जिस के लिए घर छोड़ा उसी ने दिल तोड़ा – भाग 3

अनुराधा गर्भवती हुई तो प्रशांत बहुत खुश हुआ. लेकिन अनुराधा इस बात से परेशान हो उठी. वह बच्चे को जन्म देने के बजाय गर्भपात करना चाहती थी. प्रशांत ने उसे बहुत समझाया कि यह उन के प्रेम की निशानी है, लेकिन अनुराधा नहीं मानी. वह बच्चा पैदा कर के उसे पालनेपोसने के झंझट में नहीं फंसना चाहती थी. उसे बच्चा बोझ लगता था. उसे यह भी लगता था कि बच्चा हो जाने के बाद उस का क्रेज खत्म हो जाएगा.

यही सब सोच कर अनुराधा ने बच्चे के पालनपोषण और घर खर्च का हवाला दे कर प्रशांत पर ऐसा दबाव बनाया कि उसे झुकना पड़ा. इस तरह पति को राजी कर के अनुराधा ने गर्भपात करवा दिया.

समय का पहिया अपनी गति से चलता रहा. गर्भपात करवा कर अनुराधा बहुत खुश थी. वह बच्चे के झंझट में फंस कर अपने सपनों को बिखरने नहीं देना चाहती थी. वह अपनी बौडी और सुंदरता को कायम रख कर उस की बदौलत ऐशोआराम की जिंदगी जीना चाहती थी. स्वयं को स्मार्ट दिखाने के लिए वह अपना पूरा वेतन अपने शरीर पर खर्च कर रही थी.

यही नहीं बाजार में इलेक्ट्रौनिक का जो भी नया सामान आता था, वह उस से इस तरह प्रभावित होती थी कि उसे खरीद कर लाने के लिए घर में रखा अच्छे से अच्छा सामान बदल देती थी. खासकर मोबाइल और टेलीविजन. प्रशांत उस की इस आदत से काफी परेशान था. लेकिन वह अनुराधा को इतना प्यार करता था कि कुछ नहीं कह पाता था.

प्रशांत अनुराधा को अपने आटो से उस के शोरूम पर सुबह पहुंचाने जाता था और शाम को ले आता था. वह अपनी सारी कमाई भी उसी के हाथों पर रख देता था. उस के बाद यह भी नहीं पूछता था कि उस ने पैसे कहां खर्च कर दिए.

प्रशांत के इस प्यार की नींव तब हिल गई, जब दूसरी बार गर्भवती होने पर अनुराधा ने बच्चे को जन्म देने से मना कर दिया. जबकि प्रशांत चाहता था कि इस बार अनुराधा बच्चे को जन्म दे. लेकिन प्रशांत के चाहने से क्या होता, बच्चा तो अनुराधा को पैदा करना था और वह इस के लिए तैयार नहीं थी. अंतत: चली भी अनुराधा की. इस बार भी उस ने गर्भपात करा दिया. अनुराधा के दोबारा गर्भपात कराने से प्रशांत का मन अशांत रहने लगा. अब वह अनुराधा से थोड़ा खिंचाखिंचा सा रहने लगा था.

अनुराधा का व्यवहार भी अब प्रशांत के प्रति काफी बदल गया था. वह प्रशांत का खयाल रखने के बजाय हमेशा उसे खरीखोटी सुनाती रहती थी. साथ ही प्रशांत से बातचीत करने के बजाय हरदम मोबाइल पर लगी रहती. अगर प्रशांत मना करता तो वह उस पर विफर उठती. वह यहां तक कह देती कि, ‘फोन मेरा है, पैसा भी मेरा खर्च हो रहा है, तुम्हें इस से क्या मतलब? मेरा जब तक मन करेगा, बातें करूंगी.’

इधर अनुराधा छोटीछोटी बातों में प्रशांत से उलझने लगी थी. पत्नी के इस व्यवहार से प्रशांत काफी परेशान रहने लगा था. दोनों के बीच दूरियां भी बढ़ने लगी थीं. अनुराधा की बेरुखी की वजह से प्रशांत का विश्वास डगमगाने लगा था. उसे अनुराधा के चरित्र पर भी संदेह होने लगा था. क्योंकि उस का स्वभाव काफी बदल गया था. छुट्टी के दिन भी वह घर पर नहीं रहती थी.

प्रशांत को लगता था कि अनुराधा का उस से मन भर गया है. इसीलिए वह उस से छल कर रही है. पूना आने के बाद अनुराधा में जिस तरह बदलाव आया था, प्रशांत स्वयं को उस तरह नहीं बदल सका था.

25 जून को अनुराधा ने प्रशांत से अपने लिए एक नई सोने की चेन बनवाने को कहा. प्रशांत ने यह कह कर मना कर दिया कि अभी उस के पास पैसे नहीं हैं. लेकिन अनुराधा जिद पर अड़ गई. उस ने कहा कि वह पैसे के लिए अपना मंगलसूत्र गिरवी रख देगी. प्रशांत को पत्नी की यह बात अच्छी नहीं लगी. लेकिन उस की जिद के आगे वह हार गया और उस के साथ गहनों की दुकान पर जाना पड़ा.

अनुराधा ने दुकान पर मंगलसूत्र गिरवी रख कर चेन खरीद ली. उस की इस हरकत से प्रशांत को बहुत दुख हुआ, क्योंकि वह उस की बात को न समझती थी न महत्त्व देती थी. मंगलसूत्र जिसे सुहागिनें हमेशा गले से लगाए रहती हैं, चेन के लिए उसे गिरवी रख दिया था. प्रशांत अपमान का घूंट पी कर रह गया. अनुराधा से उस ने कुछ इसलिए नहीं कहा क्योंकि इस से घर का माहौल खराब होता.

प्रशांत 2 सौ रुपए प्रति शिफ्ट किराए पर ले कर आटो चलाता था. अगले दिन 10 बजे उस ने अनुराधा को शोरूम पहुंचाया और रात 10 बजे घर ले आया. अनुराधा के व्यवहार से पेरशान प्रशांत उस दिन ठीक से कमाई नहीं कर सका, जिस की वजह से आटो का किराया नहीं दे पाया. किराया जमा न होने की वजह से अगले दिन मालिक ने उसे आटो चलाने के लिए नहीं दिया.

अगले दिन रात साढ़े 8 बजे अनुराधा ने प्रशांत को फोन किया कि वह अरोरा टावर के पास खड़ी है आटो ले कर आ जाए. प्रशांत को उस दिन आटो मिला ही नहीं था. इस के बावजूद उस ने कुछ नहीं कहा और अपने एक दोस्त पिंटू के आटो से अनुराधा को लेने जा पहुंचा.

प्रशांत को पिंटू के साथ देख कर अनुराधा भड़क उठी, ‘‘तुम्हारा आटो कहां है, जो तुम दूसरे का आटो ले कर आए हो?’’

प्रशांत तो कुछ नहीं बोला, लेकिन पिंटू ने कहा, ‘‘धंधा न होने की वजह से प्रशांत आटो का किराया नहीं जमा कर पाया, इसलिए मालिक ने आटो नहीं दिया है.’’

लेकिन अनुराधा को उस की बातों पर विश्वास नहीं हुआ और उस ने प्रशांत को खूब खरीखोटी सुनाई. प्रशांत ने अनुराधा से काफी मिन्नतें कीं कि वह झगड़ा न करे, लेकिन अनुराधा ने उस की एक नहीं सुनी. वह पूरे रास्ते प्रशांत को उस के दोस्त पिंटू के सामने ही अपमानित करती रही.

प्रशांत ने अनुराधा को घर छोड़ा और पिंटू के साथ वीटी कवड़े रोड स्थित कमला शंकर होटल गया और वहां से अपने तथा अनुराधा के लिए खाना ले आया. खाना खाने के बाद अनुराधा फोन पर बातें करने लगी. उस समय रात के 11 बज रहे थे. फोन पर बातें करतेकरते उस ने प्रशांत से आइसक्रीम लाने को कहा. लेकिन आइसक्रीम की दुकान बंद थी. तब अनुराधा ने उसे कोल्डड्रिंक लाने के लिए पूना रेलवे स्टेशन भेजा.

मां के प्रेम का जब खुला राज

17 साल बाद खुला मर्डर मिस्ट्री का राज – भाग 1

यह कहानी आज से 17 साल पुरानी साल 2006 की है. केरल का एक जिला पथानाममथिट्टा. इसी जिले का एक गांव है पोलाद. इसी गांव में एक परिवार रहा करता था, जिस के मुखिया थे जनार्दन नायर. उन की पत्नी थी रमादेवी. उन्हीं के साथ वह रहते थे. उन की कोई औलाद नहीं थी यानी इस परिवार में केवल 2 ही लोग थे. नायर साहब डाक तार विभाग यानी पोस्टल डिपार्टमेंट में सीनियर एकाउंटेंट थे. दोनों की जिंदगी आराम से कट रही थी.

जनार्दन नायर रिटायर होने वाले थे. 26 मई, 2006 की शाम को जनार्दन नायर औफिस की छुट्टी होने पर अपने घर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि घर का दरवाजा अंदर से बंद है. शाम के समय ऐसा होता नहीं था. चूंकि दरवाजा बाहर से बंद होता तो वह समझते कि पत्नी कहीं बाहर गई हैं, लेकिन दरवाजा अंदर से बंद था, इस का मतलब यह था पत्नी को अंदर ही होना चाहिए.

दरवाजे के ऊपर जाली लगी थी. उसी से उन्होंने पत्नी को कई आवाजे दीं, लेकिन दरवाजा नहीं खुला. वह खीझे कि एक ओर वह चिल्ला रहे हैं और घर के अंदर पत्नी किस में व्यस्त है कि दरवाजा नहीं खोल रही है. उन्होंने दरवाजा खुलवाने की काफी कोशिश की, पर जब दरवाजा नहीं खुला. तब उन्होंने ऊपर लगी जाली से अंदर हाथ डाल कर खुद ही अंदर लगी कुंडी खोल कर दरवाजा खोला.

दरवाजा खोल कर जैसे ही जनार्दन नायर अंदर घुसे, चीखते हुए तुरंत बाहर आ गए. घर के अंदर उन की 50 साल की पत्नी रमादेवी की खून से सनी लाश पड़ी थी. पत्नी की लाश देख कर वह चीखनेचिल्लाने लगे. उन की चीखपुकार सुन कर पड़ोसी इकट्ठा हो गए.

रमादेवी के मर्डर की बात सुन कर पड़ोसी भी हैरानपरेशान हो गए. दिनदहाड़े किसी के घर में घुस कर इस तरह हत्या कर देने वाली बात हैरान करने वाली तो थी ही, डराने वाली भी थी. सभी लोग सहम उठे थे. महिलाएं कुछ ज्यादा ही डरी हुई थीं. क्योंकि दिन में वही घर में अकेली रहती हैं.

जनार्दन नायर के पड़ोसियों ने इस घटना की सूचना पुलिस को दी. फोरैंसिक टीम के साथ थाना पुलिस ने आ कर अपनी औपचारिक काररवाई की और लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. रमादेवी की हत्या चाकू से गोद कर की गई थी. फोरैंसिक टीम ने भी आ कर सारे साक्ष्य जुटाए थे, जिन्हें जांच के लिए भिजवा दिया गया था.

इस के बाद पूछताछ शुरू हुई. सब से पहले जनार्दन नायर का बयान लिया गया. क्योंकि सब से पहले उन्हें ही हत्या की जानकारी हुई थी. नायर साहब ने वह सब बता दिया, जिस तरह औफिस से आने के बाद उन्हें पत्नी की हत्या का पता चला था. उस के बाद पड़ोसियों से पूछताछ हुई.

चूंकि शाम का समय था, इसलिए उस समय ज्यादातर लोग घरों के अंदर थे, पर नायर साहब के बिलकुल पड़ोस में रहने वाली एक महिला ने पुलिस को बताया कि जिस समय यह घटना घटी थी यानी नायर साहब के आने से थोड़ी देर पहले उस ने नायर साहब के घर के सामने एक आदमी को टहलते देखा था. टहलते हुए वह इधरउधर देख रहा था. वह कुछ बेचैन सा भी लग रहा था.

उस महिला ने आगे बताया कि उस ने उस से पूछना चाहा कि वह यहां क्यों इस तरह टहल रहा है? लेकिन वह उस से यह बात पूछ पाती, उस से पहले ही वह यहां से चला गया था.

मजदूर पर क्यों हुआ शक?

पुलिस ने जब पूछा कि वह आदमी कौन था? तब उस महिला ने बताया कि वह सामने जो बिल्डिंग बन रही है, वह आदमी शायद उसी में काम करता था. महिला द्वारा दिए गए बयान के अनुसार वह आदमी शक के दायरे में आ गया था, इसलिए पुलिस उस आदमी के बारे में पता करने वहां जा पहुंची, जहां बिल्डिंग का निर्माण कार्य चल रहा था.

पुलिस उस महिला को भी साथ ले गई थी, जिस से वह उस आदमी को पहचान सके. लेकिन जब वह आदमी वहां नहीं दिखाई दिया तो पुलिस ने उस आदमी का हुलिया बता कर उस के बारे में पूछा.

वहां काम करने वाले मजदूरों ने बताया कि वह आदमी यहां काम करता जरूर था, लेकिन वह बिना कुछ बताए ही आज सुबह ही यहां से चला गया है. इस के बाद पुलिस को उस आदमी पर शक और गहरा गया. क्योंकि घटना के अगले दिन ही वह बिना बताए गायब हो गया था.

पुलिस ने जब वहां काम करने वाले मजदूरों और ठेकेदार से उस का पता यानी वह कहां का रहने वाला था, यह जानना चाहा तो वे सिर्फ इतना ही बता सके कि वह कहीं बाहर से यहां काम करने आया था. वह कहां का रहने वाला था, यह निश्चित रूप से किसी को पता नहीं था. उस का नाम जरूर पता चल गया था. उस का नाम था चुटला मुथु. इसी के साथ पुलिस को उस की पत्नी का पता जरूर मिल गया था.

उस मजदूर के इस तरह अचानक गायब हो जाने से पुलिस को अब यही लगने लगा था कि हो न हो, यह हत्या उसी ने की होगी. क्योंकि जैसे ही लोगों ने उस पर शक जाहिर किया था, वह गायब हो गया था. अब पुलिस उस की खोज में लग गई.

पुलिस उस पते पर पहुंची, जहां उस की पत्नी रहती थी. लेकिन पत्नी ने कहा कि अब उस का उस आदमी से कोई संबंध नहीं. दोनों में पटी नहीं, इसलिए वह उस से अलग रहने लगी. उसे यह भी पता नहीं है कि इस समय वह कहां है. लेकिन उस महिला ने यह जरूर कह दिया कि वह आदमी ठीक है.

पुलिस चुटला मुथु की तलाश में दिनरात एक किए हुए थी, पर उस का कुछ पता नहीं चल रहा था. धीरेधीरे एक साल बीत गया. अब जनार्दन नायर और लोगों का धैर्य जवाब देने लगा. एक साल हो गया और कातिल पकड़ा नहीं गया.

केरल के लोग पढ़ेलिखे हैं और अपने अधिकारों के प्रति सजग भी हैं. उन्हें लगा कि पुलिस इस मामले में लापरवाही कर रही है, इसीलिए कातिल पकड़ा नहीं जा रहा है. पुलिस अपनी काररवाई में तेजी लाए, इस के लिए रमादेवी के हत्यारे को कैसे भी गिरफ्तार किया जाए, इस के लिए सभी ने मिल कर आंदोलन किया, रैली निकाली. इतना ही नहीं, तत्कालीन मुख्यमंत्री और अधिकारियों से लिखित शिकायतें भी की गईं, पर इस का भी कोई नतीजा निकला.

पुलिस के खिलाफ धरनाप्रदर्शन का दौर शुरू

अब तक रमादेवी हत्याकांड को एक साल बीत चुका था. फिर भी पुलिस को अब तक कातिल का कोई सुराग नहीं मिला था. इस बीच कातिल को गिरफ्तार करने के लिए सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा रैली भी निकाली जा चुकी थी और धरनाप्रदर्शन भी हो चुका था यानी आंदोलन हो चुके थे, लेकिन पुलिस कुछ नहीं कर सकी थी. जिस मजदूर पर लोगों को ही नहीं, पुलिस को भी शक था, वह फरार था. उस का कहीं अतापता नहीं चला.

इस बीच पुलिस को पता चला कि उसी तरह का एक मजदूर कानपुर में देखा गया है. केरल पुलिस कानपुर पहुंची, लेकिन वह मजदूर पुलिस को वहां भी नहीं मिला. केरल पुलिस उस की तलाश में बिहार भी गई. क्योंकि कुछ लोगों का कहना था कि वह बिहार से आया था. लेकिन उस के नाम से ही पता चलता था कि वह बिहार का रहने वाला नहीं था. क्योंकि बिहार में ऐसे नाम नहीं रखे जाते. इस के बावजूद केरल पुलिस बिहार गई और खाली हाथ लौट आई.

सीधे-साधे पति की शातिर पत्नी – भाग 1

वाराणसी के थाना कैंट के थानाप्रभारी इंसपेक्टर विपिन राय अपने औफिस में बैठे सहयोगियों से किसी मामले पर चर्चा कर रहे थे कि तभी उन के सीयूजी मोबाइल फोन की घंटी बजी. उन्होंने फोन उठा कर देखा, नंबर बिहार का था. उन्होंने फोन रिसीव किया तो दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘जयहिंद सर, मैं झारखंड के जिला गिरिडीह से सिपाही रामकुमार बोल रहा हूं. हमारे एसपी साहब आप से बात करना चाहते हैं.’’

‘‘ठीक है, बात कराएं.’’ इंसपेक्टर विपिन राय ने कहा.

इस के तुरंत बाद फोन एसपी साहब को स्थानांतरित किया गया तो इंसपेक्टर विपिन राय ने कहा, ‘‘जयहिंद सर, मैं वाराणसी के थाना कैंट का थानाप्रभारी इंसपेक्टर विपिन राय, आदेश दें सर.’’

‘‘विपिनजी, मेरे जिले के थाना घनावर की एक टीम कुछ अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए कल वाराणसी जा रही है. चूंकि अभियुक्तों का हालमुकाम पांडेपुर है, जो थाना कैंट के अंतर्गत आता है, इसलिए मैं चाहता हूं कि आप उन की हर संभव मदद करें.’’

‘‘सर, उन की हर संभव मदद की जाएगी.’’ इंसपेक्टर विपिन राय ने कहा तो दूसरी ओर से फोन काट दिया गया. यह 20 दिसंबर, 2013 की बात है.

अगले दिन 21 दिसंबर, 2013 की दोपहर को थाना घनावर की पुलिस टीम थाना कैंट आ पहुंची, जिस में एक सबइंस्पेक्टर, एक हेडकांस्टेबल और 2 महिला सिपाही थीं. सबइंसपेक्टर ने इंसपेक्टर विपिन राय के औफिस में जा कर कहा, ‘‘सर, मैं गिरिडीह के थाना घनावर का सबइंस्पेक्टर पशुपतिनाथ राय. कल आप की हमारे एसपी साहब से बात हुई थी न?’’

‘‘बैठिए, पहले चाय वगैरह पी लीजिए, उस के बाद अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए चलते हैं.’’

इस के बाद थानाप्रभारी विपिन राय ने मुंशी को आवाज दे कर चाय और नाश्ता भिजवाने को कहा. इसी के साथ उन्होंने छापा मारने के लिए ड्राइवर को भी तैयार होने के लिए कह दिया. चायनाश्ता आता, उस से पहले इंसपेक्टर विपिन राय ने पूछा, ‘‘मामला क्या, जिस में आप गिरफ्तारी के लिए यहां आए हैं?’’

‘‘सर, हमारे थानाक्षेत्र की एक शादीशुदा लड़की पिंकी 2 जून, 2011 को राउरकेला से नागपुर जाते समय बिलासपुर से रहस्यमय परिस्थितियों में गायब हो गई थी. मायके वालों का कहना था कि ससुराल वालों ने उस की हत्या कर दी है. उस की हत्या के आरोप में पति समेत ससुराल के 5 लोगों को जेल भेज दिया गया था, जिन में से सब की जमानतें तो हो गई थीं, लेकिन उस का पति अरुण अभी भी जेल में बंद है. जबकि हमें पता चला है कि पिंकी अपने प्रेमी नितेश के साथ आप के थानाक्षेत्र के पांडेपुर में किराए का कमरा ले कर 2 सालों से छिप कर मजे से रह रही है.’’

चायनाश्ता करा कर थानाप्रभारी इंसपेक्टर विपिन राय गिरिडीह से आई पुलिस टीम को साथ ले कर पांडेपुर के लिए रवाना हो गए. जिस मकान में पिंकी और नितेश के किराए पर रहने की सूचना मिली थी, उस पर छापा मारा गया तो दोनों जिस कमरे में रहते थे, उस में ताला बंद मिला.

पूछने पर मकान मालिक ने बताया, ‘‘मेरे मकान में गिरिडीह का रहने वाला नितेश अपनी पत्नी पिंकी और बेटे के साथ लगभग 2 सालों से रह रहा था. लेकिन आज सुबह ही वह गिरिडीह चला गया है. दोनों निकले भी बड़ी हड़बड़ी में हैं. शायद उन्हें आप लोगों के आने का आभास हो गया था.’’

सबइंसपेक्टर पशुपतिनाथ राय ने मकान मालिक से उन के मोबाइल नंबर के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘सर, मोबाइल फोन तो दोनों के पास अलगअलग थे, लेकिन हमें कभी उन के नंबरों की जरूरत ही नहीं पड़ी, इसलिए मैं ने उन के नंबर लिए ही नहीं. हर महीने समय पर वे हमारा किराया दे देते थे, बाकी हम से कोई ज्यादा मतलब नहीं था.’’

आसपड़ोस वालों से भी नितेश और पिंकी का मोबाइल नंबर पूछा गया. सभी ने कहा कि उन से उन के संबंध तो अच्छे थे, लेकिन उन का नंबर उन के पास नहीं है. सभी हैरान भी थे कि आखिर उन्होंने ऐसा कौन सा अपराध किया है कि गिरिडीह से पुलिस उन की तलाश में इतनी दूर आई है. पुलिस ने कुछ बताया नहीं. इसलिए सभी ने यही अंदाजा लगाया कि दोनों घर से भागे होंगे.

थानाप्रभारी विपिन राय गिरिडीह से आई पुलिस टीम के साथ वापस थाने आ गए. थाने आ कर उन्होंने सबइंसपेक्टर पशुपतिनाथ राय को आश्वसन दे कर वापस भेज दिया कि नितेश और पिंकी के यहां आते ही वह उन्हें गिरफ्तार कर के सूचना देंगे.

इतना कुछ जानने के बाद मन में यह उत्सुकता तो पैदा ही होती है कि मामला क्या था, जो गिरिडीह पुलिस को नितेश और पिंकी की गिरफ्तारी के लिए वाराणसी आना पड़ा. यह जानने के लिए हमें गिरिडीह ही चलना होगा.

झारखंड के जिला गिरिडीह के थाना घनावर के गांव ओरखार के रहने वाले नूनूराम खेतीबाड़ी तो करते ही थे, वह लकड़ी के फर्नीचर के कारीगर भी बहुत अच्छे थे. उन के 2 बेटों में परमेश्वर बड़ा था तो अरुण छोटा. खेती और फर्नीचर बनाने के काम से उन्हें अच्छी आमदनी हो रही थी, इसलिए उन की जिंदगी आराम से कट रही थी.

नूनूराम विश्वकर्मा भले ही ज्याद पढ़ेलिखे नहीं थे, लेकिन वह बेटों को पढ़ने के लिए प्रेरित करते रहते थे. उन के लाख चाहने पर भी बड़ा बेटा परमेश्वर हाईस्कूल से ज्यादा नहीं पढ़ सका. उस का मन पढ़ने में नहीं लगा तो उन्होंने उसे भी अपने काम में लगा लिया. परंतु छोटा बेटा अरुण पढ़ने में ठीकठाक था, इसलिए वह उस के मनोबल को बढ़ाते हुए आगे पढ़ने के लिए प्रेरित करे रहे.

परमेश्वर अपने पैरों पर खड़ा हो गया तो नूनूराम ने कोडरमा के रहने वाले अपने एक रिश्तेदार की ममेरी साली की बेटी गुडि़या के साथ उस का विवाह करा दिया. तब तक अरुण भी बीए कर चुका था. अब वह पढ़ाई के साथसाथ पिता के काम में उन की मदद करने लगा था.

नूनूराम का अपना ही काम इतना फैला हुआ था कि उन्हें बेटों से नौकरी कराने की जरूरत नहीं थी. इसलिए अरुण शादी लायक हुआ तो वह उस के लिए रिश्ता ढूंढ़ने लगे. संयोग से अरुण के लिए उन्हें गांव के नजदीक ही अलग देशियो कुबरी गांव में बढि़या रिश्ता मिल गया. केदार राणा की बेटी पिंकी हाईस्कूल तक पढ़ी थी.   नूनूराम को वह बेटे के लिए पहली ही नजर में पसंद आ गई. इस के बाद 26 मई, 2010 को अरुण और पिंकी की शादी हो गई.

पिंकी ने ससुराल आ कर अपने बात व्यवहार से ससुराल वालों का मन मोह लिया था. अरुण तो उसे पा कर बहुत खुश था. वह रहने वाली भले गांव की थी, लेकिन उस का रहनसहन शहर की लड़कियों जैसा था. अरुण और पिंकी के दिन हंसीखुशी से गुजरने लगे. दिनभर का थकामांदा अरुण पत्नी के पास आता तो उस की एक झलक पा कर सारी थकान भूल जाता.

आदमी कामधंधे से लगा हो तो उसे समय का कहां पता चलता है. अरुण की शादी के भी 11 महीने बीत गए, उसे पता नहीं चला. अचानक उस ने पिंकी के साथ कहीं घूमने जाने का प्रोग्राम बनाया. वह नागपुर जाना चाहता था, जिस के लिए उस ने पहले ही ट्रेन में सीट रिजर्व करा ली. 1 जून, 2011 को पिंकी अरुण के साथ ट्रेन से नागपुर जा रही थी तो जब ट्रेन बिलासपुर में रुकी तो वह अचानक गायब हो गई. यह 1 जून, 2011 की बात थी.

पिंकी के एकाएक गायब होने से अरुण परेशान हो उठा. जब तक ट्रेन स्टेशन पर रुकी रही, वह उसे ट्रेन में ढूंढता रहा. ट्रेन चली गई तो उस ने स्टेशन का चप्पाचप्पा छान मारा, लेकिन पिंकी का कुछ पता नहीं चला.

शराफत का इनाम – भाग 1

हारुन 36 साल का स्मार्ट, खूबसूरत और कसरती बदन का मालिक था. रूमाना बेहद हसीन नाजुक सी 25-26 साल की युवती थी. हारुन ने  उसे एक तसवीर दिखाते हुए कहा, ‘‘रूमाना, यह एक बड़ा आसामी है. इस से काफी माल मिल सकता है. इस के बाद हम मुल्क छोड़ कर बाहर चले जाएंगे. यह मेरा वादा है.’’

रूमाना ने निर्णायक स्वर में कहा, ‘‘याद रखना, यह आखिरी बार है. अब मैं थक चुकी हूं. इस का नाम क्या है?’’

‘‘करीमभाई. उम्र 55 साल. सीधासादा शरीफ बंदा है. बहुत बड़ा बिजनैसमैन है. सब से बड़ी बात यह है कि यह एकदम अकेला है. ग्रे बालों के साथ काफी स्मार्ट और सोबर लगता है. तंदुरुस्त और चाकचौबंद रहने वाला यह आदमी अपनी उम्र से 10 साल कम लगता है.’’

‘‘ठीक है,’’ रूमाना ने कहा.

करीम भाई काफी अमीर और मशहूर बिजनैसमैन थे. 15-16 साल की उम्र में मैट्रिक कर के उन्होंने अपना कारोबार शुरू किया था. उन के पिता भी बड़े कारोबारी थे, पर उन्होंने बेटे की कोई मदद नहीं की थी. करीमभाई ने अपनी पहली डील मां से रुपए उधार ले कर की थी.

जब वह कमाने लगे थे तो उन्होंने मां के रुपए वापस कर कर दिए थे, लेकिन वह अपने वालिद के शुक्रगुजार थे कि उन्होंने अपने आप कारोबार जमाने का उन्हें आत्मविश्वास दिया. उन्होंने अपने आप अपना बिजनैस खड़ा किया था. बाद में यही सबक उन्होंने अपने बेटों को दिया. उन्होंने अपने बेटों को रकम तो दी, पर बिजनैस सेट हो जाने पर उन्हें उन का कारोबार, घर सब अलग कर दिया था. अब वे अपनाअपना कारोबार अलग चला रहे थे.

करीमभाई ने शुरू से ही उसूल बना रखा था कि औफिस में औरत को नौकरी पर नहीं रखेंगे. उन का खयाल था कि औरत घर की मलिका है, उसे औफिस के धक्के नहीं खाना चाहिए. शायद इसीलिए उन की बीवी हाजरा घर की रानी थीं. घर के सारे फैसले वही करती थीं.

उम्र में करीमभाई से 5 साल छोटी थीं, पर उम्र बढ़ने पर भी बहुत खूबूसरत थीं. 2 जवान बेटों और एक बेटी की मां थीं. सब की शादियां हो चुकी थीं. सब अपनेअपने घरों में खुश थे. हाजरा बेटों को अलग नहीं करना चाहती थीं, लेकिन करीमभाई ने समझाया था कि दूरी से मोहब्बत बढ़ेगी, आनाजाना मिलनाजुलना होता रहेगा. इस घर की मलिका सिर्फ हाजरा रहेगी, हंसीखुशी राज करेगी.

बात उन की समझ में आ गई थी. लेकिन वह ज्यादा दिनों तक राज नहीं कर सकीं. एक साल पहले कैंसर से उन की मौत हो गई. बहुत इलाज हुए, पर जान न बच सकी. तब से करीमभाई अकेले हो गए थे. अब लंच वह घर पर करते थे, जबकि रात का खाना बाहर खा कर आते थे.

उस रात भी वह होटल में डिनर करने गए थे. लौन उन की पसंदीदा जगह थी, जहां समुद्र से आने वाले नम हवा के झोंके अलग ही मजा देते थे. डिनर के बाद वह पार्किंग में आए और अपनी कार के करीब पहुंचे तो देखा एक औरत बोनट पर झुकी सिसकियां ले रही थी.

उस ने अपना बायां पैर थाम रखा था. उस ने खूबसूरत रेशमी अनारकली सूट पहन रखा था. लंबे बालों ने गोरा खूबसूरत चेहरा आधा ढंक रखा था. करीमभाई ने आगे बढ़ कर पूछा, ‘‘मैडम, कोई प्रौब्लम है क्या?’’

उस ने अपना चेहरा ऊपर उठाया. करीमभाई आंसुओं से भीगा हसीन चेहरा देखते रह गए. उस की उम्र करीब 26 साल रही होगी. उस ने बेहद सुरीली आवाज में धीरे से कहा, ‘‘मेरे पैर में मोच आ गई है, बहुत दर्द हो रहा है.’’

करीमभाई ने उस का पैर देखा. दूधिया टखने के पास सूजन नजर आ रही थी. वह बेहद नाजुक लग रही थी.

‘‘डाक्टर को दिखाना पड़ेगा. आप के साथ कोई है?’’ करीमभाई ने पूछा.

‘‘नहीं, मैं अकेली ही आई हूं. यह सामने मेरी कार है, लेकिन अब मैं ड्राइव कैसे करूं?’’ उस ने नए मौडल की कार की तरफ इशारा कर के कहा.

करीमभाई ने सकुचाते हुए कहा, ‘‘आप को ऐतराज न हो तो मैं आप को डाक्टर के पास ले चलूं? मेरा नाम करीमभाई है. मेरा छोटा सा बिजनैस है. यह रहा मेरा कार्ड?’’

‘‘मैं आप को जानती हूं. आप अकसर यहां आते हैं.’’

करीमभाई ने उसे सहारा दे कर आगे की सीट पर बिठाया. हाजरा के बाद वह पहली औरत थी, जो उन के साथ बैठी थी. उस की खुशबू और खूबसूरती से करीमभाई प्रभावित हो रहे थे. उन्होंने पूछा, ‘‘आप का नाम क्या है?’’

‘‘मैं रूमाना अनीस.’’

‘‘अनीस आप के हसबैंड हैं?’’

‘‘नहीं, अनीस मेरे वालिद का नाम है. अब वह इस दुनिया में नहीं हैं.’’

न जाने क्यों उन्हें यह जान कर खुशी हुई कि रूमाना शादीशुदा नहीं है. वह उसे एक बड़े अस्पताल की ओपीडी में ले गए, जहां पट्टी कर के दवाएं और क्रीम दे दी गईं. दवा देते हुए डाक्टर ने कहा, ‘‘आप की मिसेज बहुत नाजुक हैं, खयाल रखा करें.’’

दोनों बुरी तरह झेंप गए.

सहारा दे कर वापस आते समय करीमभाई के दिल की धड़कन बढ़ गई थी. रूमाना का फ्लैट पहली मंजिल पर था. एक बार फिर उन्हें खुशी  हुई. वह उसे सहारा दे कर ऊपर ले गए. उस ने करीमभाई का शुक्रिया अदा किया, लेकिन अंदर आने को नहीं कहा. इस हालत में वह वैसे भी उन्हें अंदर नहीं बुला सकती थी. जाते हुए करीमभाई ने कहा, ‘‘कार्ड पर मेरा मोबाइल नंबर है. जरूरत पड़ने पर बेहिचक फोन कर दीजिएगा.’’

रूमाना ने पर्स से चाबी निकाल कर देते हुए कहा, ‘‘मेरी कार अपने ड्राइवर से भिजवा दें तो मेहरबानी होगी.’’

इसी के साथ उस ने अपना मोबाइल नंबर भी दे दिया था.

उस रात करीमभाई बहुत खुश थे. उन की तनहाई खूबसूरत खयालों और ख्वाबों से सज गई थी. उन्हें हाजरा का खयाल नहीं आया. अगली सुबह दफ्तर जाते हुए उन्होंने रूमाना को फोन किया, ‘‘आप की तबीयत कैसी है?’’

‘‘अब काफी बेहतर है. गरम पानी से काफी आराम मिला है. मुझे लग रहा था कि आप का फोन आएगा.’’ उस ने धीमे से कहा.

‘‘आप को ऐसा क्यों लग रहा था?’’

‘‘मेरे दिल ने कहा था. यह मुझे अच्छा नहीं लगा कि आप को मैंने कल बाहर से ही जाने दिया. मैं चाहती हूं कि आप मेरे घर आएं, ताकि मैं आप का शुक्रिया अदा कर सकूं.’’

करीमभाई के दिल में घंटियां बजने लगीं. उन्होंने कहा, ‘‘वैसे शुक्रिया अदा करने की जरूरत नहीं है. मैं आप को देखने कल शाम को आऊंगा.’’

अगले दिन की शाम तक का समय करीमभाई ने बड़ी बेचैनी से गुजारा. औफिस से वह सीधे होटल गए. वहां पार्किंग में अपनी गाड़ी छोड़ी और रूमाना की गाड़ी ले कर उस के फ्लैट पर पहुंचे. रास्ते से फूल और केक भी ले लिया था. रूमाना उन्हें देख कर खिल उठी. उस ने गुलाबी अनारकली जोड़ा पहन रखा था, जिस में वह गजब ढा रही थी.

घर बेहद सलीके से सजा हुआ था. सारा सामान बहुत कीमती था. केक व फूल देख कर उस ने कहा, ‘‘इस की क्या जरूरत थी.’’

उस का पैर काफी ठीक था. उस ने उन्हें इसरार कर डिनर के लिए रोक लिया. अंधा क्या चाहे, दो आंखें. उस की बातें सीधीसादी थीं. उस ने बताया कि उस की एक बार शादी हो चुकी थी, पर चली नहीं. उस की शादी उस के डैडी ने हारुन से की थी. पता नहीं वह कैसे धोखा खा गए. वह अच्छा इंसान नहीं था.

प्यार के लिए मां की हत्या की हाइटेक साजिश – भाग 1

आगरा के शास्त्रीपुरम के ए ब्लौक स्थित भावना एरोमा कालोनी निवासी कारोबारी उदित बजाज 7 जून, 2023 की रात 9 बजे थाना सिकंदरा पहुंचे. वे बहुत घबराए हुए थे. उन्होंने एसएचओ आनंद कुमार शाही को पत्नी के लापता होने की जानकारी दी. उन्होंने बताया कि उन की 40 वर्षीय पत्नी अंजलि बजाज अपराह्नï 3 बजे यमुना किनारे ककरैठा में वनखंडी महादेव मंदिर में पूजा कर ने गई थीं. लेकिन अब तक वापस नहीं आई हैं. उन का मोबाइल भी स्विच्ड औफ जा रहा है.

सूचना पर पुलिस ने गुमशुदगी दर्ज कर ली. मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस ने रात में ही अंजलि की तलाश शुरू कर दी. एसएचओ आनंद कुमार शाही पुलिस टीम के साथ वनखंडी महादेव मंदिर जा पहुंचे. उन्होंने मंदिर के चप्पेचप्पे में अंजलि को तलाश किया, लेकिन अंजलि बजाज का कोई सुराग नहीं मिला.

उदित बजाज का आगरा में जूते के धागे का काम है. संजय पैलेस में उन की दुकान है. परिवार में इकलौती 15 वर्षीय बेटी कंचन के अलावा उदित के वृद्ध मातापिता साथ रहते हैं. दूसरे दिन पुलिस ने पति उदित बजाज से पूछताछ की. कारोबारी उदित ने बताया कि वह पत्नी के साथ मंदिर कार से गए थे. कंचन भी घर से कहीं चली गई थी. उस का फोन आया, उस ने बताया, पापा वह सिकंदरा में हाईवे पर अमर उजाला के पास खड़ी हैं, आप मुझे ले जाओ. पत्नी को मंदिर पर छोड़ कर वह बेटी को लेने पहुंचे.

रास्ते में कंचन का फोन आ गया कि वह घर पहुंच गई है. अब आने की जरूरत नहीं है. उस ने अपनी दादी से भी बात करा दी. उदित एक बार झुंझलाए भी फिर वे पत्नी को लेने के लिए वापस मंदिर पहुंचे लेकिन वहां पत्नी नहीं मिली. उदित को लगा कि पत्नी अकेले घर चली गई होंगी.

वह घर आए तो वहां पत्नी नहीं थीं. पत्नी का मोबाइल लगातार स्विच्ड औफ आ रहा था. वह एक बार फिर मंदिर पहुंचे, अंजलि को काफी तलाश किया, लेकिन वह नहीं मिलीं. परिचितों व रिश्तेदारों के यहां भी पता किया लेकिन कोई सुराग नहीं लगा. पत्नी के न मिलने पर वह घबरा गए. शाम तक इंतजार किया इस के बाद ही वे रात में थाने पहुंचे थे.

वनखंडी के जंगल में मिली अंजलि की लाश

पत्नी के लापता होने के दूसरे दिन यानी 8 जून को एक व्यक्ति का पुलिस के पास फोन आया. उस ने बताया कि वनखंडी मंदिर के पास जंगल में एक महिला की लाश पड़ी है. सूचना पर पुलिस वनखंडी महादेव मंदिर पहुंची. ये मंदिर यमुना किनारे स्थित है. मंदिर से यमुना करीब 700 मीटर की दूरी पर है. मंदिर के आसपास जंगल है.

वनखंडी महादेव मंदिर से करीब 900 मीटर दूर ककरैठा के जंगल में रास्ते के बराबर में बने गड्ढे में नाले के पास एक महिला की लाश पड़ी थी. उदित बजाज ने गुमशुदी दर्ज कराते समय अपनी पत्नी की फोटो भी पुलिस को दी थी. पुलिस ने फोटो से मिलान किया तो वह लाश अंजलि बजाज की ही निकली.

अंजलि की हत्या किसी धारदार हथियार से की गई थी. गरदन और पेट पर गहरे घाव थे. पुलिस ने आशंका व्यक्त की कि अंजलि की चाकू से गोद कर हत्या की गई थी. देखने से लग रहा था कि हत्या के बाद लाश को घसीट कर नाले के पास गड्ढे में फेंक कर हत्यारा मृतका का मोबाइल ले कर फरार हो गया.

सूचना पर डीसीपी विकास कुमार भी घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने लाश व घटनास्थल का निरीक्षण किया. फोरैंसिक टीम को बुलाया गया. शव को घसीटने के निशान व मृतका की एक चप्पल भी घटनास्थल पर मिली थी. लाश मिलने पर पति उदित बजाज को सूचना दी गई. उदित ने घटनास्थल पर पहुंच गए लाश की शिनाख्त अपनी पत्नी अंजलि बजाज के रूप में की. पत्नी का शव देखते ही वे फूटफूट कर रोने लगे. पुलिस ने मौके की जरूरी काररवाई निपटा कर लाश को मोर्चरी भेज दिया.

अब अंजलि की गुमशुदगी का मामला कत्ल के मामले में भादंवि की धारा 302/34/120बी में तब्दील हो चुका था. अंजलि बजाज हत्याकांड के खुलासे के लिए डीसीपी विकास कुमार के निर्देशन में पुलिस की 6 टीमें बनाईं. टीम में एसओजी (सिकंदरा) आनंद कुमार शाही, एसआई सत्येंद्र सिंह, जितेंद्र प्रताप सिंह, सर्विलांस प्रभारी सचिन धामा, सर्विलांस प्रभारी (नगर जोन) अंकुर मलिक के अलावा एसओजी और स्वाट टीम को भी शामिल किया गया.

पुलिस ने कारोबारी उदित बजाज के निवास शास्त्रीपुरम और वनखंडी मंदिर के बीच 9 किलोमीटर के फासले में लगे सीसीटीवी कैमरों की जांच का काम शुरू कर दिया. मंदिर के पास से जिस रहस्यमय तरीके से अंजलि गायब हुई थी और जिस तरह से उन की हत्या की गई थी, उस से साफ था कि किसी ने यह काम पूरी तैयारी से किया है. आखिर वो हत्यारा कौन हो सकता है?

पुलिस को लगा कि अंजलि की हत्या कारोबारी दुश्मनी के चलते तो नहीं की गई, लेकिन इस के लिए पुलिस को पुख्ता सबूतों की जरूरत थी. पुलिस ने पति उदित बजाज के मोबाइल काल की जांच की, लेकिन उन्हें कोई शक वाली बात नजर नहीं आई.

घूमफिर कर कंचन पर जा रहा था शक

पुलिस को शक हो रहा था कि कहीं उदित बजाज ने ही पत्नी की हत्या कर ये सब नाटक नहीं किया. पुलिस ने उदित से सवालजवाब भी किए. उन्होंने पुलिस को सच्चाई बता दी. उन की बात सुन कर पुलिस को उन की बेटी कंचन पर शक हुआ. बेटी कभी मंदिर तो कभी हाईवे पर मां और पिता को क्यों बुला रही थी? कारोबारी उदित बजाज की 15 वर्षीय बेटी कंचन इस समय 11वीं कक्षा में पढ़ रही है.

पुलिस ने उस से पूछताछ की तो वह घबरा गई और फूटफूट कर रोने लगी. घर वालों व पुलिस ने किसी तरह किशोरी को शांत कराया. उस ने बताया कि मां की हत्या के बारे में उसे कुछ नहीं पता. पुलिस ने कंचन का मोबाइल चैक किया. सोशल मीडिया प्रोफाइल और गैलरी में एक युवक के साथ फोटो मिले. कंचन से पूछा गया, “ये कौन है?”

उस ने कहा, “यह प्रखर गुप्ता है.”

पुलिस ने उस के फोन की गैलरी में एकएक फोटो को खंगाला. एक फोटो में कंचन युवक के साथ बाइक पर बैठी थी, बाइक का नंबर दिखाई दे रहा था. पुलिस ने उस नंबर को चैक किया. प्रखर गुप्ता निवासी दयालबाग, आगरा का नाम और पता निकल कर आ गया.

तब पुलिस को कुछ आशंका हुई. पूछा, “यह तुम्हारा ब्यायफ्रैंड है?”

इस पर कंचन ने मना कर दिया. प्रखर के साथ उस के तमाम फोटो देख कर पुलिस को शक तो होने लगा था, लेकिन पुलिस ने बड़ी खामोशी से प्रखर गुप्ता के बारे में जानकारी करनी शुरू कर दी. इस के बाद पुलिस इस हत्याकांड की कडियां जोडने में जुट गई.

वाट्सएप चैट में छिपा हत्या का राज

कंचन का मोबाइल पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया. मोबाइल से कंचन ने चैट्स और काल हिस्ट्री डिलीट कर दी थी. पुलिस उन्हें रिकवर कर रही थी. पूछताछ के लिए पुलिस कंचन को थाने ले गई. जब पुलिस की जांच आगे बढऩे लगी तो सभी के होश उडऩे लगे.

घटना की जानकारी होने पर उदित के बुजुर्ग मातापिता भी हिल गए. बाबा दादी को नातिनी की चिंता सताने लगी. परिजनों की खुशहाल जिंदगी में अचानक भूचाल आ गया था. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या करें. सभी प्रार्थना कर रहे थे कि काश! कंचन घिनौनी साजिश का हिस्सा न निकले. यदि ऐसा हुआ तो उन का बेटा उदित अकेला रह जाएगा. पतिपत्नी ने बेटी को ले कर बड़ेबड़े सपने संजो कर रखे थे.

कारोबारी उदित बजाज की पत्नी अंजलि की मौत अत्यधिक खून बह जाने के कारण हुई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि अंजलि की छाती और पेट पर चाकू से प्रहार किए गए थे. इस से यह अनुमान लगाया गया कि अंजलि ने हत्यारे से अपने बचाव का प्रयास किया इसी दौरान उसे चोट लगी थी.

जिस के लिए घर छोड़ा उसी ने दिल तोड़ा – भाग 2

पूछताछ में उस आदमी ने अपना नाम महेश बताया. वह अनुराधा के पति प्रशांत सूर्यवंशी रंगोजी का दोस्त था. प्रशांत ने ही उसे अनुराधा का बकाया वेतन लेने के लिए वहां भेजा था. पुलिस को उस से प्रशांत का पता और फोन नंबर मिल गया. लेकिन जब पुलिस महेश को ले कर प्रशांत के घर पहुंची तो वह घर पर नहीं मिला.

दरअसल, प्रशांत को महेश के पकड़े जाने की जानकारी हो गई थी. वह समझ गया कि अब पुलिस उसे भी पकड़ लेगी. इसलिए वह पुलिस से बचने का रास्ता खोजने लगा. उस का एक रिश्तेदार ट्रक चलाता था. वह ट्रक ले कर अन्य शहरों में आताजाता रहता था. प्रशांत अपने उसी रिश्तेदार के यहां पहुंचा तो उसे पता चला कि उस का वह रिश्तेदार ट्रक ले कर गुजरात के बड़ौदा शहर जा रहा है.

पुलिस से बचने के लिए प्रशांत घूमने के बहाने उस के ट्रक पर सवार हो गया और उस के साथ बड़ौदा चला गया. इंसपेक्टर विलास सोड़े ने महेश रंगोजी को साथ ले कर प्रशांत की तलाश शुरू की तो उन्हें रिश्तेदार के साथ ट्रक पर उस के बड़ौदा जाने की जानकारी मिल गई.

पता करते हुए विलास सोड़े उस ट्रांसपोर्ट कंपनी पहुंच गए, जिस ट्रांसपोर्ट कंपनी का वह ट्रक था. वहां से उन्हें पता चला कि जिस ट्रक से प्रशांत बड़ौदा जा रहा है, वह ट्रक नासिक से आगे निकल चुका है. पुलिस ट्रक का नंबर और वहां का पता ले कर चल पड़ी, जहां बड़ौदा में उस ट्रक को माल पहुंचाना था. 6 जुलाई को बड़ौदा में जब ट्रक से माल उतारा जा रहा था, तभी इंसपेक्टर विलास सोड़े अपने सहायकों के साथ वहां पहुंच गए और प्रशांत सूर्यवंशी को गिरफ्तार कर लिया.

प्रशांत को पूना के थाना येरवड़ा ला कर उस से पूछताछ की गई तो उस ने अनुराधा की हत्या का अपराध बड़ी आसानी से स्वीकार कर लिया. प्रशांत ने उस की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह एक पत्नी की महत्वाकांक्षाओं और जिद से दुखी पति के हत्यारे बनने की थी.

मराठा समाज का 23 वर्षीय प्रशांत सूर्यवंशी महाराष्ट्र के जिला लातूर की तहसील निलंगा के गांव माकड़ीपोर के रहने वाले जीवन सूर्यवंशी का बेटा था. पिता गांव के सीधेसाधे किसान थे. परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी. इसी वजह से वह ज्यादा पढ़लिख नहीं सका. सरकारी स्कूल से किसी तरह हायर सेकेंडरी कर के पैसा कमाने के लिए वह तहसील निलंगा आ कर टाटा डोकोमो कंपनी के औफिस के सामने एक गुमटी ले कर चाऊमीन वगैरह बना कर बेचने लगा.

यहीं प्रशांत की मुलाकात अनुराधा कुलकर्णी से हुई. अनुराधा टाटा डोकोमो कंपनी के औफिस में काम करती थी. प्रशांत वहां मोबाइल के लिए सिम खरीदने गया तो उस की नजर सुंदरसलोनी अनुराधा पर पड़ी. पहली ही नजर में उस का दिल अनुराधा पर आ गया.

अनुराधा जितनी खूबसूरत थी, उस से कहीं ज्यादा तेजतर्रार और व्यवहारकुशल थी. आंखें नचाने के साथसाथ कंधे उचकाउचका कर उस का बातें करना किसी भी पुरुष को आकर्षित कर सकता था. प्रशांत उस की इसी अदा पर मर मिटा था. इस के बाद वह उस की एक झलक पाने के लिए किसी न किसी बहाने टाटा डोकोमो कंपनी के औफिस में आनेजाने लगा.

22 वर्षीया अनुराधा कुलकर्णी निलंगा कस्बे की ही रहने वाली थी. उस के पिता अनिल कुलकर्णी की मौत हो चुकी थी. जिस की वजह से परिवार की आर्थिक स्थिति काफी खराब थी. घर की सारी जिम्मेदारी मां के कंधे पर थी. परिवार में मां के अलावा एक बड़ी बहन थी. गरीबी की वजह से मात्र नौवीं पास कर के अनुराधा टाटा डोकोमो कंपनी के इस औफिस में नौकरी करने लगी थी.

अनुराधा भले ही छोटे घर की थी, लेकिन उस के सपने बहुत बड़े थे. यही वजह थी कि जब उस ने प्रशांत की आंखों में अपने लिए चाहत देखी तो उस का भी झुकाव उस की ओर हो गया. इस तरह चाहत दोनों ओर जाग उठी थी. प्रशांत उसे देखने के लिए उस के औफिस आता ही रहता था. अब अनुराधा भी जब तक उसे देख नहीं लेती थी, उसे चैन नहीं मिलता था. प्रशांत का गठा शरीर, चौड़ा सीना और आकर्षक चेहरा उसे भा गया था.

यही वजह थी कि अनुराधा भी स्वयं को रोक नहीं पाई और समय निकाल कर प्रशांत की गुमटी पर आनेजाने लगी. इसी आनेजाने और मिलनेजुलने में उन के प्यार का इजहार भी हो गया था. प्यार परवान चढ़ा तो दोनों शादी के बारे में सोचने लगे.

लेकिन प्रशांत ने अनुराधा की मां और बहन से शादी की बात की तो अलगअलग जाति होने की वजह से दोनों ने ही अनुराधा की शादी उस से करने से मना कर दिया. उन का कहना था कि वे ब्राह्मण हैं, इसलिए अपनी बेटी की शादी किसी गैर जाति में नहीं कर सकतीं. प्रशांत के घर वाले भी इस शादी के लिए राजी नहीं थे.

दोनों के परिवारों के विरोध के बावजूद अनुराधा और प्रशांत शादी की जिद पर अड़े थे, इसलिए दोनों ने अपनाअपना घरपरिवार छोड़ कर सिद्धेश्वर मंदिर में एकदूसरे के गले में जयमाल डाल कर शादी कर ली. उन की इस शादी से घर में ही नहीं, पूरे समाज में बवाल मच सकता था, इसलिए दोनों ने तय किया कि अब वे गांव में न रह कर पूना जा कर रहेंगे.

अनुराधा और प्रशांत पूना आ गए और हंसीखुशी से अपने दांपत्य जीवन की शुरुआत की. उन के इस कदम से जातिबिरादरी पर तो कोई फर्क नहीं पड़ा, लेकिन अनुराधा की मां यह सदमा बरदाश्त नहीं कर सकी और इस तरह बीमार हुई कि 6 महीने बीततेबीतते उस की मौत हो गई.

पूना के घोरपड़ी जाधव बस्ती में प्रशांत का दूर का एक रिश्तेदार रहता था. उस की मदद से प्रशांत को जाधव बस्ती के जनाई निवास में किराए का एक मकान मिल गया था. उसी रिश्तेदार ने उसे नौकरी भी दिला दी थी. नौकरी भले ही टैंपरेरी थी, लेकिन एक सहारा तो मिल ही गया था. नौकरी भरोसेमंद नहीं थी, इसलिए समय निकाल कर प्रशांत आटो चलाना सीखने लगा.

आटो चलाना सीख कर प्रशांत ने ड्राइविंग लाइसेंस बनवा लिया तो नौकरी छोड़ दी और किराए का आटो ले कर चलाने लगा. आटो की कमाई से घर चलाने में दिक्कत होने लगी तो अनुराधा ने भी नौकरी करने की इच्छा जाहिर की. दरअसल इस की वजह यह थी कि जब प्रशांत की कमाई से घर के खर्च ही नहीं पूरे हो रहे थे तो अनुराधा के शौक कैसे पूरे होते. अपने शौक पूरे करने के लिए ही अनुराधा नौकरी करना चाहती थी.

प्रशांत को अनुराधा के नौकरी करने पर कोई ऐतराज नहीं था, क्योंकि शादी से पहले वह नौकरी कर ही रही थी. थोड़ी कोशिश के बाद अनुराधा को पूना कैंप के पास एक कपड़े की दुकान में सेल्सगर्ल्स की नौकरी मिल गई. लेकिन कुछ दिनों बाद उस ने यह नौकरी छोड़ दी. क्योंकि उसे क्लोजर सेंटर कैंप में बौडी टौक के शोरूम में ज्यादा वेतन और ज्यादा सुविधा की नौकरी मिल गई थी.

प्रशांत ने सोचा था कि अनुराधा कमाएगी तो थोड़ी मदद मिलेगी, लेकिन वह अपनी कमाई का एक भी पैसा घर खर्च में नहीं खर्च करती थी. वह प्रशांत की कमाई से घर चलाती थी और अपनी कमाई सिर्फ अपने ऊपर खर्च करती थी. खैर, प्रशांत ने कभी उस से कुछ मांगा भी नहीं था.

जिस के लिए घर छोड़ा उसी ने दिल तोड़ा – भाग 1

सुबह के यही कोई 10 बजे पूना के थाना येरवड़ा के सीनियर इंसपेक्टर संजय पाटिल को पुलिस कंट्रोल रूम से सूचना मिली कि पूना नगर रोड पर स्थित घोरपड़ी एयर खराड़ी  गांव के पास तेल निकालने वाली मशीन के पीछे एक लाल रंग का बड़ा सा लावारिस बैग पड़ा है. बैग एकदम नया और काफी महंगा है. उस में ताला लगा है. बैग जहां पड़ा है, वह वहां रखा नहीं गया, बल्कि फेंका गया है. उस में लाश है या कोई गैरकानूनी सामान, यह बात खोलने पर ही पता चल सकती है.

मामला गंभीर था, इसलिए सीनियर इंसपेक्टर संजय पाटिल ने ड्यूटी पर तैनात पुलिस अफसर से यह सूचना दर्ज कराई और तुरंत इस की जानकारी वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दे दी. इस के बाद वह सहायक इंसपेक्टर विलास सोडे़, असिस्टैंट पुलिस इंसपेक्टर चंद्रकांत जाधव, हेडकांस्टेबल राजाराम धोगरे, कांस्टेबल हरी मोरे, प्रदीप गोलार, तुषार अह्वाण और महेश मोहोल के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए.

चूंकि बैग लावारिश पड़ा था, इसलिए उस में बम होने की भी संभावना थी. इस संभावना को देखते हुए इंसपेक्टर संजय पाटिल ने बम निरोधक दस्ते को भी इस की सूचना दे दी. उन की इसी सूचना पर बम निरोधक दस्ते की टीम भी घटनास्थल पर पहुंच गई.

बम निरोधक दस्ते ने जांच कर के बताया कि बैग में किसी तरह की विस्फोटक सामग्री नहीं है तो सीनियर इंसपेक्टर संजय पाटिल ने ताला तुड़वा कर बैग खुलवाया. बैग खोला गया तो पता चला कि उस में लाश रखी है. लाश किसी लड़की की थी, जिसे बड़ी बेरहमी से बैग में ठूंस कर रखा गया था. उन्होंने फोटोग्राफर से फोटो खिंचवा कर लाश बाहर निकलवाई.

मृतका की उम्र 24-25 साल रही होगी. मृतका काफी खूबसूरत थी. पहनावे और शक्लसूरत से वह ठीकठाक घर की लग रही थी. उस के गले पर बाईं ओर नाखून के गहरे निशान थे, जिस से अंदाजा लगाया गया कि मृतका की हत्या गला दबा कर की गई थी. वह काले रंग का ट्राउजर और हरेसफेद रंग की टीशर्ट पहने थी.

बैग यहां बाहर से ला कर फेंका गया था. इसलिए मृतका की शिनाख्त होनी मुश्किल थी. लेकिन पुलिस को तो अपनी काररवाई करनी ही थी. लाश के फोटो वगैरह कराने के बाद पुलिस ने वहां एकत्र लोगों से मृतका की शिनाख्त कराने की कोशिश की. आखिर पुलिस का शक सच साबित हुआ, वहां मौजूद लोगों में से कोई भी उस की शिनाख्त नहीं कर सका. इस का मतलब था कि मृतका वहां की रहने वाली नहीं थी.

इस से साफ हो गया कि लाश कहीं बाहर से ला कर यहां फेंकी गई थी. लाश के कपड़ों या बैग से भी पुलिस को ऐसी कोई चीज नहीं मिली थी, जिस से लाश की शिनाख्त हो पाती. लाश की शिनाख्त नहीं हो सकी तो पुलिस आगे की काररवाई करने लगी.

सीनियर इंसपेक्टर संजय पाटिल सहायकों की मदद से लाश का पंचानामा तैयार करवा रहे थे कि एडिशनल पुलिस कमिश्नर मनोज पाटिल, असिस्टैंट पुलिस कमिश्नर श्याम मोहिते और राजन भोसले भी घटनास्थल पर आ पहुंचे. इन अधिकारियों ने भी घटनास्थल और लाश का निरीक्षण किया.

लाश और घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद एडिशनल पुलिस कमिश्नर मनोज पाटिल और असिस्टैंट पुलिस कमिश्नर श्याम मोहिते, सीनियर इंसपेक्टर राजन भोसले संजय पाटिल को दिशानिर्देश दे कर चले गए. इस के बाद घटनास्थल की औपचारिकताएं पूरी कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए पूना के सरकारी अस्पताल भिजवा दी गई.

थाने लौट कर राजन भोसले हत्या का मामला दर्ज करा दिया और इस मामले की जांच अपने सहायक इंसपेक्टर विलास सोडे को सौंप दी. यह 28 जून  की बात है.

सहायक इंसपेक्टर विलास सोडे़ की जांच तब तक आगे नहीं बढ़ सकती थी, जब तक मृतका की शिनाख्त न हो जाती. इस के लिए उन्होंने मृतका का हुलिया बता कर पूना शहर के सभी थानों को सूचना दे दी कि अगर इस हुलिए की किसी भी लड़की की गुमशुदगी दर्ज हो तो उन्हें तुरंत सूचना दी जाए. इस के अलावा उन्होंने मुखबिरों को भी सतर्क कर दिया था.

उन्हें उम्मीद थी कि किसी न किसी थाने से उन्हें मृतका के बारे में कोई न कोई जानकारी मिल ही जाएगी. मगर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. मुखबिरों से भी मृतका के बारे में कुछ पता नहीं चल सका. इस स्थिति में यह मामला उन के लिए सिरदर्द बनने लगा था.

अगला दिन बीत गया और मृतका के बारे में कहीं से कोई जानकारी नहीं मिली तो इंसपेक्टर विलास सोड़े ने पैंफ्लैट और सोशल मीडिया की मदद लेने का विचार किया. उन्होंने मृतका की शिनाख्त के लिए उस की लाश के फोटो के पैंफ्लैट छपवा कर पूना शहर के हर गलीमोहल्ले में तो चस्पा कराए ही, इस के अलावा पूना, मुंबई, अहमदाबाद के रेलवे स्टेशनों और बसअड्डों के साथ ट्रेनों और बसों में भी चस्पा करा दिए.

पैंफ्लैट के अलावा उन्होंने सोशल मीडिया के फेसबुक और वाट्सऐप पर भी मृतका के फोटो डलवा कर लोगों से शिनाख्त की अपील की. उन का मानना था कि वाट्सऐप और फेसबुक पर मृतका की जानपहचान का कोई न कोई जरूर मिल जाएगा. किसी भी तरह उस की शिनाख्त हो जाए तो उन्हें मामले को सुलझाने में देर नहीं लगेगी. और फिर हुआ भी वही. वाट्सऐप के जरिए मृतका की शिनाख्त हो गई तो हत्यारा भी पकड़ में आ गया.

मृतका की पहचान अनुराधा प्रशांत सूर्यवंशी के रूप में हुई. वह पूना के जिस शोरूम में नौकरी करती थी, उसी शोरूम में नौकरी करने वाले किसी कर्मचारी ने जब वाट्सऐप पर अनुराधा की लाश की फोटो देखी तो वह हैरान रह गया. पहले तो उसे विश्वास ही नहीं हुआ, क्योंकि उस के पति ने तो बताया था कि अनुराधा की बहन की तबीयत खराब है, इसलिए वह गांव गई है.

उस कर्मचारी की पत्नी अनुराधा की अच्छी सहेलियों में थी, इसलिए उस ने वह फोटो अपनी पत्नी को दिखाई. जब उस की पत्नी ने कहा कि यह फोटो अनुराधा का ही है, तब कहीं जा कर उसे विश्वास हुआ.

फोटो के साथ शिनाख्त की अपील की गई थी, इसलिए पतिपत्नी ने देर किए बगैर पूना के थाना लश्कर से संपर्क कर के पुलिस को सारी जानकारी दे दी. इसी जानकारी में उन्होंने पुलिस को यह भी बताया कि अनुराधा का बकाया वेतन लेने के लिए एक आदमी आज शोरूम पर आने वाला है.

पुलिस के लिए यह बहुत अहम जानकारी थी. क्योंकि जो आदमी वेतन लेने आने वाला था, उस से कुछ सुराग मिल सकता था, इसलिए पुलिस उसे पकड़ने के लिए शोरूम पर पहुंच गई. इस के बाद जैसे ही वह आदमी शोरूम पर आया, शोरूम के कर्मचारियों ने उसे पुलिस के हवाले कर दिया. लश्कर पुलिस ने उसे येरेवड़ा पुलिस के इंसपेक्टर विलास सोड़े को सौंप दिया.

वो कमजोर पल: सीमा ने क्या चुना प्यार या परिवार?

वही हुआ जिस का सीमा को डर था. उस के पति को पता चल ही गया कि उस का किसी और के साथ अफेयर चल रहा है. अब क्या होगा? वह सोच रही थी, क्या कहेगा पति? क्यों किया तुम ने मेरे साथ इतना बड़ा धोखा? क्या कमी थी मेरे प्यार में? क्या नहीं दिया मैं ने तुम्हें? घरपरिवार, सुखी संसार, पैसा, इज्जत, प्यार किस चीज की कमी रह गई थी जो तुम्हें बदचलन होना पड़ा? क्या कारण था कि तुम्हें चरित्रहीन होना पड़ा? मैं ने तुम से प्यार किया. शादी की. हमारे प्यार की निशानी हमारा एक प्यारा बेटा. अब क्या था बाकी? सिवा तुम्हारी शारीरिक भूख के. तुम पत्नी नहीं वेश्या हो, वेश्या.

हां, मैं ने धोखा दिया है अपने पति को, अपने शादीशुदा जीवन के साथ छल किया है मैं ने. मैं एक गिरी हुई औरत हूं. मुझे कोई अधिकार नहीं किसी के नाम का सिंदूर भर कर किसी और के साथ बिस्तर सजाने का. यह बेईमानी है, धोखा है. लेकिन जिस्म के इस इंद्रजाल में फंस ही गई आखिर.

मैं खुश थी अपनी दुनिया में, अपने पति, अपने घर व अपने बच्चे के साथ. फिर क्यों, कब, कैसे राज मेरे अस्तित्व पर छाता गया और मैं उस के प्रेमजाल में उलझती चली गई. हां, मैं एक साधारण नारी, मुझ पर भी किसी का जादू चल सकता है. मैं भी किसी के मोहपाश में बंध सकती हूं, ठीक वैसे ही जैसे कोई बच्चा नया खिलौना देख कर अपने पास के खिलौने को फेंक कर नए खिलौने की तरफ हाथ बढ़ाने लगता है.

नहीं…मैं कोई बच्ची नहीं. पति कोई खिलौना नहीं. घरपरिवार, शादीशुदा जीवन कोई मजाक नहीं कि कल दूसरा मिला तो पहला छोड़ दिया. यदि अहल्या को अपने भ्रष्ट होने पर पत्थर की शिला बनना पड़ा तो मैं क्या चीज हूं. मैं भी एक औरत हूं, मेरे भी कुछ अरमान हैं. इच्छाएं हैं. यदि कोई अच्छा लगने लगे तो इस में मैं क्या कर सकती हूं. मैं मजबूर थी अपने दिल के चलते. राज चमकते सूरज की तरह आया और मुझ पर छा गया.

उन दिनों मेरे पति अकाउंट की ट्रेनिंग पर 9 माह के लिए राजधानी गए हुए थे. फोन पर अकसर बातें होती रहती थीं. बीच में आना संभव नहीं था. हर रात पति के आलिंगन की आदी मैं अपने को रोकती, संभालती रही. अपने को जीवन के अन्य कामों में व्यस्त रखते हुए समझाती रही कि यह तन, यह मन पति के लिए है. किसी की छाया पड़ना, किसी के बारे में सोचना भी गुनाह है. लेकिन यह गुनाह कर गई मैं.

मैं अपनी सहेली रीता के घर बैठने जाती. पति घर पर थे नहीं. बेटा नानानानी के घर गया हुआ था गरमियों की छुट्टी में. रीता के घर कभी पार्टी होती, कभी शेरोशायरी, कभी गीतसंगीत की महफिल सजती, कभी पत्ते खेलते. ऐसी ही पार्टी में एक दिन राज आया. और्केस्ट्रा में गाता था. रीता का चचेरा भाई था. रात का खाना वह अपनी चचेरी बहन के यहां खाता और दिनभर स्ट्रगल करता. एक दिन रीता के कहने पर उस ने कुछ प्रेमभरे, कुछ दर्दभरे गीत सुनाए. खूबसूरत बांका जवान, गोरा रंग, 6 फुट के लगभग हाइट. उस की आंखें जबजब मुझ से टकरातीं, मेरे दिल में तूफान सा उठने लगता.

राज अकसर मुझ से हंसीमजाक करता. मुझे छेड़ता और यही हंसीमजाक, छेड़छाड़ एक दिन मुझे राज के बहुत करीब ले आई. मैं रीता के घर पहुंची. रीता कहीं गई हुई थी काम से. राज मिला. ढेर सारी बातें हुईं और बातों ही बातों में राज ने कह दिया, ‘मैं तुम से प्यार करता हूं.’

मुझे उसे डांटना चाहिए था, मना करना चाहिए था. लेकिन नहीं, मैं भी जैसे बिछने के लिए तैयार बैठी थी. मैं ने कहा, ‘राज, मैं शादीशुदा हूं.’

राज ने तुरंत कहा, ‘क्या शादीशुदा औरत किसी से प्यार नहीं कर सकती? ऐसा कहीं लिखा है? क्या तुम मुझ से प्यार करती हो?’

मैं ने कहा, ‘हां.’ और उस ने मुझे अपनी बांहों में समेट लिया. फिर मैं भूल गई कि मैं एक बच्चे की मां हूं. मैं किसी की ब्याहता हूं. जिस के साथ जीनेमरने की मैं ने अग्नि के समक्ष सौगंध खाई थी. लेकिन यह दिल का बहकना, राज की बांहों में खो जाना, इस ने मुझे सबकुछ भुला कर रख दिया.

मैं और राज अकसर मिलते. प्यारभरी बातें करते. राज ने एक कमरा किराए पर लिया हुआ था. जब रीता ने पूछताछ करनी शुरू की तो मैं राज के साथ बाहर मिलने लगी. कभी उस के घर पर, कभी किसी होटल में तो कभी कहीं हिल स्टेशन पर. और सच कहूं तो मैं उसे अपने घर पर भी ले कर आई थी. यह गुनाह इतना खूबसूरत लग रहा था कि मैं भूल गई कि जिस बिस्तर पर मेरे पति आनंद का हक था, उसी बिस्तर पर मैं ने बेशर्मी के साथ राज के साथ कई रातें गुजारीं. राज की बांहों की कशिश ही ऐसी थी कि आनंद के साथ बंधे विवाह के पवित्र बंधन मुझे बेडि़यों की तरह लगने लगे.

मैं ने एक दिन राज से कहा भी कि क्या वह मुझ से शादी करेगा? उस ने हंस कर कहा, ‘मतलब यह कि तुम मेरे लिए अपने पति को छोड़ सकती हो. इस का मतलब यह भी हुआ कि कल किसी और के लिए मुझे भी.’

मुझे अपने बेवफा होने का एहसास राज ने हंसीहंसी में करा दिया था. एक रात राज के आगोश में मैं ने शादी का जिक्र फिर छेड़ा. उस ने मुझे चूमते हुए कहा, ‘शादी तो तुम्हारी हो चुकी है. दोबारा शादी क्यों? बिना किसी बंधन में बंधे सिर्फ प्यार नहीं कर सकतीं.’

‘मैं एक स्त्री हूं. प्यार के साथ सुरक्षा भी चाहिए और शादी किसी भी स्त्री के लिए सब से सुरक्षित संस्था है.’

राज ने हंसते हुए कहा, ‘क्या तुम अपने पति का सामना कर सकोगी? उस से तलाक मांग सकोगी? कहीं ऐसा तो नहीं कि उस के वापस आते ही प्यार टूट जाए और शादी जीत जाए?’

मुझ पर तो राज का नशा हावी था. मैं ने कहा, ‘तुम हां तो कहो. मैं सबकुछ छोड़ने को तैयार हूं.’

‘अपना बच्चा भी,’ राज ने मुझे घूरते हुए कहा. उफ यह तो मैं ने सोचा ही नहीं था.

‘राज, क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हम बच्चे को अपने साथ रख लें?’

राज ने हंसते हुए कहा, ‘क्या तुम्हारा बेटा, मुझे अपना पिता मानेगा? कभी नहीं. क्या मैं उसे उस के बाप जैसा प्यार दे सकूंगा? कभी नहीं. क्या तलाक लेने के बाद अदालत बच्चा तुम्हें सौंपेगी? कभी नहीं. क्या वह बच्चा मुझे हर घड़ी इस बात का एहसास नहीं दिलाएगा कि तुम पहले किसी और के साथ…किसी और की निशानी…क्या उस बच्चे में तुम्हें अपने पति की यादें…देखो सीमा, मैं तुम से प्यार करता हूं. लेकिन शादी करना तुम्हारे लिए तब तक संभव नहीं जब तक तुम अपना अतीत पूरी तरह नहीं भूल जातीं.

‘अपने मातापिता, भाईबहन, सासससुर, देवरननद अपनी शादी, अपनी सुहागरात, अपने पति के साथ बिताए पलपल. यहां तक कि अपना बच्चा भी क्योंकि यह बच्चा सिर्फ तुम्हारा नहीं है. इतना सब भूलना तुम्हारे लिए संभव नहीं है.

‘कल जब तुम्हें मुझ में कोई कमी दिखेगी तो तुम अपने पति के साथ मेरी तुलना करने लगोगी, इसलिए शादी करना संभव नहीं है. प्यार एक अलग बात है. किसी पल में कमजोर हो कर किसी और में खो जाना, उसे अपना सबकुछ मान लेना और बात है लेकिन शादी बहुत बड़ा फैसला है. तुम्हारे प्यार में मैं भी भूल गया कि तुम किसी की पत्नी हो. किसी की मां हो. किसी के साथ कई रातें पत्नी बन कर गुजारी हैं तुम ने. यह मेरा प्यार था जो मैं ने इन बातों की परवा नहीं की. यह भी मेरा प्यार है कि तुम सब छोड़ने को राजी हो जाओ तो मैं तुम से शादी करने को तैयार हूं. लेकिन क्या तुम सबकुछ छोड़ने को, भूलने को राजी हो? कर पाओगी इतना सबकुछ?’ राज कहता रहा और मैं अवाक खड़ी सुनती रही.

‘यह भी ध्यान रखना कि मुझ से शादी के बाद जब तुम कभी अपने पति के बारे में सोचोगी तो वह मुझ से बेवफाई होगी. क्या तुम तैयार हो?’

‘तुम ने मुझे पहले क्यों नहीं समझाया ये सब?’

‘मैं शादीशुदा नहीं हूं, कुंआरा हूं. तुम्हें देख कर दिल मचला. फिसला और सीधा तुम्हारी बांहों में पनाह मिल गई. मैं अब भी तैयार हूं. तुम शादीशुदा हो, तुम्हें सोचना है. तुम सोचो. मेरा प्यार सच्चा है. मुझे नहीं सोचना क्योंकि मैं अकेला हूं. मैं तुम्हारे साथ सारा जीवन गुजारने को तैयार हूं लेकिन वफा के वादे के साथ.’

मैं रो पड़ी. मैं ने राज से कहा, ‘तुम ने पहले ये सब क्यों नहीं कहा.’

‘तुम ने पूछा नहीं.’

‘लेकिन जो जिस्मानी संबंध बने थे?’

‘वह एक कमजोर पल था. वह वह समय था जब तुम कमजोर पड़ गई थीं. मैं कमजोर पड़ गया था. वह पल अब गुजर चुका है. उस कमजोर पल में हम प्यार कर बैठे. इस में न तुम्हारी खता है न मेरी. दिल पर किस का जोर चला है. लेकिन अब बात शादी की है.’

राज की बातों में सचाई थी. वह मुझ से प्यार करता था या मेरे जिस्म से बंध चुका था. जो भी हो, वह कुंआरा था. तनहा था. उसे हमसफर के रूप में कोई और न मिला, मैं मिल गई. मुझे भी उन कमजोर पलों को भूलना चाहिए था जिन में मैं ने अपने विवाह को अपवित्र कर दिया. मैं परपुरुष के साथ सैक्स करने के सुख में, देह की तृप्ति में ऐसी उलझी कि सबकुछ भूल गई. अब एक और सब से बड़ा कदम या सब से बड़ी बेवकूफी कि मैं अपने पति से तलाक ले कर राज से शादी कर लूं. क्या करूं मैं, मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था.  मैं ने राज से पूछा, ‘मेरी जगह तुम होते तो क्या करते?’

राज हंस कर बोला, ‘ये तो दिल की बातें हैं. तुम्हारी तुम जानो. यदि तुम्हारी जगह मैं होता तो शायद मैं तुम्हारे प्यार में ही न पड़ता या अपने कमजोर पड़ने वाले क्षणों के लिए अपनेआप से माफी मांगता. पता नहीं, मैं क्या करता?’

राज ये सब कहीं इसलिए तो नहीं कह रहा कि मैं अपनी गलती मान कर वापस चली जाऊं, सब भूल कर. फिर जो इतना समय इतनी रातें राज की बांहों में बिताईं. वह क्या था? प्यार नहीं मात्र वासना थी? दलदल था शरीर की भूख का? कहीं ऐसा तो नहीं कि राज का दिल भर गया हो मुझ से, अपनी हवस की प्यास बुझा ली और अब विवाह की रीतिनीति समझा रहा हो? यदि ऐसी बात थी तो जब मैं ने कहा था कि मैं ब्याहता हूं तो फिर क्यों कहा था कि किस किताब में लिखा है कि शादीशुदा प्यार नहीं कर सकते?

राज ने आगे कहा, ‘किसी स्त्री के आगोश में किसी कुंआरे पुरुष का पहला संपर्क उस के जीवन का सब से बड़ा रोमांच होता है. मैं न होता कोई और होता तब भी यही होता. हां, यदि लड़की कुंआरी होती, अकेली होती तो इतनी बातें ही न होतीं. तुम उन क्षणों में कमजोर पड़ीं या बहकीं, यह तो मैं नहीं जानता लेकिन जब तुम्हारे साथ का साया पड़ा मन पर, तो प्यार हो गया और जिसे प्यार कहते हैं उसे गलत रास्ता नहीं दिखा सकते.’

मैं रोने लगी, ‘मैं ने तो अपने हाथों अपना सबकुछ बरबाद कर लिया. तुम्हें सौंप दिया. अब तुम मुझे दिल की दुनिया से दूर हकीकत पर ला कर छोड़ रहे हो.’

‘तुम चाहो तो अब भी मैं शादी करने को तैयार हूं. क्या तुम मेरे साथ मेरी वफादार बन कर रह सकती हो, सबकुछ छोड़ कर, सबकुछ भूल कर?’ राज ने फिर दोहराया.

इधर, आनंद, मेरे पति वापस आ गए. मैं अजीब से चक्रव्यूह में फंसी हुई थी. मैं क्या करूं? क्या न करूं? आनंद के आते ही घर के काम की जिम्मेदारी. एक पत्नी बन कर रहना. मेरा बेटा भी वापस आ चुका था. मुझे मां और पत्नी दोनों का फर्ज निभाना था. मैं निभा भी रही थी. और ये निभाना किसी पर कोई एहसान नहीं था. ये तो वे काम थे जो सहज ही हो जाते थे. लेकिन आनंद के दफ्तर और बेटे के स्कूल जाते ही राज आ जाता या मैं उस से मिलने चल पड़ती, दिल के हाथों मजबूर हो कर.

मैं ने राज से कहा, ‘‘मैं तुम्हें भूल नहीं पा रही हूं.’’

‘‘तो छोड़ दो सबकुछ.’’

‘‘मैं ऐसा भी नहीं कर सकती.’’

‘‘यह तो दोतरफा बेवफाई होगी और तुम्हारी इस बेवफाई से होगा यह कि मेरा प्रेम किसी अपराधकथा की पत्रिका में अवैध संबंध की कहानी के रूप में छप जाएगा. तुम्हारा पति तुम्हारी या मेरी हत्या कर के जेल चला जाएगा. हमारा प्रेम पुलिस केस बन जाएगा,’’ राज ने गंभीर होते हुए कहा.

मैं भी डर गई और बात सच भी कही थी राज ने. फिर वह मुझ से क्यों मिलता है? यदि मैं पूछूंगी तो हंस कर कहेगा कि तुम आती हो, मैं इनकार कैसे कर दूं. मैं भंवर में फंस चुकी थी. एक तरफ मेरा हंसताखेलता परिवार, मेरी सुखी विवाहित जिंदगी, मेरा पति, मेरा बेटा और दूसरी तरफ उन कमजोर पलों का साथी राज जो आज भी मेरी कमजोरी है.

इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. पति को भनक लगी. उन्होंने दोटूक कहा, ‘‘रहना है तो तरीके से रहो वरना तलाक लो और जहां मुंह काला करना हो करो. दो में से कोई एक चुन लो, प्रेमी या पति. दो नावों की सवारी तुम्हें डुबो देगी और हमें भी.’’

मैं शर्मिंदा थी. मैं गुनाहगार थी. मैं चुप रही. मैं सुनती रही. रोती रही.

मैं फिर राज के पास पहुंची. वह कलाकार था. गायक था. उसे मैं ने बताया कि मेरे पति ने मुझ से क्याक्या कहा है और अपने शर्मसार होने के विषय में भी. उस ने कहा, ‘‘यदि तुम्हें शर्मिंदगी है तो तुम अब तक गुनाह कर रही थीं. तुम्हारा पति सज्जन है. यदि हिंसक होता तो तुम नहीं आतीं, तुम्हारे मरने की खबर आती. अब मेरा निर्णय सुनो. मैं तुम से शादी नहीं कर सकता. मैं एक ऐसी औरत से शादी करने की सोच भी नहीं सकता जो दोहरा जीवन जीए. तुम मेरे लायक नहीं हो. आज के बाद मुझ से मिलने की कोशिश मत करना. वे कमजोर पल मेरी पूरी जिंदगी को कमजोर बना कर गिरा देंगे. आज के बाद आईं तो बेवफा कहलाओगी दोनों तरफ से. उन कमजोर पलों को भूलने में ही भलाई है.’’

मैं चली आई. उस के बाद कभी नहीं मिली राज से. रीता ने ही एक बार बताया कि वह शहर छोड़ कर चला गया है. हां, अपनी बेवफाई, चरित्रहीनता पर अकसर मैं शर्मिंदगी महसूस करती रहती हूं. खासकर तब जब कोई वफा का किस्सा निकले और मैं उस किस्से पर गर्व करने लगूं तो पति की नजरों में कुछ हिकारत सी दिखने लगती है. मानो कह रहे हों, तुम और वफा. पति सभ्य थे, सुशिक्षित थे और परिवार के प्रति समर्पित.

कभी कुलटा, चरित्रहीन, वेश्या नहीं कहा. लेकिन अब शायद उन की नजरों में मेरे लिए वह सम्मान, प्यार न रहा हो. लेकिन उन्होंने कभी एहसास नहीं दिलाया. न ही कभी अपनी जिम्मेदारियों से मुंह छिपाया.

मैं सचमुच आज भी जब उन कमजोर पलों को सोचती हूं तो अपनेआप को कोसती हूं. काश, उस क्षण, जब मैं कमजोर पड़ गई थी, कमजोर न पड़ती तो आज पूरे गर्व से तन कर जीती. लेकिन क्या करूं, हर गुनाह सजा ले कर आता है. मैं यह सजा आत्मग्लानि के रूप में भोग रही थी. राज जैसे पुरुष बहका देते हैं लेकिन बरबाद होने से बचा भी लेते हैं.

स्त्री के लिए सब से महत्त्वपूर्ण होती है घर की दहलीज, अपनी शादी, अपना पति, अपना परिवार, अपने बच्चे. शादीशुदा औरत की जिंदगी में ऐसे मोड़ आते हैं कभीकभी. उन में फंस कर सबकुछ बरबाद करने से अच्छा है कि कमजोर न पड़े और जो भी सुख तलाशना हो, अपने घरपरिवार, पति, बच्चों में ही तलाशे. यही हकीकत है, यही रिवाज, यही उचित भी है.

अधेड़ उम्र का खूनी प्यार