असली पुलिस पर भारी नकली पुलिस

15 शादियां करने वाला लुटेरा दूल्हा

पति पत्नी और वो – भाग 1

‘‘मम्मी, मैं जानता हूं कि आप को मेरी एक बात बुरी लग सकती है. वो यह कि सुमन आंटी जो आप की सहेली  हैं, उन का यहां आना मुझे अच्छा नहीं लगता.  और तो और मेरे दोस्त तक कहते हैं कि वह पूरी तरह से गुंडी लगती हैं.’’ बेटे यशराज की यह बात सुन कर मां दीपा उसे देखती ही रह गई.

दीपा बेटे को समझाते हुए बोली, ‘‘बेटा, सुमन आंटी अपने गांव की प्रधान है. वह ठेकेदारी भी करती है. वह आदमियों की तरह कपड़े पहनती है, उन की तरह से काम करती है इसलिए वह ऐसी दिखती है. वैसे एक बात बताऊं कि वह स्वभाव से अच्छी है.’’

मां और बेटे के बीच जब यह बहस हो रही थी तो वहीं कमरे में दीपा का पति बबलू भी बैठा था. उस से जब चुप नहीं रहा गया तो वह बीच में बोल उठा,‘‘दीपा, यश को जो लगा, उस ने कह दिया. उस की बात अपनी जगह सही है. मैं भी तुम्हें यही समझाने की कोशिश करता रहता हूं लेकिन तुम मेरी बात मानने को ही तैयार नहीं होती हो.’’

‘‘यश बच्चा है. उसे हमारे कामधंधे आदि की समझ नहीं है. पर आप समझदार हैं. आप को यह तो पता ही है कि सुमन ने हमारे एनजीओ में कितनी मदद की है.’’ दीपा ने पति को समझाने की कोशिश करते हुए कहा.

‘‘मदद की है तो क्या हुआ? क्या वह अपना हिस्सा नहीं लेती है? और 8 महीने पहले उस ने हम से जो साढ़े 3 लाख रुपए लिए थे. अभी तक नहीं लौटाए.’’ पति बोला.

मां और बेटे के बीच छिड़ी बहस में अब पति पूरी तरह शामिल हो गया था.

‘‘बच्चों के सामने ऐसी बातें करना जरूरी है क्या?’’ दीपा गुस्से में बोली.

‘‘यह बात तुम क्यों नहीं समझती. मैं कब से तुम्हें समझाता आ रहा हूं कि सुमन से दूरी बना लो.’’ बबलू सिंह ने कहा तो दीपा गुस्से में मुंह बना कर दूसरे कमरे में चली गई. बबलू ने भी दीपा को उस समय मनाने की कोशिश नहीं की. क्योंकि वह जानता था कि 2-4 घंटे में वह नार्मल हो जाएगी.

बबलू सिंह उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर के इस्माइलगंज में रहता था. कुछ समय पहले तक इस्माइलगंज एक गांव का हिस्सा होता था. लेकिन शहर का विकास होने के बाद अब वह भी शहर का हिस्सा हो गया है. बबलू सिंह ठेकेदारी का काम करता था. इस से उसे अच्छी आमदनी हो जाती थी इसलिए वह आर्थिकरूप से मजबूत था.

उस की शादी निर्मला नामक एक महिला से हो चुकी थी. शादी के 15 साल बाद भी निर्मला मां नहीं बन सकी थी. इस वजह से वह अकसर तनाव में रहती थी. बबलू सिंह को बैडमिंटन खेलने का शौक था. उसी दौरान उस की मुलाकात लखनऊ के ही खजुहा रकाबगंज मोहल्ले में रहने वाली दीपा से हुई थी. वह भी बैडमिंटन खेलती थी. दीपा बहुत सुंदर थी. जब वह बनठन कर निकलती थी तो किसी हीरोइन से कम नहीं लगती थी.

बैडमिंटन खेलतेखेलते दोनों अच्छे दोस्त बन गए. 40 साल का बबलू उस के आकर्षण में ऐसा बंधा कि शादीशुदा होने के बावजूद खुद को संभाल न सका. दीपा उस समय 20 साल की थी. बबलू की बातों और हावभाव से वह भी प्रभावित हो गई. लिहाजा दोनों के बीच प्रेमसंबंध हो गए. उन के बीच प्यार इतना बढ़ गया कि उन्होंने शादी करने का फैसला कर लिया.

दीपा के घर वालों ने उसे बबलू से विवाह करने की इजाजत नहीं दी. इस की एक वजह यह थी कि एक तो बबलू दूसरी बिरादरी का था और दूसरे बबलू पहले से शादीशुदा था. लेकिन दीपा उस की दूसरी पत्नी बनने को तैयार थी. पति द्वारा दूसरी शादी करने की बात सुन कर निर्मला नाराज हुई लेकिन बबलू ने उसे यह कह कर राजी कर लिया कि तुम्हारे मां न बनने की वजह से दूसरी शादी करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. पति की दलीलों के आगे निर्मला को चुप होना पड़ा क्योंकि शादी के 15 साल बाद भी उस की कोख नहीं भरी थी. लिहाजा न चाहते हुए भी उस ने पति को सौतन लाने की सहमति दे दी.

घरवालों के विरोध को नजरअंदाज करते हुए दीपा ने अपनी उम्र से दोगुने बबलू से शादी कर ली और वह उस की पहली पत्नी निर्मला के साथ ही रहने लगी. करीब एक साल बाद दीपा ने एक बेटे को जन्म दिया जिस का नाम यशराज रखा गया. बेटा पैदा होने के बाद घर के सभी लोग बहुत खुश हुए. अगले साल दीपा एक और बेटे की मां बनी. उस का नाम युवराज रखा. इस के बाद तो बबलू दीपा का खास ध्यान रखने लगा. बहरहाल दीपा बबलू के साथ बहुत खुश थी.

दोनों बच्चे बड़े हुए तो स्कूल में उन का दाखिला करा दिया. अब यशराज जार्ज इंटर कालेज में कक्षा 9 में पढ़ रहा था और युवराज सेंट्रल एकेडमी में कक्षा 7 में. दीपा भी 35 साल की हो चुकी थी और बबलू 55 का. उम्र बढ़ने की वजह से वह दीपा का उतना ध्यान नहीं रख पाता था. ऊपर से वह शराब भी पीने लगा. इन्हीं सब बातों को देखने के बाद दीपा को महसूस होने लगा था कि बबलू से शादी कर के उस ने बड़ी गलती की थी. लेकिन अब पछताने से क्या फायदा. जो होना था हो चुका.

बबलू का 2 मंजिला मकान था. पहली मंजिल पर बबलू की पहली पत्नी निर्मला अपने देवरदेवरानी और ससुर के साथ रहती थी. नीचे के कमरों में दीपा अपने बच्चों के साथ रहती थी. उन के घर से बाहर निकलने के भी 2 रास्ते थे. दीपा का बबलू के परिवार के बाकी लोगों से कम ही मिलनाजुलना  होता था. वह उन से बातचीत भी कम करती थी.

बबलू को शराब की लत हो जाने की वजह से उस की ठेकेदारी का काम भी लगभग बंद सा हो गया था. तब उस ने कुछ टैंपो खरीद कर किराए पर चलवाने शुरू कर दिए थे. उन से होने वाली कमाई से घर का खर्च चल रहा था.

शुरू से ही ऊंचे खयालों और सपनों में जीने वाली दीपा को अब अपनी जिंदगी बोरियत भरी लगने लगी थी. खुद को व्यस्त रखने के लिए दीपा ने सन 2006 में ओम जागृति सेवा संस्थान के नाम से एक एनजीओ बना लिया. उधर बबलू का जुड़ाव भी समाजवादी पार्टी से हो गया. अपने संपर्कों की बदौलत उस ने एनजीओ को कई प्रोजेक्ट दिलवाए.

इसी बीच सन 2008 में दीपा की मुलाकात सुमन सिंह नामक महिला से हुई. सुमन सिंह गोंडा करनैलगंज के कटरा शाहबाजपुर गांव की रहने वाली थी. वह थी तो महिला लेकिन उस की सारी हरकतें पुरुषों वाली थीं. पैंटशर्ट पहनती और बायकट बाल रखती थी. सुमन निर्माणकार्य की ठेकेदारी का काम करती थी. उस ने दीपा के एनजीओ में काम करने की इच्छा जताई. दीपा को इस पर कोई एतराज न था. लिहाजा वह एनजीओ में काम करने लगी.

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लूट फार एडवेंचर – भाग 5

तीनों कमा चुके थे 50-50 करोड़

“मेरे हिस्से लगभग 22 लाख रुपए आए थे. मैं उन पैसों को ले कर महानगर में आ गया. यहां आ कर यहां के एक पिछड़े इलाके में एक जिम खोल लिया. यह इस पिछड़े इलाके का एकमात्र जिम था, अत: जल्दी ही प्रसिद्ध हो गया और काफी चलने लगा. धीरेधीरे मैं ने शहर के और इलाकों में भी अपने जिम की ब्रांचेें खोल दीं. प्रसिद्धि के साथसाथ बिजनैस भी अच्छा बढ़ गया. आज लगभग हर बड़े शहर में हमारे जिम की ब्रांच है.

“आज 7 सालों के बाद मेरी चलअचल संपत्ति की कीमत 50 करोड़ से अधिक है. मैं ने अपने सभी वेंचर्स का नाम गेलार्ड रखा है. आज तुम जहां बैठे हो, उस का मालिक भी मैं ही हूं.” जगन ने बताया.

“मैं उस घटना के बाद एक इंडस्ट्रियल एरिया में चला गया. जहां मैं ने देखा कि ज्यादातर इंडस्ट्री में खेती के बाद निकले हुए हस्क यानी भूसे को ईंधन के रूप में इस्तेमाल करते है. लेकिन किसानों को पेमेंट 15-20 दिन बाद ही मिल पाता था. इस से उन्हें बड़ी परेशानी होती थी. मैं ने किसानों से सस्ता भूसा तत्काल पेमेंट का खरीदा. फिर उसे इंडस्ट्री में सप्लाई करना शुरू कर दिया. इस में निश्चित प्रौफिट तो था ही, साथ ही पैसा भी सुरक्षित रिसाइकल हो रहा था. आज मैं उस इलाके में भूसा किंग के नाम से जाना जाता हूं.

पिछले दिनों मैं ने भूसे को कंप्रेस्ड कर कोयले जैसा ईंधन बनाने की फैक्ट्री भी डाल ली है, जिस से काफी मटेरियल एक्सपोर्ट भी होता है. मुझे बैंक में की गई एडवेंचर से लगभग 22 लाख रुपए मिले थे. आज मैं भी लगभग 50 करोड़ की संपत्ति का मालिक हूं.” छगन ने अपने बारे में बताया.

“मैं भी बचने के लिए एक छोटे से गांव में आ गया. वहां पर सब्जियों की पैदावार भरपूर होती थी, लेकिन सडक़ से काफी अंदर होने के कारण सब्जियों की ढुलाई का साधन पर्याप्त समय पर न मिल पाने के कारण काफी सब्जियां नष्ट करनी पड़ती थी. जिस से उन्हें काफी नुकसान होता था. मैं ने अपने पैसों से एक सेकेंडहैंड ट्रक खरीद कर सब्जियों की शहरों में ढुलाई शुरू कर दी.

आज मैं आसपास के लगभग 20 गांवों से फल व सब्जियां अलगअलग माल्स, स्टार रेटेड होटल्स और मार्किट में सप्लाई करता हूं. मेरे पास आज लगभग 40 बड़े लोडिंग व्हीकल्स हैं और अब मैं अर्थ मूविंग मतलब खुदाई की बड़ी मशीनें भी खरीद कर बड़ेबड़े कौन्ट्रैक्ट लेता हूं. मैं भी कुल जमा 50 करोड़ की हैसियत रखता हूं.” मगन ने बताया.

“मतलब हम अपने इस मिशन में पूरी तरह से कामयाब रहे?” जगन ने सब के बीच प्रश्न रखा.

“हां ऐसा कह सकते हैं. हालांकि हम ने यह काम सिर्फ एडवेंचर के लिए किया था, मगर इस ने हमारी जिंदगी ही बदल दी.” छगन बोला.

“बिलकुल ठीक. लोग आज भी उन एडवेंचरस लूट को याद करते हैं. क्या जोश था यार.” मगन भी सहमत होते हुए बोला,

“आज यकीन नहीं होता अपने आप पर.”

उन के एडवेंर की मीडिया में हुई खूब प्रशंसा

“हम ने जो एडवेंचर किया था, वह अधूरा था. उस समय कुछ मजबूरियां थीं इस कारण उसे पूरा नहीं कर सकते थे. मगर अब कर सकते हैं.” जगन चाय की चुस्कियों के साथ बोला.

“मतलब एक और अडवेंचरस लूट? नहीं भाई, अब मुझ से नहीं होगा. अब उतनी तेजी और चुस्तीफुरती नहीं रही.” मगन बोला.

“मुझे तो वैसे ही शुगर की प्राब्लम हो गई है. सांसें तो जल्दी ही उखड़ जाती हैं आजकल.” छगन भी मगन से सहमत होते हुए बोला

“नहींनहीं, तुम लोग गलत समझ रहे हो. इस बार लूटना नहीं है. लूट का पैसा वापस बैंकों को लौटाना है. मैं इस बोझ के साथ मरना नहीं चाहता कि हम ने अपने स्वार्थ के लिए जनता की गाढ़ी कमाई के पैसों को लूटा. आज हम तीनों स्थापित हैं और इस कंडीशन में हैं कि उन पैसों को बिना किसी आपत्ति के वापस लौटा सकते हैं.” जगन बोला.

“सच कहते हो जगन. कभीकभी जब मैं यह सब सोचता हूं तो लगता है हम ने गलत ही किया. और यह ख्याल मुझे अंदर तक कचोटता है.” मगन बोला.

“मगर दोस्तो, यह सब इतना आसान भी नहीं है. लूटते समय जितना साहस दिखाया थी, उस से ज्यादा दिलेरी की जरूरत अभी पड़ेगी. दूसरा लोगों को हमारा नाम भी पता चल जाएगा. उस समय लोगों की क्या प्रतिक्रिया होगी, यह भी सोचना आवश्यक है. इस का असर हमारे जमे जमाए बिजनैस पर भी पड़ सकता है.” छगन ने अपने विचार रखें.

“मैं ने यह सब सोच रखा है दोस्तों. जिस तरह हम ने लूट के समय अपना चेहरा ढंका था, उसी तरह पैसे लौटाते समय हम अपना नाम व पहचान गुप्त ही रखेंगे. सब से बड़ी बात पैसा लौटाने की सूचना अकेले बैंक मैनेजर्स को न दे कर पुलिस, कलेक्टर और यथासंभव न्यूजपेपर्स व चैनल्स वालों को भी देंगे.” जगन बोला .

“अच्छा विचार है. अगर हमारी पहचान गुप्त रहती है तो हम यह एडवेंचर भी करना चाहेंगे.” मगन बोला.

“बिलकुल,” छगन भी सहमति दिखाते हुए बोला.

“योजना यह है कि हम ने बैंकों से लूट का जितना पैसा अपने पास रखा है, उतना ही पैसा हम अलगअलग लौक किए हुए सूटकेस में रख कर रेलवे के क्लौकरूम में रख देंगे.

“क्लौकरूम वाले बिना रिजर्वेशन टिकट के सामान नहीं रखते हैं. अत: हमें किसी फरजी नाम से रिजर्वेशन करवाना होगा. यह रिजर्वेशन हम टिकट विंडो से ही करवाएंगे. इस से मिले पीएनआर नंबर के बेस पर हम क्लौकरूम में सामान आसानी से रख पाएंगे.

“सामान रखते समय क्लौकरूम का क्लर्क पहचान पत्र मांग सकता है. इस के लिए 3 आधार कार्ड को ग्राफ्टिंग मेथड से एक बना कर नया आधार कार्ड तैयार कर लेंगे.” जगन बता रहा था.

“मतलब नंबर किसी और का, नाम किसी और का और पता किसी तीसरे का?” मगन ने पूछा.

“बिलकुल सही. मैं जिम में एंट्री लेते समय कस्टमर का आधार कार्ड लेता हूं. मैं उन में से ही किसी पुराने ग्राहक के आधार कार्ड की फोटोकौपी निकलवा लूंगा. बाकी 2 आधार कार्ड का इंतजाम तुम्हारे डाटाबेस में से करना ताकि इन्क्वायरी के समय किसी एक प्रतिष्ठान पर शक ना जाए.

क्लौकरूम में सामान जमा करते समय हम अपने चेहरे कवर रखेंगे ताकि स्टेशन के कैमरों में हमारा चेहरा दिखाई न पड़े. सामान्यत: क्लौकरूम में कोई भी व्यक्ति 7 दिनों तक हमारे सामान को लावारिस नहीं मानता है.

क्लौकरूम में सामान जमा करने के बाद इस की सूचना स्पीड पोस्ट के माध्यम से कलेक्टर, एसपी, बैंक मैनेजर और न्यूजपेपर व चैनल्स को दे देंगे. यहां इस बात का भी ध्यान रखेंगे कि यह सूचना कंप्यूटर के प्रिंटर से न निकाल कर हाथों से लिखी होगी. ताकि कंप्यूटर प्रिंटर की आईपी के द्वारा हम लोग सुरक्षित रहें.” जगन बोला.

20 दिनों के बाद तीनों दोस्त एक बार फिर गेलार्ड कैफे में पार्टी कर रहे थे. सभी न्यूजपेपर्स और चैनल्स पर उन के एडवेंचर की कहानियां सुनाई जा रही थीं.

लूट फार एडवेंचर – भाग 4

तीनों बैंकों का कर लिया चुनाव

“चलो, अभी हमारे पास एक महीने का समय है. इस बीच हम उन बैंकों की पहचान कर लेते हैं, जो हमारी उम्मीद के मुताबिक कैश रखते हैं.” जगन बोला.

“मैं ऐसी बैंकों की पहचान कर चुका हूं जो कम से कम 20 लाख का मिनिमम बैलेंस तो मेंटेन करते ही हैं.” लगभग 15 दिनों के बाद जब तीनों मिले तो छगन बोला.

“कहां पर है ये बैंक?” जगन ने पूछा.

“एक ब्रांच कृषि उपज मंडी समिति की है. दूसरी ब्रांच इंडस्ट्रियल एरिया की है और तीसरी बैंक वह है जहां पर ज्यादातर सरकारी पैसा जमा होता है.” छगन ने बताया.

“वैरी गुड छगन, मैं भी इन तीनों बैंकों के बारे में ही सोच रहा था.” जगन भी सहमत होते हुए बोला.

“सब से बड़ी बात यह कि तीनों ही बैंकों के बंद होने के समय में आधे आधे घंटे का अंतर है. इंडस्ट्रियल एरिया वाली ब्रांच सुबह 9 बजे खुलती है और ग्राहकों के लिए 3 बजे बंद होती है. सरकारी लेनदेन वाली ब्रांच साढ़े 3 बजे और कृषि उपज मंडी समिति वाली ब्रांच 4 बजे बंद होती है,” छगन ने बताया.

“मतलब हमें अपना ऐक्शन ढाई बजे चालू करना होगा और ज्यादा से ज्यादा साढ़े 4 बजे तक खत्म करना ही होगा.” जगन बोला

“मगर रहमत तो गाड़ी खराब होने की सूचना तो तुरंत दे देगा. ऐसे में अगर समय रहते मैकेनिक आ गया तो क्या होगा? बिना गाड़ी के तो एडवेंचर पूरा नहीं होगा न.” मगन बोला.

“रहमत को गाड़ी खराबी की सूचना और बाकी की औपचारिकताएं पूरी करते करते 4-5 पांच घंटे तो लग ही जाएंगे. तब तक हम वैन को उड़ा चुके होंगे. सरकारी तंत्र में कोई भी व्यक्ति अपने स्तर पर निर्णय नहीं ले सकता है. हमें इसी लूप होल का फायदा उठाना है.” जगन ने समझाया.

“वाह जगन, तुम्हारी स्टडी सौलिड और स्ट्रांग है.” मगन तारीफ करते हुए बोला.

“मैं ने अपनी इस योजना को क्रियान्वित करने के लिए 15 जून की तारीख सोची है.” जगन बोला.

“मगर आज तो 20 मई ही है. 15 जून की तारीख क्यों सोची? इस के पीछे कोई कारण है क्या?” मगन ने पूछा.

“हां, कई कारण हैं. एक तो हम इस बीच के समय में बैंक के स्टाफ की ऐक्टिविटीज अच्छी तरह से नोट कर सकेंगे. और जो ज्यादा ऐक्टिव दिखाई पड़ेंगे उन्हें कंट्रोल करने की तरकीबें भी निकाल सकेंगे.

“दूसरा गरमी अभी ही इतनी बढ़ गई है उस समय तो अपने चरम पर होगी. इसी कारण एसी को सुचारु रूप से चलाने के लिए फ्रंट के शीशे के दरवाजे पहले से बंद होंगे. ऐसे में हमें स्टाफ और ग्राहकों को अंदर ही कंट्रोल करने में आसानी होगी. आने वाले ग्राहक भी बाहर ही रोके जा सकेंगे. तीसरा उस दिन सोमवार भी है. जैसा हम ने प्लान किया था. और चौथा, यह याद रखने के लिए सब से आसान दिन है. क्योंकि यह साल के बीचोबीच का दिन है. याद रहे 7 साल बाद हमें इसी दिन गेलार्ड कैफे में मिलना है.” जगन उत्साहित होते हुए बोला.

“15 जून साल के बीचोबीच का दिन कैसे हो सकता है?” छगन ने हैरानी से पूछा.

“साल का छठा महीना और उस के बीच का दिन. सीधा सा गणित.” जगन ने मुसकराते हुए समझाया.

“बहुत सही और आसान कैलकुलेशन.” मगन बोला, “अच्छा, अब हम 14 जून की शाम को ही मिलेंगे. अपनी चुनी हुई बैंकों के स्टाफ की ऐक्टिविटीज पर नजर रखते हैं तब तक.”

हिम्मत करने वालों की जीत होती है. अभी यही बात उन तीनों पर लागू हो रही थी. उन के सभी पांसे सही पड़ रहे थे. सभी कुछ उन की योजना के मुताबिक ही चल रहा था. 10 जून को ही रहमत कि बीवी डिलीवरी के लिए अपने सासससुर के पास चली गई.

14 जून की रात को ही जगन ने बाजार में मिलने वाली साड़ी की सस्ती फाल ले कर कैश वैन के साइलैंसर में घुसा कर उसे जाम कर दिया. इस से पहले वह अपनी डुप्लीकेट चाबी से वैन का इग्नीशियन चैक कर चुका था. मतलब साफ था चाबी अपना काम बराबर कर रही थी.

और 15 जून को वह सब हो गया, जो इन तीनों के अलावा किसी ने कल्पना में भी नहीं की होगी. हालांकि थोड़ाबहुत विरोध अवश्य हुआ, मगर इन तीनों ने अपनी तुरत बुद्धि और साहस के बल पर विपरीत परिस्थियों का सामना करते हुए उस दुष्कर कार्य को कर ही दिया.

तीनों बैंकों से कुल मिला कर लगभग 65 लाख की लूट हुई थी. किसी भी बैंक में 21 लाख से कम की रकम नहीं थी, जो इन तीनों की कल्पना के अनुरूप ही थी. तीनों लूट के बाद एकदूसरे से अनजान अलगअलग शहर में चले गए.

पहली प्लानिंग में मिले 65 लाख रुपए

दूसरे दिन देश के सभी अखबारों और न्यूज चैनलों और सोशल मीडिया पर सिर्फ और सिर्फ इस दुस्साहसी घटनाओं का ही जिक्र था. पुलिस और प्रशासन अपनी नाकामी से हाथ मल रही थी. लंबे समय तक लोगों के होंठों पर इस घटना का बखान था. तीनों का मिशन सफल रहा. एक स्वनिर्धारित एडवेंचरस टास्क उन्होंने पूरा कर सब को चौंका दिया.

7 साल बाद. वही तारीख 15 जून समय शाम के 7 बजे. गेलार्ड कैफे के सामने एक मर्सिडीज गाड़ी आ कर खड़ी हुई. उस में से शानदार सूट और सुनहरे फ्रेम का चश्मा लगाए छगन उतरा. कुछ ही मिनट बाद फोर्ड की एक बड़ी सी गाड़ी आई. उतरने वाला शख्स मगन था, जो अपने चिरपरिचित महंगी जींस और शर्ट पहने था. लगभग 15 मिनट इंतजार करने के बाद भी जब जगन नहीं आया तो दोनों निराश भाव से कैफे के अंदर चले गए.

“हमें टाइम मैनेजमेंट का पाठ पढ़ाने वाला जगन खुद ही लेट हो गया.” छगन बोला.

“कहीं ऐसा तो नहीं कि पुलिस ने उसे पकड़ लिया हो. क्योंकि कैश वैन का ड्राइवर उसे ही पहचानता था. यह संभव है कि वैन की बरामदगी के बाद उस ने जगन का हुलिया पुलिस को बता दिया हो.” मगन ने शंका जाहिर की.

“यदि ऐसा है तो हमें भी तुरंत ही यहां से निकलना चाहिए. बहुत संभव है कि जगन ने पुलिस को हमारे यहां आने की सूचना भी दे दी हो.” छगन चिंतित स्वर में बोला.

7 साल बाद मिले तीनों दोस्त

अभी छगन और मगन बातें कर ही रहे थे कि वेटर ने आ कर उन दोनों को एक परची दी. परची में लिखा था, “सामने वाला केबिन हम लोगों के लिए बुक है उसी में आ जाओ.”

“अरे जगन तो हम से पहले ही यहां पहुंच चुका है. चलो, उसी केबिन में चलते हैं.” छगन खुश होते हुए बोला.

“आओ दोस्तों.” दोनों को देखते ही जगन गर्मजोशी से बोल पड़ा. तीनों एकदूसरे को देख कर बहुत खुश थे.

“सुनाओ अपने 7 साल की प्रोग्रेस.” छगन मुसकराते हुए बोला.

गलत आदतों से हुई सजा ए मौत – भाग 4

पुलिस के गले नहीं उतरा नौकरानी का बयान

अम्माजी के कमरे में शोर सुन कर वह वहां पहुंची तो देखा कि उन के बिस्तर पर खून फैला हुआ था और वह मरी पड़ी थीं. वाश बेसिन का कांच टूटा पड़ा था. उस ने शोर मचाने की कोशिश की तो उसे भी कांच के टुकड़े से घायल कर दिया और शोर मचाने पर हत्या की धमकी दी. बदमाश अलमारी से जेवर व नकदी लूट कर भाग गए. उन के जाने के बाद उस ने शोर मचाया, तब पड़ोसी आए.

नौकरानी रेनू शर्मा की यह बात पुलिस के गले नहीं उतर रही थी. वृद्धा की हत्या व लूट की गुत्थी नौकरानी रेनू के बयानों से उलझ गई थी. जिस तरह से कमला देवी की हत्या की गई, उस से यह बात समझ नहीं आ रही थी कि हत्यारों ने वाश बेसिन पर लगा शीशा तोड़ कर उस से हत्या क्यों की? यदि हत्यारे हत्या व लूट करने ही आए थे तो अपने साथ कोई हथियार क्यों नहीं लाए?

कमला देवी ने रेनू से चाय बनाने को कहा तो जरूर परिचित ही होंगे. फिर बदमाश कमला देवी की हत्या और लूट करने के बाद प्रत्यक्षदर्शी गवाह रेनू को जिंदा क्यों छोड़ गए? रेनू की बातों से पुलिस का शक उसी पर बढ़ता गया.

पुलिस को लगा कि घटना को अंजाम देने वाले जरूर उस के परिचित हैं और उस ने ही उन्हें बुलाया होगा. ये बात पुलिस ने रेनू से कही तो वह घबरा गई और अपने को निर्दोष बताने लगी. कई घंटों की पूछताछ व पुलिस द्वारा आश्वासन देने पर कि तुम्हें कुछ नहीं होगा, रेनू टूट गई और उस ने अंत में पूरे घटनाक्रम की सही जानकारी पुलिस को दे दी.

रेनू ने बताया कि अम्माजी के धेवता दामाद तरुण गोयल, जिसे वह पहले से जानती है, ने इस घटना को अंजाम दिया था. उस ने ही डरा दिया था कि वह सभी को 2 बदमाशों के आने की बात कहे. ऐसा न करने पर उस की भी हत्या कर दी जाएगी. इसी डर के चलते वह सही बात बताने से बच रही थी और पुलिस को घुमा रही थी.

इस जानकारी के बाद पुलिस ने 2 अप्रैल, 2022 को लोहिया नगर स्थित घर से हत्यारोपी तरुण गोयल को गिरफ्तार करने के साथ ही उस के बिस्तर के नीचे से लूटे गए 77,620 रुपए तथा ज्वैलरी जिस में सोने की 4 चूडिय़ां, कानों के टौप्स, 2 अंगूठियां, चांदी के नोट के साथ आलाकत्ल पेचकस भी बरामद कर लिया.

तरुण ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया था. कमला देवी की हत्या लूट के उद्देश्य से की गई थी. पुलिस को वारदात के दूसरे दिन ही आरोपी को गिरफ्तार करने में सफलता मिल गई थी.

सट्टे में हार गया था 50-60 लाख रुपए

हत्या व लूट के आरोपी तरुण गोयल की गिरफ्तारी के बाद 2 अपै्रल को ही एसएसपी आशीष तिवारी ने प्रेस कौन्फ्रैंस बुला कर इस सनसनीखेज हत्या व लूट की घटना का परदाफाश करते हुए जानकारी दी कि कर्ज में डूबे रिश्तेदार तरुण गोयल ने ही हत्या व लूट की घटना को अंजाम दिया था.

बदमाश 2 नहीं एक ही था. वह भी कोई बाहरी व्यक्ति न हो कर मृतका की बेटी रंजना उर्फ पिंकी का दामाद तरुण गोयल था. दामाद होने के कारण उस का उस घर में आनाजाना था उसे सभी सम्मान देते थे. नौकरानी रेनू शर्मा उसे पहले से ही जानती थी. हत्या व लूट की वारदात को तरुण गोयल ने अंजाम दिया था. वह मूलरूप से मेरठ के सदर बाजार थाना क्षेत्र के बंगला एरिया के मकान नंबर 195 का निवासी है.

तरुण मेरठ में सेनेटरी का काम करता था. उस का अच्छा कारोबार था. औनलाइन सट्टा खेलने के कारण उस पर 50-60 लाख रुपए का कर्ज हो गया था. लौकडाउन के समय वह मेरठ से भाग कर फिरोजाबाद आ गया था. जहां वह फिरोजाबाद के थाना उत्तर के लोहिया नगर की गली नंबर 2 में घरजमाई बन कर रहने लगा था. यहां रह कर वह सेनेटरी का काम करता था. ससुरालीजन उस की आर्थिक रूप से भी मदद करते थे.

तरुण को पता था कि उस के और नानी सास के परिजन शुक्रवार को एक साथ फिल्म देखने गए हैं और नानी सास घर पर अकेली हैं. उस की नजर नानी सास कमला देवी के रुपयों व आभूषणों पर थी. उसे पता था कि लोकेश का कोयले का बड़ा व्यवसाय है. उस ने सुनियोजित षडयंत्र रचा और पहली अप्रैल, 2022 की अपराह्नï सवा 2 बजे आर्यनगर में उन के घर पर पहुंच गया.

फैसले से परिजन दिखे संतुष्ट

डोरबैल बजाने पर रेनू ने दरवाजा खोल दिया. घर पर नौकरानी रेनू को देख कर उसे अपनी योजना पर पानी फिरते दिखा. लेकिन लालच में वशीभूत हो कर वह अपने को रोक नहीं सका. वह रेनू को पहले से ही जानता था, रेनू भी तरुण को जानती थी कि घर के दामाद हैं. तरुण रेनू से बिना कुछ कहे कमला देवी के कमरे में चला गया.

तरुण ने घटना को अंजाम दिया. रेनू द्वारा टोकने पर उस ने उसे भी घायल कर दिया. गर्भवती रेनू ने जब अपनी जान बख्शने की गुहार लगाई तो उसे धमकी दी कि घर में 2 बदमाशों द्वारा घटना करने की बात सभी को बताए और उस का नाम अपनी जुबान पर भूल से भी न लाए वरना उस का भी यही अंजाम कर देगा. इस के बाद अलमारी से नकदी व जेवर लूट कर वह भाग गया था.

तत्कालीन थाना उत्तर फिरोजाबाद के एसएचओ संजीव कुमार दुबे ने विवेचना कर आरोपी तरुण गोयल के खिलाफ कोर्ट में भादंवि की धारा 394, 302, 307, 506, 411 के अंतर्गत आरोप पत्र (चार्जशीट) दाखिल की थी. लगभग एक साल तक चले इस मुकदमे में अभियोजन पक्ष से 7 गवाहों को पेश किया गया. चश्मदीद गवाह रेनू शर्मा जो स्वयं भी पीडि़त थी, ने कोर्ट में अहम गवाही दी. फैसले में आरोपी तरुण गोयल को फांसी की सजा के बाद जेल भेज दिया गया.

अपर जिला एवं सत्र न्यायालय के विशेष न्यायाधीश (दस्यु प्रभावी क्षेत्र) आजाद सिंह ने अपने जजमेंट में लिखा है कि इस संबंध में मुजरिम तरुण गोयल से जब पूछा गया कि उस ने ये अपराध क्यों किया तो उस ने कहा, ‘मैं कर्ज के बोझ में दबा हुआ था और उस वक्त मेरे ऊपर शैतान हावी था.’

बचाव पक्ष की ओर से अधिवक्ता लियाकतत अली (विधि सहायक) ने जबकि अभियोजन पक्ष की ओर से डीजीसी (क्राइम) राजीव प्रियदर्शी तथा विशेष लोक अभियोजक अजय कुमार शर्मा ने पैरवी की. हत्यारे को फांसी की सजा दिलाने के लिए कमला देवी के परिवार के सदस्यों ने संघर्ष किया था.

फिलहाल तरुण गोयल जिला जेल में अपने किए की सजा भुगत रहा है. तरुण द्वारा घटना को अंजाम दिए जाने के बाद से उस के किसी भी परिजन ने अब तक उस की ओर से मुकदमे में पैरवी नहीं की और न जमानत कराई, साथ ही कोई भी परिजन उस से मिलने कोर्ट तक नहीं आया. घटना के बाद एक साल से वह जेल में ही था.

कथा न्यायालय के जजमेंट और जिला लोक अभियोजक (क्राइम) राजीव प्रियदर्शी व विशेष लोक अभियोजक (क्राइम) अजय कुमार शर्मा से बातचीत पर आधारित.

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