बेटे के हत्यारों के लिए मां बनी रणचंडी

यह कहानी आंध्र प्रदेश की है. आंध्रप्रदेश के मध्य में आता है पल्नाडु जिला. तेलुगु इतिहास में सतवाहन राजाओं के साम्राज्य के पतन के समय पल्लव वंश के राजा ने यहां कृष्णा नदी की घाटी में स्वतंत्र राज्य की स्थापना की थी, इसलिए इस क्षेत्र को पल्लवनाडु के रूप में जाना जाता है, जो आज बिगड़तेबिगड़ते पल्नाडु हो गया है. इस जिले का मुख्यालय नरसारावपेट है.

नरसारावपेट शहर की एसआरकेटी कालोनी में मध्यमवर्गीय लोग रहते हैं. 40 वर्षीया जान बी पठान भी इसी कालोनी में रहती थी. मेहनत मजदूरी करने वाली जान बी का गठा शरीर होने की वजह से वह 30 साल की ही लगती थी. जान बी के पति का नाम शब्बीर था. करीब 15 साल पहले एक दुर्घटना में उस की मौत हो गई थी.

पति की मौत के बाद हिम्मत हारने के बजाय जान बी ने मेहनत कर के अपने 2 बेटों को अच्छी तरह पालापोसा. 17 साल के बड़े बेटे का नाम सुभान तो 16 साल के छोटे बेटे का नाम इलियास था. ये दोनों भी अपनी जिम्मेदारी समझते हुए मां के काम में मदद करने लगे थे.

अधेड़ उम्र का प्यार

साल 2020 में इसी कालोनी में 36 साल का शेख बाजी रहने आया. दिखने में फिल्मी हीरो जैसा सुंदर शेख बाजी टपोरी था और इस इलाके में उस ने एक दबंग के रूप में अपनी छवि बना रखी थी. अकसर छोटेमोटे झगड़ों में उस का नाम आता रहता था.

शेख बाजी शादीशुदा था. उस के परिवार में पत्नी मोबीना के अलावा एक बेटी और 2 बेटे थे. रंगीनमिजाज इस दबंग की नजर जान बी पर पड़ी तो जम कर रह गई. मदद करने के बहाने उस ने जान बी के घर में प्रवेश किया तो जान बी को प्रभावित करने के लिए छोटीमोटी आर्थिक मदद भी करने लगा. विधवा जान बी ने शुरूशुरू में तो उसे कोई खास तवज्जो नहीं दी, पर शेख बाजी ने धैर्यपूर्वक दाना डालना चालू रखा.

करीब 6 महीने में उस की मेहनत रंग लाई और आखिर जान बी को भी उस से प्यार हो गया तो उस ने उसे खुद को समर्पित कर दिया.

इस तरह की बातें छिपी तो रहती नहीं. फिर जान बी का बड़ा बेटा होशियार था और दुनियादारी समझने लगा था. उसे अपनी मां के इस प्रेम संबंधों की जानकारी हो गई. पर वह अपनी मां को क्या कह सकता था? पिता की मौत के बाद मेहनत मजदूरी कर के मां ने ही दोनों बेटों को पालापोसा था. ऐसे में मां से कुछ कहने की उन की हिम्मत नहीं थी.

पर कालोनी में इन के दोस्त थे. कभी वे इस बात की चर्चा कर के सुभान की हंसी उड़ाते तो गुस्से से उस के दिमाग की नसें फूलने लगतीं और खुली मुट्ठी कस जाती. दोस्त मां के बारे में उल्टीसीधी बातें कह कर मजाक उड़ाते तो सुभान को इस तरह तकलीफ होती जैसे उस के कानों में कोई गरम सीसा डाल रहा हो.

सुभान ने धमकाया मां के प्रेमी को

दिल में लगी आग जब बेकाबू होने लगी तो सुभान ने जबरदस्त हिम्मत की. बीच बाजार में जरा भी डरे और शरम किए बगैर उस ने बाजी शेख का कालर पकड़ कर धमकाते हुए कहा, “अब फिर कभी मेरे घर में कदम रखा तो ठीक नहीं होगा. यह जो मैं कह रहा हूं, इसे हलके में मत लेना. अगर अब तुम मेरे घर आए तो अपने पैरों से चल कर नहीं जा पाओगे.”

शेख बाजी सन्न रह गया. 17 साल के लडक़े की हिम्मत देख कर वह सहम गया. कुछ बोले बगैर वह वहां से चला गया. घर जा कर उस ने जब सुभान की धमकी पर विचार किया तो उसे लगा कि अगर जान बी से संबंध रखना है तो इस लडक़े को रास्ते से हटाना होगा. फिर उस ने सुभान को निपटाने का उपाय भी सोच लिया.

शेख बाजी ने अपने जिगरी दोस्त अल्लाह कासिम से बात की. इस के बाद दोनों ने बैठ कर योजना बनाई. इस के बाद 8 अगस्त, 2021 को शेख बाजी जान बी के गेट पर आया और सुभान को बाहर बुलाया.

सुभान बाहर आया तो बाजी ने कहा, “तुम्हारे लिए एक काम ढूंढा है. दूध की एक डेयरी में तुम्हारे लिए नौकरी की बात की है. तुम अभी मेरे साथ चलो.”

सुभान उस के साथ चल पड़ा. दोनों डेयरी के पास पहुंचे तो अल्लाह कासिम वहां एक मिल्क वैन के पास खड़ा था. उस समय वहां आसपास कोई नहीं था. कासिम ने सुभान को पकड़ लिया तो शेख बाजी ने छुरी से सुभान का गला रेत दिया. जब उन्हें विश्वास हो गया कि सुभान मर गया है तो उन्होंने लाश को उठा कर उसी मिल्क वैन में डाल दी.

रात तक सुभान घर नहीं आया तो जान बी छोटे बेटे इलियास को ले कर उसे खोजने निकली. उसे पता था कि शेख बाजी उसे अपने साथ ले गया था, इसलिए सब से पहले वह उस के घर गई. शेख बाजी ने कहा, “वह तो 15 मिनट बाद ही हमारे पास से चला गया था.”

“हमारे यानी?” जान बी ने तुरंत पूछा, “तुम्हारे साथ और कौन था?”

अब तो बाजी के मुंह से निकल गया था, इसलिए उसे सच बताना पड़ा, “अल्लाह कासिम हमारे साथ था.”

हत्यारों को सजा देने की खाई कसम

मांबेटे निराश हो कर घर लौट आए. अगले दिन सुबह मिल्क वैन से सुभान की लाश मिली तो पूरे इलाके में सनसनी फैल गई. पोस्टमार्टम करा कर पुलिस ने सुभान की लाश जान बी को सौंप दी.

सुभान के दोस्तों ने जान बी को बताया कि सुभान ने बाजी को धमकी दी थी, इसलिए यह काम उसी ने किया होगा. जान बी ने शेख बाजी और अल्लाह कासिम के खिलाफ बेटे की हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया. पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार किया. पर दोनों ने न तो अपना अपराध स्वीकार किया और न ही वह छुरी बरामद कराई, जिस से सुभान की हत्या की थी. पुलिस को कोई चश्मदीद गवाह भी नहीं मिला था. फिर भी पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

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जान बी पर तो दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था. 17 साल के बेटे को खोने का गम उसे साल रहा था. पर उस की रगों में पठानी खून बहता था. सुभान के जनाजे पर सिर रख कर उस ने बिलखते हुए सभी के बीच प्रतिज्ञा ली, “मैं पठान की बेटी हूं. जिन लोगों ने मेरे बेटे को मारा है, उन लोगों को मार कर ही मुझे चैन मिलेगा.”

जान बी का छोटा भाई हुसैन अब बहन के घर रहने आ गया था. 8 अगस्त को सुभान की हत्या हुई थी. 10 अगस्त को पुलिस ने बाजी शेख और अल्लाह कासिम को गिरफ्तार किया था. नवंबर के पहले सप्ताह में दोनों जमानत पर छूट कर बाहर आ गए.

शेख बाजी ने जान बी को प्यार किया था. इस बीच अनुभव के आधार पर उस ने जान बी की आक्रामकता को भांप लिया था. उस के द्वारा की गई प्रतिज्ञा भी जगजाहिर थी. इसलिए शेख बाजी घबरा गया था. उस ने पल्नाडु शहर छोड़ दिया और वहां से 50 किलोमीटर दूर चिल्कालुरीपेट गांव में रहने चला गया. अल्लाह कासिम को जान बी की आक्रामकता का पता नहीं था, इसलिए वह बिंदास पल्नाडु में घूमता रहा.

जान बी ने एक आरोपी को मारा बीच बाजार में

जान बी के जीवन का अब एक ही उद्देश्य था, बेटे को मारने वाले शेख बाजी और अल्लाह कासिम को खत्म करना. बहन की मदद के लिए उस का छोटा भाई हुसैन भी तैयार था. बड़े भाई सुभान की हत्या का बदला लेने के लिए जूनून छोटे भाई इलियास पर भी सवार था.

20 दिसंबर, 2021 की शाम इलियास ने अल्लाह कासिम को देखा. सिनेमा थिएटर के जंक्शन के पास एक दुकान के बरामदे में वह बैठा था. उसे देख कर ही लग रहा था कि उस ने खूब शराब पी रखी है. इलियास भागते हुए घर गया और यह बात उस ने मां और मामा को बताई. मटन काटने का छुरा दुपट्टे में छिपा कर जान बी घर से निकली. उस के पीछेपीछे हुसैन और इलियास भी चल पड़े.

थिएटर जंक्शन पर भीड़ की परवाह किए बगैर तीनों ने दुकान के बरामदे में बैठे अल्लाह कासिम को घेर लिया. जान बी की आंखों में उतरा खून देख कर वह घबराया, पर भागने का कोई रास्ता नहीं था. एक आदमी को 3 लोगों ने घेर रखा है, यह देख कर लोगों की भीड़ इकट्ठा होने लगी.

जान बी ने हुसैन और इलियास से कहा, “तुम दोनों इस के हाथ पैर पकड़ो.”

जान बी का इतना कहना था कि हुसैन और इलियास ने अल्लाह कासिम के हाथ पैर पकड़ कर दबोच लिया. जान बी ने दुपट्टे में लपेटा छुरा निकाला. उस की आंखों के सामने बेटे सुभान की लाश का दृश्य था. उस ने दांत भींच कर पूरी ताकत से अल्लाह कासिम के गले में छुरा घुसेड़ दिया.

यह दृश्य देख कर वहां खड़े लोग स्तब्ध रह गए. इस के बाद जान बी ने खचाखच लगातार 4 वार किए. फिर तो अल्लाह कासिम का खेल खत्म हो गया. जान बी ने उस की लाश पर थूक कर संतोष की सांस ली.

इस बीच किसी ने पुलिस को फोन कर दिया था. जान बी वहां से जाती, उस के पहले ही पुलिस आ गई. हंसते हुए जान बी ने खुद को पुलिस के हवाले करते हुए कहा, “मैं ने अपने बेटे के हत्यारे को खत्म कर दिया. अब आप को मुझे जहां ले जाना हो, ले चलिए.”

थाने में भी जान बी ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था. पुलिस ने इलियास और हुसैन को भी गिरफ्तार कर लिया था. इलियास नाबालिग था, इसलिए उसे बाल सुधार गृह भेज दिया गया. बाकी जान बी और हुसैन को जेल भेज दिया था.

जान बी ने प्रेमी को दी प्यार की डोज

दिसंबर, 2021 को जान बी ने अल्लाह कासिम का कत्ल किया था. अप्रैल, 2022 को वह और हुसैन जमानत पर बाहर आ गए. उस ने इलियास को भी छुड़ा लिया था. अभी उस की प्रतिज्ञा अधूरी थी. सुभान के हत्यारे शेख बाजी का पता कर के उसे और खत्म करना था.

हृदय में घुट रही दुश्मनी की तासीर जैसेजैसे पुरानी होती है, उतनी ही तीव्र होती जाती है. शेख बाजी की तलाश में जान बी दिनरात एक किए हुए थी. काफी मेहनत के बाद आखिर जनवरी, 2023 में शेख बाजी के बारे में उस ने पता कर ही लिया. उसे उस का फोन नंबर भी मिल गया था. जान बी को पता था कि उसे जाल में फंसाने के लिए त्रियाचरित्र ही काम आएगा.

जान बी ने अल्लाह कासिम की हत्या कर दी है, पल्नाडु से 50 किलोमीटर दूर चिल्कालुरीपेट गांव में रह रहे शेख बाजी ने सुना तो वह घबरा गया था.

जान बी ने उसे फोन किया, “मैं जानती हूं कि हमारे संबंध ऐसे थे कि तुम मेरे बेटे का अहित कभी नहीं कर सकते थे. सुभान की हत्या करने वाले अल्लाह कासिम को मैं ने खत्म कर दिया है. तुम्हारे लिए तो मेरे दिल में अभी भी पहले वाला ही प्यार है. उस समय भी तुम्हारे इश्क में पागल थी और अभी भी वही हाल है.”

इसी के साथ मीठी हंसी हंसते हुए उस ने कहा, “जब इच्छा हो, मुझे फोन कर के नरसारावपेट आ जाना. जब तुम्हें आना होगा, इलियास और हुसैन को पैसे दे कर पिक्चर देखने भेज दूंगी.”

जान बी के साथ एकांत पाने के चक्कर में शेख बाजी उस की मीठीमीठी बातों में फंस गया. उसे लगा कि जान बी अभी भी उस के प्यार में पागल है. वह नरसारावपेट आया तो हुसैन और इलियास घर में ही थे. मुसकराते हुए जान बी ने उसे चायनाश्ता कराया. इसी तरह शेख बाजी 4 बार नरसारावपेट आया. जान बी को पता था कि शेख बाजी खतरनाक गुंडा है. इस की हत्या करना अल्लाह कासिम की हत्या करने जैसा आसान नहीं है.

प्रेमी का गला रेत कर मिली शांति

21 जून, 2023 को फोन कर के जान बी ने शेख बाजी को निमंत्रण दिया कि आज उस के भाई हुसैन का जन्मदिन है. इसलिए शाम को वह जरूर आए. शेख बाजी ने खुशीखुशी आने के लिए हां कर दी.

शहर से थोड़ी दूर एक सुंदर स्थान पर आयोजित जन्मदिन की पार्टी में जान बी, शेख बाजी, हुसैन और इलियास के अलावा हुसैन के 2 दोस्त गोपीकृष्ण और हरीश भी थे. हुसैन ने बोतल खोली और बाजी को जम कर शराब पिलाई. शराब के साथ चिकन के भी तरहतरह के आइटम खाने के लिए थे. पेट भर चिकन खाने और जम कर शराब पीने के बाद शेख बाजी विरोध करने लायक नहीं रहा था.

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इलियास और हुसैन ने उस के हाथपैर पकड़ लिए तो मटन काटने वाला छुरा ले कर जान बी पूरी आक्रामकता से उस पर टूट पड़ी. सुभान की गला कटी लाश उस की आंखों के सामने नाच रही थी. रणचंडी बनी जान बी लगातार शेख बाजी के गले पर छुरे से वार करती रही.

शेख बाजी खत्म हो गया, फिर भी जुनून में पागल जान बी के हाथ रुक नहीं रहे थे. तब हुसैन ने उस का हाथ पकड़ कर खींचते हुए कहा, “बाजी, यह खत्म हो चुका है.”

वे साथ में एक डिब्बे में पैट्रोल भी ले कर आए थे. शेख बाजी की लाश पर पैट्रोल डाल कर उसे जला दिया. पैट्रोल कम था, इसलिए लाश आधी ही जली. अधजली लाश को गड्ढे में धकेल कर जान बी सीधे थाने पहुंची.

उस ने एसआई बालांगी रेड्डी और सर्किल इंसपेक्टर भक्तवत्सला के सामने अपना अपराध स्वीकार करते हुए कहा कि उस ने अपने बेटे सुभान के हत्यारे शेख बाजी की हत्या कर दी है.

पुलिस ने लाश बरामद कर के पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी. पुलिस ने 22 जून, 2023 को जान बी, इलियास, हुसैन, गोपीकृष्ण और हरीश को गिरफ्तार किया. पूछताछ के बाद पुलिस ने छुरा, पैट्रोल वाला डिब्बा भी बरामद कर लिया था.

इस के बाद सभी को अदालत में पेश किया, जहां से इन्हें जेल भेज दिया गया. जान बी को सजा की चिंता बिलकुल नहीं है. क्योंकि जेल जाते समय बेटे की हत्या का बदला लेने का संतोष उस के चेहरे पर साफ झलक रहा था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में इलियास परिवर्तित नाम है.

शादी के नाम पर ऐसे होती है ठगी

मासूम की लाश पर लिखी सपनों की इबारत – भाग 4

जब रुद्राक्ष रोते हुए अपने घर जाने की जिद करने लगा तो अंकुर ने उसे क्लोरोफार्म युक्त रुमाल सुंघा कर बेहोश कर दिया. रुद्राक्ष के बेहोश होने पर अंकुर ने पुनीत हांडा के घर फोन कर के रुद्राक्ष के अपहरण करने की बात कही और 2 करोड़ रुपए की फिरौती मांगी. पुनीत ने अपने पास इतनी बड़ी रकम नहीं होने की बात कही तो उस ने कहा कि सुबह तक जितनी रकम का इंतजाम हो सके, कर लेना.

इस के बाद अंकुर बेहोश रुद्राक्ष को बारां रोड स्थित महालक्ष्मीपुरम के अपने अपार्टमेंट में ले गया. तब तक रुद्राक्ष को धीरेधीरे होश आने लगा था. अंकुर ने उसे फिर क्लोरोफार्म सुंघा दिया और हाथपैर बांध कर उसे अपार्टमेंट में लिटा दिया. इस के बाद वह ताला लगा कर अपने घर गया और खाना खाया.

दशहरा हालांकि गुजर चुका था, लेकिन कोटा में 10 अक्टूबर तक के लिए दशहरा मेला लगा था. उस रात यानी 9 अक्तूबर को मेले में विजयश्री रंगमंच पर भोजपुरी नाइट का आयोजन किया गया था, जिस में भोजपुरी गायिका रुचि सिंह और राकेश मिश्रा के गीतों की प्रस्तुति होनी थी. अंकुर पत्नी के साथ दूसरी कार से दशहरा मेला में भोजपुरी प्रोग्राम देखने चला गया.

जब वह दशहरा मेला देखने गया, तब तक पुलिस को रुद्राक्ष के अपहरण की सूचना मिल चुकी थी और पुलिस ने नाकेबंदी भी शुरू कर दी थी. इस से अंकुर को खतरा महसूस होने लगा. वह घर वापस पहुंचा और सब से पहले अपनी माइक्रा निशान कार के शीशों पर लगी काली फिल्म हटाई. क्योंकि इस कार से वह पकड़ में आ सकता था.

उस वक्त उस का दिमाग बड़ी तेजी से चल रहा था. आगे की योजना के लिए उस ने अपने एक भाई की ईको स्पोर्ट्स कार ली और बारां रोड स्थित अपने अपार्टमेंट पहुंच कर बेहोश रुद्राक्ष को उस कार में डाल लिया. तब तक आधी रात हो चुकी थी. रुद्राक्ष उस समय तक बेहोश था, लेकिन उस की सांसें चल रही थीं. अंकुर फिरौती की बात भूल चुका था. अब उसे खुद के बचाव की सूझ रही थी. इसलिए रुद्राक्ष को नहर में फेंक दिया.

उस वक्त चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था. एकबार छपाक की आवाज हुई और सब कुछ शांत हो गया. कहां क्या हुआ, किसी को पता तक नहीं चला. घर वापस आ कर अंकुर चैन की नींद सो गया.

उसी रात पुलिस उस के फ्लैट पर उस की कार का सत्यापन करने आई, लेकिन उस ने एक पुलिस अधिकारी से फोन करवा कर पेपर अगले दिन दिखाने की बात कही और पल्ला झाड़ लिया.

कोटा में रुद्राक्ष के अपहरण को ले कर भड़के लोगों के गुस्से और पुलिस की हलचल देख कर अंकुर के लिए खतरा बढ़ता रहा था. इसलिए वह 10 अक्टूबर की रात कोटा से दिल्ली चला गया. दिल्ली से वह लखनऊ पहुंचा और 11 व 12 अक्टूबर को अपने भाई अनूप के पास रहा. इस दौरान उस ने अपने मोबाइल छोड़ दिए और दूसरी सिमों का इस्तेमाल करता रहा. कोटा में चल रही पुलिस की गतिविधियों की टोह लेने के लिए वह सोशल मीडिया का सहारा लेता था.

लखनऊ से वह 13 अक्टूबर की रात को वापस कोटा आ गया. कोटा आने पर उसे पता चला कि उस पर पुलिस का शिकंजा लगातार कसता जा रहा है. इसलिए वह 14 अक्टूबर को ही फिर कोटा से भाग खड़ा हुआ. पुलिस को उस के पास मौजूद मोबाइल नंबर का पता चल चुका था. इसी नंबर को ट्रेस करते हुए पुलिस उसे तलाश रही थी. अंकुर ने वह मोबाइल कोटा से पटना जाने वाली ट्रेन के टायलेट में रख दिया और खुद कोटा के रेलवे यार्ड में खड़ी एक ट्रेन में छिप गया, जबकि पुलिस उसे मोबाइल की लोकेशन वाली ट्रेन में तलाशती रही.

कुछ घंटों बाद अंकुर उसी ट्रेन से जिस में वह छिपा था, कोटा के डकनिया रेलवे स्टेशन पहुंचा और वहां पास के एक सैलून में सिर का मुंडन करवा कर रतलाम जाने वाली ट्रेन से निकल गया. उसी दिन देर रात कोटा पुलिस ने प्रेस कौन्फ्रैंस कर के रुद्राक्ष के कातिल अंकुर की पहचान कर लिए जाने की जानकारी प्रेस को दी और दावा किया कि अंकुर को जल्द पकड़ लिया जाएगा.

अंकुर कोटा से रतलाम, गुजरात, उड़ीसा व नागपुर सहित कई शहरों में होता हुआ अपने भाई अनूप के पास लखनऊ पहुंचा. इस बीच, पुलिस की डेढ़ दर्जन टीमें उसे देश भर में तलाश करती रहीं. दीपावली के दिन 23 अक्टूबर को वह कानपुर पहुंचा. कानपुर में वह भुवनेश्वर निवासी सुशांत राजगढि़या के नाम से होटल में रुका था. सुशांत का आईडी कार्ड उस ने ट्रेन में सफर के दौरान उड़ाया था. इसी होटल से वह पुलिस के हत्थे चढ़ा.

पुलिस ने दोनों भाइयों को मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर के पहले 10 दिन के रिमांड पर लिया. बाद में उन का दोबारा रिमांड लिया गया. कथा लिखे जाने तक पुलिस मामले की जांच कर रही थी. पुलिस को दोनों भाइयों के कई कारनामों का पता चला है.

दोनों के खिलाफ पुलिस ने काफी सुबूत जुटा लिए हैं. पुलिस इस मामले को फास्ट टै्रक कोर्ट में ले जाएगी, ताकि अपराधियों को जल्द से जल्द सजा मिल सके.

रुद्राक्ष का कातिल भले ही पकड़ा गया, लेकिन पुनीत व श्रद्धा हांडा को उस ने ऐसा गम दिया है, जो जिंदगी भर नहीं भुलाया जा सकता. वे कहते हैं कि मासूम रुद्राक्ष ने अंकुर का क्या बिगाड़ा था, जो उस ने हमारा खुशहाल जीवन उजाड़ दिया. उन का कहना है कि हत्यारे को जिस दिन फांसी होगी, उसी दिन वे दिवाली मनाएंगे.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मासूम की लाश पर लिखी सपनों की इबारत – भाग 3

रुद्राक्ष की हत्या हुए 15 दिन से ज्यादा बीत चुके थे. दीपावली का त्योहार भी निकल गया था. एडीजी (अपराध) अजीत सिंह शेखावत इस मामले को ले कर चिंतित भी थे और बेचैन भी. वह ठीक से सो तक नहीं पा रहे थे. उन्हें जयपुर से कोटा आए कई दिन हो गए थे. पुलिस महानिदेशक ओमेंद्र भारद्वाज उन से रोजाना रिपोर्ट ले रहे थे. मुख्यमंत्री कार्यालय के अधिकारी भी लगातार उन से संपर्क बनाए हुए थे. पुलिस की विफलता और लोगों में बढ़ता जनाक्रोश मीडिया में सुर्खियां बना हुआ था.

शेखावत की परेशानी वाजिब थी. मामला एक मासूम के अपहरण और हत्या का था, जिस में अपराधी अंकुर पाडि़या की हकीकत भी पता चल चुकी थी और पुलिस ने उस के खिलाफ सुबूत भी जुटा लिए थे. लेकिन अंकुर पुलिस को चकमा पर चकमा दे रहा था. पुलिस डालडाल रहती, तो वह पातपात चलता. पुलिस उस की चालों को समझ ही नहीं पा रही थी.

पुरानी कहावत है कि बकरे की मां आखिर कब तक खैर मनाएगी. इस मामले में भी यही हुआ. घटना के 18 दिनों बाद आखिर 27 अक्टूबर को अंकुर पुलिस के हत्थे चढ़ ही गया. उसे उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में एक होटल से गिरफ्तार कर लिया गया.

होटल में वह फर्जी नाम से रुका हुआ था. संयोग से अंकुर के भाई अनूप से की गई पूछताछ में उन के कारनामों और भविष्य की साजिशों का ऐसा घिनौना चेहरा सामने आया कि पुलिस भी हतप्रभ रह गई.

रुद्राक्ष का अपहरण कर के उस की हत्या करने वाला मुख्य आरोपी अंकुर इतना शातिर था कि वह आत्महत्या की झूठी कहानी गढ़ कर राजस्थान से बाहर ऐश की जिंदगी जीने के सपने देख रहा था. उस ने अपना हुलिया भी बदल लिया था. पहचान छिपाने के लिए उस ने सिर के बाल कटवा लिए थे और दाढ़ी बढ़ा ली थी.

पूछताछ में हुए खुलासे के बाद पुलिस ने अंकुर का लिखा एक सुसाइड नोट बरामद किया, जिस में उस ने लिखा था कि मुझे पैसों के लिए प्रताडि़त किया गया. इस के बाद कुछ लोगों ने गुमराह कर के मुझ से रुद्राक्ष के अपहरण और हत्या का अपराध करवाया. रुद्राक्ष को अगवा करने के बाद मैं ने उन्हें सौंप दिया था. मैं ने अपराध किया है, इसलिए अब मैं जिंदा नहीं रहना चाहता. मैं खुद को खत्म कर रहा हूं. पुलिस व मेरे परिवार को जब तक यह ‘सुसाइड नोट’ मिलेगा, तब तक मेरी लाश चंबल में कहीं दूर बह चुकी होगी.

हकीकत में अंकुर का आत्महत्या करने का कोई इरादा नहीं था. वह इस सुसाइड नोट के जरिए पुलिस और लोगों को गुमराह करना चाहता था. अंकुर का मानना था कि सुसाइड नोट के आधार पर पुलिस मान लेती कि उस की मौत हो चुकी है. इस के बाद वह अपने भाई अनूप की तरह किसी बड़े शहर में नाम बदल कर अपना बिजनेस शुरू करता.

अंकुर ने इस सुसाइड नोट में पुलिस व जनता को भावुक करने के लिए यह भी लिखा था कि वह अपने मातापिता व पत्नी से माफी मांगता है. उस ने जो काम किया, उस की वजह से मातापिता व उस की पत्नी को दुखी होना पड़ा, इस के लिए वह क्षमा चाहता है. अंकुर ने प्लास्टिक सर्जरी करवा कर अपना चेहरा बदलवाने का प्लान भी बना लिया था, ताकि जिंदगी भर वह किसी की पहचान में न आए.

उस का इरादा था कि मामला शांत हो जाने के बाद वह भारत से भाग कर फ्रांस में जा बसेगा और दूसरी शादी कर लेगा.

अंकुर जैसा ही शातिर उस का भाई अनूप था. अनूप के खिलाफ राजस्थान के विभिन्न पुलिस थानों में 39 केस दर्ज थे. इन में ज्यादातर मामले ठगी के थे, जिन में से कई मामलों में उसे सजा भी हो चुकी थी. वह जयपुर सेंट्रल जेल में बंद था. 18 नवंबर, 2009 को कोटा से पेशी पर लौटते समय अनूप पुलिस टीम को चकमा दे कर भाग गया था.

पुलिस हिरासत से भाग कर कई महीने इधरउधर रहने के बाद अनूप लखनऊ में बस गया था. उस ने उत्तर प्रदेश में फरजी ड्राइविंग लाइसेंस भी बनवा लिया था. फिलहाल वह लखनऊ स्थित गोमतीनगर के विराम खंड के एक मकान में नाम बदल कर रह रहा था. मकान मालिक व अड़ोसपड़ोस के लोगों को उस ने खुद को दिल्ली निवासी बता कर अपना नाम संतोष बताया था. जिस मकान में वह रहता था, उस का किराया 20 हजार रुपए महीने था.

लखनऊ में अनूप एक मोबाइल शौप पर मैनेजर की नौकरी करता था. उस के घर काम करने वाली नौकरानी रानी ने पुलिस को बताया कि अनूप की एक गर्लफ्रैंड है, दोनों की मुलाकात एक मौल में होम एप्लांसेस की दुकान में हुई थी. अनूप के ठाठबाठ व रईसी रहनसहन देख कर वह उस से इंप्रेस हो गई थी. अपनी गर्लफ्रैंड को वह महंगी गाडि़यों में घुमाता था. अनूप के घर पर आए दिन पार्टियां होती रहती थीं. व्हाट्स एप पर अनूप ने अपने प्रोफाइल स्टेटस पर खुद को किंगसाइज लाइफ शो कर रखा था.

पूछताछ में यह भी खुलासा हुआ कि अनूप पाडि़या लखनऊ में रहते हुए देह व्यापार के लिए रशियन लड़कियों की सप्लाई करता था. इस के लिए वह अपने ग्राहकों से 30 हजार से 50 हजार रुपए तक लेता था.

रशियन लड़कियां वह दिल्ली के एक दलाल के मार्फत लखनऊ बुलवाता था. दिल्ली से हवाई जहाज से लखनऊ आने के बाद ये लड़कियां अनूप के बताए ठिकाने पर चली जाती थीं. लड़कियों को सप्लाई करने के लिए वह हर बार अलग ड्रेस कोड तय करता था, ताकि एयरपोर्ट पर आने के बाद वह खुद या उस का एजेंट लड़की को आसानी से पहचान सके. रशियन लड़कियों के वीजा की व्यवस्था दिल्ली का दलाल करता था.

दोनों भाई ठगी करने में माहिर थे. अंकुर ने एक कोचिंग संस्थान में फेकल्टी के विभागाध्यक्ष रहे गोपाल चतुर्वेदी से जमीन के नाम पर 55 लाख रुपए ठग लिए थे. इस के लिए उस ने गोपाल से उदयपुर में पार्टनरशिप में 5 करोड़ रुपए की जमीन खरीदने की बात तय की थी. अंकुर ने गोपाल को वह जमीन दिखा भी दी थी. इतना ही नहीं, उस ने रजनीश जिंदल के नाम से एक फरजी इकरारनामा बनवा कर गोपाल से 55 लाख रुपए ले भी लिए थे.

बाद में जमीन मालिक से मिलवाने के लिए अंकुर गोपाल को दिल्ली ले गया और होटल ली-मेरेडियन में उन्हें रजनीश जिंदल के बजाय अपने भाई अनूप से मिलवा दिया. अनूप ने गोपाल चतुर्वेदी को अपना परिचय रजनीश जिंदल के रूप में दिया और उदयपुर की जमीन खुद की बताई. बाद में इस जमीन के फर्जीवाड़े की बात सामने आने पर गोपाल को दोनों ठग भाइयों की असलियत पता चली. इस संबंध में कोटा के बोरखेड़ा थाने में मुकदमा दर्ज है.

अंकुर ने पूछताछ में पुलिस को बताया कि महंगे शौक और सट्टेबाजी के कारण उस पर एक करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज हो गया था. कर्ज चुकाने के लिए ही उस ने रुद्राक्ष का अपहरण करने की योजना बनाई थी. इस के लिए वह दिल्ली के गफ्फार मार्केट से 8 नए मोबाइल सिम खरीद कर लाया था. इस के बाद उस ने क्लोरोफार्म का इंतजाम किया.

रुद्राक्ष का अपहरण करने के लिए उस ने पार्क की कई दिनों तक रैकी की थी. इस बीच उस ने रुद्राक्ष को बहकाफुसला कर उस से उस के परिवार के बारे में पूछ लिया था. चौकलेट के चक्कर में रुद्राक्ष उस से काफी घुलमिल गया था.

9 अक्टूबर की शाम को रुद्राक्ष हनुमान मंदिर पार्क में पहुंचा और वहां मौजूद बच्चों के साथ खेलने लगा. इसी दौरान अंकुर पाडि़या भी वहां पहुंच गया. थोड़ी देर बातचीत के बाद वह रुद्राक्ष को बड़ी चौकलेट दिलाने के बहाने पार्क से बाहर ले आया. पार्क के बाहर उस की माइक्रा निशान कार खड़ी थी. वह रुद्राक्ष को उसी में बैठा कर चल दिया. उस ने पहले उसे चौकलेट दिलाई, फिर थोड़ी देर कार से उसे इधरउधर घुमाता रहा.

षडयंत्र : पैसों की चाह में – भाग 3

अभियुक्त स्वर्ण सिंह और उस का साला कुलविंदर सिंह शुरू से जमीनजायदाद के फर्जी काम करते आ रहे थे. पर ज्यादा पढ़ेलिखे न होने की वजह से वे छोटीमोटी ठगी तक ही सीमित थे. लेकिन रोहित कुमार यानी अमित कुमार से मिलने के बाद उन के पर निकल आए थे. उसी के कहने पर वे किसी बड़े काम की तलाश में लग गए थे. इसी तलाश में अमरजीत सिंह पर उन की नजर जम गई थी.

इस पूरे खेल का मास्टरमाइंड अमित कुमार उर्फ विजय कुमार उर्फ रोहित कुमार था, जिस का असली नाम रोहित चोपड़ा था. वह लुधियाना के घुमार मंडी के सिविल लाइन के रहने वाले दर्शन चोपड़ा के तीन बेटों में सब से छोटा था. लगभग 7 साल पहले उस की शादी इंदू से हुई थी, जिस से उसे 5 साल की एक बेटी थी.

रोहित बचपन से ही अति महत्त्वाकांक्षी, शातिर दिमाग था. एलएलबी करने के बाद तो उस का दिमाग शैतानी करामातों का घर बन गया था. वह रातदिन अपराध करने और उस से बचने के उपाय सोचता रहता था. स्वर्ण सिंह से मिलने के बाद जब उसे अमरजीत सिंह की दौलत, जमीनजायदाद और पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में पता चला तो वह स्वर्ण सिंह के साथ मिल कर उन की प्रौपर्टी और रुपए हथियाने के मंसूबे बनाने लगा.

एक तरह से स्वर्ण सिंह रोहित चोपड़ा के लिए मुखबिर का काम करता था. रोहित को जब स्वर्ण से पता चला कि अमरजीत सिंह बेटों से ज्यादा वास्ता नहीं रखता तो उसे अपना काम आसान होता नजर आया. स्वर्ण सिंह ने उसे बताया था कि एक बेटा भारतीय सेना में है तो दूसरा जमीनों की देखभाल करता है.

इस के बाद रोहित कुमार ने अमरजीत सिंह का माल हथियाने की जो योजना बनाई, उस के अनुसार सब से पहले उन की ओर से डिप्टी कलेक्टर को एक पत्र लिखवाया गया. जिस में उस ने लिखवाया था कि ‘मेरे दोनों बेटे गुरदीप सिंह और गुरचरण सिंह मेरे कहने में नहीं हैं. वे मेरी जमीनजायदाद हड़पने के चक्कर में मेरी हत्या करना चाहते हैं.’

अमरजीत सिंह शराब पीने के आदी थे और अभियुक्तों पर पूरा विश्वास करते थे. यही वजह थी कि शराब पीने के बाद वह उन के कहने पर किसी भी कागज पर हस्ताक्षर कर देते थे. डिप्टी कलेक्टर के नाम पत्र लिखवाने के बाद उन्होंने अमरजीत सिंह की हत्या की योजना बना डाली थी. लेकिन समस्या यह थी कि अमरजीत सिंह के पास अपना लाइसेंसी हथियार था. जरा भी संदेह या चूक होने पर उन लोगों की जान जा सकती थी. इसलिए वे मौके की तलाश में रहने लगे.

मई के अंतिम सप्ताह में उन्हें मौका मिला. अमरजीत सिंह अपने किसी मिलने वाले की जमीन के झगड़े का फैसला कराने सिंधवा वेट, जगराओं गए हुए थे. घर में भी उन्होंने यही बताया था. रोहित कुमार ने सोचा कि अगर बाहर से ही अमरजीत सिंह को कहीं ले जा कर हत्या कर दी जाए तो किसी को उस पर संदेह नहीं होगा. उस ने स्वर्ण सिंह से सलाह कर के अमरजीत सिंह को फोन किया, ‘‘जमीन का एक बढि़या टुकड़ा बिक रहा है. अगर आप देखना चाहें तो मैं आप के पास आऊं.’’

लेकिन अमरजीत सिंह ने जाने से मना कर दिया. इस तरह रोहित कुमार और स्वर्ण सिंह की यह योजना फेल हो गई. वे एक बार फिर मौका ढूंढने लगे. इसी बीच उन्होंने अमरजीत को ढाई करोड़ रुपए में एक जमीन खरीदवा दी. इस की फर्जी रजिस्ट्री भी उन्होंने करा दी. इस में भी गवाह स्वर्ण सिंह था. पार्टी को पैसे देने के नाम पर उन्होंने उन से 50-50 लाख कर के 1 करोड़ रुपए भी ले लिए.

किसी भी जमीन की रजिस्ट्री करवाने के बाद उस का दाखिल खारिज कराना जरूरी होता है. उसी के बाद खरीदार निश्चिंत हो जाता है कि उस जमीन पर किसी तरह का विवाद नहीं है. अमरजीत सिंह द्वारा खरीदी गई जमीन के दाखिल खारिज का समय आया तो स्वर्ण सिंह और रोहित कुमार को चिंता हुई, क्योंकि उस जमीन के सारे कागजात फर्जी थे. जब जमीन ही नहीं थी तो कैसी रजिस्ट्री और कैसा दाखिल खारिज.

पोल खुलने के डर से रोहित कुमार और स्वर्ण सिंह परेशान थे. ऐसे में अमरजीत सिंह की हत्या करना और जरूरी हो गया था. क्योंकि सच्चाई का पता चलने पर अमरजीत सिंह उन्हें छोड़ने वाला नहीं था.

दाखिल खारिज के लिए 10-12 दिन बाकी रह गए तो वे अमरजीत सिंह को सस्ते में जमीन दिलाने की बात कह कर खरीदने के लिए उकसाने लगे. स्वर्ण सिंह और उस की पत्नी सुखमीत कौर ने अमरजीत सिंह को बताया कि उस के भाई कुलविंदर सिंह की पृथ्वीपुर में काफी जमीन है, जिसे वह बेचना चाहता है. उसे पैसों की सख्त जरूरत है, इसलिए वह कुछ सस्ते में दे देगा.

उसी जमीन के बारे में बातचीत करने के लिए 24 अगस्त की रात स्वर्ण सिंह अमरजीत सिंह के औफिस में ही रुक गया. देर रात तक वे शराब पीते रहे. स्वर्ण सिंह अमरजीत सिंह को अधिक शराब पिला कर पृथ्वीपुर चल कर जमीन देखने के लिए राजी करता रहा. जब अमरजीत सिंह चलने के लिए तैयार हो गए तो सुबह के लगभग साढ़े 5 बजे अपने घर थरीके जा कर वह अपनी सफेद रंग की इंडिका कार ले आया, जिस का नंबर पीबी 19 ई-2277 था. उस के साथ उस की पत्नी सुखमीत कौर भी थी.

स्वर्ण सिंह ने कार ब्रह्मकुमारी शांति सदन के मोड़ पर खड़ी कर दी और अमरजीत सिंह के औफिस जा कर बोला, ‘‘भाईजी चलो, गाड़ी आ गई है.’’

नशे में धुत अमरजीत सिंह सोचनेसमझने की स्थिति में नहीं थे. वह उठे और जा कर कार में बैठ गए. उसी समय गांव के कृपाल सिंह ने उन्हें इंडिका कार में स्वर्ण सिंह के जाते देख लिया था. अंबाला दिल्ली होते हुए वे पृथ्वीपुर पहुंचे. वहां स्वर्ण सिंह के भाई गुरचरण सिंह और साले कुलविंदर सिंह ने अमरजीत सिंह का स्वागत बोतल खोल कर किया.

शराब पीतेपीते ही शाम हो गई. अब तक अमरजीत सिंह खूब नशे में हो चुके थे. उन से उठा तक नहीं जा रहा था. उसी स्थिति में उन्हें वहीं कमरे में गिरा दिया और सब मिल कर पीटने लगे. लकड़ी का एक मोटा डंडा पड़ा था. स्वर्ण सिंह उसे उठा कर अमरजीत सिंह की गरदन और सिर पर वार करने लगा. उसी की मार से अमरजीत की गरदन टूट कर एक ओर लुढ़क गई और उस के प्राणपखेरू उड़ गए.

जब उन लोगों ने देखा कि अमरजीत का खेल खत्म हो गया है तो उन्होंने लाश को कार में डाला और उसे ठिकाने लगाने के लिए चल पड़े. रामगंगा नदी के पुल पर जा कर उन्होंने अमरजीत सिंह की लाश को नदी में फेंक दिया. इस के बाद गुरचरण और कुलविंदर पृथ्वीपुर लौट गए तो स्वर्ण सिंह पत्नी सुखमीत कौर के साथ लुधियाना आ गया.

पुलिस ने स्वर्ण सिंह, सुखमीत कौर, गुरचरण सिंह और कुलविंदर सिंह को तो जेल भेज दिया, लेकिन अमित कुमार उर्फ रोहित कुमार पुलिस के हाथ नहीं लगा था. 15 दिसंबर, 2013 को इस मामले की जांच क्राइम ब्रांच को सौंप दी गई थी. कथा लिखे जाने तक अमरजीत सिंह की लाश बरामद नहीं हो सकी थी.

प्यार का जूनून

शादी के नाम पर ऐसे होती है ठगी – भाग 4

अजय परेशान था कि ऐसा क्या काम करे कि उसे मोटी कमाई हो. तभी उस के दिमाग में उच्च परिवार की तलाकशुदा ऐसी महिलाओं को ठगने का आइडिया आया जो फिर से शादी करना चाहती हों. इस के लिए उस ने जीवनसाथी डौटकौम वेबसाइट पर रजिस्ट्रेशन करा कर अपनी आकर्षक प्रोफाइल बनाई.

प्रोफाइल में उस ने अपना नाम बदल कर राजीव यादव लिखा और अपनी जगह किसी दूसरे का फोटो लगा दिया. नोएडा के छलेरा गांव के रहने वाले युवक अमित चौहान को उस ने मोटी तनख्वाह पर नौकरी पर रख लिया था.

प्रभाव जमाने के लिए अजय ने खुद को आईपीएस अफसर और मिजोरम में डीआईजी के पद पर तैनात बताया. इस आकर्षक प्रोफाइल को देख कर ही अनुष्का उस के जाल में फंसी थी. जिस से उस ने साढ़े 24 लाख रुपए ठग लिए थे

पुलिस ने जालसाज अजय यादव उर्फ राजीव यादव और अमित चौहान को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश कर जेल तो भेज दिया. लेकिन इस के बाद भी अनुष्का की मुश्किलें कम नहीं हुई हैं. अब अदालत की काररवाई में उसे कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं.

अनुष्का की ही तरह शालिनी भी शादी के विज्ञापन की वेबसाइट के जरिए एक ऐसे व्यक्ति के चंगुल में फंसी कि उस युवक ने उस के 6 लाख रुपए बड़ी आसानी से ठग लिए.

दिल्ली के कृष्णानगर इलाके के रहने वाला वरुण बीए सेकेंड ईयर किए हुए है. उस ने दरजनों संस्थानों में जौब की, लेकिन कहीं भी टिक नहीं पाया. इसी दौरान उस ने टीवी पर एक क्राइम शो देखा. शो में दिखाया गया था कि एक शख्स मैट्रीमोनियल साइट्स पर एकाउंट बना कर किस तरह महिलाओं को ठगता था. उसी टीवी शो से प्रेरित हो कर वरुण पाल ने भी मैट्रीमोनियल साइट्स के जरिए ठगी करने की योजना बनाई.

योजना के तहत उस ने मैट्रीमोनियल की 3 बड़ी वेबसाइट्स पर अपने कई एकाउंट बनाए और फेसबुक में हैंडसम दिखने वाले लड़कों की तसवीरें लगा दीं. अपनी प्रोफाइल में उस ने खुद को माइक्रोसाफ्ट कंपनी का आईटी मैनेजर बताया. अपना प्रभाव जमाने के लिए वरुण ने अपनी फेसबुक में कुछ अच्छे बंगलों की तसवीरें भी अपलोड कर दीं. उन बंगलों को वह अपने बताता था. खुद को रसूख वाला प्रोजैक्ट करने के बाद कई महिलाएं उस के जाल में फंसीं.

महिलाओं को अपने जाल में फांसने के बाद वह उन से मुलाकात करता और किसी तरह उन के न्यूड फोटोग्राफ हासिल कर लेता था. इस के बाद वरुण का ठगी का खेल शुरू हो जाता था. वह बिजनैस में मोटा घाटा होने की बात कह कर उन से मोटी रकम ऐंठता. जब कोई महिला पैसे देने में आनाकानी करती तो वह न्यूड तसवीरों के जरिए उसे ब्लैकमेल करता.

शालिनी भी मैट्रीमोनियल साइट के जरिए वरुण पाल के जाल में फंस गई. वरुण ने शालिनी को शादी के जाल में फांस कर 6 लाख रुपए ठग लिए थे. शालिनी से जब वरुण ने और पैसों की डिमांड की तो शालिनी को अहसास हो गया कि उसे ठगा जा रहा है. उस ने और पैसे देने से मना कर दिया तो वरुण ने उसे धमकी दी कि यदि पैसे नहीं दिए तो वह उस के न्यूड फोटो इंटरनेट पर डाल देगा.

शालिनी अब समझ चुकी थी कि जिसे वह अपना जीवनसाथी चुनने जा रही थी, वह बहुत शातिर ठग है. उस ने उसे सबक सिखाने के लिए दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच में लिखित शिकायत कर दी.

आर्थिक अपराध शाखा के डीसीपी एस.डी. मिश्रा ने इस मामले में त्वरित काररवाई करते हुए एक पुलिस टीम बनाई. पुलिस टीम ने 8 अगस्त, 2014 को आरोपी वरुण पाल को गिरफ्तार कर लिया.

मैट्रीमोनियल साइटों पर आज भी तमाम फरजी एकाउंट एक्टिव हैं. जिन लोगों ने ऐसे एकाउंट बना रखे हैं, उन का मकसद भोलीभाली लड़कियों, महिलाओं को अपने जाल में फंसा कर उन का आर्थिक और शारीरिक शोषण करना होता है.

ऐसे विज्ञापनों के जरिए शादी के बंधन में बंधने वालों को पहले अच्छी तरह से छानबीन कर लेनी चाहिए कि उस ने अपने प्रोफाइल में जो कुछ दे रखा है, वह सही है या नहीं. यदि बिना जांच किए शादी का प्रपोजल स्वीकार कर लिया तो अनुष्का और शालिनी की तरह पछताना पड़ सकता है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. अनुष्का और शालिनी नाम परिवर्तित हैं.

मासूम की लाश पर लिखी सपनों की इबारत – भाग 2

रात बीत गई, लेकिन कोई भी फोन नहीं आया. न तो अपहरणकर्ता ने ही दोबारा फोन किया और न ही फोन पर रुद्राक्ष के मिलने की कोई खबर मिली.

पूरी रात आंसुओं में बीतने के बाद दूसरे दिन शुक्रवार का सूरज निकल आया. पुनीत और श्रद्धा को उम्मीद थी कि आज रुद्राक्ष का पता लग जाएगा. वे दुआ मांग रहे थे कि किसी भी तरह रुद्राक्ष सुरक्षित लौट आए.

रुद्राक्ष का पता लग भी गया, लेकिन पुनीत और श्रद्धा का सब कुछ लुट चुका था. उस दिन सुबहसुबह कोटा के पास तालेड़ा इलाके में एक नहर में बच्चे का शव पड़ा होने की सूचना मिली. पुलिस मौके पर पहुंची. पुनीत और श्रद्धा को भी बुला लिया गया. शव रुद्राक्ष का ही था. बेटे का शव देख कर श्रद्धा पछाड़ खा कर गिर पड़ीं. परिवार वालों ने उन्हें संभाला और घर ले गए. अपहर्ताओं ने मासूम रुद्राक्ष को मार कर नहर में फेंक दिया था.

रुद्राक्ष का शव नहर में मिलने की बात पूरे शहर में तेजी से फैली तो लोगों में आक्रोश फैल गया. मासूम रुद्राक्ष की मौत से पूरा शहर रो पड़ा. पुलिस ने जरूरी काररवाई के बाद शव घर वालों को सौंप दिया. दोपहर में गमगीन माहौल में रुद्राक्ष का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

अब यह मामला संगीन हो चुका था. मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के निर्देश पर जयपुर से भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी, कोटा के प्रभारी मंत्री यूनुस खान तथा अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (अपराध) अजीत सिंह कोटा पहुंच गए. उन्होंने पीडि़त परिवार से मिल कर सांत्वना दी और रुद्राक्ष के हत्यारों को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने का भरोसा दिलाया.

मासूम रुद्राक्ष की हत्या ने कोटा के नागरिकों को इतना आहत किया कि 11 अक्टूबर को पूरा शहर बंद रहा. चाय की गुमटी व पानसिगरेट तक की दुकानें नहीं खुलीं. वकीलों ने कामकाज बंद रखा. लोगों ने कैंडल मार्च निकाल कर रुद्राक्ष को श्रद्धांजलि दी.

रुद्राक्ष का शव मिलने के बाद अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक अजीत सिंह के निर्देशन में पुलिस दल ने नए सिरे से जांचपड़ताल शुरू कर दी. पुलिस की 10 से ज्यादा टीमें रुद्राक्ष के अपहरणकर्ताओं की जानकारी जुटाने लगी. सबूत मिलने लगे तो अपराध की अलगअलग कडि़यां जुड़ने लगीं. इस बीच रुद्राक्ष की हत्या को ले कर पूरे कोटा संभाग में जनाक्रोश बढ़ता जा रहा था. जगहजगह आंदोलन हो रहे थे. आसपास के शहर भी अलगअलग दिन बंद रहे. पुलिस के लिए रुद्राक्ष के अपहरण और हत्या का मामला चुनौती बन गया था.

5 दिनों तक दिनरात चली जांचपड़ताल के बाद पुलिस ने विभिन्न तरीकों से इस मामले में सभी जरूरी ठोस सबूत जुटा लिए. 14 अक्टूबर की रात पुलिस अधिकारियों ने कोटा में प्रेस कौन्फ्रैंस कर के दावा किया कि रुद्राक्ष के कातिल की पहचान कर ली गई है. रुद्राक्ष का अपहरण कर के उस की हत्या करने वाला शख्स अंकुर पाडि़या है.

अधिकारियों ने दावा किया कि जांचपड़ताल में पुलिस को अंकुर पाडि़या के बारे में कई सनसनीखेज एवं तथ्यात्मक जानकारियां मिली हैं. पुलिस का कहना था कि अंकुर पाडि़या का पर्दाफाश क्लोरोफार्म की आनलाइन शौपिंग के लिए किए गए ई-मेल से हुआ है.

प्रेस कौन्फ्रैंस में अधिकारियों ने बताया कि पुलिस की जांचपड़ताल में पता चला है कि अंकुर का रहनसहन और जीवनशैली हाईप्रोफाइल है. हाई सोसायटी में उठनाबैठना, महंगी गाडि़यों में घूमना, लड़कियों से अय्याशी करना, क्रिकेट मैच पर सट्टा लगाना उस का शौक था. अय्याशी का जीवन जीने वाला अंकुर कई बार विदेश जा चुका है. अलगअलग जगहों पर उस के कई फ्लैट हैं.

बारां रोड पर एक मल्टीस्टोरी बिल्डिंग में उस का एक फ्लैट पूरी तरह साउंडपू्रफ है. इस फ्लैट में वह केवल पार्टियां करता था. वहां ऐशोआराम की तमाम सुविधाएं हैं. ओम एन्क्लेव के एक फ्लैट से पुलिस को अंकुर की कई कीमती चीजें मिली हैं. विदेशों में भी उस के कई दोस्त हैं. जांचपड़ताल में पुलिस को अंकुर के भाई अनूप की भी जानकारी मिली. अनूप भगोड़ा था. वह 5 साल पहले पुलिस हिरासत से भाग गया था. उस पर लोगों से करोड़ों रुपए ठगने का आरोप था.

पुलिस ने अपनी छानबीन के आधार पर बताया कि अंकुर पाडि़या कोटा के ओम एन्क्लेव के सी ब्लाक में चौथी मंजिल पर अपनी पत्नी व मातापिता के साथ रहता था. उस के फ्लैट के ठीक सामने कोटा में तैनात यातायात पुलिस की डीएसपी तृप्ति विजयवर्गीय का फ्लैट है. जांच में यह बात भी सामने आई कि वारदात के बाद अंकुर अपने इस फ्लैट में आताजाता रहा, लेकिन न तो पड़ोसी डीएसपी को उस पर शक हुआ और न ही किसी और को.

जांच दलों को अंकुर के पुलिस अधिकारियों से भी अच्छे संपर्क होने की जानकारी मिली. जांच में यह भी पता चला कि रुद्राक्ष के अपहरण की रात पुलिस जब उस की निशान माइक्रा कार का सत्यापन करने के लिए उस के घर पहुंची तो उस ने जांच के लिए आए पुलिस दल को एक उच्चाधिकारी से फोन करवा कर कहलवाया कि वह गाड़ी के कागज एक दिन बाद दिखा देगा.

पुलिस ने रुद्राक्ष के अपहरण की सूचना और निशान माइक्रा कार की फुटेज मिलने के बाद उसी रात कार कंपनी के शोरूम से कोटा में चल रही निशान माइक्रा कारों और उन के मालिकों की सूची हासिल कर ली थी. इसी सूची के आधार पर घटना के कुछ घंटे बाद ही आधी रात को पुलिस अंकुर के घर उस की कार का सत्यापन करने के लिए पहुंची थी. पुलिस अधिकारियों ने माना कि अगर उस रात अंकुर की कार का सत्यापन हो जाता तो शायद रुद्राक्ष जीवित मिल जाता.

पुलिस अधिकारियों ने यह भी बताया कि जांच में यह बात सामने आई कि अंकुर पाडि़या क्रिकेट का सट्टा लगाता था. सट्टे में वह करोड़ों रुपए की रकम गंवा चुका था. इसी की भरपाई के लिए उस ने रुद्राक्ष के अपहरण की साजिश रची थी. इस के लिए उस ने कई दिनों तक पार्क की रैकी करने के बाद रुद्राक्ष को चुना था. रुद्राक्ष के पिता पुनीत हांडा बैंक मैनेजर थे और मां श्रद्धा टीचर. इस से अंकुर को उम्मीद थी कि रुद्राक्ष का अपहरण कर के उसे मोटी रकम मिल जाएगी, जिस से वह अपना कर्ज उतार देगा.

राजस्थान पुलिस ने 14 अक्टूबर की रात रुद्राक्ष के अपहरण और उस की हत्या के मामले का पर्दाफाश जरूर कर दिया, लेकिन अंकुर पाडि़या पुलिस की पकड़ से दूर था. अलबत्ता पुलिस ने दावा किया कि अंकुर के ठिकानों की जानकारी मिल चुकी है और वह जल्द से जल्द पकड़ में आ जाएगा.

पुलिस ने अंकुर पाडि़या की जन्म कुंडली और उस के भगोड़े भाई अनूप की अपराध कुंडली हासिल कर के एक मोर्चे पर सफलता हासिल कर ली थी. उसे उम्मीद थी कि अपराधी अब ज्यादा दिन भाग नहीं सकेंगे. पुलिस ने जिस तरह के दावे किए थे, उस से कोटा की जनता और रुद्राक्ष के मातापिता को भी यह उम्मीद बंधी थी कि अपराधी जल्दी ही गिरफ्तार हो जाएंगे.

लेकिन यह इतना आसान साबित नहीं हुआ. पुलिस अंकुर की गिरफ्तारी को जितना आसान मान रही थी, वह उतना ही मुश्किल साबित हो रहा था. अंकुर पुलिस से भी ज्यादा शातिर और चालाक साबित हुआ. पुलिस जब तक उस के ठिकाने पर पहुंचती, वह वहां से निकल चुका होता था. उधर कातिल का पर्दाफाश हो जाने के बावजूद गिरफ्तारी नहीं होने से कोटा में जनाक्रोश बढ़ता जा रहा था. पुलिस परेशान थी. कई टीमें अंकुर की तलाश में देश भर में उस के संभावित ठिकानों पर दबिश दे रही थीं, लेकिन सार्थक परिणाम सामने नहीं आ रहे थे.

शादी के नाम पर ऐसे होती है ठगी – भाग 3

अनुष्का का शक गहरा गया. वह दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त रविंद्र यादव से मिली और उन्हें अपने साथ घटी पूरी कहानी बता दी. रविंद्र यादव को यह मामला काफी गंभीर लगा. उन्होंने अनुष्का को क्राइम ब्रांच के पुलिस उपायुक्त भीष्म सिंह के पास भेज दिया साथ ही डीसीपी को निर्देश दिए कि वह जल्द से जल्द जरूरी काररवाई करें.

डीसीपी ने अनुष्का की शिकायत पर थाना क्राइम ब्रांच में 7 मार्च, 2014 को राजीव यादव, अजय यादव, अमित चौहान आदि के खिलाफ धोखाधड़ी करने की रिपोर्ट दर्ज करा दी. साथ ही उन्होंने एसीपी होशियार सिंह के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई जिस में तेजतर्रार सबइंसपेक्टर विनय त्यागी, अतुल त्यागी, हेडकांस्टेबल संजीव कुमार, जुगनू त्यागी, नरेश पाल, राजकुमार, उपेंद्र, कांस्टेबल राजीव सहरावत, विपिन, संदीप आदि को शामिल किया गया.

जिस फोन नंबर से राजीव अनुष्का से बात करता था, वह उस ने बंद कर रखा था. पुलिस टीम ने उस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई और उस काल डिटेल्स का अध्ययन कर के यह जानने में जुट गई कि राजीव यादव की ज्यादातर किन फोन नंबरों पर बातें होती थीं. इस के अलावा जिन बैंक खातों में अनुष्का ने साढ़े 24 लाख रुपए जमा कराए थे, उन की भी जांचपड़ताल शुरू कर दी.

इस जांच से पुलिस को यह जानकारी मिल गई कि राजीव यादव का असली नाम अजय यादव है और जिस अमित चौहान को उस ने अपना बौडीगार्ड बताया था, वह उस का ड्राइवर है. खुफिया तरीके से जांच करने पर पता चला कि अमित चौहान नोएडा के छलेरा गांव का रहने वाला है और अजय यादव दिल्ली के ग्रेटर कैलाश पार्ट-2 का. ये दोनों ही अपने घरों से फरार थे. उन की तलाश के लिए मुखबिर भी लगा दिए.

इसी बीच 21 मार्च, 2014 को पुलिस टीम को सूचना मिली कि अजय यादव आज अपनी होंडा सिटी कार डीएल4सीएएच 9066 से गुड़गांव-आयानगर जाएगा. यह खबर मिलते ही पुलिस टीम बौर्डर पर पहुंच गई और उधर से गुजरने वाली कारों पर नजर रखने लगी. उसी दौरान पुलिस को उक्त नंबर की होंडा सिटी कार आती दिखी तो उस ने उसे रोक लिया. उस समय कार में ड्राइवर के अलावा अधेड़ उम्र का एक आदमी बैठा हुआ था.

कार रुकते ही ड्राइवर बोला, ‘‘आप को पता नहीं गाड़ी किस की है?’’

‘‘नहीं, बताओ तभी तो पता चलेगा.’’ एक पुलिसकर्मी बोला.

‘‘ये गाड़ी डीआईजी साहब की है जो गाड़ी में ही बैठे हुए हैं.’’ ड्राइवर ने बताया.

इस से पहले कि पुलिस कुछ कहती, कार में बैठे शख्स ने ड्राइवर से बात कर रहे पुलिसकर्मी को इशारे से अपने पास बुलाया. पास में खड़े एसआई विनय त्यागी कार में बैठे उस शख्स के पास पहुंचे तो उस शख्स ने खुद को डीआईजी इंटेलीजेंस ब्यूरो बताया.

एसआई विनय त्यागी को यह जानकारी मिल ही चुकी थी कि अजय यादव बहुत ही शातिर किस्म का है. इसलिए उन्होंने उस से आइडेंटिटी कार्ड मांगा तो वह आईडी कार्ड तो क्या ऐसी कोई चीज नहीं दिखा सका जिस से साबित हो सके कि वह पुलिस में है. लिहाजा वह उन दोनों को क्राइम ब्रांच औफिस ले आए.

औफिस में जब उन दोनों से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपने नाम अजय यादव उर्फ राजीव यादव व अमित चौहान बताए. इन के खिलाफ ही अनुष्का ने रिपोर्ट दर्ज कराई थी.

पूछताछ में पता चला कि अजय यादव बहुत अच्छे परिवार से है. उस के पिता आईएएस औफीसर थे. प्रतिष्ठित परिवार का अजय यादव एक ठग कैसे बना, इस बारे में जब उस से पूछताछ की गई तो उस के शातिर ठग बनने की एक दिलचस्प कहानी सामने आई.

अजय सिंह यादव के पिता जय नारायण सिंह आईएएस अधिकारी थे. वह सन 1979 में दिल्ली में एमसीडी के कमिश्नर रह चुके थे. अजय सिंह ने दिल्ली के किरोड़ीमल कालेज से 1976 में ग्रैजुएशन पूरा किया. पिता चाहते थे कि वह भी भारतीय प्रशासनिक सेवा की तैयारी करे. इस के लिए दिनरात एक करना होता है. यह सब करने के लिए अजय तैयार नहीं था. तब जयनारायण सिंह ने अपने प्रभाव से अजय की नौकरी फल एवं सब्जीमंडी आजादपुर में प्रवर्तन अधिकारी के पद पर लगवा दी.

चूंकि अजय की शुरू से ही खुले हाथों से पैसे खर्च करने की आदत थी. इसलिए नौकरी से उसे जो पैसे मिलते थे, वह उस की आंख तले नहीं आते थे. इस के अलावा उस की नौकरी बड़ी आसानी से लगी थी इसलिए उस नौकरी पर उस का मन नहीं लगा. 5-6 साल बाद ही उस ने वह नौकरी छोड़ दी.

उस का मानना था बिजनैस में मोटी कमाई होती है इसलिए अब वह किसी बिजनैस में हाथ आजमाना चाहता था. उसे चूंकि बिजनैस का कोई अनुभव नहीं था इसलिए पिता ने उसे बिजनैस करने को मना किया, लेकिन वह नहीं माना. उस ने एक नामी ब्रांड के रिफाइंड तेल की डिस्ट्रीब्यूशनशिप ले ली. राजस्थान में उस ने अपना कारोबार शुरू कर दिया. लेकिन घाटा होने की वजह से उस ने इस कारोबार को बंद कर दिया.

अजय यादव तेजतर्रार और पढ़ालिखा युवक था. पिता के प्रभाव की वजह से उस के कुछ राजनीतिज्ञों से भी अच्छे संबंध हो गए थे. रिफाइंड तेल का बिजनैस बंद करने के बाद वह केंद्र सरकार के तत्कालीन कृषि मंत्री का पीए बन गया. वहां उस की मुलाकात तमाम अधिकारियों से होती रहती थी. वहां रह कर वह पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों की बात और काम करने की शैली सीख गया था.

अजय यादव अविवाहित था. प्रशासनिक अधिकारी का बेटा होने की वजह से उस के लिए अच्छे परिवारों से रिश्ते आने लगे. सन 1981 में राजस्थान सरकार के तत्कालीन गृहमंत्री की बेटी से उस की शादी हो गई.

कालेज के दिनों से ही वह खर्चीली लाइफस्टाइल जीने का शौकीन था. यही आदत उस की अब भी बनी हुई थी. मंत्री का पीए बनने के बाद वह जो कमा रहा था, उस कमाई से भी वह संतुष्ट नहीं था. लिहाजा उस ने मंत्री के पीए की नौकरी भी छोड़ दी.

उसी दौरान उस ने दिल्ली में कुछ ब्लूलाइन बसें चलवाईं. बसों से उसे जो आमदनी होती थी, उस से ज्यादा उस के खर्चे थे. ऊपर से बसों की मेंटीनेंस में उस के मोटे पैसे खर्च हो जाते थे लिहाजा उस ने वे भी बेच दीं. सन 1990 में अजय ने देहरादून स्थित अपने बंगले में होटल खोला, लेकिन उस से भी उसे अपेक्षा के मुताबिक इनकम नहीं मिली.

अजय के खर्चे बढ़ते जा रहे थे, लेकिन आमदनी का कोई स्थाई स्रोत नहीं था. लिहाजा वह परेशान रहने लगा. तब उस ने दिल्ली और हरियाणा की रीयल एस्टेट कंपनियों में नौकरियां कीं. नौकरी में उस की भागदौड़ ज्यादा हो गई थी जिस की वजह से उसे शुगर, उच्च रक्तचाप और अन्य कई बीमारियों ने घेर लिया. 2008-09 में वह पूरी तरह बेरोजगार हो गया तो उसे पैसों की तंगी होने लगी.

षडयंत्र : पैसों की चाह में – भाग 2

बहरहाल, अमरजीत सिंह के गायब होने के बाद उन के दोनों बेटे, गुरदीप सिंह और गुरचरण सिंह हर संभावित जगह पर उन की तलाश करते रहे. लेकिन उन का कहीं पता नहीं चल रहा था. ऐसे में ही किसी दिन उन की मुलाकात गांव के ही कृपाल सिंह से हुई तो उस ने उन्हें बताया कि जिस दिन से सरदार जी गायब हैं, उस दिन सुबह वह खेतों पर जा रहा था तो उस ने उन्हें स्वर्ण सिंह और उस की पत्नी सुखमीत कौर के साथ देखा था. उस समय वह काफी नशे में लग रहे थे.

उस के पूछने पर सुखमीत कौर ने बताया था कि वे सरदारजी को अपने भाई की जमीन दिखाने यूपी ले जा रहे हैं. उस समय वे लोग ब्रह्मकुमारी सदन के मोड़ पर खड़े थे. कुछ देर बाद एक इंडिका कार आई तो सभी उस में सवार हो कर चले गए थे.

कृपाल सिंह से मिली जानकारी चौंकाने वाली थी, क्योंकि पिता के स्वर्ण सिंह के साथ जाने की बात उन्हें बिलकुल पता नहीं थी. स्वर्ण सिंह ने भी यह बात नहीं बताई थी. इस के अलावा अमरजीत सिंह के औफिस से ढाई करोड़ रुपए की जमीन के सौदे के कागजात भी मिल गए थे, जिन्हें देख कर दोनों भाइयों ने अंदाजा लगाया कि कहीं इसी ढाई करोड़ रुपए की जमीन के लिए तो उन के पिता का अपहरण नहीं किया गया.

इस के बाद गुरचरण सिंह और गुरदीप सिंह को लगा कि अब समय बेकार करना ठीक नहीं है. दोनों भाई थाना सदर के थानाप्रभारी अमनदीप सिंह बराड़ से मिले और उन्हें पूरी बात बताई. चूंकि अमरजीत सिंह ग्रेवाल बड़े और जानेमाने आदमी थे, सो अमनदीप सिंह बराड़ ने गुरदीप सिंह के बयान के आधार पर ही अमरजीत सिंह के मामले को अपराध संख्या 124/2013 पर भादंवि की धारा 364-120बी के तहत दर्ज कर मामले की सूचना उच्चाधिकारियों को दे कर खुद इस की जांच शुरू कर दी.

थानाप्रभारी अमनदीप सिंह बराड़ ने स्वर्ण सिंह और उस की तलाश के लिए एक टीम बनाई, जिस में एएसआई रामपाल सिंह, दविंदर सिंह, मुख्तियार सिंह, हेडकांस्टेबल कुलवंत सिंह, हरपाल सिंह, सुखविंदर सिंह और तलविंदर सिंह को शामिल किया गया. अगले ही दिन इस पुलिस टीम ने मुखबिरों की सूचना पर लुधियाना के बाहरी क्षेत्र से स्वर्ण सिंह और उस की पत्नी सुखमीत कौर को कार सहित गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर इन से पूछताछ की जाने लगी तो इन्होेंने अमरजीत सिंह के साथ यूपी जाने की बात से साफ मना कर दिया. उन का कहना था कि उन्होंने अमरजीत सिंह को जगराओं के निकट एक जमीन दिखा कर उन्हें उन के घर छोड़ दिया था.

पुलिस टीम ने लाख कोशिश की, लेकिन वे अपने बयान पर अड़े रहे. इधर थाना पुलिस पूछताछ में लगी थी तो दूसरी ओर गुरदीप सिंह जीटी रोड स्थित शंभू बार्डर के टोल टैक्स नाका से सीसीटीवी की फुटेज ले आया. थानाप्रभारी अमनदीप सिंह बराड़ ने वह फुटेज देखी तो उस में स्पष्ट दिखाई दे रहा था कि 25 अगस्त की सुबह 9 बजे के आसपास इंडिका कार, जिस का नंबर पीबी19ई-2277 था. उस की अगली सीट पर नशे की हालत में अमरजीत सिंह बैठे थे. ड्राइवर की सीट पर स्वर्ण सिंह बैठा था और पीछे की सीट पर सुखमीत कौर बैठी थी. अगले दिन यानी 26 अगस्त की शाम को वही गाड़ी लौटी थी, लेकिन उस में अमरजीत सिंह नहीं थे.

फुटेज देख कर स्वर्ण सिंह कुछ कहने लायक नहीं रह गया था. फिर भी उस ने बात को घुमाने की कोशिश की. उस ने कहा कि कुछ जमीन अंबाला के पास थी. सरदारजी ने कहा था कि जब यहां तक आए हैं तो लगे हाथ उसे भी देख लेते हैं. उसे देखने के लिए वे अंबाला चले गए थे. लेकिन स्वर्ण सिंह का यह बहाना भी नहीं चला और उसे अपना अपराध स्वीकार करना पड़ा.

स्वर्ण सिंह ने बताया था कि अमरजीत की हत्या कर के उन की लाश को उन लोगों ने नहर में फेंक दी थी. स्वर्ण सिंह के बताए अनुसार, इस हत्याकांड में 5 लोग शामिल थे, एक तो वह स्वयं था, दूसरा उस का भाई गुरचरन सिंह, तीसरा साला कुलविंदर सिंह, चौथा पत्नी सुखमीत कौर और पांचवां था अमित कुमार.

स्वर्ण सिंह और सुखमीत कौर पुलिस गिरफ्त में थे. उन के बयान के बाद पुलिस ने इस मुकदमे में धारा 364-120बी के साथ 302-201बी, 25-54-59 आर्म्स एक्ट जोड़ कर स्वर्ण सिंह और सुखमीत कौर को ड्यूटी मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया, जहां से विस्तृत पूछताछ के लिए 2 दिनों के रिमांड पर लिया गया. रिमांड के दौरान ही उन की निशानदेही पर उत्तर प्रदेश के पृथ्वीपुर से उस के भाई गुरचरन सिंह और साले कुलविंदर सिंह को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

रिमांड अवधि खत्म होने पर पुलिस ने स्वर्ण सिंह और सुखमीत कौर के साथ गुरचरण सिंह एवं कुलविंदर सिंह को अदालत में पेश कर के लाश एवं सुबूत जुटाने के लिए 9 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि के दौरान ही अभियुक्तों की निशानदेही पर पंजाब पुलिस ने उत्तर प्रदेश पुलिस की मदद से उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद के निकट रामगंगा नदी में जाल डाल कर मृतक अमरजीत सिंह की लाश की तलाश के लिए मीरजापुर से जलालाबाद तक जाल डाला. लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी लाश बरामद नहीं हो सकी.

पुलिस ने गिरफ्तार अभियुक्तों की निशानदेही पर इस हत्याकांड के मुख्य अभियुक्त अमित कुमार उर्फ विजय उर्फ रोहित चोपड़ा की तलाश में कई जगह छापे मारे, लेकिन वह पुलिस के हाथ नहीं लगा. इस बीच पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त कार, डंडा, 32 और 315 बोर के 2 रिवाल्वर के साथ 10 लाख रुपए नकद बरामद किए थे.

रिमांड अवधि खत्म होने पर पुलिस ने चारों अभियुक्तों स्वर्ण सिंह, उस की पत्नी सुखमीत कौर, उस के भाई गुरचरन सिंह और साले कुलविंदर सिंह को एक बार फिर अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक अभिरक्षा में जिला जेल भेज दिया गया.

गिरफ्तार चारों अभियुक्तों से की गई पूछताछ में अमरजीत सिंह की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह ठगी, बेईमानी, ईर्ष्या और उच्च महत्त्वाकांक्षा की पृष्ठभूमि पर तैयार की गई थी. सही बात तो यह थी कि इस हत्याकांड की पृष्ठभूमि काफी पहले ही तैयार कर ली गई थी. अगर हत्यारे अपनी योजनानुसार अपने इरादों में सफल हो जाते तो उन की जगह मृतक के दोनों बेटे पिता की हत्या के आरोप में जेल की हवा खा रहे होते और अभियुक्त उन की प्रौपर्टी पर ऐश कर रहे होते.