रिश्तों का अर्मयादित घालमेल

शिवराज कुशवाहा जनपद हरदोई के गांव देहीचोर अंटवा में अपने परिवार के साथ रहते थे .काम था खेतीकिसानी का. परिवार में पत्नी कैलाशा देवी और 3 बेटे थे— अर्जुन, अमर सिंह और कैलाश. अर्जुन लखनऊ में एक ट्रैक्टर एजेंसी में काम करता था. अमर सिंह नोएडा की किसी फैक्टरी में कार्यरत था और कैलाश गांव में खेती करता था. शिवराज ने तीनों का विवाह कर के जमीन का बंटवारा कर दिया था. तीनों भाई परिवार के साथ अपनेअपने हिस्से में रहते थे. करीब 6 साल पहले अमर सिंह का विवाह विनीता से हुआ था. उस के 2 बच्चे थे. कैलाश की शादी 4 साल पहले कंचनलता से हुई थी. उस के 2 बच्चे थे.

घर से दूर नोएडा में रहने की वजह से अमर सिंह की पत्नी विनीता का गांव में मन नहीं लगता था. पति 2-3 महीने में घर का चक्कर लगाता था, फलस्वरूप विनीता पति से मिलने वाले सुख के लिए बेचैन रहती थी. काफी समय तक पति सुख से वंचित रहने के कारण उस का तन विद्रोह करने लगा था.

विनीता का देवर कैलाश घर पर ही रहता था. जब वह उस से हंसीमजाक करता तो कभीकभी अपनी सीमाएं लांघ जाता था. विनीता समझ गई कि कैलाश भले ही शादीशुदा है, लेकिन उसे शायद घर की दाल में मजा नहीं आ रहा, इसलिए वह बाहर की बिरयानी खाने की जुगत में है. इसी वजह से वह उस पर डोरे डालने की कोशिश कर रहा है.

कैलाश भी जानता था कि उस का बड़ा भाई अमर सिंह बाहर रहता है, इसलिए उस की भाभी प्यासी मछली की तरह तड़पती होंगी. वह अपनी भाभी को अपने आगोश में लेने के लिए सारे जतन कर रहा था.

विनीता भी उस की मंशा भांप कर खुश थी. क्योंकि उस प्यासी के लिए तो कुआं घर में ही मौजूद था, बाहर तलाशने की जरूरत नहीं थी. दोनों ही एकदूसरे में समाने को आतुर हुए तो विनीता ने मिलन का रास्ता भी बना लिया.

एक दिन दोपहर के समय विनीता चारपाई पर लेटी थी तभी कैलाश वहां आ गया. उसे देख कर विनीता पैरों में दर्द का बहाना कर के  कराहने लगी. उस ने साड़ी को घुटने तक खींच लिया. कैलाश ने उस की हालत देखी तो बोला, ‘‘क्या हुआ भाभी, ऐसे कराह क्यों रही हो?’’‘‘क्या बताऊं…पैरों में बड़ी जोर से दर्द हो रहा है.’’ विनीता अपने हाथ से दायां पैर दबाने की कोशिश करती हुई बोली. ‘‘अरे आप क्यों परेशान हो रही हैं, मैं दबा देता हूं पैर.’’ कह कर कैलाश उस के नग्न पैरों को अपने हाथों स दबाने लगा.

इस पर विनीता उस को तेल की शीशी देते हुए बोली, ‘‘इस तेल से मालिश कर दो, कुछ आराम मिल जाएगा.’ कैलाश ने उस के हाथों से तेल की शीशी ले कर थोड़ा तेल निकाला और भाभी के पैरों की मालिश करने लगा. पराए मर्द के हाथों के स्पर्श से विनीता के तन में चिंगारियां फूटने लगीं. तनबदन मचल उठा.

जैसेजैसे कैलाश मालिश कर रहा था, विनीता साड़ी को थोड़ाथोड़ा ऊपर खींचते हुए मालिश करने को कहती गई, ‘‘थोड़ा और ऊपर मालिश कर दो. जैसेजैसे मालिश कर रहे हो, दर्द नीचे से ऊपर की ओर बढ़ता जा रहा है.’’ मस्ती से सराबोर हो कर विनीता ने कहा. इस के बाद उस ने साड़ी को कूल्हों तक खींच लिया.

कैलाश कोई नादान नहीं था. वह भाभी की मंशा समझ गया और मालिश करतेकरते अपना नियंत्रण खोने लगा. उस के हाथ आगे बढ़ते गए. अंतत: विनीता ने उसे अपने ऊपर खींच लिया. उस के बाद उन के बीच की सारी दूरियां खत्म हो गईं और उन्होंने अपनी हसरतें पूरी कर लीं. इस के बाद दोनों के बीच संबंधों का यह सिलसिला चलने लगा.

लेकिन ऐसे संबंध एक न एक दिन उजागर हो ही जाते हैं. अमर सिंह को अपनी पत्नी व भाई के बीच के नाजायज संबंधों का पता चल गया तो वह गांव आ गया. उस ने गुस्से में विनीता को तो जम कर पीटा ही, कैलाश के साथ भी मारपीट की. विनीता और बच्चों को वह अपने साथ नोएडा ले गया.

विनीता के चले जाने के बाद कैलाश भी काम के सिलसिले में हैदराबाद चला गया. कैलाश की पत्नी कंचनलता 2 बच्चों के साथ घर पर रह रही थी. कंचनलता को घर में अकेले देख कर कैलाश का चचेरा भाई रमाकांत उस के पास आने लगा. रमाकांत पड़ोस में ही रहता था और अविवाहित था. उस की चाय समोसे की दुकान थी.

कंचनलता की कंचन काया छरहरी थी. रमाकांत उस पर आसक्त हो गया. 2 बच्चों की मां कंचनलता अपने हुस्न से तमाम लड़कियों को मात दे सकती थी.

खूबसूरत हुस्न की मालकिन कंचन पति कैलाश के बिना मुरझाईमुरझाई सी रहने लगी. वह हंसती तो लगता जैसे दिखावटी हंसी हंस रही हो. रमाकांत उस के मुरझाने का कारण बखूबी समझता था. इसलिए रमाकांत उस के पास जाता तो उसे हंसाने की कोशिश करता. कंचनलता को भी उस की बातें अच्छी लगती थीं. वह उस से घुलनेमिलने लगी.

एक दिन बातोंबातों में रमाकांत कंचनलता के दर्द को अपनी जुबां पर ले आया, ‘‘भाभी, मैं देख रहा हूं कि जब से कैलाश भैया गए हैं, तब से आप उदास सी रहने लगी हो.’’ ‘‘तो क्या करूं, उन के जाने पर नाचूं या हंसू?’’ कंचनलता ने बड़ी कड़वाहट से जवाब दिया  ‘‘आप को भी उन के साथ चले जाना चाहिए था, आखिर आप की भी अपनी कुछ जरूरतें और इच्छाएं हैं.’’  ‘‘उन को मेरी चिंता ही कहां है.’’ वह बुझे मन से बोली.

‘‘जब उन्हें आप की चिंता नहीं है तो आप भी अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जिओ. आप को भी पूरी आजादी है, मैं आप का हर तरह से साथ देने को तैयार हूं.’’ रमाकांत बोला.  यह सुन कर कंचनलता मुसकराई और अपनी नजरें झुका लीं.

रमाकांत ने अपने दाएं हाथ से कंचनलता की ठोढ़ी पकड़ कर चेहरा ऊपर उठाया और उस की आंखों में देखा. इस पर कंचनलता कुछ देर यूं ही उस की आंखों में देखती रही. फिर उस के अंदाज की कायल हो कर उस से लिपट गई.रमाकांत ने भी कंचनलता को अपनी बांहों में भर लिया. फिर उन के बीच की सारी मर्यादाएं टूट गईं, दोनों के जिस्म एक हो गए. उन के बीच यह खेल निरंतर खेला जाने लगा.

देश में लौकडाउन हुआ तो अमर सिंह को सपरिवार नोएडा से गांव आना पड़ा. कैलाश भी हैदराबाद से गांव वापस लौट आया. सभी के घर आ जाने के बाद कैलाश और विनीता ने मौका मिलने पर फिर से संबंध बनाने शुरू कर दिए.

कैलाश रोज रात में 11 बजे गर्रा नदी किनारे अपने मक्का के खेत की रखवाली के लिए चला जाता था और सुबह 4 बजे घर लौटता था. लेकिन 22 अगस्त, 2020 की सुबह कैलाश काफी देर तक घर नहीं लौटा तो कंचनलता उसे बुलाने खेतों पर गई. वहां खेत में उसे पति की लाश पड़ी मिली. उस ने रोतेपीटते घर वालों को घटना की सूचना दी. कुछ ही देर में घर वाले और गांव के लोग वहां एकत्र हो गए. कैलाश के दोनों भाई भी वहां पहुंच गए थे. वह समझ नहीं पा रहे थे कि कैलाश की हत्या किस ने कर दी. भाई अमर सिंह ने सांडी थाना पुलिस को घटना की सूचना दी. सूचना पा कर इंसपेक्टर अखिलेश यादव पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. थाने से रवाना होते समय उन्होंने उच्चाधिकारियों को घटना की सूचना दे दी थी.

घटनास्थल पर पहुंच कर इंसपेक्टर यादव ने लाश का निरीक्षण किया. मृतक के सिर व हाथों पर किसी तेज धारदार हथियार के घाव थे. आसपास का निरीक्षण करने पर उन्हें कोई सुबूत हाथ नहीं लगा. उन्होंने कंचनलता, अमर सिंह व अन्य घरवालों से आवश्यक पूछताछ की.

इसी बीच एएसपी (पूर्वी) अनिल सिंह यादव और सीओ बिलग्राम एस.आर. कुशवाहा भी मौके पर पहुंच गए. उच्चाधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया, उस के बाद उन्होंने मृतक के घर वालों से पूछताछ की. फिर इंसपेक्टर अखिलेश यादव को आवश्यक दिशानिर्देश दे कर चले गए.

घटनास्थल की जरूरी काररवाई पूरी करने के बाद इंसपेक्टर यादव ने लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल स्थित मोर्चरी भेज दी और अमर सिंह को साथ ले कर थाने लौट गए.

थाने पहुंच कर उन्होंने अमर सिंह की तरफ से अज्ञात के विरुद्ध भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

इंसपेक्टर यादव ने केस की जांच शुरू की. घर वालों ने मामला जमीनी रंजिश का बताया था, लेकिन वैसा लग नहीं रहा था. गांव वालों व पड़ोसियों से पूछताछ के बाद घटना की वजह कुछ और ही नजर आ रही थी इंसपेक्टर यादव ने कैलाश के घर आनेजाने वालों व घर के बराबर में रहने वाले कैलाश के भाईबंधुओं के बारे में पता किया, तब उन्हें पता चला कि लाश मिलने के एक दिन पहले रात में अमर सिंह और उस के चचेरे भाई रमाकांत को एक साथ गांव के बाहर जाते देखा गया था.

यह भी पता चला कि रमाकांत कैलाश की गैरमौजूदगी में उस के घर में ही घुसा रहता था. कैलाश के संबंध अमर सिंह की पत्नी से थे, जिस की वजह से अमर सिंह पत्नी को नोएडा ले गया था.

यह महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलने के बाद इंसपेक्टर यादव ने अमर सिंह और रमाकांत को 30/31 अगस्त की रात करीब ढाई बजे गांव बरोलिया के मंदिर के पास से गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर जब दोनों से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया और हत्या के पीछे की पूरी कहानी बयां कर दी.

लौकडाउन में घर वापस आने के बाद कैलाश और विनीता में फिर से संबंध बनने लगे तो यह बात छिप न सकी. अमर सिंह को भी यह जानकारी मिल चुकी थी. अमर सिंह गुस्से से आगबबूला हो उठा.

उस ने अपने छोटे भाई कैलाश को काफी समझाया, पर उन दोनों पर उस के समझाने का कोई असर नहीं पड़ा. कैलाश बड़े भाई की बात मानने को तैयार नहीं था. ऐसे में अमर सिंह नेउसे मौत की नींद सुलाने का फैसला कर लिया.

एक बार अमर सिंह ने चचेरे भाई रमाकांत को कैलाश की पत्नी कंचनलता से संबंध बनाते देख लिया था. तब रमाकांत ने अमर सिंह से माफी मांग ली थी और अमर सिंह भी चुप हो गया. अमर सिंह को कैलाश की हत्या में साथ देने के लिए एक साथी की जरूरत थी. वह साथी उसे रमाकांत के रूप में मिल गया.

अमर सिंह ने भाई कैलाश की हत्या में रमाकांत से मदद मांगी तो वह मना करने लगा. इस पर अमर सिंह ने कहा कि उन दोनों के रास्ते का कांटा एक ही है. वह उसे इसलिए मारना चाहता है क्योंकि वह उस की पत्नी से संबंध बना कर उस का घर खराब कर रहा है. कैलाश के रास्ते से हटने पर उस का रास्ता साफ हो जाएगा, फिर वह बेरोकटोक कंचनलता से मिल सकेगा.

अमर सिंह की बात रमाकांत के भेजे में घुस गई और रमाकांत अमर सिंह का साथ देने को तैयार हो गया.  21 अगस्त, 2020 की रात 11 बजे कैलाश अपने मक्के की फसल की रखवाली के लिए घर से निकल गया. योजनानुसार रात साढे़ 12 बजे के करीब अमर सिंह और रमाकांत घर से निकले. दोनों अपने साथ एक कुल्हाड़ी भी लाए थे.

दोनों खेत पर पहुंचे तो कैलाश को गहरी नींद में सोते पाया. यह देख अमर सिंह ने कुल्हाड़ी से उस के सिर पर वार किया. इस के बाद उस ने कई वार किए. रमाकांत ने भी उस से कुल्हाड़ी ले कर उस पर कई वार किए.

लहूलुहान कैलाश चारपाई से नीचे गिर गया. लेकिन कुल्हाड़ी के अनगिनत वारों के कारण कैलाश की सांसें ज्यादा देर तक चल न सकीं और उस की मौत हो गई. उसे मौत के घाट उतारने के बाद उन्होंने अपने खून सने कपड़े उतारे और दूसरे कपड़े पहन कर रक्तरंजित कपड़ों और कुल्हाड़ी को एक जगह छिपा दिया और घर वापस लौट आए.

लेकिन गुनाह छिप न सका और वे पकड़े गए. उन की निशानदेही पर पुलिस ने कुल्हाड़ी और खून से सने कपड़े बरामद कर लिए. फिर कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर के दोनोें को सीजेएम कोर्ट में पेश किया गया, वहां से उन्हें जेल दिया गया.

सौजन्य: सत्यकथा, अक्टूबर 2020

शक की इंतिहा

बेवजह शक का कीड़ा मन में बैठा लिया जाए तो जिंदगी दुश्वार हो जाती है. ये कहानी भी ऐसे ही एक शक्की पति सुदर्शन वाल्मीकि की है, जिस ने अपनी पत्नी पर किए गए शक की वजह से अपनी गृहस्थी खुद उजाड़ दी.

मध्य प्रदेश के जबलपुर के तिलवारा थाना क्षेत्र के अंतर्गत मदनमहल की पहाडि़यों के पास के एक इलाके का नाम भैरों नगर है,  इस जगह पर गिट्टी क्रेशर लगे होने के कारण इसे क्रेशर बस्ती के नाम से भी जाना जाता है. इसी बस्ती में दशरथ वाल्मीकि का परिवार रहता है. दशरथ के परिवार में उस की पत्नी के अलावा उस का 39 साल का बेटा सुदर्शन उर्फ मोनू वाल्मीकि, उस की पत्नी प्रीति और 22 माह की बेटी देविका भी रहती थी.

दशरथ के परिवार के सभी वयस्क सदस्य जबलपुर के नेताजी सुभाषचंद्र बोस मैडिकल कालेज में साफसफाई का काम करते थे. सुदर्शन मैडिकल कालेज में सुरक्षा गार्ड के रूप में काम करता था. परिवार के सदस्यों के कामधंधा करने से अच्छीखासी आमदनी हो जाती है और परिवार हंसीखुशी से अपनी जिंदगी गुजार रहा था.

17 जनवरी, 2020 की सुबह सभी लोग अभी बिस्तर से सो कर उठे भी नहीं थे कि सुदर्शन और उस की पत्नी ने घर में यह कह कर कोहराम मचा दिया कि उन की बेटी देविका बिस्तर पर नहीं है. उन्होंने अपने मातापिता को बताया कि शायद किसी ने देविका का अपहरण कर लिया है. देविका के दादादादी का तो यह खबर सुन कर बुरा हाल हो गया था. देविका को वे बहुत लाड़प्यार करते थे.

जैसे ही बस्ती में देविका के कमरे के भीतर से गायब होने की खबर फैली तो आसपास के लोगों की भीड़ सुदर्शन के घर पर जमा हो गई. लोगों को यह यकीन ही नहीं हो रहा था कि कैसे कोई व्यक्ति इतनी छोटी सी बच्ची का अपहरण कर सकता है.

चूंकि कुछ दिनों पहले ही जबलपुर नगर निगम के अतिक्रमण विरोधी दस्ते ने सुदर्शन के मकान का पिछला हिस्सा तोड़ दिया था, जिस की वजह से पीछे की ओर ईंटें जमा कर उस हिस्से को बंद कर दिया था.

लोगों ने अनुमान लगाया कि इसी दीवार की ईंटों को हटा कर अपहर्त्ता शायद अंदर घुसे होंगे. देविका की मां प्रीति लोगों को रोरो कर बता रही थी कि 16 जनवरी की रात वे अपनी बेटी देविका को बीच में लिटा कर ही सोए थे, पर अपहर्त्ताओं ने देविका के अपहरण को इतनी चालाकी से अंजाम दिया कि उन्हें इस की आहट तक नहीं हुई.

लोग यह समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर कौन ऐसा दुस्साहस कर सकता है कि अपने मां बाप के बीच सो रही बच्ची का अपहरण कर के ले जाए. मासूम बच्ची देविका की खोजबीन आसपास के इलाकों में लोगों द्वारा करने के बाद भी उस का कोई अतापता नहीं चला तो उस के गायब होने की रिपोर्ट जबलपुर के तिलवारा पुलिस थाने में दर्ज करा दी.

पुलिस थाने में सुदर्शन ने उस के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज कराते हुए बताया कि रात को 11 बजे वह खाना खा कर पत्नी और बच्ची के साथ सो गया था, रात लगभग 2 बजे देविका ने उठने की कोशिश की तो उसे दोबारा सुला दिया गया. सुबह 8 बजे वह सो कर उठे तो विस्तर से देविका गायब थी.

तिलवारा थाने की टीआई रीना पांडेय ने आईपीसी की धारा 363 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर जानकारी तुरंत ही पुलिस के आला अधिकारियों को दे दी और वह घटनास्थल की ओर निकल पड़ीं. जैसे ही रीना पांडेय भैरों नगर पहुंचीं, वहां तब तक भारी भीड़ जमा हो चुकी थी.

उन्होंने एफएसएल टीम और डौग स्क्वायड को भी वहां बुला कर मौका मुआयना करवाया. खोजी कुत्ता

सुदर्शन के घर के आसपास ही चक्कर लगाता रहा.

घटना की गंभीरता को देखते हुए जबलपुर के एसपी अमित सिंह ने एडीशनल एसपी (ग्रामीण) शिवेश सिंह बघेल एवं एसपी (सिटी) रवि सिंह चौहान के मार्गदर्शन में थानाप्रभारी तिलवारा रीना पांडेय के नेतृत्व में एक टीम गठित की. टीम में क्राइम ब्रांच के एएसआई राजेश शुक्ला, विनोद द्विवेदी आदि को शामिल किया गया.

पुलिस ने भैरों नगर के तमाम लोगों से जानकारी ले कर कुछ संदिग्ध लोगों को पुलिस थाने में बुला कर पूछताछ भी की, मगर किसी से भी देविका का कोई सुराग हासिल नहीं हो सका. इस घटनाक्रम से भैरों नगर में रहने वाले वाल्मीकि समाज के लोगों की पुलिस के प्रति नाराजगी बढ़ती जा रही थी. उन्होंने प्रशासन के खिलाफ धरना देना शुरू कर दिया था. वे पुलिस प्रशासन से मांग कर रहे थे कि जल्द ही मासूम बच्ची देविका को खोज निकाला जाए.

इधर पुलिस प्रशासन की नींद हराम हो चुकी थी. देविका को गायब हुए एक माह से अधिक का समय बीत चुका था, पर पुलिस को यह समझ नहीं आ रहा था कि देविका का अपहरण आखिर किसलिए किया गया है. यदि फिरोती के लिए अपहरण हुआ है तो अभी तक किसी ने फिरोती की रकम के लिए सुदर्शन के परिवार से संपर्क क्यों नहीं किया. पुलिस टीम को जांच करते एक माह से अधिक समय हो गया था,

लेकिन वह किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाई थी.

26 फरवरी 2020 को भैरों नगर की नई बस्ती इलाके में बने एक कुएं के इर्दगिर्द बच्चे खेल रहे थे. खेल के दौरान कुएं में अंदर झांकने पर उन्हें कोई चीज तैरती दिखाई दी, तो बच्चों ने चिल्ला कर आसपास के लोगों को इकट्ठा कर लिया. बस्ती के लोगों ने कुएं में उतराते शव को देखा तो इस की सूचना तिलवारा पुलिस को दे दी. सूचना पा कर पुलिस दल मौके पर पहुंचा और शव को कुएं से बाहर निकलवाया गया. शव की हालत इतनी खराब हो चुकी थी, कि उसे पहचान पाना मुश्किल था.

शव के सिर की ओर से रस्सी से लगभग 15 किलोग्राम वजन का पत्थर बंधा हुआ था. पुलिस की मौजूदगी में आसपास के लोगों ने मोटरपंप लगा

कर कुएं का पानी खाली किया तो कुएं की निचली सतह पर कपड़े मिले, जिस के आधार पर सुदर्शन के परिजनों द्वारा उस की पहचान देविका के रूप में की गई.

पुलिस ने काररवाई कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में डाक्टर द्वारा देविका की मृत्यु पानी में डूबने के कारण होनी बताई. परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर पुलिस ने प्रकरण में धारा 364, 302 और इजाफा कर दी.

अब पुलिस के सामने बड़ी चुनौती यही थी कि देविका के हत्यारे तक कैसे पहुंचा जाए. 40 दिनों तक चली तफ्तीश में टीआई रीना पांडेय को बस्ती के लोगों ने बताया था कि सुदर्शन और उस की पत्नी में अकसर विवाद होता रहता था. सुदर्शन अपनी पत्नी के चरित्र पर शक करता था. जब सुदर्शन के शक का कीड़ा कुलबुलाता तो उन के बीच विवाद हो जाता.

इसी आधार पर पुलिस टीम को यह संदेह भी हो रहा था कि कहीं इसी वजह से सुदर्शन ने ही तो देविका की हत्या नहीं की? जांच टीम ने जब देविका की मां प्रीति और पिता सुदर्शन से अलगअलग पूछताछ की तो दोनों के बयानों में विरोधाभास नजर आया.

पूछताछ के दौरान प्रीति ने जब यह बताया कि कुछ माह पहले सुदर्शन देविका को जान से मारने का प्रयास कर चुका है, तो पुलिस को पूरा यकीन हो गया कि देविका का कातिल उस का पिता ही है. जब पुलिस ने सुदर्शन से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने जल्द ही अपना गुनाह कबूल कर लिया.

अपनी फूल सी नाजुक बेटी की हत्या करने का गुनाह करने वाले सुदर्शन उर्फ मोनू ने पुलिस को जो कहानी बताई उस ने तो बस यही साबित कर दिया कि अपने दिमाग में शक का कीड़ा पालने वाला मोनू देविका को अपनी बेटी ही नहीं मानता था.

सुदर्शन की शादी अब से 3 साल पहले बड़े धूमधाम से रांझी, जबलपुर निवासी प्रीति से हुई थी.

शादी के पहले से सुदर्शन रंगीनमिजाज नौजवान था और उस की आशिकमिजाजी शादी के बाद भी जारी रही. इसी के चलते भेड़ाघाट में एक लड़की के बलात्कार के मामले में शादी के 2 माह बाद ही उसे जेल की हवा खानी पड़ी थी.

जैसेतैसे वह कुछ माह बाद जमानत पर आया तो उसे मालूम हुआ कि उस की पत्नी गर्भ से है. बस उसी समय से सुदर्शन के दिमाग के अंदर शक का कीड़ा बैठ गया. वह बारबार यही बात सोचता कि मेरे जेल के अंदर रहने पर प्रीति गर्भवती कैसे हो गई.

देविका के जन्म के बाद तो अकसर पतिपत्नी में इसी बात को ले कर विवाद होता रहता. सुदर्शन प्रीति को हर समय यही ताने देता कि यह लड़की न जाने किस की औलाद  है. इसी तरह लड़तेझगड़ते जिंदगी गुजारते प्रीति फिर से गर्भवती हो गई.

पत्नी के चरित्र पर हरदम शक करने वाले सुदर्शन को लगता था कि देविका उस की बेटी नहीं है. उस का मन करता कि देविका का काम तमाम कर दे.

एक बार तो उस ने देविका को मारने की कोशिश भी की थी, मगर वह कामयाब न हो सका. पतिपत्नी के विवाद की वजह से देविका की देखभाल भी ठीक ढंग से नहीं हो पा रही थी, जिस की वजह से वह अकसर बीमार रहती थी.

16 जनवरी, 2020 की रात 10 बजे सुदर्शन मैडिकल कालेज के बाहर बैठा अपने दोस्तों के साथ शराब पी रहा था. तभी उस की पत्नी प्रीति का फोन आया कि जल्दी से घर आ जाओ, देविका की तबीयत ठीक नहीं है. सुदर्शन को तो देविका की कोई फिक्र ही नहीं थी. वह तो चाहता था कि उस की मौत हो जाए.

इधर प्रीति देविका की तबीयत को ले कर परेशान थी. वह बारबार पति को फोन लगाती और वह जल्दी आने की कह कर शराब पीने में मस्त था.

प्रीति के बारबार फोन आने पर वह तकरीबन 11 बजे अपने घर पहुंचा तब तक उस के मातापिता दूसरे कमरे में सो चुके थे. देविका की तबीयत के हालचाल लेने की बजाय वह बारबार फोन लगाने की बात पर पत्नी से विवाद करने लगा, जिसे देख कर मासूम देविका रोने लगी.

सुदर्शन ने गुस्से में देविका का गला दबा दिया, जिस के कारण उस की मौत हो गई. देविका की हालत देख कर प्रीति जोरजोर से रोने लगी तो सुदर्शन ने उसे डराधमका कर चुप करा दिया. सुदर्शन ने प्रीति को धमकाया कि यदि इस के बारे में किसी को कुछ बताया तो वह उस के गर्भ में पल रहे बच्चे के साथ उसे भी खत्म कर देगा. बेचारी प्रीति अपने होने वाले बच्चे की खातिर इस दर्द को चुपचाप सह कर रह गई.

सुदर्शन ने प्रीति को पाठ पढ़ाया कि सुबह लोगों को देविका के अपहरण की कहानी बता कर मामले को शांत कर देंगे.

इस के लिए उस ने घर के पिछले हिस्से में रखी कुछ ईंटों को हटा दिया, जिस से लोग यह अनुमान लगा सकें कि यहीं से घुस कर देविका का अपहरण किया गया है. रात के लगभग 2 बजे सुदर्शन एक रस्सी ले कर देविका के शव को कंधे पर रख कर घर के बाहर कुछ दूरी पर बने एक कुएं के पास ले गया.

वहां पर उस ने रस्सी के सहारे शव को एक पत्थर से बांध कर कुएं में फेंक दिया और वापस आ कर चुपचाप सो गया. सुबह उठते ही उस ने अपनी बेटी देविका के गायब होने की खबर फैला दी.

6 मार्च 2010 को जबलपुर के पुलिस कप्तान अमित सिंह, एसपी (सिटी) रवि सिंह चौहान, एडीशनल एसपी (ग्रामीण) शिवेश सिंह बघेल, टीआई तिलवारा रीना पांडेय की मौजूदगी में प्रैस कौन्फ्रैंस कर हत्याकांड के राज से परदा उठाते हुए आरोपी को प्रेस के समक्ष पेश किया.

सुदर्शन को देविका की हत्या के अपराध में धारा 363, 364, 302, 201 आईपीसी के तहत गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जबलपुर जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य: सत्यकथा, अगस्त 2020

घातक प्रेमी : शक ने किया प्रेमिका का कत्ल

सुबह होते ही गांव में शोर मचने लगा कि छत्रपाल अपनी प्रेमिका ननकी की हत्या कर फरार हो गया है, उस की लाश कमरे में पड़ी है. हल्ला होते ही गांव वाले ननकी के मकान की ओर दौड़ पड़े. गांव का प्रधान भी उन में शामिल था. गांव के पूर्वी छोर पर ननकी का मकान था. वहां पहुंच कर लोगों ने देखा, सचमुच ननकी की लाश कमरे में जमीन पर पड़ी थी. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि छत्रपाल ने ननकी की हत्या क्यों कर दी.

इसी बीच ग्राम प्रधान रामसिंह यादव ने थाना बिंदकी में फोन कर के इस हत्या की खबर दे दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी नंदलाल सिंह अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने महिला की हत्या किए जाने की खबर पुलिस अधिकारियों को दी फिर निरीक्षण में जुट गए. वह उस कमरे में पहुंचे जहां ननकी की लाश पड़ी थी. लाश के पास कुछ महिलाएं रोपीट रही थीं. पूछने पर पता चला कि मृतका अपने प्रेमी छत्रपाल के साथ रहती थी. उस का पति अंबिका प्रसाद करीब 5 साल पहले घर से चला गया था और वापस नहीं लौटा. मृतका के 2 बच्चे भी हैं, जो अपनी ननिहाल में रहते हैं.

मृतका ननकी की उम्र 35 वर्ष के आसपास थी. उस के गले में गमछा लिपटा था. लग रहा था जैसे उसी गमछे से गला कस कर उस की हत्या की गई हो. कमरे का सामान अस्तव्यस्त था. साथ ही टूटी चूडि़यां भी बिखरी पड़ी थीं. इस से लग रहा था कि हत्या से पहले मृतका ने हत्यारे से संघर्ष किया था.

थानाप्रभारी नंदलाल सिंह अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी प्रशांत कुमार वर्मा, एएसपी राजेश कुमार और सीओ योगेंद्र कुमार मलिक घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया तथा मौके पर मौजूद मृतका के घरवालों तथा पासपड़ोस के लोगों से घटना के बारे में पूछताछ की.

मौके पर शारदा नाम की लड़की मिली. मृतका ननकी उस की मौसी थी. शारदा ने पुलिस को बताया कि वह कल शाम छत्रपाल के साथ मौसी के घर आई थी. खाना खाने के बाद वह कमरे में जा कर लेट गई. रात में किसी बात को ले कर मौसी और छत्रपाल में झगड़ा हो रहा था.

सुबह 5 बजे छत्रपाल बदहवास हालत में निकला और घर के बाहर चला गया. कुछ देर बाद मैं ननकी मौसी के कमरे में गई तो कमरे में जमीन पर मौसी मृत पड़ी थी. मैं बाहर आई और शोर मचाया. मैं ने फोन द्वारा अपने मातापिता और नानानानी को खबर दी तो वह सब भी आ गए.

मृतका की मां चंदा और बड़ी बहन बड़की ने पुलिस अधिकारियों को बताया कि छत्रपाल ननकी के चरित्र पर शक करता था. मायके का कोई भी युवक घर पहुंच जाता तो वह उसे शक की नजर से देखता था और फिर झगड़ा तथा मारपीट करता था. इसी शक में छत्रपाल ने ननकी को मार डाला है. उस के खिलाफ सख्त काररवाई की जाए.

पूछताछ के बाद एएसपी ने थानाप्रभारी को निर्देश दिया कि शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजने के बाद हत्यारोपी छत्रपाल को जल्द से जल्द गिरफ्तार करें. इस के बाद थानाप्रभारी नंदलाल सिंह ने मौके से सबूत अपने कब्जे में लिए और ननकी का शव पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल फतेहपुर भिजवा दिया. फिर थाने आ कर शारदा की तरफ से छत्रपाल के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली.

रिपोर्ट दर्ज होते ही थानाप्रभारी ने हत्यारोपी छत्रपाल की तलाश शुरू कर दी. उन्होंने उस की तलाश में नातेरिश्तेदारों के घर सरसौल, बिंदकी, खागा और अमौली में छापे मारे, लेकिन छत्रपाल वहां नहीं मिला. तब उस की टोह में मुखबिर लगा दिए.

29 मई, 2020 की शाम 5 बजे खास मुखबिर के जरीए थानाप्रभारी नंदलाल सिंह को पता चला कि हत्यारोपी छत्रपाल इस समय बिंदकी बस स्टैंड पर मौजूद है. शायद वह कहीं भागने की फिराक में किसी साधन का इंतजार कर रहा है. यह खबर मिलते ही थानाप्रभारी आवश्यक पुलिस बल के साथ बस स्टैंड पहुंच गए.

पुलिस जीप रुकते ही बेंच पर बैठा एक युवक उठा और तेजी से सड़क की ओर भागा. शक होने पर पुलिस ने उस का पीछा किया और रामजानकी मंदिर के पास उसे दबोच लिया. उस ने अपना नाम छत्रपाल बताया. पूछताछ के लिए पुलिस उसे थाने ले आई.

थानाप्रभारी नंदलाल सिंह ने जब उस से ननकी की हत्या के बारे में पूछा तो वह साफ मुकर गया. लेकिन जब थोड़ी सख्ती बरती तो वह टूट गया और हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उस से की गई पूछताछ में ननकी की हत्या के पीछे की कहानी अवैध रिश्तों की बुनियाद पर गढ़ी हुई मिली—

उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जनपद का एक व्यापारिक कस्बा है अमौली. इसी कस्बे में चंद्रभान अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी चंदा के अलावा 2 बेटियां बड़की व ननकी और एक बेटा मोहन था. चंद्रभान कपड़े का व्यापार करता था.

इसी व्यापार से होने वाली कमाई से वह अपने परिवार का भरणपोषण करता था. चंद्रभान की बड़ी बेटी बड़की जवान हुई तो उस ने उस का विवाह खागा कस्बा निवासी हरदीप के साथ कर दिया. बड़की से 4 साल छोटी ननकी थी. बाद में जब वह भी सयानी हुई तो वह उस के लिए भी सही घरबार ढूंढने लगा. आखिर उन की तलाश अंबिका प्रसाद पर जा कर खत्म हो गई.

अंबिका प्रसाद के पिता जगतराम फतेहपुर जनपद के गांव शाहपुर के रहने वाले थे. उन के 2 बेटे शिव प्रसाद व अंबिका प्रसाद थे. शिव प्रसाद की शादी हो चुकी थी. वह इलाहाबाद में नौकरी करता था और परिवार के साथ वहीं रहता था.

उन का छोटा बेटा अंबिका प्रसाद उन के साथ खेतों पर काम करता था. चंद्रभान ने अंबिका को देखा तो उस ने उसे अपनी बेटी ननकी के लिए पसंद कर लिया. बात तय हो जाने के बाद 10 जनवरी, 2004 को ननकी का विवाह अंबिका प्रसाद के साथ हो गया.

अंबिका प्रसाद तो सुंदर बीवी पा कर खुश था, लेकिन ननकी के सपने ढह गए थे. क्योंकि पहली रात को ही वह पत्नी को खुश नहीं कर सका. वह समझ गई कि उस के पति में इतनी शक्ति नहीं है कि वह उसे शारीरिक सुख प्रदान कर सके.

समय बीतता गया और ननकी पूजा और राजू नाम के 2 बच्चों की मां बन गई. बच्चों के जन्म के बाद परिवार का खर्च बढ़ गया. पिता जगतराम की भी सारी जिम्मेदारी अंबिका प्रसाद के कंधों पर थी, अत: वह अधिक से अधिक कमाने की कोशिश में जुट गया. अंबिका ने आय तो बढ़ा ली, लेकिन जब वह घर आता, तो थकान से चूर होता.

ननकी पति का प्यार चाहती थी. लेकिन अंबिका पत्नी की भावनाओं को नहीं समझता. कुछ साल इसी अशांति एवं अतृप्ति में बीत गए. इस के बाद ननकी अकसर पति को ताने देने लगी कि जब तुम अपनी बीवी को एक भी सुख नहीं दे सकते तो ब्याह ही क्यों किया.

बीवी के ताने सुन कर अंबिका कभी हंस कर टाल देता तो कभी बीवी पर बरस भी पड़ता. इन सब बातों से त्रस्त हो कर ननकी ने आखिर देहरी लांघ दी. उस की नजरें छत्रपाल से लड़ गईं.

छत्रपाल ननकी के घर से 4 घर दूर रहता था. उस के मातापिता का निधन हो चुका था. वह अपने बड़े भाई के साथ रहता था और मेहनतमजदूरी कर अपना पेट पालता था. ननकी के पति अंबिका प्रसाद के साथ वह मजदूरी करता था, इसलिए दोनों में दोस्ती थी.

दोस्ती के कारण छत्रपाल का अंबिका के घर आनाजाना था. वह ननकी को भाभी कहता था. हंसमुख व चंचल स्वभाव की ननकी छत्रपाल से काफी हिलमिल गई थी. देवरभाभी होने से उस का मजाक का रिश्ता था.

ननकी का खुला मजाक और उस की आंखों में झलकता वासना का आमंत्रण छत्रपाल के दिल में उथलपुथल मचाने लगा. वह यह तो समझ चुका था कि भाभी उस से कुछ चाहती है, लेकिन अपनी तरफ से पहल करने की उस की हिम्मत नहीं हो रही थी. दोनों खुल कर एकदूसरे से छेड़छाड़ व हंसीमजाक करने लगे. इसी छेड़छाड़ में एक दोपहर दोनों अपने आप पर काबू न रख सके और मर्यादा की सीमाएं लांघ गए.

उस रोज छत्रपाल पहली बार नशीला सुख पा कर फूला नहीं समा रहा था. ननकी भी कम उम्र का अविवाहित साथी पा कर खुश थी. बस उस रोज से दोनों के बीच यह खेल अकसर खेला जाने लगा. कुछ समय बाद छत्रपाल रात को भी चुपके से ननकी के पास आने लगा. ननकी के लिए अब पति का कोई महत्त्व नहीं रह गया था. उस की रातों का राजकुमार छत्रपाल बन गया था. छत्रपाल जो कमाता था, वह सब ननकी पर खर्च करने लगा था.

साल सवासाल तक ननकी व छत्रपाल के अवैध संबंध बेरोकटोक चलते रहे और किसी को भनक तक नहीं लगी. अपनी मौज में वह भूल गए कि इस तरह के खेल ज्यादा दिनों तक छिपे नहीं रहते. इन के मामले में भी यही हुआ. हुआ यह कि एक रात पड़ोसन रामकली ने चांदनी रात में आंगन में रंगरलियां मना रहे छत्रपाल और ननकी को देख लिया. फिर तो उन दोनों की चर्चा पूरे गांव में होने लगी.

अंबिका प्रसाद पत्नी पर अटूट विश्वास करता था. जब उसे ननकी और छत्रपाल के नाजायज रिश्तों की जानकारी हुई तो वह सन्न रह गया. इस बाबत उस ने ननकी से जवाब तलब किया. ननकी भी जान चुकी थी कि बात फैल गई है, इसलिए झूठ बोलना या कुछ भी छिपाना फिजूल है. लिहाजा उस ने सच बोल दिया. ‘‘जो तुम बाहर से सुन कर आए हो, वह सब सच है. मैं बेवफा नहीं हुई बस छत्रपाल पर मन मचल गया.’’

‘‘ननकी, शायद तुम्हें अंदाजा नहीं कि मैं तुम्हें कितना चाहता हूं.’’ अंबिका प्रसाद बोला,  ‘‘मैं तुम्हारी गली माफ कर दूंगा बस, तुम छत्रपाल से रिश्ता तोड़ लो.’’

‘‘बदनाम न हुई होती तो जरूर रिश्ता तोड़ लेती. अब मैं गुनहगार बन चुकी हूं, इसलिए अब उसे नहीं छोड़ सकती.’’

अंबिका प्रसाद ने पत्नी को सही राह पर लाने की बहुत कोशिश की, मगर कामयाब नहीं हुआ. एक रात तो अंबिका ने ननकी और छत्रपाल को अपने घर में ही आपत्तिजनक हालत में देख लिया. अंबिका ने इस का विरोध किया तो शर्मसार होने के बजाय ननकी और छत्रपाल उसी पर हावी हो गए. ‘‘जो आज देखा है, वह हर रात देखोगे. देख सको तो घर में रहो, न देख सको तो घर छोड़ कर कहीं चले जाओ.’’

ननकी की सीनाजोरी पर अंबिका प्रसाद दंग रह गया. वह घर के बाहर आ गया और माथा पकड़ कर चारपाई पर बैठ गया. इस वाकये के बाद अंबिका को पत्नी से नफरत हो गई. अंबिका आंखों के सामने पत्नी की बदचलनी के ताने भला कब तक बरदाश्त करता. अत: जनवरी 2015 में ऐसे ही एक झगड़े के बाद उस ने घर छोड़ दिया और गुमनाम जिंदगी बिताने लगा.

अंबिका प्रसाद के घर छोड़ने के बाद छत्रपाल उस के घर पर कुंडली मार कर बैठ गया. उस ने उस की जर, जोरू और जमीन पर भी कब्जा कर लिया. ननकी अभी तक उस की प्रेमिका थी किंतु अब उस ने ननकी को पत्नी का दरजा दे दिया. यद्यपि छत्रपाल ने ननकी से न तो कोर्ट मैरिज की थी और न ही प्रेम विवाह किया था.

ननकी की बेटी अब तक 10 साल की उम्र पार कर चुकी थी, जबकि बेटा 5 साल का हो गया था. दोनों बच्चे छत्रपाल की अय्याशी में बाधक बनने लगे थे. अत: वह दोनों को पीटता था. ननकी को बुरा तो लगता था, पर वह मना नहीं कर पाती थी. बच्चों पर बुरा असर न पड़े, इसलिए ननकी ने दोनों बच्चों को अपनी मां के पास भेज दिया.

बच्चे चले गए तो ननकी और छत्रपाल के मिलन की बाधा दूर हो गई. अब वे स्वतंत्र रूप से रहने लगे. ननकी और छत्रपाल को साथसाथ रहते 4 साल बीत चुके थे.

इस बीच न तो ननकी का पति अंबिका प्रसाद वापस घर लौटा और न ही ननकी ने उस की कोई सुध ली. वह कहां है, किस परिस्थिति में है. इस की जानकारी न तो ननकी को थी और न ही किसी सगेसंबंधी को.

ननकी बच्चों से मिलने मायके अमौली जाती थी. फिर वहां कई दिन तक रुकती थी. इस से छत्रपाल को शक होने लगा था कि ननकी का मन उस से भर गया है और अब उस ने मायके में कोई नया यार बना लिया है. इस कारण वह मायके में डेरा जमाए रहती है.

इसे ले कर अब ननकी और छत्रपाल में झगड़ा होने लगा था. मायके का कोई भी व्यक्ति घर आता तो छत्रपाल उसे शक की नजर से देखता और उस के जाने के बाद ननकी के चरित्र पर लांछन लगाते हुए झगड़ा करता.

ननकी की बड़ी बहन बड़की खागा कस्बे में ब्याही थी. उस की बेटी का नाम शारदा था. शारदा अपनी मौसी से ज्यादा हिलीमिली थी सो उस ने ननकी से उस के घर आने की बात कही. ननकी ने शारदा की बात मान ली और उसे जल्द ही बुलाने की बात कही.

25 मई, 2020 की सुबह ननकी ने छत्रपाल को पैसे दे कर शारदा को बुलाने खागा भेज दिया. छत्रपाल खागा के लिए निकला तो ननकी के मायके से उस का पड़ोसी गोपाल आ गया. ननकी ने उसे घर के अंदर कर दरवाजा बंद कर लिया. ननकी का दरवाजा बंद हुआ तो पड़ोसी आपस में कानाफूसी करने लगे.

शाम 5 बजे छत्रपाल शारदा को साथ ले कर वापस आ गया. कुछ देर बाद छत्रपाल घर से निकला तो चुगलखोरों ने चुगली कर दी, ‘‘छत्रपाल तुम घर से निकले तभी कोई सजीला युवक आया. ननकी ने उसे घर के अंदर बुला कर दरवाजा बंद कर लिया था. बंद दरवाजे के पीछे क्या गुल खिला होगा, इसे बताने की जरूरत नहीं.’’

छत्रपाल पहले से ही ननकी पर शक करता था, पड़ोसियों की चुगली ने आग में घी डालने जैसा काम किया. गुस्से में छत्रपाल शराब ठेका गया और शराब पी कर घर लौटा. रात में कमरे में जब उस का सामना ननकी से हुआ तो उस ने ननकी के चरित्र पर अंगुली उठाई और उसे बदचलन, बदजात और वेश्या कहा.

इस पर दोनों में जम कर झगड़ा हुआ. झगड़े के दौरान ननकी के ब्लाउज से 5-5 सौ के 2 नोट नीचे गिर गए जो छत्रपाल ने उठा लिए थे. अब उसे पक्का विश्वास हो गया कि यह नोट अय्याशी के दौरान घर पर आए उस युवक ने दिए होंगे. शक का कीड़ा दिमाग में कुलबुलाया तो छत्रपाल का गुस्सा सातवें आसमान जा पहुंचा. उस ने ननकी को जमीन पर पटक दिया और फिर गमछे से गला कसने लगा. ननकी कुछ देर तड़पी फिर सदा के लिए शांत हो गई. हत्या करने के बाद छत्रपाल कमरे से निकला और फरार हो गया.

छत्रपाल से पूछताछ करने के बाद थानाप्रभारी नंदलाल सिंह ने 30 मई, 2020 को छत्रपाल को फतेहपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट पी.के. राय की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया. कथा संकलन तक उस की जमानत स्वीकृत नहीं हुई थी. मृतका के बच्चे अपने नानानानी के पास रह रहे थे.       (कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित)

सौजन्य: सत्यकथा, जुलाई, 2020

तलाश लापता बेटे की : प्यार ने ली जान

हिंदू धर्म की एक दिक्कत यह है कि परिवार का कोई व्यक्ति लापता हो जाए, तो न तो उसका कर्मकांड किया जा सकता है और न ही उस की कोई रस्म निभाई जा सकती है, जबकि यह जरूरी होता है. क्योंकि किसी को मृत तभी माना जाता है जब उस का अंतिम संस्कार हो जाए.

जिला फिरोजाबाद के गांव गढ़ी तिवारी के रहने वाले मुन्नालाल के सामने यही समस्या थी. उस का बेटा संजय पिछले एक साल से लापता था.

उसे मुन्नालाल ने खुद ढूंढा, रिश्तेदार परिचितों ने ढूंढा, पुलिस ने ढूंढा, लेकिन उस का कहीं कोई पता नहीं चला. मुन्नालाल एक साल से थाने के चक्कर लगालगा कर थक गया था. पुलिस एक ही जवाब देती थी, ‘तुम्हारे बेटे को हम ने हर जगह ढूंढा. जिले भर के थानों को उस का हुलिया भेज कर मालूमात की, तुम ने जिस का नाम लिया उसी से पूछताछ की. अब बताओ क्या करें?’

‘‘आप अपनी जगह ठीक हैं. साहब जी, पर क्या करूं मेरे सीने में बाप का दिल है, जो बस इतना जानना चाहता है कि संजय जिंदा है या मर गया. अगर मर गया तो कम से कम उस के जरूरी संस्कार तो कर दूं. मेरा दिल तड़पता है उस के लिए.’’

मुन्नालाल ने कहा तो पास खड़ा एक उद्दंड सा सिपाही बोला, ‘‘ताऊ, तेरा बेटा पिछले साल 11 अप्रैल को गायब हुआ था. जिंदा होता तो लौट आता, तेरा इंतजार करना बेकार है.’’

‘‘साब जी, कह देना आसान है. कलेजे का टुकड़ा होता है, बेटा. मेरी तो मरते दम तक आंखें खुली रहेंगी उसे देखने के लिए.’’ मुन्नालाल ने कहा तो थानेदार ने सिपाही की ओर देख कर आंखे तरेरी. वह वहां से हट गया.

उस वक्त मुन्नालाल फिरोजाबाद के थाना बसई मोहम्मदपुर में बैठा था. वह कई महीने बाद यह सोच कर आया था कि संभव है, पुलिस ने उस का कोई पता लगाया हो. लेकिन उसे निराशा  ही मिली.

मुन्नालाल इसी थाना क्षेत्र के गांव गढ़ी तिवारी का रहने वाला था. उस का बेटा संजय 11 अप्रैल, 2018 की रात 8 बजे घर से फोन ले कर निकला था. जब वह घंटों तक वापस नहीं लौटा तो उस का फोन मिलाया गया, लेकिन फोन स्विच्ड औफ था. घर वालों ने गांव के कुछ लोगों को साथ ले कर रात में ही संजय को ढूंढा. ढूंढने में रात गुजर गई पर संजय नहीं मिला.

लोगों की राय पर मुन्नालाल ने अगले दिन यानि 12 अप्रैल, 2018 को थाना बसई मोहम्मदपुर में अपने 22 वर्षीय बेटे संजय की संभावित हत्या की रिपोर्ट लिखा दी.

मुन्नालाल ने बेटे की हत्या का आरोप पड़ोसी गांव अंतै की मढ़ैया के रहने वाले हाकिम सिंह, उस के बेटे राहुल और बेटी सरिता पर लगाया. साथ ही थाना लाइन पार के गांव दत्तौंजी में रहने वाले जगदीश और अमृता उर्फ मुरारी पर भी संजय की हत्या में शामिल होने का आरोप लगाया. मुन्नालाल ने इन में सरिता को संजय की प्रेमिका॒ बताया था.

मुन्नालाल ने अपनी तहरीर में कहा था कि संजय और सरिता का प्रेमप्रसंग चल रहा था, जो उस के घर वालों को बुरा लगता था. जब सरिता ने उन की बात नहीं मानी तो उन लोगों ने सरिता से फोन करवा कर संजय को बुलाया और उस की हत्या कर लाश कहीं छिपा दी.

मुन्नालाल की इस तहरीर पर सरिता और उस के 4 घर वालों के खिलाफ भादंवि की धारा 302/201 के तहत हत्या का केस दर्ज कर लिया गया.

केस दर्ज होने पर पुलिस ने छानबीन शुरू की. नामजद लोगों से अलगअलग पूछताछ की गई. काल डिटेल्स से पता चला कि घटना वाली रात करीब साढ़े 7 बजे सरिता ने संजय को फोन किया था. पुलिस ने सरिता से पूछताछ की तो उस ने बिना किसी झिझक के बता दिया कि उस ने संजय को फोन किया था. वह उस से मिलने आया भी. लेकिन मिलने के बाद वह अपने घर लौट गया था. उस ने यह भी कहा कि इस बात का उस के घर वालों को पता नहीं था.

संजय की काल डिटेल्स से भी यही पता चला था कि फोन बंद होने से पहले उस के फोन पर आखिरी काल सरिता की आई थी. सरिता ने यह बात खुद ही मान ली थी.

पुलिस ने अपने थाना क्षेत्र में तो खोजबीन की ही साथ ही जिले भर के थानों को संजय का फोटो और हुलिया भेज कर पड़ताल की, लेकिन संजय का कहीं कोई पता नहीं चला. जब दिन बीतते गए तो पुलिस भी हाथ समेट कर बैठ गई. मुन्नालाल बेटे का पता लगाने के लिए थाने के चक्कर लगाता रहा.

हर बार पुलिस उसे टरका कर घर भेज देती थी.

पुलिस की सोच थी कि सरिता से शादी न होने की वजह से संजय या तो घर छोड़ कर चला गया होगा या उस ने कहीं जा कर आत्महत्या कर ली होगी. सर्विलांस टीम भी इस मामले में कुछ नहीं कर सकीं. पुलिस अपनी इस सोच को कागजों पर तो उतार नहीं सकती थी. मामला संभावित हत्या का था और थाने में केस दर्ज था, इसलिए पुलिस का जोर मुन्नालाल पर ही चलता था. कुछ पुलिस वालों को तो वह बेचैन आत्मा और अछूत सा लगता था.

मुन्नालाल मन ही मन मान चुका था कि उस का बेटा संजय दुनिया में नहीं है, लेकिन उस की परेशानी यह थी कि वह उसे मरा भी नहीं मान सकता था. वह इस उम्मीद में थाने के चक्कर लगाता रहता था कि क्या पता जिंदा या मरे बेटे की कोई खबर मिल जाए.

लेकिन दिन पर दिन गुजरते गए संजय का कोई पता नहीं चला. ऐसे में मुन्नालाल और उस की पत्नी रोने के अलावा क्या कर सकते थे. पुलिस से उम्मीद थी, लेकिन वह भी हाथ समेट कर बैठ गई थी. अलमारी में पड़ी संजय मर्डर केस की फाइल धूल चाटने लगी. देखतेदेखते 2 साल होने को आए.

मुन्नालाल बेटे के लिए परेशान होतेहोते बुरी तरह टूट गया था. वह घर में रहता तब भी और बाहर रहता तब भी उसे बस बेटे की याद सताती रहती. उसे यह सोच कर सब से ज्यादा बुरा लगता कि वह बाप हो कर लापता बेटे के बारे पता नहीं लगा पाया.

इस बीच थाने और जिला स्तर पर कई अफसर और वरिष्ठ अधिकारी बदल गए थे. जो भी नया आता मुन्नालाल उसी को अपना दुखड़ा सुनाने पहुंच जाता. अब उसे इस बात की चिंता नहीं होती थी कि सामने वाला उस की सुन भी रहा है या नहीं.

इसी बीच किसी ने उसे राय दी कि वह फिरोजाबाद के एसएसपी सचिंद्र पटेल से मिले. मुन्नालाल ने एसएसपी साहब से मिल कर अपना रोना रोया. सचिंद्र पटेल को आश्चर्य हुआ कि एक पिता पौने 2 साल से पुलिस के पांव पखारता घूम रहा है और पुलिस ने उस के लिए कुछ नहीं किया. जबकि केस सीधासादा था.

सचिंद्र पटेल ने इस केस को सुलझाने की जिम्मेदारी एसपी (ग्रामीण) राजेश कुमार को सौंपी. साथ ही उन्होंने क्षेत्राधिकारी (सदर) हीरालाल कनौजिया और थाना बसई मोहम्मदपुर के प्रभारी निरीक्षक सर्वेश सिंह की मदद के लिए एक पुलिस टीम का गठन किया. इस टीम के सहयोग के लिए सर्विलांस टीम को भी सहयोग करने का आदेश दिया गया.

इस पुलिस टीम ने नए सिरे से जांच शुरू की. इस के लिए टीम ने सब से पहले संजय के पिता मुन्नालाल और अन्य घर वालों से जरूरी जानकारियां जुटाईर्ं. फिर कुछ खास साक्ष्यों की कडि़यां जोड़नी शुरू कीं.

कुछ कडि़यां जुड़ती सी लगीं तो पुलिस टीम ने नामजद आरोपियों के मोबाइल फोनों की काल डिटेल्स चैक की. इस से पता चला कि घटना वाली रात 3 नामजद आरोपियों के फोनों की लोकेशन एक जगह पर थी.

यह इत्तेफाक नहीं हो सकता था. पुलिस ने उन तीनों को हिरासत में ले कर सख्ती से पूछताछ की. उन तीनों ने यह स्वीकार कर लिया कि उन्होंने षड़यंत्र रच कर 11 अप्रैल, 2018 की रात संजय का मर्डर किया था. अंतत: उन तीनों की स्वीकारोक्ति के बाद शेष 2 आरोपियों को भी गिरफ्तार कर लिया गया. इन लोगों ने संजय के कत्ल की जो कहानी बताई वह कुछ इस तरह थी.—

संजय पड़ोसी गांव गढ़ी तिवारी का रहने वाला था. वह अंतै की मढ़ैया में अपने परिचित से मिलने आता था. संजय के उस परिचित का घर सरिता के घर के पास में था. सरिता वहां आतीजाती थी. वहीं पर संजय और सरिता का परिचय हुआ.

धीरेधीरे दोनों एकदूसरे की ओर आकर्षित हुए. बातें भी होने लगीं, फिर जल्दी ही दोनों प्रेमलहर में बह गए. लहरें जब तटबंध तोड़ने लगीं तो दोनों अपनेअपने गांव के सीमाने पर खेतों में मिलने लगे. दोनों ने तय किया कि उन की शादी में अगर घर वालों ने व्यवधान डाला तो घर छोड़ कर भाग जाएंगे और कहीं दूर जा कर शादी कर लेंगे.

गांवों में प्रेम प्यार या अवैध संबंधों की बातें छिपती नहीं हैं. जब किसी की आंखों देखी बात होंठों से उतरती है तो इन शब्दों के साथ कि किसी को बताना नहीं, लेकिन वही ना बताने वाली बात दिन भर में गांव के हर कान तक पहुंच जाती है.

सरिता और संजय के मामले में भी यही हुआ. इस के बाद सरिता को भला बुरा भी कहा गया और संजय से न मिलने की धमकी भी दी गई. लेकिन प्रेम का रंग हलका हो या गाढ़ा अपना रंग आसानी से नहीं छोड़ता.

चेतावनी के बाद भी संजय और सरिता मिलते रहे, भविष्य की भूमिका बनाते रहे. हां, दोनों ने अब सावधानी बरतनी शुरू कर दी थी.

इस के बावजूद बात फैल ही गई. इस से सरिता के परिवार की बदनामी हो रही थी. वे अगर संजय को कुछ कहते तो बदनामी उन्हीं की होती, इसलिए उन्होंने सरिता को डांटा, समझाया और पीटा भी. यह बात संजय के घर वालों को भी पता लग गई थी.

जब न सरिता मानी और न संजय तो सरिता के पिता हाकिम सिंह व भाई राहुल ने दत्तौंजी गांव के अमृता उर्फ मुरारी और जगदीश के साथ मिल कर संजय को रास्ते से हटाने की योजना बनाई. इस के लिए तारीख तय की गई 11 अप्रैल, 2018 की रात.

इन लोगों ने उस दिन अंधेरा घिरने के बाद सरिता पर दबाव डाल कर संजय को फोन कराया. सरिता ने फोन पर संजय से कहा, ‘‘संजय, मैं बड़ी मुश्किल में हूं. घर वाले मुझे जान से मारने की धमकी दे रहे थे. मैं चोरीछिपे वहां से भाग कर गांव दत्तौंजी के बीहड़ में आ गई हूं.

‘‘जैसे भी हो तुम यहां आ जाओ, हम दोनें कहीं भाग चलेंगे और शादी कर लेंगे और हां, फोन साथ लाना, क्योंकि फोन होंगे तो एकदूसरे को ज्यादा ढूंढना नहीं पड़ेगा.’’

सरिता को मुसीबत में देख संजय बिना आगापीछा सोचे घर से भाग लिया. घर में किसी को कुछ बताया तक नहीं. उस के पास केवल फोन था. फोन संजय के पास भी था और सरिता के पास भी. दोनों दत्तौंजी गांव के बीहड़ में मिल गए. सरिता को देखते ही संजय ने गले से लगा किया. बोला, ‘‘मैं आ गया हूं, चिंता करने की जरूरत नहीं है.’’

लेकिन सरिता कुछ नहीं बोली, उसे चुप देख संजय ने पूछा, ‘‘तुम चुप क्यों हो? मैं आ तो गया हूं, यहां से हम कहीं दूर चले जाएंगे.’’

‘‘ये क्या बोलेगी, बोलेंगे तो हम.’’ कहते हुए अगलबगल से 4 लोग निकल आए. संजय कुछ समझता इस से पहले ही उन्होंने मिल कर उसे दबोच लिया. उसे नीचे गिरा कर सरिता के सामने ही गोली मार दी. वह जिंदा न बच जाए, सोच कर उन्होंने साथ लाई कुल्हाड़ी से उस पर कई वार किए. इस के बाद यमुना किनारे के एक टीले पर गहरा गड्ढा खोदा और संजय की लाश और हत्या में इस्तेमाल असलहे वहीं दबा दिए.

संजय की हत्या का खुलासा होने पर पुलिस 4 आरोपियों को घटनास्थल पर ले गई. वहां जेसीबी मशीन से खुदाई कराने पर संजय का कंकाल, कुल्हाड़ी और तमंचा मिला. मृतक संजय के कपड़ों से उसे पहचाना गया. पुलिस ने कंकाल को फौरेसिंक जांच के लिए भेज दिया. डीएनए जांच के लिए मुन्नालाल का ब्लड लिया गया.

इस बीच सरिता की शादी हो चुकी थी और वह एक बेटी की मां बन गई थी. कोर्र्ट में पेश कर के जब चारों आरोपियों को जेल भेजा गया तो पांचवें आरोपी के रूप में सरिता को भी अपनी बेटी के साथ जेल जाना पड़ा.

मुन्नालाल जानता था कि उस का बेटा मार डाला गया है, लेकिन उस का मन नहीं मानता था. अब उस ने सब्र कर लिया है.

सौजन्य: सत्यकथा, जुलाई, 2020

इंसानी ज्वालामुखी : आक्रोश में आकर की पत्नी की हत्या

6 फरवरी, 2020 की बात है. दिन के करीब 11 बजे थे. महाराष्ट्र की उप राजधानी नागपुर शहर के सक्करदारा पुलिस थाने के सीनियर इंसपेक्टर अजीत सीद को एक अहम सूचना मिली. सूचना देने वाले ने फोन पर उन्हें बताया कि सुपर बाजार के दत्तात्रेय नगर स्थित देशमुख अपार्टमेंट की पहली मंजिल के फ्लैट नंबर 40 में कोई हादसा हो गया है. फ्लैट के अंदर से दुर्गंध आ रही है.

सीनियर इंसपेक्टर अजीत सीद ने इस सूचना को गंभीरता से लिया और अपने सहायक सबइंसपेक्टर प्रवीण बड़े, विनोद म्हात्रे और विजय मसराम को साथ ले कर तुरंत घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. घटनास्थल सक्करदारा थाने से करीब एक किलोमीटर दूर था. पुलिस टीम को वहां पहुंचने में 10 मिनट का समय लगा. इस बीच यह खबर उस इलाके में आग की तरह फैल गई थी, भीड़ देख कर पुलिस टीम को समझते देर नहीं लगी कि उसे किस अपार्टमेंट में जाना है.

पुलिस टीम भीड़ को हटा कर फ्लैट नंबर 40 के सामने जा पहुंची. फ्लैट के दरवाजे पर ताला लटक रहा था. पड़ोसियों ने बताया कि फ्लैट भारतीय ज्ञानपीठ प्राइमरी स्कूल की हेडमिस्ट्रेस मंजूषा नाटेकर का है, जिस में वह अपने छोटे मामा अशोक काटे के साथ रहती थीं.

मंजूषा और जयवंत नाटेकर का एक बेटा है सुजय नाटेकर, जो अपनी पत्नी के साथ चंद्रपुर में रहता है. मंजूषा नाटेकर का एक भाई राजेश खड़खड़े पास ही के मानवेड़ा परिसर के एक अपार्टमेंट में किराए पर रहता है और नौकरी करता है.

फ्लैट की एक चाबी उस के पास रहती है. सूचना दे दी गई है, वह आता ही होगा. दुर्गंध चूंकि काफी तेजी थी, इसलिए पुलिस टीम ने नाक पर रूमाल बांध कर दरवाजा खोला तो अंदर का दृश्य दिल दहला देने वाला था.

फ्लैट के अंदर एक नहीं 2 शव पड़े थे. एक शव मंजूषा के मामा अशोक काटे का था, जो हौल में था, जबकि दूसरा शव फ्लैट की किचन में रक्त में डूबा मंजूषा नाटेकर का था. उस का बड़ी बेरहमी से कत्ल किया गया था. कत्ल संभवत: 2 दिन पहले हुए थे. शवों में सड़न पैदा हो गई थी और दुर्गंध फैल रही थी.

सीद ने घटना की सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. साथ ही फोरैंसिक टीम को भी मौकाएवारदात पर बुला लिया. सूचना मिलते ही पुलिस कमिश्नर डा. भूषण कुमार उपाध्याय, एडिशनल सीपी शशिकांत महावरकर, डीसीपी चिन्मय पंडित और डीसीपी (क्राइम) गजानन राजमने भी वहां आ गए.

फौरेंसिक टीम का काम खत्म होने के बाद वरिष्ठ अधिकारियों ने घटनास्थल की बारीकी से जांचपड़ताल की. पड़ोसियों के बयान दर्ज किए. घटनास्थल की सारी कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर के शवों को पोस्टमार्टम के लिए नागपुर मैडिकल कालेज भेज दिया गया. मंजूषा नाटेकर के भाई राजेश खड़खडे़ को ले कर पुलिस थाने लौट आई.

पूछताछ में राजेश खडखड़े ने दोनों हत्याओं का आरोप सीधेसीधे अपने बहनोई जयवंत नाटेकर पर लगाया. उस का कहना था कि उस के बहनोई और बहन में अकसर लड़ाईझगड़े होते थे. मंजूषा नाटेकर के पड़ोसियों ने भी पूछताछ के दौरान यही बात पुलिस को बताई थी.

पड़ोसियों के अनुसार उस दिन पहले फ्लैट से तेजतेज आवाजें आती सुनाई दीं. हालांकि टीवी की तेज आवाज में बातें स्पष्ट नहीं सुनी जा सकीं. कुछ देर बाद जब टीवी की आवाज बंद हुई तो उन्होंने जयवंत नाटेकर को फ्लैट में ताला लगा कर बाहर जाते हुए देखा. शुरूआती जांचपड़ताल के बाद मंजूषा नाटेकर के पति जयवंत नाटेकर की गिरफ्तारी के बाद ही सामने आ सकती थीं.

जयवंत नाटेकर कहां होगा, इस की जानकारी किसी को नहीं थी. एक तरफ जहां इंसपेक्टर अजीत सीद अपने सहायकों के साथ मामले पर विचारविमर्श कर तफ्तीश की रूपरेखा तैयार कर रहे थे. वहीं दूसरी तरफ मामले की गंभीरता को देखते हुए सीपी डा. भूषण कुमार उपाध्याय ने तफ्तीश की जिम्मेदारी क्राइम ब्रांच के सबइंसपेक्टर राठौर, हेडकांस्टेबल आनंद जांमुले, गोविंद देशमुख्र कांस्टेबल राशिद, रोहन और संजय सोनपणे की टीम बना कर जांच शुरू कर दी.

क्राइम ब्रांच की टीम ने तफ्तीश का केंद्रबिंदु उन लोगों को बनाया, जिन से जयवंत के करीबी संबंध थे. इस का नतीजा भी जल्द सामने आ गया. उस के एक दोस्त ने बताया कि जयवंत नाटेकर के पास एक मोबाइल और 2 सिम थे. इन में से एक सिम का इस्तेमाल वह अपनी पत्नी मंजूषा से छिपा कर करता था.

वह अपने बेटे और बहू के साथ अपना दुखदर्द साझा करता था. जबकि दूसरे सिम से अपना दिल बहलाने के लिए खास दोस्तों से बात कर लिया करता था. क्राइम ब्रांच को दूसरे सिम कार्ड से कामयाबी मिली, क्योंकि पहला सिम कार्ड बंद था.

दूसरे सिम से जब जयवंत नाटेकर से संपर्क हुआ तो क्राइम ब्रांच की टीम ने अपना परिचय छिपा कर उस से इधरउधर की बात की. इस से उस की लोकेशन मिल गई. मोबाइल लोकेशन के आधार पर क्राइम ब्रांच ने जयवंत नाटेकर को रात 8 बजे उस समय दबोच लिया, जब वह नागपुर रेलवे स्टेशन पर ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर जाने के लिए अजमेर शरीफ की टिकट ले रहा था.

क्राइम ब्रांच की टीम ने जयवंत नाटेकर को गिरफ्तार कर अपने वरिष्ठ अधिकारियों के सामने खड़ा कर दिया. उस से विस्तार से पूछताछ की गई तो पता चला वह एक ऐसा पीडि़त पति था, जिस के अंदर का मर्द अचानक जाग गया था और वह उसी मर्दानगी में 2 कत्ल कर बैठा. जयवंत ने बिना किसी दबाव के अपना अपराध स्वीकार कर के पुलिस को अपने उत्पीड़न की पूरी कहानी बता दी, जो कुछ इस तरह थी—

चंद्रपुर निवासी 50 वर्षीय जयवंत नाटेकर सरल स्वभाव का व्यक्ति था. गांव के स्कूल से 10वीं जमात पास करने के बाद उसे चंद्रपुर की रेफ्रीजरेटर बनाने वाली एक कंपनी में वाहन चालक की नौकरी मिल गई. अच्छी नौकरी और वेतन होने के बाद परिवार वालों ने 1980 में उस की शादी नागपुर के भंडारा जवाहर नगर की मंजूषा खड़खड़े से कर दी.

45 वर्षीय मंजूषा खड़खड़े संपन्न परिवार की एकलौती बेटी थी. उस के 2 भाई थे संजय खड़खड़े और राजेश खड़खड़े. मंजूषा सब से छोटी थी. उस का बड़ा भाई संजय खड़खड़े अपने गांव में रह कर काश्तकारी करता था.

जबकि छोटा भाई राजेश खड़खड़े नागपुर की एक प्राइवेट कंपनी में सर्विस कर रहा था और दत्तात्रेय नगर, मानवेड़ा के एक अपार्टमेंट में किराए का फ्लैट ले कर रहता था. मंजूषा खड़खड़े जितनी स्वस्थ और सुंदर थी, उतनी ही स्मार्ट और महत्त्वाकांक्षी भी थी.

जयवंत नाटेकर से शादी होने के बाद उसे अपने सारे सपने बिखरते नजर आए. यह बात जब जयवंत नाटेकर को पता चली तो उस ने मंजूषा के सपनों को मरने नहीं दिया. उस ने मंजूषा की इच्छाओं को पूरा किया और उसे वह मुकाम दिलवाया जो वह चाहती थी. लेकिन उस के मन में पति के इस सहयोग की कोई कीमत नहीं थी.

वह वैसे भी अपनी पसंद और कल्पना के अनुसार पति न पा कर दुखी थी. प्रतिष्ठित स्कूल की नौकरी पाने के बाद वह गांव छोड़ कर नागपुर के दत्तात्रेय नगर जैसे पौश इलाके में आ कर रहने लगी.

मंजूषा नाटेकर और जयवंत का एक बेटा था सुजय. सरल स्वभाव का जयवंत मंजूषा की ज्यादतियों पर भी कुछ नहीं कहता था. नतीजा यह हुआ कि मंजूषा का हौसला बढ़ता गया और वह अपनी नारी मर्यादा को ही भूल गई.

इस का एहसास नाटेकर को तब हुआ जब एक हादसे के चलते दिसंबर, 2000 में उस की नौकरी चली गई. पेंशन के रूप में उसे सिर्फ 2000 रुपए मिलते थे, जिस की मंजूषा की नजर में कोई अहमियत नहीं थी. मंजूषा स्कूल की हेडमास्टर थी. मानसम्मान, अच्छा वेतन और समाज में उस की काफी इज्जत थी.

लेकिन घर में वह अपने पति नाटेकर के साथ नौकरों जैसा व्यवहार करती थी. घर के सारे काम झाड़ू, बर्तन, कपड़े धोने वगैरह के काम तो जयवंत को करने ही पड़ते थे, कभीकभी वह पति से अपनी मालिश तक करवाती थी. जयवंत के न करने पर वह उसे थप्पड़ तक जड़ देती थी.

इस के बावजूद भी मंजूषा का मन नहीं भरता तो वह अपने मायके वालों को बुला कर उन के सामने पति को अपमानित करती थी. मायके वाले उसी का पक्ष लेते और जयवंत को डांटतेफटकारते थे.

पिता के प्रति अपनी मां और उस के मायके वालों का बर्ताव देख बेटा सुजय नाटेकर दुखी हो जाता था. वह पिता के साथ हमदर्दी रखते हुए मां को समझाने की कोशिश करता, लेकिन मां पर इस का कोई असर नहीं होता था. इस की जगह मंजूषा कभीकभी उसे भी आडे़ हाथों लेती थी.

सुजय नाटेकर जवान हो गया था. पिता के प्रति मां का व्यवहार उस से देखा नहीं जाता था. वह जिस कालेज में पढ़ता था, उसी कालेज की एक लड़की से लवमैरिज कर के अपने पुश्तैनी घर चंद्रपुर चला गया.

जब कभी पिता की याद आती तो वह आ कर मिल लेता था. जब इस पर भी मां मंजूषा ने ऐतराज किया तो उस ने मां से छिपा कर पिता जयवंत को एक मोबाइल और 2 सिम ला कर दे दिए थे. जिस से चोरीछिपे पितापुत्र की बातें हो जाया करती थीं.

समय अपनी गति से दौड़ रहा था. 2019 में जब मंजूषा की मां का देहांत हुआ तो वह अपने मायके गई और लौटते समय अपने मामा अशोक काटे को साथ ले आई. पहले तो जयवंत पत्नी मंजूषा से ही परेशान था, अब उसे मंजूषा के मामा अशोक काटे से भी कोई राहत नहीं मिली. वह भी बहन के सुर से सुर मिलाने लगा. मामाभांजी के रोज के बर्ताव से जयवंत की सहनशक्ति जवाब दे गई. उस के अंदर इतना गुबार भर गया था, जो कभी भी ज्वालामुखी की तरह फट सकता था.

घटना के 2 दिन पहले 3 फरवरी, 2020 को सुबहसुबह स्कूल जाते समय मंजूषा ने अपनी 4 साडि़यां अलमारी से निकाल कर जयवंत के सामने डाल दीं और धो कर प्रेस करने को कहा. जयवंत पहले से ही त्रस्त था, उस ने इस काम के लिए इनकार कर दिया.

इस पर मंजूषा ने पति के गाल पर इतने जोर से थप्पड़ मारा कि उस का पूरा शरीर झन्ना कर रह गया. थप्पड़ जड़ कर मंजूषा बड़बड़ाती हुई किचन में चली गई. जयवंत कुछ देर गाल पर हाथ रखे खड़ा रहा. जयवंत को बरदाश्त नहीं हुआ. अचानक उस का पुरुषत्व जाग उठा.

टीवी की आवाज तेज कर के वह मंजूषा के पीछेपीछे किचन में गया और बदले में उस ने मंजूषा के गाल पर वैसा ही थप्पड़ जड़ दिया, जिस से मंजूषा तिलमिला कर रह गई. वह जयवंत का कालर पकड़ कर उस से उलझ गई.

इसी बीच जयवंत नाटेकर ने किचन में रखा सब्जी काटने वाला चाकू उठाया और मंजूषा पर कई वार कर दिए. मंजूषा की चीख सुन कर अशोक काटे उसे बचाने के लिए जब बैडरूम से बाहर आया तो जयवंत ने उस का भी वही हाल कर दिया जो मंजूषा का किया. दोनों बचाव के लिए चीखेचिल्लाए लेकिन उन दोनों की चीखें टीवी की तेज आवाज में दब कर रह गई थी.

मंजूषा और अशोक काटे को मौत की नींद सुलाने के बाद जयवंत ने राहत की सांस ली. कपड़े बदले और फ्लैट में ताला लगा कर 2 दिनों तक अपने एक पुराने दोस्त के पास रहा. उस के बाद उस ने अपने पाप का प्रायश्चित करने के लिए अजमेर जाने का फैसला किया. लेकिन जाने से पहले वह पकड़ा गया.

क्राइम ब्रांच की टीम ने अपनी तफ्तीश पूरी कर अभियुक्त जयवंत नाटेकर को थाना सक्करदारा को सौंप दिया. जहां की पुलिस ने उसे अदालत पर पेश कर के जेल भेज दिया. औरत अगर अपने ही घर में कांटे बिखेर दे तो उस के पांव कब तक सुरक्षित रह सकते हैं.

सौजन्य: सत्यकथा, अगस्त, 2020

विषाक्त चंदन, जहरीली रूबी

अशोक कुमार      

23मार्च, 2020 को शाम 6 बजे  दरिगापुर आमौर गांव का 30 वर्षीय धर्मेंद्र यादव उर्फ माना सामान लेने आमौर तिराहे पर गया था. धर्मेंद्र देर रात तक घर नहीं लौटा तो घर वाले परेशान हो गए.

धर्मेंद्र मोबाइल भी घर छोड़ गया था. उस के न लौटने और मोबाइल घर छोड़ जाने से घर वालों की चिंता और भी बढ़ गई. कुछ लोगों को साथ ले कर घर वालों ने रात में ही धर्मेंद्र की तलाश शुरू कर दी. वे लोग रात 2 बजे तक उसे इधरउधर खोजते रहे, लेकिन उस का कोई पता नहीं चला. अगले दिन धर्मेंद्र के तहेरे भाई अवधेश कुमार ने सिरसागंज थाने में उस की गुमशुदी दर्ज करा दी.

लापता होने के तीसरे दिन यानी 25 मार्च की दोपहर 12 बजे नगला जीवन के पास आमौर नहर में धर्मेंद्र का शव देखा गया. पूरे इलाके में यह खबर जंगल में आग की तरह फैली तो नहर किनारे लोगों का हुजूम जुट गया.

दरिगापुर आमौर  के लोग भी नहर पर पहुंच गए. घर वाले धर्मेंद्र का फूला हुआ शव नहर के पानी से निकाल कर घर ले आए.

लाश देखते ही परिवार में कोहराम मच गया. इसी बीच किसी ने इस की सूचना सिरसागंज थाने में दे दी. खबर पाते ही थानाप्रभारी सुनील कुमार तोमर पुलिस टीम के साथ गांव पहुंच गए.

धर्मेंद्र के घर पर ग्रामीणों के साथ महिलाएं भी जुटी हुई थीं. उधर सूचना पर पहुंची पुलिस ने कोरोना वायरस के संक्रमण को ध्यान में रखते हुए गांव वालों को वहां से हटाने का प्रयास किया. शव के पास जुटी भीड़ हटाने पर गांव के लोग आक्रोशित हो गए, उन्होंने पुलिस टीम पर पथराव शुरू कर दिया.

पथराव में थानाप्रभारी की गाड़ी के आगे व पीछे के शीशे टूट गए. किसी तरह पुलिस ने ग्रामीणों को समझा कर शांत किया. थानाप्रभारी सुनील कुमार तोमर ने यह सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दे दी. सूचना पर सीओ डा. ईरज राजा व एसपी (ग्रामीण) राजेश कुमार वहां पहुंच गए.

मृतक के घरवालों ने पुलिस को बताया कि धर्मेंद्र की पत्नी रूबी का एक साल से चंदन नाम के युवक से अफेयर चल रहा था. इस बात को ले कर पतिपत्नी के बीच विवाद होता रहता था. बात बढ़ी तो मामला मारपीट तक पहुंच गया.

इस पर रूबी 3 साल के बेटे को ले कर अपने मायके चली गई. ससुराल वालों ने धर्मेंद्र पर दहेज का मुकदमा कर रखा है. बाद में समझौता होने के बाद रूबी ससुराल वापस आ गई थी. रूबी ने ही अपने प्रेमी व मायके के लोगों के साथ मिल कर धर्मेंद्र की हत्या कराई है.

मृतक धर्मेंद्र के तहेरे भाई अवधेश कुमार ने मुकदमा दर्ज कराने के लिए पुलिस को एक तहरीर दी, जिस में 6 लोगों चंदन निवासी कुतुकपुर, नसीरपुर, बहनोई धर्मवीर निवासी भांडरी, मृतक की पत्नी रूबी, दो सालों ओमवीर, दयानवीर उर्फ छोटा और ससुर सत्यवीर उर्फ सत्यदेव निवासी ग्राम ककरारा के नाम थे. लेकिन पुलिस ने पोस्टमार्टम के बाद स्थिति साफ होने पर केस दर्ज करने को कहा. मौके की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने धर्मेंद्र की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल फिरोजाबाद भेज दी.

पति की मौत पर रूबी का रोरो कर बुरा हाल था. ससुराल वालों द्वारा पति की हत्या में उस का हाथ होने की बात से वह बुरी तरह आहत थी.

रूबी ने बताया कि धर्मेंद्र के किसी आदमी पर रुपए उधार थे. 23 मार्च को शाम 6 बजे वह आमौर चौराहे पर उस से पैसे लेने गए थे. घर के लिए कुछ सामान भी लाना था.

घटना के 2 दिन बाद पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई. रिपोर्ट में धर्मेंद्र की मृत्यु का  कारण उस के शरीर पर आई चोटों और पानी में डूबना बताया गया. पोस्ट मार्टमरिपोर्ट आने के बाद 27 मार्च को पुलिस ने अवधेश की ओर से रूबी सहित 6 लोगों के विरूद्ध हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर ली.

रिपोर्ट में आरोप लगाया गया था कि मृतक की पत्नी रूबी चरित्रहीन थी, उस के अपने बहनोई धर्मवीर व प्रेमी चंदन से विवाहेतर संबंध थे. धर्मेंद्र इस का विरोध करता था. इसी बात को ले कर धर्मेंद्र और रूबी के बीच अकसर झगड़ा होता था.

पुलिस ने मृतक की पत्नी रूबी के बयानों की सच्चाई जानने के लिए उस के मोबाइल को भी खंगाला. उस के फोन नंबर की काल डिटेल्स में एक ऐसा नंबर शक के दायरे में आया, जिस पर सब से ज्यादा बातें होती थीं. पुलिस ने जब उस नंबर को ट्रैस किया तो वह चंदन का निकला. रूबी के नंबर पर जो अंतिम काल आई थी, वह चंदन की थी.

रूबी को संदेह के दायरे में लाने के लिए इतना ही काफी था. पुलिस ने उसे हिरासत में ले कर पूछताछ की. रूबी बारबार अपने बयान बदलती रही. इस से वह पूरी तरह शक के घेरे में आ गई. महिला सिपाही ने जब उस से सख्ती से पूछताछ की तो रूबी टूट गई.

उस ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. रूबी ने पुलिस को बताया कि चंदन ने उसे फोन किया था कि धर्मेंद्र को 23 मार्च को शाम 6 बजे आमौर चौराहे पर भेज देना. उस ने चंदन के कहे अनुसार पति को आमौर चौराहे पर भेज दिया था. धर्मेंद्र की हत्या चंदन ने कैसे की, यह वही बता सकता है. इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि घटना को योजनाबद्ध तरीके से अंजाम दिया गया था.

रूबी से की गई पूछताछ में पुलिस को कोई खास जानकारी नहीं मिली. सिवाय इस के कि चंदन और रूबी ने धर्मेंद्र की हत्या षडयंत्र रच कर की थी. पुलिस ने मुख्य आरोपी चंदन की जोरशोर से तलाश शुरू कर दी. पुलिस ने नामजद आरोपियों की तलाश में उन के ठिकानों पर दबिश डाली. लेकिन वे पुलिस के हत्थे नहीं चढ़े.

इस पर पुलिस ने हत्यारों की सुरागरसी के लिए मुखबिरों का जाल फैला दिया. 14 मई की दोपहर सिरसागंज के थानाप्रभारी सुनील कुमार तोमर को एक मुखबिर ने सूचना दी कि घटना का मुख्य आरोपी चंदन गांव धातरी के पेट्रोल पंप पर है.

इस सूचना पर थानाप्रभारी सुनील कुमार तोमर ने पुलिस टीम के साथ उस जगह की घेराबंदी कर के चंदन को गिरफ्तार कर लिया.

आरोपी चंदन को गिरफ्तार करने वाली टीम में थानाप्रभारी के साथ उपनिरीक्षक अंकित मलिक, कांस्टेबिल विजय कुमार, छविराम व कर्मवीर सिंह शामिल थे.

पुलिस ने रूबी,  उस के प्रेमी चंदन को धर्मेंद्र की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर के दोनों से पूछताछ की.  पता चला रूबी पति के सीधेपन को कम अक्ल का बता कर प्रेमी चंदन से शादी रचाने का सपना देख रही थी, वहीं चंदन की नजर रूबी को पाने के साथ ही धर्मेंद्र की जमीन व मकान पर भी थी.

धर्मेंद्र की मौत के बाद वह रूबी से शादी कर जमीन जायदाद  पर कब्जा करना चाहता था. साली के प्रेम में दीवाना जीजा धर्मवीर भी राह का रोड़ा बने धर्मेंद्र को रास्ते हटाने को तैयार था.

जीजा और प्रेमी को एक राह पर लाने का काम किया रूबी ने. धर्मवीर, चंदन और रुबी ने मिल कर धर्मेंद्र की हत्या का षडयंत्र रचा. हत्यारोपियों ने इस जघन्य अपराध की जो कहानी बताई, वह इस तरह थी—

धर्मेंद्र के पिता सत्यभान यादव रिटायर्ड रेलवे कर्मचारी थे. धर्मेंद्र उन का इकलौता बेटा था. गांव में सत्यभान के पास 16 बीघा खेती के अलावा पक्का मकान था. 9 साल पहले उन के बेटे धर्मेंद्र की शादी सत्यवीर उर्फ सत्यदेव की बेटी रूबी के साथ हुई थी. दोनों का 3 साल का बेटा है.

शादी के बाद दोनों के कुछ साल हंसीखुशी से बीते. धर्मेंद्र वैसे तो सीधासादा था लेकिन शराब का शौकीन था. चंदन धर्मेंद्र की मां का दूर का रिश्तेदार था.

इसी रिश्ते की वजह से उस के लिए घर के रास्ते खुले हुए थे. पिछले एक साल से चंदन धर्मेंद्र के घर ज्यादा ही आनेजाने लगा था. साथसाथ शराब पीने से दोनों एकदूसरे के गहरे दोस्त बन गए थे. चंदन का आटो था जिसे वह सिरसागंज में चलाता था.

भरेपूरे बदन की रूबी को देख कर चंदन का मन डोल गया था. वह रूबी को भाभी कहता था. चंदन धर्मेंद्र से हंसी ठिठोली में कह देता था, तुम तो कम अक्ल हो, ताज्जुब है तुम्हें इतनी सुंदर बीबी मिल गई. सीधासादा धर्मेंद्र चंदन की बात को हंस कर टाल देता था. लेकिन चंदन के मुंह से अपनी सुंदरता की बात सुन कर रूबी शरमा जाती.

धर्मेंद्र के दारू पीने के शौक का चंदन ने भरपूर फायदा उठाया. वह जब भी रूबी से मिलने आता अपने साथ शराब की बोतल जरूर लाता. दोनों घर में ही बैठ कर शराब पीते. चंदन धर्मेंद्र को ज्यादा शराब पिलाता. जब वह नशे में बेसुध हो कर सो जाता, चंदन और रूबी घंटों बातें करते.

धीरेधीरे दोनों का एक दूसरे के प्रति आकर्षण बढ़ता गया. अपने प्यार का इजहार करने के लिए उन के पास पर्याप्त अवसर थे. इसलिए उन्हें न मोहब्बत के इजहार में वक्त लगा न इश्क के इकरार में. जल्दी ही दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए. रूबी फोन पर चंदन से लंबीलंबी बातें करने लगी. वह उस के खयालों में खोईखोई सी रहती थी.

प्रेम के हिंडोले में झूलती रूबी चंदन से कहती, ‘‘चंदन मैं दिल दे कर अब पूरी तरह तुम्हारी हो चुकी हूं, तुम भी मेरा साथ निभाना. कभी भूल से भी मेरा दिल मत तोडना.’’

‘‘कैसी बात करती हो रूबी, तुम्हारा दिल अब मेरी जान है और कोई भी अपनी जान को यूं ही नहीं छोड़ता. मैं तुम्हें जल्दी ही ले जाऊंगा. मैं ने भी तुम पर पूरा भरोसा कर के प्यार किया है.’’ चंदन रूबी को विश्वास दिलाता.

लेकिन इस बीच धर्मेंद्र को उन के बीच पक रही खिचड़ी की भनक लग गई थी. वह अपनी पत्नी के चरित्र से भलीभांति परिचित था. उस ने रूबी को कई बार समझाया कि चंदन जब घर आए तो वह उस से बात न करे. लेकिन पति की बातों का रूबी पर कोई असर नहीं होता था.

पतिपत्नी में विवाद बढ़ने के बाद रूबी अपने मायके चली गई. चंदन उस के मायके में भी जाने लगा था. समझौते के बाद रूबी फिर धर्मेंद्र के पास ससुराल आ गई थी. घटना से एक माह पहले धर्मेंद्र के पिता की मृत्यु हो गई थी.

घर में धर्मेंद्र, रूबी, बेटे के अलावा विधवा मां रह गई थीं. ससुराल आने के बाद कुछ दिन तो रूबी का रवैया ठीक रहा लेकिन बाद में उस का प्रेमी चंदन फिर से घर आने लगा. धर्मेंद्र की हत्या से 10 दिन पहले चंदन और धर्मेंद्र में इसी बात को ले कर कहासुनी भी हुई थी.

इस के बाद चंदन  का उस के घर आना बंद हो गया था. अब रूबी चंदन से मोबाइल पर चोरीछिपे बात करने लगी. एक सप्ताह पहले अच्छा मौका देख चंदन ने फोन पर रूबी से बात कर के धर्मेंद्र की हत्या की साजिश रची.

योजना के अनुसार 23 मार्च की शाम 6 बजे रूबी ने धर्मेंद्र को सामान मंगाने के बहाने आमौर चौराहे पर भेज दिया. साथ ही चंदन को भी फोन कर दिया. चंदन चौराहे पर पहुंचा. धर्मेंद्र वहां उसे एक दुकान पर सामान खरीदते मिल गया. उस ने धर्मेंद्र की कमजोर नस को दबाते हुए कहा, ‘‘चलो पार्टी करते हैं.’’

धर्मेंद्र चाह कर भी मना नहीं कर सका. पुराने शिकवेगिले भूल कर धर्मेंद्र चंदन को अपने औटो में बैठा कर आमौर चौराहे वाले शराब के ठेके पर ले गया. वहीं से शराब की बोतल खरीदी.

रास्ते में रूबी का जीजा धर्मवीर भी मिल गया. दोनों ने उसे जम कर शराब पिलाई, साथ ही उस के साथ मारपीट भी की. तब तक अंधेरा घिर आया था. अधिक शराब पीने से धर्मेंद्र बेसुध हो गया तो दोनों धर्मेंद्र को औटो से नगला जीवन के पास आमौर नहर पर ले गए, जहां उसे नहर में धकेल दिया. पानी में डूबने से उस की मौत हो गई. लापता होने के तीसरे दिन धर्मेंद्र की लाश नहर से बरामद हो गई थी.

पुलिस ने गिरफ्तार रूबी व उस के प्रेमी चंदन को न्यायालय में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. प्रेमी चंदन के प्यार में रूबी इस कदर अंधी हो गई थी कि अपने हाथों से ही अपनी हंसतीखेलती दुनिया बरबाद कर ली. अब वह अपने अबोध बेटे से भी दूर हो गई.

सौजन्यसत्यकथा, जून 2020

शिवानी भाभी : पति की कातिल

सिंहराज को शराब पीने की लत थी. उस की इसी लत के चलते उस के दोस्त देवेंद्र ने घर आना शुरू किया. उस की कुछ ही देर पहले शिवानी का अपने पति सिंहराज से झगड़ा हुआ था. वह आज की बात नहीं थी, हर रोज का वही हाल था. सिंहराज एक नंबर का पियक्कड़ था. आज फिर सुबह होते ही अद्धा ले कर बैठ गया था. शिवानी ने उसे टोका लेकिन वह कहां मानने वाला था. कुछ देर तक तो वह पत्नी की बातें सुनता रहा, मगर 2-4 पैग हलक से नीचे उतरते ही उस का दिमाग घूम गया. बिना कुछ कहे उस ने शिवानी की चोटी पकड़ कर उसे रुई की भांति धुन दिया. फिर अद्धा बगल में दबाए घर के बाहर चला गया.

28 वर्षीय सिंहराज सिंह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बिजनौर  जनपद के थाना चांदपुर के बागड़पुर गांव में रहता था. वह चांदपुर के एक ज्वैलर की गाड़ी चलाता था. उस के पिता किसान थे. भाईबहन सभी शादीशुदा थे और अपनेअपने परिवारों के साथ अलगअलग रहते थे.

सिंहराज सिंह का विवाह लगभग 4 वर्ष पूर्व पड़ोस के गांव केलनपुर निवासी शिवानी से हुआ था. शिवानी बीए पास थी. सुंदर पत्नी पा कर हाईस्कूल पास सिंहराज फूला नहीं समाया. आम नवविवाहितों की तरह उन दोनों के दिन सतरंगी पंख लगाए उड़ने लगे.

खूबसूरत बीवी पा कर सिंहराज खुद को दुनिया का सब से खुशनसीब व्यक्ति समझने लगा था. एक बेटी ने उस के घर जन्म ले कर उस की बगिया को महका दिया.

सब कुछ ठीकठाक चल रहा था कि वक्त ने करवट बदली. नौकरी से सिंहराज सिंह की इतनी आमदनी हो जाती थी कि दालरोटी चल सके. दिक्कत उस समय होने लगी, जब उसे शराब की लत लग गई.

शिवानी कुशल गृहिणी थी. कम आमदनी में ही उसे गृहस्थी चलाना  आता था, परंतु पति की शराब पीने की लत ने घर के बजट को गड़बड़ा दिया. फलस्वरूप शिवानी परेशान रहने लगी. उस ने पति को हर तरीके से समझाना चाहा. बेटी की भी दुहाई दी, लेकिन सिंहराज को बीवीबेटी से ज्यादा शराब प्यारी थी.

सिंहराज सुधरा तो नहीं, उलटे शिवानी की सीख ने उसे ढीठ जरूर बना दिया. परिणाम यह हुआ कि पहले केवल शाम को पीने वाला सिंहराज अब दिनरात शराब में डूबा रहने लगा. उसे न बीवी की फिक्र सताती, न ही बेटी की चिंता. वेतन के सारे पैसे वह बोतलों में ही गर्क कर देता.

वह नशे में इतना डूब चुका था कि नौकरी में भी लापरवाही बरतने लगा. पैसों की किल्लत होती तो घर के कीमती बरतन व कपड़े शराब की भेंट चढ़ जाते. शिवानी रोकती तो बुरी तरह पिटती. वह अपनी बदकिस्मती पर आंसू बहा कर रह जाती. बागड़पुर में ही रहता था देवेंद्र उर्फ बच्चू. वह अविवाहित था और अपने पिता सूरज सिंह के साथ खेती में हाथ बंटाता था. देवेंद्र और सिंहराज में दोस्ती थी. इसलिए देवेंद्र का सिंहराज के घर आनाजाना था.

देवेंद्र ही वह शख्स था, जिसे शिवानी से हमदर्दी थी. उस ने भी सिंहराज को शराब छोड़ने और गृहस्थी पर ध्यान देने की सलाह दी थी, लेकिन उस ने सारी नसीहत एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकाल दी थी. मियांबीवी के झगड़े की वजह से देवेंद्र कभीकभार ही सिंहराज के घर चला जाता था.

उस रोज भी देवेंद्र कई दिनों बाद सिंहराज के घर गया था. उस के पहुंचने से कुछ देर पहले ही सिंहराज शिवानी को पीट कर बाहर गया था. जब वह पहुंचा तो शिवानी रो रही थी. उस की नजर जैसे ही देवेंद्र पर पड़ी, वह अपने आंसू पोंछने लगी. फिर मुसकराने का प्रयास करते हुए बोली, ‘‘अरे तुम, आज यहां का रास्ता कैसे भूल गए?’’

‘‘सच पूछो भाभी तो आज भी नहीं आता,’’ देवेंद्र ने शिवानी की नम आंखों में झांकते हुए कहा, ‘‘मगर तुम्हारा दर्द मुझ से नहीं देखा जाता, इसलिए आ जाता हूं. लगता है सिंहराज अपनी हरकतों से बाज नहीं आएगा.’’

‘‘किसी को क्या दोष देना देवेंद्र, जब अपनी ही किस्मत खोटी हो.’’

देवेंद्र और शिवानी हमउम्र थे और एकदूसरे की भावनाओं से अच्छी तरह परिचित थे. शिवानी जहां देवेंद्र की सादगी और भोलेपन पर फिदा थी, वहीं देवेंद्र उस की कोमल काया पर मोहित था.

शिवानी का पोरपोर जवानी से लबालब था. उस के तीखे नैननक्श एवं कटीली मुसकान किसी को भी घायल कर देने में समर्थ थी. लेकिन शराबी सिंहराज को प्यालों की गहराई मापने से फुरसत नहीं थी, वह पत्नी की आंखों के राज क्या समझता.

दूसरी ओर शिवानी की जिस्मानी ख्वाहिश पूरे जलाल पर थी. ऐसे में उस का झुकाव देवेंद्र की ओर होने में ज्यादा समय नहीं लगा. इधर देवेंद्र की हालत भी शिवानी से जुदा नहीं थी.

उस दिन शिवानी का रोना देख कर देवेंद्र तड़प उठा. उस ने भावावेश में शिवानी का हाथ पकड़ कर कहा,‘‘ऐसा न कहो भाभी, मैं सारी दुनिया की बातें तो नहीं जानता, लेकिन अपनी गारंटी देता हूं यदि तुम साथ दो तो सारी जिंदगी तुम पर वार दूंगा.’’

यह सुनना था कि शिवानी देवेंद्र से लिपट कर जारजार रोने लगी. देवेंद्र उसे कस कर भींचते हुए बोला,‘‘असल में, तुम गलत आदमी से बंध गई…खैर, अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है, तुम चाहो तो फिर से सब कुछ बदल सकता है.’’

शिवानी ने कुछ कहने के बजाय देवेंद्र को चूम लिया. शिवानी के चूमते ही देवेंद्र उसे किसी बावले की तरह यहांवहां चूमने लगा. शिवानी उस के अनाड़ीपने पर रोतेरोते मुसकरा उठी. उस ने खुद को देवेंद्र से अलग करते हुए पहले दरवाजा बंद किया, फिर मुसकरा कर हाथ पकड़ा और उसे अंदर के कमरे में ले गई.

कामना की आंच में देवेंद्र की कनपटियां सनसना रही थीं. शिवानी ने पहले देवेंद्र के कपड़े उतारे, फिर खुद भी बेलिबास हो गई. देवेंद्र शिवानी का तराशा हुआ बदन देख चकित रह गया.

शिवानी देवेंद्र की हालत देख कर मंदमंद मुसकराने लगी. फिर धीरेधीरे दोनों के बदन एकदूसरे से गुंथते गए और फिर उन के दरमियान सारे फासले मिट गए.

दोनों अलग हुए तो बहुत खुश थे. उन्होंने बदकिस्मती को धता बताते हुए अपने रिश्ते की नई बुनियाद रखी थी.

उस दिन के बाद देवेंद्र और शिवानी की दुनिया ही बदल गई. दोनों पतिपत्नी का सा व्यवहार करने लगे.

अब देवेंद्र शिवानी का तो खयाल रखता ही, उस की घरगृहस्थी का खर्च भी उठाने लगा.

शिवानी की बेजान दुनिया में फिर से जीवन लौट आया. अब बढि़या खाना पकता और सिंहराज के साथ देवेंद्र भी उस के साथ जम कर भोजन करता.

ऐसी बात नहीं कि सिंहराज देवेंद्र और शिवानी के रिश्तों से अंजान था, उसे सब कुछ पता था, लेकिन वह यही सोच कर खुश था कि उसे अब कोई शराब पीने से नहीं रोकता था, बल्कि पैसे कम पड़ने पर देवेंद्र उस की मदद ही कर दिया करता था. इन सब की एवज में सिंहराज ने देवेंद्र और शिवानी के रिश्ते को मौन स्वीकृति दे दी थी.

15 मार्च की सुबह धनौरा मार्ग पर मिर्जापुर गांव के पास एक अज्ञात युवक की लाश पड़ी थी. गांव के लोगों ने देखा तो इस की सूचना चांदपुर थाने को दे दी.

सूचना पा कर थाने से इंसपेक्टर लव सिरोही पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. मृतक की उम्र लगभग 25 से 30 वर्ष के बीच रही होगी.

उस के सिर के पिछले हिस्से में गहरा घाव था, जिस से खून काफी बहा था. किसी भारी ठोस वस्तु से प्रहार कर के उसे मौत के घाट उतारा गया प्रतीत हो रहा था. घटनास्थल का निरीक्षण करने पर कोई भी सुराग हाथ नहीं लगा.

इंसपेक्टर सिरोही ने वहां मौजूद लोगों से लाश की शिनाख्त करने को कहा तो पता चला कि मृतक बागड़पुर गांव का सिंहराज सिंह है.

पुलिस ने मृतक के परिजनों को सूचना भेजी तो परिजन वहां पहुंच गए. शिवानी पति की लाश के पास बैठ कर फूटफूट कर रोने लगी. सिंहराज के भाई सुशील ने अपने भाई की लाश की शिनाख्त कर ली. शिनाख्त होने के बाद इंसपेक्टर सिरोही ने आवश्यक पूछताछ की, उस के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी.

थाने वापस आ कर सुशील की लिखित तहरीर पुलिस ने अज्ञात के विरुद्ध भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

केस की जांच शुरू करते हुए इंसपेक्टर सिरोही ने सब से पहले मृतक सिंहराज की पत्नी शिवानी से पूछताछ की तो शिवानी ने बताया कि सिंहराज के किसी युवती से अवैध संबंध थे.

वह नशे का आदी था. नशे में वह उसे मारतापीटता था. सिंहराज हाईस्कूल पास था और वह बीए पास थी. इस के बावजूद भी वह अपनी गृहस्थी को बचाने के लिए उस के साथ निभा रही थी. किसी ने भी उसे मारा हो, लेकिन उस के मरने से मुझे जिंदगी में सुकून मिल गया.

इंसपेक्टर सिरोही को उस की बातों में अपने पति के लिए बेपनाह नफरत की झलक मिली थी. इसलिए उन का शक शिवानी पर गया. इस के बाद उन्होंने शिवानी से उस का मोबाइल नंबर ले लिया. उस के नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो शिवानी के नंबर पर एक नंबर से काफी काल होने का पता चला.

उस नंबर की जानकारी की गई तो वह  बागड़पुर गांव के देवेंद्र का निकला. देवेंद्र की जानकारी जुटाई तो पता चला कि देवेंद्र की दोस्ती मृतक सिंहराज से थी, देवेंद्र का उस के घर काफी आनाजाना था.

एक बार फिर इंसपेक्टर सिरोही ने शिवानी से पूछताछ की तो वह गोलमोल जबाव देने लगी. इंसपेक्टर सिरोही ने शिवानी का मोबाइल ले कर उस की जांच की तो पता चला कि वाट्सऐप पर शिवानी और देवेंद्र द्वारा एकदूसरे को भेजे गए फोटो डिलीट किए गए थे.

मोबाइल की गैलरी की जांच करने पर उस में शिवानी के जींस पहने कई फोटो देवेंद्र के साथ मिले, जिस के बाद इंसपेक्टर सिरोही ने शिवानी को हिरासत में ले लिया और थाने आ गए. वहां महिला कांस्टेबल की मौजूदगी में उस से कड़ाई से पूछताछ की तो शिवानी टूट गई. उस ने अपने प्रेमी देवेंद्र द्वारा अपने पति की हत्या करवाने की बात स्वीकार कर ली. इस के बाद देवेंद्र को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया.

सिंहराज की मूक सहमति पाते ही देवेंद्र और शिवानी की बांछें  खिल उठी थीं. शराब के नशे ने सिंहराज को बेगैरत बना दिया था, लेकिन एक दिन नशे की हालत में सिंहराज की गैरत जाग उठी. उस ने शिवानी को टोका, ‘‘शिवानी, बस बहुत हो चुका रासरंग अब और नहीं… आज के बाद तुम देवेंद्र से कोई रिश्ता नहीं रखोगी. बेहयाई की भी हद होती है.’’

सिंहराज के इस बदले हुए रूप ने शिवानी को हैरान कर दिया. उस ने पूछा,‘‘आज अचानक क्या हुआ तुम को?’’

सिंहराज शिवानी को घूर कर बोला,‘‘क्यों, समझ नहीं आ रहा क्या, या बेगैरती ने तुम्हारा भेजा चाट लिया है?’’

‘‘गैरत और बेगैरती की बातें तुम्हारे मुंह से अच्छी नहीं लगतीं. अच्छा होगा, अब इस मामले में न ही पड़ो,’’ आवेश में शिवानी की सांसें फूलने लगी थीं. क्षण भर रुक कर वह पुन: बोली, ‘‘जरा सोचो, बेगैरती का यह रास्ता मुझे किस ने दिखाया? तुम ने… अगर तुम अच्छे पति, बढि़या पिता और सच्चे इंसान होते तो मैं राह क्यों भटकती? अब कुछ भी नहीं हो सकता, क्योंकि अब तीर कमान से निकल चुका है.’’

‘‘मैं कुछ सुनना नहीं चाहता, आइंदा वही होगा, जो मैं चाहूंगा.’’ सिंहराज ने कड़े शब्दों में कहा.

‘‘असंभव, अब ऐसा नहीं हो सकता.’’ शिवानी के दो टूक जबाव से सिंहराज पागल हो उठा.

वह चीखते हुए उस पर झपटा,‘‘ठहर मैं अभी बताता हूं कि क्या हो सकता है और क्या नहीं हो सकता.’’

सिंहराज ज्यों ही शिवानी को पीटने दौड़ा, संयोग से तभी देवेंद्र वहां आ गया. पल भर में उस ने सारा माजरा समझ लिया और आगे बढ़ कर उस ने सिंहराज को धक्का दे कर गिरा दिया.

अचानक लगे धक्के से सिंहराज चारों खाने चित गिर गया. उस का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. खड़े होते हुए बोला,‘‘देवेंद्र खबरदार… जो हम दोनों के बीच आए…तुम्हारा सिर तोड़ दूंगा.’’

इतना सुनना था कि देवेंद्र सिंहराज पर टूट पड़ा. मुक्कों और लातों से उस की बुरी गत बना दी. जिंदगी भर पति से पिटने वाली शिवानी ने जब पति को पिटते देखा, तब उस के प्रतिशोध ने भी सिर उठा लिया. उस ने भी देवेंद्र के साथ पति सिंहराज पर हाथ आजमाए.

उस दिन की पिटाई पर सिंहराज ने दोनों को धमकी दी कि वह दोनों को अब जिंदा नहीं छोडे़गा. उस की इस धमकी ने शिवानी और देवेंद्र को सोचने पर मजबूर कर दिया. वह दोनों जानते थे कि सिंहराज नशे और गुस्से में कुछ भी कर सकता है. इसलिए दोनों ने सिंहराज के कुछ करने से पहले ही उसे खत्म करने का फैसला कर लिया. इस के लिए दोनों ने योजना बनाई.

14 मार्च, 2020 की शाम भी सिंहराज नशे में धुत था. योजना के तहत देर रात उसे देवेंद्र ने बहाने से गांव के बाहर बुलाया. उस के आने पर देवेंद्र ने चारा काटने वाली मशीन के हत्थे से उस पर वार किया.

सिंहराज बच कर भागा तो देवेंद्र ने उस का पीछा किया. लगभग 100 मीटर की दूरी पर सिंहराज की जैकेट को पीछे से देवेंद्र ने पकड़ कर उसे रोका और पीछे से ही मशीन के लोहे के हत्थे से उस के सिर के पिछले हिस्से पर वार कर दिया, जिस से सिंहराज जमीन पर गिर कर कुछ देर तड़पा, फिर मौत के आगोश में समा गया. सिंहराज की मौत की सूचना शिवानी को देने के बाद देवेंद्र अपने घर चला गया.

लेकिन दोनों पुलिस के शिकंजे से बच न सके. अभियुक्त देवेंद्र की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त लोहे का हत्था पुलिस ने बरामद कर लिया. फिर कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद शिवानी और देवेंद्र को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्यसत्यकथा, जून 2020

शीतल का अशांत मन : जिंदगी को किया बरबाद

38वर्षीय संजय भोसले महाराष्ट्र के जनपद सतारा के गांव एक्सल का रहने वाला था. उस के पिता पाडूरंग भोसले की जो थोड़ीबहुत खेती की जमीन थी, उस की उपज से वह परिवार का भरणपोषण कर रहे थे. गांव में उन की काफी इज्जत और प्रतिष्ठा थी. वह सीधेसरल स्वभाव के व्यक्ति थे.

संजय भोसले एक महत्त्वाकांक्षी युवक था. उस की नौकरी भारतीय थल सेना में बतौर ड्राइवर लग गई थी. पुणे में 6 माह की ट्रेनिंग के बाद उस की पोस्टिंग हो गई थी. संजय की नौकरी लग चुकी थी, इसलिए मातापिता उस की शादी करना चाहते थे.

मराठी समाज में जब लड़की शादी योग्य हो जाती है तो लड़की वाले लड़के की तलाश में नहीं जाते, बल्कि लड़के वालों को ही लड़की की तलाश करनी होती है. इसलिए पाडूरंग भोसले भी बेटे संजय के लिए लड़की की तलाश में जुट गए. उन्होंने जब यह बात अपने नाते रिश्तेदारों और जानपहचान वालों में चलाई तो उन के एक रिश्तेदार ने शीतल जगताप का नाम सुझाया.

28 वर्षीय शीतल पुणे शहर के तालुका बारामती, गांव ढाकले के रहने वाले बवन विट्ठल जगताप की बेटी थी. खूबसूरत होने के साथसाथ वह उच्चशिक्षित भी थी. वह डी.फार्मा कर चुकी थी. पाडूरंग भोसले ने बवन विट्ठल से मुलाकात कर अपने बेटे संजय के लिए उन की बेटी शीतल का हाथ मांगा.

संजय पढ़ालिखा था और सेना में नौकरी कर रहा था, इसलिए विट्ठल ने सहमति दे दी. फिर घरवालों ने शीतल और संजय की मुलाकात कराई. हालांकि संजय शीतल से 10 साल बड़ा था, लेकिन वह सरकारी मुलाजिम था, इसलिए शीतल ने उसे पसंद कर लिया. बाद में सामाजिक रीतिरिवाज से अक्तूबर 2008 में दोनों का विवाह हो गया.

जहां संजय शीतल को पा कर अपने आप को खुशनसीब समझ रहा था, वहीं शीतल भी मजबूत कदकाठी वाले फौजी संजय से शादी कर के गर्व महसूस कर रही थी. लेकिन शीतल का यह वहम शीघ्र ही धराशायी हो गया. शीलत के हाथों की मेंहदी का रंग अभी छूटा भी नहीं था कि संजय की छुट्टियां खत्म हो गईं. अपनी नईनवेली दुलहन शीलत को उस के मायके छोड़ कर संजय को अपनी ड्यूटी पर जाना पड़ा. जबकि शीतल चाहती थी कि संजय उस के पास कुछ दिन और रहे.

एक खतरनाक इलाके में पोस्टिंग होने के कारण संजय को बहुत कम छुट्टी मिलती थी. ऐसे में शीतल को ज्यादातर समय अपने मायके और ससुराल में ही बिताना पड़ता था. साल दो साल में जब भी संजय को छुट्टी मिलती तभी वह घर आ पाता था. इस बीच शीतल एक बच्चे की मां बन गई थी.

आज के जमाने में कोई भी पत्नी अपने पति से दूर नहीं रहना चाहती. लेकिन किसी मजबूरी के चलते उसे समझौता करना पड़ता है. यही हाल शीतल का भी था. उसे अपने मन और तन की प्यास को दबाना पड़ा था.

8 साल इसी तरह बीत गए. इस के बाद संजय का ट्रांसफर पुणे के सेना कैंप में हो गया. शीतल के लिए यह खुशी की बात थी. यहां उसे रहने के लिए सरकारी आवास भी मिल गया था, सो संजय शीतल को पुणे ले आया. पति के संग रह कर शीतल खुश तो जरूर थी. लेकिन वह खुशी अभी भी उसे नहीं मिल रही थी, जो एक औरत के लिए ज्यादा महत्त्वपूर्ण होती है. यहां भी संजय पत्नी को पूरा समय नहीं दे पाता था.

भटकने लगा शीतल का मन

हालांकि शीतल 10 वर्षीय बच्चे की मां थी. लेकिन हसरतें अभी भी जवान थीं, जो पति के संपर्क के लिए तरस रही थीं. शीतल का दिन तो बच्चे और घर के कामों में गुजर जाता था लेकिन रात उस के लिए पहाड़ सी बन जाती.

एक कहावत है कि नारी सहनशील और बड़े ही धीरज वाली होती है. लेकिन थोड़ी सी सहानुभूति पाने पर वह बहुत जल्दी बहक भी जाती है और उस का फायदा कुछ मनचले लोग उठा लेते हैं. यही हाल शीतल का भी हुआ. उस के कदम बहक गए. जिस का फायदा योगेश कदम ने उठाया. वह उस की निजी जिंदगी में कब आ गया, इस का शीतल को आभास ही नहीं हुआ.

संजय को जो सरकारी क्वार्टर मिला था, किसी वजह से 3 साल बाद उसे वह छोड़ना पड़ा. वह अपनी फैमिली ले कर पुणे के नखाते नगर स्थित अंबर अपार्टमेंट की दूसरी मंजिल के फ्लैट में आ गया. जिस फ्लैट में संजय भोसले अपनी पत्नी और बच्चे को ले कर रहने के लिए आया था.

उसी के ठीक सामने वाले फ्लैट में योगेश कदम रहता था. वह एक कैमिकल कंपनी में नौकरी करता था. पड़ोसी होने के नाते पहले ही दिन दोनों का परिचय हो गया. बाद में योगेश का संजय के यहां आनाजाना शुरू हो गया.

अविवाहित योगेश कदम ने जब से शीतल को देखा था, तब से वह उस का दीवाना हो गया था. ऐसा ही हाल शीतल का भी था. जबजब वह योगेश कदम को देखती, उस के मन में एक हूक सी उठती थी. शारीरिक रूप से भी योगेश कदम उस के पति संजय भोसले से ज्यादा मजबूत था. जबजब दोनों की नजरें एकदूसरे से टकरातीं, दोनों के दिलों में हलचल सी मच जाती थी. उन की नजरों में जो चमक होती थी, उसे अच्छी तरह से महसूस करते थे. यही कारण था कि उन्हें एकदूसरे के करीब आने में समय नहीं लगा.

योगेश कदम यह बात अच्छी तरह से जानता था कि शीतल अकसर घर में अकेली रहती है. बच्चे को स्कूल छोड़ने के बाद और कभीकभी संजय भोसले की नाइट ड्यूटी लग जाने पर योगेश को शीतल से बात करने का मौका मिल जाता था.

बाद में उस ने शीतल के पति संजय से भी दोस्ती बढ़ा ली, जिस के बहाने वह जबतब शीतल के घर आनेजाने लगा. इस तरह शीतल और योगेश के बीच अवैध संबंध कायम हो गए. जब एक बार मर्यादा की सीमा टूटी तो टूटती ही चली गई. जब भी शीतल और योगेश कदम को मौका मिलता, अपने तनमन की प्यास बुझा लेते थे.

योगेश कदम से मिलन के बाद शीतल खुश रहने लगी. उस के चेहरे का रंगरूप बदल गया. वह योगेश के प्यार में इतनी दीवानी हो गई थी कि अब वह पति संजय भोसले की उपेक्षा भी करने लगी. पत्नी के इस बदले रंगरूप और व्यवहार को पहले तो संजय समझ नहीं पाया. लेकिन जब तक समझ पाया, तब तक काफी देर हो चुकी थी.

मामला नाजुक था. लिहाजा एक दिन संजय ने पत्नी को काफी समझाया मानमर्यादा और समाज की दुहाई दी, लेकिन शीतल पर उस की बातों का कोई असर नहीं हुआ. पहले तो शीतल घर में ही योगेश के साथ रंगरलियां मनाती थी लेकिन जब संजय ने उस पर निगाह रखनी शुरू कर दी तो वह प्रेमी के साथ मौल और रेस्टोरेंट वगैरह में आनेजाने लगी. जब यह बात संजय को पता चली तो उस ने पत्नी पर सख्ती दिखानी शुरू कर दी. तो इस से शीतल बगावत पर उतर आयी. नतीजा मारपीट तक पहुंच गया.

दोनों के बीच अकसर रोजाना ही झगड़ा होता. रोजरोज की कलह से शीतल भी उकता गई. लिहाजा उस ने प्रेमी के साथ मिल कर पति को ही ठिकाने लगाने की योजना बना ली, लेकिन किसी कारणवश यह योजना सफल नहीं हो सकी. पत्नी की हरकतों से तंग आ कर आखिरकार संजय भोसले ने कहीं दूर जा कर रहने का फैसला किया. यह करीब 5 महीने पहले की बात है.

बनने लगी बरबादी की भूमिका

साल 2019 के अक्तूबर माह में एक माह की छुट्टी ले कर संजय भोसले ने अपना घर बदल दिया. वह पत्नी और बच्चे को ले कर पुणे के नखाते कालेबाड़ी स्थित एक सोसाइटी में आ गया. लेकिन उसे यहां भी राहत नहीं मिली. शीतल के व्यवहार में जरा भी परिवर्तन नहीं आया.

बच्चे के स्कूल और पति के ड्यूटी पर जाने के बाद शीतल फोन कर योगेश को फ्लैट पर बुला लेती थी. किसी तरह यह जानकारी संजय को मिल जाती थी. पत्नी की हठधर्मिता से वह इस प्रकार टूट गया कि उस ने शराब का सहारा ले लिया. शराब के नशे में वह पत्नी को अकसर मारतापीटता था.

इस के अलावा अब वह कभी भी वक्तबेवक्त घर आने लगा, जिस से शीतल और योगेश के मिलनेजुलने में परेशानियां खड़ी हो गईं. इस से छुटकारा पाने के लिए शीतल ने फिर वही योजना बनाई, जो पहले बनाई थी.

मौका देख कर शीतल ने योगेश कदम से कहा, ‘‘योगेश तुम अगर मुझ से प्यार करते हो और मुझे पूरी तरह अपना बनाना चाहते हो तो तुम्हें संजय के लिए कोई कठोर कदम उठाना होगा, मतलब उसे हम दोनों के बीच से हटाना पड़ेगा.’’ योगेश कदम भी यही चाहता था. वह इस के लिए तुरंत तैयार हो गया.

8 नवंबर, 2019 की सुबह करीब 5 बजे शिवपुर पुलिस चौकी पर तैनात एसआई समीर कदम को जो सूचना मिली उसे सुन कर वह चौंके. सूचना देने वाले एंबुलेंस ड्राइवर सूफियान मुश्ताक मुजाहिद, निवासी गांव बेलु, जनपद पुणे ने उन्हें बताया कि शिवपुर टोलनाका क्रौस पुणे सतारा हाइवे पर स्थित होटल गार्गी और कंदील के बीच सर्विस रोड पर एक युवक बुरी तरह घायल पड़ा है.

एसआई समीर कदम ने बिना किसी विलंब के इस मामले की जानकारी रायगढ़ थानाप्रभारी दत्तात्रेय दराड़े के अलावा पुलिस कंट्रोलरूम को दी और अपने सहायकों के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

घटनास्थल पर पहुंच कर एसआई अभी वहां का मुआयना कर ही रहे थे कि थानाप्रभारी दत्तात्रेय दराड़े, एसपी संदीप पाटिल और एएसपी अन्नासो जाधव मौकाएवारदात पर आ गए. तब तक वहां पड़ा युवक मर चुका था. उसे देख कर मामला रोड ऐक्सीडेंट का लग रहा था. इसलिए घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण कर शव पोस्टमार्टम के लिए पुणे के ससून अस्पताल भेज दिया गया.

पुलिस को घटना से एक मोबाइल फोन, ड्राइविंग लाइसेंस और एक डायरी मिली, जिस से पता चला कि मृतक का नाम संजय भोसले है. पुलिस ने फोन से उस की पत्नी शीतल का फोन नंबर हासिल कर के उसे पुलिस चौकी शिवपुर बुला लिया.

संजय भोसले की पत्नी शीतल ने संजय भोसले के मोबाइल फोन और ड्राइविंग लाइसेंस को पहचान लिया और दहाड़े मारमार कर रोने लगी. पूछताछ में शीतल ने कहा कि उसे नहीं पता है कि संजय घटनास्थल तक कैसे पहुंच गए.

आखिर सच आ ही गया सामने

शीतल ने आगे बताया कि कल रात उन्होंने परिवार के साथ खाना खाया था. रात 10 बजे के करीब उसे और बच्चे को सोने के लिए बेडरूम में भेज कर खुद हाल में सो गए थे. इस के बाद क्या हुआ, वह कुछ नहीं जानती.

मामला काफी उलझा हुआ था. जांच अधिकारी ने उस समय तो शीतल को घर जाने दिया था. लेकिन उन्होंने उसे क्लीन चिट नहीं दी. उन्हें शीतल के घडि़याली आंसुओं पर संदेह था. बाकी की रही सही कसर पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने पूरी कर दी.

रिपोर्ट में बताया गया कि मामला दुर्घटना का नहीं है, उसे सल्फास नामक जहरीला पदार्थ दिया गया था, जिस का सेवन तकरीबन 12 घंटे पहले किया गया था. यह जहर कहां से आया, क्यों आया यह जांच का विषय था. पुलिस टीम ने जब गहराई से जांचपड़ताल की और शीतल के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स देखी तो तो वह पुलिस के रडार पर आ गई.

पुलिस ने जब शीतल से सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गई और अपना गुनाह कबूल कर के प्रेमी योगेश कदम और उस के सहयोगियों का नाम बता दिए. उस ने बताया कि जिस जहरीले पदार्थ से संजय की मौत हुई, वह जहर 7 नवंबर, 2019 को योगेश कदम अपनी कंपनी से लाया था. उस ने वही जहर संजय के खाने में मिला दिया था. जहर खाने से जब उस की मौत हो गई तब उस ने योगेश को वाट्सएप मैसेज भेज कर जानकारी दे दी थी.

अब समस्या संजय के शव को ठिकाने लगाने की थी. योगेश ने अपने 2 दोस्तों मनीष कदम और राहुल काले के साथ मिल कर इस का बंदोबस्त पहले ही कर रखा था. उन्होंने एक कार किराए पर ली, उस कार से योगेश रात 2 बजे के करीब शीतल के घर पहुंचा और अपने दोस्तों के साथ संजय भोसले के शव को कार में डाल लिया, जिसे ये लोग यह सोच कर पुणे सतारा रोड की सर्विस लेन पर डाल आए कि मामला दुर्घटना का लगेगा, लेकिन इस में वह कामयाब नहीं हो सके.

शीतल से विस्तृत पूछताछ करने के बाद पुलिस ने मामले के अन्य अभियुक्तों की धड़पकड़ तेज कर दी और जल्दी ही संजय भोसले हत्याकांड के सभी अभियुक्तों को गिरफ्तार कर लिया.

गिरफ्तार शीतल संजय भोसले, योगेश कमलाकर राव कदम, मनीष नारायन कदम और राहुल अशोक काले को थानाप्रभारी ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों के समक्ष पेश किया.

उन्होंने भी आरोपियों से पूछताछ की. इस के बाद उन्हें भादंवि की धारा 302, 201, 120बी, 109 के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर पुणे की नरवदा जेल भेज दिया.

सौजन्य: सत्यकथा, अप्रैल 2020

 

प्यार के भंवर में-भाग 3 : देवर भाभी ने क्यों की आत्महत्या

राममिलन की जब शादी तय हुई थी, तब सुनीता मायके गई हुई थी. वह वहां से वापस आई तब उसे मालूम पड़ा कि देवर की शादी तय हो गई है. उस ने इस बाबत राममिलन से पूछा तो उस ने जवाब दिया कि उस से पूछ कर शादी तय नहीं की गई है. शादी के संबंध में वह कुछ भी नहीं बता सकता. लेकिन सुनीता को शक हुआ कि शादी के लिए राममिलन की रजामंदी है

सुनीता अब अपने भविष्य को ले कर चिंतित रहने लगी. वह सोचती, ‘‘कल को राममिलन की शादी हो जाएगी, तो वह उसे दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल फेंकेगा. वह अपनी रातें तो नईनवेली दुलहन के साथ रंगीन करेगा और वह पूरी रात करवट बदलते बिताएगी.’’

सुनीता जितना सोचती, उतना ही उसे अपना जीवन अंधकारमय लगता. इसी उलझन में सुनीता ने राममिलन से हंसनाबोलना बंद कर दिया. वह उस के प्रणय निवेदन को भी ठुकराने लगी. राममिलन उसे मनाने की कोशिश करता, लेकिन वह उस की कोई बात नहीं सुनती.

सुनीता में आए आकस्मिक परिवर्तन से राममिलन परेशान हो उठा. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह भाभी को कैसे मनाए. एक रोज जब उस से नहीं रहा गया तो उस ने पूछा, ‘‘भाभी, मुझ से ऐसी क्या खता हो गई, जो मुझ से नाराज हो. पहले तो तुम खूब हंसती थी, खूब बोलती थी. समर्पण को सदैव तैयार रहती थी. लेकिन अब दूर भागती हो. हंसनाबोलना भी गायब हो गया है. हमेशा चेहरे पर उदासी छाई रहती है. आखिर बात क्या है?’’

‘‘यह तुम अपने आप से पूछो देवरजी, तुम ने मेरे साथ जीनेमरने का वादा किया था. क्या वह वादा तुम शादी करने के बाद निभा सकोगे. शादी के बाद तुम दुलहन के पल्लू में बंध जाओगे और मुझे भूल जाओगे. यही सोच कर मैं उदास रहती हूं. तुम से दूर भागने का भी यही कारण है.’’ सुनीता बोली.

‘‘भाभी, मैं आज भी तुम्हारा हूं और कल भी रहूंगा. साथ जीनेमरने का वादा भी मैं नहीं भूला हूं. रही बात शादी की, तो वह मैं अपनी मरजी से नहीं कर रहा हूं. शादी तो मांबाप ने अपनी मरजी से तय कर दी है.’’
‘‘जो भी हो देवरजी, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती और घर वाले हमें साथ रहने नहीं देंगे. इसलिए हमेंतुम्हें एकदूसरे से किया गया वादा निभाना होगा.’’

‘‘हम वादा निभाने को तैयार हैं.’’ कहते हुए राममिलन ने सुनीता को अपनी बांहों में समेट लिया. उस के बाद उन दोनों ने एक साथ आत्महत्या करने का निश्चय किया. फिर वह समय का इंतजार करने लगे.
30 नवंबर, 2020 को शिवबरन की रिश्तेदारी में असोथर कस्बा में शादी थी. इसी शादी में सम्मिलित होेने के लिए शिवबरन अपने बड़े बेटे हरिओम के साथ शाम 6 बजे घर से निकल गया.

खाना खाने के बाद गेंदावती पोते हर्ष (3 वर्ष) के साथ कमरे में जा कर लेट गई. घर पर काम निपटाने के बाद सुनीता भी अपनी मासूम बेटी क्रांति के साथ कमरे में जा कर लेट गई. लेकिन उस की आंखों से नींद ओेझल थी.

रात लगभग 11 बजे राममिलन, सुनीता के कमरे में आ गया. उन दोनों के बीच बातचीत शुरू हुई. बातचीत के दौरान सुनीता ने कहा, ‘‘देवरजी, अपनी जीवनलीला समाप्त करने का आज सही समय है. तुम मेरा साथ दोगे या नहीं?’’

‘‘तुम्हारे बिना मेरे जीवित रहने का मकसद ही क्या है. अत: मैं भी तुम्हारे साथ ही अपना जीवन समाप्त करूंगा.’’ इस के बाद सुनीता और राममिलन ने छत के कुंडे में साड़ी को बांधा और साड़ी के दोनों सिरों को फांसी का फंदा बनाया. फिर एकएक सिरा गले में डाल कर फांसी के फंदे पर झूल गए. कुछ देर बाद ही दोनों की गरदन लटक गई.

पहली दिसंबर, 2020 की सुबह करीब 7 बजे गेंदावती जागीं तो उन्हें मासूम बच्ची क्रांति के रोने की आवाज सुनाई दी. वह सुनीता के कमरे पर पहुंचीं, तो कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था. तब उन्होंने दरवाजे की कुंडी खटखटाई और आवाज दी, ‘‘बहू, दरवाजा खोलो, बच्ची रो रही है. क्या घोड़े बेच कर सो रही हो?’’ पर अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. वह राममिलन के कमरे में पहुंची तो वह कमरे में नहीं था.

अब गेंदावती का माथा ठनका. उन के मन में तरहतरह के कुविचार आने लगे. इसी घबराहट में वह सुनीता की चचेरी जेठानी रूपाली को बुला लाई. उस ने भी दरवाजा थपथपाया और आवाज लगाई पर अंदर से कोई हलचल नहीं हुई. शोरशराबा सुन कर पासपड़ोस के लोग भी आ गए.

उसी समय शिवबरन व उस का बेटा हरिओम भी असोथर से आ गए. उन दोनों ने अपने दरवाजे पर भीड़ देखी तो घबरा गए. गेंदावती ने पति व बेटे को बताया कि सुनीता दरवाजा नहीं खोल रही है. राममिलन भी कमरे में नहीं है.

शिवबरन व हरिओम ने भी दरवाजा खुलवाने का प्रयास किया, लेकिन जब दरवाजा नहीं खुला तो दोनों ने कमरे का दरवाजा तोड़ दिया और कमरे के अंदर प्रवेश किया.

कमरे के अंदर का दृश्य बड़ा ही वीभत्स था. पंखे के हुक से साड़ी का फंदा बंधा था. साड़ी के एक छोर पर सुनीता तथा दूसरे छोर पर राममिलन का शव लटक रहा था. सुनीता का चेहरा राममिलन की छाती पर था. सुनीता का एक पैर चारपाई के नीचे लटक रहा था तथा दूसरा पैर चारपाई को छू रहा था.

देवरभाभी द्वारा आत्महत्या करने की खबर लमेहटा गांव में फैल गई. सैकड़ों लोग घटनास्थल पर आ पहुंचे. इसी बीच किसी ने थाना गाजीपुर पुलिस को सूचना दे दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी कमलेश पाल पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने पुलिस अधिकारियों को सूचित किया तो एसपी सतपाल, एएसपी राजेश कुमार तथा सीओ संजय कुमार शर्मा आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने फोरैंसिक टीम को भी मौके पर बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया तथा मृतक व मृतका के घर वालों से पूछताछ की. फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर साक्ष्य जुटाए. निरीक्षण व पूछताछ के बाद पुलिस ने दोनों शवों को फांसी के फंदे से नीचे उतरवाया. फिर दोनों शवों को पोस्टमार्टम हेतु जिला अस्पताल फतेहपुर भिजवा दिया.

मृतक के पिता शिवबरन निषाद की तहरीर पर गाजीपुर पुलिस ने भादंवि की धारा 309 के तहत सुनीता और राममिलन के खिलाफ मुकदमा तो दर्ज किया, लेकिन दोनों की मौत हो जाने से पुलिस ने इस मामले की फाइल बंद कर दी.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्यार के भंवर में-भाग 1 : देवर भाभी ने क्यों की आत्महत्या

उत्तर प्रदेश के जिला बांदा का एक गांव है-बदौली. रसपाल इसी गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी चंद्रकली के अलावा एक बेटा भानुप्रताप तथा बेटी सुनीता थी. रसपाल खेती किसानी के साथसाथ ट्यूबवैल मरम्मत का काम करता था. इस से उसे अतिरिक्त आमदनी हो जाती थी.

कुल मिला कर उस का परिवार खुशहाल था. रसपाल ने अपनी बेटी सुनीता का विवाह सन 2016 में हरिओम के साथ कर दिया था. हरिओम के पिता शिवबरन, फतेहपुर जिले के गांव लमेहटा के रहने वाले थे. उन के परिवार में पत्नी गेंदावती के अलावा 2 बेटे हरिओम व राममिलन थे. हरिओम जेसीबी चालक था, जबकि राममिलन पिता के कृषि कार्य में हाथ बंटाता था.

एक तरह से सुनीता और हरिओम की शादी बेमेल थी. हरिओम उम्र में तो बड़ा था, साथ ही वह सांवले रंग का भी था. जबकि सुनीता सुंदर थी और चंचल भी. इस के बावजूद उस के घरवालों ने हरिओम को पसंद कर लिया था. इस की वजह यह थी कि हरिओम जेसीबी चला कर अच्छा पैसा कमाता था.

हरिओम जहां सुनीता को पा कर खुश था, वहीं सुनीता उम्रदराज और सांवले रंग के पति को पा कर जरा भी खुश नहीं थी. शादी से पहले उस के मन में पति को ले कर जो सपने थे, वे चकनाचूर हो गए थे.
शादी के एक साल बाद सुनीता ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम हर्ष रखा. इस के बाद एक बेटी का जन्म हुआ. 2 बच्चों की किलकारियों से सुनीता का घरआंगन गूंजने लगा.

सुनीता की अपने देवर राममिलन से खूब पटती थी. इस की वजह यह थी कि एक तो वह हमउम्र था, दूसरे सुनीता, राममिलन के बात व्यववहार से काफी प्रभावित थी. वह अपने देवर का हर तरह से खयाल रखती थी.

इसी वजह से राममिलन सुनीता के आकर्षण में बंध कर उस के नजदीक आने की कोशिश करने लगा. यही नहीं, वह उस की खूब तारीफ करता और उसे प्रभावित करने के लिए कभीकभार वह उस के लिए कोई उपहार भी ले आता.

हरिओम ड्राइवर था, सो पक्का शराबी था. अकसर वह झूमता हुआ घर वापस आता. वह कभी थोड़ाबहुत खाना खा कर तो कभी बिना खाए ही सो जाता था. सुनीता 2 बच्चों की मां जरूर थी, लेकिन अभी उस में पति का साथ पाने की प्रबल इच्छा थी. लेकिन हरिओम तो बिस्तर पर लेटते ही खर्राटे भरने लगता था. तब सुनीता मन मसोस कर रह जाती थी.

आखिर पति से जब उसे शारीरिक सुख मिलना बंद हुआ तो उस ने विकल्प की खोज शुरू कर दी.
सुनीता स्वभाव से मिलनसार थी. राममिलन भाभी के प्रति सम्मोहित था. जब दोनों साथ चाय पीने बैठते, तब सुनीता उस से खुल कर हंसीमजाक करती. सुनीता का यह व्यवहार धीरेधीरे राममिलन को ऐसा बांधने लगा कि उस के मन में भाभी सुनीता का सौंदर्य रस पीने की कामना जागने लगी.

एक दिन राममिलन खाना खाने बैठा, तो सुनीता थाली ले कर आई और जानबूझ कर गिराए गए आंचल को ढंकते हुए बोली, ‘‘लो देवरजी, खाना खा लो, आज मैं ने तुम्हारी पसंद का खाना बनाया है.’’
राममिलन को भाभी की यह अदा बहुत अच्छी लगी. वह उस का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘भाभी, तुम भी अपनी थाली परोस लो, साथ खाने में मजा आएगा.’’

सुनीता अपने लिए भी खाना ले आई. खाना खाते समय दोनों के बीच बातों का सिलसिला जुड़ा तो राममिलन बोला, ‘‘भाभी, तुम सुंदर व सरल स्वभाव की हो, लेकिन भैया ने तुम्हारी कद्र नहीं की. मुझे पता है, वह अपनी कमजोरी की खीझ तुम पर उतारते हैं. लेकिन मैं तुम्हें प्यार करता हूं.’’

यह कह कर राममिलन ने सुनीता की दुखती रग पर हाथ रख दिया था. सच में सुनीता पति से संतुष्ट नहीं थी. उसे न तो पति से प्यार मिल रहा था और न ही शारीरिक सुख, जिस से उस का मन विद्रोह कर उठा. उस का मन बेईमान हो चुका था. आखिर उस ने फैसला कर लिया कि अब वह असंतुष्ट नहीं रहेगी. चाहे इस के लिए उसे रिश्तों को तारतार क्यों न करना पड़े.

औरत जब जानबूझ कर बरबादी की राह पर कदम रखती है, तो उसे रोक पाना मुश्किल होता है. यही सुनीता के साथ हुआ. सुनीता जवान भी थी और पति से असंतुष्ट भी, अत: उस ने देवर राममिलन के साथ नाजायज रिश्ता बनाने का निश्चय कर लिया.

राममिलन वैसे भी सुनीता का दीवाना था. देवर राममिलन गबरू जवान था, दूसरे कुंवारा था. उस पर दिल आते ही सुनीता उसे अपने प्यार के भंवर में फंसाने की कोशिश करने लगी. भाभीदेवर के रिश्ते की आड़ में सुनीता राममिलन से ऐसेऐसे मजाक करने लगी कि राममिलन के शरीर में सिहरन सी होने लगी. जल्दी ही उस का मन स्त्री सुख के लिए बेचैन होने लगा.

एक शाम सुनीता बनसंवर कर बिस्तर पर लेटी थी, तभी राममिलन आ गया. वह उस की खूबसूरती को निहारने लगा. सुनीता को राममिलन की आंखों की भाषा पढ़ने में देर नहीं लगी. सुनीता ने उसे करीब बैठा लिया और उस का हाथ सहलाने लगी. राममिलन के शरीर में हलचल मचने लगी.