Hindi crime story: वालिद चाहते थे कि उन की बेटी फूलों से खेले, बहारों में डोले. मगर उस की जिंदगी में आए हर इंसान की अपनीअपनी ख्वाहिश ने उस के दामन में आंसुओं के फूल ही खिलाए. ना दिया बहुत देर से बालकनी में बैठी सड़क पर आतीजाती गाडि़यों को दिलचस्पी से देख ॒रही थी. जिंदगी कितनी तेज रफ्तार है. घंटों का सफर मिनटों में किस तरह तय हो जाता है. मशीनी पहिए ने फासलों को कितना करीब कर दिया है. लेकिन ये पहिए?

उस का दिमाग पहिए पर आ कर ठहर गया था. नादिया का हाथ बेअख्तियार व्हील चेयर के पहिए पर पहुंच गया. उस ने एक ठंडी आह भरी... लेकिन पहिए ने मुझे कितनी बेबस और मजबूर कर दिया है. मुझे जिंदगी की हलचल से काट कर इस फ्लैट की बालकनी पर रोक दिया है. मैं चाहूं भी तो जिंदगी के साथ कदम मिला कर नहीं चल सकती. अपने पैरों पर खड़े होने का अरमान तो मुद्दत हुई, टूटे सपने की शक्ल में दफन हो गया है. नादिया की आंखों में आंसू भर आए.

उसी समय अम्मी की आवाज ने उसे अपनी ओर मुखाबित कर लिया, ‘‘बेटा, रात बहुत हो गई है. अब अपने कमरे में जा कर आराम करो.’’ मां ने व्हीलचेयर का रुख उस के कमरे की तरफ कर दिया, ‘‘बेटा, रात में कुछ सो लिया करो. सारी रात तुम्हारे कमरे की लाइट जलती रहती है.’’

‘‘अम्मी जी, सोने को किस का दिल नहीं चाहता, लेकिन नींद की देवी मेहरबान हो तब न.’’ नादिया ने मोहब्बत से मां का हाथ थामते हुए कहा.

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