16 जनवरी, 2014 को जौनथन प्रसाद अपने रिश्तेदारों के साथ मुलुंड और कांजुर मार्ग ईस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे के किनारे से गुजर रहे थे तो उन्हें किसी शव के सड़ने की दुर्गंध महसूस हुई. इस गंध ने उन्हें बेचैन कर दिया. मन अशांत हो उठा. न चाहते हुए भी उन्होंने उन दोनों सिपाहियों को फोन कर के वहां बुला लिया. सिपाहियों के आने पर वह उस ओर बड़े, जिधर से दुर्गंध आ रही थी.
जौनथन प्रसाद सिपाहियों के साथ सर्विस रोड से 10 फुट अंदर समुद्र के किनारे की झाडि़यों में घुसे तो वहां एक खाई में क्षतविक्षत अवस्था में एक शव पड़ा दिखाई दिया. दूर से उसे पहचाना नहीं जा सकता था, क्योंकि उसे बेरहमी से जलाने की कोशिश की गई थी. लेकिन यह साफ दिख रहा था कि वह शव महिला का था.
जौनथन प्रसाद की बेटी गायब थी. लाश महिला की थी. कहीं यह लाश ईस्टर की तो नहीं, यह सोच कर वह खाई में उतर गए. करीब से देखने पर पता चला कि वह लाश उन की बेटी ईस्टर अनुह्या की ही थी. बेटी की हालत देख कर वह रो पड़े.
लाश जहां पड़ी थी, वह स्थान थाना कांजुर मार्ग के अंतर्गत आता था. इसलिए लाश पड़ी होने की सूचना थाना कांजुर मार्ग पुलिस को दी गई. थाना पुलिस ने घटनास्थल पर पहुंच कर खाई से शव निकलवाया. घटनास्थल के निरीक्षण और काररवाई के बाद शव को पुलिस ने पोस्टमार्टम के लिए जे.जे. अस्पताल भिजवा दिया.
अगले दिन ईस्टर अनुह्या की हत्या का समाचार दैनिक अखबारों में छपा तो मामले ने तूल पकड़ लिया. मामला हाईप्रोफाइल परिवार का था, इसलिए मुंबई पुलिस कमिश्नर सत्यपाल सिंह ने इसे गंभीरता से लिया. उनहोंने तत्काल इस मामले की जांच की जिम्मेदारी क्राइम ब्रांच के ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर हिमांशु राय को सौंप दी.
एक ओर जहां जीआरपी थाना कुर्ला पुलिस और थाना कांजुर मार्ग पुलिस इस मामले की जांच कर रही थी, वहीं दूसरी ओर अपर पुलिस कमिश्नर निकेत कौशिक, अतिरिक्त पुलिस कमिश्नर अंबादास पोटे, सहायक पुलिस कमिश्नर प्रफुल्ल भोसले के निर्देशन में क्राइम ब्रांच की 5 यूनिटें इस मामले की जांच में लगी थीं.
पुलिस अधिकारियों ने जांच की दिशा तय करने के लिए जौनथन प्रसाद को क्राइम ब्रांच के औफिस में बुला कर विस्तार से बातचीत कर के ढेर सारी जानकारी इकट्ठा की.
पोस्टमार्टम रिपोर्ट से ऐसा कोई क्लू नहीं मिला था कि जांच आगे बढ़ पाती. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार उस के साथ दुष्कर्म नहीं हुआ था. इस से अंदाजा लगाया गया कि या तो दुष्कर्मी ने असफल होने पर हत्या की थी या फिर उस की हत्या लूटपाट के लिए की गई थी.
सामान के नाम पर ईस्टर के पास मोबाइल फोन, लैपटौप और कुछ कपड़े थे. ज्यादा पैसे भी नहीं थे. पुलिस ने जब इस मामले पर गहराई से विचार किया तो लगा कि इस मामले में किसी ऐसे लुटेरे का हाथ हो सकता है, जो बैग, मोबाइल और लैपटौप चोरी करता था.
ईस्टर लोकमान्य तिलक टर्मिनस पर उतरी थी. उस की लाश कांजुर मार्ग ईस्टर्न एक्सप्रेस हाइवे पर मिली थी, इसलिए पुलिस ने अपने जांच का दायरा स्टेशन से लाश मिलने के स्थान तक बनाया. टर्मिनस से ले कर कांजुर मार्ग तक टैक्सी ड्राइवर, औटोरिक्शा ड्राइवर, टर्मिनस के कुली, सफाई कर्मचारी, चरसी आदि से पूछताछ करने के साथसाथ यह पता लगाने की कोशिश की गई कि यहां इस तरह की चोरी करने वाले कौनकौन हैं.
यूनिट-1 के सीनियर इंसपेक्टर नंद कुमार गोपाल, यूनिट 25 के सीनियर इंसपेक्टर अविनाश सावंत, यूनिट 6 के सीनियर इंसपेक्टर श्रीपाद काले, यूनिट 7 के सीनियर इंसपेक्टर व्यंकट पाटिल, इंसपेक्टर संजय सुर्वे, इंसपेक्टर अशोक खोत, इंसपेक्टर अनिल ढोले की संयुक्त टीम स्टेशन पर काम करने वाले ही नहीं, वहां गलत काम करने वालों पर खुद तो नजर रख ही रही थी, मुखबिरों को भी लगा दिया गया था.
स्टेशन पर लगे सीसीटीवी कैमरे ही नहीं, हाईवे पर लगे सीसीटीवी कैमरों की भी फुटेज देखी गई, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. मामले में प्रगति न होते देख जौनथन प्रसाद का धैर्य जवाब देने लगा. इंसाफ पाने के लिए वह दिल्ली गए और गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे, सीपीएम की नेता वृंदा करात, आम आदमी पार्टी के नेता योगेंद्र यादव से मिल कर ईस्टर के हत्यारों की गिरफ्तारी के लिए गुहार लगाई.
लेकिन उन की इस दौड़भाग का कोई लाभ नहीं हुआ. तमाम कोशिशों के बाद भी पुलिस ईस्टर के हत्यारों तक नहीं पहुंच पाई. धीरेधीरे 2 महीने का समय बीत गया. इस से यही लग रहा था कि ईस्टर की हत्या जिस ने भी की थी, वह काफी होशियार और शातिर था. उस ने कोई भी ऐसा सुबूत नहीं छोड़ा था कि पुलिस उस तक पहुंच पाती. पुलिस जांच का कोई दूसरा रास्ता निकालती, पुलिस के कई बड़े अधिकारियों का तबादला हो गया.
मुंबई पुलिस कमिश्नर सत्यपाल सिंह ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. उस के बाद राकेश मारिया मुंबई के नए पुलिस कमिश्नर बने. इस के साथ क्राइम ब्रांच में भी काफी उलटपुलट हुआ. ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर हिमांशु राय और अपर पुलिस कमिश्नर निकेत कौशिक की जगह पर नए जौइंट पुलिस कमिश्नर सदानंद दाते और अपर पुलिस कमिश्नर राजवर्धन को लाया गया.
नए पुलिस कमिश्नर राकेश मारिया इस के पहले क्राइम ब्रांच के चीफ थे, इसलिए उन्हें जटिल से जटिल मामलों को सुलझाना अच्छी तरह आता था. कार्यभार संभालते ही उन्होंने चर्चा में रहे ईस्टर हत्याकांड को सुलझाने के लिए सहायकों के साथ जांच की रूपरेखा तैयार की. इस के बाद उसी रूपरेखा पर जांच की जिम्मेदारी नए क्राइम ब्रांच के जौइंट कमिश्नर सदानंद दाते, अपर पुलिस कमिश्नर राजवर्धन, सत्यनारायण चौधरी, एडिशनल कमिश्नर अंबादास पोटे और असिस्टैंट कमिश्नर प्रफुल्ल भोंसले को सौंप दी गई.
इन नए अधिकारियों के निर्देशन में एक बार फिर क्राइम ब्रांच के अधिकारियों ने सरगर्मी से मामले की जांच शुरू की. इस बार उन्होंने 2 हजार लोगों से पूछताछ की. मुखबिर भी जीजान से लगे थे. इसी के साथ सीसीटीवी के कैमरों की फुटेज एक बार फिर देखी गई. इस बार फुटेज देखते समय जौनाथन प्रसाद को भी साथ बैठाया गया था. इस बार की मेहनत रंग लाई और फुटेज में ईस्टर के साथ एक ऐसा आदमी दिखाई दिया, जो स्टेशन से बैग, मोबाइल और लैपटौप की चोरी करता था.
इसी के बाद 2 मार्च, 2014 को यूनिट-6 के सीनियर इंस्पेक्टर व्यंकट पाटिल ने अपने सहायक इंस्पेक्टर संजय सुर्वे, अशोक खोत और अनिल ढोले के साथ भांडूप के एक घर से उस आदमी को गिरफ्तार कर लिया गया था. उस का नाम था चंद्रभाव उर्फ चौक्या सुदाम सापन.
मिली जानकारी के अनुसार यही चंद्रभाव उर्फ चौक्या सुदाम सापन सीसीटीवी कैमरे की फुटेज में ईस्टर के साथ जाता दिखाई दिया था. पूछताछ में पता चला कि वही ईस्टर का हत्यारा था. उसे क्राइम ब्रांच के औफिस ला कर पूछताछ की गई तो उस ने ईस्टर अनुह्या की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया था.
चंद्रभाव उर्फ चौक्या ने क्राइम ब्रांच अधिकारियों को ईस्टर की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस प्रकार थी.
28 वर्षीया चंद्रभाव उर्फ चौक्या मूलरूप से नासिक जनपद के गांव मधमलाबाद का रहने वाला था. संतानों में बड़ा होने की वजह से मांबाप का कुछ ज्यादा ही लाडला था, जिस की वजह से वह आवारा हो गया था. पढ़ाई छोड़ कर वह दोस्तों के साथ मटरगश्ती किया करता था. पिता सुदाम सापन सीएसटी टर्मिनस पर कुली का काम करते थे. मुंबई में वह उपनगर कांजुर मार्ग स्थित कर्वेनगर साईंकृपा सोसायटी की इमारत नंबर वी-2 के रूम नंबर 208 में परिवार के साथ रहते थे.
चंद्रभाव चौक्या की शादी मांबाप ने यह सोच कर कर दी थी कि जिम्मेदारी पड़ने पर शायद वह सुधर जाएगा. वह एक बेटी का बाप भी बन गया, लेकिन वह जस का तस ही रहा.
2005 में सुदाम सापन गंभीर रूप से बीमार हुए तो रेलवे के अधिकारियों से पैरवी कर के अपना कुली वाला बैज चंद्रभाव उर्फ चौक्या के नाम करा दिया था. इस के बाद चंद्रभाव सीएसटी रेलवे टर्मिनस पर बाप की जगह कुली का काम करने लगा था.
जब थोड़ाबहुत पैसा आने लगा तो चंद्रभाव के शौक बढ़ने लगे. घर में खूबसूरत पत्नी के होते हुए भी वह अपनी कमाई का ज्यादा हिस्सा खानेपीने और पराई औरतों पर उड़ाने लगा. अपने यही शौक पूरे करने के लिए कभीकभी वह यात्रियों के सामान उड़ाने लगा. 2 सालों तक सीएसटी रेलवे टर्मिनस पर कुलीगीरी करने के बाद उस ने यह काम छोड़ दिया.
2007 में वह कुर्ला लोकमान्य तिलक रेलवे टर्मिनस पर आ गया, जहां उस की दोस्ती नंदकुमार साहू से हुईं. नंदकुमार साहू भी कुली था और उस में भी वे सभी बुरी आदतें थीं, जो चंद्रभाव में थी. वह भी मौजमस्ती के लिए यात्रियों के सामानों की चोरी करता था.
क्यों की चन्द्रभाव ने ईस्टर की हत्या? जानने के लिए पढ़िए इस Social Crime Story का अगला भाग.
दरअसल, बंटू कोई कामधंधा नहीं करता था. वह हमेशा अपने पिता और बड़े भाइयों पर बोझ ही बना रहा. जुआ, सट्टा खेलना और अकसर गांव के लोगों के साथ झगड़ना उस की दिनचर्या में शुमार था. इन मामलों में उसे कई बार हवालात में भी बंद होना पड़ा था.
शादी के चंद रोज बाद ही मिथिलेश को जब पति की सच्चाई पता चली तो अपनी किस्मत पर आंसू बहाने के अलावा उस के सामने कोई उपाय नहीं था. हालात से समझौता करते हुए उस ने पति को काफी समझाया कि वह कोई काम करें, लेकिन उस ने पत्नी की बात को काफी गंभीरता से नहीं लिया.
इसी तरह एकएक कर पूरे 10 साल गुजर गए. बंटू भी अब तक 4 बच्चों का बाप बन चुका था लेकिन उस ने कभी पत्नी की ख्वाहिशों की तरफ ध्यान तक नहीं दिया.
इस की एक वजह यह थी कि बंटू को घर का खर्च चलाने में इसलिए ज्यादा परेशानी नहीं हुई क्योंकि उस के पिता और भाई जोदसिंह आर्थिक मदद कर देते थे. जोदसिंह उत्तर प्रदेश पुलिस में सिपाही (घुड़सवार) था.वैसे जोदसिंह और बंटू का विवाह एक सप्ताह आगेपीछे हुआ था. उस की पत्नी हेमलता मल्लपुरा थाने के ठीक पीछे रहने वाले जयंती प्रसाद की बेटी थी. जयंती प्रसाद भी यूपी पुलिस में सिपाही थे.
जोदसिंह 3 बच्चों का बाप बन चुका था. लेकिन वह पत्नी से चोरीछिपे बंटू की आर्थिक मदद करता रहता था. जबकि हेमलता इस का विरोध करती रहती थी.
मिथिलेश को रोटी कपड़ा तो मिल रहा था लेकिन इन के अलावा उस की और जरूरतें भी थीं. उस का मन भी करता था कि जेठानी की तरह उस के पास भी जरूरत की तमाम चीजें हों. वह भी रोजाना बढि़या से बढि़या कपड़े पहने. उस के पास भी इतने पैसे हों कि अपनी जरूरत के मुताबिक खर्च कर सके ऐसी ही तमाम महत्त्वाकांक्षाएं उस के मन में दबी पड़ी थीं.
पति की आदतों को देखते हुए उसे नहीं लग रहा था कि जिन अभावों में वह जी रही है, वह कभी पूरे भी हो सकेंगे या नहीं. उस की शादी को 11 साल बीत चुके थे. इन 11 सालों में बंटू व उस के अन्य भाइयों के रहनसहन, सामाजिक मानप्रतिष्ठा में जमीन-आसमान का अंतर आ गया था.
बुरे दौर से गुजरने के बाद भी बंटू ने अपनी गलत आदतें नहीं सुधारीं. उस का मोहल्ले के लोगों से आए दिन झगड़ा होता रहता. जिस से पुलिस उसे पकड़ कर ले जाती थी. तब जोदसिंह उसे जैसेतैसे थाने से छुड़वा देता था. अब घर वाले भी उस से परेशान रहने लगे. उन्होंने उस की आर्थिक मदद करनी बंद कर दी.
तब हेमलता ने बंटू से छुटकारा पाने का एक उपाय ढूंढ लिया. पति जोदसिंह को समझाबुझा कर उस ने एक दिन आगरा के आला पुलिस अधिकारियों को पति की तरफ से एक पत्र भिजवाया. जिस में लिखा कि बंटू जो उस का सगा भाई है, के चालचलन ठीक नहीं हैं और भविष्य में उस के द्वारा कोई आपराधिक कृत्य किया जाता है तो उस का जिम्मेदार खुद बंटू ही होगा, हमारे परिवार वाले नहीं.
जब यह पत्र एसएसपी को मिला तो उन्होंने थाना शमसाबाद पुलिस के पास आवश्यक काररवाई के लिए भेज दिया. थानाप्रभारी ने बंटू को थाने बुलाया और सीधे रास्ते चलने के लिए बुरी तरह हड़का दिया. तब उस ने वादा किया कि आइंदा वह कोई गैरकानूनी काम नहीं करेगा. इस के बाद ही पुलिस ने उसे छोड़ा.
पुलिस से जलील होने के बाद बंटू घर आ गया. बाद में उसे और मिथिलेश को यह पता लग गया कि हेमलता ने ही उस के खिलाफ पुलिस में शिकायत कराई थी. मिथिलेश के मन में जेठानी हेमलता के प्रति नफरत पनपने लगी.
वैसे तो बंटू अपने भाई जोदसिंह के रहनसहन को देख कर उस से मन ही मन नफरत करता था लेकिन अब इस के बाद उस की नफरत और बढ़ गई थी. जोदसिंह की पोस्टिंग अलीगढ़ में थी. अब तो हालात ये हो गए थे कि जब कभी जोदसिंह अलीगढ़ से अपने गांव आता तो बंटू और मिथिलेश, जोदसिंह और उस की पत्नी हेमलता से बात नहीं करते.
बंटू के घर की जरूरतें बढ़ती जा रही थीं और आमदनी शून्य थी. तो ऐसे में बंटू इधरउधर से उधार ला कर काम चलाने लगा. मगर ये भी ज्यादा दिन न चला. कुछ दिनों बाद तकादा करने वाले भी उस के यहां आने लगे. पैसे न मिलने पर वे भी उसे जलील कर के चले जाते थे.
घर में फाके पड़ने की नौबत आ गई. तब मिथिलेश का पति से रोजाना ही झगड़ा होने लगा. उन के बीच गालीगलौज, मारपीट जैसे रोज का नियम बन गया. क्लेश के साथ मिथिलेश ने पति को रास्ते पर लाने के लाख जतन कर लिए लेकिन न तो बंटू ने कोई कामधाम किया और न ही उस के व्यवहार में किसी प्रकार का कोई सुधार आया. इसी बीच एक रात बंटू की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई.
21 जनवरी, 2013 की रात की बात थी. बंटू नशा कर के आया था. पत्नी ने उसे खाना आदि खिला कर सुला दिया. वह खुद भी पास में ही मौजूद दूसरे कमरे में बच्चों के साथ सो गई. बंटू बरामदे में सो रहा था.रात के करीब एक बजे मिथिलेश जब बाथरूम जाने के लिए उठी तो बरामदे में पहुंचते ही उस की चीख निकल गई. उस का पति खून से लथपथ पड़ा था. किसी ने उस के सीने पर गोली मारी थी.
मिथिलेश के चीखने की आवाज सुन कर उस के ससुर प्रेमसिंह और देवर टीटू व टिंकू भी वहां आ गए. बंद घर में कौन उसे गोली मार गया इस बात को घर वाले समझ नहीं पाए.
बाद में मोहल्ले के लोग भी वहां पहुंच गए. दबी जुबान में कुछ कह रहे थे कि मिथिलेश ने ही नाकारा पति से छुटकारा पाने को लाइसेंसी बंदूक से मार डाला है. जबकि कई लोग जोदसिंह को कठघरे में खड़ा कर रहे थे. उन का कहना था कि जोदसिंह रात के अंधेरे में आया और साइलेंसर लगी रिवाल्वर से बंटू को भून कर रात में ही गायब हो गया.
लोगों का तो यहां तक कहना था कि जोदसिंह व मिथिलेश के बीच अवैध संबंध थे. बंटू रास्ते का रोड़ा था इसलिए उसे हटा दिया गया. बहरहाल, जितने मुंह उतनी बातें हो रही थीं.
घुमाफिरा कर अंगुली मिथिलेश की तरफ ही उठ रही थी. लेकिन प्रेमसिंह नहीं चाहते थे कि उन की बहू जेल जाए. इसलिए उन्होंने गांव के संभ्रांत लोगों से बात कर आननफानन में बेटे का अंतिम संस्कार कर दिया. और गांव में यह खबर फैला दी कि बंटू की मौत ज्यादा शराब पीने से हुई थी.
जबकि मिथिलेश पति की हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए जेठ जोदसिंह और ससुर प्रेमसिंह से मानमनुहार करती रही लेकिन उन लोगों ने एक न सुनी. बात पंचों के सामने गई तो उन्होंने उसे यह समझा कर खामोश कर दिया कि चूंकि उस का ही बंटू से रोजरोज झगड़ा होता था इसलिए पुलिस भी यही मानेगी कि अपने पति की हरकतों से आजिज आ कर उस ने ही उसे मौत के घाट उतारा है.
पंचों व परिजनों की बात में दम था या नहीं परंतु उस समय किसी वजह से मिथिलेश ने भी पति की हत्या पर चुप्पी साध ली. बंटू के खत्म होने से मिथिलेश के जीवन में एक अजीब सी खामोशी छा गई. उस के पास आमदनी का कोई जरिया न होने की वजह से उसे अब अपने जेठ व ससुर के ऊपर ही निर्भर रहना था. वह अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती थी. इसलिए वह घर पर कपड़ों की सिलाई भी करने लगी थी लेकिन उस से घर का खर्च पूरा नहीं चल पाता था.
उस के सभी बच्चे स्कूल जाने लगे थे. यानी खर्चा भी बढ़ गया था. अब जोदसिंह खुल कर मिथिलेश व उस के बच्चों की मदद करने लगा. लेकिन हेमलता को ये सब सहन नहीं होता था. वह मिथिलेश से सीधे मुंह बात तो करती नहीं थी, मौका मिलने पर उसे उलाहना जरूर देती रहती थी.
मजबूरी में मिथिलेश को यह सब सुनना पड़ता था. मिथिलेश के बच्चे भी समझदार हो गए थे. हेमलता उन्हें भी फूटी आंख पसंद नहीं करती थी. बच्चे भी ताई के अपमान भरे व्यवहार को अच्छी तरह समझते थे. हेमलता जब भी अलीगढ़ से शंकरपुर आती तो परिवार के अन्य बच्चों के लिए कुछ न कुछ अवश्य लाती थी लेकिन मिथिलेश के चारों बच्चों के लिए कुछ भी नहीं.
जेठानी का यह बर्ताव देख कर मिथलेश के सीने पर सांप लोट जाता था. उस का दबंगपन दिखाने की एक वजह यह भी थी कि उस के पिता और पति दोनों ही पुलिस में थे. ऊपर से पति की कमाई का उस के पास अच्छा बैंक बैलेंस भी था. जिस से वह घमंड में रहती थी. गांव में रहने के बजाय वह आगरा की ही किसी कालोनी में फ्लैट लेने की योजना बना रही थी.
पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, जयप्रकाश की हत्या रविवार की रात को हुई थी. उसे 315 बोर के तमंचे से गोली मारी गई थी. जब इस पूछताछ से पुलिस हत्यारों तक पहुंचने में नाकाम रही तो जांच को आगे बढ़ाने के लिए पुलिस ने मोबाइल को आधार बनाया.
पुलिस ने मृतक जयप्रकाश और नामजद अभियुक्तों के काल डिटेल्स और लोकेशन निकलवाई. इस काल डिटेल्स और लोकेशन से पता चला कि जिस रात जयप्रकाश की हत्या हुई थी, चारों अभियुक्तों की लोकेशन जसपुर थी. चारों में से किसी की मृतक से कोई बात भी नहीं हुई थी. जबकि जयप्रकाश के मोबाइल फोन की लोकेशन काशीपुर की थी. उस की काल डिटेल्स में 2 नंबर ऐसे मिले थे, जिन की लोकेशन काशीपुर की थी और उन नंबरों से जयप्रकाश की कई बार बात भी हुई थी. पुलिस ने उन नंबरों के बारे में पता किया तो दोनों नंबर काशीपुर के निकले.
पुलिस को पता ही था कि मृतक इधर कई दिनों से काशीपुर में अपनी बहन के घर रह रहा था. पुलिस केला देवी से पूछताछ कर ही चुकी थी. उस ने बताया था कि करवा चौथ की बात कह कर जयप्रकाश अपने घर चला गया था. लेकिन जब मृतक के फोन की लोकेशन काशीपुर की ही मिली तो पुलिस ने एक बार फिर उस से पूछताछ करने पहुंची. पुलिस ने उस से उन दोनों नंबरों के बारे में पूछा, जो जयप्रकाश की काल डिटेल्स में मिले थे.
केला देवी से पता चला कि उन दोनों नंबरों में से एक नंबर उस के भतीजे पंकज का है. पुलिस पंकज को हिरासत में ले कर पूछताछ के लिए कोतवाली जसपुर ले आई. उसे हिरासत में लेने की वजह यह थी कि उस रात उस के नंबर की लोकेशन जसपुर की पाई गई थी.
कोतवाली में पंकज से पूछताछ शुरू हुई तो पुलिस के सवालों के आगे वह ज्यादा देर तक टिक नहीं सका. दरअसल पंकज शरीर से भले ही जवान लगता था, लेकिन उम्र के हिसाब से अभी बच्चा था. इसीलिए पुलिस की सख्ती के आगे उस की हिम्मत जवाब दे गई और उस ने सच उगल दिया. पंकज ने पुलिस को बताया कि अपने 3 साथियों के साथ मिल कर उसी ने जयप्रकाश की हत्या की थी.
पूछताछ में पंकज ने जयप्रकाश की हत्या की जो कहानी पुलिस को सुनाई, वह हैरान करने वाली थी. इस की वजह यह थी कि उस ने पत्नी, बेटे और पत्नी के प्रेमी को मारने की सुपारी दी थी, लेकिन मारा गया खुद. यह पूरी कहानी कुछ इस तरह थी.
जसपुर के बीएसबी इंटर कालेज में एक चपरासी था गंगाराम. कई सालों पहले जानलेवा बीमारी की वजह से उस की मौत हो गई थी. मृतक जयप्रकाश गंगाराम का बड़ा बेटा था. जवान होने पर गंगाराम ने सुनीता से उस की शादी कर दी थी. उस का परिवार पहले शहर के बीचोबीच सब्जी मंडी के पास रहता था. युवा होते ही जयप्रकाश नीरा बेचने लगा था. उसी की आय से उस के परिवार का गुजरबसर हो रहा था.
जयप्रकाश के 4 बच्चे हो गए तो उस पुराने मकान में रहने में उसे परेशानी होने लगी. तब जयप्रकाश ने अपने उस पुराने मकान को बेच दिया और बीएसबी इंटर कालेज के पास गांगूवाला मोहल्ले में भाई के साथ जमीन खरीद कर नया मकान बना कर उसी में परिवार के साथ रहने लगा.
पिता के समय से ही जयप्रकाश के बीएसबी इंटर कालेज के कई टीचरों से अच्छे संबंध थे, जो गंगाराम के मरने के बाद भी उस के घर आतेजाते रहते थे. उन्हीं अध्यापकों में एक हरजीत सिंह भी था. आनेजाने में ही हरजीत की नजर जयप्रकाश की पत्नी सुनीता पर पड़ी तो उस का मन मचल उठा. इस की वजह यह थी कि वह थोड़ा मनचले किस्म का था. शायद इसीलिए शादीशुदा होने के बावजूद खूबसूरत सुनीता पर उस की नीयत खराब हो गई थी.
मन के मचलते ही हरजीत सुनीता के पीछे पड़ गया. वह कभी सुनीता की सुंदरता की तारीफ करता तो कभी उस के नाश्तेपानी की. सुनीता को उस की ये तारीफें अच्छी लगतीं. जब हरजीत तारीफें कुछ ज्यादा ही करने लगा तो सुनीता का ध्यान उस पर गया. इस के बाद उस की भी समझ में आ गया कि हरजीत चाहता क्या है.
सुनीता की घरगृहस्थी ठीकठाक चल रही थी. लेकिन हरजीत की चाहत के आगे वह झुक गई. उस ने नजरों से ही बता दिया कि वह जो चाहता है, उसे वह मंजूर है. इस के बाद सुनीता की नजदीकी पाने के लिए हरजीत ने उसे गर्ल्स इंटर कालेज में मिड डे मील बनाने का काम दिला दिया. उसी के सहारे सुनीता ने वहीं एक छोटी सी चाय की दुकान खोल ली. अब हरजीत और सुनीता पूरा दिन एकदूसरे की आंखों के सामने रहने लगे.
जयप्रकाश का मकान बस्ती से दूर ऐसी जगह था, जहां कौन आताजाता है, कोई देखने वाला नहीं था. जयप्रकाश नीरा बेचने सुबह ही निकल जाता था. बच्चे भी स्कूल चले जाते थे. उस के बाद घर में सुनीता अकेली रह जाती थी. ऐसे में हरजीत को सुनीता से मिलने में कोई परेशानी नहीं होती थी. हरजीत जब भी सुनीता के यहां आता था, खानेपीने की तरहतरह की चीजें ले आता था, इसलिए सुनीता के बच्चों को भी वह अच्छा लगने लगा था. बच्चे पिता से ज्यादा उसे प्रेम करने लगे थे.
संबंध बनने के बाद हरजीत सुनीता के घर ज्यादा ही आनेजाने लगा तो यह जयप्रकाश को खलने लगा. जयप्रकाश ने दोनों को किसी दिन अश्लील हरकतें करते देख लिया तो हरजीत के आने का विरोध करने लगा. सुनीता अब उस की बात मानने को तैयार नहीं थी. जिस की वजह से हरजीत को ले कर घर में कलह रहने लगी.
जयप्रकाश ने देखा कि पत्नी उस का कहना नहीं मान रही है और बच्चे भी उसी का साथ दे रहे हैं तो बीवी बच्चों से उसे नफरत हो गई. इस के बाद वह बीवी बच्चों से अलग रहने के बारे में सोचने लगा. वह अपना मकान बेच कर पत्नीबच्चों को छोड़ कर अकेला रहना चाहता था. इस के बाद छोटे भाई से सांठगांठ कर के उस ने मकान बेचने की योजना बना डाली.
दरअसल यह मकान दोनों भाई ने मिल कर बनवाया था. आखिर दोनों भाइयों ने 30 सितंबर, 2014 को सुनीता की चोरी से 17 लाख रुपए में मकान का सौदा कर डाला. इस रकम से जो 9 लाख रुपए जयप्रकाश को मिले थे, उसे ले जा कर उस ने अपनी बहन केला देवी के यहां रख दिए थे.
कौन था जयप्रकाश की हत्या के पीछे? जानने के लिए पढ़ें कहानी का अगला भाग.
सन 1992 तक बीसों औपरेशन के बाद ततजाना का कायाकल्ल्प हो गया. इस बीच ततजाना का इलाज करते करते डा. फेंज कब उस की चाहत के मरीज बन गए, वह जान नहीं पाए. वह खुद हैरान थे, ऐसा कैसे हो गया. वह हजारों युवतियों की सर्जरी कर चुके थे, लेकिन जो निखार ततजाना के शरीर में आया था, ऐसा किसी अन्य युवती के शरीर में उन्होंने अनुभव नहीं किया था.
अपनी सुंदरता देख कर ततजाना बेहद खुश थी. इस के बावजूद वह आईने का सामना करने से कतरा रही थी. इस दौरान डा. फेंज ने अनुभव किया था कि बदसूरती से उपजी हीनभावना की शिकार ततजाना आईने से न केवल डरती है, बल्कि उस से नफरत करती है. इसीलिए इलाज के बाद वह उसे आदमकद आईने के सामने ले गए थे. ततजाना चाह कर भी आईने के सामने आंख नहीं खोल पा रही थी. खोलती भी कैसे, आखिर कितनी टीस दी थी इस आईने ने.
डा. फेंज ने आगे बढ़ कर ततजाना का माथा चूमते हुए कहा, ‘‘पलकें उठा कर तो देखो, आईना खुद शरमा रहा है तुम्हारी खूबसूरती को देख कर. देखो, यह कह भी रहा है, ‘मेरा जवाब तू है, तेरा जवाब कोई नहीं.’’’
डरते हुए ततजाना ने नजरें उठा कर देखा, वाकई वह हैरान रह गई थी. उस के अंधेरे अतीत की परछाई भी नहीं थी उस के चेहरे पर. उसे विश्वास नहीं हो रहा था. उस ने चेहरे को छू कर देखा. उस की नजरों में डा. फेंज के लिए एहसान और दिल में आदर तथा प्यार की तह सी जमी थी. वह अंजान तो नहीं थी. उसे अहसास हो गया था कि डा. फेंज के दिल में उस के लिए मोहब्बत का अंकुर फूट चुका है. लेकिन उस ने दिल की बात जुबान पर नहीं आने दी.
वह ऐसा समय था, जब डा. फेंज अपनी शादीशुदा जिंदगी के नाजुक दौर से गुजर रहे थे. आखिर वह समय आ ही गया, जब पत्नी उन्हें तलाक दे कर अपने एकलौते बच्चे को ले कर सदा के लिए उन की जिंदगी से दूर चली गई.
तनहाई के इस आलम में उन्हें ततजाना के प्यार के सहारे की जरूरत थी. लेकिन वह इजहार नहीं कर रहे थे. इसी तरह साल गुजर गया. दरअसल डा. फेंज जहां उम्र के ढलान पर थे, वहीं ततजाना यौवन की दहलीज पर कदम रख रही थी.
वह 66 साल के थे, जबकि ततजाना मात्र 23 साल की थी. लेकिन यह भी सच है कि प्यार न सीमा देखता है न मजहब और न ही उम्र. एक दिन फेंज और ततजाना साथ बैठे कौफी पी रहे थे, तभी डा. फेंज ने कहा, ‘‘ततजाना, मैं तुम से प्यार करने लगा हूं. तुम्हारी इस खूबसूरती ने मुझे दीवाना बना दिया है.’’
‘‘यह खूबसूरती आप की ही दी हुई तो है. एक नई जिंदगी दी है आप ने मुझे. इसलिए इस पर पहला हक आप का ही बनता है.’’ ततजाना बोली.
‘‘नहीं ततजाना, मैं हक नहीं जताना चाहता. अगर दिल से स्वीकार करोगी, तभी मुझे स्वीकार होगा. मैं एहसानों का बदला लेने वालों में से नहीं हूं.’’ डा. फेंज ने कहा.
‘‘मैं इस बात को कैसे भूल सकती हूं कि आप ने मेरी अंधेरी जिंदगी को रोशनी से सराबोर किया है. आप की तनहाई में साथ छोड़ दूं, यह कैसे हो सकता है. इस तनहाई में आप मुझे तनमन से अपने नजदीक पाएंगे. आप यह न समझें कि मैं यह बात एहसान का कर्ज अदा करने की गरज से नहीं, दिल से कह रही हूं.’’
सन 1999 में डा. फेंज से ततजाना ने विवाह कर लिया. शादी के बाद जहां डा. फेंज की तनहा जिंदगी में फिर से बहारें आ गईं, वहीं ततजाना भी एक काबिल और अरबपति पति की संगिनी बन कर खुद पर इतराने लगी.
अब सब कुछ था उस के पास. रहने को आलीशान महल, महंगी कारें, सोने हीरों के गहने और कीमती लिबास. जिंदगी के मायने ही बदल गए थे उस के. अब वह बेशुमार दौलत की मालकिन थी. हाई सोसाइटियों में उसे तवज्जो मिल रही थी, जिस की उस ने कभी कल्पना तक नहीं की थी.
ततजाना अपने जीवन की रंगीनियों में इस कद्र डूब गई कि अतीत की परछाई भी उस के पास नहीं फटक रही थी. डा. फेंज भी उस की खूबसूरती में खोए रहते थे. दोनों का 9 साल का दांपत्यजीवन कैसे गुजर गया, उन्हें पता ही नहीं चला. अचानक इस रिश्ते में तब दरार पड़ने लगी, जब ततजाना को तनहा छोड़ कर डा. फेंज अपने मरीजों में व्यस्त रहने लगे. बस यहीं से ततजाना के कदमों का रुख बदल गया.
उसी दौरान एक पार्टी में ततजाना की मुलाकात कारों के व्यापारी 60 वर्षीय हीलमुट बेकर से हुई. उस ने उस की आंखों में अपने प्रति चाहत देखी तो उस की ओर झुक गई. बेकर का व्यक्तित्व ही ऐसा था कि ततजाना उस की ओर झुकती चली गई. मुलाकातों का दौर शुरू हुआ तो दोनों पर मोहब्बत का रंग चढ़ने लगा. जिस्मों के मिलन के बाद वह और निखर आया. अब ततजाना का अधिकतम समय बेकर की बांहों में गुजरने लगा. हद तो तब होने लगी, जब ततजाना डा. फेंज को अनदेखा कर के रातें भी बेकर के बिस्तर पर गुजारने लगी.
डा. फेंज सोच रहे थे कि ततजाना नादान है, राह भूल गई है. समझाने पर मान जाएगी. मगर ऐसा हुआ नहीं. एक रात डा. फेंज बेसब्री से ततजाना का इंतजार कर रहे थे. सारी रात बीत गई, ततजाना लौट कर नहीं आई. डा. फेंज ने कई संदेश भिजवाए लेकिन जवाब में बेरुखी ही मिली.
इसी तरह एक साल गुजर गया. डा. फेंज ने यह तनहाई कैसे काटी, इस का सुबूत था उन का बिगड़ा दिमागी संतुलन. अगर हवा से खिड़कियों के परदे भी हिलते तो उन्हें लगता कि यह ततजाना के कदमों की आहट है. वह आ गई है.
डा. फेंज 5 जनवरी, 2005 की सुबह अपनी क्लीनिक में अकेले ही खयालों में खोए बैठे थे. वह सोच रहे थे कि काश ततजाना आ जाती. अचानक खिड़की के शीशे जोर से खड़खड़ाए. शीशा टूट कर बाहर की तरफ गिर गया. घबरा कर उन्होंने उधर देखा तो 2 मानव आकृतियां दिखाई दीं. उन्होंने अपने चेहरे ढक रखे थे. डरेसहमे डा. फेंज ने ततजाना को फोन किया. घंटी बजती रही, पर किसी ने फोन नहीं उठाया. तभी लगा, किसी ने खिड़की को ही उखाड़ दिया है.
8 जून, 2014 को भी ओमप्रकाश ने नीतू को नोएडा में फिल्म देखने आने के लिए फोन किया. पति के बदले व्यवहार से नीतू खुश थी. नोएडा जाने की बात उस ने अपनी मां विजम से बता दी थी. दोपहर करीब 11 बजे वह घर से नोएडा जाने के लिए निकल गई और मयूर विहार फेज-1 मैट्रो स्टेशन से मैट्रो द्वारा वह नोएडा सेक्टर-18 मैट्रो स्टेशन पहुंच गई.
ओमप्रकाश को दहेज में डीएल 8सी-एई 1782 नंबर जो सैंट्रो कार नंबर की मिली थी उस से वह नोएडा-18 मैट्रो स्टेशन पहुंच गया. कार मैट्रो की पाकिंग में खड़ा कर के वह स्टेशन पर पत्नी के आने का इंतजार करने लगा. करीब साढ़े 11 बजे नीतू नोएडा सेक्टर-18 मैट्रो स्टेशन पहुंची तो वह उस से बड़ी गर्मजोशी से मिला.
फिर कार से दोनों अट्टा मार्केट पहुंचे. वहां दोनों ने स्नेक्स खाए. नीतू को इस बात का जरा भी अंदेशा नहीं था कि जो पति आज उस की इतनी खातिर तवज्जो कर रहा है, उस का काल बनने जा रहा है.
ओमप्रकाश ने यह पहले से सोच रखा था कि पत्नी की हत्या कहां करनी है और लाश कहां ठिकाने लगानी है. लाश ठिकाने लगाने के लिए उस ने एक बड़ा सा ट्राली बैग पहले ही खरीद कर कार में रख लिया था. नीतू ने जब उस से उस ट्राली बैग के बारे में पूछा तो ओमप्रकाश ने झूठ बोलते हुए कहा था कि औफिस के एक जने ने उस से बैग खरीद कर लाने को कहा था.
अट्टा मार्केट में स्नैक्स खाने के बाद ओमप्रकाश पत्नी को अपने औफिस परी चौक की तरफ ले गया. नोएडा, गे्रटर नोएडा के कुछ इलाकों को नीतू भी पहचानती थी. उस ने कार दूसरे रास्ते पर जाते देखी तो वह बोली, ‘‘यह तुम कहां जा रहे हो, पिक्चर तो हमें शिप्रा में देखनी थी?’’
‘‘हां, हम शिप्रा आ जाएंगे. मुझे औफिस में थोड़ा काम है. काम निपटा कर हम शिप्रा आ जाएंगे.’’ ओमप्रकाश ने उसे समझाने की कोशिश की. लेकिन नीतू उस पर भड़क गई. उन के बीच तकरार बढ़ गई. झट्टा गांव के पास ओमप्रकाश ने कार रोक दी. वह इलाका सुनसान सा रहता है. मौका देखते ही उस ने दोनों हाथों से पत्नी का गला दबा दिया. कुछ देर बाद नीतू की गरदन एक ओर लुढ़क गई.
पत्नी की हत्या करने के बाद ओमप्रकाश ने उस की लाश पहले से खरीदे हुए ट्राली बैग में रख कर चैन बंद कर दी. वह कार को मयूर विहार फेज-1 मैट्रो स्टेशन के पास ले आया और वहां से कुछ दूर यमुना खादर की झाडि़यों में वह बैग डाल दिया. नीतू का फोन स्विच्ड औफ कर के वहां से कुछ दूर रास्ते में फेंक दिया था. इस के बाद वह अपने औफिस चला गया.
मयूर विहार के पास यमुना खादर में उस ने लाश इसलिए फेंकी कि लाश बरामद होने के बाद भी पुलिस का शक उस पर न हो. लाश बरामद होने पर पुलिस उस से पूछती तो वह पुलिस को बता देता कि उस ने नीतू को नोएडा सेक्टर-18 के मैट्रो स्टेशन पर छोड़ दिया था.
खुद को सेफ रखने के लिए ओमप्रकाश ने अपने औफिस से पत्नी के मोबाइल पर कई फोन किए. बाद में अपने साले संजय को फोन कर के कहा कि नीतू का फोन नहीं मिल रहा है उस से बात करा दे.
ओमप्रकाश ने पत्नी को ठिकाने लगाने की फूलप्रूफ योजना बनाई थी. पूरी योजना को उस ने अकेले ही अंजाम दिया था. अपने ससुराल वालों को भी उस ने विश्वास में ले लिया था तभी तो वह दामाद को पुलिस के पास से ले आए थे.
एक बात तो सच है कि कोई भी व्यक्ति अपराध करने के बाद कितनी भी चालाकी से झूठ बोले, पुलिस के जाल में फंस ही जाता है. ओमप्रकाश ने भी पुलिस को गुमराह करने की काफी कोशिश की लेकिन वह सफल नहीं हो सका.
पुलिस ने ओमप्रकाश की निशानदेही पर वह सैंट्रो कार भी बरामद कर ली जिस से उस ने लाश ठिकाने लगाई थी. काफी खोजबीन के बाद भी नीतू का मोबाइल फोन नहीं मिल पाया. विस्तार से पूछताछ के बाद उसे न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. मामले की तफ्तीश इंसपेक्टर सी.एम. मीणा कर रहे थे. द्य
— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित और प्रिया परिवर्तित नाम है.
सुबह सो कर उठते ही एस. जौनथन प्रसाद के घर वाले एकदूसरे से पूछने लगे थे कि ईस्टर का फोन आया या नहीं? जब सभी ने मना कर दिया कि फोन नहीं आया तो एस. जौनथल प्रसाद और उन की पत्नी को हैरानी हुई. क्योंकि वह तो कब का कमरे पर पहुंच गई होगी, अब तक उस ने फोन क्यों नहीं किया? वह व्यस्त होगी, यह सोच कर उन्होंने फोन नहीं किया.
जब घर के सभी लोगों ने नहाधो कर नाश्ता भी कर लिया और ईस्टर का फोन नहीं आया तो जौनथन प्रसाद से रहा नहीं गया. उन्होंने खुद ही फोन मिला दिया. तब दूसरी ओर से आवाज आई कि फोन पहुंच से बाहर है. उन्होंने दोबारा फोन लगाया तो पता चला कि फोन बंद है. इस के बाद उन्होंने न जाने कितनी बार फोन मिला डाला, हर बार फोन से स्विच्ड औफ होने की ही आवाज आई.
फोन न मिलने से जौनथन प्रसाद परेशान हो उठे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि ईस्टर अनुह्या का फोन बंद क्यों है. मन में तरहतरह के खयाल आने लगे. कभी लगता कि फोन चार्ज न होने की वजह से ऐसा होगा तो कभी लगता कि किसी वजह से उस ने फोन बंद कर दिया होगा. लेकिन ईस्टर इतनी लापरवाह नहीं थी कि फोन बंद हो और उसे पता न चले. फिर उसे मुंबई पहुंच कर औफिस जाने की सूचना भी तो देनी थी.
बेटी से बात न हो पाने की वजह से जौनथन प्रसाद काफी परेशान थे. उन्हें इस तरह बेचैन देख कर पत्नी ने कहा, ‘‘मेरी समझ में यह नहीं आता कि आप इतना परेशान क्यों हैं? ईस्टर बच्ची नहीं है. किसी काम में फंस गई होगी या कोई मीटिंग वगैरह होगी, जिस की वजह से फोन बंद कर दिया होगा. मौका मिलेगा तो जरूर फोन करेगी. वह अपनी जिम्मेदारी अच्छी तरह समझती है.’’
‘‘पता नहीं क्यों मेरा दिल बहुत घबरा रहा है,’’ जौनथन प्रसाद ने कहा, ‘‘ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ. वह कितनी भी व्यस्त रही हो, फोन करने में जरा भी लापरवाही नहीं करती थी. आज पहली बार ऐसा हो रहा है, इसीलिए चिंता हो रही है.’’
जौनथन प्रसाद की इस बात का पत्नी के पास कोई जवाब नहीं था. फिर भी उन्होंने पति को धीरज बंधाया. वह पति को भले ही धीरज बंधा रही थीं, लेकिन उन का खुद का मन भी उतना ही बेचैन था. बेटी का कोई हाल समाचार न पा कर उन का खुद का दिल भी किसी अज्ञात भय से बैठा जा रहा था.
वह पूरा दिन और रात इसी इंतजार में बीत गया कि ईस्टर किसी जरूरी काम में फंसी होगी, इसलिए उस ने फोन बंद कर दिया है. इस के बावजूद जौनथन प्रसाद लगातार फोन करते रहे कि शायद अब ईस्टर का फोन चालू हो गया हो. लेकिन जब अगले दिन भी फोन चालू नहीं हुआ तो उन की हिम्मत जवाब देने लगी. इस बीच पतिपत्नी न कुछ खा सके थे और न एक पल के लिए आंखें झपका सके थे.
अगले दिन जब ईस्टर के फोन आने और मिलने की उम्मीद पूरी तरह खत्म हो गई तो जौनथन प्रसाद मुंबई के चैंबूर में अपने एक रिश्तेदार को फोन कर के सारी बात बता कर ईस्टर अनुह्या के बारे में पता लगाने की विनती की. इस के बाद उन्होंने ईस्टर की कंपनी को फोन किया तो वहां से पता चला कि पिछले दिन वह औफिस आई ही नहीं थी.
जौनथन प्रसाद को जब पता चला कि वह औफिस नहीं गई थी तो उन्होंने तुरंत उस के हौस्टल फोन किया. वहां से जब उन्हें बताया गया कि वह वहां भी नहीं पहुंची है तो वह परेशान हो उठे. अब उन्हें किसी अनहोनी की आशंका होने लगी. वह मन को सांत्वना देने के लिए ईस्टर की सहेलियों और परिचितों को फोन कर के पूछने लगे कि वह उन के यहां तो नहीं गई है या उन्हें कुछ बताया तो नहीं है? जब कहीं से ईस्टर के बारे में कुछ पता नहीं चला तो उन की बेचैनी और बढ़ गई.
दूसरी ओर जब ईस्टर की सहेलियों, परिचितों, कंपनी और हौस्टल वालों को उस के लापता होने का पता चला तो वे सब भी परेशान हो उठे, क्योंकि अब तक उसे गायब हुए 24 घंटे से अधिक बीत चुके थे. उस का किसी से भी संपर्क नहीं हुआ था, इसलिए सभी को उस के साथ किसी अनहोनी की आशंका सताने लगी थी.
23 वर्षीया ईस्टर अनुह्या प्रसाद आंध्र प्रदेश के शहर मछलीपट्टनम के रहने वाले एस. जौनथन प्रसाद की बेटी थी. वह शहर के प्रतिष्ठित नागरिक थे. राजनेताओं से अच्छे संबंध होने की वजह से स्थानीय राजनीति में भी उन की अच्छीखासी पकड़ थी. मछलीपट्टनम के सांसद पी.के. नारायण राव और उन के भाई जगन्नाथ राव से उन के पारिवारिक संबंध थे.
इस तरह के परिवार की लाडली बेटी अनुह्या बहुत ही महत्त्वाकांक्षी और तेजतर्रार लड़की थी. उस ने बंगलुरु युनिवर्सिटी से बीएससी कर के सौफ्टवेयर इंजीनियरिंग की. आगे की पढ़ाई के लिए वह जर्मनी जाना चाहती थी, लेकिन मांबाप ने इस के लिए इजाजत नहीं दी. मातापिता का कहना था कि अब आगे की पढ़ाई वह शादी के बाद करे.
मांबाप ने मना कर दिया तो आगे की पढ़ाई का खयाल छोड़ कर ईस्टर अनुह्या ने बंगलुरु में ही टीसीएस (टाटा कंसल्टेंसी सर्विस) कंपनी में नौकरी कर ली. कुछ दिनों बाद कंपनी ने उसे एक बड़ा प्रमोशन दे कर महानगर मुंबई के उपनगर गोरेगांव स्थित कंपनी की शाखा में भेज दिया. यहां उसे असिस्टेंट सिस्टम इंजीनियर बनाया गया था. यहां उस ने अपने रहने की व्यवस्था अंधेरी के एमआईडीसी डब्ल्यूएचसीए महिला हौस्टल में की थी.
25 दिसंबर को ईसाइयों का सब से बड़ा त्यौहार होता है, जिसे ये लोग नाताल कहते हैं. इसी त्यौहार को घर वालों के साथ मनाने के लिए ईस्टर अनुह्या ने 8 दिनों की छुट्टी ली और मछलीपट्टनम आ गई थी.
छुट्टी खत्म होने पर ईस्टर अनुह्या ने 4 जनवरी, 2014 की सुबह 8 बजे मछलीपट्टनम के विजयवाड़ा रेलवे टर्मिनस से विशाखापट्टनम एक्सप्रेस पकड़ कर मुंबई के लिए रवाना हुई. उस का पूरा परिवार उसे टे्रन पर बैठाने आया था. उस का एसी (प्रथम) में रिजर्वेशन था. मांबाप ने उसे समझाबुझा कर विदा किया था कि अपना खयाल रखना, मुंबई पहुंचने तक किसी अजनबी से बात मत करना. पहुंच कर फोन करना. ईस्टर ने मुंबई पहुंचने पर मातापिता को विश्वास दिलाया था कि वह वैसा ही करेगी, जैसा उन्होंने उसे समझाया है.
5 जनवरी, 2014 की सुबह 5 बजे तक मुंबई के कुर्ला लोकमान्य तिलक टर्मिनस पहुंचने तक ईस्टर का संपर्क मांबाप से बना रहा. लेकिन उस के बाद जब संपर्क टूटा तो फिर संपर्क नहीं हो सका.
जब कहीं से भी ईस्टर के बारे मे कोई जानकारी नहीं मिली तो जौनथन प्रसाद बेटे के साथ प्लेन पकड़ कर मुंबई आ गए. हवाई अड्डे से वह सीधे अपने उस रिश्तेदार के यहां गए और उस से सारी जानकारी ली. इस के बाद वह बेटी की तलाश में उन स्थानों पर गए, जहांजहां उस के मिलने की संभावना थी, जब ईस्टर अनुह्या के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं मिली तो पुलिस के पास जाने के अलावा उन्हें कोई दूसरा रास्ता नजर नहीं आया.
पुलिस की मदद लेने के लिए जौनथन प्रसाद थाना कुर्ला पहुंचे. जब उन्होंने वहां के थानाप्रभारी से अपनी समस्या बताई तो उन्होंने कहा कि यह जीआरपी थाना विजयवाड़ा का मामला है. मजबूरन उन्हें जीआरपी थाना विजयवाड़ा जाना पड़ा. जीआरपी थाना विजयवाड़ा पुलिस ने ईस्टर अनुह्या प्रसाद की गुमशुदगी दर्ज कर के मामले को मुंबई के जीआरपी थाना कुर्ला पुलिस को ट्रांसफर कर दिया.
जीआरपी थाना विजयवाड़ा से शिकायत मिलने के बाद जीआरपी थाना कुर्ला पुलिस ने ईस्टर की तलाश शुरू कर दी. लेकिन उन की यह तलाश काफी धीमी गति से चल रही थी.
शिकायत दर्ज कराने के बाद जौनथन प्रसाद मुंबई आ गए. वह खुद भी अपने रिश्तेदारों और परिचितों के साथ मिल कर बेटी की तलाश करने लगे. एक पुलिस के उच्च अधिकारी के कहने पर उन की मदद के लिए 2 पुलिस वाले हमेशा उन के साथ लगा दिए गए थे. वह अपने हिसाब से बेटी की तलाश कर रहे थे. उन की नजर उस रास्ते पर थी, जो स्टेशन से ईस्टर के हौस्टल तक जाता था.
आखिर उन की मेहनत रंग लाई. जीआरपी थाना कुर्ला पुलिस कुछ कर पाती, उस के पहले उन्होंने खुद ही बेटी की लाश खोज निकाली. संयोग से उस समय वे दोनों पुलिस वाले भी उन के साथ वहीं थे.
क्या अनहोनी हो गयी थी ईस्टर अनुह्या के साथ? पढ़ेंगे इस Society Crimes Story के अगले अंक में.
रात के करीब पौने 8 बज रहे थे. जनवरी की कड़ाके की ठंड में ज्यादातर लोग रजाइयों में दुबके पड़े थे. जोदसिंह भी अपने पड़ोस में रहने वाले एक बुजुर्ग के पास बैठा हुआ अलाव पर हाथ सेंक रहा था.
उसे उन से बात करते हुए करीब 10-15 मिनट ही हुए होंगे कि एक तेज आवाज आई. वह आवाज किसी बम धमाके की नहीं बल्कि गोली चलने जैसी थी. आवाज सुनते ही वह चौंक गया क्योंकि यह आवाज उस के घर की तरफ से ही आई थी. उस के अलावा आसपास रहने वाले जिन लोगों ने भी वह आवाज सुनी, घरों के बाहर निकल आए और उस के घर की तरफ चल दिए. जोदसिंह भी बुजुर्ग के पास से उठ कर अपने घर पहुंच गया.
जोदसिंह जब घर पर पहुंचा तो बरामदे में उस के पिता प्रेमचंद, भाई टीटू, टिंकू आदि बैठे थे लेकिन पत्नी हेमलता व छोटे भाई बंटू की पत्नी मिथिलेश वहां पर नजर नहीं आ रही थी. आवाज जोदसिंह के घर वालों ने भी सुनी थी लेकिन उन्होंने इस बात पर गौर नहीं किया था कि आवाज उन के घर से ही आई है. बल्कि वे सोच रहे थे कि किसी बच्चे ने पटाखा फोड़ा होगा.
जोदसिंह के 2 मामा व बच्चे कमरे में बैठे टीवी देख रहे थे. आवाज सुन कर वह भी बाहर निकल आए थे परंतु जब उन्हें यह पता नहीं लग सका कि आवाज कहां से आई है तो वे फिर से टीवी देखने में मशगूल हो गए.
जोदसिंह पत्नी को आवाज लगाता हुआ कमरे में पहुंचा. उसी दौरान उस की नजर जीने के दरवाजे पर गई. वह दरवाजा बंद नजर आया. दरवाजा अंदर की तरफ से नहीं बल्कि छत की तरफ से बंद था. वह यह नहीं समझ पा रहा था कि छत पर कौन है, जिस ने दरवाजा बंद कर रखा है. उस ने अपने भाइयों को आवाज लगाई. टिंकू और टीटू दौड़ेदौडे़ उस के पास आए. उन को भी कुछ शक हुआ.
तीनों ने जीने के दरवाजे को खटखटाते हुए आवाज लगाई. जब कोई जवाब नहीं आया तो टीटू और टिंकू ने वह दरवाजा तोड़ दिया. दरवाजा टूटते ही तीनों छत पर पहुंच गए. छत पर बल्ब जल रहा था. बल्ब की रोशनी में उन्होंने जो कुछ देखा, उन के रोंगटे खड़े हो गए.
छत पर खून फैला पड़ा था और वहां जोदसिंह की पत्नी हेमलता लहूलुहान पड़ी थी जबकि हेमलता की देवरानी मिथिलेश छत पर ही दीवार से टेक लगाए बैठी थी. उस के सामने ही एक तमंचा पड़ा था. जोदसिंह लपक कर पत्नी के पास गया.
उस ने लहूलुहान पत्नी को हिलायाडुलाया लेकिन वह मर चुकी थी. पत्नी को इस हालत मे देख कर वह जोरजोर से रोने लगा. टीटू और टिंकू यह बात समझ गए कि भाभी की हत्या मिथिलेश ने ही की होगी. वे उसे घूर कर देखने लगे. इस से पहले कि दोनों भाई कुछ कहते मिथिलेश ने झट से सामने पड़ा हुआ तमंचा उठा लिया.
उस में दूसरी गोली भर कर धमकाते हुए बोली, ‘‘मेरे पास मत आना वरना गोली मार दूंगी.’’
उस के डर की वजह से उन दोनों की हिम्मत उस पास जाने की नहीं हुई. जोदसिंह की रोने की आवाज सुन कर उस के घर के बाहर खड़े पड़ोसी भी छत पर आ गए.
उन्होंने भी हेमलता की लाश देखी तो वे भी हैरान रह गए. मगर उन्हें इस बात पर भरोसा नहीं हो रहा था कि हाथ में तमंचा लिए जो मिथिलेश खड़ी है उस ने यह हत्या की होगी. इसी बीच किसी ने फोन कर के सूचना थाना शमसाबाद में भी दे दी. यह बात 20 जनवरी, 2014 की है.
करीब 10 मिनट बाद गश्त पर घूम रहे 2 पुलिसकर्मियों ने जोदसिंह के घर के बाहर भीड़ लगी देखी तो वे भी पूछताछ करते हुए छत पर पहुंच गए. जबकि मिथिलेश के डर की वजह से मोहल्ले का कोई भी आदमी छत पर जाने की हिम्मत नहीं कर रहा था.
छत पर पहुंच कर पुलिस वालों को लगा कि मिथिलेश नाम की एक महिला ने अपनी ही जेठानी की गोली मार कर हत्या कर दी है. तो उन्होंने तुरंत फोन द्वारा यह सूचना थानाप्रभारी अरुण कुमार यादव को दे दी.
मिथिलेश के हाथ में तमंचा था. उस से वह किसी और के ऊपर गोली न चला दे, इसलिए उन की कोशिश उस से तमंचा हासिल करने की थी. उन्होंने मिथिलेश को समझाया और तमंचा फेंकने को कहा. लेकिन उस ने तमंचा नहीं फेंका बल्कि वह अपनी जेठानी की लाश को ही टकटकी लगाए देख रही थी. फिर हिम्मत कर के धीरेधीरे वे उस की ओर बढ़ने लगे.
उन्हें देख कर मिथिलेश बिलकुल भी नहीं डरी, जबकि पुलिसवालों को इसी बात का डर लग रहा था कि कहीं वह उन के ऊपर गोली न चला दे. फिर लपक कर उन्होंने मिथिलेश का वो हाथ पकड़ लिया जिस में वह तमंचा पकड़े हुए थी. जल्दी से तमंचा कब्जे में ले कर उन्होंने मिथिलेश को भी हिरासत में ले लिया. उन्होंने तमंचा चैक किया तो उस में कारतूस भरा हुआ था.
उसी समय शमसाबाद के थानाप्रभारी अरुण कुमार यादव सबइंसपेक्टर दयाराम, विनोद कुमार, कांस्टेबल कृष्ण, सतेंद्र, हरिओम आदि के साथ वहां पहुंच गए. अब तक घर में हेमलता की मौत को ले कर कोहराम सा मच गया था.
थानाप्रभारी ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो देखा कि उस का सिर फटा हुआ था साथ ही सिर में गोली लगने का निशान भी साफ नजर आ रहा था. इस से साफ लग रहा था कि उस की हत्या गोली मार कर की होगी.मरने से पहले हेमलता ने कोई विरोध किया हो, ऐसे कोई सुबूत भी वहां नहीं मिले. छत पर ही बने चूल्हे में एक हथौड़ा भी मिला. उस पर खून लगा हुआ था. पुलिस ने हथौड़ा भी बरामद कर लिया.
पुलिस क्या वहां मौजूद सभी लोगों के मन में बस एक ही सवाल उठ रहा था कि आखिर मिथिलेश ने अपनी जेठानी का कत्ल क्यों किया और वो भी गोली मार कर.
सूचना मिलने पर आगरा के एसएसपी शलभ माथुर और एसपी (देहात) के.पी.एस. यादव भी मौके पर पहुंच गए. उन्होंने भी लाश का निरीक्षण कर मौका मुआयना किया. उन्होंने मिथिलेश और परिवार के अन्य लोगों से भी बात की. इस के बाद वे थानाप्रभारी को कुछ निर्देश देने के बाद चले गए. उन के जाने के बाद थानाप्रभारी ने रात में ही लाश का पंचनामा करने के बाद उसे पोस्टमार्टम के लिए आगरा के एस.एन. मैडिकल कालेज भिजवा दिया.
पुलिस ने मिथिलेश को पहले ही हिरासत में ले रखा था. उसे थाने ले जा कर जब उस से जेठानी की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उस ने बिना किसी डर के स्वीकार कर लिया कि उस की जेठानी हेमलता की हत्या कर के अपने पति की हत्या का बदला लिया है. फिर उस ने हेमलता की हत्या की जो कहानी बताई, वह चौंकाने वाली निकली.
उत्तर प्रदेश के जिला आगरा के मलपुरा क्षेत्र का एक गांव है नगल प्रताप. यहां के रहने वाले एक किसान निब्बोराम के 4 बच्चों में मिथिलेश सब से बड़ी बेटी थी. निब्बोराम की आर्थिक हालत इस लायक नहीं थी कि वह बच्चों को पढ़ालिखा सके. जैसेतैसे कर के वह परिवार को पाल रहा था.
मिथिलेश जब सयानी हुई तो उन्होंने ज्यादा जांचपड़ताल किए बिना शमसाबाद थाने के शंकरपुर गांव में रहने वाले प्रेमसिंह के बेटे बंटू के साथ उस की शादी कर दी. जिस बिचौलिए ने यह शादी कराई थी, उस ने निब्बोराम को बंटू के बारे में सही जानकारी नहीं दी थी.