जिस्मफरोशी के नए अड्डे

इटावा के सिविल लाइंस क्षेत्र में रहने वाले उमेश शर्मा बैंक औफ बड़ौदा में सीनियर मैनेजर थे. वह 2 साल पहले रिटायर हो गए थे. रिटायर होने के बाद उन्होंने खुद को समाजसेवा में लगा दिया था. अपनी सेहत के प्रति वह सजग रहते थे, इसीलिए वाकिंग करने नियमित विक्टोरिया पार्क में जाते थे.

इटावा का विक्टोरिया पार्क वैसे भी पर्यटक स्थल के रूप में जाना जाता है. पहले यहां एक बहुत बड़ा पक्का तालाब था. ब्रिटिश शासनकाल में महारानी विक्टोरिया यहां आई थीं तो उन्होंने इस पक्के तालाब में नौका विहार किया था. इस के बाद यहां विक्टोरिया मैमोरियल की स्थापना हुई. अब यह पार्क एक रमणीक स्थल बन गया है.

एक दिन उमेश शर्मा विक्टोरिया पार्क गए तो वहां उन की मुलाकात देवेश कुमार से हुई जो उन का दोस्त था. उसे देख कर वह चौंक गए. क्योंकि 50-55 की उम्र में भी वह एकदम फिट था. उमेश शर्मा उस से 8-10 साल पहले तब मिले थे, जब देवेश कुमार की पत्नी का देहांत हुआ था.

वर्षों बाद दोनों मिले तो वे पार्क में एक बेंच पर बैठ कर बतियाने लगे. उमेश ने महसूस किया कि पत्नी के गुजर जाने के बाद देवेश पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा था, वह पहले से ज्यादा खुश दिखाई दे रहा था.

काफी देर तक दोनों इधरउधर की बातें करते रहे. उसी दौरान उमेश शर्मा ने पूछा, ‘‘देवेश यार, यह बताओ तुम्हारी सेहत का राज क्या है. लगता है भाभीजी के गुजर जाने के बाद

तुम्हारे ऊपर फिर से जवानी आई है. क्या खाते हो तुम, जो तुम्हारी उम्र ठहर गई है.’’

‘‘उमेश भाई, खानापीना तो कोई खास नहीं है. मैं भी वही 2 टाइम रोटी खाता हूं जो आप खाते हो. लेकिन मैं अपनी मसाज पर ज्यादा ध्यान देता हूं.’’ देवेश बोला.

‘‘मसाजऽऽ’’ उमेश शर्मा चौंके.

‘‘हां भई, मैं सप्ताह में 1-2 बार मसाज जरूर कराता हूं.’’

‘‘लगता है, मसाज किसी अच्छे मसाजिए से कराते हो?’’ उमेश शर्मा ने ठिठोली की.

‘‘सही कह रहे हैं आप, मैं जिन से मसाज कराता हूं वे सारे मसाजिए बहुत अनुभवी हैं. वे शरीर की नसनस खोल देते हैं. आप भी एक बार करा कर देखो, फिर आप को भी ऐसी आदत पड़ जाएगी कि शौकीन बन जाओगे.’’ देवेश ने कहा.

‘‘अरे भाई, आप ठहरे बड़े बिजनैसमैन और हम रिटायर्ड कर्मचारी, इसलिए हम भला आप की होड़ कैसे कर सकते हैं. सरकार से जो पेंशन मिलती है, उस से गुजारा हो जाए वही बहुत है. वैसे जानकारी के लिए यह तो बता दो कि मसाज कराते कहां हो?’’ उमेश शर्मा ने पूछा.

‘‘उमेश भाई, आप अभी तक सीधे ही रहे. मैं आप के सिविल लाइंस एरिया के ही ग्लैमर मसाज सेंटर पर जाता हूं. वहां पर लड़कियां जिस अंदाज में मसाज के साथ दूसरे तरह का जो मजा देती हैं, वह काबिलेतारीफ है. आप को तो पता ही है कि मैं शौकीनमिजाज हूं, लड़कियों का कद्रदान.’’ देवेश ने बताया.

‘‘देवेश, तुम इस उम्र में भी नहीं सुधरे.’’ उमेश शर्मा बोले.

‘‘देखो भाई, मेरा जिंदगी जीने का तरीका अलग है. मैं लाइफ में फुल एंजौय करता हूं. कमाई के साथ लाइफ में एंजौय भी जरूरी है. भाई उमेश, मैं अपने तजुर्बे की बात आप को बता रहा हूं. देखो, मैं ने कृष्णानगर के वेलकम स्पा सेंटर के अलावा अन्य कई होटलों में चल रहे मसाज सेंटरों की सेवाएं ली हैं, लेकिन जितना मजा मुझे ग्लैमर मसाज सेंटर में आता है, उतना कहीं और नहीं आया.

ग्लैमर मसाज सेंटर की संचालिका कविता स्कूल, कालेज गर्ल से ले कर हाउसवाइफ तक उपलब्ध कराने में माहिर है. मेरी बात मानो तो एक बार आप भी मेरे साथ चल कर जलवे देख लो.’’ देवेश ने उमेश शर्मा को उकसाया.

‘‘नहीं देवेश, आप को तो पता है कि मैं इस तरह के कामों से बहुत दूर रहता हूं.’’ उमेश शर्मा ने कहा. कुछ देर बात करने के बाद दोनों अपनेअपने रास्ते चले गए.

देवेश से बातचीत में उमेश शर्मा को चौंकाने वाली जानकारी मिली थी. वह यह जान कर आश्चर्यचकित थे कि उन की कालोनी में मसाज सेंटर के नाम पर जिस्मफरोशी का धंधा चल रहा था और उन्हें जानकारी तक नहीं थी. इस धंधे में स्कूल कालेज की लड़कियों को फांस कर ये लोग उन की जिंदगी तबाह कर रहे थे. चूंकि उमेश शर्मा खुद समाजसेवी थे, इसलिए वह इस बात पर विचार करने लगे कि जिस्मफरोशी के अड्डों को कैसे बंद कराया जाए.

उमेश शर्मा का इटावा के एसएसपी संतोष कुमार मिश्रा से परिचय था. वह सामाजिक क्रियाकलापों को ले कर एसएसपी साहब से कई बार मुलाकात कर चुके थे. लिहाजा उन्होंने सोच लिया कि इस बारे में एसएसपी से मुलाकात करेंगे. और फिर एक दिन एसएसपी संतोष कुमार मिश्रा से मिल कर उमेश शर्मा ने उन्हें स्पा और मसाज सेंटरों की आड़ में चल रहे जिस्मफरोशी के धंधे की जानकारी दे दी.

एसएसपी ने इस सूचना को गंभीरता से लिया. जैसी उन्हें सूचना मिली, उस के अनुसार यह धंधा शहर की पौश कालोनियों के अलावा कुछ होटलों में भी चल रहा था. इसलिए उन्होंने  सूचना की पुष्टि के लिए अपने खास सिपहसालारों तथा मुखबिरों को लगा दिया और उन से एक सप्ताह के अंदर रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा.

एक सप्ताह बाद मुखबिरों व सिपहसालारों ने जो रिपोर्ट एसएसपी संतोष कुमार मिश्र के समक्ष पेश की, वह चौंकाने वाली थी. उन्होंने बताया कि स्पा और मसाज सेंटरों में ही नहीं, बल्कि शहर के कई मोहल्लों में देहव्यापार जोरों से चल रहा है. उन्होंने कुछ ऐसे मकानों की भी जानकारी दी, जहां किराएदार बन कर रहने वाली महिलाएं देह व्यापार में संलग्न थीं.

रिपोर्ट मिलने के बाद एसएसपी ने एएसपी (सिटी) डा. रामयश सिंह, एएसपी (ग्रामीण) रामबदन सिंह, महिला थानाप्रभारी सुभद्रा कुमारी, क्राइम ब्रांच तथा 1090 वूमन हेल्पलाइन की प्रमुख मालती सिंह को बुला कर एक महत्त्वपूर्ण बैठक बुलाई.

बैठक में एसएसपी ने शहर में पनप रहे देह व्यापार के संबंध में चर्चा की तथा उन अड्डों पर छापा मारने की अतिगुप्त रूपरेखा तैयार की. इस का नाम उन्होंने ‘औपरेशन क्लीन’ रखा.

इस के लिए उन्होंने 4 टीमों का गठन किया. टीमों के निर्देशन की कमान एएसपी (सिटी) डा. रामयश तथा एएसपी (ग्रामीण) रामबदन सिंह को सौंपी गई.

योजना के अनुसार 22 सितंबर, 2019 की रात 8 बजे चारों टीमों ने सब से पहले सिविल लाइंस स्थित ग्लैमर मसाज सेंटर पर छापा मारा. छापा पड़ते ही मसाज सेंटर में अफरातफारी मच गई. यहां से पुलिस ने संचालिका सहित 4 महिलाओं तथा 3 पुरुषों को गिरफ्तार किया.

काउंटर पर बैठी महिला को छोड़ कर सभी महिलापुरुष अर्धनग्न अवस्था में पकड़े गए थे. इन में एक छात्रा भी थी. उस का स्कूल बैग भी बरामद हुआ.

मसाज सेंटर पर छापा मारने के बाद संयुक्त टीमों ने कृष्णानगर स्थित वेलकम स्पा सेंटर पर छापा मारा. यहां से पुलिस टीम ने नग्नावस्था में 2 पुरुष तथा 2 महिलाओं को पकड़ा. पकड़े जाने के बाद वे सभी छोड़ देने को गिड़गिड़ाते रहे, लेकिन पुलिस ने उन की एक नहीं सुनी.

इस के बाद पुलिस ने स्टेशन रोड स्थित एक मकान पर छापा मारा. पूछने पर पता चला कि पकड़ी गई महिला तथा पुरुष पतिपत्नी हैं. पति ही पत्नी की दलाली करता था. पत्नी के साथ एक ग्राहक भी पकड़ा गया. इस मकान से पुलिस ने 2 संदिग्ध महिलाओं को भी गिरफ्तार किया. लेकिन जब उन दोनों से पूछताछ की गई तो वे निर्दोष साबित हुईं. अत: उन दोनों को पुलिस ने छोड़ दिया.

पुलिस टीमों को सफलता पर सफलता मिलती जा रही थी. अत: टीमों का हौसला भी बढ़ता जा रहा था. इस के बाद पुलिस ने चंद्रनगर, शांतिनगर तथा सैफई रोड स्थित कुछ मकानों पर छापा मारा और वहां से 7 महिलाओं तथा 8 पुरुषों को रंगेहाथ गिरफ्तार किया. पकड़ी गई युवतियों में 2 छात्राएं थीं जो कालेज जाने के बहाने घर से निकली थीं और देह व्यापार के अड्डे पर पहुंच गई थीं.

पुलिस टीम ने शहर के 2 होटलों तथा एक रेस्तरां पर भी छापा मारा लेकिन यहां से कोई नहीं पकड़ा गया. हालांकि होटल से 2 प्रेमी जोड़ों से पूछताछ की गई, पूछताछ में पता चला कि उन की शादी तय हो चुकी थी, इसलिए पुलिस ने उन्हें जाने दिया. रेस्तरां से पुलिस ने एक शादीशुदा जोड़े से भी पूछताछ की, जो रिलेशनशिप में रह रहे थे. वेरीफिकेशन के बाद पुलिस ने उन्हें भी जाने दिया.

छापे में पुलिस टीमों ने 14 कालगर्ल्स तथा 15 ग्राहकों को पकड़ा था. कालगर्ल्स को महिला थाना तथा पुरुषों को सिविल लाइंस थाने में बंद किया गया. महिला थानाप्रभारी सुभद्रा कुमारी वर्मा ने कालगर्ल्स से पूछताछ की.

पकड़ी कालगर्ल्स नेहा, माया, कविता, पूनम, गौरी, रिया, शमा, रीतू, साधना, शालू, अर्चना, दीपा, अमिता तथा मानसी थीं, वहीं जो ग्राहक गिरफ्तार हुए थे, उन के नाम पंकज, मनोज, अशोक, सुनील, अमन, आलोक, रमेश, पवन, रोहित, विक्की, उमेश, राजू, महेश, मनीष तथा प्रमोद थे. ये सभी इटावा, भरथना, इकदिल तथा बकेवर के रहने वाले थे.

अभियुक्तों की गिरफ्तारी की सूचना पर एसएसपी संतोष कुमार मिश्रा भी महिला थाने पहुंच गए. वहीं पर उन्होंने प्रैस कौन्फ्रैंस आयोजित कर पत्रकारों को विभिन्न जगहों से गिरफ्तार की गई कालगर्ल्स और ग्राहकों की जानकारी दी.

कहीं खुद पति पत्नी का दलाल तो कहीं मजबूर लड़कियां  पकड़ी गई कालगर्ल्स से विस्तृत पूछताछ की गई तो सभी ने इस धंधे में आने की अलगअलग कहानी बताई. नेहा मूलरूप से इटावा जिले के लखुना कस्बे की रहने वाली थी. 3 भाईबहनों में वह सब से बड़ी थी. उस के पिता एक ज्वैलर्स के यहां काम करते थे.

पिता को मामूली वेतन मिलता था, जिस से परिवार का भरणपोषण भी मुश्किल से होता था. भरणपोषण के लिए कभीकभी उन्हें कर्ज भी लेना पड़ जाता था. जब वह इस कर्ज को समय पर चुकता नहीं कर पाते थे, तो उन्हें बेइज्जत भी होना पड़ता था.

नेहा बेहद खूबसूरत थी. वह कस्बे के बाल भारती स्कूल में 10वीं की छात्रा थी. 16-17 साल की उम्र ही ऐसी होती है कि लड़कियां खुली आंखों से सपने देखने लगती हैं. नेहा भी इस का अपवाद नहीं थी. उम्र के तकाजे ने उस पर भी असर किया और वह इंटरमीडिएट में पढ़ने वाले अर्जुन से दिल लगा बैठी. दोनों का प्यार परवान चढ़ा तो उन के प्यार के चर्चे होने लगे.

पिता को जब नेहा के बहकते कदमों की जानकारी हुई तो वह चिंता में पड़ गए. नेहा उन की पीठ में इज्जत का छुरा घोंप कर कोई दूसरा कदम उठाए, उस के पहले ही उन्होंने उस की शादी करने का फैसला किया. दौड़धूप के बाद उन्होंने नेहा का विवाह इकदिल कस्बा निवासी गोपीनाथ के बेटे मनोज से कर दिया.

खूबसूरत नेहा से शादी कर के मनोज बहुत खुश हुआ. शादी के एक साल बाद नेहा एक बेटे की मां बन गई, जिस का नाम हर्ष रखा गया. बस इस के कुछ दिनों बाद से ही नेहा मनोज की नजरों से उतरनी शुरू हो गई.

इस की वजह यह थी कि शादी के बाद भी नेहा मायके के प्रेमी अर्जुन को भुला नहीं पाई थी. वह नेहा से मिलने आताजाता रहता था. यह बात मनोज को भी पता चल गई थी.

वक्त गुजरता गया. वक्त के साथ मनोज के मन में यह शक भी बढ़ता गया कि हर्ष उस की नहीं बल्कि अर्जुन की औलाद है. हर्ष की पैदाइश को ले कर मनोज नेहा से कुछ कहता तो वह चिढ़ कर झगड़ा करने लगती. रोजरोज के झगड़े से तंग आ कर एक रोज उस ने पति को सलाह दी कि अगर तुम्हें लगता है कि अर्जुन से अब भी मेरे संबंध हैं तो यह घर छोड़ कर इटावा शहर में बस जाओ.

नेहा की यह बात मनोज को अच्छी लगी. मनोज का दोस्त अनुज इटावा शहर में ठेकेदारी करता था. उस ने इटावा जा कर अनुज से बात की. अनुज ने अपने स्तर से उसे अपने यहां काम पर लगा लिया और स्टेशन रोड स्थित एक मकान में किराए पर कमरा दिलवा दिया. मनोज अपने बीवीबच्चे को वहीं ले आया.

शहर आ कर मनोज ने चैन की सांस ली. उस के मन से अर्जुन को ले कर जो शक बैठ गया था, वह धीरेधीरे उतरने लगा. नेहा ने भी सुकून की सांस ली कि अब उस के घर में कलह बंद हो गई. दोनों के दिन हंसीखुशी से बीतने लगे.

पर खुशियों के दिन अधिक समय तक टिक न सके. दरअसल, इटावा शहर आ कर मनोज को भी शराब की लत लग गई थी. पहले वह बाहर से पी कर आता था, बाद में दोस्तों के साथ घर में ही शराब की महफिल जमाने लगा. रोज शराब पीने से एक ओर मनोज जहां कर्ज में डूबता जा रहा था, वहीं कुछ दिनों से नेहा ने महसूस किया कि पति के दोस्त शराब पीने के बहाने उस की सुंदरता की आंच में आंखें सेंकने आते हैं. ऐसे दोस्तों में एक अनुज भी था.

नेहा ने कई बार मनोज से कहा भी कि वह छिछोरे दोस्तों को घर न लाया करे, लेकिन वह नहीं माना. मनोज क्या करना चाहता है, नेहा समझ नहीं पा रही थी. जब तक वह समझी, तब तक बहुत देर हो चुकी थी.

एक शाम मनोज काम से कुछ जल्दी घर  आ गया. आते ही बोला, ‘‘नेहा, तुम सजसंवर लो. तुम्हें मेरे साथ चलना है. हम वहां नहीं गए तो वह बुरा मान जाएगा.’’

नेहा खुश हो गई. मुसकरा कर बोली, ‘‘आज बड़े मूड में लग रहे हो. वैसे यह तो बता दो कि जाना कहां है?’’

‘‘मेरे दोस्त अनुज को तुम जानती हो. आज उस ने हमें खाने पर बुलाया है.’’ मनोज ने कहा.

मनोज ने बीवी को ही झोंका धंधे में  अनुज का नाम सुनते ही नेहा के माथे पर शिकन पड़ गई, क्योंकि उस की नजर में अनुज अच्छा आदमी नहीं था. मनोज के साथ घर में बैठ कर वह कई बार शराब पी चुका था और नशे में उसे घूरघूर कर देखता रहता था. नेहा की इच्छा तो हुई कि वह साफ मना कर दे, लेकिन उस ने मना इसलिए नहीं किया कि मनोज का मूड खराब हो जाएगा. वह गालियां बकनी शुरू कर देगा और घर में कलह होगी.

नेहा नहाधो कर जाने को तैयार हो गई तो मनोज आटो ले आया. दोनों आटो से अनुज के घर की ओर चल पड़े. थोड़ी देर में आटो रुका तो नेहा समझ गई कि अनुज का घर आ गया है. मनोज ने दरवाजा थपथपाया तो दरवाजा अनुज ने ही खोला. मनोज के साथ नेहा को देख कर अनुज का चेहरा चमक उठा. उस ने हंस कर दोनों का स्वागत किया और उन्हें भीतर ले गया.

घर के भीतर सन्नाटा भांयभांय कर रहा था. सन्नाटा देख कर नेहा अनुज से पूछ बैठी, ‘‘आप की पत्नी नजर नहीं आ रहीं, कहां हैं?’’

‘‘वह बच्चों को ले कर मायके गई है.’’ अनुज ने हंस कर बताया.  नेहा ने पति को घूर कर देखा तो वह बोला, ‘‘थोड़ी देर की तो बात है, खापी कर हम घर लौट चलेंगे.’’

अनुज किचन से गिलास और नमकीन ले कर आ गया. पैग बने, चीयर्स के साथ जाम टकराए और दोनों दोस्त अपना हलक तर करने लगे. फिर तो ज्योंज्यों नशा चढ़ता गया, त्योंत्यों दोनों अश्लील हरकतें व भद्दा मजाक करने लगे. पीने के बाद तीनों ने एक साथ बैठ कर खाना खाया. खाना खाने के बाद मनोज पास पड़ी चारपाई पर जा कर लुढ़क गया.

इसी बीच अनुज ने नेहा को अपनी बांहों में जकड़ लिया और अश्लील हरकतें करने लगा. नेहा ने विरोध किया और इज्जत बचाने के लिए पति से गुहार लगाई. लेकिन मनोज उसे बचाने नहीं आया. अनुज ने उसे तभी छोड़ा जब अपनी हसरतें पूरी कर लीं.

उस के बाद दोनों घर आ गए. जैसेतैसे रात बीती. सुबह मनोज जब काम पर जाने लगा तो उस से बोला, ‘‘नेहा, तुम सजसंवर कर शाम को तैयार रहना. आज रात को भी हमें एक पार्टी में चलना है.’’

नेहा ने उसे सुलगती निगाहों से देखा, ‘‘आज फिर किसी दोस्त के घर पार्टी है…’’

मनोज मुसकराया, ‘‘बहुत समझदार हो.  मेरे बिना बताए ही समझ गई. जल्दी से अमीर बनने का यही रास्ता है.’’ मनोज ने जेब से 2 हजार रुपए निकाल कर नेहा को दिए, ‘‘यह देखो, अनुज ने दिए हैं. इस के अलावा एक हजार रुपए का कर्ज भी उस ने माफ कर दिया.’’

नेहा की आंखें आश्चर्य से फट रह गईं. मनोज ने उस से देह व्यापार कराना शुरू कर दिया था. कल कराया. आज के लिए उस ने ग्राहक तय कर के रखा हुआ था. शाम को मनोज ने नेहा को साथ चलने को कहा तो उस ने मना कर दिया. इस पर मनोज ने उसे लातघूंसों से पीटा और जबरदस्ती अपने साथ ले गया.

इस के बाद तो यह एक नियम सा बन गया. मनोज रात को रोजाना नेहा को आटो से कहीं ले जाता. वहां से दोनों कभी देर रात घर लौटते, तो कभी सुबह आते. कभी मनोज अकेला ही रात को घर आता, जबकि नेहा की वापसी सुबह होती. नेहा भी इस काम में पूरी तरह रम गई.

धीरेधीरे जब ग्राहकों की संख्या बढ़ी तो नेहा ग्राहकों को अपने घर पर ही बुलाने लगी. छापे वाले दिन मनोज ने जिस्मफरोशी के लिए 2 ग्राहक तैयार किए थे. पहला ग्राहक मौजमस्ती कर के चला गया था, दूसरा ग्राहक सुनील जब नेहा के साथ था, तभी पुलिस टीम ने छापा मारा और वे तीनों पकड़े गए.

पुलिस द्वारा पकड़ी गई पूनम इकदिल कस्बे में रहती थी. उस के मांबाप की मृत्यु हो चुकी थी. एक आवारा भाई था, जो शराब के नशे में डूबा रहता था. कम उम्र में ही पूनम को देह सुख का चस्का लग गया था. पहले वह देह सुख एवं आनंद के लिए युवकों से दोस्ती गांठती थी, फिर वह उन से अपनी फरमाइशें पूरी कराने लगी. यह सब करतेकरते वह कब देहजीवा बन गई, स्वयं उसे भी पता नहीं चला.

पूनम को भिन्नभिन्न यौन रुचि वाले पुरुष मिले तो वह सैक्स की हर विधा में निपुण हो गई. अमन नाम का युवक तो पूनम का मुरीद बन गया था. अमन शादीशुदा और 2 बच्चों का पिता था.

पूनम और अमन की जोड़ी उस की पत्नी साधारण रंगरूप की थी. वह कपड़े का व्यापार करता था और इटावा के सिविल लाइंस मोहल्ले में रहता था. अमन को जब भी जरूरत होती, वह पनूम को फोन कर होटल में बुला लेता.

एक रात अमन से पूनम बोली, ‘‘अमन क्यों न हम दोनों मिल कर स्पा खोल लें. मसाज की आड़ में वहां देहव्यापार कराएंगे. शौकीन अमीरों को नया अनुभव और उन्माद मिलेगा तो हमारे स्पा में ग्राहकों की भीड़ लगी रहेगी. थोड़े समय में हम दोनों लाखों में खेलने लगेंगे.’’

पूनम का यह आइडिया अमन को पसंद आया. चूंकि वह स्वयं बाजारू औरतों का रसिया था, इसलिए जानता था कि देह व्यापार से अधिक मजेदार और कमाऊ धंधा कोई दूसरा नहीं. हालांकि इस धंधे में पुलिस द्वारा पकड़े जाने का अंदेशा बना रहता है, पर जोखिम लिए बिना पैसा भी तो छप्पर फाड़ कर नहीं बरसता.

आधा पैसा अमन ने लगाया, आधा पूनम ने. फिफ्टीफिफ्टी के पार्टनर बन कर दोनों ने कृष्णानगर स्थित किराए के मकान में वेलकम स्पा खोल लिया. यह लगभग एक साल पहले की बात है.

चूंकि पूनम खुद कालगर्ल थी, इसलिए अनेक देहजीवाओं से उस की दोस्ती थी. उन में से ही कुछ देहजीवाओं को उस ने मसाजर के तौर पर स्पा में रख लिया. वे केवल नाम की मसाजर थीं, वे तो केवल अंगुलियों के कमाल से कस्टमर की भावनाएं जगाने और बेकाबू होने की सीमा तक भड़काने में माहिर थीं. कस्टमर भी ऐसे आते थे, जिन्हें मसाज से कोई वास्ता नहीं था. कामपिपासा शांत करने के लिए उन्हें हसीन बदन चाहिए होता था.

चंद दिनों में ही स्पा की आड़ में देह व्यापार कराने का अमन और पूनम का यह धंधा चल निकला. स्पा के दरवाजे हर आदमी के लिए खुले रहते थे. शर्त केवल यह थी कि जेब में माल होना चाहिए.

बीच शहर में खुल्लमखुल्ला देह व्यापार होता रहे और पुलिस को खबर न हो, यह संभव नहीं होता.

वेलकम स्पा में होने वाले देह व्यापार की जानकारी स्थानीय थाना पुलिस को थी, पर किसी वजह से वह आंखें बंद किए थी. एसएसपी संतोष कुमार मिश्रा ने जब औपरेशन क्लीन चलाया, तब छापा पड़ा और स्पा से 2 पुरुष अमन, आलोक तथा 2 महिलाएं पूनम व माया देह व्यापार करते पकड़ी गईं.

पुलिस टीम द्वारा छापे में पकड़ी गई कविता बकेवर कस्बे की रहने वाली थी. उस के पिता कानपुर में पनकी स्थित एक प्लास्टिक फैक्ट्री में काम करते थे. लेकिन कुछ वर्ष पूर्व संदिग्ध परिस्थितियों में उन की मौत हो गई थी.

पति की मौत के बाद कविता की मां ने स्वयं को टूट कर बिखरने नहीं दिया. कभी स्वरोजगार तो कभी मेहनत मजदूरी कर के अपना और बेटी कविता की परवरिश करती रही. वक्त थोड़ा आगे बढ़ा.

कविता ने किशोरावस्था में प्रवेश किया. चेहरे पर लुनाई झलक मारने लगी. कच्ची कली मसलने के शौकीनों को यही तो चाहिए था. कविता को बड़ा लालच दे कर वे एकांत में उस के संग बड़ेबड़े काम करने लगे. कुछ ही समय बाद कविता कली से फूल बन गई. कविता को जो बुलाता, उस के साथ चली जाती.

जिस्मानी खेल में कविता को आनंद तो बहुत मिला पर बदनामी भी कम नहीं हुई. कस्बे में वह बदनाम लड़की के रूप में जानी जाने लगी. बेटी की करतूतें मां के कानों तक पहुंचीं तो उस ने सिर पीट लिया, ‘‘मुझ विधवा के पास एक इज्जत थी, वह भी इस लड़की ने लुटा दी. मैं तो हर तरह से कंगाल हो गई.’’

बेटी गलत राह पर चलने लगे तो हर मांबाप को उसे सुधारने की एक ही राह सूझती है शादी. कविता की मां ने भी उस का विवाह रोहित के साथ कर दिया. रोहित इटावा के सिविल लाइंस में रहता था और गल्लामंडी में काम करता था.

रोहित टूट कर चाहने वाला पति था. वह अपनी हैसियत के दायरे में कविता की फरमाइश भी पूरी करता था. इसलिए कविता रम गई. 3-4 साल मजे से गुजरे, उस के बाद कविता को रोहित बासी लगने लगा. पति से अरुचि हुई तो कविता का मन अतीत में खोने लगा.

इन्हीं दिनों कविता की मुलाकात स्पा संचालिका पूनम से हुई. उस ने कविता को मसाज पार्लर खोलने की सलाह दी. यही नहीं, पूनम ने कविता को मसाज पार्लर चलाने के गुर भी सिखाए. पूनम की सलाह पर पति के सहयोग से कविता ने सिविल लाइंस में ग्लैमर मसाज सेंटर खोला. कविता ने मसाज के लिए कुछ देहजीवाओं को भी रख लिया.

शुरूशुरू में उसे मसाज पार्लर में कमाई नहीं हुई. लेकिन जब उस ने मसाज की आड़ में देह व्यापार शुरू किया तो नोटों की बरसात होने लगी. औपरेशन क्लीन के तहत जब कविता के मसाज सेंटर पर छापा पड़ा तो यहां से 4 युवतियां कविता, गौरी, रिया तथा शमा और 3 पुरुष रोहित, उमेश व पवन पकड़े गए.

पुलिस छापे में पकड़ी गई अर्चना कच्ची बस्ती इटावा की रहने वाली थी. अर्चना को उस के पिता रामप्रसाद ने ही बरबाद कर दिया था. 30 वर्षीय अर्चना शादीशुदा थी. उस का विवाह जय सिंह के साथ हुआ था. जय सिंह में मर्दों वाली बात नहीं थी. सो अर्चना ससुराल छोड़ कर मायके में आ कर रहने लगी थी. उस ने पिता को साफ बता दिया था कि अब वह ससुराल नहीं जाएगी.

रामप्रसाद तनहा जिंदगी गुजार रहा था. उस की पत्नी की मौत हो चुकी थी और बड़ा बेटा अलग रहता था. जब अर्चना ससुराल छोड़ कर आ गई तो रामप्रसाद की रोटीपानी की दिक्कत खत्म हो गई. अर्चना ने पिता की देखभाल की जिम्मेदारी संभाल ली. अर्चना ने अपना बिस्तर पिता के कमरे में ही बिछा लिया.

रामप्रसाद हर रात अर्चना के खुले अंग देखता था. उन्हीं को देखतेदेखते उस के मन में पाप समाने लगा. वह भूल गया कि अर्चना उस की बेटी है. मन में नकारात्मक एवं गंदे विचार आने लगे. वह हवस पूरी करने का मौका देखने लगा.

एक रात अर्चना गहरी नींद सो रही थी, तभी रामप्रसाद उठा और अर्चना की गोरी, सुडौल और चिकनी पिंडलियों को सहलाने लगा. रामप्रसाद की अंगुलियों की हरकत से अर्चना हड़बड़ा कर उठ बैठी, ‘‘पिताजी यह क्या कर रहे हो?’’

रामप्रसाद ने घबराने के बजाए अर्चना को दबोच लिया और उस के कान में फुसफुसाया, ‘‘चुप रह, शोर मचाने की कोशिश की तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा.’’

अर्चना ने हवस में अंधे हो चुके पिता को दूर धकेलने की कोशिश की. उसे पवित्र रिश्ता याद दिलाया. मगर रामप्रसाद ने उसे अपनी हसरत पूरी करने के बाद ही छोड़ा. इस के बाद यह खेल हर रात शुरू हो गया. अर्चना को भी आनंद आने लगा. जब दोनों का स्वार्थ एक हो गया तो पवित्र रिश्ते की पुस्तक में पाप का एक अलिखित समझौता हो गया.

लगभग एक साल तक बापबेटी रिश्ते को कलंकित करते रहे. उस के बाद अर्चना का मन बूढ़े बाप से भर गया. अब वह मजबूत बांहों की तलाश में घर के बाहर ताकझांक करने लगी. एक रोज उस की मुलाकात एक कालगर्ल संचालिका से हो गई. उस ने उसे पैसों और देहसुख का लालच दे कर देह व्यापार के धंधे में उतार दिया.

छापे में पकड़ी गई रीतू, शालू और साधना (काल्पनिक नाम) हाईस्कूल व इंटरमीडिएट की छात्राएं थीं. तीनों गरीब परिवार की थीं. उन्हें ऊंचे ख्वाब और महंगे शौक ने यह धंधा करने को मजबूर किया. देह व्यापार में लिप्त संचालिकाओं ने इन छात्राओं को सब्जबाग दिखाए. हाथ में महंगा मोबाइल तथा रुपए थमाए, फिर देहधंधे में उतार दिया.

ये छात्राएं स्कूलकालेज जाने की बात कह कर घर से निकलती थीं और देह व्यापार के अड्डे पर पहुंच जाती थीं. घर आने में कभी देर हो जाती तो वे एक्स्ट्रा क्लास का बहाना बना देतीं. पकड़े जाने पर जब पुलिस ने उन के घर वालों को जानकारी दी तो वह अवाक रह गए. उन का सिर शर्म से झुक गया.

कुछ कहानियां मजबूरी की  छापा पड़ने के दौरान पकड़ी गई अमिता, मानसी व काजल घरेलू महिलाएं थीं. आर्थिक तंगी के कारण इन्हें देह व्यापार का धंधा अपनाना पड़ा. अमिता नौकरी के बहाने घर से निकलती थी और देह व्यापार के अड्डे पर पहुंच जाती थी. मानसी का पति टीबी का मरीज था. दवा और घर खर्च के लिए उस ने यह धंधा अपनाया.

2 बच्चों की मां काजल की उस के पति से नहीं बनती थी, इसलिए वह पति से अलग रहती थी. घर खर्च, बच्चों की पढ़ाई तथा मकान के किराए के लिए उसे यह धंधा अपनाना पड़ा.

पुलिस द्वारा पकड़े गए अय्याशों में 3 महेश, मनीष और राजू दोस्त थे. तीनों चंद्रनगर में रहते थे और एक ही फैक्ट्री में काम करते थे. विक्की, रमेश और पंकज ठेकेदारों के साथ काम करते थे और कृष्णानगर में रहते थे. उमेश और अशोक प्राइवेट नौकरी करते थे. ये भरथना के रहने वाले थे.

पुलिस ने थाना सिविललाइंस में आरोपियों के खिलाफ अनैतिक देह व्यापार अधिनियम 1956 की धारा 3, 4, 5, 6, 7, 8 और 9 के तहत केस दर्ज कर उन्हें अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.        —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, कथा में कुछ पात्रों के नाम काल्पनिक हैं.

11 साल बाद

उस दिन अक्तूबर 2019 की 14 तारीख थी. इटावा कोतवाली प्रभारी निरीक्षक अनिलमणि त्रिपाठी अपने कार्यालय में बैठे थे. शाम करीब 4 बजे एक उम्रदराज व्यक्ति उन के पास आया. उस के चेहरे से भय व दुख साफ झलक रहा था. त्रिपाठी ने उसे सामने पड़ी कुरसी पर बैठने का इशारा किया फिर पूछा, ‘‘आप कुछ परेशान दिख रहे हैं. बताइए, क्या बात है?’’

‘‘सर, मेरा नाम प्रमोद कुमार मिश्रा है और मैं शहर के कटरा बलसिंह मोहल्ले में रहता हूं. मेरी बहू दिव्या मिश्रा की किसी ने हत्या कर दी है.’’ उस ने बताया.

शहर के बीचोंबीच स्थित मोहल्ले में दिनदहाड़े महिला की हत्या की बात सुन कर कोतवाल अनिलमणि त्रिपाठी चौंक पड़े. उन्होंने महिला की हत्या की सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दी, फिर आवश्यक पुलिस के साथ कटरा बलसिंह मोहल्ला स्थित प्रमोद कुमार मिश्रा के मकान पर पहुंच गए.

उस समय घर के बाहर भीड़ जुटी थी. प्रमोद कुमार मिश्रा कोतवाल को तीसरी मंजिल पर स्थित उस कमरे में ले गए, जहां उन की बहू दिव्या की लाश पड़ी थी. लाश खून से लथपथ थी.

उस के सिर के पिछले भाग में चोट का गहरा निशान था. लाश के पास ही चीनी मिट्टी का बना फूलदान टूटा पड़ा था. संभवत: उसी गुलदस्ते से प्रहार कर उस की हत्या की गई थी. कमरे का सामान अस्तव्यस्त था. देखने से प्रतीत होता था कि दिव्या ने हत्यारे से संघर्ष किया था.

कोतवाल अनिलमणि त्रिपाठी अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एएसपी (सिटी) डा. रामयश सिंह, एएसपी (ग्रामीण) रामबदन सिंह तथा सीओ चंद्रपाल सिंह वहां आ गए. पुलिस अधिकारियों ने फोरैंसिक तथा डौग स्क्वायड टीम को भी मौके पर बुला लिया.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. इसी दौरान अधिकारियों ने मृतका की देह में कुछ हरकत महसूस की. जीवित होने की संभावना पर दिव्या को आननफानन में जिला अस्पताल भेजा गया, लेकिन डाक्टरों ने उसे देखते ही मृत घोषित कर दिया.

फोरैंसिक टीम ने जहां घटनास्थल की गहन जांच कर फिंगरप्रिंट लिए, वहीं खोजी कुत्ता घटनास्थल पर पड़े खून को सूंघ कर कमरे में चक्कर लगाता रहा फिर मकान के नीचे उतरा और लडैती भवन तक गया. उस के बाद वापस आ गया. खोजी कुत्ता मददगार साबित नहीं हुआ.

पुलिस अधिकारियों को पूछताछ से पता चला कि दिव्या मिश्रा, टीवी एंकर अजितेश मिश्रा की पत्नी थी. घटना के समय अजितेश मिश्रा नोएडा में था. पिता प्रमोद मिश्रा ने फोन कर के उसे दिव्या की मौत की सूचना दे दी.

प्रमोद ने दिव्या के मायके वालों को भी उस की मौत की खबर दे दी थी. खबर पा कर दिव्या का भाई, पिता, नानी आदि जिला अस्पताल पहुंच गए. सब दिव्या की मौत पर आंसू बहा रहे थे.

जिला अस्पताल में सिटी मजिस्ट्रैट सत्येंद्र नाथ पांडेय की उपस्थिति में दिव्या के शव का पंचनामा भर कर पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया. रात 10 बजे शव का पोस्टमार्टम डा. पल्लवी दीक्षित, डा. उदय प्रताप तथा डा. ऋषि यादव ने किया. लेकिन पोस्टमार्टम के बाद शव परिजनों को नहीं सौंपा गया. क्योंकि पुलिस को अभी कुछ और जांच करनी थी. हालांकि शव लेने मृतका का पति अजितेश आ गया था.

दरअसल, उस दिन एसएसपी संतोष कुमार मिश्रा विभाग की लखनऊ में आयोजित की गई क्राइम मीटिंग में गए थे. वापस आने पर उन्हें हत्याकांड की जानकारी हुई तो वह रात 10 बजे घटनास्थल पर पहुंचे. उन्होंने पुन: फोरैंसिक टीम को बुलाया और जांच कराई.

मिश्रा रात 2 बजे तक घटनास्थल पर रहे और एकएक बिंदु की बारीकी से जांच की. जांच प्रभावित न हो इसलिए दिव्या का शव परिजनों को नहीं सौंपा गया था. उन के द्वारा जांच कराए जाने के बाद शव परिजनों को सौंप दिया गया.

शव का दाह संस्कार करने के बाद प्रमोद कुमार मिश्रा सिविल लाइंस कोतवाली पहुंचे और अज्ञात के खिलाफ बहू की हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई. एसएसपी ने इस हाईप्रोफाइल केस की जांच के लिए सीओ (सिटी) चंद्रपाल सिंह के नेतृत्व में एक विशेष टीम बनाई. विशेष टीम में कोतवाल अनिलमणि त्रिपाठी, स्वाट टीम प्रभारी सत्येंद्र सिंह यादव के अलावा तेजतर्रार पुलिस अधिकारियों को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने सब से पहले घटनास्थल का एक बार फिर से निरीक्षण किया, फिर घर के मुखिया प्रमोद कुमार मिश्रा से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि वह कर्वा खेड़ा जनता माध्यमिक विद्यालय में प्रधानाध्यापक थे, जहां से एक साल पहले सेवानिवृत्त हुए थे. घर में पत्नी के अलावा बहू दिव्या मिश्रा तथा बूढ़ी मां रहती थी. पत्नी कुछ दिन पहले बड़े बेटे के पास चली गई थी.

स्कूल से सेवानिवृत्त होने के बाद प्रमोद कुमार सामाजिक कार्यों में व्यस्त रहने लगे थे. वह सुबह 11 बजे नाश्ता कर के घर से निकलते, फिर डेढ़दो बजे तक घर वापस आते थे. शाम को फिर 5 बजे घर से निकलते और रात 8 बजे घर वापस आ जाते थे. उन के कमरे का दरवाजा बाहर की ओर खुलता था. उसी से वह आतेजाते थे. मकान के मुख्य दरवाजे से उन का ज्यादा वास्ता नहीं रहता था.

14 अक्तूबर, 2019 को वह 11 बजे नाश्ता कर के घर से कर्वा खेड़ा स्कूल जाने को निकले. स्कूल स्टाफ ने उन्हें किसी जरूरी काम के लिए बुलाया था. स्कूल का काम निपटा कर वह अपराह्न लगभग 2 बजे घर आए. उन्होंने खाना देने हेतु बहू दिव्या को आवाज लगाई, लेकिन बहू ने कोई जवाब नहीं दिया. फिर उन्होंने उस से मोबाइल पर बात करने की कोशिश की, लेकिन उस ने मोबाइल रिसीव नहीं किया. इस से उन्हें लगा कि शायद बहू सो गई है. वह भी आराम करने लगे.

लगभग 3 बजे उन की आंखें खुलीं तो निगाह मेनगेट पर चली गई, जो खुला हुआ था. वह समझ गए कि घर में किसी का आनाजाना हुआ है. घर में कौन आयागया, यह पता लगाने के लिए वह तीसरी मंजिल पर पहुंचे. बहू दिव्या का कमरा खुला था. उन्होंने आवाज लगाई. लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. तब उन्होंने कमरे में प्रवेश किया.

कमरे के अंदर का दृश्य बड़ा ही वीभत्स था. बहू दिव्या फर्श पर खून से लथपथ पड़ी थी. फूलदान टूटा हुआ था. चिल्लाते हुए वह बाहर आए और पड़ोसियों को जानकारी दी. उस के बाद वह थाने पहुंचे.

प्रमोद मिश्रा की बात सुनने के बाद सीओ चंद्रपाल सिंह ने पूछा, ‘‘आप को किसी पर शक है? या फिर आप के घर किसी विशेष व्यक्ति का आनाजाना था?’’

‘‘सर, दिव्या किसी अनजान व्यक्ति के लिए गेट नहीं खोलती थी. मेरी गैरमौजूदगी में अगर कोई आता भी था तो वह यह कह कर वापस कर देती थी कि पापा घर पर नहीं हैं.’’

‘‘हत्या कहीं लूट के इरादे से तो नहीं की गई?’’ सीओ चंद्रपाल सिंह ने उन से पूछा. ‘‘नहीं सर, घर में लूट नहीं हुई. घर का कीमती सामान, आभूषण तथा नकदी सब सुरक्षित है. मैं ने सब चैक कर लिया है.’’ प्रमोद मिश्रा ने बताया.

पति आया शक के दायरे में  घर में घटना के समय प्रमोद मिश्रा की वृद्ध मां मौजूद थीं. वह चलनेफिरने और बोलनेचालने में भी लाचार थीं. उन्हें दिखाई भी कम देता था. ऐसी स्थिति में पुलिस ने उन से पूछताछ करना उचित नहीं समझा.

पुलिस टीम ने प्रमोद मिश्रा के पड़ोसियों से भी पूछताछ की. लेकिन हत्या के संबंध में वह कोई जानकारी नहीं दे सके. टीम ने मृतका दिव्या के भाई सचिन कुमार तथा अन्य परिजनों से पूछताछ की, लेकिन वह भी कोई खास जानकारी नहीं दे पाए.

दिव्या का पति अजितेश मिश्रा पुलिस टीम को जांच में सहयोग नहीं कर रहा था. टीम के सदस्य जब भी उस से पूछताछ करने की कोशिश करते, वह बेहोश हो जाने का नाटक करता. उस के इस नाटक से पुलिस टीम को शक हुआ. वैसे भी पुलिस टीम को किसी करीबी पर ही शक था.

अत: पुलिस टीम ने कुछ सख्त रुख अपनाया. तब वह बोला, ‘‘सर, दिव्या को मैं बेहद प्यार करता था. वह भी मुझे बहुत चाहती थी. वह मेरे साथ नोएडा में ही रहती थी. कुछ दिनों पहले मेरी मां जब बड़े भाई के पास नासिक चली गईं, तब मैं ने ही दिव्या को अपनी दादी और पापा की देखभाल के लिए नोएडा से घर भेज दिया था. पता नहीं मैं ने किसी का क्या बिगाड़ा था, जो उन्होंने मेरी पत्नी को मुझ से छीन लिया. पत्नी के जाने के बाद मेरा तो जीवन ही बरबाद हो गया.’’

अब तक पुलिस टीम को दिव्या की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मिल गई थी. रिपोर्ट के मुताबिक दिव्या की मौत सिर में गंभीर चोट लगने से हुई थी. उस का गला भी कसा गया था. बलात्कार की पुष्टि नहीं हुई थी, फिर भी स्लाइड बना ली गई थी.

पुलिस टीम को मृतका के पति पर शक था. अत: पुलिस टीम ने अजितेश और दिव्या के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवा कर गहनता से छानबीन की तो पता चला अजितेश 4 मोबाइल नंबरों पर ज्यादा बातें करता था, जिस में एक नंबर उस की पत्नी दिव्या का था, दूसरा उस के पिता प्रमोद मिश्रा का था. तीसरे और चौथे नंबर संदिग्ध थे.

इन संदिग्ध नंबरों के विषय में पूछने पर अजितेश ने बताया कि ये नंबर एफएम टीवी न्यूज चैनल में उस के साथ काम करने वाली भावना आर्या तथा दोस्त अखिल कुमार के हैं. इस में भावना आर्या के फोन पर अजितेश की लगभग हर रोज बातें होती थीं.

टीवी चैनल की मेकअप आर्टिस्ट से था चक्कर कहीं भावना व अजितेश के बीच नाजायज संबंधों का मकड़जाल तो नहीं? इस की जानकारी करने पुलिस टीम 16 अक्तूबर, 2019 को एफएम टीवी न्यूज चैनल के सेक्टर-63 नोएडा स्थित औफिस पहुंची और कई लोगों से पूछताछ की. पता चला कि भावना आर्या और अजितेश के बीच कुछ ज्यादा ही गहरे प्रेम संबंध हैं.

इन संबंधों के कारण पतिपत्नी के बीच तनाव बढ़ गया था. अखिल दोनों के प्यार की धुरी बना हुआ था. यह जानकारी भी मिली कि अजितेश की पत्नी दिव्या अखिल को अपना मुंहबोला भाई मानती थी और उसे राखी बांधती थी.

यह पता चलते ही पुलिस टीम ने भावना आर्या और अखिल कुमार को उन के कार्यालय से हिरासत में ले लिया और उन्हें ले कर इटावा आ गई. पुलिस ने सिविल लाइंस कोतवाली में अजितेश को भी बुलवा लिया. अजितेश का सामना भावना आर्या और अखिल से हुआ तो उस का चेहरा फीका पड़ गया.

पुलिस टीम ने सब से पहले अखिल से पूछताछ की. अखिल पहले तो पुलिस टीम को बरगलाता रहा और कहता रहा कि दिव्या उस की मुंहबोली बहन थी. भला एक भाई अपनी बहन की हत्या कैसे कर सकता है.

लेकिन जब पुलिस टीम ने उस पर सख्ती की तो वह टूट गया. उस ने दिव्या की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उस ने बताया कि हत्या का षडयंत्र अजितेश और उस की प्रेमिका भावना आर्या ने रचा था. पैसों का लालच दे कर उसे दिव्या की हत्या के लिए इटावा भेजा गया था. अखिल ने स्वीकार कर लिया कि दिव्या की हत्या उस ने ही की थी.

अखिल के बाद अजितेश और भावना ने भी जुर्म कबूल कर लिया. भावना ने बताया कि वह अजितेश से प्यार करती थी. दोनों शादी करना चाहते थे, लेकिन अजितेश की पत्नी दिव्या उस के प्यार में बाधक थी, इसलिए षडयंत्र रच कर उस को मरवा दिया.

अजितेश ने बताया कि उस की शादी को 3 वर्ष बीत चुके थे, लेकिन दिव्या संतान सुख नहीं दे पाई, जिस से वह उस से दूर भागने लगा. इसी बीच साथ काम करने वाली भावना से उस की दोस्ती हुई. दोस्ती प्यार में बदल गई और दोनों शादी करने को राजी हो गए. लेकिन इस में पत्नी दिव्या दीवार बन गई थी, इसलिए उसे रास्ते से हटा दिया गया.

न्यूज एंकर और उस की प्रेमिका ने स्वीकारा जुर्म  पुलिस टीम ने दिव्या हत्याकांड का परदाफाश करने तथा कातिलों को पकड़ने की जानकारी एसएसपी संतोष कुमार मिश्रा को दे दी. मिश्राजी ने आननफानन में प्रैसवार्ता आयोजित कर अभियुक्तों को मीडिया के समक्ष पेश कर घटना का खुलासा कर दिया. प्रैसवार्ता में एसएसपी ने घटना का खुलासा करने वाली टीम को 15 हजार रुपए पुरस्कार देने की भी घोषणा की.

चूंकि कातिलों ने हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया था, अत: पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 120बी के तहत अजितेश मिश्रा, भावना आर्या तथा अखिल कुमार सिंह को नामजद कर के उन्हें विधिसम्मत बंदी बना लिया. पुलिस जांच से पति द्वारा पत्नी की हत्या किए जाने की सनसनीखेज घटना प्रकाश में आई.

उत्तर प्रदेश के इटावा शहर के सिविल लाइंस थाना अंतर्गत एक मोहल्ला कटरा बलसिंह पड़ता है. शहर के बीचोंबीच स्थित इस मोहल्ले में प्रमोद कुमार मिश्रा अपने परिवार के साथ रहते थे.

उन के परिवार में पत्नी सुधा के अलावा 3 बेटे थे, जिस में अजितेश सब से छोटा था. प्रमोद कुमार मिश्रा कर्वा खेड़ा जनता माध्यमिक विद्यालय में प्रधानाध्यापक थे, किंतु अब रिटायर हो चुके थे. मोहल्ले में उन की अच्छी प्रतिष्ठा थी. उन का अपना 3 मंजिला मकान था. उन की आर्थिक स्थिति भी मजबूत थी.

प्रमोद कुमार मिश्रा स्वयं उच्चशिक्षा प्राप्त थे, अत: उन्होंने तीनों बेटों को उच्चशिक्षा दिलाई थी. उन के 2 बेटे पढ़लिख कर नासिक में नौकरी करने लगे थे. उन्होंने दोनों बेटों की शादी भी अच्छे घरानों में की थी. होली दीवाली जैसे बड़े त्यौहारों पर बेटेबहू इटावा आते थे और घर में खुशियां मनाते थे.

अजितेश अपने अन्य भाइयों की अपेक्षा ज्यादा स्मार्ट तथा तेजतर्रार था. अजितेश पढ़लिख कर एफएम टीवी न्यूज चैनल नोएडा में काम करने लगा था. वह वहां न्यूज एंकर था. अजितेश कमाने लगा तो प्रमोद मिश्रा ने उस की शादी इटावा की ही फ्रैंड्स कालोनी निवासी राजीव तिवारी की बेटी दिव्या से सन 2015 में कर दी. दिव्या एमए की पढ़ाई कर रही थी. दिव्या बेहद खूबसूरत थी.

खूबसूरत पत्नी पा कर जहां अजितेश खुश था, वहीं उस के मातापिता भी फूले नहीं समा रहे थे. दिव्या ने ससुराल आते ही घर संभाल लिया था. वह पति का तो खयाल रखती ही थी, सासससुर की सेवा में भी कोई कोरकसर नहीं छोड़ती थी. वह अपनी ददिया सास का भी पूरा खयाल रखती थी.

दिव्या कुछ महीने ससुराल में रही, उस के बाद नोएडा चली गई और पति अजितेश के साथ रहने लगी. दिव्या और अजितेश का वैवाहिक जीवन सुखमय बीतने लगा. अजितेश को जब समय मिलता, वह दिव्या को सैरसपाटे के लिए भी ले जाता था.

दिव्या अखिल को मानती थी भाई  दिव्या के नोएडा स्थित घर पर अखिल कुमार सिंह का आनाजाना लगा रहता था. अखिल कुमार दिव्या के पति अजितेश के साथ चैनल में काम करता था. दोनों के बीच गहरी दोस्ती थी.

अखिल दिव्या को बहन मानता था. दिव्या ने भी उसे मुंहबोला भाई बना लिया था. अखिल मूलरूप से अमर नगर, फरीदाबाद का रहने वाला था और अजनारा हाउस, ग्रेटर नोएडा में रहता था. दिव्या अखिल को अपना विश्वासपात्र मानती थी.

सुखमय जीवन व्यतीत करते 3 साल कब बीत गए, इस का अजितेश और दिव्या को पता ही नहीं चला. लेकिन इन 3 सालों में दिव्या मां नहीं बन सकी थी. जहां दिव्या के मन में गोद सूनी होने का दर्द था तो वहीं अजितेश के मन में भी मलाल था कि वह अभी तक बाप नहीं बन सका.

ऐसा नहीं था कि दिव्या ने अपना इलाज न कराया हो पर वह संतान सुख प्राप्त नहीं कर सकी थी. दिव्या जब भी ससुराल जाती तो सास उसे टोकती, ‘‘बहू, तू खुशखबरी कब देगी. खुशखबरी सुनने के लिए मेरे कान तरस रहे हैं.’’

दिव्या लजातेसकुचाते हुए सास को जवाब दे देती. धीरेधीरे अजितेश के मन में यह बात घर कर गई कि शायद दिव्या अब कभी मां नहीं बन पाएगी. इस टीस ने दोनों के प्यार में दरार पैदा कर दी. अब अजितेश दिव्या से दूर भागने लगा. मन ही मन वह उस से नफरत करने लगा.

अजितेश और भावना  इस तरह आए नजदीक उन्हीं दिनों अजितेश की नजर खूबसूरत भावना आर्या पर पड़ी. भावना आर्या के पिता ललित नारायण आर्या नई दिल्ली स्थित नैशनल स्टेडियम में नौकरी करते थे. भावना आर्या उन की लाडली बेटी थी. वह पढ़ीलिखी और तेजतर्रार थी. भावना भी एमएम टीवी न्यूज चैनल में मेकअप आर्टिस्ट थी. अजितेश और भावना एकदूसरे को अच्छी तरह से जानते थे. अकसर दोनों के बीच बातें होती रहती थीं.

इन्हीं बातों के चलते अजितेश भावना को चाहने लगा. वैसे तो वह कई सालों से उसे देखता आ रहा था, लेकिन उस के मन में भावना के प्रति प्यार तब जागा, जब संतान न होने पर पत्नी से उस की दूरियां बढ़ीं.

टीवी चैनल में मेकअप आर्टिस्ट होने की वजह से भावना का रहनसहन और व्यवहार उसी तरह का हो गया था. वह बनसंवर कर घर से आती थी तो देर रात को ही घर लौटती.

भावना की खूबसूरती अजितेश को अपनी ओर आकर्षित करने लगी थी. दिल के हाथों मजबूर अजितेश भावना का सामीप्य पाने को बेचैन रहने लगा था. इस के लिए वह भावना से नजदीकियां बढ़ाने लगा था, लेकिन वह उस से दिल की बात कह नहीं पा रहा था.

लेकिन दिल तो दिल है, वह कब किस पर आ जाए, कोई नहीं जानता. जब अजितेश से रहा नहीं गया तो एक दिन उस ने भावना से दिल की बात कह दी, ‘‘भावना, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. तुम्हारा प्यार पाने को मैं बेचैन हूं. तुम मेरे दिल में रचबस गई हो.’’

अजितेश की बात सुन कर भावना बोली, ‘‘अजितेश, तुम शादीशुदा हो. फिर मेरा प्यार क्यों पाना चाहते हो. रही बात प्यार की, वह मैं तुम्हें पहले से ही करती हूं.’’

‘‘दिव्या और मेरे प्यार के बीच दरार पड़ गई है. मैं उस से नफरत करने लगा हूं. दिव्या खूबसूरत जरूर है पर 3 साल बाद भी वह मां नहीं बन सकी.’’ वह बोला.

भावना आर्या अजितेश को पहले से ही प्यार करती थी. अत: जब उसे वजह पता चली तो उस ने उस का प्यार स्वीकार कर लिया. इस के बाद दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. दोनों साथसाथ घूमने जाने लगे और लंच व डिनर साथ लेने लगे. जवानी के जोश में दोनों ने मर्यादा की दीवार भी गिरा दी. इतना ही नहीं, उन्होंने एक साथ रहने का भी फैसला कर लिया.

अजितेश और भावना के बीच नाजायज रिश्ता बना तो अजितेश घर में देरसवेर आने लगा. कभी वह पत्नी का बनाया हुआ खाना खाता तो कभी बिना खाए ही सो जाता. दिव्या कुछ कहती तो वह उस पर बरस पड़ता. दिव्या कहीं बाहर चल कर मूड फ्रैश करने को कहती तो मना कर देता.

अब उस ने दिव्या की फरमाइश पूरी करनी भी बंद कर दी थीं. दिव्या की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर अजितेश को हो क्या गया है.

एक दिन अखिल घर आया तो दिव्या ने उसे अजितेश के दुर्व्यवहार के संबंध में बताया और लेट घर आने के बारे में पूछा.

अखिल ने पहले तो बात टालने का प्रयास किया, लेकिन जब दिव्या ने कसम दिलाई तो अखिल ने सच्चाई बता दी, ‘‘दीदी, भैया आजकल न्यूज चैनल में मेकअप आर्टिस्ट भावना आर्या के प्यार में उलझे हैं. वह उसी के साथ आजकल मौजमस्ती करते हैं.’’

अखिल की बात सुन कर दिव्या अवाक रह गई. उसे अपना भविष्य अंधकारमय लगने लगा. क्योंकि कोई भी औरत भूख, गरीबी तो सह सकती है, लेकिन पति का बंटवारा सहन नहीं कर सकती. तो भला दिव्या यह सब कैसे सहन कर लेती.

इसलिए उस ने अजितेश और भावना के अवैध संबंधों का विरोध करना शुरू कर दिया. इस विरोध के कारण घर में कलह होने लगी. लेकिन दिव्या के विरोध के बावजूद अजितेश ने भावना का साथ नहीं छोड़ा.

दिव्या पढ़ीलिखी और संस्कारवान थी, इसलिए उस ने अजितेश को प्यार से समझाया और पिता की इज्जत का वास्ता दिया. साथ ही भावना को भी उस ने आड़े हाथों लिया. उस ने उसे खूब खरीखोटी सुनाई. दिव्या की खरीखोटी से भावना तिलमिला उठी. उस ने अजितेश से दिव्या की शिकायत की.

अक्तूबर के पहले सप्ताह में दिव्या नोएडा से अपनी ससुराल इटावा आ गई. दरअसल दिव्या की सास अपने बड़े बेटे के पास नासिक चली गई थी, अत: ससुर प्रमोद कुमार मिश्रा ने उसे घर की देखभाल के लिए बुलवा लिया था. घर में प्रमोद मिश्रा की बूढ़ी मां थीं, जिन की देखभाल के लिए दिव्या का वहां रहना जरूरी था.

दिव्या ससुराल जरूर आ गई थी, लेकिन वह अजितेश से मोबाइल पर संपर्क बनाए रखती थी. बातचीत के दौरान वह पति को भावना से दूर रहने की नसीहत देती रहती थी. अजितेश दिव्या को आश्वासन दे देता कि उस ने भावना से दूरी बना ली है. जबकि हकीकत इस के उलट थी. दोनों मस्ती में चूर थे.

7 अक्तूबर, 2019 की दोपहर दिव्या ने पति को फोन किया तो फोन भावना ने रिसीव किया. दिव्या समझ गई कि भावना और अजितेश एक साथ रूम में हैं, अत: उस का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. दिव्या ने फोन पर ही भावना को खूब फटकारा और यहां तक कह दिया कि उस के शरीर में ज्यादा गरमी है तो कोठे पर क्यों नहीं बैठ जाती.

तीखी नोकझोंक के बाद दिव्या ने  फोन बंद कर दिया. चंद मिनट बाद ही दिव्या के पास अजितेश का फोन आ गया. उस ने दिव्या को फटकार लगाते हुए कहा कि उसे भावना से इस तरह बात नहीं करनी चाहिए थी.

दिव्या के व्यंग बाणों से भावना का दिल छलनी हो गया था. उस ने उसी दिन निश्चय कर लिया कि अब या तो दिव्या अजितेश के साथ रहेगी या फिर वह.

उस ने इस बारे में अजितेश से बात की, ‘‘देखो अजितेश, एक म्यान में दो तलवारें कभी नहीं रह सकतीं. दिव्या और मैं भी एक साथ नहीं रह सकते. इसलिए अब तुम्हें हम दोनों में से किसी एक को चुनना होगा. 2 दिन बाद तुम मुझे अपने निर्णय से अवगत करा देना.’’

अजितेश भावना के प्यार में आकंठ डूबा था. उस ने पत्नी के बजाए प्रेमिका को चुना. 2 दिन बाद भावना मिली तो उस ने उसे अपने निर्णय से अवगत करा दिया. इस के बाद अजितेश और भावना ने सिर से सिर जोड़ कर दिव्या की हत्या का षडयंत्र रचा.

इस षडयंत्र में अजितेश ने रुपयों का लालच दे कर दोस्त अखिल कुमार को भी शामिल कर लिया. दरअसल दिव्या अखिल को अपना मुंहबोला भाई मानती थी और उस पर विश्वास भी करती थी. इस नाते अखिल दिव्या तक आसानी से पहुंच सकता था.

योजना के तहत अजितेश ने एक नया सिम और मोबाइल खरीद कर अखिल कुमार को दे दिया. साथ ही इस नए मोबाइल पर ही बात करने को कहा. हत्या की पूरी योजना समझाने के बाद 14 अक्तूबर, 2019 की सुबह अजितेश ने अखिल को दिव्या की हत्या करने के लिए बस द्वारा इटावा भेज दिया.

लालच में अखिल हो गया हत्या करने को तैयार  लगभग 7 घंटे का सफर तय करने के बाद दोपहर 12 बजे अखिल कुमार इटावा पहुंच गया. इस बीच अजितेश अपनी पत्नी दिव्या और पिता प्रमोद से मोबाइल पर बात करता रहा ताकि दोनों की लोकेशन मिलती रहे. इस लोकेशन से अजितेश अखिल को भी अवगत कराता रहा.

लगभग एक बजे अखिल कुमार कटरा बलसिंह स्थित दिव्या के मकान पर पहुंचा और डोरबेल बजा दी. दिव्या ने तीसरी मंजिल से नीचे झांक कर देखा तो गेट पर उस का मुंहबोला भाई अखिल खड़ा था.

वह उसे देखते ही खुश हो गई और नीचे उतर आई. गेट खोल कर वह अखिल को अपने कमरे में ले आई. उस समय दिव्या के ससुर प्रमोद कुमार घर पर नहीं थे. वह स्कूल के कार्यक्रम में गए थे और बूढ़ी ददिया सास सो रही थीं.

दिव्या ने 2 कप चाय बनाई और अखिल के साथ चाय पीने लगी. इस बीच उस ने अपनी शादी का एलबम अखिल को दिखाया तथा अखिल से कहा कि वह अपने भाई को समझाए कि वह भावना के प्यार के जाल में न फंसे. लेकिन अखिल तो कुछ और ही सोच रहा था. उस की निगाह कमरे में रखे चीनी मिट्टी के फूलदान पर पड़ी. मौका पाते ही उस ने फूलदान उठाया और दिव्या के सिर पर दे मारा.

फूलदान के प्रहार से दिव्या का सिर फट गया. फिर दिव्या को समझते देर नहीं लगी कि अखिल को उस की हत्या के लिए भेजा गया है. इसलिए बचाव के लिए वह अखिल से भिड़ गई लेकिन अधिक खून बहने से वह बेहोश हो कर गिर पड़ी. इस बीच अखिल ने अजितेश को मैसेज भेजा कि दिव्या की सांसें चल रही हैं.

इस पर अजितेश ने मैसेज का जवाब दिया कि सांसें थाम दो. तब अखिल ने दिव्या का सिर जमीन पर पटकपटक कर सांसें थाम दीं. दिव्या की हत्या करने के बाद वह आराम से गेट खोल कर घर से निकल गया. बस स्टाप पहुंच कर वह नोएडा के लिए रवाना हो गया.

इधर 2 बजे प्रमोद कुमार मिश्रा घर आए. उन्होंने खाना देने के लिए दिव्या को आवाज दी तथा फोन भी लगाया. लेकिन कोई रिस्पौंस नहीं मिला. तब उन्हें लगा कि शायद बहू सो गई है. तब वह भी आराम करने के लिए बिस्तर पर लेट गए.

एक घंटे बाद वह जागे तो मेनगेट खुला था. वह समझ गए कि घर के अंदर कोई आयागया है. पता करने के लिए वह कमरे में पहुंचे तो बहू दिव्या खून से लथपथ पड़ी थी.

हत्यारोपी अजितेश मिश्रा, अखिल कुमार तथा भावना आर्या से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें 18 अक्तूबर, 2019 को इटावा कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट श्री जे.पी. शर्मा की अदालत में पेश किया, जहां से तीनों को जिला कारागार भेज दिया गया.

कथा संकलन तक उन की जमानत स्वीकृत नहीं हुई थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

पूजा सिंह केस : ड्राइवर बना जान का दुश्मन

कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु के दक्षिण में स्थित केंपेगौड़ा इंटरनैशनल एयरपोर्ट के पास एक गांव है कडयारप्पनहल्ली. 31 जुलाई, 2019 की बात है. इस गांव के कुछ लोग सुबहसुबह जब जंगल की ओर जा रहे थे, तो रास्ते में उन्होंने एक युवती की लाश पड़ी देखी. उन लोगों ने इस बात की जानकारी कडयारप्पनहल्लीके सरपंच को दी. सरपंच ने बिना विलंब किए इस मामले की सूचना बेंगलुरु पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी.

सरपंच और कंट्रोल रूम से खबर पाते ही बेंगलुरु सिटी पुलिस हरकत में आ गई.  थानाप्रभारी ने ड्यूटी पर तैनात अफसर को इस मामले की डायरी बनाने को कहा और पुलिस टीम के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

20 मिनट में पुलिस टीम घटनास्थल पर पहुंच गई. उस समय तक इस घटना की खबर आसपास के गांवों में फैल गई थी. देखतेदेखते घटनास्थल पर काफी भीड़ एकत्र हो गई थी.

घटनास्थल पर पहुंच कर पुलिस टीम ने गांव के सरपंच से मामले की जानकारी ली और उसी के आधार पर जांच शुरू कर दी. सूचना मिलने पर बेंगलुरु (साउथ) के डीसीपी भीमाशंकर एस. गुलेड़ भी मौकाएवारदात पर आ गए. उन के साथ फोरैंसिक टीम भी थी.

फोरैंसिक टीम का काम खत्म होने के बाद डीसीपी भीमाशंकर एस. गुलेड़ ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. मामले की गंभीरता को देखते हुए उन्होंने जांच टीम को आवश्यक दिशानिर्देश दिए.

डीसीपी साहब के चले जाने के बाद पुलिस टीम ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. मृतका की लाश के पास से पुलिस को आईडी कार्ड या मोबाइल फोन वगैरह कुछ नहीं मिला था, जिस से उस की शिनाख्त हो पाती. लेकिन स्वस्थ, सुंदर युवती के कपड़ों से लग रहा था कि वह किसी संपन्न और संभ्रांत परिवार से थी.

मृतका की कलाई में टाइटन की घड़ी थी. साथ ही वह ब्रांडेड कपड़े पहने हुए थी. उस की गरदन पर बना टैटू भी इस बात का संकेत था कि उस का संबंध किसी बड़े शहर से था. हत्यारे ने उस की बड़ी बेरहमी से हत्या की थी.

युवती के सीने और पेट पर चाकू के गहरे घाव थे. सिर पर किसी भारी चीज से प्रहार किया गया था. उस का चेहरा इतना विकृत कर दिया गया था ताकि उसे पहचाना न जा सके.

घटनास्थल का निरीक्षण कर के पुलिस ने युवती की लाश को पोस्टमार्टम के लिए बेंगलुरु सिटी अस्पताल भेज दिया.

घटनास्थल की सारी काररवाई पूरी कर के पुलिस टीम थाने लौट आई और हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. इस के साथ ही पुलिस युवती की पहचान और हत्यारे की खोज में लग गई.

पुलिस की प्राथमिकता थी युवती की पहचान करना क्योंकि बिना शिनाख्त के जांच आगे बढ़ाना मुश्किल था. युवती की शिनाख्त के लिए पुलिस के पास युवती के ब्रांडेड कपड़ों और चप्पलों के अलावा कुछ नहीं था. पुलिस ने उस के ब्रांडेड कपड़ों और चप्पलों के बार कोड का सहारा लिया. बार कोड से पुलिस ने यह जानने की कोशिश की कि ऐसी मार्केट कहांकहां और किनकिन शहरों में हैं, जहां मृतका जैसे कपड़े और चप्पल मिलते हों.

पुलिस की मेहनत रंग लाई  गूगल पर सर्च करने के बाद पुलिस को जानकारी मिली कि ऐसी मार्केट दिल्ली और पश्चिम बंगाल के कोलकाता में अधिक हैं. यह पता चलते ही पुलिस ने दिल्ली और पश्चिम बंगाल की फेमस दुकानों की लिस्ट तैयार कर के उन से संपर्क साधा. पुलिस ने उन दुकानों से उन ग्राहकों की पिछले 2 सालों की लिस्ट मांगी, जिन्होंने औनलाइन या सीधे तौर पर खरीदारी की थी.

इस के साथ ही बेंगलुरु सिटी पुलिस ने उस युवती की लाश के फोटो और हुलिया दिल्ली और कोलकाता के सभी पुलिस थानों को भेज कर यह जानने की कोशिश की कि कहीं किसी पुलिस थाने में किसी युवती की गुमशुदगी तो दर्ज नहीं है. लेकिन इस का कोई नतीजा नहीं निकला. इस के बावजूद पुलिस निराश नहीं हुई.

पुलिस उच्चाधिकारियों के आदेश पर जांच के लिए पुलिस की 2 टीमें बनाई गईं. इन में से एक टीम को दिल्ली भेजा गया और दूसरी को कोलकाता. इस कोशिश में पुलिस को कामयाबी मिली.

पुलिस को जो जानकारी चाहिए थी, वह कोलकाता के थाना न्यू टाउन से मिली. मृत युवती की गुमशुदगी थाना न्यू टाउन में दर्ज थी. पुलिस को पता चला कि जिस युवती की लाश मिली थी, वह कोई आम युवती नहीं बल्कि सेलिब्रिटी थी, नाम था पूजा सिंह.

वह इंटरटेनमेंट चैनल स्टारप्लस के सीरियल ‘दीया और बाती हम’ का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा थी. उस ने और भी कई धारावाहिकों में महत्त्वूपर्ण भूमिकाएं निभाई थीं. साथ ही वह एक इवेंट मैनेजमेंट कंपनी की फ्रीलांस मौडल भी थी. पूजा सिंह अपने पति सुदीप डे के साथ कोलकाता के न्यू टाउन में रहती थी.

पता मिल गया तो बेंगलुरु पुलिस न्यू टाउन स्थित सुदीप डे के घर पहुंच गई. पता चला कि सुदीप डे और पूजा सिंह ने लव मैरिज की थी. सुदीप डे ने बताया कि पूजा 29 जुलाई, 2019 को इवेंट मैनेजमेंट कंपनी के बुलावे पर उन के एक प्रोग्राम में हिस्सा लेने बेंगलुरु गई थी. उसे 31 जुलाई की सुबह फ्लाइट ले कर कोलकाता आना था.

जब वह नहीं आई तो सुदीप ने उस के मोबाइल पर काल की, लेकिन पूजा का फोन बंद था. जहांजहां पूछताछ करना संभव था, उन्होंने फोन किया. लेकिन कहीं से भी संतोषजनक जवाब नहीं मिला. आखिर सारा दिन इंतजार करने के बाद उन्होंने थाना न्यू टाउन में पूजा की गुमशुदगी की शिकायत दर्ज करा दी.

पुलिस ने अपना काम किया भी, पर पूजा का कोई पता नहीं लग सका. वह खुद भी नातेरिश्तेदारों और दोस्तों से बात कर के पूजा का पता लगाते रहे.

हत्यारे ने खुद सुझाया रास्ता  इसी बीच सुदीप के मोबाइल पर एक चौंका देने वाला मैसेज आया. मैसेज पूजा सिंह के फोन से ही किया गया था. मैसेज में लिखा था कि वह हैदराबाद में है और पैसे के लिए परेशान है. इस मैसेज में एक बैंक एकाउंट नंबर दे कर उस में 5 लाख रुपए डालने को कहा गया था.

यह बात सुदीप डे को हजम नहीं हुई, क्योंकि यह संभव ही नहीं था कि पूजा सिंह पैसे के लिए परेशान हो और अगर ऐसा होता भी तो वह पति से सीधे बात कर सकती थी. जिस तरह टूटीफूटी अंगरेजी में मैसेज था, वह भी गले उतरने वाला नहीं था क्योंकि पूजा की इंग्लिश पर अच्छी पकड़ थी.

मतलब साफ था कि पूजा का मोबाइल किसी गलत व्यक्ति के हाथों में पड़ गया था. इस से भी महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि हैदराबाद में पूजा का कोई प्रोग्राम था ही नहीं.

सुदीप ने पुलिस हेल्पलाइन से बैंक एकाउंट नंबर का पता लगाने की रिक्वेस्ट की तो पता चला कि वह एकाउंट नंबर बेंगलुरु के किसी नागेश नाम के व्यक्ति का था और पूरी तरह फ्रौड था.

सुदीप से मिली जानकारी से पुलिस जांच को दिशा मिल गई. सुदीप डे को साथ ले कर पुलिस टीम बेंगलुरु लौट आई. मृतका की शिनाख्त के बाद पूजा सिंह की लाश सुदीप को सौंप दी गई.

दूसरी ओर पुलिस ने नागेश का बायोडाटा एकत्र करना शुरू किया. पूजा सिंह के फोन की काल डिटेल्स से नागेश का फोन नंबर पता चल गया. कुछ जानकारियां उस के बैंक एकाउंट से भी मिलीं.

नागेश के मोबाइल की लोकेशन के सहारे 10 अगस्त, 2019 को उसे टैक्सी स्टैंड से गिरफ्तार कर लिया गया, वह टैक्सी ड्राइवर था. इस मामले में उस से पूछताछ डीसीपी भीमाशंकर एस. गुलेड़ ने खुद की.

शुरू में तो नागेश ने इमोशनल ड्रामा कर के डीसीपी साहब को घुमाने की कोशिश की लेकिन जब पुलिस ने अपने हथकंडे अपनाए तो वह मुंह खोलने को मजबूर हो गया. अंतत: उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने टीवी एक्टर पूजा सिंह की हत्या की जो कहानी बताई, वह कुछ इस तरह थी—

साधारण परिवार का 22 वर्षीय एच.एम. नागेश बेंगलुरु के संजीवनी नगर, हेग्गनहल्ली का रहने वाला था. मातापिता की गरीबी की वजह से उस ने बचपन से ही काफी कष्ट उठाए थे. महत्त्वाकांक्षी स्वभाव के नागेश ने बड़ी मुश्किल से 10वीं पास की थी.

जवान होते ही उस ने टैक्सी चलाने का काम शुरू कर दिया था. नागेश की शादी हो चुकी थी और उस के 2 बच्चे भी थे. घरपरिवार को चलाने की पूरी जिम्मेदारी उसी के कंधों पर थी.

शुरू में काफी दिनों तक नागेश ने किराए की टैक्सी चलाई. बाद में उस ने यारदोस्तों की मदद और बैंक से लोन ले कर खुद की टैक्सी खरीद ली, जिसे उस ने ओला कैब में लगा दिया था. लेकिन इस से भी नागेश को ज्यादा कमाई नहीं होती थी, बस जैसेतैसे काम चल जाता था.

पूजा सिंह मौत का साया नहीं देख पाईं  जिन दिनों उस की मुलाकात टीवी स्टार पूजा सिंह से हुई, उन दिनों वह आर्थिक रूप से काफी परेशान था. दरअसल, उसे हर हफ्ते बैंक को किस्त देनी होती थी. लेकिन उस की टैक्सी के 2 हफ्ते बिना पेमेंट के छूट गए थे. 2 किस्तें भरने के लिए बैंक ने लेटर भेजा था.

29 जुलाई, 2019 को पूजा सिंह जब इवेंट मैनेजमेंट के प्रोग्राम के लिए बेंगलुरु आईं तो उस ने एयरपोर्ट से नागेश की ओला कैब हायर की. पूजा उस की कैब से वरपन्ना की अग्रहारा लौज गई थीं. उस के बातव्यवहार से पूजा सिंह कुछ इस तरह प्रभावित हुईं कि उन्होंने नागेश को अपने पूरे प्रोग्राम में साथ रखने का फैसला कर लिया. होटल में फ्रैश होने के बाद पूजा अपने कार्यक्रम के लिए निकलीं तो रात लगभग 12 बजे के आसपास वापस लौटीं.

नागेश को किराया देने के लिए पूजा सिंह ने अपना पर्स खोला और किराए के अलावा उसे अच्छी टिप दी. 31 जुलाई, 2019 की सुबह साढ़े 4 बजे पूजा को कोलकाता वापस लौटना था. इस के लिए उन्हें फ्लाइट पकड़नी थी, इसलिए उन्होंने नागेश को साढे़ 3 बजे एयरपोर्ट छोड़ने के लिए कहा. इस के लिए नागेश ने पूजा सिंह से 1200 रुपए मांगे, जिसे उन्होंने खुशीखुशी मान लिया. नागेश पूजा सिंह के व्यवहार से खुश था. लेकिन होनी को कौन रोक सकता है.

चूंकि सुबह 3 बजे नागेश को जल्दी आ कर पूजा सिंह को ले कर एयरपोर्ट छोड़ना था, इसलिए घर न जा कर उस ने टैक्सी होटल परिसर में ही पार्क कर दी और टैक्सी की सीट लंबी कर के सोने की कोशिश करने लगा.

लेकिन दिमागी परेशानी ने उसे आराम नहीं करने दिया. उसे बैंक की 3 हफ्ते की किस्तें देनी थीं. उसे घर के खर्च और बैंक की किस्तों की चिंता खाए जा रही थी.

पूजा सिंह ने नागेश को जब किराया और टिप दी थी तो उस की नजर नोटों से भरे पूजा के पर्स पर चली गई थी. जब उस के दिमाग में कई तरह के सवाल आ रहे थे, तब बारबार उस की आंखों के सामने पूजा सिंह का पर्स भी लहरा रहा था.

नागेश ने बनाई हत्या की योजना सोचतेसोचते नागेश के मन में एक खतरनाक योजना बन गई और उस ने उस पर अमल करने का फैसला कर लिया. पूजा सिंह को लूट कर वह अपनी परेशानियों से पीछा छुड़ाना चाहता था. उस ने सोचा कि पूजा सिंह दूसरे शहर की रहने वाली है, किसी को पता भी नहीं चलेगा.

मन ही मन योजना बनातेबनाते उसे नींद आ गई. उस की नींद तक टूटी जब होटल के स्टाफ का एक व्यक्ति पूजा सिंह का सामान ले कर उस के पास आया. टैक्सी में सामान रखवाने के बाद नागेश ने तरोताजा होने के लिए अपनी पानी की बोतल ले कर मुंह पर छींटे मारे. पूजा सिंह आ गईं तो उन्हें ले कर वह एयरपोर्ट की तरफ चल दिया.

जितनी तेजी से उस की टैक्सी भाग रही थी, उतनी ही तेजी से उस का दिमाग चल रहा था. काम में व्यस्त रहने के कारण पूजा ठीक से सो नहीं पाई थीं, जिस की वजह से कैब में बैठेबैठे उन्हें नींद आ गई. पूजा को नींद में देख नागेश के मन का शैतान रौद्र रूप लेने लगा. उस ने टैक्सी का रुख सुनसान निर्जन स्थान की तरफ कर दिया.

पूजा सिंह की नींद खुली तो कैब के आसपास सन्नाटा देख घबरा गईं. टैक्सी रुकवा कर वह नागेश से कुछ बात कर पातीं, इस से पहले ही नागेश ने जैक रौड से पूजा सिंह के सिर पर वार कर दिया, जिस से वह बेहोश हो कर गिर गईं.

नागेश पूजा सिंह का सारा सामान ले कर फरार हो पाता, इस के पहले ही पूजा सिंह को होश आ गया. वह अपने बचाव के लिए चीखतेचिल्लाते हुए कैब से उतर कर रोड की तरफ भागने लगीं. लेकिन वह अपनी मौत से भाग नहीं पाईं.

नागेश ने उन्हें पकड़ लिया और अपनी सुरक्षा के लिए रखे चाकू से पूजा सिंह को गोद कर मौत की नींद सुला दिया. बाद में वह पूजा सिंह के शव को वहीं छोड़ कर फरार हो गया.

पूजा सिंह को लूट कर वह निश्चिंत हो गया था, लेकिन उसे तब झटका लगा जब आशा के अनुरूप पूजा सिंह के पर्स से उस के हाथ कुछ नहीं लगा. जिस समस्या के लिए उस ने इतना बड़ा अपराध किया था, वह पूरी नहीं हो सकी. वह कैसे या क्या करे, यह बात उस की समझ में नहीं आ रही थी.

तभी पूजा सिंह का मोबाइल उस के लिए रोशनी की किरण बना. उस ने पूजा सिंह के मोबाइल से उन के पति सुदीप डे को अपना एकाउंट नंबर दे कर 5 लाख रुपए डालने का मैसेज भेज दिया. बस यही उस के गले की फांस बन गया.

एच.एम. नागेश से विस्तृत पूछताछ के बाद उसे महानगर मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. पुलिस ने उस की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल चाकू, जैक रौड और टैक्सी पहले ही बरामद कर ली थी.

दोस्ती की कमजोर छत

सुरेशचंद्र रोहरा   

छत्तीसगढ़ के जिला महासमुंद के गांव किशनपुर में मनहरण उर्फ मोनो और दुर्गेश उर्फ पुस्तम की दोस्ती एक मिसाल बन चुकी थी. लोग उन की दोस्ती की नजीर दिया करते थे. दोनों का ही एकदूसरे के घर खूब आनाजाना था.

करीब 6 महीने पहले मनहरण की शादी आरती से हुई थी. दोनों की गृहस्थी ठीक चल रही थी. दुर्गेश को पिथौरा में आरटीओ एजेंट से काम था. उस ने सोचा कि पहले मनहरण के घर जाएगा, वहां से उसे साथ ले कर एजेंट के पास चला जाएगा. यही सोच कर वह सुबह 8 बजे मनहरण के घर चला गया. मनहरण की पत्नी आरती नहाने के बाद नाश्ता तैयार करने के लिए किचन में जा रही थी, तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. आरती ने दरवाजा खोला तो दुर्गेश को आया देख कर मुसकराई. वह बोली, ‘‘भैया आप? आओ, अंदर आओ.’’

उस समय आरती बेहद खूबसूरत लग रही थी. दुर्गेश उसे निहारता रह गया. आरती उसे कमरे में ले गई. मनहरण उस समय सो रहा था. आरती दुर्गेश को बैठा कर चाय बनाने लगी. दुर्गेश आरती के खयालों में खो सा गया. कुछ ही देर में वह दुर्गेश के लिए चाय बना कर ले आई. आरती उसे खोया देख बोली, ‘‘क्या बात है भैया, कहां खो गए? लो, चाय पी लो.’’

‘‘कुछ नहीं भाभी, बस यूं ही… मनहरण कहां है, दिखाई नहीं दे रहा.’’ दुर्गेश ने पूछा.

‘‘अभी सो रहे हैं. मैं उठाती हूं.’’ कह कर वह पति को जगाने चली गई.  दुर्गेश के आने की बात सुन कर मनहरण ने बिस्तर छोड़ दिया. वह दुर्गेश के पास पहुंच कर बोला, ‘‘अरे यार, तुम बैठो मैं तुरंत तैयार होता हूं. बस 5 मिनट में…’’

इस बीच आरती दुर्गेश के पास बैठी बतियाती रही. उस दौरान दुर्गेश उसे चाहत की नजरों से देखता रहा. इस बात को आरती ने महसूस किया तो उस ने दुर्गेश को टोका, ‘‘क्या बात है दुर्गेश भैया, ऐसा क्या है जो मुझे इतनी गौर से देखे जा रहे हो?’’

दुर्गेश ने साहस कर के कहा, ‘‘भाभी, मैं देख रहा हूं कि आप कितनी खूबसूरत हैं. आप की मिसाल तो पूरी दुनिया में नहीं मिलेगी. मेरा दोस्त कितना भाग्यशाली है, जो आप उसे मिली हैं.’’ चाय की चुस्कियां लेते हुए दुर्गेश बोला.

‘‘तुम जरूर झूठी तारीफ कर रहे हो. कुछ लोग दोस्त की पत्नी की झूठी तारीफ इसलिए करते हैं कि समय पर चायनाश्ता मिलता रहे.’’ कह कर आरती रसोई की ओर जाने लगी तो दुर्गेश ने कहा, ‘‘भाभी, एक बात कहूं.’’

आरती ने ठिठकते हुए रुक कर उस की ओर देखा तो वह बोला, ‘‘मैं जो भी कह रहा हूं सौ फीसदी सही है. आप इसे दिल बहलाने वाली बात मत समझना. आप वाकई…’’

आरती ने हंस कर कहा, ‘‘अच्छा भैया, तुम्हारी पत्नी खूबसूरत नहीं है क्या, बताओ तो. मैं आज ही तुम्हारे यहां आ धमकूंगी और सब कुछ बता दूंगी.’’

यह सुन कर दुर्गेश ने साहस के साथ कहा, ‘‘ऐसा है तो आप आज शाम को ही हमारे यहां आ जाओ. आप का स्वागत है. और हां, मेरी बात सही हुई तो मुझे क्या दोगी?’’

‘‘मैं भला तुम्हें क्या दूंगी? मगर मैं इतना जरूर जानती हूं कि तुम बिलावजह मेरी प्रशंसा कर रहे हो. तुम्हारी पत्नी रेशमा को मैं ने देखा है, समझे न.’’ आरती मुसकराते हुए बोली.

आरती कमरे से फिर जाने को हुई तो दुर्गेश ने रुकने का अनुरोध किया लेकिन वह उस की बातें अनसुनी कर के किचन में चली गई.

दोस्त की बीवी पर गंदी नजर

थोड़ी देर में मनहरण नहा कर बाहर आया और नाश्ता कर दुर्गेश के साथ चला गया.

इस के बाद दुर्गेश किसी न किसी बहाने मनहरण के घर आनेजाने लगा. दुर्गेश की आंखों के आगे बस आरती घूमती रहती थी. अब वह उसे पाने के उपाय खोजने लगा था. वह यह भी भूल गया था कि आरती उस के जिगरी दोस्त मनहरण की जीवनसंगिनी है.

पति की गैरमौजूदगी में भी दुर्गेश आरती से मिलता तो वह उसे पूरा सम्मान देती थी. लेकिन उस की नजरों की भाषा को समझते हुए वह खुद संयम से रहती थी.

एक दिन जब मनहरण घर पर नहीं था, तो दुर्गेश आ धमका और आरती से अधिकारपूर्वक बोला, ‘‘भाभी, आज मेरे सिर में बड़ा दर्द हो रहा है. मैं ने सोचा कि आप के हाथों की चाय पी लूं तो शायद सिरदर्द गायब हो जाए.’’

आरती ने स्वाभाविक रूप से उस का स्वागत किया और कहा, ‘‘बैठिए, मैं चाय बना कर लाती हूं. लेकिन भैया, यह तो बताओ कि मेरी बनाई चाय में ऐसा क्या जादू है, जो तुम ठीक हो जाओगे. और हां, रेशमा की चाय में ऐसा क्या नहीं है, जो तुम्हारा सिरदर्द ठीक नहीं होगा.’’ कह कर आरती हंसने लगी.

‘‘भाभी, मेरा यह मर्ज आप नहीं समझोगी.’’ वह बोला.

‘‘क्यों…क्यों नहीं समझूंगी. मुझे समझाओ मैं कोशिश करूंगी.’’ आरती ने भोलेपन से कहा.

‘‘भाभी, एक गाना है न ‘तुम्हीं ने दर्द दिया है, तुम्हीं दवा देना’ तो यह समझो कि दर्द तुम्हारा ही दिया हुआ है इसलिए यह तुम्हारी ही दवाई से ठीक भी होगा. इसलिए जल्द से चाय बना कर पिला दो.’’

आरती समझ रही थी कि दुर्गेश कुछ ज्यादा ही बहकने लगा है, इसलिए एक दिन उस ने पति को दुर्गेश की हरकतों का हवाला देते हुए सारी बातें विस्तार से बता दीं.

पति की गैरमौजूदगी में दुर्गेश के आनेजाने का मतलब आरती समझ रही थी. वह पति का दोस्त था, इसलिए वह उसे घर आने को मना भी नहीं कर सकती थी. उस का आदरसत्कार करना उस की मजबूरी थी. लेकिन दुर्गेश के वहां आने का मकसद कुछ और ही था.

एक दिन दुर्गेश आरती के यहां पहुंचा तो आरती उस के लिए चाय बना कर लाई. चाय पीते समय आरती बोली, ‘‘दुर्गेश भैया, मैं बहुत दिनों से आप से एक सवाल पूछना चाहती थी. सचसच बताओगे?’’

सुन कर दुर्गेश खिल उठा. उसे लगा कि बस उस की बात बन गई. आरती कुछ ऐसा कहेगी कि उस की मनोकामना पूरी हो जाने का रास्ता खुल जाएगा.

‘‘भाभी, आप एक क्या 2 बातें पूछो.’’ दुर्गेश खुश हो कर बोला.

‘‘भैया, पिछले साल एक मर्डर हुआ था, जिस में तुम्हारे बड़े भाई जेल में हैं, वो क्या मामला था?’’ आरती बोली.

आरती की बातें सुन कर दुर्गेश मानो आसमान से जमीन पर आ गिरा. वह सोचने लगा कि भाई द्वारा मर्डर करने की बात आरती को पता है. उस ने तत्काल बातों को घुमाया और कहने लगा, ‘‘कुछ नहीं भाभी, मेरे भैया को झूठा फंसाया गया था. भैया तो देवता समान आदमी हैं, वे भला किसी का मर्डर क्यों करेंगे. मैं तुम को सब कुछ बता दूंगा कि सच्चाई क्या है, मगर फिर किसी दिन…’’ दुर्गेश ने आरती की आंखों में डूबते हुए कहा.

‘‘ठीक है, बता देना.’’ कह कर आरती कमरे से निकलने को हुई कि तभी दुर्गेश ने पीछे से आ कर उसे बांहों में भर लिया. आरती ने किसी तरह उस के चंगुल से छूट कर कहा, ‘‘दुर्गेश भैया, यह तुम क्या कर रहे हो. शर्म आनी चाहिए तुम्हें. मैं तुम्हें जो सम्मान देती हूं, उस का तुम यह सिला दे रहे हो. अपनी मर्यादा में रहो. आइंदा अगर तुम ने ऐसी हरकत की तो अच्छा नहीं होगा.’’

इसी बीच मनहरण भी आ गया. उस ने पत्नी की सारी बातें सुन ली थीं लेकिन अपने हावभाव से उस ने यह बात दुर्गेश को महसूस नहीं होने दी. कुछ देर तक दुर्गेश और मनहरण इधरउधर की बातें करते रहे. इस के बाद दुर्गेश वहां से चला गया.

मनहरण हकीकत जान गया था  उस रात आरती ने पति को दुर्गेश के क्रियाकलापों से अवगत कराया. उस ने कहा कि वह अपने दोस्त को समझाने की कोशिश करे. मनहरण ने पत्नी की ओर उचटती निगाह डालते हुए कहा, ‘‘मैं ने उस की हरकतें देख ली हैं और तुम्हारी बातें भी सुन ली हैं. सच कहूं, मुझे तुम पर गर्व है.’’

यह सुन कर आरती के चेहरे पर मुसकान तैरने लगी. वह बोली, ‘‘मैं ने आज उसे सही तरह से डांट दिया है और तुम भी आ गए थे. अब वह दोबारा गलत हरकत नहीं करेगा.’’

‘‘और अगर करेगा तो मैं उसे हमेशा के लिए सही कर दूंगा.’’ मनहरण के स्वर में कठोरता थी.

‘‘यह आप क्या कह रहे हो?’’ आरती घबराते हुए बोली, ‘‘क्या मतलब है तुम्हारा?’’

‘‘कुछ नहीं, मैं उसे अच्छी तरह समझा दूंगा. वह सोचता है कि उस के भाई फूल सिंह ने 4 मर्डर किए हैं तो उस की वजह से मैं डर जाऊंगा. वह बेवकूफ है. फूल सिंह अपनी करनी का फल जेल में भोग रहा है. देखना यह भी भोगेगा.’’ वह गुस्से में बोला.

‘‘देखो जी, वह तुम्हारा दोस्त है, उसे प्रेम से समझा कर मामला खत्म करना है. हमें बात का बतंगड़ नहीं बनाना है, समझे. वादा करो मुझ से…’’ आरती ने कहा.

‘‘ठीक है, चलो अब सो जाओ. मुझे नींद आ रही है.’’ कह कर मनहरण ने करवट बदल कर सोने का अभिनय किया. मगर सच तो यह था कि उस की आंखों की नींद उड़ चुकी थी.

7 सितंबर, 2019 की शाम को जब मनहरण और दुर्गेश मिले तो दोनों एकदम सामान्य थे. ऐसे जैसे उन के बीच कुछ हुआ ही न हो. मनहरण ने कहा, ‘‘यार, मैं ने देशी माल बनवाया है.’’

मनहरण दुर्गेश को किशनपुर के पास स्थित गांव रामपुर ले गया, जहां मनहरण के लिए पहले से ही देशी शराब तैयार थी. उसे ले कर दोनों कटरा नाले के पास बैठ गए. उसी समय दुर्गेश का एक दोस्त सूरज वहां आ टपका. तीनों ने एक साथ शराब पीनी शुरू की.

मनहरण ने उस दिन पहले से ही मन ही मन एक योजना बना ली थी. उसी के तहत उस ने खुद कम शराब पी. दुर्गेश और सूरज को ज्यादा पिलाता चला गया. जब दोनों मदहोश हुए तो अपनेअपने घर जाने को तैयार हो गए, मगर दुर्गेश और सूरज ने इतनी ज्यादा पी ली थी कि दोनों के पैर लड़खड़ाने लगे.

सूरज अभी 16 साल का ही था. वह चलतेचलते साइकिल सहित सड़क पर गिर गया. उधर मनहरण दोनों की गतिविधियों पर नजर रखे हुए था. जब दुर्गेश पर शराब का नशा चढ़ा तो वह भी एक खेत के पास गिर गया.

शराब पिला कर मार डाला  मनहरण इसी मौके की तलाश में था. वह दुर्गेश के पास बैठा सोचता रहा कि आखिर सोचीसमझी योजना को मूर्तरूप कैसे दिया जाए. तभी दुर्गेश को हलका होश सा आने लगा तो वह उठ बैठा.

‘‘तुम तो शेर हो यार, तुम ढेर कैसे हो गए.’’ मनहरण ने व्यंग्य बुझा तीर चलाया.

‘‘नहींनहीं, मैं ठीक हूं. चलो.’’ दुर्गेश बोला.

‘‘कहां जाओगे, पहले मेरी बात तो सुन लो. तुम कमीने हो, नीच आदमी हो, तुम ने मेरी बीवी का हाथ पकड़ कर उसे छेड़ा. तुम से मुझे ऐसी उम्मीद नहीं थी.’’ मनहरण गुस्से में कहता चला गया, ‘‘मैं ने बहुत बरदाश्त किया, लेकिन तुम दोस्ती के लायक नहीं निकले.’’

दुर्गेश पर ज्यादा नशा सवार था. नशे में मनहरण की ओर देख कर बोला, ‘‘यार, तू इतनी छोटी सी बात पर गुस्सा हो रहा है. दोस्ती में यह सब तो चलता है भाई. एक रोटी को मिलबांट कर खाना चाहिए.’’

मनहरण को गुस्सा आ गया. वह बोला, ‘‘तुम नीच सोच के आदमी निकले, इसलिए आज मैं तुम्हें मौत की सजा दूंगा. और सुनो, बोल कर मार रहा हूं.’’

यह कह कर मनहरण दुर्गेश पर टूट पड़ा और उसे लातघूंसों से मारता रहा. शराब के नशे में दुर्गेश विरोध भी नहीं कर सका. मनहरण ने लस्तपस्त पड़े दुर्गेश को अंतत: गला दबा कर मार डाला और गालियां देते हुए अपने घर चला गया.

जब रात को दुर्गेश घर नहीं पहुंचा, तो उस के घर वालों को चिंता हुई. पिता कन्हैया यादव उसे ढूंढने निकले. सुबह जब उन की मुलाकात मनहरण से हुई तो मनहरण ने दुर्गेश से कई दिनों से मुलाकात न होने की बात कही.

8 सितंबर तक दुर्गेश का कहीं पता नहीं चला. परिवार के लोग यह सोचते रहे कि दुर्गेश कहीं बाहर तो नहीं चला गया, मगर 9 सितंबर को सुबह रामपुर गांव का तीरथराम जब अपने खेत पर पहुंचा तो वहां एक आदमी की लाश पड़ी देख उस के होश उड़ गए.

उस ने कोटवार (चौकीदार) समयलाल और सरपंच को घटना की जानकारी दी. कोटवार ने पिथौरा के थानाप्रभारी दीपेश जायसवाल को घटना की सूचना मिली तो वह घटनास्थल पर पहुंच गए.

वहां मौजूद लोगों ने मृतक की शिनाख्त दुर्गेश उर्फ पुस्तम के रूप में की. थानाप्रभारी ने जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

जांच अधिकारी दीपेश जायसवाल को जानकारी मिली कि दुर्गेश मनहरण का जिगरी दोस्त था. पुलिस ने मनहरण को यह सोच कर पूछताछ के लिए थाने बुलाया कि शायद उस से हत्यारे के बारे में कोई सुराग मिल जाए.

लेकिन मनहरण ने इस मामले से पल्ला झाड़ लिया. तभी पुलिस सूरज को हिरासत में ले कर थाने लौट आई.

दरअसल, पुलिस को जानकारी मिली थी कि मृतक दुर्गेश, मनहरण और सूरज ने कल शाम एक साथ बैठ कर शराब पी थी. सूरज को आया देख कर मनहरण समझ गया कि अब उस का झूठ नहीं चल सकता, इसलिए वह टूट गया.

मनहरण ने पुलिस के सामने स्वीकार कर लिया कि पत्नी आरती के साथ छेड़छाड़ की वजह से उस ने अपने दोस्त दुर्गेश की हत्या की थी. उस से पूछताछ के बाद पुलिस ने मनहरण उर्फ मोनो को दुर्गेश उर्फ पुस्तम की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. जबकि सूरज को बेकसूर पाए जाने पर थाने से घर भेज दिया.

दोस्ती एक ऐसा रिश्ता है, जो कभीकभी सगे भाई से भी बेहतर साबित होता है. लेकिन जब यह रिश्ता वासनामय हो कर दोस्त की पत्नी का दामन छूने लगे तो अंजाम भयानक ही होता है. अगर समाज में आप को रिश्ते बनाए रखने हैं तो रिश्तों की मर्यादा को समझिए और उन का सम्मान बनाए रखिए.

भतीजे का बैर : चाचा को उतारा मौत के घाट

11सितंबर, 2019 को सुबह के समय तिलोनिया गांव के कुछ लोग जब गांव के बाहर स्थित तालाब के पास पहुंचे तो उन्हें कीचड़ में फंसी एक कार दिखाई दी. यह गांव राजस्थान के अजमेर जिले के थाना बांदरसिंदरी के अंतर्गत आता था. कार किस की है और यहां कैसे फंस गई, यह सोचते हुए लोग जब कार के पास पहुंचे तो वह लावारिस निकली. कार के ड्राइवर या मालिक का कोई पता नहीं था.

कीचड़ से कार निकालना आसान नहीं था, इसलिए गांव वालों ने गांव से एक ट्रैक्टर ला कर कार को कीचड़ से बाहर निकाला. कार के शीशों पर खून के धब्बे लगे दिखे तो ग्रामीणों को किसी गड़बड़ी का अंदेशा हुआ. उन्होंने कार के शीशों से अंदर झांक कर देखा. सीट पर एक व्यक्ति की लाश पड़ी थी. आननफानन में फोन कर के यह सूचना थाना बांदरसिंदरी को दी गई.

कार में लाश मिलने की सूचना पा कर थानाप्रभारी मूलचंद वर्मा पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. तब तक लाश देखने के लिए आसपास के गांवों के तमाम लोग आ चुके थे. पुलिस ने जांच की तो मृतक का चेहरा किसी वजनदार चीज से कुचला हुआ मिला. इस के अलावा उस के शरीर पर भी कई जगह चोटों के निशान थे, शरीर कई जगह से गुदा हुआ था.

थानाप्रभारी ने लोगों से मृतक के बारे में पूछा तो तिलोनिया के एक व्यक्ति ने लाश पहचान ली. उस ने बताया कि यह लाश माला गांव के रहने वाले फौजी प्रधान गुर्जर की है, कार भी उसी की है. पुलिस ने किसी तरह मृतक के घर वालों का फोन नंबर हासिल कर उन्हें सूचना दे दी.

सूचना पा कर मृतक के पिता गोप गुर्जर अपने परिचितों के साथ मौके पर आ गए. माला गांव से आए गोप गुर्जर ने मृतक की शिनाख्त अपने 35 वर्षीय बेटे प्रधान गुर्जर के रूप में की.

प्रधान गुर्जर सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) में था. इन दिनों उस की पोस्टिंग सिक्किम में थी. वह कुछ दिन पहले छुट्टी ले कर गांव आया था. गोप गुर्जर ने बताया कि प्रधान 10 सितंबर, 2019 की सुबह अजमेर जाने को कह कर करीब साढ़े 8 बजे घर से कार ले कर निकला था. उस के 2 छोटे भाई अजमेर के पास भूणाबाय स्थित एक डिफेंस एकेडमी में पढ़ रहे थे. प्रधान उन से ही मिलने गया था.

पुलिस को पता चला कि भाइयों से मिलने के बाद प्रधान जब गांव लौट रहा था. तब उस के साथ उस का रिश्ते का भतीजा जीतू उर्फ जीतराम गुर्जर और 2 अन्य लोग थे. पुलिस को यह जानकारी डिफेंस एकेडमी के संचालक शंकर थाकण ने दी थी. प्रधान गुर्जर और उस के तीनों साथी रात के करीब साढ़े 8 बजे एकेडमी से निकले थे, लेकिन घर नहीं पहुंचे थे.

बीएसएफ जवान की हत्या की वारदात से ग्रामीणों में रोष फैल गया. उन का कहना था कि प्रधान गुर्जर को तो मार ही डाला, साथ ही उस के भतीजे जीतू गुर्जर का भी कोई अतापता नहीं है. कहीं उस का भी तो मर्डर नहीं कर दिया गया.

गांव वालों के रोष को भांप कर थानाप्रभारी मूलचंद वर्मा ने घटना की जानकारी उच्चाधिकारियों को दे कर स्थिति से अवगत कराया. खबर मिलते ही सीओ (ग्रामीण) सतीश यादव घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने आक्रोशित ग्रामीणों को समझाया कि पुलिस हत्यारों को जल्द गिरफ्तार कर लेगी.

डिफेंस एकेडमी से खबर मिलते ही मृतक के छोटे भाई भी घटनास्थल पर आ गए. घर वालों का रोरो कर बुरा हाल था. वे समझ नहीं पा रहे थे कि प्रधान की हत्या किस ने और क्यों की.

कार में एक डंडा भी पड़ा हुआ था, जिस पर खून लगा था. मृतक की पैंट उतरी हुई थी और उस की गुदा खून से सनी थी. इस से लगा कि हत्यारों ने वह डंडा मृतक की गुदा में डाला था. मतलब साफ था कि हत्यारा मृतक से बहुत ज्यादा नफरत करता था, तभी उस ने प्रधान की गुदा में लकड़ी का डंडा डालने के अलावा उस के शरीर को जगहजगह से गोद दिया था.

मौके की काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने दोपहर करीब सवा 12 बजे शव को पोस्टमार्टम के लिए किशनगढ़ के राजकीय यज्ञ नारायण अस्पताल भेज दिया. सैकड़ों गांव वाले अस्पताल भी पहुंच गए.

दोपहर करीब 2 बजे ग्रामीणों की भीड़ अचानक बिफर गई. उन्होंने पोस्टमार्टम करने का विरोध किया. उन का कहना था कि मृतक का भतीजा जीतू गुर्जर भी लापता है. पुलिस उस का भी पता लगाए कि कहीं उस के साथ कोई अनहोनी तो नहीं हो गई.

भीड़ कोई हंगामा खड़ा न कर दे, इसलिए एडीशनल एसपी (ग्रामीण) किशन सिंह भाटी भी अस्पताल पहुंच गए. मृतक के घर वाले और अन्य लोग जीतू गुर्जर का पता लगाने तक पोस्टमार्टम न कराने की बात पर अड़े थे.

बीएसएफ जवान प्रधान गुर्जर की हत्या की सूचना मिलने पर क्षेत्रीय विधायक सुरेश टांक और सांसद भागीरथ चौधरी भी राजकीय यज्ञ नारायण अस्पताल पहुंचे. दोनों नेताओं ने मृतक के परिजनों को ढांढस बंधाया और पुलिस अधिकारियों से घटना की जानकारी ली. सांसद भागीरथ चौधरी और विधायक सुरेश टांक के समझाने के बाद मृतक के परिजन और ग्रामीण पोस्टमार्टम के लिए राजी हुए.

इस के बाद पुलिस ने डा. गुरुशरण चौधरी, डा. सुनील बैरवा और डा. श्यामसुंदर के मैडिकल बोर्ड से शव का पोस्टमार्टम कराया. पुलिस ने पोस्टमार्टम के बाद प्रधान गुर्जर का शव परिजनों को सौंप दिया.

मामला बीएसएफ जवान की हत्या का था, इसलिए एसपी कुंवर राष्ट्रदीप ने इस केस के खुलासे के लिए एक पुलिस टीम का गठन किया. एडीशनल एसपी (ग्रामीण) किशन सिंह भाटी के निर्देशन और सीओ (ग्रामीण) सतीश यादव के नेतृत्व में गठित पुलिस टीम में थाना बांदरसिंदरी के थानाप्रभारी मूलचंद वर्मा, थानाप्रभारी (अरांई) विक्रम सेवावत, एसआई इंद्र सिंह, एएसआई कुलदीप सिंह, हैडकांस्टेबल श्रवणलाल, भंवर सिंह, सिपाही जय सिंह, गोपाल, रामगोपाल जाट वगैरह शामिल थे.

लोगों की बातों में कई पेंच थे एसपी कुंवर राष्ट्रदीप का आदेश पाते ही टीम जांच में जुट गई. मृतक के परिवार वालों से मृतक के अजमेर जाने और शाम को अजमेर से वापस आने की बात सामने आई. इस पर पुलिस ने गेगल और जीवी के टोल बूथों पर लगे सीसीटीवी फुटेज खंगाले.

पुलिस टीम ने मृतक के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवा कर यह पता करने की कोशिश कि वह आखिरी बार किस के साथ रहा और किस के संपर्क में था. प्रधान गुर्जर अजमेर के भूणाबाय स्थित जीत डिफेंस एकेडमी में पढ़ रहे अपने भाइयों से भी मिलने गया था. इस बारे में पुलिस ने एकेडमी संचालक शंकर थाकण से भी पूछताछ की.

शंकर थाकण ने बताया कि रात 8 बजे प्रधान गुर्जर के साथ 3 लोग कार से आए थे. इन में एक उन का भतीजा जीतू था. जीतू कार से नीचे उतरा था, जबकि 2 युवक कार में ही बैठे रहे. वे दोनों कार से नीचे नहीं उतरे थे. प्रधान ने शंकर थाकण से अपने भतीजे जीतू का परिचय कराया था.

शंकर ने पुलिस को बताया कि उस ने प्रधान गुर्जर और उस के साथियों को चाय पिलाई थी. कार में बैठे 2 लोगों के लिए चाय कार में ही भेजी गई थी. उन से एकेडमी में आ कर चाय पीने का आग्रह किया गया था, मगर वे कार से नहीं उतरे थे.

चाय पीते समय प्रधान गुर्जर के मोबाइल पर किसी का फोन आया था. उन्होंने फोन करने वाले से कहा था कि वह तुरंत किशनगढ़ जा कर मिलते हैं. इस के बाद वह उसी समय किशनगढ़ के लिए रवाना हो गए थे. तब तक रात के साढ़े 8 बज चुके थे.

जबकि प्रधान गुर्जर के पिता गोपी गुर्जर ने पुलिस को बताया कि प्रधान के मोबाइल पर फोन कर के उन्होंने ही उस के घर आने के बारे में पूछा था. तब उस ने बताया था कि वह अजमेर से निकल गया है और थोड़ी देर में घर पहुंच जाएगा. इस के बाद प्रधान का फोन बंद हो गया था.

इस पूछताछ एवं घटनाक्रम से पुलिस को लगा कि प्रधान गुर्जर के साथ जो लोग मौजूद थे, उन्होंने ही रास्ते में उस की हत्या की होगी.

मृतक प्रधान गुर्जर शादीशुदा था. उस के 2 बेटे भी थे, जिन की उम्र क्रमश: 3 साल और डेढ़ साल थी. ऐसे में किसी अवैध संबंध की गुंजाइश भी कम थी.

जांच में पुलिस को पता चला कि प्रधान गुर्जर 10 सितंबर, 2019 को अपने भतीजे जीतू उर्फ जितेंद्र गुर्जर निवासी माला गांव और उस के दोस्त रामअवतार व हनुमान निवासी किशनगढ़ के साथ अजमेर दरगाह और पुष्कर घूमने आया था. पुलिस ने तीनों की तलाश की तो वे अपनेअपने घरों से फरार मिले. पुलिस ने उन के फोन की कालडिटेल्स और सीसीटीवी कैमरों की फुटेज के आधार पर आखिर उन्हें ढूंढ ही लिया.

पुलिस ने जीतू को जयपुर से और उस के दोनों दोस्तों रामअवतार और हनुमान को किशनगढ़ से गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने प्रधान गुर्जर की हत्या के संबंध में उन तीनों से अलगअलग पूछताछ की. अंतत: उन्होंने अपना अपराध कबूल कर लिया.

पुलिस टीम ने रातदिन एक कर के 24 घंटे में प्रधान फौजी की हत्या के रहस्य से परदा उठा दिया. पूछताछ करने के बाद आरोपियों ने बीएसएफ जवान प्रधान गुर्जर की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

24 घंटे में आई पूरी कहानी सामने  अजमेर जिले के उपखंड किशनगढ़ के अंतर्गत एक गांव है माला. यह गांव गुर्जर बाहुल्य है. यहां के अधिकांश गुर्जर खेतीबाड़ी, पशुपालन एवं दूध का कारोबार करते हैं. गोपी गुर्जर परिवार के साथ इसी गांव में रहते थे. वह खेतीबाड़ी करते थे.

गोपी का बड़ा बेटा प्रधान गुर्जर हंसमुख स्वभाव का गबरू जवान था. पढ़ाई के दौरान ही वह बीएसएफ में कांस्टेबल के पद पर भरती हो गया था. बेटे की नौकरी से घर की आर्थिक स्थिति मजबूत हो गई थी. इस के बाद उन्होंने प्रधान की शादी रूपा से कर दी.

इस परिवार की गाड़ी हंसीखुशी से चल रही थी. प्रधान को जब भी छुट्टी मिलती, वह घर आ जाता था. प्रधान का एक भतीजा था जीतू उर्फ जितेंद्र गुर्जर. प्रधान गुर्जर और जीतू गुर्जर के परिवारों में काफी सालों से बोलचाल बंद थी. लेकिन प्रधान और जीतू की आपस में बोलचाल थी.

काफी पहले प्रधान गुर्जर और जीतू के परिवारों में काफी बड़ा फसाद हुआ था. उस झगड़े के बाद दोनों परिवार एकदूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते थे. लेकिन इस दुश्मनी के बावजूद जीतू का अपने चाचा प्रधान के यहां आनाजाना था.

प्रधान वैसे भी कम समय के लिए छुट्टी पर घर आता था, इसलिए वह दुश्मनी नहीं रखता था. प्रधान का कहना था कि भाइयों में अनबन हो सकती है, दुश्मनी नहीं पालनी चाहिए. जीतू की पत्नी बहुत खूबसूरत थी. वह रिश्ते के हिसाब से प्रधान की बहू लगती थी, मगर जीतू की शादी के बाद प्रधान जब छुट्टी पर गांव आया, तब उस ने जीतू की पत्नी को देखा था.

वह पहली नजर में ही उस पर फिदा हो गया था. वह इतनी खूबसूरत थी कि देखने वाला अपलक देखता रह जाता था. फौजी प्रधान गुर्जर भी उसे देखता रह गया था. जीतू की पत्नी पढ़ीलिखी थी और सोशल मीडिया पर ऐक्टिव रहती थी. प्रधान से पहली मुलाकात में ही जीतू की पत्नी खुल गई थी. एक बार बातचीत हुई तो अकसर फौजी उस के आगेपीछे घूमने लगा.

दोनों सोशल मीडिया पर भी एकदूसरे से जुड़े थे. उन दोनों की नजदीकियां देख कर जीतू को जलन होने लगी थी. वह चाहता था कि उस की पत्नी प्रधान से दूर रहे. जीतू ने पत्नी से कहा भी कि वह प्रधान से बात न किया करे, मगर पत्नी खुले विचारों की थी. उस का कहना था कि बात करना गलत नहीं है. गलत तो बुरी सोच होती है.

पत्नी ने जीतू से कहा कि प्रधान अच्छा आदमी है. वैसे भी वह गांव में रहता कितने दिन है. चंद दिनों के लिए फौज से छुट्टी पर घर आता है. जीतू को ऐसा लग रहा था कि प्रधान से उस की पत्नी के अवैध संबंध हैं, इसीलिए वह उस की बात नहीं मान रही है. पति के सामने ही वह फौजी की प्रशंसा कर रही थी. इस से जीतू को पत्नी पर शक हो गया.

एक बार शक का कीड़ा दिमाग में घुसा तो वह तब तक कुलबुलाता रहा, जब तक उस ने कहर नहीं ढा दिया. पत्नी की जिद और व्यवहार की वजह से जीतू ने पिछले डेढ़दो साल से अपनी पत्नी से बात तक बंद कर रखी थी. कुछ ही दिन पहले जीतू का पत्नी से राजीनामा हुआ था.

पत्नी ने भी सोचा कि पति के कहे मुताबिक चलना सही है, इसलिए उस ने पति को विश्वास दिलाया कि वह प्रधान से बात नहीं करेगी. साथ ही प्रधान से भी कह देगी कि वह उस से बात न करे. पत्नी के इस आश्वासन पर जीतू फिर से पत्नी से हंसनेबोलने लगा.

लेकिन पति से वादा करने के बावजूद जीतू की पत्नी ने प्रधान गुर्जर से बातचीत करना बंद नहीं किया. वह चोरीछिपे मोबाइल पर भी प्रधान से बात कर लेती थी. यह सब बातें जीतू से छिपी न रह सकीं. इस से उसे विश्वास हो गया कि उस की पत्नी जरूर प्रधान के प्यार में फंस गई है.

बस जीतू ने उसी दिन मन ही मन अंतिम निर्णय कर लिया कि अब वह अपने चाचा प्रधान गुर्जर को मौत के घाट उतार कर ही शांत होगा. क्योंकि वह पत्नी को समझासमझा कर वह थक चुका था.

संदेह के दायरे बड़े होते गए  सितंबर, 2019 के पहले हफ्ते में प्रधान गुर्जर शिलौंग से छुट्टी ले कर गांव आया. प्रधान जीतू की पत्नी से भी मिला. जीतू से यह सहन नहीं हो रहा था. हद तो तब हो गई, जब प्रधान जीतू की पत्नी को अजमेर से अपनी गाड़ी में गांव लाने लगा.

जीतू की पत्नी कोचिंग करने अजमेर जाती थी. प्रधान स्वयं कार ले कर अजमेर जाता और कोचिंग की छुट्टी होने पर जीतू की पत्नी को अपनी कार में बैठा कर गप्पें मारते हुए गांव आता.

जीतू ने यह देखा तो उस का खून खौल उठा. उस ने निर्णय कर लिया कि वह प्रधान गुर्जर को इस तरह योजना बना कर मारेगा कि उस पर किसी को शक तक नहीं होगा.

जीतू ने इस काम को आसान करने के लिए अपने अजीज दोस्तों रामअवतार और हनुमान निवासी किशनगढ़ को अपने साथ मिला लिया. इन लोगों ने फौजी की हत्या के लिए 10 सितंबर, 2019 का दिन चुना गया.

10 सितंबर, 2019 को प्रधान गुर्जर अकेला ही दरगाह जाने के लिए घर से निकला था. किशनगढ़ में उसे उस का भतीजा जीतू मिला. अजमेर दरगाह और पुष्कर दर्शन के लिए वह भी उस के साथ चल दिया. योजना के अनुसार जीतू ने रामअवतार और हनुमान को अजमेर भेज दिया था.

जब प्रधान और जीतू अजमेर पहुंचे तो जीतू के दोस्त रामअवतार और हनुमान उन के साथ हो लिए. जीतू ने प्रधान से कहा, ‘‘चाचा, ये मेरे दोस्त हैं. दोनों जिगरी यार हैं. मैं ने ही इन्हें अजमेर दरगाह और पुष्कर में दर्शन को कहा था.’’

‘‘कोई बात नहीं जीतू, एक से भले दो और दो से भले चार. गाड़ी पर वजन थोड़े ही पड़ेगा.’’ प्रधान ने हंस कर कहा.

प्रधान गुर्जर की कार से चारों पहले अजमेर दरगाह गए. दर्शन के बाद पुष्कर गए और पूजाअर्चना की. पुष्कर से अजमेर लौटने के दौरान सब ने शराब पी और एक होटल पर खाना खाया. इस के बाद प्रधान अपने छोटे भाइयों से मिलने डिफेंस एकेडमी गया.

जीतू तो उस के साथ डिफेंस एकेडमी में गया, लेकिन रामअवतार और हनुमान गाड़ी में ही बैठे रहे. उन्हें डर था कि कोई पहचान न ले. इसलिए दोनों गाड़ी से नहीं उतरे. उन दोनों ने एकेडमी संचालक द्वारा भेजी चाय भी गाड़ी में ही पी थी.

योजनानुसार सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. डिफेंस एकेडमी से चारों गाड़ी में सवार हो कर गांव के लिए रवाना हो गए. रास्ते में उन्होंने फिर शराब पी. इस के बाद मंडावरिया के पास सुनसान जगह पर गाड़ी रोकी. चारों शराब के नशे में टल्ली थे. तेज आवाज में टेपरिकौर्डर चला कर सब ने जम कर डांस किया. इस के बाद जीतू ने फौजी प्रधान गुर्जर के चेहरे पर पीछे से बेसबाल बैट से हमला कर दिया. वह जमीन पर गिर कर बेहोश हो गया.

बेहोश फौजी की पैंट खोल कर इन लोगों ने उस की गुदा में डंडा चढ़ाया. फौजी तड़प कर रह गया. उस की गुदा से काफी खून भी निकला. इस के बाद इन लोगों ने फौजी को बुरी तरह मारापीटा और जमीन पर घसीटने के बाद गला दबा कर मौत के घाट उतार दिया.

फौजी की मौत के बाद इन लोगों ने उस की लाश गाड़ी में डाल दी. फिर फौजी की जेबों की तलाशी ली, कार की भी तलाशी ली गई ताकि कोई सबूत न छूट जाए. गाड़ी की आरसी जीतू ने जेब में रख ली. इस के बाद गाड़ी ले कर तिलोनिया की तरफ निकल गए.

हत्यारों की योजना थी कि लाश का चेहरा कुचल कर सुनसान जगह पर फेंक देंगे ताकि शव की शिनाख्त न हो सके. पहचान छिपाने के लिए ही मृतक का चेहरा कुचला गया था. फौजी की हत्या के बाद शव ठिकाने लगाने के बाद हत्यारे तिलोनिया से हरमाड़ा, सुरसुरा होते हुए नागौर और अन्य रास्तों से जयपुर की ओर जाने वाले थे.

आगे की योजना यह थी कि कहीं सुनसान जंगल में शव को ठिकाने लगा दिया जाएगा, लेकिन कार तिलोनिया के तालाब के पास कीचड़ में फंस गई. गाड़ी फंसने से मामला बिगड़ गया और वे सब प्रधान का शव और गाड़ी छोड़ कर चले गए. जातेजाते इन लोगों ने गाड़ी की चाबी, फौजी का मोबाइल फोन साथ ले लिया था.

तीनों अंधेरे में ही पैदल चल पड़े. रास्ते में इन्होंने गाड़ी की चाबी और आरसी फेंक दी. मोबाइल भी तोड़ कर फेंक दिया. 4-5 किलोमीटर साथ चलने के बाद जीतू जयपुर की तरफ चला गया, जबकि रामअवतार और हनुमान किशनगढ़ चले गए. तीनों अपने घर नहीं गए.

फेसबुक का जहर बना कारण  जीतू ने पुलिस को बताया कि उस की पत्नी और मृतक फौजी प्रधान गुर्जर के अवैध संबंध थे. प्रधान उस से सोशल मीडिया पर चैटिंग कर अश्लील वीडियो भेजने लगा था. इस की जानकारी हुई तो उस ने यह बातप्रधान गुर्जर की पत्नी रूपा गुर्जर को बता दी, लेकिन इस के बावजूद फौजी का रवैया नहीं सुधरा तो मजबूरी में फौजी को ठिकाने लगाना पड़ा.

पुलिस अधिकारियों ने अभियुक्तों से पूछताछ के बाद प्रैसवार्ता करने का निर्णय लिया. उस दिन एसपी आईजी कार्यालय में एक मीटिंग में व्यस्त थे. एडीशनल एसपी (ग्रामीण) किशन सिंह भाटी को शाम 4 बजे प्रैस कौन्फ्रैंस करनी थी, लेकिन इस से पहले ही सोशल मीडिया पर प्रैस नोट की प्रति आ गई. एसपी कुंवर राष्ट्रदीप को जब यह जानकारी मिली तो इस में सिपाही रामगोपाल का नाम सामने आया. उन्होंने रामगोपाल को निलंबित कर दिया.

दरअसल, इस केस को 24 घंटे के अंदर खोलने में सिपाही रामगोपाल का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा था. इसलिए जैसे ही उस के हाथ इस मामले की प्रैस रिलीज की कौपी लगी तो उस ने वह सोशल साइट पर डाल दी जो वायरल होती हुई प्रैस कौन्फ्रैंस शुरू होने से पहले ही पत्रकारों के पास पहुंच गई थी. सिपाही रामगोपाल का अतिउत्साह उसी को महंगा पड़ गया.

पुलिस ने प्रधान गुर्जर की हत्या के आरोपियों जीतू गुर्जर, रामअवतार और हनुमान को 14 सितंबर, 2019 को अजमेर न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें 3 दिन के पुलिस रिमांड पर जांच टीम को सौंप दिया गया.

रिमांड के दौरान पुलिस ने आरोपियों से विस्तृत पूछताछ करने के बाद अन्य सबूत जुटाए. आरोपियों ने बताया कि उन्होंने प्रधान गुर्जर की लाश और गाड़ी दोनों को ठिकाने लगाने की योजना बना रखी थी.

प्रधान की लाश को वे लोग गांव की किसी सुनसान जगह पर ठिकाने लगाना चाहते थे. वहीं गाड़ी को भी गहरी नाड़ी (तालाब) में डुबोने की योजना थी, ताकि वारदात का किसी को पता न चले, लेकिन उन की योजना पर पानी फिर गया.

उधर 16 सितंबर, 2019 को सीमा सुरक्षा बल के जवान प्रधान गुर्जर के परिवार को विभाग की ओर से सहायता राशि सौंप दी गई. बल की ओर से आए अधिकारी ने मृतक प्रधान गुर्जर की पत्नी रूपा गुर्जर को चैंक सौंपा.

17 सितंबर को पुलिस ने जीतराम, रामअवतार एवं हनुमान को न्यायालय में पेश कर 3 दिन का पुलिस रिमांड बढ़वाया. रिमांड अवधि पूरी होने के बाद तीनों आरोपियों को फिर से 19 सितंबर, 2019 को कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

10 दिन का खूनी खेल : जौनी ने क्यों किये इतने अपराध

अपराध चाहे जैसा भी हो, अपराध ही होता है, सामाजिक समन्वय के विरुद्ध उठाया हुआ कदम. मानवीयता पर प्रहार. हर अपराध की सजा होती है. एक दिन से ले कर आजीवन तक. कालकोठरी से ले कर फांसी तक. वैसे यह भी सही है कि कुछ अपराधी कानून के बारीक छिद्रों का सहारा ले कर बच निकलते हैं और कई अपने दांवपेंचों से कानून की चौखट तक जाते ही नहीं. अश्विनी उर्फ जौनी ऐसा तो नहीं था, लेकिन उस की सोच जरूर कुछ ऐसी ही थी अपने बारे में.

अश्विनी उर्फ जौनी जिला बिजनौर के कस्बा बढ़ापुर का रहने वाला था. पढ़ालिखा, स्वस्थ सुंदर युवक. पिता सुभाष धामपुर की गन्ना सहकारी समिति में नौकरी करते थे. शिक्षा के महत्त्व को समझने वाले सुभाष ने अश्विनी को एमकौम तक पढ़ाया था. उस ने इंटरमीडिएट श्योहारा के स्कूल से किया. आगे की पढ़ाई के लिए उस के पिता सुभाष ने जौनी को उस के मामा हर्ष के घर दौलताबाद भेज दिया था. वहीं रह कर जौनी ने नजीबाबाद के कालेज से बीकौम और एमकौम की डिग्रियां हासिल कीं.

इस के अलावा मामा के घर रह कर उस ने कई डिप्लोमा भी किए, ताकि मौका मिलने पर किसी अच्छी नौकरी में निकल जाए. पढ़ाई के दौरान ही निकिता से उस की घनिष्ठता बढ़ी. निकिता दौलताबाद की रहने वाली थी. मतलब उस के मामा के गांव की. जौनी और निकिता की निकटता कई सालों तक बनी रही. बाद में यह बात भी सामने आई कि जौनी ने निकिता को प्रपोज किया था, लेकिन उस ने मना कर दिया था.

करीब 4-5 साल पहले की बात है, जब जौनी को कोई अच्छी नौकरी नहीं मिली तो वह दिल्ली से सटी औद्योगिक नगरी नोएडा चला गया था. वहां उसे एक बिल्डर के यहां नौकरी मिल गई. अगले 4 साल उस ने नोएडा में ही गुजारे. बीचबीच में घर भी चला जाता था. इस बीच निकिता को एयरहोस्टेस की नौकरी मिल गई थी और वह दुबई चली गई. कहते हैं जौनी और निकिता की फोन पर बराबर बातें होती थीं.

अश्विनी उर्फ जौनी दादा बीचबीच में बढ़ापुर स्थित अपने घर आता रहता था. करीब डेढ़ साल पहले अश्विनी जब घर आया हुआ था, तो उस के साथ एक बड़ा पंगा हो गया था. दरअसल, बढ़ापुर के ही मोहल्ला नोमी में भाजपा नेता भीमसेन का घर था. नेता होने के नाते भीमसेन की इलाके में तो दबंगई तो चलती ही थी, पुलिस विभाग में भी अच्छी पैठ थी.

भीमसेन के बेटे राहुल ने एक अनुसूचित जाति की लड़की से प्रेम विवाह किया था. जौनी और राहुल हमउम्र थे. साथसाथ उठनेबैठने और खानेपीने वाले. जौनी कभीकभी मजाक में राहुल की शादी को ले कर कमेंट कर देता था, जो गलत था. यह बात राहुल को बुरी लगती थी. इसी बात को ले कर एक दिन दोनों में विवाद हो गया.

बात बढ़ी तो राहुल और उस का चचेरा भाई कृष्णा जौनी से उलझ गए. दोनों ओर से मारपीट हुई. एक तरफ 2 भाई थे, दूसरी तरफ अकेला जौनी. इस के बावजूद जौनी दोनों पर भारी पड़ा तो भीमसेन के परिवार के लोग भी झगड़े में कूद पड़े और अश्विनी को नंगा कर के पिटाई कर दी.

बात थाने तक गई. पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज न कर के दोनों पार्टियों को थाने बुलाया. यहां भीमसेन की नेतागिरी काम आई. पुलिस ने नेताजी के साथ आए लोगों, उन के बेटे राहुल और भतीजे कृष्णा को सम्मानपूर्वक कुरसियों पर बैठाया, जबकि अश्विनी को न केवल फर्श पर बैठाया गया, बल्कि 2-4 पुलिसिया हाथ भी जमाए गए. बातचीत के बाद पुलिस ने दोनों पार्टियों का लिखित समझौता करा दिया. इतना ही नहीं, पुलिस ने अश्विनी से नेताजी के पैर छू कर माफी भी मंगवाई.

अश्विनी को इस बेइज्जती से गहरी चोट पहुंची. उसे लगा कि इस बेइज्जती को ले कर वह गांव में नहीं रह पाएगा. इसलिए अपनी बेइज्जती का बोझ उठाए वह अपनी नौकरी पर नोएडा चला गया. नोएडा में फिर से काम शुरू करते हुए अश्विनी ने तय किया था कि गालों पर पड़े बेइज्जती के थप्पड़ को वहअपनी मेहनत के बोझ के नीचे दबा देगा.

अश्विनी कालेज टाइम से ही निकिता से प्यार करता था. हो सकता है यह उस का एकतरफा प्यार रहा हो लेकिन यह भी सच है कि उस की उम्मीद टूटी नहीं थी. वजह यह कि निकिता उस से बराबर बात करती थी. दोनों की बातचीत तब भी चलती रही, जब वह एयरहोस्टेस बन कर दुबई चली गई.

अश्विनी को अपनी मां से बहुत प्यार था. वह मां की हर बात मानता था. इसी साल जून में जब अश्विनी की मां का निधन हो गया तो उसे गांव आना पड़ा. मां की मृत्यु के बाद अश्विनी को लगने लगा था कि वह अनाथ हो गया है. यही वजह थी कि घर में उस का मन नहीं लगता था.

कभी वह कस्बा श्योहारा चला जाता, कभी नजीबाबाद तो कभी नगीना. या फिर वह गांव के हमउम्र लड़कों के साथ उठताबैठता. इस बीच उस ने उन राहुल और कृष्णा से भी दोस्ती गांठ ली थी, जिन की वजह से उस की बेइज्जती हुई थी और वह गांव छोड़ कर नोएडा चला गया था. अश्विनी को जब भी राहुल और कृष्ण मिलते तो वह उन से घुलमिल कर बातें करता, उन्हें नोएडा और दिल्ली की कहानियां सुनाता.

अश्विनी को घर आए 3 महीने हो गए थे. इस बीच उस ने निकिता को कई बार फोन किया, लेकिन उस ने फोन नहीं उठाया. निकिता दौलताबाद की थी. उस की जानकारी रखने के लिए अश्विनी ने उसी गांव की एक लड़की को बहन बना रखा था.

जब निकिता ने बात नहीं की तो अश्विनी ने अपनी तथाकथित बहन से उस के बारे में पूछताछ की. पता चला कि वह कई महीने पहले दुबई से लौट आई है. उसे यह भी जानकारी मिली कि निकिता की शादी मुरादाबाद के एक लड़के से तय हो गई है.

जौनी के खतरनाक इरादे  इस जानकारी से अश्विनी के दिल को गहरी चोट लगी. उस ने मन ही मन फैसला किया कि निकिता की शादी से पहले उस से एक बार मिलेगा जरूर. 26 सितंबर, 2019 को अश्विनी और कृष्णा की मुलाकात हुई तो उस ने कृष्णा से कहा, ‘‘मैं पुरानी बातें भूल चुका हूं, तुम भी भूल जाओ. शाम को पीनेपिलाने की महफिल जमाते हैं. राहुल को भी बुला लो.’’

‘‘पार्टी होगी कहां?’’ कृष्णा ने पूछा तो अश्विनी बोला, ‘‘उस की जिम्मेदारी मुझ पर छोड़ दो. खानेपीने और जगह का इंतजाम मैं खुद कर लूंगा. बस तुम लोग पहुंच जाना. जगह के बारे में मैं फोन कर के बता दूंगा.’’

बातचीत के बाद कृष्णा चला गया. उस ने राहुल से मिल कर कहा, ‘‘जौनी काफी पैसे कमा कर लौटा है. पुरानी बातें भुला देना चाहता है. शाम को पार्टी देने की बात कर रहा था. क्यों न हम भी सब भूलभाल कर उस की पार्टी में शामिल हों, चलेगा न?’’

‘‘ठीक है, पुरानी बातों को भुला देना ही बेहतर है. बता देना, कब कहां चलना है.’’ राहुल ने उस की बातों पर मुहर लगा दी.

शाम को अश्विनी ने फोन कर के कृष्णा को जगह बता दी, साथ ही कह दिया कि उस ने खानेपीने का सारा इंतजाम कर लिया है. अश्विनी ने जो जगह बताई थी, वह बढ़ापुर-जाखरी मार्ग किनारे के जंगल में थी.

नशा सिर चढ़ कर बोला कृष्णा और राहुल अपने चाचाताऊ के लड़कों दीपक और रवि को ले कर अश्विनी की बताई जगह पर पहुंच गए. अश्वनी उन सब को मुख्यमार्ग से करीब 200 मीटर अंदर जंगल में ले गया. वहां शराब, बीयर और खानेपीने की चीजों का पूरा इंतजाम था.

थोड़ी देर में पीनापिलाना शुरू हो गया. सब ने जम कर नशा किया. इस बीच छोटीछोटी बातों को ले कर अश्विनी और राहुल में झगड़ा होने लगा. धीरेधीरे बात इतनी बढ़ी कि नौबत मारपिटाई की आ गई. दोनों ओर के लोग बीयर की बोतलें तोड़ कर खूनखराबे पर उतर आए.

यह देख कृष्णा और राहुल को छोड़ कर बाकी युवक भाग खड़े हुए. ज्यादा नशे की वजह से राहुल और कृष्णा के पैर लड़खड़ा रहे थे. इसी बीच अश्विनी ने कमर से पिस्तौल निकाल कर पहले राहुल को 4 गोलियां मारीं, जिन में से 2 गोलियां उस के सिर में, एक सीने में और 1 पेट में लगी. फिर उस ने 3 गोलियां कृष्णा को मारीं, जो उस के सिर, सीने और पेट में लगीं. कृष्णा और राहुल को मौत के घाट उतार कर अश्विनी वहां से भाग गया.

खूनखराबे में लिपटी इस घटना की जानकारी दीपक ने पुलिस और कृष्णा राहुल के घर वालों को दी. सूचना मिलते ही थाना बढ़ापुर की पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गई. घटनास्थल पर पड़ी शराब, बीयर की बोतलों, 2 लाशों और बिखरे खून से अनुमान लगाया जा सकता था कि वहां क्या और कैसे हुआ होगा.

घटना की सूचना मिलने पर नगीना की सीओ अर्चना सिंह और बिजनौर के एसपी (देहात) विश्वजीत श्रीवास्तव भी घटनास्थल पर पहुंच गए. घटनास्थल की भयावहता को देख कर उन्होंने कई थानों की पुलिस को जंगल में अश्विनी उर्फ जौनी को तलाशने का काम सौंपा.

प्राथमिक काररवाई से निपटने के बाद पुलिस ने राहुल और कृष्णा की लाशें पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. इस बीच भीमसेन ने थाना बढ़ापुर में राहुल और कृष्णा की हत्या का केस दर्ज कराया, जिस में अश्विनी उर्फ जौनी, उस के भाई रंजीत, पिता सुभाष, जौनी के चचेरे भाई रवि और मुरादाबाद निवासी बहनोई को नामजद किया गया.

घटना के अगले दिन बिजनौर के एसएसपी संजीव त्यागी और मुरादाबाद रेंज के आईजी रमित शर्मा ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. जिस जगह हत्याएं हुई थीं, उस से पुलिस अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि हर जगह पुलिस तैनाती की वजह से अश्विनी भाग नहीं पाया होगा. संभावना थी कि वह कहीं जंगल में छिपा होगा.

आईजी के निर्देश पर बिजनौर के 20 थानों की पुलिस को अश्विनी को खोजने के लिए लगा दिया गया. जंगल को खंगालने के लिए ड्रोन कैमरे का भी सहारा लिया गया. लेकिन घरपरिवार और रिश्तेदारियों में कहीं भी अश्विनी का कोई सुराग नहीं मिला. दरअसल दिनदहाड़े हुए इस हत्याकांड ने बिजनौर के पुलिस महकमे को हिला दिया था. ऊपर से दोनों मृतक भाजपा नेता के सगेसंबंधी थे, जिस से धरनेप्रदर्शनों का डर था.

पुलिस ने अश्विनी को पकड़ने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी, लेकिन इस कवायद से हासिल कुछ नहीं हुआ. अश्विनी एक तरह से पुलिस के लिए चुनौती बना हुआ था. पुलिस ने शराब पार्टी में शामिल दीपक से भी हर तरह से पूछताछ की लेकिन वह कुछ नहीं बता पाया.

जौनी ने निकिता को उतारा मौत के घाट  पुलिस हर तरह की कोशिशों में लगी थी. इस बीच 5 दिन बीत गए. 30 सितंबर को अश्विनी श्योहारा के निकटवर्ती गांव दौलताबाद पहुंचा और एयरहोस्टेस निकिता के घर में घुस गया. निकिता उस वक्त घर में बैठी टीवी देख रही थी. अंदर जा कर अश्विनी ने निकिता को गोलियों से भून डाला.

निकिता सोच भी नहीं सकती थी कि अश्विनी ऐसा कुछ कर सकता है. गोलियां चलाते समय उस ने सिर्फ इतना ही कहा कि तू मेरी नहीं हो सकती तो किसी और की भी नहीं बनने दूंगा. अश्विनी के पिस्तौल की 7 गोलियां लगने के बाद निकिता दूसरे गेट की ओर भागी, लेकिन गिर पड़ी. जातेजाते उस ने धमकी दी कि वह पूरे परिवार को खत्म कर देगा.

निकिता पर गोलियां बरसाने के बाद अश्विनी दूसरे गेट से बाहर निकल कर पास ही सड़क पर जाते हुए एक बैटरी रिक्शा में बैठ गया. थोड़ा आगे जा कर वह उतरा और गन्ने के खेत में घुस गया.

निकिता 2 महीने पहले ही शादी के लिए दुबई से घर लौटी थी. उस की शादी मुरादाबाद के मोहल्ला कांशीराम नगर में रहने वाले नीतीश कुमार से तय हुई थी. नीतीश सीआईएसएफ में सबइंसपेक्टर हैं और विशाखापट्टनम में तैनात हैं. नीतीश के कहने पर निकिता ने अपनी नौकरी से भी इस्तीफा दे दिया था.

निकिता के पिता हरिओम शर्मा श्योहारा के विदुर ग्रामीण बैंक में नौकरी करते थे. घर वालों ने  इस घटना की सूचना हरिओम शर्मा को दी. शर्माजी की बैंक के पास ही थाना था. उन्होंने थाने जा कर यह बात थानाप्रभारी उदय प्रताप को बताई. उदय प्रताप उसी समय पुलिस टीम के साथ दौलताबाद के लिए रवाना हो गए.

बुरी तरह घायल निकिता को श्योहारा के एक प्राइवेट डाक्टर को दिखाया गया. उस डाक्टर ने निकिता को तुरंत बड़े अस्पताल ले जाने की राय दी. इस के बाद उसे मुरादाबाद के मशहूर कौसमोस अस्पताल ले जाया गया.

भरती होने के बाद अस्पताल के मशहूर डाक्टर अनुराग अग्रवाल ने निकिता का इलाज शुरू किया. उसे 7 गोलियां लगी थीं, जिन में गले में फंसी एक गोली घातक थी. बहरहाल, डा. अनुराग अग्रवाल के तमाम प्रयासों के बावजूद रात 9 बजे निकिता ने दम तोड़ दिया.

दूसरी ओर पुलिस ने ईरिक्शा के ड्राइवर द्वारा बताए गए गन्ने के खेत के साथसाथ आसपास के सभी गन्ने के खेतों में कौंबिंग की. लेकिन अश्विनी का कोई पता नहीं चला. उसी दिन आईजी (मुरादाबाद जोन) रमित शर्मा ने अश्विनी उर्फ जौनी को पकड़ने या पकड़वाने पर 50 हजार रुपए का ईनाम घोषित कर दिया.

पुलिस ने आसपास के शहरों के बसअड्डों, रेलवे स्टेशनों के अलावा अन्य तमाम जगहों के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखीं. लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला.

जब 2 दिन और बीत गए तो मुरादाबाद, बरेली परिक्षेत्र के एडीजे अविनाश चंद्र ने अश्विनी पर ईनाम राशि 50 हजार से बढ़ा कर एक लाख कर दी. इस के बाद पुलिस ने जौनी से जुड़ी छोटी से छोटी जानकारियां जुटानी शुरू कर दीं. उस के फोन की लोकेशन का पता लगाने की कोशिश की गई. लेकिन उस का फोन 26 सितंबर से ही बंद था.

जब पुलिस की सभी कोशिशें बेकार गईं तो बिजनौर के एसएसपी संजीव त्यागी ने जिले के सभी पुलिस अफसरों के साथ मीटिंग की, जिस में तय हुआ कि बसअड्डों, रेलवे स्टेशनों और आटोरिक्शा, ईरिक्शा के अड्डों पर विशेष रूप से नजर रखी जाए. इस अभियान में संजीव त्यागी खुद भी शामिल हुए.

3 अक्तूबर को किसी मुखबिर ने पुलिस को सूचना दी कि अश्विनी उर्फ जौनी को नगीना के तुलाराम हलवाई की दुकान पर रसगुल्ले खाते देखा गया है. तुलाराम के रसगुल्ले जिला भर में मशहूर हैं.

सूचना मिलते ही पुलिस चौराहे के पास स्थित तुलाराम की दुकान पर पहुंच गई, लेकिन तब तक जौनी वहां से जा चुका था. पूछताछ में पता चला कि जौनी ने वहां बैठ कर 8 रसगुल्ले खाए थे. बाद में वह बराबर में स्थित मोहन रेस्टोरेंट में भी गया था, जहां वह काफी देर बैठा रहा.

पुलिस ने रात में ही तुलाराम हलवाई की दुकान के आसपास के सभी सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखीं. इस से यह जानकारी मिली कि चौराहे से जौनी हरिद्वार जाने वाली बस में सवार हुआ था. पुलिस ने हरिद्वार वाली बस को रुकवा कर चैक किया.

साथ ही पूरे नगीना को भी छान मारा. लेकिन अश्विनी का कोई सुराग नहीं मिला. वह एक बार फिर पुलिस को चकमा दे गया था. अश्विनी को पकड़ने के लिए बिजनौर पुलिस जो भी कर सकती थी, उस ने किया. फिर भी रही खाली हाथ ही.

5/6 अक्तूबर की रात को बढ़ापुर के थानाप्रभारी कृपाशंकर सक्सेना ने बढ़ापुर की ओर आने वाले वाहनों की चैकिंग के लिए बैरिकेड लगा रखे थे. रात करीब 12 बजे पुलिस ने दिल्ली से आ रही एक बस को रोका. ड्राइवर ने बस सड़क किनारे लगा दी. बस में करीब एक दरजन यात्री थे.

10 दिन के खेल के बाद

कृपाशंकर सक्सेना ने 2 सिपाहियों मोनू यादव और बादल पंवार से बस की चैकिंग करने को कहा. चैकिंग के दौरान यात्री अलर्ट हो कर बैठ गए. कंडक्टर के आगे वाली सीट पर एक व्यक्ति मुंह पर कपड़ा लपेटे बैठा था. बस के किसी यात्री, यहां तक कि पुलिस ने भी नहीं सोचा था कि वह एक लाख का ईनामी अश्विनी उर्फ जौनी हो सकता है.

मुंह पर कपड़ा लपेटे बैठा युवक नींद में था, नींद में उस का सिर एक ओर को झुका हुआ था. सिपाही मोनू और बादल ने उस के कंधे पर हाथ रख कर मुंह से कपड़ा हटाया तो वह चौंक कर जागा. वह अश्विनी ही था.

सामने पुलिस को देख अश्विनी को लगा कि उस का खेल खत्म हो गया है. उस ने बिना देर किए कमर से पिस्तौल निकाली और दाईं कनपटी पर रख कर ट्रिगर दबा दिया. एक धमाके के साथ खून का फव्वारा छूटा और वह एक ओर को लुढ़क गया. पुलिस वाले समझ गए कि वह अश्विनी उर्फ जौनी ही था.

आंखों के सामने एक युवक को सुसाइड करते देख पूरी बस के यात्री सन्न थे. वैसे असलियत यह थी कि अगर अश्विनी के चेहरे पर कपड़ा न होता तो निस्संदेह पुलिस वाले उसे पहचान ही नहीं पाते. वजह यह कि वह पिछले 10 दिनों से छिपताछिपाता घूम रहा था, न खानापीना और न आराम. नहानाधोना तो दूर की बात थी.

बहरहाल, बस खाली करा कर पुलिस ने कंडक्टर से पूछताछ की. उस ने बताया कि जौनी नगीना रेलवे फाटक पर पैट्रोलपंप चौराहे से बस में सवार हुआ था. वह कंडक्टर से आगे वाली सीट पर बैठ गया. उस के पास केवल एक छोटा सा बैग था. कंडक्टर से टिकट लेते समय उस ने कहा था कि उसे बढ़ापुर से पहले उतरना है. इस पर कंडक्टर ने कहा, ‘‘जहां उतरना हो, उतर जाना लेकिन टिकट बढ़ापुर का ही लगेगा.’’

कंडक्टर से टिकट लेने के बाद उस ने मुंह पर सफेद कपड़ा लपेट लिया था.  पुलिस ने जौनी की लाश की तलाशी ली तो उस के पास यूएस मेड पिस्तौल के अलावा एक बैग मिला. उस के बैग में जैकेट व एक जोड़ी कपड़े थे. साथ ही सैमसंग का मोबाइल, 67 रुपए, 16 कारतूस, आधार कार्ड, पैन कार्ड और इनकम टैक्स का एक सर्टिफिकेट भी बैग में मिले.

दरअसल, जौनी कहीं से पिस्तौल हासिल कर के अकेला ही अपने दुश्मनों को खत्म करने निकला था. लेकिन उस के सामने 2 दिन में ही कई समस्याएं आ खड़ी हुई थीं. न उस के पास खाना खाने को पैसा था और न सोनेछिपने की जगह. किसी से उसे कोई मदद भी नहीं मिल पा रही थी. 26 सितंबर के बाद से उस ने अपना मोबाइल फोन भी इस्तेमाल नहीं किया था. कह सकते हैं कि वह किसी के भी संपर्क में नहीं था.

बहरहाल, जौनी की मौत के बाद पुलिस ने चैन की सांस ली. यह रहस्य ही रहा कि जौनी ने अपनी बेइज्जती के मामले को इतनी लंबी अवधि तक क्यों पाले रखा. जाहिर है जरूर कोई ऐसी बात रही होगी जो उस के दिल में कांटे की तरह नहीं चुभी, बल्कि छुरी बन कर दिल में उतरी होगी. वरना उच्चशिक्षा प्राप्त जौनी इतना बड़ा खूनी खेल नहीं खेलता.

जो भी हो, जौनी ने 3 कत्ल किए थे. पकड़ा जाता तो निस्संदेह या तो उस की पूरी जिंदगी जेल में बीतती या फिर उस के गले में फांसी का फंदा पड़ता.

लगता है कि इस बात को जौनी अच्छी तरह समझता था और उस ने अपनी मौत की राह पहले ही तय कर ली थी.

जौनी के 2 पत्र

26 सितंबर को राहुल और कृष्णा की हत्या के बाद भीमसेन कश्यप की शिकायत पर पुलिस ने अश्विनी उर्फ जौनी के अलावा उस के पिता, भाई और अन्य को भले ही केस में शामिल कर लिया था, लेकिन हकीकत यह थी कि जौनी खुद अपने घर वालों के व्यवहार से आहत था.

पुलिस को जौनी के लिखे 2 पत्र मिले थे, जिन में से एक उस की पैंट की जेब से मिला था और दूसरा उस के घर से. घर से मिले पत्र में यह बात साफ हो गई कि घर वाले उसे पसंद नहीं करते थे. उसे इस बात का दुख था कि घर वालों ने भी उस की भावनाओं को नहीं समझा.

घर से मिले पत्र में जौनी ने लिखा, ‘मेरी बहन को एक युवक ने छेड़ा तो मैं ने उसे सबक सिखाया. डांस करते हुए बहन की वीडियो बना ली गई तो मैं वीडियो बनाने वाले से भिड़ गया. बहन की शादी में जो बाइक दी गई, वह मैं ने अपने पैसों से, अपने नाम से खरीदी थी. बहन ने दूसरी जगह शादी की तब भी मैं ने पूरी तरह उस का साथ दिया. इस के बावजूद बहन ने मुझे गलत ठहराया.’

इस पत्र में जौनी ने और भी कई मामलों का जिक्र करते हुए घर वालों के गिलेशिकवों का जिक्र किया था. जबकि वह शुरू से ही उन की मदद करता आया था. जौनी की जेब से जो पत्र मिला, उस पत्र को वह पुलिस थाने तक पहुंचाना चाहता था. इस पत्र में उस ने लिखा कि वह जानता है कि उस ने 3 हत्याएं की हैं. लेकिन इस अपराध के लिए वह सरेंडर करना चाहता है.

उस ने आगे लिखा, बढ़ापुर थाने के कुछ पुलिसकर्मी बहुत अच्छे हैं. उन की वह इज्जत करता है. वह सरेंडर करना चाहता है, लेकिन उस के साथ मारपीट न हो, बेइज्जत न किया जाए. पुलिस अच्छा काम कर रही है, मुझे ढूंढ रही है. मैं सरेंडर करने को तैयार हूं.

लेकिन वह अपने इस पत्र को पुलिस तक पहुंचा नहीं पाया. हो सकता है, सुसाइड वाली रात वह सरेंडर करने के लिए ही बढ़ापुर जा रहा हो.

जो भी हो, मामला पत्रों का हो या फेसबुक का, अश्विनी उर्फ जौनी ने स्वयं को पीडि़त साबित करने की कोशिश की. लेकिन पीडि़त होने का मतलब यह नहीं है कि अपराधों की राह पर उतर जाओ.