झोपड़ी में रह कर महलों के ख्वाब – भाग 2

जब मल्लिका की बातों ने उसे प्यार में पागल कर दिया तो कामधाम छोड़ कर प्रवीण 24 परगना जा पहुंचा. मल्लिका को उस ने अपने आने की सूचना दे दी थी, इसलिए घर पहुंचते ही उस ने मल्लिका से मिलने का स्थान और समय तय कर लिया.

मल्लिका ने उसे अगले दिन 24 परगना के बसस्टाप पर दोपहर को बुलाया था. प्रवीण तय जगह पर खड़ा इधरउधर देख रहा था. थोड़ी देर में उसे एक खूबसूरत औरत आती दिखाई दी. वह मन ही मन सोचने लगा कि अगर यही मल्लिका होती तो कितना अच्छा होता.

प्रवीण उस औरत को एकटक ताकते हुए मल्लिका के बारे में सोच रहा था कि तभी वह औरत फोन निकाल कर किसी को फोन करने लगी. प्रवीण के फोन की घंटी बजी तो उस का दिल धड़क उठा. उस ने जल्दी से फोन रिसीव किया तो दूसरी ओर से पूछा गया, ‘‘कहां हो तुम?’’

‘‘तुम्हारे सामने ही तो खड़ा हूं.’’ प्रवीण के मुंह से यह वाक्य अपने आप निकल गया.

कान से फोन लगाए हुए ही उस औरत ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘तो तुम हो प्रवीण?’’

‘‘हां, मैं ही प्रवीण हूं, जिसे तुम इतने दिनों से तड़पा रही हो.’’

‘‘अब तड़पने की जरूरत नहीं है. क्योंकि मैं तुम्हारे सामने खड़ी हूं.’’

मल्लिका को देख कर प्रवीण फूला नहीं समाया, क्योंकि उस ने अपने ख्वाबों में मल्लिका की जो तसवीर बनाई थी, वह उस से कहीं ज्यादा खूबसूरत थी. वह लग भी ठीकठाक परिवार की रही थी.

‘‘यहीं खड़े रहोगे या चल कर कहीं एकांत में बैठोगे.’’ मल्लिका ने कहा तो प्रवीण को होश आया.

प्रवीण उसे एक रेस्टोरैंट में ले गया. चायनाश्ते के साथ बातचीत शुरू हुई तो मल्लिका ने गंभीरता से कहा, ‘‘प्रवीण, तुम सचसच बताना, मुझे कितना प्यार करते हो और मेरे लिए क्या कर सकते हो?’’

‘‘अगर प्यार करने की कोई नापतौल होती तो नापतौल कर बता देता. बस इतना समझ लो कि मैं तुम्हें जान से भी ज्यादा प्यार करता हूं. अब इस से ज्यादा क्या कह सकता हूं.’’ प्रवीण ने मल्लिका के हाथ पर अपना हाथ रख कर कहा.

‘‘जब तुम मुझे इतना प्यार करते हो तो मुझे भी अब तुम्हें अपने बारे में सब कुछ बता देना चाहिए, क्योंकि मैं ने अभी तक तुम्हें अपने बारे में कुछ नहीं बताया है. प्रवीण मैं शादीशुदा ही नहीं, मेरा 10 साल का एक बेटा भी है. मेरा पति कुवैत में रहता है, जिस की वजह से हमारी मुलाकातें 2 साल में सिर्फ कुछ दिनों के लिए हो पाती हैं. मैं यहां सासससुर के साथ रहती हूं. पति के उतनी दूर रहने की वजह से प्यार के लिए तड़पती रहती हूं.’’

मल्लिका की सच्चाई जानसुन कर प्रवीण सन्न रह गया. जैसे किसी ने उसे आसमान से जमीन पर पटक दिया हो. जिसे वह जान से ज्यादा प्यार करता था, वह किसी और की अमानत थी, यह जान कर उस के मुंह से शब्द नहीं निकले. उस की हालत देख कर मल्लिका ने कहा, ‘‘तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं प्रवीण. मैं भी तुम्हें उतना ही प्यार करती हूं, जितना तुम. मैं तुम्हारे लिए पति और बेटा तो क्या, यह दुनिया तक छोड़ सकती हूं.’’

प्रवीण ने होश में आ कर कहा, ‘‘सच, तुम मेरे लिए सब को छोड़ सकती हो?’’

‘‘हां, तुम्हारे लिए मैं सब को छोड़ ही नहीं सकती, जान तक दे सकती हूं, लेकिन तुम मुझे मंझधार में मत छोड़ना. तुम डाक्टर हो, इसलिए मेरे दिल का दर्द अच्छी तरह समझ सकते हो. बोलो, धोखा तो नहीं दोगे?’’ मल्लिका गिड़गिड़ाई.

मल्लिका की इस बात से प्रवीण ने थोड़ी राहत महसूस की. इस के बाद कुछ सोचते हुए बोला, ‘‘अच्छा, यह बताओ. अब तुम सिर्फ मेरी बन कर रहोगी न?’’

‘‘हां, अब मैं सिर्फ तुम्हारी ही हो कर रहना चाहती हूं, सिर्फ तुम्हारी,’’ मल्लिका ने कहा, ‘‘चलो, अब यहां से कहीं और चलते हैं.’’

प्रवीण मल्लिका को पूरी तरह अपनी बनाना चाहता था, इसलिए उस ने एक मध्यमवर्गीय होटल में कमरा बुक कराया और मल्लिका को उसी में ले गया. एकांत में होने वाली बातचीत में प्रवीण जान गया कि मल्लिका के मायके और ससुराल वाले काफी संपन्न लोग हैं. उस का पति कुवैत में नौकरी करता था. उस समय भी वह लगभग 4-5 तोले सोने के गहने पहने थी.

होटल के उस कमरे में एकांत का लाभ उठा कर प्रवीण ने मल्लिका को अपनी बना लिया. उस ने मल्लिका के बारे में तो सब कुछ जान लिया, लेकिन अपने बारे में उस ने सिर्फ इतना ही बताया था कि वह डाक्टर है और अभी उस की शादी नहीं हुई है.

प्रवीण के डाक्टर होने का मतलब मल्लिका ने यह लगाया था कि वह पढ़ालिखा होगा, इसलिए अन्य डाक्टरों की तरह यह भी खूब पैसे कमा रहा होगा. यही सोच कर वह उस के साथ रहने के बारे में सोच रही थी.

जबकि स्थिति इस के विपरीत थी. प्रवीण झोला छाप डाक्टर था. उस ने क्लिनिक जरूर खोल ली थी, लेकिन उस की कमाई से किसी तरह उस का खर्च पूरा होता था. मल्लिका के बारे में जान कर अब वह उस की बदौलत अपना भाग्य बदलने के बारे में सोच रहा था.

मल्लिका की शादी 24 परगना के थाना गोपालपुर के कस्बा चलमंडल के रहने वाले कृष्णा से हुई थी. 24 परगना शहर में उस की विशाल कोठी थी. ससुराल में मल्लिका को किसी चीज की कमी नहीं थी. कमी सिर्फ यही थी कि पति कुवैत में रहता था और वह यहां सासससुर के साथ रहती थी. वह पति के साथ रहना चाहती थी, जबकि कृष्णा उसे कुवैत ले जाने को तैयार नहीं था. उस का कहना था कि अगर दोनों कुवैत चले गए तो मांबाप यहां अकेले पड़ जाएंगे.

मल्लिका बेटे अपूर्ण में मन लगाने की कोशिश करती थी, लेकिन बेटा बड़ा हो गया तो उसे पति की कमी खलने लगी थी. उस की जवान उमंगे तनहाई में दम तोड़ने लगी थीं. उस के जिस्म की भूख उसे बेचैन करने लगी थी. ऐसे में ही उस का फोन गलती से प्रवीण के मोबाइल पर लग गया तो दोनों की दोस्ती ही नहीं हुई, अब मेलमिलाप भी हो गया था. उस के बाद उस की जैसे दुनिया ही बदल गई थी.

मुलाकात के बाद जिस्म की भूख भी बढ़ गई और प्यार भी. कुछ दिन गांव में रह कर प्रवीण वापस आ गया. अब दोनों के बीच लंबीलंबी बातें होने लगीं. मल्लिका उस के सहारे आगे की जिंदगी गुजारने के सपने देखने लगी थी. क्योंकि उसे पता था कि कृष्णा में कोई बदलाव आने वाला नहीं है, इसलिए उस की परवाह किए बगैर एक दिन उस ने प्रवीण से कहा, ‘‘भई, इस तरह कब तक चलेगा. आखिर हमें कोई न कोई फैसला तो लेना ही होगा.’’

‘‘इस विषय पर फोन पर बात नहीं हो सकती. दुर्गा पूजा पर मैं घर आऊंगा तो बैठ कर बातें करेंगे.’’ प्रवीण ने कहा और घर जाने की तैयारी करने लगा.

दुर्गा पूजा के दौरान दोनों की मुलाकात हुई तो तय हुआ कि इस बार प्रवीण आगरा जाएगा तो मल्लिका भी उस के साथ चलेगी. वहां दोनों शादी कर के आराम से रहेंगे. उस समय मल्लिका ने यह भी नहीं सोचा कि कृष्णा घरपरिवार से उतनी दूर उस के और बच्चे के सुख के लिए ही पड़ा है. अपने जिस्म की भूख मिटाने के लिए उस ने अपने 10 साल के बेटे की चिंता भी नहीं की.

झोपड़ी में रह कर महलों के ख्वाब – भाग 1

पश्चिम बंगाल के जिला 24 परगना के थाना गोपालनगर के गांव पावन के रहने वाले प्रभात विश्वास गांव में रह कर खेती करते थे. पत्नी, 2 बेटों  और एक बेटी के उन के परिवार का गुजरबसर इसी खेती की कमाई से होता था. उसी की कमाई से वह बच्चों को पढ़ालिखा भी रहे थे और सयानी होने पर बेटी की शादी भी कर दी थी.

प्रभात ने बेटी प्रीति की शादी अपने ही जिले के गांव चलमंडल के रहने वाले श्रवण विश्वास के साथ की थी. श्रवण विश्वास झोला छाप डाक्टर था, जो चांदसी दवाखाना के नाम से उत्तर प्रदेश के जिला आगरा के थाना वाह के कस्बा जरार में अपनी क्लिनिक चलाता था.

श्रवण की क्लिनिक बढि़या चल रही थी, इसलिए उस से प्रेरणा ले कर प्रभात विश्वास का बड़ा बेटा प्रवीण भी बहनोई की तरह झोला छाप डाक्टर बनने के लिए पढ़ाई के साथसाथ किसी डाक्टर के यहां कंपाउंडरी करने लगा था. ग्रेजुएशन करतेकरते वह डाक्टरी के काफी गुण सीख गया तो बहनोई की तरह अपनी क्लिनिक खोलने के बारे में सोचने लगा.

क्लिनिक खोलने की पूरी तैयारी कर के प्रवीण आगरा के कस्बा जरार में क्लिनिक चला रहे अपने बहनोई श्रवण के पास आ गया. कुछ दिनों तक बहनोई के साथ काम करने के बाद जब उसे लगा कि अब वह खुद क्लिनिक चला सकता है तो वह अपनी क्लिनिक खोलने के लिए स्थान खोजने लगा.

प्रवीण के एक परिचित पी.के. राय आगरा के ही कस्बा रुनकता में क्लिनिक चलाते थे. उन्हीं की मदद से उस ने रुनकता में एक दुकान ले कर बंगाली दवाखाना के नाम से क्लिनिक खोल ली. रहने के लिए हाजी मुस्तकीम के मकान में 8 सौ रुपए महीने किराए पर एक कमरा ले लिया. मुस्तकीम का अपना परिवार सामने वाले मकान में रहता था. उस मकान में केवल किराएदार ही रहते थे. डा. प्रवीण का कमरा अन्य किराएदारों से एकदम अलग था.

प्रवीण विश्वास दिन भर अपनी क्लिनिक पर रहता था और रात को कमरे पर आ जाता. अकेला होने की वजह से उसे अपने सारे काम खुद ही करने पड़ते थे. वह जिस हिसाब से मेहनत कर रहा था, उस हिसाब से उस की कमाई नहीं हो रही थी. इसलिए अपने हालात से वह खुश नहीं था. लेकिन उस का व्यवहार ऐसा था कि उस से हर कोई खुश रहता था.

इस के बावजूद प्रवीण की किसी से दोस्ती नहीं हो पाई थी. इस की वजह शायद यह भी थी कि वह एक ऐसे प्रांत का रहने वाला था, जहां का खानपान, रहनसहन और बात व्यवहार सब कुछ वहां के रहने वालों से अलग था.

इस स्थिति में प्रवीण थोड़ा परेशान सा रहता था. एक दिन वह किसी सोच में डूबा था कि उस के फोन की घंटी बजी. उस का फोन डुअल सिम वाला था. एक सिम उस ने आगरा के नंबर का डाल रखा तो दूसरा सिम 24 परगना के नंबर का था. वैसे यहां 24 परगना वाले नंबर की कोई जरूरत नहीं थी, लेकिन उस ने अपना पुराना नंबर इसलिए बंद नहीं किया था कि घर जाने पर शायद इस की जरूरत पड़े.

घंटी बजी तो प्रवीण की नजर मोबाइल के स्क्रीन पर गई. फोन 24 परगना वाले सिम के नंबर पर आया था. स्क्रीन पर जो नंबर उभरा था, वह भी 24 परगना का ही लग रहा था. प्रवीण ने जल्दी से फोन रिसीव कर लिया, ‘‘हैलो, कौन…?’’

उस के हैलो कहते ही दूसरी ओर से किसी लड़की ने मधुर आवाज में कहा, ‘‘सौरी, गलती से आप का नंबर लग गया.’’

प्रवीण कुछ कहता, उस के पहले ही फोन कट गया. लड़की की आवाज ऐसी थी, जैसे किसी ने कान में शहद घोल दिया है. प्रवीण का मन एक बार फिर उस की आवाज सुनने के लिए होने लगा. आवाज पलट कर फोन कर के ही सुनी जा सकती थी. लेकिन यह ठीक नहीं था. इसलिए वह सोचने लगा कि फोन करने पर लड़की बुरा मान सकती है. लेकिन मन नहीं माना तो डरतेडरते उस ने पलट कर फोन कर ही दिया.

दूसरी ओर से फोन रिसीव कर के लड़की ने कहा, ‘‘अपनी गलती के लिए मैं ने सौरी तो कह दिया. अब कितनी बार माफी मांगूं?’’

‘‘आप गलत सोच रही हैं. मैं ने आप को फोन इसलिए नहीं किया कि आप दोबारा माफी मांगें. आप की आवाज मुझे बहुत प्यारी लगी, उसे सुनने के लिए मैं ने फोन किया है. मैं आप की आवाज सुनना चाहता हूं. इसलिए आप कुछ अपनी कहें और कुछ मेरी सुनें.’’

प्रवीण का इतना कहना था कि उस के कानों में खिलखिला कर हंसने की आवाज पड़ी. प्रवीण खुश हो गया कि लड़की ने उस की इस हरकत का बुरा नहीं माना. हंसी रोक कर उस ने कहा, ‘‘तो यह क्यों नहीं कहते कि आप मुझ से दोस्ती करना चाहते हैं.’’

‘‘यही समझ लीजिए,’’ प्रवीण ने कहा, ‘‘आप को मेरा प्रस्ताव मंजूर है?’’

‘‘क्यों नहीं, बातचीत से तो आप अच्छेखासे पढे़लिखे लगते हैं?’’

‘‘जी, मैं डाक्टर हूं.’’

‘‘कहां नौकरी करते हैं?’’ लड़की ने पूछा.

‘‘नौकरी नहीं करता, मेरी अपनी क्लिनिक है.’’

‘‘तब तो मैं आप को अपना दोस्त बनाने को तैयार हूं.’’

इस तरह दोनों में दोस्ती हो गई तो बातचीत का सिलसिला चल पड़ा. प्रवीण 24 परगना का रहने वाला था तो वह लड़की भी वहीं की रहने वाली थी. लड़की ने अपना नाम मल्लिका बताया था. लेकिन सब उसे मोनिका कह कर बुलाते थे. प्रवीण ने भी उसे अपना नाम बता दिया था.

दोनों की ही भाषा बंगाली थी, इसलिए दोनों अपनी भाषा में बात करते थे. प्रवीण ने मल्लिका को यह भी बता दिया था कि वह रहने वाला तो 24 परगना का है, लेकिन उस की क्लिनिक उत्तर प्रदेश के आगरा के एक कस्बे में है.

धीरेधीरे दोनों में लंबीलंबी बातें होने लगीं. इसी तरह 6 महीने बीत गए. प्रवीण ने मल्लिका को अपने बारे में काफी कुछ बता दिया था, लेकिन मल्लिका ने अपने बारे में कभी कुछ नहीं बताया था. वह प्रवीण के लिए रहस्य बनी रही.

प्रवीण ने जब उस पर दबाव डाला तो एक दिन उस ने कहा, ‘‘यही क्या कम है कि मैं तुम से प्यार करती हूं. बस तुम मुझे अपनी प्रेमिका के रूप में जानो.’’

मल्लिका ने जब कहा कि वह उस से प्यार करती है तो प्रवीण ने कहा, ‘‘मैं तुम से मिलना चाहता हूं.’’

‘‘यह तो बड़ी अच्छी बात है. मैं भी तुम से मिलना चाहती हूं. तुम्हारी जब इच्छा हो, आ जाओ. समझ लो मैं तुम्हारा इंतजार कर रही हूं.’’ मल्लिका ने कहा.

मल्लिका का इस तरह आमंत्रण पा कर प्रवीण फूला नहीं समाया. वह इस बात पर विचार करने लगा कि मल्लिका को अपनी जिंदगी में आने के लिए तैयार कैसे करे. अब वह सपनों में जीने लगा था. इस तरह के सपनों की दुनिया बहुत ही रंगीन और हसीन होती है. उस ने अपने प्यार को कल्पनाओं का रंग दे कर एक खूबसूरत चेहरे का अक्स बना लिया था. हर वक्त वह उसी में खोया रहता था. वह 24 परगना जा कर मल्लिका से मिलना चाहता था, लेकिन मौका नहीं मिल रहा था.

भाई के बसेरे में सेंध – भाग 3

20 दिसंबर, 2013 को अरुण अपने भाई से मिलने के लिए लखनऊ आया. उस समय घर पर रितिका और प्रभात दोनों मौजूद थे. अरुण सीधा अपने भाई के पास जा कर बोला, ‘‘भैया, मां ने आप के लिए आप की पसंद की सब्जी बनाई थी. साथ में खाने के लिए बेसन का चिल्ला भी दिया है.’’ अरुण ने खाने का डिब्बा उस के हाथ पर रख दिया.

इस से पहले कि प्रभात वह डिब्बा खोलता, रितिका ने डिब्बा छीन कर पूरा खाना कूड़े के डिब्बे में फेंक दिया. फिर वह गुस्से से बोली, ‘‘जब हम कह चुके हैं कि प्रभात का आप सब से कोई संबंध नहीं है तो आप को समझ नहीं आता. बारबार यहां क्यों आते हैं. प्रभात केवल मेरा है और मेरा ही रहेगा.’’ अरुण और उस के साथ आया ड्राइवर यह सब देखते रह गए.

प्रभात ने रितिका से कुछ नहीं कहा, वह भी चुपचाप देखता रहा. भाभी की इस बात पर अरुण को गुस्सा आ गया. उस ने कुछ कहने की कोशिश की तो रितिका ने उस के बाल पकड़ कर उस के गाल पर थप्पड़ जड़ दिया. इस पर अरुण गुस्से में वहां से चला गया.

उसे अपने थप्पड़ से ज्यादा इस बात का दुख था कि बीमार होने के बावजूद मां ने भैया की पसंद का खाना बना कर भेजा था, जिसे रितिका ने फेंक दिया था. अपमान सहन कर के अरुण उस समय तो वहां से चला गया लेकिन मां की बेइज्जती उस के दिल को टीस दे गई. प्रभात को भी रितिका की बात अच्छी नहीं लगी थी. लेकिन बाद में रितिका ने अपने प्रभाव से पति को मना लिया था.

अरुण अपना यह अपमान सहन नहीं कर पा रहा था. उस ने रितिका को सबक सिखाने की योजना बना ली. 24 दिसंबर को सुबह ही अरुण ने अपने साथ देवकाली, फैजाबाद के रहने वाले शुभम यादव और ड्राइवर सूरजलाल से अपने अपमान का बदला लेने के लिए मदद मांगी. सूरज और शुभम दोनों ही अपराधी किस्म के थे.

फैजाबाद में दोनों के खिलाफ अलगअलग थानों में कई मामले दर्ज थे. योजना बना कर ये तीनों 24 दिसंबर, 2013 की सुबह ही 2 चाकू और एक चापड़ का इंतजाम कर के अपनी इंडिगो कार से लखनऊ आ गए. इन लोगों ने अपने साथ एकएक जोड़ी कपड़े भी रख लिए थे. ताकि खून सने कपड़े उतार कर उन्हें पहन सकें. पुलिस के सर्विलांस से बचने के लिए सभी ने अपने मोबाइल फोन बंद कर के फैजाबाद में ही रख दिए थे.

पहले ये लोग दिन में ही घटना को अंजाम देना चाहते थे लेकिन रितिका के साथ प्रभात के होने की वजह से उन्हें मौका नहीं मिल पाया था. प्रभात की मोटरसाइकिल घर के बाहर देख कर उन्हें पता चल गया था कि वह घर पर है. ये लोग दूर खड़े हो कर मौका तलाशते रहे. शाम को 7 बजे के बाद जब प्रभात मोटरसाइकिल ले कर बीयर पीने निकला तो इन लोगों ने उसे जाते हुए देख लिया. फिर वे तुरंत दरवाजे पर पहुंच गए. अरुण ने दरवाजे पर लगी कालबेल बजाई.

रितिका ने दरवाजा खोला तो वह अरुण को देखते ही बोली, ‘‘तुम फिर आ गए.’’ वह दरवाजा खोलना नहीं चाहती थी. जब अरुण ने यह देखा तो उस ने कहा, ‘‘भाभी मुझे बाथरूम जा कर फ्रेश होना है. फ्रेश हो कर मैं वापस चला जाऊंगा.’’

यह सुन कर रितिका पीछे हट गई. वह प्रभात को फोन कर के जल्दी घर आने के लिए कहने वाली थी. इसी बीच अरुण के साथ आए शुभम और सूरज भी अंदर आ गए. उसी दौरान अरुण ने रितिका से उस का फोन छीन लिया. फिर दोनों साथियों ने रितिका को चाकू दिखाते हुए चुप रहने की धमकी दी. रितिका बुरी तरह डर गई. कुत्ता न भौंके इसलिए अरुण ने उसे जाली में बंद कर दिया था.

इस के बाद तीनों ने रितिका को दबोच लिया. रितिका पर चाकू से पहला वार ड्राइवर सूरज ने किया. फिर उस ने उस का गला रेत कर उस के पेट पर चाकू के कई वार किए. कुछ ही देर में उस की मौत हो गई. इस से पहले रितिका ने उन के चंगुल से खुद को बचाने के लिए नाकाम कोशिश की थी. इसी दौरान सूरज की अंगुली में चाकू लग गया था जिस से वह घायल हो गया था. सूरज के हाथ का खून ही बाहर दरवाजे पर पड़ा मिला था.

रितिका की हत्या के बाद सूरज, अरुण और शुभम ने बाथरूम में जा कर सब से पहले अपने खून से सने हाथपैर धो कर कपडे़े बदले. खून से सने कपड़े उन्होंने अलग बैग में रख लिए और फिर कार से फैजाबाद वापस चले गए. खून से सने कपड़े उन्होंने सरयू नदी में फेंक दिए थे.

प्रभात ने रितिका की हत्या की खबर जब अपने पिता को दी थी तो तब अरुण घर पर ही था. पुलिस ने रितिका और प्रभात से जुड़े 25 मोबाइल नंबरों को सर्विलांस पर लगा दिया था. प्रभात के साथ बातचीत में पुलिस को रितिका और अरुण के बीच हुई तकरार का भी पता चल गया था.

पुलिस ने अरुण से जब पूछताछ की तो वह इधरउधर की बातें करने लगा और फिर बाद में अपनी ही बातों में फंसने के बाद उसे पुलिस के सामने सच्चाई उगलनी पड़ी.

पुलिस ने अरुण से पूछताछ के बाद शुभम यादव और ड्राइवर सूरज से भी पूछताछ की. उन्होंने भी रितिका की हत्या की बात कुबूल कर ली. पुलिस ने तीनों अभियुक्तों को रितिका की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर के न्यायालय में पेश किया जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

एसएसपी जे. रवींद्र गौड ने इस हत्याकांड का खुलासा करने वाली पुलिस टीम में शामिल थानाप्रभारी उमेश बहादुर सिंह, एसएसआई सत्येंद्र प्रकाश सिंह, एसआई अवध किशोर शुक्ला, कांस्टेबल रामानंद, मुश्ताक, आनंद कुमार सिंह की तारीफ की.

पति प्रभात को खोने के डर से रितिका ने उसे उस के घर से दूर रखने की जो कोशिश की थी वो उसी पर भारी पड़ी. पतिपत्नी के बीच रिश्तों की मजबूती आपसी प्यार और विश्वास से होती है. 6 साल के प्रेमविवाह के बाद भी रितिका और प्रभात के बीच यह भरोसा नहीं बन पाया था. इसी की वजह से देवर अरुण की हिम्मत बढ़ गई और रितिका को अपनी जान गंवानी पड़ी.

ऐसी भी एक सीता

पति की आशिकी का अंजाम

भाई के बसेरे में सेंध – भाग 2

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि रितिका के पेट पर धारदार हथियार से वार किया गया था. वार इतना गहरा था कि उस का असर रीढ़ की हड्डी तक पहुंचा था. उस के शरीर में 8 घाव सहित चोट के 32 निशान पाए गए. डाक्टरों ने रिपोर्ट में बताया कि रितिका की हत्या 25 दिसंबर की रात करीब 8 बजे की गई थी. खबर सुन कर वाराणसी से रितिका के परिवार वाले कुछ अन्य लोगों के साथ लखनऊ आ गए थे. रितिका के पिता के.के. श्रीवास्तव के साथ सभी की आंखों में हत्यारों के प्रति गुस्सा साफ नजर आ रहा था.

पुलिस ने रितिका के मायके वालों से मालूमात की तो वे लोग इस मामले में रितिका के पति प्रभात को ही जिम्मेदार ठहराने लगे. कुत्ते का न भौंकना आदि से पुलिस को भी यही लग रहा था कि हत्या में उस के किसी जानने वाले का ही हाथ है. जबकि प्रभात पूछताछ में खुद को बेकुसूर बता रहा था. पुलिस की अपनी छानबीन के हिसाब से भी रितिका की हत्या में प्रभात का हाथ नजर नहीं आ रहा था.

जिस मकान में हत्या हुई थी उस के आसपास के मकानों में सीसीटीवी कैमरे लगे थे. पुलिस को लगा कि उन कैमरों में हत्यारे फोटो आ गई होगी. लेकिन जब उन कैमरों की जांच की गई तो पता चला कि वे सब पहले से ही बंद पड़े थे. आखिर 4 दिन की कड़ी मशक्कत के बाद पुलिस ने इस सनसनीखेज हत्याकांड से परदा उठा ही दिया. हत्याकांड में शामिल लोगों के नाम जान कर पुलिस भी हैरान रह गई और लोग भी.

वाराणसी की रहने वाली रितिका अपने सपनों को पूरा करने 22 साल की उम्र में लखनऊ आ गई थी. इस के लिए उसे अपने परिवार के पुरजोर विरोध का सामना भी करना पड़ा था. लखनऊ आने के बाद जब उसे पैसों की समस्या हुई तो उस ने लखनऊ में प्राइवेट नौकरी की. इस के बाद उस ने वीएलसीसी से डाइटीशियन और ब्यूटीशियन का कोर्स किया. यहीं पर उस की मुलाकात प्रभात श्रीवास्तव से हुई.

प्रभात लखनऊ में प्राइवेट नौकरी करता था. जल्दी ही उन दोनों की दोस्ती इस मुकाम तक पहुंच गई कि अकेलापन झेल रही रितिका प्रभात के साथ जिंदगी गुजरबसर करने का सपना देखने लगी. प्रभात फैजाबाद शहर का रहने वाला था. फैजाबाद के बेगमगंज मकबरा में उस के छोटे भाई अरुण की काफी बड़ी गिफ्ट शौप थी.

प्रभात के पिता बलदेव अनाज के बड़े व्यापारी थे. संबंध गहराने के बाद रितिका और प्रभात ने तय कर लिया कि वे दोनों शादी कर के साथसाथ रहेंगे. इस बारे में दोनों ने अपने घर वालों से बात की तो दोनों के घर वालों ने उन्हें इस की इजाजत नहीं दी. इस के बावजूद दोनों ने शादी कर ली और इंदिरानगर में किराए का मकान ले कर रहने लगे.

रितिका ने पढ़ाई पूरी करने के बाद वहीं वीएलसीसी में ही नौकरी कर ली. मिलजुल कर अच्छा कमाने लगे तो कुछ दिनों के बाद दोनों गोमतीनगर में 15 हजार रुपए किराए के मकान में रहने लगे. प्रभात ने रितिका से शादी जरूर कर ली थी लेकिन उस ने यह बात अपने परिवार वालों को नहीं बताई थी. प्रभात अपने भाई अरुण से कोई बात नहीं छिपाता था. उस ने रितिका से शादी वाली बात भी उसे बता दी थी.

अरुण कभीकभी अपनी दुकान का सामान खरीदने लखनऊ आता तो वह प्रभात से मिलने उस के घर चला जाता था. अरुण उसे मां के बारे में बताता तो प्रभात मां और परिवार के दूसरे लोगों को याद करने लगता था. जबकि यह बात रितिका को अच्छी नहीं लगती थी.

प्रभात से शादी के बाद रितिका अपना कैरियर बनाने में लग गई थी. उस ने अपना फेसबुक एकाउंट भी खोल रखा था. जिस के जरिए वह बहुत सारे लोगों के संपर्क में रहती थी. घर पर वह अपना ज्यादातर समय फेसबुक और इंटरनेट पर बिताती थी. उस ने कई नामों से फेसबुक एकाउंट खोल रखे थे. उस का पहला फेसबुक एकाउंट रिट्ज रितिका के नाम से और दूसरा अनामिका श्रीवास्तव के नाम से था. उस का इस तरह अकसर दोस्तों से बात करना प्रभात को अच्छा नहीं लगता था.

इसी वजह से उस ने वीएलसीसी से रितिका की नौकरी भी छुड़वा दी थी. उस के नौकरी छोड़ने के बाद घर के खर्च प्रभावित होने लगे तो प्रभात ने उसे दोबारा नौकरी करने की इजाजत दे दी. तब रितिका ने विकासनगर में मामा चौराहे के पास आर्यटन रेस्त्रां के ऊपर खुले निक्की बाबा के ब्यूटी पार्लर में काम करना शुरू कर दिया था.

कुछ दिनों बाद रितिका ने महसूस किया कि प्रभात अब उस से पहले की तरह प्यार नहीं करता. उस ने इस बात की शिकायत प्रभात से की तो उस ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया. परेशान हो कर रितिका समयसमय पर अपनी मां गायत्री से बात करने लगी. गायत्री बेटी की परेशानी को समझती थी पर चाह कर भी उस की मदद नहीं कर पा रही थी. इधर रितिका महसूस कर रही थी कि अरुण जब भी उस के यहां आता था तो उस की नजरें रितिका के प्रति अच्छी नहीं होती थी. वह उसे ललचाई नजरों से देखता था.

अरुण नशा भी करता था. कई बार वह प्रभात की गैरमौजूदगी में उस के घर आता था तो वहीं पर दोस्तों के साथ शराब पीता था. रितिका को यह बात पसंद नहीं थी लेकिन पति का छोटा भाई होने की वजह से वह उसे रोक नहीं पाती थी.

घटना से करीब 6 महीने पहले की बात है. 26 जून को गरमी के दिन थे. उस दिन भी कुछ ऐसा ही हुआ था. अरुण अपने एक दोस्त के साथ प्रभात के यहां पहुंच गया और वे दोनों शराब पीने लगे. आखिर उस दिन रितिका ने उसे टोक ही दिया, ‘‘अरुण, तुम्हारा इस तरह यहां आ कर शराब पीना मुझे पसंद नहीं है. जब तुम्हारे भैया यहां हों तुम तभी आया करो.’’

‘‘भाभी, तुम हम से इतना नाराज क्यों रहती हो? आखिर मैं तुम्हारा देवर हूं और तुम शायद यह जानती होगी कि देवर का भाभी पर आधा हक होता है.’’ कह कर नशे में बहकते अरुण ने रितिका का हाथ पकड़ लिया.

अचानक आई इस स्थिति से रितिका घबरा गई. वह झट से अपना हाथ छुड़ा कर बोली, ‘‘आज प्रभात को आने दो, मैं उन से तुम्हारी शिकायत करती हूं.’’

रितिका हाथ छुड़ा कर दूसरे कमरे में चली गई थी. अरुण और उस का दोस्त भी चले गए. इस के बाद कुछ दिनों तक अरुण ने रितिका के घर आना कम कर दिया था.

सुहाग का गहना – भाग 4

जैतून बंगले से निकल कर अस्पताल के उस कमरे में जा पहुंची, जहां शाहिद गहरी नींद सो रहा था. नींद की गोली की गिरफ्त में जकड़ा वह दुनिया से बेखबर था. जैतून कुछ देर तक उसे खालीखाली नजरों से देखती रही. फिर जब वह अपने क्वार्टर में आई तो उस ने अपनी बच्चियों को गहरी नींद में डूबी पाया.

वे नरम नाजुक कलियां सी लग रही थीं. उसे ऐसा लग रहा था कि वे कलियां जमाने की सर्दीगर्मी नहीं सह सकेंगी और कुम्हला जाएंगी. वक्त के बेरहम हाथ उन से सब कुछ छीन लेंगे. शाहिद तो उन्हें पेट भर दो वक्त की रोटी भी नहीं खिला सकेगा.

जैतून जब सोने के लिए बिस्तर पर लेटी तो उस की आंखों के सामने नवेद का चेहरा उभर आया. उस ने महसूस किया कि उस के दिल के किसी कोने में नवेद की मोहब्बत जाग रही है. नवेद की बदौलत ही उस के शौहर को नई जिंदगी मिली थी. वह उस से आज मोहब्बत की भीख मांग रहा था. जैतून ने नवेद से पहली मोहब्बत की थी और फिर उस ने शाहिद को पाने के बाद अपने दिल का दरवाजा हमेशाहमेशा के लिए बंद कर कर लिया था.

इस के बाद उस के दिल में बसी नवेद की तसवीर धुंधली होती चली गई थी. मगर आज फिर से वह दरवाजा खुल गया था. सोई हुई मोहब्बत धीरेधीरे जाग रही थी और नवेद उस के वजूद में रचबस गया था. वह आज अपने आप को दोराहे पर खड़ी महसूस कर रही थी. उस के दिमाग में बहुत से उलझेउलझे और अजीबोगरीब खयाल पैदा हो रहे थे. दिल जैसे डूबता जा रहा था.

जैतून ने हैरत से उस शीशी को देखा. उस के बाद प्रश्नवाचक दृष्टि से नवेद को देखने लगी, ‘‘इस में क्या है नवेद?’’

‘‘जहर है.’’ नवेद ने जैतून की कमर में हाथ डाल कर उसे अपने करीब कर लिया.

जैतून के हाथ से शीशी छूटतेछूटते बची. आवाज कंपकंपा सी गई, ‘‘क्या मेरा जुर्म छिप जाएगा?’’

‘‘तुम पर कोई शक नहीं करेगा. इसलिए कि इस तरह का जहर आम आदमी की पहुंच से बाहर की चीज है. यह जहर खाते ही आदमी कुछ ही लमहों में मौत की गोद में समा जाता है. तुम्हें डरने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि शाहिद की मौत से शक नहीं होगा कि उसे जहर दिया गया है. यह दिल की धड़कन बंद कर देता है. तुम दूध में जहर मिला कर पिलाने के बाद गिलास को कपड़े से अच्छी तरह साफ कर देना. फिर उस के हाथ में गिलास थमा देना, ताकि उस पर उस की अंगुलियों के निशान बन जाएं.

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अगर किसी शक की बिना पर गिलास का परीक्षण भी किया जाए तो उस पर शाहिद की अंगुलियों के निशान हों, जिस से यही समझा जाएगा कि उस ने आत्महत्या की है. तुम्हें मौका मिले तो उस गिलास को कपड़े से पकड़ कर जरा सा धो देना और उस में बिना जहर मिला थोड़ा सा दूध डाल देना… फिर तो तुम पर कोई आंच नहीं आएगी. पुलिस यही समझेगी कि उस की मौत किसी सदमे से हो गई है.’’

‘‘खुदकुशी की बुनियाद क्या होगी?’’ जैतून ने डरे हुए लहजे में पूछा, ‘‘हार्ट फेल भी किसलिए हो सकता है?’’

‘‘टांग का कट जाना… कुछ मर्द अपाहिजपन और दूसरों पर बोझ बन कर जिंदगी गुजारने से बेजार हो कर मर जाना पसंद करते हैं. यह सदमा जानलेवा भी साबित हो सकता है. तुम तसल्ली रखो, बात पुलिस तक नहीं पहुंचेगी, क्योंकि इस मौत का सर्टीफिकेट तो मैं ही जारी करूंगा.’’

‘‘पुलिस यह भी तो सोच सकती है कि शाहिद को जहर दिया गया है और यह जहर एक मामूली मरीज के पास कैसे और कहां से आया?’’

‘‘तुम किसी फिक्र में मत पड़ो और ज्यादा गहराई में मत जाओ. यह भी कहा जा सकता है कि किसी नर्स को लालच दे कर मरीज ने जहर हासिल कर लिया होगा,’’ नवेद ने उस का हौसला बढ़ा दिया, ‘‘मैं ने तुम्हें जितना बताया, बस तुम उतना ही करो.’’

‘‘ठीक है, मैं जा रही हूं.’’ जैतून बोली.

‘‘कोशिश करना कि तुम किसी की नजर में न आओ. वहां से तुम सीधी मेरे पास चली आना और कौफी तैयार कर के रखना.’’ नवेद ने जैतून का बाजू पकड़ कर अपने करीब कर लिया.

‘‘तुम्हारे लिए कौफी तैयार कर के अपनी कोठरी में क्यों न चली जाऊं,’’ जैतून कुछ सोचते हुए बोली, ‘‘तुम्हारे पास आ कर मैं क्या करूंगी?’’

‘‘इसलिए कि तुम्हारी मौजूदगी मैं अपने यहां साबित कर सकूं?’’

‘‘लेकिन इस में भी तो खतरा है,’’ जैतून बोली, ‘‘सारे अस्पताल वालों को पता है कि मैं तुम्हारे घर पर काम करती हूं. कल मुझ पर यह इलजाम लग सकता है कि मैं ने तुम्हारी मोहब्बत में अपने शौहर की जान ले ली. लिहाजा, मैं उसे जहर दे कर क्यों न अपनी कोठरी में चली जाऊं. मैं अपने शौहर को जहर दे कर बाथरूम के पिछले दरवाजे से निकल जाऊंगी.’’

‘‘मगर तुम मुझे इस की खबर कैसे दोगी? मेरा तुम्हारी कोठरी की तरफ आना मुनासिब नहीं है.’’ नवेद ने कहा.

‘‘मैं तुम्हारे पास भी पिछले दरवाजे से ही आऊंगी, ताकि तुम्हारे चौकीदार की मुझ पर नजर न पड़ सके. इस तरह हम दोनों पर ही शक नहीं किया जाएगा.’’

‘‘तुम इतनी अक्लमंद और होशियार होगी, मुझे अंदाजा नहीं था.’’ नवेद खुश हो कर बोला.

जैतून जब पिछले रास्ते से बाहर निकल गई तो डा. नवेद ने चैन की सांस ली. थोड़ी ही देर बाद वह अस्पताल के राउंड पर जाने के लिए निकल पड़ा. गेट पर चौकीदार मौजूद था. जिस वक्त जैतून अंदर आई थी, वह नमाज के लिए गया हुआ था, इसलिए गेट खाली था.

डा. नवेद अस्पताल में 20-25 मिनट तक राउंड पर रहा. उस के लिए वक्त काटना दूभर हो गया था. जब वह घर वापस आ कर अपने बेडरूम में पहुंचा तो उस ने जैतून को देखा, जो उस के बेडरूम में कौफी लिए बैठी थी. डा. नवेद ने जैतून का शांत चेहरा देखा तो उसे यकीन नहीं आया.

जैसे वह शाहिद को जहर नहीं, अमृत पिला कर आई हो. आखिर जैतून ने उस की मोहब्बत के आगे हथियार डाल ही दिए. नवेद ने जब उसे बाजुओं में भर लिया तो वह उस के गले में बांहें डाल कर उस की आंखों में झांकने लगी. फिर धीरे से बोली, ‘‘मुझे जल्दी से जाने दो, कहीं बच्चे जाग न जाएं. वे रोने लगेंगे तो पड़ोस में खबर हो जाएगी.’’

चंद लमहों बाद नवेद कुर्सी पर बैठ गया. कौफी का कप उठा कर उस ने एक घूंट लिया और पूछा, ‘‘काम हो गया?’’

‘‘तुम ने तो मुझे बहुत सख्त इम्तिहान में डाल दिया था नवेद.’’ जैतून धीरे से बोली.

‘‘मोहब्बत का इम्तिहान तो हमेशा ही सख्त होता है जैतून.’’ उस की तरफ मोहब्बत भरी नजरों से देखते हुए नवेद ने दूसरा घूंट लिया.

‘‘यह मोहब्बत का नहीं, बल्कि एक औरत का इम्तिहान था. औरत कभी मोहब्बत के इम्तिहान में नहीं डगमगाती.’’

‘‘औरत का इम्तिहान,’’ नवेद के चेहरे पर आश्चर्य उभर आया, ‘‘वह कैसे?’’ उस ने तीसरे घूंट में सारी काफी हलक में उतार ली.

‘‘मैं जब शाहिद के कमरे में पहुंची तो मेरे दिमाग में यह खयाल बिजली की तरह आया कि मैं शाहिद को नहीं, बल्कि एक औरत, बीवी और मां को जहर दे रही हूं.’’

‘‘क्या मतलब?’’ नवेद की आंखों में हैरानी भर गई. उस ने अपनी पलकें झपकाईं, ‘‘मैं तुम्हारी बात समझा नहीं?’’

‘‘मतलब यह है कि मैं एक वफादार बीवी, शौहरपरस्त औरत और जिम्मेदार मां की पवित्रता पर बदनुमा दाग बन रही हूं, इस अहसास ने मेरा सीना चीर दिया था.’’

‘‘तो क्या तुम ने शाहिद को जहर नहीं दिया?’’ नवेद ने वहशतभरे लहजे में पूछा.

‘‘जहर तो मैं ने दे दिया, लेकिन शाहिद को नहीं, औरत की मजबूरी यही है कि वह अपनी फितरत और सोच पर काबू नहीं पा सकती.’’

‘‘फिर तुम ने जहर किसे दिया? क्या तुम ने जहर की शीशी कहीं फेंक दी?’’

‘‘अपनी उस मोहब्बत को, जो नागिन बन कर बीवी, औरत और मां को डसना चाहती थी, मैं ने उसे अर्थात तुम्हें जहर दे दिया. वह जहर उस वक्त मैं ने कौफी के कप में घोल दिया था, जब मैं ने तुम्हारे कदमों की आहट सुनी थी. अब तुम और तुम्हारी मोहब्बत बस कुछ ही लमहों की मेहमान है,’’

नवेद का घबराया हुआ चेहरा देख कर जैतून मुसकरा दी, ‘‘तुम शायद भूल गए थे कि मेरे वजूद के किसी कोने में एक बीवी, मां और ईमानदार औरत अभी जिंदा है, जो अपनी मोहब्बत को तो जहर दे सकती है, मगर उन तीनों को नहीं, जो उस की सुनहरी दुनिया है.’’

नवेद ने चीख कर चौकीदार को आवाज देनी चाही, लेकिन आवाज उस के हलक से नहीं निकल सकी. उस ने अपनी जिंदगी के आखिरी लमहों में जैतून को यह कहते सुना, ‘‘मुझे माफ कर देना नवेद. कभीकभी औरत को अपने हाथों ही अपनी मोहब्बत की कब्र खोदनी पड़ती है.’’

नवेद ने जैतून को जो तरकीब बताई थी, वह उसी पर इस्तेमाल कर के अपनी कोठरी में जा पहुंची. उस ने अंदर आते ही अपनी सोती हुई बच्चियों को चूमा और उन के बगल में लेट कर सुकून से आंखें बंद कर लीं.

बेवफा पत्नी और प्रेमी की हत्या

भाई के बसेरे में सेंध – भाग 1

‘‘प्रभात, कई बार मुझे लगता है कि तुम अब मुझे पहले की तरह से प्यार नहीं करते. हमारे प्यार में अब वह गरमाहट भी नजर नहीं आती, जो 6 साल पहले दिखती थी.’’  रितिका ने पति प्रभात से शिकायत भरे लहजे में कहा.

‘‘रितिका, ऐसा कुछ नहीं है. तुम अच्छी तरह जानती हो कि प्राइवेट जौब में काम का ज्यादा प्रेशर रहता है इसलिए मैं तुम्हारी तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दे पा रहा हूं. कोई बात नहीं कल तुम्हारा वीकली औफ है, मैं भी छुट्टी ले लेता हूं. कल का पूरा दिन तुम्हारे नाम ही रहेगा.’’ प्रभात ने कहा तो रितिका के चेहरे पर मुसकान तैर गई.

प्रभात जेएमआर मूवीलिंक कंपनी में मैनेजर था. जबकि रितिका एक फेमस ब्यूटी पार्लर में नौकरी करती थी. रितिका की मंगलवार को छुट्टी रहती थी इसलिए प्रभात ने उस से मंगलवार को छुट्टी करने की बात कही थी. ताकि दोनों छुट्टी एंजौय कर सकें. काफी देर तक इसी मुद्दे पर बातचीत के बाद दोनों सो गए. यह बात 23 दिसंबर, 2013 की है.

प्रभात और रितिका लखनऊ की सब से पौश कालोनी गोमती नगर के विवेकखंड में रहते थे. नीलकंठ चौराहा गोमतीनगर का सब से मशहूर चौराहा है. इन का मकान इसी चौराहे के पास था. 3 मंजिल के इस मकान में प्रभात और रितिका पहली मंजिल पर रहते थे. सुरक्षा के नजर से यहां के ज्यादातर लोगों ने मकानों में सीसीटीवी कैमरे लगा रखे हैं.

अगले दिन यानी 24 दिसंबर को चूंकि पतिपत्नी दोनों ही छुट्टी पर थे. इसलिए वे सुबह देर से सो कर उठे. उस दिन रितिका बहुत खुश थी. वह दिन उसे बहुत प्यारा लग रहा था. क्योंकि प्रभात ने उसी के लिए छुट्टी की थी.

फ्रेश हो ने के बाद रितिका ने बड़े प्यार से पति के लिए चाय बनाई. चाय का एक ही कप देख कर प्रभात बोला, ‘‘एक ही कप! तुम नहीं पिओगी क्या?’’

‘‘वाह, चाय मैं ने बनाई और मैं ही नहीं पीऊंगी. भला ऐसा कैसे हो सकता है?’’ रितिका ने कहा.

‘‘पर चाय का तो एक ही कप है.’’

‘‘तो क्या हुआ, आज हम दोनों एक ही कप से चाय पी लेंगे. एक घूंट तुम पीना फिर एक घूंट मैं.’’ रितिका ने एक कप का राज खोलते हुए कहा.

रितिका और प्रभात का वह पूरा दिन ऐसे ही हंसीखुशी में बीत गया. दोपहर बाद रितिका ने प्रभात के करीब आ कर कहा, ‘‘प्रभात मेरी छुट्टी इतनी अच्छी बीती कि मैं सोच भी नहीं सकती. आज का दिन ऐसा लगा जैसे हमारे हनीमून के दिन थे.’’

प्रभात ने रितिका को प्यार से बांहों में समेटते हुए कहा, ‘‘तुम ऐसे ही सुंदर और सेक्सी दिखती रहो तो सारी जिंदगी हनीमून सी गुजर जाएगी.’’

‘‘प्रभात मुझे केवल एक बात की चिंता होती है कि तुम कहीं मुझ से दूर न चले जाओ. हमारा कोई बच्चा नहीं है. मुझे डर लगता है कि कहीं तुम्हारे घर वाले तुम्हारी दूसरी शादी न कर दें.’’

‘‘रितिका, ऐसा कुछ नहीं होगा. ऐसी बातें सोच कर आज के दिन की खुशियां खराब मत करो. अच्छा, अभी मैं पत्रकारपुरम चौराहे तक जा रहा हूं. आज रात को खाने में कुछ स्पेशल बनाने के लिए ले आता हूं.’’ कह कर प्रभात पत्रकारपुरम चौराहे की ओर चला गया. वहां से वह शाम करीब 7 बजे वापस आया. सामान रख कर वह रितिका से बोला, ‘‘जानू कल 25 दिसंबर है. हम लोग क्रिसमस रात को घर में ही एंजौय करेंगे. अब अगर तुम्हारी इजाजत हो तो मैं बीयर पी आऊं.’’

रितिका जानती थी कि प्रभात को बीयर बहुत पसंद है. आज वह मना कर के पूरे दिन का मजा खराब नहीं करना चाहती थी. उस ने प्रभात के गालों को थपथपाते हुए कहा, ‘‘ऐज यू विश माई लव.’’

प्रभात मोटरसाइकिल ले कर घर से निकल गया. रात करीब पौने 10 बजे जब वह वापस आया तो उसे घर का बाहरी दरवाजा खुला मिला. प्रभात को थोड़ा अजीब लगा क्योंकि रितिका इस तरह कभी भी घर का दरवाजा खुला नहीं रखती थी. वह सीधा बेडरूम की ओर गया. वहां की स्थिति देख कर उस की आंखों के आगे अंधेरा छा गया. बेडरूम में रितिका की खून से लथपथ लाश पड़ी थी.

पत्नी को इस हाल में देख कर प्रभात चीख पड़ा. उस की चीख सुन कर पड़ोस में रहने वाले मनीष और उस का भाई आशीष वहां आ गए. कमरे में रितिका की लाश देख कर उन्हें मामला समझते देर नहीं लगी. मनीष ने गोमतीनगर थाने का नंबर मिलाया. लेकिन वह नंबर व्यस्त था. गोमतीनगर थाना वहां से गरीब 400 मीटर दूर था, इसलिए दोनों भाई गोमतीनगर थाने की ओर भागे. थाने पहुंच कर मनीष ने थानाप्रभारी उमेश बहादुर सिंह को रितिका की हत्या की बात बताई. थानाप्रभारी उन के साथ तुरंत घटनास्थल की ओर चल दिए.

थानाप्रभारी ने घटनास्थल पर पहुंच कर लाश का मुआयना किया तो पता चला कि हत्यारों ने रितिका का गला किसी धारदार हथियार से काटा था. इस के अलावा उस के पेट पर भी कई वार किए गए थे जिस से उस की आतें तक बाहर निकल आई थीं. कमरे की दीवारों पर भी खून के छींटे थे. ड्राइंगरूम के बाहर 2 कुरसियों पर भी खून के निशान थे. वहीं पास पड़े दीवान पर टूटे हुए बाल पड़े थे. बाल चूंकि लंबे थे इसलिए अनुमान लगाया कि वे रितिका के ही रहे होंगे.

गद्दे पर जगहजगह खून लगा था. बेडरूम से ड्राइंगरूम तक जाने वाली गैलरी में भी खून से सने जूते के निशान मिले. तकिया भी जमीन पर पड़ा था. कमरे में चारों ओर खून ही खून फैला था. खून के निशान घर के बाहर तक गए थे. जिस से पता चल रहा था कि चोट शायद हत्यारे को भी लगी थी.

थानाप्रभारी ने यह खबर अपने आला अधिकारियों को दे दी. कुछ ही देर में डीआईजी नवनीत सिकेरा, एसएसपी  जे. रवींद्र गौड़, एसपी (ट्रांसगोमती) हबीबुल हसन और सीओ (गोमतीनगर) विद्यासागर मिश्रा भी घटनास्थल पर पहुंच गए. सभी अधिकारियों ने मौका मुआयना किया. डीआईजी ने प्रभात से बात की और एसपी को शीघ्र ही मामले का खुलासा करने के निर्देश दिए. पुलिस ने डौग स्क्वायड और फिंगरप्रिंट  एक्सपर्ट की टीम को भी बुला लिया था. टीम ने वहां से कुछ सुबूत अपने कब्जे में लिए.

पुलिस ने पड़ोसियों से बात की तो पता चला कि उन्होंने न तो रितिका के चीखने की आवाज सुनी थी और न ही कुत्ते के भौंकने की. प्रभात ने चूंकि एक कुत्ता पाल रखा था, इसलिए कुत्ते के न भौंकने वाली बात पुलिस को चौंकाने वाली लगी. इस से पुलिस को लगा कि हत्यारे पहले से घर में आतेजाते रहे होंगे.

बहरहाल पुलिस ने घटनास्थल पर जरूरी काररवाई निपटाने के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. चूंकि मामला पौश कालोनी में रहने वाली एक ब्यूटीशियन का था इसलिए उस की लाश का पोस्टमार्टम 5 डाक्टरों के पैनल ने किया. पुलिस ने भी अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर ली.

सुहाग का गहना – भाग 3

जैतून गुमसुम सी बैठी रही. जैसे वह बहुत शर्मिंदा हो रही हो. उस का दिमाग जैसे भूतकाल की गहराइयों में जा पहुंचा. वह कुछ देर बाद बोली तो उस की आवाज रुंधी हुई थी, ‘‘तुम्हारे जाने के एक साल बाद अम्मी पर अचानक दिल का जबरदस्त दौरा पड़ा. वह उस दौरे से संभल नहीं सकीं.  एक तो उन्हें वक्त पर सही मेडिकल एड नहीं मिली और डाक्टरों की लापरवाही या मौत के बहाने ने उन्हें मुझ से छीन लिया. उन की इस अचानक मौत से मैं इतनी बड़ी दुनिया में अकेली रह गई.

‘‘तुम तो जानते ही हो कि इस दुनिया में मां के अलावा मेरा कोई भी नहीं था. तुम उस वक्त लंदन में थे. मेरे पास तुम्हारा पता भी नहीं था. मैं तुम्हारा पता लेने तुम्हारे घर कैसे जा सकती थी. इतने बड़े घर में जाती तो जलील और रुसवा हो कर आती.

‘‘तुम ने अपनी मोहब्बत को राज रखा था. फिर मैं ने सोचा कि इंतजार के 4 साल काट लूंगी. लेकिन मुझे मालूम हुआ कि जिंदगी बहुत कठिन है. खासतौर पर एक जवान, हसीन और बेसहारा लड़की के लिए तो हर तरफ भेडि़ए ही भेडि़ए मौजूद होते हैं. दुनिया वालों ने मुझे भी लूट का माल समझ लिया था. न जाने कैसे कैसे लोग मेरा हाथ थामने को तैयार थे.

अगर मैं तुम्हारा इंतजार करती रहती तो किसी न किसी भेडि़ए का शिकार हो जाती. मुझे उठा ले जाने की कोशिश की गई. 2 बार मेरी आबरू लुटतेलुटते बची. फिर मैं ने शाहिद का हाथ थाम लिया. वह एक स्कूल टीचर था और उस के पास इल्म की दौलत थी.’’

जैतून सांस लेने के लिए रुकी. उस के बाद उस की आवाज फिजा में लहराई, ‘‘सांसारिक दौलत उस के पास नहीं थी. लेकिन जिस दिन शाहिद से मेरी शादी हुई, उसी दिन से मैं ने दिल का वह कोना बंद कर दिया, जिस में तुम्हारी तसवीर छिपी थी. इसलिए कि अब शाहिद ही मेरा सब कुछ था. शाहिद ने मुझे इतनी मोहब्बत दी कि तुम्हारी तसवीर धुंधली पड़ गई. फिर मैं शाहिद की ही दुनिया में खो गई. मैं उस का वजूद बन गई. मैं अगर ऐसा नहीं करती तो फिर क्या करती?’’

‘‘तुम ने बहुत अच्छा किया. एक औरत का ऐसा रूप होना चाहिए,’’ नवेद ने कहा, ‘‘मैं ने तुम्हारी हर याद को मिटाने के लिए शादी की थी. मेरा खयाल था कि एक औरत ही मेरा दुख बांट सकती है और वह मुझे तुम्हारी ही तरह से चाहेगी. मगर हम दोनों में 6-7 माह से ज्यादा निबाह न हो सका और हम दोनों सदा के लिए अलग हो गए.’’

‘‘वह क्यों,’’ जैतून ने हैरत से पूछा, ‘‘मुझे यकीन नहीं आ रहा है.’’

वह भी डाक्टर थी. मैं ने सोचा था कि इस तरह हम जिंदगी के सफर में एकदूसरे के बेहतरीन साथी साबित होंगे, मगर ऐसा नहीं हो सका. वह सिर्फ और सिर्फ लेडी डाक्टर रहना चाहती थी. मुझे तो ऐसी बीवी की जरूरत थी, जिस के वजूद से सारा घर महकता.

‘‘हैरत की बात है. क्या एक औरत भी इस अंदाज में सोच सकती है?’’ जैतून हैरानी से बोली, ‘‘हर औरत तो एक जैसी नहीं होती. अब तुम बस जल्दी से अपना घर बसा लो.’’

‘‘अब तुम आ ही गई हो तो मेरे लिए भी अपनी जैसी ही औरत ढूंढ देना,’’ नवेद ने कहा, ‘‘ऐसी औरत, जो घर की चारदीवारी में रह कर तुम्हारी ही तरह चाहे.’’

शाहिद की अभी ज्यादा देखभाल की जरूरत थी. कोई और मरीज होता तो डाक्टर नवेद उसे छुट्टी दे देता. मगर शाहिद जैतून का शौहर था और इस नाते नवेद शाहिद को उस वक्त तक अस्पताल में रखना चाहता था, जब तक वह पूरी तरह से स्वस्थ नहीं हो जाता. उस ने जैतून से कह दिया था कि उसे दो-एक महीने तक यहीं रहना होगा. जैतून ने इस शर्त पर वहां रह कर शाहिद का इलाज मंजूर किया था कि वह अस्पताल में कोई नौकरी कर लेगी.

डा. नवेद के लिए जैतून को नौकरी देना कोई बड़ी समस्या नहीं थी. असली मसला तो जैतून के बच्चे थे. वह बच्चों से 8-10 घंटे अलग रह कर कोई काम नहीं कर सकती थी. इन सारी बातों को ध्यान में रखते हुए नवेद ने जैतून को यह काम सौंपा कि वह उस के बंगले पर आ कर उस के लिए नाश्ता और दोनों वक्त का खाना बना दे.

जैतून को नवेद की अमीरी का पहले से कुछ अंदाजा नहीं था. शादी से पहले जब वह नवेद की मोहब्बत में गिरफ्तार हुई थी, तब भी वह सिर्फ यही जानती थी कि वह एक बड़े बाप का बेटा है. वह यही समझती थी कि नवेद इस अस्पताल में नौकर है, पर जब उस ने देखा और सुना कि नवेद ही इस अस्पताल का मालिक है तो वह हैरान भी हुई और खुश भी.

जब उस ने नवेद के घर में कदम रखा तो घर को अंदर से देख कर उस के दिल में कांच की किरच सी चुभ गई. उस ने कभी ऐसे ही घर का ख्वाब देखा था, मगर वे ख्वाब दगाबाज निकले थे. फिर एक आवारा सा खयाल जैतून के दिमाग में आया कि काश! वह नवेद की बीवी होती तो इस घर में राज कर रही होती. फिर उस ने इस बेहूदा खयाल को अपने दिमाग से निकाल फेंका. अब वापसी संभव नहीं थी.फिर ऐसी हालत में शाहिद को मंझधार में छोड़ देना औरत की जात पर बदनुमा धब्बा था.

उधर न जाने क्यों नवेद महसूस कर रहा था कि जैतून फिर से उस के दिमाग पर किसी बदली की तरह छा रही है और वह उस के जादू में कैद हो रहा है. 8-10 दिनों में ही जैतून में अजीब सा निखार आ गया था. बेफिक्री, अच्छे खानपान और मानसिक शांति ने उसे फिर से जवान कर दिया था. उस के गालों पर सुर्खी झलकने लगी थी. जैतून सुबह जब उस के लिए नाश्ता तैयार करने आती थी तो उस का रूप नया होता था और जब वह उस के सामने से गुजरती थी तो जिस्म की खुशबू सुरूर दे जाती थी.

नवेद अपनी पहली बीवी के बारे में सोचता और उस का जैतून से मिलान करता. पहली बीवी खूबसूरत थी, लेकिन नवेद की जिंदगी और घर में कभी उस ने खुशी महसूस नहीं की थी. नवेद को वह हमेशा ठंडी लाश जैसी महसूस होती थी. उस के रहते घर में अजीब सी मुर्दनी और वहशत का एहसास होता था.

लेकिन जब से जैतून ने इस घर में कदम रखा था, सारा घर और उस की जिंदगी जैसे जगमगाने लगी थी. नवेद ने महसूस किया था कि उसे जैतून जैसी सुघड़, सलीकेदार और पुरशबाब औरत कहीं नहीं मिल सकती. वह उस की कमजोरी बनती जा रही थी और अब उसे जैतून के बिना जिंदगी गुजारना मुश्किल नजर आ रहा था.

घर की तनहाई डा. नवेद को किसी सांप की तरह डसती महसूस होती थी. वैसे तो जैतून कभीकभी किसी एक बच्ची को ले आती थी, पर अकसर वह अकेली ही आती थी. उस का अकेले आना नवेद की रगों में खून का बहाव तेज कर देता था. फिर भी उस ने कभी जैतून के भरोसे को ठेस पहुंचाने की कोशिश नहीं की. एक दिन रात के खाने पर जैतून भी थी. वह बच्चों को खिलापिला कर सुला कर आई थी. खाने से फुरसत पा कर वे दोनों बैठे कौफी पी रहे थे कि नवेद ने जैतून की तरफ देखा.

वह उसे परेशान और चिंतित दिखाई दी. नवेद ने पूछा, ‘‘जैतून क्या सोच रही हो तुम?’’

‘‘मैं सोच रही हूं कि अब वापस जा कर अपनी जिंदगी की शुरुआत कैसे और किस अंदाज में करूं? मुझे अपनी और शाहिद की फिक्र नहीं है. फिक्र मुझे अपने बच्चों की है. शाहिद ट्यूशन कर के कितना कमा सकेगा? उस आमदनी से तो पेट भरना ही मुश्किल पड़ेगा. मैं अगर घर से काम करने के लिए निकलूं तो घर चौपट हो जाएगा. मालूम नहीं, मुझे कोई काम देगा भी या नहीं.’’

‘‘जैतून, मैं एक बात कहूं, बुरा तो नहीं मानोगी?’’ नवेद की आवाज में अजीब सी कंपकंपाहट थी.

जैतून ने उस के आवाज के कंपन पर चौंक कर उस की तरफ देखा, ‘‘मैं और तुम्हारी किसी बात का बुरा मानूं, यह कैसे हो सकता है.’’

‘‘जैतून,’’ नवेद को अपनी आवाज कहीं दूर से आती महसूस हो रही थी, ‘‘मैं आज भी तुम से उतनी ही मोहब्बत करता हूं, जितनी कल करता था. न जाने क्यों यह जानते हुए भी तुम्हें फिर से पाने की चाह पैदा हो रही है कि तुम किसी और की बीवी हो, अमानत हो किसी गैर की. मुझे महसूस होने लगा है कि अब मैं तुम्हारे बिना जिंदगी का एक लम्हा भी नहीं गुजार सकूंगा. अगर तुम मेरी बन गईं तो फिर तुम्हारे लिए कोई समस्या नहीं रहेगी.’’

‘‘नवेद,’’ जैतून इस तरह से उछल पड़ी, जैसे नवेद के शब्द जहरीले डंक बन कर उस के वजूद में गड़ गए हों, ‘‘तुम ने यह क्यों नहीं सोचा कि मैं एक औरत हूं और शाहिद से मुझे जो इज्जत हासिल है, वह किसी और मर्द को अपनाने में नहीं है.

‘‘अब उसे मेरी जरूरत है. वह मेरा वजूद बन गया है.’’ जैतून सांस लेने के लिए रुकी, फिर बोली, ‘‘तुम ही बताओ, क्या औरत अपने शौहर के होते हुए किसी और की भी हो सकती है?’’

‘‘तुम ने मेरी बात का गलत मतलब समझा है,’’ नवेद ने जल्दी से कहा, ‘‘तुम शाहिद से तलाक ले लो. शाहिद का क्या है, वह किसी न किसी तरह जी लेगा.’’

‘‘तो तुम यह चाहते हो कि मैं शाहिद को हालात के रहमोकरम की चक्की में पिसने के लिए छोड़ दूं? क्या तुम मुझ से इस बात की उम्मीद रखते हो?’’ जैतून तेजी से बोली.

‘‘अगर तुम ने मेरी बात पर गंभीरता से गौर नहीं किया और नहीं मानी तो सारी जिंदगी पछताओगी, क्योंकि तुम्हारी बेटियों का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा. आज के जमाने में एक लड़की की शादी करना कितना मुश्किल काम है, तुम अच्छी तरह जानती हो. कल तो और भी मुश्किल होगी. तुम शाहिद को छोड़ कर मेरे पास आ जाओगी तो मेरा फर्ज बनता है कि मैं तुम्हें खुश रखूं और तुम्हारी लड़कियों की शादी खूब धूमधाम से करूं. अब मुझ से जुदाई बरदाश्त नहीं हो रही.’’

जैतून झटके से कुरसी से उठ खड़ी हुई. वह उस से गिड़गिड़ा कर बोली, ‘‘नवेद, खुदा के लिए मुझे यूं इम्तिहान में मत डालो.’’

‘‘तुम जज्बाती बन कर मत सोचो. कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारा जज्बाती फैसला कल नाउम्मीदी की नजर हो जाए.’’

‘‘शायद तुम ठीक कहते हो,’’ जैतून दरवाजे की तरफ बढ़ी और फिर रुक गई. उस ने नवेद की आंखों में अजीब सी चमक देखी थी. वह बड़े मजबूत लहजे में बोलती चली गई, ‘‘शाहिद से तलाक लेने और तुम से शादी करने पर सारी जिंदगी के लिए मुझ पर दाग लग जाएगा. मुझे मर जाना मंजूर है, लेकिन बदनामी कुबूल नहीं. तुम मुझे मेरे हाल पर ही छोड़ दो.’’