Bathroom में संबंध बनाने के बाद विधवा को तीन टुकड़ों में काटा

प्रभाकर को लगता था कि अगर उस ने विधवा कांता से शादी की तो मांबाप की इज्जत बरबाद हो जाएगी. इस इज्जत को बचाने के लिए उस ने जो किया, उस से इज्जत तो बरबाद हुई ही, वह सलाखों के पीछे भी पहुंच गया. महानगर मुंबई के उपनगर चेंबूर की हेमू कालोनी रोड पर स्थित चरई तालाब घूमनेटहलने के लिए ठीक उसी तरह मशहूर है, जिस तरह दक्षिण मुंबई का मरीन ड्राइव यानी समुद्र किनारे की चौपाटी और उत्तर मुंबई का सांताकुंज-विलेपार्ले का जुहू. ये ऐसे स्थान हैं, जहां आ कर लोग अपना मन बहलाते हैं. इन में प्रेमी युगल भी होते हैं और घरपरिवार के लोग भी, जो अपनेअपने बच्चों के साथ इन जगहों पर आते हैं.

26 अक्तूबर, 2013 को रात के यही कोई 10 बज रहे थे. इतनी रात हो जाने के बावजूद चेंबूर के चरई तालाब पर घूमनेफिरने वालों की कमी नहीं थी. थाना चेंबूर के सहायक पुलिस उपनिरीक्षक हनुमंत पाटिल सिपाहियों के साथ क्षेत्र की गश्त करते हुए चरई तालाब के किनारे पहुंचे तो उन्होंने देखा कि एक स्थान पर कुछ लोग इकट्ठा हैं. एक जगह पर उतने लोगों को एकत्र देख कर उन्हें लगा कोई गड़बड़ है. पता लगाने के लिए वह उन लोगों के पास पहुंच गए.

पुलिस वालों को देख कर भीड़ एक किनारे हो गई तो उन्होंने जो देखा, वह स्तब्ध करने वाला था. उस भीड़ के बीच प्लास्टिक की एक थैली में लाल कपड़ों में लिपटा हाथपैर और सिर विहीन एक इंसानी धड़ पड़ा था. देखने में वह किसी महिला का धड़ लग रहा था. हत्या का मामला था, इसलिए सहायक पुलिस उपनिरीक्षक हनुमंत पाटिल ने तालाब से धड़ बरामद होने की सूचना थानाप्रभारी वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक प्रहलाद पानसकर को दे दी. धड़ मिलने की सूचना मिलते ही वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक प्रहलाद पानसकर ने मामले की प्राथमिकी दर्ज कराने के साथ ही इस घटना की जानकारी उच्च अधिकारियों और कंट्रोल रूम को दे दी.

इस के बाद वह स्वयं पुलिस निरीक्षक सुभाष खानविलकर, विजय दरेकर, शशिकांत कांबले, सहायक पुलिस निरीक्षक प्रदीप वाली, संजय भावकर, विजय शिंदे, पुलिस उप निरीक्षक वलीराम धंस और रवि मोहिते के साथ मौकाएवारदात पर पहुंच गए. अभी सिर्फ धड़ ही मिला था. उस के हाथपैर और सिर का कुछ पता नहीं था. धड़ के इन अंगों की काफी तलाश की गई, लेकिन उन का कुछ पता नहीं चला. इस से पुलिस को लगा कि हत्यारा कोई ऐरागैरा नहीं, काफी चालाक है. उस ने स्वयं को बचाने के लिए सुबूतों को मिटाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. उस ने मृतक की पहचान छिपाने के लिए उस के शव के टुकड़े कर के इधरउधर फेंक दिए थे. वहां एकत्र लोगों से की गई पूछताछ में पता चला कि हाथपैर और सिर विहीन उस धड़ को तालाब से वहां घूमने आए एक युवक ने निकाला था.

पुलिस ने जब उस युवक से पूछताछ की तो उस ने बताया, ‘‘मन बहलाने के लिए अकसर मैं यहां आता रहता था. हमेशा की तरह आज मैं यहां आया तो थकान उतारने के लिए तालाब के पानी में जा कर खड़ा हो गया. तभी मुझे लगा कि मेरे पैरों के पास कोई भारी पार्सल जैसी चीज पड़ी है.

‘‘मैं ने ध्यान से देखा तो सचमुच वह प्लास्टिक की थैली में लिपटा एक बड़ा पार्सल था. उत्सुकतावश मैं ने उस पार्सल को पानी से बाहर निकाल कर देखा तो उस में से यह धड़ निकला. डर के मारे मैं चीख पड़ा. मेरी चीख सुन कर वहां टहल रहे लोग मेरे पास आ गए. थोड़ी ही देर में यहां भीड़ लग गई. उस के बाद यहां कुछ पुलिस वाले आ गए.’’

पूछताछ के बाद वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक प्रहलाद पानसकर ने धड़ का पंचनामा तैयार कर उसे डीएनए टेस्ट और पोस्टमार्टम के लिए घाटकोपर के राजावाड़ी अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद वह थाने आ कर साथियों के साथ विचारविमर्श करने लगे कि इस मामले को कैसे सुलझाया जाए. क्योंकि सिर्फ धड़ से लाश की शिनाख्त नहीं हो सकती थी और शिनाख्त के बिना जांच को आगे बढ़ाना संभव नहीं था. थाना चेंबूर पुलिस इस मामले को ले कर विचारविमर्श कर ही रही थी कि अपर पुलिस आयुक्त कैसर खालिद, पुलिस उपायुक्त लखमी गौतम, सहायक पुलिस आयुक्त मिलिंद भिसे थाने आ पहुंचे. सारी स्थिति जानने के बाद ये अधिकारी वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक प्रहलाद पानसकर को आवश्यक दिशानिर्देश दे कर चले गए.

उच्च अधिकारियों के दिशानिर्देश के आधार पर वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक प्रहलाद पानसकर ने इस मामले की जांच के लिए एक टीम गठित की, जिस में पुलिस निरीक्षक विजय दरेकर, शशिकांत कांबले, सहायक पुलिस निरीक्षक प्रदीप वाली, विजय शिंदे, संजय भावकर, पुलिस उपनिरीक्षक वलीराम धंस, रवि मोहिते, सहायक पुलिस उपनिरीक्षक राजाराम ढिंगले, सिपाही अनिल घोरपड़े, नितिन सावंत, धर्मेंद्र ठाकुर और सुनील पाटिल को शामिल किया गया. इस टीम का नेतृत्व पुलिस निरीक्षक सुभाष खानविलकर को सौंपा गया.

पुलिस निरीक्षक सुभाष खानविलकर जांच को आगे बढ़ाने की रूपरेखा तैयार कर ही रहे थे कि मृतक महिला के हाथपैर और सिर भी बरामद हो गया. उस के हाथ और सिर चेंबूर ट्रांबे के जीटी तालाब में मिले थे तो पैर चेंबूर की सेल कालोनी से. पुलिस ने इन्हें भी कब्जे में ले कर अस्पताल भिजवा दिया था. बाद में डाक्टरों ने इस बात की पुष्टि कर दी थी कि ये अंग उसी मृतक महिला के धड़ के थे, जो चरई तालाब से बरामद हुआ था. इस तरह पुलिस का आधा सिर दर्द कम हो गया था.

अब उस मृतक महिला की शिनाख्त कराना था, क्योंकि बिना शिनाख्त के जांच आगे नहीं बढ़ सकती थी. इसलिए शिनाख्त कराने के लिए पूरी टीम बड़ी सरगरमी से जुट गई. महानगर के उपनगरों के सभी पुलिस थानों से पुलिस टीम ने पता किया कि किसी थाने में किसी महिला के गायब होने की शिकायत तो नहीं दर्ज है. इस के अलावा मुंबई महानगर से निकलने वाले सभी दैनिक अखबारों में मृतक महिला का हुलिया और फोटो छपवा कर शिनाख्त की अपील की गई. 2 दिन बीत गए. इस बीच हत्यारों को पकड़ने की कौन कहे, थाना पुलिस लाश की शिनाख्त तक नहीं करा सकी थी. मुंबई की क्राइम ब्रांच भी इस मामले की जांच कर रही थी. लेकिन क्राइम ब्रांच के हाथ भी अभी तक कुछ नहीं लगा था. मृतका कौन थी, कहां रहती थी, उस का हत्यारा कौन था? यह सब अभी रहस्य के गर्भ में था.

मामले की जांच कर रही पुलिस टीम हत्यारों तक पहुंचने की हर संभव कोशिश कर रही थी. वह महानगर के अस्पतालों, डाक्टरों, कसाइयों और पेशेवर अपराधियों की भी कुंडली खंगाल रही थी. क्योंकि मृतका की हत्या कर के जिस सफाई से उस के शरीर के टुकड़ेटुकड़े किए गए थे, यह हर किसी के वश की बात नहीं थी. पुलिस को लग रहा था कि यह काम किसी पेशेवर का ही हो सकता है. काफी कोशिश के बाद आखिर पुलिस ने 14 साल के एक ऐसे लड़के को खोज निकाला, जिस ने उस आदमी को देखा था, जो धड़ वाला पार्सल चरई तालाब में फेंक गया था.

पूछताछ में उस लड़के ने पुलिस को बताया था कि उस रात साढ़े नौ बजे के आसपास वह तालाब के किनारे बैठा ठंडी हवा का आनंद ले रहा था, तभी एक सुंदर स्वस्य युवक उस के पास आया. उस के हाथों में प्लास्टिक का एक थैला था, जिस में लाल रंग के कपड़ों में लिपटा एक बड़ा सा पैकेट पार्सल जैसा था. उस युवक ने उस से पानी में फेंकने के लिए कहा. इस के लिए वह उसे कुछ पैसे भी दे रहा था. पैकेट काफी भारी और गरम था. पूछने पर उस युवक ने उसे बताया था कि इस में पूजापाठ की सामग्री के अलावा कुछ ईंटे भी हैं, सामान अभी ताजा है, इसलिए गरम है. पैकेट भारी था, इसलिए लड़के ने उसे पानी में फेंकने के लिए कुछ अधिक पैसे मांगे. पैसे कम कराने के लिए वह युवक कुछ देर तक उस लड़के से झिकझिक करता रहा.

जब वह लड़का कम पैसे लेने को तैयार नहीं हुआ तो उसने खुद ही जा कर उस पैकेट को पानी में डाला और जिस आटोरिक्शे से आया था, उसी में बैठ कर चला गया. उस लड़के ने आटो वाले का भी हुलिया पुलिस को बताया था. इस में खास बात यह थी कि आटो वाला दाढ़ी रखे था. इस तरह पुलिस को अपनी जांच आगे बढ़ाने का एक रास्ता मिल गया. अब पुलिस उस दाढ़ी वाले आटो ड्राइवर को ढूंढ़ने लगी. आखिर पुलिस ने उस दाढ़ी वाले आटो ड्राइवर को ढूंढ़ निकाला. पुलिस टीम ने उसे थाने ला कर पूंछताछ की तो उस ने बताया, ‘‘सर, वह आदमी मेरे आटो में चेंबूर के सुभाषनगर वस्ता से बैठा था. वापस ला कर भी मैं ने उसे वहीं छोड़ा था.’’

आटो ड्राइवर ने यह भी बताया था कि वह हिंदी और दक्षिणी भाषा मिला कर बोल रहा था. आटो ड्राइवर ने उस युवक का जो हुलिया बताया था, वह उस लड़के द्वारा बताए गए हुलिए से पूरी तरह मेल खा रहा था. इस से साफ हो गया कि हत्यारा कोई और नहीं, वही युवक था, जो दक्षिण भारतीय था. इस के बाद पुलिस की जांच दक्षिण भारतीय बस्तियों और दक्षिण भारतीय युवकों पर जा कर टिक गई. पुलिस ने आटो ड्राइवर और लड़के द्वारा बताए हुलिए के आधार पर हत्यारे का स्केच बनवा कर हर दक्षिण भारतीय बस्ती एवं सुभाषनगर में लगवा दिए. यह सब करने में 2 दिन और बीत गए. दुर्भाग्य से इस मामले की जांच कर रही पुलिस टीम को इस सब का कोई लाभ नहीं मिला. लेकिन पुलिस टीम इस सब से निराश नहीं हुई. वह पहले की ही तरह सरगरमी से मामले की जांच में लगी रही.

पुलिस टीम हत्यारे तक पहुंचने के लिए कडि़यां जोड़ ही रही थी कि तभी उसे थाना साकीनाका से एक ऐसी सूचना मिली, जिस से लगा कि अब उसे हत्यारे तक पहुंचने में देर नहीं लगेगी. 4 नवंबर, 2013 को दीपावली का दिन था. उसी दिन साकीनाका पुलिस ने फोन द्वारा सूचना दी कि चरई तालाब में मिले धड़ वाली मृतका का जो हुलिया बताया गया था, उस हुलिए की महिला की गुमशुदगी उन के थाने में दर्ज कराई गई है. थाना साकीनाका में जो गुमशुदगी दर्ज कराई गई थी, वह गुमशुदा महिला की बहन सुहासिनी प्रसाद हेगड़े ने दर्ज कराई थी. सूचना मिलते ही पुलिस निरीक्षक सुभाष खानविलकर ने सुहासिनी से संपर्क किया. उन्हें थाने बुला कर टुकड़ोंटुकड़ों में मिली लाश के फोटोग्राफ्सदिखाए गए तो फोटो देखते ही वह रो पड़ीं. सुहासिनी ने टुकड़ोंटुकड़ों में मिली उस लाश की शिनाख्त अपनी बहन कांता करुणाकर शेट्टी के रूप में कर दी, जो 29 अक्तूबर, 2013 से गायब थी.

कर्नाटक की रहने वाली 36 वर्षीया स्वस्थ और सुंदर कांता करुणाकर शेट्टी अपने 14 वर्षीय बेटे के साथ चांदीवली, साकीनाका की म्हाणा कालोनी के सनसाइन कौआपरेटिव हाउसिंग सोसायटी की इमारत के ‘ए’ विंग के ग्राउंड फ्लोर पर रहती थी. वह फैशन डिजाइनर थी. उस के पति करणाकर शेट्टी का मिक्सर ग्राइंडर का अपना व्यवसाय था. लेकिन 2 साल पहले करुणाकर के व्यवसाय में ऐसा घाटा हुआ कि वह स्वयं को संभाल नहीं सके और आत्महत्या कर ली. इस के बाद कांता अकेली पड़ गई. अब उस का सहारा एकमात्र 12 साल का बेटा रह गया था. पति के इस कदम के बाद कांता पर मानो पहाड़ टूट पड़ा था.

लेकिन उच्च शिक्षित कांता ने अपने मासूम बेटे के भविष्य को देखते हुए खुद को संभाला और अपने काम में लग गई. अंत में सुहासिनी ने पुलिस को बताया था कि पिछले कुछ समय से कांता चेंबूर के रहने वाले किसी लड़के से प्रेमसंबंध चल रहा था. 29 अक्तूबर, 2013 की शाम को कांता घर से निकली थी तो लौट कर नहीं आई. पूरी रात उस का बेटा इंतजार करता रहा. घर में अकेले पड़े हैरानपरेशान 14 साल के उस के बेटे ने सुबह सुहासिनी को फोन कर के मां के वापस न आने की बात बताई. सुहासिनी ने परेशान और घबराए बच्चे को ढ़ांढ़स बधाया और थोड़ी देर में उस के पास जा पहुंची.

इस के बाद सुहासिनी बच्चे को ले कर कांता शेट्टी की तलाश में निकल पड़ी. जहांजहां उस के मिलने की संभावना थी, सुहासिनी ने उस की तलाश की. जब कहीं से भी उन्हें कांता के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो वह थाना साकीनाका पहुंची और कांता की गुमशुदगी दर्ज करा दी. सुहासिनी की बातों से पुलिस टीम को उसी युवक पर संदेह हुआ, जिस से कांता का प्रेमसंबंध था. पुलिस कांता के बारे में जरूरी जानकारी लेने के साथसाथ उस के घर की तलाशी भी ली कि शायद उस युवक तक पहुंचने का कोई सूत्र मिल जाए. लेकिन काफी मेहनत के बाद भी कुछ नहीं मिला तो पुलिस कांता का मोबाइल फोन ले कर थाने आ गई. यह संयोग ही था कि उस दिन वह अपना मोबाइल फोन साथ नहीं ले गई थी.

पुलिस टीम ने कांता के नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस नंबर से सब से अधिक जिस नंबर पर बात हुई थी, वह नंबर प्रभाकर कुट्टी शेट्टी का था. पुलिस ने उस के बारे में पता किया तो पता चला कि वह सुभाषनगर में बिल्डिंग नंबर 6 एम 224 आचार्यमार्ग जोलड़ी चेंबूर में रहता है और चेंबूर जिमखाना के रेस्टोरेंट के.वी. कैटरर्स में मैनेजर है. पुलिस टीम ने पहले प्रभाकर के नंबर पर संपर्क करना चाहा. लेकिन नंबर बंद होने की वजह से उस से संपर्क नहीं हो सका. इस के बाद पुलिस टीम ने उस के घर और रेस्टोरेंट पर छापा मारा. प्रभाकर पुलिस को दोनों जगहों पर नहीं मिला. इस से पुलिस का शक और बढ़ गया. पुलिस टीम ने उस की सरगरमी से तलाश शुरू कर दी. साथ ही मुखबिरों को भी लगा दिया. आखिर 8 नवंबर, 2013 को पुलिस ने मुखबिर की ही सूचना पर घाटकोपर की एक इमारत से प्रभाकर को गिरफ्तार कर लिया.

प्रभाकर कुट्टी शेट्टी को थाने ला कर वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की उपस्थिति में पूछताछ की जाने लगी. पहले तो वह हीलाहवाली करता रहा. लेकिन जब पुलिस ने उस के सामने अकाट्य साक्ष्य रखे तो उस ने कांता की हत्या की बात स्वीकार कर ली. पुलिस ने उसे अदालत में पेश कर के पूछताछ एवं सुबूत जुटाने के लिए 7 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि के दौरान की गई पूछताछ में प्रभाकर ने कांता शेट्टी से प्रेमसंबंध से ले कर उस की हत्या करने तक की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी :

30 वर्षीय प्रभाकर कुट्टी शेट्टी कर्नाटक के जिला उडि़पी के गांव इन्ना का रहने वाला था. पढ़ाईलिखाई कर के नौकरी की तलाश में वह मुंबई चला आया था, लेकिन उस के मांबाप और एक भाई तथा बहन अभी भी रह रह रहे थे. उस का पूरापरिवार सभ्यसभ्रांत और पढ़ालिखा था, जिस की वजह से गांव में उस का परिवार सम्मानित माना जाता था. प्रभाकर काफी महत्वाकांक्षी था. पढ़ाई पूरी कर के उस ने होटल मैनेजमेंट का कोर्स किया और काम की तलाश में मुंबई आ गया. मुंबई में उस का एक मित्र पहले से ही रह रहा था. वह उसी के साथ रहने लगा. थोड़ी भागदौड़ के बाद उसे एक रेस्टोरेंट में मैनेजर की नौकरी मिल गई.

लगभग डेढ़ साल पहले प्रभाकर कुट्टी शेट्टी की कांता से मुलाकात कर्नाटक से मुंबई आते समय ट्रेन में हुई थी. ट्रेन में दोनों की सीटें ठीक एकदूसरे के आमनेसामने थीं. पहले दोनों के बीच परिचय हुआ, इस के बाद बातचीत शुरू हुई तो मुंबई पहुंचतेपहुंचते दोनों एकदूसरे से इस तरह खुल गए कि अपनेअपने बारे में सब कुछ बता दिया. फिर तो ट्रेन से उतरतेउतरते दोनों ने एकदूसरे के नंबर भी ले लिए थे. कांता शेट्टी अपने घर तो आ गई थी, लेकिन उस का दिल युवा प्रभाकर के साथ चला गया था. क्योंकि यात्रा के दौरान प्रभाकर से हुई बातों ने पुरुष संबंध से वंचित कांता को हिला कर रख दिया था. प्रभाकर का व्यवहार, उस की बातें, उस की स्मार्टनेस और मजबूत कदकाठी ने उसे इस तरह प्रभावित किया था कि वह उस के दिलोदिमाग से उतर ही नहीं रहा था. प्रभाकर ने एक बार फिर उसे पति करुणाकर शेट्टी और वैवाहिक जीवन की याद जाती करा दी थी.

कांता को वह सुख याद आने लगा था, जो उसे पति से मिलता था. याद आता भी क्यों न, अभी उस की उम्र ही कितनी थी. भरी जवानी में पति छोड़ कर चला गया था. तब से वह बेटे के लिए अकेली ही जिंदगी बसर कर रही थी. वह अपने काम और बेटे में इस तरह मशगूल हो गई थी कि बाकी की सारी चीजें भूल गई थी. लेकिन प्रभाकर की इस मुलाकात ने उस की उस आग को एक बार फिर भड़का दिया था, जिसे उस ने पति की मौत के बाद दफन कर दिया था. जो हाल कांता का था, लगभग वही हाल अविवाहित प्रभाकर का भी था. पहली ही नजर में कांता की सुंदरता और जवानी उस के दिल में बस गई थी. वह किसी भी तरह कांता के नजदीक आना चाहता था. क्योंकि वह पूरी तरह उस के इश्क में गिरफ्तार हो चुका था. 2-4 दिनों तक तो किसी तरह उस ने स्वयं को रोका, लेकिन जब नहीं रहा गया तो उस ने कांता का नंबर मिला दिया.

प्रभाकर के इस फोन ने बेचैन कांता के मन को काफी ठंडक पहुंचाई. हालांकि उस दिन ऐसी कोई बात नहीं हुई थी, लेकिन बातचीत का रास्ता तो खुल ही गया. इस तरह बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ तो जल्दी ही दोनों मिलनेजुलने लगे. इस मिलनेजुलने में दोनों जल्दी ही एकदूसरे के काफी करीब आ गए. इस के बाद दोनों स्वयं को संभाल नहीं सके और सारी मर्यादाएं ताक पर रख कर एकदूसरे के हो गए. मर्यादा टूटी तो सिलसिला चल पड़ा. मौका निकाल कर वे शारीरिक भूख मिटाने लगे.

कांता प्रभाकर में कुछ इस तरह खो गई कि वह स्वयं को उस की पत्नी समझने लगी. फिर एक समय ऐसा आ गया कि वह प्रभाकर से शादी के लिए कहने लगी. लेकिन प्रभाकर कांता की तरह उस के प्यार में पागल नहीं था. वह पढ़ालिखा और होशियार युवक था. वह कांता के प्रति जरा भी गंभीर नहीं था. वह भंवरे की तरह था. उसे फूल नहीं, उस के रस से मतलब था. उस के मांबाप थे, जिन की गांव और समाज में इज्जत थी. अगर वह एक विधवा से शादी कर लेता तो उन की गांव और समाज में क्या इज्जत रह जाती. इसीलिए कांता जब भी उस से शादी की बात करती, बड़ी होशियारी से वह टाल जाता.

समय पंख लगाए उड़ता रहा. भंवरा फूल का रसपान करने में मस्त था तो फूल रसपान कराने में. अचानक कांता को कहीं से पता चला कि प्रभाकर मांबाप की पसंद की लड़की से शादी करने जा रहा है. यह जान कर उसे झटका सा लगा. उस ने जब इस बारे में प्रभाकर से बात की तो उस ने बड़ी ही लापरवाही से कहा, ‘‘यह तो एक दिन होना ही था. मांबाप चाहते हैं तो शादी करनी ही पड़ेगी.’’

‘‘लेकिन तुम ने वादा तो मुझ से किया था.’’ कांता ने कहा.

‘‘मांबाप से बढ़ कर तुम से किया गया वादा नहीं हो सकता. इसलिए मांबाप का कहना मानना जरूरी है.’’ कह कर प्रभाकर ने बात खत्म कर दी.

लेकिन कांता इस के लिए तैयार नहीं थी. इसलिए उस ने कहा, ‘‘आज तक मैं अपना तनमन तुम्हारे हवाले करती आई हूं. तुम ने जैसे चाहा, वैसे मेरे तन और मन का उपयोग किया. मैं ने तुम्हें हर तरह से शारीरिक सुख दिया. कभी नानुकुर नहीं की. तुम्हारी बातों से साफ लग रहा है कि तुम प्यार के नाम पर मुझे धोखा देते रहे. तुम्हें मुझ से नहीं, सिर्फ मेरे शरीर से प्यार था. लेकिन मैं इतनी कमजोर नहीं हूं कि तुम आसानी से मुझ से पीछा छुड़ा लोगे. अगर तुम ने मुझ से शादी नहीं की तो में तुम्हारे गांव जा कर तुम्हारे मांबाप से अपने संबंधों के बारे में बता दूंगी. अगर इस से भी बात नहीं बनेगी तो कानून का सहारा लूंगी.’’

कांता की इस धमकी से प्रभाकर के होश उड़ गए. उस समय तो उस ने किसी तरह समझाबुझा कर कांता को शांत किया. लेकिन वह मन ही मन काफी डर गया. उस ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस कांता को फूल समझ कर वह सीने से लगा रहा था, एक दिन वह उस के लिए कांटा बन जाएगी. इस का मतलब यह हुआ कि जब तक कांता नाम का यह कांटा जीवित रहेगा, वह समाज में इज्जत की जिंदगी नहीं जी पाएगा. इसलिए उस ने कांता रूपी इस कांटे को अपने जीवन से निकाल फेंकने का फैसला कर लिया.

29 अक्तूबर, 2013 की शाम कांता के जीवन की आखिरी शाम साबित हुई. उस शाम कांता ने प्रभाकर को फोन कर के कहीं चलने के लिए अपने घर आने को कहा तो प्रभाकर ने उस के घर जाने के बजाय कांता को यह कह कर अपने घर बुला लिया कि उस की तबीयत ठीक नहीं है. इसलिए वही उस के घर आ जाए. प्रभाकर की तबीयत खराब है, यह जान कर कांता परेशान हो उठी. वह जल्दी से तैयार हुई और प्रभाकर के घर के लिए निकल पड़ी. इसी जल्दबाजी में वह अपना मोबाइल फोन ले जाना भूल गई. जिस समय कांता प्रभाकर के घर पहुंची, वह बीमारी का बहाना किए बेड पर लेटा था. कांता उस के पास बैठ गई तो वह उस से मीठीमीठी बातें कर के उसे खुश करने की कोशिश करने लगा. उसे खुश करने के लिए उस ने एक बार फिर उस से शादी का वादा किया. इस के बाद अपनी योजनानुसार उस ने कांता से शारीरिक संबंध बनाने की इच्छा जाहिर की.

कांता इस के लिए तैयार हो गई तो उस ने बाथरूम में चलने को कहा. पहले भी वह कई बार बाथरूम में उस के साथ शारीरिक संबंध बना चुका था, इसलिए कांता खुशीखुशी बाथरूम में चलने को तैयार हो गई. बाथरूम में जाने से पहले उस ने अपने सारे कपड़े उतार दिए. इस के बाद बाथरूम की फर्श पर कांता के साथ शारीरिक संबंध बनाने के दौरान ही प्रभाकर ने पहले से वहां छिपा कर रखे चाकू  से उस का गला काट दिया. कांता की मौत हो गई तो उस ने आराम से बाथरूम में ही शव के 3 टुकड़े किए. इस के बाद उन टुकड़ों को लाल कपड़ों में लपेट कर पैकेट बनाए और उन्हें पौलीथीन में लपेट कर आटो से अलगअलग स्थानों पर फेंक दिए. इस के बाद वापस आ कर बाथरूम को खूब अच्छी तरह से साफ किया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने प्रभाकर के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर के उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक वह जेल में ही था. प्रभाकर ने मांबाप की जिस इज्जत को बचाने की खातिर कांता से पीछा छुड़ाने के लिए उस के खून से अपने हाथ रंगे, जेल जाने के बाद आखिर वह बरबाद हो ही गई.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Crime Story : 27 साल बाद बदले की आग में 5 हत्याएं

बचपन में जिस विक्की ने अपने मांबाप का खून होते हुए अपनी आंखों से देखा था, उसे वह चाह कर भी भुला नहीं पाया था. उस के अंदर जल रही बदले की आग 27 साल बाद जब ज्वाला बनी तो उस में 5 लोग भस्म हो गए. आखिर कौन थे वो लोग?

इस बार दीपावली के पहले 33 वर्षीय विशाल उर्फ विक्की गुप्ता अहमदाबाद से घर आया और अपनी दादी शारदा देवी से बोला, ”दादी, मैं दीवाली के दिन मम्मीपापा के हत्यारे को जिंदा नहीं छोड़ूंगा. उस दिन दीवाली के पटाखों के शोर में किसी को पता भी नहीं चलेगा.’’

अपने पोते के मुंह से यह बात सुनते ही शारदा देवी चिंता में पड़ गईं. उन्होंने विक्की को पास बुलाया और उस के सिर पर हाथ फेरते हुए उसे समझाते हुए बोलीं, ”देख विक्की, जो बीत गया, उसे भूल जा. वैसे ही मेरे पास बस यही एक बेटा राजेंद्र बचा है. बेटा, इस तरह का खयाल मन से निकाल दे, खूनखराबा करने से आखिर क्या हासिल होगा.’’

”दादी, आखिर मैं कैसे भूल जाऊं कि 27 साल पहले राजेंद्र ताऊ ने मेरे मम्मीपापा को किस तरह मेरे सामने गोलियों से भून दिया था और तो और, जेल से आने के बाद दादाजी को मरवा डाला था.’’ विक्की आवेश में आते हुए बोला.

”मुझे देख ले बेटा, तेरे दादाजी की मौत का गम सह कर भी मैं ने राजेंद्र को माफ कर दिया है. आखिर इतना बड़ा कारोबार संभालता कौन? दीवाली खुशियों का त्यौहार है, इसे मातम में मत बदल देना.’’ शारदा देवी उसे पुचकारते हुए बोलीं.

”आखिर हम कब तक ताऊ के टुकड़ों पर पलेंगे, हमारा भी तो हक है इस प्रौपर्टी पर. हम बेगानों की तरह इस घर में कब तक रहेंगे?’’ विक्की ने दादी से कहा.

”विक्की बेटा, थोड़ा धीरज रख, मैं तुझे प्रौपर्टी का हिस्सा भी दिला दूंगी. मगर कोई ऐसा कदम मत उठाना कि मुझे इस बुढ़ापे में बुरे दिन देखने पड़ें.’’ शारदा देवी के समझाने के बाद विक्की चला गया.

वाराणसी के भदैनी इलाके में पावर हाउस के सामने की गली में 56 साल के शराब कारोबारी राजेंद्र गुप्ता का 5 मंजिला मकान है. मकान के अगले हिस्से में पहले, दूसरे और तीसरे तल पर राजेंद्र का एकएक फ्लैट है, जबकि अन्य फ्लैट और उस से सटे टिनशेड में 40 किराएदार रहते हैं. राजेंद्र गुप्ता के साथ घर में 80 साल की मां शारदा देवी के अलावा उस की पत्नी नीतू, 24 साल का बेटा नवनेंद्र व 15 साल का सुबेंद्र और 17 साल की बेटी गौरांगी रहते थे.

विक्की राजेंद्र के भाई कृष्णा गुप्ता का बेटा था, जो तमिलनाडु के वेल्लोर से एमसीए करने के बाद अहमदाबाद में सौफ्टवेयर डेवलेपर था. अक्तूबर महीने के आखिरी हफ्ते में अपने घर वाराणसी आया हुआ था. विक्की का एक छोटा भाई प्रशांत उर्फ जुगनू और एक बहन अनुप्रिया है, जिस की शादी हो चुकी है.

उस दिन 5 नवंबर, 2024 की सुबह 11 बजे घर में काम करने वाली नौकरानी रीता जैसे ही फ्लैट में घुसी तो अम्मा ने ऊपर की मंजिल से आवाज दे कर पूछा, ”क्यों रीता, खाना बनाने वाली रेनू आई है कि नहीं?’’

”अभी तक तो नहीं आई अम्मा.’’ रीता ने नीचे से चिल्ला कर कहा.

”देख तो जरा नीतू क्या अभी तक सो कर नहीं उठी, कोई आवाज नहीं आ रही.’’ अम्मा ने पूछा.

”अम्मा, अभी दरवाजा लगा हुआ है. हो सकता है बाहर गई हों. फिर भी मैं देख कर बताती हूं.’’ रीता ने कहा.

इतना कह कर रीता ने झाड़ू उठाई और सफाई करते हुए नीतू भाभी के कमरे तक पहुंची. रीता ने प्रथम तल स्थित फ्लैट पर पहुंच कर दरवाजा खटखटाया, लेकिन अंदर से कोई आवाज नहीं आई. थोड़ा इंतजार के बाद रीता ने दरवाजे पर धक्का दिया तो दरवाजा खुल गया. अंदर जाने पर रीता ने जो दृश्य देखा तो उस की चीख निकल गई. कमरे में नीतू फर्श पर खून से लथपथ निढाल पड़ी थी. रीता चिल्लाती हुई दूसरी मंजिल की तरफ गई, जहां नीतू के बड़े बेटे नवनेंद्र का कमरा था. उस ने बाहर से ही आवाज दे कर पुकारा, ”बाबू भैया, बाबू भैया, नीचे जा कर तो देखो, मम्मी को क्या हुआ है.’’

कोई उत्तर नहीं मिलने पर उस ने अंदर जा कर देखा तो वहां एक कमरे में नवनेंद्र फर्श पर खून से लथपथ पड़ा था और गौरांगी एक कोने में मृत पड़ी थी. तो सुबेंद्र का शव बाथरूम में मिला. रीता फ्लैट के नीचे आई और आसपास के लोगों को उस ने घटना की जानकारी दी. आसपास रहने वाले लोगों ने घटना की सूचना पुलिस को दी. पुलिस ने इस वारदात की मौके पर पहुंच कर जांच शुरू की. सभी के सिर और सीने में एकएक गोली मारी गई थी. जबकि इतनी बड़ी वारदात के बावजूद हैरानी की बात यह थी कि घर का मुखिया राजेंद्र गुप्ता गायब था.

पुलिस जिसे कातिल समझ रही थी, उस का भी हो गया मर्डर

पूछताछ में पता चला कि राजेंद्र गुप्ता कुछ समय से पत्नी से अनबन के चलते परिवार से अलग रह रहा था. लोगों के साथ पुलिस को लगा कि शायद इन चारों कत्ल के पीछे राजेंद्र गुप्ता का ही हाथ है, जिस ने किसी वजह से अपने पूरे परिवार की जान ले ली और खुद फरार हो गया. आखिरी नतीजे पर पहुंचने से पहले पुलिस के लिए इस बात की तस्दीक जरूरी थी. जब पुलिस ने राजेंद्र गुप्ता के मोबाइल फोन की लोकेशन ट्रेस की तो फोन की लोकेशन मौकाएवारदात से दूर रोहनिया पुलिस थाना के मीरापुर-रामपुर गांव में मिल रही थी.

पुलिस यह सोच कर हैरान थी कि जिस के पूरे परिवार का कत्ल हो गया, वह शहर से दूर एक गांव में आखिर क्या कर रहा है? पुलिस की एक टीम फौरन मीरापुर-रामपुर गांव के लिए रवाना हुई. मोबाइल की लोकेशन के मुताबिक टीम एक अंडर कंस्ट्रक्शन मकान में पहुंची. यहां पुलिस को जो कुछ मिला, वो और भी हैरान करने वाला था. इस मकान के अंदर बिस्तर पर राजेंद्र गुप्ता की लाश पड़ी थी. ठीक अपने परिवार के बाकी लोगों की तरह उस के भी सिर और सीने में एकएक गोली लगी थी.

इस वारदात में एक बात परिवार के बाकी लोगों से अलग थी, वो थी राजेंद्र गुप्ता की लाश का बिलकुल बिना कपड़ों के होना. राजेंद्र गुप्ता की इस हाल में मिली लाश ने इस केस को मानो अचानक से पलट दिया. क्योंकि अब तक पुलिस यह मान कर चल रही थी कि राजेंद्र गुप्ता ने ही अपने पूरे परिवार की हत्या की होगी. कुछ लोग यह भी मान रहे थे कि हत्या करने के बाद उस ने खुद को भी गोली मार कर जान दे दी होगी, लेकिन वहां जिस तरह से उस के सिर और सीने में एकएक गोली लगी थी, उस से साफ था कि राजेंद्र गुप्ता ने कम से कम खुदकुशी तो नहीं की है. क्योंकि खुदकुशी करने वाला आदमी अपने सिर और सीने में एकएक कर 2 गोलियां नहीं मार सकता. और फिर जिस हथियार से खुद को गोली मारी, वह भी वहीं होना चाहिए था.

पुलिस के सामने सब से बड़ा सवाल यह था कि आखिर कातिल कौन है? पुलिस ने घटनास्थल से मिले खोखे के आधार पर यह दावा किया कि हत्या में .32 बोर की पिस्टल का इस्तेमाल किया गया था. उत्तर प्रदेश के शहर वाराणसी के भेलूपुर थाना इलाके में हुई इस घटना से पूरे इलाके में दहशत फैल गई. काशी जोन के डीसीपी गौरव बांसवाल के निर्देश पर पुलिस ने सभी लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, राजेंद्र गुप्ता को 3 गोलियां मारी गई थीं, 2 उस के सिर पर और एक सीने पर. उस के बड़े बेटे नवनेंद्र को 4 गोलियां मारी गई थीं, जिन में 2 सिर पर और 2 सीने पर थीं.

नीतू गुप्ता को भी 4 गोलियां मारी गईं, जबकि बेटी गौरांगी और छोटे बेटे सुबेंद्र को 2-2 गोलियां मारी गईं. रिपोर्ट के अनुसार, एक ही प्रकार की पिस्टल से गोली मारी गई थी, इस से पता चलता है कि यह सुनियोजित हत्याएं थीं. 6 नवंबर को सभी 5 शवों का पोस्टमार्टम करवाने के बाद पुलिस की मौजूदगी में अंतिम संस्कार करवाया गया. जब घर से एक साथ 5 अर्थियां उठीं तो देखने वालों की आंखें नम हो गईं. वाराणसी में पिता, पत्नी और 3 बच्चों के शव हरिश्चंद्र घाट पर जैसे ही पहुंचे, वैसे ही श्मशान घाट पर लोगों का जमावड़ा लग गया. हर कोई एक साथ परिवार के सभी सदस्यों की एक साथ जलती चिताओं को देख हैरान था.

वाराणसी के हरिश्चंद्र घाट पर भतीजे प्रशांत उर्फ जुगनू ने अपने ताऊ राजेंद्र गुप्ता, ताई नीतू, चचेरी बहन गौरांगी और चचेरे भाइयों सुबेंद्र के साथ नवनेंद्र के शवों का अंतिम संस्कार करते हुए मुखाग्नि दी. अंतिम संस्कार के बाद भतीजे जुगनू को पुलिस ने हिरासत में रखा. अंतिम संस्कार के दौरान हरिश्चंद्र घाट पर राजेंद्र गुप्ता की मां शारदा भी मौजूद रहीं और नम आंखों से अपने परिवार के सदस्यों की जलती चिताओं को देर तक निहारती रहीं.

वाराणसी पुलिस की तफ्तीश आगे बढ़ी और अब पुलिस ने परिवार में जिंदा बची सब से बुजुर्ग महिला राजेंद्र गुप्ता की मां शारदा देवी से पूछताछ की. शारदा देवी ने इस कत्ल को ले कर जो कहानी सुनाई, उस ने मामले को एक और ही नया मोड़ दे दिया. शारदा देवी ने शक जताया कि इस वारदात के पीछे उन का पोता और राजेंद्र का भतीजा विशाल उर्फ विक्की गुप्ता हो सकता है. असल में विक्की पहले भी राजेंद्र गुप्ता के पूरे परिवार के कत्ल की बात कह चुका था और विक्की की अपने ही ताऊ राजेंद्र गुप्ता से पुरानी दुश्मनी भी थी.

राजेंद्र ने क्यों किया था छोटे भाई व भाभी का मर्डर

फिल्म ‘गैंग्स औफ वासेपुर’ में नवाजुद्दीन सिद्ïदीकी का फैजल खान वाला रोल आज भी याद है. उस के डायलौग की डिलीवरी इतनी परफेक्ट थी कि वह फिल्म दर्शकों पर जादू छोड़ गई थी. विशाल गुप्ता उर्फ विक्की ने भी जब फिल्म ‘गैंग्स औफ वासेपुर’ देखी और नवाजुद्ïदीन सिद्ïदीकी द्वारा बोला गया डायलौग ‘बाप का, दादा का, भाई का, सब का बदला लेगा रे तेरा फैजल’ सुना तो इस डायलौग ने किसी चिंगारी की तरह सीने में पड़ी सुस्त राख में दबी बदले की आग को सुलगा दिया.

उस के मन में दबी बदले की आग फिर से ज्वाला बनने को बेताब होने लगी. आखिर उसे अपने मम्मीपापा के कत्ल का बदला जो लेना था. 27 साल पहले 1997 में विक्की केवल 5 साल का मासूम बच्चा था, लेकिन उसे याद है कि किस तरह उस के पापा कृष्णा गुप्ता और मम्मी बबीता का बेरहमी से मर्डर कर दिया गया था. मर्डर करने वाला कोई गैर नहीं, बल्कि विक्की का सगा ताऊ राजेंद्र गुप्ता था. असल में वाराणसी के भदैनी इलाके में रहने वाले राजेंद्र गुप्ता के पिता लक्ष्मी नारायण गुप्ता बनारस के बड़े कारोबारी थे. उन का प्रौपर्टी और शराब का लंबाचौड़ा काम था.

लक्ष्मी नारायण के 2 बेटे राजेंद्र गुप्ता और कृष्णा गुप्ता थे. लेकिन लक्ष्मी नारायण अपने बड़े बेटे राजेंद्र गुप्ता के लापरवाह रवैए को ले कर हमेशा नाखुश रहते थे, क्योंकि राजेंद्र कारोबार पर ध्यान देने के बजाय अय्याशी की राह पर चल पड़ा था. इस वजह से उन्होंने अपने कारोबार का ज्यादातर हिस्सा अपने छोटे बेटे कृष्णा गुप्ता के हवाले कर दिया था. इस बात को ले कर राजेंद्र का अपने पिता से झगड़ा भी होता था. इस का नतीजा यह हुआ कि गुस्से में आ कर राजेंद्र ने 1997 के नवंबर महीने में एक रोज अपने छोटे भाई कृष्णा गुप्ता और उस की पत्नी की सोते समय गोली मार कर हत्या कर दी थी.

इस घटना के बाद राजेंद्र को पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया, लेकिन इस वारदात से अपने बड़े बेटे राजेंद्र पर लक्ष्मी नारायण गुप्ता का गुस्सा और बढ़ गया. मांबाप का साया छिन जाने के बाद लक्ष्मी नारायण ने कृष्णा के दोनों बेटों विक्की और जुगनू को काम सिखाना शुरू कर दिया.

उधर, जेल में बंद राजेंद्र अब भी अपने पिता के रवैए से गुस्से में था. करीब 6 साल जेल में गुजारने के बाद साल 2003 में उसे जैसे ही पैरोल मिली, बाहर आ कर उस ने एक और बड़ी वारदात को अंजाम दे दिया. असल में राजेंद्र अपने पिता से प्रौपर्टी और कारोबार का हिस्सा मांग रहा था, लेकिन लक्ष्मी नारायण इस के लिए तैयार नहीं थे.

राजेंद्र ने क्यों कराया पिता का मर्डर

अचानक एक रोज वाराणसी शहर के आचार्य रामचंद्र शुक्ल चौराहे के पास गुमनाम कातिलों ने लक्ष्मी नारायण गुप्ता और उन के पर्सनल सिक्योरिटी गार्ड की गोली मार कर हत्या कर दी. इस मामले में पुलिस के शक की सूई पहले ही दिन से बेटे राजेंद्र गुप्ता पर ही थी. ऐसे में जब जांच आगे बढ़ी तो पुलिस को पता चला कि राजेंद्र गुप्ता ने ही सुपारी दे कर अपने पिता और उन के सिक्योरिटी गार्ड का कत्ल करवा दिया.

राजेंद्र की पहली शादी 1995 में हुई थी, पहली पत्नी से उसे एक बेटा भी हुआ था. राजेंद्र के जिद्ïदी स्वभाव और हिंसक होने से पहली पत्नी बुरी तरह डर गई. उसे हर पल यही डर सताता कि जो शख्स अपने सगे भाई का मर्डर कर सकता है, वह उसे भी नुकसान पहुंचा सकता है. इसलिए राजेंद्र के जेल जाते ही पहली पत्नी अपने मायके पश्चिम बंगाल के आसनसोल चली गई. इस के बाद साल 2003 में जब राजेंद्र जेल से बाहर आया तो उस ने नीतू से दूसरी शादी की, जिस से उसे 3 बच्चे नवनेंद्र, सुबेंद्र और गौरांगी हुए. इन बच्चों के सिर पर तो खैर मांबाप का साया था, लेकिन राजेंद्र की वजह से ही कृष्णा के बच्चे कई साल अनाथ की तरह रहे.

कहने को तो विक्की, जुगनू और उन की बहन अनुप्रिया को राजेंद्र ने ही पाला था, लेकिन परवरिश के मामले में भी उस का परिवार अपने भतीजों के साथ सौतेला व्यवहार करता था. राजेंद्र हर समय अपने भतीजों के साथ गालीगलौज करता था और यह धमकी भी देता था कि उन के मम्मीपापा की तरह उन का भी कत्ल कर देगा. जैसेजैसे राजेंद्र के भतीजे बड़े हो रहे थे, वे गुस्से और बदले की आग में जल रहे थे. और अब जब ये वारदात हुई तो शक की सूई राजेंद्र के बड़े भतीजे विक्की पर ही जा कर टिक गई थी. क्योंकि पुलिस को उस के खिलाफ कई सबूत भी मिल चुके थे और वारदात के बाद से ही वह फरार भी था. राजेंद्र की बुजुर्ग मां शारदा देवी ने भी पुलिस को बताया था कि विक्की अपने चाचा से बदला लेना चाहता था.

विक्की और उस का भाई जुगनू दोनों दिल्ली एनसीआर में ही रह कर अपना काम करते थे. इस वारदात के बाद जुगनू तो बनारस पहुंच गया, लेकिन विक्की का कोई पता नहीं चला. इस बीच जब पुलिस ने विक्की के बारे में जानकारी जुटाई तो ये पता चला कि उस ने अपने करीबियों से कई बार राजेंद्र गुप्ता और उस के परिवार को जान से मार डालने की बात कही थी. पुलिस ने इस वारदात के बाद विक्की के बहनोई को नोएडा से हिरासत में लिया, जिस ने पूछताछ में इस बात पर मुहर लगाई. बहनोई ने बताया कि विक्की ने उस से कहा था कि इस बार दीवाली में वो अपने ताऊ और उस के परिवार को मार डालेगा.

पुलिस को मामले की छानबीन के दौरान मिली एक पर्सनल डायरी ने इस मौत की गुत्थी को और भी उलझा दिया. यह डायरी वारदात में मारे गए शख्स राजेंद्र गुप्ता की थी. डायरी में राजेंद्र ने किसी से उस की लड़की के साथ शादी करने की इच्छा जताई थी और खुद को एक काबिल, कर्मठ, सच्चा और संस्कारी लड़का बता रहा था.

डायरी से उजागर हुए राज

डायरी में लिखी लाइनों के साथ एक सवाल यह भी खड़ा हो गया कि क्या राजेंद्र गुप्ता तीसरी शादी करना चाहता था? क्योंकि डायरी में ये बातें जिन पन्नों पर लिखी थीं, उस के साथ वाले दूसरे पन्ने पर 6 नवंबर, 2016 की तारीख है.

जेल से बाहर आने के बाद राजेंद्र ने दूसरा प्रेम विवाह अपने ही घर के सामने रहने वाली ब्राह्मण परिवार की नीतू से किया था. हत्याकांड के बाद अब राजेंद्र गुप्ता का खुद लिखा हुआ लगभग ढाई पन्ने का हैंडनोट मिला, जो नवंबर 2016 का था. इस हैंडनोट में राजेंद्र किसी के सामने अपनी सफाई पेश कर रहा था कि वह किस तरह का निहायत सीधा और सरल इंसान है. साथ ही उस का पहली पत्नी से तलाक हो चुका है. इतना ही नहीं, डायरी में तमाम लोगों के नाम, नंबर और बनाई गई कुंडलियां पेन से कट की गई थीं.

राजेंद्र गुप्ता वर्ष 2016 में तीसरी शादी करने की फिराक में था. अधेड़ हो चुका राजेंद्र कहीं न कहीं अपने दिल में तीसरी शादी का सपना बुन रहा था. हैंडनोट में वह कथित तौर पर लड़की के पिता को अंकल कह कर संबोधित कर रहा था. ऐसे में पुलिस ने आशंका जताई कि कहीं यही बात तो उस की हत्या की वजह नहीं बन गई? शायद कातिल नहीं चाहता था कि राजेंद्र की अकूत संपत्ति का कोई नया वारिस आए या उस की जिदंगी में तीसरी औरत की एंट्री हो.

राजेंद्र के हैंडनोट में लिखा मिला, ‘नमस्ते अंकल, सौ बात की एक बात मैं आप से कहना चाहता हूं कि मुझ जैसा काबिल, कर्मठ, सच्चा, संस्कारी, चरित्रवान कुल मिला कर सर्वगुण संपन्न इंसान आप को ढूंढने से भी शायद न मिले. मैं अपने अंदर हमेशा कमी ढूंढता रहता हूं, लेकिन आज तक मुझे अपने अंदर कभी कोई कमी नहीं मिली. फोन पर थोड़ी देर बात कर के कोई भी, किसी को कितना समझ सकता है, फ्री माइंड हो कर आप से ठीक से बात नहीं कर पाया. घबराहट में शायद गलत बोल गया.’

हैंडनोट में राजेंद्र ने आगे लिखा था, ‘मेरा तलाक फाइनल हो चुका है, जो एकदम सत्य है. मेरी पत्नी ने अब दूसरी शादी कर ली है. मेरी ससुराल बहुत संपन्न है. बच्चों की पढ़ाई का मुझे कोई खर्च नहीं देना, सब हो चुका. हालांकि, बच्चों के लगाव की वजह से कुछ भेज देता हूं, इसलिए कि बच्चे नफरत न करें. बच्चे अपनी मां के साथ ही रहते हैं. मैं अकेला हूं. ‘अब आप लोग जो कहेंगे वो करूंगा. जीवनसाथी से कई फोन काल आते रहते हैं, लेकिन मुझे कुंडली मिला कर ही शादी करनी है. इसलिए सब को सौरी कहना पड़ रहा है. आप मुझे गलत मत समझिए. आप की बेटी से कुंडली मिला, तभी मैं ने इंटरेस्ट भेजा, नहीं मिलता तो नहीं भेजता.

‘कुंडली को गुरुजी को भी दिखाया, उन्होंने ओके बोल दिया. यदि आप की बेटी की शादी होती है तो मैं विश्वास दिलाता हूं कि उस को लाइफ में कोई कष्ट नहीं होने दूंगा. दुनिया की सब से बेहतरीन लाइफ उसे मिलेगी. आप एक राजा के घर शादी कर रहे हैं. मैं जानता हूं कि आप एक ऐसे पिता हैं, जिसे अपनी बेटी के भविष्य की चिंता है.’

विक्की को हर महीने 10 हजार रुपए क्यों भेजती थी ताई

विक्की भले ही अपने ताऊ से नफरत करता था और उन से बदला भी लेना चाहता था, मगर उस की ताई नीतू उस की काफी चिंता करती थी. विक्की की हर जरूरत का ध्यान नीतू रखती थी. विशाल का बैंक अकाउंट खंगालने पर चौंकाने वाली बात यह सामने आई कि नीतू गुप्ता यानी विशाल की ताई (राजेंद्र गुप्ता की पत्नी) उस के खर्च के लिए हर महीने 10 हजार रुपए भेजती थी.

सालों बाद इस बार दीवाली पर जब विक्की घर आया तो यम द्वितीया पर नीतू की बेटी गौरांगी ने विशाल की लंबी उम्र की कामना करते हुए भाई दूज पर टीका लगाया था और काफी वक्त एक साथ बिताया था. इन सब के बावजूद भी पुलिस को यह समझ नहीं आ रहा कि आखिर विशाल के हाथ अपनों पर गोली दागने से पहले कांपे क्यों नहीं?

राजेंद्र गुप्ता ने विक्की की बहन और अपनी भतीजी अनुप्रिया की शादी कपड़ा फैक्ट्री मालिक से करने के लिए झूठ बोला था. पुलिस को यह बात अनुप्रिया के पति ने बताई, जब उन से सवाल किया कि 4 हत्याओं के आरोपी के घर उस ने शादी कैसे की?

जिस पर अनुप्रिया के पति ने बताया कि राजेंद्र ने उन से झूठ बोलते हुए कहा था, ”मेरे छोटे भाई कृष्णा और उन की पत्नी बबीता की रोड एक्सीडेंट में मौत हो गई. इसलिए भतीजी के मम्मीपापा मैं और मेरी पत्नी नीतू ही हैं. अनुप्रिया भी मुझ से यह बात छिपाए रही. मुझे सच्चाई की जानकारी 5 हत्याओं से संबंधित खबर मीडिया में पढऩे के बाद हो पाई.’’

राजेंद्र गुप्ता से विक्की को इतनी नफरत थी कि वह बहन अनुप्रिया की शादी में नहीं आया था. जब उसे अनुप्रिया ने फोन लगा कर कहा था कि विक्की मेरी शादी में आना है तो उस ने फोन कर के बोला था, ”दीदी तुम शादी कर लो, मेरा आना ठीक नहीं रहेगा.’’

वह महीने-2 महीने में एक बार अनुप्रिया को जरूर फोन कर के उस का हालचाल पूछ लेता था. अपनी बहन पर वह बहुत प्यार दर्शाता था. इस बार भी दीवाली की मिठाई भी उस ने औनलाइन भेजी थी.

 

दादी का लाडला था विक्की

27 साल पुरानी चली आ रही इस रंजिश की असली वजह जायदाद है. इस केस में कई चौंका देने वाले खुलासे भी हुए हैं. 5 लोगों की हत्या करने का आरोपी विक्की अपनी दादी शारदा देवी से काफी क्लोज था. इस वारदात से पहले वह उन के पास घर पर आया था. दादी ने उस के लिए खाने में रोटियां भी बनवाई थीं. इस के लिए उन्होंने राजेंद्र गुप्ता की दूसरी पत्नी नीतू से कहा था कि वो नौकरानी से 3 रोटी अधिक बनवा ले.

डीसीपी गौरव बंसवाल और उन की टीम को इस हत्याकांड में पहले यह शक हुआ था कि मर्डर की इस घटना में कई शूटर शामिल होंगे, लेकिन गहराई से हुई जांच और पूछताछ में दादी शारदा देवी ने स्पष्ट बताया कि विक्की ने मंशा जाहिर की थी कि वह पूरे परिवार को खत्म कर देगा. विक्की ने 22 अक्तूबर से ही अपना मोबाइल बंद कर लिया. उस की कोई लोकेशन भी नहीं मिली. वह बगैर फोन के ही दीवाली के समय आ कर घर में रुका भी था. डीसीपी ने आगे बताया कि वारदात वाली रात में राजेंद्र गुप्ता को सोते हालत में ही उन के रोहनिया स्थित निर्माणाधीन मकान में सिर में 2 गोलियां मारी गई थीं. उस के बाद विक्की ने भदैनी के घर पर सुबह 5-6 बजे के बीच में आ कर 4 मर्डर किए थे.

विक्की घर के हर कोने से वाकिफ था. पहले उस ने पहली मंजिल पर सो रही नीतू को गोली मारी फिर वह सेकेंड फ्लोर पर गया, जहां गौरांगी और छोटू सो रहे थे. उस ने उन दोनों को भी गोली मार दी. उन की मच्छरदानी में भी गोलियों से छेद हो गए. गौरांगी का शव फर्श पर मिला था. ऐसा लगता है कि उस ने संघर्ष किया था, जबकि दूसरे बड़े बेटे का शव बाथरूम में मिला था. ऐसे में कहा जा सकता है कि दोनों ने संघर्ष कर के अपनी जान बचाने की पूरी कोशिश की थी.

विक्की की गतिविधियों को खंगालने पर पता चला है कि अहमदाबाद में उस ने 22-24 नवंबर के बीच अपना मोबाइल फोन बंद कर दिया था. इस के बाद वह बनारस आया था और यहीं पर भाईदूज तक रुका था.

कथा लिखने तक पुलिस को आरोपी विशाल विक्की के बारे में कहीं से कोई सुराग नहीं मिल सका था. पुलिस उस की तलाश में जुटी थी.

—कथा मीडिया रिपोर्ट पर आधारित

Crime Update : चार बच्चों की मां ट्यूशन टीचर के साथ हुई फरार

रुखसाना ने कम उम्र में मर्दों की लत लगा कर जो गलती की, वह शादी ही नहीं, 4 बच्चों की मां बनने के बाद भी नहीं छूटी. उसी का नतीजा है कि आज वह पति की हत्या के आरोप में जेल में है. खटखट की आवाज से असलम की आंख खुली तो आंखों की कड़वाहट से ही वह समझ गया कि अभी सवेरा नहीं हुआ  है. लाइट जला कर उस ने समय देखा तो रात के 2 बज रहे थे. उतनी रात को कौन गया? असलम सोच ही रहा था कि दोबारा खटखट की आवाज आई. वह झट से उठा. रात का मामला था, इसलिए बिना पूछे दरवाजा खोलना ठीक नहीं था. उस ने पूछा, ‘‘कौन?’’

बाहर से सहमी सी आवाज आई, ‘‘भाईजान, मैं रुखसाना.’’

रुखसाना का नाम सुन कर उस ने झट से दरवाजा खोल दिया. क्योंकि वह उस की पड़ोसन थी. सामने खड़ी रुखसाना से उस ने पूछा, ‘‘भाभीजी आप, सब खैरियत तो है?’’

‘‘माफ कीजिएगा भाईजान, आप को इतनी रात को तकलीफ दी.’’ रुखसाना ने कहा तो असलम बोला,‘‘जाबिरभाई और बच्चे तो ठीक हैं ?’’

‘‘असलमभाई, मुझे लगता है, मेरे घर कोई अनहोनी हो गई है. काफी देर पहले जाबिर टौयलेट के लिए ऊपर गए थे. लेकिन अभी तक वह नीचे नहीं आए हैं. मेरा जी घबरा रहा है.’’

‘‘नीचे नहीं आए, क्या मतलब? मैं समझा नहीं?’’ असलम ने हैरानी से कहा.

‘‘आज उन की तबीयत ठीक नहीं थी. शाम को भी देर से आए थे. खाना खाने के बाद दवा ली और सो गए. थोड़ी देर बाद वह टौयलेट जाने के लिए उठे. नीचे वाला टौयलेट खराब था, इसलिए मैं ने उन्हें ऊपर जाने को कहा. वह ऊपर वाले फ्लोर पर चले गए. जबकि मैं लेटी ही रही. काफी देर हो गई और वह ऊपर से नीचे नहीं आए तो मेरा जी घबराने लगा. इसलिए मैं आप के पास गई.’’

‘‘आप ने ऊपर जा कर नहीं देखा?’’ असलम ने पूछा.

‘‘जा रही थी, लेकिन सीढि़यों के दरवाजे की दूसरी ओर से कुंडी बंद थी, इसलिए जा नहीं सकी. मैं ने कई आवाजें दीं. दूसरी ओर से कोई जवाब नहीं मिला. मुझे लगता है, कोई गड़बड़ हो गई है?’’ रुखसाना ने भर्राई आवाज में कहा.

‘‘आप परेशान मत होइए भाभीजान. चलिए मैं देखता हूं.’’ कह कर असलम अपनी पत्नी के साथ रुखसाना के घर की ओर चल पड़ा. रुखसाना, उस का बेटा साजिद, असलम और उस की पत्नी ऊपर जाने के लिए सीढि़यों पर चढ़ने लगे. ऊपर जाने वाले दरवाजे की कुंडी दूसरी ओर से बंद थी, इसलिए सभी को वहीं रुकना पड़ा. असलम ने वहीं से कई आवाजें लगाईं, लेकिन दूसरी ओर से कोई जवाब नहीं मिला. सभी नीचे उतरने लगे तो एकाएक असलम की नजर बालकनी पर चली गई. उसे लगा, वहां चादर में लिपटा कुछ पड़ा है. उस ने उस ओर इशारा कर के कहा, ‘‘भाभीजान, उधर देखिए, वह क्या पड़ा है?’’

रुखसाना ने उधर देखा. उस का बेटा साजिद वहां भाग कर पहुंचा. उस में से खून बह रहा था. उस ने झुक कर चादर हटाई. इस के बाद एकदम से चीखा, ‘‘अम्मी. यह तो अब्बू हैं.’’

रुखसाना चीखी, ‘‘या खुदा यह क्या हो गया? जाबिर तुम्हारा यह हाल किस ने किया?’’ 

साजिद भी जोरजोर से रोने लगा था. असलम ने अपने मोबाइल फोन से पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दी. फिर तो थोड़ी ही देर में पीसीआर की गाड़ी वहां पहुंच गई. पीसीआर पुलिस ने चादर हटाई तो उस में खून से सनी जाबिर की लाश लिपटी थी. पीसीआर पुलिस ने संबंधित थाना जीटीबी एन्क्लेव को घटना के बारे में सूचित किया. कुछ देर बाद थाना जीटीबी एन्क्लेव के थानाप्रभारी नरेंद्र सिंह चौहान और इंसपेक्टर एटीओ राकेश कुमार दोहाना पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंचे.

घटनास्थल का मुआयना करने के दौरान ही पुलिस को खून सना एक चाकू मिला. पुलिस ने उसे कब्जे में ले लिया, क्योंकि हत्या उसी से की गई थी. पुलिस ने पूछताछ की तो रुखसाना ने वही बातें बताईं, जो वह असलम को पहले ही बता चुकी थी. स्थिति को देखते हुए पुलिस उस से ज्यादा पूछताछ नहीं कर सकी. लेकिन घटनास्थल के हालात से साफ था कि यह हत्या लूटपाट की वजह से नहीं हुई थी. क्योंकि घर का सारा सामान जस का तस था. चूंकि मकान में आनेजाने का एक ही दरवाजा था, इसलिए पुलिस ने अंदाजा लगाया कि हत्या किसी जानकार ने की है या फिर इस में घर के किसी सदस्य का हाथ है. पुलिस परिवार वालों और रिश्तेदारों के नामपते तथा फोन नंबर ले रही थी, तभी क्राइम टीम और फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट ने कर अपनी काररवाई निपटा ली. इस के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया गया.

थाना जीटीबी एन्क्लेव में उसी दिन यानी 16 जून, 2013 को जाबिर की हत्या का यह मुकदमा अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज कर लिया गया. इस के बाद मामले के खुलासे के लिए डीसीपी वी.वी. चौधरी एवं स्पेशल सेल के डीसीपी संजीव कुमार यादव ने स्पेशल सेल के इंसपेक्टर अत्तर सिंह यादव के नेतृत्व में एक पुलिस टीम गठित की, जिस में सबइंसपेक्टर प्रवीण कुमार, संदीप कुमार, हेडकांस्टेबल संजीव, दिलावर, सुरेश और राजवीर को शामिल किया गया.

पुलिस को पता था कि जाबिर के मकान में आनेजाने के लिए एक ही दरवाजा था, इसलिए हत्यारा उसी दरवाजे से आया होगा और जाबिर की हत्या कर के उस की लाश को चादर में लपेट कर उसी दरवाजे से बाहर गया होगा. जाबिर का हत्यारा या तो जानपहचान का था या फिर घर का ही कोई सदस्य था. पुलिस ने सभी नंबरों को सर्विलांस पर लगा दिया था. इसी के साथ मुखबिरों को भी सतर्क कर दिया था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला था कि जाबिर के शरीर पर चाकू के 32 वार किए गए थे. पुलिस जांच में क्या हुआ, यह जानने से पहले आइए थोड़ा जाबिर और रुखसाना के बारे में जान लें.

जाबिर और रुखसाना उत्तर प्रदेश के जिला बदायूं के गांव रमजानपुर के रहने वाले थे. जाबिर 30-32 साल का रहा होगा, तभी उसे 15 साल की रुखसाना से प्यार हो गया था. इस की वजह यह थी कि जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही वह फूल की तरह महक उठी थी, जिस पर भंवरे मंडराने लगे थे. रुखसाना के घर से निकलते ही चाहने वाले उस के पीछे लग जाते थे. कोई उसे परी कहता तो कोई जन्नत की हूर तो कोई अप्सरा तो कोई दिल की रानी. वह फूल कर कुप्पा हो जाती. फिर तो जल्दी ही वह जाने कितनों के दिलों की रानी बन गई. उस के ये प्रेमी उसे घुमानेफिराने और मौज कराने लगे. ये लड़के उसे ऐसे ही नहीं मौज करा रहे थे, वे उस के शरीर से अपनी एकएक पाई वसूल रहे थे.

रुखसाना को भी इस में मजा रहा था. धीरेधीरे वह इस की आदी हो गई. हालत यह हो गई कि जब तक वह किसी लड़के से शारीरिक संबंध बना लेती, उस का मन बेचैन रहता. उस के ऐसे ही यारों में एक जाबिर भी था. जाबिर उस से उम्र में बड़ा जरूर था, लेकिन शारीरिक संबंधों की आदी बन चुकी रुखसाना के लिए अब उम्र के कोई मायने नहीं रह गए थे. जाबिर भी उसी मोहल्ले में रहता था, जिस मोहल्ले में रुखसाना रहती थी. वह नौशे मियां का बेटा था. जाबिर अन्य लड़कों से थोड़ा अलग था. दरअसल वह उस के दिल का राजा बनना चाहता था. रुखसाना को वह अपनी बीवी बनाना चाहता था. लेकिन लाख कोशिशों के बाद रुखसाना इस के लिए तैयार नहीं थी. इस की वजह यह थी कि वह उम्र में उस से काफी बड़ा था. रुखसाना का कहना था कि मौजमस्ती की बात दूसरी है और बीवी बन कर रहने की बात दूसरी.

रुखसाना की हरकतों से सारा गांव वाकिफ था. गांव वालों से इस बात की जानकारी उस के मातापिता को हुई तो उन्होंने उसे मारापीटा और समझाया भी. आखिर मांबाप की बात रुखसाना की समझ में गई. इसलिए वह जाबिर से निकाह के लिए राजी हो गई. जाबिर तो उस के लिए पागल था ही, इसलिए रुखसाना के हामी भरते ही उस ने अपने अब्बू नौशे मियां से कहा, ‘‘अब्बू, मैं रुखसाना से निकाह करना चाहता हूं.’’

जाबिर की बात सुन कर नौशे मियां हैरान रह गए. क्योंकि रुखसाना अब तक गांव में इस कदर बदनाम हो चुकी थी कि निकाह की छोड़ो, कोई भला आदमी उस से बातचीत करना भी पसंद नहीं करता था. ऐसी लड़की से जाबिर निकाह की बात कर रहा था. नौशे मियां की गांव में अच्छी इज्जत थी. उन्होंने इस निकाह के लिए साफ मना कर दिया. लेकिन जाबिर ने तो इरादा पक्का कर लिया था, इसलिए उस ने कहा, ‘‘अगर मेरा निकाह रुखसाना से नहीं  किया गया तो मैं आत्महत्या कर लूंगा.’’

मजबूरन नौशे मियां को राजी होना पड़ा. रुखसाना के घर वालों की ओर से इनकार का सवाल ही नहीं था. क्योंकि उन की बदनाम बेटी से और कौन शादी करता. इस तरह जाबिर और रुखसाना का निकाह हो गया. निकाह के बाद रुखसाना पूरी तरह बदल गई थी. वह पति की ही नहीं, सासससुर और देवर की सेवा पूरे लगन से करने लगी थी. घर के सारे कामों की जिम्मेदारी ले ली थी. नौशे मियां के पास काफी जमीन थी. उसी पर खेती कर के वह अपने परिवार का भरणपोषण कर रहे थे. जाबिर गांव में रह कर पिता की मदद करता था. समय के साथ जाबिर 4 बच्चों का बाप बन गया. परिवार बढ़ा तो जिम्मेदारी और खर्च बढ़ा. जाबिर को लगा कि अब गांव में गुजारा नहीं होगा तो गांव छोड़ कर वह दिल्ली चला गया.

दिल्ली के दिलशाद गार्डेन में उस ने कबाड़ी का काम शुरू किया. कबाड़ी का काम नाम से भले ही छोटा है, लेकिन अगर मेहनत से किया जाए तो इस काम में मोटी कमाई है. जाबिर ने मन लगा कर मेहनत की. जिस का उसे फायदा भी मिला. उस की ठीकठाक कमाई होने लगी. वह जरूरत भर का पैसा रख कर बाकी गांव भेज देता था. जाबिर की कमाई बढ़ी तो उस ने रहने के लिए एक जनता फ्लैट खरीद लिया. अपना मकान हो गया तो गांव से वह अपना परिवार ले आया. बच्चों का उस ने यहीं एडमिशन करा दिया. अब समय आराम से गुजरने लगा.

जाबिर ने देखा कि कबाड़ी के काम में पैसा तो खूब है, लेकिन इज्जत नहीं है. अगर वह इसी तरह कबाड़ी का काम करता रहा तो उस के बच्चों की शादी ठीकठाक घरों में नहीं हो सकेगी. उस ने कबाड़ी का काम बंद कर दिया और स्टील वर्क्स का काम शुरू कर दिया. इस काम में भी उस ने मन लगा कर मेहनत की. उस की मेहनत रंग लाई और उस के पास सब कुछ हो गया. वह दिन में मेहनत करता और रात को चैन की नींद सोता. जाबिर अपने अब्बू को दिल्ली लाना चाहता था. लेकिन नौशे मियां ने दिल्ली आने से साफ मना कर दिया. तब जाबिर ने उन की मदद के लिए एक नौकर रख दिया. इस नौकर का नाम भी जाबिर था.

वह नौशे मियां के साथ उन के खेतों पर काम करता था. समय निकाल कर जाबिर कभीकभार पिता से मिलने रमजानपुर जाता और एकाध दिन रह कर चला जाता था. काम बढ़ा तो जाबिर की व्यस्तता भी बढ़ गई. जिस की वजह से वह पत्नी और बच्चों को समय कम दे पाता था. अब तक रुखसाना 30 साल की हो गई थी तो जाबिर 45 साल का. दिन भर काम कर के जाबिर बुरी तरह थक जाता तो देर रात घर आने पर उसे बिस्तर ही दिखाई देता था. वह जल्दी से खाना खा कर सो जाता. जबकि भरपूर जवान रुखसाना को उस की नजदीकी की जरूरत होती थी. पति के सो जाने से उस के अरमान दिल में ही रह जाते थे

रुखसाना चाहती थी कि पति घर आए तो उस से बातें करे, प्यार करे. उस के बच्चों को समय दे. लेकिन ऐसा नहीं हो रहा था, जिस की वजह से वह खीझने लगी थी. उसे लगता था कि जाबिर को जैसे पत्नी और बच्चों को जरूरत ही नहीं है. बस उसे पैसे चाहिए. उस के अरमानों और भावनाओं की उसे कोई परवाह नहीं है. ऐसे में अगर औरत जवान हो तो वह क्या करे? इस स्थिति में उसे उम्र के लंबे अंतराल का खयाल आया और उसे अपनी गलती का अहसास हुआ. वह देखती थी कि लोग अभी भी उसे चाहतभरी नजरों से ताकते हैं, जबकि पति उस की ओर ध्यान ही नहीं देता. पति की इस बेरुखी से उस का मन बहकने लगा तो उस की नजरें किसी मर्द को तलाशने लगीं.

रुखसाना के बच्चों को एक सरदार ट्यूशन पढ़ाने आता था. वह हट्टाकट्टा गठीले बदन का कुंवारा नौजवान था. रुखसाना का दिल उसी पर गया. क्योंकि वही उस के सब से करीब था. रुखसाना ने उसे लटकेझटके दिखाए तो सरदार को समझते देर नहीं लगी कि उस के मन में क्या है. फिर एक दिन रुखसाना ने उसे मौका दिया तो उस सरदार ने खुशीखुशी उस की इच्छा पूरी कर दी. सरदार ने उसे इस तरह खुश किया कि वह उस की दीवानी हो गई. रुखसाना उस की इस कदर दीवानी हुई कि उसे लगने लगा कि वह सरदार के बिना जी नहीं पाएगी. कुछ ऐसा ही सरदार को भी लगने लगा तो एक दिन वह रुखसाना को भगा ले गया. यह सन 2008 की बात है. रुखसाना को पति की चिंता थी, बच्चों की. इसलिए सरदार के साथ जाने के बाद उस ने उन की कोई खबर नहीं ली

पत्नी की बेवफाई से जाबिर को गहरा आघात लगा. लेकिन इस आघात को बच्चों की परवरिश में लग कर उस ने भुला दिया. फिर भी वह रुखसाना की तलाश करता रहा. 5 महीने बाद उसे किसी से पता चला कि रुखसाना अपने प्रेमी के साथ पंजाब में रह रही है. पत्नी को वापस लाने के लिए वह पंजाब गया. सचमुच वहां रुखसाना उस सरदार के साथ रवीना कौर नाम से रह रही थी. रुखसाना आने को तैयार नहीं थी. लेकिन उस की असलियत जब सरदार के घर वालों को पता चली तो उन्होंने जबरदस्ती उसे जाबिर के साथ भेज दिया.

जाबिर को अब रुखसाना पर यकीन नहीं रह गया था. इसलिए उस ने उसे पिता के पास गांव पहुंचा दिया. 4 बच्चों की मां बनने के बाद भी रुखसाना के रुखसार में कोई कमी नहीं आई थी. साथ ही उस के अरमान भी पहले जैसे ही चिंगारी की तरह थे, जिसे सिर्फ हवा देने की जरूरत थी. आखिर गांव में जाबिर ने पिता की मदद के लिए जाबिर नाम के जिस नौकर को रखा था, उस ने हवा देने का काम किया. उसे देखते ही रुखसाना की आग भड़क उठी. उन के पास मौका ही मौका था. जाबिर घर का नौकर था, इसलिए उस का अंदर तक आनाजाना थारुखसाना ने इसी का फायदा उठाया और नौकर जाबिर को बिस्तर का साथी बना लिया.

रुखसाना का जब मन होता, नौकर जाबिर के साथ हमबिस्तर हो जाती. पहले तो यह काम बहुत चोरीछिपे होता रहा, लेकिन धीरेधीरे वे लापरवाह होते गए. गांव वालों को संदेह हुआ तो लोग उन पर नजर रखने लगे. जब उन्हें यकीन हो गया कि सचमुच कुछ गड़बड़ है तो उन्होंने इस बारे में नौशे मियां से बात की. उन्होंने फोन कर के सारी बात बेटे को बता दी. अगले ही दिन जाबिर गांव पहुंचा और पहले तो उस ने रुखसाना की जम कर पिटाई की, उस के बाद तुरंत नौकर को भगा दिया. 4-5 दिन गांव में रह कर जाबिर दिल्ली चला गया. दिल्ली आते समय उस ने रुखसाना पर नजर रखने की जिम्मेदारी भाई दिलशाद को सौंपी थी. भाई के कहने पर दिलशाद उस पर रातदिन नजर रखने लगा.

रुखसाना की आदत बिगड़ चुकी थी. अब वह सुधरने वाली नहीं थी. वह बिना मर्द के बिलकुल नहीं रह सकती थी. लेकिन देवर की वजह से वह किसी मर्द तक पहुंच नहीं पा रही थी. पिछले साल मई महीने में अचानक दिलशाद की करंट लगने से मौत हो गई. गांव वालों का कहना था कि यह सब रुखसाना ने अपने पुराने प्रेमी असरुद्दीन से करवाया था. इस की वजह यह थी कि असरुद्दीन उन दिनों गांव में ही था. जबकि वह सूरत में रहता था. वह रुखसाना का बचपन का प्रेमी था. बहरहाल सच्चाई कुछ भी रही हो, सुबूत होने की वजह से पुलिस केस नहीं बना. पुलिस केस भले ही नहीं बना, लेकिन गांव वाले इस बात को ले कर काफी गुस्से में थे. इसलिए घर वालों ने असरुद्दीन को सूरत भेज दिया. वह सूरत तो चला गया, लेकिन वह वहां भी नहीं बच सका. दिलशाद के भतीजे ताहिर ने चाचा की मौत का बदला लेने के लिए सूरत में ही उस की हत्या कर दी.

गांव वाले रुखसाना के कारनामों से परेशान हो गए तो उन्होंने जाबिर को फोन कर के उसे अपने साथ दिल्ली ले जाने को कहा. उन का कहना था कि वे इस गंदगी को गांव में नहीं रहने देंगे. क्योंकि इस की वजह से खूनखराबा भी होने लगा है. गांव वालों के कहने पर जाबिर रुखसाना को दिल्ली ले आया. रुखसाना ने पति से वादा किया था कि अब वह ऐसा कोई काम नहीं करेगी, जिस से उस के मानसम्मान को ठेस पहुंचे. लेकिन रुखसाना मानी नहीं. उस ने  ठान लिया था कि अब वह जाबिर के साथ नहीं रहेगी. फिर उस ने पति से छुटकारा पाने के लिए जो योजना बनाई, वह बहुत ही खतरनाक थी

पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चल गया था कि हत्या में रुखसाना का हाथ है. फिर भी पुलिस ने उसे गिरफ्तार नहीं किया था. दरअसल उसी के माध्यम से पुलिस असली हत्यारों तक पहुंचना चाहती थी. अगर पुलिस उसे पकड़ लेती तो असली हत्यारे छिप जाते. इंसपेक्टर अत्तर सिंह यादव ने मुखबिरों की मदद से नंदनगरी के गगन सिनेमा के पास से जानेआलम उर्फ टिंकू, आमिर हुसैन और हनीफ उर्फ काला को पकड़ा. थाने ला कर तीनों से पूछताछ की गई तो पता चला कि रुखसाना ने ही 4 लाख रुपए की सुपारी दे कर जाबिर की हत्या कराई थी. हत्यारों के पकड़े जाने के बाद पुलिस रुखसाना के घर पहुंची तो पता चला कि वह घर से गायब हो चुकी है. शायद उसे हत्यारों के पकड़े जाने की भनक लग चुकी थी.

पुलिस रुखसाना की तलाश कर रही थी कि तभी अलाउद्दीन उर्फ आले पुलिस के हाथ लग गया. इस के बाद 4 नवंबर, 2013 को पुलिस ने रुखसाना को भी उस समय गिरफ्तार कर लिया, जब वह अपने घर जरूरी सामान लेने आई थी. इस के बाद पुलिस को नौकर जाबिर अली, कमर और शानू की तलाश थी. गिरफ्तारी के बाद पूछताछ में रुखसाना ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था. इस के बाद उस ने जाबिर की हत्या की जो कहानी पुलिस को सुनाई, वह इस प्रकार थी.

गांव में रहने के दौरान जब उस के संबंध नौकर जाबिर अली से बने थे तो इस का खुलासा होने पर उस का शौहर जाबिर उस के साथ बुरी तरह मारपीट करने लगा था. तब रुखसाना ने तय कर लिया था कि अब वह उसे ठिकाने लगवा कर ही रहेगी. नौकर जाबिर से उस की फोन पर बात होती रहती थी. उस ने उस से बात की तो उस ने रुखसाना की मुलाकात अलाउद्दीन उर्फ आले से कराई. उस ने आले को 4 लाख रुपए देने की बात की तो वह जाबिर की हत्या करने के लिए तैयार हो गया.

अलाउद्दीन नौकर जाबिर का दोस्त था और रमजानपुर का ही रहने वाला था. आले अपराधी प्रवृत्ति का था. उस ने गांव के ही अब्बन की हत्या तलवार से काट कर की थी. चूंकि आले को गांव वालों से जान का खतरा था, इसलिए वह जेल से छूटने के बाद पत्नी मुनीजा के साथ गांव बीकमपुर में रहने लगा था. आले कामकाज के नाम पर दिल्ली की फैक्ट्रियों से कौपर डस्ट की चोरी कर के कबाडि़यों को बेचता था. दिल्ली में रहते हुए ही उस की जानपहचान 26 वर्षीय हनीफ उर्फ काला से हुई. वह भी रमजानपुर का ही रहने वाला था. काफी समय से वह गाजियाबाद के भोपुरा में रहता था. वह चोरी का माल तो खरीदता ही था, खुद भी चोरी करता था. आले ने जाबिर की हत्या करने पर 4 लाख रुपए मिलने की बात बता कर उसे भी योजना में शामिल कर लिया था. हनीफ को लगा कि वह आले के साथ मिल कर इस योजना को अंजाम नहीं दे पाएगा, इसलिए उस ने अपने दोस्तों कमर, आमिर हुसैन, शानू और जानेआलम उर्फ टिंकू को भी अपने साथ मिला लिया.

पूरी योजना तैयार कर के सभी 15 जून, 2013 को रुखसाना के घर पहुंचे. रुखसाना ने सभी को घर में ही अलगअलग जगहों पर छिपा दिया. रात में क्या होना है, रुखसाना को पता ही था, इसलिए उस ने जाबिर के रात के खाने में बेहोशी की दवा मिला दी, जिसे खा कर जाबिर सो गया. लेकिन थोड़ी देर बाद उसे टौयलेट आई तो रुखसाना ने उसे ऊपर वाले टौयलेट में जाने को कहा. क्योंकि नीचे वाले टौयलेट में कमर छिप कर बैठा था. जबकि टिंकू कमरे में ही चाकू लिए छिपा था. जाबिर सीढि़यां चढ़ने लगा, तभी कमर ने उसे पीछे से पकड़ लिया तो टिंकू ने उस पर चाकू से लगातार कई वार कर दिए. जाबिर का मुंह दबा था, इसलिए वह चीख भी नहीं सका और छटपटा कर मर गया.

खून बहुत ज्यादा बह रहा था, इसलिए उसे रोकने के लिए लाश को चादर में लपेट कर बालकनी में डाल दिया. इस के बाद वे सभी चले गए. उन के जाने के बाद रुखसाना ने इधरउधर फैले खून को साफ किया और असलम के घर जा कर जाबिर के ऊपर जा कर वापस आने की बात बताई.

पूछताछ के बाद पुलिस ने रुखसाना को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. 4 लोगों को पुलिस पहले ही जेल भेज चुकी थी. पुलिस को अभी नौकर जाबिर, कमर और शानू की तलाश है. कथा लिखे जाने तक इन में से एक भी अभियुक्त पुलिस के हाथ नहीं लगा था.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

  

Top 5 Love Crime Story : टॉप 5 लव क्राइम स्टोरी

Top 5 love Crime Story Of 2022 : इन लव क्राइम स्टोरी को पढ़कर आप जान पाएंगे कि कैसे समाज   में प्रेम ने कईओं के घर बर्बाद किये है और किसी ने प्यार के लिए अपनों को ही शिकार बना लिया. और अपने ही प्यार को धोखा देकर उसे मार देना. अपने और अपने परिवार को ऐसे हो रहे क्राइम से सावधान करने के लिए पढ़िए Top 5 love Crime story in Hindi मनोहर कहानियां जो आपको गलत फैसले लेने से बचा सकती है.

1. प्रेमिका बनी भाभी तो किया भाई का कत्ल

नौशहरा गांव में एक कत्ल की वारदात हो गई है. मकतूल का बाप और 2 आदमी बाहर बैठे आप का इंतजार कर रहे हैं.’ मैं उन लोगों के साथ फौरन मौकाएवारदात पर जाने के लिए रवाना हो गया. मकतूल का नाम आफताब था, वह फय्याज अली का बड़ा बेटा था. उस से छोटा नौशाद उस की उम्र 20 साल थी. आफताब उस से 2 साल बड़ा था. उस की शादी एक महीने पहले ही हुई थी. मकतूल का बाप फय्याज अली छोटा जमींदार था. उस के पास 10 एकड़ जमीन थी, जिस पर बापबेटे काश्तकारी करते थे. मैं खेत में पहुंचा, जहां पर 2 छोटे कमरे बने हुए थे. बरामदे में कटे हुए गेहूं का ढेर लगा था. फय्याज के साथ मैं कमरे के अंदर पहुंच गया. मकतूल की लाश कमरे में पड़ी चारपाई के पायंते पर पड़ी थी.

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2. भाई ने बहन को दोस्त के साथ रंगे हाथ पकड़ा तो दबा दिया तमंचे का ट्रिगर

निश्चित जगह पर पहुंच कर अखिलेश उर्फ चंचल को प्रियंका दिखाई नहीं दी तो वह बेचैन हो उठा. उस बेचैनी में वह इधरउधर टहलने लगा. काफी देर हो गई और प्रियंका नहीं आई तो वह निराश होने लगा. वह घर जाने के बारे में सोच रहा था कि प्रियंका उसे आती दिखाई दे गई. उसे देख कर उस का चेहरा खुशी से खिल उठा. प्रियंका के पास आते ही वह नाराजगी से बोला, ‘‘इतनी देर क्यों कर दी प्रियंका. मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं. अच्छा हुआ तुम आ गईं, वरना मैं तो निराश हो कर घर जाने वाला था.

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3. महिला को गैस नली लगाकर जला डाला जिंदा

अवैध संबंधों की राह बड़ी ढलवां होती है. दीपा ने इस राह पर एक बार कदम रखा तो वह संभल नहीं सकी. फिर इस का जो नतीजा निकला, वह बड़ा ही भयावह था. टना 18 मई, 2018 की है. माधव नगर थाने के थानाप्रभारी गगन बादल अपने औफिस में बैठे विभागीय कार्य निपटा रहे थे तभी उन्हें सूचना मिली कि थाना क्षेत्र के वल्लभ नगर में मां बादेश्वरी मंदिर के सामने रहने वाली दीपा वर्मा के घर से बड़ी मात्रा में धुआं निकल रहा है.

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4. ट्रॉली बैग में 72 घंटे तक रखा प्रेमिका की लाश को

नोएडा के खोड़ा कालोनी के वंदना एनक्लेव स्थित 4 मंजिला मकान में कुल 33 कमरे थे. सभी कमरों में नोएडा, गाजियाबाद और दिल्ली में काम करने वाले किराएदार रह रहे थे. इन में से कुछ लोग अपने परिवार के साथ रहते थे. लेकिन ज्यादातर लोग ऐसे थे जो अकेले ही रहते थे. चूंकि सभी लोग नौकरीपेशा थे, इसलिए वे सुबह ही अपनी ड्यूटी पर चले जाते और देर शाम या रात को वापस अपने कमरों पर लौटते थे.

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5. विवाहिता के प्यार में 4 हत्याएं

चंदन वर्मा ने 12 सितंबर, 2024 को अपने वाट्सऐप पर लिखा, ‘5 लोग मरने वाले हैं. मैं जल्दी कर के दिखाऊंगा (5 people are going to die. I will show you soon.)उस का इशारा अपनी प्रेमिका पूनम व उस के परिवार, स्वयं और पूनम के भाई सोनू की तरफ था. चंदन वर्मा ने इस के लिए अवैध पिस्टल का इंतजाम तो कर लिया था, लेकिन गोलियों का इंतजाम नहीं हो पा रहा था. इस के लिए उस ने जानपहचान के अपराधियों से संपर्क किया और 10 राउंड गोलियों वाली मैगजीन मुंहमांगी कीमत पर खरीद कर रख ली,

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शारीरिक संबंध बनाने के बाद की बेटी से शादी

देश ही नहीं विदेश में भी सभी रिश्ते आज कलंकित हो गए हैं. स्टीवन ने अपनी सगी बेटी कैटी के साथ सिर्फ शारीरिक संबंध बनाए बल्कि उस से शादी तक कर ली. इस के बाद जो हुआ उस की किसी ने शायद कल्पना भी नहीं की होगी…   

13 अप्रैल, 2018 की सुबह अमेरिका में पश्चिमी कनेक्टिकट के ग्रामीण इलाके से नौर्थ कैरोलिना पुलिस को एक महिला ने फोन किया. उस ने कहा कि नाइटडेल में स्टीवन वाल्टर प्लाडल नाम के एक व्यक्ति ने अपनी दूसरी पत्नी कैटी और उस के अबोध बेटे की जान ले ली है. इस के अलावा उस ने एंथोनी फ्यूस्को नाम के व्यक्ति को भी मार दिया हैफोन करने वाली महिला ने अपना नाम अलायशा प्लाडल बताते हुए कहा कि वह हत्यारे की पहली पत्नी है. उस ने यह भी बताया कि इस हत्या की जानकारी उसे फोन पर प्लाडल ने ही दी थी. उसी दिन पुलिस को ग्रेसी नाम की महिला ने भी फोन कर खबर दी थी कि उस का बेटा स्टीवन प्लाडल अपने बेटे बेन्निट की हत्या कर घर से फरार हो गया है. ग्रेसी ने यह जानकारी फोन कर के अलायशा को भी दे दी थी.

यह सुन कर पुलिस को हैरत हुई, क्योंकि नाइटडेल में प्लाडल ने अपने 7 महीने के बेटे बेन्निट की हत्या की थी और वहां से 965 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कनेक्टिकट जा कर उस ने 2 हत्याओं को अंजाम दिया था. यह सब कैसे हुआ होगा, इस सवाल का जवाब पुलिस के लिए भी जानना जरूरी था. सूचना मिलते ही पुलिस नाइटडेल स्थित स्टीवन प्लाडल के घर पहुंची, जहां बैडरूम से 7 महीने के बच्चे बेन्निट की रक्तरंजित लाश मिली. दूसरी ओर पश्चिमी कनेक्टिकट की पुलिस ने वहां के ग्रामीण इलाके न्यू मिल्फोर्ड में पिकअप ट्रक के भीतर से एक युवती और एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति की लाश बरामद की. दोनों जगहों की पुलिस ने हत्या से संबंधित आवश्यक तहकीकात शुरू की. इस सनसनीखेज तिहरे हत्याकांड की पूरी वारदात के तारों को जोड़ने के क्रम में कई चौंकाने वाली जानकारियां सामने आईं.

पुलिस लेफ्टिनेंट लारेंस ऐश के अनुसार कनेक्टिकट के न्यू मिल्फोर्ड में पिकअप ट्रक के अंदर 12 अप्रैल की सुबह करीब पौने 9 बजे खिड़की से गोली मारी गई थी, जिस से 20 वर्षीय युवती कैटी और उस के दत्तक पिता एंथोनी फ्यूस्को की घटनास्थल पर ही मौत हो गई थी. वहां से कुछ दूर ही न्यूयार्क के डोबर में पुलिस को स्टीवन प्लाडल की होंडा मिनी वैन भी मिल गई. पुलिस ने उस गाड़ी की जांच की तो उस के अंदर भी एक आदमी की लाश पड़ी थी. बाद में उस की शिनाख्त स्टीवन प्लाडल के रूप में हुई. यह वही शख्स था, जिस ने इन 3 हत्याओं को अंजाम दिया था. पुलिस ने अनुमान लगाया कि स्टीवन ने खुदकुशी की होगी.

अब पुलिस के सामने उन हत्याओं के साथसाथ आत्महत्या की वारदात और उस की वजहों की भी जांच करनी थी. संबंधित घटनाओं के तार को एकदूसरे के साथ जोड़ते हुए पुलिस ने गहन तहकीकात शुरू कीजैसेजैसे जांच का सिलसिला आगे बढ़ा, वैसेवैसे पुलिस को चौंकाने वाली कई ऐसी बातें मालूम हुईं, जिस में अनैतिक रिश्ता, यौनाकर्षण की अंधता और असामाजिकता के पहलू शामिल थेप्राथमिक जांच में मालूम हुआ कि हत्या करने वाले 43 वर्षीय स्टीवन प्लाडल ने कैटी नाम की अपनी उस पत्नी की हत्या कर दी थी, जो उस की ही सगी बेटी थी. हालांकि 20 वर्षीय कैटी का लालनपालन 56 वर्षीय दत्तक फ्यूस्को दंपति द्वारा किया गया था. स्टीवन ने उस का पालनपोषण करने वाले पिता एंथोनी फ्यूस्को को भी मौत के घाट उतार दिया था.

अनैतिक रिश्तों में उलझी हुई इस कहानी की मीडिया में जोरशोर से चर्चा फरवरी, 2017 में शुरू हुई थी. तब बापबेटी (स्टीवन प्लाडल और कैटी) के बीच नाजायज संबंधों को ले कर घरपरिवार, सगेसंबंधी से ले कर समाज में चौतरफा निंदा होने से अलायशा प्लाडल को काफी गहरा सदमा लगा थाअलायशा स्टीवन प्लाडल की पहली पत्नी थी. उसे हैरत हुई कि उस की पीठ पीछे कब और किस तरह से दोनों के बीच नाजायज संबंध पनप गए. यह उस के मनमस्तिष्क को गहरे आघात मिलने जैसी बात थी, क्योंकि उस की बेटी कैटी अपने ही पिता से गर्भवती थी. और तो और, उस का पति स्टीवन अपनी जैविक बेटी के साथ शादी करने की जिद पर भी अड़ा हुआ था.

अलायशा ने कैटी का भले ही बचपन से लालनपालन नहीं किया हो और उसे अपनी आंखों के सामने बालपन से किशोर और युवावस्था में जाते नहीं देखा हो, लेकिन वह अपनी सगी बेटी की हर खुशी और सुरक्षा को ले कर चिंतित रहती थी. अलायशा को जब बापबेटी के अनैतिक रिश्ते और विवाह की बात मालूम हुई, तब उस ने इस का पुरजोर विरोध जताया. इस बात को ले कर परिवार में विवाद इस कदर बढ़ गया कि मामला घर से ले कर अदालत तक जा पहुंचा. इस के चलते अलायशा ने पति स्टीवन प्लाडल से मार्च, 2017 में तलाक ले लिया. इस के अलावा अपनी 8 और 12 साल की 2 अन्य बेटियों को ले कर पति का घर छोड़ने का फैसला ले लिया. अपने साथ उस ने कैटी को भी ले जाना चाहा, लेकिन उस ने साथ जाने से मना कर दिया. उस के लाख समझाने के बावजूद कैटी अपने पिता के साथ ही रहने की जिद पर अड़ी रही

वैसे अलायशा ने जब घर छोड़ा था, तब प्लाडल अपने बैडरूम में जमीन पर सोया हुआ था. अलायशा के जाने के बाद स्टीवन प्लाडल मानो आजाद हो गया था और उस ने वही किया जो उस के दिल में था. जल्द ही स्टीवन प्लाडल ने अपनी सगी बेटी कैटी के साथ 20 जुलाई, 2017 को एक झील के किनारे छोटे से समारोह में शादी रचा ली. उस समय कैटी गर्भवती थी. यह अनोखी शादी थी. उन की गैरकानूनी शादी के गवाह बनने वालों में कैटी को गोद लेने वाले मातापिता यानी फ्यूस्को दंपति मुख्य अतिथि थे. साथ में प्लाडल की मां ग्रेसी प्लाडल ने भी इस समारोह में हिस्सा लिया था. इस मौके पर उन्होंने एक ग्रुप फोटो भी खिंचवाया था. इस शादी को ले कर चाहे जितनी भी नकारात्मक बातें हुई हों, प्लाडल और कैटी दांपत्य जीवन गुजारने की कसम खा चुके थे. इस के साथ ही दोनों प्रैस, वेब या इलैक्ट्रौनिक मीडिया के लिए अनोखे अवैध रिश्ते की रोचक खबर भी बन गए थे. वे समाजशास्त्रियों के लिए भी एक शोध का विषय बन गए थे.

खैर, कैटी ने सितंबर, 2017 में बेन्निट को जन्म दिया. इस की जानकारी कैटी की मां अलायशा को तब हुई, जब उसे समाचारपत्र में यह खबर पढ़ने को मिली. उस ने इस की सूचना पुलिस को दी और उन के खिलाफ एक रिपोर्ट भी दर्ज करवा दी. दोनों पर गंभीर आरोप लगाया कि उन की शादी अवैध और गैरकानूनी है, जो सामाजिक संस्कार और कायदेकानून के अनुसार भी गलत है. अलायशा द्वारा दर्ज करवाई गई प्राथमिकी पर पुलिस ने काररवाई करते हुए दोनों को जनवरी 2018 में गिरफ्तार कर लिया. मामला अदालत में जा पहुंचा और प्लाडल पर नाबालिग रिश्तेदार के साथ व्यभिचार करने का आरोप लगाया गया. भले ही उन के यौन संबंध आपसी सहमति से बने थे और उन्होंने परिवार के कुछ लोगों की उपस्थिति में विवाह किया था, लेकिन अमेरिकी कानून के मुताबिक उन की शादी दूसरे देशों के कानून की तरह ही अनैतिक और गैरकानूनी करार दे दी गई

नौर्थ कैरोलिना स्थित नाइटडेल में एर्लस्टन कोर्ट द्वारा उन पर कानूनी काररवाई की गई. हालांकि बाद में स्टीवन और कैटी 20 फरवरी को 28 हजार डौलर के बांड पर इस शर्त के साथ रिहा कर दिए गए कि वे आपस में फिर कभी नहीं मिलेंगे. इसी के साथ बच्चे बेन्निट को उस की दादी ग्रेसी प्लाडल के पास रखने का अदालती आदेश भी जारी किया गया. ग्रेसी अपने बेटे स्टीवन प्लाडल के साथ ही रहती थी. इस फैसले से 72 वर्षीया ग्रेसी पर बच्चे की देखभाल की जिम्मेदारी गई थी. बावजूद इस के अदालत ने प्लाडल को बेन्निट से मिलने या उस के घर के पास के शहर कैरी से भी दूर रहने की हिदायत दी थी. साथ ही अलायशा और उस की 8 12 साल की दोनों बेटियों की सुरक्षा के आदेश भी अदालत ने दिए. अलायशा कैटी के बचपन की तसवीर दिखाती हुई कहती है, ‘‘मुझे अफसोस है कि मैं अपनी बेटी और उस के बच्चे को नहीं बचा सकी.’’

इतना बोलते ही उस की आंखों में आंसू बह निकले. उस की नजरों में 7 माह के अबोध बच्चे को प्लाडल की बुजुर्ग मां के हवाले करना एक गलत निर्णय था, जो नहीं किया जाना चाहिए था. यही उस की मौत का कारण बनीइस के साथ ही अलायशा अपनी दूसरी 2 बेटियों को ले कर संतोष व्यक्त करती है, ‘‘अब मैं सोचती हूं कि हमारी दोनों बेटियां कितनी भाग्यशाली हैं, जो उस जुनूनी हत्यारे से बच गईं. अगर वे अपनी दादी और पिता के पास होतीं तो वह उन्हें भी मार डालता.’’

अलायशा के अनुसार, स्टीवन अपने घर पर 4 बंदूकें रखता था. उसे शुरू से ही बंदूकें रखने का शौक था. संभवत: युवावस्था में उस ने औनलाइन बंदूक खरीदी थी. वैसे वह पेशे से एक कुशल बढ़ई था, लेकिन एक अच्छा शूटर भी था

बंदूकों का इस्तेमाल वह निशानेबाजी का करतब दिखाने के लिए करता था. ऐसा कर के वह कैटी को भी काफी इंप्रैस कर चुका था, जबकि उस का गुस्सा बहुत ही खराब था. जब भी गुस्से में आता, तब उस पर पागलपन सवार हो जाता था. वह गुस्से में घर की चीजों को नष्ट करने लगता था. यहां तक कि घर की दीवारों में छेद करना शुरू कर देता था. लेकिन उस का कोई आपराधिक रिकौर्ड नहीं था. अलायशा और प्लाडल के मिलने की भी कहानी कुछ कम रोमांचक नहीं थी. दोनों की मुलाकात इंटरनेट के जरिए सन 1995 में हुई थी. उन दिनों इंटरनेट पर चैटिंग ही डेटिंग की पहली सीढ़ी हुआ करती थी. तब अलायशा मात्र 15 साल की थी और टेक्सास के सैन एंटोनिया में अपने मातापिता के साथ रहती थी. उस वक्त 20 वर्षीय प्लाडल न्यूयार्क में रहता था. उन की प्रेम कहानी इंटरनेट पर चैटिंग और लव लैटर के जरिए परवान चढ़ी थी.

हालांकि अलायशा के मातापिता को यह सब जरा भी पसंद नहीं था. दूसरी तरफ स्टीवन अलायशा से मिलने के लिए बेताब रहता था. एक दिन वह अलायशा से मिलने के लिए टेक्सास आया. चैटिंग के बाद उन की पहली डेटिंग काफी सुखद एहसास दे गई. उन के प्रेम को पंख मिल गए और वे रोमांस की भावना से भर गए. उस के बाद वह अलायशा से मिलने लगातार आता रहा. इस तरह से उन के बीच शुरू हुए प्रेम संबंध में एक दिन उन पर सैक्स हावी हो गया. अलायशा 16 साल की उम्र में गर्भवती हो गई थी. उस ने 17वें साल में एक बच्ची कैटी को जन्म दिया. यह सब दोनों के विवाह के पहले ही हो गया. बाद में दोनों ने शादी तो कर ली लेकिन स्टीवन कैटी को पा कर खुश नहीं हुआ. वह उसे अलग करना चाहता था. बच्ची कैटी को जरा भी पसंद नहीं करता था और हमेशा उसे नुकसान पहुंचाने की कोशिश में रहता था. उसे दूर करने को ले कर कई बार हिंसक भी बन गया था. अंतत: अलायशा ने 8 माह की कैटी को खुद से दूर करना ही बेहतर समझा.

कैटी को बचपन में ही प्लाडल दंपति से फ्यूस्को दंपति ने सन 1998 में गोद ले लिया था. एंथोनी फ्यूस्को उस के दत्तक पिता थे. कैटी ने जब होश संभाला, तब उसे मालूम हुआ कि वह जिस परिवार में रह रही है, वह उस का अपना नहीं है. उस के जैविक मातापिता कोई और हैं. जिन के पास रह रही है, उन्होंने उसे गोद ले रखा है. इस बात को ले कर कैटी के मन में ऊहापोह और संशय की स्थिति बनी रही. उस के मन में अकसर टीस मारती कि आखिर उस के मांबाप कौन हैं? उन की क्या मजबूरी रही कि उन्होंने उसे खुद से अलग कर किसी को गोद दे दिया?

किशोरावस्था के आतेआते उस की जानने की इच्छा प्रबल हो गई कि आखिर उस के अपने मातापिता कौन हैं, कैसे हैं? कैटी खूबसूरत और काफी समझदार लड़की थी. यौवन की दहलीज पर खड़ी थी. पढ़ाई में भी अव्वल थी. आर्ट की स्टूडेंट थीदूसरी तरफ अलायशा भी अपनी पहली संतान कैटी से मिलना चाहती थी. उसे पता था कि उस के दत्तक मातापिता काफी अच्छे हैं. उधर अलायशा को भरोसा था कि उन्होंने कैटी का काफी खयाल रखा होगा. फिर भी जब वह एकांत में होती तो कैटी से मिलने की इच्छा जाग जाती थी, लेकिन आजीविका की आपाधापी में मिलना संभव नहीं हो पाता था. अलायशा और स्टीवन इंटरनेट के जरिए मिले थे तो कैटी ने भी अपने जैविक मातापिता की तलाश के लिए इंटरनेट संचालित सोशल साइट फेसबुक का सहारा लिया. फेसबुक के जरिए उस ने अपने मांबाप को तलाशना शुरू कर दिया.

इस में उसे अगस्त 2015 में सफलता मिल गई. उन से कैटी की पहली मुलाकात जून 2016 में हो गई. मां अलायशा से मिल कर जहां उस ने भावनात्मक लगाव महसूस किया, वहीं पिता स्टीवन प्लाडल को देखा तो देखती ही रह गई. स्टीवन खूबसूरत नौजवान की तरह दिखता था. उस का व्यक्तित्व काफी आकर्षक था और शारीरिक बनावट, कदकाठी और चालढाल कुछ ऐसा था कि वह अपनी उम्र से 10 साल कम का दिखता था. कैटी ने स्टीवन को पहली ही निगाह में एक आकर्षक व्यक्ति के नजरिए से देखा. उस के पहली झलक वाले व्यक्तित्व की ओर खिंचाव का एहसास हुआ, जो ठीक उस के सपनों के किसी राजकुमार की तरह था. कैटी अपने दत्तक मातापिता की इजाजत ले कर अलायशा और स्टीवन प्लाडल के साथ हेनरिको काउंटी स्थित उन के घर में रहने लगी. तब कैटी की उम्र 18 साल थी. जल्द ही उस ने नए परिवार के सदस्यों के तालमेल बिठा लिया

उसे दशकों बाद मिले मातापिता के अलावा दादी और 2 छोटी बहनों के साथ भावनात्मक लगाव काफी अच्छा लग रहा था. उसे लंबे अरसे बाद एकाकीपन दूर होने का अहसास हुआ. इसी के साथ मन में सामान्य लड़की की तरह स्वाभाविक रोमांच भी कुलांचे मार रहा था. उस ने जिस के साथ रोमांस की पहल की वह और कोई नहीं, उस का पिता स्टीवन था. उसे रिश्तों की मर्यादा का तो जरा भी खयाल आया और ही स्टीवन ने इसे लांघने का विरोध जताया. वह भी अनैतिक यौनाकर्षण में खिंचता चला गयावह नवयौवना कैटी की सुंदरता के आकर्षण की रौ में बह गया. भूल गया कि कैटी उस की सगी बेटी है. इस यौनाकर्षण के अंजाम क्या हो सकते थे, इस की उन्होंने जरा भी परवाह नहीं की. जल्द ही बापबेटी ने रिश्ते की मर्यादा को लांघते हुए यौन संबंध भी कायम कर लिया.

गलत बुनियाद वाले नए रिश्ते का अंजाम ही था कि उन्हें इसे निभाने के लिए कई बाधाएं दूर करनी पड़ीं. कैटी अनब्याही मां बनने वाली थी. अजन्मे बच्चे के भविष्य को ले कर वह चिंतित रहने लगी. इस की जानकारी उस के दत्तक मातापिता को भी हुई. यह उन की बड़ी भूल थी, जो उन्होंने कैटी को अपने जैविक मातापिता से मिलने की इजाजत दी थी, लेकिन यह भूल अब सुधारी नहीं जा सकती थी. उन के मन में सब से बड़ा सवाल कैटी के गर्भ में पलने वाले बच्चे के भविष्य और पिता के नाम को ले कर था. अंतत: स्टीवन और कैटी ने शादी करने की ठान ली. अलायशा ने विरोध करते हुए पति स्टीवन से अलग होने का निर्णय ले लिया. वह उन्हें हर हाल में एकदूसरे से अलग करना चाहती थी. अजन्मे बच्चे को ले कर उस के मन में योजना थी. फिलहाल अलायशा की पूरी कोशिश कैटी को स्टीवन से अलग करने की थी.

इस में अलायशा को आंशिक सफलता मिली और दोनों कानून की गिरफ्त में गए. कैटी और स्टीवन को अवैध विवाह के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया गया. उन की गिरफ्तारी वहीं से हुई, जहां से अबोध बच्चे बेन्निट की लाश बरामद की थी. स्टीवन ने अपनी मां से छीन कर 7 माह के बेन्निट की हत्या कर दी और मां को वहां से भाग जाने को कहा था. उस वक्त कैटी अदालत के आदेश के मुताबिक अपने दत्तक पिता के पास थी. स्टीवन की मां ग्रेसी ने पुलिस को बताया कि उस ने पुलिस को इस की सूचना देने के लिए कहा. वह काफी गुस्से में था. कैटी और उस के दत्तक पिता को मार डालने की धमकी दे कर फरार हो गया. ग्रेसी ने बताया कि उस के सिर पर सब कुछ खत्म कर देने का भूत सवार हो चुका था

उस का हिंसक रूप और पागलपन देख कर वह डर गई थी. अगला निशाना उस ने कैटी को ही बनाया. साथ में उस के दत्तक पिता को भी मार डाला. तब तक वह गुस्से में पागल और विक्षिप्त हो चुका था. अंतत: उस ने खुद को भी गोली मार ली.

पुलिस द्वारा पूरे मामले की तहकीकात करने के बाद फाइल बंद कर दी गई. इस की वजह यह थी कि हत्या करने वाला भी आत्महत्या कर चुका था. इस की पुष्टि नाइटडेल पुलिस के चीफ लारेंस कैप्स द्वारा प्रैस कौन्फ्रैंस में कर दी गई. उन्होंने इस तरह अनैतिक संबंधों को ले कर हैरानी भी व्यक्त की. इस तरह अनैतिक रिश्ता बनाने की यह कहानी समाज और परिवार के बिगड़े स्वरूप और आनुवांशिक यौन आकर्षण के विकसित होने वाली परिस्थितियों को दर्शाती है. यह तो सत्य है कि इस तरह के संबंध समाज के लिए अहितकर ही होंगे. लोगों को ऐसी घटनाओं से सीख लेनी चाहिए.

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उत्तर प्रदेश के जिला उन्नाव के थाना औरास के अंतर्गत आने वाले गांव गागन बछौली का रहने वाला उमेश कनौजिया बहुत ही हंसमुख और मिलनसार स्वभाव का था. इसी वजह से उस का सामाजिक और राजनीतिक दायरा काफी बड़ा था. उन्नाव ही नहीं, इस से जुड़े लखनऊ और बाराबंकी जिलों तक उस की अच्छीखासी जानपहचान थी. वह अपने सभी परिचितों के ही सुखदुख में नहीं बल्कि पता चलने पर हर किसी के सुखदुख में पहुंचने की कोशिश करता था. उस की इसी आदत ने ही उसे इतनी कम उम्र में क्षेत्र का नेता बना दिया था. मात्र 25 साल की उम्र में वह जिला पंचायत सदस्य बना तो इस उम्र का कोई दूसरा सदस्य पूरे जिले में नहीं था.

नेता बनने की यह उस की पहली सीढ़ी थी. वह और आगे बढ़ना चाहता था, इसलिए उस ने अपना दायरा बढ़ाना शुरू कर दिया था. वैसे तो उस ने यह चुनाव भाजपा के समर्थन से जीता था, लेकिन उस के संबंध लगभग हर पार्टी के नेताओं से थे. इस की वजह यह थी कि उस की कोई ऐसी पारिवारिक पृष्ठभूमि नहीं थी कि लोग उसे नेता मान लेते. उस के पिता सूबेदार कनौजिया दुबई में नौकरी करते थेउमेश भी पढ़लिख कर नौकरी करना चाहता था, लेकिन जब उसे कोई ढंग की नौकरी नहीं मिली तो वह छुटभैया नेता बन कर गांव वालों की सेवा करने लगा. उसी दौरान उस की जानपहचान कुछ नेताओं से हुई तो वह भी नेता बनने के सपने देखने लगा. उस का यह सपना तब पूरा होता नजर आया, जब जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ने पर भाजपा ने उस का समर्थन कर दिया.

उमेश अपनी मेहनत और जनता की सेवा कर के नेता बना था. वह राजनीति में लंबा कैरियर बनाना चाहता था, इसलिए अपने क्षेत्र की जनता से ही नहीं, क्षेत्र के लगभग सभी पार्टी के नेताओं से जुड़ा था. उस का सोचना था कि कभी भी किसी की जरूरत पड़ सकती है. ऐसे में उस के निजी संबंध ही काम आएंगे. इस का उसे लाभ भी मिल रहा था. बसपा के सांसद ब्रजेश पाठक उसे भाई की तरह मानते थेउन्नाव के विकास खंड औरासा के वार्ड नंबर 2 से जिला पंचायत सदस्य चुने जाने के बाद उमेश ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा था. अपनी कार्यशैली की वजह से ही वह कम समय में लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हो गया था.

उत्तर प्रदेश का जिला उन्नाव लखनऊ और कानपुर जैसे 2 बड़े शहरों को जोड़ने का काम करता है. यह लखनऊ से 60 किलोमीटर दूर है तो कानपुर से मात्र 20 किलोमीटर दूर. एक तरफ प्रदेश की राजधानी है तो दूसरी ओर कानपुर जैसा महानगर है. इस के बावजूद इस की गिनती पिछड़े जिलों में होती है. शायद यही वजह है कि यहां नशा और अपराध अन्य शहरों की अपेक्षा ज्यादा हैं. जिला भले ही पिछड़ा है, लेकिन कानपुर और लखनऊ की सीमा से जुड़ा होने की वजह से यहां की जमीन काफी महंगी है. इसलिए यहां के लोग अपनी जमीनें बेच कर अय्याशी करने लगे हैं. इस के अलावा गांवों के विकास के लिए पंचायती राज कानून लागू होने की वजह से गांवों में सरकारी योजनाओं का पैसा भी खूब रहा है, जिस से पंचायतों से जुड़े लोग प्रभावशाली बनने लगे हैं

यही सब देख कर युवा चुनाव की ओर आकर्षित होने लगे हैं. वे चुनाव जीत कर समाज और राजनीति में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहते हैं. उमेश कनौजिया भी कुछ ऐसा ही सोच नहीं रहा था, बल्कि इस राह पर उस ने कदम भी बढ़ा दिए थे. लेकिन उस का यह सपना पूरा होता, उस के साथ एक हादसा हो गया. 14 नवंबर, 2013 की सुबह उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के थाना मलिहाबाद के गांव गढ़ी महदोइया के लोगों ने गांव के बाहर शारदा सहायक नहर के किनारे एक लाश पड़ी देखी. मृतक यही कोई 25-26 साल का था. वह धारीदार सफेदनीला स्वेटर, नीली जींस और हरे रंग की शर्ट पहने था. उस के दाहिने हाथ में कलावा बंधा था, जिस का मतलब था कि वह हिंदू था. उस के गले पर रस्सी का निशान साफ नजर रहा था. जिस से साफ था कि उस की हत्या की गई थी. हालांकि उस के दाहिने गाल से खून भी बह रहा था.

लाश से थोड़ी दूरी पर एक पैशन प्रो मोटरसाइकिल भी पड़ी थी, जिस का नंबर यूपी 32 ईवाई 1778 था. उस में चाबी लगी थी. पहली नजर में देख कर यही कहा जा सकता था कि यह दुर्घटना का मामला है. लेकिन गले पर जो रस्सी का निशान था, उस से अंदाजा साफ लग रहा था कि यह एक्सीडेंट नहीं, हत्या का मामला  है. जिन लोगों ने लाश देखी थी, उन्हें लगा कि यह हत्या का मामला है तो उन्होंने इस बात की सूचना ग्रामप्रधान को दी. उस समय सुबह के यही कोई 7 बज रहे थे. ग्रामप्रधान के पति राजेश कुमार ने नहर के किनारे लाश पड़ी होने की सूचना थाना मलिहाबाद पुलिस को दी तो एसएसआई श्याम सिंह सिपाहियों को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए

लाश और घटनास्थल का निरीक्षण कर उन्होंने लाश की शिनाख्त करानी चाही, तो वहां जमा लोगों में से कोई भी उस की पहचान नहीं कर सका. लाश के कपड़ों की तलाशी में भी ऐसा कोई सामान नहीं मिला, जिस से उस की पहचान हो पाती. मोटरसाइकिल के नंबर से अंदाजा लगाया गया कि मृतक लखनऊ का रहने वाला है, क्योंकि उस पर पड़ा नंबर लखनऊ का ही था. संयोग से मोटरसाइकिल की डिग्गी खोली गई तो उस में से उस के कागजात मिल गए. मोटरसाइकिल उमेश कनौजिया के नाम रजिस्टर्ड थी. उस पर पता एकतानगर, थाना ठाकुरगंज, लखनऊ का था. इस से साफ हो गया कि मारा गया युवक लखनऊ का ही रहने वाला था

थाना मलिहाबाद पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए लखनऊ मेडिकल कालेज भिजवा दिया. इस के बाद एसएसआई श्याम सिंह ने घटना की सूचना देने के लिए 2 सिपाहियों को एकता नगर भेज दिया. थाना मलिहाबाद के सिपाहियों ने थाना ठाकुरगंज के एकतानगर पहुंच कर उमेश कनौजिया के बारे में पता किया तो वहां पर उस की मौसी शशिकला मिलीं. पुलिस वालों ने जब उमेश की लाश मिलने की बात उन्हें बताई तो वह बेहोश हो गईं. घर वाले पानी के छींटे मार कर उन्हें होश में ले आए तो उन्होंने बताया, ‘‘उमेश हमारी बहन का बेटा है. वह उन्नाव का रहने वाला है. जब वह मेरे यहां रह कर पढ़ाई कर रहा था, तभी उस ने यह मोटरसाइकिल खरीदी थी. इसीलिए उस के कागजातों में मेरा पता लिखा है.’’

इस के बाद पुलिस वालों ने शशिकला से उमेश के घर वालों का फोन नंबर ले कर उमेश की मौत की सूचना उस के घर वालों को दी. सूचना मिलने के थोड़ी देर बाद ही उमेश के घर वाले थाना मलिहाबाद पहुंच गए. उमेश के पिता सूबेदार कनौजिया ने उमेश की हत्या किए जाने की बात कह कर 2 लड़कों के नाम भी बताएलेकिन थाना मलिहाबाद पुलिस का कहना था कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिलने के बाद ही हत्या का मुकदमा दर्ज किया जाएगा. इस पर उमेश के घर वाले भड़क उठे. धीरेधीरे यह बात फैलने लगी कि जिला पंचायत सदस्य उमेश कनौजिया की हत्या हो गई है और थाना मलिहाबाद पुलिस मुकदमा दर्ज करने में आनाकानी कर रही है. मलिहाबाद उन्नाव की सीमा से जुड़ा है, इसलिए खबर मिलने के बाद मृतक उमेश की जानपहचान वाले थाना मलिहाबाद पहुंचने लगे.

15 नवंबर, 2013 की सुबह से ही हत्या का मुकदमा दर्ज करने के लिए धरनाप्रदर्शन शुरू हो गया. अब तक शव घर वालों को मिल चुका था. घर वालों ने बसपा सांसद ब्रजेश पाठक, भाजपा के पूर्व विधायक मस्तराम, किसान यूनियन के नेता महेंद्र सिंह के नेतृत्व में रहीमाबाद चौराहे पर लाश रख कर रास्ता रोक दिया. सांसद ब्रजेश पाठक का कहना था कि समाजवादी पार्टी के राज में पुलिस आम जनता की नहीं सुन रही है, इसलिए ऐसा करना पड़ रहा है. जाम लगने से आनेजाने वाले ही नहीं, रहीमाबाद कस्बे के लोग भी परेशान हो रहे थे. जाम लगाने वाले लोग उमेश कनौजिया के हत्यारों को गिरफ्तार करने, थाना मलिहाबाद के इंसपेक्टर जे.पी. सिंह को निलंबित करने, पीडि़त परिवार को 10 लाख रुपए का मुआवजा देने और उमेश के छोटे भाई सुधीर को सरकारी नौकरी देने की मांग कर रहे थे.

जाम का नेतृत्व कर रहे नेताओं को लग रहा था कि उन के इस आंदोलन से राजनीतिक लाभ मिल सकता है, इसलिए वे आंदोलन में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहे थे. जाम लगाए लोगों को हटाने के लिए रहीमाबाद चौकी के प्रभारी अनंतराम सिपाही ज्ञानधर यादव, छेदी यादव, अशोक और होमगार्ड श्रीपाल यादव को साथ ले कर वहां पहुंचे तो गुस्साए लोगों ने अनंतराम और उन के साथ आए सिपाहियों के साथ मारपीट कर के उन्हें भगा दिया. इस बात की सूचना लखनऊ के एसपी (ग्रामीण) सौमित्र यादव, क्षेत्राधिकारी (मलिहाबाद) श्यामकांत त्रिपाठी और इंसपेक्टर (मलिहाबाद) जे.पी. सिंह को मिली तो आसपास के 3 थानों की पुलिस रहीमाबाद भेज दी गई

काफी समझानेबुझाने और भरोसा दिलाने के बाद लगभग 4 घंटे बाद जाम खुला. तब रहीमाबाद के लोगों ने राहत की सांस ली. इस के बाद उमेश के घर वाले उस का शव अंतिम संस्कार के लिए ले कर गांव चले गए. उस समय तो यह खतरा टल गया, लेकिन पुलिस को अंदेशा था कि अगले दिन भी राजनीतिक लोग इस घटना का लाभ उठाने के लिए धरनाप्रदर्शन कर सकते हैं. इसी बात पर विचार कर के लखनऊ के एसएसपी जे. रवींद्र गौड ने मामले का जल्द से जल्द खुलासा करने के लिए अपने मातहत अधिकारियों पर दबाव बनाया. इस के बाद थाना मलिहाबाद के इंसपेक्टर जे.पी. सिंह ने उमेश के घर वालों से मिल कर यह जानने की कोशिश की कि उन की किसी से रंजिश तो नहीं है. लेकिन घर वालों ने किसी भी तरह की राजनीतिक या पारिवारिक रंजिश से इनकार कर दिया

उमेश के पास इतना पैसा भी नहीं था कि लूटपाट के लिए उस की हत्या की जाती. वह पैसे का भी लेनदेन नहीं करता था. अब पुलिस के पास उमेश हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने का एकमात्र सहारा उस का मोबाइल फोन था. पुलिस ने उमेश के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. उस के अध्ययन से पता चला कि 13 नवंबर को एक ही नंबर पर उस ने 32 बार फोन किया था. पुलिस ने उस नंबर के बारे में पता किया तो वह नंबर जिला उन्नाव के थाना हसनगंज के गांव शाहपुर तोंदा की रहने वाली आशा का निकला. आशा का विवाह थाना मलिहाबाद के अंतर्गत आने वाले गांव सिंधरवा के रहने वाले राजू से हुआ था. राजू दुबई में लांड्री का काम करता था. आशा यहीं रहती थी. पति बाहर रहता था, इसलिए वह ससुराल में कम, मायके शाहपुर तोंदा में ज्यादा रहती थी.

उमेश का उस के यहां नियमित आनाजाना  था. जब भी आशा मायके में रहती, उमेश उस से मिलने के लिए दूसरेतीसरे दिन आता रहता था. अगर किसी वजह से वह नहीं पाता था तो उसे फोन जरूर करता था. दरअसल आशा कनौजिया की मां महेश्वरी देवी ने भी जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ा था. उमेश बिरादरी का नेता माना जाता था, इसलिए महेश्वरी देवी उमेश को अपने साथ रखने लगी थी. उसे लगता था कि उमेश साथ रहेगा तो बिरादरी के वोट उसे मिल जाएंगे. चुनाव महेश्वरी देवी लड़ रही थी, लेकिन उस का पूरा कामकाज पति प्रकाश कनौजिया देखता था. यही वजह थी कि उमेश और प्रकाश में गहरी छनने लगी थी. प्रकाश कनौजिया को भी लगता था कि उमेश के साथ रहने से बिरादरी का सारा वोट उसे ही मिलेगा.

चुनाव के दौरान महेश्वरी देवी के यहां आनेजाने में उमेश की नजर उस की 24 वर्षीया विवाहित बेटी आशा पर पड़ी तो वह उसे भा गई. भरेपूरे बदन वाली आशा पर उमेश की नजरें गड़ गईं. फिर तो जल्दी ही आशा की भी उमंगें हिलोरे लेने लगीं. यही वजह थी कि जल्दी ही दोनों के बीच प्रेमसंबंध बन गए. उमेश स्मार्ट और खुशदिल इंसान था. अपने इसी स्वभाव की बदौलत वह आशा को भा गया था. चुनाव के दौरान अकसर दोनों का एकसाथ आनाजाना होता रहा. उसी बीच एकांत मिलने पर दोनों ने अपने इस प्रेमसंबंध को शारीरिक संबंध में तबदील कर दिया था.

समय के साथ उमेश और आशा के संबंध प्रगाढ़ हुए तो उमेश आशा को अपनी जागीर समझने लगा. जबकि आशा को यह बिलकुल पसंद नहीं था. क्योंकि आशा के संबंध कुछ अन्य लोगों से भी थे. यही बात उमेश को पसंद नहीं थी. वह चाहता था कि आशा उस के अलावा किसी और से संबंध रखे. इस के लिए उस ने आशा को रोका भी, लेकिन वह नहीं मानीउस का कहना था कि वह अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीना चाहती है, वह उसे रोकने वाला कौन होता है. उमेश के पास आशा के पति राजू का दुबई का फोन नंबर था. कभीकभी राजू की उस से बात भी होती रहती थी. आशा ने उमेश का कहना नहीं माना तो उस ने उसे सबक सिखाने की ठान ली.

एक दिन जब उस के पास राजू का फोन आया तो उमेश ने उस से बता दिया कि यहां आशा के कई लोगों से प्रेमसंबंध हैं. इस के बाद राजू और आशा में जम कर तकरार हुई. उमेश की यह हरकत आशा को बिलकुल पसंद नहीं आई. उस का इस तरह जिंदगी में दखल देना उसे अच्छा नहीं लगा तो उस ने उमेश को फोन कर के कहा, ‘तुम ने हमारे बारे में झूठ बोल कर राजू से मेरी जो लड़ाई कराई है, यह मुझे अच्छा नहीं लगा.’ अब तुम मुझ से तो मिलने की कोशिश करना और ही मुझे फोन  करना.

‘‘आशा, तुम मेरी बात का बेकार ही बुरा मान रही हो. मैं तुम्हें प्यार करता हूं, इसलिए चाहता हूं कि तुम मेरे अलावा किसी और से मिलो.’’ उमेश ने सफाई दी.

‘‘लेकिन राजू से शिकायत कर के तुम ने मुझे उस की नजरों में गिरा दिया. वह मेरे बारे में क्या सोच रहा होगा? शक तो वह पहले से ही करता था. अब उसे विश्वास हो गया कि मैं सचमुच गलत हूं.’’ आशा ने झल्ला कर कहा.

‘‘मैं गुस्से में था, इसलिए मुझ से गलती हो गई. अब ऐसा नहीं होगा. तुम मुझे समझने की कोशिश करो आशा.’’ उमेश ने आशा को समझाने की कोशिश की.

‘‘तुम्हारी यह पहली गलती नहीं है. इस के पहले तुम ने मेरे साथ मारपीट की थी, मैं ने उस का भी बुरा नहीं माना था. लेकिन यह जो किया, अच्छा नहीं किया. यह गलती माफ करने लायक नहीं है. मैं तुम जैसे आदमी से अब संबंध नहीं रखना चाहती.’’ आशा ने कहा.

‘‘आशा, 13 नवंबर को मैं तुम से मिलने रहा हूं. तब बैठ कर आराम से बातें कर लेंगे.’’ उमेश ने कहा.

‘‘मैं तुम से बिलकुल नहीं मिलना चाहती, इसलिए तुम्हें यहां आने की जरूरत नहीं है.’’ आशा ने उसे आने से रोका.

‘‘आशा इतना भी नाराज मत होओ बस एक बार मेरी बात सुन लो, उस के बाद सब साफ हो जाएगा. बात इतनी बड़ी नहीं है, जितना तुम बना रही हो.’’

‘‘तुम्हारे लिए भले ही यह बात बड़ी नहीं है, लेकिन मेरे लिए यह बड़ी बात है. मैं अभी तक तुम्हारी हरकतें नजरअंदाज करती आई थी, यह उसी का नतीजा है. लेकिन अब बरदाश्त के बाहर हो गया है.’’ कह कर आशा ने फोन काट दिया.

13 नवंबर को उमेश आशा से मिलने उस के घर जाने वाला था. 14 नवंबर को बाराबंकी में उस के दोस्त पंकज के यहां शादी थी. उमेश ने योजना बनाई थी कि वह आशा से मिलते हुए दोस्त के यहां शादी में चला जाएगा. 13 नवंबर की शाम को यही कोई 7 बजे उमेश ने अपने घर फोन कर के बताया भी था कि वह मलिहाबाद में अपने दोस्त से मिल कर बाराबंकी चला जाएगा. इस के बाद उमेश ने घर वालों से संपर्क नहीं किया. रात में उस के छोटे भाई सुधीर ने उसे फोन किया तो उस का फोन बंद मिला. 13 नवंबर को उमेश ने दिन में 32 बार फोन कर के आशा को मनाने की कोशिश की थी. लेकिन आशा को अब उमेश से नफरत हो गई थी. उमेश ने उस के साथ जो किया था, अब वह उस से उस का बदला लेना चाहती थी.

आशा के संबंध गांव के ही रहने वाले रामनरेश, शकील और हरौनी के रहने वाले छोटे उर्फ पुत्तन से थे. आशा ने इन्हीं लोगों की मदद से उमेश से हमेशाहमेशा के लिए छुटकारा पाने का निश्चय कर लिया था. शाम को जब उमेश आशा से मिलने उस के घर पहुंचा तो आशा ने उस के साथ ऐसा व्यवहार किया, जैसे उस से उसे कोई शिकायत नहीं है. उस ने उसे खाना खिलाया और सोने के लिए बिस्तर भी लगा दिया. सोने से पहले उमेश ने शारीरिक संबंध की इच्छा जताई तो थोड़ी नानुकुर के बाद आशा ने उस की यह इच्छा भी पूरी कर दी. आशा की यही अदा उमेश को अच्छी लगती थी. आशा के इस व्यवहार से उमेश को लगा कि वह मान गई है. वह उसे बांहों में लिएलिए ही निश्चिंत हो कर सो गया.

उमेश के सो जाने के बाद आशा उठी और अपने कपड़े ठीक कर के घर के बाहर आई. उस ने गांव का माहौल देखा. गांव में सन्नाटा पसर गया था. उस ने रामनरेश, शकील और छोटे को पहले से ही तैयार कर रखा था. उन के पास जा कर उस ने कहा, ‘‘चलो उठो, वह सो चुका है. गांव में भी सन्नाटा पसर गया है. जल्दी से उसे खत्म कर के लाश ठिकाने लगा दो.’’

रामनरेश और आशा ने उमेश के पैर पकड़े तो छोटे ने हाथ पकड़ लिए. उस के बाद शकील ने गला दबा कर उसे खत्म कर दिया. छोटे महदोइया गांव का ही रहने वाला था, इसलिए उसे गांव की एकएक गली का पता था. सभी ने मिल कर उमेश की लाश को टैंपो नंबर 35 8902 में डाला और ले जा कर गांव से काफी दूर नहर के किनारे फेंक दिया. शकील और छोटे टैंपो के पीछेपीछे उमेश की मोटरसाइकिल ले कर गए थे. उसे भी वहीं डाल दिया थालाश ले जाने से पहले आशा ने उमेश की पैंट की जेब से मोबाइल और पर्स निकाल लिया था, जिस से उस की पहचान हो सके.

शकील और छोटे ने उमेश की लाश को नहर के किनारे इस तरह फेंका था कि देखने वालों को यही लगे कि रात में दुर्घटना की वजह से इस की मौत हुई है. अपनी इस योजना में वे सफल भी हो गए थे, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पोल खुल गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार उस की मौत गला दबाने से हुई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज कर के मामले की जांच शुरू की तो हत्यारों तक पहुंचने में उसे देर नहीं लगी. आशा से पूछताछ के बाद पुलिस ने रामनरेश को भी गिरफ्तार कर लिया था. पुलिस ने उस से भी पूछताछ की. उस ने भी अपना जुर्म कुबूल लिया था. पूछताछ के बाद पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

पुलिस शकील और छोटे की तलाश कर रही थी, लेकिन कथा लिखे जाने तक दोनों पुलिस के हाथ नहीं लगे थे. पुलिस हत्या के इस मामले में आशा के मांबाप की भूमिका की भी जांच कर रही है. आशा ने जो किया, उस से उमेश का ही नहीं, उस का खुद का भी परिवार छिन्नभिन्न हो गया. जिस पति से वह अपने जिन संबंधों को छिपाना चाहती थी, उमेश की हत्या के बाद पति को ही नहीं, पूरी दुनिया को पता चल गया. अब उस का क्या होगा, यह तो अदालत के फैसले के बाद ही पता चलेगा.

दोस्त से कराई प्रेमिका की हत्या

समीर ने विवाहिता सोफिया से प्यार केवल उस का शरीर पाने के लिए किया था. जबकि सोफिया उस के साथ जिंदगी बिताने के सपने देख रही थी. कभी किसी के सपने पूरे हुए हैं जो सोफिया के पूरे होते. आग भड़की तो धुआं खिड़कियों और दरवाजों की दराजों से बाहर निकलने लगा. पड़ोसियों ने तुरंत इस बात की जानकारी फायर और पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. पुलिस कंट्रोलरूम ने तत्काल इस बात की सूचना मुंबई के उपनगर चैंबूर के थाना पुलिस को दी. सूचना के अनुसार लल्लूभाई कंपाउंड की इमारत की पांचवीं मंजिल के किसी फ्लैट में आग लगी थी. उस में से निकलने वाले धुएं से मानव शरीर के जलने की गंध रही थी. उस समय ड्यूटी पर सबइंसपेक्टर माली थे.

सूचना गंभीर थी, इसलिए घटना की सूचना अपने सीनियर पुलिस इंसपेक्टर चंद्रशेखर नलावड़े को दे कर वह तुरंत कुछ सिपाहियों के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. सबइंसपेक्टर माली के पहुंचने तक वहां काफी भीड़ जमा हो चुकी थी. आग बुझाने वाली गाडि़यां भी चुकी थीं और उन्होंने आग पर काबू भी पा लिया था. सबइंसपेक्टर माली साथियों के साथ फ्लैट के अंदर पहुंचे तो वहां की स्थिति देख कर स्तब्ध रह गएकमरे में एक औरत बेहोशी की हालत में रुई के गद्दे में लिपटी थी. गद्दे के साथ उस के सारे कपड़े ही नहीं, सीना, पेट, हाथ, कमर और दोनों पैर भी बुरी तरह जल गए थे. गौर से देखने पर पता चला कि उस के सिर के ऊपरी हिस्से में गहरा घाव था, जिस से अभी भी खून रिस रहा था.

वहां तेज धार वाला एक बड़ा सा खून से सना चाकू पड़ा था. साफ था, पहले हत्यारों ने महिला पर चाकू से वार किया था. उस के बाद सुबूत मिटाने के लिए उसे गद्दे में लपेट कर आग लगा दी थी. सबइंसपेक्टर माली ने देखा कि महिला की सांस चल रही है तो उन्होंने उसे तुरंत एंबुलैंस में डाल कर उपचार के लिए घाटकोपर राजा वाड़ी असपताल भिजवा दिया. इस के बाद वह सुबूतों की तलाश में फ्लैट का कोनाकोना छानने में लग गए. पड़ोसियों से पूछताछ में पता चला कि महिला का नाम सोफिया शेख था. वह अपनी बेटी के साथ वहां रहती थी. श्री माली अपने सहायकों के साथ सोफिया के बारे में जानकारी जुटा रहे थे कि घटना की सूचना पा कर ज्वाइंट सीपी कैसर खालिद, एडिशनल सीपी लखमी गौतम, एसीपी विजय मेरु, सीनियर इंसपेक्टर शंकर सिंह राजपूत, इंसपेक्टर चंद्रशेखर नलावड़े, प्रमोद कदम घटनास्थल पर पहुंचे थे.

अधिकारी घटनास्थल का निरीक्षण कर के सीनियर इंसपेक्टर शंकर सिंह राजपूत को आवश्यक दिशानिर्देश दे कर चले गए. अधिकारियों के जाने के बाद सीनियर इंसपेक्टर शंकर सिंह राजपूत ने सहायकों की मदद से चाकू, खून का नमूना, सोफिया का मोबाइल फोन कब्जे में लिया और लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर थाने गए. थाने कर सीनियर इंसपेक्टर शंकर सिंह राजपूत हत्यारों तक पहुंचने का रास्ता तलाश करने लगे. घटनास्थल की स्थिति से साफ था कि यह लूटपाट का मामला नहीं था, क्योंकि फ्लैट का सारा समान यथास्थिति पाया गया था. ऐसे में सावाल यह था कि तब सोफिया की हत्या की कोशिश क्यों की गई थी

सोफिया इस स्थिति में नहीं थी कि वह इस सवाल का जवाब देती. वह उस समय जिंदगी और मौत के बीच झूल रही थी. वैसे भी उस के बचने की संभावना कम थी. आखिर वही हुआ, जिस का सभी को अंदाजा था. लाख कोशिश के बाद भी डाक्टर सोफिया को बचा नहीं सके. उसी दिन शाम लगभग 6 बजे सोफिया ने दम तोड़ दिया था. सोफिया की मौत के बाद हत्यारों के बारे में पता चलने की पुलिस की उम्मीद खत्म हो गई थी. अब उन्हें अपने तरीके से कातिलों तक पहुंचना था. सोफिया की हत्या किस ने और क्यों की, वे कहां के रहने वाले थे? अब पुलिस के लिए यह एक रहस्य बन गया था. सीनियर इंसपेक्टर शंकर सिंह राजपूत ने इस मामले की जांच इंसपेक्टर चंद्रशेखर नलावड़े को सौंप दी थी.

सीनियर इंसपेक्टर शंकर सिंह राजपूत के मार्गदर्शन में इंसपेक्टर चंद्रशेखर नलावड़े ने इंसपेक्टर प्रमोद कदम, असिस्टेंट इंसपेक्टर पोपट सालुके, सबइंसपेक्टर संदेश मांजरेकर, सिपाही भरत ताझे, राजेश सोनावणे की एक टीम बना कर मामले की तफ्तीश तेजी से शुरू कर दी. चंद्रशेखर की इस टीम ने सोफिया की बेटी, इमारत में रहने वालों और उस के नातेरिश्तेदारों से लंबी पूछताछ की. इमारत में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी देखी. लेकिन काफी मेहनत के बाद भी उस के कातिलों तक पहुंचने का पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला. जब इस पूछताछ से पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला तो पुलिस ने सोफिया के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. पुलिस की नजरें काल डिटेल्स के उस नंबर पर जम गईं, जो उस दिन सोफिया पर हमला होने से पहले आया था

वही अंतिम फोन भी था. वह फोन 12 बज कर 03 मिनट पर आया था. सोफिया ने उसे रिसीव भी किया था. इस का मतलब उस समय तक वह जीवित थी. इस के बाद ही उस फ्लैट में आग लगने की सूचना पुलिस और फायरब्रिगेड को दी गई थी. इस का मतलब फोन करने के बाद 15 मिनट के अंदर हत्यारे अपना काम कर के चले गए थे. इंसपेक्टर चंद्रशेखर की टीम ने एक बार फिर इमारत में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी. उस समय की तस्वीरों को गौर से देखा गया. लेकिन कोई स्पष्ट तस्वीर पुलिस को दिखाई नहीं दी. इस के बाद पुलिस ने उस नंबर पर फोन किया, लेकिन फोन बंद होने की वजह से बात नहीं हो पाई. तब पुलिस ने यह पता किया कि वह नंबर किस के नाम है और वह कहां रहता है?

पुलिस को इस संबंध में तुरंत जानकारी मिल गई. वह किसी जावेद के नाम था. पुलिस को उस का पता भी मिल गया था. पुलिस उस के घर पहुंची तो वह घर पर नहीं मिला. घर पर जावेद की बहन और भाभी मिलीं तो पुलिस ने पूछा कि उस का फोन बंद क्यों है? तब दोनों ने बताया कि उस का फोन इन दिनों उस के जिगरी दोस्त पप्पू के पास है. पप्पू का पता भी दोनों ने बता दिया था. इसलिए पुलिस टीम वहां से सीधे पप्पू के घर जा पहुंची. पप्पू भी घर से गायब था. पुलिस टीम ने उस फोन को सर्विलांस पर लगवा दिया, जिस का उपयोग पप्पू कर रहा था. इस के बाद सर्विलांस की मदद से 12 दिसंबर, 2013 की दोपहर 2 बजे पुलिस टीम ने पप्पू को शिवडी के झकरिया बंदर रोड से गिरफ्तार कर लिया.

थाने ला कर जब पप्पू से सोफिया की हत्या के बारे में पूछताछ की जाने लगी तो पहले उस ने स्वयं को निर्दोष बताया. लेकिन पुलिस के पास उस के खिलाफ ढेर सारे सुबूत थे, इसलिए उसे घेर कर सच्चाई उगलवा ली. आखिर उस ने स्वीकार कर लिया कि मुन्ना उर्फ परवेज शेख के साथ उसी ने दुबई में रहने वाले समीर के कहने पर सोफिया की हत्या की थी. इस के बाद पुलिस ने पप्पू की निशानदेही पर घाटकोपर के तिलकनगर के सावलेनगर के रहने वाले मुन्ना को उस के घर छापा मार कर गिरफ्तार कर लिया. पप्पू के पकड़े जाने से पूछताछ में उस ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद दोनों को मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश कर के 7 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया गया. रिमांड के दौरान पूछताछ में दोनों ने जो बताया, उस के अनुसार सोफिया की हत्या की यह कहानी कुछ इस तरह थी.

40 वर्षीया सोफिया शेख अपने 2 बच्चों के साथ चैंबूर मानखुर्द के लल्लूभाई कंपाउंड की बिल्डिंग नंबर 60 की बीविंग के फ्लैट नंबर 5/3 में रहती थी. उस का 13 वर्षीय बेटा रत्नागिरि के एक बोर्डिंग स्कूल में पढ़ता था और वहीं बोर्डिंग के हौस्टल में रहता था. जबकि 10 वर्षीया बेटी सोफिया के साथ ही रहती थी. घटना के समय वह स्कूल गई हुई थी. सन 1991 में सोफिया शेख का निकाह चैंबूर के शिवाजीनगर के रहने वाले इमरान हाजीवर शेख के बड़े भाई के साथ हुआ तो मानो उसे दुनिया की सारी खुशियां मिल गई थीं. इस की वजह यह थी कि उस का पति उसे जान से ज्यादा प्यार करता था. उस का दांपत्यजीवन बड़ी हंसीखुशी से बीत रहा था. दोनों अपनी गृहस्थी जमाने की कोशिश कर रहे थे कि अचानक उन की इस गृहस्थी पर किसी की काली नजर पड़ गई

अभी सोफिया के हाथों की मेहंदी भी ठीक से नहीं छूटी थी कि जिस पति ने उस का हाथ थाम कर जीवन भर साथ निभाने का वादा किया था, वह हाथ ही नहीं, बल्कि हमेशाहमेशा के लिए उस का साथ छोड़ कर चला गया. हैवानियत की एक ऐसी आंधी आई, जिस में उस का सुहाग पलभर में उड़ गया. सन 1992 में मुंबई में जो सांप्रदायिक दंगे हुए थे, उस में उस का पति मारा गया था. पति की आकस्मिक मौत ने सोफिया को तोड़ कर रख दिया. उसे दुनिया से ही नहीं, अपनी जिंदगी से भी नफरत हो गई. वह जीना नहीं चाहती थी, लेकिन आत्महत्या भी नहीं कर सकती थी. वह हमेशा सोच में डूबी रहने लगी. मुसकराने की तो छोड़ो, वह बातचीत भी करना लगभग भूल सी गई थी. उस की हालत देख कर मातापिता परेशान रहने लगे थे. उस ने जिंदगी शुरू की थी कि उस के साथ इतना बड़ा हादसा हो गया था.

अभी उस की पूरी जिंदगी पड़ी थी. उस की जिंदगी को संवारने के लिए उस के मातापिता उस के दूसरे निकाह के बारे में सोचने लगे. सोफिया के मातापिता उस का दूसरा निकाह उस के पति के छोटे भाई इमरान हाजीवर शेख से करना चाहते थे. सोफिया की ससुराल वालों से बातचीत कर के जब उस के मातापिता ने इमरान से निकाह का प्रस्ताव सोफिया के सामने रखा तो उस ने मना कर दिया. लेकिन उन्होंने उसे ऊंचनीच का हवाला दे कर खूब समझायाबुझाया तो वह देवर इमरान हाजीवर शेख के साथ निकाह करने को तैयार हो गई. इस के बाद दोनों परिवारों की उपस्थिति में बड़ी सादगी से सोफिया का निकाह उस के पति के छोटे भाई इमरान हाजीवर शेख के साथ हो गया. यह 1996 की बात थी. इमरान औटो चलाता था

निकाह के बाद सोफिया अपने दूसरे पति से भी वैसा ही प्यार चाहती थी, जैसा उसे पहले पति से मिला था. यही वजह थी कि वह उसे भी उसी तरह प्यार कर रही थी. निकाह के कुछ दिनों बाद तक तो इमरान ने उसे उसी तरह प्यार किया, जिस तरह उस के पहले पति ने किया था. तब वह अपनी सारी कमाई ला कर सोफिया के हाथों में रख देता था. उस बीच उस ने उस के हर दुखसुख का खयाल भी रखा. उसी बीच सोफिया उस के 2 बच्चों की मां बनी. पहला बच्चा बेटा था तो दूसरा बेटी. बच्चों के बढ़ने के साथ जिम्मेदारियां बढ़ने लगीं. जिम्मेदारियां बढ़ीं तो खर्च बढ़ा, जिस के लिए इमरान को कमाई बढ़ाने के लिए ज्यादा समय देना पड़ता था. अब वह पहले की तरह सोफिया को प्यार कर पाता था, समय दे पाता था. इस से सोफिया का मन बेचैन रहने लगा, जिस से छोटीछोटी बातों को ले कर बड़ेबड़े झगड़े होने लगे. धीरेधीरे ये झगड़े इतने बढ़ गए कि दोनों ने अलग रहने का निर्णय ले लिया. इस तरह दोनों के संबंध खत्म हो गए.

पति से अलग होने के बाद सोफिया दोनों बच्चों को ले कर मानखुर्द में मुंबई म्हाण द्वारा मिले मकान में कर रहने लगी. बच्चों के साथ यहां कर सोफिया खुश तो थी, लेकिन एक बात यह भी है कि पति से अलग होने के बाद हर औरत बहुत दिनों तक अपने दिलोदिमाग पर काबू नहीं रख पाती. अगर वह जवान हो तो यह समस्या और बढ़ जाती है. क्योंकि इस उम्र में जो जोश होता, उसे संभालना हर किसी के वश की बात नहीं होती. उस औरत के लिए यह और मुश्किल हो जाता है, जो उस का स्वाद चख चुकी होती है. ऐसे में वह उस सुख के लिए मर्यादा तक भूल जाती है. ऐसा ही सोफिया के साथ भी हुआ. पति इमरान हाजीवर से अलग होने के बाद वह अपने तनमन पर काबू नहीं रख पाई और स्वयं को समीर शेख की बांहों में झोंक दिया.

25 वर्षीय समीर शेख अपने भाई के साथ गोवड़ी शिवाजीनगर के उसी इलाके में रहता था, जहां सोफिया अपने पति इमरान हाजीवर शेख के साथ रहती थी. समीर शेख देखने में जितना सुंदर और स्वस्थ था, उतना ही दिलफेंक भी था. इसी वजह से लड़कियां उस की कमजोरी बन चुकी थीं. समीर के पास किसी चीज की कमी नहीं थी. वह दुबई की किसी कंपनी में नौकरी करता था. अच्छी कमाई थी, इसलिए खर्च करने में भी उसे कोई परेशानी नहीं होती थी. वह हमेशा हीरो की तरह सजधज कर रहता था. उस की शादी भी नहीं हुई थी, इसलिए कोई जिम्मेदारी भी नहीं थी. अपने दिलफेंक स्वभाव की ही वजह से जब उस ने सोफिया को अपने एक रिश्तेदार के यहां देखा तो पहली ही नजर में उसे अपने दिल में बैठा लिया. कुंवारा समीर अपनी उम्र से बड़ी और 2 बच्चों की मां सोफिया पर मर मिटा. सोफिया जब तक अपने उस रिश्तेदार के घर रही, तब तक महिलाओं को पटाने में माहिर समीर की नजरें सोफिया के इर्दगिर्द ही घूमती रहीं.

सोफिया को भी एक ऐसे पुरुष की जरूरत थी, जो उस के भटकते तनमन को काबू में ला सके. इसलिए समीर से नजरें मिलते ही उस ने उस के दिल की बात जान ली. सोफिया ने समीर को तब देखा था, जब वह लड़का था. आज वही समीर जवान हो कर उसे अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश कर रहा था. समीर का भरापूरा चेहरा, चौड़ी छाती और मजबूत बांहें देख कर सालों से शारीरिक सुख से वंचित सोफिया का मन विचलित हो उठा. वह उसे चाहत भरी नजरों से ताक ही रहा था, इसलिए सोफिया ने भी उस पर अपनी नजरें इनायत कर दीं तो बातचीत में होशियार समीर को उस पर अपना प्रभाव जमाने में देर नहीं लगी. उसी दौरान दोनों ने एकदूसरे के फोन नंबर भी ले लिए. इस के बाद मोबाइल पर शुरू हुई बातचीत जल्दी ही मेलमुलाकात में ही नहीं, प्यार और शारीरिक संबंधों में बदल गई.

2 बच्चों की मां होने के बावजूद सोफिया की सुंदरता में जरा भी कमी नहीं आई थी. उस के रूपसौंदर्य और शालीन स्वभाव में समीर डूब सा गया. औरतों का रसिया समीर शेख जब तक दुबई में रहता, फोन से बातें कर के सोफिया को अपने प्यार में इस कदर उलझाए रहता कि उसे उस की दूरी का अहसास नहीं हो पातादुबई से आने पर समीर सोफिया के लिए ढेर सारे उपहार तो लाता ही, उसे इस कदर प्यार करता कि बीच का खालीपन भर जाता. जब तक वह यहां रहता, सोफिया को इतना प्यार देता कि वह पूरी दुनिया भूली रहती. समीर के प्यार को पा कर सोफिया एक सुंदर भविष्य के सपनों में खो गई. उस के मन में उम्मीद जाग उठी कि समीर उस का पूरे जीवन साथ देगा. समीर ने वादा भी किया था, इसलिए सोफिया उस से निकाह के लिए कहने लगी. जबकि समीर टालता रहा.

जब समीर और अपने से दोगुनी उम्र की सोफिया के प्यार की जानकारी समीर के घर वालों की हुई तो वे परेशान हो उठे. उन्हें इज्जत के साथसाथ उस के भविष्य की भी चिंता सताने लगी. उन्होंने दुनियादारी बता कर उसे समझायाबुझाया तो वह शादी के लिए राजी हो गया. इस के बाद उस के लिए पारिवारिक लड़की खोजी जाने लगीसमीर शादी के लिए तैयार तो हो गया था, लेकिन वह जानता था कि सोफिया आसानी से मानने वाली औरतों में नहीं है. उस ने सिर्फ शारीरिक जरूरत के लिए ही उस से प्यार नहीं किया था. उस ने उसे दिल से प्यार किया था, इसलिए वह जानता था कि सोफिया आसानी से उसे छोड़ने वाली नहीं है.

समीर भले ही उस से शादी का वादा करता रहा था, लेकिन सच्चाई यह थी कि उस ने मात्र शारीरिक जरूरत पूरी करने के लिए सोफिया से प्यार किया था. यही वजह थी कि घर वालों ने उस के लिए लड़की की तलाश शुरू की तो वह सोफिया को ले कर परेशान रहने लगा. क्योंकि वह जानता था कि सोफिया आसानी से तो क्या, बिलकुल ही नहीं मानने वाली. पता चलने पर यह भी हो सकता था कि वह उस के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा देतब बदनामी भी होती और समीर कानूनी शिकंजे में भी फंस जाता. इसलिए सोफिया नाम के इस कांटे को अपनी जिंदगी से निकालने के लिए उस ने एक खतरनाक फैसला ले कर इस की जिम्मेदारी अपने एक दोस्त पप्पू उर्फ इस्माइल शेख को सौंप दी. इस के बाद वह सोफिया से एक बार फिर शादी का वादा कर के 20 नवंबर, 2013 को दुबई चला गया.

28 वर्षीय पप्पू उर्फ इस्माइल शेख शिवाजीनगर में उसी इमारत में रहता था, जिस में समीर शेख का परिवार रहता था. उस की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, इसलिए उस ने लगभग साल भर पहले व्यवसाय करने के लिए समीर से 35 हजार रुपए उधार लिए थे. समीर से रुपए ले कर उस ने जो व्यवसाय किया था, संयोग से वह चला नहीं. फायदा होने की कौन कहे, उस में उस की जमापूंजी भी डूब गई. जब पैसे ही नहीं रहे तो पप्पू समीर का कर्ज कहां से अदा कर पाता. समीर ने रुपए ब्याज पर दिए थे, जो ब्याज के साथ 50 हजार रुपए हो गए थे. समीर ने अपने रुपए मांगे तो पप्पू ने रुपए लौटाने में मजबूरी जताई और कुछ दिनों की मोहलत मांगी. समीर जानता था कि पप्पू जल्दी रुपए नहीं लौटा सकता, इसलिए उस ने मौका देख कर कहा, ‘‘अगर तुम मेरा एक काम कर दो तो मैं तुम्हारा यह कर्ज माफ कर दूंगा.’’

‘‘ऐसा कौन सा काम है, जिस के लिए तुम इतना कर्ज माफ करने को तैयार हो?’’ पप्पू ने पूछा.

‘‘भाई, इतनी बड़ी रकम माफ करने को तैयार हूं तो काम भी बड़ा ही होगा.’’ समीर ने कहा.

‘‘ठीक है, काम बताओ.’’

‘‘सोफिया शेख की हत्या करनी है.’’ समीर ने कहा तो पप्पू को झटका सा लगा. क्योंकि काम काफी खतरनाक था. लेकिन समीर के 50 हजार रुपए देना भी उस के लिए काफी मुश्किल था, इसलिए मजबूरी में वह यह मुश्किल और खतरनाक काम करने को राजी हो गया. इस के बाद सोफिया की हत्या कैसे और कब करनी है, समीर ने पूरी योजना उसे समझा दी. समीर के दुबई चले जाने के बाद पप्पू उस के द्वारा बनाई योजना को साकार करने की कोशिश में लग गया. यह काम उस के अकेले के वश का नहीं था, इसलिए मदद के लिए उस ने अपने एक परिचित 15 वर्षीय मुन्ना उर्फ परवेज शेख को साथ ले लिया. इस के बाद अपने दोस्त जावेद का मोबाइल फोन ले कर 9 दिसंबर, 2013 को मुन्ना के घर जा पहुंचा. पूरी रात दोनों समीर द्वारा बताई योजना पर विचार करते रहे.

अगले दिन 10 दिसंबर, 2013 की सुबह पप्पू मुन्ना के साथ बाजार गया और वहां से एक तेज धार वाला बड़ा सा चाकू खरीदा. अब उसे यह पता करना था कि सोफिया घर में है या कहीं बाहर. इस के लिए उस ने सोफिया को फोन किया. उस ने फोन रिसीव किया तो पप्पू ने छूटते ही कहा, ‘‘समीरभाई ने मेरा पासपोर्ट और कुछ जरूरी कागजात तुम्हारे घर पर रखे हैं, मैं उन्हें लेने रहा हूं. आप उन्हें ढूंढ़ कर रखें.’’

सोफिया कुछ कहती, उस के पहले ही पप्पू ने फोन काट दिया. इस के बाद पप्पू ने आटो किया और मुन्ना के साथ सोफिया के घर जा पहुंचा. उस ने घंटी बजाई तो सोफिया ने दरवाजा खोल दिया. पप्पू ने अपने पासपोर्ट और कागजातों के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘समीर मेरे पास तो कोई पासपोर्ट रख गया है कोई कागजात. जा कर उसी से पूछो, उस ने कहां रखे हैं.’’

इसी बात को ले कर पप्पू सोफिया से बहस करने लगा तो उस ने नाराज हो कर पप्पू को घर से निकल जाने को कहा. तभी पप्पू ने चाकू निकाल कर उस के सिर पर पूरी ताकत से वार कर दिया. वार इतना तेज था कि सोफिया संभल नहीं पाई और गिर पड़ी. गिरते ही वह बेहोश हो गई. इस के बाद पप्पू और मुन्ना ने सोफिया के सारे गहने उतार कर उसे उसी हालत में गद्दे में लपेट कर आग लगा दी. अपना काम कर के वे बाहर गए और काम हो जाने की सूचना समीर को दे दी.

रिमांड अवधि खत्म होने पर एक बार फिर पप्पू और मुन्ना को महानगर मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया, जहां से दोनों को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक दोनों जेल में थे. हत्या की साजिश रचने वाला समीर शेख दुबई में था. पुलिस उसे वहां से भारत बुलाने की कोशिश कर रही थी.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

शराब पिलाया, कार में सुलाया फिर लगा दी आग

रानी को फांसा तो था देशराज ने, लेकिन मजबूरन उसे इस अवैध रिश्ते में रंजीत को भी हिस्सेदार बनाना पड़ा. जाहिर है इस तरह की हिस्सेदारी ज्यादा दिनों तक नहीं चलती. इस मामले में भी ऐसा ही हुआ.   लखनऊ के थाना मडि़यांव के थानाप्रभारी रघुवीर सिंह को सुबहसुबह किसी ने फोन कर के सूचना दी कि ककौली में बड़ी खदान के पास एक कार में आग लगी है. सूचना मिलते ही रघुवीर सिंह ककौली की तरफ रवाना हो गए. थोड़ी ही देर में वह ककौली की बड़ी खदान के पास पहुंच गए. उन्होंने एक जगह भीड़ देखी तो समझ गए कि घटना वहीं घटी है. जब तक पुलिस वहां पहुंची, कार की आग बुझ चुकी थी. पुलिस ने देखा, कार के अंदर कोई भी सामान सलामत नहीं बचा था

यहां तक कि कार की नंबर प्लेट का नंबर भी नहीं दिखाई दे रहा था. इसी से अंदाजा लगाया गया कि आग कितनी भीषण रही होगी. जली हुई कार के अंदर कुछ हड्डियां और 2 भागों में बंटी इंसान की एक खोपड़ी पड़ी थी. उन्हें देख कर थानाप्रभारी चौंके. हड्डियों और खोपड़ी से साफ लग रहा था कि कार के अंदर कोई इंसान भी जल गया थाथानाप्रभारी ने अपने आला अधिकारियों को भी इस घटना की सूचना दे दी थी. इस के बाद थोड़ी ही देर में क्षेत्राधिकारी (अलीगंज) अखिलेश नारायण सिंह फोरेंसिक टीम के साथ वहां पहुंच गए. कार के अंदर जली अवस्था में एक छोटा गैस सिलेंडर और शराब की खाली बोतल भी पड़ी थी. फोरेंसिक टीम ने अपना काम निपटा लिया तो पुलिस ने अपनी जांच शुरू की.

कार की स्थिति देख कर पुलिस को यह समझते देर नहीं लगी कि यह दुर्घटना नहीं, बल्कि साजिशन इसे अंजाम दिया गया है. कार एक खुले मैदान में थी. आबादी वहां से कुछ दूरी पर थी. इसलिए हत्यारों ने वारदात को आसानी से अंजाम दे दिया था. यह 4 दिसंबर, 2013 की बात हैकार में कोई ऐसी चीज नहीं मिली थी, जिस से जल कर खाक हो चुके व्यक्ति की शिनाख्त हो पाती. इसलिए पुलिस ने घटनास्थल की आवश्यक काररवाई निपटा कर बरामद हड्डियों और खोपड़ी को पोस्टमार्टम के लिए मैडिकल कालेज भेज दिया, जहां से हड्डियों को फोरेंसिक जांच के लिए भेज दिया गया.

अब तक इस घटना की खबर जंगल की आग की तरह आसपास फैल चुकी थी. ककौली के ही रहने वाले सुरजीत यादव का छोटा भाई रंजीत यादव 3 दिसंबर को कार से कटरा पलटन छावनी एरिया में किसी शादी समारोह में शामिल होने के लिए घर से निकला था. उसे उसी रात को लौट आना था. लेकिन वह नहीं लौटा तो घर वालों को उस की चिंता हुई. यही वजह थी कि यह खबर सुनते ही सुरजीत बड़ी खदान की तरफ चल पड़ा. वहां पहुंच कर कार देखते ही वह समझ गया कि यह कार उसी की है. सुरजीत ने थानाप्रभारी रघुवीर सिंह को अपने भाई के गायब होने की पूरी बात बता कर आशंका जताई कि कार में जल कर जो व्यक्ति मरा है, वह उस का भाई रंजीत हो सकता है. इस के बाद सुरजीत की तहरीर पर थानाप्रभारी ने अज्ञात लोगों के खिलाफ रंजीत की हत्या की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

सुरजीत से बातचीत के बाद थानाप्रभारी रघुवीर सिंह ने तहकीकात शुरू की तो पता चला कि रंजीत शादी समारोह में जाने के लिए घर से निकला तो था, लेकिन समारोह में पहुंचा नहीं था. अब सोचने वाली बात यह थी कि वह शादी समारोह में नहीं पहुंचा तो गया कहां था. यह जानने के लिए उन्होंने मुखबिर लगा दिए. एक मुखबिर ने बताया कि 3 दिसंबर की शाम रंजीत को देशराज और अजय के साथ देखा गया था. देशराज हरिओमनगर में रह कर सिक्योरिटी एजेंसी चलाता था. रंजीत उसी की सिक्योरिटी एजेंसी में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करता था

देशराज से पूछताछ के बाद ही सच्चाई का पता चल सकता था, इसलिए पुलिस ने उस की तलाश शुरू कर दी. 5 दिसंबर, 2013 को सुबह 5 बजे के करीब उसे रोशनाबाद चौराहे के पास से गिरफ्तार कर लिया गया. थाने ला कर जब देशराज से पूछताछ की गई तो उस ने सारा सच उगल दिया. इस के बाद उस ने रंजीत यादव को जिंदा जलाने की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी. मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला सीतापुर का रहने वाला देशराज लखनऊ के हरिओमनगर में एक सिक्योरिटी एजेंसी चलाता था. वहीं पर उस ने एक मकान किराए पर ले रखा था. वह लखनऊ में अकेला रहता था, जबकि उस की पत्नी और बच्चे सीतापुर में रहते थे. समय मिलने पर वह अपने परिवार से मिलने सीतापुर जाता रहता था.

उस की एजेंसी अच्छी चल रही थी. जिस से उसे हर महीने अच्छी आमदनी होती थी. कहते हैं, जब किसी के पास उस की सोच से ज्यादा पैसा आना शुरू हो जाता है तो कुछ लोगों में नएनए शौक पनप उठते हैं. देशराज के साथ भी यही हुआ. वह शराब और शबाब का शौकीन हो गया था. वह पास के ही ककौली गांव भी आताजाता रहता था. वहीं पर एक दिन उस की नजर रानी नाम की एक औरत पर पड़ी तो वह उस पर मर मिटा. रानी की अजीब ही कहानी थी. उस का विवाह उस उम्र में हुआ था, जब वह विवाह का मतलब ही नहीं जानती थी. नाबालिग अवस्था में ही वह 2 बेटों अजय, संजय और एक बेटी सीमा की मां बन गई थी. उसी बीच किसी वजह से उस के पति की मौत हो गई. पति का साया हटने से उस के ऊपर जैसे मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा. जब कमाने वाला ही रहा तो उस के सामने आर्थिक संकट पैदा हो गया. मेहनतमजदूरी कर के जैसेतैसे वह दो जून की रोटी का इंतजाम करने लगी

देशराज ने उस की भोली सूरत देखी तो उसे लगा कि वह उसे जल्द ही पटा लेगा. रानी से नजदीकी बढ़ाने के लिए वह उस से हमदर्दी दिखाने लगा. रानी देशराज के बारे में ज्यादा नहीं जानती थी. बस इतना ही जानती थी कि वह पैसे वाला है. एक पड़ोसन से रानी ने देशराज के बारे में काफी कुछ जान लिया था. इस के बाद धीरेधीरे उस का झुकाव भी उस की तरफ होता गयाएक दिन देशराज रानी के घर के सामने से जा रहा था तो वह घर की चौखट पर ही बैठी थी. उस समय दूरदूर तक कोई नजर नहीं रहा था. मौका अच्छा देख कर देशराज बोल पड़ा, ‘‘रानी, मुझे तुम्हारे बारे में सब पता है. तुम्हारी कहानी सुन कर ऐसा लगता है कि तुम्हारी जिंदगी में सिर्फ दुख ही दुख है.’’

‘‘आप के बारे में मैं ने जो कुछ सुन रखा था, आप उस से भी कहीं ज्यादा अच्छे हैं, जो दूसरों के दुख को बांटने की हिम्मत रखते हैं. वरना इस जालिम दुनिया में कोई किसी के बारे में कहां सोचता है?’’

‘‘रानी, दुनिया में इंसानियत अभी भी जिंदा है. खैर, तुम चिंता मत करो. आज से मैं तुम्हारा पूरा खयाल रखूंगा. चाहो तो बदले में तुम मेरे घर का कुछ काम कर दिया करना.’’

‘‘ठीक है, आप ने मेरे बारे में इतना सोचा है तो मैं भी आप के बारे में सोचूंगी. मैं आप के घर के काम कर दिया करूंगी.’’

इतना कह कर देशराज ने रानी के कंधे पर सांत्वना भरा हाथ रखा तो रानी ने अपनी गरदन टेढ़ी कर के उस के हाथ पर अपना गाल रख कर आशा भरी नजरों से उस की तरफ देखा. देशराज ने मौके का पूरा फायदा उठाया और रानी के हाथ पर 500 रुपए रखते हुए कहा, ‘‘ये रख लो, तुम्हें इस की जरूरत है. मेरी तरफ से इसे एडवांस समझ लेना.’’

रानी तो वैसे भी अभावों में जिंदगी गुजार रही थी, इसलिए उस ने देशराज द्वारा दिए गए पैसे अपने हाथ में दबा लिए. इस से देशराज की हिम्मत और बढ़ गई. वह हर रोज रानी से मिलने उस के घर पहुंचने लगा. वह जब भी उस के यहां जाता, रानी के बच्चों के लिए खानेपीने की कोई चीज जरूर ले जाता. कभीकभी वह रानी को पैसे भी देता. इस तरह वह रानी का खैरख्वाह बन गया. रानी हालात के थपेड़ों में डोलती ऐसी नाव थी, जिस का कोई मांझी नहीं था. इसलिए देशराज के एहसान वह अपने ऊपर लादती चली गई. पैसे की वजह से उस की बेटी सीमा भी स्कूल नहीं जा रही थी. देशराज ने उस का दाखिला ही नहीं कराया, बल्कि उस की पढ़ाई का सारा खर्च उठाने का वादा किया.

स्वार्थ की दीवार पर एहसान की ईंट पर ईंट चढ़ती जा रही थी. अब रानी भी देशराज का पूरा खयाल रखने लगी थी. वह उसे खाना खाए बिना जाने नहीं देती थी. लेकिन देशराज के मन में तो रानी की देह की चाहत थी, जिसे वह हर हाल में पाना चाहता था. एक दिन उस ने कहा, ‘‘रानी, अब तुम खुद को अकेली मत समझना. मैं हर तरह से तुम्हारा बना रहूंगा.’’ 

यह सुन कर रानी उस की तरफ चाहत भरी नजरों से देखने लगी. देशराज समझ गया कि वह शीशे में उतर चुकी है, इसलिए उस के करीब गया और उस के हाथ को दोनों हथेलियों के बीच दबा कर बोला, ‘‘सच कह रहा हूं रानी, तुम्हारी हर जरूरत पूरी करना अब मेरी जिम्मेदारी है.’’

हाथ थामने से रानी के शरीर में भी हलचल पैदा हो गई. देशराज के हाथों की हरकत बढ़ने लगी थी. इस का नतीजा यह निकला कि दोनों बेकाबू हो गए और अपनी हसरतें पूरी कर के ही माने. देशराज ने वर्षों बाद रानी की सोई भावनाओं को जगाया तो उस ने देह के सुख की खातिर सारी नैतिकताओं को अंगूठा दिखा दिया. अब वह देशराज की बन कर रहने का ख्वाब देखने लगी. देशराज और रानी के अवैध संबंध बने तो फिर बारबार दोहराए जाने लगे. रानी को देशराज के पैसों का लालच तो था ही, अब वह उस से खुल कर पैसों की मांग करने लगी

देशराज चूंकि उस के जिस्म का लुत्फ उठा रहा था, इसलिए उसे पैसे देने में कोई गुरेज नहीं करता था. इस तरह एक तरफ रानी की दैहिक जरूरतें पूरी होने लगी थीं तो दूसरी तरफ देशराज उस की आर्थिक जरूरतें पूरी करने लगा था. वर्षों बाद अब रानी की जिंदगी में फिर से रंग भरने लगे थे. ककौली गांव में ही भल्लू का परिवार रहता था. पेशे से किसान भल्लू के 2 बेटे रंजीत, सुरजीत और 2 बेटियां कमला, विमला थीं. चारों में से अभी किसी की भी शादी नहीं हुई थी. 24 वर्षीय रंजीत और 22 वर्षीय सुरजीत, दोनों ही भाई देशराज की सिक्योरिटी एजेंसी में काम करते थे. रंजीत और देशराज की उम्र में काफी लंबा फासला था. देशराज की जवानी साथ छोड़ रही थी, जबकि रंजीत की जवानी पूरे चरम पर थी. वैसे भी वह कुंवारा था. देशराज और रंजीत के बीच बहुत अच्छी दोस्ती थी. दोनों साथसाथ खातेपीते थे.

एक दिन शराब के नशे में देशराज ने रंजीत को अपने और रानी के संबंधों के बारे में बता दिया. यह सुन कर रंजीत चौंका. यह उस के लिए चिराग तले अंधेरे वाली बात थी. उसी के गांव की रानी अपने शबाब का दरिया बहा रही थी और उसे खबर तक नहीं थी. वह किसी औरत के सान्निध्य के लिए तरस रहा था. रानी की हकीकत पता चलने के बाद जैसे उसे अपनी मुराद पूरी होती नजर आने लगी. रंजीत के दिमाग में तरहतरह के विचार आने लगे. वह मन ही मन सोचने लगा कि जब देशराज रानी के साथ रातें रंगीन कर सकता है, तो वह क्यों नहीं? वह देशराज की ब्याहता तो है नहीं. अगले दिन रंजीत देशराज से मिला तो बोला, ‘‘रानी की देह में मुझे भी हिस्सा चाहिए, नहीं तो मैं तुम दोनों के संबंधों की बात पूरे गांव में फैला दूंगा.’’

देशराज को रानी से कोई दिली लगाव तो था नहीं, वह तो उस की वासना की पूर्ति का साधन मात्र थी. उसे दोस्त के साथ बांटने में उसे कोई परेशानी नहीं थी. वैसे भी रंजीत का मुंह बंद करना जरूरी था. इसलिए उस ने रानी को रंजीत की शर्त बताते हुए समझाया, ‘‘देखो रानी, अगर हम ने उस की बात नहीं मानी तो वह हमारी पोल खोल देगा. पूरे गांव में हमारी बदनामी हो जाएगी. इसलिए तुम्हें उसे खुश करना ही पड़ेगा.’’

रानी के लिए जैसा देशराज था, वैसा ही रंजीत भी था. उस ने हां कर दी. इस बातचीत के बाद देशराज ने यह बात रंजीत को बता दी. फलस्वरूप वह उसी दिन शाम को रानी के घर पहुंच गया. एक ही गांव का होने की वजह से दोनों केवल एकदूसरे को जानते थे, बल्कि उन में बातें भी होती थीं. रंजीत उसे भाभी कह कर बुलाता था. सारी बातें चूंकि पहले ही तय थीं, सो दोनों के बीच अब तक बनी संकोच की दीवार गिरते देर नहीं लगी. दोनों के बीच शारीरिक संबंध बने तो रानी को एक अलग ही तरह की सुखद अनूभूति हुई. रंजीत के कुंवारे बदन का जोश देशराज पर भारी पड़ने लगा. उस दिन के बाद तो वह अधिकतर रंजीत की बांहों में कैद होने लगी. रंजीत भी रानी की देह का दीवाना हो चुका था.

इसलिए वह भी उस पर दिल खोल कर पैसे खर्च करने लगा. रंजीत ने मारुति आल्टो कार ले रखी थी, जो उस के भाई सुरजीत के नाम पर थी. रंजीत रानी को अपनी कार में बैठा कर घुमाने ले जाने लगा. वह उसे रेस्टोरेंट वगैरह में ले जा कर खिलातापिलाता और गिफ्ट भी देता.

रानी की जिंदगी में रंजीत आया तो वह देशराज को भी और उस के एहसानों को भूलने लगी. रंजीत उस के दिलोदिमाग पर ऐसा छाया कि उस ने देशराज से मिलनाजुलना तक छोड़ दिया. इस से देशराज को समझते देर नहीं लगी कि रानी रंजीत की वजह से उस से दूरी बना रही है. उसे यह बात अखरने लगी. रानी को फंसाने में सारी मेहनत उस ने की थी, जबकि रंजीत बिना किसी मेहनत के फल खा रहा था. इसी बात को ले कर रंजीत और देशराज में मनमुटाव रहने लगा. देशराज ने रंजीत से उस की कुछ जमीन खरीदी थी, जिस का करीब 5 लाख रुपया बाकी था. रंजीत जबतब देशराज से अपने पैसे मांगता रहता था. इस बात को ले कर रंजीत कई बार उसे जलील तक कर चुका था.

एक तरफ रंजीत ने देशराज की मौजमस्ती का साधन छीन लिया था तो दूसरी ओर उसे 5 लाख रुपए भी देने थे. इसलिए सोचविचार कर उस ने रंजीत को अपने रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया. इस के लिए उस ने अपने यहां सुरक्षा गार्ड की नौकरी कर रहे अजय पांडेय को भी लालच दे कर अपनी योजना में शामिल कर लिया. अजय सीतापुर के कमलापुर थानाक्षेत्र के गांव रूदा का रहने वाला था. 3 दिसंबर की शाम को रंजीत को कटरा पलटन छावनी में एक वैवाहिक समारोह में जाना था. यह बात देशराज को पता थी. उस ने उसी दिन अपनी योजना को अंजाम देने के बारे में सोचा. उस दिन देर शाम रंजीत घर से तैयार हो कर कार से कटरा पलटन जाने के लिए निकला. रास्ते में एक जगह उसे देशराज और अजय पांडेय मिल गए. वहां से वे हाइवे पर ट्रामा सेंटर के पास गए और शराब खरीद कर बड़ी खदान के पास गए.

तीनों ने कार के अंदर बैठ कर शराब पी. देशराज और अजय ने खुद कम शराब पी, जबकि रंजीत को ज्यादा पिलाई. जब रंजीत नशे में धुत हो गया तो दोनों ने उसे पिछली सीट पर लिटा दिया. कार में एक छोटा गैस सिलेंडर भरा रखा था, जिसे रंजीत घर से गैस भराने के लिए लाया था. साथ ही कार में एक बोतल पेट्रोल भी रखा था. देशराज ने कार के सभी शीशे चढ़ा कर गैस सिलेंडर की नौब खोल दी, जिस से तेजी से गैस रिसने लगीदेशराज पेट्रोल की बोतल उठा कर कार से बाहर गया और कार के सभी दरवाजे बंद कर दिए. इस के बाद उस ने कार के ऊपर सारा पेट्रोल छिड़क कर आग लगा दी. चूंकि कार के अंदर गैस भरी थी, इसलिए आग की लपटें तेजी से बाहर निकलीं. देशराज का चेहरा और हाथ जल गए. गैस और पेट्रोल की वजह से कार धूधू कर के जलने लगी. नशे में धुत अंदर लेटे रंजीत ने बाहर निकलने की कोशिश की, लेकिन वह नाकामयाब रहा. अपना काम कर के देशराज और अजय वहां से भाग खडे़ हुए.

देशराज मौके से तो भाग गया, लेकिन कानून से नहीं बच सका. इंसपेक्टर रघुवीर सिंह ने रानी से भी पूछताछ की. हत्या के इस मामले में उस की कोई भूमिका नहीं थी. अलबत्ता जब गांव वालों को यह पता चला कि हत्या की वजह रानी थी तो लोगों ने उस के साथ भी मारपीट की.

पुलिस ने देशराज को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश करने के बाद जेल भेज दिया. कथा संकलन तक पुलिस अजय पांडेय को गिरफ्तार नहीं कर पाई थी.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

  

25 लाख की फिरौती नहीं मिलने पर जिगरी दोस्त को मार डाला

विपिन यादव लवकुश का जिगरी दोस्त था. विपिन चाहता तो अपनी मेहनत और लगन से कोई काम कर के अच्छे पैसे कमा सकता था, परंतु उस ने दोस्त लवकुश की आस्तीन का सांप बन कर ऐसी गहरी साजिश रची कि वह कहीं का रहा… 

इंतजार करतेकरते कई दिन बीत चुके थे, पर लवकुश अभी तक घर लौट कर नहीं आया था. ज्योंज्यों समय बीतता जा रहा था त्योंत्यों नाहर सिंह की चिंता बढ़ती जा रही थी. उन की पत्नी सीमा सिंह भी चिंतित थी. बेटे की याद में उन्होंने खानापीना तक छोड़ दिया था. दरअसल, नाहर सिंह का 20 वर्षीय बेटा लवकुश ड्राइवर था. वह दूध कलेक्शन करने वाली एक कंपनी की गाड़ी चलाता था. कई दिनों से वह घर नहीं आया था. वैसे तो लवकुश रोजाना ही देर रात तक घर वापस जाता था. कभीकभी उसे जब देर हो जाती तो वह घर फोन कर के इस की सूचना दे देता था. लेकिन इस बार तो कई दिन बीत चुके थे. तो वह घर आया और ही उस ने कोई सूचना दी थी.

कहीं लवकुश के साथ कोई अप्रिय घटना तो नहीं हो गई, इस तरह के अनेक विचार नाहर सिंह के मस्तिष्क में घूमने लगे थे. उन्होंने बेटे की खोज में रातदिन एक कर दिया था. रिश्तेनाते में जहां भी वह जा सकता था, फोन कर के उन सभी से पूछासाथी दोस्तों में भी उस की तलाश की. पर उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. नाहर सिंह बेटे के बारे में जानकारी लेने के लिए उस की दूध कंपनी भी गए. वहां पता चला कि लवकुश कई रोज से काम पर नहीं रहा है. यह मई, 2018 के अंतिम सप्ताह की बात है. वह कई दिन से ड्यूटी पर नहीं जा रहा है तो आखिर वह गया कहां, यह बात नाहर सिंह की समझ में नहीं रही थी, जब कहीं भी उस का पता नहीं चला तो नाहर सिंह थाना अकबरपुर पहुंच गए. थानाप्रभारी ऋषिकांत शुक्ला को उन्होंने अपने 20 वर्षीय बेटे के कई दिनों से लापता होने की जानकारी दे दी.

नाहर सिंह की बात सुनने के बाद थानाप्रभारी ऋषिकांत शुक्ला ने उन्हें धैर्य बंधाया और कहा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि आप का बेटा अपने यारदोस्तों के साथ कहीं घूमनेफिरने निकल गया हो. यदि ऐसा है तो वह 2-4 दिन में घूमफिर कर वापस जाएगा. फिर भी आप उस का हुलिया आदि लिख कर दे दीजिए हम भी उसे तलाशेंगे और यदि आप को भी उस के बारे में कोई सूचना मिले तो थाने कर बताना. आश्वासन पा कर बुझे मन से नाहर सिंह घर वापस गए. दरवाजे पर टकटकी लगाए उन की पत्नी सीमा सिंह खड़ी थी. देखते ही बोली, ‘‘लवकुश का कुछ पता चला. कहां है वह.’’

‘‘नहीं, अभी तो पता नहीं चला, पुलिस को सूचना दे दी गई है, वह भी अपने स्तर से उसे ढूंढेगी.’’ नाहर सिंह ने बताया. 10 जून, 2018 की शाम नाहर सिंह चौपाल पर बैठे थे. वहां मौजूद सभी लोग लवकुश के बारे में ही बातें कर रहे थे. तभी नाहर सिंह के मोबाइल फोन पर काल आई. जैसे ही उन्होंने काल रिसीव की तो दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘तुम्हारा बेटा लवकुश हमारे पास है. उस की जान की सलामती चाहते हो तो जल्द से जल्द 25 लाख रुपए का इंतजाम कर लो.’’ इतना कहने के बाद फोनकर्ता ने फोन काट दिया. नाहर सिंह हैलोहैलो कहते रह गए.

फिरौती के मांगे 25 लाख रुपए नाहर सिंह ने जब फोन चेक किया तो पता चला कि वह काल लवकुश के फोन से ही की गई थी. इस से उन्हें विश्वास हो गया कि उन का बेटा अपहर्त्ताओं के ही चंगुल में है. उस के बाद तो नाहर सिंह के घर में कोहराम मच गया. अब यह स्पष्ट हो गया था कि फिरौती के लिए लवकुश का अपहरण किया गया है. परिवार के सभी लोग बहुत चिंतित हो गए. सभी को इस बात की चिंता हो रही थी कि पता नहीं लवकुश किस हाल में होगा.

इस के ठीक 10 मिनट बाद अपहर्त्ता ने नाहर सिंह को पुन: फोन कर के कहा, ‘‘पुलिस को इस बारे में कुछ भी बताया तो तुम्हारे बेटे की सेहत के लिए यह अच्छा नहीं होगा. ध्यान रहे कि ज्यादा चालाक बनने की गलती करना.’’

‘‘भाई आप कौन बोल रहे हैं? क्या बिगाड़ा है मैं ने आप का. मैं आप के हाथ जोड़ता हूं, पैर पड़ता हूं. मेरे बेटे को कुछ मत करना.’’ घबराहट भरे स्वर में उन्होंने उस से विनती की.

‘‘तो अपना समय घर में बैठ कर बरबाद मत करो. फटाफट रुपयों का बंदोबस्त करने में जुट जाओ. इस के लिए चाहे गहने बेचो या फिर जमीन. क्योंकि मेरे पास अधिक समय नहीं है.’’ अपहर्त्ता ने कहा. 25 लाख कोई मामूली रकम नहीं होती, इतनी बड़ी रकम जल्द जुटा पाना नाहर सिंह के लिए संभव नहीं था. लिहाजा अपने घर वालों से सलाहमशविरा कर ने के बाद उन्होंने पुलिस को सारी बातें बताना जरूरी समझावह अपने बड़े बेटे धीरेंद्र सिंह के साथ थाना अकबरपुर पहुंच गए. उन्होंने थानाप्रभारी ऋषिकांत शुक्ला को अपहर्त्ता का फोन आने तथा 25 लाख रुपए की फिरौती मांगने की बात बताई. साथ ही यह भी बताया कि अपहर्त्ता उन के बेटे के ही मोबाइल से फोन कर रहे हैं.

अपहरण और फिरौती की बात सुन कर थानाप्रभारी ऋषिकांत शुक्ला चौंक पडे़े उन्होंने तत्काल नाहर सिंह की तहरीर पर अज्ञात अपहर्त्ताओं के खिलाफ लवकुश के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर ली और घटना की जानकारी वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दे दी. अब वह गंभीरता से मामले की जांच में जुट गए. उन्होंने नाहर सिंह से पूछा, ‘‘आप की किसी से रंजिश या जमीनी विवाद तो नहीं है, जिस के चलते उन लोगों ने बेटे को अगवा कर लिया हो और वो फिरौती मांग रहे हों.’’

नाहर सिंह कुछ देर दिमाग पर जोर डालते रहे फिर बोले, ‘‘मेरी रंजिश भी है और जमीनी विवाद भी, लेकिन रंजिश और जमीनी विवाद घरेलू हैं. यकीनन तो कुछ नहीं कह सकता पर शक जरूर है.’’

‘‘खुल कर सारी बात बताओ.’’ श्री शुक्ला ने कहा.

नाहर सिंह ने जताया शक

‘‘सर, मुझे ससुराल में 4 बीघा जमीन मिली थी. जिस की कीमत लाखों में है. जाहिर है कि मेरे सालों को जमीन खटकती होगी. रही बात रंजिश की तो वह बड़े बेटे की ससुराल से है. एक साल पहले बेटे की पत्नी प्रीति लड़झगड़ कर मायके चली गई थी. उस ने उत्पीड़न का आरोप लगा कर हम लोगों को परेशान किया. प्रीति का साथ उस की मां रेखा तथा पिता रामसिंह ने भी दिया, शक है कि इन्हीं लोगों का अपहरण में हाथ हो सकता है.’’ नाहर सिंह ने बताया. नाहर सिंह के साले शक के दायरे में आए तो थानाप्रभारी ने उन्हें थाने बुला लिया और उन से हर दृष्टिकोण से पूछताछ की लेकिन ऐसा कोई क्लू नहीं मिला, जिस से लगे कि लवकुश का अपहरण उन्होंने किया है. उन्हें यह कह कर पुलिस ने घर भेज दिया कि जरूरत पड़ने पर उन से आगे भी पूछताछ की सकती है.

नाहर सिंह के बड़े बेटे धीरेंद्र सिंह की ससुराल वाले भी संदेह के घेरे में थे. अत: थानाप्रभारी ने धीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रीति, सास रेखा ससुर रामसिंह को थाने बुलवा लिया. प्रीति, रेखा और रामसिंह से अलगअलग की गई पूछताछ के बाद थानाप्रभारी ऋषिकांत शुक्ला को लगा कि वह तीनों निर्दोष हैं. अत: उन्होंने तीनों को थाने से जाने दिया. रिपोर्ट दर्ज हुए अब तक एक सप्ताह बीत चुका था. थानाप्रभारी करीब एक दरजन लोगों से पूछताछ कर चुके थे. लवकुश अपहरण फिरौती का मामला एसपी राधेश्याम के संज्ञान में भी था और क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ था. मीडिया में भी यह मामला सुर्खियां बटोर रहा था.

एसपी राधेश्याम ने अपहरण फिरौती के इस मामले के खुलासे के लिए एक स्पैशल पुलिस टीम का गठन किया. इस टीम में थानाप्रभारी ऋषिकांत शुक्ला, स्वाट टीम प्रभारी रोहित कुमार, सर्विलांस प्रभारी राजीव कुमार के साथ आधा दरजन विश्वसनीय सिपाहियों को शामिल किया गया. टीम का निर्देशन सीओ अर्पित कपूर को सौंप दिया गया. पुलिस टीम ने जांच शुरू की तो चौंकाने वाली बातें सामने आने लगीं. पता चला कि गांव का एक युवक विपिन यादव लवकुश का गहरा दोस्त है. लवकुश के घर वाले उस पर अटूट विश्वास करते हैं और उसे अपना हितैषी मानते हैं. लवकुश को ढूंढने में वह नाहर सिंह के साथ साए की तरह लगा रहा. नाहर सिंह जहां भी बेटे की खोज में गए विपिन उन के साथ लगा रहा. नाहर सिंह उन के परिवार को धैर्य बंधाने में भी उस की अहम भूमिका रही.

शक के दायरे में आया विपिन यादव एक चौंकाने वाली बात यह भी पता चली कि विपिन ने दबाव के साथ नाहर सिंह को यह सलाह भी दी थी कि वह ससुराल वाली जमीन बेच कर लवकुश को अपहर्त्ताओं के चंगुल से छुड़ा लें. इस के लिए वह जमीन का रेट मालूम करने घाटमपुर भी गया था. वह नाहर सिंह को उकसाता था कि बेटे से बढ़ कर जमीन नहीं है. जब लवकुश ही नहीं आएगा तो जमीन क्या चाटोगे. इधर सर्विलांस प्रभारी राजीव कुमार ने अपहृत लवकुश के मोबाइल को सर्विलांस पर लगा दिया था. उस की लोकेशन मुक्तापुर गांव तथा आसपास की मिली. इस से जाहिर हो रहा था कि अपहर्त्ता मुक्तापुर गांव या फिर पासपड़ोस का है

राजीव कुमार ने एक बात और चौंकाने वाली बताई कि अपहर्त्ता लवकुश के मोबाइल में दूसरा सिम डाल कर अपने अन्य साथियों से बात करता है. शायद वह पुलिस की गतिविधियों की जानकारी उन्हें देता है. इन सब बातों से मुक्तापुर गांव का विपिन यादव भी शक के घेरे में गया. फिर सीओ अर्पित कपूर के निर्देश पर पुलिस टीम ने मुक्तापुर गांव में छापा मार कर विपिन यादव को गिरफ्तार कर लियाथाना अकबरपुर ला कर जब उस से लवकुश के अपहरण के संबंध में पूछा गया तो वह साफ मुकर गया और बोला, ‘‘साहब, लवकुश मेरा जिगरी दोस्त है. भला मैं उस का अपहरण क्यों करूंगा. मैं तो उस की खोज में रातदिन लगा हूं. उस के पिता की हर संभव मदद करता हूं.’’

विपिन ने स्वीकारा अपराध साधारण पूछताछ में विपिन यादव ने कुछ नहीं बताया तो थानाप्रभारी ऋषिकांत शुक्ला ने पुलिसिया अंदाज में उस से पूछताछ शुरू की. वह ज्यादा देर टिक सका और बोला, ‘‘साहब, मुझे मत मारो मैं सब कुछ आप को बता दूंगा.’’

‘‘तो बताओ लवकुश कहां है? उसे तुम ने कहां बंधक बना कर रखा है?’’ श्री शुक्ला ने पूछा.

‘‘साहब, लवकुश अब इस दुनिया में नहीं है. मैं ने अपने साथी शिवम, पंकज दुर्गेश की मदद से लवकुश की हत्या कर दी और उस का मोबाइल फोन अपने पास रख लिया था. फिर उसी मोबाइल से फिरौती मांगी थी.’’

पुलिस ने विपिन यादव की निशानदेही पर उस के घर से लवकुश का मोबाइल फोन तथा एक अन्य मोबाइल फोन बरामद कर लिया. दूसरा फोन लूट का था. इस के बाद पुलिस टीम ने रात में ही छापा मार कर विपिन यादव के दोस्त शिवम यादव, पंकज यादव दुर्गेश को हिरासत में ले लिया. पूछताछ में सभी ने बिना हीलाहवाली के अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. जब विपिन यादव की गिरफ्तारी की सूचना नाहर सिंह को मिली तो वह थाने पहुंच गए. उन्होंने पुलिस से गुहार लगाई कि विपिन बेकसूर है. वह तो उन के परिवार का हितैषी है उसे इस मामले में फंसाया जाए. लेकिन पुलिस ने जब सारी हकीकत बताई तो नाहर सिंह भौचक्के रह गए. वह माथा पकड़ कर बैठ गए. सोचने लगे कि यह तो बड़ा ही खतरनाक आस्तीन का सांप निकला. इस के बाद तो उन के घर में कोहराम मच गया.

अब पुलिस को आरोपियों की निशानदेही पर लवकुश की लाश बरामद करनी थी. लिहाजा वह चारों आरोपियों नाहर सिंह को ले कर अमृतसर के लिए रवाना हो गई. क्योंकि उन्होंने वहीं पर लवकुश की हत्या कर लाश ठिकाने लगाई थी. थानाप्रभारी आरोपियों को फतेहपुर गांव के बाहर नहर किनारे खेत पर ले गए जहां उन्होंने लवकुश की हत्या की थी. लेकिन पुलिस को वहां कुछ भी नहीं मिला. पूछताछ से पता चला कि यह स्थान अमृतसर (रूरल) जिले के जंडियाला थाना क्षेत्र में आता है. इस के बाद पुलिस टीम थाना जंडियाला पहुंची टीम ने वहां मौजूद थानाप्रभारी हरसन दीप सिंह को लवकुश की हत्या वाली बात बताई.

थानाप्रभारी हरसनदीप सिंह ने अकबर पुर पुलिस को एक युवक की लाश के फोटो दिखाते हुए कहा कि इस युवक की लाश 30 मई, 2018 को फतेहपुर गांव के बाहर नहर किनारे खेत में मिली थी. युवक की गला घोंट कर हत्या की गई थीथाने पर सूचना फतेहपुर गांव के सरपंच तरसेम सिंह ने दी थी. उसी की तहरीर पर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज है. फोटो देख कर फफक पड़े नाहर सिंह नाहर सिंह ने जब वह फोटो देखा तो वह फफक कर रो पड़े और बताया कि यह फोटो उन के बेटे लवकुश की है. अकबरपुर पुलिस थाने से मृतक की फोटो एफआईआर की प्रति आदि ले कर वापस लौट आई. इस के बाद थानाप्रभारी ने सारी जानकारी एसपी राधेश्याम को दी. पुलिस अधिकारियों ने आननफानन में प्रैस कौन्फै्रंस कर के मामले का खुलासा कर दिया.

चूंकि लवकुश के हत्यारोपी अपहर्त्ताओं ने अपना जुर्म कबूल कर लिया था. अत: थानाप्रभारी ऋषिकांत शुक्ला ने मृतक के पिता नाहर सिंह को वादी बना कर भादंवि की धारा 364/302 आईपीसी के तहत विपिन यादव, पंकज यादव, शुभम यादव दुर्गेश के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और उन्हें विधि सम्मत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस पूछताछ में दोस्त की गहरी साजिश का जो परदाफाश हुआ, वह चौंकाने वाला था. उत्तर प्रदेश के कानपुर (देहात) जनपद के अकबरपुर थाना अंतर्गत एक गांव मुक्तापुर पड़ता है. रूरा और अकबरपुर जैसे 2 बडे़  कस्बों के बीच पड़ने वाले इस गांव के लोग काफी संपन्न हैं. वह या तो व्यापार करते हैं या फिर अपनी खेती. इसी मुक्तापुर गांव में संपन्न किसान नाहर सिंह रहते थे. उन के परिवार में पत्नी सीमा सिंह के अलावा 2 बेटे धीरेंद्र सिंह लवकुश थे.

नाहर सिंह के पास अच्छीखासी खेती की जमीन थी. जिस में अच्छी उपज होती थी. इस के अलावा उन्हें ससुराल में भी 4 बीघा जमीन मिली थी. कुल मिला कर उन की आर्थिक स्थिति अच्छी थी. बड़ा होने पर धीरेंद्र सिंह पिता के साथ खेती कार्य में हाथ बंटाने लगा. बाद में नाहर सिंह ने उस की शादी मूसानगर निवासी राम सिंह की बेटी प्रीति से कर दी. प्रीति खूबसूरत चंचल थी जबकि धीरेंद्र सिंह सीधासादा था. प्रीति दिखावे में तो उस की पत्नी थी, लेकिन उस ने मन से धीरेंद्र को अपना पति स्वीकार नहीं किया था. इस की वजह यह थी कि धीरेंद्र अपने काम में व्यस्त रहने की वजह से उस की भावनाओं को नहीं समझता था.

इस के बाद छोटीछोटी बातों को ले कर पतिपत्नी में कलह होने लगी. कलह ने जब विकराल रूप धारण किया तो प्रीति ससुराल से नाता तोड़ कर मायके में रहने लगी. गांव में लवकुश का एक दोस्त था विपिन यादव. दोनों में गहरी दोस्ती थी. लवकुश विपिन दोनों शराब के लती थे. अकसर दोनों की महफिल जमती रहती थी. एक रोज शराब पीने के दौरान लवकुश ने विपिन को बताया कि उस के पिता को ससुराल में जो 4 बीघा जमीन मिली है उस की कीमत बढ़ रही है. वह अब 25-30 लाख से कम नहीं है.

विपिन के मन में गया था लालच विपिन यादव साधारण किसान लल्ला यादव का बेटा था. घर से उसे खर्च के लिए फूटी कौड़ी नहीं मिलती थी. छुटपुट काम से वह जो कमाता था वह शराब तथा अय्याशी में खर्च कर देता था. पैसा रहने पर वह परेशान रहता था. विपिन ने जब 25-30 लाख की बात लवकुश के मुंह से सुनी तो उस के मन में लालच समा गया, फिर वह लालच की चाह में अमीर होने के तानेबाने बुनने लगा. विपिन का एक दोस्त शिवम था. शिवम, रूरा निवासी बबलू यादव का बेटा था. शिवम अमृतसर की एक फैक्ट्री में काम करता था. शिवम महत्त्वाकांक्षी था. वह जल्द रईस बनना चाहता था. लेकिन फैक्ट्री की नौकरी से उस का खर्चा भी पूरा नहीं होता था. एक रोज रूरा में विपिन की मुलाकात शिवम से हुई. वह छुट्टी ले कर अमृतसर से आया था.

दोस्त का अपहरण कर के कर दी हत्या बातचीत के दौरान शिवम ने रईस बनने की इच्छा जाहिर की तो विपिन ने भी उस की हां में हां मिलाई. पर रईस कैसे बना जाए, इस पर विचार करने के लिए जब दोनों सिर जोड़ कर बैठे तो वे इस नतीजे पर पहुंचे कि सीधे तरीके से तो बड़ी रकम हाथ आने से रहीइस के लिए कोई गलत रास्ता अपनाना पड़ेगा. वह गलत रास्ता क्या हो इस के लिए दोनों ने काफी सोचविचार के बाद किसी अमीरजादे के बच्चे का अपहरण कर के लाखों रुपए फिरौती वसूलने का मंसूबा बनाया. विपिन ने शुभम को बताया कि उस का दोस्त लवकुश संपन्न किसान नाहर सिंह का बेटा है. यदि उस का अपहरण कर फिरौती मांगी जाए तो 20-25 लाख रुपया आसानी से मिल सकता है. नाहर सिंह को ससुराल में 4 बीघा जमीन मिली है, जिसे बेच कर वह फिरौती दे सकता है

यह सुन कर शुभम की आंखों में चमक गई. फिर दोनों ने मिल कर लवकुश के अपहरण हत्या कर फिरौती वसूलने की योजना बनाई. इस योजना में शुभम ने अपने दोस्त सवायज पुरवा (नरवल) निवासी पंकज यादव तथा अहिरन पुरवा (रनियां) निवासी दुर्गेश को भी शामिल कर लिया. दोनों पैसों के लालच में साथ देने को तैयार हो गए. योजना के तहत 28 मई, 2018 को विपिन यादव उस के दोस्त शुभम, दुर्गेश तथा पंकज लवकुश को घुमाने के बहाने अमृतसर ले गए. 29 मई की शाम को सभी ने अमृतसर के जंडियाला में शराब पी फिर अंधेरा होने पर वह सब लवकुश को नहर किनारे खेत में ले गए और अंगौंछे से गला घोंट कर हत्या कर दी

उस का मोबाइल फोन विपिन ने अपने पास रख लिया. इस के बाद सभी वापस गए और अपनेअपने घरों में रहने लगे. कुछ दिनों बाद उस के घर वालों को विपिन ने लवकुश के मोबाइल से ही 25 लाख रुपए फिरौती की मांग की. तब नाहर सिंह ने थाना अकबरपुर जा कर रिपोर्ट दर्ज करा दी. इस के बाद पुलिस सक्रिय हुई और लवकुश के अपहरण हत्या का परदाफाश कर उस के दगाबाज दोस्त उस के साथियों को बंदी बनाया.

25 जून, 2018 को थाना अकबरपुर पुलिस ने अभियुक्त विपिन यादव, शुभम यादव, पंकज यादव तथा दुर्गेश को माती कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया. जहां से माती जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक सभी अभियुक्तों की जमानत लोअर कोर्ट से खारिज हो गई थी. वे सब जेल में हैं.

   — कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

भाभी ने चचेरे देवर के साथ मिलकर की पति की हत्या

जब कोई पूरी योजना बना कर किसी की हत्या करता है, उस की सोच यह होती है कि वह पकड़ा नहीं जाएगा. लेकिन कानून के शिकंजे से बचना आसान नहीं होता. सरिता और बलराम ने भी…   

त्तर प्रदेश के मीरजापुर जिले में मीरजापुरइलाहाबाद मार्ग से सटा एक गांव हैमहड़ौरा. विंध्यक्षेत्र की पहाड़ी से लगा यह गांव हरियाली के साथसाथ बहुत शांतिप्रिय गांवों में गिना जाता है. इसी गांव के रहने वाले बंसीलाल सरोज ने रेलवे की नौकरी से रिटायर होने के बाद बड़ा सा पक्का मकान बनवाया, जिस में वह अपने पूरे परिवार के साथ रहते थेउन के भरेपूरे परिवार में पत्नी, 2 बेटे, एक बेटी और बहू थी. गांव में बंसीलाल सरोज के पास खेती की जमीन थी, जिस पर उन का बड़ा बेटा रणजीत कुमार सरोज उर्फ बुलबुल सब्जी की खेती करता था. खेती के साथसाथ रणजीत अपने मामा के साथ मिल कर होटल भी चलाता था

जबकि छोटा राकेश सरोज कानपुर में बिजली विभाग में नौकरी करता था. वह कानपुर में ही रहता था. महड़ौरा में 9-10 कमरों का अपना शानदार मकान होने के साथसाथ बंसीलाल के पास गांव से कुछ दूर सरोह भटेवरा में दूसरा मकान भी थारात में वह उसी मकान में सोया करते थे. बंसीलाल के परिवार की गाड़ी जिंदगी रूपी पटरी पर हंसीखुशी से चल रही थी. घर में किसी चीज की कमी नहीं थी. दोनों बेटे अपनेअपने पैरों पर खड़े हो चुके थे, जबकि वह खुद इतनी पेंशन पाते थे कि अकेले अपने दम पर पूरे परिवार का खर्च उठा सकते थे.

बड़ा बेटा रणजीत कुमार सुबह होने पर खेतों पर चला जाता था, फिर दोपहर में उसे वहां से होटल पर जाना होता था. जहां से वह रात में वापस लौटता था और खापी कर सो जाता था. यह उस की रोज की दिनचर्या थी. रणजीत की 3 बेटियां थीं. 10 साल की माया, 7 साल की क्षमा और 3 साल की स्वाति. वह अपनी बेटियों को दिलोजान से चाहता था और उन्हें बेटों की तरह प्यार करता थाउस की बेटियां भी अपनी मां से ज्यादा पिता को चाहती थीं. व्यवहारकुशल, मृदुभाषी रणजीत गांव में सभी को अच्छा लगता था. वह जिस से भी मिलता, हंस कर ही बोलता था. खेतीकिसानी और होटल के काम से उसे फुर्सत ही नहीं मिलती थी. उसे थोड़ाबहुत जो समय मिलता था, उसे वह अपने बीवीबच्चों के साथ गुजारता था.

सोमवार 19 मार्च, 2018 का दिन था. रात होने पर रणजीत कुमार रोज की तरह होटल से घर आया तो उस की पत्नी सरिता उसे खाने का टिफिन पकड़ाते हुए बोली, ‘‘लो जी, दूसरे मकान पर बाबूजी को खाना दे आओ. आज काफी देर हो गई है, बाबूजी इंतजार कर रहे होंगे. आप खाना दे कर आओ तब तक मैं आप के लिए खाने की थाली लगा देती हूं.’’

पत्नी के हाथ से खाने का टिफिन ले कर रणजीत दूसरे मकान पर चला गया, जहां उस के पिता बंसीलाल रात में सोने जाया करते थे. उन का रात का खाना अकसर उसी मकान पर जाता था. रणजीत उन्हें खाना दे कर जल्दी ही लौट आया और घर कर खाना खाने बैठ गया. खाना खाने के बाद वह अपने कमरे में सोने चला गया. रणजीत की मां, पत्नी सरिता, बहन सोनी और रणजीत की तीनों बेटियां बरांडे में सो गईं. रणजीत बना निशाना रणजीत सोते समय अपने कमरे का दरवाजा खुला रखता था. उस दिन भी वह अपने कमरे का दरवाजा खुला छोड़ कर सोया था. देर रात पीछे से चारदीवारी फांद कर किसी ने रणजीत के कमरे में प्रवेश किया और पेट पर धारदार हथियार से वार कर के उसे मौत की नींद सुला दिया

उस पर इतने वार किए गए थे कि उस की आंतें तक बाहर गई थीं. रणजीत की मौके पर ही मौत हो गई थी. आननफानन में घर वाले उसे अस्पताल ले कर भागे, लेकिन वहां डाक्टरों ने रणजीत को देखते ही मृत घोषित कर दियाभोर में जैसे ही इस घटना की सूचना पुलिस को मिली वैसे ही विंध्याचल कोतवाली प्रभारी अशोक कुमार सिंह पुलिस टीम के साथ गांव पहुंच गए. वहां गांव वालों का हुजूम लगा हुआ था. अशोक कुमार सिंह ने इस घटना की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी. इस के बाद उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया. घर के उस कमरे में जहां रणजीत सोया हुआ था, काफी मात्रा में खून पड़ा हुआ था. मौकाएवारदात को देखने से यह साफ हो गई कि जिस बेदर्दी के साथ रणजीत की हत्या की गई थी, संभवत: वारदात में कई लोग शामिल रहे होंगे

यह भी लग रहा था कि या तो हत्यारों की रणजीत से कोई अदावत रही होगी या किसी बात को ले कर वह उस से खार खाए होंगे. इसी वजह से उसे बड़ी बेरहमी से किसी धारदार हथियार से गोदा गया था. खून के छींटे कमरे के साथसाथ बाहर सीढि़यों तक फैले थे. इंसपेक्टर अशोक कुमार सिंह ने आसपास नजरें दौड़ा कर जायजा लिया तो देखा, जिस कमरे में वारदात को अंजाम  दिया गया था, वह कमरा घर के पीछे था. संभवत हत्यारे पीछे की दीवार फांद कर अंदर आए होंगे और हत्या कर के उसी तरह भाग गए होंगे. इसी के साथ उन्हें एक बात यह भी खटक रही थी कि हो हो इस वारदात में किसी करीबी का हाथ रहा हो. घटनास्थल की वस्तुस्थिति और हालात इसी ओर इशारा कर रहे थे. ताज्जुब की बात यह थी कि इतनी बड़ी घटना होने के बाद भी घर के किसी मेंबर को कानोंकान खबर नहीं हुई थी.

बहरहाल, अशोक कुमार सिंह ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर मृतक रणजीत के बारे में जानकारी एकत्र की और थाने लौट आए. उन्होंने रणजीत के पिता बंसीलाल सरोज की लिखित तहरीर के आधार पर अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत केस दर्ज कर के जांच शुरू कर दी. रणजीत की हत्या होने की खबर आसपास के गांवों तक पहुंची तो तमाम लोग महड़ौरा में एकत्र हो गए. हत्या को ले कर लोगों में आक्रोश था. आक्रोश के साथसाथ भीड़ भी बढ़ती गई. महिलाएं और बच्चे भी भीड़ में शामिल थेआक्रोशित भीड़ ने गांव के बाहर मेन रोड पर पहुंच कर इलाहाबाद मीरजापुर मार्ग जाम कर दिया. दोनों तरफ का आवागमन बुरी तरह ठप्प हो गया. गुस्से के मारे लोग पुलिस के विरोध में नारे लगाने के साथ मृतक के हत्यारों को गिरफ्तार करने और उस की बीवी को मुआवजा दिलाने की मांग कर रहे थे.

धरना बना जी का जंजाल इस की जानकारी मिलने पर विंध्याचल कोतवाली की पुलिस वहां पहुंच गई, जहां भीड़ जाम लगाए हुए थी. जाम के चलते इंसपेक्टर अशोक कुमार सिंह ने धरने पर बैठे गांव वालों को समझाने का प्रयास किया, लेकिन वे किसी भी सूरत में पीछे हटने को तैयार नहीं थे. अपना प्रयास विफल होता देख उन्होंने अपने उच्चाधिकारियों को वहां की स्थिति बता कर पुलिस फोर्स भेजने को कहा, ताकि कोई अप्रिय घटना घट सके. वायरलैस पर सड़क जाम की सूचना प्रसारित होते ही पड़ोसी थानों जिगना, गैपुरा और अष्टभुजा पुलिस चौकी के अलावा जिला मुख्यालय से पहुंची पुलिस और पीएसी ने मौके पर पहुंच कर मोर्चा संभाल लिया. कुछ ही देर में पुलिस अधीक्षक आशीष तिवारी सहित अन्य पुलिस और प्रशासन के अधिकारी भी मौके पर पहुंच गए

अधिकारियों ने ग्रामीणों को विश्वास दिलाया कि रणजीत के हत्यारों को जल्द से जल्द गिरफ्तार कर लिया जाएगा. काफी समझाने के बाद ग्रामीण मान गए और उन्होंने धरना समाप्त कर दिया. इस के साथ ही धीरेधीरे जाम भी खत्म हो गया. जाम समाप्त होने के बाद विंध्याचल कोतवाली पहुंचे पुलिस अधीक्षक आशीष तिवारी ने रणजीत के हत्यारों को हर हाल में जल्दी से जल्दी गिरफ्तार कर के इस केस को खोलने का सख्त निर्देश दिया. पुलिस अधीक्षक के सख्त तेवरों को देख कोतवाली प्रभारी अशोक कुमार और उन के मातहत अफसर जीजान से जांच में जुट गएअशोक कुमार सिंह ने इस केस की नए सिरे से छानबीन करते हुए मृतक रणजीत के पिता बंसीलाल से पूछताछ करनी जरूरी समझी. इस के लिए वह महड़ौरा स्थित बंसीलाल के घर पहुंचे, जहां उन्होंने बंसीलाल से एकांत में बात की

इस बातचीत में उन्होंने रणजीत से जुड़ी छोटी से छोटी जानकारी जुटाई. बंसीलाल से हुई बातों में एक बात चौंकाने वाली थी जो रणजीत की पत्नी सरिता से संबंधित थी. पता चला उस का चालचलन ठीक नहीं था. इस संबंध में रणजीत के पिता बंसीलाल ने इशारोंइशारों में काफी कुछ कह दिया था. पिता से मिला क्लू बना जांच का आधार इस जानकारी से इंसपेक्टर अशोक कुमार सिंह की आंखों में चमक गई. उन्होंने पूछताछ के लिए मृतक रणजीत की पत्नी सरिता और उस के चचेरे भाई बलराम सरोज को थाने बुलाया. लेकिन इन दोनों ने कुछ खास नहीं बताया. दोनों बारबार खुद को बेगुनाह बताते रहे

बलराम रणजीत का भाई होने का तो सरिता पति होने का वास्ता देती रही. दोनों के घडि़याली आंसुओं को देख कर इंसपेक्टर अशोक कुमार ने उस दिन उन्हें छोड़ दिया, लेकिन उन पर नजर रखने लगे. इसी बीच उन के एक खास मुखबिर ने सूचना दी कि सरिता और बलराम भागने के चक्कर में हैं. मुखबिर की बात सुन कर अशोक कुमार सिंह ने बिना समय गंवाए 29 मार्च को महड़ौरा से सरिता को थाने बुलवा लिया. साथ ही उस के चचेरे देवर बलराम को भी उठवा लिया. थाने लाने के बाद दोनों से अलगअलग पूछताछ की गईपूछताछ के लिए पहला नंबर सरिता का आया. वह पुलिस को घुमाने का प्रयास करते हुए अपने सुहाग का वास्ता दे कर बोली, ‘‘साहब, आप कैसी बातें कर रहे हैं, भला कोई अपने ही हाथों से अपने सुहाग को उजाड़ेगा? साहब, जरूर किसी ने आप को बहकाया है. आखिरकार मुझे कमी क्या थी, जो मैं ऐसा करती?’’

उस की बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि इंसपेक्टर अशोक कुमार सिंह बोले, ‘‘देखो सरिता, तुम ज्यादा सती सावित्री बनने की कोशिश मत करो, तुम्हारी भलाई इसी में है कि सब कुछ सचसच बता दो वरना मुझे दूसरा रास्ता अख्तियार करना पड़ेगा.’’ लेकिन सरिता पर उन की बातों का जरा भी असर नहीं पड़ा. वह अपनी ही रट लगाए हुई थी. अशोक कुमार सिंह सरिता के बाद उस के चचेरे देवर बलराम से मुखातिब हुए, ‘‘हां तो बलराम, तुम कुछ बोलोगे या तुम से भी बुलवाना पड़ेगा.’’

‘‘मममतलब. मैं कुछ समझा नहीं साहब.’’

‘‘नहीं समझे तो समझ आओ. मुझे यह बताओ कि तुम ने रणजीत को क्यों मारा?’’

‘‘साहब, आप यह क्या कह रहे हैं, रणजीत मेरा भाई था, भला कोई अपने भाई की हत्या क्यों करेगा? मेरी उस से खूब पटती थी. उस के मरने का सब से ज्यादा गम मुझे ही है. और आप मुझे ही दोषी ठहराने पर तुले हैं.’’

उस की बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि अचानक इंसपेक्टर अशोक कुमार का झन्नाटेदार थप्पड़ उस के गाल पर पड़ा. वह अपना चेहरा छिपा कर बैठ गया. अभी वह कुछ सोच ही रहा था कि इंसपेक्टर अशोक कुमार सिंह बोले, ‘‘बलराम, भाई प्रेम को ले कर तुम्हारी जो सक्रियता थी, वह मैं देख रहा था. तुम्हारा प्रेम किस से और कितना था, यह सब भी मुझे पता चल चुका है. तुम ने रणजीत को क्यों और किस के लिए मारा, वह भी तुम्हारे सामने है.’’ 

 उन्होंने सरिता की ओर इशारा करते हुए कहा तो बलराम की नजरें झुक गईं. उसे इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि उस की बनाई कहानी का अंत इतनी आसानी से हो जाएगा और पुलिस उस से सच उगलवा लेगीतीर निशाने पर लगता देख इंसपेक्टर अशोक कुमार सिह ने बिना देर किए तपाक से कहा, ‘‘अब तुम्हारी भलाई इसी में है, दोनों साफसाफ बता दो कि रणजीत की हत्या क्यों और किसलिए की, वरना मुझे दूसरा तरीका अपनाना पड़ेगा.’’

खुल गया रणजीत की हत्या का राज सरिता और बलराम ने खुद को चारों ओर से घिरा देख कर सच्चाई उगलने में ही भलाई समझी. पुलिस ने दोनों को विधिवत गिरफ्तार कर के पूछताछ की तो रणजीत के कत्ल की कहानी परत दर परत खुलती गई. बलराम ने अपना जुर्म कबूल करते हुए बताया कि जाने कैसे रणजीत को उस के और सरिता के प्रेम संबंधों की जानकारी मिल गई थीफलस्वरूप वह उन दोनों के संबंधों में बाधक बनने लगा. यहां तक कि उस ने बलराम को अपनी पत्नी से मिलने के लिए मना कर दिया था. इसी के मद्देनजर सरिता और बलराम ने योजनाबद्ध तरीके से रणजीत की हत्या की योजना बनाई. योजना के मुताबिक बलराम ने घर में घुस कर बरामदे में सोए रणजीत की चाकू घोंप कर हत्या कर दी

बलराम की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में इस्तेमाल किया गया चाकू घर से 2 सौ मीटर दूर गेहूं के खेत से बरामद कर लिया. सरिता और बलराम ने स्वीकार किया कि जिस चाकू से रणजीत की हत्या की गई थी, उसे बलराम ने हत्या से एक दिन पहले ही गांव के एक लोहार से बनवाया था. पुलिस ने उस लोहार से भी पूछताछ की. उस ने इस की पुष्टि की. पुलिस लाइन में आयोजित पत्रकार वार्ता के दौरान पुलिस अधीक्षक आशीष तिवारी ने खुलासा करते हुए बताया कि रणजीत सरोज की पत्नी के अवैध संबंध उस के चचेरे भाई बलराम से पिछले 5 वर्षों से थे. रणजीत ने दोनों को एक बार रंगेहाथों पकड़ा था. उस वक्त घर वालों ने गांव में परिवार की बदनामी की वजह से इस मामले को घर में ही दबा दिया था. साथ ही दोनों को डांटाफटकारा भी था.

रणजीत ने बलराम को घर में आने से मना भी कर दिया था. इस से सरिता अंदर ही अंदर जलने लगी थी. उसे चचेरे देवर से मिलने की कोई राह नहीं सूझी तो उस ने बलराम के साथ मिल कर पति की हत्या की योजना तैयार की ताकि पिछले 5 सालों से चल रहे प्रेम संबंध चलते रहेंपकड़े जाने पर दोनों ने पुलिस और मीडिया के सामने अपना जुर्म कबूल करते हुए अवैध संबंधों में हत्या की बात मानी. दोनों ने पूरी घटना के बारे में विस्तार से बताया. रणजीत हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने के बाद पुलिस ने पूर्व  में दर्ज मुकदमे में अज्ञात की जगह सरिता और बलराम का नाम शामिल कर के दोनों को जेल भेज दिया.