
आखिर मेरी जिंदगी में वह दिन भी आ गया, जिस की तमन्ना हर लड़की के दिल में अंगड़ाइयां लेती रहती हैं. मगर मैं उस दिन के हर सपने से पहले ही बेहिस हो चुकी थी. मेरे बेजान से जिस्म को एक मूरत की तरह सजा कर सुलतान अहमद के पहलू में ला बैठाया गया. इस से पहले अम्मी की बात मेरे दिल में फांस की तरह गड़ गई. उन्होंने कहा था कि मैं हमेशा अपने शौहर की वफादार बन कर रहूं.
सुलतान अहमद का घराना पौश कालोनी ‘सोसाइटी’ के एक बड़े से बंगले में रहता था. सुहाग का कमरा बड़ी खूबसूरती से सजाया गया था. उसी सजे हुए कमरे में उस शख्स का इंतजार कर रही थी, जिसे मेरा मालिक बना दिया गया था. दिल की धड़कनों में कोई सनसनी नहीं थी. फिर भी जैसे ही दरवाजे पर आहट हुई, मेरे अंदर जमी बर्फ पिघलने लगी. एक नई भावना अंगड़ाई ले कर जागने लगी, जो शायद निकाह के 2 बोलों का असर था.
वह मेरे सामने बैठते हुए बोले, ‘‘क्या आप यकीन करेंगी कि मैं ने आप की तसवीर भी नहीं देखी है. यह सब मेरी बहनों की शरारत है. वे मुझे सरप्राइज देना चाहती थीं. उन का कहना था कि आप ख्वाबों की शहजादियों से भी ज्यादा हसीन हैं और यह मेरी खुशकिस्मती है कि आप मेरा नसीब हैं,’’ यह कहतेकहते वह मेरे करीब झुक आए, ‘‘क्यों न हम तसदीक कर लें. इसी बहाने मुंह दिखाई भी हो जाएगी.’’
उन्होंने अचानक घूंघट उलट दिया. मैं उन का चेहरा न देख सकी, मगर वह एक झटके से मुझ से दूर हो गए. थोड़ी देर तक वह बेचैनी से कमरे में टहलते रहे. फिर सर्द सी आवाज में बोले, ‘‘आप चाहें तो आराम फरमाएं.’’ यह कह कर उन्होंने तकिया उठाया और करीब पड़े सोफे पर लेट गए.
मैं डे्रसिंग टेबल के आईने में जेवर उतारते हुए खुद को देख रही थी कि आखिर कहां कमी रह गई थी, जो वह अचानक यों मुझ से बेजार हो गए. जब मैं लिबास बदल कर पास आई तो वह लेटे थे. शायद सो गए थे. मगर मुझे अभी सारी रात अपनी बदनसीबी का मातम करना था.
उस दिन के बाद मैं ने कभी सुलतान अहमद के रवैये में अपने लिए मोहब्बत महसूस नहीं की. उन्होंने मेरे वे सभी हक अदा किए, जो एक पति पर लाजिम हो सकते हैं, सिवाय उस चाहत के, बीवी अपने पति से जिस की तलबगार होती है. मैं शायद सारी उम्र इस बात से बेखबर रहती कि सुलतान अहमद के इस रवैये की वजह क्या है, अगर उन को हार्टअटैक न होता.
यह हमारी शादी की 22वीं सालगिरह थी. मेहमानों के रुखसत होने के बाद अचानक उन्होंने सीने में तकलीफ की शिकायत की और फिर देखते ही देखते उन की हालत बिगड़ती चली गई. उन को फौरी तौर पर अस्पताल ले जाया गया. वह दरम्याने दर्जे का हार्टअटैक था. तीसरे दिन डाक्टरों ने उन की हालत खतरे से बाहर करार दे कर उन्हें एक प्राइवेट कमरे में शिफ्ट कर दिया. इन 3 दिनों में मेरी हालत दीवानी जैसी हो गई थी. मैं हर लमहे उन के बेड से लगी रहती थी. इस सारे वक्त एक लमहे के लिए सो न सकी थी.
रात के किसी पहर उन्होंने पानी मांगा. मैं ने जल्दी से पानी गिलास में निकाल कर उन्हें दिया. उन्होंने पानी पी कर गिलास मुझे थमाया और बड़ी कमजोर सी आवाज में बोले, ‘‘गुल, मैं तुम से बहुत शर्मिंदा हूं.’’
‘‘यह आप क्या कह रहे हैं?’’ मैं ने उन के सीने पर हौले से हाथ रखा, ‘‘यह सब मेरा फर्ज है. आप की खिदमत तो मेरे लिए इबादत का दर्जा रखती है.’’ मेरा लहजा शिकायती हो गया.
‘‘मैं जानता हूं,’’ उन्होंने कहा, ‘‘इसीलिए तो शर्मिंदा हूं. सारी उम्र तुम्हें सच्ची खुशी न दे सका. मेरी बात सुनो. कुछ कहो मत. यह हकीकत है कि मैं ने सारी उम्र तुम्हें सिवाय बेरुखी के और कुछ नहीं दिया, मगर मैं मजबूर था. जब से तुम्हें देखा, मैं एक आग में जल रहा था, जो मुझे अंदर ही अंदर भस्म किए जा रही थी.’’
कमजोर आवाज में बोलतेबोलते उन का लहजा जज्बाती हो गया, मगर उन्होंने जो कहा, उसे सुन कर मेरा वजूद जैसे भूडोल के घेरे में आ गया, ‘‘तुम्हें वह रात याद होगी, जब तुम भयभीत और उजड़ीउजड़ी सी दौड़ रही थीं और साहिली सड़़क पर एक गाड़ी के नीचे आतेआते बची थीं? फिर उस गाड़ी वाले ने तुम्हें तुम्हारे घर तक पहुंचाया था.’’
‘‘मगर… मगर आप को यह सब कैसे पता चला?’’
‘‘इसलिए कि वह शख्स मैं ही था,’’ उन्होंने ठहरेठहरे लहजे में कहा, ‘‘जब मैं ने तुम्हें अपनी दुलहन के रूप में देखा तो मत पूछो, मुझ पर क्या गुजरी थी. वह खयाल बारबार मुझे किसी नाग की तरह डसने लगा था कि मेरी बीवी शादी से पहले किसी दूसरे मर्द से मोहब्बत करती थी. क्यों, मैं ठीक कह रहा हूं न?’’ उन्होंने मेरी आंखों में झांका और मेरी निगाहें झुक गईं.
उन्होंने बात जारी रखी, ‘‘मगर मैं खुद को तसल्ली दे लिया करता था कि तुम ने उस का असली नफरत भरा रूप देख कर उसे अपने दिल से निकाल दिया होगा. फिर भी अपने दिल को न समझा सका. मैं तुम से मोहब्बत न कर सका.’’
बोलतेबोलते थक कर वह चुप हो गए. फिर शायद सो गए, मगर मुझे तकलीफों के एक नए भंवर में डाल दिया. उन्होंने मुझे वह सब याद दिला दिया, जो मैं भूल जाना चाहती थी. बेशक वह मेरे सब से बड़े मोहसिन थे. पहले उन्होंने मुझे उस रात घर पहुंचा कर रुसवाई से बचाया, फिर मुझ से शादी कर के मुझे इज्जत बख्शी. फिर भी वह सब ख्वाबख्वाब सा था.
अभी सड़क पर मैं ने कदम रखा ही था कि दाईं तरफ से एक तेज रोशनी मेरे करीब आ कर रुक गईं. फिर मैं ने आंसुओं से धुंधलाई हुई आंखों से एक शख्स को गाड़ी से उतर कर अपनी तरफ बढ़ते देखा. वह कोई मर्द था.
‘‘अंधी हैं आप? अभी मेरी गाड़ी के नीचे आ जातीं.’’ उस शख्स ने मेरे सामने आ कर गुस्से से कहा.
‘‘प्लीज, मुझे बचा लीजिए. मैं कुछ दरिंदों के चंगुल से निकल कर भागी हूं.’’ मैं ने रोते हुए कहा. वह गौर से मेरा जायजा ले रहा था.
‘‘रात को तनहा भटकने वाली लड़कियों के पीछे दरिंदे लग ही जाते हैं.’’ उस ने रुखाई से कहा. मैं फूटफूट कर रोने लगी.
वह शख्स बौखला गया, ‘‘मोहतरमा! खुदा के लिए चुप हो जाएं. अगर इस वक्त कोई यहां आ गया तो आप को यों रोती हुई और आप का हुलिया देख कर न जाने मेरे बारे में किस गलतफहमी में पड़ जाए.’’
तब मैं ने एक नजर खुद पर डाली. मेरे कपड़े कई जगह से फट गए थे. रेतमिट्टी से अटी हुई हालत बेहद खराब थी. मैं ने जल्दी से दुपट्टे को ठीक किया.
‘‘आप को कहां जाना है?’’ उस ने पूछा.
मैं ने बिना उस की ओर देखे उसे अपने इलाके का नाम बताया.
‘‘बैठिए.’’ उस ने एक गहरी सांस ले कर कहा.
‘‘मगर…’’ मैं ने कहना चाहा.
‘‘अगरमगर कुछ नहीं. आप को मुझ पर भरोसा करना होगा, वरना मैं चलता हूं. आप किसी भरोसे वाले का इंतजार करें.’’ वह कुछ गुस्से से बोला, ‘‘मुमकिन है कि पीछे से वही बदमाश आ जाएं, जिन से बच कर आप भागी हैं.’’
वह सही कह रहा था. मैं डर कर जल्दी से गाड़ी में बैठ गई. उस ने गाड़ी आगे बढ़ा दी. वह मेरे जानेपहचाने रास्ते पर सफर करती हुई मेरे इलाके में दाखिल हुई. मैं इशारे से उसे रास्ता बताती गई. मैं ने अपनी गली से कुछ पहले उतरना मुनासिब समझा. मेरे उतरते ही उस ने गाड़ी आगे बढ़ा दी. तब मुझे खयाल आया कि अपने मोहसिन का नाम तक नहीं पूछा, यहां तक कि उस का चेहरा तक ठीक से न देख सकी थी.
खुदा ने मेरी इज्जत महफूज रखी थी, मगर मैं घर वालों की पूछताछ से किसी तरह नहीं बच सकती थी. उस समय रात के साढ़े 8 बज रहे थे और मैं कभी इतनी देर तक घर से गायब नहीं रही थी. बहरहाल, हिम्मत कर के घर की तरफ चल पड़ी. खुशकिस्मती से हमारी गली के सभी खंभों के बल्ब शरारती लड़कों ने तोड़ दिए थे. उस लमहे मुझे अंधेरा बहुत गनीमत लगा कि उस ने मेरे शिकस्ता वजूद को दूसरों की नजरों से आने से बचा लिया था.
अम्मी जैसे दरवाजे से लगी मेरे इंतजार में थीं. हल्की सी दस्तक के जवाब में फौरन दरवाजा खोल दिया. उन के चेहरे पर परेशानी जैसे जम कर रह गई थी. मुझे देखते ही उन की आंखों में खून उतर आया. इत्तेफाक से बाकी सब घर वाले टीवी लाउंज में बैठे प्रोग्राम देख रहे थे. मैं फौरी तौर पर अब्बू और भाइयों की नजरों में गिरने से बच गई थी. अम्मी एक शब्द बोले बगैर मुझे अंदर कमरे में ले गईं और दरवाजा बंद कर के दांत पीसती हुई धीरे से बोलीं, ‘‘कहां से आ रही है कमीनी?’’
जवाब में मैं ने हिचकियों के बीच पूरी कहानी सुनाई.
‘‘चुप कर जा जलील!’’ उन्होंने मुझे थप्पड़ मारते हुए कहा, ‘‘मैं ने तेरे बापभाइयों से यह बात छिपाई है. और तू टेसुवे बहा कर उन्हें बताने जा रही है. जा, दफा हो जा. अपना हुलिया ठीक कर.’’
मैं ने गुसलखाने में जा कर नहाया और साफसुथरा जोड़ा पहन लिया. रात सब के सोने के बाद अम्मी मरहम ले कर मुझे लगाने लगीं. तब मैं उन से लिपट कर रोने लगी. मैं ने माफी मांगी तो वह दबी आवाज में बोलीं, ‘‘बेटी, मां तो औलाद की बड़ी से बड़ी गलती माफ कर देती है. मगर तूने मेरा ऐतबार खो दिया है.’’
उन की बात तल्ख सही, लेकिन सच थी. मैं ने जान निसार करने वाले मांबाप की मोहब्बत को नजरअंदाज कर के और एक बेहद गंदे शख्स पर ऐतबार कर के उन्हें धोखा दिया था. मुझे पता था कि अम्मी अब मुझ पर ऐतबार नहीं करेंगी. इसलिए कालेज जाने का खयाल तो मैं दिल से निकाल ही चुकी थी. इस के अलावा भी मैं ने घर से निकलना बंद कर दिया था.
राहेल के साथ संबंध उस दिन से खत्म हो गया था. मैं ने खुदा का शुक्र अदा किया कि राहेल के पास मेरा कोई खत या तसवीर नहीं थी, वरना उस जैसे कमीने का कोई भरोसा नहीं था कि वह मुझे ब्लैकमेल न करता. अब सारा दिन बोरियत से बचने के लिए मैं घर के कामों में खुद को व्यस्त रखने लगी. इस के अलावा कोर्स की किताबें मंगवा कर सेकेंड ईयर के इम्तिहान की तैयारी शुरू कर दी.
अम्मी मेरे इस बदलाव से बहुत खुश थीं. वह मुझे सारे घरेलू मामलों में माहिर करना चाहती थीं. हमेशा मुझे कुछ न कुछ सिखाने की केशिश करती रहतीं. मैं भी मेहनत कर रही थी. मैं ने इंटर का इम्तिहान आसानी से पास कर लिया. अम्मी मुझे इम्तिहान दिलाने ले जाया करती थीं.
एक साल गुजरने के बावजूद अम्मी की बेऐतबारी पहले दिन की ही तरह कायम रही. उन की आंखों में लहराते शक के नाग जैसे हर लमहे मुझे डसते रहते थे. अब वह बड़ी सरगर्मी से मेरे लिए आए हुए रिश्तों की छानबीन में लगी थीं. मुझे मर्द के नाम से वहशत होती थी, मगर मैं अम्मी के आगे मजबूर थी. उन्हीं रिश्तों में सुलतान अहमद का रिश्ता भी था. वह हुकूमत में एक अच्छे ओहदे पर लगे हुए थे. खानदानी थे और हमारी बिरादरी से ताल्लुक रखते थे. मतलब यह कि वह हर दृष्टि से मेरे लिए मुनासिब थे.
अम्मी ने अब्बू और बहनों की रजामंदी पा कर सुलतान अहमद के घर वालों को हां कर दी. मेरी ससुराल वालों को शादी की जल्दी थी. अम्मी को भी कोई ऐतराज नहीं था. उन्होंने अच्छीखासी तैयारी पहले ही कर रखी थी. तारीख तय होते ही घर में चहलपहल शुरू हो गई.
एक दिन बड़ी आपा ने मुझे एक लिफाफा देते हुए कहा, ‘‘दूल्हे मियां की तसवीर देख ले. बाद में हम से कुछ न कहना.’’
मैं ने लिफाफा ले कर बेजारी से एक तरफ डाल दिया कि देख लूंगी. अब जब शादी में चंद रोज बाकी रह गए तो मुझे दूल्हे की तसवीर दिखाने का खयाल आ रहा था. अपनी इस बेकद्री पर मैं खून के आंसू बहा कर रह गई. कहां वह कि मेरी छोटी सी छोटी चीज भी मेरी मरजी के बगैर नहीं पसंद की जाती थी, कहां यह सितम कि जिंदगी भर का साथी बगैर मुझ से पूछे, मेरी मरजी जाने चुन लिया गया था. अपनी इस हद तक बेकद्री की सारी जिम्मेदारी भी मुझ पर आयद होती थी.
क्रमशः
निक ने फोन रखा और वहां से निकलने के लिए मुड़ा तभी अचानक किचन की लाइट जल गई. दरवाजे पर विक्टर हाथ में रिवौल्वर लिए खड़ा था.
वह गुस्से में बोला, ‘‘तुम ने बेवकूफी की मिस्टर निक, मैं ने कहा था 5 हजार डालर ले कर सब कुछ भूल जाओ, पर तुम्हारी समझ में नहीं आया. तुम अपने आप को मुसीबत में डालना चाहते हो.’’
‘‘पहली बात तो यह है कि मैं कभी कातिलों से समझौता नहीं करता, तुम ने 3 बेगुनाह लोगों को चोरी और कत्ल के इलजाम में गिरफ्तार करवा दिया, ये बात मुझे बिलकुल पसंद नहीं.’’ निक ने कहा.
‘‘कई बातें लोगों को पसंद नहीं आतीं पर बरदाश्त करनी पड़ती हैं. यह बताओ कि तुम फोन पर किस से बातें कर रहे थे?’’
यह सुन निक को तसल्ली हुई कि उस ने उसे पुलिस से बातें करते नहीं सुना है. निक ने उसे बातों में उलझाते हुए कहा, ‘‘मैं न्यूयार्क में अपनी दोस्त ग्लोरिया से बात कर रहा था,’’ वह फौरन टापिक बदल कर बोला, ‘‘तुम्हें यह जान कर खुशी होगी कि आज सुबह मैं तुम्हारी सौतेली बहन ऐना से मिला था. उस का कहना है कि उस ने तुम्हारी डायरी नहीं पढ़ी थी. बल्कि तुम्हारे पिता ने उसे जेवरात के बारे में बताया था और वसीयत के अनुसार वह तीसरे हिस्से की हकदार है. इस के अलावा मैं न्यूपालिट की पुलिस के चीफ से भी मिला था.
‘‘मैं जब उस से मिला, तो उस ने बताया कि आलविन नाम के एक नामी बदमाश से तुम्हारे गहरे संबंध हैं. जिस रोज मैं यहां ट्रंक चोरी करने आया था तुम ने उसे और उस के साथियों को यहां बुलाया था और खुद न्यूयार्क चले गए थे. ऐना को यहां बुलाना तुम्हारी ही साजिश का एक प्लान था. उस दिन ऊपरी मंजिल पर मुझे भी कदमों की आहट सुनाई दी थी. मैं ने उसे अपना भ्रम समझा था. लेकिन मुझे अब पता चला है कि वह भ्रम नहीं था. उस ने ही चौकीदार की हत्या की होगी. जरूर ही आलविन ऊपरी मंजिल पर था.’’
निक के मुंह से यह सचाई सुन कर विक्टर गुस्से से बोला, ‘‘बके जाओ जो तुम्हारे दिल में है. आखिरी मौका तुम्हें भी मिलना चाहिए. निक, तुम इन सब बातों को साबित नहीं कर सकते.’’
‘‘हां, यह तो तुम ठीक कहते हो. सुबूत नहीं है?’’ निक ने चालाकी से हां में हां मिलाई. उस के कान पुलिस के सायरन पर लगे हुए थे.
‘‘अब मैं चाहता हूं कि तुम्हारा मुंह हमेशा के लिए ही बंद कर दिया जाए. तुम्हें किसी मुनासिब जगह पर गोली मारना चाहता हूं. इसलिए अपने हाथ ऊपर कर के यहां से बाहर चलो. तुम्हारे मरने के बाद जब पुलिस यहां आएगी तो कह दूंगा कि तुम चोरी के मकसद से यहां घुसे थे और अपनी हिफाजत में गोली चला दी.’’
निक ने हाथ ऊपर उठाए और उस के आगे चल पड़ा. उसी वक्त पुलिस साइरन की आवाज गूंजी. विक्टर चौंक उठा. फिर भारी कदमों की गूंज अपार्टमेंट में होने लगी. 2 पुलिस अफसर तेज कदमों से किचन की तरफ आ गए. इस से पहले कि पुलिस वाले कुछ कहते विक्टर बोल पड़ा, ‘‘यह आदमी चोरी करने की नीयत से मेरे घर में घुसा था. इसे जल्दी पकड़ लीजिए.’’
‘‘रिचर्ड निक्सन किस का नाम है?’’ एक पुलिस अफसर ने पूछा.
‘‘सर, ये मेरा नाम है. आप को फोन मैं ने ही किया था.’’ निक जल्दी से बोला.
‘‘फोन किया था?’’ सुन कर विक्टर एलियानोफ के चेहरे पर घबराहट आ गई.
‘‘रिवौल्वर नीचे करो,’’ पुलिस अफसर ने डपट कर विक्टर से कहा. फिर निक से बोला, ‘‘तुम ने फोन पर जिन जेवरातों का जिक्र किया था वह कहां हैं?’’
निक ने पीछे मुड़ कर फ्रिज की तरफ इशारा किया, ‘‘इस पुराने फ्रिज में हैं.’’
उसी दौरान फुरती से विक्टर ने पुलिस वालों पर रिवौल्वर तानते हुए कहा, ‘‘खबरदार, कोई भी किचन में कदम न रखे.’’
‘‘रिवौल्वर फेंक दो.’’ एक अफसर ने हुक्म दिया.
‘‘मैं कहता हूं कि मेरे घर से बाहर निकल जाओ तुम लोग बिना सर्च वारंट के किसी चीज को हाथ नहीं लगा सकते.’’ थोड़ा पीछे हट कर उस ने तीनों को रिवौल्वर से कवर कर लिया.
‘‘रिवौल्वर नीचे फेंक दो.’’ दूसरा अफसर गरजा. उस के साथ ही एक फायर हुआ और विक्टर का रिवौल्वर हाथ से छूट कर नीचे गिर गया.
पुलिस अफसर ने उस के हाथ पर गोली चलाई थी. पहले अफसर ने फुरती से रिवौल्वर उठा लिया और रूमाल निकाल कर विक्टर एलियानोफ के हाथ पर बांध दिया. विक्टर को हिरासत में लेने के बाद पुलिस ने जब फ्रिज खोल कर देखा तो उस में रखे जेवरात देख कर वह हैरान रह गए. जेवरात बरामद कर के विक्टर को कत्ल और धोखा देने के इलजाम में गिरफ्तार कर लिया. निक ने अपना बयान नोट कराया और न्यूयार्क के लिए निकल गया.
पुलिस ने विक्टर से जब पूछताछ की तो उस ने अपनी सारी साजिश पुलिस के सामने उगल दी.
इस के बाद पुलिस को पुष्टि हो गई कि ऐना और उस के साथी बेकुसूर हैं. उन के बेकुसूर होने की रिपोर्ट कोर्ट में पेश कर दी. जिस के बाद उन्हें रिहा कर दिया. ऐना ने निक को धन्यवाद दिया और वायदा किया कि जायदाद मिलते ही सब से पहले उस के 15 हजार डालर देगी.
अगले दिन मैं औफिस जाने के बजाय कोर्ट की ओर चल पड़ा. औफिस तो वैसे भी नहीं जा सकता था. मैं रिक्शे के इंतजार में खड़ा था कि अचानक 2 आदमी आ कर मेरे दाएंबाएं खड़े हो गए. एक ने तीखे लहजे में कहा, ‘‘मिस्टर सामने जो गाड़ी खड़ी है, चुपचाप चल कर उस में बैठ जाओ.’’
‘‘क्यों?’’ मैं ने पूछा.
‘‘सवाल करने की जरूरत नहीं है. जो कह रहा हूं, वही करो, वरना गोली मार दूंगा. चलो मेरे साथ, 2-4 बातें कर के छोड़ देंगे.’’ उस ने कहा.
मैं समझ गया कि कहानी क्या है? वे अजहर के भेजे गुंडे थे. वह एक दौलतमंद आदमी था. उस के पास पैसा भी था और ताकत भी. मैं बेचारा गरीब अकेला उस का कैसे सामना कर सकता था. लेकिन मुझे यह उम्मीद नहीं थी. वे लोग किराए के कातिल थे, मुझे मारने के लिए कहीं ले जा रहे थे. इन्हें न मुझ में कोई दिलचस्पी थी, न अजहर में. इन्हें इन के पैसे चाहिए थे.
रास्ते में मै ने उन से बात करनी चाही तो उन्होंने मेरी बातों का कोई जवाब नहीं दिया. गाड़ी काफी तेज चल रही थी. मैं काफी डरा हुआ था. इस के बावजूद दिमाग में एक बात थी कि कुछ न कुछ कर गुजरना है. एक सुनसान जगह पर गाड़ी रोक कर उन्होंने मुझ से उतरने को कहा. वे कुल 3 आदमी थे. एक गाड़ी चला रहा था. 2 मेरे अगलबगल बैठे थे. दोनों के पास हथियार थे. मैं गाड़ी से उतरा. मैं पूरी तरह सजग था. मुझे कुछ तो करना ही था.
वे कुछ समझ पाते, मैं ने दोनों में से एक को जोर से धक्का दिया. वह एकदम से गाड़ी पर गिर पड़ा. बस मैं बेतहाशा भागा. वे ‘रुको… रुको…’ चिल्लाते रहे, पर मैं क्यों रुकता. पागलों की तरह भागता रहा. तभी गोली चली, जो मेरे सिर के ऊपर से गुजर गई.
अचानक एक करिश्मा सा हुआ. उस सुनसान जगह पर न जाने कहां से पुलिस की गाड़ी आ गई. मैं गाड़ी के पास जा कर निढाल सा गिर पड़ा. गाड़ी से 2 पुलिस वाले उतरे और मुझे सहारा दे कर खड़ा किया. मेरी टांगें कांप रही थीं, सांस फूल रही थी. उन्होंने मुझे गाड़ी में बैठाया और पानी पिलाया. पानी पी कर मेरी हालत कुछ ठीक हुई तो उन्होंने पूछा, ‘‘अब बताओ, तुम्हारे साथ क्या हुआ?’’
‘‘जनाब, मैं अपने औफिस जा रहा था तो अचानक एक गाड़ी मेरे पास आ कर रुकी. मुझे जबरदस्ती गाड़ी में बिठा कर यहां ले आया गया. उन के पास हथियार थे. वे मुझे मारना चाहते थे, लेकिन मैं उन्हें धोखा दे कर भाग निकला. आप की गाड़ी देख कर वे भाग गए.’’
‘‘हां, एक गाड़ी तो तेजी से गई थी, लेकिन हमारा ध्यान तुम्हारे ऊपर था. कौन थे वे लोग?’’ सिपाहियों ने पूछा.
‘‘मैं नहीं जानता वे लोग कौन थे?’’
‘‘बिना किसी दुश्मनी के उठा लाए?’’
मेरा मन हुआ कि उन्हें अजहर अली की पूरी कहानी सुना दूं, लेकिन यह सोच कर चुप रह गया कि मेरे पास इस का कोई सुबूत नहीं था. वह एक अमीर और ताकत वाला आदमी था. मैं उस का कुछ नहीं बिगाड़ सकता था.
‘‘जी जनाब, बिना किसी वजह के उठा लाए थे.’’
‘‘तुम बहुत अमीर आदमी हो क्या?’’
‘‘नहीं जी, मैं एक मामूली आदमी हूं. एक औफिस में नौकरी करता हूं.’’ मैं ने धीरे से कहा.
‘‘तब वे तुम्हें क्यों उठा लाए?’’
‘‘छोडि़ए इस बात को.’’ दूसरे पुलिस वाले ने कहा, ‘‘आजकल इस तरह की न जाने कितनी घटनाएं घटती रहती हैं. गलतफहमी भी हो सकती है. यह तो अब रोज का चक्कर हो गया है.’’
‘‘क्या तुम उन लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराना चाहते हो?’’ पुलिस वाले ने पूछा.
‘‘जनाब किस के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराऊं? मैं तो किसी को पहचानता भी नहीं. रिपोर्ट किस के नाम लिखवाऊं?’’ मैं ने कहा.
‘‘तुम ठीक ही कहते हो. चलो तुम्हें तुम्हारे औफिस छोड़ दूं.’’ उस ने कहा.
मैं अपनी मौत के पास कैसे जा सकता था. इस हमले की नाकामी से अजहर अली गुस्से में होगा. वह दोबारा कोशिश करेगा. उस के पास पैसे हैं. उसे किराए के लोगों की क्या कमी है. संबंध भी ऊंचे लोगों से हैं. मैं एक गरीब, बेहैसियत आदमी उस के सामने कहां टिक सकता था. मैं अपने फ्लैट के करीब उतर गया. अब सवाल जिंदगी बचाने का था. मेरी समझ में यही आया कि मैं यह घर खाली कर के कहीं भीड़ में गुम हो जाऊं.
मैं ने वही किया. मैं एक बुजदिल, कमजोर इंसान था, इसलिए इस के अलावा और कुछ नहीं कर सका. इस के बाद अजहर भी शांत हो गया. किसी ने मुझ से मिलने की कोशिश नहीं की. कोई फोन भी नहीं आया.
बरसों गुजर गए. इस बीच मैं नहीं जान पाया कि अजहर और नाजनीन के क्या हाल थे. पिछले दिनों बस इतना पता चला कि अजहर बहुत बीमार है. अब उस की कंपनी उस का बेटा संभाल रहा है. वह बेटा कौन हो सकता है, शायद यह बताने की जरूरत नहीं है.
फिर उस के कदमों की और मोटरसाइकिल स्टार्ट होने की आवाज आई. मैं खुद को शिकारियों के घेरे में घिरी हुई हिरनी महसूस कर रही थी. यह बात अच्छी तरह मेरी समझ में आ गई थी कि वह अब तक मुझे बेवकूफ बना रहा था. वह मुनासिब मौके की तलाश में था, जो बेवकूफी में मैं ने उसे बख्श दिया था.
जिंदगी में पहली बार मुझे अपनी किसी तमन्ना पर पछतावा महसूस हुआ था. मेरा दिल चाह रहा था कि जमीन फटे और मैं उस में समा जाऊं या मौत का फरिश्ता मुझे आ दबोचे, ताकि आने वाले हालात का सामना न करना पड़े. मगर दोनों बातें मुमकिन नहीं थीं.
अपनी इज्जत खतरे में देख कर मेरे अंदर की औरत जाग उठी. मैं ने फैसला कर लिया कि अपनी इज्जत पर आंच नहीं आने दूंगी, चाहे मुझे अपनी जान ही क्यों न देनी पड़े. उस समय मुझे खुदा की याद आई. मैं जानती थी कि उस के सिवा अब मुझे कोई नहीं बचा सकता था. मैं ने दिल की गहराइयों से गिड़गिड़ा कर अपनी हिफाजत की दुआ मांगी और उस कैद से रिहाई की सोचने लगी.
बाथरूम खासा बड़ा था. उस में बाथटब भी था. एक तरफ वाशबेसिन था, जिस में आगे शीशा लगा हुआ था. उस के बराबर में एक रैक था, जिस पर शैम्पू और साबुन आदि रखे थे, मगर शेविंग का सामान नहीं था, वरना मैं ब्लेड से शायद अपना गला काट कर खुदकुशी कर लेती. इस बात का मुझे कैद करने वालों को भी अंदाजा था. इसलिए उन्होंने बाथरूम से हर वह चीज हटा दी थी, जिसे मैं रिहाई या खुदकुशी के लिए इस्तेमाल कर सकूं. रैक स्टील का बना हुआ था, मगर दीवार में इस तरह जुड़ा हुआ था कि उसे वहां से निकालना मेरे लिए मुमकिन नहीं था.
बाथरूम का दरवाजा ठोस लकड़ी का था और मेरे लिए उसे तोड़ना नामुमकिन था. तब मेरी निगाह रोशनदान पर गई. फर्श से लगभग 8 फुट ऊंचा वह रोशनदान इतना चौड़ा था कि उस में से आसानी से बाहर निकल सकती थी. उस में शीशे के 2 पट थे, जो सिटकिनी के सहारे बंद थे, मगर असल मसला उस तक पहुंचना था.
यह मुमकिन नहीं था कि मैं उछल कर वहां तक पहुंच सकूं. कोई ऐसी चीज मुहैया नहीं थी, जिस के सहारे मैं ऊपर चढ़ सकती. वाशबेसिन और बाथटब, सब अपनी जगह पर फिट थे. फिर भी मैं ने उछल कर रोशनदान की मुंडेर पकड़ने की कोशिश की, मगर कुछ नाकाम कोशिशों के बाद मेरा हौसला जवाब दे गया और मैं फूटफूट कर रोने लगी. मुझे महसूस हुआ कि मैं खुद कुछ भी करूं, उस कैदखाने से नहीं निकल सकूंगी.
कुछ देर रोने के बाद मुझे अक्ल आ गई कि इस तरह आने वाली मुसीबत टल नहीं सकेगी. फिर मुझ पर जैसे जुनून छा गया. मैं ने रैक से साबुन और शैम्पू की बोतल आदि उठा कर फर्श पर दे मारी. रैक को कुछ जोरदार झटके दिए, मगर वह अपनी जगह जमा रहा. फिर बेसिन को झिंझोड़ा, मगर वह भी टस से मस नहीं हुआ.
आखिर मैं ने टब को जोरदार ठोकर मारी और यह देख कर चौंक गई कि वह अपनी जगह से हिल कर रह गया. मैं ने उसे पकड़ कर झटके दिए. तब पता चला कि वह फर्श के साथ महज पाइप की मदद से जुड़ा हुआ था. पाइप शायद ढीला पड़ गया था. उस समय जाने कहां से मुझ में इतनी ताकत आ गई थी कि मैं ने उसे झटके दे कर आखिर फर्श से अलग कर दिया.
सेरामिक्स का बना हुआ वह टब 3 फुट चौड़ा और 5 फुट लंबा था. बनावट में गोलाकार था. मैं उसे उस की जगह से सरकाने लगी. अब मैं टब को लंबाई के रुख से दीवार के साथ लगाती तो खुद टब पर चढ़ना मेरे लिए मुमकिन न रहता और चौड़ाई के रुख से खड़ा करने की हालत में उस के स्लिप हो जाने का खतरा था. बहरहाल मैं ने टब दीवार से लगा कर खड़ा किया. सैंडिल उतारी और ऊपर चढ़ने लगी, मगर पहली ही कोशिश में टब स्लिप हो गया और मेरा घुटना दीवार से जा टकराया.
वक्त रोने का नहीं था. अगर मौके के चंद लमहे मेरे हाथ से निकल जाते, तो दरिंदों से छुटकारा पाना नामुमकिन था. इस बार टब को कम तिरछा कर के दीवार से टिकाया और बड़ी सावधानी से धीरेधीरे कदम जमा कर ऊपर चढने लगी. बड़ी मुश्किल से अपने जख्मी घुटने के कंपन पर काबू पाया. खुदाखुदा कर के मेरा हाथ रोशनदान तक जा पहुंचा और उस की मुंडेर पर हाथ जमा कर मैं ने उस के पट खोले.
मेरी खुशकिस्मती थी कि रोशनदान की दूसरी तरफ खासा चौड़ा छज्जा था. मैं ने बाहर की मुंडेर पर अभी हाथ जमाया ही था कि ऐन उसी लमहे टब फिर स्लिप हो कर एक धमाके से गिरा. मुझे शदीद झटका लगा. एक लम्हे के लिए ऐसा महसूस हुआ, जैसे मेरी बांहें कंधों से उखड़ जाएंगी. मेरी पूरी कोशिश थी कि मुंडेर मेरे हाथ से न छूटने पाए. मुझे नहीं पता कि मैं कैसे रोशनदान से गुजर कर छज्जे तक पहुंची.
छज्जे का हिस्सा कौटेज के अंदर ही था. इसलिए मैं उस पर से होती हुई पिछले हिस्से में आ गई. यह कौटेज से बाहर था. जमीन वहां से 10-11 फुट नीचे थी, मगर मैं ने हिम्मत की. पहले पांव नीचे लटकाए, फिर बाहों के बल पर छज्जे से लटक गई. मैं ने आंख बंद कर के छलांग लगा दी. खुशकिस्मती से और किसी चोट से महफूज रही.
अंधेरा पूरी तरह फैल चुका था और दूर कहींकहीं मकानों की रोशनियां झिलमिला रही थीं. मैं ने उठ कर कपड़े झाड़े. सैंडिल तो अंदर ही रह गई थी, मगर दुपट्टा मेरे पास था, जिसे मैं ने अच्छी तरह अपने गिर्द लपेटा और अंधाधुंध साहिल से कुछ दूर स्थित सड़क की तरफ भागी. मैं जल्दी से जल्दी उस कैदखाने से दूर निकल जाना चाहती थी. सड़क तक आतेआते कितने ही नुकीले कंकड़ों ने मेरे पांव छलनी कर दिए. कितनी ही बार मैं ठोकर खा कर गिरी. मुझे कुछ पता नहीं चला.
क्रमशः
निक अब जेल में बंद ऐना से मुलाकात करना चाहता था. वह उस से मिलने जेल में पहुंच गया. जेल में ऐना को देख कर वह पहचान गया कि यह वही लड़की है जिसे उस ने विक्टर के घर के फाटक पर देखा था जब वह ट्रंक चुराने गया था.
‘‘मेरा नाम निकोलस वेल्वेट है.’’ निक ने अपना परिचय दिया.
‘‘हमें किसी वकील की जरूरत नहीं है. हमारे पास वकील है.’’ उस की बात सुनते ही ऐना बोली.
‘‘देखिए, हम ने कोई चोरी नहीं की, हमें इस केस में फंसाया गया है.’’ उस का साथी थामस बोल उठा.
तभी ऐना ने निक से पूछा, ‘‘क्या मैं जान सकती हूं कि तुम कौन हो? तुम्हारा इस मामले से क्या ताल्लुक है?’’
‘‘फिलहाल इतना जान लो कि मैं आप लोगों का दोस्त हूं और जानता हूं तुम्हें किस ने फंसाया है?’’ निक ने समझाते हुए कहा, ‘‘दरअसल, बात यह है कि मैं तुम्हारी मदद करना चाहता हूं. विक्टर का कहना है कि तुम लोगों ने टं्रक से कीमती जेवर चुराए हैं और तुम्हारे अपार्टमेंट से कुछ सामान भी मिला है. अगर यह इलजाम सही है तो तुम तीनों चोरी के साथ कत्ल के भी गुनहगार बन सकते हो.’’
हत्या की बात सुनते ही ऐना बोली, ‘‘कत्ल, किस का कत्ल?’’
‘‘विक्टर के चौकीदार का कत्ल. मिस ऐना, परसों रात तुम न्यूपालिट में अपने पुश्तैनी मकान में देखी गई थीं. चौकीदार का कत्ल भी परसों ही हुआ, इस तरह तुम शक के घेरे में हो.’’
‘‘परसों मैं विक्टर के बुलाने पर वहां गई थी. उस ने कहा था कि जायदाद के बारे में कुछ बात करनी है. मैं जब न्यूपालिट गई तो गेट पर चौकीदार ने बताया कि वह घर पर नहीं है, इसलिए गेट से ही लौट आई थी.’’
निक समझ रहा था कि वह सच बोल रही है क्योंकि उस ने खुद उन लोगों को वापस जाते देखा था. उस ने उस से पूछा, ‘‘तुम्हारे विक्टर से कैसे संबंध हैं?’’
‘‘ठीकठाक हैं.’’ वह बोली, ‘‘मेरा खयाल था कि मुझे पापा अपनी जायदाद में से हिस्सा नहीं देंगे, पर उन की वसीयत के अनुसार मैं कुल जायदाद के तीसरे हिस्से की मालिक हूं.’’
निक चौंक उठा, उसे साजिश की वजह समझ में आने लगी. उस ने पूछा, ‘‘मिस ऐना क्या तुम ने विक्टर को अपने अपार्टमेंट की चाबी दे रखी है?’’
‘‘मैं ने चाबी तो नहीं दी पर कुछ दिन पहले मेरी चाबी का दूसरा सेट गुम हो गया था.’’ ऐना बोली.
‘‘क्या तुम्हें जेवर के बारे में पता था कि वह ट्रंक में बंद हैं?’’
‘‘ये बात मुझे पापा ने अपनी मौत से 2 हफ्ते पहले बताई थी.’’ उस ने कहा.
‘‘विक्टर का कहना है कि तुम लोगों ने जेवर चुराए और चौकीदार का कत्ल कर दिया. अगर इस इलजाम में तुम्हें सजा हो गई तो तुम जायदाद से वंचित हो जाओगी और विक्टर सारी जायदाद पर हक जमा लेगा. मैं उस की साजिश को बेनकाब कर सकता हूं, मगर तुम लोगों को मेरी मदद करनी होगी.’’
‘‘कैसी मदद?’’
‘‘मेरी मदद फीस दे कर, अगर मैं तुम लोगों को इस मुसीबत से बचा लूं तो तुम मुझे 15 हजार डालर दोगी. वैसे मेरी फीस 25 हजार डालर है, पर तुम्हें मैं 10 हजार डालर की छूट दे रहा हूं. ये फीस मैं उस वक्त लूंगा जब तुम बाइज्जत छूट जाओगे.’’ निक ने अपनी बात कही.
‘‘मुझे मंजूर है, वरी होने पर मैं आप की फीस अदा कर दूंगी.’’ ऐना बोली.
‘‘अच्छी बात है, ऐना मुझे तुम से अकेले में कुछ बात करनी है.’’ वह अलग हट कर एक तरफ आ गई. निक धीरेधीरे उस से बात करने लगा. इस बीच जेल में मुलाकात का वक्त कब खत्म हो गया पता ही न चला. वक्त खत्म होने पर निक जाने लगा तो उन तीनों के चेहरों पर उम्मीद और खुशी थी.
निक ने विक्टर से बात करने के लिए बर्कशायर होटल का नंबर मिलाया तो पता चला कि वह होटल छोड़ चुका है. इस के बाद उस ने विक्टर के न्यूपालिट स्थित घर का नंबर मिलाया. फोन विक्टर ने ही उठाया था. निक की आवाज सुनते ही विक्टर बोला, ‘‘अच्छा हुआ कि निक तुम ने फोन कर लिया. शायद तुम 5 हजार डालर का चेक ले कर सबकुछ भूलने के लिए राजी हो गए हो?’’
‘‘हां, मैं सोच रहा हूं कि सौदा बुरा नहीं है. तुम्हारे साथ मुलाकात कहां हो सकती है?’’ निक ने बुझीबुझी आवाज में कहा.
‘‘यहां न्यूपालिट आ जाओ. तुम ने घर तो देख रखा है.’’
‘‘हां, वो तो देखा है, पर क्या तुम न्यूयार्क नहीं आ सकते? यहां आ जाते तो ठीक रहता.’’
‘‘ठीक है, रात 8 बजे बर्कशायर होटल में मिलूंगा.’’ कहने के बाद विक्टर ने फोन काट दिया.
रात 8 बजे निक न्यूपालिट में विक्टर के फाटक से दूर गाड़ी से उतरा. उस ने गाड़ी की बत्तियां बंद कर दी थीं. चुपचाप घने अंधेरे में दीवार फांद कर वह अंदर पहुंच गया. वहां सन्नाटा था. निक सावधानी से अपार्टमेंट में दाखिल हो गया. पेंसिल टौर्च की रोशनी के सहारे वह महल नुमा मकान के एकएक कमरे को चेक करने लगा. उम्मीद थी कि जो वह चाहता है, यहीं कहीं मिल जाए.
उस ने सोचा था कि विक्टर बर्कशायर होटल में उस का इंतजार कर रहा होगा. अगर उसे शक हो गया तो वह तुरंत यहां के लिए रवाना हो जाएगा. इस बीच करीब डेढ़दो घंटे में उसे अपना काम खत्म करना होगा. उस ने नीचे के सारे कमरे खोलखोल कर बारीकी से देखे, लेकिन कहीं कुछ न मिला.
वह किचन में पहुंच गया. उस की नजर फ्रिज पर पड़ी. उस ने फ्रिज खोल कर देखा. डिब्बों में खाने की चीजें भरी हुई थीं. उस ने फ्रिज का दूसरा डोर खोला तो उस की आंखें हैरत से फैल गईं. पूरा खाना कीमती जवाहरात और जेवरों से भरा हुआ था.
यकीनन ये वही खजाना था, जो पुश्तैनी ट्रंक से चोरी हुआ था. इस खजाने की चोरी के इलजाम में ऐना और उस के 2 साथी जेल में थे. निक ने उसी समय किचन में रखे फोन से पुलिस का नंबर मिला दिया. फोन सार्जेंट ब्रुल्स नाम के पुलिस अधिकारी ने उठाया.
निक ने उस से कहा, ‘‘मैं एक महत्त्वपूर्ण केस के बारे में इत्तला देना चाहता हूं.’’
‘‘तुम्हारा नाम क्या है और कहां से बोल रहे हो?’’
‘‘मेरा नाम रिचर्ड निक्सन है. मैं न्यूपालिट में विक्टर के घर से बोल रहा हूं, विक्टर एलियानोफ के यहां हीरेजवाहरातों की चोरी और चौकीदार की हत्या की जो वारदात हुई थी, उसी के बारे में बताना चाहता हूं.’’
‘‘तुम इस बारे में क्या कहना चाहते हो? 3 अभियुक्त इस केस में पकड़े जा चुके हैं?’’ पुलिस अधिकारी बोला.
‘‘आप ने जिन 3 जनों को गिरफ्तार किया था वे निर्दोष हैं. बाकी हकीकत यह है कि इस मामले का अभियुक्त कोई और ही है. जो गहने चोरी हुए थे वह सब विक्टर के यहां फ्रिज में रखे हुए हैं.’’
पुलिस ने 3 जनों को गिरफ्तार तो कर लिया था, लेकिन उन से चोरी गया सामान बरामद नहीं हो पाया था. इसलिए यह खबर पाते ही पुलिस अधिकारी खुश हो गया. वह बोला, ‘‘मिस्टर निक्सन, तुम वहीं रुको, मैं वहीं तुम्हारे पास पहुंच रहा हूं.’’
क्रमशः
नाजनीन ने कोई खास तैयारी नहीं की थी, इस के बावजूद वह बहुत खूबसूरत लग रही थी. मैं अपने बदनसीब बौस के बारे में सोच रहा था कि वह कितना बेबस था. क्या नहीं था उस के पास, लेकिन वह कितना मजबूर था. उस के दिल पर क्या गुजर रही होगी? नाजनीन की आवाज से मेरा ध्यान टूटा, ‘‘शहबाज, तुम ने कितना सही रास्ता निकाल लिया, वरना मैं गलत रास्ते पर जा रही थी.’’
‘‘मैडम, मैं अपनी इस शादी के बारे में सोच रहा था, जो एक तरह की डील है. कुछ दिनों या कुछ हफ्तों के लिए. उस के बाद सब खतम हो जाएगा.’’ मैं ने जल्दी से कहा.
‘‘कोई जरूरी नहीं है. तुम चाहो तो मना भी कर सकते हो. कोई जबरदस्ती थोड़े ही है.’’ नाजनीन ने हंस कर कहा.
‘‘यह कैसे हो सकता है?’’ मैं चौंका.
‘‘क्या नहीं हो सकता. देखो शहबाज, औरत को सिर्फ दौलत की ही नहीं, एक भरपूर मर्द के साथ की भी जरूरत होती है. बदकिस्मती से अजहर ऐसा मर्द नहीं है. दौलत मेरे पास भी है, हम आराम से जिंदगी गुजार सकते हैं.’’
‘‘मैडम, इस में तो हंगामा हो जाएगा. अजहर अली कभी इस बात को बरदाश्त नहीं करेंगे.’’
‘‘यह मुझे भी पता है कि वह बरदाश्त नहीं करेंगे. क्योंकि वह मुझ से बहुत प्यार करते हैं. लेकिन ऐसे प्यार का क्या फायदा, जो सिर्फ आग लगाता हो, प्यास न बुझा सकता हो. अब जब तुम मेरी जिंदगी में आ गए हो तो हमें इस मौके को हाथ से नहीं जाने देना चाहिए. तुम अपने भविष्य की चिंता मत करो. मेरे पास इतनी दौलत है कि मैं तुम्हें कोई कारोबार करवा दूंगी.’’ नाजनीन ने कहा.
‘‘तुम ने तो मुझे मुश्किल में डाल दिया.’’ मैं ने कहा.
‘‘कोई मुश्किल नहीं है, तुम्हें हिम्मत करने की जरूरत है, सब ठीक हो जाएगा. मकसद पूरा होने के बाद कह देना कि तुम तलाक नहीं देना चाहते. उस के बाद वह कुछ नहीं कर पाएंगे, क्योंकि कानूनी और शरअई तौर पर मैं तुम्हारी बीवी हूं.’’
‘‘यह तो बहुत बड़ा धोखा होगा. डील के भी खिलाफ होगा.’’
‘‘कोई धोखा नहीं है. उन्होंने मुझ से शादी कर के मुझे धोखा नहीं दिया है? क्या उन्हें मालूम नहीं था कि वह शादी लायक नहीं हैं. इस के बावजूद अपनी नाक ऊंची रखने के लिए उन्होंने मुझ से शादी की. ऐसा कर के उन्होंने मुझे धोखा नहीं दिया?’’
‘‘तुम्हारी बात भी सच है.’’ मैं ने कहा.
‘‘बाकी सब भूल कर सिर्फ यह याद रखो कि उन्होंने मुझे धोखा दिया है. इस की उन्हें सजा मिलनी ही चाहिए. अगर उन का खानदान उन्हें बच्चे का बाप देखना चाहता है तो मेरा क्या दोष, उन के घर वालों की खुशी के लिए मैं क्यों कष्ट झेलूं? तुम खुद ही बताओ, इस में मेरा क्या दोष है? मैं ही क्यों दुनिया भर के कष्ट उठाऊं? उन का जब मन हुआ शादी कर ली, जब मन हुआ दूसरे को सौंप दिया. आखिर यह क्या तमाशा है?’’
नाजनीन की बातों ने मुझे चौंका दिया. अपनी जगह वह भी ठीक थी. आखिर औरत के साथ वह भी तो आदमी थी. जवान और खूबसूरत भी थी. उस की भी अपनी उमंगें और इच्छाएं थीं.
रूटीन के अनुसार अगले दिन मैं औफिस पहुंचा तो कुछ देर बाद अजहर अली ने मुझे बुलाया. उम्मीद के साथ मुझे देखते हुए उन्होंने कुछ कागजात मेरी ओर बढ़ाए. डील के अनुसार वे तलाक के पेपर थे. मैं ने कहा, ‘‘सर, कुछ दिन रुक जाइए. जिस मकसद के लिए यह काम हुआ है, पहले उसे तो पूरा हो जाने दीजिए.’’
अजहर अली ने कागजात दराज में रख लिए. इस के बाद मेरा काम शुरू हो गया. दिन भर मैं औफिस में रहता, शाम को अपने फ्लैट पर जाता. देर रात मैं अजहर अली के घर पहुंच जाता, जहां नाजनीन मेरा इंतजार कर रही होती. रोज रात को वह ऐसी बातें छेड़ देती, जो मेरी डील के खिलाफ होतीं. धीरेधीरे मुझे भी लगने लगा कि वह ठीक ही कहती हैं.
लेकिन मुझ में इतनी हिम्मत नहीं थी कि मैं डील के खिलाफ जा सकता. वह मुझे रोज उकसाती. इस के बावजूद मैं ने फैसला किया कि मैं नाजनीन को तलाक दे दूंगा. उन्होंने मुझ पर जो विश्वास किया है, उसे नहीं तोड़ूंगा. उन्होंने मुझे एक खुशहाल जिंदगी दी है, इसलिए मैं उन्हें धोखा नहीं दूंगा.
2 महीने तक इसी तरह चलता रहा. मैं बड़ी दुविधा में था. नाजनीन रोजाना तलाक न देने की मिन्नतें करती. जबकि मैं अपने वायदे पर अडिग था.
लेकिन जब नाजनीन ने बताया कि वह मां बनने वाली है तो मैं डगमगा गया. अजहर को इसी बात का इंतजार था. क्योंकि जब मैं ने तलाक देने की बात की तो नाजनीन ने कहा, ‘‘मैं चाहती हूं कि मेरा बच्चा अपने बाप की छाया में पले.’’
मैं ने वायदे की बात की तो उस ने ढेर सारी दलीलें दे कर मुझे चुप करा दिया.
अगले दिन अजहर अली ने मुझे बुलाया. वह बहुत खुश था. शायद नाजनीन ने उसे खुशखबरी सुना दी थी. मैं उसे देख कर हैरान था. उधार की खुशियों में वह कितना खुश था. उस ने कहा, ‘‘शहबाज, तुम ने अपना फर्ज पूरा कर दिया. अब तुम नाजनीन को तलाक दे कर उस से अलग हो जाओ. हमारी डील खत्म हुई.’’
उस समय अचानक न जाने कैसे मेरे दिल में प्यार जाग उठा. शायद बच्चे से प्यार हो गया था. एक बाप होने का अहसास हो उठा था या नाजनीन की बातों का असर था.
मुझे लगा, मैं बच्चे को नहीं छोड़ सकता. मैं ने कहा, ‘‘सौरी सर, मैं नाजनीन को तलाक नहीं दे पाऊंगा.’’
‘‘क्या… यह क्या बकवास है?’’ अजहर अली चीखा.
‘‘सर, नाजनीन मां बनने वाली है और मैं बाप, इसलिए प्लीज सर, आप हमारे हाल पर रहम करें और उसे मेरे पास ही रहने दें.’’ मैं ने बेबसी से कहा.
‘‘बेवकूफ आदमी, तुम्हारे पास ऐसा क्या है, जो तुम नाजनीन जैसी औरत को दे सकते हो? नाजनीन ने मजबूरी में तुम से शादी की थी, वरना वह तुम्हारी ओर देखती भी न.’’ अजहर अली गुस्से में गरजा.
मैं ने धीरे से कहा, ‘‘सर, ऐसी बात नहीं है. नाजनीन भी यही चाहती है. अब वह आप के साथ नहीं, मेरे साथ रहना चाहती है, क्योंकि औरत सिर्फ दौलत से ही नहीं खुश रह सकती.’’
अजहर अली चिल्लाया, ‘‘अपनी बकवास बंद करो, नाजनीन कभी ऐसा सोच भी नहीं सकती.’’
‘‘आप खुद फोन कर के पता कर लीजिए. अगर वह भी यही चाहती है तो क्या आप हमें हमारी मरजी की जिंदगी गुजारने देंगे?’’
‘‘अभी पता चल जाएगा,’’ कह कर अजहर अली ने फोन लगाया. दूसरी ओर से फोन उठा लिया गया तो उन्होंने कहा, ‘‘नाजनीन, यह शहबाज क्या कह रहा है? क्या तुम उसी के साथ रहना चाहती हो? ठीक है, मैं उसे तुम्हारे पास भेज रहा हूं, तुम्हीं उस का दिमाग ठीक कर सकती हो.’’
इस के बाद मुझ से कहा, ‘‘जाओ, नाजनीन से बात कर लो. तुम्हें तुम्हारी औकात का पता चल जाएगा?’’
मैं ने हिम्मत कर के कहा, ‘‘आप भी मेरे साथ चलिए. आप को भी आप की हैसियत मालूम हो जाएगी?’’
नाजनीन ने मेरी सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया. उस ने मेरे साथ रहने से साफ मना कर दिया. मुझे लगा कि मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई है. उस ने जो मिन्नतें मुझ से की थीं, वे सब झूठी थीं. उस ने मुझे सीधेसीधे उल्लू बनाया था. उस ने कहा था, ‘‘काफी सोचविचार कर मैं इस नतीजे पर पहुंची हूं कि तुम्हारे साथ मैं नहीं रह सकती. क्योंकि तुम मेरे बच्चे को वह जिंदगी नहीं दे सकते, जो अजहर अली दे सकते हैं. बेहतर यही है कि तुम मुझे तलाक दे कर हमारी जिंदगी से दूर हो जाओ.’’
‘‘तुम ठीक कह रही हो मैडम. तुम भले ही मुझ जैसे 10 आदमी खरीद सकती हो, लेकिन बच्चे का बाप और उस के प्यार को नहीं खरीद सकती. जो प्यार उस का असली बाप दे सकता है, वह अजहर अली कभी नहीं दे सकता. इसलिए तुम ठीक नहीं कर रही हो.’’
‘‘तुम्हें फिकर करने की जरूरत नहीं है. तुम तलाक दे दो और सब भूल जाओ.’’
‘‘मैं कैसे भूल जाऊं, तुम मेरी कानूनी बीवी हो. तुम पर मेरा पूरा हक है. औलाद भी मेरी है. तुम मुझे तलाक के लिए मजबूर नहीं कर सकती.’’
वह फौरन बोल पड़ी, ‘‘तुम डील के खिलाफ जा रहे हो शहबाज.’’
‘‘मैं तुम्हें छोड़ सकता हूं, पर औलाद नहीं छोड़ सकता.’’
‘‘तुम पागल हो गए हो. औलाद के लिए ही तो मैं ने यह सब किया है.’’
‘‘कुछ भी हो, मैं तलाक नहीं दूंगा. यह मेरा अंतिम फैसला है.’’ कह कर मैं पैर पटकता हुआ चला आया.
मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं? अजहर अली की कंपनी के दरवाजे मेरे लिए बंद हो चुके थे. सब कुछ होते हुए भी अब मेरे पास कुछ नहीं था. मेरे लिए कोई फैसला करना मुश्किल था. मेरे अंदर का मर्द और बाप जाग उठा था. वह बच्चा मेरा खून था, इसलिए उस पर मेरा कानूनी हक था.
मेरे लिए यही बेहतर था कि मैं किसी अच्छे वकील से मिलूं. मेरा केस वाजिब था, मेरे पास सारे सुबूत भी थे. निकाहनामा मेरे पास था, इसलिए फैसला मेरे ही हक में होना था. वकील के लिए भी यह केस काफी दिलचस्प होता. औलाद होने के बाद डीएनए टेस्ट के जरिए मैं खुद को बच्चे का बाप साबित कर सकता था. मेडिकल साइंस के इस दौर में ऐसी बातें छिपी नहीं रह सकतीं. इस केस में अजहर की पोजीशन बहुत कमजोर थी, इसलिए बच्चा मुझे मिल सकता था.
अब्बू को भी पहली बार मुझ पर सख्त गुस्सा आया. वह आशा कर रहे थे कि मैं इस साल इंटर में कोई अच्छी पोजीशन हासिल करूंगी, क्योंकि न केवल मैं ने कालेज से छुट्टी ली थी, बल्कि घर में भी हर समय अपने कमरे में स्टडी में मगन रहती थी. हकीकत यह थी कि मैं कालेज कम ही जाती थी. मेरा सारा समय राहेल के साथ घूमनेफिरने में गुजरता था. कमरे में घुसे रहने का कारण यह था कि वहां मैं सब से छिप कर अपने महबूब के तसव्वुर में गुम रह सकती थी.
उस समय मेरा नशा हिरन हो गया, जब अब्बू ने मुझ से परचों में फेल होने की वजह पूछी थी. उन की चिंता उचित थी. जब मैं इतनी जहीन और पढ़ाकू थी तो मेरे 4 परचों में फेल हो जाने की क्या वजह थी? मैं ने बहाने तराश कर अब्बू को किसी हद तक नार्मल किया. वादा किया कि अगले सालाना इम्तिहान में पोजीशन ले कर दिखाऊंगी. मगर अम्मी किसी तौर पर रजामंद नहीं हुईं. उन्होंने फैसला सुना दिया कि मेरी पढ़ाई खत्म, कालेज जाना बंद. अब्बू ने अम्मी के फैसले के आगे हथियार डाल दिए.
तालीम की तो मुझे भी कोई खास परवाह नहीं थी, मगर कालेज जाना बंद होने की हालत में मेरे लिए राहेल से मुलाकात का रास्ता बंद हो जाता. टेलीफोन भी मेरी पहुंच से बाहर हो गया था. रात को सोने से पहले अम्मी टेलीफोन सेट अपने कमरे में ले जाती थीं. दिन में भी मुझे मौका नहीं मिलता था.
मैं अपना हर तरीका इस्तेमाल कर के थक गई, अम्मी टस से मस नहीं हुईं. तब मैं ने अपना सब से ज्यादा परखा हुआ नुस्खा आजमाया और भूख हड़ताल कर दी. जब मैं ने लगातार 2 दिनों तक कुछ नहीं खाया तो अम्मी घबरा गईं. उन्होंने हर तरह से कोशिश की कि मैं अपनी भूखहड़ताल खत्म कर दूं, मगर मेरी एक ही रट थी कि जब तक मुझे कालेज जाने की इजाजत नहीं मिलेगी, मैं कुछ नहीं खाऊंगी, चाहे मेरी जान ही क्यों न निकल जाए. तीसरे दिन अम्मी ने मुझे बेदिली से इजाजत तो दे दी, मगर धमकी भी दी कि अगर उन्होंने मेरे बारे में ऐसीवैसी कोई बात सुनी तो वह मेरा गला घोंट देंगी और खुद भी जहर खा कर मर जाएंगी.
मैं ने उन की धमकी पर कोई ध्यान नहीं दिया. मैं तो राहेल से मिलने के तसव्वुर में जैसे पागल हुई जा रही थी. क्लासें शुरू होते ही मेरी और राहेल की मुलाकातें फिर शुरू हो गईं. इतने अरसे बाद उसे देख कर मैं जैसे दोबारा जी उठी थी. अब मैं बेधड़क उस के साथ शहर की तफरीहगाहों में चली जाती थी. खास तौर पर समुद्र तट हम दोनों की पसंदीदा जगह थी. उस के संग समुद्र की नरम रेत पर चलते हुए ऐसा लगता, जैसे मैं ने पूरी दुनिया जीत ली हो.
उस दिन भी हमारा क्लफटन (कराची का मुंबई के जुहू जैसा स्थान) का प्रोग्राम था. मैं घर कह कर आई थी कि कालेज के बाद अपनी सहेली के यहां जाऊंगी. वहां से शाम तक घर वापस आऊंगी. राहेल कालेज से बाहर एक जगह पर अपनी गाड़ी लिए मेरे इंतजार में खड़ा था. वहां से हम दोनों क्लफटन पहुंच गए. छुट्टी का दिन न होने की वजह से वहां रश नहीं था. राहेल कुछ ज्यादा ही खुशगवार मूड में था. वह रहरह कर जिस अंदाज में तारीफ कर रहा था, उस ने मुझे आसमान पर पहुंचा दिया था. हम समुद्र के किनारे टहलते रहे. उस की शरारतों में बेबाकी पाई जाती थी, मगर मैं ने बुरा नहीं माना. यों ही हंसतेखेलते वक्त गुजर गया और होश उस समय आया, जब सूरज डूबने के करीब था.
खारे पानी और साहिल की रेत ने मेरा हुलिया बिगाड़ दिया था और मैं इस हुलिए में घर जा कर अम्मी के क्रोध को दावत नहीं देना चाहती थी. मगर मसला यह था कि मैं अपना हुलिया कहां ठीक करती? इस परेशानी का इजहार मैं ने राहेल से किया तो वह कहकहा लगा कर बोला, ‘‘बस इतनी सी बात? तुम्हें परेशान देख कर तो मेरी जान निकल जाती है. यहीं करीब ही मेरे एक दोस्त का कौटेज है. इत्तेफाक से उस की चाबी मेरे पास है. वहां साफ पानी होगा. तुम आराम से मुंहहाथ धो लेना. वैसे भी देर हो गई है. तुम्हें अब तक घर पहुंच जाना चाहिए था.’’
‘‘तुम याद कहां रहने देते हो?’’ मैं ने नाराजगी से कहा.
कौटेज छोटा सा था और बिलकुल खाली था. चौकीदार भी नहीं था, जबकि सुनसान साहिल पर चौकीदार रखना लाजिमी था.
‘‘इस कमरे से अटैच्ड बाथ है,’’ राहेल ने एक कमरे की तरफ इशारा किया. वह शानदार बेडरूम था. मैं बाथरूम में चली गई. साफ पानी से जल्दीजल्दी मुंहहाथ साफ किए. कंघी से सिर में फंसी रेत साफ की और एक हद तक कपड़े भी साफ किए. फिर मैं ने आईने में अपना जायजा लिया और बाहर जाने के लिए बाथरूम के दरवाजे का हैंडिल घुमाया, मगर वह टस से मस नहीं हुआ. मैं ने जोर लगाया. फिर भी कोई असर नहीं हुआ. अंदर जाते समय वह आसानी से घूम गया था. पहली बार मुझे किसी खतरे का अहसास हुआ, लेकिन मेरे दिल ने तसल्ली दी कि यह कोई फाल्ट है. मैं ने दरवाजा पीट कर राहेल को आवाज दी.
‘‘मैं यहीं हूं. शोर मत मचाओ.’’ उस की आवाज करीब से उभरी.
‘‘राहेल, यह दरवाजा बंद हो गया है. खुल नहीं रहा.’’ मैं ने रुआंसी हो कर कहा.
‘‘बंद नहीं हुआ, बल्कि मैं ने लौक कर दिया है.’’ वइ इत्मीनान से बोला तो मेरी जान निकल गई, ‘‘राहेल, प्लीज, मजाक बंद करो. मुझे पहले ही देर हो गई है.’’
‘‘देर तो तुम्हें हो ही चुकी है जानेमन और मजाक यह नहीं, वह था, जो मैं अब तक करता आया था.’’ उस के लहजे में व्यंग्य था.
‘‘दरवाजा खोलो. तुम मुझे यों कैद नहीं कर सकते.’’ मैं पूरी ताकत से चिल्लाई.
‘‘कैद तो तुम हो चुकी हो. अब जरा 2-4 रोज तो हमारे पास रहो.’’ उस ने कहकहा लगा कर कहा.
‘‘हमारे… हमारे से क्या मतलब?’’ मैं चौंकी.
‘‘भोली लड़की, मैं ने दोस्तों की दावत का इंतजाम किया है. तुम्हारे पास हुस्न का जो खजाना है, उस से तो कितने ही जरूरतमंद खुशहाल हो सकते हैं.’’ उस की हंसी में कमीनापन था.
‘‘बंद करो बकवास. कुत्ते! धोखेबाज!’’ मैं चीखी. फिर सिसकसिसक कर रोने लगी, ‘‘राहेल, तुम्हें क्या हो गया है? तुम मुझ से मोहब्बत करते हो. फिर भी मुझे यों रुसवा करना चाहते हो?’’
‘‘मोहब्बत,’’ उस ने फिर कहकहा लगाया, ‘‘यह किस चिडि़या का नाम है? जानेमन, हम तो हुस्नोंशबाब के पुजारी हैं. अब तुम जरा पुरसुकून हो जाओ. नहाधो कर हमारे स्वागत के लिए तैयार हो लो. मैं जा कर दोस्तों को खबर कर आऊं और सुनो, शोर मचाने से कुछ हासिल नहीं होगा. इस वीराने में तुम्हारी फरियाद सुनने कोई नहीं आएगा.’’
क्रमशः
सभी न्यूज चैनल्स मंगी की मौत और उस के आखिरी लम्हों की वीडियो की फुटेज दिखा रहे थे. पुलिस की काररवाई पर भी सवाल खड़े किए जा रहे थे. कातिल ने अपने दावे के मुताबिक मंगी को अदालत में पुलिस के सामने मार दिया था. डीएसपी रंधावा और इंसपेक्टर भट्टी बारबार मंगी के आखिरी लम्हों की वीडियो देख रहे थे, क्योंकि कोई सुबूत हाथ नहीं आ रहा था.
रंधावा पूरे 38 घंटे बाद बिस्तर पर लेटा तो सुबह 7 बजे के अलार्म मोबाइल की सुरीली आवाज से जागा. मोबाइल अलार्म के साथ उस के जेहन में भी एक घंटी बजी. चाय पी कर रंधावा औफिस के लिए निकल पड़े. औफिस में एक बार फिर उन्होंने मंगी के कत्ल की वीडियो देखी. इस बार वीडियो देख कर उन के होंठों पर एक रहस्यमय मुसकराहट आई.
रात 8 बजे रंधावा जज आफाक अहमद के कमरे में बैठे थे. दोनों के बीच मंगी के रहस्यमय कत्ल पर बातचीत चल रही थी. आफाक अहमद ने कहा, ‘‘इस मामले में सब कुछ रहस्यमय है.’’
रंधावा ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘जज साहब, आप बिलकुल सही कह रहे हैं.’’ इस के बाद दीवार पर नजर डालते हुए वह बोले, ‘‘इस पीतल की घड़ी के बगल में मार्क एंड बेंसन की स्विटजरलैंड मेड घड़ी लगी थी. वह नजर नहीं आ रही है?’’
‘‘वह खराब हो गई है.’’ जज साहब ने कहा.
दोनों दोस्तों की नजरें मिलीं. दोनों ही एकदूसरे के मिजाज और सोच के हर रंग से वाकिफ थे. रंधावा ने कौफी का घूंट भरते हुए कहा, ‘‘आफाक अहमद, तुम्हारी योग्यता का कोई जवाब नहीं. आखिर तुम ने इस केस को यादगार बना ही दिया.’’
रंधावा की इस बात से आफाक अहमद बिलकुल नहीं चौंके. उन्होंने कहा, ‘‘आखिर तुम्हें मेरा खयाल आ ही गया. लेकिन तुम्हारे पास सिर्फ थ्योरी है. कोई सुबूत नहीं कि यह सब कैसे हुआ?’’
रंधावा ने खुल कर हंसते हुए कहा, ‘‘बेशक कोई सुबूत नहीं है, मगर मैं जान गया हूं कि इस कारनामे को तुम ने कैसे अंजाम दिया?’’
‘‘जरा मैं भी तो सुनूं?’’ जज ने मजा लेते हुए कहा…
‘‘तुम्हें कैप्टन शाद अली की तकनीकी मदद हासिल थी.’’
पहली बार आफाक अहमद थोड़ा परेशान हुए. रंधावा ने आगे कहा, ‘‘मैं यह नहीं जानता कि तुम दोनों का गठजोड़ कैसे हुआ? पर यह जरूर जान गया हूं कि यह तुम दोनों की मिलीभगत थी.’’
जज आफाक अहमद ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हारी मुश्किल आसान कर देता हूं. कैप्टन शाद अली को मेरे पास तुम्हारा भतीजा ले कर आया था.’’
रंधावा ने बात काटी, ‘‘और फिर उस मुलाकात में तुम दोनों ने मासूम दुआ अली के बेरहम कातिल को अदालत के कमरे में ही खत्म करने की योजना बना डाली. तुम्हें अपनी योजना की कामयाबी का सौ फीसदी यकीन था? इस दौरान तुम्हारे अंदर शरारत जाग उठी. तुम ने मुझे बीच में घसीट कर एक तरह से चुनौती दी कि तुम्हारे सामने मंगी मारा जाएगा और तुम कुछ कर सकते हो तो कर लो?’’
आफाक अहमद कहकहा लगाते हुए बोले, ‘‘बिलकुल ठीक जा रहे हो मेरे दोस्त.’’
‘‘योजना यकीनन तुम ने तैयार की थी. तुम्हारे कहने के मुताबिक कैप्टन शाद अली ने तुम्हारे कमरे की ‘मार्क एंड बेंसन’ घड़ी में जरूरी बदलाव कर के ‘एरोगन’ फिट कर दी और उस का ट्रिगर रिमोट कंट्रोल से जोड़ दिया.’’
रंधावा की इस बात से आफाक अहमद सन्न रह गए. उन की इस हालत का मजा लेते हुए रंधावा ने आगे कहा, ‘‘फैसले वाले दिन तुम उस खास घड़ी को ब्रीफकेस में रख कर अपने साथ ले गए. तुम उस समय अपने चैंबर में थे, जब मेरी टीम अदालत के कमरे को चैक कर रही थी. हम ने दीवार पर लगी तुम्हारी खास घड़ी जैसी मार्क एंड बेंसन घड़ी को भी बारीकी से चैक किया था.
निश्चिंत हो कर हम ने अदालत के कमरे को बंद करवा दिया था. इस के बाद तुम्हारे लिए सब कुछ बड़ा आसान हो गया. अपने चैंबर से अदालत के कमरे में खुलने वाले दरवाजे के जरिए तुम ने अंदर से खुलने वाले दरवाजे के जरिए अंदर दाखिल हो कर उस घड़ी की जगह अपनी घड़ी लगा दी.
‘‘मंगी को तुम ने बरी नहीं किया बल्कि उसे मौत दे दी. मुलजिमों के कटघरे और घड़ी का दरम्यानी फासला, घड़ी की ऊंचाई और मंगी की 6 फुट से निकलती लंबाई, सब कुछ तुम्हारी नजर में था. तुम्हारी पूरी योजना तैयार थी. रिमोट का महज एक बटन दबा कर तुम ने उसे खत्म कर दिया. शायद यह शेर ऐसे ही कत्ल के बारे में कहा गया है –
‘न हाथ में खंजर न आस्तीन पर लहू
तुम कत्ल करो हो कि करामात करो हो.’
जज आफाक अहमद ने बेआवाज ताली बजाई. एक पुलिस अफसर के तारीफी अल्फाज उन का रुतबा बढ़ा रहे थे. रंधावा ने कहा, ‘‘कत्ल के बाद जब हम ने दोबारा कमरा बंद किया तो तुम ने पहले की ही तरह जा कर घड़ी बदल दी और हमारे सामने से बड़े आराम से घर चले गए. उस के बाद हम बेचारे बने झक मारते रहे.’’
उन के इस अंदाज पर आफाक अहमद ने हंसते हुए कहा, ‘‘तुम्हारी कहानी बस अंदाजों पर टिकी है. तुम्हारे पास मेरे खिलाफ न कोई सुबूत है न कोई शहादत. तुम्हारी अंदाजों पर टिकी कहानी सुन कर हाईकोर्ट एक माननीय डिस्ट्रिक्ट एंड सेशन जज के लिए गिरफ्तारी वारंट कभी जारी नहीं करेगा? बल्कि मुमकिन है कि ऐसी दरख्वास्त करने वाले पुलिस अफसर के स्टार ही मौके पर उतार लिए जाएं.’’
‘‘जानता हूं.’’ रंधावा ने कहा, ‘‘मेरा ऐसा कुछ करने का कोई इरादा भी नहीं है. और यकीनन वह खास कातिल घड़ी भी अब तक तुम ने ठिकाने लगा दी होगी.’’
आफाक अहमद ने तारीफी अंदाज में कहा, ‘‘यकीनन तुम एक काबिल और होशियार पुलिस अफसर हो. पर यह तो बताओ कि तुम्हें मेरा खयाल आया कैसे?’’
रंधावा ने मुसकरा कर कहा, ‘‘मंगी के ठीक सामने दीवार पर लगी पुरानी घड़ी मेरे जेहन में चुभ रही थी. वैसी ही घड़ी मैं तुम्हारे इस कमरे में देख चुका था. सुबह अलार्म की घंटी ने याद दिलाया. नईपुरानी घडि़यां जमा करना तुम्हारा पुराना शौक रहा है. तुम्हारी तरफ ध्यान गया तो परदे हटते गए और फिर तुम ही अकेले ऐसे शख्स थे, जो अपने चैंबर के रास्ते से कभी भी अदालत के कमरे में जा सकते थे.
‘‘वारदात के पहले और वारदात के बाद बिना किसी की नजरों में आए तुम अदालत के कमरे में दाखिल हो सकते थे. इस के अलावा तुम ने फैसला सुनाने से पहले घड़ी और मंगी के बीच खड़े सफाई वकील को बैठने के लिए कहा था.
‘‘अगर सफाई वकील वहां खड़ा भी रहता तो कोई फर्क नहीं पड़ता. लेकिन तुम ने खास तौर पर उसे बैठने को कहा था. उस वक्त की वीडियो देखने पर मुझे यकीन हो गया कि यह कारनामा सिर्फ तुम ही कर सकते थे.’’
आफाक अहमद ने सुकून से कहा, ‘‘तुम क्यों रिटायर हो रहे हो रंधावा? तुम्हारी काबलियत काबिले तारीफ है. 3-4 साल और नौकरी कर लो.’’
‘‘नहीं,’’ रंधावा ने कहा, ‘‘अपनी ईमानदारी और सच्चाई की साख बचातेबचाते अब मैं थक चुका हूं. वैसे एक बात और कहूंगा, तुम्हारी गुनहगार को सजा दिलाने की जिद और उसूल भी एक सुबूत है. मेरा आखिरी केस मेरे लिए सचमुच यादगार रहेगा. इस बात के साथ कि हर उलझे और मुश्किल केस की गुत्थियां सुलझाने वाला रंधावा अपने आखिरी केस को हल करने में नाकाम रहा. लेकिन मुझे खुशी है कि तुम्हारा उसूल अब भी कायम है. तुम्हारे बारे में जो मशहूर है कि तुम मुजरिम को छोड़ते नहीं, वह पूरा हुआ.’’
आफाक अहमद ने इत्मीनान और सुकून से सिर हिलाया. खड़े हो कर रंधावा को गले लगाते हुए कहा, ‘‘तुम्हारी हार और मेरी जीत कोई मायने नहीं रखती दोस्त. सब से अहम बात तो यह है कि हम दोनों के दिल पर कोई बोझ नहीं है.’’
रंधावा ने मुसकरा कर हाथ मिलाते हुए कहा, ‘‘मैं भी इस बात से खुश हूं कि दुआ अली को इंसाफ मिला है, वह कैसे भी मिला है.’’