Hindi Stories: नन्ही की ‘सपना’

Hindi Stories: नन्ही थी तो लड़की, पर उस का कामधाम ही नहीं सोच और बातव्यवहार भी लड़कों जैसा था. शायद इसीलिए उस ने लड़के से नहीं लड़की से शादी की.

उत्तर प्रदेश के जिला कासगंज के कस्बा सोरों की रहने वाली केला देवी अपनी बेटी नन्ही की शादी के लिए बहुत ज्यादा परेशान थीं, क्योंकि बाकी उन के सभी बच्चों की शादियां हो चुकी थीं. पति राम सिंह की मौत बरसों पहले हो चुकी थी. उस की सोरों में परचून की दुकान थी. उस के 5 बेटों में 2 बेटे दिल्ली में नौकरी करते थे, बाकी के 3 सोरों में ही अपना काम करते थे. बेटी नन्ही बचपन से ही दुकान पर बैठ कर पिता की मदद करती थी. घर में पढ़ाई का माहौल नहीं था, इसलिए राम सिंह का कोई भी बच्चा पढ़ालिखा नहीं था. लेकिन नन्ही ऐसी थी, जो दस्तखत कर लेती थी.

पिता की मौत के बाद नन्ही ने दुकान की ही नहीं, घरपरिवार की भी सारी जिम्मेदारी संभाल ली थी. उसी ने दुकान की कमाई से 2 बड़ी बहनों की शादियां कीं. वह बचपन से ही लड़कों वाले काम करती थी, इसलिए लड़कों की ही तरह रहती थी. कपड़े भी वह उन के जैसे ही पहनती थी. बातचीत का लहजा भी उस का लड़कों जैसा ही था. यह सब देख कर यही लगता था, जैसे वह खुद को लड़की न समझ कर लड़का समझती है.

केला देवी जब भी उस से शादी की बात करती, वह साफ मना कर देती. लेकिन मां को तो उस की शादी की चिंता थी, क्योंकि वह जवान हो चुकी थी. अब भी वही दुकान पर बैठती थी. लोग उसे बचपन से ही दुकान पर बैठती देखते आए थे, इसलिए किसी को इस में कुछ अजीब नहीं लगता था. दुकानदारी में नन्ही काफी कुशल थी. वह त्योहारों का सामान तो लाती ही थी, गर्मियों में बर्फ भी बेचती थी. वह दुकान पर काफी मेहनत करती थी. करीब 2 साल पहले की बात है. केला देवी ने जाहरबीर बाबा को जात चढ़ाने का विचार किया. इस के लिए उस ने भानपुर नगरिया के रहने वाले अमरीश से बात की. वह अपनी विधवा मां और भाईबहनों के साथ रहता था. जाहरबीर बाबा का स्थान राजस्थान के बागड़ में पड़ता है.

बात कर के केला देवी नन्ही तथा अन्य घर वालों को साथ ले कर अमरीश के साथ बाबा जाहरबीर की जात चढ़ाने के लिए चल पड़ी. अमरीश के साथ उस की मां और 17 वर्षीया बहन सपना भी गई थी. पूरे एक सप्ताह का प्रोग्राम था, इसलिए सभी वहां एक धर्मशाला में ठहरे. नन्ही खुश थी कि कुछ दिनों के लिए दुकान से छुट्टी मिल गई है. लेकिन यहां उस की नजर अमरीश की बहन सपना पर पड़ी तो उसी पर जम कर गई.

सपना उस समय साथ आए लोगों को पानी पिला रही थी. नन्ही ने उसे इशारे से बुला कर कहा, ‘‘सब को तो पानी पिला रही हो, मुझे नहीं पिलाओगी क्या?’’

‘‘क्यों नहीं पिलाऊंगी. आखिर हम तुम्हारे साथ ही तो आए हैं. तुम्हें प्यासा कैसे रख सकती हूं.’’ कह कर सपना ने पानी का गिलास नन्ही की ओर बढ़ाया तो उस ने गिलास के बजाय उस का हाथ पकड़ लिया. सपना ने हैरानी से उसे घूरते हुए कहा, ‘‘यह क्या कर रही हो?’’

‘‘तुम्हारा हाथ देख रही हूं, कितना सुंदर और मुलायम है.’’

नन्ही की बात सपना को अटपटी लगी. वह कुछ सोच रही थी कि नन्ही ने दूसरे हाथ से गिलास थाम कर उसे अपनी ओर खींचा तो वह उस की गोद में आ गिरी. इस के बाद सपना का चेहरा अपनी ओर घुमा कर बोली, ‘‘यार, तुम सचमुच बहुत खूबसूरत हो. मेरे सपनों में आने वाली हसीना की तरह.’’

सपना खुद को संभालते हुए जल्दी से उठ कर बोली, ‘‘लगता है, फिल्में बहुत देखती हो, तभी इस तरह के डायलौग बोल रही हो.’’

‘‘फिल्में देखने की फुरसत कहां है. लेकिन तुम्हारे चेहरे पर जो लिखा है, उसे पढ़ना फिल्म देखने जैसा ही है.’’

नन्ही की बातें सपना की समझ में नहीं आईं. वह खाली गिलास ले कर चली गई, साथ ही नन्ही के दिल का करार भी ले गई. नन्ही को लगा, सपना ही वह लड़की है, जिसे वह जीवनसाथी के रूप में अपना सकती है. नन्ही सपना के करीब आने की कोशिश करने लगी. लेकिन वह जानती थी कि सपना को दिल की बात समझाना आसान नहीं है. इस के बावजूद उस की नजरें सपना पर ही टिकी रहती थीं. हमेशा वह उसे अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश करती रहती थी. उसे अपने दिल की बात समझाना चाहती थी. वह उसे बताना चाहती थी कि देखने में भले ही वह लड़की है, लेकिन मन से वह पुरुष है. सपना उसे लड़की समझ रही थी, इसलिए उस की ओर खास ध्यान नहीं दे रही थी.

वह अपने साथ आए लोगों की सेवा में लगी रहती थी. जबकि नन्ही दिल की बात उस तक पहुंचाने के लिए परेशान थी. वह सपना से प्यार करने लगी थी और यह बात उस तक पहुंचाना चाहती थी. धर्मशाला में सब के सामने यह बात कही नहीं जा सकती थी. इसलिए एक दिन वह घूमने के बहाने सपना को एकांत में ले गई. उसे बगल में बैठा कर बांहों में जकड़ लिया तो सपना घबरा कर बोली, ‘‘तुम तो लड़कों जैसी हरकतें करती हो. मुझे अब तुम से डर लगने लगा है.’’

‘‘तुम ने सही समझा. मैं सिर्फ देखने में लड़की हूं, बाकी सोच लड़कों वाली है. मैं तुम से प्यार करने लगी हूं. तुम्हें देख कर मेरी आंखों को बहुत सुकून मिलता है.’’ कह कर उस ने सपना की कलाई थाम ली. सपना को उस का यह स्पर्श किसी पुरुष का लगा, इसलिए उस का शरीर सिहर उठा. उस ने हैरानी से नन्ही की ओर देखा, इस के बाद अपना हाथ छुड़ा कर बोली, ‘‘लड़की भी कहीं लड़की से प्यार कर सकती है?’’

‘‘जब तुम भी मुझे प्यार करने लगोगी तो तुम्हें पता चल जाएगा कि एक लड़की दूसरी लड़की से कैसे प्यार कर सकती है.’’

‘‘अब हमें चलना चाहिए. सब इंतजार कर रहे होंगे.’’ कह कर सपना उठ खड़ी हुई.

‘‘वादा करो, फिर मिलोगी?’’

‘‘हां मिलूंगी.’’ कह कर सपना धर्मशाला की ओर बढ़ी तो पीछेपीछे नन्ही भी चल पड़ी.

सपना परेशान थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. उस के दिल में नन्ही ने जो हलचल पैदा कर दी थी, उस से वह बेचैन थी. नन्ही उसे अपनी ओर खींच रही थी, जबकि वह लड़की थी. उस का दिल बेकाबू हो रहा था. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था. उस का दिल जिस तरह नन्ही को ले कर धड़का था, इस के पहले किसी लड़के को ले कर भी नहीं धड़का था. सपना 17 साल की थी. पर गरीब घर की बिना बाप की बेटी को मां ने नसीहतें देदे कर इतना बड़ा किया था. इसलिए अब तक वह किसी लड़के के करीब नहीं आई थी. उसे पुरुष के स्पर्श का कोई अनुभव नहीं था. लेकिन नन्ही के स्पर्श ने उस के तनमन को झकझोर दिया था.

उस रात सभी सोने के लिए लेटे तो नन्ही ने इशारे से सपना को बुलाया और अपने बगल लिटा लिया. दोनों लड़कियां थीं, इसलिए किसी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया. उस रात दोनों काफी करीब आ गईं. अगले दिन लौटना था, सपना अपने घर चली गई तो नन्ही अपने घर आ गई. लेकिन अब नन्ही का मन काम में बिलकुल नहीं लग रहा था. वह सपना से मिलने का बहाना खोजने लगी. नन्ही जानती थी कि 2 लड़कियों की दोस्ती पर किसी को ऐतराज नहीं होगा, लेकिन जब लोगों को उन की नजदीकियों का पता चलेगा तो जरूर तूफान आ जाएगा. नन्ही को एक डर यह भी था कि कहीं सपना का मन बदल न जाए. नन्ही को पता था कि नगरिया में सपना की एक मौसी रहती हैं. सपना से मिलने में परेशानी न हो, एक दिन वह उस की मौसी के यहां गई और मौसी की बेटी से दोस्ती कर ली. उसी के माध्यम से सपना और उस की मुलाकातें होने लगीं.

धीरेधीरे दोनों को प्यार रास आने लगा. नन्ही सपना की हर जरूरतें पूरी करने लगी. अब वह कभीकभी सपना के घर भी जाने लगी. तब ओमवती ने सपने में भी नहीं सोचा था कि इन दोनों लड़कियों के बीच क्या चल रहा है. वह गांव की औरत थीं, उन्हें मालूम ही नहीं था कि ऐसा भी होता है. पहले तो सब सामान्य लग रहा था. कुछ दिनों बाद नन्ही ने सपना को एक मोबाइल फोन दिलवा दिया, जिस से उसे बात करने में तो आसानी हो ही गई, मिलने में भी आसानी हो गई. जरूरत पड़ने पर नन्ही ओमवती की आर्थिक मदद भी कर देती थी.

लेकिन सच्चाई को लाख छिपाया जाए, उजागर हो ही जाती है. एक दिन ओमवती ने सपना और नन्ही को कुछ इस स्थिति में देख लिया कि सन्न रह गई. इस के बाद उस की समझ में आ गया कि नन्ही उस की बेटी पर इतना मेहरबान क्यों है. उस ने नन्ही से साफसाफ कह दिया, ‘‘तुम्हारा हमारे घर आना किसी को अच्छा नहीं लगता, इसलिए तुम हमारे यहां मत आया करो.’’

‘‘लेकिन चाची मैं ने किया क्या है? सपना मेरी दोस्त है, उस से मिलने आ जाती हूं. इस में गलत क्या है?’’

‘‘यह सब मैं नहीं जानती. बस तुम समझ लो कि मेरे घर कोई मर्द नहीं है. मुझे पड़ोसियों का ही सहारा है. मुझे उन्हीं की मदद से बेटी की शादी करनी है.’’

‘‘चाची, आप पड़ोसियों की इतनी चिंता क्यों करती हैं. मुझे सपना और आप से हमदर्दी है, इसलिए चली आती हूं. अगर आप को मेरा आना अच्छा नहीं लगता तो नहीं आऊंगी.’

‘‘यही हम दोनों के लिए अच्छा रहेगा.’’ ओमवती ने कहा.

मां के इस व्यवहार से सपना तड़प उठी. उस ने कहा, ‘‘मां, तुम नन्ही से यह क्या कह रही हो? वह हमारी कितनी मदद करती है.’’

ओमवती ने बेटी को डांटा. तभी गांव का रहने वाला महिपाल आ गया. उस ने कहा, ‘‘ओमवती इस चिडि़या के पर उग आए हैं. लगता है, उन्हें काटना पड़ेगा.’’

महिपाल की बात सुन कर नन्ही बोली, ‘‘खबरदार, सपना को कुछ कहा तो अच्छा नहीं होगा. मैं तुम्हारी हरकतों को अच्छी तरह जानती हूं. मैं यह भी जानती हूं कि तुम्हारी नजर सपना पर है. लेकिन याद रखना, अगर सपना को कोई नुकसान पहुंचा तो मैं तुम्हें छोड़ूंगी नहीं.’’

नन्ही के तेवर देख कर महिपाल घबरा गया. उस के दिल में चोर तो था ही, वह ओमवती और सपना के चक्कर में वहां आता था.

इस घटना के बाद नन्ही गंभीर हो गई. उसे लगा कि सपना की मां और महिपाल उस की राह में रोड़ा बन सकते हैं. कई दिनों तक सपना और नन्ही की न तो मुलाकात हुई और न ही फोन पर बातें हो सकीं. एक दिन सपना ने फोन कर के बताया कि मां ने फोन छीन लिया है, इसलिए वह फोन नहीं कर पाई. उस ने रोरो कर कहा कि उसे घर में कैद कर दिया गया है. महिपाल मम्मी से कह रहा था कि वह जल्दी से उस की शादी करा दे. अब वही कुछ करे, यहां उस का दम घुटता है.

‘‘तुम चिंता मत करो सपना, मैं जल्दी ही कुछ करती हूं. मैं तुम्हें उस नरक से जल्दी ही निकालती हूं.’’ नन्ही ने कहा.

ओमवती ने सपना के लिए लड़के की तलाश शुरू कर दी थी. उसे सपना के लिए लड़का मिल भी गया था. सपना को जब पता चला कि मां ने उस के लिए लड़का पसंद कर लिया है तो उस ने नन्ही को फोन कर के सारी बात बता कर कहा, ‘‘तुम जल्दी से मुझे यहां से निकालो वरना ये लोग मेरी शादी कर देंगे.’’

18 अप्रैल, 2015 को लड़के वालों को ओमवती के घर आना था. उसी दिन गोद भराई भी होनी थी. नन्ही सोच में पड़ गई कि अब क्या किया जाए. उस ने तुरंत निर्णय लिया और अपने शुभचिंतकों से बात कर के सपना को फोन किया कि वह 14 अप्रैल को घर से बाहर मिले, उस के बाद वह सब संभाल लेगी. इसी बीच नन्ही ने वकील से भी बात कर ली थी. ओमवती गोद भराई की तैयारी में जुटी थी. इस चक्कर में उस का ध्यान सपना के ऊपर से हट गया था. वह खुश थी कि सपना की शादी के बाद नन्ही से छुटकारा मिल जाएगा. 14 अप्रैल को योजना के अनुसार, सुबह 8 बजे के करीब सपना घर से निकल गई. उस समय अमरीश पड़ोसी गांव में गया हुआ था तो ओमवती घर के काम में लगी थी.

अचानक ओमवती को सपना की याद आई तो वह उसे कहीं दिखाई नहीं दी. उसे लगा कि पड़ोस में गई होगी. लेकिन जब वह पड़ोसियों के यहां भी नहीं मिली तो ओमवती को चिंता हुई. उस ने अमरीश और महिपाल को उस की तलाश में लगा दिया. जब सपना गांव में नहीं मिली तो सभी को यही लगा कि सपना नन्ही के यहां होगी. ओमवती ने केला देवी को फोन किया तो पता चला कि सपना वहां भी नहीं थी. नन्ही भी 2 दिनों से घर से गायब थी.

ओमवती परेशान हो गई. लड़के वाले आएंगे तो वह उन से क्या कहेगी. अगले दिन थाने गई और पूरी बात थानाप्रभारी सुरेशचंद्र को बताई. उन्होंने सपना के बारे में पता करने का आश्वासन दे कर उसे घर भेज दिया. वह सपना के बारे में पता करते 18 अप्रैल को नन्ही सपना के साथ थाना सोरो पहुंची और थानाप्रभारी को एक एफीडेविट दिया, जिस के अनुसार दोनों ने विवाह कर लिया था. उसे पढ़ कर सुरेशचंद्र हैरान रह गए. सोरों जैसे छोटे से कस्बे में समलैंगिक शादी हो सकती है, वह सोच भी नहीं सकते थे.

थानाप्रभारी ने नन्ही को घूर कर देखा तो वह बोली, ‘‘साहब, हम दोनों ने शादी की है, कोई जुर्म नहीं किया है. अब हम साथ रहना चाहते हैं.’’

‘‘लेकिन यह शादी कैसे..?’’ सुरेशचंद्र कुछ और कहते, सपना ने कहा, ‘‘हम दोनों बालिग हैं. हमें भी अपनी मरजी से जीने का हक है. अब कोई हमारी जिंदगी में कैसे दखल दे सकता है.’’

सुरेशचंद्र ने फोन द्वारा ओमवती को सूचना दी. थोड़ी ही देर में दोनों लड़कियों के घर वाले थाने आ गए. बात थाने से बाहर भी पहुंच गई. कस्बे के लिए यह एक अजूबा था, लोग थाने में जुटने लगे.

दोनों पक्षों में बहस होने लगी. ओमवती सपना को अपने साथ ले जाना चाहती थी. उस ने थानाप्रभारी के आगे हाथ जोड़ कर कहा कि आज लड़के वाले उस की बेटी को देखने आने वाले हैं. अगर बेटी घर नहीं गई तो उस की बड़ी बदनामी होगी.

लेकिन सपना ने कहा कि उस की शादी तो नन्ही के साथ हो चुकी है, अब वह दूसरी शादी क्यों करेगी.

‘‘यह कैसी बेहयाई है. भला 2 लड़कियां भी शादी कर सकती हैं?’’ ओमवती ने रोते हुए कहा, ‘‘इस शादी का क्या भविष्य होगा?’’

भीड़ में चखचख होने लगी थी. पुलिस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह इस मामले में क्या करे. दोनों लड़कियां बालिग थीं. उन पर दबाव भी नहीं डाला जा सकता था. भारत में समलिंगी विवाह को कानूनी मान्यता नहीं है, लेकिन उन्हें साथ रहने से रोका नहीं जा सकता था. सुरेशचंद्र ने ओमवती से कहा, ‘‘भई लड़कियां बालिग हैं, इसलिए हम उन पर दबाव नहीं डाल सकते. ये जहां चाहे, वहां जा सकती हैं. तुम भी जबरदस्ती नहीं कर सकती. अगर तुम अपनी बेटी को घर ले जाना चाहती हो तो तुम्हें अदालत जाना होगा.’’

ओमवती ने अपना सिर पीट लिया. पति की मौत के बाद वह वैसे ही परेशानियों से जूझ रही थी. उस के 5 बेटे और 3 बेटियां थीं. सपना उस की सब से प्रिय बेटी थी. पर उसी ने उसे गहरा आघात पहुंचाया था. 2 लड़कियों के बीच भी शारीरिक संबंध हो सकते हैं, उस ने पहली बार जानासुना था. पुलिस ने सपना को नन्ही के साथ जाने की इजाजत दे दी. दोनों खुशीखुशी घर आ गईं. सपना अब नन्ही की पत्नी थी. सपना ने नन्ही के नाम का मंगलसूत्र पहन कर मांग में सिंदूर भर लिया. नन्ही को किसी की भी परवाह नहीं थी. उस का कहना था कि वह सपना को जान से ज्यादा प्यार करती है, इसलिए उस से शादी कर ली. रही बात समाज की तो वह किसी को कुछ नहीं देता, सिर्फ परेशान करता है.

किसी को उस की मरजी से न रहने देता है, न जीने देता है. वह सपना के साथ जीना चाहती है. रही बात बच्चे की तो वह कोई बच्चा गोद ले लेगी. नन्ही ने सपना से शादी कर के मां का सपना पूरा कर दिया. उस की मां को इस में कुछ गलत नहीं दिखाई देता. क्योंकि नन्ही उस के लिए लड़की नहीं, लड़के की तरह है. उस ने सपना को बहू के रूप में स्वीकार कर लिया है. अब देखना है कि इस शादी का भविष्य क्या होगा? फिलहाल कथा लिखे जाने तक सपना ससुराल में थी और उस का मायके जाने का कोई इरादा नहीं था. नन्ही ही अब उस का सब कुछ है, वही उस का भविष्य संवारेगी, ऐसा उसे विश्वास है. Hindi Stories

 

Film Story: तनु वेड्स मनू रिटर्न्स – कंगना का नया रूप

Film Story: कंगना रनौत ने ‘तनु वेड्स मनु’ में अपने अभिनय के विभिन्न रंगों से दर्शकों का मन मोह लिया था. अब ‘तनु वेड्स मनु रिटर्न्स’ में वह दोहरी भूमिका में हैं, वह भी पहली फिल्म से बेहतरीन अभिनय के साथ. रंगमंच हो या सिनेमा, अभिनय करना आसान नहीं होता. भूमिका चाहे जैसी भी हो, जो जितना अच्छा अभिनय करेगा, उसे उतना ही ज्यादा पसंद किया जाएगा, सराहा जाएगा. लेकिन यह भी सच है कि अच्छे अभिनय के अच्छे परिणाम सही मायने में तभी सामने आते हैं जब कहानी में दम हो और डाइरैक्टर अपनी कला में माहिर.

एक बात और, खूबसूरती और स्मार्टनेस अच्छे अभिनय को सजासंवार तो सकती हैं लेकिन उस की परिचायक नहीं हो सकतीं. उत्कृष्ट अभिनय के लिए संवेदनशीलता भी जरूरी है और परिपक्वता भी. संवेदनशीलता चेहरे के भावों की उत्प्रेरक बनती है तो परिपक्वता संवाद अदायगी के उतारचढ़ावों में रवानगी लाती है. बौलीवुड की चर्चित अभिनेत्री कंगना रनौत में वे सारे गुण हैं, जो किसी अच्छी अदाकारा में होने चाहिए. मासूमियत से भरा खूबसूरत चेहरा, स्लिम बौडी, भाषा और भावों पर पकड़ और संवाद अदायगी का अपना अलग अंदाज. निस्संदेह उन की मासूमियत उन के अभिनय को एक नया आयाम देती है. प्रकृतिप्रदत्त अपने इसी गुण से उन्होंने दर्शकों का मन मोहा है.

‘तनु वेड्स मनु’ की मासूमियत भरी चंचलता से ओतप्रोत तनुजा त्रिवेदी यानी तनु रही हो या ‘क्वीन’ की कहीं बुझीसहमी सी तो कहीं बिंदास नजर आने वाली रानी मेहरा, कंगना रनौत ने अपने अभिनय को कूची बना कर फिल्मी कैनवस पर इन किरदारों में जो रंग भरे हैं, उन्होंने दोनों फिल्मों को अद्वितीय बना दिया है.

‘तनु वेड्स मनु’ ने जहां कंगना के अभिनय को एक नई ऊंचाई दी, वहीं ‘क्वीन’ के शानदार अभिनय ने उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का नेशनल अवार्ड दिलाया. एक ही क्या, 45 दिन के शेड्यूल में बनी इस फिल्म को 6 कैटगरी में फिल्मफेयर अवार्ड और 2 में नेशनल अवार्ड मिले. कंगना रनौत के कंधों पर खड़ी यह फिल्म बिजनैस के मामले में भी पीछे नहीं रही. इस फिल्म की कुल लागत 12 करोड़ 5 लाख थी, जबकि बौक्स औफिस पर इस ने  97 करोड़ रुपए कमाए.

विकास बहल द्वारा निर्देशित ‘क्वीन’ की कहानी फिल्मी नजरिए से अलग तो नहीं थी लेकिन लीक से थोड़ी हट कर जरूर थी. दिल्ली के एक हलवाई की बेटी रानी मेहरा का विजय के साथ रिश्ता हो चुका है और दोनों की शादी होने वाली है. शादी की तैयारियां हो चुकी हैं लेकिन विजय ऐन मौके पर यह कह कर शादी करने से इनकार कर देता है कि उन दोनों का मैच सही नहीं है. दरअसल, रानी परंपराओं से बंधे आम परिवार की सामान्य सी लड़की है जबकि विजय को विदेश जाना है, जिस की वजह से वह ऐसी लड़की चाहता है जो विदेश में उस के साथ एडजस्ट कर सके.

आखिर ऐन वक्त पर रानी की शादी टूट जाती है और वह एक दिन के लिए खुद को कमरे में बंद कर लेती है. इस से उस का पूरा परिवार दुखी होता है. शादी के बाद रानी और विजय का पेरिस जाने का हनीमून टुअर पहले से तय था. बुकिंग रानी के पिता पहले ही करा चुके हैं. अगले दिन रानी अपने परिवार से कहती है कि उसे अकेले ही अपने हनीमून पर जाने दिया जाए. थोड़ी जद्दोजहद के बाद रानी अकेले ही पेरिस जाती है, जहां उस की मुलाकात भारतीय मूल की फ्रेंच लड़की विजयलक्ष्मी से होती है जो उसी होटल में काम करती है जहां रानी ठहरी है.

कहानी में ट्विस्ट तब आता है जब होटल के बाहर घूमने निकली रानी एक लुटेरे के हाथों लूटपाट का शिकार हो जाती है. इस के बाद रानी इंडिया लौटने की सोचती है. विजयलक्ष्मी उस की मदद के लिए तैयार हो जाती है पर साथ ही कहती है कि जाने से पहले वह पूरा पेरिस घूम ले. चूंकि रानी के पास पैसा नहीं है, इसलिए उसे एम्सटर्डम के एक होस्टल में जापान के टाका, फ्रांस के टिम और रूस के अलेक्जेंडर के साथ रूम शेयर करना पड़ता है. तीनों युवक रानी के साथ बड़ी आत्मीयता से पेश आते हैं.

आगे की कहानी रानी के संघर्ष की कहानी है, जिस में वह एक शैफ की चुनौती स्वीकार कर के अपने विदेशी दोस्तों की मदद से भारतीय अंदाज में गोलगप्पे बनाती और बेचती है. इस चुनौती में वही जीतती भी है. इस बीच विजय को भेजी गई रानी की सेल्फी से उसे पता लग जाता है कि रानी एम्सटर्डम में है. अब तक रानी में आत्मविश्वास आ चुका है. विजय एम्सटर्डम आ कर रानी से मिलता है और फिर से रिलेशनशिप की बात करता है, लेकिन रानी इनकार कर देती है. बाद में रानी इंडिया अपने घर लौट आती है. विजय भी वापस आ जाता है.

रानी विजय के घर जाती है. उसे देख कर विजय सोचता है कि रानी ने उसे माफ कर दिया है. तभी उस की नजर रानी के हाथ पर पड़ती है. उस की अंगुली में एंगेजमेंट रिंग देख कर विजय थैंक्यू बोलता है और रानी चेहरे पर विजयी मुसकराहट लिए घर लौट आती है. निस्संदेह क्वीन की पूरी कहानी रानी यानी कंगना रनौत के इर्दगिर्द घूमती है और उन्होंने अपनी भूमिका को बड़ी शिद्दत से निभाया है. इस फिल्म का गाना ‘पूरा लंदन ठुमकदा…’ फिल्म की यूएसपी है.

बात अगर आनंद एल. राय द्वारा निर्देशित ‘तनु वेड्स मनु’ की करें तो 2011 में आई इस फिल्म की कहानी मनोज शर्मा उर्फ मनु (आर. माधवन) और तनुजा त्रिवेदी उर्फ तनु (कंगना रनौत) के इर्दगिर्द घूमती है. एनआरआई डा. मनोज शर्मा किसी संस्कारवान भारतीय लड़की से शादी करना चाहता है. इस के लिए वह इंडिया आता है और अपने परिवार व दोस्त पप्पी के कहने पर कानपुर की तनु से मिलने के लिए तैयार हो जाता है. तनु का परिवार भी उस की शादी किसी समृद्ध परिवार में करना चाहता है. मनोज उर्फ मनु अपने परिवार और दोस्त पप्पी के साथ तनु को देखने उस के घर आता है.

दोनों परिवारों में खुशीखुशी सौहार्दपूर्ण वातावरण में बात होती है. लेकिन जब तनु को देखने की बात आती है तो तनु की मां उसे बीमार बता कर अगले दिन मिलने को कहती हैं. वजह यह कि तनु उस समय नशे में है. डा. मनु उसे देखने के बहाने सीढि़यां चढ़ कर ऊपर जाता है. तनु को उस के आने का पता चलता है तो वह साड़ी पहन कर बैठ जाती है और मनु से घूंघट की आड़ से बात करती है. मनु समझ जाता है कि वह नशे में है. इस के बावजूद मनु तनु को पसंद कर लेता है और उसे मन ही मन चाहने लगता है. जबकि मनु के मन में उस के लिए कोई फीलिंग्स नहीं हैं. बहरहाल, दोनों परिवार शादी के लिए तैयार हो जाते हैं.

इसी बीच दोनों परिवार एक तीर्थयात्रा पर जाते हैं. यात्रा के दौरान ट्रेन में तनु मनु से कहती है कि वह किसी और से प्यार करती है, इसलिए उस से शादी नहीं कर सकती. यहां तक कि वह नशे की गोलियां ले कर उस से यह कह देती है कि उस के सीने पर उस के बौयफ्रैंड के नाम का टैटू गुदा है, इसलिए वह शादी से इनकार कर दे. ऐसा ही होता भी है. मनु तनु को पसंद करने के बावजूद उस से शादी करने से इनकार कर देता है. इस से मनु के परिवार को काफी दुख होता है.

डा. मनु शादी के लिए कई लड़कियों से मिलता है, लेकिन वह तनु को नहीं भूल पाता. जिन लड़कियों से वह मिलता है, उन में राजा (जिमी शेरगिल) की बहन आयुषि भी है जिस के एक हाथ में कुछ प्रौब्लम है. राजा छोटामोटा बदमाश है. राजा मनु से कहता है कि वह आयुषि से शादी कर ले, लेकिन मनु यह कह कर इनकार कर देता है कि वह किसी और से प्यार करता है. राजा ही वह शख्स है जो रानी से प्यार करता है. इस के बावजूद राजा और मनु दोनों एकदूसरे के काफी करीब आ जाते हैं.

डा. मनु लंदन लौटने का फैसला कर लेता है. तभी राजा उसे बताता है कि वह एक लड़की से प्यार करता है और उस के साथ भाग कर शादी करना चाहता है. इस काम में वह मनु से मदद करने को कहता है. तनु भी मनु को बताती है कि उस का प्रेमी आ रहा है और वह उस के साथ कोर्ट में जा कर शादी कर लेगी. मनु शादी के लिए कपड़े वगैरह खरीदने में तनु की मदद करता है. अगले दिन राजा जब तनु को लेने आता है तो मनु को पता चलता है कि तनु का प्रेमी राजा है. तनु और राजा भाग कर शादी के लिए कोर्ट जाते हैं लेकिन पेन न मिलने की वजह से दोनों की शादी नहीं हो पाती. फलस्वरूप दोनों को अपनेअपने घर लौटना पड़ता है.

पंजाब में पप्पी के एक दोस्त जस्सी की शादी है. वह मनु को भी पंजाब जाने के लिए तैयार कर लेता है. जिस लड़की पायल (स्वरा भास्कर) से जस्सी (एजाज खान) की शादी हो रही है, वह तनु की दोस्त है इसलिए वह भी शादी में आती है. शादी में मनु और तनु की फिर से मुलाकात होती है. वहां पर मनु तनु के विभिन्न मुद्राओं में फोटोग्राफ खींचता है. वापस लौटने पर राजा मनु से कहता है कि वह तनु को भगा कर शादी नहीं करना चाहता इसलिए वह उस की और तनु की शादी के लिए तनु के पिता को राजी करे. मनु कोशिश करता है तो तनु के पिता शादी के लिए तैयार हो जाते हैं. फलस्वरूप दोनों तरफ शादी की तैयारियां शुरू हो जाती हैं.

मनु इस मौके पर गिफ्ट के रूप में तनु को एक बड़ा सा पोस्टर भेंट करता है, जिस पर उस के द्वारा विभिन्न मौकों पर खींची गईं उस की तसवीरें चिपकी हुई हैं. उस पोस्टर को देख कर तनु को महसूस होता है कि मनु उसे प्यार करता है. तनु की दोस्त पायल भी उसे एहसास कराती है कि वह मनु को प्यार करने लगी है. यहां नाटकीय घटनाक्रम के तहत तनु डा. मनु से शादी के लिए तैयार हो जाती है. दूसरी ओर राजा को पुलिस गिरफ्तार कर लेती है. लेकिन जब मनु तनु से शादी करने के लिए बारात ले कर आता है तो ऐन वक्त पर राजा भी बारात ले कर आ जाता है. वह मनु को जान से मार डालने की धमकी देता है. पर जब वह मनु के प्रति तनु के प्यार को देखता है तो दोनों के रास्ते से हट जाता है. तनु और मनु की शादी हो जाती है.

इस फिल्म में आर. माधवन की भूमिका कंगना रनौत से कमतर थी, इस के बावजूद उन्होंने अपने अभिनय से डा. मनु के किरदार में जान डालने में कोई कमी नहीं रहने दी. कंगना रनौत का अभिनय तो था ही बेमिसाल. इस फिल्म में उन के अभिनय के कई आयाम देखने को मिले. कहीं मासूम, कहीं बिंदास, कहीं बिगड़ी हुई लड़की तो कहीं वह चंचलता से ओतप्रोत नजर आईं. हर रूप में कंगना ने अपने अभिनय से मन को मोहने वाले रंग भरे. यह उन के अभिनय का ही दम था कि 17 करोड़ 5 लाख में बनी इस फिल्म ने 56 करोड़ रुपए की कमाई की.

4 साल बाद आनंद एल. राय अब ‘तनु वेड्स मनु रिटर्न्स’ ले कर आए हैं. स्टारकास्ट लगभग पुरानी ही है लेकिन कहानी आगे की है, जिस में कंगना डबल रोल में हैं. ‘तनु वेड्स मनु’ की कहानी जहां खत्म हुई थी, ‘तनु वेड्स मनु रिटर्न्स’ की कहानी वहीं से शुरू होती है. दरअसल, लंदन जा कर डा. मनु अपने काम में व्यस्त हो जाता है. तनु वहां जा कर शुरू में तो खुश रहती है लेकिन धीरेधीरे ऊबने लगती है. इस बीच वह पूरी तरह अंगरेजी मेम बन चुकी है. जब वह बुरी तरह ऊब जाती है तो भारत लौट आती है. डा. मनु को भी उस के पीछेपीछे भारत आना पड़ता है. मनु चूंकि विदेश में रह कर लौटी है इसलिए उस के नखरे अंगरेजी मेम से भी ज्यादा हैं.

कहानी में ट्विस्ट तब आता है जब तनु और मनु की मुलाकात ठेठ हरियाणवी खिलंदड़ लड़की दत्तो से होती है, जो कंगना रनौत की ही दूसरी भूमिका है. यानी एक ओर विदेश से लौटी देसी मेम और दूसरी ओर ठेठ हरियाणवी लड़की. चूंकि नायक एक ही है, इसलिए मजेदार सिचुएशन में दोनों का टकराव स्वाभाविक ही है. इस रोमांटिक कौमेडी फिल्म में सारा जलवा कंगना रनौत का ही है. जाहिर है बेस्ट हीरोइन का नेशनल अवार्ड जीतने के बाद कंगना रनौत का कौंफीडेंस लेवल भी बढ़ गया है इसलिए निस्संदेह उन्होंने पहली फिल्म ‘तनु वेड्स मनु’ से भी बेहतरीन अभिनय किया है, खासकर दत्तो वाली भूमिका में.

इस किरदार में कहीं वह मस्ती में मंदमंद बहती बयार सी लगती हैं तो कहीं पत्थरों से अठखेलियां करती चंचल पहाड़ी नदी सी. ठेठ हरियाणवी अंदाज को मासूमियत में पिरो कर उन्होंने जो अभिनय किया है, वह किसी का भी मन मोह लेगा. लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि उन्होंने विदेश से लौटी देसी मेम की भूमिका में कोई कमी छोड़ी है. दोनों ही भूमिकाओं में कंगना के अभिनय की उत्कृष्टता साफ नजर आती है. आर. माधवन का अभिनय ‘तनु वेड्स मनु’ जैसा ही गंभीर और आकर्षक है लेकिन ‘तनु वेड्स मनु रिटर्न्स’ में रनौत की दोहरी भूमिका के बीच उन की भूमिका कमतर है. फिर भी अपने अभिनय के बूते पर उन्होंने इस भूमिका के साथ पूरा न्याय किया है. Film Story

 

UP News: प्यार में खत्म हुई ‘सीमा’

UP News: नाबालिग सीमा अपने प्रेमी प्रभु के साथ भाग गई थी. पुलिस ने सीमा को बरामद कर के प्रभु को गिरफ्तार भी कर लिया. इस के बावजूद जब सीमा की हत्या हो गई तो पुलिस को संदेह उस के घर वालों पर ही हुआ. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बरेली जनपद के थाना विशारतगंज के मोहल्ला वार्ड नंबर 11 में भूरे खां अपने परिवार के साथ रहता था. भूरे के परिवार में पत्नी नसीम, 6 बेटियां और 2 बेटे थे. इन में केवल सब से बड़ी सकीना का विवाह हुआ था, बाकी सभी अविवाहित थे.

इश्तियाक दिल्ली में किसी फैक्ट्री में नौकरी करता था. मुश्ताक भी कुछ दिनों तक दिल्ली में रहा था, लेकिन इधर वह घर पर ही रह रहा था. पूरा परिवार जरी का काम करता था, जिस से होने वाली कमाई से उन के घर का खर्च आसानी से चल रहा था. भूरे की 15 साल की बेटी सीमा किशोरावस्था की सीमा पार कर के जवानी की दहलीज पर कदम रख रही थी. जवानी की चमक से उस का रूपरंग दमकने लगा था. वह ज्यादा पढ़ीलिखी नहीं थी, इस के बावजूद उसे फिल्मों का जबरदस्त शौक था. उस की सहेलियां भी उसी जैसी सोच की थीं. इसलिए उन में जब भी बातें होतीं, फिल्मों और उन में दिखाए जाने वाले प्रेमसंबंधों को ले कर होतीं.

यह उम्र का ही तकाजा था कि सीमा को उन बातों में खूब मजा आता था. उस के दिल में भी उमंगें थीं, उस के ख्यालों में भी अपने चाहने वाले की तस्वीर थी. लेकिन यह तस्वीर कुछ धुंधली सी थी. उस की आंखें ख्यालों की तस्वीर के चाहने वाले की तलाश किया करती थीं. लेकिन काफी कोशिशों के बाद भी वह धुंधली तस्वीर साफ हो रही थी और न वह कहीं नजर आ रहा था. उस के आगेपीछे चक्कर लगाने वाले लड़के कम नहीं थे, लेकिन उन में से एक भी ऐसा नहीं था, जो उस के ख्यालों की तस्वीर में फिट बैठता.

2 साल पहले सीमा पिता भूरे के साथ एक रिश्तेदारी में बरेली के ही एक गांव रेवती गई. यह गांव उस के गांव से ज्यादा दूर नहीं था. लौटते समय वह रेवती रेलवे स्टेशन पर खड़ी ट्रेन का इंतजार कर रही थी, तभी एक वेंडर युवक पानी की बोतल बेचते हुए उस के पास से गुजरा. उस लड़के में सीमा ने न जाने क्या देखा कि उस का दिल एकदम से धड़क उठा. उस की निगाहें उस पर टिक कर रह गई. उस के दिल से आवाज आई, ‘सीमा यही है तेरा चाहने वाला.’

उस युवक का चेहरा आंखों के रास्ते दिल में पहुंचा तो उस के ख्यालों में बनी धुंधली तस्वीर, बिलकुल साफ हो गई. वह युवक जब तक उस की नजरों के सामने रहा, सीमा उसे एकटक निहारती रही. उसे अपनी ओर इस तरह निहारते देख वह युवक भी बारबार उसी को देखने लगा. जब उन की निगाहें आपस में मिल जातीं तो दोनों के होंठों पर मुसकराहट तैर उठती. ट्रेन आई तो सीमा पिता के साथ ट्रेन में बैठ गई. पूरे रास्ते उस की आंखें के सामने उसी युवक का चेहरा घूमता रहा.

वह विशारतगंज रेलवे स्टेशन पर ट्रेन से उतर कर स्टेशन से बाहर आई तो उस नवयुवक को एक अंडे की दुकान पर देखा. वह ग्राहकों को अंडे बेच रहा था. इस का मतलब वह दुकान उसी की थी. इस का मतलब युवक विशारतगंज का रहने वाला था. यह जान कर सीमा को काफी खुशी हुई. उस ने सोचा कि वह जब भी चाहेगी, उस युवक के बारे में पता कर के उस से मिल सकेगी. यह बात दिमाग में आते ही उसे काफी सुकून मिला. वह पिता के साथ घर आ गई.

सीमा ने जल्दी ही उस युवक के बारे में पता कर लिया. उस का नाम था प्रभु गोस्वामी. वह वार्ड नंबर 6 में रहता था. उस के पिता महेश की मौत हो चुकी थी. परिवार में मां और 2 छोटे भाई थे. घर प्रभु की ही कमाई से चल रहा था. रेलवे स्टेशन के पास वह अंडे की दुकान लगाता था, साथ ही स्टेशन और ट्रेन में पानी की बोतलें बेच लेता था. एक दिन सुबह प्रभु छत पर बैठा मौसम का आनंद ले रहा था, तभी अचानक उस के मोबाइल की घंटी बज उठी. इतनी सुबह फोन करने वाला उस का कोई दोस्त ही होगा, यह सोच कर वह मोबाइल स्क्रीन पर नंबर देखे बगैर ही बोला, ‘‘हां बोल?’’

‘‘जी, आप कोन बोल रहे हैं?’’ दूसरी ओर से किसी लड़की की मधुर आवाज आई तो प्रभु चौंका. उसे अपनी गलती का अहसास हुआ तो उस ने तुरंत ‘सौरी’ कहते हुए कहा, ‘‘माफ करना, दरअसल मैं ने सोचा कि इतनी सुबहसुबह कोई दोस्त ही फोन कर सकता है, इसीलिए… वैसे आप को किस से बात करनी है, आप कौन बोल रही हैं?’’

‘‘मैं सीमा बोल रही हूं. मुझे भी अपनी दोस्त से बात करनी थी. लेकिन लगता है नंबर गलत डायल हो गया है.’’

‘‘कोई बात नहीं, आप को अपनी दोस्त का नंबर सेव कर के रखना चाहिए. ऐसा करेंगी तो गलती नहीं होगी.’’

‘‘आप पुलिस में हैं क्या?’’

‘‘नहीं तो, क्यों?’’

‘‘बात तो पुलिस वालों की ही तरह कर रहे हो. सवाल के साथ सलाह भी.’’ कह कर सीमा जोर से हंसी.

‘‘अरे नहीं, मैं ने तो वैसे ही कह दिया. दोस्त आप की, फोन भी आप का. आप चाहें नंबर सेव करें या न करें.’’

‘‘आप बुजुर्ग हैं?’’ सीमा ने फिर छेड़ा.

‘‘जी नहीं, अभी मैं नौजवान हूं.’’

‘‘तब तो किसी न किसी के खास होंगे?’’

‘‘आप बहुत बातें करती हैं.’’

‘‘अच्छी या बुरी?’’

‘‘अच्छी.’’

‘‘क्या अच्छा है मेरी बातों में?’’

अब हंसने की बारी प्रभु की थी. वह जोर से हंसा फिर बोला, ‘‘माफ करना, मैं आप से नहीं जीत सकता.’’

‘‘और मैं माफ न करूं तो?’’

‘‘तो आप ही बताएं, मैं क्या करूं?’’ प्रभु ने हथियार डाल दिए.

‘‘अच्छा जाओ, माफ किया.’’

दरअसल, सीमा ने किसी तरह प्रभु का मोबाइल नंबर हासिल कर लिया था. सीमा के पास खुद का मोबाइल नहीं था. इसलिए उस ने अपनी सहेली का मोबाइल ले कर बात की थी. पहली ही बातचीत में दोनों काफी घुलमिल गए. उन के बीच कुछ ऐसी बातें हुईं कि दोनों ही एकदूसरे के लिए अपनापन महसूस करने लगे. इस के बाद उन के बीच अक्सर बातें होने लगीं. सीमा ने प्रभु को बता दिया था कि उस दिन उस ने अनजाने में नहीं, जानबूझ कर फोन किया था और वह भी उस का नंबर हासिल कर के. इतना ही नहीं, उन की मुलाकात भी हो चुकी है.

जब प्रभु ने मुलाकात के बारे में पूछा तो सीमा ने रेवती रेलवे स्टेशन पर हुई मुलाकात के बारे में बता दिया. प्रभु यह जान कर खुश हआ, क्योंकि उस दिन सीमा का खूबसूरत चेहरा आंखों के जरिए उस के दिल में उतर चुका था. इस के बाद दोनों की मुलाकातें होने लगीं. दिनोंदिन उन का प्यार प्रगाढ़ होता गया. सीमा दीवानगी की हद तक प्रभु को चाहने लगी थी. प्रभु इस बात को बखूबी जानता था, लेकिन उस के दिमाग में जातिधर्म की बात बैठी हुई थी, इसलिए उसे हमेशा सीमा को खो देने का डर सताता रहता था. प्रेम दीवानों के प्रेम की खुशबू जब जमाने तक पहुंचती है तो लोग उन दीवानों पर तमाम बंदिशें लगाने लगते हैं. यही सीमा के घर वालों ने भी किया.

सीमा का गैरधर्म के लड़के के साथ इश्क लड़ाना घर वालों को रास नहीं आया. उन्होंने सीमा पर प्रतिबंध लगाने शुरू कर दिए. लेकिन तमाम बंदिशों के बाद भी सीमा प्रभु से मिलने का मौका निकाल ही लेती थी. इसी बीच एक मुलाकात में प्रभु को उदास देखा. सीमा ने कारण पूछा, ‘‘तुम्हारे दिल में ऐसी क्या बात है, जिस की वजह से तुम्हारे चेहरे पर उदासी छाई है?’’

‘‘कुछ नहीं, तुम्हें ऐसे ही लग रहा है.’’ प्रभु ने टालने की कोशिश की.

‘‘मुझे ऐसे ही नहीं लग रहा, कोई बात है जिस की वजह से तुम उदास हो. तुम्हें मेरी कसम, बताओ क्या बात है?’’

‘‘सीमा मुझे डर है कि मैं तुम्हें खो न दूं.’’

‘‘क्यों, तुम्हें ऐसा क्यों लगता है?’’

‘‘हम दोनों की जाति तो छोड़ो, धर्म भी अलगअलग है. ऐसे में घर समाज ही नहीं, घर वाले ही हमारी शादी के लिए नहीं राजी होंगे.’’

‘‘सच्चा प्यार ऊंचनीच और जातिधर्म का मोहताज नहीं होता. लोग कहते हैं न कि जोडि़यां ऊपर वाला बनाता है. इसलिए हम दोनों में प्यार हुआ है तो इस का मतलब है कि ऊपर वाले को हमारा प्यार मंजूर है. फिर इस में संदेह की कोई बात कहां है.’’

‘‘लेकिन तुम्हरे घर वाले तो हमें दूर करने के लिए जमीनआसमान एक किए हुए हैं.’’

‘‘चिंता मत करो, मैं अपने घर वालों को किसी न किसी तरह समझा लूंगी. अगर नहीं समझा पाई तो हमारे सामने और भी रास्ते हैं. देखो प्रभु, हमें दुनिया से जितना लड़ना पड़े, हम लड़ेंगे और जीतेंगे भी. कोई ताकत हमें जुदा नहीं कर सकती.’’

इतना कह कर सीमा प्रभु के सीने से लग गई. ऐसी विपरीत परिस्थिति में भी सीमा ने हार नहीं मानी. उस की हिम्मत उस का प्यार था, जिसे वह हर हाल में अपने से जुदा नहीं कर सकती थी. फिर कुछ देर और बात कर के दोनों अपनेअपने घरों को लौट गए. सीमा ने अपने घर वालों से बात की, लेकिन वे राजी नहीं हुए, उल्टे उस की पिटाई कर दी. बंदिशों के बाद भी उन के चोरीछिपे मिलने की भनक सीमा के घरवालों को लग ही जाती थी. उसी बीच रामलीला मेले में प्रभु पर चाकू से जानलेवा हमला किया गया. लेकिन संयोग था कि प्रभु बच गया. पुलिस में शिकायत भी की गई, लेकिन पुलिस ने कोई काररवाई नहीं की.

इस घटना ने सीमा को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि अगर वे यहां रहें तो दोनें की जान को खतरा बना रहेगा. उन दोनों को अलग करने के लिए उस के घर वाले किसी भी हद तक जा सकते हैं, इसलिए उस ने एक फैसला लिया. 18 फरवरी को सीमा रेलवे स्टेशन पहुंची और प्रभु से भाग चलने की जिद करने लगी. प्रभु तैयार नहीं हुआ तो वह वहां खड़ी सद्भावना एक्सप्रेस के आगे लेट गई और जान देने की धमकी देने लगी. हार कर प्रभु को उस की बात माननी पड़ी. वह सीमा को वहां से अपने घर ले गया और छिपा दिया. रात में दोनों रेलवे स्टेशन पहुंचे और ट्रेन से हिमाचल प्रदेश चले गए. प्रभु घर से 10 हजार रुपए ले कर गया था. वहां दोनों ने विवाह कर लिया और पतिपत्नी की तरह रहने लगे.

इधर सीमा के घर वालों को प्रभु के साथ उस के भाग जाने की खबर लगी तो उन्होंने उस की खोजबीन शुरू कर दी. काफी खोजबीन के बाद भी जब उस का कुछ पता नहीं चला तो एक मार्च को सीमा के पिता भूरे ने विशारतगंज थाने में प्रभु और उस के चाचा रमेश पर तमंचे की नोक पर सीमा का अपहरण करने का आरोप लगाते हुए तहरीर दी. थानाप्रभारी शुजाउर रहीम ने प्रभु और रमेश के विरूद्ध भादंवि की धारा 363, 366, 452, 504 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस ने प्रभु के घरवालों और रिश्तेदारों पर दबाव बनाना शुरू किया तो प्रभु ने होली के एक दिन पहले 5 मार्च को एक भाजपा नेता के माध्यम से सीमा को पुलिस के हवाले कर दिया.

पुलिस ने उसे महिला थाना भेजने के बजाय बिना मैडिकल कराए ही परिजनों के हवाले कर दिया. 9 मार्च को उस के कोर्ट में बयान होने थे. इसी बीच 8 मार्च को देर रात पुलिस ने प्रभु को भी गिरफ्तार कर लिया.  9 मार्च की सुबह साढ़े 7 बजे भूरे विशारतगंज थाने पहुंचा कि किसी नकाबपोश ने सुबह 4 बजे सीमा की हत्या कर दी है. उस समय घर का मेनगेट खुला हुआ था. सीमा की मां नसीम टौयलेट गई थी, बाकी लोग सो रहे थे. अचानक गोली चलने की आवाज सुनाई दी तो सभी उठ कर दौड़े. पास जा कर देखा तो सीमा के सिर से खून बह रहा था और उस का शरीर शिथिल पड़ चुका था. उस की मौत हो चुकी थी. उन्होंने एक नकाबपोश को वहां से भागते देखा था, वह कोई और नहीं प्रभु था.

उस का आरोप सुन कर थानाप्रभारी शुजाउर रहीम ने कहा कि प्रभु तो उन की हिरासत में है, वह कैसे खून कर सकता है? बहरहाल, शुजाउर रहीम पुलिस फोर्स के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. मामले की गंभीरता को देखते हुए उन्होंने घटना की जानकारी उच्चाधिकारियों को दे दी और खुद सिपाहियों के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. कुछ ही देर में एसपी (ग्रामीण) ब्रजेश श्रीवास्तव और सीओ (आंवला) धर्म सिंह मार्छाल भी घटनास्थल पर पहुंच गए. सीमा के सिर में काफी गहरा घाव था, जिस से अनुमान लगाया कि हत्यारे ने बहुत नजदीक से गोली चलाई थी. पुलिस अधिकारियों ने घर वालों से पूछताछ की तो सभी के बयान अलगअलग थे. शुरुआती जांच में और अब तक की पूछताछ में यह मामला औनर किलिंग का लग रहा था.

घटना के बाद से ही सीमा का बड़ा भाई इश्तियाक घर से गायब था. पुलिस ने आसपड़ोस में पूछताछ की तो पता चला कि देर रात तक सीमा के घरवाले जागते रहे थे. सीमा से लड़ाईझगड़ा होने की बात भी सामने आई. देर रात तक उन के घर में अफरातफरी का माहौल बना रहा था. उस के बाद कुछ समय के लिए सब शांत हो गया. सुबह 4 बजे गोली चलने की आवाज आई और फिर उस के बाद रोनेपीटने की आवाजें आने लगीं. इस के बाद सीमा की हत्या किए जाने की बात सामने आई. सीमा की हत्या में सारे हालात किसी अपने की ओर इशारा कर रहे थे. वह अपना कोई और नहीं, उस का बड़ा भाई इश्तियाक हो सकता था. वही घर से गायब था और उस का मोबाइल भी बंद था.

पूछताछ के बाद सीमा की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई. इस के बाद पुलिस ने घर की तलाशी ली, लेकिन कुछ खास हाथ नहीं लगा. आगे की जांच में पता चला कि घटना की रात सीमा का मामा गुड्डू भी आया था. गुड्डू बरेली के थाना सिरौल के गांव हरदासपुर में रहता था. पुलिस ने उस के घर छापा मारा तो वह घर में ही था. लेकिन पुलिस को देखते ही वह छत के रास्ते भागने में सफल हो गया.

14 मार्च को थानाप्रभारी शुजाउर रहीम, एसआई चमन सिंह, प्रताप सिंह और अतुल दुबे की टीम ने गुड्डू को बदायूं के कुंवरगांव से गिरफ्तार कर लिया. उस के पास से हत्या में प्रयुक्त 315 बोर का तमंचा भी बरामद हो गया. दरअसल, सीमा का मामा गुड्डू पंजाब में फेरी लगा कर कबाड़ी का काम करता था. उसे फोन से सीमा के गैर धर्म के लड़के के साथ भाग जाने की जानकारी मिली तो वह क्रोध से जल उठा. जब पुलिस ने सीमा को बरामद कर घर वालों के हवाले किया तो गुड्डू ने भूरे से सीमा को समझाने को कहा. लेकिन सीमा प्रभु के पास जाने की जिद पर अड़ी थी. गुड्डू ने भी उसे समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह नहीं मानी. इस के बाद गुड्डू के सामने एक ही रास्ता बचा कि वह सीमा को खत्म कर दे.

8 मार्च की सुबह वह हावड़ा-अमृतसर एक्सपे्रस टे्रन से बरेली के आंवला स्टेशन पर उतरा. वहां से वह अपने गांव हरदासपुर गया और शाम को विशारतगंज आ गया. देर रात वह भूरे के घर पहुंचा. उस ने सीमा को अपनी जिद छोड़ने के लिए काफी समझाया, जिसे ले कर काफी देर तक बहस चलती रही. सीमा का बड़ा भाई इश्तियाक भी मामा गुड्डू के सुर में सुर मिला रहा था. जब किसी तरह बात नहीं बनी तो सीमा के सो जाने पर गुड्डू ने इश्तियाक के साथ मिल कर सीमा के सिर से तमंचा सटा कर गोली मार दी. एक ही झटके में सीमा मौत की नींद सो गई. इस के बाद दोनों वहां से फरार हो गए. कुछ लोगों ने गुड्डू का पीछा भी किया, लेकिन वह किसी के हाथ नहीं आया.

शुजाउर रहीम ने गुड्डू और इश्तियाक के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करा कर गुड्डू को सीजेएम की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक इश्तियाक फरार था. पुलिस उस की तलाश कर रही थी. गुड्डू को जरा भी कानून का ज्ञान होता तो सीमा की जान बच सकती थी. सीमा नाबालिग थी. ऐसी स्थिति में अदालत उसे उस के घर वालों को ही सौंपती न कि प्रेमी प्रभु को. UP News

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

Hindi Crime Story: तांत्रिक की तीसरी शादी

Hindi Crime Story: समझदार होते ही सोनू की समझ में आ गया था कि यह दुनिया मूर्खों से अटी पड़ी है, बस मूर्ख बनाने का तरीका मालूम होना चाहिए. इस के बाद उस ने तंत्रमंत्र सीखा और अंधविश्वास में डूबे लोगों को मूर्ख बनाने लगा. उस की पोल तो तब खुली, जब वह तीसरी शादी के चक्कर में पड़ा.

निशा उन दिनों कुछ ज्यादा ही परेशान थी. उस की परेशानी का आलम यह था कि उसे खानेपीने तक की सुध नहीं रहती थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर यह सब हो क्या रहा है? पिछले 2-3 महीने से कुछ ऐसा उलटा चक्कर चल रहा था कि उस का अच्छाखासा चल रहा घर डूबते जहाज की तरह हिचकोले लेने लगा था. पहले मां बीमार हुई, उस के बाद छोटे भाई का हाथ टूट गया. उन दोनों को संभालने के चक्कर में उस की अपनी नौकरी चली गई. मां कुछ ठीक हुई तो उस ने दौड़भाग कर छोटामोटा काम ढूंढा, लेकिन मां एक बार फिर बीमार पड़ गई.

रोज कुआं खोद कर पानी पीने वालों के घर पैसा होता ही कहां है? निशा ने जो थोड़ाबहुत जमा कर रखा था, वह सब मां और भाई के इलाज पर खर्च हो गया. अब मां का इलाज कराने की कौन कहे, खाने के भी लाले पड़ गए. वह मां का इलाज कराए या खाने का इंतजाम करे. मकान मालिक का किराया भी वह 3 महीने से नहीं दे पाई थी. निशा परेशान थी कि ऐसे में कैसे क्या होगा? वह मां के इलाज और खानेपीने का जुगाड़ करने में जूझ ही रही थी कि एक अन्य खबर ने उसे झकझोर कर रख दिया. मकान मालिक ने उसे बुला कर कहा कि वह उस का पिछला सारा किराया अदा कर के मकान खाली कर दे.

निशा ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘‘अंकलजी, आप का किराया मैं धीरेधीरे अदा कर दूंगी. रही बात मकान खाली करने की तो इस हालत में हम कहां जाएंगे? अचानक मकान खाली करना हमारे लिए आसान नहीं है अंकलजी. पहले आप अपना पिछला किराया तो अदा हो जाने दीजिए. उस के बाद हम कोई इंतजाम कर के आप का मकान खाली करेंगे. आप हमें थोड़ी मोहल्लत दीजिए.’’

‘‘भई, मोहल्लत देने का सवाल ही नहीं उठता. तुम लोगों का हर महीने का यही तमाशा है. वैसे भी अगले महीने मेरे घर बेटी की शादी है. नातेरिश्तेदार आएंगे तो उन के उठनेबैठने के लिए जगह तो चाहिए. जब अपने पास जगह है तो बाहर इंतजाम करने की क्या जरूरत है. इसलिए तुम मेरा मकान खाली कर दो.’’ मकान मालिक ने साफसाफ कह दिया. निशा के लिए मकान खाली करना इतना आसान नहीं था. क्योंकि मकान का बकाया किराया, राशन और दूध वाले को मिला कर लगभग 15 हजार रुपए होते थे. अगर वह मकान खाली करती तो नए मकान का एडवांस किराया, सामान वगैरह की ढुलाई आदि को ले कर इतने ही रुपए और चाहिए थे.

इतनी बड़ी रकम का इंतजाम वह कहां से कर सकती थी? जबकि उस के पास उस समय 20 रुपए भी नहीं थे. अपनी यह परेशानी निशा ने अपनी सहेली सुधा से बताई तो सहेली की परेशानी सुन कर वह भी सोच में पड़ गई. अगर उस के पास पैसे होते तो इस हालत में वह अवश्य ही सहेली की मदद कर देती. अचानक उसे जैसे कुछ याद आया हो तो वह बोली, ‘‘निशा, मुझे लगता है तुझे सोनू तांत्रिक से मिलना चाहिए. वह तेरी समस्या का कोई न कोई समाधान जरूर कर देगा.’’

‘‘यह सोनू तांत्रिक कौन है और वह हमारी समस्या का समाधान कैसे कर सकता है?’’

‘‘यह तो वहां चलने पर ही पता चलेगा. लेकिन जहां तक मुझे उस के बारे में जानकारी मिली है, वह हर छोटीबड़ी समस्या का समाधान चुटकी बजा कर कर देता है. बस तू तैयार हो जा, कौन हमें दूर जाना है. यहीं न्यू कंपनी बाग की गली नंबर 3 में उस की कोठी है.’’

‘‘लेकिन सुधा, मैं तंत्रमंत्र के चक्कर में नहीं पड़ना चाहती. मुझे अपने कर्म पर भरोसा है. आज नहीं तो कल हालात बदल ही जाएंगे.’’ निशा ने कहा.

निशा तांत्रिक सोनू के पास जाना नहीं चाहती थी, लेकिन सुधा की जिद के आगे उसे झुकना पड़ा. निशा सुधा के साथ जिस समय तांत्रिक सोनू की कोठी पर पहुंची, वह कमरे में पूजा कर रहा था, इसलिए उन्हें बाहर बैठ कर पूजा खत्म होने का इंतजार करना पड़ा. पूजा खत्म होते ही सोनू ने दोनों को अपने कमरे में बुलाया. तांत्रिक को देख कर निशा हैरान रह गई, क्योंकि वह तांत्रिक जैसा लग ही नहीं रहा था. सोनू तांत्रिक 32-35 साल का राजकुमार जैसा युवक था. आसमानी रंग के सफारी सूट में वह किसी प्रतिष्ठित परिवार का लड़का लग रहा था. निशा के मन में तांत्रिक की जो छवि थी, वह उस के एकदम विपरीत था. उस ने तो सोचा था कि काले से कू्रर चेहरे पर बड़ीबड़ी दाढ़ीमूंछें और गले में ढेरों रुद्राक्ष की मालाएं पहने कोई आदमी बैठा होगा. लेकिन यहां तो मामला एकदम उलटा था.

बहरहाल, तांत्रिक सोनू को प्रणाम कर के दोनों बैठ गईं. सुधा ने निशा का परिचय करा कर उस की समस्या बतानी चाही तो तांत्रिक सोनू ने अपना दायां हाथ उठा कर उसे रोकते हुए कहा, ‘‘देवी, अगर आप ही सब कुछ बता देंगी तो मेरी साधना किस काम आएगी? मुझे पता नहीं है क्या कि आजकल देवी किन हालात से गुजर रही हैं? मां की दवा के लिए भी अभी तक इंतजाम नहीं कर पाई हैं. रात के खाने की भी व्यवस्था करनी है. लेकिन अब चिंता की कोई बात नहीं है. आप मेरे यहां आ गई हैं, अब आप की सारी समस्याएं दूर हो जाएंगीं.’’

सोनू द्वारा अपने घर की स्थिति बताने से जहां निशा शरम से पानीपानी हो गई थी, वहीं वह उस की इस बात से काफी प्रभावित भी हुई. क्योंकि बिना कुछ बताए ही उस ने उस के बारे में सब कुछ जान लिया था. इस तरह पहली ही मुलाकात में वह उस की अंधभक्त बन गई. सोनू ने अंगुलियों पर कुछ गणना कर के कहा, ‘‘मैं नाम तो नहीं बताऊंगा, लेकिन तुम्हारे किसी अपने बहुत खास ने ही तुम्हारे परिवार पर ऐसा इल्म चलवाया है कि तुम दानेदाने को मोहताज हो जाओ. आज रात को मैं उस इल्म को कील दूंगा और फिर किसी दिन श्मशान पूजा कर के उस डाकिनी को भस्म कर दूंगा.’’

निशा मंत्रमुग्ध भाव से सोनू को देखती रही. उस ने होंठों ही होंठों में कुछ मंत्र पढ़े और निशा पर फूंक मारे. इस के बाद सुधा को बाहर भेज कर अपनी गद्दी के नीचे से 5 सौ रुपए का एक नोट निकाल कर निशा की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘लो मांजी के लिए दवाओं और आज के खानेपीने की व्यवस्था कर लेना. कल की कल देखी जाएगी.’’

‘‘नहीं, मैं आप के रुपए कैसे ले सकती हूं.’’

‘‘यह मेरा नहीं, मां का आदेश है. मां काली ने मुझे अभीअभी आदेश दिया है कि मैं तुरंत तुम्हारी मदद करूं. मैं मां का सेवक हूं, इसलिए मुझे उन की आज्ञा का पालन करना ही होगा. तुम नि:संकोच ये रुपए रख लो.’’ इस तरह मां के नाम पर सोनू ने निशा को 5 सौ रुपए का नोट लेने पर मजबूर कर दिया.

निशा रुपए ले कर घर आ गई. वह यह सोचसोच परेशान थी कि उस के घर की एकएक बात की जानकारी तांत्रिक सोनू को कैसे हो गई? मकान मालिक ने मकान खाली करने के लिए कहा था, यह बात भी उसे मालूम थी. अगले दिन स्वयं सोनू तांत्रिक निशा के घर आ पहुंचा. वह मां की दवाएं और कुछ सामान भी साथ लाया था. स्वयं को संस्कारी दिखाने के लिए आते ही उस ने निशा की मां के पांव छुए. न चाहते हुए भी निशा को सोनू तांत्रिक की मदद लेनी पड़ी. क्योंकि इस के अलावा उस के पास कोई उपाय भी नहीं था. इस के बाद सोनू निशा और उस के घर वालों की हर तरह से मदद करने लगा.

तंत्रमंत्र और पूजापाठ के नाम पर वह निशा को अपनी कोठी पर बुलाता. थोड़ी देर पूजापाठ कर के निशा से इधरउधर की बातें करने लगता. इस बातचीत में वह उस के घरपरिवार के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए हमदर्दी दिखाने की कोशिश करता. निशा के मकान खाली करने की बात आई तो सोनू तांत्रिक ने मकान मालिक का बकाया अदा कर के निशा को रहने के लिए गली नंबर शून्य वाला अपना मकान दे दिया. सोनू से मिलने के बाद निशा और उस के घर वालों की मुसीबतें लगभग खत्म हो गईं. इस तरह उन की सभी समस्याओं का समाधान हो गया.

धीरेधीरे सोनू तांत्रिक ने निशा और उस के घर के हर सदस्य पर अपना वर्चस्व कायम कर लिया. घर में था ही कौन, मांबेटी और एक लड़का. निशा के उस घर में अब वही होता था, जो सोनू चाहता था. निशा के घर वालों को भी सोनू का उन के घर में दखल देना अच्छा लगता था. इस में वे अपनी शान भी समझते थे, क्योंकि सोनू तांत्रिक से उन के संबंध थे. सोनू तांत्रिक धनी तो था ही, इलाके में उस का काफी दबदबा भी था. तांत्रिक होने की वजह से लोग उस की इज्जत तो करते ही थे, डरते भी थे. लोग उस के आशीर्वाद के लिए उस के घर के चक्कर लगाते थे.

यही वजह थी कि निशा और उस के घर वाले सोनू तांत्रिक की कृपा पा कर स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहे थे. बड़ी होशियारी से सोनू तांत्रिक ने निशा के दिल में अपनी जगह बना ली थी. इस के बाद एक रात उस ने डाकिनी पूजा के नाम पर निशा को अपने घर बुलाया. निशा सोनू की कोठी पर जा पहुंची. थोड़ी देर बाद उस ने पूजा शुरू की. पूजा खत्म होने के बाद उस ने कहा कि उस ने उस डाकिनी को भस्म कर दिया है, जो उस के घर वालों को तकलीफ पहुंचाती थी. अब चिंता की कोई बात नहीं है. तथाकथित डाकिनी के खत्म हो जाने की बात पर निशा बहुत खुश हुई. पूजा खत्म होने के बाद सोनू ने निशा का हाथ अपने हाथों में ले कर कहा,

‘‘निशा, आज मैं तुम से अपने मन की एक ऐसी बात कहने जा रहा हूं, जिस का जवाब तुम्हें काफी सोचसमझ कर देना होगा.’’

हैरानी से निशा ने पूछा, ‘‘ऐसी कौन सी बात है महाराज? खैर, कोई भी बात हो, आप मुझे बताएं क्या, आदेश करें.’’

‘‘निशा, ऐसे मामलों में जोरजबरदस्ती या आदेश नहीं दिया जाता. यह सब प्रेम की भावना के अंतर्गत होता है. प्रेम में वह ताकत होती है, जो 1-2 क्या, हजारों डाकिनीशाकिनी के मुंह मोड़ सकती है. बहरहाल तुम इतना जान लो कि मैं तुम से प्रेम करता हूं और तुम से विवाह करना चाहता हूं.’’ सोनू ने निशा को फंसाने के लिए जाल फेंका.

सोनू की बात सुन कर निशा सन्न रह गई. उस के मुंह से सिर्फ इतना ही निकला, ‘‘महाराज, आप यह क्या कह रहे हैं. कहां आप और कहां मैं? आप में और मुझ में जमीन आसमान का अंतर है.’’

तंत्रमंत्र की दुकान चलाने वाले सोनू ने निशा को अपनी बाहों में ले कर कहा, ‘‘जब मेरा और तुम्हारा मिलन हो जाएगा तो सारे अंतर स्वयं ही खत्म हो जाएंगे. यह मिलन सभी भेदभाव खत्म कर देगा.’’

सम्मोहित सी निशा सोनू तांत्रिक की बातें सुनती रही. इतने बड़े तांत्रिक ने उसे इस योग्य समझा, यह जान कर वह खुद को बड़ी भाग्यशाली समझ रही थी. निशा की कमर में हाथ डाल कर सोनू उसे बैडरूम में ले गया, जहां उस ने वह सब पा लिया, जिस के लिए उस ने इतने बड़े चक्रव्यूह की रचना की थी. दरअसल, सोनू तांत्रिक न हो कर एक ऐसा धूर्त था, जो लोगों की अंधी आस्था की बदौलत उन का आर्थिक एवं शारीरिक शोषण करता था. लोगों को बेवकूफ बना कर वह दोनों हाथों से धन बटोर रहा था. इस के पीछे उस का कोई दोष नहीं था, लोग खुद ही उस के पास अपना शोषण कराने आते थे. अपनी खूनपसीने की कमाई उसे अय्याशी के लिए सौंप रहे थे. समस्या समाधान के नाम पर अपनी बहनबेटियों की इज्जत से खिलवाड़ करा रहे थे.

दुनिया कितनी भी आधुनिक क्यों न हो जाए, मंगल ग्रह पर पहुंच जाए या किसी नए ब्रह्मांड की खोज कर ले, पर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि लोगों के मन में जो अंधविश्वास बैठा है, उसे निकालना आसान नहीं है. जब तक दुनिया में अंधविश्वास है, तब तक सोनू जैसे तथाकथित ढोंगी आम लोगों की बहूबेटियों की इज्जत से खेलते रहेंगे और तंत्रमंत्र का भय दिखा कर लूटते रहेंगे.’

सोनू तांत्रिक यानी सोनू शर्मा मूलरूप से हरियाणा के जिला जींद के रहने वाले चंद्रभान शर्मा का मंझला बेटा था. चंद्रभान धार्मिक प्रवृत्ति के शरीफ इंसान थे. वह कर्म को पूजा मानते थे. लेकिन उन के बेटे सोनू शर्मा की नीति उन के एकदम विपरीत थी. सोनू शुरू से ही अतिमहत्त्वाकांक्षी और आपराधिक प्रवृत्ति का युवक था. जल्दी ही उस की समझ में आ गया था कि दुनिया मूर्ख है. बस उसे मूर्ख बनाने वाला होना चाहिए. जो मजा लोगों को बेवकूफ बना कर कमाने में है, वह हाड़तोड़ मेहनत करने में नहीं है. उसे पता चल ही गया था कि अंधी आस्था को ले कर लोग अपना सर्वस्व तक लुटाने को तैयार रहते हैं.

और मजे की बात यह कि लुटने के बाद किसी को बताते भी नहीं. यह एक ऐसा कारोबार था, जिस में कुछ खास लगाना भी नहीं था, जबकि कमाई इतनी मोटी थी कि इस का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. इस के अलावा लोग उसे पूजते भी भगवान की तरह हैं. यही सब देखसुन कर सोनू को इस कारोबार से अच्छा और कोई दूसरा कारोबार नहीं लगा. इस के बाद कुछ तंत्रमंत्र और टोटके सीख कर वह तांत्रिक बन गया. हरियाणा के कई शहरों में तंत्रमंत्र की छोटीमोटी ठगी करते हुए वह हिमाचल के जिला कांगड़ा जा पहुंचा. वहां उस का यह ठगी का धंधा तो चल ही निकला, वहीं उस की मुलाकात सोनिया से हुई.

सोनिया राजेश शर्मा की बेटी थी. उन का अच्छाखासा कारोबार था, लेकिन किन्हीं वजहों से उन के कारोबार में घाटा होने लगा तो उन की आर्थिक स्थिति कुछ खराब हो गई. सोनिया अपनी ऐसी ही किसी समस्या के समाधान के लिए सोनू तांत्रिक के पास गई तो पहली ही मुलाकात में वह सोनू की नजरों में ऐसी चढ़ी कि वह उसे किसी भी कीमत पर हासिल करने को तैयार हो गया. लेकिन राजेश शर्मा का परिवार एक संस्कारी परिवार था. वही संस्कार सोनिया में भी थे. इसलिए सोनू ने सोनिया को जो सब्जबाग दिखाए, उन का सोनिया पर कोई असर नहीं हुआ. तब उसे पाने के लिए सोनू ने उस से शादी का फैसला कर लिया और इस के बाद सोनिया के मातापिता की सहमति से दिसंबर, 2003 में उस ने सोनिया के साथ विवाह कर लिया.

समय के साथ दोनों 2 बच्चों के मातापिता बने, जिन में 8 साल का आदित्य और 6 साल की एलियन है. इस बीच सोनू हिमाचल के अलावा पंजाब के भी कई शहरों में अपने पांव जमाने की कोशिश करता रहा. कई शहरों के चक्कर लगाने के बाद उसे लुधियाना कुछ इस तरह पसंद आया कि वहां टिब्बा रोड पर उस ने तंत्रमंत्र की अपनी स्थाई दुकान खोल ली. यह सन् 2010 की बात है. लुधियाना का टिब्बा रोड इलाका हिंदूमुस्लिम और अमीरगरीब सभी तरह के लोगों से भरा है. जल्दी यहां सोनू का प्रभाव इस तरह बढ़ा कि लोग उस की पूजा करने लगे. यहां से कमाई दौलत से उस ने 2 मकान और एक आलीशान कोठी अपने लिए बनवा डाली.

यहां आने के बाद वह धीरेधीरे कांगड़ा में रह रही अपनी पत्नी सोनिया और बच्चों को लगभग भूल सा गया. अब वह कईकई महीनों बाद उन से मिलने कांगड़ा जाता था. लुधियाना में रहते हुए सोनू ने अपने लिए नई लड़की की तलाश शुरू कर दी, क्योंकि सोनिया अब उसे पुरानी लगने लगी थी. उसी बीच किसी शादी समारोह में उस की नजर स्टेज पर थिरकती निशा पर पड़ी तो वह उस पर मर मिटा. निशा एक आर्केस्ट्रा ग्रुप में डांस करती थी. निशा की एक ही झलक में सोनू उस का दीवाना बन गया था और हर कीमत पर उसे पा लेना चाहता था. सोनू तांत्रिक की एक आदत यह भी थी कि जो चीज उसे पसंद आ जाती थी, उसे वह हर हाल में पा लेना चाहता था.

पसंद आने के बाद उस ने निशा को हासिल करने के प्रयास शुरू किए तो सब से पहले उस ने उस के और उस के घर वालों के बारे में पता किया. सोनू को पता चला कि निशा के पिता प्रेमशाही ठाकुर की कई सालों पहले उस समय मृत्यु हो गई थी, जब बच्चे छोटेछोटे थे. निशा की मां ने मेहनतमजदूरी कर के किसी तरह बच्चों को पालपोस कर बड़ा किया था. युवा होने पर निशा ने छोटीमोटी नौकरी कर के परिवार का खर्च चलाने की कोशिश की. वह खूबसूरत थी, उस की अदाएं इतनी कातिल थीं कि कोई भी उसे देख कर पागल हो सकता था. इसीलिए जब आर्केस्ट्रा ग्रुप ने उसे अपने डांस ग्रुप में शामिल होने को कहा तो वह उस में मिलने वाली मोटी रकम के लालच में उस में शामिल होने के लिए खुशीखुशी तैयार हो गई थी.

अपनी खूबसूरती, मेहनत और अच्छे डांस की वजह से वह जल्दी ही प्रसिद्ध हो गई. आर्केस्ट्रा में डांस कर के निशा की इतनी कमाई हो जाती थी कि पूरा परिवार मजे से रह रहा था. सोनू को जब पता चला कि निशा ही अपने परिवार का एकमात्र सहारा है तो सब से पहले उस ने अपने प्रभाव से निशा को उस आर्केस्ट्रा से निकलवा दिया, जिस में वह डांस करती थी. काम छूटा तो निशा के घर की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई. अचानक राह चलते निशा के भाई को किसी मोटरसाइकिल वाले ने टक्कर मार दी, जिस से उस का एक हाथ टूट गया. मां पहले से ही बीमार रहती थी.

इस तरह निशा चारों ओर से टूट गई तो सोनू के इशारे पर ही मकान मालिक ने उस से मकान खाली करने के लिए कह दिया. इस के बाद अचानक सोनू तांत्रिक ने हीरो की भांति उस के जीवन में एंट्री मारी और अपने तंत्रमंत्र का नाटक कर के निशा और उस के घर की समस्याओं का समाधान कर दिया. इस से वह उन की नजरों में भगवान बन बैठा. बहरहाल, सोनू ने जैसा चाहा था, ठीक वैसा ही हुआ था. लगभग हर रात निशा सोनू के पहलू में होती थी. क्योंकि उसे पूरा विश्वास था कि सोनू उस से शादी करेगा. लेकिन यह उस की गलतफहमी थी. उस का यह भ्रम 13 मार्च, 2015 को बैसाखी वाले दिन तब टूटा, जब उसे पता चला कि सोनू किसी खूबसूरत लड़की के साथ चंडीगढ़ रोड स्थित मोहिनी रिसौर्ट में शादी कर रहा है.

यह जानकारी मिलने के बाद निशा के पैरों तले से जमीन खिसक गई. इस का सीधा मतलब यह था कि शादी का झांसा दे कर सोनू तांत्रिक ने 2 सालों तक उस की इज्जत से खेला था और अब मन भर जाने के बाद दूसरी लड़की से शादी कर रहा था. यह बात भला निशा कैसे बरदाश्त कर सकती थी. वह सीधे मोहिनी रिसौर्ट पहुंची, ताकि सोनू तांत्रिक की शादी रुकवा सके. लेकिन सोनू के गुर्गों ने उसे अंदर जाने नहीं दिया और बाहर से ही भगा दिया. सोनू और गीता चड्ढा का विवाह आराम से हो गया. जबकि अपने भाग्य पर आंसू बहाते हुए निशा घर लौट आई. वह घर तो लौट आई, लेकिन उसे चैन नहीं मिल रहा था. चैन मिलता भी कैसे, सोनू ने उस के साथ जो बेवफाई की थी, उसे वह भुला नहीं पा रही थी.

अगले दिन शाम को निशा को पता चला कि सोनू तांत्रिक अपनी नईनवेली दुलहन गीता के साथ गली नंबर 3 वाली कोठी में मौजूद है तो एक बार फिर हिम्मत कर के निशा उस से बात करने के लिए उस की कोठी पर जा पहुंची. इस बार सोनू से उस का सामना हो गया. उस ने हंगामा खड़ा करते हुए सोनू से पूछा, ‘‘तुम शादी का वादा कर के 2 सालों तक मेरे शरीर से खेलते रहे. जबकि अब शादी किसी और से कर ली. तुम ने यह ठीक नहीं किया. मैं ऐसा कतई नहीं होने दूंगी.’’

‘‘अब तो जो होना था, वह हो गया. मुझे जिस से शादी करनी थी, कर ली. अब तुम कर ही क्या सकती हो? मैं ने तुम से शादी का जो वादा किया था, वह वादा ही रहा. अगर मैं वादा करने वाली हर लड़की से शादी करने लगूं तो पता चला कि मैं हर साल शादी कर रहा हूं.’’ इस के बाद निशा को घूरते हुए बोला, ‘‘अच्छा यही होगा कि तुम चुपचाप यहां से चली जाओ. फिर कभी दिखाई भी मत देना, वरना मुझ से बुरा कोई नहीं होगा.’’

सोनू से अपमानित हो कर निशा घर तो आ गई, लेकिन उस के साथ जो छल हुआ था वह उसे पचा नहीं पा रही थी. काफी देर तक वह रोती रही. और जब मन का गुबार निकल गया तो उस ने तय किया कि वह सोनू जैसे ढोंगी और धोखेबाज को अवश्य सबक सिखाएगी. अगर उस ने उसे सबक न सिखाया तो वह उस जैसी न जाने कितनी लड़कियों की इसी तरह जिंदगी बरबाद करता रहेगा. दृढ़ निश्चय कर के निशा थाना बस्ती जोधेवाल पहुंची और थानाप्रभारी इंसपेक्टर हरपाल सिंह से मिल कर उन्हें अपनी आपबीती सुनाई.

हरपाल सिंह ने निशा की पूरी बात सुनने के बाद टिब्बा रोड पुलिस चौकी के इंचार्ज एएसआई हरभजन सिंह को आदेश दिया कि वह निशा के बयान के आधार पर सोनू तांत्रिक के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के तुरंत काररवाई करें. इस के बाद एएसआई हरभजन सिंह ने निशा के बयान के आधार पर 16 मार्च, 2015 को सोनू तांत्रिक के खिलाफ शादी का झांसा दे कर यौन शोषण करने और धोखाधड़ी का मामला दर्ज कर के पूछताछ के लिए उसे पुलिस चौकी बुलवाया. लेकिन सफाई देने के लिए चौकी आने के बजाय सोनू गायब हो गया.

तब हरभजन सिंह ने हेडकांस्टेबल जगजीत सिंह जीता, कांस्टेबल लखविंदर सिंह, दविंदर सिंह और जसबीर सिंह की एक टीम बना कर सोनू की तलाश के लिए उस के पीछे लगा दिया. सोनू की तलाश चल ही रही थी कि अखबारों में छपी खबर पढ़ कर कांगड़ा में रह रही उस की पहली पत्नी सोनिया शर्मा भी लुधियाना आ पहुंची. उस ने पुलिस चौकी जा कर बयान ही नहीं दर्ज कराया, बल्कि सोनू से अपनी शादी और 2 बच्चे होने के प्रमाण भी दिए. सोनिया के बयान के आधार पर उस की ओर से भी सोनू के खिलाफ धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज किया गया. फिर उसी दिन शाम को हेडकांस्टेबल जगजीत सिंह की टीम ने जालंधर बाईपास से सोनू तांत्रिक को उस समय गिरफ्तार कर लिया, जब वह बस से शहर छोड़ कर भागने के चक्कर में वहां पहुंचा था.

चौकी ला कर सोनू से पूछताछ की गई तो उस ने अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को स्वीकार कर लिया. उसे अदालत में पेश कर के साक्ष्य जुटाने के लिए एक दिन के पुलिस रिमांड पर लिया गया. रिमांड अवधि समाप्त होने पर 18 मार्च, 2015 को उसे पुन: मैडम प्रीतमा अरोड़ा की अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. 20 मार्च, 2015 को निशा का मैडिकल कराया गया. मैडिकल रिपोर्ट के अनुसार वह सहवास की आदी पाई गई. मैडम प्रीतमा अरोड़ा की अदालत में धारा 164 के तहत उस के बयान भी दर्ज किए गए.

निशा ने यहां भी वही बयान दिए, जो उस ने आपबीती में बताया था. उस का कहना था कि ऐसे ढोंगी अपराधियों को सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए. ऐसे लोग लोगों की धार्मिक व कोमल भावनाओं को भड़का कर उन का शारीरिक और आर्थिक शोषण करते हैं. Hindi Crime Story

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है, कथा में कुछ पात्रों के नाम बदले गए हैं.

True Crime Story: मिरड़काल से मर्डर तक

True Crime Story: जिन लोगों को नहीं सुधरना होता, वे ठोकरें खाने के बाद भी नहीं सुधरते. मंजू के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ. अच्छा घर मिलने के बाद भी वह अपनी आदत से बाज नहीं आई और…

मथुरा प्रसाद अपने परिवर के साथ जिला हरदोई के अंतर्गत आने वाले गांव गोवर्धनपुर में रहते हैं. उन के 4 बेटों में 2 बेटे रमेश और अनिल खेती करते हैं. तीसरा बेटा परशुराम लखनऊ में नौकरी करता है. उन के छोटे बेटे सुनील की उम्र 30 वर्ष थी. घर में सभी उसे कल्लू कहते थे. सुनील बड़े भाइयों की तरह खेती कर के गुजरबसर करता था. बंटवारे के बाद उसे अलग खेत मिल गए थे. उस के खेत के पास ही रेवतीराम की भी जमीन थी. रेवतीराम जब खेतों पर काम कर रहा होता तो दोपहर में उस के घर से कोई न कोई खाना पहुंचाने आता. आसपड़ोस में खेत होने के कारण रेवतीराम और सुनील के संबंध काफी अच्छे थे. घर से आए खाने को दोनों मिलबांट कर खा लेते थे.

रेवतीराम पहले गांव बेहटा, थाना बांगरमऊ, जनपद उन्नाव में रहता था. 15 साल पहले उस ने एक विवाद के चलते एक व्यक्ति की हत्या कर दी थी, जिस की वजह से उसे सालों जेल में रहना पड़ा था. जेल से निकलने के बाद उस ने गांव छोड़ दिया था और सपरिवार हरदोई के थाना मल्लावां के गांव भगवंतनगर में आ कर बस गया था. उस के परिवार में पत्नी वंदना सहित 6 औलाद थीं, 3 बेटे और 3 बेटियां. सब से छोटी मंजू बचपन से ही अल्हड़ और शोख स्वभाव की थी.

मंजू जब जवान हो गई तो रेवतीराम ने अच्छा सा परिवार देख कर उस की शादी उन्नाव के थाना बांगरमऊ के गांव बालखेड़ा निवासी श्रवणपाल से कर दी. विवाह से पूर्व मंजू ने भी हर लड़की की तरह मन में होने वाले पति और ससुराल के बारे में कई सपने संजो रखे थे. शादी के बाद जब उस ने पति को देखा तो पहले तो उसे सब कुछ ठीक लगा, लेकिन 2-4 दिनों बाद जब हकीकत सामने आई तो उसे गहरा सदमा लगा. श्रवणपाल की दिमागी हालत ठीक नहीं थी. निस्संदेह उस के साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ था. मंजू ने कभी सोचा भी नहीं था कि किस्मत उस के साथ ऐसा खेल खेलेगी. वह समझ नहीं पा रही थी कि ऐसी स्थिति में उसे क्या कदम उठाना चाहिए.

कुछ दिनों के बाद वह ससुराल से विदा हो कर मायके आ गई. उस ने यह बात अपनी मांबहनों को बताई तो श्रवणपाल की हकीकत सुन कर पूरा परिवार सकते में आ गया. उन सब का एक ही मत था कि ऐसे आदमी से मंजू के जीवन की डोर बंधे रहने से क्या फायदा, जिस की दिमागी हालत ठीक नहीं है. मंजू भी यही चाहती थी. अंतत: उस ने सदा के लिए ससुराल से नाता तोड़ लिया. जाहिर है, यह बात ज्यादा दिनों तक छिपी नहीं रह सकती थी. धीरेधीरे यह बात गांव भर में फैल गई कि मंजू ससुराल छोड़ कर घर बैठ गई है. इसे ले कर लोग तरहतरह की बातें करने लगे. जितने मुंह, उतनी बातें. जब रेवतीराम ने देखा कि मंजू को गांव में रखना ठीक नहीं है तो उस ने उसे उस की ननिहाल भेज दिया.

मंजू का ननिहाल पड़ोस के गांव दौलतयारपुर में था, जो कि सीमावर्ती थाना माधौगंज में आता था. ननिहाल में मंजू की मुलाकात फुरकान से हुई. उस की गिनती गांव के आवारा लड़कों में होती थी. फुरकान ने मंजू को देखा तो उस की खूबसूरती पर मर मिटा. वह दिनरात साए की तरह मंजू के आगेपीछे घूमने लगा. जल्दी ही दोनों ने लोगों की नजरों से बच कर मिलना शुरू कर दिया. कुछ ही मुलाकातों में मंजू को फुरकान के ऊपर इतना विश्वास हो गया कि वह उस के साथ कहीं भी भाग चलने के लिए तैयार हो गई. फुरकान रंगीन तबीयत का लड़का था. उस ने मंजू को ऐसे सब्जबाग दिखाए कि वह अपनी ननिहाल तथा घर की मानमर्यादा की चिंता किए बिना उस के साथ भाग गई.

फुरकान के पास जब तक पैसे रहे, वह मंजू के साथ प्रेमलीला में डूबा रहा. करीब 15 दिनों बाद जब उस के पास पैसे खत्म होने को आए तो दोनों की हालत खराब हो गई. कोई और रास्ता न देख दोनों अपनेअपने घर वापस लौट आए. मंजू की किस्मत वाकई खराब थी. पति किसी लायक नहीं था और प्रेमी उस का साथ नहीं निभा सका. रेवतीराम और उस की पत्नी वंदना को जब बेटी की शर्मसार कर देने वाली करतूतों की जानकारी हुई तो वे बहुत परेशान हुए. उन्हें इस बात की चिंता थी कि मंजू कहीं गलत हाथों में पड़ गई तो उस की जिंदगी नरक हो जाएगी. सोचविचार कर वे उसे अपने घर ले आए.

उन्होंने सोचा था कि बेटी घर में रहेगी तो कम से कम नजरों के सामने रहेगी. घर आने के बाद मंजू के ऊपर नजर रखी जाने लगी. मांबाप की निगरानी में मंजू के सारे कसबल ढीले पड़ गए. वह घर में अच्छी तरह रहने लगी. उस में आए इस बदलाव को देख कर सब ने समझा कि 2 बार ठोकर खा चुकी मंजू अब अपने कदम गलत रास्ते पर नहीं रखेगी. सुनील कुमार के खेतों के पास रेवतीराम के खेत थे. दोनों के बीच घर के दुखसुख की बातें होती रहती थीं. मंजू जब खेतों पर खाना पहुंचाने के लिए आती तो वह सुनील से थोड़ाबहुत हंसबोल लेती थी. सुनील 30 साल का होने के बावजूद अभी तक कुंवारा था. उस के मन में भी अपने बड़े भाइयों की तरह अपना घर बसाने की चाहत थी.

लेकिन रिश्तेदार जहां भी उस की शादी की बात करते, किसी न किसी वजह से बात बिगड़ जाती. मंजू जब उस से ज्यादा घुलमिल गई तो सुनील ने सोचा कि अगर मंजू की उस से शादी हो जाए तो दोनों का घर बस जाएगा. जो सोच सुनील की थी, कुछकुछ वैसे ही जज्बात मंजू के दिल में भी पनप रहे थे. सुनील के पास खेती के लायक जमीन थी, जिस से दोनों की जिंदगी बड़े आराम के साथ कट सकती थी. जब सुनील ने मंजू की आंखों में अपने लिए प्यार का सागर लहराते देखा तो उस से रहा नहीं गया. एक दिन हिम्मत जुटा कर उस ने अपने दिल की बात मंजू से कह दी. मंजू पहले से ही सुनील के मुंह से यह सब सुनने का इंतजार कर रही थी. उस ने उस का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया.

कुछ दिनों तक यह राज दोनों के दिलों तक ही सीमित रहा, लेकिन बाद में जब मंजू का खेतों पर आ कर सुनील से मिलनाजुलना बढ़ गया तो रेवतीराम और उस की पत्नी को लगा कि अगर मंजू को रोका नहीं गया तो वे लोग फिर से पहले की तरह उपहास के पात्र बन कर रह जाएंगे. सुनील अपने मातापिता और दोनों भाइयों के साथ रहता था. एक दिन उस ने अपनी मां राधा देवी को बताया कि वह मंजू से प्यार करता है और उस से शादी करना चाहता है. राधा देवी बेटे की बात सुन कर बहुत खुश हुई. उस ने पति और बेटों को सुनील की पसंद के बारे में बताया.

सुनील के भाइयों को जब इस बात का पता चला तो उन लोगों ने मंजू के बारे में पता लगाना शुरू किया. मंजू की बदनामी के बारे में जान कर उन्होंने सुनील को मंजू से शादी न करने की सलाह दी. लेकिन सुनील तय कर चुका था कि वह मंजू से ही शादी करेगा. ऐसा ही उस ने किया भी. घर वालों की इच्छा के विरुद्ध दोनों ने कोर्टमैरिज कर ली. शादी के बाद सुनील अपने पिता का घर छोड़ कर मंजू के साथ अलग घर में रहने लगा. मंजू और सुनील, दोनों की शादी कठिनाइयों के लंबे दौर से गुजरने के बाद हुई थी. इस के साथ ही मंजू की दुश्वारियां भी खत्म हो गई थीं. शादी के कुछ समय बाद मंजू के पैर भारी हुए तो सुनील की खुशी का ठिकाना न रहा.

समय के साथ मंजू ने एक स्वस्थ बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम उन्होंने अंश रखा. अंश के आने से दोनों का प्यार और बढ़ गया. सुनील और मंजू अपने इस छोटे से संसार में बेहद खुश थे. देखतेदेखते 3 साल का वक्त हंसतेखेलते गुजर गया. 6 नवंबर, 2014 को मंजू घर में आराम कर रही थी. तभी उस के मोबाइल पर एक मिस्डकाल आई. मंजू ने देखा तो मोबाइल नंबर अंजान था. मंजू के मन में उत्सुकता पैदा हुई कि फोन करने वाला कौन है? उस ने उस नंबर पर फोन किया तो दूसरी तरफ फोन करने वाले युवक ने अपना नाम शुभम शर्मा बताया.

अपरिचित नाम सुन कर मंजू ने फोन काट दिया. लेकिन शुभम को मंजू की आवाज बहुत अच्छी लगी, इसलिए वह बारबार फोन कर के मंजू से बातें करने की कोशिश करने लगा. पहले तो मंजू को लगा कि इस तरह की फालतू बातें करने का क्या फायदा, लेकिन जब शुभम ने बारबार फोन कर के उस से केवल फोन पर बातें करने की इच्छा प्रकट की तो उस की अधीरता देख कर मंजू ने उस से बात करना स्वीकार कर लिया. इस तरह शुभम और मंजू के बीच बातों का सिलसिला शुरू हो गया. मंजू केवल उसी समय शुभम से बातें करती थी, जब सुनील घर से बाहर होता था. धीरेधीरे मंजू को शुभम से बातें करने में मजा आने लगा.

कुछ दिनों के बाद एक समय ऐसा भी आया, जब वह बेसब्री से उस के फोन का इंतजार करने लगी. जब उस का फोन नहीं आता तो वह अधीर हो कर उस के मोबाइल पर मिसकाल कर देती थी. एक दिन फोन पर बातों के दौरान शुभम ने मंजू से मिलने की इच्छा जाहिर की. मंजू ने थोड़ी नानुकुर करने के बाद उसे मिलने के लिए अपने घर बुला लिया. जब शुभम मंजू से मिलने उस के घर में पहुंचा तो उस के दिलकश व्यक्तित्व को देख कर मन ही मन खुश हो गया. एक बच्चे की मां होने के बावजूद उस की शारीरिक बनावट में कोई कमी नहीं आई थी.

उस के दिल ने चाहा कि उसे अपनी बाहों में भींच कर खूब प्यार करे. लेकिन उस ने सब्र से काम लिया. अपनी हमउम्र शुभम को देख कर मंजू के दिल की चाहत भी बलवती हो उठी. चूंकि मंजू और शुभम फोन पर हर तरह की बातें करते रहते थे, इसलिए मंजू को उस के इरादे भांपने में देर नहीं लगी. लेकिन वह अपने इस प्रेमी को थोड़ा तड़पाना चाहती थी. पहली मुलाकात में दोनों ने जी भर कर बातें कीं. शुभम ने बताया कि वह लखीमपुर में औफीसर्स कालोनी में अपने पिता उमेश शर्मा के साथ रहता है तथा दुकान और आफिसों में शीशे के गेट तथा केबिन लगाने का काम करता है. इस काम में उसे अच्छी आमदनी होती है. बाद में जब सुनील के घर लौटने का समय हो गया तो मंजू ने उसे वापस भेज दिया.

सुनील को मंजू की इस नई प्रेमकहानी की कोई जानकारी नहीं हुई. इस के बाद शुभम उस वक्त मंजू के घर आता, जब सुनील घर से बाहर होता. एक दिन शुभम ने मंजू को अपनी बांहों में लिया तो मंजू उस से अमर बेल की तरह लिपट गई. जो आग शुभम के सीने में जल रही थी, वही मंजू के भी तनबदन में लगी थी. मंजू ने महसूस किया कि शुभम के प्यार करने के अंदाज में जो ताजगी है, सुनील के प्यार में नहीं है. उस दिन के बाद जब भी सुनील घर से लंबे समय के लिए कहीं बाहर होता, वह शुभम को फोन कर के घर बुला लेती थी.

कुछ दिनों तक मंजू और शुभम का यह प्यार लुकेछिपे चलता रहा. चूंकि सुनील के परिवार के अन्य सदस्यों का उस के घर में आनाजाना नहीं था, इसलिए मंजू इस बात से आश्वस्त थी कि उस के अवैधसंबंधों की बात दूसरों तक नहीं पहुंचेगी. अगर कोई उस से शुभम के मिलने आने के बारे में कुछ पूछता भी तो वह उसे अपने मायके के दूर का रिश्तेदार बता देती थी. एक दिन जब सुनील कहीं बाहर गया था तो मंजू ने मौका देख कर शुभम को अपने घर बुला लिया. अभी दोनों प्रेमलीला में डूबे ही थे कि अचानक घर के दरवाजे पर दस्तक हुई. मंजू ने जल्दी दरवाजा नहीं खोला तो सुनील ने दरवाजा पीटना शुरू कर दिया. दरअसल उस ने सोचा था कि मंजू या तो बाथरूम में होगी या सो गई होगी.

कुछ देर के बाद मंजू ने दरवाजा खोला तो उस की उखड़ी रंगत देख कर सुनील को आश्चर्य हुआ. मंजू की सांस धौंकनी की चल रही थी. वह उस से नजरें भी नहीं मिला पा रही थी. कुछ गलत होने की आशंका भांप कर वह अंदर कमरे में घुसा तो उस ने एक युवक को कोने में खड़े देखा. वह डर से थरथर कांप रहा था. सुनील को मंजू के अतीत की जानकारी थी. इसलिए उसे यह समझने में देर नहीं लगी कि यह युवक जो कोई भी है, मंजू का यार है. सुनील की जगह कोई और होता तो वह अपनी पत्नी और उस के यार की अच्छी खबर लेता. लेकिन सुनील ने ऐसा न कर के शुभम को फौरन घर से बाहर चले जाने के लिए कहा. शुभम किसी तरह अपनी जान बचाने की जुगाड़ में था. वह वहां से फौरन निकल गया. सुनील से मंजू से कहा कि वह अपनी गंदी आदतों से बाज आए और ऐसा कोई काम न करे, जिस के चलते उस का घरपरिवार तबाह हो जाए.

उस दिन के बाद मंजू ने काफी दिनों तक शुभम से बातें नहीं कीं. वह घर में ऐसे बन कर रहती, जैसी उसे अपनी गलती का अंदाजा हो गया हो और अब वह इसे दोहराने की गलती कभी नहीं करेगी. लेकिन सच्चाई इस दिखावे से एकदम परे थी. मंजू और शुभम अब भी एकदूसरे से बातें करते थे और मिलने के लिए नई योजना बना रहे थे. जैसे ही सुनील का ध्यान खेती के कामधंधों की ओर गया, मंजू ने फिर से शुभम को अपने घर बुलाना शुरू कर दिया. एक दिन जब वह अपनी बाइक पर मंजू से मिलने के लिए आया तो इत्तफाक से सड़क पर उसे सुनील ने देख लिया. सुनील ने उसे पहचान कर रुकने का इशारा किया. वह रुक गया तो सुनील ने उस के पास जा कर कहा कि अगर वह मंजू से मिलना चाहता है तो मिल सकता है, लेकिन इस के लिए उसे कीमत चुकानी होगी.

शुभम को सुनील की बात सुन कर सुखद हैरानी हुई. वह यह जान कर खुश हुआ कि मंजू का पति ही उसे उस से मिलने की इजाजत दे रहा था. उस ने बिना कुछ सोचे मंजू से मिलने के लिए सुनील को इस की कीमत देने की हामी भर ली. उस दिन के बाद जब भी शुभम को मंजू से मिलना होता तो वह पहले सुनील को इस की कीमत चुकाता इस के बाद उस के ही घर में उस की आंखों के सामने मंजू के साथ जी भर कर मौजमस्ती करता. सुनील की आंखों का पानी मर गया था, जो वह पैसे ले कर अपनी बीवी का सौदा कर रहा था. शुभम ने यह बात मंजू को बताई तो उस की नजर में शुभम का कद और बढ़ गया. वह उसे और भी ज्यादा प्यार करने लगी. जबकि उस की नजर में सुनील का कद बौना हो गया.

कुछ ही महीनों में सुनील ने शुभम से अपनी पत्नी मंजू के साथ गुलछर्रे उड़ाने के बदले एक लाख रुपए ले लिए. जब उस के पास रुपए नहीं बचे तो वह परेशान रहने लगा. उधर सुनील ने पैसा न देने पर शुभम के अपने घर में आने पर पाबंदी लगा दी. मंजू और शुभम, दोनों को ही यह बात नागवार गुजरी. मंजू ने शुभम के साथ शादी करने की इच्छा जाहिर की तो वह इस के लिए तैयार हो गया. इस के बाद मंजू और शुभम, दोनों मिल कर सुनील की हत्या की साजिश रचने लगे, क्योंकि सुनील के जीते जी ऐसा संभव नहीं था. इस योजना में शुभम ने अपने साथ काम करने वाले 2 हमउम्र युवकों, प्रदीप कुमार निवासी बेगमगंज, जनपद लखीमपुर खीरी तथा कुंवर सिंह उर्फ टानू निवासी सिकठिया, जनपद लखीमपुर खीरी को भी शामिल कर लिया. प्रदीप और टानू, दोनों को पहले से शुभम और मंजू के प्रेमप्रसंग की जानकारी थी.

11 मार्च को जब सुनील खेत पर जाने लगा तो उस ने मंजू से कहा कि वह आज रात खेत पर बने ट्यूबवेल वाले कमरे पर रुकेगा. क्योंकि उसे खेतों में सिंचाई करनी है. मंजू न जाने कब से ऐसे मौके के इंतजार में थी. उस ने फौरन अपने प्रेमी शुभम के मोबाइल पर फोन कर के कहा कि आज मौका अच्छा है, सुनील का काम तमाम कर दो. मंजू की बात सुन कर शुभम के शरीर में जैसे बिजली सी दौड़ गई. वह अपने साथी प्रदीप और टानू के साथ बाइक से हरदोई के लिए रवाना हो गया. रात साढ़े 8 बजे वह मंजू के गांव जा कर उस से मिला. मंजू ने उसे खेतों पर लगे ट्यूबवेल के कमरे के बारे में अच्छी तरह समझा दिया. शुभम बाइक अंधेरे में सड़क के किनारे खड़ी कर के दबे पांव अपने साथियों के साथ ट्यूबवेल के कमरे के बाहर पहुंचा, जहां सुनील अपने साथी ज्ञान सिंह के साथ सो रहा था.

2 आदमियों को वहां सोते देख कर तीनों सकपकाए, लेकिन शुभम किसी भी हाल में सुनील को छोड़ना नहीं चाहता था. उस ने सुनील की तरफ इशारा कर के अपने दोनों साथियों को बता दिया कि वही सुनील है. इस के बाद वे तीनों धड़धड़ाते हुए कमरे में घुस गए. सुनील के साथ सो रहा उस का साथी ज्ञान सिंह उन लोगों को देखते ही वहां से भाग खड़ा हुआ. इस के बाद टानू और प्रदीप ने सुनील के हाथपैर पकड़े और शुभम ने साथ लाए चाकू से उस पर ताबड़तोड़ वार करने शुरू कर दिए, जिस से सुनील की मौत हो गई. इस के बाद इन लोगों ने उस की लाश कमरे में बने कुएं में डाल दी.

सुनील की हत्या करने के बाद तीनों रातोंरात लखीमपुर खीरी लौट गए. सुनील की हत्या करने की बात शुभम ने मंजू को फोन कर के बता दी. मंजू यह सोच कर खुश हो गई कि उस के रास्ते का कांटा सदा के लिए दूर हो गया. उधर ज्ञान सिंह ने गांव में आ कर सुनील के घर वालों को बताया कि कुछ बदमाशों ने सुनील के ऊपर जानलेवा हमला किया है. जब तक ज्ञान सिंह उस के घर वालों के साथ वहां पहुंचता, सुनील की मौत हो चुकी थी. 12 मार्च की सुबह सुनील के बड़े भाई अनिल ने इस घटना की सूचना मल्लावां कोतवाली को दी. सूचना पा कर मल्लावां थाने के इंसपेक्टर श्याम बहादुर सिंह टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

ट्यूबवेल का 8×8 फुट का कमरा खेत के एक कोने में बना था. उस कमरे में 5×5 फुट के हिस्से में कुंआ था, जोकि 80 फुट गहरा था. इसी कुएं में सुनील की लाश पड़ी थी. श्याम बहादुर सिंह ने गांव वालों की मदद से लाश को कुएं से निकलवाया. मृतक सुनील के सीने व पेट पर लगभग 70-80 घाव थे, गले में रेते जाने के निशान भी मौजूद थे. निरीक्षण के बाद पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला चिकित्सालय हरदोई भेज दिया. इस के बाद श्याम बहादुर सिंह अनिल को ले कर कोतवाली आ गए. वहां उन्होंने अनिल की तहरीर पर सुनील की हत्या का मामला गांव की ही एक युवती अनुराधा और 2 अज्ञात व्यक्तियों के विरुद्ध दर्ज करा दिया.

श्याम बहादुर सिंह ने इस मामले की तहकीकात शुरू की तो पता चला अनुराधा टीचर थी. उस की सुनील से दुश्मनी तो थी, लेकिन उस का सुनील की हत्या में कोई हाथ नहीं था. मोबाइल सर्विलांस के आधार पर जब मृतक सुनील और उस की पत्नी मंजू की काल डीटेल्स निकाली गई तो श्याम बहादुर सिंह को मंजू के मोबाइल की काल डिटेल्स पर संदेह हुआ, क्योंकि एक नंबर पर उस की लंबीलंबी बातें होती थीं. घटना वाली रात को भी मंजू की उस नंबर पर कई बार बात हुई थी. जब उस नंबर के बारे में जांचपड़ताल की गई तो पता चला कि वह नंबर लखीमपुर खीरी के शुभम शर्मा के नाम है. मल्लावां थाने की पुलिस ने शुभम के पते पर दबिश दी तो वह अपने घर से फरार मिला. पुलिस टीम खाली हाथ वहां से लौट आई.

इस बीच मृतक की पत्नी मंजू के बारे में कोतवाली प्रभारी को जानकारी मिली कि सुनील की अनुपस्थिति में मोटर साइकिल पर सवार एक युवक उस से मिलने के लिए आता था. यह जानकारी श्याम बहादुर सिंह के लिए बड़े काम की थी. उन्होंने शुभम को पकड़ने के लिए मुखबिरों का जाल बिछा दिया.  27 मार्च को मुखबिर ने श्याम बहादुर सिंह को सूचना दी कि सुनील हत्याकांड में शामिल शुभम शर्मा अपने साथियों के साथ मल्लावां रेलवे स्टेशन पर आएगा. मुखबिर की सूचना पर श्याम बहादुर सिंह ने उसी दिन दोपहर 2 बजे शुभम को उस के दोनों साथियों प्रदीप और टानू के साथ रेलवे स्टेशन के पास से गिरफ्तार कर लिया. वे लोग सफेद रंग का जिस टीवीएस स्पोर्ट्स बाइक से आए थे, वह भी पुलिस ने अपने कब्जे में ले ली.

जब थाने में ला कर शुभम शर्मा और उस के दोनों साथियों से पूछताछ की गई, तो पहले तो उन लोगों ने सुनील की हत्या में शामिल होने से साफ इनकार कर दिया. लेकिन जब शुभम को उस के मोबाइल की काल डिटेल्स दिखाई गई तो उस का रंग सफेद पड़ गया. अंतत: उस ने अपने साथियों प्रदीप और टानू के साथ मिल कर सुनील की हत्या करने का जुर्म स्वीकार कर लिया. हत्या की इस योजना में मंजू भी शामिल थी. उसी दिन शाम को मंजू को भी उस के घर से गिरफ्तार कर लिया गया. शुभम की निशानदेही पर सुनील की हत्या में इस्तेमाल किया गया चाकू घटनास्थल से 100 मीटर की दूरी पर एक झाड़ी से बरामद हुआ.

मुकदमे में मंजू, शुभम शर्मा उर्फ लल्ला, प्रदीप कुमार और टानू उर्फ कुंवर सिंह को शामिल कर के पुलिस ने चारों को 28 मार्च को सीजेएम की अदालत में पेश किया, जहां से सभी को न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारि

Haridwar Crime Story: विद्रोही बीवी का दंश

Haridwar Crime Story: नफीस और गुफराना आपसी मतभेदों के चलते अलगअलग रहने लगे थे. जब गुफराना को पता चला कि नफीस दूसरी शादी के चक्कर में है तो उस की करोड़ों की जायदाद के चक्कर में उस ने गुनाह की ऐसी भूमिका बनाई कि पुलिस भी चकरा गई. 26 अप्रैल, 2015 को सुबह के 11 बज रहे थे. जिला हरिद्वार के रुड़की शहर की सिविल लाइंस कोतवाली के एसएसआई आर.के. सकलानी कोतवाली में ही थे. पिछले कुछ दिनों से एटीएम मशीनों के साथ छेड़छाड़ और ठगी की शिकायतें मिल रही थीं. इसलिए आर.के. सकलानी क्षेत्र की एटीएम मशीनों की सुरक्षा व्यस्था की चैकिंग करने की सोच रहे थे. तभी उन के मोबाइल की घंटी बजने लगी. सकलानी ने काल रिसीव की तो पता चला कि दूसरी ओर शहर के विधायक प्रदीप बत्रा हैं.

बातचीत हुई तो प्रदीप बत्रा ने सकलानी को बताया कि कोतवाली क्षेत्र स्थित मोहल्ला ग्रीनपार्क का रहने वाला 40 वर्षीय नफीस 9 अप्रैल से गायब है. उन्होंने यह भी बताया कि नफीस के घर वाले गांव बिझौली में रहते हैं और उसे सभी परिचितों और रिश्तेदारों के यहां ढूंढ़ चुके हैं. आर.के. सकलानी ने बत्रा साहब से कहा कि वह नफीस के घर वालों को उस के फोटो के साथ कोतवाली भेज दें. वह नफीस को ढूंढ़ने में उन की पूरी मदद करेंगे. थोड़ी देर बाद नफीस का भाई नसीर अपने 2 रिश्तेदारों के साथ कोतवाली सिविल लाइंस पहुंच गया. उसे चूंकि विधायकजी ने भेजा था, इसलिए सकलानी ने नफीस के लापता होने के मामले में पूरी दिलचस्पी लेते हुए नसीर से जरूरी बातें पूछीं.

उस ने बताया कि 9 अप्रैल को नफीस मोटरसाइकिल से अपने भतीजे साकिब के पास गया था. साकिब मदरसा जामिया तुलउलूम का छात्र था. शाम को उस ने साकिब को बाइक की चाबी दे कर कहा था कि वह थोड़ी देर में आ रहा है. लेकिन वह आज तक वापस नहीं लौटा. नसीर ने यह भी बताया कि उस के पास मोबाइल था, जो उसी दिन से बंद है.

‘‘नफीस की किसी से कोई दुश्मनी तो नहीं थी?’’ सकलानी के पूछने पर नसीर ने बताया कि नफीस सीधासादा इंसान था. उस की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. एसएसआई सकलानी ने नसीर से नफीस का फोटो ले कर उस की गुमशुदगी का मामला दर्ज करा दिया. उस का पता लगाने की जिम्मेदारी एसआई अजय कुमार को सौंपी गई. अजय कुमार ने भी नसीर से उस के भाई नफीस के बारे में विस्तृत पूछताछ की. चूंकि नफीस को गायब हुए 10 दिन हो चुके थे, इसलिए यह मामला थोड़ा गंभीर लग रहा था. अजय कुमार ने नफीस के कई रिश्तेदारों से पूछताछ भी की और उस के फोन की काल डिटेल्स भी निकलवाई. लेकिन कई दिनों की भागदौड़ के बाद भी कोई नतीजा नहीं निकला.

एक दिन सकलानी की एक वीआईपी ड्यूटी के बारे में पड़ोस की कोतवाली भगवानपुर के कोतवाल योगेंद्र सिंह भदौरिया से बात हुई तो बातोंबातों में भदौरिया ने बताया कि 20 दिनों पहले उन के इलाके में एक अज्ञात व्यक्ति की लाश मिली थी, जिस की शिनाख्त अभी तक नहीं हुई है. भदौरिया ने यह भी बताया कि मृतक क्रीम कलर की चैकदार शर्ट और मटमैले रंग की पैंट पहने था और उस का शरीर और चेहरा काफी हद तक कुचला हुआ था. यह सुन कर सकलानी ने सोचा कि कहीं वह लाश नफीस की ही न रही हो. यह बात दिमाग में आते ही उन्होंने एसआई अजय कुमार और मृतक के भाई नसीर को कोतवाली भगवानपुर भेजा.

चूंकि लाश काफी दिनों पहले मिली थी, इसलिए पुलिस ने 3 दिनों तक लाश की शिनाख्त का इंतजार करने के बाद उसे दफन करा दिया था. अलबत्ता लाश के कपड़े कोतवाली के मालखाने में ही रखे थे. पुलिस ने जब उन कपड़ों को नसीर को दिखाया तो वह उन्हें देखते ही रोने लगा. वे कपड़े नफीस के ही थे. भगवानपुर पुलिस ने बताया कि नफीस की लाश 9 से 10 अप्रैल, 2015 की रात को देहरादून रोड स्थित पुहाना गांव के तिराहे के पास मिली थी. लाश का चेहरा काफी हद तक कुचला हुआ था. इसीलिए उस की शिनाख्त नहीं हो सकी थी.

भगवानपुर कोतवाली के इंसपेक्टर योगेंद्र सिंह भदौरिया ने बताया कि वे इस मामले को दुर्घटना समझ रहे थे. फिर भी उन्होंने मृतक की शिनाख्त कराने का पूरा प्रयास किया था. मृतक की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी उस की मृत्यु का कारण सिर की चोटों की वजह से अत्यधिक रक्तस्राव होना बताया गया था. शिनाख्त की काररवाई के बाद अजय कुमार रुड़की लौट आए. शाम को उन्होंने इस मामले में वरिष्ठ उपनिरीक्षक आर.के. सकलानी, कोतवाल बी.डी. उनियाल व एएसपी प्रहलाद नारायण मीणा से विचारविमर्श किया. लंबी बातचीत से पुलिस इस नतीजे पर पहुंची कि यह मामला एक्सीडेंट का नहीं, बल्कि कत्ल का था.

एएसपी प्रहलाद नारायण मीणा ने जांच अधिकारी अजय कुमार को निर्देश दिया कि वह मृतक नफीस की काल डिटेल्स देख कर उन लोगों से पूछताछ करें, जिन्होंने घटना वाले दिन उसे फोन किया था. साथ ही उस की पारिवारिक स्थिति की गोपनीय जानकारी भी जुटाएं. एसआई अजय कुमार ने नफीस की पारिवारिक जानकारी जुटाई तो पता चला कि थाना मंगलौर के अंतर्गत आने वाले गांव बिझौली का रहने वाला 40 वर्षीय नफीस खेतीबाड़ी करता था. 18 वर्ष पूर्व नफीस का निकाह पुरकाजी, मुजफ्फरनगर की गुफराना उर्फ सुक्खी से हुआ था. दोनों के 2 बच्चे थे अजमल और एहतराम. नफीस के पास बिझौली में खेती की जमीन भी थी और मकान भी.

इस के अलावा रुड़की शहर में भी उस का एक मकान था. उस की कुल संपत्ति करीब ढाई करोड़ की थी. यह भी पता चला कि नफीस अय्याश किस्म का इंसान था. इसी वजह से 3 साल पहले उस की गुफराना से अनबन हो गई थी. वह दोनों बच्चों के साथ अपने मायके पुरकाजी में ही रह रही थी. यह सारी बातें एसएसपी स्वीटी अग्रवाल को पता चलीं तो उन्होंने इस मामले की जांच में एसओजी टीम को भी शामिल कर दिया. एसओजी टीम ने जब नफीस के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स खंगालीं तो पता चला कि नफीस के लापता होने से पूर्व उस की एक नंबर पर बात हुई थी. उस नंबर पर एसओजी को कुछ संदेह हुआ. क्योंकि उस नंबर पर बात होने के बाद नफीस का मोबाइल स्विच औफ हो गया था.

एसओजी टीम के प्रभारी मोहम्मद यासीन ने जब उस नंबर की जांच की तो पता चला कि वह नंबर मोहल्ला झोझियान, पुरकाजी निवासी इकराम के नाम से था. पुलिस ने जब इकराम के बारे में सुरागरसी की तो मालूम हुआ कि वह कहने को तो ट्रक ड्राइवरी करता था, लेकिन आपराधिक प्रवृत्ति का था. 2 साल पहले वह एक मोटर- साइकिल लूट के मामले में थाना छपार, मुजफ्फरनगर में गिरफ्तार हो कर जेल भी गया था. फिलहाल वह घर से फरार है. इस के बाद सकलानी, अजय कुमार और एसओजी टीम ने इकराम की गिरफ्तारी के लिए मेरठ, गाजियाबाद व हापुड़ में उस के ठिकानों पर दबिश देनी शुरू कर दी.

आखिरकार 2 मई, 2015 को पुलिस ने इकराम को उस वक्त पुरकाजी से ही गिरफ्तार कर लिया, जब वह चोरीछिपे अपने घर वालों से मिलने आ रहा था. गिरफ्तारी के बाद पुलिस उसे रुड़की ले आई. कोतवाली में पुलिस ने जब उस से नफीस की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उस ने स्वीकार कर लिया कि नफीस की हत्या की गई थी और वह हत्या की वारदात में शामिल था. उस ने यह भी बताया कि इस हत्या में उस की खुद की बीवी भूरी, महबूब और शमीम भी शामिल थे. जबकि हत्या की सुपारी नफीस की पत्नी गुफराना उर्फ सुक्खी ने दी थी. इकराम से पूछताछ के बाद इस मामले की हकीकत कुछ इस तरह सामने आई.

18 वर्ष पूर्व जब गुफराना और नफीस का निकाह हुआ था, इकराम काफी छोटा था. पुरकाजी में वह इन लोगों का पड़ोसी था. पड़ोसी होने के नाते इकराम गुफराना को फूफो कहता था. उस का एक भाई और 4 बहनें थीं. पैसे की कमी की वजह से उस की बहनों की शादियां नहीं हुई थीं. इकराम बाइक लूट के अपने मुकदमे की पैरवी के लिए मुजफ्फरनगर कोर्ट जाता रहता था. भूरी नाम की एक तलाकशुदा महिला भी अपने पति से चल रहे तलाक के मुकदमें की वजह से वहां आतीजाती थी. वहीं पर दोनों की मुलाकात हुई. धीरेधीरे मुलाकातें बढ़ने लगीं तो इकराम भूरी की मदद करने लगा.

बाद में इकराम ने भूरी से निकाह कर लिया और मुजफ्फरनगर के मोहल्ला लद्दावाला में किराए का मकान ले कर रहने लगा. एक बार इकराम पुरकाजी आया तो एक दिन फूफी गुफराना उसे मिल गई. दोनों की पुरानी जानपहचान थी, इसलिए खूब बातें हुईं. बातोंबातों में गुफराना ने उसे बताया कि उस का शौहर नफीस किसी औरत से दूसरा निकाह करने वाला है, इसलिए उस ने बच्चों सहित उसे घर से निकाल दिया है. गुफराना ने इकराम से यह भी कहा कि अगर किसी तरह वह नफीस को ठिकाने लगा दे तो वह उसे 8 लाख रुपए देगी. कुछ दिनों तक इकराम ने गुफराना की इस बात पर खास ध्यान नहीं दिया. लेकिन जब एक दिन उस ने बड़ी गंभीरता से कहा कि 8 लाख की रकम कम नहीं होती तो वह नफीस की हत्या करने के लिए तैयार हो गया. इस के बाद दोनों ने मिल कर नफीस की हत्या की योजना बना ली.

इस के बाद गुफराना ने इकराम को एडवांस के तौर पर 80 हजार रुपए भी दे दिए. गुफराना ने नफीस का मोबाइल नंबर भी इकराम को दे दिया. योजना के अनुसार, इकराम ने 19 मार्च, 2015 को रुड़की की रामपुर चुंगी के निकट भूरी के रहने के लिए किराए के एक कमरे का इंतजाम कर दिया. आगे की योजना के तहत एक दिन भूरी ने नफीस के मोबाइल पर मिसकाल की. इस के जवाब में नफीस ने लौट कर फोन किया और भूरी से लंबी बात की. इस के बाद भूरी और नफीस एकदूसरे को अकसर फोन करने लगे. कुछ ही दिनों में भूरी ने नफीस को अपने प्रेमजाल में फांस लिया. इस के बाद नफीस अकसर उस से मिलने उस के कमरे पर जाने लगा.

नफीस को सपने में भी गुमान नहीं था कि जिस खूबसूरत औरत के प्रेमजाल में फंस कर वह पैसा उड़ा रहा है, वह उस की मौत का तानाबाना बुन चुकी है. बहरहाल षडयंत्र से अनभिज्ञ नफीस भूरी के भ्रमजाल में फंसा रहा. योजना के तहत 9 अप्रैल, 2015 को इकराम ने देहरादून जाने के लिए 2500 रुपए में पुरकाजी निवासी सुनील की टैक्सी बुक की और शाम को अपने दोस्तों शमीम और जावेद के साथ रामपुर चुंगी स्थित भूरी के कमरे पर आ गया. टैक्सी ड्राइवर अर्जुन उन के साथ था. योजना के अनुसार, गुफराना का भाई महबूब भी उस वक्त भूरी के कमरे पर मौजूद था. शाम 7 बज कर 30 मिनट पर भूरी ने फोन कर के नफीस को अपने कमरे पर बुलवा लिया.

जब नफीस कमरे पर आया तो महबूब और जावेद बाहर खड़ी कार में बैठ गए. भूरी ने नफीस से कमरे पर मौजूद शमीम का परिचय अपने रिश्तेदार के रूप में कराया. इस के बाद वह दूध गरम करने लगी. उधर थोड़ी देर बैठे रहने के बाद इकराम ने टैक्सी चालक अर्जुन से कहा कि अभी बच्चों को तैयार होने में देर लगेगी, तब तक तुम जावेद के साथ जा कर अपनी शाम रंगीन कर लो. टैक्सी की चाबी मुझे दे दो, मैं इस में तेल डलवा देता हूं. इस के बाद टैक्सी चालक अर्जुन जावेद के साथ शराब के ठेके पर पहुंच गया, जहां उस ने खूब शराब पी. जावेद उसे पीने के लिए उकसा रहा था. दूसरी ओर भूरी ने नफीस की नजर बचा कर गर्म दूध में नशे की 4 गोलियां डाल दी थी. नफीस भूरी पर अंधविश्वास करता था. उस ने दूध पी लिया.

नशीला दूध पीने के बाद नफीस को नींद आने लगी तो वह वहीं सो गया. तभी शमीम और इकराम कमरे में आए. आते ही उन्होंने नफीस का गला दबा कर उस की हत्या कर दी. इस के बाद वे उस की लाश को टैक्सी की पिछली सीट पर डाल कर गांव सालियर होते हुए पुहाना जहाजगढ़ मार्ग पर ले आए. एक सुनसान जगह देख कर इन लोगों ने नफीस की लाश को सड़क के किनारे फेंक दिया. नफीस की लाश की शिनाख्त न हो सके, इस के लिए इकराम ने कई बार टैक्सी आगेपीछे कर के उस का मृत शरीर और चेहरा कुचल दिया, ताकि यह दुर्घटना का मामला लगे. इस के बाद तीनों वापस भूरी के कमरे पर आ गए.

ड्राइवर अर्जुन और जावेद नशे में धुत हो कर रात 12 बजे वापस लौटे. रात को सब वहीं सो गए. सुबह इकराम ने अर्जुन को उलाहना दिया कि तुम्हारे ज्यादा पीने की वजह से हम देहरादून नहीं जा सके. इकराम को यकीन था कि अर्जुन कुछ भी नहीं समझ पाया होगा. अगले दिन सुबह 7 बजे शमीम व जावेद बाइक से मुजफ्फरनगर चले गए तथा इकराम व भूरी टैक्सी से पुरकाजी लौट आए. नफीस की जेब से निकाला पैसों से भरा पर्स इकराम ने भूरी को सौंप दिया था.

नफीस की हत्या का खुलासा होने के बाद एसआई अजय कुमार ने नफीस की गुमशुदगी का मुकदमा भादंवि की धारा 302, 201, 328, 34 व 120 बी में परिवर्तित कर दिया. इस के बाद एसओजी प्रभारी मोहम्मद यासीन तथा उन की टीम के सदस्यों, अशोक, जाकिर, आशुतोष तिवारी, कपिल, शेखर, राहुल, अमित, पूरण, हेमंत, अंशु चौधरी और रश्मि गुज्यांल ने पुरकाजी व मुजफ्फरनगर में दबिशें दे कर गुफराना व भूरी को भी गिरफ्तार कर लिया और रुड़की ले आए. भूरी व गुफराना ने अपने बयानों में इकराम के बयानों का ही समर्थन किया. गुफराना ने बताया कि वह इकराम को अपने शौहर नफीस की हत्या की सुपारी के 80 हजार रुपए दे चुकी है तथा शेष रकम अपना आम का बाग बेच कर देती.

इस के बाद पुलिस ने भूरी की निशानदेही पर मृतक नफीस का पर्स उस के मुजफ्फरनगर स्थित मकान से बरामद कर लिया. उस की निशानदेही पर आर.के. सकलानी ने हत्या में इस्तेमाल इंडिका टैक्सी पुरकाजी से बरामद कर ली. 3 मई, 2015 को एसएसपी स्वीटी अग्रवाल ने इकराम, भूरी और गुफराना उर्फ सुक्खी को मीडिया के सामने पेश कर के नफीस हत्याकांड का खुलासा किया. तीनों आरोपियों की गिरफ्तारी की भनक पा कर अभियुक्त जावेद, शमीम व महबूब फरार हो गए थे. पुलिस उन की गिरफ्तारी के लिए प्रयासरत थी. Haridwar Crime Story

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Hindi Story: अपराधिक सोच

Hindi Story: साधारण परिवार में पलाबढ़ा काजी कयूम किसी भी तरह रुपए जमा कर बड़ा आदमी बनना चाहता था. उस ने 2 पैसे वाली बेवा औरतों से शादी कर उन्हें  ठिकाने लगा दिया,   लेकिन जब  तीसरी का कत्ल किया तो…

मैं ने फाइल पर हाथ मारते हुए कहा, ‘‘वकील साहब मेरे मुवक्किल को मुजरिम कह रहे हैं, यह गलत बात है. जब तक जुर्म साबित नहीं हो जाता, मेरे मुवक्किल को मुजरिम नहीं कहा जा सकता.’’

‘‘ऐतराज दुरुस्त है.’’ जज ने कहा, ‘‘वकील साहब अपने बयान से खतरनाक मुजरिम हटा दीजिए.’’

वादी वकील मुझे घूर कर रह गया. मैं ने अपने मुवक्किल की जमानत के लिए जोर देते हुए कहा, ‘‘योरऔनर, इस मुकदमे को चलते 4 महीने हो गए हैं. मेरे मुवक्किल पर कत्ल का आरोप है. लेकिन वादी अब तक कोई भी ठोस सबूत उस के खिलाफ पेश नहीं कर सका, न ही कोई खास काररवाही हो सकी है. मैं ने केस आज ही हाथ में लिया है.’’

‘‘बेग साहब, काररवाही धीमी होने की वजह वादी और बचाव, दोनों की जिम्मेदारी है. इस स्थिति में जमानत मंजूर नहीं हो सकती.’’ जज ने कहा. बचाव वकील की लापरवाही की ही वजह से यह मुकदम्मा मेरे पास आया है. मुझे पता है कि कत्ल के केस में जमानत वैसे भी मुश्किल से मिलती है. पहले वाले वकील ने केस में जरा भी मेहनत नहीं की थी. मेरा मुवक्किल खलील एक बेवा मां का बेटा था. मध्यमवर्गीय लोग थे. खलील अपनी बेवकूफी और बदकिस्मती से एक कत्ल के केस में फंस गया था. काजी कयूम एक बेहद शातिर और चालाक आदमी था. एक फ्लैट में उस ने अपना औफिस खोल रखा था.

उस की काजी ट्रेडिंग नाम से एक छोटी सी कंपनी थी. उस की यह कंपनी कई काम करती थी. एक्सपोर्ट, इंपोर्ट, मैनुफैक्चरिंग, सप्लाई आदि. वह किसी आदमी को मायूस नहीं लौटाता था. असल में वह कुछ नहीं था, महज एक फ्रौड था, जो सिर्फ जुबान से सभी को उल्लू बना रहा था. औफ द रिकौर्ड उस का असली काम था लोगों से बड़ीबड़ी रकमें इनवेस्ट करवाना, जिस पर वह बहुत ज्यादा ब्याज देता था. वह देखभाल कर, सीधेसादे, उम्र वाले रिटायर लोगों या जरूरतमंदों को शिकार बनाता था. काजी जो ब्याज देता था, वह बैंक से बहुत ज्यादा यानी 10 फीसदी होता था, इसलिए लोग लालच में उस के जाल में फंस जाते थे.

खलील के वालिद के मरने के बाद उन के डिपार्टमेंट से अच्छीखासी रकम मिली थी. उस की मां ने समझदारी से काम लेते हुए मकान की बाकी किस्तें एक साथ भर कर मकान अपने नाम करा लिया था. बाकी के छोटेमोटे कर्जे अदा करने के बाद उस के पास करीब 10 लाख रुपए बच गए थे. उसे 9 हजार रुपए पेंशन मिल रही थी. खलील एक प्रिंटिंग प्रेस में नौकरी करता था, जहां से उसे 10 हजार रुपए मिलते थे. इतने में मांबेटे का अच्छी तरह से गुजरबसर हो रहा था. लेकिन खलील इस नौकरी से संतुष्ट नहीं था. वह कोई दुकान किराए पर ले कर अपना कारोबार शुरू करना चाहता था. उस ने कारोबार करने के लिए मां से 1 लाख रुपए मांगे. तब मां ने कहा, ‘‘खलील, तुम अभी छोटे और नासमझ हो. मैं इतनी बड़ी रकम तुम्हारे हाथ में नहीं दे सकती.’’

लेकिन जब खलील ने बहुत जोर दिया तो उस ने कहा, ‘‘अच्छा मैं सोच कर बताऊंगी. तुम्हारी नौकरी अच्छी है, इसलिए मेरे खयाल से कारोबार के झंझट में मत पड़ो.’’

खलील रोज बस से अपनी नौकरी पर जाता था. एक दिन बस में उस की असद से मुलाकात हो गई. वह 28-29 साल का नवजवान था. वह टीवी की दुकान पर सेल्समैन था. एक दिन उस ने खलील से कहा, ‘‘अगर मैं 2 लाख रुपए जमा कर लूं या कहीं से जुगाड़ कर लूं तो मैं अपनी दुकान खोल सकता हूं.’’

खलील भी अपनी दुकान खोलने के चक्कर में था. अगर उसे कहीं से 1 लाख रुपए मिल जाते तो वह भी अपनी दुकान खोल सकता था. इसीलिए उस ने पूछा, ‘‘भाई, यह बताओ तुम इतने रुपए का जुगाड़ कहां से करोगे?’’

‘‘यार, काजी कयूम की एक इनवेस्टमेंट कंपनी है. उस में मैं ने अब्बा के 5 लाख रुपए लगवा दिए हैं. यह कंपनी बहुत ज्यादा ब्याज देती है. 5 लाख रुपए पर हमें 50 हजार रुपए महीने मिल रहे हैं.’’

‘‘क्या, महीने में या एक साल में?’’ खलील ने हैरानी से पूछा.

‘‘भाई, महीने में 50 हजार रुपए मिल रहे हैं. 5 महीने में मुझे ढाई लाख रुपए मिल जाएंगे. वे रुपए अब्बा से ले कर मैं अपनी दुकान खोल लूंगा. मैं ने अब्बा को बताया है कि 5 प्रतिशत ब्याज मिलेगा. इस तरह मुझे एक लाख रुपए वैसे ही मिल जाएंगे. बाकी मांग लूंगा. मेरा काम हो जाएगा.’’ असद ने कहा.

‘‘भई, यह तो बहुत बढि़या स्कीम है. इतना ब्याज तो कोई भी बैंक नहीं देता. मुझे लगता है, मैं भी इस कंपनी में पैसा लगा दूं.’’ खलील ने कहा.

अगले 10 मिनट तक असद उसे काजी कयूम की इनवेस्टमेंट कंपनी के बारे में बताता रहा. उस कंपनी के बारे में जान कर खलील बहुत कुछ सोचने पर मजबूर हो गया. ब्याज के बारे में जानकर वह लालच में आ गया. अगर वह अम्मा को राजी कर के 10 लाख रुपए 2 महीने के लिए इनवेस्ट करा दे तो उसे 2 लाख रुपए मिल जाएंगे. उस में से एक लाख रुपए ले कर बाकी रुपए वह अम्मा को वापस कर देगा. मूल रकम के साथ एक लाख रुपए उन्हें ब्याज भी मिल जाएगा. वह खुश हो जाएंगी. इस के बाद उस ने असद से पूछा, ‘‘जब तुम्हारे अब्बा के पास 5 लाख रुपए थे तो तुम ने उन से रुपए क्यों नहीं ले लिए?’’

‘‘वह मुझ पर इतना भरोसा नहीं करते थे कि मुझे अपनी रकम दे देते. लंबे फायदे की बात है, शायद इसीलिए रुपए दिए हैं.’’ असद ने कहा.

‘‘मेरी भी यही मुश्किल है. अम्मा मुझे भी नादान समझती हैं, इसलिए बड़ी रकम देना नहीं चाहतीं. मैं भी ज्यादा ब्याज बता कर ही रुपए मांगूंगा.’’

उस दिन खलील का मन काम में नहीं लगा. बारबार वह रकम इनवेस्ट करने के बारे में ही सोचता रहा. काफी सोचने के बाद एक आइडिया उस के दिमाग में आ गया. अगले दिन उस ने मां को शहर में होने वाली ठगी के बारे में खूब विस्तार से बताया. यह सब सुन कर अम्मा थोड़ी परेशान हो गईं. इस के अगले दिन भी उस ने अम्मा को ठगी के 2-4 किस्से सुना दिए. 4-5 दिनों तक वह इसी तरह करता रहा. इस के बाद इनवेस्टमेंट स्कीम के बारे में इस तरह समझाया कि ठगी से डरी हुई अम्मा 10 लाख रुपए इनवेस्ट करने को राजी हो गईं, क्योंकि फायदा खासा था. रकम जस की तस रहती, 2 महीने में खलील की दुकान भी खुल जाती.

असद खलील को ले कर काजी कयूम के औफिस गया. बड़ी सी मेज के पीछे काजी बैठा था. वह दुबलापतला छोटे कद का शातिर आदमी था. आने की वजह पूछने पर खलील ने कहा, ‘‘मैं 10 लाख रुपए आप की कंपनी में इनवेस्ट करना चाहता हूं.’’

‘‘कितने दिनों के लिए इनवेस्ट करना चाहते हो?’’ काजी ने पूछा.

‘‘मैं सिर्फ 2 महीने के लिए इनवेस्ट करना चाहता हूं.’’

‘‘भई, फिर तो मुश्किल है. बात यह है कि मैं 6 महीने से कम के लिए रकम इनवेस्ट नहीं कराता, क्योंकि कारोबार में रकम लगाना तो आसान है, लेकिन निकालना बहुत मुश्किल. फंसी रकम को निकालना बहुत दुश्वार है.’’

असद और खलील उस का मुंह देखने लगे. उन्हें शीशे में उतारने  और अपनी बात उन के दिमाग में बैठाने के लिए उस ने 10 दलीलें दीं. अंत में उस ने कहा, ‘‘देखो भाई, नुकसान से बचने के लिए मैं ने कुछ अलग नियम बना रखे हैं, जैसे एक महीने के लिए इनवेस्ट करोगे तो 2 प्रतिशत ब्याज मिलेगा, 2 महीने पर 5 प्रतिशत और 6 महीने पर 10 प्रतिशत. इस तरह मैं कारोबार में नुकसन से बच सकता हूं.’’

‘‘यह हमारे लिए घाटे का सौदा होगा.’’ खलील ने कहा.

‘‘इसीलिए तो कह रहा हूं कि 6 महीने के लिए पैसे जमा कराओ.’’ काजी ने कहा.

काफी बातचीत के बाद खलील इस नतीजे पर पहुंचा कि काजी की बात मान कर रकम 6 महीने के लिए इनवेस्ट कराने के लिए मां को राजी करे. महीने के अंत में एक बड़ी रकम उन के हाथ पर रखेगा तो वह खुद ही खुश हो कर 6 महीने के लिए इनवेस्ट करने को राजी हो जाएंगी. इस तरह 2 महीने में खलील को दुकान खोलने के लिए रुपए मिल जाएंगे. मां को भरोसे में ले कर वह उन्हें सारी बात समझा देगा. यह सब सोच कर वह 6 महीने के लिए रुपए जमा कराने के लिए राजी हो गया. इस तरह खलील ने 10 लाख रुपए 6 महीने के लिए इनवेस्ट कर दिए.

महीन भर बाद वह असद के साथ अपने ब्याज के रुपए लेने काजी के औफिस पहुंचा तो काजी ने उसे 10 प्रतिशत के हिसाब से एक लाख रुपए दे दिए. असद को दूसरे महीने का ब्याज भी मिल गया. खुशीखुशी खलील मां के पास पहुंचा और उसे एक लाख रुपए दे कर बोला, ‘‘ये रुपए मैं रख लेता हूं. अगले महीने के रुपए ले कर बाकी के रुपए आप को दे दूंगा.’’

एक लाख रुपए देख कर मां खुश हो गई. ब्याज से खलील की दुकान खुल जाने की बात जान कर उसे बड़ी तसल्ली मिली. इसलिए खुशी से उस ने पैसे दे दिए, ताकि कुछ सामान खरीद कर वह काम शुरू कर सके. मां को खुश देख कर खलील ने कहा, ‘‘अम्मा, हमें ब्याज में एक मोटी रकम मिल रही है, इसलिए हम अपनी रकम 2 महीने में वापस लेने के बजाय 6 महीने में लें, जिस से हमें काफी फायदा हो जाए.’’

मां भी लालच में आ गई और राजी हो गई. अगले महीने भी सही समय पर ब्याज की रकम मिल गई. खलील ने नौकरी छोड़ कर अपनी दुकान शुरू कर दी. उस की दुकान भी चलने लगी. तीसरे महीने का ब्याज मिलने में अभी एक हफ्ता बाकी था कि असद परेशान सा उस के पास आ कर कहने लगा, ‘‘यार, काजी कयूम 3-4 दिनों से अपने औफिस में नहीं मिल रहा है. अपने पैसों के लिए मैं कई चक्कर काट चुका हूं. वह मिल ही नहीं रहा है.’’

‘‘वह रहता कहां है? उस के घर के बारे में पता करो.’’

‘‘काजी की सेक्रैट्री कंवल से कई बार पूछा, वह कहती है कि उसे नहीं मालूम. मुझे मालूम है, वह झूठ बोल रही है.’’

खलील का पैसा मिलने में अभी एक हफ्ता बाकी था. वह भी परेशान हो गया. दोनों ही मिडल क्लास परिवारों से थे. उन के लिए यह रकम बहुत बड़ी थी. अगले दिन दोनों काजी कयूम के औफिस पहुंचे. वहां सेक्रैट्री कंवल बैठी थी. काजी के बारे में पूछने पर उस ने कहा, ‘‘उन्हें तेज बुखार है, वह आराम कर रहे हैं. एकदो दिनों में ठीक हो जाएंगे तो औफिस आएंगे.’’

खलील और असद नीचे खड़ी काजी की फिएट देख चुके थे. दोनों बिना कुछ कहे काजी के कमरे की ओर बढ़े तो कंवल उन्हें रोकने लगी. लेकिन वे जबरदस्ती काजी की केबिन में घुस गए. काजी अपनी केबिन में भलाचंगा बैठा था. साफ था, उसी के कहने पर कंवल बहाने बना रही थी. खलील और असद को देख कर काजी घबरा गया. उस ने हैरानी से पूछा, ‘‘तुम… तुम दोनों… अंदर कैसे आ गए?’’

‘‘हम आप की खैरियत पता करने आए हैं. सुना है, आप को तेज बुखार है.’’

‘‘बैठो…बैठो.’’ काजी ने बौखला कर कहा, ‘‘दरअसल, मेरी तबीयत ठीक नहीं थी.’’

‘‘आप 4 दिनों से कहां थे? मैं ने कई चक्कर लगाए.’’ असद ने कहा.

‘‘भई कारोबार में उतारचढ़ाव आते ही रहते हैं. मैं ने 10 लाख रुपए का माल मिडल ईस्ट भेजा था. उस की रिकवरी में देर हो रही थी, उसी के उलझन में फंसा था.’’ काजी ने कहा.

असद ने चिढ़ कर कहा, ‘‘आप की उलझन ने मेरा तो सत्यानाश मार दिया. अभी तक इस महीने के मेरे पैसे नहीं मिले.’’

‘‘6 दिनों बाद मेरे पैसों की भी तारीख है.’’ खलील ने याद दिलाया.

‘‘बिलकुल भई. तुम लोग चिंता क्यों करते हो. आज ही चेक कैश हो जाएगा. उस के बाद तुम्हारी रकम दे दूंगा.’’

इस के बाद उस ने इतनी विनम्रता से उन्हें समझाया कि वे संतुष्ट हो कर चले आए. काजी बहुत चालाक और शातिर आदमी था, दोनों को तसल्ली और दिलासा दे कर उस ने विदा कर दिया था. लेकिन उन के दिल में एक डर बैठ गया था कि कहीं काजी उन्हें लंबी चपत न लगा दे.

3 दिनों बाद खलील की असद से मुलाकात हुई तो उस का चेहरा उतरा हुआ था. उस ने उदासी से कहा, ‘‘यार, काजी कयूम एक बार फिर गायब हो गया है. मुझे तो वह आदमी फ्राडिया लगता है. मुझे लगता है वह मेरे पैसे नहीं देना चाहता, लेकिन मैं उस से एकएक पाई वसूल लूंगा. मैं ही जानता हूं कि मैं ने अब्बा को किस मुश्किल से समझाया था.’’

असद की बातों से खलील भी परेशान हो उठा. उस ने पूछा, ‘‘उस की सेक्रैट्री कंवल क्या कहती है?’’

‘‘वह कह रही है कि शहर से बाहर गया है, पर उस के औफिस में जब भी जाओ, 3-4 लोग बैठे उस का इंतजार करते रहते हैं. अगर काजी बाहर गया है तो वे किस से मिलने आते हैं?’’ असद ने कहा.

‘‘यार, काजी मुझे पक्का फ्राडिया लगता है. उस दिन भी उस ने कंवल से झूठ कहलाया था, जबकि वह अंदर ही बैठा था. अब वह हम से बच रहा है. यार मुझे तो अभी 2 महीने का ही ब्याज मिला है. तुम्हारे सुझाने पर ही मैं ने पैसे इनवेस्ट किए थे. अगर काजी ने मेरे साथ भी यही किया तो मैं बरबाद हो जाऊंगा.’’ खलील लगभग रुआंसा हो गया.

‘‘यार घबराओ मत, मैं भी तो फंसा हुआ हूं. आज फिर उस के औफिस चलते हैं, कुछ न कुछ तो होगा ही.’’ असद ने दिलासा दिया.

दोनों काजी के औफिस पहुंचे और कंवल से काजी के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘अभी 20 मिनट पहले ही वह घर गए हैं.’’

बात बढ़ी तो वहां बैठे लोगों ने वजह पूछी. वजह जानने के बाद उन्होंने कहा कि वे भी काजी के इंतजार में बैठे हैं. उन्होंने भी मोटीमोटी रकमें इनवेस्ट कर रखी है. 3 महीने तक तो उन्हें ब्याज के पैसे मिले, अब वे भी रोज चक्कर लगा रहे हैं. काजी मिलता ही नहीं है. यह सेक्रैट्री बहाने बना कर टाल देती है.

‘‘यह तो सरासर जालसाजी है. हम ने भी उस के पास मोटी रकम इनवेस्ट कर रखी है. वह हमें भी टाल रहा है.’’ असद ने कहा.

सभी अपनाअपना रोना रोने लगे, उन लोगों ने भी लाखों रुपए इनवेस्ट कर रखे थे. सभी को 2 या 3 महीने ब्याज के रुपए मिले थे, उस के बाद सभी चक्कर लगा रहे थे. खलील और असद नाकाम हो कर लौट आए. खलील के पास अभी कुछ करने के लिए 3 दिन बाकी थे, पर असद, फैजान, सरवर और नूरखां बहुत परेशान और गुस्से में थे. उन की तारीखें निकल चुकी थीं. चारों ने काजी के औफिस में खूब हंगामा किया. काजी को घेर लिया और तोड़फोड़ भी की. इस के बाद काजी ने पुलिस बुला ली.

पुलिस चारों को गिरफ्तार कर के ले गई. बाद में चारों बड़ी मुश्किल से दे दिला कर पुलिस के चंगुल से छूटे. यह सुन कर खलील के पांवों तले से जमीन निकल गई. उस ने किसी तरह काजी के घर का पता लगा लिया. अगले दिन खलील काजी के घर पहुंच गया. उस का नरसरी के इलाके में खूबसूरत बंगला था, जहां वह अपनी खूबसूरत बीवी नौशीन के साथ रहता था. खलील को देख कर काजी हैरानपरेशान रह गया. खलील ने कहा, ‘‘आज मेरे पैसों की तारीख है. आप मेरे पैसे दे दें. मुझे तो डर लग रहा था कि कहीं आप उन चारों की तरह मुझे भी पुलिस के हवाले न कर दें.’’

काजी कयूम ने बड़े दोस्ताना लहजे में कहा, ‘‘अरे भाई, ऐसी बात नहीं है. वे तोड़फोड़ कर रहे थे, इसलिए पुलिस बुलानी पड़ी. मैं एक कारोबारी आदमी हूं, मुझे सब की तारीखें याद रहती हैं. मैं सब के रुपए दूंगा. थोड़ा धैर्य से काम लें. तुम्हारा दोस्त असद तो मारपीट और तोड़फोड़ कर रहा था. वह उन के साथ मिल कर गुंडागर्दी कर रहा था. उन्हें भी भड़का रहा था. इसलिए मजबूरन मुझे यह सब करना पड़ा. बिजनैस में जल्दबाजी नहीं होती. मैं तुम्हारे रुपए जरूर दूंगा. अभी तो शाम हो गई है, तुम कल सुबह 11 बजे यहीं आ जाना. मैं तुम्हें बैंक ले चलूंगा और तुम्हारे रुपए वहीं दे दूंगा.’’

काजी ने इतने दोस्ताना अंदाज में बात की थी कि खलील को तसल्ली हो गई. वह जाने के लिए खड़ा हुआ तो काजी ने कहा, ‘‘गुस्से और गुंडागर्दी से काम नहीं बनेगा. अपने दोस्त असद को भी समझाओ. उस के पैसे मिल जाएंगे.’’

दूसरे दिन ठीक साढ़े 10 बजे खलील काजी कयूम के बंगले पर पहुंच गया. घंटी बजाने पर गेट नौशीन ने खोला. वह 28-29 साल की खूबसूरत औरत थी. खलील ने कहा, ‘‘मैं खलील हूं, मुझे काजी कयूम ने बुलाया था.’’

‘‘आप वक्त से पहले आ गए.’’ उस ने सपाट लहजे में कहा.

‘‘मैं आधा घंटा इंतजार कर लूंगा.’’ खलील ने जल्दी से कहा.

‘‘आप इंतजार में अपना वक्त बेकार न करें. वह किसी जरूरी काम से बाहर गए हैं. शाम से पहले नहीं आएंगे.’’

‘‘मुझे बुला कर वह कहां चले गए?’’ खलील ने परेशान हो कर पूछा.

‘‘यह तो मुझे नहीं मालूम कि वह कहां गए हैं. इतना जानती हूं कि औफिस नहीं गए हैं. आप के लिए एक मैसेज छोड़ गए हैं कि आप रात 8 बजे आ कर अपने रुपए ले जाइए.’’ नौशीन ने कहा.

नौशीन गेट के अंदर बंगले के लौन में थी, जबकि खलील गेट के बाहर खड़ा था. काजी का मैसेज सुन कर उसे थोड़ा सुकून मिला. सामने हसीन औरत वादा कर रही हो तो कुछ कहा भी नहीं जा सकता था. उस ने कहा, ‘‘ठीक है, मैं रात 8 बजे आ जाऊंगा. आप काजी साहब को बता दीजिएगा.’’

‘‘जरूर बता दूंगी.’’ नौशीन ने मुसकरा कर कहा.

खलील के सिर पर तब आसमान टूट पड़ा, जब उसी दिन एक बजे पुलिस ने उसे उस की दुकान से नौशीन के कत्ल के इल्जाम में गिरफ्तार कर लिया. यह थी मेरे मुवक्किल खलील की दुखभरी कहानी. खलील ने कत्ल के इल्जाम से साफ इनकार कर दिया था. पिछली पेशी में मैं ने उस की जमानत की कोशिश की थी, पर नाकाम रहा था. अब तक मैं ने मुकदमें की फाइल ठीक से देख ली थी और जरूरी जानकारियां भी जुटा ली थीं. असद ने जानकारियां जुटाने में मेरी बहुत मदद की थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, नौशीन को गला दबा कर मारा गया था. पिछले 4 महीने में मुकदमे में कुछ खास नहीं हुआ था. इस पेशी पर जज ने नए सिरे से मुल्जिम का बयान रिकौर्ड कराया. वादी वकील ने पूछना शुरू किया, ‘‘मकतूल नौशीन से तुम्हारी क्या दुश्मनी थी?’’

‘‘मेरी उस से कोई दुश्मनी नहीं थी. मेरी उस से एक बार मुलाकात हुई थी, वह भी मैं गेट के बाहर था और वह अंदर लौन में. यह बात मैं अपने बयान में पहले भी बता चुका हूं.’’ खलील ने कहा.

‘‘तुम्हारा झगड़ा तो काजी कयूम से था.’’

‘‘जी नहीं, मेरा उन से भी कोई झगड़ा नहीं था. मुझे उन से अपने पैसे लेने थे.’’

‘‘तब तुम ने उन की बीवी नौशीन का कत्ल क्यों किया?’’

‘‘मुझ पर झूठा इल्जाम क्यों लगा रहे हैं. मैं ने कहा न कि मैं ने कत्ल नहीं किया. घटना वाले दिन मैं काजी से मिलने गया था. वह नहीं था तो मैं गेट के बाहर से बात कर के लौट आया था.’’

‘‘तुम्हें काजी के घर में किसी चीज की तलाश थी, जब नौशीन ने तुम्हें रोका तो तुम ने उस का गला दबा दिया?’’

 

‘‘यह झूठ है, मैं ने ऐसा कुछ नहीं किया. मैं घर के अंदर गया ही नहीं. मैं गेट के बाहर से ही लौट आया था.’’

वादी वकील ने 4-5 सवाल और किए, पर कोई नतीजा नहीं निकला. इस के बाद उस ने पैंतरा बदला, ‘‘योरऔनर, 3 दिनों पहले मुल्जिम के खास दोस्त असद ने 2-4 बेकार लोगों के साथ काजी कयूम के औफिस में मारपीट और तोड़फोड़ की थी. काजी ने सब को गिरफ्तार करा दिया था. उसी का बदला लेने के लिए इस ने काजी की बीवी नौशीन का कत्ल किया है.’’

मैं ने इस का जोरदार विरोध किया, ‘‘आई औब्जेक्ट योरऔनर, वादी वकील बारबार पैंतरा बदल रहे हैं. पहले इन्होंने कहा कि मुल्जिम कोई चीज तलाश रहा था, जब मकतूला ने रोका तो उस का गला दबा दिया. अब कह रहे हैं कि अपने दोस्त असद की गिरफ्तारी का बदला लेने के लिए नौशीन का कत्ल कर दिया. ये इन की बचकानी वहजे हैं.’’

‘‘कैसी बचकानी दलील है?’’ वादी वकील ने कहा.

‘‘जनाब, असद और खलील की कोई बहुत गहरी दोस्ती नहीं थी. बस में मुलाकात हुई थी. इस के बाद वे कभीकभी मिलने लगे थे. ऐसी कोई दोस्ती नहीं थी कि वह उस के लिए कत्ल जैसा जुर्म करता.’’

जज ने मेरी बात में वजन महसूस किया. उस ने कुछ नोट किया. इस के बाद जिरह की बारी मेरी थी.

मैं ने कहा, ‘‘मि. खलील, आप मकतूला को कब से जानते हैं, आप का उस से क्या ताल्लुक था?’’

‘‘मेरी मकतूला से सिर्फ एक मुलाकात हुई थी, वह भी गेट पर खड़ेखड़े. मकतूला के शौहर काजी कयूम से मेरे कारोबारी संबंध थे, करीब 3 महीने से.’’

‘‘किस किस्म के संबंध थे. आप के काजी कयूम से?’’

इस बार उस ने 10 लाख रुपए के इनवेस्ट की पूरी कहानी सुना दी. आखिर में कहा, ‘‘मैं तीसरे महीने का ब्याज लेने काजी कयूम के घर गया था, क्योंकि वह औफिस में मिल नहीं रहा था. मैं औफिस जाना भी नहीं चाहता था, क्योंकि वहां पहले ही हंगामा हो चुका था. काजी ने मुझे 11 बजे पैसे लेने के लिए बुलाया था.’’

‘‘तुम्हें असद, सरवर, नूर खां के पैसों की कोई फिक्र नहीं थी. तुम अकेले ही अपना पैसा लेने चले गए थे?’’

‘‘साहब, ऐसे मौके पर सब को अपनीअपनी पड़ी होती है.’’

मैं ने अपने सवालों के जरिए काजी का दूसरा रूप अदालत के सामने रख दिया, जो एक फ्राडी इनवेस्टर का था. खलील ने एकएक बात खोल कर रख दी थी. अन्य लोगों के पैसे डूबने की बात भी बता दी थी. वादी वकील ने 2 बार ऐतराज किया, पर जज ने रद्द कर दिया. खलील के जवाबों का खुलासा करते हुए मैं ने कहा, ‘‘योरऔनर काजी टे्रडिंग कंपनी के अलावा इनवेस्टमेंट का भी काम करता था, जो सरासर फ्राड पर आधारित था. इस ने जिन लोगों के पैसे इनवेस्ट कराए. अब वे चक्कर काट रहे हैं. 5 हमारे सामने ही मौजूद हैं. फैजान के 5 लाख, सरवर ने 8 लाख, नूरखां ने 3 लाख, असद के 5 लाख, खलील ने 10 लाख रुपए इनवेस्ट किए थे. सारे लोग तो झूठ नहीं बोल रहे हैं. मुल्जिम अपने पैसे लेने काजी के घर गया तो उसे कत्ल के इल्जाम में फंसा दिया गया. बाकी लोगों के पैसे नहीं मिले हैं.’

जज ने मेरी बातें ध्यान से सुनी और वादी वकील से पूछा, ‘‘क्या काजी कयूम अदालत में मौजूद है?’’

उस के ‘हां’ कहने पर काजी कयूम को विटनेस बौक्स में बुलाया गया. हलफ लेने के बाद जज ने उस से काजी इनवेिस्टंग के बारे में पूछा. काजी ने अदब से जवाब दिया, ‘‘हुजूर, मेरी सिर्फ काजी ट्रेडिंग कंपनी है, जो एक्सपोर्टइंपोर्ट का काम करती है. काजी इनवेस्टिंग जैसी झूठी व फ्राडी कंपनी से मेरा कोई ताल्लुक नहीं है, न ही मेरी ऐसी कोई कंपनी है.’’

वादी वकील फौरन बोला, ‘‘जज साहब, बेग साहब मेरे मुवक्किल पर झूठे इल्जाम लगा रहे हैं.’’

जज ने मुझ से पूछा, ‘‘मि. बेग, काजी साहब तो किसी इनवेस्टिंग कंपनी की बात नहीं मान रहे हैं, आप के पास कोई दस्तावेजी सबूत है?’’

‘‘दस्तावेजी सुबूत तो नहीं है, क्योंकि फ्राड का काम करने वाले बड़ी चालाकी से काम करते हैं, ताकि पकड़ में न आएं. काजी ने भी सादे कागजों पर 10 लाख रुपए की रसीद दी थी, उस में भी उस के साइन फर्जी हैं. ब्याज इतना ज्यादा था कि लोग लालच में अंधे हो कर बिना सोचेसमझे पैसे लगा रहे थे. मैं सिर्फ लुटने वाले लोगों को बुलवा कर गवाही दिला सकता हूं.’’

इसी के साथ अदालत का वक्त खत्म हो गया. वैसे भी मुझे मेरे मुवक्किल को कत्ल के इल्जाम से बचाना था. इनवेस्टमेंट की बात बाद में देखी जाएगी. नौशीन के कत्ल से उसे किस तरह छुड़ाना है, इस की पूरी प्लानिंग मेरे दिमाग में चल रही थी. बाहर मुझे खलील की मां मिली, जो लपक कर मेरे पास आई. जमानत न होने से वह बहुत दुखी थी. मैं ने उसे समझाया कि कत्ल के केस में जमानत बड़ी मुश्किल से मिलती है. आगे बेहतर होगा, इस का दिलासा दिया.

अगली पेशी पर मैं ने जज साहब से केस के इन्क्वायरी अफसर से चंद सवाल करने की इजाजत मांगी, जो इंसपेक्टर वहीद खां थे. मैं ने उन से पूछा, ‘‘इंसपेक्टर साहब, इस्तगासा के अनुसार, वारदात की खबर आप को 22 मार्च को साढ़े 11 बजे मिली थी. 12 बजे आप वहां पहुंच गए थे. आप को किस ने और क्या खबर दी थी?’’

‘‘वारदात की जानकारी मुझे काजी कयूम ने दी थी. फोन पर कहा था कि उन की बीवी नौशीन कत्ल कर दी गई है. खलील नामी किसी शख्स ने उस का कत्ल किया है.’’

‘‘आप ने घटनास्थल पर जा कर क्या देखा था?’’

‘‘पूरा घर इस तरह उलटापलटा पड़ा था, जैसे डकैती पड़ी हो, पर काजी कयूम के मुताबिक कुछ चोरी नहीं हुआ था. काजी की बीवी नौशीन की लाश ड्राइंगरूम में फर्श पर पड़ी थी.’’

‘‘इंसपेक्टर साहब, यह कत्ल 10 से साढ़े 11 के बीच हुआ था. पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के मुताबिक मौत की वजह गला घोंटना है. क्या आप ने गले पर से फिंगरप्रिंट्स उठाए थे?’’

‘‘हम ने फिंगरप्रिंट्स लेने की कोशिश की थी, पर हमें कामयाबी नहीं मिली. शायद मुल्जिम ने दस्ताने पहन रखे थे.’’ उस ने हड़बड़ाते हुए जवाब दिया.

‘‘पर आप की तैयार की गई रिपोर्ट में इस बात का कहीं कोई जिक्र नहीं है.’’

‘‘शायद यह बात रिपोर्ट में आने से रह गई है.’’

‘‘शायद नहीं, यकीनन. लेकिन यह बहुत बड़ी गलती है. अभी आप ने कहा कि बंगले की हालत से लगता था कि वहां डाका पड़ा था. आप ने बाकी जगहों के फिंगरप्रिंट्स उठाए थे?’’

‘‘मैं ने सभी जगहों से फिंगरप्रिंट्स उठाने की कोशिश की थी, पर कोई अजनबी फिंगरप्रिंट्स नहीं मिले थे. शायद इस की वजह दस्ताने थे.’’

‘‘घटनास्थल का काम निपटाने के बाद आप ने क्या किया था?’’

‘‘मैं ने मुल्जिम खलील को उस की दुकान से गिरफ्तार कर लिया था.’’ इंसपेक्टर वहीद खां ने कहा.

‘‘आप को यह बात किस ने बताई थी कि खलील दुकान पर होगा? दुकान का पता किस ने बताया था?’’ मैं ने पूछा.

‘‘दोनों बातें मुझे काजी कयूम ने बताई थीं.’’

मेरी जिरह खत्म होने के बाद गवाह अनवर की बारी आई. वह 60-65 साल का मजबूत काठी का आदमी था. उस की काजी कयूम के बंगले के पास कोल्डड्रिंक, पान, सिगरेट वगैरह की दुकान थी. वादी वकील ने उस से मामूली सवाल किए, जिस का खुलासा यह था कि वह दिन भर दुकान पर बैठता था. उस ने मुल्जिम को काजी कयूम के बंगले के पास मंडराते देखा था, उस के चेहरे पर घबराहट थी. इस के बाद मैं जिरह करने के लिए खड़ा हुआ. मैं ने पूछा, ‘‘अनवर, तुम कितने सालों से दुकान चला रहे हो और तुम्हारी दुकान कैसी चलती है?’’

‘‘मैं करीब 10 सालों से यह दुकान चला रहा हूं. बहुत अच्छी चलती है. मुझे सिर उठाने की फुरसत नहीं मिलती.’’

‘‘तुम काजी कयूम को जानते हो? उस के इनवेस्टिंग के कारोबार के बारे में भी जानते होंगे?’’

‘‘मैं काजी साहब को जानता हूं. मुझे इतना पता है कि वह कोई कंपनी चलाते हैं. इनवेस्टिंग का पता नहीं.’’

‘‘आप ने वारदात के दिन मुल्जिम को पहली बार देखा था? अब आप ने अच्छे से देख लिया कि मुल्जिम वही आदमी है, जिसे आप ने काजी के घर के पास देखा था?’’

‘‘जी हां, यह वही आदमी है.’’

‘‘आप की दूर की नजर कैसी है?’’

‘‘बहुत अच्छी, एकदम ठीकठाक.’’

मैं ने अदालत के खुले दरवाजे की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘दरवाजे में जो आदमी खड़ा वकील साहब से बातें कर रहा है, उस की टाई का रंग बताइए तो कैसा है?’’

वह बेहद परेशान नजर आने लगा, फिर उलझन से बोला, ‘‘वह टाई गे्र नहीं, डार्क ग्रीन…’’

अचानक वह खामोश हो गया. मैं ने व्यंग से कहा, ‘‘अनवर खां, आप का और दरवाजे का फासला करीब डेढ़ सौ गज है, जबकि आप की दुकान और काजी कयूम के बंगले की दूरी करीब 2 सौ गज से ज्यादा है. आप को सामने खड़े आदमी की टाई का रंग समझ में नहीं आ रहा है. वहां इतनी दूर से आप ने मुल्जिम के चेहरे के भाव देख लिए. क्या कमाल है. आप को इस गवाही के कितने पैसे मिले थे?’’

‘‘जी नहीं, दरअसल बात यह है कि कलर… मैं रुपए ले कर नहीं आया.’’ वह हड़बड़ा कर बोला.

‘‘अनवर साहब, आप ने इसे पहले नहीं देखा था, न वह आप की दुकान पर आया था. फिर आप अपनी दुकान पर इतने मसरूफ रहते हैं, उइस के बावजूद आप ने इतना देख लिया. अभी मैं ने अदालत के सामने साबित कर दिया कि यह डेढ़ सौ गज दूर की चीज नहीं देख सकते. सरासर फर्जी गवाही है जनाबेआली, एक मसरूफ आदमी इतनी दूर से इतनी बारीकी से हरगिज नहीं देख सकता, इस का दावा निराधार है.’’

जज ने कुछ नोट किया, इसी के साथ अदालत का वक्त खत्म हो गया.

विटनेस बौक्स में काजी कयूम की सेक्रैट्री कंवल खड़ी थी. वादी वकील की जिरह में सारे पौइंट्स काजी कयूम के पक्ष में जा रहे थे. उस ने इनवेस्टिंग कंपनी से साफ इनकार कर दिया था. खलील, असद को पहचानने से भी उस ने इनकार कर दिया था. उस ने सिर्फ यह बात मानी थी कि कुछ गुंडे जैसे लोगों ने दफ्तर में तोड़फोड़ की थी. वादी वकील ने पूछा, ‘‘22 मार्च को क्या हुआ था?’’

‘‘22 मार्च को काजी साहब 10 बजे औफिस आए तो उस के 5 मिनट बाद उन के घर से फोन आया कि घर में डाकू घुस आए हैं, उन्हें जल्द से जल्द घर पहुंचने को कहा गया था.’’

इस के बाद मैं ने जिरह शुरू की. मैं ने कठघरे में खड़े खलील की तरफ इशारा कर के पूछा, ‘‘क्या आप इसे जानती हैं?’’

‘‘सिर्फ इस हद तक कि यह आदमी मुकदमे का मुल्जिम है, इस पर कत्ल का इल्जाम है.’’

कंवल बड़ी सफाई और ढिठाई से झूठ बोल रही थी.

मैं ने कहा, ‘‘याद करिए, यह आदमी 3 महीने से काजी कयूम के पास आ रहा था, कभी अकेले, कभी असद के साथ. इस ने काजी के पास 10 लाख रुपए इनवेस्ट किए थे.’’

‘‘इस तरह के किसी मामले की मुझे कोई जानकारी नहीं है.’’

मैं समझ गया कि यह फ्राडी इनवेस्टमेंट के बारे में एक भी शब्द नहीं बोलेगी. मैं ने फिर पूछा, ‘‘वारदात के 4 दिन पहले औफिस में किस बात पर हंगामा हुआ था, उस की वजह क्या थी?’’

‘‘उस दिन 4-5 नवजवान औफिस में घुस आए और तोड़फोड़ तथा मारपीट करने लगे. वे किसी फायदे की बात कह रहे थे. जब काजी साहब ने इनकार कर दिया तो वे मारपीट पर उतारू हो गए. मजबूर हो कर काजी साहब को पुलिस बुला कर उन्हें गिरफ्तार      कराना पड़ा, क्योंकि उन का किसी इनवेस्टमेंट से कोई ताल्लुक नहीं था.’’

बाकी उस ने हर बात से इनकार कर दिया. यहां तक कि जब असद और खलील जबरदस्ती काजी से मिलने पहुंचे थे, उस ने साफ कह दिया था कि ऐसी कोई बात वह नहीं जानती. अगली पेशी पर काजी कयूम ने अपना बयान दर्ज कराया. मैं ने जिरह शुरू की, ‘‘काजी साहब, मकतूल नौशीन से आप की शादी कब हुई थी?’’

‘‘मेरी शादी को 2 साल हो रहे हैं.’’

‘‘आप नरसरी वाले बंगले में कब शिफ्ट हुए? इस से पहले आप गुलशन इकबाल में ब्लाक, 13 में रहते थे न?’’

‘‘इस बंगले में आए मुझे 3 साल हुए हैं, पहले मैं गुलशन इकबाल में ही रहता था.’’

‘‘आप यह ट्रेडिंग कंपनी कब से चला रहे हैं?’’

‘‘करीब 8 सालों से.’’

‘‘यानी आप की पहली बीवी सूफिया के जमाने से?’’ मैं ने चुभते हुए लहजे में पूछा.

ये सारी जानकारी बड़ी मेहनत से असद ने जुटा कर मुझे दी थी. पहली बीवी का नाम सुनते ही काजी कयूम घबरा गया. उस ने उखड़े लहजे में कहा, ‘‘आप ठीक कह रहे हैं.’’

‘‘सूफिया से जब आप की शादी हुई थी, वह एक बेसहारा, पर काफी मालदार औरत थी. उस वक्त आप की जेब खाली थी. सूफिया की दौलत ने आप को मजबूत सहारा दिया. कुछ समय बाद उसी के माल से आप ने टे्रडिंग कंपनी खोल ली. फिर आप दिनरात तरक्की करते गए. 4 सालों बाद आप की बीवी सूफिया छत से गिर कर काफी जख्मी हो गई. जब आप उसे कार से अस्पताल ले जाने लगे तो उस ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया. मैं ठीक कह रहा हूं न?’’

विटनेस बौक्स में खड़ा काजी बदहवास नजर आने लगा, उस ने बौखला कर कहा, ‘‘एकदम ठीक.’’

वादी वकील ने काजी की हालत देख कर बोलना जरूरी समझा, ‘‘योरऔनर, बेग साहब नौशीन के कत्ल को भूल कर गवाह के अतीत को उखाड़ने में लग गए हैं.’’

मैं ने फौरन कहा, ‘‘योरऔनर, कत्ल काजी साहब की मौजूदा बीवी का हुआ है. उस का राज खोलने को पहली बीवी का जिक्र जरूरी है, क्योंकि काजी साहब की पहली 2 बीवियों की हादसे में मौत हो चुकी है. उस बात पर परदा डालना इंसाफ के उसूलों के विरुद्ध होगा.’’

मेरी बात खत्म होते ही जज ने जोर से कहा, ‘‘2 बीवियां और दोनों की हादसे में मौत?’’

‘‘यह बड़ी कड़वी सच्चाई है योरऔनर.’’ मैं ने मजबूती से कहा.

जज ने दिलचस्पी लेते हुए कहा, ‘‘आप इसी लाइन पर जिरह जारी रखें.’’

काजी का चेहरा फीका पड़ रहा था. मैं ने आगे पूछा, ‘‘काजी साहब, सूफिया की मौत पर आप को एक भारी रकम इंश्योरेंस से भी मिली थी. उस के बाद आप गुलशन इकबाल छोड़ कर मुस्लिमाबाद में आ बसे और वहां आप ने जमीला नाम की काफी मालदार बेवा औरत से शादी कर ली.’’

थोड़ा रुक कर मैं ने जज की ओर देखा. वह हैरान थे और कुछ लिख रहे थे. मैं ने बात आगे बढ़ाई, ‘‘काजी साहब, आप को जमीला से शादी रास नहीं आई, पर उस की दौलत तो आप के हाथ लग गई. जबकि वह बेचारी एक रोड ऐक्सीडेंट में चल बसी. कश्मीरी रोड पर उस की गाड़ी को एक वाटर टैंकर ने इतने जोर से टक्कर मारी कि वह उसी वक्त चल बसी. यह बात भी ताज्जुब की है कि वाटर टैंकर वालों का अड्डा आप के घर से दूर नहीं था. जमीला की हादसे में मौत का क्लेम आप ने 50 लाख रुपए वसूल किए. अगर मेरे बयान में कुछ गलत है तो मुझे टोक दें.’’

काजी कयूम की हालत देखने लायक थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या कहे. जज भी उस की घबराहट और हालत देख रहा था. मैं ने जिरह शुरू रखी, ‘‘काजी साहब, आप ने नौशीन की लाइफ पौलिसी एक करोड़ रुपए की करा रखी है. बेचारी की मौत को 8 महीने हो गए, क्या आप ने इंश्योरेंस क्लेम वसूल कर लिया है?’’

वह मुझे घूर कर रह गया. वादी वकील ने जल्दी से कहा, ‘‘जज साहब, गवाह की प्राइवेट लाइफ को उजागर करना सरासर गलत है.’’

मैं ने जल्दी से कहा, ‘‘मकतूल के क्लेम के बारे में पूछा कानूनन सही है, जवाब दें काजी साहब.’’

उस ने कमजोर लहजे में कहा, ‘‘क्लेम में कुछ कानूनी अड़चनें आ गई हैं.’’

‘‘वे कानूनी अड़चनें भी आप की लाई हुई हैं काजी साहब.’’ मैं ने कहा.

जज फौरन बोल उठे, ‘‘कैसी लाई गईं कानूनी अड़चनें? खुलासा करें बेग साहब?’’

‘‘काजी कयूम ने नौशीन से तीसरी शादी की थी, जो एक तलाकशुदा, पैसे वाली औरत थी. इस बार भी अगर काजी साहब बीवी की मौत को हादसे का रंग देते तो कुछ न बिगड़ता. कहानी एकदम सिंपल होती कि कोई नामालूम आदमी या डाकू घर में घुसा और नौशीन के विरोध करने पर उस का गला घोंट कर चला गया. अगर खलील को बीच में न फंसाते तो मामला अदालत तक नहीं पहुंचता और न ही इंश्योरेंस क्लेम मिलने में अड़चन खड़ी होती.’’

मेरे खामोश होते ही अदालत में बातें शुरू हो गईं.

मैं ने काजी से पूछा, ‘‘काजी साहब, आप इस आदमी को कब से जानते हैं?’’

मेरा इशारा खलील की ओर था.

‘‘अपनी बीवी की कत्ल की वारदात के बाद से.’’

‘‘मतलब, आप मुल्जिम के आप की इनवेस्टिंग कंपनी में 10 लाख रुपए जमा करने की बात से इनकार करते हैं?’’

‘‘इनवेस्टिंग कंपनी व भारी ब्याज की कहानी झूठी है.’’

‘‘क्या आप को मालूम था कि मुल्जिम की बिजनेस रोड पर दुकान है?’’ मैं ने तीखे लहजे में पूछा.

‘‘मुल्जिम के बारे में सारी जानकारी इस कत्ल के बाद मुझे हुई है.’’

‘‘क्या आप की या आप की बीवी की मुलिजम से कोई दुश्मनी थी?’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं थी.’’

‘‘फिर आप के खयाल में कत्ल का मकसद क्या हो सकता है? यूं ही तो कोई किसी को मार नहीं देता, कोई तो वजह होगी?’’

काजी घबरा कर बोला, ‘‘वह…वह… शायद चोरी की नीयत से मेरे घर में घुसा था. नौशीन के विरोध करने पर उसे मौत के घाट उतार कर फरार हो गया.’’

‘‘अब एक और नई कहानी कि चोरी करने आया था, जबकि चोरी हुई नहीं. पहले कहा था कि असद का बदला लेने घुसा और कत्ल कर दिया. ये कैसी बातें हैं कयूम साहब?’’

‘‘वह भी हो सकता है.’’ वह एकदम बौखला कर बोला.

‘‘यह भी हो सकता है, वह भी हो सकता है, अदालत में यह नहीं चलता. आप का दावा है काजी साहब कि आप मुल्जिम को बिलकुल नहीं जानते थे कत्ल होने तक. आप के बयान के अनुसार, जब आप मकतूल के खबर देने पर घर पहुंचे तो पूरा घर उलटापलटा पड़ा था और नौशीन की लाश ड्राइंगरूम में पड़ी थी. आप ने यह देख कर पुलिस को फोन किया. मेरा सवाल यह है कि घर पहुंचने के कितनी देर बाद आप ने पुलिस को हादसे की खबर दी थी?’’

‘‘लगभग 15 मिनट बाद.’’ उस ने घबराते हुए कहा.

मैं ने कहा, ‘‘पुलिस रोजनामचे के अनुसार, 22 मार्च को दिन के साढ़े 11 बजे आप ने फोन किया, जिस का जिक्र चालान में भी है. इस हिसाब से आप सवा ग्यारह बजे घर पहुंचे थे, जबकि आप की सेक्रैट्री कंवल ने कहा है कि आप सवा 10 बजे औफिस से निकले थे. आप के औफिस से आप के घर तक पहुंचने के लिए ज्यादा से ज्यादा 30 मिनट लगते हैं, फिर आप मौकाएवारदात पर एक घंटे बाद क्यों पहुंचे. आप तो अपनी कार में थे. मुश्किल से 20 मिनट लगने चाहिए थे?’’

वह कांपती आवाज में बोला, ‘‘दरअसल, रास्ते में मेरी गाड़ी खराब हो गई थी. इसलिए देर हो गई.’’

‘‘काजी साहब, इतना भी कमाल न करें, गाड़ी खराब हो गई थी तो आप टैक्सी ले सकते थे. नौशीन ने बड़ी इमरजैंसी में आप को फोन किया था. आप को तो उड़ कर वहां पहुंचना चाहिए था.’’

वह खामोश मुझे देखता रहा. हाथ मलता रहा. मैं ने एक वार और किया, ‘‘पुलिस रिकौर्ड के मुताबिक आप ने थाने फोन कर के कहा था कि खलील नाम के एक आदमी ने आप की बीवी नौशीन का कत्ल कर दिया है. जब आप हादसे से पहले मुल्जिम को जानते ही नहीं थे तो फिर आप ने उस का नाम कैसे लिया? क्या जादू से नाम पता चल गया था?’’

वह खामोश कठघरे का सहारा लिए खड़ा रहा, जो उस के मुजरिम होने का सुबूत था. मैं ने गिरती दीवार को एक धक्का और दिया, ‘‘काजी साहब, आप ने पैसे इनवेस्ट नहीं किए, आप खलील को नहीं जानते, फिर आप ने इन्क्वायरी अफसर को उस की दुकान का पता कैसे बताया. इन्क्वायरी अफसर यह बात बता चुका है कि मुल्जिम का नामपता आप ने उसे बताया था. इस सब का क्या मतलब निकलता है?’’

अब अपना रुख जज की तरफ फेरते हुए मैं ने कहा, ‘‘जनाबेआली, वादी की खामोशी यह बताती है कि वह कत्ल के पहले से ही मुल्जिम को अच्छी तरह जानता था और यह भी जानता था कि बिजनैस रोड पर उस की दुकान है. उस की गवाही कानून के उसूलों के विरुद्ध है. इस ने सरासर झूठ बोला है, नोट किया जाए.’’

मेरी बात पूरी होतेहोते अदालत का वक्त खत्म हो गया.

आगे वादी वकील ने मुल्जिम के खिलाफ तमाम दलीलें दीं, पर किसी दलील में दम नहीं था. अपनी बारी आने पर सारे झूठे बयानों का मैं ने खुलासा कर दिया. मुकदमा तो पिछली पेशी पर ही मेरी तरफ पलट चुका था. मैं ने फिंगरप्रिंट्स की रिपोर्ट गायब होने पर पुलिस पर सवाल उठाए, फिर अनवर की झूठी गवाही पर ऐतराज किया. काजी की सेक्रैट्री कंवल की झूठ बयानी और हठधर्मी पर अंगुली उठाई. रहीसही कसर काजी की 2 बीवियों की हादसे में मौत ने पूरी कर दी. अब जज पूरी तरह मेरे मुवक्किल के पक्ष में हो चुका था. फैसले की तारीख दे कर जज ने अदालत बरखास्त कर दी.

अगली पेशी पर अदालत ने मेरे मुवक्किल को बाइज्जत बरी कर दिया. इस के साथ पुलिस को आदेश दिया कि वह नौशीन के असली कातिल को गिरफ्तार कर जल्द से जल्द चालान पेश करे. पुलिस के लिए जज का हुक्म पकेपकाए हलवे से कम नहीं था. अगले ही दिन पुलिस पंजे झाड़ कर काजी कयूम के पीछे पड़ गई. काजी कयूम पुलिस की सख्ती ज्यादा देर नहीं सहन कर सका और उस ने नौशीन के साथसाथ अपनी पहली 2 बीवियों के कत्ल का भी इकरार कर लिया. मगर आखिर तक इनवेस्टिंग कंपनी के फ्राड से इनकार करता रहा.

मैं ने खलील को कत्ल से तो बाइज्जत बरी करवा लिया, पर पैसे नहीं दिला सका. शायद सब मिल कर पैसों के लिए फिर केस करें. काजी ने कत्ल का इकरार कर लिया, पर फ्राड का नहीं किया. पता नहीं यह उस के मुजरिम जेहन की कौन सी अदा थी? Hindi Story

 

 

 

 

Emotional Love Story: सर्द यादों के साए

Emotional Love Story: प्यार में मजाक हो सकता है, मगर मजाक में प्यार नहीं. मैं पागल थी न, किसी दूसरे की मंजिल को अपनी मंजिल समझ बैठी. … बस मैं अपनी मोहब्बत की तौहीन बरदाश्त नहीं कर सकी. कुसूर तो मेरा ही है कि हमदर्दी को मोहब्बत समझ लिया. अचानक मैं हड़बड़ा कर उठ बैठा. कोई बडे़ जोर से दरवाजा पीट रहा था. ‘‘भई, क्या मुसीबत आ गई? अभी तो सिर्फ 8 बजे हैं.’’ मैं ने चिल्ला कर कहा.

‘‘अशरफ भाई, दरवाजा खोलें.’’ शाजिया की कांपती

आवाज में न जाने क्या था कि मैं ने बिस्तर से छलांग लगाई और दरवाजा खोल दिया.

‘‘अशरफ भाई, वह… वह शज्जो मर गई. उस ने खुदकुशी कर ली है.’’

फिर मैं घर के अंदरूनी हिस्से की तरफ भागा. सब शज्जो के कमरे में जमा थे और वह सिर से पैर तक सफेद चादर ओढ़े पड़ी थी. चाची अम्मां के विलाप दिल को दहलाए दे रहे थे. यह अचानक क्या हो गया? मेरा दिल जैसे फटने को था. मैं घबरा कर कमरे से निकल आया. बरामदे में सब लड़केलड़कियां खड़े रो रहे थे. मुझे देख कर जमाल एकदम मुझ से लिपट गया, ‘‘अशरफ, मेरा गला दबा दो अशरफ… मैं शज्जो का कातिल हूं… मुझे मार दो. हमारे मजाक ने उस की जान ले ली. मैं सोच भी नहीं सकता था कि वह इतना आगे बढ़ जाएगी. मुझे फांसी पर लटकना चाहिए. मैं उस का कातिल हूं.’’

‘‘नहीं जमाल, हम सभी उस के मुजरिम हैं, सिर्फ तुम्हीं नहीं.’’ मैं ने रुंधी आवाज में कहा. मेरा दिल चाह रहा था कि मैं अकेले में बैठ कर खूब रोऊं और जी का बोझ हल्का करूं. मैं जल्दी से दादीजान के कमरे में घुस गया और आंसुओं से दिल की आग ठंडी करने लगा. हमारा खानदान बहुत बड़ा था और यह हमारी दादी का कारनामा था, जिन्होंने अपने चारों बेटों को एक छत तले रखा था. यह लंबीचौड़ी कोठी दादाजान ने बड़ी चाहत से बनवाई थी. दादीजान गांव की रहने वाली थीं. उन्होंने बेटों को अच्छी तालीम दिलाई. पढ़ीलिखी बहुएं लाईं, मगर उन्हें शहरों का यह लच्छन कि शादी होते ही बेटा मांबाप से अलग हो जाए, जरा भी पसंद नहीं आया था.

यों भी हम सब बड़ी मोहबबत से रहते थे. इसलिए किसी तल्खी का सवाल ही पैदा नहीं होता था. दादाजान का इंतकाल हो गया था, अब्बू चूंकि सब से बड़े थे, इसलिए अब वही घर के मालिक थे. सब से छोटे चाचा के यहां शज्जो के सिवा कोई औलाद जिंदा न रही. वह छोटे चाचा की औलाद बिलकुल नहीं लगती थी. चाचा और चाची, दोनों गोरेचिट्टे और जहीन थे, मगर शज्जो सांवली थी. उस में सब से बड़ी कमी यह थी कि वह बेहद कमअक्ल थी, न कोई सलीका, न शऊर, ऊपर से एकदम कुंद दिमाग. इसलिए वह पांचवीं से आगे नहीं पढ़ सकी.

बचपन में हम सब उस से बहुत खार खाते थे, क्योंकि दादीजान को वह सब से ज्यादा प्यारी थी. मगर जब हमें जरा समझ आई तो उस का खयाल रखने लगे. लड़कियां तो उस से बहुत घुलमिल कर रहतीं. लेकिन हम लोग कभीकभी उसे बेवकूफ बनाया करते, जिस में कभी कोई लड़की भी शामिल हो जाती. मगर जहां वह मुंह फाड़ कर रोना शुरू करती, हम लोग हाथ जोड़ कर उस के सामने खड़े हो जाते, वरना घर भर की डांट सुननी पड़ती. उस दिन नजमा बाजी की शादी तय हुई थी. हौल कमरे में सब मेहमान जमा थे. लड़कियों ने जर्द रंग के सूट पहने थे. राहेला की रंगत पर तो जर्द रंग बहुत खिल रहा था और जमाल ख्वाहमख्वाह हौल कमरे का चक्कर लगा रहा था.

हम सभी जानते थे कि वे दोनों एकदूसरे में दिलचस्पी रखते थे. लड़के जमाल को छेड़ रहे थे. नजमा बाजी की सहेलियां गीत गाने में मगन थीं. उस समय किसी को भी याद नहीं था कि शज्जो हमारे बीच नहीं थी और अपनी आदत के मुताबिक कहीं कोने में दुबकी रो रही होगी, क्योंकि सीमा ने उस की सांवली रंगत पर जर्द जोड़े का मजाक उड़ाया था.

जमाल किसी काम से ऊपर जाने लगा तो उस ने देखा कि शज्जो सीढि़यों पर बैठी रो रही थी. जमाल ने पूछा, ‘‘अरे क्या हुआ शज्जो? तुम हौल में नहीं गईं?’’

‘‘मैं वहां नहीं जाऊंगी. सब लड़कियां मेरा मजाक उड़ाती हैं.’’

जमाल ने उस की तरफ देखा. सिर में खूब तेल चुपड़ा हुआ था. 2 चोटियां खूब कसकस कर आगे डाली हुई थीं. गहरे जर्द रंग का सूट उस की स्याह रंगत पर बड़ा अजीब लग रहा था. जमाल को उस से हमदर्दी महसूस हुई. मगर मुश्किल यह थी कि वह किसी की बात नहीं मानती थी. अपनी मर्जी ही चलाती थी. चाची ने भी सब्रशुक्र कर के उसे उस के हाल पर छोड़ दिया था.

‘‘तो तुम कपड़े बदल लो न.’’ जमाल ने मशविरा दिया.

‘‘मुझे नहीं पता कि मैं कौनसे कपड़े पहनूं?’’ वह सिसक कर बोली.

‘‘अच्छा आओ, मैं बताता हूं.’’ जमाल ने मशविरा दिया.

थोड़ी देर बाद वह हौल में दाखिल हुई तो एकदम बदली हुई थी. मोतिए के हलके रंग के लिबास से उस की शख्सियत ही बदल गई थी. उस के लंबेघने बाल उस की पीठ पर लहरा रहे थे, स्याह रेशम जैसे चमकते हुए कमर से भी एक बालिश्त नीचे. दूसरी लड़कियों के बाल या तो कटे हुए थे या इतने खूबसूरत और घने नहीं थे. सब लड़कियां उस के बालों पर रश्क करती थीं.

इस के बाद वह जमाल से पूछपूछ कर ही कपड़े पहनने लगी. सब हैरान थे कि इतना सलीका उसे कहां से आ गया. मगर बारात वाले दिन वह फिर सीढि़यों पर बैठी सिसकसिसक कर रो रही थी. मैं ने उसे देखा तो एक नई शरारत सूझी. मैं ने जमाल से कहा, ‘‘शज्जो बुला रही है.’’

इधर से उधर दौड़तेभागते वह बहुत थक गया था. उसे गुस्सा आ गया, ‘‘अरे वाह, मैं क्या उस का नौकर हूं कि उसे मशविरे देता रहूं? किसी लड़की से क्यों नहीं पूछ लेती? देखता हूं उसे.’’ कह कर वह सीढि़यों की तरफ लपका, जहां शज्जो बैठी रो रही थी.

‘‘अब क्या हो गया? कौन सी मुसीबत आ गई?’’ वह उस के करीब आ कर चिल्लाया.

डर के मारे उस ने जोरजोर से रोना शुरू कर दिया. चेहरे पर सुर्खी और पाउडर फैला हुआ था मानो मेकअप करने की कोशिश की गई थी. जमाल उसे देख कर पसीज गया और नरमी से बोला, ‘‘तुम तैयार क्यों नहीं हो जातीं? कोई भी लड़की तुम्हें तैयार कर देगी.’’

‘‘कोई मेरी बात नहीं सुन रहा. सब अपनी तैयारी में लगे हैं.’’

‘‘ठहरो, मैं किसी को भेजता हूं.’’ वह झल्लाया हुआ ड्रेसिंगरूम में आया, जहां सब लड़कियां तैयार हो रही थीं. कोई इस्त्री कर रही थी, कोई नेल पौलिश लगा रही थी, किसी को कपड़ों से मैच करती हुई लिपस्टिक की तलाश थी. शोर सा मचा हुआ था.

‘‘तुम लोगों को अपनी ही पड़ी रहती है. किसी और की तरफ भी देख लिया करो.’’ जमाल चिल्लाया.

‘‘क्या हुआ जमाल भाई?’’ नईमा ने पूछा.

‘‘शज्जो को कोई तैयार नहीं कर सकता? अगर तुम से किसी की सगी बहन एब्नौर्मल होती तो क्या तुम लोग उसे यों छोड़ देते?’’

‘‘सौरी जमाल भाई.’’ नईमा बोली और जा कर शज्जो को ड्रेसिंगरूम में ले आई.

राहेला और जमाल के ‘अफेयर’ का सब को पता था. राहेला उस दिन बहुत प्यारी लग रही थी. जमाल के सामने पड़ते ही वह छुईमुई की तरह सिमट जाती. मैं ने महसूस किया कि शज्जो बड़ी अजीब नजरों से जमाल को देख रही थी. उसी समय मेरे दिमाग में एक नई शरारत का खयाल आया और मैं खुर्रम की तरफ बढ़ गया. शरारतों में वही मेरा पार्टनर होता था और मैं जो कुछ सोच रहा था, उस की राह अपने आप हमवार हो रही थी. रात गए नजमा बाजी की विदाई के बाद हम सब सोने के लिए ऊपर आने लगे तो देखा, शज्जो दूध का गिलास लिए जा रही थी.

‘‘अरे भई, यह किस की खातिरें हो रही हैं?’’ खुर्रम चहका.

वह एक लम्हे को घबराई, फिर बोली, ‘‘वह… जमाल भाई को… रात को दूध पीने की आदत है न, मैं ने सोचा, सब थक गए हैं, मैं दे आऊं.’’

‘‘भई, आदत तो हम सब को भी है. यह सिर्फ जमाल ही पर मेहरबानी क्यों?’’ मैं ने झुक कर धीरे से कहा.

वह एकदम सुर्ख हो गई, ‘‘अल्लाह, मुझे… जाने दीजिए न.’’ उस ने इस तरह इठला कर कहा कि हम सब हैरान हो कर एकदूसरे का मुंह देखने लगे. उस के चेहरे की सांवली रंगत हया की सुर्खी से मिल कर अजीब असर दे रही थी. मगर उस समय हम इतने थके हुए थे कि कोई और बात किए बगैर अपनेअपने कमरों में घुस गए.

फिर तो यह होने लगा कि जमाल के हर काम के लिए शज्जो दौड़ी जाती. शेव का पानी दिया जाता, कभी मोजेरूमाल धोए जाते, कभी कपड़ों पर इस्त्री की जाती. मैं और खुर्रम उसे शह देते रहते. हमारी फैमिली इतनी बड़ी थी कि किसी ने उस के इस बदलाव को महसूस नहीं किया. अगर किया भी तो यही सोचा कि जमाल उस का इतना खयाल रखता है, इसलिए वह भी उस के काम करती है.

नजमा बाजी की शादी के आठवें दिन दूरनजदीक के सभी रिश्तेदार विदा हो गए. हम सब राहेला के कमरे में बैठे गपशप कर रहे थे कि नबीला बोली, ‘‘आप लोग इजाजत दें तो मैं एक हैरतअंगेज बात जाहिर करूं?’’

‘‘इरशाद, इरशाद.’’ सब ने कहा.

जमाल बड़ी स्टाइल से सिगरेट के हलकेहलके कश ले रहा था. हम लोग लड़कियों के कमरे में छिप कर सिगरेट पिया करते थे. मैं एकदम बीच में कूद पड़ा, ‘‘अरे नबीला बोलो, जमाल की मजाल है जो तुम से कुछ कहे.’’

‘‘तो जनाब, बात यह है जमाल भाई कि अब आप राहेला बाजी से हाथ धो लें.’’

राहेला का चेहरा एकदम फक हो गया. ‘‘क्यों? क्यों?’’ सब चिल्लाए.

‘‘इसलिए कि शज्जो का दिल जमाल भाई पर आ गया है.’’

‘‘क्या?’’ जमाल के हाथ से सिगरेट गिर गई, ‘‘नबीला, मुझे ऐसे मजाक पसंद नहीं.’’ वह दहाड़ा.

‘‘मजाक कौन कर रहा है? उस ने खुद मुझे बताया है और यह भी कहा है कि जमाल भाई भी मुझे पसंद करते हैं. तभी तो वह मेरा इतना खयाल रखते हैं.’’

यह सुन कर सब के कहकहों से कमरा गूंज उठा. राहेला भी नौर्मल हो गई.

‘‘मैं उस का सिर तोड़ दूंगा.’’ जमाल दरवाजे की तरफ लपका.

मैं ने बढ़ कर उसे पकड़ लिया, ‘‘दिलवालों के सिर नहीं तोड़ा करते यार.’’

‘‘तुम मजाक के मूड में हो और…’’

‘‘मेरी जान पर बनी है.’’ खुर्रम ने चहक कर जुमला पूरा किया.

‘‘जरासी हमदर्दी क्या दिखा दी, मोहतरिमा उलटासीधा सोचने लगी. लड़कियां होती ही ऐसी हैं.’’ जमाल गुस्से से सुर्ख हो रहा था.

‘‘अच्छा, तो क्या राहेला से भी तुम ने हमदर्दी की है?’’ शईब ने बड़ी मासूमियत से पूछा.

जमाल गुस्से से तिलमिला रहा था और सब का हंसी के मारे बुरा हाल था.

‘‘अच्छा चलें, जमाल भाई, गुस्सा थूक दें. मैं शज्जो को प्यार से समझा दूंगी.’’ रोबीना ने कहा.

‘‘न भई न.’’ अब सीन शुरू हो गया है तो फिल्म भी जरूर बनेगी. हर बात में मुझे मजाक सूझता था. इस में भी मजाक का पहलू निकल आया. प्यारमोहब्बत को भी मैं ने मजाक समझ लिया था. यह न समझा कि कोई संजीदा भी हो सकता है.

‘‘हां भई, अब जमाल को मैदान में आ जाना चाहिए.’’ खुर्रम ने हाथ फैला कर फिल्मी अंदाज में कहा.

‘‘क्या कह रहे हो खुर्रम?’’ राहेला नाराज होने लगी.

‘‘यार, इस से तुम्हारे लिए कोई फर्क नहीं पड़ेगा. बस जबरदस्त मजा आएगा.’’ मैं ने जमाल को बहलाया.

‘‘तुम लोगों का शायद दिमाग खराब हो गया है.’’ जमाल ने झुंझला कर कहा, ‘‘तुम खुद क्यों नहीं रचा लेते यह ड्रामा? मुझे क्यों घसीट रहे हो?’’ जमाल उकता गया.

हम सभी उस के पीछे पड़ गए तो उस ने राजी हो कर कहा, ‘‘लेकिन देखो, मुझ पर कोई जिम्मेदारी नहीं होगी. अच्छी तरह सोच लो. अगर कोई गड़बड़ हुई, तो..?’’

‘‘हां, हां,’’ मैं ने उस की बात काट दी, ‘‘सारी जिम्मेदारी हमारी है भई, तुम्हें फिक्रमंद होने की जरूरत नहीं.’’

फिर शरारतों का एक नया दौर शुरू हो गया. इम्तहानों से तो हम सब फारिग हो चुके थे. दिमाग में यही सब समाया हुआ था. कभी खुर्रम ढेर सारे फूल ला कर शज्जो को देता कि जमाल ने दिए हैं. कभी मैं कोई छोटासा तोहफा जमाल के नाम से उसे देता. कभी कहता कि जमाल ने चाय मंगवाई है, उसे तुम्हारे सिवा किसी के हाथ की चाय पसंद ही नहीं. उस समय उस के चेहरे पर गुलालसा बिखर जाता और हम लोग खूब हंसते. काश, उस मासूम लड़की को हम ने यों तंग न किया होता.

उस दिन पिक्चर का प्रोग्राम बना तो मैं ने शज्जो से कहा, ‘‘फिल्म देखने चल रही हो?’’

‘‘नहीं अशरफ भाई, मेरी तबीयत जरा खराब है.’’ उस ने थकेथके लहजे में जवाब दिया.

‘‘भई शज्जो, तुम हम सभी का यह प्रोग्राम खराब मत करो. यह पिक्चर जमाल दिखा रहा है. तुम नहीं गईं तो वह किसी को नहीं ले जाएगा.’’ मैं ने जबरदस्त ऐक्टिंग की.

‘‘सच अशरफ भाई?’’ उस ने हैरत से कहा.

‘‘हां भई, यकीन नहीं आता तो खुद जा कर पूछ लो जमाल से.’’

वह शरमाईशरमाई सी तैयार होने चल दी. थोड़ी देर बाद वह तैयार हो कर निकली तो सब ने उसे बड़े ताज्जुब से देखा. हलके गुलाबी रंग के कुर्तेसलवार पर उस ने अपने लंबे बाल खुले छोड़ रखे थे. मेकअप भी बड़े सलीके से किया था.

‘‘या अल्लाह, इतना सलीका कहां से आ गया?’’ नबीला ने सरगोशी की. वाकई शज्जो से न जाने क्या बातें करता रहा. फिल्म खत्म हुई तो सब के चेहरे शज्जो की तरफ मुड़ गए. वह शरमाईशरमाई सी अंगुलियां मरोड़ रही थी. इस के बाद फिर हम सभी आउटिंग के प्रोग्राम ज्यादा बनाने लगे. हर प्रोग्राम में शज्जो जरूर शामिल होती. कपड़े भी वह बड़े सलीके से पहनने लगी थी. शाम को हमारी महफिलों में भी शामिल होती. जमाल गजब की अदाकारी कर रहा था. शज्जो की मौजूदगी में वह राहेला से बिलकुल लापरवाह रहता.

इम्तहान का नतीजा निकला. जमाल अच्छे नंबरों से पास हो गया. अब ताई अम्मी चाह रही थीं कि शादी न सही तो कम से कम जमाल की सगाई ही हो जाए. उधर शज्जो का यह हाल था कि आंखों में सितारे से चमकने लगे थे. वह संजीदा भी हो गई थी. पहले की तरह धुआंधार तरीके से रोती भी नहीं थी. उस दिन सभी बुजुर्ग हौल कमरे में जमाल और राहेला के रिश्ते के बारे में बातचीत कर रहे थे और हम सब रोबीना के कमरे में जमा थे. शज्जो को इस मामले की कुछ खबर नहीं थी. वह अपने कमरे में थी. अचानक जमाल बोला, ‘‘भई, शज्जो का क्या होगा? अब इस ड्रामा का ड्रौपसीन करो.’’

‘‘होगा क्या मियां? ब्याह होगा तुम्हारे साथ.’’ शईब बड़े मजे से बोला.

‘‘तुम होश में तो हो?’’ जमाल झल्ला गया.

‘‘भई, आखिर क्या खराबी है शज्जो में? जुल्फें बिखरा दे तो रात हो जाए.’’ मैं ने फिकरा कसा.

‘‘यार ज्यादा तंग मत करो और हल सोचो इस मसले का.’’ जमाल परेशान हो कर बोला.

‘‘कह दो कि शज्जो यह शादी नहीं हो सकती. हमारे दरमियान बुजुर्गों ने राहेला को दीवार बना दिया है. अब हम और तुम सातवें आसमान पर ही मिल सकते हैं.’’ खुर्रम ने फिल्मी डायलाग बोले तो सब हंस पड़े. जमाल तिलमिला कर खड़ा हो गया, ‘‘ठीक है, तुम लोग मजाक करते रहो. मैं अभी शज्जो को ला कर तुम्हारे सामने खड़ी करता हूं और उसे साफसाफ बताता हूं कि मुझे तुम से सिर्फ हमदर्दी थी. न कभी मोहब्बत थी, न हो सकती है और यह सब महज तुम सब लोगों के मजबूर करने पर हुआ कि मैं मोहब्बत का झूठा खेल खेलूं.’’

उस ने कमरे से बाहर जाना चाहा, मगर मैं ने और खुर्रम ने जबरदस्ती उसे पकड़ लिया, ‘‘यार, तुम ख्वाहमख्वाह परेशान हो रहे हो. अब फौरन तो कुछ कर नहीं सकते. तुम बस खामोश रहो. हम आहिस्ताआहिस्ता उस का दिमाग तुम्हारी तरफ से हटा देंगे. वैसे भी कौनसा वह तुम से संजीदा होगी. उस की छोटीसी अक्ल में मोहब्बत भला कहां समा सकती है.’’ मैं शायद संगदिल था, तभी तो हर बात को मजाक में उड़ाने का आदी था.

मैं जमाल को समझाबुझा कर कमरे से निकला तो शज्जो तेजी से अपने कमरे की तरफ जाती हुई दिखाई दी. तो क्या उस ने सब सुन लिया? मेरा दिल धक से रह गया. एक लम्हे को मैं कांप उठा कि अगर उस ने सुन लिया होगा तो बहुत गड़बड़ हो जाएगी. उस समय मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि अब मुझे क्या करना चाहिए. मैं दबे कदमों से शज्जो के कमरे की तरफ बढ़ा. मगर मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी कि मैं उस के कमरे में जाऊं. मैं ने चुपचाप दरवाजे का परदा सरका कर झांका. मगर उस ने देख लिया, ‘‘अंदर आ जाएं अशरफ भाई.’’

उस की आवाज से मैं चौंक उठा. मैं डरतेडरते अंदर चला गया. उस की आंखों में आंसू नहीं थे. मगर मुझे यों लगा, जैसे उस के चेहरे का एकएक अक्स रो रहा हो. वीरान आंखों से वह मुझे देख रही थी. मगर शायद यह मेरा अहसास था, क्योंकि वह तो बगैर रोए रह नहीं सकती थी. शायद उस ने कुछ सुना ही नहीं था.

‘‘शज्जो, अभी तुम कहां गई थी?’’ हिम्मत कर के मैं ने पूछ ही लिया.

‘‘मैं… मैं जरा नबीला के कमरे तक गई थी. वह वहां नहीं थी तो मैं वापस आ गई.’’

‘‘तुम क्या रोबीना के कमरे की तरफ भी आई थी?’’ मेरी जरा हिम्मत बंधी.

‘‘नहीं, मैं वहां तो नहीं गई.’’ उस ने अजीब से लहजे में जवाब दिया. फिर बोली, ‘‘आप को मुझ से कुछ काम है?’’

‘‘नहीं शज्जो, बस यूं ही तुम से बात करने को दिल चाह रहा था.’’ मैं गड़बड़ा गया.

‘‘अशरफ भाई, प्लीज आप बुरा मत मानिएगा. मुझे सख्त नींद आ रही है.’’

मैं हैरान रह गया. आज वह कैसी बातें कर रही थी? पहले मैं उस के कमरे में जाता तो वह जबरदस्ती पकड़पकड़ कर बैठाती और बातें कर के दिमाग खराब कर देती. मैं चुपचाप बाहर आ गया और जब मैं ने यह सारा ब्यौरा दूसरों को सुनाया तो जमाल हत्थे से उखड़ गया, ‘‘यह सब तुम लोगों की शरारत थी. तुम लोगों ने बात इतनी आगे बढ़ा दी…’’ मारे गुस्से के उस से बोला नहीं जा रहा था, ‘‘अगर उसे कुछ हो गया तो मैं अपने आप को और तुम लोगों को कभी माफ नहीं कर सकूंगा.’’

‘‘अरे यार,’’ शईब बेजारी से बोला, ‘‘तुम्हें तो ख्वाहमख्वाह तकरीरें करने का शौक है. अगर उस ने कोई बात सुन ली होती न तो अभी यहां भूचाल आ गया होता. इतने धुआंधार तरीके से रोनाधोना मचता कि सारा घर कांप कर रह जाता.’’

… और यों बात आईगई हो गई. दूसरे दिन हम सब लौन में बैठे थे कि वह हमारे दरमियान आ बैठी. जमाल तो उसे देख कर फौरन चला गया.

मैं ने गौर से उस की तरफ देखा. मैं ही क्या, सभी चोर नजरों से उसी तरफ देख रहे थे. मुझे उस की आंखों में बुझते दीयों जैसी कैफियत नजर आई. हम सब परेशान थे. मगर थोड़ी ही देर में उस ने राहेला की किसी बात पर कहकहा लगाया तो हम सब ने सुकून की सांस ली कि उस ने कोई बात नहीं सुनी, वरना वह इतने इत्मीनान से न बैठी होती. मैं ने दिल में इरादा कर लिया कि आज के बाद यह मजाक खत्म. मैं उसे आहिस्ताआहिस्ता जमाल और राहेला के रिश्ते के बारे में भी बता दूंगा, प्यार से समझा दूंगा. न जाने क्यों वह बातबात पर कहकहे लगा रही थी. रात को उस ने जिद की कि पिक्चर देखी जाए. सब हैरान थे कि उसे क्या हो गया है. पिक्चर देख कर लौटे तो वह जोर देने लगी कि यहीं लौन में बैठ कर बातें की जाएं.

‘‘भई क्या बात है, आज तुम बहुत खुश हो?’’ शईब ने सवाल किया.

‘‘आज मैं खुश हूं, मगर कल आप सभी लोग खुश हो जाएंगे.’’ उस ने कहा और फिर न जाने कहांकहां की बातें करती रही.

आखिर रात एक बजे जब दादीजान ने हमें डांटा तो हम सब सोने चले गए. शज्जो का कमरा सामने ही था. एक लम्हे को दरवाजे पर रुक कर उस ने हम सब की तरफ देखा. जमाल को देखते समय उस की आंखों में अजीबसी हसरत थी. फिर वह हाथ हिला कर अंदर चली गई.

… न जाने रात के कौन से पहर उस ने नींद की गोलियों की पूरी शीशी गले में उडे़ल ली और चुपचाप सो गई. न रोई, न चिल्लाई. न किसी से कोई शिकायत की. खामोशी के साथ सब से नाता तोड़ गई और जिंदगी भर को एक कसक हमें दे गई. अब मुझे उस के कहे जुमले का खयाल आया कि कल आप सब खुश हो जाएंगे. अरे पगली, क्या तेरे चले जाने से हम खुश होते? मुझे क्या मालूम था कि मेरा मजाक जानलेवा साबित होगा? मुझे अपने आप से नफरत हो रही थी. मेरा दिल चाह रहा था कि चिल्लाचिल्ला कर कहूं, ‘‘मैं शज्जो का कातिल हूं. मैं ने उसे मारा है, मेरी बातों ने, मेरे मजाक ने मारा है.’’

अचानक राहेला घबराई हुई आई, ‘‘अशरफ भाई. यह… यह परचा उस की मेज पर रखा था. मैं ने छिपा लिया था, किसी को दिखाया नहीं.’’

मैं ने परचा झपट कर पढ़ना शुरू किया. लिखा था:

‘‘अशरफ भाई, मैं ने सारी बातें सुन ली थीं. आप सब से कह दें कि किसी शख्स, खास तौर पर जमाल को मुझ से शर्मिंदा होने की जरूरत नहीं. मेरी किस्मत यही थी कि लोग मुझ से मोहब्बत का ढोंग रचाएं. मुझ से मजाक करें, मगर इतना समझ लें कि प्यार मजाक नहीं होता और अगर प्यार को मजाक बना लिया जाए तो वह किसी एक की जान ले लेता है. प्यार में मजाक हो सकता है, मगर मजाक में प्यार नहीं. मैं पागल थी न कि किसी दूसरे की मंजिल को अपनी मंजिल समझ बैठी. मैं यह बरदाश्त न कर सकी कि यों भरे कमरे में मेरा मजाक उड़ाया जाए. मेरे पाकीजा जज्बातों की तौहीन की जाए. मुझे जमाल से शादी न होने का गम नहीं, बस मैं अपनी मोहब्बत की तौहीन बरदाश्त नहीं कर सकी. कुसूर तो मेरा है कि हमदर्दी को मोहब्बत समझ बैठी. यह भी नहीं सोचा कि मैं तुम खूबसूरत लोगों के दरमियान नजर का टीका हूं. अब मैं सब से नाता तोड़ रही हूं. मुझे माफ कर दीजिएगा.’’

—सिर्फ शज्जो

‘‘शज्जो, तू इतनी गहरी निकली कि इतनी बड़ी बात को यों दिल में उतार गई? तू तो जराजरा सी बात पर रोधो कर चुप हो जाती थी. काश, तू चिल्लाचिल्ला कर रो देती. काश, तू हम से लड़ लेती. तू मेरे मुंह पर थप्पड़ दे मारती. मुझे जलील कर देती. मगर यह तो न करती. शज्जो मेरी बहन, मैं तुझे कहां ढूंढू? तू मिल जाए तो तेरे कदमों में सिर रख कर माफी मांग लूं. मैं अपनी नजरों में गिर गया हूं. मेरे मजाक ने यह कैसा गुल खिलाया? वह मासूम लड़की, जो किसी की मोहब्बत चाहती थी, जो किसी के सपने सजाए बैठी थी, उस के सपनों को हम ने किस बुरी तरह चकनाचूर किया कि उस ने अपनी जान दे दी. या अल्लाह, मुझे मौत दे दे, मुझे भी उठा ले.’’

मैं दीवार से सिर टकराटकरा कर रो रहा था. बुजुर्ग मुझे चुप कराने की कोशिश कर रहे थे. मगर किसी को पता नहीं था कि वह कैसे जख्म डाल गई थी हम सभी के दिलों पर. Emotional Love Story

 

Hindi Stories: रेगिस्तान का फूल

Hindi Stories: गांव में भेड़बकरियां चराने वाली अनपढ़ वारिस के अब्बू ने 13 साल की उम्र में उस का निकाह करना चाहा तो वह घर छोड़ कर भाग गई. इस के बाद उस की जिंदगी में कैसे बदलाव आया कि आज वह रेगिस्तान का फूल बन गई है. मेरा पूरा नाम है वारिस डिरी. मेरा जन्म सन 1965 में सोमालिया के बौर्डर पर स्थित रेगिस्तानी क्षेत्र के गालकायो कस्बे के निकट एक गांव में हुआ था.

वहां बस तपती रेत के टीले थे. कोसों दूर तक पानी जैसी किसी चीज का नामोनिशान नहीं था. महीनों तक वर्षा का इंतजार करना पड़ता. लंबे इंतजार के बाद जब वर्षा होती तो बंजर रेत में संतरीपीले रंग के फूल खिलते, जिन्हें वारिस कहते हैं. इन्हीं फूलों के नाम पर मेरा नाम वारिस रखा गया था. मैं थी भी फूल सी, पर नसीब शायद कांटों भरा था. मेरा परिवार सोमालिया के ग्वालों से था. बचपन से ही मेरी परवरिश स्वतंत्र माहौल में हुई. मैं पलपल कुदरत के करीब थी. मेरी धड़कन, आवाज, अंदाज और सांसों में प्रकृति के नजारे बसे थे. हम भाईबहनों की टोली हिरन, लोमड़ी, खरगोश, जिराफ, जेबरा आदि जानवरों के साथ सुबह से ही जंगल में भागती फिरती.

जैसेजैसे उम्र बढ़ी, मैं खुशियों से महरूम होती गई. 5 वर्ष की उम्र में मुझे जिंदगी से डर लगने लगा. वैसे भी अफ्रीकी महिलाओं के लिए हर कदम पर कठिनाइयां होती हैं. महिलाएं अफ्रीकी समाज का आधार हैं. घर चलाने का बोझ उन्हीं पर होता है, पर घर के महत्त्वपूर्ण निर्णय वे नहीं ले सकतीं. परिवार का ही नहीं, वे अपनी जिंदगी का भी निर्णय नहीं ले सकतीं. एक तरह से वे पुरुष समाज के हाथों की कठपुतली हैं यानी औरत की हर इच्छा, हर खुशी पर पुरुष का अधिकार है. यातनाएं, पीड़ा जैसे औरत की जिंदगी का एक हिस्सा हैं.

हमारा घर गोलाकार टेंट से ढंका हुआ था. घर के भीतर हम केवल दूध के बरतन रखते थे. घर के बाहर खुले आसमान के नीचे चटाई बिछा कर हम सभी भाईबहन सोते थे. अब्बा हम सभी की चौकीदारी करते हुए चारपाई पर रात भर बैठे रहते थे. अब्बा 6 फुट लंबे, हट्टेकट्टे और अम्मी से भी गोरे थे. अम्मी का चेहरा एकदम रानी जैसा था. शायद इसीलिए अब्बू अम्मी पर फिदा थे. दोनों ने प्रेम विवाह किया था. अब्बू अम्मी से बेइंतहा मोहब्बत करते थे. अम्मी पहले मुझे प्यार से अवडोहोल कह कर पुकारती थीं. बाद में उन्होंने मेरा नाम वारिस रखा. सच तो यह है कि अफ्रीकी महिलाओं की जिंदगी उन की टांगों के नीचे से शुरू होती है और वहीं से खत्म हो जाती है.

अफ्रीका में फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन यानी स्त्रियों की खतना करना एक ऐसी कू्रर परंपरा है, जिस का धर्म के नाम पर तमाम विकासशील देशों में भी पालन किया जा रहा है. इस कू्रर और पाशविक परंपरा का एकमात्र उद्देश्य है, स्त्री की यौन इच्छाओं को खत्म कर देना. इस परंपरा से भला मैं अछूती कैसे रह सकती थी. उस समय मैं 5 साल की थी, एक दिन मैं अपनी बड़ी बहन के साथ खेल रही थी, तभी अम्मी ने कहा, ‘‘तुम्हारे अब्बा एक आंटी को लेने गए हैं. वह आंटी हमारे घर कभी भी आ सकती हैं. तुम यहीं रहना, कहीं बाहर खेलने मत जाना.’’

अब्बा के आने से पहले अम्मी ने मेरी और बहन की खातिरदारी शुरू कर दी. अम्मी ने मुझे पहले से अधिक खाना अपने हाथों से खिलाया. हर घंटे हम दोनों को दूध पीने के लिए कहा गया. अम्मी रात भर हमें जगाजगा कर दूध पिलाती रहीं. सुबह जल्दी सब से बड़ी बहन अमन और अम्मी हम दोनों बहनों को जंगल के बीचोबीच ले गईं. 5-10 मिनट के बाद एक महिला हमारे सामने आई. उस का भयानक चेहरा देख कर मुझे डर सा लग रहा था, पर अम्मी हमारे साथ थीं, जिस से हिम्मत आ गई थी. वह हम से बोली, ‘‘यहां आ कर लेट जाओ.’’

उस अजनबी महिला की बात सुन कर कभी मैं अम्मी को देखती तो कभी उसे. हमें कतई पता नहीं था कि आगे क्या होने वाला है. उसी बीच अम्मी ने हमारे कपड़े उतार कर कहा, ‘‘अपने दोनों पैर फैला लो.’’ हम दोनों बहनों ने वैसा ही किया. अब मेरी टांगों के बीचोबीच उस महिला का चेहरा था. उस ने अपने हाथ में पकड़े रेजर में ब्लेड लगाया और अम्मी को कुछ इशारा किया. उस का इशारा समझ कर अम्मी ने अपना हाथ मेरी आंखों पर रख दिया, ताकि मैं कुछ देख न सकूं.

मैं कुछ सोचसमझ पाती, उस से पहले उस ने अपनी अंगुली में पकड़े रेजर को मेरी जांघ के नीचे ले जा कर चला दिया. मैं दर्द के मारे चीख पड़ी और फिर चीखती ही रही, लेकिन मेरी चीख सुनने वाला वहां कोई नहीं था. अम्मी को भी मुझ पर रहम नहीं आया. मेरे शरीर से मांस का टुकड़ा काट कर उस ने वहीं फेंक दिया और उस पर थूकने लगी. इस के बाद उस ने आक्यि पेड़ से लंबा सा कांटा तोड़ा और उसी कांटे के साथ सफेद धागा ले कर मेरी जांघों के बीच कटे घाव को सिलने लगी.

मेरी टांगें दर्द से सुन्न हो गई थीं. शरीर कांप रहा था. दर्द इतना भयंकर था कि मुझे जीवित रहना असंभव लग रहा था. लग रहा था कि बस अब… और अब दम निकला. घाव सिलने के बाद उस ने मेरी टांगों के बीच के हिस्से पर पट्टियां बांध दीं. सिर्फ हल्की सी जगह छोड़ दी, लघुशंका आदि के लिए. जब मैं ने पीछे मुड़ कर देखा तो जमीन खून से सनी हुई थी, वहीं मेरे जिस्म से कटा टुकड़ा पड़ा था.

दर्द के साथसाथ मुझे गुस्सा भी आ रहा था. मैं अम्मी के हाथों छले जाने से खफा थी. मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मेरी सगी मां इस दर्जे तक कैसे कू्रर हो सकती है. इस नारकीय अनुभव के बाद मुझे पता चला कि हमारे समुदाय की प्रत्येक लड़की को इस दर्दनाक और अमानवीय प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है, साथ ही यह भी पता चला कि यह लड़कियों के लिए अच्छा माना जाता है. तब मेरी समझ में आया कि सामाजिक रीतिरिवाजों में बंधे होने की वजह से मां भी इस परंपरा से हमें नहीं बचा सकती थीं. यह ऐसी परंपरा थी, जो हमारे समुदाय में सदियों से चली आ रही थी. एक ऐसी परंपरा, जो लड़की की प्रतिष्ठा, अच्छे चालचलन और शादी के लिए जरूरी मानी जाती थी. तभी अम्मी ने सहमी आवाज में बताया था कि इसे नारी खतना कहते हैं.

हालांकि मुझे उस वक्त तनिक भी गुमान नहीं था कि इस का मेरे यौन जीवन पर इस कदर व्यापक प्रभाव पड़ेगा कि यौन संतुष्टि मेरे लिए असाध्य हो जाएगी. यह बात तो मुझे बरसों बाद पता चली. खैर, मेरे बाद मेरी बहन के साथ भी ऐसा ही किया गया. उस का भी नारी खतना किया गया. अब मैं और मेरी बहन यह दर्द कई दिनों तक सहती रहीं, पर पीड़ा कम नहीं हुई. उस समय डाक्टरों द्वारा इलाज संभव नहीं था. हम दोनों बहनें आपस में ही दुख बांट लेती थीं, लेकिन बहन के घाव का इन्फेक्शन फैलता गया और 2 हफ्तों में उस की मौत हो गई. बहन की मौत पर मैं रो भी नहीं सकी. मैं तो सहमी हुई थी कि कहीं बहन की तरह मैं भी…

बहन को भूलना असंभव था, पर जैसेजैसे समय गुजरा, मेरे जख्म भरने लगे. मैं 13 वर्ष की हो गई. एक शाम अब्बा ने पुकारा, ‘‘बेटा, इधर तो आना.’’

अब्बा की प्यार भरी आवाज सुन कर मैं हैरान थी, क्योंकि ज्यादातर उन का स्वभाव मेरे प्रति गंभीर ही रहता था. मुझे अपनी गोद में बैठा कर वह बोले, ‘‘तुम्हें मालूम है कि तुम मेरे लिए क्या हो?’’

मैं हैरान थी.

‘‘तू मेरी बेटी नहीं, बेटा है.’’ अब्बा ने कहा.

‘‘आप ऐसा क्यों कह रहे हैं?’’ मैं ने किसी तरह कहा.

‘‘तुम्हें भी तो अपने घर जाना है.’’ उन्होंने कहा.

‘‘नहीं अब्बा, मैं निकाह नहीं करूंगी.’’ मैं ने सहम कर कहा.

‘‘लड़कियों का अपना घर तो उन की ससुराल ही होता है. तुम्हारा निकाह कराना है, इसलिए तैयार रहना. मैं ने तुम्हारे लिए लड़का देख लिया है.’’ इस बार उन के स्वर में प्यार की जगह सख्त आदेश था.

‘‘नहींनहीं अब्बा, अभी तो मैं बहुत छोटी हूं.’’ कह कर मैं बाहर चली गई.

अगले दिन जब मैं अपने कामकाज में व्यस्त थी, तभी अब्बा ने मुझे बुला कर कहा, ‘‘देखो, कौन आया है वारिस.’’

मैं ने अब्बा के पास बैठे आदमी को देखा. मेरी तरफ उस की पीठ थी. मुझे तो सिर्फ उस के हाथ में लाठी नजर आई. करीब जाने पर उस के चेहरे की झुर्रियां मुझे दिखाई दीं. उस की उम्र 60 के आसपास थी. अपनी सफेद लंबी दाढ़ी हिलाते हुए वह बोला, ‘‘क्या हाल है तुम्हारा.’’

मैं ने कोई जवाब नहीं दिया. तब अब्बा ने कहा, ‘‘वारिस, मिस्टर गालूल तुम से मिलने आए हैं.’’

मैं उस उम्रदराज गालूल को देख कर डर गई. तभी अब्बा बोले, ‘‘जाओ बेटे, चाय ले आओ.’’

मैं चाय लाने के बजाए बकरियों के साथ खेलने लगी. अगली सुबह अब्बा ने मुझे बुला कर कहा, ‘‘बेटी, तुम्हारा निकाह गालूल से होने जा रहा है.’’

उन की बात सुन कर मैं ने हैरानी से कहा, ‘‘पर अब्बा… वह तो बूढ़े हैं.’’

‘‘तो क्या हुआ, उन के पास काफी जमीनजायदाद तो है. उन के मरने के बाद सब तुम्हारा ही होगा. तुम्हें सोनेचांदी में तौल देगा.’’ अब्बा ने हंसते हुए कहा, ‘‘तुम्हें पता है, वह हमें निकाह में 5 ऊंट देगा.’’

मैं क्या कहती. सोचने लगी कि महज 5 ऊंटों के लालच में अब्बा अपने जिगर के टुकड़े की जिंदगी नरक बनाने पर तुले हैं. दिन भर मैं अब्बा की बातों पर गौर करती रही. गालूल से निकाह के बाद मेरी जिंदगी तबाह होने वाली थी. निकाह के 10-15 सालों बाद गालूल की मौत हो जाएगी तो मैं जवानी में ही विधवा हो जाऊंगी. यही खयाल बारबार मेरे मन में आ रहा था, जिस से मेरी रातों की नींद उड़ गई. मैं उस बूढ़े से निकाह के लिए हरगिज तैयार नहीं थी. मैं ने अम्मी से साफ कह दिया कि अगर मेरी शादी जबरदस्ती की गई तो मैं घर छोड़ दूंगी.

‘‘यहां से तू जाएगी कहां?’’ अम्मी ने कहा.

‘‘मोगाडिशु, अमन के पास.’’ वह मेरी बड़ी बहन थी.

‘‘चुपचाप, सो जा. तेरे अब्बा उठ गए तो गजब हो जाएगा.’’ अम्मी मेरी बात से हिल गईं. उन की बात से मैं भी सहम कर लेट गई.

बाद में शायद अम्मी को भी मुझ पर तरस आ गया. एक रात उन्होंने मुझे उठाया और गले लगा कर कहा, ‘‘बेटी, अमन के पास भाग सकती है तो भाग जा.’’

मेरे चेहरे को हाथों में भर कर अम्मी ने चूमा. पहले उन की आंखों से कुछ आंसू गिरे, फिर खुल कर रोने लगीं. बस यही लम्हा था, जब मैं ने अम्मी की तसवीर आंखों में भर कर कैद कर ली थी. मैं ने उन्हें सदा के लिए अलविदा कह दिया. मैं एक झटके से उठ कर खड़ी हो गई. मैं ने इधरउधर देखा, रसोई में न तो पानी था, न ही दूध और न ही मुट्ठी भर अनाज, जिसे मैं साथ ले जाती. मैं हड़बड़ी में नंगे पैर ही घर से निकल भागी. सिर पर भी सिर्फ स्कार्फ था. काले आसमान तले उजाले की तलाश में भागती जा रही थी. कई घंटे भागने के बाद जब सूर्य की पहली किरण नजर आई तो एक चट्टान के सहारे टेक लगा कर बैठ गई. मेरी सांसें भी मेरे पैरों की तरह थक चुकी थीं.

दोपहर तक मैं वीरान रेगिस्तान की लाल तपती रेत पर थी. दूरदूर तक अकेलापन छाया था. भूख, प्यास और थकावट अब बढ़ती ही जा रही थी. थकावट से मेरा सिर भी भारी था. आंखों के सामने अंधेरा सा छा रहा था, तभी सन्नाटे को चीरती हुई चारों ओर से आवाज गूंज उठी, ‘वारिस… वारिस…’

यह मेरे अब्बा की आवाज थी. मैं थरथर कांप उठी. अब थकावट, भूख, प्यास से ज्यादा मुझे उन का खौफ छा गया कि मुझे पकड़ कर अगर वह वापस ले गए तो मेरा निकाह उस बुड्ढे के साथ होना निश्चित है. वह मुझ पर रहम नहीं करेंगे. मैं ने दूर से देखा, अब्बा रेत पर बने मेरे कदमों के निशान के सहारे आगे बढ़ रहे थे. मैं ने तेजी से दौड़ना शुरू कर दिया. काफी दूर जा कर पीछे मुड़ कर देखा तो अब्बा एक पहाड़ी पर थे. उन्होंने मुझे देख लिया था. उन से बचने के लिए मैं और तेजी से भागने लगी. मैं एक पहाड़ पर चढ़ती, अब्बा दूसरे पहाड़ पर फिसलते हुए लहरों की तरह नीचे उतर जाते. घंटों तक यही सिलसिला चलता रहा. जब मुझे अब्बा की आवाज सुनाई देनी बंद हो गई, तब मेरे कदमों की गति धीमी पड़ी.

अचानक मुझे डर सा लगा कि अब्बा बस मेरे पीछे आ रहे हैं. तब पता नहीं थके हुए पैरों में जाने कहां से ताकत आ गई कि मैं फिर तेजतेज भागने लगी. सूरज डूबने तक मैं भागती रही. मैं भूख से तड़प रही थी और नंगे पैरों पर बने जख्मों से खून बहने लगा था. रात गहरा गई तो एक पेड़ के नीचे बैठ गई. वहां बैठने के बाद मुझे कब नींद आ गई, पता नहीं चला. जब नींद खुली तो दोपहर हो चुकी थी. तेज भूख लगी थी, लेकिन वहां आसपास कहीं पेट भरने का कोई इंतजाम नहीं था और न ही मेरे पास पैसे थे.

कई दिनों और कई रातों तक मैं बस किसी तरह कंठ गीले कर के प्यास और भूख मिटाती रही. एक रात मैं वीरान जंगल में थी. आधी रात के करीब मेरी आंखें उस समय खुलीं, जब कानों में शेर के दहाड़ने की आवाज पड़ी. सामने देखा, एक शेर मुझे घूर रहा था. उस की आंखें बिजली के छोटे बल्ब की तरह जल रही थीं. डर से मैं पसीने से तरबतर हो गई. उस शेर को भी शायद मेरी हालत देख कर तरस आ गया. वह उन्हीं पैरों से लौट गया, जिन से मुझे अपना शिकार समझ कर आया था. उस के जाने के बाद मैं ने राहत की सांस ली और सोचने लगी कि इंसान से ज्यादा उस जंगली जानवर में दया भाव है.

घर से भाग कर आए कई दिन बीत चुके थे. अब पलपल मुझे अम्मीअब्बा की याद सताने लगी थी. मैं अपने अतीत में खो गई कि अब्बू को इतनी कमउम्र में मेरी शादी की चिंता क्यों लग गई थी. गांव में सब से ज्यादा भेड़बकरियां हमारे पास थीं. ऊंटों का भी अच्छा कारोबार चल रहा था हमारा. हमें खिलानेपिलाने की चिंता तो अब्बा को थी ही नहीं. करीब 60 से 70 भेड़ व बकरियों को चराने की जिम्मेदारी मुझ पर थी. दूध बेचने का कारोबार अब्बा सालों से करते आ रहे थे. मेरा सारा दिन गातेगुनगुनाते भेड़ों के साथ गुजर जाता था. शाम ढले हम सभी भाईबहन जंगल में मस्ती करते हुए वापस लौट आते थे.

रास्ते में कभीकभी शेर हमारी बकरियों पर हमला कर देते और अपना शिकार जबड़ों में दबा कर ले जाते. कितनी अच्छी तरह हमारे दिन कट रहे थे. अब्बू उस बूढ़े के साथ मेरी शादी की बात न चलाते तो इस जंगल में मैं इस तरह न भटक रही होती. खैर, किसी तरह मैं मोगाडिशु पहुंच गई. मोगाडिशु हिंद महासागर के बंदरगाह से लगा खूबसूरत शहर है. वहां की गगनचुंबी इमारतें, हरेभरे पेड़ों से घिरी थीं. शहर में हर तरफ फूल खिले थे. मैं ने ऐसी हरियाली पहले कभी न देखी थी और न सुनी थी. आखिर मैं रेगिस्तान में पलीबढ़ी थी. कई हफ्ते भटकने के बाद बहन अमन के घर का पता मिला.

मुझ से मिल कर अमन बेहद खुश हुई. वह उस समय पेट से थी. आते ही मैं ने उस के घर का कामकाज संभाल लिया. कुछ महीने बाद अमन ने एक सुंदर सी बेटी को जन्म दिया. बेटी के जन्म के बाद मैं अपनी मौसी साहरू के पास जा कर रहने लगी. आखिर मैं कब तक मौसी पर बोझ बनी रहती. उन के घर के सामने एक इमारत बन रही थी, मैं वहां मजदूरी करने लगी. मौसी के यहां रहने पर मेरा अपना कोई खर्च तो था नहीं, इसलिए मैं ने अम्मी को भी पैसे भेजने शुरू कर दिए.

मेरी जिंदगी ने मौसी के घर पर ही करवट ली. एक दिन मौसी के यहां लंदन में नियुक्त सोमालिया के एंबेसडर मोहम्मद आए. वह मौसी से कोई मेड लंदन ले जाने के लिए कह रहे थे. तभी मौका देख कर मैं ने मौसी से कहा कि वह मुझे लंदन भेज दे. मोहम्मद अंकल ने अगले ही दिन मेरा पासपोर्ट मौसी के घर भेज दिया और मैं ने मौसी से रुखसत ले ली. लंदन मेरे लिए एकदम अनजान शहर था. एयरपोर्ट से उतरते ही स्नोफाल शुरू हो गई. ऐसा मनभावन दृश्य मैं ने पहले कभी नहीं देखा था. दिल खुश था, पर अकेलापन महसूस कर मैं घबराने लगी. मोहम्मद अंकल के घर पहुंची तो मैं दंग रह गई. उन का घर महल से कम नहीं था.

हफ्ते भर में मोहम्मद अंकल की पत्नी मरियम ने मुझे घर की देखरेख कैसे करनी है, समझा दिया. 4 साल तक मैं सुबह से ले कर शाम तक रसोई, बाथरूम, कमरे व बरामदे की साफसफाई में व्यस्त रही. लंदन आ कर मैं ने एक बात सीख ली थी कि यहां लोगों की जिंदगी घड़ी के साथ बंधी है. समय का महत्त्व मैं लंदन में ही समझ पाई. सन 1983 में मोहम्मद अंकल की बहन का देहांत हो गया तो उन की बेटी सुफी की जिम्मेदारी मोहम्मद अंकल पर आ गई. वह उन्हीं के यहां रहने लगी. उन्होंने उस का दाखिला आल सोल चर्च आफ इंग्लैंड प्राइमरी स्कूल में करा दिया. उसे सुबह छोड़ कर आना और दोपहर को लाने की जिम्मेदारी मेरी थी. इस तरह उस के आने पर मेरी जिम्मेदारी और बढ़ गई.

मैं सुफी को स्कूल छोड़ने पैदल ही जाती थी. उसी दौरान मैं ने महसूस किया कि अकसर स्कूल के गेट पर रोजाना एक गोरा सा आदमी मेरा इंतजार करता है. उस आदमी की उम्र करीब 40 साल थी. वह मुझे निहारता था और ऐसा लगता कि वह मुझ से कुछ कहना चाह रहा है. लेकिन किसी वजह से कह नहीं पा रहा है. एक दिन उस ने अपनी पैंट की जेब से एक विजिटिंग कार्ड निकाल कर मुझे थमा दिया, पर समस्या यह थी कि मैं कार्ड पर लिखा नाम व पता नहीं पढ़ सकती थी, क्योंकि वह अंगरेजी में लिखा था. घर आ कर मरियम आंटी से पढ़वाया तो पता चला, वह एक जानामाना फोटोग्राफर माइक था.

मोहम्मद अंकल को लंदन आए 4 साल हो गए थे. उन की कार्य अवधि खत्म हो चुकी थी. अब वह परिवार सहित सोमालिया वापस जाने की तैयारी करने लगे थे. लेकिन मैं वापस सोमालिया लौटना नहीं चाहती थी. मैं लंदन में कुछ ऐसा करना चाहती थी कि शोहरत के साथसाथ पैसा भी खूब मिले. पर मोहम्मद अंकल से यह बात कैसे कहती. मोहम्मद अंकल ने सोमालिया का टिकट लाने के लिए मेरा पासपोर्ट मांगा तो मैं ने चुपके से उसे बगीचे में मिट्टी के नीचे छिपा दिया. इस वजह से केवल मेरी टिकट नहीं आई. मैं ने धोखे से सोमालिया वापस जाना टाल दिया. अंकल मेरी इस हरकत पर खफा थे, पर मैं मजबूर थी.

मोहम्मद अंकल के लौट जाने के बाद मैं ने मेक डोनाल्ड रेस्टोरेंट में साफसफाई की नौकरी शुरू कर दी. यहां मेरी कई लड़केलड़कियों से दोस्ती हो गई. मैं वहां काम कर के खुश नहीं थी. अंगरेजी न जानने की वजह से खुद को अधूरा महसूस करती थी. तब मेरी एक अजीज सहेली ने मुझे अंगरेजी सीखने में सहायता की. उसी ने मुझे उस फोटोग्राफर माइक के पास जा कर नौकरी मांगने का मशविरा दिया. मुझे उस की राय सही लगी. उस विजिटिंग कार्ड के सहारे माइक गोस स्टूडियो पहुंच गई. वह स्टूडियो माइक का ही था. मुझे इस बात का अनुमान नहीं था कि माइक मेरे चेहरे का दीवाना है. मुझे देख कर वह बेहद खुश हुआ. उस ने कहा, ‘‘मुझे इसी चेहरे की तलाश थी. तुम बेहद खूबसूरत हो. मैं तुम्हारा प्रोफाइल तैयार करना चाहता हूं. मुझे उम्मीद है कि तुम जल्द ही मौडलिंग के क्षेत्र में छा जाओगी.’’

मैं ने हां कर दी तो उस ने कहा कि प्रोफाइल तैयार करने से पहले तुम्हारे चेहरे का ट्रीटमेंट करना पड़ेगा. फिर 2 दिनों तक तीन मेकअपमैन मेरे चेहरे पर क्रीमपाउडर आदि लगा कर मालिश करते रहे. तीसरे दिन मेरा चेहरा शूटिंग के लिए तैयार था. आईने में जब मैं ने अपना चेहरा देखा तो जैसे पहचान ही नहीं सकी कि ये मैं हूं या कोई और. मैं अपने चेहरे से अनजान थी. माइक कैमरा लिए मेरा इंतजार कर रहा था. कुरसी पर बैठा कर माइक ने मेरा चेहरा घुमाया और एक के बाद एक फोटो सेशन चलते रहे.

अब मेरी जिंदगी बदल गई थी. लाइट्स, कैमरा और एक्शन के इर्दगिर्द ही मैं घूमने लगी. जब मेरा पहला पोस्टर प्रिंट हो कर आया तो मैं उसे देख कर हैरान रह गई. यानी वारिस मेड का परिवर्तन वारिस मौडल में हो गया था. माइक ने अगले कौन्ट्रैक्ट के लिए मुझे टेरींस डोनोवान नामक एक जानेमाने फोटोग्राफर के पास भेज दिया. टेरींस को पिरीलि कलैंडर के शूट के लिए अफ्रीकन लड़की की तलाश थी. टेरींस ने मुझे विस्तार से राय दी कि वह मेरे किस तरह के फोटो लेना चाहता है. उस ने अगले दिन आने को कहा. अगले दिन मैं उन के स्टूडियो गई. इस के बाद मेरे मौडलिंग कैरियर की शुरुआत हो गई.

दिन पर दिन मैं पेरिस, मिलान और न्यूयार्क के प्रोजेक्ट करने लगी. पैसे के साथसाथ मेरी जिंदगी भी तेजी से दौड़ रही थी. काफी नामी एजेंसियों ने मुझ से संपर्क बनाए. अब तो सड़क, टीवी, मालों, शौपिंग कौंपलेक्स में मेरे ही पोस्टर थे. रेवलान कंपनी ने भी मुझे अपनी कैंपेनिंग के लिए चुना. मेरी ग्लैमर तसवीर के साथ लिखा था, ‘अफ्रीका के दिल से निकली, दिल को छू जाने की महक, जो आप को दीवाना बना देगी.’

मेरी तसवीरें वोग मैग्जीन के इटैलियन, ब्रिटिश और अमेरिकन संस्करणों के अलावा ग्लैमर नाम की मैग्जीनों में छा गईं. मेरी सफलता का राज था, मेरे बचपन के जख्म. जो मुझे हर पल सताते रहते थे और मेरे चेहरे पर संजीदगी ला देते थे. एक छोटे से जख्म ने मुझे सभी से अलग कर दिया था. अब मेरे पास पैसों की कोई कम नहीं थी. ऊपरी तौर पर मैं सामान्य लड़की थी, लेकिन मुझे एक समस्या से जूझना पड़ रहा था. मुझे पेशाब की क्रिया में 10 मिनट का इंतजार करना पड़ता था, मासिक धर्म के दौरान तो हफ्तों तक मैं बिस्तर पकड़ लेती थी. यह सब खतना के जख्मों का दर्द था.

दर्द बढ़ने पर मैं ने कई डाक्टरों से संपर्क किया, लेकिन डाक्टर मेरी भाषा नहीं समझ पाते थे, इसलिए मैं उन्हें अपना दर्द समझा नहीं पाती थी. 4-5 डाक्टर बदलने के बाद एक डाक्टर माइकल से मिली. माइकल भी मेरी भाषा नहीं समझ पा रहे थे. उन्होंने अपने ही अस्पताल में नौकरी करने वाले एक ऐसे शख्स को बुलाया, जो सोमाली भाषा जानता था. उस व्यक्ति ने दुभाषिए का काम किया. उस के द्वारा मैं ने अपने दिल का दर्द डाक्टर को बता दिया. इस के बाद डा. माइकल मेरी तकलीफ समझ गए. उन्होंने मेरी जांच की और 3 हफ्ते में उन्होंने मेरी तकलीफ दूर कर दी.

सन 1995 में बीबीसी चैनल ने मेरी जिंदगी पर एक डाक्युमेंट्री बनाने का प्रस्ताव मेरे सामने रखा. मैं ने इस के लिए हां कर दी, लेकिन मैं ने डाइरेक्टर गिरी पोमिरो को एक सुझाव दिया. मैं ने सोमालिया जाने का प्रस्ताव रखा कि अगर वह मेरी फिल्म मेरे ही देश सोमालिया में जा कर फिल्माएं तो यह और बेहतर होगा. उन्हें मेरी यह राय पसंद आ गई.

गिरी पोमिरो मेरे साथ सोमालिया पहुंच गए. वहां पहुंचते ही मेरी पुरानी यादें फिर से ताजा हो गईं. चूंकि मैं काफी सालों बाद सोमालिया लौटी थी, इसलिए सब से पहले अपनी अम्मी से मिलना चाहती थी. मुझे देख कर तमाम महिलाएं मेरी अम्मी होने का दावा करने लगीं. भला मैं अपनी अम्मी को कैसे भूल सकती थी. उन में से कोई भी मेरी अम्मी नहीं थी. गिरी भी मेरे साथ परेशान हो रहे थे. तभी गिरी ने मुझ से पूछा, ‘‘तुम्हारी मां तुम्हें किस नाम से पुकारती थीं?’’

‘‘अवडोहोल कह कर बुलाती थीं.’’ मैं बोली.

‘‘तो फिर तुम हर महिला, जो तुम्हें मां जैसी लग रही हो, उस से यही सवाल कर सकती हो.’’ वह बोले.

मैं ने ऐसा ही किया, लेकिन यह तरीका भी कामयाब नहीं रहा. अफसोस तो यह था कि मुझे अपने परिवार से मिले बिना ही वापस वियना लौटना पड़ा. अगली बार डाइरेक्टर गिरी ने पहले से ही कई व्यक्तियों को मेरी अम्मी को ढूंढने के लिए लगा दिया था. थोड़ाबहुत अंदाजा होने से मैं और डाइरेक्टर गिरी हेलीकौप्टर से गालाकायो कस्बे पहुंचे. हेलीकौप्टर की आवाज सुन कर गांव वालों की भीड़ जमा हो गई. अब मुझे मिट्टी की वही महक आने लगी. मैं सोचने लगी कि यहीं कहीं मेरी अम्मी मिल जाएं. मैं बारबार अपनी मिट्टी को हाथ में ले कर चूमने लगी. मिट्टी की सुगंध पहले जैसी ही थी. बदली थी तो बस मेरी जिंदगी.

गालाकायो कस्बे में घरघर जा कर मैं अम्मी की तलाश में भटकने लगी. तभी एक बुजुर्ग मेरे पास आ कर खडे़ हो गए. उन्होंने कहा, ‘‘क्या तुम ने मुझे पहचाना बेटी?’’

मैं ने ना में गरदन हिला दी.

‘‘चलो, कोई बात नहीं. मैं ही बताए देता हूं कि मैं इस्माइल हूं. तुम्हारे चाचा का बेटा.’’

मुझे यह सुन कर शरम सी आने लगी कि मैं अपने ही परिवार वालों को नहीं पहचान पाई.

‘‘मैं जानता हूं कि इस समय तुम्हारी अम्मी कहां रह रही हैं.’’

उस की बात सुन कर मेरी बेचैनी बढ़ गई.

मैं ने तुरंत कुछ रुपए निकाल कर उस की हथेली पर रखते हुए कहा, ‘‘यह लो और जल्दी से जल्दी मुझे वहां ले चलो.’’

‘‘तुम अभी यहीं रहो. पहले मुझे तो सोचने दो कि उन का गांव कहां पड़ेगा. उधर मुझे ट्रक से जाना पड़ेगा.’’ यह कह कर इस्माइल ट्रक पर बैठ गया.

इस्माइल को गए 3 दिन गुजर गए. उस का कोई समाचार नहीं मिला. मेरे मन में यही विचार आ रहा था कि दूसरी बार भी अम्मी से मिलने का मौका मिलेगा भी या नहीं? मुझ से ज्यादा तो डाइरेक्टर गिरी मेरी अम्मी से मिलने के लिए आतुर थे, क्योंकि अम्मी के बिना उन की फिल्म अधूरी रहती.

जब इस्माइल के बारे में भी कोई खबर नहीं मिली तो गिरी ने हार मान ली.

‘‘ठीक है.’’ मैं ने भी मायूसी से कह दिया.

हम ने वापस लौटने की तैयारी कर ली. हम घर से निकलने ही वाले थे कि सुबह 6 बज कर 10 मिनट पर इस्माइल लौट आया. उसे देखर कर गिरी दौड़ेदौड़े मेरे पास आए. उन्होंने कहा, ‘‘वारिस, देखो कौन आया है?’’

मैं ने देखा, सामने मेरी जननी खड़ी थी. अम्मी पहले जैसी ही थीं. सिर पर पल्ला, गोल चेहरा, माथे पर परेशानी. उन्हें देखते ही मैं चीख पड़ी, ‘‘हां, यही हैं मेरी अम्मी.’’

मुझे देख कर अम्मी चौंक पड़ीं. मैं संपन्न दिख रही थी, इसलिए उन्होंने मुझ से एकएक बात आराम से पूछी. मसलन मैं कहां रहती हूं, क्या करती हूं, कैसे अमीर बन गई, आदि. मैं ने उन्हें सब कुछ बता दिया.

अम्मी के साथ मैं घर गई. घर पहुंच कर  देखा कि अब्बा अभी भी वही काम कर रहे थे. 2 किलोमीटर दूर से पानी भर कर लाना, बकरियों को चराना, ऊंटों को घुमाना और दूध बेचना. उन की नजर कमजोर हो गई थी. मुझे भी वह बड़ी मुश्किल से पहचान पाए. मेरा भाई भी बड़ा हो चुका था. वह शादी लायक था. उन सब को देख कर मैं बड़ी खुश हुई. गालकायो कस्बे में ही हम ने रात गुजारी. पहले की तरह ही खुले आसमान के नीचे. वही खुशी, वही तसल्ली थी अम्मी की गोद में. मैं चाहती थी कि अम्मी को अपने साथ ले जाऊं, पर वह मेरे साथ चलने के लिए राजी नहीं थीं. विदाई के समय मैं अम्मी से गले लग कर खूब रोई. अब्बा को नई ऐनक भेजने का वादा कर के मैं उन्हें फिर से छोड़ कर चल दी.

वापस वियना लौट कर मेरा कैरियर बुलंदियों पर था. अम्मी ने मुझ से जल्द ही शादी करने को कहा था. मुझे उन का कहा भी मानना था, पर मैं उस मौके की तलाश में थी कि मुझे भी कोई चाहने वाला मिले. म्युजिक वीडियो बनाते समय सन 1995 में मेरी मुलाकात डाना मुराए से हुई. डाना मुराए न्यूयार्क में जाज क्लब में ड्रर्मर था. पहली ही मुलाकात में उस ने मेरे सामने शादी का प्रस्ताव रखा और मैं ने भी हां कर दी. जल्दी ही हमारी शादी हो गई. 13 जून, 1997 को मैं ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम मैं ने अलीकी रखा. अलीकी के आने से मैं अपने रहेसहे गम भूल गई.

सन 1997 में संयुक्त राष्ट्र के महासचिव कोफी अन्नान ने मुझे स्पैशल एंबेसेडर फार एलिमिनेशन औफ फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन के लिए चुना. अब मेरे सामने अपना परिवार है, एक कैरियर है, एक मिशन है. मैं अब उस परंपरा के खिलाफ संघर्षरत हूं, जिस का दंश मैं ने झेला था. मैं नहीं चाहती कि कोई और वारिस इस धरती पर उस दर्द को झेले. मेरे जीवन पर डिजर्ट फ्लावर यानी रेगिस्तान का फूल नाम की एक फिल्म भी बनी. अगर मैं अन्य लड़कियों की तरह अपनी सीमित सोच में रहती और मुश्किलों से संघर्ष नहीं करती तो शायद इस मुकाम पर नहीं पहुंच पाती, जो मुझे मिला है. Hindi Stories

 

Short Hindi Story: सब्र की सीमा

Short Hindi Story: हर बात की एक सीमा होती है. समुद्र और सब्र की भी सीमा होती है. दोनों अपनी सीमा तोड़ दें तो अनर्थ हो जाएगा. प्रेम और धोखेबाजी की एक दुखांत कथा…

राजेंद्र तिवारी ने क्याक्या सपने नहीं संजोए थे, क्याक्या नहीं सोचा था, अपने लिए…उस के लिए और अपने भावी जीवन के लिए. जबकि वह जानता था कि सपने कभी सच नहीं होते, अपना सोचा कभी पूरा नहीं होता. शायद यही वजह थी कि आज उसे उस का खून अपने ही हाथों करने पर मजबूर होना पड़ा. दरअसल इस के अलावा कोई दूसरा रास्ता शायद उसे सूझा ही नहीं.  शादी के 10 महीनों का जीवन उस के लिए नारकीय था. हर पल उस की यही कोशिश रही कि यह जीवन किसी तरह सुखमय हो जाए. लेकिन कलयुग में शायद यह उस के लिए संभव नहीं था.

उस ने विश्वास किया तो दगा मिली. प्यार दिया तो घृणा हाथ लगी. जहर का घूंट पीतेपीते वह पूरी तरह थक चुका था. जब सहन की सीमा पार हो गई तो वह कर बैठा, जो कानून की नजरों में अपराध था. उस का कहना था कि यह अपराध तो बहुत पहले हो चुका होता, अगर वह गांधीवादी सोच का न होता. इतना घृणित दृश्य देखने के बाद शायद ही कोई अधिक समय तक चुप बैठता. लेकिन वह शांति का उपासक था, अहिंसा का पुजारी था, इसीलिए सोचता था कि बाकी जिंदगी अहिंसा और नेकी की राह पर चलते हुए कट जाए तो बेहतर होगा.

लेकिन ऐसा हो नहीं सका. क्योंकि वह जितना टालता, समस्या उतनी ही उलझती रही. एक बार तो उस ने उस की ओर से एकदम से निगाहें हटा लीं, परंतु उसे यह भी अच्छा नहीं लगा. मजबूर हो कर यह कठोर कदम उठाना पड़ा. वह मानता है कि इस सब का गुनहगार वही है. लेकिन उस के द्वारा किए गए इस अपराध का एक अच्छा परिणाम यह निकला कि समाज को कलंकित करने वाला सदा के लिए मिट गया. उस का मानना है कि उस ने अपराध नहीं, समाज पर एहसान किया है.

उसे वह पहली मुलाकात आज भी अच्छी तरह याद है. वह लखनऊ के हजरतगंज में एक कंप्यूटर इंस्टीट्यूट में प्रशिक्षक था. वह इंस्टीट्यूट अखिलेश अग्रवाल का था. अग्रवाल शिक्षा विभाग में नौकरी करते थे. वह कभीकभार ही वहां आते थे. इंस्टीट्यूट की देखभाल की पूरी जिम्मेदारी राजेंद्र तिवारी पर ही थी.

उस दिन क्लास के बाद राजेंद्र औफिस में बैठा आराम कर रहा था, तभी एक लड़की उस के औफिस में आई. बहुत खूबसूरत थी वह. गजब का आकर्षण था उस में. वह अपलक उस की ओर देखता रहा.

‘‘मैं कंप्यूटर सीखना चाहती हूं.’’ उस के स्वर में मिठास थी.

राजेंद्र हड़बड़ा कर बोला, ‘‘हां..हां, बैठिए.’’

‘‘कितने दिनों में मैं कंप्यूटर सीख जाऊंगी.’’ सामने की कुरसी पर बैठते हुए उस ने पूछा.

‘‘यह तो सीखने वाले पर डिपेंड करता है. वैसे थोड़ी सी प्रैक्टिस से 6 महीने में अच्छाखासा सीख जाएंगी.’’

‘‘ठीक है, मुझे एडमीशन के लिए फार्म दे दीजिए.’’

‘‘आप का नाम?’’ मेज की दराज से फार्म निकाल कर उस की ओर बढ़ाते हुए राजेंद्र ने पूछा.

‘‘अमिता सक्सेना. मैं सर्विस करती हूं, इसलिए शाम को ही आ सकूंगी.’’

‘‘कोई बात नहीं, आप फार्म भर दीजिए.’’

उस ने सरसरी निगाह फार्म पर डाली. फिर कुछ सोचते हुए बोली, ‘‘मैं इसे भर कर बाद में ले आऊं तो कोई हर्ज है?’’

‘‘नहीं, कोई हर्ज नहीं है. फार्म के साथ आप फीस जमा कर दीजिएगा. उसी दिन आप का एडमीशन हो जाएगा.’’

‘‘ठीक है, मैं जब भी आऊंगी, इसे भर कर ले आऊंगी.’’ इतना कह कर अमिता चली गई.

अमिता राजेंद्र को अच्छी लगी थी. ऐसा नहीं कि वह कोई आशिकमिजाज था. लड़कियों से खासतौर पर वह दूर ही रहता था. पर अमिता में न जाने क्या खासियत थी कि वह काफी देर तक उस के खयालों में खोया रहा. उस ने जैसे उस के ऊपर कोई जादू कर दिया था. वह दोबारा उस की एक झलक पाने के लिए बेचैन हो उठा था. उस के बारे में उस के मन में इस बात का भी संदेह था कि कहीं वह विवाहित तो नहीं. वह अगले दिन अमिता का इंतजार करता रहा कि शायद वह आए, लेकिन निराशा ही हाथ लगी.

3 दिनों बाद अमिता आई. फार्म उस ने राजेंद्र को दे दिया. फार्म में उस के नाम के पहले ‘कुमारी’ शब्द देख कर उसे बड़ा सुकून मिला. फार्म पर सरसरी नजर डाल कर उस ने पूछा, ‘‘आप कहां नौकरी करती हैं?’’

‘‘स्टेशन रोड पर एक बिल्डर के औफिस में. यह इंस्टीट्यूट आप का है?’’

वह बीच में ही बोल उठा, ‘‘मुझे राजेंद्र तिवारी कहते हैं. मैं यहां प्रशिक्षक हूं. यह इंस्टीट्यूट अखिलेश अग्रवाल का है. लेकिन देखभाल मैं ही करता हूं. कभी कोई चीज समझ में न आए तो बिना झिझक पूछ लेना, शरमाना नहीं.’’

‘‘जी, वैसे मैं कल से जौइन करूंगी.’’ कह कर अमिता मुसकराई और कुरसी से उठ खड़ी हुई.

उस ने अगले दिन से जौइन कर लिया. कंप्यूटर सिखाते समय राजेंद्र की नजरें उसी पर टिकी रहतीं. अमिता ने उस का कहा माना था, मतलब उसे जो समझ में न आता, झट पूछ लेती. राजेंद्र भी पूरे मनोयोग से उसे कंप्यूटर सिखा रहा था.

कोई एक सप्ताह बाद एक दिन क्लास समाप्त होने पर अमिता औफिस में आई, ‘‘मुझे आप से कुछ पूछना है?’’

‘‘पूछो, क्या पूछना है?’’

उस ने कुछ सवाल पूछे. राजेंद्र ने उत्तर समझा दिए. बाद में व्यंग्य करते हुए उस ने कहा, ‘‘लगता है, मेरा बताया तुम्हारी समझ में नहीं आता.’’

‘‘नहीं, आप बतातेसिखाते तो बहुत अच्छा हैं, पर मेरी ही समझ में देर से आता है.’’ चेहरे पर मासूमियत लाते हुए वह बोली.

‘‘हां, बेवकूफों के साथ यही होता है.’’

राजेंद्र के इस मजाक पर उस ने हंसते हुए जवाब दिया, ‘‘चलिए, आप ने पहचान तो लिया. गुरु को अपना ही गुण शिष्य में दिखाई पड़ता है.’’

कुछ देर तक दोनों यूं ही हंसीमजाक करते रहे. बातोंबातों में अमिता बोली, ‘‘किसी दिन मेरे घर चाय पर आइए. मेरा घर पता है आप को?’’

उस ने राजेंद्र को बताया कि अमीनाबाद में वह अपने चाचा के साथ रहती है. उस के मातापिता लखनऊ में ही तालकटोरा थानाक्षेत्र स्थित राजाजीपुरम कालोनी में रहते हैं. राजेंद्र भी राजाजीपुरम में ही रहता था. यह बात उस ने अमिता को बताई तो उस ने पूछा, ‘‘आप किस ब्लौक में रहते हैं?’’

‘‘ई ब्लौक में.’’

‘‘अरे, मैं भी ई ब्लौक में रहती हूं.’’

‘‘तुम अब वहां क्यों नहीं रहती?’’

वह टालते हुए बोली, ‘‘ऐसे ही, अच्छा अब मैं चलूंगी, काफी देर हो गई है.’’

इस बातचीत के बाद दोनों काफी घुलमिल गए थे. इस बीच एक बार राजेंद्र उस के घर भी हो आया. उस के चाचा हंसमुख और मिलनसार लगे. उस ने लौटते समय अमिता के चाचा को अपने घर आने के लिए आमंत्रित किया. उस का अनुमान था कि उन के साथ अमिता भी आएगी. पर न तो चाचा आए और न अमिता. अचानक एक दिन राजेंद्र अमिता के औफिस जा पहुचा. ज्यादा बड़ा औफिस नहीं था. फिर भी 15-20 लोग काम करते थे. उसे देख कर अमिता मुसकरा दी. वह झेंप सा गया. उस समय उस की ड्यूटी समाप्त होने वाली थी. उसे बैठने के लिए कह कर वह एक केबिन में गई. शायद वह उस के बौस की केबिन थी, 2 मिनट बाद ही बाहर आ कर बोली, ‘‘आइए, चलें.’’

दोनों एक रेस्तरां में जा पहुंचे. कौफी पीते हुए उस ने राजेंद्र को छेड़ा, ‘‘आज इधर का रास्ता कैसे भूल गए?’’

‘‘तुम से मिलने का मन था, चला आया.’’

राजेंद्र की इस बात पर वह गुमसुम हो गई. उसे लगा, जैसे उस ने कुछ गलत कह दिया हो. झट सफाई दी, ‘‘मुझे गलत मत समझो.’’

‘‘नहीं, यह बात नहीं है. आज पहली बार मुझ से किसी ने इतने अपनत्व से बात की है, वरना सब मुझे काट खाने दौड़ते हैं. मातापिता से भी मुझे प्यार नहीं मिला. घर में हर एक ने मुझे दुत्कारा. मजबूरी में मैं चाचा के यहां रहने लगी. वहां सब मुझे ऊपर से तो प्यार दिखाते हैं, लेकिन अंदर ही अंदर जलते हैं. एक भी महीने अगर पूरी तनख्वाह उन्हें न दूं तो मुझ पर पहाड़ टूट पड़ता है. समझ में नहीं आता, मैं क्या करूं.’’ कहतेकहते अमिता की आंखें सजल हो गईं.

उस समय राजेंद्र को ऐसा लगा कि अमिता दुनिया में बिलकुल अकेली है, बेसहारा है. शायद वह अपने अंदर दुख ही दुख समेटे है. वह अपने को उस का सब से बड़ा हमदर्द समझ कर बोल पड़ा, ‘‘इस में इतना परेशान होने की क्या बात है? मैं तो हूं, सब ठीक हो जाएगा.’’

राजेंद्र की इस सहानुभूति ने अमिता को आत्मबल दिया. उस के काफी समझानेबुझाने पर वह सामान्य हो गई. इस के बाद दोनों काफी करीब आते गए. दोनों ने एकदूसरे के मोबाइल नंबर ले लिए. मुलाकातों का सिलसिला तेजी से चल निकला. रोज ही मिलना, बातें करना, साथ घूमना जैसे जरूरी हो गया. अमिता की बातों से राजेंद्र को लगता कि जैसे वह उस के बिना रह नहीं पाएगी. वह भी उस का जीवन सुखमय बनाना चाहता था. इसीलिए उस ने उस का हाथ थामने का निर्णय ले लिया. जबकि राजेंद्र उस से 4 साल छोटा था. लेकिन उस ने इस की भी परवाह नहीं की. उसे डर था कि उस के कदम पीछे खींच लेने से एक इंसान की जिंदगी चली जाएगी और उस का जिम्मेदार वह होगा.

राजेंद्र के पिता शिवप्रसाद तिवारी रायबरेली की डलमऊ तहसील स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में हेड क्लर्क थे. रायबरेली में ही उस का पैतृक घर था. 3 भाइयों और एक बहन में वह दूसरे नंबर पर था. सब से बड़े भाई देवेंद्र कुमार तिवारी घर पर ही खेतीबाड़ी का काम देखते थे. उस से छोटा नरेंद्र और बहन थी. दोनों पढ़ रहे थे. राजेंद्र के इस निर्णय की जानकारी उस के पिता को होगी तो उन का क्या रुख होगा, यह उसे अच्छी तरह पता था. एक तो प्रेम विवाह, दूसरा अपने से बड़ी उम्र की लड़की से, तीसरा विजातीय. उस के निर्णय का पता चलते ही उन्होंने उस से संबंध तोड़ लिए. उस ने उन्हें समझाने का प्रयास किया, पर उन्होंने उस की एक न सुनी.

घर वालों से बगावत कर के राजेंद्र ने अमिता से प्रेम विवाह कर लिया. इस विवाह में दोनों के ही परिवारों के लोग शामिल नहीं हुए. शादी के बाद वह अमिता को राजाजीपुरम स्थित अपने मकान में ले आया. वैवाहिक जीवन हंसीखुशी बीतने लगा. इंस्टीट्यूट में नौकरी करने के साथसाथ राजेंद्र किसी अच्छी नौकरी की तलाश में था. शादी के बाद उस ने इस ओर खास ध्यान देना शुरू कर दिया. अमिता नियमित रूप से अपनी नौकरी पर जा रही थी.

एक दिन राजेंद्र अमिता के औफिस पहुंचा तो उस के बौस दिनेश मेहरा कहीं जाने की तैयारी में थे. अमिता ने राजेंद्र का परिचय उन से कराया तो वह तपाक से बोले, ‘‘अरे तुम राजेंद्र हो, कहो कैसी कट रही है?’’

‘‘सब बढि़या चल रहा है.’’ राजेंद्र ने जवाब दिया.

‘‘कभी कोई काम हो तो बताना.’’ कहते हुए उन्होंने राजेंद्र के कंधे पर हाथ रखा और आगे बढ़ गए. मेहराजी पहली मुलाकात में राजेंद्र को काफी भले आदमी नजर आए. उस समय उसे क्या पता था कि ऊपर से सज्जन लगने वाले यह शख्स उस की जिंदगी में जहर घोल कर रख देंगे. अमिता ने एक दिन उसे बताया कि मेहराजी बड़ी दिलचस्पी से हमारे घर की बातें पूछा करते हैं. यह बात उसे बड़ी अजीब लगी कि आखिर उन का उस के घर से क्या मतलब. बहरहाल उस ने उस समय इस बात पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया.

धीरेधीरे छोटीछोटी बातों पर अमिता राजेंद्र से झगड़ने लगी. उस की सही बात को भी गलत बताती. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर अमिता के व्यवहार में अचानक यह बदलाव क्यों आ गया. एक रात जब उस ने उस के व्यवहार में आए बदलाव के बारे में पूछा तो उस से मिली जानकारी से वह दंग रह गया. अमिता ने बताया कि मेहराजी अकसर उस के घर के बारे में राय दिया करते थे कि यह काम ऐसे होना चाहिए, फलां काम नहीं करना चाहिए. मेहराजी अमिता को जिस तरह की सलाह देते थे, उस के हिसाब से वह बिलकुल बेतुकी होती थीं. चूंकि अमिता पूरी तरह उन की सलाह पर चल रही थी, इसीलिए उन दोनों में मनमुटाव हो रहा था.

उस की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर यह कौन सी राजनीति है? आखिर मेहराजी उस के परिवार में कलह पैदा करने पर क्यों तुले हैं? राजेंद्र ने इस ओर गंभीरता से ध्यान शुरू किया. उसी बीच उसे पता चला कि उस की शादी के पहले से ही मेहराजी के अमिता से काफी आत्मीय संबंध थे. दरअसल शादी से पहले जब अमिता अपनी पारिवारिक स्थिति से परेशान थी तो मेहराजी उस के साथ सहानुभूति जता कर उस के हमदर्द बन गए थे. लेकिन शादी के बाद अमिता की स्थिति बदल गई थी. शायद यही कारण था कि मेहराजी ने कूटनीति अपना कर उस के वैवाहिक जीवन में फूट डालने की कोशिश शुरू कर दी थी, ताकि वे फिर अमिता के हितैषी बन सकें.

सीधे स्वभाव की अमिता को मेहराजी ने अपने व्यवहार से काफी प्रभावित कर रखा था. जबतब काम के बहाने वह उसे साथ ले जाते. घुमातेफिराते, ऊंचेऊंचे ख्वाब दिखाते, कीमती सामान खरीद कर देते. राजेंद्र ने अमिता को समझाने का भरसक प्रयास किया. पर उसे लगा कि वह मेहराजी से जलता है, इसलिए ऐसी बातें कर रहा है. यही वजह थी कि उस के समझानेबुझाने का उस पर कोई असर नहीं हुआ. मेहराजी से वह इतना अधिक प्रभावित थी कि उन के आगे उस की हर बात महत्त्वहीन थी. अब उसे विश्वास हो गया कि अमिता के सीधे और सरल स्वभाव का मेहरा नाजायज फायदा उठा रहा है.

राजेंद्र ने अमिता को बहुत समझाया, मेहराजी के साथ घूमनेफिरने से मना किया, उन की मक्कारी के बारे में बताया. एक बार तो अमिता को उस की बातें समझ में आ गईं. उस ने वादा किया कि अब वह कभी मेहराजी से औफिस के काम के अलावा कोई बात नहीं करेगी. कुछ दिनों तक तो सब ठीकठाक चलता रहा, लेकिन जल्दी ही मेहराजी ने उसे फिर बहकाना शुरू कर दिया. इस बार उन्होंने अमिता को स्वतंत्रता का पाठ पढ़ा दिया. अब जब भी राजेंद्र उसे समझाता तो जवाब मिलता, ‘‘मैं स्वतंत्र हूं, बंधुआ नहीं.’’

अजीब थी उस की स्वतंत्रता और मेहराजी का स्वतंत्रता पाठ. राजेंद्र के सामने ही उस का घर उजड़ रहा था और वह असहाय था. लेकिन वह कठोर कदम उठा कर मेहराजी को कोई आसान मौका नहीं देना चाहता था. वह नहीं चाहता था कि उस का घर बिखरे. राजेंद्र ने अमिता को समझाया कि ये पैसे वाले लोग उन की कमजोरी का फायदा उठाते हैं. पैसे के बल पर वे उन्हें खरीदने तथा गुलाम बनाने की कोशिश करते हैं. उन का हित इसी में है कि मेहनत से जो कुछ कमाएं, उसी में गुजारा करें. दूसरों के पैसों के पीछे न भागें.

अमिता ने महसूस किया कि राजेंद्र की बात सही है. इसीलिए उस ने फिर वादा किया कि अब वह मेहराजी की बातों पर ध्यान नहीं देगी. लेकिन अगले ही दिन जब वह औफिस से लौटी तो मेहराजी ने उस के सारे उपदेश गलत सिद्ध कर दिए. उसी शाम मेहराजी उस के घर आ धमके. उन्होंने राजेंद्र को चेतावनी दी, ‘‘अमिता तुम से जो कुछ कहे, वह तुम्हें मानना होगा. अगर ऐसा नहीं किया तो अंजाम ठीक नहीं होगा.’’

यह सुन कर राजेंद्र सन्न रह गया. शांत और विनम्र भाव से उस ने जवाब दिया, ‘‘ठीक है, जो आप चाहते हैं, वही होगा. साथ ही मैं कोशिश करूंगा कि जितनी जल्दी हो, अमिता की जिंदगी से दूर हो जाऊं.’’

राजेंद्र मेहराजी के सामने इसलिए विनम्र हो गया था कि शायद उस के दुख को समझ कर उन्हें सद्बुद्धि आ जाए. पर हुआ इस के विपरीत. मेहराजी ने अपनी जीत पर प्रसन्न हो कर राजेंद्र के सामने ही उस की पत्नी को ले कर घूमने चले गए. उन के जाने के बाद राजेंद्र आंसू बहाता रहा. सोचता रहा कि क्या दुनिया में कमजोर लोगों के साथ ऐसा ही होता है? लौटने पर अमिता को जब उस ने समझाया तो वह बोली, ‘‘मेहराजी तो मजाक कर रहे थे, आप बुरा मान गए.’’

उस के साथ मजाक? आखिर क्या रिश्ता है मेहराजी से उस का, जो वह उस से मजाक कर रहे थे? उस की समझ में नहीं आ रहा था. इसलिए चुप रह गया. इस गंभीर समसया के समाधान का वह रास्ता ढूंढने लगा. काफी माथापच्ची के बाद भी उसे कोई उपाय नहीं सूझा. हां, इस बीच मेहराजी और अमिता का मिलनाजुलना और भी आसान हो गया. हुआ यह कि गरमियों में राजेंद्र के मकान मालिक सपरिवार घूमने चले गए. इस बीच अमिता ने 15 दिनों की छुट्टी ले ली. राजेंद्र के नौकरी पर जाने के बाद घर में केवल अमिता ही रह जाती थी. मेहराजी उस की अनुपस्थिति में घर आ जाते. दोनों घंटों बैठ कर गपशप करते या फिर घूमने चले जाते.

राजेंद्र को इस बात का आभास तब हुआ, जब घर लौटने पर कमरे में मेहराजी का कोई न कोई सामान पड़ा मिलता. बरतन जूठे मिलते. आखिर एक दिन उस ने पूछ ही लिया, ‘‘क्या बात है, आज चाय बहुत बनी है?’’

‘‘मेहराजी आए थे.’’ अमिता ने बड़े तीखे स्वर में कहा. राजेंद्र चुप रह गया.

राजेंद्र ने उसे एक बार फिर समझाने की कोशिश की, पर असफल रहा. इसी बीच उस के इंस्टीट्यूट का समय भी बदल गया. जिस दिन समय बदला था, उस दिन जल्दी छुट्टी हो गई. वह घर आ गया. वहां बाउंड्री वाले मेनगेट पर अंदर से ताला बंद था. अंदर के दरवाजे भी बंद थे. ग्रिल वाला गेट फांद कर वह खिड़की के पास पहुंचा. एक कब्जा टूटा होने के कारण खिड़की ठीक से बंद नहीं होती थी. चुपके से उस ने अंदर झांका तो अमिता और मेहरा को आपत्तिजनक अवस्था में देख कर उस के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई. वह तो सिर्फ यही समझता था कि दोनों के बीच मामला केवल घूमनेफिरने तक ही सीमित था.

उस समय राजेंद्र की समझ में नहीं आया कि वह क्या करे. एक बार उस के मन में आया कि पड़ोसियों को बुला कर मेहराजी को मजा चखा दे. फिर यह सोच कर चुप रह गया कि इस में बदनामी उसी की होगी. गेट फांद कर वह फिर बाहर आ गया. कुछ देर इधरउधर चहलकदमी कर सोचता रहा, लेकिन कुछ समझ में नहीं आया. फिर कुछ देर बाद उस ने जोर से गेट भड़भड़ाया. अमिता बाहर निगली. गेट पर उसे देख कर चौंकी. उस ने ग्रिल वाले मेनगेट का ताला खोला. वह अंदर पहुंचा. सामने मेहराजी बैठे थे. उन्हें यह जाहिर नहीं होने दिया कि उस ने सब कुछ देख लिया था. वह बनावटी हंसी हंसता रहा. कुछ देर बाद मेहराजी चले गए.

राजेंद्र ने इस बारे में अमिता से भी कुछ नहीं कहा. लेकिन इधरउधर की बात कर उसे एक बार फिर समझाने की कोशिश की, पर कोई नतीजा नहीं निकला. वह बराबर यही कहती रही, ‘‘मेहराजी बहुत अच्छे आदमी हैं. तुम नाहक उन से जलते हो. वह हमारी हर तरह से मदद कर रहे हैं. उन का एहसान मैं जिंदगी भर नहीं भूल सकती.’’

उन्हीं दिनों अमिता ने अपने मातापिता के घर भी आनाजाना शुरू कर दिया. उस के मातापिता पास में ही रहते थे. अब वह सुबह बहुत जल्दी औफिस जाने के लिए निकलती और रात देर से घर लौटती. राजेंद्र फोन कर के पूछ भी नहीं सकता था कि वह कहां है और कब तक आएगी. जल्दी जाने और  देर से लौटने का कारण पूछने पर राजेंद्र को धमकी मिलती, ‘‘मेरी जो इच्छा होगी करूंगी, तुम मुझे रोक नहीं सकते.’’

राजेंद्र की विनम्रता और सीधेपन का नाजायज फायदा उठाया जाता रहा. वह उसे कमजोर और डरपोक समझ रही थी. वह नहीं चाहता था कि उस की इज्जत चौराहे पर नीलाम हो, लोग उस पर हंसें. लेकिन अब उसे इस बात का पश्चाताप हो रहा था कि उस ने मातापिता की बात नहीं मानी. उन के न चाहते हुए भी प्रेमविवाह क्यों कर लिया? अब महसूस हो रहा था कि मांबाप हमेशा अपनी संतान के हित की सोचते हैं. अपने अनुभवों के आधार पर ही संतान को उचित राय देते हैं. मांबाप की याद आते ही वह दुखी हो उठता. प्रेम के नाम से उसे नफरत होने लगी थी.

दूसरी ओर मेहराजी ने अमिता को यह आश्वासन दे रखा था कि अगर पति उसे छोड़ देगा तो वह उसे अपनी पत्नी बना लेंगे. मेहराजी की संपत्ति की वह मालकिन हो जाएगी. शायद यही वजह थी कि जब भी राजेंद्र उसे समझाने की कोशिश करता, वह बेबाक कह देती, ‘‘ठीक है, मैं मेहराजी के साथ जा रही हूं, रात देर से लौटूंगी.’’

मेहरा और अमिता ने राजेंद्र के सामने ऐसी स्थिति पैदा कर दी थी कि एक ही रास्ता शेष था कि वह उन के बीच से हट जाए. मेहरा के औफिस के तमाम कर्मचारी अमिता और बौस के रिश्ते को जान गए थे. इस से राजेंद्र को खुद पर शरम महसूस हो रही थी. वह अपने प्रेम और धोखेबाजी के बारे में सोचसोच कर परेशान हो रहा था. आखिर क्या उसे सारी जिंदगी यही देखना पड़ेगा. उस दिन तो वह जैसे आसमान से गिर पड़ा, जब अमिता को अपने सगे भाई अश्विनी के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया. उस ने भाईबहन के पवित्र रिश्ते पर बदनुमा दाग लगा दिया था. अब राजेंद्र समझ गया कि असली दोषी कौन है. वह अभी तक सारा दोष मेहराजी को ही दे रहा था, जबकि अपना ही सिक्का खोटा था. इस घटना के बाद वह पूरी तरह टूट गया.

आखिर कोई कब तक अपने स्वाभिमान को तिलांजलि देता रहेगा? कितना झुकेगा? कितना दबेगा? राजेंद्र ने काफी प्रयास किया कि बात उसी तक सीमित रहे, आगे न बढ़े. पर उस का चुप रहना उस की कमजोरी माना जा रहा था. वह इस विचार का था कि वह प्यार सच्चा नहीं होता, जिस में प्रेमी को क्षमा न किया जा सके. इसी कारण वह अमिता को समझाबुझा कर सही रास्ते पर लाने का असफल प्रयास करता रहा. लेकिन उस के मनमस्तिष्क को तो मेहराजी ने विकृत कर दिया था. ‘वाह रे मेहराजी, तुम ने अजीब राजनीति का खेल खेला. तुम समझते होगे कि राजेंद्र घुटघुट कर मर जाएगा या फिर जहर खा लेगा. फिर तुम मनचाहा राज करोगे.’ लेकिन राजेंद्र ऐसा करने वालों में नहीं था. शायद वह कोई कठोर कदम उठाने से रुक जाता था. उसे विश्वास था कि कुदरत उन्हें उन के कर्मों का दंड अवश्य देगा.

लेकिन हर चीज की एक सीमा होती है. समुद्र और सब्र की भी सीमा होती है. दोनों अगर अपनी सीमा तोड़ दें तो अनर्थ हो जाता है. किसी चीज की अति करने का अर्थ होता है विनाश. वे दोनों अति की ओर अग्रसर हो रहे थे. राजेंद्र शांत रह कर बुरे दिन टलने का इंतजार करता रहा. वह अपनी पत्नी को अब न तो कुछ समझाता था और न ही उस की किसी हरकत का विरोध करता था. उसे बिलकुल स्वच्छंद छोड़ दिया था, इसलिए कि शायद कभी ठोकर खा कर वह अपने कर्मों पर शर्मिंदगी महसूस करे. लेकिन वे घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रही थीं. एक दिन अमिता ने राजेंद्र से कहा, ‘‘आज मैं अपनी मां के साथ बाजार जाऊंगी.’’

राजेंद्र ने उस की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया तो उस ने अपने कुछ कपड़े लिए और घर से निकल गई. उसे इस तरह कपड़े ले जाते देख उसे शक हुआ. उस के जाने के थोड़ी देर बाद वह घर से निकला और अपनी ससुराल जा पहुंचा. वहां मजदूर घर की पुताई कर रहे थे. अमिता की मम्मी और पापा बाजार गए थे. घर में केवल अमिता का भाई अश्विनी था. वह सीधे उस के कमरे की ओर बढ़ा. कमरे के दरवाजे को हाथ से धकेलने की कोशिश की, लेकिन वह अंदर से बंद था. उस ने अपना शक मिटाने के लिए खिड़की से अंदर झांका. वहां का दृश्य देख कर वह कांप उठा. वह चुपचाप वापस लौट आया.

राजेंद्र ने तय कर लिया कि अब वह यह घर छोड़ कर चला जाएगा. उस का मन वैराग्य की ओर मुड़ गया. लेकिन उस के संन्यासी हो जाने से उस के दुश्मनों का मतलब हल हो जाएगा. यह सोच कर उस ने तय किया कि दुनिया से पूछ लिया जाए कि आखिर कौन गलत है, कौन सही? जब उस का जीवन बरबाद हो ही गया है तो फिर सच उजागर करने में ज्यादा से ज्यादा उस की जान ही तो जाएगी. वैसे भी कैसा डर? इस जिंदगी से तो मौत ही अच्छी है. वह जानता था कि अन्याय करने वाले से ज्यादा दोषी अन्याय सहने वाला होता है. पर वह मजबूर था. किसी को दंड नहीं दे सकता था. क्योंकि किसी को दंड देने का कोई अधिकार उस के पास नहीं था. यही सोच कर उस का संन्यास ले लेने का निर्णय पक्का होता गया.

लेकिन शायद ऐसा नहीं होना था. 21 जनवरी को रात साढ़े 8 बजे अमिता औफिस से घर लौटी. उस के इतनी देर से आने के बावजूद राजेंद्र ने कुछ नहीं कहा. उस ने कपड़े बदले. वह विचारों में खोया था. अचानक उस के दिमाग में आया कि क्यों न घर छोड़ने से पूर्व अमिता को आखिरी बार समझाने की कोशिश करे. राजेंद्र ने उस से बात छेड़ी ही थी कि वह बिफर उठी. उसे दुत्कारने लगी. इस के बावजूद वह उसे समझाने की कोशिश करता रहा. उस के समझाने का उस पर कोई असर नहीं हुआ. उस ने उसे खरीखोटी सुनानी शुरू कर दी. वह भी थोड़ा उत्तेजित हुआ. दोनों में झगड़ा होने लगा. उस ने गुस्से में कहा, ‘‘तुम मेरे जीवन से निकल जाओ. तुम्हारे लिए अब मेरी जिंदगी में कोई जगह नहीं है. न ही अब मैं तुम्हारे साथ रहना चाहती हूं. अब मैं मेहराजी की पत्नी बन कर रहूंगी.’’

राजेंद्र ने उसे अपने प्यार की दुहाई दी. परंतु वह जानबूझ कर उस की खिल्ली उड़ा रही थी. वह अपना होश खो बैठा. मेज पर पड़ी कैंची उस के हाथ में आ गई. उस ने कैंची का भरपूर वार उस के पेट पर कर दिया. वह चीख उठी. परंतु उस पर तो जैसे शैतान सवार हो गया था. वह कैंची से उस के शरीर को गोदता चला गया. वह जमीन पर गिर पड़ी. कुछ देर तड़पने के बाद उस ने दम तोड़ दिया. अमिता की मृत देह देख कर राजेंद्र के सिर पर सवार शैतान उतर गया. सामने लाश देख कर वह कांप उठा. अब क्या होगा? उस की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे. उस ने क्या सोचा था और क्या कर बैठा. कहां सब कुछ त्याग कर वह संन्यासी बनने चला था, कहां अब खूनी बन गया.

स्वयं को संतुलित कर उस ने आपबीती लिखनी शुरू की. उस के साथ जो कुछ हुआ था, सब लिख डाला. यह घटना स्पष्ट रूप से दिनेश मेहरा तथा अमिता के भाई के कारण ही हुई थी. राजेंद्र ने सब कुछ होशोहवास में लिखा था. 28 पृष्ठों के उस पत्र की कौपियां राष्ट्रपति, भारत सरकार, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री तथा गृहमंत्री और लखनऊ के जिलाधिकारी को आवश्यक काररवाई हेतु भेज दिया. राजेंद्र कुमार तिवारी द्वारा लिखे गए इस पत्र को पढ़ कर थाना तालकटोरा के थानाप्रभारी रामकुमार यादव की आंखें फटी रह गईं. हत्यारे ने न केवल अपना अपराध स्वीकार किया था, बल्कि हत्या के कारण को भी स्पष्ट लिख दिया था. हत्या करने के बाद ही यह पत्र लिखा गया था, क्योंकि पत्र के अंत में राजेंद्र कुमार ने अपने हस्ताक्षर करने के साथ खून की छींटें भी डाली थीं.

थानाप्रभारी को यह पत्र अमिता की लाश के समीप एक मेज पर मिला था, जिसे वह उसी समय पूरा पढ़ गए थे. मेज पर ही खून से सनी कैंची भी रखी थी. कमरे की दीवारों पर भी खून के छींटे पड़े थे. मृत अमिता के शरीर पर सलवारकुर्ता था. राजेंद्र कुमार तिवारी की मकान मालकिन श्रीमती बाधवा भी उसी मकान के एक हिस्से में रहती थीं. पूछताछ के दौरान श्रीमती बाधवा ने पुलिस को बताया कि बीती रात उन्होंने राजेंद्र तथा उस की पत्नी के बीच हुए झगड़े की आवाजें सुनी थीं. घटना वाली सुबह जब वह बाहर निकलीं तो राजेंद्र के घर का दरवाजा बंद था. उन्हें आश्चर्य हुआ, क्योंकि उस समय तक दोनों लौन में बैठ कर अखबार पढ़ते हुए दिखाई देते थे.

उन्होंने दरवाजा खटखटाया. राजेंद्र को आवाज दी, पर अंदर से कोई जवाब नहीं मिला. वह सशंकित हो उठीं. मकान के पिछले हिस्से की तरफ जाने पर उन्होंने बाथरूम के दरवाजे पर ताला बंद पाया. श्रीमती बाधवा ने यह बात अमिता के पिता को बता देना उचित समझा. उन का फोन नंबर उन के पास था. उन्होंने फोन कर के उन्हें पूरी बात बता दी. एकदो पड़ोसियों को साथ ले कर अमिता के पापा राजेंद्र के मकान पर पहुंचे. उन लोगों ने भी दरवाजा खटखटाया. ताला तोड़ने की कोशिश की, पर सफल न हो सके. राजेंद्र को फोन किया. उस का फोन बंद था. किसी अनिष्ट की आशंका से उन्होंने थाना तालकटोरा पुलिस को फोन किया. थानाप्रभारी रामकुमार यादव पुलिस दल के साथ मौके पर पहुंचे. ताला तोड़ कर जब उन्होंने अंदर प्रवेश किया तो वहां अमिता का शव पड़ा था.

रामकुमार यादव इस घटना से काफी परेशान हो उठे थे. सुबहसुबह उन के थानाक्षेत्र में 2 अन्य घटनाएं भी हो चुकी थीं. एक अन्य युवती की हत्या का मामला था और तालकटोरा थानाक्षेत्र के डी-ब्लौक स्थित रेलवे लाइन पर एक घायल युवक मिला था. उस युवक को कुछ लोग बेहोशी की हालत में उठा कर थाने ले आए थे. उसे उपचार हेतु अस्पताल भेज दिया गया था. युवक की शिनाख्त नहीं हो सकी थी. थानाप्रभारी ने संभावित स्थानों पर खोज की, परंतु राजेंद्र नहीं मिला. उस का फोन बंद ही था, इसलिए संपर्क नहीं हो सका. उस की तलाश में पुलिस टीम रायबरेली गई. वह अपने पिता के यहां भी नहीं मिला. पुलिस उस के पिता शिवप्रसाद तिवारी को अपने साथ लखनऊ ले आई. उन से पूछताछ के आधार पर पुलिस ने एक बार फिर राजेंद्र की तलाश की, पर उस का पता नहीं चला.

अचानक थानाप्रभारी का माथा ठनका कि कहीं रेलवे लाइन पर घायल मिला युवक ही राजेंद्र न हो. इस के बाद उन्होंने शिवप्रसाद तिवारी को साथ लिया और बलरामपुर अस्पताल जा पहुंचे. वह युवक अभी तक बेहोश था. शिवप्रसाद तिवारी उसे देखते ही रो पड़े. वह राजेंद्र ही था. उस की निगरानी के लिए 2 सिपाहियों को वहां तैनात कर दिया गया. तीन दिनों बाद 25 जनवरी को राजेंद्र को होश आ गया. पुलिस ने उस से पूछताछ की तो उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस का कहना था, ‘‘मैं ने जो कुछ किया, उस का मुझे कोई दुख नहीं है. मलाल तो इस बात का है कि मेरा परिवार तबाह करने वालों को कानून ने कोई सजा नहीं दी. अब कुदरत ही उन के कर्मों का फल उन्हें देगा, ऐसा मेरा विश्वास है.’’

लेकिन सवाल उठता है कि क्या अमिता की हत्या के बाद राजेंद्र द्वारा लिखे गए पत्र में लगाए गए आरोपों की कोई सजा कथित दोषियों को मिल सकती है? क्या ऐसा नहीं हो सकता कि कुछ लोगों को बदनाम करने के लिए हत्या के बाद लिखे गए पत्र में राजेंद्र ने उन का नाम लिखा हो? शायद यही वजह है कि दिनेश मेहरा (55 वर्ष) का कहना है, ‘‘मेरा और अमिता का रिलेशन केवल औफिशियल था. राजेंद्र ने अपने पत्र में मेरा जिक्र क्यों किया, यह मुझे नहीं पता. हो सकता है, उस ने मुझे बदनाम करने के लिए ऐसा किया हो. जहां तक सवाल है कि राजेंद्र ने अमिता की हत्या क्यों की तो इस का पता लगाना पुलिस का काम है, मेरा नहीं. हां, मैं यह जरूर कह सकता हूं कि अमिता बहुत ही मेहनती महिला थी. औफिस का काम भी वह पूरी ईमानदारी और लगन से करती थी. उस की मौत का मुझे दुख है.’’

दूसरी ओर अमिता के भाई अश्विनी का कहना था, ‘‘मुझे जो कुछ कहना है, पुलिस के सामने या अदालत में कहूंगा. लेकिन इतना जरूर कहूंगा कि राजेंद्र न केवल सनकी, बल्कि पागल था. उस ने जो कुछ लिखा है, अपनी सनक और पागलपन की झोंक में लिखा है. हत्या के असली कारण से पुलिस का ध्यान हटाने के लिए उस ने ऊलजुलूल बातें अपने पत्र में लिखी हैं. आखिर इन बातों का कोई सुबूत तो होना चाहिए.’’

एक अहम सवाल यह भी है कि जब राजेंद्र अपना अपराध स्वीकार कर रहा है तो उसे हत्या का असली कारण छिपाने से क्या लाभ? उस ने अमिता से प्रेमविवाह किया था. दोनों साथसाथ रह रहे थे. दोनों ही सर्विस में थे. इसलिए न तो आर्थिक संकट जैसा कोई कारण था और न ही सर्विस को ले कर कोई मनमुटाव था. बहरहाल, पुलिस का कहना है कि उसे हत्या का अपराधी मिल गया है. पुलिस का काम तो हत्या के अपराधी को पकड़ने के साथ ही समाप्त हो गया है. किसी को सजा देने का काम अदालत का है. शायद इसी कारण पुलिस ने राजेंद्र द्वारा पत्र में लिखी गई बातों की वास्तविकता का पता नहीं लगाया और न ही इस संबंध में कोई छानबीन की.

थानाप्रभारी रामकुमार यादव इस बारे में कहते हैं, ‘‘राजेंद्र ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया है. उस ने अपने पत्र में किस पर क्या आरोप लगाया है, इस की जांच का काम हमारा नहीं है. हां, इतना जरूर है कि पाप का प्रायश्चित करने वाला व्यक्ति न झूठ बोल सकता है और न झूठ लिख सकता है. अदालत भले ही किसी को सजा न दे सके, लेकिन कुदरत जरूर सजा देगी.’’

कथा लिखे जाने तक राजेंद्र को अस्पताल से छुट्टी मिल गई थी. पुलिस ने उसे अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया था. पुलिस आरोपपत्र तैयार करने में जुटी थी. Short Hindi Story

—कथा सत्य घटना पर आधारित है. कथा में पात्रों एवं स्थानों के नाम बदले हुए हैं.