पिंड दान : प्रेमी के प्यार में पति का कत्ल – भाग 2

रायबरेली के रानानगर निवासी कालिका सिंह ने अपने पिता का नाम रोशन करने के लिए उन के नाम पर महाराजगंज में स्कूल खोल रखा था. कालिका चूंकि खूब पैसा कमाना चाहता था, इसलिए उस ने स्कूल चलाने के साथसाथ प्रौपर्टी डीलिंग का काम भी शुरू कर दिया था. उस का ज्यादातर समय इसी काम में बीतता था.

कालिका ने अपनी पत्नी योगिता को स्कूल की प्रिंसिपल बना रखा था. योगिता और कालिका की शादी 10 साल पहले हुई थी. योगिता सुल्तानपुर जिले के गौरीगंज कस्बे की रहने वाली थी. उस ने एमए तक पढ़ाई की हुई थी. योगिता और कालिका के 2 बेटे थे, 8 साल का यश और 6 साल का जय. कालिका सिंह में एक बुराई यह थी कि वह शराब का आदी हो गया था. इसी वजह से वह पत्नी और बच्चों की तरफ ध्यान नहीं दे पाता था.

पति की इसी आदत की वजह से योगिता को लगता था कि उस का पति दूसरी महिलाओं के चक्कर में पड़ गया है. उसे अपने स्कूल की कुछ महिला टीचरों पर शक होने लगा था. इसी बात को ले कर दोनों के बीच मनमुटाव और ज्यादा बढ़ने लगा. कालिका सिंह के स्कूल में एक टीचर था गौरव शर्मा. वह रायबरेली का रहने वाला था. योगिता 25 साल के गौरव को पसंद करने लगी थी. कहा जाता है कि पति के रंगढंग देख कर उस के मन में गौरव के प्रति प्रेम पनपने लगा था.

प्रिंसिपल होने के नाते योगिता की बात मानना गौरव की मजबूरी थी. योगिता जब तब मोबाइल पर गौरव से बातचीत करने लगी थी. रात में वह परेशान होती तो फोन पर गौरव से बात कर लेती. कुछ दिनों बाद कालिका सिंह को इस बात का पता चल गया तो वह योगिता पर शक करने लगा. कभीकभी अपना यह शक वह योगिता पर जाहिर भी कर देता था. साथ ही कहता भी था कि मैं सब पता लगा लूंगा. इस से डर कर योगिता मोबाइल और सिम बदलबदल कर गौरव से बात करने लगी.

पतिपत्नी के मन में एकदूसरे के प्रति शक का कीड़ा तेजी से घर करता जा रहा था. दूरियां भले ही काफी बढ़ गई थीं, इस के बावजूद 22 अक्टूबर, 2013 को योगिता ने पति की लंबी उम्र के लिए करवाचौथ का व्रत रखा. लेकिन कालिका सिंह उस दिन समय पर घर नहीं पहुंचा तो योगिता नाराज हो गई. उस ने फोन कर के गौरव शर्मा को अपने घर बुला लिया. इसी बीच कालिका सिंह घर पहुंच गया.

उस के पहुंचते ही योगिता व्यंग्य भरे लहजे में बोली, ‘‘किस के साथ करवाचौथ मना कर आ रहे हो? तुम्हारे लिए तो कई व्रत रखती होंगी. इसीलिए तुम ने मेरे व्रत की कोई अहमियत नहीं समझी.’’

‘‘तुम ने आते ही बेकार की बात शुरू कर दी. मैं कुछ काम में फंस गया था. आने में देर हो गई.’’ कालिका ने समझाने के लिए कहा तो योगिता तुनक कर बोली, ‘‘मैं तुम्हारे सब बहाने अच्छी तरह जानती हूं. अब मैं भी तुम्हें तुम्हारे ही अंदाज में जवाब दूंगी. फिर तुम्हें अहसास होगा कि औरत का दर्द क्या होता है.’’

कालिका शराब के नशे में था. उसे गुस्सा आने लगा. उस ने ताव से पूछा, ‘‘क्या करोगी तुम, जरा मैं भी तो जानूं?’’

योगिता भी गुस्से में थी. बिना सोचेसमझे उस ने कालिका को चिढ़ाने के लिए वहां मौजूद गौरव शर्मा के पास जा कर पहले आरती की थाली से उस की आरती उतारी, फिर उस के पैर छू लिए. यह देख कर कालिका सिंह सन्न रह गया.

वह गुस्से में बोला, ‘‘योगिता, तुम ने अपना फैसला सुनाया नहीं, बल्कि कर के दिखा भी दिया. अब मेरा फैसला भी सुन लो. आज से तुम मेरी पत्नी नहीं रही. मेरे लिए तुम मर चुकी हो. मैं आज से तुम्हारा छुआ खाना तक नहीं खाऊंगा.’’

अपनी बात कह कर कालिका सिंह अपने कमरे में चला गया और दरवाजा बंद कर के सो गया. योगिता ने सोचा कि कालिका ने यह बात नशे में कही है, सुबह तक सब भूल जाएगा.

लेकिन ऐसा नहीं हुआ. सुबह भी कालिका का रात वाला गुस्सा बना रहा. वह बिना खाना खाए ही घर से निकल गया. उस के बाद योगिता ने भी खाना नहीं बनाया. उस के दोनों बेटों ने बे्रड खा कर दिन गुजारा. 23 अक्टूबर की सुबह भी पतिपत्नी के बीच की लड़ाई शांत नहीं हुई. गुस्से में कालिका सिंह रायबरेली से दूर डलमऊ घाट पर गया. यहां लोग अपने परिजनों के अंतिम संस्कार के लिए आते हैं.

उस ने क्रियाकर्म कराने वाले पंडे को बुला कर कहा, ‘‘पंडित जी, मेरी पत्नी मर गई है, मैं उस का पिंडदान करना चाहता हूं.’’

पंडे ने पूछा, ‘‘पिंडदान का सामान आप लाए हैं या मुझे मंगाना पड़ेगा.’’

‘‘मैं कोई सामान नहीं लाया हूं. आप ही मंगा लें और विधिवत पिंडदान करें. मैं सारा खर्चा दूंगा.’’ कालिका ने कहा.

पंडे ने आधे घंटे में सारे सामान का इंतजाम कर दिया. इस के बाद कालिका सिंह ने अपनी पत्नी योगिता का विधिवत पिंडदान किया और सिर के बाल भी मुंडवा लिए. शाम को वह घर लौटा तो उसे देख कर योगिता सन्न रह गई. उस ने खाने के लिए पूछा तो कालिका सिंह ने पिंडदान वाली बात बता कर दोटूक कह दिया कि वह उस के लिए मर चुकी है. इस से योगिता को अपनी गलती का अहसास हुआ. उसे चिंता इस बात की थी कि यह बात जब मोहल्ले वालों और नातेरिश्तेदारों को पता चलेगी तो लोग उस के बारे में क्या सोचेंगे.

रात में कालिका के सो जाने के बाद योगिता ने गौरव को फोन कर के पिंडदान वाली पूरी बात बताई. साथ ही यह भी कहा, ‘‘अब मैं क्या करूं, कुछ समझ में नहीं आ रहा है. कल जब यह बात सब को पता चलेगी तो मेरी बड़ी बदनामी होगी.’’

गौरव ने योगिता को समझाने की कोशिश की. दरअसल उसे लगने लगा था कि अब अगर योगिता ने कुछ किया तो मामला गड़बड़ हो सकता है. इसलिए वह इस मामले से दूर रहना चाहता था. योगिता भी इस बात को समझ रही थी.

गौरव को अनमनी बातें करते देख वह धमकी देते हुए बोली, ‘‘गौरव, अगर तुम ने मेरी मदद नहीं की तो मैं फांसी लगा कर आत्महत्या कर लूंगी और सुसाइड में तुम्हारा नाम लिख जाऊंगी.’’

योगिता की इस धमकी से गौरव परेशान हो गया. वह बोला, ‘‘तुम ऐसा कुछ मत करो. तुम जो कहोगी, मैं करने को तैयार हूं.’’

योगिता किसी भी कीमत पर अपने परिचितों और रिश्तेदारों को यह पता नहीं चलने देना चाहती थी कि उस के रहते कालिका ने उस का पिंडदान कर दिया है. इस के लिए उस ने मन ही मन योजना बना ली कि उसे क्या करना है.

Top 11 Best Family Crime Stories in Hindi : बेस्ट फैमिली क्राइम स्टोरीज हिंदी में

Top 11 Best Family Crime Stories in Hindi : इन फैमिली क्राइम स्टोरीज को पढ़कर आप जान पाएंगे कि आज कल के बदलते परिवेश में कैसे परिवार के सदस्य भी एक दूसरे के खून के प्यासे बनते जा रहे है. छोटी छोटी बातों के लिए अपनों की जान के दुश्मन बनते रिश्तों की सच्चाई जानने के लिए पढ़े ये मनोहर कहानियां Top 11 Best Hindi Family Crime Stories 

1. रेशमा की हंसी ने बुलाई मौत

शोर सुन कर आसपास के घरों से लोग निकल आए. उन्होंने तभी देखा कि नन्हे अपनी पत्नी रेशमा के बाल पकड़ कर खींचता हुआ अपने घर में ले गया था. उधर नाजमा व अन्य लोगों ने देखा कि रसोई का शेड टूटा हुआ नीचे पड़ा है, वहां पर खून भी पड़ा था. इस के अलावा जिधर से नन्हे अपनी पत्नी रेशमा को घसीट कर ले गया था, वहां पर खून की बूंदें दिखाई दे रही थीं. इकट्ठा हुए लोग यह जानने के लिए नन्हे के घर पहुंच गए थे कि आखिर हुआ क्या है.

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2. जलन में जल गया पूरा परिवार

पुलिस ने किसी तरह दरवाजा खोला. दरवाजा खुलने पर जब सभी अंदर गए तो अंदर का दृश्य भयानक था. घर के अंदर एक कमरे में 5 लाशें पड़ी थीं, जिन में सुकांतो के बेटे, पत्नी, भतीजे की पत्नी और 2 बच्चियों की लाशें थीं. पर इन के शरीर पर किसी भी तरह की चोट वगैरह का कोई निशान नहीं था.

दूसरे कमरे में अकेले सुकांत सरकार ऐसे थे, जिन की सांसें अभी चल रही थीं. पर वह बुरी तरह घायल थे. उन का पूरा शरीर खून से लथपथ था. उन के पास एक बड़ा सा चाकू पड़ा था. चाकू पर भी खून लगा था. साफ लग रहा था उसी चाकू से उन पर वार हुए थे.

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3. 17 साल बाद खुला मर्डर मिस्ट्री का राज

दरवाजा खोल कर जैसे ही जनार्दन नायर अंदर घुसे, चीखते हुए तुरंत बाहर आ गए. घर के अंदर उन की 50 साल की पत्नी रमादेवी की खून से सनी लाश पड़ी थी. पत्नी की लाश देख कर वह चीखनेचिल्लाने लगे. उन की चीखपुकार सुन कर पड़ोसी इकट्ठा हो गए.

रमादेवी के मर्डर की बात सुन कर पड़ोसी भी हैरानपरेशान हो गए. दिनदहाड़े किसी के घर में घुस कर इस तरह हत्या कर देने वाली बात हैरान करने वाली तो थी ही, डराने वाली भी थी. सभी लोग सहम उठे थे. महिलाएं कुछ ज्यादा ही डरी हुई थीं. क्योंकि दिन में वही घर में अकेली रहती हैं.

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4. खुशी के माहौल में 4 हत्याएं

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वे दोनों भी कब सो गए, उन्हें नहीं पता चला. रात के 2 बज गए थे. अचानक घर में चीखपुकार मच गई. गांव वाले भी चीखने की आवाजें सुन कर मनाराम के घर की ओर दौड़ पड़े. घर से आ रही रोनेधोने और चीखने की आवाजों के अलावा ‘मैं मार दूंगा…सब को मार दूंगा’ की आवाज भी शामिल थी. गांव वाले कुछ समझ पाते, इस से पहले ही उन्होंने मनाराम को कुल्हाड़ी ले कर घर से निकलते देखा.

वह बाहर आया और वहीं लडख़ड़ाता हुआ धड़ाम से गिर पड़ा. उस के हाथ की कुल्हाड़ी छिटक कर दूर गिर गई. उस पर खून लगा हुआ था. जमीन पर गिरा हुआ मनाराम अब भी बड़बड़ा रहा था, ‘मार डालूंगा…सब को मार डालूंगा…मुझे भी मार दो!’

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5. मां के प्रेम का जब खुला राज

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घर पहुंच कर नेत्रपाल ने अनुज को गोद से उतार कर राधा की गोद में दे दिया तो एक बार फिर दोनों की अंगुलियां टकरा गईं. वही सनसनी फिर राधा की देह से गुजर गई. नेत्रपाल ने मुसकरा कर कहा, “अब चलता हूं भाभी.”

“अरे ऐसे कैसे जाओगे? तुम ने मेरी इतनी मदद की है, बदले में मेरा भी तो फर्ज बनता है. अंदर चलो, चाय पी कर जाना.” कहते हुए राधा ने घर का ताला खोला और नेत्रपाल का हाथ पकड़ कर उसे अंदर ले आई.

भीतर आ कर उस ने बेटे को गोद से उतार कर बिस्तर पर लिटा दिया. इस के बाद उस ने साड़ी का पल्लू सिर से उतारा ही था कि झटके से उस का जूड़ा खुल गया. लंबे बाल कंधों पर लहराने लगे. नेत्रपाल को राधा की यह दिलकश अदा भा गई.

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6. जिन्दा दफन की आंगन की किलकारी

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इस के अलावा उस के मन में एक बात यह भी घूम रही थी कि यदि बच्ची नहीं मरी तो वह उस की वजह से पूरी जिंदगी परेशान रहेगा. लिहाजा उस ने बेटी को खत्म करने की सोची. इस बारे में उस ने अपने साले दिनेश से बात की तो उस ने भी जीजा की हां में हां मिलाते हुए 6 दिन की बच्ची को खत्म करने को कहा.

दोनों ने बच्ची को मारने का फैसला तो कर लिया लेकिन अपने हाथों से दोनों में से किसी की भी उस का गला दबाने की हिम्मत नहीं हो रही थी. फिर उन्होंने तय किया कि बच्ची को जिंदा ही गड्ढे में दफना देंगे और जब सुनीता पूछेगी तो कह देंगे कि बच्ची की मौत हो गई थी और उसे दफना आए हैं.

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7. बेटी बनी गवाह : मां को मिली सजा – भाग 1

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कुछ ही देर में 15 साल की प्रियांशी गवाही देने अदालत में खड़ी हुई तो वकील अखिलेश भाटी ने उस से सवाल किया, “जिस दिन तुम्हारे पापा का मर्डर हुआ था,उस वक्त तुम क्या कर रही थी और तुम ने क्या देखा?”

“जी सर ,उस दिन मैं मम्मी के साथ ऊपर के कमरे में गई थी. उस समय मम्मी फोन पर किसी से बात कर रहीं थीं, तभी मैं ने नीचे उतर कर देखा तो 2 लोग मेरे पापा के कमरे से बाहर निकल रहे थे, उन में से एक प्रकाश अंकल भी थे. मैं ने पापा के कमरे में जा कर देखा तो पापा खून से लथपथ पड़े हुए थे, उन की गरदन पर किसी धारदार हथियार के निशान साफ दिख रहे थे. उसी समय मैं ने मम्मी को आवाज दे कर नीचे बुलाया था.”

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8. कंजूस पिता की ज़िद का नतीजा – भाग 1

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निष्ठा ने जब पिता के चीखने की आवाज सुनी तब वह पहली मंजिल पर थी. चीख की आवाज सुन कर निष्ठा ने सोचा कि शायद आज फिर पापा का किसी से झगड़ा हो गया है. वह जल्दीजल्दी सीढि़यों से उतर कर नीचे आई. घर का मुख्य दरवाजा भिड़ा हुआ था उस ने जैसे ही दरवाजा खोला उस के पिता सामने गिरे पड़े थे और हाथ में चाकू लिए एक युवक वहां से भाग रहा था. कुछ आगे एक युवक लाल रंग की मोटरसाइकिल पर बैठा था. जिस ने सिर पर हेलमेट लगा रखा था. कुछ लोग गली में मौजूद थे लेकिन उन्हें पकड़ने की किसी की भी हिम्मत नहीं हुई. युवक मोटरसाइकिल पर बैठ कर भाग गए.

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9. 50 बोटियों में बंटी झारखंड की रुबिका

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रूबिका पहाड़न का टुकड़ों में कटा हुआ शव मोमिन टोला स्थित एक पुराने और बंद पड़े मकान में मिला. उस की लाश को दरजनों टुकड़ों में काटा गया था. लाश के टुकड़ों को देख कर कोई भी हत्यारों की हैवानियत का अंदाजा सहज ही लगा सकता था.

रूबिका की बोटीबोटी करने वालों ने हैवानियत की सारी हदें पार कर दी थीं. उस के शव की पहचान न हो सके, इस के लिए आरोपियों ने उस की खाल तक उतार दी थी. शव के बरामद हुए 50 टुकड़ों में दाएं पैर के अंगूठे, कपड़े आदि से ही उस की पहचान हुई. शव के टुकड़े इलैक्ट्रिक कटर जैसे किसी औजार से किए गए जान पड़ते थे. रूबिका का सिर 2 हफ्ते बाद मोमिन टोला के निकट तालाब के पास से बरामद हुआ था.

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10. 3 महीने बाद खुला सिर कटी लाश का राज

सर्चिंग के दौरान हनुमान डोल मंदिर से करीब 50 मीटर दूर एक पुलिया के नीचे प्लेटफार्म से सटी रेत पर चादर से लिपटा एक शव बीट गार्ड को दिखाई दिया. शव मिलने की सूचना जब तक उस ने थाना रानीपुर को दी, तब तक शाम हो चुकी थी. तीसरे दिन 29 दिसंबर, 2023 को जब रानीपुर पुलिस फोरैंसिक टीम के साथ वहां पहुंची तो देखा कि शव के सिर्फ पैर दिख रहे थे. शव पत्थर और रेत में ढंका हुआ था. जब पुलिस टीम ने शव बाहर निकाला तो एक धड़ मिला, जिस के शरीर से सिर गायब था. कपड़ों के लिहाज से यह लाश किसी महिला की थी.

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11. तांत्रिक शक्ति के लिए अपने बच्चों की बलि

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निशा खुद को अब बहुत ऊंची तांत्रिक समझने लगी थी. उस पर पैसा बरस रहा था, लेकिन घर में शौहर और बच्चों से वह दूर होती आ रही थी. उन्हीं दिनों उस की जिंदगी में सऊद फैजी ने कदम रखा. वह पार्षद रह चुका था, उसे 36 साल की निशा की देह में ऐसी कशिश दिखाई दी कि वह उस के घर के चक्कर काटने लगा.

रोजरोज आने से निशा का झुकाव उस की ओर होने लगा. वह सऊद फैजी के प्रेम में उलझ गई. सऊद फैजी जवान था और जोशीला भी था. एक दिन एकांत में उस ने निशा को बाहुपाश में जकड़ लिया. निशा ने कोई विरोध नहीं किया, उस ने अपने आप को सऊद फैजी की बांहों में सौंप दिया.

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पिंड दान : प्रेमी के प्यार में पति का कत्ल – भाग 1

23 नवंबर,की दोपहर के बाद का वक्त था. उत्तर प्रदेश के जिला रायबरेली के पुलिस अधीक्षक के कार्यालय में  काफी भीड़ जमा थी. आश्चर्य की बात यह थी कि इन लोगों को रायबरेली के पुलिस अधीक्षक राजेश पांडेय ने खुद बुलाया था. वहां मौजूद लोगों में वकील और पत्रकार भी बड़ी तादाद में थे. दरअसल राजेश पांडेय आज बहुचर्चित कालिका सिंह हत्याकांड से परदा हटाने वाले थे.

रायबरेली के मोहल्ला रानानगर में रहने वाले कालिका सिंह की 21 अक्तूबर, 2013 को हत्या हो गई थी. हत्या के साथ उस के घर में लूटपाट भी हुई थी. लुटेरों ने उस की पत्नी योगिता सिंह को भी घायल कर दिया था. जिस की वजह से उसे अस्पताल ले जाना पड़ा था. कालिका सिंह रायबरेली के ही महाराजगंज में अपना एक स्कूल चलाता था. साथ ही वह रायबरेली में प्रौपर्टी डीलिंग का काम भी करता था. पुलिस पिछले एक महीने से इस घटना की जांच कर रही थी. यह मामला पुलिस के लिए चुनौती बना हुआ था.

रायबरेली के स्थानीय अखबार कालिका सिंह हत्याकांड को ले कर अलगअलग नजरिए से खबरें छाप रहे थे. एकदो अखबार ऐसे भी थे जो कालिका सिंह की हत्या के लिए उस की पत्नी को जिम्मेदार ठहरा रहे थे. जबकि कुछ का कहना था कि कालिका सिंह की हत्या प्रौपर्टी विवाद की वजह से हुई है. एक वकील के बेटे का नाम भी इस मामले में उछल रहा था. जिस की वजह से वकीलों का संगठन पुलिस पर दबाव बना रहा था कि उस परिवार के लोगों को न फंसाया जाए. इसी के मद्देनजर एसपी राजेश पांडेय ने इस मामले की जांच में जिले के काबिल पुलिस वालों को लगा रखा था.

पुलिस ने कालिका सिंह की पत्नी और वकील के पुत्र के मोबाइल नंबरों को सर्विलांस पर लगा कर एक महीने तक निगाह रखी. तब जा कर वह किसी नतीजे पर पहुंची. चूंकि सुबूत मिल चुके थे, इसलिए पुलिस आश्वस्त थी. इसी के मद्देनजर राजेश पांडेय ने योजना बना कर संबंधित पक्षों को पुलिस औफिस में बुलाया था. उन सब को अलगअलग हौल में बैठाया गया. ऐसा इसलिए किया गया, ताकि अंदर बैठे आरोपियों से जो बात हो, टीवी कैमरों के जरिए उसे बाहर बैठे लोग स्क्रीन पर देखसुन सकें.

इस के लिए पहले ही कैमरों और टीवी स्क्रीन की व्यवस्था कर ली गई थी. ऐसा करना इसलिए जरूरी था, जिस से किसी पक्ष को यह न लगे कि उन के साथ विश्वासघात हुआ है. तय समय पर पुलिस ने आरोपियों को अंदर बैठा कर पूछताछ शुरू की. इस पूछताछ में कालिका सिंह हत्याकांड की परतें एकएक कर खुलती गईं. बाहर बैठे लोग सारी बातें देखसुन रहे थे. इस पूरी कवायत में कालिका सिंह हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस तरह थी.

24 अक्तूबर, 2013 की रात को 1 बजे रायबरेली कोतवाली के फोन की घंटी बजी तो नाइट ड्यूटी पर मौजूद एसएसआई मोहम्मद सुरखाब खान ने फोन उठाया. दूसरी ओर से रोती हुई एक औरत की आवाज आई, ‘‘साहब जल्दी आइए, हमारे घर लूटपाट हो गई है. लुटेरों ने मेरे पति को मार डाला है. मैं भी बुरी तरह घायल हूं.’’ उस महिला से उस का पता पूछ कर एसएसआई मोहम्मद सुरखाब खान कुछ सिपाहियों को साथ ले कर उस के घर पहुंच गए.

वहां पहुंच कर पता चला मरने वाला प्रौपर्टी डीलर कालिका सिंह था और पुलिस को फोन उस की पत्नी योगिता सिंह ने किया था. घर का सारा सामान बिखरा पड़ा था. इस घटना की सूचना पा कर इंसपेक्टर कोतवाली संतोष कुमार द्विवेदी, सीओ सिटी पंकज पांडेय और एसपी राजेश पांडेय भी मौकाएवारदात पर पहुंच गए थे. घायल योगिता सिंह की हालत ज्यादा गंभीर नहीं थी, फिर भी पुलिस ने उपचार के लिए उसे अस्पताल भिजवा दिया.

पुलिस ने कोतवाली रायबरेली में अज्ञात लोगों के विरुद्ध लूटपाट और हत्या का मुकदमा दर्ज कर के मामले की जांच शुरू कर दी. इस के लिए डौग स्क्वायड और क्राइम टीम के फिंगरप्रिंट विशेषज्ञों को भी बुलाया गया. प्रारंभिक काररवाई के बाद कालिका सिंह की लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया गया. शुरुआती जांच में पुलिस को कुछ संदेह तो हुआ, लेकिन इस मामले की एकमात्र गवाह योगिता सिंह के अस्पताल में होने की वजह से वह किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी. क्योंकि उस से पूछताछ के बाद ही किसी निर्णय पर पहुंचा जा सकता था.

पुलि अधीक्षक राजेश पांडेय ने इस मामले की जांच के लिए शहर कोतवाल संतोष कुमार द्विवेदी, सर्विलांस प्रभारी संतोष शुक्ला, सबइंसपेक्टर संजय सिंह, अनिल सिंह, महिला थानाप्रभारी कंचन सिंह, सिपाही अरुण कुमार और मनोज सिंह की एक टीम बनाई. इस टीम का इंचार्ज बनाया गया सीओ संजय पांडेय को. जबकि पुलिस अधीक्षक राजेश पांडे इस मामले में मिली जानकारी को ध्यान में रख कर खुद रणनीति बनाने में लग गए. कालिका सिंह के बच्चों से बात करने पर पुलिस को पता चला कि घटना की रात गौरव शर्मा उन के घर आया था. गौरव कालिका सिंह के स्कूल में पढ़ाता था. बच्चों की इस बात की पुष्टि मोहल्ले वालों ने भी की थी.

गौरव शर्मा इस घटना के बाद गुजरात चला गया था. पुलिस की सर्विलांस टीम ने योगिता और गौरव के फोन नंबरों की जांच शुरू की तो कुछ बेहद चौंकाने वाली बातें पता चलीं. इसी को आधार बना कर जब जांच आगे बढ़ाई गई तो पुलिस को पता चला कि योगिता ने 1 जनवरी, 2013 से 24 अक्तूबर, 2013 के बीच 15 मोबाइल सेट इस्तेमाल किए थे. इन मोबाइलों में अलगअलग समय पर 32 सिम कार्ड लगाए गए थे. खास बात यह थी कि ये सभी सिम कार्ड फर्जी पतों पर लिए गए थे.

15 अगस्त, 2013 की ही बात है. कालिका सिंह के स्कूल ‘सूबेदार मेजर रामफल सिंह विद्यालय’ महाराजगंज, रायबरेली में स्वतंत्रता दिवस मनाया जा रहा था. झंडारोहण का कार्यक्रम खत्म हो चुका था. तभी स्कूल की प्रिंसिपल योगिता सिंह ने अपने पति और स्कूल के प्रबंधक कालिका सिंह से कहा, ‘‘कक्षा 3 को पढ़ाने वाली टीचर ठीक से काम नहीं कर रही है. स्कूल के किसी कार्यक्रम में भी हिस्सा नहीं लेती. कुछ समझाने पर समझती भी नहीं है. अब तो उस ने मेरी बात भी सुनना बंद कर दिया है.’’

‘‘ठीक है, मैं उस से बात कर के उसे समझा दूंगा.’’ कालिका सिंह ने पत्नी की बात को नजरअंदाज करते हुए कहा तो योगिता सिंह थोड़ा गुस्से में बोली, ‘‘मैं जब भी किसी टीचर के गलत व्यवहार की बात करती हूं, तुम नजरअंदाज कर जाते हो. कुछ टीचरों को तुम ने सिर पर चढ़ा रखा है.’’

‘‘देखो, बात का बतंगड़ मत बनाओ.’’ कालिका सिंह ने कहा तो योगिता चिढ़ कर तीखे शब्दों में बोली,

‘‘नहीं, मैं बात का बतंगड़ नहीं बना रही हूं, बल्कि तुम मेरा अपमान कर रहे हो. प्रिंसिपल बनाया है तो मुझे अपने ढंग से काम करने दो. मैं इस तरह तुम्हारी चहेती टीचरों से अपमानित नहीं हो सकती. मैं इस तरह से काम नहीं कर पाऊंगी.’’

‘‘तो ठीक है, तुम कल से स्कूल आना बंद कर दो. मैं किसी और को स्कूल की जिम्मेदारी सौंप देता हूं.’’ कालिका सिंह ने गुस्से में कहा.

‘‘तुम चाहते ही हो कि मैं किसी तरह यहां से हट जाऊं, ताकि तुम्हारी रासलीला शुरू हो जाए.’’ कह कर योगिता गुस्से में पैर पटकती स्कूल से चली गई.

इस घटना के बाद योगिता और कालिका के रिश्तों में दरार पड़ गई. बातचीत होती भी तो नाम मात्र की.

मां ने दिलाई बेटे को मौत

उत्तराखंड के जिला हरिद्वार के थाना बहादराबाद क्षेत्र के क्षेत्राधिकारी बी.के. आचार्य को जब किसी ने फोन कर के बताया कि थाना बहादराबाद की धनौरी रिपोर्टिंग पुलिस चौकी के पास स्थित शिवदासपुर तेलीवाला गांव के 17 वर्षीय तनवीर का अपहरण हो गया है तो उन्होंने फोन करने वाले पूछा, ‘‘अपहर्त्ताओं का फिरौती के लिए कोई फोन आया या नहीं?’’

‘‘नहीं सर, तनवीर के घर वाले फिरौती देने लायक ही नहीं हैं. उस का अपहरण फिरौती के लिए नहीं, रंजिश की वजह से किया गया है. गांव के ही कुरबान, जमशेद और शमशेर की तनवीर के घर वालों की पुरानी दुश्मनी है. लोगों का कहना है कि उन्हीं लोगों ने तनवीर का अपहरण किया है.’’ फोन करने वाले ने कहा.

‘‘तनवीर के घर वालों ने उस के अपहरण की सूचना थाना पुलिस को दी है या नहीं?’’ क्षेत्राधिकारी ने पूछा.

‘‘नहीं सर, तनवीर के घर वालों ने अभी तो पुलिस को उस के अपहरण की सूचना नहीं दी है. तनवीर की मां इमराना अपने एक रिश्तेदार इश्तिखार उर्फ तारी के साथ उस की सैंट्रो कार से तनवीर की तलाश कर रही है. लेकिन अभी तक उस का कुछ पता नहीं चला है. सर आप ही तनवीर को सकुशल बरामद कराने के लिए कुछ करें.’’ फोन करने वाले ने कहा.

‘‘आप को कैसे पता चला कि तनवीर का अपहरण हुआ है? जब तक अपहर्त्ताओं का फोन न आए, तब तक हम कैसे कह सकते हैं कि उस का अपहरण हुआ है? अच्छा यह बताओ, तुम कौन बोल रहे हो?’’ क्षेत्राधिकारी ने पूछा.

‘‘सर, एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते मैं ने आप को यह सूचना दे दी, बाकी आप को क्या करना है, यह आप जानें. मेरे बारे में जान कर आप क्या करेंगे?’’ कह कर फोन करने वाले ने फोन काट दिया. यह 22 फरवरी, 2014 की दोपहर के 2 बजे के आसपास की बात है.

युवक के अपहरण का मामला संगीन था, इसलिए क्षेत्राधिकारी बी.के. आचार्य ने तुरंत इस मामले की सूचना थाना बहादराबाद के थानाप्रभारी सुंदरम शर्मा को देते हुए कहा कि वह धनौरी पुलिस चौकी के चौकीप्रभारी रघुबीर चौधरी को साथ ले कर तुरंत गांव शिवदासपुर तेलीवाला जा कर तनवीर के अपहरण के बारे में पता करें. इस के बाद उन्होंने इस अपहरण की जानकारी अपने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक डा. सदानंद दाते को दे कर खुद भी शिवदासपुर के लिए निकल पड़े.

क्षेत्राधिकारी बी.के. आचार्य के शिवदासपुर तेलीवाला पहुंचने से पहले थानाप्रभारी सुंदरम शर्मा और चौकीप्रभारी रघुबीर चौधरी पहुंच चुके थे. अपहृत तनवीर के घर के सामने गांव के काफी लोग इकट्ठा थे. थानाप्रभारी और चौकीप्रभारी तनवीर के घर वालों तथा गांव वालों से पूछताछ कर रहे थे.

इस पूछताछ में पता चला कि तनवीर का अपहरण इसी गांव के कुरबान, शमशेर और जमशेद ने सैंट्रो कार से किया था. पुलिस ने उन के बारे में पता किया तो वे गांव में ही मिल गए. पुलिस उन्हें ले कर धनौरी पुलिस चौकी आ गई.

चौकी ला कर पुलिस ने उन से पूछताछ की तो उन्होंने स्वयं को निर्दोष बताते हुए कहा कि तनवीर के परिजनों से उन की पुरानी दुश्मनी थी, इसीलिए वे उन्हें फंसा रहे हैं. जिस समय तनवीर का अपहरण हुआ था, उस समय वे अपने खेतों में गन्ने छील रहे थे.

चौकीप्रभारी रघुबीर चौधरी ने जब इस बारे में गांव वालों से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि ये सच बोल रहे हैं. जमशेद और शमशेर सचमुच उस समय अपने खेतों में गन्ने छील रहे थे. इस के बाद पुलिस ने तीनों को छोड़ दिया.

तनवीर का अपहरण हुआ था, यह सच था. लेकिन न तो अपहर्त्ताओं का कोई फोन आया  था और न उस का कोई सुराग मिला था, इसलिए पुलिस के पास जांच को आगे बढ़ाने का कोई रास्ता नहीं था. पुलिस ने तनवीर के अपहरण का मुकदमा दर्ज कर लिया था. पुलिस को जांच आगे बढ़ाने की कोई राह नहीं सूझी तो तनवीर के बारे में पता लगाने के लिए अपने मुखबिरों को लगा दिया.

अगले दिन चौकीप्रभारी रघुबीर चौधरी ने जानकारी जुटाने के लिए तनवीर की मां इमराना और बाप इसलाम को थाने बुलवाया. पूछताछ करते समय इमराना बुरी तरह रो रही थी, इसलिए रघुवीर चौधरी की नजर उसी पर जमी थी. वह उस से कुछ भी पूछते, जवाब देने के बजाए वह रोने लगती. उसी दौरान इसलाम का एक रिश्तेदार इश्तिखार उर्फ तारी वहां आया तो उसे देख कर इमराना का रोना एकदम से बंद हो गया. यही नहीं, उस ने आंखों से उसे वहां से चले जाने का इशारा भी किया.

चूंकि चौकीप्रभारी रघुबीर चौधरी की नजरें इमराना पर ही जमी थीं, इसलिए उन्होंने उसे यह सब करते देख लिया था. उन्हें उस की यह हरकत बड़ी अजीब लगी. पूछताछ के बाद उन्होंने इमराना को घर भेज दिया, लेकिन उस पर उन्हें संदेह हो गया. इसलिए उन्होंने अपने मुखबिरों से इमराना और उस के रिश्तेदार तारी के बारे में जानकारी जुटाने को कहा.

10 दिन बीत गए. लेकिन तनवीर के बारे में कुछ पता नहीं चला. 2 मार्च, 2014 को कोतवाली रुड़की के अंतर्गत गंगनहर की आसफनगर झाल में एक युवक के शव मिलने की सूचना मिली. कोतवाली पुलिस ने शव बरामद किया. मृतक धारीदार सुरमई कमीज, काला स्वेटर, काली पैंट और सफेद रंग के काली पट्टी के जूते पहने था. इस शव के मिलने की सूचना पुलिस कंट्रोलरूम ने वायरलैस द्वारा प्रसारित की तो चौकीप्रभारी रघुबीर चौधरी तनवीर के घर वालों को साथ ले कर आसफनगर झाल पर जा पहुंचे.

उस शव की शिनाख्त इसलाम ने अपने बेटे तनवीर के रूप में कर दी. जवान बेटे की लाश से वह लिपट कर रोने लगा था. सूचना पा कर क्षेत्राधिकारी बी.के. आचार्य भी आ गए थे.  लाश के निरीक्षण में पुलिस ने देखा था कि उस के चेहरे पर चोट के गहरे निशान थे. इस से लगा कि हत्यारों ने पहले उसे बड़ी बेरहमी से पीटा था. शायद उसे पीटपीट कर ही मार डाला गया था. उस के बाद उसे गंगनहर में फेंक दिया गया था.

चौकीप्रभारी रघुबीर चौधरी ने घटनास्थल की औपचारिक काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए जे.एन. सिन्हा स्मारक राजकीय अस्पताल, रुड़की भिजवा दिया था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, तनवीर की मौत चेहरे पर लगी चोटों और फेफड़ों में पानी भरने से हुई थी. उस के जबड़े की हड्डी टूटने के साथ उस का गुप्तांग भी सूजा था. इस रिपोर्ट से साफ हो गया था कि हत्यारों ने उसे गंगनहर में फेंकने से पहले बड़ी बेरहमी से पीटा था.

लाश बरामद होने के बाद पुलिस हत्यारों की खोज में बड़ी तत्परता से जुट गई थी. उसी बीच रघुबीर चौधरी को मुखबिरों से पता चला कि कई सालों से दूध व्यवसाई इश्तिखार उर्फ तारी का इसलाम के घर बहुत ज्यादा आनाजाना था. वह इसलाम के घर तभी जाता था, जब वह घर पर नहीं होता था.

गांव वालों का कहना था कि इसलाम के रिश्तेदार तारी के उस की बीवी इमराना से अवैध संबंध थे. कभीकभी इमराना तारी की सैंट्रो कार से घूमने भी जाती थी. इसलाम मजदूरी करता था. लेकिन इमराना महंगे कपड़े और गहनों से लदी रहती थी. उस के यहां मोटरसाइकिल भी थी. यह सब तारी की ही बदौलत था.

यह जानकारी चौकीप्रभारी रघुबीर चौधरी ने थानाप्रभारी सुंदरम शर्मा और क्षेत्राधिकारी बी.के. आचार्य को दी तो उन्होंने उसे गिरफ्तार कर थाने लाने का आदेश दिया. इस के बाद इश्तिखार उर्फ तारी को उस के गांव शिवदासपुर से गिरफ्तार कर के थाने लाया गया, जहां तनवीर की हत्या के बारे में पूछताछ शुरू हुई. पहले तो तारी स्वयं को निर्दोष बताता रहा, लेकिन जब पुलिस ने थोड़ी सख्ती की तो वह टूट गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि तनवीर की हत्या उसी ने अपने 2 साथियों, कुरबान और शहजाद के साथ मिल कर की थी. उस ने यह भी स्वीकार किया कि तनवीर की हत्या की योजना उस की मां इमराना ने ही बनाई थी.

मां ने ही योजना बना कर बेटे की हत्या कराई थी, यह हैरान करने वाली बात थी. एक मां ने हवस की आग में अपने बेटे को ही स्वाहा कर दिया था. तारी ने पुलिस को जो बताया, उस के अनुसार तनवीर के अपहरण और हत्या की यह कहानी कुछ इस प्रकार थी.

आज से 28 साल पहले इसलाम का विवाह इमराना से हुआ था. इसलाम की आर्थिक स्थिति कोई बहुत अच्छी नहीं थी, जबकि इमराना काफी महत्त्वाकांक्षी औरत थी. इमराना इसलाम के 5 बच्चों की मां बनी, जिन में 2 बेटियां आसमां, नगमा तथा 3 बेटे तनवीर, हसीन और गुलाम अली थे.

5 बच्चों की मां बनने के बाद भी इमराना का शरीर कुछ ऐसा था कि कहीं से नहीं लगता था कि वह 5 बच्चों की मां है. भले ही उस की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, लेकिन वह रहती थी खूब बनसंवर कर. इसलाम के पास कोई बहुत ज्यादा जमीन नहीं थी. जो थी, उसी से किसी तरह गुजरबसर कर रहा था. कभी जरूरत पड़ने पर वह अपने दूध व्यवसाई रिश्तेदार इश्तिखार उर्फ तारी से पैसे उधार ले लेता था. जब उस के पास पैसे हो जाते थे तो वह वापस कर आता था.

अगर कभी इसलाम समय से रुपए नहीं पहुंचा पाता तो तारी खुद रुपए मांगने आ जाता था. इसलाम घर पर नहीं होता तो इमराना उस का स्वागत करती थी. इस बीच इसलाम का इंतजार करते हुए वह इमराना से बातचीत करता रहता. इसी आनेजाने और बातचीत करने में तारी का दिल इमराना पर आ गया. इस के बाद उस के मन में इमराना को पाने की इच्छा जाग उठी तो वह दूसरे तीसरे दिन बहाने से इसलाम के घर आने लगा.

बातचीत, हावभाव से इमराना ने तारी के मन की बात भांप ली तो उस ने भी उस की इच्छा पूरी करने का मन बना लिया. क्योंकि इस में उसे काफी फायदा दिखाई दिया. इसी का नतीजा था कि मौका मिला तो तारी जो चाहता था, वह उस ने पूरा कर दिया. इस के बाद तो यह रोज का खेल बन गया.

तारी इमराना के साथ मुफ्त में मजा नहीं ले रहा था. संबंध बनाने के बाद वह इमराना की हर तरह से मदद करने लगा था. यही नहीं, उस ने इसलाम से उधार दिए पैसे भी मांगने बंद कर दिए थे.

इस तरह के संबंध छिपे तो रहते नहीं, जल्दी ही सब को इमराना और तारी के संबंधों का पता चल गया. इसलाम के कानों तक भी यह बात पहुंची. लेकिन तारी के अहसानों तले दबा इसलाम विरोध नहीं कर सका. वह भले ही इस बात का विरोध नहीं कर सका, लेकिन पड़ोसियों ने जरूर विरोध किया. तब इमराना उन से लड़ पड़ी.

किसी रोज बड़ी बेटी आसमां और तनवीर ने इमराना और तारी को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया तो उन्होंने तारी को अपने घर आने से मना किया. तब इमराना ने दोनों को डांट कर चुप करा दिया. तारी के घर आने की वजह से इसलाम के बच्चे पड़ोसियों और रिश्तेदारों के सामने काफी शर्मिंदगी महसूस करते थे, इसलिए अब वे भरपूर विरोध करने लगे थे.

21 फरवरी, 2014 की सुबह स्कूल जाने के लिए तनवीर अपना बैग लेने छत पर बने कमरे पर पहुंचा तो कमरा अंदर से बंद था. खिड़की की झिरी से उस ने झांका तो अंदर इमराना तारी के साथ रंगरलियां मनाती दिख गई. तनवीर शोर मचाते हुए कमरे का दरवाजा खटखटाने लगा. इमराना ने दरवाजा खोला तो तनवीर ने दोनों को काफी जलील किया. इस के बाद उस ने तारी से साफसाफ कह दिया कि अगर अब कभी वह यहां आया तो वह उसे ही नहीं, इमराना को भी जान से मार देगा.

इस के बाद वह बैग ले कर स्कूल चला गया. बेटे की इस धमकी को इमराना ने बड़ी गंभीरता से लिया. इस धमकी से तनवीर उसे रास्ते का कांटा लगा, इसलिए उस ने उसे हटाने का निर्णय ले लिया. इस के बाद शाम को उस ने तारी को फोन कर के जल्द से जल्द तनवीर को खत्म कर देने के लिए कह दिया.

अगले दिन यानी 22 फरवरी, 2014 को तनवीर सुबह 7 बजे घर से स्कूल के लिए निकला तो इमराना ने इस बात की जानकारी मोबाइल फोन द्वारा तारी को दे दी. तारी ने पहले ही अपने दोस्तों कुरबान और शहजाद से बात कर ली थी. इसलिए सूचना मिलते ही वह अपनी सैंट्रो कार से दोनों को साथ ले कर तनवीर की तलाश में तेलीवाला की ओर चल पड़ा. उन्हें कलियर रोड पर रतमऊ नदी के किनारे तनवीर जाता दिखाई दिया तो कुरबान और शहजाद ने उसे पकड़ लिया. तारी ने उस के गुप्तांग पर जोर से लात मारी तो वह बेहोश हो गया.

इस के बाद तीनों बेहोश तनवीर को कार में डाल कर रुड़की शहर के निकट वाटर स्पोर्ट्स कैंप ले गए. वहां कुरबान ने कार का पहिया खोलने वाले पाने से बेहोश तनवीर के चेहरे और सिर पर वार किए. इस के बाद बेहोशी की हालत में तारी और शहजाद ने तनवीर को उठा कर गंगनहर में फेंक दिया. उन्होंने यह भी नहीं देखा कि तनवीर मरा है या जिंदा. इस के बाद तीनों शिवदासपुर आ गए. घर लौट कर तारी ने इमराना को तनवीर की हत्या की सूचना दे दी थी.

इश्तिखार उर्फ तारी के बयान के बाद पुलिस ने छापा मार कर कुरबान और शहजाद को उन के घरों से गिरफ्तार कर लिया. तनवीर की हत्या में प्रयुक्त सैंट्रो कार भी बरामद कर ली गई.

पुलिस इमराना को गिरफ्तार करने पहुंची तो वह अपने घर से फरार मिली. पुलिस ने थाने ला कर कुरबान और शहजाद से पूछताछ की गई तो उन्होंने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद प्रेसवार्ता में तनवीर हत्याकांड के तीनों अभियुक्तों को पत्रकारों के सामने पेश किया गया. इस प्रेसवार्ता में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सदानंद दाते ने इस हत्याकांड का खुलासा करने वाली पुलिस टीम को ढाई हजार रुपए का पुरस्कार देने की घोषणा की. इस के अगले दिन तारी, कुरबान और शहजाद को अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

इस के बाद चौकीप्रभारी रघुबीर चौधरी को इमराना की तलाश थी. उन्होंने अपने मुखबिरों को उस के पीछे लगा दिया. 10 मार्च को अपने किसी मुखबिर की सूचना पर उन्होंने इमराना को धनौरी तिराहे से गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में इमराना ने भी अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. सुबूत के लिए रघुबीर चौधरी ने तारी और इमराना के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स और लोकेशन भी निकलवा ली थी.

काल डिटेल्स से पता चला था कि दोनों में लंबीलंबी बातें होती थीं. तारी के मोबाइल फोन की लोकेशन भी घटनास्थल की मिली थी. पूछताछ के बाद पुलिस ने इमराना को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया. इमराना और तारी ने सोचा था कि तनवीर की हत्या कर के इस का आरोप अपने दुश्मनों पर लगा देंगे. लेकिन ऐसा नहीं हो सका, क्योंकि दुश्मनों के पास निर्दोष होने के पर्याप्त सुबूत थे. इसी का नतीजा था कि पुलिस असली हत्यारों तक पहुंच सकी.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पुनर्जन्म : कौन था मयंक का कातिल?

लूट फार एडवेंचर – भाग 5

तीनों कमा चुके थे 50-50 करोड़

“मेरे हिस्से लगभग 22 लाख रुपए आए थे. मैं उन पैसों को ले कर महानगर में आ गया. यहां आ कर यहां के एक पिछड़े इलाके में एक जिम खोल लिया. यह इस पिछड़े इलाके का एकमात्र जिम था, अत: जल्दी ही प्रसिद्ध हो गया और काफी चलने लगा. धीरेधीरे मैं ने शहर के और इलाकों में भी अपने जिम की ब्रांचेें खोल दीं. प्रसिद्धि के साथसाथ बिजनैस भी अच्छा बढ़ गया. आज लगभग हर बड़े शहर में हमारे जिम की ब्रांच है.

“आज 7 सालों के बाद मेरी चलअचल संपत्ति की कीमत 50 करोड़ से अधिक है. मैं ने अपने सभी वेंचर्स का नाम गेलार्ड रखा है. आज तुम जहां बैठे हो, उस का मालिक भी मैं ही हूं.” जगन ने बताया.

“मैं उस घटना के बाद एक इंडस्ट्रियल एरिया में चला गया. जहां मैं ने देखा कि ज्यादातर इंडस्ट्री में खेती के बाद निकले हुए हस्क यानी भूसे को ईंधन के रूप में इस्तेमाल करते है. लेकिन किसानों को पेमेंट 15-20 दिन बाद ही मिल पाता था. इस से उन्हें बड़ी परेशानी होती थी. मैं ने किसानों से सस्ता भूसा तत्काल पेमेंट का खरीदा. फिर उसे इंडस्ट्री में सप्लाई करना शुरू कर दिया. इस में निश्चित प्रौफिट तो था ही, साथ ही पैसा भी सुरक्षित रिसाइकल हो रहा था. आज मैं उस इलाके में भूसा किंग के नाम से जाना जाता हूं.

पिछले दिनों मैं ने भूसे को कंप्रेस्ड कर कोयले जैसा ईंधन बनाने की फैक्ट्री भी डाल ली है, जिस से काफी मटेरियल एक्सपोर्ट भी होता है. मुझे बैंक में की गई एडवेंचर से लगभग 22 लाख रुपए मिले थे. आज मैं भी लगभग 50 करोड़ की संपत्ति का मालिक हूं.” छगन ने अपने बारे में बताया.

“मैं भी बचने के लिए एक छोटे से गांव में आ गया. वहां पर सब्जियों की पैदावार भरपूर होती थी, लेकिन सडक़ से काफी अंदर होने के कारण सब्जियों की ढुलाई का साधन पर्याप्त समय पर न मिल पाने के कारण काफी सब्जियां नष्ट करनी पड़ती थी. जिस से उन्हें काफी नुकसान होता था. मैं ने अपने पैसों से एक सेकेंडहैंड ट्रक खरीद कर सब्जियों की शहरों में ढुलाई शुरू कर दी.

आज मैं आसपास के लगभग 20 गांवों से फल व सब्जियां अलगअलग माल्स, स्टार रेटेड होटल्स और मार्किट में सप्लाई करता हूं. मेरे पास आज लगभग 40 बड़े लोडिंग व्हीकल्स हैं और अब मैं अर्थ मूविंग मतलब खुदाई की बड़ी मशीनें भी खरीद कर बड़ेबड़े कौन्ट्रैक्ट लेता हूं. मैं भी कुल जमा 50 करोड़ की हैसियत रखता हूं.” मगन ने बताया.

“मतलब हम अपने इस मिशन में पूरी तरह से कामयाब रहे?” जगन ने सब के बीच प्रश्न रखा.

“हां ऐसा कह सकते हैं. हालांकि हम ने यह काम सिर्फ एडवेंचर के लिए किया था, मगर इस ने हमारी जिंदगी ही बदल दी.” छगन बोला.

“बिलकुल ठीक. लोग आज भी उन एडवेंचरस लूट को याद करते हैं. क्या जोश था यार.” मगन भी सहमत होते हुए बोला,

“आज यकीन नहीं होता अपने आप पर.”

उन के एडवेंर की मीडिया में हुई खूब प्रशंसा

“हम ने जो एडवेंचर किया था, वह अधूरा था. उस समय कुछ मजबूरियां थीं इस कारण उसे पूरा नहीं कर सकते थे. मगर अब कर सकते हैं.” जगन चाय की चुस्कियों के साथ बोला.

“मतलब एक और अडवेंचरस लूट? नहीं भाई, अब मुझ से नहीं होगा. अब उतनी तेजी और चुस्तीफुरती नहीं रही.” मगन बोला.

“मुझे तो वैसे ही शुगर की प्राब्लम हो गई है. सांसें तो जल्दी ही उखड़ जाती हैं आजकल.” छगन भी मगन से सहमत होते हुए बोला

“नहींनहीं, तुम लोग गलत समझ रहे हो. इस बार लूटना नहीं है. लूट का पैसा वापस बैंकों को लौटाना है. मैं इस बोझ के साथ मरना नहीं चाहता कि हम ने अपने स्वार्थ के लिए जनता की गाढ़ी कमाई के पैसों को लूटा. आज हम तीनों स्थापित हैं और इस कंडीशन में हैं कि उन पैसों को बिना किसी आपत्ति के वापस लौटा सकते हैं.” जगन बोला.

“सच कहते हो जगन. कभीकभी जब मैं यह सब सोचता हूं तो लगता है हम ने गलत ही किया. और यह ख्याल मुझे अंदर तक कचोटता है.” मगन बोला.

“मगर दोस्तो, यह सब इतना आसान भी नहीं है. लूटते समय जितना साहस दिखाया थी, उस से ज्यादा दिलेरी की जरूरत अभी पड़ेगी. दूसरा लोगों को हमारा नाम भी पता चल जाएगा. उस समय लोगों की क्या प्रतिक्रिया होगी, यह भी सोचना आवश्यक है. इस का असर हमारे जमे जमाए बिजनैस पर भी पड़ सकता है.” छगन ने अपने विचार रखें.

“मैं ने यह सब सोच रखा है दोस्तों. जिस तरह हम ने लूट के समय अपना चेहरा ढंका था, उसी तरह पैसे लौटाते समय हम अपना नाम व पहचान गुप्त ही रखेंगे. सब से बड़ी बात पैसा लौटाने की सूचना अकेले बैंक मैनेजर्स को न दे कर पुलिस, कलेक्टर और यथासंभव न्यूजपेपर्स व चैनल्स वालों को भी देंगे.” जगन बोला .

“अच्छा विचार है. अगर हमारी पहचान गुप्त रहती है तो हम यह एडवेंचर भी करना चाहेंगे.” मगन बोला.

“बिलकुल,” छगन भी सहमति दिखाते हुए बोला.

“योजना यह है कि हम ने बैंकों से लूट का जितना पैसा अपने पास रखा है, उतना ही पैसा हम अलगअलग लौक किए हुए सूटकेस में रख कर रेलवे के क्लौकरूम में रख देंगे.

“क्लौकरूम वाले बिना रिजर्वेशन टिकट के सामान नहीं रखते हैं. अत: हमें किसी फरजी नाम से रिजर्वेशन करवाना होगा. यह रिजर्वेशन हम टिकट विंडो से ही करवाएंगे. इस से मिले पीएनआर नंबर के बेस पर हम क्लौकरूम में सामान आसानी से रख पाएंगे.

“सामान रखते समय क्लौकरूम का क्लर्क पहचान पत्र मांग सकता है. इस के लिए 3 आधार कार्ड को ग्राफ्टिंग मेथड से एक बना कर नया आधार कार्ड तैयार कर लेंगे.” जगन बता रहा था.

“मतलब नंबर किसी और का, नाम किसी और का और पता किसी तीसरे का?” मगन ने पूछा.

“बिलकुल सही. मैं जिम में एंट्री लेते समय कस्टमर का आधार कार्ड लेता हूं. मैं उन में से ही किसी पुराने ग्राहक के आधार कार्ड की फोटोकौपी निकलवा लूंगा. बाकी 2 आधार कार्ड का इंतजाम तुम्हारे डाटाबेस में से करना ताकि इन्क्वायरी के समय किसी एक प्रतिष्ठान पर शक ना जाए.

क्लौकरूम में सामान जमा करते समय हम अपने चेहरे कवर रखेंगे ताकि स्टेशन के कैमरों में हमारा चेहरा दिखाई न पड़े. सामान्यत: क्लौकरूम में कोई भी व्यक्ति 7 दिनों तक हमारे सामान को लावारिस नहीं मानता है.

क्लौकरूम में सामान जमा करने के बाद इस की सूचना स्पीड पोस्ट के माध्यम से कलेक्टर, एसपी, बैंक मैनेजर और न्यूजपेपर व चैनल्स को दे देंगे. यहां इस बात का भी ध्यान रखेंगे कि यह सूचना कंप्यूटर के प्रिंटर से न निकाल कर हाथों से लिखी होगी. ताकि कंप्यूटर प्रिंटर की आईपी के द्वारा हम लोग सुरक्षित रहें.” जगन बोला.

20 दिनों के बाद तीनों दोस्त एक बार फिर गेलार्ड कैफे में पार्टी कर रहे थे. सभी न्यूजपेपर्स और चैनल्स पर उन के एडवेंचर की कहानियां सुनाई जा रही थीं.

प्यार की जीत : सुनीता और सुमेर की प्रेम कहानी

लूट फार एडवेंचर – भाग 4

तीनों बैंकों का कर लिया चुनाव

“चलो, अभी हमारे पास एक महीने का समय है. इस बीच हम उन बैंकों की पहचान कर लेते हैं, जो हमारी उम्मीद के मुताबिक कैश रखते हैं.” जगन बोला.

“मैं ऐसी बैंकों की पहचान कर चुका हूं जो कम से कम 20 लाख का मिनिमम बैलेंस तो मेंटेन करते ही हैं.” लगभग 15 दिनों के बाद जब तीनों मिले तो छगन बोला.

“कहां पर है ये बैंक?” जगन ने पूछा.

“एक ब्रांच कृषि उपज मंडी समिति की है. दूसरी ब्रांच इंडस्ट्रियल एरिया की है और तीसरी बैंक वह है जहां पर ज्यादातर सरकारी पैसा जमा होता है.” छगन ने बताया.

“वैरी गुड छगन, मैं भी इन तीनों बैंकों के बारे में ही सोच रहा था.” जगन भी सहमत होते हुए बोला.

“सब से बड़ी बात यह कि तीनों ही बैंकों के बंद होने के समय में आधे आधे घंटे का अंतर है. इंडस्ट्रियल एरिया वाली ब्रांच सुबह 9 बजे खुलती है और ग्राहकों के लिए 3 बजे बंद होती है. सरकारी लेनदेन वाली ब्रांच साढ़े 3 बजे और कृषि उपज मंडी समिति वाली ब्रांच 4 बजे बंद होती है,” छगन ने बताया.

“मतलब हमें अपना ऐक्शन ढाई बजे चालू करना होगा और ज्यादा से ज्यादा साढ़े 4 बजे तक खत्म करना ही होगा.” जगन बोला

“मगर रहमत तो गाड़ी खराब होने की सूचना तो तुरंत दे देगा. ऐसे में अगर समय रहते मैकेनिक आ गया तो क्या होगा? बिना गाड़ी के तो एडवेंचर पूरा नहीं होगा न.” मगन बोला.

“रहमत को गाड़ी खराबी की सूचना और बाकी की औपचारिकताएं पूरी करते करते 4-5 पांच घंटे तो लग ही जाएंगे. तब तक हम वैन को उड़ा चुके होंगे. सरकारी तंत्र में कोई भी व्यक्ति अपने स्तर पर निर्णय नहीं ले सकता है. हमें इसी लूप होल का फायदा उठाना है.” जगन ने समझाया.

“वाह जगन, तुम्हारी स्टडी सौलिड और स्ट्रांग है.” मगन तारीफ करते हुए बोला.

“मैं ने अपनी इस योजना को क्रियान्वित करने के लिए 15 जून की तारीख सोची है.” जगन बोला.

“मगर आज तो 20 मई ही है. 15 जून की तारीख क्यों सोची? इस के पीछे कोई कारण है क्या?” मगन ने पूछा.

“हां, कई कारण हैं. एक तो हम इस बीच के समय में बैंक के स्टाफ की ऐक्टिविटीज अच्छी तरह से नोट कर सकेंगे. और जो ज्यादा ऐक्टिव दिखाई पड़ेंगे उन्हें कंट्रोल करने की तरकीबें भी निकाल सकेंगे.

“दूसरा गरमी अभी ही इतनी बढ़ गई है उस समय तो अपने चरम पर होगी. इसी कारण एसी को सुचारु रूप से चलाने के लिए फ्रंट के शीशे के दरवाजे पहले से बंद होंगे. ऐसे में हमें स्टाफ और ग्राहकों को अंदर ही कंट्रोल करने में आसानी होगी. आने वाले ग्राहक भी बाहर ही रोके जा सकेंगे. तीसरा उस दिन सोमवार भी है. जैसा हम ने प्लान किया था. और चौथा, यह याद रखने के लिए सब से आसान दिन है. क्योंकि यह साल के बीचोबीच का दिन है. याद रहे 7 साल बाद हमें इसी दिन गेलार्ड कैफे में मिलना है.” जगन उत्साहित होते हुए बोला.

“15 जून साल के बीचोबीच का दिन कैसे हो सकता है?” छगन ने हैरानी से पूछा.

“साल का छठा महीना और उस के बीच का दिन. सीधा सा गणित.” जगन ने मुसकराते हुए समझाया.

“बहुत सही और आसान कैलकुलेशन.” मगन बोला, “अच्छा, अब हम 14 जून की शाम को ही मिलेंगे. अपनी चुनी हुई बैंकों के स्टाफ की ऐक्टिविटीज पर नजर रखते हैं तब तक.”

हिम्मत करने वालों की जीत होती है. अभी यही बात उन तीनों पर लागू हो रही थी. उन के सभी पांसे सही पड़ रहे थे. सभी कुछ उन की योजना के मुताबिक ही चल रहा था. 10 जून को ही रहमत कि बीवी डिलीवरी के लिए अपने सासससुर के पास चली गई.

14 जून की रात को ही जगन ने बाजार में मिलने वाली साड़ी की सस्ती फाल ले कर कैश वैन के साइलैंसर में घुसा कर उसे जाम कर दिया. इस से पहले वह अपनी डुप्लीकेट चाबी से वैन का इग्नीशियन चैक कर चुका था. मतलब साफ था चाबी अपना काम बराबर कर रही थी.

और 15 जून को वह सब हो गया, जो इन तीनों के अलावा किसी ने कल्पना में भी नहीं की होगी. हालांकि थोड़ाबहुत विरोध अवश्य हुआ, मगर इन तीनों ने अपनी तुरत बुद्धि और साहस के बल पर विपरीत परिस्थियों का सामना करते हुए उस दुष्कर कार्य को कर ही दिया.

तीनों बैंकों से कुल मिला कर लगभग 65 लाख की लूट हुई थी. किसी भी बैंक में 21 लाख से कम की रकम नहीं थी, जो इन तीनों की कल्पना के अनुरूप ही थी. तीनों लूट के बाद एकदूसरे से अनजान अलगअलग शहर में चले गए.

पहली प्लानिंग में मिले 65 लाख रुपए

दूसरे दिन देश के सभी अखबारों और न्यूज चैनलों और सोशल मीडिया पर सिर्फ और सिर्फ इस दुस्साहसी घटनाओं का ही जिक्र था. पुलिस और प्रशासन अपनी नाकामी से हाथ मल रही थी. लंबे समय तक लोगों के होंठों पर इस घटना का बखान था. तीनों का मिशन सफल रहा. एक स्वनिर्धारित एडवेंचरस टास्क उन्होंने पूरा कर सब को चौंका दिया.

7 साल बाद. वही तारीख 15 जून समय शाम के 7 बजे. गेलार्ड कैफे के सामने एक मर्सिडीज गाड़ी आ कर खड़ी हुई. उस में से शानदार सूट और सुनहरे फ्रेम का चश्मा लगाए छगन उतरा. कुछ ही मिनट बाद फोर्ड की एक बड़ी सी गाड़ी आई. उतरने वाला शख्स मगन था, जो अपने चिरपरिचित महंगी जींस और शर्ट पहने था. लगभग 15 मिनट इंतजार करने के बाद भी जब जगन नहीं आया तो दोनों निराश भाव से कैफे के अंदर चले गए.

“हमें टाइम मैनेजमेंट का पाठ पढ़ाने वाला जगन खुद ही लेट हो गया.” छगन बोला.

“कहीं ऐसा तो नहीं कि पुलिस ने उसे पकड़ लिया हो. क्योंकि कैश वैन का ड्राइवर उसे ही पहचानता था. यह संभव है कि वैन की बरामदगी के बाद उस ने जगन का हुलिया पुलिस को बता दिया हो.” मगन ने शंका जाहिर की.

“यदि ऐसा है तो हमें भी तुरंत ही यहां से निकलना चाहिए. बहुत संभव है कि जगन ने पुलिस को हमारे यहां आने की सूचना भी दे दी हो.” छगन चिंतित स्वर में बोला.

7 साल बाद मिले तीनों दोस्त

अभी छगन और मगन बातें कर ही रहे थे कि वेटर ने आ कर उन दोनों को एक परची दी. परची में लिखा था, “सामने वाला केबिन हम लोगों के लिए बुक है उसी में आ जाओ.”

“अरे जगन तो हम से पहले ही यहां पहुंच चुका है. चलो, उसी केबिन में चलते हैं.” छगन खुश होते हुए बोला.

“आओ दोस्तों.” दोनों को देखते ही जगन गर्मजोशी से बोल पड़ा. तीनों एकदूसरे को देख कर बहुत खुश थे.

“सुनाओ अपने 7 साल की प्रोग्रेस.” छगन मुसकराते हुए बोला.

गलत आदतों से हुई सजा ए मौत – भाग 4

पुलिस के गले नहीं उतरा नौकरानी का बयान

अम्माजी के कमरे में शोर सुन कर वह वहां पहुंची तो देखा कि उन के बिस्तर पर खून फैला हुआ था और वह मरी पड़ी थीं. वाश बेसिन का कांच टूटा पड़ा था. उस ने शोर मचाने की कोशिश की तो उसे भी कांच के टुकड़े से घायल कर दिया और शोर मचाने पर हत्या की धमकी दी. बदमाश अलमारी से जेवर व नकदी लूट कर भाग गए. उन के जाने के बाद उस ने शोर मचाया, तब पड़ोसी आए.

नौकरानी रेनू शर्मा की यह बात पुलिस के गले नहीं उतर रही थी. वृद्धा की हत्या व लूट की गुत्थी नौकरानी रेनू के बयानों से उलझ गई थी. जिस तरह से कमला देवी की हत्या की गई, उस से यह बात समझ नहीं आ रही थी कि हत्यारों ने वाश बेसिन पर लगा शीशा तोड़ कर उस से हत्या क्यों की? यदि हत्यारे हत्या व लूट करने ही आए थे तो अपने साथ कोई हथियार क्यों नहीं लाए?

कमला देवी ने रेनू से चाय बनाने को कहा तो जरूर परिचित ही होंगे. फिर बदमाश कमला देवी की हत्या और लूट करने के बाद प्रत्यक्षदर्शी गवाह रेनू को जिंदा क्यों छोड़ गए? रेनू की बातों से पुलिस का शक उसी पर बढ़ता गया.

पुलिस को लगा कि घटना को अंजाम देने वाले जरूर उस के परिचित हैं और उस ने ही उन्हें बुलाया होगा. ये बात पुलिस ने रेनू से कही तो वह घबरा गई और अपने को निर्दोष बताने लगी. कई घंटों की पूछताछ व पुलिस द्वारा आश्वासन देने पर कि तुम्हें कुछ नहीं होगा, रेनू टूट गई और उस ने अंत में पूरे घटनाक्रम की सही जानकारी पुलिस को दे दी.

रेनू ने बताया कि अम्माजी के धेवता दामाद तरुण गोयल, जिसे वह पहले से जानती है, ने इस घटना को अंजाम दिया था. उस ने ही डरा दिया था कि वह सभी को 2 बदमाशों के आने की बात कहे. ऐसा न करने पर उस की भी हत्या कर दी जाएगी. इसी डर के चलते वह सही बात बताने से बच रही थी और पुलिस को घुमा रही थी.

इस जानकारी के बाद पुलिस ने 2 अप्रैल, 2022 को लोहिया नगर स्थित घर से हत्यारोपी तरुण गोयल को गिरफ्तार करने के साथ ही उस के बिस्तर के नीचे से लूटे गए 77,620 रुपए तथा ज्वैलरी जिस में सोने की 4 चूडिय़ां, कानों के टौप्स, 2 अंगूठियां, चांदी के नोट के साथ आलाकत्ल पेचकस भी बरामद कर लिया.

तरुण ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया था. कमला देवी की हत्या लूट के उद्देश्य से की गई थी. पुलिस को वारदात के दूसरे दिन ही आरोपी को गिरफ्तार करने में सफलता मिल गई थी.

सट्टे में हार गया था 50-60 लाख रुपए

हत्या व लूट के आरोपी तरुण गोयल की गिरफ्तारी के बाद 2 अपै्रल को ही एसएसपी आशीष तिवारी ने प्रेस कौन्फ्रैंस बुला कर इस सनसनीखेज हत्या व लूट की घटना का परदाफाश करते हुए जानकारी दी कि कर्ज में डूबे रिश्तेदार तरुण गोयल ने ही हत्या व लूट की घटना को अंजाम दिया था.

बदमाश 2 नहीं एक ही था. वह भी कोई बाहरी व्यक्ति न हो कर मृतका की बेटी रंजना उर्फ पिंकी का दामाद तरुण गोयल था. दामाद होने के कारण उस का उस घर में आनाजाना था उसे सभी सम्मान देते थे. नौकरानी रेनू शर्मा उसे पहले से ही जानती थी. हत्या व लूट की वारदात को तरुण गोयल ने अंजाम दिया था. वह मूलरूप से मेरठ के सदर बाजार थाना क्षेत्र के बंगला एरिया के मकान नंबर 195 का निवासी है.

तरुण मेरठ में सेनेटरी का काम करता था. उस का अच्छा कारोबार था. औनलाइन सट्टा खेलने के कारण उस पर 50-60 लाख रुपए का कर्ज हो गया था. लौकडाउन के समय वह मेरठ से भाग कर फिरोजाबाद आ गया था. जहां वह फिरोजाबाद के थाना उत्तर के लोहिया नगर की गली नंबर 2 में घरजमाई बन कर रहने लगा था. यहां रह कर वह सेनेटरी का काम करता था. ससुरालीजन उस की आर्थिक रूप से भी मदद करते थे.

तरुण को पता था कि उस के और नानी सास के परिजन शुक्रवार को एक साथ फिल्म देखने गए हैं और नानी सास घर पर अकेली हैं. उस की नजर नानी सास कमला देवी के रुपयों व आभूषणों पर थी. उसे पता था कि लोकेश का कोयले का बड़ा व्यवसाय है. उस ने सुनियोजित षडयंत्र रचा और पहली अप्रैल, 2022 की अपराह्नï सवा 2 बजे आर्यनगर में उन के घर पर पहुंच गया.

फैसले से परिजन दिखे संतुष्ट

डोरबैल बजाने पर रेनू ने दरवाजा खोल दिया. घर पर नौकरानी रेनू को देख कर उसे अपनी योजना पर पानी फिरते दिखा. लेकिन लालच में वशीभूत हो कर वह अपने को रोक नहीं सका. वह रेनू को पहले से ही जानता था, रेनू भी तरुण को जानती थी कि घर के दामाद हैं. तरुण रेनू से बिना कुछ कहे कमला देवी के कमरे में चला गया.

तरुण ने घटना को अंजाम दिया. रेनू द्वारा टोकने पर उस ने उसे भी घायल कर दिया. गर्भवती रेनू ने जब अपनी जान बख्शने की गुहार लगाई तो उसे धमकी दी कि घर में 2 बदमाशों द्वारा घटना करने की बात सभी को बताए और उस का नाम अपनी जुबान पर भूल से भी न लाए वरना उस का भी यही अंजाम कर देगा. इस के बाद अलमारी से नकदी व जेवर लूट कर वह भाग गया था.

तत्कालीन थाना उत्तर फिरोजाबाद के एसएचओ संजीव कुमार दुबे ने विवेचना कर आरोपी तरुण गोयल के खिलाफ कोर्ट में भादंवि की धारा 394, 302, 307, 506, 411 के अंतर्गत आरोप पत्र (चार्जशीट) दाखिल की थी. लगभग एक साल तक चले इस मुकदमे में अभियोजन पक्ष से 7 गवाहों को पेश किया गया. चश्मदीद गवाह रेनू शर्मा जो स्वयं भी पीडि़त थी, ने कोर्ट में अहम गवाही दी. फैसले में आरोपी तरुण गोयल को फांसी की सजा के बाद जेल भेज दिया गया.

अपर जिला एवं सत्र न्यायालय के विशेष न्यायाधीश (दस्यु प्रभावी क्षेत्र) आजाद सिंह ने अपने जजमेंट में लिखा है कि इस संबंध में मुजरिम तरुण गोयल से जब पूछा गया कि उस ने ये अपराध क्यों किया तो उस ने कहा, ‘मैं कर्ज के बोझ में दबा हुआ था और उस वक्त मेरे ऊपर शैतान हावी था.’

बचाव पक्ष की ओर से अधिवक्ता लियाकतत अली (विधि सहायक) ने जबकि अभियोजन पक्ष की ओर से डीजीसी (क्राइम) राजीव प्रियदर्शी तथा विशेष लोक अभियोजक अजय कुमार शर्मा ने पैरवी की. हत्यारे को फांसी की सजा दिलाने के लिए कमला देवी के परिवार के सदस्यों ने संघर्ष किया था.

फिलहाल तरुण गोयल जिला जेल में अपने किए की सजा भुगत रहा है. तरुण द्वारा घटना को अंजाम दिए जाने के बाद से उस के किसी भी परिजन ने अब तक उस की ओर से मुकदमे में पैरवी नहीं की और न जमानत कराई, साथ ही कोई भी परिजन उस से मिलने कोर्ट तक नहीं आया. घटना के बाद एक साल से वह जेल में ही था.

कथा न्यायालय के जजमेंट और जिला लोक अभियोजक (क्राइम) राजीव प्रियदर्शी व विशेष लोक अभियोजक (क्राइम) अजय कुमार शर्मा से बातचीत पर आधारित.

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