मिसकाल बनी काल – भाग 2

12 दिसंबर, 2013 की सुबह के 4 बजे का समय था. लखनऊ की सब से पौश कालोनी आशियाना स्थित थाना आशियाना में सन्नाटा पसरा हुआ था. थाने में पहरे पर तैनात सिपाही और अंदर बैठे दीवान के अलावा कोई नजर नहीं आ रहा था. तभी साधारण सी एक जैकेट पहने 25 साल का एक युवक थाने में आया.

पहरे पर तैनात सिपाही से इजाजत ले कर वह ड्यूटी पर तैनात दीवान के सामने जा खड़ा हुआ. पूछने पर उस ने बताया, ‘‘दीवान साहब, मैं यहां से 2 किलोमीटर दूर किला चौराहे के पास आशियाना कालोनी में किराए के मकान में रहता हूं. मेरी बीवी मर गई है, थानेदार साहब से मिलने आया हूं.’’

सुबहसुबह ऐसी खबरें किसी भी पुलिस वाले को अच्छी नहीं लगतीं. दीवान को भी अच्छा नहीं लगा. वह उस युवक से ज्यादा पूछताछ करने के बजाए उसे बैठा कर यह बात थानाप्रभारी सुधीर कुमार सिंह को बताने चला गया. सुधीर कुमार सिंह को कच्ची नींद में ही उठ कर आना पड़ा. उन्होंने थाने में आते ही युवक से पूछा, ‘‘हां भाई, बता क्या बात है?’’

बुरी तरह घबराए युवक ने कहा, ‘‘साहब, मेरा नाम सचिन है और मैं रुचिखंड के मकान नंबर ईडब्ल्यूएस 2/341 में किराए के कमरे में रहता हूं. यह मकान पीडब्ल्यूडी कर्मचारी गुलाबचंद सिंह का है. उन का बेटा अजय मेरा दोस्त है. जिस कमरे में मैं रहता हूं, वह मकान के ऊपर बना हुआ है. मेरी पत्नी ने मुझे दवा लेने के लिए भेजा था, जब मैं दवा ले कर वापस आया तो देखा, मेरी पत्नी छत के कुंडे से लटकी हुई थी. मैं ने घबरा कर उसे हाथ लगाया तो वह नीचे गिर गई. वह मर चुकी है.’’

‘‘घटना कब घटी?’’ सुधीर कुमार सिंह ने पूछा तो सचिन ने बताया, ‘‘रात 10 बजे.’’

‘‘तब से अब तक क्या कर रहे थे?’’ यह पूछने पर सचिन बोला, ‘‘रात भर उस की लाश के पास बैठा रोता रहा. सुबह हुई तो आप के पास चला आया.’’

सचिन ने आगे बताया कि वह यासीनगंज के मोअज्जमनगर का रहने वाला है और एक निजी कंपनी में नौकरी करता है. उस के पिता का नाम रमेश कुमार है. सचिन की बातों में एसओ सुधीर कुमार सिंह को सच्चाई नजर आ रही थी.

मामला चूंकि संदिग्ध लग रहा था, इसलिए उन्होंने इस मामले की सूचना क्षेत्राधिकारी कैंट बबीता सिंह को दी और सचिन को ले कर पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. पुलिस ने जब उस के कमरे का दरवाजा खोला तो फर्श पर एक कमउम्र लड़की की लाश पड़ी थी. उसे देख कर कोई नहीं कह सकता था कि वह शादीशुदा रही होगी.

इसी बीच सीओ कैंट बबीता सिंह भी वहां पहुंच गई थीं. सचिन की पूरी बात सुनने के बाद उन्होंने लड़की की लाश को गौर से देखा. उन्हें यह आत्महत्या का मामला नहीं लगा. बहरहाल, घटनास्थल की प्राथमिक काररवाई निपटा कर पुलिस ने मृतका की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और सचिन को थाने ले आई. कुछ पुलिस वालों का कहना था कि सचिन की बात सच है. लेकिन बबीता सिंह यह मानने को तैयार नहीं थीं. उन्होंने मृतका के गले पर निशान देखे थे और उन का कहना था कि संभवत: उस का गला घोंटा गया है.

कुछ पुलिस वालों का कहना था कि अगर सचिन ने ऐसा किया होता तो वह खुद थाने क्यों आता? अगर उस ने हत्या की होती तो वह भाग जाता. इस तर्क का सीओ बबीता सिंह के पास कोई जवाब नहीं था. बहरहाल, हकीकत पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही पता चल सकती थी.

सावधानी के तौर पर पुलिस ने सचिन को थाने में ही बिठाए रखा. इस बीच सचिन पुलिस को बारबार अलगअलग कहानी सुनाता रहा. देर शाम जब पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली तो इस मामले से परदा उठा. पता चला, मृतका की मौत दम घुटने से हुई थी और उसे गला घोंट कर मारा गया था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट देखने के बाद पुलिस ने सचिन से थोड़ी सख्ती से पूछताछ की तो उस ने मुंह खोल दिया. सचिन ने जो कुछ बताया, वह एक किशोरी द्वारा अविवेक में उठाए कदम और वासना के रंग में रंगे एक युवक की ऐसी कहानी थी, जो प्यार के नाम पर दुखद परिणति तक पहुंच गई थी. मृतका सोफिया थी.

मिसकाल से शुरू हुई सचिन और सोफिया की प्रेमकहानी काफी आगे बढ़ चुकी थी. फोन पर होने वाली बातचीत के बाद दोनों के मन में एकदूसरे से मिलने की इच्छा बलवती होने लगी थी. तभी एक दिन सचिन ने कहा, ‘‘सोफिया, हमें आपस में बात करते 2 महीने बीत चुके हैं. अब तुम से मिलने का मन हो रहा है.’’

‘‘सचिन, चाहती तो मैं भी यही हूं. लेकिन कैसे मिलूं, समझ में नहीं आता. मैं अभी तक कभी अजगैन से बाहर नहीं गई हूं. ऐसे में लखनऊ कैसे आ पाऊंगी?’’ सोफिया ने कहा तो सचिन सोफिया की नादानी और भावुकता का लाभ उठाते हुए बोला, ‘‘इस का मतलब तुम मुझ से प्यार नहीं करतीं. अगर प्यार करतीं तो ऐसा नहीं कहतीं. प्यार इंसान को कहीं से कहीं ले जाता है.’’

‘‘ऐसा मत सोचो सचिन. तुम कहो तो मैं अपना सब कुछ छोड़ कर तुम्हारे पास चली आऊं?’’ सोफिया ने भावुकता में कहा.

‘‘ठीक है, तुम 1-2 दिन इंतजार करो, तब तक मैं कुछ करता हूं.’’  कह कर सचिन ने बात खत्म कर दी.

दरअसल वह किसी भी कीमत पर सोफिया को हासिल करना चाहता था. इस के लिए वह मन ही मन आगे की योजना बनाने लगा. सचिन का एक दोस्त था सुवेश. सचिन ने उस से कोई कमरा किराए पर दिलाने को कहा.

सुवेश को कोई शक न हो, इसलिए सचिन ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘दरअसल मैं एक लड़की से प्यार करता हूं और मैं ने उस से शादी करने का फैसला कर लिया है. चूंकि मेरे घर वाले अभी उसे घर में नहीं रखेंगे, इसलिए तुम किसी का मकान किराए पर दिला दो तो बड़ी मेहरबानी होगी. बाद में जब घर के लोग राजी हो जाएंगे तो मैं उसे ले कर अपने घर चला जाऊंगा.’’

अगले अंक में पढ़िए कैसे पहुंचाया सचिन ने सोफ़िया को मौत की कगार पर?

मिसकाल का प्यार

शक का नासूर : फोन ने घोला जिंदगी में जहर – भाग 4

8 जून, 2014 को भी ओमप्रकाश ने नीतू को नोएडा में फिल्म देखने आने के लिए फोन किया. पति के बदले व्यवहार से नीतू खुश थी. नोएडा जाने की बात उस ने अपनी मां विजम से बता दी थी. दोपहर करीब 11 बजे वह घर से नोएडा जाने के लिए निकल गई और मयूर विहार फेज-1 मैट्रो स्टेशन से मैट्रो द्वारा वह नोएडा सेक्टर-18 मैट्रो स्टेशन पहुंच गई.

ओमप्रकाश को दहेज में डीएल 8सी-एई 1782 नंबर जो सैंट्रो कार नंबर की मिली थी उस से वह नोएडा-18 मैट्रो स्टेशन पहुंच गया. कार मैट्रो की पाकिंग में खड़ा कर के वह स्टेशन पर पत्नी के आने का इंतजार करने लगा. करीब साढ़े 11 बजे नीतू नोएडा सेक्टर-18 मैट्रो स्टेशन पहुंची तो वह उस से बड़ी गर्मजोशी से मिला.

फिर कार से दोनों अट्टा मार्केट पहुंचे. वहां दोनों ने स्नेक्स खाए. नीतू को इस बात का जरा भी अंदेशा नहीं था कि जो पति आज उस की इतनी खातिर तवज्जो कर रहा है, उस का काल बनने जा रहा है.

ओमप्रकाश ने यह पहले से सोच रखा था कि पत्नी की हत्या कहां करनी है और  लाश कहां ठिकाने लगानी है. लाश ठिकाने लगाने के लिए उस ने एक बड़ा सा ट्राली बैग पहले ही खरीद कर कार में रख लिया था. नीतू ने जब उस से उस ट्राली बैग के बारे में पूछा तो ओमप्रकाश ने झूठ बोलते हुए कहा था कि औफिस के एक जने ने उस से बैग खरीद कर लाने को कहा था.

अट्टा मार्केट में स्नैक्स खाने के बाद ओमप्रकाश पत्नी को अपने औफिस परी चौक की तरफ ले गया. नोएडा, गे्रटर नोएडा के कुछ इलाकों को नीतू भी पहचानती थी. उस ने कार दूसरे रास्ते पर जाते देखी तो वह बोली, ‘‘यह तुम कहां जा रहे हो, पिक्चर तो हमें शिप्रा में देखनी थी?’’

‘‘हां, हम शिप्रा आ जाएंगे. मुझे औफिस में थोड़ा काम है. काम निपटा कर हम शिप्रा आ जाएंगे.’’ ओमप्रकाश ने उसे समझाने की कोशिश की. लेकिन नीतू उस पर भड़क गई. उन के बीच तकरार बढ़ गई. झट्टा गांव के पास ओमप्रकाश ने कार रोक दी. वह इलाका सुनसान सा रहता है. मौका देखते ही उस ने दोनों हाथों से पत्नी का गला दबा दिया. कुछ देर बाद नीतू की गरदन एक ओर लुढ़क गई.

पत्नी की हत्या करने के बाद ओमप्रकाश ने उस की लाश पहले से खरीदे हुए ट्राली बैग में रख कर चैन बंद कर दी. वह कार को मयूर विहार फेज-1 मैट्रो स्टेशन के पास ले आया और वहां से कुछ दूर यमुना खादर की झाडि़यों में वह बैग डाल दिया. नीतू का फोन स्विच्ड औफ कर के वहां से कुछ दूर रास्ते में फेंक दिया था. इस के बाद वह अपने औफिस चला गया.

मयूर विहार के पास यमुना खादर में उस ने लाश इसलिए फेंकी कि लाश बरामद होने के बाद भी पुलिस का शक उस पर न हो. लाश बरामद होने पर पुलिस उस से पूछती तो वह पुलिस को बता देता कि उस ने नीतू को नोएडा सेक्टर-18 के मैट्रो स्टेशन पर छोड़ दिया था.

खुद को सेफ रखने के लिए ओमप्रकाश ने अपने औफिस से पत्नी के मोबाइल पर कई फोन किए. बाद में अपने साले संजय को फोन कर के कहा कि नीतू का फोन नहीं मिल रहा है उस से बात करा दे.

ओमप्रकाश ने पत्नी को ठिकाने लगाने की फूलप्रूफ योजना बनाई थी. पूरी योजना को उस ने अकेले ही अंजाम दिया था. अपने ससुराल वालों को भी उस ने विश्वास में ले लिया था तभी तो वह दामाद को पुलिस के पास से ले आए थे.

एक बात तो सच है कि कोई भी व्यक्ति अपराध करने के बाद कितनी भी चालाकी से झूठ बोले, पुलिस के जाल में फंस ही जाता है. ओमप्रकाश ने भी पुलिस को गुमराह करने की काफी कोशिश की लेकिन वह सफल नहीं हो सका.

पुलिस ने ओमप्रकाश की निशानदेही पर वह सैंट्रो कार भी बरामद कर ली जिस से उस ने लाश ठिकाने लगाई थी. काफी खोजबीन के बाद भी नीतू का मोबाइल फोन नहीं मिल पाया. विस्तार से पूछताछ के बाद उसे न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. मामले की तफ्तीश इंसपेक्टर सी.एम. मीणा कर रहे थे. द्य

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित और प्रिया परिवर्तित नाम है.

पत्नी का प्रेमी : क्यों मारा गया किशोर? – भाग 1

कड़ाके की ठंड में अगर रिमझिम बारिश हो रही हो तो ठंड को अपना विकराल रूप दिखाने का बढि़या मौका मिल जाता है. रोज की तरह ठंड की उस बारिश में दोपहर को साहेब रिशा के घर पहुंचा तो वह रजाई में दुबकी बैठी थी. एकदूसरे को देख कर दोनों मुसकराए. इस के बाद हथेलियों को आपस में रगड़ते हुए साहेब बोला, ‘‘भई, आज तो गजब की ठंड है.’’

‘‘इसीलिए तो रजाई में दुबकी बैठी हूं.’’ रिशा बोली, ‘‘रजाई छोड़ने का मन ही नहीं हो रहा है. लेकिन इस ठंड में तुम यहां कहां घूम रहे हो?’’

‘‘घूम नहीं रहा हूं. सुबह से तुम्हें देखा नहीं था. इसलिए इस ठंड में नहीं रहा गया तो तुम्हें देखने चला आया,’’ साहेब ने रिशा को लगभग घूरते हुए कहा, ‘‘सोचा था, तुम आग जलाए हाथ सेंक रही होओगी तो थोड़ी देर मैं भी उसी में हाथ सेंक लूंगा. लेकिन यहां तो हाल कुछ और ही है. लगता है, मुझ से ज्यादा तुम्हें गरमी की जरूरत है. अब तुम्हारी ठंड कुछ दूसरी ही तरह से दूर करनी पड़ेगी.’’

इतना कह कर साहेब ने रिशा के चेहरे को अपनी दोनों हथेलियों के बीच ले लिया.

रिशा ने झटके से उस के हाथों को अलग किया और ठंडे हो गए गालों को हथेलियों से मलते हुए बोली, ‘‘तुम्हारे हाथ कितने ठंडे हैं, एकदम बर्फ हो रहे हैं.’’

‘‘रिशा, कुछ चीजें ऊपर से भले ही ठंडी लग रही हों, लेकिन अंदर से बहुत गरम होती हैं.’’ साहेब ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘अगर मेरी बात पर विश्वास न हो तो कर के दिखाऊं. अभी मेरे ये ठंडे हाथ तुम्हें पलभर में गरम लगने लगेंगे.’’

साहेब की इस बात से रिशा के गाल शरम से लाल हो गए. उस ने आंखें मटका कर उसे प्यार से डांटते हुए कहा, ‘‘कितनी बार कहा कि इस तरह की बातें मुझ से मत किया करो. तुम्हें तो शरम आती नहीं. अपनी ही तरह दूसरे को भी बेशरम समझते हो.’’

‘‘तो फिर कैसी बातें किया करूं?’’ साहेब ने अपना चेहरा रिशा के चेहरे के एकदम पास ला कर उस की आंखों में आंखें डाल कर पूछा.

‘‘उस तरह की अच्छीअच्छी बातें, जैसी दूसरे लोग किया करते हैं.’’

‘‘भई प्रेम करने वालों की बातें कहीं से भी शुरू हों, अंत में वह वहीं पहुंच जाती हैं.’’

‘‘साहेब, अभी हम सिर्फ प्रेम करते हैं, हमारी शादी नहीं हुई है.’’

‘‘प्रेम हो गया है तो शादी भी हो जाएगी.’’

‘‘जब शादी हो जाएगी तब जो मन में आए, वह कर लेना.’’

‘‘जब प्रेम ही करना है तो चाहे शादी के पहले करो या बाद में, क्या फर्क पड़ता है.’’

रिशा को साहेब की इन बातों में मजा आने लगा था. इसलिए उस ने मुसकरा कर पूछा, ‘‘शादी के बाद कोई दूसरी तरह का प्यार किया जाता है क्या?’’

‘‘वह तो शादी के बाद ही पता चलेगा. लेकिन अगर तुम चाहो तो वह मैं प्यार शादी के पहले भी कर सकता हूं.’’ साहेब ने कहा.

‘‘फिर वही बात करने लगे.’’ रिशा ने आंखें तरेर कर नाराजगी व्यक्त की.

‘‘तुम भी तो उसी तरह की बातें कर रही हो.’’

रिशा साहेब की इस बात का जवाब देने ही जा रही थी कि हवा का तेज झोंका कमरे में घुसा तो ठंड से रिशा और साहेब, दोनों ही कांप उठे. रिशा ने रजाई को लपेटते हुए कहा, ‘‘लगता है, आज की ठंड जान ले कर ही मानेगी.’’

‘‘किसी की जान भले ही न जाए, लेकिन मेरी जरूर चली जाएगी.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘तुम तो रजाई ओढ़ कर बैठी हो, जबकि में खुले दरवाजे के सामने खड़ा ठंड से कांप रहा हूं.’’ साहेब ने कहा.

‘‘दरवाजा बंद कर के तुम भी रजाई में घुस जाओ.’’ रिशा ने जल्दी से कहा.

साहेब को इसी का तो इंतजार था. रिशा ने दरवाजा बंद करने को कहा था, इसलिए उस ने जल्दी से दरवाजा बंद कर के सिटकनी लगा दी. इस के बाद फुरती से रजाई में घुस गया और रिशा के हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘रिशा, तुम और तुम्हारी रजाई कितनी गरम है. अपनी तरह मुझे भी गरम कर दो न.’’

‘‘मेरी रजाई में तुम क्यों घुस आए?’’ रिशा हड़बड़ा कर बोली, ‘‘कोई आ गया तो बेकार में बात का बतंगड़ बनेगा.’’

‘‘रिशा, शायद तुम्हें पता नहीं कि प्यार में उन्हीं का नाम होता है, जो बदनाम होते हैं.’’

‘‘समझने की कोशिश करो साहेब,’’ रिशा ने कहा, ‘‘तुम लड़के हो, तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ेगा. लेकिन मैं किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रह जाऊंगी.’’

‘‘मैं चाहता भी यहीं हूं कि मेरे अलावा तुम्हारा मुंह कोई दूसरा न देखे. तुम्हारा यह मुंह सिर्फ मैं देखूं.’’ साहेब ने रजाई के अंदर ही रिशा को बांहों में भर कर कहा.

साहेब की इस हरकत से रिशा के शरीर में सिहरन सी दौड़ गई. साहेब के इस स्पर्श ने उसे इस तरह रोमांचित किया कि वह भी उस से लिपट गई. उस की पलकें लगभग मुंद सी गई थीं. साहेब ने इस का भरपूर लाभ उठाया और फिर वही हुआ, जो रिशा शादी के बाद करना चाहती थी.

उत्तर प्रदेश के जिला बाराबंकी के थाना रामसनेही घाट के गांव अंगदपुर बुढ़ेला में रहते थे मुंशी रावत. उस का भैंसों का कारोबार था. उस के परिवार में पत्नी राधा के अलावा 2 बेटियां और 2 बेटे थे. बड़ी बेटी आयशा का विवाह हो चुका था. रिशा हाईस्कूल में पढ़ रही थी. जबकि दोनों बेटे कैलाश और विमलेश अभी छोटे थे. वे भी पढ़ रहे थे.

बात उस समय की है, जब रिशा दसवीं में पढ़ रही थी. उस समय उस की उम्र 16 साल थी. जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही रिशा की खूबसूरती में एकदम से निखार आ गया था. उसे चाहने वालों की कमी नहीं थी. लेकिन उसे तो घनश्याम उर्फ साहेब भा गया था.

मुंशी रावत के मकान के बराबर वाले मकान में परशुराम रावत उर्फ परशू रहते थे. अगलबगल घर होने की वजह से दोनों परिवारों में खूब मेलजोल था. दोनों ही घरों के लोग एकदूसरे के घर बेरोकटोक आतेजाते थे. परशुराम की पत्नी का भतीजा था घनश्याम उर्फ साहेब. वह बाराबंकी के थाना असंद्रा के गांव देवीगंज का रहने वाला था. उस के पिता शंकरलाल रावत खेतीकिसानी करते थे. साहेब अकसर अपनी बुआ के यहां गांव अंगदपुर बुढ़ेला आताजाता रहता था.

इसी आनेजाने में उस की नजर खूबसूरत रिशा पर पड़ी तो पहली ही नजर में वह उसे दिल दे बैठा. जैसी लड़की की चाहत उस के दिल में थी, रिशा ठीक वैसी थी. रिशा का हसीन चेहरा उस की आंखों के रास्ते दिल में उतर गया.

साहेब को रिशा से मिलनेजुलने में वैसे भी कोई दिक्कत नहीं थी, क्योंकि उस की बुआ के घर वाले उस के यहां खूब आतेजाते थे. उन्हीं की वजह से वह भी रिशा के घर आनेजाने लगा. फिर जल्दी ही उस ने रिशा से दोस्ती गांठ ली. दोनों में खूब पटने लगी. वजह यह थी कि रिशा भी साहेब को पसंद करती थी. दोनों ही एकदूसरे को चाहते थे. इसलिए उन्हें इजहार करने में देर नहीं लगी.

दोनों घरों की छतें मिली थीं, इसलिए साहेब छत के रास्ते रिशा के पास पहुंच जाता था. इस के बाद छत पर बने कमरे में बैठ कर दोनों घंटों प्यार की बातें करते रहते. प्रेम के भंवर में डूबतीउतराती रिशा कहती, ‘‘साहेब, मैं ने तुम से प्यार ही नहीं किया, बल्कि तुम्हें अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया है. इस की लाज रखना. कभी मेरा दिल मत तोड़ना.’’

‘‘कैसी बात करती हो रिशा, तुम्हारा दिल अब मेरी जिंदगी है. हर कोई अपनी जिंदगी को संभाल कर रखता है.’’

‘‘इसी भरोसे पर तो मैं ने तुम से प्यार किया है. मन और आत्मा से वरण कर के सात जन्मों के लिए मैं तुम्हारी हो चुकी हूं. अब देखना है कि तुम किस हद तक अपना यह प्यार और वादा निभाते हो.’’

‘‘प्यार निभाने की कोई हद नहीं होती रिशा. प्यार और किया गया वादा निभाने के लिए मैं किसी भी हद तक जा सकता हूं.’’ साहेब ने रिशा को आश्वस्त किया.

‘‘पता नहीं, वह दिन कब आएगा, जब मैं पूरी तरह से तुम्हारी हो जाऊंगी.’’

‘‘विश्वास रखो रिशा, वह दिन जल्दी ही आएगा.’’ रिशा का हाथ अपने हाथों में ले कर साहेब ने कहा, ‘‘क्योंकि हमारी शादी में कोई अड़चन नहीं है. हम एक ही धर्मजाति के हैं. हमारा सामाजिक और आर्थिक स्तर भी एक जैसा है. सब से बड़ी बात तो यह कि हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं.’’

साहेब की बातें रिशा को यकीन दिलाती ही थीं, उसे खुद भी पूरा यकीन था कि उस की शादी में कोई अड़चन नहीं आएगी. इसलिए उसे अपने प्यार और भविष्य के प्रति कभी नकारात्मक विचार नहीं आते थे. उसे हर पल साहेब का इंतजार रहता था. उस के आते ही वह खुली आंखों से भविष्य के सपने देखने लगती थी.

नफरत की गोली – भाग 1

रात के करीब पौने 8 बज रहे थे. जनवरी की कड़ाके की ठंड में ज्यादातर लोग रजाइयों में दुबके  पड़े थे. जोदसिंह भी अपने पड़ोस में रहने वाले एक बुजुर्ग के पास बैठा हुआ अलाव पर हाथ सेंक रहा था.

उसे उन से बात करते हुए करीब 10-15 मिनट ही हुए होंगे कि एक तेज आवाज आई. वह आवाज किसी बम धमाके की नहीं बल्कि गोली चलने जैसी थी. आवाज सुनते ही वह चौंक गया क्योंकि यह आवाज उस के घर की तरफ से ही आई थी. उस के अलावा आसपास रहने वाले जिन लोगों ने भी वह आवाज सुनी, घरों के बाहर निकल आए और उस के घर की तरफ चल दिए. जोदसिंह भी बुजुर्ग के पास से उठ कर अपने घर पहुंच गया.

जोदसिंह जब घर पर पहुंचा तो बरामदे में उस के पिता प्रेमचंद, भाई टीटू, टिंकू आदि बैठे थे लेकिन पत्नी हेमलता व छोटे भाई बंटू की पत्नी मिथिलेश वहां पर नजर नहीं आ रही थी. आवाज जोदसिंह के घर वालों ने भी सुनी थी लेकिन उन्होंने इस बात पर गौर नहीं किया था कि आवाज उन के घर से ही आई है. बल्कि वे सोच रहे थे कि किसी बच्चे ने पटाखा फोड़ा होगा.

जोदसिंह के 2 मामा व बच्चे कमरे में बैठे टीवी देख रहे थे. आवाज सुन कर वह भी बाहर निकल आए थे परंतु जब उन्हें यह पता नहीं लग सका कि आवाज कहां से आई है तो वे फिर से टीवी देखने में मशगूल हो गए.

जोदसिंह पत्नी को आवाज लगाता हुआ कमरे में पहुंचा. उसी दौरान उस की नजर जीने के दरवाजे पर गई. वह दरवाजा बंद नजर आया. दरवाजा अंदर की तरफ से नहीं बल्कि छत की तरफ से बंद था. वह यह नहीं समझ पा रहा था कि छत पर कौन है, जिस ने दरवाजा बंद कर रखा है. उस ने अपने भाइयों को आवाज लगाई. टिंकू और टीटू दौड़ेदौडे़ उस के पास आए. उन को भी कुछ शक हुआ.

तीनों ने जीने के दरवाजे को खटखटाते हुए आवाज लगाई. जब कोई जवाब नहीं आया तो टीटू और टिंकू ने वह दरवाजा तोड़ दिया. दरवाजा टूटते ही तीनों छत पर पहुंच गए. छत पर बल्ब जल रहा था. बल्ब की रोशनी में उन्होंने जो कुछ देखा, उन के रोंगटे खड़े हो गए.

छत पर खून फैला पड़ा था और वहां जोदसिंह की पत्नी हेमलता लहूलुहान पड़ी थी जबकि हेमलता की देवरानी मिथिलेश छत पर ही दीवार से टेक लगाए बैठी थी. उस के सामने ही एक तमंचा पड़ा था. जोदसिंह लपक कर पत्नी के पास गया.

उस ने लहूलुहान पत्नी को हिलायाडुलाया लेकिन वह मर चुकी थी. पत्नी को इस हालत मे देख कर वह जोरजोर से रोने लगा. टीटू और टिंकू यह बात समझ गए कि भाभी की हत्या मिथिलेश ने ही की होगी. वे उसे घूर कर देखने लगे. इस से पहले कि दोनों भाई कुछ कहते मिथिलेश ने झट से सामने पड़ा हुआ तमंचा उठा लिया.

उस में दूसरी गोली भर कर धमकाते हुए बोली, ‘‘मेरे पास मत आना वरना गोली मार दूंगी.’’

उस के डर की वजह से उन दोनों की हिम्मत उस पास जाने की नहीं हुई. जोदसिंह की रोने की आवाज सुन कर उस के घर के बाहर खड़े पड़ोसी भी छत पर आ गए.

उन्होंने भी हेमलता की लाश देखी तो वे भी हैरान रह गए. मगर उन्हें इस बात पर भरोसा नहीं हो रहा था कि हाथ में तमंचा लिए जो मिथिलेश खड़ी है उस ने यह हत्या की होगी. इसी बीच किसी ने फोन कर के सूचना थाना शमसाबाद में भी दे दी. यह बात 20 जनवरी, 2014 की है.

करीब 10 मिनट बाद गश्त पर घूम रहे 2 पुलिसकर्मियों ने जोदसिंह के घर के बाहर भीड़ लगी देखी तो वे भी पूछताछ करते हुए छत पर पहुंच गए. जबकि मिथिलेश के डर की वजह से मोहल्ले का कोई भी आदमी छत पर जाने की हिम्मत नहीं कर रहा था.

छत पर पहुंच कर पुलिस वालों को लगा कि मिथिलेश नाम की एक महिला ने अपनी ही जेठानी की गोली मार कर हत्या कर दी है. तो उन्होंने तुरंत फोन द्वारा यह सूचना थानाप्रभारी अरुण कुमार यादव को दे दी.

मिथिलेश के हाथ में तमंचा था. उस से वह किसी और के ऊपर गोली न चला दे, इसलिए उन की कोशिश उस से तमंचा हासिल करने की थी. उन्होंने मिथिलेश को समझाया और तमंचा फेंकने को कहा. लेकिन उस ने तमंचा नहीं फेंका बल्कि वह अपनी जेठानी की लाश को ही टकटकी लगाए देख रही थी. फिर हिम्मत कर के धीरेधीरे वे उस की ओर बढ़ने लगे.

उन्हें देख कर मिथिलेश बिलकुल भी नहीं डरी, जबकि पुलिसवालों को इसी बात का डर लग रहा था कि कहीं वह उन के ऊपर गोली न चला दे. फिर लपक कर उन्होंने मिथिलेश का वो हाथ पकड़ लिया जिस में वह तमंचा पकड़े हुए थी. जल्दी से तमंचा कब्जे में ले कर उन्होंने मिथिलेश को भी हिरासत में ले लिया. उन्होंने तमंचा चैक किया तो उस में कारतूस भरा हुआ था.

उसी समय शमसाबाद के थानाप्रभारी अरुण कुमार यादव सबइंसपेक्टर दयाराम, विनोद कुमार, कांस्टेबल कृष्ण, सतेंद्र, हरिओम आदि के साथ वहां पहुंच गए. अब तक घर में हेमलता की मौत को ले कर कोहराम सा मच गया था.

थानाप्रभारी ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो देखा कि उस का सिर फटा हुआ था साथ ही सिर में गोली लगने का निशान भी साफ नजर आ रहा था. इस से साफ लग रहा था कि उस की हत्या गोली मार कर की होगी.मरने से पहले हेमलता ने कोई विरोध किया हो, ऐसे कोई सुबूत भी वहां नहीं मिले. छत पर ही बने चूल्हे में एक हथौड़ा भी मिला. उस पर खून लगा हुआ था. पुलिस ने हथौड़ा भी बरामद कर लिया.

पुलिस क्या वहां मौजूद सभी लोगों के मन में बस एक ही सवाल उठ रहा था कि आखिर मिथिलेश ने अपनी जेठानी का कत्ल क्यों किया और वो भी गोली मार कर.

सूचना मिलने पर आगरा के एसएसपी शलभ माथुर और एसपी (देहात) के.पी.एस. यादव भी मौके पर पहुंच गए. उन्होंने भी लाश का निरीक्षण कर मौका मुआयना किया. उन्होंने मिथिलेश और परिवार के अन्य लोगों से भी बात की. इस के बाद वे थानाप्रभारी को कुछ निर्देश देने के बाद चले गए. उन के जाने के बाद थानाप्रभारी ने रात में ही लाश का पंचनामा करने के बाद उसे पोस्टमार्टम के लिए आगरा के एस.एन. मैडिकल कालेज भिजवा दिया.

पुलिस ने मिथिलेश को पहले ही हिरासत में ले रखा था. उसे थाने ले जा कर जब उस से जेठानी की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उस ने बिना किसी डर के स्वीकार कर लिया कि उस की जेठानी हेमलता की हत्या कर के अपने पति की हत्या का बदला लिया है. फिर उस ने हेमलता की हत्या की जो कहानी बताई, वह चौंकाने वाली निकली.

उत्तर प्रदेश के जिला आगरा के मलपुरा क्षेत्र का एक गांव है नगल प्रताप. यहां के रहने वाले एक किसान निब्बोराम के 4 बच्चों में मिथिलेश सब से बड़ी बेटी थी. निब्बोराम की आर्थिक हालत इस लायक नहीं थी कि वह बच्चों को पढ़ालिखा सके. जैसेतैसे कर के वह परिवार को पाल रहा था.

मिथिलेश जब सयानी हुई तो उन्होंने ज्यादा जांचपड़ताल किए बिना शमसाबाद थाने के शंकरपुर गांव में रहने वाले प्रेमसिंह के बेटे बंटू के साथ उस की शादी कर दी. जिस बिचौलिए ने यह शादी कराई थी, उस ने निब्बोराम को बंटू के बारे में सही जानकारी नहीं दी थी.

पत्नी के लिए पिता के खून से रंगे हाथ

4 लाख में खरीदी मौत – भाग 1

सुबह खेतों की ओर जाते हुए कुछ लोगों ने एक आदमी को पड़े देखा तो उन्हें लगा, शायद कोई शराब पी कर पड़ा है. लेकिन जब उन्होंने नजदीक जा कर देखा तो पता चला कि वह तो मरा पड़ा है. वह खून से लथपथ था, इस से लोगों ने अंदाजा लगाया कि यह हत्या का मामला है.

हत्या का अंदाजा होते ही वहां मौजूद लोगों में से किसी ने इस बात की जानकारी ग्रामप्रधान निर्मल सिंह को दे दी. कुछ ही देर में वहां अच्छीखासी भीड़ लग गई. लाश जसपुर कोतवाली के अंतर्गत आने वाले गांव अहमदनगर के पास खेतों में पड़ी थी. ग्रामप्रधान निर्मल सिंह की सूचना पर जसपुर कोतवाली के एसएसआई संजीव कुमार पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

निरीक्षण में पुलिस ने देखा कि मृतक के शरीर पर किसी भी तरह का चोट का कोई निशान नहीं था. उस की हत्या गोली मार कर की गई थी. गोली आंख के पास लगी थी, जो छेद कर उस पार गले के पास से निकल गई थी.

मृतक की शिनाख्त के लिए पुलिस को किसी तरह की जहमत नहीं उठानी पड़ी. क्योंकि उसे वहां लगभग हर कोई जानता था. मृतक जसपुर के मोहल्ला गांगूवाला का रहने वाला जयप्रकाश था, जो घूमघूम पूरे दिन ठेले पर नीरा (खजूर के पेड़ का पानी) बेचता था. यही वजह थी कि अधिकांश लोग उसे जानतेपहचानते थे. हत्या की सूचना पा कर सीओ प्रकाशचंद आर्य भी घटनास्थल पर आ गए थे.

मृतक के कपड़ों की तलाशी में पुलिस को उस की जेब से पहचान पत्र, फोटो और 4 हजार रुपए नकद मिले थे. इस से यह साफ हो गया था कि मृतक की हत्या लूटपाट के लिए नही की गई थी.

साथ आई फोरेंसिक टीम अपना काम करने लगी तो एसएसआई संजीव कुमार ने जयप्रकाश की हत्या की सूचना उस के घर वालों को दिलवा कर वहीं बुला लिया. हत्या की सूचना पा कर घर वाले रोतेबिलखते वहां आ पहुंचे. पूछताछ में पता चला कि मृतक इधर कई दिनों से काशीपुर में रहने वाली अपनी बहन केला देवी के यहां रह रहा था. इस के बाद पुलिस के सामने यह सवाल खड़ा हो गया कि मृतक जब काशीपुर में रह रहा था तो इस की हत्या यहां कैसे हुई?

इसी पूछताछ में मृतक जयप्रकाश की पत्नी सुनीता ने बताया था कि कुछ दिनों पहले मृतक ने अपना मकान 9 लाख रुपए में बेचा था. मकान बेचने के बाद से ही वह अपनी बहन के यहां रह रहा था. 9 लाख रुपए एक मोटी रकम होती है. उस के लिए भी उस की हत्या हो सकती थी. यह सब जांच के बाद ही पता चल सकता था. पुलिस घटना की काररवाई निपटाते हुए लाश का पंचनामा तैयार कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने की तैयारी कर रही थी कि तभी मृतक जयप्रकाश की बहन केला देवी आ गई.

आते ही केला देवी भाई की लाश से लिपट कर जोरजोर से रोने लगी. पुलिस को जब पता चला कि यही उस की बहन केला देवी है, जिस के यहां जयप्रकाश अपने मकान के रुपए ले कर रहा था तो पुलिस ने उस से भी पूछताछ करना उचित समझा.

सांत्वना दे कर पुलिस ने केला देवी से पूछताछ की तो उस ने बताया कि 11 अक्तूबर को करवा चौथ होने की वजह से जयप्रकाश अपने घर जाने की बात कह कर उस के घर से चला आया था. इस के बाद वह कहां गया, उस के साथ क्या हुआ, उसे कोई जानकारी नहीं थी.

पुलिस केला देवी से पूछताछ कर रही थी कि तभी मृतक जयप्रकाश की मां बिरमो देवी आ गई. वह बहू की ओर इशारा कर के रोते हुए कहने लगी, ‘‘अपने यार के साथ मिल कर तू ने ही मेरे बेटे को मरवाया है. तू हत्यारिन है. मेरे बेटे को मरवा कर तेरा कलेजा ठंडा हो गया न, अब मौज कर अपने यार के साथ.’’

बिरमो देवी की बातें सुन कर पुलिस के कान खड़े हो गए. पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि यह अवैध संबंधों में हुई हत्या का मामला है. पुलिस को लगा, अब जल्दी ही इस मामले का खुलासा हो जाएगा. इस के बाद पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.

बिरमो देवी की बातों से पुलिस ने इसे अवैध संबंध में हुई हत्या का मामला माना था, इसलिए अंतिम संस्कार होने के तुरंत बाद पुलिस मृतक जयप्रकाश के घर पूछताछ के लिए पहुंच गई. मृतक की मां बिरमो देवी घर में नहीं थी, इसलिए पुलिस उस की पत्नी सुनीता और बच्चों से पूछताछ करने लगी.

सुनीता और बच्चों ने बताया कि करवा चौथ को जयप्रकाश घर नहीं आया था. उसे किस ने, कब और क्यों मारा, उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है. पत्नी और बच्चों के खिलाफ पुलिस को अब तक की जांच में कोई सुबूत नहीं मिला था, इसलिए पुलिस इस बात पर भी विचार करने लगी कि कहीं रुपयों की वजह से तो जयप्रकाश की हत्या नहीं हुई.

इस के बाद पुलिस ने मकान खरीदने वाले से पूछताछ की तो उस ने बताया कि मकान का सौदा होते ही उस ने पूरी रकम अदा कर दी थी. उस के बाद जयप्रकाश ने पैसों का क्या किया, उसे कोई जानकारी नहीं थी.

पुलिस जयप्रकाश की मां बिरमो देवी से पूछताछ करना चाहती थी, इसलिए एक बार फिर उस के घर गई. इस बार की पूछताछ में उस ने पुलिस को बताया कि उस की बहू सुनीता का चमनबाग के रहने वाले मास्टर हरजीत सिंह से प्रेमसंबंध है. जब देखो, तब वह उसी के घर में पड़ा रहता था.

जयप्रकाश ने कई बार सुनीता को समझाया था, लेकिन सुनीता मास्टर के प्यार में इस कदर पागल थी कि मास्टर के लिए वह पति से लड़ने लगती थी. सुनीता का मास्टर हरजीत सिंह से चक्कर था, इसलिए वह उस की तरफदारी करती थी. उस का बड़ा बेटा विशाल भी उस के साथ उस की तरफदारी करता था.

बिरमो देवी ने पूरे विश्वास के साथ पुलिस से कहा था कि सुनीता ने ही मास्टर हरजीत सिंह के साथ मिल कर जयप्रकाश की हत्या की है. बिरमो देवी के इसी बयान को आधार बना कर पुलिस ने उस की ओर से मास्टर हरजीत सिंह, उस के बेटे दीपक, मृतक जयप्रकाश की पत्नी सुनीता और बेटे विशाल के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया था.

नामजद मुकदमा दर्ज होने के बाद जसपुर कोतवाली पुलिस ने मृतक जयप्रकाश की पत्नी सुनीता और मास्टर हरजीत सिंह को हिरासत में ले कर पूछताछ शुरू कर दी. काफी पूछताछ के बाद भी जब दोनों ने स्वीकार नहीं किया कि उन्होंने हत्या की है तो पुलिस चक्कर में पड़ गई. क्योंकि पुलिस इस मामले को बड़े हलके में ले रही थी. जब सुनीता और हरजीत ने हत्या करने से साफ मना कर दिया और पुलिस को उन के हत्या में शामिल होने का कोई सुबूत नहीं मिला तो पुलिस के लिए परेशानी बढ़ गई.

कहानी के अगले अंक में पढ़ें.. जयप्रकाश ने क्यों दी अपनी ही पत्नी और बेटे की सुपारी?

एहसान के बदले मिली मौत – भाग 1

तेज होती तालियों की गूंज उसे इस बात का अहसास करा रही थी कि वह ‘मिस जर्मनी’ के खिताब की हकदार है. वैसे तो 100 से ज्यादा सुंदरियां प्रतियोगिता में भाग ले रही थीं, लेकिन उन में से कोई भी उस से ज्यादा सुंदर नहीं थी. उस ने चोर निगाहों से सब को देखा. हर निगाह उसी की खूबसूरती को निहार रही थी. उस की झील सी नीली आंखें, रेशम की तरह मुलायम गाल, गुलाब की पंखुडि़यों से नाजुक होंठ, जिसे कोई होंठों से भी छू ले तो निशान पड़ जाए. चेहरा ही क्या, अंग अंग का कोई जवाब नहीं था.

आखिरी राउंड पूरा हो चुका था. सभी दिल थामे जजों के फैसले के इंतजार में बैठे थे. सभी सुंदरियों के दिल धकधक कर रहे थे. तभी स्टेज से एक आवाज उभरी, ‘‘अब सभी अपना दिल थाम लें. इंतजार की घडि़यां खत्म हुईं. इस सौंदर्य प्रतियोगिता में वैसे तो हर हसीना की खूबसूरती काबिलेतारीफ है, लेकिन ‘मिस जर्मनी’ का ताज जिस के सिर की शोभा बनेगा, वह खूबसूरत होने के साथसाथ खुशनसीब भी है. उस खूबसूरत हसीना का नाम है, मिस ततजाना.’’

एक बार फिर हौल तालियों से गूंज उठा. मुसकान और अदाएं बिखेरती ततजाना आगे आई तो पूर्व मिस जर्मनी के हाथों में हीरों जडि़त ताज उस के माथे को चूमने को बेताब था. खुशी के अांसू छलक आए जब ततजाना के सिर पर ताज सजाया गया. होंठ थरथरा रहे थे उस के, लेकिन चाह कर भी जुबान नहीं खुल रही थी. तभी उस के कानों में आवाज पड़ी. ‘‘तत, आज कालेज नहीं जाना क्या? देखो, कितना समय हो गया है?’’

ततजाना की आंखें खुल गईं. वह जो खूबसूरत सपना देख रही थी, टूट गया. वह फुसफुसाई, ‘‘कुदरत ने तो मेरे साथ मजाक किया ही था, अब ख्वाब भी मेरी बदसूरती का उपहास उड़ाने लगे हैं.’’

एक लंबी आह भरी ततजाना ने. ‘काश! ख्वाब सच होता.’ लेकिन काश और हकीकत की लंबी दूरी आईने तक पहुंचते ही खत्म हो गई. आईना सच कह रहा था. कुदरत ने वाकई उस के साथ नाइंसाफी की थी. चेहरा तो बदसूरत था ही, शरीर भी लड़कों की तरह सपाट.

उस की आंखों से आंसू टपक पड़े. उस ने एक बार फिर पहले कुदरत को कोसा और उस के बाद जननी को. वह इतनी बदसूरत थी तो जन्म देते ही मां ने उस का गला क्यों नहीं दबा दिया? मर जाती तो अच्छा रहता. उसे ये दिन देखने के लिए जिंदा क्यों रखा? कब तक वह इस बदसूरत शरीर का बोझ ढोती रहेगी?

ततजाना की कोई सहेली तक नहीं थी. चाहने वाले किसी लड़के की बात तो उस के लिए सपने जैसी थी. कालेज हो, कोई पार्टी हो या घर, हर जगह उस के साथ तनहाई ही रहती थी. बात यहीं तक रहती तो ठीक था, उस समय ततजाना का दिल रो उठता, जब कालेज में लड़के लड़कियां उस का मजाक उड़ाते. वह खून का घूंट पी कर रह जाती. उसे जिंदगी से कोफ्त होने लगती, लेकिन वह कर भी क्या सकती थी.

मां अकसर समझाती रहती, ‘‘बेटा, सूरत ही सब कुछ नहीं होती, सीरत अच्छी होनी चाहिए.’’

‘‘सीरत कौन देखता है मां, पूरी दुनिया खूबसूरती की गुलाम है.’’ कह कर ततजाना सिसक उठती, ‘‘कोई विरला ही सीरत देखता है. लेकिन मेरे भाग्य में वह भी नहीं है. भाग्यशाली ही होती तो बदसूरत क्यों होती?’’

मां चुप हो जाती. सच्चाई उसे भी पता थी. उसे भी चिंता खाए जा रही थी कि कौन थामेगा बेटी का हाथ? जिंदगी में वह किसी की मोहताज न रहे, यही सोच कर वह ततजाना को पढ़ाई के साथसाथ ब्यूटीशियन का भी कोर्स करवा रही थी. होश संभालने के बाद अखबार में छपे उस विज्ञापन को देख कर पहली बार उस के चेहरे पर उम्मीद की कुछ लकीरें उभरी थीं.

वह विज्ञापन मशहूर प्लास्टिक सर्जन डा. फेंज जसेल का था. विज्ञापन के अनुसार, डा. फेंज पूरे यूरोप में विख्यात थे. उन्होंने अपने नरीम्बर्ग स्थित ‘नरीम्बर्ग विला क्लीनिक’ में जाने कितनों को नई जिंदगी दी थी प्लास्टिक सर्जरी कर के.

सन 1973 में जन्मी ततजाना 18 साल की हो गई थी. जब से वह समझदार हुई थी, बदसूरती को ले कर वह पूरी तरह निराश हो चुकी थी. लेकिन डा. फेंज का विज्ञापन पढ़ कर उस के मन में आशा की एक किरण जागी थी. कुदरत को चुनौती देने वाला कोई तो है इस धरती पर. लेकिन अगले ही पल उस की यह उम्मीद धूल में मिलती नजर आई, जब उसे खयाल आया कि डा. फेंज की फीस कितनी होगी?

वह शक्लसूरत ही नहीं, रुपयोंपैसों से भी गरीब थी. घर की हालत बस काम चलाऊ थी. वह इस से बेखबर नहीं थी. फिर भी खयाल आया कि एक बार मां से बात कर ले. लेकिन तुरंत ही इस खयाल को त्याग देना पड़ा, क्योंकि घर चलाने के लिए मां एक ड्राइविंग स्कूल चलाती थी. बाप भी सौतेला था, इसलिए उस से उम्मीद करना बेकार था.

बदसूरती ने वैसे तो ततजाना को तोड़ कर रख दिया था. एक तरह से जीवन से मोह खत्म सा हो गया था, इस के बावजूद आत्मविश्वास कहीं दबा बैठा था. वही ततजाना को हिम्मत दे रहा था. उस ने मां को दिल की बात बताई और बाम्बर्ग जहां वह रहती थी, उसे छोड़ कर जा पहुंची नरीम्बर्ग डा. फेंज जसेल की क्लीनिक.

कारीगरी का बेहतरीन नमूना था नरीम्बर्ग विला. सफेद संगमरमर से बने भव्य महल में डा. फेंज का निवास और क्लीनिक दोनों थे. अपनी हैसियत देख कर ततजाना के पांव ठिठक रहे थे. किसी तरह साहस बटोर कर उस ने रिसेप्शन पर बैठी खूबसूरत रिसेप्शनिस्ट से डा. फेंज से मिलने का टाइम लिया. आशा निराशा में डूबती ततजाना सोफे पर बैठ गई. करीब आधे घंटे बाद उसे डा. फेंज से मिलने का मौका मिला. अधेड़ डा. फेंज के चेहरे पर जवानों सी ताजगी थी.

कहते हैं, अगर डाक्टर का व्यक्तित्व अच्छा हो तो मरीज इलाज से पहले ही आधा ठीक हो जाता है. ततजाना को कुछ ऐसा ही अहसास हुआ था. डा. फेंज जसेल ने उस की जांच के बाद कहा कि इलाज के बाद उस की खूबसूरती ऐसी निखर जाएगी कि देखते ही बनेगी. मगर इस के लिए उन्हें 20 औपरेशन करने पड़ेंगे और एक औपरेशन का खर्च 70 हजार डालर के करीब आएगा.

इलाज का खर्च सुन कर ततजाना का खूबसूरत बन जाने का उत्साह तुरंत मायूसी में बदल गया. डा. फेंज ने उस के मन की बात भांप ली. उन्होंने कहा, ‘‘खर्च ज्यादा है, उठा नहीं पाओगी?’’

ततजाना कुछ कहती, उस के पहले ही डा. फेंज ने कुछ सोचते हुए गंभीरता से कहा, ‘‘इस का भी रास्ता है, अगर तुम चाहो तो…’’

नजर उठा कर ततजाना ने डा. फेंज को देखा. वह कुछ कहना चाहती थी, लेकिन जुबान चिपक सी गई. उस के चेहरे के भावों को पढ़ कर डा. फेंज ने आगे कहा, ‘‘घबराने या मायूस होने की जरूरत नहीं है. बस, तुम्हें मेरे क्लीनिक में नौकरी करनी होगी. वेतन के बदले मैं तुम्हारी सर्जरी कर दूंगा.’’

अपना सपना साकार होता देख ततजाना की आंखों में खुशी के आंसू भर आए. गला भर्रा उठा और होंठ थरथराए, ‘‘मुझे मंजूर है.’’

ततजाना बस इतना ही कह पाई.

सन 1986 में ततजाना अपना घर छोड़ कर नरीम्बर्ग आ गई, एक नए जीवन की शुरुआत की उम्मीद ले कर. वह लगन से अपनी ड्यूटी करने लगी तो डा. फेंज ने उस के शरीर की सर्जरी शुरू कर दी. पहला औपरेशन उस के सपाट स्तनों का हुआ, जो कामयाब रहा. इस के बाद आंखों के पास नाक, गाल, ठोढी और गर्दन की सर्जरी हुई.

मिसकाल बनी काल – भाग 1

उन्नाव जिले के गांव हरचंदपुर के रहने वाले रफीक के परिवार में पत्नी रेहाना के अलावा 2 बेटे थे  और 2 बेटियां. खेतीकिसानी के काम में ज्यादा आय न होने के बावजूद रफीक चाहते थे कि उन के बच्चे पढ़लिख कर किसी लायक बन जाएं. इसीलिए उन्होंने अपनी बड़ी बेटी सोफिया को पढ़ाने में कोई कोताही नहीं की थी. सोफिया हाईस्कूल कर के आगे की पढ़ाई कर रही थी. उसे चूंकि स्कूल जाना होता था, इसलिए रफीक ने उसे मोबाइल फोन ले कर दे दिया था, ताकि वक्तजरूरत पर घर से संपर्क कर सके. नातेरिश्तेदारों के फोन भी उसी फोन पर आते थे.

जैसा कि आजकल के बच्चे करते हैं, फोन मिलने के बाद सोफिया का ज्यादातर वक्त फोन पर ही गुजरने लगा. सहेलियों को एसएमएस भेजना, उन से लंबीलंबी बातें करना उस की आदत में शुमार हो गया. यहां तक कि उस के मोबाइल पर कोई मिसकाल भी आती तो वह उस नंबर पर फोन कर के जरूर पूछती कि मिसकाल किस ने दी.

एक दिन सोफिया के फोन पर एक मिसकाल आई तो उस ने फोन कर के पूछा कि वह किस का नंबर है. वह नंबर लखनऊ के यासीनगंज स्थित मोअज्जम नगर के रहने वाले सचिन का था. उस ने सोफिया को बताया कि किसी और का नंबर लगाते वक्त धोखे से उस का नंबर मिल गया होगा और काल चली गई होगी.

बातचीत हुई तो सचिन ने सोफिया को अपना नाम ही नहीं, बल्कि यह भी बता दिया कि वह लखनऊ के मोअज्जमनगर का रहने वाला है. बात हालांकि वहीं खत्म हो जानी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. सोफिया को सचिन की बातें इतनी अच्छी लगीं कि उस ने उस का नंबर अपने मोबाइल में सेव कर लिया.

सचिन को भी सोफिया से बात करना अच्छा लगा था. इसलिए उस ने भी बिना नाम के ही उस का नंबर अपने मोबाइल फोन में सेव कर लिया था. करीब एक हफ्ते बाद अचानक सचिन का फोन आया तो मोबाइल स्क्रीन पर उस का नाम देख कर सोफिया खुशी से उछल पड़ी. उस ने काल रिसीव की तो दूसरी ओर से कहा गया, ‘‘मैं सचिन बोल रहा हूं. पहचाना मुझे?’’

‘‘तुम्हारा नंबर मेरे मोबाइल में सेव है.’’ सोफिया ने खुश हो कर कहा, ‘‘तुम्हारी आवाज सुनने से पहले ही पता चल गया था कि तुम हो. कहो, कैसे हो सचिन?’’

‘‘अरे वाह, तुम ने मेरा नंबर सेव कर रखा है. मैं तो डर रहा था कि कहीं बुरा न मान जाओ. इसलिए फोन भी नहीं किया.’’ सचिन ने कहा तो सोफिया बोली, ‘‘बुरा क्यों मानूंगी, तुम ने ऐसा कुछ तो कहा नहीं था, जो बुरा मानने लायक हो.’’

सोफिया की खुशी से खनकती आवाज सुन कर सचिन को लगा कि लड़की उस से बातचीत करने में रुचि ले रही है. इसलिए उस ने इस सिलसिले को आगे बढ़ाने के लिए कहा, ‘‘मैं खुशनसीब हूं, जो तुम ने मेरे दोबारा फोन करने का बुरा नहीं माना. पर हो सकता है, अब बुरा मान जाओ.’’

‘‘क्यों, मैं भला बुरा क्यों मानूंगी?’’

‘‘इसलिए कि मैं यह जानना चाहता हूं कि मैं जिस से बात कर रहा हूं, उस का नाम क्या है. बोलो, बताओगी?’’

‘‘इस में बुरा मानने की क्या बात है. मेरा नाम सोफिया है और मैं उन्नाव के गांव हरचंदपुर की रहने वाली हूं.’’

‘‘जब इतना बता दिया है तो फिर यह भी बता दो कि करती क्या हो, दिखती कैसी हो? और भी कुछ बताना चाहो तो वह भी.’’ सचिन ने सोफिया को बातों के जाल में उलझाने के लिए कहा तो सोफिया हलकी सी हंसी के साथ बोली, ‘‘मैं हाईस्कूल कर चुकी हूं, आगे पढ़ रही हूं. मुझे फोन पर बात करना बहुत अच्छा लगता है. रही बात दिखने की तो मेरी आवाज से खुद ही अंदाजा लगा लो कि मैं कैसी दिखती हूं.’’

‘‘तुम्हारी आवाज और मेरा दिल, दोनों ही एक बात कह रहे हैं कि तुम बहुत खूबसूरत होगी. खूबसूरत आंखें, गोरा रंग, छरहरा बदन.’’ सचिन ने कहा तो सोफिया हंसते हुए बोली, ‘‘तुम ज्योतिषी हो क्या? बिना देखे ही मेरे बारे में सारी बातें पता चल गईं.’’

सोफिया की इस बात से सचिन को उस में और भी दिलचस्पी बढ़ गई. वह उस से लंबी बात करना चाहता था. लेकिन सोफिया को स्कूल जाना था. इसलिए उस ने सचिन से कहा, ‘‘अभी नहीं, पढ़ाई भी जरूरी है. फोन करना हो तो रात में करना. तब आराम से बात हो जाएगी.’’

रात को फोन करने की बात सुन कर सचिन मन ही मन खिल उठा. उस का वह दिन बड़ी बेचैनी से गुजरा. रात हुई तो उस ने सोफिया को फोन किया. सोफिया सचिन के ही फोन का इंतजार कर रही थी. उसे पूरा यकीन था कि वह फोन जरूर करेगा. उस ने सचिन से बड़े प्यार से बात की. प्यार की सही परिभाषा को न समझने वाला उस का किशोर मन समझ रहा था कि सचिन उसे प्यार करने लगा है. इसलिए वह प्यार की ही बातें करना चाहती थी.

उस रात बातों का सिलसिला शुरू हुआ तो फिर आगे बढ़ता ही गया. अब सोफिया रात को रोजाना उस के फोन का इंतजार करती थी. इस के लिए दोनों के बीच समय तय था.

कामकाज से निपट कर रात में जैसे ही वह अपने कमरे में जाती, सचिन का फोन आ जाता. वह कानों में ईयरफोन लगा कर उस से देर तक बातें करती रहती. अब रात में वह अपना फोन साइलेंट मोड पर रखने लगी थी. उधर सचिन जो भी कमाता था, उस में से उस का ज्यादातर पैसा फोन पर ही खर्च होने लगा था.

एक दिन बातों ही बातों में सचिन ने कहा, ‘‘सोफिया, मुझे तुम से प्यार हो गया है. अब मैं तुम्हारे बिना रह नहीं पाऊंगा.’’

दरअसल इस बीच सोफिया की बातों से सचिन ने अंदाजा लगा लिया था कि जब तक वह सोफिया से प्यार की बात नहीं करेगा, वह उस के चंगुल में नहीं फंसेगी. इसीलिए उस ने यह चाल चली थी.

सोफिया तो कब से उस के मुंह से यही सुनने को तरस रही थी. वह बोली, ‘‘सचिन, जो हाल तुम्हारा है, वही मेरा भी है. मैं भी तुम से यही बात कहना चाहती थी. पर समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे कहूं. मैं गांव की रहने वाली सीधीसादी लड़की हूं. जबकि तुम शहर में रहते हो. सोचती थी कि मेरे बारे में पता नहीं क्या समझ बैठोगे, इसलिए कह नहीं पा रही थी. मैं भी तुम से उतना ही प्यार करती हूं, जितना तुम मुझ से करते हो.’’

सोफिया और सचिन भले ही दूरदूर रहते थे, पर दोनों अपने को एकदूसरे के बहुत करीब महसूस करते थे. बातों ने उन के बीच की सारी दूरियां मिटा दी थीं. सोफिया और सचिन को लगने लगा था कि अब वे एकदूसरे के बिना नहीं रह पाएंगे.

नादान सोफ़िया कैसे फंसी शातिर सचिन के जाल में? पढ़िए कहानी के अगले भाग में.

नादानी का नतीजा – भाग 3

पुलिस ने राहुल और उस के भाइयों को गिरफ्तार करने के प्रयास किए तो राहुल ने वकील के माध्यम से ममता को अदालत में पेश कर के धारा 164 के तहत अपने पक्ष में बयान दिला दिया. ममता बालिग थी ही, अदालत ने ममता को राहुल के साथ रहने की इजाजत दे दी. राहुल बंगाली बाबू के सामने ही उन की बेटी को ले कर अपने घर में रहने लगा. राहुल उन्हें जलील करने के लिए छत पर खुलेआम ममता के गले में बांहें डाल कर अश्लील हरकतें करता.

बंगाली बाबू ने टोंका तो राहुल ही नहीं, प्रवीण, प्रमोद, दीपू और सुनील उन्हें गंदीगंदी गालियां देते हुए धमकी देने लगे कि वे उन की छोटी बेटी को भी ममता की तरह भगा ले जाएंगे. हद तो तब हो गई, जब एक दिन राहुल ने अपने भाइयों के साथ बंगाली बाबू के घर में घुस कर उन से मारपीट कर के उन से कहने लगा कि वह अपना मकान उन के नाम करा दें.

नेहा का प्रेमी प्रवीण भी अपने भाई राहुल की हर बुरे काम में पूरा सहयोग कर रहा था. यह सब देख कर वह डर गई कि एक दिन ये लोग यही सब उस की मां के साथ भी कर सकते हैं. यही सोच कर उस ने दृढ़ निश्चय कर लिया कि अब वह प्रवीण से अपना हर तरह का संबंध खत्म कर लेगी. प्रवीण की हरकतों को देख कर उसे उस से जितना प्यार था, उस से कहीं ज्यादा नफरत हो गई.

नेहा को प्रवीण और उस के भाइयों से डर भी लगने लगा, क्योंकि उन्होंने बंगाली बाबू और उन की पत्नी के साथ मारपीट भी की थी. यह देख कर उसे लगा कि ये लोग उस की मां पर भी हाथ उठा सकते हैं. उस के भाई के साथ भी कुछ उलटासीधा कर सकते हैं.

इस के बाद नेहा ने प्रवीण से मिलनाजुलना ही नहीं, फोन पर बात करना भी बंद कर दिया. प्रवीण उसे मिलने के लिए बुलाता तो वह इग्नोर कर देती. अब वह घर से भी नहीं निकलती थी. वह घर में रह कर अपनी पढ़ाई में लगी रहती. यही सब करते 10-12 दिन हो गए. इस बीच उस ने अपनी मां से भी कह दिया था कि उस से एक गलती हो गई है, जिसे वह सुधारने की कोशिश कर रही है.

कुसुमवती को पता था कि उन की बेटी से कौन सी गलती हुई है. वह चाहती थीं कि वह स्वयं ही तय करे कि प्रवीण उस के लायक है या नहीं. शायद नेहा समझ गई थी कि प्रवीण उस के लायक नहीं है. इसीलिए वह उसे इग्नोर कर रही थी.

प्रवीण को इस बात का अहसास हुआ तो  नेहा का यह व्यवहार उसे पसंद नहीं आया. वह उस से मिल कर उस के बदले व्यवहार की वजह पूछना चाहता था. जबकि वह उसे मिलने का मौका नहीं दे रही थी, इसलिए एक दिन प्रवीण उस के पीछेपीछे उस की कोचिंग पहुंच गया. नेहा ने उस से बात नहीं की तो घर आ कर उस ने उसे फोन किया.

नेहा को पता था कि प्रवीण सीधे उस का पीछा छोड़ने वाला नहीं है. इसलिए उस ने फोन रिसीव कर के कहा, ‘‘आज के बाद तुम कभी मुझे फोन मत करना, क्योंकि अब मैं तुम से कोई संबंध नहीं रखना चाहती. यह हमारी अंतिम बातचीत है.’’

इतना कह कर नेहा ने फोन काट दिया.

नेहा की इस बात से प्रवीण भन्ना उठा. उसे लगा कि नेहा ने उसे इस तरह जवाब दे कर उस की दबंगई और मर्दानगी को थप्पड़ मारा है. गुस्से में सीधे वह नेहा के घर जा पहुंचा. नेहा उस समय अपने कमरे में पोछा लगा रही थी, साथ ही वाशिंग मशीन में कपड़े भी धुल रही थी. पानी की मोटर भी चल रही थी. पोछा की ही वजह से उस ने मकान के सभी दरवाजे खोल रखे थे. उसे क्या पता था कि उस के मना करने के बावजूद प्रवीण जबरदस्ती उस के घर आ जाएगा.

प्रवीण ने कमरे में जा कर नेहा के गाल पर एक थप्पड़ मार कर कहा, ‘‘मैं मिलने के लिए बुला रहा हूं तो कह रही है कि मैं नहीं आऊंगी, तेरी यह मजाल. मैं चाहूं तो तुझे अभी उठा ले जाऊं और किसी वेश्या बाजार में बेच दूं, मेरा कोई कुछ नहीं कर पाएगा. पुलिस भी हमारे ऊपर हाथ नहीं डाल सकती. देख तो रही है, ममता मेरे घर में है. उस का बाप ही नहीं, पुलिस भी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाई.’’

प्रवीण की इस हरकत पर नेहा को भी गुस्सा आ गया. वह उस से भिड़ गई. इस पर प्रवीण बौखला उठा और उस ने नेहा की ऐसी धुनाई की कि उस का एक दांत टूट गया और होठ भी फट गया. इस तरह नेहा पर अपना गुस्सा उतार कर  प्रवीण जिस तरह आया था, उसी तरह चला गया.

प्रवीण के जाने के बाद नेहा ने अपनी हालत पर गौर किया तो उसे लगा कि जब इस सब की जानकारी मां को होगी तो वह जीते जी मर जाएंगी. वह यह सब कैसे बरदाश्त करेंगी? जिस बेटी पर उन्होंने ईश्वर से भी ज्यादा विश्वास किया, उस ने उन्हें इतना बड़ा धोखा दिया.

वह जानती थी कि प्रवीण अपने भाइयों के साथ मिल कर कुछ भी कर सकता है. जब चाहे उसे उठा ले जा सकता है. उस की मां की भी बेइज्जती कर सकता है. उस के भाई के साथ भी कुछ उलटासीधा कर सकता है. यह सब सोच कर वह डर गई. उसे लगा कि अगर कुछ ऐसा होता है तो यह सब उसी की वजह से होगा. तब उसे लगा कि अगर वह नहीं रहेगी तो यह सब होने से बच जाएगा. यही सोच कर उस ने तय किया कि अब वह नहीं रहेगी. फिर उस ने गले में दुपट्टा बांध कर आत्महत्या कर ली.

प्रवीण के इस बयान के बाद पुलिस ने उस पर आत्महत्या के लिए प्रेरित करने का मुकदमा दर्ज कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. उस के बाकी भाइयों के नाम निकाल दिए गए. नेहा की मां ने इन पांचों कौरवों के डर से वह मोहल्ला छोड़ दिया है. उन्हें लगता है कि पुलिस ने उन के साथ न्याय नहीं किया है, वह इस मामले की जांच सीबीसीआईडी से कराना चाहती हैं.

— कथा पुलिस सूत्रों एवं प्रवीण के बयान पर आधारित