आधी रात के बाद हुस्न और हवस का खेल

18 नवंबर, 2016 की रात के यही कोई डेढ़ बजे मुंबई से सटे जनपद थाणे के उल्लासनगर के थाना विट्ठलवाड़ी के एआई वाई.आर. खैरनार को सूचना मिली कि आशेले पाड़ा परिसर स्थित राजाराम कौंपलेक्स की तीसरी मंजिल स्थित एक फ्लैट में काले रंग के बैग में लाश रखी है. सूचना देने वाले ने बताया था कि उस का नाम शफीउल्ला खान है और उस फ्लैट की चाबी उस के पास है.

35 साल का शफीउल्ला पश्चिम बंगाल के जिला मुर्शिदाबाद की तहसील नगीनबाग के गांव रोशनबाग का रहने वाला था. रोजीरोटी की तलाश में वह करीब 8 साल पहले थाणे आया था, जहां वह उल्लासनगर के आशेले पाड़ा परिसर स्थित राजाराम कौंपलेकस के तीसरी मंजिल स्थित फ्लैट नंबर 308 में अपने परिवार के साथ रहता था. वह राजमिस्त्री का काम कर के गुजरबसर कर रहा था.

उस के फ्लैट से 2 फ्लैट छोड़ कर उस का मामा राजेश खान अपनी प्रेमिकापत्नी खुशबू उर्फ जमीला शेख के साथ रहता था. 10-11 महीने पहले ही खुशबू राजेश खान के साथ इस फ्लैट में रहने आई थी. वह अपना कमातीखाती थी, इसलिए वह राजेश खान पर निर्भर नहीं थी. राजेश खान कभीकभार ही उस के यहां आता था. ज्यादातर वह पश्चिम बंगाल स्थित गांव में ही रहता था.

18 नवंबर की दोपहर शफीउल्ला अपने फ्लैट पर जा रहा था, तभी इमारत की सीढि़यों पर उस की मुलाकात राजेश खान से हो गई. उस समय काफी घबराया होने के साथसाथ वह जल्दबाजी में भी था. लेकिन शफीउल्ला सामने पड़ गया तो उस ने रुक कर कहा, ‘‘शफी, अगर तुम मेरे साथ नीचे चलते तो मैं तुम्हें एक जरूरी बात बताता.’’

‘‘इस समय तो मैं कहीं नहीं जा सकता, क्योंकि मुझे बहुत तेज भूख लगी है. जो भी बात है, बाद में कर लेंगे.’’ कह कर शफीउल्ला जैसे ही आगे बढ़ा, राजेश खान ने पीछे से कहा, ‘‘यह रही मेरे फ्लैट की चाबी, रख लो. तुम्हारी मामी मुझ से लड़झगड़ कर कहीं चली गई है. मैं उसे खोजने जा रहा हूं. मेरी अनुपस्थिति में अगर वह आ जाए तो यह चाबी उसे दे देना. बाकी बातें मैं फोन से कर लूंगा.’’

राजेश खान से फ्लैट की चाबी ले कर शफीउल्ला अपने फ्लैट पर चला गया तो राजेश खान नीचे उतर गया.  करीब 12 घंटे बीत गए. इस बीच न राजेश खान आया और न ही उस की पत्नी खुशबू आई. शफीउल्ला को चिंता हुई तो उस ने दोनों को फोन कर के संपर्क करना चाहा. लेकिन दोनों के ही नंबर बंद मिले.

शफीउल्ला सोचने लगा कि अब उसे क्या करना चाहिए. वह कुछ करता, उस के पहले ही रात के करीब एक बजे उस के फोन पर राजेश खान का फोन आया. उस के फोन रिसीव करते ही उस ने पूछा, ‘‘तेरी मामी आई या नहीं?’’

‘‘नहीं मामी तो अभी तक नहीं आई. यह बताओ कि इस समय तुम कहां हो?’’ शफीउल्ला ने पूछा.

‘‘तुम्हें राज की एक बात बताता हूं. अब तुम्हारी मामी कभी नहीं आएगी, क्योंकि मैं ने उसे मार दिया है. इस में मुझे तुम्हारी मदद चाहिए. मेरे फ्लैट के बैडरूम में बैड के नीचे काले रंग का एक बैग पड़ा है, उसी में तुम्हारी मामी की लाश रखी है. तुम उसे ले जा कर कहीं फेंक दो. जल्दबाजी में मैं उसे फेंक नहीं पाया. इस समय मैं ट्रेन में हूं और गांव जा रहा हूं.’’

खुशबू की हत्या की बात सुन कर शफीउल्ला के होश उड़ गए. उस ने उस बैग के बारे में आसपड़ोस वालों को बताया तो सभी इकट्ठा हो गए. उन्हीं के सुझाव पर इस बात की सूचना शफीउल्ला ने थाना विट्ठलवाड़ी पुलिस को दे दी थी.

एआई वाई.आर. खैरनार ने तुरंत इस सूचना की डायरी बनवाई और थानाप्रभारी सुरेंद्र शिरसाट तथा पुलिस कंट्रोल रूम एवं पुलिस अधिकारियों को सूचना दे कर वह कुछ सिपाहियों के साथ राजाराम कौंपलेक्स पहुंच गए. रात का समय था, फिर भी उस फ्लैट के बाहर इमारत के काफी लोग जमा थे. उन के पहुंचते ही शफीउल्ला ने आगे बढ़ कर उन्हें फ्लैट की चाबी थमा दी.

फ्लैट का ताला खोल कर वाई.आर. खैरनार सहायकों के साथ अंदर दाखिल हुए तो बैडरूम में रखा वह काले रंग का बैग मिल गया. उन्होंने उसे हौल में मंगा कर खुलवाया तो उस में उन्हें एक महिला की लाश मिली.

बैग से बरामद लाश की शिनाख्त की कोई परेशानी नहीं हुई. शफीउल्ला ने उस के बारे में सब कुछ बता दिया. लाश बैग से निकाल कर वाई.आर. खैरनार जांच में जुट गए. वह घटनास्थल और लाश का निरीक्षण कर रहे थे कि थानाप्रभारी सुरेंद्र शिरसाट, एसीपी अतितोष डुंबरे, एडिशनल सीपी शरद शेलार, डीसीपी सुनील भारद्वाज, अंबरनाथ घोरपड़े के साथ आ पहुंचे.

फोरैंसिक टीम के साथ पुलिस अधिकारियों ने भी घटनास्थल और लाशों का निरीक्षण किया. अपना काम निपटा कर थोड़ी ही देर में सारे अधिकारी चले गए.

लाश के निरीक्षण में स्पष्ट नजर आ रहा था कि मृतका की बेल्ट से जम कर पिटाई की गई थी. उस के शरीर पर तमाम लालकाले निशान उभरे हुए थे. कुछ घावों से अभी भी खून रिस रहा था. उस के गले पर दबाने का निशान था. लाश और घटनास्थल का निरीक्षण कर के सुरेंद्र शिरसाट ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए उल्लासनगर के मध्यवर्ती अस्पताल भिजवा दिया.

घटनास्थल की पूरी काररवाई निपटा कर सुरेंद्र शिरसाट थाने लौट आए और सहयोगियों से सलाहमशविरा कर के इस हत्याकांड की जांच एआई वाई.आर. खैरनार को सौंप दी.

वाई.आर. खैरनार ने मामले की जांच के लिए अपनी एक टीम बनाई, जिस में उन्होंने एआई प्रमोद चौधरी, ए. शेख के अलावा हैडकांस्टेबल दादाभाऊ पाटिल, दिनेश चित्ते, अजित सांलुके तथा महिला सिपाही ज्योति शिंदे को शामिल किया.

पुलिस को शफीउल्ला से पूछताछ में पता चल गया था कि राजेश खान ने कत्ल कर के गांव जाने के लिए कल्याण रेलवे स्टेशन से ज्ञानेश्वरी एक्सप्रैस पकड़ ली है. अब पुलिस के लिए यह चुनौती थी कि वह गांव पहुंचे, उस के पहले ही उसे पकड़ ले. अगर वह गांव पहुंच गया और उसे पुलिस के बारे में पता चल गया तो वह भाग सकता था.

इस बात का अंदाजा लगते ही पुलिस टीम ने जांच में तेजी लाते हुए राजेश खान के मोबाइल की लोकेशन पता की तो वह जिस ट्रेन से गांव जा रहा था, वहां से उसे गांव पहुंचने में करीब 10 घंटे का समय लगता.

पुलिस टीम किसी भी तरह उसे हाथ से जाने देना नहीं चाहती थी, इसलिए वाई.आर. खैरनार ने सीनियर अधिकारियों से बात कर के राजेश खान की गिरफ्तारी के लिए एआई ए. शेख और हैडकांस्टेबल माने को हवाई जहाज से कोलकाता भेज दिया. दोनों राजेश के पहुंचने से पहले ही हावड़ा रेलवे स्टेशन पर पहुंच गए और उसे गिरफ्तार कर लिया.

26 साल के राजेश खान को मुंबई ला कर पूछताछ की गई तो उस ने खुशबू से प्रेम होने से ले कर उस की हत्या तक की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

राजेश खान पश्चिम बंगाल के जनपद मुर्शिदाबाद की तहसील नगीनबाग के गांव रोशनबाग का रहने वाला था. गांव में वह मातापिता एवं भाईबहनों के साथ रहता था. गांव में उस के पास खेती की जमीन तो थी ही, बाजार में कपड़ों की दुकान भी थी, जो ठीकठाक चलती थी. उसी दुकान के लिए वह कपड़ा लेने थाणे के उल्लासनगर आता था. वह जब भी कपड़े लेने उल्लासनगर आता था, अपने भांजे शफीउल्ला से मिलने जरूर आता था.

24 साल की खुशबू उर्फ जमीला से राजेश खान की मुलाकात उस की कपड़ों की दुकान पर हुई थी. वह उसी के गांव के पास की ही रहने वाली थी. उस की शादी ऐसे परिवार में हुई थी, जिस की आर्थिक स्थिति काफी खराब थी. वह जिन सपनों और उम्मीदों के साथ ससुराल आई थी, वे उसे पूरे होते नजर नहीं आ रहे थे. खुली हवा में सांस लेना घूमनाफिरना, मनमाफिक पहननाओढ़ना उस परिवार में कभी संभव नहीं था.

इसलिए जल्दी ही वहां खुशबू का दम घुटने लगा. खुली हवा में सांस लेने के लिए उस का मन मचल उठा. दुकान पर आनेजाने में जब उस ने राजेश खान की आंखों में अपने लिए चाहत देखी तो वह भी उस की ओर आकर्षित हो उठी.

चाहत दोनों ओर थी, इसलिए कुछ ही दिनों में दोनों एकदूसरे के करीब आ गए. जल्दी ही उन की हालत यह हो गई कि दिन में जब तक दोनों एक बार एकदूसरे को देख नहीं लेते, उन्हें चैन नहीं मिलता. उन के प्यार की जानकारी गांव वालों को हुई तो उन के प्यार को ले कर हंगामा होता, उस के पहले ही वह खुशबू को ले कर मुंबई आ गया और किराए का फ्लैट ले कर उसी में उस के साथ रहने लगा. मुंबई में उस ने उस से निकाह भी कर लिया.

मुंबई पहुंच कर खुशबू ने आत्मनिर्भर होने के लिए एक ब्यूटीपार्लर में नौकरी कर ली. इस से राजेश खान चिंता मुक्त हो गया. वह महीने में 10-15 दिन मुंबई में खुशबू के साथ रहता था तो बाकी दिन गांव में रहता था.

मुंबई आ कर खुशबू में काफी बदलाव आ गया था. ब्यूटीपार्लर में काम करने के बाद उस के पास जो समय बचता था, उस समय का सदुपयोग करते हुए अधिक कमाई के लिए वह बीयर बार में काम करने चली जाती थी. पैसा आया तो उस ने रहने का ठिकाना बदल दिया. अब वह उसी इमारत में आ कर रहने लगी, जहां शफीउल्ला अपने परिवार के साथ रहता था. वहां उस ने सुखसुविधा के सारे साधन भी जुटा लिए थे.

खुशबू के रहनसहन को देख कर राजेश खान के मन संदेह हुआ. उस ने उस के बारे में पता किया. जब उसे पता चला कि खुशबू ब्यूटीपार्लर में काम करने के अलावा बीयर बार में भी काम करती है तो उस ने उसे बीयर बार में काम करने से मना किया. लेकिन उस के मना करने के बावजूद खुशबू बीयर बार में काम करती रही. इस से राजेश खान का संदेह बढ़ता गया.

18 नवंबर की सुबह खुशबू बीयर बार की ड्यूटी खत्म कर के फ्लैट पर आई तो राजेश खान को अपना इंतजार करते पाया. उस समय वह काफी गुस्से में था. उस के पूछने पर खुशबू ने जब सीधा उत्तर नहीं दिया तो वह उस पर भड़क उठा. वह उस के साथ मारपीट करने लगा तो खुशबू ने साफसाफ कह दिया, ‘‘मैं तुम्हारी पत्नी हूं, गुलाम नहीं कि जो तुम कहोगे, मैं वहीं करूंगी.’’

‘‘खुशबू, तुम मेरी पत्नी ही नहीं, प्रेमिका भी हो. मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं. तुम अपनी ब्यूटीपार्लर वाली नौकरी करो, मैं उस के लिए मना नहीं करता. लेकिन बीयर बार में काम करना मुझे पसंद नहीं है. मैं नहीं चाहता कि लोग तुम्हें गंदी नजरों से ताकें.’’

‘‘मैं जो कर रही हूं, सोचसमझ कर कर रही हूं. अभी मेरी कमानेखाने की उम्र है, इसलिए मैं जो करना चाहती हूं, वह मुझे करने दो.’’ कह कर खुशबू बैडरूम में जा कर कपड़े बदलने लगी.

राजेश खान को खुशबू से ऐसी बातों की जरा भी उम्मीद नहीं थी. वह भी खुशबू के पीछेपीछे बैडरूम में चला गया और उसे समझाने की गरज से बोला, ‘‘इस का मतलब तुम मुझे प्यार नहीं करती. लगता है, तुम्हारी जिंदगी में कोई और आ गया है?’’

‘‘तुम्हें जो समझना है, समझो. लेकिन इस समय मैं थकी हुई हूं और मुझे नींद आ रही है. अब मैं सोने जा रही हूं. अच्छा होगा कि तुम अभी मुझे परेशान मत करो.’’

खुशबू की इन बातों से राजेश खान का गुस्सा बढ़ गया. उस की आंखों में नफरत उतर आई. उस ने चीखते हुए कहा, ‘‘मेरी नींद को हराम कर के तुम सोने जा रही हो. लेकिन अब मैं तुम्हें सोने नहीं दूंगा.’’

यह कह कर राजेश खान खुशबू की बुरी तरह से पिटाई करने लगा. हाथपैर से ही नहीं, उस ने उसे बेल्ट से भी मारा. इस पर भी उस का गुस्सा शांत नहीं हुआ तो फर्श पर पड़ी दर्द से कराह रही खुशबू के सीने पर सवार हो गया और दोनों हाथों से उस का गला दबा कर उसे मौत के घाट उतार दिया.

खुशबू के मर जाने के बाद जब उस का गुस्सा शांत हुआ तो उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उसे जेल जाने का डर सताने लगा. वह लाश को ठिकाने लगाने के बारे में सोचने लगा. काफी सोचविचार कर उस ने लाश को फ्लैट में ही छिपा कर गांव भाग जाने में अपनी भलाई समझी. उस का सोचना था कि अगर वह गांव पहुंच गया तो पुलिस उसे कभी पकड़ नहीं पाएगी.

उस ने बैडरूम मे रखे खुशबू के बैग को खाली किया और उस में उस की लाश को मोड़ कर रख कर उसे बैड के नीचे खिसका दिया. वह दरवाजे पर ताला लगा कर बाहर निकल रहा था, तभी उस का भांजा शफीउल्ला उसे सीढि़यों पर मिल गया, जिस की वजह से खुशबू की हत्या का रहस्य उजागर हो गया.

घर की चाबी शफीउल्ला को दे कर वह सीधे कल्याण रेलवे स्टेशन पहुंचा और वहां से कोलकाता जाने वाली ज्ञानेश्वरी एक्सप्रैस पकड़ कर गांव के लिए चल पड़ा.

राजेश खान से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस के खिलाफ अपराध संख्या 324/2016 पर खुशबू की हत्या का मुकदमा दर्ज कर उसे मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. मामले की जांच एआई वाई.आर. खैरनार कर रहे थे.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

इंसाफ चाहिए इस निर्भया को – भाग 3

नाबालिग निर्भया की हालत देख कर जोट्टा सिंह द्रवित हो उठे. उस की हालत काफी गंभीर थी. उसे तत्काल मैडिकल सहायता की जरूरत थी. मामला संगीन था, इसलिए पुलिस को भी सूचना देना जरूरी था. उन्होंने तुरंत एसपी भुवन भूषण यादव को मामले की जानकारी दे दी.

एसपी के निर्देश पर महिला थाने की थानाप्रभारी सहयोगियों के साथ सरदारी बुआ के घर पहुंच गईं. अब तक मंजू परिवार के साथ फरार हो चुकी थी. बाल संरक्षण कमेटी के संरक्षण में निर्भया को हनुमानगढ़ के जिला चिकित्सालय में भरती कराया गया.

शुरुआती पूछताछ में पुलिस को पता चला कि निर्भया दिल्ली के अमन विहार की रहने वाली थी. हनुमानगढ़ पुलिस ने दिल्ली के थाना अमन विहार पुलिस से संपर्क किया तो पता चला कि निर्भया के पिता कुंदन (बदला हुआ नाम) ने फरवरी महीने में उस की गुमशुदगी दर्ज कराई थी.

सूचना पा कर थाना अमन विहार पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ दर्ज मुकदमे में गोलू, मंजू, निशा, सुनील बागड़ी आदि को नामजद कर लिया. इस के बाद दिल्ली पुलिस की सबइंसपेक्टर मनीषा शर्मा पुलिस टीम के साथ हनुमानगढ़ पहुंची और निर्भया का बयान ले कर लौट गई.

पुलिस टीम के साथ आए निर्भया के पिता ने बेटी की हालत देखी तो गश खा कर गिर गए. मामला मीडिया द्वारा जगजाहिर हुआ तो शहर में भूचाल सा आ गया. निर्भया को न्याय दिलाने के लिए हनुमानगढ़ में भी मुकदमा दर्ज करने की मांग करते हुए लोग सड़कों पर उतर आए. श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ में कैंडल मार्च निकाला गया.

हनुमानगढ़ पुलिस दिल्ली में मुकदमा दर्ज होने की बात कह कर मुकदमा दर्ज करने से कतरा रही थी. लेकिन लोग मैदान में उतर आए. लोगों का कहना था कि यहां के आरोपियों से दिल्ली पुलिस को कोई सरोकार नहीं रहेगा. निर्भया का बुरा करने वालों को किए की सजा दिलाने के लिए यहां भी मुकदमा दर्ज होना चाहिए.

लोगों के गुस्से को देखते हुए हनुमानगढ़ पुलिस बेबस हो गई. तीसरे दिन महिला पुलिस थाने में मंजू, गोलू, निशा, मुकेश, सोनू आदि के खिलाफ भादंवि की धारा 370, 372, 373, 376 (डी), 377, 3/4 पौक्सो एक्ट व हरिजन उत्पीड़न अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया. इस के बाद डीएसपी वीरेंद्र जाखड़ को मामले की जांच सौंप दी गई.

जानकारी मिलने पर 30 मार्च, 2017 को राज्य बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्षा मनन चतुर्वेदी हनुमानगढ़ आईं और स्वास्थ्य केंद्र जा कर उपचाराधीन निर्भया से मिलीं. बच्ची की हालत देख कर वह रो पड़ीं. इस मामले में एक भी गिरफ्तारी न होने से उन्होंने पुलिस को आड़े हाथों लिया और शीघ्र गिरफ्तारी के आदेश दिए. 10वीं कक्षा में पढ़ने वाली निर्भया को अपनी पढ़ाई जारी रखने और वरिष्ठ अधिकारी बनने के लिए प्रेरित करते हुए हर संभव सहयोग का आश्वासन दिया. कुछ संस्थाओं ने ही नहीं, जन साधारण ने भी निर्भया की आर्थिक मदद की.

आखिर कौन थी निर्भया, वह कैसे चकलाघर संचालिका मंजू अग्रवाल के पास पहुंची? पुलिस जांच में पता चला कि सुरेशिया में ही किराएदार के रूप में मंजू के पड़ोस में सुनील बागड़ी रहता था. इस के पहले वह पश्चिमी दिल्ली के अमन विहार में रहता था. सुनील मंजू का राजदार था और एक दो बार उस के लिए बाहर से लड़की ला चुका था.

एक दिन सुनील मंजू के पास बैठा था तो उस ने कहा, ‘‘अरे सुनील बाबू, आजकल मेरा धंधा बड़ा मंदा है. कोई बढि़या सी लड़की की व्यवस्था कर देते तो धंधा चमक उठता. ऐसे माल के लिए मैं लाख, डेढ़ लाख रुपए खर्च करने को तैयार हूं.’’

‘‘मैडम, यह कौन सा मुश्किल काम है. मैं आज ही अपने साथी से कहे देता हूं.’’ सुनील ने कहा.

दिल्ली में सुनील के पड़ोस में ही गोलू और निशा रहते थे. निशा का पति ट्रक चलाता था, जबकि गोलू टैंपो चलाता था. निशा और उस के पति में किसी बात को ले कर खटपट हो गई तो निशा पति से अलग हो कर गोलू के साथ लिव इन रिलेशन में रहने लगी. सुनील ने मंजू की मंशा गोलू और निशा को बताई तो लाखों मिलने की उम्मीद में उन के मुंह में पानी आ गया.

निशा के पड़ोस में ही रहती थी निर्भया. 3 भाईबहनों में वह सब से बड़ी थी और दसवीं कक्षा में पढ़ रही थी. पिता मेहनतमजदूरी कर के जैसेतैसे परिवार की गाड़ी खींच रहे थे. आकर्षक कदकाठी और मनमोहक नयननक्श वाली निर्भया गोलू और निशा की निगाह में चढ़ गई. दोनों ने उसे मंजू के अड्डे पर पहुंचाने का मन बना लिया.

बस फिर क्या था. निशा और गोलू निर्भया पर डोरे डालने लगे. निशा को गोलू ने अपनी भाभी बताया था. जानपहचान बढ़ी तो निशा और गोलू निर्भया को गिफ्ट के साथ नकदी भी देने लगे. निशा ने निर्भया से कहा था कि वह गोलू से उस की शादी करा कर उसे अपनी देवरानी बनाना चाहती है.

फिसलन भरी राह पर आखिर एक दिन निर्भया फिसल ही गई और निशा तथा गोलू के साथ भाग गई. उसे ले जा कर पहले गोलू ने उस से शादी की. फिर 4-5 दिनों बाद वे उसे ले कर हनुमानगढ़ पहुंचे और सुनील बगड़ी के माध्यम से मंजू को सौंप दिया गया. निर्भया के गायब होने पर कुंदन ने थाना अमन विहार में उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी.

हनुमानगढ़ पुलिस जब मुख्य अपराधियों को 3-4 दिनों तक गिरफ्तार नहीं कर सकी तो लोग नाराजगी व्यक्त करने गले. मीडिया भी पुलिस की भद्द पीट रही थी. साइबर क्राइम एक्सपर्ट हैडकांस्टेबल गुरसेवक सिंह ने मंजू के परिवार की लोकेशन पता कर रहे थे, पर शातिर मंजू पुलिस के पहुंचने से पहले ही उड़नछू हो जाती थी.

आखिर पांचवें दिन मंजू की आंख मिचौली खत्म हो गई. वह अपने बेटे मुकेश और बहू सोनू के साथ हरियाणा के ऐलनाबाद में पुलिस के हत्थे चढ़ गई. अदालत में पेश किए जाने पर अदालत ने तीनों को विस्तृत पूछताछ के लिए 10 दिनों  की पुलिस रिमांड पर सौंप दिया था.

मंजू से पूछताछ के बाद स्थानीय पुलिस ने पहले ग्राहक अख्तर खान सहित, 15 सौ रुपए में कमरा उपलब्ध कराने वाले संगम होटल के मैनेजर कृष्णलाल घूडि़या, दलाल गुड्डी मेघवाल और निर्भया का बुरा करने वाले विजय (रावतसर), नवीन खां, मंजूर खां (मोधूनगर) पूर्णचंद सिंधी (हनुमानगढ़) बिजली मैकेनिक जगदीश काला उर्फ अमरजीत आदि 15 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.

अब दिल्ली पुलिस मंजू सोनू, मुकेश आदि को प्रोटक्शन वारंट पर अपनी सुपुर्दगी में लेने की कोशिश कर रही है. दिल्ली के दोनों आरोपी गोलू और निशा तिहाड़ जेल पहुंच गए हैं. हनुमानगढ़ पुलिस के लिए वे दोनों भी वांटेड हैं.

स्वास्थ्य लाभ के बाद निर्भया दिल्ली लौट गई थी. जिंदगी बरबाद करने वाले आरोपियों को फांसी की सजा की मांग करने वाली निर्भया की पुकार अब अदालत के फैसले पर निर्भर करेगी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पटरियों पर बलात्कार : समाज में होता अपराध – भाग 3

मीडिया में बात आने के बाद पुलिस हुई सक्रिय

24 घंटे थाने दर थाने भटकने के बाद तीनों का भरोसा पुलिस और इंसाफ से उठने लगा था. मध्य प्रदेश का स्थापना दिवस बगैर किसी अड़चन के मन चुका था, जिस में पुलिस का भारीभरकम अमला तैनात था.

2 नवंबर, 2017 को जब अनामिका के साथ हुए अत्याचारों की भनक मीडिया को लगी तो अगले दिन के अखबार इस जघन्य, वीभत्स और शर्मनाक बलात्कार कांड से रंगे हुए थे, जिन में पुलिस की लापरवाही, मनमानी और हीलाहवाली पर खूब कीचड़ उछाली गई थी.

लोग अब बलात्कारियों से ज्यादा पुलिस को कोसने लगे थे. जब आम लोगों का गुस्सा बढ़ने लगा तो स्थापना दिवस की खुमारी उतार चुके मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आला पुलिस अफसरों की बैठक ली.

मीटिंग में सक्रियता और संवेदनशीलता दिखाते मुख्यमंत्री ने डीजीपी ऋषि कुमार शुक्ला और डीआईजी संतोष कुमार सिंह की जम कर खिंचाई की और टीआई जीआरपी हबीबगंज मोहित सक्सेना, एमपी नगर थाने के टीआई संजय सिंह बैंस और हबीबगंज थाने के टीआई रवींद्र यादव के अलावा जीआरपी के एक सबइंसपेक्टर भवानी प्रसाद उइके को तत्काल सस्पेंड कर दिया.

कानूनी प्रावधान तो यह है कि छेड़खानी और दुष्कर्म के मामलों में पुलिस को एफआईआर लिखना अनिवार्य है. आईपीसी की धारा 166 (क) साफसाफ कहती है कि धारा 376, 354, 326 और 509 के तहत हुए अपराधों की एफआईआर दर्ज न करने पर दोषी पुलिस वालों को 6 महीने से ले कर 2 साल तक की सजा दी जा सकती है. किसी भी सूरत में कोई भी पुलिस वाला इन धाराओं के अपराध की एफआईआर लिखने से मना नहीं कर सकता. चाहे घटनास्थल उस की सीमा में आता है या नहीं.

गोलू की निशानदेही पर पुलिस ने 3 नवंबर को अमर और राजेश उर्फ चेतराम को गिरफ्तार कर लिया. लेकिन चौथा अपराधी रमेश मेहरा पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ सका. बाद में पुलिस ने उसे भी गिरफ्तार कर लिया. लेकिन इस गिरफ्तारी पर भी पुलिस की हड़बड़ी और गैरजिम्मेदाराना बरताव उजागर हुआ.

छानबीन में यह बात सामने आई कि गिरफ्तार किए गए अभियुक्त बेहद शातिर और नशेड़ी हैं. वे हबीबगंज इलाके के आसपास की झुग्गियों में ही रहते थे. ये लोग पन्नियां बीनने का काम करते थे. लेकिन असल में इन का काम रेलवे का सामान लोहा आदि चोरी कर कबाडि़यों को बेचने का था.

जांच में पता चला कि आरोपियों में सब से खतरनाक गोलू उर्फ बिहारी है. गोलू ने अपनी नाबालिगी में ही हत्या की एक वारदात को अंजाम दिया था. उस ने एक पुलिसकर्मी के बेटे की हत्या की थी.

इतना ही नहीं एक औरत से उस के नाजायज संबंध हो गए थे, जिस से उस के एक बच्चा भी हुआ था. गोलूकितना बेरहम है, इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अपनी माशूका से हुए बेटे को वह उस के पैदा होने के 4 दिन बाद ही रेल की पटरी पर रख आया था, जिस से ट्रेन से कट कर उस की मौत हो गई थी.

दूसरा आरोपी अमर उस का साढ़ू है. अमर भी शातिर अपराधी है कुछ दिन पहले ही वह अरेरा कालोनी में रहने वाले एक रिटायर्ड पुलिस अफसर के यहां चोरी करने के आरोप में पकड़ा गया था. पूछताछ में आरोपियों ने अपने नशे में होने की बात स्वीकारी और यह भी बताया कि अनामिका आती दिखी तो उन्होंने लूटपाट के इरादे से पकड़ा था लेकिन फिर उन की नीयत बदल गई.

मुख्यमंत्री के निर्देश पर एसआईटी को दिया केस

अनामिका बलात्कार मामले का शोर देश भर में मचा. इस से पुलिस प्रशासन की जम कर थूथू हुई. शहर में लगभग 50 जगहों पर विभिन्न सामाजिक संगठनों और राजनैतिक दलों ने धरनेप्रदर्शन किए. विरोध बढ़ता देख मुख्यमंत्री ने जांच के लिए एसआईटी टीम गठित करने के निर्देश दे डाले. कांग्रेसी सांसदों ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ ने भी सरकार और लचर कानूनव्यवस्था की जम कर खिंचाई की. बचाव की मुद्रा में आए राज्य के गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह ने एक बचकाना बयान यह दे डाला कि क्या कांग्रेस शासित प्रदेशों में ऐसा नहीं होता.

भोपाल में जो हुआ, वह वाकई मानव कल्पना से परे था. जनाक्रोश और दबाव में पुलिस ने एक और भारी चूक यह कर डाली कि जल्दबाजी में नाम की गफलत में एक ड्राइवर राजेश राजपूत को गिरफ्तार कर डाला. बेगुनाह राजेश से जुर्म कबूलवाने के लिए उसे थाने में अमानवीय यातनाएं दी गईं.

बकौल राजेश, ‘मुझे गिरफ्तार कर गुनाह स्वीकारने के लिए जम कर लगातार मारा गया. प्लास्टिक के डंडों से बेहोश होने तक मारा जाता रहा. इस दौरान एक महिला पुलिस अधिकारी ने उस से कहा था कि तू गुनाह कबूल कर जेल चला जा और वहां बेफिक्री से कुछ दिन काट ले क्योंकि रिपोर्ट दर्ज कराने वाली मांबेटी फरजी हैं.’

राजेश के मुताबिक उस का मोबाइल फोन पुलिस ने छीन लिया. उसे पत्नी से बात भी नहीं करने दी गई थी. हकीकत में राजेश राजपूत हादसे के वक्त और उस दिन भोपाल में था ही नहीं. वह शिवसेना के एक नेता के साथ इंदौर गया था.

उस की पत्नी दुर्गा को जब किसी से पता चला कि उस के पति को पुलिस ने गैंगरेप मामले में गिरफ्तार कर रखा है तो वह घबरा गई. दुर्गा जब थाने पहुंची तो पति की एक झलक दिखा कर उसे दुत्कार कर भगा दिया गया. इस के बाद वह अपने पति की बेगुनाही के सबूत ले कर वह यहांवहां भटकती रही, तब कहीं जा कर उसे 3 नवंबर को छोड़ा गया.

थाने से छूटे राजेश ने बताया कि वह हबीबगंज स्टेशन के बाहर भाजपा कार्यालय के पीछे की बस्ती में रहता है. जिनजिन पुलिस अधिकारियों ने उस के साथ ज्यादती की है, वह उन के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराएगा.

अनामिका की हालत पुलिसिया पूछताछ और मैडिकल जांच में बेहद खराब हो चली थी लेकिन अच्छी बात यह थी कि इस बहादुर लड़की ने हिम्मत नहीं हारी. मीडिया के सपोर्ट और संगठनों के धरनेप्रदर्शनों ने उस के जख्मों पर मरहम लगाने का काम किया. अब वह आईपीएस अधिकारी बन कर सिस्टम को सुधारना चाहती है. उस के मातापिता भी उसे हिम्मत बंधाते रहे और हरदम उस के साथ रहे, जिस से भावनात्मक रूप से वह टूटने व बिखरने से बच गई.

बवाल शांत करने के उद्देश्य से सरकार ने भोपाल के आईजी योगेश चौधरी और रेलवे पुलिस की डीएसपी अनीता मालवीय को भी पुलिस हैडक्वार्टर भेज दिया. अनीता मालवीय इस बलात्कार कांड पर ठहाके लगाती नजर आई थीं, जिस पर उन की खूब हंसी उड़ी थी.

डाक्टरों ने डाक्टरी जांच में की बहुत बड़ी गलती हर कोई जानता है कि ऐसी सजाओं से लापरवाह और दोषी पुलिस कर्मचारियों का कुछ नहीं बिगड़ता. आज नहीं तो कल वे फिर मैदानी ड्यूटी पर होंगे और अपने खिलाफ लिए गए एक्शन का बदला और भी बेरहमी से अपराधियों के अलावा आम लोगों से लेंगे.

सरकारी अमले किस मुस्तैदी से काम करते हैं, इस की एक बानगी फिर सामने आई. अनामिका की मैडिकल जांच सुलतानिया जनाना अस्पताल में हुई थी. प्रारंभिक रिपोर्ट में एक जूनियर डाक्टर ने लिखा था कि संबंध ‘विद कंसर्न’ यानी सहमति से बने थे. इस रिपोर्ट में एक हास्यास्पद बात एक्यूज्ड की जगह विक्टिम शब्द का प्रयोग किया था. इस पर भी काफी छीछालेदर हुई. तब सीनियर डाक्टर्स ने गलती स्वीकारते हुए इसे लिपिकीय त्रुटि बताया, मानो कुछ हुआ ही न हो.

रेलवे की नई एसपी रुचिवर्धन मिश्रा ने इसे मानवीय त्रुटि बताया तो भोपाल के कमिश्नर अजातशत्रु श्रीवास्तव ने लापरवाही बरतने वाली डाक्टरों खुशबू गजभिए और संयोगिता को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया. ये दोनों डाक्टर इस के पहले ही अपनी गलती स्वीकार चुकी थीं. उन की यह कोई महानता नहीं थी बल्कि मजबूरी हो गई थी. बाद में रिपोर्ट सुधार ली गई.

अगर वक्त रहते इस गलती की तरफ ध्यान नहीं जाता तो इस का फायदा केस के आरोपियों को मिलता. वजह बलात्कार के मामलों में मैडिकल रिपोर्ट काफी अहम होती है. तरस और हैरानी की बात यह है कि जिस लड़की के साथ 6 दफा बलात्कार हुआ,उस की रिपोर्ट में सहमति से संबंध बनाना लिख दिया गया.

शायद इस की आदत डाक्टरों को पड़ गई है या फिर इस की कोई और वजह हो सकती है, जिस की जांच किया जाना जरूरी है. अनामिका बलात्कार कांड में एक भाजपा नेता का नाम भी संदिग्ध रूप से आया था, जो बारबार पुलिस थाने में आरोपियों के बचाव के लिए फोन कर रहा था.

पुलिस ने चारों दुर्दांत वहशी दरिंदों गोलू चिढार उर्फ बिहारी, अमर, राजेश उर्फ चेतराम और रमेश मेहरा से पूछताछ कर उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया.

अनामिका चाहती है कि इन दरिंदों को चौराहे पर फांसी दी जाए पर बदकिस्मती से देश का कानून ऐसा है, यहां पीडि़ता की भावनाओं की कोई कीमत नहीं होती. भोपाल बार एसोसिएशन ने यह एक अच्छा संकल्प लिया है कि कोई भी वकील इन अभियुक्तों की पैरवी नहीं करेगा.

गुस्साए आम लोग भी कानून में बदलाव चाहते हैं. उन का यह कहना है कि सुनवाई में देर होने से अपराधियों के हौसले बुलंद होते हैं और ऐसे अपराधों को शह मिलती है.

हालांकि खुद को आहत बता रहे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान शीघ्र नया विधेयक ला कर कानून बनाने की बात कर चुके हैं और मामले की सुनवाई फास्टट्रैक कोर्ट में कराने की बात कर चुके हैं, पर सच यह है कि अब कोई उन पर भरोसा नहीं करता. खासतौर से इस मामले में पुलिस की भूमिका को ले कर तो वे खुद कटघरे में हैं.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. अनामिका परिवर्तित नाम है. 

रिश्तों की आड़ में…सेक्स, सेक्स और बस सेक्स

हमारे समाज में ऐसी औरतें या लड़कियां कम नहीं हैं, जो अपने किसी न किसी हथकंडे से मर्दों को पा कर ही रहती हैं. ऐसी औरतें सोचती हैं कि अगर वे किसी को अपना जिस्म सौंप कर उन्हें मजे दे देंगी, तो इस से उन का बिगड़ेगा भी क्या? 24 साला सुचित्रा अंगरेजी में एमए और फिर बीऐड करने के बाद भी सरकारी टीचर नहीं बन पाई, तो उस ने तमाम प्राइवेट स्कूलों में टीचर की नौकरी के लिए आवेदन देना शुरू कर दिया. सुचित्रा पिछड़ी जाति की थी, इसलिए उसे बहुत सी जगह रखा ही नहीं गया. जब उसे अपने शहर के स्कूलों में नौकरी नहीं मिल पाई, तो उस ने गांवों के निजी स्कूलों में आवेदन भेजना शुरू कर दिया था. वहां ऊंची जाति की औरतें नौकरी के लिए नहीं जाती थीं.

जब अपने शहर से डेढ़ सौ किलामीटर दूर एक कसबेनुमा गांव के निजी स्कूल में नौकरी मिली, तो सुचित्रा ने उसे स्वीकर कर लिया था. स्कूल के मैनेजर ने सुचित्रा के रहने का इंतजाम अपने गांव के सेना एक रिटायर्ड अफसर लाखन सिंह के मकान में कर दिया था.

50 साला मकान मालिक लाखन सिंह अपने मकान में अकेले ही रहते थे. उन का बेटा अपने परिवार के साथ किसी बड़े शहर में रहता था. लाखन सिंह ने अपने मकान के चौक में पानी के लिए बोरिंग लगा रखा था. जब वे नहाते थे, तब उन के गठीले बदन को देख कर सुचित्रा का दिल उन्हें पाने को मचल उठता था. एक रात जब लाखन सिंह शौच के लिए जाने लगे, तो उन्होंने बैड पर सोती हुई सुचित्रा को झीने कपड़ों में देखा.

उन का दिल उसे पाने के लिए मचलने लगा. 10 साल पहले उन की बीवी की मौत हो चुकी थी. उस के बाद उन्होंने किसी औरत से जिस्मानी संबंध नहीं बनाए थे.

उस समय सुचित्रा भी जागी हुई थी, पर वे सोती समझ बैड के पास खड़े हो कर उस के शरीर को गौर से देखने लगे. अचानक सुचित्रा ने उन की ओर मुसकराते हुए एक मादक अंगड़ाई ली और अपने बैड पर बिठा लिया.

सुचित्रा उन से बोली, ‘‘आप भी प्यासे हैं और मैं भी प्यासी हूं, इसलिए अब हम दोनों अपनीअपनी प्यास बुझा लेते हैं. कोई हम पर शक भी नहीं कर सकता है.’’

यह कहते हुए जब सुचित्रा ने उन्हें अपने ऊपर गिराया, तो वे भी उस समय अपना आपा खो बैठे. वे उस पर बुरी तरह झपट पड़े.

प्यार का खेल खेलने के बाद जब वे दोनों एकदूसरे से अलग हुए, तो सुचित्रा उन से बोली, ‘‘अच्छी सेहत के लिए सैक्स करना जरूरी होता है, क्योंकि इस से हमारे शरीर की जकड़ी हुई नसें खुल जाती हैं. आप में तो इतनी ताकत है कि मुझे वाकई मजा आ गया.’’

कुछ दिनों के बाद सुचित्रा की एक 22 साला सहेली प्रमिला उस के पास रहने आई. उसे पता चल गया कि उस की सहेली सुचित्रा और अंकल के बीच क्या संबंध हैं. वह भी उन से मजे लेने के लिए मचल उठी और दूसरे दिन खुद ही उन के पास चली गई.

प्रमिला के मादक अंगों को देख कर वे हैरान रह गए थे. उस के बाद वे दोनों सहेलियां उन से खूब मजे लेने लगी थीं. लाखन सिंह ने एक जिगरी दोस्त अमर सिंह को भी अपने पास बुला लिया और उसे भी मजे दिलवाना शुरू कर दिया था. मजे लेने के बाद वे दोनों ही उन्हें खूब पैसे देने लगे थे.

एक बार जब सुचित्रा के मांबाप उस से मिलने गांव आए, तब वे यह जान कर खुश हुए थे कि लाखन सिंह ने उन की बेटी को अपनी धर्म बेटी बना लिया है. लेकिन उन्हें इस बात की भनक तक नहीं थी कि इस रिश्ते की आड़ में उन की बेटी सुचित्रा लाखन सिंह के साथ सैक्स संबंध बना कर मजे ले रही है.

सुचित्रा ने जब अपने मांबाप को लाखन सिंह के दिए हुए रुपए थमाए, तो वे उन्हें किसी देवता से कम नहीं समझ रहे थे. यही हाल सुचित्रा की सहेली प्रमिला के मांबाप का भी था. लाखन सिंह ने न सिर्फ उसे जिस्मानी मजे दिए थे, बल्कि एक लाख रुपए देने के साथसाथ अपने गांव के स्कूल में नौकरी भी लगवा दी थी.

ऐसी ही एक और दास्तान शहर में रहने वाले सुनील और उस के मकान में किराए पर रहने वाले मोहन की 20 साला खूबसूरत बीवी हर्षा की थी. शादी के बाद जब हर्षा पहली बार अपने पति मोहन के साथ शहर में आई, तो उसे देख कर उस का मकान मालिक सुनील ऐसा लट्टू हुआ कि वह उसे पाने के लिए बेचैन हो गया.

इधर, राधिका अपने पति सुनील से बोर हो चुकी थी. उस का दिल मोहन पर आ गया था. एक दिन वह मोहन के कमरे में जा कर बोली, ‘‘मैं आप की हर्षा को अपनी छोटी बहन बनाना चाहती हूं और आप को अपना जीजा.’’

यह सुन कर मोहन उस से बोला, ‘‘बना लो. इसी बहाने मुझे भी अपनी साली से हंसीठिठोली करने का मौका मिलेगा और हर्षा भी साली बन कर सुनीलजी से हंसीठिठोली कर लेगी.’’ मोहन ने अपनी नईनई बनने वाली 23 साला खूबसूरत साली राधिका को आंख मारी, तो वह खुशी से मुसकरा उठी.

राधिका अपने पति सुनील से बोली, ‘‘जब हर्षा को मैं ने अपनी छोटी बहन बना कर आप की साली बना दिया है, तो आप इसे अपने साथ ले जा कर इस की पसंद की खरीदारी कराओ और इसे कुछ खिलापिला कर शहर में घुमाफिरा कर लाओ. इस पर कुछ पैसे खर्च करो.’’

हर्षा से मजे पा कर सुनील ने उसे खूब खिलायापिलाया और उस की पसंद की खरीदारी कराई. जब वे दोनों घर पहुंचे, तब तक मोहन दफ्तर जा चुका था.

राधिका ने हर्षा से पूछा, ‘‘तुम्हें जीजाजी ने परेशान तो नहीं किया?’’

‘‘परेशान तो काफी किया था, पर मैं उस परेशानी को भूल गई हूं. रात को इन से फिर मिलूंगी.’’

इन झूठे रिश्तों की आड़ में सैक्स संबंध बनाने की दास्तानें बहुत हैं. आजकल सैक्स संबंध बनाने के लिए लोग किसी से भी अपने रिश्ते बना लेते हैं. दिक्कत तब होती है, जब कई मर्दों से संबंध रखने वाली औरत पेट से हो जाती है, तब सारे मर्द उस का साथ छोड़ कर भाग जाते हैं.

पटरियों पर बलात्कार : समाज में होता अपराध – भाग 2

राक्षसों की दयानतदारी भी कितनी भारी पड़ती है, इस का अहसास अनामिका को कुछ देर बाद हुआ. लगभग एक घंटे तक ज्यादती करने के बाद अमर और गोलू ने तय किया कि अनामिका को यूं निर्वस्त्र छोड़ा जाना ठीक नहीं, इसलिए उस के लिए कपड़ों का इंतजाम किया जाए. नशे में डूबे इन हैवानों की यह दया अनामिका पर और भारी पड़ी.

गोलू ने अमर को अनामिका की निगरानी करने के लिए कहा और खुद अनामिका के लिए कपड़े लेने गोविंदपुरा की झुग्गियों की तरफ चला गया. वहां उस के 2 दोस्त राजेश और रमेश रहते थे. गोलू ने उन से एक जोड़ी लेडीज कपड़े मांगे तो इन दोनों ने इस की वजह पूछी. इस पर गोलू ने सारा वाकया उन्हें बता दिया.

गोलू की बात सुन कर राजेश और रमेश की हैवानियत भी जाग उठी. वे दोनों कपड़े ले कर गोलू के साथ उसी पुलिया के नीचे पहुंच गए, जहां अनामिका निर्वस्त्र पड़ी थी.

अनामिका अब लाश सरीखी बन चुकी थी. उन चारों में से कोई जा कर स्टेशन के बाहर से चाय और गांजा ले आया. इन्होंने छक कर चाय गांजे की पार्टी की और बेहोशी और होश के बीच झूल रही अनामिका के साथ अमर और गोलू ने एक बार फिर ज्यादती की. फूल सी अनामिका इस ज्यादती को झेल नहीं पाई और बेहोश हो गई.

जब वासना का भूत उतरा तो इन चारों ने अनामिका को जान से मार डालने का मशविरा किया, जिसे इन में से ही किसी ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि रहने दो, लड़की किसी को कुछ नहीं बता पाएगी, क्योंकि यह तो हमें जानती तक नहीं है. बेहोश पड़ी अनामिका इन चारों की नजर में मर चुकी थी, इसलिए चारों अपने साथ लाए कपड़े उस के पास फेंक कर फरार हो गए और अनामिका से लूटे सामान का आपस में बंटवारा कर लिया.

थोड़ी देर बाद अनामिका को होश आया तो वह कुछ देर इन के होने न होने की टोह लेती रही. उसे जब इस बात की तसल्ली हो गई कि बदमाश वहां नहीं हैं तो उस ने जैसेतैसे उन के लाए कपडे़ पहने और बड़ी मुश्किल से महज 100 फीट दूर स्थित जीआरपी थाने पहुंची.

पुलिस ने नहीं किया सहयोग

थाने का स्टाफ उसे पहचानता था. मौजूदा पुलिसकर्मियों से उस ने कहा कि पापा से बात करा दो तो एक ने उस के पिता को नंबर लगा कर फोन उसे दे दिया. फोन पर सारी बात तो उस ने पिता को नहीं बताई, सिर्फ इतना कहा कि आप तुरंत यहां थाने आ जाइए.

बेटी की आवाज से ही पिता समझ गए कि कुछ गड़बड़ है इसलिए 15 मिनट में ही वे थाने पहुंच गए. पिता को देख कर अनामिका कुछ देर पहले की घटना और तकलीफ भूल उन से ऐसे चिपट गई मानो अब कोई उस का कुछ नहीं बिगाड़ सकता.

बेटी की नाजुक हालत देख पिता उसे घर ले आए और फोन पर पत्नी को भी तुरंत भोपाल पहुंचने को कहा तो वह भी भोपाल के लिए रवाना हो गईं. देर रात मां वहां पहुंची तो कुछकुछ सामान्य हो चली अनामिका ने उन्हें अपने साथ हुई ज्यादती की बात बताई. जाहिर है, सुन कर मांबाप का कलेजा दहल उठा.

बेटी की एकएक बात से उन्हें लग रहा था कि जैसे कोई धारदार चाकू से उन के कलेजे को टुकड़ेटुकडे़ कर निकाल रहा है. चूंकि रात बहुत हो गई थी और भोपाल में मध्य प्रदेश स्थापना दिवस की तैयारियां चल रही थीं, इसलिए उन्होंने तय किया कि सुबह होते ही सब से पहला काम पुलिस में रिपोर्ट लिखाने का करेंगे, जिस से अपराधी पकड़े जाएं.

इधर से उधर टरकाती रही पुलिस

अनामिका के मातापिता अगली सुबह ही कोई साढ़े 10 बजे एमपी नगर थाने पहुंचे. खुद को बेइज्जत महसूस कर रही अनामिका को उम्मीद थी कि थाने पहुंच कर फटाफट आरोपियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज हो जाएगी. एमपी नगर थाने में इन तीनों ने मौजूद सबइंसपेक्टर आर.एन. टेकाम को आपबीती सुनाई.

तकरीबन आधे घंटे तक इस सबइंसपेक्टर ने अनामिका से उस के साथ हुई ज्यादती के बारे में पूछताछ की लेकिन रिपोर्ट लिखने के बजाय वह इन तीनों को घटनास्थल पर ले गया. घटनास्थल का मुआयना करने के बाद टेकाम ने उन पर यह कहते हुए गाज गिरा दी कि यह जगह तो हबीबगंज थाने में आती है, इसलिए आप वहां जा कर रिपोर्ट लिखाइए.

यह दरअसल में एक मानसिक और प्रशासनिक बलात्कार की शुरुआत थी. लेकिन दिलचस्प इत्तफाक की बात यह थी कि ये तीनों जब एमपी नगर से हबीबगंज थाने की तरफ जा रहे थे, तब हबीबगंज रेलवे स्टेशन के बाहर सामने की तरफ से गुजरते अनामिका की नजर गोलू पर पड़ गई. रोमांचित हो कर अनामिका ने पिता को बताया कि जिन 4 लोगों ने बीती रात उस के साथ दुष्कर्म किया था, उन में से एक यह सामने खड़ा है. इतना सुनते ही उस के मातापिता ने वक्त न गंवाते हुए गोलू को धर दबोचा.

गोलू का इतनी आसानी और बगैर स्थानीय पुलिस की मदद से पकड़ा जाना एक अप्रत्याशित बात थी. अब उन्हें उम्मीद हो गई कि अब तो बाकी इस के तीनों साथी भी जल्द पकडे़ जाएंगे. गोलू को दबोच कर ये तीनों हबीबगंज थाने पहुंचे. हबीबगंज थाने के टीआई रवींद्र यादव को एक बार फिर अनामिका को पूरा हादसा बताना पड़ा.

रवींद्र यादव ने गोलू से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने अपने साथियों के नामपते भी बता दिए. उन्होंने मामले की गंभीरता को समझते हुए आला अफसरों को भी वारदात के बारे में बता दिया. टीआई उन तीनों को ले कर फिर घटनास्थल पहुंचे. हबीबगंज थाने में रिपोर्ट दर्ज नहीं हुई पर अच्छी बात यह थी कि मुजरिमों के बारे में काफी कुछ पता चल गया था. आला अफसरों के सामने भी अनामिका को दुखद आपबीती बारबार दोहरानी पड़ी.

रवींद्र यादव ने हबीबगंज जीआरपी को भी फोन किया था, लेकिन वहां से कोई पुलिस वाला नहीं आया. सूरज सिर पर था लेकिन अनामिका और उस के मातापिता की उम्मीदों का सूरज पुलिस की काररवाई देख ढलने लगा था. बारबार फोन करने पर जीआरपी का एक एएसआई घटनास्थल पर पहुंचा लेकिन उस का आना भी एक रस्मअदाई साबित हुआ. जैसे वह आया था, सब कुछ सुन कर वैसे ही वापस भी लौट गया.

इस के कुछ देर बाद हबीबगंज जीआरपी के टीआई मोहित सक्सेना घटनास्थल पर पहुंचे. उन के और रवींद्र यादव के बीच घंटे भर बहस इसी बात पर होती रही कि घटनास्थल किस थाना क्षेत्र में आता है. इस दौरान अनामिका और उस के मांबाप भूखेप्यासे उन की बहस को सुनते रहे कि थाना क्षेत्र तय हो तो एफआईआर दर्ज हो और काररवाई आगे बढ़े. आखिरी फैसला यह हुआ कि अनामिका गैंगरेप का मामला हबीबगंज जीआरपी थाने में दर्ज होगा.

अब तक रात के 8 बज चुके थे. अनामिका के पिता को बेटी की चिंता सताए जा रही थी, जो थकान के चलते सामान्य ढंग से बातचीत भी नहीं कर पा रही थी. तमाम पुलिस वालों के सामने अनामिका को अपने साथ घटी घटना दोहरानी पड़ी. यह सब बताबता कर वह इस तरह अपमानित हो रही थी, जैसे उस ने अपराध खुद किया हो.

इंसाफ चाहिए इस निर्भया को – भाग 2

सालों पहले मंजू खुद भी देहधंधा करती थी, वह थी भी काफी आकर्षक. लेकिन उस के चहेतों में निर्भया के दीवानों जैसी दीवानगी नहीं थी. विचारों के भंवर में फंसी मंजू अपने 30-35 साल पुराने अतीत में खो गई थी.

तहसील टिब्बी के एक गांव में जन्मी मंजू के युवा होते ही घर वालों ने सूरतगढ़ निवासी इंद्रचंद अग्रवाल से उस की शादी कर दी थी. स्वच्छंद और आजाद खयालों वाली मंजू को ससुराल की परदा प्रथा और रोकटोक कतई पसंद नहीं आई. 7 सालों में मंजू ने 3 बेटों को जन्म दिया.

बच्चे पैदा होने के बाद मंजू की सुंदरता कम होने के बजाए और बढ़ गई थी. आखिर एक दिन ससुराल की बंदिशों से ऊब कर मंजू ने अपने दांपत्य को अलविदा कह दिया. तीनों बेटे कभी मां के पास तो कभी दादादादी के पास रह कर दिन काट रहे थे. मंजू की ज्यादातर रातें अपने आशिकों के साथ गुजर रही थीं.

मंजू का एक आशिक था बबलू. उस की दबंगई से प्रभावित हो कर मंजू उस के साथ लिवइन रिलेशन में हनुमानगढ़ के हाऊसिंग बोर्ड में रहने लगी थी. बबलू मारपीट, कब्जे करना, देहव्यापार कराना, लूटपाट और हत्या के प्रयास जैसे अपराध कर के डौन बन गया था.

मंजू भी हाऊसिंग बोर्ड इलाके में मजबूर युवतियों  से धंधा करवाने लगी तो पड़ोसियों ने उस का पुरजोर विरोध किया. इस के बाद मंजू सुरेशिया में शिफ्ट हो गई.

कहा जाता है कि सन 2006 में नारी सुख का एक तलबगार मंजू के घर पहुंचा. मंजू और उस के गुंडों ने उस दिन उस ग्राहक के लगभग 30 हजार रुपए छीन लिए थे. उस आदमी ने अपने खास दोस्त को आपबीती बताई तो वह एक नामी बदमाश को ले कर मंजू के घर  पहुंच गया.

बदमाश ने 2 दिनों में पूरी रकम लौटाने को कहा और न लौटाने पर परिणाम भुगतने की धमकी दी. अगले दिन मंजू अपनी बहू को ले कर हनुमानगढ़ के तत्कालीन एसपी के पास पहुंची और सोनू की ओर से उस आदमी और उस के साथी बदमाश के खिलाफ दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज कराने का आदेश करा दिया.

लेकिन दोनों लड़के इलाके के विशिष्ट लोगों को साथ जा कर सारी सच्चाई एसपी को बताई तो मंजू का मुकदमा दर्ज नहीं हुआ.

मंजू के 2 बेटे युवा होने से पहले ही चल बसे थे. बड़े बेटे सुरेश की शादी सोनू से हुई थी. मंजू ने अपनी बहू सोनू को भी धंधे में उतार दिया था. सन 2001 में बबलू डौन पुलिस मुठभेड़ में मारा गया. उस के बाद मंजू ने उस की जगह ले ली. जल्दी ही वह लेडीडौन के रूप में कुख्यात हो गई.

कारण कोई भी रहा हो, मंजू ने पुलिस वालों, छुटभैये राजनेताओं से संबंध बना लिए थे. उस बीच मंजू के खिलाफ पीटा एक्ट, ब्लैकमेलिंग, देहव्यापार, कब्जा करने आदि के मुकदमे दर्ज हुए. पर उसे सजा एक में भी नहीं हुई.

उन दिनों मंजू के सैक्स रैकेट की तूती बोलती थी. उस के यहां राजस्थान की ही नहीं, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, पंजाब, बिहार आदि से दलालों के माध्यम से देहव्यापार के लिए लड़कियां मंगाई जाती थीं.

‘‘मैडम, कमरे में कोई ग्राहक आप का इंतजार कर रहा है.’’ गुड्डी के कहने पर मंजू की तंद्रा टूटी. मंजू कमरे में बैठे ग्राहक के पास पहुंची. चायपानी के बाद ग्राहक ने कहा, ‘‘मैडम, आप के यहां दिल्ली से कोई माल आया है, उस के बड़े चर्चे सुने हैं. मैं उस के साथ कुछ समय बिताना चाहता हूं.’’

‘‘हां, हां क्यों नहीं, उस का रेट 10 हजार रुपए हैं.’’ मंजू ने कहा.

‘‘मैं उस के साथ पूरी रात बिताऊं तो…?’’ ग्राहक ने कहा.

‘‘जरूर बिताइए, पर रात के डबल पैसे 20 हजार रुपए लगेंगे.’’ मंजू ने कहा.

ग्राहक ने 15 हजार रुपए मंजू की हथेली पर रख दिए और निर्भया के साथ विशिष्ट कमरे में घुस गया. निर्भया के लिए वह रात बहुत ही पीड़ादायक साबित हुई. उस ग्राहक ने एक ही रात में निर्भया को जैसे रौंद डाला. हवस में पागल उस आदमी ने निर्भया को जगहजगह काट खाया था. उस के साथ कुकर्म भी किया था. उस की हैवानियत से निर्भया के संवेदनशील अंगों में रक्तस्राव शुरू हो गया था.

वह गिड़गिड़ाती रही, पर शराब के नशे में मस्त ग्राहक को उस पर दया नहीं आई. निर्भया अस्तव्यस्त हालत में बैड पर पसरी पड़ी रही. उस की पीड़ा से मंजू को कोई सरोकार नहीं था. अगली रात को उस का सौदा एक ग्राहक से पुन: कर दिया गया. वह ग्राहक भी शराब पी कर निर्भया के कमरे में पहुंचा तो उस से कपड़े उतारने को कहा.

निर्भया ने कपड़े उतारे तो उस की हालत देख कर वह पीछे हट गया. बाहर आ कर उस ने मंजू से कहा, ‘‘तू ने मेरे साथ धोखा किया है. मेरे पैसे लौटा दे अन्यथा काट कर फेंक दूंगा.’’

हकीकत जान कर मंजू के बेटे मुकेश ने कहा, ‘‘मम्मी, इन के पैसे लौटा दो.’’

‘‘अरे भई इतना गुस्सा क्यों कर रहे हो? अगर वह पसंद नहीं है तो सोनू के साथ टाइम पास कर लो.’’ मंजू ने बहू की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘और अगर पैसा ही चाहिए तो सुबह आ कर ले लेना.’’

शराबी ग्राहक बड़बड़ाता हुआ चला गया. यह 27 मार्च, 2017 की बात है.

अगले दिन रात वाला ग्राहक किसी भी समय पैसे लेने आ सकता था. मंजू नहीं चाहती थी कि घर में बखेड़ा हो. इसलिए उसे लगा कि निर्भया को कहीं दूसरी जगह पहुंचा देना चाहिए. उस के पड़ोस में सरदारी बुआ (बदला हुआ नाम) रहती थीं. उसे उन का घर सुरक्षित लगा, इसलिए वह निर्भया को साथ ले कर उन के घर जा पहुंची.

सरदारी बुआ से उस ने कहा, ‘‘बुआ, यह मेरी भांजी है. मेरी कोलकाता वाली बहन की बेटी. आज इस की मम्मी आ रही है. मैं उन्हें लेने रेलवे स्टेशन जा रही हूं. घर में अकेली बोर हो जाएगी, इसलिए आप मेरे लौटने तक इसे अपने यहां रख लो.’’

इतना कह कर मंजू चली गई. उस के जाने के बाद निर्भया लड़खड़ाते हुए सरदारी बुआ के पास पहुंची तो उसे इस तरह से चलते देख सरदारी बुआ ने उस के सिर पर हाथ रख कर पूछा, ‘‘क्या बात है बिटिया, तेरी तबीयत ठीक नहीं क्या? तेरे पैरों में चोट लगी है क्या?’’

ममत्व भरे स्पर्श से निर्भया बिलख पड़ी. सरदारी बुआ के सीने पर सिर रख कर उस ने कहा, ‘‘आंटी, जख्म पैरों में ही नहीं, पूरे बदन पर हैं. हृदय घावों से छलनी हो चुका है. मंजू मेरी मौसी नहीं, इस ने मुझे खरीदा है. आंटी मुझे बचा लो.’’

सरदारी बुआ ने दुनिया देखी थी. निर्भया ने जितना कहा था, उतने में ही वह पूरा माजरा समझ गई. उस बच्ची की पीड़ा को उन्होंने गंभीरता से लिया. उन का मन निर्भया को बचाने के लिए तड़प उठा. उन्होंने तुरंत बाल संरक्षण कमेटी के जिलाध्यक्ष एडवोकेट जोट्टा सिंह को फोन कर के अपने घर बुला लिया. नाबालिग बच्ची से जुड़ा मामला था, इसलिए वह अकेले नहीं आए थे, उन के साथ उन के साथी भी आए थे.

 

बुढ़ापे में दुल्हन कृपया रुकिए

जिस तरह सड़क पर थोड़ी सी चूक  दुर्घटना आमंत्रित करती है. वैसे ही जिंदगी की अंतिम सीढी में अगर कोई बुजुर्ग धोखे और चालबाजी का शिकार हो जाए तो उसकी जिंदगी नरक बनने से भला कौन बचा सकता है.  दरअसल,छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में रिटायर अफसर को बुढ़ापे में शादी महंगी पड़ गयी.लूटेरी दुल्हन ने अफसर से 40 लाख रुपये तो ठगे ही “कार” भी लेकर फरार हो गयी.

अब इस मामले मे, पुलिस शिकायत के बाद जांच कर रही है.  छत्तीसगढ़ के खाद्य विभाग में  अधिकारी रहे एमएल पस्टारिया 77 वर्ष  के हो चुके  हैं, और अपनी अकेली की जिंदगी से अजीज आकर कुछ माह पूर्व  उन्होंने एक  अपरिचित महिला से ब्याह  रचाया. और फिर धीरे-धीरे हो गए ठगी के शिकार । महिला ने उक्त शख्स को धीरे धीरे आईने में उतारा और उसे रुपए पैसों के मामले में नित्य नए  किस्से गढ़ कर रुपए ऐंठती चली गई. श्रीमान बुरी तरह लूट गए तो एक दिन महिला रफूचक्कर हो गई. अब स्थिति यह है कि माया मिली ना राम! ऐसे घटनाक्रम से सबक लेकर कुछ तथ्यों को जाने समझे. ताकि हमारे आसपास, समाज में ऐसी घटनाएं ना हो और लोग सुरक्षित रहें.आबाद रहें.

मेट्रोमोनियल से बचकर

दरअसल ,कुछ समय  पूर्व  उनकी पत्नी का निधन हो गयी था तत्पश्चात बिना सोचे समझे  उन्होंने ‘मैट्रोमानियल’ साइट पर अपना सीवी डाला दिया  था.सीवी के बाद एक महिला ने उनसे संपर्क किया और शादी के लिए हामी भर दी. महिला ने खुद का नाम आशा बताया था. दिसंबर 2016 में  “मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री विधवा एवं परित्याक्ता कन्यादान योजना” का लाभ  उठा कर  दोनों ने विवाह किया . दोनों छत्तीसगढ़ के  बिलासपुर के बंधवापारा में आ कर रहने लगे . इस  दरम्यान  आशादेवी  बीच-बीच में किसी ना किसी बहाने से मायके के नाम पर चली जाती थी. महिला ने श्रीमान  को भरमा कर इस दौरान घूमने फिरने  के नाम पर एक  बेहतरीन कार भी लोन से खरीदवा ली.

महिला के साथ आशीष व राहुल नाम के युवक भी आते थे, जिसे महिला अपना रिश्तेदार बताया करती थी. महिला ने रिटायर अफसर को झांसा दिया कि उसके नाम पर काफी जमीन है, जो बंधक पड़ी हुई हैं. वो अपने रिश्तेदार को जमीन बेचना चाहती है, जिसका सौदा भी वो करोड़ों में कर चुकी है. महिला ने कहा कि बेचने के लिए पहले उसे अपनी जमीन छुडानी पड़ेगी. इस बहाने से एमएल पस्टरिया वह लाखों  रुपये  लेती चली गई. करीब 40 लाख रुपये वो जब ले चुकी श्रीमान को शक होने लगा. रिटायर अधिकारी  ने महिला की बात पर विश्वास पर जेवर बेचकर और उधार लेकर पैसे तक  लिये. एक दिन जैसा की होना था महिला ने जब देखा कि अब श्रीमान कंगाल हो चुके हैं तो शायद दूसरा शिकार पकड़ने के लिए उड़ गई. इसमें बुजुर्ग अधिकारी ने लिखवाया है कि चार महीने पहले वो जमीन का सौदा कराने के नाम पर गयी और फिर नहीं लौटी यही नहीं महिला जाते-जाते कार भी ले गयी.बहरहाल, बुजुर्गवार थोड़ी समझदारी दिखाते और मेट्रोमोनियल में विज्ञापन देने की बजाय अपने आसपास किसी चिर परिचित महिला से ब्याह रचाते तो उन्हें न ठगी का शिकार होना पड़ता, न हीं धोखा खाकर पुलिस के चक्कर लगाने पड़ते.

वासना की भेंट चढ़ी नंदिनी

1 मार्च, 2017 की सुबह सरिता की आंख खुली तो बेटी को बिस्तर पर न पा कर वह परेशान  हो उठी. उस की समझ में नहीं आया कि 6 साल की मासूम बच्ची सुबहसुबह उठ कर कहां चली गई. उस ने कई आवाजें लगाईं, जब वह नहीं बोली तो उस ने सोचा कि कहीं वह चाची के पास तो नहीं चली गई. वह देवरानी रीना के घर गई, लेकिन नंदिनी वहां भी नहीं थी.

नंदिनी के इस तरह गायब होने से रीना भी परेशान हो उठी. वह जिस हालत में थी, उसी हालत में सरिता के साथ नंदिनी की तलाश में निकल पड़ी. सरिता और उस की देवरानी रीना अकेली ही थीं. दोनों के ही पति विदेश में रहते थे. कोई मर्द न होने की वजह से नंदिनी को ले कर दोनों कुछ ज्यादा ही परेशान थीं.

धीरेधीरे नंदिनी के गायब होने की बात गांव वालों को पता चली तो सरिता से सहानुभूति रखने वाले उस के साथ नंदिनी की तलाश में लग गए. बेटी के न मिलने से सरिता काफी परेशान थी.

बेटी को तलाशती हुई वह अकेली ही गांव से करीब 3 किलोमीटर दूर कुआवल नदी पर बने पुल पर पहुंची तो वहां से नदी के किनारे एक जगह पर भीड़ लगी दिखाई दी. उत्सुकतावश सरिता वहां पहुंची तो नदी के रेत पर उसे एक बच्ची का अर्द्धनग्न शव दिखाई दिया. सरिता का कलेजा धड़क उठा, क्योंकि वह लाश उस की बेटी नंदिनी की थी.

बेटी की लाश देख कर वह चीखचीख कर रोने लगी. उस के इस तरह रोने से वहां इकट्ठा लोगों को समझते देर नहीं लगी कि लाश इस की बेटी की है. थोड़ी ही देर में यह खबर जंगल की आग की तरह हरपुरबुदहट गांव पहुंची तो गांव वाले घटनास्थल पर आ पहुंचे.

किसी ने इस बात की सूचना थाना हरपुरबुदहट पुलिस को दे दी थी. थानाप्रभारी बृजेश कुमार यादव पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए. उन्होंने इस घटना की सूचना एसएसपी रामलाल वर्मा, एसपी (ग्रामीण) ज्ञानप्रकाश चतुर्वेदी और सीओ को भी दे दी थी. कुछ देर में ये पुलिस अधिकारी भी आ गए थे.

घटनास्थल और लाश की बारीकी से जांच की गई. लाश और घटनास्थल की स्थिति देख कर यही लग रहा था कि हत्या कहीं और कर के लाश वहां ला कर फेंकी गई थी. पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए बाबा राघवदास मैडिकल कालेज भिजवा दिया.

बृजेश कुमार यादव ने जांच शुरू की तो पता चला कि जमीन को ले कर गांव के ही चांदबली और उन के बेटे दुर्वासा से सरिता की रंजिश थी. सरिता ने उन पर आशंका भी व्यक्त की थी. सूचना पा कर विदेश में रह रहा सरिता का पति दिनेश कुमार भी आ गया था. उस ने बेटी की हत्या के लिए चांदबली और दुर्वासा को जिम्मेदार ठहराते हुए उन के खिलाफ तहरीर भी दे दी थी. दिनेश की तहरीर पर मुकदमा दर्ज कर पुलिस ने बापबेटे को गिरफ्तार कर लिया था.

पुलिस ने चांदबली और उस के बेटे दुर्वासा से नंदिनी की हत्या के बारे में सख्ती से पूछताछ की, लेकिन वे खुद को निर्दोष बताते रहे. जब नंदिनी की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो सारी कहानी ही बदल गई. जिस चांदबली और उस के बेटे को पुलिस जमीन के विवाद की वजह से नंदिनी की हत्या का दोषी मान रही थी, वह गलत निकला. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, हत्या से पहले नंदिनी के साथ दुष्कर्म भी किया गया था.

चांदबली और दुर्वासा ऐसा नहीं कर सकते थे. यह पुलिस ही नहीं, नंदिनी के घर वाले भी मान रहे थे. जब बापबेटे इस मामले में निर्दोष पाए गए तो पुलिस ने उन्हें हिदायत दे कर छोड़ दिया और इस मामले में नए सिरे से जांच में जुट गई.

बृजेश कुमार यादव ने घटना के खुलासे के लिए मुखबिरों की मदद ली. घटना के 12 दिनों बाद 12 मार्च, 2017 को एक मुखबिर ने पुलिस को सूचना दी कि गांव का ही 22 साल का गोरखप्रसाद इधर कुछ दिनों से सैक्स क्षमता बढ़ाने वाली दवाएं खा रहा है. डेढ़ साल पहले उस की पत्नी उसे छोड़ कर मायके चली गई थी. मुखबिर की इस बात से पुलिस को लगा कि हो न हो, सैक्स क्षमता बढ़ाने वाली दवा खाने वाले गोरखप्रसाद ने ही मासूम नंदिनी के साथ दुष्कर्म किया हो और पहचाने जाने के डर से उस की हत्या कर दी हो.

बृजेश कुमार यादव ने शक के आधार पर गोरखप्रसाद को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. थाने में जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने मासूम नंदिनी के साथ दुष्कर्म कर हत्या की बात स्वीकार कर ली. उस ने वजह बताई कि नंदिनी की चाची रीना ने उसे धोखा दिया था, इसलिए उस ने बदला लेने के लिए यह सब किया.

‘‘नंदिनी की चाची ने तुम्हारे साथ कैसा धोखा किया?’’ बृजेश कुमार यादव ने पूछा.

‘‘सर, वह मुझ से प्यार करती थी लेकिन इधर वह मुझ से कटीकटी रहने लगी, जबकि उसी की वजह से मेरी पत्नी छोड़ कर चली गई. अब वह किसी और से प्यार करने लगी थी.’’ गोरखप्रसाद ने कहा.

गोरखप्रसाद द्वारा अपराध स्वीकार करने के बाद पुलिस उसे उस जगह पर ले गई, जहां उस ने यह सब किया था. घटनास्थल से पुलिस ने मृतका नंदिनी के कपड़े बरामद किए. इस के बाद रोजनामचे से चांदबली और दुर्वासा का नाम हटा कर गोरखप्रसाद को आरोपी बना कर उसी दिन अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. गोरखप्रसाद ने पुलिस को नंदिनी की चाची रीना से प्रेम करने से ले कर उस की हत्या तक की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

22 साल का गोरखप्रसाद जिला गोरखपुर के थाना हरपुरबुदहट का रहने वाला था. 2 भाईबहनों में वह सब से बड़ा था. उस के पिता खेती करते थे. इंटर तक पढ़ा गोरखप्रसाद छोटामोटा काम करता था. उस के घर से थोड़ी दूरी पर रीना का घर था. पड़ोसी होने के नाते रीना के पति विनोद से उस की खूब पटती थी. रिश्ते में वह गोरखप्रसाद का चाचा लगता था.

विनोद बड़े भाई दिनेश के साथ विदेश कमाने चला गया तो घर में रीना अकेली रह गई. जेठानी सरिता भी बेटी के साथ रहती थी. रीना का कोई बच्चा नहीं था. दोनों भाइयों के बीच नंदिनी ही एकलौती बेटी थी, इसलिए वह पूरे परिवार की दुलारी थी. विनोद के विदेश चले जाने के बाद भी गोरखप्रसाद उस के घर आताजाता रहा. इसी आनेजाने में उस की नजर रीना पर जम गई. अविवाहित गोरखप्रसाद को लगा कि रीना का पति बाहर रहता है, अगर कोशिश की जाए तो वह उस के वश में आ सकती है.

बस फिर क्या था, वह रीना को चाहतभरी नजरों से ताकने लगा. जल्दी ही रीना ने उस के मन की बात को ताड़ भी लिया. रीना भी पुरुष सुख से वंचित थी, इसलिए उसे गोरखप्रसाद का इस तरह देखना अच्छा लगा. गोरखप्रसाद गबरू जवान था, रीना भी उस पर मर मिटी. जब दोनों ओर से चाहत जागी तो वे मिलने का मौका तलाशने लगे.

एक दिन दोपहर को गोरखप्रसाद रीना के घर पहुंचा तो सरिता बेटी को ले कर कहीं गई हुई थी. घर में रीना अकेली ही थी. उसे देखते ही रीना ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आओ…आओ, बैठो. कहो, कैसे आना हुआ?’’

गोरखप्रसाद रीना से सट कर बैठते हुए बोला, ‘‘बस, आप के दीदार करने चला आया. बताओ, कैसी हो तुम?’’

‘‘अच्छी हूं, तुम्हारे चाचा की याद में एकएक दिन काट रही हूं.’’

‘‘और दिन है कि काटे नहीं कट रहे.’’

‘‘हां, सच कहते हो. लेकिन मन की बात कहूं भी तो किस से. निगोड़ी रात है कि काली नागिन की तरह डंसती है. पति के बिना बिस्तर कांटों की तरह चुभता है.’’

‘‘चाहो तो मुझ से कह सकती हो. मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. आखिर मैं किस दिन के लिए हूं चाची.’’

‘‘तुम्हारी इसी अदा पर तो मैं तुम पर मर मिटी हूं. लेकिन तुम भी तो दूर से ही देख कर चले जाते हो.’’

‘‘क्यों, इस गरीब का मजाक उड़ा रही हो. मर तो मैं तुम पर गया हूं. मुझे लगता है, मैं तुम्हारे बिना जी नहीं पाऊंगा.’’

‘‘मुझे भी यही लगता है.’’ कह कर रीना ने गोरखप्रसाद को बांहों में भर लिया.

इस के बाद तो रिश्तों के बारे में न रीना ने सोचा और न गोरखप्रसाद ने. रिश्तों को तारतार करने का दोनों ने पश्चाताप भी नहीं किया. जबकि दोनों चाचीभतीजे तो थे ही, उम्र में भी 8 साल का अंतर था. एक बार मर्यादा टूटी तो सिलसिला बन गया. जब भी दोनों को मौका मिलता, जिस्म की भूख मिटा लेते.

गोरखप्रसाद ने रीना से वादा किया था कि वह उसी का हो कर रहेगा. लेकिन उस ने रीना को बताए बगैर शादी कर ली. रीना को पता तो तभी चल गया था, जब उस की शादी तय हुई थी. लेकिन शादी होने तक गोरखप्रसाद मुंह छिपाए रहा. प्रेमी की इस बेवफाई से त्रस्त रीना ने भी तय कर लिया था कि गोरखप्रसाद से ऐसा बदला लेगी कि वह सोच भी नहीं सकता.

उस ने कुछ ऐसा किया भी. उसी की वजह से शादी के एक हफ्ते बाद ही गोरखप्रसाद की पत्नी उसे छोड़ कर चली गई. उस ने आरोप लगाया कि उस का पति नामर्द है. वह उसे संतुष्ट नहीं कर पाता. इस तरह रीना ने प्रेमी से उस की बेवफाई का बदला ले लिया. जबकि रीना ने उस से अपने संबंधों के बारे में बता दिया था.

गोरखप्रसाद की पत्नी ने उस पर जो आरोप लगाया था, उस से गांव में गोरखप्रसाद की खूब बदनामी हुई. गांव वालों के सामने निकलने में उसे शर्मिंदगी महसूस होने लगी थी. पत्नी छोड़ कर चली गई तो गोरखप्रसाद रीना के घर के चक्कर लगाने लगा. रीना ने उसे प्यार तो दिया, लेकिन अब पहले वाली बात नहीं रही. शायद वह उस की बेवफाई को भुला नहीं पाई थी.

गोरखप्रसाद की इस बेवफाई से नाराज रीना ने किसी और से संबंध बना लिए थे. इसीलिए वह गोरखप्रसाद को पहले जैसा प्यार नहीं दे रही थी. रीना उस से कटीकटी रहने लगी थी. रीना का यह व्यवहार गोरखप्रसाद को अखरने लगा था. इस से उसे लगा कि पत्नी ने उस पर जो आरोप लगाया था, वह सच है. रीना भी उस की नामर्दी की वजह से उसे पहले जैसा प्यार नहीं दे रही है.

यही सोच कर गोरखप्रसाद मर्दानगी बढ़ाने के लिए नौसड़ के एक वैद्य से इलाज कराने लगा. 6 महीने तक इलाज कराने से वह खुद को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ महसूस करने लगा था.

27 फरवरी, 2017 की रात गांव में एक बारात आई थी. बारात के साथ आर्केस्ट्रा भी था. घर से निकलने से पहले गोरखप्रसाद ने सैक्स क्षमता बढ़ाने वाली दवा खा ली और आर्केस्ट्रा देखने चला गया. दवा ने अपना असर दिखाया तो उसे रीना की याद आई. उस के जिस्म में शारीरिक सुख का कीड़ा कुलबुलाया तो वह रीना के घर जा पहुंचा.

उस समय रात के करीब 12 बज रहे थे. गहरी नींद में सोई रीना के जिस्म पर गोरखप्रसाद ने हाथ फेरा तो रीना चौंक कर उठ बैठी. गोरखप्रसाद को देख कर उस ने कहा, ‘‘इतनी रात को तुम यहां क्या कर रहे हो?’’

‘‘तुम से मिलने आया हूं.’’

‘‘देखो, अभी मेरा मन नहीं है. मुझे सोने दो.’’

‘‘मेरा बड़ा मन है. मन नहीं मान रहा.’’

‘‘मैं ने तुम्हारे मन को मनाने का ठेका ले रखा है क्या?’’

‘‘मेरी हालत पर तरस खाओ रीना, तुम्हारा प्यार पाने के लिए मन बड़ा बेचैन है. खुद को संभाल नहीं पा रहा हूं.’’

‘‘कहा न, मैं ने तुम्हारे मन को मनाने का ठेका नहीं ले रखा. जाते हो या…’’ रीना गुर्राई.

‘‘ठीक है भई, जाता हूं, नाराज क्यों हो रही हो.’’ कह कर गोरखप्रसाद रीना के पास से उठ कर आगे बढ़ा तो बरामदे में रीना की जेठानी सरिता अपनी मासूम बेटी नंदिनी के साथ सोती दिखाई दी. नंदिनी को देख कर उस की नीयत खराब हो गई, साथ ही रीना की बेवफाई भी याद आ गई. उस से बदला लेने के लिए वह दबे पांव सरिता की चारपाई के पास पहुंचा और गहरी नींद में सो रही नंदिनी को गोद में उठा कर बाग की ओर चल पड़ा.

बाग में पहुंच कर नंदिनी की आंखें खुलीं तो वह रोने लगी. गोरखप्रसाद पूरी तरह से हैवान बन चुका था. उस ने नंदिनी के कपड़े उतार दिए और जब उस के साथ जबरदस्ती की तो वह चिल्ला पड़ी. उसे चुप कराने के लिए गोरखप्रसाद ने उस का मुंह इतने जोर से दबाया कि उस की सांस थम गई. इसी के साथ उस ने पूरी ताकत से उस के सिर पर 2-3 घूंसे भी मार दिए थे. रहीसही कसर इन घूंसों ने पूरी कर दी थी.

जिस्म की आग ठंडी पड़ी तो उस ने नंदिनी को हिलाडुला कर देखा. उस के शरीर में हरकत न होते देख गोरखप्रसाद कांप उठा. उस ने सोचा कि अगर उस ने नंदिनी की लाश को यहां छोड़ दिया तो वह कभी भी पकड़ा जा सकता है. इसलिए उस ने नंदिनी की लाश को कंधे पर रखा और गांव से 3 किलोमीटर दूर ले जा कर कुआवल नदी में फेंक कर वापस आ गया. रीना ने कभी यह नहीं सोच रहा होगा कि उस का प्रेमी गोरखप्रसाद दरिंदगी की इस हद तक गुजर जाएगा और उस के घर का चिराग बुझा देगा. रीना पश्चाताप की आग में जल रही है. क्योंकि उसी के कारण मासूम बेटी नंदिनी की जान गई.

रीना का कोई दोष नहीं था, इसलिए पुलिस ने उस पर कोई काररवाई नहीं की. कथा लिखे जाने तक गोरखप्रसाद जेल में बंद था. पुलिस ने जांच पूरी कर आरोपपत्र दाखिल कर दिया था.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कुछ पात्रों के नाम बदले गए हैं.

गलतफहमी : बेकसूर परिवार को मिली सजा

भीकाजी बोर्डे का घर औरंगाबाद के चिखनठाना की चौधरी कालोनी में था.बोर्डे परिवार में कुल जमा 3 सदस्य थे. भीकाजी बोर्डे, पत्नी कमलाबाई और बेटा भगवान दिनकर बोर्डे. भीकाजी की एक बेटी भी थी विमल, जिस की वह शादी कर चुके थे. विमल 2 बच्चों की मां थी और पति से चल रहे किसी विवाद की वजह से मायके में रह रही थी. उस के दोनों बच्चे पति के पास रह रहे थे.

23 वर्षीय अमोल बोर्डे भगवान दिनकर बोर्डे का दोस्त था. उस का घर बोर्डे परिवार के घर से कुछ दूरी पर था. दोनों हमउम्र थे. दोस्ती के नाते दोनों का एकदूसरे के घर आनाजाना था.

जब से भीकाजी की बेटी विमल मायके आई थी, तब से अमोल भीकाजी के घर कुछ ज्यादा ही आने लगा था. उसे इस बात की जानकारी थी कि विमल और उस के पति के बीच तनातनी चल रही है और वह हालफिलहाल पति के पास जाने वाली नहीं है. दरअसल, अमोल अभी अविवाहित था, इसलिए दोस्त की बहन को दूसरी नजरों से देखने लगा था.

भाई का दोस्त होने के नाते विमल उसे भी भाई समझती थी. वह बात भी उसी अंदाज में करती थी. वैसे भी विमल बातूनी लड़की थी. जब विमल और अमोल के बीच बातों का सिलसिला जुड़ा तो अमोल ने बातों के कुछ शब्दों को ऐसा रंग देना शुरू कर दिया कि उस की चाहत नजर आए. उस के ऐसे शब्दों पर या तो विमल ने ध्यान नहीं दिया या दिया भी तो उस की बातों को गंभीरता से नहीं लिया.

अमोल ने मीठीमीठी बातों से विमल को शीशे में उतारने की काफी कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली. बहुत कुछ समझ कर भी विमल अमोल को ऐसा कुछ नहीं कहना चाहती थी जिस से भाई भगवान दिनकर और अमोल की दोस्ती में दरार पड़े. लेकिन वह कब तक यह सब सहन करती.

आखिर एक दिन सब्र का प्याला छलक ही गया. हुआ यह कि उस दिन विमल घर पर अकेली थी. अमोल को पता चला तो वह मौके का फायदा उठाने की सोच कर उस के घर पहुंच गया.

विमल ने उसे बैठने के लिए कुरसी दी और उस के लिए चाय बनाने चली गई. उस समय वह घर में अकेली थी. अमोल ने अपनी मनमरजी करने के लिए इस मौके को उचित समझा. वापस लौट कर विमल ने चाय का प्याला अमोल को दिया तो उसी समय अमोल ने उस का हाथ पकड़ लिया.

उस की इस हरकत पर विमल चौंक गई. उस की नीयत में खोट देख कर उसे गुस्सा आ गया. उस ने अपना हाथ छुड़ाने के बाद चाय का प्याला मेज पर रखा, फिर उसे जम कर लताड़ा और उसी समय घर से भगा दिया.

अमोल को इस बात की उम्मीद भी नहीं थी कि विमल उस की इतनी बेइज्जती करेगी. विमल के हंसहंस कर बात करने से वह तो यही सोचता था कि विमल भी उसे चाहती है. इसी का फायदा उठाने के लिए वह आया भी था. लेकिन उसे उलटे विमल के गुस्से का सामना करना पड़ा. बेइज्जती सह कर वह उस समय वहां से चला गया.

घर पहुंचने के बाद भी विमल द्वारा की गई बेइज्जती अमोल के दिमाग में घूमती रही. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि इस स्थिति में वह क्या करे.

उधर शाम के समय विमल के मातापिता और भाई घर लौटे तो विमल ने अमोल की हरकत मां कमलाबाई को बता दी. कमलाबाई को बहुत गुस्सा आया. अमोल उस के बेटे का दोस्त था इसलिए वह उसे भी अपने घर का सदस्य समझती थी, लेकिन उस की सोच इतनी घटिया थी, वह नहीं समझ पाई थी. घर की बदनामी को देखते हुए कमलाबाई ने इस बात का शोरशराबा तो नहीं किया लेकिन बेटी को उस से सतर्क रहने की सलाह जरूर दे दी.

अगले दिन अमोल को अपने दोस्त यानी विमल के भाई भगवान दिनकर बोर्डे की याद आई. वह उस के साथ घूमता और गप्पें मारता था, इसलिए उस का मन दोस्त से मिलने के लिए कर रहा था. विमल ने जिस तरह उसे लताड़ा था, वह बात भी उस के दिमाग में घूम रही थी.

अमोल यह समझ रहा था कि उस ने विमल के साथ जो हरकत की थी, उस के बारे में विमल अपने घर वालों से चर्चा तक नहीं करेगी, क्योंकि ज्यादातर लड़कियां इस तरह की बातें शुरुआत में अपने तक ही छिपा कर रखती हैं. मातापिता को ये बातें बताने में उन्हें शर्म महसूस होती है.

यही सोच कर अमोल बिना किसी डर के अपने दोस्त भगवान दिनकर बोर्डे से मिलने उस के घर पहुंच गया. विमल अमोल की हरकत मां को पहले ही बता चुकी थी. लिहाजा विमल की मां कमलाबाई ने अमोल को आड़े हाथों लिया.

उस ने भी अमोल को जम कर खरीखोटी सुनाई. इतना ही नहीं, उसे बेइज्जत करते हुए धमकी दी कि वह इसी समय वहां से चला जाए और आइंदा उस के घर में कदम न रखे.

बेइज्जती सह कर अमोल वहां से उलटे पांव लौट आया. इस अपमान की ज्वाला उस के सीने में दहकने लगी थी. उस ने तय कर लिया कि विमल और उस की मां ने उस की जो बेइज्जती की है, वह उस का बदला जरूर लेगा. बदले की भावना उस के मन में घर कर गई.

बात 25 सितंबर, 2019 की है. अमोल अपने घर पर ही था. उस के दिमाग में बेइज्जती वाली बातें ही घूम रही थीं. वह सोच रहा था कि इस अपमान का बदला कैसे ले.

रात के 8 बजे थे. उस समय अमोल को भूख लगी थी. उस ने अपनी मां से खाना परोसने को कहा. मां खाना परोस कर ले आई.

निवाला तोड़ कर वह खाने को हुआ, तभी उस के दिमाग में बदला लेने वाली बात फिर आ गई. अमोल ने खाना छोड़ दिया और किचन की तरफ चल दिया.

उस की मां ने बिना खाना खाए उठने की वजह पूछी, लेकिन वह कुछ नहीं बोला. अमोल ने किचन से चाकू उठा कर अपनी जेब में रख लिया. उस की मां पूछती रही, लेकिन उस ने कोई जवाब नहीं दिया. वह घर के बाहर निकल गया. मां पूछने के लिए उस के पीछेपीछे आ रही थी, लेकिन अमोल ने घर का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया ताकि मां घर से बाहर न आए. उस की मां, पिता और भांजी घर में ही बंद रह गए. वे समझ नहीं पा रहे थे कि अमोल ने ऐसा क्यों किया.

अपने घर से करीब 70 मीटर दूर वह सीधे विमल के घर में घुस गया. घर में घुसते ही उस ने मुख्य दरवाजा बंद कर दिया. उस समय वह बहुत गुस्से में था. विमल के मांबाप ने जब अमोल को अपने घर में देखा तो उन्होंने उस से वहां आने की वजह पूछी. तभी अमोल ने जेब में रखा चाकू निकाल लिया और अपने दोस्त दिनकर बोर्डे की तरफ बढ़ा.

अमोल को गुस्से में देख कर भगवान बोर्डे अपनी जान बचाने के लिए भागा. अमोल ने दौड़ कर भगवान को पकड़ लिया और उस की गरदन पर चाकू से वार कर दिया. तभी भगवान के मातापिता भी वहां आ गए. बेटे के खून के छींटें उन के ऊपर भी गए. दिनकर भगवान बोर्डे वहीं गिर गया और कुछ ही देर में उस की मृत्यु हो गई.

इस के बाद अमोल बोर्डे ने दिनकर की मां कमलाबाई पर हमला किया. फिर उस ने उस के पिता को भी निशाने पर ले लिया. इस तरह उस ने परिवार के 3 लोगों की हत्या कर दी. इस दौरान विमल दरवाजा खोल कर बाहर भाग गई थी. विमल ने यह बात पड़ोसियों को बताई तो वे घरों से बाहर निकल आए.

3 हत्याएं करने के बाद अमोल खून सना चाकू ले कर घर से बाहर निकला तो कई लोग वहां खड़े थे. लेकिन अमोल की आंखों में तैर रहे गुस्से और खून सने चाकू को देख कर कोई भी कुछ कह नहीं सका और वह वहां से चला गया.

किसी ने इस तिहरे हत्याकांड की खबर पुलिस को दे दी थी. सूचना मिलने पर एमआईडीसी सिडको थाने के प्रभारी सुरेंद्र मोलाले थोड़ी देर में दिनकर बोर्डे के घर पहुंच गए. तभी लोगों ने पुलिस को अमोल बोर्डे के बारे में जानकारी दी कि वह चौराहे पर खड़ा है.

यह सूचना मिलने के बाद पुलिस ने चौराहे पर खड़े अमोल बोर्डे को हिरासत में ले लिया. थानाप्रभारी सुरेंद्र मोलाले ने अभियुक्त अमोल से ट्रिपल मर्डर के बारे में पूछताछ की तो उस ने सारी कहानी बता दी.

उस ने कहा कि उस ने अपनी बेइज्जती का बदला लेने के लिए इस वारदात को अंजाम दिया. अमोल बोर्डे से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.