पति ने किया अर्चना की जिंदगी का सूर्यास्त – भाग 2

पुलिस ने प्रमोद के बयान के आधार पर उस के साथी मुकेश को भी गिरफ्तार कर लिया था. उस ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया था. प्रमोद और मुकेश के बयान से अर्चना की हत्या की जो कहानी सामने आई, उस के अनुसार, निर्दोष अर्चना पति प्रमोद के प्रेमसंबंधों की भेंट चढ़ गई थी.

हाईस्कूल पास करने के बाद प्रमोद ने पढ़ाई छोड़ दी थी. घर के कामों से वह कोई मतलब नहीं रखता था, इसलिए दिन भर गांव में घूमघूम कर अड्डेबाजी करता रहता था. अड्डेबाजी करने में ही उस की नजर गांव की सरिता पर पड़ी तो उस पर उस का दिल आ गया. फिर तो वह उस के पीछे पड़ गया. उस की मेहनत रंग लाई और सरिता का झुकाव भी उस की ओर हो गया. दोनों ही एकदूसरे को प्यार करने लगे. लेकिन इस में परेशानी यह थी कि दोनों की जाति अलगअलग थी.

सरिता पढ़ रही थी, जबकि प्रमोद पढ़ाई छोड़ चुका था. उस का पिता के साथ खेतों में काम करने में मन भी नहीं लग रहा था, न ही उसे कोई ठीकठाक नौकरी मिल रही थी. उसी बीच वह सरिता में रम गया तो उस का पूरा ध्यान उसी पर केंद्रित हो गया. वह अपने भविष्य की चिंता करने के बजाय सरिता को सुनहरे सपने दिखाने लगा. इसी के साथ अन्य प्रेमियों की तरह साथ जीनेमरने की कसमें भी खाता रहा. लेकिन प्यार को अंजाम तक पहुंचाने के लिए उस के पास न तो कोई व्यवस्था थी, न ही समाज उस के साथ था.

सरिता और प्रमोद का मिलनाजुलना लोगों की नजरों में आया तो गांव में उन्हें ले कर चर्चा होने लगी. ऐसे में सरिता को डर सताने लगा कि उस के प्यार का क्या होगा? क्योंकि अब तक उसे लगने लगा था कि वह प्रमोद के बिना जी नहीं पाएगी. वह यह भी जानती थी कि उस का बाप किसी भी कीमत पर इस रिश्ते को स्वीकार नहीं करेगा, वह उस के साथ मनमरजी से भी शादी नहीं कर सकती थी, क्योंकि न तो प्रमोद ज्यादा पढ़ालिखा था, न ही वह कोई कामधाम कर रहा था. ऐसे लड़के को कौन अपनी लड़की देना चाहेगा?

यह बात सरिता प्रमोद से कहती तो वह उसे आश्वस्त करते हुए कहता, ‘‘तुम्हें इतना परेशान होने की जरूरत नहीं है. मैं तुम्हारे लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाऊंगा. लेकिन हर हालत में तुम्हें हासिल कर के रहूंगा.’’

प्रमोद सरिता को कितना भी आश्वस्त करता, लेकिन वह हर वक्त तनाव में रहती. उस के लिए परेशानी यह थी कि वह प्रमोद को छोड़ भी नहीं सकती थी, क्योंकि उस का दिल इस के लिए तैयार नहीं था. जब उस से नहीं रहा गया तो उस ने प्रमोद से कहा कि वह कोई नौकरी कर ले, जिस से अगर घर छोड़ कर भागना पड़े तो गृहस्थी बसाने के लिए उस के पास कुछ पैसे तो हों. लेकिन तो केवल हाईस्कूल पास था. इतने पढ़े पर भला उसे कौन सी नौकरी मिल सकती थी.

प्रमोद और सरिता जीवन के रंगीन सपने तो देख रहे थे, लेकिन उन के इन सपनों का कोई भविष्य नहीं था. गांव में प्रमोद और सरिता के प्रेमसंबंधों की चर्चा हो और उन के घर वालों को पता न चले, भला ऐसा कैसे हो सकता था. सरिता के पिता जीवनराम को भी किसी ने इस बारे में बता दिया.

एक तो इज्जत की बात थी, दूसरे जीवनराम की नजरों में प्रमोद ठीक लड़का नहीं था. इसलिए वह परेशान हो उठा. घर जा कर पहले तो उस ने पत्नी को डांटा कि वह जवान हो रही बेटी का ध्यान नहीं रखती. उस के बाद सरिता को बुला कर पूछा ‘‘यह प्रमोद के साथ तेरा क्या चक्कर है? वह आवारा तेरा कौन है, जो तू उस से मिलतीजुलती है.’’

बाप की इन बातों से सरिता कांप उठी. वह जान गई कि पिता को उस के संबंधों की जानकारी हो गई है. वह उन के सामने सीधेसीधे तो अपने और प्रमोद के संबंधों को स्वीकार नहीं कर सकती थी, इसलिए उस ने कहा, ‘‘पापा, प्रमोद से मेरा कोई संबंध नहीं है. कभीकभार स्कूल आतेजाते रास्ते में मिल जाता है तो पढ़ाई के बारे में पूछ लेता है.’’

जीवनराम जानता था कि बेटी झूठ बोल रही है. जवान बेटी से ज्यादा कुछ कहा भी नहीं जा सकता था. फिर उन्हें यह भी पता नहीं था कि बात कहां तक पहुंची है, इसलिए उन्होंने सरिता को समझाते हुए कहा, ‘‘बेटा, हम तुम्हें इसलिए पढ़ा रहे हैं कि तुम्हारी जिंदगी बन जाए, लेकिन अगर मुझे कुछ ऐसावैसा सुनने को मिलेगा तो मैं तुम्हारी पढ़ाई छुड़ा कर शादी कर दूंगा.’’

‘‘पापा, आप बिलकुल चिंता न करें. मैं कोई ऐसा काम नहीं करूंगी, जिस से आप को कोई परेशानी हो.’’

सरिता के इस आश्वासन पर जीवनराम को थोड़ी राहत तो मिली, लेकिन वह निश्चिंत नहीं हुए. उन्होंने पत्नी से तो सरिता पर नजर रखने के लिए कहा ही, खुद भी उस पर नजर रखते थे. जब उन्हें लगा कि इस तरह बात नहीं बनेगी तो एक दिन वह प्रमोद के बाप से मिल कर उस की शिकायत करते हुए बोले, ‘‘प्रमोद सरिता का पीछा करता है. यह अच्छी बात नहीं है. आप उसे रोकें.’’

प्रमोद का बाप वैसे ही बेटे की आवारगी से परेशान था. जब उसे इस बात की जानकारी हुई तो वह बेचैन हो उठा, क्योंकि वह नहीं चाहता था कि कोई ऐसी स्थिति आए कि उसे मुंह छिपाना पड़े. इसलिए जीवनराम के जाते ही उस ने प्रमोद को बुला कर पूछा, ‘‘जीवनराम शिकायत ले कर आया था, सरिता से तुम्हारा क्या चक्कर है?’’

प्रमोद साफ मुकर गया. लेकिन उस का बाप अपने आवारा बेटे के बारे में जानता था, इसलिए उसे डांटफटकार कर कहा, ‘‘प्रमोद, बेहतर होगा कि तुम कोई कामधाम करो, वरना हमारा घर छोड़ दो. मैं नहीं चाहता कि तुम्हारी करतूतों की वजह से गांव में मेरा सिर नीचा हो.’’

प्रमोद सिर झुकाए बाप की बातें सुनता रहा. उस ने सोचा, सरिता भी कोई कामधाम करने के लिए कह रही थी. अब बाप भी घर से भगा रहा है. इसलिए अब कुछ कर लेना ही ठीक है. बाप किसी बिजनैस के लिए पैसे दे नहीं सकता था, इसलिए उस ने दिल्ली जाने का मन बना लिया. उस का एक दोस्त सुरेश दिल्ली में पहले से ही रहता था. उस ने उस से बात की और दिल्ली आ गया.

प्रमोद का विचार था कि वह काम कर के खुद को इस काबिल बनाएगा कि कोई उस का विरोध नहीं कर सकेगा. दिल्ली में सुरेश ने उसे एक जींस बनाने वाली फैक्टरी में नौकरी दिला दी थी. काम भी बढि़या था और पैसे भी ठीकठाक मिल रहे थे, लेकिन कुछ ही दिनों में प्रमोद को सरिता की याद सताने लगी तो वह नौकरी छोड़ कर गांव चला गया. उस के बाहर जाने से जहां जीवनराम ने राहत की सांस ली थी, वहीं वापस आने से उस की चिंता फिर बढ़ गई थी.

फूल खिलने से पहले ही उजड़ गया गुलिस्तां – भाग 2

उधर नगरवासियों का पुलिस पर दबाव बढ़ रहा था, जिस से पुलिस अधिकारी भी इस संवेदनशील मामले को ले कर बहुत चिंतित थे. डीसीपी ने इस केस को सुलझाने के लिए थानाप्रभारी हरपाल सिंह ग्रेवाल की अध्यक्षता में एक पुलिस टीम बनाई, जिस में सबइंस्पेक्टर मनजीत सिंह, हेडकांस्टेबल अमरजीत सिंह, स्वर्ण सिंह, कमलजीत सिंह, बिशन सिंह, सुरेंद्र सिंह, महिला कांस्टेबल कलविंदर कौर व राजवंत कौर को शामिल किया गया.

थानाप्रभारी अब हरप्रीत के घर वालों से बात करना चाहते थे. उस समय उस के घर वाले डीएमसी अस्पताल में ही थे, इसलिए वह अस्पताल पहुंच गए. पूछताछ के दौरान हरप्रीत की मां दविंदर कौर से उन्हें कई काम की बातें मालूम हुईं.

उन्होंने बताया कि जब से हरप्रीत की शादी तय हुई है, तब से 2 युवक उन्हें कभी फोन पर तो कभी घर पर आ कर धमकी देते आ रहे थे. वे कहते थे कि अपनी लड़की की शादी वहां न करो, जहां कर रहे हो. 2 दिन पहले भी एक अनजान युवक हमारे घर फिर आया था. उस ने हम से फिर कहा था कि हरप्रीत की शादी करने लुधियाना न जाएं.

‘‘क्या हरप्रीत कौर उस युवक को जानती हैं?’’

‘‘नहीं, मेरी बच्ची उन्हें नहीं जानती.’’ दविंदर कौर ने कहा.

बातचीत में दविंदर कौर ने पुलिस को आगे बताया था कि वह बरनाला की रहने वाली हैं और विशाल नाम के किसी लड़के को नहीं जानतीं.

यह मामला कहीं एकतरफा प्यार का तो नहीं है, यह जानने के लिए थानाप्रभारी ने एक पुलिस टीम बरनाला भेज दी और खुद एक बार फिर उसी ब्यूटीपार्लर में पहुंचे, जहां घटना घटी थी.

थानाप्रभारी ने ब्यूटीपार्लर के संचालक संजीव से पूछा, ‘‘हरप्रीत के मेकअप की बुकिंग किस ने करवाई थी और तब से अब तक पार्लर में हरप्रीत के बारे में किसकिस के फोन आए और फोन करने वालों से तुम्हारी क्याक्या बातें हुई थीं?’’

‘‘बुकिंग तो हरप्रीत कौर के घर वालों ने कराई थी, लेकिन यहां अमितपाल कौर नाम की एक महिला का फोन अकसर आता था. वह हरप्रीत कौर के बारे में ज्यादा पूछती थी. मसलन वह ब्यूटी ट्रीटमेंट लेने और मेकअप कराने कबकब पार्लर आएगी?’’

अमितपाल कौन है, इस बारे में थानाप्रभारी ने दविंदर कौर से बात की तो उन्होंने बताया कि अमितपाल कौर उर्फ परी उन के होने वाले दामाद हरप्रीत उर्फ हनी की तलाकशुदा भाभी है.

तलाकशुदा भाभी का ब्यूटीपार्लर में फोन कर हरप्रीत के विषय में पूछताछ करना थानाप्रभारी की समझ में नहीं आया. उन्होंने हरप्रीत कौर के होने वाले ससुर रंजीत सिंह से पूछा. रंजीत सिंह ने थानाप्रभारी को जो बात बताई, उस से उन के सामने मामले की तसवीर स्पष्ट होने लगी.

उन्होंने एक पुलिस टीम पटियाला स्थित अमितपाल कौर के घर भेज दी. अमितपाल घर पर ही मिल गई. पुलिस उसे ले कर लुधियाना आई. पूछताछ में अमितपाल पहले तो इधरउधर की बातें करती रही, लेकिन जब उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की गई तो पता चला कि हरप्रीत कौर पर तेजाब डलवाने की मास्टरमाइंड वही थी. दिल दहलाने वाले इस मामले की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

पंजाब के बरनाला जिले के ढनोला रोड पर स्थित फतहनगर के रहने वाले जसवंत सिंह के परिवार में पत्नी दविंदर कौर के अलावा 2 बेटे और एक बेटी हरप्रीत कौर थी. बाल काटने की उन की एक दुकान थी. इसी पुश्तैनी काम से होने वाली आमदनी से वह घर का खर्च चलाते थे. तंगी झेल कर उन्होंने बच्चों की पढ़ाई कराई.

हरप्रीत कौर का पढ़ाई के प्रति उत्साह और लगन देख कर उन्होंने उसे बीएड कराया. वह अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती थी, लेकिन आर्थिक हालात के कारण वह उसे और नहीं पढ़ा सके. तब हरप्रीत ने सिलाईकढ़ाई सीख ली.  बेटी जवान थी और उस की पढ़ाई भी पूरी हो चुकी थी, इसलिए जसवंत सिंह उस के लिए कोई अच्छा घरवर देखने लगे, ताकि वह उस के हाथ पीले कर सकें.

लुधियाना में हरप्रीत की बुआ भोली रहती थी. उस की मार्फत फरवरी, 2013 में हरप्रीत कौर की शादी की बात सरदार रंजीत सिंह के बेटे हरप्रीत सिंह उर्फ हनी से चली. रंजीत सिंह एक संपन्न व्यक्ति थे. वैसे तो वह मूलरूप से दोराहा के रहने वाले थे, लेकिन कई वर्ष पहले वह कोलकाता जा कर रहने लगे थे. वहां उन का होटल और बार का काफी बड़ा व्यवसाय था.

धनदौलत की उन के पास कमी न थी, इसलिए वह किसी गरीब और शरीफ खानदान की लड़की से अपने बेटे हरप्रीत उर्फ हनी की शादी करना चाहते थे. उन के पास जसवंत सिंह की बेटी हरप्रीत कौर की शादी का प्रस्ताव आया तो जांचपड़ताल करने के बाद उन्हें यह रिश्ता पसंद आया और उन्होंने बेटे की शादी के लिए हां कर दी और मार्च, 2013 में रिश्ता पक्का हो गया. 7 दिसंबर, 2013 को शादी का दिन भी मुकर्रर कर दिया गया.

जसवंत सिंह और रंजीत सिंह की हैसियत में जमीनआसमान का अंतर था. जसवंत सिंह तो बेटी के लिए अपनी हैसियत का परिवार देख रहे थे. उन्हें उम्मीद नहीं थी कि बेटी के लिए इतना संपन्न परिवार मिलेगा. वह इस बात से खुश हो रहे थे कि बेटी को वहां किसी तरह की परेशानी नहीं होगी.

रिश्ता तय होने के कुछ दिनों बाद ही जसवंत सिंह के यहां किसी अज्ञात व्यक्ति के फोन आने शुरू हो गए. वह कहता था कि इस रिश्ते को तोड़ दो अन्यथा अंजाम अच्छा नहीं होगा. जसवंत सिंह परेशान होने लगे कि पता नहीं कौन है, जो इस तरह के फोन कर रहा है? उन्होंने इस बारे में अपने होने वाले समधी रंजीत सिंह से बात की.

तब रंजीत सिंह ने कहा, ‘‘कुछ लोगों से हमारी रंजिश है, इसलिए वही लोग आप के यहां फोन करते होंगे. लेकिन आप चिंता न करें. हमारी तरफ से ऐसी कोई बात नहीं है.’’

समधी से बात हो जाने के बाद जसवंत सिंह शादी की तैयारियों में जुट गए. शादी की तारीख से करीब एक, डेढ़ महीने पहले 2 अनजान युवक जसवंत सिंह के घर बरनाला आए. उन के हाथों में कुछ सामान था. उन्होंने कहा था कि वह हरप्रीत कौर की होने वाली ससुराल की तरफ से आए हैं. ये गिफ्ट हरप्रीत कौर को ही देने हैं.

जसवंत सिंह के पास पहले भी धमकी भरे फोन आए थे. उन्हें उन दोनों युवकों पर शक हो रहा था, इसलिए उन्होंने उन्हें बेटी से मिलने से मना कर दिया. इस के बाद वे युवक लौट गए थे.

जसवंत सिंह ने इस बारे में रंजीत सिंह से बात की तो उन्होंने बताया कि उन्होंने अपनी होने वाली बहू को कोई गिफ्ट नहीं भेजा था. इस बात को ले कर वह भी परेशान थे कि ऐसा कौन सा शख्स है, जो इस रिश्ते को तोड़वाने की कोशिश लगातार कर रहा है. उन्होंने जसवंत सिंह से भी कह दिया था कि ऐसे लोगों से सतर्क रहें.

बचपन का मजा, जवानी में बना सजा – भाग 2

रुखसाना की हरकतों से सारा गांव वाकिफ था. गांव वालों से इस बात की जानकारी उस के मातापिता को हुई तो उन्होंने उसे मारापीटा और समझाया भी. आखिर मांबाप की बात रुखसाना की समझ में आ गई. इसलिए वह जाबिर से निकाह के लिए राजी हो गई. जाबिर तो उस के लिए पागल था ही, इसलिए रुखसाना के हामी भरते ही उस ने अपने अब्बू नौशे मियां से कहा, ‘‘अब्बू, मैं रुखसाना से निकाह करना चाहता हूं.’’

जाबिर की बात सुन कर नौशे मियां हैरान रह गए. क्योंकि रुखसाना अब तक गांव में इस कदर बदनाम हो चुकी थी कि निकाह की छोड़ो, कोई भला आदमी उस से बातचीत करना भी पसंद नहीं करता था. ऐसी लड़की से जाबिर निकाह की बात कर रहा था. नौशे मियां की गांव में अच्छी इज्जत थी. उन्होंने इस निकाह के लिए साफ मना कर दिया. लेकिन जाबिर ने तो इरादा पक्का कर लिया था, इसलिए उस ने कहा, ‘‘अगर मेरा निकाह रुखसाना से नहीं  किया गया तो मैं आत्महत्या कर लूंगा.’’

मजबूरन नौशे मियां को राजी होना पड़ा. रुखसाना के घर वालों की ओर से इनकार का सवाल ही नहीं था. क्योंकि उन की बदनाम बेटी से और कौन शादी करता. इस तरह जाबिर और रुखसाना का निकाह हो गया.

निकाह के बाद रुखसाना पूरी तरह बदल गई थी. वह पति की ही नहीं, सासससुर और देवर की सेवा पूरे लगन से करने लगी थी. घर के सारे कामों की जिम्मेदारी ले ली थी. नौशे मियां के पास काफी जमीन थी. उसी पर खेती कर के वह अपने परिवार का भरणपोषण कर रहे थे. जाबिर गांव में रह कर पिता की मदद करता था.

समय के साथ जाबिर 4 बच्चों का बाप बन गया. परिवार बढ़ा तो जिम्मेदारी और खर्च बढ़ा. जाबिर को लगा कि अब गांव में गुजारा नहीं होगा तो गांव छोड़ कर वह दिल्ली चला गया.

दिल्ली के दिलशाद गार्डेन में उस ने कबाड़ी का काम शुरू किया. कबाड़ी का काम नाम से भले ही छोटा है, लेकिन अगर मेहनत से किया जाए तो इस काम में मोटी कमाई है. जाबिर ने मन लगा कर मेहनत की. जिस का उसे फायदा भी मिला. उस की ठीकठाक कमाई होने लगी. वह जरूरत भर का पैसा रख कर बाकी गांव भेज देता था. जाबिर की कमाई बढ़ी तो उस ने रहने के लिए एक जनता फ्लैट खरीद लिया. अपना मकान हो गया तो गांव से वह अपना परिवार ले आया. बच्चों का उस ने यहीं एडमिशन करा दिया. अब समय आराम से गुजरने लगा.

जाबिर ने देखा कि कबाड़ी के काम में पैसा तो खूब है, लेकिन इज्जत नहीं है. अगर वह इसी तरह कबाड़ी का काम करता रहा तो उस के बच्चों की शादी ठीकठाक घरों में नहीं हो सकेगी. उस ने कबाड़ी का काम बंद कर दिया और स्टील वर्क्स का काम शुरू कर दिया. इस काम में भी उस ने मन लगा कर मेहनत की. उस की मेहनत रंग लाई और उस के पास सब कुछ हो गया. वह दिन में मेहनत करता और रात को चैन की नींद सोता. जाबिर अपने अब्बू को दिल्ली लाना चाहता था. लेकिन नौशे मियां ने दिल्ली आने से साफ मना कर दिया. तब जाबिर ने उन की मदद के लिए एक नौकर रख दिया. इस नौकर का नाम भी जाबिर था.

वह नौशे मियां के साथ उन के खेतों पर काम करता था. समय निकाल कर जाबिर कभीकभार पिता से मिलने रमजानपुर आ जाता और एकाध दिन रह कर चला जाता था.

काम बढ़ा तो जाबिर की व्यस्तता भी बढ़ गई. जिस की वजह से वह पत्नी और बच्चों को समय कम दे पाता था. अब तक रुखसाना 30 साल की हो गई थी तो जाबिर 45 साल का. दिन भर काम कर के जाबिर बुरी तरह थक जाता तो देर रात घर आने पर उसे बिस्तर ही दिखाई देता था. वह जल्दी से खाना खा कर सो जाता. जबकि भरपूर जवान रुखसाना को उस की नजदीकी की जरूरत होती थी. पति के सो जाने से उस के अरमान दिल में ही रह जाते थे.

रुखसाना चाहती थी कि पति घर आए तो उस से बातें करे, प्यार करे. उस के बच्चों को समय दे. लेकिन ऐसा नहीं हो रहा था, जिस की वजह से वह खीझने लगी थी. उसे लगता था कि जाबिर को जैसे पत्नी और बच्चों को जरूरत ही नहीं है. बस उसे पैसे चाहिए. उस के अरमानों और भावनाओं की उसे कोई परवाह नहीं है. ऐसे में अगर औरत जवान हो तो वह क्या करे? इस स्थिति में उसे उम्र के लंबे अंतराल का खयाल आया और उसे अपनी गलती का अहसास हुआ.

वह देखती थी कि लोग अभी भी उसे चाहतभरी नजरों से ताकते हैं, जबकि पति उस की ओर ध्यान ही नहीं देता. पति की इस बेरुखी से उस का मन बहकने लगा तो उस की नजरें किसी मर्द को तलाशने लगीं.

रुखसाना के बच्चों को एक सरदार ट्यूशन पढ़ाने आता था. वह हट्टाकट्टा गठीले बदन का कुंवारा नौजवान था. रुखसाना का दिल उसी पर आ गया. क्योंकि वही उस के सब से करीब था. रुखसाना ने उसे लटकेझटके दिखाए तो सरदार को समझते देर नहीं लगी कि उस के मन में क्या है. फिर एक दिन रुखसाना ने उसे मौका दिया तो उस सरदार ने खुशीखुशी उस की इच्छा पूरी कर दी. सरदार ने उसे इस तरह खुश किया कि वह उस की दीवानी हो गई.

धीरेधीरे रुखसाना उस की इस कदर दीवानी हुई कि उसे लगने लगा कि वह सरदार के बिना जी नहीं पाएगी. कुछ ऐसा ही सरदार को भी लगने लगा तो एक दिन वह रुखसाना को भगा ले गया. यह सन 2008 की बात है. रुखसाना को न पति की चिंता थी, न बच्चों की. इसलिए सरदार के साथ जाने के बाद उस ने उन की कोई खबर नहीं ली.

पत्नी की बेवफाई से जाबिर को गहरा आघात लगा. लेकिन इस आघात को बच्चों की परवरिश में लग कर उस ने भुला दिया. फिर भी वह रुखसाना की तलाश करता रहा. 5 महीने बाद उसे किसी से पता चला कि रुखसाना अपने प्रेमी के साथ पंजाब में रह रही है. पत्नी को वापस लाने के लिए वह पंजाब गया. सचमुच वहां रुखसाना उस सरदार के साथ रवीना कौर नाम से रह रही थी. रुखसाना आने को तैयार नहीं थी. लेकिन उस की असलियत जब सरदार के घर वालों को पता चली तो उन्होंने जबरदस्ती उसे जाबिर के साथ भेज दिया.

जाबिर को अब रुखसाना पर यकीन नहीं रह गया था. इसलिए उस ने उसे पिता के पास गांव पहुंचा दिया. 4 बच्चों की मां बनने के बाद भी रुखसाना के रुखसार में कोई कमी नहीं आई थी. साथ ही उस के अरमान भी पहले जैसे ही चिंगारी की तरह थे, जिसे सिर्फ हवा देने की जरूरत थी. आखिर गांव में जाबिर ने पिता की मदद के लिए जाबिर नाम के जिस नौकर को रखा था, उस ने हवा देने का काम किया. उसे देखते ही रुखसाना की आग भड़क उठी. उन के पास मौका ही मौका था. जाबिर घर का नौकर था, इसलिए उस का अंदर तक आनाजाना था.  रुखसाना ने इसी का फायदा उठाया और नौकर जाबिर को बिस्तर का साथी बना लिया.

रुखसाना का जब मन होता, नौकर जाबिर के साथ हमबिस्तर हो जाती. पहले तो यह काम बहुत चोरीछिपे होता रहा, लेकिन धीरेधीरे वे लापरवाह होते गए. गांव वालों को संदेह हुआ तो लोग उन पर नजर रखने लगे. जब उन्हें यकीन हो गया कि सचमुच कुछ गड़बड़ है तो उन्होंने इस बारे में नौशे मियां से बात की. उन्होंने फोन कर के सारी बात बेटे को बता दी. अगले ही दिन जाबिर गांव पहुंचा और पहले तो उस ने रुखसाना की जम कर पिटाई की, उस के बाद तुरंत नौकर को भगा दिया. 4-5 दिन गांव में रह कर जाबिर दिल्ली चला गया.

अधिवक्ता पत्नी की जिंदगी की वैल्यू पौने 6 करोड़ – भाग 2

पुलिस को नहीं मिला हत्यारे का सुराग

रेनू के सिर और कान से थोड़ा खून जरूर बह रहा था. जिस्म के दूसरे हिस्सों में भी चोट के कई निशान दिखाई पड़ रहे थे. इस से साफ था कि रेनू सिंह ने हत्या से पहले कातिल के साथ संघर्ष किया था.

हैरानी की बात यह थी कि घर का सारा सामान अपनी जगह था, यानी वहां कोई लूटपाट या डकैती जैसी वारदात के कोई संकेत दिखाई नहीं पड़ रहे थे. लेकिन ताज्जुब की बात यह थी कि रेनू का पति नितिन फरार था. रेनू के भाई अजय सिन्हा बारबार कह रहे थे कि उन की बहन की हत्या पति नितिन नाथ ने ही की है. पुलिस को तलाश में रेनू सिन्हा का मोबाइल नहीं मिला था, लेकिन यह तभी पता चल सकता था कि रेनू की हत्या पति ने की है या किसी अन्य ने.

बहरहाल, पुलिस ने फोरैंसिक टीम को बुला कर मौके से साक्ष्य एकत्र करने की काररवाई पूरी की और रेनू सिन्हा के शव को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भिजवा दिया. दिलचस्प बात यह रही कि उस समय पुलिस को पूरी कोठी की तलाशी लेने का खयाल तक नहीं आया, लेकिन नितिन का कुछ पता नहीं चला.

सेक्टर 20 थाने आ कर उच्चाधिकारियों के निर्देश पर एसएचओ धर्मप्रकाश शुक्ला ने भादंसं की धारा 302 में अज्ञात हत्यारों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. जांच की जिम्मेदारी भी उन्होंने अपने पास ही रखी. इस के बाद नितिन नाथ का पता लगाने और रेनू सिंह के मोबाइल की जानकारी लेने के लिए पहले दोनों के फोन की काल डिटेल्स व उन के फोन की लोकेशन निकलवाई.

लोकेशन निकलवाई गई तो पुलिस का माथा ठनका, क्योंकि रेनू सिन्हा और नितिन नाथ दोनों के मोबाइल फोन की लोकेशन उसी डी-40 कोठी के आसपास की नजर आ रही थी, जहां वे रहते थे. इस का मतलब साफ था कि रेनू और उन के पति के फोन कोठी के भीतर ही हैं.

आखिरकार रात 12 बजे पुलिस दोबारा और सही मायने में हरकत में आई. तब पुलिस ने रेनू सिन्हा की कोठी और उस के आसपास के मकानों की सीसीटीवी फुटेज चैक करने का काम शुरू किया. इसी दौरान पुलिस ने ये गौर किया कि रेनू का पति नितिन पिछले 24 घंटों से ज्यादा वक्त में कभी बाहर ही नहीं निकला है. हां, दिन में करीब 2 बजे एकदो लोग घर में जरूर आए थे, लेकिन उन्हें किसी ने कोठी के मेन गेट पर लगा छोटा दरवाजा खोल कर अंदर बुला लिया था.

करीब आधे घंटे बाद आगंतुक चले गए और दरवाजा फिर किसी ने अंदर से बंद कर लिया था. उस के बाद घर के भीतर किसी के आने या किसी के बाहर निकलने की कोई फुटेज नहीं थी. पुलिस ने एक बार फिर से रेनू के घर वालों को मौके पर बुलाया. सीसीटीवी कैमरे में नितिन के घर से बाहर न जाने की पुष्टि होने की बात साफ होने के बाद पुलिस ने फिर से कोठी के निचले और दूसरी मंजिल की तलाशी लेने का काम शुरू किया.

कहानी में असली ट्विस्ट तब आया, जब रेनू का पति नितिन पुलिस को उसी कोठी में छिपा हुआ मिला. असल में नितिन अपने ही मकान के पहले माले में बने स्टोररूम में छिपा हुआ था.

पुलिस ने जब रेनू की लाश बरामद की थी, तब उस ने ऊपर की मंजिल पर केवल कमरों में ही सरसरी तौर पर तलाशी ली थी. जबकि स्टोर रूम छोड़ दिया था. लेकिन रात को दूसरे चरण में पूरे घर का चप्पाचप्पा छानने की कवायद में पुलिस को घर में स्टोररूम में नितिन नाथ छिपा हुआ मिल गया.

स्टोररूम में बंद मिला हत्यारा पति

इस के लिए भी पुलिस ने एक तरकीब निकाली थी. पुलिस टीम ने 4 अलगअलग मोबाइल फोन से लगातार रेनू और नितिन के मोबाइल पर काल करने का काम शुरू किया और जबकि कुछ टीम घर के अलगअलग हिस्सों में सर्च का काम कर रही थी.

पुलिस को तो सपने में भी उम्मीद नहीं थी कि नितिन घर में छिपा मिलेगा. पुलिस तो रेनू व नितिन के मोबाइल को तलाशने के लिए घर में सर्च कर रही थी, क्योंकि दोनों फोन की लोकेशन लगातार घर में ही आ रही थी. पुलिस जब तलाश करते हुए पहली मंजिल के स्टोररूम तक पहुंची तो इंसपेक्टर डी.पी. शुक्ला की टीम को कुछ घनघनाने की आवाज आई. लगा मानो किसी का मोबाइल वाइब्रेट कर रहा है. जहां से आवाजें आ रही थीं, वह एक स्टोररूम था.

स्टोररूम में 2 दरवाजे थे, एक दरवाजा अंदर से बंद था, जबकि उस के दूसरे गेट पर बाहर से ताला लगा था. पुलिस ने स्टोररूम के दरवाजे का ताला तोड़ा तो अंदर नितिन नाथ छिपा बैठा था. पुलिस ने जब स्टोररूम का दरवाजा खोला तो अंदर नितिन मोबाइल फोन, चार्जर, कौफी मग सब कुछ ले कर इत्मीनान से बैठा हुआ था. तब तक रात के 3 बज चुके थे. यानी जो शख्स पिछले कई घंटों से लाश मिलने वाली जगह से महज 2 मीटर के फासले पर छिपा था, पुलिस को उस तक पहुंचने में कत्ल का खुलासा होने के बाद भी 8 घंटे का वक्त लग गया.

पुलिस को अब लगा कि अगर उन्होंने सीसीटीवी फुटेज की जांच, कोठी की सही तरीके से तलाशी की होती तो ये कामयाबी दोपहर में ही मिल जाती. बहरहाल, नितिन नाथ को जब पकड़ा गया तो उस के पास छिपाने के लिए कुछ भी नहीं था. उस ने कुबूल कर लिया कि अपनी पत्नी रेनू की हत्या उस ने ही गला दबा कर की है. उस ने एकएक सच से परदा उठा दिया.

रेनू सिन्हा को जीवन में सब कुछ मिला. वह सुप्रीम कोर्ट की अच्छी वकील थीं, बेटा गिरीश अमेरिका में जौब करता है, शादी भी एक समृद्ध परिवार में हुई. लेकिन, एक चीज थी जो बीते 33 साल से सही नहीं थी. वो था रेनू का वैवाहिक जीवन.

रेनू और नितिन 33 साल पहले एकदूसरे के हुए थे, लेकिन उन का रिश्ता खुशहाल नहीं था. नितिन नाथ सिन्हा पैसे का लालची और ऐशभरी जिंदगी जीने का ख्वाहिशमंद जिद्दी इंसान था, लेकिन रेनू सीधीसादी और रिश्ते की कद्र करने वाली महिला थीं. उन का एकमात्र बेटा 15 साल पहले अमेरिका चला गया और वहीं बस गया. रेनू के भाई भी हर महीने उस से मिलने आते थे.

मूलरूप से बिहार के पटना के रहने वाले नितिन नाथ सिन्हा का जन्म वैसे तो ब्रिटेन में हुआ था. उन के पिता ब्रिटेन में एक प्रमुख नेत्र सर्जन थे, जिन्होंने 15 साल तक लंदन में प्रैक्टिस की थी, लेकिन उस के बाद वह भारत आ गए. यहां आ कर नितिन ने उच्चशिक्षा हासिल की और बाद में 1986 बैच का भारतीय सूचना सेवा विभाग का अधिकारी चुना गया.

उस ने 25 साल पहले यानी 1998 में ही स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) ले ली थी. इस के बाद उस ने अमेरिका की एक कंपनी में नौकरी की. यही नहीं, वह इंडियन मैडिकल एसोसिएशन में भी पदाधिकारी रह चुका है. पत्नी रेनू सिन्हा को कैंसर था, जिन का इलाज अमेरिका में चल रहा था. कुछ दिन पहले ही वह कैंसर से जीत कर घर लौटी थीं.

इधर कुछ समय से नितिन नाथ अब किसी भी तरह की नौकरी नहीं होने के कारण आर्थिक रूप से परेशान रहने लगा था. वह अपने फिजूल खर्चों के लिए रेनू या उस के भाई पर आश्रित रहता था.

दूसरा पहलू : अपनों ने बिछाया जाल – भाग 2

बारात जनवासे पहुंच गई. मिंटू साए की तरह मनु के आगेपीछे घूम रही थी. सुकृति रिश्तेदारों में व्यस्त थी, इसलिए मनु को समय नहीं दे पा रही थी. उस ने देखा कि उस की चचेरी बहन उस की जिम्मेदारी निभा रही है. मनु बोर नहीं हो रहा, यही उस के लिए पर्याप्त था. मिंटू ने लहंगाओढ़नी पहना था.

दुलहन सी सजी मिंटू ने मनु से पूछा, ‘‘मैं कैसी लग रही हूं जीजू?’’

‘‘माइंड ब्लोइंग रियली.’’ मनु ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘जीजू, झूठी प्रशंसा कर के आप मुझे झाड़ पर चढ़ा रहे हैं.’’

ऐसी बात कह कर शायद मिंटू मनु को और कुरेदना चाह रही थी. अब तक मनु भी काफी खुल चुका था, इसलिए उस ने कहा, ‘‘मिंटू, अपनी लाइफ में मैं ने इतनी सुंदर लड़की पहले नहीं देखी. जी चाहता है कि…’’

मनु का वाक्य पूरा होता, उस के पहले ही मिंटू तपाक से बोली, ‘‘क्या चाहता है जीजू आप का दिल? जरा हमें भी तो पता चले.’’

मिंटू की इस बात से मनु का साहस बढ़ा. उस ने बिना कुछ सोचेसमझे कहा, ‘‘अगर सामने कोई खूबसूरत अप्सरा खड़ी हो तो पुरुष का दिल क्या चाहेगा?’’

‘‘क्या चाहेगा, आप ही बता दीजिए?’’ मिंटू ने मुसकराते हुए पूछा.

मनु ने कोई जवाब नहीं दिया तो पल भर बाद मिंटू ही बोली, ‘‘आप तो लड़कियों की तरह शरमा रहे हैं. आय एम योर फ्रैंड जीजू, प्लीज बताइए ना.’’

मनु अपने ऊपर नियंत्रण नहीं रख पाया और दिल की ख्वाहिश जाहिर करते हुए बोला, ‘‘वांट ए किस, आई मीन लव…’’

‘‘इस में इतना शरमाने की क्या बात थी जीजू? मैं ने तो सोचा था आप…’’ इस बार मिंटू ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी. लेकिन मनु की बात उस के दिल को भेद गई थी. थोड़ा रुक कर मिंटू बोली, ‘‘मैं आप को एक गिफ्ट देना चाहती हूं जीजू.’’

‘‘क्या?’’ मनु ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘एक ऐसा गिफ्ट, जो आप को बहुत पसंद आएगा.’’ मिंटू ने हंसते हुए कहा.

‘‘दीजिए, देखें तो क्या दे रही हैं अपने जीजू को?’’ मनु ने पूछा.

‘‘अभी नहीं. समय आने दो, फिर देखना.’’

मनु कुछ और कहता, जानवासे से बारात चल पड़ी. बारातियों में तमाम लोग डांस कर रहे थे. लेकिन जब मिंटू ने डांस शुरू किया तो उस ने तुरंत भीड़ से मनु को अपने साथ डांस करने के लिए खींच लिया. सुकृति भी अब उस के साथ डांस करने लगी.

बारात लड़की वालों के घर पहुंच गई. अचानक सुकृति को याद आया कि वह अपना सूटकेस लौक करना भूल गई थी. उस ने यह बात मनु से कही तो वह अपनी कार से जनवासे जाने लगा. वह पंडाल से बाहर आया था कि पीछे से दौड़ती हुई मिंटू आई और उस के साथसाथ चलने लगी. चलते हुए ही उस ने पूछा, ‘‘जनवासे जा रहे हैं क्या जीजू?’’

‘‘हां, तुम्हें भी कोई काम है क्या?’’

‘‘मुझे भी वहां से अपनी एक ड्रेस लानी है.’’ मिंटू ने कहा.

मनु के साथ मिंटू भी कार में बैठ गई. कार में सिर्फ वही दोनों थे. कार थोड़ी दूर ही चली होगी कि मिंटू ने मनु का हाथ दबा कर कार रुकवा ली. मनु कुछ समझ पाता, बिजली की सी फुर्ती से मिंटू ने मनु के गाल पर चुंबनों की बौछार कर दी. मनु भौचक्का रह गया. मिंटू ने कहा, ‘‘जीजू मेरी गिफ्ट कैसी लगी? बदले में अब आप मुझे गिफ्ट में क्या दे रहे हैं?’’

मनु की भी भावनाएं भड़क उठी थीं. उस ने भी आगे बढ़ कर मिंटू के होठों पर अपने होंठ रख दिए. मनु ने स्वयं को जैसेतैसे संयत किया. रिश्तों की नाजुकता ने आवेश पर ब्रेक लगाया तो कार आगे बढ़ी. जनवासा आ चुका था. मनु कार में ही बैठा रहा. मिंटू जा कर सुकृति का सूटकेस और अपनी ड्रेस ले आई.

भावावेश में यह सब जो हुआ था, मनु को पश्चाताप हो रहा था. उसे परेशान देख कर मिंटू ने कहा, ‘‘इतने टैंस क्यों हो रहे हैं जीजू? मैं आप की साली ही तो हूं. साली यानी आधी घर वाली. इतना हक तो बनता ही है आप का?’’

मनु थोड़ा संयत हुआ. मिंटू की दिलकश अदाएं उस पर भारी पड़ने लगी थीं. दोनों बारात में शामिल हो गए. लड़की वालों का घर आ गया. शादी की वह रात इसी तरह हंसीमजाक में बीत गई. सुबह दुलहन की विदाई के बाद सुकृति मनु की कार में बैठ गई थी. शादी निपट चुकी थी. मनु को अपना बिजनैस देखना था, इसलिए उसे लौटना था. वह चला आया, लेकिन सुकृति 2-4 दिनों के लिए रुक गई. रश्मि और उस की बेटी मिंटू के व्यवहार ने उस की जिंदगी में नए रंग भर दिए थे. मिंटू उस से रुकने के लिए जिद कर रही थी, लेकिन बिजनैस की वजह से उस का रुकना संभव नहीं था.

मनु रास्ते में ही था कि उस के मोबाइल फोन पर मिंटू के एसएमएस धड़ाधड़ आने लगे. मनु के पास इतना समय नही था कि वह जवाब देता. 2-4 के जवाब दिए, बाकी फोन पर बात कर ली. 2-4 दिनों बाद मिंटू मां के साथ अहमदाबाद चली गई.

सुकृति ने शायद उन के बीच बढ़ती प्रगाढ़ता को भांप लिया था, इसलिए मनु को सचेत किया, ‘‘आप इन लोगों से ज्यादा नजदीकी मत बढ़ाइए. आप उन लोगों को नहीं जानते, धोखा उन की रगरग में बसा है.’’

मनु पशोपेश में पड़ गया. अपनों के बारे में सुकृति के विचार जान कर उसे बड़ा अजीब लगा. इस के बाद उस ने सुकृति को उन लोगों के बारे में बताना बंद कर दिया. मिंटू बारबार मनु से अहमदाबाद आने की जिद कर रही थी. उस की डिमांड पर मनु ने कुरियर से उस के लिए एक कीमती मोबाइल सेट और कुछ शानदार ड्रेसेज भेज दी थीं. यह सब पा कर मिंटू बहुत खुश हुई थी.

मनु अकसर मिंटू के लिए कुछ न कुछ भेजने लगा था. उस के मोबाइल में पैसे डलवाना तो आम बात थी. वह थी ही इतनी बातूनी. वही क्या, उस की मम्मी यानी रश्मि भी मनु से घंटों बातें करती थी. मनु को मोबाइल के बिल की उतनी चिंता नही थी, लेकिन उस के पास समय नहीं होता था.

शोरूम में ग्राहकों के सामने ज्यादा देर मोबाइल पर बात नहीं कर सकता था. इधर वह मोबाइल में इतना उलझा रहने लगा था कि शोरूम का सिस्टम गड़बड़ाने लगा था. उस में आए इस बदलाव से शोरूम के कर्मचारी हैरान थे.

भांजी की गवाही से बलात्कारी को सजा-ए-मौत – भाग 2

भांजी ने बनवारी के खिलाफ दी गवाही

लाडो कटघरे में आ कर खड़ी हो गई. उस ने बड़ी निर्भीकता से कहना शुरू किया, “उस रात दिव्या की मां ने दिव्या को लाला की दुकान पर सुई लाने भेजा था. उसे मैं मिल गई तो वह मेरे साथ लाला की दुकान पर गई थी. वहां बनवारी जो मेरा मामा लगता है और डहरुआ में ही रहता है, हमें मिल गया. उस ने हमें पास बुला कर कहा, ‘कोल्डड्रिंक पिओगी तुम दोनों.’

“हम ने हां कर दी तो वह लाला से कोल्डड्रिंक ले आया. उस ने गिलास, नमकीन, सौस और प्लेट खरीदी. बनवारी मामा हम दोनों को बाइक पर बिठा कर एक गांव मावली में बाजरे के खेत में ले गया. हम ने वहां लाने के बारे में पूछा तो बोला कि तुम यहां आराम से कोल्डड्रिंक पीना, मैं दारू पी लूंगा. वहां बनवारी ने हमें गिलास में कोल्डड्रिंक भर कर पीने को दी. हम कोल्डड्रिंक पी रही थीं, मामा दारू पी रहा था.

“जब वह दारू पी चुका तो उस ने अचानक दिव्या को दबोच लिया. दिव्या चीखी तो उसे थप्पड़ मार कर जमीन पर गिरा दिया, उस की पाजामी उतार कर यह उस के साथ गंदा काम करने लगा. दिव्या रोती चीखती रही, मैं भी बदहवास हो कर चीखती रही. इस ने दिव्या को लहूलुहान कर के छोड़ा. वह दर्द से रोने लगी थी. कहने लगी मां को बताऊंगी. इस  पर मामा ने उस का गला पकड़ कर दबाया तो वह छटपटा कर मर गई. इस ने मुझे धमकाया कि किसी से गांव में कहा तो मेरा भी गला दबा देगा.

“मैं बहुत डर गई थी. यह मुझे बाइक पर बिठा कर मेरी मां कंचन के नौगांव ले गया और जब मेरी मां ने मेरे लिए परेशान हो रहे छोटे मामा को बताया कि मुझे बनवारी घर ले आया है तब मेरे छोटे मामा भोला हमें दिव्या के पिता और चाचा के साथ गांव में ढूंढ रहे थे. दिव्या के दोनों चाचा संतोष और दाजू ने कहा कि वेनौगांव आ रहे हैं तो मां को मामा बनवारी यह कह कर भाग गया कि उसे कोई जरूरी काम है. मैं ने सब अपनी आंखों से देखा है.”

एडवोकेट किशन बेधडक़ गहरी सांस भर कर कुरसी पर आ बैठे. अब उन के पास कहने को कुछ नहीं बचा था. पूरी कहानी समझने के लिए हमें घटना के अतीत में जाना होगा.

बनवारी की नीयत हुई खराब

रात के 8 बजने को आए थे. परचून की दुकान पर दाल लेने गई दिव्या अभी तक वापिस नहीं आई थी.

“कहां मर गई यह लडक़ी. आधा घंटे से ऊपर हो गया दुकान पर गए, अभी तक नहीं लौटी.” दिव्या की मां अपने आप में बड़बड़ाने लगी.

“अरी क्या हुआ, क्यों बड़बड़ा रही हो?” दिव्या के पिता ने हाथ का थैला खूंटी पर टांगते हुए पूछा.

“आप की लाडली को आधा घंटा पहले लाला की दुकान पर दाल लेने भेजा था, अभी तक वापस नहीं आई है.”

“आधा घंटा हो गया?” दिव्या का पिता हैरानी से बोला, “तुम ने देखा नहीं जा कर?”

“मैं मसाला पीसने बैठी थी… अब जा कर देखती हूं.”

“ठहरो, मैं देख कर आता हूं.” दिव्या के पिता ने कहा और तेजी से वह बाहर निकल गया.

मथुरा के यमुनापार की इस बस्ती में लाला की परचून की दुकान थी. दिव्या का पिता दुकान पर पहुंचा तो लाला दुकान बंद करने के लिए सामान अंदर रख रहा था. वहां लाला के अलावा कोई और नहीं था. दिव्या के पिता की धडक़नें बढ़ गईं. वह अपनी बेटी को वहां न देख कर घबरा गया.

उस ने लाला से पूछा, “मेरी बेटी दिव्या आधा घंटा पहले यहां दाल लेने आई थी लाला, वह घर नहीं पहुंची है.”

“दाल लेने आई थी? नहीं, दिव्या बेटी ने तो मुझ से दाल नहीं मांगी, वह तो यहां अपनी सहेली लाडो के साथ आई थी. फिर मुझे नहीं पता, मैं सामान देने में व्यस्त था.”

“कहां चली गई यह लडक़ी,” बड़बड़ाते हुए वह घर लौट आया. उस ने अपनी पत्नी को बताया कि दिव्या दुकान पर और रास्ते में कहीं नहीं दिखाई दी है तो उस की पत्नी घबरा गई. वह तेजी से घर से निकली, पीछे उस का पति भी था. बेटी को ले कर मांबाप हुए परेशान दोनों अपनी बेटी को बस्ती में तलाश करने लगे.

दिव्या की मां लाडो के घर भी गई. मालूम हुआ वह भी घर पर नहीं है. वह भी अपनी बेटी के लिए परेशान हो गए. अब दोनों ही अपनीअपनी बेटी को तलाश करने लगे. दिव्या और लाडो साथ ही थीं. दोनों में से कोई एक भी मिल जाती तो मालूम हो जाता दूसरी कहां पर है.

पूरी बस्ती छान डाली गई, लेकिन दोनों लड़कियों का कुछ पता नहीं चला. एक घंटे से ऊपर होने को आया, तब लाडो की अच्छी खबर फोन द्वारा मिली. लाडो की ममेरी बहन कंचन ने फोन कर पापा को बताया कि लाडो अपने मामा बनवारी के साथ उस के घर आई है. बनवारी अच्छा आदमी नहीं था. उस का नाम सुनते ही दिव्या के पिता और मां घबरा गए.

“कंचन से पूछो लाडो वहां आई है तो दिव्या कहां पर है?” दिव्या की मां ने परेशान स्वर में कहा.

“कंचन… लाडो के साथ दिव्या भी थी. दिव्या भी वहां आई होगी?”

“नहीं, दिव्या तो यहां नहीं आई है.” कंचन ने बताया, “बनवारी केवल लाडो को ही साथ लाया है.”

“तुम बनवारी को रोक कर रखो, हम तुम्हारे घर आ रहे हैं.” लाडो के पिता ने कहा और फोन काट कर बोला, “बनवारी बुरा आदमी है. मुझे कुछ गड़बड़ लग रही है. अभी बनवारी कंचन के यहां ही है. उस से मालूम होगा, दिव्या कहां पर है. आओ.”

सभी लगभग भागते हांफते हुए कंचन के घर पहुंचे जो उसी बस्ती में था. वहां कंचन और लाडो ही मिली. बनवारी वहां से नौ दो ग्यारह हो चुका था.

“तुम ने बनवारी को क्यों जाने दिया?” दिव्या के पिता ने गुस्से से पूछा.

“मैं ने रोका, लेकिन वह एक जरूरी काम की कह कर चला गया.” कंचन ने बताया.

उन लोगों ने लाडो से दिव्या के विषय में पूछा तो वह कुछ भी नहीं बता पाई. वह बहुत डरी हुई और सदमे में नजर आ रही थी.

पहली सितंबर, 2020 को थाना यमुनापार में दिव्या का पिता रोते हुए पहुंचा. एसएचओ महेंद्र प्रताप चतुर्वेदी उस वक्त अपने कक्ष में आ कर सुबह का अखबार पढ़ रहे थे. उस ने एसएचओ को बेटी के गायब होने की पूरी बात बता दी.

एसएचओ ने दिव्या की गुमशुदगी दर्ज करवा दी. एक कांस्टेबल ने आ कर एसएचओ को बताया, “साहब, कंट्रोल रूम से एक संदेश हमारे लिए फ्लैश किया जा रहा है. हमारे थाना क्षेत्र के गांव मावली में एक लडक़ी की क्षतविक्षत लाश पड़ी हुई है. हमें तुरंत वहां पहुंचने के लिए कहा गया है.”

एसएचओ चतुर्वेदी के जेहन में तुरंत खयाल आया. कहीं वह लाश दिव्या की न हो. कुछ सोच कर उन्होंने दिव्या के पिता से कहा, “कंचन से हम बाद में मिल लेंगे. पास के मावली गांव में किसी लडक़ी की लाश पड़ी होने की सूचना मिल रही है. आओ, पहले मावली गांव चलते हैं.”

कुछ ही देर में यमुना पार थाने की पुलिस मावली गांव की ओर रवाना हो गई थी.

बच्ची के साथ बलात्कार के मिले संकेत

मावली गांव के एक खेत में 9 साल की मासूम लडक़ी का क्षतविक्षत शव पड़ा हुआ था. उस के शरीर पर नोंचखसोट के चिह्न थे. उस के नीचे के कपड़े फटे हुए थे और खून के धब्बे उस पर दिखाई दे रहे थे. पहली नजर में लग रहा था कि उस मासूम के साथ दुष्कर्म हुआ है.

लाश देख कर दिव्या का पिता दहाड़ मार कर रोने लगा. एसएचओ को उस के रोने से ही पता चल गया कि यह बच्ची उस की बेटी दिव्या है, जिस की गुमशुदगी की वह रिपोर्ट लिखवाने आया था. एसएचओ ने फोरैंसिक टीम को घटनास्थल पर बुलवा लिया और उच्चाधिकारियों को इस लाश की जानकारी दे दी.

मौके पर आसपास के खेत वाले इकट्ठा हो गए थे. आवश्यक काररवाई निपटा लेने के बाद एसएचओ फोरैंसिक टीम का कार्य पूरा होने का इंतजार करते रहे. फिर उन्होंने दिव्या की लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.

थाने में आ कर उन्होंने अज्ञात बलात्कारी और हत्यारे के खिलाफ एफआईआर 287/2020 में आईपीसी की धाराएं 363, 366, 302, 376 और 201 लगा कर उस पर पोक्सो एक्ट की धारा-6 भी लगा दी.

अब उन्हें दिव्या के हत्यारे तक पहुंचना था. सुखिया के अनुसार दिव्या के साथ लाडो भी थी और लाडो अपने मामा के साथ रात को 11 बजे अपनी मौसी कंचन के घर आ गई थी. दिव्या लापता थी जिस के विषय में वह कुछ भी बताने की स्थिति में नहीं थी.

कैसे पकड़ा गया मासूम दिव्या का अपराधी? पढ़िए कहानी के अगले अंक में.

पति ने किया अर्चना की जिंदगी का सूर्यास्त – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला पीलीभीत के थाना गजरौला कलां का संतरी बरामदे में खड़ा इधरउधर ताक रहा था. उसी समय एक युवक तेजी से  आया और थानाप्रभारी भुवनेश गौतम के औफिस में घुसने लगा तो उस ने टोका, ‘‘बिना पूछे कहां घुसे जा रहे हो भाई?’’

युवक रुक गया. वह काफी घबराया हुआ लग रहा था. उस ने कहा, ‘‘साहब से मिलना है, मेरी पत्नी को बदमाश उठा ले गए हैं.’’

‘‘तुम यहीं रुको, मैं साहब से पूछता हूं, उस के बाद अंदर जाना.’’ कह कर संतरी थानाप्रभारी के औफिस में घुसा और पल भर में ही वापस आ कर बोला, ‘‘ठीक है, जाओ.’’

संतरी के अंदर जाने के लिए कहते ही युवक तेजी से थानाप्रभारी के औफिस में घुस गया. अंदर पहुंच कर बिना कोई औपचारिकता निभाए उस ने कहा, ‘‘साहब, मैं लालपुर गांव का रहने वाला हूं. मेरा नाम प्रमोद है. मैं अपनी पत्नी को विदा करा कर घर जा रहा था. गांव से लगभग 2 किलोमीटर पहले कुछ लोग बोलेरो जीप से आए और मेरी पत्नी को उसी में बैठा कर ले कर चले गए.’’

थानाप्रभारी भुवनेश गौतम ने प्रमोद को ध्यान से देखा. उस के बाद मुंशी को बुला कर उस की रिपोर्ट दर्ज करने को कहा. मुंशी ने प्रमोद के बयान के आधार पर उस की रिपोर्ट दर्ज कर ली. रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद प्रमोद ने थानाप्रभारी के औफिस में आ कर कहा, ‘‘साहब, अब मैं जाऊं?’’

थानाप्रभारी भुवनेश गौतम ने उसे एक बार फिर ध्यान से देखा. प्रमोद ने उन से एक बार भी नहीं कहा था कि वह उस की पत्नी को तुरंत बरामद कराएं. उस के चेहरे के हावभाव से भी नहीं लग रहा था कि उसे पत्नी के अपहरण का जरा भी दुख है.

उन्होंने उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘तुम हमें वह जगह नहीं दिखाओगे, जहां से तुम्हारी पत्नी का अपहरण हुआ है? अपहर्त्ता जिस बोलेरो जीप से तुम्हारी पत्नी को ले गए हैं, उस का नंबर तो तुम ने देखा ही होगा. वह नंबर नहीं बताओगे?’’

थानाप्रभारी की बातें सुन कर प्रमोद के चेहरे के भाव बदल गए. वह एकदम से घबरा सा गया. उस ने हकलाते हुए कहा, ‘‘साहब, मैं गाड़ी का नंबर नहीं देख पाया था. यह सब इतनी जल्दी और अचानक हुआ था कि गाड़ी का नंबर देखने की कौन कहे, मैं तो यह भी नहीं देख पाया कि अपहर्त्ता कितने थे.’’

‘‘ठीक है, हम अभी तुम्हारे साथ चल कर वह जगह देखते हैं, जहां से तुम्हारी पत्नी का अपहरण हुआ है. तुम घबराओ मत, हम नंबर और अपहर्त्ताओं के बारे में भी पता कर लेंगे.’’ कह कर थानाप्रभारी ने गाड़ी निकलवाई और सिपाहियों के साथ प्रमोद को भी गाड़ी में बैठा कर घटनास्थल की ओर चल पड़े. सिपाहियों के साथ बैठा प्रमोद काफी परेशान सा लग रहा था.

जिस की पत्नी का अपहरण हो जाएगा, वह परेशान तो होगा ही, लेकिन उस की परेशानी उस से हट कर लग रही थी. थानाप्रभारी जब गांव के मोड़ पर पहुंचे तो प्रमोद ने कहा, ‘‘साहब, मुझे तो अब याद ही नहीं कि अपहरण कहां से हुआ था? मैं तो पत्नी के साथ पैदल ही जा रहा था. अंधेरा होने की वजह से मैं वह जगह ठीक से पहचान नहीं सका.’’

‘‘तुम ने शोर मचाया था?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘साहब, शोर मचाने का मौका ही कहां मिला. वह आंधी की तरह आए और मेरी पत्नी को जीप में जबरदस्ती बैठा कर ले गए.’’ प्रमोद ने कहा.

थानाप्रभारी को प्रमोद की इस बात से लगा कि मामला अपहरण का नहीं, कुछ और ही है. पूछने पर प्रमोद यह भी नहीं बता रहा था कि उस की ससुराल कहां है. संदेह हुआ तो उन्होंने गुस्से में कहा, ‘‘सचसच बता, क्या बात है?’’

प्रमोद कांपने लगा. थानाप्रभारी को समझते देर नहीं लगी कि यह झूठ बोल रहा है. उन्होंने उसे जीप में बैठाया और थाने आ गए. थाने ला कर उन्होंने उस से पूछताछ शुरू की. शुरूशुरू में तो प्रमोद ने पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की, लेकिन जब उस ने देखा कि पुलिस अब सख्त होने वाली है तो उस ने रोते हुए कहा, ‘‘साहब, अपने दोस्त मुकेश के साथ मिल कर मैं ने अपनी पत्नी की हत्या कर दी है और लाश एक गन्ने के खेत में छिपा दी है.’’

रात में तो कुछ हो नहीं सकता था, इसलिए पुलिस सुबह होने का इंतजार करने लगी. सुबहसुबह पुलिस लालपुर पहुंची तो गांव वाले हैरान रह गए. उन्हें लगा कि जरूर कुछ गड़बड़ है. जब प्रमोद ने गन्ने के खेत से लाश बरामद कराई तो लोगों को पता चला कि प्रमोद ने अपनी पत्नी की हत्या कर दी है. थोड़ी ही देर में वहां भीड़ लग गई.

पुलिस ने लाश का निरीक्षण किया. मृतका की उम्र 20 साल के करीब थी. वह साड़ीब्लाउज पहने थी. गले पर दबाने का निशान स्पष्ट दिखाई दे रहा था. गांव वालों से जब प्रमोद के घर वालों को पता चला कि प्रमोद ने अर्चना की हत्या कर दी है तो वे भी हैरान रह गए. उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि प्रमोद ऐसा भी कर सकता है. लेकिन जब वे घटनास्थल पर पहुंचे तो अर्चना की लाश देख कर सन्न रह गए. पुलिस ने मृतका अर्चना के पिता डालचंद को भी फोन द्वारा सूचना दे दी थी कि उन की बेटी अर्चना की हत्या हो चुकी है.

इस सूचना से डालचंद और उन की पत्नी शारदा हैरान रह गए थे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब कैसे हो गया. कल शाम को ही तो उन्होंने बेटी को विदा किया था. उस समय तो सब ठीकठाक लगा था. रास्ते में ऐसा क्या हो गया कि अच्छीभली बेटी की हत्या हो गई.

डालचंद ने सिर पीट लिया. उन के मुंह से एकदम से निकला, ‘‘किस ने मेरी बेटी को मार दिया? उस ने आखिर किसी का क्या बिगाड़ा था?’’

‘‘हमारी बेटी को किसी और ने नहीं, प्रमोद ने ही मारा है.’’ रोते हुए शारदा ने कहा.

पत्नी की इस बात से डालचंद हैरान रह गया, ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है?’’

‘‘तुम्हें पता नहीं है. दामाद का गांव की ही किसी लड़की से चक्कर चल रहा था. उसी की वजह से उस ने मेरी बेटी को मार डाला है.’’ शारदा ने कहा.

पत्नी भले ही कह रही थी कि अर्चना की हत्या प्रमोद ने की है, लेकिन डालचंद को विश्वास नहीं हो रहा था. सूचना पाने के बाद डालचंद परिवार के कुछ लोगों के साथ थाना गजरौला कलां जा पहुंचा. अर्चना की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया था. थानाप्रभारी ने जब उसे बताया कि अर्चना की हत्या उस के दामाद प्रमोद ने ही की है, तब कहीं जा कर उसे विश्वास हुआ.

पूछताछ में शारदा ने बताया कि अर्चना ने उन से बताया था कि प्रमोद का गांव की ही किसी लड़की से प्रेमसंबंध है. लेकिन उस ने बेटी की इस बात को गंभीरता से नहीं लिया था. उसे लगा कि हो सकता है शादी के पहले रहे होंगे. शादी के बाद संबंध खत्म हो जाएंगे. उसे क्या पता कि उसी संबंध की वजह से प्रमोद उस की बेटी को मार डालेगा.

फूल खिलने से पहले ही उजड़ गया गुलिस्तां – भाग 1

मन में हजारों सपने संजोए हरप्रीत कौर ने दहलीज से बाहर कदम रखा तो उस के पांव जमीन पर नहीं टिक रहे थे. भावी पिया की डोर से बंधने में  केवल 3 घंटे बचे थे. इसलिए वह अपने होने वाले पति की सूरत मन में बसाए इंद्रधनुषी सपनों की डोर में बंधी दूर उड़ी जा रही थी. 3 घंटे बाद यानी 10 बजे लुधियाना के महंगे और प्रसिद्ध स्टर्लिंग रिजौर्ट में उस की शादी हरप्रीत सिंह के साथ होनी थी.

रिजौर्ट में शादी का मंडप सजा हुआ था. मात्र 3 घंटे बाद उसे हरप्रीत सिंह की अर्धांगिनी बन जाना था. इसी सुखद अहसास और कल्पनाओं में वह खोई हुई थी. तभी उस की मां दविंदर कौर ने आवाज दी तो उस की तंद्रा टूटी. वह बोली, ‘‘जी मम्मी.’’

‘‘बेटा क्या सोच रही हो? 7 बज चुके हैं, जल्दी चलो. ब्यूटीपार्लर में तुम्हें काफी टाइम लगेगा.’’ दरअसल हरप्रीत को मेकअप कराने के लिए ब्यूटीपार्लर जाना था.

‘‘हां मम्मीजी, चलो मैं तैयार हूं.’’ हरप्रीत कौर बोली.

इस के बाद हरप्रीत कौर अपने मातापिता और सखियों के साथ इनोवा कार से साढ़े 7 बजे लुधियाना के सराभानगर स्थित लैक्मे सैलून नाम के ब्यूटीपार्लर पहुंच गई. उस के मेकअप के लिए लैक्मे सैलून को पहले से ही बुक करा रखा था. सैलून संचालक को 3 हजार रुपए भी पेशगी दे दिए थे.

सैलून पहुंचते ही संचालक संजीव गोयल ने हरप्रीत का मेकअप कराना शुरू कर दिया. उस समय हरप्रीत बहुत खुश थी. उसी दौरान करीब 9 बजे एक युवक पार्लर में घुसा. उस ने स्वेटशर्ट से अपना सिर ढक रखा था और मुंह पर रूमाल बांध रखा था. संजीव ने सोचा कि युवक ने ठंड से बचने के लिए यह किया होगा. उस के हाथ में प्लास्टिक का एक डिब्बा था.

पार्लर में घुसते ही वह उधर ही गया, जिधर हरप्रीत कौर का मेकअप किया जा रहा था. जितने बेधड़क तरीके से वह मेकअप केबिन में घुसा इसे देख कर संजीव गोयल ने सोचा कि यह शायद हरप्रीत कौर का कोई परिचित होगा और डिब्बे में दुलहन के लिए नाश्ता वगैरह लाया होगा. इसीलिए उस ने उस युवक को रोकने की कोश्शि नहीं की.

वह युवक लंबेलंबे डग भरता हुआ हरप्रीत के पास पहुंचा और ऊंची आवाज में धमकी देते हुए बोला, ‘‘मैं यह शादी हरगिज नहीं होने दूंगा.’’

उस अनजान युवक को यह कहता देख हरप्रीत चौंकी. वह समझ नहीं पा रही थी कि यह युवक न मालूम कौन है, जो इस तरह की बातें कर रहा है. वह उस युवक से बोली, ‘‘आप कौन हैं और इस तरह की बातें क्यों कर रहे हैं?’’

उस की बात का कोई जवाब देने के  बजाय उस युवक ने एक पत्र हरप्रीत को पकड़ा दिया. हरप्रीत सोचने लगी कि पता नहीं यह कौन है और उस से क्या चाहता है? फिर भी उस ने उस युवक द्वारा दिए गए पत्र पर एक नजर डाली और गुस्से से उस पत्र को जमीन पर फेंक दिया. इस से पहले कि वह उस युवक से कुछ कह पाती, उस युवक ने डिब्बे में पड़ा तरल पदार्थ हरप्रीत के चेहरे पर फेंक दिया और उस डिब्बे को वहीं फेंक कर भाग खड़ा हुआ. यह सारा घटनाक्रम केवल 8 सेकेंड में घटा था, इसलिए कोई कुछ समझ नहीं पाया.

कुछ सेकेंड बाद हरप्रीत ने चीखना शुरू किया. हरप्रीत को तैयार कर रही ब्यूटीशियनों और बराबर की सीट पर बैठी एक और लड़की ने हरप्रीत की तरफ देखा तो उस के शरीर से धुआं उठ रहा था. यह देखते उन सभी को समझते देर न लगी कि उस युवक ने हरप्रीत के ऊपर तेजाब डाला है. वे चीखने लगीं.

आवाज सुन कर संजीव गोयल केबिन में पहुंचे तो पता चला कि जो युवक अंदर आया था, उस ने मेकअप करा रही हरप्रीत कौर के ऊपर तेजाब डाल दिया है. उस युवक को पकड़ने के लिए संजीव गोयल जब तक सैलून से बाहर आया, तब तक वह युवक मारुति जेन कार से भाग गया था. संजीव ने उस की कार का नंबर देख लिया था. उस कार में अन्य कई लोग बैठे थे.

हरप्रीत की हालत बहुत नाजुक थी. तेजाब इतनी अधिक मात्रा में डाला गया था कि वह उस के चेहरे से ले कर छाती, जांघों आदि से होता हुआ उस चेयर तक पहुंच गया था, जिस पर वह बैठी थी. तेजाब से उस चेयर की सीट तक जल गई थी. हरप्रीत तेजाब की जलन से तड़प रही थी. तेजाब की छीटें ब्यूटीशियनों पर भी पड़ी थीं.

संजीव ने तुरंत पुलिस कंट्रोल रूम को घटना की खबर दे दी और हरप्रीत कौर व अन्य घायलों को डीएमसी अस्पताल ले गया. सूचना मिलते ही सराभानगर के थानाप्रभारी हरपाल सिंह ग्रेवाल पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां उन्हें पता चला कि घायलों को डीएमसी अस्पताल पहुंचाया गया है तो वह भी अस्पताल पहुंच गए.

हरप्रीत की हालत बेहद नाजुक थी, इसलिए उसे आईसीयू में शिफ्ट कर के इलाज शुरू कर दिया गया. अन्य घायलों को उपचार के बाद अस्पताल ने छुट्टी कर दी. मामला बेहद गंभीर था, इसलिए थानाप्रभारी ने इस की सूचना आला अधिकारियों को दे दी. जिस के बाद लुधियाना के पुलिस आयुक्त निर्मल सिंह ढिल्लो, अतिरिक्त आयुक्त जोगिंदर सिंह, सहायक आयुक्त हर्ष बंसल सहित कई उच्चाधिकारी डीएमसी अस्पताल पहुंच गए.

हरप्रीत के ऊपर तेजाब डालने की खबर उस के घरवालों और ससुराल पक्ष के लोगों को मिली तो वे भी अस्पताल पहुंच गए. हरप्रीत की हालत देख कर वे स्तब्ध थे और समझ नहीं पा रहे थे कि यह सब किस ने और क्यों किया, क्योंकि उन की किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं थी.

इस के बाद तो जिस ने भी यह खबर सुनी, वह डीएमसी अस्पताल की तरफ चल दिया, जिस से कुछ ही देर में अस्पताल के अंदर और बाहर लोगों का हुजूम जमा हो गया. हरप्रीत से पहले शहर में ही राजवंत और उस की 2 सहेलियों पर भी तेजाब डाला गया था, जिन में से एक लड़की की मौत भी हो गई थी और राजवंत 50 प्रतिशत से अधिक जल गई थी. इसी कारण स्वयंसेवी संस्थाओं, सामाजिक संगठनों के अलावा आम जनता में पहले से आक्रोश भरा हुआ था. आंदोलनों के जरिए इन का गुस्सा पुलिस प्रशासन पर फूट पड़ा था.

डीएमसी अस्पताल के अंदर और बाहर लगे हुजूम में आक्रोश था. लोग कह रहे थे कि पुलिस के निष्क्रिय रहने की वजह से एक और तेजाब कांड हो गया. अगर पुलिस राजवंत और उस की सहेलियों पर तेजाब डालने वालों के खिलाफ कठोर काररवाई करती तो तेजाब डालने की यह घटना कतई न होती. भीड़ को देखते हुए भारी मात्रा में पुलिस भी अस्पताल पहुंच गई थी. उधर डाक्टरों ने बताया कि हरप्रीत कौर 50 प्रतिशत से अधिक जली है और उस की हालत नाजुक है. इस वजह से पुलिस उस का बयान भी नहीं ले पा रही थी.

थानाप्रभारी हरपाल सिंह को यह मामला प्रेमसंबंध का लग रहा था. क्योंकि जितने भी इस प्रकार के तेजाब कांड हुए हैं, उन में से ज्यादातर केसों में सिरफिरे मजनुओं का ही हाथ रहा है. थानाप्रभारी ने जो जानकारी जुटाई, उस से पता चला कि सुबह 10 बजे हरप्रीत कौर की कोलकाता के रहने वाले हरप्रीत उर्फ हनी से शादी होने वाली थी. हनी के घरवालों ने शादी का प्रोग्राम लुधियाना के स्टर्लिंग रिजौर्ट में रखा था. वे सब लुधियाना के होटल में ठहरे हुए थे.

अब सवाल यह था कि ऐसा कौन सा शख्स था, जिस ने शादी से कुछ समय पहले ही शादी की खुशी को मातम में बदल दिया था. लेकिन इतना तो तय था कि वारदात में हरप्रीत कौर के किसी परिचित का हाथ रहा होगा, जिसे हरप्रीत कौर के यहां होने वाले हर कार्यक्रम की जानकारी थी.

इस बारे में पुलिस को हरप्रीत कौर, उस के घरवालों या ससुराल पक्ष के लोगों से बात कर के कोई क्लू मिलने की संभावना थी. हरप्रीत बयान देने की पोजीशन में नहीं थी और अन्य लोगों से थानाप्रभारी ने बाद में बात करना मुनासिब समझा. वह पहले उस ब्यूटीपार्लर में पहुंच गए, जहां यह घटना घटी थी.

ब्यूटीपार्लर में कई सीसीटीवी कैमरे लगे थे. थानाप्रभारी हरपाल सिंह ने सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकलवा कर देखी और उस पत्र को भी देखा, जो हमलावर ने हरप्रीत कौर को दिया था. पत्र लिखने वाले ने अपना नाम विशाल लिखा था. सीसीटीवी फुटेज में जो शख्स दिखा था, उस ने अपने चेहरे पर रूमाल बांध रखा था और अपने सिर को स्वेटशर्ट से ढक रखा था. जिस से उस शख्स की शिनाख्त नहीं हो सकी थी.

पार्लर के संचालक संजीव से पुलिस को हमलावर की मारुति जेन कार का नंबर पीबी11-जेड9090 मिला. थानाप्रभारी को इस कार नंबर से हमलावर तक पहुंचने की उम्मीद थी, लेकिन जांच की गई तो यह कार नंबर फरजी पाया गया, जिस से थाना पुलिस की तफ्तीश आगे नहीं बढ़ सकी.

बचपन का मजा, जवानी में बना सजा – भाग 1

खटखट की आवाज से असलम की आंख खुली तो आंखों की कड़वाहट से ही वह समझ गया कि अभी सवेरा नहीं हुआ है. लाइट जला कर उस ने समय देखा तो रात के 2 बज रहे थे. उतनी रात को कौन आ गया? असलम सोच ही रहा था कि दोबारा खटखट की आवाज आई. वह झट से उठा. रात का मामला था, इसलिए बिना पूछे दरवाजा खोलना ठीक नहीं था. उस ने पूछा, ‘‘कौन?’’

बाहर से सहमी सी आवाज आई, ‘‘भाईजान, मैं रुखसाना.’’

रुखसाना का नाम सुन कर उस ने झट से दरवाजा खोल दिया. क्योंकि वह उस की पड़ोसन थी. सामने खड़ी रुखसाना से उस ने पूछा, ‘‘भाभीजी आप, सब खैरियत तो है?’’

‘‘माफ कीजिएगा भाईजान, आप को इतनी रात को तकलीफ दी.’’ रुखसाना ने कहा तो असलम बोला, ‘‘जाबिरभाई और बच्चे तो ठीक हैं न?’’

‘‘असलम भाई, मुझे लगता है, मेरे घर कोई अनहोनी हो गई है. काफी देर पहले जाबिर टौयलेट के लिए ऊपर गए थे. लेकिन अभी तक वह नीचे नहीं आए हैं. मेरा जी घबरा रहा है.’’

‘‘नीचे नहीं आए, क्या मतलब? मैं समझा नहीं?’’ असलम ने हैरानी से कहा.

‘‘आज उन की तबीयत ठीक नहीं थी. शाम को भी देर से आए थे. खाना खाने के बाद दवा ली और सो गए. थोड़ी देर बाद वह टौयलेट जाने के लिए उठे. नीचे वाला टौयलेट खराब था, इसलिए मैं ने उन्हें ऊपर जाने को कहा. वह ऊपर वाले फ्लोर पर चले गए. जबकि मैं लेटी ही रही. काफी देर हो गई और वह ऊपर से नीचे नहीं आए तो मेरा जी घबराने लगा. इसलिए मैं आप के पास आ गई.’’

‘‘आप ने ऊपर जा कर नहीं देखा?’’ असलम ने पूछा.

‘‘जा रही थी, लेकिन सीढि़यों के दरवाजे की दूसरी ओर से कुंडी बंद थी, इसलिए जा नहीं सकी. मैं ने कई आवाजें दीं. दूसरी ओर से कोई जवाब नहीं मिला. मुझे लगता है, कोई गड़बड़ हो गई है?’’ रुखसाना ने भर्राई आवाज में कहा.

‘‘आप परेशान मत होइए भाभीजान. चलिए मैं देखता हूं.’’ कह कर असलम अपनी पत्नी के साथ रुखसाना के घर की ओर चल पड़ा.

रुखसाना, उस का बेटा साजिद, असलम और उस की पत्नी ऊपर जाने के लिए सीढि़यों पर चढ़ने लगे. ऊपर जाने वाले दरवाजे की कुंडी दूसरी ओर से बंद थी, इसलिए सभी को वहीं रुकना पड़ा. असलम ने वहीं से कई आवाजें लगाईं, लेकिन दूसरी ओर से कोई जवाब नहीं मिला. सभी नीचे उतरने लगे तो एकाएक असलम की नजर बालकनी पर चली गई. उसे लगा, वहां चादर में लिपटा कुछ पड़ा है. उस ने उस ओर इशारा कर के कहा, ‘‘भाभीजान, उधर देखिए, वह क्या पड़ा है?’’

रुखसाना ने उधर देखा. उस का बेटा साजिद वहां भाग कर पहुंचा. उस में से खून बह रहा था. उस ने झुक कर चादर हटाई. इस के बाद एकदम से चीखा, ‘‘अम्मी. यह तो अब्बू हैं.’’

रुखसाना चीखी, ‘‘या खुदा यह क्या हो गया? जाबिर तुम्हारा यह हाल किस ने किया?’’

साजिद भी जोरजोर से रोने लगा था.

असलम ने अपने मोबाइल फोन से पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दी. फिर तो थोड़ी ही देर में पीसीआर की गाड़ी वहां पहुंच गई. पीसीआर पुलिस ने चादर हटाई तो उस में खून से सनी जाबिर की लाश लिपटी थी. पीसीआर पुलिस ने संबंधित थाना जीटीबी एन्क्लेव को घटना के बारे में सूचित किया. कुछ देर बाद थाना जीटीबी एन्क्लेव के थानाप्रभारी नरेंद्र सिंह चौहान और इंसपेक्टर एटीओ राकेश कुमार दोहाना पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचे.

घटनास्थल का मुआयना करने के दौरान ही पुलिस को खून सना एक चाकू मिला. पुलिस ने उसे कब्जे में ले लिया, क्योंकि हत्या उसी से की गई थी. पुलिस ने पूछताछ की तो रुखसाना ने वही बातें बताईं, जो वह असलम को पहले ही बता चुकी थी. स्थिति को देखते हुए पुलिस उस से ज्यादा पूछताछ नहीं कर सकी. लेकिन घटनास्थल के हालात से साफ था कि यह हत्या लूटपाट की वजह से नहीं हुई थी. क्योंकि घर का सारा सामान जस का तस था.

चूंकि मकान में आनेजाने का एक ही दरवाजा था, इसलिए पुलिस ने अंदाजा लगाया कि हत्या किसी जानकार ने की है या फिर इस में घर के किसी सदस्य का हाथ है. पुलिस परिवार वालों और रिश्तेदारों के नामपते तथा फोन नंबर ले रही थी, तभी क्राइम टीम और फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट ने आ कर अपनी काररवाई निपटा ली. इस के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया गया.

थाना जीटीबी एन्क्लेव में उसी दिन यानी 16 जून, 2013 को जाबिर की हत्या का यह मुकदमा अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज कर लिया गया. इस के बाद मामले के खुलासे के लिए डीसीपी वी.वी. चौधरी एवं स्पेशल सेल के डीसीपी संजीव कुमार यादव ने स्पेशल सेल के इंसपेक्टर अत्तर सिंह यादव के नेतृत्व में एक पुलिस टीम गठित की, जिस में सबइंसपेक्टर प्रवीण कुमार, संदीप कुमार, हेडकांस्टेबल संजीव, दिलावर, सुरेश और राजवीर को शामिल किया गया.

पुलिस को पता था कि जाबिर के मकान में आनेजाने के लिए एक ही दरवाजा था, इसलिए हत्यारा उसी दरवाजे से आया होगा और जाबिर की हत्या कर के उस की लाश को चादर में लपेट कर उसी दरवाजे से बाहर गया होगा. जाबिर का हत्यारा या तो जानपहचान का था या फिर घर का ही कोई सदस्य था.

पुलिस ने सभी नंबरों को सर्विलांस पर लगा दिया था. इसी के साथ मुखबिरों को भी सतर्क कर दिया था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला था कि जाबिर के शरीर पर चाकू के 32 वार किए गए थे. पुलिस जांच में क्या हुआ, यह जानने से पहले आइए थोड़ा जाबिर और रुखसाना के बारे में जान लें.

जाबिर और रुखसाना उत्तर प्रदेश के जिला बदायूं के गांव रमजानपुर के रहने वाले थे. जाबिर 30-32 साल का रहा होगा, तभी उसे 15 साल की रुखसाना से प्यार हो गया था. इस की वजह यह थी कि जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही वह फूल की तरह महक उठी थी, जिस पर भंवरे मंडराने लगे थे.

रुखसाना के घर से निकलते ही चाहने वाले उस के पीछे लग जाते थे. कोई उसे परी कहता तो कोई जन्नत की हूर तो कोई अप्सरा तो कोई दिल की रानी. वह फूल कर कुप्पा हो जाती. फिर तो जल्दी ही वह न जाने कितनों के दिलों की रानी बन गई. उस के ये प्रेमी उसे घुमानेफिराने और मौज कराने लगे. ये लड़के उसे ऐसे ही नहीं मौज करा रहे थे, वे उस के शरीर से अपनी एकएक पाई वसूल रहे थे.

रुखसाना को भी इस में मजा आ रहा था. धीरेधीरे वह इस की आदी हो गई. हालत यह हो गई कि जब तक वह किसी लड़के से शारीरिक संबंध न बना लेती, उस का मन बेचैन रहता. उस के ऐसे ही यारों में एक जाबिर भी था. जाबिर उस से उम्र में बड़ा जरूर था, लेकिन शारीरिक संबंधों की आदी बन चुकी रुखसाना के लिए अब उम्र के कोई मायने नहीं रह गए थे.

जाबिर भी उसी मोहल्ले में रहता था, जिस मोहल्ले में रुखसाना रहती थी. वह नौशे मियां का बेटा था. जाबिर अन्य लड़कों से थोड़ा अलग था. दरअसल वह उस के दिल का राजा बनना चाहता था. रुखसाना को वह अपनी बीवी बनाना चाहता था. लेकिन लाख कोशिशों के बाद रुखसाना इस के लिए तैयार नहीं थी. इस की वजह यह थी कि वह उम्र में उस से काफी बड़ा था. रुखसाना का कहना था कि मौजमस्ती की बात दूसरी है और बीवी बन कर रहने की बात दूसरी.

पत्नी के लिए पिता के खून से रंगे हाथ – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला एटा की कोतवाली देहात के गांव नगला समल में रहता था रुकुमपाल. शहर के नजदीक और सड़क के किनारे बसा होने की वजह से गांव के लोग खुश और संपन्न थे. रुकुमपाल के पास खेती की जमीन ठीकठाक थी और वह मेहनती भी था, इसलिए गांव के हिसाब से उस के परिवार की गिनती खुशहाल परिवारों में होती थी. हंसीखुशी के साथ जिंदगी गुजार रही थी कि एक दिन अचानक रुकुमपाल की पत्नी श्यामश्री की मौत हो गई.

श्यामश्री की मौत हुई थी तो बेटी आशा 6 साल की थी और बेटा शीलेश 4 साल का. छोटेछोटे बच्चों को संभालना मुश्किल था, इसलिए घर वाले ही नहीं, रिश्तेदार भी उस की दूसरी शादी कराना चाहते थे. लेकिन रुकुमपाल ने शादी से तो मना किया ही, खुद को संभाला और बच्चों को भी संभाल लिया.

पत्नी की मौत के बाद बच्चों को मां रामरखी के भरोसे छोड़ कर रुकुमपाल परिवार और जिंदगी को पटरी पर लाने की कोशिश करने लगा था. शादी से उस ने मना ही कर दिया था, इसलिए दोनों बच्चों को बाप के साथसाथ वह मां का भी प्यार दे रहा था. इस में उसे परेशानी तो हो रही थी लेकिन बच्चों के लिए वह इस परेशानी को झेल रहा था. क्योंकि वह बच्चों के लिए सौतेली मां नहीं लाना चाहता था.

समय जितना जालिम होता है, उतना ही दयालु भी होता है. समय के साथ बड़ेबड़े जख्म भर जाते हैं. रुकुमपाल की जिंदगी भी सामान्य हो चली थी. बच्चे भी मां को भूल कर अपनीअपनी जिंदगी संवारने में लग गए थे.

आशा पढ़लिख कर शादी लायक हो गई तो रुकुमपाल ने एटा के ही गांव नगला बेल के रहने वाले विनोद कुमार के साथ उस का विवाह कर दिया था. विनोद वन विभाग में नौकरी करता था. नौकरी की वजह से वह एटा में रहता था, इसलिए आशा भी उस के साथ एटा में ही रहने लगी थी.

रुकुमपाल बेटे को पढ़ाना चाहता था, लेकिन शीलेश इंटर से ज्यादा नहीं पढ़ सका. पढ़ाई छोड़ कर वह दिल्ली चला गया और किसी फैक्ट्री में नौकरी करने लगा. हालांकि रुकुमपाल चाहता था कि शीलेश गांव में ही रहे, क्योंकि उस के पास जमीन ठीकठाक थी. लेकिन शीलेश को जो आजादी दिल्ली में मिल रही थी, शायद वह गांव में नहीं मिल सकती थी, इसलिए उस ने रुकुमपाल से साफ कह दिया था कि वह जहां भी है, वहीं ठीक है.

पत्नी की मौत के बाद रुकुमपाल ने अपना पूरा जीवन यह सोच कर बच्चों के लिए होम कर दिया था कि यही बच्चे बुढ़ापे का सहारा बनेंगे. बेटी तो ससुराल चली गई थी. बचा शीलेश, वह उस की कल्पना से अलग ही स्वभाव का लग रहा था. उस का सोचना था कि पिता ने अपना फर्ज पूरा किया है, उस के लिए कोई कुर्बानी नहीं दी है.

अपनी इसी सोच की वजह से कभीकभी शीलेष रुकुमपाल को ऐसी बात कह देता था कि उस के मन को गहरी ठेस पहुंचती थी. लेकिन उस के लिए शीलेश अभी भी बच्चा ही था. इसलिए वह उस की इन बातों को दिल से नहीं लेता था.

रुकुमपाल को अपने फर्ज पूरे करने थे, इसलिए वह शीलेश की शादी के लिए जीजान से जुट गया. आखिर उस की तलाश रंग लाई और एटा के ही गांव निछौली कलां के रहने वाले सोबरन की बेटी ममता उसे पसंद आ गई. फिर उस ने धूमधाम से उस की शादी कर दी.

सोबरन की 4 बेटियों में ममता सब से छोटी थी. उस का एक ही भाई था किशोरी. अंतिम बेटी होने की वजह से सोबरन ने ममता की शादी खूब धूमधाम से की थी.

ममता के आने से सब से ज्यादा खुशी दादी रामरखी को हुई थी. क्योंकि घर में दुलहन के आ जाने से उसे एक सहारा मिल गया था. कुछ दिन गांव में रह कर ममता शीलेश के साथ दिल्ली चली गई थी.

ममता गर्भवती हुई तो शीलेश उसे गांव छोड़ गया. कुछ दिनों बाद ममता ने एक बेटी को जन्म दिया. बेटी पैदा होने के बाद भी ममता दिल्ली नहीं गई. अब महीने, 2 महीने में शीलेश ही पत्नी और बिटिया से मिलने गांव आ जाता था.

बेटी 2 साल की हुई तो ममता एक बार फिर गर्भवती हुई. इस बार उस ने बेटे को जन्म दिया. ममता दिल्ली जाना तो नहीं चाहती थी, लेकिन रुकुमपाल और रामरखी ने उसे जबरदस्ती दिल्ली भेज दिया. दिल्ली आने के बाद कुछ दिनों में ममता को लगा कि पति की कमाई से घर ठीक से नहीं चल सकता तो वह गांव लौट आई और रुकुमपाल से साफ कह दिया कि अब वह दिल्ली नहीं जाएगी.

ममता मजबूरी में गांव में रह रही थी, क्योंकि एक तो पति की कमाई में गुजर नहीं होता था, दूसरे उस के छोटे से कमरे में बच्चों के साथ उसे घुटन सी होती थी. गांव में दिन तो कामधाम में कट जाता था, लेकिन पति के बिना रात काटना मुश्किल हो जाता था. जिस्म की भूख और अकेलापन काटने को दौड़ता था.

ममता ने शीलेश से कई बार कहा कि वह आ कर गांव में रहे, लेकिन शीलेश को शहर का जो चस्का लग चुका था, वह उसे गांव वापस नहीं आने दे रहा था. पति की इस उपेक्षा से नाराज हो कर ममता मायके चली गई थी. लेकिन अब मायके में तो जिंदगी कट नहीं सकती थी, इसलिए मजबूर हो कर उसे ससुराल आना पड़ा. फिर मांबाप ने भी कह दिया था कि वह जैसी भी ससुराल में है, उसे उसी में खुश रहना चाहिए.

ममता को ससुराल में कोई भी परेशानी नहीं थी. परेशानी थी तो सिर्फ यह कि पति का साथ नहीं मिल पा रहा था. इस परेशानी का भी वह हल ढूंढने लगी. तभी एक दिन वह मायके जा रही थी तो एटा में उस की मुलाकात हरीश से हो गई.

हरीश और ममता एकदूसरे को शादी के पहले से ही जानते थे. हरीश उस के गांव के पास का ही रहने वाला था. दोनों एकदूसरे को तब से पसंद करते थे, जब साथसाथ पढ़ रहे थे. बसअड्डे पर हरीश मिला तो ममता ने पूछा, ‘‘हरीश गांव चल रहे हो क्या?’’

‘‘अब शाम हो गई है तो गांव ही जाऊंगा न. लगता है, तुम्हें देख कर लग रहा है कि तुम भी मायके जा रही हो?’’ हरीश ने पूछा.

‘‘हां, मायके ही जा रही हूं. अब तुम मिल गए हो तो कोई परेशानी नहीं होगी. बाकी बच्चों को ले कर आनेजाने में बड़ी परेशानी होती है.’’

‘‘किसी को साथ ले लिया करो.’’ हरीश ने कहा तो ममता तुनक कर बोली, ‘‘किसे साथ ले लूं. वह तो दिल्ली में रहते हैं. घर में बूढ़े ससुर हैं, उन्हें खेती के कामों से ही फुरसत नहीं है.’’

‘‘तुम्हारे पति तुम से इतनी दूर दिल्ली में रहते हैं और तुम यहां गांव में रहती हो?’’

‘‘क्या करूं, उन के साथ वहां छोटी सी कोठरी में मेरा दम घुटता है, इसलिए मैं यहां गांव में रहती हूं.’’

‘‘तो उन से कहो, वो भी यहां गांव में आ कर रहें. पति के बिना तुम अकेली कैसे रह लेती हो?’’ हरीश ने कहा तो ममता निराश हो कर बोली, ‘‘उन्हें गांव में अच्छा ही नहीं लगता.’’

‘‘लगता है, वहां उन्हें कोई और मिल गई है. तुम यहां उन के नाम की माला जप रही हो और वह वहां मौज कर रहे हैं.’’

‘‘भई वह मर्द हैं, कुछ भी कर सकते हैं.’’

‘‘तो औरतों को किस ने मना किया है. वह वहां मौज कर रहे हैं, तुम यहां मौज करो. तुम्हारे लिए मर्दों की कमी है क्या.’’

वैसे तो हरीश ने यह बात मजाक में कही थी, लेकिन ममता ने इसे गंभीरता से ले लिया. उस ने कहा, ‘‘मैं 2 बच्चों की मां हूं, मुझे कौन पूछेगा?’’

‘‘तुम हाथ बढ़ाओ,सब से पहले मैं ही पकड़ूंगा.’’ हरीश ने हंसते हुए कहा, ‘‘ममता, मैं तुम्हें तब से प्यार करता हूं, जब हम साथ में पढ़ते थे. लेकिन मैं अपने मन की बात कह पाता, उस के पहले ही तुम किसी और की हो गई.’’

जब ममता ने भी उस से मन की बात कह दी तो दोनों चोरीछिपे मिलने ही नहीं लगे बल्कि संबंध भी बना लिए. ममता मौका निकाल कर हरीश से मिलने लगी. हरीश से संबंध बनने के बाद ममता को शीलेश की कोई परवाह नहीं रह गई.