आशिक ससुर की कातिल बहू – भाग 3

अगले दिन मनोज ने नौकरी छोड़ दी और हिसाबकिताब ले कर गांव आ गया. कुछ दिनों गांव में रह कर मनोज अकेला ही दिल्ली चला गया, जहां किसी कंस्ट्रक्शन कंपनी में नौकरी करने लगा. उस के जाते ही गीता फिर आजाद हो गई. अब वह वही करने लगी, जो उस के मन में आता.

शेखर और मनोज उस से मिलने उस की ससुराल भी आने लगे. मनोज के पास मोटरसाइकिल थी, गीता का जब मन होता, मोटरसाइकिल ले कर अकेली ही बरेली से रुद्रपुर चली जाती और अपने प्रेमियों से मिल कर वापस आ जाती.

रामचंद्र से गीता को विशेष लगाव था. वह उसी के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताती थी. जब इस सब की जानकारी परमानंद को हुई तो उस ने गीता को रोका. लेकिन वह मानने वाली कहां थी. उस ने एक दिन गीता को रामचंद्र के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया तो उस ने सरेआम रामचंद्र की पिटाई कर दी. रामचंद्र को यह बुरा तो बहुत लगा, लेकिन वह उस समय कुछ करने की स्थिति में नहीं था.

गीता को भी ससुर की यह हरकत पसंद नहीं आई. क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि कोई उसे अपनी जागीर समझे और उस की बेलगाम जिंदगी पर अंकुश लगाए. जब उस ने अपने पति मनोज की बात नहीं मानी तो परमानंद की बात कैसे मानती. यही वजह थी कि परमानंद बारबार उस के रास्ते में रोड़ा बनने लगा तो उस ने इस रोड़े को हमेशा के लिए हटाने की तैयारी कर ली. इस के लिए उस ने रामचंद्र को भी राजी कर लिया. वह राजी भी हो गया, क्योंकि वह भी उस से अपनी बेइज्जती का बदला लेना चाहता था.

गीता ने ससुर को ठिकाने लगाने की जो योजना बनाई थी, उसी के अनुसार 27 जुलाई को वह परमानंद को मोटरसाइकिल से रुद्रपुर रामचंद्र के कमरे पर ले गई. देर रात तक गीता, रामचंद्र और परमानंद बैठ कर शराब पीते रहे. गीता और रामचंद्र ने तो खुद कम पी, जबकि परमानंद को जम कर पिलाई. यही नहीं, उस की शराब में नींद की गोलियां भी मिला दी थीं, जिस से कुछ ही देर में वह बेहोश हो कर लुढ़क गया. उस के बाद गीता और रामचंद्र ने उसी के अंगौछे से उस का गला घोंट दिया.

इस के बाद गीता ने मोटरसाइकिल स्टार्ट की तो रामचंद परमानंद की लाश को बीच में बैठा कर पीछे स्वयं बैठ गया. गीता मोटरसाइकिल ले कर काला डूंगी रोड पर भाखड़ा नदी के किनारे पहुंची, जहां दोनों ने परमानंद की लाश को बोरी में कुछ ईंटों के साथ डाल कर नदी के पानी में फेंक दिया. इस के बाद गीता रुद्रपुर में ही रामचंद्र के कमरे पर कई दिनों तक रुकी रही.

11 अगस्त को गीता मोटरसाइकिल से अपनी ससुराल लावाखेड़ा पहुंची तो परमानंद के छोटे बेटे चैतन्य स्वरूप ने पिता के बारे में पूछा. तब गीता ने किसी रिश्तेदारी में जाने की बात कह कर बात खत्म कर दी. 2 दिन ससुराल में रह कर गीता फिर चली गई. गीता के जाने के बाद कई दिनों तक परमानंद नहीं लौटा तो घर वालों को चिंता हुई.

उन्हें गीता पर शक हुआ कि कहीं उस ने अपने प्रेमियों शेखर और मनोज के साथ मिल कर उस की हत्या तो नहीं करा दी. चैतन्य स्वरूप ने कोतवाली नवाबगंज जा कर अपने पिता के गायब होने की सूचना दी. उस समय इंसपेक्टर अशोक कुमार के पास कोतवाली का भी चार्ज था. उन्हें लगा कि बहू ससुर को क्यों गायब करेगी? यही सोच कर उन्होंने चैतन्य को लौटा दिया.

परमानंद का परिवार उस की तलाश में लगा रहा. उसी बीच 21 अगस्त को इंसपेक्टर अशोक कुमार का तबादला हो गया तो उन की जगह आए इंसपेक्टर जे.पी. तिवारी. चैतन्य स्वरूप उन से मिला तो उन्होंने उस से तहरीर ले कर शेखर और मनोज भटनागर के खिलाफ अपराध संख्या-827/13 पर भादंवि की धारा 364 के तहत मुकदमा दर्ज करा कर गीता के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगवा दिया.

सर्विलांस सेल के पुलिसकर्मियों की गीता से कई बार बात हुई. गीता उन से कभी गुजरात में होने की बात कहती तो कभी हरियाणा में होने की बात बताती, जबकि उस की लोकेशन बरेली के आसपास की ही थी. पुलिस समझ गई कि गीता बहुत ही शातिर है.

गीता के नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई गई तो पता चला कि वह सब से अधिक अपनी बड़ी बहन ललिता से बात करती थी. इंसपेक्टर जे.पी. तिवारी ने ललिता और उस के पति प्रमोद को थाने ला कर पूछताछ की तो उन्होंने गीता का ठिकाना बता दिया. गीता उस समय बरेली के थाना मीरगंज के सामने राजेंद्र सेठ के मकान में किराए का कमरा ले कर रह रही थी. उसी के साथ रामचंद्र मौर्य भी था. पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया. यह 23 दिसंबर, 2013 की बात है.

पूछताछ में गीता और रामचंद्र ने परमानंद की हत्या का अपराध स्वीकार कर के उस की हत्या की पूरी कहानी सिलसिलेवार बता दी. पुलिस ने दोनों को रुद्रपुर ले जा कर उन की निशानदेही पर भाखड़ा नदी से परमानंद की लाश बरामद करने की कोशिश की, लेकिन लाश बरामद नहीं हो सकी. इस के बाद पुलिस ने दोनों को सीजेएम की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. लाश की बरामदगी के लिए एक बार फिर पुलिस दोनों को रिमांड पर लेने का प्रयास कर रही थी. लेकिन कथा लिखे जाने तक दोनों का रिमांड मिला नहीं था.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मां की राह पर बेटी : मां के प्यार पर डाला डाका – भाग 3

श्यामबाबू की शिकायत पर पुलिस अधीक्षक ने इस मामले की जांच शिकायत प्रकोष्ठ के अधिकारी राजेंद्रपाल सिंह को सौंप दी. उन्होंने घटनास्थल पर जा कर गांव वालों से गहन पूछताछ की. इस पूछताछ में उन्हें पता चला कि गुडि़या ने अपने प्रेमी गोलू श्रीवास्तव के साथ मिल कर कंचन की गला दबा कर हत्या की थी. इस के बाद गोलू ,पड़ोसी बाबूराम निषाद और सोनम की मदद से गुडि़या कंचन की लाश को मारुति वैन से घोंघी रऊतापुर के जंगलों में ले गई और पेट्रोल डाल कर आग लगा दी. जिस मारुति वैन से लाश ले जाई गई थी, उसे गंगाघाट की ही मिश्रा कालोनी का रहने वाला रवि पांडेय चला कर ले गया था.

इस जानकारी के बाद राजेंद्रपाल सिंह ने सच्चाई का पता लगाने के लिए रवि पांडेय की तलाश शुरू कर दी. संयोग से जल्दी ही वह उन के हाथ लग गया. थाना गंगाघाट ला कर उस से पूछताछ की गई तो पहले उस ने पुलिस को बरगलाने की कोशिश की. लेकिन पुलिस अपनी पर आ गई तो उसे सच्चाई बतानी ही पड़ी.

रवि के बताए अनुसार, गुडि़या का प्रेमी गोलू श्रीवास्तव उस का गहरा दोस्त था. 14 नवंबर की रात गोलू ने उसे फोन कर के कहा कि उस की बेटी की तबीयत खराब हो गई है, इसलिए उसे डाक्टर को दिखाने के लिए अस्पताल ले जाना है. वह मारुति वैन ले कर उस के घर आ जाए.

गोलू के बुलाने पर रवि मारुति वैन यूपी 78एक्स 2585 ले कर गोलू के घर पहुंचा. गोलू ने सोनम और अपने पड़ोसी बाबूराम निषाद को बुला कर वैन में बैठने को कहा. इस के बाद वह एक लड़की को उठा कर ले आया. देखने से ही लग रहा था कि वह जिंदा नहीं है. गोलू के कहने पर वह वैन ले कर कानपुर लखनऊ हाईवे पर चल पड़ा. रास्ते में उस ने एक पेट्रोल पंप से 2 सौ रुपए में एक केन पेट्रोल खरीदा और आजाद मार्ग पर लौट आया.

कुछ दूर जाने के बाद गोलू ने रवि से वैन को घोंघी रऊतापुर जाने वाली कच्ची सड़क पर ले चलने को कहा. रवि को शक हुआ तो उस ने उस ओर जाने से मना कर दिया. उस का कहना था कि उधर तो खेत हैं, अस्पताल कहां है. तब गोलू ने उसे धमकी दे कर उधर चलने को कहा. मजबूरन रवि को आगे बढ़ना पड़ा. काफी दूर सुनसान में जा कर गोलू ने वैन रुकवाई और लाइट बंद करा दी.

गोलू ने लड़की को नीचे उतारा और खेत के किनारे डाल कर उस पर साथ लाया पेट्रोल उड़ेल कर आग लगा दी. लपटें उठीं तो गांव वालों ने समझा कि खेत में आग लग गई है. वे शोर मचाते हुए दौड़े. स्थिति बिगड़ते देख सभी जल्दीजल्दी वैन में सवार हुए और दूसरे रास्ते से हाईवे की ओर भागे. वापस आ कर उस ने सभी को आजाद मार्ग पर उतार दिया और खुद अपने घर चला गया.

रवि के अपराध स्वीकार करने के बाद पुलिस ने उस की निशानदेही पर कंचन की लाश ले जाने वाली वैन बरामद कर ली. अब पुलिस को अन्य लोगों को गिरफ्तार करना था. पुलिस ने गुडि़या के घर छापा मारा, जहां गुडि़या और गोलू तो नहीं मिले, लेकिन सोनम मिल गई.

पुलिस ने उसे थाने ला कर पूछताछ की तो पहले सोनम ने यह कह कर इस अपराध में शामिल होने से मना कर दिया कि उसे किसी के इशारे पर फंसाया जा रहा है. लेकिन जब पुलिस ने उस के सामने सुबूत पेश किए तो उस ने कंचन की हत्या में शामिल होने का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद पुलिस ने कंचन की हत्या का मुकदमा दर्ज कर के सोनम और रवि को 14 जनवरी, 2014 को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

अब पुलिस को गोलू श्रीवास्तव, गुडि़या और बाबूराम निषाद की तलाश थी. लगातार छापे मार कर 17 जनवरी, 2014 को पुलिस ने गोलू और गुडि़या को भी गिरफ्तार कर लिया. थाना गंगाघाट ला कर दोनों से पूछताछ की गई. उन के पास झूठ बोलने का कोई बहाना नहीं था, इसलिए गोलू और गुडि़या ने  कंचन की हत्या का अपराध स्वीकार करते हुए पुलिस को बताया कि पहले पति श्यामबाबू से  पैदा 3 बेटियों में कंचन और मोना उसी के साथ रहती थीं.

साथ रहते हुए ही कंचन के संबंध गुडि़या के प्रेमी गोलू से हो गए. जब इस बात की जानकारी गुडि़या को हुई तो उस ने कंचन को डांटा. इस के बाद कंचन, गोलू और गुडि़या में खूब लड़ाई हुई. इस बात से नाराज हो कर कंचन ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली.

कंचन के आत्महत्या कर लेने के बाद गुडि़या और गोलू को जेल जाने का डर सताने लगा. उन्होंने सोचा, इस से बचने का एक ही तरीका है कि लाश गायब कर के उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी जाए. जब लाश बरामद होगी तो उस की हत्या का आरोप उस के पिता श्यामबाबू पर लगा दिया जाएगा. यही सोच कर गुडि़या ने अपने पड़ोसी बाबूराम निषाद से सलाह ली. उस ने भी इसे उचित ठहराया. इस के बाद उन्होंने कंचन की लाश को रात के अंधेरे में ले जा कर घोंघी रऊतापुर के जंगल में जला दी.

पुलिस ने गुडि़या और गोलू के बयानों के आधार पर इन्हीं दोनों को कंचन की हत्या का मुख्य आरोपी माना. पूछताछ के बाद उन्हें भी जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक बाबूराम निषाद पुलिस के हाथ नहीं लगा था.

गिरफ्तार अभियुक्तों को जेल भेज कर राजेंद्र पाल सिंह घोंघी रऊतापुर में मिली लाश की शिनाख्त डीएनए जांच से कराना चाहते हैं, जिस से यह साबित हो सके कि मृतका कंचन ही थी. इस के लिए उन्होंने काररवाई भी शुरू कर दी थी.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सुहाग का गहना – भाग 2

डाक्टर नवेद बहुत थक चुका था. उस ने लगातार 5 बड़े औपरेशन किए थे. वह अपने कमरे में आ कर बैठा तो उसे बहुत तेजी से कौफी की तलब लगी. उस ने इंटरकाम पर नर्स से कौफी के लिए कह कर अपने आप को एक सोफे पर गिरा दिया और आंखें बंद कर के टांगें पसार दीं. कुछ ही देर में आंख भी लग गई. अचानक किसी शोर से उस की आंख खुली तो वह हड़बड़ा कर उठ बैठा.

कमरे के बाहर एक औरत चीखचीख कर कह रही थी, ‘‘मुझे अंदर जाने दो, डाक्टर से बात करने दो, मेरे शौहर की हालत बहुत नाजुक है.’’

‘‘इस वक्त डाक्टर साहब मरीज नहीं देखते. तुम कल शाम को मरीज को ले कर आना.’’ नर्स उसे समझा रही थी.

‘‘मेरे शौहर की जान खतरे में है और तुम कल आने के लिए कह रही हो,’’ उस औरत ने पूरी ताकत से चीख कर कहा, ‘‘तुम औरत हो या जानवर, चलो हटो सामने से.’’

फिर अगले ही लम्हे दरवाजा एक धमाके से खुला और एक औरत पागलों की तरह अंदर दाखिल हो गई. उस के पीछे नर्स थी, जो उसे अंदर जाने से रोक रही थी. जैसे ही उस औरत की नजर डा. नवेद पर पड़ी, वह उस की तरफ बिजली की तरह लपकी. लेकिन नवेद के पास पहुंच कर वह ठिठक गई. उस ने नवेद को देखा तो आंखें हैरत से फैल गईं. वक्त की नब्ज रुक सी गई. वह कुछ लमहे तक सकते के आलम में खड़ी रही, फिर उस के होंठों में जुंबिश हुई, ‘‘नवेद… तुम…!’’

‘‘जैतून!’’ नवेद झटके से उठ खड़ा हुआ.

जैतून की आंखों के सामने अंधेरा सा छा गया. वह किसी नाजुक सी शाख की तरह लहराई, ‘‘मेरा सुहाग बचा लो नवेद… नहीं तो मैं…’’ इस के आगे वह एक भी लफ्ज नहीं बोल सकी. अगर नवेद तेजी से आगे बढ़ कर उसे संभाल न लेता तो वह फर्श पर गिर चुकी होती.

जैतून पलंग पर बेहोशी के आलम में पड़ी थी. नवेद पलंग के पास कुर्सी पर बैठा कौफी की चुस्की ले रहा था. उस की नजरें जैतून के हसीन चेहरे पर जमी थीं. यह वही चेहरा था, जो आज भी उस के दिल पर नक्श था. उसे देखते देखते वह बहुत दूर चला गया. उस के दिमाग की खिड़कियां खुलने लगीं. उस ने सोचा, जैतून जो कभी उस की मोहब्बत थी, उन दोनों में बेइंतहा प्यार था. उस की जिंदगी का हर लम्हा जैतून की याद में जकड़ा हुआ था. क्या आज भी जैतून के दिल के किसी कोने में उस की याद बसी होगी?

जैतून तो उस की मोहब्बत में पागल थी. फिर बेवफा कौन था? वह वक्त, जिस पर किसी का अख्तियार नहीं होता है, जो किसी का नहीं होता है. वायदों की जंजीर को किस ने तोड़ा था, उस ने या जैतून ने? जैतून ही तो बेवफा निकली थी. कहा था, ‘मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी.’ उस ने जैतून से सिर्फ 5 साल इंतजार करने के लिए कहा था. वे 5 साल पलक झपकते गुजर गए थे. लेकिन जब वह वापस आया तो सुना कि जैतून की शादी हो चुकी है.

जब जैतून किसी की हो चुकी थी तो उस की तलाश बेकार थी. उस ने अपने सीने में एक गहरा जख्म ले लिया था, जिस की दवा खुद उस के पास नहीं थी. जिस के पास दवा थी, वह किसी और की हो चुकी थी. अब अचानक जैतून उस की राह में आ कर खड़ी हो गई थी और आज देख कर कि वाकई वह किसी और की बन चुकी है.

नवेद को महसूस हो रहा था, जैसे उस के दिल में बर्छियां उतरती जा रही हों. वह सीने में किसी जख्मी परिंदे की तरह फड़फड़ाता हुआ दिल थामे सोचने लगा, आखिर जैतून और उस के शौहर का क्या जोड़ है? शाहिद जैतून के किसी लायक भी तो नहीं है.

नवेद ने जैतून के जिस्म पर परखने वाली एक नजर दौड़ाई. 3 बच्चों की मां बन कर भी वह नहीं ढली थी, बल्कि और भी नशीली हो गई थी. तकदीर ने एक शहजादी को एक मामूली से गुलाम की झोली में डाल दिया था. सोचतेसोचते नवेद का दिमाग अचानक बहकने लगा. वह एक खयाल से अचानक यूं उछल पड़ा, जैसे उसे करंट लगा हो. उस ने सोचा, जैतून को हासिल करने का उसे सुनहरा मौका मिल रहा है.

सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी. वह बड़ी आसानी से जैतून के शौहर को मौत की नींद सुला सकता है. कोई जैतून के शौहर की मौत को चैलेंज भी नहीं कर सकेगा. पर जैतून को क्या वह अपना बना पाएगा? क्या वह यह सदमा सह सकेगी? पर दुनिया की न जाने कितनी औरतें यह सदमा सह जाती हैं. वे मर तो नहीं जातीं, जैतून भी नहीं मरेगी. वह खुद ही नहीं, वक्त भी जैतून के जख्मों को सुखा देगा. दुनिया में वक्त से बड़ा कोई मरहम नहीं है. जैतून बच्चों के लिए उस का सहारा पा कर अपने शौहर की मौत को जल्द ही भुला देगी.

मगर जैतून अपने शौहर की मौत की सूरत में उस पर शक भी तो कर सकती है. नवेद के दिमाग में यह खयाल बिजली की तरह आते ही उस का सारा जिस्म पसीने में डूब गया. नवेद ने इस खयाल को जेहन से झटक दिया. उस का काम किसी की जान लेना नहीं है. बरसों से बसेबसाए घर को उजाड़ना दरिंदगी है, कत्ल है. एक डाक्टर होने के नाते खुदगर्जी के अंधे जुनून में डूब जाना उस के लिए बहुत ही शर्मनाक होगा. नवेद एक नई सोच, नए हौसले के साथ सिर्फ और सिर्फ एक डाक्टर बन कर जैतून के शौहर को देखने के लिए उठ खड़ा हुआ.

चेक करने पर नवेद ने जाना कि औपरेशन के सिवा और कोई चारा नहीं है. वह शाहिद के औपरेशन से फुरसत पाने के बाद जब औपरेशन थिएटर से निकला तो उस ने अपने आप को बेहद हल्काफुल्का और शांत महसूस किया. उस ने जैतून को बेचैनी से इंतजार करते पाया. उस ने बेताबी से उस के पास आ कर पूछा, ‘‘शाहिद कैसे हैं?’’

‘‘वह अब खतरे से बाहर हैं.’’ नवेद ने मुसकराते हुए उसे तसल्ली दी.

‘‘नवेद,’’ जैतून की आंखें आंसुओं से भर गईं, ‘‘मैं तुम्हारा यह एहसान जिंदगी भर नहीं भूलूंगी.’’

‘‘मगर जैतून, हमें तुम्हारे शौहर की जान बचाने के लिए उन की टांग काटनी पड़ी.’’ नवेद ने ठहरठहर कर धीमे लहजे में बताया.

जैतून की आंखों में अंधेरा सा छा गया. उस ने सदमे से भर कर अपना सीना दबा लिया, ‘‘मेरे अल्लाह! यह क्या हुआ.’’

‘‘इस के सिवा और कोई चारा नहीं था,’’ नवेद ने कहा, ‘‘टांग में जहर फैल गया था. अगर पहले ही इलाज पर पूरी मेहनत की गई होती तो यह नौबत न आती.’’

नवेद अपनत्व से आगे बोला, ‘‘जैतून, इस क्वार्टर में तुम अपने बच्चों के साथ रह सकती हो. जब तक शाहिद पूरी तरह से सेहतमंद नहीं हो जाते, तुम्हें किसी तरह की फिक्र करने की कोई जरूरत नहीं है. अलबत्ता शाहिद अस्पताल के कमरे में ही रहेंगे, क्योंकि उन्हें जल्दी ठीक होने के लिए आराम की सख्त जरूरत है. इस क्वार्टर में रहने पर बच्चों की वजह से उन्हें आराम नहीं मिल पाएगा.’’

जैतून ने एक पोटली नवेद के सामने रखी तो हैरत से उस ने जैतून की तरफ देखा, ‘‘यह क्या है जैतून?’’

‘‘गहने,’’ वह नवेद से नजरें नहीं मिला सकी, इसलिए नीची कर के बोली, ‘‘यह तुम्हारी और औपरेशन की फीस है. शाहिद के कमरे, खानेपीने और दूसरे मेडिकल खर्चे के लिए मेरे पास कुल पूंजी यही है. अगर इन गहनों को बेचने के बाद भी रकम कम पड़े तो मैं बाद में थोड़ाथोड़ा कर के अदा कर दूंगी.’’

‘‘जैतून!’’ नवेद की आवाज में दुख भर गया, ‘‘क्या तुम मुझे अपनी नजरों में जलील करना चाहती हो? क्या तुम मेरे जज्बात और हमदर्दी की कीमत लगा रही हो?’’

‘‘नहीं नवेद,’’ वह झुकी पलकों से फर्श को घूरती रही, ‘‘मैं आज खुद ही अपनी नजरों में जलील हो रही हूं. मैं खुद भी नहीं जानती कि तुम्हारे एहसानों का बदला कब और कैसे अदा करूं.’’

‘‘मैं इन गहनों को हाथ लगाना तो दूर, इन की तरफ देखना भी पसंद नहीं करूंगा,’’ नवेद ने उस के चेहरे पर नजरें जमा कर कहा, ‘‘ये गहने तुम्हारे सुहाग, प्यार और मोहब्बत भरी जिंदगी की निशानियां हैं. बस, मैं तुम से आज सिर्फ एक ही सवाल करना चाहता हूं.’’

‘‘मगर आज तुम अपने सवाल का जवाब पा कर क्या पाओगे नवेद? मैं ने अतीत को, और अपने आप को भुला दिया है.’’

‘‘मुझे क्या पाना है जैतून,’’ नवेद ने गहरी सांस ली, ‘‘तुम्हारे जवाब से मेरे दिल में जो बरसों से फांस गड़ी है, वह निकल जाएगी.’’

‘‘तुम मुझ से यही पूछना चाहते हो न कि मैं ने जब तुम से इंतजार करने का वायदा किया था तो तुम्हारा इंतजार क्यों नहीं किया? झूठ क्यों बोला?’’

‘‘हां जैतून,’’ नवेद ने सिर हिला दिया, ‘‘जब मैं ने वापस आ कर सुना कि तुम ने शादी कर ली है तो मेरे दिल पर कयामत सी टूट पड़ी.’’

आशिक ससुर की कातिल बहू – भाग 2

परमानंद देखने में ही जवान नहीं था, बल्कि शरीर से भी हृष्टपुष्ट था. इस की वजह यह थी कि वह अपने शरीर और खानपान का विशेष ध्यान रखता था. बच्चे सयाने हो गए हैं, यह कह कर पत्नी उर्मिला उसे पास नहीं फटकने देती थी. जबकि परमानंद अभी खुद को जवान समझता था और स्त्रीसुख की लालसा रखता था.

परमानंद को इस बात की जरा भी चिंता नहीं थी कि गीता उस की बेटी की उम्र की तो है ही, उस की बहू भी है. वह वासना में इस कदर अंधा हो गया था कि मर्यादा ही नहीं, रिश्ते नाते भी भूल गया. गीता अब उसे सिर्फ एक औरत नजर आ रही थी, जो उस की शारीरिक भूख शांत कर सकती थी. यहां परमानंद ही नहीं, गीता भी अपनी मर्यादा भुला चुकी थी. यही वजह थी कि वह परमानंद की किसी अशोभनीय हरकत का विरोध नहीं कर रही थी, जिस से उस की हिम्मत और हसरतें बढ़ती जा रही थीं. फिर तो एक स्थिति यह आ गई कि परमानंद की रात की नींद गायब हो गई. अब वह मौके की तलाश में रहने लगा.

आखिर उसे एक दिन तब मौका मिल गया, जब पत्नी मायके गई हुई थी. गरमी के दिन होने की वजह से बाकी बच्चे अंदर सो रहे थे. गीता घर के काम निपटा कर बाहर दालान में आई तो ससुर को बेचैन हालत में करवट बदलते देखा. उसे लगा ससुर की तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए उस ने उस के पास आ कर पूछा, ‘‘लगता है, आप की तबीयत ठीक नहीं है?’’

परमानंद हसरत भरी निगाहों से गीता को ताकते हुए बोला, ‘‘तुम इतनी दूरदूर रहोगी तो तबीयत ठीक कैसे रहेगी.’’

गीता को परमानंद की बीमारी का पहले से ही पता था. बीमार तो वह खुद भी थी. इसीलिए तो मौका देख कर उस के पास आई थी. उस ने चाहतभरी नजरों से परमानंद को ताकते हुए कहा, ‘‘यह आप का भ्रम है. मैं आप से दूर कहां हूं बाबूजी. आप के आगेपीछे ही तो घूमती रहती हूं.’’

अब गीता इस से ज्यादा क्या कहती. परमानंद ने उस का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा तो वह खुद ही उस के ऊपर गिर पड़ी. इस तरह एक बार मर्यादा की दीवार गिरी तो उस पर रोजरोज वासना की इमारत खड़ी होने लगी. गीता का तो मर्यादा से कभी कोई नाता ही नहीं रहा था, उसी में उस ने ससुर को भी शामिल कर लिया. परमानंद की संगत में आ कर वह शराब भी पीने लगी. अब वह शराब पी कर ससुर के साथ आनंद उठाने लगी. कुछ दिनों बाद उस ने अपने चचिया ससुर से भी संबंध बना लिए.

ये ऐसा रिश्ता है, जिसे कितना भी छिपाया जाए, छिपता नहीं है. किसी दिन उर्मिला ने गीता को परमानंद के साथ रंगरलियां मनाते रंगेहाथों पकड़ लिया. लेकिन उन दोनों पर इस का कोई असर नहीं पड़ा. जब घर का मुखिया ही पतन के रास्ते पर चल रहा हो तो घर के अन्य लोग चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते. उर्मिला भी जब ससुरबहू के इस मिलन को नहीं रोक पाई तो उस ने यह बात अपने बेटे मनोज को बताई.

मनोज जानता था कि उस का बाप और पत्नी बरबादी की राह पर चल रहे हैं, इसलिए वह भाग कर गांव आया. बाप से वह कुछ कह नहीं सकता था, उस ने गीता को समझाने की कोशिश की. लेकिन गीता अब कहां मानने वाली थी. हार कर मनोज उसे अपने साथ ले गया. मनोज का विचार था कि गीता साथ रहेगी तो ठीक रहेगी. लेकिन जिस की आदत बिगड़ चुकी हो, वह कैसे सुधर सकती है. बहुत कम लोग ऐसे मिलेंगे, जो ऐसे मामलों में सुधरने के बारे में सोचते हैं.

मनोज के नौकरी पर जाते ही गीता आजाद हो जाती. वह कमरे में ताला डाल कर घूमने निकल जाती. उस ने वहां भी अपने रंगढ़ंग दिखाने शुरू किए तो वहां भी रंगीनमिजाज लोग उस के पीछे पड़ गए. उन्हीं में रुद्रपुर की आदर्श कालोनी का रहने वाला शेखर और जगतपुरा का रहने वाला मनोज भटनागर भी था.

गीता के दोनों से ही प्रेमसंबंध बन गए. शेखर ने बातें करने के लिए गीता को एक मोबाइल फोन भी खरीद कर दे दिया था. यही नहीं, दोनों गीता की हर जरूरत पूरी करने को तैयार रहते थे. गीता उन के साथ घूमतीफिरती, सिनेमा देखती, होटलों और रेस्तरांओं में खाना खाती. बदले में वह उन्हें खुश करती और खुद भी खुश रहती.

मनोज जागरलाल के जिस मकान में किराए पर रहता था, उसी में उस के बगल वाले कमरे में रामचंद्र मौर्य रहता था. वह जिला बरेली के थाना मीरगंज के अंतर्गत आने वाले गांव गौनेरा का रहने वाला था. था तो वह शादीशुदा, लेकिन वहां वह अकेला ही रहता था. वह वहां एक फैक्ट्री में ठेकेदारी करता था.

अगलबगल रहने की वजह से मनोज और रामचंद्र के बीच परिचय हुआ तो दोनों एक ही जिले के रहने वाले थे, इसलिए उन में आपस में खास लगाव हो गया था. जल्दी ही रामचंद्र गीता के बारे में सब कुछ जान गया था. मनोज के काम पर जाते ही वह उस के कमरे पर पहुंच जाता और गीता से घंटों बातें करता रहता.

पुरुषों को अपनी ओर आकर्षित करने में माहिर गीता समझ गई कि रामचंद्र उस के कमरे पर क्यों आता है. वह जान गई कि पत्नी से दूर औरत सुख के लिए बेचैन रामचंद्र उसी के लिए उस के आगेपीछे घूमता है. रामचंद्र गीता से दोगुनी उम्र का था. लेकिन गीता के लिए इस का कोई मतलब नहीं था. उसे मतलब था तो सिर्फ देहसुख और पैसों से, जो चाहने वाले उस पर लुटा रहे थे. तरहतरह के मर्दों के साथ मजा लेने वाली गीता को रामचंद्र का आना अच्छा ही लगा. इसलिए गीता उस का मुसकरा कर स्वागत करने लगी.

फिर तो रामचंद्र को उस के करीब आने में देर नहीं लगी. जल्दी ही दोनों के मन ही नहीं, तन भी एक हो गए. लेकिन जितनी जल्दी वे एक हुए, उतनी ही जल्दी उन की पोल भी खुल गई. एक दिन मनोज फैक्ट्री से जल्दी आ गया तो कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था. उस ने दरवाजा खटखटाया तो गीता ने दरवाजा काफी देर बाद खोला. वह मनोज को देख कर चौंकी. उस के कपड़े अस्तव्यस्त थे, इसलिए मनोज को लगा, वह सो रही थी. गीता ने सहमे स्वर में पूछा, ‘‘आज तुम इतनी जल्दी कैसे आ गए?’’

‘‘फैक्ट्री का जनरेटर खराब था, इसलिए काम नहीं हुआ.’’ कह कर मनोज कमरे में दाखिल हुआ तो सामने पलंग पर रामचंद्र को बैठे देख कर उसे माजरा समझते देर नहीं लगी. मनोज को देख कर वह तेजी बाहर निकल गया. मनोज ने गुस्से से पूछा, ‘‘यह यहां क्या कर रहा था?’’

‘‘पानी पीने आया था.’’ गीता ने हकलाते हुए कहा.

‘‘कमरा बंद कर के पानी पिला रही थी या उस के साथ गुलछर्रे उड़ा रही थी?’’

‘‘तुम्हें यह कहते शरम नहीं आती?’’ गीता चीखी.

‘‘शरम तो तुम्हें आनी चाहिए, जो एक के बाद एक गलत हरकतें करती आ रही हो. अपने मर्द के होते हुए पराए मर्द के साथ गुलछर्रे उड़ा रही हो. तुम्हें तो शरम से डूब मरना चाहिए.’’

‘‘तुम में है ही क्या? तुम न तो पत्नी को संतुष्ट कर सकते हो, न ही उस के खर्चे उठा सकते हो. अगर तुम को इस सब से परेशानी हो रही है तो मुझे छोड़ दो.’’ गीता ने अपना फैसला सुना दिया.

‘‘तू तो चाहती ही है कि मैं तुझे छोड़ दूं तो तू घूमघूम कर गुलछर्रे उड़ाए. तुझे तो अपनी इज्जत की पड़ी नहीं है, लेकिन मुझे तो अपनी इज्जत की फिक्र है. इसलिए सामान बांध लो और अब हम गांव चलते हैं.’’

एक अधूरी प्रेम कहानी

मां की राह पर बेटी : मां के प्यार पर डाला डाका – भाग 2

मिलते रहने की वजह से गुडि़या और गोलू में प्रेम हो गया तो गुडि़या गोलू को अपने साथ रखने के बारे में सोचने लगी. इस के लिए उस ने मातापिता से अनुमति लेने के लिए कहा, ‘‘अभी तो मेरी पूरी जिंदगी पड़ी है. जब तक आप दोनों जिंदा हैं, कोई कुछ न कहेगा. लेकिन आप लोगों के बाद लोग मुझे जीने नहीं देंगे. इसलिए मैं चाहती हूं कि गोलू को अपने साथ रख लूं.’’

गुडि़या के पिता तैयार नहीं थे. लेकिन गुडि़या ने उन्हें ऊंचनीच समझाई तो वह भी तैयार हो गए. उस के बाद गुडि़या ने गोलू को अपने साथ रख लिया. गोलू गुडि़या के साथ उस के पति की हैसियत से रहने लगा. समय अपनी गति से बीतता रहा. पिछले साल गुडि़या के मातापिता की मौत हो गई तो गुडि़या और गोलू ही रह गए.

गोलू को पा कर गुडि़या के जीवन में एक बार फिर रौनक आ गई थी. गुडि़या के पास पैसा था ही, गांव नयाखेड़ा में एक छोटा सा प्लौट ले कर उस ने अपना छोटा सा मकान बनवा लिया. लेकिन वह उस में रहती नहीं थी. रहने के लिए उस ने गजियाखेड़ा में एक मकान किराए पर ले रखा था.

पिछले साल जनवरी महीने में गुडि़या की बड़ी बेटी सोनम अपने पति दीपक वर्मा के साथ गुडि़या के घर पहुंची. उस ने मां को बताया कि पिता ने उस की तो शादी कर दी है, लेकिन दोनों छोटी बहनों पर वह बहुत अत्याचार करते हैं.

बेटियों पर अत्याचार करने की बात सुन कर गुडि़या ने सोनम को एक मोबाइल फोन देते हुए कहा, ‘‘गोलू के साथ होने से मैं हर तरह से मजबूत हो गई हूं. किसी तरह तुम यह मोबाइल फोन कंचन तक पहुंचा दो. मैं उस से अपने साथ रहने की बात करूंगी. अगर वह मेरे साथ रहने को तैयार हो जाती है तो मैं उसे ला कर अपने पास रख लूंगी.’’

सोनम ने मां द्वारा दिया गया मोबाइल फोन ले जा कर कंचन को दे दिया. इस के बाद कंचन अपनी मां गुडि़या से बातें करने लगी. पिता द्वारा किए गए अत्याचारों के बारे में वह मां को बताती रहती थी. उस ने यह भी बताया कि नई मां भी जुल्म करने में पीछे नहीं है. उस का कहना था कि किसी भी तरह वह उसे पिता के चंगुल से मुक्त कराए, वरना वह आत्महत्या कर लेगी.

श्यामबाबू को कहीं से पता चल गया कि कंचन उस की शिकायत गुडि़या से करती है. इस के बाद वह कंचन को और परेशान करने लगा. तब कंचन ने मां से कहा, ‘‘मां, अब मुझ से पिता के अत्याचार सहे नहीं जा रहे हैं. आप मुझे यहां से किसी तरह निकालिए, वरना मैं आत्महत्या कर लूंगी.’’

बेटी की तकलीफों के बारे में सुन कर गुडि़या तड़प उठी. उस ने कंचन और मोना को श्यामबाबू के चंगुल से मुक्त कराने के लिए 6 अगस्त, 2013 को कानपुर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, जिलाधिकारी, उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग, थाना बर्रा के थानाप्रभारी से लिखित शिकायत तो की ही, पुलिस अधिकारियों को बेटी से बातचीत की काल डिटेल्स देते हुए फोन पर रिकौर्ड की गई बातचीत भी सुनाई. इस के बावजूद पुलिस ने उस की कोई मदद नहीं की.

तब गुडि़या ने 8 अगस्त, 2013 को महिला थाना में शिकायत करते हुए अपनी और कंचन की रिकौर्ड की गई बातचीत तो महिला थाना की थानाप्रभारी को सुनाई तो वह द्रवित हो उठीं. उन्होंने बर्रा स्थित श्यामबाबू के घर छापा मार कर कंचन और मोना को मुक्त करा कर उस की मां गुडि़या के हवाले कर दिया. गुडि़या दोनों बेटियों को ले कर अपने घर आ गई. इस के बाद गुडि़या ने उन्नाव की अदालत में कंचन और मोना के गुजारेभत्ते के लिए श्यामबाबू के खिलाफ मुकदमा दायर कर दिया.

इस मुकदमें से श्यामबाबू की परेशानी बढ़ गई. मुकदमें की तारीखों पर आनेजाने से दुखी हो कर एक दिन उस ने अदालत से लौटते समय गुडि़या को जान से मारने के लिए उस पर देसी पिस्तौल से गोली चला दी. संयोग से कंचन की नजर उस पर पड़ गई तो उस ने नाल पर हाथ मार दिया, जिस से उस का निशाना चूक गया. गुडि़या ने उसी दिन उन्नाव कोतवाली में धारा 307 के अंतर्गत श्यामबाबू के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया. जब इस बात की जानकारी श्यामबाबू को हुई तो उस ने मांबेटी को मुकदमा वापस लेने को कहा. लेकिन गुडि़या और कंचन ने उस की बात पर ध्यान नहीं दिया.

इस के बाद सोनम ने फोन कर के मां को बताया कि पापा एक पुलिस अधिकारी के साथ मिल कर उस के खिलाफ कोई षड्यंत्र रच रहे हैं. इसलिए वह कंचन और मोना पर कड़ी नजर रखे, वरना वह दोनों को उठवा कर उन के साथ कुछ भी कर सकते हैं. क्योंकि उन्हीं की वजह से उन्हें जलालत झेलनी पड़ रही थी.

गुडि़या सतर्क हो गई. वह दोनों बेटियों पर नजर रखने लगी. 12 नवंबर, 2013 की सुबह कंचन आजादनगर राजमार्ग पर टहलने गई थी. काफी देर तक वह घर नहीं लौटी तो गुडि़या ने उस की तलाश शुरू की. लेकिन वह कहीं नहीं मिली. तब गुडि़या को लगा, कहीं उसे श्यामबाबू तो नहीं उठा ले गया. उस ने सोनम को फोन कर के कंचन के गायब होने की जानकारी दे कर उस के बारे में पता लगाने को कहा.

थोड़ी देर बाद ही सोनम का फोन आ गया. उस ने गुडि़या को बताया कि कंचन पापा के घर नहीं है. पापा भी अपनी ड्यूटी पर महोबा गए हुए हैं. गुडि़या ने एक बार फिर सभी जगह कंचन की तलाश की. जब उस का कही पता नही चला तो उस ने 13 नवंबर, 2013 को थाना गंगाघाट में कंचन वर्मा की गुमशुदगी दर्ज करा दी. लेकिन पुलिस ने कोई काररवाई नहीं की.

गांव घोंघी रऊतापुर में जो लाश मिली थी, गुडि़या उस की शिनाख्त तो नहीं कर पाई, लेकिन चप्पलों के बारे में कहा था कि ये उसी की जैसी हैं. अगर वह लाश कंचन की थी तो उस की हत्या उस के पिता श्यामबाबू ने ही योजना बना कर की थी.

गुडि़या के बयान के आधार पर थानाप्रभारी मनोज सिंह ने श्यामबाबू को लाश की शिनाख्त के लिए थाना गंगाघाट बुलाया. उसे फोटो और चप्पलें दिखाई गईं तो उस ने कहा कि न लाश ही उस की बेटी की है और न ही चप्पलें. जब लाश की शिनाख्त नहीं हो सकी तो पुलिस ने इस मामले की जांच को ठंडे बस्ते में डाल दिया. लगभग डेढ़ महीने बाद श्यामबाबू घोंघी रऊतापुर में मिली लाश को अपनी बेटी कंचन की लाश बता कर उन्नाव के पुलिस अधीक्षक को प्रार्थनापत्र दिया कि कंचन की हत्या उस की मां गुडि़या ने अपने प्रेमी गोलू श्रीवास्तव के साथ मिल कर की है.

इस के बाद लाश को ठिकाने लगाने में कंचन की बड़ी बहन सोनम ने मां और उस के प्रेमी की मदद की थी. श्यामबाबू ने अपने प्रार्थनापत्र में यह भी आरोप लगाया था कि थाना गंगाघाट पुलिस हत्यारों से मिली है, इसलिए कंचन की हत्या के मामले की जांच ठंडे बस्ते में डाल दी है.

सुहाग का गहना – भाग 1

शाहिद को नींद की हलकी सी झपकी सी आ गई थी. बिलकुल इस तरह, जैसे तेज उमस में ठंडी हवा का कोई  आवारा झोंका कहीं से भटक कर आ गया हो. उस ने गहरी सांस ले कर सोचा, ‘काश मुझे नींद आ जाती.’

उसे अब नींद कहां आती थी. वह तो उस के लिए अनमोल चीज बन चुकी थी. दिमाग में उलझे उलझे खयालात पैदा हो रहे थे. दिल का अजीब हाल था. तभी उस की नजर सामने पड़ी, वह चौंका. जैतून चमड़े के बैग पर झुकी हुई थी. कंपार्टमेंट में फैली मद्धिम रोशनी में जैतून के जिस्म का साया बर्थ पर पड़ रहा था. उस की हरकतों से ऐसा लग रहा था, जैसे वह बैग में हाथ डाल कर कोई चीज ढूंढ रही है. शाहिद को न जाने क्यों जैतून की यह हरकत इतनी अजीब लगी कि वह उछल पड़ा.

थोड़ी देर पहले तो उस ने उसे गहरी नींद में डूबी हुई देखा था. वह सो तो रही थी, मगर उस के परेशान चेहरे पर जिंदगी की तमाम फिक्रें और दुख जाग रहे थे. जैतून को देखते देखते ही शाहिद को झपकी सी आ गई थी. इस के बाद उस ने जैतून को बैग में कुछ तलाशते देखा था.

बैग में जो रकम थी, वही उन की कुल जमापूंजी थी. वह शाहिद की दवादारू के लिए न जाने किनकिन मुश्किलों से बचाई गई थी. थोड़ी देर के बाद शाहिद जागा तो उस के दिल में शक की लहर दौड़ गई.

उस ने एक बार फिर सोचा, ‘कुछ ही देर पहले जैतून जिस तरह की गहरी नींद सो रही थी, क्या वह अदाकारी थी. वह बैग से रकम निकाल रही होगी, ताकि उसे ले कर अगले किसी स्टेशन पर उतर जाए. वह इतना बड़ा कदम इसलिए उठा रही होगी, क्योंकि वह अब उस की बीमारी, दर्द और तकलीफजदा जिंदगी से तंग आ चुकी होगी. अगर जैतून उसे छोड़ कर सदा के लिए किसी स्टेशन पर उतर गई तो बच्चों का क्या होगा? क्या वह उन्हें भी अपने साथ ले जाएगी?’

जैतून बैग बर्थ के ऊपर खिसका कर जैसे ही पलटी, उस की नजरें शाहिद की नजरों से जा टकराईं. वह उस की बर्थ के पास आ कर धीरे से बोली, ‘‘आप तो सो गए थे. मुझे खुशी हुई थी कि आप गहरी नींद सो रहे थे.’’

‘‘काश! मैं हमेशा के लिए सो जाता.’’ शाहिद ने गहरी सांस ले कर कहा. उस के लहजे में सारे जहां का दर्द भरा हुआ था.

जैतून ने तड़प कर उस के मुंह पर अपना हाथ रख दिया, ‘‘फिर आप ने बहकीबहकी बातें शुरू कर दीं.’’

‘‘अब मैं जी कर क्या करूंगा जैतून?’’ शाहिद का लहजा ऐसा दर्दनाक और मायूसी भरा था कि जैतून का दिल भर आया. उस ने जैतून की आंखों में झांका, ‘‘मेरे दिल के किसी भी कोने में जीने की जरा भी ख्वाहिश नहीं रही, न जाने क्यों मुझ से दुनिया की हर चीज रूठ रही है.’’

‘‘मेरे अल्लाह! आप से कौन रूठा है?’’ जैतून की आवाज उस के हलक में फंसने लगी.

‘‘न जाने क्यों मुझे ऐसा महसूस हो रहा है कि तुम भी किसी दिन मुझ से रूठ जाओगी.’’ दिल की बात शाहिद की जुबान पर आ ही गई. जैतून बोली, ‘‘सारी दुनिया आप से रूठ सकती है, पर मैं आखिरी सांस तक नहीं रूठूंगी.’’

शाहिद ने चौंक कर जैतून की तरफ देखा. सोचा, कहीं यह अपनी चोरी पकड़े जाने पर फरेब से काम तो नहीं ले रही. यह बनावट और फरेब का दौर है और किसी पर भरोसा करना बहुत ही मुश्किल है. लेकिन फौरन ही शाहिद ने महसूस किया कि जैतून के लहजे में सच्चाई है. उस की बड़ीबड़ी और खूबसूरत आंखों में मोहब्बत के चिराग जल रहे थे.

जैतून ने शाहिद के चेहरे से महसूस कर लिया कि वह किसी कशमकश में पड़ा है या फिर उसे तकलीफ हो रही है. पूछा, ‘‘कहीं दर्द तो नहीं बढ़ गया?’’

‘‘दर्द तो मेरा मुकद्दर बन चुका है. यह कोई नई बात नहीं है,’’ फिर शाहिद बिना पूछे नहीं रह सका, ‘‘इस वक्त तुम बैग में क्या तलाश रही थीं?’’

जवाब देने से पहले जैतून ने सहमी हुई हिरनी की तरह पूरे कंपार्टमेंट का जायजा लिया, फिर वह शाहिद के चेहरे के बहुत पास अपना चेहरा ला कर फुसफुसाई, ‘‘मैं गहनों की पोटली देख रही थी कि वह हैं या नहीं.’’

‘‘गहनों की पोटली?’’ शाहिद को झटका सा लगा, ‘‘तो तुम गहनों की पोटली भी लेती आई हो? वह किस लिए?’’

‘‘हमारे पास जो रकम है, क्या वह काफी होगी,’’ जैतून उस के बालों को सहलाते हुए बोली, ‘‘हमारे पास नकदी ही कितनी है.’’

‘‘जितनी भी है, बहुत है,’’ शाहिद ने कहा, ‘‘सरकारी अस्पताल में मुफ्त इलाज होता है, दवा भी फ्री मिलती है.’’

‘‘मैं सरकारी अस्पताल में आप का इलाज नहीं कराऊंगी.’’

‘‘वह किसलिए?’’ शाहिद धीमे से मुसकराया.

‘‘सरकारी अस्पतालों में इलाज पर बहुत ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता. मैं आप का इलाज एक बहुत ही अच्छे प्राइवेट अस्पताल में कराऊंगी.’’

शाहिद उछल पड़ा, ‘‘तुम्हारा दिमाग तो ठीक है?’’

‘‘क्यों, क्या हम प्राइवेट अस्पताल में इलाज नहीं करा सकते?’’

‘‘तुम नहीं जानतीं, प्राइवेट अस्पताल में इलाज कराने पर पैसा पानी की तरह बहता है.’’

‘‘जितना खर्च होता है, हो जाने दो,’’ जैतून धीमे से मुसकराई, ‘‘मैं अपना एकएक गहना बेच दूंगी.’’

शाहिद भौचक्का रह गया, ‘‘तुम गहने बेच दोगी?’’

‘‘गहने तो फिर बन सकते हैं, पर अल्लाह न करे, अगर आप को कुछ हो गया तो मैं क्या करूंगी? कहां जाऊंगी? अगर औरत एक बार शौहर जैसे गहने से महरूम हो जाए तो सारी जिंदगी उसे वह गहना नसीब नहीं होता. औरत के लिए सब से अच्छा, सब से प्यारा गहना उस का शौहर ही होता है.’’

‘‘जैतून,’’ शाहिद की आवाज गले में रुंध गई. उस ने उस का हाथ अपने हाथ में ले कर चूमा, ‘‘तुम कितनी अच्छी हो और मैं कितना खुशनसीब हूं.’’

शाहिद ने कभी भी जैतून को अपने काबिल नहीं पाया था. उसे जैतून इतनी ऊंची लगती थी कि वह उस बुलंदी तक पहुंचने की सोच  भी नहीं सकता था. जब उस ने सुहागरात को पहली बार जैतून को देखा था तो उसे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ था कि नूर के सांचे में ढली लड़की उस की बीवी बन सकती है. जैतून किस्सेकहानियों की शहजादी की तरह थी. वह किसी शहजादे के ही काबिल थी. किस्मत ने उसे जैतून का जीवनसाथी बना दिया था. वह दहेज में इतने सारे सोने के गहने लाई थी कि शाहिद और भी हीनता महसूस करने लगा था.

जैतून ने अपने हुस्न और मोहब्बत से ही नहीं, बल्कि अपने बात व्यवहार से भी उसे दीवाना बना दिया था. वह सब्रशुक्र से जीवन बिताने वाली औरत साबित हुई थी. शादी के 8-9 साल गुजर जाने के बाद भी जैतून की मोहब्बत में जरा भी फर्क नहीं आया था. शाहिद भी जैतून को उतना ही चाहता था.

लगभग 7 माह पहले शाहिद बच्चों को पढ़ाने साइकिल से स्कूल जा रहा था कि एक हादसे का शिकार हो गया. तेज रफ्तार ट्रक उस की जान तो नहीं ले सका, लेकिन उस का पैर कुचल दिया था. पिंडली की हड्डी बुरी तरह टूट गई थी. अब वह सिर्फ बिस्तर पर ही लेटा रह सकता था. उस छोटे से शहर में होने वाले इलाज से उसे जरा भी फायदा नहीं हुआ था. टांग पर हलका सा भी जोर देने पर दर्द की इतनी तेज लहर उठती थी कि जान निकलने लगती थी.

अस्पताल के डाक्टरों ने उसे किसी बड़े शहर में जा कर दिखाने की सलाह दी थी. टांग के इसी दर्द ने उस की नींद, सुकून, चैन व आराम लूट लिया था. जैतून से उस की तकलीफ देखी नहीं जाती थी. उस ने सुना था कि कराची के एक बड़े अस्पताल में हड्डी के इलाज का अच्छा बंदोबस्त है. वहां शाहिद की टांग इस काबिल हो सकती है कि वह चलफिर सकेगा. आज शाहिद पर यह भेद खुला था कि जैतून उस का इलाज किसी प्राइवेट अस्पताल में कराएगी.

बहुत देर बाद शाहिद ने उस से कहा, ‘‘वहां डाक्टर सिर्फ चेकअप की फीस ही 4-5 सौ रुपए तक लेते हैं.’’

‘‘मुझे पता है.’’ जैतून ने लापरवाही से कहा.

‘‘बात सिर्फ भारी फीस की ही नहीं है,’’ शाहिद बोला, ‘‘अस्पताल के कमरे का किराया भी 3-4 सौ रुपए से कम नहीं होता. फिर वे दर्जनों टेस्ट भी कराते हैं. हर चीज की फीस अलग होती है. अगर मेरा कोई बड़ा औपरेशन हुआ और पैर काटने की नौबत आ गई तो उस पर भी हजारों रुपए का खर्च आएगा.’’

‘‘खुदा न करे कि पैर कटने की नौबत आए,’’ जैतून तड़प कर रुंधी आवाज में बोली, ‘‘आप ऐसी बातें मत करें, मेरा दिल डूबने लगता है.’’

‘‘मैं खुदा को फरेब नहीं देना चाहता. हकीकत को झुठलाना अक्लमंदी नहीं है,’’ शाहिद ने बड़े हौसले से कहा, ‘‘मैं तुम्हें भी अंधेरे में नहीं रखना चाहता, क्योंकि खुदा के बाद अब तुम ही मेरा सहारा हो और मैं तुम्हारे बिना बिलकुल अधूरा हूं जैतून. अगर मैं एक पैर खो भी बैठा तो भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा. मेरे अंदर हालात से मुकाबला करने का बहुत हौसला है.’’

आशिक ससुर की कातिल बहू – भाग 1

गीता पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिला बरेली के थाना बहेड़ी के गांव फरीदपुर के रहने वाले गंगाराम की दूसरे नंबर की बेटी थी. गंगाराम की गिनती गांव के  संपन्न किसानों में होती थी. उन की 3 शादियां हुई थीं. पहली पत्नी रमा की बीमारी से मौत हो गई तो उन्होंने सुधा से शादी की. पारिवारिक कलह की वजह से उस ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली तो उन्होंने तीसरी शादी रेशमा से की.

रेशमा से ही उन्हें 4 बेटियां और 2 बेटे थे. बड़ी बेटी ललिता की उन्होंने उम्र होने पर शादी कर दी थी. उस से छोटी गीता का 8वीं पास करने के बाद पढ़ाई में मन नहीं लगा तो उस ने पढ़ाई छोड़ दी. गीता जिस उम्र में थी, अगर उस उम्र ध्यान न दिया जाए तो बच्चों को बहकते देर नहीं लगती. वे सही गलत के फर्क को समझ नहीं पाते. ऐसा ही कुछ गीता के साथ भी हुआ.

गीता गंगाराम के अन्य बच्चों से थोड़ा अलग हट कर थी. वह जिद्दी थी, इसलिए उस के मन में जो आता था, वह हर हाल में वही करती थी. उसे लड़कों की तरह रहना, उन्हीं की तरह दोस्ती करना और बिंदास घूमते हुए मस्ती करना कुछ ज्यादा ही अच्छा लगता था. इसलिए वह लड़कों की तरह कपड़े तो पहनती ही थी, अपने बाल भी लड़कों की ही तरह कटवा रखे थे. वह अकसर गांव के लड़कों के साथ घूमती रहती थी. उम्र के साथ उस के बदन में ही नहीं, सुंदरता में भी निखार आ गया था.

गंगाराम के पास ट्रैक्टर भी था और मोटरसाइकिल भी. गीता दोनों ही चीजें चला लेती थी. इसलिए उस का जब मन होता, वह मोटरसाइकिल ले कर घूमने निकल जाती. उसे लड़कों से कोई परहेज नहीं था, इसलिए गांव के लड़के उस के आसपास मंडराते रहते थे. गीता नादान तो थी नहीं कि उन लड़कों की मंशा न समझती, इसलिए अपने बिंदासपन से वह उन्हें अंगुलियों पर नचाती रहती थी. लेकिन उन लड़कों को इस का फायदा भी मिलता था. वे लड़के गीता से जो चाहते थे, वह उन्हें मिला भी.

फिर तो गांव में गीता को ले कर तरहतरह की चर्चाएं होने लगीं. जब इस सब की जानकारी गीता के पिता गंगाराम को हुई तो उस ने गीता पर बंदिशें लगाईं. लेकिन गीता अब काबू में आने वाली कहां थी. कोई न कोई बहाना बना कर वह घर से निकल जाती. कोई ऊंचनीच न हो जाए, इस डर से गंगाराम गीता के लिए लड़के की तलाश करने लगा. जल्दी ही उस की यह तलाश खत्म हुई और उसे बरेली के ही थाना नवाबगंज के गांव लावाखेड़ा निवासी परमानंद का बेटा मनोज मिल गया.

परमानंद भी किसान थे. उस के पास भी ठीकठाक खेती थी, जिस की वजह से उस के यहां भी गांवदेहात के हिसाब से किसी चीज की कमी नहीं थी. उस के परिवार में पत्नी उर्मिला के अलावा 3 बेटियां और 2 बेटे मनोज तथा चैतन्य स्वरूप थे. बेटियों का वह विवाह कर चुका था. अब मनोज का नंबर था.

यही वजह थी कि जब गंगाराम उस के यहां अपने किसी रिश्तेदार के माध्यम से रिश्ता ले कर पहुंचा तो बात बन गई. इस के बाद सारे रस्मोरिवाज पूरे कर के मनोज और गीता को शादी के गठबंधन में बांध दिया गया. यह शादी फरवरी, 2009 में हुई थी.

गीता सुंदर तो थी ही, साथ ही उस में वे सारे गुण विद्यमान थे, जो पुरुषों को दीवाना बना देते हैं. यही वजह थी कि गीता ने अपनी अदाओं से पहली ही रात में मनोज को अपना दीवाना बना दिया था. गीता पहली ही रात में समझ गई कि उसे पति उस के मनमाफिक मिला है. वह जैसा सीधासादा, अंगुलियों पर नाचने वाला पति चाहती थी, मनोज ठीक वैसा ही निकला था.

2-4 दिनों में ही मनोज गीता के हुस्न में इस कदर खो गया कि हर पल, हर जगह उसे गीता ही गीता नजर आने लगी. उस का गीता को छोड़ कर कहीं जाने का मन ही न होता. खेतों पर भी उस का मन न लगता. लेकिन जिम्मेदारी ऐसी चीज है, जो पत्नी तो क्या, मांबाप से भी दूर होने को मजबूर कर देती है. यही हाल मनोज का भी हुआ. साल भर बाद वह एक बेटे का बाप बना तो खर्च बढ़ते ही उसे अपनी जिम्मेदारी का अहसास होने लगा.

इस जिम्मेदारी को निभाने के लिए मनोज को कमाना धमाना जरूरी था, जिस के लिए वह ऊधमसिंहनगर चला गया. वहां उसे टाटा मैजिक के लिए पुर्जे बनाने वाली अल्ट्राटेक कंपनी में नौकरी मिल गई. रहने के लिए उस ने शांति कालोनी रोड स्थित बधईपुरा में जागरलाल के मकान में किराए पर कमरा ले लिया.

कमाईधमाई के लिए मनोज खुद तो ऊधमसिंहनगर चला गया था, लेकिन घरवालों की देखरेख के लिए गीता को गांव में ही मांबाप के पास छोड़ गया था. उस ने एक बार भी नहीं सोचा कि उस के बिना गीता का मन गांव में कैसे लगेगा. शायद उसे लग रहा था कि जिस तरह वह पत्नीबच्चे और परिवार के लिए त्याग कर रहा है, उसी तरह गीता भी कर लेगी.

लेकिन मनोज की यह सोच गलत साबित हुई. क्योंकि गीता को तो शारीरिक संबंधों का चस्का पहले से ही लगा हुआ था. ऐसे में वह बिना पति के कैसे रह सकती थी. उस का दिन तो घर के कामधाम और बच्चे में कट जाता था, लेकिन रातें काटे नहीं कटती थीं. बेचैनी से वह पूरी रात करवटें बदलती रहती थी. शारीरिक सुख के बिना वह बुझीबुझी सी रहती थी. उस की इस बेचैनी और परेशानी को घर का कोई दूसरा सदस्य भले ही नहीं समझ सका, लेकिन पितातुल्य ससुर परमानंद ने जरूर समझ लिया था.

इस की वजह यह थी कि परमानंद लंगोट का कच्चा था. उस के लिए रिश्तों से ज्यादा महत्वपूर्ण स्त्री का शरीर था. शायद यही वजह थी कि गीता को उस ने देखते ही पसंद कर लिया था. परमानंद अपनी बहू पर शुरू से ही फिदा था. लेकिन बेटे के रहते वह बहू के करीब नहीं जा पा रहा था. बहू के नजदीक जाने के लिए ही उस ने बेटे को जिम्मेदारी का अहसास दिला कर उसे घर से बाहर भेज दिया था.

मनोज के जाने के बाद गीता की बेचैनी बढ़ी तो परमानंद गीता के नजदीक जाने की कोशिश करने लगा. वह उस से बातें करने के बहाने ढूंढ़ने लगा. गीता उस से बातें करती तो वह अकसर बातें करते करते अपनी सीमाएं लांघ जाता. वह उसे कोई सामान पकड़ाती तो सामान पकड़ने के बहाने वह उसे छूने की कोशिश करता. ससुर की इन हरकतों से अनुभवी गीता को समझते देर नहीं लगी कि वह उस से क्या चाहता है. गीता को शक तो पहले से ही था, लेकिन जब निगाहें बदलीं और परमानंद बातबात में हंसीमजाक करने लगा तो उस का शक यकीन में बदल गया.

सुपारी वाली मां : क्यों करवाई अपनी ही बेटी की हत्या?

मां की राह पर बेटी : मां के प्यार पर डाला डाका – भाग 1

रात 9 बजे के आसपास मारुति वैन के आने की घरघराहट ने लोगों का ध्यान अपनी ओर इसलिए खींचा था, क्योंकि उतनी रात को गांव  घोंघी रऊतापुर के असुरक्षित जंगली इलाके के उस सुनसान रास्ते पर कोई भी गाड़ी जल्दी नहीं आतीजाती थी. उतनी रात तक गांवों में वैसे भी सन्नाटा पसर जाता है. ठंड का मौसम हो तो आदमी तो क्या, कुत्ते भी दुबक जाते हैं. ऐसा ही कुछ हाल गांव घोंघी रऊतापुर का भी था. ज्यादातर लोग खापी कर रजाइयों में दुबक गए थे. गांव के  2-4 घरों के लेग ही आग जला कर उसी के पास बैठे बतिया रहे थे.

मारुति वैन के आने की आवाज जाग रहे लोगों के कानों में पड़ी तो अपने आप ही उन का ध्यान उस की ओर चला गया. वैन गांव से कुछ दूरी पर जंगली लोध के खेत के पास रुक गई. वैन के रुकते ही उस की हेडलाइट बुझ गई. अगर वैन गांव के अंदर आ जाती तो शायद उस के बारे में जानने की उतनी उत्सुकता न होती. लेकिन वह गांव के बाहर ही सुनसान जगह पर रुक गई थी, इसलिए लोगों को उस के बारे में जानने की उत्सुकता हुई.

उत्सुकतावश लोग उस के बारे में जानने की कोशिश करने लगे. सभी उसी के बारे में सोच रहे थे कि तभी वैन के पास आग की ऊंचीऊंची लपटें इस तरह उठने लगीं, जैसे कोई ज्वलनशील पदार्थ डाल कर कोई चीज जलाई जा रही हो.

उस तरह आग की लपटों को उठते देख गांव वालों को लगा कि किसी ने फसल में आग लगा दी है. इसलिए वे चीखचीख कर शोर मचाने लगे, ‘‘अरे दौड़ो भाई, किसी ने फसल में आग लगा दी है.’’

चीखपुकार सुन कर गांव वाले लाठीडंडे ले कर खेतों की ओर दौड़ पड़े. गांव वालों को शोर मचाते हुए अपनी ओर आते देख मारुति वैन से आए लोग जल्दी से वैन में बैठ कर दूसरे रास्ते से होते हुए कानपुर लखनऊ हाईवे की ओर भाग निकले. गांव वाले जब जंगली लोध के खेत के पास पहुंचे तो उन्होंने देखा आग फसल में नहीं लगी थी, बल्कि वहां एक महिला की लाश जल रही थी. वहां एक जोड़ी चप्पलें एवं पेट्रोल की एक केन पड़ी थी. चप्पलें लेडीज थीं, इसलिए अंदाजा लगाया कि ये मृतका की ही होंगी.

गांव के ही शत्रुघ्न ने अपने मोबाइल फोन से इस घटना की सूचना थाना गंगाघाट पुलिस को दे दी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी मनोज सिंह सिपायिहों के साथ रवाना हो गए. घटनास्थल पर पहुंच कर थानाप्रभारी ने लाश का निरीक्षण किया. शव लगभग 95 प्रतिशत जल चुका था. वह इतना वीभत्स हो चुका था कि उस की शिनाख्त करना मुश्किल था.

पुलिस ने घटनास्थल की कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर के लाश को पोस्मार्टम के लिए जिला संयुक्त चिकित्सालय उन्नाव भेज दिया. इस के बाद थाने लौट कर पुलिस अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर जांच को आगे बढ़ाने की राह तलाश करने लगी. यह 14 नवंबर, 2013 की बात है.

अगले दिन यानी 15 नवंबर, 2013 को थानाप्रभारी मनोज सिंह ने एक सिपाही को गांव गजियाखेड़ा भेज कर गुडि़या को बुलाया. दरअसल 13 नवंबर को उस ने अपनी 18 वर्षीया बेटी कंचन की गुमशुदगी दर्ज कराई थी. मनोज सिंह ने गुडि़या को जले हुए शव का फोटो और उस के पास से बरामद चप्पलें दिखाईं तो गुडि़या शव को तो नहीं पहचान सकी, लेकिन चप्पलों के बारे में उस ने कहा कि ये तो मेरी बेटी की ही जैसी हैं.

उन चप्पलों को देख कर गुडि़या सिसकते हुए बोली, ‘‘लगता है साहब, मेरी बेटी पिता की साजिश का शिकार हो गई.’’

गुडि़या की इस बात से थानाप्रभारी मनोज सिंह का माथा ठनका. उन्होंने कहा, ‘‘पिता की साजिश का शिकार, तुम्हारे कहने का मतलब क्या है? पूरी बात विस्तार से बताओ?’’

इस के बाद गुडि़या ने थानाप्रभारी मनोज कुमार को अपने पति श्यामबाबू और बेटी कंचन के गायब होने की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी.

उत्तर प्रदेश के जिला उन्नाव के थाना गंगाघाट के गांव गजियाखेड़ा की रहने वाली 38 वर्षीया गुडि़या की शादी 22 साल पहले कानपुर के मोहल्ला बर्रा के रहने वाले रामदास के बेटे श्यामबाबू के साथ हुई थी. श्यामबाबू की शराब पीने की आदत थी. एक तो गुड़िया खास सुंदर नहीं थी, दूसरे वह मनचाहा दहेज नहीं लाई थी, इसलिए श्यामबाबू शराब पी कर लगभग रोज ही गुड़िया के साथ मारपीट करता था. भविष्य की चिंता में गुड़िया पति की मारपीट सहती रही. उसी बीच गुड़िया सोनम, कंचन और मोना, लगातार 3 बेटियों की मां बन गई.

लगातार 3 बेटियों के पैदा होने से श्यामबाबू गुड़िया से नफरत करने लगा. बेटियां पैदा करने का दोष गुडि़या पर लगाते हुए वह उस पर और अत्याचार करने लगा. उस ने गुडि़या का घर से बाहर जाना तो पहले ही बंद कर दिया था, अब वह उसे किसी से बात भी नहीं करने देता था. जब गुडि़या की सहनशक्ति खत्म हो गई तो उस ने किसी के माध्यम से अपने भाइयों को अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों की खबर भिजवाई.

खबर पा कर गुडि़या का भाई रज्जन उसे ले जाने आया तो श्यामबाबू ने गुडि़या को उस के साथ भेजने से साफ मना कर दिया. तब रज्जन पुलिस की मदद से गुडि़या और उस की तीनों बेटियों को श्यामबाबू के चंगुल से मुक्त करा कर अपने घर ले गया.

गुडि़या तीनों बेटियों के साथ मायके में रहने लगी. 8-10 महीने ही बीते होंगे कि एक दिन चुपके से श्यामबाबू तीनों बेटियों को बहलाफुसला कर अपने साथ लिवा ले गया. बेटियों के अलग होने का दुख गुडि़या को हुआ जरूर, लेकिन उस का अपना ही कोई भविष्य नहीं था, इसलिए उस ने बेटियों की ओर से संतोष कर लिया. गुजरबसर के लिए वह मातापिता की अनुमति ले कर कोई कामधंधा तलाशने लगी.

मातापिता को गुडि़या की चिंता कुछ ज्यादा ही रहती थी, इसलिए वे उस का खयाल बेटों से ज्यादा रखते थे. इस बात को ले कर घर में कलह होने लगी. स्थिति खराब होते देख मां ने एक खेत लाखों रुपए में बेच कर पूरी रकम गुडि़या को दे दी. इस बात से नाराज भाइयों ने गुडि़या और मातापिता को मारपीट कर घर से भगा दिया. घर से निकाले गए मातापिता को ले कर गुडि़या शुक्लागंज में किराए का कमरा ले कर रहने लगी. गुजरबसर के लिए वह एक ब्यूटीपार्लर में काम करने लगी.

अकेली औरत की परेशानियों को देख कर गुडि़या ने श्यामबाबू से माफी मांगते हुए अपने साथ रखने को कहा. तब श्यामबाबू ने उसे साथ रखने से मना करते हुए कहा, ‘‘साथ रखना तो दूर, अब मैं तुम्हें देखना भी नहीं चाहता. मैं तुम्हें अब कभी साथ नहीं रखूंगा.’’

गुडि़या समझ गई कि अब श्यामबाबू उसे कभी अपने साथ नहीं रखेगा. उस की जिंदगी एक कटी पतंग की तरह हो कर रह गई थी. उसी निराशा के बीच गुडि़या की मुलाकात गोलू श्रीवास्तव उर्फ अशोक कुमार से हुई. वह अमेठी का रहने वाला था. उस की शादी नहीं हुई थी. पहली ही मुलाकात में दोनों एकदूसरे के प्रति कुछ ऐसा आकर्षित हुए कि फिर मिलने का वादा कर लिया.