पत्नी का प्रेमी : क्यों मारा गया किशोर? – भाग 3

पूछताछ में बालकराम ने पुलिस को बताया था कि घर से निकलते समय किशोर ने अपने किसी घनश्याम नाम के दोस्त से मिलने की बात कही थी. पुलिस ने तुरंत घनश्याम के बारे में पता किया. पता चला वह घर में नहीं है. पुलिस ने घरवालों से उस का मोबाइल नंबर ले लिया. जब उस के नंबर की काल डिटेल्स और लोकेशन निकलवाई गई तो पता चला कि उस के फोन की भी लोकेशन उस स्थान की थी, जहां किशोर की हत्या हुई थी.

इस के अलावा जहांजहां की नाई के फोन की लोकेशन थी, वहांवहां घनश्याम उर्फ साहेब के फोन की भी लोकेशन थी. अब शक की कोई गुंजाइश नहीं रह गई थी. साफ हो गया था कि घनश्याम ही किशोर का हत्यारा है. किशोर की कुछ ही दिनों पहले उस से दोस्ती हुई थी.

अभी जल्दी ही किशोर की शादी बाराबंकी में हुई थी. घनश्याम बाराबंकी का था, इस से पुलिस को लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि किशोर की पत्नी घनश्याम को जानती हो. उस का घनश्याम से प्रेमप्रसंग रहा हो, जिस की वजह से किशोर मारा गया हो.

इंसपेक्टर विजयमल यादव ने किशोर की नवब्याहता रिशा से पूछताछ की तो उस ने घनश्याम से अपने प्रेमप्रसंग की बात स्वीकार कर ली. उस ने यह भी बताया कि घनश्याम ने उस से कहा भी था कि वह किशोर को किसी भी सूरत में नहीं छोड़ेगा.

इस के बाद 21 मार्च को इंसपेक्टर विजयमल यादव ने टीम के साथ बाराबंकी जा कर घनश्याम उर्फ साहेब को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. उस की निशानदेही पर उस के घर से पुलिस ने किशोर का मोबाइल फोन भी बरामद कर लिया था.

कोतवाली ला कर घनश्याम से पूछताछ की गई तो उस ने किशोर की हत्या का अपराध स्वीकार कर के उस की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी.

रिशा की शादी हो जाने से घनश्याम उर्फ साहेब काफी बौखलाया हुआ था. क्योंकि वह रिशा से दूरी किसी भी हाल में बरदाश्त नहीं कर पा रहा था. जब साहेब को पता चला कि रिशा मायके आई है तो वह उस से मिलने को बेताब हो उठा. उसे रिशा से अपने सवालों के जवाब लेने के साथ अपना फैसला भी सुनाना था.

रिशा को पता चला तो वह साहेब से मिली. तब साहेब ने उस की आंखों में आंखें डाल कर बेचैनी से पूछा, ‘‘रिशा, जब तुम प्यार मुझ से करती थी तो शादी दूसरे से क्यों कर ली?’’

‘‘मैं एक लड़की हूं, इसलिए घर वालों का विरोध नहीं कर सकी. अगर शादी से मना करती तो पापा मुझे जिंदा नहीं छोड़ते. तब मैं तुम से बहुत दूर चली जाती. हमारे मिलन का सपना अधूरा ही रह जाता.’’

‘‘वैसे भी हमारा मिलन कहां हो रहा है?’’ निराश साहेब ने कहा.

‘‘होगा, जरूर होगा. शादी होने के बावजूद मैं तुम्हारा साथ नहीं छोड़ूंगी. हम दोनों के संबंध पहले की ही तरह चलते रहेंगे.’’ रिशा ने समझाया.

‘‘नहीं रिशा, तुम मेरी हो और सिर्फ मेरी ही रहोगी. मैं तुम्हें किसी और की बांहों में नहीं देख सकता. इसलिए मैं उसे जिंदा नहीं छोड़ूंगा.’’

‘‘नहीं साहेब, उस के साथ कुछ मत करना. उस का इस में क्या दोष है?’’ रिशा ने कहा.

लेकिन साहेब ने उस की बात पर ध्यान नहीं दिया. क्योंकि उस ने तो ठान लिया था कि वह अपने और रिशा के बीच किसी को नहीं आने देगा. यही वजह थी कि उस ने किशोर की हत्या की योजना बना डाली. उसी योजना के तहत उस ने किशोर से दोस्ती गांठ ली. दोस्ती होने के बाद दोनों की शराब की महफिलें जमने लगीं.किशोर को घनश्याम के बारे में कुछ पता तो था नहीं, इसलिए वह उस पर एक दोस्त की तरह ही विश्वास करने लगा था.

14 मार्च को साहेब नाई की दुकान पर बाल कटवाने गया तो काउंटर पर रखे नाई के मोबाइल को देख कर उस की नीयत खराब हो गई. उसे इस तरह के एक मोबाइल की जरूरत भी थी, जिस से फोन कर के वह किशोर को कहीं एकांत में बुला सकें.

क्योंकि वह जानता था कि अगर उस ने अपने मोबाइल से फोन किया तो पकड़ा जाएगा. उस ने नाई को कुछ खरीदने के बहाने बाहर भेज दिया और उस के जाते ही उस का मोबाइल ले कर निकल आया. यह मोबाइल किशोर की हत्या की योजना का एक अहम हिस्सा था.

18 मार्च की दोपहर एक बजे साहेब ने चोरी के मोबाइल से किशोर को फोन कर के पौलिटेक्निक चौराहे पर बुलाया. उस से मिलने के लिए घर से निकलते समय किशोर ने मां को बता दिया था कि वह अपने दोस्त घनश्याम से मिलने जा रहा है. वह पौलिटेक्निक चौराहे पर पहुंचा तो घनश्याम वहां उस का इंतजार करता मिला. घनश्याम उसे साथ ले कर सिटी बस से चिनहट आ गया.

घनश्याम ने शराब की एक दुकान से किशोर के लिए शराब और अपने लिए बीयर खरीदी. घनश्याम उसे छोटा भरवारा मल्हौर रेलवे क्रासिंग के पास ले गया और वहां एक खाली पड़े प्लौट में बैठ गया. घनश्याम ने किशोर को शराब पिलाई, जबकि खुद बीयर पी. शराब पिलाने के बाद उस ने किशोर को साथ लाई भांग भी खिला दी. इस के बाद नशे की अधिकता की वजह से किशोर की आंखें मुंदने लगीं.

घनश्याम ने कहा, ‘‘लगता है, नशा ज्यादा हो गया है. ऐसा करो, लेट कर कुछ देर सो लो. नशा कम हो जाए तो घर चले जाना.’’

किशोर वहीं घास पर लेट गया और कुछ ही देर में बेसुध हो गया. इस के बाद घनश्याम ने वहीं पडे़ भारी पत्थर को उठाया और किशोर के चेहरे पर पटक दिया. इस के बाद उस ने कई बार ऐसा किया. ऐसा करने से किशोर की मौत हो गई. इस तरह किशोर की हत्या कर वह वहां से चला गया.

बाराबंकी जाते हुए घनश्याम ने रास्ते से किशोर के पिता बालकराम को फोन कर के किशोर की लाश के बारे में बता कर उसे वहां से लाने के लिए कह दिया था. इस के बाद उस ने चोरी किए गए मोबाइल से सिम निकाल कर तोड़ दिया और उस के साथ मोबाइल को फेंक दिया.

घनश्याम ने किशोर की हत्या में होशियारी तो बहुत दिखाई, लेकिन उस ने जो होशियारी दिखाई थी, उसी की वजह से पकड़ा गया. उस ने चोरी के मोबाइल के साथ अपना निजी मोबाइल भी साथ रखा था, जिस का उस ने स्विच औफ नहीं किया था. यही गलती उसे भारी पड़ गई.

पूछताछ के बाद पुलिस ने घनश्याम उर्फ साहेब को सीजेएम आनंद कुमार की अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

नफरत की गोली – भाग 3

एक तरफ मिथिलेश के सामने दो वक्त की रोटी के लिए दूसरों पर आश्रित होने वाली स्थिति थी तो वहीं दूसरी ओर जेठानी लाखों रुपयों का मकान, गहने आदि खरीदने में लगी हुई थी. मिथिलेश को इस बात की कोई शिकायत नहीं थी. लेकिन उसे दुख इस बात का था कि जेठानी उसे सार्वजनिक रूप से अपमानित करती रहती थी.

देवरानी जेठानी के बीच चल रही रार पर न तो जोदसिंह ही ध्यान देता था और न ही उस के पिता. इस से मिथिलेश कुंठित हो गई थी.वह अभी तक पति की रहस्यमय हत्या को भूल नहीं पाई थी, उस का मन जेठानी को सबक सिखाने का करता था. लेकिन वह बच्चों के भविष्य को देखते हुए चुप हो जाती. मगर उस के सीने में एक आग सुलग रही थी. यह आग कब विकराल रूप धारण कर लेगी, ये कोई नहीं जानता था.

जोदसिंह के बच्चों की शीतकालीन छुट्टियां हो गईं तो उस ने परिवार सहित अपने गांव जाने का कार्यक्रम बना लिया. वह पिछले कई महीनों से अपने घर वालों से नहीं मिला था. छोटे भाई टिंकू के लिए भी कोई रिश्ता पक्का करना था.

टिंकू नेवी में नौकरी करता था. फिलहाल उस की पोस्टिंग सऊदी अरब में थी. इस के अलावा उसे अपने लिए आगरा में फ्लैट भी खरीदना था और दिवंगत भाई बंटू की पहली बरसी पर होने वाले शांति पाठ में शरीक होना था. ये सब काम निपटाने के लिए जोदसिंह पत्नी और बच्चों को ले कर 18 जनवरी की शाम को आगरा से निकल पड़ा.

पत्नी की जिद के कारण उसे पहले अपनी ससुराल जाना पड़ा. अगली सुबह करीब 11 बजे तीनों बच्चों को उन के नानानानी के पास छोड़ कर जोदसिंह ने सब से पहले अपने लिए फ्लैट तलाशने का मन बनाया. ससुराल से बाइक ले कर वह हेमलता के साथ देवरी रोड पर बनी कालोनी में गया. वहां उन्हें एक फ्लैट पसंद आ गया तो जोदसिंह ने बयाना भी दे दिया.

फ्लैट का सौदा पक्का होने की खुशी में उन्होंने बाजार से मिठाई खरीदी और फिर निकल पड़े मलपुरा की ओर. हेमलता ने अपने मायके वालों का मुंह मीठा कराया और फिर करीब आधा घंटे बाद दोनों शंकरपुर के लिए रवाना हो गए. करीब 6 बजे दोनों शंकरपुर पहुंच गए.

घर पर जोदसिंह के 2 मामा भी आए हुए थे. एक अपनी बेटी के लिए रिश्ता देखने आए थे. जबकि दूसरे अपनी दवाई लेने के लिए. चूंकि 2 दिन बाद ही उन के दिवंगत भांजे बंटू की बरसी थी तब तक के लिए दोनों ही वहां रुक गए.

घर पहुंच कर हेमलता और जोदसिंह ने घर पर मौजूद सभी का अभिवादन किया हलकीफुलकी बात की. फिर हेमलता सास व देवरों से बातचीत करने में मशगूल हो गई तो वहीं जोदसिंह पड़ोस के बीमार बुजुर्ग  के पास जा कर अलाव पर हाथ सेंकने लगा.

बातचीत के बीच हेमलता ने बाइक की डिक्की में रखा लड्डुओं का डिब्बा मंगवा लिया और फ्लैट खरीदने की बात कह कर इतराती हुई सब का मुंह मीठा कराने लगी. इस बीच जब मिथिलेश का छोटा बेटा अंकित लड्डू लेने ताई हेमलता के पास पहुंचा तो हेमलता ने उसे दुत्कार दिया.

ये बात अंकित ने अपनी मां को बताई. मिथिलेश के मन में हेमलता को ले कर जो नफरत सुलग रही थी वह आज ज्वालामुखी में बदलने लगी. उस ने अंकित को कहा कि वह कमरे में जाए और टीवी देख ले. अंकित कमरे में चला गया.

उधर मिथिलेश अपने कमरे में गई और संदूक में रखा तमंचा निकाल लाई. वह तमंचा उस के पति का था. पति ने जीवित रहते हुए मिथिलेश को तमंचा चलाना सिखा दिया था. उस तमंचे को छिपा कर वह छत पर ले गई और वहीं रख आई. इस के अलावा योजना के अनुसार उस ने हथौड़ा भी छत पर ले जा कर रख दिया था. अब उसे केवल सही समय का इंतजार था.

करीब पौने 8 बजे हेमलता जब सास और देवरों के बीच से उठ कर लघुशंका के लिए सीढि़यों के नीचे बने बाथरूम में जा रही थी तो वहीं पर मिथिलेश ने उस के पैर पकड़ कर उस से एकांत में बात करने का 10 मिनट का समय मांगा. उस ने कहा कि वह दोनों के बीच चल रहे मनमुटाव को दूर करना चाहती है.

देवरानी जब पैरों में पड़ गई तो हेमलता को भला 10 मिनट देने में क्या एतराज था. देवरानी के अनुरोध पर एकांत में बातचीत करने के लिए वह उस के साथ छत पर चली गई. छत पर अंधेरा था. हेमलता के कहने पर मिथिलेश ने छत पर लगा बल्ब जला दिया. मिथिलेश ने बैठने के लिए वही जगह चुनी जहां पर उस ने हथौड़ा और तमंचा छिपा कर रखा था. जेठानी को बैठने के लिए उस ने पटरा उसी स्थान पर लगाया जिस से उसे बार करने में आसानी हो.

करीब 2-3 मिनट तक दोनों इधरउधर की बातें करते रहीं जब हेमलता को लगा कि मिथिलेश के पास बातचीत करने का कोई ठोस मुद्दा नहीं है, तो वह वहां नीचे आने को जैसे ही उठी, मिथिलेश ने फुरती से हथौड़ा निकाल कर उस से भरपूर वार उस के सिर पर किया. हेमलता के मुंह से आवाज भी न निकल पाई. उस के सिर से खून बहने लगा और वह बेहोश हो गई.

तभी उस ने तुरंत तमंचा निकाला और जेठानी को हिकारत भरी नजरों से देखा. फिर उस ने उस के सिर पर तमंचा सटा कर ट्रिगर दबा दिया. एक आवाज हुई और हेमलता का खेल खत्म हो गया. जेठानी को मारने के बाद वह छत की दीवार पर पीठ टिका कर इस तरह बैठ गई जैसे कि ये काम कर के उसे बहुत बड़ा सुकून मिला हो.

कुछ देर बाद हेमलता का पति जोदसिंह उसे ढूंढता हुआ जब छत पर पहुंचा तब उसे पता चला कि उस ने जो गोली की आवाज सुनी थी वह उस की पत्नी को ही मारी गई थी.

थानाप्रभारी ने जब मिथिलेश से पूछा कि क्या उसे अपनी जेठानी की हत्या करने का कोई पछतावा है तो उस ने तपाक से कहा, ‘‘कैसा पछतावा, मुझे कोई पछतावा नहीं है. जेठानी ने सारे परिवार के साथ मिल कर मेरे पति को मारा था, मैं ने उसे मार कर अपने पति की मौत का बदला ले लिया.’’

पूछताछ के बाद मिथिलेश को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. जबकि उस के चारों बच्चों की देखभाल उन के दादादादी कर रहे हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

4 लाख में खरीदी मौत – भाग 3

काशीपुर पहुंच कर जयप्रकाश ने बहन से पत्नी के बारे में बता कर कहा कि अब वह उस से किसी तरह पीछा छुड़ाना चाहता है. भाभी की बदचलनी की बात सुन कर केला देवी को बहुत गुस्सा आया. जयप्रकाश ने बहन से यह भी कहा था कि अगर इस काम के लिए उसे 2-4 लाख रुपए खर्च भी करने पड़े तो वह खर्च कर देगा. वह हरजीत, पत्नी सुनीता और बढ़े बेटे विशाल की हत्या कराना चाहता था.

केला देवी ने इस काम के लिए जयप्रकाश की मुलाकात अपने देवर के बेटे पंकज से करा दी. जयप्रकाश उस का मामा लगता था. पंकज अभी छोटा था. उस का बाप नन्हे कटरा मालियान में पान की दुकान चलाता था. वह भी बाप के साथ दुकान पर बैठता था.

पंकज ने कभी हत्या जैसे काम के बारे में सोचा भी नहीं था. लेकिन जब जयप्रकाश ने 4 लाख रुपए देने की बात कही तो वह लालच में पड़ गया और हामी भर दी. इस के बाद उस ने अपने दोस्तों शिवअवतार पुत्र सोमपाल निवासी बरखेड़ा, कपिल पुत्र बाबूराम निवासी कटरामालियान, दीपक पुत्र गोपाल यादव निवासी काशीपुर को 2 लाख रुपए देने की बात कह कर 3 हत्याएं करने के लिए राजी कर लिया.

कपिल एक अस्पताल में एक्सरे टेक्नीशियन था तो शिवअवतार उर्फ बबलू एक पैथालौजी लैब में लैब टेक्नीशियन था. दीपक यादव एक मेडिकल स्टोर पर काम करता था.  इस तरह जयप्रकाश ने 4 लाख रुपए में 3 हत्याओं का सौदा कर डाला. इस के बाद उस ने 3 लाख 60 हजार रुपए दे भी दिए. बाकी रकम काम हो जाने के बाद देने को कहा.

पंकज और उस के दोस्तों ने 3-3 हत्याओं की सुपारी ले तो ली, लेकिन चारों ही इस काम के लिए एकदम नए थे. इंसान की कौन कहे, इन में से किसी ने कभी चूहा तक नहीं मारा था. जिस ने कभी चूहा तक न मारा हो, वह आदमी कैसे मार सकता था.

बहरहाल, पंकज ने अपने दोस्तों को 2 लाख रुपए दे कर इस झंझट से खुद को अलग कर लिया. लेकिन हत्या करवाने की जिम्मेदारी उसी की थी, इसलिए हत्याएं कैसे की जाएं, योजना बनवाने में वह भी साथ रहता था.

चारों हर रोज बैठ कर इस काम के लिए नईनई योजनाएं बनाते, लेकिन अंजाम न दे पाते. धीरेधीरे एक सप्ताह गुजर गया, उन की योजना सफल न हो पाई. अब तक मिली रकम से उन्होंने काफी पैसे खर्च कर डाले थे.  हत्याएं करवाने की वजह से जयप्रकाश अपना घर छोड़ कर काशीपुर में पड़ा हुआ था. उस का सोचना था कि उस के काशीपुर रहते हत्याएं होंगी तो पुलिस उस पर शक नहीं करेगी.

जब सप्ताह भर से ज्यादा का समय गुजर गया और पंकज कुछ नहीं कर पाया तो जयप्रकाश को लगा कि यह काम उस के वश का नहीं है. उस ने पंकज से अपने रुपए वापस मांगे. लेकिन पंकज और उस के साथियों ने काफी रुपए खर्च कर दिए थे, इसलिए रुपए लौटाते कहां से.

जयप्रकाश ने पंकज पर रुपए लौटाने के लिए दबाव बनाया तो वह परेशान हो उठा. इस के बाद चारों ने बैठ कर एक नई योजना बना डाली. यह योजना थी जयप्रकाश की हत्या की. उन्हें पता ही था कि जयप्रकाश का उस की पत्नीबच्चों से मनमुटाव चल ही रहा है.

ऐसे में अगर जयप्रकाश की हत्या हो जाती है तो शक उस की पत्नी पर जाएगा और वे साफ बच जाएंगे. 3 लोगों की हत्या करने के बजाय एक की हत्या करना आसान भी था. उन्हें 3 की जगह एक ही हत्या करने पर सारे पैसे मिल जाएंगे.

पंकज मामा को मरवाना तो नहीं चाहता था, लेकिन मामा से सुपारी ले कर वह बुरी तरह से फंस चुका था, क्योंकि मामा से ली गई रकम से काफी रुपए खर्च हो चुके थे. इसीलिए दोस्तों के कहने पर मजबूरन उसे मामा की हत्या के लिए हामी भरनी पड़ी.

इस के बाद जयप्रकाश की हत्या की योजना बन गई. पंकज और उस के दोस्तों को पता था कि करवा चौथ के त्यौहार पर जयप्रकाश जसपुर जाने के लिए राजी हो जाएगा. दरअसल वे जयप्रकाश को जसपुर ले जा कर मारना चाहते थे. क्योंकि वहां मारे जाने पर उस की हत्या की शंका पत्नीबच्चों और प्रेमी पर होती. वे पुलिस की गिरफ्त से दूर रहते.

योजना बनाने के बाद पंकज और उस के साथियों ने जयप्रकाश को विश्वास में ले कर जसपुर चलने के लिए राजी कर लिया. बहाना था, उस के द्वारा कही गई 3 हत्याओं को अंजाम देने का. जयप्रकाश किसी भी तरह पत्नी नामक झंझट से मुक्ति चाहता था, इसलिए वह उन के साथ जाने को राजी हो गया. चारों ने जो योजना बनाई थी, उस के अनुसार जयप्रकाश को जसपुर ले जा कर खत्म कर देना था.

12 अक्तूबर की रात शिवअवतार और कपिल ने जयप्रकाश को साथ ले जा कर काशीपुर के एक होटल में शराब पिलाई और खाना खिलाया. पत्नी की करतूतों से दुखी जयप्रकाश बातबात में ज्यादा शराब पी गया. शिवअवतार और कपिल चाहते भी यही थे, इसलिए वे उसे ज्यादा से ज्यादा शराब पीने के लिए उकसाते रहे.

जयप्रकाश नशे में होश खो बैठा तो शिवअवतार और कपिल उसे मोटरसाइकिल पर बीच में बैठा कर जसपुर की ओर चल पड़े. संन्यासियों वाला रोड पर पहुंच कर वे ऐसी जगह की तलाश करने लगे, जहां वे उसे मार सकें. कुछ दूर चलने पर अहमदनगर गांव के पास जब उन्हें सुनसान मिला तो उन्होंने उसे मोटरसाइकिल से उतार कर गोली मार दी.

इस के बाद जयप्रकाश की लाश को वहीं छोड़ कर शिवअवतार और कपिल लौट पड़े. रास्ते से ही शिवअवतार ने पंकज को फोन कर दिया कि बाकी 40 हजार रुपए वह दीपक को दे दे. जयप्रकाश ने सुपारी तो दी थी पत्नी, बेटे और पत्नी के प्रेमी हरजीत को मारने की, लेकिन मारा गया खुद.

पंकज के बयान के आधार पर पुलिस ने शिवअवतार उर्फ बबलू, कपिल, दीपक यादव को भी गिरफ्तार कर लिया. इन में शिवअवतार और कपिल पर तो हत्या का आरोप है, जबकि पंकज पर षडयंत्र रचने का तथा दीपक यादव पर साक्ष्य छिपाने का.

पुलिस ने हत्यारों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त 315 बोर का तमंचा, 2 जीवित कारतूस तथा 1 लाख 60 हजार रुपए नकद बरामद कर लिए हैं. सारे साक्ष्य जुटा कर पुलिस ने चारों अभियुक्तों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

पहले से हिरासत में लिए गए मास्टर हरजीत और मृतक जयप्रकाश की पत्नी सुनीता को पुलिस ने पंकज के अपराध स्वीकार करते ही रिहा कर दिया. सुनीता ने भले ही पति को नहीं मरवाया था, लेकिन अगर वह गलत न होती तो आज यह नौबत न आती. उसी की वजह से आज उस के 4 बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो गया है.

एहसान के बदले मिली मौत – भाग 3

डर के मारे वह ऊपर की ओर भागे. कमरे में रखी बड़ी सी कुरसी पर 5-6 कंबल ओढ़ कर छिप गए. कदमों की आहट उन्हें साफ सुनाई दे रही थी, जो उन्हीं की ओर बढ़ रहे थे.

सन्नाटे को चीरती हुई एक मर्दाना आवाज गूंजी, ‘‘डा. फेंज गनीमत इसी में है कि तुम जहां भी छिपे हो निकल आओ वरना हम तो तुम्हें ढूंढ ही लेंगे.’’

यह आवाज थमी नहीं कि दूसरी आवाज उभरी, ‘‘आज बच नहीं पाओगे डा. फेंज.’’

खौफ से डा. फेंज की नसों का खून जम सा गया. वह सांस खींचे दुबके रहे. तभी पहले वाली आवाज फिर गूंजी, ‘‘डा. फेंज, हमें बता दो कि तुम ने नकद राशि कहां छिपा रखी है? हम तुम्हारी जान बख्श देंगे.’’

कंबलों में हलचल सी हुई. डा. फेंज में जाने कहां से हिम्मत आ गई कि वह झटके से बाहर आ गए. 2 लोग उन्हें खोज रहे थे. उन्होंने फुर्ती से एक युवक का सिर पकड़ कर खिड़की की चौखट से दे मारा. चीख के साथ उस के सिर से खून का फव्वारा फूट पड़ा. दूसरा उन की ओर लपका. उस ने डा. फेंज की कलाई पकड़ कर फर्श पर गिरा दिया.

इस के बाद घसीटता हुआ दीवार तक ले गया और उन का सिर पकड़ कर जोर से दीवार से मारा. इसी के साथ उस के घायल साथी ने डा. फेंज पर कुल्हाड़ी से जोरदार वार सिर पर किया. बस, एक ही वार में हलकी सी चीख के साथ वह बेहोश हो गए. इस के बाद भी दोनों युवकों ने ताबड़तोड़ कई वार उन के सिर और सीने पर किए. उन्हें लगा कि डा. फेंज खत्म हो गए हैं, लेकिन यह उन का भ्रम था.

डा. फेंज की सांसें चल रही थीं. दोनों का अगला निशाना वहां रखी अलमारी थी. अलमारी के दरवाजे को कुल्हाड़ी से तोड़ कर उसे खंगाला तो उस में 5 हजार यूरो मिले, जिन्हें ले कर दोनों भाग खड़े हुए. उन के जाने के बाद घिसटघिसट कर डा. फेंज उस टेबल तक आए, जहां फोन रखा था. किसी तरह नंबर मिला कर उन्होंने पुलिस को कराहती आवाज में घटना की सूचना दी.

10 मिनट में टौप एक्शन पुलिस फोर्स वहां पहुंच गई. गंभीर रूप से घायल डा. फेंज को तुरंत अस्पताल ले जाया गया. 11 सप्ताह तक जिंदगी और मौत से जूझते हुए डा. फेंज ने आखिर 26 मार्च, 2008 को दम तोड़ दिया.

पुलिस जांच में मिले सुबूत डा. फेंज की पत्नी ततजाना के दोषी होने का इशारा कर रहे थे. ततजाना को हिरासत में ले कर पूछताछ की गई. वह खुद को बेकुसूर बताती रही. उस का तर्क था कि एक साल से डा. फेंज से उस का कोई संबंध नहीं था. वह अपने प्रेमी हीलमुट बेकर के साथ रह रही थी. मगर उस की कोई भी दलील काम नहीं आई. मई, 2008 में अदालत के आदेश पर उसे डा. फेंज की हत्या और चोरी के आरोप में जेल भेज दिया गया.

16 महीने बर्लिन कोर्ट में यह मुकदमा चला. लेकिन सुबूतों और गवाहों के अभाव में अक्तूबर, 2009 को कोर्ट ने ततजाना को बेगुनाह करार देते हुए जेल से रिहा करने का आदेश दे दिया.

कहा जाता है कि ततजाना को अपनी बदसूरती के चलते पहले जीवन से खास लगाव नहीं रहा था. लेकिन जब डा. फेंज ने 20 औपरेशन कर के उसे खूबसूरती का तोहफा दिया तो उस के अंदर की दम तोड़ चुकी महत्त्वाकांक्षाएं और हसरतें फिर से उमंगे भरने लगी थीं. इसी के चलते उस ने अपने से 44 साल बड़े डा. फेंज के प्यार को स्वीकार कर के शादी कर ली थी, क्योंकि डा. फेंज के पास अरबों डौलर की दौलत थी.

पुलिस के अनुसार शादी के बाद 9 सालों तक ततजाना ने ऐश की जिंदगी बसर करते हुए अपने सभी अरमान पूरे कर लिए. इस के बाद उस का मन डा. फेंज से भर गया तो वह कार व्यापारी हीलमुट बेकर के पहलू में जा गिरी. वह उस के साथ एक साल रही, लेकिन डा. फेंज को उस ने तलाक नहीं दिया. शायद उस की निगाह डा. फेंज की बेशुमार दौलत पर थी. उस पर उस का कब्जा डा. फेंज की मौत के बाद ही हो सकता था. इसी वजह से उस ने डा. फेंज की हत्या पेशेवर हत्यारों से करवा दी थी. लेकिन सुबूतों के अभाव में वह निर्दोष मानी गई.

खैर, सच्चाई चाहे जो भी रही हो, जेल से रिहा होने के बाद ततजाना डा. फेंज की बेवा होने के नाते उस की 11 मिलियन यू.एस. डौलर की एकलौती वारिस हो गई. उस की जिंदगी फिर उसी पुराने ढर्रे पर चल पड़ी. पार्टीक्लबों में रात रंगीन करना, पुरुष मित्रों की बांहों में बांहें डाल कर डांस करना, महंगी कारों में घूमना और भोग विलास भरा जीवन उस की दिनचर्या में शुमार हो गया.

एक हाईफाई पार्टी में ही ततजाना की मुलाकात नवंबर, 2011 में जर्मनी के सेक्सोनिया राज्य के आखिरी राजा 68 वर्षीय प्रिंस वौन हौमजोर्लन से हुई तो वह उस से दिल लगा बैठी. प्रिंस वौन भी उस की खूबसूरती और जवानी के ऐसे दीवाने हुए कि बस उसी के हो कर रह गए. दोनों शादी करना चाहते थे, लेकिन प्रिंस वौन की पत्नी और बच्चों के रहते यह संभव नहीं था.

मिसकाल बनी काल – भाग 3

सुवेश सचिन का अच्छा दोस्त था. उस की परेशानी समझ कर उस ने कहा, ‘‘मेरा एक दोस्त है अजय. उस का घर रुचिखंड में है. उस के मकान का ऊपर वाला हिस्सा खाली है. मैं उस से बात करता हूं. अगर अजय तैयार हो गया तो तुम्हें कमरा मिल जाएगा. वह 2 हजार रुपए कमरे का किराया लेगा. साथ ही एक महीने का एडवांस देना होगा.’’

सचिन इस के लिए तैयार हो गया. सुवेश ने अजय से बात की और अजय ने अपने पिता से. अजय का कोई दोस्त अपनी पत्नी के साथ रहेगा यह जान कर अजय के पिता गुलाबचंद राजी हो गए. सचिन ने कमरा देख कर एडवांस किराया दे दिया. इस के बाद उस ने 8 दिसंबर को सोफिया को फोन कर के कहा, ‘‘सोफिया, मैं तुम्हें लखनऊ बुलाना चाहता हूं. मैं 10 तारीख को तुम्हें अजगैन में मिलूंगा. हम 1-2 महीने अकेले रहेंगे. इस बीच मैं अपने घर वालों को राजी कर लूंगा और फिर तुम्हें अपने घर ले जाऊंगा.’’

सोफिया यही चाहती थी. वह पहले से ही सचिन के साथ जिंदगी जीने के सपने देख रही थी. योजनानुसार सोफिया 10 दिसंबर की सुबह अपने घर से निकली तो उस की मां ने पूछा, ‘‘आज स्कूल नहीं जाएगी क्या?’’

‘‘नहीं मां, आज दादी की दवा लेनी है, वही लेने जा रही हूं. थोड़ी देर में लौट आऊंगी.’’ कह कर सोफिया घर से निकल गई. उस ने घर से 10 हजार रुपए और चांदी की एक जोड़ी पायल भी साथ ले ली थी. अपने गांव से वह सीधी अजगैन पहुंची. सचिन उसे तयशुदा जगह पर मिल गया. उस से मिलने की खुशी में 17 साल की सोफिया अपने मांबाप की इज्जतआबरू, मानसम्मान, प्यार और विश्वास सब भूल गई. वहां से दोनों लखनऊ आ गए. सचिन सोफिया को अपने कमरे पर ले गया. खाना वगैरह दोनों ने बाहर ही खा लिया था.

कमरे पर पहुंचते ही सोफिया सचिन से शादी की बात करने लगी. सचिन ने उसे प्यार से समझाया, ‘‘मुझ पर भरोसा रखो. हम जल्द ही शादी भी कर लेंगे. मैं तुम्हें सारी बातें पहले ही बता चुका हूं.’’

दरअसल सचिन किसी भी तरह जल्द से जल्द सोफिया को हासिल कर लेना चाहता था. गहराती रात के साथ सचिन की जवानी हिलोरें मारने लगी तो वह सोफिया के न चाहते हुए भी अकेलेपन का लाभ उठा कर उसे हासिल करने की कोशिश करने लगा. सोफिया ने काफी हद तक खुद को बचाने की कोशिश की. लेकिन धीरेधीरे उस का विरोध कम हो गया और सचिन मनमानी करने में सफल रहा. सोफिया खुद को यह दिलासा दे रही थी कि आज न सही कल शादी तो होनी ही है. जो शादी के बाद होना था वह पहले ही सही.

अगले दिन सोफिया सचिन से शादी करने की जिद करने लगी. जबकि सचिन चाहता था कि वह किसी तरह अपने घर वापस चली जाए. उस ने बहानेबाजी कर के उसे लौट जाने को कहा तो सोफिया बोली, ‘‘घर से भाग कर आने वाली लड़की के लिए घर के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो जाते हैं. मैं अब वापस नहीं लौट सकती.’’

सचिन और सोफिया का वह पूरा दिन प्यार और मनुहार के बीच गुजरा. रात गहरा गई तो सोफिया खाना खा कर सो गई. जबकि सचिन जाग रहा था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि सोफिया से कैसे पीछा छुड़ाए.

उस के मन में खयाल आया कि क्यों न वह गला दबा कर सोफिया को मार डाले. लेकिन उसे लगा कि इस से उस की अंगुलियों के निशान सोफिया के गले पर आ जाएंगे और वह पकड़ा जाएगा. आखिरकार काफी सोचविचार कर उस ने अपने हाथों पर पौलीथिन लपेट ली और सोती हुई सोफिया का गला दबाने लगा.

इस से सोफिया जाग गई और अपना बचाव करने का प्रयास करने लगी. सचिन जवान था और सोफिया से ताकतवर भी. वैसे भी वह योजना बना कर उस की हत्या कर रहा था. सोफिया एक तो शरीर से कमजोर थी, दूसरे उसे सचिन से ऐसी उम्मीद नहीं थी. इस के बावजूद वह पूरा जोर लगा कर बचने की कोशिश करने लगी. इस पर सचिन ने उस के सिर पर जोरो से वार किया. इस से वह बेहोश हो गई. सचिन को मौका मिला तो उस ने सोफिया का गला दबा कर उसे मार डाला.

सोफिया के मरने के बाद सचिन के हाथपांव फूल गए. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह करे तो क्या करे. रात भर वह सोफिया की लाश के पास बैठा रोता रहा. काफी सोचने के बाद जब उसे लगा कि अब वह बच नहीं पाएगा तो वह सुबह 4 बजे आशियाना थाने जा पहुंचा. उस ने अपने बचाव के लिए झूठी कहानी भी गढ़ी, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट और सीओ बबीता सिंह के सामने उस का झूठ टिक नहीं सका.

पुलिस ने मामले की जानकारी सोफिया के घर वालों को दी तो वे लखनऊ आ गए. उन लोगों ने बताया कि सोफिया किसी लड़के के साथ भाग आई थी. उन्हें सोफिया का शव सौंप दिया गया. लंबी पूछताछ के बाद सचिन के बयान की पुष्टि के लिए पुलिस ने मकान मालिक गुलाबचंद और उन के बेटे अजय व उस के दोस्त सुवेश से भी पूछताछ की.

आशियाना पुलिस ने सचिन के खिलाफ भादंवि की धारा 363, 376, 302 और पोक्सो एक्ट (प्रोटेक्शन औफ चिल्ड्रन फ्राम सैक्सुअल आफेंसेज एक्ट) की धारा 3/4 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. पूछताछ के बाद उसे जेल भेज दिया गया.

इस में कोई दो राय नहीं कि सचिन के पास बचने के तमाम रास्ते थे. वह सोफिया को कहीं बाजार में अकेला छोड़ कर भाग सकता था. उसे उस के घर पहुंचा सकता था. सोफिया नादान और नासमझ थी. वह 2 माह पुरानी मोबाइल की दोस्ती पर इतना भरोसा कर बैठी कि परिवार छोड़ कर लखनऊ आ गई. उस ने जिस पर भरोसा किया, वही उस का कातिल बन गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में सोफिया नाम परिवर्तित है.

एक जवान औरत की नौटंकी

दोस्त के प्यार पर डाका – भाग 1

हरिहर कृष्णा की नफरत की इंतहा यहीं खत्म नहीं हुई थी, उस ने उसी चाकू से नवीन का पेट फाड़ कर दिल बाहर निकाल दिया और नफरत व गुस्से से कहा, “ये दिल मेरी नंदिनी के लिए धडक़ता था न?” चाकू से दिल के कई टुकड़े कर डाले. 

फिर उस ने कहा, “इन्हीं अंगुलियों से तू मेरी नंदिनी को मैसेज भेजता था न?” फिर उस ने दोनों हाथों की दसों अंगुलियों को काट कर अलग कर दिया. 

फिर उस ने कहा, “तू मेरी नंदिनी के साथ शादी कर बच्चे पैदा करना चाहता था न?” उस के बाद उस ने उस के प्राइवेट पार्ट को भी काट कर अलग कर दिया और सबूत के तौर पर फोटो मोबाइल में उतार कर प्रेमिका के वाट्सऐप पर भेज दिया.

उस समय सुबह के 7 बज रहे थे, जब नवीन हौस्टल में अपने दोस्त प्रदीप के साथ बैठा गप्पें लड़ा रहा था. तभी उस के मोबाइल की घंटी घनघना उठी. मोबाइल फोन उठाते हुए स्क्रीन पर डिसप्ले हो रहे नंबर को ध्यान से देखा. वह नंबर उस के पुराने दोस्त हरिहर कृष्णा का था. झट से काल रिसीव करते हुए नवीन ने कहा, “हैलो कृष्णा, कैसे हाल हैं?”

“बेटर हूं, मस्त हूं मेरे दोस्त,” गर्मजोशी के साथ हरिहर कृष्ण ने उत्तर दिया, “और बता तू कैसा है? अच्छा यह बता, आज शाम क्या कर रहा है?”

“एकदम फर्स्ट क्लास. रही बात शाम की तो शाम में फ्री हूं.” नवीन बोला.

“तो आ जाओ, चल मस्ती वस्ती करते हैं. मेरी तरफ से पार्टी. पार्टी में मैं रहूंगा, तू रहेगा. बड़े मजे होंगे. आ रहा है न मेरे यार.”

“हूंऽऽ अभी फिलहाल पार्टी सार्टी में जाने का मेरा मूड नहीं है, लेकिन जहां बात यार की हो तो मैं… तैयार हूं. बता, कहां मिलना है?”

“ऐसा कर तू पेड्डा अंबरपेट आ जा. तुझे मैं वहीं से रिसीव कर लूंगा और फिर मैं तुझे बाइक से ले कर पिकनिक प्लेस चल दूंगा, जहां पार्टी करनी है.”

“ठीक है भाई, आ रहा हूं मैं. तू बाइक ले कर वहां पहुंच. ..और हां, वापस लौटते समय मेरे को हौस्टल छोडऩा होगा.”

“बस इतनी सी बात?” हरिहर कृष्णा ने आगे कहा, “तेरे लिए तो मेरी जान हाजिर है. गर जान मांगी होती तो वो भी देने के लिए तैयार था. रही बात हौस्टल पहुंचाने की तो निश्चिन्त रह, वापस लौटते हुए तुझे हौस्टल छोड़ते हुए ही घर जाऊंगा.”

“तो फिर ठीक है, कपड़े चेंज कर मैं निकल रहा हूं, तू भी निकल.”

“ओके भाई, मैं भी बाइक ले कर निकल रहा हूं.”

“ओके,” नवीन ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया था. फिर उस ने अपने रूममेट प्रदीप को बता दिया कि दोस्त कृष्णा का फोन आया था. उस ने मुझे पार्टी पर बुलाया है, मैं वहीं जा रहा हूं, मेरा खाना उसी के साथ है. कमरे पर लौटने में देर हो सकती है. ऐसा करना, तुम खाना बना कर खा लेना, मेरा बिलकुल भी इंतजार मत करना. देर रात तक कमरे पर लौट आऊंगा.उस के बाद नवीन हौस्टल से दोस्त हरिहर कृष्ण से मिलने नेलगोंडा से हैदराबाद रवाना हो गया.

रात के करीब 11 बज चुके थे. नवीन अब तक न तो हौस्टल लौटा था और न ही उस का फोन ही काम कर रहा था. काल करने पर वह स्विच औफ आ रहा था. यह देख कर प्रदीप घबरा गया था.

दरअसल, नवीन बीटेक का छात्र था और उस ने नेलगोंडा जिले के महात्मा गांधी इंजीनियरिंग कालेज में दाखिला लिया था और उसी कालेज के छात्रावास में क्लासमेट प्रदीप के साथ रहता था.  नवीन मूलरूप से नगरकुरनूल जिले के सीरिसन गैंड का रहने वाला था. वह एक बिजनेसमैन का बेटा था.

नेलगोंडा थाने में करा दी रिपोर्ट

बहरहाल, नवीन जब घर नहीं लौटा और उस का सेलफोन भी बंद मिला तो वह बुरी तरह परेशान हो गया था. उस की समझ में यह बात नहीं आ रही थी कि वह क्या करे और कहां जा कर उसे ढूंढे? रात भी पूरे शबाब पर थी. उसे जब कुछ नहीं सूझा तो उस ने उसी रात नवीन के पापा शंकराय को फोन किया और उन से पूरी बात बता दी.

प्रदीप के मुंह से बेटे के बारे में सुन कर शंकराय बुरी तरह चौंक गए और तब उन्हें पता चला कि वह हरिहर कृष्णा से मिलने हैदराबाद गया था.

नवीन और कृष्णा बचपन के दोस्त थे, दोनों के बीच दांत काटी रोटी जैसे यारी भी थी. एक ही कालेज से इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी करने के बाद दोनों अलगअलग शहर में जा बसे थे और अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई में जुट गए थे. लेकिन इन दिनों किसी बात को ले कर दोनों के बीच में मनमुटाव चल रहा था.

इसी बात को ले कर नवीन के पापा शंकराय बुरी तरह डर गए थे. उन्होंने भी अपने स्तर से बेटे के बारे में जानकारी जुटाने और बेटे से मिलने की कोशिश की थी, लेकिन वह भी अपने मकसद में नाकामयाब रहे.

अगले दिन यानी 18 फरवरी, 2023 को शंकराय नेलगोंडा जिले के नारकेत पल्ली थाने पहुंचे और उन्होंने बेटे की गुमशुदगी दर्ज करवा दी. एसएचओ आर. श्रीनिवास रेड्डी ने नवीन की गुमशुदगी दर्ज कर उन्हें आवश्यक काररवाई करने का आश्वासन दे कर घर भेज दिया था. घर वापस लौटने से पहले वह बेटे के गुम होने में उस के बचपन के दोस्त हरिहर कृष्णा की ओर इशारा कर गए थे.

गुमशुदगी दर्ज करने के बाद एसएचओ रेड्डी ने गुमशुदा नवीन के दोस्त हरिहर कृष्णा को टारगेट पर लेते हुए आगे की जांच बढ़ाई. जांच के दौरान पुलिस को पता चला कि नवीन की गुमशुदगी के बाद से हरिहर कृष्णा भी लापता है. इस के बाद पुलिस का शक उस पर गहरा गया और पुलिस उस की तलाश में जुट गई. उस के संभावित ठिकानों पर ताबड़तोड़ दबिश देने लगी थी, लेकिन वह पुलिस की पकड़ से बहुत दूर था.

इधर पुलिस के साथसाथ नवीन के घर वाले भी उस की तलाश में जुट गए. उधर पुलिस नवीन और उस के दोस्त हरिहर कृष्णा के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर अध्ययन में जुटी हुई थी. काल डिटेल्स के अध्ययन से पता चल गया था कि आखिरी बार नवीन से हरिहर कृष्णा की 17 फरवरी, 2023 को सुबह 7 बजे बात हुई थी. उस के बाद कोई बातचीत नहीं हुई थी.

पुलिस ने जब हरिहर कृष्णा के मोबाइल नंबर को खंगालना शुरू की तो एक बेहद हैरानपरेशान कर देने वाली जानकारी मिली, जिसे जान कर पुलिस चौंक गई. जानकारी यह थी कि 18 फरवरी को कृष्णा के एकाउंट में किसी ने 1500 रुपए ट्रांसफर किए थे.

पुलिस इस की तह में अंदर तक घुस गई थी. काफी मशक्कत के बाद आखिरकार पुलिस ने पता लगा ही लिया कि वह पैसे हैदराबाद से उस के खाते में ट्रांसफर किए गए थे.

हरिहर कृष्णा ने थाने में किया सरेंडर

कुल मिला कर पुलिस इस नतीजे पर पहुंच चुकी थी कि जो कुछ भी हुआ था, हैदराबाद में ही हुआ है. अपराध केंद्र हैदराबाद ही है. जब तक हरिहर कृष्णा पकड़ा नहीं जाता है, तब तक नवीन के बारे में किसी भी निष्कर्ष तक पहुंचना संभव नहीं था, इसलिए हरिहर कृष्णा का पकड़ा जाना हर हाल में जरूरी था.

हरिहर कृष्णा के ऊपर पुलिस ने चारों ओर से ऐसा जबरदस्त शिकंजा कस दिया था कि वह किसी भी बिल में छिपा हो, बाहर आने के लिए विवश हो जाएगा. पुलिस का यह फारमूला कामयाब भी हो गया और 24 फरवरी, 2023 की दोपहर हरिहर कृष्णा ने नारकेतपल्ली थाने में खुद ही आत्मसमर्पण कर दिया.

उस ने पुलिस के सामने अपना जुर्म कुबूल कर लिया कि उस ने दोस्त नवीन की 17/18 फरवरी, 2023 की रात को हत्या कर दी थी. नवीन की हत्या करने का उसे तनिक भी मलाल नहीं था.  इस के बाद वह पूरी घटना को विस्तार से बताता चला गया. मानवता के दुश्मन हरिहर कृष्णा का बयान सुन कर पुलिस वाले भी हैरान रह गए.

बहरहाल, आरोपी हरिहर कृष्णा के आत्मसमर्पण के बाद उसी के बयान के आधार पर हत्या का राज छिपाने और उसे पनाह देने के आरोप में उस की प्रेमिका नंदिनी और दोस्त हसन भी 10 दिनों बाद यानी 6 मार्च, 2023 को गिरफ्तार कर लिए गए थे. दोनों आरोपियों ने भी अपनेअपने जुर्म कुबूल कर लिए थे.

इस तरह 7 दिनों से रहस्य बने नवीन कांड का पुलिस ने खुलासा कर दिया था और यह साबित हो चुका था कि अब नवीन इस दुनिया में नहीं है.

कैसे एक जिगरी यार ने अपने बचपन के यार के खून से होली खेली और मोहब्बत के कैनवास पर अपने प्यार की दास्तान लिखी? पुलिस पूछताछ में सनसनीखेज कहानी कुछ इस तरह से सामने आई है.

नवीन और नंदिनी एकदूसरे को करते थे प्यार

22 वर्षीय नवीन मूलरूप से तेलंगाना राज्य के नगरकुरनुल जिले के चेरागोंडा मंडल थानाक्षेत्र के सीरिसनगैंड का रहने वाला था. शंकराय का वह इकलौता बेटा था. पापा शंकराय उस पर बेहद नाज करते थे.हंसमुख स्वभाव का नवीन अपनी बातों से किसी को भी अनायास अपनी ओर खींच लेता था. और हर कोई उस का मुरीद हो जाता था.

उन में से एक नाम था हरिहर कृष्णा का. हरिहर जो उस का दोस्त बन गया था और आगे चल कर दोनों की यह दोस्ती दांत काटी रोटी जैसी पक्की हो गई थी और घरबाहर से ले कर स्कूल कालेज तक सभी उन की दोस्ती का गुणगान किए बिना नहीं रह सकते थे.

होली पर मंगेतर को मौत का अबीर

पत्नी का प्रेमी : क्यों मारा गया किशोर? – भाग 2

तनहाई, 2 जवां दिल और किसी के आने का कोई डर न हो तो बहकने में देर नहीं लगती. कभीकभी रिशा और साहेब के भी दिल बहकने लगते, लेकिन रिशा जल्द ही संभल जाती. इस के बाद वह साहेब को भी बहकने से रोक लेती.

लेकिन संभलते संभलते भी उस रोज ठंड में न चाहते हुए भी रिशा बहक गई थी. इस के बाद तो रिशा को इस आनंद का चस्का सा लग गया था. उस आनंद को पाने के लिए वह हर वक्त उतावली रहने लगी थी. साहेब भी यही चाहता था.

जब दोनों तनहाई का ज्यादा ही फायदा उठाने लगे तो उन के इस मिलन की खुशबू फैलने लगी. पहले यह खुशबू पड़ोस वालों तक पहुंची. इस के बाद उन्होंने ही इसे मुंशी रावत तक पहुंचा दिया. वह तो सन्न रह गए.

मुंशी रावत दोनों पर नजर रखने लगे तो एक दिन उन्हें प्यार भरी बातें करते हुए रंगेहाथों पकड़ लिया. उन्हें देख कर साहेब तो चुपचाप खिसक गया, लेकिन रिशा की जम कर पिटाई हुई. मारपीट कर मुंशी ने उसे सख्त हिदायत दी, ‘‘आज के बाद साहेब अगर इस घर में आया या तू ने उस से कोई वास्ता रखा तो मैं तेरी जान ले लूंगा.’’

मुंशी की क्रोध से जलती आंखों को देख कर रिशा कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा सकी थी. डर के मारे उस ने अपनी आंखें मूंद ली थीं. मुंशी पैर पटकता हुआ चला गया था. बाप के जाने के बाद ही रिशा की जान में जान आई थी. अब उस पर कड़ी नजर रखी जाने लगी थी. जिस की वजह से रिशा और साहेब का मिलना असंभव हो गया था.

मुंशी रिशा की शादी साहेब से बिलकुल नहीं करना चाहता, इसलिए उस के लिए लड़के की तलाश में लग गया. क्योंकि अब इस के अलावा उस के पास कोई दूसरा उपाय नहीं था.

बाराबंकी के ही थाना रामसनेही घाट के गांव मुरारपुर के रहने वाला बालकराम रावत लखनऊ के थाना गाजीपुर के इंदिरानगर के बी ब्लाक में सपरिवार रहता था. वह लखनऊ विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय पर्यावरण केंद्र में चपरासी था. उस के परिवार में पत्नी, 3 बेटियां और 2 बेटे किशोर कुमार तथा सुमित कुमार थे.

किशोर विद्यांत कालेज से बीकौम की पढ़ाई कर रहा था. किशोर भले ही अभी पढ़ रहा था, लेकिन बालकराम उस की शादी कर देना चाहते थे. उस के लिए रिश्ते भी आ रहे थे. जब उस के बारे में मुंशी रावत को पता चला तो रिशा की शादी के लिए वह भी बालकराम के यहां जा पहुंचा. रिशा सुंदर तो थी ही, बालकराम को पसंद आ गई. उस ने शादी के लिए हामी भर दी.

4 फरवरी, 2014 को रिशा और किशोर कुमार का विवाह धूमधाम से हो गया. कुछ दिन ससुराल में रह कर रिशा मायके आ गई. अब उस की विदाई अप्रैल में नवरात्र में होनी थी. पिता के डर से रिशा शादी का विरोध नहीं कर पाई थी, और किशोर से शादी कर ली थी. लेकिन अभी भी उस के मन में साहेब ही था.

वैसे भी वह मात्र 3 दिन ही ससुराल में रही थी. इतने दिनों में वह पति को जितना समझ पाई थी, उस से उस ने यही अंदाजा लगाया था कि वह बहुत ही सीधासादा है. इसलिए रिशा को लगा कि पति से उसे कोई परेशानी नहीं होगी.

18 मार्च की शाम साढ़े 5 बजे के करीब बालकराम रावत के मोबाइल पर किसी अनजान ने फोन कर के कहा, ‘‘तुम अपने बेटे किशोर को ढूंढ रहे हो न? तुम्हारे बेटे की लाश चिनहट में मल्हौर रेलवे क्रासिंग के पास एक खाली प्लौट में पड़ी है, जा कर उसे ले आओ.’’

इतना कह कर उस आदमी ने फोन काट दिया था.

उस ने बालकराम को कुछ कहने का मौका नहीं दिया था, इसलिए उस ने कई बार वह नंबर मिलाया. लेकिन फोन बंद होने की वजह से फोन नहीं मिला.

किशोर के बारे में बालकराम को कुछ पता नहीं था, इसलिए उस ने तुरंत बेटे को फोन किया. लेकिन उस का फोन बंद था. फोन बंद होने से वह घबरा गया. उस ने पत्नी से पूछा कि किशोर कहां है तो पत्नी ने कहा, ‘‘किशोर एक बजे के करीब अपने किसी दोस्त घनश्याम से मिलने की बात कह कर घर से निकला था. उस के बाद से उस का कुछ पता नहीं है.’’

किसी अनहोनी की आशंका से बालकराम का दिल धड़क उठा. किशोर का फोन भी नहीं मिल रहा था कि वह उस से संपर्क करता. कोई रास्ता न देख वह तुरंत थाना कोतवाली चिनहट जा पहुंचा. इंसपेक्टर विजयमल सिंह यादव को पूरी बात बताई तो वह एसएसआई राजेश दीक्षित और कुछ सिपाहियों को साथ ले कर किशोर की तलाश में निकल पड़े.

मल्हौर क्रासिंग के पास एक खाली प्लौट में सचमुच किशोर की लाश पड़ी थी. किशोर का चेहरा बुरी तरह कुचला हुआ था. पास ही खून से सना एक भारी पत्थर पड़ा था. हत्यारे ने उसी पत्थर से उस के चेहरे पर प्रहार कर के उस की हत्या की थी. लाश के पास ही शराब और बीयर की बोतलें एवं प्लास्टिक के 2 गिलास पड़े थे. इस का मतलब था कि हत्यारे ने पहले किशोर को शराब पिलाई थी, साथ में खुद बीयर पी थी.

किशोर नशे में बेसुध हो गया होगा तो हत्यारे ने उसी भारी पत्थर से किशोर की हत्या कर दी थी. जवान बेटे की लाश देख कर बालकराम का बुरा हाल था. पुलिस वालों ने किसी तरह उन्हें संभाला और अपनी काररवाई आगे बढ़ाई.

निरीक्षण के बाद पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए लखनऊ मैडिकल कालेज भिजवा दिया. रंक्तरंजित पत्थर ही नहीं, वहां पड़ी सारी सामग्री पुलिस ने कब्जे में ले ली थी. इस के बाद कोतवाली चिनहट में बालकराम की ओर से अज्ञात के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया गया था.

इंसपेक्टर विजयमल सिंह यादव ने उस नंबर को सर्विलांस पर लगवा दिया, जिस से बालकराम को फोन कर के किशोर की लाश पड़ी होने की सूचना दी गई थी. इस के साथ ही उस की काल डिटेल्स और लोकेशन भी निकलवाई गई. उस फोन की आईडी निकलवाई गई तो पता चला कि वह फोन बाराबंकी के थाना असंद्रा के गांव देवीगंज सूरजपुर के रहने वाले एक नाई का था.

पुलिस ने वहां जा कर नाई से पूछताछ की तो उस ने बताया कि जिस दिन की घटना है, उसी दिन उस का मोबाइल चोरी हो गया था. पुलिस ने आसपास वालों से पूछताछ की तो उन लोगों ने बताया कि नाई सच बोल रहा है. मोबाइल चोरी होने के बाद उस ने तमाम लोगों से यह बात बताई थी. फिर वह दुकान छोड़ कर कहीं गया भी नहीं था.

अब तक यह साफ हो चुका था कि किशोर की हत्या उसी आदमी ने की थी, जिस ने नाई का मोबाइल फोन चुराया था. यह निश्चित था कि नाई का मोबाइल वहीं के किसी आदमी ने चुराया होगा. पुलिस ने नाई से पूछताछ की तो उस ने कई नामों पर शक व्यक्त किया. उन्हीं में एक नाम घनश्याम उर्फ साहेब का भी था.

नफरत की गोली – भाग 2

दरअसल, बंटू कोई कामधंधा नहीं करता था. वह हमेशा अपने पिता और बड़े भाइयों पर बोझ ही बना रहा. जुआ, सट्टा खेलना और अकसर गांव के लोगों के साथ झगड़ना उस की दिनचर्या में शुमार था. इन मामलों में उसे कई बार हवालात में भी बंद होना पड़ा था.

शादी के चंद रोज बाद ही मिथिलेश को जब पति की सच्चाई पता चली तो अपनी किस्मत पर आंसू बहाने के अलावा उस के सामने कोई उपाय नहीं था. हालात से समझौता करते हुए उस ने पति को काफी समझाया कि वह कोई काम करें, लेकिन उस ने पत्नी की बात को काफी गंभीरता से नहीं लिया.

इसी तरह एकएक कर पूरे 10 साल गुजर गए. बंटू भी अब तक 4 बच्चों का बाप बन चुका था लेकिन उस ने कभी पत्नी की ख्वाहिशों की तरफ ध्यान तक नहीं दिया.

इस की एक वजह यह थी कि बंटू को घर का खर्च चलाने में इसलिए ज्यादा परेशानी नहीं हुई क्योंकि उस के पिता और भाई जोदसिंह आर्थिक मदद कर देते थे. जोदसिंह उत्तर प्रदेश पुलिस में सिपाही (घुड़सवार) था.वैसे जोदसिंह और बंटू का विवाह एक सप्ताह आगेपीछे हुआ था. उस की पत्नी हेमलता मल्लपुरा थाने के ठीक पीछे रहने वाले जयंती प्रसाद की बेटी थी. जयंती प्रसाद भी यूपी पुलिस में सिपाही थे.

जोदसिंह 3 बच्चों का बाप बन चुका था. लेकिन वह पत्नी से चोरीछिपे बंटू की आर्थिक मदद करता रहता था. जबकि हेमलता इस का विरोध करती रहती थी.

मिथिलेश को रोटी कपड़ा तो मिल रहा था लेकिन इन के अलावा उस की और जरूरतें भी थीं. उस का मन भी करता था कि जेठानी की तरह उस के पास भी जरूरत की तमाम चीजें हों. वह भी रोजाना बढि़या से बढि़या कपड़े पहने. उस के पास भी इतने पैसे हों कि अपनी जरूरत के मुताबिक खर्च कर सके ऐसी ही तमाम महत्त्वाकांक्षाएं उस के मन में दबी पड़ी थीं.

पति की आदतों को देखते हुए उसे नहीं लग रहा था कि जिन अभावों में वह जी रही है, वह कभी पूरे भी हो सकेंगे या नहीं. उस की शादी को 11 साल बीत चुके थे. इन 11 सालों में बंटू व उस के अन्य भाइयों के रहनसहन, सामाजिक मानप्रतिष्ठा में जमीन-आसमान का अंतर आ गया था.

बुरे दौर से गुजरने के बाद भी बंटू ने अपनी गलत आदतें नहीं सुधारीं. उस का मोहल्ले के लोगों से आए दिन झगड़ा होता रहता. जिस से पुलिस उसे पकड़ कर ले जाती थी. तब जोदसिंह उसे जैसेतैसे थाने से छुड़वा देता था. अब घर वाले भी उस से परेशान रहने लगे. उन्होंने उस की आर्थिक मदद करनी बंद कर दी.

तब हेमलता ने बंटू से छुटकारा पाने का एक उपाय ढूंढ लिया. पति जोदसिंह को समझाबुझा कर उस ने एक दिन आगरा के आला पुलिस अधिकारियों को पति की तरफ से एक पत्र भिजवाया. जिस में लिखा कि बंटू जो उस का सगा भाई है, के चालचलन ठीक नहीं हैं और भविष्य में उस के द्वारा कोई आपराधिक कृत्य किया जाता है तो उस का जिम्मेदार खुद बंटू ही होगा, हमारे परिवार वाले नहीं.

जब यह पत्र एसएसपी को मिला तो उन्होंने थाना शमसाबाद पुलिस के पास आवश्यक काररवाई के लिए भेज दिया. थानाप्रभारी ने बंटू को थाने बुलाया और सीधे रास्ते चलने के लिए बुरी तरह हड़का दिया. तब उस ने वादा किया कि आइंदा वह कोई गैरकानूनी काम नहीं करेगा. इस के बाद ही पुलिस ने उसे छोड़ा.

पुलिस से जलील होने के बाद बंटू घर आ गया. बाद में उसे और मिथिलेश को यह पता लग गया कि हेमलता ने ही उस के खिलाफ पुलिस में शिकायत कराई थी. मिथिलेश के मन में जेठानी हेमलता के प्रति नफरत पनपने लगी.

वैसे तो बंटू अपने भाई जोदसिंह के रहनसहन को देख कर उस से मन ही मन नफरत करता था लेकिन अब इस के बाद उस की नफरत और बढ़ गई थी. जोदसिंह की पोस्टिंग अलीगढ़ में थी. अब तो हालात ये हो गए थे कि जब कभी जोदसिंह अलीगढ़ से अपने गांव आता तो बंटू और मिथिलेश, जोदसिंह और उस की पत्नी हेमलता से बात नहीं करते.

बंटू के घर की जरूरतें बढ़ती जा रही थीं और आमदनी शून्य थी. तो ऐसे में बंटू इधरउधर से उधार ला कर काम चलाने लगा. मगर ये भी ज्यादा दिन न चला. कुछ दिनों बाद तकादा करने वाले भी उस के यहां आने लगे. पैसे न मिलने पर वे भी उसे जलील कर के चले जाते थे.

घर में फाके पड़ने की नौबत आ गई. तब मिथिलेश का पति से रोजाना ही झगड़ा होने लगा. उन के बीच गालीगलौज, मारपीट जैसे रोज का नियम बन गया. क्लेश के साथ मिथिलेश ने पति को रास्ते पर लाने के लाख जतन कर लिए लेकिन न तो बंटू ने कोई कामधाम किया और न ही उस के व्यवहार में किसी प्रकार का कोई सुधार आया. इसी बीच एक रात बंटू की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई.

21 जनवरी, 2013 की रात की बात थी. बंटू नशा कर के आया था. पत्नी ने उसे खाना आदि खिला कर सुला दिया. वह खुद भी पास में ही मौजूद दूसरे कमरे में बच्चों के साथ सो गई. बंटू बरामदे में सो रहा था.रात के करीब एक बजे मिथिलेश जब बाथरूम जाने के लिए उठी तो बरामदे में पहुंचते ही उस की चीख निकल गई. उस का पति खून से लथपथ पड़ा था. किसी ने उस के सीने पर गोली मारी थी.

मिथिलेश के चीखने की आवाज सुन कर उस के ससुर प्रेमसिंह और देवर टीटू व टिंकू भी वहां आ गए. बंद घर में कौन उसे गोली मार गया इस बात को घर वाले समझ नहीं पाए.

बाद में मोहल्ले के लोग भी वहां पहुंच गए. दबी जुबान में कुछ कह रहे थे कि मिथिलेश ने ही नाकारा पति से छुटकारा पाने को लाइसेंसी बंदूक से मार डाला है. जबकि कई लोग जोदसिंह को कठघरे में खड़ा कर रहे थे. उन का कहना था कि जोदसिंह रात के अंधेरे में आया और साइलेंसर लगी रिवाल्वर से बंटू को भून कर रात में ही गायब हो गया.

लोगों का तो यहां तक कहना था कि जोदसिंह व मिथिलेश के बीच अवैध संबंध थे. बंटू रास्ते का रोड़ा था इसलिए उसे हटा दिया गया. बहरहाल, जितने मुंह उतनी बातें हो रही थीं.

घुमाफिरा कर अंगुली मिथिलेश की तरफ ही उठ रही थी. लेकिन प्रेमसिंह नहीं चाहते थे कि उन की बहू जेल जाए. इसलिए उन्होंने गांव के संभ्रांत लोगों से बात कर आननफानन में बेटे का अंतिम संस्कार कर दिया. और गांव में यह खबर फैला दी कि बंटू की मौत ज्यादा शराब पीने से हुई थी.

जबकि मिथिलेश पति की हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए जेठ जोदसिंह और ससुर प्रेमसिंह से मानमनुहार करती रही लेकिन उन लोगों ने एक न सुनी. बात पंचों के सामने गई तो उन्होंने उसे यह समझा कर खामोश कर दिया कि चूंकि उस का ही बंटू से रोजरोज झगड़ा होता था इसलिए पुलिस भी यही मानेगी कि अपने पति की हरकतों से आजिज आ कर उस ने ही उसे मौत के घाट उतारा है.

पंचों व परिजनों की बात में दम था या नहीं परंतु उस समय किसी वजह से मिथिलेश ने भी पति की हत्या पर चुप्पी साध ली. बंटू के खत्म होने से मिथिलेश के जीवन में एक अजीब सी खामोशी छा गई. उस के पास आमदनी का कोई जरिया न होने की वजह से उसे अब अपने जेठ व ससुर के ऊपर ही निर्भर रहना था. वह अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती थी. इसलिए वह घर पर कपड़ों की सिलाई भी करने लगी थी लेकिन उस से घर का खर्च पूरा नहीं चल पाता था.

उस के सभी बच्चे स्कूल जाने लगे थे. यानी खर्चा भी बढ़ गया था. अब जोदसिंह खुल कर मिथिलेश व उस के बच्चों की मदद करने लगा. लेकिन हेमलता को ये सब सहन नहीं होता था. वह मिथिलेश से सीधे मुंह बात तो करती नहीं थी, मौका मिलने पर उसे उलाहना जरूर देती रहती थी.

मजबूरी में मिथिलेश को यह सब सुनना पड़ता था. मिथिलेश के बच्चे भी समझदार हो गए थे. हेमलता उन्हें भी फूटी आंख पसंद नहीं करती थी. बच्चे भी ताई के अपमान भरे व्यवहार को अच्छी तरह समझते थे. हेमलता जब भी अलीगढ़ से शंकरपुर आती तो परिवार के अन्य बच्चों के लिए कुछ न कुछ अवश्य लाती थी लेकिन मिथिलेश के चारों बच्चों के लिए कुछ भी नहीं.

जेठानी का यह बर्ताव देख कर मिथलेश के सीने पर सांप लोट जाता था. उस का दबंगपन दिखाने की एक वजह यह भी थी कि उस के पिता और पति दोनों ही पुलिस में थे. ऊपर से पति की कमाई का उस के पास अच्छा बैंक बैलेंस भी था. जिस से वह घमंड में रहती थी. गांव में रहने के बजाय वह आगरा की ही किसी कालोनी में फ्लैट लेने की योजना बना रही थी.