Hindi Stories: अवध के नवाब नसीरूद्दीन हैदर अय्याश तो थे ही, तोताचश्म भी थे. उन की रंगीन नजरें बांदियों से बेगमों तक फिसलती रहती थीं…
अवध के दूसरे नवाब नसीरूद्दीन हैदर जितने अय्याश और आशिकमिजाज थे,उतने ही तोताचश्म भी थे. वह कब किस से निगाहें फेर लें और कब किस को सिर पर बैठा लें, किसी को नहीं मालूम. उन की इसी फितरत ने जहां सैकड़ों मामूली औरतों को शाही हरम में पहुंचा दिया था, वही उन की निगाह पलटते ही कितनी ही बेगमें कनीजों से भी बदतर जिंदगी जीने या फिर मौत से दामन जोड़ने को मजबूर हो गई थीं. हजारों बेगमें होने के बावजूद नसीरूद्दीन बेऔलाद थे. उन दिनों नवाब के दिलोदिमाग पर बेगम मलिका जमानी की हुकूमत थी.

नसीरूद्दीन ने मलिका जमानी के नाम अवध के बैसवारा परगना की जागीर लिख दी थी. इस जागीर की सालाना आमदनी 6 लाख रुपए थी. मलिका जमानी नसीरूद्दीन हैदर के दिल पर इस कदर छा गई थी कि उस के इशरों पर दरबार के दस्तूर करवटें बदलते थे. हर रात नवाब मलिका जमानी के महल में ही गुजारा करते थे. यही कारण था कि अवध की सब बेगमों पर मलिका जमानी का दबदबा था. एक रात जब नवाब उस की ड्योढ़ी में दाखिल हुए तो वह कुछ परेशान थे. उन के हाथों में 50 लाख रुपए का एक रुक्का था. मलिका जमानी ने बड़ी अदा से उन की परेशानी का सबब जानना चाहा, ‘‘हुजूरेआलम की तबीयत कुछ नासाज नजर आती है. क्या हम वजह जान सकते हैं?’’
‘‘कोई खास वजह नहीं बेगम, बस यूं ही…’’ नसीरूद्दीन ने कहा.
‘‘खास न सही, मामूली ही सही. लेकिन जरा मैं भी तो जानूं, हुजूर की परेशानी की वजह…’’
‘‘हमारे दिमाग पर इस दौलत का बोझ है.’’ अपने हाथ में मौजूद 50 लाख रुपए के रुक्के की ओर आंख से इशरा करते हुए नसीरूद्दीन ने कहा.
‘‘साहबेआलम, आप के हर बोझ को अपनी जिंदगी पर उतार लेना बंदी का फर्ज है.’’ यह कहते हुए मलिका जमानी ने नसीरूद्दीन के हाथ से ले कर उस रुक्के को अपनी चोली के भीतर रख लिया. नवाब आराम से मसनद के सहारे बिस्तर पर अधलेटे हो कर मलिका के हुस्न से खेलने लगे.
थोड़ी देर बाद उन्हें प्यास लगी. मलिका जमानी ने फौरन अपनी खास बांदी बिसमिल्ला खानम को पानी पेश करने का हुक्म दिया. बिसमिल्ला खानम ने सिर पर पड़े दुपट्टे को दुरुस्त करते हुए पानी भरे चांदी के गिलास को सोने की तश्तरी में रखा, फिर बड़े ही अदब से उसे नवाब के आगे पेश किया. नवाब ने पानी का गिलास उठाने के लिए ज्यों ही हाथ बढ़ाया, उन की नजर बिसमिल्ला खानम के रुखसार पर जम कर रह गई. हलके घूंघट में वह बेहद हसीन नजर आ रही थी. नसीरूद्दीन एकटक उसे निहारे जा रहे थे. बेगम जमानी को यह बेहद नागवार गुजर रहा था.
‘‘सुबहान अल्लाह.’’ नसीरूद्दीन ने बिसमिल्ला खानम के बेपनाह हुस्न की तारीफ करते हुए कहा. उन्हें तफरीह सूझी. उन्होंने गिलास उठाया और पानी पीने के बजाय बिसमिल्ला खानम के सिर पर उड़ेल दिया. बादशाह की इस हरकत पर एक पल तो बिसमिल्ला खानम शरमा कर रह गई, लेकिन फिर मजाक का जवाब मजाक से देने के लिए खुद को तैयार कर लिया. जो थोड़ासा पानी गिलास से तश्तरी में छलक गया था, बिसमिल्ला खानम ने फुर्ती से उसे बादशाह की पोशाक पर छिड़क दिया.
उस की इस बेहूदी हरकत से बेगम मलिका जमानी और नसीरूद्दीन, दोनो की त्यौरियां चढ़ गईं. बिसमिल्ला खानम की इस बेबाकी से नसीरूद्दीन अवाक रह गए थे. बेगम जमानी बिसमिल्ला खानम से कुछ कहतीं, इस से पहले ही वह बोल उठे, ‘‘इस तरफ पानी फेंकने की तुम ने जुर्रत कैसे की?’’
‘‘हुजूरेआलम, बांदी खता की माफी चाहती है. वैसे अगर हुजूर गुस्ताखी माफ करें तो एक बात अर्ज करूं?’’ बिसमिल्ला खानम ने अपनी घबराहट पर काबू पाते हुए शालीनता से कहा.
‘‘इजाजत है.’’ न जाने क्या सोच कर नसीरूद्दीन ने बिसमिल्ला खानम को अपनी बात कहने का मौका दे दिया.
‘‘हुजूर, जब बच्चे आपस में चुहल करते हैं तो छोटाईबड़ाई का कुछ खयाल नहीं करते… और न ही बुरा मानते हैं.’’ बिसमिल्ला खानम ने यह बात कुछ इस अदा से कही कि नसीरूद्दीन की चढ़ी हुई त्यौरियां उतर गईं. इस बेबाकी से वह इतने खुश हुए कि उन्होंने अपने गले का बेशकीमती हार उतारा और अपने हाथों से बिसमिल्ला खानम के गले में पहना दिया.
दूसरी ओर बेगम जमानी को यह सब कतई बरदाश्त नहीं हो रहा था. लेकिन नवाब की मरजी के खिलाफ कुछ कहना भी उस के बस की बात नहीं थी. बात इस हद तक बढ़ जाने की उसे कतई उम्मीद नहीं थी. उस ने इस रफ्तार को वहीं रोक देना मुनासिब समझा. बिसमिल्ला खानम को बाहर जाने का इशारा कर के वह नवाब को इधरउधर की बातों में उलझाने लगी. लेकिन उस दिन नवाब के दिल को मलिका जमानी की कोई भी बात, कोई भी अदा बहला न सकी. रंगीनमिजाज नवाब का दिल तो बिसमिल्ला खानम ले उड़ी थी. यह बात बेगम जमानी से छिपी न रही. नतीजतन उस दिन नवाब के जाने के बाद बिसमिल्ला खानम की अच्छी तरह खबर ली गई. बेगम जमानी की ओर से उसे सख्त हिदायत दी गई कि आइंदा वह नवाब को अपनी शक्ल न दिखाए.
अगले दिन जब नवाब मलिका जमानी की ड्योढ़ी में आए तो उन की निगाहें बिसमिल्ला खानम को ही तलाश रही थीं. उन्होंने फिर पानी पीने की ख्वाहिश जाहिर की. लेकिन आज उन्हें पानी पेश करने वाली बांदी बिसमिल्ला खानम नहीं, कोई और थी. यह देख कर बादशाह बेचैन हो उठे. उन्हें अपने होंठों की नहीं, बल्कि अपनी निगाहों की प्यास बुझानी थी, जो सिर्फ बिसमिल्ला खानम के सामने आने से ही बुझ सकती थी.
‘‘खानम कहां है?’’ अपनी बेताबी दूर करने के लिए नवाब ने मलिका जमानी से जवाब तलब किया.
‘‘आज वह छुट्टी पर है हुजूर.’’ मलिका जमानी ने जब नपातुला जवाब दिया तो नवाब को उस की करतूत समझते देर नहीं लगी. उन्हें इस बात का अहसास हो चला कि बेगम जमानी ने जानबूझ कर बिसमिल्ला खानम को उन की नजरों तले पड़ने से रोका है. फिर अगले दिन अवध के दरबार में उस वक्त हंगामा बरपा हो गया, जब मुंतिजिमउद्दौला ने नवाब को खबर दी कि मलिका जमानी ने उन की नजरों से बचाने के लिए बिसमिल्ला खानम को 7 तालों में कैद करवा रखा था. यह खबर सुनते ही नवाब आगबबूला हो उठे. उन का गुस्सा मलिका जमानी की मौत भी बन सकता था, लेकिन वजीर ने उन्हें शांत रहने की सलाह दी. दरअसल वजीर मन ही मन बेगम जमानी से रंजिश रखते थे.
वजीर मुंतिजिमउद्दौला ने कुछ ऐसी चालें चलीं कि बिसमिल्ला खानम का शौहर मीर हैदर शाही मुजरिम करार दे दिया गया. गिरफ्तारी के डर से बेचारा मीर हैदर अपनी बीवी बिसमिल्ला खानम को तलाक दे कर कानपुर भाग गया. यह वजीर मुंतिजिमउद्दौला की योजना की पहली कड़ी थी, जिस में उन्हें सफलता मिल गई थी. अब उन्होंने बिसमिल्ला खानम के घर के हालात पर गौर करना शुरू किया. उन्हें मलिका जमानी से शाही बागडोर छीनने के लिए यह मोहरा ठीक जंचा. बिसमिल्ला खानम अपने पिता की संतानों में सब से बड़ी थी. उस की एक छोटी बहन थी नाजुक अदा, जिस का निकाह नवाब दूल्हा नामक एक सौदागर के साथ हुआ था.
हसीन बिसमिल्ला खानम का निकाह मीर हैदर नामक एक सितारबंद के साथ हुआ था. मीर हैदर से बिसमिल्ला खानम को 2 औलादें हुईं, जिन में से एक बचपन में ही खुद को प्यारी हो गई. दूसरी औलाद बिसमिल्ला खानम को जान से भी ज्यादा प्यारी थी और वह था बेटा मीरन. लेकिन उस के शौहर को न तो उस से कोई खास लगाव था और न अपने बेटे मीरन से. पेशे से सितारबंद होने के कारण मीर हैदर का उठनाबैठना तवायफों के बीच रहा करता था. नाचनेवालियों के साथ साजदारी करतेकरते उस का दिमाग बदल गया था. दिलरुबा नामक एक तवायफ का वह इस कदर दीवाना हो गया था कि बिसमिल्ला खानम की उसे जरा भी परवाह नहीं रही.
बिसमिल्ला खानम का अंजाम भी वही हुआ, जो किसी औरत के शौहर का किसी तवायफ के चंगुल में पड़ने के बाद होता है. वह कौड़ीकौड़ी को मोहताज रहने लगी. उसे अपने से ज्यादा अपने बेटे मीरन की परवरिश की चिंता थी. एक दिन बिसमिल्ला खानम ने जब अपनी पड़ोसिन के आगे अपना दुखड़ा रोया तो उस ने बिसमिल्ला खानम को दिलासा दी कि वह उसे नवाब की किसी बेगम की ड्योढ़ी में नौकरी दिलवा देगी. बिसमिल्ला खानम खूबसूरत तो थी ही. अत: उस पड़ोसिन की मदद से उसे बेगम बादशाह महल की ड्योढ़ी में कनीज की नौकरी मिल गई. यह उस वक्त की बात है, जब बादशाह नसीरूद्दीन के अक्लोहोश पर बेगम मलिका जमानी की हुकूमत थी.
बिसमिल्ला खानम हर काम को एक खास सलीके से करना जानती थी. उसे तहजीब और सलीके की पुतली कहा जाने लगा. उस की तहजीब का जिक्र जब बेगम जमानी ने सुना तो नसीरूद्दीन हैदर से कह कर बिसमिल्ला खानम को अपनी ड्योढ़ी में नियुक्त करवा लिया. फिर वहीं एक दिन नसीरूद्दीन की नजर उस पर पड़ गई थी. बिसमिल्ला खानम के घरेलू हालात को जानने के बाद वजीर को यकीन हो गया कि अगर वह बिसमिल्ला खानम का निकाह नवाब के साथ पढ़वा दें, तो वह उस के एहसान तले दब कर उन की मुट्ठी में रहेगी. इस निकाह में कोई खास दिक्कत भी नहीं थी. बिसमिल्ला खानम का शौहर तो पहले ही उसे तलाक दे कर लखनऊ छोड़ गया था और नवाब भी बिसमिल्ला खानम के हुस्न पर लट्टू थे. बस, नवाब को थोड़ीसी हवा देने की जरूरत थी.
इसलिए मुंतिजिमउद्दौला ने मलिका के खिलाफ नवाब के कान भरने शुरू कर दिए. फिर एक दिन नवाब को खुश देख कर उन से कहा, ‘‘हुजूर, आप के दिल का हाल मुझ पर रोशन है. खुदा की कसम, झूठ बोलूं तो मुझ पर कहर बरसे… बिसमिल्ला खानम बांदी बनने के काबिल नहीं. उसे तो आप के पहलू में होना चाहिए.’’
‘‘तुम ठीक कहते हो.’’ नसीरूद्दीन ने कहा. वह तो पहले ही बिसमिल्ला खानम को पाने के लिए बेचैन थे. उन की बेकरारी ने बिसमिल्ला खानम के तलाक की इद्दत (तलाक के बाद 3 महीने की मियाद, जिस के पूरा न होने तक दूसरा निकाह नहीं किया जा सकता) खत्म होने का भी इंतजार नहीं किया. वह 16 दिसंबर, 1831 की तारीख थी, जब बिसमिल्ला खानम ने नवाब की बेगम बन कर महलसरा में कदम रखा. बिसमिल्ला खानम को पा कर नसीरूद्दीन इतना खुश हुए कि उन्होंने उसे ‘मलका आफाक कुदसिया सुलतान मरियम बानो बेगम साहिबा’ का खिताब अता किया. बिसमिल्ला खानम, जो कल तक मामूली बांदी थी, अब बेगम कुदसिया महल बन गई.
उस की नजाकत, नफासत और हुस्न ने नवाब पर ऐसा जादू किया कि वह हर वक्त उसी से दामन जोड़े बैठे रहते थे. उन पर उस का ऐसा रंग चढ़ा कि पिछली सारी बेगमों के रंग फीके पड़ गए. यहां तक कि अवध की सल्तनत के बंदोबस्त में भी कुदसिया महल का दखल होने लगा. उस के इस रुतबे ने उस के और बेगम जमानी के बीच दुश्मनी पैदा कर दी. कल तक जो नवाब की आंखों का तारा थी, आज वह अपनी ही एक मामूली बांदी की वजह से नवाब की नजरों से गिर गई थी. उस के लिए इस से बढ़ कर तौहीन की और क्या बात हो सकती थी? लिहाजा बेगम जमानी ने कुदसिया महल उर्फ बिसमिल्ला खानम से बदला लेने का मन बना लिया. लेकिन कुदसिया महल के दिल में बेगम जमानी के लिए कोई मैल नहीं था.
नसीरूद्दीन की मेहरबानी से कुदसिया महल को 50 हजार रुपए माहवार बतौर खर्च मिलने लगा. इस के अलावा मौरावां, गोसाईगंज, बिजनौर, कांठ, ससेंडी, परसेंडी और काकोरी आदि आसपास के परगने उसे जागीर में मिले थे. बेगम कुदसिया महल नवाब के दिल की धड़कन बन गई. वह हर तरह से नवाब का खयाल रखती थी. उसे अच्छी तरह मालूम था कि नवाब को बड़ी बेताबी से औलाद की तमन्ना है. इस के लिए कुदसिया महल ने लाख जतन किए और फिर एक दिन वह गर्भवती हो भी गई. बेगम कुदसिया महल के पांव भारी हुए हैं, यह खबर सुनते ही नवाब खुशी से झूम उठे. उन की जिस तमन्ना को शाही हरम की कोई बेगम पूरा न कर सकी थीं, उसे कुदसिया महल ने पूरी कर दिखाया था. कुदसिया महल के गर्भवती होने की खबर मामूली नहीं थी. यह खबर जब शाही हरम तक पहुंची तो हजारों बेगमों के सीने में सांप लोट गए.
बेगम मलिका जमानी को सब से ज्यादा रंज हुआ. उस ने जादूटोने और तरहतरह की तरकीबों से बेगम कुदसिया महल का गर्भपात करवा दिया. इन तरकीबों में एक प्यारी नामक महलदारिनी का भी हाथ था. जब इस घटना की जानकारी नवाब को हुई तो उन्होंने तुरंत महलदारिनी प्यारी को अपने सामने पेश करने का हुक्म दिया. फिर प्यारी के सामने आते ही नवाब ने अपनी तलवार निकाल कर एक ही झटके में उस का सिर धड़ से अलग कर डाला. इस घटना के बाद नवाब कुदसिया बेगम को उस के महल ‘दर्शन विलास’ से हटा कर अपने साथ दिलकुशा कोठी में ले गए. दिलकुशा कोठी में आए अभी एक माह ही गुजरा था कि कुदसिया महल पुन: गर्भवती हो गई. इस बार वह पूरी तरह से सजग थी. अपने गर्भ की सलामती के लिए उस ने कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी. लेकिन उसे क्या खबर थी कि इस बार उस के दुश्मन क्या सियासत खेलेंगे.
बेगम कुदसिया महल के दूसरी बार गर्भवती होते ही मलिका जमानी ने भयंकर साजिश रची. उस ने नवाब की एक मुंहलगी कनीज को अपनी साजिश में शरीक कर लिया. एक दिन नवाब को अकेला पा कर उस कनीज ने अपनी जान की सलामती मांगते हुए नसीरूद्दीन के आगे कुछ इस तरह अपनी बात कहनी शुरू की, ‘‘आलीजाह, कैसे कहूं, कुछ कहते नहीं बनता…’’
‘‘क्यों, ऐसी कौनसी बात है, जिसे कहने में तुम्हें इतनी हिचक है? हमारा हुक्म है, जो कहना चाहती हो, साफसाफ कह डालो.’’ नसीरूद्दीन बोले.
‘‘जहांपनाह, खुदा झूठ न बुलवाए तो यह होने वाली औलाद आप की नहीं है.’’
‘‘खामोश,’’ नसीरूद्दीन दहाड़ उठे, ‘‘जानती हो, तुम क्या कह रही हो?’’
‘‘मैं सच कह रही हूं हुजूर. अगर आप को मेरी बात पर यकीन न हो तो आप नूरन दाई को बुलवा लीजिए. खुदा कसम वह सब जानती है.’’ कनीज ने हाथ जोड़ते हुए इस अंदाज से कहा कि नसीरूद्दीन को उस की बात पर यकीन आने लगा.
नसीरूद्दीन ने पहले तो नूरन दाई को बुलवा कर सच्चाई जानने का इरादा किया. लेकिन ऐसा करने से बात फैलने और बदनामी का डर था. इसलिए उन्होंने इरादा बदल दिया. इस खबर ने उन्हें बुरी तरह तोड़ कर रख दिया. वह सोचने लगे कि अगर कुदसिया महल की कोख में मेरी औलाद नहीं है तो फिर किस की है? अपने इस सवाल का जवाब पाने के लिए उन्होंने उसी कनीज से पूछा, ‘‘तो फिर बेगम कुदसिया महल की कोख में किस की औलाद पल रही है?’’
‘‘हुजूर, यह उसी शख्स की करतूत है, जो पहले कभी बेगम साहिबा (कुदसिया महल) का शौहर हुआ करता था. तब बेगम फकत बिसमिल्ला खानम हुआ करती थीं.’’ उस कनीज ने भेदभरे अंदाज में बताया.
अब उस कनीज की बातों पर नवाब को पूरी तरह यकीन आ गया. वह आपे से बाहर हो चले. उधर इन सारी बातों से बेखबर बेगम कुदसिया महल अपनी होने वाली औलाद को ले कर सुनहरे ख्वाबों में डूबी थी. उसे नवाब की नाराजगी की खबर अगले दिन सुबह तब हुई, जब पिछली रात नवाब के इंतजार में ही गुजर गई और वह नहीं आए. नसीरूद्दीन की नाराजगी के इस आलम कुदसिया बेगम ने अकेले में उन से मुलाकात करनी चाही तो नसीरूद्दीन ने लिख कर भिजवा दिया, ‘‘अब मुझे तुम से कोई सरोकार नहीं और न ही मुझे इस मामले में कोई सफाई सुननी है.’’
नवाब की इस बेरुखी से कुदसिया बेगम के दिल पर बिजलियां टूट पड़ीं. उसे लगा कि उसे उस की वफादारी की सजा दी जा रही है. नवाब ने उस की ओर से निगाहें फेर लीं, इस अहसास ने कुदसिया महल को भीतर ही भीतर तोड़ कर रख दिया. इसी बेजारी के आलम में उस ने नसीरूद्दीन को कहला भेजा, ‘‘हुजूर ने जो मेरी वफा पर शक किया है, उस में आप का कसूर नहीं. दरअसल दुश्मनों की तरकीबें काम कर गई हैं, जो हमारी खराबी चाहते हैं. हुजूर की तबीयत मुझ से भर गई है और हुजूर ने मुझे अपनी नजरों से गिरा दिया है, यह जान गई हूं. लेकिन आप इतना जान लें, हमेशा से मेरा यही इरादा रहा है कि जिस दिन खुद को आप की निगाह से गिरी समझूंगी, उस दिन से मेरे लिए जिंदगी बेमानी हो जाएगी.’’
नसीरूद्दीन ने उस खत को पढ़ कर नफरत से जवाब दिया, ‘‘कहते सब हैं, मगर साबित करते किसी को नहीं देखा.’’
कुदसिया महल को नवाब से ऐसे जवाब की कतई उम्मीद नहीं थी. वह बेतरह बेजार हो उठी. उस ने अपनी वफा को साबित करने का मन बना लिया. अब नवाब से कुछ कहनेसुनने की गुंजाइश बाकी नहीं बची थी. कुछ सोच कर वह बादशाह बाग वाली अपनी कोठी पर जा पहुंची. वहां उस ने एक कनीज को अपने बेटे मीरन को बुलवाने भेज दिया. इस के बाद वह खुद नहाने के लिए गुसलखाने में चली गई. कोई और दिन होता तो उसे नहलाने के लिए दर्जनों कनीज उस के साथ जातीं. लेकिन आज उस ने सब को मना कर दिया. आज वह सब कुछ अकेले ही करना चाहती थी. थोड़ी देर बाद उस का बेटा मीरन भी आ गया.
वह गुसलखाने से बाहर निकली. उस ने बड़े प्यार से अपने बेटे को अपने करीब बुलाया और उसे गले लगा कर रोने लगी. बेगम कुदसिया के मुंह से कोई बोल नहीं फूट रहा था. बेटे को जी भर के प्यार करने के बाद उस ने अपने सारे जेवरात और बेशुमार दौलत नौकरों और कनीजों में तक्सीम कर दी. फिर उस ने एक कनीज से शिकंजी लाने को कहा. थोड़ी ही देर में कनीज शिकंजी का गिलास ले कर उस के सामने पेश हुई. उस ने गिलास एक हाथ में पकड़ा और फिर दूसरे हाथ से अपनी चोली से कोई चीज निकाली और फिर फुर्ती से उसे गिलास में डाल कर एक ही सांस में गिलास खाली कर दिया.
अब मौत धीरेधीरे उस की दामनगीर हो रही थी. कुदसिया बेगम ने शिकंजी में संखिया मिला कर पी लिया था. जहर ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया. उस का जिस्म नीला पड़ने लगा. आंखें रहरह कर भिच रही थीं. देखते ही देखते महल में हड़कंप मच गया. जब यह खबर नवाब तक पहुंची तो दरबार में तूफान उठ खड़ा हुआ. नसीरूद्दीन को इस बात का जरा भी गुमान नहीं था कि कुदसिया बेगम अपनी बात सच कर दिखाएगी. वह घबराए हुए उस महल में जा पहुंचे, जहां बेगम कुदसिया जिंदगी और मौत के बीच आंख-मिचौली खेल रही थी.
नवाब को तशरीफ लाए देख, डूबती जान कुदसिया बेगम ने लड़खड़ाती जुबान से बस इतना ही कहा, ‘‘साहबेआलम, मेरी आप से पहली शर्त यही थी कि मुझे शक की निगाह से कभी नहीं देखेंगे. लेकिन इस शर्त को हुजूर ने तोड़ दिया. हुजूर, बांदी ने आप से पहले ही अर्ज किया था कि आप की नजरेइनायत खत्म होते ही यह खाकसार हस्ती मिट जाएगी. मुझे ज्यों ही मालूम हुआ कि हुजूर की खुशी इसी में है, मैं ने अपना कहा सच कर दिखाया.’’ इतना कहतेकहते कुदसिया बेगम के गले से आवाज निकलनी बंद हो गई. उस के होठ सिर्फ खुलतेबंद होते रहे, जैसे उस के शिकवे अभी खत्म न हुए हों.
बेगम की हालत देख कर नसीरूद्दीन हैदर दीवाने हो उठे. वह पागलों की तरह अपना सिर धुनने लगे. उन्हें खास अफसोस इस बात का था कि कुदसिया बेगम बावफा थी और उन का असली वारिस इस वक्त भी उस की कोख में था. बेगम के खत्म होने के साथ ही उस की कोख और नसीरूद्दीन की औलाद का नष्ट होना लाजिमी था. देखते ही देखते शहर के तमाम नामी हकीम वहां जुट गए. बेगम कुदसिया महल को बचाने की जीतोड़ हिकमत की गई. लेकिन कोई कोशिश कामयाब न हो सकी. केवल 24 वर्ष की उम्र में कुदसिया बेगम इस दुनिया-ए-फानी से कूच कर गई. वह तारीख थी 21 अगस्त, 1839.
कुदसिया बेगम की आंखें मुंदते ही ऐसा वक्त आ गया कि दिनरात मौजमस्ती में डूबे रहने वाले नसीरूद्दीन चारों पहर गम में डूबे रहते. इसी उदासी के आलम में उन्होंने कुदसिया बेगम की याद में मकबरा बनवाया. बाद में जब नसीरूद्दीन को उन्हीं की खास महरी धनिया ने जहर दे दिया तो उन की मय्यत को भी कुदसिया बेगम के मकबरे में ही दफना दिया गया. आज लखनऊ के इरादतनगर वाली कर्बला में कुदसिया बेगम की कब्र है. उसी के बगल में नसीरूद्दीन हैदर की कब्र भी मौजूद है.
कुदसिया बेगम की मौत के बाद मलिका जमानी को खुदा का खौफ सताने लगा. इस हादसे ने उस के दिल को दहला कर रख दिया था. वह दिनरात सागरोमीना में डूबी रहती. उस के दोनों फेफड़े खराब हो गए. जिंदगी बोझ लगने लगी. 4 साल तक इस बोझ को ढोने के बाद मलिका जमानी ने भी दम तोड़ दिया. वह तारीख थी 22 दिसंबर, 1843. उस की लाश को लखनऊ के गोलागंज वाले उस के ही बनवाए इमामबाड़े में दफना दिया गया. आज भी गोलागंज के चौराहे पर मलिका जमानी की मस्जिद खामोश खड़ी है और उस के साये में तमाम कहानियां बिखरी पड़ी हैं… वफा, मोहबत, सियासत के फरेबों, साजिशों, विलासिता और पतन की कहानियां. Hindi Stories






