डाक्टर का प्रेम नर्स की खुदकुशी

सिपाही की शादी बनी बरबादी

धोखे में लिपटी मौत ए मोहब्बत – भाग 1

पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ के सेक्टर-45 स्थित बुड़ैल मोहल्ले में एक किराए का कमरा ले कर 45 वर्षीय चंपा देवी 2बच्चों (बड़ी बेटी ममता और बेटा छोटू) के साथ रहती थी. उस का पति किशन किसी कारणवश उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में स्थित अलाहपुर गांव में अकेला रहता था. वह गांव में खेतीकिसानी करता था. यहां रह कर चंपा दोनों बच्चों की परवरिश के लिए घरों में चौकाबरतन करती थी.

चंपा देवी का सपना था कि दोनों बच्चों पढ़ालिखा कर उन्हें इतना काबिल बना दे कि वो किसी दूसरे के सामने हाथ फैलाने के बजाय अपने पैरों पर मजबूती से खड़े हो सकें, चाहे इस के लिए उसे दिनरात हाड़तोड़ मेहनत ही क्यों न करनी पड़े. वह बच्चों के भविष्य से कोई समझौता नहीं कर सकती थी.  मां के त्याग और तपस्या को देख कर ममता और छोटू के भी मन में ऐसी भावना जाग रही थी. लेकिन एक दिन चंपा देवी को बच्चों की वजह से अपने सपनों पर पानी फिरता नजर आया.

उस रोज 19 नवंबर, 2022 की तारीख थी और दोपहर के ठीक 3 बज रहे थे. छोटू रोज इसी टाइम स्कूल से घर लौटता था और उस दिन भी जब स्कूल से छुट्टी के बाद घर वापस लौटा तो घर का दरवाजा खुला देख कर उसे बड़ा अजीब लगा.  कुछ सोचता हुआ वह अपने कमरे में दाखिल हुआ तो बैड पर बड़ी बहन ममता को अस्तव्यस्त हालत में लेटे हुए देख कर वह परेशान हो गया था.

उस ने बहन को जोरजोर झकझोर कर उठाने की कोशिश की, लेकिन ममता जरा भी टस से मस नहीं हुई. छोटू हैरान हो गया. स्कूल का बैग एक ओर रखते हुए वह बैड पर बैठ गया और ‘दीदी, उठो ना. दीदी उठो. जोरों की भूख लगी है. मुझे कुछ खाने को दो न.’ कहते हुए ममता को फिर से झकझोर कर उठाने की कोशिश कर रहा था. लेकिन ममता थी कि उठने का नाम ही नहीं ले रही थी.

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ममता जब नींद से नहीं उठी और उस के शरीर में कोई हरकत नहीं हुई तो वह डर गया कि पता नहीं दीदी को क्या हुआ है, जो इतना झकझोरने पर भी कुछ नहीं बोल रही है. 12 साल का छोटू था तो बहुत ही समझदार, लेकिन उस वक्त उस की समझ भी नासमझी में खो गई थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह करे तो क्या करे? उस की मां चंपा देवी भी घर पर नहीं थी.

घर में मरी पड़ी थी ममता

छोटू जब एकदम परेशान हो गया और उस की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे और मदद के लिए किसे पुकारे. उस ने मां को फोन लगाया और उसे पूरी बात बता दी. बेटे की बात सुन कर चंपा भी परेशान हो गई और काम बीच में ही छोड़ कर वापस घर लौट आई. उस ने बैड पर पड़ी बेटी को ध्यान से देखा तो उस के कपड़े अस्तव्यस्त थे. उस के बाल ऐसे बिखरे थे जैसे किसी ने उस बाल पकड़ कर उसे खींच दिया हो. शरीर भी नीला था.

चंपा ने चीखचीख कर पड़ोसियों को इकट्ïठा किया और बेटी को अस्पताल पहुंचाने में मदद मांगी. पड़ोसियों ने उस की मदद की और उसे एक निजी वाहन से मल्टी स्पैशियलिटी हौस्पिटल, सेक्टर-16 ले गए, जहां डाक्टरों ने ममता को देखते ही मृत घोषित कर दिया. बेटी की मौत की खबर सुनते ही चंपा देवी और छोटू दहाड़ मार कर रोने लगे थे. चूंकि यह पुलिस केस का था, इसलिए अस्पताल से सेक्टर-34 थाने में फोन कर के मौके पर पुलिस को बुला लिया गया था.

थाना सेक्टर-34 के एसएचओ नरेंद्र पटियाल मौके पर दलबल के साथ पहुंचे और शव का परीक्षण किया. मामला पहली नजर में दुष्कर्म के बाद हत्या का लग रहा था, लेकिन पुलिस पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने से पहले किसी भी नतीजे पर नहीं जा सकती थी. अलबत्ता लाश को अपने कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए पीजीआई चंडीगढ़ भेज दी. पुलिस ने चंपा देवी की तरफ से अज्ञात के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट लिख कर आगे की काररवाई शुरू कर दी. इस से पहले एसएचओ ने घटना की सूचना एसएसपी सुखचैन सिंह गिल और डीएसपी रामगोपाल को दे दी थी.

अगले दिन यानी 20 नवंबर की सुबह पुलिस घटना की छानबीन करने चंपा देवी के कमरे पर पहुंची, जहां घटना का जन्म हुआ था. इंसपेक्टर पटियाल ने मृतका ममता की मां चंपा देवी और उस के बेटे से पूछताछ की. चंपा ने पुलिस को बताया कि लोगों के घरों में काम करती थी. रोजाना की तरह कल सुबह भी वह काम पर निकल गई थी और छोटा बेटा स्कूल पढऩे गया था. बेटी घर पर अकेली थी.

पुलिस ने चंपा देवी से पूछा कि क्या उन को किसी पर शक है, जो घटना को अंजाम दे सकता है? इस पर वह सोचती हुई आगे बोली, ‘‘साहब, हम को तो एक मुसलिम लडक़े पर शक है. जिस का मोहम्मद शारिक नाम है. पिछले कई महीनों से वह बेटी को परेशान कर रहा था. हो सकता है, उसी ने बेटी को मार डाला हो.’’

मां ने जताया प्रेमी शारिक पर शक

घटनास्थल भी चीखचीख कर कह रहा थी कि इस में कोई ऐसा शख्स शामिल हो सकता है, जिसे पहले से पता था कि ममता घर पर अकेली है. इस का फायदा उठा कर उस ने हत्या कर दी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ चुकी थी. मृतका के साथ जिस दुष्कर्म को ले कर पुलिस आशंकित हुई थी, रिपोर्ट में दुष्कर्म की बात सिरे से खारिज कर दी गई थी. रिपोर्ट में बताया कि दम घुटने से ममता की मौत हुई थी.

जिस शारिक का चंपा देवी ने पुलिस के सामने नाम लिया था, वर्षों पहले एक ही मोहल्ले में आमनेसामने किराए के कमरे में रहते थे. फिर बाद के दिनों में शारिक ने वह कमरा छोड़ दिया और कहीं और किराए का कमरा ले कर शिफ्ट हो गया था.  पास में रहने पर दोनों परिवार एकदूसरे को अच्छी तरह जानतेपहचानते थे. उन का एकदूसरे के घरों में जानाआना और बैठना तसल्ली से होता था. ममता और शारिक काफी घुलमिल चुके थे.

बहरहाल, शारिक अब कहां रहता है, किसी को कुछ नहीं पता था. पुलिस को चंपा इतना ही बता सकी थी कि वह किसी बड़े होटल में डिलीवरी बौय का काम करता है. अब वह कहां रहता है, चंपा देवी को पता नहीं था. पुलिस इस बात की तसदीक में जुटी हुई थी ममता के मर्डर में शारिक का क्या मकसद हो सकता है? इस का पता तो तभी लग सकता है जब वह पुलिस की गिरफ्त में आए. फिलहाल पुलिस ने ममता और शारिक के बीच में क्या रिश्ता हो सकता है अथवा उस की हत्या क्यों की? इस मकसद को खोलने के पीछे जुटी हुई थी.

जल्द ही पुलिस को इस पर बड़ी कामयाबी हासिल हो गई थी. पुलिस ने मृतका के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई और उस के गहन अध्ययन से पता चला कि घटना वाले दिन शारिक और ममता की कुछ देर तक आपस में बातचीत हुई थी. यही नहीं, दोपहर के करीब में शारिक की लोकेशन मृतका के घर के करीब थी. और तो और जांचपड़ताल में यह भी पता चला कि दोनों के बीच में वर्षों से प्रेम संबंध चल रहा था.

प्रेम संबंधों में खटास बनी हत्या की वजह

इस का पता मृतका की मां और भाई दोनों को भी था. कुछ दिनों से इन दोनों के बीच कुछ अनबन चल रही थी. अनबन क्यों थी? पुलिस को पता नहीं चल सका, लेकिन ये बात शीशे की तरह साफ हो गई थी ममता की मौत प्रेम संबंधों में खटास की वजह से हुई थी. दोनों के बीच में अनबन क्यों थी? इस का पता तभी लग सकता था, जब संदिग्ध शारिक पुलिस के हत्थे चढ़ता. उस की तलाश में पुलिस जुटी हुई थी. यही नहीं, उस का पता लगाने के लिए पुलिस ने अपने मुखबिरों का जाल भी बिछा दिया था.

एयर फोर्स सार्जेंट ने रची जर, जोरू और जमीन हथियाने की साजिश- भाग 5

डा. गौरव को मुदित और प्रियंका के बीच अवैध संबंधों का पता नहीं चला. क्योंकि उन का मिलन ऐसे समय होता था, जब डा. गौरव क्लीनिक पर होते थे. मुदित दोहरा गेम खेलने लगा था. एक ओर तो वह दोस्ती की आड़ में डाक्टर की इज्जत से खेल रहा था. दूसरी ओर वह दोस्ती कायम रख डाक्टर का विश्वास जीत रहा था.

डा. गौरव उस पर पत्नी से ज्यादा विश्वास करते थे. मुदित को जब भी पैसों की जरूरत होती थी, वह डा. गौरव से मांग लेता था. लेकिन रकम कभी लौटाता नहीं था. इस तरह उस ने लाखों रुपया डा. गौरव से ले लिया था. जब कभी डा. गौरव पैसों की डिमांड करता तो वह प्लौट बेच कर पैसा देने की बात कह देता.

डा. गौरव व उस के मातापिता ने अकूत संपत्ति अर्जित की थी. शिकोहाबाद, उन्नाव व लखनऊ में डा. गौरव के नाम लगभग 60 करोड़ की संपत्ति (मकान/प्लौट के रूप में) थे. इस संपत्ति पर मुदित की गिद्धदृष्टि थी. वह डा. गौरव की जर, जोरू और जमीन हथियाना चाहता था. इसी लालच में उस ने डा. गौरव की पत्नी को अपने प्रेमजाल में फंसा लिया था. वह हर रोज प्रियंका से एकदो घंटे फोन पर बातें करता था.

लगभग 3 महीने पहले डा. गौरव ने मुदित को प्रियंका के साथ अश्लील हरकतें करते देख लिया था. तब से उन्हें शक हो गया था कि मुदित श्रीवास्तव और प्रियंका के बीच अवैध रिश्ता है. वह अपने दर्द को कभीकभी बातों ही बातों में बयां भी कर देते थे. एक रोज उन्होंने तंज कसा, “मुदित, तुम्हें अब किस बात की चिंता, तुम ने तो मेरे निजी जीवन में भी दखल देना शुरू कर दिया है.’’

सार्जेंट मुदित को लगने लगा डा. गौरव से डर…

मुदित श्रीवास्तव ने डा. गौरव के तंज का जवाब तो नहीं दिया, लेकिन वह समझ गया कि डा. गौरव को उस पर शक हो गया है. उसे इस बात का डर सताने लगा कि डा. गौरव उस की हत्या न कर दे. इस डर ने मुदित को इतना उकसाया कि वह सोचने लगा कि यदि उस ने डा. गौरव की हत्या नहीं की तो वह उसे ही मरवा देगा. आखिर उस ने डा. गौरव की हत्या का फेसला ले लिया और उचित समय का इंतजार करने लगा.

13 मार्च, 2023 की शाम 7 बजे जब डा. गौरव अपनी क्रेटा कार से उस के सरकारी आवास पहुंचे तो उस समय मुदित श्रीवास्तव घर पर ही था. उस की पत्नी नेहा बेटी का इलाज कराने लखनऊ गई थी. डा. गौरव उस वक्त नशे में थे. उचित मौका देख कर उस ने घर पर ही डाक्टर को और शराब पिलाई. इतनी शराब पिलाई कि वह अपने पैरों पर खड़े होने की स्थिति में नहीं रहे.

उस के बाद मुदित उन की क्रेटा कार से डा. गौरव को हाइवे पर ले गया. वहां सुनसान जगह पर कार रोकी. फिर डा. गौरव को कार से बाहर निकाला. उस के बाद सडक़ किनारे लगे बड़े पत्थर से डा. गौरव का सिर पटकपटक कर मार डाला. फिर शव को हाइवे किनारे जंगल में फेंक दिया. उस के बाद क्रेटा कार ले कर वह अपने सरकारी आवास आ गया.

इधर डा. गौरव जब घर नहीं पहुंचे तो पत्नी प्रियंका सिंह ने थाना चकेरी में गुमशुदगी दर्ज कराई. गुमशुदगी दर्ज होने के बाद पुलिस को डा. गौरव के दोस्त मुदित पर शक हुआ. शक के आधार पर पुलिस ने जब उस से कड़ाई से पूछताछ की तो मुदित टूट गया और उस ने हत्या का जुर्म कुबूल कर डा. गौरव के शव को बरामद करा दिया. मृतक डा. गौरव की पत्नी प्रियंका सिंह का कहना है कि आरोपी मुदित श्रीवास्तव उसे बदनाम करने के लिए नाजायज रिश्तों की कहानी गढ़ रहा है.

प्रियंका ने प्रेम संबंधों को नकारते हुए कहा कि मुदित ने पिछले कई सालों के दौरान गौरव से 45 से 50 लाख रुपए का कर्ज ले रखा था. क्रेटा कार भी मुदित के नाम ही है. रुपया और कार न लौटाना पड़े, इसलिए उस ने पति की हत्या कर दी. उस ने ट्वीट कर इस की जानकारी मुख्यमंत्री व अन्य आला अधिकारियों को भी दी.

16 मार्च, 2023 को पुलिस ने हत्यारोपी मुदित श्रीवास्तव को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया. मृतक के पिता डा. प्रबल प्रताप सिंह ने पुलिस कमिश्नर वी.पी. जोगदंड से अपनी व परिवार की सुरक्षा की गुहार लगाई है. उन्होंने अपनी जान का खतरा बताया है.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

एयर फोर्स सार्जेंट ने रची जर, जोरू और जमीन हथियाने की साजिश- भाग 4

तलाक के बाद डा. रुचि बरेली में पिता के मकान में रहने लगी. वहां उन्होंने अपना क्लीनिक खोल लिया. इधर डा. गौरव पत्नी से तलाक के बाद तनहा जिंदगी बिताने लगे. उन की शराब की लत भी बढ़ गई. डा. गौरव के कई शराबी दोस्त थे. इन्हीं में एक था मुदित श्रीवास्तव. मुदित श्रीवास्तव संपन्न परिवार का था. उस के पिता मिथलेश श्रीवास्तव सिविल लाइंस उन्नाव में रहते थे.

मिथलेश के 3 बेटे मनीष, मोहित व मुदित थे. मनीष दिल्ली में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) में कार्यरत था और परिवार सहित वहीं रहता था. जबकि मोहित, अमेरिका (शिकागो) में इंजीनियर है. सब से छोटा मुदित वायुसेना में सार्जेंट पद पर लुधियाना (पंजाब) में तैनात था. घर पर मिथलेश श्रीवास्तव पत्नी के साथ रहते थे. वह फजलगंज (कानपुर) में एक फैक्ट्री में कार्यरत थे.

मुदित श्रीवास्तव से डा. गौरव की दोस्ती उन के मित्र अनिल के माध्यम से हुई थी. चूंकि मुदित खानेपीने का शौकीन था. सो जल्दी ही दोनों के बीच गहरी दोस्ती हो गई. डा. गौरव उसे अपने भाई जैसा मानने लगे और हर बात उस से साझा करने लगे. मुदित उन दिनों लुधियाना (पंजाब) में तैनात था. वह जब भी छुट्ïटी पर घर आता तो डा. गौरव के साथ ही रहता. उसी के साथ हर शाम महफिल भी जमती. महफिल का खर्च डा. गौरव ही करते थे.

एक रोज ड्रिंक्स के दौरान डा गौरव ने मुदित श्रीवास्तव से एक कार खरीदने की इच्छा जाहिर की. इस पर उस ने कहा कि यदि वह उस की एयर फोर्स कैंटीन से कार खरीदेगा तो उसे लगभग 2 लाख का फायदा होगा. डा. गौरव के राजी होने पर मुदित ने लुधियाना की एयर फोर्स कैंटीन से क्रेटा कार खरीदवा दी. यह क्रेटा कार थी तो मुदित के नाम लेकिन पैसा डा. गौरव ने दिया था और डा. गौरव ही चलाते थे. इस कार से मुदित और गौरव लद्ïदाख तक घूम आए थे.

दोस्त मुदित ने करा दी प्रियंका से शादी…

इन्हीं दिनों मुदित का ट्रांसफर लुधियाना से कानपुर एयर फोर्स चकेरी हो गया. वह सरकारी आवास एच 2/4 आकाश गंगा विहार कालोनी में अपनी पत्नी नेहा के साथ रहने लगा. नेहा लखनऊ की रहने वाली थी. उस के एक बेटी है. उस का तालू (जन्म से) कटा हुआ था. उस का इलाज लखनऊ के अस्पताल में चल रहा था.

मुदित का ट्रांसफर कानपुर हुआ तो उस का मिलनाजुलना डा. गौरव से ज्यादा हो गया. अब वह शनिवार व रविवार को अपने घर उन्नाव आता और डा. गौरव के साथ रहता. दोनों साथ घूमते और होटल पर खाना खाते. इन्हीं दिनों डा. गौरव व मुदित ने लखनऊ के दुबग्गा में अगलबगल प्लौट खरीदा. प्लौट खरीदने में 7 लाख रुपए डा. गौरव ने मुदित को दिए. उस ने यह रकम जल्द ही लौटाने का वादा किया.

मुदित श्रीवास्तव को पता था कि डा. गौरव का अपनी पत्नी से तलाक हो गया है और वह तनहा जिंदगी बिता रहा है. इसलिए उस ने एक रोज डा. गौरव को सलाह दी कि वह दूसरी शादी कर ले और आराम की जिंदगी बिताए. डा. गौरव पहले तो इंकार करते रहे, लेकिन ज्यादा जोर देने पर मान गए. इस के बाद डा. गौरव के लिए लडक़ी की तलाश शुरू हुई. यह तलाश प्रियंका पर जा कर खत्म हुई.

प्रियंका के पिता कमल सिंह कानपुर नगर के नौबस्ता थाने के राजीव विहार कालोनी में रहते थे. कमल सिंह के परिवार में पत्नी कमलेश के अलावा 2 बेटियां प्रियंका व दीपिका थीं. कमल सिंह किसान थे. उन की आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं थी. बड़ी बेटी प्रियंका के विवाह के लिए वह प्रयासरत थे. ऐसे में एक परिचित छुन्नू के मार्फत डा. गौरव का रिश्ता आया तो वह राजी हो गए. हालांकि डा. गौरव दुजहा थे और उम्र में भी बड़े थे.

प्रियंका बेहद खूबसूरत थी. पहली ही नजर में डा. गौरव ने उसे पसंद कर लिया था. प्रियंका को भी डा. गौरव अच्छे लगे. दोनों की पसंद के बाद जनवरी, 2018 में डा. गौरव ने आर्यसमाज में प्रियंका के साथ विवाह कर लिया. विवाह के बाद प्रियंका डा. गौरव की पत्नी बन कर ससुराल आ गई. ससुराल में सभी भौतिक सुखसुविधाएं थीं. उसे किसी चीज की कमी नहीं थी. पति भी चाहने वाला मिला था. सब कुछ ठीक चल रहा था. शादी के एक साल बाद प्रियंका ने एक बेटे को जन्म दिया. बेटे के जन्म से डा. प्रबल प्रताप सिंह को बेहद खुशी हुई. क्योंकि उन के वंश को बढ़ाने वाला आ गया था.

अब तक डा. प्रबल प्रताप सिंह व उन की पत्नी रिटायर हो चुके थे. लेकिन दोनों शिकोहाबाद में ही रहते थे. क्योंकि वहां उन का मकान प्लौट था. मुदित श्रीवास्तव ने पुलिस को बताया कि उस का डा. गौरव के घर बेरोकटोक आनाजाना था. घर आतेजाते उस की नजर प्रियंका की खूबसूरती पर पड़ी तो वह उस का दीवाना बन गया और उस से नजदीकियां बढ़ाने लगा. वह जब भी आता, प्रियंका से मीठीमीठी बातें करता तथा हंसीठिठोली करने लगता. धीरेधीरे प्रियंका को भी उस की बातें अच्छी लगने लगीं.

प्रियंका को चाहने लगा सार्जेंट मुदित श्रीवास्तव…

एक रोज प्रियंका बाथरूम से निकली और हल्का मेकअप किया. तभी मुदित आ गया. वह प्रियंका के खूबसूरत चेहरे पर नजरेंगड़ाते हुए बोला, ‘‘भाभी, तुम बहुत खूबसूरत हो. तुम ने मुझे अपने रूप का दीवाना बना दिया है. मैं ने जब से तुम्हें देखा है, चैन से जी नहीं पा रहा हूं. मैं तुम्हें जब भी डा. गौरव के साथ देखता हूं, मेरा मन कसैला हो जाता है.’’

प्रियंका ने एक नजर मुदित के चेहरे पर डाली फिर बोली, ‘‘मुदित, मैं शादीशुुदा और एक बच्चे की मां हूं. तुम भी शादीशुदा और एक बच्ची के पिता हो. फिर यह दीवानगी कैसी?’’ लेकिन मुदित ने प्रियंका की बात पर ध्यान नहीं दिया. उस ने प्रियंका को रिझाना जारी रखा.

मुदित ने आगे बताया कि इस के बाद वह अकसर प्रियंका के घर आने लगा. वह घंटों उस के घर पड़ा रहता. प्रियंका को भी उस की बातों में रस आने लगा था. आखिर एक दोपहर देवरभाभी के पवित्र रिश्ते की शालीन दीवार ढह ही गई. दोनों को जानबूझ कर की गई इस गलती का पछतावा भी नहीं हुआ. उलटे उन के बीच हया की चादर तारतार होती रही.

पबजी का प्यार

जेबा अंडमान के डालीगंज इलाके में रहती थी. उस की उम्र 14 साल थी. वह स्थानीय स्कूल के 8वीं कक्षा में पढ़ती थी. जेबा के पिता सुलेमान अंडमान के एयरपोर्ट पर एजेंट थे. जबकि उस की मां हसीना बानो एक आम घरेलू औरत थीं. बचपन से ही उसे मोबाइल पर वीडियो गेम खेलने का शौक था. कुछ दिनों पहले मोबाइल प्रेमियों के बीच पबजी नाम का एक नया गेम आया था, जिस में किशोर उम्र के बच्चे खूब रुचि लेतेथे. देखते ही देखते यह गेम दुनिया भर के बच्चों के बीच लोकप्रिय हो गया.

एक दिन जेबा को उस की सहेली फातिमा ने इस गेम के बारे में बताया तो उस ने भी पबजी खेलना शुरू किया. इस गेम में एक बैटलग्राउंड है, जिस में उसे विरोधी खिलाड़ी के मोहरों पर निशाना लगाना पड़ता था. इस गेम की खूबी थी कि एक खिलाड़ी घर पर औनलाइन रह कर सैकडों किलोमीटर दूर दुनिया के किसी भाग में स्थित अजनबी पार्टनर के साथ भी खेल सकता है. हालांकि दोनों पार्टनर अपनेअपने मोबाइल फोन पर दूसरे खिलाड़ी की चाल को देख सकते थे. मजे की बात थी कि वे आपस में अजनबी होते थे.  जेबा को इसे खेलने में दूसरे गेम से कहीं ज्यादा मजा आ रहा था. स्कूल से लौटने के बाद उसे जब भी मौका मिलता, वह पबजी गेम खेलने में मशगूल हो जाती थी.

एक दिन कि बात है. जेबा औनलाइन पबजी गेम खेल रही थी तो इस दौरान उस की मुलाकात एक नए प्रतिद्वंदी खिलाड़ी से हुई. यह प्रतिद्वंदी उस के साथ बड़ी चतुराई से खेल रहा था. गेम के दौरान जेबा ने उसे मात देने की पूरी कोशिश की, मगर काफी दिमाग लड़ाने के बाद भी वह उसे गेम में नहीं हरा सकी. अलबत्ता वह हर बार हार जरूर गई. हालांकि यह बात अलग थी कि हार जाने के बावजूद उसे खेल में बहुत मजा आया था. उस दिन के बाद जब भी जेबा को मौका मिलता, वह उस खिलाड़ी के साथ गेम जरूर खेलती थी. उधर जेबा का प्रतिद्वंद्वी भी उस के औनलाइन होने का इंतजार करता था.

जेबा के पिता सुलेमान उसे बहुत प्यार करते थे. वह उन की एकलौती बेटी थी. दुनिया के हर पिता की तरह सुलेमान भी बेटी की सभी फरमाइश पलक झपकते ही पूरी करने की कोशिश करते. हालांकि पिछले कुछ दिनों से बेटी को हर समय मोबाइल गेम में डूबा हुआ देख कर उन्हें दुख भी होता था पर वह बेटी से ज्यादा डांटडपट इसलिए नहीं करते थे क्योंकि वह अब बड़ी हो रही थी. उन के डांटने का प्रभाव गलत भी पड़ सकता था.

सुलेमान जब तक घर में मौजूद होते, जेबा पढ़ाई करती लेकिन जैसे ही वह किसी काम से घर से बाहर निकलते वह मोबाइलपर गेम खेलने बैठ जाती थी. मां की डांटडपट का उस पर कोई असर नहीं पड़ता था. एक भी दिन पबजी खेले बिना उस के दिल को चैन नहीं मिलता था. धीरेधीरे जेबा को इस खेल की लत पड़ गई. साथ ही वह इस अजनबी खिलाड़ी की मुरीद बन गई. वह रोज उसे हराने का प्रयास करती, लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद वह कभीकभार ही उसे हराने में सफल हो पाती थी.

पबजी का प्यार…

एक दिन जब वह गेम खेल रही थी, उस के किशोर मन में इस अजनबी खिलाड़ी के बारे में जानने की उत्सुकता हुई. उस ने मैसेज भेज उस का मोबाइल नंबर पूछ ही लिया. दरअसल, इस औनलाइन गेम में दूसरी तरफ से कौन खेल रहा है, इस का पता पहले खिलाड़ी को तब तक नहीं चल पाता जब तक कि दूसरा खिलाड़ी खुद अपनी असलियत उस पर जाहिर न करे. जेबा के मैसेज का जवाब उस के मोबाइल पर तुरंत ही आ गया. उस खिलाड़ी ने अपना नाम बंटू बताया. उस ने अपना मोबाइल नंबर भी भेजा था.

बंटू का मोबाइल नंबर जानने के बाद जेबा ने उस के मोबाइल पर फोन कर उस से बात की. जेबा से बात कर के बंटू बहुत खुश हुआ. वह यह सोच कर खुशी के मारे फूला नहीं समा रहा था कि लडक़ी खुद ही उस में रुचि लेने लगी थी. इस के अलावा जेबा की आवाज भी बड़ी मीठी थी. बंटू ने भी जेबा को अपने बारे में बताया तो जेबा को पता चला कि वह उस से उम्र में 5 साल बड़ा था. फिर भी दोनों लगभग हमउम्र थे और उन के खयालात भी एकदूसरे से काफी मिलते थे. इस कारण कुछ ही दिनों में उन के बीच दोस्ती हो गई. वे गेम खेलने के साथ साथ फेसबुक फ्रैंड भी बन गए और हर समय एकदूसरे के संपर्क में रहने लगे.

हालांकि जेबा मांबाप की नजरों से बच कर गेम खेलने की कोशिश करती, जिस से उन की नजरों में वह अच्छी बनी रहे. जेबा और बंटू की यह दोस्ती जल्दी ही प्यार में बदल गई. बाली उम्र का यह इश्क समय के साथ परवान चढ़ता जा रहा था. दोनों का पसंदीदा मोबाइल गेम पबजी था, जिसे वे रोज खेला करते थे. गेम खेलने के अलावा वे प्यार की उड़ान में फोन पर दुनिया भर की बातें करते थे.

एक ओर बंटू अपनी प्यार भरी बातों से जेबा का दिल जीतने की कोशिश करता तो दूसरी ओर जेबा भी अपनी मीठीमीठी बातों से उसे खुश रखती थी. बातों ही बातों में उन का वक्त कैसे गुजर जाता, इस का उन्हें पता ही नहीं चलता था. खेलखेल में हुआ प्यार उन्हें बेचैन किए जा रहा था. जिस दिन वे किसी कारण आपस में बात नहीं कर पाते तो उन का दिल तब तक बेचैन रहता, जब तक कि वे अपना हालेदिल एकदूसरे से बयां नहीं कर देते थे. बंटू को लगने लगा था कि जेबा के बिना उस की जिंदगी अधूरी है. कुछ यही हालत जेबा की थी.

अंडमान की प्रेमिका पहुंची बरेली…

समय का कारवां अपनी रफ्तार से आगे बढ़ता रहा. सोलहवां साल किसी भी लडक़ी के जीवन का सब से सुनहरा दौर होता है. इन दिनों विपरीत सैक्स का आकर्षण उस के सिर पर चढ़ कर बोलता है. 16 साल की हो चुकी जेबा इन दिनों 10वीं में पढ़ रही थी. नाबालिग का प्यार बढ़ता ही जा रहा था, जिस से उस का जी पढ़ाई में जरा भी नहीं लगता था. उसे लगता था किअब बंटू से मिलने के लिए उसे ही कुछ करना होगा.

हालांकि इस दौरान बंटू ने जेबा को अपने बारे में बता दिया कि वह एक मामूली घर का लडक़ा है. घर की माली हालत भी अच्छी नहीं है. उस के पिता सब्जी बेचने का काम करते हैं, जबकि वह खुद शादियों में सजावट करने का काम करता है. एक और भाई है जो कोई प्राइवेट नौकरी करता है.  बंटू की माली हालत के बारे में सुन कर भी जेबा के प्यार में कोई कमी नहीं आई. अपने घर की सारी सुखसुविधाएं छोड़ कर वह हर हाल में उस के साथ रहने को तैयार थी.

इस प्रकार देखते ही देखते 3 साल निकल गए. इन 5 सालों में जेबा और बंटू एकदूसरे के दिल के इतने करीब आ गए कि अब उन्हें एकदूसरे से दूर रहना मुश्किल लगने लगा. जेबा रोज बंटू के साथ अपने भावी जीवन को ले कर तरहतरह के सपने संजोती रहती थी. लेकिन जेबा के सामने एक समस्या यह थी कि एक तो वह अभी नाबालिग थी दूसरे उन की जाति और धर्म अलग थी, इसलिए परिवार की रजामंदी से उन की शादी होने का सवाल ही पैदा नहीं होता था. इसलिए जेबा खामोशी के साथ बंटू से मिलने की योजना बनाने लगी. बंटू कदमकदम पर उस का साथ देने के लिए तैयार था. यानी जेबा बंटू की मोहब्बत परवान चढ़ रही थी.

22 जनवरी, 2023 की आधी रात को जब जेबा के घर के सभी लोग गहरी नींद में थे, वह मौका देख कर घर से निकल गई. सुबह होने पर हसीना बानो की आंखें खुलीं तो बेटी को घर में नहीं पा कर उन के होश उड़ गए. उन्होंने जल्दी से जेबा के मोबाइल नंबर पर काल की तो उस का मोबाइल स्विच्ड औफ मिला. यह देख कर वह घबरा गई. जल्दी से हसीना ने अपने पति को जगाया और जेबा के घर से गायब होने के बारे में बताया.

बेटी के घर में नहीं होने की बात सुन कर सुलेमान ने अपना सिर पकड़ लिया. इस के बाद पहले तो उन दोनों ने अपने सभी नातेरिश्तेदारों के घर फोन कर जेबा का पता लगाने की कोशिश की, लेकिन जब कहीं से भी उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो वे स्थानीय अंडमान के पहाड़ गांव थाने में पहुंचे और अपनी बेटी जेबा की गुमशुदगी की सूचना दर्ज करा दी.

जेबा का पता लगाने के लिए पहाड़ गांव थाने की महिला एसआई अग्नेश बरथोलोम के नेतृत्व में एक टीम बनाई, जिस मे एसआई प्रदीप और एक अन्य एसआई को शामिल किया. जेबा का मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगाया तो उस के मोबाइल की लोकेशन अंडमान से हजारों किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के जिला बरेली के कस्बा फरीदपुर इलाके में मिली. 29 जनवरी को यह पुलिस टीम अंडमान निकोबार से चल कर उत्तर प्रदेश के फरीदपुर कस्बा में पहुंची और वहां की लोकल पुलिस की मदद से जेबा का पता लगाने में जुट गई.

21 वर्षीय बंटू यादव फरीदपुर थाने के परा मोहल्ले में साईं मंदिर के निकट किराए के मकान में रहता है. 28 जनवरी, 2023 को अंडमान से आई पुलिस टीम ने बंटू के घर पर दबिश दी तो पता चला बंटू जेबा के साथ अपनी मौसी के दातागंज स्थित घर में जा कर छिपा है. वहां छापा मारने पर पुलिस को जेबा मिल गई, मगर बंटू यादव को अपने पीछे पुलिस के पडऩे की भनक लग चुकी थी, इसलिए वह डर से फरार हो गया था.

एसआई अग्नेश बरथोलोम की टीम जेबा को अपने कब्जे में ले कर फरीदपुर थाने लौट गई. थाने में भी जेबा ने काफी ऊधम मचाया. दरअसल, वह किसी भी कीमत पर अंडमान निकोबार लौटने के लिए राजी नहीं हो रही थी. वह बंटू के साथ फरीदपुर में रहने की रट लगा रही थी. जब एसआई अग्नेश बरथोलोम ने उसे प्यार से समझाया. उसे उस के मातापिता की तबीयत खराब होने की बात बताई, तब कहीं जा कर वह अपने घर लौटने के लिए तैयार हुई. बाद में स्थानीय पुलिस ने उस के प्रेमी बंटू को भी गिरफ्तार कर लिया.

पूछताछ के दौरान जेबा ने पुलिस को बताया कि 22 जनवरी की रात उस ने पापा की अलमारी से 10 हजार रुपए निकाले और अपनी कुछ सहेलियों की मदद से अंडमान के एयरपोर्ट तक पहुंची थी. वहां से प्लेन पर सवार हो कर वह कोलकाता और वहां से जम्मू तवी ट्रेन पर सवार हो कर बरेली पहुंची थी. बरेली के रेलवे स्टेशन पर बंटू पहले से ही उस का इंतजार कर रहा था. वह उसे अपने घर ले गया था. जहां वे दोनों पिछले एक सप्ताह से पतिपत्नी की तरह रह रहे थे. बंटू के मांबाप ने उसे अपनी बहू के रूप में स्वीकार कर लिया था.

एसआई अग्नेश बरथोलम की टीम ने अगले दिन जेबा को अंडमान की कोर्ट में पेश कर दिया, जहां कोर्ट के आदेश पर जेबा का मैडिकल कराने के बाद उस के पिता के सुपुर्द कर दिया गया. जेबा अपने घर पहुंच जरूर गई है, लेकिन प्रेमी बंटू यादव की उसे बहुत याद आ रही थी. कथा लिखने तक बंटू भी जेल में बंद था.

कहानी में कुछ पात्रों के नाम बदल दिए गए हैं.

एयर फोर्स सार्जेंट ने रची जर, जोरू और जमीन हथियाने की साजिश- भाग 3

डा. गौरव की हत्या की खबर जब अखबारों में छपी तो कानपुर, उन्नाव में सनसनी फैल गई. सैकड़ों की संख्या में लोग पोस्टमार्टम हाउस पहुंच गए. क्षेत्रीय विधायक अभिजीत सिंह सांगा भी पोस्टमार्टम हाउस पहुंचे और डाक्टर की पत्नी प्रियंका से बातचीत कर उन्हें धैर्य बंधाया तथा हरसंभव मदद का आश्वासन दिया.

हत्यारोपी मुदित श्रीवास्तव की पत्नी नेहा श्रीवास्तव को जब पति की करतूतों का पता चला तो उसे यकीन ही नहीं हुआ. नेहा की 5 साल की बेटी है, जिस का कटे हुए तालू का लखनऊ में इलाज चल रहा है. घटना के समय वह लखनऊ में ही थी. उस ने सोचा भी नहीं था कि मुदित ऐसा कर सकता है.

चूंकि मुदित ने हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया था, अत: इंसपेक्टर रत्नेश सिंह ने मृतक के पिता डा. प्रबल प्रताप सिंह की तहरीर पर भादंवि की धारा 302/201 के तहत मुदित श्रीवास्तव के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली तथा उसे विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस जांच में दोस्ती में विश्वासघात की एक सनसनीखेज कहानी प्रकाश में आई.

परिवार की इकलौती औलाद था डा. गौरव…

उन्नाव शहर की आवास विकास कालोनी एक बड़ी आबादी वाला क्षेत्र है. इसी कालोनी के मकान नंबर सी 46 में डा. प्रबल प्रताप सिंह अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी आशा सिंह के अलावा एकमात्र बेटा गौरव प्रताप सिंह था. डा. प्रबल प्रताप सिंह होम्योपैथिक डाक्टर थे. उन की पत्नी आशा सिंह भी डाक्टर थीं. पतिपत्नी दोनों शिकोहाबाद के सरकारी अस्पताल में डाक्टर थे. डा. प्रबल प्रताप सिंह प्रतिष्ठित व्यक्ति थे. उन की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. उन्नाव के अलावा शिकोहाबाद में भी उन का निजी मकान था.

डा. प्रबल प्रताप सिंह की पत्नी डा. आशा सिंह रसूखदार राजनीतिक परिवार से थी. आशा सिंह के पिता डा. गंगाबक्श सिंह कांग्रेसी नेता थे. वह उन्नाव की हड़हा विधानसभा सीट से 4 बार विधायक और चिकित्सा शिक्षा समेत कई अन्य विभागों के मंत्री रहे. चूंकि आशा सिंह उन की होनहार और दुलारी बेटी थीं और डाक्टरी की पढ़ाई पूरी कर सरकारी डाक्टर बन गई थी, अत: उन्होंने बेटी का विवाह डा. प्रबल प्रताप सिंह के साथ कर दिया था. डा. आशा सिंह शिकोहाबाद में जिला स्वास्थ्य अधिकारी (डीएचओ) के पद पर तैनात थीं.

डा. प्रबल प्रताप सिंह अपने बेटे गौरव प्रताप सिंह को भी पढ़ालिखा कर डाक्टर बनाना चाहते थे. गौरव प्रताप सिंह कुशाग्र पढ़ाई में होशियार था, लेकिन उस की रुचि दंत चिकित्सा में थी. वह बीडीएस की पढ़ाई हासिल कर डेंटल सर्जन बनना चाहता था. गौरव की रुचि के अनुसार प्रबल प्रताप सिंह ने उस का साथ दिया और खूब पैसा खर्च किया. गौरव ने भी खूब मेहनत की और नीट की परीक्षा पास कर कानपुर मैडिकल कालेज से बीडीएस (बैचलर औफ डेंटल सर्जरी) की डिग्री हासिल कर ली.

डाक्टर की डिग्री हासिल करने के बाद डा. गौरव प्रताप सिंह ने अपने पिता प्रबल प्रताप सिंह के सहयोग से उन्नाव बस स्टैंड के पास ‘साईं डेंटल क्लीनिक’ के नाम से अस्पताल खोल लिया. शुरूशुरू में दंत रोगियों की संख्या कम रही, लेकिन जैसेजैसे समय बीतता गया, वैसेवैसे मरीजों की संख्या बढ़ती गई. 2 साल बीततेबीतते साईं क्लीनिक दंत चिकित्सा के क्षेत्र में मशहूर हो गया. अस्पताल में दंत रोगियों की संख्या बढ़ी तो अस्पताल की कमाई भी अच्छी होने लगी. उन्नाव शहर व आसपास के कस्बों में डा. गौरव का नाम अच्छे दंत चिकित्सक के रूप में मशहूर हो गया.

डा. गौरव की अभी तक शादी नहीं हुई थी. डा. प्रबल प्रताप सिंह अपने डाक्टर बेटे की शादी ऐसी लडक़ी से करना चाहते थे, जो दंत चिकित्सक हो ताकि वह बेटे के काम में सहयोग कर सके और घर अस्पताल को संभाल सके. वैसे डा. गौरव के लिए रिश्ते तो बहुत आ रहे थे, लेकिन बात बन नहीं पा रही थी.

डा. रुचि से हुई पहली शादी…

एक दिन बरेली के जनक सिंह अपनी बेटी रुचि का रिश्ता ले कर डा. प्रबल प्रताप सिंह के पास आए. उन्होंने बताया कि वह झांसी की एक कंपनी में बड़े पद पर तैनात है. उन की बेटी रुचि डेंटल सर्जन है. वह उन के बेटे डा. गौरव के रिश्ते के लिए आए हैं. चूंकि प्रबल प्रताप सिंह को ऐसी ही लडक़ी की तलाश थी, अत: उन्होंने रिश्ते के लिए हां कर दी. रुचि और गौरव ने भी एकदूसरे को देखा तथा आपस में बातचीत की. उस के बाद उन दोनों ने भी अपनी रजामंदी दे दी.

रजामंदी के बाद रुचि का विवाह धूमधाम से डा. गौरव प्रताप सिंह के साथ हो गया. यह बात वर्ष 2013 की है. शादी के बाद डा. रुचि डा. गौरव की पत्नी बन कर ससुराल आ गई. डा. रुचि खूबसूरत थी, इसलिए ससुराल में उस का खूब स्वागतसत्कार हुआ. रुचि भी डाक्टर पति पा कर खुश थी. डा. प्रबल प्रताप सिंह व उन की पत्नी डा आशा सिंह भी रुचि जैसी खूबसूरत व डेंटल सर्जन बहू पा कर खुशी से फूले नहीं समा रहे थे. वह पड़ोसियों और नातेदारों से भी बहू की तारीफ करते थे.

डा. रुचि ने ससुराल आते ही घर व अस्पताल की जिम्मेदारी संभाल ली थी. वह पति के साथ अस्पताल जाती और महिलादंत रोगियों का इलाज करती. डा. रुचि के कुशल व्यवहार व उचित इलाज से महिला रोगियों की संख्या भी बढऩे लगी थी और आमदनी भी बढ़ गई थी. हंसीखुशी से जीवन बिताते 2 वर्ष बीत गए थे. इन वर्षों में रुचि ने एक बेटी को जन्म दिया. बेटी के जन्म के बाद परिवार की खुशियां बढ़ गई थीं.

डा. गौरव सिंह बीयर पीने के शौकीन थे. वह घर आ कर बीयर पीते थे. बीयर पीने को ले कर डा. रुचि को भी ऐतराज न था. लेकिन बेटी के जन्म के कुछ दिनों बाद वह शराब भी पीने लगे थे. कभी वह दोस्तों के साथ शराब पी कर लौटते तो कभी घर में ही बोतल खोल कर पीने बैठ जाते. डा. रुचि को शराब पीना फिर बकवास करना पसंद न था. रुचि ने शराब का विरोध किया तो पतिपत्नी के बीच तकरार होने लगी. धीरेधीरे तकरार बढ़ती गई और उन के बीच दूरियां भी बढ़ती गईं. अब दोनों एक ही छत के नीचे रहते अजनबी बन गए.

आपसी कलह से हुआ अलगाव…

डा. रुचि को जब आभास हुआ कि डा. गौरव के साथ वह जीवन नहीं बिता पाएगी तो वह अपने पिता के पास बरेली चली गई. डा. प्रबल प्रताप सिंह ने बेटेबहू के बीच समझौता कराने का प्रयास किया, लेकिन बात नहीं बनी. फिर दोनों का आपसी सहमति से तलाक हो गया.

नील कुसुम की कंडक्टर से यारी पड़ी भारी

कोरबा औद्योगिक नगर के न्यू बसस्टैंड से जब शिवम बस लेमरू स्यांग से पत्थल गांव की ओर चली तो वह खचाखच भरी हुई थी. पुरुष और महिलाओं के साथ कुछ लड़कियां भी सीट मिलने की आस में इधरउधर देख रही थीं. मगर ऐसा नहीं हो पा रहा था. बस जब थोड़ा आगे बढ़ी और धीरेधीरे व्यवस्थित होने लगी, तब एक 20 वर्षीय युवती नील कुसुम पन्ना ने देखा कि महिलाओं की सीट पर कुछ लडक़े बैठे हुए हैं. उस ने पास खड़ी एक वृद्ध उम्र की महिला से कहा, ‘‘आंटी देखिए, ये लोग क्या कर रहे हैं? आरक्षित महिला सीट पर बैठ गए हैं, इन्हें उठाइए…’’

महिला विवशता भरे स्वर में बोली, ‘‘अरे, ये लोग पहले से बैठे हुए हैं, क्यों उठेंगे भला.’’

इस पर नील कुसुम ने कहा, ‘‘आंटी, यह महिला आरक्षित सीट है. हमारी आप की सुविधा के लिए.’’

महिला बोली, ‘‘हम तो अकसर आतेजाते हैं जिस को जहां सीट मिलती है, बैठ जाता है और फिर उठता ही नहीं है. कोई हमारी सुनता ही कहां है.’’

इस पर नील कुसुम ने कहा, ‘‘आंटी, यह हमारा अधिकार है. इन्हें उठना होगा, आप बोलिए तो सही, नहीं बोलेंगे तो कैसे अधिकार मिलेगा.’’ इस पर महिला ने साहस कर महिला सीट पर कब्जा जमाए बैठे युवकों से कहा, ‘‘आप लोग उठिए, यह महिला सीट है. हम लोग बैठेंगी.’’ महिला सीट पर बैठे युवकों ने उस महिला की बात अनसुनी कर दी. जब महिला ने पुन: कहा तो एक युवक ने तल्ख स्वर में कहा, ‘‘देखिए, हम लोग बहुत दूर जाने वाले हैं और हमेशा ऐसा ही है यहां जो पहले आता है, वही बैठता है.’’

यह सुन कर नील कुसुम बिफर पड़ी, ‘‘जब यह महिलाओं के लिए आरक्षित है तो आप क्यों नहीं उठेंगे…’’ यह सुन कर के युवक ने गुस्से में कहा, ‘‘हम नहीं उठेंगे, जो करना हो कर लो.’’

युवकों के तेवर देख कर महिला ने मानो हथियार डालते हुए कहा, ‘‘छोड़ो, रहने दो.’

मगर कुसुम ने आगे आ कर के मोर्चा संभाल लिया. बस के ज्यादातर लोग मौन ही बैठे थे. शायद अंचल के लोग न तो कानून जानते हैं और न अपना अधिकार. ऐसे में बस में जिस को जहां सीट मिलती, बैठ जाता था और कोई कुछ बोलता भी नहीं था. मगर यह पहली दफा हुआ था, जब महिलाओं ने आरक्षित सीट पर बैठने की जिद की थी. मामला जब बिगडऩे लगा तो एक युवक सामने आया और आदेशात्मक स्वर में बोला, ‘‘आप लोग महिला सीट से उठिए, नहीं तो बस आगे नहीं जाएगी.’’ आखिरकार, महिला सीट पर बैठे हुए लोगों को उठना पड़ा.

नील कुसुम और शाहबाज का लव अफेयर…

यह था उस बस का 24 वर्षीय कंडक्टर शाहबाज. उस ने नील कुसुम और अन्य महिलाओं को महिला सीट पर बैठाने के बाद तेज आवाज में कहा, ‘‘देखिए, अभी तक जो हो गया, हो गया. आगे से महिला आरक्षित सीट पर सिर्फ महिलाएं ही बैठेंगी.’’

बस वनांचल की ओर धीरेधीरे आगे बढ़ रही थी और नील कुसुम की निगाह बरबस शाहबाज की ओर चली जाती थी और शाहबाज नील कुसुम को उचटती निगाह से बारंबार देखता रहा. लगभग 30 किलोमीटर चलने के बाद मदनपुर गांव में जब बस स्टाप आया तो नील कुसुम उतरने लगी, पीछेपीछे शाहबाज भी उतर गया और मधुर स्वर में बोला, ‘‘आप का नाम क्या है?’’

“नील कुसुम पन्ना,’’ बिना झिझके उस ने उत्तर दिया.

नाम सुन कर शाहबाज मानो उस की आंखों में डूब गया. इस पर नील कुसुम ने कहा, ‘‘थैंक्स, आप ने आज बड़ी मदद की.’’

शाहबाज ने कहा, ‘‘दरअसल, बात यह है कि लेडीज ही कुछ नहीं बोलतीं, इसलिए जेंट्स महिलाओं की सीट पर भी बैठ जाते हैं. अपने अधिकार के लिए महिलाओं को आगे आना होगा और जब आप ने मांग की तो आखिर उन्हें उठना ही पड़ा.’’ फिर पूछा, ‘‘क्या आप यहीं रहती हैं?’’

“नहीं, मैं यहां पढऩे आई हूं. यहीं क्रिश्चियन हौस्टल है, वहां रह कर पढ़ रही हूं. कुछ दिनों में घर चली जाती हूं.’’ इस पर शाहबाज ने कहा, ‘‘मोस्ट वेलकम.’’ और मुसकरा दिया. नील कुसुम भी मुसकराहट बिखेरती हुई चली गई.

कोरबा नगर छत्तीसगढ़ का एक औद्योगिक तीर्थ के रूप में एशिया भर में विख्यात है. यहां नवरत्न कंपनी नैशनल थर्मल पावर कारपोरेशन का विशाल विद्युत प्लांट है. इस के साथ ही यहां दुनिया भर में प्रसिद्ध भारत अल्युमिनियम कंपनी (वेदांता) है और कोयले की अनेक खदानें हैं. यहीं दक्षिणपूर्व कोयला प्रक्षेत्र की एक कालोनी पंप हाउस के क्वार्टर में कोलियारी कर्मचारी बुधराम पन्ना अपनी पत्नी फूलबाई, बेटी नील कुसुम और बेटा नीतीश के साथ रहते थे.

दूसरी तरफ नील कुसुम और शाहबाज की मुलाकातें अब अकसर होने लगी थीं. इस दरमियान शाहबाज ने नील कुसुम का मोबाइल नंबर भी ले लिया था और दोनों ही फोन पर रोजाना चैटिंग किया करते थे. यानी नील कुसुम को भी कंडक्टर से प्यार हो गया था. जवानी के प्यार में दोनों डूब चुके थे.

एक दिन शाहबाज ने नील कुसुम से कहा, ‘‘मैं बस कंडक्टर की नौकरी छोड़ कर के अहमदाबाद, गुजरात जा रहा हूं. वहां कुछ मेरे मित्र गए हुए हैं और अच्छा पैसा कमा रहे हैं. मैं भी चाहता हूं कि खूब सारे पैसे कमाऊं. क्या तुम मेरे साथ गुजरात चलोगी?’’ नील कुसुम भी शाहबाज को प्यार तो करती थी, मगर उस की बातें सुन कर वह हैरान होते हुए बोली, ‘‘अरे बाप रे, अहमदाबाद… वह तो बहुत दूर है.’’

मुसकरा कर के शाहबाज ने कहा, ‘‘वहीं तो जिंदगी है, स्वर्ग है, पैसे हैं.’’

“मगर मैं तो अभी पढऩा चाहती हूं, पढ़लिख कर मुझे कुछ बनना है.’’ नील कुसुम मासूमियत से बोली.

यह सुन कर हंसते हुए शाहबाज ने कहा, ‘‘तुम्हें रानी बना कर रखूंगा पैसे तो मैं कमाऊंगा.’’

“मगर, मेरा बचपन से एक सपना है कि मैं नर्स बनूं. मैं लोगों की सेवा करना चाहती हूं.’’

“नर्सवर्स में क्या रखा है, मैं कहां तुम्हें स्वर्ग ले जाने की बात कर रहा हूं और तुम यही गुरबत की जिंदगी जीना चाहती हो.’’

“मुझे थोड़ा समय दो, मुझे समझना पड़ेगा, क्योंकि मैं मांबाप को भी नहीं छोड़ सकती. मैं यहीं कोरबा में ही रहना चाहती हूं.’’

यह सुन कर के शाहबाज को निराशा हुई. मगर उस ने कहा, ‘‘चलो कोई बात नहीं, तुम सोचविचार कर फैसला लो.’’

अहमदाबाद से आया मर्डर करने…

क्रिसमस त्यौहार की चारों ओर धूम मची हुई थी. नील कुसुम का परिवार क्रिसमस की तैयारियों में डूबा हुआ था’ अभी एक दिन पहले ही वह अपने लिए नए कपड़े माल से खरीद कर लाई थी. 24 दिसंबर, 2022 सुबह का समय था. नील कुसुम के मोबाइल पर काल आई, उस ने देखा शाहबाज का नंबर था. काल रिसीव की तो उधर से हंसते हुए शाहबाज ने कहा, ‘‘मैं आ गया हूं तुम से बहुत जरूरी काम है.’’

“मेरे से भला तुम्हें क्या काम हो सकता है? तुम्हारे रास्ते तो अब अलग हो गए हैं न.’’

“अरे यार, तुम नाराज मत हो, मैं सिर्फ तुम से ही मिलने आया हूं. एक बार अंतिम बार मिल लो.’’ शाहबाज ने गिड़गिड़ाते हुए कहा.

इस पर नील कुसुम ने कहा, ‘‘मैं मदनपुर से कोरबा आई हुई हूं. पंप हाउस घर पर ही हूं बड़े दिन का त्यौहार मनाने के लिए .’’ थोड़ी ही देर में शाहबाज पंप हाउस के क्वार्टर पर आ पहुंचा. नील कुसुम घर पर अकेली थी. पिताजी और मां दोनों ही अपनेअपने काम पर गए हुए थे. भाई कहीं घूमने गया हुआ था. शाहबाज ने थोड़ी देर बाद इधरउधर की बातचीत की और कहा, ‘‘नील, मैं सिर्फ तुम्हारे लिए ही अहमदाबाद से फ्लाइट से सीधा तुम से मिलने आया हूं देखो… एयर टिकट.’’

यह सुन कर नील कुसुम ने एयर टिकट हाथ में ले मुसकराई फिर बोली, ‘‘लगता है अच्छा पैसा कमा रहे हैं. खैर, मैं तो तुम्हारा स्वागत कर रही हूं.’’

“तुम मेरे साथ अहमदाबाद चलो न.’’

“नहीं, मैं नहीं जा सकती.’’ नील कुसुम ने साफसाफ कहा.

“अच्छा, तो तुम राजेश के साथ आजकल मजे कर रही हो.’’

“मुझे तुम्हारी ये बातें अच्छी नहीं लगतीं. मैं क्या कर रही हूं, क्या करूंगी, इस के लिए तो मैं आजाद हूं न.’’

“मैं समझ गया, तुम क्या चाहती हो,’’ यह कह कर गुस्से से लाल शाहबाज ने उस के गाल पर 2-3 थप्पड़ जड़ दिए. इस पर नील कुसुम भडक़ गई और बोली, ‘‘तुम मेरे घर से तत्काल निकल जाओ.’’

इतना सुनना था कि शाहबाज गुस्से से लालपीला हो गया और उसे मारने लगा, फिर नीचे पटक कर तकिया सीधा उस के मुंह के ऊपर रख दिया. नील कुसुम छटपटाने लगी. उस की सांस रुकने लगी. मगर शाहबाज पर मानो उस पर भूत सवार हो गया था, थोड़ी ही देर बाद नील कुसुम की सांसें थम गईं और वह मर गई. गुस्से से बड़बड़ाता हुआ शाहबाज उठ खड़ा हुआ, ‘तुम्हें मार डालूंगा’ कह कर पास में रखा हुआ एक बड़ा पेचकस उठा लाया और उस के सीने पर वार करने लगा.

चारों तरफ खून फैल गया. उस के चेहरे पर भी खून के छींटे पड़े, जो उस ने पोंछ लिए. प्रेम प्रसंग में मर्डर कर वह घर के पिछवाड़े से चुपचाप बाहर भाग गया. दोपहर 12 बजे जब नितेश घर के भीतर पहुंचा तो बहन नील कुसुम की खून से लथपथ लाश देख कर उस की चीख निकल गई. वह रोता हुआ बाहर आया और आसपास के लोगों को बुलाया.

पुलिस ने की जांचपड़ताल…

पड़ोसियों ने घर के मंजर को देख कर तुरंत 112 नंबर पर फोन कर पुलिस को घटना की जानकारी दी. थोड़ी ही देर बाद सीएसईबी चौकी का पुलिस स्टाफ आ गया. चौकी इंचार्ज की सूचना पर थाना कोतवाली के एसएचओ रूपक शर्मा जैसे ही घटनास्थल पर पहुंचे तो थोड़ी ही देर में ही एसपी (सिटी) विश्वदीपक त्रिपाठी भी वहां आ गए.

पुलिस ने नील कुसुम की लाश का निरीक्षण किया. उस के चेहरे पर तकिया रखा हुआ था. पास ही खून से सना एक बड़ा पेचकस पड़ा हुआ था. उस के शरीर पर कई जगह उस से वार किया गया था. ऐसा पहली निगाह में ही जान पड़ता था. पुलिस द्वारा डौग स्क्वायड को बुला लिया गया. खोजी कुत्ता आसपास घूमने के बाद वापस आ गया.

पुलिस को नील कुसुम के मातापिता और भाई द्वारा जो जानकारी मिली, उस से पता चला कि सुबह पिता बुधराम पन्ना कोयला खदान में अपनी ड्यूटी पर चले गए थे. मां डीएवी स्कूल में साफसफाई का कार्य करती थी और उस दिन स्कूल में एनुअल फंक्शन था. भाई नितेश ने बताया कि वह मां को स्कूल छोडऩे गया था. उस के बाद पास ही के एक गांव दादर में अपने दादाजी से मिलने चला गया था. वहां से जब वह घर पहुंचा तो दीदी को मृत अवस्था में देखा.

पुलिस ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला हौस्पिटल भिजवा दिया गया. घटनास्थल पर कुछ कपड़े, संदिग्ध वस्तुएं, अहमदाबाद से रायपुर का एयर टिकट और रायपुर से कोरबा तक का बस टिकट मिला. पूछताछ में यह स्पष्ट हो गया कि अहमदाबाद से शाहबाज कंडक्टर ने ही जान ली है. और वारदात को अंजाम देने के बाद गायब हो गया है. पुलिस ने जब आसपास के सीसीटीवी कैमरों की जांच की तो उस में शाहबाज दिखाई दे गया. घटना की गंभीरता को देखते हुए एसपी संतोष सिंह ने आरोपी को पकडऩे के लिए 4 पुलिस टीमें गठित कीं और निर्देश दिए कि जल्द से जल्द शाहबाज को हिरासत में लिया जाए.

एक टीम अहमदाबाद के लिए रवाना हो गई, दूसरी टीम शाहबाज के गांव के लिए निकटवर्ती जिला जशपुर के लिए रवाना हुई. पुलिस को यह जानकारी मिली थी कि शाहबाज अंबिकापुर की तरफ गया है. पुलिस की एक टीम सरगुजा की तरफ रवाना हुई. पुलिस शाहबाज को पकडऩे के लिए प्रयास करती रही. इस दिशा में जब पुलिस को यह जानकारी मिली कि शाहबाज अहमदाबाद पहुंच गया है तो टीम अहमदाबाद के लिए रवाना हो गई. जैसे पुलिस वहां पहुंची तो शाहबाज वहां से फरार हो गया. वह पुणे चला गया. वहां से नागपुर होते हुए जैसे ही छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव से रायपुर की ओर बस में जा रहा था तो उस के फोन की लोकेशन के जरिए बस रुकवा कर उसेराजनांदगांव, छत्तीसगढ़ में नील कुसुम मर्डर केस के आरोपी शाहबाज को हिरासत में ले लिया गया.

पूछताछ करने पर प्यार में पागल हुए प्रेमी शाहबाज ने पुलिस को बताया कि 3 साल पहले जब वह कोरबा से पत्थलगांव चलने वाली बस का कंडक्टर था. नील कुसुम से उस की जानपहचान चलने वाली धीरेधीरे प्रेम संबंध में बदल गई. दोनों प्रेम की पींगें भरने लगे. जब वह रुपए कमाने अहमदाबाद चला गया, तब तक भी नील कुसुम उस से बात करती थी. दोनों जीनेमरने की कसमें खाते थे. मगर अचानक कुछ समय पहले नील कुसुम ने बातें करनी कम कर दी.

उस ने पता किया तो जानकारी मिली, वह किसी और से प्यार करने लगी है. इस से वह परेशान हो गया था. इसीलिए नील कुसुम को प्रभावित करने के लिए कि अब अहमदाबाद में वह खूब पैसे कमाने लगा है, यह बताने के लिए जानबूझ कर के हवाईजहाज से रायपुर आया था और उसे टिकट दिखा कर के प्रभावित करना चाहता था. मगर जब बात नहीं बनी तो उस ने गुस्से में 24 दिसंबर, 2022 की सुबह लगभग 11 बजे पहले उस के साथ हाथापाई की फिर मुंह पर तकिया रख मार डाला.

कंडक्टर प्रेमी ने कुबूला जुर्म…

यही नहीं गुस्से में पागल हो कर घर में रखे पेचकस से उस पर अनगिनत वार किए. जब उसे महसूस हुआ कि नील कुसुम की मौत हो चुकी है तो वह पिछले दरवाजे से बाहर निकला और सीधा सीएसईबी चौक पहुंच कर वहां से कटघोरा के लिए बस में बैठ गया.

शाहबाज ने बताया कि वह क्राइम सीरियल देखा करता था, इसलिए उस ने पुलिस को चकमा देने के लिए कटघोरा से बस बदल ली. फिर दूसरी बस से अंबिकापुर की ओर निकल गया. अंबिकापुर में एटीएम से पैसे निकाले. आगे अहमदाबाद के लिए रवाना हो गया. वहां पहुंच कर जब उसे यह जानकारी मिली कि पुलिस अहमदाबाद पहुंचने वाली है तो वह वहां से पुणे, महाराष्ट्र भाग गया. वहां से भी गाड़ी बदल कर के वह एक बार फिर नागपुर के लिए निकल गया. वह भागतेभागते परेशान हो गया था. इसलिए एक बार छत्तीसगढ़ जाने का निश्चय किया और रायपुर की ओर जा रहा था.

एसपी संतोष सिंह ने पहली जनवरी 2023 को एक पत्रकार वात्र्ता में घटनाक्रम का खुलासा कर दिया. शाहबाज से पूछताछ के बाद पुलिस को पता चला कि उस का ममेरा भाई तबरेज खान मोबाइल पर शाहबाज को पलपल की जानकारी देता रहता था. इसलिए साक्ष्य छिपाने और मदद करने के इल्जाम में पुलिस ने तबरेज को भी हिरासत में लिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में नील कुसुम के शरीर पर पेचकस से गोदने के 51 घाव पाए गए थे.

सीएसईबी चौकी पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 120बी के तहत रिपोर्ट दर्ज कर के 28 वर्षीय शाहबाज साकिन ग्राम रुपसेरा (भडिया) जिला जशपुर और तबरेज खान उर्फ छोटू (21 साल) साकिन लरंगा, जिला जशपुर, छत्तीसगढ़ को गिरफ्तार कर मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी कोरबा के समक्ष पेश किया, जहां से दोनों को कोरबा जिला जेल दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है

मांगा सुहाग मिली मौत

एयर फोर्स सार्जेंट ने रची जर, जोरू और जमीन हथियाने की साजिश- भाग 2

मुदित पर शक और गहराया तो रत्नेश सिंह ने मुदित और प्रियंका के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. इस रिपोर्ट ने पुलिस को और चौंका दिया. काल डिटेल्स से पता चला कि मुदित और प्रियंका के बीच हर रोज डेढ़दो घंटे बातचीत होती थी. पुलिस को शक हुआ कि कहीं मुदित और प्रियंका के बीच नाजायज संबंध तो नहीं हैं. कहीं इन अवैध रिश्तों के कारण डा.गौरव के साथ कोई अनहोनी तो नहीं हो गई. पर जो भी रहस्य है, इन दोनों के पेट में ही छिपा है. इस रहस्य का परदाफाश होना जरूरी था.

मुदित वायुसेना में सार्जेंट था. उस के पेट से रहस्य उगलवाना इतना आसान न था, इसलिए इंसपेक्टर रत्नेश सिंह ने मुदित पर शक होने की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी. कुछ ही देर बाद डीसीपी (ईस्ट) रविंद्र कुमार तथा एसीपी (चकेरी) अमरनाथ यादव थाना चकेरी आ गए. उन्होंने मुदित से पूछताछ की. 2 राउंड की पूछताछ तक मुदित यही कहता रहा कि डा. गौरव उस के घर आए थे. वह नशे में थे. कार वह चला नहीं पाते, इसलिए कार हम ने घर पर खड़ी करा दी और उन्हें रोडवेज बस में बिठा कर उन्नाव भेज दिया था. उस के बाद वह कहां लापता हो गए, उसे जानकारी नहीं.

एयर फोर्स सार्जेंट ने उगला सच…

तीसरे राउंड की पूछताछ पुलिस अधिकारियों ने मोबाइल लोकेशन व काल डिटेल्स के आधार पर सख्ती से की. उन्होंने पूछा, ‘‘मुदित, 13 मार्च की रात 10 बजे तुम कहां थे? घर पर थे या फिर कहीं बाहर गए थे?’’

“सर, मैं घर पर ही था.’’ मुदित ने बताया.

“तुम कुलगांव या रूमा की तरफ नहीं गए थे?’’ मुदित कुछ देर सोचता रहा. उस की भंगिमा भी बदली. लेकिन फिर निडर हो कर बोला, ‘‘सर, मैं रूमा नहीं गया. घर पर ही था.’’

“लेकिन तुम्हारी फोन लोकेशन तो रूमा बता रही है. तुम सरासर झूठ बोल रहे हो और हमें गुमराह कर रहे हो. सचसच बताओ, वरना…’’ अमरनाथ गुस्से से बोले. पुलिस अधिकारियों की सख्ती से मुदित का मनोबल टूट गया. वह सिर झुका कर बोला, ‘‘सर, डा. गौरव अब इस दुनिया में नही है?’’

“क्या तुम ने डा. गौरव को मार डाला है?’’ डीसीपी (पूर्वी) रविंद्र कुमार ने पूछा.

“हां सर, मैं ने उसे बेरहमी से मार डाला. मैं हत्या का जुर्म कुबूल करता हूं.’’

“डा. गौरव तो तुम्हारा जिगरी दोस्त था. फिर उसे क्यों मारा?’’

“सर, यह सच है कि डा. गौरव मेरा जिगरी दोस्त था. इसी दोस्ती की आड़ में मेरे नाजायज संबंध डा. गौरव की पत्नी प्रियंका से हो गए थे. इस अवैध रिश्ते की जानकारी डा. गौरव को हो गई थी. उस के बाद वह मुझे शक की नजरों से देखने लगा था. कभीकभी कटाक्ष भी करता था. फिर मुझे लगा कि अगर मैं ने डा. गौरव की हत्या नहीं की तो वह मेरी हत्या कर देगा. इसलिए उसे मौत की नींद सुला दिया.’’

“हत्या में तुम्हारे साथ प्रियंका या कोई और भी शामिल था?’’

“नहीं, प्रियंका को कोई जानकारी नहीं थी. हत्या में अन्य कोई भी शामिल नहीं था.’’

“डा. गौरव की लाश कहां है?’’ एसीपी अमरनाथ ने पूछा.

“सर, उस की लाश कुलगांव फ्लाईओवर (महाराजपुर) के नीचे वाले जंगल में फेंक दी थी. उस का मोबाइल फोन भी वहीं तोड़ कर फेंक दिया था.’’

अब तक रात के 12 बज चुके थे. पुलिस अधिकारी आवश्यक पुलिस बल और मुदित को साथ ले कर कुलगांव फ्लाईओवर के पास जंगल में पहुंच गए. वहां मुदित की निशानदेही पर डा. गौरव के शव को पुलिस ने बरामद कर लिया. शव से कुछ दूरी पर डा. गौरव का चकनाचूर मोबाइल फोन पड़ा था. पुलिस ने उसे भी सुरक्षित कर लिया. मुदित ने डा. गौरव की हत्या बड़ी बेरहमी से की थी. उस ने उस का सिर हाइवे किनारे लगे पत्थर पर कई बार पटका था, जिस से उस का सिर फट गया था और उस की मौत हो गई थी. जामातलाशी में उस के पास से 7 लाख की रकम बरामद नहीं हुई थी.

पुलिस ने की लाश बरामद…

डा. गौरव मर्डर केस का खुलासा होने के बाद पुलिस अधिकारियों ने हाइवे किनारे लगे उस पत्थर का भी निरीक्षण किया, जिस से मुदित ने सिर पटकपटक कर डा. गौरव की हत्या की थी. निरीक्षण के बाद पुलिस अधिकारियों ने डा. गौरव के शव को बरामद कर मौके की काररवाई पूरी की और शव को पोस्टमार्टम हेतु लाला लाजपतराय जिला अस्पताल भिजवा दिया तथा हत्या में प्रयुक्त क्रेटा कार मुदित के घर से बरामद कर ली.

अगले दिन सुबह को एसीपी (चकेरी) अमरनाथ यादव ने डा. गौरव की हत्या की खबर मृतका के पिता डा. प्रबल प्रताप सिंह तथा पत्नी प्रियंका सिंह को दे दी. डा. गौरव की हत्या की खबर सुनते ही प्रियंका के घर में कोहराम मच गया. कुछ देर बाद प्रियंका अपनी मां और बहन के साथ थाना चकेरी आ गई. वहां जब प्रियंका को पता चला कि पति की हत्या मुदित ने की है तो वह अवाक रह गई. मांबेटी मुदित से कुछ पूछना चाहती थीं, लेकिन सुरक्षा की दृष्टि से पुलिस ने इजाजत नहीं दी.

अब तक सूचना पा कर डा. प्रबल प्रताप सिंह भी थाना चकेरी आ गए थे. एसीपी अमरनाथ से सामना होते ही वह फफक पड़े. बोले, ‘‘बेटे ने जिस सांप को पाला और उसे दूध पिलाया, उसी ने उसे डस लिया.’’ अमरनाथ ने किसी तरह उन्हें धैर्य बंधाया. मुदित ने हत्या का जुर्म भले ही कुबूल कर लिया था और डा. गौरव का शव भी बरामद करा दिया था, लेकिन पुलिस अधिकारियों के मन में एक फांस चुभ रही थी कि हत्या में गौरव की पत्नी प्रियंका तथा उस की मां व बहन तो शामिल नहीं थीं.

इस के लिए पुलिस ने मुदित, प्रियंका उस की मां कमलेश तथा बहन का बेंजाडीन टेस्ट कराया. टेस्ट में केवल मुदित के कपड़ों और चप्पल पर खून के निशान सामने आए. बेंजाडीन टेस्ट में अगर ब्लड स्टेन मिलते हैं तो इस से खून का डीएनए विश्लेषण किया जाता है. दिल्ली के निर्भया गैंगरेप के मामले में भी पुलिस ने बस से मिले खून के धब्बों की जांच के लिए बेंजाडीन टेस्ट कराया था.

डा. गौरव की हत्या के जुर्म में मुदित श्रीवास्तव की गिरफ्तारी की जानकारी एयर फोर्स के अधिकारियों को हुई तो वह थाना चकेरी आए और सार्जेंट मुदित से पूछताछ की. एयर मार्शल की पूछताछ में मुदित ने गुनाह कुबूल किया. उस ने कहा, ‘‘सर, गलती हो गई. मैं यह करना नहीं चाहता था.’’ पूछताछ के बाद एयर मार्शल ने घटना तथा उस से जुड़े दस्तावेज मांगे. इस पर एसएचओ रत्नेश सिंह ने पुलिस कमिश्नर वी.पी. जोगदंड से बात की. उन्होंने एयर मार्शल की भी बात कराई. इस के बाद थाना चकेरी पुलिस ने एयर मार्शल को घटना तथा उस से जुड़े दस्तावेज सौंप दिए. सार्जेंट के खिलाफ अब विभागीय काररवाई भी हो सकती है.