Extramarital Affairs : आशिक मिजाज ससुर की कातिल बहू

Extramarital Affairs : गीता पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिला बरेली के थाना बहेड़ी के गांव फरीदपुर के रहने वाले गंगाराम की दूसरे नंबर की बेटी थी. गंगाराम की गिनती गांव के  संपन्न किसानों में होती थी. उन की 3 शादियां हुई थीं. पहली पत्नी रमा की बीमारी से मौत हो गई तो उन्होंने सुधा से शादी की. पारिवारिक कलह की वजह से उस ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली तो उन्होंने तीसरी शादी रेशमा से की.

रेशमा से ही उन्हें 4 बेटियां और 2 बेटे थे. बड़ी बेटी ललिता की उन्होंने उम्र होने पर शादी कर दी थी. उस से छोटी गीता का 8वीं पास करने के बाद पढ़ाई में मन नहीं लगा तो उस ने पढ़ाई छोड़ दी. गीता जिस उम्र में थी, अगर उस उम्र ध्यान न दिया जाए तो बच्चों को बहकते देर नहीं लगती. वे सही गलत के फर्क को समझ नहीं पाते. ऐसा ही कुछ गीता के साथ भी हुआ.

गीता गंगाराम के अन्य बच्चों से थोड़ा अलग हट कर थी. वह जिद्दी थी, इसलिए उस के मन में जो आता था, वह हर हाल में वही करती थी. उसे लड़कों की तरह रहना, उन्हीं की तरह दोस्ती करना और बिंदास घूमते हुए मस्ती करना कुछ ज्यादा ही अच्छा लगता था. इसलिए वह लड़कों की तरह कपड़े तो पहनती ही थी, अपने बाल भी लड़कों की ही तरह कटवा रखे थे. वह अकसर गांव के लड़कों के साथ घूमती रहती थी. उम्र के साथ उस के बदन में ही नहीं, सुंदरता में भी निखार आ गया था.

गंगाराम के पास ट्रैक्टर भी था और मोटरसाइकिल भी. गीता दोनों ही चीजें चला लेती थी. इसलिए उस का जब मन होता, वह मोटरसाइकिल ले कर घूमने निकल जाती. उसे लड़कों से कोई परहेज नहीं था, इसलिए गांव के लड़के उस के आसपास मंडराते रहते थे. गीता नादान तो थी नहीं कि उन लड़कों की मंशा न समझती, इसलिए अपने बिंदासपन से वह उन्हें अंगुलियों पर नचाती रहती थी. लेकिन उन लड़कों को इस का फायदा भी मिलता था. वे लड़के गीता से जो चाहते थे, वह उन्हें मिला भी.

फिर तो गांव में गीता को ले कर तरहतरह की चर्चाएं होने लगीं. जब इस सब की जानकारी गीता के पिता गंगाराम को हुई तो उस ने गीता पर बंदिशें लगाईं. लेकिन गीता अब काबू में आने वाली कहां थी. कोई न कोई बहाना बना कर वह घर से निकल जाती. कोई ऊंचनीच न हो जाए, इस डर से गंगाराम गीता के लिए लड़के की तलाश करने लगा. जल्दी ही उस की यह तलाश खत्म हुई और उसे बरेली के ही थाना नवाबगंज के गांव लावाखेड़ा निवासी परमानंद का बेटा मनोज मिल गया.

परमानंद भी किसान थे. उस के पास भी ठीकठाक खेती थी, जिस की वजह से उस के यहां भी गांवदेहात के हिसाब से किसी चीज की कमी नहीं थी. उस के परिवार में पत्नी उर्मिला के अलावा 3 बेटियां और 2 बेटे मनोज तथा चैतन्य स्वरूप थे. बेटियों का वह विवाह कर चुका था. अब मनोज का नंबर था. यही वजह थी कि जब गंगाराम उस के यहां अपने किसी रिश्तेदार के माध्यम से रिश्ता ले कर पहुंचा तो बात बन गई. इस के बाद सारे रस्मोरिवाज पूरे कर के मनोज और गीता को शादी के गठबंधन में बांध दिया गया. यह शादी फरवरी, 2009 में हुई थी.

गीता सुंदर तो थी ही, साथ ही उस में वे सारे गुण विद्यमान थे, जो पुरुषों को दीवाना बना देते हैं. यही वजह थी कि गीता ने अपनी अदाओं से पहली ही रात में मनोज को अपना दीवाना बना दिया था. गीता पहली ही रात में समझ गई कि उसे पति उस के मनमाफिक मिला है. वह जैसा सीधासादा, अंगुलियों पर नाचने वाला पति चाहती थी, मनोज ठीक वैसा ही निकला था.

2-4 दिनों में ही मनोज गीता के हुस्न में इस कदर खो गया कि हर पल, हर जगह उसे गीता ही गीता नजर आने लगी. उस का गीता को छोड़ कर कहीं जाने का मन ही न होता. खेतों पर भी उस का मन न लगता. लेकिन जिम्मेदारी ऐसी चीज है, जो पत्नी तो क्या, मांबाप से भी दूर होने को मजबूर कर देती है. यही हाल मनोज का भी हुआ. साल भर बाद वह एक बेटे का बाप बना तो खर्च बढ़ते ही उसे अपनी जिम्मेदारी का अहसास होने लगा.

इस जिम्मेदारी को निभाने के लिए मनोज को कमाना धमाना जरूरी था, जिस के लिए वह ऊधमसिंहनगर चला गया. वहां उसे टाटा मैजिक के लिए पुर्जे बनाने वाली अल्ट्राटेक कंपनी में नौकरी मिल गई. रहने के लिए उस ने शांति कालोनी रोड स्थित बधईपुरा में जागरलाल के मकान में किराए पर कमरा ले लिया.

कमाईधमाई के लिए मनोज खुद तो ऊधमसिंहनगर चला गया था, लेकिन घरवालों की देखरेख के लिए गीता को गांव में ही मांबाप के पास छोड़ गया था. उस ने एक बार भी नहीं सोचा कि उस के बिना गीता का मन गांव में कैसे लगेगा. शायद उसे लग रहा था कि जिस तरह वह पत्नीबच्चे और परिवार के लिए त्याग कर रहा है, उसी तरह गीता भी कर लेगी.

लेकिन मनोज की यह सोच गलत साबित हुई. क्योंकि गीता को तो शारीरिक संबंधों का चस्का पहले से ही लगा हुआ था. ऐसे में वह बिना पति के कैसे रह सकती थी. उस का दिन तो घर के कामधाम और बच्चे में कट जाता था, लेकिन रातें काटे नहीं कटती थीं. बेचैनी से वह पूरी रात करवटें बदलती रहती थी. शारीरिक सुख के बिना वह बुझीबुझी सी रहती थी. उस की इस बेचैनी और परेशानी को घर का कोई दूसरा सदस्य भले ही नहीं समझ सका, लेकिन पितातुल्य ससुर परमानंद ने जरूर समझ लिया था.

इस की वजह यह थी कि परमानंद लंगोट का कच्चा था. उस के लिए रिश्तों से ज्यादा महत्वपूर्ण स्त्री का शरीर था. शायद यही वजह थी कि गीता को उस ने देखते ही पसंद कर लिया था. परमानंद अपनी बहू पर शुरू से ही फिदा था. लेकिन बेटे के रहते वह बहू के करीब नहीं जा पा रहा था. बहू के नजदीक जाने के लिए ही उस ने बेटे को जिम्मेदारी का अहसास दिला कर उसे घर से बाहर भेज दिया था.

मनोज के जाने के बाद गीता की बेचैनी बढ़ी तो परमानंद गीता के नजदीक जाने की कोशिश करने लगा. वह उस से बातें करने के बहाने ढूंढ़ने लगा. गीता उस से बातें करती तो वह अकसर बातें करते करते अपनी सीमाएं लांघ जाता. वह उसे कोई सामान पकड़ाती तो सामान पकड़ने के बहाने वह उसे छूने (Extramarital Affairs) की कोशिश करता. ससुर की इन हरकतों से अनुभवी गीता को समझते देर नहीं लगी कि वह उस से क्या चाहता है. गीता को शक तो पहले से ही था, लेकिन जब निगाहें बदलीं और परमानंद बातबात में हंसीमजाक करने लगा तो उस का शक यकीन में बदल गया.

परमानंद देखने में ही जवान नहीं था, बल्कि शरीर से भी हृष्टपुष्ट था. इस की वजह यह थी कि वह अपने शरीर और खानपान का विशेष ध्यान रखता था. बच्चे सयाने हो गए हैं, यह कह कर पत्नी उर्मिला उसे पास नहीं फटकने देती थी. जबकि परमानंद अभी खुद को जवान समझता था और स्त्रीसुख की लालसा रखता था.

परमानंद को इस बात की जरा भी चिंता नहीं थी कि गीता उस की बेटी की उम्र की तो है ही, उस की बहू भी है. वह वासना में इस कदर अंधा हो गया था कि मर्यादा ही नहीं, रिश्ते नाते भी भूल गया. गीता अब उसे सिर्फ एक औरत नजर आ रही थी, जो उस की शारीरिक भूख शांत कर सकती थी. यहां परमानंद ही नहीं, गीता भी अपनी मर्यादा भुला चुकी थी. यही वजह थी कि वह परमानंद की किसी अशोभनीय हरकत का विरोध नहीं कर रही थी, जिस से उस की हिम्मत और हसरतें बढ़ती जा रही थीं. फिर तो एक स्थिति यह आ गई कि परमानंद की रात की नींद गायब हो गई. अब वह मौके की तलाश में रहने लगा.

आखिर उसे एक दिन तब मौका मिल गया, जब पत्नी मायके गई हुई थी. गरमी के दिन होने की वजह से बाकी बच्चे अंदर सो रहे थे. गीता घर के काम निपटा कर बाहर दालान में आई तो ससुर को बेचैन हालत में करवट बदलते देखा. उसे लगा ससुर की तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए उस ने उस के पास आ कर पूछा, ‘‘लगता है, आप की तबीयत ठीक नहीं है?’’

परमानंद हसरत भरी निगाहों से गीता को ताकते हुए बोला, ‘‘तुम इतनी दूरदूर रहोगी तो तबीयत ठीक कैसे रहेगी.’’

गीता को परमानंद की बीमारी का पहले से ही पता था. बीमार तो वह खुद भी थी. इसीलिए तो मौका देख कर उस के पास आई थी. उस ने चाहतभरी नजरों से परमानंद को ताकते हुए कहा, ‘‘यह आप का भ्रम है. मैं आप से दूर कहां हूं बाबूजी. आप के आगेपीछे ही तो घूमती रहती हूं.’’

अब गीता इस से ज्यादा क्या कहती. परमानंद ने उस का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा तो वह खुद ही उस के ऊपर गिर पड़ी. इस तरह एक बार मर्यादा की दीवार गिरी तो उस पर रोजरोज वासना की इमारत खड़ी होने लगी. गीता का तो मर्यादा से कभी कोई नाता ही नहीं रहा था, उसी में उस ने ससुर को भी शामिल कर लिया. परमानंद की संगत में आ कर वह शराब भी पीने लगी. अब वह शराब पी कर ससुर के साथ आनंद उठाने लगी. कुछ दिनों बाद उस ने अपने चचिया ससुर से भी संबंध बना लिए.

ये ऐसा रिश्ता है, जिसे कितना भी छिपाया जाए, छिपता नहीं है. किसी दिन उर्मिला ने गीता को परमानंद के साथ रंगरलियां मनाते रंगेहाथों पकड़ लिया. लेकिन उन दोनों पर इस का कोई असर नहीं पड़ा. जब घर का मुखिया ही पतन के रास्ते पर चल रहा हो तो घर के अन्य लोग चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते. उर्मिला भी जब ससुरबहू के इस मिलन को नहीं रोक पाई तो उस ने यह बात अपने बेटे मनोज को बताई.

मनोज जानता था कि उस का बाप और पत्नी बरबादी की राह पर चल रहे हैं, इसलिए वह भाग कर गांव आया. बाप से वह कुछ कह नहीं सकता था, उस ने गीता को समझाने की कोशिश की. लेकिन गीता अब कहां मानने वाली थी. हार कर मनोज उसे अपने साथ ले गया. मनोज का विचार था कि गीता साथ रहेगी तो ठीक रहेगी. लेकिन जिस की आदत बिगड़ चुकी हो, वह कैसे सुधर सकती है. बहुत कम लोग ऐसे मिलेंगे, जो ऐसे मामलों में सुधरने के बारे में सोचते हैं.

मनोज के नौकरी पर जाते ही गीता आजाद हो जाती. वह कमरे में ताला डाल कर घूमने निकल जाती. उस ने वहां भी अपने रंगढ़ंग दिखाने शुरू किए तो वहां भी रंगीनमिजाज लोग उस के पीछे पड़ गए. उन्हीं में रुद्रपुर की आदर्श कालोनी का रहने वाला शेखर और जगतपुरा का रहने वाला मनोज भटनागर भी था. गीता के दोनों से ही प्रेमसंबंध बन गए. शेखर ने बातें करने के लिए गीता को एक मोबाइल फोन भी खरीद कर दे दिया था. यही नहीं, दोनों गीता की हर जरूरत पूरी करने को तैयार रहते थे. गीता उन के साथ घूमतीफिरती, सिनेमा देखती, होटलों और रेस्तरांओं में खाना खाती. बदले में वह उन्हें खुश करती और खुद भी खुश रहती.

मनोज जागरलाल के जिस मकान में किराए पर रहता था, उसी में उस के बगल वाले कमरे में रामचंद्र मौर्य रहता था. वह जिला बरेली के थाना मीरगंज के अंतर्गत आने वाले गांव गौनेरा का रहने वाला था. था तो वह शादीशुदा, लेकिन वहां वह अकेला ही रहता था. वह वहां एक फैक्ट्री में ठेकेदारी करता था. अगलबगल रहने की वजह से मनोज और रामचंद्र के बीच परिचय हुआ तो दोनों एक ही जिले के रहने वाले थे, इसलिए उन में आपस में खास लगाव हो गया था. जल्दी ही रामचंद्र गीता के बारे में सब कुछ जान गया था. मनोज के काम पर जाते ही वह उस के कमरे पर पहुंच जाता और गीता से घंटों बातें करता रहता.

पुरुषों को अपनी ओर आकर्षित करने में माहिर गीता समझ गई कि रामचंद्र उस के कमरे पर क्यों आता है. वह जान गई कि पत्नी से दूर औरत सुख के लिए बेचैन रामचंद्र उसी के लिए उस के आगेपीछे घूमता है. रामचंद्र गीता से दोगुनी उम्र का था. लेकिन गीता के लिए इस का कोई मतलब नहीं था. उसे मतलब था तो सिर्फ देहसुख और पैसों से, जो चाहने वाले उस पर लुटा रहे थे. तरहतरह के मर्दों के साथ मजा लेने वाली गीता को रामचंद्र का आना अच्छा ही लगा. इसलिए गीता उस का मुसकरा कर स्वागत करने लगी.

फिर तो रामचंद्र को उस के करीब आने में देर नहीं लगी. जल्दी ही दोनों के मन ही नहीं, तन भी एक हो गए. लेकिन जितनी जल्दी वे एक हुए, उतनी ही जल्दी उन की पोल भी खुल गई. एक दिन मनोज फैक्ट्री से जल्दी आ गया तो कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था. उस ने दरवाजा खटखटाया तो गीता ने दरवाजा काफी देर बाद खोला. वह मनोज को देख कर चौंकी. उस के कपड़े अस्तव्यस्त थे, इसलिए मनोज को लगा, वह सो रही थी. गीता ने सहमे स्वर में पूछा, ‘‘आज तुम इतनी जल्दी कैसे आ गए?’’

‘‘फैक्ट्री का जनरेटर खराब था, इसलिए काम नहीं हुआ.’’ कह कर मनोज कमरे में दाखिल हुआ तो सामने पलंग पर रामचंद्र को बैठे देख कर उसे माजरा समझते देर नहीं लगी. मनोज को देख कर वह तेजी बाहर निकल गया. मनोज ने गुस्से से पूछा, ‘‘यह यहां क्या कर रहा था?’’

‘‘पानी पीने आया था.’’ गीता ने हकलाते हुए कहा.

‘‘कमरा बंद कर के पानी पिला रही थी या उस के साथ गुलछर्रे उड़ा रही थी?’’

‘‘तुम्हें यह कहते शरम नहीं आती?’’ गीता चीखी.

‘‘शरम तो तुम्हें आनी चाहिए, जो एक के बाद एक गलत हरकतें करती आ रही हो. अपने मर्द के होते हुए पराए मर्द के साथ गुलछर्रे उड़ा रही हो. तुम्हें तो शरम से डूब मरना चाहिए.’’

‘‘तुम में है ही क्या? तुम न तो पत्नी को संतुष्ट (Extramarital Affairs)  कर सकते हो, न ही उस के खर्चे उठा सकते हो. अगर तुम को इस सब से परेशानी हो रही है तो मुझे छोड़ दो.’’ गीता ने अपना फैसला सुना दिया.

‘‘तू तो चाहती ही है कि मैं तुझे छोड़ दूं तो तू घूमघूम कर गुलछर्रे उड़ाए. तुझे तो अपनी इज्जत की पड़ी नहीं है, लेकिन मुझे तो अपनी इज्जत की फिक्र है. इसलिए सामान बांध लो और अब हम गांव चलते हैं.’’

अगले दिन मनोज ने नौकरी छोड़ दी और हिसाबकिताब ले कर गांव आ गया. कुछ दिनों गांव में रह कर मनोज अकेला ही दिल्ली चला गया, जहां किसी कंस्ट्रक्शन कंपनी में नौकरी करने लगा. उस के जाते ही गीता फिर आजाद हो गई. अब वह वही करने लगी, जो उस के मन में आता. शेखर और मनोज उस से मिलने उस की ससुराल भी आने लगे. मनोज के पास मोटरसाइकिल थी, गीता का जब मन होता, मोटरसाइकिल ले कर अकेली ही बरेली से रुद्रपुर चली जाती और अपने प्रेमियों से मिल कर वापस आ जाती.

रामचंद्र से गीता को विशेष लगाव था. वह उसी के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताती थी. जब इस सब की जानकारी परमानंद को हुई तो उस ने गीता को रोका. लेकिन वह मानने वाली कहां थी. उस ने एक दिन गीता को रामचंद्र के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया तो उस ने सरेआम रामचंद्र की पिटाई कर दी. रामचंद्र को यह बुरा तो बहुत लगा, लेकिन वह उस समय कुछ करने की स्थिति में नहीं था.

गीता को भी ससुर की यह हरकत पसंद नहीं आई. क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि कोई उसे अपनी जागीर समझे और उस की बेलगाम जिंदगी पर अंकुश लगाए. जब उस ने अपने पति मनोज की बात नहीं मानी तो परमानंद की बात कैसे मानती. यही वजह थी कि परमानंद बारबार उस के रास्ते में रोड़ा बनने लगा तो उस ने इस रोड़े को हमेशा के लिए हटाने की तैयारी कर ली. इस के लिए उस ने रामचंद्र को भी राजी कर लिया. वह राजी भी हो गया, क्योंकि वह भी उस से अपनी बेइज्जती का बदला लेना चाहता था.

गीता ने ससुर को ठिकाने लगाने की जो योजना बनाई थी, उसी के अनुसार 27 जुलाई को वह परमानंद को मोटरसाइकिल से रुद्रपुर रामचंद्र के कमरे पर ले गई. देर रात तक गीता, रामचंद्र और परमानंद बैठ कर शराब पीते रहे. गीता और रामचंद्र ने तो खुद कम पी, जबकि परमानंद को जम कर पिलाई. यही नहीं, उस की शराब में नींद की गोलियां भी मिला दी थीं, जिस से कुछ ही देर में वह बेहोश हो कर लुढ़क गया. उस के बाद गीता और रामचंद्र ने उसी के अंगौछे से उस का गला घोंट दिया.

इस के बाद गीता ने मोटरसाइकिल स्टार्ट की तो रामचंद परमानंद की लाश को बीच में बैठा कर पीछे स्वयं बैठ गया. गीता मोटरसाइकिल ले कर काला डूंगी रोड पर भाखड़ा नदी के किनारे पहुंची, जहां दोनों ने परमानंद की लाश को बोरी में कुछ ईंटों के साथ डाल कर नदी के पानी में फेंक दिया. इस के बाद गीता रुद्रपुर में ही रामचंद्र के कमरे पर कई दिनों तक रुकी रही.

11 अगस्त को गीता मोटरसाइकिल से अपनी ससुराल लावाखेड़ा पहुंची तो परमानंद के छोटे बेटे चैतन्य स्वरूप ने पिता के बारे में पूछा. तब गीता ने किसी रिश्तेदारी में जाने की बात कह कर बात खत्म कर दी. 2 दिन ससुराल में रह कर गीता फिर चली गई. गीता के जाने के बाद कई दिनों तक परमानंद नहीं लौटा तो घर वालों को चिंता हुई.

उन्हें गीता पर शक हुआ कि कहीं उस ने अपने प्रेमियों शेखर और मनोज के साथ मिल कर उस की हत्या तो नहीं करा दी. चैतन्य स्वरूप ने कोतवाली नवाबगंज जा कर अपने पिता के गायब होने की सूचना दी. उस समय इंसपेक्टर अशोक कुमार के पास कोतवाली का भी चार्ज था. उन्हें लगा कि बहू ससुर को क्यों गायब करेगी? यही सोच कर उन्होंने चैतन्य को लौटा दिया. परमानंद का परिवार उस की तलाश में लगा रहा. उसी बीच 21 अगस्त को इंसपेक्टर अशोक कुमार का तबादला हो गया तो उन की जगह आए इंसपेक्टर जे.पी. तिवारी. चैतन्य स्वरूप उन से मिला तो उन्होंने उस से तहरीर ले कर शेखर और मनोज भटनागर के खिलाफ अपराध संख्या-827/13 पर भादंवि की धारा 364 के तहत मुकदमा दर्ज करा कर गीता के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगवा दिया.

सर्विलांस सेल के पुलिसकर्मियों की गीता से कई बार बात हुई. गीता उन से कभी गुजरात में होने की बात कहती तो कभी हरियाणा में होने की बात बताती, जबकि उस की लोकेशन बरेली के आसपास की ही थी. पुलिस समझ गई कि गीता बहुत ही शातिर है. गीता के नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई गई तो पता चला कि वह सब से अधिक अपनी बड़ी बहन ललिता से बात करती थी. इंसपेक्टर जे.पी. तिवारी ने ललिता और उस के पति प्रमोद को थाने ला कर पूछताछ की तो उन्होंने गीता का ठिकाना बता दिया. गीता उस समय बरेली के थाना मीरगंज के सामने राजेंद्र सेठ के मकान में किराए का कमरा ले कर रह रही थी. उसी के साथ रामचंद्र मौर्य भी था. पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया. यह 23 दिसंबर, 2013 की बात है.

पूछताछ में गीता और रामचंद्र ने परमानंद की हत्या का अपराध स्वीकार कर के उस की हत्या की पूरी कहानी सिलसिलेवार बता दी. पुलिस ने दोनों को रुद्रपुर ले जा कर उन की निशानदेही पर भाखड़ा नदी से परमानंद की लाश बरामद करने की कोशिश की, लेकिन लाश बरामद नहीं हो सकी. इस के बाद पुलिस ने दोनों को सीजेएम की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. लाश की बरामदगी के लिए एक बार फिर पुलिस दोनों को रिमांड पर लेने का प्रयास कर रही थी. लेकिन कथा लिखे जाने तक दोनों का रिमांड मिला नहीं था.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

शक्की शौहर की भयानक करतूत : पत्नी और मासूम बच्चों की बेरहमी से हत्या

मौसी के हुस्न का शिकारी

नय अपने दोस्त पिंटू के साथ होटल खोलना चाहता था, इसलिए उसे 15 हजार रुपयों की सख्त जरूरत थी. उस ने पिंटू को पूरा भरोसा दिलाया था कि रुपयों  की व्यवस्था कर लेगा. क्योंकि उसे विश्वास था कि उस की मौसी इंद्रा उसे रुपए दे देंगी. लेकिन मौसी ने तो रुपए देने से साफ मना कर दिया था. यह बात विनय को बड़ी नागवार लगी थी, क्योंकि मौसी के इस तरह मना कर देने से दोस्त के सामने उस की बड़ी बेइज्जती हुई थी.

इस बात को ले कर पिंटू अकसर उस की हंसी उड़ाने लगा था. मजबूरी में विनय खून का घूंट पी कर रह जाता था. तब उसे मौसी पर बहुत गुस्सा आता था. धीरेधीरे उस का यह गुस्सा इस कदर बढ़ता गया कि उस ने धोखा देने वाली मौसी को सबक सिखाने का निश्चय कर लिया. वह उस की हत्या कर के उस के घर में रखी नकदी और गहने लूट लेना चाहता था.

हमेशा की तरह 27 जनवरी को जब पिंटू ने विनय को चिढ़ाने के लिए रुपयों के बारे में पूछा तो उस ने गंभीर हो कर कहा, ‘‘चिंता मत करो दोस्त, अब बहुत जल्द रुपयों की व्यवस्था हो जाएगी.’’

‘‘वह कैसे, मौसी रुपए देने को तैयार हो गई क्या? पहले तो उस ने मना कर दिया था, अब कैसे राजी हो गई?’’ पिंटू ने उसे जलाने के लिए मुसकराते हुए कहा.

‘‘भई सीधी अंगुली से घी न निकले तो अंगुली टेढ़ी कर देनी चाहिए. मौसी सीधे रुपए नहीं दे रही न, देखो अब मैं कैसे उस से रुपए लेता हूं.’’ विनय ने कहा.

‘‘भई, जरा हमें भी तो बता मौसी से कैसे रुपए लेगा?’’ पिंटू ने हैरानी से पूछा.

‘‘मौसी के पास काफी गहने हैं. घर खर्च के लिए 10-5 हजार रुपए हमेशा घर में रखे ही रहते हैं. इस के अलावा आलोक भैया बिजनैस करते हैं, उन के भी कुछ न कुछ रुपए रखे ही रहते होंगे. मैं सोच रहा हूं मौसी की हत्या कर के उन के गहने और रुपए हथिया लूं.’’ विनय ने कहा, ‘‘अब तू बता, तेरा क्या इरादा है? इस मामले में तू मेरा साथ देगा या नहीं?’’

‘‘यार जिंदगी का सवाल है. इसलिए मैं तेरा साथ देने को तैयरा हूं. लेकिन पकड़े गए तो जिंदगी बनने के बजाय बिगड़ जाएगी.’’ पिंटू ने चिंता व्यक्त की.

‘‘मैं ने ऐसी योजना बना रखी है कि किसी को पता ही नहीं चलेगा. फिर मौसी पूरे दिन घर में अकेली ही रहती हैं. हम अपना काम कर के आराम से चुपचाप चले जाएंगे. बस इतना ध्यान रखना होगा कि कोई पड़ोसी न देखने पाए.’’ विनय ने कहा.

पिंटू ने हामी भर दी तो विनय ने उसे अपनी योजना समझा कर अगले दिन यानी 28 जनवरी को ही उसे अंजाम देने की तैयारी कर ली. अगले दिन सुबह ही पिंटू विनय के घर पहुंच गया. दोनों ट्रक से उन्नाव के लिए रवाना हो गए. विनय की मौसी का घर उन्नाव बाईपास के पूरननगर में था. इसलिए दोनों बाईपास पर ही उतर गए. वहां से दोनों पैदल ही चल पड़े.

जिस समय विनय पिंटू के साथ अपनी मौसी इंद्रा के घर पहुंचा, उस के मौसा प्रकाशचंद्र श्रीवास्तव अपनी ड्यूटी पर राजकीय आयुर्वेदिक औषधालय जा चुके थे तो मौसेरा भाई आलोक लुकइयाखेड़ा स्थित अपनी कंप्यूटर की दुकान पर. इंद्रा घर में अकेली ही थी. विनय ने घंटी बजाई तो उन्होंने झट दरवाजा खोल दिया.

विनय और पिंटू को देख कर इंद्रा ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आओ, अंदर आओ. आज बहुत दिनों बाद आए हो?’’

‘‘हां, आप से मिले बहुत दिन हो गए थे, इसीलिए सोचा कि चलो आज मौसी से मिल आते हैं.’’ कहते हुए विनय अंदर आ गया.

‘‘बहुत अच्छा किया. इधर कई दिनों से तुम्हारी याद आ रही थी.’’ इंद्रा ने विनय के कंधे पर हाथ रख कर सोफे पर बैठते हुए कहा, ‘‘तुम दोनों बैठो, मैं चाय बना कर लाती हूं.’’

इतना कह कर इंद्रा रसोई में चाय बनाने चली गई तो विनय और पिंटू अपनी योजना को अंजाम देने के बारे में खुसुरफुसुर करने लगे. विनय ने टीवी की आवाज तेज कर दी, जिस से हत्या करते समय मौसी चीखे भी तो उस की आवाज उसी में दब जाए. इंद्रा ने चाय और नमकीन ला कर रखी तो सभी खानेपीने लगे.

चाय पीते हुए विनय ने कहा, ‘‘मौसी, मैं आप से होटल खोलने के लिए 15 हजार रुपए कब से मांग रहा हूं. लेकिन आप दे नहीं रहीं हैं. आप के अलावा कोई दूसरा मेरी मदद नहीं कर सकता, इसलिए आप कैसे भी रुपयों की व्यवस्था कर दीजिए.’’

‘‘मैं तुम्हें न जाने कितने रुपए दे चुकी हूं, इस का तुम्हारे पास कोई हिसाब है. जब देखो, तब तुम रुपए लेने आ जाते हो,’’ इंद्रा ने नाराज हो कर कहा, ‘‘तुम्हारी आदत पड़ गई है, मुझ से रुपए ऐंठने की. लेकिन अब मैं तुम्हें एक कौड़ी नहीं दूंगी. अगर तुम ने ज्यादा परेशान किया तो तुम्हारी शिकायत तुम्हारे मौसा से कर दूंगी.’’

मौसी की बातें सुन कर विनय गुस्से से पागल हो उठा. वह तो पिंटू के साथ उस की हत्या की योजना बना कर ही आया था, इसलिए फुरती से उठा और सामने बैठी मौसी को दबोच कर बोला, ‘‘तू मौसा से मेरी शिकायत करेगी, शिकायत तो तब करेगी, जब जिंदा रहेगी. मैं अभी तुझे जान से मारे देता हूं.’’

कह कर विनय ने अपने गले में लिपटा मफलर निकाला और मौसी के गले में लपेट कर कसने लगा. दबाव से इंद्रा की सांस रुकने लगी तो वह छटपटाने लगी. उस ने बचाव के लिए हाथपैर बहुत मारे, लेकिन गुस्से में पागल विनय फंदे को कसता गया. कुछ देर छटपटाने के बाद इंद्रा का शरीर शिथिल पड़ गया.

विनय को लगा कि मौसी का खेल खत्म हो गया है तो उस ने मफलर छोड़ दिया. उस के मफलर छोड़ते ही इंद्रा लुढ़क गई. विनय के साथ आए पिंटू को लगा कि अगर इंद्रा जिंदा रह गई तो उन का भेद खुल जाएगा. उस के बाद उन्हें जेल की हवा खानी पड़ेगी. यह सोच कर पिंटू ने घर में रखी सिल उठा कर इंद्रा के सिर पर पटक दिया, जिस से उस का सिर फट गया.

इंद्रा की हत्या करने के बाद विनय और पिंटू अलमारी की चाबी ढूंढ़ने लगे. जल्दी ही उन्हें चाबी मिल गई. विनय ने अलमारी खोल कर उस के लौकर में रखे सोने के एक जोड़ी झुमके, सोने की एक जंजीर, अंगूठी, 1 जोड़ी चांदी की पायल निकाल लिए. विनय को अलमारी में उतने रुपए नहीं मिले, जितने कि उसे उम्मीद थी. अलमारी से उसे मात्र 15 सौ रुपए ही मिले. चलते समय उस ने मौसी का मोबाइल भी ले लिया था. घर से निकल कर उन्होंने बाहर से दरवाजे की कुंडी बंद कर दी और भाग गए. घर से बाहर आते ही विनय ने मौसी के मोबाइल का स्विच औफ कर दिया था.

दोपहर को आलोक को कोई काम पड़ा तो उस ने अपनी मम्मी इंद्रा को फोन किया. लेकिन मम्मी के फोन का स्विच औफ था. काफी देर यही हाल रहा तो परेशान हो कर वह घर आ गया. उस ने दरवाजे पर बाहर से कुंडी लगी देखी तो सकते में आ गया. उसे लगा कि शायद मम्मी घर पर नहीं हैं. दरवाजा खोल कर वह घर के अंदर दाखिल हुआ तो खून से सनी मम्मी की लाश देख कर वह चीखने लगा. उस का चीखना सुन कर आसपड़ोस वाले आ गए.

इंद्रा की खून से सनी लाश देख कर पड़ोसियों को समझते देर नहीं लगी कि कोई उस की हत्या कर गया है. सूचना पा कर प्रकाशचंद्र श्रीवास्तव भी आ गए. अलमारी खुली थी और उस में रखे गहने, नकदी और उन की पत्नी का मोबाइल गायब था. लूट और हत्या के इस मामले की जानकारी थाना कोतवाली को दी गई.

एक महिला की हत्या और लूट की सूचना मिलते ही प्रभारी निरीक्षक धर्मेंद्र सिंह रघुवंशी सिपाहियों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने डौग स्क्वायड और फोरेंसिक टीम को भी बुला लिया था. सारी काररवाई निपटाने के बाद कोतवाली प्रभारी धर्मेंद्र सिंह रघुवंशी मृतका इंद्रा के बेटे आलोक कुमार श्रीवास्तव को साथ ले कर कोतवाली आ गए, जहां उस की तहरीर पर हत्या और लूट का मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

अभियुक्तों तक पहुंचने का पुलिस के पास एक ही सूत्र था, मृतका का मोबाइल. पुलिस ने उसे सर्विलांस पर लगवा दिया. लेकिन मोबाइल का स्विच औफ था, इसलिए उस की लोकेशन नहीं मिल रही थी. पुलिस ने इंद्रा के हत्यारों तक पहुंचने के लिए बहुत हाथपैर मारे, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.

इस मामले का खुलासा न होते देख पुलिस अधीक्षक रतन कुमार श्रीवास्तव ने अपर पुलिस अधीक्षक रामकिशन यादव और क्षेत्राधिकारी (सदर) मनोज अवस्थी की देखरेख में एक पुलिस टीम गठित की, जिस का नेतृत्व प्रभारी निरीक्षक धर्मेंद्र सिंह रघुवंशी को ही सौंपा गया.

टीम का गठन होते ही संयोग से घटना के लगभग महीने भर बाद इंद्रा के मोबाइल की लोकेशन कानपुर के नौबस्ता की मिल गई. उस नंबर का भी पता चल गया, जो नंबर उस में उपयोग में लाया जा रहा था.

पुलिस टीम ने लोकेशन और नंबर के आधार पर उस आदमी को पकड़ लिया, जिस के पास वह मोबाइल फोन था. पूछताछ में उस ने बताया कि यह मोबाइल फोन उस ने सपई गांव के रहने वाले पिंटू सिंह चंदेल से खरीदा था.

पुलिस को उस आदमी से पिंटू का पता मिल गया था. छापा मार कर पुलिस ने 3 मार्च को पिंटू सिंह चंदेल को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. प्रभारी निरीक्षक धर्मेंद्र सिंह रघुवंशी ने कोतवाली ला कर जब उस से इंद्रा की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उस ने बिना किसी हीलाहवाली के स्वीकार कर लिया कि मृतका की बहन के बेटे विनय के साथ मिल कर उस ने इस घटना को अंजाम दिया था.

पिंटू से पूछताछ के बाद पुलिस ने विनय की तलाश में उस के घर छापा मारा. लेकिन वह नहीं मिला. तब पुलिस ने पिंटू को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

पुलिस विनय श्रीवातस्तव की तलाश में पूरे जोरशोर से लग गई थी, लेकिन पुलिस से बचने के लिए वह छिप गया था. आखिर 13 मार्च को पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर विनय को भी गिरफ्तार कर लिया.

जब उस का दोस्त पकड़ा जा चुका था तो विनय के झूठ बोलने का सवाल ही नहीं था. इसलिए उस ने मौसी की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. इस पूछताछ में उस ने जो कहानी सुनाई, वह हैरान करने वाली थी. क्योंकि विनय के अपनी मां समान ही नहीं, उम्र में दोगुनी से भी ज्यादा मौसी से अवैध संबंध थे. इस तरह अवैध संबंधों की नींव पर टिकी लूट और हत्या की यह कहानी कुछ इस प्रकार थी.

उत्तर प्रदेश के जिला उन्नाव के थाना कोतवाली के मोहल्ला पूरननगर में रहते थे प्रकाशचंद्र श्रीवास्तव. वह राजकीय आयुर्वेदिक औषधालय में वार्डब्वाय थे. उन के परिवार में पत्नी इंद्रा के अलावा बेटा आलोक और बेटी ज्योति थी. पढ़ाई पूरी कर के आलोक ने लुकइयाखेड़ा में कंप्यूटर की दुकान खोल ली थी. ज्योति की भी पढ़ाई पूरी हो गई तो प्रकाशचंद्र ने उस की शादी कर दी थी.

इंद्रा की बड़ी बहन मंजूलता की शादी कानपुर के थाना नौबस्ता के सरस्वतीनगर के रहने वाले अरुणकुमार श्रीवास्तव के साथ हुई थी. अरुण कुमार लोहिया फैक्ट्री में नौकरी करते थे. उन के कुल 3 बेटे थे, विकास, विनय और विनीत. पढ़ाई पूरी होने के बाद विकास ने लिटिल स्टार एंजल स्कूल में नौकरी कर ली थी, तो बीकौम करने के बाद विनय जूते का काम करने लगा था. सब से छोटे विनीत ने बीकौम कर के लैपटौप रिपेयरिंग का काम शुरू कर दिया था. 6 साल पहले अरुण कुमार की मौत हो गई तो घर की सारी जिम्मेदारी मंजूलता पर आ गई थी.

विनय का मन जूते के काम में कम, क्रिकेट खेलने में ज्यादा लगता था. मैच खेलने के चक्कर में ही वह इधरउधर घूमता रहता था. खाली होने की वजह से वह अकसर अपनी मौसी इंद्रा के घर भी चला जाता था, जहां वह कईकई दिनों तक रुका रहता था. इंद्रा उस का बहुत खयाल रखती थी.

एक तो प्रकाशचंद्र की उम्र हो गई थी, दूसरे बच्चे सयाने हो गए थे, इसलिए वह पत्नी में कम ही रुचि लेते थे जबकि इंद्रा चाहती थी कि पति रोजाना उस के पास आए और उसे संतुष्ट करे. पति से इच्छा पूरी न होने से इंद्रा का मन भटकने लगा तो वह, किसी युवक की तलाश में रहने लगी. लेकिन उसे इस बात का भी डर सता रहा था कि किसी युवक से संबंध बनाने पर अगर बात खुल गई तो बड़ी बदनामी होगी.

तब वह किसी ऐसे युवक की तलाश में लग गई, जिस से संबंध बनाने पर किसी को पता न चल सके. ऐसा युवक वही हो सकता था, जिस से उस के घरेलू संबंध हों यानी जिस के घर आनेजाने पर किसी को संदेह न हो. इस बारे में उस ने काफी सोचाविचारा तो उस की नजर अपनी बहन के बेटे विनय पर टिक गई. क्योंकि विनय उस के घर में ही रहता था. दूसरे बहन का बेटा होने की वजह से जल्दी उस पर कोई संदेह भी नहीं कर सकता था.

विनय उस उम्र में था, जिस उम्र में स्त्री देह कुछ ज्यादा ही आकर्षित करती है. तब रिश्तेनाते का भी खयाल नहीं रहता. विनय की शादी भी नहीं हुई थी. ऐसे में इंद्रा ने रिश्ते नाते, लाजशरम त्याग कर अपनी देह को उस के सामने परोसा तो जवानी की दहलीज पर खड़े विनय को फिसलते देर नहीं लगी. मौसी की देह तो उस के लिए अंधे सियार को पीपल ही मेवा की तरह लगा. वह निश्चिंत हो कर मौसी के साथ मौज करने लगा.

इंद्रा ने विनय को हिदायत दे रखी थी कि यह बात वह अपने दोस्तों तक को भी नहीं बताएगा. इसलिए विनय ने यह बात कभी किसी को नहीं बताई. उस का जब भी मन होता, वह मौसी के यहां आ जाता और जितने दिन मन होता, आराम से रहता. मौसा और मौसेरे भाई के जाने के बाद वही दोनों घर पर रह जाते थे, इसलिए उन का जो मन होता, आराम से करते.

इंद्रा विनय को न सिर्फ शारीरिक सुख देती थी, बल्कि उसे अपने आकर्षण में बांधे रहने के लिए उस की छोटीमोटी जरूरतें भी पूरी करती थी. वह उसे जेब खर्च के लिए रुपए भी देती थी. विनय को दोहरा लाभ था, इसलिए वह मौसी से खूब खुश रहता था.

क्रिकेट खेलने में ही विनय की दोस्ती कानपुर के थाना बिधनू के गांव सपई के रहने वाले वीरेंद्र सिंह चंदेल के बेटे पिंटू से हो गई थी. पिंटू नौबस्ता में चाय की दुकान चलाता था. विनय का जूते के काम में मन नहीं लगता था, इसलिए उस ने पिंटू के साथ होटल खोलने की योजना बनाई. होटल खोलने के लिए उसे 15 हजार रुपयों की जरूरत थी.

विनय को पूरा यकीन था कि मौसी इंद्रा उसे ये रुपए दे देंगी. इसीलिए उस ने बड़े ही विश्वास के साथ पिंटू से कह दिया था कि उस की मौसी एक बार मांगने पर रुपए दे देंगी. लेकिन मौसी ने रुपए नहीं दिए. उसी का नतीजा था कि नाराज हो कर विनय ने पिंटू के साथ मिल कर उन के यहां लूट के इरादे से उन की हत्या कर दी थी.

पूछताछ के बाद प्रभारी निरीक्षक धर्मेंद्र सिंह रघुवंशी ने विनय को पत्रकारों के सामने भी पेश किया. प्रेसवार्त्ता करा कर उन्होंने उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक विनय और पिंटू की जमानत नहीं हुई थी.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मजबूत डोर के कमजोर रिश्ते : भाई क्यों बना कसाई?

शक्की शौहर की भयानक करतूत : पत्नी और मासूम बच्चों की बेरहमी से हत्या – भाग 3

एक दिन जब इलियास अचानक घर आया तो नसीमा किसी से मोबाइल पर बात कर रही थी. इलियास को आया देख कर उस ने फोन काट दिया.

इस बात पर दोनों के बीच तीखी तकरार हो गई. एक बार तकरार का यह सिलसिला शुरू हुआ तो फिर यह आए दिन की बात हो गई. कुछ दिनों बाद नसीमा की तबीयत खराब रहने लगी. इलाज के लिए वह दिल्ली के गुरु तेग बहादुर सरकारी अस्पताल जाने लगी.

यह बात भी इलियास को परेशान करने लगी. उस के मन में यह बात घर कर गई कि नसीमा बहाने से किसी से मिलने जाती है. एक दिन जब इलियास दिल्ली में था तो नसीमा ने उसे फोन कर के बताया कि उस के पेट में तकलीफ है और उसे इलाज के लिए गुरु तेगबहादुर अस्पताल शाहदरा जाना है.’’

‘‘मुझे पहले ही पता था कि तुम वहीं जाने की बात करोगी. यार तो वहीं मिलते होंगे. तुम बागपत में भी तो दिखा सकती हो.’’ इलियास ने छूटते ही कहा.

‘‘खुदा के वास्ते सोचसमझ कर मुंह खोला करो इलियास. वहां अच्छी डाक्टर हैं, इसलिए जाती हूं.’’ नसीमा ने उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन वह कुछ समझने को तैयार ही नहीं था. उस ने दो टूक अपना फैसला सुना दिया, ‘‘तुम्हें दवा लेने के लिए वहां जाने की जरूरत नहीं है.’’

इस बात को ले कर दोनों के बीच खूब बहस हुई. नसीमा पति की आदत से बहुत परेशान थी. उस ने उस की बात एक कान से सुन कर दूसरे से निकाल दी. इलियास के मना करने के बावजूद वह शाहदरा गई. यह बात इलियास को पता चली तो अगले ही दिन वह गांव आ गया और उस ने नसीमा के साथ जमकर मारपीट की.

इलियास की मारपीट से क्षुब्ध हो कर नसीमा ने अगले दिन पुलिस चौकी टटीरी में शिकायत दर्ज करा दी. पुलिस ने इलियास को बुला कर डांटाफटकारा. उस ने अपनी गलती मान ली तो पुलिस ने दोनों का समझौता करा दिया.

जरूरत से ज्यादा बंदिशें बगावत को जन्म देती हैं. नसीमा के साथ भी यही हुआ. इस के बाद उस ने इलियास से पूछना ही बंद कर दिया. उस का जब मन करता, शाहदरा चली जाती. इस का भेद तब खुला, जब एक दिन इलियास दिन के वक्त घर आ गया. बच्चे घर पर थे.

बच्चों से जब यह पता चला कि नसीमा शाहदरा गई है तो इलियास का पारा सांतवें आसमान पर पहुंच गया. उस ने नसीमा का मोबाइल मिलाया. उस का गुस्सा तब और भी ज्यादा भड़क उठा, जब उस का मोबाइल बंद मिला.

शाम को नसीमा घर आई. उस के पास दवाइयां भी थीं. लेकिन इलियास कुछ सुनने को तैयार नहीं था. उस ने फिर उस के साथ मारपीट की. मोबाइल की बाबत पूछने पर नसीमा ने बताया कि उस की बैटरी खत्म हो गई थी, जिस की वजह से वह बंद हो गया था. वह सच बोल रही थी, पर इलियास को यकीन नहीं हुआ. वह कुछ भी सुनना या समझना नहीं चाहता था.

उस दिन के बाद इलियास बीवी पर शक को ले कर परेशान रहने लगा. शक उस के दिलोदिमाग पर इस कदर हावी हो चुका था कि उस की रातों की नींद उड़ गई. सोतेजागते, उठतेबैठते उस के दिमाग में एक ही बात चलती रहती थी कि नसीमा के किसी के साथ नाजायज ताल्लुकात हैं.

वह जबजब दिल्ली जाती थी, इलियास का दिमाग घूम जाता था. उसे यही लगता था कि वह किसी से मिलने जाती है. हालांकि इन बातों का उस के पास कोई सुबूत नहीं था, लेकिन यह सच है कि शक करने वाला सुबूत पर नहीं सिर्फ अपने शक पर यकीन करता है. इलियास के साथ भी ऐसा ही था.

आखिर अपने शक की वजह से उस ने मन ही मन नसीमा को रास्ते से हटाने का एक खतरनाक निर्णय ले लिया. एक दिन उस ने ममेरे भाई साजिद, दोस्त परवेज व भांजे सलीम को अपने पास बुलवाया. ये सभी बागपत में ही रहते थे. इलियास ने अपनी परेशानी और शक के बारे में उन्हें बता कर कहा कि वह नसीमा को रास्ते से हटाना चाहता है. पहले तो ये लोग डरे, लेकिन इलियास के समझाने पर मान गए.

उस दिन चारों ने नसीमा की हत्या की योजना बना ली. योजना को अंजाम तक पहुंचाने के लिए इलियास ने सब से पहले नसीमा से नाराजगी दूर कर के उस के साथ मधुर रिश्ते बनाने शुरू कर दिए. जब वह इस में कामयाब हो गया तो उचित मौके की तलाश में रहने लगा.

जल्द ही उसे यह मौका मिला गया. 6 फरवरी, 2014 को नसीमा ने इलियास को फोन कर के बताया कि उसे अल्ट्रासाउंड के लिए शाहदरा जाना है.

‘‘ठीक है कल आ जाना, मैं साथ चलूंगा.’’ इलियास ने खुश हो कर कहा. उस के लिए यह अच्छा मौका था. उस ने इस बाबत अपने साथियों को भी फोन कर के बता दिया. इस बीच इलियास ने एक चाकू का इंतजाम कर के अपने पास रख लिया.

हालांकि उसी शाम इलियास खुद भी घर आ गया था, लेकिन 7 फरवरी की सुबह 7 बजे वह नसीमा से यह कह कर निकल गया कि दिल्ली आ कर वह उसे फोन कर ले. अगले दिन दोपहर के वक्त नसीमा बच्चों को ले कर इलियास के पास पहुंच गई. इलियास बच्चों को उस के साथ देख कर चौंका. उस ने नसीमा से पूछा, ‘‘इन्हें साथ लाने की क्या जरूरत थी?’’

‘‘मैं ने सोचा इन्हें कपड़े दिला देंगे. इसलिए साथ ले आई.’’

इलियास को लगा था कि वह अकेली ही आएगी. उस ने उस का भविष्य भी तय कर दिया था. साजिद, परवेज व सलीम को वह कह चुका था कि वे लोग तैयार रहें, जब वह फोन करे तो आ जाएं.

इलियास ने पहले नसीमा को अस्पताल में दिखाया. फिर शाम को बच्चों को बाजार घुमाया, लेकिन यह कह कर कपड़े नहीं दिलाए कि फिर कभी दिला देगा. शाम ढले इलियास के तीनों साथी भी आ गए.

रात में टे्रन में सवार हो कर वह सवा 9 बजे अहेड़ा रेलवे स्टेशन पहुंचे. वहां इक्कादुक्का लोग ही थे. जब यात्री चले गए तो इलियास नसीमा के साथ पैदल ही गांव की तरफ चल दिया. साजिद, परवेज व सलीम उस के पीछे थे. रास्ता सुनसान था. इलियास ने पीछे घूम कर इशारा किया तो सलीम आगे आया और उस ने तमंचा निकाल कर फायर कर दिया. लेकिन उस का निशाना चूक गया.

सकते में आई नसीमा को अपने सामने मौत नाचती नजर आई. वह समझ गई कि वे लोग उसे खत्म कर देना चाहते हैं. दहशत के मारे वह जमीन पर गिर गई. वह गिड़गिड़ाई, ‘‘खुदा के वास्ते मुझे मत मारो इलियास.’’

‘‘तू रहम के काबिल नहीं है नसीमा.’’ गुस्से में दांत पीसते हुए इलियास ने चाकू निकाला और नसीमा को खींच कर किनारे ले गया और चाकू से उस की गरदन पर वार कर दिया. उस का वार चूकने की वजह से चाकू माथे पर लगा. इलियास ने दोबारा वार किया. इस बार नसीमा की गरदन से खून की धार फूट पड़ी. वह बचाव के लिए छटपटाई तो सलीम व साजिद ने उस के पैर जकड़ लिए.

मां को लहूलुहान देख कर बच्चों की चीख निकल गई. वह बुरी तरह सहम गए. नसीमा तड़प रही थी. तीनों बच्चे इलियास से लिपट कर रोने लगे. लेकिन शैतान बने इलियास ने उन्हें खूंखार नजरों से घूरते हुए अपने से दूर झटक दिया.

जरा सी देर में नसीमा ने दम तोड़ दिया. यह देख उस का 7 वर्षीय बेटा नाजिम बहन का हाथ पकड़ कर चिल्लाया, ‘‘नाजिया. भाग, अब्बू ने अम्मी को मार दिया है. यह हमें भी मार डालेंगे. अकरम का भी हाथ पकड़ ले.’’ दहशतजदा तीनों बच्चे गेंहू के खेत की तरफ भागने लगे.

लेकिन उन लोगों ने दौड़ कर तीनों बच्चों को पकड़ लिया. इलियास के सिर पर खून सवार था. वह हैवान बन चुका था. बच्चे मौत के डर से कांप रहे थे. लेकिन इलियास को जरा भी दया नहीं आई. उस ने सब से पहले 4 साल के अकरम की गरदन काट दी. यह देख नाजिम व नाजिया रोते रहे, ‘‘अब्बू हमें मत मारो, अब्बू…’’

इलियास को रहम नहीं आया और उस ने नाजिया व नाजिम का भी गला काट दिया. बच्चों ने छटपटा कर दम तोड़ दिया. इस के बाद इन लोगों ने नसीमा का मोबाइल स्विच औफ कर के वहीं डाल दिया. इलियास ने चाकू परवेज के हवाले कर दिया और चुपचाप घर आ गया.

रात में उस ने नसीमा के जो चंद फोटो घर में थे, सब जला दिए. इस के पीछे उस की सोच थी कि उस के फोटो दिखा कर पुलिस ट्रेन या अस्पताल में पूछताछ न कर सके. क्योंकि नसीमा के साथ वह भी था. इस के बाद वह सो गया. उस के तीनों साथी अपनेअपने घर चले गए.

अगली सुबह दिन निकलते ही इलियास ने नाटक शुरू कर दिया. लियाकत को यह जताने की कोशिश की कि नसीमा नहीं आई है, इसलिए वह परेशान है. उस का मकसद लियाकत को गवाह बनाना था. बाद में हत्या की बात सामने आने पर खूब ड्रामा किया. यही वजह थी कि एकाएक पुलिस को उस पर शक नहीं हुआ था.

इलियास को उम्मीद नहीं थी कि पुलिस उसे पकड़ लेगी. उस ने सोचा था कि कोई यकीन भी नहीं करेगा कि कोई इस तरह अपने बच्चों और पत्नी को मार सकता है. पुलिस गिरफ्त में इलियास को देख कर कोई विश्वास नहीं कर पा रहा था कि वह ऐसा भी कर सकता है.

पुलिस ने तीनों अभियुक्तों को अदालत में पेश किया. वहां इलियास को देखने के लिए लोगों की भीड़ लग गई. अदालत ने सभी को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया. बाद में पुलिस ने सलीम को भी मुखबिर की सूचना के आधार पर गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया.

अपराध चूंकि सनसनीखेज था, इसलिए पुलिस ने बाद में सभी आरोपियों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत भी काररवाई की. कथा लिखे जाने तक किसी भी आरोपी की जमानत नहीं हो सकी थी.

अगर इलियास ने शक को तवज्जो न दे कर खतरनाक निर्णय न लिया होता तो न सिर्फ नसीमा और उस के बच्चे जिंदा होते, बल्कि उस का घर भी उजड़ने से बच जाता.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

शक्की शौहर की भयानक करतूत : पत्नी और मासूम बच्चों की बेरहमी से हत्या – भाग 2

पूछताछ के दौरान इलियास ने पुलिस को बताया कि नसीमा के सिर व पेट में दर्द रहता था. उस का दिल्ली के सरकारी अस्पताल से इलाज चल रहा था. 7 फरवरी को उस का अल्ट्रासाउंड होना था. उस ने फोन पर यह बात इलियास को बता कर अस्पताल जाने के लिए कहा था. इलियास ने उसे जाने को कह दिया और उस शाम खुद गांव आ गया.

उसे हैरानी तब हुई, जब नसीमा देर रात तक घर नहीं आई. इलियास के अनुसार उस ने नसीमा से संपर्क करने की बहुत कोशिशें की. लेकिन नसीमा का मोबाइल बंद था. अगली सुबह जब उसे नसीमा की हत्या की खबर मिली तो वह हतप्रभ रह गया.

‘‘तुम्हारी किसी से कोई दुश्मनी तो नहीं थी?’’ एन.पी. सिंह ने पूछा तो वह बोला, ‘‘नहीं साहब, मैं तो सीधासादा आदमी हूं. मेरा तो कभी किसी से झगड़ा तक नहीं हुआ. कमाना और खाना, बस इसी में जिंदगी बीत रही है. पता नहीं मेरे परिवार को किस मनहूस की नजर लग गई.’’

पुलिस के सामने सब से बड़ा सवाल यह था कि जब इलियास और नसीमा की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी तो फिर नसीमा को कोई क्यों मारेगा? साथ ही यह भी कि उस के बच्चों ने किसी का क्या बिगाड़ा था? यह बात साफ थी कि हत्यारे नसीमा या उस के बच्चों को जिंदा नहीं छोड़ना चाहते थे.

ऐसे में नसीमा का मोबाइल इस मामले के खुलासे में महत्त्वपूर्ण कड़ी साबित हो सकता था. इस बीच मृतकों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट पुलिस को मिल गई थी. नसीमा की गरदन व माथे पर तो 3 घाव थे, जबकि बच्चों के भी गले काटे गए थे. सभी की मृत्यु की एकमात्र वजह सांस की नली का कटना और अधिक रक्तस्राव होना थी.

अगले दिन पुलिस ने गांव के कुछ लोगों से भी पूछताछ की. पुलिस को इलियास की पहली बीवी के बेटे आबिद पर भी शक हुआ. दरअसल कई बार युवा लड़के प्रौपर्टी और मनमुटाव के चलते सौतेली मां के हत्यारे बन जाते हैं. लेकिन जांचपड़ताल में पता चला कि नसीमा का आबिद से कोई मनमुटाव नहीं था. कभी किसी ने उन्हें लड़तेझगड़ते भी नहीं देखा था.

नसीमा व उस के बच्चों की हत्याएं साफ इशारा कर रही थीं कि यह वारदात लूटपाट के लिए नहीं, बल्कि किसी अपने ने की थी. नसीमा की मौत से चूंकि आबिद को ही कोई फायदा हो सकता था, इसलिए शक की सूई उसी पर ठहर गई. सौतेली मां की मौत की खबर पा कर वह भी गांव आ गया था.

सीओ एन.पी. सिंह और इंसपेक्टर अनिल कपरवाल ने आबिद से घुमाफिरा कर पूछताछ की. उस ने बताया कि घटना वाली रात वह दिल्ली में था. पुलिस ने उस के बयानों की न सिर्फ तसदीक कराई, बल्कि उस के मोबाइल की लोकेशन की भी पड़ताल कराई.

शाम तक इस बात की पुष्टि हो गई कि आबिद सच बोल रहा है. वह इस तरह का युवक नहीं था कि हत्या या कोई षड्यंत्र कर सके. पुलिस ने उस के छोटे भाई शाहिद से भी पूछताछ की. लेकिन पुलिस को कोई दिशा नहीं मिल सकी.

पुलिस असमंजस में थी. जो शक के दायरे में आया था वह कातिल नहीं निकला और जो कातिल थे उन का कोई सुराग नहीं मिल पा रहा था. यह निश्चित था कि नसीमा की हत्या रात के वक्त की गई थी.

अनुमान था कि वह 1 बजे पैसेंजर ट्रेन से अहेड़ा स्टेशन पर उतर कर गांव की तरफ चली होगी. ऐसा भी कोई शख्स नहीं मिला जो बता सके कि उस ने नसीमा या उस के बच्चों को स्टेशन पर उतरते देखा था. घटना को 2 दिन बीत चुके थे, लेकिन पुलिस किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पा रही थी.

कोई और रास्ता न देख पुलिस ने नसीमा की काल डिटेल्स और फोन की लोकेशन निकलवाई. नसीमा की घटना वाले दिन इलियास से बात हुई थी. उस की लोकेशन शाहदरा के गुरु तेगबहादुर अस्पताल के अलावा, लोनी व अहेड़ा रेलवे स्टेशन पर पाई गई थी.

इस का मतलब उस का मोबाइल हत्या के बाद बंद किया गया था. लेकिन इस से किसी नतीजे पर पहुंचना मुश्किल था. इस बीच पुलिस को पता चला कि 2 महीने पहले नसीमा ने इलियास के खिलाफ टटीरी पुलिस चौकी पर मारपीट करने की शिकायत दर्ज कराई थी. हालांकि इस विवाद को पुलिस ने सुलझा दिया था.

इलियास के कमजोर शरीर को देख कर ऐसा नहीं लगता था कि वह इतना बड़ा कांड कर सकता है. लेकिन जब इस मामले पर दूसरे नजरिए से सोचा गया तो यह बात निकल कर सामने आई कि अपराध की पृष्ठभूमि में शरीर से नहीं दिमाग से काम लिया जाता है.

जो लोग ज्यादा शातिर होते हैं वे जाहिर तक नहीं होने देते कि उन के मन में क्या चल रहा है. पुलिस को लगा कि हो न हो इलियास के मामले में भी ऐसा ही हो. पुलिस ने उसे शक के दायरे में ले कर उस के मोबाइल की काल डिटेल्स और लोकेशन निकलवाई.

पता चला दोपहर से ले कर रात तक उस के और नसीमा के मोबाइल की लोकेशन एक ही थी. इस का मतलब वे दोनों साथसाथ थे. जबकि उस ने पुलिस को बताया था कि वह शाम को घर आ गया था. जाहिर है वह झूठ बोल रहा था. लेकिन पुलिस इस संवेदनशील मामले में कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी, क्योंकि इलियास कोई ड्रामा भी खड़ा कर सकता था.

अपने पक्ष को और पुख्ता बनाने के लिए पुलिस ने उस की आउटगोइंग काल्स की जांच की. घटना वाले दिन उस की नसीमा के अलावा 3 और नंबरों पर बातें हुई थीं. पुलिस ने उन नंबरों का पता किया तो वे तीनों नंबर साजिद, परवेज व सलीम के नाम थे.

पुलिस को पता चला कि साजिद इलियास का ममेरा भाई, परवेज दोस्त व सलीम भांजा था. इस के बाद शक की सुई पूरी तरह इलियास पर ठहर गई. चौंकाने वाली बात यह थी कि उन तीनों के मोबाइल की लोकेशन भी घटना वाली रात अहेड़ा स्टेशन के आसपास थी.

पुलिस ने सब से पहले उन्हीं तीनों पर शिकंजा कसने का फैसला किया. 12 फरवरी की शाम पुलिस ने एक सूचना के आधार पर परवेज व साजिद को गौरीपुर मोड़ से गिरफ्तार कर लिया. दोनों को थाने ला कर पूछताछ की गई तो जल्दी ही दोनों ने ऐसी बात बताई, जिसे सुन कर पुलिसकर्मी हैरान रह गए.

पता चला कि इस हत्याकांड का षड्यंत्र इलियास ने ही रचा था. उसी ने इन लोगों के साथ मिल कर वारदात को अंजाम दिया था. यह पता चलते ही पुलिस ने बिना समय गंवाए इलियास को हिरासत में ले लिया.

पूछताछ में पहले तो उस ने पुलिस को बरगलाने का प्रयास किया, लेकिन जब साजिद व परवेज को उस के सामने खड़ा किया गया तो वह टूट गया. उस से विस्तृत पूछताछ में चौंकाने वाली कहानी निकल कर सामने आई. बात कोई खास नहीं थी, बस इलियास के शक्की स्वभाव ने उसे कातिल बना दिया था.

इलियास शक्की स्वभाव का था. नसीमा से विवाह के बाद उस की जिंदगी आराम से बीत रही थी. नसीमा हंसमुख स्वभाव की थी. किसी से भी हंसबोल लेना उस का स्वभाव था. इलियास चूंकि दिल्ली में काम करता था, इसलिए कभी दिलशाद गार्डन में रुक जाता था तो कभी गांव आ जाता था.

करीब एक साल पहले उस ने नसीमा को मोबाइल ले कर दे दिया, ताकि वक्त जरूरत पर वह उसे फोन कर सके. इस से यह सुविधा हो गई थी कि इलियास घर फोन कर के न सिर्फ खैर खबर ले लिया करता था, बल्कि नसीमा अपने मायके भी बात कर लेती थी.

इसी के चलते कई बार ऐसा हुआ कि जब इलियास ने घर वाला नंबर मिलाया तो वह व्यस्त मिला. पूछने पर नसीमा ने बताया भी कि वह बिहार बात कर रही थी. इस के बावजूद इलियास ने उसे कई बार डांटा. वह शक्की तो था ही, उसे लगता था कि नसीमा किसी पुरुष से बात करती है.

मजबूत डोर के कमजोर रिश्ते : भाई क्यों बना कसाई? – भाग 3

कुछ दिनों तक तो सब ठीक चलता रहा. घर वालों का रागिनी से धीरेधीरे ध्यान हटने लगा था. फिर मौका देख कर रागिनी अपने प्रेमी राकेश से मिलने लगी. उस ने राकेश से कह दिया कि वह उस के बिना जी नहीं सकती. वह उसे यहां से कहीं दूर ले चले, जहां हमारे सिवाय कोई और न हो. राकेश ने उसे भरोसा दिया कि वह परेशान न हो, जल्द ही वह कोई बीच का रास्ता निकाल लेगा.

रागिनी इस बात से पूरी तरह मुतमईन थी कि अब तो घर वाले भी उस की ओर से बेपरवाह हो चुके हैं. लिहाजा वह पहले की तरह ही चोरीछिपे प्रेमी राकेश से मिलने लगी. यह रागिनी की सब से बड़ी भूल थी. उसे यह पता नहीं था कि घर वाले केवल दिखावे के तौर पर उस की तरफ से बेपरवाह हुए थे. लेकिन उन की नजरें हर घड़ी उसी पर जमी रहती थीं.

सिकंदर को पता चल गया था रागिनी फिर से राकेश से मिलने लगी है. इस बार सिकंदर ने रागिनी को राकेश के साथ बतियाते हुए रंगेहाथ पकड़ लिया था. फिर क्या था, वह उसे वहीं से पकड़ कर घर ले आया और उस की खूब पिटाई की. इस बार पारसनाथ ने बेटे को पिटाई करने से नहीं रोका, बल्कि उस ने बेटी को सुधारने के लिए बेटे को पूरी आजादी दे दी थी.

पानी अब सिर से ऊपर गुजरने लगा था. डांट या मार का रागिनी पर अब कोई असर नहीं होता. रागिनी की करतूतों से घर वालों की इज्जत तारतार हो रही थी. बहन के चलते परिवार की हो रही बदनामी को देख सिकंदर भी ऊब गया, इसलिए उस ने रागिनी की हत्या करने की ठान ली. इस बाबत उस के मांबाप में से किसी को कुछ भी नहीं बताया.

सिकंदर का एक जिगरी दोस्त था कामदेव सिंह. वह शाहपुर थानाक्षेत्र के व्यासनगर जंगल में रहता था. उस पर कई आपराधिक केस भी चल रहे थे. सिकंदर जानता था यह काम कामदेव आसानी से कर सकता है. दोस्त होने के नाते वह उस की बात कभी नहीं टालेगा. वैसे सिकंदर खुद भी इस काम को अकेला कर सकता था लेकिन वह खून के मजबूत रिश्तों की डोर से बंधा हुआ था. ऐसा करते हुए उस के हाथ कांप सकते थे.

सिकंदर ने कामदेव को रागिनी की करतूतें बता कर उसे रास्ते से हटाने की बात कही तो वह उस का साथ देने के लिए तैयार हो गया. दोनों ने दीपावली के दिन रागिनी की हत्या करने की योजना बना ली ताकि पटाखों के शोर में रागिनी की मौत की आवाज दब कर रह जाए.

लेकिन दोनों को दीपावली के दिन किसी वजह से यह मौका नहीं मिला. तब कामदेव ने सिकंदर को भरोसा दिया कि वह अकेला ही इस काम को अंजाम दे देगा. 20 नवंबर, 2018 की शाम रागिनी घर से साइकिल से कहीं जा रही थी. घर से थोड़ी दूर पर रास्ते में उसे कामदेव मिल गया.

कामदेव ने रागिनी को अपनी बातों में उलझा लिया और उसे प्रेमी राकेश से मिलाने की बात कह कर अपनी मोटरसाइकिल पर बैठा लिया. घंटों तक वह उसे इधरउधर घुमाता रहा. रागिनी के कुछ भी पूछने पर वह गोलमोल उत्तर दे कर उसे बहलाता रहा. रात करीब 10 बजे वह उसे चिलुआताल थाने से कुछ दूर उमरपुर गांव के बाग की ओर ले गया. तब तक चारों ओर गहरा सन्नाटा पसर गया था.

उस ने मोटरसाइकिल बाग में रोक दी और वे दोनों बाइक से नीचे उतर गए. रागिनी ने उस से फिर पूछा कि राकेश कहां है? तो कामदेव ने कहा, ‘‘बस कुछ देर और ठहर जाओ. वह आता ही होगा.’’ इतना कहते ही कामदेव ने कमर में खोंसा हुआ पिस्टल निकाला. पिस्टल देख कर रागिनी के होश उड़ गए.

अब वह समझ गई कि कामदेव ने उस के साथ बड़ा धोखा किया है. वह कुछ कह पाती, उस से पहले ही कामदेव ने उस के शरीर में पिस्टल से 5 गोलियां उतार दीं. गोलियां लगते ही रागिनी ने मौके पर दम तोड़ दिया. कहीं वह जीवित न रह जाए, इसलिए कामदेव ने साथ लाए पेचकस से उस के शरीर को गोद डाला.

उसे ठिकाने लगा कर वह वहां से इत्मीनान से घर चला गया. फिर सिकंदर को फोन कर के काम हो जाने की जानकारी दे दी. जिस पिस्टल से उस ने रागिनी की हत्या की थी, वह उस ने अपने कमरे की अलमारी में छिपा दी.

अगले दिन सिकंदर ने अफवाह फैला दी कि रागिनी फिर से अपने प्रेमी के साथ घर से भाग गई. 2 दिनों बाद पारसनाथ को सच्चाई का पता चल गया था. सच जान कर उस ने चुप्पी साध ली थी लेकिन उस की दोनों बेटियों ने राज से परदा उठा कर उन्हें बेनकाब कर दिया. नहीं तो सिकंदर और कामदेव ने मिल कर जो खतरनाक योजना बनाई थी, शायद पुलिस उन तक नहीं पहुंच पाती.

मामले का खुलासा हो जाने के बाद थानाप्रभारी ने पारसनाथ और उस की पत्नी को बेकसूर मानते हुए घर भेज दिया. पुलिस ने अभियुक्त सिकंदर और उस के दोस्त कामदेव को गिरफ्तार कर लिया. 7 दिसंबर, 2018 को एसपी (नार्थ) अरविंद कुमार पांडेय और सीओ रोहन प्रमोद बोत्रे ने पुलिस लाइन में प्रैस कौन्फ्रैंस कर पत्रकारों को केस के खुलासे की जानकारी दी. दोनों हत्याभियुक्तों को पुलिस ने कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

शक्की शौहर की भयानक करतूत : पत्नी और मासूम बच्चों की बेरहमी से हत्या – भाग 1

सुबह के करीब 7 बजे का वक्त था. परेशान सा इलियास घर के बरामदे में टहल रहा था. कभी वह दरवाजे पर जा कर बाहर झांकता, तो कभी गली में चक्कर लगा कर घर में लौट जाता. पड़ोस में रहने वाले लियाकत ने इलियास को परेशान देख कर पूछ लिया, ‘‘खैरियत तो हैं इलियास मियां, कुछ परेशान दिख रहे हो?’’

इलियास ने पहले उसे गहरी नजरों से देखा, फिर जवाब दिया, ‘‘हां, परेशानी की ही बात है.’’

‘‘क्या हुआ मियां, जरा हमें भी तो बताओ?’’

‘‘तुम्हारी भाभी का कुछ अतापता नहीं है.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘कल वह दवा लेने दिल्ली गई थी, लेकिन अभी तक आई नहीं है. परेशानी यह है कि उस के साथ तीनों बच्चे भी हैं.’’

‘‘मोबाइल तो होगा उन के पास?’’ लियाकत ने जिज्ञासावश पूछा तो इलियास चिंता जाहिर करते हुए बोला, ‘‘हां है, लेकिन नंबर मिलामिला कर थक गया हूं. बराबर बंद आ रहा है. खुदा खैर करे, किसी परेशानी में न फंस गई हो वह.’’

‘‘ऐसा क्यों सोचते हो इलियास भाई, आ जाएंगी.’’ लेकिन लियाकत के समझाने पर भी इलियास की परेशानी रत्ती भर कम नहीं हुई. इलियास की जगह कोई और भी होता तो ऐसे हालातों में वह भी इसी तरह परेशान होता.

इलियास उत्तर प्रदेश के जाट बाहुल्य बागपत जिले के कोतवाली क्षेत्र में आने वाले गांव चौहल्दा का रहने वाला था. वह दिल्ली के दिलशाद गार्डन इलाके की रेडीमेड गारमेंट्स फैक्ट्री में इस्तरी करने का काम करता था. उस के परिवार में पत्नी नसीमा, 7 साल का बेटा नाजिम, 5 साल की बेटी नाजिया और 4 साल के बेटे अकरम को मिला कर 5 सदस्य थे. नसीमा 7 महीने की गर्भवती थी.

इलियास दिल्ली में अकेला रहता था. बीचबीच में वह गांव आता रहता था. जबकि नसीमा बच्चों के साथ गांव में ही रहती थी. दुबलपतला इलियास किसी तरह मेहनत कर के अपने परिवार को पाल रहा था.

7 फरवरी, 2014 को नसीमा बच्चों के साथ दिल्ली गई थी, लेकिन अगले दिन तक भी वापस नहीं आई थी. इलियास इसी बात को ले कर किसी अनहोनी की आशंका से परेशान था.

इलियास व लियाकत इस मसले पर बात कर ही रहे थे कि तभी एक शख्स तेजी से साइकिल चलाते हुए उन के पास आया. उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. उस ने हांफते हुए बताया, ‘‘इलियास भाई गजब हो गया.’’

इलियास ने फटीफटी आंखों से उस की तरफ देख कर पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘किसी ने नसीमा भाभी का कत्ल कर दिया है.’’

‘‘या अल्लाह,’’ इलियास अपने कानों पर हाथ रख कर चिल्लाया.

‘‘भाभी की लाश गांव के रास्ते पर पड़ी है.’’ उस ने बताया तो इलियास के होश उड़ गए. वह रोने बिलखने लगा तो जरा सी देर में लोग एकत्र हो गए. सभी दौड़ेदौड़े गांव के बाहर पहुंचे.

नसीमा की लाश अहेड़ा रेलवे स्टेशन से चौहल्दा गांव तक आने वाले रास्ते पर सड़क के किनारे खेत में पड़ी थी. वहां पहले से ही लोग जमा हो चुके थे. किसी ने बड़ी बेरहमी से नसीमा की गरदन और चेहरे पर वार किए थे. लाश के पास ही उस का मोबाइल पड़ा था. लाश को सुबह काम पर जा रहे ग्रामीणों ने देखा था. लाश देख कर उन्होंने नसीमा को पहचान लिया था. उन्हीं में से एक व्यक्ति ने गांव जा कर इलियास को इस बात की जानकारी दी थी.

नसीमा के बच्चों का कहीं पता नहीं था. ग्रामीणों ने आसपास तलाश शुरू की तो गेहूं के खेत में जो दृश्य देखने को मिला, उसे देख कर सभी के रोंगटे खड़े हो गए. तीनों बच्चों की भी लाशें वहां पड़ी थीं. उन की हत्या बेरहमी के साथ धारदार हथियार से गला काट कर की गई थी.

इस चौहरे हत्याकांड से गांव में कोहराम मच गया. दिल दहला देने वाले इस दृश्य को देख कर लोगों की आंखें नम हो गईं. सभी के मन में एक ही सवाल था कि आखिर इन मासूमों ने किसी का क्या बिगाड़ा था? इलियास का रोरो कर बुरा हाल था. लोग गमजदा इलियास को संभालने की कोशिश कर रहे थे.

लोगों ने इस घटना की सूचना पुलिस को दे दी. सनसनीखेज हत्याकांड की खबर मिलते ही थानाप्रभारी अनिल कपरवाल, सीओ एन.पी. सिंह और पुलिस अधीक्षक जितेंद्र कुमार शाही घटनास्थल पर आ गए. ग्रामीणों में भारी आक्रोश था.

निस्संदेह मामला गंभीर था. पुलिस ने शवों का निरीक्षण किया. सभी की गरदनों पर वार किए गए थे. घटनास्थल पर बिखरे खून से साफ पता चल रहा था कि हत्याएं उसी स्थान पर की गई थीं. हत्यारों ने नसीमा के मोबाइल के अलावा कोई सुबूत शवों के इर्दगिर्द नहीं छोड़ा था.

गमगीन माहौल में ही पुलिस ने पूछताछ की तो पता चला कि नसीमा की तबीयत खराब थी. वह दिल्ली के शाहदरा स्थित गुरु तेग बहादुर अस्पताल दवा लेने गई थी. शाम को संभवत: जब वह टे्रन से उतर कर गांव की तरफ जा रही थी, तभी उस की हत्या कर दी गई थी.

मामला चौहरे हत्याकांड का था, लिहाजा एसपी जे.के. शाही ने इस की सूचना मेरठ रेंज के आईजी आलोक शर्मा व डीआईजी के. सत्यनारायण को भी दे दी. पुलिस ने मौकामुआयना कर के शवों का पंचनामा किया और उन्हें पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. माहौल इस कदर गमगीन व गरमाया हुआ था कि इलियास से ज्यादा पूछताछ नहीं की जा सकती थी.

बड़ी घटना के मद्देनजर आईजी व डीआईजी बागपत आ गए. हत्याकांड की प्राथमिक जानकारी ले कर उन्होंने अधिकारियों को इस मामले का जल्द से जल्द खुलासा किए जाने के निर्देश दिए. इसी बीच सैकड़ों की तादाद में ग्रामीण पोस्टमार्टम हाउस पर जमा हो गए.

उन्होंने रोष प्रकट कर के पुलिस के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी. इतना ही नहीं शवों को उठा कर उन्हें दिल्लीयमनोत्री हाईवे पर रख कर जाम लगा दिया. पुलिस ने विरोध किया तो लोग हाथापई पर उतारू हो गए. इलियास पुलिसकर्मियों से उलझ गया. अधिकारियों ने इसे उस की बदहवासी समझा.

पुलिस अधिकारियों ने ग्रामीणों को समझाया और जल्दी ही हत्यारों को पकड़ने का आश्वासन दिया. जब ग्रामीण नहीं माने तो पुलिस ने बल प्रयोग किया और जबरन शव अपने कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम कराया. पोस्टमार्टम के बाद शवों को ग्रामीणों के हवाले कर दिया गया. इस बीच इलियास की तरफ से थाने में अज्ञात हत्यारों के विरुद्ध भादंवि की धारा 302 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

सामूहिक हत्या के इस जघन्य मामले को खोलने के लिए पुलिस पर दबाव बना हुआ था. पुलिस अपनी जांच में लगी थी. इसी जांच में चौंकाने वाली बात यह पता चली कि मृतका इलियास की दूसरी बीवी थी. उस की पहली बीवी वरीसा बागपत के ही निनाना गांव की रहने वाली थी. उस के आबिद, आबिदा, शाहिदा, शाहिद और राशिद 5 बच्चे थे. 12 साल पहले बीमारी के चलते वरीसा का इंतकाल हो गया था.

इलियास के रिश्तेदारों ने बच्चों के छोटे होने का वास्ता दे कर उसे दूसरे निकाह का मशविरा दिया. यह लोगों के मशविरे का असर था या इलियास की ख्वाहिश कि उस ने 3 साल बाद नसीमा से निकाह कर लिया.

नसीमा मूलत: बिहार के बेगूसराय जिले की रहने वाली थी. गुजरते वक्त के साथ नसीमा भी 3 बच्चों नाजिम, नाजिया व अकरम की मां बन गई. इस बीच इलियास की पहली बीवी का बड़ा बेटा आबिद 18 साल का हो चुका था. वह दिल्ली में अपने एक रिश्तेदार के यहां रह कर मेहनत मजदूरी करता था. जबकि बेटियां और अन्य 2 बेटे इलियास के पास ही रहते थे.

जब कहीं से कोई लीड नहीं मिली तो इस मामले की जांच की जिम्मेदारी सीओ एन.पी. सिंह के सुपुर्द कर दी गई. घटना की बारीकियों और हत्यारों तक पहुंचने के लिए ठोस तथ्यों की जरूरत थी. इस के लिए एन.पी. सिंह ने इलियास से पूछताछ की.

मजबूत डोर के कमजोर रिश्ते : भाई क्यों बना कसाई? – भाग 2

पुलिस ने तीनों से अलगअलग पूछताछ की तो पारसनाथ पाल ने कहा, ‘‘हां साहब, रागिनी मेरी ही बेटी थी. लेकिन उस ने हमें समाजबिरादरी में कहीं जीने लायक नहीं छोड़ा था. उस के कारण लोग हम पर थूथू कर रहे थे. लेकिन उस की हत्या मैं ने नहीं की है. उसे मेरे बेटे सिकंदर पाल ने अपने किसी दोस्त के साथ मिल कर मार डाला है.’’

इस के बाद एसओ अरुण पवार ने सिकंदर पाल से पूछताछ की तो उस ने बिना किसी हीलाहवाली के अपना जुर्म कबूल कर लिया. उस ने बताया कि रागिनी की हत्या में उस के मांबाप की कोई भूमिका नहीं थी.

उस ने अपने दोस्त कामदेव सिंह निवासी व्यासनगर जंगल के साथ मिल कर उसे ठिकाने लगाया था. उस के बाद पुलिस ने व्यासनगर जंगल स्थित कामदेव के घर दबिश दी. कामदेव घर पर नहीं मिला. वह घटना के बाद से ही फरार चल रहा था. 2 दिनों के अथक प्रयास के बाद पुलिस ने उसे शाहपुर से गिरफ्तार कर लिया. उस ने भी अपना जुर्म कबूल कर लिया. सिकंदर पाल और कामदेव से की गई पूछताछ के बाद रागिनी पाल की हत्या की जो कहानी सामने आई, चौंकाने वाली निकली—

रागिनी पाल मूलरूप से गोरखपुर के गुलरिहा इलाके की शिवपुर सहबाजगंज की रहने वाली थी. उस के पिता पारसनाथ पाल एक प्राइवेट फर्म में नौकरी करता था. पारसनाथ के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटियां और एक बेटा सिकंदर था. अपनी सामर्थ्य के अनुसार उस ने सभी बच्चों को पढ़ाया.

समय बीतने के साथ जैसेजैसे बच्चे जवान होते गए, वह उन की शादी करता गया. बड़ी बेटियों प्रमिला और सरिता के उस ने हाथ पीले कर दिए थे. सब से छोटी बेटी रागिनी अभी पढ़ रही थी.

उसी दौरान उस के पांव बहक गए. गांव के ही राकेश नाम के युवक के साथ उस के अवैध संबंध हो गए थे, जिस की चर्चा पूरे गांव में थी. किसी तरह यह खबर रागिनी की मां निर्मला के कानों में पड़ी तो उस ने इस की जानकारी अपने पति पारसनाथ को दी.

इतना सुनते ही पारसनाथ बोला, ‘‘क्या बक रही हो, तुम्हारा दिमाग तो ठिकाने पर है न?’’

‘‘मैं बिलकुल ठीक कह रही हूं.’’ निर्मला ने कहा.

‘‘तो तुम ने इस बारे में रागिनी से पूछा या नहीं?’’

‘‘नहीं, अभी तो नहीं. सयानी बेटी है, पूछने पर कहीं कुछ कर न बैठे, इसलिए चुप थी.’’

‘‘ऐसे चुप्पी साधे ही बैठे रहना, कहीं ऐसा न हो कि बेटी मुंह पर कालिख पोत कर फुर्र हो जाए.’’ पारसनाथ पत्नी निर्मला पर गुस्से से चिल्लाया, ‘‘क्या अब मुझे ही कुछ करना पड़ेगा?’’

‘‘नहीं, तुम अभी उस से कुछ नहीं कहना. मैं उस से बात कर के समझाती हूं.’’ निर्मला ने कहा.

इत्तफाक से अगले दिन रागिनी स्कूल नहीं गई थी. पति भी अपनी ड्यूटी जा चुके थे. तभी निर्मला ने अप्रत्यक्ष रूप से रागिनी से बात शुरू की, ‘‘पढ़ाई कैसी चल रही है बेटा?’’

‘‘ठीक, एकदम फर्स्ट क्लास. क्यों मां, क्या बात है जो आज मेरी पढ़ाई के बारे में पूछ रही हो.’’ रागिनी ने मां से पूछा.

‘‘कुछ नहीं बेटा, बस ऐसे ही पूछ रही थी. अच्छा बेटा, मैं तुम से एक बात पूछती हूं क्या सच बताओगी?’’ निर्मला ने कहा.

‘‘हां मां, पूछो, क्या पूछना चाहती हो?’’ रागिनी ने उत्तर दिया.

‘‘तुम कल किस लड़के के साथ घूम रही थी?’’ निर्मला ने पूछा तो रागिनी के चेहरे का रंग उड़ गया. वह एकदम से सकपका गई.

‘‘किसी भी लड़के के साथ नहीं. यह तुम क्या कह रही हो?’’ रागिनी हकलाते हुए बोली, ‘‘लगता है किसी ने तुम्हें गलत जानकारी दी है. यह बात सरासर झूठी है.’’ रागिनी नजरें चुराते हुए बोली, ‘‘क्या मां, तुम्हें अपनी बेटी पर भरोसा नहीं है?’’

‘‘मुझे तुम पर पूरा भरोसा है बेटा. तुम ऐसीवैसी हरकत नहीं कर सकती, जिस से तुम्हारे मांबाप की जगहंसाई हो.’’ निर्मला ने समझाते हुए कहा, ‘‘देखो बेटा, इज्जतआबरू और मानमर्यादा एक औरत के कीमती गहने हैं. बेटा, यदि कोई बात हो तो मुझे खुल कर बता दो. मैं किसी से नहीं कहूंगी.’’

‘‘नहीं मां, ऐसी कोई बात नहीं है.’’ रागिनी विश्वास दिलाते हुए बोली. बेटी के इतना  कहने पर मां निर्मला उस के कमरे से चली गई.

मां के कमरे से जाने के बाद रागिनी इस बात से हैरान थी कि मां को सच्चाई का पता कैसे चल गया. उसे किस ने बताया होगा? वह इस बात से भी डर रही थी कि पापा और भाई को जब इस बारे में पता चलेगा तो घर में कयामत ही आ जाएगी.

जब से पत्नी ने पारसनाथ को बेटी के बारे में बताया था, वह परेशान हो गया था. अत: वह भी बेटी के बारे में उड़ रही खबर की सच्चाई पता लगाने में जुट गया. उसे पता चला कि पड़ोस के राकेश से रागिनी का काफी दिनों से चक्कर चल रहा है. यह जानकारी रागिनी के भाई सिकंदर को भी हो चुकी थी.

बहन के बारे में सुन कर उस का तो खून खौल उठा. उस ने रागिनी को समझाया कि वह अपनी हरकतों से बाज आ जाए, समाज बिरादरी में बहुत बदनामी हो रही है. नहीं तो इस का अंजाम बहुत बुरा हो सकता है. रागिनी ने किसी तरह भाई सिकंदर को विश्वास दिलाया कि कोई उसे बदनाम करने के लिए उस के बारे में उलटीसीधी बातें कर रहा है.

बात घटना से एक साल पहले की है. एक दिन अचानक रागिनी घर से गायब हो गई. जवान बेटी के अचानक गायब होने से घर वाले परेशान हो गए. बेटी को तलाशते हुए वह उस के प्रेमी राकेश के घर पहुंच गए तो पता चला कि राकेश भी उसी दिन से घर से गायब है.

फिर उन्हें समझते देर नहीं लगी कि रागिनी राकेश के साथ ही भाग गई है. चूंकि मामला नाबालिग बेटी का था, इसलिए बदनामी को देखते हुए पारसनाथ ने पुलिस में भी रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई.

पारसनाथ अपने बेटे सिकंदर के साथ मिल कर बेटी को अपने स्तर से तलाशते रहा. आखिर अपने स्रोतों से उन दोनों ने रागिनी को ढूंढ ही लिया. वह राकेश के साथ ही थी. घर ला कर सिकंदर ने रागिनी पर अपना सारा गुस्सा निकाल दिया था. कमरे में बंद कर के उस ने उस की डंडे से पिटाई शुरू कर दी. लेकिन पिता ने उसे बचा लिया था. तब सिकंदर ने बहन को हिदायत दी कि अगर आइंदा राकेश से मिलने की कोशिश की या उस के बारे में सोचा भी तो जान से हाथ धो बैठेगी. इस के बाद से घर वालों की उस पर नजरें जमी रहतीं.

मजबूत डोर के कमजोर रिश्ते : भाई क्यों बना कसाई? – भाग 1

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले का एक गांव है उमरपुर. यह गांव थाना चिलुआताल के अंतर्गत  आता है. गांव के बाहर आम का एक बड़ा बाग स्थित है. 21 नवंबर, 2018 को करीब 10 बजे गांव के ही विकास, राजन और अमन नाम के लड़के इस बाग में खेलने के लिए गए थे.

वहां पहुंच कर वे अपने खेल की दुनिया में रम गए थे. खेल के दौरान ही राजन चिल्लाता दौड़ता हुआ विकास और अमन के पास जा पहुंचा. उसे चिल्लाता देख दोनों परेशान हो गए. तभी विकास ने उस से पूछा, ‘‘अबे तू चिल्ला क्यों रहा है? वहां झाड़ी में क्या कोई भूत देख लिया जो चीख रहा है और तेरे माथे पर पसीना आ गया.’’

‘‘भूत नहीं, वहां झाडि़यों में एक लड़की की लाश पड़ी है.’’ लंबी सांसें भरता हुआ राजन बोला, ‘‘तुम्हें मेरी बातों पर यकीन न हो रहा हो तो आओ मेरे साथ, तुम्हें भी दिखाता हूं.’’ कह कर राजन झाड़ी की ओर बढ़ा तो उत्सुकतावश उस के दोस्त भी उस के पीछेपीछे चल दिए.

जब वह झाडि़यों के पास पहुंचे तो वास्तव में वहां एक लड़की की लाश पड़ी थी. लाश देख कर वे अपना खेल खेलना भूल गए और सभी सिर पर पैर रखे चिल्लाते हुए गांव की ओर भागे.

गांव पहुंच कर उन्होंने इस की सूचना गांव वालों को दी. बच्चों की सूचना पर गांव के कई लोग लाश देखने के लिए आम के बाग में पहुंच गए. थोड़ी देर में वहां तमाशबीनों का मजमा जमा हो गया. सूचना पा कर गांव का चौकीदार आफताब आलम भी मौके पर पहुंच गया था.

लड़की की लाश देख कर चौकीदार आफताब आलम ने सूचना चिलुआताल के थानाप्रभारी अरुण पवार को फोन द्वारा दे दी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी अरुण पवार मय फोर्स उमरपुर में घटनास्थल पर पहुंच गए.

उन्होंने बारीकी से लाश का मुआयना किया. लाश की दशा देख कर वह दंग रह गए. हत्यारों ने मृतका को 5 गोलियां मारी थीं. कनपटी और सीने में एकएक और पेट में 3 गोलियां मार कर उस की हत्या की थी. शरीर पर कई जगह नुकीले हथियार से गोदे जाने के निशान भी थे. खून भी सूख कर पपड़ी के रूप में जम गया था.

लाश से थोड़ी दूर पर कारतूस के 2 खोखे भी पड़े मिले. पुलिस ने वह कब्जे में ले लिए. मौके से कोई ऐसी चीज नहीं मिली, जिस से शव की पहचान हो सके. शव की शिनाख्त के लिए थानाप्रभारी पवार ने मौके पर जुटे ग्रामीणों से पूछताछ की लेकिन कोई भी उसे नहीं पहचान सका.

इस का मतलब साफ था कि मृतका चिलुआताल की रहने वाली नहीं थी. यानी वह कहीं और की रहने वाली थी. थानाप्रभारी ने घटना की सूचना सीओ रोहन प्रमोद बोत्रे, एसपी (उत्तरी) अरविंद कुमार पांडेय और एसएसपी डा. सुनील गुप्ता को भी दे दी.

सूचना मिलने के कुछ ही देर बाद सभी अधिकारी मौके पर पहुंच गए थे. उन्होंने भी घटनास्थल की छानबीन कर वहां मौजूद लोगों से मृतका के बारे में पूछताछ की लेकिन मौजूद लोगों ने उसे पहचानने से इनकार कर दिया.

घटनास्थल की सारी काररवाई पूरी कर थानाप्रभारी ने लाश पोस्टमार्टम के लिए बीआरडी मैडिकल कालेज, गुलरिहा भेज दी. थाने लौट कर उन्होंने चौकीदार आफताब आलम की तहरीर पर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया और विवेचना शुरू कर दी.

थानाप्रभारी इस बात पर गौर कर रहे थे कि मासूम सी दिखने वाली युवती की भला किसी से क्या दुश्मनी हो सकती थी, जो उसे 5 गोलियां मार कर मौत के घाट उतार दिया.

हत्यारे का जब इस से भी जी नहीं भरा तो उस ने किसी नुकीली चीज से उस पर अनगिनत वार कर के अपनी भड़ास निकाली. इस से साफ पता चल रहा था कि हत्यारा मृतका से काफी खुन्नस खाया हुआ था. पुलिस को मामला प्रेम संबंधों का लग रहा था.

अगले दिन एसएसपी डा. सुनील गुप्ता ने एसपी (नार्थ) अरविंद कुमार पांडेय, सीओ रोहन प्रमोद बोत्रे और थानाप्रभारी अरुण पवार को अपने औफिस बुला कर हत्या के इस केस के बारे में चर्चा की और जल्द से जल्द केस का खुलासा करने के निर्देश दिए.

घटना को एक सप्ताह बीत गया लेकिन न तो मृतका की शिनाख्त हो पाई थी और न ही किसी थाने में इस उम्र की किसी लड़की की गुमशुदगी दर्ज होने की सूचना मिली. जबकि मृतका की शिनाख्त के लिए जिले के सभी 26 थानों को मृतका का फोटो भेज दिया गया था. जांच टीम के लिए यह मामला काफी पेचीदा होता जा रहा था. तब थानाप्रभारी ने अपने खास मुखबिर लगा दिए.

7 दिनों बाद यानी 4 दिसंबर, 2018 को प्रमिला और सरिता नाम की 2 सगी बहनें थानाप्रभारी अरुण पवार से मिलीं. उन्होंने बताया कि उन की छोटी बहन 15 वर्षीय रागिनी जो गुलरिहा थाने के शिवपुर सहबाजगंज में रहती है. 20 नवंबर, 2018 की शाम को घर से साइकिल ले कर निकली थी, वह अभी तक घर नहीं लौटी है.

मांबाप ने कई दिनों तक रागिनी को इधरउधर तलाशा. लेकिन जब कहीं पता नहीं चला तो वह चुप हो कर बैठ गए. उन्होंने यह जानने की कोशिश नहीं की कि वह कहां चली गई और किस हाल में है. भाई सिकंदर पाल भी रागिनी को तलाशने में कोई रुचि नहीं ले रहा. वह भी चुपी साधे बैठा है.

यह बात दोनों बहनों प्रमिला और सरिता को बड़ी अजीब लगी कि जिस की सयानी बेटी घर से लापता हो जाए, वह बाप हाथ पर हाथ धरे भला कैसे बैठा रह सकता है. कहीं न कहीं कोई पेंच जरूर है. तब से दोनों बहनों ने अपने स्तर से रागिनी की तलाश शुरू कर दी. उन्हें जब पता लगा कि उमरपुर गांव के आम के एक बाग में एक सप्ताह पहले पुलिस ने एक लड़की की लाश बरामद की थी, तो वे यहां चली आईं.

थानाप्रभारी ने अपने फोन में मौजूद उस लाश की फोटो और कपड़े दिखाए तो दोनों बहनों ने वह पहचानते हुए बताया कि यह फोटो और कपड़े उन की बहन रागिनी के हैं. लाश की शिनाख्त होने के बाद प्रमिला और सरिता ने बताया कि रागिनी की हत्या के पीछे उसे अपने घर वालों पर शक है. उन्होंने कहा कि उस के मांबाप और भाई सिकंदर पाल से पूछताछ की जाए तो सारी सच्चाई सामने आ जाएगी.

प्रमिला और सरिता के बयानों को आधार बना कर पुलिस टीम ने 5 दिसंबर, 2018 को शिवपुर सहबाजगंज गांव में स्थित पारसनाथ पाल के घर पर सुबहसुबह दबिश दी.

संयोग से उस समय घर पर पारसनाथ पाल, उस की पत्नी और बेटा सिकंदर पाल तीनों मिल गए. पूछताछ के लिए पुलिस तीनों को थाने ले आई.