
उत्तरी अमेरिका के शहर लास वेगास को दुनिया का फन सिटी माना जाता है. वहां चौबीसों घंटे जुआ खेला जाता है, इसलिए वहां जुआ खेलने वालों का जमघट लगा रहता है. यहां सिर्फ जुआ ही नहीं खेला जाता, सैक्स और फैशनेबल कपड़ों का भी व्यापार होता है. इस की वजह से यहां अपराधी भी बहुत हैं. यहां रातदिन टौपलेस लड़कियों के डांस शो और शराब के साथ जुआ चलता रहता है.
इस शहर की रौनक सालोंसाल से ज्यों की त्यों बनी है. कसीनो में डूबी रातों, स्पा बाथ के जलवे और सैक्स का मजा लूटने यहां तमाम पर्यटक आते हैं. कसीनो में पैसे वाले लोग हजारोंलाखों रुपयों की बाजियों में डूबे रहते हैं. एक तरफ बाजी जीतने वाले को खुशी होती है तो दूसरी ओर हजारों लाखों हारने वाले पर भी ‘जीत’ का नशा छाया रहता है.
कसीनो का मायाजाल ही ऐसा होता है कि हारने का भी गम नहीं होता. वह इसी उम्मीद में रहता है कि कभी उस का भी समय आ सकता है. 17 सितंबर, 1996 की रात निवेडा वैली पर काले बादलों का ऐसा साया मंडराया, जो कभी फीका नहीं पड़ा. निवेडा वासियों के दिल में अब घोड़ों, जुआ और लड़कियों के शौकीन टेड बिनियन की सिर्फ यादें ही रह गई हैं.
स्मार्ट, गणित में माहिर और बेशुमार दौलत का मालिक टेड के पास इतनी दौलत थी कि नोट गिनने वाली मशीन भी थक जाए. खतरों से खेलने वाला, मौत से न डरने वाला, टेड आखिर में मारा गया. जो दौलत उसे जान से प्यारी थी, उसी दौलत की वजह से उसे जान गंवानी पड़ी.
टेड बिनियन लड़कियों का भी खूब शौकीन था. उसे हर रोज एक नई लडक़ी की तलाश होती थी. पैसा उस के पास था ही, इसलिए हर रात उसे नई लडक़ी आसानी से मिल जाती थी. उस रात वह लडक़ी की ही तलाश में चिताह क्लब पहुंचा तो वहां उस की मुलाकात साथ वाली टेबल पर बैठी सैंडी मर्फी से हुई.
टेड बारबार उसी की ओर देख रहा था. उस के इस तरह देखने से सैंडी को अंदाजा हो गया कि वह क्या चाहता है. सैंडी को पता था कि टेड अरबपति है. टेड ने सैंडी को अपनी तरफ खींचने की बहुत कोशिश की, लेकिन उस ने भाव नहीं दिया.
तब उस ने उसे नोटों की गड्डी दिखाई. लेकिन सैंडी ने उसे लौटाते हुए कहा, “तुम ने मुझे समझा क्या है? तुम्हें क्या लगता है कि पैसे ले कर मैं तुम्हारे साथ चल दूंगी.”
टेड ने सोचा था कि सैंडी भी अन्य लड़कियों की तरह होगी, लेकिन वह वैसी नहीं थी. जबकि यह उस की एक अदा थी, जिस की बदौलत वह टेड को अपनी ओर आकर्षित करने में कामयाब हो गई थी. उस के इस अंदाज से टेड अंदर तक घायल हो गया था. लड़कियों को सिर्फ मौजमस्ती की चीज समझने वाले टेड के दिल में सैंडी अपनी इस अदा से उतर गई थी.
जबकि सही बात यह थी कि सैंडी पैसों की तलाश में ही कैलिफोर्निया से लास वेगास आई थी. वह पैसों के लिए क्लबों में टौपलेस डांस करती थी. सैंडी की यह अदा टेड के लिए दिखावा भर थी. वह टेड की अमीरी और खुले दिल से अनजान नहीं थी. वह खुद उसे अपनी ओर खींचना चाहती थी. जिस में वह कामयाब भी हो गई थी.
इस के बाद उन्हें मिलते देर नहीं लगी. उन की मुलाकातें होने लगीं. एक लंबे समय के बाद सैंडी को पता चला कि टेड ही उस कसीनो का मालिक है, जहां वह काम करती थी. 2 सप्ताह में ही सैंडी की जिंदगी बदल गई थी.
टेड की पत्नी को जब पति और सैंडी के प्रेम के बारे में पता चला तो उस की पत्नी डौरिस अपनी 15 वर्षीया बेटी को ले कर चली गई. उस ने तलाक का मुकदमा करने में भी देर नहीं की. टेड शराब तो पीता ही था, पत्नी के जाने के बाद हेरोइन भी लेने लगा.
डोरिस के घर से जाते ही जो सैंडी पैसों की खातिर हर रात क्लबों में जिस्म दिखाने का नाच करती थी, वह अरबपति के घर की मालकिन बन गई. एक तरह से उस के हाथ सोने का अंडा देने वाली मुर्गी लग गई थी. लास वेगास ने उस की जिंदगी बदल दी थी.
टेड सैंडी की अदाओं पर फिदा था. हर रात उस के साथ बाहर जा कर खाना खाता, कसीनो में जुआ खेलता और फिर रात भर सैंडी के साथ मजे लेता. यही उस की जिंदगी का नियम बन गया था.
सैंडी ने जिंदगी में जो चहा था, पा लिया था. अब टेड की बेशुमार दौलत सैंडी के हाथों में थी. उस की जिंदगी ने नया करवट तब लिया, जब उस की जिंदगी में टेबिश आया. रिक टेबिश लास वेगास सन 1991 में आया था. यहां उस ने अपनी ट्रांसपोर्ट कंपनी खोली थी. इस के बाद जल्दी ही उस की गिनती करोड़पतियों में होने लगी थी.
पिएरो रेस्टोरेंट के रौसलेट में रिक की मुलाकात टेड से हुई तो जल्दी ही दोनों गहरे दोस्त बन गए. एक दिन टेड रिक को अपने घर ले गया तो वहां उस ने उसे सैंडी से मिलवाया. इस के बाद अक्सर तीनों की मुलाकातें होने लगीं. टेड बिनियन अपने कारोबार में व्यस्त रहता था, जिस की वजह से सैंडी का झुकाव रिक की ओर हो गया. वह उस के साथ शौङ्क्षपग पर भी जाने लगी. इस तरह दोनों करीब आते गए.
इस के बाद एक शाम जब दोनों घर में अकेले थे तो सैंडी ने कहा, “रिक, क्या तुम्हें नहीं लगता कि हमारे बीच अपनापन इस हद तक बढ़ गया है कि अब इसे रिश्ते का नाम दे दिया जाना चाहिए.”
“कैसा रिश्ता?” रिक ने पूछा.
“प्यार का रिश्ता,” सैंडी ने कहा, “तुम्हारे साथ होने पर दिल में कुछकुछ होने लगता है. सच कहूं, मेरा दिल बिलकुल खाली है. टेड को तो मेरे दिल ने सिर्फ नाम का पति माना है. उस बूढ़े में इतनी ताकत कहां है कि उसे पूरी तरह से पति मान लिया जाए. वह शरीर में आग तो लगा देता है, लेकिन बुझाना उस के वश की बात नहीं है.”
रिक उस के कहने का मतलब समझ गया था. वह तो वैसे ही सैंडी पर फिदा था. इस तरह खुले आमंत्रण पर भला कैसे खुद को रोक पाता. उस ने सैंडी को बाहों में भर लिया. इस का नतीजा यह रहा कि दोनों के बीच जिस्मानी दूरी खत्म होते देर नहीं लगी.
दोनों एकांत के साथी बने तो हर छोटीबड़ी बातों के भी राजदार बन गए. इस सब से बेखबर टेड का भी रिक पर विश्वास बढ़ता गया. यही वजह थी कि एक दिन टेड ने उस से पाॄकग के नीचे बने बेसमेंट में दबी चांदी के सिक्कों की बोरियों को कहीं दूसरी जगह ले जाने के बारे में सलाह मांगी. क्योंकि टेड अपनी बहन की दखलंदाजी से परेशान था. वह उस की दौलत हड़पना चाहती थी.
इस के बाद रिक की सलाह पर टेड ने चांदी के सिक्कों से भरी बोरियां लास वेगास से 60 किलोमीटर दूर एक छोटे से गांव पाहरूपम पहुंचा दी. टेड ने वहां जमीन खरीद कर इंजीनियर्स ग्रुप की मदद से एक तहखाना बनवाया था और उसी में अपनी दौलत रखवा दी थी.
17 सितंबर, 1998 की रात लास वेगास के मेट्रोपैलिटन डिपार्टमेंट में एक फोन आया, जिस में एक औरत कह रही थी कि उस के पति की तबीयत बहुत खराब है. उन्होंने सांस लेना बंद कर दिया है.
उस ने घर का पता बताया था 2406, पोलोकिनो लेन. यह टेड बिनियन का घर था. वह फोन सैंडी ने किया था. थोड़ी देर में घर के बाहर 3 जीपें आ कर रुकीं. इसी के साथ डाक्टरों की 2 टीमों के साथ पुलिस वालों की लाइन लग गई. भीतर से सैंडी चिल्लाई, “आप लोग इन्हें बचा लो, यह मर जाएंगे, इन की सांस रुक गई है.”
एक डाक्टर उसे चुप कराने लगा तो बाकी अंदर चले गए. रेंकल ने बाहर आ कर उस से पूछा, “आप कौन हैं?”
“मैं उन की बीवी हूं.” सैंडी बोली.
“आप की पति से आखिरी बार कब मुलाकात हुई थी?”
“आज सुबह.”
रेंकल सैंडी को वहीं छोड़ कर अंदर टेड के पास पहुंचा. उस की नब्ज टटोली तो रुक चुकी थी. शरीर एकदम ठंडा हो चुका था. साफ था टेड मर चुका था. सैंडी भी आ गई और टेड की लाश से लिपट कर रोने लगी. पुलिसकॢमयों ने उसे पकड़ कर अलग किया और सांत्वना दिया.
टेड को जांच के लिए अस्पताल ले जाया गया. वहां सैंडी की तबीयत खराब हो गई तो उसे दवा दे कर सुला दिया गया. कुछ देर में रिक भी आ गया. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में उस ने बताया कि वह टेड और सैंडी दोनों का दोस्त है. वह कारोबार के सिलसिले में शहर से बाहर जा रहा था. टेड की मौत का पता चला तो एयरपोर्ट से सीधे अस्पताल आ गया.
पुलिस ने अनुमान लगाया कि कैसीनों का लाइसैंस न मिलने से टेड ने आत्महत्या की होगी. सैंडी ने बताया कि देर शाम उस ने टेड के हाथ में बंदूक देखी थी. चाह कर भी उसे नींद नहीं आ रही थी. परेशानी की वजह से उन्होंने हेरोइन की ज्यादा डोज ले ली होगी?
जांच करने वाली टीम ने पाया कि टेड बिनियन की मौत आत्महत्या नहीं थी, बल्कि उसे आत्महत्या दिखाने की कोशिश की गई थी. जांच में उस के कमरे से जो एक्सानेक्स की शीशी मिली थी, उस की अधिक डोज देने से टेड तड़पतड़प कर एक कमरे से दूसरे कमरे में भटका होगा. कमरा बंद होने की वजह से छलांग लगाने का भी कोई रास्ता नहीं था. इस दवा के कारण उल्टी भी हुई होगी, जिसे साफ किया गया होगा.
यह अपराध काफी गहराई तक सोच कर किया गया था. टेड बिनियन की मौत के 2 दिनों बाद 19 सितंबर, 1998 पुलिस को सूचना मिली कि 2 बड़ेबड़े भरे हुए ट्रक पाहरूम से बाहर जाते हुए देखे गए हैं. उन दोनों ट्रकों में से एक को रिक टेबिश चला रहा है, जबकि दूसरे को उस का साथी डेविड मेटसन.
दोनों ट्रकों को पीछा कर के पकड़ लिया गया. उस समय तो रिक बहाना कर के बच गया था. उस ने कहा था कि टेड बिनियन ने उसे ये ट्रक मि. एंथनी के पास पहुंचाने को कहा था. लेकिन आगे की जांच में सैंडी और रिक शक के दायरे में आ गए. इस के बाद 14 जून, 1999 को सैंडी मर्फी और रिक टेबिश को गिरफ्तार कर लिया गया.
पूछताछ में पता चला कि जिस रात टेड का कत्ल हुआ था, दोनों होटल पेनिनसुला में एक साथ दिखाई दिए थे. होटल का कमरा मिस्टर एंड मिसेज टेबिश के नाम से बुक कराया गया था. रात गुजारने के बाद दोनों सुबह वहां से एक साथ घर के लिए निकले थे. लेकिन उस समय सबूत न होने की वजह से वे छूट गए थे.
करीब 4 सालों बाद अक्टूबर, 2004 में सैंडी मर्फी और रिक टेबिश को सबूतों के साथ पेशी के लिए कोर्ट में लाया गया, जहां दोनों ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. सैंडी ने माना कि उस ने टेड बिनियन के साथ शादी प्यार की वजह से नहीं, उस की दौलत की वजह से की थी. वह उस की दौलत हासिल करना चाहती थी. इस के बाद रिक उस की जिंदगी में आया तो दोनों ने शादी का फैसला कर लिया.
सैंडी की तरह रिक भी टेड की दौलत हड़पना चाहता था. सैंडी ने जब उस से टेड की दौलत हथिया कर शादी करने को कहा तो वह राजी हो गया. सैंडी जानती थी कि टेड हेरोइन के नशे का आदी है. इस के अलावा वह कई तरह की नशीली गोलियां भी खाता था.
उस ने टेड को मारने के लिए इन्हीं चीजों का सहारा लेने का फैसला किया. रिक भी इस पर सहमत हो गया. घटना वाले दिन पहले दोनों ने दवा की हाई डोज दे कर टेड को मार दिया. उस के बाद दोनों ने जिस्मानी भूख मिटाई.
उन्होंने माना कि टेड बिनियन को जबरदस्ती 12 पैकेट हेरोइन खिलाई गई थी. उस के बाद एक्सानेक्स की 10 गोलियां उस के मुंह में ठूंस दी थी, ताकि उस की अरबों की दौलत के मालिक वे खुद बन सकें.
दोनों के अपराध स्वीकार करने और सबूतों के आधार पर जज ने उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई थी. उम्रकैद की सजा मिलने के बाद सैंडी और रिक ने कई बार जमानत की अर्जी दी, लेकिन उन्हे खारिज कर दिया गया.
2 जनवरी, 2010 को फिर सैंडी ने उम्र का हवाला देते हुए जमानत की अर्जी दाखिल की कि अभी उस की उम्र ही क्या है, अपने किए की वह काफी सजा भुगत चुकी है, इसलिए उस के भविष्य को ध्यान में रख कर उसे जमानत दी जाए. लेकिन इस बार भी उसे जमानत नहीं मिल सकी. दोनों की उम्रकैद की सजा बरकरार है. यह प्रकरण इतना विख्यात हुआ था कि हौलीवुड में इस पर फिल्म बनी थी.
रात में सभी सो गए, जबकि हरमीत अपने कमरे में जागता रहा. सब के सो जाने के बाद उस ने शराब पी. वह हत्याओं के बारे में सोचने लगा. शराब के नशे के चलते करीब 12 बजे उस की आंख लग गई. दिमाग में चूंकि हत्या का भूत सवार था, इसलिए 3 बजे आंख खुल गई. हरमीत ने एक बार फिर शराब पी और 4 बजे के करीब जय सिंह बाथरूम जाने के लिए उठे तो उसे आहट से पता चल गया.
उस ने ठान लिया कि अब वह एकएक को मार कर ही रहेगा. जय सिंह बाथरूम से वापस आए तो अचानक हरमीत उन के कमरे में पहुंच गया और चाकू से ताबड़तोड़ वार करने लगा.
बेटे का यह रूप देख कर जय सिंह हक्केबक्के रह गए. उन्होंने बचाव के लिए हाथ उठाए तो उस ने हाथों पर भी चाकू मारे. उम्र का तकाजा था, जय सिंह ज्यादा विरोध नहीं कर सके. हरमीत ने पेट से ले कर गर्दन तक कई वार किए तो लहूलुहान हो कर वह दरवाजे के पास गिर गए और दम तोड़ दिया. पिता की हत्या करने के बाद उसे घबराहट होने लगी तो वह अपने कमरे में गया और शराब का एक पैग बना कर पिया.
उस के सिर पर खून सवार था. इस के बाद वह ड्राइंगरूम कम बेडरूम में पहुंचा और वहां सो रही कुलवंत कौर पर हमला बोल दिया. जागने पर वह हरमीत से भिड़ गईं. मामूली संघर्ष के बाद उस ने उन्हें भी मौत के घाट उतार दिया. उसी बेडरूम में हरजीत भी अपने दोनों बच्चों के साथ सो रही थी. हरमीत ने अगला निशाना उसे बनाया. गर्भवती होने के कारण वह ज्यादा विरोध नहीं कर सकी.
उस की 3 साल की मासूम बेटी सुखमणि को भी उस ने मार दिया. उसी बीच 6 साल के कंवलजीत की आंख खुल गई तो वह बिस्तर से उतर कर रोता हुआ भागा. हरमीत किसी को भी जिंदा नहीं छोड़ना चाहता था. उस ने भागते कंवलजीत की पीठ पर 2 वार किए. दोनों ही वार हलके थे. वह 2 सोफों के बीच छिप कर रोते हुए गिड़गिड़ाने लगा, ‘‘प्लीज मामा, मुझे मत मारो.’’
हरमीत कंवलजीत को प्यार तो करता था, परंतु उस वक्त वह भी उसे अपना दुश्मन नजर आ रहा था. अचानक उसे ख्याल आया कि कंवलजीत को जिंदा छोड़ कर अपने पक्ष में गवाह बनाया जा सकता है कि हत्याएं किसी और ने की हैं. मन में यह ख्याल आते ही उस ने कंवलजीत से गुर्राकर कहा, ‘‘रोना बंद कर और मेरी बात सुन. तुझ से कोई पूछे तो बताना कि 3 नकाबपोश लोगों ने ये हत्याएं की हैं. तू ने सच बताया तो तेरा भी यही हाल करूंगा.’’
कंवलजीत थरथर कांप रहा था, उस ने रोते हुए कहा, ‘‘ठीक है मामा, मैं ऐसा ही कहूंगा. मुझे मत मारो.’’
हरमीत ने उसे छोड़ दिया. लेकिन डर की वजह से वह वहीं छिपा रहा. हरमीत ने सोचा कि सुबह लेगों को बताएगा कि 3 नकाबपोश बदमाशों ने पूरे परिवार की हत्या की है. गवाह के तौर पर वह कंवलजीत को सामने कर देगा. कहानी को सच बनाने के लिए उस ने अपने हाथ पर चाकू मार लिया.
घर में खून का दरिया बहाने वाले का अपना थोड़ा खून बहा तो उस ने हाथ पर रूमाल बांध लिया. अपनी खून सनी कमीज उस ने उतार कर रख दी और चाकू भी फेंक दिया. हरमीत अपने कमरे में गया और एक बार और शराब पी. नशा अधिक होने के चलते हरमीत आगे की कोई प्लानिंग नहीं कर सका. उसे किसी अंजाम की परवाह भी नहीं रही. इसी बीच वह सो गया.
सुबह नौकरानी आई तो वह हड़बड़ा कर उठा और राजो को टालने की कोशिश की. परंतु वह दोबारा आई तो वह सिर पकड़ कर बरामदे में बैठ गया. लोग आए तो कंवलजीत भी बाहर आ गया. लोगों के पूछने पर उस ने कुछ नहीं बताया. पुलिस को भी उस ने हरमीत द्वारा समझाई गई बात ही बताई, लेकिन पिता के आने पर उस का डर कम हुआ तो उस ने सच बता दिया.
इस के बाद निर्दयी हरमीत को हिरासत में ले लिया गया. पुलिस ने उस की मां अनीता और भाई को भी हिरासत में ले कर पूछताछ की, लेकिन हत्या या षडयंत्र में उन का कोई हाथ नहीं निकला. जांच के लिए हरमीत के फिंगरप्रिंट व खून का नमूना ले कर प्रयोगशाला भिजवा दिया, ताकि घटनास्थल पर मिले सुबूतों से उस का मिलान किया जा सके.
पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टरों को भी हरमीत की कू्ररता चौंका गई. जय सिंह के शरीर पर 24, कुलवंत के शरीर पर 9, हरजीत के शरीर पर 7 और सुखमणि के शरीर पर चाकू के 5 घाव पाए गए थे. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार हरजीत के गर्भ में पलने वाला बच्चा लड़का था.
अगले दिन लक्खीबाग श्मशान घाट पर गमगीन माहौल में सभी का अंतिम संस्कार कर दिया गया. हत्याओं के चश्मदीद गवाह मासूम कंवलजीत के बाल मन पर डरावने मंजर का गहरा असर पड़ा था. वह गुमशुम था. हरमीत के प्रति लोगों में गुस्सा था. हर कोई उसे कोस रहा था, जबकि हरमीत को इन हत्याओं का कोई अफसोस नहीं था.
पुलिस ने गर्भस्थ शिशु की मौत के मामले में उस के खिलाफ धारा 316 भी लगा दी थी. पुलिस ने उसे विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश किया. उसे देखने के लिए अदालत में काफी भीड़ लगी थी. लोगों के गुस्से को देखते हुए सुरक्षा की काफी व्यवस्था थी. इस के बावजूद लोगों ने उसे पीटने का प्रयास किया. अदालत ने उसे 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया.
अपनी बिगड़ैल प्रवृत्ति, संपत्ति के लालच व नफरत में हरमीत इतना अंधा हो गया कि अपनों का ही हत्यारा बन बैठा. कथा लिखे जाने तक वह सलाखों के पीछे था.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
इस के बाद हरमीत ने बुलेट मोटरसाइकिल की मांग शुरू कर दी. उस की इच्छा के अनुसार जय सिंह ने उस की मनपसंद की मोटरसाइकिल दिला दी. हरमीत के पास सब कुछ था. पिता पैसा लगा रहे थे और आजादियां भी दे रहे थे. इस से अच्छी किस्मत क्या हो सकती थी. हरमीत को यह सब आसान लग रहा था. उस की ख्वाहिशों को पंख लगते जा रहे थे. अब वह नई कार की मांग करने लगा.
ऐसे में जय सिंह विरोध कर के समझाने की कोशिश करते तो वह एक ही बात कहता, ‘‘मैं सौतेला हूं, इसलिए मेरी बात नहीं मान रहे हैं.’’
जय सिंह उसे प्यार से समझाते, ‘‘ऐसी बात बिल्कुल नहीं है. हरमीत तुम मेरे बेटे हो. तुम अपना आचरण सही कर लोगे तो सारी शिकायतें अपने आप ही दूर हो जाएंगी. प्रौब्लम यह है कि तुम कुछ समझना ही नहीं चाहते.’’
बेटे की जिद पर जय सिंह ने कार भी दिला दी. हरमीत ने जिंदगी में पिता की कमाई का स्वाद ही चखा था, इसलिए चीजों की कद्र कम करता था. कभी शराब का नशा तो कभी लापरवाही के चलते कार दो बार दुर्घटनाग्रस्त हो गई. बेटे की हरकतों से जय सिंह अपने पुराने निर्णयों पर पछता रहे थे.
जय सिंह अनीता से भी बेटे को समझाने के लिए कहते थे. वह भले ही अनीता से अलग रहते थे, परंतु समय समय पर उस की तरहतरह से मदद करते रहते थे. उस के पास रह रहे अपने बेटे पारस और पहले पति के बेटे लक्की को भी उन्होंने महंगी महंगी मोटरसाइकिलें दिलाई थीं. दोनों उन से मिलने भी आया करते थे. जय सिंह दिल के अच्छे आदमी थे. वह चाहते थे कि सब हंसीखुशी से रहें.
बस, हरमीत से ही वह परेशान थे. बिगड़े आचरण ने हरमीत को जिद्दी बना दिया था. शराब के अलावा वह स्मैक जैसे खतरनाक नशे भी करने लगा था. उसे इस लत से निकालने के लिए जय सिंह ने एक नशा मुक्ति केंद्र में भी भर्ती कराया था, परंतु इस का कोई लाभ नहीं हुआ था. उस के आचरण से हर कोई दुखी था. हरमीत हरजीत कौर को फूटी आंख नहीं पसंद करता था. वह जब भी मायके आती थी, वह उस से झगड़ता रहता था.
अक्टूबर के दूसरे सप्ताह की बात थी. जय सिंह को विश्वास हो गया कि बेटा अब किसी भी हाल में सुधरने वाला नहीं है. उसे ले कर वह अक्सर परेशान रहते थे. काफी सोचविचार कर उन्होंने अपनी संपत्ति के बंटवारे का निर्णय कर लिया. उन्होंने सोचा कि बेटे को बढि़या फ्लैट दिला कर उसे घर बसाने के लिए आजाद छोड़ देंगे और बेटी को उस का हिस्सा दे देंगे.
जय सिंह का यह निर्णय हरमीत को पसंद नहीं आया. हरमीत का मानना था कि हरजीत तो गोद ली हुई है, जबकि वह पिता का खून है, ऐसे में हरजीत का हक कैसे हो सकता है. दीपावली का त्यौहार आ रहा था. हरजीत चाहती थी कि उस का प्रसव देहरादून में हो. इसलिए जय सिंह ने उसे अपने पास बुलवा लिया था. सभी चाहते थे कि पूरा परिवार दीपावली भी साथ मना ले और डिलीवरी भी हो जाए.
हरजीत के आने से हरमीत का माथा ठनका. उसे लगा कि हो न हो, अब संपत्ति दो हिस्सों में बंट जाएगी. इस से उस के मन में नफरत और बढ़ गई. उस ने तय कर लिया कि वह अपनी संपत्ति को किसी भी हाल में बंटने नहीं देगा. जबकि जय सिंह के जिंदा रहते यह संभव नहीं था. होता वही, जो जय सिंह चाहते.
हरमीत दिनरात इसी उधेड़बुन में रहने लगा कि पिता की संपत्ति का अकेला मालिक कैसे बना जाए. वह हमेशा घंटों इसी बारे में सोचता रहता. अंत में उस ने सब की हत्या करने का खतरनाक निर्णय ले लिया. उस के पास 10 इंची लंबा रामपुरी चाकू पहले से ही था.
21 अक्टूबर को हरमीत अंसारी मार्ग पर चाकू की धार तेज कराने गया, लेकिन दुकानदार ने मना कर दिया. हरमीत अपनी संपत्ति से जुड़े हर शख्स को निपटाना चाहता था. उस ने अपने जीजा अरविंदर को भी फोन कर के दीपावली पर देहरादून आने को कहा था, लेकिन अरविंदर ने काम की अधिकता होने के चलते आने से मना कर दिया था.
दीपावली से एक दिन पहले हरजीत कौर ने मोबाइल की इच्छा जाहिर की तो जय सिंह ने उसे 25 हजार रुपए का मोबाइल फोन दिला दिया. इस पर हरमीत भड़क उठा और उस ने भी मोबाइल की मांग की, ‘‘मुझे भी इसी तरह का महंगा मोबाइल फोन चाहिए.’’
‘‘तेरी हर मांग तो पूरी की है, उस का नतीजा क्या निकला है, सोचा है कभी तू ने.’’ जय सिंह ने उसे झिड़क दिया.
‘‘जब यह मोबाइल ले सकती है तो मुझे क्यों नहीं दिला सकते. मैं भी बेटा हूं आप का.’’
‘‘बेटा है, लेकिन नालायक. लायक बन जा, मोबाइल क्या पूरी मोबाइल कंपनी दिला दूंगा तुझे.’’ जय सिंह ने कहा.
इस बात को ले कर घर में तनातनी हो गई तो कुलवंत कौर ने पति को समझाया. उस के बाद वह नरम हो कर बोले, ‘‘ठीक है, दीपावली के बाद तुझे भी ऐसा ही मोबाइल दिला दूंगा.’’
बात सिर्फ मोबाइल की नहीं थी. हरमीत के दिमाग में तो पहले ही बहुत कुछ पक चुका था. मोबाइल ने तो आग में घी का काम किया था. उस के दिल में प्रतिशोध की आग दहक रही थी. अपने निकम्मेपन और गलत आचरण की वजह से उसे लगने लगा था कि पिता सब कुछ बेटी को दे कर एक दिन उसे बाहर का रास्ता दिखा देंगे. यह नौबत कभी भी आ सकती थी. इसलिए किसी भी सूरत में वह अपने निर्णय पर अमल करना चाहता था.
हरमीत ने सोचा कि शराब पी कर वारदात करने में आसानी रहेगी. शराब की एक बोतल ला कर उस ने घर में रख दी. 23 अक्टूबर को पूरा शहर दीपावली का त्योहार मना रहा था.
जय सिंह उन लोगों में से थे, जो सभी से बना कर चलते हैं. मोहल्ले में उन की किसी से अनबन नहीं थी. हर कोई उन के व्यवहार का कायल था. उन का सभी के यहां आनाजाना था. दीपावली की शाम को भी वह आसपड़ोस में सब के यहां गए और दीपावली की बधाई दी. रात में नाती और नातिन के साथ पटाखे भी चलाए. हरमीत भी साथ रहा. तब कोई नहीं जानता था कि इस खुशी के बाद सहन न होने वाला दुख आने वाला है.
चादर में लिपटी मिली साहनी की लाश
चूंकि मामला मासूम बच्ची की गुमशुदगी का था. उस के साथ दरिंदगी जैसी घटना घटित न हो जाए, इसलिए कोतवाल विमलेश कुमार बिना देरी के आवश्यक पुलिस बल के साथ सिरसा दोगड़ी गांव पहुंच गए और बच्ची की खोज शुरू कर दी. परिवार व गांव के युवक भी पुलिस के साथ हो लिए.
पुलिस ने गांव के बाहर खेतखलिहान, बागबगीचा, कुआंतालाब तथा नदीनहर किनारे झाडिय़ों में बच्ची की खोज की. लेकिन उस का कुछ भी पता नहीं चला. पुलिस ने गांव के कुछ संदिग्ध घरों की तलाशी भी ली. कई नवयुवकों से सख्ती से पूछताछ भी की. परंतु साहनी का पता नहीं चला.
रात 12 बजे के बाद कोतवाल विमलेश कुमार पुलिसकर्मियों व अश्वनी के घर वालों के साथ साहनी की खोज करते गांव के बाहर निर्माणाधीन अस्पताल के पास पहुंचे. वहां उन्हें केले की झाडिय़ों के बीच सफेद चादर में लिपटी कोई वस्तु दिखाई दी. सहयोगी पुलिसकर्मियों ने जब चादर हटाई तो सभी की आंखें फटी रह गईं. चादर में लिपटी एक बच्ची की लाश थी.
इस लाश को जब अश्वनी ने देखा तो वह फफक पड़ा और कोतवाल साहब को बताया कि लाश उस की बेटी साहनी की है. कोतवाल ने साहनी मर्डर केस की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी तो सवेरा होतेहोते एसपी डा. ईरज राजा, एएसपी असीम चौधरी तथा डीएसपी रवींद्र गौतम भी घटनास्थल आ गए. अब तक गांव में भी सनसनी फैल गई थी, अत: सैकड़ों लोग वहां जुट गए थे.
राधा को बेटी की हत्या की खबर लगी तो वह बदहवास हालत में घटनास्थल पर पहुंची और बेटी के शव के पास विलाप करने लगी. ओमप्रकाश भी नातिन का शव देख कर रो पड़े. पुलिस अधिकारियों ने उन दोनों को समझा कर किसी तरह शव से अलग किया फिर जांच में जुट गए.
मृतक बच्ची की उम्र 5 वर्ष के आसपास थी. उस के शरीर पर किसी तरह के चोट के निशान नहीं थे. देखने से लग रहा था कि उस की हत्या नाक-मुंह दबा कर की गई थी. क्योंकि नाक से खून निकला था. ऐसा भी लग रहा था कि बच्ची की हत्या कहीं और की गई और फिर शव को चादर में लपेट कर वहां फेंका गया. चादर पर खून लगा था. जांच से यह भी अनुमान लगाया गया कि उस के साथ दरिंदगी नहीं की गई थी. जांच के बाद पुलिस अधिकारियों ने बच्ची के शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल, उरई भिजवा दिया.
दादा ने जताया बहू पर शक
पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल पर मौजूद मृतका के पिता अश्वनी दुबे तथा दादा ओमप्रकाश से पूछताछ की. ओमप्रकाश ने बताया कि नातिन की हत्या का भेद उस की बहू राधा के पेट में छिपा है. यदि राधा से सख्ती से पूछताछ की जाए तो सच्चाई सामने आ जाएगी.
“भला एक मां अपनी मासूम बच्ची की हत्या क्यों करेगी?” पुलिस अधिकारियों ने पूछा.
“साहब, पड़ोसी युवक नेत्रपाल सिंह का हमारे घर आनाजाना था. वह बच्चों को टौफी, बिस्कुट खिलाता था. मना करने के बावजूद नहीं मानता था. उस ने बहू को भी अपने जाल में फंसा लिया था. मुझे शक है कि इन दोनों ने ही कोई खेला किया है.”
यह जानकारी पाते ही डीएसपी रविंद्र गौतम ने पुलिस टीम के साथ नेत्रपाल सिंह व राधा को उन के घर से हिरासत में ले लिया और थाना माधौगढ़ ले आए. थाने में जब उन दोनों से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने मासूम साहनी हत्याकांड का जुर्म कुबूल कर लिया.
नेत्रपाल सिंह ने बताया कि पड़ोसी अश्वनी के घर उस का आनाजाना था. घर आतेजाते अश्वनी की पत्नी राधा और उस के बीच नाजायज संबंध बन गए. 4 अप्रैल, 2023 की दोपहर उस ने शराब पी, फिर नशे की हालत में वह राधा के घर पहुंच गया.
राधा उस समय घर में अकेली थी. राधा का पति खेत पर था और बच्चे दादा की झोपड़ी में थे. राधा को अकेली पा कर उस की कामाग्नि भडक़ उठी. उस ने राधा को बांहों में भरा और चारपाई पर लिटा दिया. मस्ती के आलम में उन्होंने दरवाजा भी बंद नहीं किया.
भेद खुलने के डर से की हत्या
राधा के बिस्तर पर वह वासना की आग बुझा ही रहा था कि तभी राधा की बेटी साहनी आ गई. उस ने दोनों को उस हालत में देखा तो वह चीखने लगी. राधा को लगा उस की बेटी उस का भांडा फोड़ देगी. अत: उस ने उसे पकड़ लिया और उस के मुंह पर हाथ रख दिया.
नेत्रपाल सिंह नशे में था. उसे भी लगा कि भेद खुल जाएगा. वह भी उस के पास पहुंचा और फिर मुंह नाक दबा कर साहनी को मार डाला. इस के बाद यह अपराध छिपाने के लिए उन दोनों ने साहनी की लाश को सफेद चादर में लपेटा और गांव के बाहर निर्माणाधीन अस्पताल के पास फेंक दिया.
चूंकि दोनों ने साहनी की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया था, अत: कोतवाल ने मृतका के दादा ओमप्रकाश की तहरीर पर भादंवि की धारा 302/201 के तहत नेत्रपाल सिंह व उस की प्रेमिका राधा के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया तथा उन्हें विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया.
7 अप्रैल, 2023 को पुलिस ने आरोपी नेत्रपाल सिंह व राधा को उरई कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.
-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
अब गुंजाइश की कोई बात ही नहीं रह गई थी. लेकिन पुलिस पूछताछ में वह अपने नकाबपोशों द्वारा हत्या किए जाने वाले बयान पर अड़ा था और अजीब अजीब हरकतें कर रहा था. कभी वह रोने लगता तो कभी हंसने लगता. खीझ कर थानाप्रभारी ने पूछा, ‘‘सचसच बताओ तुम ने हत्याएं क्यों कीं.’’
इस पर हरमीत ने राजदाराना अंदाज में कहा, ‘‘सरजी, मैं ने कुछ नहीं किया, कराने वाला तो कोई और है.’’
‘‘कौन?’’
‘‘2 भूत, जो खिड़की के रास्ते आए और मेरे अंदर प्रवेश कर गए. उन में एक औरत थी और एक आदमी. दोनों मुझ से कहते गए और मैं हत्याएं करता गया.’’
पुलिस समझ गई कि हरमीत नाटक कर रहा है. इस के बाद उस के साथ थोड़ी सख्ती की गई तो उस पर सवार भूत को उतरते देर नहीं लगी. चारों हत्याओं का राज भी खुल गया. उस परिवार का कातिल कोई और नहीं, हरमीत ही था. हरमीत से की गई पूछताछ में जो कुछ पुलिस के सामने आया, उसे सुन कर पुलिस वालोें के भी रोंगटे खड़े हो गए. कोई बेटा इतना भी कू्रर हो सकता है, ऐसा किसी ने नहीं सोचा था.
मूलत: पंजाब के रहने वाले जय सिंह मिलनसार स्वभाव के मेहनती आदमी थे. वर्षों पहले उन का विवाह कुलवंत कौर के साथ हुआ था. जिंदगी हंसीखुशी से गुजर रही थी. सब कुछ ठीक था, लेकिन कुलवंत कौर को कोई संतान नहीं हुई. तमाम इलाज के बाद भी जब कोई समाधान नहीं हुआ तो 25 साल पहले उन्होंने अपने भतीजे अजीत सिंह की बेटी हरजीत कौर उर्फ हन्नी को गोद ले लिया था.
हरजीत को गोद लेने के बाद घर में खुशियां आ गईं. हरजीत को पा कर दोनों ही खुश थे. वे उसे खूब प्यार भी करते थे. जय सिंह के परिवार में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी. वह आर्थिक रूप से काफी संपन्न थे. कारोबार के लिए उन्होंने पल्टन बाजार में अपना औफिस बना रखा था. सब कुछ ठीक चल रहा था.
भविष्य की चिंता किए बिना जय सिंह ने एक गलती कर डाली. कभीकभी आदमी सोचता कुछ है और होता कुछ और है. जिंदगी की हर राह वैसी नहीं होती, जैसी वह अपने हिसाब से सोचता है.
जय सिंह के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. किसी समारोह में उन की मुलाकात अनीता से हुई. अनीता उत्तर प्रदेश पुलिस में सिपाही थी. पहली ही मुलाकात में दोनों का झुकाव एकदूसरे की तरफ हो गया. अनीता खूबसूरत थी, जबकि जय सिंह दौलत वाले. जल्दी ही दोनों नजदीक आ गए.
हालांकि अनीता शादीशुदा थी, लेकिन उस के पति की मौत हो चुकी थी. पहले पति से उसे एक बेटा लक्की था. कुछ महीनों की मुलाकातों के बाद जय सिंह और अनीता ने एक होने का फैसला कर लिया. जय सिंह जानते थे कि सार्वजनिक रूप से यह संभव नहीं है, इसलिए उन्होंने चोरी से अनीता से विवाह कर लिया और किराए पर मकान ले कर उस के रहने की व्यवस्था कर दी. घर में बहाना कर के वह अनीता के यहां पहुंच जाते. अनीता का सारा खर्चा वही उठाते थे.
विवाह के बाद अनीता ने पुलिस की नौकरी छोड़ दी थी. जय सिंह खुद इतने संपन्न थे कि अनीता को नौकरी करने की जरूरत ही नहीं थी. जय सिंह से अनीता को 2 बेटे, हरमीत सिंह और पारस पैदा हुए, इंसान लाख कोशिशें करें, परंतु ऐसे रिश्ते छिप नहीं पाते. कई साल बीत गए थे. बच्चे भी बड़े हो गए थे, लेकिन बात खुली तो जय सिंह की पहली पत्नी कुलवंत विरोध करने लगी, जिस से घर में कलह रहने लगी.
समय अपनी गति से चलता रहा. उसी दौरान जय सिंह का दूसरी पत्नी अनीता से भी मनमुटाव रहने लगा. बात हद पार कर गई तो अनीता और जय सिंह ने हमेशा हमेशा के लिए अलग होने का निर्णय कर लिया. यह 9 साल पहले की बात थी. उसी दौरान जय सिंह ने हरजीत कौर का विवाह हरियाणा के यमुनानगर निवासी अरविंदर सिंह के साथ धूमधाम से कर दिया. हरजीत को कभी इस बात का अहसास नहीं हुआ था कि उसे गोद लिया गया था. उस की हर ख्वाहिश जय सिंह ने पूरी की थी.
दूसरी ओर अनीता को ले कर जय सिंह की परेशानी बढ़ गई थी. दोनों ने अलग होने का निर्णय तो ले लिया था, लेकिन हक लेनेदेने की बात पर आपसी सहमति नहीं बन पा रही थी. मामला थाने से होता हुआ अदालत तक पहुंचा, जहां हुए समझौते के अनुसार जय सिंह ने अनीता को 25 लाख रुपए दिए. समझौते के अनुसार बड़े बेटे हरमीत को जय सिंह के साथ रहना था और छोटे पारस को अनीता के साथ.
हरमीत को अपने पास रख कर जय सिंह अपना वंश चलाना चाहते थे. अनीता अलग हो कर सहारनपुर में रहने लगी. जय सिंह का वहां भी 55 गज का एक मकान था, जिसे उन्होंने अनीता को दे दिया था. हरमीत बचपन से ही बिगड़ैल प्रवृत्ति का था. सातवीं तक पढ़ाई करने के बाद पढ़ाई से उस का मन उचट गया. वह पिता के पास आया तो उन्होंने उसे पढ़ाने की बहुत कोशिश की, लेकिन उस ने साफ मना कर दिया.
जय सिंह और कुलवंत कौर गोद ली हुई हरजीत को बहुत चाहते थे. वे उस का हर तरह से खयाल रखते थे. हरमीत को यह बात अंदर ही अंदर बहुत खलती थी. अब वह चाहता था कि हर तरह का हक सिर्फ उस का हो. यह बात अलग थी कि वह विरोध करने लायक नहीं था. पिता के पास रहते हुए उस का अपनी मां से संपर्क बना रहा था. कभीकभी वह उस के पास चला भी जाता था.
एक तो वह आवारा था, दूसरे इन बातों ने उस के दिमाग पर खासा प्रभाव छोड़ा था. हरमीत युवा हो चला था. पिता ने उसे अपने साथ काम पर लगा लिया. क्योंकि जय सिंह नहीं चाहते थे कि उन के बेटे के मन में सौतेला होने जैसी कोई बात आए. इसलिए वह उस की हर मांग पूरी करते थे.
कहते हैं, प्रवृत्ति एक बार बिगड़ जाए तो बहुत मुश्किल से काबू में आती है. हरमीत के साथ भी यही हुआ. वह लगातार गलत संगत में पड़ता चला गया, जिस की वजह से कभीकभी शराब भी पीने लगा. इस से जय सिंह परेशान रहने लगे. उन्होंने डांटफटकार कर हरमीत को समझाया. लेकिन हरमीत का ध्यान काम पर कम, आवारागर्दी पर ज्यादा होता था. तब जय सिंह ने हरमीत को बैठा कर प्यार से समझाया, ‘‘बेटा कुछ करोगे, तभी यह जीवन चल पाएगा. बाप की कमाई पर कब तक ऐश करोगे.’’
‘‘मैं अलग काम करना चाहता हूं. मैं आप के साथ काम नहीं कर सकता.’’
‘‘लापरवाही से कुछ भी करोगे, सफल नहीं हो पाओगे.’’
‘‘मुझे जिम्मेदारी उठाने का मौका तो दो पापा.’’ हरमीत ने आत्मविश्वास से कहा तो जय सिंह को लगा कि शायद उसे गलतियों का अहसास हो गया है और यह वाकई कुछ करना चाहता है. देर आए दुरुस्त आए वाली कहावत उन्होंने सुनी थी, लिहाजा उन्होंने हरमीत को गारमेंट्स की दुकान खुलवा दी.
अगर आदमी का आचरण अच्छा न हो तो उसे कोई भी काम करने को दे दिया जाए, उस का परिणाम अच्छा नहीं निकलता. यही वजह थी कि हरमीत ने दुकान को घाटे में पहुंचा दिया. 2 साल बाद जय सिंह ने मजबूरन दुकान बंद करा दी.
एक दिन ओमप्रकाश दोपहर में ही खेत से वापस आ गया. घर के बाहर बनी झोपड़ी में राधा की बेटी मौजूद थी. उस के हाथ में नमकीन का पैकेट था. वह मजे से खा रही थी. ओमप्रकाश ने नातिन से पूछा, “बिटिया, नमकीन किस ने दी?”
“नेत्रपाल चाचा ने. वह घर के अंदर मम्मी से बतिया रहे हैं,” नातिन ने बताया.
नातिन की बात सुन कर ओमप्रकाश के मन में शक के बादल उमडऩे-घुमडऩे लगे. सच्चाई जानने के लिए उस के कदम ज्यों ही घर के दरवाजे की ओर बढ़े, त्यों ही नेत्रपाल घर के अंदर से निकला. ओमप्रकाश ने उसे टोका भी. लेकिन नेत्रपाल बिना जवाब दिए ही चला गया. लेकिन राधा कहां जाती? ओमप्रकाश ने उसे खूब खरीखोटी सुनाई.
पति को राधा ने दिखा दिया त्रियाचरित्र
शाम को अश्वनी जब खेत से घर वापस आया तो ओमप्रकाश ने बेटे को सारी बात बताई और इज्जत को ले कर चिंता जताई. बाप की बात सुन कर अश्वनी का माथा ठनका. उस ने इस बाबत राधा से पूछा तो वह पति पर हावी हो गई.
“पिताजी सठिया गए हैं. उन की अक्ल पर पत्थर पड़ गए हैं. वह लोगों की कानाफूसी को सही मान लेते हैं. ये वो लोग हैं, जो हम से जलते हैं और हमारी गृहस्थी को आग लगाना चाहते हैं.”
राधा यहीं नहीं रुकी और बोली, “वैसे भी नेत्रपाल हमारा पड़ोसी है. घर में आनाजाना है. रिश्ते में देवर है. इस नाते वह केवल हंसबोल लेता है. हंसीमजाक कर लेता है. इस में बुराई क्या है. तुम्हारा भी तो वह दोस्त है. तुम भी तो उस के साथ खातेपीते हो. मैं मानती हूं कि नेत्रपाल आज दोपहर घर आया था, लेकिन फावड़ा मांगने आया था. पिताजी ने उसे घर से निकलते देख लिया तो शक कर बैठे. फिर न जाने कितने इल्जाम मुझ पर लगा दिए. समझा देना उन्हें. आज तो मैं ने उन्हें जवाब नहीं दिया, लेकिन कल चुप नहीं बैठूंगी.”
राधा ने त्रियाचरित्र का ऐसा नाटक किया कि अश्वनी की बोलती बंद हो गई. वह सोचने लगा कि पिताजी को जरूर कोई गलतफहमी हो गई. राधा तो पाकसाफ है. नेत्रपाल के साथ उस का कोई लफड़ा नहीं है. उस ने किसी तरह राधा का गुस्सा दूर कर उसे मना लिया. राधा अपनी जीत पर जैसे शेरनी बन गई.
अश्वनी ने पत्नी को क्लीन चिट तो दे दी थी, लेकिन उस के मन में शक का कीड़ा कुलबुलाने लगा था. वह राधा पर चोरीछिपे निगाह भी रखने लगा था. यही नहीं, नेत्रपाल सिंह पर भी उस का विश्वास उठ गया था. उस ने उस के साथ शराब पीनी भी बंद कर दी थी. उस ने नेत्रपाल से भी साफ कह दिया था कि वह उस के घर तभी आए, जब वह घर पर मौजूद हो.
अश्वनी की बेटी अब तक 5 साल की हो चुकी थी. वह दिखने में गोरीचिट्टी तथा बातूनी थी. गांव के प्राइमरी स्कूल में वह पढ़ रही थी. अश्वनी ने बेटी से भी कह दिया था कि कोई बाहरी व्यक्ति घर में आए तो शाम को उसे जरूर बताए.
अचानक साहनी हुई लापता
अश्वनी के पिता ओमप्रकाश की माली हालत तो अच्छी नहीं थी, लेकिन गांव में उन की अच्छी इज्जत थी. अपने घर की इज्जत पर खतरा भांप कर वह चिंतित रहने लगे थे. उन्होंने खेत पर जाना कम कर दिया था और बहू राधा की निगरानी करने लगे थे. पड़ोसी युवक नेत्रपाल को तो वह घर के आसपास भी फटकने नहीं देते थे.
कड़ी निगरानी से राधा और नेत्रपाल सिंह का मिलन बंद हो गया. अब वे दोनों एकदूसरे से मिलने के लिए छटपटाने लगे. राधा जब तक मोबाइल फोन से अपने आशिक से बतिया नहीं लेती थी, उस के दिल को तसल्ली नहीं मिलती थी. लेकिन एक दिन उस की यह चोरी भी पकड़ी गई. फोन को ले कर राधा और अश्वनी के बीच खूब तूतू मैंमैं हुई. गुस्से में अश्वनी ने सिम ही तोड़ दिया.
4 अप्रैल, 2023 की शाम 5 बजे अश्वनी दुबे खेत से घर वापस आया तो उसे बच्चे नहीं दिखे. उस ने इधरउधर नजर दौड़ाई फिर पत्नी से पूछा, “राधा, दोनों बच्चे नहीं दिख रहे. कहां है वे दोनों?”
“दोनों ससुरजी के पास होंगे. साहनी तो यही कह कर घर से निकली थी कि वह दादा के पास जा रही है. वे दोनों वहीं होंगे.” राधा ने जवाब दिया.
अश्वनी तब पिता की झोपड़ी में पहुंचा. वहां ढाई वर्षीय बेटा तो सो रहा था, लेकिन बेटी साहनी नहीं थी. अश्वनी ने पिता से साहनी के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि लगभग 12 बजे साहनी छोटे भाई के साथ आई थी. कुछ देर दोनों उन के पास रहे. उस के बाद साहनी घर चली गई थी.
लेकिन पिताजी साहनी घर पर नहीं है. इस के बाद बाप बेटे साहनी की खोज करने लगे. उन्होंने मोहल्ले का हर घर छान मारा, लेकिन साहनी का पता न चला. सूर्यास्त होतेहोते पूरे गांव में यह खबर फैल गई कि अश्वनी दुबे की बेटी साहनी कहीं गुम हो गई है. इस के बाद गांव के दरजनों लोग 5 वर्षीय साहनी की खोज में जुट गए. उस की तलाश बागबगीचों, खेतखलिहान व कुआंतालाब में शुुरू हो गई. लेकिन साहनी का कुछ भी पता नहीं चला.
साहनी के न मिलने से राधा का रोरो कर बुरा हाल हो गया था. अड़ोसपड़ोस की महिलाएं राधा को हिम्मत बंधाती कि उस की बेटी का पता जल्दी ही चल जाएगा, लेकिन राधा पर महिलाओं के समझाने का कोई असर नहीं हो रहा था.
रात 8 बजे तक जब साहनी का कुछ भी पता नहीं चला तो अश्वनी कुमार दुबे जालौन जिले की ही कोतवाली माधौगढ़ पहुंचा और बोझिल कदमों से चलता हुआ कोतवाल विमलेश कुमार के सामने जा खड़ा हुआ. कोतवाल विमलेश कुमार ने उसे एक बार सिर से पांव तक घूरा. उस के चेहरे पर दुख व परेशानी के भाव साफ नजर आ रहे थे. आंखें भी नम थीं.
“बैठिए,” विमलेश कुमार ने कुरसी की ओर इशारा करते हुए कहा, “कहिए, मैं आप की क्या मदद कर सकता हूं?”
“साहब, मेरा नाम अश्वनी दुबे है. सिरसा दोगड़ी गांव का रहने वाला हूं. दोपहर बाद से मेरी 5 साल की बेटी साहनी अचानक लापता हो गई. मैं ने गांव के हर घर में उस की खोज की. जब कहीं नहीं मिली तो मैं आप की शरण में आया हूं,” अपनी बात पूरी कर अश्वनी रो पड़ा.
“देखो अश्वनी, रोने से काम नहीं चलेगा, हिम्मत रखो. मैं यकीन दिलाता हूं कि पुलिस आप की बेटी को तलाश करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी.” विमलेश कुमार ने कहा तो उस ने आंसू पोंछे. पूछताछ के बाद कोतवाल विमलेश कुमार ने साहनी की गुमशुदगी दर्ज कर ली और जिले के सभी थानों को वायरलैस से इस की सूचना दे दी. साथ ही पुलिस अधिकारियों को भी इस मामले से अवगत करा दिया.