हत्यारी लाश : खुला कत्ल का राज

फुरकान अपने दादा इरफान के सामने आ कर खड़ा हुआ तो उस की आंखें चमक रही थीं, सांसों से शराब की बदबू आ  रही थी और चेहरे पर कुटिल मुसकराहट तैर रही थी. फालिज के शिकार बूढ़े इरफान को फुरकान की आदतें अच्छी नहीं लगती थीं. उन्होंने उसे न जाने कितनी बार समझाया था, लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ था.

बूढ़े अपाहिज इरफान का फुरकान के अलावा अपना कोई नहीं था. इसलिए वह फुरकान की हर बात मानने को मजबूर थे. इरफान काफी दौलतमंद आदमी थे. उन्होंने जो कमाया था अक्लमंदी से काम लेते हुए उसे रियल एस्टेट में लगाया था. उन्हें हर महीने कई मकानों और दुकानों का मोटा किराया मिल रहा था. करोड़ों रुपए की प्रौपर्टी लाखों रुपए महीना दे रही थी. रहने के लिए शानदार बंगला, कई गाडि़यां और नौकर थे.

इरफान के बेटे इमरान और बहू की एक दुर्घटना में मौत हो गई थी. संयोग से उस दिन फुरकान अपने दादा के पास घर में रुक गया था. तब उस की उम्र 10-11 साल थी. इरफान ने किसी तरह बेटे बहू की मौत के गम को बरदाश्त किया. इमरान उन की एकलौती संतान थी. फुरकान चूंकि उन का एकलौता बेटा था. इसलिए लेदे कर फुरकान का ही उन का एकमात्र सहारा रह गया था. वह पोते की परवरिश करने लगे. उन्होंने उसे कभी मांबाप की कमी महसूस नहीं होने दी.

लेकिन इतना सब करने और अच्छी शिक्षा दिलाने के बावजूद फुरकान ने जवानी में गलत राह पकड़ ली. एक दिन इरफान के मैनेजर सलीम ने जब उन्हें बताया कि फुरकान साहब अय्याशी कर रहे हैं तो उन्हें यकीन नहीं हुआ. उन्होंने पूछा, ‘‘कैसी अय्याशी?’’

‘‘वह शराब पी कर लड़कियों के साथ घूमते हैं.’’ सलीम ने झिझकते हुए कहा.

यह ऐसी खबर थी जिस ने इरफान को तोड़ कर रख दिया था और जब उन्होंने खुद फुरकान को नशे में देखा तो यह सदमा बरदाश्त नहीं कर पाए और फालिज का शिकार हो गए. उन के शरीर का ऊपरी हिस्सा तो ठीक था, लेकिन निचला बिलकुल बेकार हो गया था.

इरफान खूबसूरती से सजे अपने कमरे में साफसुथरे बिस्तर पर लेटे रहते थे. एक नौकर हर वक्त उन की सेवा में लगा रहता था. उन्हीं के कमरे की दीवार में एक तिजोरी लगी थी, जिस में हमेशा लाखों रुपए नकद रखे रहते थे. इस के अलावा घर के सोनेचांदी के सारे गहने तथा लाखों रुपए के बांड भी उसी तिजोरी में रहते थे.

इरफान फुरकान को समझा ही रहे थे कि उन की बात अनसुनी करते हुए उस ने उन के हाथ से चाबी छीन ली और तिजोरी की ओर बढ़ा. बस उस के बाद फुरकान की ही नहीं, इरफान की भी हत्या हो गई थी.

दोपहर होतेहोते फुरकान और इरफान की हत्या को ले कर तरहतरह के अनुमान लगाए जा रहे थे. हर कोई यह जानने को उत्सुक था कि उन दादा पोते की हत्या किस ने की.

मैडिकल रिपोर्ट के अनुसार इरफान की मौत 11 बजे हुई थी. तो फुरकान की हत्या उस के 15 मिनट बाद. घर की नौकरानी का कहना था कि 11 बजे के करीब फुरकान अपने दादा के कमरे में गया था और अंदर से दरवाजा बंद कर लिया था.

15 मिनट बाद उस ने गोलियां चलने की आवाज सुनी तो बुरी तरह से घबरा गई. उस ने जोरजोर से दरवाजे पर दस्तक दी, जब अंदर से दरवाजा नहीं खुला तो उस ने निकट की पुलिस चौकी पर जा कर इस बात की सूचना दी. कुछ पुलिस वाले उसी समय उस के साथ आ गए.  दरवाजा तोड़ा गया तो कमरे में दादापोते की लाशें पड़ी थीं.

इरफान की लाश बिस्तर पर थी, फुरकान की लाश तिजोरी के पास पड़ी थी जबकि उस की पीठ पर गोलियां लगी थीं. तिजोरी खुली थी, जो पूरी तरह से खाली थी.  इरफान के हाथ में एक पिस्तौल फंसा था. उस का चैंबर खाली था. उसी पिस्तौल की गोलियां फुरकान के शरीर में धंसी थीं.

मैडिकल रिपोर्ट के अनुसार इरफान की मौत हार्ट अटैक से हुई थी. कमरे की खिड़की खुली थी. अनुमान लगाया गया कि कातिल उसी खिड़की से दाखिल हुआ था. फुरकान को गोलियां मार कर उस ने पिस्तौल पहले ही मर चुके इरफान के हाथ में फंसा दी थी. उस के बाद वह तिजोरी साफ कर के भाग गया था. अब पुलिस को पता लगाना था कि यह सब किस ने किया था?

उस घर में दादापोते के अलावा 2 अन्य लोग रहते थे. उन में एक घर की नौकरानी नसरीन थी तो दूसरा इरफान का मैनेजर सलीम. दोनों को ही कोठी में एकएक कमरा मिला हुआ था. पुलिस को शक था, कातिल उन्हीं दोनों में से एक हो सकता था.

मैनेजर सलीम के अनुसार एक दिन पहले फुरकान ने किसी बात को ले कर नसरीन को थप्पड़ मारा था. 2 दिन पहले उस ने नसरीन को कोठी के गेट पर किसी बाहरी आदमी से बातें करते देखा था. सलीम ने बताया कि उस समय उस ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया था. लेकिन घटना के बाद उसे उस पर शक हो रहा है. शायद उसी ने हत्यारे को रास्ता दिखाया होगा.

पुलिस की पूछताछ में नसरीन ने कहा, ‘‘जिस से मैं बात कर रही थी. वह मेरा शौहर था. वह कोई कामधाम नहीं करता. इधरउधर से जुगाड़ कर के किसी तरह जिंदगी गुजार रहा है.’’

‘‘तुम्हीं ने इरफान के कमरे की खिड़की खोली थी, जिस से वह अंदर आया था.’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘नहीं, मैं ने कुछ नहीं किया. मैं उस के लिए खिड़की क्यों खोलूंगी?’’

‘‘बकवास मत करो. सचसच बताओ.’’ थानाप्रभारी ने डांटा, ‘‘वरना हम दूसरे ढंग से सच्चाई उगलवाएंगे. सचसच बता, क्या हुआ था?’’

नसरीन रोते हुए बोली, ‘‘साहब, हम गरीबी से तंग आ चुके हैं. मेरे पति ने मुझ से कहा कि मैं उसे साहब के कमरे के बारे में बताऊं.’’

‘‘तुम्हें पता था कि इरफान साहब की तिजोरी में क्याक्या रखा है?’’

‘‘जी साहब, मुझे पता था.’’ नसरीन बोली, ‘‘साहब के कहने पर मैं ने कई बार तिजोरी खोली थी.’’

‘‘क्यों?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘साहब को जब किसी चीज की जरूरत होती थी तो वह मुझ से कह देते थे.’’

‘‘और तुम ने साहब के भरोसे का यह बदला दिया कि फुरकान को जान से मरवा दिया.’’

‘‘मैं नहीं जानती थी कि वह खून भी कर देगा.’’ नसरीन ने रोते हुए कहा, ‘‘मैं ने कहा था कि तिजोरी की चाबियां साहब के तकिए के नीचे होती हैं. तुम उन चाबियों से तिजोरी खोल कर जरूरत भर के पैसे निकाल कर खिड़की के रास्ते भाग जाना.’’

‘‘और उस ने भागने से पहले फुरकान को गोलियां मार दीं. शायद फुरकान ने उसे चोरी करते हुए देख लिया था. तू ने अपने शौहर को यह भी बताया था कि फुरकान अपने पास पिस्तौल रखता है?’’

‘‘मुझे इस बारे में कुछ भी पता नहीं था,’’ नसरीन ने कहा, ‘‘मैं ने तो सोचा था कि वह पैसे ले कर भाग जाएगा. लेकिन उस ने एक खून कर दिया.’’

‘‘अब यह बता, इस समय वह कहां होगा?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘घर में ही होगा और कहां जाएगा?’’ नसरीन ने बताया.

‘‘चल हमारे साथ, बता कहां है तेरा घर?’’ थानाप्रभारी ने कहा.

नसरीन थानाप्रभारी को ले कर उस के घर पहुंची तो उस का शौहर कहीं भागने के लिए अपना सामान समेट रहा था. पुलिस ने उसे तुरंत पकड़ लिया. इरफान की तिजोरी से चोरी गए रुपए और बांड उस के  पास से बरामद हो गए.’’

नसरीन के शौहर सफदर को थाने लाया गया. थाने में उस ने हंगामा मचा दिया. रोरो कर कहने लगा कि उस ने कोई खून नहीं किया है.

‘‘तो फिर खून किस ने किया है. किस ने फुरकान को गोलियां मारी हैं?’’ थानाप्रभारी ने उसे जोर से डांटा.

‘‘मैं नहीं जानता साहब. मैं जब कमरे में पहुंचा था तो फुरकान साहब तिजोरी के पास पड़े थे. उन की पीठ से खून बह रहा था. तिजोरी खुली पड़ी थी.’’ सफदर ने रोते हुए कहा.

‘‘और तुम तिजोरी का सारा माल ले कर भाग निकले?’’

‘‘जी साहब, मैं ने सिर्फ यही गुनाह किया है. मैं ने चोरी की है, इस कत्ल से मेरा कोई संबंध नहीं है.’’

‘‘तो फिर उसे किस ने मारा?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘मैं क्या बताऊं साहब,’’ सफदर ने जोरजोर से रोते हुए कहा. ‘‘मैं ने सिर्फ चोरी की है. हत्या से मेरा कोई मतलब नहीं है.’’

पुलिस को सफदर की बात पर यकीन नहीं हो रहा था. खूनी वही हो सकता था क्योंकि उस कमरे में उस के अलावा और कोई गया ही नहीं था. नकद और बांड भी उसी के पास से बरामद हुए थे. पुलिस ने उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

अदालत के लिए भी यह सीधासादा मामला था. सब कुछ बिलकुल स्पष्ट था. सफदर की बीवी नसरीन ने उस के कमरे में आने के लिए खिड़की खोल दी थी. वह कमरे में आया और बूढ़े अपाहिज इरफान से जबरदस्ती तिजोरी की चाबी ली और पिस्तौल कब्जे में ले लिया. उस ने तिजोरी खोली, तभी फुरकान कमरे में पहुंच गया.

सफदर ने बौखलाहट में उसे गोलियां मार दीं और पिस्तौल इरफान के हाथ में फंसा कर सारा माल ले कर भाग गया. उसे अंदाजा नहीं था कि इरफान की भी मौत हो चुकी है.

लेकिन यह मुकदमा उस वक्त दिलचस्प बन गया, जब मैडिकल बोर्ड के डाक्टर ने अपना बयान दिया. उस ने अदालत को बताया, ‘‘जनाबे आली, सफदर नाम का आदमी चोरी का तो मुजरिम है, लेकिन कत्ल का नहीं है.’’

‘‘बहुत खूब. तो फिर यह कत्ल किस ने किया?’’ सरकारी वकील ने पूछा.

‘‘खुद मरने वाले इरफान साहब यानी फुरकान के दादा ने.’’

‘‘क्या मतलब?’’ सरकारी वकील चौंका, ‘‘यह कैसे हो सकता है? आप को मालूम है इरफान साहब की मौत कब हुई थी?’’

‘‘जी जनाब, ठीक 11 बजे उन्हें दिल का तेज दौरा पड़ा था, जिस में वह बच नहीं सके.’’

‘‘और फुरकान को गोलियां किस वक्त मारी गईं?’’

‘‘11 बज कर 15 मिनट पर.’’

‘‘यानी आप कहना चाहते हैं कि इरफान साहब ने अपनी मौत के 15 मिनट बाद अपने पोते का खून कर दिया?’’

‘‘जी जनाब, बिलकुल ऐसा ही हुआ है.’’

जज ने कहा, ‘‘क्या आप को अंदाजा है कि आप अदालत में अपना बयान दर्ज करा रहे हैं?’’

‘‘जी जनाब.’’ डाक्टर ने कहा, ‘‘मैं यह जानता हूं और अपनी इस बात को सिद्ध करना चाहता हूं.’’

अदालत ने डाक्टर को आगे बोलने की इजाजत दे दी तो डाक्टर ने कहा, ‘‘जनाबे आली, पूरी कहानी इस तरह बनती है कि फुरकान अपने बूढ़े और अपाहिज दादा के कमरे में दाखिल होता है और उन से पैसों की मांग करता है. इरफान साहब उस की हरकतों से वैसे ही परेशान थे, इसलिए वह पैसे देने से मना कर देते हैं.’’

डाक्टर ने आगे कहा, ‘‘तब फुरकान उन से तिजोरी की चाबी छीन लेता है और तिजोरी के पास जा कर तिजोरी खोलने लगता है. इरफान साहब को उस की इस हरकत पर इतना गुस्सा आता है कि वह अपने पास रखी पिस्तौल उठा लेते हैं. तभी उन्हें दिमागी दबाव और सदमे की वजह से दिल का खतरनाक दौरा पड़ता है और उन की मौत हो जाती है.’’

‘‘और अपनी मौत के बाद वह फुरकान का खून कर देते हैं.’’ सरकारी वकील ने व्यंग्य से कहा.

‘‘जी जनाब, यह खून 15 मिनट बाद हुआ है.’’ डाक्टर ने कहा, ‘‘उस बीच फुरकान तिजोरी में रखी चीजों का निरीक्षण करता रहा होगा, क्योंकि वह जानता था कि उस कमरे में कोई और नहीं आ सकता. 15 मिनट बाद मृत इरफान साहब ने गोलियां चला कर अपने पोते फुरकान का खून कर दिया. इत्तेफाक से उसी समय बदकिस्मती से सफदर खुली हुई खिड़की से अंदर आया. उस के लिए मैदान साफ था. वह तिजोरी से नकद और बांड ले कर भाग गया.’’

‘‘सवाल फिर वही है कि मौत के बाद खून किस तरह किया गया?’’ सरकारी वकील ने कहा.

‘‘एक कीमियाई अमल जनाबेआली.’’ डाक्टर ने कहा. ‘‘जो मौत के बाद होने लगता है. जिस दिन घटना हुई थी, उस दिन तेज गरमी थी. 11 बजे से पहले लाइट भी चली गई थी. इसलिए जब इरफान साहब की मौत हुई तो तापमान अधिक होने के कारण यह अमल बहुत तेजी से हो गया.’’

‘‘इस अमल में मरने वाले की हड्डियां सिकुड़ने लगती हैं. चूंकि पिस्तौल पहले से ही इरफान साहब के हाथ में दबी थी, इसलिए सिकुड़ती हुई उंगलियों ने पिस्तौल का ट्रिगर दबा दिया. निशाना चूंकि लगा हुआ था, इसलिए गोलियां सीधी फुरकान की पीठ में घुस गईं और वह मर गया. इस घटना की पूरी कहानी यही है.’’

मामला एकदम उलट गया था. डाक्टर की रिपोर्ट और बयान ने पूरा मामला उलट दिया था. नसरीन के शौहर सफदर को सिर्फ चोरी के जुर्म में एक साल की सजा सुनाई गई क्योंकि कत्ल के इल्जाम में उस की बेगुनाही साबित हो चुकी थी.

अदालत में बयान देने वाला डाक्टर अपने फ्लैट में इरफान के मैनेजर सलीम के सामने बैठा कह रहा था, ‘‘देखा, मेरा कमाल.’’

‘‘सच डाक्टर, इसे कहते हैं किस्मत की मेहरबानी.’’ सलीम ने बगल में रखे ब्रीफकेस की ओर इशारा कर के कहा. ‘‘इस में इरफान साहब के करोड़ों रुपए व गहने मौजूद हैं. आप की जानकारी सचमुच मेरे बड़े काम आई.’’

‘‘अब तुम मुझे पूरी बात बताओ.’’ डाक्टर ने कहा.

सलीम मुसकरा कर बोला, ‘‘कोई खास बात नहीं है. मुझे नसरीन ने बता दिया था कि तिजोरी में क्याक्या रखा है. उस ने जानबूझ कर खिड़की खुली छोड़ दी थी. खिड़की उस ने अपने शौहर सफदर के लिए खोली थी, लेकिन उस का फायदा उठाया मैं ने.

‘‘बहरहाल उस दिन मैं खिड़की के रास्ते कमरे में दाखिल होने वाला था कि मुझे फुरकान आता दिखाई दे गया. मैं रुक गया. तभी फुरकान ने इरफान से जबरदस्ती चाबी छीनी और तिजोरी की ओर बढ़ा. इधर फुरकान ने तिजोरी खोली और उधर इरफान साहब ने पिस्तौल निकाल कर उसे निशाने पर ले लिया. यह सारा घटनाक्रम मेरी आंखों के सामने हो रहा था. मैं ने इरफान साहब को दिल का तेज दौरा पड़ते और मरते अपनी आंखों से देखा. लेकिन मेरा खयाल था कि वह सिर्फ बेहोश हुए थे.

‘‘बहरहाल, यह मेरे लिए बहुत बढि़या मौका था. मैं तुरंत कमरे में दाखिल हुआ. उस वक्त फुरकान तिजोरी खोले उस में रखी दौलत को देख रहा था. मैं ने धीरे से इरफान साहब की अंगुलियों से पिस्तौल निकाली और फुरकान को गोलियां मार कर पिस्तौल फिर इरफान साहब की अंगुलियों में फंसा दी. आप की बताई जानकारी मेरे काम आ गई. इस के बाद मैं ने बांड और कुछ रुपए छोड़ कर बाकी सब अपने ब्रीफकेस में रखा और खामोशी से खिड़की से बाहर आ गया. अब यह सब कुछ हमारा है. ईमानदारी से हम इसे आधाआधा बांट लेंगे, लेकिन एक बात मेरी समझ में नहीं आई.’’

‘‘वो क्या?’’ डाक्टर ने पूछा.

‘‘जब यह साबित हो चुका था कि फुरकान का खून नसरीन के शौहर सफदर ने किया है, तो फिर आप ने इस कीमियाई अमल की कहानी द्वारा उसे बचा क्यों लिया?’’

‘‘इसलिए कि मैं एक डाक्टर हूं और डाक्टर मसीहा होता है, जल्लाद नहीं. शुरूशुरू में तो मैं भी तुम्हारे साथ था लेकिन जब मैं ने नसरीन और सफदर की आंखों में आंसू देखे तो मुझ से बरदाश्त नहीं हुआ और उसे मैडिकल ग्राउंड पर बचा लिया. उस के बाद मैं असली कहानी की तलाश में था कि आखिर हुआ क्या था. खुदा का शुक्र है कि तुम ने अपनी जुबान से अपना जुर्म कबूल कर लिया.’’

सलीम ने गहरी सांस ले कर कहा, ‘‘तो अब आप मुझ से खेल खेल रहे हैं. लेकिन आप के पास क्या सुबूत है कि मैं ने आप से यह सब बातें कहीं थीं?’’

‘‘सुबूत यह है कि तुम्हारी कही हर बात मैं ने रिकौर्ड कर ली है. यही नहीं, दूसरे कमरे में बैठे इंसपेक्टर ने भी तुम्हारी एकएक बात सुन ली है.’’ डाक्टर ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘याद रखो, बुरे काम का नतीजा हमेशा बुरा ही होता है, अच्छा नहीं.’’

असली पुलिस पर भारी नकली पुलिस – भाग 3

इमरान के पास परवीन का नंबर था, उस ने उसे फोन कर दिया. थोड़ी देर में परवीन थाना ग्वालटोली आ पहुंची. उस समय भी वह पुलिस सबइंसपेक्टर की वरदी में थी. उस ने थानाप्रभारी आर.एन. शर्मा के सामने जा कर दोनों हाथ जोड़ कर ‘नमस्ते’ किया तो वह उसे हैरानी से देखते रह गए. वह पुलिस की वरदी में थी. उस के कंधे पर सबइंसपेक्टर के 2 स्टार चमक रहे थे.

उन्होंने बड़े प्यार से पूछा, ‘‘मैडम, तुम किस थाने में तैनात हो?’’

‘‘फिलहाल तो मैं डीआरपी लाइन में हूं.’’ परवीन बड़ी ही शिष्टता से बोली.

‘‘आरआई कौन है?’’ थानाप्रभारी श्री शर्मा ने पूछा तो परवीन बगले झांकने लगी. साफ था, उसे पता नहीं था कि आरआई कौन है. जब वह आरआई का नाम नहीं बता सकी तो थानाप्रभारी ने कहा, ‘‘अपना आईकार्ड दिखाओ.’’

परवीन के पास आईकार्ड होता तब तो दिखाती. उस ने जैसे ही कहा, ‘‘सर, आईकार्ड तो नहीं है.’’ थानाप्रभारी ने थोड़ी तेज आवाज में कहा, ‘‘सचसच बताओ, तुम कौन हो? तुम नकली पुलिस वाली हो न?’’

परवीन ने सिर झुका लिया. थानाप्रभारी आर.एन. शर्मा ने कहा, ‘‘मैं तो उसी समय समझ गया था कि तुम नकली पुलिस वाली हो, जब तुम ने दोनों हाथ जोड़ कर मुझ से नमस्ते किया था. तुम्हें पता होना चाहिए कि पुलिस विभाग में अपने सीनियर अफसर को हाथ जोड़ कर ‘नमस्ते’ करने के बजाय सैल्यूट किया जाता है.

तुम्हारे कंधे पर लगे स्टार भी बता रहे हैं कि स्टार लगाना भी नहीं आता. क्योंकि तुम ने कहीं टे्रनिंग तो ली नहीं है. तुम्हारे कंधे पर जो स्टार लगे हैं, उन की नोक से नोक मिल रही है, जबकि कोई भी पुलिस वाला स्टार लगाता है तो उस की स्टार की नोक दूसरे स्टार की 2 नोक के बीच होती है.’’

परवीन ने देखा कि उस की पोल खुल गई है तो वह जोरजोर से रोने लगी. रोते हुए ही उस ने स्वीकार कर लिया कि वह नकली पुलिस वाली है.

इस के बाद थानाप्रभारी ने लौकअप में बंद गुरुदेव सिंह को बाहर निकलवाया. पूछताछ में उस ने बताया कि वह भी सिपाही है और थाना महू में तैनात है. यहां वह डीआरपी लाइन में रहता है. रोजाना बस से महू अपनी ड्यूटी पर जाता है.

इस के बाद थानाप्रभारी आर.एन. शर्मा ने थाना महू फोन कर के गुरुदेव सिंह के बारे में जानकारी ली तो वहां से बताया गया कि वह उन के यहां सिपाही के रूप में तैनात है. फिर डीआरपी लाइन फोन कर के आरआई से भी उस के बारे में पूछा गया. आरआई ने भी बताया कि वह लाइन में रहता है.

पूछताछ में परवीन ने मान लिया कि उस ने गुरुदेव के खिलाफ फरजी मामला दर्ज कराया था तो थानाप्रभारी ने उसे छोड़ दिया. अब परवीन रोते हुए अपने किए की माफी मांग रही थी.

पूछताछ में उस ने कहा, ‘‘मैं यह वरदी इसलिए पहनती हूं कि कोई मुझ से छेड़छाड़ न करे. इस के अलावा मेरे पिता चाहते थे कि मैं पुलिस अफसर बनूं. मैं ने कोशिश भी की, लेकिन सफल नहीं हुई. पिता का सपना पूरा करने के लिए मैं नकली दरोगा बन गई. मेरे नकली दरोगा होने की जानकारी मेरे अब्बूअम्मी को नहीं है. अगर उन्हें असलियत पता चल गई तो वे जीते जी मर जाएंगे. इसलिए साहब आप उन्हें यह बात मत बताइएगा.’’

पूछताछ के बाद थानाप्रभारी आर.एन. शर्मा ने लोक सेवक प्रतिरूपण अधिनियम की धारा 177 के तहत परवीन के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद उस की गिरफ्तारी की सूचना उस के पिता असलम खान को दी गई.

उज्जैन से इंदौर 53 किलोमीटर दूर है. थाना ग्वालटोली पहुंचने पर जब उसे पता चला कि परवीन नकली दरोगा बन कर सब को धोखा दे रही थी तो वह सन्न रह गया. वह सिर थाम कर बैठ गया. असलम खान बेटी की नादानी से बहुत दुखी हुआ. वह थानाप्रभारी से उस की गलती की माफी मांग कर उसे छोड़ने की विनती करने लगा.

चूंकि परवीन के खिलाफ कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं था, इसलिए थानाप्रभारी ने उसे थाने से ही जमानत दे दी. सिपाही गुरुदेव सिंह ने भी उस के खिलाफ मामला दर्ज नहीं कराया था. क्योंकि वह खुद ही छेड़छाड़ के मामले में फंस रहा था.

लेकिन अगले दिन परवीन के बारे में अखबार में छपा तो लोग पुलिस पर अंगुली उठाने लगे. लोगों का कहना था कि पहले पुलिस को परवीन के बारे में जांच करनी चाहिए थी. क्योंकि इंदौर में आए दिन नकली पुलिस बन कर उन महिलाओं को ठगा जा रहा है, जो गहने पहन कर घर से निकलती हैं.

मौका देख कर नकली पुलिस के गिरोह के सदस्य महिला को रोक कर कहते हैं कि आजकल शहर में लूटपाट की घटनाएं बहुत हो रही हैं. इसलिए आप अपने गहने उतार कर पर्स या रूमाल में रख लीजिए. इस के बाद एक पुलिस वाला महिला के गहने उतरवाता है. उसी दौरान उस का साथी महिला को बातों में उलझा लेता है तो गहने उतरवाने वाला सिपाही महिला की नजर बचा कर गहने की जगह कंकड़ पत्थर बांध कर महिला को पकड़ा देता है.

अब तक पुलिस ऐसे किसी भी नकली पुलिस के गिरोह को नहीं पकड़ सकी थी. इस के बावजूद पुलिस ने हाथ आई उस नकली दरोगा के बारे में जांच किए बगैर छोड़ दिया, इसलिए लोगों में गुस्सा था.

होहल्ला हुआ तो थाना ग्वालटोली पुलिस ने परवीन के बारे में थोड़ीबहुत जांच की. परवीन ने पुलिस को बताया था कि वह एक महीने से सबइंसपेक्टर की वरदी पहन रही है. लेकिन उस की वरदी तैयार करने वाले दरजी का कहना है कि वह एक साल से उस के यहां वरदी सिलवा रही है.

वहीं चिकन की दुकान चलाने वाले नियाज ने पुलिस को बताया कि परवीन उस के यहां से चिकन ले जाती थी. पुलिस का रौब दिखाते हुए वह उस के पूरे पैसे नहीं देती थी. पुलिस की वरदी में होने की वजह से वह बस वालों का किराया नहीं देती थी. कथा लिखे जाने तक पुलिस को कहीं से ऐसी कोई शिकायत नहीं मिली थी कि उस ने किसी को ठगा हो या जबरन वसूली की हो.

शायद यही वजह है कि पुलिस कह रही है कि परवीन के खिलाफ न कोई रिपोर्ट दर्ज है, न उस का कोई पुराना आपराधिक रिकौर्ड है. किसी ने यह भी नहीं कहा है कि उस ने जबरदस्ती वसूली की है. इसलिए उसे थाने से जमानत दे दी गई है. बहरहाल पुलिस अभी उस के बारे में पता कर रही है. जांच पूरी होने के बाद ही उस के खिलाफ आरोपपत्र अदालत में पेश किया जाएगा.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

लूट फार एडवेंचर – भाग 3

आगे की योजना भी चौंकाने वाली

“बैंक में घुसते ही सब से पहले मैं ऐक्शन में आऊंगा. रेसलिंग में सीखे हुए दांव का प्रयोग करते हुए मैं पहले से अलसाए हुए ड्यूटी गार्ड को जमीन पर गिरा दूंगा. जमीन पर गिरते ही मैं गार्ड की राइफल अपने कब्जे में ले लूंगा और उस का लौक खोल कर उसी पर तान दूंगा. इस दौरान मैं अपने ताकतवर पैरों के पंजे से उस का गला दबा दूंगा ताकि वह चिल्ला न सके.

“इतना काम सफल होते ही मगन ऐक्शन में आ जाएगा और बैंक मैनेजर के केबिन में घुस कर उसे 2-4 चांटे मार कर अपने नियंत्रण में कर लेगा. 2 अहम व्यक्तियों को निस्तेज होते देख बचे हुए लोग डर जाएंगे और हमारी कठपुतली की तरह काम करने लगेंगे.

“जैसे ही मगन मैनेजर को अपने कंट्रोल में ले लेगा, तभी छगन का ऐक्शन शुरू होगा. उस के पास एयरगन होगी. इस एयरगन को लहराते हुए वह सभी कर्मचारियों को अपनी अपनी सीट छोडऩे का आदेश इस निर्देश के साथ देगा कि कर्मचारी अपने मोबाइल अपने सामने वाली टेबल पर ही रख दें.

“छगन यह धमकी भी देगा कि यदि उस के आदेश को नहीं माना गया तो गार्ड को उसी की रायफल से शूट कर दिया जाएगा. बैंक में मौजूद सभी ग्राहकों तथा स्टाफ को बैंक मैनेजर के केबिन में बंद कर दिया जाएगा. मैं गार्ड के गले पर लगातार दबाव बढ़ाता रहूंगा. गार्ड की छटपटाहट सभी को भयभीत रखेगी. पब्लिक का यह डर ही हमारी जीत का आधार होगा.

“चूंकि बैंक बंद होने का समय हो रहा होगा, अत: हम उस के चैनल को बंद कर देंगे तो भी कोई शक नहीं करेगा.

“इसी समय मगन बैंक मैनेजर को स्ट्रांगरूम ले जाया जाएगा और उसे एक ही बार में खोलने की धमकी देगा. दूसरा प्रयास मतलब गार्ड की मौत. इन स्पष्ट शब्दों का प्रयोग मैनेजर से स्ट्रांगरूम खुलवाते समय करना होगा. अगर उस ने पासवर्ड डालने में चालाकी की तो सीधे हैड औफिस में अलार्म बजेगा जो हमारी मौत का अलार्म होगा. मतलब हर चीज पूरी सावधानी और ऐहतियात के साथ होनी चाहिए.” जगन ने प्लान विस्तार के साथ समझाया.

“सही है,” छगन बोला.

“स्ट्रांगरूम में घुसते ही हम अपने साथ जो बैग ले कर जाएंगे, उन में से एक बैग उपलब्ध नोटों से भर लेंगे. यहां पर यह ध्यान रखना कि हमें ज्यादा से ज्यादा बड़े नोट ही लेने हैं. साथ ही इस बात पर भी कंसन्ट्रेट करना है कि ये सारी प्रक्रिया जल्दी से जल्दी समाप्त हो. क्योंकि हो सकता है कि स्ट्रांगरूम का दरवाजा किसी टाइमर से औपरेटेड हो और एक निश्चित समय के बाद सेफ्टी अलार्म बजता हो.” जगन ने सब को समझाया.

“बिलकुल ठीक. जो सावधानियां हमें रखनी हैं उन के बारे में पहले से ही सचेत रहें तो बेहतर है.” मगन जगन का समर्थन करते हुए बोला.

“हमारा काम जैसे ही पूरा होगा, गार्ड समेत सभी लोगों को मैनेजर के केबिन में बंद करना है. उस केबिन की चाबी हमें बैंक में ही मिलेगी. सभी को बंद करने के बाद बैंक में लगे चैनल गेट को बंद करना है और उस में वह ताला लगाना है, जो हम लोग साथ ले कर जाएंगे.” जगन ने ताला साथ ले जाने का कारण स्पष्ट किया.

“जब हम सब कर्मचारियों को मैनेजर के केबिन में बंद कर ही रहे हैं तो दूसरा ताला लगाने का क्या औचित्य?” छगन ने पूछा.

वारदात के बाद की भी कर ली प्लानिंग

“हमारा यह काम पुलिस व अन्य लोगों को भ्रमित करेगा. इतना तो निश्चित है कि हमारे निकलने बाद कोई न कोई सेफ्टी अलार्म का बटन अवश्य दबाएगा. चूंकि सभी लोग मैनेजर के केबिन में बंद होंगे, अत: बाहर चैनल से देखने पर ताला दिखाई देगा. और इस कारण से सब यही समझेंगे कि लूज कांटेक्ट के कारण अलार्म बज गया है.

“संभव है कि कुछ लोग मैनेजर के केबिन में से सहायता के लिए चिल्लाएं और लोग उन की आवाज को सुन भी लें, मगर चैनल पर ताला लगा होने के कारण वह आगे ही नहीं आ पाएंगे. बाहरी लोगों की भीड़ कभी भी पुलिस के आए बिना ताला तोडऩे का साहस नहीं करेगी, क्योंकि ऐसा करने पर ताले की सतह पर मौजूद हमारे फिंगरप्रिंट मिट जाने का डर होगा.

“पुलिस के आने के बाद भी ताला तोडऩे और मौके का मुआयना, बयान कैमरे की रिकौर्डिंग चैक करने में कम से कम एक घंटा तो लग ही जाएगा. इतने समय में हम बाकी 2 बैंकों की घटनाओं को भी अंजाम तक पहुंचा चुके होंगे.” जगन ने पूरी योजना का खुलासा किया.

“बहुत बढिय़ा जगन. परफेक्ट प्लानिंग एकदम परफेक्ट. सारा कारनामा टाइम मैनेजमेंट पर ही निर्भर करेगा.” मगन बोला.

“दूसरी सावधानी यह रखनी है कि हमें लूट के लिए ऐसे बैंकों का चयन करना है, जहां पर कम से कम 20 लाख का मिनिमम बैलेंस तो रहता ही हो. रहमत की बीवी को मायके जाने में अभी 25-30 दिनों का समय तो है ही. तब तक हमें ऐसी ब्रांच खोज कर रखनी ही है. मेरे विचार से 20 लाख रुपया कोई सा भी बिजनैस शुरू करने के लिए पर्याप्त है.” जगन बोला.

“हां, बिजनैस कि शुरुआत के लिए इतना पैसा काफी होगा,” छगन बोला.

“लेकिन हम पैसों का बंटवारा करेंगे कैसे?” मगन ने पूछा.

“देखो, इन पैसों का बंटवारा ऐसे नहीं होगा. हम 3 लोग 3 बैंक लूटेंगे और 3 ही बैग होंगे. हम 3 पर्चियों पर नाम लिख कर किसी बच्चे से परची उठवा कर क्रम निर्धारित कर लेंगे. जिस की किस्मत में जितना होगा, उसे उतना मिल जाएगा.” जगन बोला.

“हां, यह भी ठीक रहेगा. वैसे भी लूट की राशि का पता तो हमें न्यूजपेपर और चैनल से चल ही जायगा,” मगन बोला.

“इन तीनों घटनाओं का अंत बड़ा ही दिलचस्प और चौंकाने वाला होगा और लोग जब तक इस घटनाक्रम को भुलाने वाले होंगे, तब तक हम कोई और धमाका अवश्य करेंगे. मगर यह धमाका क्या होगा, यह अभी से निर्धारित नहीं किया जा सकता.

“जैसा कि मैं ने पहले भी कहा है घटना करने से कुछ समय पहले हम अपनी मौजूदा मोबाइल को सिम समेत बंद कर के किसी गहरे पानी में फेंक देंगे.

“घटना के बाद हम तीनों अलग अलग शहर में अपनीअपनी सुविधा के अनुसार चलें जाएंगे. चूंकि हमें एकदूसरे के पते, ठिकाने व मोबाइल नंबर्स के बारे में कुछ भी पता नहीं होगा, अत: यदि किसी कारण से कोई एक पकड़ में आ भी जाता है तो बचे हुए 2 तो सुरक्षित रहेंगे ही न. वैसे प्लान इतना सेफ है कि हम में से कोई भी तब तक नहीं पकड़ा जाएगा, जब तक कि हम खुद आगे हो कर गलती न करें.

हमें इस लूट का हिसाब किताब अवश्य ही करना है. अत: घटना वाली तारीख से ही ठीक 7 साल बाद उसी तारीख को हमें शहर के प्रसिद्ध गेलार्ड कैफे में शाम को 7 बजे मिलना है. यदि किसी को कुछ कमीबेशी रह गई होगी तो उस की क्षतिपूर्ति हम लोग आपस में मिल कर कर लेंगे और इस सफलता का एक ग्रैंड सेलिब्रेशन तो उस समय होगा ही.” जगन ने घटना के बाद का पूरा प्लान कारणों के साथ समझा दिया.

“तो क्या इन 7 सालों तक हम एकदूसरे के संपर्क में बिलकुल भी नहीं रहेंगे?” छगन ने आश्चर्य से पूछा.

“हां, बिलकुल भी नहीं.” जगन शब्दों पर जोर देता हुआ बोला, “मुझे विश्वास है 7 सालों के बाद जब हम मिलेंगे तो हमारा व्यक्तित्व आज के व्यक्तित्व से एक दम जुदा होगा.”

“मैं भी ऐसा विश्वास करता हूं. नया व्यक्तित्व, नया परिचय बस नाम वही पुराना.” मगन भी उत्साहित हो कर बोला.

एक लाश ने लिया प्रतिशोध – भाग 3

स्लेड जानता था कि स्पेल्डिंग उस की बात पर ध्यान नहीं देगा, इसलिए उस ने जेब से वह रस्सी निकाल कर अपने हाथ स्पेल्डिंग की सीट के पीछे की ओर बढ़ा दिए.

‘‘नहीं, मैं यह नहीं कर सकता. मेरा फर्ज अपने मुवक्किल का हित देखना है. मैं मजबूर हूं. तुम अच्छी तरह जानते हो कि एक वकील की हैसियत से मेरा फर्ज क्या है?’’ स्पेल्डिंग ने कहा.

‘‘हां, जानता हूं. मगर मैं सिर्फ 3 महीने की मोहलत चाहता हूं.’’ स्लेड ने कहा.

‘‘नहीं, मैं यह नहीं कर सकता. मेरे खयाल से इस मसले पर बात करने से कोई फायदा नहीं है. बेहतर होगा कि मैं आप की कार से उतर कर पैदल ही चला जाऊं.’’

कह कर स्पेल्डिंग ने कार के दरवाजे के हैंडिल पर जैसे ही हाथ रखा, तभी स्लेड ने रस्सी का फंदा स्पेल्डिंग की गरदन में डाल दिया. स्पेल्डिंग कुछ समझ पाता, उस के पहले ही गले में फंदा कस गया. उस का दम घुटने लगा.

भारतीय ठगों की उस किताब में जो गला घोंटने का तरीका बताया गया था, वह कितना अचूक था. स्लेड की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. उस की योजना का पहला चरण कितनी आसानी से पूरा हो गया था.  अब स्पेल्डिंग की लाश को ठिकाने लगाना था. इस के लिए उस ने पहले से ही योजना बना रखी थी.

उस ने स्पेल्डिंग की लाश को सीट पर लिटा कर कार स्टार्ट की और तेज रफ्तार से समुद्र की ओर चल पड़ा. ज्वार आने में अब पौन घंटे बाकी थे. जबकि स्लेड को समुद्र तक पहुंचने के लिए उस बर्फ और तेज हवा में 10 मील की दूरी तय करनी थी.

उस खौफनाक रात में कार भागी जा रही थी. सड़क पर कहीं भी कोई नजर नहीं आ रहा था. रास्ता बिलकुल साफ था. स्लेड को रास्ते का पता था. उस सड़क पर वह न जाने कितनी बार आयागया था.

आखिर स्लेड समुद्र के किनारे पहुंच गया. अब उस के आगे कार नहीं जा सकती थी. चारों ओर गहरा अंधकार छाया हुआ था. तीखी हवा चल रही थी. बर्फ के गाले उड़ रहे थे. सड़क से 2 मील दूर काला सागर लहरा रहा था. उस की लहरों की गूंज यहां तक रही थी.

स्लेड कार से नीचे उतरा और लाश को खींच कर एकदम गेट के पास कर लिया. लाश की जेबों में लोहे के टुकड़े भर कर उस की कमर से जंजीर लपेट दी. यह काम उस ने इसलिए किया था, जिस से उस के वजन से लाश समुद्र की तलहटी में बैठ जाए और उसे मछलियां खा जाएं.

अब स्लेड को लाश उठा कर समुद्र के किनारे तक ले जाना था. निश्चय ही यह एक मुश्किल काम था. वह कोई हट्टाकट्टा आदमी नहीं था. दुबलापतला साधारण शरीर वाला था. उस की जवानी भी उतार पर थी. एक क्षण के लिए उसे लगा कि शायद वह लाश को समुद्र तक नहीं ले जा पाएगा.

लेकिन वह हिम्मत हारने वालों में नहीं था. उस ने लाश को उठा कर कंधे पर लाद लिया. लाश काफी भारी थी. फिर भी स्लेड तेजी से चल पड़ा. उस ने सुविधा के लिए लाश की बांहें गले में तो पांवों को कमर में लपेट लिया. अभी लाश की लचक कायम थी. एक तरह से वह स्पेल्डिंग की लाश को पीठ पर लादे था. लाश की बांहें स्लेड की गरदन में लिपटी थीं तो पैर कमर को कसे हुए थे.

लाश के वजन से स्लेड के कदम लड़खड़ा रहे थे. फिर भी वह हिम्मत कर के बढ़ता रहा. अब ज्वार आने में ज्यादा देर नहीं थी. वह हांफ रहा था, लेकिन रुक कर वक्त बिलकुल बरबाद नहीं करना चाहता था. उसे ज्वार आने के पहले ही पानी तक पहुंच कर लाश को फेंक देना था.

उस की आंखों में चमक आ गई. आखिर वह अपनी मंजिल पाने वाला था. अंधकार में उसे एक उजली सी लकीर नजर आई. वह लहरों के झाग की थी.

स्लेड के पांव समुद्र के पानी में पड़े तो उस की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. वह थोड़ा और आगे बढ़ा. पानी उस के घुटनों तक आ गया तो वह रुक गया और उस ने राहत की सांस ली. अब उसे लाश को कंधे से उतार कर पानी में लुढ़का देना था. वह लाश को पानी में लुढ़काने के लिए झुका. लेकिन यह क्या? लाश उस के कंधे से गिरी ही नहीं. उस ने लाश की बाहों को खींचा. लेकिन वे टस से मस न हुईं.

वे अकड़ चुकी थीं. उन का लचीलापन खत्म हो चुका था. उस ने जोर लगा कर कमर को कसे टांगों को खींचा. लेकिन टांगें भी टस से मस न हुईं. वे भी अकड़ गई थीं. यह देख कर वह डर के मारे पागल हो गया. पूरी ताकत लगा कर लाश की गिरफ्त से छूटने की कोशिश की. लेकिन लाश की गिरफ्त जरा भी ढीली नहीं पड़ी.

ऐसा लग रहा था, जैसे लाश ने एक जिंदा शक्तिशाली युवक की तरह उसे पकड़ लिया है. वह लाश की पकड़ को सारी कोशिशों के बावजूद नहीं छुड़ा सका. अब वह क्या करे?

तभी ज्वार आ गया. बड़ी बड़ी लहरें चिंघाड़ती हुई आने लगीं. अब वहां से भागने के अलावा स्लेड के पास कोई दूसरा उपाय नहीं था. उस ने बौखला कर एक बार फिर लाश से पिंड छुड़ाने की कोशिश की. पर कोई फायदा नहीं हुआ. लाश के हाथपांव उसे संड़सी की तरह जकड़े हुए थे.

निढाल और निराश हो कर स्लेड ने पानी से निकलने की कोशिश की. लेकिन अब देर हो चुकी थी. लहरों का ऐसा रेला आया कि वह संभल नहीं सका और उस के धक्के से गिर पड़ा. स्लेड ने उठने की कोशिश की, लेकिन उठ नहीं सका. उस का दम घुटने लगा, फिर बेहोश हो गया. लाश उसे उसी तरह दबोचे रही.

ज्वार उतर गया तो समुद्र तट पर 2 लाशें एकदूसरे से लिपटी हुई मिलीं. उन की शिनाख्त होते देर नहीं लगी. उन में एक लाश स्लेड की थी और दूसरी स्पेल्डिंग की. दोनों लाशों को उसी स्थिति में पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया. डा. मैथ्यू शव परीक्षण गृह में आए तो लाशों को इस तरह लिपटी देख कर हैरान रह गए.

उन्होंने पोस्टमार्टम रिपोर्ट में लिखा, ‘स्लेड ने स्पेल्डिंग को गरदन दबा कर मार दिया था. स्पेल्डिंग की लाश को ठिकाने लगाने की गरज से कंधे पर उठा कर उस के हाथ गरदन में तो पैर कमर में लपेट लिए थे. स्लेड लाश समुद्र में फेंकने गया था. लेकिन लाश की पकड़ से न छूट पाने की वजह से वह पानी में गिर गया. सांस की नली में पानी भर जाने से वह भी मर गया.’

बदले की आग में 6 लोगों की हत्या

गलत आदतों से हुई सजा ए मौत – भाग 3

नौकरानी के गले में घुसेड़ दिया था कांच

आवाज सुन कर रेनू कमरे में आ गई. अम्माजी को निर्जीव बिस्तर पर पड़े देख उस ने तरुण से कहा, “ये तुम ने क्या किया?”

इस पर तरुण ने रेनू को दबोच लिया और मारपीट करते हुए टूटे हुए कांच से उस के शरीर पर वार कर उसे गंभीर रूप से घायल कर दिया. उस समय तरुण के सिर पर खून सवार हो चुका था. तरुण ने रेनू की हत्या करने के लिए उस के गले में शीशा फंसा दिया. मगर रेनू गिड़गिड़ाई और पेट में पल रहे बच्चे की दुहाई दी. इस पर तरुण ने रेनू को धमकी देते हुए कहा, “मेरा नाम अपनी जुबान पर हरगिज न लाना वरना तेरा भी यही अंजाम होगा.”

अपनी जान बचाने के लिए रेनू ने उस के कहे अनुसार हामी भर दी.

कमला देवी की हत्या तथा नकदी व जेवर लूटने के साथ ही नौकरानी रेनू शर्मा को गंभीर रूप से घायल कर तरुण गोयल शाम 4 बजे घर से निकल गया. अम्माजी की हत्या व अपने साथ हुई मारपीट से रेनू बदहवास हो कर मूर्छित हो गई थी. कुछ देर बाद जब उसे होश आया तो वह उठी और रोते हुए पड़ोसी भाटियाजी को घटना की जानकारी दी.

इस पर शाम 5 बजे भाटियाजी ने फोन कर के शोभाजी को जानकारी देते हुए बताया, “आप लोगों के घर कोई घटना हो गई है, आप तुरंत घर चले आएं.”

इसी बीच किसी ने थाना उत्तर पुलिस को घटना की जानकारी दे दी. हत्या व लूट की सूचना मिलते ही तत्कालीन एसएचओ संजीव कुमार दुबे मय फोर्स के घटनास्थल पर पंहुच गए थे. तब तक वहां भीड़ एकत्र हो चुकी थी. मामले की गंभीरता को देखते हुए उन्होंने उच्चाधिकारियों को घटना से अवगत करा दिया था.

घर पर घटना होने की जानकारी मिलते ही परिजन घबरा गए और मूवी बीच में ही छोड़ कर दौड़ेदौड़े घर आ गए. घर पर पुलिस व भीड़ देखते ही सभी के पसीने छूट गए. वे समझ गए कोई बड़ी घटना हो गई है. परिजन जब अम्माजी के कमरे में पहुंचे तो वहां का दृश्य देखते ही सिर पकड़ कर बैठ गए. इस बीच पुलिस ने गंभीर रूप से घायल नौकरानी रेनू से पूछताछ कर उसे उपचार के लिए अस्पताल भिजवा दिया.

घटना से इलाके में मची सनसनी

इसी बीच एसएसपी आशीष तिवारी, तत्कालीन एसपी (सिटी) मुकेश चंद्र मिश्र व अन्य पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर पहुंच गए. एसएसपी आशीष तिवारी ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. उन्होंने फोरैंसिक टीम को भी मौके पर बुला लिया. टीम ने मौके से जरूरी साक्ष्य जुटाए.

उन्होंने देखा कि कमला देवी की मौत हो चुकी थी. कमरे में सामान बिखरा पड़ा था. अलमारी खुली पड़ी थी. वाश बेसिन का शीशा टूटा पड़ा था. मृतका के गले, छाती व पेट पर चोट के निशान थे. बैड के नीचे खून से सना तकिया पड़ा था. जरूरी काररवाई निपटाने के बाद कमला देवी के शव को मोर्चरी भिजवा दिया.

इस संबंध में अर्पित जिंदल ने थाना उत्तर में रिपोर्ट दर्ज कराई. रिपोर्ट में कहा कि वह अपनी मां शोभा जिंदल, चचेरा भाई चंदन अग्रवाल, चचेरी बहन आस्था, आकांक्षा मित्तल, ताई सरिता अग्रवाल, भांजा अर्नव गोयल, अंशुमान मित्तल के साथ 3 से 6 बजे का शो देखने गए थे, तभी यह घटना घटी.

उन्होंने बताया कि घर में रखी नकदी करीब 70-75 हजार रुपए, सोनेे के जेवरात, चांदी के सिक्के व नोटों की गड्डी जो दादी संभाल कर रखती थीं, को कोई अज्ञात बदमाश घर में घुस कर दादी की हत्या कर लूट कर ले गया है, साथ ही नौकरानी को घायल कर गया.

शहर के व्यस्ततम और तंग गलियों वाले आर्यनगर में दिनदहाड़े दिल दहलाने वाली घटना से उस समय सनसनी फैल गई थी. आर्य नगर निवासी घटना को ले कर तरहतरह की अटकलें लगा रहे थे. कुछ का कहना था कि इस घटना में नौकरानी रेनू शर्मा का ही हाथ है. उसे आज ही घर व अम्माजी की देखरेख के लिए परिजन छोड़ गए थे. उन के जाने के बाद ही घटना हो गई.

रेनू ने अनजान के लिए घर का दरवाजा क्यों खोला? जितने मुंह उतनी बातें. गुस्साए लोगों को एसएसपी आशीष तिवारी ने भरोसा दिया कि इस जघन्य घटना का शीघ्र खुलासा कर आरोपियों को गिरफ्तार कर उन्हें कड़ी सजा दिलाई जाएगी. पुलिस की 5 टीमें जुटीं जांच में

मुकदमा दर्ज होने के बाद एसएसपी आशीष तिवारी ने इस सनसनीखेज घटना के खुलासे के लिए एसओजी के साथ ही 3 थानों की 5 टीमें गठित कीं. पुलिस ने बदमाशों तक पहुंचने के लिए क्षेत्र में लगे सीसीटीवी कैमरे खंगालने के साथ ही आसपास के लोगों से घटना के बारे में पूछताछ की.

बताते चलें कि कोयला कारोबारी लोकेश जिंदल घटना से 15 दिन पहले व्यापार के सिलसिले में गुवाहाटी गए हुए थे. घर पर उन की पत्नी शोभा व बेटा अर्पित व मां कमला देवी थीं. अर्पित अपनी मां, चाचा व बुआ के परिवार के साथ मूवी देखने चला गया था. नौकरानी रेनू उन के यहां स्थाई रूप से काम नहीं करती थी. नौकरानी को जरूरत पडऩे पर बुलाया जाता था. बीचबीच में वह अपनी मरजी से आतीजाती थी. शुक्रवार को पिक्चर देखने जा रहे थे, इसलिए कमला देवी की देखभाल के लिए उसे बुला लिया था.

ऐसा लगता था कि वारदात को अंजाम देने वाले बदमाशों को पहले से घर की पूरी स्थिति का पता था. पुलिस समझ गई थी कि घटना को अंजाम परिचितों द्वारा ही दिया गया है. उन्हें इस बात की जानकारी थी कि परिजन पिक्चर देखने गए हैं. सीसीटीवी खंगालने के बाद भी पुलिस के हाथ खाली थे. पुलिस को अगर उम्मीद थी तो नौकरानी रेनू शर्मा से ही थी. वही मौके की प्रत्यक्षदर्शी थी. घटना के तुरंत बाद पुलिस को पूछताछ में रेनू ने 2 बदमाशों द्वारा घटना किए जाने की बात बताई थी.

पुलिस ने अस्पताल पहुंच कर घायल रेनू से पूछताछ शुरू की. उस समय तक रेनू पूरी तरह से सामान्य हो चुकी थी. रेनू ने पुलिस को बताया कि परिजनों के जाने के बाद लगभग सवा 2 बजे दरवाजे पर लगी घंटी किसी ने बजाई. जब उस ने दरवाजा खोला तो 2 लोग खड़े थे. अर्पित बाबूजी को पूछते हुए दोनों अंदर आ गए और अम्माजी के कमरे में जा कर उन के पास बैठ कर बातें करने लगे.”

रेनू ने बताया कि वह युवकों को नहीं जानती थी. अम्माजी ने मुझ से उन के लिए चाय बनाने को कहा. इस से मुझे लगा कि वे लोग घर वालों के परिचित हैं. मैं किचन में जा कर चाय बनाने लगी.

                                                                                                                                            क्रमशः

असली पुलिस पर भारी नकली पुलिस – भाग 2

एक दिन परवीन अपने 2 साथियों के साथ सड़क पर वाहनों की चैकिंग कर रही थी, तभी एक मोटरसाइकिल पर 3 युवक आते दिखाई दिए. परवीन ने उन्हें रुकने का इशारा  किया. लेकिन उन युवकों ने मोटरसाइकिल जरा भी धीमी नहीं की.

परवीन को समझते देर नहीं लगी कि इन का रुकने का इरादा नहीं है. वह तुरंत होशियार हो गई और मोटरसाइकिल जैसे ही उस के नजदीक आई, उस ने ऐसी लात मारी कि तीनों सवारियों सहित मोटरसाइकिल गिर गई.

तीनों युवक उठ कर खड़े हुए तो मोटरसाइकिल चला रहे युवक का कौलर पकड़ कर परवीन ने कहा, ‘‘मैं हाथ दे रही थी तो तुझे दिखाई नहीं दे रहा था?’’

‘‘मैडम, मैं थाना महू का सिपाही हूं. विश्वास न हो तो आप फोन कर के पूछ लें. मेरा नाम गुरुदेव सिंह चहल है. आज मैं छुट्टी पर था, इसलिए दोस्तों के साथ घूमने निकला था. यहां मैं डीआरपी लाइन में रहता हूं.’’ गुरुदेव सिंह ने सफाई देते हुए कहा.

युवक ने बताया कि वह सिपाही है तो परवीन ने उसे छोड़ने के बजाए तड़ातड़ 2 तमाचे लगा कर कहा, ‘‘पुलिस वाला हो कर भी कानून तोड़ता है. याद रखना, आज के बाद फिर कभी कानून से खिलवाड़ करते दिखाई दिए तो सीधे हवालात में डाल दूंगी.’’

अपने गालों को सहलाते हुए गुरुदेव सिंह बोला, ‘‘मैडम, आप को पता चल गया कि मैं पुलिस वाला हूं, फिर भी आप ने मुझे मारा. यह आप ने अच्छा नहीं किया.’’

‘‘एक तो कानून तोड़ता है, ऊपर से आंख दिखाता है. अब चुपचाप चला जा, वरना थाने ले चलूंगी. तब पता चलेगा, कानून तोड़ने का नतीजा क्या होता है?’’ परवीन गुस्से में बोली.

गुरुदेव सिंह ने मोटरसाइकिल उठाई और साथियों के साथ चला गया. लेकिन इस के बाद जब भी परवीन से उस का सामना होता, वह गुस्से से उसे इस तरह घूरता, मानो मौका मिलने पर बदला जरूर लेगा. परवीन भी उसे खा जाने वाली निगाहों से घूरती. ऐसे में ही 27 मार्च, 2014 को एक बार फिर गुरुदेव सिंह और परवीन का आमनासामना हो गया.

परवीन बेसबौल का बल्ला ले कर गुरुदेव सिंह को मारने के लिए आगे बढ़ी तो खुद के बचाव के लिए गुरुदेव सिंह भागा. लेकिन वह कुछ कदम ही भागा था कि ठोकर लगने से गिर पड़ा, जिस से उस की कलाई में मोच आ गई. परवीन पीछे लगी थी, इसलिए चोटमोच की परवाह किए बगैर वह जल्दी से उठ कर फिर भागा. परवीन उस के पीछे लगी रही.

गुरुदेव भाग कर डीआरपी लाइन स्थित अपने क्वार्टर में घुस गया. परवीन ने उस के क्वार्टर के सामने खूब हंगामा किया. लेकिन वहां वह उस का कुछ कर नहीं सकी, क्योंकि शोर सुन कर वहां तमाम पुलिस वाले आ गए थे, जो बीचबचाव के लिए आ गए थे.

29 मार्च की रात करीब 12 बजे इंदौर रेलवे स्टेशन पर एक बार फिर गुरुदेव का आमना सामना परवीन से हो गया. उस समय गुरुदेव के घर वाले भी उस के साथ थे. उन्होंने परवीन को समझाना चाहा कि एक ही विभाग में नौकरी करते हुए उन्हें आपस में लड़ना नहीं चाहिए.

पहले तो परवीन चुपचाप उन की बातें सुनती रही. लेकिन जैसे ही गुरुदेव की मां ने कहा कि वह उन के बेटे को बेकार में परेशान कर रही है तो परवीन भड़क उठी. उस ने चीखते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हारे बेटे को परेशान कर रही हूं? अभी तक तो कुछ नहीं किया. अब देखो इसे किस तरह परेशान करती हूं.’’

इतना कह कर परवीन ने अपने साथियों से कहा, ‘‘इसे थाने ले चलो. आज इसे इस की औकात बता ही देती हूं.’’

परवीन के साथियों ने गुरुदेव को पकड़ कर कार में बैठाया और थाना ग्वालटोली की ओर चल पड़े. कार के पीछेपीछे परवीन भी अपनी एक्टिवा स्कूटर से चल पड़ी थी. थाने पहुंच कर परवीन गुरुदेव सिंह को धकियाते हुए अंदर ले गई और ड्यूटी पर तैनात मुंशी से बोली, ‘‘इस के खिलाफ रिपोर्ट लिखो. यह मेरे साथ छेड़छाड़ करता है. जब भी मुझे देखता है, सीटी मारता है.’’

परवीन सब इंसपेक्टर की वरदी में थी, इसलिए उसे परिचय देने की जरूरत नहीं थी. गुरुदेव सिंह ने अपने बारे में बताया भी कि वह सिपाही है, फिर भी उस के खिलाफ छेड़छाड़ की रिपोर्ट लिख कर मुंशी ने इस बात की जानकारी ड्यूटी पर तैनात एएसआई श्री मेढा को दी. चूंकि नए कानून के हिसाब से मामला गंभीर था, इसलिए उन्होंने गुरुदेव सिंह को महिला सबइंसपेक्टर से छेड़छाड़ के आरोप में लौकअप में डाल दिया.

जबकि गुरुदेव सिंह का कहना था कि पहले इस महिला सबइंसपेक्टर के बारे मे पता लगाएं. क्योंकि इस का कहना है कि यह डीआरपी लाइन में रहती है. वहीं वह भी रहता है. लेकिन उस ने इसे वहां कभी देखा नहीं है. गुरुदेव परवीन के बारे में पता लगाने को लाख कहता रहा, लेकिन एएसआई मेढा ने उस की बात पर ध्यान नहीं दिया, क्योंकि यह एक महिला सबइंसपेक्टर से छेड़छाड़ का मामला था.

फिर उस ने एक अन्य सबइंसपेक्टर कुशवाह से मेढा की बात भी कराई थी, जबकि मेढा को पता नहीं था कि सबइंसपेक्टर कुशवाह कौन हैं और किस थाने में तैनात हैं.

गुरुदेव सिंह को लौकअप में डलवा कर परवीन अपने साथियों के साथ कार से चली गई. उस ने अपना स्कूटर थाने में ही यह कह कर छोड़ दिया था कि इसे वह सुबह किसी से मंगवा लेगी.

अगले दिन यानी 30 मार्च को सुबह उस ने थाना ग्वालटोली पुलिस को फोन किया कि वह अपने साथी इमरान कुरैशी को भेज रही है. उसे उस का स्कूटर दे दिया जाए.

इमरान कुरैशी के थाने पहुंचने तक थानाप्रभारी आर.एन. शर्मा थाने आ गए थे. पुलिस वालों ने रात की घटना के बारे में उन से कहा कि सबइंसपेक्टर शबाना परवीन का साथी इमरान कुरैशी उन का एक्टिवा स्कूटर लेने आया है तो उन्होंने उसे औफिस में भेजने को कहा. इमरान उन के सामने पहुंचा तो उस का हुलिया देख कर उन्होंने पूछा, ‘‘तुम पुलिस वाले हो?’’

‘‘नहीं साहब, मैं पुलिस वाला नहीं हूं. मैं तो चाट का ठेला लगाता हूं. चूंकि मैं परवीनजी का परिचित हूं इसलिए अपना स्कूटर लेने के लिए भेज दिया है.’’

इस के बाद वहां खड़े सिपाही से थानाप्रभारी ने कहा, ‘‘परवीन को बुला लो कि वह आ कर अपना स्कूटर खुद ले जाए. उस का स्कूटर किसी दूसरे को नहीं दिया जाएगा.’’

लूट फार एडवेंचर – भाग 2

जगन की योजना पर चौंक उठे मगन और छगन

“पहले पूरी योजना सुन लो फिर अपने सुझाव या आपत्ति देना.” जगन चिढ़ कर बोला.

“हांहां, यह ठीक है. योजना बताओ.” मगन हस्तक्षेप करते हुए बोला.

“इस इंप्रैशन से मैं एक डुप्लीकेट चाबी बनवाऊंगा और उस से व्हीकल को औपरेट करके देखूंगा. अगर ओके रही तो ठीक वरना तब तक बनवाता रहूंगा जब तक कि परफेक्ट न बन जाए.” जगन बोला.

“वह तो कोई मुश्किल काम नहीं है क्योंकि तुम्हारे पास फोटो भी है. कंप्यूटर से डुप्लीकेट चाबी आसानी से बन जाएगी.”

मगन बोला, “जिस दिन इस डुप्लीकेट चाबी से यह गाड़ी स्टार्ट हो जाएगी उसी दिन मैं अपना कमरा छोड़ कर दूसरी कालोनी में शिफ्ट हो जाऊंगा. दरअसल, मैं ने एक कमरा देख भी लिया है. उस का मालिक अनपढ़ है. उसे किसी भी तरह का कोई आइडेंटिटी प्रूफ की जरूरत भी नहीं है.” जगन ने रहस्योद्घाटन किया.

“चलो, यह भी सही है. गाड़ी स्टार्ट भी हो गई और तुम्हारी आइडेंटिटी भी गुप्त ही रही. अब आगे कैसे बढ़ेंगे? बैंक तो दिन में खुलती हैं और दिन में तो गाड़ी रहमत के पास रहेगी. तब हम इस का इस्तेमाल कैसे कर पाएंगे?” छगन ने पूछा.

“चाबी बनाना और गाड़ी स्टार्ट करना करना इस योजना का पहला चरण है,” जगन बोला, “रहमत अपनी पत्नी के साथ रहता है. उस के परिवार के बाकी लोग दूसरे शहर में रहते हैं. इस योजना का दूसरा चरण तब शुरू होगा, जब रहमत की गर्भवती बीवी अपनी पहली डिलीवरी के लिए अपने मायके जाएगी. शायद एक महीने बाद ही जाने वाली है. उस समय हम किसी रात को जा कर उस की गाड़ी का साइलेंसर चोक कर देंगे.

“गाड़ी जब स्टार्ट नहीं होगी तो रहमत इंजन तक चैक करेगा, मगर साइलेंसर चैक करने के बारे में सोचेगा भी नहीं. वह अपनी इस खराबी की सूचना अपने अधिकारियों को देगा और वह अधिकारी भी अपने उच्चाधिकारियों को सूचित करेगा और उन के निर्देशों के बाद ही गाड़ी मैकेनिक के पास जाएगी.

“इस पूरी प्रक्रिया में पूरा एक दिन लग ही जाएगा. बस वही दिन हमारी योजना को अंजाम देने का दिन होगा. क्योंकि इस दशा में रहमत को दूसरी गाड़ी पर सहायक के रूप में जाना होगा,” जगन बोला.

“लेकिन साइलैंसर को जाम कैसे किया जाएगा?” छगन ने पूछा.

“बहुत आसान है. एक कपड़े की लगभग 2 मीटर की लंबी चिंदी हम किसी पतली छड़ की सहायता से साइलेंसर के अंदर डाल देंगे और ऊपर से ट्रांसपेरेंट टेप से उस का मुंह बंद कर देंगे. जब रहमत औफिस चला जाएगा तब हम साइलैंसर से कपड़ा निकाल कर गाड़ी स्टार्ट कर सकेंगे,” जगन बोला.

“यहां तक तो समझ में आ रहा है कि कैश केयरिंग वैन होने के कारण इसे बैंक के सामने पार्क करने से कोई रोकेगा नहीं और लूट के बाद हम आसानी से कैश ले कर निकल भी सकेंगे,” छगन जगन की योजना का मर्म पकड़ते हुए बोला.

“हमारी योजना के मुताबिक काम होता है तो रनिंग काफी ज्यादा होगी. ऐसे में फ्यूल पर्याप्त मात्रा में होना जरूरी है.” मगन ने अपनी चिंता व्यक्त की.

“प्रत्येक रविवार की शाम को सभी मोबाइल वैन के फ्यूल टैंक फुल करवाए जाते है. अत: हम अपनी योजना को सिर्फ सोमवार के दिन ही क्रियान्वित करेंगे.” जगन ने योजना का अहम हिस्सा समझाया.

“जगन यहां तक तो योजना ठीक ही है. शक की संभावना न्यूनतम है और काफी हद तक सुरक्षित भी. आगे की काररवाई को अंजाम कैसे देंगे?” छगन ने पूछा.

“आगे की योजना की सफलता पूरी तौर पर हमारी स्पोट्र्समैन स्किल और प्रजेंस औफ माइंड पर निर्भर करेगी. ज्यादातर बैंकों में रखे सुरक्षा गार्ड वास्तव में एक खानापूर्ति ही हैं. कई बैंक तो सिर्फ एक सुरक्षा गार्ड के भरोसे ही रहती है. हमें बैंकों की इस कमी का ही फायदा उठाना पड़ेगा और वह भी तब जब बैंक बंद होने वाली हो. ऐसे समय में ग्राहकों की संख्या काफी कम होती है और स्टाफ भी अंतिम समय में कुछ लापरवाह हो जाता है. हमें इसी कमजोरी और मानव स्वभाव का लाभ उठाना है.” जगन बोलता रहा .

“एस, स्ट्राइक व्हाइल आयरन इज हौट.” मगन बोला.

“बिलकुल ठीक आब्जरवेशन है जगन. लेकिन बैंक में गार्ड के अलावा सेफ्टी अलार्म और कैमरे भी रहते हैं. सुना है कि स्ट्रांगरूम खोलने के लिए भी पासवर्ड होता है जो गलत डल जाने पर सीधे हैड औफिस से कनेक्ट हो जाता है.” छगन बोला.

“गुड छगन, गुड इनफार्मेशन. यह स्ट्रांगरूम के पासवर्ड वाली बात मेरे दिमाग से निकल ही गई थी,” जगन तारीफ करते हुए बोला.

“ठीक है, आगे की योजना बताओ और उस में इस पौइंट को भी इनक्लूड कर लो.” छगन बोला.

जगन ने बढ़ाया दोनों दोस्तों का जोश

“देखो, हम तीनों को अपने अपने खेलों में महारथ हासिल है. ये सभी खेल चंचलता और चपलता पर ही आधारित हैं. हमें इन का वैसे ही प्रयोग करना है, जैसे हम मैदान में प्रतिद्वंद्वी पर करते थे.

“गाड्र्स के पास जो राइफल रहती है, वह लौक रहती है और उसे कंधे से उतार कर पोजिशन लेने और लौक खोलने में कम से कम 20 सेकेंड्स तो लगते ही हैं. हमें गाड्र्स पर अटैक कर इन 20 सेकेंड्स में ही कंपलीट करना है. देरी का मतलब होगा औपरेशन का फेल्योर. इसलिए अपनी सारी स्किल्स का प्रयोग इन 20 सेकेंड्स में ही करना है.

“हमारे चेहरे कोरोना वाले नोज मास्क से कवर होंगे और सिर के ऊपर राजस्थानी साफा बंधा हुआ होगा. यह सेफ रेडीमेड होंगे और घटना को अंजाम देने के तुरंत बाद उतार कर वैन में ही रख दिए जाएंगे. ताकि रास्ते में कोई शक न कर सके.” जगन ने दोनों को समझाया.

“यह सब तो भूमिका हुई. असली गतिविधि कैसे संचालित होगी?” मगन ने पूछा.

“हां, असली एडवेंचर तो वही है. उस की प्लानिंग कैसे की है? अभी तक तो सब समझ में आ रहा है. अगर मोबाइल वैन ट्रेस होती भी है तब भी हम सेफ हैं, क्योंकि अभी तक हमारी आइडेंटिटी कहीं भी उजागर नहीं हो रही है.” छगन बोला.

“आगे भी नहीं होगी, अगर हम ने सावधानी रखी तो. इस पूरे मिशन के दौरान हमें मोबाइल का इस्तेमाल नहीं करना है बल्कि इस मोबाइल के कौंटेक्ट्स हमारे काम नहीं आएंगे. क्योंकि पता नहीं कौन सा कौंटेक्ट कब खतरनाक हो जाए. इस योजना की भनक तक नहीं लगनी चाहिए किसी को. जिस दिन इस योजना को अंजाम दिया जाएगा, उस के 2 घंटे पहले हम अपने मोबाइल स्विच औफ कर के गहरे पानी में फेंक देंगे.” जगन ने घटना के पहले की सावधानी का खाका पेश किया.

“बिलकुल ठीक. कई बार मोबाइल ही जी का जंजाल बन जाते हैं. अपने पास में जितना कम सामान रखेंगे, हम उतने ही अधिक सुरक्षित रहेंगे.” छगन भी जगन की बातों से सहमत था.

“भाई, अब तो लग रहा है यह एडवेंचर वाकई में लोगों को बरसों तक याद रहेगा और लोग जब भी याद करेंगे तो उन के रोंगटे खड़े हो जाएंगे.” मगन भी सहमत होते हुए बोला.

“अब उत्सुकता और मत बढ़ाओ, जल्दी से लाइन औफ ऐक्शन का खुलासा करो.” छगन बेताबी से बोला.

“निश्चित ही योजना का अंतिम हिस्सा सब से अहम है. इस को हमें बड़ी सावधानी से पूरा करना होगा. इस में जो सब से महत्त्वपूर्ण होगा, वह होगा हमारा त्वरित बौडी मूवमेंट और तुरंत निर्णय क्षमता.

“जैसा कि मैं ने पहले भी बताया कि बैंक में सिर्फ एक गार्ड ही होता है और उस के कंधों पर राइफल होती है. किसी भी संदेह की स्थिति में उसे कंधों से राइफल उतार कर पोजिशन लेने में कम से कम 20 सेकेंड तो लगेंगे ही. मतलब हमारे पास ऐक्शन लेने के लिए 20 सेकेंड से भी कम का समय है.

“क्योंकि हम तीनों के मुंह और नाक मास्क से और फोरहेड वाला पोर्शन साफे से कवर होगा. तीनों को एक साथ देख कर वह निश्चित ही शक करेगा. अत: बैंक में घुसते ही सब से पहला काम होगा गाड्र्स को अपने कंट्रोल में लेना. ऐसे में हमारी स्पोट्र्स स्किल ही काम आएगी.” जगन योजना को विस्तार से समझाता रहा.

“बिलकुल ठीक. यही वह समय होगा जब हमारी चैंपियनशिप की असली परीक्षा होगी,” मगन हस्तक्षेप करते हुए बोला.

एक लाश ने लिया प्रतिशोध – भाग 2

सचमुच मौसम ठीक नहीं था. स्लेड अपने दोस्त डा. मैथ्यू को कार तक पहुंचाने आया तो देखा जोरों से बारिश हो रही थी. हवा भी बड़ी तीखी चल रही थी. ठंड से उस की देह कांप उठी थी.

‘‘लगता है, रात को बर्फ गिरेगी.’’ कार स्टार्ट करते हुए डा. मैथ्यू ने कहा. इस के बाद नमस्कार कर के वह चला.

मौसम बेहद खराब था. मगर स्लेड को वह तूफानी रात बहुत अच्छी लग रही थी. वह बहुत खुश था. क्योंकि उस तूफानी रात में अगर बर्फ गिरती है तो कोई बाहर नहीं निकलेगा. ऐसे में स्पेल्डिंग की लाश ठिकाने लगाने में उसे आसानी रहेगी.

बैठक में आ कर स्लेड ने घड़ी पर निगाह डाली. अभी उस के पास पूरे एक घंटे का समय था. इस बीच वह अपनी योजना पर कायदे से सोचविचार सकता था.  उसे ज्वार (समुद्र के पानी चढ़ने) आने के समय की पक्की सूचना थी. कल सुबह ज्वार आने वाला था. यह भी कितना अच्छा था. आज रात को वह स्पेल्डिंग को मार कर समुद्र में फेंक देगा तो सुबह ज्वार उस की लाश को बहा ले जाएगा. आज बुधवार है, आधी रात की टे्रन से स्पेल्डिंग आएगा और उसी समय…

उस ने बैठक का दरवाजा खोला, बाहर की आहट ली. कोई आवाज नहीं आ रही थी. उस की मकान मालकिन डंबलटन सोने चली गई थीं. वैसे भी उन्हें कहां सुनाई देता था. उसे स्लेड के जाने का पता ही नहीं चलेगा. जब स्लेड स्पेल्डिंग की हत्या कर के लौटेगा, तब भी उसे कुछ नहीं पता चल पाएगा.

स्लेड को लगा, घड़ी की सुइयां अब तेज चल रही हैं. उस के दिल की धड़कन तेज हो गई. उस ने लोहे की जंजीर और लोहे का वजनदार टुकड़ा कार की पिछली सीट पर रख कर अपने ओवरकोट से ढक दिया था.

अपनी मेज की दराज से स्लेड ने एक रस्सी का टुकड़ा निकाला, जो 18 इंच लंबा था. उस के दोनों सिरों पर 6-6 इंच लंबे लकड़ी के टुकड़े बंधे थे. रस्सी के बीच में एक गांठ लगी थी. उस ने सभी गांठों की जांच कर के रस्सी जेब में रख ली. उसे उस रस्सी के बारे में वे बातें याद आ गईं, जिन्हें उस ने एक किताब में पढ़ा था. वह किताब भारत के ठगों की कार्यप्रणाली पर थी. भारतीय ठग इसी तरह रूमाल या रस्सी में लगी गांठ से अपने शिकार का गला घोंट कर लूट लेते थे.

स्पेल्डिंग भी वकील था. स्लेड के खिलाफ वह एक ट्रस्ट का मुकदमा जीत गया था. इस के अलावा उस ने स्लेड की कुछ जालसाजियां भी पकड़ ली थीं. उसी के बल पर वह स्लेड को जेल भिजवा सकता था. यही नहीं, बार एसोसिएशन से उस का रजिस्ट्रेशन रद्द करवा कर उसे बदनाम और बेकार कर सकता था. इसीलिए स्लेड ने स्पेल्डिंग को खत्म करने की योजना बनाई थी.

स्लेड ने एक बार फिर घड़ी पर नजर डाली. घर से निकलने का समय हो गया था. उस ने बत्तियां बुझा दीं और दबे पांव चल कर मकान के बाहर आ गया. बड़ी सतर्कता से बिना कोई आवाज किए उस ने दरवाजा बंद किया.

हवा बहुत तेज थी. अब तक बर्फ गिरने लगी थी. लेकिन स्लेड को उस की कोई परवाह नहीं थी. क्योंकि उस समय उस के मन में उस से भी भयंकर और तेज आंधी चल रही थी. उस ने हाथों से कार को धकेल कर गैराज से बाहर निकाला. गैराज को धीरे से बंद कर के ताला लगा दिया. सड़क पर काफी दूर ले जा कर उस ने कार स्टार्ट की. सड़क बिलकुल सुनसान थी. स्ट्रीट लाइट बर्फ की वजह से मद्धिम हो गई थीं.

वह पुल पर पहुंचा. वहां से उसे रेलवे स्टेशन की रोशनी दिखाई दे रही थी. साढ़े 12 बजे वाली गाड़ी से स्पेल्डिंग को आना था. हर बुधवार को वह 60 किलोमीटर दूर अपने औफिस की ब्रांच में जाता था. वहां से वह रात साढ़े 12 बजे की गाड़ी से वापस आता था.

स्लेड स्पेल्डिंग के रास्ते में कार की बत्तियां बुझा कर उस के आने का इंतजार करने लगा. ट्रेन कुछ लेट थी. लगभग 15 मिनट बाद स्लेड को ट्रेन की लाइट नजर आई और फिर टे्रन धड़धड़ाती हुई स्टेशन पर आ कर खड़ी हो गई.

स्लेड ने स्टेशन की ओर ताका. यात्री निकलने लगे. स्पेल्डिंग के पास गाड़ी नहीं थी. अभी वह नया वकील था. उस की आमदनी ज्यादा नहीं थी. वह टैक्सी का खर्च भी बरदाश्त नहीं कर सकता था. स्लेड ने देखा, स्पेल्डिंग पैदल ही चला आ रहा था. तेज हवा की वजह से उस ने सिर झुका रखा था. वह अंधेरे में खड़ी स्लेड की कार को नहीं देख सका और आगे निकल गया.

कार में बैठे स्लेड ने कार स्टार्ट कर के बत्तियां जलाईं. वह शिकार के पीछेपीछे चल पड़ा. सामने सड़क पर चल रहा स्पेल्डिंग कार की लाइट में दिखाई दे रहा था. कार बगल में पहुंची तो उस ने खिड़की से सिर निकाल कर पूछा, ‘‘क्या आप मेरी कार से चलना चाहेंगे?’’

‘‘बहुत बहुत शुक्रिया. आज मौसम बहुत खराब है. 2 किलोमीटर चलना भी मुश्किल लग रहा है.’’

‘‘तो फिर आ जाइए.’’ कार रोक कर स्लेड ने कहा.

स्पेल्डिंग ने अंदर आ कर दरवाजा बंद कर लिया. स्लेड ने कार आगे बढ़ा दी.

‘‘संयोग से तुम्हारे ऊपर नजर पड़ गई. मैं मिसेज क्ले के घर गया था. लौटते हुए मुझे ट्रेन के आने की आवाज सुनाई दी तो तुम्हारी याद आ गई. मैं ने सोचा आज बुधवार है. तुम घर लौट रहे होगे.’’

‘‘बहुत बहुत शुक्रिया, स्लेड साहब.’’ स्पेल्डिंग ने कहा.

धीरेधीरे कार चलाते हुए स्लेड ने मतलब की बात पर आते हुए कहा, ‘‘सही बात तो यह है कि मैं ने यह काम बिना मतलब नहीं किया है. मैं तुम से मतलब की एक बात करना चाहता हूं.’’

‘‘यह समय मतलब की बात करने का नहीं है. आप उसे कल कीजिएगा.’’

‘‘नहीं, यह बात मिसेज क्ले के ट्रस्ट से संबंधित है.’’

‘‘मैं ने पिछले हफ्ते कोर्ट से आदेश भिजवा दिया था.’’

‘‘हां, वह तो मिला था. मगर मैं ने तो तुम से कहा था कि मेरे मुवक्किल के लिए यह परेशानी की बात है. उस का पति आजकल बाहर है.’’

‘‘मेरे खयाल से परेशानी की कोई बात नहीं है. उस के पति को इस सब से क्या लेनादेना? आप मिसेज क्ले से कह कर जल्दी से मामला निपटवा दीजिए.’’

स्पेल्डिंग के इतना कहते ही स्लेड ने कार सड़क के किनारे रोक दी और स्पेल्डिंग को घूरते हुए कहा, ‘‘देखो स्पेल्डिंग, मैं ने कभी तुम्हारा कोई एहसान लेने की जरूरत नहीं समझी. कुछ समय तक के लिए तुम वह आदेश रुकवा दो, सिर्फ 3 महीने के लिए.’’

crime thriller कहानी के अगले भाग में पढ़िए, कैसे एक लाश ने लिया प्रतिशोध…

जिन्दा दफन की आंगन की किलकारी

जनवरी, 2014 को मुरादाबाद जिले के गुरेठा गांव में 2 व्यक्ति  पहुंचे. उन में से एक की गोद में एक बच्चा था. वह बोला, ‘‘तीर्थांकर महावीर मैडिकल कालेज में मेरी पत्नी ने एक बेटी को जन्म दिया था. बच्ची मर गई है. अब इसे दफनाना है. दफनाने के लिए हमें फावड़ा चाहिए. हमें श्मशान बता दो, इस बच्ची को हम वहां दफना देंगे.’’

ऐसे दुख में लोग हर तरह से सहयोग करने की कोशिश करते हैं. इसलिए फावड़ा आदि ले कर गांव के कई लोग उन दोनों के साथ गांव के पास ही बहने वाली गांगन नदी की ओर चल दिए. गांव का एक आदमी दुकान से बच्ची के लिए कफन भी खरीद लाया.

गांगन नदी के आसपास के गांवों के लोग अपने प्रियजनों का अंतिम संस्कार नदी के किनारे स्थित श्मशान में करते थे. इसलिए वे भी बच्ची को कफन में लपेट कर नदी की तरफ चल दिए. नदी किनारे पहुंच कर गांव के एक आदमी ने बच्ची की लाश को दफनाने के लिए एक गड्ढा भी खोद दिया. वह उसे दफनाने ही वाले थे कि उसी समय बच्ची रोने लगी.

बच्ची के रोने की आवाज सुन कर गांव वाले चौंक गए क्योंकि उस बच्ची को तो उन दोनों लोगों ने मरा हुआ बताया था. बच्ची के जीवित होने पर उस के पिता और साथ आए युवक को खुश होना चाहिए था लेकिन वे घबरा रहे थे. उन के चेहरे देख कर गांव वालों को शक हो गया. वे समझ गए कि कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है.

लिहाजा उन्होंने उन दोनों को घेर लिया और हकीकत जानने की कोशिश करने लगे. लेकिन वे यही कहते रहे कि डाक्टर ने बच्ची को मृत बताया था. इस के बाद ही तो वे उसे दफनाने के लिए आए थे. यह बात गांव वालों के गले नहीं उतर रही थी. शोरशराबा सुन कर आसपास खेतों में काम करने वाले लोग भी वहां पहुंच गए. भीड़ बढ़ती देख वे दोनों वहां से भागने का मौका ढूंढ़ने लगे. लोगों ने उन्हें दबोच लिया और उसी समय पाकबड़ा थाने में फोन कर दिया.

सूचना पा कर थानाप्रभारी तेजेंद्र यादव सबइंसपेक्टर सहदेव सिंह के साथ श्मशान घाट पहुंच गए. उन्होंने दोनों लोगों से पूछताछ की तो एक ने अपना नाम राजेश और दूसरे ने दिनेश बताया. उन्होंने जब बच्ची को देखा तो वह जीवित थी. वह 5-6 दिनों की लग रही थी.

पता चला कि वह राजेश की बेटी है और दूसरा युवक उस का साला है. पास में ही तीर्थंकर महावीर मैडिकल कालेज था. पुलिस ने उस बच्ची को अविलंब मैडिकल कालेज में भरती करा दिया जिस से उस की जान बच सके.

डाक्टरों ने जब उस बच्ची को देखा तो वे चौंक गए क्योंकि वह बच्ची वहीं पैदा हुई थी और उस की मां उस समय वहीं भरती थी. डाक्टरों ने पुलिस को बताया कि बच्ची को उस का पिता राजेश जीवित अवस्था में ही ले गया था, उस के मरने का तो सवाल ही नहीं है.

मामला गंभीर लग रहा था इसलिए थानाप्रभारी ने यह सूचना नगर पुलिस अधीक्षक महेंद्र यादव को दे दी. उधर डाक्टरों ने भी बच्ची को आईसीयू में भरती कर के इलाज शुरू कर दिया. नगर पुलिस अधीक्षक महेंद्र भी थाना पाकबड़ा पहुंच गए. थानाप्रभारी ने उन के सामने राजेश से जब पूछताछ की तो बच्ची को जिंदा दफन करने की एक चौंकाने वाली कहानी सामने आई.

राजेश मूलरूप से उत्तर प्रदेश के बरेली शहर के हाफिजगंज का रहने वाला था. वह मोटर मैकेनिक का काम करता था. पिता रामभरोसे को जब लगा कि राजेश अपना घर चलाने लायक हो गया है तो उन्होंने बरेली के ही नवाबगंज में रहने वाले मुक्ता प्रसाद की बेटी सुनीता से उस की शादी कर दी.

शादी हो जाने के बाद राजेश के खर्चे बढ़ गए थे इसलिए राजेश कहीं दूसरी जगह अपने लिए नौकरी ढूंढ़ने लगा. इसी दौरान उत्तरांचल के रुद्रपुर शहर स्थित एक फैक्ट्री में उस की नौकरी लग गई. उस फैक्ट्री में बाइकों की चेन बनती थीं.

कुछ दिनों बाद राजेश पत्नी सुनीता को भी रुद्रपुर ले गया. वहां हंसीखुशी के साथ उन का जीवन चल रहा था. इसी दौरान सुनीता गर्भवती हो गई. इस से पतिपत्नी दोनों ही खुश थे. पहली बार मां बनने पर महिला को कितनी खुशी होती है, इस बात को सुनीता महसूस कर रही थी. राजेश भी सुनीता की ठीक से देखभाल कर रहा था. सुनीता को 7 महीने चढ़ गए. अब सुनीता को कुछ परेशानी होने लगी थी. क्योंकि डाक्टर ने भी सुनीता को कुछ ऐहतियात बरतने की हिदायत दे रखी थी. सावधानी बरतने के बाद भी अचानक एक दिन सुनीता को प्रसव पीड़ा हुई.

जिस डाक्टर से सुनीता का इलाज चल रहा था, राजेश पत्नी को तुरंत उसी डाक्टर के पास ले गया. सुनीता का चैकअप करने के बाद डाक्टर ने स्थिति गंभीर बताई क्योंकि सुनीता के पेट में 7 महीने का बच्चा था. यदि वह आठ साढ़े आठ महीने से ऊपर का होता तो डिलीवरी कराई जा सकती थी, समय से 2 महीने पहले डिलीवरी कराना उस डाक्टर की नजरों में मुनासिब नहीं था.

ऐसी हालत में सुनीता को किसी अच्छे अस्पताल या नर्सिंगहोम में ले जाना जरूरी था. रुद्रपुर में कई नर्सिंगहोम ऐसे थे जहां सुनीता को ले जाया जा सकता था लेकिन वे महंगे होने की वजह से राजेश के बजट से बाहर थे. लिहाजा वह पत्नी को ले कर मुरादाबाद आ गया और उसे तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी के मैडिकल कालेज में भरती करा दिया.

वहां 4 जनवरी, 2014 को सुनीता ने एक बेटी को जन्म दिया. बच्ची 7 महीने में पैदा हुई थी इसलिए वह बेहद कमजोर थी. उसे इनक्यूबेटर में रखा जाना बहुत जरूरी था लेकिन मैडिकल कालेज में जो इनक्यूबेटर थे, उन में पहले से ही दूसरे बच्चे रखे हुए थे.   ऐसी स्थिति में मैडिकल कालेज के जौइंट डाइरैक्टर डा. विपिन कुमार जैन ने राजेश को सलाह दी कि वह अपनी बच्ची को किसी अन्य नर्सिंगहोम या अस्पताल या फिर दिल्ली ले जाए. क्योंकि बच्ची की हालत ठीक नहीं है.

उधर इतनी कमजोर बच्ची को देख कर वार्ड में भरती मरीजों के तीमारदारों ने राजेश के मुंह पर ही कह दिया कि ये बच्ची बचेगी नहीं और यदि बच भी गई तो पूरी जिंदगी अपंग रहेगी. लेकिन राजेश ने उन की बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया.

बेटी की जान बचाने के लिए राजेश उसे ले कर मुरादाबाद के साईं अस्पताल पहुंचा. राजेश के साथ उस का साला दिनेश भी था. साईं अस्पताल में बच्ची को भरती करने से पहले 10 हजार रुपए जमा कराने को कहा गया. उस के पास उस समय इतने रुपए नहीं थे. राजेश ने अस्पतालकर्मियों से कहा भी कि वह पैसे बाद में जमा करा देगा, पहले बेटी का इलाज तो शुरू करो. लेकिन उस के अनुरोध को उन्होंने अनसुना कर दिया.

राजेश बेटी को हर हाल में बचाना चाहता था. इसलिए उस ने अपने कई सगेसंबंधियों और रिश्तेदारों को फोन कर के अपनी स्थिति बताई और उन से पैसे मांगे लेकिन किसी ने भी उस की सहायता करने के बजाए कोई न कोई बहाना बना दिया. राजेश बहुत परेशान हो गया था. ऐसी हालत में उस की समझ मेें नहीं आ रहा था कि वह क्या करे.

चारों ओर से हताश हो चुके राजेश के कानों में तीमारदारों के शब्द गूंज रहे थे कि बच्ची जिंदा नहीं बचेगी और अगर बच भी गई तो विकलांग रहेगी. निराशा और हताशा के दौर से गुजर रहे राजेश ने सोचा कि जब बच्ची पूरी जिंदगी विकलांग रहेगी तो इस की जान बचाने से क्या फायदा? इस से अच्छा तो यही है कि ये मर जाए.

इस के अलावा उस के मन में एक बात यह भी घूम रही थी कि यदि बच्ची नहीं मरी तो वह उस की वजह से पूरी जिंदगी परेशान रहेगा. लिहाजा उस ने बेटी को खत्म करने की सोची. इस बारे में उस ने अपने साले दिनेश से बात की तो उस ने भी जीजा की हां में हां मिलाते हुए 6 दिन की बच्ची को खत्म करने को कहा.

दोनों ने बच्ची को मारने का फैसला तो कर लिया लेकिन अपने हाथों से दोनों में से किसी की भी उस का गला दबाने की हिम्मत नहीं हो रही थी. फिर उन्होंने तय किया कि बच्ची को जिंदा ही गड्ढे में दफना देंगे और जब सुनीता पूछेगी तो कह देंगे कि बच्ची की मौत हो गई थी और उसे दफना आए हैं.

गड्ढा खोदने के लिए उन के पास कोई चीज नहीं थी इसलिए वह फावड़ा मांगने के लिए गुरेठा गांव पहुंचे. ऐसी हालत में गांव वालों ने उन की सहायता करना मुनासिब समझा और उन के साथ गांगन नदी के किनारे उस जगह पर पहुंच गए जहां लोगों का अंतिम संस्कार किया जाता था.

उस की नन्हीं सी जान की आंखें ठीक से खुली भी नहीं थीं. दुनियादारी से तो उसे कोई मतलब भी नहीं था. मां की गोद से पिता के मजबूत हाथों में वह इसलिए आई थी कि वह उस का इलाज कराएंगे. लेकिन उसे क्या पता था कि कन्यादान करने वाले हाथ ही उसे जिंदा दफनाने के लिए आगे बढ़ेंगे.

लेकिन जैसे ही उसे गड्ढे में ठंडी रेत पर लिटाया गया वह हाथपैर चलाते हुए जोरजोर से रोने लगी. जैसे वह रोतेरोते अपने जन्मदाता से पूछ रही हो कि मेरा कुसूर क्या है. मुझे मत मारो. एक दिन मैं ही तुम्हारा सहारा बनूंगी और घर में उजियारा फैलाऊंगी. लेकिन उस समय पिता की संवेदनशीलता नदारद हो चुकी थी.

अचानक बच्ची की आवाज सुन कर राजेश और दिनेश घबरा गए. वे सोचने लगे कि काश ये 2 मिनट और न रोती तो…

बहरहाल, उस की आवाज सुन कर गांव वाले चौंक गए और उन्होंने पुलिस बुला ली. दोनों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया. पुलिस ने उस बच्ची को तीर्थांकर महावीर यूनिवर्सिटी के मैडिकल कालेज में भरती करवा दिया था. वहां उसे इनक्यूबेटर में रख दिया गया था. उस की हालत में भी सुधार होने लगा था.

उधर सुनीता को इस बात का पता नहीं था कि उस ने जिस बच्चे को जन्म दिया, उस की हत्या की कोशिश करने वाला उस का पति जेल में है. इलाके के लोगों को जब एक पिता के यमराज बनने की जानकारी हुई तो लोग बच्ची की लंबी उम्र के लिए दुआएं करने लगे. बच्ची के इलाज के लिए कई लोगों ने अस्पताल में पैसे भी जमा कराए लेकिन एक सप्ताह बाद ही उस बच्ची ने अस्पताल में दम तोड़ दिया.

वैसे यहां एक बात बताना जरूरी है कि राजेश की नीयत बेटी की हत्या करने की नहीं थी बल्कि वह तो उस की सुरक्षा के लिए ही मैडिकल कालेज लाया था और मैडिकल कालेज के डाक्टर के कहने पर वह बेटी को ले कर कई अस्पतालों में घूमा भी. उस की मजबूरी यह थी कि इलाज के लिए उस के पास पैसे नहीं थे और जिन संबंधियों और रिश्तेदारों से उस ने मदद की गुहार लगाई, उन्होंने भी मुंह मोड़ लिया था, जिस से वह निराश और हताश हो चुका था.

अस्पताल के वार्ड में मरीजों के तीमारदारों ने बच्ची के बारे में गलत धारणाएं राजेश के मन में भर दी थीं. इन्हीं धारणाओं ने उसे यमराज बनने के लिए मजबूर किया. इन्हीं बातों ने उस की संवेदनशीलता को हर लिया था. कहते हैं कि मां का दूसरा रूप मामा होता है लेकिन उस समय दिनेश का दिल भी नहीं पसीजा था. वह भी कंस मामा बन गया था.

पिता से यमराज बनने के हालात राजेश के सामने चाहे जो भी रहे हों लेकिन इस में अकेला वही दोषी नहीं है. इस में दोष उन लोगों का भी है जिन्होंने उसे इस रास्ते पर जाने के लिए मजबूर किया. वह इतना संवेदनहीन हो गया था कि जीवित बेटी को कब्र में रखते समय उस के हाथ तक नहीं कांपे.

बेटियों पर खतरा लगातार बढ़ता ही जा रहा है. बेटे की चाहत में तमाम लोग उन्हें कोख में ही खत्म करा देते हैं. हम भले ही 21वीं सदी में पहुंचने की बात कर रहे हों लेकिन सोच अभी भी वही पुरानी है तभी तो भ्रूण हत्याओं में कमी नहीं आ रही. इस का उदाहरण यह है कि जहां सन 1990 में प्रति 1000 पुरुषों के अनुपात में 906 महिलाएं थीं, सन 2005 में इतने ही पुरुषों के अनुपात में केवल 836 महिलाएं रह गई थीं. बात 2014 की करें तो अब यह आंकड़ा 1000 पुरुषों पर 940 स्त्रियों का है.

कह सकते हैं कि लोगों में काफी हद तक जागृति आई है और भ्रूण हत्याओं का ग्राफ गिरा है. यह खुशी की बात है. लेकिन इस मामले को देख कर लगता है कि हमें अभी भी पुरुष की सोच को बदलने की जरूरत है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित