सुलझ न सकी परिवार की मर्डर मिस्ट्री – भाग 3

फोरैंसिक लैब की जांच में पता चला कि बाथरूम में मिले 3 मोबाइलों में एक वाटरप्रूफ था, लेकिन उस पर पैटर्न लौक था, जिस से वह खुल नहीं सका. पुलिस को दूसरे दिन डा. प्रकाश के घर से 2 मोबाइल और मिले. ये मोबाइल भी बंद थे. इन को भी साइबर एक्सपर्ट के पास भेजा गया. उन के फ्लैट से मिले लैपटौप और आईपैड को जांच के लिए सीआईडी की साइबर लैब भेजा गया.

पुलिस ने अदिति के दोस्तों से भी अलगअलग पूछताछ की. उन्होंने बताया कि अदिति ने उन से नौकरी छूटने की वजह से पापा के तनाव में होने की चर्चा की थी. अदिति के दोस्तों से पुलिस को ऐसी कोई ठोस वजह पता नहीं चली जिस से इस मामले की गुत्थी सुलझने में मदद मिलती.

सन फार्मा कंपनी में पूछताछ में पता चला कि डा. प्रकाश ने स्वेच्छा से नौकरी छोड़ी थी. कंपनी में उन का पद और सैलरी पैकेज काफी अच्छा था. कंपनी में किसी से उन का कोई विवाद भी सामने नहीं आया.

डा. सोनू सिंह के बारे में पुलिस को पता चला कि उन का बौद्ध धर्म से जुड़ाव था. उन्होंने अपनी सोसायटी में बौद्ध धर्म के अनुयाइयों की कम्युनिटी भी बनाई हुई थी. इस कम्युनिटी की वह ग्रुप लीडर थीं. सोसायटी में सोनू सिंह को बोल्ड महिला माना जाता था जबकि प्रकाश सिंह सौम्य स्वभाव के थे.

तीसरे दिन भी काफी माथापच्ची और जांचपड़ताल के बावजूद पुलिस को इस मामले में कोई तथ्य हाथ नहीं लगा. यह जरूर पता चला कि सोनू सिंह, अदिति और आदित्य की हत्या में जिस चाकू का उपयोग किया गया था, वह करीब एक साल पहले डा. प्रकाश सिंह द्वारा ही खरीदा गया था.

अदिति ने उस समय सोप डायनामिक्स स्टार्टअप शुरू किया था. वह घर में कौस्मेटिक व कुछ विशेष साबुन बनाती थी. अदिति ने साबुन व अन्य सामान के टुकड़े करने के लिए यह चाकू पिता से मंगवाया था.

डा. प्रकाश के घर मिले 4 कुत्तों को ले कर भी विवाद हो गया. ये कुत्ते अदिति का दोस्त उस की याद के रूप में सहेज कर अपने पास रखना चाहता था जबकि दूसरी तरफ अदिति की मौसी सीमा अरोड़ा इन कुत्तों को अपने साथ ले जाना चाहती थीं.

विवाद बढ़ने पर यह मामला पीपुल फौर एनिमल संस्था के जरिए सांसद मेनका गांधी तक पहुंच गया. मेनका गांधी के हस्तक्षेप से चारों कुत्तों को पुलिस की निगरानी में नैशनल डौग शेल्टर होम भेज दिया गया.

चौथे दिन नौकरानी जूली से पूछताछ में सामने आया कि सन फार्मा की नौकरी छोड़ने के बाद डा. प्रकाश अधिकांश समय घर पर रहते और यूट्यूब पर वीडियो देखते थे. इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि डा. प्रकाश ने शायद यूट्यूब देख कर हत्याकांड की योजना बनाई होगी.

नौकरानी ने बताया कि कुछ दिन पहले फ्लैट में फरनीचर का काम हुआ था. उस दौरान कारपेंटर अपना एक हथौड़ा इसी घर में छोड़ गया था. संभवत: उसी हथौड़े से डा. प्रकाश ने परिवार के 3 सदस्यों की जान ली.

पांचवें दिन पुलिस ने दोनों पक्षों के रिश्तेदारों की मौजूदगी में डा. प्रकाश के घर की तलाशी ली. इस की वीडियोग्राफी भी कराई गई. घर की अलमारियों और लौकरों में रखे दस्तावेजों की भी जांच की गई. हालांकि पुलिस को तलाशी और जांचपड़ताल में ऐसा कोई तथ्य नहीं मिला, जिस से डा. प्रकाश की परेशानी और इस हत्याकांड के पीछे के कारणों का पता चलता.

छठे दिन पुलिस को मोबाइल फोनों की जांच रिपोर्ट मिली. इस में बताया गया कि डा. सोनू व अदिति के मोबाइल में डेटा नहीं मिला. वाट्सऐप चैट व गैलरी से फोटो, वीडियो डिलीट थे. इस से यह नया सवाल खड़ा हो गया कि क्या डा. प्रकाश ने हत्या के बाद पत्नी व बेटी के मोबाइल का डेटा डिलीट किया था. अगर उन्होंने डेटा डिलीट किया था तो उस में ऐसे क्या मैसेज व फोटो थे. रिपोर्ट आने के बाद पुलिस ने इन मोबाइल फोनों के डेटा रिकवर करने के लिए साइबर एक्सपर्ट की मदद ली.

बाद में की गई जांच में पुलिस को ऐसा कोई तथ्य नहीं मिला, जिन से इस मामले में रहस्य की कोई परत उजागर हो पाती. इस बीच 8 जुलाई को डा. प्रकाश के परिजनों ने पुलिस उपायुक्त (पूर्व) सुलोचना गजराज को एक पत्र दे कर इस पूरे मामले को एक साजिश का परिणाम बताया और इस की जांच सीबीआई से कराने की मांग की. परिजनों ने सुसाइड नोट की हस्तलिपि पर भी सवाल उठाए.

डा. प्रकाश की बड़ी बहन के दामाद कौशल का कहना था कि इस वारदात के पीछे जमीन का विवाद भी हो सकता है. इस का कारण है कि उन की मामीजी यानी सोनू सिंह के पिता की वाराणसी की जमीन को ले कर सोनू सिंह और उन की बहन के बीच विवाद था.

पलवल वाले स्कूल की जमीन को ले कर भी कुछ विवाद चल रहे थे. यह जमीन डा. प्रकाश ने अपनी बहन शकुंतला से पैसे उधार ले कर खरीदी बताई गई. परिजनों का यह भी कहना था कि डा. प्रकाश का 2 साल पहले मेदांता अस्पताल में बाइपास औपरेशन हुआ था. औपरेशन से उन की जिंदगी तो बच गई थी, लेकिन वे अंदर से पूरी तरह खोखले हो गए थे.

कौशल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और हरियाणा के मुख्यमंत्री को इस मामले में पत्र लिख कर सुसाइड नोट की हस्तलिपि और दस्तखतों पर भी सवाल उठाए. इस के लिए उन्होंने डा. प्रकाश की ओर से कुछ दिन पहले दिए गए एक चैक की फोटोप्रति भी संलग्न की.

कौशल के अनुसार, सुसाइड नोट पर किए हस्ताक्षर पर डा. प्रकाश के जैसे हस्ताक्षर बनाने का प्रयास किया गया है जबकि वे असली हस्ताक्षर नहीं हैं.

यह बात भी सामने आई कि डा. प्रकाश अपनी ससुराल वालों की वाराणसी की जमीन एकडेढ़ करोड़ रुपए में बेचना चाहते थे. इस जमीन पर सोनू सिंह की बहन भी दावा जता रही थीं. जमीन बेचने के सिलसिले में डा. प्रकाश जल्दी ही बनारस भी जाने वाले थे.

चर्चा यह भी है कि डा. प्रकाश पर बैंकों और रिश्तेदारों का काफी कर्ज था. इस कर्ज को ले कर वह तनाव में थे. गुरुग्राम के मकान की किस्तें भी समय पर नहीं चुकाने की बात सामने आई थी.

सन फार्मा की नौकरी छोड़ने के बाद वह अलग से तनाव में थे. हालांकि कहा यही जा रहा है कि उन की हैदराबाद की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में नई नौकरी की बात हो गई थी. इस के लिए वह 3 जुलाई को फ्लाइट से हैदराबाद भी जाने वाले थे, लेकिन इस से पहले ही यह मामला हो गया.

डा. प्रकाश की मौत के बाद उन की संपत्तियों को ले कर अलगअलग दावे जताने की चर्चा भी शुरू हो गई थी. हालांकि औपचारिक रूप से तो किसी पक्ष ने दावे नहीं किए थे, लेकिन दोनों ही पक्षों के लोग अपनेअपने तरीकों से डा. प्रकाश और उन की पत्नी की संपत्तियों और कर्ज के बारे में पता लगा रहे थे.

कहा जा रहा है कि डा. प्रकाश की अधिकांश संपत्तियां उन की पत्नी सोनू सिंह के नाम से हैं. सोनू की बहन सीमा अरोड़ा ने डा. प्रकाश के कुछ स्कूल खोलने के लिए स्टाफ को कह दिया है.

बहरहाल, डा. प्रकाश सिंह का हंसताखेलता खुशहाल परिवार उजड़ गया. कथा लिखे जाने तक पुलिस को इस मामले में कोई ऐसा सुराग नहीं मिला, जिस के जरिए रहस्य का परदा उठ पाता. डा. प्रकाश ने अपनी जान से ज्यादा प्यारी बेटी और बेटे के अलावा पत्नी को मौत के घाट उतारने के बाद खुद आत्महत्या क्यों कर ली, यह रहस्य सा बन कर रह गया है.

पुलिस को कोई चश्मदीद गवाह भी नहीं मिला. डा. प्रकाश के घर के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों से भी पुलिस कोई सुराग नहीं लगा सकी. ऐसे भी कोई साक्ष्य नहीं मिले कि इस वारदात में किसी बाहरी व्यक्ति का हाथ हो. इन सभी कारणों से वैज्ञानिक प्रकाश के परिवार की हत्या और आत्महत्या का मामला फिलहाल मिस्ट्री बन कर रह गया.

सौजन्य: मनोहर कहानियां

सहनशीलता से आगे : जब पत्नी ने लिया बदला – भाग 3

लवकुश शुक्ला और अविनाश यादव मूलत: उत्तर प्रदेश के निवासी थे. लवकुश काफी समय से के. विश्वनाथ शर्मा और उन की पत्नी को जानता था. वह शर्मा दंपति के पंडरी स्थित दुबे नगर के मकान में बतौर किराएदार रहता था. शुक्ला जिंदगी में कुछ कर गुजरना चाहता था. उस की इच्छा थी कि वह फिल्मों में अभिनय करे.

शुक्ला पुणे स्थित फिल्म इंस्टीट्यूट भी गया था ताकि वहां एडमिशन ले कर अभिनय की बारीकियां सीख सके. लेकिन वहां एडमिशन के लिए उसे 5 लाख रुपयों की जरूरत थी. इसी दरम्यान एक दिन मकान मालिक वमसी लता को उस ने अपनी समस्या बताई और भाग्य का रोना भी रोया.

उस की आवश्यकता को ध्यान में रख कर वमसी लता ने उसे औफर दिया और बोली, ‘‘मैं तुम्हारे लिए पैसों का इंतजाम कर सकती हूं.’’ यह सुन कर लवकुश बहुत खुश हुआ. उस ने कहा, ‘‘दीदी, मैं आप का यह अहसान जिंदगी भर नहीं भूलूंगा.’’

‘‘मगर तुम्हें मेरा एक काम करना होगा.’’ वमसी लता ने कहा.

‘‘बताइए, एक क्या 2 काम करूंगा.’’

‘‘सोच लो, मैं पैसे काम होने पर दूंगी, पहले एडवांस में भी कुछ नहीं.’’

थोड़ी देर सोच कर लवकुश ने कहा, ‘‘ठीक है, मुझे आप पर पूरा भरोसा है, मैं तैयार हूं.’’

यह सुन वमसी लता ने उसे अपने भाई जैसा होने का वास्ता दे कर अपनी तारतार जिंदगी का रोना रोते हुए कहा, ‘‘भैया, मैं सीमा के पापा से हद दर्जे तक परेशान हूं. तुम चाहो तो मुझे उन से मुक्ति दिला सकते हो.’’

‘‘मैं समझा नहीं,’’ लवकुश ने कहा.

‘‘तुम्हें उन को मेरे रास्ते से हटाना होगा.’’ वमसी लता ने कहा तो लवकुश अंदर ही अंदर कांप कर रह गया. लेकिन उस की आंखों के आगे 5 लाख रुपए नाच रहे थे. उसे अभिनेता बनने का अपना ख्वाब पूरा होता दिखाई दिया. इसलिए वह मान गया.

उस ने वमसी लता के साथ बैठ कर फूलप्रूफ योजना बनानी शुरू कर दी. के. विश्वनाथ को कब और कैसे रास्ते से हटाया जाए, दोनों ने उसी दिन से सोचना शुरू कर दिया. लवकुश यह अच्छी तरह जानता था कि वह अकेले यह काम नहीं कर सकता, क्योंकि के. विश्वनाथ उस से बलिष्ठ थे. उन के सामने वह बहुत कमजोर था.

इसलिए उस ने इस काम के लिए अपने नौकर अविनाश यादव से बात करने का निश्चय किया. एक दिन अविनाश ने उस से रुपयों की मांग की, क्योंकि उस की बहन रुकमणी का विवाह होना था और इस के लिए उसे मोटी रकम की जरूरत थी.

बहन की शादी के लिए ली सुपारी

अविनाश की जिंदगी अंधेरों से घिरी लौ की तरह टिमटिमा रही थी. नौकरी कर के वह जैसेतैसे परिवार का भरणपोषण करता था. एक बहन थी, रुकमणी जो विवाह योग्य हो चुकी थी. मां को उस की चिंता रहती थी. अविनाश को बहन के ब्याह के लिए डेढ़ लाख रुपयों की जरूरत थी.

एक दिन दुकान पर अच्छा मूड देख कर उसने मालिक लवकुश से अपना दुखड़ा रो कर मदद मांगी. संयोग से लवकुश तैयार हो गया. मगर उस ने कहा, ‘‘अविनाश, इस के बदले तुम्हें एक काम करना होगा. बोलो कर पाओगे?’’ लवकुश ने उसे पूरी योजना बता दी. उस की योजना सुन कर अविनाश घबराया नहीं बल्कि तैयार हो गया.

लवकुश ने उसे आश्वस्त कर कहा, ‘‘सिर्फ एक आदमी को रास्ते से हटाना है. हटाओ और डेढ़ लाख रुपए ले लो.’’

हालात ने बना दिया हत्यारा

अविनाश इस काम के लिए तैयार था. लवकुश ने अविनाश को के. विश्वनाथ शर्मा के संबंध में एकएक कर सारी बातें समझा दीं. इस के बाद दोनों वमसी लता से मिले. बातचीत में तय हुआ कि रात को वे दोनों आएंगे और विश्वनाथ का काम तमाम कर देंगे.

‘‘कैसे किस तरह?’’ लता ने पूछा तो लवकुश ने अविनाश की तरफ देख कर कहा, ‘‘यह जांबाज लड़का है, ऐसे छोटेमोटे काम इस के बाएं हाथ का खेल है. बस दीदी, आप को घर का दरवाजा खुला रखना है. बाकी सब यह देख लेगा.’’

वमसी लता तैयार हो गई. योजनानुसार उस दिन रात को लगभग एक बजे अविनाश और लवकुश को घर के पीछे वाले दरवाजे से प्रवेश करना था. वमसी को केवल पीछे वाला दरवाजा खुला छोड़ देना था. लेकिन योजना में ऐन वक्त पर परिवर्तन हो गया.

लवकुश ने अविनाश के सामने 2 लाख का औफर रखते हुए कहा, ‘‘अविनाश, यह काम अब तुम अकेले करो, और 2 लाख रुपए ले लो. मैं वहां नहीं जाऊंगा.’’

लवकुश के हाथ खड़े करने पर भी अविनाश पीछे नहीं हटा. बल्कि यह सोच कर खुश हुआ कि अब उसे 2 लाख रुपए मिलेंगे. वह अकेला 5 किलो का लोहे का घन ले कर एक्टिवा से विश्वनाथ शर्मा के घर के पिछवाड़े पहुंच गया.

योजना के मुताबिक वहां दरवाजा खुला होना चाहिए था, लेकिन वह बंद था. अविनाश ने वहीं से लवकुश को मोबाइल पर काल की और दरवाजा बंद होने की जानकारी दी. लवकुश ने कहा, ‘‘तुम वहीं रुको मैं अभी बताता हूं, क्या करना है.’’

लवकुश ने मोबाइल पर वमसी लता से बातचीत की तो उस ने कहा, ‘‘दरवाजा नहीं खुलेगा, अविनाश से कहो, बाउंड्री कूद कर आ जाए.’’ लवकुश ने अविनाश को यह बता दिया.

अविनाश बाउंड्री कूद कर घर में पहुंच गया. फिर वह के. विश्वनाथ के कमरे में घुस गया, जिस का दरवाजा वमसी ने पहले ही खुला छोड़ दिया था.

अविनाश ने देखा के. विश्वनाथ अर्द्धनिद्रा में थे और इधरउधर करवट बदल रहे थे. वह घबरा कर बाहर आ गया तो सामने लता खड़ी मिली, उस ने यथास्थिति बताई. लता ने उसे आश्वस्त किया कि शर्माजी शराब पिए हुए हैं और नशे में हैं. तुम अपना काम कर सकते हो. यह सुन कर अविनाश ने कमरे में घुस कर उन के सिर पर घन से 5-6 वार किए. नींद की वजह से विश्वनाथ अपना बचाव भी नहीं कर सके और चीख कर अचेत हो गए.

अविनाश ने खून से लथपथ विश्वनाथ को देख सोचा कि वह मर गए हैं. इस के बाद वह वहां से निकल गया. घन वह अपने साथ घन लेता गया.

तहकीकात के बाद पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त घन शहर के बूढ़ापारा तालाब के पास से बरामद कर लिया. वहीं से 5 मोबाइल और एक एक्टिवा जब्त की गई.

पुलिस ने मृतक के. विश्वनाथ की हत्या की आरोपी मृतक की पत्नी के. वमसी लता, किराएदार लवकुश शुक्ला और नौकर अविनाश यादव को गिरफ्तार कर लिया.

तीनों के खिलाफ रायपुर के गुढि़यारी थाने में भादंवि की धारा 302, 34 के तहत केस दर्ज किया गया. लवकुश शुक्ला उत्तर प्रदेश के गांव बड़ी के मोहल्ला शुक्लान का रहने वाला था. अविनाश भी उत्तर प्रदेश का ही रहने वाला था. उस का घर जिला भदोही के गांव लोहारा, दुर्गागंज में था. पूछताछ के बाद तीनों आरोपियों को रायपुर कोर्ट के न्यायिक दंडाधिकारी के सामने पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

–  कथा पुलिस सूत्रों से बातचीत के आधार पर

कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

मामा का खूनी सिंदूर : परिवार ही बना निशाना – भाग 4

प्रवींद्र की छेड़छाड़ से संगीता भी रोमांचित हो उठी. उस ने भी अपनी बांहें फैला दीं. इस के बाद कमरे में सीत्कार की आवाजें गूंजने लगीं.उसी समय ऊषा की आंखें खुल गईं. वह बाथरूम जाने को आंगन में आई तो उसे संगीता के कमरे से अजीब सी आवाजें सुनाई दीं. वह जान गई कि कमरे में बेटी के साथ कोई और भी है. वह दबेपांव कमरे में पहुंची और दोनों को रंगरलियां मनाते रंगेहाथ पकड़ लिया. ऊषा ने संगीता की चोटी पकड़ कर खींची और गाल पर तड़ातड़ तमाचे जड़ दिए. उसी समय प्रवींद्र ने बहन ऊषा का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘आज तुझे विरोध बहुत महंगा पड़ेगा.’’

इस के बाद प्रवींद्र और संगीता ने ऊषा को दबोच लिया और कमरे में पड़ी चारपाई पर गिरा कर उस के हाथपैर रस्सी से बांध दिए. फिर वे दोनों उस कमरे में पहुंचे, जहां रमेशचंद्र तख्त पर सो रहे थे. उन दोनों ने मिल कर रमेश के भी हाथपांव रस्सी से बांध दिए. इस के बाद संगीता फावड़ा ले आई.उस ने मां की गरदन पर फावड़े से कई वार किए, जिस से उस की गरदन कट गई और बिस्तर खून से तरबतर हो गया. ऊषा की हत्या करने के बाद दोनों रमेश के पास पहुंचे. वहां प्रवींद्र ने फावड़े से गरदन पर वार कर उसे भी मौत की नींद सुला दिया.

2-2 हत्याओं को अंजाम देने के बाद प्रवींद्र और संगीता ने मिल कर पूरे घर को खंगाला. कमरे में रखे बक्सों में लगे तालों की चाबी से खोला. फिर उस में रखी नकदी व जेवर को अपने कब्जे में कर लिए. इस के बाद दोनों इत्मीनान से घर से फरार हो गए.दूसरे दिन सुबह 10 बजे तक जब रमेशचंद्र के घर में कोई हलचल नहीं हुई तो पड़ोसियों में चर्चा शुरू हुई. इसी बीच पड़ोसी राजू गौतम ने थाना गुरसहायगंज पुलिस को मोबाइल द्वारा सूचना दे दी.सूचना पाते ही कोतवाल नागेंद्र पाठक पुलिस टीम के साथ गौरैयापुर गांव स्थित रमेशचंद्र दोहरे के मकान पर आ गए. उन्होंने पुलिस के साथ घर में प्रवेश किया तो अवाक रह गए. 2 अलगअलग कमरों में ऊषा और रमेशचंद्र की निर्मम हत्या की गई थी.

दोनों के हाथपैर भी बंधे हुए थे. खून से सना फावड़ा कमरे में पड़ा था. जाहिर था कि दोनों की हत्या फावड़े से वार कर के की गई थी. कमरे में रखे बक्सों के ताले खुले पड़े थे, सामान बिखरा था. ऐसा लग रहा था जैसे बदमाशों ने हत्या के बाद लूटपाट भी की थी. घर से मृतक दंपति की जवान बेटी संगीता गायब थी.

शुरू में पुलिस भी हुई गुमराह

कोतवाल नागेंद्र पाठक ने डबल मर्डर की सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी तो कुछ ही देर बाद एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह तथा एएसपी के.सी. गोस्वामी भी आ गए. उन्होंने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने जहां घटनास्थल का मुआयना किया वहीं फोरैंसिक टीम ने साक्ष्य जुटाए. पुलिस अधिकारियों ने मौकामुआयना कर दोनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए कन्नौज भिजवा दिया और हत्या में इस्तेमाल रस्सी व फावड़ा जाब्ते में शामिल कर लिए.

एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह को जांच के बाद लगा कि दोहरे हत्याकांड को अंजाम बदमाशों ने दिया है और उस की बेटी संगीता का अपहरण कर लिया है, अत: उन्होंने इसी दिशा में जांच शुरू कराई.

जांच आगे बढ़ी तो पता चला कि मृतका ऊषा देवी के भाई प्रवींद्र का घर में आनाजाना था. यह भी पता चला कि प्रवींद्र भी घर से फरार है. एक बात और भी चौंकाने वाली पता चली. वह यह कि प्रवींद्र और संगीता, जो रिश्ते में मामाभांजी हैं, के बीच नाजायज रिश्ता था और रमेश इस का विरोध करते थे.
प्रवींद्र और संगीता पुलिस की रडार पर आए तो उन की तलाश शुरू हुई. उन की लोकेशन पता करने के लिए पुलिस ने दोनों के मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगा दिए. लेकिन मोबाइल बंद होने से उन की लोकेशन नहीं मिल पा रही थी. पुलिस ने उन की खोज दिल्ली, हरियाणा, चंडीगढ़ आदि संभावित स्थानों पर की, लेकिन उन का कुछ पता नहीं चला. तब पुलिस ने दोनों पर 25-25 हजार का ईनाम घोषित कर दिया.

इधर प्रवींद्र और संगीता डबल मर्डर करने के बाद बस द्वारा कानपुर आए. फिर ट्रेन से मुंबई पहुंचे. वहां वे एक हजार रुपए दे कर शमशाद नाम के  आटो ड्राइवर की झोपड़ी में रात भर रुके. फिर वहां से ट्रेन द्वारा हुगली शहर आए. हुगली शहर के भद्रेश्वर थानाक्षेत्र के आरबीएस रोड पर प्रवींद्र ने एक झोपड़ी किराए पर ले ली. झोपड़ी मालकिन नगमा को उस ने बताया कि वे दोनों पतिपत्नी हैं. प्रवींद्र वहां मेहनतमजदूरी कर अपना व संगीता का भरणपोषण करने लगा. धीरेधीरे 3 माह बीत गए.

नए साल में प्रवींद्र ने अपने मजदूर साथी से 500 रुपए में एक मोबाइल फोन खरीदा और उस में अपना सिम कार्ड डाल कर चालू किया. मोबाइल फोन चालू होते ही पुलिस को उस की लोकेशन पता चल गई. उस की लोकेशन हुगली शहर की थी. यह जानकारी जब एसपी अमरेंद्र प्रसाद को मिली तो उन्होंने एक पुलिस टीम हुगली रवाना कर दी. वहां पुलिस ने प्रवींद्र व संगीता को हिरासत में ले लिया.

8 जनवरी, 2020 को थाना गुरसहायगंज पुलिस ने अभियुक्त प्रवींद्र तथा संगीता को जिला अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्यार नहीं वासना के अंधे – भाग 3

सादिक अकसर उसे नशीले पदार्थ मुहैया कराता था. कभीकभार जरूरत पड़ने पर नशीले पदार्थ लेने अनूप रुखसार के घर भी जाता था और जब भी जाता था, तब उस का दिल रुखसार को देख कर बेकाबू होने लगता था, एक तो अधेड़, ऊपर से मामूली शक्लसूरत वाले अनूप को रुखसार पसंद नहीं करती थी इसलिए अनूप की दाल उस के सामने कभी नहीं गली.

सादिक और अनूप की मेल मुलाकातें बढ़ने लगीं और दोनों अकसर साथ बैठ कर नशा भी करने लगे. ऐसे में ही एक दिन जज्बाती हो कर सादिक ने उसे सब कुछ बता दिया कि तलाक के बाद भी वह रुखसार के पास जाता है और सेक्स सुख लेता है.

यह सुनते ही अनूप के खुराफाती दिमाग में यह खयाल आया कि अगर सादिक को शीशे में उतार लिया जाए तो रुखसार के संगमरमरी जिस्म पर फिसलने का मौका मिल सकता है. इतना सोचना था कि वह एकाएक अपने इस नशेड़ी दोस्त पर जरूरत से ज्यादा मेहरबान हो उठा और उस पर दिल खोल कर पैसा खर्च करने लगा. दोनों साथसाथ पार्टी करने लगे.

अनूप का पैसा सादिक के लिए सहूलियत वाली बात थी, इसलिए वह उससे दबने लगा और यही अनूप की मंशा भी थी. फिर एक दिन अनूप ने अपनी दिली ख्वाहिश भी सादिक पर जाहिर कर दी कि उसे भी एक बार रुखसार का सुख चाहिए.

इस पर सादिक तुरंत तैयार हो गया और उसे एक बार रुखसार से हमबिस्तर कराने का वादा भी कर डाला. सादिक का डर यह था कि अगर वह न कहेगा तो अनूप पैसे लुटाना बंद कर देगा और वैसे भी रुखसार अब उस की बीवी नहीं थी.

सादिक ने जब रूख्सार को अनूप की मंशा पूरी करने को कहा तो वह नागिन की तरह फुफकार उठी कि वह उसे कतई पंसद नहीं, चाहे कुछ भी हो जाए वह उस के सामने कभी नहीं बिछेगी. इस पर सादिक को खेल बिगड़ता नजर आया जो यह मान कर चल रहा था कि पैसों की खातिर रुखसार इस पेशकश पर इनकार नहीं करेगी.

अकसर अनूप उससे पूछता रहा कि कब मौज करवा रहे हो और हर बार सादिक उसे हिम्मत बंधाता रहता था कि जल्द ही करवा दूंगा, कोशिश कर रहा हूं तुम सब्र रखो. रुखसार कोई ऐसी वैसी औरत नहीं है, इसलिए मनाने में कुछ वक्त तो लगेगा.

लेकिन वह वक्त कभी नहीं आया जब भी सादिक रुखसार से अनूप को खुश करने की बात कहता तो उस का मूड खराब हो जाता था और वह उसे बुरी तरह दुत्कार देती थी. इसी तरह लंबा वक्त गुजर गया तो अनूप को लगा कि रुखसार के साथ सैक्स करने की उस की ख्वाहिश ख्वाब ही रहेगी.

इसलिए एक दिन उस ने थोड़ी कड़ाई से सादिक से बात की तो दोनों ने एक योजना बना डाली कि जब सीधी अंगुली से घी न निकले तो उसे टेढ़ी कर के घी निकाल लेना चाहिए.

इस योजना में तय हुआ कि सादिक रुखसार को नशे में इतना धुत कर देगा कि उसे होश ही न रहे, फिर अनूप अपनी ख्वाहिश पूरी कर लेगा. अनूप पर रुखसार को पाने की जिद सवार थी इसलिए वह कुछ भी करने के लिए तैयार बैठा था.

योजना के मुताबिक पहली अक्तूबर सादिक रुखसार को नशा पार्टी की बात कह कर उसे अनूप के पत्तीपुरा वाले मकान में ले गया, जहां तीनों ने जम कर नशा किया और जानबूझ कर रुखसार को ज्यादा डोज दी. रुखसार को नशे में डूबते देख सादिक ने उस के साथ शारीरिक संबंध बनाने की कोशिश शुरू कर दी. नशे में धुत रुखसार भी उत्तेजित हो गई और यह भूल गई कि अनूप भी घर में ही है.

जल्द ही दोनों निर्वस्त्र हो कर एकदूसरे में समाने लगे. यह दृश्य देख कर अनूप की कनपटियां गर्म हो उठीं, गला खुश्क होने लगा और नसों में खून 240 की स्पीड से दौड़ने लगा. रुखसार निर्वस्त्र हो कर बिना किसी शर्मोहया के सादिक से संबंध बना रही थी.

हल्की रोशनी में उस का दूधिया बदन अनूप की आंखों के सामने था. यह सोच कर उस का दिल धाड़धाड़ करता सीने के बाहर आने को बेताब हुआ जा रहा था कि सादिक के फारिग होने के बाद उस का नंबर है.

थोड़ी देर बाद सादिक और रुखसार अलग हुए तो वासना की आग में जलता अनूप रुखसार के नजदीक पहुंच गया और उस से संबंध बनाने की कोशिश करने लगा. रुखसार नशे में तो थी लेकिन इतनी भी नहीं कि यह न समझ पाती कि अनूप क्या करने की कोशिश कर रहा है.

रुखसार को अनूप की यह हरकत बेहद नागवार गुजरी तो वह गुस्से से भर उठी और नशे में ही एक जोरदार लात अनूप को मार दी. लड़खड़ाए अनूप ने फिर भी हिम्मत नहीं हारी और वह फिर उस पर छा जाने की कोशिश करने लगा, लेकिन हाथपैर मारती रुखसार ने उसे कामयाब नहीं होने दिया.

अब तक चुपचाप तमाशा देख रहे सादिक को भी गुस्सा आ गया और वह अनूप की मदद के लिए आगे गया. उस ने सख्ती से रुखसार के दोनों पैर पकड़ लिए लेकिन रुखसार में जाने कहां से इतनी हिम्मत और ताकत आ गई थी कि उस ने फिर विरोध किया, जिस से अनूप की मंशा अधूरी रह गई.

वासना में डूबे आदमी की हालत क्या हो जाती है, यह उस वक्त अनूप की हालत देख कर समझी जा सकती थी, जो कभी ताकत से रुखसार को हासिल करने की कोशिश कर रहा था और कामयाब न होने पर उस के सामने गिड़गिड़ा भी रहा था कि बस एक बार…

लेकिन जब उसे समझ आ गया कि रुखसार कैसे भी नहीं मानने वाली तो गुस्से में आ कर उस ने रुखसार का गला दबाना शुरू कर दिया, जिस से कुछ ही देर में वह लाश में तब्दील हो गई.

रुखसार के दम तोड़ते ही अनूप ने सादिक की तरफ देखा तो वह बोला, ‘‘तू चिंता मत कर मैं इस की लाश के छोटेछोटे टुकड़े कर दूंगा, तू बस इन्हें ठिकाने लगा देना.’’

ऐसा हुआ भी सादिक ने अपनी बीवी के लाश के टुकड़ेटुकड़े कर डाले, जिन्हें थैलों में भर कर अनूप नाले के पास फेंक आया. चूंकि एक दिन में यह काम मुमकिन नहीं था इसलिए टुकड़ों को ठिकाने लगाने में 2 दिन लग गए.

पुलिस की जांच में यह सब कुछ उस वक्त उजागर हो गया जब एक सीसीटीवी फुटेज में अनूप थैला ले जाते तो दिखा लेकिन वापस लौटते वक्त उस के हाथ खाली थे. दोनों एक एक कर गिरफ्तार हुए तो पुलिस की सख्ती के सामने उन्होंने सारी कहानी सुना डाली.

इस तरह रुखसार की कहानी और जिंदगी दोनों खत्म हो गए. अपने अंजाम की एक हद तक वह खुद भी जिम्मेदार थी. शादी के बाद वह पति की कमजोरी से समझौता कर उसे कामधंधा करने को तैयार कर लेती तो शायद इस तरह मरने से बच जाती.

सादिक भी कम गुनहगार नहीं जो अपने निकम्मेपन के चलते नशे के कारोबार और लत में अच्छाबुरा सब कुछ भुला कर अपनी ही तलाकशुदा बीवी को दूसरे के हवाले करने को न केवल तैयार हो गया, बल्कि इस के लिए उस ने अनूप की पूरी मदद भी की.

पुलिस ने घटनास्थल से वह धारदार चाकू और सुपारी काटने का सरौता भी बरामद कर लिया, जिस से सादिक ने रुखसार के जिस्म के टुकड़े किए थे. रुखसार की कान की बालियां भी बरामद हो गईं. घटनास्थल पर उस का खून भी फोरैंसिक जांच के लिए भेजा गया. अब दोनों जेल में हैं और तय है उन्हें सजा होगी, क्योंकि जुर्म वे स्वीकार कर चुके हैं और सिलसिलेवार उस की कहानी भी सुना चुके हैं.

अनूप शायद ही कभी समझ पाए कि त्रियाचरित्र को त्रियाचरित्र क्यों कहा जाता है. जो रुखसार उस की मंशा पूरी करने को राजी नहीं हुई तो नहीं हुई. उसे मरना गवारा था, लेकिन अपनी मरजी के खिलाफ उस के साथ हमबिस्तर होना नहीं. नशे की लत आदमी से क्या कुछ नहीं करवा देती, यह भी इस वारदात से समझ आता है.

कन्नौज बहन की साजिश – भाग 3

लेकिन खैरनगर नहर पुल पर उस के कोई परिचित मिल गए. उन का कोई जरूरी काम था, जिस की वजह से वह उन्हीं के साथ चला गया था. यह बात उसे पिंकी ने बताई थी. उस की हत्या किस ने और क्यों कर दी, उसे जानकारी नहीं है.

पिंकी से पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि उसे कई रोज से बुखार था. भैया आज सुबह 5 बजे उसे दवा दिलाने उमर्दा के लिए निकले थे. हम दोनों जब खैरनगर पुल पर पहुंचे तो भैया के 2 परिचित मिल गए. उन में एक तो भैया की उम्र का था, जबकि दूसरा 40-42 साल का था.

भैया उसे चाचा कह कर बतिया रहे थे. वह उन दोनों को पहचानती नहीं है. उन दोनों को भैया की मदद की जरूरत थी, इसलिए भैया ने उस से कहा कि दवा शाम को दिला देंगे. इस के बाद वह उसे गांव के बाहर छोड़ कर उन दोनों के साथ चले गए. भैया की हत्या किस ने की, उसे पता नहीं.

लायक सिंह और उस की बेटी पिंकी से पूछताछ के बाद सीओ सुबोध कुमार जायसवाल ने वहां मौजूद अन्य लोगों से भी बात की, लेकिन हत्यारों के बारे में कोई सुराग नहीं लगा. इस के बाद पुलिस ने मौके की काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए कन्नौज के सरकारी अस्पताल भेज दी. थानाप्रभारी ने लायक सिंह की तहरीर पर अज्ञात के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करा लिया और जांच शुरू कर दी.

थानाप्रभारी विजय बहादुर वर्मा ने बलराम यादव के हत्यारों की टोह में ताबड़तोड़ दबिशें दे कर पुराने कई अपराधियों को हिरासत में लिया. उन से कड़ाई से पूछताछ की, लेकिन न तो हत्या का रहस्य खुला और न ही हत्यारे पकड़ में आए. बलराम हत्याकांड अखबारों में छाया हुआ था, जिस से पुलिस अधिकारी भी परेशान थे.

जब 3 दिन बीत जाने के बाद भी बलराम हत्याकांड का खुलासा नहीं हुआ तो एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह ने एएसपी विनोद कुमार की देखरेख में खुलासे के लिए एक विशेष टीम का गठन किया. इस टीम में ठठिया थानाप्रभारी विजय बहादुर वर्मा, सीओ (तिर्वा) सुबोध कुमार जायसवाल, स्वाट टीम प्रभारी राकेश कुमार तथा सर्विलांस टीम को शामिल किया गया.

टीम ने सब से पहले घटनास्थल का निरीक्षण किया, फिर पोस्टमार्टम रिपोर्ट को देखा समझा. रिपोर्ट के मुताबिक मृतक के शरीर पर 18 घाव पाए गए थे. बलराम की मौत अधिक खून बहने, आंतों के जख्मी होने तथा गले की नस कटने से हुई थी. स्पष्ट था कि हत्यारे बलराम से बहुत ज्यादा नफरत करते थे.

पुलिस टीम ने इस बारे में लायक सिंह से पूछताछ की तो उस ने परिवार के ही एक युवक पर शक जताया. पुलिस ने उस युवक को हिरासत में ले लिया और 2 दिनों तक कड़ाई से पूछताछ की. उस युवक ने जब खुद को फंसता देखा तो उस ने चौंकाने वाली बात बताई.

उस ने पुलिस टीम को जानकारी दी कि बलराम की हत्या का रहस्य उस की बहन सावित्री उर्फ पिंकी के पेट में छिपा है. यदि उस पर सख्ती की जाए तो वह हत्या का परदाफाश कर सकती है.

उस की बात पुलिस टीम को हजम तो नहीं हुई, फिर भी पूछा, ‘‘भला बहन अपने सगे भाई के कत्ल में कैसे शामिल हो सकती है. और फिर वह तो अभी कुल 16 साल की लड़की है.’’

‘‘नहीं सर, आप उस की मासूमियत पर मत जाइए,’’ उस युवक ने अपनी बात मजबूती से कही.

‘‘तुम यकीन के साथ कैसे कह सकते हो कि पिंकी गुनहगार है?’’ पुलिस ने पूछा.

‘‘सर, पिंकी के घर पर कुछ दिन तक जेसीबी चालक प्रदीप यादव रहा था और उसी के घर में खातापीता था. इसी दौरान उस ने पिंकी को अपने प्यार के जाल में फंसा लिया. पिंकी भी उस की दीवानी बन गई, जिस के चलते दोनों के बीच शारीरिक संबंध बन गए.

‘‘दोनों के संबंधों की जानकारी पिंकी के भाई बलराम को हुई तो उस ने प्रदीप को अपमानित कर घर से भगा दिया. लेकिन घर से भगाए जाने के बावजूद पिंकी और प्रदीप के संबंध खत्म नहीं हुए थे.

‘‘प्रदीप व पिंकी हर रोज फोन पर संपर्क में रहते थे. प्रदीप ने ही पिंकी को मोबाइल खरीद कर दिया था. चूंकि बलराम दोनों के प्यार में बाधक था, इसलिए पिंकी और प्रदीप ने ही बलराम को ठिकाने लगाया होगा.’’

उस युवक ने बलराम की हत्या का जो कारण बताया, वह पुलिस टीम को इसलिए ठीक लगा क्योंकि ऐसा संभव था. अभी तक पुलिस टीम विपरीत दिशा में जांच में जुटी थी, लेकिन अब जांच की दिशा प्रेम संबंधों में उलझ गई.

16 वर्षीया सावित्री उर्फ पिंकी यादव पुलिस टीम के रेडार पर आई तो पुलिस ने उस से फिर से पूछताछ की. लेकिन पिंकी ने अपना पुराना बयान ही दोहरा दिया. इस बीच पुलिस टीम ने बहाने से पिंकी का मोबाइल नंबर हासिल कर लिया था.

सुलझ न सकी परिवार की मर्डर मिस्ट्री – भाग 2

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सामने आया कि सोनू के सिर व गले पर तेज धारदार हथियार से 20 से ज्यादा वार किए गए थे. बेटे व बेटी के सिर पर भी धारदार हथियार के 12 से 15 निशान मिले.

शव सौंपे जाने पर अंत्येष्टि को ले कर डा. प्रकाश सिंह और उन की पत्नी के पक्ष के बीच विवाद हो गया. सोनू सिंह की बहन सीमा अरोड़ा ने कहा कि वह सोनू और दोनों बच्चों के शवों की अंत्येष्टि दिल्ली ले जा कर करेंगी. इस पर डा. प्रकाश के परिजन बिफर गए. उन की बहन शकुंतला ने कहा कि अंत्येष्टि कहीं भी करो, लेकिन चारों की एक साथ ही होनी चाहिए.

बाद में अन्य लोगों के दखल पर यह तय हुआ कि चारों की अंत्येष्टि गुरुग्राम में सेक्टर-32 के श्मशान घाट में की जाए. बाद में जब मुखाग्नि देने की बात आई तो इस बात को ले कर भी विवाद होतेहोते बचा. आपसी सहमति से सोनू, अदिति व आदित्य के शव को मुखाग्नि सीमा अरोड़ा के परिवार वालों ने दी. जबकि डा. प्रकाश के शव को उन की बहन के परिवार वालों ने मुखाग्नि दी.

उत्तर प्रदेश में वाराणसी के रघुनाथपुर गांव के रहने वाले डा. प्रकाश सिंह के पिता रामप्रसाद सिंह उर्फ रामू पटेल एक किसान थे. प्रकाश ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई की थी. सोनू सिंह भी उन के साथ ही पढ़ती थीं, इसलिए दोनों में जानपहचान हो गई. फिर वे एकदूसरे से प्यार करने लगे.

बाद में दोनों ने ही रसायन विज्ञान में एम.एससी. की. एम.एससी. में दोनों ने गोल्ड मैडल हासिल किए थे. इस के बाद दोनों ने डाक्टरेट की डिग्री हासिल की. डाक्टरेट की पढ़ाई के दौरान दोनों ने अपनेअपने घर वालों की इच्छा के खिलाफ 1996 में शादी कर ली.

दोनों ने भले ही शादी कर ली, लेकिन इस के बाद दोनों के ही परिवारों के बीच गांठ बन गई, जो नाराजगी के रूप में शवों की अंत्येष्टि के दौरान नजर आई.

विवाह के बाद डा. प्रकाश की पत्नी डा. सोनू ने पहले बेटी अदिति को जन्म दिया. इस के करीब 6 साल बाद बेटा हुआ. उस का नाम आदित्य रखा. डा. प्रकाश सिंह ने सब से पहले बेंगलुरु में नौकरी की थी. इस के बाद से ही उन का पैतृक गांव रघुनाथपुर में आनाजाना कम हो गया था.

करीब 12 साल पहले डा. प्रकाश और डा. सोनू सिंह नौकरी के सिलसिले में दिल्ली आ गए. दिल्ली में डा. प्रकाश ने रैनबैक्सी फार्मा कंपनी में नौकरी शुरू की. कुछ समय बाद वे गुरुग्राम आ कर बस गए और डा. प्रकाश सिंह सन फार्मा में नौकरी करने लगे. गुरुग्राम में उन्होंने ‘उप्पल साउथ एंड’ नाम की सोसायटी में फ्लैट ले लिया.

डा. प्रकाश की अच्छीखासी नौकरी थी. घर में सुखसुविधाओं और पैसे की कोई कमी नहीं थी. पतिपत्नी दोनों ही उच्चशिक्षित थे, इसलिए कोई परेशानी भी नहीं थी. डा. सोनू सिंह ऐशोआराम की जिंदगी जीने के बजाए सामाजिक कार्यों में रुचि लेती थीं. इसलिए एक एनजीओ बना कर उन्होंने गरीब बच्चों को पढ़ाने और उन का जीवनस्तर ऊंचा उठाने का बीड़ा उठाया.

सोनू सिंह ने करीब 8 साल पहले गुरुग्राम के फाजिलपुर में किराए का भवन ले कर गरीब बच्चों के लिए क्रिएटिव माइंड स्कूल खोला था. बाद में उन्होंने सेक्टर-49 में ‘दीप प्ले हाउस’ नाम से दूसरा स्कूल खोल लिया. सोनू सिंह के एनजीओ के माध्यम से इन दोनों स्कूलों का संचालन केवल गरीब बच्चों के उत्थान के लिए किया जाता था.

रसायन वैज्ञानिक होने के बावजूद डा. प्रकाश सिंह भी बच्चों को पढ़ाने का शौक रखते थे, इसलिए उन्होंने सोहना में ‘क्रिएटिव माइंड स्कूल’ खोला. यह स्कूल बिना लाभहानि के चलाया जाता था. डा. प्रकाश ने अप्रैल 2018 में पलवल में व्यावसायिक नजरिए से एन.एस. पब्लिक स्कूल खोल लिया. पहले यह स्कूल एग्रीमेंट पर लिया गया और बाद में दिसंबर, 2018 में इसे रजिस्ट्री करवा कर खरीद लिया गया.

डा. प्रकाश सिंह की बेटी अदिति जामिया हमदर्द से बी.फार्मा की पढ़ाई कर रही थी. इस साल वह अंतिम वर्ष की छात्रा थी. उस ने पढ़ाई के साथ सन फार्मा कंपनी में इंटर्नशिप भी शुरू कर दी थी. अदिति ने अपने दोस्तों के साथ मिल कर पिछले साल सोप डायनामिक्स नाम से स्टार्टअप शुरू किया था. डा. दंपति का सब से छोटा बेटा गुरुग्राम के ही डीएवी सीनियर सेकेंडरी स्कूल में कक्षा 9 में पढ़ रहा था.

डा. प्रकाश और उन की पत्नी सहित परिवार के चारों सदस्यों की मौत हो जाने से चारों स्कूलों के संचालन पर सवालिया निशान लग गए हैं. चारों स्कूलों में डेढ़ सौ से अधिक शैक्षणिक और गैरशैक्षणिक स्टाफ है. इन कर्मचारियों को वेतन और भविष्य की चिंता है. इस क ा मुख्य कारण यह है कि इन में 2 स्कूलों में खर्चे जितनी भी आमदनी नहीं होती.

पुलिस को जांचपड़ताल में पता चला कि डा. प्रकाश के घर उन के रिश्तेदारों का बहुत कम आनाजाना था. ज्यादातर सोनू सिंह की बहन सीमा अरोड़ा ही आती थीं. घटना से 10 दिन पहले भी वह परिवार के साथ यहां आई थीं. सीमा अरोड़ा के मुताबिक उस समय ऐसी कोई बात नजर नहीं आई थी, जिस का इतना भयावह परिणाम सामने आता.

डा. प्रकाश के परिवार से बहुत कम लोग कभीकभार ही यहां आते थे. डा. प्रकाश की मां अपने अंतिम समय में कुछ दिन उन के पास रही थीं. डा. प्रकाश 5 भाईबहनों में तीसरे नंबर के थे. 2 बहनें उन से बड़ी थीं और 2 छोटी. इन में एक बड़ी बहन का निधन हो चुका है. एक बहन परिवार के साथ नोएडा में और 2 बहनें बनारस में रहती हैं. डा. प्रकाश के मातापिता का निधन हो चुका है.

पुलिस दूसरे दिन भी वैज्ञानिक के परिवार की मौत की गुत्थी सुलझाने में जुटी रही. हालांकि मौके के हालात और सुसाइड नोट से साफ था कि डा. प्रकाश ने पत्नी, बेटी व बेटे की हत्या के बाद खुद आत्महत्या की थी. लेकिन फिर भी पुलिस यह सोच कर हर एंगल से जांच करती रही कि कहीं यह कोई साजिशपूर्ण तरीके से किसी बाहरी व्यक्ति की ओर से की गई वारदात तो नहीं है.

मामले की गुत्थी सुलझाने के लिए पुलिस को डा. प्रकाश के घर में बाथरूम में मिले 3 मोबाइल फोन से मदद मिलने की उम्मीद थी, इसलिए इन मोबाइलों की काल डिटेल्स निकलवाई गई. इस के अलावा इन मोबाइलों का डेटा रिकवर करने का प्रयास भी किया गया.

प्यार किसी का मौत किसी को

7 मई, 2017 को मध्य प्रदेश के जिला झाबुआ की कोतवाली के प्रभारी आर.सी. भास्करे को हाथीपावा पहाड़ी पर चल रहे श्रमदान में जाना था. वहां एसपी महेशचंद जैन तथा जिलाधिकारी भी आ रहे थे, इसलिए वह समय से वहां पहुंच गए थे.

लेकिन आर.सी. भास्करे जैसे ही वहां पहुंचे, उन्हें किसी ने बताया कि नयागांव और डगरा फलिया के बीच सड़क पर एक लाश पड़ी है, जो नयागांव के रहने वाले तूफान थामोर की है. उस की मोटरसाइकिल भी वहीं पड़ी है. शायद रात को शराब पी कर वह मोटरसाइकिल से घर जा रहा था, तभी उस का एक्सीडेंट हो गया है.

आर.सी. भास्करे ने यह बात एसपी महेशचंद जैन को बताई तो उन्होंने दिशानिर्देश दे कर तुरंत उन्हें घटनास्थल पर पहुंचने को कहा. जब वह घटनास्थल पर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि मोटरसाइकिल गिरी पड़ी है. लाश उसी मोटरसाइकिल के नीचे पड़ी थी. उन्होंने गौर से मोटरसाइकिल और लाश का निरीक्षण किया तो उन्हें यह देख कर हैरानी हुई कि न तो मोटरसाइकिल में किसी तरह की टूटफूट हुई थी और न ही मृतक को कहीं चोट लगी थी.

वहां मोटरसाइकिल के घिसटने का भी कोई निशान नहीं था. जबकि अगर एक्सीडेंट हुआ होता तो मृतक को तो गंभीर चोट आई ही होती, मोटरसाइकिल भी उस के ऊपर गिरने के बजाय कहीं दूर पड़ी होती, साथ ही उस के घिसटने या गिरने के निशान भी होते.

मृतक और मोटरसाइकिल की स्थिति देख कर आर.सी. भास्करे को समझते देर नहीं लगी कि यह हत्या का मामला है. तूफान की हत्या कर के उस के ऊपर मोटरसाइकिल रख कर उसे एक्सीडेंट का रूप देने की कोशिश की गई है. आर.सी. भास्करे ने मृतक के घर सूचना भिजवा दी थी. सूचना पा कर मृतक की पत्नी रेमुबाई रोती हुई आ पहुंची. वह लाश पर सिर पटकपटक कर रो रही थी. पुलिस ने सांत्वना दे कर उसे अलग किया.

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आर.सी. भास्करे लाश और मोटरसाइकिल का निरीक्षण कर रहे थे कि एसपी महेशचंद्र जैन भी आ गए. उन्होंने भी लाश एवं घटनास्थल का निरीक्षण किया. आर.सी. भास्करे ने उन्हें अपने मन की बात बताई तो उन्होंने भी उन की बात का समर्थन किया. एसपी साहब थानाप्रभारी को आवश्यक निर्देश दे कर चले गए.

इस के बाद आर.सी. भास्करे के साथ आए एसआई पी.एस. डामोर, एम.एल. भाटी, एएसआई अनीता तोमर, आरक्षक रामकुमार व गणेश की मदद से घटनास्थल की काररवाई निपटाने लगे. उन्होंने सारी औपचारिकताएं पूरी कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

अब तक मृतक की पत्नी रेमुबाई काफी हद तक शांत हो गई थी. आर.सी. भास्करे ने उस से पूछताछ शुरू की तो उस ने बताया कि उस के पति की मौत एक्सीडेंट से हुई है. पुलिस ने जब उस से कहा कि तूफान की मौत एक्सीडेंट से नहीं हुई, किसी ने उस की हत्या की है तो उस ने हैरानी से कहा, ‘‘साहब, मेरे पति की कोई हत्या क्यों करेगा? उन की तो किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं थी. आप को गलतफहमी हो रही है. रात में वह रोज शराब पी कर लौटते थे. कल भी शराब पी कर आ रहे होंगे, रास्ते में दुर्घटना हो गई होगी.’’

‘‘जब तुम्हारे पति रात में घर नहीं पहुंचे तो तुम ने उन की खोजखबर नहीं ली?’’ आर.सी. भास्करे ने पूछा.

‘‘साहब, खोजखबर क्या लेती, यह कोई एक दिन की बात थोड़े ही थी. अकसर शराब पी कर वह रात को घर से गायब रहते थे. कल वह घर नहीं पहुंचे तो मैं ने यही समझा कि हमेशा की तरह आज भी कहीं रुक गए होंगे.’’ रेमुबाई ने कहा.

रेमुबाई जिस तरह आत्मविश्वास के साथ पुलिस के सवालों का जवाब दे रही थी, वह भी हैरानी की बात थी. जिस औरत का पति मर गया हो, उस का इस तरह जवाब देना पुलिस को शक में डाल रहा था. क्योंकि इस स्थिति में तो औरत को कुछ कहनेसुनने का होश ही नहीं रहता.

बहरहाल, इस पूछताछ में पता चला था कि मृतक तूफान झाबुआ के बसस्टैंड के पास स्थित नीरज राठौर के टेंटहाउस में काम करता था. उस दिन शाम को घर आने के बाद साढ़े 10 बजे के करीब थोड़ी देर में लौट आने को कह कर वह मोटरसाइकिल ले कर घर से निकला तो लौट कर नहीं आया था.

आर.सी. भास्करे ने टेंटहाउस के मालिक नीरज राठौर और उस के यहां काम करने वाले कर्मचारियों से पूछताछ की तो उन सभी ने भी यही बताया कि तूफान बहुत ही मेहनती और सीधासादा आदमी था. ऐसे आदमी की भला किसी से क्या दुश्मनी होगी, जो उस की हत्या कर दी जाए.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, तूफान की मौत मारपीट की वजह से हुई थी. अब पूरी तरह से साफ हो गया था कि यह एक्सीडेंट का मामला नहीं था. इस के बाद कोतवाली पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी.

आर.सी. भास्करे जल्द से जल्द इस मामले का खुलासा करना चाहते थे, लेकिन 3 दिनों की जांच में उन के हाथ कोई सुराग नहीं लगा. अंत में उन्होंने मुखबिरों की मदद ली. किसी मुखबिर से उन्हें पता चला कि तूफान की हत्या के बाद से उस की पत्नी रेमुबाई ने अपना मोबाइल फोन बंद कर लिया है.

यह सुन कर आर.सी. भास्करे सोच में पड़ गए कि रेमुबाई ने आखिर अपना मोबाइल फोन क्यों बंद कर लिया है? उन्हें कुछ गड़बड़ लगा तो उन्होंने तूफान के बेटे को कोतवाली बुला कर पूछताछ की. एक सवाल के जवाब में बच्चा गड़बड़ाया तो उस का जवाब उन्होंने अपनी मां से पूछ कर बताने को कहा.

इस पर बच्चे ने कहा कि उस की मां का मोबाइल फोन बंद है, इसलिए वह उन से सवाल का जवाब नहीं पूछ सकता. थानाप्रभारी की समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसी कौन सी वजह है कि रेमुबाई ने अपना मोबाइल फोन बंद कर दिया है.

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अब उन्हें तूफान की हत्या में रेमुबाई का हाथ होने का शक हुआ. उन्होंने यह बात एसपी महेशचंद्र जैन को बताई तो उन्होंने तुरंत रेमुबाई को थाने बुला कर पूछताछ करने का आदेश दिया.

थाने बुला कर रेमुबाई से पूछताछ शुरू हुई तो वह एक ही जवाब दे रही थी कि उसे नहीं मालूम कि उस रात क्या हुआ था? उसे सिर्फ यही पता है कि वह रात को घर से निकले तो लौट कर नहीं आए. घर आते समय उन का एक्सीडेंट हो गया था.

जब आर.सी. भास्करे ने पूछा कि तूफान की मौत के बाद उस ने अपना मोबाइल फोन क्यों बंद कर लिया तो इस का जवाब देने में रेमुबाई बगलें झांकने लगी. घबराहट उस के चेहरे पर साफ नजर आने लगी.

फिर तो थानाप्रभारी को समझते देर नहीं लगी कि तूफान की हत्या में किसी न किसी रूप में इस का भी हाथ है.  उन्होंने रेमुबाई को एएसआई अनीता तोमर के हवाले कर दिया. उन्होंने सख्ती से उस से पूछताछ शुरू की तो रेमुबाई ने पति की हत्या का अपना अपराध स्वीकार करने में देर नहीं लगाई. इस के बाद उस ने पति की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस तरह थी—

मध्य प्रदेश के जिला झाबुआ की कोतवाली के अंतर्गत रहने वाले तूफान की पत्नी रेमुबाई के पेट में ऐसा दर्द उठा कि कई डाक्टरों के इलाज के बाद भी ठीक नहीं हुआ. तभी उस के एक परिचित ने बताया कि झाबुआ से ही जुड़े गुजरात के जिला दाहोद के थाना कतवारा के गांव खगेला का रहने वाला तांत्रिक मंथूर उस का इलाज कर सकता है.

उसे पूरा विश्वास है कि उस की झाड़फूंक से वह निश्चित रूप से ठीक हो जाएगी. यह करीब 4 साल पहले की बात है. रेमुबाई पति तूफान को ले कर तांत्रिक मंथूर के पास पहुंची. रेमुबाई पर एक गहरी नजर डाल कर तांत्रिक मंथूर ने कहा कि उसे 16 शनिवार बिना नागा लगातार आना पड़ेगा. तूफान नौकरी करता था, इसलिए वह पत्नी को हर शनिवार ले कर तांत्रिक के यहां नहीं जा सकता था. इसलिए रेमुबाई अकेली ही तांत्रिक मंथूर के यहां हर शनिवार झाड़फूंक कराने जाने लगी.

तांत्रिक मंथूर ने 4 शनिवार तक नीम की पत्तियों से उस की झाड़फूंक की. 5वें शनिवार को उस ने रेमुबाई से अपने कपड़े ढीले कर के फर्श पर लेट जाने को कहा. रेमुबाई को किसी तरह का कोई शकशुबहा तो था नहीं, इसलिए वह कपड़े ढीले कर फर्श पर लेट गई. करीब 2 घंटे तक मंथूर मंत्र पढ़ते हुए उस के शरीर पर हाथ फेरते हुए उस की बीमारी भगाता रहा.

रेमुबाई के अनुसार, मंथूर भले ही अधेड़ था, लेकिन उस के हाथों में ऐसी तपिश थी कि जब वह उस के शरीर पर हाथ फेरता था तो उसे अजीब सा सुख मिलता था.

7वें शनिवार को मंथूर ने उस से सारे कपड़े उतार कर लेटने को कहा तो रेमुबाई मना नहीं कर सकी. वह कपड़े उतार कर लेटने लगी तो तांत्रिक मंथूर ने दवा के नाम पर उसे थोड़ी शराब पीने को दी.

इस के बाद तांत्रिक ने भी शराब पी. झाड़फूंक करतेकरते मंथूर रेमुबाई के ऊपर लेट गया तो तांत्रिक प्रक्रिया समझ कर रेमुबाई ने कोई विरोध नहीं किया. इस तरह तांत्रिक मंथूर ने उस के साथ शारीरिक संबंध बना लिए.

इस के बाद रेमुबाई जब भी उस के यहां इलाज कराने जाती, मंथूर उसे शराब पिला कर उस के साथ शारीरिक संबंध बनाता. मंथूर के प्यार में तूफान से ज्यादा जोश और गरमी थी, इसलिए उसे उस के साथ शारीरिक संबंध बनाने में आनंद आने लगा. दूसरी ओर मंथूर भी रेमुबाई का दीवाना हो चुका था. अब वह इलाज के बहाने उस के घर भी आने लगा था.

16 शनिवार पूरे हो गए तो तूफान ने पत्नी से कहा, ‘‘अब तो तुम्हारा इलाज पूरा हो चुका है, अब तुम तांत्रिक के यहां क्यों जाती हो?’’

तांत्रिक के प्यार में उलझी रेमुबाई ने कहा, ‘‘अभी मैं पूरी तरह स्वस्थ नहीं हुई हूं, इसलिए अभी मुझे इलाज की और जरूरत है.’’

आखिर कब तक रेमुबाई बहाने बना कर तांत्रिक के पास जाती रहती. मंथूर भी उस के घर लगातार आता रहा. इन्हीं बातों से तूफान को पत्नी पर शक हुआ तो वह पत्नी को मंथूर के यहां जाने से रोकने लगा. अब इलाज तो सिर्फ बहाना था, रेमुबाई तो मंथूर से मिलने जाती थी, इसलिए पति के मना करने के बावजूद वह नहीं मानी.

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रेमुबाई की जिद से तूफान को चिंता हुई. फिर तो दोनों में झगड़ा होने लगा. रेमुबाई को लगा कि इलाज और बीमारी के नाम पर अब यह खेल ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकता. जबकि वह मंथूर के प्यार में इस कदर कैद हो चुकी थी कि अब उस के बिना नहीं रह सकती थी, इसलिए वह उस के लिए कुछ भी कर सकती थी.

शायद यही वजह थी कि उस ने मंथूर से तूफान को रास्ते से हटाने के लिए कह दिया. मंथूर भी रेमुबाई के लिए कुछ भी करने को तैयार था. इसलिए उस के कहने पर वह भी तूफान की हत्या करने को तैयार हो गया.

योजना बना कर 6 मई, 2017 को मंथूर अपने दोस्त गोरचंद के साथ नयागांव डूंगरा के जंगल में पहुंचा और एक पेड़ की आड़ में छिप कर बैठ गया. रेमुबाई को उस ने यह बात बता दी, इसलिए जैसे ही तूफान घर आया, उस ने बहुत ज्यादा पेट में दर्द होने की बात कह कर कहा, ‘‘मंथूर किसी का इलाज करने झाबुआ आया है, मैं ने उसे फोन किया था, वह आने को तैयार है, इसलिए तुम डूंगरा जा कर उसे ले आओ.’’

तूफान बिना देर किए मोटरसाइकिल ले कर तांत्रिक मंथूर को लेने चला गया. नयागांव और डूंगरा के बीच मंथूर गोरचंद के साथ बैठा तूफान के आने का इंतजार कर रहा था.

जैसे ही तूफान उन के करीब पहुंचा, दोनों ने लाठियों से पीटपीट कर उस की हत्या कर दी. इस के बाद उस की लाश को मोटरसाइकिल के नीचे रख दिया, ताकि देखने से लगे कि इस का एक्सीडेंट हुआ है.

लेकिन उन की यह चाल कामयाब नहीं हुई और थानाप्रभारी आर.सी. भास्करे को सच्चाई का पता चल गया.

रेमुबाई की गिरफ्तारी के बाद आर.सी. भास्करे ने तांत्रिक मंथूर और उस के साथी गोरचंद को भी गिरफ्तार कर लिया था. इस के बाद तीनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. जेल जाने के बाद रेमुबाई के हाथ से वह सब भी निकल गया, जो था. आखिर पति के साथ उसे ऐसी क्या तकलीफ थी, जो अधेड़ तांत्रिक के प्यार में पड़ कर अपना सब लुटा बैठी.