अपहरण के चक्कर में फंस गया मुंबई का किंग

15 मई, 2017 की सुबह की बात है. समय 11-साढ़े 11 बजे सीकर जिले के शहर फतेहपुर के ज्वैलर ललित पोद्दार अपनी ज्वैलरी की दुकान पर थे. उन की पत्नी पार्वती और बेटा ध्रुव ही घर पर थे. बेटी वर्षा किसी काम से बाजार गई थी. उसी समय अच्छी कदकाठी का एक सुदर्शन युवक उन के घर पहुंचा. उस के हाथ में शादी के कुछ कार्ड थे. युवक ने ललित के घर के बाहर लगी डोरबेल बजाई तो पार्वती ने बाहर आ कर दरवाजा खोला. युवक ने हाथ जोड़ते हुए कहा, ‘‘नमस्ते आंटीजी, पोद्दार अंकल घर पर हैं?’’

पार्वती ने शालीनता से जवाब देते हुए कहा, ‘‘नमस्ते भैया, पोद्दारजी तो इस समय दुकान पर हैं. बताइए क्या काम है?’’

‘‘आंटीजी, हमारे घर में शादी है. मैं कार्ड देने आया था.’’ युवक ने उसी शालीनता से कहा.

युवक के हाथ में शादी के कार्ड देख कर पार्वती ने उसे अंदर बुला लिया. युवक ने सोफे पर बैठ कर एक कार्ड पार्वती की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘आंटीजी, यह कार्ड पोद्दार अंकल को दे दीजिएगा. आप लोगों को शादी में जरूर आना है. बच्चों को भी साथ लाइएगा.’’

पार्वती ने शादी का कार्ड देख कर कहा, ‘‘भैया आप को पहचाना नहीं.’’

‘‘आंटीजी, आप नहीं पहचानतीं, लेकिन पोद्दार अंकल मुझे अच्छी तरह से पहचानते हैं.’’ युवक ने कहा.

पार्वती ने घर आए, उस मेहमान से चायपानी के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘चायपानी के तकल्लुफ की कोई जरूरत नहीं है, आंटीजी. अभी एक कार्ड आप के भांजे अश्विनी को भी देना है. मैं उन का घर नहीं जानता. आप अपने बेटे को मेरे साथ भेज देतीं तो वह उन का घर बता देता. कार्ड दे कर मैं आप के बेटे को छोड़ जाऊंगा.’’

बाहर तेज धूप थी. इसलिए पार्वती बेटे को बाहर नहीं भेजना चाहती थीं. इसलिए उन्होंने टालने वाले अंदाज में कहा, ‘‘आप कार्ड हमें दे दीजिए. शाम को अश्विनी हमारे घर आएगा तो हम कार्ड दे देंगे.’’

पार्वती की बात सुन कर युवक ने मायूस होते हुए कहा, ‘‘कार्ड तो मैं आप को दे दूं, लेकिन पापा मुझे डांटेंगे. उन्होंने कहा है कि खुद ही जा कर अश्विनी को कार्ड देना.’’

युवक की बातें सुन कर पार्वती ने ड्राइंगरूम में ही वीडियो गेम खेल रहे अपने 13 साल के बेटे ध्रुव से कहा, ‘‘बेटा, अंकल के साथ जा कर इन्हें अश्विनी का घर बता दे.’’

ध्रुव मां का कहना टालना नहीं चाहता था, इसलिए वह अनमने मन से जाने को तैयार हो गया. वह युवक ध्रुव के साथ घर से निकलते हुए बोला, ‘‘थैंक्यू आंटीजी.’’

ध्रुव और उस युवक के जाने के बाद पार्वती घर के कामों में लग गईं. काम से जैसे ही फुरसत मिली उन्होंने घड़ी देखी. दोपहर के साढ़े 12 बज रहे थे. ध्रुव को कब का घर आ जाना चाहिए था. लेकिन वह अभी तक नहीं आया था. पार्वती ने सोचा कि ध्रुव वहां जा कर खेलने या चायपानी पीने में लग गया होगा. हो सकता है, अश्विनी ने उसे किसी काम से भेज दिया हो. यह सोच कर वह फिर काम में लग गईं.

थोड़ी देर बाद उन्हें जब फिर ध्रुव का ध्यान आया, तब दोपहर का सवा बज रहा था. ध्रुव को घर से गए हुए डेढ़ घंटे से ज्यादा हो गया था. पार्वती को चिंता होने लगी. 10-5 मिनट वह सेचती रहीं कि क्या करें. कुछ समझ में नहीं आया तो उन्होंने पति ललित पोद्दार को फोन कर के सारी बात बता दी. पत्नी की बात सुन कर ललित को भी चिंता हुई. उन्होंने पत्नी को तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘ध्रुव कोई छोटा बच्चा नहीं है कि कहीं खो जाए या इधरउधर भटक जाए. फिर भी मैं अश्विनी को फोन कर के पता करता हूं.’’

ललित ने अश्विनी को फोन कर के ध्रुव के बारे में पूछा तो अश्विनी ने जवाब दिया, ‘‘मामाजी, मेरे यहां न तो ध्रुव आया था और ना ही कोई आदमी शादी का कार्ड देने आया था.’’

अश्विनी का जवाब सुन कर ललित भी चिंता में पड़ गए. वह तुरंत घर पहुंचे और पार्वती से सारी बातें पूछीं. उन्होंने वह शादी का कार्ड भी देखा, जो वह युवक दे गया था. कार्ड पर लियाकत सिवासर का नाम लिखा था. ललित को वह शादी का कार्ड अपने किसी परिचित का नहीं लगा. उन्होंने कार्ड पर लिखे मोबाइल नंबरों पर फोन किया तो वे नंबर फरजी निकले.

ललित को किसी अनहोनी की आशंका होने लगी. उन के मन में बुरे ख्याल आने लगे. उन्हें आशंका इस बात की थी कि कहीं किसी ने पैसों के लालच में ध्रुव का अपहरण न कर लिया हो. इस की वजह यह थी कि वह फतेहपुर के नामीगिरामी ज्वैलर थे. राजस्थान के शेखावटी इलाके में उन का अच्छाखासा रसूख था. बेटे के घर न आने से पार्वती का रोरो कर बुरा हाल हो रहा था.

ललित ने अपने कुछ परिचितों से बात की तो सभी ने यही सलाह दी कि इस मामले की सूचना पुलिस को दे देनी चाहिए. इस के बाद दोपहर करीब ढाई बजे ललित ने इस घटना की सूचना पुलिस को दे दी. सूचना मिलते ही पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी. पार्वती से पूछताछ की गई. शुरुआती जांच से यही नतीजा निकला कि ध्रुव का अपहरण किया गया है.

अपहर्त्ता प्रोफेशनल अपराधी हो सकते थे. क्योंकि रात तक फिरौती के लिए किसी अपहर्त्ता का फोन नहीं आया था. पुलिस को अनुमान हो गया था कि अपहर्त्ता ने ध्रुव के अपहरण का जो तरीका अपनाया था, उस से साफ लगता था कि उन्होंने रेकी कर के ललित पोद्दार के बारे में जानकारियां जुटाई थीं.

पुलिस ने फिरौती मांगे जाने की आशंका के मद्देनजर पोद्दार परिवार के सारे मोबाइल सर्विलांस पर लगवा दिए. लेकिन उस दिन रात तक ना तो किसी अपहर्त्ता का फोन आया और ना ही ध्रुव को साथ ले जाने वाले उस युवक के बारे में कोई जानकारी मिली. पुलिस ने ललित के घर के आसपास और लक्ष्मीनारायण मंदिर के करीब स्थित उस की दुकान के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली, लेकिन उन से पुलिस को कुछ हासिल नहीं हुआ.

पुलिस को अब तक केवल यही पता चला था कि ललित पोद्दार के घर जो युवक शादी का कार्ड देने आया था, उस की उम्र करीब 30 साल के आसपास थी. वह सफेद शर्ट पहने हुए था. अगले दिन सीकर के एसपी राठौड़ विनीत कुमार त्रिकमलाल ने ध्रुव का पता लगाने के लिए अपने अधीनस्थ अधिकारियों को दिशानिर्देश दिए. इस के बाद पुलिस ने उस शादी के कार्ड को आधार बना कर जांच आगे बढ़ाई.

परेशानी यह थी कि शादी के कार्ड पर किसी प्रिंटिंग प्रैस का नाम नहीं लिखा था, जबकि हर शादी के कार्ड पर प्रिंटिंग प्रैस का नाम जरूरी होता है. इस की वजह यह है कि राजस्थान सरकार ने बालविवाह की रोकथाम के लिए यह कानूनी रूप से जरूरी कर दिया है. पुलिस ने शादी के कार्ड छापने वाले प्रिंटिंग प्रैस मालिकों से बात की तो पता चला कि उस कार्ड में औफसेट पेंट का इस्तेमाल किया गया था.

उस पेंट का उपयोग फतेहपुर में नहीं होता था. सीकर में प्रिंटिंग प्रैस वाले उस का उपयोग करते थे. इस के बाद पुलिस ने सीकर, चुरू और झुंझुनूं के करीब डेढ़ सौ प्रैस वालों से पूछताछ की. इस जांच के दौरान एक नया तथ्य यह सामने आया कि ध्रुव के अपहरण से 4 दिन पहले से उसी के स्कूल में पढ़ने वाला छात्र अंकित भी लापता था. अंकित चुरू जिले के रतनगढ़ शहर का रहने वाला था. वह फतेहपुर के विवेकानंद पब्लिक स्कूल में पढ़ता था और हौस्टल में रहता था. गर्मी की छुट्टी में वह रतनगढ़ अपने घर गया था. वह 12 मई को दोपहर करीब सवा बारह बजे बाल कटवाने के लिए घर से निकला था, तब से लौट कर घर नहीं आया था.

तीसरे दिन आईजी हेमंत प्रियदर्शी एवं एसपी राठौड़ विनीत कुमार ने ध्रुव के घर वालों से मुलाकात की और उन्हें आश्वासन दिया कि ध्रुव का जल्द से जल्द पता लगा लिया जाएगा. उसी दिन यानी 17 मई को अपहर्त्ता ने ललित पोद्दार को फोन कर के बताया कि उन के बेटे ध्रुव का अपहरण कर लिया गया है. उन्होंने ध्रुव की उन से बात करा कर 70 लाख रुपए की फिरौती मांगी.

उन्होंने चेतावनी भी दी थी कि अगर पुलिस को बताया तो बच्चे को मार दिया जाएगा. ललित ने समझदारी से बातें करते हुए अपहर्त्ता से कहा कि आप तो जानते ही हैं कि नोटबंदी को अभी ज्यादा समय नहीं हुआ है. भाइयों, परिवार वालों और रिश्तेदारों से पैसे जुटाने के लिए समय चाहिए. चाहे जितनी कोशिश कर लूं, 70 लाख रुपए इकट्ठे नहीं हो पाएंगे. बैंक से एक साथ ज्यादा पैसा निकाला तो पुलिस को शक हो जाएगा.

ललित ने अपहर्ता को अपनी मजबूरियां बता कर यह जता दिया कि वह 70 लाख रुपए नहीं दे सकते. बाद में अपहर्ता 45 लाख रुपए ले कर ध्रुव को सकुशल छोड़ने को राजी हो गए. अपहर्ताओं ने फिरौती की यह रकम कोलकाता में हावड़ा ब्रिज पर पहुंचाने को कहा. लेकिन बाद में वे फिरौती की रकम मुंबई में लेने को तैयार हो गए.

ललित का मोबाइल पहले से ही पुलिस सर्विलांस पर लगा रखा था. पुलिस को अपहर्ता और ललित के बीच हुई बातचीत का पता चल गया. इसी के साथ पुलिस को वह मोबाइल नंबर भी मिल गया, जिस से ललित को फोन किया गया था.

इसी बीच पुलिस ने शादी के उस कार्ड की जांच एक्सपर्ट से कराई तो पता चला कि वह एविडेक प्रिंटर से छपा था. शेखावटी के सीकर, चुरू व झुंझुनूं जिले में करीब 60 एविडेक प्रिंटर थे. इन प्रिंटर मालिकों से पूछताछ की गई तो पता चला कि वह कार्ड नवलगढ़ के एक प्रिंटर से छपवाया गया था. उस प्रिंटर के मालिक से पूछताछ में पता चला कि वह कार्ड फतेहपुर के किसी आदमी ने उस के प्रिंटर पर छपवाया था. उस आदमी से पूछताछ में पुलिस को अपहर्त्ता युवक के बारे में कुछ सुराग मिले.

इस के अलावा पुलिस ने 15 मई को ललित पोद्दार के मकान के आसपास घटना के समय हुई सभी मोबाइल कौल को ट्रेस किया. इस में मुंबई का एक नंबर मिला. यह नंबर साजिद बेग का था. काल डिटेल्स के आधार पर यह भी पता चल गया कि साजिद के तार फतेहपुर के रहने वाले अयाज से जुड़े थे.

जांच में यह बात भी सामने आ गई कि अपहर्ता मुंबई से जुड़ा है. इस पर पुलिस ने फतेहपुर से ले कर विभिन्न राज्यों के टोल नाकों पर जांच की और उन नाकों पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी. इस में सब से पहले शोभासर के टोल पर सफेद रंग की एसेंट कार पर जयपुर का नंबर मिला. अगले टोल नाके मौलासर पर इसी कार पर महाराष्ट्र की नंबर प्लेट लगी हुई पाई गई. आगे के टोल नाकों पर उसी कार पर अलगअलग नंबर प्लेट लगी हुई पाई गई. जांच में ये सारे नंबर फरजी पाए गए.

सीकर के एसपी ने मुंबई के पुलिस कमिश्नर से बात कर के ध्रुव के अपहरण की पूरी जानकारी दे कर अपराधियों को पकड़ने में सहायता करने का आग्रह किया. इसी के साथ एसपी के दिशानिर्देश पर एडिशनल एसपी तेजपाल सिंह ने 3 टीमें गठित कर के 3 राज्यों में भेजी. सब से पहले रामगढ़ शेखावाटी के थानाप्रभारी रमेशचंद्र को टीम के साथ मुंबई भेजा गया. यह टीम मुंबई पुलिस और क्राइम ब्रांच के साथ मिल कर आरोपियों की तलाश में जुट गई.

फतेहपुर कोतवाली के थानाप्रभारी महावीर सिंह ने लगातार जांच कर के ध्रुव के अपहरण में साजिद बेग और फतेहपुर के रहने वाले अयाज के साथ उस के संबंधों के बारे में पता लगाया.

एसपी ध्रुव के घर वालों को सांत्वना देने के साथ यह भी बताते रहे कि उन्हें अपहर्ता को किस तरह बातों में उलझा कर रखना है, ताकि पुलिस बच्चे तक पहुंच सके. पुलिस की एक टीम उत्तर प्रदेश और एक टीम पश्चिम बंगाल भी भेजी गई. पुलिस को संकेत मिले थे कि अपहर्ता धु्रुव को ले कर मुंबई, कोलकाता या कानपुर जा सकते हैं.

लगातार भागदौड़ के बाद सीकर पुलिस ने मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच की मदद से 21 मई की आधी रात के बाद मुंबई के बांद्रा  इलाके से ध्रुव को सकुशल बरामद कर लिया. पुलिस ने उस के अपहरण के आरोप में साजिद बेग को मुंबई से गिरफ्तार कर लिया था. इस के अलावा उस की 2 गर्लफ्रैंड्स को भी गिरफ्तार किया गया. पुलिस ने वह एसेंट कार भी बरामद कर ली, जिस से ध्रुव का अपहरण किया गया था. सीकर पुलिस 22 मई की रात ध्रुव और आरोपियों को ले कर मुंबई से रवाना हुई और 23 मई को फतेहपुर आ गई.

पुलिस ने ध्रुव के अपहरण के मामले में मुंबई से साजिद बेग और उस की गर्लफ्रैंड्स यास्मीन जान और हालिमा मंडल को गिरफ्तार किया था. पूछताछ के बाद फतेहपुर के रहने वाले अयाज उल हसन उर्फ हयाज को गिरफ्तार किया गया. इस के बाद सभी आरोपियों से की गई पूछताछ में ध्रुव के अपहरण की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार थी—

साजिद बेग पेशे से सिविल इंजीनियर था. वह बांद्रा, मुंबई में मछली बाजार में रहता था. उसे हिंदी, अंग्रेजी व मारवाड़ी का अच्छा ज्ञान था. वह मूलरूप से फतेहपुर का ही रहने वाला था. उस के दादा और घर के अन्य लोग मुंबई जा कर बस गए थे. फतेहपुर में साजिद का 2 मंजिला आलीशान मकान था. वह फतेहपुर आताजाता रहता था. उस की पत्नी भी पढ़ीलिखी है. उस का एक बच्चा भी है.

मुंबई स्थित उस के घर पर नौकरचाकर काम करते हैं. उस के पिता के भाई और अन्य रिश्तेदार भी मुंबई में ही रहते हैं. इन के लोखंडवाला, बोरीवली सहित कई पौश इलाकों में आलीशान बंगले हैं. वह मुंबई में बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन का काम करता था. मौजमस्ती के गलत शौक और व्यापार में घाटा होने की वजह से साजिद कई महीनों से आर्थिक तंगी से गुजर रहा था. उस पर करीब 30 लाख रुपए का कर्ज हो गया था. इसलिए वह जल्द से जल्द किसी भी तरीके से पैसे कमा कर अपना कर्ज उतारना चाहता था.

करीब 2 महीने पहले साजिद ने फतेहपुर के रहने वाले अपने बचपन के दोस्त अयाज उल हसन उर्फ हयाज को मुंबई बुलाया. वह 5 दिनों  तक मुंबई में रहा. इस बीच साजिद ने उस से पैसे कमाने के तौर तरीकों के बारे में बात की. इस पर अयाज ने कहा कि फतेहपुर में किसी का अपहरण कर के उस के बदले में अच्छीखासी फिरौती वसूली जा सकती है. हालांकि उस समय यह तय नहीं हुआ था कि अपहरण किस का किया जाएगा.

साजिद ने अयाज को यह कह कर फतेहपुर वापस भेज दिया कि वह किसी ऐसी पार्टी का चयन करे, जिस से मोटी रकम वसूली जा सके. अयाज फतेहपुर आ कर योजना बनाने लगा. अयाज ने पिछले साल फतेहपुर के ज्वैलर ललित पोद्दार के मकान पर पेंट का काम किया था. इसलिए उसे ललित के घरपरिवार की सारी जानकारी थी. उस ने साजिद को ललित के बारे में बताया.

इस के बाद दोनों ने ललित के बेटे ध्रुव के अपहण की योजना बना ली. उसी योजना के तहत शादी का फरजी कार्ड नवलगढ़ से छपवाया गया. इस के बाद कार्ड से कैमिकल द्वारा प्रिंटिंग प्रैस का नाम हटा दिया गया. योजनानुसार साजिद 10 मई को मुंबई से कार ले कर फतेहपुर आ गया और दरगाह एरिया में रहने वाले अपने दोस्त अयाज से मिला. इस के बाद ध्रुव के अपहरण की योजना को अंतिम रूप दिया गया.

15 मई को शादी का कार्ड देने के बहाने साजिद ललित के घर से उस के बेटे धु्रव को अश्विनी के घर ले जाने की बात कह कर साथ ले गया और उसे घर के बाहर खड़ी एसेंट कार में बैठा लिया. उस ने धु्रव से कहा कि गाड़ी में पैट्रोल नहीं है, इसलिए पहले पैट्रोल भरवा लें, फिर अश्विनी के घर चलेंगे.

फतेहपुर में पैट्रोल पंप से पहले ही साजिद ने गाड़ी की रफ्तार बढ़ा दी तो ध्रुव को शक हुआ. वह शीशा खोल कर ‘बचाओबचाओ’ चिल्लाने लगा. इस पर साजिद ने उसे कोई नशीली चीज सुंघा दी, जिस से वह बेहोश हो गया.

ध्रुव को बेहोशी की हालत में पीछे की सीट पर सुला कर साजिद अपनी कार से मुंबई ले गया. बीचबीच में टोलनाकों से पहले उस ने 5 बार कार की नंबर प्लेट बदलीं.

साजिद ने अपहृत ध्रुव को मुंबई में अपनी 2 गर्लफ्रैंड्स के पास रखा. इन में एक गर्लफ्रैंड यास्मीन जान मुंबई के चैंबूर में लोखंड मार्ग पर रहती थी. तलाकशुदा यास्मीन को साजिद ने बता रखा था कि वह कुंवारा है. उस ने उसे शादी करने का झांसा भी दे रखा था. साजिद ने यास्मीन को धु्रव के अपहरण के बारे में बता दिया था. यास्मीन फिरौती में मिलने वाली मोटी रकम से साजिद के साथ ऐशोआराम की जिंदगी गुजारने का सपना देख रही थी. इसलिए उस ने साजिद की मदद की और धु्रव को अपने पास रखा.

साजिद की दूसरी गर्लफ्रैंड हालिमा मंडल मूलरूप से पश्चिम बंगाल की रहने वाली थी. वह पिछले कई सालों से बांद्रा इलाके में बाजा रोड पर रहती थी. उस के 2 बच्चे हैं. साजिद मुंबई पहुंच कर ध्रुव को सीधे हलिमा के घर ले गया था. उस ने उसे ध्रुव के अपहरण के बारे में बता दिया था. हालिमा ने भी फिरौती में मोटी रकम मिलने के लालच में साजिद का साथ दिया और ध्रुव को अपने पास रखा. वह ध्रुव को नींद की गोलियां देती रही, ताकि वह शोर न मचा सके.

फेसबुक पर एक पोस्ट में खुद को मुंबई का किंग बताने वाला साजिद इतना शातिर था कि ललित पोद्दार से या अयाज से बात करने के बाद मोबाइल स्विच औफ कर लेता था, ताकि पुलिस उसे ट्रेस न कर सके. ध्रुव को जहां रखा गया था, वहां से वह करीब सौ किलोमीटर दूर जा कर नए सिम से फोन करता था, ताकि अगर किसी तरह पुलिस मोबाइल नंबर ट्रेस भी कर ले तो उसी लोकेशन पर बच्चे को खोजती रहे.

साजिद के बताए अनुसार, टीवी पर आने वाले आपराधिक धारावाहिकों को देख कर उस ने ध्रुव के अपहरण की साजिश रची थी. सीरियलों को देख कर ही उस ने हर कदम पर सावधानी बरती, लेकिन पुलिस उस तक पहुंच ही गई. जबकि उस ने पुलिस से बचने के तमाम उपाय किए थे.

23 मई को पुलिस ध्रुव को ले कर फतेहपुर पहुंची तो पूरा शहर खुशी से नाच उठा. पुष्पवर्षा और आतिशबाजी की गई. 9 दिनों बाद बेटे को सकुशल देख कर पार्वती की आंखों से आंसू बह निकले. पिता ललित पोद्दार ने बेटे को गले से लगा कर माथा चूम लिया. सालासर मंदिर में लोगों ने फतेहपुर कोतवाली के थानाप्रभारी महावीर सिंह का सम्मान किया.

पुलिस ने ध्रुव के अपहरण के मामले में साजिद के अलावा यास्मीन जान, हालिमा मंडल और फतेहपुर निवासी अयाज को गिरफ्तार किया था. फतेहपुर के एक अन्य युवक की भी इस मामले में भूमिका संदिग्ध पाई गई. इस के अलावा उत्तर प्रदेश के एक गैंगस्टर नसरत उर्फ नागा उर्फ चाचा का नाम भी ध्रुव के अपहरण में सहयोगी के रूप में सामने आया है.

नसरत उर्फ नागा उत्तर प्रदेश के सिमौनी का रहने वाला था. वह फिलहाल मुंबई के गौरी खानपुर में रहता है. साजिद काफी समय से उस के संपर्क में था. उस के साथ नागा भी आया था. उस ने नागा को सीकर में ही छोड़ दिया था.

ध्रुव के अपहरण के बाद नागा साजिद के साथ हो गया था. दोनों ध्रुव को ले कर मुंबई गए थे. नागा पर उत्तर प्रदेश और मुंबई में हत्या के 3 मामले और लूट, चाकूबाजी, हथियार तस्करी, गुंडा एक्ट आदि के दर्जनों मामले दर्ज हैं. वह हिस्ट्रीशीटर है. कथा लिखे जाने तक सीकर पुलिस इस मामले में नागा की तलाश कर रही थी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

ब्यूटी सैक्स दौलत कत्ल : महत्त्वाकांक्षा और माया का इंद्राणी जाल

महत्त्वाकांक्षा जीवन में आगे बढ़ने के लिए बेहद सार्थक और जरूरी है लेकिन अगर यही महत्त्वाकांक्षा नाजी तानाशाह हिटलर सरीखी हो जाए तो इतिहास के शब्द खून से सने नजर आते हैं.

शीना हत्याकांड में अबूझ पहेली बनी इंद्राणी मुखर्जी भी इसी अतिमहत्त्वाकांक्षा के जाल में जा फंसी जो उस ने जानेअनजाने खुद ही बुना था. ऊंची साख बनाने और प्रसिद्धि पाने की मानसिकता ने आज के दौर की इंद्राणी सरीखी महिलाओं के हौसले बुलंद तो किए हैं पर कुछेक को अंधेरे दलदल की ओर धकेल भी दिया जहां सिवा अफसोस और अवसादभरी तनहा जिंदगी के कुछ भी नहीं होता.

इस का प्रत्यक्ष उदाहरण है शीना बोरा मर्डर केस में फंसी आईएनएक्स मीडिया की पूर्व सीईओ इंद्राणी मुखर्जी.

पोरी बोरा से इंद्राणी बनने तक

देश की सब से बड़ी मर्डर मिस्ट्री बन चुका शीना बोरा हत्याकांड पुलिस, मीडिया सब के लिए एक पहेली बना हुआ है. असम के गुवाहाटी की पोरी बोरा मायानगरी मुंबई में जिस तरह हाई प्रोफाइल इंद्राणी मुखर्जी बन गई, वह बौलीवुड की किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है. इंद्राणी मुखर्जी बचपन से ही महत्त्वाकांक्षी थी.

कमसिन उम्र में ही उस का प्रेम परवान चढ़ा और शादी के पहले ही वह गर्भवती हो गई. उस समय पोरी बोरा के नाम से जानी जाने वाली इंद्राणी ने सिद्धार्थ दास से पहली शादी शिलांग (मेघालय) में की. हालांकि सिद्धार्थ ने इसे स्वीकार नहीं किया है. शादी के बाद बेटी शीना और बेटे मिखाइल को जन्म दिया.

सिद्धार्थ से अलग होने के बाद व्यापारी संजीव खन्ना से दूसरी शादी रचाई. इस रिश्ते से विधि खन्ना पैदा हुई. कुछ समय बाद संजीव खन्ना से भी तलाक हो गया. पर यह तलाक दिखावे के लिए था. असल में स्टार इंडिया के तत्कालीन सीईओ से विवाह बंधन में बंध कर इंद्राणी उन की दौलत की मालकिन बनना चाहती थी.

 इंद्राणी स्टार इंडिया में एचआर कंसल्टैंट के तौर पर काम करती थी और मौके का फायदा उठा कर स्टार इंडिया के मुखिया पीटर मुखर्जी पर डोरे डालने लगी थी. 2002 में इंद्र्राणी पीटर मुखर्जी से शादी कर ब्रौडकास्ट इंडस्ट्री की सब से ताकतवर शख्सीयत बन गई. उस दौरान पूर्व पति संजीव से पैदा हुई विधि 9 साल की थी. इंद्राणी ने पीटर को विधि के बारे में बताया, लेकिन सिद्धार्थ से पैदा हुई बेटी शीना और बेटे मिखाइल के बारे में नहीं बताया.

पीटर मुखर्जी की भी इंद्राणी से दूसरी शादी है. पहली पत्नी शबनम से पीटर के 2 लड़के हैं-राहुल और रौबिन. इंद्राणी ने पीटर मुखर्जी से 2002 में शादी की थी. इस के बाद इंद्राणी और पीटर ने 2007 में 9ङ्ग चैनल शुरू किया.

इस कंपनी में इंद्राणी  सीईओ बनी. अंगरेजी अखबार के मुताबिक, इंद्राणी ने 4 कंपनियों को जोड़ कर आईएनएक्स कंपनी में इन्वैस्टमैंट किया था. लेकिन 2009 में इंद्राणी ने कंपनी को 170 मिलियन डौलर में बेच दिया. 

शीना बोरा मर्डर मिस्ट्री सैक्स, पैसा और हाई प्रोफाइल जिंदगी से जुड़ी एक ऐसी कहानी है जिस ने मांबेटी के रिश्ते को तारतार कर दिया है. वरना इतने बड़े संपन्न परिवार की एक महिला अपनी बेटी शीना, जो तथाकथित तौर पर उस की बहन भी कही जा रही थी, की हत्या कर दे, कैसे संभव है? शीना की अप्रैल 2012 में हत्या करने और उस का शव रायगढ़ के जंगल में ठिकाने लगाने के आरोप में इंद्राणी,  उस के पूर्व पति संजीव खन्ना और उस के पूर्व चालक श्याम राय को गिरफ्तार किया गया है.

पुलिस के मुताबिक, जिस कार में शीना की हत्या की गई थी उस कार में ड्राइवर श्याम राय ने शीना बोरा के पैर पकड़े और संजीव खन्ना ने उस का गला दबा दिया था. इस के बाद इंद्राणी ने पुलिस से बचने के लिए शीना के शव का मेकअप तक किया. उस के बाल संवारे थे और लिपस्टिक लगाई थी ताकि लोग शंका न कर सकें.

रिश्तों की उलझन शीना की डायरी से भी समझी जा सकती है जिस में वह लिखती है कि मुझे अब मां से नफरत है. वह मां नहीं, डायन है. शीना बोरा हत्याकांड मानवीय मूल्यों के माने ही खत्म होने की मिसाल है. सवाल कई हैं. अगर इंद्राणी ने सबकुछ हासिल कर लिया था तो उसे हत्या जैसा कदम क्यों उठाना पड़ा? क्या कोई ऐसा राज था जो शीना के दिल में दफन करने के लिए उस की हत्या की साजिश रची गई या फिर इस डिसफंक्शनल परिवार में और भी ऐसी कई सड़ांध फैली थीं जिन के फैलने के डर से अपनों ने ही शीना का गला घोंट दिया?   

महत्त्वाकांक्षा की मार

जब औरत महत्त्वाकांक्षा के बुने जाल में फंसती है तो उसे इस की कीमत अकसर अपनी जान दे कर या गहरे अपराध में फंस कर जेल के अंधेरे बंद कमरे में चुकानी पड़ती है. इंद्राणी की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. पैसा और शोहरत का यह रास्ता शुरुआत में भले ही सुगम और सुखदाई लगे लेकिन यह रास्ता आखिरकार जाता अवसाद और अपराध की ओर ही है. इंद्राणी ने भी सफलता की सीढि़यां चढ़ने के लिए शौर्टकट अपनाया और अब पुलिस की गिरफ्त में है.

 दरअसल, अपने दूसरे पति सिद्धार्थ दास से अलग होने के बाद इंद्राणी की आर्थिक हालत ठीक नहीं थी. उस वक्त इंद्राणी के पास काइनेटिक स्कूटी हुआ करती थी. लेकिन आज स्थिति ठीक उलट है. इंद्राणी के पास मुंबई, कोलकाता, देहरादून समेत कई शहरों में अरबों की संपत्ति तो है ही, साथ में कई लग्जरी कारें भी हैं. यही नहीं, पीटर मुखर्जी से शादी के बाद इंद्राणी को नीता अंबानी, शाहरुख खान समेत कई बड़ी हस्तियों के साथ देखा गया. इंद्राणी पेज 3 पार्टीज में खूब शिरकत करती थी और ज्यादा पैसे वाला मिलते ही वह दूसरी शादी रचा लेती थी.

अब तक 5 पतियों को छोड़ चुकी इंद्राणी और पीटर के बीच मुलाकात भी एक ‘बार’ में पार्टी के दौरान हुई थी. इंद्राणी के एक दोस्त का तो यहां तक कहना है कि इंद्राणी हद से अधिक आक्रामक और महत्त्वाकांक्षी थी, वह अपना काम पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जा सकती थी.

और भी हैं इंद्राणी

किसी भी कीमत पर सबकुछ पाने की सोच और उन्मुक्त जीवन व आजादी का यह सपना एक नहीं कई इंद्राणियों को दर्द व अवसाद की गहरी खाई में धकेल चुका है. पुरुषों से ज्यादा महत्त्वाकांक्षी होने के चलते औरतें अपना सर्वस्व समर्पित करने से गुरेज नहीं करती हैं.

लेकिन बदले में सिवा बरबादी और तकलीफ के कुछ हासिल नहीं होता. हमारे सामने मधुमिता, भंवरी देवी, शिवानी भटनागर, फिजा, सुनंदा पुष्कर और रूपम जैसे कई उदाहरण हैं जहां महिलाएं अपनी ही महत्त्वाकांक्षा के बुने जाल में फंस गईं और उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ी.

इस के लिए कभी शशि थरूर जैसे रसूखदार केंद्रीय मंत्री का सहारा लिया गया तो कभी आर के शर्मा जैसे भ्रष्ट पुलिस अधिकारी का और कभी चांद मोहम्मद उर्फ चंद्रमोहन जैसे लोगों का. लेकिन तमाम किस्सों में बलि का बकरा सिर्फ औरत बनी. इन की महत्त्वाकांक्षी और पुरुषों की दुनिया में वर्चस्व हासिल करने की जिद ने इन्हें दुनिया से ही विदा कर दिया.  

शिवानी भटनागर एक वरिष्ठ पत्रकार बनने से पहले जब प्रशिक्षु थी, तो उस ने अपने सीनियर पत्रकार से शादी की जबकि दोनों की आदतों में बहुत अंतर था. उस पत्रकार एवं पति की बदौलत उस को मीडिया में वह रुतबा हासिल हुआ जो इतने कम समय में मिलना बेहद मुश्किल था. इस दौरान उस की नजदीकियां पुलिस अधिकारी आर के शर्मा से बढ़ीं, जिस के पीछे त्वरित सफलता पाने की शिवानी की ख्वाहिश काम कर रही थी. नजदीकियां हदों से पार निकल गईं. आखिरकार, वह मौत का कारण भी बन गई.

इसी तरह फिजा उर्फ अनुराधा बाली एक अधिवक्ता थी. मगर राजनीति के गलियारों में पैठ बनाने के लिए मिला एक शादीशुदा चंद्रमोहन, एक प्रदेश का उपमुख्यमंत्री. दोनों ने शादी भी कर ली चांद और फिजा बन कर. मगर जब फिजा दुनिया से रुखसत हुई तो अफसोस के सिवा उस के पास कुछ नहीं था. सुनंदा पुष्कर ने चुना एक केंद्रीय मंत्री, जिस की पिछली पारिवारिक जिंदगियां सदैव संदेह के घेरों में रहीं.

सुनंदा की भी पृष्ठभूमि कोई पाकसाफ नहीं थी. वह एक तथाकथित सोशलाइट थी, जिस में शीर्ष के लोगों के साथ की ललक व चाहत थी. मगर यहां सवाल यह उठता है कि सुनंदा पुष्कर और शशि थरूर के बीच ऐसे कौन से हालात बन गए थे जिन की परिणति एक असामयिक और संदिग्ध मौत के रूप में हुई? कुछ तो जरूर होगा जो शायद महत्त्वाकांक्षा की अतिशयता से जुड़ा होगा? दरअसल, जब हम किसी का इस्तेमाल कर रहे होते हैं तो हम यह भूल जाते हैं कि कहीं न कहीं वह भी हमारा इस्तेमाल कर रहा है. और आखिर में शिकार इंद्राणी जैसी औरतों का ही होता है.

खूबसूरती और ताकत की भूख

इस हश्र से परे अगर इन के इंद्राणी बनने के पीछे के जरियों की पड़ताल की जाए तो 2 कारक सामने आते हैं. पहला, खूबसूरती यानी शरीर का इस्तेमाल और दूसरा बेशुमार ताकत हासिल करने की भूख. इन 2 अरमानों तले पलती महिलाएं पुरुषप्रधान समाज में पुरुषों का ही इस्तेमाल कर फर्श से अर्श तक का सफर पूरा करती हैं. इन को समझने के लिए विश्व राजनीति के पटल पर क्लियोपेट्रा को समझना बेहद जरूरी है. यह एक ऐसा नाम है जिस ने अपनी खूबसूरती और अपने शरीर का इस्तेमाल अपने कैरियर को बढ़ाने में बेहतरीन तरीके से किया.

उस ने सैक्स पावर को पहचानते हुए खुल कर उस का उपयोग किया और उसे अपनी सफलता की सीढ़ी बना कर बुलंदी पर जा पहुंची. क्लियोपेट्रा इस बात को जानती थी कि किस तरह अपने शरीर का इस्तेमाल कर के मर्दों को गुलाम बनाया जा सकता है. उसे उस हुनर का पता था जिस के बल पर वह बड़ेबड़े लोगों को अपने मोहजाल में फंसा सकती थी. साफ है कि क्लियोपेट्रा ने सैक्स और अपने शरीर को एक कमोडिटी की तरह अपने हक में सत्ता हासिल करने के लिए इस्तेमाल किया.

क्लियोपेट्रा अब एक नाम नहीं रही, बल्कि यह एक प्रवृत्ति के तौर पर स्थापित हो चुकी है. ऐसा नहीं है कि इस तरह की महिलाएं, जो अपनी देह को सत्ता हासिल करने का जरिया बनाती हैं,  सिर्फ विदेशों या पश्चिमी देशों में हैं, इस तरह के कई उदाहरण हमारे देश में भी मिल जाएंगे.

कितने खून माफ होंगे?

रस्किन बौंड की कहानी ‘सुजैन्स सेवन हस्बैंड्स’ पर विशाल भारद्वाज ने फिल्म ‘सात खून माफ’ बनाई, जो काफी हद तक ऐसी औरत की कहानी थी जो प्यार, ताकत और वर्चस्व की चाह में औरतों के अपने बनाए मापदंडों पर पुरुषों को खरा न पा कर उन की हत्या कर देती है. वह अलगअलग मिजाज के लोगों से 7 शादियां करती हैं.

प्यार,  नफरत, सैक्स, लालच जैसे भावों से भरी इस फिल्म में सुजैन का किरदार इंद्राणियों सरीखा है जो अपनी शर्तों पर जिंदगी जीती हैं और रास्ते पर चाहे पति आए या बेटी, गला घोंटने से गुरेज नहीं करतीं. इसी तरह, विद्या बालन अभिनीत फिल्म ‘द डर्टी पिक्चर’, जोकि दक्षिण भारतीय फिल्मों में सिल्क स्मिता के नाम से मशहूर सी ग्रेड अभिनेत्री के जीवन पर आधारित थी, उसी पुरुषवादी समाज का इस्तेमाल कर उभरती और डूबती औरत की कहानी थी.

फर्क इतना भर है कि सुजैन अपने पतियों का कत्ल कर देती है और सिल्क को आत्महत्या करनी पड़ती है. लेकिन गौर करें तो दोनों ही हालात में औरतें अकेली और अवसाद भरी जिंदगी के मुहाने पर थकी और लाचार सी खड़ी दिखाई देती हैं. इस तरह के किरदारों पर कई फिल्में बनी हैं जिन में डकैत फूलन देवी की ‘बैंडिट क्वीन’ की भी कहानी शामिल की जा सकती है.

अब्बास मस्तान की प्रियंका चोपड़ा अभिनीत फिल्म ‘ऐतराज’ भी कुछ यही बयां करती है. जहां एक महत्त्वाकांक्षा की मारी औरत अमीर बनने के लिए एक उम्रदराज बिजनैसमैन से शादी तो कर लेती है लेकिन जिस्म की भूख शांत करने के लिए अपने पुराने प्रेमी का इस्तेमाल करना चाहती है. बदले में उसे कंपनी में बड़ा ओहदा भी औफर करती है. उस की पावर को जब नायक चुनौती देता है तो उस पर रेप का झूठा इल्जाम लगाती है. आखिर में खुदकुशी की दहलीज पर उसे ही जाना पड़ता है.

सामाजिक सरोकार

ऐसी अपराधभरी घटनाएं जब अखबार और टीवी पर दिनरात टीआरपी के नशे में घरघर परोसी जाती हैं तो सामाजिक तबके पर इस के अलग प्रभाव दिखते हैं. कोई सैक्स और हत्या की इस गुत्थी को चटकारे ले कर गलीनुक्कड़ में सुनतासुनाता है तो कोई अपने घर की फैली सड़ांध से इसे मैच करने लगता है. सभ्य और अमीर समाज की धज्जियां उड़ाती ऐसी घटनाओं के गहरे सामाजिक सरोकार हैं और इन से सबक लेना ज्यादा जरूरी है बजाय इन पर सोशल मीडिया में चुटकुले गढ़ने के.

ये हालात किसी के घर भी हो सकते हैं. शीना मर्डर केस का असर राजधानी दिल्ली के एक प्रतिष्ठित प्राइवेट स्कूल में 7वीं क्लास के एक छात्र पर कुछ इस तरह दिखा कि उस की मां उसे इंद्र्राणी मुखर्जी की तरह लगने लगी है. उस ने नोट्स में अपनी मां के बारे में लिखा था, ‘‘मैं एक नाजायज बच्चा हूं. मेरी मां इंद्र्राणी मुखर्जी की तरह है. उसे बहुत से आदमियों के साथ सैक्स करना पसंद है.’’ टीचर ने इस बात की जानकारी स्कूल के प्रिंसिपल को दी. प्रिंसिपल ने उस बच्चे के मातापिता को मिलने के लिए स्कूल बुलाया. बहरहाल, अब वह स्टूडेंट काउंसलिंग की प्रक्रिया से गुजर रहा है.

अंत बुरा तो सब बुरा

फर्ज कीजिए, अगर इंद्र्राणी ने शीना की हत्या नहीं की होती तो क्या सबकुछ ठीक होता इन की जिंदगी में, कतई नहीं. सिर्फ हत्या प्रकरण को हटा दें तो भी शीना अपनी मां से नफरत करती. इंद्र्राणी इसी तरह सफलता की सीढि़यां चढ़ने के लिए शादियां करती और परिवार इस तरह की डिसफंक्शनल जाल में उलझा रहता. 

जरा सोचिए, इतनी उलझनों के बीच परिवार में कौन खुश रहता. जहां भाई मां के खिलाफ है और बेटी को मां से नफरत है, जहां परिवार के साधारण से रिश्तों की गुत्थी सुलझाने के लिए दिमाग के न जाने कितने घोड़े दौड़ाने पड़ते हैं, वहां सिवा अपराध, हत्या, झगडे़ और साजिश के और क्या हो सकता था. 

आज के इस युग में जब संवेदनाएं सूख रही हैं और संबंधों का भी बाजारीकरण हो चुका है, ऐसे में महिलाओं को समझना होगा कि सशक्तीकरण का अर्थ सिर्फ धन कमाना और ऊंची पहुंच बनाना नहीं है. सशक्तीकरण का सही अर्थ है जागरूकता, आत्मनिर्भरता, संवेदनशील सोच व सतर्कता और अपने सामाजिक व पारिवारिक मूल्यों का बोध. जब महिलाएं इस बात को समझ जाएंगी, तभी उन का और उन से जुड़े रिश्तों का जीवन दिशाहीन होने से बच सकेगा.

-साथ में राजेश कुमार

सरपंच न बनने पर बना जल्लाद

सोमवार 6 दिसंबर, 2021 का दिन था. कड़कड़ाती ठंड छत्तीसगढ़ की हवाओं को सर्द बनाए हुए थी. शाम के लगभग 7 बज रहे थे. इंजीनियर शिवांग चंद्राकर अपने फार्महाउस से धीमी गति से बाइक चलाते हुए अपने घर मरौदा की ओर जा रहा था. तभी उस ने देखा कि कोई उसे हाथ दे रहा है, सामने अशोक खड़ा था. उसे देख कर शिवांग ने बाइक रोक दी.

शिवांग अशोक देशमुख को अच्छी तरह जानता था, जिसे वह अच्छी तरह जानता था. अशोक ने शिवांग चंद्राकर ने कहा, ‘‘भाई, मेरी बाइक खराब हो गई है. क्या तुम मुझे लिफ्ट दे सकते हो?’’

शिवांग चंद्राकर जानता था कि अशोक  गांव का नामचीन व्यक्ति है, उस की उस से कभी नहीं बनी. मगर इंसानियत भी कोई चीज होती है, यह सोच कर उस ने मुसकरा कर  कहा, ‘‘हांहां क्यों नहीं भाई, आओ बैठो बताओ कहां चलना है.’’

यह सुनना था कि अशोक देशमुख उछल कर शिवांग की बाइक पर बैठ गया.

अशोक ने शिवांग के कंधे पर हाथ रखा तो उसे महसूस हुआ मानो उस के हाथ में कोई कठोर चीज है. शिवांग को जाने क्यों महसूस हुआ कि कुछ गड़बड़ है, मगर अब वह क्या कर सकता था. चुपचाप बाइक चला रहा था, देखा सामने 2 लोग और खड़े मिले. वह भी उसे रुकने के लिए इशारा कर रहे थे.

उन्हें देख कर के शिवांग ने बाइक की गति तेज कर दी. मगर अशोक ने कंधे पर थपथपा कर कहा, ‘‘नहींनहीं, रुको.’’

मजबूर शिवांग ने बाइक रोकी. वही दोनों लोग उस के पास आ गए जो हाथ के इशारे से बाइक रुकवा रहे थे. शिवांग उन्हें थोड़ाथोड़ा जानता था.

तभी अशोक देशमुख ने शिवांग को कस कर पीछे से जकड़ लिया. शिवांग को महसूस हुआ मानो वह किसी बड़े खतरे में फंस चुका है. थोड़ी ही देर में उस के मस्तिष्क में अशोक देशमुख के साथ सारे विवाद घूमने लगे. उस ने अशोक के चंगुल से छूटने की कोशिश की. लेकिन उस ने पूरी ताकत से उसे जकड़ रखा था इसलिए छूट नहीं सका.

इसी बीच सामने खड़े दोनों व्यक्तियों ने आगे बढ़ कर उसे पकड़ा. उन में से एक ने उस के गले में नायलोन की रस्सी डाल कर कस दी. थोड़ी ही देर में दम घुटने से शिवांग की मौत हो गई.

इस के बाद अशोक देशमुख ने अपने साथियों के साथ मिल कर शिवांग के हाथ और पैर पकड़ कर लाश झाडि़यों के पास डाल दी. फिर अशोक अपने साथियों से बोला, ‘‘तुम लोग यहां रुको, मैं अभी कार ले कर आता हूं.’’

उस के दोनों साथियों में एक बसंत साहू था और दूसरा विक्की उर्फ मोनू देशमुख.

इस पर बसंत साहू ने कहा, ‘‘भैया जल्दी आना, यहां लोग आतेजाते रहते हैं किसी को भी शक हो सकता है.’’

‘‘हां, मैं जल्द ही कार ले कर आता हूं.’’

अशोक तेजी से चला गया. थोड़ी ही देर में अपनी कार ले कर के वहां आ गया और तीनों ने मिल कर शिवांग चंद्राकर के शव को कार की डिक्की में डाल दिया.

अशोक देशमुख कार चलाते हुए झरझरा में हरीश पटेल की खाली पड़ी जमीन पर ले गया. वहां हार्वेस्टर चलने से गड््ढे बने हुए थे. एक गड्ढे में शिवांग की लाश जलाने की व्यवस्था उन्होंने पहले ही कर रखी थी.

वहीं दोनों अन्य आरोपी अपनी मोटर बाइक से आ गए. फिर तीनों ने मिल कर मिट्टी का तेल डाल कर शिवांग चंद्राकर के शव में आग लगा दी.

दिसंबर का महीना था. लोग भीषण ठंड के कारण अपनेअपने घरों में दुबके हुए थे. कहीं ऐसे में लोगों को आग जलती हुई दिखती है तो दूसरे लोग यही समझते हैं कि ठंड दूर करने के लिए किसी ने अलाव जला रखा है.

यही वजह थी कि जब ये लोग शिवांग के शव को जला रहे थे तो लोगों ने कोई शक नहीं किया. जब आग बुझी तो शिवांग का शव आधा जल चुका था. तब वह उसे मिट्टी से ढक कर अपनेअपने घर चले गए.

छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले का चंदखुरी गांव अपनी खेतीकिसानी के कारण जिले भर में प्रसिद्ध है. लगभग 3 हजार की जनसंख्या का यह हरित अनुपम गांव शहर से लगा हुआ है. यहां के धनाढ्य लोगों को दाऊजी कह कर सम्मान के साथ संबोधित किया जाता है. अधिकांश लोगों का जीवनयापन खेतीकिसानी और शहर में नौकरी से गुजरबसर करना होता है.

31 वर्षीय अशोक देशमुख गांव की राजनीति करते हुए खेतीकिसानी करता था. हाल ही में हुए ग्राम पंचायत चुनाव में वह सरपंच का चुनाव चंद मतों से हार गया था. जिस का दोषी वह शिवांग चंद्राकर और उस के परिवार को ही मानता था. यही कारण था कि अशोक शिवांग से बदला लेने का मौका ढूंढ रहा था.

उस ने गांव के ही रहने वाले अपने खास दोस्त विक्की उर्फ मोनू देशमुख (20 वर्ष) और बसंत साहू (उम्र 24 वर्ष) जोकि गांव चंद्रपुरी में ही रहते थे, से एक दिन मौका देख कर बात की.

‘‘यार मोनू, आज मैं सरपंच होता, मेरी गांव में अच्छीखासी चलती. दो पैसे कमाता, तुम लोगों को भी हमेशा खिलातापिलाता, मगर एक आदमी की वजह से पूरा प्लान धरा का धरा रह गया.’’

इस पर मोनू और बसंत साहू ने उस की ओर देखा तो मोनू ने कहा, ‘‘भैया, मैं जानता हूं लेकिन अब क्या किया जा सकता है. चुनाव में इस ने तो आप का बैंड बजा दिया.’’

यह सुन कर के अशोक ने कहा, ‘‘अगर तुम लोग मेरे सच्चे दोस्त हो तो मेरा साथ दो, मैं इस को ऐसा सबक सिखाऊंगा कि जिंदगी में कभी हमारा कोई विरोध नहीं करेगा.’’

‘‘क्याक्या करना होगा, बताओ.’’

इस पर विक्की उर्फ मोनू ने गुस्से से भर कर  कहा, ‘‘शिवांग के बड़े भाई धर्मेश ने मुझे थप्पड़ मारा था, इसलिए मैं भी इन से बदला लेना चाहता हूं. मैं तुम्हारे साथ हूं. शिवांग इंजीनियर क्या बन गया है, इस के घर के लोग अपने आप को बड़ा आदमी समझने लगे हैं.’’

यह सुन कर अशोक खुश होते हुए बोला, ‘‘बस, मेरे दोस्त, तुम ने मेरा दिल जीत लिया. मैं एक योजना बनाता हूं और इस को सबक सिखाते हैं.’’

इस पर बसंत साहू  ने कहा, ‘‘हां, क्या है आखिर तुम्हारी योजना, भाई. बताओ?’’

‘‘यह बात है तो सुनो. मेरे दिमाग में बहुत दिनों से एक कीड़ा कुलबुला रहा है. सरपंच चुनाव में तो हार गया हूं. मगर इन से हम 25-50 लाख रुपए वसूल सकते हैं. इस से तुम दोनों की भी जिंदगी बन जाएगी. फिर जिंदगी भर ऐश करोगे.’’

यह सुन कर के दोनों खुशी से उछल पड़े और एक साथ बोले, ‘‘ऐसा है तो हम तुम्हारे साथ हैं जब जैसा कहोगे वैसा करेंगे.’’

7 दिसंबर, 2021 सुबह लगभग 11 बज रहे थे कि थाना पुलगांव के टीआई नरेश पटेल के पास 2 लोग आए.

उन में से एक ने थानाप्रभारी से कहा, ‘‘साहब, मैं दीपराज चंद्राकर हूं और गांव चंदखुरी से आया हूं. मेरा भांजा शिवांग चंद्राकर कल शाम से लापता है उस का कोई पता नहीं चल रहा है.’’ यह कहते दीपराज रोआंसा हो गया. उस की आंखें भर आई थीं.

थानाप्रभारी नरेश पटेल मामले की गंभीरता को समझ कर उन्हें भरोसा दिलाते हुए बोले, ‘‘तुम लोग चिंता मत करो, हम पूरी मदद करेंगे. तुम अभी गुमशुदगी दर्ज करवाओ.’’

इस के बाद दीपराज ने शिवांग चंद्राकर की गुमशुदगी दर्ज करा दी. गुमशुदगी दर्ज होने के पुलिस ने अपने स्तर से इंजीनियर शिवांग को ढूंढना शुरू कर दिया.

एक हफ्ता बीत गया था. शिवांग चंद्राकर का कहीं कोई पता नहीं चल रहा था. रिश्तेदारों के यहां मातापिता ने पता किया, मगर शिवांग की कोई जानकारी नहीं मिल रही थी.

धीरेधीरे लोगों में आक्रोश पैदा हो रहा था कि पुलिस शिवांग को आखिर क्यों नहीं ढूंढ पा रही है. मामला उच्च अधिकारियों तक पहुंचा. जब स्थिति बिगड़ने लगी तो पुलिस के आईजी ओ.पी. पाल के निर्देश पर एसएसपी ने केस को गंभीरता से लिया. इस के अलावा उस के पैंफ्लेट छपवा कर बताने वाले को 10 हजार रुपए का ईनाम देने की घोषणा की.

टीम में थानाप्रभारी नरेश पटेल, गौरव तिवारी, एसआई डुलेश्वर सिंह चंद्रवंशी, एएसआई राधेलाल वर्मा, नरेंद्र सिंह राजपूत, समीत मिश्रा, अजय सिंह, हैडकांस्टेबल संतोष मिश्रा, कांस्टेबल जावेद खान, प्रदीप सिंह, जगजीत सिंह, धीरेंद्र यादव, चित्रसेन, केशव साहू, लव पांडे, अलाउद्दीन, हीरामन, तिलेश्वर राठौर को शामिल किया गया.

इस सब के बावजूद पुलिस को शिवांग चंद्राकर की गुमशुदगी के बारे में कहीं कोई सुराग नहीं मिल रहा था और पुलिस हाथ पर हाथ धरे मानो बैठी हुई थी कि 5 जनवरी, 2022 को शिवांग चंद्राकर के बड़े भाई धर्मेश चंद्राकर ने थानाप्रभारी को सनसनीखेज जानकारी दी.

धर्मेश ने बताया, ‘‘सर, झरझरी कैनाल रोड के पास एक खेत में एक कंकाल और हड्डियां मिली हैं, टाइमैक्स घड़ी मिली है, जले हुए कपड़े हैं, देख कर लगता है कि यह शिवांग के ही होंगे.’’

थानाप्रभारी नरेश पटेल ने यह जानकारी उच्चाधिकारियों को दी. इस के बाद पुलिस अधिकारी फोरैंसिक टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां खुदाई कर के अस्थियां और एक मानव मुंड बरामद किया. फोरैंसिक विशेषज्ञ मोहन पटेल ने सूक्ष्मता से जांच शुरू की.

कंकाल और जले हुए कपड़ों व बालों के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता था कि यह आखिर किस का शव है.

शिवांग चंद्राकर का पूरा परिवार चिंतित था और लोगों द्वारा यह कयास लगाया जा रहा था कि यह शिवांग का कंकाल और अवशेष हो सकता है.

नरेश पटेल ने उच्चाधिकारियों को जानकारियां दे कर अवशेष की जांच डीएनए हेतु रायपुर भेजने की काररवाई शुरू कर दी.

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इस के साथ ही जिले भर में यह चर्चा होने लगी कि 6 दिसंबर को लापता हुए शिवांग चंद्राकर की जब कोई जानकारी नहीं मिल रही है तो जरूर 5 जनवरी को मिले हुए कंकाल से उस का संबंध हो सकता है.

इस संदर्भ में स्थानीय समाचार पत्रों में भी इसी तरह की खबरें प्रकाशित हो रही थीं. और जब डीएनए जांच रिपोर्ट सामने आई तो यह स्पष्ट हो गया कि वह अस्थियां शिवांग की ही हैं.

पुलिस के सामने अब इस केस को खोलने की चुनौती थी. इस के लिए 5 जांच टीमें बनाई गईं और आईजी ओ.पी. पाल और एसएसपी बद्रीनारायण मीणा ने पुलिस टीमों के साथ मीटिंग करने के बाद दिशानिर्देश दिए.

पुलिस ने इस केस में करीब 500 लोगों से पूछताछ की. पुलिस ने जोरशोर से विवेचना प्रारंभ कर दी.

पुलिस ने इसी दरमियान छत्तीसगढ़ के चंद्रखुरी गांव के रहने वाले अशोक देशमुख से भी पूछताछ की. पुलिस को पता चला था कि सरपंच के चुनाव में अशोक की शिवांग से खटपट हुई थी. लेकिन अशोक खुद को बेकुसूर बताता रहा.

पुलिस ने उस के फोन की काल डिटेल्स की जांच की तो पाया कि उस दिन वह अपने घर में ही था. ऐसे में वह पुलिस की जांच से बाहर हो गया था.

इसी दरमियान एक दिन दूसरे संदिग्ध आरोपी विक्की उर्फ मोनू देशमुख से जब पूछताछ चल रही थी तो वह टूट गया. उस ने पुलिस को बताया कि शिवांग चंद्राकर की हत्या उस ने अशोक देशमुख  और बसंत साहू के साथ मिल कर की थी.

पुलिस को उस ने अपने बयान में बताया कि शिवांग चंद्राकर के भाई धर्मेश ने एक विवाद में उसे थप्पड़ जड़ दिया था. जिस का बदला लेने के लिए वह अशोक देशमुख के साथ इस हत्याकांड में शामिल हो गया था.

उस ने अपने इकबालिया बयान में यह भी बता दिया कि अशोक देशमुख पिछला पंचायत पंच चुनाव हारने के कारण शिवांग चंद्राकर से बदला लेना चाहता था और उस से 30 लाख रुपए  फिरौती की योजना बनाई थी.

मगर पुलिस की सक्रियता और गांव का सख्त माहौल देखते हुए उन लोगों ने फिरौती की योजना को दरकिनार कर के मौन रहना ही उचित समझा था.

यह जानकारी मिलने के बाद तत्परता दिखाते हुए टीआई नरेश पटेल की टीम ने उसी रात अशोक देशमुख और विक्की चंद्राकर को हिरासत में ले लिया और जब इन दोनों से पूछताछ की तो दोनों ही पुलिस जांच के सामने टूट गए और सब कुछ सचसच बयां कर दिया.

अशोक देशमुख ने बताया कि पंचायत चुनाव में वह सरपंच का चुनाव लड़ रहा था. मगर शिवांग देशमुख के पिता राजेंद्र देशमुख के कारण वह चुनाव हार गया था.

इस के साथ ही रेगहा में स्थित 15 एकड़ के कृषि फार्महाउस का विवाद भी इस का एक कारण था, जिसे राजेंद्र चंद्राकर ने उस से हथिया लिया था.

यहां एक रोचक बात यह भी सामने आई कि जांच में यह पाया गया कि अशोक देशमुख घर पर ही था तो फिर अब कैसे हत्यारा हो गया. पुलिस ने उस की पत्नी रजनी से पूछताछ की तो उस ने बताया कि पति घर पर ही था. मोबाइल में 7 मिस काल दिखाई दे रही थीं.

अब सवाल यह था कि आखिर जब अशोक घर पर था तो पत्नी ने काल क्यों किया था और अशोक ने काल रिसीव क्यों नहीं कीं.

अशोक ने इस संदर्भ में खुलासा करते हुए बताया कि शिवांग चंद्राकर की हत्या के लिए उस ने लंबे समय तक एक योजना बनाई थी कि किस तरह हम हत्या के इस केस से बच सकते हैं और फिरौती भी हासिल कर सकते हैं?

इसी तारतम्य में यह सोचीसमझी योजना बनाई गई थी कि हत्या के दिन मोबाइल को घर में रखना है. ताकि कभी पुलिस वेरिफिकेशन हो तो एक नजर में यह माना जाए कि वह तो घर पर ही था. फिर भला हत्या कैसे कर सकता है.

इस तरह आरोपियों ने इंजीनियर शिवांग की बाइक पर लिफ्ट ले कर एकांत में गला घोट कर हत्या कर दी थी.

जांच के बाद पुलिस ने हत्याकांड में प्रयुक्त कार, मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली. गला घोटने में प्रयुक्त हुई नायलौन की रस्सी भी आरोपियों की निशानदेही पर बरामद कर ली.

तीनों आरोपियों अशोक देशमुख पुत्र रामनारायण देशमुख, विक्की उर्फ मोनू देशमुख और बसंत साहू को भादंवि की धारा 364, 365, 201, 120बी और 302 के तहत मामला दर्ज कर के 10 फरवरी, 2022 को गिरफ्तार कर लिया और अगले दिन 11 फरवरी को उन्हें मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी, दुर्ग, छत्तीसगढ़ के समक्ष पेश किया.

जहां मामले की गंभीरता को देखते हुए मजिस्ट्रैट ने तीनों आरोपियों को जेल भेजने का आदेश जारी कर दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों और चर्चा पर आधारित

मोह में मिली मौत : विदेश जाने का चढ़ा खुमार

19 जनवरी, 2022 को अमेरिका से लगी कनाडा सीमा के पास मिनेसोटा राज्य के एमर्शन शहर के नजदीक कनाडा की ओर मेनिटोबा रौयल कैनेडियन माउंटेन पुलिस (आरसीएमपी) ने अमेरिका में चोरीछिपे यानी अवैध रूप से घुस रहे 7 लोगों को गिरफ्तार किया था. इन लोगों से पता चला कि इन के 4 लोग और थे, जो पीछे छूट गए हैं.

पीछे छूट गए लोगों की तलाश में जब आरसीएमपी के जवानों ने सीमा की तलाशी शुरू की तो उन्हें सीमा के पास बर्फ में ढके 4 शव मिले.

आरसीएमपी के जवानों ने जिन 7 लोगों को गिरफ्तार किया था, वे गुजरात के गांधीनगर के आसपास के रहने वाले थे. इस से उन जवानों ने अंदाजा लगाया कि ये मृतक भी शायद उन्हीं के साथी होंगे.

बर्फ में जमी मिली चारों लाशों में एक  पुरुष, एक महिला, एक लड़की और एक बच्चे की लाश थी. ये लाशें सीमा से 10 से 13 मीटर की दूरी पर कनाडा की ओर पाई गई थीं. मेनिटोबा रायल कैनेडियन पुलिस ने लाशों की तलाशी ली तो उन के पास मिले सामानों में बच्चे के उपयोग में लाया जाने वाला सामान मिला था.

अंदाजा लगाया गया कि इन की मौत ठंड से हुई है. बर्फ गिरने की वजह से उस समय वहां का तापमान माइनस 35 डिग्री सेल्सियस था.

अगले दिन जब यह समाचार वहां की मीडिया द्वारा प्रसारित किया गया तो भारत के लोग भी स्तब्ध रह गए थे.

खबर में मृतकों के गुजरात के होने की संभावना व्यक्त की गई थी, इसलिए उस समय गुजरात से कनाडा गए लोगों के भारत में रहने वाले परिजन बेचैन हो उठे. सभी लोग कनाडा गए अपने परिजनों को फोन करने लगे.

उसी समय गांधीनगर की तहसील कलोल के गांव डिंगुचा के रहने वाले बलदेवभाई पटेल का बेटा जगदीशभाई पटेल भी अपनी पत्नी, बेटी और बेटे के साथ कनाडा गया था. इसलिए उन्हें चिंता होने लगी कि कहीं उन का बेटा ही तो सीमा पार करते समय हादसे का शिकार नहीं हो गए. उन का बेटे से संपर्क भी नहीं हो रहा था.

सच्चाई का पता लगाने के लिए उन्होंने कनाडा स्थित दूतावास को मेल किया, पर कुछ पता नहीं चला. पता चला 9 दिन बाद.

पुलिस को चारों लाशों की पहचान कराने में 9 दिन लग गए थे. 9 दिन बाद 27 जनवरी, 2022 को आरसीएमपी की ओर से रोब हिल द्वारा अधिकृत रूप से भारतीय उच्चायोग को सूचना दी गई कि चारों मृतक भारत के गुजरात राज्य के जिला गांधीनगर के डिंगुचा गांव के रहने वाले थे. चारों मृतक एक ही परिवार के थे.

उन की पहचान बलदेवभाई पटेल के बेटे जगदीशभाई पटेल (39 साल), बहू वैशाली पटेल (37 साल), पोती विहांगी पटेल (11 साल) और पोते धार्मिक पटेल (3 साल) के रूप में हुई थी.

यह परिवार 12 जनवरी को कनाडा जाने की बात कह कर घर से निकला था और वहां पहुंच कर फोन करने की बात कही थी.

यह परिवार उसी दिन कनाडा के टोरंटो शहर पहुंच गया था. इस के बाद यह परिवार 18 जनवरी को मैनिटोबा प्रांत के इमर्शन शहर पहुंचा था और 19 जनवरी को पूरे परिवार की लाशें मेनिटोबा प्रांत से जुड़ी अमेरिका कनाडा सीमा पर कनाडा सीमा में 12 मीटर अंदर मिली थीं.

दूसरी ओर जब पता चला कि यह परिवार अवैध रूप से अमेरिका में घुस रहा था तो गुजरात के डीजीपी आशीष भाटिया ने पटेल परिवार को गैरकानूनी रूप से विदेश भेजने से जुड़े लोगों से ले कर पूरी जांच की जिम्मेदारी सीआईडी क्राइम ब्रांच की एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग ब्रांच को सौप दी.

जिस के लिए डिप्टी एसपी सतीश चौधरी के नेतृत्व में टीम गठित कर जांच शुरू भी कर दी गई थी.

विदेशमंत्री एस. जयशंकर ने भी इस घटना को गंभीरता से लिया. जिस की वजह से भारत, अमेरिका और कनाडा की जांच एजेसियां इस मामले की संयुक्त रूप से जांच करने लगीं.

पता चला है कि अमेरिका की पुलिस ने डिंगुचा गांव के पटेल परिवार के 4 सदस्यों सहित 11-12 अन्य लोगों को अवैध रूप से सीमा पार कराने के आरोप में फ्लोरिडा के स्टीव शैंड नामक एजेंट को गिरफ्तार किया था.

चारों लाशें कनाडा में थीं. अंतिम संस्कार के लिए के लिए जब उन्हें भारत लाने की बात चली तो पता चला कि एक लाश लाने में करीब 40 लाख रुपए का खर्च आएगा. मतलब करोड़ों का खर्च था. इसलिए तय हुआ कि चारों मृतकों का अंतिम संस्कार कनाडा में ही करा दिया जाए.

और फिर किया भी यही गया. चारों मृतकों का अंतिम संस्कार वहीं करा दिया गया. चूंकि अमेरिका, कनाडा में पटेल बहुत बड़ी संख्या में रहते हैं, इसलिए मृतकों का अंतिम संस्कार करने में कोई दिक्कत नहीं आई थी. क्योंकि इस परिवार की मदद के लिए पटेल समाज आगे आ गया था.

इतना ही नहीं, अमेरिका और कनाडा के रहने वाले पटेलों ने जगदीशभाई पटेल के परिवार के लिए 66 हजार डालर की रकम इकट्ठा भी कर के भेज दी है.

जगदीशभाई पटेल गुजरात के जिला गांधीनगर की तहसील कलोल के गांव डिंगुचा के रहने वाले थे. उन के पिता बलदेवभाई पटेल पत्नी मधुबेन और बड़े बेटे महेंद्रभाई पटेल के साथ डिंगुचा में ही रहते हैं. उन के साथ ही बड़े बेटे का परिवार भी रहता है.

बलदेवभाई गांव के संपन्न आदमी थे. उन के पास अच्छीखासी जमीन, इसलिए उन्हें किसी चीज की कमी नहीं थी. बड़े बेटे महेंद्रभाई की शादी पहले ही हो गई थी. जगदीश भी गांव के स्कूल में नौकरी करने लगा तो पिता ने उस की भी शादी कर दी.

शादी के बाद जब जगदीशभाई को बिटिया विहांगी पैदा हुई तो वह बेटी की पढ़ाई अच्छे से हो सके, इस के लिए पत्नी वैशाली और बेटी विहांगी को ले कर कलोल आ गए थे.

जगदीश ने गांव की अपनी स्कूल की नौकरी छोड़ दी थी. कलोल में परिवार के खर्च के लिए उन्होंने बिजली के सामानों की दुकान खोल ली थी. कलोल आने के बाद उन्हें बेटा धार्मिक पैदा हुआ था. सब कुछ बढि़या चल रहा था. बेटी विहांगी 11 साल की हो गई थी तो बेटा 3 साल का हो गया था. इस बीच उन्हें न जाने क्यों विदेश जाने की धुन सवार हो गई.

दरअसल, गुजरात और पंजाब में विदेश जाने का कुछ अधिक ही क्रेज है. डिंगुचा गांव में करीब 7 हजार की जनसंख्या में से 32 सौ से 35 सौ के आसपास लोग विदेश में रहते हैं. इसी वजह से इस गांव के लोगों में विदेश जा कर रहने का बड़ा मोह है.

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ऐसा ही मोह जगदीश के मन में भी पैदा हो गया था. तभी तो वह एक लाख डालर (75 लाख) रुपए खर्च कर के एजेंट के माध्यम से अमेरिका जाने को तैयार हो गए थे. वह चले भी गए थे, पर उन के और उन के परिवार का दुर्भाग्य ही था कि बौर्डर पर बर्फ गिरने लगी और उन का पूरा परिवार ठंड की वजह से काल के गाल में समा गया.

यह कोई पहली घटना नहीं है. इस तरह की अनेक हारर स्टोरीज इतिहास के गर्भ में छिपी हैं. मात्र कनाडा ही नहीं, मैक्सिको की सीमा से भी लोग गैरकानूनी रूप से अमेरिका में प्रवेश करते हैं. आज लाखों पाटीदार (पटेल) यूरोप और अमेरिका में रह रहे हैं.

अमेरिका विश्व की महासत्ता है. सालों से गुजरातियों ने ही नहीं, दुनिया के तमाम देशों के लोगों में अमेरिका जाने का मोह है. क्योंकि अमेरिका में कमाने के तमाम अवसर हैं. गुजरात के पटेल सालों से अमेरिका जा कर रह रहे हैं. अमेरिका की 32 करोड़ की आबादी में आज 20 लाख से अधिक भारतीय हैं, जिन में 10 लाख लोग पाटीदार हैं.

गैरकानूनी रूप से किसी को भी अमेरिका ही नहीं बल्कि किसी भी देश में नहीं जाना चाहिए. कलोल के पास के डिंगुचा गांव के पटेल परिवार की करुणांतिका जितना हृदय को द्रवित करने वाली है, उतनी ही आंखें खोलने वाली भी है.

एक समय अमेरिका में 10 लाख रुपए में गैरकानूनी रूप से प्रवेश हो जाता था. लेकिन अब यह एक करोड़ तक पहुंच गया है. इस धंधे को कबूतरबाजी कहा जाता है. इस तरह के कबूतरबाज रोजीरोटी की तलाश और अच्छे जीवन की चाह रखने वाले गुजराती परिवारों के साथ धोखेबाजी करते हैं और इस के लिए तमाम एजेंट गुजरात में भी हैं.

अमेरिका या कनाडा से फरजी स्पांसर लेटर्स मंगवा कर विजिटर वीजा पर उन्हें अमेरिका में प्रवेश करा देते हैं और फिर वे सालों तक गैरकानूनी रूप से अमेरिका में रहने के लिए संघर्ष करते रहते हैं. उन्हें कायदे की नौकरी न मिलने की वजह से होटलों या रेस्टोरेंट में साफसफाई या वेटर की नौकरी करनी पड़ती है.

यह एक तरह से दुर्भाग्यपूर्ण ही है. सोचने वाली बात यह है कि जो लोग करोड़ों रुपए खर्च कर के चोरीछिपे अमेरिका जाते हैं, वे 50 या सौ करोड़ की आसामी नहीं होते. वे बेचारे वेटर और क्वालिटी लाइफ की तलाश में अपना मकान, जमीन या घर के गहने बेच कर जाते हैं.

इस की वजह यह होती है कि देश में उन के लिए नौकरी नहीं होती. वे बच्चों को अच्छी शिक्षा या अच्छा इलाज दे सकें, उन के पास इस की व्यवस्था नहीं होती.

ऐसा ही कुछ सोच कर जगदीशभाई ने भी 75 लाख रुपए खर्च किए. पर उन का दुर्भाग्य था कि अच्छे जीवन की तलाश में उन्होंने जो किया, वह उन का ही नहीं, उन के पूरे परिवार का जीवन लील गया.

रोजगार और अच्छे भविष्य के लिए गुजराती अमेरिका, कनाडा और आस्ट्रेलिया जैसे देशों में जान को खतरे में डाल कर गैरकानूनी रूप से घुसते हैं. जब इस बारे में पता किया गया तो जो जानकारी मिली, उस के अनुसार एजेंट को पैसा वहां पहुंचने के बाद मिलता है.

गुजरात से हर साल हजारों लोग गैरकानूनी रूप से विदेश जाते हैं. इस में उत्तर गुजरात तथा चरोतर के पाटीदार शामिल हैं. विदेश जाने की चाह रखने वाले परिवार मात्र आर्थिक ही नहीं, सामाजिक और शारीरिक यातना भी सहन करते हैं.

इस समय इमिग्रेशन की दुनिया में कनाडा का बोलबाला है. जिन्हें कनाडा हो कर अमेरिका जाना होता है या कनाडा में ही रहना होता है, उन के लिए कनाडा के वीजा की डिमांड होती है. इस समय जिन एजेंटों के पास कनाडा का वीजा होता है, उस में स्टीकर के लिए वे ढाई लाख रुपए की मांग करते हैं.

गैरकानूनी रूप से विदेश जाने के लिए सब से पहले समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति से बात की जाती है. अगर कोई स्वजन विदेश में है तो उस से सहमति ली जाती है. इस के बाद तांत्रिक से दाना डलवाने यानी धागा बंधवाने का भी ट्रेंड है. तांत्रिक की मंजूरी के बाद एजेंट को डाक्यूमेंट सौंप दिए जाते हैं.

यहां हर गांव का एजेंट तय है. एजेंट समाज की संस्था या मंडल से संपर्क करता है. मंडल या संस्था एक व्यक्ति या परिवार का हवाला लेता है, जहां रुपए की डील तय होती है.

अगर समाज का प्रतिष्ठित व्यक्ति एजेंट का हवाला नहीं लेता तो जमीन, घर लिखाया जाता है. एक व्यक्ति का एक करोड़ रुपया और कपल का एक करोड़ 30 लाख रुपया एजेंट लेता है. अगर बच्चे या अन्य मेंबर हुए तो यह रकम बढ़ जाती है.

डील के बाद समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति की भूमिका शुरू होती है. समाज का प्रतिष्ठित व्यक्ति रुपए की जिम्मेदारी लेता है तो एजेंट डाक्यूमेंट का काम शुरू करता है. यह स्वीकृति किसी भी कीमत पर बदल नहीं सकती. अगर बदल गई तो समाज में परिवार की बहुत बेइज्जती होती है.

एजेंट पहले कानूनी तौर पर वीजा के लिए आवेदन करता है. रिजेक्ट होने के बाद गैरकानूनी रूप से खेल शुरू होता है.

जिस देश के लिए वीजा आन अराइवल होता है, उस देश के लिए प्रोसेस शुरू होता है. वहां पहुंचने पर विदेशी एजेंट मनमानी शुरू कर देता है. महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार तक करता है.

कभीकभी तो रातदिन सौ किलोमीटर तक पैदल चलाता है. माइनस 40 डिग्री सेल्सियस तापमान में सुनसान जंगलों और बर्फ पर संघर्ष करना पड़ता है. अगर कोई ग्रुप से छूट गया या पीछे रह गया तो उस का इंतजार नहीं किया जाता. उसे उस के हाल पर छोड़ दिया जाता है. जैसा जगदीशभाई और उन के परिवार के साथ हुआ.

इस स्थिति में कभीकभी मजबूरी में बर्फ, जंगल या फायरिंग रेंज में आगे बढ़ना पड़ता है. ऐसे में अमेरिकी बौर्डर पर पहुंच कर 3 औप्शन होते हैं. पहला औप्शन है अमेरिकी सेना के समक्ष सरेंडर कर देना. दूसरा औप्शन होता है कि वह अपने देश में सुरक्षित नहीं है और तीसरा औप्शन है कि अमेरिका में अपने सोर्स से छिपे रहना.

इस के बाद कंफर्मेशन होने के बाद पेमेंट होता है. अमेरिका में कदम रखते ही दलाल एक फोन करने देता है. समाज के उस प्रतिष्ठित व्यक्ति से सिर्फ ‘पहुंच गया’ कहने दिया जाता है. इस कंफर्मेशन के बाद भारत में दलाल को रुपए मिल जाते हैं.

समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति को 5 से 10 प्रतिशत मिला कर देने की डील होती है. पास में पैसा न हो और अमेरिका जाना हो तो समाज की मंडली से आर्थिक मदद मिलती है. अमेरिका पहुंच कर रकम मंडल में जमा करा दी जाती है.

करीब 100 करोड़ जितनी रकम का हवाला पड़ गया है. ईमानदारी ऐसी कि यह रकम समय पर अदा कर दी जाती है. ऐसा ही कुछ जगदीशभाई पटेल के भी मामले में हुआ था. पर वह अमेरिका में कदम नहीं रख पाए.

अमेरिका-कनाडा की सीमा पर काल के गाल में समाए जगदीशभाई पटेल और उन के परिवार वालों के लिए 7 फरवरी, 2022 को उन के गांव डिंगुचा में शोक सभा का आयोजन किया गया.

जगदीशभाई और उन के परिवार के लिए पूरा देश दुखी है. पर इस हादसे के बाद क्या कबूतरबाजी बंद होगी? कतई नहीं. लोग इसी तरह जान जोखिम में डाल कर विदेश जाते रहेंगे. क्योंकि विदेश का मोह है ही ऐसा.

थाना प्रभारी की आशिक मिजाजी

जालौर, राजस्थान के भीनमाल थाने में एसपी हर्षवर्धन अग्रवाल किसी खास मीटिंग के लिए आने वाले थे. इस की सूचना थाने के सभी पुलिसकर्मियों को पहले से थी. लिहाजा सभी अपनीअपनी ड्यूटी पर मुस्तैदी से तैनात थे.

एसपी साहब समय से कुछ पहले आ गए थे. उन के साथ डीएसपी भी थे. उन की अगुवाई थानाप्रभारी दुलीचंद गुर्जर कर रहा था. वह उन के आगेपीछे मंडराता हुआ उन्हें थाने के सभी स्टाफ और बंटी हुई ड्यूटी के बारे में बता रहा था.

एसपी हर्षवर्धन तेजी से चलते हुए रिसैप्शन पर रुके. वहां तैनात लेडी कांस्टेबल से विजिटर्स रजिस्टर में पिछले एक हफ्ते की एंट्री दिखाने को कहा. कांस्टेबल ने रजिस्टर के पन्ने खोल कर एसपी साहब की ओर रजिस्टर घुमा दिया.

रजिस्टर के एक खाली पन्ने पर एसपी साहब रुक गए. डांटते हुए पूछा, ‘‘यह पन्ना खाली क्यों है? इस तारीख को जो माल पकड़ा गया था, उस की एंट्री क्यों नहीं हुई है?’’

कांस्टेबल हक्कीबक्की स्थिति में कभी रजिस्टर को तो कभी थानाप्रभारी को देखने लगी. एसपी साहब दुबारा गुस्से में बोले, ‘‘तुम इधरउधर क्या देखती हो. पूरा रजिस्टर और चार्जशीट की सभी फाइलें ले कर में कमरे में आओ.’’ यह कहते हुए एसपी साहब आगे बढ़ गए. कांस्टेबल उदास हो कर वहां साथ खड़े हैडकांस्टेबल तेजाराम को देखने लगी.

‘‘घबराओ नहीं, तुम्हें कुछ नहीं होगा. तुम फाइलें ले कर साहब के पास जाओ,’’ तेजाराम बोला.

‘‘जी सर,’’ कांस्टेबल बोली.

‘‘और हां, मौका देख कर अपनी बात भी बेझिझक कह देना,’’ तेजाराम ने समझाया.

थोड़ी देर में लेडी कांस्टेबल कई फाइलें और रजिस्टर लिए हुए कमरे के दरवाजे पर पहुंच चुकी थी. परदा हटाने को थी कि उन्हें एसपी साहब के गुस्साने की आवाज सुनाई दी. वह सहम गई. इसी बीच डीएसपी साहब भी आ गए. उन्होंने कांस्टेबल को एक नजर देखा और अंदर आने का इशारा कर दिया.

‘‘इतने सारे केस पेंडिंग क्यों है? क्या करते हो इतनी सारी फौज ले कर… तुम ने जुए में पकड़े गए लोगों तक का केस नहीं सुलझाया है. गुमशुदा के कई केस भरे पड़े हैं. …और नारकोटिक्स का जो माल पकड़ा गया था, उस का क्या हुआ? तुम्हारे यहां नैशनल स्पोर्ट्स की खिलाड़ी शूटर अपाइंटेड है. उस से तुम कोई काम ही नहीं लेते हो. उसे रिसैप्शन पर बिठा रखा है…’’

फाइलें लिए लेडी कांस्टेबल एसपी साहब की नाराजगी भरी बातें सुन कर समझ गई कि उस के बारे में भी कुछ बातें हो रही हैं. डांट थानाप्रभारी को पड़ रही थी.

डीएसपी साहब एसपी साहब को सलाम ठोकते हुए उन के साथ की कुरसी पर बैठ गए. तभी एसपी साहब की नजर लेडी कांस्टेबल पर पड़ी. उन्होंने फाइलें अपने आगे रख कर उसे जाने को कहा.

लेडी कांस्टेबल वहां से आ कर अपनी ड्यूटी पर तैनात हो गई. करीब आघे घंटे तक एसपी और डीएसपी साहब के कमरे में गहमागहमी बनी रही. थाने के करीबकरीब सभी पुलिसकर्मी कमरे में जा कर वापस आ चुके थे. इस बीच चायबिसकुट का दौर भी चलता रहा.

जो लोग कमरे से बाहर थे, उन्हें चायबिसकुट मिले. एएसआई प्रेम सिंह और हैडकांस्टेबल तेजाराम भी काफी सक्रिय दिखे. प्रेम सिंह एसपी साहब की गाड़ी से एक फाइल ले कर उन्हें दे कर अपनी सीट पर बैठ गए थे.

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कुछ समय में अधिकतर पुलिसकर्मी अपनीअपनी सीटों पर आ चुके थे. डीएसपी साहब जा चुके थे. कमरे में केवल एसपी साहब और एसएचओ थे.

एक कांस्टेबल लेडी कांस्टेबल को आ कर बोल गया, ‘‘जाओ, अब तुम्हारी बारी है. एक के चलते सब को डांट पड़ रही है.’’

लेडी कांस्टेबल एसपी साहब के पास जा कर खड़ी हो गई. एसपी साहब ने कहा, ‘‘अपनी फाइलें समेट लो.’’

उस के बाद वे एक फाइल में से कुछ पढ़ने लगे.

‘‘सर, उसे भी ले लूं?’’ एसपी साहब के सामने खुली फाइल की ओर उस ने इशारा किया. तब तक थानाप्रभारी भी कमरे से निकल चुके थे.

‘‘नहींनहीं,यह तुम्हारी नहीं है.’’ एसपी साहब यह कह कर उस की ओर मुखातिब होते हुए बोले, ‘‘तो तुम अपना यहां से ट्रांसफर चाहती हो… लेकिन क्यों?’’

‘‘सर, मैं ने कंप्लेन लेटर में लिखा है कारण.’’

‘‘लेकिन, उस कारण पर ट्रांसफर नहीं हो सकता. तुम जहां जाओगी, वहां भी ऐसे सहकर्मी मिल सकते हैं, जिन से तुम्हारी नहीं बनेगी. इस की क्या गारंटी है कि लेटर की शिकायत जैसी बात वहां नहीं होगी.’’ यह सुन कर कांस्टेबल चुप लगा गई.

‘‘निराश होने की बात नहीं है. पहले तुम अपने साथ घटित वाकए के बारे में बताओ,’’ एसपी साहब बोले.

यह सुन कर लेडी कांस्टेबल की जान में जान आई. पिछले कई महीनों से अपने साथ लगातार हो रहे जिस वाकए को ले कर वह परेशान थी, उस बारे में उस ने बताना शुरू किया, ‘‘सर, मैं जानती हूं कि यहां एक छोटा स्टाफ है. लेकिन मेरी भी इज्जत है. समाजपरिवार में लोगों के लिए मैं एक औरत ही हूं. माना कि मैं अविवाहित हूं, लेकिन इस का यह मतलब थोड़े है कि मेरे साथ अभद्रता से पेश आएं…’’

बात करीब 9 महीने पहले 17-18 की अप्रैल है. मैं ने देर रात तक जाग कर पूरी चार्जशीट तैयार कर ली थी. उसे ले कर थानाप्रभारी साहब दुलीचंद गुर्जर के चैंबर में गई थी. थानाप्रभारी साहब टांगे टेबल पर रख कर बैठे थे. मुझे देखते ही बोल पड़े, ‘‘आज तो तुम बड़ी सुंदर लग रही हो.’’

मैं उन की बात सुन कर सकपका गई, लेकिन बोलने का टोन समझ गई थी कि वह क्या कहना चाहते हैं. मैं जल्दीजल्दी बोली, ‘‘सर, चार्जशीट तैयार कर ली है, इसे देख कर साइन कर दीजिए.’’

‘‘इतना सारा पढ़ने में समय लगेगा. तू फाइल टेबल पर रख दे और मेरे सामने कुरसी पर बैठ जा. तुझे देखता रहूंगा और पढ़ता भी रहूंगा.’’ इस बात पर मैं चुप रही.

थानाप्रभारी ने दोबारा कहा, ‘‘तेरे से एक बात पूछना चाहता हूं. मैं तुझे बहुत चाहता हूं. काम भी बहुत अच्छा करती हो. रातरात भर जाग कर तूने चार्जशीट लिख डाली. तुम्हारी तरक्की भी करवा दूंगा, लेकिन बदले में एक रात मेरे हवाले करनी पड़ेगी… समझ गई न?’’

अंतिम कुछ शब्द लेडी कांस्टेबल के कानों में पिघले शीशे जैसे लगे. लगा वह बहरी हो जाने वाली है. भागती हुई अपनी सीट पर आ गई. एसआई प्रेम सिंह से बोली, ‘‘मैं जा रही हूं. कल मिलूंगी.’’

उस के बाद मैं रूआंसी हो कर आधी रात को अपनी स्कूटी से घर आ गई. उस रात ठीक से सो नहीं पाई. अगले रोज जा कर मैं ने यह बात हैडकांस्टेबल तेजाराम और एएसआई प्रेमसिंह को बताई, लेकिन उन्होंने बदनामी की बात कह कर मुझे चुप करा दिया.

उस के बाद मैं ने देखा कि थानाप्रभारी साहब का मेरे प्रति रवैया काफी रूखा हो गया. मुझे दी गई कई जिम्मेदारियां छीन ली गईं. मुझे नीचा और निकम्मा दिखाने की कोशिश की जाने लगी. उस के बाद ही मैं ने आप को और डीसीपी साहब को ट्रांसफर का लेटर लिखा था.

लेडी कांस्टेबल के इस बयान को लिखित ले कर एसपी साहब चले गए. एसपी हर्षवर्धन अग्रवाल ने इस मामले को गंभीरता से लिया.

अगले रोज एसपी औफिस से थाने में एक लेटर आया. लेटर क्या था वह बम से कम नहीं था. उस के खुलते ही थाने के 6 पुलिसकर्मी बुरी तरह आहत हो गए थे. दरअसल, लेडी कांस्टेबल की अश्लील हरकत करने जैसी शिकायत पर थानाप्रभारी को लाइनहाजिर का दिया गया था.

थानाप्रभारी की रंगमिजाजी का असर पूरे थाने के कामकाज पर भी पड़ा था, जिस से और 5 लोगों को वहां से हटा दिया गया था. इन में थानाप्रभारी दुलीचंद सहित एएसआई कल्याणसिंह, कांस्टेबल प्रकाश, ओमप्रकाश, रामलाल और श्रवण कुमार थे.

इस थाने के डीएसपी हीरालाल सैनी के बाद यह दूसरा मामला था, पुलिस को महिला स्टाफ के साथ अभद्र व्यवहार करने और काम की अनदेखी करने की सजा मिली थी.

ढाई महीने में मिली सजा ए मौत

राजस्थान के हनुमानगढ़ का रहने वाला सुरेंद्र माडि़या एक तो कामचोर था, दूसरा नशेड़ी भी. दारू के नशे में वह सब कुछ भूल जाता था. उसे न अपनेपराए का जरा भी खयाल रहता था और न ही सामाजिक संस्कार और रिश्ते के प्रति मानमर्यादा.

एक रात उस के लिए अनैतिकता का दलदल बन गई थी. जिस में गिरते ही वह धंसता चला गया.

बात 15 सितंबर, 2021 की है. उस दिन सुरेंद्र को मजदूरी में और दिन की तुलना में कुछ अधिक पैसे मिल गए थे, जिस से वह बेहद खुश हो गया था. इस खुशी में वह सीधे शराब के ठेके पर जा पहुंचा.

2 दिन से उसे तलब लगी हुई थी. उस ने सूखे कंठ को जी भर कर गीला करने की लालसा पूरी कर ली थी. फिर लड़खड़ाते कदमों से किसी तरह अपने मिट्टी और फूस पराली के बने कच्चे घर टपरे पर जा पहुंचा था. उस में वह अकेला ही रहता था.

उस के आगेपीछे कोई कहने सुनने वाला नहीं था. कुछ साल पहले जब से उस के बड़े भाई ने आत्महत्या कर ली थी, तब से वह और भी बेफिक्र और अपनी मरजी का मालिक बन गया था.

हनुमानगढ़ जिलांतर्गत पीलीबंगा तहसील से करीब 20 किलोमीटर दूर गांव दुलमाना में मेघवाल समुदाय के सुरेंद्र को सभी मांडिया कह कर बुलाते थे. वहीं वह मवेशी पालने और उस की चरवाही करने वाली 60 वर्षीया एक विधवा भी अकेली रहती थी.

मांडिया के टपरे से आधे किलोमीटर पर वह भी उस जैसी ही कच्चे टपरे में रहती थी. वह उसे अच्छी तरह जानती पहचानती थी. सुरेंद्र का आना जाना उस के घर से हो कर ही होता था. खाली समय में उस के साथ बैठ कर गप्पें मारता रहता था. सुरेंद्र उन्हें सम्मान से चाची कह कर बुलाता था.

उस रोज सुरेंद्र ने इतनी अधिक दारू पी ली थी कि उसे घर लौटते हुए पता ही नहीं चला कि रात की शुरुआत हो चुकी है. एक राहगीर से पूछा, ‘‘भाई तेरे पास घड़ी है क्या? बता दो जरा कितना समय हुआ है? लगता है रात बहुत हो गई है मुझे घर जाना है.’’

‘‘अरे तू क्या करेगा समय जान कर नशेड़ी, कौन तुझे कोई गाड़ी पकड़नी है इस वक्त, अभी ज्यादा रात नहीं हुई है, 9 बजे हैं, 9…’’ सुरेंद्र की हालत देख कर राहगीर ने कमेंट किया. वह उसे पहचानता था.

‘‘मेरा घर आ गया क्या?’’ सुरेंद्र ने फिर पूछा.

‘‘जब तुझे अपना घर पहचानने का भी होश नहीं रहता, तब इतनी दारू क्यों पी लेते हो?’’ राहगीर उसे नसीहत देता हुआ आगे बढ़ गया.

सुरेंद्र अपने लड़खड़ाते कदमों से बुदबुदाने लगा, ‘‘लगता है मेरा घर आ गया, लेकिन यहां ढोरमवेशी किस ने बांध दिए? जरूर किसी की कारस्तानी होगी?’’

दरअसल, सुरेंद्र अभी वृद्धा के घर के पास ही पहुंचा था, जिसे अपना घर समझ बैठा था. उसी के मवेशी बाहर बंधे थे. बगैर आगापीछे ध्यान दिए वह सीधे बिना दरवाजे वाले उस टपरे में घुस गया.

अंदर चारपाई पर वृद्धा नींद में लेटी थी. दीए की धीमी रोशनी में उस की नजर औरत के अस्तव्यस्त कपड़ों पर गई. उस के भीतर वासना का हैवान जाग उठा. उस महिला को वह चाची कह कर बुलाता था, उस की चारपाई पर जा बैठा. कामुक नजरों से निहारने लगा. वह कच्ची नींद में थी. इसी बीच हलचल से वह जाग गई. जागते ही पूछ बैठी, ‘‘कौन है भाई?’’

‘‘अरे, धीरे बोल मैं हूं माडि़या’’ सुरेंद्र ने कहा.

‘‘बेटा, इतनी रात गए क्यों

आया है, कोई बात है का?’’ वृद्धा ने सवाल किया.

‘‘भाभी, रात को अकेली औरत के पास कोई मर्द क्यों आता है…समझ जा.’’

सुरेंद्र का इतना कहना था कि विधवा गुस्से से बोल पड़ी. उस ने चारपाई पर नजदीक बैठे सुरेंद्र को धकेल दिया, ‘‘क्या बोला, भाभी? मैं तेरी भाभी लगती हूं? जरा भी लाजशर्म है या नहीं, तूने दारू पी रखी है. नशे में कुछ भी बक देगा. कुछ भी करेगा, अभी तुझे बताती हूं.’’ इसी के साथ विधवा गुस्से में तेजी से चारपाई से उठी. तुरंत चारपाई के नीचे से डंडा निकाल कर तान दिया.

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सामने सिर पर डंडे और विधवा के तमतमाए चेहरे को देख कर सुरेंद्र का आधा नशा उतर चुका था. उस का गुस्सा कम होने के बजाय बढ़ता ही जा रहा था. बिफरती हुई बोली, ‘‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई रात को मेरे घर में घुसने की? ठहर, अभी मैं अपने देवर को फोन कर बुलाती हूं. वही तुम्हारी अच्छी तरह से मरम्मत करेगा.’’

गुस्से में दहाड़ती विधवा का विरोध देख कर सुरेंद्र की सिट्टीपिट्टटी गुम हो गई. जैसेतैसे कर वह विधवा के चंगुल से छूटा और वहां से भागने को हुआ. इस डर से कहीं विधवा अपने देवर को फोन न कर दे, चारपाई पर सिरहाने रखा उस का मोबाइल ही ले कर भाग गया.

मोबाइल ले कर भागता देख विधवा भी उस के पीछे दौड़ी, लेकिन जब तक सुरेंद्र ने अपने घर की ओर दौड़ लगा दी और अंधेरे में गुम हो गया था.

भागता हुआ सुरेंद्र अपने घर आ गया था. रात को खटका सुन कर उस की मां जाग गई. पिता बंसीलाल नींद में खर्राटे भर रहे थे. मां ने देर रात आने पर डांटा, तो उस ने बताया कि वह एक दोस्त के घर गया हुआ था. और फिर वह चारपाई पर जा कर पसर गया, लेकिन उसे नींद नहीं आ रही थी.

एक तरफ विधवा का गुस्सा बारबार ध्यान में आ रहा था, दूसरी तरफ लेटी अवस्था में उस के अस्तव्यस्त कपड़े में झांकती देह का दृश्य झिलमिलाता हुआ एकदूसरे में गड्डमड्ड हो रहे थे. उस ने जैसे ही आंखें बंद कीं तो दिमाग में फिर वासना का कीड़ा कुलबुलाने लगा.

सोचने लगा, ‘‘…अगर थोड़ी सख्ती दिखाता तो शायद वह उस के कब्जे में आ जाती, आत्मसमर्पण कर देती.’’

इसी विचार से वह बिस्तर से उठा और फिर से विधवा के घर की ओर चल पड़ा. दूसरी तरफ विधवा अपना मोबाइल लेने के लिए बदहवास हालत में नजदीक रह रहे अपने देवर बनवारी मेघवाल के घर जा पहुंची.

भाभी की हालत देख कर बनवारी चौंका, ‘‘भाभी, इतनी रात गए क्यों आई हो?’’ विधवा ने सिलसिलेवार ढंग से सारा वाकया सुनाया. इसी के साथ उस ने बताया कि माडि़या उस का फोन ले कर भाग गया है.

बनवारी बोला, ‘‘भाभी, आप यहीं अपनी देवरानी के साथ सो जाओ. सुबह माडि़या की खबर लूंगा. मोबाइल भी उस से लूंगा.’’

‘‘ नहीं भैया, मेरे घर पशु बंधे हैं, इसलिए अपने घर पर ही जा कर सोऊंगी.’’ विधवा बोली.

थोड़ी देर में विधवा अपने घर आ गई. सुरेंद्र पहले से ही उस के घर में आ कर छिपा हुआ था. वह जैसे ही बिछावन पर लेटने को हुई, सुरेंद्र ने उसे दबोच लिया. महिला ने सुरेंद्र की पकड़ से बचने की कोशिश की, लेकिन उस की हवस का शिकार होने से नहीं बच पाई.

किसी तरह सुरेंद्र के कब्जे से मुक्त हुई. तब उस ने लात मार कर उसे जमीन पर गिरा दिया. सुरेंद्र ने पास पड़ी प्लास्टिक की रस्सी महिला के गले में डाल दी. विधवा अपना बचाव नहीं कर पाई, जबकि सुरेंद्र ने पूरी ताकत से रस्सी को खींच दिया. कुछ पल में ही महिला की मौत हो गई.

उस की मौत हो जाने के बाद सुरेंद्र ने उस के साथ जी भर कर दोबारा मनमानी भी की. किंतु जैसे ही उस पर से वासना का भूत शांत हुआ, वह डर गया.

कभी खुद को देखने लगा, तो कभी विधवा की लाश को इतना तो समझ ही गया था कि उस के द्वारा एक नहीं, बल्कि 2-2 गुनाह हो गए थे. डरा हुआ सुरेंद्र अपने बचाव के तरीके खोजने लगा.

वह सीधा अपने चाचा राजाराम के घर गया. उन्हें जगा कर उन के पांव पकड़ लिए. गिड़गिड़ाते हुए बचाने की गुहार करने लगा. उस के अपराध के बारे में सुन कर राजाराम भी सन्न रह गए. उन्होंने उसे संभालाते हुए भरोसा दिया, ‘‘बेटा, जो हुआ उसे खत्म नहीं किया जा सकता, लेकिन रात बहुत हो गई है, जा कर तू सो जा. कल सुबह सारा मामला सुलटा दूंगा.’’

माडि़या वहां से अपने घर चला आया. राजाराम अपने 2 साथियों श्योपत और सहदेव को ले कर बनवारी के घर गए. उसे सारी बात बताई. सुबह होने पर बनवारी लाल मेघवाल गांव के कुछ लोगों के साथ पीलीबंगा पुलिस स्टेशन गया. उस ने सुरेंद्र के खिलाफ लिखित प्राथमिकी दर्ज करवा दी.

थानाप्रभारी इंद्रकुमार ने सुरेंद्र के खिलाफ भादंसं की धारा 302, 376, 450 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. इस मामले को एसपी प्रीति जैन ने गंभीरता से लेते हुए इंद्रकुमार को ही जांच अधिकारी नियुक्त कर दिया.

इंद्रकुमार ने कुछ घंटे बाद ही आरोपी सुरेंद्र को गांव दुलमाना से गिरफ्तार कर लिया. घटनास्थल से सबूत के तौर पर कदमों के निशान, रस्सी, वीर्य लगे वृद्धा के कपड़े, बालों के गुच्छे आदि इकट्ठा कर लिए. लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया.

विभिन्न साक्ष्यों का डीएनए टेस्ट करवा कर आरोपी के साथ मेल भी करवा लिया गया. इस लंबी प्रक्रिया को पूरी करने में पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए 7 दिनों में केस की चार्जशीट तैयार कर अदालत में दाखिल कर दी.

हनुमानगढ़ जिला मुख्यालय स्थित सत्र न्यायालय में 29 नवंबर, 2021 को काफी गहमागहमी थी. सब की निगाहें उस फैसले पर टिकी थीं, जिस के लिए साक्ष्यों और गवाहों से संबंधित दस्तावेज काफी कम समय में जुटा लिए गए थे.

लोगों को आश्चर्य इस बात को ले कर था कि रेप और हत्या के इस मामले का फैसला काफी कम समय में आने वाला है, जिसे मात्र 74 दिन पहले ही अदालत में दाखिल किया गया था.

सब कुछ समय से हो रहा था. पुलिस गाड़ी अभियुक्त सुरेंद्र उर्फ माडि़या को जिला जेल से ले कर अदालत पहुंच गई थी. वहां उसे अस्थाई अभियुक्त बैरक में बंद कर दिया था. पुलिस बरामदे में सुस्ताने लगी थी.

कुछ समय में ही जिला न्यायाधीश संजीव मागो अदालत पहुंच गए थे. वह अपने चैंबर से निकल कर न्याय की कुरसी पर जा बैठे थे. अदालत की काररवाई शुरू हो चुकी थी. पेशकार के कहने पर हरकारे ने सुरेंद्र बनाम स्टेट की आवाज लगा दी थी.

सब कुछ नियम से हो रहा था. अदालत के कठघरे में मुलजिम सुरेंद्र हाजिर हो चुका था. वह हाथ बांधे सिर झुकाए खड़ा था. न्यायाधीश ने अपने सामने रखे केस से संबंधित दस्तावेज उठाते हुए कहा, ‘‘काररवाई शुरू की जाए.’’

अभियुक्त पक्ष के वकील अलंकार सिंह से पहले लोक अभियोजक उग्रसेन नैन ने मामले पर रोशनी डालते हुए कहा—

योर औनर इस केस में पीडि़ता एक विधवा और गरीब औरत थी. उस की उम्र 60 साल के करीब थी. वह आजीविका के लिए मवेशी पालती थी. वह अपने घर में अकेली रहती थी.

घटना की रात को अभियुक्त सुरेंद्र जबरन उस के घर में घुस गया था. उस ने उस के साथ जोरजबरदस्ती की और उस के साथ रेप का प्रयास किया. जब उस ने विरोध किया, तब उस ने उसे रस्सी से गला घोंट कर मार डाला. उस के बाद उस ने विधवा वृद्धा के साथ मनमानी की.

उग्रसेन ने आगे कहा, अभियुक्त सुरेंद्र ने हत्या के साथसाथ अमानवीय कृत्य भी किया है. ऐसा व्यक्ति समाज के लिए भी गंभीर खतरा है. ऐसा व्यक्ति समाज में रहने के लायक नहीं है.

अत: हुजूर से दरख्वास्त है कि वर्तमान दंड व्यवस्था के अनुरूप आजीवन कारावास की सजा एक सामान्य नियम है. किंतु इस जघन्य मामले में अभियुक्त ने निर्मम तरीके से अपराध को अंजाम दिया है, वह एक दुर्लभ मामला बन गया है. इसलिए इस मामले को असाधारण की श्रेणी में रखते हुए मृत्युदंड दिया जाए.

इसी के साथ उन्होंने पुलिस द्वारा जुटाए गए सारे दस्तावेज न्यायाधीश के सामने प्रस्तुत कर दिए.

लोक अभियोजक का इतना कहना था कि अदालत में सन्नाटा पसर गया. सब की निगाहें अब अभियुक्त के वकील की दलील और उस के अनुरूप न्यायाधीश के फैसले पर टिक गईं.

न्यायाधीश महोदय ने भी मामले को गंभीरता से लेते हुए बचाव पक्ष के वकील अलंकार सिंह को अपना तर्क रखने का मौका दिया, लेकिन वह अपना कोई पक्ष नहीं रख पाए.

हालांकि उन्होंने 14 अदालती उदाहरण दे कर सुरेंद्र को अपराध से मुक्त करने की अपील की.

उन्होंने अपने तर्क में सिर्फ इतना कहा कि उसे सुधरने का एक मौका दिया जाए. जबकि जिला अभियोजन पक्ष ने 47 पन्ने का दस्तावेजी साक्ष्य पेश किया था.

हालांकि घटना का कोई चश्मदीद नहीं था, पर बनवारी लाल और राजाराम ने सुरेंद्र को बचाने की कोशिश की. फिर भी सारे साक्ष्य सुरेंद्र के खिलाफ थे. यहां तक कि विधवा का मोबाइल फोन भी पुलिस ने सुरेंद्र के घर से बरामद कर लिया था.

इन सारे तथ्यों को ध्यान में रखते हुए न्यायाधीश ने अहम फैसला सुनाने से पहले इस तरह के मामले से संबंधित सजा के बारे में कुछ बातें भी बताईं. सुरेंद्र पर लगे सभी धाराओं का अलगअलग विश्लेषण करते हुए अंत में उन्होंने धारा 302 की भी पुष्टि कर दी.

इसी के साथ उसे रेप, हत्या, अप्राकृतिक कृत्य, मारपीट आदि के दंड के साथ सजाएमौत की साज सुना दी. उल्लेखनीय है कि भारत में सजाएमौत के लिए फांसी दी जाती है. उसे तत्काल जिला जेल भेजे जाने से पहले उसे उच्च न्यायालय, उच्चतम न्यायालय और राष्ट्रपति से गुहार लगाने का अधिकार भी दे दिया.

इस फैसले पर प्रदेश के डीजीपी अजीत सिंह ने इस केस की तेज गति से जांच कर ठोस सबूत पेश करने वाले पुलिस जांच टीम की सराहना की.

मददगार बने यमदूत : अज्ञात युवक बने जानलेवा

रात 9 बजे संध्या की अपने पति रंजीत खरे से मोबाइल पर बात हुई. संध्या ने पति से पूछा, ‘‘पार्टी से कितने बजे तक घर आ जाओगे?’’

‘‘अभी पार्टी शुरू होने वाली है, थोड़ा टाइम लगेगा. जैसे ही मैं यहां से निकलूंगा, फोन कर के बता दूंगा,’’ रंजीत ने बताया.

आगरा के सिकंदरा हाईवे स्थित सनी टोयोटा कार शोरूम में बौडी शौप मैनेजर रंजीत खरे 18 अक्तूबर, 2021 की रात को दोस्तों के साथ पार्टी मनाने सिंकदरा में एक दोस्त के यहां गए थे. उन्होंने घर वालों से फोन पर रात में घर आने की बात कही थी.

आगरा के मोती कटरा निवासी 45 वर्षीय रंजीत खरे के कार शोरूम के एक कर्मचारी दुर्गेश को दूसरी कंपनी में नौकरी मिल गई थी. उस ने ही कारगिल पैट्रोल पंप के पास स्थित एक रेस्टोरेंट में विदाई पार्टी रखी थी. रंजीत उसी में शामिल होने के लिए गए थे.

देर रात तक जब रंजीत मोती कटरा स्थित अपने घर नहीं पहुंचे तो पत्नी व अन्य भाइयों को चिंता हुई. इस पर छोटे भाई अमित ने रात पौने 12 बजे रंजीत को फोन लगाया. बातचीत में रंजीत ने बताया कि 20 मिनट में घर पहुंच जाएगा.

घर वाले रंजीत का इंतजार करते रहे. जब साढ़े 12 बजे तक रंजीत घर नहीं आए तो चिंता बढ़ गई. अमित ने फिर फोन लगाया, लेकिन फोन स्विच्ड औफ मिला. मोबाइल बंद होने पर घर वाले परेशान हो गए.

उस ने रंजीत के मित्र दुर्गेश को जब फोन मिलाया तो उस ने बताया, ‘‘रंजीत खाना खा कर लगभग 2 घंटे पहले ही अपनी कार से चले गए थे.’’

लेकिन वह घर नहीं पहुंचे थे. आखिर रंजीत बिना बताए कहां चले गए? घर वाले सारी रात बेचैनी से रंजीत का इंतजार करते रहे. बारबार वह रंजीत को फोन मिला रहे थे, लेकिन उन का फोन बंद मिल रहा था.

इस से घर वालों की चिंता बढ़ रही थी. अगली सुबह रंजीत को तलाशने के लिए घर वाले निकल पड़े. शोरूम के साथ ही सभी दोस्तों, यहां तक कि रिश्तेदार व अन्य परिचितों के यहां उन्हें तलाशा. लेकिन रंजीत कहीं नहीं मिले.

परिवार के लोग 19 अक्तूबर, 2021 मंगलवार को रंजीत के लापता होने की सूचना थाने में दर्ज कराने की तैयारी कर रहे थे. इसी दौरान दोपहर 12 बजे उन्हें मुरैना (मध्यप्रदेश) के सराय छौला थाने से सूचना दी गई कि रंजीत खरे का शव चंबल नदी के पास हाईवे किनारे पड़ा मिला है.

मृतक रंजीत आगरा में ही सनी टोयोटा कार के शोरूम में पदस्थ थे. 4 भाइयों में वे सब से बड़े थे. आगरा में ही पैतृक मकान में अपने तीनों छोटे भाइयों विक्रांत खरे, सुरजीत खरे व सब से छोटे भाई अमित खरे के साथ रहते थे. भाइयों ने इस संबंध में पुलिस से जानकारी ली.

पुलिस के अनुसार शव की पहचान शर्ट पर लगे टोयोटा के बैज (लोगो) से हुई थी. मृतक रंजीत की कार, मोबाइल, सोने की अंगूठी, पर्स, एटीएम कार्ड आदि लाश के पास नहीं मिले थे. सूचना मिलते ही मृतक रंजीत खरे के तीनों भाई अमित, विक्रांत और सुरजीत मुरैना पहुंच गए.

मृतक के गले, चेहरे व सिर पर धारदार हथियारों के निशान दिखाई दे रहे थे. घटनाक्रम से लग रहा था कि हत्यारों ने रंजीत का घर आते समय रास्ते से किसी तरह कार सहित अपहरण कर लिया. उन की कार के साथ सभी सामान भी लूट लिया और उन की हत्या कर शव को मुरैना फेंक कर फरार हो गए.

मृतक के भाइयों के अनुसार रंजीत की हत्या सिकदंरा में ही की गई थी. हत्या के बाद हत्यारे उन के शव को मुरैना फेंक आए थे. क्योंकि रात को जब रंजीत से उन की बात हुई थी, तब उन्होंने कहा था कि वह 20 मिनट में घर पहुंच जाएंगे. इस के बाद उन का फोन बंद हो गया था.

चंबल नदी के पास मिला था शव

थानाप्रभारी सराय छौला जितेंद्र नागाइच के अनुसार अल्लाबेली चौकी के पास मंदिर से 15-20 कदम दूर चंबल नदी के पास हाईवे पर रंजीत का शव मिला था. शव की शिनाख्त मृतक की शर्ट पर टोयोटा के लोगो से हुई. लोगो देख कर पुलिस ने कार कंपनी से संपर्क किया, तब पता चला कि मृतक आगरा निवासी रंजीत खरे हैं. थानाप्रभारी के अनुसार इस संबंध में जांच की जा रही है.

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मुरैना पुलिस ने मृतक के शव का पोस्टमार्टम कराने के बाद शव परिजनों के सुपुर्द कर दिया था, लेकिन मुकदमा दर्ज नहीं किया. परिजनों ने जब आगरा में थाना सिकंदरा में मुकदमा दर्ज कराना चाहा, तो घटनास्थल मुरैना का होने के कारण वहां की पुलिस भी मुकदमा लिखने को तैयार नहीं हुई.

इसी बीच 20 अक्तूबर बुधवार की दोपहर को रकाबगंज पुलिस चौकी क्षेत्र में आगरा फोर्ट स्टेशन के बाहर लावारिस हालत में एक कार पुलिस को खड़ी मिली. कार टैक्सी स्टैंड की पार्किंग के पास खड़ी थी. उस पर नंबर प्लेट नहीं थी. कार कौन और कब ले कर आया, पता नहीं चला.

कार का पिछला हिस्सा क्षतिग्रस्त भी था. तलाशी में नंबर प्लेट कार के अंदर ही मिल गई. नंबर प्लेट से कार मालिक की जानकारी हुई. तब देर रात परिजनों को चौकी इंचार्ज संतोष गौतम ने कार के बारे में जानकारी दी.

मुकदमा लिखाने को भटकते रहे घर वाले

मुकदमा लिखाने के लिए परिजन फुटबाल बन गए. रंजीत के परिजनों का रोरो कर हाल बेहाल हो रहा था.

जब मुरैना पुलिस और थाना सिकंदरा पुलिस भी मुकदमा लिखने को तैयार नहीं हुई तो मृतक के भाई विक्रांत खरे 22 अक्तूबर शुक्रवार को एडीजी (जोन) राजीव कृष्ण से मिले और कहा कि यदि मुकदमा नहीं लिखा जाएगा तो हत्यारे कैसे पकड़े जाएंगे.

जब राजीव कृष्ण के संज्ञान में यह मामला आया, तब उन्होंने थाना सिकंदरा पुलिस को हत्या का मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिए. शाम को अज्ञात के खिलाफ हत्या और साक्ष्य मिटाने की धारा में मुकदमा थाना सिकंदरा में दर्ज कर लिया गया.

मुकदमा दर्ज होने के बाद सिकंदरा पुलिस ने तेजी से जांच शुरू कर दी. इस संबंध में घर वालों से पूछताछ की गई. उन्होंने बताया कि सिकदंरा क्षेत्र में रंजीत का मित्र दुर्गेश रहता है. उस ने पार्टी दी थी शाम को साढ़े 5 बजे रंजीत उसी पार्टी में शामिल होने शोरूम से सीधे चले गए थे.

पत्नी संध्या ने पुलिस को बताया, ‘‘पति सोमवार की सुबह 9 बजे शोरूम गए थे. रात में करीब 9 बजे फोन पर बात हुई. इस के बाद भाई अमित से रात लगभग पौने 12 बजे बात हुई. उन्होंने अमित से 20 मिनट में घर आने की बात कही. लेकिन नहीं आए. इस के बाद मोबाइल भी बंद हो गया.’’

जांच में पुलिस को पता चला कि रंजीत शाम साढ़े 5 बजे शोरूम से पार्टी के लिए निकले थे. वह रात पौने 12 बजे तक जीवित थे. इस के बाद ही उन का अपहरण कर हत्या कर दी गई. लाश को कार से ले जा कर मुरैना में फेंका गया. इस के बाद हत्यारों ने कार आगरा ला कर लावारिस छोड़ दी.

जांच में कार के अंदर खून के निशान भी मिले थे. पुलिस इस बात की भी जांच कर रही थी कि क्या रंजीत की हत्या कार में करने के बाद उन की लाश को किसी अन्य वाहन से मुरैना ले जाया गया था अथवा उन्हीं की कार से शव को ले जा कर वहां फेंका गया था?

पुलिस ने दुर्गेश से भी इस संबंध में पूछताछ की. दुर्गेश ने पुलिस को बताया, ‘‘रंजीत लगभग साढ़े 9 बजे रात में पार्टी से चले गए थे.’’

पार्टी रेस्टोरेंट की जगह दुर्गेश के फ्लैट पर ही आयोजित की गई थी. पुलिस द्वारा अब तक की गई छानबीन में रंजीत द्वारा 4 दोस्तों के साथ पार्टी करने की जानकारी सामने आई थी. पुलिस उन चारों की काल डिटेल्स और लोकेशन की जांच में जुट गई. पुलिस ने क्षेत्र के सीसीटीवी कैमरे भी चैक किए.

काफी हाथपैर मारने के बाद भी पुलिस को कोई सुराग नहीं मिल रहा था. पुलिस कयास लगा रही थी कि रंजीत के हत्यारे आगरा के ही निवासी हैं. वे हत्या व लूट की घटना को अंजाम देने के बाद शव को ठिकाने लगा कर वापस आगरा आ गए होंगे. कार से उन्हें अपने पकड़े जाने का खतरा होगा, इसलिए उसे लावारिस हालत में छोड़ गए.

जांच में सीसीटीवी कैमरे की फुटेज में सामने आया कि घटना वाली रात 1 बज कर 13 मिनट पर रंजीत की कार ने सैंया टोल पार किया था.

इस से इतना तो साफ हो गया कि रंजीत की कार में ही हत्या की गई थी. क्योंकि कार में खून के निशान मिले थे. पहले उसी कार से शव को मुरैना ले जा कर ठिकाने लगाया गया. उस के बाद वापस लौट कर कार को लावारिस छोड़ दिया गया. मतलब साफ था कि हत्यारे आगरा के ही हैं.

पुलिस मृतक के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स खंगालने में जुट गई, जिस से यह पता चल सके कि हत्या वाले दिन रंजीत की किनकिन लोगों से बात हुई थी. वहीं दोस्तों के बारे में भी जानकारी जुटाने में पुलिस लग गई.

एसएसपी सुधीर कुमार सिंह ने सिकंदरा थाने के इंसपेक्टर विनोद कुमार के नेतृत्व में गठित टीम को कुछ दिशानिर्देश दे कर इस मामले में लगाया. पहले दिन यह नहीं पता था कि हत्या क्यों हुई है, किस ने की है? कार मिल गई है. इस कारण यह लगने लगा है कि मामला कार लूट के लिए हत्या का नहीं है. पुलिस को सर्विलांस से भी कुछ सुराग मिले.

एसएमएस से खुला राज

रंजीत खरे के मोबाइल की काल डिटेल्स की जांच के दौरान पुलिस के हाथ एक महत्त्वपूर्ण सुराग लगा. हुआ यह कि जांच के दौरान रंजीत खरे के मोबाइल पर एक एसएमएस आया था कि जिस नंबर पर उन्होंने मिस काल दी थी, वह नंबर चालू हो गया था.

हुआ यह था कि जिस नंबर को रंजीत ने मिलाया था, उस समय वह स्विच्ड औफ था. जब वह मोबाइल चालू किया गया तो रंजीत के मोबाइल पर उस नंबर से एसएमएस आ गया.

जांच में पुलिस ने इस नंबर की काल डिटेल्स निकाली. जिस रास्ते से रंजीत की कार को ले जाया गया था, उसी रास्ते पर उस की लोकेशन मिली.

इस केस से जुड़े रहस्य की तब परतें खुलनी शुरू हो गईं. यह मोबाइल नंबर आगरा में हौस्पिटल रोड पर स्थित शिवपुरी कालोनी निवासी अर्जुन शर्मा का था. पुलिस ने उस की फोटो से उसे पहचान लिया.

अर्जुन का नाम सामने आते ही पुलिस के कान खड़े हो गए. थाना में उस का पुराना आपराधिक रिकौर्ड था. पुलिस उस के घर पहुंची, वह फरार था. उस का मोबाइल भी बंद था. अर्जुन शर्मा 2 बार पहले भी हत्या के आरोप में जेल जा चुका है. हत्या की दोनों वारदातों के समय वह नाबालिग था. लेकिन वह इस समय 20 साल का हो चुका था.

पुलिस सरगर्मी से उस की तलाश में जुट गई. घटना के 5 दिन बाद यानी 23 अक्तूबर को जैसे ही अर्जुन अपने घर पहुंचा, मुखबिर ने पुलिस को जानकारी दे दी. पुलिस ने उसे व उस के साथी रोशन विहार, सिकंदरा निवासी अमन शर्मा को भी गिरफ्तार कर लिया.

थाने ला कर उन से पूछताछ की गई तो दोनों ने रंजीत खरे की हत्या करने का जुर्म कुबूल कर लिया. उन की निशानदेही पर पुलिस ने एक .315 बोर का तमंचा व कारतूस के साथ ही रंजीत की हत्या के बाद उन का लूटा हुआ कुछ सामान भी बरामद कर लिया.

अभियुक्तों की गिरफ्तारी पर एसएसपी सुधीर कुमार सिंह ने प्रैस कौन्फ्रैंस आयोजित कर हत्यारोपियों की गिरफ्तारी की जानकारी देते हुए रंजीत खरे हत्याकांड का परदाफाश कर दिया. हत्याकांड के पीछे रंजीत खरे की कार, नकदी, आभूषण आदि लूटना था.

मददगारों को पार्टी देना पड़ा भारी

पकड़े गए आरोपियों में अर्जुन शर्मा शातिर बदमाश था. अर्जुन ने 2017 में हत्या की थी इस के बाद वर्ष 2019 में भी हत्याकांड को अंजाम दिया. वह जेल से जमानत पर आया था. अब उस ने तीसरी हत्या को अंजाम दिया है. अर्जुन और अमन दोस्त हैं. दोनों ने एक साथ इंटरमीडिएट तक पढ़ाई की थी.

हत्याभियुक्त अमन का किरावली में बाइक का शोरूम है. अभियुक्तों से पूछताछ के बाद इस सनसनीखेज हत्याकांड व लूट की कहानी जो सामने आई, वह इस तरह थी—

रंजीत की कार घटना से एक दिन पहले ककरैठा के पास नाले में फंस गई थी. कार के अगले 2 पहिए नाले में फंस जाने से कार बाहर नहीं निकल पा रही थी. रंजीत ने कार को नाले से निकलवाने में रास्ते से बाइक पर जा रहे 2 युवकों से मदद मांगी थी.

युवकों ने नाले से रंजीत की कार को बाहर निकलवाने में मदद कर दी. मदद करने के कारण दोस्ती जैसा माहौल हो गया.

उस समय रंजीत नशे में थे. उन्होंने अपना नाम रंजीत खरे बताया और जानकारी दी कि वह कार शोरूम का मैनेजर है. रंजीत जिंदादिल इंसान थे. उन्होंने दोनों युवकों को इसी बातचीत के दौरान शराब की पार्टी का औफर दिया. इस पर उन में से एक युवक का रंजीत ने मोबाइल नंबर ले लिया.

कार निकलवाने में मदद के दौरान अर्जुन और अमन को लगा कि इस के पास बहुत पैसे होंगे. जो मामूली मदद पर शराब की पार्टी देने को तैयार हो गया. रहनसहन देख कर दोनों की नीयत में खोट आ गई.

दूसरे दिन यानी 18 अक्तूबर, 2021 को पार्टी की बात तय हुई. रंजीत ने सोचा कि वह दोस्त दुर्गेश की पार्टी में जाने की कह कर आया है, इसी बहाने दोनों नए दोस्तों को भी पार्टी दे दी जाए.

शराब में मिला दी थीं नींद की गोलियां

रंजीत अपने दोस्त दुर्गेश की पार्टी में शामिल होने के बाद रात साढ़े 9 बजे घर जाने की बात कह कर वहां से निकल गए. इस के बाद तय स्थान पर दोनों मददगार अनजान दोस्त अर्जुन और अमन मिल गए.

रंजीत ने दोनों को अपनी कार में बैठा लिया. दोनों युवक कार को हाईवे पर ले गए. कार को रास्ते में रुकवा कर कार में ही पार्टी शुरू हो गई.

दोनों दोस्तों ने शराब में नींद की गोलियां मिला कर रंजीत को शराब पिला दी. कुछ ही देर में रंजीत पर बेहोशी छाने लगी. दोनों ने इसी दौरान रंजीत को दबोच लिया और उन के सिर, गरदन व चेहरे पर कार के व्हील पाना से प्रहार कर हत्या कर दी.

रंजीत के पर्स में रखे 4 हजार रुपए, अंगूठी, चैकबुक, एटीएम, मोबाइल आदि लूट लिए. शव को कार की डिक्की में डाल कर ठिकाने लगाने के लिए मुरैना की ओर जा रहे थे. सैंया टोल क्रास कर गए. हड़बड़ी में यह ध्यान नहीं रहा कि कार में लगे फास्टटैग से कार की एंट्री हो गई थी.

दोनों घबरा गए कि अब पकड़े जाएंगे. इसलिए लाश को ठिकाने लगाने के बाद पुलिस की नजरों से बचने के लिए कार की नंबर प्लेट निकाल कर कार में डाल दी और फास्टटैग को हटा दिया ताकि पहचान न हो सके.

टोल पर गाड़ी का गलत नंबर बता कर नकद भुगतान कर परची कटाई. कार को लूटने पर पकड़े जाने का खतरा था, इसलिए कार फोर्ट स्टेशन पर खड़ी कर दी. कार की चाबी भावना एस्टेट के पास फेंक दी.

पुलिस ने दोनों हत्यारोपियों अर्जुन शर्मा व अमन शर्मा को न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल दिया गया.

अनजान व्यक्तियों से मदद लेना रंजीत के लिए जानलेवा साबित हुआ. मददगारों ने दोस्त बन कर रंजीत के ठाठ देख कर बड़ा आदमी समझा और लालच में हत्या व लूट की घटना को अंजाम दे कर एक हंसतेखेलते परिवार को उजाड़ दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

औनलाइन चलता सेक्स रैकेट

22 जनवरी, 2021 की बात है. 12 साल की मानसी पास की दुकान से चिप्स लेने गई थी. जब वह काफी देर बाद भी घर नहीं लौटी तो घर वालों को उस की चिंता हुई. घर वाले उस दुकानदार के पास पहुंचे, जिस के पास वह अकसर खानेपीने का सामान लाती थी. उन्होंने उस दुकानदार से मानसी के बारे में पूछा तो दुकानदार ने  बताया कि मानसी तो काफी देर  पहले ही चिप्स का पैकेट ले कर जा चुकी है.

जब वह चिप्स ले कर जा चुकी है तो घर क्यों नहीं पहुंची, यह बात घर वालों की समझ में नहीं आ रही थी. उन्होंने आसपास के बच्चों से उस के बारे में पूछा, लेकिन उन से भी मानसी के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

घर वालों की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर मानसी गई तो गई कहां. उन्होंने उसे इधरउधर तमाम संभावित जगहों पर ढूंढा लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. तब उन्होंने इस की सूचना पश्चिमी दिल्ली के थाना राजौरी गार्डन में दे दी. चूंकि मामला एक नाबालिग लड़की के लापता होने का था, इसलिए पुलिस ने इस मामले को गंभीरता से लिया. पुलिस ने मानसी के पिता की तरफ से गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर ली.

डीसीपी (पश्चिमी दिल्ली) उर्विजा गोयल को जब 12 वर्षीय मानसी के गायब होने की जानकारी मिली तब उन्होंने थाना पुलिस को इस मामले में तीव्र काररवाई करने के आदेश दिए. डीसीपी का आदेश पाते ही थानाप्रभारी ने इस मामले की जांच के लिए एएसआई विनती प्रसाद के नेतृत्व में एक पुलिस टीम गठित कर दी.

एएसआई विनती प्रसाद ने सब से पहले लापता बच्ची के घर वालों से उस के बारे में विस्तार से जानकारी ली. इतना ही नहीं, उन्होंने घर वालों से यह भी जानना चाहा कि उन की किसी से कोई रंजिश तो नहीं है. घर वालों ने उन से साफ कह दिया कि उन की किसी से कोई दुश्मनी नहीं है. इस के बाद पुलिस अपने स्तर से मानसी को तलाशने लगी.

जिस जगह से मानसी गायब हुई थी, पुलिस ने उस क्षेत्र के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी. इस के अलावा स्थानीय लोगों से भी बच्ची के बारे में जानकारी हासिल की. पुलिस ने सोशल मीडिया पर भी निगरानी कर दी, लेकिन कहीं से भी मानसी के बारे में कोई सुराग नहीं मिला.

पुलिस टीम को जांच करतेकरते करीब 2 महीने बीत चुके थे. जब बच्ची कहीं नहीं मिली तो पुलिस ने ह्यूमन ट्रैफिकिंग के एंगल को ध्यान में रखते हुए केस की जांच शुरू कर दी. यानी पुलिस को यह शक होने लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि बच्ची जिस्मफरोशी गैंग के चंगुल में फंस गई हो.

इस बिंदु पर जांच करते करते पुलिस टीम ने कई जगहों पर दबिशें दीं, लेकिन लापता बच्ची का सुराग नहीं मिला.

करीब 2 महीने बाद पुलिस को सूचना मिली कि मानसी का अपहरण करने के बाद उसे दिल्ली के मजनूं का टीला इलाके में रखा गया है और वहीं पर उस से जिस्मफरोशी का धंधा कराया जा रहा है. यह सूचना रोंगटे खड़े कर देने वाली थी. क्योंकि मानसी की उम्र केवल 12 साल थी और इस उम्र में उस बच्ची के साथ जिस तरह का कार्य कराने की जानकारी मिली, वह मानवता को शर्मसार करने वाली ही थी.

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जांच अधिकारी विनती प्रसाद ने यह खबर अपने उच्चाधिकारियों को दी फिर उन्हीं के दिशानिर्देश पर पुलिस टीम ने 17 मार्च, 2021 को मजनूं का टीला इलाके में एक घर पर दबिश दी. मुखबिर की सूचना सही निकली. मानसी वहीं पर मिल गई.

पुलिस ने मानसी को सब से पहले अपने कब्जे में लिया. इस के बाद पुलिस ने वहां 2 महिलाओं सहित 4 लोगों को गिरफ्तार किया.

पुलिस ने उन सभी से पूछताछ की तो उन्होंने स्वीकार किया कि वे बड़े स्तर पर एस्कौर्ट सर्विस मुहैया कराते थे और उन का धंधा ज्यादातर वाट्सऐप ग्रुप और इंटरनेट के माध्यम से चलता है. उन के पास से पुलिस ने 5 मोबाइल फोन बरामद किए. फोनों की जांच की गई तो तमाम वाट्सऐप ग्रुप में ऐसी लड़कियों के अनेक फोटो मिले, जिन से वे जिस्मफरोशी कराते थे.

पुलिस ने गिरफ्तार किए हुए उन चारों लोगों से पूछताछ की तो पता चला कि उन में से संजय राजपूत और कनिका राय मजनूं का टीला के रहने वाले थे जबकि अंशु शर्मा  मुरादाबाद का और सपना गोयल मुजफ्फरनगर की.

ये सभी औनलाइन सैक्स रैकेट चलाते थे. जांच में पता चला कि इन लोगों के काम करने का तरीका एकदम अलग था. यह गिरोह सोशल साइट पर ज्यादा सक्रिय था. गैंग के लोग 150 से ज्यादा वाट्सऐप ग्रुप में सक्रिय थे. एस्कौर्ट सर्विस मुहैया कराने वाली लड़की के फोटो ये वाट्सऐप ग्रुप में शेयर करते थे. इस के बाद ग्रुप से जो कस्टमर इन के संपर्क में आता था, उस से यह पर्सनल चैटिंग करने के बाद पैसों की डील फाइनल करते थे. फिर औनलाइन ही पेमेंट अपने खाते में ट्रांसफर कराने के बाद कस्टमर के बताए गए स्थान पर ये लड़की को सप्लाई करते थे.

इस तरह यह गैंग देश के अलगअलग बड़े शहरों में लड़कियों की सप्लाई करते था. इतना ही नहीं, फाइव स्टार होटलों में भी इन के पास से लड़कियां सप्लाई की जाती थीं.

आरोपियों ने बताया कि उन के गैंग के सदस्य अलगअलग जगहों से लड़कियां उन के पास लाते थे. मानसी का भी गैंग के 2 लोगों ने अपहरण उस समय किया था, जब वह दुकान पर गई थी. उस का अपहरण करने के बाद वह उसे अपने घर पर ले गए थे.

उन्होंने मानसी से कहा था कि आज उन के यहां पर जन्मदिन है इसलिए वह बच्चों को इकट्ठा कर के केक काटेंगे. उन्होंने मानसी को केक खाने को दिया. केक खाते ही मानसी को नशा हो गया. इस के बाद दोनों मानसी को मजनूं का टीला ले गए, वहां पर संजय राजपूत, अंशु शर्मा, सपना गोयल और कनिका राय मिली. 12 साल की बच्ची को देख कर ये चारों खुश हो गए कि अब इस से मोटी कमाई की जा सकती है. क्योंकि वह तो उसे सोने का अंडा देने वाली मुरगी समझ रहे थे.

जब मानसी पर हल्का नशा सवार था, तभी उस के साथ रेप किया गया. होश आने पर मानसी दर्द से कराहती रही. इस के बाद भी इन लोगों को उस पर दया नहीं आई. उन्होंने उसी रात उसे किसी दूसरे ग्राहक के सामने पेश किया.

इस तरह वह मानसी का शारीरिक शोषण करते रहे. जब वह विरोध करती तो ये लोग उसे प्रताडि़त करते थे. इस तरह मानसी इन लोगों के चंगुल में बुरी तरह फंस चुकी थी. वहां से निकलने का उस के पास कोई उपाय नहीं था.

आरोपियों के 2 अन्य साथी फरार हो चुके थे. पुलिस ने उन की तलाश में अनेक स्थानों पर दबिश दी, लेकिन उन का पता नहीं चला. आरोपी 35 वर्षीय संजय राजपूत, 21 वर्षीय अंशु शर्मा, 24 साल की सपना गोयल और 28 साल की कनिका राय से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

अभियुक्तों के पास से बरामद की गई 12 वर्षीय मानसी को पुलिस ने उपचार के लिए अस्पताल में भरती करा दिया. मानसी ने अपने साथ घटी सारी घटना पुलिस को बता दी.

आरोपियों को जेल भेजने के बाद पुलिस गंभीरता से इस बात की जांच करने में जुट गई. इस गैंग के तार देश में किनकिन लोगों से जुड़े थे और इन्होंने अब तक कितनी लड़कियों का अपहरण किया था.

(कथा में मानसी परिवर्तित नाम है)