मिसकाल बनी काल – भाग 1

उन्नाव जिले के गांव हरचंदपुर के रहने वाले रफीक के परिवार में पत्नी रेहाना के अलावा 2 बेटे थे  और 2 बेटियां. खेतीकिसानी के काम में ज्यादा आय न होने के बावजूद रफीक चाहते थे कि उन के बच्चे पढ़लिख कर किसी लायक बन जाएं. इसीलिए उन्होंने अपनी बड़ी बेटी सोफिया को पढ़ाने में कोई कोताही नहीं की थी. सोफिया हाईस्कूल कर के आगे की पढ़ाई कर रही थी. उसे चूंकि स्कूल जाना होता था, इसलिए रफीक ने उसे मोबाइल फोन ले कर दे दिया था, ताकि वक्तजरूरत पर घर से संपर्क कर सके. नातेरिश्तेदारों के फोन भी उसी फोन पर आते थे.

जैसा कि आजकल के बच्चे करते हैं, फोन मिलने के बाद सोफिया का ज्यादातर वक्त फोन पर ही गुजरने लगा. सहेलियों को एसएमएस भेजना, उन से लंबीलंबी बातें करना उस की आदत में शुमार हो गया. यहां तक कि उस के मोबाइल पर कोई मिसकाल भी आती तो वह उस नंबर पर फोन कर के जरूर पूछती कि मिसकाल किस ने दी.

एक दिन सोफिया के फोन पर एक मिसकाल आई तो उस ने फोन कर के पूछा कि वह किस का नंबर है. वह नंबर लखनऊ के यासीनगंज स्थित मोअज्जम नगर के रहने वाले सचिन का था. उस ने सोफिया को बताया कि किसी और का नंबर लगाते वक्त धोखे से उस का नंबर मिल गया होगा और काल चली गई होगी.

बातचीत हुई तो सचिन ने सोफिया को अपना नाम ही नहीं, बल्कि यह भी बता दिया कि वह लखनऊ के मोअज्जमनगर का रहने वाला है. बात हालांकि वहीं खत्म हो जानी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. सोफिया को सचिन की बातें इतनी अच्छी लगीं कि उस ने उस का नंबर अपने मोबाइल में सेव कर लिया.

सचिन को भी सोफिया से बात करना अच्छा लगा था. इसलिए उस ने भी बिना नाम के ही उस का नंबर अपने मोबाइल फोन में सेव कर लिया था. करीब एक हफ्ते बाद अचानक सचिन का फोन आया तो मोबाइल स्क्रीन पर उस का नाम देख कर सोफिया खुशी से उछल पड़ी. उस ने काल रिसीव की तो दूसरी ओर से कहा गया, ‘‘मैं सचिन बोल रहा हूं. पहचाना मुझे?’’

‘‘तुम्हारा नंबर मेरे मोबाइल में सेव है.’’ सोफिया ने खुश हो कर कहा, ‘‘तुम्हारी आवाज सुनने से पहले ही पता चल गया था कि तुम हो. कहो, कैसे हो सचिन?’’

‘‘अरे वाह, तुम ने मेरा नंबर सेव कर रखा है. मैं तो डर रहा था कि कहीं बुरा न मान जाओ. इसलिए फोन भी नहीं किया.’’ सचिन ने कहा तो सोफिया बोली, ‘‘बुरा क्यों मानूंगी, तुम ने ऐसा कुछ तो कहा नहीं था, जो बुरा मानने लायक हो.’’

सोफिया की खुशी से खनकती आवाज सुन कर सचिन को लगा कि लड़की उस से बातचीत करने में रुचि ले रही है. इसलिए उस ने इस सिलसिले को आगे बढ़ाने के लिए कहा, ‘‘मैं खुशनसीब हूं, जो तुम ने मेरे दोबारा फोन करने का बुरा नहीं माना. पर हो सकता है, अब बुरा मान जाओ.’’

‘‘क्यों, मैं भला बुरा क्यों मानूंगी?’’

‘‘इसलिए कि मैं यह जानना चाहता हूं कि मैं जिस से बात कर रहा हूं, उस का नाम क्या है. बोलो, बताओगी?’’

‘‘इस में बुरा मानने की क्या बात है. मेरा नाम सोफिया है और मैं उन्नाव के गांव हरचंदपुर की रहने वाली हूं.’’

‘‘जब इतना बता दिया है तो फिर यह भी बता दो कि करती क्या हो, दिखती कैसी हो? और भी कुछ बताना चाहो तो वह भी.’’ सचिन ने सोफिया को बातों के जाल में उलझाने के लिए कहा तो सोफिया हलकी सी हंसी के साथ बोली, ‘‘मैं हाईस्कूल कर चुकी हूं, आगे पढ़ रही हूं. मुझे फोन पर बात करना बहुत अच्छा लगता है. रही बात दिखने की तो मेरी आवाज से खुद ही अंदाजा लगा लो कि मैं कैसी दिखती हूं.’’

‘‘तुम्हारी आवाज और मेरा दिल, दोनों ही एक बात कह रहे हैं कि तुम बहुत खूबसूरत होगी. खूबसूरत आंखें, गोरा रंग, छरहरा बदन.’’ सचिन ने कहा तो सोफिया हंसते हुए बोली, ‘‘तुम ज्योतिषी हो क्या? बिना देखे ही मेरे बारे में सारी बातें पता चल गईं.’’

सोफिया की इस बात से सचिन को उस में और भी दिलचस्पी बढ़ गई. वह उस से लंबी बात करना चाहता था. लेकिन सोफिया को स्कूल जाना था. इसलिए उस ने सचिन से कहा, ‘‘अभी नहीं, पढ़ाई भी जरूरी है. फोन करना हो तो रात में करना. तब आराम से बात हो जाएगी.’’

रात को फोन करने की बात सुन कर सचिन मन ही मन खिल उठा. उस का वह दिन बड़ी बेचैनी से गुजरा. रात हुई तो उस ने सोफिया को फोन किया. सोफिया सचिन के ही फोन का इंतजार कर रही थी. उसे पूरा यकीन था कि वह फोन जरूर करेगा. उस ने सचिन से बड़े प्यार से बात की. प्यार की सही परिभाषा को न समझने वाला उस का किशोर मन समझ रहा था कि सचिन उसे प्यार करने लगा है. इसलिए वह प्यार की ही बातें करना चाहती थी.

उस रात बातों का सिलसिला शुरू हुआ तो फिर आगे बढ़ता ही गया. अब सोफिया रात को रोजाना उस के फोन का इंतजार करती थी. इस के लिए दोनों के बीच समय तय था.

कामकाज से निपट कर रात में जैसे ही वह अपने कमरे में जाती, सचिन का फोन आ जाता. वह कानों में ईयरफोन लगा कर उस से देर तक बातें करती रहती. अब रात में वह अपना फोन साइलेंट मोड पर रखने लगी थी. उधर सचिन जो भी कमाता था, उस में से उस का ज्यादातर पैसा फोन पर ही खर्च होने लगा था.

एक दिन बातों ही बातों में सचिन ने कहा, ‘‘सोफिया, मुझे तुम से प्यार हो गया है. अब मैं तुम्हारे बिना रह नहीं पाऊंगा.’’

दरअसल इस बीच सोफिया की बातों से सचिन ने अंदाजा लगा लिया था कि जब तक वह सोफिया से प्यार की बात नहीं करेगा, वह उस के चंगुल में नहीं फंसेगी. इसीलिए उस ने यह चाल चली थी.

सोफिया तो कब से उस के मुंह से यही सुनने को तरस रही थी. वह बोली, ‘‘सचिन, जो हाल तुम्हारा है, वही मेरा भी है. मैं भी तुम से यही बात कहना चाहती थी. पर समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे कहूं. मैं गांव की रहने वाली सीधीसादी लड़की हूं. जबकि तुम शहर में रहते हो. सोचती थी कि मेरे बारे में पता नहीं क्या समझ बैठोगे, इसलिए कह नहीं पा रही थी. मैं भी तुम से उतना ही प्यार करती हूं, जितना तुम मुझ से करते हो.’’

सोफिया और सचिन भले ही दूरदूर रहते थे, पर दोनों अपने को एकदूसरे के बहुत करीब महसूस करते थे. बातों ने उन के बीच की सारी दूरियां मिटा दी थीं. सोफिया और सचिन को लगने लगा था कि अब वे एकदूसरे के बिना नहीं रह पाएंगे.

नादान सोफ़िया कैसे फंसी शातिर सचिन के जाल में? पढ़िए कहानी के अगले भाग में.

नादानी का नतीजा – भाग 3

पुलिस ने राहुल और उस के भाइयों को गिरफ्तार करने के प्रयास किए तो राहुल ने वकील के माध्यम से ममता को अदालत में पेश कर के धारा 164 के तहत अपने पक्ष में बयान दिला दिया. ममता बालिग थी ही, अदालत ने ममता को राहुल के साथ रहने की इजाजत दे दी. राहुल बंगाली बाबू के सामने ही उन की बेटी को ले कर अपने घर में रहने लगा. राहुल उन्हें जलील करने के लिए छत पर खुलेआम ममता के गले में बांहें डाल कर अश्लील हरकतें करता.

बंगाली बाबू ने टोंका तो राहुल ही नहीं, प्रवीण, प्रमोद, दीपू और सुनील उन्हें गंदीगंदी गालियां देते हुए धमकी देने लगे कि वे उन की छोटी बेटी को भी ममता की तरह भगा ले जाएंगे. हद तो तब हो गई, जब एक दिन राहुल ने अपने भाइयों के साथ बंगाली बाबू के घर में घुस कर उन से मारपीट कर के उन से कहने लगा कि वह अपना मकान उन के नाम करा दें.

नेहा का प्रेमी प्रवीण भी अपने भाई राहुल की हर बुरे काम में पूरा सहयोग कर रहा था. यह सब देख कर वह डर गई कि एक दिन ये लोग यही सब उस की मां के साथ भी कर सकते हैं. यही सोच कर उस ने दृढ़ निश्चय कर लिया कि अब वह प्रवीण से अपना हर तरह का संबंध खत्म कर लेगी. प्रवीण की हरकतों को देख कर उसे उस से जितना प्यार था, उस से कहीं ज्यादा नफरत हो गई.

नेहा को प्रवीण और उस के भाइयों से डर भी लगने लगा, क्योंकि उन्होंने बंगाली बाबू और उन की पत्नी के साथ मारपीट भी की थी. यह देख कर उसे लगा कि ये लोग उस की मां पर भी हाथ उठा सकते हैं. उस के भाई के साथ भी कुछ उलटासीधा कर सकते हैं.

इस के बाद नेहा ने प्रवीण से मिलनाजुलना ही नहीं, फोन पर बात करना भी बंद कर दिया. प्रवीण उसे मिलने के लिए बुलाता तो वह इग्नोर कर देती. अब वह घर से भी नहीं निकलती थी. वह घर में रह कर अपनी पढ़ाई में लगी रहती. यही सब करते 10-12 दिन हो गए. इस बीच उस ने अपनी मां से भी कह दिया था कि उस से एक गलती हो गई है, जिसे वह सुधारने की कोशिश कर रही है.

कुसुमवती को पता था कि उन की बेटी से कौन सी गलती हुई है. वह चाहती थीं कि वह स्वयं ही तय करे कि प्रवीण उस के लायक है या नहीं. शायद नेहा समझ गई थी कि प्रवीण उस के लायक नहीं है. इसीलिए वह उसे इग्नोर कर रही थी.

प्रवीण को इस बात का अहसास हुआ तो  नेहा का यह व्यवहार उसे पसंद नहीं आया. वह उस से मिल कर उस के बदले व्यवहार की वजह पूछना चाहता था. जबकि वह उसे मिलने का मौका नहीं दे रही थी, इसलिए एक दिन प्रवीण उस के पीछेपीछे उस की कोचिंग पहुंच गया. नेहा ने उस से बात नहीं की तो घर आ कर उस ने उसे फोन किया.

नेहा को पता था कि प्रवीण सीधे उस का पीछा छोड़ने वाला नहीं है. इसलिए उस ने फोन रिसीव कर के कहा, ‘‘आज के बाद तुम कभी मुझे फोन मत करना, क्योंकि अब मैं तुम से कोई संबंध नहीं रखना चाहती. यह हमारी अंतिम बातचीत है.’’

इतना कह कर नेहा ने फोन काट दिया.

नेहा की इस बात से प्रवीण भन्ना उठा. उसे लगा कि नेहा ने उसे इस तरह जवाब दे कर उस की दबंगई और मर्दानगी को थप्पड़ मारा है. गुस्से में सीधे वह नेहा के घर जा पहुंचा. नेहा उस समय अपने कमरे में पोछा लगा रही थी, साथ ही वाशिंग मशीन में कपड़े भी धुल रही थी. पानी की मोटर भी चल रही थी. पोछा की ही वजह से उस ने मकान के सभी दरवाजे खोल रखे थे. उसे क्या पता था कि उस के मना करने के बावजूद प्रवीण जबरदस्ती उस के घर आ जाएगा.

प्रवीण ने कमरे में जा कर नेहा के गाल पर एक थप्पड़ मार कर कहा, ‘‘मैं मिलने के लिए बुला रहा हूं तो कह रही है कि मैं नहीं आऊंगी, तेरी यह मजाल. मैं चाहूं तो तुझे अभी उठा ले जाऊं और किसी वेश्या बाजार में बेच दूं, मेरा कोई कुछ नहीं कर पाएगा. पुलिस भी हमारे ऊपर हाथ नहीं डाल सकती. देख तो रही है, ममता मेरे घर में है. उस का बाप ही नहीं, पुलिस भी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाई.’’

प्रवीण की इस हरकत पर नेहा को भी गुस्सा आ गया. वह उस से भिड़ गई. इस पर प्रवीण बौखला उठा और उस ने नेहा की ऐसी धुनाई की कि उस का एक दांत टूट गया और होठ भी फट गया. इस तरह नेहा पर अपना गुस्सा उतार कर  प्रवीण जिस तरह आया था, उसी तरह चला गया.

प्रवीण के जाने के बाद नेहा ने अपनी हालत पर गौर किया तो उसे लगा कि जब इस सब की जानकारी मां को होगी तो वह जीते जी मर जाएंगी. वह यह सब कैसे बरदाश्त करेंगी? जिस बेटी पर उन्होंने ईश्वर से भी ज्यादा विश्वास किया, उस ने उन्हें इतना बड़ा धोखा दिया.

वह जानती थी कि प्रवीण अपने भाइयों के साथ मिल कर कुछ भी कर सकता है. जब चाहे उसे उठा ले जा सकता है. उस की मां की भी बेइज्जती कर सकता है. उस के भाई के साथ भी कुछ उलटासीधा कर सकता है. यह सब सोच कर वह डर गई. उसे लगा कि अगर कुछ ऐसा होता है तो यह सब उसी की वजह से होगा. तब उसे लगा कि अगर वह नहीं रहेगी तो यह सब होने से बच जाएगा. यही सोच कर उस ने तय किया कि अब वह नहीं रहेगी. फिर उस ने गले में दुपट्टा बांध कर आत्महत्या कर ली.

प्रवीण के इस बयान के बाद पुलिस ने उस पर आत्महत्या के लिए प्रेरित करने का मुकदमा दर्ज कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. उस के बाकी भाइयों के नाम निकाल दिए गए. नेहा की मां ने इन पांचों कौरवों के डर से वह मोहल्ला छोड़ दिया है. उन्हें लगता है कि पुलिस ने उन के साथ न्याय नहीं किया है, वह इस मामले की जांच सीबीसीआईडी से कराना चाहती हैं.

— कथा पुलिस सूत्रों एवं प्रवीण के बयान पर आधारित

पति ने किया अर्चना की जिंदगी का सूर्यास्त

शक का नासूर : फोन ने घोला जिंदगी में जहर – भाग 3

नीतू की लाश 3 दिन पहले जंगल में यमुना किनारे डाल दी थी. ऐसे में आशंका इस बात की थी कि कहीं लाश किसी जानवर ने क्षतिग्रस्त न कर दी हो. इसलिए पुलिस सब से पहले ओमप्रकाश को उसी जगह ले कर गई जहां उस ने लाश फेंकी थी.

ओमप्रकाश की निशानदेही पर पुलिस ने झाडि़यों के बीच से एक ट्राली बैग बरामद किया. उस ने बताया कि इसी बैग में नीतू की लाश है. बैग खोलने से पहले इंसपेक्टर सी.एम. मीणा ने सूचना क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम और जिला मुख्यालय को दे दी थी. फोन करने पर पूर्वी जिले के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी और क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम भी वहां पहुंच गई.

उन सभी के सामने जब उस बैग की चैन खोली गई तो उस में एक महिला की लाश निकली लाश देखते ही पास में खड़े दिनेश कुमार की चीख निकल गई. वह जोरजोर से रोने लगे. उन्हें रोता देख पुलिस समझ गई कि लाश उन की बेटी नीतू की ही है. लाश की शिनाख्त हो जाने पर पुलिस ने पंचनामा कर उसे पोस्टमार्टम के लिए लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल भेज दिया.

ओमप्रकाश ने अपनी नवविवाहिता पत्नी की हत्या क्यों की? इस बारे में पुलिस ने उस से पूछताछ की तो इस की वजह उन के दांपत्य जीवन में आई कड़वाहट निकली.

पूर्वी दिल्ली के कल्याणपुरी में रहने वाले दिनेश कुमार ललित कला अकादमी में नौकरी करते थे. उन के परिवार में पत्नी विजम के अलावा 2 बेटे और एक बेटी नीतू थी. छोटे से परिवार में वह हंसीखुशी से रहते थे. नीतू बच्चों में सब से छोटी थी. दूसरे वह 2 भाइयों के बीच अकेली बहन थी इसलिए वह सभी की दुलारी थी. इस वजह से वह जिद्दी स्वभाव की हो गई थी.

नीतू के 12वीं पास करने के बाद दिनेश उस के लिए कोई उचित लड़का ढूंढने लगे. किसी परिचित ने उन्हें ओमप्रकाश नाम का लड़का बताया. ओमप्रकाश गाजियाबाद के छपरौला में स्थित अरुणा इन्क्लेव में अपने बड़े भाई और छोटे भाई के साथ रहता था. एमबीए करने के बाद वह एयरटेल कंपनी में नौकरी करता था. उस का औफिस ग्रेटर नोएडा में परी चौक के पास था. वैसे ओमप्रकाश मूल रूप से गौतमबुद्ध नगर के दनकौर कस्बे के रहने वाले बीरपाल का बेटा था.

दिनेश ने ओमप्रकाश को देखा तो वह नीतू के लिए उचित लगा. फिर उन्होंने ओमप्रकाश के घर वालों से बात की. दोनों तरफ से बातचीत होने के बाद नीतू और ओमप्रकाश की शादी तय हो गई और 13 नवंबर, 2013 को सामाजिक रीतिरिवाज से उन का विवाह हो गया.

शादी के बाद नीतू अरुणा इन्क्लेव में ही रहने लगी. नीतू कुछ दिनों तक तो ठीक रही लेकिन बाद में वह पति से घर की छोटीछोटी बातों को ले कर शिकायतें करने लगी. दरअसल जिस फ्लैट में ओमप्रकाश रहता था, उस में उस के 2 भाई और भाभी भी रहती थी. नीतू को उन सब के साथ रहना अच्छा नहीं लगता था. वह उन सब से अलग पति के साथ रहना चाहती थी.

ओमप्रकाश घर वालों से अलग रहना नहीं चाहता था. इसी बात पर उन के बीच मनमुटाव रहने लगा. ओमप्रकाश के औफिस के पास ही आईसीआईसीआई बैंक की शाखा है. किसी काम से वह अकसर उस शाखा में जाता रहता था. शाखा में काम करने वाली प्रिया नाम की लड़की से उस की जानपहचान हुई जो पुणे की रहने वाली थी. बाद में वह जानपहचान दोस्ती में बदल गई थी.

प्रिया की उस से जबतब फोन पर भी बात होती रहती थी. पत्नी की मौजूदगी में भी वह उस से बात करता था. नीतू के पूछने पर उस ने बता भी दिया कि एक बैंक में नौकरी करने वाली प्रिया नाम की लड़की से दोस्ती है वह उसी से बात करता है.

ओमप्रकाश के प्रिया के साथ किस तरह के संबंध थे इस बात को प्रिया या ओमप्रकाश ही बेहतर जानते थे लेकिन नीतू को पति का प्रिया से बतियाना जरा भी अच्छा नहीं लगता था. नीतू ही क्या अधिकांश महिलाएं नहीं चाहतीं कि उन का पति उन के अलावा किसी और महिला या लड़की से बात करे. यानी नीतू की पति से इस बात की शिकायत करनी जायज थी.

लेकिन ओमप्रकाश पत्नी की शिकायत पर तवज्जो नहीं देता वह बात को एक कान से सुनता, दूसरे से निकाल देता था. इस बात पर नीतू को शक हो गया कि वह प्रिया से बात करना बंद क्यों नहीं कर रहा. शक की फांस बहुत खतरनाक होती है. यदि इस फांस को जल्द ही दूर न किया जाए तो यह मजबूत से मजबूत दांपत्य जीवन में भी दरार पैदा कर देती है.

ओमप्रकाश अपने दांपत्य में लगी इस फांस को गंभीरता से नहीं ले रहा था जिस का नतीजा यह निकला कि इस बात को ले कर नीतू की उस से अकसर ही नोकझोंक होने लगी.

ऐसी बात नहीं थी कि नीतू को ही पति पर शक हो, ओमप्रकाश को भी नीतू पर शक होने लगा. इस की वजह यह थी कि ओमप्रकाश ने कई बार औफिस से नीतू के मोबाइल पर फोन किया तो उस का फोन बिजी आया. ऐसा कई बार होने पर ओमप्रकाश के मन में भी शक बैठ गया कि वह जरूर अपने किसी बौयफ्रेंड से बतियाती होगी. बात में घर लौट कर जब वह उस से फोन बिजी होने की वजह पूछता तो वह कह देती कि मम्मी से बात कर रही थी.

नीतू और ओमप्रकाश के मन में शक की जो फांस लगी थी दोनों की जिद से वह नासूर बनती जा रही थी.

नीतू गुस्से में कई बार मायके भी चली गई थी. उस ने अपनी मां को भी बता दिया था कि ओमप्रकाश का किसी प्रिया नाम की लड़की के साथ चक्कर चल रहा है. वह उसी के साथ बतियाते रहते हैं. तब विजम ने भी दामाद को समझाया था. और बेटी को समझाबुझा कर ससुराल भेज दिया था.

21 जून, 2014 को भी नीतू और ओमप्रकाश के बीच कहासुनी हुई तो नीतू गुस्से में मायके आ गई थी. ओमप्रकाश ने उसे वापस आने को कहा तो वह नहीं आई. हां 2-4 दिनों बाद उन दोनों की फोन पर अकसर बातचीत जरूर होती रहती थी.

नीतू की तुनकबाजी और घर में रहने वाले क्लेश से ओमप्रकाश आजिज आ चुका था. सुकून से रहने के लिए उस ने पत्नी को ठिकाने लगाने की योजना बना ली. योजना को सही अंजाम देने के लिए पत्नी को विश्वास में लेना जरूरी था, इसलिए उस ने फोन पर चिकनीचुपड़ी बातें करनी शुरू कर दी. उस ने नीतू को 2 बार मिलने के लिए नोएडा भी बुलाया.

नादानी का नतीजा – भाग 2

कुसुमवती के घर के ठीक सामने मकान नंबर 153 में ओमप्रकाश कुशवाह अपने भाई चंद्रभान कुशवाह के साथ रहते थे. ओमप्रकाश विद्युत विभाग में नौकरी करते थे. उन के परिवार में पत्नी राजो के अलावा 3 बेटे प्रमोद, प्रवीन और राहुल तथा एक बेटी कृष्णा थी. नौकरी के दौरान ही ओमप्रकाश की मृत्यु हो गई तो उन की जगह पत्नी राजो को नौकरी मिल गई थी.

नौकरी मिलने से राजो का गुजरबसर तो आराम से होता रहा, लेकिन उस के तीनों बेटे उस के नियंत्रण से बाहर हो गए थे. मन होता था तो कोई कामधाम कर लेते, अन्यथा मां की तनख्वाह तो मिलती ही थी, उसी से मौज करते थे.

उसी मकान के आधे हिस्से में ओमप्रकाश के भाई चंद्रभान कुशवाह का परिवार रहता था. उस की भी मौत हो चुकी थी. उस का चाटपकौड़ी का काम था. असमय मौत के बाद उस का यह जमाजमाया व्यवसाय बंद हो गया था, क्योंकि उस के दोनों बेटों दीपू और सुनील ने इसे संभाला ही नहीं. मरने से पहले चंद्रभान बेटी बीना का ब्याह कर गया था. घर में पत्नी राजवती दोनों बेटों के साथ रहती थी.

ओमप्रकाश और चंद्रभान के पांचों बेटों में से कोई भी ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था. राजो और राजवती ने अपने अपने बेटों को संभालने की भरसक कोशिश की थी, लेकिन जवान हो चुके पांचों लड़के उन के काबू में नहीं आए. वह हर रोज कोई न कोई ऐसा कारनामा कर आते कि राजो और राजवती का सिर नीचा हो जाता. इन पांचों भाइयों की ऐसी करतूते हैं कि पूरा मोहल्ला इन्हें 5 कौरव कहता था.

नौकरी की वजह से राजो को अपना घरपरिवार चलाने में कोई परेशानी नहीं होती थी, लेकिन कमाई का कोई साधन न होने की वजह से राजवती को परेशानी हो रही थी. काफी कहने सुनने के बाद सुनील एक गारमेंट कंपनी में ठेकेदारी करने लगा, जहां से उसे ठीकठाक कमाई होने लगी थी. पास में पैसा आया तो उस के ऐब और बढ़ गए थे. भाई की कमाई पर दीपू भी ऐश कर रहा था. उस के पास कोई कामधाम तो था नहीं, इसलिए वह मोहल्ले में दबंगई करने लगा. कुछ दिनों बाद सुनील का चचेरा भाई प्रमोद भी उसी के साथ ठेकेदारी करने लगा था. उस के पास भी पैसा आया तो वह भी घमंडी हो गया.

भाइयों की देखादेखी प्रवीण का मन भी कुछ करने को हुआ. वह भी चाहता था कि हर समय उस की जेब में हजार, 2 हजार रुपए पड़े रहें. इस के लिए उस ने एक मोबाइल कंपनी की एजेंसी में नौकरी कर ली. उसी बीच उस की नजर घर के सामने रहने वाली कुसुमवती की जवान हो रही बेटी नेहा पर पड़ी तो उस के लिए उस का दिल मचल उठा.

प्रवीण उम्र में उस से 3-4 साल बड़ा था, लेकिन चाहत उम्र कहां देखती है. उम्र के अंतर के बावजूद प्रवीण नेहा को चाहने लगा तो उस तक अपनी चाहत का पैगाम भेजने की कोशिश करने लगा. शुरूशुरू में उस ने आंखों से इशारा किया. इस पर नेहा ने उस की ओर ध्यान नहीं दिया. तब उस ने उसे रास्ते में रोकना शुरू किया.

शुरूशुरू में तो नेहा प्रवीण को इग्नोर करती रही, क्योंकि वह प्रेम वे्रम के पचड़े में नहीं पड़ना चाहती थी. लेकिन जब प्रवीण उस के पीछे हाथ धो कर पड़ गया तो धीरेधीरे वह भी उसे पसंद करने लगी. लेकिन उस की यह पसंद शादी वाली नहीं थी. वह सिर्फ उस से दोस्ती करना चाहती थी. यह बात मन में आते ही उस ने प्रवीण को नजरअंदाज करना बंद कर दिया. इस के बाद वह अपने कुछ कीमती पल उस के साथ शेयर करने लगी.

मिलनेजुलने में ही उन की यह दोस्ती प्यार में बदल गई, जिस का आभास नेहा को काफी देर से हुआ. फिर तो जब तक वह दिन में 1-2 बार प्रवीण को देख न लेती, उसे चैन ही न मिलता. नेहा पूरे दिन घर में अकेली ही रहती थी, इसलिए दिन में जब उस का मन होता, वह प्रवीण से बातें कर लेती. नेहा जिस प्यार को कभी बेकार की चीज समझती थी, अब वही उसे अच्छा लगने लगा था.

नेहा को अपने प्रेमी प्रवीण से मिलने में कोई परेशानी नहीं होती थी. मां औफिस चली जाती थी और भाई स्कूल, इस के बाद नेहा जब, जहां चाहती, फोन कर के प्रवीण को बुला लेती. फिर दोनों घंटों प्यार में डूबे रहते. प्रवीण का कुसुमवती की अनुपस्थिति में उस के घर ज्यादा आनाजाना हुआ तो आसपड़ोस वालों को अंदाजा लगाते देर नहीं लगी कि मामला क्या है.

फिर इस बात की जानकारी कुसुमवती को भी हो गई. लेकिन उन्होंने कभी नेहा पर यह नहीं जाहिर होने दिया कि उन्हें उस के और प्रवीण के संबंधों का पता चल गया है. हां, वह बेटी को घुमाफिरा कर जरूर समझाती रहती थीं कि प्यारव्यार सब बेकार की चीजें हैं. लड़कियों को इन सब पचड़ों में नहीं पड़ना चाहिए.

नेहा मां के इशारों को समझती थी, लेकिन अब तक वह प्रवीण के प्रेम में इस कदर डूब चुकी थी कि चाह कर भी वह उस से अलग नहीं हो पा रही थी, क्योंकि अब तक उस के प्रवीण से शारीरिक संबंध भी बन चुके थे. मां के ड्यूटी पर और भाई गौरव के स्कूल जाने के बाद नेहा घर में अकेली रह जाती थी. फिर क्या था, वह जब चाहती, प्रवीण को बुला लेती और जैसा आनंद चाहती, निश्चिंत हो कर उठाती थी. कभी प्रवीण से दूर भागने वाली नेहा अब उस के साथ विवाह कर के पूरी जिंदगी बिताना चाहती थी.

लेकिन अचानक एक ऐसी घटना घट गई, जिसे देख कर नेहा का विचार एकदम से बदल गया. प्रवीण के साथ पूरी जिंदगी बिताने का सपना देखने वाली नेहा उस से दूर भागने लगी.

दरअसल, हुआ यह कि 14 सितंबर, 2013 को नगला भवानी सिंह के ही मकान नंबर 163 में रहने वाले बंगाली बाबू की बेटी ममता अचानक घर से गायब हो गई.

बंगाली बाबू ममता की शादी तय कर चुके थे और पूरे जोरशोर से शादी की तैयारी कर रहे थे. ऐसे में बेटी का गायब हो जाना उन के लिए किसी आघात से कम नहीं था. उन्होंने थाना सदर बाजार में ममता की गुमशुदगी दर्ज करा दी. थाना सदर बाजार पुलिस ने जब इस मामले में जांच की तो पता चला कि ममता को मोहल्ले का ही राहुल भगा ले गया है.

राहुल प्रवीण का छोटा भाई था. ममता को भगाने में प्रवीण और उस के अन्य भाइयों, प्रमोद, सुनील और दीपू ने भी उस की मदद की थी. पुलिस ने इन्हें गिरफ्तार करना चाहा तो सभी घर से फरार हो गए.

शक का नासूर : फोन ने घोला जिंदगी में जहर – भाग 2

2 दिन बीत चुके थे. पुलिस को नीतू के बारे में कोई क्लू नहीं मिल रहा था. उस का पति, मातापिता चिंतित और परेशान थे. वह बारबार थाने के चक्कर लगा रहे थे. मामला जवान महिला के गायब होने का था. दिल्ली में वैसे भी महिलाओं के साथ होने वाली आपराधिक वारदातें बढ़ती जा रही हैं. नीतू भी कहीं किसी वारदात का शिकार न हो जाए इसलिए पूर्वी दिल्ली के डीसीपी अजय कुमार ने एसीपी संजय सहरावत के निर्देशन में एक पुलिस टीम बनाई जिस में इंसपेक्टर सी.एम. मीणा, एसआई संदीप कुमार, हेडकांस्टेबल सुशील कुमार, कर्मवीर, कांस्टेबल जितेंद्र कुमार, सुरजीत, देशपाल आदि को शामिल किया.

पुलिस टीम सब से पहले यही पता लगाने में जुट गई कि नीतू पति की बताई गई जगह सेक्टर-18, नोएडा पहुंची थी या नहीं और गई भी होगी तो कल्याणपुरी से नोएडा जाने के 2 ही तरीके हैं या तो वह बस, कार, बाइक से गई होगी या फिर मैट्रो द्वारा.

कल्याणपुरी के नजदीक में मयूर विहार फेज-1 मैट्रो स्टेशन है. अगर वह मैट्रो से गई होगी तो मैट्रो स्टेशन पर लगे कैमरों में उस की तसवीर जरूर रिकौर्ड हो गई होगी. यह जानने के लिए टीम 23 जून को मयूर विहार फेज-1 मैट्रो स्टेशन पहुंची और 21 जून को दोपहर 11 बजे के बाद की रिकौर्ड की गई सीसीटीवी फूटेज देखनी शुरू कर दी. पुलिस के साथ नीतू के पिता दिनेश कुमार भी थे. ओमप्रकाश को पुलिस ने स्टेशन के नीचे खड़ी कार में बैठा रखा था. सभी फूटेज को बड़ी गौर से देख रहे थे.

तभी गेट नंबर 1 से नीतू मैट्रो स्टेशन पर चढ़ती दिखी. वह काले रंग की पेंट व मैरून कलर का टाप पहने हुई थी. उस समय वह काफी खुश दिख रही थी. दिनेश ने तुरंत अपनी बेटी को पहचान लिया. यह तसवीर सवा 11 बजे रिकौर्ड की गई थी.

इस तसवीर से यह पता लगा कि वह नोएडा के लिए निकली थी. इस के बाद पुलिस ने नोएडा सेक्टर-18 के मैट्रो स्टेशन की सीसीटीवी फुटेज देखी. वहां करीब साढ़े 11 बजे नीतू स्टेशन से बाहर निकलती दिखी. उस के साथ उस का पति ओमप्रकाश भी था. दोनों खुश थे और बतियाते हुए नीचे उतर रहे थे.

नोएडा सेक्टर-18 के मैट्रो स्टेशन के सीसीटीवी कैमरे की फूटेज देख कर पुलिस समझ गई कि ओमप्रकाश झूठ बोल रहा है. उस ने पुलिस को बताया था कि नीतू उस से नहीं मिली थी जबकि फूटेज देख कर पता चलता है कि वह मैट्रो स्टेशन पर पत्नी को खुद रिसीव कर के ले गया था. इस से पुलिस को ओमप्रकाश पर ही शक होने लगा.

थाने ला कर पुलिस ने ओमप्रकाश से पूछताछ की तो वह बोला, ‘‘नीतू को मैं ने फिल्म देखने के लिए नोएडा बुलाया था. सैक्टर-18 मैट्रो स्टेशन पहुंचने से पहले उस ने मुझे फोन कर दिया था. मैं भी मैट्रो स्टेशन पहुंच गया था. फिर बाद में उस ने फिल्म देखने का प्रोग्राम कैंसिल कर दिया. कह रही थी कि उसे जल्दी घर लौटना है. अट्टा मार्केट में एक दुकान से हम ने स्नैक्स खाए. कुछ देर बात करने के बाद नीतू को सैक्टर-18 के मैट्रो स्टेशन पर छोड़ कर मैं अपने औफिस चला गया था. चाहें तो आप औफिस में मेरी हाजिरी चैक कर सकते हैं.’’

‘‘जब तुम नीतू से मिले थे, तो झूठ क्यों बोले कि वो तुम्हारे पास नहीं आई थी?’’ इंसपेक्टर सी.एम. मीणा ने पूछा.

इस बात का ओमप्रकाश जवाब नहीं दे पाया तो उन्होंने उस से सख्ती से पूछताछ की. तभी ओमप्रकाश के ससुर दिनेश ने दामाद से सख्ती करने को मना कर दिया. उन्होंने पुलिस से कहा कि हमें अपने दामाद पर भरोसा है. वह हमारी बेटी के साथ बुरा नहीं कर सकता.

पुलिस को लग रहा था कि नीतू के गायब होने में ओमप्रकाश का हाथ रहा होगा. थोड़ी सख्ती करने पर वह सारा मामला उगल देता मगर दिनेश के मना करने पर पुलिस उस से पूछताछ नहीं कर सकी.

पुलिस ने दिनेश को काफी समझाने की कोशिश की लेकिन दामाद पर जमे विश्वास के आगे वह पुलिस की बात मानने को तैयार ही नहीं था. अंत में पुलिस ने यह कहते हुए ओमप्रकाश को दिनेश के हवाले कर दिया कि जांच में ओमप्रकाश से पूछताछ करने की जब भी जरूरत पड़ेगी, वही उसे थाने ले कर आएंगे.

पुलिस की इस शर्त पर दिनेश ने हामी भर ली और वह दामाद को अपने साथ घर ले गया. उन दोनों के थाने से जाने के बाद पुलिस टीम मशविरा करने लगी कि अब क्या किया जाए? क्योंकि पुलिस जांच जिस रास्ते पर आगे बढ़ रही थी, वह वहीं रुक गई थी.

मामला एक महिला से संबंधित था इसलिए पुलिस भी चुप नहीं बैठी. पुलिस टीम अब अपने मुखबिरों से नीतू के चालचलन आदि का पता लगाने लगी. यानी उस का कल्याणपुरी में किसी लड़के के साथ कोई चक्कर वगैरह तो नहीं चल रहा था.

दिनेश 23 जून की शाम को ओमप्रकाश को अपने साथ घर ले गया था. अगले दिन 24 जून की सुबह तकरीबन 4 बजे वह उसे ले कर फिर थाने आ गया. इंसपेक्टर सी.एम. मीणा और एसआई संदीप कुमार उस समय रात्रि गश्त कर के थाने लौटे थे. उन्होंने सुबहसुबह ससुरदामाद को थाने में देखा तो वे चौंके.

इस से पहले कि वह उन से थाने आने की वजह पूछते दिनेश ओमप्रकाश की तरफ इशारे करते हुए बोला, ‘‘सर, इस पर आप जो शक कर रहे थे वह सही था. अब हमें भी यकीन हो गया है कि नीतू को गायब कराने में इसी का हाथ होगा. इसे सब पता है कि इस समय मेरी बेटी कहां है? लेकिन यह हमें भी नहीं बता रहा. मैं इसी के खिलाफ नीतू का अपहरण करने की रिपोर्ट लिखाना चाहता हूं.’’

दिनेश की इस बात पर इंसपेक्टर सी.एम. मीणा को हैरानी हुई क्योंकि जो व्यक्ति कल तक अपने दामाद पर आंखें मूंद कर भरोसा कर रहा था, रात बीच में ऐसा क्या हो गया कि वह दामाद के खिलाफ हो गया. उन्होंने दिनेश से कहा, ‘‘हमें तो इस पर पहले से ही शक हो रहा था. कल जो इस से पूछताछ की जा रही थी, उसी में बता देता कि नीतू कहां है? मगर आपने इस से पूछताछ नहीं करने दी. यदि इसे अपने साथ नहीं ले गए होते तो अब तक सारी हकीकत सामने आ गई होती. मेरी समझ में यह बात नहीं आ रही कि अब आप इस के खिलाफ अपहरण का केस क्यों दर्ज करा रहे हैं?’’

‘‘सर, हम इस पर बहुत विश्वास करते थे तभी तो जब आप ने इस से सख्ती की तो हम ने आप से मना कर दिया था. हमें यह लग रहा था कि आप इस के ऊपर दबाव डाल कर कुछ कुबूलवाना चाहते हैं तभी तो हम इसे थाने से ले गए थे. घर ले जा कर हम ने इस से नीतू के बारे में पूछताछ की थी. इसने उस के बारे में कुछ भी नहीं बताया. लेकिन उस समय यह बहुत घबरा रहा था और बारबार हमारे यहां से जाने की बात कह रहा था. इन्हीं बातों पर हमें इस पर शक हो रहा है.’’ दिनेश ने बताया.

दिनेश के कहने पर पुलिस ने ओमप्रकाश को हिरासत में ले लिया और दिनेश कुमार की तरफ से ओमप्रकाश के खिलाफ अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर ली. इस के बाद पुलिस ने ओमप्रकाश से उस की पत्नी नीतू की बाबत सख्ती से पूछताछ की तो उस ने जो राज खोला, उसे जानकर सभी सन्न रह गए. उस ने बताया कि 21 जून को ही वह नीतू की हत्या कर चुका है और लाश एक बैग में बंद कर के यमुना खादर में डाल दी थी.

नादानी का नतीजा – भाग 1

दोपहर के सवा 2 बजे के आसपास गौरव घर पहुंचा तो उसे दरवाज खुलवाने की जरूरत नहीं पड़ी, क्योंकि  दरवाजा पहले से ही खुला था. बरामदे में साइकिल खड़ी कर के वह सीधे अपने स्टडी रूम में घुस गया. बैग रख कर कपड़े बदले और किचन की ओर जाते हुए बहन को आवाज दी.

बहन ने कोई जवाब नहीं दिया तो उसे लगा कि नेहा कान में इयरफोन लगा कर गाने सुनते हुए घर के काम कर रही होगी, क्योंकि पानी की मोटर भी चल रही थी और वाशिंग मशीन में कपड़े भी धुले जा रहे थे. उस ने बहन की ओर ध्यान न दे कर प्लेट में दालचावल निकाला और अपने कमरे में जा कर खाने लगा.

गौरव खाना खा कर हाथ धो रहा था, तभी एक गंदा कुत्ता घर में घुस आया. उस के शरीर पर तमाम घाव थे, जिन से खून रिस रहा था. उसे भगाने के लिए गौरव ने डंडा उठाया तो वह भाग कर नेहा के कमरे में घुस गया. उस के पीछेपीछे गौरव कमरे में घुसा तो उस ने वहां जो देखा, उसे कुत्ते का होश ही नहीं रहा. वह बाहर आ कर चीखनेचिल्लाने लगा. उस की चीखपुकार सुन कर मोहल्ले वाले इकट्ठा हो गए.

उन लोगों ने कमरे में जा कर देखा तो पता चला कि उस की बड़ी बहन नेहा छत में लगे कुंडे में दुपट्टा बांध कर लटकी हुई थी. गौरव ने रोते हुए यह बात फोन कर के अपनी मां कुसुमवती को बताई तो वह औफिस में ही बिलखबिलख कर रोने लगीं. किसी तरह औफिस के सहयोगियों ने उन्हें घर पहुंचाया.

नेहा द्वारा कुंडे में दुपट्टा बांध कर लटकने की सूचना पुलिस को भी दे दी गई थी. सूचना मिलते ही थाना सदर बाजार के थानाप्रभारी इंसपेक्टर सत्यप्रकाश त्यागी बुंदू कटरा पुलिस चौकी के प्रभारी मनोज मिश्रा के साथ कुसुमवती के घर आ पहुंचे.

कमरे और लाश की स्थिति से प्रथमदृष्टया यही लग रहा था कि नेहा के साथ दुष्कर्म कर के हत्या कर दी गई थी. उस के बाद लाश के गले में दुपट्टा बांध कर छत में लगे कुंडे से लटका दिया गया था, जिस से लगे कि इस ने आत्महत्या की थी. इस की वजह यह थी कि उस के पैर बेड पर घुटनों के बल टिके थे.

थानाप्रभारी सत्यप्रकाश त्यागी ने घटना की जानकारी अधिकारियों को भी दे दी थी. फोरेंसिक टीम को बुला कर लाश के फोटो कराए गए और फिंगरप्रिंट उठवाए गए. इस के बाद शव को नीचे उतरवा कर कमरे को सील करवा दिया. शव को पोस्टमार्टन के लिए भेज कर थानाप्रभारी पूछताछ करना चाहते थे, लेकिन कुसुमवती होश में नहीं थी, इसलिए बिना पूछताछ किए ही वह थाने आ गए.

थाने आ कर उन्होंने अपराध संख्या 697/2013 पर भादंवि की धारा 302 के तहत अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया और विवेचना की जिम्मेदारी खुद संभाल ली. यह 8 अक्टूबर, 2013 की बात थी.

अगले दिन यानी 9 अक्टूबर को पोस्टमार्टम के बाद नेहा का शव उस के घर वालों को सौंप दिया गया तो घर वालों ने उस का अंतिम संस्कार कर दिया. 10 अक्टूबर, 2013 की दोपहर को यही कोई डेढ़ बजे कुसुमवती थाने पहुंची और थानाप्रभारी सत्यप्रकाश त्यागी को एक तहरीर दी, जिस में उन्होंने नेहा की हत्या का आरोप अपने घर के सामने ही रहने वाले स्व. ओमप्रकाश के 3 बेटों, प्रवीण, प्रमोद उर्फ कलुआ और राहुल के साथ इन के चचेरे भाइयों सुनील तथा दीपू पर लगाया था.

थानाप्रभारी सत्यप्रकाश त्यागी ने उन लोगों को नामजद करने की वजह पूछी तो कुसुमवती ने कहा, ‘‘सर, आप इन लोगों को गिरफ्तार तो कीजिए, वे खुद ही नेहा की हत्या की वजह बता देंगे.’’

कुसुमवती ने अपनी यह बात जिस दृढ़ता और विश्वास के साथ कही थी, उस से थानाप्रभारी को उन के आरोप में दम नजर आया. उन्होंने नामजद लोगों को गिरफ्तार करने के लिए उन के घरों पर छापा मारा तो सभी के सभी फरार मिले. इस बात से थानाप्रभारी का संदेह और बढ़ गया. उन्हें लगा कि नेहा की हत्या में इन लोगों की कोई न कोई भूमिका जरूर है.

लेकिन इंसपेक्टर सत्यप्रकाश त्यागी को नेहा की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली तो उसे पढ़ कर उन्हें झटका सा लगा, क्योंकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार नेहा की मौत लटकने से ही हुई थी. वह शारीरिक संबंधों की भी आदी बताई गई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से सारा मामला ही उलट गया था. क्योंकि जिस स्थिति में नेहा की लाश मिली थी, ऐसे में कोई कैसे आत्महत्या कर सकता था? इस तरह के काम छिपछिपा कर किए जाते हैं, जबकि नेहा के घर के सारे दरवाजे खुले थे. पानी की मोटर भी चल रही थी और वाशिंग मशीन में कपड़े भी धुले जा रहे थे. नेहा को ऐसी क्या जल्दी थी कि वह पानी की मोटर और वाशिंग मशीन का स्विच भी नहीं औफ कर सकी?

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद नेहा की मौत रहस्यों में घिर गई थी. अब उस की मौत का रहस्य तभी खुल सकता था, जब नेहा की मां कुसुमवती द्वारा नामजद लोगों को गिरफ्तार कर के उन से सचाई उगलवाई जाती. धीरेधीरे पूरा महीना गुजर गया और पुलिस नेहा के संभावित हत्यारों तक पहुंच नहीं सकी. पुलिस पर आरोप लगने लगा तो एक बार फिर पुलिस ने तेजी दिखाई. फलस्वरूप 14 नवंबर, 2013 को थाना सदर बाजार पुलिस ने नामजद लोगों में से मुख्य अभियुक्त प्रवीण को गिरफ्तार कर लिया.

इस के बाद एकएक कर के अन्य अभियुक्त भी गिरफ्तार कर लिए गए. थानाप्रभारी सत्यप्रकाश ने इन लोगों से नेहा की मौत के बारे में पूछताछ शुरू की तो पहले ये सभी उन्हें गुमराह करते रहे. लेकिन जब पुलिस ने उन्हें घेरा तो मजबूर हो कर उन्होंने सच्चाई उगल दी. प्रवीण ने नेहा की मौत की जो कहानी सुनाई, उस में प्यार तो था ही, उस से भी ज्यादा डर था, जिस की वजह से इस प्रेम कहानी का दुखद अंत हुआ था.

उत्तर प्रदेश के जिला अंबेडकरनगर के रहने वाले मनोज कुमार की नौकरी आगरा सीओडी में लगी तो वह आगरा आ गए थे. बच्चे छोटेछोटे थे, इसलिए वह पत्नी कुसुमवती और बच्चों को अंबेडकरनगर में ही मां के पास छोड़ आए थे. मनोज कुमार पूरे तीन साल अकेले ही रहे. 3 सालों में बच्चे कुछ बड़े हो गए तो मां ने कहा कि अब वह अपनी बीवी और बच्चों को ले जाए.

मनोज कुमार अपने परिवार को आगरा लाने की तैयारी कर ही रहे थे कि मात्र 30 साल की उम्र में ही अचानक उन की असमय मौत हो गई. तब उन के बच्चों में बेटी नेहा 6 साल की थी तो बेटा गौरव 3 साल का.

कुसुमवती की मांग ही नहीं, जिंदगी भी सूनी हो चुकी थी. वह अपना दुख ले कर बैठी रहतीं तो उन के बच्चों का क्या होता? वह अपना दुख भूल कर बच्चों की परवरिश में लग गईं. 6 महीने बाद उन्हें पति की जगह सीओडी में नौकरी मिल गई तो वह बच्चों को ले कर आगरा आ गईं. वह आगरा आ कर उसी मकान में रहने लगी थीं, जिस में मनोज कुमार रहते थे.

कुसुमवती की सास भी साथ आई थीं. बहू जब पूरी तरह व्यवस्थित हो गई तो वह अंबेडकरनगर वापस लौट गईं. सास के जाने के बाद बच्चों को ले कर घर से इतनी दूर अकेले जीवन गुजारना कुसुमवती के लिए एक बड़ी चुनौती थी. लेकिन कुसुमवती ने इस चुनौती को स्वीकार किया. एकएक कर के 16-17 साल बीत गए. इस बीच उन्होंने अपनी कमाई से नगला भवानी सिंह में अपना मकान खरीद लिया था. अपना घर हो गया तो कुसुमवती का यह शहर अपना हो गया.

जिन दिनों कुसुमवती ने नगला भवानी का अपना नया मकान खरीदा था, उन दिनों नेहा पास के ही केंद्रीय विद्यालय में 9वीं में पढ़ती थी तो उस का भाई गौरव 6 ठवीं में. भाईबहन मां के संघर्ष को देख रहे थे, इसलिए मेहनत से पढ़ाई करने के साथसाथ हर काम में मां की मदद भी करते थे.

अनुराधा रेड्डी हत्याकांड : सीसीटीवी फुटेज से खुली मर्डर मिस्ट्री – भाग 4

अनुराधा ने प्रेमी से मांगी उधार की रकम

साल 2020 में कोरोना महामारी अपने पांव पसार चुकी थी, जिस के चलते जनजीवन अस्तव्यक्त हो चुका था, कितनों के व्यापार बंद हो गए थे. कितने भूख से तड़पतड़प कर मर गए थे. ऐसे में लगे सूद पर पैसे पूरी तरह डूब गए थे. जिस जिस ने उस से सूद पर पैसे लिए थे, उस में से किसी ने उस के पैसे नहीं लौटाए थे. अनुराधा पूरी तरह से बरबाद हो गई थी.

उस के बाद अनुराधा रेड्डी ने चंद्रमोहन से अपने पैसे वापस लौटाने की बात कही तो उस ने कुछ दिनों की मोहलत मांगी और कहा कि वह उस की पाईपाई लौटा देगा, जबकि हकीकत यह थी कि उस के पास लौटाने के लिए पैसे नहीं थे, जो पैसे उस ने प्रेमिका से लिए थे, वो सारे पैसे खर्च ही गए थे. कोरोना की वजह से बिजनैस भी चौपट हो गया था. वह समझ नहीं पा रहा था कि उस के पैसे कैसे और कहां से लौटाए.

पैसों को ले कर अनुराधा रेड्डी और चंद्रमोहन के रिश्तों में खटास आ गई थी. उस पर अनुराधा पैसा लौटाने के लिए अब दबाव बनाने लगी थी. प्रेमिका के दबाव से वह परेशान रहने लगा था. उस के चलते अब दोनों के बीच झगड़े होने लगे थे.

अनुराधा की हत्या कर लाश के किए टुकड़े

12 मई, 2023 को सुबह इन्हीं पैसों को ले कर अनुराधा रेड्डी और चंद्रमोहन के बीच झगड़ा हुआ था. इस झगड़े ने हाथापाई का रूप ले लिया था. गुस्से से चंद्रमोहन का चेहरा लाल हो गया था. उस ने आव देखा न ताव, किचन में रखा सब्जी काटने वाला फलदार चाकू उठाया और अनुराधा के पेट में ताबड़तोड़ वार कर दिए. वो तब तक चाकू से वार करता रहा, जब तक अनुराधा की मौत न हो गई. ये सारा खेल बरामदे में होता रहा.

अनुराधा की मौत के बाद जब चंद्रमोहन के गुस्से की आग ठंडी हुई तो वह बुरी तरह कांप गया. अब उस के सामने सब से बड़ा प्रश्न लाश को ठिकाने लगाने का था. तभी उसे दिल्ली का श्रद्धा हत्याकांड याद आ गया कि हत्यारे आफताब ने कैसे प्रेमिका के शरीर को टुकड़ेटुकड़े कर के जंगलों में फेंक दिया था, चंद्रमोहन ने भी वैसा ही करने का फैसला किया.

इस के बाद वह बरामदे से लाश को खींच कर कमरे में ले आया. फिर खून से सने चाकू और अपने हाथों को वाशरूम में जा कर अच्छी तरह धोया. यही नहीं, उस ने हत्या के साक्ष्य मिटाने के लिए फर्श पर पोंछा लगा कर साफ कर दिया था. फिर शाम को चंद्रमोहन बाजार से पत्थर काटने वाला कटर, एक बड़ा ट्रंक (संदूक), परफ्यूम की 2 शीशियां और तेज महक वाली दरजनभर अगरबत्तियों के पैकेट खरीद कर ले आया और अनुराधा के कमरे में ले जा कर रख दिए.

यह सब करने से पहले और हत्या करने के बाद उस ने अनुराधा का मोबाइल फोन अपने कब्जे में कर लिया था और उसे औन ही रखा था. ताकि लोगों को पता रहे कि वह जिंदा है. जब भी किसी की काल आती थी तो वह काल रिसीव नहीं करता था, उस का जवाब ‘मैं अभी बिजी हूं, फ्री होते ही काल करूंगी’ मैसेज के रूप में देता था.

खैर, घटना वाली रात में सब के सो जाने के बाद कटर मशीन से अनुराधा के शरीर को टुकड़ों में बांट दिया था. सिर को धड़ से, फिर दोनों बाजू, दोनों टांगें और धड़ अलगअलग कर दिया था. हृदयहीन और शातिर चंद्रमोहन के ऐसा करते हुए हाथ तक नहीं कांपे थे, जबकि उस ने उस के साथ पति के रूप में 15 सालों का समय बिताया था.

बहरहाल, चंद्रमोहन ने कटे सिर, दोनों बाजुओं और दोनों टांगों को दोहरा करते हुए फ्रिज में रख दिया था ताकि उस में से बदबू न उठे और धड़ को संदूक के भीतर रख कर उस में परफ्यूम छिडक़ दिया और अगरबत्तियां जला दी थीं, ताकि कहीं से किसी को कोई शक न हो सके.

कटे सिर को फेंकना चाहता था नदी में

इस के 3 दिनों बाद 15 मई की दोपहर में कटे सिर को काले कपड़े में अच्छी तरह लपेट कर फिर उसे काली पौलीथिन में रख कर सिर पर टोपी और मुंह पर मास्क लगा कर वह घर से निकला ताकि उसे कोई पहचान न सके और टैंपो पर सवार हो कर मुसी नदी के किनारे थीगालगुडा रोड के डंपिंग ग्राउंड पहुंचा और टैंपो से नीचे उतरा.

फिर वहां से उल्टी दिशा जा कर एक रेस्टोरेंट में पहुंचा, वहां उस ने पीने के लिए एक लीटर वाली पानी की बोतल खरीदी, और मास्क उतार कर बोतल का पानी पीया. उसी दौरान उस का चेहरा सीसीटीवी फुटेज में आ गया था. और तो और उस ने यूपीआई से पेमेंट दिया. ये भी एक साक्ष्य पुलिस वालों को मिल गया था.

पानी पीने के बाद फिर चंद्रमोहन डंपिंग ग्राउंड की ओर वापस लौटा और सुनसान देख मुसी नदी को लक्ष्य बना कर सिर वाली पौलीथिन फेंकी ताकि सिर नदी में बह जाए और इसी के साथ अनुराधा रेड्डी की मौत एक राज बन कर रह जाए. लेकिन वह पौलीथिन नदी में गिरने के बजाए डंपिंग ग्राउंड पर ही गिर गई. इस के बाद वह तेज कदमों से वहां से निकल गया था.

17 मई, 2023 को जब कटा सिर मिला तो पूरे हैदराबाद में सनसनी फैल गई थी. उस के बाद पुलिस की मेहनत, वैज्ञानिक साक्ष्य और सीसीटीवी फुटेज ने पुलिस को अनुराधा के गुनहगार तक पहुंचा दिया था.

कथा लिखे जाने तक पुलिस ने मृतका के शरीर के सभी भागों, कटर, परफ्यूम की शीशियां, अगरबत्तियों के पैकेट सभी कुछ बरामद कर लिया था. कथा संकलन तक पुलिस ने आरोपी बी. चंद्रमोहन के खिलाफ आरोप पत्र न्यायालय में पेश कर दिया था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

शक का नासूर : फोन ने घोला जिंदगी में जहर – भाग 1

दोपहर के पौने 2 बजे के करीब ओमप्रकाश ने अपने साले संजय के मोबाइल पर फोन किया, ‘‘संजय नीतू कहां है? मैं बहुत देर से उस का नंबर मिला रहा हूं लेकिन उस का फोन स्विच्ड औफ आ रहा है. पता नहीं उस ने अपना फोन बंद क्यों कर रखा है. तुम देखो तो वो कहां है? और उस से मेरी बात भी करा देना.’’

नीतू ओमप्रकाश की पत्नी थी, जो उस समय अपने मायके में रह रही थी, यह बात 21 जून, 2014 की है.’’

संजय उस समय अपने घर पर नहीं था. उस ने उसी समय अपनी बहन नीतू का फोन नंबर मिलाया तो वास्तव में वह बंद था. नीतू के पास जो मोबाइल फोन था उस में वोडाफोन और आइडिया कंपनी के सिम थे. संजय ने उस के दोनों फोन नंबरों को कई बार मिलाया. लेकिन उस का फोन स्विच्ड औफ बताया गया. इस बात को वह भी नहीं समझ पाया कि नीतू ने फोन बंद क्यों कर रखा है?

फिर संजय ने अपनी मां विजम को फोन किया, ‘‘मम्मी, नीतू कहां है? उस का फोन नहीं मिल रहा. जीजाजी उस से बात करना चाहते हैं. उस से कह देना कि वह जीजाजी से बात कर ले.’’

‘‘वो तो सुबह 11 बजे के करीब घर से नोएडा में उन के जाने के लिए निकली थी. कह रही थी कि ओमप्रकाश ने उसे पिक्चर दिखाने के लिए बुलाया है. क्या 3 घंटे में वो उन के पास पहुंची नहीं तो कहां चली गई?’’ विजम चिंतित होते हुए बोलीं.

विजम ने भी बेटी के दोनों नंबर अपने फोन से मिलाए तो वे बंद आ रहे थे. फिर उन्होंने अपने दामाद ओमप्रकाश से फोन पर बात की. ओमप्रकाश ने अपनी सास को बताया कि नीतू को उस ने पिक्चर देखने के लिए बुलाया जरूर था लेकिन वह उस के पास नहीं पहुंची.

नीतू और ओमप्रकाश की शादी करीब 6 महीने पहले ही हुई थी. फोन पर बात करते समय ओमप्रकाश समझ रहा था कि नीतू को ले कर सास बहुत परेशान हो रही है. वह उन्हें समझाते हुए बोला, ‘‘मम्मी आप परेशान मत होइए. ऐसा भी हो सकता है कि वह अपनी किसी सहेली के साथ पिक्चर देखने चली गई हो. एक दो घंटे में शायद वह घर पहुंच ही जाएगी. जब वह घर पहुंच जाए तो मेरी बात जरूर करा देना. इस समय मैं औफिस में हूं. औफिस की छुट्टी के बाद मैं भी आप से मिलने आ रहा हूं.’’

‘‘ठीक है, वो घर आ जाएगी तो तुम्हारी बात करा दूंगी.’’ विजम बोली.

शाम हो गई. न तो नीतू ही घर लौटी और न ही उस का फोन मिला. विजम परेशान हुए जा रही थीं. उन्होंने यह बात पति दिनेश कुमार को भी बता दी. घर वालों ने नीतू की सहेलियों आदि से भी पूछताछ की लेकिन उस का पता नहीं चला. ओमप्रकाश ग्रेटर नोएडा में परी चौक के पास स्थित एक टेलीकौम कंपनी में काम करता था. औफिस की ड्यूटी पूरी करने के बाद वह कल्याणपुरी में स्थित अपनी ससुराल पहुंच गया.

तब तक नीतू घर नहीं लौटी थी. जिस की वजह से घर वाले परेशान थे. सभी इस बात से हैरान थे कि अपने फोन को कभी भी बंद न करने वाली नीतू ने आज अपना फोन बंद क्यों कर रखा है? वह बिना बताए इतनी देर तक गायब भी नहीं रही, फिर आज ऐसी कौन सी जगह पर है जहां उस ने अपना फोन तक बंद कर रखा है. सभी लोग बीचबीच में नीतू का फोन मिलाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन स्विच्ड औफ होने की वजह से उस का फोन नहीं मिल पाया.

आपस में सलाहमशविरा करने के बाद ओमप्रकाश अपने ससुर दिनेश कुमार को ले कर थाना कल्याणपुरी चला गया और थानाप्रभारी अरविंद कुमार को नीतू के लापता होने की जानकारी दी. दिनेश की सूचना पर थानाप्रभारी ने नवविवाहिता नीतू की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर ली. इस की जांच सबइंसपेक्टर संदीप कुमार को सौंपी गई.

एसआई संदीप कुमार ने काररवाई करते हुए सब से पहले वायरलैस से दिल्ली के समस्त थानों में नीतू का हुलिया आदि बताते हुए, उस के गायब होने की सूचना प्रसारित करा दी. नीतू के पास जो फोन था उस से भी कोई सुराग मिलने की संभावना थी, इसलिए उस के फोन में पड़े हुए वोडाफोन और आइडिया के नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाने की काररवाई की.

अगले दिन एसआई संदीप कुमार ने नीतू की मां विजम से बात की तो उन्होंने बताया, ‘‘नीतू 8 जून को अपनी ससुराल से यहां आई थी. कल सुबह तकरीबन 11 बजे घर से निकलते समय उस ने बताया था कि ओमप्रकाश ने उसे नोएडा में पिक्चर देखने के लिए बुलाया है. वह उस के पास जा रही है.

‘‘मैं तो यही सोच रही थी कि वह ओमप्रकाश के पास ही होगी लेकिन दोपहर बाद जब ओमप्रकाश ने नीतू से बात कराने के लिए फोन किया तो पता चला कि वह उस के पास पहुंची ही नहीं है.’’

ओमप्रकाश उस समय ससुराल में ही था. एसआई संदीप ने ओमप्रकाश से पूछताछ की तो उस ने कहा, ‘‘सर, मैं ने नीतू को फोन कर के नोएडा आने को कहा था उस के पहुंचने के बाद हम लोग कोई मूवी वगैरह देखने जाते. उस ने मुझ से कहा भी था कि मैट्रो से नोएडा सेक्टर-18 मैट्रो स्टेशन पहुंच जाएगी.

‘‘मैं उस का सैक्टर-18 के मैट्रो स्टेशन पर इंतजार करता रहा लेकिन वह वहां नहीं पहुंची तो मैं ने उसे फोन करने की कोशिश की, लेकिन उस का फोन बंद होने की वजह से बात नहीं हो सकी. फिर मैं अपने औफिस चला गया. मैं ने फिर संजय को फोन कर के नीतू का फोन बंद होने की बात बताई.’’

दोनों से बात करने के बाद एसआई संदीप यह समझ गए कि ओमप्रकाश ने नीतू को फिल्म देखने के लिए नोएडा बुलाया था. पति के पास जाने के लिए नीतू घर से निकली भी थी लेकिन वह पति के पास पहुंची थी या नहीं, इस बात पर संदेह था. उस समय वह विजम के घर से चले आए. और अपने स्तर से मामले की छानबीन में लग गए.  उन्होंने आसपास के लोगों से पूछा तो कुछ लोगों ने बता दिया कि उन्होंने नीतू को रिक्शे पर बैठे जाते देखा था.

बचपन का मजा, जवानी में बना सजा