तरह उन शराबियों के नामपते और वे क्या काम करते हैं की तमाम जानकारी जुटा ली थीं. अंबाला में गुरदयाल सिंह के कुछेक ऐसे खास मुखबिर थे, जिन पर उन्हें काफी भरोसा था. सारी स्थिति समझा कर उन्होंने अपने उन मुखबिरों को मजार पर लगा दिया. वे वहां सेवा करने का दिखावा करते हुए माई और उस के बेटे की जासूसी करने लगे. वहां के लोगों से मुखबिरों को पता चला कि माई पहले बहुत खुश रहते हुए काफी जोश में काम किया करती थी. लेकिन मानो के कत्ल के बाद से वह बहुत सहमी सी रहने लगी है. मानो की बात छिड़ जाने पर वह एकदम से खामोश हो जाती है.

मुखबिरों की समझ में आ गया कि माई के भीतर ऐसा कुछ है, जो अंदर ही अंदर उसे खाए जा रहा है. मगर ऐसी कोई पुख्ता जानकारी अभी तक सामने नहीं आई थी कि जो यह साबित करती कि वाकई मानो का कत्ल उन्हीं लोगों ने किया था. ऐसी स्थिति में हम उन पर हाथ नहीं डाल सकते थे. ऐसे में शक हो जाने पर वे कहीं भाग कर भूमिगत भी हो सकते थे. उन की गिरफ्तारी का कोई सीधा रास्ता न देख कर हम ने एक योजना बनाई. अब तक मैं भी इस मामले से पूरी तरह जुड़ गया था. अपनी योजना के अनुसार, एसआई गुरदयाल सिंह से उन शराबियों से संपर्क किया, जिन्होंने समारोह में मानो के कत्ल में माई और उस के बेटे का हाथ होने की बात कही थी. उन्हें समझाया गया कि एक सच्चे नागरिक की तरह अपराध की पूरी कहानी बता कर पुलिस और कानून की मदद करना उन का फर्ज बनता है.

बात उन लोगों की समझ में आ गई तो उन से पूछा गया कि मानो मर्डर केस में वे पुलिस की क्या और कैसे मदद कर सकते हैं? इस से पहले कि वे इस संबंध में कुछ कहते, गुरदयाल सिंह ने कहा, ‘‘मेरी बात जरा गौर से सुनो, अगर माई और उस का बेटा वाकई मानो मर्डर केस में शामिल है तो उन्हें समझाओ कि वे किसी के माध्यम से पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दें. ऐसे में पुलिस उन से मारपीट करने के बजाय उन की मदद करेगी. इस केस में और लोग भी शामिल हुए तो माई और उस के लड़के को वादा माफ गवाह बना कर रिहा भी किया जा सकता है. हां, उन्होंने ऐसा नहीं किया और उन के खिलाफ सबूत हाथ लग जाने पर पुलिस ने उन्हें उठा लिया तो फिर न उन्हें कोई पुलिस के कहर से बचा सकता है और न ही इस केस में सजा होने से. तब पुलिस यही कोशिश करेगी कि उन्हें हर हाल में सजा हो.’’

गुरदयाल सिंह की इन बातों के जवाब में एक शराबी ने कहा, ‘‘ऐसा है साहब, मानो के कत्ल में माई और उस का बेटा बिलकुल शामिल है. माई से मेरा अच्छा परिचय है और उस ने खुद मुझ से यह बात बता कर अपने बचाव के लिए सलाह मांगी थी. तब मैं ने उसे समझाया था कि कानून के हाथ बड़े लंबे होते हैं, अपराध किया है तो एक न एक दिन पुलिस के हत्थे चढ़ेगी ही. आप की नसीहत जंच रही है, कहे तो मैं उस से बात कर के देखूं.’’

‘‘देख लो.’’ कहने के साथ ही गुरदयाल सिंह के चेहरे पर चमक आ गई. वह आशावान हो गए कि उन का तीर सही निशाने पर लगा है. सुखद परिणाम यह रहा कि अगले ही दिन माई अपने बेटे के साथ सीआईए औफिस आ पहुंची. जरा ही देर में उस ने अपने अपराध की पूरी कहानी सुना दी, जिस से मानो हत्याकांड का रहस्य इस तरह से खुला:

मनजीत कौर उर्फ मानो पहले ऐसी नहीं थी. लेकिन पति का सहारा उठ गया तो आमदनी का कोई साधन नहीं रहा. इस के बाद वह देहधंधा से जुड़ गई. इस से उसे अच्छी कमाई होने लगी. बच्चों की ठीकठाक परवरिश होने लगी. उम्र ढलने लगी तो वह अपने साथ अन्य लड़कियों को जोड़ कर उन की कमाई से कमीशन खाने लगी. उस के संपर्क में काफी अच्छीअच्छी कमसिन लड़कियां थीं, जिन की वजह से उसे पहले से भी ज्यादा कमाई होने लगी. इस बीच उस ने रहने का ठिकाना बदल कर अपनी बढि़या छवि बना ली.

पीर की मजार की काफी मान्यता थी. दूरदूर से लोग वहां शीश नवाने आते थे. सुबह से शाम तक भीड़ लगी रहती थी. मानो भी वहां आनेजाने लगी. दिखावे के लिए वह एक भक्तिन की तरह शीश नवाने और सेवा करने जाया करती थी. गरीबों में कपड़ेपैसे भी बांटा करती थी, जबकि असलियत में वह अपने धंधे को बढ़ाने में लगी रहती थी. माई का नाम था कीर्ति देवी. उस के पति का नाम खैरातीलाल था. वह मजार पर हर वक्त रहती थी, हमेशा रहने की वजह से मानो की उस से जानपहचान हो गई. धीरेधीरे माई को उस के धंधे के बारे में पता चल गया तो वह उस से रुपएपैसे ले कर उसे ब्लैकमेल करने लगी.

12 अक्टूबर, 2012 को मानो फल्गु मेले पर माई के यहां आई तो उस के साथ सिमरन, आशा बंगालन और लवली पंजाबन नामक लड़कियां थीं. उन्हें साथ ले कर मानो कुछ दिनों से इधरउधर घूम रही थी. जब वह माई के यहां आई थी तो उस के पास बहुत बड़ा बैग था, जो नोटों से भरा हुआ था. उस ने काफी गहने भी पहन रखे थे, जिन्हें देख कर माई के मन में कुछ लालच आ गया. इस के बाद माई ने अपने बेटे प्रदीप से बात की तो उस ने कहा कि मानो से उस का पैसा और गहने छीन लेते हैं. उस ने यह काम अपने घर में करने से मना करते हुए कहा कि मानो इन लड़कियों को हिस्सा देने के बाद अकेली अपने घर जाएगी, तब वहीं जा कर यह काम किया जाएगा. रात में मानो लौट गई तो प्रदीप ने अपने दोस्तों, सुल्तान और राजेश को बुला कर लालच दे कर अपनी योजना में शामिल कर लिया.

रात में प्रदीप ने 9 सौ रुपए में इंडिका कार टैक्सी के रूप में बुक कराई और रात के साढे़ 12 बजे सभी मानो के घर पहुंचे. टैक्सी उन्होंने उस के मकान से थोड़ी दूरी पर खड़ी करा दी थी. मानो के घर पहुंच कर माई ने आवाज लगा कर दरवाजा खुलवाया. मानो जाग रही थी. उस ने माई से इस तरह अचानक आने के बारे में पूछा तो माई बोली, ‘‘प्रदीप का झगड़ा हो गया है. जिन के बेटे को पीट कर आया है, वे रात में इसे मारने आ सकते हैं. इसलिए इसे आप के पास छोड़ने आई हूं, मैं अभी लौट जाऊंगी.’’

‘‘अरे रात को कैसे वापस जाएगी और हां, ये 2 लड़के कौन हैं?’’

‘‘प्रदीप के दोस्त हैं सुल्तान और राजेश. ये दोनों भी इस के साथ रहेंगे. जब तक खतरा टल नहीं जाता, लड़के को अकेला नहीं छोड़ सकती.’’

‘‘कोई बात नहीं, तीनों लड़के ऊपर जा कर सो जाएंगे. तुम मेरे साथ सो जाना. इतनी रात गए अकेली कहां जाएगी.’’

इस के बाद तीनों लड़के ऊपर की मंजिल में चले गए और माई नीचे मानो के पास लेट गई. तभी किसी का फोन आया, जिसे रिसीव करते हुए मानो ने कहा, ‘‘हां सिमरन, तू पूरी रात लगा ले, मालदार आसामी है, जितना खुश रखेगी, उतनी मोटी कीमत देगा. घबराने वाली कोई बात नहीं है, पुराना जानकार है मेरा. तड़के सूरज निकलने से पहले लौट आना.’’

इस के बाद मानो ने लाइट बंद कर दी. जरा ही देर में प्रदीप, सुल्तान और राजेश अंधेरे में रास्ता टटोलते हुए नीचे आ गए. उन्होंने मोबाइल की रोशनी में देखने का प्रयास किया कि मानो कहां लेटी है. रोशनी पड़ते ही मानो हड़बड़ा कर उठ बैठी. वह कुछ बोल पाती, उन लोगों ने उस के मुंह पर हाथ रख कर उसे दबोच लिया. सुल्तान ने उस का मुंह दबोचा तो प्रदीप और राजेश ने गला दबाना शुरू कर दिया. माई ने उस के पैरों को पकड़ लिया. खुद को छुड़ाने की खातिर मानो हाथपैर चलाने लगी. लेकिन जल्दी ही वह शिथिल पड़ गई. उस के मर जाने के बाद भी उन लोगों ने माई की चुन्नी मानो के गले में डाल जोरों से कस दिया. इस के बाद तकिया मुंह पर रख कर भी दबाया.

पूरा इत्मीनान हो गया कि मानो मर गई है तो उन्होंने उस के घर की तलाशी ली. बैड के नीचे बौक्स में नोटों से भरा बैग मिल गया. सोनेचांदी के काफी गहने भी उन के हाथ लगे. मानो के पास 3 मोबाइल थे, वे भी उन्होंने ले लिए. कुल 15 मिनट में एक कत्ल और लाखों की लूटपाट कर के वे इत्मीनान से वहां पहुंचे, जहां टैक्सी वाले को खड़ा कर के आए थे. टैक्सी से सभी अपने घर पहुंचे. पहुंचते ही सारा सामान और रुपए आपस में बराबरबराबर बांट लिया. नकद पैसों में सब के हिस्से में कुल 11-11 हजार रुपए ही आए, गहने उन्होंने अंदाजे से बांट लिए थे. उन की कीमत लाखों में थी. मानो के मोबाइल फोन बंद कर के प्रदीप ने कहीं छिपा दिए थे.

माई और प्रदीप से पूछताछ कर के उन की निशानदेही पर लूट का उन के हिस्से का सामान बरामद कर के हम ने उन्हें अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. 2 मार्च, 2013 को इस मामले के सहअभियुक्त राजेश पुत्र नारायणीराम, निवासी इंदिरा कालोनी, पाई रोड, पुंडरी को भी गिरफ्तार कर के उस के पास से लूट का हिस्सा बरामद कर उसे भी जेल भेज दिया गया. इस केस का अन्य अभियुक्त सुल्तान पुत्र लज्जा सिंह, निवासी पुंडरी के बारे में हमें पता चला कि वह चोरी के एक अन्य मामले में न्यायिक हिरासत के तहत कैथल की जिला जेल में बंद था. मानो मर्डर केस में ट्रांजिट रिमांड पर ला कर व्यापक पूछताछ करने के बाद उसे वापस जेल भेज दिया गया.

निर्धारित अवधि के भीतर इस केस का चालान अदालत में पेश कर दिया गया था. इन दिनों यह केस अंबाला की सेशन कोर्ट में चल रहा है. Crime Story

 

True Crime: भाई की बदनीयती की शिकार सायरा

True Crime: हर बहन को अपने भाई से रक्षा की उम्मीद होती है लेकिन आरिफ ऐसा भाई था जो बहनों की रक्षा करना तो दूर उन के जिस्म से खेलना चाहता था. मां भूरी भी बेटियों की नहीं सुनती थी. इसी दौरान एक दिन तो…

23 मई, 2015 को सुबह के कोई 11 बजे रुखसार और शमीमा थाना काशीपुर के थानाप्रभारी के पास पहुंची. दोनों ही काफी परेशान सी दिख रही थीं. उन्हें देखते ही थानाप्रभारी समझ गए कि इन का कोई पारिवारिक झगड़ा हुआ होगा. उसी झगड़े की शिकायत करने आई होंगी. इसलिए उन्होंने उन से पूछा, ‘‘बोलो, क्या बात है?’’

उम्र में बड़ी दिखने वाली रुखसार ने बताया, ‘‘सर, हम लोग यहीं के ढेला बस्ती के मधुवननगर में रहते हैं. पिछले 16 दिनों से हमारी बहन सायरा गायब है. हमें शक है कि हमारे भाइयों व अम्मी ने मिल कर उस की हत्या कर दी है.’’

हत्या की बात सुन कर थानाप्रभारी चौंके, ‘‘क्या! यह तुम क्या कह रही हो?’’

‘‘हां, सर, मैं सही कह रही हूं. हमारे घर के एक कोने से तेज बदबू भी आ रही है.’’

यह सुन कर थानाप्रभारी हैरत में पड़ गए. पहली बार तो उन्हें उन की बातों पर विश्वास नहीं हुआ, लेकिन उन्होंने गहराई से सोचा तो उन्हें इन लड़कियों ने जरूर कोई ऐसीवैसी बात देखी होगी, तभी तो ये इस तरह की बात कह रही हैं. वह उसी समय दोनों बहनों को ले कर उन के घर पहुंच गए. घर पहुंचते ही दोनों बहनें थानाप्रभारी को अपने घर में उस जगह ले गईं, जहां पर मिट्टी खुदी नजर आ रही थी. वहां पहुंचते ही थानाप्रभारी ने तेज दुर्गंध महसूस की. उस वक्त उस घर में उन दोनों बहनों के अलावा कोई नहीं था. उस समय बाकी लोग कहीं गए हुए थे.

दुर्गंध से पुलिस को लगा कि ये जो भी कह रही थीं, वह सही हो सकता है. उस जगह उन्हें भी लाश दफन होने की आशंका दिखी, इसलिए उन्होंने इस की सूचना एएसपी कमलेश उपाध्याय, सीओ प्रकाश आर्य को फोन द्वारा दे दी तो दोनों पुलिस अधिकारी भी मधुवन नगर पहुंच गए. तब तक मोहल्ले के भी कुछ लोग वहां इकट्ठे हो चुके थे. जहां से दुर्गंध आती महसूस हो रही थी, पुलिस ने उस जगह पर खुदाई शुरू करा दी. जैसेजैसे उस स्थान की मिट्टी हटती गई, दुर्गंध बढ़ने लगी. कुछ ही देर की खुदाई के बाद सच्चाई सभी के सामने आ गई. लगभग 3 फुट नीचे गड्ढे में एक युवती दफन थी. लाश को देखते ही रुखसार और शमीमा रोने लगीं. उन्होंने बताया कि यह लाश उन की बहन सायरा की है.

सायरा की लाश के ऊपर काली पौलीथिन और प्लास्टिक के कट्टे डाले गए थे. उस की लाश को जल्दी गलाने के लिए ऊपर से नमक भी डाला गया था. लाश काफी गल चुकी थी, इस से लग रहा था कि घटना कई दिनों पहले की थी. मोहल्ले के लोगों को जैसे ही पता लगा कि सायरा की हत्या कर के उसी के घर में लाश दफना दी गई थी और उस लाश को पुलिस ने बरामद कर लिया है तो थोड़ी देर में सैकड़ों लोगों का वहां जमघट लग गया. शव को गड्ढे से निकलवाने के बाद पुलिस छानबीन में लग गई. पुलिस ने घर की तलाशी ली तो वहां लोहे की एक रौड मिली. उस रौड पर खून लगा हुआ था. अंदाजा लगया कि उसी रौड से उस की हत्या की गई होगी.

एएसपी कमलेश उपाध्याय ने रुखसार और शमीमा से पूछताछ की तो शमीमा ने बताया, ‘‘मैं अपनी बड़ी बहन रुखसार के पास हल्द्वानी में थी. जब घर आई तो मां भूरी ने बताया कि सायरा किसी के साथ भाग गई है. यह बात मुझे बड़ी अजीब लगी. फिर मैं ने देखा कि मां रोज आंगन के इस कोने में अगरबत्ती जलाती थी. वह जिस जगह अगरबत्ती जलाती थी, वहां से दुर्गंध उठ रही थी. तब मुझे शक होने लगा कि भाइयों ने कहीं सायरा को मार कर यहां दफना तो नहीं दिया है. आज मां जब अपने मायके गईं तो मैं ने यह बात हल्द्वानी में रह रही बड़ी बहन रुखसार को फोन से बता दी. खबर सुन कर रुखसार तुंरत ही काशीपुर आ गई. फिर हम दोनों थाने चली गईं.’’

इस मामले को ले कर पुलिस ने पड़ोसियों से पूछताछ की तो पड़ोसियों ने इस बारे में कुछ भी नहीं बताया. कुछ लोगों ने पुलिस को इतनी जानकारी जरूर दी कि जब भूरी से सायरा के बारे में पूछा जाता था तो वह केवल यही बात कहती थी कि वह घर से भाग गई है. घटनास्थल से सभी तथ्य जुटाने के बाद पुलिस ने सायरा की सड़ीगली लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. रुखसार की तहरीर पर पुलिस ने उस की मां भूरी, 2 भाइयों, नाजिम और आरिफ के खिलाफ हत्या और साक्ष्य छिपाने का मामला दर्ज कर लिया. फिर तीनों आरोपियों की धरपकड़ के लिए एएसपी ने 3 टीमें गठित कीं.

पुलिस ने भूरी के रिश्तेदारों के यहां दबिश डालनी शुरू कर दी. उसी दौरान पुलिस टीम को पता चला कि भूरी कहीं से अपने घर लौट रही है. महिला पुलिसकर्मियों के साथ एक पुलिस टीम उस के घर के पास पहुंच गई. जैसे ही वह एक युवक के साथ अपने घर पहुंची, पुलिस ने दोनों को हिरासत में ले लिया. भूरी के साथ युवक उस का बेटा नाजिम था. मामला खुल चुका है, इस बात का भूरी को पता नहीं था. पुलिस की गिरफ्त में आते ही वह दोनों घबरा गए. थाने ले जा कर उन से कड़ी पूछताछ की तो वे ज्यादा देर तक नहीं टिक सके. उन्होंने जल्दी ही अपना जुर्म कबूल कर लिया. पूछताछ के दौरान इस हत्याकांड की जो सचाई सामने आई, उस से मां की क्रूरता और भाईबहन के रिश्ते को कलंकित कर देने वाली कहानी उजागर हुई.

उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले की तहसील ठाकुरद्वारा के अंतर्गत आता है एक गांव रतपुरा. नाजिर हुसैन इसी गांव का निवासी था. वह घोड़ाबग्गी चला कर अपने गुजरबसर करता था. कई साल पहले उस ने रतपुरा का घर बेच कर उत्तराखंड के काशीपुर शहर के मधुवननगर में अपना मकान बना लिया था. काशीपुर आने के बाद उस ने घोड़ाबग्गी बेच दी और राजगीरी करने लगा. शहर में रहने पर उस के घर के खर्चे भी बढ़ गए थे. जितने पैसे वह कमाता था, उस से घर चलाने में भी दिक्कत आने लगी. नाजिम उस का सब से बड़ा बेटा था, वह कुछ समझदार हुआ तो उस ने ड्राइवरी सीख ली. वह कमाने लगा तो घर का खर्च आसानी से चलने लगा. नाजिर ने समय के साथ ही उस की शादी भी कर दी. शादी होने के कुछ समय बाद ही नाजिम परिवार से अलग रहने लगा.

नाजिम से छोटा आरिफ था. वह शुरू से ही आवारा किस्म के लड़कों के साथ रहता था. वह कोई कामधंधा भी नहीं करता था. जबकि उस से छोटा हारुन पिता के साथ राजगीरी करने लगा था. आरिफ और नाजिम दबंग किस्म के थे. दोनों की दबंगई की वजह से भी मोहल्ले में उन से कोई पंगा लेना नहीं चाहता था.  आरिफ तो छोटीछोटी बातों पर हर किसी से लड़ने के लिए तैयार रहता था. उस की इसी आवारागर्दी के कारण उस का पिता नाजिर उस से खफा रहता था. वह कभी उस से कोई कामधंधा करने को कहता तो वह अपने पिता से ही गालीगलौज करने लगता था. जबकि भूरी उसे जेबखर्च के लिए पैसे देती रहती थी. नाजिर ने पत्नी से उसे खर्च के लिए पैसे देने से मना किया तो वह नहीं मानी.

दरअसल, काशीपुर आने के बाद भूरी के कदम भी बहक गए थे, इसलिए वह पति को ज्यादा तवज्जो नहीं देती थी. आरिफ को पैसे देने की बात को ले कर दोनों मियांबीवी में मनमुटाव रहने लगा था. भूरी बेहद चालाक थी. उस ने सभी बच्चों को अपने पक्ष में कर रखा था. पति उसे जो भी कमा कर देता, वह उसे अपने और बच्चों के ऊपर ही खर्च कर डालती थी. नाजिर जब भी उसे समझाने की कोशिश करता वह उस की नहीं सुनती और न ही बच्चों को डांटने देती थी. लगभग 5 साल पहले नाजिर ने बड़ी बेटी रुखसार की शादी उत्तर प्रदेश के जिला रामपुर के गांव शाहपुरा निवासी मोहम्मद रफीक के साथ कर दी थी. शादी के बाद मोहम्मद रफीक रुखसार को ले कर हल्द्वानी के इंदिरानगर में आ कर रहने लगा.

रुखसार की शादी हो जाने के बाद आरिफ और भी ज्यादा बिगड़ गया था. हालांकि वह कबाड़ा खरीदने का काम करने लगा था, लेकिन उस से जितनी भी कमाई होती, उसे वह अय्याशी और शराब पर खर्च कर देता था. उसे मालूम था कि उस की अम्मी किस के साथ क्याक्या गुल खिलाती है. इसी वजह से वह उस से कुछ भी नहीं कह पाती थी. मां की शह मिलते ही वह अपने पिता के साथ बगावत पर उतर आता था. बीवी और बेटों से नाजिर बहुत तंग आ चुका था. उन के व्यवहार की वजह से उस का घर में रहना मुश्किल हो गया था. उन से आजिज आ कर वह कुछ दिन के लिए काम करने शहर से बाहर चला गया. उस के घर से निकलते ही भूरी और उस के बेटे पूरी तरह से आजाद हो गए.

इस के बाद भूरी और उस के बेटों की ही घर में चलने लगी. कुछ दिनों बाद नाजिर घर आया तो भूरी ने उसे टिकने नहीं दिया. जिस से वह अकसर बाहर रह कर काम करने लगा. भूरी हमेशा अपनी मस्ती में मस्त रहती और आरिफ शराब और शबाब में. इसी बीच आरिफ के अंदर ऐसी दरिंदगी पैदा हो गई कि वह अपनी सगी बहनों पर ही गलत नजरें रखने लगा. शराब के नशे में वह मौका देखते ही बहनों से अश्लील हरकतें करता. भाई की इस हरकत पर वे हैरान थीं. दबी जुबान में उन्होंने उस की शिकायत अम्मी से की तो उस ने भी बेटियों की शिकायत पर ध्यान नहीं दिया, जिस से आरिफ की हिम्मत और बढ़ गई.

इस के बाद उस ने कई बार अपनी छोटी बहन फरीदा के साथ जबरदस्ती नाजायज संबंध बनाने की कोशिश की. फरीदा जानती थी कि यदि वह अम्मी से शिकायत करेगी तो वह उलटे उसे ही डांटेगी, इसलिए बात को वह मन में ही दबाए रही. वह आरिफ से सतर्क रहने लगी. उसी दौरान फरीदा की भी शादी हो गई तो उस ने चैन की सांस ली. शादी के बाद वह अपनी ससुराल रुद्रपुर चली गई. फिर उस ने मायके की तरफ मुड़ कर नहीं देखा. फरीदा की शादी के बाद घर में 3 बहनें और जवान थीं. आरिफ के दिमाग में इतनी गंदगी भर गई थी कि वह हर वक्त उन्हें हवस भरी नजरों से देखता था. चूंकि घर में आरिफ की ही चलती थी, इसलिए किसी भी बहन की हिम्मत उस का विरोध करने की नहीं हो पाती थी.

बहनों ने एकदो बार मां के सामने मुंह खोला तो आरिफ ने उलटे उन पर ही दूसरों लड़कों के साथ अय्याशी का आरोप लगा कर उन्हें मां से पिटवा दिया. इतना ही नहीं, उस ने तीनों बहनों के बाहर आनेजाने पर पाबंदी भी लगा दी. नाजिर को पता नहीं था कि उस के पीछे घर में क्या हो रहा है. वह कभीकभी पत्नी से फोन पर बात कर लेता था. कभी वह बेटियों से बात कराने को कहता तो भूरी कोई बहाना बना कर बेटियों की उस से बात नहीं कराती. तीनों बहनें मां और भाई के जुल्मों से तंग आ चुकी थीं. एक दिन उन्होंने चोरीछिपे यह बात बड़ी बहन रुखसार को फोन पर बता दी.

सगे भाई द्वारा बहनों के साथ किए जा रहे कृत्यों की खबर पा कर उसे बहुत दुख हुआ. सोचने लगी कि यह भाई है या जानवर, जो अपनी ही बहनों का शोषण कर रहा है. एक दिन टाइम निकाल कर वह मायके आ गई. इस बात को ले कर उस ने अपनी अम्मी और भाई को समझाने की कोशिश की. लेकिन मांबेटे ने उस की एक न मानी, बल्कि उल्टे ही लड़कियों पर गलत राह पर चलने का आरोप लगा दिया. रुखसार पहले से ही जानती थी कि घर में आरिफ और अम्मी की चलती है. इसलिए अपने फर्ज के मुताबिक दोनों मांबेटों को समझाबुझा कर अपनी ससुराल लौट गई. उस के चले जाने के बाद आरिफ हैवानियत की हदें पार करने लगा. इस के बाद भूरी और उस के बेटों का रुखसार से मनमुटाव हो गया, जिस से रुखसार ने मायके आना बंद कर दिया.

उसी दौरान आरिफ की बहन शमीमा बड़ी बहन रुखसार के पास हल्द्वानी चली गई. शमीमा के घर से जाने के बाद घर में सायरा और सब से छोटी फरीदा रह गई. आरिफ ने सायरा को अपनी हवस का शिकार बनाने की कई बार कोशिश की, लेकिन हर बार सायरा ने उस का विरोध किया. जिस की वजह से वह अपने मंसूबे में सफल नहीं हो सका. शमीमा जब रुखसार के यहां चली गई तो आरिफ को डर लगने लगा कि कहीं वह रुखसार के सामने उस की पोल न खोल दे, इसलिए उस ने कई बार रुखसार को फोन कर के कहा भी कि वह शमीमा को काशीपुर भेज दे. लेकिन शमीमा घर आने को तैयार नहीं थी.

सायरा खुले मिजाज की थी. आधुनिक कपड़े पहनने का उसे शौक था. वह अकसर जींसटौप पहनती थी. एक दिन वह मोहल्ले के एक लड़के से कुछ बातचीत कर रही थी. आरिफ ने उसे देख लिया, लेकिन सायरा आरिफ को नहीं देख पाई. आरिफ ने यह बात अपनी अम्मी के सामने बढ़ाचढ़ा कर रख दी. फिर क्या था, भूरी ने सायरा को खूब खरीखोटी सुनाई. 5 मई को भूरी कहीं गई हुई थी. रात को घर पर आरिफ और उस की दोनों बहनें शमीमा और सायरा थीं. वह इस मौके को गंवाना नहीं चाहता था. शमीमा और सायरा गहरी नींद में सो रही थीं. तभी अपनी हसरतें पूरी करने के लिए वह सायरा की चारपाई पर पहुंच गया. जैसे ही उस ने उसे दबोचा, तभी सायरा की आंखें खुल गईं. उस ने भाई का विरोध किया. लेकिन वह उस के साथ जबरदस्ती पर उतारू था.

घबराहट में सायरा समझ नहीं पा रही थी कि दानवरूपी भाई के चंगुल से कैसे बचे. इत्तफाक से उसी समय किसी ने दरवाजा खटखटाया. आरिफ बुदबुदाता हुआ दरवाजा खोलने गया. सामने उस की अम्मी थी. अम्मी को देखते ही उस के अरमानों पर जैसे पानी फिर गया. लेकिन सायरा ने राहत की सांस ली थी. सायरा ने भाई की शिकायत अम्मी से की. उस के सामने वह खून के आंसू रोई, लेकिन भूरी ने उस की बात पर विश्वास नहीं किया. अम्मी का रवैया देख कर सायरा को लगा कि अब इस घर में उस का रहना सुरक्षित नहीं है. वह अपनी चारपाई पर ही सुबकसुबक कर रोती रही. उस ने तय कर लिया कि वह इस घर में वह नहीं रहेगी. मौका मिलते ही रात को यहां से कहीं भाग जाएगी.

उस दिन के बाद आरिफ को भी डर लगने लगा था कि कहीं सायरा यह बात घर के बाहर के किसी व्यक्ति को न बता दे. इस के लिए उस ने अम्मी से सायरा के बारे में उल्टीसीधी बात लगा कर उस के घर से निकलने की सख्त पाबंदी लगा दी. सायरा अब घर में कैद हो कर रह गई थी. 9 मई, 2015 को उसे मौका मिल गया और किसी तरह से चोरीछिपे घर से निकल कर वह काशीपुर रेलवे स्टेशन पहुंच गई. उस समय वहां से जाने वाली कोई गाड़ी नहीं थी. तब वह स्टेशन पर बैठ कर गाड़ी का इंतजार करने लगी. भूरी को जैसे ही पता चला कि सायरा घर पर नहीं है तो वह घबरा गई. उसे लगा कि घर से भाग कर या तो वह बसअड्डा गई होगी या फिर रेलवे स्टेशन. बसअड्डे के लिए उस ने आरिफ को भेज दिया और स्टेशन के लिए खुद निकल गई. सायरा उसे स्टेशन पर दिखाई दी तो उसे पकड़ कर घर ले आई.

सायरा घर आ तो गई, लेकिन उस की इस हिम्मत को देख कर आरिफ डर गया. उसे डर था कि अगर सायरा आईंदा घर से निकल गई तो उस की पोल जरूर खोल देगी. इसी डर की वजह से उस ने उसे मौत की नींद सुलाने का प्लान बना लिया. इस काम में वह अम्मी और भाई को भी शामिल करना चाहता था. इस के लिए उस ने एक दिन अम्मी और भाई नाजिम से कहा, ‘‘सायरा का किसी लड़के के साथ चक्कर चल रहा है. वह आज नहीं तो कल जरूर उस के साथ भाग जाएगी. उस के बाद सारे शहर में हमारी बहुत ही बदनामी होगी. इस से पहले वह घर से भागे, उसे खत्म कर देने में ही भलाई है.’’  भूरी भी उस के कहने में

आ गई. माता कुमाता बन गई तो आरिफ को उसे खत्म करने का साफ रास्ता मिल गया. फिर अगले दिन 10 मई, 2015 को दोपहर में नाजिम और अम्मी के साथ मिल कर सायरा की उस वक्त हत्या कर दी, जब वह गहरी नींद में सोई हुई थी. आरिफ ने सब से पहले सोती हुई सायरा के सिर पर लोहे की रौड से वार किया. इस के बाद उस की ही चुन्नी से उस का मुंह दबा दिया. उसी दौरान उस का कर उस की हत्या कर दी. हत्या करने के बाद समस्या लाश को ठिकाने लगाने की थी. आपस में सलाहमशविरा करने के बाद उन्होंने घर में ही लाश ठिकाने लगाने का फैसला कर लिया. उन के कमरे के पीछे एक टिन शेड था. उस दिन शेड के नीचे ही उन्होंने 3-4 फुट गहरा गड्ढा खोदा. उसी गड्ढे में उस की लाश को दफन कर दिया.

दफन करने से पहले सायरा की लाश पर नमक डाल कर पौलीथिन डाल दी. ताकि लाश जल्दी से गल सके. लाश ठिकाने लगाने के बाद उस जगह को लेवल में कर के भूरी ने गोबर से लिपाई कर दी. बेटी को घर में ही दफन करने के बाद भूरी रोजाना ही उस जगह को गोबर से लीपती और अगरबत्ती लगाती थी, ताकि लाश के सड़ने की बदबू महसूस नहीं हो. सब से हैरत वाली बात तो यह थी कि भूरी उस के पास में ही रोज खाना बनाती और वहीं पर दरी भी बुनती थी.

आरिफ ने सायरा को मौत के घाट उतार तो दिया था, लेकिन इस के बाद भी उस के मन को तसल्ली नहीं मिली थी. उस की नजरों में अभी भी शमीमा चढ़ी हुई थी. वह उस के साथ भी सोते वक्त कई बार अश्लील हरकतें कर चुका था. लेकिन इस से आगे बढ़ने का उसे मौका नहीं मिला. उसे इस वक्त शमीमा से भी बहुत डर लग रहा था. उसे मालूम था कि शमीमा ने जरूर अपने साथ घटी घटना रुखसार को बता दी होगी. इसी कारण उस ने अम्मी को उस के खिलाफ भी भड़का कर उसे रुखसार के पास से बुलाने के लिए हल्द्वानी भेज दिया.

भूरी शमीमा को बुलाने के लिए हल्द्वानी पहुंच गई. हल्द्वानी जाते ही भूरी ने रुखसार को आड़े हाथों लिया, ‘‘तू हर वक्त अपनी बहनों का ही पक्ष लेती रहती है. तू ने सभी को बिगाड़ कर रख दिया है. अब सायरा की करतूत भी सुन ले. वह किसी लड़के के साथ भाग गई है. उस ने सारे मोहल्ले में हमारी नाक कटवा कर रख दी है. घर से बाहर निकलते ही लोग तरहतरह के सवालजवाब करते हैं. अब किस को क्या जवाब दूं, समझ में नहीं आता.’’

अम्मी की बात सुनते ही रुखसार चौंकी, ‘‘सायरा घर से भाग गई? किस के साथ?’’

‘‘मुझे क्या पता कि वह किस के साथ भागी है?’’ इतना कहते ही भूरी ने कहा, ‘‘अब तू ही उस का पता लगाती रहना. मैं तो शमीमा को लेने आई थी, उसे ले कर जा रही हूं. जब भी तुझे टाइम मिले आ जना.’’

शमीमा उस वक्त रुखसार के पास ही बैठी थी. उसे अम्मी की बातों पर बिलकुल विश्वास नहीं हो रहा था. डर की वजह से वह उस के साथ घर जाना नहीं चाहती थी. उस ने साफ मना कर दिया कि वह अम्मी के साथ काशीपुर नहीं जाएगी. शमीमा की बात सुनते ही भूरी आगबबूला हो उठी, ‘‘एक तो नाक कटा गई. अब तेरी बारी है. तेरा भी क्या पता कि तू यहां रह कर क्या गुल खिला रही है. इसलिए मैं इस वक्त तुझे यहां हरगिज नहीं छोड़ सकती. तेरी भलाई इसी में है कि तू जल्दी से तैयार हो कर मेरे साथ चल.’’

शमीमा ने उस के साथ जाने से साफ मना कर दिया तो भूरी गुस्से में अकेली ही काशीपुर चली आई. आरिफ ने जब देखा कि मां के साथ शमीमा नहीं आई है तो उसे बहुत गुस्सा आया. उस ने उसी समय रुखसार को फोन कर के उल्टासीधा कहा. तब रुखसार ने कहा कि शमीमा को साथ ले कर वह परसों काशीपुर पहुंच जाएगी. तीसरे दिन रुखसार शमीमा को साथ ले कर काशीपुर पहुंची तो उस ने वहां छोटी बहन फरीदा को भी परेशान देखा. रुखसार ने उस से उस की उदासी की वजह पूछी. लेकिन फरीदा ने अम्मी के सामने अपना मुंह बंद रखा. रुखसार को लग रहा था कि फरीदा किसी गहरे सदमे में है. उसे इस हालत में देख कर वह समझ चुकी थी कि उस के साथ जरूर कुछ न कुछ घटा है.

उसी दौरान रुखसार को घर में से दुर्गंध आती महसूस हुई तो उस ने चारों तरफ देखा, लेकिन उसे कहीं भी कुछ नहीं दिखाई दिया. उस ने अम्मी से भी इस बारे में जिक्र किया. जिस पर भूरी ने सफाई दी कि यह दुर्गंध उस के पड़ोस वाले घर से आ रही है. वहां कोई चूहा मर गया होगा. कुछ देर बातचीत करने के बाद रुखसार शमीमा को घर छोड़ कर हल्द्वानी चली गई. 23 मई, 2015 को भूरी किसी काम से अपने मायके भोजपुर गई थी. उसी दौरान मौका पाते ही फरीदा ने अपनी आंखों देखी बात शमीमा को सुना दी.  फरीदा ने बताया, ‘‘10 मई, 2015 को दोपहर की बात है. अम्मी ने मुझ से कहा था कि तू इन मुरगों को बाहर घुमा ला, ये घर में सारे दिन गंदगी करते हैं. जबकि उस वक्त बाहर बहुत तेज धूप थी. उन्होंने यह भी कहा था कि घर आने में जल्दीबाजी नहीं करना.

‘‘मेरे घर से निकलते ही उन्होंने घर के किवाड़ बंद कर लिए. उस वक्त सायरा घर में ही सो रही थी. देर बाद जब मैं घर आई तो घर के किवाड़ अंदर से बंद मिले. मुझे कुछ शंका हुई. उसी वक्त मैं ने आहिस्ते से बाहर वाली खिड़की पर लगी पौलीथिन हटा कर अंदर झांक कर देखा तो अम्मी और दोनों भाई आरिफ व नाजिम सायरा की चारपाई को घेरे खड़े थे. उन्हें इस तरह से खड़े देख कर मुझे डर लग रहा था. मैं वापस चली गई.

‘‘काफी देर बाद मैं फिर लौटी तो उस समय भी किवाड़ नहीं खुले थे. मैं ने डरते हुए दरवाजा खटखटाया तो अम्मी ने दरवाजा खोला. मुझे देखते ही वह बोली, ‘‘तू यहीं रहना. अभी अंदर नहीं आना. काफी देर बाद मुझे घर में जाने दिया. मुझे घर में सायरा दिखाई नहीं दी. पता नहीं इन लोगों ने सायरा के साथ क्या किया. उस दिन के बाद अम्मी और भाइयों ने मुझे टिन शैड की तरफ नहीं जाने दिया. अगले दिन मैं ने अम्मी से सायरा के बारे में पूछा तो मुझ से कहा कि वह घर से भाग गई है, तू उस के बारे में क्यों पूछ रही है, अपने काम से काम रख. फिर डर की वजह से मैं भी चुप हूं.’’

फरीदा की बातें सुनने के बाद शमीमा को भी शक हो गया कि कहीं अम्मी और भाइयों ने सायरा को मार तो नहीं डाला. अपनी शंका दूर करने के लिए शमीमा ने टिन शेड के नीचे की जमीन थोड़ी खोदी तो उसे बदबू तेज आती महसूस हुई. इस से उसे पूरा विश्वास हो गया कि सायरा की लाश वहीं पर दफन है. फरीदा ने उसी समय बड़ी बहन रुखसार को फोन कर के सारी हकीकत बताते हुए जल्दी से काशीपुर आने को कहा. खबर पाते ही रुखसार काशीपुर आ गई और थाने पहुंच कर इस की सूचना काशीपुर के थानाप्रभारी विनोद कुमार जेठा को दे दी. तब कहीं इस केस का खुलासा हो सका. सायरा को ठिकाने लगाने के बाद आरिफ शमीमा को भी मौत की नींद सुलाना चाहता था, लेकिन अम्मी के साथ आने से इनकार करने के कारण ही वह जिंदा बच सकी, वरना वह भी सायरा की तरह घर में ही मौत की नींद सो रही होती.

कहते हैं कि एक बार बाप दरिंदा हो सकता है, लेकिन माता कुमाता नहीं हो सकती. लेकिन यहां एक मां इतनी कू्रर हो सकती है, इस का अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता. लाश के सड़ने की किसी को बदबू न आए, इसलिए वह उस की कब्र पर अगरबत्ती जलाती रही. उस ने किसी को अहसास तक नहीं होने दिया कि जवान लड़की को घर में ही दफनाया हुआ है. लोगों से कहती रही कि सायरा अपने किसी प्रेमी के साथ भाग गई है. उन दोनों की निशानदेही पर पुलिस ने मुख्य अभियुक्त आरिफ को भी गिरफ्तार कर लिया. उस ने भी हत्या की पूरी कहानी पुलिस के सामने दोहरा दी. पुलिस ने तीनों अभियुक्तों भूरी, आरिफ और नाजिम को भादंवि की धारा 302/201/34 के तहत गिरफ्तार कर के 2 मई, 2015 को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

मामले की तफ्तीश थानाप्रभारी विनोद कुमार जेठा कर रहे हैं. True Crime

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित कथा में कुछ पात्रों के नाम परिवर्तित हैं.

Motivational Story: जज्बे ने दिलाया यश भारती का सम्मान

Motivational Story: दाल और चावल पर ही नहीं, रामदाने तथा सरसों के दाने पर कलाकृति बनाने वाले चित्रकार राजकुमार वर्मा को जब कोई पुरस्कार मिलता है तो उस के बाद वह कोई ऐसी चित्रकारी करते हैं, जो सब को हैरान कर देती है. मन में कुछ कर गुजरने की चाहत और हौसले बुलंद हों तो मुश्किल से मुश्किल काम भी आसान हो जाता है. इसी बात को सच कर दिखाया है 62 वर्षीय राजकुमार वर्मा ने. उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के राजघाट के मोहल्ला बसंतपुर के रहने वाले राजकुमार ने नंगी आंखों से रामदाने, चावल के दाने, काले तिल और चने की दाल पर छोटे से छोटा चित्र उकेर कर कई पुरस्कार और सम्मान हासिल करने में सफलता हासिल की है.

ऐसा नहीं कि इन्हें यह सफलता और शोहरत रातोंरात मिल गई है, यह सब इन की लगभग 40 सालों की साधना का परिणाम है. राजकुमार वर्मा के हाथों में कैनवास उसी दिन आने के लिए बेताब हो उठा था, जब वह सन 1975 में गोरखपुर महानगर के नगरनिगम हाल में लगी एक प्रदर्शनी देखने गए थे. उस प्रदर्शनी में विभिन्न तरह की दालों पर अलगअलग देवीदेवताओं के तैलीय रंग से उकेरी गई तसवीरें रखी थीं. छोटीछोटी दालों के ऊपर उकेरी गई तसवीरों ने राजकुमार वर्मा के मन में कुछ करने की चाहत पैदा कर दी थी. राजकुमार उस समय इंटरमीडिएट में पढ़ रहे थे. उसी समय उन्होंने तय कर लिया कि वह भी इस माइक्रो आर्ट के जरिए कुछ ऐसा करने की कोशिश करेंगे, जिस की लोग तारीफ करें.

इस के बाद दालों और चावल के दाने पर राजकुमार वर्मा ने चित्रकारी करने की कोशिश शुरू कर दी. शुरुआत में वे असफल रहे. लेकिन उन के मन में कुछ करने की तमन्ना थी, इसलिए उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. करीब एक साल के अभ्यास और अथक परिश्रम के बाद असफलता ने उन की लगन के आगे घुटने टेक दिए और सन 1976 में वह चने की दाल पर गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर का चित्र बनाने में सफल हो गए. चने की दाल पर बने रवींद्रनाथ टैगोर के रंगीन चित्र को काफी लोगों ने पसंद किया. इस के बाद उन्होंने काले तिल, रामदाने, हाथी दांत, चावल और दाल के दानों पर चित्र बना कर अपनी पहचान बनानी शुरू कर दी.

राजकुमार वर्मा के परिवार में पत्नी के अलावा 4 बच्चे हैं. वह पेशेवर घड़ीसाज हैं और यह धंधा उन्हें विरासत में मिला है. उन के पिता भी एक कामयाब घड़ीसाज थे. शहर में हाल्सीगंज चौराहे के पास उन की छोटी सी दुकान है. पिता से काम सीखने के बाद राजकुमार वर्मा ही अब इस दुकान को संभालते हैं. कठिन परिश्रम और लगन का ही नतीजा था कि राजकुमार ने मुश्किल और कठिनाइयों के साथ आर्थिक तंगी की मार भी झेली, लेकिन वह लगातार प्रयास कर के आगे बढ़ते रहे. सन 1978 में बाम्बे आर्ट सीखने के बाद उन के हाथों में गजब की चमक आ गई. इस चमक का लाभ उन्हें माइक्रो आर्ट के रचनात्मक कार्य में मिला.

इस के बाद उन्होंने चावल, दाल और सरसों के दाने पर महाराणा प्रताप, शिवाजी, अकबर, शाहजहां, बहादुरशाह जफर, गौतमबुद्ध, गुरुनानक, भीमराव अंबेडकर, महात्मा गांधी, राजीव गांधी, इंदिरा गांधी, सरदार भगत सिंह, नेलसन मंडेला, यासर अराफात, मदर टेरेसा, गोर्वाचोव, जार्ज बुश, सद्दाम हुसैन, श्री राम, श्री कृष्ण, विष्णु, गणेश, ईसा मसीह, जगन्नाथ, सरस्वती और हनुमान के चित्रों के अलावा ताजमहल, कुतुबमीनार, सांची का स्तूप, सुप्रीम कोर्ट, बुद्धमंदिर आदि ऐतिहासिक इमारतों के भी चित्र बनाए.

राजकुमार वर्मा ने गौतम बुद्ध की विभिन्न मुद्राओं और राम दरबार का डाक टिकट साइज का चित्र बना कर सब को आश्चर्यचकित कर दिया. इस के बाद जब उन्होंने एक बाल को लंबवत 10 भागों में बड़ी सफाई से काट कर दिखाया तो लोग चौंक गए, क्योंकि ऐसा करना मुमकिन ही नहीं, नामुमकिन था. दूसरा इतिहास उन्होंने चावल के दाने पर अंग्रेजी के 550 अक्षर लिख कर रच दिया. काम के प्रति वफादारी और दीवानगी की बदौलत वह इतिहास पर इतिहास रचते गए. दिनरात एक कर के नईनई उपलब्धियां हासिल करने वाले राजकुमार वर्मा को सन 1981 में ‘स्मृति कला प्रतियोगिता गोरखपुर’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया. उन का यह पहला पुरस्कार था.

इसे पा कर वह खुश तो हुए, लेकिन उन की कला के प्रति जिम्मेदारियां और बढ़ गईं. वह समर्पित भाव से अपने काम में लगे रहे. इस का नतीजा यह निकला कि उन्हें 1982 में ‘स्मृति कला प्रतियोगिता’, 1989 में ललित कला संगीत विकास परिषद, पडरौना और 2000 में अंतरराष्ट्रीय श्री सीताराम बैंक सेवा ट्रस्ट अयोध्यापुरी की ओर से विशिष्ट स्वर्ण पदक पुरस्कार प्रदान किए गए. इन पुरस्कारों के अतिरिक्त राजकुमार वर्मा को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी, भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी, तत्कालीन खाद्य मंत्री कल्पनाथ राय, पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, फिल्म निर्देशक राजकुमार संतोषी और फिल्म अभिनेता आमिर खान की ओर से प्रशंसापत्र प्रदान किए जा चुके हैं.

ख्याति प्राप्त करने की ललक में उन्होंने मात्र डेढ़ सेंटीमीटर की हनुमान चालीसा पुस्तक की रचना की. बाद में लखनऊ के एक नागरिक को राजकुमार वर्मा की यह उपलब्धि इतनी अच्छी लगी कि उस ने डेढ़ लाख रुपए में वह हनुमान चालीसा खरीद लिया. डेढ़ सेंटीमीटर में ही उन्होंने दुरुद शरीफ (कुरान का एक हिस्सा) जैसी अद्भुत पुस्तक अरबी भाषा में लिख कर सभी को चौंका दिया. विश्व इतिहास रचने के लिए राजकुमार ने दूसरी बार हनुमान चालीसा लिखा. इस बार उस का आकार पहले से छोटा यानी 1 सेंटीमीटर था. कुल 50 पृष्ठों वाली इस हनुमान चालीसा में 25 पेजों पर रंगीन चित्र और 25 पेजों में हनुमान चालीसा, बजरंगबाण, हनुमानाष्टक और आरती लिखी है.

एक सेंटीमीटर के हनुमान चालीसा की सफलता के बाद उन्होंने दुनिया की सब से छोटे आकार .64एमएम की किताब लिखी. इस किताब में दुनिया के 12 सुविख्यात चित्रकारों के रंगीन चित्र और उन का जीवन वृत्तांत है. उन 12 चित्रकारों में कविवर रवींद्रनाथ टैगोर, एम.एफ.हुसैन, शोभा सिंह, राजा रवि वर्मा, हैदर रजा, स्पेन के पाब्लो पिकासो, नीदरलैंड के विनसेंट वान गौग, मैक्सिको के फ्रिडा काहलो, इटली के लियोनार्दो दा विंची, एफ.एन. सूजा, क्लाउड मोनेट, स्पेन के फ्रांसिस्को डी गोया को शामिल किया गया है. प्रथम पृष्ठ पर राष्ट्रचिह्न के साथ अंतिम पृष्ठ पर चित्रकार राजकुमार वर्मा ने अपना परिचय दिया है.

बहरहाल, राजकुमार वर्मा कोई नई कृति तैयार करने की फिराक में हैं. इसी बीच उत्तर प्रदेश सरकार के मुखिया अखिलेश यादव को उन की याद आई. वह भी उन के इस अनूठे कार्य से बेहद प्रभावित हुए और उन्होंने 9 फरवरी, 2015 को उन्हें यश भारती पुरस्कार से सम्मानित किया. इस सम्मान में उन्हें 11 लाख रुपए का चेक, प्रशस्ति पत्र देने के अलावा शाल ओढ़ा कर सम्मानित किया गया. इसी के साथ संस्कृति विभाग में उन्हें जोड़ते हुए बतौर सेवा रूप में 15 हजार रुपए प्रति माह देने की घोषणा की. यह सम्मान पा कर राजकुमार वर्मा बेहद खुश हैं.

इस के बाद पहली मार्च, 2015 को सोनार समिति के अध्यक्ष राकेश वर्मा और आईपीएस अधिकारी कुमार प्रशांत ने भी हासूपुर स्थित सर्राफा भवन में एक कार्यक्रम आयोजित कर उन्हें सम्मानित किया. हर सम्मान पाने के बाद राजकुमार वर्मा अपनी कला के जरिए नया कीर्तिमान बनाते हैं. यश भारती पुरस्कार पाने के बाद वह इसी कोशिश में जुटे हैं. Motivational Story

 

UP Crime: सीमा के स्वप्न संसार में सेंध

UP Crime: महत्त्वाकांक्षी होना बुरी बात नहीं है, लेकिन अतिमहत्त्वाकांक्षा हमेशा कष्टदायी होती है. सीमा अगर खुद पर नियंत्रण रख कर अपने पति पर भरोसा रखती तो उस का और उस के परिवार का ऐसा भयानक अंजाम कभी न होता.

उत्तर प्रदेश के जिला इटावा के कस्बा बकेवर के रहने वाले रामलाल तोमर के परिवार में पत्नी के अलावा एक बेटा व 3 बेटियां थीं, जिन में सीमा सब से बड़ी थी. वह अपने भाई बहनों से हर मामले में तेज थी. पढ़नेलिखने में भी वह पीछे नहीं थी. उस ने हाईस्कूल की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की थी. सीमा जब जवान हुई तो उस के मातापिता को उस की शादी की चिंता होने लगी.  रामलाल तोमर ने सीमा के लिए रिश्ता देखना शुरू किया तो औरैया के मोहल्ला आर्यनगर का राकेश उर्फ राजू उन्हें पसंद आ गया. पेशे से ड्राइवर राजू का अपना मकान था. देखने में भी वह हृष्टपुष्ट था. उस का एक ही भाई था नरेश, जो प्राइवेट नौकरी करता था. लड़का भी ठीक था और उस का परिवार भी. रामलाल तोमर ने बेटी का रिश्ता उस के साथ तय कर दिया.

सीमा खूबसूरत लड़की थी. राकेश को भी वह पसंद आ गई. फलस्वरूप दोनों की शादी हो गई. यह सन 2006 की बात है. गोरा रंग, भरा हुआ चेहरा, कटीले नैननक्श, छरहरा बदन, ऊपर से भरपूर जवानी. राकेश को लगा जैसे सीमा के रूप में उसे हूर मिल गई है. वह उस की खूबसूरती में डूब कर रह गया. सीमा भी राकेश को पा कर खुश थी. दोनों का जीवन हंसीखुशी से कटने लगा. परिवार की स्थिति के अनुसार जीवन की लगभग हर आर्थिक जरूरत पूरी हो रही थी. विवाह के शुरुआती दिनों में तो पतिपत्नी दोनों खूब खुश थे, लेकिन जब जिम्मेदारियां बढ़ीं तो धीरेधीरे दोनों का एकदूसरे के प्रति आकर्षण कम होने लगा. वक्त के साथ राकेश को लगने लगा कि सीमा कुछ ज्यादा ही महत्त्वाकांक्षी औरत है.

वजह यह थी कि अब वह राकेश से तरहतरह की फरमाइशें करने लगी थी. जबकि ड्राइवरी कर के अपने परिवार का बोझ उठाने वाले राकेश के लिए उस की फरमाइशें पूरा करना आसान नहीं था. लेकिन यह बात सीमा की समझ में नहीं आती थी. वह पति की मजबूरी समझने के बजाय उस से लड़ाईझगड़ा करने लगती थी. सीमा के इसी स्वभाव की वजह से दोनों के दांपत्य जीवन में कटुता आने लगी. फिर भी विषम परिस्थितियों के बावजूद वक्त अपनी चाल चलता रहा. इस बीच सीमा एक बेटी हिना और एक बेटे रूपेश की मां बन गई थी.

सीमा अपने बच्चों का पालनपोषण अच्छी तरह से करना चाहती थी. वह उन्हें अच्छे स्कूल में पढ़ाना चाहती थी, लेकिन राकेश की सीमित आय में यह संभव नहीं था. सीमा बच्चों की परवरिश और उन की पढ़ाईलिखाई को ले कर अकसर पति से झगड़ती रहती थी. रोजरोज के झगड़े से राकेश तनाव में रहने लगा था. इस तनाव को दूर करने के लिए उस ने शराब का सहारा लेना शुरू कर दिया था. दिन भर के कामकाज से थका मादा राकेश अब ज्यादातर नशे में धुत हो कर देर रात घर लौटता था. घर आ कर वह थोड़ाबहुत खाना खाता और बिस्तर पर लुढक जाता. सीमा अभी जवान थी, उस की रातें बिस्तर पर करवटें बदलते गुजरतीं. उस का मन करता था कि उस का पति उसे प्यार करे, उस की शारीरिक जरूरतों को पूरा करे. लेकिन राकेश की उपेक्षा की वजह से वह मन मार कर रह जाती थी.

आर्यनगर मोहल्ले में ही सीमा के घर से कुछ दूरी पर सुरेश शर्मा का अपना मकान था, जहां वह सपरिवार रहता था. सुरेश शर्मा प्रौपर्टी डीलर था, साथ ही जरूरतमंदों को ब्याज पर पैसा भी देता था. उस ने अपने घर के भूतल पर प्रौपर्टी डीलिंग का औफिस बना रखा था. उस का काम अच्छा चल रहा था. एक दिन अचानक सीमा की बेटी हिना की तबियत खराब हो गई. उसे नर्सिंगहोम में भरती कराना पड़ा. सीमा को पैसों की जरूरत थी, इसलिए वह अपने पति राकेश के साथ प्रौपर्टी डीलर सुरेश शर्मा के औफिस जा पहुंची. खूबसूरत सीमा को देख कर सुरेश के दिल में हलचल मच गई. उस ने आने का कारण पूछा तो सीमा बोली, ‘‘शर्माजी, मेरी बेटी हिना अस्पताल में भरती है. मुझे 10 हजार रुपए चाहिए.’’

सुरेश शर्मा गोरी रंगत व तीखे नयननक्श वाली सीमा के चेहरे पर नजरें गड़ाते हुए बोला, ‘‘मैडम, आप जरूरतमंद हैं और मैं जरूरतमंदों को कभी निराश नहीं करता, लेकिन आप को मूल के साथसाथ ब्याज भी देना होगा.’’

‘‘यह मेरे पति राकेश हैं, ड्राइवर की नौकरी करते हैं. हम आप की पाईपाई चुका देंगे.’’ सीमा ने गारंटी सी दी.

सुरेश शर्मा सोचने लगा, ‘इतनी खूबसूरत औरत एक मामूली ड्राइवर की बीवी. इसे तो किसी उस जैसे दौलतवाले की होना चाहिए.’

सोचविचार कर शर्मा सीमा के पति से मुखातिब हुआ, ‘‘क्यों भाई राजू, तुम्हारी बीवी जो वादा कर रही है, उसे पूरा करोगे?’’

‘‘हां शर्माजी, मैं वादा करता हूं कि आप का पैसा ब्याज समेत चुका दूंगा.’’ राजू हाथ जोड़ कर बोला.

‘‘फिर ठीक है.’’ कह कर शर्मा ने 10 हजार रुपए सीमा को दे दिए. सीमा तो पैसे ले कर चली गई, लेकिन सुरेश शर्मा के दिल में खलबली मचा गई. दरअसल वह पहली ही नजर में उस के दिलोदिमाग पर छा गई थी. फलस्वरूप वह उसे हासिल करने के लिए तानेबाने बुनने लगा. उस ने थोड़ी छानबीन की तो उसे पता चला कि सीमा का पति राकेश शराब का लती है. सुरेश शर्मा खुद भी शराब का शौकीन था. उस ने कोशिश की तो पीनेपिलाने के नाम पर जल्द ही दोनों की दोस्ती हो गई. बस फिर क्या था, दोनों की राकेश के घर में महफिल जमने लगी. पीनेपिलाने के दौरान सुरेश शर्मा की नजरें सीमा पर ही टिकी रहती थीं.

30 वर्षीया सीमा 2 बच्चों की मां जरूर थी, लेकिन उस की खूबसूरती में कोई कमी नहीं आई थी. उस का गोरा रंग, मांसल शरीर तथा बड़ीबड़ी आंखें किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर सकती थीं. वह सजसंवर कर आंखों पर काला चश्मा पहन कर जब घर से निकलती तो किसी हीरोइन से कम नहीं लगती थी. अधेड़ उम्र का सुरेश शर्मा सीमा का दीवाना बन गया था. अपनी दीवानगी के चलते जबतब उस ने सीमा के घर आनाजाना शुरू कर दिया था. वह जब भी आता, बच्चों और सीमा के लिए कुछ न कुछ ले कर आता. वह सीमा से लच्छेदार बातें करता, जो उसे बहुत अच्छी लगतीं. रहीबची कमी उस के लाए उपहार पूरी कर देते. फलस्वरूप धीरेधीरे वह भी सुरेश शर्मा की ओर आकर्षित होने लगी.

सीमा महत्त्वाकांक्षी औरत थी. उसे लगा कि धनाढ्य सुरेश शर्मा के माध्यम से उस की महत्त्वाकांक्षा पूरी हो सकती है. एक रोज जब सुरेश शर्मा उस के घर आया तो वह उस के सामने खुलेपन से पेश आई. बातोंबातों में उस ने कहा, ‘‘शर्माजी, मेरी एक चाहत है. अगर आप चाहें तो पूरी कर सकते हैं.’’

सही मौका देख सुरेश शर्मा उस का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘बोलो, क्या चाहती हो?’’

‘‘मेरे पति राकेश दूसरे की वैन चलाते हैं. नौकरी से घर का खर्चा नहीं चल पाता. मैं चाहती हूं कि आप उन्हें एक वैन खरीदवा दें. कमाई का आधा रुपया वह आप को देंगे और बाकी रुपए से घर का खर्च चलता रहेगा.’’

सीमा की डिमांड बड़ी थी. सुरेश शर्मा खामोश हो गया. वह मन ही मन सोचने लगा, ‘सीमा वाकई चालाक औरत है. अभी पिछला कर्ज चुका नहीं पाई, दूसरी बड़ी डिमांड कर दी. लेकिन वह भी प्रौपर्टी डीलर है. घाटे का सौदा नहीं करेगा. सीमा कर्ज नहीं चुका पाएगी तो वह उस के शरीर से वसूल कर लेगा.’

सुरेश शर्मा को खामोश देख कर सीमा ने पूछा, ‘‘क्या बात है शर्माजी, आप को तो सांप सूंघ गया. कोई जोरजबरदस्ती नहीं है. मैं तो वैसे ही आप की एहसानमंद हूं. आप ने मदद न की होती तो पता नहीं मेरी बेटी का क्या हाल होता.’’

‘‘नहीं…नहीं सीमा, तुम निराश मत हो. तुम्हारी चाहत पूरी होगी.’’ इस के बाद महीना बीतते सुरेश शर्मा ने सीमा के पति राकेश को वैन खरीद कर दे दी. वैन पा कर राकेश शर्मा खुशी से झूम उठा. उस ने वैन को एक अंगे्रजी माध्यम स्कूल में अटैच करा लिया. दिन में वह बच्चों को ढोता और रात में शादी समारोह या बुकिंग पर चला जाता. इस तरह वह दोहरी कमाई करने लगा. कमाई बढ़ी तो घर की आर्थिक स्थिति भी ठीक हो गई. सुरेश शर्मा वैन की कमाई के रुपए लेने अकसर सीमा के घर आता रहता था. पहले वह आता था तो गंभीर बना रहता था. लेकिन अब वह सीमा से हंसीमजाक के साथ उस के शरीर से हलकीफुलकी छेड़छाड़ भी कर लेता था. सीमा न उस के मजाक का बुरा मानती थी, न शारीरिक छेड़छाड़ का.

कहते हैं, औरत मर्द की निगाहों की बेहद पारखी होती है. सीमा भी समझ गई थी कि प्रौपर्टी डीलर सुरेश शर्मा उस से क्या चाहता है. सीमा का पति बिस्तर पर उस का साथ नहीं देता था. वह शराब पी कर देर रात घर आता और खापी कर चारपाई पर लुढ़क जाता. वह रात भर तड़पती रहती. यही वजह थी कि जब सुरेश शर्मा ने उस से शारीरिक छेड़छाड़ शुरू की तो उस ने उसे रोकने की कोई कोशिश नहीं की. एक दिन एकांत पा कर सुरेश शर्मा ने जब सीमा को छेड़ा तो वह स्वयं को रोक नहीं सकी और मुसकराते हुए पूछ लिया, ‘‘शर्माजी, आप चाहते क्या हैं?’’

‘‘मैं तो तुम्हें चाहता हूं.’’ सुरेश शर्मा ने आगे बढ़ कर सीमा के कंधों पर हाथ रखते हुए मादक स्वर में कहा. उस वक्त उस के स्वर में ही नहीं, आंखों में भी मादकता तैर रही थी. सीमा चाह कर भी सुरेश शर्मा के हाथ को अपने कंधों से नहीं हटा सकी. सुरेश शर्मा का हौसला बढ़ा तो वह उस के शरीर से छेड़छाड़ करने लगा. फिर उस ने सीमा को अपनी बांहों में भर लिया. सीमा भी उस से लिपट गई. इस के बाद दोनों तभी अलग हुए, जब उन के चेहरों पर पूर्ण संतुष्टि के भाव उभर आए.

सुरेश शर्मा और सीमा के बीच जब एक बार नाजायज रिश्ते बन गए तो फिर यह सिलसिला दिनोंदिन बढ़ता ही गया. जब भी मौका मिलता, दोनों एकदूसरे में समा जाते. शर्मा से शारीरिक सुख मिलने लगा तो सीमा ने पति को दिल से ही निकाल दिया. वह केवल प्रौपर्टी डीलर सुरेश शर्मा की हो कर रह गई. कहते हैं, पाप कितना भी छिपा कर किया जाए, एक न एक दिन उजागर हो ही जाता है. धीरेधीरे सुरेश शर्मा और सीमा के अवैध रिश्तों को ले कर पासपड़ोस में तरहतरह की चर्चाएं होने लगीं. जब इस बात की भनक राकेश तोमर को लगी तो उस का माथा ठनका. उसे अपनी बीवी पर शक तो पहले से ही था, लेकिन लोगों की चर्चाओं ने उस के शक को पक्का कर दिया.

राकेश दोनों को रंगेहाथ पकड़ना चाहता था. इसलिए उस ने गुप्तरूप से सुरेश शर्मा और सीमा पर नजर रखनी शुरू कर दी. एक शाम राकेश यह कह कर घर से निकला कि वह वैन ले कर बुकिंग पर जा रहा है. अब वह सुबह तक आ पाएगा. राकेश के जाते ही सीमा ने सुरेश शर्मा को मोबाइल से यह जानकारी दे कर उसे घर बुला लिया. कुछ देर तक दोनों हंसीठिठोली करते रहे, फिर बिस्तर पर पहुंच गए. दोनों रंगरेलियां मना ही रहे थे कि दरवाजे पर दस्तक हुई. सीमा ने दरवाजा खोला तो सामने राकेश खड़ा था. उसे देख कर सीमा ने घबरा कर पूछा, ‘‘तुम तो सुबह आने को कह कर गए थे?’’

सीमा के अस्तव्यस्त कपड़े, उलझे बाल और घबराहट देख कर राकेश समझ गया कि कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है. वह सीमा को परे धकेल कर घर के अंदर कमरे में पहुंचा तो सुरेश शर्मा वहां मौजूद था. वह कपड़े पहन चुका था. शर्मा राकेश को देखते ही बोला, ‘‘तुम आ गए, दरअसल मुझे पैसों की सख्त जरूरत थी, इसलिए तुम्हारा इंतजार कर रहा था.’’

राकेश गुस्से में बोला, ‘‘शर्माजी, आज के बाद तुम मेरे घर में कदम भी नहीं रखोगे. पैसे मैं खुद देने आऊंगा. तुम्हारे कारण हमारी कितनी बदनामी हो रही है, इस का अंदाजा है तुम्हें? मैं तुम्हारे एहसान के बोझ तले दबा हूं, ऊपर से तुम्हारी उम्र का खयाल. वरना अब तक मेरे हाथ तुम्हारी गर्दन तक पहुंच गए होते.’’

राकेश के तेवर देख कर सुरेश शर्मा ने नजरें झुका लीं और वहां से चला गया. उस के जाते ही राकेश का सारा गुस्सा सीमा पर फूट पड़ा. उस ने उस की जम कर पिटाई की. सीमा चीखनेचिल्लाने लगी. पत्नी के साथ मारपीट कर के राकेश चारपाई पर जा कर लेट गया. कुछ देर में उसे नींद आग गई. जबकि सीमा रात भर दर्द से तड़पती रही. इस के बाद तो मारपीट का सिलसिला सा चल पड़ा. राकेश शराब तो पीता ही था, लेकिन अब वह कुछ ज्यादा ही पीने लगा. देर रात वह नशे में धुत हो कर आता. बातबेबात सीमा से उलझता और फिर उसे जानवरों की तरह पीटता. कभीकभी दोनों का झगड़ा घर से शुरू होता और सड़क पर आ जाता. पासपड़ोस के लोग बड़े मजे से दोनों का झगड़ा देखते. लेकिन सीमा की मदद के लिए कोई नहीं आता.

मारपीट और बदनामी के बावजूद सीमा ने सुरेश शर्मा का साथ नहीं छोड़ा. उसे जब भी मौका मिलता मोबाइल से बात कर के वह उसे बुला लेती और दोनों हमबिस्तर हो जाते. यह अलग बात थी कि अब वे सतर्कता बरतने लगे थे. लेकिन उन की सतर्कता के बावजदू एक दिन राकेश ने दोनों को फिर रंगेहाथों पकड़ लिया. उस दिन राकेश ने पहले सुरेश शर्मा की पिटाई की, उस के बाद सीमा को मारमार कर अधमरा कर दिया. सीमा कहीं उस के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट न दर्ज करा दे, राकेश घर से गायब हो गया. इधर जब सुरेश शर्मा को इस बात का पता चला कि राकेश घर से गायब है तो वह सीमा का हालचाल जानने जा पहुंचा. सीमा उसे देख कर फफक कर रो पड़ी,

‘‘राकेश का जुल्म अब मुझ से बरदाश्त नहीं होता. उस ने पीटपीट कर मेरा पूरा शरीर काला कर दिया है. अब मैं उस से छुटकारा पाना चाहती हूं.’’

‘‘छुटकारा… मतलब… हत्या?’’ शर्मा चौंका.

‘‘हां, मेरे पति को मार डालो, वरना एक दिन वह हम दोनों को मार डालेगा.’’ सीमा ने मन की बात कह दी.

‘‘शायद, तुम ठीक कहती हो. लेकिन इस काम के लिए हम दोनों को प्रयास करना होगा. पैसा तो मैं खर्च कर सकता हूं, पर भरोसे का कोई आदमी चाहिए.’’ सुरेश शर्मा ने भी अपनी बात कह दी.

‘‘भरोसे का आदमी है, मैं उस की पत्नी से बात करती हूं.’’ सीमा ने कहा तो सुरेश शर्मा ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘कौन है वह?’

‘‘मेरी सहेली छाया वर्मा का पति राजेश वर्मा.’’

‘‘सुपारी किलर राजेश वर्मा?’’ सुरेश ने चौंक कर पूछा.

‘‘हां, वही राजेश वर्मा, पर कितनी रकम लेगा, यह बात कर के बताऊंगी.’’

‘‘ठीक है, तुम बात करो. मैं पैसे का बंदोबस्त करता हूं.’’ शर्मा ने आश्वासन दिया.

इस के बाद सीमा शुक्ला टोला में रहने वाली अपनी सहेली छाया वर्मा से मिली और उस से पति से निजात दिलाने की बात कही. इस के लिए छाया वर्मा ने 2 लाख रुपए मांगे. लेकिन बातचीत के बाद एक लाख 60 हजार रुपए में सौदा तय हो गया. छाया वर्मा का पति राजेश वर्मा दिखावे के लिए तो कार ड्राइवर था, लेकिन असल में वह अपराधी था और पैसा ले कर हत्या जैसे जघन्य अपराध करता था. छाया वर्मा ने अपने पति राजेश वर्मा को राकेश उर्फ राजू तोमर की हत्या के लिए राजी कर लिया. सीमा ने सुरेश शर्मा की मुलाकात राजेश वर्मा व उस की पत्नी छाया वर्मा से करवाई और सुपारी किलर राजेश वर्मा को 20 हजार रुपए एडवांस दिलवा दिए. शेष रुपए काम हो जाने के बाद देने को कहा गया. सुपारी लेने के बाद राजेश वर्मा ने इस काम में अपने दोस्त कल्लू सक्सेना को भी शामिल कर लिया.

करीब एक सप्ताह तक इधरउधर घूमने के बाद राकेश घर लौट आया. अब वह पूरी तरह निश्चिंत था. क्योंकि सीमा ने पुलिस में कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई थी. उस ने बच्चों से प्यार भरी बातें कीं और सीमा के साथ भी सहज व्यवहार किया. यहां तक कि उस ने सीमा से मारपीट के लिए माफी भी मांग ली. सीमा के व्यवहार में भी बदलाव आ चुका था. दिखावे के लिए वह भी उस से प्यार करने लगी थी. राकेश को क्या मालूम था कि पत्नी का यह प्यार उस के लिए मौत की दस्तक है.

16 मार्च, 2015 की सुबह औरैया के कुछ लोगों ने शहर के पास वाली नहर के किनारे स्थित वीरेंद्र कुशवाहा के खेत में लगे ट्यूबवेल के कमरे के पास एक युवक की लाश पड़ी देख कर औरैया कोतवाली पुलिस को सूचना दी. सूचना मिलते ही कोतवाली प्रभारी अजय पाठक अपने सहयोगी उपनिरीक्षक मोहम्मद शाकिर व अनिल पांडेय के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. पाठक ने लाश पाए जाने की सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दे दी और निरीक्षण में जुट गए. युवक की हत्या किसी तेज धार वाले हथियार से की गई थी. उस का गला आधे से ज्यादा कटा हुआ था. हाथ पर भी जख्म थे. मृतक की उम्र 35 साल के आसपास थी. जामातलाशी में उस के पास से ऐसा कुछ भी बरामद नहीं हुआ, जिस से उस का नामपता मालूम हो जाता. लाश को सैकड़ों लोगों ने देखा, लेकिन कोई भी मृतक को पहचान नहीं सका.

थानाप्रभारी अजय पाठक अभी लाश का निरीक्षण कर रहे थे कि सूचना पा कर एसपी मनोज तिवारी, एएसपी विपुल कुमार श्रीवास्तव और सीओ (सिटी) रमेशचंद्र भारतीय भी आ गए. उन्होंने डौग स्क्वायड को भी बुला लिया. वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने बारीकी से घटनास्थल का निरीक्षण किया और वहां मौजूद लोगों से पूछताछ की. लेकिन मृतक की पहचान नहीं हो सकी. खोजी कुत्ता भी लाश को सूंघ कर भौंकता हुआ नहर तक गया और वापस लौट आया. शिनाख्त न होने पर पुलिस ने लाश की फोटो वगैरह करा कर उसे पोस्टमार्टम हाउस भिजवा दिया. पुलिस अधीक्षक मनोज तिवारी ने मृतक और हत्यारों का पता लगाने के लिए एएसपी विपुल कुमार श्रीवास्तव के निर्देशन में एक सशक्त पुलिस टीम बनाई.

इस टीम में सीओ सिटी रमेशचंद्र भारतीय, कोतवाली प्रभारी निरीक्षक अजय पाठक, एसआई मोहम्मद शाकिर, अनिल पांडेय तथा सर्विलांस टीम को शामिल किया गया. यह पुलिस टीम 4 दिनों तक पसीना बहाती रही, लेकिन मृतक की हत्या का रहस्य खुलना तो दूर उस की शिनाख्त तक नहीं हो सकी. 21 मार्च, 2015 को आर्यनगर मोहल्ला निवासी नरेश तोमर ने थाना कोतवाली आ कर बताया कि उस का भाई राकेश उर्फ राजू तोमर करीब एक हफ्ते से गायब है. इस पर अजय पाठक ने उसे मृतक की फोटो दिखाई. फोटो देखते ही नरेश फफक पड़ा. उस ने बताया कि यह फोटो उस के भाई राकेश की है.

लाश की शिनाख्त होते ही पुलिस हरकत में आ गई. पुलिस टीम ने नरेश से पूछताछ की तो उस ने अपने भाई की हत्या का संदेह प्रौपर्टी डीलर सुरेश शर्मा और उस के बेटे शिवम शर्मा पर जाहिर किया. पुलिस ने दोनों को हिरासत में ले लिया. थाना कोतवाली ला कर जब पुलिस टीम ने सुरेश शर्मा से पूछताछ की तो वह टूट गया और उस ने हत्या का जुर्म कबूल लिया. पूछताछ में सुरेश शर्मा ने बताया कि राकेश की पत्नी सीमा से उस के नाजायज संबंध बन गए थे. राकेश इन संबंधों का विरोध करता था और सीमा को बुरी तरह पीटता था. आजिज आ कर सीमा और उस ने राकेश की हत्या की साजिश रची. इस के बाद उन दोनों ने सुपारी किलर राजेश वर्मा और उस की पत्नी छाया वर्मा से बात की.

बातचीत के बाद सीमा ने अपने सुहाग का सौदा एक लाख 60 हजार में कर डाला और एडवांस के तौर पर 20 हजार रुपए भी दे दिए. राजेश वर्मा ने ही राकेश की हत्या की है. सुरेश शर्मा के बयान के आधार पर पुलिस टीम ने ताबड़तोड़ छापे मार कर राजेश वर्मा, उस की पत्नी छाया वर्मा और मृतक की पत्नी सीमा तोमर को गिरफ्तार कर लिया. थाना कोतवाली में जब उन से पूछताछ की गई तो सभी ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. राजेश वर्मा ने कत्ल में प्रयोग किया गया गंड़ासा भी बरामद करा दिया, जिसे उस ने नहर के किनारे झाडि़यों से छिपा दिया था. राजेश के पास से पुलिस टीम ने 7500 रुपए भी बरामद कर लिए. शेष रुपए वह खर्च कर चुका था.

राजेश वर्मा ने पूछताछ में बताया कि सुपारी लेने के बाद उस ने यह काम करने के लिए अपने दोस्त कल्लू सक्सेना को शामिल कर लिया था. पीनेपिलाने के दौरान उस ने राजू से दोस्ती गांठ ली थी. 15 मार्च को वह राजेश उर्फ राजू को शहर के बाहर नहर पर ले गया और फिर खेत पर वहां पहुंचा, जहां ट्यूबवेल था. ट्यूबवेल के पास कमरा था. राकेश वहीं पसर गया. सही मौका देख कर उस ने कल्लू की मदद से राजू की गर्दन गंड़ासे से काट दी और गंड़ासा छिपा दिया. उस के बाद राकेश की हत्या की सूचना सुरेश शर्मा को दे दी. राकेश की हत्या कर के राजेश और कल्लू सक्सेना घर लौट आए थे.

चूंकि अभियुक्तों ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था, इसलिए थानाप्रभारी अजय कुमार पाठक ने मृतक के भाई नरेश को वादी बना कर भादंवि की धारा 302/201/120बी, के तहत, सुरेश शर्मा, राजेश वर्मा, छाया वर्मा, सीमा तोमर और कल्लू सक्सेना के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कर ली. 24 मार्च, 2015 को पुलिस ने अभियुक्त सुरेश शर्मा, राजेश वर्मा, छाया वर्मा तथा सीमा तोमर को औरैया की कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जिला कारागार भेज दिया गया. कल्लू सक्सेना फरार था. UP Crime

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारि

Uttar Pradesh Crime Story: खुले दिल वाली औरत

Uttar Pradesh Crime Story: 3 शादियां करने के बाद भी सरस्वती अपने दिल को काबू में नहीं कर सकी. उस का दिल पड़ोस के ओमवीर पर आ गया. इस नए प्रेमी के साथ उस ने ऐसी साजिश रची कि…

रामपुर बुजुर्ग गांव में सुबहसुबह रोने बिलखने की आवाज सुन कर लोगों की नींद टूट गई. वह आवाज किसी महिला की थी. लोग सोचने लगे कि पता नहीं क्या हो गया जो वह महिला इस तरह रो रही है. लोगों की जिज्ञासा बढ़ गई और वे अपनेअपने घरों से बाहर निकल कर उस तरफ जाने लगे, जिधर से रोने की आवाज आ रही थी. वह आवाज रामस्वरूप के घर की तरफ से आ रही थी. इसलिए लोगों का उस के घर के बाहर जुटना शुरू हो गया. बाद में पता चला कि रामस्वरूप की मौत हो गई है. रामस्वरूप की पत्नी सरस्वती रोते हुए कह रही थी कि उस के पति ने आत्महत्या कर ली है. उस की लाश कमरे में एक चारपाई पर पड़ी थी. रामस्वरूप की मां मोरकली और भाई ऋषिपाल भी वहां खड़े आंसू बहा रहे थे.

वहां मौजूद लोगों में से किसी ने फोन कर के रामस्वरूप के आत्महत्या करने की जानकारी भमोरा थाने को दे दी. जानकारी मिलते ही थानाप्रभारी राकेश सिंह यादव गांव रामपुर बुजुर्ग में रामस्वरूप के घर पहुंच गए. यह गांव उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के अंतर्गत आता है. पुलिस को देखते ही सरस्वती दहाड़े मार कर रोने लगी. थानाप्रभारी ने सरस्वती को दिलासा देते हुए चुप कराया. इस के बाद उस से रामस्वरूप की मौत के बारे में बात की. उस ने रुंधे गले से बताया कि थकान होने की वजह से रात को वह बच्चों के साथ सो गई थी. सुबह आंखें खुलीं तो उस ने पति की लाश धोती के फंदे से लटकी देखी. इस हाल में उस ने जल्दी से धोती को बीच से काट दिया और लोगों को बुलाया.

थानाप्रभारी ने लाश का मुआयना किया तो देखा कि रामस्वरूप की लाश चारपाई पर चित अवस्था में पड़ी थी. उस के शरीर पर कमीज और केवल अंडरवियर था. गले पर किसी रस्सी के बांधने जैसे निशान थे. पुलिस ने मृतक के छोटे भाई ऋषिपाल से पूछताछ की तो उस ने बताया कि रामस्वरूप ने 2 दिन पहले ही अपने हिस्से की जमीन बेची थी. इसलिए फांसी लगा कर आत्महत्या करने का कोई कारण समझ में नहीं आ रहा. ऋषिपाल की बातों से थानाप्रभारी को दाल में काला नजर आने लगा. चूंकि उस समय सरस्वती बुरी तरह बिलख रही थी, इसलिए उस से पूछताछ करनी जरूरी नहीं समझी. उन्होंने लाश का पंचनामा करने के बाद पोस्टमार्टम के लिए बरेली के जिला अस्पताल  भेज दिया. यह बात 17 दिसबंर, 2014 की है.

अगले दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो थानाप्रभारी राकेश सिंह यादव रिपोर्ट पढ़ कर हैरान रह गए. रिपोर्ट में बताया गया था कि रामस्वरूप की मौत गला घुटने से हुई थी. जिस तरह उस के गले पर रस्सी के बांधने का निशान था. उस से यही लगता था कि सोते समय उस के गले में रस्सी बांध कर उस का गला घोंटा गया था. पुलिस को यह मामला हत्या का लगा. जबकि उस की पत्नी इसे आत्महत्या बता रही थी. केस की गुत्थी सुलझाने के लिए थानाप्रभारी उस के घर पहुंचे. घर में सरस्वती तथा उस की सास मोरकली मिलीं. उन्होंने सरस्वती से पूछताछ शुरू की तो उस ने वही कहानी बताई, जो घटना वाले दिन बताई थी. इस के अलावा उस ने इस बार एक नई बात बताई कि उस का पति अपने छोटे भाई ऋषिपाल तथा मां के भी हिस्से की 8 बीघा जमीन बेचना चाहता था.

पहले तो वे दोनों इस के लिए राजी थे. लेकिन जब जमीन लिखने की बात आई तो दोनों मुकर गए. इस के बाद शर्मिंदगी के मारे उन्होंने आत्महत्या कर ली. सरस्वती के बयान की तसदीक करने के लिए पुलिस ने ऋषिपाल और उस की मां मोरकली से पूछताछ की तो दोनों ने बताया कि रामस्वरूप ने केवल अपने ही हिस्से की जमीन श्रीपाल को बेची थी. उन के हिस्से की जमीन बेचने की तो कोई चर्चा ही नहीं हुई. इस से पुलिस को यही लगा कि सरस्वती ने जो कुछ बताया, वह सरासर झूठ था. ऋषिपाल ने आरोप लगाया कि रामस्वरूप की हत्या में उस की पत्नी सरस्वती और उस के तीनों भाइयों रामवीर, भगवानदास तथा जानकी प्रसाद का हाथ है. इन सभी के खिलाफ रिपोर्ट लिखाने की तहरीर उस ने 9 जनवरी, 2015 को थाने में दे दी. इस के बाद पुलिस ने उन चारों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली.

सरस्वती का मायका बरेली जिले के कैंट थाने के पालपुर गांव में था. उस के भाइयों की तलाश में पुलिस अगले दिन ही पालपुर गांव पहुंच गई. रामवीर, भगवानदास तथा जानकी घर पर ही मिल गए. तीनों को हिरासत में ले कर पुलिस टीम थाने लौट आई. तीनों से पूछताछ शुरू की तो तीनों ने खुद को बेगुनाह बताया. उन्होेंने बताया कि रामस्वरूप ने अपनी 8 बीघा जमीन का बैनामा 15 दिसबंर, 2014 को कराया था तो उस दिन वे उस के साथ थे. अगले दिन 16 दिसबंर की शाम को वे अपने घर लौट आए थे. उस समय तक रामस्वरूप बिलकुल ठीक था और सभी से हंसबोल रहा था. इस के बाद रात में उस की मौत कैसे हो गई, उन्हें नहीं पता?

थानाप्रभारी को शक हो गया कि हो न हो, जमीन की बिक्री से मिले रुपयों को पाने के लिए उन लोगों ने रामस्वरूप की हत्या कर दी और रात में ही अपने घर लौट गए हों. इस के बाद सरस्वती ने लोगों को दिखाने के लिए रोनेचिल्लाने का नाटक करना शुरू कर दिया हो. इसी बात को ध्यान में रखते हुए पुलिस ने तीनों भाइयों से सख्ती से पूछताछ करनी शुरू की. सरस्वती को जब पता चला कि पुलिस उस के भाइयों से सख्ती कर रही है तो वह घबरा गई. अपने भाइयों को पुलिस से बचाने के लिए उस ने थानाप्रभारी राकेश सिंह यादव को फोन कर के बताया कि वह पति की हत्या के बारे में कुछ अहम बातें बताना चाहती है. सरस्वती की बात सुन क र थानाप्रभारी 11 जनवरी, 2015 की सुबह सरस्वती के घर पहुंच गए.

सरस्वती ने पति की हत्या के बारे में उन्हें जो कुछ बताया उसे सुन कर वह हैरान रह गए. सरस्वती ने बताया कि पति की हत्या उसी ने अपने प्रेमी ओमवीर साहू के साथ मिल कर की थी. उस के तीनों भाई बेकुसूर हैं, उन्हें हत्या के बारे में कुछ पता नहीं है. वे उस दिन शाम को ही अपने गांव पालपुर लौट गए थे. इस तरह अचानक केस खुलने पर थानाप्रभारी ने राहत की सांस ली. उन्होंने उसी समय सरस्वती को गिरफ्तार कर थाने ले आए. उस के तीनों भाई बेकुसूर थे, इसलिए उन्हें रिहा कर दिया. एक पुलिस टीम उस के प्रेमी ओमवीर को गिरफ्तार करने के लिए उस के घर भेजी गई, लेकिन वह घर पर नहीं मिला. उसी दौरान पुलिस को मुखबिर से सूचना मिली कि ओमवीर गांव के बाहर मोड पर अपने कुछ साथियों के साथ मौजूद है. यह सूचना मिलते ही टीम उसी जगह पहुंच गई. मुखबिर की सूचना सही निकली. ओमवीर अपने दोस्तों के साथ गपशप करता मिल गया.

पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. ओमवीर को इस बात की बिलकुल भी जानकारी नहीं थी कि उस की प्रेमिका सरस्वती पुलिस गिरफ्त में है और वह अपना गुनाह कुबूल कर चुकी है. इसलिए जब उस से रामस्वरूप की हत्या के बारे में पूछा गया तो वह खुद को बेगुनाह बताता रहा. लेकिन जब थाने में उस का सामना सरस्वती से कराया गया तो उस का चेहरा सफेद पड़ गया. उस ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया. सरस्वती और ओमवीर से की गई पूछताछ में रामस्वरूप की हत्या के पीछे अवैध संबंधों की जो दास्तान उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार थी.

उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के कैंट थाने का एक गांव है पालपुर. पतिराम इसी गांव में अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी सोनादेवी के अलावा 3 बेटे और एक बेटी सरस्वती थी. वह किसी तरह मेहनतमजदूरी कर के अपने परिवार का भरणपोषण कर रहा था. घर की आर्थिक तंगी की वजह से वह बच्चों को पढ़ालिखा भी नहीं सका. वक्त गुजरने के साथसाथ बच्चे भी बड़े होते गए. सरस्वती 3 भाइयों की एकलौती बहन थी. इसलिए भाई उसे पलकों पर बिठा कर रखते थे. सरस्वती जवान हुई तो गांव के ही कुछ लड़के उस पर डोरे डालने लगे. वे उस के घर के आसपास चक्कर काटने लगे. लड़कों को देख कर सोनादेवी बेटी पर नजर रखने लगी. पतिराम तो सारा दिन घर से बाहर रहता था.

उसे इन सब बातों की जानकारी नहीं थी. एक दिन सोनादेवी ने पति को इस की जानकारी दी. पतिराम गरीब था, इसलिए उस ने किसी से पंगा लेने के बजाय बेटी के हाथ पीले करने की सोची. वह उस के लिए लड़का देखने लगा. उस के एक रिश्तेदार ने उसे बरेली के ही सीबीगंज थानाक्षेत्र के मथुरापुर गांव के एक युवक ओमप्रकाश के बारे में बताया. पतिराम ने ओमप्रकाश के बारे में जांच की तो पता चला कि वह मेहनती है. उस का घर परिवार भी ठीक था. वह बेटी के लिए सही लगा तो उस ने उस के साथ सरस्वती की शादी कर दी. यह 10 साल पहले की बात है.

शादी के बाद कुछ दिनों तक तो सबकुछ ठीक था, परंतु बाद में उन दोनों के बीच छोटीछोटी बातों को ले कर झगड़े होने शुरू हो गए. अभी उन की शादी को एक साल पूरा भी नहीं हुआ था कि सरस्वती को लगा कि अब उस का ओमप्रकाश के साथ गुजारा होना मुश्किल है. इसी दौरान उस की मुलाकात बदायूं जिले के मोहल्ला टिकटगंज निवासी पप्पू से हुई. पप्पू बनठन कर रहने वाला युवक था. दोनों के बीच नजदीकी इतनी बढ़ गई कि सरस्वती पति ओमप्रकाश को छोड़ कर पप्पू के साथ रहने लगी. करीब एक साल बाद सरस्वती ने एक बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम स्वाति रखा गया. सरस्वती पति को छोड़ कर पप्पू के पास इसलिए आई थी कि उस के साथ उस की जिंदगी हंसीखुशी से कटेगी. लेकिन ऐसा नहीं हो सका. एक दिन जब वह सो कर उठी तो पप्पू अपने बिस्तर पर मृत मिला. पप्पू की मौत के बाद सरस्वती की जिंदगी में जैसे अंधेरा छा गया था.

पप्पू की मौत के 1-2 महीने बाद ही पप्पू के घर वालों ने सरस्वती के ऊपर आरोप लगाने शुरू कर दिए कि पप्पू की मौत स्वाभाविक नहीं हुई, बल्कि उस ने खाने में जहर दे कर उस की हत्या की थी. सरस्वती इस का लाख विरोध करती रही. उस की बात पर किसी ने विश्वास नहीं किया. मामला पुलिस तक तो नहीं गया, लेकिन घर वालों ने उस का ससुराल में रहना दूभर कर दिया. रोजरोज की किचकिच से तंग आ कर एक दिन वह बेटी को ले कर अपने मायके आ गई. बरेली के ही भमोरा थानाक्षेत्र के रामपुर बुजुर्ग गांव में रछपाल अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी मोरकली के अलावा 2 बेटे थे, रामस्वरूप और ऋषिपाल. रछपाल की गांव में खेती की काफी जमीन थी, कुल मिला कर वह साधनसंपन्न थे. दोनों बच्चे बड़े हुए तो सब को उन की शादी की चिंता हुई.

चूंकि रामस्वरूप बड़ा था, इसलिए उस की शादी के रिश्ते आने शुरू हुए तो रामस्वरूप लड़की में सौ कमियां निकाल कर शादी करने से इनकार कर देता. गांव में अपनी हैसियत को देखते हुए रछपाल को उम्मीद थी कि बेटे के लिए कोई अच्छा सा रिश्ता अवश्य आएगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. जब रामस्वरूप हर रिश्ते में कोई न कोई कमी निकालने लगा तो उस के लिए रिश्ते आने बंद हो गए. समय के साथ उस की उम्र भी बढ़ती गई. अब उसे कोई अपनी लड़की नहीं देना चाहता था. इस से उस के घर वाले भी परेशान रहने लगे कि इस की शादी कैसे हो. यही हाल रहा तो यह कुंवारा ही रह जाएगा. ऐसी हालत में उन्होंने तय कर लिया कि किसी भी हालत में उस का घर बसाने की कोशिश करेंगे. अब वह तलाकशुदा या गरीब परिवार की महिला तक से उस का घर बसाने की बात करने लगे.

इसी बीच एक दिन किसी परिचित ने उन्हें पालपुर की सरस्वती के बारे में बता कर कहा कि वह एक बेटी की मां है और मायके में रह रही है. अगर वह कहें तो उस से शादी की बात चलाई जाए. अंधा क्या चाहे दो आंखें, रछपाल ने तुरंत हामी भर दी. इस बार रामस्वरूप कुछ नहीं बोला. सरस्वती के भाई भी बहन की शादी रामस्वरूप से करने के लिए तैयार हो गए. एक सादे समारोह में सरस्वती और रामस्वरूप की शादी हो गई. सरस्वती की यह तीसरी ससुराल थी. उस ने अपने व्यवहार से सभी लोगों का दिल जीत लिया. रामस्वरूप तो सरस्वती का दीवाना था. वह उस की बातों पर आंखें मूंद कर विश्वास करने लगा. वह भी बहुत खुश थी. रामस्वरूप से सरस्वती को 2 बच्चे हुए. बेटा गौरव तथा बेटी गुडि़या.

समय के साथ सरस्वती का घर में दखल बढ़ता गया. यह देख कर उस की सास मोरकली को आभास होने लगा कि यदि बहू को नहीं रोका गया तो जल्दी ही पूरे घर में सिर्फ उस का ही सिक्का चलने लगेगा. इसलिए मोरकली ने उसे बातबात पर टोकना शुरू कर दिया. सरस्वती को सास की दखलंदाजी पसंद नहीं थी. लिहाजा उन दोनों के बीच झगड़ा होने लगा. घर में रोजरोज ही कलह होने लगी. रामस्वरूप भी मां के बजाय पत्नी का पक्ष लेता था. रछपाल और मोरकली ने देखा कि उन का बेटा ही बीवी का गुलाम बन कर अच्छेबुरे को नहीं पहचान रहा तो उन्होंने बेटाबहू को अलग कर दिया. फिर वह गांव में ही दूसरे घर में रहने लगा. अलग होने पर सरस्वती बहुत खुश हुई. क्योंकि अब उसे ज्यादा जनों का काम नहीं करना पड़ता था.

रामस्वरूप के पड़ोस में हरिबाबू का परिवार रहता था. वह आबकारी विभाग में नौकरी करते थे. उन के परिवार में पत्नी कमलेश तथा 6 बच्चे थे. इन में चार लड़के और 2 लड़कियां थीं. वह साधनसंपन्न थे. जैसेजैसे बच्चे जवान होते गए. वह उन की शादियां करते गए. शादी के लिए उन का सब से छोटा बेटा ओमवीर ही बचा था.पड़ोसी होने की वजह से रामस्वरूप और हरिबाबू के परिवार के लोगों का एकदूसरे के घर आनाजाना बना रहता था. ओमवीर सरस्वती को भाभी कहता था. वह उस से उम्र मे कई साल छोटा था. 28 साल की सरस्वती अपनी उम्र से छोटे ओमवीर से अकसर हंसीमजाक करती रहती थी. ओमवीर को भी यह सब अच्छा लगता था. वह भी मौका ताड़ कर सरस्वती के दिल की थाह लेने लगा. वह उस के मजाक करने का मतलब समझ चुका था. इसलिए उस के मन में भी चाहत पैदा हो गई. वह भी उसी के अंदाज में उस से मजाक करने लगा.

रामस्वरूप और ओमवीर की उम्र में इतना अंतर था कि रामस्वरूप ने उसे गोद खिलाया था. इसलिए सरस्वती का झुकाव ओमवीर की तरफ हो गया. ओमवीर जब भी उस के घर आता सरस्वती के चेहरे की रौनक बढ़ जाती. एक दिन जब रामस्वरूप घर में नहीं था, तभी ओमवीर ‘भाभीभाभी…’ पुकारता हुआ उस के घर में आया तो देखा कि सरस्वती आईने के सामने खड़ी शृंगार कर रही थी. ओमवीर दबे पांव उस के पीछे खड़ा हो गया. लेकिन सरस्वती ने उसे आईने में देख लिया था. वह चहकते हुए बोली, ‘‘आओ ओमवीर इधर बैठो.’’ सरस्वती ने कुरसी की तरफ इशारा किया.

वह बहुत खूबसूरत लग रही थी. ओमवीर सरस्वती के पास कुरसी पर बैठ गया. उस समय उस के दिल की धड़कनें तेज हो गईं. सरस्वती ने उस की आंखों में झांकते हुए पूछा, ‘‘ओमवीर, मैं तुम्हें कैसी लगती हूं?’’

‘‘भाभी, तुम कितनी खुबसूरत हो, यह बात मेरे दिल से पूछो. तभी तो मैं तुम्हारी खुबसूरती का दीदार करने यहां चला आता हूं.’’ अपनी तारीफ सुनते ही सरस्वती ओमवीर के करीब आ गई. वह उस के गले में बांहें डालते हुए बोली, ‘‘सच, क्या मैं इतनी सुदंर हूं?’’

उस के नजदीक आते ही ओमवीर की धड़कनें बढ़ गईं. उस का शरीर जैसे तपने लगा. अब वह अपनी भाभी के इरादे समझ चुका था. वह भी अपनी कुरसी से खड़ा हो गया. उस ने भी झट से उस के गाल पर चुम्मा लेते हुए कहा, ‘‘सचमुच तुम बहुत खुबसूरत हो,’’

सरस्वती भी खिलाड़ी थी. उस ने मौके का फायदा उठाना मुनासिब समझा और अपना खेल दिखाना शुरू कर दिया. फिर क्या था, थोड़ी ही देर में उन्होंने अपनी हसरतें पूरी कर लीं. सरस्वती को ढलती उम्र के पति की जगह ओमवीर का साथ अच्छा लगा. इस के बाद तो पति के जाते ही सरस्वती उसे फोन कर के उसे अपने घर में बुला लेती. जब पति की गैरमौजूदगी में ओमवीर के सरस्वती के घर कुछ ज्यादा चक्कर लगने शुरू हो गए तो पड़ोसियों को शक हो गया. यह बात रामस्वरूप के कानों में भी पहुंची, मगर पत्नी पर अंधविश्वास की वजह से उस ने लोगों की बातों को गंभीरता से नहीं लिया.

सरस्वती के चक्कर में ओमवीर अपने कामधंधे पर भी ध्यान नहीं दे रहा था. इस के अलावा वह रामस्वरूप के घर के काम में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेता था. ओमवीर के घर वालों को यह सब अच्छा नहीं लगता था, इसलिए वे उसे रामस्वरूप के घर जाने को मना करते थे, लेकिन वह घर वालों की बातों पर ध्यान न दे कर उस के घर चला जाता था. रामस्वरूप की रेलवे लाइन के नजदीक 8 बीघा जमीन थी. वह ज्यादा उपजाऊ नहीं थी. दिसंबर, 2014 में एक दिन सरस्वती ने पति से उस जमीन को बेच कर कोई अच्छा सा ध्ांधा करने को कहा. पहले तो रामस्वरूप को बीवी की बात अटपटी लगी. मगर जब सरस्वती ने जिद की तो उसे बीवी की बात माननी पड़ी. इस बारे में उस ने अपने तीनों सालों से बात की तो उन्होंने भी अपनी बहन की बात में हां मिला दिया. पत्नी और ससुराल वालों की बातों में आ कर रामस्वरूप ने अपनी 8 बीघा जमीन बेचने का फैसला कर लिया.

रामस्वरूप ने भी सोचा कि जमीन बेच कर वह शहर में कोई अच्छा धंधा कर लेगा. उस ने यह बात पत्नी को बताई कि यहां रह कर धंधा करने से कोई फायदा नहीं है. अगर शहर में जा कर कोई धंधा करे तो ज्यादा अच्छा रहेगा. शहर में रहने से बच्चों की पढ़ाई भी ठीक से हो जाएगी. पति के मुंह से शहर जाने की बात सुन कर सरस्वती को पांव तले से धरती खिसकती हुई दिखाई दी. वह किसी भी हालत में ओमवीर से दूर नहीं जाना चाहती थी. इस के लिए पहले तो उस ने जमीन बेचने के बाद भी पति को गांव में रहने के लिए मनाना शुरू किया, मगर जब वह नहीं माना तो वह इस का कोई समाधान निकालने में लग गई.

इसी बीच रामस्वरूप की गैरमौजूदगी में जब ओमवीर उस से मिलने पहुंचा तो सरस्वती ने उस से कहा, ‘‘रामस्वरूप जमीन बेच कर शहर में रहने की बातें कह रहा है. यदि ऐसा हो गया तो हम दोनों एकदूसरे से दूर हो जाएंगे.’’

‘‘बताओ, इस क ा उपाय क्या है?’’ ओमवीर गंभीर हो कर बोला.

‘‘उपाय यह है कि जमीन बेचने के बाद उसे ठिकाने लगा दिया जाए. हमारे पास पैसे भी आ जाएंगें और हमारे बीच का रोड़ा भी हट जाएगा.’’ सरस्वती ने अपने मन की बात कही.

ओमवीर भी सरस्वती से दूर नहीं होना चाहता था, इसलिए वह सरस्वती के साथ मिल कर रामस्वरूप की हत्या करने के लिए तैयार हो गया. 15 दिसंबर, 2014 को रामस्वरूप की जमीन का बैनामा होना तय हुआ था, इसलिए सरस्वती के तीनों भाई जानकीप्रसाद, रामवीर और भगवानदास पालपुर से रामपुर बुजुर्ग आ गए. जमीन का बैनामा होने के बाद 16 दिसंबर की शाम को तीनों भाई गांव लौट गए. जमीन बेचने से जो रकम मिली थी, वह रामस्वरूप ने सरस्वती को रखने के लिए दे दी थी.

16 दिसंबर की रात को खाना खाने के बाद रामस्वरूप ने थोड़ी देर बच्चों से बातें की. इस के बाद बिस्तर पर जा कर सो गया. योजना के मुताबिक आधी रात होने पर ओमवीर अपने घर की मुंडेर फांद कर उस के घर में आ गया. उस समय सरस्वती जाग रही थी. वह भी बेचैनी से उसी के आने का इंतजार कर रही थी. ओमवीर के आने के बाद उस ने पति को हिलाडुला कर देखा. वह गहरी नींद में था. पति को गहरी नींद में देख कर सरस्वती ने ओमवीर को आंखों से इशारा किया. ओमवीर अपने साथ प्लास्टिक की रस्सी का टुकड़ा लाया था. प्रेमिका का इशारा मिलते ही उस ने प्लास्टिक की रस्सी रामस्वरूप के गले में लपेटी और पूरी ताकत से खींचने लगा. कुछ देर छटपटाने के बाद रामस्वरूप ने दम तोड़ दिया.

रामस्वरूप की हत्या करने के बाद ओमवीर और सरस्वती ने शारीरिक संबंध बनाए. प्रेमी को खुश करने के बाद सरस्वती ने जमीन बेचने से मिली रकम में से कुछ ओमवीर को दे दी. इस हत्या को आत्महत्या का रूप देने के लिए सरस्वती ने सुबह होते ही रोनापीटना शुरू कर दिया और उस ने पति के आत्महत्या करने की कहानी गढ़ दी. लेकिन उस का गुनाह छिप न सका. थानाप्रभारी राकेश सिंह ने सरस्वती और ओमवीर को हत्या के केस में गिरफ्तार कर सक्षम न्यायालय में पेश किया. वहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारि

Crime Thriller Hindi: जन्मदिन में मिली मौत – बेकसूर को मिली सजा

Crime Thriller Hindi: शहाबुद्दीन ने अपनी होने वाली पत्नी हसमतुल निशां से कहा. ‘‘निशां अपने जन्मदिन की पार्टी पर हमें दावत नहीं दोगी क्या?’’  ‘‘क्यों नहीं, जब आप ने मांगी है तो पार्टी जरूर मिलेगी. हम कार्यक्रम तय कर के आप को बताते हैं.’’ निशा ने अपने मंगेतर को भरोसा दिलाया.

निशां घर वालों के दबाव में बेमन से शहाबुद्दीन से शादी करने के लिए तैयार हुई थी, क्योंकि वह तो शाने अली को प्यार करती थी. इसलिए मंगेतर द्वारा शादी की पार्टी मांगने वाली बात उस ने अपने प्रेमी शाने अली को बताई तो वह भड़क उठा. उस ने कहा ‘‘निशा तुम एक बात साफ समझ लो कि जन्मदिन की पार्टी में शहाबुद्दीन और मुझ में से केवल एक ही शामिल होगा. तुम जिसे चाहो बुला लो.’’

निशा को इस बात का अंदाजा पहले से था कि शाने अली को यह बुरा लगेगा. उस ने कहा, ‘‘शाने अली, तुम तो खुद जानते हो कि मुझे वह पसंद नहीं है. लेकिन अब घर वालों की बात को नहीं टाल सकती.’’

‘‘निशा, तुम यह समझ लो कि यह शादी केवल दिखावे के लिए है.’’ शाने अली ने जब यह कहा तो निशा ने साफ कह दिया कि शादी दिखावा नहीं होती. शादी के बाद उस का मुझ पर पूरा हक होगा.’’

‘‘नहीं, शादी के पहले और शादी के बाद तुम्हारे ऊपर हक मेरा ही रहेगा. जो हमारे बीच आएगा, उसे हम रास्ते से हटा देंगे.’’ यह कह कर शाने अली ने फोन रख दिया.

हसमतुल निशां ने बाद में शाने अली से बात की और उन्होंने यह तय कर लिया कि वे दोनों एक ही रहेंगे. उन को कोई जुदा नहीं कर पाएगा. दोनों के बीच जो भी आएगा, उसे राह से हटा दिया जाएगा.

शहाबुद्दीन की शादी हसमतुल निशां के साथ तय हुई थी. निशां लखनऊ स्थित पीजीआई के पास एकता नगर में रहती थी. वह अपने 2 भाइयों में सब से छोटी और लाडली थी. शहाबुद्दीन भी अपने घर में सब से छोटा था. वह निशां के घर से करीब 35 किलोमीटर दूर बंथरा में रहता था.

शहाबुद्दीन ट्रांसपोर्ट नगर में एक दुकान पर नौकरी करता था, जो दोनों के घरों के बीच थी. हसमतुल निशां ने अपने घर वालों के कहने पर शहाबुद्दीन के साथ शादी के लिए हामी तो भर दी थी पर वह अपने प्रेमी शाने अली को भूलने के लिए भी तैयार नहीं थी.

ऐसे में जैसेजैसे शहाबुद्दीन के साथ शादी का दिन करीब आ रहा था, दोनों के बीच तनाव बढ़ रहा था. हसमतुल निशां ने पहले ही फैसला ले लिया था कि वह शादी का दिखावा ही करेगी. बाकी मन से तो अपने प्रेमी शाने अली के साथ रहेगी.

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शहाबुद्दीन के साथ हसमतुल निशां की सगाई होने के बाद दोनों के बीच बातचीत होने लगी. शहाबुद्दीन अकसर उसे फोन करने लगा. मिलने के लिए भी दबाव बनाने लगा. यह बात निशां को अच्छी नहीं लग रही थी.

शाने अली भी नहीं चाहता था कि निशां अपने होने वाले पति शहाबुद्दीन से मिलने जाए. जब भी उसे यह पता चलता कि दोनों की फोन पर बातचीत होती है और वे मिलते भी हैं. इस बात को ले कर वह निशां से झगड़ता था. दोनों के बीच लड़ाईझगड़े के बाद यह तय हुआ कि अब शहाबुद्दीन को रास्ते से हटाना ही होगा.

शहाबुद्दीन को अपनी होने वाली पत्नी और उस के प्रेमी के बारे में कुछ भी पता नहीं था. वह दोनों को आपस में रिश्तेदार समझता था और उन पर भरोसा भी करता था. अपनी होने वाली पत्नी हसमतुल निशां को अच्छी तरह से जाननेसमझने के लिए वह उस के करीब आने की कोशिश कर रहा था. उसे यह नहीं पता था कि उस की यह कोशिश उसे मौत की तरफ ले जा सकती है.

शहाबुद्दीन अपनी मंगेतर के साथ संबंधों को मधुर बनाने की कोशिश कर रहा था पर प्रेमी के मायाजाल में फंसी हसमतुल निशां अपने को उस से दूर करना चाहती थी. परिवार के दबाव में वह खुल कर बोल नहीं पा रही थी.

12 मार्च, 2021 को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के मोहनलालगंज थाना क्षेत्र में स्थित कल्लू पूरब गांव के पास झाडि़यों में शहाबुद्दीन उर्फ मनीष की खून से लथपथ लाश पड़ी मिली. करीब 26 साल के शहाबुद्दीन के सीने में चाकू से कई बार किए गए थे.

गांव वालों की सूचना पर पुलिस ने शव को बरामद किया. शव मिलने वाली जगह से कुछ दूरी पर ही एक बाइक खड़ी मिली. बाइक में मिले कागजात से पुलिस को पता चला कि वह बाइक मृतक शहाबुद्दीन की ही थी. इस के आधार पर पुलिस ने उस के घर पर सूचना दी.

शहाबुद्दीन के भाई ने अनीस ने शव को पहचान भी लिया. अनीस की तहरीर पर पुलिस ने धारा 302 आईपीसी के तहत मुकदमा कायम किया.

हत्या की घटना को उजागर करने और अपराधियों को पकड़ने के लिए डीसीपी (दक्षिण लखनऊ) रवि कुमार, एडिशनल डीसीपी पुर्णेंदु सिंह, एसीपी (दक्षिण) दिलीप कुमार सिंह ने घटनास्थल पर पहुंच कर फोरैंसिक टीम व डौग स्क्वायड बुला कर मामले की पड़ताल शुरू की.

शहाबुद्दीन के शव की तलाशी लेने पर पर्स और मोबाइल गायब मिला. शव के पास 2 टूटी कलाई घडि़यां और एक चाबी का गुच्छा मिला. यह समझ आ रहा था कि हत्या के दौरान आपसी संघर्ष में यह हुआ होगा.

पुलिस के सामने शहाबुद्दीन के घर वालों ने उस की होने वाली पत्नी हसमतुल निशां के परिजनों पर हत्या का आरोप लगाया. डीसीपी रवि कुमार ने इस केस को सुलझाने के लिए एसीपी दिलीप कुमार के नेतृत्व में एक पुलिस टीम गठित की.

टीम में इंसपेक्टर दीनानाथ मिश्रा, एसआई रमेश चंद्र साहनी, राजेंद्र प्रसाद, धर्मेंद्र सिंह, महिला एसआई शशिकला सिंह, कीर्ति सिंह, हैडकांस्टेबल अश्वनी दीक्षित, कांस्टेबल संतोश मिश्रा, शिवप्रताप और विपिन मौर्य के साथ साथ सर्विलांस सेल के सिपाही सुनील कुमार और रविंद्र सिंह को शामिल किया गया. पुलिस ने सर्विलांस की मदद से जांच शुरू की.

शहाबुद्दीन बंथरा थाना क्षेत्र के बनी गांव का रहने वाला था. वह ट्रांसपोर्ट नगर में खराद की दुकान पर काम करता था. 11 मार्च, 2021 को वह अपने पिता मीर हसन की बाइक ले कर घर से जन्मदिन की पार्टी में हिस्सा लेने के लिए निकला था. शहाबुद्दीन की मंगेतर हसमतुल निशां ने उसे जन्मदिन की पार्टी में शामिल होने का न्योता दिया था.

शहाबुद्दीन ने यह बात अपने घर वालों को बताई और दुकान से सीधे पार्टी में शामिल होने चला गया था. देर रात वह घर वापस नहीं आया. अगले दिन यानी 12 मार्च की सुबह 11 बजे पुलिस ने उस की हत्या की सूचना उस के घर वालों को दी.

अनीस ने पुलिस का बताया कि 27 मई को शहाबुद्दीन और हसमतुल निशां का निकाह होने वाला था. बारात लखनऊ में पीजीआई के पास एकता नगर में नवाबशाह के घर जाने वाली थी. शहाबुद्दीन की हत्या की सूचना पा कर पिता मीर हसन, मां कमरजहां, भाई इश्तियाक, शफीक, अनीस और राजू बिलख रहे थे.

मां कमरजहां रोते हुए कह रही थी, ‘‘मेरे बेटे की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. वह घर का सब से सीधा लड़का था. उस ने किसी का कुछ भी नहीं बिगाड़ा था. ऐसे में उस के साथ क्या हुआ?’’

पुलिस ने जन्मदिन में बुलाए जाने और लूट की घटना को सामने रख कर छानबीन शुरू की.

शहाबुद्दीन की हत्या को ले कर परिवार के लोगों को एक वजह शादी लग रही थी. परिवार को शहाबुद्दीन की हत्या के पीछे उस की होने वाली पत्नी और उस के भाइयों पर शक था. इसलिए अनीस की तहरीर पर पुलिस ने हसमतुल निशां और उस के भाइयों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया.

पुलिस ने तीनों को हिरासत में ले कर पूछताछ शुरू कर दी. पुलिस की विवेचना में यह बात खुल कर सामने आई कि शहाबुद्दीन की हत्या में उस की होने वाली पत्नी हसमतुल निशां का हाथ था. यह भी साफ था कि हसमतुल निशां का साथ उस के भाइयों ने नहीं, बल्कि उस के प्रेमी शाने अली ने दिया था.

शहाबुद्दीन उर्फ मनीष की हत्या की साजिश उस की मंगेतर हसमतुल निशां और उस के प्रेमी शाने अली ने अपने 6 अन्य साथियों के साथ मिल कर रची थी. मोहनलालगंज कोतवाली के इंसपेक्टर दीनानाथ मिश्र के मुताबिक बंथरा कस्बे के रहने वाले शहाबुद्दीन की शादी हसमतुल निशां के साथ 27 मई को होनी थी. इस से हसमतुल खुश नहीं थी.

वह पीजीआई के पास रहने वाले शाने अली से प्यार करती थी. इस के बाद भी परिवार वालों के दबाव में शहाबुद्दीन से मिलती रही. जैसेजैसे शादी का समय पास आता जा रहा हसमतुल निशां अपने मंगेतर शहाबुद्दीन से पीछा छुड़ाने के बारे में सोचने लगी.

इस के लिए उस ने अपने प्रेमी शाने अली के साथ मिल कर योजना बनाई. हसमतुल निशां चाहती थी कि शाने अली उस के मंगेतर शहाबुद्दीन को किसी तरह रास्ते से हटा दे.

योजना को अंजाम देने के लिए शाने अली ने अपने जन्मदिन के अवसर पर 11 मार्च, 2021 को शहाबुद्दीन को मिलने के लिए बुलाया.

गुरुवार रात के करीब साढ़े 8 बजे शाने अली और उस के दोस्त बाराबंकी निवासी अरकान, मोहनलालगंज निवासी संजू गौतम, अमन कश्यप और पीजीआई निवासी समीर मोहम्मद बाबूखेड़ा में जमा हुए. जैसे ही शहाबुद्दीन वहां पहुंचा शाने अली और उस के दोस्तों ने उस पर चाकू से ताबड़तोड़ हमला कर दिया.

अपने ऊपर चाकू से हमला होने के बाद भी शहाबुद्दीन ने हार नहीं मानी और अपनी जान बचाने के लिए वह हमलावरों से भिड़ गया.

शाने अली और उस के हमलावर दोस्तों को जब लगा कि शहाबुद्दीन बच निकलेगा तो उन लोगों ने कुत्ते को बांधी जाने वाली जंजीर से शहाबुद्दीन का गला कस दिया, जिस से शहाबुद्दीन अपना बचाव नहीं कर पाया और अपनी जान से हाथ धो बैठा.

अगले दिन जब शहाबुद्दीन का शव मिला तो उस के भाई अनीस ने हसमतुल निशां के भाइयों पर हत्या का शक जताया. पुलिस ने संदेह के आधार पर ही उन से पूछताछ शुरू की थी. इस बीच पुलिस को हसमतुल निशां और शाने अली के प्रेम संबंधों के बारे में पता चला. पुलिस ने जब हसमतुल निशां से पूछताछ शुरू की तो वह टूट गई.

हसमतुल निशां ने पुलिस को बताया कि उस ने प्रेमी शाने अली के साथ मिल कर मंगेतर शहाबुद्दीन की हत्या कर दी. इस के बाद पुलिस ने शाने अली और उस साथियों को पकड़ने के लिए उन के घरों पर दबिशें दे कर गिरफ्तार कर लिया.

शहाबुद्दीन की हत्या के आरोप में पुलिस ने हसमतुल निशां, शाने अली, अरकान, संजू गौतम, अमन कश्यप, समीर मोहम्मद को जेल भेज दिया. पुलिस को आरोपियों के पास से एक चाकू, गला घोटने के लिए प्रयोग में लाई गई चेन, संजू की मोटरसाइकिल, 2 कलाई घडि़यां, 6 मोबाइल फोन और आधार कार्ड बरामद हुए.

सभी आरोपियों से पूछताछ के बाद उन्हें न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया. 24 घंटे के अंदर केस का खुलासा करने वाली पुलिस टीम की डीसीपी (दक्षिण) रवि कुमार ने सराहना की. Crime Thriller Hindi

True Crime Hindi: अच्छा सिला दिया तूने मेरे प्यार का

True Crime Hindi: नेहा मौडलिंग के जरिए बौलीवुड में एंट्री के लिए स्ट्रगल कर रही थी. लेकिन दोस्त से पति बने प्रिंस ने उसे प्यार का ऐसा सिला दिया कि…

दक्षिणपूर्वी दिल्ली के हरिनगर कालोनी की रहने वाली 21 वर्षीय नेहा मिश्रा मुंबई में रह कर मौडलिंग कर रही थी. वह कई छोटीमोटी ऐड फिल्मों में काम कर चुकी थी और बौलीवुड फिल्मों में एंट्री पाने के लिए स्ट्रगल कर रही थी. अपने घर वालों को बताए बिना उस ने करीब 5-6 महीने पहले दिल्ली के रीयल एस्टेट कारोबारी प्रिंस तेवतिया से एक मंदिर में शादी कर ली थी. लेकिन शादी के बाद नेहा को यह बात अपने घर वालों को बतानी ही पड़ी. बेटी के फैसले पर प्रदीप मिश्रा आहत तो हुए लेकिन उन्होंने सोचा कि जब बेटी ने प्रिंस को अपनी मरजी से चुना है तो उस की खुशी की खातिर उन्होंने उस की पसंद पर अपनी सहमति की मुहर लगा दी. इस के बाद प्रिंस तेवतिया ने भी नेहा के घर आना शुरू कर दिया.

करीब 3 महीने पहले नेहा की तबीयत खराब हो गई तो वह मुंबई से पिता के यहां दिल्ली आ गई थी. उस से मिलने के लिए प्रिंस उस के यहां जाता रहता था. 16 अप्रैल, 2015 को भी वह नेहा के यहां गया था. 2 दिनों से वह नेहा के यहां ही था. 17-18 अप्रैल की रात को नेहा और प्रिंस एक कमरे में सोए हुए थे जबकि नेहा के मातापिता और भाईबहन दूसरे कमरे में सो रहे थे. आधी रात के बाद हुई तेज आवाज से प्रदीप मिश्रा की नींद खुल गई. वह आवाज गोली चलने जैसी थी. उन्होंने पत्नी रोमा को भी जगा दिया. वह आवाज उन की बेटी नेहा के कमरे से आई थी, इसलिए उन की घबराहट बढ़ गई.

दोनों पतिपत्नी बेटी के कमरे की तरफ जाने ही वाले थे कि तभी बेटी के कमरे का दरवाजा खुल गया. उस का पति प्रिंस दरवाजा खोलते हुए बाहर निकला. वह घबराया हुआ था. इस से पहले कि प्रदीप मिश्रा उस के कमरे से आई गोली चलने जैसी आवाज के बारे में उस से पूछते, प्रिंस खुद ही बोल पड़ा, ‘‘मैं ने नेहा को गोली मार दी है.’’

इतना सुनते ही प्रदीप और उन की पत्नी के जैसे होश ही उड़ गए. वह तेज कदमों से बेटी के कमरे में गए. उन्होंने देखा तो नेहा बेड पर पड़ी थी और उस के पेट के निचले हिस्से से खून निकल रहा था. रोमा मिश्रा ने बेटी को हिलायाडुलाया. उस में कोई हलचल नहीं दिखी तो वह जोरजोर से रोने लगीं. बेटी की हालत देखते ही प्रदीप मिश्रा आटोरिक्शा बुलाने के लिए तेजी से निकल गए ताकि उसे जल्द अस्पताल पहुंचाया जा सके. तभी प्रिंस भी घायल नेहा को दोनों बाहों में थामे चौथी मंजिल से नीचे उतर आया. रोमा के रोने की आवाज सुन कर पड़ोसी भी जाग गए थे. वे भी अपनेअपने घरों से गली में आ गए थे. सभी लोग आपस में कानाफूसी कर रहे थे. कोई भी यह नहीं समझ पा रहा था कि आखिर पति ने नेहा को गोली क्यों मारी?

कुछ ही देर में प्रदीप मिश्रा एक आटोरिक्शा वाले को बुला लाए. प्रदीप मिश्रा और उन की पत्नी आटो में बैठ गए और बेटी को उन्होंने अपनी गोद में लिटा लिया. वे उसे एम्स के ट्रामा सेंटर के लिए ले कर चल पड़े जबकि प्रिंस तेवतिया ने उन से यह कह दिया कि वह अपनी कार से ट्रामा सेंटर पहुंच रहा है. नेहा के पेट से खून रिस रहा था. खून रोकने के लिए प्रदीप ने उस के घाव पर एक कपड़ा भी रख दिया था ताकि खून रुक सके. पत्नी को आटो में लिटाने के बाद प्रिंस अस्पताल नहीं गया बल्कि वहां से फरार हो गया. उधर प्रदीप मिश्रा घायल बेटी को ले कर ट्रामा सेंटर पहुंचे तो डाक्टरों को यह पुलिस केस लगा. इसलिए अस्पताल प्रशासन ने इस की सूचना ट्रामा सेंटर बिल्डिंग में ही स्थित पुलिस चौकी में दे दी.

चूंकि यह मामला दक्षिणपूर्वी दिल्ली के सनलाइट थानाक्षेत्र का था, इसलिए पुलिस चौकी से सूचना थाने को दे दी गई. थाने में सूचना मिलते ही एसआई शैलेंद्र सिंह कांस्टेबल सुरेंद्र सिंह को ले कर ट्रामा सेंटर पहुंच गए. वहां डाक्टर नेहा के इलाज में जुटे थे. नेहा मिश्रा की हालत नाजुक बनी हुई थी. वह उस समय बयान देने की स्थिति में नहीं थी. वहां पर उस के पिता प्रदीप मिश्रा मौजूद थे. उन्होंने अपने दामाद द्वारा नेहा को गोली मारने वाली बात पुलिस को बता दी. उन्होंने यह भी बता दिया कि वह गोली मार कर फरार हो गया है. एसआई शैलेंद्र सिंह ने पूरी जानकारी से थानाप्रभारी ओमप्रकाश लेखवाल को अवगत करा दिया.

थानाप्रभारी सब से पहले घटनास्थल पर गए जहां नेहा की छोटी बहन और भाई मिला. जिस कमरे में नेहा को गोली मारी गई थी, उसे उन्होंने बाहर से बंद कर दिया, जिस से वहां कोई भी आजा न सके और उस कमरे का कोई सुबूत नष्ट न हो. क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को भी घटना की सूचना दे कर मौके पर बुला लिया. टीम ने मौके से सुबूत इकट्ठे किए. पुलिस को घटनास्थल से कारतूस के 2 खोखे भी मिले. घटनास्थल की आवश्यक काररवाई निपटाने के बाद थानाप्रभारी एक पुलिसकर्मी को मौके पर छोड़ कर नेहा का बयान लेने के लिए खुद एम्स ट्रामा सेंटर चले गए.

अस्पताल में जो डाक्टर नेहा का इलाज कर रहे थे, उन्होंने थानाप्रभारी को बताया कि गोली नेहा के पेट के निचले हिस्से में लगी है. उस का काफी मात्रा में खून निकल चुका है और अभी भी गोली उस के शरीर में है. हालत में सुधार आने के बाद ही वह बयान दे सकेगी. नेहा के पिता प्रदीप मिश्रा ने थानाप्रभारी को भी बता दिया कि नेहा को गोली उस के पति प्रिंस तेवतिया ने ही मारी थी और वह गोली मार कर फरार हो गया. प्रदीप मिश्रा ने उन्हें प्रिंस का पता भी बता दिया था. थाने लौट कर थानाप्रभारी ने प्रदीप मिश्रा की तरफ से प्रिंस तेवतिया के खिलाफ जान से मारने की नीयत से गोली मारने का केस दर्ज कर लिया. अगली सुबह इलैक्ट्रौनिक मीडिया में मौडल को पति द्वारा गोली मारने की खबर प्रमुखता से प्रसारित हुई तो जिले के पुलिस अधिकारी भी हरकत में आ गए.

डीसीपी मंदीप सिंह रंधावा ने थानाप्रभारी ओमप्रकाश लेखवाल की अध्यक्षता में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में सराय कालेखां चौकी के इंचार्ज ललित कुमार, एसआई शैलेंद्र सिंह, हेडकांस्टेबल विपिन सांगवान, विनोद, गोपाल, कांस्टेबल देवेंद्र, प्रवीण आदि को शामिल किया गया. टीम का निर्देशन न्यू फ्रैंड्स कालोनी के एसीपी अनिल यादव को सौंपा गया. टीम के ऊपर अभियुक्त प्रिंस की गिरफ्तारी का दबाव बढ़ रहा था. पुलिस ने दिल्ली के दक्षिणपुरी की गली नंबर-10 स्थित उस के घर पर दबिश दी. लेकिन वहां पर प्रिंस के बजाय रमेश नाम का व्यक्ति मिला. उस ने बताया कि यह मकान प्रिंस के पिता श्यामलाल तेवतिया ने 5-6 साल पहले उसे बेच दिया था. मकान बेच कर वे कहां चले गए, इस का उसे कुछ पता नहीं.

प्रिंस ने नेहा को यही बताया था कि वह दक्षिणपुरी की गली नंबर-10 के मकान नंबर-217 में रहता है. जबकि उस के पिता उस मकान को कई साल पहले बेच चुके थे. आखिर प्रिंस ने अपनी पत्नी से इतना बड़ा झूठ क्यों बोला था, यह बात पुलिस नहीं समझ पाई. पुलिस के पास प्रिंस तेवतिया का फोटो था ही. उस फोटो के माध्यम से पुलिस ने स्थानीय लोगों से पूछताछ की. इस तफ्तीश में पुलिस को चौंकाने वाली जानकारी मिली. पुलिस को पता चला कि प्रिंस रीयल एस्टेट का कारोबारी और आपराधिक प्रवृत्ति वाला है. उस के खिलाफ दिल्ली के अंबेडकरनगर थाने में कई मुकदमे दर्ज हैं.

साल 2010 में उस ने एक व्यक्ति की चाकू मार कर हत्या कर दी थी. इस की वजह सिर्फ यह थी कि उस की प्रिंस के पिता श्यामलाल से कहासुनी हो गई थी और उस ने श्यामलाल को थप्पड़ मार दिया था. उस थप्पड़ के बदले उसे मौत मिली. हत्या के इस केस में प्रिंस जेल गया. 2014 में जेल से आने के बाद वह आयानगर में रहने वाले बदमाश रोहित चौधरी के संपर्क में आया. फिर उस के साथ ही अपराध करने लगा. रोहित थाना महरौली में एक हत्या के मामले में वांछित है. बाद में प्रिंस बदमाशों के बीच शूटर के नाम से मशहूर हो गया. वह अपने पास अकसर पिस्टल रखता था.

बताया जाता है कि प्रिंस गुस्सैल स्वभाव का है. छोटीछोटी बात पर वह अपना आपा खो बैठता है. बात इसी साल की है. एक बार वह अपनी कार से कहीं जा रहा था. हौर्न बजाने के बावजूद भी एक कार वाले ने उसे साइड नहीं दी तो कुछ देर बाद उस ने ओवरटेक कर के उस कार वाले पर गोली चला दी. इत्तफाक से वह गोली उसे नहीं लगी. इस मामले की रिपोर्ट अंबेडकरनगर थाने में दर्ज करा दी गई थी. पुलिस को पता चला कि प्रिंस तेवतिया का फेसबुक पर भी एकाउंट है. फेसबुक खंगालने पर पुलिस को यह जानकारी मिली कि उस की जितेश नाम के एक शख्स के साथ अच्छी दोस्ती है. जितेश भी आपराधिक प्रवृत्ति का है. जितेश स्नैचिंग और लूटपाट करता था.

बताया जाता है कि अपने केसों की सुनवाई के सिलसिले में जितेश का अकसर साकेत कोर्ट जाना लगा रहता था. वहीं पर एक वकील की शालिनी नाम की असिस्टैंट से जितेश की अच्छी जानपहचान हो गई थी. बाद में दोनों में दोस्ती हो गई. इन की दोस्ती की खबर जितेश की पत्नी को हुई तो उसे बहुत बुरा लगा. उस ने पति को समझाया कि वह शालिनी से न मिले. लेकिन जितेश नहीं माना तो एक दिन वह पति को ले कर शालिनी के घर पहुंच गई और उसे खरीखोटी सुनाते हुए हाथापाई भी की. जब बात बढ़ गई तो जितेश ने हवाई फायर भी किया. जितेश और अन्य के खिलाफ इस मामले की रिपोर्ट थाना अंबेडकरनगर में दर्ज हुई.

इसी जांच की कड़ी में पुलिस को यह भी पता चला कि मार्च, 2015 में प्रिंस ने मालवीय नगर क्षेत्र में किसी को गोली मारी थी. इस घटना के बाद वह अपने दोस्त जितेश के साथ ही कहीं रह रहा था. प्रिंस ने अपना मोबाइल फोन भी स्विच्ड औफ कर रखा था इसलिए यह पता नहीं लग पा रहा था कि वह कहां रह रहा है. किसी तरह पुलिस को जितेश का मोबाइल नंबर मिल गया. उस मोबाइल की लोकेशन से पता चला कि वह रोहिणी सेक्टर-7 में कहीं रह रहा है. पुलिस टीम रोहिणी सेक्टर-7 पहुंच गई. सर्विलांस टीम के सहयोग से जांच करतेकरते पुलिस टीम इस सेक्टर के जी-21/326 फ्लैट पर पहुंच गई. उस फ्लैट में 2 लड़के मिले.

पुलिस के पास केवल प्रिंस का ही फोटोग्राफ था, उसी के आधार पर यह पता लगा कि उन दोनों में से प्रिंस कोई नहीं है. जितेश को वह नहीं जानती थी. उन दोनों लड़कों में से कोई जितेश तो नहीं है, जानने के लिए पुलिस ने उन दोनों से ही सख्ती से पूछताछ की. लेकिन उन में से कोई भी जितेश नहीं निकला. पुलिस ने उन लड़कों को प्रिंस तेवतिया का फोटो दिखाया तो उन्होंने तुरंत कहा कि एक लड़का और लड़की के साथ यह इसी ब्लौक में अकसर दिखाई देता है. उस ने यह भी बताया कि इन के पास एक मारुति रिट्ज कार भी है. यह जानकारी पा कर पुलिस को थोड़ी तसल्ली हुई.

जितेश के फोन की लोकेशन और इन दोनों लड़कों से मिली जानकारी के बाद पुलिस को इतना तो यकीन हो गया था कि प्रिंस सेक्टर-7 के जी ब्लौक में ही कहीं रहता है. उन लड़कों से उस रिट्ज कार का नंबर भी मिल गया, जिस से ये लोग आतेजाते थे. पुलिस सादे कपड़ों में थी. वह उसी ब्लौक में अलगअलग गलियों में खड़े हो कर रिट्ज कार संख्या डीएल3सी 4302 के आने का इंतजार करने लगी. शाम के समय हेडकांस्टेबल विनोद ने उक्त नंबर की कार एक गली में आती हुई देखी तो उस ने फोन द्वारा इस की सूचना दूसरी गली में तैनात थानाप्रभारी ओमप्रकाश लेखवाल को दे दी. हेडकांस्टेबल विनोद ने कार का पीछा किया तो वह कार फ्लैट नंबर जी-20/30 के पास आ कर रुक गई. उस कार से 2 युवक और एक युवती उतर कर फ्लैट में दाखिल हो गए.

कुछ ही देर में पूरी पुलिस टीम उस फ्लैट के पास आ गई. टीम ने उस फ्लैट में दबिश दी तो वहां से 2 युवक और एक युवती मिले.  पूछताछ में उन युवकों ने अपने नाम प्रिंस तेवतिया व जितेश बताए. उन के साथ जो युवती मिली वह जितेश की पत्नी थी. पुलिस ने तीनों को हिरासत में ले लिया. पूछताछ के लिए पुलिस उन्हें थाने ले आई. यह 20 अप्रैल, 2015 की बात है. चूंकि जितेश और उस की पत्नी थाना अंबेडकरनगर के एक केस में वांछित थे इसलिए उन्हें हिरासत में लेने की सूचना अंबेडकरनगर थाने को दी तो वहां की पुलिस जितेश और उस की पत्नी को कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर के अपने साथ ले गई. थानाप्रभारी ओमप्रकाश लेखवाल ने एसीपी अनिल यादव की मौजूदगी में प्रिंस तेवतिया से मौडल नेहा मिश्रा को गोली मारने की बाबत पूछताछ की तो इस घटना के पीछे की एक दिलचस्प कहानी सामने आई.

नेहा मिश्रा दक्षिणपूर्वी दिल्ली के थाना सनलाइट कालोनी के हरिनगर में रहने वाले प्रदीप मिश्रा की बड़ी बेटी थी. नेहा के अलावा प्रदीप मिश्रा के एक बेटा और एक बेटी और थी. कैटरिंग का काम करने वाले प्रदीप मिश्रा मूलरूप से उड़ीसा के जिला भद्रक के गांव उलग के रहने वाले थे. काफी दिनों पहले वह काम की तलाश में दिल्ली आए थे. दिल्ली आ कर उन्होंने हलवाई का काम किया. बाद में वह कैटरिंग के धंधे से जुड़ गए. काम जम गया तो वे अपनी पत्नी रोमा को भी दिल्ली ले आए. उन के 3 बच्चे हुए जिन में 2 बेटियां और 1 बेटा था. प्रदीप मिश्रा साधनसंपन्न थे इसलिए वह अपने तीनों बच्चों को एक नामी प्राइवेट स्कूल में पढ़ा रहे थे.

बड़ी बेटी नेहा जितनी खूबसूरत थी, पढ़ाई में भी उतनी ही तेज थी. नेहा के फिगर की उस की सहेलियां बड़ी तारीफ करती थीं. वे उसे दीपिका पादुकोण कह कर बुलाती थीं. अपनी तारीफ पर नेहा भी इतराए बिना नहीं रहती थी. नेहा को फिल्में और टीवी देखने का बहुत शौक था. वह जब भी कोई फिल्म या नाटक देखती तो टीवी या सिल्वर स्क्रीन पर आने की लालसा करती. उस की यह चाहत दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही थी. वह फिल्मों या टीवी धारावाहिकों में काम करने के सपने देखने लगी. मगर उस के लिए यह काम आसान नहीं था. क्योंकि उस के नातेरिश्तेदारों या परिचितों में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं था, जिस से उसे अपनी मंजिल पाने में सहयोग मिल सके.

अब उसे एक ही रास्ता दिखाई दे रहा था, वह रास्ता था मौडलिंग का. वह जानती थी कि तमाम हीरोइनें मौडलिंग के जरिए ही बौलीवुड में पहुंच कर अपना मुकाम हासिल कर चुकी हैं. इसलिए 10+2 परीक्षा पास करने के बाद उस ने अपने मन की बात अपने घर वालों को बताई और उन की अनुमति के बाद वह अपनी एक जानकार के साथ दिल्ली की एक मौडलिंग एजेंसी चली गई. नेहा का चेहरा फोटोजेनिक था.  इसलिए फोटोग्राफर ने फोटो शूट के लिए उसे 2 दिन बाद आने को कहा. 2 दिन बाद नेहा फिर से उस स्टूडियो में पहुंची तो फोटोग्राफर ने उस के कई फोटो खींचे. वहां हुए अपने फोटोसेशन के फोटो देख कर नेहा को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था. फोटोग्राफर ने फोटो में उस का जो व्यक्तित्व उभारा था, उसे देख कर वह दंग रह गई.

वह फोटो देख कर नेहा का आत्मविश्वास जागा. उसे लगा कि उस का चेहरा और फिगर कई हीरोइनों से काफी अच्छी और आकर्षक है. दिल्ली में मौडलिंग के दौरान ही उस की मुलाकात अर्पित नाम के एक प्रोड्यूसर से हुई जो मुंबई में काम करता था और दिल्ली आताजाता रहता था. अर्पित का मुंबई में एक स्टूडियो भी था. नेहा का फोटोजेनिक चेहरा देख कर अर्पित बेहद खुश हुआ. उस ने नेहा को अपनी मुंहबोली बहन बनाया. उस ने नेहा से कहा कि तुम जैसी खूबसूरत लड़कियों की जरूरत तो मुंबई में है. कोशिश करने पर वहां तुम्हें कहीं न कहीं काम मिल ही जाएगा. नेहा भी तो यही चाहती थी. उस के कहने पर वह मुंबई चली गई.

मुंबई में अर्पित ने नेहा का पोर्टफोलियो तैयार किया. इस के बाद उस के पोर्टफोलियो तमाम म्यूजिक व ऐड कंपनियों को भेजे. इस का नतीजा यह निकला कि एक ऐड कंपनी में नेहा को काम करने का मौका मिल गया. वह कंपनी सूरत की कई साड़ी कंपनियों के ऐड तैयार करती थी. नेहा को पहली बार किसी व्यावसायिक विज्ञापन में काम करने का मौका मिला था. इसलिए उस ने पूरे मन लगा कर काम किया. इस के बाद उसे एकदो ऐड फिल्में और मिलीं तथा उस ने कई रियलिटी शो में भी भाग लिया. अब नेहा बहुत खुश थी. उसे लग रहा था कि इसी तरह उसे काम मिलता रहा हो सिल्वर स्क्रीन पर चमकने का उस का सपना जल्द ही पूरा हो जाएगा. अर्पित भी उस के लिए बहुत मेहनत कर रहा था. वह उसे एकता कपूर के बालाजी प्रोडक्शन के एक सीरियल में कोई ढंग का रोल दिलाने की कोशिश कर रहा था.

चूंकि अर्पित नेहा का कैरियर बनाने में लगा था इसलिए नेहा उसे अपने सगे भाई से भी ज्यादा महत्त्व देती थी. वह बीचबीच में अपने घर दिल्ली भी आती रहती थी. दिल्ली आ कर वह अपने पुराने दोस्तों से भी मिलती थी. उन के साथ वह खूब हंसीठिठोली करती थी. उसी दौरान अपनी एक दोस्त की मार्फत उस की मुलाकात प्रिंस तेवतिया नाम के युवक से हुई. प्रिंस तेवतिया के पिता मूलरूप से उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के निलोखेड़ा गांव के रहने वाले थे. वह दिल्ली विकास प्राधिकरण में नौकरी करते थे. प्रिंस के अलावा उन के एक बेटा और एक बेटी थी. 23 साल का प्रिंस भी हैंडसम था. वह प्रौपर्टी खरीदने व बेचने का धंधा करता था. इस धंधे में उसे अच्छीखासी कमाई हो जाती थी, जिस से वह बनठन कर रहता था.

इस के अलावा वह आपराधिक प्रवृत्ति का भी था. उस के ऊपर हत्या, हत्या का प्रयास, मारपीट आदि के कई मुकदमे चल रहे थे. गुस्सैल स्वभाव का प्रिंस अकसर अपने साथ रिवाल्वर रखता था. छोटी सी बात पर ही वह गोली चला देता था. इसलिए वह अपने दोस्तों के बीच शूटर के नाम से जाना जाता था. नेहा प्रिंस से मिल कर बहुत प्रभावित हुई. पहली मुलाकात में ही दोनों ने एकदूसरे को अपने फोन नंबर दे दिए थे. जब भी उन्हें मौका मिलता वे फोन पर बातें करते थे. बातों ही बातों में उन की दोस्ती और गहरी होती गई. नेहा जब भी मुंबई से आती, प्रिंस के साथ कार से सैरसपाटे करती थी. इसी दौरान वे एकदूसरे के बेहद करीब पहुंच गए. वे एकदूसरे को दिलोजान से चाहने लगे.

प्रिंस की तरफ प्यार के कदम बढ़ाने से पहले नेहा उस के बैकग्राउंड के बारे में कुछ नहीं जानती थी. उस की नजरों में तो प्रिंस एक शरीफ व होनहार युवक था. तभी तो उस ने अपना दिल उस के हवाले कर दिया था. उसे लगा कि प्रिंस के साथ उस की लाइफ हंसीखुशी से कटेगी इसलिए उस ने अपने मीत को प्रियतम बनाने का फैसला कर लिया. प्रिंस भी उसे दिलोजान से चाहता था. कुछ दिनों तक उन के प्यार की गाड़ी ऐसे ही चलती रही. दोनों ही शादी करना चाहते थे इसलिए उन्होंने एक मंदिर में शादी कर ली. यह बात 5-6 महीने पहले की है. नेहा ने इस शादी की खबर अपने घर वालों तक को नहीं दी थी.

चूंकि वह मौडलिंग के पेशे से जुड़ी थी इसलिए उस ने प्रिंस से कह दिया था कि वह शादी वाली बात प्रचारित न करे ताकि उस के प्रोफेशन पर कोई फर्क न पड़े. पत्नी की बात को ध्यान में रखते हुए प्रिंस ने शादी की बात अपने घर वालों के अलावा किसी को नहीं बताई. नेहा का लक्ष्य हिंदी फिल्मों में एंट्री पाना था, इसलिए वह शादी के बाद अकसर मुंबई में ही रहती थी. उस का जल्दीजल्दी दिल्ली आना संभव नहीं था. प्रिंस के सामने अब एक ही रास्ता बचा था कि वह खुद भी मुंबई जाए. लेकिन उस के लिए ऐसा संभव नहीं था क्योंकि दिल्ली में उस का कारोबार जमाजमाया था. पत्नी के मुंबई रहने पर वह उस से मिलने के लिए बेचैन रहता था.

करीब 3 महीने पहले नेहा की तबीयत खराब हो गई तो वह अपने पिता के यहां दिल्ली आ गई थी. उसी दौरान उस ने अपनी मां को बता दिया था कि उस ने दिल्ली के प्रिंस तेवतिया से शादी कर ली है. यह सुन कर रोमा चौंक गईं. उन्होंने बात पति को बताई तो उन्हें भी आघात पहुंचा. जवान बेटी पर नाराज होने के बजाय उन्होंने उस से इतना जरूर कहा कि शादी से पहले कम से कम वह प्रिंस के बारे में उन्हें बता तो देती. जांचनेपरखने के बाद वह फिर सामाजिक रीतिरिवाज से शादी कर देते. नेहा मुंह लटकाए ऐसे ही बैठी रही, वह कुछ नहीं बोली.

खैर, जो होना था हो चुका था. इस में अब वह कुछ नहीं कर सकते थे. इस के बाद प्रिंस ने भी उनके यहां आना शुरू कर दिया. प्रिंस नहीं चाहता था कि नेहा मौडलिंग करे इसलिए वह बारबार मुंबई से दिल्ली लौटने के लिए कहता था. वह चाहता था कि नेहा उस के घर पर ही रहे लेकिन अपने कैरियर को ध्यान में रखते हुए नेहा ऐसा करने को तैयार नहीं थी. एक दिन नेहा ने प्रिंस के फोन की मेमोरी खंगाली तो उस में अनेक मैसेज ऐसे मिले जो लड़कियों या महिलाओं द्वारा भेजे गए थे. इस बारे में नेहा ने प्रिंस से पूछा तो उस ने बताया कि वह उस की दोस्त हैं. लेकिन नेहा को शक हो गया कि प्रिंस के उन के साथ जरूर ही दूसरी तरह के रिश्ते होंगे. यानी नेहा के दिमाग में शक के कीड़े ने जन्म ले लिया. प्रिंस ने लाख सफाई दी लेकिन नेहा कहां मानने वाली थी.

प्रिंस 16 अप्रैल, 2015 को भी हरिनगर में स्थित नेहा के घर गया. 2 दिन वह वहीं रहा. 17-18 अप्रैल की रात को उस ने नेहा के कमरे में शराब पी. फिर खाना खाने के बाद वह सोने के लिए नेहा के कमरे में चला गया. घर के बाकी लोग दूसरे कमरे में सो गए. आधी रात तक नेहा और प्रिंस बातें करते रहे. उसी दौरान प्रिंस ने नेहा से कहा, ‘‘नेहा, मैं तुम से कई बार कह चुका हूं कि तुम मौडलिंग छोड़ दो. लेकिन तुम मेरी बात मान ही नहीं रही.’’

‘‘देखो प्रिंस, मैं बौलीवुड में एंट्री करने के लिए स्ट्रगल कर रही हूं. मुझे मुंबई में जम जाने दो, फिर तुम भी वहीं रहना.’’ नेहा बोली.

‘‘नहीं, मुझे यह सब पसंद नहीं है. मुझे मालूम है कि फिल्मों में काम करने की ख्वाहिश लिए कितनी लड़कियां मुंबई जाती हैं और उन्हें वहां क्याक्या करना पड़ता है. फिल्मों में काम मिलना इतना आसान नहीं होता, जितना तुम समझ रही हो. मेरा काम ठीकठाक चल रहा है इसलिए तुम यह सब छोड़ कर मेरे घर चलो. मैं तुम्हें किसी तरह की परेशानी नहीं होने दूंगा.’’ प्रिंस ने समझाया. लेकिन नेहा पर तो दूसरी तरह का भूत सवार था. इसलिए उस ने साफ कह दिया कि वह मौडलिंग हरगिज नहीं छोड़ेगी. दोनों के बीच बात बढ़ी तो नेहा ने कह दिया, ‘‘मेरे मुंबई में रहने पर तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि तुम्हारे कई लड़कियों से संबंध हैं.’’

‘‘जिस तरह तुम मेरे लिए कह रही हो उसी तरह तुम्हारे भी कई बौयफ्रैंड हैं. तुम भी उन के साथ मटरगश्ती करती होगी इसलिए मुंबई नहीं छोड़ना चाहती.’’ प्रिंस ने भी आरोप लगाया.

‘‘तुम्हें इस तरह की फालतू बकवास करते हुए शर्म नहीं आती. मैं इस तरह की लड़की नहीं हूं जैसा तुम सोच रहे हो.’’ नेहा ने उसे झिड़का.

‘‘अब तुम यह बताओ कि तुम मेरे घर चलोगी या नहीं.’’ पिं्रस ने गुस्से में पूछा तो नेहा ने भी गुस्से में कह दिया, ‘‘नहीं, मैं अभी न तो मौडलिंग छोड़ूंगी और न ही तुम्हारे घर जाऊंगी.’’

प्रिंस गुस्से में तमतमाया हुआ था. उस ने पैंट से पिस्तौल निकाला और नेहा पर गोली चला दी. गोली नेहा के पेट के निचले हिस्से में लगी. उस ने उस पर दूसरी गोली चलानी चाही तभी नेहा ने हिम्मत कर के उस की पिस्तौल छीनने की कोशिश की. उसी दौरान ट्रिगर दब गया और गोली छत पर जा लगी. कुछ ही पल में नेहा के पेट से खून बहने लगा. उस की आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा और वह बेड पर गिर कर बेहोश हो गई. उधर गोली की आवाज सुन कर दूसरे कमरे में सो रहे प्रदीप मिश्रा की नींद टूट गई. उन्होंने पत्नी रोमा को जगाया. चूंकि गोली की आवाज नेहा के कमरे की ओर से आई थी, इसलिए वह उस के कमरे की तरफ भागे.

उधर प्रिंस ने गुस्से में अपनी पत्नी को गोली मार तो दी, लेकिन उस की हालत देख कर वह घबरा गया था. उस ने जल्दी से दरवाजा खोला तो सामने खड़े अपने सासससुर को नेहा को गोली मारने वाली बात बता दी. यह बात सुन कर प्रदीप मिश्रा और उन की पत्नी तेज कदमों से बेटी के कमरे में गए तो बिस्तर पर लहूलुहान पड़ी बेटी को देख कर वे घबरा गए. तभी प्रदीप मिश्रा दौड़ेदौड़े आटो बुलाने के लिए निकल पड़े तो प्रिंस बांहों में नेहा को उठा कर चौथी मंजिल से नीचे ले गया. जैसे ही प्रदीप आटो लाए, उस ने नेहा को आटो में लिटा दिया और खुद वहां से फरार हो गया.

प्रिंस से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस के खिलाफ भादंवि की धारा 307 और 25, 27, 54, 59 आर्म्स एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर उसे गिरफ्तार कर के 21 अप्रैल, 2015 को साकेत कोर्ट में पेश कर एक दिन के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में उस की निशानदेही पर वारदात में प्रयुक्त पिस्तौल और एक जीवित कारतूस बरामद किया. इस के बाद उसे 22 अप्रैल को महानगर दंडाधिकारी अशोक कुमार की कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. उधर एम्स ट्रामा सेंटर में भरती नेहा की हालत सीरियस बनी हुई थी. डा. कुट्टी शारदा विनोद की टीम ने 20 अप्रैल को उस का औपरेशन कर पेट से गोली निकाली. इस के बाद धीरेधीरे उस की हालत में सुधार होता गया तो 28 अप्रैल, 2015 को उसे अस्पताल से डिस्चार्ज कर घर भेज दिया.

इस हादसे के बाद नेहा मिश्रा बेहद डरीसहमी हुई है. जिस प्रिंस को उस ने अपना सब कुछ मान लिया था, उस से उसे ऐसा दर्द मिलने की उम्मीद नहीं थी. पुलिस द्वारा जब नेहा को प्रिंस की आपराधिक पृष्ठभूमि की जानकारी मिली तो वह चौंक गई. अब नेहा को अपने फैसले पर पछतावा हो रहा है. मामले की तफ्तीश थानाप्रभारी ओमप्रकाश लेखवाल कर रहे हैं. True Crime Hindi

—कथा पुलिस सूत्रों व नेहा के बयान पर आधारित. कथा में शालिनी व अर्पित परिवर्तित नाम हैं.

 

Agra Crime: बहन को बीवी बनाने की जिद

Agra Crime: प्रदीप और शिवानी भले ही एकदूसरे को प्यार करते थे, लेकिन उन के रिश्ते ऐसे थे कि शादी नहीं हो सकती थी. शिवानी ने तो घर वालों के दबाव में पैर पीछे खींच लिए, लेकिन प्रदीप जिद पर अड़ गया. नतीजा क्या निकला…

आगरा की ऐतिहासिक इमारतों में ताज के बाद सिकंदरा स्थित अकबर के मकबरे का नाम आता है. इस शानदार और गौरवमयी इमारत का निर्माण बादशाह अकबर ने करवाया था. हर साल देशविदेश के हजारों पर्यटक इस इमारत को देखने आते हैं. इसी ऐतिहासिक इमारत में 6 अप्रैल, 2015 को एक अनहोनी हो गई. किसी पर्यटक ने वहां एक लड़की की खून सनी लाश देखी तो उस ने शोर मचा दिया, जिस से उधर घूम रहे पर्यटक वहां इकट्ठा हो गए. लड़की की लाश देख कर लोग हैरान थे कि पता नहीं किस ने इस की हत्या कर दी. सूचना पा कर वहां मौजूद सिक्योरिटी गार्ड भी पहुंच गए. उन्होंने इस की सूचना थाना सिकंदरा पुलिस को फोन कर के दे दी.

सिकंदरा के गेट से थाना करीब 2 सौ मीटर की दूरी पर था. इसलिए खबर मिलते ही थानाप्रभारी ज्ञानेंद्र सिरोही थोड़ी ही देर में पुलिस टीम के साथ उस जगह पहुंच गए, जहां लड़की की लाश पड़ी थी. उन्होंने लाश का निरीक्षण शुरू किया. मरने वाली लड़की की उम्र 19-20 साल थी. हत्यारे ने किसी धारदार हथियार से उस की गरदन के अलावा पेट पर भी वार किए थे. लाश खून में तरबतर थी. लाश के पास ही एक मोबाइल फोन और एक चाकू पड़ा था. इन पर भी खून लगा था. थानाप्रभारी ने अनुमान लगाया कि हत्यारे ने इसी चाकू से इसे मौत के घाट उतारा है.

थानाप्रभारी ने उच्चाधिकारियों को भी घटना की सूचना दे दी. कोई पर्यटक घटना को अपने कैमरे में कैद न कर ले, इसलिए पुलिस ने बिना फोरेंसिक सुबूत जुटाए ही फटाफट लाश को सील कर के पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. थोड़ी देर बाद ही एसएसपी राजेश डी. मोदक के साथ खोजी कुत्ते और फोरेंसिक टीम भी मौके पर आ गई. फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट को भी बुलाया गया. सभी टीमों द्वारा काम निपटाने के बाद पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया. मृतका के पास से कोई ऐसी चीज नहीं मिली थी, जिस से उस की पहचान हो सकती. इसलिए पुलिस के लिए पहला काम मृतका की शिनाख्त कराना था. लाश के पास जो मोबाइल फोन मिला था, पुलिस ने उस की मैमोरी में सेव फोन नंबरों पर बात करनी शुरू कर दी.

उसी क्रम में एक नंबर मृतका के किसी रिश्तेदार का मिल गया. उस रिश्तेदार से बात करने पर पता चला कि वह फोन नंबर शिवानी नाम की लड़की का है. उस रिश्तेदार से पुलिस को जानकारी मिली कि शिवानी जगदीशपुरा थानाक्षेत्र की आवास विकास कालोनी के सैक्टर-7 में रहने वाले अन्नू नागर की बेटी है.

शाम साढ़े 5 बजे के करीब पुलिस अन्नू नागर के घर पहुंची. घर में अन्नू की पत्नी रेखा मिली. पुलिस को देख कर वह परेशान हो गई. पुलिस ने उस से पूछा, ‘‘आप शिवानी को जानती हैं?’’

‘‘जी, शिवानी मेरी बेटी है. मगर आप उस के बारे में क्यों पूछ रहे हैं?’’ रेखा परेशान हो कर बोली.

‘‘वह सब भी बता देंगे, लेकिन पहले यह बताओ कि शिवानी कहां है?’’ पुलिस ने पूछा.

‘‘सर, वह तो अपना फोन रिचार्ज कराने घर से निकली थी, लेकिन अभी तक लौटी नहीं. मैं उसी का इंतजार कर रही हूं. उस का फोन भी नहीं लग रहा है.’’

‘‘आप का कोई और रिश्तेदार रहता है?’’ पुलिस ने पूछा.

‘‘जी, मेरे जेठजी रहते हैं, वह डीएम औफिस में नौकरी करते हैं.’’ रेखा ने कहा.

पुलिस रेखा को ले कर मुन्नालाल के घर गई. रेखा घबरा रही थी कि पता नहीं क्या बात है, जो पुलिस उसे कुछ बता नहीं रही है. मुन्नालाल उसी समय ड्यूटी से लौटा था. अपनी भाई की पत्नी के साथ पुलिस को देख कर वह भी चौंका. पुलिस ने मुन्नालाल से बात कर के सिकंदरा में मिली लाश का फोटो दिखाया. मुन्नालाल ने उस फोटो को देख कर कहा, ‘‘अरे, यह तो मेरी भतीजी शिवानी है. इसे किस ने मार दिया?’’

‘‘अभी कुछ नहीं पता, सिकंदरा में इस की लाश मिली है. लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है.’’ पुलिस ने बताया.

बेटी की हत्या की बात सुन कर रेखा दहाड़े मार कर रोने लगी. रेखा का पति अन्नू नागर एक प्रकाशन कंपनी में सुरक्षागार्ड की नौकरी करता था. मुन्नालाल ने उसे फोन कर के घर बुला लिया. इस के बाद पुलिस दोनों भाइयों को साथ ले कर थाने आ गई. थाने में लाश के पास से बरामद फोन जब दोनों भाइयों को दिखाया गया तो उन्होंने बताया कि वह मोबाइल शिवानी का ही है. इन बातों से साफ हो गया कि सिकंदरा में पुलिस ने जो लाश बरामद की थी, वह अन्नू नागर की बेटी शिवानी की थी. लाश की शिनाख्त होने के बाद पुलिस ने हत्यारों तक पहुंचने के लिए जांच की शुरुआत शिवानी के घर से ही शुरू की. थानाप्रभारी ने अन्नू नागर से पूछा, ‘‘शिवानी का हत्यारा कौन हो सकता है, मेरा मतलब क्या तुम्हें किसी पर कोई शक है?’’

‘‘सर, मुझे तो एक ही आदमी पर शक है, और वह है मेरे साढ़ू का लड़का प्रदीप. यह काम उसी का हो सकता है.’’ अन्नू नागर ने अपनी शंका प्रकट की.

‘‘वह क्यों?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘सर, वह शादी के लिए मेरी बेटी के पीछे हाथ धो कर पड़ा था.’’ अन्नू ने कहा.

इतना सुनते ही थानाप्रभारी को यह मामला प्रेमप्रसंग का लगा. अन्नू से प्रदीप का पता मालूम करने के बाद वह अगले दिन जिला एटा के गांव निघौली कला स्थित प्रदीप के घर जा पहुंचे. प्रदीप के घर के बाहरी दरवाजे पर कुंडी लगी थी. पड़ोसियों की मौजूदगी में कुंडी खोल कर पुलिस घर में घुसी तो अंदर कोई नहीं मिला. घर की लाइट जल रही थी और सारा सामान पैक था. ऐसा लग रहा था, जैसे घर के लोग सामान सहित कहीं भागने की तैयारी में थे. लेकिन उन्हें पुलिस के आने की भनक लग गई, जिस से वे घर छोड़ कर भाग गए. लोगों ने बताया कि प्रदीप 6 अप्रैल, 2015 की सुबह 7 बजे अपने 2 दोस्तों के साथ बाइक से घर से निकला था. उस के बाद किसी ने उसे नहीं देखा.

प्रदीप का पूरा परिवार भी गायब था, जिस से पुलिस का शक पुख्ता हो गया कि वारदात प्रदीप ने ही की है. काफी देर तक जब कोई वहां नहीं आया तो एक कांस्टेबल को वहां छोड़ कर थानाप्रभारी लौट आए. अब तक शिवानी के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स पुलिस को मिल चुकी थी. उस पर जो आखिरी काल आई थी, जांच में पता चला, वह काल प्रदीप के फोन से की गई थी. सर्विलांस टीम ने उस नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया. अगले दिन उक्त नंबर की लोकेशन दिल्ली में मिली. थानाप्रभारी ने एक पुलिस टीम दिल्ली रवाना कर दी. दिल्ली पहुंचने पर पता चला कि उस की लोकेशन जलेसर में है. पुलिस टीम जलेसर पहुंची. इस के बाद उस फोन की लोकेशन आगरा की हो गई.

जैसेजैसे उस फोन की लोकेशन बदल रही थी, सर्विलांस टीम उस की जानकारी पुलिस टीम को दे रही थी. जब पुलिस टीम को पता चला कि उस फोन की लोकेशन आगरा में है तो पुलिस टीम उस का पीछा करते हुए आगरा पहुंच गई. आखिर 9 अप्रैल, 2015 को कारगिल पैट्रोल पंप के पास से पुलिस ने प्रदीप को हिरासत में ले लिया. पुलिस के शिकंजे में आते ही प्रदीप हक्काबक्का रह गया. थाने ला कर प्रदीप से पूछताछ शुरू हुई. शुरू में उस ने पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की, लेकिन पुलिस की सख्ती के सामने उस की एक नहीं चली. उस ने अपना गुनाह कबूल कर लिया और कहा कि उसी ने शिवानी की हत्या की थी.

शिवानी प्रदीप की मौसेरी बहन थी. अपनी मौसेरी बहन की हत्या की उस ने जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश के जिला एटा का एक गांव है निघौली कला. रामनिवास इसी गांव के रहने वाले थे. वह पेशे से हलवाई थे. उन के परिवार में पत्नी सरोज के अलावा 6 बच्चे थे. उन में से 2 बेटियों और एक बेटे की वह शादी कर चुके हैं. अपनी बेटी सुमन और बेटे कुलदीप की शादी उन्होंने इसी साल फरवरी में 6 दिन के अंतराल पर की थी. दोनों ही शादियों में अन्नू नागर भी पत्नी रेखा और बेटी शिवानी के साथ आए थे. प्रदीप इन्हीं रामनिवास का बेटा है. शादी में आई अपनी सगी मौसेरी बहन शिवानी प्रदीप को भा गई. शिवानी की नजरों का जादू प्रदीप पर कुछ इस तरह चला कि वह उस के आगेपीछे घूमने लगा. प्रदीप अपनी कोशिशों से शिवानी को आकर्षित कर रहा था.

उसे मौके की तलाश थी. आखिर उसे वह मौका मिल गया. शिवानी किसी काम से छत पर गई तो प्रदीप भी उस के पीछेपीछे वहां पहुंच गया. वहां शिवानी को अकेली देख कर वह खुद को रोक नहीं सका. उस ने कहा, ‘‘शिवानी आज तुम कितनी सुंदर लग रही हो. तुम्हारे सामने सब फीके हैं.’’

शिवानी ने शरमा कर कहा, ‘‘भैया, तुम मजाक बहुत अच्छा कर लेते हो.’’

प्रदीप पास आ कर बोला, ‘‘देखो शिवानी, मेरी तुम्हारी उम्र में ज्यादा फर्क नहीं है, इसलिए तुम मुझे भैया कहने के बजाय नाम से बुलाया करो.’’

‘‘अगर तुम कह रहे हो तो मैं नाम से ही बुलाऊंगी. तुम भी कभी आगरा आना. वहां बहुत सी देखने लायक जगहें हैं.’’

‘‘तुम कह रही हो, इसलिए जरूर आऊंगा. हां, एक बात कहना चाहता हूं कि यह ड्रेस तुम पर बहुत अच्छी लग रही है.’’

प्रदीप की बात सुन कर शिवानी हंसने लगी.

6 दिनों में शिवानी और प्रदीप की कई बार लंबीलंबी बातें हुईं. प्रदीप के मन में अजीब से भाव उमड़ रहे थे, जबकि शिवानी के लिए वह सिर्फ मौसेरा भाई था. शादी के बाद सारे मेहमान जाने लगे थे. प्रदीप के मन में अजीब सी हलचल थी, क्योंकि वह अभी तक अपने दिल की बात शिवानी से कह नहीं पाया था. शिवानी के जाने से पहले वह उस से मन की बात कह देना चाहता था. मौके के इंतजार में वह शिवानी के इर्दगिर्द मंडराने लगा. जैसे ही उसे मौका मिला, वह शिवानी का हाथ पकड़ कर एकांत में ले गया. इस से पहले कि शिवानी कुछ समझ पाती, उस ने कहा, ‘‘शिवानी, मैं तुम से प्यार करने लगा हूं और अब मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता. तुम तो यहां से चली जाओगी, लेकिन तुम्हारे बिना मेरा दिल नहीं लगेगा.’’

प्रदीप की बात शिवानी को कुछ अजीब सी लगी, क्योंकि प्रदीप उस का मौसेरा भाई था. वह उसे कोई जवाब दिए बगैर वहां से चली गई. अगले दिन शिवानी अपने मांबाप के साथ आगरा आ गई. आगरा आने के बाद शिवानी की मनोस्थिति कुछ अजीब सी थी. शिवानी के जाने के बाद वास्तव में प्रदीप बेचैन हो गया. वह जबतब शिवानी को फोन कर के मीठीमीठी बातों से उसे लुभाने की कोशिश करने लगा. शिवानी भी उम्र की उस दहलीज पर खड़ी थी, जहां भावनाओं और उमंगों का सैलाब दूर तक बहा कर ले जाने की कोशिश करता रहता है अर्थात शिवानी का झुकाव भी प्रदीप की तरफ होने लगा. उसे प्रदीप अच्छा लगने लगा.

एक दिन प्रदीप ने शिवानी को फोन किया कि वह आगरा आ रहा है. उस के आने की बात पर शिवानी खुश हो गई. उस का मन भी प्रदीप से मिलने के लिए उमड़ने लगा. प्रदीप आगरा पहुंचा तो शिवानी घर में बिना बताए तय जगह पर प्रदीप से मिलने पहुंच गई. वहां से प्रदीप शिवानी को ताजमहल ले गया. वहीं पर शिवानी ने प्रदीप की मोहब्बत कबूल कर ली. शिवानी और प्रदीप भले ही रिश्ते में भाईबहन थे, लेकिन उन की सोच नए जमाने की थी. इसलिए प्यार के नशे में वे अपने बहनभाई के रिश्ते को भूल गए. प्रदीप ने तय किया कि वह शिवानी से ही शादी करेगा. लेकिन उस के सामने समस्या यह थी कि वह अपने घर वालों से मन की बात कहे कैसे कि वह मौसेरी बहन शिवानी के साथ शादी कर के अपनी दुनिया बसाना चाहता है.

हालांकि वह जानता था कि दिल की बात जुबां तक आते ही परिवार और समाज में तूफान आ जाएगा. पर वह अपने उस दिल का क्या करता, जो केवल शिवानी के लिए ही धड़क रहा था. अपनी दुनिया बसाने की गरज से वह दिल्ली जा कर शादीब्याह में हलवाईगिरी का काम करने लगा. बीचबीच में वह शिवानी से मिलने आगरा आता रहता था. एक दिन जब वह आगरा आया तो उस ने शिवानी से कहा, ‘‘शिवानी, मैं चाहता हूं कि हमारा यह प्यार एक नए रिश्ते में बदल जाए. मैं तुम से शादी करना चाहता हूं, इसलिए तुम अपनी मम्मीपापा से बात कर लो. तुम उन की अकेली संतान हो, इसलिए वे तुम्हारी बात मान भी लेंगे.’’

‘‘तुम यह क्या कह रहे हो प्रदीप. बेशक तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो, पर मेरे मांबाप इस रिश्ते के लिए हरगिज तैयार नहीं होंगे.’’

‘वह सब बाद में देखेंगे. अभी तो हमें यह देखना है कि उन की क्या राय है? मैं फिलहाल दिल्ली जा रहा हूं. तुम फोन कर के बताना कि वे क्या कह रहे हैं?’

‘‘ठीक है, मैं कोशिश कर के देखती हूं.’’ शिवानी ने जवाब दिया.

प्रदीप तो चला गया, लेकिन शिवानी को कशमकश में डाल गया. उस के मन में यही बात घूम रही थी कि शादी की बात मां से कैसे कहे. फिर हिम्मत कर के उस ने एक दिन अपनी मां से कहा, ‘‘मम्मी, प्रदीप मुझ से शादी करना चाहता है.’’

बेटी की बात सुन कर रेखा की आंखें फटी की फटी रह गईं. वह हैरान हो कर बोली, ‘‘यह क्या कह रही है? वह तेरा भाई है और भाईबहन के बीच शादी कभी नहीं हो सकती.’’

मां के सख्त तेवर देख कर शिवानी सहम गई. दूसरी ओर रेखा चिंता में पड़ गई. उस ने कहा, ‘‘आज के बाद तू प्रदीप से कभी भी नहीं मिलेगी.’’

मां का गुस्सा देख कर शिवानी कोई जवाब नहीं दे सकी. फोन कर के उस ने प्रदीप से कह दिया कि मम्मीपापा इस रिश्ते के लिए कभी तैयार नहीं होंगे.

‘‘देखो शिवानी, कोई माने या न माने, शादी तो मैं तुम्हीं से करूंगा और जल्दी ही यह बात मैं अपने घर में बता दूंगा. उस के बाद मेरी मम्मी तुम्हारी मम्मी को मना लेंगी.’’ प्रदीप ने कहा. जब रेखा ने बेटी की बात पति अन्नू को बताई तो अन्नू ने शिवानी को डांटने के बजाय प्यार से समझाया कि बेटा समाज ऐसे रिश्तों को कभी कबूल नहीं करता, इसलिए बेहतर यही होगा कि तुम उस का फोन रिसीव ही मत करो. पिता की बात को शिवानी समझ रही थी. वह कशमकश में फंस गई कि अब क्या करे. एक ओर उस के मांबाप थे तो दूसरी ओर उस का प्यार प्रदीप. आखिर उस ने तय किया कि मांबाप की इज्जत को ध्यान में रख कर वह प्रदीप से न तो मिलेगी और न ही उस का फोन रिसीव करेगी.

दूसरी ओर एक दिन हिम्मत कर के प्रदीप ने अपने मांबाप से कह दिया कि वह शिवानी से शादी करना चाहता है. उस की बात सुन कर पिता रामनिवास हक्केबक्के रह गए. उन्होंने उसे डांटते हुए कहा, ‘‘तेरा दिमाग तो खराब नहीं हो गया है? तू जानता है कि वह तेरी बहन लगती है. उस से तेरी शादी हरगिज नहीं हो सकती.’’

लेकिन प्रदीप के सिर पर तो मोहब्बत का जादू चढ़ कर बोल रहा था. उस पर पिता के समझाने का कोई असर नहीं हुआ. अपने प्यार की खातिर उस ने अपने घर वालों से बगावत कर ली. उस ने कह दिया कि वह हर हालत में शिवानी से शादी करेगा. अपने मांबाप से बगावत करने की बात शिवानी से बता कर प्रदीप ने शिवानी को फोन किया. लेकिन शिवानी ने उस का फोन रिसीव नहीं किया. कई बार फोन करने के बाद भी जब शिवानी ने फोन रिसीव नहीं किया तो वह परेशान हो गया. उस के बारबार फोन करने की बात शिवानी ने अपनी मां रेखा को बता दी.

रेखा ने एक दिन परिवार वालों को बुला कर पंचायत की. सब ने प्रदीप को फटकारा और कहा कि उस की जिद गलत है. बहन के साथ कभी शादी नहीं हो सकती. प्रदीप को लगा कि वह अकेला पड़ता जा रहा है. उस का बागी मन यह सोच कर परेशान था कि उस की खुशी में समाज का क्या लेनादेना. सभी ने बहुत समझाया, पर उस ने अपना फैसला नहीं बदला. प्यार जब हद से गुजर जाता है तो जुनून बन जाता है. उस ने रात में ही शिवानी को फोन किया. इस बार शिवानी ने उस की काल रिसीव कर के साफ कह दिया कि वह घर वालों की मरजी के बिना कुछ नहीं कर सकती. इसलिए वह उस से शादी करने की बात भूल जाए.

‘‘शिवानी, मना तो मेरे घर वाले भी कर रहे हैं, लेकिन मैं ने उन की बात ठुकरा दी. मैं तुम्हारे लिए उन्हें भी छोड़ने को तैयार हूं. अब तुम अपने कदम पीछे मत खींचो.’’

‘‘प्रदीप, मैं एक लड़की हूं, इसलिए मैं घर वालों के खिलाफ नहीं जा सकती.’’ यह कह कर उस ने फोन काट दिया.

उसी बीच अन्नू को पता चल गया कि शिवानी और प्रदीप के बीच फोन पर बातें हुई हैं तो उस ने शिवानी के मोबाइल का सिम तोड़ दिया. अब प्रदीप का शिवानी से संपर्क पूरी तरह से टूट गया. वह बहुत आहत था. उस की हालत जख्मी शेर सी हो गई. एक दिन उस ने शिवानी के पिता अन्नू को फोन पर धमकाया कि अगर उस ने शिवानी की शादी मेरे अलावा किसी और से कर दी तो वह शिवानी को मार डालेगा. अन्नू प्रदीप की हरकतों से परेशान था. उस ने तय किया कि वह जल्दी ही बेटी की शादी कर के प्रदीप से अपना पीछा छुड़ा लेगा. पिता को परेशान देख कर शिवानी ने उन से वादा किया, ‘‘पापा, आप परेशान न हों. अब मैं प्रदीप से कभी बात नहीं करूंगी.’’

बेटी पर विश्वास करते हुए अन्नू ने उसे नया सिम कार्ड ला कर दे दिया. प्रदीप को पता नहीं कहां से शिवानी का नया नंबर मिल गया तो वह फिर उसे फोन करने लगा. शिवानी ने उस से साफ कह दिया कि उस के पापा उस के लिए रिश्ता देख रहे हैं. वह उस से न शादी कर सकती और न ही कोई संबंध रखना चाहती है. शिवानी के रिश्ते की बात सुन कर प्रदीप एक तरह से पागल हो उठा. उस का किसी काम में मन नहीं लग रहा था. वह गुस्से में उबलने लगा. इस के बाद उस ने कई बार कोशिश की कि वह शिवानी से मिल कर अपने दिल का हाल बताए, लेकिन शिवानी उस से मिलना नहीं चाहती थी. प्रदीप समझ गया कि शिवानी उसे दगा दे गई. उस ने तय किया कि वह शिवानी को किसी और की नहीं होने देगा. अगर वह नहीं मानी तो वह उसे छोड़ेगा नहीं.

प्रदीप के दिमाग पर शैतान बैठ गया. खून उस के सिर पर सवार हो गया. उस ने 5 अप्रैल को एक तेज धार वाला चाकू खरीद कर रख लिया. इस के बाद उस ने शिवानी को फोन कर के कहा, ‘‘शिवानी चलो मैं ही तुम्हारी बात मान कर अपना रास्ता बदल लेता हूं, पर एक बार तुम मुझ से जरूर मिल लो. बस आखिरी बार हमारे प्यार की खातिर.’’

शिवानी मौत की दस्तक से अनभिज्ञ थी. इसलिए उस ने कहा, ‘‘ठीक है, जब तुम इतनी जिद कर रहे हो तो मिल लूंगी.’’

प्रदीप ने उसे मिलने के लिए सिकंदरा बुलाया. शिवानी मां से मोबाइल रिचार्ज कराने की बात कह कर अपने घर से निकली. वह सीधे सिकंदरा पहुंची, जहां प्रदीप उस का इंतजार कर रहा था. शिवानी प्रदीप को देख कर मुसकराई, मगर प्रदीप ने नजर फेर ली. शिवानी ने पूछा, ‘‘कहो, क्या कहना है?’’

‘‘क्या सारी बातें यहीं कर लोगी, अंदर चलते हैं.’’

‘‘प्रदीप मुझे जल्दी घर जाना होगा.’’ शिवानी बोली.

‘‘ठीक है, चली जाना.’’ प्रदीप ने लापरवाही से कहा, ‘‘कुछ देर बैठ कर बातें कर लेते हैं.’’

इस के बाद सिकंदरा के अंदर जाने के लिए उस ने 10-10 रुपए के टिकट खरीदे. टिकट लेने के बाद उस ने इधरउधर देखा. गेट के पास पार्क बिलकुल सुनसान था. वह शिवानी को ले कर उधर आ गया और एक पेड़ की आड़ में बैठ गया. वहां से मेन गेट करीब सौ मीटर दूर था. शिवानी सामान्य थी, पर प्रदीप के शैतानी दिमाग में कुछ और ही चल रहा था.

प्रदीप ने कहा, ‘‘शिवानी अब बताओ कि शादी के बारे में तुम्हारा क्या खयाल है?’’

‘‘प्रदीप, मैं पहले ही कह चुकी हूं कि मम्मीपापा नहीं मान रहे हैं. फिर जरा सोचो, रिश्तेदार और मोहल्ले वाले क्या कहेंगे.’’

शिवानी के इतना कहते ही प्रदीप ने इधरउधर देखा. कोई दिखाई नहीं दिया तो उस ने जेब से चाकू निकाला और शिवानी का मुंह दबा कर चाकू का एक वार उस की गरदन पर कर दिया. मुंह बंद होने से शिवानी चीख भी नहीं पाई. उस की आंखें फटी की फटी रह गईं. प्रदीप ने 5-6 वार उस के पेट में किए. कुछ ही देर में उस की मौत हो गई. उस ने चाकू वहीं फेंका और तेजी से मेन गेट से बाहर निकल गया. इस के बाद एक पर्यटक की नजर शिवानी की लाश पर पड़ी तो उस ने वहां घूमने वाले अन्य लोगों को वह लाश दिखाई. इस के बाद वहां तैनात सुरक्षा गार्डों को लड़की की लाश पार्क में पड़ी होने की जानकारी मिली तो वे घटनास्थल पर पहुंचे और पुलिस को सूचना दी.

प्रदीप से पूछताछ कर के पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. रिश्तों की मर्यादा को न समझने वाले युवक ने अपने जुनून में अपनी ही रिश्ते की बहन की जिंदगी छीन ली, पर उस के चेहरे पर शिकन तक नहीं थी. Agra Crime

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

 

Hindi Stories: बांदी से बेगम

Hindi Stories: अवध के नवाब नसीरूद्दीन हैदर अय्याश तो थे ही, तोताचश्म भी थे. उन की रंगीन नजरें बांदियों से बेगमों तक फिसलती रहती थीं…

अवध के दूसरे नवाब नसीरूद्दीन हैदर जितने अय्याश और आशिकमिजाज थे,उतने ही तोताचश्म भी थे. वह कब किस से निगाहें फेर लें और कब किस को सिर पर बैठा लें, किसी को नहीं मालूम. उन की इसी फितरत ने जहां सैकड़ों मामूली औरतों को शाही हरम में पहुंचा दिया था, वही उन की निगाह पलटते ही कितनी ही बेगमें कनीजों से भी बदतर जिंदगी जीने या फिर मौत से दामन जोड़ने को मजबूर हो गई थीं. हजारों बेगमें होने के बावजूद नसीरूद्दीन बेऔलाद थे. उन दिनों नवाब के दिलोदिमाग पर बेगम मलिका जमानी की हुकूमत थी.

 

नसीरूद्दीन ने मलिका जमानी के नाम अवध के बैसवारा परगना की जागीर लिख दी थी. इस जागीर की सालाना आमदनी 6 लाख रुपए थी. मलिका जमानी नसीरूद्दीन हैदर के दिल पर इस कदर छा गई थी कि उस के इशरों पर दरबार के दस्तूर करवटें बदलते थे. हर रात नवाब मलिका जमानी के महल में ही गुजारा करते थे. यही कारण था कि अवध की सब बेगमों पर मलिका जमानी का दबदबा था. एक रात जब नवाब उस की ड्योढ़ी में दाखिल हुए तो वह कुछ परेशान थे. उन के हाथों में 50 लाख रुपए का एक रुक्का था. मलिका जमानी ने बड़ी अदा से उन की परेशानी का सबब जानना चाहा, ‘‘हुजूरेआलम की तबीयत कुछ नासाज नजर आती है. क्या हम वजह जान सकते हैं?’’

‘‘कोई खास वजह नहीं बेगम, बस यूं ही…’’ नसीरूद्दीन ने कहा.

‘‘खास न सही, मामूली ही सही. लेकिन जरा मैं भी तो जानूं, हुजूर की परेशानी की वजह…’’

‘‘हमारे दिमाग पर इस दौलत का बोझ है.’’ अपने हाथ में मौजूद 50 लाख रुपए के रुक्के की ओर आंख से इशरा करते हुए नसीरूद्दीन ने कहा.

‘‘साहबेआलम, आप के हर बोझ को अपनी जिंदगी पर उतार लेना बंदी का फर्ज है.’’ यह कहते हुए मलिका जमानी ने नसीरूद्दीन के हाथ से ले कर उस रुक्के को अपनी चोली के भीतर रख लिया. नवाब आराम से मसनद के सहारे बिस्तर पर अधलेटे हो कर मलिका के हुस्न से खेलने लगे.

थोड़ी देर बाद उन्हें प्यास लगी. मलिका जमानी ने फौरन अपनी खास बांदी बिसमिल्ला खानम को पानी पेश करने का हुक्म दिया. बिसमिल्ला खानम ने सिर पर पड़े दुपट्टे को दुरुस्त करते हुए पानी भरे चांदी के गिलास को सोने की तश्तरी में रखा, फिर बड़े ही अदब से उसे नवाब के आगे पेश किया. नवाब ने पानी का गिलास उठाने के लिए ज्यों ही हाथ बढ़ाया, उन की नजर बिसमिल्ला खानम के रुखसार पर जम कर रह गई. हलके घूंघट में वह बेहद हसीन नजर आ रही थी. नसीरूद्दीन एकटक उसे निहारे जा रहे थे. बेगम जमानी को यह बेहद नागवार गुजर रहा था.

‘‘सुबहान अल्लाह.’’ नसीरूद्दीन ने बिसमिल्ला खानम के बेपनाह हुस्न की तारीफ करते हुए कहा. उन्हें तफरीह सूझी. उन्होंने गिलास उठाया और पानी पीने के बजाय बिसमिल्ला खानम के सिर पर उड़ेल दिया. बादशाह की इस हरकत पर एक पल तो बिसमिल्ला खानम शरमा कर रह गई, लेकिन फिर मजाक का जवाब मजाक से देने के लिए खुद को तैयार कर लिया. जो थोड़ासा पानी गिलास से तश्तरी में छलक गया था, बिसमिल्ला खानम ने फुर्ती से उसे बादशाह की पोशाक पर छिड़क दिया.

उस की इस बेहूदी हरकत से बेगम मलिका जमानी और नसीरूद्दीन, दोनो की त्यौरियां चढ़ गईं. बिसमिल्ला खानम की इस बेबाकी से नसीरूद्दीन अवाक रह गए थे. बेगम जमानी बिसमिल्ला खानम से कुछ कहतीं, इस से पहले ही वह बोल उठे, ‘‘इस तरफ पानी फेंकने की तुम ने जुर्रत कैसे की?’’

‘‘हुजूरेआलम, बांदी खता की माफी चाहती है. वैसे अगर हुजूर गुस्ताखी माफ करें तो एक बात अर्ज करूं?’’ बिसमिल्ला खानम ने अपनी घबराहट पर काबू पाते हुए शालीनता से कहा.

‘‘इजाजत है.’’ न जाने क्या सोच कर नसीरूद्दीन ने बिसमिल्ला खानम को अपनी बात कहने का मौका दे दिया.

‘‘हुजूर, जब बच्चे आपस में चुहल करते हैं तो छोटाईबड़ाई का कुछ खयाल नहीं करते… और न ही बुरा मानते हैं.’’ बिसमिल्ला खानम ने यह बात कुछ इस अदा से कही कि नसीरूद्दीन की चढ़ी हुई त्यौरियां उतर गईं. इस बेबाकी से वह इतने खुश हुए कि उन्होंने अपने गले का बेशकीमती हार उतारा और अपने हाथों से बिसमिल्ला खानम के गले में पहना दिया.

दूसरी ओर बेगम जमानी को यह सब कतई बरदाश्त नहीं हो रहा था. लेकिन नवाब की मरजी के खिलाफ कुछ कहना भी उस के बस की बात नहीं थी. बात इस हद तक बढ़ जाने की उसे कतई उम्मीद नहीं थी. उस ने इस रफ्तार को वहीं रोक देना मुनासिब समझा. बिसमिल्ला खानम को बाहर जाने का इशारा कर के वह नवाब को इधरउधर की बातों में उलझाने लगी. लेकिन उस दिन नवाब के दिल को मलिका जमानी की कोई भी बात, कोई भी अदा बहला न सकी. रंगीनमिजाज नवाब का दिल तो बिसमिल्ला खानम ले उड़ी थी. यह बात बेगम जमानी से छिपी न रही. नतीजतन उस दिन नवाब के जाने के बाद बिसमिल्ला खानम की अच्छी तरह खबर ली गई. बेगम जमानी की ओर से उसे सख्त हिदायत दी गई कि आइंदा वह नवाब को अपनी शक्ल न दिखाए.

अगले दिन जब नवाब मलिका जमानी की ड्योढ़ी में आए तो उन की निगाहें बिसमिल्ला खानम को ही तलाश रही थीं. उन्होंने फिर पानी पीने की ख्वाहिश जाहिर की. लेकिन आज उन्हें पानी पेश करने वाली बांदी बिसमिल्ला खानम नहीं, कोई और थी. यह देख कर बादशाह बेचैन हो उठे. उन्हें अपने होंठों की नहीं, बल्कि अपनी निगाहों की प्यास बुझानी थी, जो सिर्फ बिसमिल्ला खानम के सामने आने से ही बुझ सकती थी.

‘‘खानम कहां है?’’ अपनी बेताबी दूर करने के लिए नवाब ने मलिका जमानी से जवाब तलब किया.

‘‘आज वह छुट्टी पर है हुजूर.’’ मलिका जमानी ने जब नपातुला जवाब दिया तो नवाब को उस की करतूत समझते देर नहीं लगी. उन्हें इस बात का अहसास हो चला कि बेगम जमानी ने जानबूझ कर बिसमिल्ला खानम को उन की नजरों तले पड़ने से रोका है. फिर अगले दिन अवध के दरबार में उस वक्त हंगामा बरपा हो गया, जब मुंतिजिमउद्दौला ने नवाब को खबर दी कि मलिका जमानी ने उन की नजरों से बचाने के लिए बिसमिल्ला खानम को 7 तालों में कैद करवा रखा था. यह खबर सुनते ही नवाब आगबबूला हो उठे. उन का गुस्सा मलिका जमानी की मौत भी बन सकता था, लेकिन वजीर ने उन्हें शांत रहने की सलाह दी. दरअसल वजीर मन ही मन बेगम जमानी से रंजिश रखते थे.

वजीर मुंतिजिमउद्दौला ने कुछ ऐसी चालें चलीं कि बिसमिल्ला खानम का शौहर मीर हैदर शाही मुजरिम करार दे दिया गया. गिरफ्तारी के डर से बेचारा मीर हैदर अपनी बीवी बिसमिल्ला खानम को तलाक दे कर कानपुर भाग गया. यह वजीर मुंतिजिमउद्दौला की योजना की पहली कड़ी थी, जिस में उन्हें सफलता मिल गई थी. अब उन्होंने बिसमिल्ला खानम के घर के हालात पर गौर करना शुरू किया. उन्हें मलिका जमानी से शाही बागडोर छीनने के लिए यह मोहरा ठीक जंचा. बिसमिल्ला खानम अपने पिता की संतानों में सब से बड़ी थी. उस की एक छोटी बहन थी नाजुक अदा, जिस का निकाह नवाब दूल्हा नामक एक सौदागर के साथ हुआ था.

हसीन बिसमिल्ला खानम का निकाह मीर हैदर नामक एक सितारबंद के साथ हुआ था. मीर हैदर से बिसमिल्ला खानम को 2 औलादें हुईं, जिन में से एक बचपन में ही खुद को प्यारी हो गई. दूसरी औलाद बिसमिल्ला खानम को जान से भी ज्यादा प्यारी थी और वह था बेटा मीरन. लेकिन उस के शौहर को न तो उस से कोई खास लगाव था और न अपने बेटे मीरन से. पेशे से सितारबंद होने के कारण मीर हैदर का उठनाबैठना तवायफों के बीच रहा करता था. नाचनेवालियों के साथ साजदारी करतेकरते उस का दिमाग बदल गया था. दिलरुबा नामक एक तवायफ का वह इस कदर दीवाना हो गया था कि बिसमिल्ला खानम की उसे जरा भी परवाह नहीं रही.

बिसमिल्ला खानम का अंजाम भी वही हुआ, जो किसी औरत के शौहर का किसी तवायफ के चंगुल में पड़ने के बाद होता है. वह कौड़ीकौड़ी को मोहताज रहने लगी. उसे अपने से ज्यादा अपने बेटे मीरन की परवरिश की चिंता थी. एक दिन बिसमिल्ला खानम ने जब अपनी पड़ोसिन के आगे अपना दुखड़ा रोया तो उस ने बिसमिल्ला खानम को दिलासा दी कि वह उसे नवाब की किसी बेगम की ड्योढ़ी में नौकरी दिलवा देगी. बिसमिल्ला खानम खूबसूरत तो थी ही. अत: उस पड़ोसिन की मदद से उसे बेगम बादशाह महल की ड्योढ़ी में कनीज की नौकरी मिल गई. यह उस वक्त की बात है, जब बादशाह नसीरूद्दीन के अक्लोहोश पर बेगम मलिका जमानी की हुकूमत थी.

बिसमिल्ला खानम हर काम को एक खास सलीके से करना जानती थी. उसे तहजीब और सलीके की पुतली कहा जाने लगा. उस की तहजीब का जिक्र जब बेगम जमानी ने सुना तो नसीरूद्दीन हैदर से कह कर बिसमिल्ला खानम को अपनी ड्योढ़ी में नियुक्त करवा लिया. फिर वहीं एक दिन नसीरूद्दीन की नजर उस पर पड़ गई थी. बिसमिल्ला खानम के घरेलू हालात को जानने के बाद वजीर को यकीन हो गया कि अगर वह बिसमिल्ला खानम का निकाह नवाब के साथ पढ़वा दें, तो वह उस के एहसान तले दब कर उन की मुट्ठी में रहेगी. इस निकाह में कोई खास दिक्कत भी नहीं थी. बिसमिल्ला खानम का शौहर तो पहले ही उसे तलाक दे कर लखनऊ छोड़ गया था और नवाब भी बिसमिल्ला खानम के हुस्न पर लट्टू थे. बस, नवाब को थोड़ीसी हवा देने की जरूरत थी.

इसलिए मुंतिजिमउद्दौला ने मलिका के खिलाफ नवाब के कान भरने शुरू कर दिए. फिर एक दिन नवाब को खुश देख कर उन से कहा, ‘‘हुजूर, आप के दिल का हाल मुझ पर रोशन है. खुदा की कसम, झूठ बोलूं तो मुझ पर कहर बरसे… बिसमिल्ला खानम बांदी बनने के काबिल नहीं. उसे तो आप के पहलू में होना चाहिए.’’

‘‘तुम ठीक कहते हो.’’ नसीरूद्दीन ने कहा. वह तो पहले ही बिसमिल्ला खानम को पाने के लिए बेचैन थे. उन की बेकरारी ने बिसमिल्ला खानम के तलाक की इद्दत (तलाक के बाद 3 महीने की मियाद, जिस के पूरा न होने तक दूसरा निकाह नहीं किया जा सकता) खत्म होने का भी इंतजार नहीं किया. वह 16 दिसंबर, 1831 की तारीख थी, जब बिसमिल्ला खानम ने नवाब की बेगम बन कर महलसरा में कदम रखा. बिसमिल्ला खानम को पा कर नसीरूद्दीन इतना खुश हुए कि उन्होंने उसे ‘मलका आफाक कुदसिया सुलतान मरियम बानो बेगम साहिबा’ का खिताब अता किया. बिसमिल्ला खानम, जो कल तक मामूली बांदी थी, अब बेगम कुदसिया महल बन गई.

उस की नजाकत, नफासत और हुस्न ने नवाब पर ऐसा जादू किया कि वह हर वक्त उसी से दामन जोड़े बैठे रहते थे. उन पर उस का ऐसा रंग चढ़ा कि पिछली सारी बेगमों के रंग फीके पड़ गए. यहां तक कि अवध की सल्तनत के बंदोबस्त में भी कुदसिया महल का दखल होने लगा. उस के इस रुतबे ने उस के और बेगम जमानी के बीच दुश्मनी पैदा कर दी. कल तक जो नवाब की आंखों का तारा थी, आज वह अपनी ही एक मामूली बांदी की वजह से नवाब की नजरों से गिर गई थी. उस के लिए इस से बढ़ कर तौहीन की और क्या बात हो सकती थी? लिहाजा बेगम जमानी ने कुदसिया महल उर्फ बिसमिल्ला खानम से बदला लेने का मन बना लिया. लेकिन कुदसिया महल के दिल में बेगम जमानी के लिए कोई मैल नहीं था.

नसीरूद्दीन की मेहरबानी से कुदसिया महल को 50 हजार रुपए माहवार बतौर खर्च मिलने लगा. इस के अलावा मौरावां, गोसाईगंज, बिजनौर, कांठ, ससेंडी, परसेंडी और काकोरी आदि आसपास के परगने उसे जागीर में मिले थे. बेगम कुदसिया महल नवाब के दिल की धड़कन बन गई. वह हर तरह से नवाब का खयाल रखती थी. उसे अच्छी तरह मालूम था कि नवाब को बड़ी बेताबी से औलाद की तमन्ना है. इस के लिए कुदसिया महल ने लाख जतन किए और फिर एक दिन वह गर्भवती हो भी गई. बेगम कुदसिया महल के पांव भारी हुए हैं, यह खबर सुनते ही नवाब खुशी से झूम उठे. उन की जिस तमन्ना को शाही हरम की कोई बेगम पूरा न कर सकी थीं, उसे कुदसिया महल ने पूरी कर दिखाया था. कुदसिया महल के गर्भवती होने की खबर मामूली नहीं थी. यह खबर जब शाही हरम तक पहुंची तो हजारों बेगमों के सीने में सांप लोट गए.

बेगम मलिका जमानी को सब से ज्यादा रंज हुआ. उस ने जादूटोने और तरहतरह की तरकीबों से बेगम कुदसिया महल का गर्भपात करवा दिया. इन तरकीबों में एक प्यारी नामक महलदारिनी का भी हाथ था. जब इस घटना की जानकारी नवाब को हुई तो उन्होंने तुरंत महलदारिनी प्यारी को अपने सामने पेश करने का हुक्म दिया. फिर प्यारी के सामने आते ही नवाब ने अपनी तलवार निकाल कर एक ही झटके में उस का सिर धड़ से अलग कर डाला. इस घटना के बाद नवाब कुदसिया बेगम को उस के महल ‘दर्शन विलास’ से हटा कर अपने साथ दिलकुशा कोठी में ले गए. दिलकुशा कोठी में आए अभी एक माह ही गुजरा था कि कुदसिया महल पुन: गर्भवती हो गई. इस बार वह पूरी तरह से सजग थी. अपने गर्भ की सलामती के लिए उस ने कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी. लेकिन उसे क्या खबर थी कि इस बार उस के दुश्मन क्या सियासत खेलेंगे.

बेगम कुदसिया महल के दूसरी बार गर्भवती होते ही मलिका जमानी ने भयंकर साजिश रची. उस ने नवाब की एक मुंहलगी कनीज को अपनी साजिश में शरीक कर लिया. एक दिन नवाब को अकेला पा कर उस कनीज ने अपनी जान की सलामती मांगते हुए नसीरूद्दीन के आगे कुछ इस तरह अपनी बात कहनी शुरू की, ‘‘आलीजाह, कैसे कहूं, कुछ कहते नहीं बनता…’’

‘‘क्यों, ऐसी कौनसी बात है, जिसे कहने में तुम्हें इतनी हिचक है? हमारा हुक्म है, जो कहना चाहती हो, साफसाफ कह डालो.’’ नसीरूद्दीन बोले.

‘‘जहांपनाह, खुदा झूठ न बुलवाए तो यह होने वाली औलाद आप की नहीं है.’’

‘‘खामोश,’’ नसीरूद्दीन दहाड़ उठे, ‘‘जानती हो, तुम क्या कह रही हो?’’

‘‘मैं सच कह रही हूं हुजूर. अगर आप को मेरी बात पर यकीन न हो तो आप नूरन दाई को बुलवा लीजिए. खुदा कसम वह सब जानती है.’’ कनीज ने हाथ जोड़ते हुए इस अंदाज से कहा कि नसीरूद्दीन को उस की बात पर यकीन आने लगा.

नसीरूद्दीन ने पहले तो नूरन दाई को बुलवा कर सच्चाई जानने का इरादा किया. लेकिन ऐसा करने से बात फैलने और बदनामी का डर था. इसलिए उन्होंने इरादा बदल दिया. इस खबर ने उन्हें बुरी तरह तोड़ कर रख दिया. वह सोचने लगे कि अगर कुदसिया महल की कोख में मेरी औलाद नहीं है तो फिर किस की है? अपने इस सवाल का जवाब पाने के लिए उन्होंने उसी कनीज से पूछा, ‘‘तो फिर बेगम कुदसिया महल की कोख में किस की औलाद पल रही है?’’

‘‘हुजूर, यह उसी शख्स की करतूत है, जो पहले कभी बेगम साहिबा (कुदसिया महल) का शौहर हुआ करता था. तब बेगम फकत बिसमिल्ला खानम हुआ करती थीं.’’ उस कनीज ने भेदभरे अंदाज में बताया.

अब उस कनीज की बातों पर नवाब को पूरी तरह यकीन आ गया. वह आपे से बाहर हो चले. उधर इन सारी बातों से बेखबर बेगम कुदसिया महल अपनी होने वाली औलाद को ले कर सुनहरे ख्वाबों में डूबी थी. उसे नवाब की नाराजगी की खबर अगले दिन सुबह तब हुई, जब पिछली रात नवाब के इंतजार में ही गुजर गई और वह नहीं आए. नसीरूद्दीन की नाराजगी के इस आलम कुदसिया बेगम ने अकेले में उन से मुलाकात करनी चाही तो नसीरूद्दीन ने लिख कर भिजवा दिया, ‘‘अब मुझे तुम से कोई सरोकार नहीं और न ही मुझे इस मामले में कोई सफाई सुननी है.’’

नवाब की इस बेरुखी से कुदसिया बेगम के दिल पर बिजलियां टूट पड़ीं. उसे लगा कि उसे उस की वफादारी की सजा दी जा रही है. नवाब ने उस की ओर से निगाहें फेर लीं, इस अहसास ने कुदसिया महल को भीतर ही भीतर तोड़ कर रख दिया. इसी बेजारी के आलम में उस ने नसीरूद्दीन को कहला भेजा, ‘‘हुजूर ने जो मेरी वफा पर शक किया है, उस में आप का कसूर नहीं. दरअसल दुश्मनों की तरकीबें काम कर गई हैं, जो हमारी खराबी चाहते हैं. हुजूर की तबीयत मुझ से भर गई है और हुजूर ने मुझे अपनी नजरों से गिरा दिया है, यह जान गई हूं. लेकिन आप इतना जान लें, हमेशा से मेरा यही इरादा रहा है कि जिस दिन खुद को आप की निगाह से गिरी समझूंगी, उस दिन से मेरे लिए जिंदगी बेमानी हो जाएगी.’’

नसीरूद्दीन ने उस खत को पढ़ कर नफरत से जवाब दिया, ‘‘कहते सब हैं, मगर साबित करते किसी को नहीं देखा.’’

कुदसिया महल को नवाब से ऐसे जवाब की कतई उम्मीद नहीं थी. वह बेतरह बेजार हो उठी. उस ने अपनी वफा को साबित करने का मन बना लिया. अब नवाब से कुछ कहनेसुनने की गुंजाइश बाकी नहीं बची थी. कुछ सोच कर वह बादशाह बाग वाली अपनी कोठी पर जा पहुंची. वहां उस ने एक कनीज को अपने बेटे मीरन को बुलवाने भेज दिया. इस के बाद वह खुद नहाने के लिए गुसलखाने में चली गई. कोई और दिन होता तो उसे नहलाने के लिए दर्जनों कनीज उस के साथ जातीं. लेकिन आज उस ने सब को मना कर दिया. आज वह सब कुछ अकेले ही करना चाहती थी. थोड़ी देर बाद उस का बेटा मीरन भी आ गया.

वह गुसलखाने से बाहर निकली. उस ने बड़े प्यार से अपने बेटे को अपने करीब बुलाया और उसे गले लगा कर रोने लगी. बेगम कुदसिया के मुंह से कोई बोल नहीं फूट रहा था. बेटे को जी भर के प्यार करने के बाद उस ने अपने सारे जेवरात और बेशुमार दौलत नौकरों और कनीजों में तक्सीम कर दी. फिर उस ने एक कनीज से शिकंजी लाने को कहा. थोड़ी ही देर में कनीज शिकंजी का गिलास ले कर उस के सामने पेश हुई. उस ने गिलास एक हाथ में पकड़ा और फिर दूसरे हाथ से अपनी चोली से कोई चीज निकाली और फिर फुर्ती से उसे गिलास में डाल कर एक ही सांस में गिलास खाली कर दिया.

अब मौत धीरेधीरे उस की दामनगीर हो रही थी. कुदसिया बेगम ने शिकंजी में संखिया मिला कर पी लिया था. जहर ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया. उस का जिस्म नीला पड़ने लगा. आंखें रहरह कर भिच रही थीं. देखते ही देखते महल में हड़कंप मच गया. जब यह खबर नवाब तक पहुंची तो दरबार में तूफान उठ खड़ा हुआ. नसीरूद्दीन को इस बात का जरा भी गुमान नहीं था कि कुदसिया बेगम अपनी बात सच कर दिखाएगी. वह घबराए हुए उस महल में जा पहुंचे, जहां बेगम कुदसिया जिंदगी और मौत के बीच आंख-मिचौली खेल रही थी.

नवाब को तशरीफ लाए देख, डूबती जान कुदसिया बेगम ने लड़खड़ाती जुबान से बस इतना ही कहा, ‘‘साहबेआलम, मेरी आप से पहली शर्त यही थी कि मुझे शक की निगाह से कभी नहीं देखेंगे. लेकिन इस शर्त को हुजूर ने तोड़ दिया. हुजूर, बांदी ने आप से पहले ही अर्ज किया था कि आप की नजरेइनायत खत्म होते ही यह खाकसार हस्ती मिट जाएगी. मुझे ज्यों ही मालूम हुआ कि हुजूर की खुशी इसी में है, मैं ने अपना कहा सच कर दिखाया.’’ इतना कहतेकहते कुदसिया बेगम के गले से आवाज निकलनी बंद हो गई. उस के होठ सिर्फ खुलतेबंद होते रहे, जैसे उस के शिकवे अभी खत्म न हुए हों.

बेगम की हालत देख कर नसीरूद्दीन हैदर दीवाने हो उठे. वह पागलों की तरह अपना सिर धुनने लगे. उन्हें खास अफसोस इस बात का था कि कुदसिया बेगम बावफा थी और उन का असली वारिस इस वक्त भी उस की कोख में था. बेगम के खत्म होने के साथ ही उस की कोख और नसीरूद्दीन की औलाद का नष्ट होना लाजिमी था. देखते ही देखते शहर के तमाम नामी हकीम वहां जुट गए. बेगम कुदसिया महल को बचाने की जीतोड़ हिकमत की गई. लेकिन कोई कोशिश कामयाब न हो सकी. केवल 24 वर्ष की उम्र में कुदसिया बेगम इस दुनिया-ए-फानी से कूच कर गई. वह तारीख थी 21 अगस्त, 1839.

कुदसिया बेगम की आंखें मुंदते ही ऐसा वक्त आ गया कि दिनरात मौजमस्ती में डूबे रहने वाले नसीरूद्दीन चारों पहर गम में डूबे रहते. इसी उदासी के आलम में उन्होंने कुदसिया बेगम की याद में मकबरा बनवाया. बाद में जब नसीरूद्दीन को उन्हीं की खास महरी धनिया ने जहर दे दिया तो उन की मय्यत को भी कुदसिया बेगम के मकबरे में ही दफना दिया गया. आज लखनऊ के इरादतनगर वाली कर्बला में कुदसिया बेगम की कब्र है. उसी के बगल में नसीरूद्दीन हैदर की कब्र भी मौजूद है.

कुदसिया बेगम की मौत के बाद मलिका जमानी को खुदा का खौफ सताने लगा. इस हादसे ने उस के दिल को दहला कर रख दिया था. वह दिनरात सागरोमीना में डूबी रहती. उस के दोनों फेफड़े खराब हो गए. जिंदगी बोझ लगने लगी. 4 साल तक इस बोझ को ढोने के बाद मलिका जमानी ने भी दम तोड़ दिया. वह तारीख थी 22 दिसंबर, 1843. उस की लाश को लखनऊ के गोलागंज वाले उस के ही बनवाए इमामबाड़े में दफना दिया गया. आज भी गोलागंज के चौराहे पर मलिका जमानी की मस्जिद खामोश खड़ी है और उस के साये में तमाम कहानियां बिखरी पड़ी हैं… वफा, मोहबत, सियासत के फरेबों, साजिशों, विलासिता और पतन की कहानियां. Hindi Stories

Maharashtra Crime Story: पिता और भाई ने की प्रेमी की हत्या, लड़की ने लाश से की शादी

Maharashtra Crime Story: एक ऐसी शर्मनाक घटना सामने आई है, जिस ने प्यार को पूरी तरह तारतार कर दिया है. महाराष्ट्र में भाई और पिता ने जाति के विरोध में बेटी आंचल के प्रेमी सक्षम की बेरहमी से हत्या कर दी. आरोप है कि पिता और भाई ने पहले सक्षम को बुरी तरह पीटा फिर उसे गोली मारी और पत्थर से कुचलकर मार डाला.

इस के बाद आंचल प्रेमी की मौत की खबर सुनकर उस के घर पहुंची और लाश के सामने ही सिर में सिंदूर भरकर शादी की रस्म पूरी कर दी. पूरा मामला जानना जरूरी है ताकि ऐसे अपराधों से लोग सचेत और सावधान रहें.  महाराष्ट्र के नांदेड़ के इटवारा से सामने आई यह घटना सभी को हैरान कर रही है. आंचल और सक्षम पिछले 3 साल से प्रेम संबंध में थे और शादी करना चाहते थे, लेकिन सक्षम दूसरी जाति का था, इसलिए आंचल के फेमिली वाले इस रिश्ते को मंज़ूर नहीं करते थे.वे उस पर सक्षम से दूरी बनाने का दबाव डाल रहे थे.

फेमिली वालों द्वारा साथ रहने की मनाही के बाद दोनों ने लव मैरिज का फैसला किया, लेकिन जब पिता गजानन मामीडवार और भाइयों को इस की जानकारी मिली तो उन्होंने सक्षम को बहाने से बुलाया. इस के बाद उन्होंने उसे जमकर पीटा, उस के सीने में गोली मारी और फिर सिर पत्थर से कुचल दिया. सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची और शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. पोस्टमार्टम के बाद जब सक्षम का शव घर लाया गया तो आंचल भी वहां पहुंच गई. अपने प्रेमी की लाश देखते ही वह फूटफूट कर रोई और उसी के साथ विवाह की सारी रस्में निभाईं. उस ने सक्षम के हाथों से अपनी मांग भरी.

आंचल ने कहा, “मेरे भाई और पिता ने हमें अलग करना चाहा और सक्षम को मार दिया, लेकिन वे हार गए. मेरा प्रेमी मरकर भी जीत गया.” आंचल ने स्पष्ट कहा है कि वह पिता और भाई को सख़्त सज़ा दिलाना चाहती है. डीएसपी प्रशांत शिंदे के अनुसार, आरोपी पिता और भाई को गिरफ्तार कर लिया गया है. गजानन मामीडवार और साहिल मामीडवार ने अपराध कुबूल भी कर लिया है. नांदेड के डीएसपी प्रशांत शिंदे ने बताया कि सक्षम की पीटपीट कर हत्या की गई. पूरा मामला पुलिस जांच के अधीन है.

आपकी क्या राय है, पिता और भाई द्वारा सक्षम की हत्या सही है या गलत ? अगर आंचल सक्षम को सच में प्यार करती थी तो पिता को उस की पसंद का सम्मान करना चाहिए था. कब तक समाज जाति के नाम पर निर्दोष लोगों की जान लेता रहेगा? प्यार करने वाले कपल कब तक अपने ही परिवारों से लड़ते रहेंगे? समाज में रोज नए बदलाव हो रहे हैं और अगर बदलाव बेहतरी के लिए है, तो बदलने में कोई हर्ज नहीं है. सक्षम के मामले में ही अगर पेरेंट्स ने रिश्ता स्वीकार कर लिया होता तो बेटी खुश होती, समाज का एक धड़ा उनकी सोच का स्वागत करता, उन्हें कानूनी पचड़ें में नहीं पड़ना पड़ता, जेल कचहरी और वकीलों के चक्कर में पैसे नहीं गंवाने पड़ते.  Maharashtra Crime Story