अंजाम ए मोहब्बत : पिता कैसे बने दोषी – भाग 3

इस के महीने भर बाद ही उस ने मीनाक्षी की शादी एक दूसरे लड़के के साथ तय कर दी थी. यह शादी उस के गांव में होने वाली थी. इसलिए पूरा परिवार मीनाक्षी को गांव नुमाईडाही ले कर चला गया था.

9 मार्च, 2019 को मीनाक्षी की बारात आने वाली थी. सभी मीनाक्षी की शादी की तैयारी में लगे थे. लेकिन मीनाक्षी वहां से फरार होने का रास्ता खोज रही थी. इस बीच मौका पा कर मीनाक्षी ने बृजेश को फोन किया. बृजेश ने उसे मध्य प्रदेश के शहर सतना पहुंचने को कहा.

मीनाक्षी शादी के 15 दिन पहले 22 फरवरी, 2019 को अपना घर छोड़ कर सतना पहुंच गई, वहां बृजेश ने अपने दोस्तों के साथ उस का स्वागत किया. फिर आर्यसमाज मंदिर में जा कर दोनों ने विवाह कर लिया. मंदिर में शादी करने के बाद उन्होंने 2 मई, 2019 को मुंबई पहुंच कर कोर्टमैरिज कर ली. इस के बाद दोनों मुंबई के नारायण नगर के शिवपुरी चाल में किराए का रूम ले कर रहने लगे. बृजेश अपनी दुकान पर बैठने लगा था.

मीनाक्षी के इस कदम से राजकुमार चौरसिया की समाज, गांव और नातेरिश्तेदारी में काफी बदनामी हुई थी. बेटी की वजह से उस का सिर शर्म से झुक गया था. उसे पता चल गया था कि बेटी ने बृजेश से शादी कर ली है. जिस की टीस उस के मन की गहराई में जा कर बैठ गई थी.

कुछ दिनों बाद मीनाक्षी ने अपनी मां से फोन पर बात करनी शुरू कर दी थी. परिवार वालों ने मीनाक्षी को इस शर्त पर माफ कर दिया था कि वह कभी बृजेश के साथ मुंबई से गांव या ससुराल नहीं जाएगी.

मगर ऐसा हुआ नहीं. समय अपनी गति से चल रहा था. मीनाक्षी गर्भवती हो गई थी. इस बीच बृजेश और मीनाक्षी ने यह योजना बनाई कि डिलिवरी के बाद वे दोनों गांव जा कर बच्चे को अपने मांबाप का आशीर्वाद दिलवाएंगे.

इस बात की भनक जब राजकुमार को लगी तो वह अपनी इज्जत को ले कर परेशान हो गया. वह गांव में दोबारा अपनी बेइज्जती नहीं करवाना चाहता था, इसलिए उस ने बेटी मीनाक्षी के प्रति एक खतरनाक फैसला ले लिया. उस ने सोच लिया कि वह ऐसा करेगा कि न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी.

योजना के अनुसार, 13 जुलाई 2019 की रात राजकुमार चौरसिया ने मीनाक्षी को फोन कर के 14 जुलाई को अपने घर बुलाया और कहा कि जिस तरह से तुम लोगों ने शादी की थी, उस में वह उन्हें कुछ नहीं दे पाया था, इसलिए उस ने उस के और दामाद के लिए कुछ कपड़े आदि खरीद कर रखे हैं. वह आ कर कपड़े वगैरह ले जाए.

पिता से फोन पर बात होने पर मीनाक्षी काफी खुश हुई. उस ने यह बात पति बृजेश को बताई तो बृजेश ने उसे पिता के पास जाने से मना कर दिया. लेकिन फिर भी मीनाक्षी नहीं मानी. क्योंकि वह तो इस विश्वास में थी कि पिता ने उसे माफ कर दिया है.

इसलिए पिता का थोड़ा प्यार पा कर वह उन से मिलने उस के घर चली गई थी. रात 12 बजे जब बृजेश दुकान से घर आया तो उसे मीनाक्षी घर पर नहीं मिली. वह समझ गया कि वह अपने पिता के पास ही गई होगी.

उस ने उसी समय मीनाक्षी और उस के पिता राजकुमार चौरसिया को फोन किया, लेकिन फोन बंद आ रहा था. काम से थका होने के कारण उस ने घर में रखा खाना खाया और फिर सो गया. सुबह उसे पुलिस वालों ने आ कर जगाया था.

हुआ यह था कि 14 जुलाई, 2019 की रात 10 बजे जब मीनाक्षी पिता राजकुमार चौरसिया के घर पहुंची तो घर में उस समय कोई नहीं था. राजकुमार के परिवार वाले उस रात बाहर एक रिश्तेदार के यहां चले गए थे. राजकुमार चौरसिया पूरी तैयारी के साथ बेटी मीनाक्षी का इंतजार कर रहा था.

मीनाक्षी जैसे ही घर में दाखिल हुई तो राजकुमार उठ कर खड़ा हो गया और जैसे ही आशीर्वाद लेने के लिए वह पिता के पैर छूने को नीचे झुकी, तभी राजकुमार ने चाकू से उस के ऊपर हमला कर दिया. हमला करते समय राजकुमार ने मीनाक्षी का मुंह दबा रखा था, जिस कारण उस की चीख घुट कर ही रह गई थी.

मीनाक्षी की हत्या करने के बाद उस के शव को रिक्शा स्टैंड के पीछे डाल कर वह फरार हो गया और सीधे अपने गांव चला गया था.

पुलिस टीम ने राजकुमार चौरसिया से विस्तृत पूछताछ कर उसे उस की बेटी मीनाक्षी चौरसिया की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक राजकुमार चौरसिया जेल में बंद था. मामले का आरोपपत्र इंसपेक्टर विलाख दातीर तैयार कर रहे थे.

सौजन्य: मनोहर कहानियां

अनूठा बदला : पति से लिया बदला – भाग 3

कुछ ऐसा ही हाल कंचन का भी था. वह भी अपनी बरबादी का कारण प्रमोद को मानती थी. इसलिए वह प्रमोद को अकसर ताना मारती रहती थी. इसी के बाद दोनों में लड़ाईझगड़ा होता और मारपीट हो जाती. कंचन प्रमोद से पीछा छुड़ाना चाहती थी, इसलिए उस ने प्रमोद से पढ़ने की इच्छा जाहिर की तो उस ने जिला कौशांबी के रहने वाले अपने एक परिचित सुरेश दूबे से बात की. वह कौशांबी के मंझनपुर में भार्गव इंटर कालेज में बाबू था. सुरेश ने कंचन का भार्गव इंटर कालेज में दाखिला ही नहीं करा दिया, बल्कि उसे इंटर पास भी कराया.

इस के बाद सुरेश दूबे ने ही डिग्री कालेज मंझनपुर से कंचनलता को प्राइवेट फार्म भरवा कर बीए करा दिया. सन 2010 में कौशांबी में होमगार्ड में प्लाटून कमांडर की भरती हुई तो कंचनलता होमगार्ड में प्लाटून कमांडर बन गई. वर्तमान में वह महिला थाना कौशांबी में तैनात थी. प्लाटून कमांडर होने के बाद कंचन कौशांबी में रहने लगी तो प्रमोद मीरजापुर में अकेला ही रहता रहा. दोनों बच्चे भी बाहर रहते थे. प्रमोद कालीन बुनाई का काम करता था. वह अकेला पड़ गया तो कारखाना मालिक ने उस से कारखाने में ही रहने को कहा. इस से दोनों का ही फायदा था.

मालिक को कम पैसे में चौकीदार मिल गया तो प्रमोद को सोने के भी पैसे मिलने लगे थे. अब प्रमोद 24 घंटे कारखाने में ही रहने लगा था. पतिपत्नी में वैसे भी नहीं पटती थी.अलगअलग रहने से दोनों के बीच दूरियां बढ़ती गईं. कंचनलता जब तक प्रमोद के साथ रही, डर की वजह से उस ने मायके वालों से संपर्क नहीं किया था. लेकिन जब वह कौशांबी में अकेली रहने लगी तो वह घर वालों से संपर्क करने की कोशिश करने लगी.

करीब 21 साल बाद उस ने अपने परिचित सुरेश दूबे को संत कबीर नगर में रहने वाली अपनी बहन के यहां भेज कर अपने बारे में सूचना दी. इस के बाद बहन को उस का मोबाइल नंबर मिल गया. दोनों बहनों की बातचीत होने लगी. बहन ने ही उसे मायके का भी नंबर दे दिया था.

कंचन की मायके वालों से बातें होने ही लगीं, तो वह मायके भी गई.अंबरीश गाजियाबाद की एक मोटर पार्ट्स की दुकान में नौकरी करता था. वह मोटर पार्ट्स लाने ले जाने का काम करता था, इसलिए उस का हर जगह आनाजाना लगा रहाता था. उसे भी बहन कंचन का नंबर मिल गया था, इसलिए वह भी बहन से बातें करने लगा था.

अंबरीश बहन से अकसर प्रमोद का मीरजापुर वाला घर दिखाने को कहता था, क्योंकि वह प्रमोद की हत्या कर अपने परिवार की बदनामी और बरबादी का बदला लेना चाहता था. अपनी इसी योजना के तहत वह 1 फरवरी, 2020 को दिल्ली से चल कर 2 फरवरी को मंझनपुर में रह रही बहन कंचन के यहां पहुंचा.

अगले दिन यानी 3 फरवरी की सुबह उस ने कंचन को विश्वास में ले कर उस का मोबाइल फोन बंद कर के कमरे पर रखवा दिया. क्योंकि उसे पता था कि पुलिस मोबाइल की लोकेशन से अपराधियों तक पहुंच जाती है. उस ने अपना मोबाइल फोन भी बंद कर दिया. दिन के 10 बजे वह कंचन को मोटरसाइकिल से ले कर मीरजापुर के लिए चल पड़ा.

दोनों 4 बजे के आसपास मीरजापुर पहुंचे. पहले उन्होंने विंध्याचल जा कर मां विंध्यवासिनी के दर्शन किए. इस के बाद दोनों इधरउधर घूमते हुए रात होने का इंतजार करने लगे.रात 11 बजे जब दोनों को लगा कि अब तक कारखाने में काम करने वाले मजदूर चले गए होंगे और प्रमोद सो गया होगा तो कंचन उसे ले कर कारखाने पर पहुंच गई. कंचन अंबरीश को कारखाना दिखा कर बाहर ही रुक गई.

अंबरीश अकेला कारखाने के अंदर गया तो प्रमोद को सोते देख खुश हुआ. क्योंकि अब उस का मकसद आसानी से पूरा हो सकता था. उस ने देर किए बगैर वहां रखी ईंटों में से एक ईंट उठाई और प्रमोद के सिर पर दे मारी. ईंट के प्रहार से प्रमोद उठ कर बैठ गया पर वह अपने बचाव के लिए कुछ कर पाता, उस के पहले ही अंबरीश ने उस के गले में अंगौछा लपेट कर कसना शुरू कर दिया.

अपने बचाव में प्रमोद ने संघर्ष किया, जिस से अंबरीश को भी चोटें आईं. पर एक तो प्रमोद पहले ही ईंट के प्रहार घायल हो चुका था, दूसरे अंगौछा से गला कसा हुआ था, इसलिए काफी प्रयास के बाद भी वह स्वयं को नहीं बचा सका.

गला कसा होने की वजह से वह बेहोश हो गया तो अंबरीश ने उसी ईंट से उस का सिर कुचल कर उस की हत्या कर दी. खुद को बचाने के लिए प्रमोद संघर्ष करने के साथसाथ ‘बचाओ…बचाओ’ चिल्ला भी रहा था.
उस की ‘बचाओ…बचाओ’ की आवाज सुन कर कंचन जब अंदर आई, तब तक अंबरीश उस की हत्या कर चुका था. अंबरीश का काम हो चुका था, इसलिए वह बहन को ले कर रात में ही मोटरसाइकिल से मंझनपुर चला गया.

अगले दिन पुलिस ने जब कंचनलता को प्रमोद की हत्या की सूचना दे कर थाना विंध्याचल बुलाया तो कंचन ने अंबरीश को खलीलाबाद भेज दिया. इस की वजह यह थी कि प्रमोद जब खुद को बचाने के लिए संघर्ष कर रहा था, तब उसे चोटें आ गई थीं.उस के शरीर पर चोट के निशान देख कर पुलिस को शक हो जाता और वे पकड़े जाते. अंबरीश को खलीलाबाद भेज कर कंचनलता सुरेश दुबे के साथ थाना विंध्याचल आई. इस के बाद वह भी फरार हो गई.

दोनों ने बड़ी होशियारी से प्रमोद की हत्या की, पर कारखाने में लगे सीसीटीवी ने उन की पोल खोल दी. और वे पकड़े गए. अंबरीश की निशानदेही पर पुलिस ने झाडि़यों से वह ईंट बरामद कर ली थी, जिस से प्रमोद की हत्या की गई थी.

इस तरह प्रमोद की नादानी से दो परिवार बरबाद हो गए. पूछताछ के बाद पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. पुलिस के पास प्रमोद के घर का पता नहीं था, इसलिए पुलिस ने थाना विंध्याचल को उस की हत्या की सूचना दे कर थाना सहजनवां पुलिस को खबर भिजवाई.

अय्याशी में डूबा रंगीन मिजाज का कारोबारी – भाग 3

शंटू किसी भी तरह रूबी को हासिल करना चाहता था. इस के लिए उस ने रूबी को तमाम सुविधाएं देने के साथ अपनी निजी सचिव बना लिया. अब वह हर समय शंटू के साथ रहती थी. दोनों एकदूसरे का शिकार करने पर तुले थे, पर तीर चलाने में पहल कोई नहीं कर रहा था.

रूबी को सरप्राइज देने के लिए शंटू ने जालंधर के रामामंडी क्षेत्र में एक कोठी खरीदी और उस की चाबी रूबी को देते हुए कहा, ‘‘आज से तुम इस कोठी में रहोगी. यह तुम्हारे लिए है.’’

रूबी की खुशी का ठिकाना न रहा. क्योंकि उस ने सोचा भी नहीं था कि शंटू इतनी जल्दी उस की झोली में आ गिरेगा. उसी शाम उस नई कोठी में रूबी के सामने जब शंटू ने प्यार का इजहार किया तो रूबी को जैसे मनचाही मुराद मिल गई. इसी दिन का तो उसे इंतजार था. दोनों ने ही उस दिन अपनी इच्छा पूरी की. इस के बाद रूबी पति को छोड़ कर शंटू द्वारा दी गई कोठी में रहने लगी.

शंटू का भी अधिकांश समय रूबी के साथ उसी नई कोठी में गुजरने लगा. घर पर काम का बहाना बना कर वह रूबी की बांहों में पड़ा रहता. 3 साल कब गुजर गए, पता ही नहीं चला और न ही उन के संबंधों की बात किसी को कानोकान पता चली. पर अवैध संबंध कभी न कभी खुल ही जाते हैं.

दिसंबर, 2016 में परमजीत कौर को अपने पति और रूबी के नाजायज संबंधों की भनक लग गई. इस बारे में जब उस ने शंटू से पूछा तो वह साफ मुकर गया. पर परमजीत के पास पुख्ता सबूत थे. उस ने यह बात अपनी सास दलजीत कौर को बताई. फिर एक दिन वह अपनी ननद और सास को ले कर रामामंडी वाली कोठी पर पहुंची.

रूबी कोठी में ही थी. तीनों ने मिल कर रूबी की खूब बेइज्जती की और उसे धक्के मार कर कोठी से बाहर कर अपना ताला लगा दिया. शंटू को जब इस बात का पता चला तो उसे अपने घर वालों पर बड़ा गुस्सा आया. घर आ कर उस ने खूब झगड़ा किया और पिता जगजीत सिंह से साफ कह दिया, ‘‘मैं पम्मी से तलाक ले कर रूबी से शादी कर के उसे इस घर की बहू बनाना चाहता हूं.’’

‘‘तेरी मति मारी गई है क्या, जो इस उम्र में पागलों जैसी बातें कर रहा है. शांति से अपने बीवीबच्चों के साथ रह.’’ जगजीत सिंह ने डांटा.

जगजीत सिंह और दलजीत कौर ने बेटे को बहुत समझाया, पर शंटू तो रूबी के मोहजाल में इस कदर जकड़ा था कि वह किसी भी सूरत में उस से दूर होने को तैयार नहीं था. शंटू की ससुराल वालों और अन्य रिश्तेदारों ने यह बात सुनी तो सभी उन की कोठी पर आ गए.

सभी ने शंटू को फटकार लगाते हुए समझाया, तब कहीं जा कर यह मामला शांत हुआ. उस समय सभी बड़ेबूढ़ों के दबाव में आ कर शंटू शांत हो गया, पर दिनरात वह पम्मी से पीछा छुड़ा कर रूबी से ब्याह रचाने के बारे में सोचता रहता था. वह इस बात को अच्छी तरह समझ गया था कि एक म्यान में 2 तलवारें नहीं रह सकतीं यानी पम्मी के रहते हुए वह रूबी को कभी इस घर की बहू नहीं बना सकता.

शंटू के पैट्रोल पंप पर कुछ समय पहले तक गांव ढिलवां निवासी विपिन नौकरी करता था. विपिन अपराधी प्रवृत्ति का था. उस पर कई मुकदमे चल रहे थे. एक दिन अचानक रास्ते में शंटू की मुलाकात विपिन से हो गई. गाड़ी रोक कर उस ने विपिन को अपने साथ बिठा लिया. शंटू ने उसे अपने और रूबी के रिश्ते के बारे में बता कर कहा, ‘‘पम्मी के रहते रूबी को अपना बनाना असंभव है. तू बता पम्मी का इलाज कैसे किया जाए?’’

‘‘जी, मैं क्या बताऊं?’’ विपिन ने असमंजस में कहा, ‘‘आप किसी वकील से सलाह ले लो.’’

‘‘नहीं, पम्मी का बड़ा सीधा इलाज है.’’ शंटू ने कहा.

‘‘वह क्या जी?’’ विपिन ने हैरानी से पूछा.

‘‘पम्मी का काम तमाम कर दे. न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी.’’ शंटू ने सुझाव दिया.

‘‘ठीक है जी, हटा देते हैं रस्ते से.’’ विपिन अब पूरी बात समझ गया था. मुद्दे पर आते हुए उस ने कहा, ‘‘पर यह काम मैं अकेला नहीं कर सकूंगा. दूसरे बदले में कितने रुपए मिलेंगे?’’

‘‘पहले तू आदमी का इंतजाम कर ले, रुपयों की बात तभी कर लेंगे.’’ शंटू ने कहा.

अगले ही दिन विपिन ने गांव सरहाल कलां चब्बेवाल निवासी अमृतपाल को शंटू से मिलवाया. उस का बड़ा भाई विदेश में नौकरी करता था. वह भी मलेशिया में नौकरी करता था. 3 साल नौकरी कर के वह 6 महीने पहले ही घर लौटा था. यहां आ कर उस ने पैट्रोल पंप के शेड बनाने का काम शुरू कर दिया था.

उसी दौरान उस की मुलाकात विपिन से हुई थी. अमृतपाल साफसुथरी छवि वाला आदमी था, पर पैसों की वजह से उसे लालच आ गया. उस ने इस काम के लिए 15 लाख रुपए मांगे. सौदेबाजी के बाद मामला 8 लाख रुपए में तय हो गया. शंटू ने उसी समय विपिन को 1 लाख 40 हजार रुपए एडवांस दे दिए. इन रुपयों से विपिन और अमृतपाल उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद गए और वहां से किसी से एक पिस्तौल और गोलियां खरीद लाए.

शंटू ने अपनी पत्नी परमजीत कौर उर्फ पम्मी की हत्या की सुपारी अपनी प्रेमिका रूबी के कहने पर दी थी. हत्या की योजना बन जाने के बाद शंटू ने विपिन और अमृतपाल को अपनी कोठी का पूरा नक्शा समझाते हुए एकएक बात बारीकी से समझा दी कि कैसे उन्हें कोठी में दाखिल होना है और कैसे हत्या करनी है. उस के बाद फ्रिज के पीछे टंगी पिछले दरवाजे की चाबी से ताला खोल कर बाहर निकल जाना है.

शंटू ने विपिन और अमृतपाल को अपने घर के सभी सदस्यों की भी पूरी जानकारी दे दी थी कि कौन किस वक्त कहां होता है. हत्या करवाने के लिए शंटू ने शाम 4 से 5 बजे का टाइम तय किया था. क्योंकि वह जानता था कि उस समय परमजीत कौर कोठी में अकेली होती है.

21 फरवरी, 2017 को शंटू की योजनानुसार विपिन और अमृतपाल उस की कोठी नंबर 141 पर पहुंचे. उन्होंने यह कह कर घर में लगे सीसीटीवी कैमरों के कनेक्शन काट दिए कि शंटू भाई ने कहा है कि इन पुराने कैमरों की जगह अब नए मौडर्न कैमरे लगाए जाएंगे. इसी बहाने वे कोठी के अंदरूनी भाग को पूरी तरह देखसमझ आए. अगले दिन 22 फरवरी, 2017 को दोनों फिर से कोठी पर गए और वहां रखा डिजिटल वीडियो रिकौर्डर और मौनीटर भी उठा लाए.

23 फरवरी, 2017 की शाम करीब 4 बजे दोनों फिर कोठी पर पहुंचे और अपनी योजनानुसार इस हत्याकांड को अंजाम दे कर चुपचाप निकल गए. बात केवल परमजीत कौर उर्फ पम्मी की हत्या करने की हुई थी. इसलिए विपिन और अमृतपाल दलजीत कौर और खुशवंत कौर की हत्या नहीं करना चाहते थे, लेकिन हालात ऐसे बन गए कि उन्हें उन की भी हत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

शंटू को इस बात की आशंका बिलकुल नहीं थी कि उस की मां की भी मौत हो सकती है. वह अपनी मां से बेहद प्यार करता था. इस का उसे बहुत पश्चाताप है. रिमांड के दौरान पूछताछ करते समय वह अपनी मां को बारबार याद कर के रोने लगता था. उसे इस बात का अफसोस है कि उस की अय्याशियों और बेवजह की हठधर्मी से उस के परिवार का विनाश हो गया.

विपिन और अमृतपाल फरार हो गए थे. उन की तलाश में पुलिस की एक टीम दिल्ली और गाजियाबाद भी गई, पर वे पुलिस के हाथ नहीं लग सके. पुलिस ने अमरिंदर सिंह उर्फ शंटू और तेजिंदर कौर उर्फ रूबी को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया है. कथा लिखे जाने तक विपिन और अमृतपाल गिरफ्तार नहीं हो सके थे.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

दिलफेंक हसीना : कातिल बना पति – भाग 3

भरत दिवाकर नमिता को पा कर बेहद खुश था, नमिता भी खुश थी. दिवाकर की रगों में दशोदिया देवी के खानदान का खून दौड़ रहा था, जहां से राजनीति की धारा फूटती थी. लोग दशोदिया देवी की कूटनीति का लोहा मानते थे तो पौत्र कहां पीछे रहने वाला था. उसे जो पसंद आ जाता था, उसे हासिल कर के ही दम लेता था. इसी के चलते वह अपनी पसंद की दुलहन घर लाया था.

भरत ने दादी से राजनीति का ककहरा सीख लिया था. राजनीति के अखाड़े में मंझा पहलवान बन कर उतरे भरत ने समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया. वह जानता था कि राजनीति अवाम पर हुकूमत करने के लिए एक सुरक्षा कवच है और बहुत बड़ी ताकत भी. वह इस ताकत को हासिल कर के ही रहेगा.

अपनी मेहनत और संपर्कों के बल पर उस ने पार्टी और कर्वी ब्लौक में अच्छी छवि बना ली थी. इस का परिणाम भरत के हक में बेहतर साबित हुआ.

भरत दिवाकर कर्वी ब्लौक का प्रमुख चुन लिया गया. ब्लौक प्रमुख चुने जाने के बाद यानी सत्ता का स्वाद चखते ही उस के पांव जमीन पर नहीं रहे. सत्ता के गुरूर में भरत अंधा हो चुका था. इतना अंधा कि वह यह भी भूल गया था उस की एक पत्नी है, जिस ने अपने परिवार से बगावत कर के उस का दामन थामा था. पत्नी के प्रति फर्ज को भी वह भूल गया था.

कल तक भरत जिस नमिता के पीछे भागतेभागते थकता नहीं था, अब उसे देखने के लिए उस के पास वक्त नहीं होता था. यह बात नमिता को काफी खलती थी. इस की एक खास वजह यह थी कि न तो उसे परिवार का प्यार मिल रहा था और न ही किसी का सहयोग.

घर भौतिक सुखसुविधाओं से भरा था. भरत के मांबाप ने नमिता को भले ही अपना लिया था, लेकिन उसे बहू का दरजा नहीं दिया गया था. कोई उस से बात तक करना पसंद नहीं करता था. ऐसे में पति का ही एक सहारा था. लेकिन वह भी सत्ता की चकाचौंध में खो गया था.

अब नमिता को अपनी भूल का अहसास हो रहा था. मांबाप की बात न मान कर उस ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली थी. अब वह वापस घर भी नहीं लौट सकती थी. पिता ने उस से सारे रिश्ते तोड़ कर सदा के लिए दरवाजा बंद कर दिया था.

नमिता को भविष्य की चिंता सताने लगी थी. चिंता करना इसलिए जायज था, क्योंकि वह भरत के बच्चे की मां बन चुकी थी. समय के साथ उस ने एक बेटी को जन्म दिया था, जिस का नाम तान्या रखा गया था. बेटी के भविष्य को ले कर नमिता चिंता में डूबी रहती थी.

ससुराल की रुसवाइयां और पति की दूरियां नमिता के लिए शूल बन गई थीं. भरत कईकई दिनों तक घर से बाहर रहता था और जब लौटता था तो शराब के नशे में धुत होता था. पति का घर से बाहर रहना फिर भी नमिता ने सहन कर लिया था, लेकिन शराब पी कर घर आना उसे कतई बरदाश्त नहीं था.

एक रात वह पति के सामने तन कर खड़ी हो गई, ‘‘मैं नहीं जानती थी कि आप ऐसे निकलेंगे. आप ने मेरी जिंदगी नर्क से बदतर बना दी और खुद शराब की बोतलों में उतर गए. मैं सिर्फ इस्तेमाल वाली चीज बन कर रह गई हूं, जिसे इस्तेमाल कर के कपड़े के गट्ठर की तरह कोने में फेंक दिया गया है. कभी सोचा आप ने कि मैं आप के बिना कैसे जीती हूं?’’

दोनों हथेलियों से आंसू पोंछते हुए वह आगे बोली, ‘‘मैं ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस के लिए मैं अपना सब कुछ न्यौछावर कर रही हूं, वह शराबी निकलेगा, सितमगर निकलेगा. अरे मेरा न सही कम से कम बेटी के बारे में तो सोचते, जो इस दुनिया में अभीअभी आई है. कैसे जालिम पिता हो आप, ढंग से गोद में उठा कर प्यार भी नहीं कर सकते?’’

नशे में धुत भरत चुपचाप खड़ा पत्नी की डांट सुनता रहा. उस से ढंग से खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था. शरीर हवा में झूमता रहा. फिर वह बिस्तर पर जा गिरा और पलभर में खर्राटें भरने लगा.

नमिता से जब बरदाश्त नहीं हुआ तो उस ने अपनी नाक पल्लू से ढंक ली. फिर उसे घूरती हुई बोली, ‘‘मेरी तो किस्मत ही फूटी थी जो इन से शादी कर ली. उधर मायका छूट गया और इधर… कितनी बदनसीब हूं मैं जो किसी के कंधे पर सिर रख कर आंसू भी नहीं बहा सकती.’’

उस दिन के बाद पति और पत्नी के बीच तल्खी बढ़ गई. छोटीमोटी बातों को ले कर दोनों के बीच विवाद होने लगे. पतिपत्नी के साथ हाथापाई की नौबत आने लगी. अब तो जब भी भरत शराब के नशे में घर लौटता, अकारण ही पत्नी के साथ मारपीट करता. दोनों के रोजरोज की किचकिच से घर युद्ध का मैदान बन गया था. बेटे और बहू के झगड़ों से तंग आ कर मांबाप ने उन्हें घर छोड़ कहीं और चले जाने को कह दिया.

मांबाप का तल्ख आदेश सुन कर भरत गुस्से में तिलमिला उठा. उस ने सारा दोष पत्नी के मत्थे मढ़ दिया कि उसी की वजह से घर में अशांति फैली है. गलत वह खुद था न कि नमिता. लेकिन पुरुष होने के नाते उस की नजर में गलत नमिता थी, सो वह नमिता को ही मिटाने की सोचने लगा.

नमिता से छुटकारा पाने के लिए भरत ने मन ही मन एक खतरनाक योजना बना ली. योजना को अंजाम देने के लिए उस ने मोहल्ले में ही थोड़ी दूरी पर किराए का एक कमरा ले लिया और पत्नी और बेटी को ले कर वहां शिफ्ट कर गया. अपनी खतरनाक योजना में उस ने अपने ड्राइवर और ठेका पट्टी की देखभाल करने वाले रामसेवक निषाद को मिला लिया.

दरअसल भरत का 5 साल का ब्लौक प्रमुख का कार्यकाल पूरा हो चुका था, ब्लौक प्रमुख की कुरसी जा चुकी थी. उस के बाद उसे भरतकूप थानाक्षेत्र स्थित बरुआ सागर बांध का ठेका पट्टा मिल गया था. उस ने वहां बड़े पैमाने पर मछलियां पाल रखी थीं. मछलियों के व्यापार से उसे काफी अच्छी आय हो जाती थी. इस की देखरेख उस ने अपने विश्वासपात्र ड्राइवर रामसेवक को सौंप रखी थी. वह मछलियों की रखवाली भी करता था और मालिक की गाड़ी भी चलाता था. यह बात अक्तूबर 2019 की है.

साली की चाल में जीजा हलाल – भाग 3

जीजा की इस हरकत पर रामकली तुनक जाती. प्रेमप्रकाश तब उसे यह कह कर मना लेता कि साली तो वैसे भी आधी घरवाली होती है. रामकली का मूड फिर भी ठीक न होता तो वह उसे हजार 5 सौ रुपए दे कर मना लेता.

प्रेमप्रकाश की पत्नी रेखा 4 बच्चों की मां बन चुकी थी. उस का रंगरूप भी सांवला था और स्वभाव से वह कर्कश थी. जबकि साली रामकली रसीली थी. उस का रंग गोरा और शरीर मांसल था. रामकली के आगे रेखा फीकी थी, इसलिए प्रेमप्रकाश उस पर लट्टू था और उसे हर हाल में अपना बनाना चाहता था.

दूसरी तरफ रामकली भी अपने पति रामप्रकाश से खुश नहीं थी. 4 बीवियों को भोगने वाले रामप्रकाश में अब वह पौरुष नहीं रहा था, जिस की रामकली कामना करती थी. इसलिए जब रिश्ते में जीजा प्रेमप्रकाश ने उस से छेड़छाड़ शुरू की तो उसे भी अच्छा लगने लगा और वह भी मन ही मन उसे चाहने लगी.

एक शाम प्रेमप्रकाश रामकली के घर पहुंचा तो वह बनसंवर कर सब्जी लेने सब्जी मंडी जाने वाली थी. प्रेमप्रकाश ने एक नजर इधरउधर डाल कर पूछा, ‘‘भाईसाहब नजर नहीं आ रहे. क्या वह कहीं बाहर गए हैं?’’

‘‘नहीं, बाहर तो नहीं गए हैं, लेकिन जाते समय कह गए थे कि देर रात तक आएंगे.’’

रामकली की बात सुन कर प्रेमप्रकाश की बांछें खिल उठीं. उस ने लपक कर घर का दरवाजा बंद किया, फिर साली को बांहों में भर कर बिस्तर पर जा पहुंचा. रामकली ने कुछ देर बनावटी विरोध किया, फिर खुद ही उस का सहयोग करने लगी.

जीजासाली का अवैध रिश्ता कायम हुआ तो वक्त के साथ बढ़ता ही गया. पहले प्रेमप्रकाश, रामप्रकाश की मौजूदगी में ही घर आता था, लेकिन अब वह वक्तबेवक्त और उस की गैरहाजिरी में भी आने लगा.

दोनों को जब भी मौका मिलता, एकदूसरे की बांहों में समा जाते. जीजासाली के अवैध रिश्तों की भनक रामप्रकाश को भले ही न लगी, लेकिन पड़ोसियों के कान खड़े हो गए. जीजासाली की रासलीला के चर्चे पासपड़ोस की महिलाएं करने लगीं.

रामप्रकाश किराए पर ई-रिक्शा चलाता था. 8-10 घंटे में वह जो भी कमाता था, उस से उस के परिवार का खर्च चलता था. कभीकभी कुछ पैसे पत्नी को भी दे देता था. रामप्रकाश पत्नी पर भरोसा करता था, जबकि रामकली उस के भरोसे को तोड़ रही थी. आखिर एक दिन सच सामने आ ही गया.

उस दिन सुबहसुबह रामकली और पड़ोसन के बीच गली में कूड़ा फेंकने को ले कर तूतू मैंमैं होने लगी. लड़तेझगड़ते दोनों एकदूसरे के चरित्र पर कीचड़ उछालने लगीं.

रामकली ने पड़ोसन को बदचलन कहा तो उस का पारा चढ़ गया, ‘‘अरी जा, बड़ी सतीसावित्री बनती है. मेरा मुंह मत खुलवा, पति के काम पर जाते ही जीजा की बांहों में समा जाती है. खुद बदलचन है और मुझे कह रही है.’’

दोनों महिलाओं का वाकयुद्ध थमने का नाम नहीं ले रहा था. संयोग से तभी रामप्रकाश आ गया. उस ने अपनी पत्नी रामकली और पड़ोसन को झगड़ते देखा तो रामकली को ही डांटा, ‘‘आपस में झगड़ते तुम्हें शर्म नहीं आती. चलो, घर के अंदर जाओ.’’

रामकली बड़बड़ाती, पैर पटकती घर के अंदर चली गई. इस के बाद रामप्रकाश पड़ोसन से मुखातिब हुआ, ‘‘रामकली तो अनपढ़, गंवार औरत है लेकिन तुम तो पढ़ीलिखी हो. गली में सरेआम ये तमाशा करना अच्छी बात है क्या?’’

पड़ोसन का गुस्सा काबू के बाहर था. वह हाथ नचाते हुए बोली, ‘‘भाईसाहब, आप रामकली को सीधा समझते हैं, जबकि वह सीधेपन की आड़ में आप को बेवकूफ बना कर गुलछर्रे उड़ाती है.’’

रामप्रकाश की खोपड़ी सांयसांय करने लगी. उसे लगा कि पड़ोसन के सीने में जरूर कोई संगीन राज दफन है, जो गुस्से में बाहर आने को बेताब है. अत: उस ने पूछा, ‘‘मैं कुछ समझा नहीं, साफसाफ कहिए.’’

‘‘भाईसाहब, मैं आप से कहना तो नहीं चाहती थी लेकिन आप जब जानना ही चाहते हैं तो सुनिए. दरअसल आप की बीवी रामकली ने मोहल्ले में गंदगी फैला रखी है. आप की गैरमौजूदगी में प्रेमप्रकाश नाम का एक आदमी, जिसे रामकली अपना जीजा बताती है, आ जाता है. उस के आते ही दरवाजा अंदर से बंद हो जाता है. फिर आप के आने से कुछ देर पहले ही दरवाजा खुलता है और वह चला जाता है. बंद दरवाजे के पीछे क्या होता है, यह पूरी गली को मालूम है.’’

रामप्रकाश सन्नाटे में आ गया. उस की गैरमौजूदगी में रामकली ऐसा भी कुछ कर सकती है, वह सोच भी नहीं सकता था. अपमानबोध तथा शर्म से रामप्रकाश का सिर झुक गया. वह बुझी सी आवाज में बोला, ‘‘बहुत अच्छा किया आप ने जो सारी बातें मेरी जानकारी में ला दीं.’’

रामप्रकाश की जानकारी में ऐसा बहुत कम हुआ था, जब प्रेमप्रकाश उस की गैरमौजूदगी में आया हो. प्रेमप्रकाश उसे फोन कर के पहले पूछ लेता था कि वह घर में है या नहीं.

उस के बाद ही वह आता था. जबकि उस महिला ने बताया कि प्रेमप्रकाश उस की गैरमौजूदगी में आता है. उस के आते ही रामकली दरवाजा बंद कर लेती है.

इस के बाद रामप्रकाश अपने घर में दाखिल हुआ और रामकली को सीधे सवालों के निशाने पर ले लिया, ‘‘सुना तुम ने, पड़ोसन तुम्हारे बारे में क्या कह रही थी?’’

‘‘हां, उस की भी बात सुनी और तुम्हारी भी सुन ली.’’ रामकली पति को ही आंखें दिखाने लगी, ‘‘बड़े शरम की बात है कि वो कलमुंही मुझ पर इलजाम लगाती रही और तुम चुपचाप सुनते रहे. तुम्हें तो उस समय उस का मुंह नोंच लेना चाहिए था.’’

रामप्रकाश के सब्र का पैमाना छलक गया. वह दांत किटकिटाते हुए बोला, ‘‘रामकली, यह बताओ तुम पहले से झूठी और बेशर्म थी या मेरे घर आ कर हो गई?’’

रामकली की घबराहट चेहरे पर तैरने लगी. वह बोली, ‘‘तुम कहना क्या चाहते हो?’’

‘‘तुम सच पर परदा डालने की कोशिश मत करो. बताओ, तुम्हारा और प्रेमप्रकाश का चक्कर कब से चल रहा है?’’

रामकली पति के सवालों का जवाब देने के बजाए खुद को सही साबित करने के लिए इधरउधर की बातें करती रही.

पति का गुस्सा देख कर रामकली समझ गई कि अगर उस ने सच नहीं बताया तो रामप्रकाश पीटपीट कर उस की जान ले लेगा. अत: उस ने जमीन पर बैठ कर हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘अब बस करो, मैं सब बता देती हूं.’’

इस के बाद रामकली का मुंह खुला. उस ने सच्चाई तो बताई लेकिन अपनी चाल का पेंच फंसा दिया. उस ने प्रेमप्रकाश से नाजायज रिश्ता तो मान लिया लेकिन आरोप उसी पर मढ़ दिया कि वह उसे जबरदस्ती अपनी हवस का शिकार बनाता है. उस ने इसलिए मुंह बंद रखा कि उन दोनों की दोस्ती न टूटे.

2 भाइयों की करतूत : परिवार से ही लिया बदला – भाग 2

श्यामबाबू ने फोटो गौर से देखा फिर बोला, ‘‘सर, यह फोटो मेरी भांजी नीलम की है. इस की यह हालत किस ने की?’’

‘‘नीलम को उस के पति विजय प्रताप ने अपने भाई अजय की मदद से मार डाला है. इस समय दोनों भाई हवालात में हैं. 2 दिन पहले नीलम की लाश ईशन नदी पुल के नीचे मिली थी.’’ थानाप्रभारी ने बताया.

नीलम की हत्या की बात सुनते ही श्यामबाबू फफक पड़ा. वह बोला, ‘‘सर, मैं ने पहले ही नीलम को मना किया था कि विजय ऊंची जाति का है. वह उसे जरूर धोखा देगा. लेकिन प्रेम दीवानी नीलम नहीं मानी और 4 महीने पहले घर से भाग कर उस से शादी कर ली. आखिर उस ने नीलम को मार ही डाला.’’

थानाप्रभारी टी.पी. वर्मा ने बिलख रहे श्यामबाबू को धीरज बंधाया और उसे वादी बना कर भादंवि की धारा 302, 201 के तहत विजय प्रताप व अजयप्रताप के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. इस के बाद उन्होंने कातिलों के पकड़े जाने की जानकारी एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह तथा सीओ (तिर्वा) सुबोध कुमार जायसवाल को दे दी.

जानकारी पाते ही एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह ने प्रैसवार्ता कर के कातिलों को मीडिया के सामने पेश कर घटना का खुलासा कर दिया.

रमेश कुमार अपने परिवार के साथ  लखनऊ के चारबाग में रहता था. उस के परिवार में पत्नी सीता के अलावा एकलौती बेटी थी नीलम. रमेश रोडवेज में सफाईकर्मी था और रोडवेज कालोनी में रहता था. रमेश और उस की पत्नी सीता नीलम को जान से बढ़ कर चाहते थे.

रमेश शराब बहुत पीता था. शराब ने उस के शरीर को खोखला कर दिया था. ज्यादा शराब पीने के कारण वह बीमार पड़ गया और उस की मौत हो गई. पति की मौत के बाद पत्नी सीता टूट गई, जिस से वह भी बीमार रहने लगी. इलाज के बावजूद उसे भी बचाया नहीं जा सका. उस समय नीलम महज 8 साल की थी.

नीलम के मामा श्यामबाबू कानपुर शहर के फीलखाना थाना क्षेत्र के रोटी गोदाम मोहल्ले में रहते थे. बहनबहनोई की मौत के बाद श्यामबाबू अपनी भांजी को कानपुर ले आए और उस का पालनपोषण करने लगे. चूंकि नीलम के सिर से मांबाप का साया छिन गया था, इसलिए श्यामबाबू व उस की पत्नी मीना, नीलम का भरपूर खयाल रखते थे, उस की हर जिद पूरी करते थे. नीलम धीरेधीरे मांबाप की यादें बिसराती गई.

वक्त बीतता रहा. वक्त के साथ नीलम की उम्र भी बढ़ती गई. नीलम अब जवान हो गई थी. 19 वर्षीय नीलम गोरे रंग, आकर्षक नैननक्श, इकहरे बदन और लंबे कद की खूबसूरत लड़की थी. वह साधारण परिवार में पलीबढ़ी जरूर थी, लेकिन उसे अच्छे और आधुनिक कपड़े पहनने का शौक था.

नीलम को अपनी सुंदरता का अंदाजा था, लेकिन वह अपनी सुंदरता पर इतराने के बजाए सभी से हंस कर बातें करती थी. उस के हंसमुख स्वभाव की वजह से सभी उस से बातें करना पसंद करते थे.

नीलम के घर के पास एक प्लास्टिक फैक्ट्री थी. इस फैक्ट्री में विजय प्रताप नाम का युवक काम करता था. वह मूलरूप से कन्नौज जिले के ठठिया थाना क्षेत्र के गांव पैथाना का रहने वाला था. उस के पिता हरिनारायण यादव किसान थे.

3 भाईबहनों में विजय प्रताप उर्फ शोभित सब से बड़ा था. उस का छोटा भाई अजय प्रताप उर्फ सुमित पढ़ाई के साथसाथ खेती के काम में पिता का हाथ बंटाता था. विजय प्रताप कानपुर के रावतपुर में किराए के मकान में रहता था और रोटी गोदाम स्थित फैक्ट्री में काम करता था.

फैक्ट्री आतेजाते एक रोज विजय प्रताप की निगाहें खूबसूरत नीलम पर पड़ीं तो वह उसे अपलक देखता रह गया. पहली ही नजर में नीलम उस के दिलोदिमाग में छा गई. इस के बाद तो जब भी विजय प्रताप फैक्ट्री आता, उस की निगाहें नीलम को ही ढूंढतीं.

नीलम दिख जाती तो उस के दिल को सकून मिलता, न दिखती तो मन उदास हो जाता था. नीलम के आकर्षण ने विजय प्रताप के दिन का चैन छीन लिया था, रातों की नींद हराम कर दी थी.

तथाकथित प्यार में छली गई नीलम

ऐसा नहीं था कि नीलम विजय की प्यार भरी नजरों से वाकिफ नहीं थी. जब वह उसे अपलक निहारता तो नीलम भी सिहर उठती थी. उसे उस का इस तरह निहारना मन में गुदगुदी पैदा करता था. विजय प्रताप भी आकर्षक युवक था. वह ठाठबाट से रहता था. धीरेधीरे नीलम भी उस की ओर आकर्षित होने लगी थी. लेकिन अपनी बात कहने की हिम्मत दोनों में से कोई नहीं जुटा पा रहा था.

जब से विजय प्रताप ने नीलम को देखा था, उस का मन बहुत बेचैन रहने लगा था. उस के दिलोदिमाग पर नीलम ही छाई रहती थी. धीरेधीरे नीलम के प्रति उस की दीवानगी बढ़ती जा रही थी. वह नीलम से बात कर के यह जानना चाहता था कि नीलम भी उस से प्यार करती है या नहीं. क्योंकि नीलम की ओर से अभी तक उसे कोई प्रतिभाव नहीं मिला था.

एक दिन लंच के दौरान विजय प्रताप फैक्ट्री के बाहर निकला तो उसे नीलम सब्जीमंडी बाजार की ओर जाते दिख गई. वह तेज कदमों से उस के सामने पहुंचा और साहस जुटा कर उस से पूछ लिया, ‘‘मैडम, आप अकसर फैक्ट्री के आसपास नजर आती हैं. पड़ोस में ही रहती हैं क्या?’’

‘‘हां, मैं पड़ोस में ही अपने मामा श्यामबाबू के साथ रहती हूं.’’ नीलम ने विजय प्रताप की बात का जवाब देते हुए कहा, ‘‘अब शायद आप मेरा नाम पूछोगे, इसलिए खुद ही बता देती हूं कि नीलम नाम है मेरा.’’

‘‘मेरा नाम विजय प्रताप है. आप के घर के पास जो फैक्ट्री है, उसी में काम करता हूं. रावतपुर में किराए के मकान में रहता हूं. वैसे मैं मूलरूप से कन्नौज के पैथाना का हूं. मेरे पिता किसान हैं. छोटा भाई अजय प्रताप पढ़ रहा है. मुझे खेती के कामों में रुचि नहीं थी, सो कानपुर आ कर नौकरी करने लगा.’’

इस तरह हलकीफुलकी बातों के बीच विजय और नीलम के बीच परिचय हुआ जो आगे चल कर दोस्ती में बदल गया. दोस्ती हुई तो दोनों ने एकदूसरे को अपनेअपने मोबाइल नंबर दे दिए. फुरसत में विजय प्रताप नीलम के मोबाइल पर उस से बातें करने लगा. नीलम को भी विजय का स्वभाव अच्छा लगता था, इसलिए वह भी फोन पर उस से अपने दिल की बातें कर लेती थी. इस का परिणाम यह निकला कि दोनों एकदूसरे के काफी करीब आ गए.

प्यार का नशा कुछ ऐसा होता है जो किसी पर एक बार चढ़ जाए तो आसानी से नहीं उतरता. नीलम और विजय के साथ भी ऐसा ही हुआ. अब वे दोनों साथ घूमने निकलने लगे. रेस्टोरेंट में बैठ कर साथसाथ चाय पीते और पार्कों में बैठ कर बतियाते. उन का प्यार दिन दूना रात चौगुना बढ़ने लगा.

एक दिन मोतीझील की मखमली घास पर बैठे दोनों बतिया रहे थे, तभी अचानक विजय नीलम का हाथ अपने हाथ में लेते हुए बोला, ‘‘नीलम, मैं तुम्हें बेइंतहा प्यार करता हूं. मैं अब तुम्हारे बिना नहीं रह पाऊंगा. मैं तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं. बोलो, मेरा साथ दोगी?’’

नीलम ने उस पर चाहत भरी नजर डाली और बोली, ‘‘विजय, प्यार तो मैं भी तुम्हें करती हूं और तुम्हें अपना जीवन साथी बनाना चाहती हूं, लेकिन मुझे डर लगता है.’’

‘‘कैसा डर?’’ विजय ने अचकचा कर पूछा.

‘‘यही कि हमारी और तुम्हारी जाति अलग हैं. तुम्हारे घर वाले क्या हम दोनों के रिश्ते को स्वीकार करेंगे?’’

विजय प्रताप नीलम के इस सवाल पर कुछ देर मौन रहा फिर बोला, ‘‘नीलम, आसानी से तो घरपरिवार के लोग हमारे रिश्ते को स्वीकार नहीं करेंगे लेकिन जब हम उन पर दबाव डालेंगे तो मान जाएंगे. फिर भी न माने तो बगावत पर उतर जाऊंगा. मैं तुम से वादा करता हूं कि तुम्हें मानसम्मान दिला कर ही रहूंगा.’’

लेकिन इस के पहले कि वे दोनों अपने मकसद में सफल हो पाते, नीलम के मामा श्यामबाबू को पता चल गया कि उस की भांजी पड़ोस की फैक्ट्री में काम करने वाले किसी युवक के साथ प्यार की पींगें बढ़ा रही है. श्यामबाबू नहीं चाहता था कि उस की भांजी किसी के साथ घूमेफिरे, जिस से उस की बदनामी हो.

मामा का समझाया नहीं समझी नीलम

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

अक्षम्य अपराध : कृष्णा को बनाया शिकार – भाग 2

उन्होंने गांव वालों की उपस्थिति में मिट्टी हटाई तो अंदर उन के बेटे कृष्णा की ही लाश निकली. लाश देखते ही वे लोग भी आश्चर्य में पड़ गए.

कुछ देर बाद सत्येंद्र ने थाना रसूलपुर पुलिस को अपने लापता बच्चे की लाश पाए जाने की सूचना दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी बी.डी. पांडेय एसआई सविता सेंगर, कांस्टेबल कन्हैयालाल, अक्षय कुमार, वंदना कुमारी व रचना को साथ ले कर गांव बड़ा लालपुर के लिए रवाना हो गए. रवाना होने से पहले उन्होंने इस संबंध में वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी अवगत करा दिया था.

जिस समय थानाप्रभारी बी.डी. पांडेय बड़ा लालपुर दुर्गामाता मंदिर के पास पहुंचे, उस समय वहां लोगों की भारी भीड़ जुटी थी. वह उस जगह पहुंचे, जहां मासूम बालक लौकिक उर्फ कृष्णा का शव पड़ा था.

बच्चे का शव देख कर उन्हें आशंका हुई कि उस की हत्या गला दबा कर की गई होगी. शव से बदबू आ रही थी, जिस से लग रहा था कि उस की हत्या 2 दिन पहले ही कर दी गई थी. यानी जिस दिन कृष्णा का अपहरण किया गया उसी दिन उसे मार दिया गया. शरीर पर चोट के कोई निशान नहीं थे, जिस से स्पष्ट था कि उस की हत्या तंत्रमंत्र के चलते नहीं की गई थी.

थानाप्रभारी अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसएसपी सचींद्र पटेल, एसपी (ग्रामीण) राजेश कुमार, एसपी (सिटी) प्रबल प्रताप सिंह तथा सीओ (सिटी) इंदुप्रभा घटनास्थल पर आ गईं. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर डौग स्क्वायड टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने मृत बच्चे के मातापिता से भी बात की और उन्हें धैर्य बंधाया कि जल्द ही हत्यारा पुलिस की गिरफ्त में होगा.

निरीक्षण के दौरान एसपी (सिटी) प्रबल प्रताप सिंह ने पाया कि जिस जगह बच्चे का शव दफन था, उसी के पास एक 2 मंजिला मकान था. उन के मन में शक पैदा हुआ तो उन्होंने उस मकान के बारे में पूछताछ की. पता चला कि वह मकान कृष्णा के ताऊ महेश कुमार का ही है.

डौग स्क्वायड टीम ने भी जांच शुरू की. खोजी कुतिया को घटनास्थल पर छोड़ा गया तो वह कृष्णा के शव को सूंघ कर महेश के मकान की ओर भागी. मकान की दूसरी मंजिल पर पहुंच कर कुतिया एक कमरे में जा कर भौंकने लगी.

टीम के सदस्यों ने कमरे की जांच की तो वहां उन्हें मानव सड़ांध महसूस हुई. टीम के सदस्यों को समझते देर नहीं लगी कि बालक कृष्णा की हत्या इसी कमरे में की गई फिर जब लाश से बदबू आने लगी तो लाश दफन कर दी गई.

डौग स्क्वायड टीम ने अपनी जांच से पुलिस अधिकारियों को अवगत कराया तो वे चौंके. एसपी (सिटी) प्रबल प्रताप सिंह व सीओ इंदुप्रभा ने मकान मालिक महेश यादव से पूछताछ की तो उस ने बताया कि मकान में वह अपनी पत्नी नीतू यादव तथा बेटे भानु के साथ रहता है.

उस की 10 वर्षीय बेटी गार्गी की 3 सितंबर को संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हो गई थी. बड़ी बेटी रितु हरिद्वार में पढ़ती है. जमालपुर में हमारा शराब ठेका है. उसी ठेके पर हम तीनों भाई काम करते हैं. महेश कुछ देर मौन रहा फिर बोला, ‘‘सर, आप लोग मुझ से यह सब क्यों पूछ रहे हैं?’’

‘‘इसलिए कि तुम्हारे भतीजे कृष्णा की हत्या तुम्हारे मकान में ही की गई थी.’’ एसपी (सिटी) ने कहा.

‘‘सर, यह आप क्या कह रहे हैं?’’ महेश बुरी तरह चौंका.

‘‘हम बिलकुल सही कह रहे हैं, इसलिए तुम्हें और तुम्हारी पत्नी नीतू को थाने चलना होगा. वहां सब स्पष्ट हो जाएगा.’’

इस के बाद पुलिस ने महेश व उस की पत्नी नीतू को हिरासत में ले लिया और महेश के मकान को सील बंद कर दिया ताकि कोई सबूतों से छेड़छाड़ न कर सके.

पुलिस ने कृष्णा के शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. उपद्रव की आशंका को देखते हुए अधिकारियों ने गांव में फोर्स भी तैनात कर दी.

पुलिस ने महेश तथा उस की पत्नी नीतू से दिन भर पूछताछ की लेकिन दोनों टस से मस नहीं हुए. महेश ने बताया कि कृष्णा उस का भतीजा था. वह उसे बेहद प्यार करता था. उसे कंधों पर बिठा कर खूब घुमाया था. उस की हत्या के बाबत वह सपने में भी नहीं सोच सकता.

मैं उस रोज ठेके पर ही था. साथ में सत्येंद्र और कुलदीप भी थे. आप उन दोनों से ही पूछ लीजिए. कृष्णा के लापता होने की खबर मिलने के बाद हम तीनों घर आ गए थे.

महेश के बयान से पुलिस अधिकारियों को लगा कि यदि वह सच बोल रहा है तो कातिल उस की पत्नी नीतू है. सीओ इंदुप्रभा ने नीतू से सख्ती से पूछताछ की.

कड़ी पूछताछ में नीतू टूट गई और उस ने मासूम बच्चे लौकिक उर्फ कृष्णा की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उस ने बताया कि देवरानी शशि द्वारा ताने मारे जाने से वह गुस्से से भर गई थी, फिर गुस्से में ही उस ने कृष्णा की हत्या कर दी थी. हत्या की जानकारी उस के पति महेश को नहीं थी. नीतू द्वारा जुर्म स्वीकार करने के बाद पुलिस ने महेश को थाने से घर भेज दिया.

नीतू ने जुर्म कबूला तो एसपी (सिटी) प्रबल प्रताप सिंह व सीओ इंद्रप्रभा ने थाना रसूलपुर में संयुक्त प्रैस कौन्फ्रैंस की. पुलिस ने हत्यारोपी नीतू यादव को मीडिया के समक्ष पेश कर मासूम बच्चे लौकिक उर्फ कृष्णा की हत्या का खुलासा कर दिया.

चूंकि नीतू ने लौकिक की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था, इसलिए थानाप्रभारी बी.डी. पांडेय ने भादंवि की धारा 363, 302, 201 के तहत नीतू यादव के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवा दी. पुलिस जांच में विवेकशून्य ताई के अक्षम्य अपराध की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद के थाना रसूलपुर के क्षेत्र में एक गांव है बड़ा लालपुर. यादव बाहुल्य इस गांव में महेश कुमार, सत्येंद्र कुमार तथा कुलदीप 3 भाई रहते थे.

भाइयों में सब से बड़ा महेश था. पढ़लिख कर जब वह जवान हुआ तो उस ने घर की माली हालत सुधारने के लिए प्रयास तेज कर दिए. वह तेज दिमाग का था. वह कोई ऐसा धंधा करना चाहता था, जिस में आमदनी अच्छी हो. उस ने इस बारे अपने मित्रों से सलाहमशविरा किया तो उन्होंने शराब ठेका चलाने की सलाह दी.

पर शराब का ठेका मिलना आसान नहीं था. ठेका बोली में अच्छीखासी पूंजी भी लगानी थी. लेकिन महेश ने हिम्मत नहीं हारी. उस ने ठान लिया कि वह ठेका हासिल कर के ही दम लेगा.

महेश ने एक ओर पूंजी जुटाई तो दूसरी ओर आबकारी विभाग के अधिकारियों से संपर्क बनाया. पूरी गोटियां बिछाने के बाद आखिर नीलामी में उसे शराब का ठेका मिल ही गया.

महेश ने अपने गांव से कुछ दूरी पर जमालपुर में शराब बिक्री का काम शुरू किया. गांव में देशी शराब की बिक्री खूब होती है, अत: महेश के ठेके पर भी खूब बिक्री होने लगी. महेश ने अपने भाई सत्येंद्र व कुलदीप को भी ठेके के काम पर लगा लिया था. सत्येंद्र ठेके पर सेल्समैन के रूप में काम करता था. कुलदीप कभी काउंटर पर बैठता था तो कभी अन्य व्यवस्थाएं देखता था.

अंजाम ए मोहब्बत : पिता कैसे बने दोषी – भाग 2

इस हत्या की क्या वजह हो सकती है, जानने के लिए पुलिस ने मृतका के पति बृजेश चौरसिया को थाने बुलाया. उस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि मीनाक्षी की हत्या उस के पिता राजकुमार चौरसिया ने की है, क्योंकि मीनाक्षी ने अपने घर वालों की मरजी के खिलाफ उस से लवमैरिज की थी. इस बात से उस के घर वाले नाराज थे.

चूंकि बृजेश ने सीधा आरोप अपने ससुर राजकुमार पर लगाया था, इसलिए पुलिस उसे तलाश करने लगी. लेकिन वह अपने घर से फरार मिला. आखिर राजकुमार चौरसिया के मोबाइल फोन की लोकेशन के सहारे पुलिस उस के पास पहुंच ही गई और उसे उत्तर प्रदेश के जिला प्रयागराज में स्थित उस के पैतृक घर से दबोच लिया.

मुंबई ला कर उस से उस की बेटी की हत्या के बारे में पूछताछ की तो राजकुमार ने अपनी बेटी की हत्या के मामले में अनभिज्ञता जाहिर की लेकिन पुलिस टीम ने जब उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की तो वह टूट गया और तोते की तरह बोलते हुए अपना गुनाह स्वीकार लिया.

इस के बाद पुलिस ने राजकुमार चौरसिया को कोर्ट में पेश कर 7 दिन के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में उस से की गई पूछताछ के बाद मीनाक्षी चौरसिया हत्याकांड की जो कहानी उभर कर सामने आई, उस की पृष्ठभूमि कुछ इस प्रकार थी—

55 वर्षीय राजकुमार चौरसिया मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला प्रयागराज के गांव नुमाईडाही का रहने वाला था.

गांव में उस के परिवार की सिर्फ नाममात्र की काश्तकारी थी. उस का पुश्तैनी काम पान बेचने का था. गांव के बाजारों से जो आमदनी होती थी, उस से ही घर और परिवार की रोजीरोटी चलती थी. इस आमदनी से राजकुमार संतुष्ट नहीं था.

लिहाजा अपनी रोजीरोटी की तलाश में वह गांव छोड़ कर महानगर मुंबई चला आया. क्योंकि यहां उस के इलाके के और भी लोग काम करते थे. मुंबई शहर के बारे में उस ने यह सुन रखा था कि वह एक ऐसा शहर है, जहां मेहनत करने वाला इंसान कभी भूखा नहीं सोता है.

उन दिनों मुंबई की सूरत आज जैसी नहीं थी. न तो भीड़ थी और न जमीनों की कीमत आसमान छू रही थी. उस समय वहां आदमी को मामूली किराए पर दुकान और घर मिल जाते थे.

राजकुमार चौरसिया ने 2-4 दिन इधरउधर भटकने के बाद घाटकोपर नारायणनगर में अपना पुश्तैनी काम करने के लिए एक खोखा लगा लिया, जो धीरेधीरे एक पान की दुकान में बदल गया था.

कुछ ही दिनों में उस की दुकान चल निकली और उस से अच्छी कमाई होने लगी. जिस से उस ने अपने रहने के लिए दुकान के पास ही अपना एक घर ले लिया. इस के अलावा वह अपनी कमाई से घरपरिवार की भी मदद करने लगा था, जिस से घर की आर्थिक स्थिति भी पटरी पर आने लगी थी.

इस के बाद राजकुमार की शादी भी हो गई. शादी के थोड़े दिनों बाद वह अपनी पत्नी को भी मुंबई बुला लाया. समयसमय पर वह अपने गांव जाता रहता था, जिस से गांव के लोगों से उस का संपर्क बना रहा.

समय अपनी गति से बीतता गया और राजकुमार 3 बच्चों का पिता बन गया. 20 वर्षीय मीनाक्षी राजकुमार की सब से छोटी और लाडली बेटी थी. उस से बड़े उस के 2 बेटे थे. मीनाक्षी पढ़ाईलिखाई में काफी होशियार थी. वह जवान हुई तो राजकुमार को उस की शादी की चिंता हुई. वह बेटी के योग्य वर की तलाश में लग गया.

जहां एक तरफ राजकुमार मीनाक्षी के लिए वर की तलाश में था, वहीं मीनाक्षी ने अपने लिए बृजेश चौरसिया को चुन लिया था. 27 वर्षीय बृजेश चौरसिया उस की जाति बिरादरी का था. वह भी प्रयागराज के गांव नुमाईडाही का रहने वाला था.

सन 2016 में जब बृजेश चौरसिया अपना गांव छोड़ कर महानगर मुंबई आया था तो राजकुमार चौरसिया ने उसे अपने यहां सहारा दे कर उस की मदद की थी. उस ने उसे अपनी दुकान पर कुछ दिनों तक काम पर लगाया. राजकुमार और परिवार वाले उसे अपने घर का सदस्य मानते थे. मीनाक्षी कभीकभी दुकान पर बैठे बृजेश के लिए खाना देने जाती थी.

इसी बीच दोनों एकदूसरे से खुल कर बातें करते और हंसतेहंसाते थे. इस हंसनेहंसाने में दोनों में कब प्यार हो गया, इस बात का उन्हें पता ही नहीं चला. दोनों जब तक एकदूसरे से बात नहीं कर लेते थे, उन्हें चैन नहीं आता था.

इस के पहले कि दोनों के संबंधों की भनक राजकुमार चौरसिया और उस के परिवार के कानों में पहुंचती, बृजेश चौरसिया ने राजकुमार की पान की दुकान पर बैठना छोड़ दिया और उसी इलाके में एक दुकान किराए पर ले कर काम शुरू कर दिया.

एक तरफ जहां मीनाक्षी और बृजेश का प्यार मजबूत हो रहा था, वहीं दूसरी ओर राजकुमार जब कभी बृजेश से मिलता था तो बृजेश से मीनाक्षी के लिए किसी योग्य लड़के की तलाश करने को कहता था. बृजेश भी राजकुमार का मन रखने के लिए उसे हां बोल दिया करता था.

बृजेश और मीनाक्षी ने मिलना बंद नहीं किया. वे समय निकाल कर कहीं न कहीं मुलाकात कर ही लेते थे. एक दिन जब उन के संबंधों की जानकारी राजकुमार को हुई तो उस के पैरों तले से जमीन सरक गई थी.

हुआ यह कि राजकुमार ने जब मीनाक्षी की शादी के लिए मुंबई के विरार में एक लड़का फाइनल किया तो मीनाक्षी ने उस लड़के से शादी करने से मना कर दिया. मीनाक्षी ने घर वालों से साफ कह दिया कि वह शादी केवल बृजेश से ही करेगी.

तब राजकुमार ने मीनाक्षी को आडे़हाथों लिया था. उसे मारापीटा और धमकाते हुए कहा कि यह कभी नहीं हो सकता क्योंकि वह उस के ही गांव और उसी की जाति का है. उस ने इस मामले में बृजेश को भी काफी धमकाया.

बीबी का दलाल : क्या थी शबनम की मजबूरी – भाग 2

इस तरह शबनम देहव्यापार के धंधे में आ गई और वाकई देखते ही देखते उन की गरीबी दूर होने लगी. शबनम पर पैसा लुटाने वालों की भीड़ बढ़ने लगी तो साजिद के दिमाग में बिजली सी कौंधी कि क्यों न यह कारोबार खुद के दम पर चलाया जाए. इस खयाल के पीछे वजह यह थी कि अभी मोटा कमीशन आंटी की जेब में चला जाता था, जिसे देख साजिद को लगता था कि यह पैसे भी उस के हो सकते हैं बशर्ते वह स्वतंत्र रूप से बीवी का दलाल बन कर यह धंधा शुरू कर दे.

इस इच्छा को अमल में लाने उस ने भोपाल के देहव्यापार के दलालों से संपर्क बढ़ाना शुरू कर दिया. मेहनत रंग लाई और कुछ दिनों बाद ही साजिद ने मकान बदल लिया. आंटी ने इस पर कोई खास ऐतराज नहीं जताया.

तजुर्बेकार होने के कारण वे इस धंधे के बुनियादी उसूल समझती थीं कि इस कारोबार में सप्लाई कम है और डिमांड ज्यादा है और वे शबनम से जितना ज्यादा कमा सकती थी उतना कमा चुकी थी.

दलालों से मिलने पर साजिद की हिम्मत और बढ़ी तो जल्द ही उस ने ज्यादा पैसे कमाने की गरज से जरूरत की मारी दूसरी लड़कियों से भी धंधा करवाना शुरू कर दिया. इस तरह उस की आमदनी बढ़ने लगी, क्योंकि अब उसे भी मोटा कमीशन मिलने लगा था और शबनम की कमाई तो सौ टका उसी की होती थी. दूसरी लड़कियों के आ जाने से शबनम अब खास ग्राहकों को ही खुश करती थी जो भारीभरकम पैसे देते थे.

2 साल में ही साजिद और शबनम की गरीबी दूर हो गई थी. इस दौरान उन्होंने खासा पैसा बना लिया था. साजिद चाहता तो इस पैसे से अपना कारोबार शुरू कर सकता था, लेकिन लालच बुरी बला वाली कहावत बेवजह नहीं गढ़ी गई है, जिस के चलते आदमी की अक्ल और समझ पर परदा पड़ जाता है. यही साजिद के साथ हो रहा था.

साजिद अब तक भोपाल के ही नहीं, बल्कि देश भर के दलालों के नेटवर्क से जुड़ चुका था. देहव्यापार का धंधा भी कितनी तरक्की कर रहा है, यह भी इसी दौरान उसे समझ आया था कि इस में कालगर्ल्स आजकल एक जगह टिक कर धंधा नहीं करतीं, बल्कि शहरशहर जा कर सर्विस देती हैं. इस में उन्हें पैसा भी ज्यादा मिलता है और पुलिस का खतरा भी कम होता है.

दुनिया का सब से बड़ा यह कारोबार हाइवे के टूटेफूटे ढाबों से ले कर फाइवस्टार होटल्स तक में चलता है. यह बात भी साजिद ने शिद्दत से देखी और समझी थी लेकिन होटलों के खतरों से भी वह नावाकिफ नहीं था. इसलिए उस ने और पैसा कमाने की गरज से दलाल के मार्फत भोपाल के एयरपोर्ट रोड पर बनी इंद्रविहार कालोनी में 11 हजार रुपए महीने का एक आलीशान मकान किराए पर ले लिया था.

लेकिन पैसों के नशे में चूर साजिद खुद को होशियार समझ रहा था. वह यह नहीं सोच पा रहा था कि उस के नाम और काम के चर्चे पुलिस के कानों में पड़ चुके हैं और पुलिस मौके का इंतजार कर रही है, जो उसे आखिरकार बीती 28 जनवरी को मिल ही गया.

एयरपोर्ट कालोनी लालघाटी स्थित इंद्रविहार कालोनी का मकान नंबर सी-106 वह मकान था, जो साजिद ने 15 जनवरी के आसपास किराए पर लिया था. इस मकान की अंदरूनी सजावट उस ने दिल से की थी. साजिद जानता था कि जो कस्टमर एक बार के 10-15 हजार रुपए और एक रात के 25-30 हजार रुपए तक देने की हैसियत रखते हैं, उन्हें तमाम चीजें लग्जरी चाहिए होती हैं.

अहतियात बरतते वह ठिकाने जरूर बदलता रहता था, लेकिन पुलिस वाले सैक्स रैकेट चलाने वालों की इस तरह की चालबाजियों को उन से ज्यादा जानतेसमझते हैं.

भोपाल क्राइम ब्रांच के एएसपी निश्चल झारिया कई दिनों से साजिद बंगाली नाम के इस दलाल पर मुखबिरों के जरिए नजर रखे हुए थे. लेकिन मौका उन्हें 28 जनवरी को तब मिला, जब एक भरोसेमंद मुखबिर ने उन्हें यह खबर दी कि इंद्रविहार कालोनी के मकान नंबर सी-106 में देहव्यापार हो रहा है और इस में कुछ विदेशी लड़कियां भी सर्विस दे रही हैं.

निश्चल झारिया ने इस गिरोह को दबोचने की कमान और जिम्मेदारी डीएसपी क्राइम सलीम खान और टीआई आलोक श्रीवास्तव को सौंप दी. इन दोनों ने विदेशी चिडि़यों और देसी बहेलिए को रंगेहाथों पकड़ने की योजना बना कर एक सिपाही को ग्राहक बना कर भेजा.

ठीक इस के पहले रामकिशोर मीणा मोबाइल पर साजिद बंगाली से बात कर रहे थे. रामकिशोर सतना के स्टेट बैंक औफ इंडिया की ब्रांच में सहायक मैनेजर हैं, जो भोपाल किसी काम से आए थे. शौकीन और रंगीनमिजाज रामकिशोर को साजिद का मोबाइल नंबर उन के एक दोस्त ने दिया था.

व्यावसायिक इलाके के एम.पी. नगर थाने के सामने भोपाल का सब से बड़ा मौल डीबी मौल है. यहां से रामकिशोर ने कड़ाके की ठंड में ‘गरमी’ पाने की मंशा से साजिद को फोन किया तो उन्हें निराशा हाथ नहीं लगी.

जब साजिद आश्वस्त हो गया कि रामकिशोर को उन के नियमित और विश्वसनीय ग्राहक ने भेजा है तो उस ने बातचीत के तुरंत बाद वाट्सऐप पर उन्हें 4 युवतियों की अर्धनग्न तस्वीरें भेज दीं. इन में से एक तसवीर रिया नाम की विदेशी गोरी चिकनी लड़की की भी थी, जिस का फिगर 36-28-36 बताया गया था. देसी तो कई बार आजमा चुके, क्यों न इस बार विदेशी लड़की ट्राई की जाए, यह सोचते हुए उन्होंने साजिद से रिया का रेट पूछा तो जवाब मिला एक बार के 10 हजार रुपए और लड़की हर तरह की सर्विस देगी.