नफरत की गोली – भाग 2

दरअसल, बंटू कोई कामधंधा नहीं करता था. वह हमेशा अपने पिता और बड़े भाइयों पर बोझ ही बना रहा. जुआ, सट्टा खेलना और अकसर गांव के लोगों के साथ झगड़ना उस की दिनचर्या में शुमार था. इन मामलों में उसे कई बार हवालात में भी बंद होना पड़ा था.

शादी के चंद रोज बाद ही मिथिलेश को जब पति की सच्चाई पता चली तो अपनी किस्मत पर आंसू बहाने के अलावा उस के सामने कोई उपाय नहीं था. हालात से समझौता करते हुए उस ने पति को काफी समझाया कि वह कोई काम करें, लेकिन उस ने पत्नी की बात को काफी गंभीरता से नहीं लिया.

इसी तरह एकएक कर पूरे 10 साल गुजर गए. बंटू भी अब तक 4 बच्चों का बाप बन चुका था लेकिन उस ने कभी पत्नी की ख्वाहिशों की तरफ ध्यान तक नहीं दिया.

इस की एक वजह यह थी कि बंटू को घर का खर्च चलाने में इसलिए ज्यादा परेशानी नहीं हुई क्योंकि उस के पिता और भाई जोदसिंह आर्थिक मदद कर देते थे. जोदसिंह उत्तर प्रदेश पुलिस में सिपाही (घुड़सवार) था.वैसे जोदसिंह और बंटू का विवाह एक सप्ताह आगेपीछे हुआ था. उस की पत्नी हेमलता मल्लपुरा थाने के ठीक पीछे रहने वाले जयंती प्रसाद की बेटी थी. जयंती प्रसाद भी यूपी पुलिस में सिपाही थे.

जोदसिंह 3 बच्चों का बाप बन चुका था. लेकिन वह पत्नी से चोरीछिपे बंटू की आर्थिक मदद करता रहता था. जबकि हेमलता इस का विरोध करती रहती थी.

मिथिलेश को रोटी कपड़ा तो मिल रहा था लेकिन इन के अलावा उस की और जरूरतें भी थीं. उस का मन भी करता था कि जेठानी की तरह उस के पास भी जरूरत की तमाम चीजें हों. वह भी रोजाना बढि़या से बढि़या कपड़े पहने. उस के पास भी इतने पैसे हों कि अपनी जरूरत के मुताबिक खर्च कर सके ऐसी ही तमाम महत्त्वाकांक्षाएं उस के मन में दबी पड़ी थीं.

पति की आदतों को देखते हुए उसे नहीं लग रहा था कि जिन अभावों में वह जी रही है, वह कभी पूरे भी हो सकेंगे या नहीं. उस की शादी को 11 साल बीत चुके थे. इन 11 सालों में बंटू व उस के अन्य भाइयों के रहनसहन, सामाजिक मानप्रतिष्ठा में जमीन-आसमान का अंतर आ गया था.

बुरे दौर से गुजरने के बाद भी बंटू ने अपनी गलत आदतें नहीं सुधारीं. उस का मोहल्ले के लोगों से आए दिन झगड़ा होता रहता. जिस से पुलिस उसे पकड़ कर ले जाती थी. तब जोदसिंह उसे जैसेतैसे थाने से छुड़वा देता था. अब घर वाले भी उस से परेशान रहने लगे. उन्होंने उस की आर्थिक मदद करनी बंद कर दी.

तब हेमलता ने बंटू से छुटकारा पाने का एक उपाय ढूंढ लिया. पति जोदसिंह को समझाबुझा कर उस ने एक दिन आगरा के आला पुलिस अधिकारियों को पति की तरफ से एक पत्र भिजवाया. जिस में लिखा कि बंटू जो उस का सगा भाई है, के चालचलन ठीक नहीं हैं और भविष्य में उस के द्वारा कोई आपराधिक कृत्य किया जाता है तो उस का जिम्मेदार खुद बंटू ही होगा, हमारे परिवार वाले नहीं.

जब यह पत्र एसएसपी को मिला तो उन्होंने थाना शमसाबाद पुलिस के पास आवश्यक काररवाई के लिए भेज दिया. थानाप्रभारी ने बंटू को थाने बुलाया और सीधे रास्ते चलने के लिए बुरी तरह हड़का दिया. तब उस ने वादा किया कि आइंदा वह कोई गैरकानूनी काम नहीं करेगा. इस के बाद ही पुलिस ने उसे छोड़ा.

पुलिस से जलील होने के बाद बंटू घर आ गया. बाद में उसे और मिथिलेश को यह पता लग गया कि हेमलता ने ही उस के खिलाफ पुलिस में शिकायत कराई थी. मिथिलेश के मन में जेठानी हेमलता के प्रति नफरत पनपने लगी.

वैसे तो बंटू अपने भाई जोदसिंह के रहनसहन को देख कर उस से मन ही मन नफरत करता था लेकिन अब इस के बाद उस की नफरत और बढ़ गई थी. जोदसिंह की पोस्टिंग अलीगढ़ में थी. अब तो हालात ये हो गए थे कि जब कभी जोदसिंह अलीगढ़ से अपने गांव आता तो बंटू और मिथिलेश, जोदसिंह और उस की पत्नी हेमलता से बात नहीं करते.

बंटू के घर की जरूरतें बढ़ती जा रही थीं और आमदनी शून्य थी. तो ऐसे में बंटू इधरउधर से उधार ला कर काम चलाने लगा. मगर ये भी ज्यादा दिन न चला. कुछ दिनों बाद तकादा करने वाले भी उस के यहां आने लगे. पैसे न मिलने पर वे भी उसे जलील कर के चले जाते थे.

घर में फाके पड़ने की नौबत आ गई. तब मिथिलेश का पति से रोजाना ही झगड़ा होने लगा. उन के बीच गालीगलौज, मारपीट जैसे रोज का नियम बन गया. क्लेश के साथ मिथिलेश ने पति को रास्ते पर लाने के लाख जतन कर लिए लेकिन न तो बंटू ने कोई कामधाम किया और न ही उस के व्यवहार में किसी प्रकार का कोई सुधार आया. इसी बीच एक रात बंटू की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई.

21 जनवरी, 2013 की रात की बात थी. बंटू नशा कर के आया था. पत्नी ने उसे खाना आदि खिला कर सुला दिया. वह खुद भी पास में ही मौजूद दूसरे कमरे में बच्चों के साथ सो गई. बंटू बरामदे में सो रहा था.रात के करीब एक बजे मिथिलेश जब बाथरूम जाने के लिए उठी तो बरामदे में पहुंचते ही उस की चीख निकल गई. उस का पति खून से लथपथ पड़ा था. किसी ने उस के सीने पर गोली मारी थी.

मिथिलेश के चीखने की आवाज सुन कर उस के ससुर प्रेमसिंह और देवर टीटू व टिंकू भी वहां आ गए. बंद घर में कौन उसे गोली मार गया इस बात को घर वाले समझ नहीं पाए.

बाद में मोहल्ले के लोग भी वहां पहुंच गए. दबी जुबान में कुछ कह रहे थे कि मिथिलेश ने ही नाकारा पति से छुटकारा पाने को लाइसेंसी बंदूक से मार डाला है. जबकि कई लोग जोदसिंह को कठघरे में खड़ा कर रहे थे. उन का कहना था कि जोदसिंह रात के अंधेरे में आया और साइलेंसर लगी रिवाल्वर से बंटू को भून कर रात में ही गायब हो गया.

लोगों का तो यहां तक कहना था कि जोदसिंह व मिथिलेश के बीच अवैध संबंध थे. बंटू रास्ते का रोड़ा था इसलिए उसे हटा दिया गया. बहरहाल, जितने मुंह उतनी बातें हो रही थीं.

घुमाफिरा कर अंगुली मिथिलेश की तरफ ही उठ रही थी. लेकिन प्रेमसिंह नहीं चाहते थे कि उन की बहू जेल जाए. इसलिए उन्होंने गांव के संभ्रांत लोगों से बात कर आननफानन में बेटे का अंतिम संस्कार कर दिया. और गांव में यह खबर फैला दी कि बंटू की मौत ज्यादा शराब पीने से हुई थी.

जबकि मिथिलेश पति की हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए जेठ जोदसिंह और ससुर प्रेमसिंह से मानमनुहार करती रही लेकिन उन लोगों ने एक न सुनी. बात पंचों के सामने गई तो उन्होंने उसे यह समझा कर खामोश कर दिया कि चूंकि उस का ही बंटू से रोजरोज झगड़ा होता था इसलिए पुलिस भी यही मानेगी कि अपने पति की हरकतों से आजिज आ कर उस ने ही उसे मौत के घाट उतारा है.

पंचों व परिजनों की बात में दम था या नहीं परंतु उस समय किसी वजह से मिथिलेश ने भी पति की हत्या पर चुप्पी साध ली. बंटू के खत्म होने से मिथिलेश के जीवन में एक अजीब सी खामोशी छा गई. उस के पास आमदनी का कोई जरिया न होने की वजह से उसे अब अपने जेठ व ससुर के ऊपर ही निर्भर रहना था. वह अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती थी. इसलिए वह घर पर कपड़ों की सिलाई भी करने लगी थी लेकिन उस से घर का खर्च पूरा नहीं चल पाता था.

उस के सभी बच्चे स्कूल जाने लगे थे. यानी खर्चा भी बढ़ गया था. अब जोदसिंह खुल कर मिथिलेश व उस के बच्चों की मदद करने लगा. लेकिन हेमलता को ये सब सहन नहीं होता था. वह मिथिलेश से सीधे मुंह बात तो करती नहीं थी, मौका मिलने पर उसे उलाहना जरूर देती रहती थी.

मजबूरी में मिथिलेश को यह सब सुनना पड़ता था. मिथिलेश के बच्चे भी समझदार हो गए थे. हेमलता उन्हें भी फूटी आंख पसंद नहीं करती थी. बच्चे भी ताई के अपमान भरे व्यवहार को अच्छी तरह समझते थे. हेमलता जब भी अलीगढ़ से शंकरपुर आती तो परिवार के अन्य बच्चों के लिए कुछ न कुछ अवश्य लाती थी लेकिन मिथिलेश के चारों बच्चों के लिए कुछ भी नहीं.

जेठानी का यह बर्ताव देख कर मिथलेश के सीने पर सांप लोट जाता था. उस का दबंगपन दिखाने की एक वजह यह भी थी कि उस के पिता और पति दोनों ही पुलिस में थे. ऊपर से पति की कमाई का उस के पास अच्छा बैंक बैलेंस भी था. जिस से वह घमंड में रहती थी. गांव में रहने के बजाय वह आगरा की ही किसी कालोनी में फ्लैट लेने की योजना बना रही थी.

4 लाख में खरीदी मौत – भाग 2

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, जयप्रकाश की हत्या रविवार की रात को हुई थी. उसे 315 बोर के तमंचे से गोली मारी गई थी. जब इस पूछताछ से पुलिस हत्यारों तक पहुंचने में नाकाम रही तो जांच को आगे बढ़ाने के लिए पुलिस ने मोबाइल को आधार बनाया.

पुलिस ने मृतक जयप्रकाश और नामजद अभियुक्तों के काल डिटेल्स और लोकेशन निकलवाई. इस काल डिटेल्स और लोकेशन से पता चला कि जिस रात जयप्रकाश की हत्या हुई थी, चारों अभियुक्तों की लोकेशन जसपुर थी. चारों में से किसी की मृतक से कोई बात भी नहीं हुई थी. जबकि जयप्रकाश के मोबाइल फोन की लोकेशन काशीपुर की थी. उस की काल डिटेल्स में 2 नंबर ऐसे मिले थे, जिन की लोकेशन काशीपुर की थी और उन नंबरों से जयप्रकाश की कई बार बात भी हुई थी. पुलिस ने उन नंबरों के बारे में पता किया तो दोनों नंबर काशीपुर के निकले.

पुलिस को पता ही था कि मृतक इधर कई दिनों से काशीपुर में अपनी बहन के घर रह रहा था. पुलिस केला देवी से पूछताछ कर ही चुकी थी. उस ने बताया था कि करवा चौथ की बात कह कर जयप्रकाश अपने घर चला गया था. लेकिन जब मृतक के फोन की लोकेशन काशीपुर की ही मिली तो पुलिस ने एक बार फिर उस से पूछताछ करने पहुंची. पुलिस ने उस से उन दोनों नंबरों के बारे में पूछा, जो जयप्रकाश की काल डिटेल्स में मिले थे.

केला देवी से पता चला कि उन दोनों नंबरों में से एक नंबर उस के भतीजे पंकज का है. पुलिस पंकज को हिरासत में ले कर पूछताछ के लिए कोतवाली जसपुर ले आई. उसे हिरासत में लेने की वजह यह थी कि उस रात उस के नंबर की लोकेशन जसपुर की पाई गई थी.

कोतवाली में पंकज से पूछताछ शुरू हुई तो पुलिस के सवालों के आगे वह ज्यादा देर तक टिक नहीं सका. दरअसल पंकज शरीर से भले ही जवान लगता था, लेकिन उम्र के हिसाब से अभी बच्चा था. इसीलिए पुलिस की सख्ती के आगे उस की हिम्मत जवाब दे गई और उस ने सच उगल दिया. पंकज ने पुलिस को बताया कि अपने 3 साथियों के साथ मिल कर उसी ने जयप्रकाश की हत्या की थी.

पूछताछ में पंकज ने जयप्रकाश की हत्या की जो कहानी पुलिस को सुनाई, वह हैरान करने वाली थी. इस की वजह यह थी कि उस ने पत्नी, बेटे और पत्नी के प्रेमी को मारने की सुपारी दी थी, लेकिन मारा गया खुद. यह पूरी कहानी कुछ इस तरह थी.

जसपुर के बीएसबी इंटर कालेज में एक चपरासी था गंगाराम. कई सालों पहले जानलेवा बीमारी की वजह से उस की मौत हो गई थी. मृतक जयप्रकाश गंगाराम का बड़ा बेटा था. जवान होने पर गंगाराम ने सुनीता से उस की शादी कर दी थी. उस का परिवार पहले शहर के बीचोबीच सब्जी मंडी के पास रहता था. युवा होते ही जयप्रकाश नीरा बेचने लगा था. उसी की आय से उस के परिवार का गुजरबसर हो रहा था.

जयप्रकाश के 4 बच्चे हो गए तो उस पुराने मकान में रहने में उसे परेशानी होने लगी. तब जयप्रकाश ने अपने उस पुराने मकान को बेच दिया और बीएसबी इंटर कालेज के पास गांगूवाला मोहल्ले में भाई के साथ जमीन खरीद कर नया मकान बना कर उसी में परिवार के साथ रहने लगा.

पिता के समय से ही जयप्रकाश के बीएसबी इंटर कालेज के कई टीचरों से अच्छे संबंध थे, जो गंगाराम के मरने के बाद भी उस के घर आतेजाते रहते थे. उन्हीं अध्यापकों में एक हरजीत सिंह भी था. आनेजाने में ही हरजीत की नजर जयप्रकाश की पत्नी सुनीता पर पड़ी तो उस का मन मचल उठा. इस की वजह यह थी कि वह थोड़ा मनचले किस्म का था. शायद इसीलिए शादीशुदा होने के बावजूद खूबसूरत सुनीता पर उस की नीयत खराब हो गई थी.

मन के मचलते ही हरजीत सुनीता के पीछे पड़ गया. वह कभी सुनीता की सुंदरता की तारीफ करता तो कभी उस के नाश्तेपानी की. सुनीता को उस की ये तारीफें अच्छी लगतीं. जब हरजीत तारीफें कुछ ज्यादा ही करने लगा तो सुनीता का ध्यान उस पर गया. इस के बाद उस की भी समझ में आ गया कि हरजीत चाहता क्या है.

सुनीता की घरगृहस्थी ठीकठाक चल रही थी. लेकिन हरजीत की चाहत के आगे वह झुक गई. उस ने नजरों से ही बता दिया कि वह जो चाहता है, उसे वह मंजूर है. इस के बाद सुनीता की नजदीकी पाने के लिए हरजीत ने उसे गर्ल्स इंटर कालेज में मिड डे मील बनाने का काम दिला दिया. उसी के सहारे सुनीता ने वहीं एक छोटी सी चाय की दुकान खोल ली. अब हरजीत और सुनीता पूरा दिन एकदूसरे की आंखों के सामने रहने लगे.

जयप्रकाश का मकान बस्ती से दूर ऐसी जगह था, जहां कौन आताजाता है, कोई देखने वाला नहीं था. जयप्रकाश नीरा बेचने सुबह ही निकल जाता था. बच्चे भी स्कूल चले जाते थे. उस के बाद घर में सुनीता अकेली रह जाती थी. ऐसे में हरजीत को सुनीता से मिलने में कोई परेशानी नहीं होती थी. हरजीत जब भी सुनीता के यहां आता था, खानेपीने की तरहतरह की चीजें ले आता था, इसलिए सुनीता के बच्चों को भी वह अच्छा लगने लगा था. बच्चे पिता से ज्यादा उसे प्रेम करने लगे थे.

संबंध बनने के बाद हरजीत सुनीता के घर ज्यादा ही आनेजाने लगा तो यह जयप्रकाश को खलने लगा. जयप्रकाश ने दोनों को किसी दिन अश्लील हरकतें करते देख लिया तो हरजीत के आने का विरोध करने लगा. सुनीता अब उस की बात मानने को तैयार नहीं थी. जिस की वजह से हरजीत को ले कर घर में कलह रहने लगी.

जयप्रकाश ने देखा कि पत्नी उस का कहना नहीं मान रही है और बच्चे भी उसी का साथ दे रहे हैं तो बीवी बच्चों से उसे नफरत हो गई. इस के बाद वह बीवी बच्चों से अलग रहने के बारे में सोचने लगा. वह अपना मकान बेच कर पत्नीबच्चों को छोड़ कर अकेला रहना चाहता था. इस के बाद छोटे भाई से सांठगांठ कर के उस ने मकान बेचने की योजना बना डाली.

दरअसल यह मकान दोनों भाई ने मिल कर बनवाया था. आखिर दोनों भाइयों ने 30 सितंबर, 2014 को सुनीता की चोरी से 17 लाख रुपए में मकान का सौदा कर डाला. इस रकम से जो 9 लाख रुपए जयप्रकाश को मिले थे, उसे ले जा कर उस ने अपनी बहन केला देवी के यहां रख दिए थे.

कौन था जयप्रकाश की हत्या के पीछे? जानने के लिए पढ़ें कहानी का अगला भाग.

एहसान के बदले मिली मौत – भाग 2

सन 1992 तक बीसों औपरेशन के बाद ततजाना का कायाकल्ल्प हो गया. इस बीच ततजाना का इलाज करते करते डा. फेंज कब उस की चाहत के मरीज बन गए, वह जान नहीं पाए. वह खुद हैरान थे, ऐसा कैसे हो गया. वह हजारों युवतियों की सर्जरी कर चुके थे, लेकिन जो निखार ततजाना के शरीर में आया था, ऐसा किसी अन्य युवती के शरीर में उन्होंने अनुभव नहीं किया था.

अपनी सुंदरता देख कर ततजाना बेहद खुश थी. इस के बावजूद वह आईने का सामना करने से कतरा रही थी. इस दौरान डा. फेंज ने अनुभव किया था कि बदसूरती से उपजी हीनभावना की शिकार ततजाना आईने से न केवल डरती है, बल्कि उस से नफरत करती है. इसीलिए इलाज के बाद वह उसे आदमकद आईने के सामने ले गए थे. ततजाना चाह कर भी आईने के सामने आंख नहीं खोल पा रही थी. खोलती भी कैसे, आखिर कितनी टीस दी थी इस आईने ने.

डा. फेंज ने आगे बढ़ कर ततजाना का माथा चूमते हुए कहा, ‘‘पलकें उठा कर तो देखो, आईना खुद शरमा रहा है तुम्हारी खूबसूरती को देख कर. देखो, यह कह भी रहा है, ‘मेरा जवाब तू है, तेरा जवाब कोई नहीं.’’’

डरते हुए ततजाना ने नजरें उठा कर देखा, वाकई वह हैरान रह गई थी. उस के अंधेरे अतीत की परछाई भी नहीं थी उस के चेहरे पर. उसे विश्वास नहीं हो रहा था. उस ने चेहरे को छू कर देखा. उस की नजरों में डा. फेंज के लिए एहसान और दिल में आदर तथा प्यार की तह सी जमी थी. वह अंजान तो नहीं थी. उसे अहसास हो गया था कि डा. फेंज के दिल में उस के लिए मोहब्बत का अंकुर फूट चुका है. लेकिन उस ने दिल की बात जुबान पर नहीं आने दी.

वह ऐसा समय था, जब डा. फेंज अपनी शादीशुदा जिंदगी के नाजुक दौर से गुजर रहे थे. आखिर वह समय आ ही गया, जब पत्नी उन्हें तलाक दे कर अपने एकलौते बच्चे को ले कर सदा के लिए उन की जिंदगी से दूर चली गई.

तनहाई के इस आलम में उन्हें ततजाना के प्यार के सहारे की जरूरत थी. लेकिन वह इजहार नहीं कर रहे थे. इसी तरह साल गुजर गया. दरअसल डा. फेंज जहां उम्र के ढलान पर थे, वहीं ततजाना यौवन की दहलीज पर कदम रख रही थी.

वह 66 साल के थे, जबकि ततजाना मात्र 23 साल की थी. लेकिन यह भी सच है कि प्यार न सीमा देखता है न मजहब और न ही उम्र. एक दिन फेंज और ततजाना साथ बैठे कौफी पी रहे थे, तभी डा. फेंज ने कहा, ‘‘ततजाना, मैं तुम से प्यार करने लगा हूं. तुम्हारी इस खूबसूरती ने मुझे दीवाना बना दिया है.’’

‘‘यह खूबसूरती आप की ही दी हुई तो है. एक नई जिंदगी दी है आप ने मुझे. इसलिए इस पर पहला हक आप का ही बनता है.’’ ततजाना बोली.

‘‘नहीं ततजाना, मैं हक नहीं जताना चाहता. अगर दिल से स्वीकार करोगी, तभी मुझे स्वीकार होगा. मैं एहसानों का बदला लेने वालों में से नहीं हूं.’’ डा. फेंज ने कहा.

‘‘मैं इस बात को कैसे भूल सकती हूं कि आप ने मेरी अंधेरी जिंदगी को रोशनी से सराबोर किया है. आप की तनहाई में साथ छोड़ दूं, यह कैसे हो सकता है. इस तनहाई में आप मुझे तनमन से अपने नजदीक पाएंगे. आप यह न समझें कि मैं यह बात एहसान का कर्ज अदा करने की गरज से नहीं, दिल से कह रही हूं.’’

सन 1999 में डा. फेंज से ततजाना ने विवाह कर लिया. शादी के बाद जहां डा. फेंज की तनहा जिंदगी में फिर से बहारें आ गईं, वहीं ततजाना भी एक काबिल और अरबपति पति की संगिनी बन कर खुद पर इतराने लगी.

अब सब कुछ था उस के पास. रहने को आलीशान महल, महंगी कारें, सोने हीरों के गहने और कीमती लिबास. जिंदगी के मायने ही बदल गए थे उस के. अब वह बेशुमार दौलत की मालकिन थी. हाई सोसाइटियों में उसे तवज्जो मिल रही थी, जिस की उस ने कभी कल्पना तक नहीं की थी.

ततजाना अपने जीवन की रंगीनियों में इस कद्र डूब गई कि अतीत की परछाई भी उस के पास नहीं फटक रही थी. डा. फेंज भी उस की खूबसूरती में खोए रहते थे. दोनों का 9 साल का दांपत्यजीवन कैसे गुजर गया, उन्हें पता ही नहीं चला. अचानक इस रिश्ते में तब दरार पड़ने लगी, जब ततजाना को तनहा छोड़ कर डा. फेंज अपने मरीजों में व्यस्त रहने लगे. बस यहीं से ततजाना के कदमों का रुख बदल गया.

उसी दौरान एक पार्टी में ततजाना की मुलाकात कारों के व्यापारी 60 वर्षीय हीलमुट बेकर से हुई. उस ने उस की आंखों में अपने प्रति चाहत देखी तो उस की ओर झुक गई. बेकर का व्यक्तित्व ही ऐसा था कि ततजाना उस की ओर झुकती चली गई. मुलाकातों का दौर शुरू हुआ तो दोनों पर मोहब्बत का रंग चढ़ने लगा. जिस्मों के मिलन के बाद वह और निखर आया. अब ततजाना का अधिकतम समय बेकर की बांहों में गुजरने लगा. हद तो तब होने लगी, जब ततजाना डा. फेंज को अनदेखा कर के रातें भी बेकर के बिस्तर पर गुजारने लगी.

डा. फेंज सोच रहे थे कि ततजाना नादान है, राह भूल गई है. समझाने पर मान जाएगी. मगर ऐसा हुआ नहीं. एक रात डा. फेंज बेसब्री से ततजाना का इंतजार कर रहे थे. सारी रात बीत गई, ततजाना लौट कर नहीं आई. डा. फेंज ने कई संदेश भिजवाए लेकिन जवाब में बेरुखी ही मिली.

इसी तरह एक साल गुजर गया. डा. फेंज ने यह तनहाई कैसे काटी, इस का सुबूत था उन का बिगड़ा दिमागी संतुलन. अगर हवा से खिड़कियों के परदे भी हिलते तो उन्हें लगता कि यह ततजाना के कदमों की आहट है. वह आ गई है.

डा. फेंज 5 जनवरी, 2005 की सुबह अपनी क्लीनिक में अकेले ही खयालों में खोए बैठे थे. वह सोच रहे थे कि काश ततजाना आ जाती. अचानक खिड़की के शीशे जोर से खड़खड़ाए. शीशा टूट कर बाहर की तरफ गिर गया. घबरा कर उन्होंने उधर देखा तो 2 मानव आकृतियां दिखाई दीं. उन्होंने अपने चेहरे ढक रखे थे. डरेसहमे डा. फेंज ने ततजाना को फोन किया. घंटी बजती रही, पर किसी ने फोन नहीं उठाया. तभी लगा, किसी ने खिड़की को ही उखाड़ दिया है.

मिसकाल बनी काल – भाग 2

12 दिसंबर, 2013 की सुबह के 4 बजे का समय था. लखनऊ की सब से पौश कालोनी आशियाना स्थित थाना आशियाना में सन्नाटा पसरा हुआ था. थाने में पहरे पर तैनात सिपाही और अंदर बैठे दीवान के अलावा कोई नजर नहीं आ रहा था. तभी साधारण सी एक जैकेट पहने 25 साल का एक युवक थाने में आया.

पहरे पर तैनात सिपाही से इजाजत ले कर वह ड्यूटी पर तैनात दीवान के सामने जा खड़ा हुआ. पूछने पर उस ने बताया, ‘‘दीवान साहब, मैं यहां से 2 किलोमीटर दूर किला चौराहे के पास आशियाना कालोनी में किराए के मकान में रहता हूं. मेरी बीवी मर गई है, थानेदार साहब से मिलने आया हूं.’’

सुबहसुबह ऐसी खबरें किसी भी पुलिस वाले को अच्छी नहीं लगतीं. दीवान को भी अच्छा नहीं लगा. वह उस युवक से ज्यादा पूछताछ करने के बजाए उसे बैठा कर यह बात थानाप्रभारी सुधीर कुमार सिंह को बताने चला गया. सुधीर कुमार सिंह को कच्ची नींद में ही उठ कर आना पड़ा. उन्होंने थाने में आते ही युवक से पूछा, ‘‘हां भाई, बता क्या बात है?’’

बुरी तरह घबराए युवक ने कहा, ‘‘साहब, मेरा नाम सचिन है और मैं रुचिखंड के मकान नंबर ईडब्ल्यूएस 2/341 में किराए के कमरे में रहता हूं. यह मकान पीडब्ल्यूडी कर्मचारी गुलाबचंद सिंह का है. उन का बेटा अजय मेरा दोस्त है. जिस कमरे में मैं रहता हूं, वह मकान के ऊपर बना हुआ है. मेरी पत्नी ने मुझे दवा लेने के लिए भेजा था, जब मैं दवा ले कर वापस आया तो देखा, मेरी पत्नी छत के कुंडे से लटकी हुई थी. मैं ने घबरा कर उसे हाथ लगाया तो वह नीचे गिर गई. वह मर चुकी है.’’

‘‘घटना कब घटी?’’ सुधीर कुमार सिंह ने पूछा तो सचिन ने बताया, ‘‘रात 10 बजे.’’

‘‘तब से अब तक क्या कर रहे थे?’’ यह पूछने पर सचिन बोला, ‘‘रात भर उस की लाश के पास बैठा रोता रहा. सुबह हुई तो आप के पास चला आया.’’

सचिन ने आगे बताया कि वह यासीनगंज के मोअज्जमनगर का रहने वाला है और एक निजी कंपनी में नौकरी करता है. उस के पिता का नाम रमेश कुमार है. सचिन की बातों में एसओ सुधीर कुमार सिंह को सच्चाई नजर आ रही थी.

मामला चूंकि संदिग्ध लग रहा था, इसलिए उन्होंने इस मामले की सूचना क्षेत्राधिकारी कैंट बबीता सिंह को दी और सचिन को ले कर पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. पुलिस ने जब उस के कमरे का दरवाजा खोला तो फर्श पर एक कमउम्र लड़की की लाश पड़ी थी. उसे देख कर कोई नहीं कह सकता था कि वह शादीशुदा रही होगी.

इसी बीच सीओ कैंट बबीता सिंह भी वहां पहुंच गई थीं. सचिन की पूरी बात सुनने के बाद उन्होंने लड़की की लाश को गौर से देखा. उन्हें यह आत्महत्या का मामला नहीं लगा. बहरहाल, घटनास्थल की प्राथमिक काररवाई निपटा कर पुलिस ने मृतका की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और सचिन को थाने ले आई. कुछ पुलिस वालों का कहना था कि सचिन की बात सच है. लेकिन बबीता सिंह यह मानने को तैयार नहीं थीं. उन्होंने मृतका के गले पर निशान देखे थे और उन का कहना था कि संभवत: उस का गला घोंटा गया है.

कुछ पुलिस वालों का कहना था कि अगर सचिन ने ऐसा किया होता तो वह खुद थाने क्यों आता? अगर उस ने हत्या की होती तो वह भाग जाता. इस तर्क का सीओ बबीता सिंह के पास कोई जवाब नहीं था. बहरहाल, हकीकत पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही पता चल सकती थी.

सावधानी के तौर पर पुलिस ने सचिन को थाने में ही बिठाए रखा. इस बीच सचिन पुलिस को बारबार अलगअलग कहानी सुनाता रहा. देर शाम जब पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली तो इस मामले से परदा उठा. पता चला, मृतका की मौत दम घुटने से हुई थी और उसे गला घोंट कर मारा गया था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट देखने के बाद पुलिस ने सचिन से थोड़ी सख्ती से पूछताछ की तो उस ने मुंह खोल दिया. सचिन ने जो कुछ बताया, वह एक किशोरी द्वारा अविवेक में उठाए कदम और वासना के रंग में रंगे एक युवक की ऐसी कहानी थी, जो प्यार के नाम पर दुखद परिणति तक पहुंच गई थी. मृतका सोफिया थी.

मिसकाल से शुरू हुई सचिन और सोफिया की प्रेमकहानी काफी आगे बढ़ चुकी थी. फोन पर होने वाली बातचीत के बाद दोनों के मन में एकदूसरे से मिलने की इच्छा बलवती होने लगी थी. तभी एक दिन सचिन ने कहा, ‘‘सोफिया, हमें आपस में बात करते 2 महीने बीत चुके हैं. अब तुम से मिलने का मन हो रहा है.’’

‘‘सचिन, चाहती तो मैं भी यही हूं. लेकिन कैसे मिलूं, समझ में नहीं आता. मैं अभी तक कभी अजगैन से बाहर नहीं गई हूं. ऐसे में लखनऊ कैसे आ पाऊंगी?’’ सोफिया ने कहा तो सचिन सोफिया की नादानी और भावुकता का लाभ उठाते हुए बोला, ‘‘इस का मतलब तुम मुझ से प्यार नहीं करतीं. अगर प्यार करतीं तो ऐसा नहीं कहतीं. प्यार इंसान को कहीं से कहीं ले जाता है.’’

‘‘ऐसा मत सोचो सचिन. तुम कहो तो मैं अपना सब कुछ छोड़ कर तुम्हारे पास चली आऊं?’’ सोफिया ने भावुकता में कहा.

‘‘ठीक है, तुम 1-2 दिन इंतजार करो, तब तक मैं कुछ करता हूं.’’  कह कर सचिन ने बात खत्म कर दी.

दरअसल वह किसी भी कीमत पर सोफिया को हासिल करना चाहता था. इस के लिए वह मन ही मन आगे की योजना बनाने लगा. सचिन का एक दोस्त था सुवेश. सचिन ने उस से कोई कमरा किराए पर दिलाने को कहा.

सुवेश को कोई शक न हो, इसलिए सचिन ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘दरअसल मैं एक लड़की से प्यार करता हूं और मैं ने उस से शादी करने का फैसला कर लिया है. चूंकि मेरे घर वाले अभी उसे घर में नहीं रखेंगे, इसलिए तुम किसी का मकान किराए पर दिला दो तो बड़ी मेहरबानी होगी. बाद में जब घर के लोग राजी हो जाएंगे तो मैं उसे ले कर अपने घर चला जाऊंगा.’’

अगले अंक में पढ़िए कैसे पहुंचाया सचिन ने सोफ़िया को मौत की कगार पर?

मिसकाल का प्यार

शक का नासूर : फोन ने घोला जिंदगी में जहर – भाग 4

8 जून, 2014 को भी ओमप्रकाश ने नीतू को नोएडा में फिल्म देखने आने के लिए फोन किया. पति के बदले व्यवहार से नीतू खुश थी. नोएडा जाने की बात उस ने अपनी मां विजम से बता दी थी. दोपहर करीब 11 बजे वह घर से नोएडा जाने के लिए निकल गई और मयूर विहार फेज-1 मैट्रो स्टेशन से मैट्रो द्वारा वह नोएडा सेक्टर-18 मैट्रो स्टेशन पहुंच गई.

ओमप्रकाश को दहेज में डीएल 8सी-एई 1782 नंबर जो सैंट्रो कार नंबर की मिली थी उस से वह नोएडा-18 मैट्रो स्टेशन पहुंच गया. कार मैट्रो की पाकिंग में खड़ा कर के वह स्टेशन पर पत्नी के आने का इंतजार करने लगा. करीब साढ़े 11 बजे नीतू नोएडा सेक्टर-18 मैट्रो स्टेशन पहुंची तो वह उस से बड़ी गर्मजोशी से मिला.

फिर कार से दोनों अट्टा मार्केट पहुंचे. वहां दोनों ने स्नेक्स खाए. नीतू को इस बात का जरा भी अंदेशा नहीं था कि जो पति आज उस की इतनी खातिर तवज्जो कर रहा है, उस का काल बनने जा रहा है.

ओमप्रकाश ने यह पहले से सोच रखा था कि पत्नी की हत्या कहां करनी है और  लाश कहां ठिकाने लगानी है. लाश ठिकाने लगाने के लिए उस ने एक बड़ा सा ट्राली बैग पहले ही खरीद कर कार में रख लिया था. नीतू ने जब उस से उस ट्राली बैग के बारे में पूछा तो ओमप्रकाश ने झूठ बोलते हुए कहा था कि औफिस के एक जने ने उस से बैग खरीद कर लाने को कहा था.

अट्टा मार्केट में स्नैक्स खाने के बाद ओमप्रकाश पत्नी को अपने औफिस परी चौक की तरफ ले गया. नोएडा, गे्रटर नोएडा के कुछ इलाकों को नीतू भी पहचानती थी. उस ने कार दूसरे रास्ते पर जाते देखी तो वह बोली, ‘‘यह तुम कहां जा रहे हो, पिक्चर तो हमें शिप्रा में देखनी थी?’’

‘‘हां, हम शिप्रा आ जाएंगे. मुझे औफिस में थोड़ा काम है. काम निपटा कर हम शिप्रा आ जाएंगे.’’ ओमप्रकाश ने उसे समझाने की कोशिश की. लेकिन नीतू उस पर भड़क गई. उन के बीच तकरार बढ़ गई. झट्टा गांव के पास ओमप्रकाश ने कार रोक दी. वह इलाका सुनसान सा रहता है. मौका देखते ही उस ने दोनों हाथों से पत्नी का गला दबा दिया. कुछ देर बाद नीतू की गरदन एक ओर लुढ़क गई.

पत्नी की हत्या करने के बाद ओमप्रकाश ने उस की लाश पहले से खरीदे हुए ट्राली बैग में रख कर चैन बंद कर दी. वह कार को मयूर विहार फेज-1 मैट्रो स्टेशन के पास ले आया और वहां से कुछ दूर यमुना खादर की झाडि़यों में वह बैग डाल दिया. नीतू का फोन स्विच्ड औफ कर के वहां से कुछ दूर रास्ते में फेंक दिया था. इस के बाद वह अपने औफिस चला गया.

मयूर विहार के पास यमुना खादर में उस ने लाश इसलिए फेंकी कि लाश बरामद होने के बाद भी पुलिस का शक उस पर न हो. लाश बरामद होने पर पुलिस उस से पूछती तो वह पुलिस को बता देता कि उस ने नीतू को नोएडा सेक्टर-18 के मैट्रो स्टेशन पर छोड़ दिया था.

खुद को सेफ रखने के लिए ओमप्रकाश ने अपने औफिस से पत्नी के मोबाइल पर कई फोन किए. बाद में अपने साले संजय को फोन कर के कहा कि नीतू का फोन नहीं मिल रहा है उस से बात करा दे.

ओमप्रकाश ने पत्नी को ठिकाने लगाने की फूलप्रूफ योजना बनाई थी. पूरी योजना को उस ने अकेले ही अंजाम दिया था. अपने ससुराल वालों को भी उस ने विश्वास में ले लिया था तभी तो वह दामाद को पुलिस के पास से ले आए थे.

एक बात तो सच है कि कोई भी व्यक्ति अपराध करने के बाद कितनी भी चालाकी से झूठ बोले, पुलिस के जाल में फंस ही जाता है. ओमप्रकाश ने भी पुलिस को गुमराह करने की काफी कोशिश की लेकिन वह सफल नहीं हो सका.

पुलिस ने ओमप्रकाश की निशानदेही पर वह सैंट्रो कार भी बरामद कर ली जिस से उस ने लाश ठिकाने लगाई थी. काफी खोजबीन के बाद भी नीतू का मोबाइल फोन नहीं मिल पाया. विस्तार से पूछताछ के बाद उसे न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. मामले की तफ्तीश इंसपेक्टर सी.एम. मीणा कर रहे थे. द्य

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित और प्रिया परिवर्तित नाम है.

पत्नी का प्रेमी : क्यों मारा गया किशोर? – भाग 1

कड़ाके की ठंड में अगर रिमझिम बारिश हो रही हो तो ठंड को अपना विकराल रूप दिखाने का बढि़या मौका मिल जाता है. रोज की तरह ठंड की उस बारिश में दोपहर को साहेब रिशा के घर पहुंचा तो वह रजाई में दुबकी बैठी थी. एकदूसरे को देख कर दोनों मुसकराए. इस के बाद हथेलियों को आपस में रगड़ते हुए साहेब बोला, ‘‘भई, आज तो गजब की ठंड है.’’

‘‘इसीलिए तो रजाई में दुबकी बैठी हूं.’’ रिशा बोली, ‘‘रजाई छोड़ने का मन ही नहीं हो रहा है. लेकिन इस ठंड में तुम यहां कहां घूम रहे हो?’’

‘‘घूम नहीं रहा हूं. सुबह से तुम्हें देखा नहीं था. इसलिए इस ठंड में नहीं रहा गया तो तुम्हें देखने चला आया,’’ साहेब ने रिशा को लगभग घूरते हुए कहा, ‘‘सोचा था, तुम आग जलाए हाथ सेंक रही होओगी तो थोड़ी देर मैं भी उसी में हाथ सेंक लूंगा. लेकिन यहां तो हाल कुछ और ही है. लगता है, मुझ से ज्यादा तुम्हें गरमी की जरूरत है. अब तुम्हारी ठंड कुछ दूसरी ही तरह से दूर करनी पड़ेगी.’’

इतना कह कर साहेब ने रिशा के चेहरे को अपनी दोनों हथेलियों के बीच ले लिया.

रिशा ने झटके से उस के हाथों को अलग किया और ठंडे हो गए गालों को हथेलियों से मलते हुए बोली, ‘‘तुम्हारे हाथ कितने ठंडे हैं, एकदम बर्फ हो रहे हैं.’’

‘‘रिशा, कुछ चीजें ऊपर से भले ही ठंडी लग रही हों, लेकिन अंदर से बहुत गरम होती हैं.’’ साहेब ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘अगर मेरी बात पर विश्वास न हो तो कर के दिखाऊं. अभी मेरे ये ठंडे हाथ तुम्हें पलभर में गरम लगने लगेंगे.’’

साहेब की इस बात से रिशा के गाल शरम से लाल हो गए. उस ने आंखें मटका कर उसे प्यार से डांटते हुए कहा, ‘‘कितनी बार कहा कि इस तरह की बातें मुझ से मत किया करो. तुम्हें तो शरम आती नहीं. अपनी ही तरह दूसरे को भी बेशरम समझते हो.’’

‘‘तो फिर कैसी बातें किया करूं?’’ साहेब ने अपना चेहरा रिशा के चेहरे के एकदम पास ला कर उस की आंखों में आंखें डाल कर पूछा.

‘‘उस तरह की अच्छीअच्छी बातें, जैसी दूसरे लोग किया करते हैं.’’

‘‘भई प्रेम करने वालों की बातें कहीं से भी शुरू हों, अंत में वह वहीं पहुंच जाती हैं.’’

‘‘साहेब, अभी हम सिर्फ प्रेम करते हैं, हमारी शादी नहीं हुई है.’’

‘‘प्रेम हो गया है तो शादी भी हो जाएगी.’’

‘‘जब शादी हो जाएगी तब जो मन में आए, वह कर लेना.’’

‘‘जब प्रेम ही करना है तो चाहे शादी के पहले करो या बाद में, क्या फर्क पड़ता है.’’

रिशा को साहेब की इन बातों में मजा आने लगा था. इसलिए उस ने मुसकरा कर पूछा, ‘‘शादी के बाद कोई दूसरी तरह का प्यार किया जाता है क्या?’’

‘‘वह तो शादी के बाद ही पता चलेगा. लेकिन अगर तुम चाहो तो वह मैं प्यार शादी के पहले भी कर सकता हूं.’’ साहेब ने कहा.

‘‘फिर वही बात करने लगे.’’ रिशा ने आंखें तरेर कर नाराजगी व्यक्त की.

‘‘तुम भी तो उसी तरह की बातें कर रही हो.’’

रिशा साहेब की इस बात का जवाब देने ही जा रही थी कि हवा का तेज झोंका कमरे में घुसा तो ठंड से रिशा और साहेब, दोनों ही कांप उठे. रिशा ने रजाई को लपेटते हुए कहा, ‘‘लगता है, आज की ठंड जान ले कर ही मानेगी.’’

‘‘किसी की जान भले ही न जाए, लेकिन मेरी जरूर चली जाएगी.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘तुम तो रजाई ओढ़ कर बैठी हो, जबकि में खुले दरवाजे के सामने खड़ा ठंड से कांप रहा हूं.’’ साहेब ने कहा.

‘‘दरवाजा बंद कर के तुम भी रजाई में घुस जाओ.’’ रिशा ने जल्दी से कहा.

साहेब को इसी का तो इंतजार था. रिशा ने दरवाजा बंद करने को कहा था, इसलिए उस ने जल्दी से दरवाजा बंद कर के सिटकनी लगा दी. इस के बाद फुरती से रजाई में घुस गया और रिशा के हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘रिशा, तुम और तुम्हारी रजाई कितनी गरम है. अपनी तरह मुझे भी गरम कर दो न.’’

‘‘मेरी रजाई में तुम क्यों घुस आए?’’ रिशा हड़बड़ा कर बोली, ‘‘कोई आ गया तो बेकार में बात का बतंगड़ बनेगा.’’

‘‘रिशा, शायद तुम्हें पता नहीं कि प्यार में उन्हीं का नाम होता है, जो बदनाम होते हैं.’’

‘‘समझने की कोशिश करो साहेब,’’ रिशा ने कहा, ‘‘तुम लड़के हो, तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ेगा. लेकिन मैं किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रह जाऊंगी.’’

‘‘मैं चाहता भी यहीं हूं कि मेरे अलावा तुम्हारा मुंह कोई दूसरा न देखे. तुम्हारा यह मुंह सिर्फ मैं देखूं.’’ साहेब ने रजाई के अंदर ही रिशा को बांहों में भर कर कहा.

साहेब की इस हरकत से रिशा के शरीर में सिहरन सी दौड़ गई. साहेब के इस स्पर्श ने उसे इस तरह रोमांचित किया कि वह भी उस से लिपट गई. उस की पलकें लगभग मुंद सी गई थीं. साहेब ने इस का भरपूर लाभ उठाया और फिर वही हुआ, जो रिशा शादी के बाद करना चाहती थी.

उत्तर प्रदेश के जिला बाराबंकी के थाना रामसनेही घाट के गांव अंगदपुर बुढ़ेला में रहते थे मुंशी रावत. उस का भैंसों का कारोबार था. उस के परिवार में पत्नी राधा के अलावा 2 बेटियां और 2 बेटे थे. बड़ी बेटी आयशा का विवाह हो चुका था. रिशा हाईस्कूल में पढ़ रही थी. जबकि दोनों बेटे कैलाश और विमलेश अभी छोटे थे. वे भी पढ़ रहे थे.

बात उस समय की है, जब रिशा दसवीं में पढ़ रही थी. उस समय उस की उम्र 16 साल थी. जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही रिशा की खूबसूरती में एकदम से निखार आ गया था. उसे चाहने वालों की कमी नहीं थी. लेकिन उसे तो घनश्याम उर्फ साहेब भा गया था.

मुंशी रावत के मकान के बराबर वाले मकान में परशुराम रावत उर्फ परशू रहते थे. अगलबगल घर होने की वजह से दोनों परिवारों में खूब मेलजोल था. दोनों ही घरों के लोग एकदूसरे के घर बेरोकटोक आतेजाते थे. परशुराम की पत्नी का भतीजा था घनश्याम उर्फ साहेब. वह बाराबंकी के थाना असंद्रा के गांव देवीगंज का रहने वाला था. उस के पिता शंकरलाल रावत खेतीकिसानी करते थे. साहेब अकसर अपनी बुआ के यहां गांव अंगदपुर बुढ़ेला आताजाता रहता था.

इसी आनेजाने में उस की नजर खूबसूरत रिशा पर पड़ी तो पहली ही नजर में वह उसे दिल दे बैठा. जैसी लड़की की चाहत उस के दिल में थी, रिशा ठीक वैसी थी. रिशा का हसीन चेहरा उस की आंखों के रास्ते दिल में उतर गया.

साहेब को रिशा से मिलनेजुलने में वैसे भी कोई दिक्कत नहीं थी, क्योंकि उस की बुआ के घर वाले उस के यहां खूब आतेजाते थे. उन्हीं की वजह से वह भी रिशा के घर आनेजाने लगा. फिर जल्दी ही उस ने रिशा से दोस्ती गांठ ली. दोनों में खूब पटने लगी. वजह यह थी कि रिशा भी साहेब को पसंद करती थी. दोनों ही एकदूसरे को चाहते थे. इसलिए उन्हें इजहार करने में देर नहीं लगी.

दोनों घरों की छतें मिली थीं, इसलिए साहेब छत के रास्ते रिशा के पास पहुंच जाता था. इस के बाद छत पर बने कमरे में बैठ कर दोनों घंटों प्यार की बातें करते रहते. प्रेम के भंवर में डूबतीउतराती रिशा कहती, ‘‘साहेब, मैं ने तुम से प्यार ही नहीं किया, बल्कि तुम्हें अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया है. इस की लाज रखना. कभी मेरा दिल मत तोड़ना.’’

‘‘कैसी बात करती हो रिशा, तुम्हारा दिल अब मेरी जिंदगी है. हर कोई अपनी जिंदगी को संभाल कर रखता है.’’

‘‘इसी भरोसे पर तो मैं ने तुम से प्यार किया है. मन और आत्मा से वरण कर के सात जन्मों के लिए मैं तुम्हारी हो चुकी हूं. अब देखना है कि तुम किस हद तक अपना यह प्यार और वादा निभाते हो.’’

‘‘प्यार निभाने की कोई हद नहीं होती रिशा. प्यार और किया गया वादा निभाने के लिए मैं किसी भी हद तक जा सकता हूं.’’ साहेब ने रिशा को आश्वस्त किया.

‘‘पता नहीं, वह दिन कब आएगा, जब मैं पूरी तरह से तुम्हारी हो जाऊंगी.’’

‘‘विश्वास रखो रिशा, वह दिन जल्दी ही आएगा.’’ रिशा का हाथ अपने हाथों में ले कर साहेब ने कहा, ‘‘क्योंकि हमारी शादी में कोई अड़चन नहीं है. हम एक ही धर्मजाति के हैं. हमारा सामाजिक और आर्थिक स्तर भी एक जैसा है. सब से बड़ी बात तो यह कि हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं.’’

साहेब की बातें रिशा को यकीन दिलाती ही थीं, उसे खुद भी पूरा यकीन था कि उस की शादी में कोई अड़चन नहीं आएगी. इसलिए उसे अपने प्यार और भविष्य के प्रति कभी नकारात्मक विचार नहीं आते थे. उसे हर पल साहेब का इंतजार रहता था. उस के आते ही वह खुली आंखों से भविष्य के सपने देखने लगती थी.

नफरत की गोली – भाग 1

रात के करीब पौने 8 बज रहे थे. जनवरी की कड़ाके की ठंड में ज्यादातर लोग रजाइयों में दुबके  पड़े थे. जोदसिंह भी अपने पड़ोस में रहने वाले एक बुजुर्ग के पास बैठा हुआ अलाव पर हाथ सेंक रहा था.

उसे उन से बात करते हुए करीब 10-15 मिनट ही हुए होंगे कि एक तेज आवाज आई. वह आवाज किसी बम धमाके की नहीं बल्कि गोली चलने जैसी थी. आवाज सुनते ही वह चौंक गया क्योंकि यह आवाज उस के घर की तरफ से ही आई थी. उस के अलावा आसपास रहने वाले जिन लोगों ने भी वह आवाज सुनी, घरों के बाहर निकल आए और उस के घर की तरफ चल दिए. जोदसिंह भी बुजुर्ग के पास से उठ कर अपने घर पहुंच गया.

जोदसिंह जब घर पर पहुंचा तो बरामदे में उस के पिता प्रेमचंद, भाई टीटू, टिंकू आदि बैठे थे लेकिन पत्नी हेमलता व छोटे भाई बंटू की पत्नी मिथिलेश वहां पर नजर नहीं आ रही थी. आवाज जोदसिंह के घर वालों ने भी सुनी थी लेकिन उन्होंने इस बात पर गौर नहीं किया था कि आवाज उन के घर से ही आई है. बल्कि वे सोच रहे थे कि किसी बच्चे ने पटाखा फोड़ा होगा.

जोदसिंह के 2 मामा व बच्चे कमरे में बैठे टीवी देख रहे थे. आवाज सुन कर वह भी बाहर निकल आए थे परंतु जब उन्हें यह पता नहीं लग सका कि आवाज कहां से आई है तो वे फिर से टीवी देखने में मशगूल हो गए.

जोदसिंह पत्नी को आवाज लगाता हुआ कमरे में पहुंचा. उसी दौरान उस की नजर जीने के दरवाजे पर गई. वह दरवाजा बंद नजर आया. दरवाजा अंदर की तरफ से नहीं बल्कि छत की तरफ से बंद था. वह यह नहीं समझ पा रहा था कि छत पर कौन है, जिस ने दरवाजा बंद कर रखा है. उस ने अपने भाइयों को आवाज लगाई. टिंकू और टीटू दौड़ेदौडे़ उस के पास आए. उन को भी कुछ शक हुआ.

तीनों ने जीने के दरवाजे को खटखटाते हुए आवाज लगाई. जब कोई जवाब नहीं आया तो टीटू और टिंकू ने वह दरवाजा तोड़ दिया. दरवाजा टूटते ही तीनों छत पर पहुंच गए. छत पर बल्ब जल रहा था. बल्ब की रोशनी में उन्होंने जो कुछ देखा, उन के रोंगटे खड़े हो गए.

छत पर खून फैला पड़ा था और वहां जोदसिंह की पत्नी हेमलता लहूलुहान पड़ी थी जबकि हेमलता की देवरानी मिथिलेश छत पर ही दीवार से टेक लगाए बैठी थी. उस के सामने ही एक तमंचा पड़ा था. जोदसिंह लपक कर पत्नी के पास गया.

उस ने लहूलुहान पत्नी को हिलायाडुलाया लेकिन वह मर चुकी थी. पत्नी को इस हालत मे देख कर वह जोरजोर से रोने लगा. टीटू और टिंकू यह बात समझ गए कि भाभी की हत्या मिथिलेश ने ही की होगी. वे उसे घूर कर देखने लगे. इस से पहले कि दोनों भाई कुछ कहते मिथिलेश ने झट से सामने पड़ा हुआ तमंचा उठा लिया.

उस में दूसरी गोली भर कर धमकाते हुए बोली, ‘‘मेरे पास मत आना वरना गोली मार दूंगी.’’

उस के डर की वजह से उन दोनों की हिम्मत उस पास जाने की नहीं हुई. जोदसिंह की रोने की आवाज सुन कर उस के घर के बाहर खड़े पड़ोसी भी छत पर आ गए.

उन्होंने भी हेमलता की लाश देखी तो वे भी हैरान रह गए. मगर उन्हें इस बात पर भरोसा नहीं हो रहा था कि हाथ में तमंचा लिए जो मिथिलेश खड़ी है उस ने यह हत्या की होगी. इसी बीच किसी ने फोन कर के सूचना थाना शमसाबाद में भी दे दी. यह बात 20 जनवरी, 2014 की है.

करीब 10 मिनट बाद गश्त पर घूम रहे 2 पुलिसकर्मियों ने जोदसिंह के घर के बाहर भीड़ लगी देखी तो वे भी पूछताछ करते हुए छत पर पहुंच गए. जबकि मिथिलेश के डर की वजह से मोहल्ले का कोई भी आदमी छत पर जाने की हिम्मत नहीं कर रहा था.

छत पर पहुंच कर पुलिस वालों को लगा कि मिथिलेश नाम की एक महिला ने अपनी ही जेठानी की गोली मार कर हत्या कर दी है. तो उन्होंने तुरंत फोन द्वारा यह सूचना थानाप्रभारी अरुण कुमार यादव को दे दी.

मिथिलेश के हाथ में तमंचा था. उस से वह किसी और के ऊपर गोली न चला दे, इसलिए उन की कोशिश उस से तमंचा हासिल करने की थी. उन्होंने मिथिलेश को समझाया और तमंचा फेंकने को कहा. लेकिन उस ने तमंचा नहीं फेंका बल्कि वह अपनी जेठानी की लाश को ही टकटकी लगाए देख रही थी. फिर हिम्मत कर के धीरेधीरे वे उस की ओर बढ़ने लगे.

उन्हें देख कर मिथिलेश बिलकुल भी नहीं डरी, जबकि पुलिसवालों को इसी बात का डर लग रहा था कि कहीं वह उन के ऊपर गोली न चला दे. फिर लपक कर उन्होंने मिथिलेश का वो हाथ पकड़ लिया जिस में वह तमंचा पकड़े हुए थी. जल्दी से तमंचा कब्जे में ले कर उन्होंने मिथिलेश को भी हिरासत में ले लिया. उन्होंने तमंचा चैक किया तो उस में कारतूस भरा हुआ था.

उसी समय शमसाबाद के थानाप्रभारी अरुण कुमार यादव सबइंसपेक्टर दयाराम, विनोद कुमार, कांस्टेबल कृष्ण, सतेंद्र, हरिओम आदि के साथ वहां पहुंच गए. अब तक घर में हेमलता की मौत को ले कर कोहराम सा मच गया था.

थानाप्रभारी ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो देखा कि उस का सिर फटा हुआ था साथ ही सिर में गोली लगने का निशान भी साफ नजर आ रहा था. इस से साफ लग रहा था कि उस की हत्या गोली मार कर की होगी.मरने से पहले हेमलता ने कोई विरोध किया हो, ऐसे कोई सुबूत भी वहां नहीं मिले. छत पर ही बने चूल्हे में एक हथौड़ा भी मिला. उस पर खून लगा हुआ था. पुलिस ने हथौड़ा भी बरामद कर लिया.

पुलिस क्या वहां मौजूद सभी लोगों के मन में बस एक ही सवाल उठ रहा था कि आखिर मिथिलेश ने अपनी जेठानी का कत्ल क्यों किया और वो भी गोली मार कर.

सूचना मिलने पर आगरा के एसएसपी शलभ माथुर और एसपी (देहात) के.पी.एस. यादव भी मौके पर पहुंच गए. उन्होंने भी लाश का निरीक्षण कर मौका मुआयना किया. उन्होंने मिथिलेश और परिवार के अन्य लोगों से भी बात की. इस के बाद वे थानाप्रभारी को कुछ निर्देश देने के बाद चले गए. उन के जाने के बाद थानाप्रभारी ने रात में ही लाश का पंचनामा करने के बाद उसे पोस्टमार्टम के लिए आगरा के एस.एन. मैडिकल कालेज भिजवा दिया.

पुलिस ने मिथिलेश को पहले ही हिरासत में ले रखा था. उसे थाने ले जा कर जब उस से जेठानी की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उस ने बिना किसी डर के स्वीकार कर लिया कि उस की जेठानी हेमलता की हत्या कर के अपने पति की हत्या का बदला लिया है. फिर उस ने हेमलता की हत्या की जो कहानी बताई, वह चौंकाने वाली निकली.

उत्तर प्रदेश के जिला आगरा के मलपुरा क्षेत्र का एक गांव है नगल प्रताप. यहां के रहने वाले एक किसान निब्बोराम के 4 बच्चों में मिथिलेश सब से बड़ी बेटी थी. निब्बोराम की आर्थिक हालत इस लायक नहीं थी कि वह बच्चों को पढ़ालिखा सके. जैसेतैसे कर के वह परिवार को पाल रहा था.

मिथिलेश जब सयानी हुई तो उन्होंने ज्यादा जांचपड़ताल किए बिना शमसाबाद थाने के शंकरपुर गांव में रहने वाले प्रेमसिंह के बेटे बंटू के साथ उस की शादी कर दी. जिस बिचौलिए ने यह शादी कराई थी, उस ने निब्बोराम को बंटू के बारे में सही जानकारी नहीं दी थी.

पत्नी के लिए पिता के खून से रंगे हाथ

4 लाख में खरीदी मौत – भाग 1

सुबह खेतों की ओर जाते हुए कुछ लोगों ने एक आदमी को पड़े देखा तो उन्हें लगा, शायद कोई शराब पी कर पड़ा है. लेकिन जब उन्होंने नजदीक जा कर देखा तो पता चला कि वह तो मरा पड़ा है. वह खून से लथपथ था, इस से लोगों ने अंदाजा लगाया कि यह हत्या का मामला है.

हत्या का अंदाजा होते ही वहां मौजूद लोगों में से किसी ने इस बात की जानकारी ग्रामप्रधान निर्मल सिंह को दे दी. कुछ ही देर में वहां अच्छीखासी भीड़ लग गई. लाश जसपुर कोतवाली के अंतर्गत आने वाले गांव अहमदनगर के पास खेतों में पड़ी थी. ग्रामप्रधान निर्मल सिंह की सूचना पर जसपुर कोतवाली के एसएसआई संजीव कुमार पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

निरीक्षण में पुलिस ने देखा कि मृतक के शरीर पर किसी भी तरह का चोट का कोई निशान नहीं था. उस की हत्या गोली मार कर की गई थी. गोली आंख के पास लगी थी, जो छेद कर उस पार गले के पास से निकल गई थी.

मृतक की शिनाख्त के लिए पुलिस को किसी तरह की जहमत नहीं उठानी पड़ी. क्योंकि उसे वहां लगभग हर कोई जानता था. मृतक जसपुर के मोहल्ला गांगूवाला का रहने वाला जयप्रकाश था, जो घूमघूम पूरे दिन ठेले पर नीरा (खजूर के पेड़ का पानी) बेचता था. यही वजह थी कि अधिकांश लोग उसे जानतेपहचानते थे. हत्या की सूचना पा कर सीओ प्रकाशचंद आर्य भी घटनास्थल पर आ गए थे.

मृतक के कपड़ों की तलाशी में पुलिस को उस की जेब से पहचान पत्र, फोटो और 4 हजार रुपए नकद मिले थे. इस से यह साफ हो गया था कि मृतक की हत्या लूटपाट के लिए नही की गई थी.

साथ आई फोरेंसिक टीम अपना काम करने लगी तो एसएसआई संजीव कुमार ने जयप्रकाश की हत्या की सूचना उस के घर वालों को दिलवा कर वहीं बुला लिया. हत्या की सूचना पा कर घर वाले रोतेबिलखते वहां आ पहुंचे. पूछताछ में पता चला कि मृतक इधर कई दिनों से काशीपुर में रहने वाली अपनी बहन केला देवी के यहां रह रहा था. इस के बाद पुलिस के सामने यह सवाल खड़ा हो गया कि मृतक जब काशीपुर में रह रहा था तो इस की हत्या यहां कैसे हुई?

इसी पूछताछ में मृतक जयप्रकाश की पत्नी सुनीता ने बताया था कि कुछ दिनों पहले मृतक ने अपना मकान 9 लाख रुपए में बेचा था. मकान बेचने के बाद से ही वह अपनी बहन के यहां रह रहा था. 9 लाख रुपए एक मोटी रकम होती है. उस के लिए भी उस की हत्या हो सकती थी. यह सब जांच के बाद ही पता चल सकता था. पुलिस घटना की काररवाई निपटाते हुए लाश का पंचनामा तैयार कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने की तैयारी कर रही थी कि तभी मृतक जयप्रकाश की बहन केला देवी आ गई.

आते ही केला देवी भाई की लाश से लिपट कर जोरजोर से रोने लगी. पुलिस को जब पता चला कि यही उस की बहन केला देवी है, जिस के यहां जयप्रकाश अपने मकान के रुपए ले कर रहा था तो पुलिस ने उस से भी पूछताछ करना उचित समझा.

सांत्वना दे कर पुलिस ने केला देवी से पूछताछ की तो उस ने बताया कि 11 अक्तूबर को करवा चौथ होने की वजह से जयप्रकाश अपने घर जाने की बात कह कर उस के घर से चला आया था. इस के बाद वह कहां गया, उस के साथ क्या हुआ, उसे कोई जानकारी नहीं थी.

पुलिस केला देवी से पूछताछ कर रही थी कि तभी मृतक जयप्रकाश की मां बिरमो देवी आ गई. वह बहू की ओर इशारा कर के रोते हुए कहने लगी, ‘‘अपने यार के साथ मिल कर तू ने ही मेरे बेटे को मरवाया है. तू हत्यारिन है. मेरे बेटे को मरवा कर तेरा कलेजा ठंडा हो गया न, अब मौज कर अपने यार के साथ.’’

बिरमो देवी की बातें सुन कर पुलिस के कान खड़े हो गए. पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि यह अवैध संबंधों में हुई हत्या का मामला है. पुलिस को लगा, अब जल्दी ही इस मामले का खुलासा हो जाएगा. इस के बाद पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.

बिरमो देवी की बातों से पुलिस ने इसे अवैध संबंध में हुई हत्या का मामला माना था, इसलिए अंतिम संस्कार होने के तुरंत बाद पुलिस मृतक जयप्रकाश के घर पूछताछ के लिए पहुंच गई. मृतक की मां बिरमो देवी घर में नहीं थी, इसलिए पुलिस उस की पत्नी सुनीता और बच्चों से पूछताछ करने लगी.

सुनीता और बच्चों ने बताया कि करवा चौथ को जयप्रकाश घर नहीं आया था. उसे किस ने, कब और क्यों मारा, उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है. पत्नी और बच्चों के खिलाफ पुलिस को अब तक की जांच में कोई सुबूत नहीं मिला था, इसलिए पुलिस इस बात पर भी विचार करने लगी कि कहीं रुपयों की वजह से तो जयप्रकाश की हत्या नहीं हुई.

इस के बाद पुलिस ने मकान खरीदने वाले से पूछताछ की तो उस ने बताया कि मकान का सौदा होते ही उस ने पूरी रकम अदा कर दी थी. उस के बाद जयप्रकाश ने पैसों का क्या किया, उसे कोई जानकारी नहीं थी.

पुलिस जयप्रकाश की मां बिरमो देवी से पूछताछ करना चाहती थी, इसलिए एक बार फिर उस के घर गई. इस बार की पूछताछ में उस ने पुलिस को बताया कि उस की बहू सुनीता का चमनबाग के रहने वाले मास्टर हरजीत सिंह से प्रेमसंबंध है. जब देखो, तब वह उसी के घर में पड़ा रहता था.

जयप्रकाश ने कई बार सुनीता को समझाया था, लेकिन सुनीता मास्टर के प्यार में इस कदर पागल थी कि मास्टर के लिए वह पति से लड़ने लगती थी. सुनीता का मास्टर हरजीत सिंह से चक्कर था, इसलिए वह उस की तरफदारी करती थी. उस का बड़ा बेटा विशाल भी उस के साथ उस की तरफदारी करता था.

बिरमो देवी ने पूरे विश्वास के साथ पुलिस से कहा था कि सुनीता ने ही मास्टर हरजीत सिंह के साथ मिल कर जयप्रकाश की हत्या की है. बिरमो देवी के इसी बयान को आधार बना कर पुलिस ने उस की ओर से मास्टर हरजीत सिंह, उस के बेटे दीपक, मृतक जयप्रकाश की पत्नी सुनीता और बेटे विशाल के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया था.

नामजद मुकदमा दर्ज होने के बाद जसपुर कोतवाली पुलिस ने मृतक जयप्रकाश की पत्नी सुनीता और मास्टर हरजीत सिंह को हिरासत में ले कर पूछताछ शुरू कर दी. काफी पूछताछ के बाद भी जब दोनों ने स्वीकार नहीं किया कि उन्होंने हत्या की है तो पुलिस चक्कर में पड़ गई. क्योंकि पुलिस इस मामले को बड़े हलके में ले रही थी. जब सुनीता और हरजीत ने हत्या करने से साफ मना कर दिया और पुलिस को उन के हत्या में शामिल होने का कोई सुबूत नहीं मिला तो पुलिस के लिए परेशानी बढ़ गई.

कहानी के अगले अंक में पढ़ें.. जयप्रकाश ने क्यों दी अपनी ही पत्नी और बेटे की सुपारी?