UP Crime : 30 करोड़ के लिए पत्नी बनी पति की कातिल

UP Crime :  उर्मिला ने शैलेंद्र को रिझाने के जतन शुरू कर दिए. कभी वह उसे तिरछी नजरों से देख कर मुसकराती तो कभी शरमाने का अभिनय करती. शैलेंद्र पहले से ही उसे हसरत भरी निगाहों से देखता था. उर्मिला ने मुसकरा कर उसे देखना शुरू किया तो उस की हसरतें उफान मारने लगीं. जब उर्मिला के कामुक बाणों का शैलेंद्र पर प्रभाव हुआ तो वह एक कदम आगे बढ़ी. यही नहीं, अब वह निर्माणाधीन मकान देखने भी जाने लगी. वहां दोनों खुल कर बतियाते और हंसीमजाक भी करते. शैलेंद्र समझ गया कि उर्मिला उस की बांहों में समाने को बेताब है.

एक दिन उस ने साहस दिखाते हुए उर्मिला को बाहुपाश में जकड़ लिया, ”भाभी, बहुत ललचा चुकी हो,  आज मर्यादा टूट जाने दो.’’

”तोड़ दो,’’ उम्मीद के विपरीत उर्मिला शैलेंद्र की आंखों में देखते हुए मुसकराई, ”मैं भी यही चाहती हूं.’’

राजेश गौतम स्कूल गया था और दोनों बेटे पढऩे के लिए स्कूल जा चुके थे. सुनहरा मौका देख कर शैलेंद्र उर्मिला को बैड पर ले गया. इस के बाद दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं.

4 नवंबर, 2023 की सुबह 7 बजे किसी परिचित ने कानपुर के अनिगवां निवासी ब्रह्मदीन गौतम को फोन पर सूचना दी कि उन का शिक्षक भाई राजेश गौतम स्वर्ण जयंती विहार स्थित पार्क के पास सड़क पर घायल पड़ा है. उस का एक्सीडेंट हुआ है. किसी तेज रफ्तार कार ने उसे कुचल (UP Crime) दिया है. यह जानकारी मिलते ही ब्रह्मदीन ने अपने बेटे कुलदीप को साथ लिया और स्वर्ण जयंती विहार पहुंच गए. वहां पार्क के पास राजेश सड़क पर औंधे मुंह पड़ा था.

उस के सिर से खून बह रहा था. थोड़ी ही देर में घर के अन्य लोगों के साथ राजेश की पत्नी उर्मिला भी वहां पहुंच गई. पति की हालत देख कर उर्मिला की चीख निकल गई. ब्रह्मदीन व महेश भी भाई की हालत देख कर हैरान रह गए थे. कुलदीप तो समझ ही नहीं पा रहा था कि चाचा हर रोज मार्निंग वाक पर इसी सड़क पर आते थे, लेकिन आज इतना खतरनाक एक्सीडेंट कैसे हो गया. राजेश को हिलाडुला कर देखा गया तो उस के शरीर में कोई हरकत नहीं हुई. लेकिन सांस की आस में राजेश को कांशीराम अस्पताल ले जाया गया, जहां के डाक्टरों ने उसे रीजेंसी ले जाने को कहा. इसी बीच किसी ने राजेश के (UP Crimes) एक्सीडेंट की सूचना थाना सेन पश्चिम पारा पुलिस को दे दी थी.

सूचना मिलते ही एसएचओ पवन कुमार कुछ पुलिसकर्मियों के साथ कांशीराम अस्पताल पहुंच गए. डाक्टरों के अनुसार राजेश की सांसें थम चुकी थीं, लेकिन घर वालों की जिद की वजह से पुलिस उसे पहले रीजेंसी फिर जिला अस्पताल हैलट ले गई. वहां के डाक्टरों ने भी राजेश गौतम को मृत घोषित कर दिया. इस के बाद पुलिस ने शव को कब्जे में ले लिया और घटना की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. कुछ देर बाद एसएचओ पवन कुमार दुर्घटनास्थल का निरीक्षण करने पहुंचे तो वहां भीड़ जुटी थी. सुबह की सैर करने वाले कई लोग भी वहां मौजूद थे. उन में से एक कमल गौतम ने बताया कि राजेश गौतम से वह परिचित था. वह हर रोज मार्निंग वाक पर आते थे.

आज सुबह साढ़े 6 बजे के लगभग वह सड़क पर तेज कदमों से टहल रहे थे, तभी एक कार उन के नजदीक से पास हुई. फिर उसी कार ने कुछ दूरी पर जा कर यू टर्न लिया और तेज रफ्तार से आ कर राजेश को टक्कर मार दी. राजेश उछल कर दूर जा गिरे. एसएचओ पवन कुमार घटनास्थल पर जांच कर ही रहे थे, तभी एसीपी (घाटमपुर) दिनेश कुमार शुक्ला तथा एडीसीपी अंकिता शर्मा भी वहां पहुंच गईं. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तथा वहां मौजूद कुछ लोगों से पूछताछ की.

अंतिम संस्कार के बाद मृतक का भाई ब्रह्मदीन, महेश तथा भतीजा कुलदीप, उर्मिला के घर में ही रात को रुक गए. रात में राजेश की मौत पर चर्चा शुरू हुई तो कुलदीप बोला, ”उर्मिला चाची, हमें लगता है कि चाचा को सोचीसमझी रणनीति के तहत मौत के घाट उतारा गया है और दुर्घटना का रूप दिया गया है. लगता है कि चाचा से कोई खुन्नस खाए बैठा था.’’

”कुलदीप, ऐसा कुछ भी नहीं है. तुम सब लोग मेरे घर पर फालतू की बकवास मत करो और मेरा दिमाग खराब न करो. अच्छा होगा, तुम सब हमारे घर से चले जाओ.’’

घर वालों को उर्मिला पर क्यों हुआ शक

उर्मिला का व्यवहार देख कर कुलदीप ने उर्मिला से बहस नहीं की और अपने पिता व परिवार के अन्य लोगों के साथ वापस घर लौट आया.

इधर तमतमाई उर्मिला सुबह 10 बजे ही एडीसीपी कार्यालय जा पहुंची. उस ने एडीसीपी अंकिता शर्मा को एक तहरीर देते हुए कहा कि उसे शक है कि पति के भतीजे कुलदीप व उस के घर वालों ने पति की करोड़ों की प्रौपर्टी हड़पने के लिए दुर्घटना का रूप दे कर उन की (UP Crimes ) हत्या की है.

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एडीसीपी अंकिता शर्मा

इधर कुलदीप को जब पता चला कि उर्मिला चाची ने उस के व घर वालों के खिलाफ शिकायत की है तो कुलदीप एडीसीपी अंकिता शर्मा से मिला और बताया कि वह नेवी में कार्यरत है. उसे शक है कि उस के चाचा राजेश की मौत किसी षड्यंत्र के तहत हुई है. वह चाहता है कि इस की गंभीरता से जांच हो. इस के बाद पुलिस ने घटनास्थल के आसपास के सीसीटीवी फुटेज खंगाली. इस से पता चला कि राजेश को कुचलने के बाद कार बेकाबू हो कर खंभे से टकराई तो कार चालक पीछे आ रही दूसरी वैगन आर कार में सवार हो कर भाग गया था.

इन सबूतों को देख कर एडीसीपी अंकिता शर्मा ने एसीपी दिनेश शुक्ला की देखरेख में एक जांच टीम भी गठित कर दी. टीम में 2 महिला सिपाही व एक तेजतर्रार महिला एसआई को भी शामिल किया गया.

पुलिस कैसे पहुंची आरोपियों तक

ईको स्पोर्ट कार, जिस से राजेश को टक्कर मारी गई थी, का पता लगाया तो वह कार आवास विकास 3 कल्याणपुर, कानपुर निवासी सुमित कठेरिया की निकली. वैगनआर कार के नंबर की जांच करने पर पता चला कि यह नंबर फरजी है. यह नंबर किसी लोडर का था. अब पुलिस का शक और गहरा गया.

जांच में पुलिस टीम को 12 संदिग्ध मोबाइल नंबर मिले थे, उन में एक नंबर मृतक राजेश की पत्नी उर्मिला का भी था. पुलिस ने जब उर्मिला के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि उस ने एक फोन नंबर पर महीने भर में 400 बार काल्स की थीं. घटना वाले दिन भी उस की इस नंबर पर कई बार बातें हुई थीं. पुलिस ने इस नंबर की जांचपड़ताल की तो पता चला कि यह नंबर शैलेंद्र सोनकर का है.

पुलिस ने शैलेंद्र सोनकर के बारे में मृतक के घर वालों से जानकारी जुटाई तो पता चला कि शैलेंद्र सोनकर आर्किटेक्ट इंजीनियर है. उसी ने राजेश के कोयला नगर वाले मकान को बनाने का ठेका लिया था. मकान बनवाने के दौरान ही शैलेंद्र का उर्मिला के घर आनाजाना शुरू हुआ और दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ी थीं.

पुलिस जांच से अब तक यह साफ हो चुका था कि उर्मिला और ठेकेदार इंजीनियर शैलेंद्र के बीच कोई चक्कर है. पुलिस ने अब हत्यारोपियों को गिरफ्तार करने की योजना बनाई. पुलिस टीम ने विकास सोनकर, शैलेंद्र सोनकर व सुमित कठेरिया को गिरफ्तार करने के लिए उन के घरों पर दबिश दी, लेकिन वह अपने घरों से फरार थे.

29 नवंबर, 2023 की शाम 5 बजे एसएचओ पवन कुमार को मुखबिर के जरिए पता चला कि उर्मिला व उस के साथी इस समय कोयला नगर स्थित गणेश चौराहे पर मौजूद हैं. शायद वे शहर से फरार होने की फिराक में हैं. चूंकि सूचना खास थी, अत: एसएचओ पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए और उर्मिला को उस के 2 साथियों के साथ हिरासत में ले लिया. लेकिन सुमित कठेरिया वहां से फरार हो गया था. तीनों को थाने लाया गया. पुलिस अधिकारियों ने उन से पूछताछ की तो  तीनों ने राजेश की हत्या में शामिल होने का जुर्म कुबूल कर लिया.

चूंकि तीनों हत्यारोपियों ने शिक्षक राजेश की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया था, इसलिए मृतक के बड़े भाई ब्रह्मदीन की तरफ से शैलेंद्र सोनकर, विकास, सुमित कठेरिया तथा उर्मिला गौतम के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया और सुमित के अलावा तीनों को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. सुमित कठेरिया की तलाश में पुलिस जी जान से जुट गई.

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पुलिस कस्टडी में आरोपी

पुलिस द्वारा की गई जांच, आरोपियों के बयानों एवं मृतक के घर वालों द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर इस वारदात के पीछे औरत और जुर्म की एक ऐसी कहानी सामने आई, जिस ने प्यार और प्रौपर्टी के लालच में अपने ही सुहाग की सुपारी दे दी.

उर्मिला की शादी की अजीब थी कहानी

उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर के चकेरी थाने के अंतर्गत आता है- दहेली सुजानपुर. 2 दशक पहले दहेली सुजानपुर गांव था और यहां खेती होती थी. लेकिन जैसे जैसे शहर का विकास हुआ, यह गांव शहर की परिधि में आ गया. कानपुर विकास प्राधिकरण ने किसानों की जमीन अधिग्रहण कर कालोनियां बनाईं और लोगों को बसाया. प्रौपर्टी डीलरों ने भी प्लौट काट कर बेचे तथा फ्लैट भी बनाए. सालों पहले जो जमीन कौडिय़ों के दाम बिकती थी, वही जमीन अब लाखोंकरोड़ों की हो गई है.

इसी दहेली सुजानपुर में राजाराम गौतम रहते थे. उन के 3 बेटे ब्रह्मïादीन, राजेश व महेश थे. राजाराम के पास 20 एकड़ जमीन थी. उन्होंने अपने जीते जी मकान व जमीन का बंटवारा तीनों बेटों में कर दिया था. हर बेटे के हिस्से में करोड़ों की जमीन आई थी. उन के 2 बेटे ब्रह्मदीन व महेश, सनिगवां में मकान बना कर परिवार सहित रहने लगे थे. बड़ा बेटा ब्रह्मदीन एमईएस चकेरी में नौकरी करता था. ब्रह्मादीन के बेटे कुलदीप का इंडियन नेवी में चयन हो गया था.

राजेश गौतम 3 भाइयों में मंझला था. वह अन्य भाइयों से ज्यादा तेजतर्रार था. वह दहेली सुजानपुर में ही रहता था. उस के परिवार में पत्नी उर्मिला के अलावा 2 बेटे थे. वह सरसौल ब्लाक के सुभौली गांव स्थित प्राथमिक पाठशाला में अध्यापक था. राजेश दबंग शिक्षक था.

वर्ष 2012 में राजेश का विवाह खूबसूरत उर्मिला के साथ बड़े ही नाटकीय ढंग से हुआ था. दरअसल, राजेश अपने दोस्त विमल के लिए उर्मिला को देखने उस के साथ बनारस गया था. विमल ने तो उर्मिला को देखते ही पसंद कर लिया था, लेकिन उर्मिला ने विमल को यह कह कर नकार दिया था कि विमल गंजा है. वहीं उस ने राजेश को पसंद कर लिया था.

बनारस से लौटने के बाद उर्मिला और राजेश के बीच मोबाइल फोन पर प्यार भरी बातें होने लगीं. 2-3 महीने बाद उर्मिला ने अपने घर वालों को और राजेश ने भी अपने घर वालों से एकदूसरे से शादी कराने की बात कही तो घर वालों ने भी इजाजत दे दी. उस के बाद 17 जून, 2012 को उर्मिला का विवाह राजेश के साथ धूमधाम से हो गया.

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राजेश गौतम और उर्मिला

खूबसूरत उर्मिला को पा कर राजेश गौतम अपने भाग्य पर इतरा उठा था. उर्मिला भी उस से शादी कर के खुश थी. उर्मिला ने आते ही घर संभाल लिया था और पति को अपनी अंगुलियों पर नचाने लगी थी. शादी के एक साल बाद उर्मिला ने एक बेटे को जन्म दिया. बेटे के जन्म से घर में खुशियां दोगुनी हो गईं. इस के 2 साल बाद उर्मिला ने एक और बेटे को जन्म दिया. 2 बच्चों के जन्म के बाद राजेश ने पत्नी की इच्छाओं पर गौर करना कम कर दिया. क्योंकि उस ने नौकरी के साथसाथ प्रौपर्टी डीलिंग का काम भी शुरू कर दिया था.

पति की बेरुखी पर उर्मिला रात भर बेचैन रहती. उसे घर में सब सुख था, किसी चीज की कमी न थी, लेकिन पति के प्यार से वंचित थी. इस तरह उर्मिला नीरस जिंदगी गुजारने लगी. उस ने दोनों का एडमिशन कोयला नगर स्थित मदर टेरेसा स्कूल में करा दिया. राजेश गौतम ने प्रौपर्टी डीलिंग में करोड़ों रुपए कमाए. साथ ही कोयला नगर क्षेत्र में ही उस ने 5-6 प्लौट भी खरीद लिए, जिन की कीमत करोड़ों रुपए थी. राजेश कमाई में इतना व्यस्त हो गया कि पत्नी की भावनाओं की कद्र करना ही भूल गया.

30 करोड़ की संपत्ति थी राजेश के पास

वह सुबह उठता, पहले टहलने जाता, फिर तैयार होकर स्कूल चला जाता. दोपहर बाद स्कूल से आता, फिर प्रौपर्टी के काम में व्यस्त हो जाता. इस के बाद देर रात आता और खाना खा कर सो जाता. यही उस का रुटीन था. राजेश गौतम की तमन्ना थी कि वह कोयला नगर में एक ऐसा आलीशान मकान बनाए, जिस की चर्चा क्षेत्र में हो. अपनी तमन्ना पूरी करने के लिए उस ने 300 वर्गगज वाले अपने प्लौट पर मकान बनाने का फैसला किया. इस के लिए उस ने 6 करोड़ रुपए का इंतजाम भी कर लिया.

राजेश ने मकान का ठेका अपने दोस्त हेमंत सोनकर के रिश्तेदार इंजीनियर शैलेंद्र सोनकर को दे दिया. ठेका मिलने के बाद शैलेंद्र ने राजेश के घर आनाजाना शुरू कर दिया. इसी आनेजाने में शैलेंद्र सोनकर की नजर राजेश की खूबसूरत पत्नी उर्मिला पर पड़ी. पहली ही नजर में उर्मिला उस के दिलो दिमाग में रचबस गई. उर्मिला भी जवान और हैंडसम शैलेंद्र को देख कर प्रभावित हुई.

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इंजीनियर शैलेंद्र सोनकर

उर्मिला देह सुख से वंचित थी, इसलिए उस का मन बहकने लगा. जब औरत का मन बहकता है तो उसे पतित होने में देर नहीं लगती. इस के बाद उर्मिला की आंखों के सामने शैलेंद्र की तसवीर घूमने लगी. वैसे भी उर्मिला ने महसूस किया था कि वह जब भी घर आता है, उस की मोहक नजरें हमेशा ही उस से कुछ मांगती सी प्रतीत होती हैं. दोनों के बीच प्यार के बीज अंकुरित हो गए. फिर जल्द ही उन के बीच शारीरिक संबंध भी कायम हो गए.

आखिर क्यों बहकी उर्मिला

कुछ समय बाद उर्मिला शैलेंद्र की इस कदर दीवानी हो गई कि वह अपने निर्माणाधीन मकान पर भी जाने लगी. मौका निकाल कर वह वहां भी शैलेंद्र के साथ मौजमस्ती कर लेती थी.

विवाहित और 2 बच्चों की मां उर्मिला ने पति से विश्वासघात कर शैलेंद्र के साथ अवैध संबंध तो बना लिए थे, लेकिन उस वक्त उस ने यह नहीं सोचा था कि इस का अंजाम क्या होगा. 2 नावों पर पैर रखना हमेशा नुकसानदायक ही होता है. हुआ यह कि मार्च 2023 की एक दोपहर राजेश अचानक स्कूल से घर वापस आ गया और उस ने उर्मिला व शैलेंद्र को आपत्तिजनक अवस्था में देख लिया. फिर तो राजेश का खून खौल उठा. शैलेंद्र फुरती से भाग गया. तब उस ने उर्मिला की जम कर पिटाई की.

बाद में उस ने शैलेंद्र को खूब फटकार लगाई. उर्मिला की अनैतिकता को ले कर कभीकभी झगड़ा इतना बढ़ जाता कि वह उर्मिला को जानवरों की तरह पीटता. एक दिन तो हद ही हो गई. राजेश की पिटाई से आहत हो कर उर्मिला नग्नावस्था में ही घर के बाहर आ गई थी. अड़ोसपड़ोस तथा परिवार के लोग उर्मिला की अनैतिकता से वाकिफ थे, इसलिए किसी ने भी उस का पक्ष नहीं लिया. पति की पिटाई से उर्मिला राजेश से नफरत करने लगी थी. इसी नफरत के चलते उस ने एक रोज राजेश को खाने में जहर दे दिया. उस की तबीयत बिगड़ी तो घर वालों ने उसे प्राइवेट अस्पताल में भरती कराया, जहां उस का 2 सप्ताह इलाज चला. तब जा कर वह ठीक हुआ.

उर्मिला अपने आशिक शैलेंद्र को भी पति के खिलाफ उकसाती थी. वह वीडियो काल कर उसे अपने शरीर के जख्म दिखाते हुए ताने देती थी कि यह जख्म तुम्हारे प्यार की निशानी के तौर पर दिए गए हैं. उर्मिला के शरीर पर जख्म देख कर शैलेंद्र का गुस्सा फट पड़ता था.

पति की हत्या क्यों कराना चाहती थी उर्मिला

एक दिन उर्मिला ने शैलेंद्र से कहा, ”मैं अब अपने पति से छुटकारा चाहती हूं. वह हम दोनों के मिलन में बाधा बना है. प्रताडि़त भी करता है. तुम इस कांटे को हमेशा के लिए दूर कर दो. राजेश के पास 3 करोड़ का जीवन बीमा और 20 करोड़ की अचल संपत्ति तथा यह 6 करोड़ का आलीशान मकान है. उस के मरने के बाद यह सब हमारा होगा. मैं तुम से ब्याह कर लूंगी. फिर हम दोनों आराम से रहेंगे. उस की सरकारी नौकरी भी मुझे मिल जाएगी.’’

शैलेंद्र सोनकर का ममेरा भाई विकास सोनकर शास्त्री नगर में रहता था. वह ड्राइवर था. उस ने अपनी मंशा उसे बताई तो विकास ने शैलेंद्र को अपने साथी ड्राइवर सुमित कठेरिया से मिलवाया, जो आवास विकास-3 कल्याणपुर में रहता था. सुमित ने शैलेंद्र को एक ट्रक ड्राइवर से मिलवाया. ट्रक ड्राइवर ने राजेश को ट्रक से कुचल कर मारने का वादा किया और 2 लाख में हत्या की सुपारी ली. इस के बाद उर्मिला ने रुपयों का इंतजाम किया और डेढ़ लाख रुपए ड्राइवर को दे दिए, लेकिन उस ट्रक ड्राइवर ने काम तमाम नहीं किया और डेढ़ लाख रुपया ले कर फरार हो गया.

उस के बाद सुमित कठेरिया ने विकास के साथ मिल कर राजेश की हत्या की सुपारी 4 लाख में ली. उर्मिला और शैलेंद्र हर हाल में राजेश को मौत (New Year 2025 Crimes ) के घाट उतारना चाहते थे, अत: उन्होंने रकम मंजूर कर ली. इस के बाद उर्मिला, शैलेंद्र, सुमित व विकास ने राजेश को कुचल कर मारने की पूरी योजना बनाई. 4 नवंबर, 2023 की सुबह 6 बजे राजेश गौतम मार्निंग वाक पर निकला, तभी उस की पत्नी उर्मिला ने शैलेंद्र को फोन पर सूचना दे दी. सूचना पा कर सुमित कठेरिया अपनी ईको स्पोर्ट कार से तथा शैलेंद्र विकास के साथ अपनी वैगनआर कार से स्वर्ण जयंती विहार पहुंच गए.

उन लोगों ने पहले रेकी की, फिर राजेश की पहचान कर सुमित कठेरिया ने अपनी ईको स्पोर्ट कार से राजेश को जोरदार टक्कर मारी. राजेश टकरा कर करीब 20 मीटर दूर जा गिरा और तड़पने लगा. टक्कर मारने के बाद भागते समय सुमित की कार बिजली के खंभे से टकरा गई और उस का टायर फट गया. तब सुमित अपनी कार वहीं छोड़ कर कुछ दूरी बनाए खड़ी शैलेंद्र की वैगनआर कार के पास पहुंचा और उस में बैठ कर शैलेंद्र के साथ फरार हो गया.

पूछताछ करने के बाद पुलिस ने 30 नवंबर, 2023 को आरोपी उर्मिला गौतम, शैलेंद्र सोनकर तथा विकास सोनकर को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. आरोपी सुमित कठेरिया ने भी बाद में अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया था.

राजेश के दोनों बेटे अपने ताऊ ब्रह्मदीन के पास रह रहे थे. ताऊ ने दोनों बच्चों के पालनपोषण की जिम्मेदारी ली है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Valentine Day पर साली ने किया जीजा का कत्ल

Valentine Day : दक्षिणी दिल्ली के वसंत कुंज इलाके में एमसीडी के कर्मचारी गटर की सफाई कर रहे थे. सफाई करते हुए वे सी-2 ब्लौक में वसंत  वाटिका पार्क पहुंचे तो गटर के एक मेनहोल के पास तीक्ष्ण गंध महसूस हुई. वह गंध सीवर की गंध से कुछ अलग थी. जिस मेनहोल से बदबू आ रही थी, उस पर ढक्कन नहीं था. सफाई कर्मचारी उस मेनहोल के पास पहुंचे तो बदबू और ज्यादा आने लगी. अपनी नाक पर कपड़ा रख कर उन्होंने जब मेनहोल में झांक कर देखा तो उन की आंखें फटी की फटी रह गईं. उस में एक आदमी की लाश पड़ी थी.

लाश मिलने की खबर उन्होंने अपने सुपरवाइजर को दी. उधर से गुजरने वालों को जब गटर में लाश पड़ी होने की जानकारी मिली तो वे भी उस लाश को देखने लगे. थोड़ी ही देर में खबर आसपास के तमाम लोगों को मिली तो वे भी वसंत वाटिका पार्क में पहुंचने लगे. थोड़ी ही देर में वहां लोगों का हुजूम लग गया. इसी बीच किसी ने खबर पुलिस कंट्रोलरूम को दे दी. यह 25 फरवरी, 2014 दोपहर 1 बजे की बात है.

यह इलाका दक्षिणी दिल्ली के थाना वसंत कुंज (नार्थ) के अंतर्गत आता है, इसलिए गटर में लाश मिलने की खबर मिलते ही थानाप्रभारी मनमोहन सिंह, एसआई नीरज कुमार यादव, कांस्टेबल संदीप, बलबीर को ले कर वसंत वाटिका पार्क पहुंच गए. थानाप्रभारी ने जब गटर के मेनहोल से झांक कर देखा तो वास्तव में उस में एक आदमी की लाश पड़ी थी. वह सड़ गई थी जिस से वहां तेज बदबू फैली हुई थी.

पुलिस ने लाश बाहर निकाल कर जब उस का निरीक्षण किया तो उस का गला कटा हुआ था और पेट पर दोनों साइडों में गहरे घाव थे. लाश की हालत देख कर लग रहा था कि उस की हत्या कई दिनों पहले की गई होगी. जहां लाश मिली थी, उस से कुछ दूर ही रंगपुरी पहाड़ी थी, जहां झुग्गी बस्ती है.

लाश मिलने की खबर जब इस झुग्गी बस्ती के लोगों को मिली तो वहां से तमाम लोग लाश देखने के लिए वसंत वाटिका पार्क पहुंच गए. उन्हीं में प्रताप सिंह भी था.

प्रताप सिंह का छोटा भाई करतार सिंह भी 14 फरवरी, 2014 से लापता था. जैसे ही उस ने वह लाश देखी, उस की चीख निकल गई. क्योंकि वह लाश उस के भाई करतार सिंह की लग रही थी. अपनी संतुष्टि के लिए उस ने उस लाश का दायां हाथ देखा. उस पर हिंदी में करतार-सीमा गुदा हुआ था. यह देख कर उसे पक्का यकीन हो गया कि लाश उस के भाई की ही है. सीमा करतार की पहली बीवी थी.

करतार सिंह के घर के अन्य लोगों को भी पता चला कि उस की लाश गटर में मिली है तो वे घर से वसंत वाटिका पार्क पहुंच गए. वे भी करतार की लाश देख कर रोने लगे.

कुछ देर बाद पुलिस ने मृतक करतार के पिता पिल्लूराम से पूछा तो उन्होंने बताया, ‘‘यह 14 फरवरी से लापता था. इस की पत्नी किरण ने आज ही इस की गुमशुदगी थाने में लिखवाई थी. इस का यह हाल न जाने किस ने कर दिया?’’

‘‘जब यह 14 फरवरी से गायब था तो गुमशुदगी 12 दिन बाद क्यों कराई?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘पता नहीं साहब, हम ने तो इसे सब जगह ढूंढा था. इस का मोबाइल फोन भी बंद था.’’ पिल्लूराम ने रोते हुए बताया.

‘‘तुम चिंता मत करो, हम इस बात का जल्दी पता लगा लेंगे कि इस की हत्या किस ने की है.’’

‘‘साहब, हमारा तो बेटा चला गया. हम बरबाद हो गए.’’

थानाप्रभारी ने किसी तरह पिल्लूराम को समझाया और उन्हें भरोसा दिया कि वह हत्यारे के खिलाफ कठोर काररवाई करेंगे.

कोई भी लाश मिलने पर पुलिस का पहला काम उस की शिनाख्त कराना होता है. शिनाख्त के बाद ही पुलिस हत्यारों का पता लगा कर उन तक पहुंचने की काररवाई करती है. गटर में मिली इस लाश की शिनाख्त उस के घर वाले कर चुके थे. इसलिए पुलिस ने लाश का पंचनामा कर के उसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

मामला मर्डर का था इसलिए दक्षिणी दिल्ली के डीसीपी भोलाशंकर जायसवाल ने थानाप्रभारी मनमोहन सिंह के निर्देशन में एक पुलिस टीम बनाई जिस में सबइंसपेक्टर नीरज कुमार यादव, संदीप शर्मा, कांस्टेबल बलबीर सिंह, संदीप, विनय आदि को शामिल किया गया.

मृतक करतार सिंह की पत्नी किरण ने 25 फरवरी, 2014 को उस की गुमशुदगी की सूचना थाने में लिखाई थी. जिस में उस ने कहा था कि उस का पति 14 फरवरी से लापता है. पुलिस ने उस से मालूम भी किया था कि सूचना इतनी देर से देने की वजह क्या है.

तब किरण ने बताया था कि पति के गायब होने के बाद से ही वह उसे हर संभावित जगह पर तलाशती रही. उस के जानकारों से भी पूछताछ की थी, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. उस ने सुबह के समय गुमशुदगी लिखाई थी और दोपहर में लाश मिल गई. इसलिए पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ हत्या कर लाश छिपाने का मामला दर्ज कर लिया.

पुलिस टीम ने सब से पहले मृतक के घर वालों से पूछताछ की तो पता चला कि करतार अपनी किराने की दुकान पर बैठता था. उस की किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं थी इसलिए कहा नहीं जा सकता कि उस की हत्या किस ने की है. पिता पिल्लूराम ने बताया कि करतार के गायब होने के 2 दिन पहले उस का झगड़ा रामबाबू से हुआ था.

‘‘यह रामबाबू कौन है?’’ थानाप्रभारी मनमोहन सिंह ने पिल्लूराम से पूछा.

‘‘साहब, रामबाबू की बीवी और किरण एक ही गांव की हैं. उसी की वजह से रामबाबू करतार के पास आता था. करतार के गायब होने के 2 दिन पहले ही उस की रामबाबू से किसी बात पर कहासुनी हो गई थी.’’ पिल्लूराम ने बताया.

‘‘…और रामबाबू रहता कहां है?’’

‘‘साहब, ये तो मुझे पता नहीं. लेकिन किरण को जरूर पता होगा. क्योंकि वह उस के यहां जाती थी.’’

थानाप्रभारी ने किरण को थाने बुलवाया. पति की लाश मिलने के बाद उस का रोरो कर बुरा हाल था. थानाप्रभारी ने उस से पूछा, ‘‘तुम रामबाबू को जानती हो? वह कहां रहता है और करतार से उस का जो झगड़ा हुआ था, उस की वजह क्या थी?’’

‘‘रामबाबू की बीवी और हम एक ही गांव के हैं, इसलिए वह कभीकभी हमारे यहां आता रहता था. वह महिपालपुर में रहता है. करतार और रामबाबू 12 फरवरी को साथसाथ शराब पी रहे थे, उसी समय किसी बात पर दोनों के बीच झगड़ा हो गया था.’’ किरण ने बताया.

चूंकि करतार का झगड़ा रामबाबू से हुआ था इसलिए पुलिस सब से पहले रामबाबू से ही पूछताछ करना चाहती थी. पुलिस किरण को ले कर महिपालपुर स्थित रामबाबू के कमरे पर पहुंची. लेकिन उस का कमरा बंद मिला. पड़ोसियों से जब उस के बारे में पूछा तो उन्होंने भी उस के बारे में अनभिज्ञता जताई. इस से पुलिस के शक की सुई रामबाबू की तरफ घूम गई.

करतार रंगपुरी पहाड़ी पर रहता था. महिपालपुर से लौटने के बाद पुलिस ने रंगपुरी पहाड़ी पर पहुंच कर वहां के लोगों से करतार के बारे में जानकारी जुटानी शुरू कर दी. इस से पुलिस को कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां मिलीं, जिस के बाद किरण और उस की छोटी बहन सलीना भी शक के दायरे में आ गईं.

दोनों बहनों को पुलिस ने उसी दिन पूछताछ के लिए थाने बुलवा लिया. किरण और सलीना को जब अलगअलग कर के पूछताछ की तो करतार के मर्डर की कहानी खुल गई. दोनों बहनों ने स्वीकार कर लिया कि उस की हत्या उन दोनों ने ही की थी और लाश रामबाबू के आटो में रख कर वसंत वाटिका पार्क में लाए और उसे वहां के गटर में डाल कर अपनेअपने घर चले गए थे. पति की हत्या की जो कहानी किरण ने बताई, वह प्रेम से सराबोर निकली.

पिल्लूराम मूलरूप से हरियाणा के गुड़गांव जिले के मेवात क्षेत्र स्थित नूनेरा गांव के रहने वाले थे. अब से तकरीबन 40 साल पहले अपनी पत्नी रतनी और 2 बेटों के साथ वे दिल्ली आए थे और दक्षिणी दिल्ली के वसंत कुंज इलाके में स्थित रंगपुरी पहाड़ी पर रहने लगे. उन से पहले अनेक लोगों ने इसी पहाड़ी पर तमाम झुग्गियां डाल रखी थीं.

दिल्ली की चकाचौंध ने उन्हें इतना प्रभावित किया कि वह यहीं पर बस गए. छोटेमोटे काम कर के वह परिवार को पालने लगे. दिल्ली आने के बाद रतनी 4 और बेटों की मां बनी. अब उन के पास 6 बेटे हो गए थे जिन में करतार सिंह तीसरे नंबर का था.

पिल्लूराम की हैसियत उस समय ऐसी नहीं थी कि वे बच्चों को पढ़ा सकें. फिर भी उन्होंने सरकारी स्कूलों में बच्चों का दाखिला कराया लेकिन सभी ने पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी. कोई भी बच्चा उच्चशिक्षा हासिल नहीं कर सका, तब पिल्लूराम ने उन्हें अलगअलग कामों में लगा दिया.

सभी बच्चे कमाने लगे तो घर के हालात सुधरने लगे. पैसा जमा करने के बाद करतार सिंह ने रंगपुरी पहाड़ी पर ही किराना स्टोर और चाय की दुकान खोल ली. कुछ ही दिनों में करतार सिंह का काम चल निकला तो उसे अच्छी आमदनी होने लगी. तब पिल्लूराम ने उस की शादी सीमा नाम की एक लड़की से कर दी.

शादी के बाद हर किसी के जीवन की एक नई शुरुआत होती है. यहीं से एक नए परिवार की जिम्मेदारी उठाने की कोशिश शुरू हो जाती है. सीमा से शादी करने के बाद करतार ने भी गृहस्थ जीवन की शुरुआत की. वह सीमा से बहुत खुश था. सीमा सपनों के जिस राजकुमार से शादी करना चाहती थी, करतार वैसा ही था. इसलिए उस ने बहुत जल्द ही करतार के दिल को काबू में कर लिया था.

इस दौरान सीमा एक बेटी और एक बेटे की मां बनी. उस का परिवार हंसीखुशी से चल रहा था. इसी बीच परिवार में ऐसा भूचाल आया जिस का दुख उसे सालता रहा.

करीब 4-5 साल पहले सीमा की कैंसर से मौत हो गई. करतार ने उस का काफी इलाज कराया था. लाख कोशिश करने के बाद भी वह ठीक नहीं हो सकी और परिवार को हमेशा हमेशा के लिए छोड़ कर चली गई.

सीमा की मौत पर वैसे तो पूरे परिवार को दुख हुआ था लेकिन सब से ज्यादा दुख करतार ही महसूस कर रहा था. होता भी क्यों न, वह उस की अर्द्धांगिनी जो थी. जीवन के जितने दिन उस ने पत्नी के साथ गुजारे थे, उन्हीं दिनों को याद करकर के उस की आंखों में आंसू भर आते थे.

36 साल का करतार दुकान पर बैठेबैठे खाली समय में अपने वैवाहिक जीवन की यादों में खोया रहता था. उस के मांबाप भी उसे काफी समझाते रहते थे. खैर, जैसेजैसे समय गुजरता गया, करतार सिंह भी सामान्य हो गया.

उसी दौरान उस की मुलाकात किरण नाम की एक युवती से हुई जो झारखंड के केरल गांव की थी. वह भी रंगपुरी पहाड़ी पर रहती थी. किरण वसंत कुंज इलाके में कोठियों में बरतन साफ करने का काम करती थी. करतार एकाकी जीवन गुजार रहा था. किरण को देख कर उस का झुकाव उस की ओर हो गया. किरण भी अकसर उस के पास आने लगी. उसे भी करतार से बातचीत करने में दिलचस्पी होने लगी. दोनों ने एकदूसरे को अपने फोन नंबर दे दिए थे.

फिर तो करतार जब भी फुरसत में होता, किरण को फोन मिला देता. दोनों में बातचीत का सिलसिला शुरू हो जाता और काफी देर तक बातें होती रहतीं. बातों ही बातों में वे एकदूसरे से खुलते गए. यह नजदीकी उन्हें प्यार के मुकाम तक ले गई.

चूंकि किरण भी अकेली ही थी और करतार उस की नजरों में सही था. उस की किराने की दुकान अच्छी चल रही थी इसलिए उस ने काफी सोचनेसमझने के बाद ही उस की तरफ प्यार का हाथ बढ़ाया था. करतार ने उस के सामने पूरी जिंदगी साथ रहने की पेशकश की तो किरण ने सहमति जता दी. इस के बाद किरण करतार के साथ पत्नी की तरह रहने लगी. यह करीब 4 साल पहले की बात है.

करतार की जिंदगी फिर से हरीभरी हो गई थी. किरण के प्यार ने उस के बीते दुखों को भुला दिया था. दोनों की उम्र में करीब 8 साल का अंतर था इस के बाद भी किरण उस से खुश थी.

इन 4 सालों में किरण मां नहीं बन सकी थी. करतार सिंह की पहली पत्नी से 2 बच्चे थे. इसलिए किरण के बच्चा पैदा न होने पर करतार को कोई मलाल नहीं था. लेकिन किरण इस चिंता में घुलती जा रही थी. वह चाहती थी कि उस के भी बच्चा हो. उस की गोद भी भर जाए.

किरण के कहने पर करतार ने उस का इलाज भी कराया. इस के बावजूद भी उस की इच्छा पूरी नहीं हुई तो करतार ने अपने एक संबंधी की एक साल की बेटी गोद ले ली जिस से किरण का मन लगा रहे. किरण उस गोद ली हुई बेटी की परवरिश में लग गई.

किरण के गांव की ही प्रभा नाम की एक लड़की की शादी महिपालपुर में रहने वाले रामबाबू के साथ हुई थी. रामबाबू आटोरिक्शा चलाता था. एक ही गांव की होने की वजह से किरण प्रभा से फोन पर बात भी करती रहती थी. कभी प्रभा उस के यहां तो कभी वह प्रभा के घर जाती रहती थी. एकदूसरे के यहां आनेजाने से करतार और रामबाबू के बीच भी दोस्ती हो गई थी. दोनों साथसाथ खातेपीते थे.

इसी बीच किरण का झुकाव रामबाबू की ओर हो गया. वह उस से हंसीमजाक करती रहती थी. किरण की ओर से मिले खुले औफर को भला रामबाबू कैसे ठुकरा सकता था. शादीशुदा होने के बावजूद भी उस ने अपने कदम किरण की ओर बढ़ा दिए. दोनों ही अनुभवी थे इसलिए उन्हें एकदूसरे के नजदीक आने में झिझक महसूस नहीं हुई.

किरण और रामबाबू के बीच एक बार जिस्मानी संबंध बनने के बाद उन का सिलसिला चलता रहा. लेकिन ज्यादा दिनों तक सिलसिला कायम न रह सका. करतार सिंह को पत्नी के हावभाव से उस पर शक होने लगा. उसे रामबाबू का उस के यहां ज्यादा आना अच्छा नहीं लगता था. इस बात का ऐतराज उस ने पत्नी से भी जताया और कहा कि वह रामबाबू को यहां आने से मना कर दे. लेकिन किरण ने ऐसा नहीं किया.

इसी बात को ले कर पत्नी से करतार की नोकझोंक होती रहती थी. उसी दौरान किरण की छोटी बहन सलीना भी उस के पास रहने के लिए आ गई. 22 साल की सलीना खूबसूरत थी. जवान साली को देख कर करतार की भी नीयत डोल गई. वह उस पर डोरे डालने लगा लेकिन घर में अकसर पत्नी के रहने की वजह से उस की दाल नहीं गल पाई.

उधर किरण और रामबाबू के अवैध संबंध का खेल कायम रहा और 7 फरवरी को वह रामबाबू के साथ भाग गई. बदनामी की वजह से करतार ने इस की रिपोर्ट थाने में भी नहीं लिखवाई. करीब एक हफ्ते तक दोनों इधरउधर घूम कर मौजमस्ती कर के घर लौट आए. करतार ने किरण को आडे़ हाथों लिया तो किरण ने पति के पैरों में गिर कर माफी मांग ली. पत्नी के घडि़याली आंसू देख कर करतार का दिल पसीज गया और उस ने पत्नी को माफ कर दिया.

13 फरवरी की शाम को रामबाबू करतार के यहां आया. करतार को पता था कि उस की पत्नी को रामबाबू ही भगा कर ले गया था इसलिए उस के घर आने पर वह मन ही मन कुढ़ रहा था. फिर भी उस ने उस से कुछ कहना जरूरी नहीं समझा.

उस ने उस की खातिरदारी की और उस के साथ शराब भी पी. शराब पीने के दौरान ही बातोंबातों में उन का झगड़ा हो गया. झगड़ा बढ़ने पर रामबाबू वहां से चला गया. किरण ने इसे अपने प्रेमी रामबाबू की बेइज्जती समझा और उलटे वह भी पति से झगड़ने लगी.

अगले दिन 14 फरवरी को वैलेंटाइन डे (Valentine Day) था. प्यार का इजहार करने के इस दिन का तमाम लोगों को बेसब्री से इंतजार रहता है. 40 साल का करतार भी अपनी 22 साल की साली सलीना को मन ही मन चाहता था. उस दिन सलीना किरण के साथ महिपालपुर में रामबाबू के घर चली गई थी. इस बात की जानकारी करतार सिंह को थी.

करतार सिंह ने भी वैलेंटाइन डे के दिन ही सलीना को अपने प्यार का इजहार करने का फैसला कर लिया. वह दुकान पर अपने बेटे को बिठा कर रामबाबू के कमरे पर पहुंच गया. उस समय वहां रामबाबू नहीं था. वह किरण और सलीना को कमरे पर छोड़ कर किसी काम से घर से बाहर चला गया था और उस की पत्नी प्रभा मायके गई हुई थी.

करतार सलीना के लिए बेचैन हुआ जा रहा था. जिस समय किरण किचन में कोई काम कर रही थी, सलीना कमरे में थी, तभी मौका देख कर करतार ने सलीना का हाथ पकड़ लिया.

सलीना घबरा गई. जब उस ने हाथ छुड़ाने की कोशिश की तो करतार ने उस के सामने प्यार (Valentine Day) का इजहार करते हुए उसे किस कर दी और वह उस के साथ अश्लील हरकतें करने लगा. सलीना चीखी तो किचन से किरण आ गई. पति की हरकतों को देख कर उसे भी गुस्सा आ गया. तब सलीना ने किसी तरह खुद को उस के चंगुल से छुड़ा लिया और किचन की ओर भाग गई.

उधर किरण पति को डांट ही रही थी तभी सलीना किचन से चाकू ले आई. इस से पहले कि वह कुछ समझ पाता, सलीना ने करतार के पेट में चाकू घोंप दिया.

चाकू लगते ही करतार के पेट से खून का फव्वारा फूट पड़ा. सलीना ने उसी चाकू से एक वार उस के पेट की दूसरी साइड में कर दिया. इस के बाद करतार सिंह फर्श पर गिर गया और बेहोश हो गया.

बहन के इस कदम पर किरण भी हैरान रह गई. जो हो चुका था, उस में अब वह कुछ नहीं कर सकती थी. उस ने छोटी बहन से कुछ नहीं कहा. बल्कि वह यह सोच कर खुश हुई कि करतार के मरने के बाद वह रामबाबू के साथ बिना किसी डर के रहेगी. करतार कहीं जिंदा न रह जाए, इसलिए किरण ने उसी चाकू से उस का गला काट दिया. इस के बाद किरण ने फोन कर के रामबाबू को करतार की हत्या करने की खबर दे दी. उस ने उसे बुला लिया.

दोनों बहनों द्वारा करतार की हत्या करने पर वह भी हैरान रह गया. अब उन तीनों ने उस की लाश को ठिकाने लगाने की योजना बनाई. सब से पहले उन्होंने उस की बौडी के खून को साफ किया फिर लाश को प्लास्टिक के कट्टे में रख लिया.

अंधेरा होने के बाद रामबाबू ने उस की लाश अपने आटोरिक्शा में रख ली. किरण और सलीना भी आटो में बैठ गईं. रामबाबू आटो को वसंत कुंज इलाके की तरफ ले गया. वसंत वाटिका पार्क के पास उन्हें बिना ढक्कन का एक मेनहोल दिखा तो उसी मेनहोल में उन्होंने लाश गिराने का फैसला ले लिया.

आटो से कट्टा उतार कर उस मेनहोल के पास ले गए और कट्टे का मुंह खोल कर लाश उस मेनहोल में गिरा दी और कट्टा वहीं फेंक कर वे उसी कमरे पर चले गए जहां करतार की हत्या की गई थी.

तीनों ने फर्श धो कर खून के धब्बे साफ किए फिर किरण और सलीना वहां से करतार के कमरे पर आ गईं. उन्हें देख कर घर का कोई भी सदस्य यह अनुमान तक नहीं लगा पाया कि वे कोई जघन्य अपराध कर के आई हैं.

जब देर रात तक करतार घर नहीं पहुंचा तो उस के घर वालों ने किरण से उस के बारे में पूछा. तब किरण ने यही जवाब दिया कि उसे करतार के बारे में कुछ नहीं पता. घर वालों के साथ वह भी करतार को इधरउधर ढूंढती रही.

10-12 दिनों तक घर वाले परेशान होते रहे, लेकिन करतार का कहीं पता नहीं चला. करतार के घर वाले जब उस के गुम होने की रिपोर्ट दर्ज कराने की बात करते तो किरण उन्हें यह कह कर मना करती कि वह कहीं गए होंगे. अपने आप लौट आएंगे. घर वालों के दबाव देने पर किरण ने 25 फरवरी को थाना वसंत कुंज (नार्थ) जा कर पति की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखा दी.

उधर करतार सिंह के मातापिता का कहना है कि सलीना ने उन के बेटे पर छेड़खानी का जो आरोप लगाया है वह सरासर गलत है. हकीकत यह है कि सलीना करतार के साथ पहले से ही उस के कमरे में सोती थी. जब किरण रामबाबू के साथ भाग गई थी तब सलीना करतार के साथ ही सोती थी.

हफ्ता भर तक जब जीजासाली बंद कमरे में सोए थे तो उन्होंने भजनकीर्तन तो किया नहीं होगा. जाहिर है उन्होंने सीमाएं भी लांघी होंगी. ऐसे में उस के द्वारा छेड़छाड़ का आरोप लगाने वाली बात एकदम गलत है.

उन्होंने आरोप लगाया कि करतार की हत्या रामबाबू, किरण और सलीना ने साजिश के तहत की है. तीनों के खिलाफ सख्त काररवाई की जानी चाहिए.

बहरहाल अब यह बात अदालत ही तय करेगी कि करतार सिंह का हत्यारा कौन है. किरण और सलीना से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने एक बार फिर रामबाबू के यहां दबिश दी, लेकिन वह नहीं मिला.

पुलिस को पता चला कि करतार की लाश ठिकाने लगाने में रामबाबू ने अपने जिस आटोरिक्शा का प्रयोग किया था, वह किसी के यहां खड़ा है. पुलिस उस जगह पर पहुंच गई जहां उस का आटोरिक्शा खड़ा था. उस आटोरिक्शा को ले कर पुलिस थाने लौट आई.

पुलिस ने किरण और सलीना को भादंवि की धारा 302 (हत्या करना), 201 (हत्या कर के लाश छिपाने की कोशिश) और 120बी (अपराध की साजिश रचने) के तहत गिरफ्तार कर के उन्हें न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया.

कथा संकलन तक दोनों अभियुक्त जेल में बंद थीं जबकि रामबाबू की तलाश में पुलिस अनेक स्थानों पर दबिश डाल चुकी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

Crime stories : शादी का झांसा देता फरजी सीबीआई अधिकारी

Crime stories : 12 दिसंबर, 2017 को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के थाना अशोका गार्डन में काफी भीड़भाड़ थी. धीरेधीरे यह भीड़ बढ़ती जा रही थी. लोग यह जानने के लिए उस भीड़ का हिस्सा बनते जा रहे थे कि आखिर यहां हो क्या रहा है? लोग उत्सुकता से एकदूसरे का मुंह भी ताक रहे थे कि यहां हो क्या रहा है? उधर से गुजरने वाला हर आदमी बिना ठिठके आगे नहीं बढ़ रहा था.

इस की वजह यह थी कि शायद माजरा उस की समझ में आ जाए. जब उन्हें सच्चाई का पता चला तो सभी के सभी हक्केबक्के रह गए. एक लड़की, जिस की उम्र 23-24 साल रही होगी, वह एक लड़के का गिरेबान पकड़ कर कह रही थी, ‘‘सर, इस ने मेरी जिंदगी बरबाद कर दी. इस ने मेरे साथ बहुत बड़ा धोखा किया है.’’

इस के बाद उस लड़की ने थाना पुलिस को जो बताया, उस के अनुसार उस लड़के ने फरजी आईपीएस अधिकारी बन कर उसे शादी का झांसा दिया था. काफी समय तक वह उस की इज्जत को तारतार करते हुए उस के भरोसे से खेलता रहा. यही नहीं, शादी करने के नाम पर उस ने उस से लाखों रुपए भी लिए थे.

लड़की को जब लड़के की सच्चाई का पता चला तो उस ने फरार होने की कोशिश की, लेकिन लड़की ने घर वालों की मदद से उसे पकड़ लिया और थाने ले आई. हर मांबाप की यही ख्वाहिश होती है कि वह अपनी औलाद को पढ़ालिखा कर इस काबिल बना दे कि वह खूब तरक्की करे.

ऐसी ही ख्वाहिश याकूब मंसूरी की भी थी. वह अपनी बेटी जेबा को गेट की तैयारी करवा रहे थे. जबकि मुसलमानों में आमतौर पर यही माना जाता है कि लड़कियों को ज्यादा पढ़ालिखा कर उन से नौकरी थोड़ी ही करानी है. लेकिन याकूब मंसूरी की सोच इस के विपरीत थी. वह जेबा को पढ़ालिखा कर कुछ करने के लिए प्रेरित करने के साथसाथ हर तरह से उस की मदद भी कर रहे थे.

जेबा मंसूरी भी अपने वालिद के सपनों को साकार करने में पूरी ईमानदारी से जुटी थी. वह परीक्षा की तैयारी मेहनत से कर रही थी. वह पढ़ने में भी काफी होशियार थी. उसे पूरी उम्मीद थी कि इस साल वह गेट की परीक्षा पास कर लेगी. इस के लिए वह रातदिन मेहनत कर रही थी. लेकिन जो सपने उस ने बुने थे, उस पर समीर खान की नजर लग गई.

मैट्रीमोनियल साइट से हुई दोस्ती

जवान होती लड़की के लिए हर मांबाप की यही ख्वाहिश होती है कि उन की बेटी के लिए किसी भी तरह एक अच्छा सा लड़का मिल जाए. इस के लिए मांबाप लड़के वालों की तमाम तरह की मांगों को पूरी करने की कोशिश भी करते हैं. अच्छे रिश्ते के लिए ही याकूब मंसूरी ने शादी डाटकौम पर बेटी जेबा की प्रोफाइल बनाई थी.

उन्होंने ऐसा बेटी के सुखद भविष्य के लिए किया था. लेकिन हो गया उल्टा. शायद इसीलिए जहां शादी की शहनाई बजनी थी, वहां अब मातम पसरा था. समाज में आज इतना बदलाव आ गया है कि लड़केलड़कियां अपनी पसंद से शादी करने लगे हैं. इस में कोई बुराई भी नहीं है. क्योंकि जब लड़के और लड़की को जीवन भर साथ रहना है तो पसंद भी उन्हीं की होनी चाहिए.

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इसीलिए अब परिचय सम्मेलन आयोजित किए जाने लगे हैं. इस से सब से बड़ा फायदा यह हुआ है कि लड़के के साथ लड़की को भी अपनी पसंद का जीवनसाथी मिल जाता है. चूंकि जमाना हाइटेक हो चुका है, इसलिए अब विवाह के लिए जीवनसाथी तलाशने का काम औनलाइन भी होने लगा है. कई प्लेटफार्म लोगों की शादी के लिए अच्छा जरिया बन गए हैं.

जेबा मंसूरी ने थाना अशोका गार्डन पुलिस को जो तहरीर दी थी, उस के अनुसार शादी के नाम पर उस के साथ धोखा हुआ था. जेबा ने नए साल में अपने लिए तरहतरह के जो अरमान पाले थे, नए साल के कुछ दिनों पहले ही उस के साथ जो हुआ, उस से उस के सारे अरमान एक ही झटके में चकनाचूर हो गए.

उस ने क्या सोचा था और उस के साथ क्या हो गया. शादी के नाम पर उस लड़के ने उस के साथ बहुत भयानक खेल खेला था, जिसे वह चाह कर भी इस जनम में नहीं भुला पाएगी. जेबा ने जो शिकायत दर्ज कराई है, उस के अनुसार उस के शादी के नाम पर धोखा खाने की कहानी कुछ इस प्रकार है—

जेबा प्रतियोगी परीक्षा गेट की तैयारी कर रही थी. जवान होती बेटी की शादी के लिए पिता याकूब मंसूरी ने शादी डाटकौम पर प्रोफाइल बना दी थी. शादी डाटकौम के जरिए शादी के लिए उस की प्रोफाइल पर एक रिक्वेस्ट आई. रिक्वेस्ट में दिए मोबाइल नंबर पर याकूब मंसूरी ने बात की.

इस बातचीत में उस ने अपना नाम समीर खान बताया था. उस ने बताया कि वह चेन्नई में सीबीआई में बतौर अंडरकवर डीएसपी नौकरी करता है. याकूब ने उस के घर वालों से बात करने की इच्छा जाहिर की तो उस ने अपने पिता अनवर खान का नंबर दे दिया. अनवर खान से समीर खान के बारे में जानकारी ली गई तो पता चला कि उन का बेटा समीर सीबीआई में अंडरकवर डीएसपी है. फिलहाल उस की पोस्टिंग चेन्नई में है.

बातचीत के लिए जेबा को ले गया होटल में

इस के बाद समीर ने याकूब मंसूरी से जेबा का मोबाइल नंबर यह कह कर मांग लिया कि वह उस से बात करेगा. अगर वह उसे पसंद आ गई तो वह इस जानपहचान को जल्दी ही शादी जैसे खूबसूरत रिश्ते में बदल देगा. याकूब मंसूरी ने समीर की बातों पर विश्वास कर के उसे जेबा का नंबर दे दिया.

अक्तूबर महीने में एक दिन जेबा के मोबाइल पर समीर ने फोन किया. दोनों में काफी देर तक बातें हुईं. दोनों ने एकदूसरे को अपनेअपने घर परिवार और विचारों के बारे में बताया. समीर ने ऐसी लच्छेदार बातें कीं कि जेबा उस के दिखाए सब्जबाग में फंस गई. इस के बाद अकसर उन की बातें होने लगीं. वाट्सऐप पर भी संदेशों का आदानप्रदान होने लगा.

ऐसे में ही एक दिन समीर ने भोपाल आ कर जेबा से मिलने की ख्वाहिश जाहिर की, जिसे वह मना नहीं कर सकी. समीर के भोपाल आने की बात पर एक ओर जहां जेबा खुश हो रही थी, वहीं दूसरी ओर अंजाना सा डर भी सता रहा था. क्योंकि किसी से फोन पर बात करना अलग बात होती है और आमनेसामने मिलना अलग.

लेकिन शादी का मामला था, इसलिए जेबा ने मिलना मुनासिब समझा. आखिर वह समीर को लेने भोपाल रेलवे स्टेशन पर पहुंच गई.  यह 22 नवंबर, 2017 की बात है. दोनों ने एकदूसरे को देखा तो पहली नजर में ही पसंद कर लिया.

समीर ने जेबा के घर जाने के बजाय उस के साथ स्टेशन से सीधे नूरउससबा पैलेस होटल पहुंचा. जबकि जेबा उसे घर ले जाना चाहती थी. लेकिन समीर की मरजी के आगे उस की एक न चली.

होटल में उस ने डबलबैड कमरा लिया था, जिस में दोनों 2 दिनों तक रुके. इस बीच समीर ने अपने परिवार के बारे में जेबा को खूब बढ़ाचढ़ा कर बताया. उस के बताए अनुसार, उस के परिवार के ज्यादातर लोग सरकारी नौकरियों में हैं. कोई जज है तो कोई इसी तरह की अन्य सरकारी नौकरी में. अपने पिता के बारे में उस ने बताया कि उन का मुंबई में कपड़ों का बहुत बड़ा बिजनैस है, इसलिए वह वहीं रहते हैं. वह बनारस का रहने वाला है, जहां उस की काफी जमीनजायदाद है.

समीर ने पसंद किया जेबा को

अपने घरपरिवार के बारे में बता कर समीर ने जेबा से कहा कि वह उसे पसंद है और उस से शादी के लिए तैयार है. समीर अच्छे घर का लड़का था और  (CBI )सीबीआई में अफसर था, इसलिए जेबा ने भी हामी भर दी. जेबा के हां करते ही समीर उस से छेड़छाड़ करने लगा. इस के बाद सारी मर्यादाएं लांघते हुए उस ने उस के साथ शारीरिक संबंध बना लिए.

जेबा भी उस के बहकावे में आ कर गुनाहों के ऐसे दलदल में जा फंसी, जहां से निकलना किसी भी लड़की के लिए बहुत मुश्किल होता है. भोपाल में 2 दिन रुकने के बाद समीर ने कहा कि औफिशियल काम से उसे दिल्ली जाना है. इस से जेबा को लगा कि वाकई उसे वहां जरूरी काम होगा.

लेकिन बाद में पता चला कि वह सब झूठ था. यह सब जेबा काफी बाद में जान पाई. दिल्ली जाने के बाद समीर ने उसे फोन किया. डरते हुए उस ने बताया कि उन के होटल में रुकने का पता उस के घर वालों को चल गया है, जिस से वे काफी नाराज हैं. उस की बातें सुन कर जेबा शौक्ड रह गई. वह यह क्या कह रहा है, अब क्या होगा, उस की कितनी बदनामी होगी?

समीर ने जेबा को समझाते हुए कहा कि वह बिलकुल परेशान न हो. यह बात भोपाल में किसी को पता नहीं है, सिर्फ उस के घर वालों को ही पता है. इस बात से वे काफी नाराज हैं. लेकिन घबराने की कोई बात नहीं है. कुछ दिनों में वह सब संभाल लेगा. वह बिलकुल परेशान न हो. वह उन्हें मना लेगा. वह फिर भोपाल आ रहा है. 2 दिन बाद समीर फिर भोपाल आया और नूरउससबा होटल के उसी कमरे में ही रुका. लेकिन इस बार जेबा होटल में उस के साथ नहीं रुकी, लेकिन उस से मिलने रोज आती रही.

अंत में जब समीर ने दबाव डाला तो वह 8 नवंबर से 23 नवंबर तक होटल में रुकी. समीर से उस के शारीरिक संबंध बन ही चुके थे, इसलिए इस बार भी वह उस से शारीरिक संबंध बनाता रहा.

जेबा ने ऐतराज जताया तो उस ने होटल में ही काजी को बुला लिया और उन के सामने कहा कि वह उस से निकाह कर के उसे अपनी बीवी मान रहा है. इस तरह से जेबा का निकाह समीर से हो गया. वह समीर की बीवी बन कर रहने लगी, जबकि उन के इस निकाह का कोई लिखित सबूत नहीं था.

इतने दिनों तक होटल में साथ रुकने के बाद जेबा समीर को अपने मम्मीपापा से मिलवाने के लिए सागर ले गई, जहां मकरोनिया सागर में उस का पुश्तैनी मकान था. वहां भी वह अपनी लच्छेदार बातों के जाल में फंसा कर जेबा के घर वालों के सामने एक अच्छा लड़का बना रहा. याकूब मंसूरी और उन की पत्नी को भी समीर पसंद आ गया था. अब इस रिश्ते में कोई अड़चन नहीं थी. कुछ समय तक सागर में रुक कर दोनों भोपाल लौट आए. समीर भोपाल स्थित जेबा के घर पर भी कई दिनों तक रुका. वहां भी दोनों ने जिस्मानी रिश्ते बनाए.

ट्रेनिंग के लिए जाने की बात कह कर ठगे लाखों रुपए

समीर ने जेबा के साथसाथ उस के घर वालों को भी इस बात का पक्का यकीन दिला दिया था कि वह सीबीआई में अंडरकवर डीएसपी है और उस का सिलेक्शन आईपीएस के रूप में हो गया है, जिस की ट्रेनिंग हैदराबाद में होनी है. आईपीएस की ट्रेनिंग पर वह इसलिए नहीं जा पा रहा था, क्योंकि किसी वजह से स्टे लगा था. लेकिन अब स्टे हट गया है, इसलिए उसे ट्रेनिंग के लिए हैदराबाद जाना है.

ऐसे में ही जेबा ने उस से पूछ लिया कि वह वरदी क्यों नहीं पहनता तो उस ने कहा कि वह सीबीआई अफसर है, इसलिए उसे पहचान छिपा कर रखनी पड़ती है. जब कभी औफिस जाना होता है तो वह वरदी पहनता है.

जेबा के कहने पर एक दिन समीर ने उसे आईपीएस की वरदी पहन कर दिखाते हुए कहा कि जब कभी औफिशियल मीटिंग होती है, तब वह यह वरदी पहन कर जाता है. जेबा को उस वरदी पर संदेह हुआ, क्योंकि उस पर सीनियर अफसरों के बैज लगे थे. इस के बाद समीर ने उसे सील लगे हुए कई दस्तावेज दिखाए.

एक दिन समीर परेशान सा सोफे पर चुपचाप बैठा था. जेबा ने परेशानी की वजह पूछी तो उस ने धीमी आवाज में कहा, ‘‘क्या बताऊं, मुझे ट्रेनिंग के लिए हैदराबाद जाना है, जिस के लिए काफी पैसों की जरूरत है. होटल में मिलने को ले कर पापा अभी तक नाराज हैं, इसलिए उन से किसी तरह की मदद की उम्मीद नहीं है. अब परेशानी यह है कि ट्रेनिंग का खर्च कहां से आएगा.’’

समीर की बातों में आ कर जेबा ने कहा, ‘‘आप परेशान मत होइए, मैं आप के लिए पैसों का इंतजाम कर दूंगी.’’

समीर मना करता रहा, इस के बावजूद कई बार में जेबा ने तकरीबन 2 लाख रुपए उसे दे दिए. क्योंकि उसे कभी उस पर संदेह नहीं हुआ था.

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परिवार से मिलवाने की बात को टाल जाता था

जब भी जेबा समीर से घर वालों के बारे में पूछती या मिलवाने की बात कहती, वह कोई न कोई बहाना बना कर टाल जाता. जेबा को उस से मिले करीब 2 महीने हो गए थे, लेकिन उस ने अपने मम्मीपापा से मिलवाने की कौन कहे, फोन पर बात तक नहीं करवाई थी.

इन्हीं बातों से जेबा को उस पर शक होने लगा. संदेह गहराया तो उस ने अपने पापा से समीर के बारे में पता करने को कहा. उस ने और उस के मम्मीपापा ने समीर से उस की नौकरी और पढ़ाई के कागजात मांगे तो वह टालमटोल करने लगा. याकूब मंसूरी ने अपने कई परिचितों को समीर के बारे में पता करने के लिए लगा दिया. नतीजा यह निकला कि उस की असलियत का पता चल गया.

समीर को पता नहीं कैसे भनक लग गई कि उस की पोल खुल गई है. वह अपना बैग ले कर घर से भागने की फिराक में था, तभी जेबा ने कहा, ‘‘समीर, हमें तुम्हारी असलियत का पता चल गया है. अब मैं तुम्हें पुलिस के हवाले करूंगी, जिस से तुम्हारी जिंदगी जेल में कटेगी.’’

समीर डर गया. उस ने कहा, ‘‘अगर तुम लोगों ने मेरी शिकायत पुलिस में की तो मैं तुम सभी को जान से मार दूंगा.’’

लेकिन उस की इस धमकी से न जेबा डरी और न उस के मम्मीपापा. याकूब मंसूरी ने अपने दोस्तों की मदद से समीर को पकड़ लिया और थाना अशोका गार्डन ले गए, जहां वह खुद को पुलिस अधिकारी होने का भरोसा दिलाता रहा और वादा करता रहा कि जेबा से ही शादी करेगा.

लेकिन शादी का झांसा दे कर शारीरिक शोषण करने के साथ लाखों रुपए ऐंठने वाले समीर की असलियत जेबा को पता चल गई थी, इसलिए उस ने उस की किसी बात पर भरोसा नहीं किया. मामले की नजाकत को भांपते हुए अशोका गार्डन पुलिस ने समीर को तुरंत हिरासत में ले लिया.

समीर को हिरासत में लेने के बाद पुलिस ने याकूब मंसूरी के घर में रखे उस के बैग को कब्जे में ले कर तलाशी ली तो उस में से राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, सीबीआई सहित कई संस्थानों की फरजी मोहरें मिलीं. यही नहीं, उस के पास से डीआईजी रैंक के पुलिस अधिकारी की वरदी भी मिली. समीर ने एक गलती यह की थी कि उस ने जो वरदी खरीदी थी, वह डीआईजी रैंक के पुलिस अधिकारी की थी. 3 स्टार और अशोक चक्र लगी वरदी को पुलिस ने कब्जे में ले लिया था. पूछताछ में उस ने बताया कि यह वरदी उस ने बिहार के भागलपुर से खरीदी थी.

शातिर दिमाग है ठग समीर खान

एएसपी हितेश चौहान के अनुसार, समीर अनवर खान बहुत ही शातिर दिमाग था. उस ने बड़ी चालाकी से शादी डाटकौम पर अपनी प्रोफाइल बना कर जेबा मंसूरी जैसी पढ़ीलिखी लड़की को अपने जाल में फांस लिया था. बाद में पता चला कि उस ने ऐसा ही कारनामा पंजाब में किया था. मध्य प्रदेश पुलिस ने पंजाब पुलिस से जानकारी हासिल की तो पता चला कि ऐसे ही मामले में वह वहां भी गिरफ्तार किया गया था. जमानत पर रिहा होने के बाद वह फरार हो गया था.

पुलिस द्वारा की गई पूछताछ के अनुसार, समीर मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला वाराणसी का रहने वाला था. उस ने दिखावे के लिए एमटेक में अप्लाई कर रखा था. उस के पिता मुंबई में झुग्गीझोपड़ी में रहते थे और फेरी में कपड़े बेच कर गुजरबसर करते थे. उस ने जेबा से बताया था कि वाराणसी में उस की तमाम जमीनजायदाद है, लेकिन यह सब झूठ था.

मजे की बात यह थी कि उस ने पंजाब में जो धोखाधड़ी की थी, उस में उस ने 40-50 लाख रुपए की चपत लगाई थी. लेकिन कहीं से भी नहीं लगता था कि इतना पैसा उस के पास होगा.

थाना अशोका गार्डन पुलिस ने समीर के खिलाफ भादंवि की धारा 170, 419, 420, 471, 472, 473, 376 और 506 के तहत मुकदमा दर्ज किया था. कथा लिखे जाने तक समीर पुलिस रिमांड पर था. पुलिस उस से कई पहलुओं पर पूछताछ कर रही थी. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में समीर ने जो बताया है, उस से जाहिर होता है कि वह छोटामोटा अपराधी नहीं है.

होटल प्रबंधन को भी लगाया लाखों का चूना

समीर कितना शातिरदिमाग है, इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह भोपाल के सब से मशहूर होटल नूरउससबा में 2 नवंबर, 2017  से 23 नवंबर, 2017 तक लड़की के साथ रुका रहा, लेकिन होटल प्रबंधन को उस की कारगुजारियों की तनिक भी भनक नहीं लगी. वह इतने बड़े होटल को लाखों का चूना लगा कर रफूचक्कर हो गया था.

अच्छा हुआ कि वक्त रहते जेबा मंसूरी को उस पर शक हो गया, वरना हाथ से निकलने के बाद फिर शायद ही कभी वह चंगुल में फंसता. नूरउससबा पैलेस होटल में 20 दिनों से ज्यादा रहने के बाद भी वह पैसे दिए बिना  वहां से फरार हो गया था. होटल प्रबंधन के बताए अनुसार, 2 नवंबर से 23 नवंबर, 2017 तक होटल में रहने और खानेपीने का बिल 2 लाख 15 हजार 311 रुपए बना था.

समीर ने चालाकी से काम लेते हुए होटल प्रबंधन को भरोसे में लेने के लिए 20 हजार रुपए एडवांस जमा करा दिए थे. उसे वहां 24 नवंबर तक रुकना था, लेकिन एक दिन पहले ही वह अपना बोरियाबिस्तर समेट कर वहां से चलता बना.

पंजाब में आईएएस बन कर कर चुका है फरजीवाड़ा

समीर के बताए अनुसार, उस ने पंजाब के कपूरथला में भी एक बीएससी की छात्रा के साथ जालसाजी की थी. वहां भी उस ने कुछ ऐसी ही कहानी गढ़ी थी. उस ने वहां बताया था कि उस का सिलेक्शन ( Crime stories ) आईएएस में हो गया है. इस तरह उस के बहकावे में आ कर उस लड़की ने समीर से सन 2016 में निकाह कर लिया था. वहां उस ने अपना नाम शमशेर बताया था.

जब फरजी आईएएस का झूठ सामने आया तो कपूरथला के थाना फगवाड़ा पुलिस ने जनवरी, 2016 में शमशेर के खिलाफ धोखाधड़ी, दहेज अधिनियम और धमकाने की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर के उसे गिरफ्तार कर लिया था. शमशेर उर्फ समीर वहां 2 महीने तक जेल में बंद रहा. उस की दादी ने जमानत कराई तो जेल से बाहर आते ही वह फरार हो गया.

अब देखना यह है कि मध्य प्रदेश के साथसाथ पंजाब पुलिस समीर उर्फ शमशेर को धोखाधड़ी, पैसे ऐंठने, शारीरिक शोषण और फरजी पदों का गलत इस्तेमाल करने के अपराध में कितनी सजा दिलवा सकती है. पुलिस यह भी पता कर रही है कि यह काम समीर अकेला ही करता था या उस के साथ और कोई भी था.

काजल का असली रंग : बेटे को पढ़ाने वाले Teacher से बनाए संबंध

Tuition Teacher : वासना की आग ऐसी भड़की कि पतिपत्नी के उस रिश्ते को भी भूल गई, जिस के लिए 12 साल पहले उस ने सात जन्मों का बंधन निभाने का वादा किया था. उस ने प्रेमी संग मिल कर पति की हत्या कर डाली. प्रेमी ने योजना तो ऐसी बनाई थी कि पति की हत्या में मायके वाले ही फंस जाएं और वह प्रेमिका संग मौज मनाता रहे. लेकिन उन के मंसूबों पर तब पानी फिर गया, जब उन की काल डिटेल्स में 13 सौ बार बातचीत करने का पता चला.

35 वर्षीय दिलीप कुमार पाठक बिहार के बेगूसराय जिले के थाना तेघरा के गांव रानीटोल में अपनी ससुराल आया था. उस की पत्नी काजल उर्फ कंचन एकलौते बेटे अंश को ले कर सालों से मायके में रह रही थी. अंश मामा के घर रह कर ही पढ़ता था. काजल भी वहीं रहते हुए एक नर्सरी स्कूल में पढ़ाती थी.

वैसे भी दिलीप की माली हालत ठीक नहीं थी. वह प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता था. प्रौपर्टी डीलिंग के इस धंधे में उस ने अपनी सारी जमापूंजी लगा दी थी. इस धंधे में उसे इतना घाटा हुआ था कि वह पैसेपैसे के लिए मोहताज हो गया था. अपनी स्थिति सुधारने के लिए ही उस ने पत्नी और बेटे को ससुराल भेजा था.

उस ने सोचा था कि जब तक हाथ खाली है, तब तक पत्नी और बच्चे को मायके में रहने दे. पैसों का थोड़ा इंतजाम हो जाने के बाद उन्हें वापस बुला लेगा. इसीलिए उस ने काजल और बेटे अंश को रहने के लिए ससुराल भेज दिया था.

उस दिन 25 नवंबर, 2017 की तारीख थी. शाम साढ़े 6 बजे के करीब दिलीप घर से अकेला ही बेटे की कौपी खरीदने चौर बाजार के लिए निकला. उस ने पत्नी से कहा कि कौपी खरीद कर थोड़ी देर में लौट आएगा. उसे घर से निकले काफी देर हो चुकी थी. देखतेदेखते रात के 10 बज गए, लेकिन दिलीप लौट कर घर नहीं आया. इस से काजल और अंश दोनों परेशान हो गए. दोनों की समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या करें. इतनी रात गए उसे कहां ढूंढें.

परेशान काजल को जब कुछ नहीं सूझा तो उस ने देवर विनीत के पास ससुराल फोन कर के पूछा कि दिलीप वहां तो नहीं गए हैं? शाम 5 बजे के करीब बाजार जाने के लिए कह कर घर से पैदल ही निकले थे, लेकिन अभी तक लौट कर नहीं आए. मेरा तो सोचसोच कर दिल बैठा जा रहा है.

भाभी के मुंह से भाई के बारे में ऐसी बात सुन कर विनीत भी परेशान हो गया कि आखिर बिना कुछ बताए भाई कहां चला गया. फिर उस ने बड़े भाई दिलीप के फोन पर काल की तो उस का फोन स्विच्ड औफ था. उस ने कई बार उस से बात करने की कोशिश की लेकिन हर बार फोन बंद मिला. आखिर उस ने यह बात घर वालों को भी बता दी.

दिलीप के घर वाले जिला समस्तीपुर में रहते थे. वहां से बेगूसराय थोड़ी दूरी पर था. विनीत ने सोचा अब तो सुबह ही कुछ हो सकता है. उस ने रात तो जैसेतैसे काट ली. सुबह होते ही वह भाई का पता लगाने रानीटोल पहुंच गया.

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वहां पहुंच कर उसे पता चला कि रानीटोल से सटी बूढ़ी गंडक नदी के किनारे हृष्टपुष्ट गोरे रंग और औसत कदकाठी के एक युवक की लाश पाई गई है. लाश का जो हुलिया बताया जा रहा था, वह काफी कुछ उस के भाई दिलीप से मेल खा रहा था. यह सुन कर विनीत थोड़ा विचलित हो गया कि कहीं लाश भाई की तो नहीं है. हो सकता है, उस के साथ कोई घटना घट गई हो.

जितनी भी जल्दी हो सकता था, वह मौके पर पहुंच गया. वहां काफी भीड़ जमा थी. भीड़ को चीरता हुआ वह लाश तक पहुंच गया. लाश दाईं करवट पड़ी थी. हत्यारों ने उस की गरदन पर किसी तेज धारदार हथियार से पीछे से वार किया था. पास ही पूजा की सामग्री पड़ी थी और लाश के ऊपर अधखुली पीली मखमली चादर पड़ी थी.

ऐसा लग रहा था, जैसे मृतक जब पूजा कर रहा था, तभी हत्यारे ने मौका देख कर उस पर पीछे से वार कर दिया हो. विनीत लाश देख कर पहचान गया कि लाश उस के भाई की है. वह भाई की लाश से लिपट कर बिलखबिलख कर रोने लगा.

गांव वाले भी लाश को देखते ही पहचान गए थे कि काजल के पति दिलीप की लाश है. जैसे ही काजल को पति की हत्या की सूचना मिली तो वह गश खा कर गिर गई. घर में रोनापीटना शुरू हो गया. घर वाले वहां पहुंच गए, जहां दामाद का शव पड़ा था.

जहां से दिलीप का शव बरामद हुआ था, वह इलाका समस्तीपुर जिले के थाना मुफस्सिल में पड़ता था. थाना मुफस्सिल को घटना की सूचना मिल चुकी थी. थानाप्रभारी पवन सिंह पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए थे. पवन सिंह ने इस बात की सूचना पुलिस अधीक्षक दीपक रंजन और डीएसपी मोहम्मद तनवीर अहमद को दे दी थी. वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी वहां पहुंच गए. घटनास्थल और लाश का निरीक्षण करने के बाद थानाप्रभारी पवन सिंह ने मृतक के भाई से पूछताछ की तो उस ने बताया कि दिलीप के पास उस का एक सेलफोन था, जो गायब है.

घटनास्थल पर पूजा की सामग्री के अलावा दूसरी कोई चीज नहीं मिली थी. पुलिस ने पूजा सामग्री और चादर अपने कब्जे में ले ली. कागजी काररवाई करने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई. फिर पुलिस थाने लौट आई.

विनीत ने अपने भाई दिलीप की हत्या की तहरीर थाने में दे दी, जिस के आधार पर पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 34 के तहत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के जांच शुरू कर दी.

दिलीप पाठक हत्याकांड का खुलासा करने के लिए एसपी दीपक रंजन ने डीएसपी तनवीर अहमद के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी. डीएसपी तनवीर अहमद ने घटनास्थल का दौरा कर के स्थिति को समझने की कोशिश की. परिस्थितियां बता रही थीं कि हत्या के इस मामले में मृतक का कोई अपना ही शामिल था. वह कौन था, इस का पता लगाना जरूरी था.

पुलिस ने मृतक के भाई विनीत पाठक से दिलीप की किसी से दुश्मनी के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि उस की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. काजल ने भी यही कहा. इसी दौरान एक मुखबिर ने चौंकाने वाली जानकारी दी. उस ने बताया कि दिलीप और उस की पत्नी काजल के बीच काफी मनमुटाव चल रहा था. प्रारंभिक जांच के दौरान तनवीर अहमद को काजल की हरकतें खटकी भी थीं, लेकिन उस के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं थे, इसलिए उन्होंने उस से सीधे बात करना ठीक नहीं समझा था.

डीएसपी मोहम्मद तनवीर अहमद ने दिलीप और काजल के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. काजल के फोन की डिटेल्स देख कर उन के होश उड़ गए. उस के फोन पर डेढ़ महीने में एक ही नंबर से 13 सौ फोन आए थे. कई काल तो ऐसी थीं, जिन में उसी नंबर से 2 से 3 घंटे तक बातचीत की गई थी.

यह नंबर पुलिस के शक के दायरे में आ गया. पुलिस ने उस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो वह नंबर लक्ष्मण कुमार पासवान, निवासी रातगांव करारी, थाना-तेघरा, जिला बेगूसराय का निकला. पुलिस ने बिना समय गंवाए उसी दिन लक्ष्मण के घर पर दबिश दी और उसे पूछताछ के लिए थाने ले आई. पूछताछ में लक्ष्मण टूट गया. उस ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि उस ने काजल के कहने पर उस के पति दिलीप की हत्या की थी. काजल उस की प्रेमिका थी. यह सुन कर सभी अधिकारी स्तब्ध रह गए. क्योंकि देखने में भोलीभाली लगने वाली औरत नागिन से भी जहरीली निकली, जिस ने इश्क के नशे में अपने पति को ही डंस लिया.

काजल को यह समझते देर नहीं लगी कि उस के गुनाहों की पोल खुल चुकी है. ऐसे में भलाई सच बताने में ही है. काजल ने भी अपना जुर्म कबूल कर लिया कि उसी के कहने पर लक्ष्मण ने दिलीप की हत्या की थी. काजल ने हत्या की पूरी कहानी कुछ ऐसे बयां की—

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35 वर्षीय दिलीप कुमार पाठक मूलत: बिहार के समस्तीपुर जिले के थाना भगवानपुर के गांव बुढ़ीवन तैयर का रहने वाला था. पिता अनिल पाठक की 4 संतानों में वह सब से बड़ा था. हंसमुख स्वभाव का दिलीप मेहनतकश था. उस ने प्रौपर्टी डीलिंग का काम शुरू किया था, उस का यह धंधा सही चल निकला था.

दिलीप अपने पैरों पर खड़ा हो चुका था और ईमानदारी से पैसा कमा रहा था. पिता ने 12 साल पहले उस की शादी बेगूसराय के तेघरा, रानीटोल की रहने वाली काजल के साथ कर दी थी. शादी के कई साल बाद उस के घर में एक बेटा पैदा हुआ, जिस का नाम अंश रखा गया. समय के साथ प्रौपर्टी के धंधे में दिलीप को काफी नुकसान हुआ. इस के बाद उस का धंधा धीरेधीरे और भी मंदा होता गया. स्थिति यह आई कि प्रौपर्टी के बिजनैस में उस ने जितनी पूंजी लगाई थी, सब डूब गई. यह करीब 3 साल पहले की बात है.

पति की माली हालत खराब देख काजल बेटे को ले कर अपने मायके रानीटोल चली गई और वहीं मांबाप के साथ रहने लगी. पत्नी का यह रवैया दिलीप को काफी खला, क्योंकि मुसीबत के वक्त साथ देने के बजाय वह उसे अकेला छोड़ कर चली गई. वह मन मसोस कर रह गया और सब कुछ वक्त पर छोड़ दिया.

उधर काजल ने बेटे को वहीं के एक कौन्वेंट स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया. दिलीप बीचबीच में पत्नी और बेटे से मिलने ससुराल जाता रहता था. ससुराल में 1-2 दिन रह कर वह अपने घर लौट आता था. अंश जिस कौन्वेंट स्कूल में पढ़ता था, वहां की किताबें भाषा में काफी मुश्किल होती थीं. कभीकभी अंगरेजी के कुछ शब्दों के अर्थ काजल को भी पता नहीं होते थे, जबकि वह अच्छीभली पढ़ीलिखी थी. बेटे की पढ़ाई में कोई परेशानी न आए, इसलिए उस ने अंश के लिए घर पर ही एक ट्यूटर लगा दिया. यह पिछले साल जुलाईअगस्त की बात है.

ट्यूटर ( Tuition Teacher ) का नाम लक्ष्मण कुमार पासवान था. रातगांव करारी का रहने वाला 21 वर्षीय लक्ष्मण कुमार एकदम साधारण शक्लसूरत और सांवले रंग का युवक था. लक्ष्मण की वाकपटुता से काजल काफी प्रभावित थी. अंश को भी वह खूब मन लगा कर पढ़ाता था. थोड़े ही दिनों में लक्ष्मण उस परिवार का हिस्सा बन गया. बेटे को पढ़ाते समय काजल लक्ष्मण के पास ही बैठी रहती थी. लक्ष्मण जवान था. ऊपर से कुंवारा भी. जब काजल उस कमरे में आ कर बैठती थी, जिस में वह अंश को पढ़ाता था तो लक्ष्मण उसे कनखियों से निहारता रहता था. काजल भी लक्ष्मण के पास बैठने के लिए बेकरार रहती थी.

एक दिन लक्ष्मण अंश को (Tuition Teacher) ट्यूशन पढ़ाने उस के घर पहुंचा. उस समय शाम का वक्त था. उस रोज काजल काफी परेशान थी. उस ने अपने दुखों का पिटारा उस के सामने खोल कर रख दिया. लक्ष्मण काजल की दुखभरी व्यथा सुन कर भावनाओं में बह गया.

काजल ने उस से कहा कि वह उस के लिए कोई छोटीमोटी नौकरी ढूंढने में मदद करे. लक्ष्मण मना नहीं कर सका. बाद में लक्ष्मण ने अपने एक परिचित के माध्यम से एक नर्सरी स्कूल में उसे अध्यापिका की नौकरी दिलवा दी. काजल लक्ष्मण के अहसानों की कायल थी. धीरेधीरे वह उस की ओर झुकती गई. लक्ष्मण भी उस की ओर आकर्षित होता गया. धीरेधीरे दोनों में प्यार हो गया. प्यार भी ऐसा कि एकदूसरे को देखे बिना रह न सके. यह बात भी जुलाई अगस्त 2016 की है. 2 महीने के प्यार के बाद लक्ष्मण और काजल ने चुपके से मंदिर में विवाह कर लिया. काजल ने इस की भनक किसी को नहीं लगने दी, पति तक को नहीं.

9 वर्ष का अंश भले ही छोटा था, लेकिन उस में इतनी अक्ल थी कि वह अच्छे और बुरे में फर्क महसूस कर सके. उस ने अपनी मम्मी और ट्यूटर के बीच के रिश्तों को महसूस कर लिया था. उसे लगता था कि कहीं कुछ गलत हो रहा है, जो घरपरिवार के लिए अच्छा नहीं है. अंश ने यह बात अपने पापा दिलीप को बता दी. बेटे की बात सुन कर उस के तनबदन में आग लग गई. बहरहाल, सूचना मिलने के अगले दिन दिलीप ससुराल रानीटोल पहुंच गया. उस दिन (Tuition Teacher) ट्यूटर लक्ष्मण को ले कर पतिपत्नी के बीच काफी झगड़ा हुआ. काजल पति को समझाने के लिए झूठ पर झूठ बोले जा रही थी. उस ने सफाई देते हुए कहा कि उस के और लक्ष्मण के बीच कोई संबंध नहीं है.

लक्ष्मण को उस ने बेटे को ट्यूशन पढ़ाने के लिए रखा है. ट्यूटर आता है और बच्चे को ट्यूशन पढ़ा कर चला जाता है. उस रोज काजल अपने त्रियाचरित्र के दम पर पति को काबू करने में कामयाब हो गई थी. जैसेतैसे मामला शांत तो हो गया, लेकिन दिलीप पत्नी पर नजर रखने लगा.

पति को उस पर शक हो गया है, काजल ने यह बात लक्ष्मण को फोन कर के बता दी थी. उस ने लक्ष्मण को यह कहते हुए सावधान कर दिया था कि पति जब तक घर पर रहे, तब तक वह बच्चे को(Tuition Teacher) ट्यूशन पढ़ाने भी न आए. लक्ष्मण उस की बात मान गया और वैसा ही किया, जैसा उस ने करने को कहा था. काजल लक्ष्मण से मिलने के लिए बेचैन रहती थी. पति के रहते उन के मिलन में बाधा पड़ रही थी. काजल से लक्ष्मण की जुदाई बरदाश्त नहीं हो रही थी. उस ने पति को रास्ते से हटाने के लिए लक्ष्मण पर दबाव बनाया कि वह उस की हत्या कर दे. उस के बाद रास्ते में रुकावट पैदा करने वाला कोई नहीं रहेगा. काजल को पाने के लिए लक्ष्मण उस की बात मानने के लिए तैयार हो गया.

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लक्ष्मण जानता था कि दिलीप की माली हालत अच्छी नहीं है, इसलिए कुछ ऐसा चक्कर चलाया जाए, जिस से वह उस के काबू में आ जाए. इस के लिए उस ने काजल को धोखे में रखते हुए एक और खेल खेलने की सोची.

उस ने सोचा कि दिलीप की हत्या का ऐसा तानाबाना बुना जाए, जिस से पूरा शक काजल और काजल के मायके वालों पर ही जाए. कभी मामले का खुलासा हो भी तो वह शक के दायरे से बचा रहे. दिलीप ने लक्ष्मण को कभी नहीं देखा था, इसलिए वह उसे जानतापहचानता नहीं था. लक्ष्मण और काजल ने इसी बात का फायदा उठाते हुए योजना बनाई कि दिलीप को भरोसा दिलाया जाए कि एक ऐसी पूजा है, जिसे ध्यानमग्न हो कर करने पर पूजा की जगह पर ही 25 हजार रुपए मिल जाते हैं.

योजना बनाने के बाद काजल ने पति को इस पूजा के लिए मना लिया. दिलीप इसलिए तैयार हुआ था क्योंकि उस की आर्थिक स्थिति एकदम जर्जर हो चुकी थी. वह पैसेपैसे के लिए मोहताज था. उस ने सोचा कि संभव है ऐसा करने पर उसे आर्थिक लाभ मिल जाए. बहरहाल, सब कुछ योजना के मुताबिक चल रहा था. काजल ने 25 नवंबर, 2017 को दिन में एक तेज धार वाला गंडासा दिलीप की मोटरसाइकिल की डिक्की में छिपा कर रख दिया. उस ने यह बात फोन कर के लक्ष्मण को बता दी. अब केवल योजना को अमलीजामा पहनाना बाकी था. लक्ष्मण ने काजल को भरोसा दिलाया कि आज काम तमाम हो जाएगा.

25 नवंबर की शाम साढ़े 6 बजे के करीब दिलीप बेटे के लिए कौपी खरीदने के लिए घर से अकेला निकला. घर से निकल कर जब वह चौर बाजार पहुंचा तो पीछे से लक्ष्मण पंडित बन कर उस की मोटरसाइकिल के पास पहुंच गया.

दरअसल, दिलीप के घर से निकलते ही काजल ने लक्ष्मण को फोन कर के बता दिया था कि शिकार घर से निकल चुका है. चौर में उस से मुलाकात हो जाएगी. आगे क्या करना है, यह उसे पता था ही. चौर बाजार में उस की मुलाकात दिलीप से हुई तो उस ने काजल का परिचय देते हुए उसे पूजा वाली बात बताई. दिलीप समझ गया कि यह वही पंडित है, जिस से पूजा करानी है. लक्ष्मण उसे बाइक पर बैठा कर चौर (तेघरा) से समस्तीपुर ले आया, जहां उस ने पूजा की सामग्री खरीदी. सामग्री खरीदने के बाद वह दिलीप को ले कर मोटरसाइकिल से रानीटोल स्थित माधोपुर बूढ़ी गंडक नदी के किनारे पहुंच गया. यह इलाका जिला समस्तीपुर में आता था.

योजना के अनुसार, लक्ष्मण ने पहले दिलीप से पूजा करवाई. पूजा की प्रारंभिक विधि समाप्त होने के बाद उस ने पैसे पाने के लिए दिलीप से 15 मिनट तक आंखें बंद कर ध्यानमग्न होने को कहा. साथ यह भी कहा कि आंखें बंद करने के बाद ही पैसे मिलेंगे.

दिलीप ध्यानमग्न हो गया. तभी लक्ष्मण बाइक की डिक्की में रखा धारदार गंडासा ले आया. उस ने पीछे से दिलीप की गरदन पर जोरदार वार किया. गरदन कटने से दिलीप की मौके पर ही मौत हो गई. दिलीप की हत्या करने के बाद लक्ष्मण वहां से बाइक से वापस बेगूसराय लौट गया. बेगूसराय जाते वक्त लक्ष्मण ने दिलीप का मोबाइल फोन गरुआरा चौर की झाडि़यों में फेंक दिया. वहां से आगे जा कर उस ने गंडासा दलसिंहसराय के पास एनएच-28 के किनारे एक झाड़ी में फेंक दिया, ताकि पुलिस उस तक कभी न पहुंच सके.

इत्मीनान होने के बाद वह मोटरसाइकिल ले कर प्रेमिका काजल के घर रानीटोल पहुंचा. काजल उस के आने का बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रही थी. लक्ष्मण को देखते ही उस का चेहरा खुशी से खिल उठा. घर में सभी सो गए थे. उस ने दबे पांव मोटरसाइकिल बरामदे में चढ़ा दी. उस वक्त रात के करीब 10 बज रहे थे.

मोटरसाइकिल खड़ी करवाने के बाद काजल ऊपर खाली पड़े कमरे में गई तो पीछेपीछे लक्ष्मण भी हो लिया. वहां दोनों एकदूसरे की बांहों में समा गए. बाद में लक्ष्मण अपने घर चला गया.

दोनों के रास्ते का रोड़ा साफ हो चुका था. दोनों यह सोच कर खुश थे कि पुलिस उन तक कभी नहीं पहुंच पाएगी. लेकिन कानून के लंबे हाथों ने उन के मंसूबों पर पानी फेर दिया और दोनों वहां पहुंच गए, जहां उन का असली ठिकाना था यानी जेल की सलाखों के पीछे. अंश अपने दादा अनिल के साथ अपने पैतृक गांव बूढ़ीवन आ गया और दादादादी के साथ रह रहा है.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Film ‘दृश्सम’ की तर्ज पर प्रेमिका को तड़पा कर मारा

Film पति से तलाक होने के बाद 32 वर्षीय ज्योत्सना प्रकाश आकरे फौजी अजय वानखेड़े के संपर्क में आई. होटल में हसरतें पूरी करने के बाद फौजी ने उस से शादी करने का वायदा किया, लेकिन इस दौरान इन के बीच ऐसा क्या हो गया कि फौजी अजय ने न सिर्फ ज्योत्सना की हत्या कर दी, बल्कि घटना को फिल्म ‘दृश्यम’ की कहानी का रूप देने की कोशिश की?

28 अगस्त, 2024 को अजय वानखेड़े ने अपनी प्लानिंग के मुताबिक एक दूसरे फोन से ज्योत्सना से बात करने के बाद उसे नागपुर के वर्धा रोड पर आने के लिए कहा. उस ने ज्योत्सना को कहा कि वह उस से शादी करने को बिलकुल तैयार है, मगर उस से पहले वह शादी की कुछ जरूरी बातचीत अकेले में करना चाहता है.

इस बारे में वह अपने घर वालों को अभी कुछ न बताए, क्योंकि इस मामले में कुछ अड़चन सामने आ गई है, जोकि दोनों की आपसी बातचीत से ही सुलझ सकती है. ज्योत्सना ने प्रेमी अजय की बातों पर विश्वास कर लिया और उस ने प्रेमी से मिलने के लिए हामी भर दी. फिर ज्योत्सना ने अपने पिता और भाई को झूठ बोलते हुए यही बताया कि वह अपनी दोस्त अमृता उगे के घर किसी काम से जा रही है और वह रात को उसी के घर पर रुकेगी.

अजय ने होटल में कमरा पहले से ही बुक कर रखा था. जैसे ही ज्योत्सना वहां पहुंची तो अजय उसे पहले होटल में ले गया, फिर वह होटल में सामान रख कर घूमने के बहाने ज्योत्सना को अपनी कार में ले कर होटल से बाहर निकल गया. अजय ने रास्ते में टोल प्लाजा के पास ज्योत्सना को नशीली कोल्डड्रिंक पिला दी और फिर ज्योत्सना के बेहोश होते ही उस ने पहले ज्योत्सना की गला घोंट कर हत्या कर दी. इस के बाद उस ने आधी रात को न सिर्फ जंगल में गड्ढा खोदा, बल्कि उस में ज्योत्सना की लाश को दफन करने के बाद अपने साथ लाए सीमेंट से लाश वाले गड्ढे को पूरी तरह से बंद कर दिया.

इस के बाद कातिल प्रेमी अजय वानखेड़े ने ‘दृश्यम’ फिल्म की तर्ज पर सभी को उलझाने के लिए एक और काम किया. उस ने कत्ल करने के बाद ज्योत्सना के मोबाइल को एक चलते ट्रक में फेंक दिया, ताकि पुलिस इस कत्ल की साजिश का कभी भी परदाफाश न कर सके. इस के बाद उस ने एक और शातिराना चाल चली और इस वारदात को अंजाम देने के बाद वह तुरंत पुणे के आर्मी अस्पताल में भरती हो गया, ताकि कोई भी उस पर वारदात में शामिल होने को ले कर शक न कर सके.

फौजी के बायोडाटा से क्यों इंप्रैस हुई ज्योत्सना

 

32 वर्षीय ज्योत्सना प्रकाश आकरे तीखे नाकनक्श की खूबसूरत युवती थी. वह हुडको कालोनी कमलेश्वर नागपुर की रहने वाली थी. ज्योत्सना के घर पर उस के पापा कमल आकरे व एक छोटा भाई सिद्धेश्वर आकरे था. उस की मम्मी की काफी पहले मृत्यु हो चुकी थी. ज्योत्सना ने ग्रैजुएशन करने के बाद कंप्यूटर में भी 3 साल का कोर्स कर रखा था. पढ़ीलिखी थी तो उसे नागपुर में ही एक आटोमोबाइल कंपनी में जौब मिल गई थी. वर्ष 2019 में ज्योत्सना का विवाह अनूप नामक युवक से हुआ था, लेकिन पति से अनबन के कारण एक साल बाद ही दोनों में तलाक हो गया था.

उस के बाद ज्योत्सना ने विवाह करने का विचार लगभग छोड़ ही दिया था, लेकिन दूसरी ओर उस के पापा की उम्र बढ़ती जा रही थी इसलिए उस के पापा और भाई ज्योत्सना से विवाह करने के लिए अकसर कहते रहते थे. ज्योत्सना के पापा कमल आकरे ने तो एक दिन उस से कह ही दिया, ”देख बेटी ज्योत्सना, घर में तेरी मम्मी भी अब जीवित नहीं रहीं. एक तेरा छोटा भाई सिद्धेश्वर है, जिस की नौकरी लग चुकी है. एक दिन उस का विवाह भी हो जाएगा. मेरी उम्र अब इतनी अधिक हो चुकी है कि न जाने कब ऊपर वाले का बुलावा आ जाए. मेरे मरने के बाद तेरा क्या होगा, यही सोचसोच कर मैं चिंता में रहता हूं. मांबाप के बाद बेटी को भाई, बहन या भाभी या दूसरे रिश्तेदार कोई भी नहीं पूछते. अब तू बता कि तुझे शादी करनी है या नहीं?’’

इस के बाद ज्योत्सना ने भी अपने पापा से कह ही दिया, ”पापा, आप इतने दुखी व परेशान न रहा करें. मैं अपना बायोडाटा शादी डौटकौम पर डाल देती हूं, अगर मुझे कोई लड़का पसंद आ गया तो आप की सहमति से उस के साथ विवाह कर लूंगी. अब तो आप थोड़ा मुसकरा दीजिए.’’ और यह कहते हुए अपने पापा के गले लग गई थी. उस के बाद हंसमुख ज्योत्सना ने शादी डौटकौम पर अपनी फोटो और अपना पूरा विवरण अपलोड कर दिया और फिर इसी के जरिए अप्रैल 2024 में अजय वानखेड़े ने उस से संपर्क किया. अजय वानखेड़े न्यू कैलाश नगर, मानेवाड़ा, नागपुर का ही रहने वाला था. मैट्रीमोनियल साइट से अब दोनों की बातचीत होने लगी थी. ज्योत्सना को अजय वानखेड़े की बातचीत काफी अच्छी लगने लगी थी.

अजय और ज्योत्सना आकरे के बीच अब काफी बातचीत भी होने लगी थी. एक दिन कुरिअर से ज्योत्सना को एक पत्र मिला, भेजने वाले का नाम अजय वानखेड़े था और पता नागालैंड का था. ज्योत्सना को बड़ा आश्चर्य हुआ कि अजय वानखेड़े ने तो बातचीत में कभी नागालैंड का जिक्र तक नहीं किया था. उत्सुकतावश उस ने लिफाफा फाड़ा और पत्र गौर से पढऩे लगी. अजय ने पत्र में लिखा था, ‘मेरी प्रिय ज्योत्सनाजी, आप की फोटो और आप की बातें दिनरात सताती रहती हैं. ऐसा कोई भी पल नहीं होता, जब तुम्हारी याद मेरे ऊपर हावी नहीं होती, अगर आप मेरी इस सूनी जिंदगी में नहीं आतीं तो मेरा क्या होता? इस कल्पना से ही मेरा कलेजा मुंह को आ जाता है.

‘ज्योत्सना मैं ने तुम से अपनी कुछ बातें छिपाई हैं, जो मैं तुम्हें अपने पत्र मैं खुल कर बताना चाहता हूं, ताकि कल तुम मेरे ऊपर कोई तोहमत न लगा सको. पहली बात तो यह है कि भले ही मैं पोस्ट ग्रैजुएट हूं, लेकिन मैं भारतीय सेना में फार्मेसिस्ट हूं. फौज की नौकरी में मैं आप को सारे सुख दे भी पाऊंगा या नहीं, मैं कह नहीं सकता.

‘दूसरा, मैं एक बार शादी भी कर चुका हूं और मेरा पत्नी से तलाक हो गया. अब इस मुकाम पर आ कर कभीकभी मेरे दिलोदिमाग में यह विचार आता है कि मेरी इस सूनी जिंदगी के इस नाजुक मोड़ पर अगर तुम भी मुझे छोड़ दोगी तो फिर मेरा क्या होगा? मैं तो जीते जी मर जाऊंगा. तुम मुझे छोड़ोगी तो नहीं न?

‘सौरी ज्योत्सना, मैं आप से तो अब तुम पर भी आ गया. इसलिए कि मैं तुम्हें काफी अपना समझने लगा हूं और तुम्हें तो अब अपने दिल के काफी करीब भी मानने लगा हूं. देखो, मैं अगले महीने की 10 तारीख को एक महीने की छुट्टी पर नागपुर आ रहा हूं. एक बार तुम से मिलना चाहता हूं. मुझ से मिलोगी न तुम?

तुम्हारा अजय’

अजय का पत्र पढ़ कर ज्योत्सना भावविभोर हो उठी थी. उसे सब से अच्छी बात तो अजय की यह लगी कि उस ने अपने अतीत की सारी बातें सचसच पत्र में लिख डाली थीं. दूसरा वह उस की फोटो देख कर ही ज्योत्सना से इतना अधिक प्यार करने और चाहने लगा था. इसलिए उसी दिन शाम को ज्योत्सना ने अजय को फोन कर के बता दिया कि वह भी उसे पसंद करने लगी है. बाकी सारी बातें मिलने पर एकदूसरे को देख कर आपस में बातचीत कर के हो जाएंगी. उस ने अजय से ये भी कह दिया कि उसे फौजी बहुत पसंद हैं और वह अजय से मिलने के लिए बेसब्री से प्रतीक्षा कर रही है.

होटल में मिला नजदीक से जानने का मौका

10 जनवरी, 2024 को पहली बार अजय और ज्योत्सना की मुलाकात एक होटल में हुई. दोनों एकदूसरे से बातचीत करते और कुछ ही देर के बाद उन्हें ऐसा लगा कि वे दोनों तो वर्षों एकदूसरे को जानते हैं. इस के बाद एक दिन अजय ने ज्योत्सना से कहा कि एक दिन एक होटल में कमरा ले कर रुकते हैं. इस से हमें एकदूसरे को नजदीक से जानने का मौका भी मिल सकेगा. ज्योत्सना ने अजय की बात बात मान ली.

”हां अजयजी, यहां पर आप क्या बात कहना चाहते हैं. यहां पर आ कर भला हमारे बीच नजदीकियां कैसे बढ़ सकती हैं?’’ होटल में आ कर ज्योत्सना ने अजय से पूछा.

”ज्योत्सनाजी, आज आप को अपने सामने देख कर मैं अपने आप को दुनिया का सब से बड़ा भाग्यशाली व्यक्ति समझ रहा हूं. तुम्हारे सौंदर्य के सामने तो स्वर्ग की अप्सराएं भी कुछ नहीं हैं. कभीकभी तो मुझे विश्वास ही नहीं हो पा रहा है कि दुनिया की सब से सुंदर नारी मेरी बांहों में है.’’ यह कहतेकहते अजय ने ज्योत्सना को अपनी दोनों बांहों में ले लिया.

यह सुन कर और अजय की एकाएक बांहों में आ कर ज्योत्सना के गालों पर गुलाबी सुर्खी छा गई थी. भावावेश में आ कर ज्योत्सना ने अपना सिर अजय के कंधों पर रख दिया था. तभी उन के कमरे में बैरा कोल्डड्रिंक्स और स्नैक्स ले कर आ गया तो अजय ने फुरती से एक गिलास में नशे की गोली मिला दी थी. अजय की यह एक शातिराना चाल थी. अगले ही पल उस ने वह गिलास ज्योत्सना के हाथों में थमा दिया और कहा, ”ज्योत्सना, आज की हमारी पहली मुलाकात का एक छोटा सा जाम!’’

”अरे अजयजी, आप जाम की बात कहां करने लगे, मैं तो इस से दूर रहती हूं.’’ कहते हुए ज्योत्सना ने गिलास थाम लिया और उसे धीरेधीरे पीने लगी.

थोड़ी ही देर के बाद उसे एक अजीब सा नशा छाने लगा था और फिर वह अचेत हो गई. अजय ने इस का भरपूर फायदा उठाते हुए ज्योत्सना के साथ बेहोशी की अवस्था में संबंध स्थापित कर लिए. ज्योत्सना की बेहोशी पूरे 2 घंटे के बाद टूटी तो उस ने अपने आप को निर्वस्त्र अजय की बांहों में पाया. अजय उस समय चैन की नींद सो रहा था. ज्योत्सना ने उसे झिंझोड़ कर उठा दिया और जब अजय की आंखें खुलीं तो ज्योत्सना उस के ऊपर बुरी तरह से भड़क गई थी.

”अजय, तुम इतने गिरे हुए इंसान निकलोगे, ऐसा कभी मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था. तुम ने तो मुझे कहीं पर भी मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा. शादी से पहले ही तुम ने मेरे साथ इतना बड़ा धोखा आखिर क्यों किया?’’ ज्योत्सना ने गुस्से से कहा.

”ज्योत्सना, मैं सचमुच तुम्हारे सौंदर्य को देख कर बहक गया था. अपने आप पर बिलकुल ही काबू नहीं रख सका. इस के लिए मैं तुम से दिल से माफी मांगता हूं. मैं तुम्हें वचन देता हूं कि मैं केवल तुम्हारे साथ ही शादी करूंगा.’’ अजय ने गिड़गिड़ाते हुए कहा.

सब कुछ लुटाने के बाद भी ज्योत्सना ने फौजी को क्यों किया माफ

उस के बाद दोनों मिलते रहे. ज्योत्सना उसे हर बार अपने घर में आने के लिए कह चुकी थी, मगर अजय कुछ न कुछ बहाना कर के उसे टालता रहता था. एक दिन ज्योत्सना उसे जबरदस्ती अपने घर ले कर आ गई. उस समय ज्योत्सना के घर पर उस के पापा और भाई सिद्धेश्वर भी था. ज्योत्सना ने अजय की तारीफों के पुल बांधते हुए अपने पापा से उस का परिचय कराते हुए कहा, ”पापा, यही अजय वानखेड़े है. अजय भारतीय सेना में फार्मेसिस्ट हैं. मैं ने इन के बारे में पहले भी आप को बताया था. अजय बहुत ही अच्छे इंसान हैं. मुझ से बहुत प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं.’’

उस के बाद ज्योत्सना चाय बना कर ले आई. अजय से ज्योत्सना के भाई और पापा ने काफी देर बातचीत भी की. कुछ देर के बाद अजय अपने घर चला गया. उस के बाद ज्योत्सना के पापा ने उस से कहा, ”बेटी, आजकल किसी पर इतनी जल्दी विश्वास करना ठीक नहीं है. तुम ने उस के बारे में पता किया है कि वह कौन है, उस के परिवार में कौनकौन लोग हैं, उस के परिवार का और उस का क्या इतिहास रहा है?’’

”पापा, मैं ने अजय के बारे में सब कुछ जान लिया है. मुझे तो वह हर तरह से योग्य लगता है, उस का भविष्य भी मुझे काफी उज्जवल दिखता है,’’ ज्योत्सना ने कहा.

”देख बेटी, मेरा अनुभव तो यह कहता है कि वह ठीक इंसान नहीं है, पहली ही नजर में वह मुझ से नजरें चुराने लगा था. इसलिए मैं तो कहता हूं कि जरा सोचसमझ कर फैसला लेना. एक बार शादी कर के तुम देख चुकी हो, इस बार कहीं धोखा मत खा जाना.’’ कमल आकरे ने उसे समझाते हुए कहा. उधर ज्योत्सना ने अजय को अपना तन समर्पित कर दिया तो वह उस पर शादी का दबाव बनाने लगी. सच्चाई यह थी कि अजय उस से शादी नहीं करना चाहता था. वह तो केवल उसे मौजमस्ती का साधन समझ रहा था. इसलिए उस ने ज्योत्सना से दूरी बनानी शुरू कर दी.

ज्योत्सना जब कभी उसे फोन करती तो वह उस की काल रिसीव नहीं करता. ज्योत्सना बहुत परेशान रहने लगी. वह वह वाट्सऐप पर भी चैटिंग का जवाब नहीं देता. एक दिन ज्योत्सना ने अपनी एक परिचित महिला, जो अजय की भी रिश्तेदार थी, से उसे मैसेज भिजवाया कि अजय उस से जल्द बातचीत करे नहीं तो वह उस की सारी करतूतें नागालैंड में अजय के कमांड अधिकारी को बता कर उस के खिलाफ कानूनी काररवाई करवा देगी. इस से अजय वानखेड़े घबरा गया और वह ज्योत्सना से पीछा छुड़ाने के उपाय तलाशने लगा. फिर उस ने ‘दृश्यम’ फिल्म की तरह ज्योत्सना को खत्म करने की प्लानिंग तैयार कर ली. और 28 अगस्त को उसे मिलने के बहाने बुला कर उस की हत्या कर दी.

29 अगस्त, 2024 को बेलतरोड़ी थाने के सीनियर पुलिस इंसपेक्टर मुकुंदा कावड़े सुबहसुबह अपने औफिस में बैठे ही थे कि तभी एक युवक बदहवास सा उन के कार्यालय में आ गया. उस ने अपना नाम सिद्धेश्वर आकरे निवासी हुडको कालोनी कमलेश्वर, नागपुर बताया. उस ने बताया कि उस की बड़ी बहन ज्योत्सना आकरे बेसा में रहने वाली अपनी सहेली अमृता उगे के घर में रात को रुकने को कह कर कल दोपहर में निकली थी. आज सुबह अमृता उगे का फोन मेरे मोबाइल पर आया और उस ने ज्योत्सना के बारे में पूछा. इस पर मैं ने उसे बताया कि ज्योत्सना तो कल रात तुम्हारे घर पर रहने को कह कर घर से निकली थी.

अमृता ने बताया कि ज्योत्सना तो कल उस के घर आई ही नहीं थी, उस का फोन भी नहीं लग रहा था. अमृता ने सिद्धेश्वर से कहा कि ज्योत्सना कभी झूठ नहीं बोलती, इसलिए वह जरूर किसी मुसीबत में फंस गई होगी, तुम उस को अपने रिश्तेदारों में और पुलिस में रिपोर्ट कर दो. सिद्धेश्वर ने एसएचओ को बताया कि वह अपने सारे नातेरिश्तेदारों व जानपहचान वाले लोगों से संपर्क कर चुका है, मगर मेरी बहन का कहीं कुछ पता नहीं चला. यह कह कर वह जोरजोर से रोने लगा.

सीनियर पुलिस इंसपेक्टर मुकुंदा कावड़े ने रोते हुए सिद्धेश्वर आकरे को ढांढस बंधाया और तुरंत उस की तरफ से लिखित रिपोर्ट दर्ज कर ली. बेल्तारोड़ी पुलिस ही 29 अगस्त, 2024 को ज्योत्सना की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर ली. इस के बाद ज्योत्सना आकरे को ढूंढने से जुट गई. इधर दूसरी तरफ ज्योत्सना के पिता, भाई, रिश्तेदार और दोस्त भी उसे अपनेअपने स्तर पर ढूंढ रहे थे.

पुलिस ने ज्योत्सना का मोबाइल ट्रैकिंग पर लगा दिया था, उस का मोबाइल फोन तो औन था, मगर फोन कोई रिसीव नहीं कर रहा था. दूसरी तरफ फोन की लोकेशन लगातार बदलती जा रही थी. ऐसे में पुलिस कुछ भी अनुमान नहीं लगा पा रही थी. इस तरह 2 हफ्ते से ज्यादा का समय गुजर गया.

मोबाइल की लोकेशन से क्यों उलझी पुलिस

18 सितंबर, 2024 को सिद्धेश्वर आकरे फिर थाने पहुंचा. उस पर नजर पड़ते ही एसएचओ ने उसे पास बैठने को कहा.

”देखो, हम लोग ज्योत्सना को दिनरात ढूंढने में व्यस्त हैं. मगर अभी तक हमें कोई सफलता नहीं मिल सकी है. आप फिर भी निश्चिंत रहें, हम जरूर कामयाब होंगे.’’ एसएचओ मुकुंदा कावड़े ने कहा.

”इंसपेक्टर साहब, हमें यह मामला किडनैपिंग का लग रहा है. मेरी दीदी बालिग लड़की है, पढ़ीलिखी आत्मनिर्भर भी. इसलिए आप अपहरण का केस दर्ज कर लीजिए.’’ कहते हुए सिद्धेश्वर ने अपने दोनों हाथ जोड़ दिए थे.

पुलिस को भी यह मामला कुछ अजीब सा ही लग रहा था, क्योंकि ज्योत्सना आटोमोबाइल के एक शोरूम में काम करती थी और दूसरी बात यह थी कि वह हमेशा अपने घर वालों के संपर्क में रहती थी, ऐसी स्थिति में उस का अचानक से गायब हो जाना और पिछले 20 दिनों से किसी से भी फोन पर बात न करना पुलिस को भी अखर रहा था. इंसपेक्टर मुकुंदा कावड़े ने इस बात की सूचना तुरंत अपने उच्च अधिकारियों को दे दी. बेलतरोड़ी पुलिस थाने में 18 सितंबर, 2024 को ज्योत्सना की गुमशुदगी का मामला अपहरण के रूप में दर्ज कर लिया गया और नागपुर पुलिस कमिश्नर रविंद्र सिंघल के आदेश पर तुरंत एक विशेष पुलिस टीम का गठन कर दिया गया.

नागपुर पुलिस की विशेष टीम ने सीसीटीवी फुटेज, काल डिटेल्स और मोबाइल फोन का डंप डाटा निकाल कर ये समझने की कोशिश की कि ज्योत्सना की आखिरी बार किस से बातचीत हुई थी और उस की लास्ट लोकेशन कहां थी. काफी छानबीन के बाद भी पुलिस को कोई सुराग नहीं मिल सका. पुलिस ने मोबाइल की लोकेशन ट्रैस की तो उस की लोकेशन अलगअलग जगहों की आ रही थी. लोकेशन के अनुसार पुलिस महाराष्ट्र से ले कर हैदराबाद और छत्तीसगढ़ तक ढूंढती रही, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली.

नागपुर पुलिस ज्योत्सना के मोबाइल की लोकेशन का पता लगाते हुए एक ट्रक ड्राइवर के पास पहुंची तो पता चला कि उस ने ज्योत्सना के मोबाइल सिम कार्ड निकाल कर अपना सिम लगा लिया था और काम के सिलसिले में वह देश भर में घूम रहा था. ड्राइवर ने उसे बताया कि यह मोबाइल उसे उस के ट्रक में पड़ा मिला था. पुलिस ने ड्राइवर से ज्योत्सना का सिम कार्ड ले कर जब उस की जांच की तो पता चला कि ज्योत्सना ने अंतिम काल अजय वानखेड़े को की थी. पुलिस ने अजय वानखेड़े के बारे में जांच की तो पता चला कि वह सेना में फार्मेसिस्ट है और उस की पोस्टिंग नागालैंड में है. पुलिस को उस पर 3 वजहों से शक हुआ, जो बाद में सही भी निकला.

पहली वजह तो यह कि अजय उन्हीं दिनों पुणे के सेना अस्पताल में भरती हुआ था, जिन दिनों ज्योत्सना गायब हुई थी. हालांकि वह नागालैंड में पोस्टेड था, परंतु सेना का अधिकारी या जवान जो सेना में वर्तमान में कार्य कर रहा है, वह छुट्टी के दौरान भी किसी एक्सीडेंट या किसी अन्य कारण से अस्वस्थ महसूस करता है तो वह अपने नजदीकी किसी भी सेना के अस्पताल में भरती हो कर अपना इलाज करा सकता है. अजय वानखेड़े अपनी शुगर की बीमारी को दिखा कर दक्षिणी कमान के सेना के अस्पताल जोकि पुणे में स्थित था, वहां पर भरती हो गया था.

दूसरी वजह यह थी कि गुमशुदगी के दिन यानी कि 28 अगस्त, 2024 को ज्योत्सना और अजय वानखेड़े की लोकेशन एक जगह पर थी और तीसरी वजह यह थी कि अजय वानखेड़े की ज्योत्सना के अलावा और भी कई अन्य गर्लफ्रैंड थीं. ऐसे में पुलिस को उस की हरकतों पर शक होने लगा था. नागपुर की विशेष टीम ने जब विस्तृत जांच की तो पता चला कि सेना में फार्मेसिस्ट की नौकरी करने वाला अजय वानखेड़े की असल में पहले भी 2 शादियां हो चुकी थीं और वह अब तीसरी बीवी की तलाश में था. उस का उस का दोनों पत्नियों से तलाक हो चुका था, जबकि ज्योत्सना आकरे का भी पहले एक बार तलाक हो चुका था.

ज्योत्सना के परिजनों से भी पुलिस को यह मालूम हो चुका था कि ज्योत्सना और अजय एकदूसरे के संपर्क में काफी समय से थे और शादी भी करना चाहते थे. अब नागपुर पुलिस अजय वानखेड़े के पीछे पड़ गई थी. अजय वानखेड़े की तलाश करते हुए नागपुर पुलिस को पता चला कि अजय डाइबिटीज की शिकायत को ले कर पुणे के आर्मी अस्पताल में भरती है. चूंकि अब अजय पुलिस की रडार पर आ चुका था, इसलिए नागपुर पुलिस ने सेना अस्पताल से रिक्वेस्ट की कि हमें इस जवान पर शक है, इसलिए इस के ऊपर कड़ी निगरानी रखी जाए और जैसे ही यह अस्पताल से डिस्चार्ज हो, उसे तुरंत नागपुर पुलिस के हवाले कर दिया जाए.

मगर अजय वानखेड़े इतना शातिर निकला कि वह सेना के अस्पताल से ही फरार हो गया और नागपुर पुलिस और सेना भी भौचक्की हो कर रह गई पुलिस अब पूरी तरह से अजय वानखेड़े के पीछे पड़ चुकी थी. इसी बीच पुलिस का शक तब और भी गहरा हो गया, जब अजय वानखेड़े ने नागपुर के सत्र न्यायालय में अग्रिम जमानत के लिए आवेदन किया, लेकिन उस की याचिका खारिज कर दी गई. उस के बाद अजय वानखेड़े ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया.

एडवोकेट श्रीरंग भंडारकर और एडवोकेट एस.पी. सोनवाने ने अजय वानखेड़े की ओर से उच्च न्यायालय में पैरवी की, लेकिन न्यायमूर्ति उर्मिला जोशी फाल्के ने 15 सितंबर, 2024 को अजय वानखेड़े की ओर से दायर याचिका को खारिज कर दिया.

अजय ने किया पुलिस के सामने सरेंडर और फिर खुला ज्योत्सना मर्डर का राज

तब आखिरकार उस ने खुद ही नागपुर पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया. इस के बाद पुलिस ने उस से पुलिसिया अंदाज में पूछताछ की. दरअसल, ज्योत्सना कहीं गायब नहीं हुई थी बल्कि उस की नृशंस हत्या की गई थी और हत्या करने वाला भी कोई और नहीं बल्कि खुद अजय वानखेड़े ही था. अजय ने ज्योत्सना की हत्या की बात कुबूल करने के साथ ही उस की लाश को जंगल में दफनाने की बात भी कही.

उस के बाद पुलिस ने अजय की निशानदेही पर नागपुर के बाहरी इलाके में मौजूद एक सुनसान जगह से ज्योत्सना की जमीन में दफन सड़ीगली लाश बरामद की. फौजी अजय वानखेड़े ने ज्योत्सना की लाश जहां पर दफनाई थी, उस जगह को उस ने सीमेंट डाल कर सील कर दिया था, ताकि किसी भी कीमत पर लाश का राज कभी भी न खुल सके. बस यूं समझ लीजिए कि अजय देवगन और तब्बू द्वारा अभिनीत Film फिल्म ‘दृश्यम’ की तर्ज पर ही अजय वानखेड़े ने इस कत्ल की साजिश और प्लानिंग की थी. मगर इतनी सारी कोशिशें करने के बावजूद आखिरकार पुलिस ने उस की हरकतों, उस के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स, उस की लोकेशन और ज्योत्सना के भाई के बयान के आधार पर उसे पकड़ ही लिया. और इस मर्डर मिस्ट्री का परदाफाश हो गया.

यह घटना एक बार फिर साबित करती है कि अपराध चाहे कितनी भी चतुराई से क्यों न किया जाए, कानून से बच पाना असंभव है. कहानी लिखे जाने तक पुलिस आरोपी फौजी अजय वानखेड़े को जेल भेज चुकी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है

 

 

Extramarital Afaair : 4 साल बाद मिले कंकाल ने बयां की इश्क की कहानी

Extramarital Afaair गाजियाबाद के थाना नंदग्राम के गांव सिकरोड का रहने वाला चंद्रवीर बहुत खुश था. क्योंकि उस ने अपनी पैतृक जमीन का छोटा सा टुकड़ा अच्छे दामों में एक बनिए को जो बेच डाला था. बनिया वहां अपनी दुकान बनाना चाहता था. अब बनिया वहां दुकान खोले या कुछ और बनवाए, चंद्रवीर को इस से कोई मतलब नहीं रह गया था. वह तो नोटों को अपने अंगौछे में बांध कर घर की ओर लौट पड़ा था. रास्ते से उस ने देशी दारू की बोतल भी खरीद कर अंटी में खोंस ली थी.

घर के पास पहुंच कर उस ने अपने पास वाले घर के दरवाजे पर जोर से आवाज लगाई, ‘‘अरुण…ओ अरुण.’’

कुछ ही देर में दरवाजा खोल कर दुबलापतला गोरे रंग का युवक सामने आया. चंद्रवीर के चेहरे की चमक और खुशी देख कर ही वह ताड़ गया कि चंद्रवीर ने बेकार पड़ा जमीन का वह टुकड़ा बेच डाला है, जिसे बेचने की वह पिछले एक महीने से कोशिश कर रहा था. फिर भी अरुण उर्फ अनिल ने पूछा, ‘‘क्या बात है भैया, काहे पुकार रहे थे मुझे? और इतने खुश काहे हो आप?’’

‘‘अरुण, मैं ने अपनी जमीन का बलुआ रेत वाला वह टुकड़ा बनिए को एक लाख रुपए में बेच डाला है. आज मैं बहुत खुश हूं.यह लो 2 सौ रुपए, दौड़ कर चिकन ले आओ. तुम्हारी भाभी से चिकन बनवाएंगे. जब तक चिकन पकेगा, हमारी महफिल में जाम छलकते रहेंगे, आज जी भर कर पीएंगे.’’

अरुण हंस पड़ा, ‘‘होश में रहने तक ही पीनी होगी भैया. ज्यादा पी ली तो भाभी बाहर चौराहे पर चारपाई लगा देंगी.’’

ही..ही..ही.. चंद्रवीर ने खींसें निपोरी, ‘‘होश में ही रहूंगा अरुण, तुम्हारी भाभी के गुस्से का शिकार थोड़े ही होना है. अब तुम देर मत करो, जल्दी चिकन खरीद लाओ.’’

‘‘यूं गया और यूं आया भैया.’’ अरुण ने हाथ नचा कर कहा और भीतर घुस गया.

कुछ ही देर में वह थैला ले कर बाहर आया, ‘‘भैया, आप पानी गिलास तैयार करिए, मैं दौड़ कर चिकन ले आता हूं.’’

अरुण तेजी से मुरगा मंडी की तरफ चला गया तो चंद्रवीर ने अपने घर में प्रवेश किया.

बैठक में पहुंच कर उस ने पत्नी को आवाज लगाई, ‘‘सविता…’’

नहाते समय देख लिया था सविता को

उस की पत्नी चुन्नी के पल्लू से हाथ पोंछती हुई बैठक में आ गई. वह सुंदर और गेहुंए रंग की थी. चेहरे पर अब उम्र की रेखाएं उभरने लगी थीं लेकिन उस के भरे हुए मांसल जिस्म की बनावट के कारण वह प्रौढ़ावस्था में भी जवान ही दिखाई पड़ती थी.

‘‘यह एक लाख रुपया है, संभाल लो. अपने लिए कान के झुमके बनवा लेना. एक अच्छा सा सूट, स्वेटर और शाल भी खरीद लाना. इस में से 500 रुपए मैं ने अपने शौक के लिए लिया है. अरुण को चिकन लेने बाजार भेजा है.’’

‘‘अरुण!’’ सविता ने मुंह बिगाड़ा, ‘‘उसे काहे भेजा बाजार?’’

‘‘भाई है मेरा, वो काम नहीं करेगा तो कौन करेगा?’’ चंद्रवीर ने कहा, ‘‘वैसे तुम काहे इस बात पर नाराज हो रही हो. कुछ कहा क्या उस ने?’’

‘‘आज…’’ सविता कुछ कहतेकहते रुक गई और पति की ओर देखने लगी.

‘‘क्या हुआ आज?’’ चंद्रवीर ने उस की ओर प्रश्नसूचक नजरों से देखा.

‘‘आज मैं ने बालों में डालने के लिए तेल की शीशी उठाई तो उस में तेल खत्म था. मैं ने अरुण को बुला कर तेल लाने के लिए कहा तो वह मना कर के चला गया. कह रहा था कि उसे नींद आ रही है.’’

चंद्रवीर हंस पड़ा, ‘‘अरे नींद आ ही रही होगी उसे, तभी तो मना कर दिया होगा. इस में नाराज क्या होना, जाओ यह रुपए बक्से में रख दो और ताला लगा देना. हां, मिर्चमसाला भी पीस लो, चिकन पकेगा आज.’’

सविता ने रुपए लिए और अंदर के हिस्से में बने उस बैडरूम में आ गई, जिस में वे लोग सोते थे. उस में एक संदूक रखा था. सविता ने रुपए संदूक में संभाल कर रख दिए. इस के बाद सविता किचन में आ गई. उस ने आज पति चंद्रवीर से झूठ बोला था, बात को वह बड़ी सफाई से घुमा गई थी जबकि मामला दूसरा ही था. बात यह थी कि आज जब वह दोपहर में घर के आंगन में लगे हैंडपंप पर नहाने बैठी थी तो उस ने अपने अंगवस्त्र तक उतार कर धोने के लिए डाल दिए थे. वह अपनी देह को मल रही थी. कड़क धूप में बाहर बैठ कर नहाना उसे अच्छा लगता था. उस की पीठ चारदीवारी के दरवाजे की तरफ थी.

उस का देवर अरुण न जाने कब आंगन में आ गया था और उसे बड़ी ललचाई नजरों से नहाते हुए देख रहा था. वह उस के नग्न जिस्म को घूर रहा था. सविता को इस की भनक तक नहीं लगी थी, नहाने के बाद वह तौलिया उठाने के लिए खड़ी हो कर घूमी तो उस की नजर अरुण पर चली गई. वह घबरा गई. उस ने जल्दी से तौलिया उठाया और शरीर पर लपेट कर कमरे की ओर भागी. अरुण उस की बदहवासी देख कर खिलखिला कर हंस पड़ा. सविता ने कमरे में आ कर किवाड़ बंद कर लिए. तौलिया उस के हाथों से नीचे गिर पड़ा. उस ने अपने बदन को देखा तो खुद ही लजा गई. उस की सांसें अभी भी धौंकनी की तरह चल रही थीं.

वह यह सोच कर ही शर्म से जमीन में गड़ी जा रही थी कि उस के इसी नग्न जिस्म को अरुण ने बड़ी बेशर्मी से देखा है. अरुण की आंखों में वासना और चेहरे पर वहशी चमक थी. सविता को उस समय लगा था कि यदि वह क्षण भर भी और आंगन में रह जाती तो अरुण लपक कर उसे बांहों में भर लेता. अरुण उर्फ अनिल था तो चचिया ससुर का लड़का, लेकिन था तो मर्द और यह सविता की जिंदगी का पहला वाकया था कि उस के पति चंद्रवीर के अलावा किसी दूसरे मर्द ने उस की नग्न देह को देखा था.

कमरे में वह काफी देर तक अपनी उखड़ी सांसों को दुरुस्त करती रही, उस के बाद अपने कपड़े पहन कर उस ने दरवाजा खोल कर बाहर झांका था. अरुण आंगन से जा चुका था. सविता ने राहत की सांस ली और बाहर आई थी. फिर वह अपने कपड़े धोने बैठ गई थी. सारा दिन यही सोच कर वह शरम महसूस करती रही कि अब अरुण से वह नजरें कैसे मिलाएगी.

कुसूर इस में अरुण का नहीं था. वह नहाने बैठी थी तो उसे दरवाजा अंदर से बंद कर लेना चाहिए था. अरुण अचानक आ गया तो इस में दोष उस का कैसे हुआ? हां, यदि वह नग्न नहा रही थी तो अरुण को तुरंत वापस चले जाना चाहिए था.

अरुण से नहीं मिलाना चाहती थी नजरें

सविता यह सोच कर सारा दिन पशोपेश में रही कि अरुण से वह नजरें कैसे मिलाएगी. कम से कम दोचार दिन वह अरुण के सामने नहीं जाएगी, सविता ने सोच कर दिल को समझा लिया था, लेकिन चंद्रवीर ने अरुण को शराब की दावत दे कर चिकन लाने बाजार भेज रखा था. अब अरुण घर जरूर आएगा, उस से उस का सामना भी होगा. उफ! सविता का वह दिल फिर तेजी से धड़कने लगा था, जिसे दोपहर में उस ने बड़ी कोशिश कर के काबू में किया था.

रसोई में आ कर वह काम तो कर रही थी, लेकिन सामान्य नहीं थी.

‘‘सविता…’’ उस के कानों में पति की आवाज पड़ी. चंद्रवीर उसे पुकार रहा था, इस का मतलब था अरुण चिकन ले आया था. सविता अरुण के सामने नहीं आना चाहती थी. सविता ने किचन से आवाज लगाई, ‘‘क्या है, क्यों आवाज लगा रहे हो?’’

‘‘अरुण चिकन ले आया है, ले जाओ.’’ चंद्रवीर ने बताया.

‘‘आप ही यहां ला दो, मैं ने मसाला तवे पर डाला है, जल जाएगा.’’

चंद्रवीर थैला ले कर आ गया. थैला रख कर उस ने 2 कांच के गिलास, पानी का लोटा व प्लेट उठाई और चला गया.

सविता ने जैसेतैसे खाना तैयार किया और चंद्रवीर को आवाज लगाई, ‘‘खाना बन गया है, मैं थाली लगा रही हूं. आ कर ले जाओ.’’

‘‘तुम ही ले आओ.’’ चंद्रवीर ने कहा तो सविता को थाली में भोजन रख कर खुद ही बैठक में लाना पड़ा. उस ने उस वक्त चुन्नी को अपने सिर पर इतना खींच लिया था कि अरुण की नजरें उस की नजरों से न मिल सकें.

थालियां पति और अरुण के सामने रखते हुए उस के हाथ कांप रहे थे, उस का दिल बुरी तरह धड़क रहा था और सांसें धौंकनी सी चल रही थीं. उस ने चोर नजरों से देखा. अरुण उसे देख कर बेशर्मी से मुसकरा रहा था.

खाना परोस कर वह तेजी से बैठक से बाहर आ गई. जैसेतैसे चंद्रवीर और अरुण की वह दावत रात के 10 बजे तक खत्म हुई. अरुण चला गया तो सविता की जान में जान आई. दूसरे दिन चंद्रवीर किसी काम से चला गया तो सविता ने कुछ सोच कर अरुण के घर की तरफ कदम बढ़ा दिए. वह रात को ही इस बात का फैसला कर चुकी थी कि अरुण से कल की बेशर्मी भरी हरकत पर सख्ती से बात करेगी. अगर वह चुप रहेगी तो अरुण फिर से वैसी हरकत कर सकता है.

अरुण का दरवाजा ढुलका हुआ था. सविता ने दरवाजा धकेला तो वह अंदर की तरफ खुल गया. सविता सीधा अरुण के कमरे में आ गई. अरुण उस वक्त बिस्तर में लेटा टीवी देख रहा था. आहट पा कर उस ने नजरें घुमाईं तो सविता को देख कर हड़बड़ा कर चारपाई पर उठ बैठा, ‘‘भाभी आप?’’ उस ने हैरानी से कहा.

‘‘हां, मैं.’’ सविता रूखे स्वर में बोली.

‘‘बैठो.’’ अरुण जल्दी से चारपाई से उतर गया.

‘‘मैं बैठने नहीं आई हूं. तुम से कुछ पूछने आई हूं.’’ सविता तीखे स्वर में बोली, ‘‘मुझे यह बताओ, तुम ने वह बेहूदा हरकत क्यों की थी?’’

‘‘कैसी बेहूदा हरकत भाभी?’’ अरुण ने खुद को संभाल कर संयत स्वर में पूछा.

‘‘कल मैं जब नहा रही थी तो तुम अंदर घुस आए और मुझे आंखें फाड़ कर देखते रहे… क्यों?’’

‘‘भाभी,’’ अरुण बेशरमी से मुसकराया, ‘‘आप हो ही इतनी हसीन कि मैं चाह कर भी अपनी नजरें नहीं हटा सका.’’

सविता उस की बात पर अचकचा गई. उसे कुछ नहीं सूझा कि वह क्या कहे.

अरुण अपनी ही धुन में बोलता चला गया, ‘‘भाभी, आप का गदराया यौवन है ही इतना हसीन कि उस पर से कोई मूर्ख ही अपनी नजरें हटाएगा. मैं बेवकूफ और मूर्ख नहीं हूं, कसम ले लो भाभी मैं ने आप की पीठ के तिल भी गिने हैं…’’

सविता शरम से जमीन में जैसे गड़ गई. उस के मुंह से धीरे से निकला, ‘‘चुप हो जाओ अरुण. प्लीज, अब आगे कुछ मत कहना.’’

अरुण ने गहरी सांस ली, ‘‘हकीकत बयां कर रहा हूं भाभी. भले ही आप की शादी हुए 14 साल हो गए, लेकिन आप की सुंदरता एक बेटी की मां बनने के बाद भी कम नहीं हुई है. आप रूप की देवी हो. चंद्रवीर भैया आप की पूजा नहीं करते होंगे. कसम ले लो यदि आप मेरी किस्मत में लिखी होती तो मैं आप को सिंहासन पर बिठा कर पूजता.’’

सविता अपनी तारीफ सुन कर मंत्रमुग्ध हो गई थी. अरुण की एकएक बात उस के रोमरोम को पुलकित कर रही थी. उस के मन में अजीब सी हलचल मच गई थी. उसे अरुण की अंतिम बात ने रोमांच से भर दिया. उसे लगा अरुण उसे शिद्दत से प्यार करता है. उस के यौवन का वह प्यासा भंवरा है, तभी तो उस की चाहत शब्दों के रूप में उस के होंठों पर आ गई है.

शिकायत करतेकरते हो गई शिकार

वह अरुण को डांटने आई थी. अब उस की बातों ने उसे मोह में बांध लिया. सविता से कुछ कहते नहीं बना तो अरुण ने उस की कलाई पकड़ ली और हथेली अपने सीने पर रख कर दीवानों की तरह आह भरते हुए बोला, ‘‘इस सीने में जो दिल है भाभी, वह सिर्फ तुम्हें चाहता है. आज से नहीं बरसों से मैं तुम्हें मन ही मन प्यार करता आ रहा हूं.’’

‘‘तो कहा क्यों नहीं…’’ सविता आंखें बंद कर के धीरे से फुसफुसाई.

‘‘डरता था भाभी, कहीं तुम बुरा न मान जाओ. तुम चंद्रवीर भैया की अमानत हो. मैं अमानत में खयानत करना नहीं चाहता था.’’

‘‘अब क्या कर रहे हो?’’ सविता मदहोशी के आलम में बोली, ‘‘तुम मेरी हथेली सहला रहे हो, यह भी तो गुनाह है न.’’

‘‘आज हिम्मत बटोर ली है भाभी. देखता रहूंगा तो जी जलता रहेगा. आज तुम्हें संपूर्ण पा लेने की इच्छा है, तभी मन में ठंडक पड़ेगी.’’

सविता 35 वर्षीय अरुण की बातों और उस के प्यार भरे स्पर्श से अपना होश गंवा चुकी थी. उस ने आंखें बंद कर के फुसफुसा कर कहा, ‘‘लो कर लो अपने दिल की, तुम्हारे दिल में जो आग भड़क रही है, उसे शांत कर लो.’’

सविता की इजाजत मिली तो अरुण ने उसे बांहों में समेट लिया. देवरभाभी के पवित्र रिश्ते की दीवार को ढहने में फिर वक्त नहीं लगा. सविता जब अरुण के कमरे से निकली तो उस का गुस्सा कपूर की गंध की तरह उड़ चुका था. जिस अरुण ने उसे नहाते हुए नग्न हालत में देखा था, वही अरुण अब उस के तनमन पर छा गया था. सविता बहुत खुश थी. उस ने अपने पति चंद्रवीर के साथ देवर अरुण को भी दिल में जगह दे दी थी. यह बात सन 2017 की है.

42 वर्षीय चंद्रवीर को पैतृक संपत्ति का काफी बड़ा हिस्सा बंटवारे में मिला था. वह उसी संपत्ति का थोड़ाथोड़ा हिस्सा बेच कर अपने परिवार का गुजरबसर कर रहा था. परिवार में 3 ही प्राणी थे— वह, उस की पत्नी सविता और बेटी दीपा (काल्पनिक नाम). चंद्रवीर घर में  किसी चीज की कमी नहीं होने देता था. उस की गृहस्थी की गाड़ी बड़े आराम से चल रही थी.

28 सितंबर, 2018 को चंद्रवीर लापता हो गया. सविता के बताने के अनुसार चंद्रवीर अपने खेत का एक बड़ा हिस्सा बेचने के इरादे से घर से निकला था. शाम ढल गई और अंधेरा जमीन पर उतर आया तो सविता के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं. उस ने अपनी बेटी दीपा को साथ लिया और पति चंद्रवीर को उन जगहों पर तलाश करने निकल गई, जहांजहां वह उठताबैठता था.

सविता और दीपा ने हर संभावित जगहों पर पति की तलाश की, उस के विषय में पूछताछ की लेकिन हर जगह से उन्हें निराशा मिली. चंद्रवीर आज उन जगहों पर नहीं आया था. दोनों घर आ गईं. जैसेतैसे रात गुजर गई. सुबह सविता ने अरुण को बुला कर बताया कि चंद्रवीर कल सुबह से घर से निकला है, अभी तक वापस नहीं लौटा है. उसे रिश्तेदारी में तलाश करो.

अचानक लापता हो गया चंद्रवीर

अरुण अपने साथ 2-3 लोगों को ले कर उन रिश्तेदारियों में गया, जहांजहां चंद्रवीर आनाजाना करता था. उस ने कितनी ही रिश्तेदारियों में मालूम किया, लेकिन चंद्रवीर कई दिनों से उन लोगों से मिलने नहीं आया था. 2 दिन की तलाश करने के बाद अरुण वापस आ गया. उसे मालूम हुआ कि 3 दिन बीत जाने पर भी चंद्रवीर घर नहीं लौटा है. उस ने सविता को बताया कि चंद्रवीर किसी रिश्तेदारी में भी नहीं पहुंचा है. सुन कर सविता दहाड़े मार कर रोने लगी.

अब तक पूरे गांव में यह बात फैल चुकी थी कि चंद्रवीर 3 दिनों से लापता है. गांव वाले चंद्रवीर की तलाश में सविता की मदद के लिए इकट्ठे हो गए. पूरे गांव में चंद्रवीर को ढूंढा जाने लगा. नदी तालाब, खेत खलिहान हर जगह चंद्रवीर को खोजा गया, लेकिन वह नहीं मिला. इन लोगों में चंद्रवीर का भाई भूरे भी था. भूरे से चंद्रवीर की बनती नहीं थी, वह चंद्रवीर के घर आताजाता नहीं था लेकिन चंद्रवीर था तो सगा भाई, इसलिए उस की तलाश में वह भी जान लड़ा रहा था.

चंद्रवीर जब 5 दिन की खोजखबर के बाद भी नहीं मिला तो 5 अक्तूबर, 2018 को भूरे ने गाजियाबाद के नंदग्राम थाने में चंद्रवीर के लापता होने की सूचना दर्ज करवा दी. नंदग्राम थाने के तत्कालीन एसएचओ पुलिस टीम के साथ सिकरोड गांव में स्थित सविता के घर पहुंच गए. सविता 5 दिनों से आंसू बहा रही थी. दीपा भी पिता की याद में सिसक रही थी. वह एकदम बेसुध और बेहाल सी नजर आ रही थी.

एसएचओ ने सविता के सामने पहुंच कर उसे ढांढस बंधाते हुए कहा, ‘‘देखो रोओ मत, चंद्रवीर की तलाश करने में हम लोग पूरी जान लड़ा देंगे. तुम हमें यह बताओ कि चंद्रवीर के घर से जाने से पहले तुम्हारा क्या चंद्रवीर से झगड़ा हुआ था?’’

‘‘नहीं, मैं उन से आज तक नहीं लड़ी, वह भी मुझ से नहीं लड़ते थे. वह दिल के बहुत अच्छे और नेक इंसान थे. मुझे और अपनी बेटी को बहुत प्यार करते थे.’’ सविता ने आंसू पोंछते हुए कहा.

‘‘चंद्रवीर ने जाने से पहले तुम्हें बताया था कि वह कहां और क्यों जा रहा है?’’ एसएचओ ने दूसरा प्रश्न किया.

‘‘कहां जा रहे हैं, यह भी नहीं बताया था. मेरे सामने वह घर से नहीं निकले थे साहब, वह अंधेरे में ही निकल कर चले गए थे. हम मांबेटी तब सोई हुई थीं.’’

‘‘तुम्हें किसी पर संदेह है?’’

‘‘मेरे पति का अपने भाई भूरे से संपत्ति विवाद रहता था. मुझे लगता है कि वो अंधेरे में घर से नहीं गए, बल्कि उन्हें अंधेरे में गायब कर दिया गया है. यह काम भूरे ने किया है साहब. उस ने शायद मेरे पति की हत्या कर दी है.’’

‘‘यह पक्का हो, ऐसा तो नहीं कह सकते. जांच के बाद ही पता चलेगा कि क्या भूरे ने संपत्ति विवाद के कारण चंद्रवीर को लापता करने की हिमाकत की है.’’ एसएचओ ने कहा और उठ कर उन्होंने एसआई को भूरे को पकड़ कर थाने लाने का आदेश दे दिया.

चंद्रवीर के भाई से की पूछताछ

आवश्यक जानकारी जुटा लेने के बाद एसएचओ अकेले ही थाने लौट आए. एसआई अपने साथ 2 कांस्टेबल ले कर भूरे को हिरासत में लेने के लिए निकल गए थे. थोड़ी देर में ही भूरे को ले कर एसआई और कांस्टेबल थाने आ गए. भूरे ने कभी थाना कचहरी नहीं देखा था. वह काफी डरा हुआ था. आते ही उस ने एसएचओ के पांव पकड़ लिए, ‘‘साहब, मुझे क्यों पकड़ा है आप ने? मैं ने ऐसा क्या अपराध किया है?’’

‘‘तुम ने अपने भाई चंद्रवीर को कहां लापता किया है भूरे?’’ एसएचओ ने उसे खुद से परे कर सख्त स्वर में पूछा.

‘‘मैं चंद्रवीर को कहां लापता करूंगा साहब, वह मेरा भाई है.’’

‘‘तुम्हारा अपने भाई से संपत्ति का विवाद था?’’

‘‘नहीं साहब,’’ भूरे तुरंत बोला, ‘‘हमारा आपस में संपत्ति का बंटवारा बहुत प्रेम से हुआ था. कौन कहता है कि हमारा संपत्ति का विवाद था?’’

‘‘सविता कह रही है,’’ एसएचओ ने भूरे को घूरते हुए कहा, ‘‘सविता का कहना है कि संपत्ति विवाद में तुम ने उस के पति को लापता किया है और उस की हत्या कर दी है.’’

यह सुनते ही भूरे ने सिर थाम लिया. कुछ देर तक वह स्तब्ध सा बैठा रहा फिर तैश में आ कर बोला, ‘‘सविता मुझ से जलती है साहब, वह मुझ पर झूठा आरोप लगा रही है. आप ही बताइए, मैं ने यह काम किया होता तो थाने में आ कर खुद उस की गुमशुदगी की रिपोर्ट क्यों लिखवाता?’’

‘‘रिपोर्ट लिखवाने से तुम निर्दोष थोड़ी हो गए. हम तुम्हारे घर की तलाशी लेंगे.’’

‘‘बेशक तलाशी लीजिए साहब, मैं अपने मांबाप की कसम खा कर कहता हूं कि मैं निर्दोष हूं. चंद्रवीर कहां गया, मैं नहीं जानता.’’

एसएचओ को लगा भूरे सच कह रहा है लेकिन वह पूरी तसल्ली कर लेना चाहते थे. उन्होंने भूरे को साथ लिया और उस के घर की तलाशी ली. उन्हें उस के घर में ऐसा कुछ भी नहीं मिला, जिस से यह साबित होता कि भूरे ने चंद्रवीर की हत्या की है या उसे लापता किया है. उन्होंने भूरे को छोड़ दिया. पुलिस कई दिनों तक चंद्रवीर को अपने तरीके से तलाश करती रही. सविता ने इस बीच यह शक भी व्यक्त किया कि उस के पति की हत्या कर के भूरे ने शव उस के घर में या अपने घर में गाड़ दिया है.

अपना शक दूर करने के लिए पुलिस ने भूरे और चंद्रवीर का आंगन और कमरों को खुदवा कर भी देख डाला लेकिन तब भी कोई ऐसा सूत्र नहीं हाथ आया, जिस से समझा जाता कि चंद्रवीर की हत्या कर के उस का शव जमीन में दबा दिया गया है. पुलिस ने चंद्रवीर के मामले में काफी माथापच्ची की, जब कोई सुराग हाथ नहीं आया तो पुलिस ने चंद्रवीर के लापता होने वाली फाइल वर्ष 2021 में बंद कर दी गई. सविता ने दिल पर पत्थर रख लिया. पहले चोरीछिपे अरुण से उस की आशनाई चलती थी अब तो अरुण का ज्यादा समय उसी के घर में बीतने लगा. सविता अपनी बेटी की गैरमौजूदगी में अरुण के साथ रास रचाती.

उस ने यह आसपड़ोस में जाहिर करना शुरू कर दिया था कि चंद्रवीर के बाद अरुण उस के परिवार का सच्चे मन से साथ दे रहा है. लोगों को क्या लेनादेना था. वैसे भी लोगों की नजर में अरुण सविता का चचेरा देवर था, कोई गैर नहीं था.

4 साल बाद फिर खुली फाइल

समय तेजी से सरकता रहा. चंद्रवीर को लापता हुए पूरे 4 साल बीत गए, तब 2021 में बंद हुई एकाएक उस की बंद धूल चाट रही फाइल दोबारा से खुल गई. दरअसल, 4 अप्रैल, 2022 को गाजियाबाद के नए नियुक्त हुए एसएसपी मुनिराज जी. ने वह तमाम फाइलें खुलवाईं, जिन के केस अनसुलझे थे. इन्हीं में एक फाइल चंद्रवीर की भी थी. एसएसपी मुनिराज जी. ने यह फाइल थाना नंदग्राम गेट से ले कर क्राइम ब्रांच की एसपी दीक्षा शर्मा के हवाले कर दी.

दीक्षा शर्मा ने इस केस की जांच इंसपेक्टर (क्राइम ब्रांच) अब्दुर रहमान सिद्दीकी को सौंप दी. क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर ने पूरी फाइल का गहराई से अध्ययन किया तो उन्हें लगा कि चंद्रवीर कोई बच्चा नहीं था जिसे चुपचाप गोद में उठा कर लापता कर दिया गया हो. यह काम 2 या उस से अधिक लोग कर सकते हैं. वह लोग जब चंद्रवीर के घर में आए होंगे तो कुछ शोरशराबा होना चाहिए था. चंद्रवीर को खामोशी से गायब नहीं किया जा सकता. अगर कुछ आहट वगैरह हुई तो सविता और उस की बेटी ने जरूर सुनी होगी. पूछताछ इन्हीं से शुरू की जाए तो कुछ सूत्र हाथ आ सकता है.

इंसपेक्टर अपने साथ पुलिस टीम को ले कर सविता के घर पहुंच गए.

तब सविता घर पर नहीं थी. उस की 16 वर्षीय बेटी दीपा घर में ही थी. इंसपेक्टर ने उस से ही पूछताछ शुरू की. दीपा को सामने बिठा कर उन्होंने गंभीरता से पूछा, ‘‘तुम्हारा नाम दीपा है न बेटी?’’

‘‘जी,’’ दीपा ने सिर हिलाया.

‘‘तुम्हारे पापा रात के अंधेरे में लापता हुए, क्या यह बात ठीक है?’’

‘‘सर…’’ दीपा गहरी सांस भर कर एकाएक रोने लगी.

इंसपेक्टर ने उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरा, ‘‘मुझे इतना अनुभव तो है बेटी कि कोई बात तुम्हारे सीने में दफन है, जो बाहर आना चाहती है. लेकिन तुम्हारी हिचक उसे बाहर आने से रोक रही है. क्यों, मैं ठीक कह रहा हूं न दीपा?’’

दीपा ने आंसू पोंछे और सिर हिलाया, ‘‘हां सर, मेरे दिल में एक बात 4 साल से दबी पड़ी है. मैं बताती तो किसे, मां को बताने का मतलब होता मेरी भी मौत. चाचा को भी नहीं बता सकती थी, वह मां से मिले हुए हैं. आसपड़ोस में बताती तो मेरे पिता की बदनामी होती…’’

बेटी ने बयां कर दी हकीकत

इंसपेक्टर की आंखों में चमक आ गई. चंद्रवीर के लापता होने का राज दीपा के दिल में छिपा हुआ है, यह समझते ही वह पूरे उत्साह से भर गए. सहानुभूति से उन्होंने दीपा के सिर पर फिर हाथ घुमाया, ‘‘देखो दीपा, मैं चाहता हूं कि तुम्हारे पापा के साथ न्याय हो. मुझे बताओ तुम्हारे मन में कौन सी बात दबी हुई है. डरो मत, अब तुम्हारी सुरक्षा हम करेंगे.’’

‘‘सर, मेरे पिता की हत्या हो चुकी है. मेरी मां और चाचा अरुण ने उन्हें मारा है.’’ दीपा ने बताया, ‘‘यह हत्या मेरी मां के चाचा से अवैध संबंधों के कारण हुई है.’’

‘‘ओह, क्या तुम ने अपनी आंखों से देखा था पिता की हत्या होते हुए?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

‘‘जी हां, उस दिन 28 सितंबर, 2018 की रात थी. अरुण चाचा को मां ने आधी रात को घर बुलाया. पापा गहरी नींद में थे. अरुण चाचा ने साथ लाए तमंचे से मेरे पापा के सिर में गोली मार दी. मैं बहुत डर गई. मैं कंबल में दुबक गई. मुझे नहीं पता कि दोनों ने पापा की लाश का क्या किया. सुबह मां ने पापा के रात में कहीं चले जाने की बात उड़ा दी और उन्हें तलाश करने का नाटक करने लगी.’’

‘‘हूं, मैं तुम्हें सरकारी गवाह बनाऊंगा. तुम्हारी सुरक्षा अब हमारी जिम्मेदारी है बेटी.’’ इंसपेक्टर ने कहा और उठ कर खड़े हो गए.

उन्होंने यह बात तुरंत एसपी (क्राइम ब्रांच) दीक्षा शर्मा को बता कर उन से आदेश मांगा. एसपी दीक्षा शर्मा ने सविता और अरुण को गिरफ्तार करने के आदेश दे दिए. क्राइम ब्रांच टीम ने 13 नवंबर, 2022 को सविता को अरुण के घर से अरुण के साथ ही हिरासत में ले लिया. दोनों को क्राइम ब्रांच के औफिस में लाया गया और उन से सख्ती से पूछताछ की गई तो दोनों टूट गए. सविता ने अपने पति की हत्या अरुण के साथ मिल कर करने की बात कुबूल करते हुए बताया, ‘‘साहब, मेरे अपने देवर अरुण से अवैध संबंध हो गए थे. एक दिन चंद्रवीर ने हमें आपत्तिजनक हालत में देख लिया था. उसी दिन से वह मुझे बातबात पर गाली देता और मारता था.

‘‘मैं कब तक मार खाती. मैं ने अरुण को उकसाया तो उस ने चंद्रवीर की हत्या करने के लिए 28 सितंबर, 2018 का दिन तय किया. वह पहले अपने मांबाप को मेरठ में अपने दूसरे घर में छोड़ आया फिर उस ने अपने घर में गहरा गड्ढा खोदा.

‘‘28 सितंबर की रात को वह तमंचा ले कर मेरे इशारे पर घर में आया. चंद्रवीर तब खापी कर चारपाई पर गहरी नींद सो गया था. अरुण ने उस के सिर में गोली मार दी. मैं ने चंद्रवीर के सिर से निकलने वाले खून को एक बाल्टी में भरने के लिए चारपाई के नीचे बाल्टी रख दी. ऐसा इसलिए किया कि खून से फर्श खराब न हो.’’

‘‘तुम लोगों ने लाश क्या उसी गड्ढे में छिपाई है, जिसे अरुण ने खोद कर तैयार किया था?’’ इंसपेक्टर ने प्रश्न किया.

‘‘जी सर,’’ अरुण ने मुंह खोला, ‘‘मैं ने 7 फुट गहरा गड्ढा अपने घर में खोदा था. लाश और खून सना तकिया उसी में डाल कर मिट्टी भर दी, फिर उस पर पहले की तरह फर्श बनवा दिया.’’

पति की हत्या कर शव ठिकाने लगाने के बाद भी सविता नंदग्राम थाने में हर सप्ताह चक्कर लगा कर पति को ढूंढने की गुहार लगाती थी.

हत्या की बात कुबूल करने के बाद अरुण उर्फ अनिल और सविता को विधिवत हिरासत में ले कर उन पर भादंवि की धारा 302, 201 व 120बी के तहत केस दर्ज कर लिया गया.

पुलिस ने निकलवाया 4 साल पहले दफन किया शव

मजिस्ट्रैट, क्राइम ब्रांच की टीम और एसपी (क्राइम ब्रांच) दीक्षा शर्मा की मौजूदगी में अरुण के कमरे में गड्ढा खुदवाया गया तो उस में तकिया और चंद्रवीर की सड़ीगली लाश मिली गई, जिसे बाहर निकाल कर कब्जे में ले लिया गया. अरुण और सविता को न्यायालय में पेश कर के 2 दिन की पुलिस रिमांड पर ले लिया गया. क्राइम ब्रांच ने रिमांड अवधि के दौरान अरुण से तमंचा और एक कुल्हाड़ी भी बरामद कर ली. वह बाल्टी भी कब्जे में ले ली गई, जिस में चंद्रवीर को गोली मारने के बार सिर से निकलने वाला खून इकट्ठा किया गया था.

खून बाथरूम में बहा कर पानी चला दिया गया था. बाल्टी का इस्तेमाल सविता ने नहीं किया था, उस ने बाल्टी धो कर कोलकी में रख दी थी. कुल्हाड़ी के बारे में पूछने पर अरुण ने बताया, ‘‘सर, चंद्रवीर के हाथ में चांदी का कड़ा था, जिस पर उस का नाम खुदा हुआ था. इस कुल्हाड़ी से मैं ने उस का हाथ काट कर कैमिकल फैक्ट्री के पीछे गड्ढा खोद कर दबा दिया था.’’

‘‘हाथ इसलिए काटा होगा कि कड़े से लाश पहचान ली जाती, क्यों?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

‘‘जी हां, अगर लाश पुलिस के हाथ आती तो तब तक वह सड़ चुकी होती लेकिन इस कड़े से यह पता चल जाता कि लाश चंद्रवीर की है.’’ अरुण ने कुबूल करते हुए बताया.

क्राइम ब्रांच की टीम अरुण को कैमिकल फैक्ट्री के पीछे ले कर गई. वहां अरुण ने एक जगह बताई, जहां पुलिस ने खुदाई कर के हाथ का पिंजर बरामद कर लिया. सभी चीजें सीलमोहर कर कब्जे में ले ली गईं. सविता और अरुण को 2 दिन बाद न्यायालय में पेश किया गया तो वहां से दोनों को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने का आदेश दे दिया. पुलिस टीम अब चंद्रवीर की लाश जो अस्थिपंजर के रूप में थी, का डीएनए टेस्ट करवाने के प्रयास में थी ताकि यह साबित किया जा सके कि 7 फुट गहरे गड्ढे से बरामद लाश चंद्रवीर की ही है.

जिस औरत की खुशियों के लिए चंद्रवीर हमेशा एक पांव पर खड़ा रहता था, उसी औरत ने क्षणिक सुख पाने के लिए अपने देवर पर खुद को न्यौछावर कर दिया और उसी के साथ मिल कर अपने पति चंद्रवीर की जघन्य हत्या कर दी.

अंजाम-ए-साजिश : एक निर्दोष लड़की की हत्या

 रेलवे लाइनों के किनारे पड़ी बोरी को लोग आश्चर्य से देख रहे थे. बोरी को देख कर सभी अंदाजा लगा रहे थे कि बोरी में शायद किसी की लाश होगी. मामला संदिग्ध था, इसलिए वहां मौजूद किसी शख्स ने फोन से यह सूचना दिल्ली पुलिस के कंट्रोलरूम को दे दी.

कुछ ही देर में पुलिस कंट्रोलरूम की गाड़ी मौके पर पहुंच गई. पुलिस ने जब बोरी खोली तो उस में एक युवती की लाश निकली. लड़की की लाश देख कर लोग तरहतरह की चर्चाएं करने लगे.

जिस जगह लाश वाली बोरी पड़ी मिली, वह इलाका दक्षिणपूर्वी दिल्ली के थाना सरिता विहार क्षेत्र में आता है. लिहाजा पुलिस कंट्रोलरूम से यह जानकारी सरिता विहार थाने को दे दी गई. सूचना मिलते ही एसएचओ अजब सिंह, इंसपेक्टर सुमन कुमार के साथ मौके पर पहुंच गए.

एसएचओ अजब सिंह ने लाश बोरी से बाहर निकलवाने से पहले क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को मौके पर बुला लिया और आला अधिकारियों को भी इस की जानकारी दे दी. कुछ ही देर में डीसीपी चिन्मय बिस्वाल और एसीपी ढाल सिंह भी वहां पहुंच गए. फोरैंसिक टीम का काम निपट जाने के बाद डीसीपी और एसीपी ने भी लाश का मुआयना किया.

मृतका की उम्र करीब 24-25 साल थी. वहां मौजूद लोगों में से कोई भी उस की शिनाख्त नहीं कर सका तो यही लगा कि लड़की इस क्षेत्र की नहीं है. पुलिस ने जब उस के कपड़ों की तलाशी ली तो उस के ट्राउजर की जेब से एक नोट मिला.

उस नोट पर लिखा था, ‘मेरे साथ अश्लील हरकत हुई और न्यूड वीडियो भी बनाया गया. यह काम आरुष और उस के 2 दोस्तों ने किया है.’

नोट पर एक मोबाइल नंबर भी लिखा था. पुलिस ने नोट जाब्जे में ले कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

पुलिस के सामने पहली समस्या लाश की शिनाख्त की थी. उधर बरामद किए गए नोट पर जो फोन नंबर लिखा था, पुलिस ने उस नंबर पर काल की तो वह उत्तरी दिल्ली के बुराड़ी में रहने वाले आरुष का निकला. नोट पर भी आरुष का नाम लिखा हुआ था.

सरिता विहार एसएचओ अजब सिंह ने आरुष को थाने बुलवा लिया. उन्होंने मृतका का फोटो दिखाते हुए उस से संबंधों के बारे में पूछा तो आरुष ने युवती को पहचानने से इनकार कर दिया. उस ने कहा कि वह उसे जानता तक नहीं है. किसी ने उसे फंसाने के लिए यह साजिश रची है.

आरुष के हावभाव से भी पुलिस को लग रहा था कि वह बेकसूर है. फिर भी अगली जांच तक उन्होंने उसे थाने में बिठाए रखा. उधर डीसीपी ने जिले के समस्त बीट औफिसरों को युवती की लाश के फोटो देते हुए शिनाख्त कराने की कोशिश करने के निर्देश दे दिए. डीसीपी चिन्मय बिस्वाल की यह कोशिश रंग लाई.

पता चला कि मरने वाली युवती दक्षिणपूर्वी जिले के अंबेडकर नगर थानाक्षेत्र के दक्षिणपुरी की रहने वाली सुरभि (परिवर्तित नाम) थी. उस के पिता सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करते हैं. पुलिस ने सुरभि के घर वालों से बात की. उन्होंने बताया कि नौकरी के लिए किसी का फोन आया था. उस के बाद वह इंटरव्यू के सिलसिले में घर से गई थी.

पुलिस ने सुरभि के घर वालों से उस की हैंडराइटिंग के सैंपल लिए और उस हैंडराइटिंग का मिलान नोट पर लिखी राइटिंग से किया तो दोनों समान पाई गईं. यानी दोनों राइटिंग सुरभि की ही पाई गईं.

पुलिस ने आरुष को थाने में बैठा रखा था. सुरभि के घर वालों से आरुष का सामना कराते हुए उस के बारे में पूछा तो घर वालों ने आरुष को पहचानने से इनकार कर दिया.

नौकरी के लिए फोन किस ने किया था, यह जानने के लिए एसएचओ अजब सिंह ने मृतका के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. उस में एक नंबर ऐसा मिला, जिस से सुरभि के फोन पर कई बार काल की गई थीं और उस से बात भी हुई थी. जांच में वह फोन नंबर संगम विहार के रहने वाले दिनेश नाम के शख्स का निकला. पुलिस काल डिटेल्स के सहारे दिनेश तक पहुंच गई.

थाने में दिनेश से सुरभि की हत्या के संबंध में सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने कबूल कर लिया कि अपने दोस्तों के साथ मिल कर उस ने पहले सुरभि के साथ सामूहिक बलात्कार किया. इस के बाद उन लोगों ने उस की हत्या कर लाश ठिकाने लगा दी.

उस ने बताया कि वह सुरभि को नहीं जानता था. फिर भी उस ने उस की हत्या एक ऐसी साजिश के तहत की थी, जिस का खामियाजा जेल में बंद एक बदमाश को उठाना पड़े. उस ने सुरभि की हत्या की जो कहानी बताई, वह किसी फिल्मी कहानी की तरह थी—

दिल्ली के भलस्वा क्षेत्र में हुए एक मर्डर के आरोप में धनंजय को जेल जाना पड़ा. जेल में बंटी नाम के एक कैदी से धनंजय का झगड़ा हो गया था. बंटी उत्तरी दिल्ली के बुराड़ी क्षेत्र का रहने वाला था.

बंटी भी एक नामी बदमाश था. दूसरे कैदियों ने दोनों का बीचबचाव करा दिया. दोनों ही बदमाश जिद्दी स्वभाव के थे, लिहाजा किसी न किसी बात को ले कर वे आपस में झगड़ते रहते थे. इस तरह उन के बीच पक्की दुश्मनी हो गई.

उसी दौरान दिनेश झपटमारी के मामले में जेल गया. वहां उस की दोस्ती धीरेंद्र नाम के एक बदमाश से हुई. जेल में ही धीरेंद्र की दुश्मनी बुराड़ी के रहने वाले बंटी से हो गई. धीरेंद्र ने जेल में ही तय कर लिया कि वह बंटी को सबक सिखा कर रहेगा.

करीब 2 महीने पहले दिनेश और धीरेंद्र जमानत पर जेल से बाहर आ गए. जेल से छूटने के बाद दिनेश और धीरेंद्र एक कमरे में साथसाथ संगम विहार इलाके में रहने लगे.

उन्होंने बंटी के परिवार आदि के बारे में जानकारी जुटानी शुरू कर दी. उन्हें पता चला कि बंटी के पास 200 वर्गगज का एक प्लौट है. उस प्लौट की देखभाल बंटी का भाई आरुष करता है. कोशिश कर के उन्होंने आरुष का फोन नंबर भी हासिल कर लिया.

इस के बाद दिनेश और धीरेंद्र एक गहरी साजिश का तानाबाना बुनने लगे. उन्होंने सोचा कि बंटी के भाई आरुष को किसी गंभीर केस में फंसा कर जेल भिजवा दिया जाए. उस के जेल जाने के बाद उस के 200 वर्गगज के प्लौट पर कब्जा कर लेंगे. यह फूलप्रूफ प्लान बनाने के बाद वह उसे अंजाम देने की रूपरेखा बनाने लगे.

दिनेश और धीरेंद्र ने इस योजना में अपने दोस्त सौरभ भारद्वाज को भी शामिल कर लिया. पहले से तय योजना के अनुसार दिनेश ने अपनी गर्लफ्रैंड के माध्यम से उस की सहेली सुरभि को नौकरी के बहाने बुलवाया. सुरभि अंबेडकर नगर में रहती थी.

गर्लफ्रैंड ने सुरभि को नौकरी के लिए दिनेश के ही मोबाइल से फोन किया. सुरभि को नौकरी की जरूरत थी, इसलिए सहेली के कहने पर वह 25 फरवरी, 2019 को संगम विहार स्थित एक मकान पर पहुंच गई.

उसी मकान में दिनेश और धीरेंद्र रहते थे. नौकरी मिलने की उम्मीद में सुरभि खुश थी, लेकिन उसे क्या पता था कि उस की सहेली ने विश्वासघात करते हुए उसे बलि का बकरा बनाने के लिए बुलाया है.

सुरभि उस फ्लैट पर पहुंची तो वहां दिनेश, धीरेंद्र और सौरभ भारद्वाज मिले. उन्होंने सुरभि को बंधक बना लिया. इस के बाद उन तीनों युवकों ने सुरभि के साथ गैंपरेप किया. नौकरी की लालसा में आई सुरभि उन के आगे गिड़गिड़ाती रही, लेकिन उन दरिंदों को उस पर जरा भी दया नहीं आई.

चूंकि इन बदमाशों का मकसद जेल में बंद बंटी को सबक सिखाना और उस के भाई आरुष को फंसाना था, इसलिए उन्होंने सुरभि के मोबाइल से आरुष के मोबाइल नंबर पर कई बार फोन किया. लेकिन किन्हीं कारणों से आरुष ने उस की काल रिसीव नहीं की थी.

इस के बाद तीनों बदमाशों ने हथियार के बल पर सुरभि से एक नोट पर ऐसा मैसेज लिखवाया जिस से आरुष झूठे केस में फंस जाए. उस नोट पर इन लोगों ने आरुष का फोन नंबर भी लिखवा दिया था.

फिर वह नोट सुरभि के ट्राउजर की जेब में रख दिया. सुरभि उन के अगले इरादों से अनभिज्ञ थी. वह बारबार खुद को छोड़ देने की बात कहते हुए गिड़गिड़ा रही थी. लेकिन उन लोगों ने कुछ और ही इरादा कर रखा था.

तीनों बदमाशों ने सुरभि की गला घोंट कर हत्या कर दी. बेकसूर सुरभि सहेली की बातों पर विश्वास कर के मारी जा चुकी थी. इस के बाद वे उस की लाश ठिकाने लगाने के बारे में सोचने लगे. उन्होंने उस की लाश एक बोरी में भर दी.

इस के बाद इन लोगों ने अपने परिचित रहीमुद्दीन उर्फ रहीम और चंद्रकेश उर्फ बंटी को बुलाया. दोनों को 4 हजार रुपए का लालच दे कर इन लोगों ने वह बोरी कहीं रेलवे लाइनों के किनारे फेंकने को कहा.

पैसों के लालच में दोनों उस लाश को ठिकाने लगाने के लिए तैयार हो गए तो दिनेश ने 7800 रुपए में एक टैक्सी हायर की. रात के अंधेरे में उन्होंने वह लाश उस टैक्सी में रखी और रहीमुद्दीन और चंद्रकेश उसे सरिता विहार थाना क्षेत्र में रेलवे लाइनों के किनारे डाल कर अपने घर लौट गए.

लाश ठिकाने लगाने के बाद साजिशकर्ता इस बात पर खुश थे कि फूलप्रूफ प्लानिंग की वजह से पुलिस उन तक नहीं पहुंच सकेगी, लेकिन दिनेश द्वारा सुरभि को की गई काल ने सभी को पुलिस के चंगुल में पहुंचा दिया. मामले का खुलासा हो जाने के बाद एसएचओ अजब सिंह ने हिरासत में लिए गए आरुष को छोड़ दिया.

दिनेश से की गई पूछताछ के बाद पुलिस ने उस की निशानदेही पर उस के अन्य साथियों सौरभ भारद्वाज, चंद्रकेश उर्फ बंटी और रहीमुद्दीन उर्फ रहीम को भी गिरफ्तार कर लिया. पांचवां बदमाश धीरेंद्र पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ सका, वह फरार हो गया था. गिरफ्तार किए गए बदमाशों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

पुलिस को इस मामले में दिनेश की प्रेमिका को भी हिरासत में ले कर पूछताछ करनी चाहिए थी, क्योंकि सुरभि की हत्या की असली जिम्मेदार तो वही थी. उसी ने ही सुरभि को नौकरी के बहाने दिनेश के किराए के कमरे पर बुलाया था.

बहरहाल, दूसरे को फांसने के लिए जाल बिछाने वाला दिनेश खुद अपने बिछाए जाल में फंस गया. पहले वह झपटमारी के आरोप में जेल गया था, जबकि इस बार वह सामूहिक बलात्कार और हत्या के आरोप में जेल गया. पुलिस मामले की जांच कर रही है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

डेढ़ करोड़ का विश्वास

घटना 14 जुलाई, 2020 की है. उस रोज राम गोयल सो कर उठे तो घर का अस्तव्यस्त हाल देख कर उन के होश उड़ गए. कमरे में तिजोरी खुली पड़ी थी, जिस में रखी कई किलोग्राम सोनाचांदी व नकदी सब गायब थी. यह देख कर घर में हड़कंप मच गया.

राम गोयल को पता चला कि घर से 3 किलो सोने और चांदी के आभूषण, नकदी और अन्य कीमती सामान गायब है. इस के अलावा परिवार के साथ रह रही बेटी की नौकरानी अनुष्का, जो दिल्ली से आई थी, वह भी गायब थी. अनुष्का राम गोयल की बेटीदामाद की नौकरानी थी. वह उन के बच्चों की देखभाल करती थी.

जून, 2020 महीने में राम गोयल की बेटी एक समारोह में शामिल होने के लिए दिल्ली से राजगढ़ अपने पिता के यहां आई थी. बेटी के बच्चों की देखभाल के लिए अनुष्का भी उस के साथ आ गई थी. इसलिए पिछले एक महीने से वह राम गोयल के घर पर ही रह रही थी.

वह एक नेपाली लड़की थी. नेपाली अपनी बहादुरी और ईमानदारी के लिए बहुत प्रसिद्ध हैं. राम गोयल की भी अनुष्का के प्रति यही सोच थी. लेकिन कुछ ही समय में अनुष्का अपना असली रंग दिखा कर करोड़ों का माल साफ कर के भाग चुकी थी.

घटना की रात अनुष्का ने अपने हाथ से कढ़ी और खिचड़ी बना कर पूरे परिवार को खिलाई थी. खाने के बाद पूरा परिवार गहरी नींद में सो गया. जाहिर था, खाने में कोई नशीली चीज मिलाई गई थी, जिस के असर से घर में हलचल होने के बावजूद किसी सदस्य की आंख नहीं खुली.

इस बात की खबर मिलते ही थाना पचोर के टीआई डी.पी. लोहिया तुरंत पुलिस टीम के साथ राम गोयल के यहां पहुंचे तथा उन्होंने मौकामुआयना कर सारी घटना की जानकारी एसपी प्रदीप शर्मा को दी. कुछ ही देर में एसपी शर्मा भी मौके पर पहुंच गए.

घटनास्थल की जांच करने के बाद एसपी प्रदीप शर्मा ने आरोपियों को पकड़ने के लिए एडिशनल एसपी नवलसिंह सिसोदिया के निर्देशन में एक टीम गठित कर दी.

टीम में एसडीपीओ पदमसिंह बघेल, टीआई डी.पी. लोहिया, एसआई धर्मेंद्र शर्मा, शैलेंद्र सिंह, साइबर सैल टीम प्रभारी रामकुमार रघुवंशी, एसआई जितेंद्र अजनारे, आरक्षक मोइन खान, दिनेश किरार, शशांक यादव, रवि कुशवाह एवं आरक्षक राजकिशोर गुर्जर, राजवीर बघेल, दुबे अर्जुन राजपूत, अजय राजपूत, सुदामा, कैलाश और पल्लवी सोलंकी को शामिल किया गया.

इधर लौकडाउन के चलते पुलिस का एक काम आसान हो गया था. टीआई लोहिया जानते थे कि लौकडाउन के दिनों में ट्रेन, बस बंद हैं इसलिए लुटेरी नौकरानी अनुष्का ने पचोर से भागने के लिए किसी प्राइवेट वाहन का उपयोग किया होगा.

क्योंकि इतनी बड़ी चोरी एक अकेली लड़की नहीं कर सकती, इसलिए उस के कुछ साथी भी जरूर रहे होंगे. अनुष्का कुछ समय पहले ही दिल्ली से आई थी. टीआई लोहिया ने अनुष्का का मोबाइल नंबर हासिल कर उसे सर्विलांस पर लगा दिया. इस के अलावा उस के फोन की काल डिटेल्स भी निकलवाई.

काल डिटेल्स से पता चला कि अनुष्का एक फोन नंबर पर लगातार बातें करती थी और ताज्जुब की बात यह थी कि वारदात वाले दिन उस फोन नंबर की लोकेशन पचोर टावर क्षेत्र में थी. जाहिर था कि वह मोबाइल वाला व्यक्ति अनुष्का का कोई साथी रहा होगा, जो उस के बुलाने पर ही घटना को अंजाम देने राजगढ़ आया होगा.

एसपी प्रदीप शर्मा के निर्देश पर टीआई लोहिया की टीम पचोर क्षेत्र में हर चौराहे, हर पौइंट, हर क्रौसिंग पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगालने में जुट गई. इसी कवायद में एक संदिग्ध कार पुलिस की नजर में आई, जिस का रजिस्ट्रेशन नंबर यूपी-14एफ-टी2355 था.

टीआई लोहिया समझ गए कि चोर शायद इसी गाड़ी में सवार हो कर पचोर आए और घटना को अंजाम दे कर फरार हो गए. इसलिए पुलिस की एक टीम ने पचोर से व्यावह हो कर गुना और ग्वालियर तक के रास्ते में पड़ने वाले टोल नाकों के कैमरे चैक कर उस गाड़ी के आनेजाने का रूट पता कर लिया.

जांच में पता चला कि उक्त नंबर की कार दिल्ली के उत्तम नगर के रहने वाले मनोज कालरा के नाम से रजिस्टर्ड थी, इसलिए तुरंत एक टीम दिल्ली भेजी गई. टीम ने मनोज कालरा को तलाश कर उस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह किराए पर गाडि़यां देने का काम करता है. उक्त नंबर की कार उस ने एक नौकर पवन उर्फ पद्म नेपाली के माध्यम से 12 जुलाई को इंदौर के लिए बुक की थी.

जबकि इस कार के ड्राइवर से पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि 13 जुलाई, 2020 को 3 युवक उसे शादी में जाने की बात बोल कर पचोर ले गए थे. दिल्ली पहुंची पुलिस टीम सारी जानकारी एसपी प्रदीप शर्मा से शेयर कर रही थी. इस से एसपी प्रदीप शर्मा समझ गए कि उन की टीम सही दिशा में आगे बढ़ रही है.

लेकिन वे जल्द से जल्द चोरों को पकड़ना चाहते थे, क्योंकि उन्हें आशंका थी कि देर होने पर आरोपी माल सहित नेपाल भाग सकते हैं. ड्राइवर ने यह भी बताया कि वापसी में सभी लोगों को उस ने दिल्ली में बदरपुर बौर्डर पर बस स्टैंड के पास छोड़ा था.

अब पुलिस को जरूरत थी उन तीनों नेपाली लड़कों की पहचान कराने की, जो दिल्ली से गाड़ी ले कर पचोर आए थे.

इस के लिए पुलिस ने दिल्ली में रहने वाले सैकड़ों नेपाली परिवारों से संपर्क किया. शक के आधार पर 16 लोगों को हिरासत में ले कर पूछताछ की. जिस में एक नया नाम सामने आया बिलाल अहमद का, जो लोगों को घरेलू नौकर उपलब्ध कराने के लिए एशियन मेड सर्विस की एजेंसी चलाता था.

बिलाल ने पुलिस को बताया कि अनुष्का उस के पास आई थी, उस की सिफारिश सरिता पति नवराज शर्मा ने की थी. जिसे उस ने दिल्ली में एक बच्ची की देखभाल के लिए नौकरी पर लगवा दिया था.

जांच के दौरान पुलिस टीम को पवन थापा के बारे में जानकारी मिली. पता चला कि पवन ही वह आदमी है जो उन तीनों लोगों को दिल्ली से पचोर ले कर आया था. पवन भी पुलिस के हत्थे चढ़ गया. उस ने पूछताछ में बताया कि उत्तम नगर के सम्राट उर्फ वीरामान ने टैक्सी बुक की थी, जिस के लिए उसे15 हजार रुपए एडवांस भी दिए थे.

इस से पुलिस को पूरा शक हो गया कि इस मामले में सम्राट की खास भूमिका हो सकती है. दूसरी बात यह पुलिस समझ चुकी थी कि इस बड़ी चोरी के सभी आरोपी उत्तम नगर के आसपास के हो सकते हैं. इसलिए न केवल पुलिस सतर्क हो गई, बल्कि अन्य आरोपियों की रैकी भी करने लगी.

आरोपी लगातार अपना ठिकाना बदल रहे थे, इसलिए तकनीकी टीम के प्रभारी एसआई रामकुमार रघुवंशी और आरक्षक मोइन खान ने चाय व समोसे वाला बन कर उन की रैकी करनी शुरू कर दी, जिस से जल्द ही जानकारी हासिल कर सम्राट उर्फ वीरामान धामी को गिरफ्तार कर लिया गया.

पूछताछ में वीरामान पहले तो कुछ भी बताने की राजी नहीं था. लेकिन जब उस ने मुंह खोला तो चौंकाने वाला सच सामने आया.

वास्तव में वीरामान खुद वारदात करने के लिए पचोर जाने वाली टीम में शामिल था. अन्य 2 पुरुषों और महिला के बारे में पूछताछ की तो सम्राट ने बताया कि अनुष्का अपने प्रेमी तेज के साथ नई दिल्ली के बदरपुर इलाके में रहती है.

पुलिस ने बदरपुर इलाके में छापेमारी कर के दोनों को वहां से गिरफ्तार कर उन के पास से चोरी का माल बरामद कर लिया. यहां तेज रोक्यो और अनुष्का उर्फ आशु उर्फ कुशलता भूखेल के साथ उन का तीसरा साथी भरतलाल थापा भी पुलिस गिरफ्त में आ गए.

मौके पर की गई पूछताछ के बाद दिल्ली गई पुलिस टीम ने दिल्ली पुलिस की मदद से मामले के मुख्य आरोपी वीरामान उर्फ सम्राट मूल निवासी धनगढ़ी, नेपाल, अनुष्का उर्फ आशु उर्फ कुशलता भूखेल निवासी जनकपुर, तेज रोक्यो मूल निवासी जिला अछम, नेपाल, भरतलाल थापा को गिरफ्तार करने में सफलता हासिल की थी.

इस के अलावा आरोपियों को पचोर तक कार बुक करने वाला पवन थापा निवासी उत्तम नगर नई दिल्ली, बेहोशी की दवा उपलब्ध कराने वाला कमल सिंह ठाकुर निवासी जिला बजरा नेपाल, चोरी के जेवरात खरीदने वाला मोहम्मद हुसैन निवासी जैन कालोनी उत्तम नगर, जेवरात को गलाने में सहायता करने वाला विक्रांत निवासी उत्तम नगर भी पुलिस के हत्थे चढ़ गए.

अनुष्का को कंपनी में काम पर लगवाने वाली सरिता शर्मा निवासी किशनपुरा, नोएडा तथा अनुष्का को नौकरानी के काम पर लगाने वाला बिलाल अहमद उर्फ सोनू निवासी जामिया नगर, नई दिल्ली को गिरफ्तार कर के बरामद माल सहित पचोर लौट आई. जहां एसपी श्री शर्मा ने पत्रकार वार्ता में महज 7 दिनों के अंदर जिले में हुई चोरी की सब से बड़ी घटना का राज उजागर कर दिया.

अनुष्का ने बताया कि राम गोयल का पूरा परिवार उस पर विश्वास करता था. इसलिए परिवार के अन्य लोगों की तरह अनुष्का भी घर में हर जगह आतीजाती थी. एक दिन उस के सामने घर की तिजोरी खोली गई तो उस में रखी ज्वैलरी और नकदी देख कर उस की आंखें चौंधिया गईं और उस के मन में लालच आ गया. यह बात जब उस ने दिल्ली में बैठे अपने प्रेमी तेज रोक्यो को बताई तो उसी ने उसे तिजोरी पर हाथ साफ करने की सलाह दी.

योजना को अंजाम देने के लिए उस का प्रेमी तेज रोक्यो ही दिल्ली से बेहोशी की दवा ले कर पचोर आया था. वह दवा उस ने रात में खिचड़ी में मिला कर पूरे परिवार को खिला दी. जिस से खिचड़ी खाते ही पूरा परिवार गहरी नींद में सो गया. तब अनुष्का अलमारी में भरा सारा माल ले कर पे्रमी के संग चंपत हो गई. पुलिस ने आरोपियों की निशानदेही पर एक करोड़ 53 लाख रुपए का चोरी का सामान और नकदी बरामद कर ली.

पुलिस ने सभी अभियुक्तों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. मामले की जांच टीआई डी.पी. लोहिया कर रहे थे.

बहन के प्रेमी के साथ मिल कर रची अपने ही अपहरण की साजिश

बात 12 दिसंबर, 2018 की है. भोपाल के ऐशबाग के टीआई अजय नायर रात 8 बजे के करीब अपने औफिस में थे तभी ऐशबाग के रहने वाले शील कुमार अपनी 24 वर्षीय बेटी रुचिका चौबे के साथ थाने पहुंचे.

उन्होंने बताया कि उन का 19 वर्षीय बेटा आयुष शाम को किसी से मिलने एक कोचिंग की तरफ घर से निकला था. लेकिन इस के कुछ देर बाद ही बेटे के मोबाइल फोन से किसी ने काल कर के कहा कि आयुष उस के कब्जे में है. बेटे को छोड़ने के बदले उस ने एक करोड़ रुपए की फिरौती मांगी. शील कुमार ने बेटे के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर उसे बरामद करने की मांग की.

मामला अपहरण का था, इसलिए टीआई ने उसी समय सूचना एसपी राहुल लोढ़ा व एडीशनल एसपी संजय साहू तथा जहांगीरबाद सीएसपी सलीम खान को भी दे दी. सूचना मिलते ही दोनों पुलिस अधिकारी ऐशबाग थाने पहुंच गए.

शील कुमार अपनी बेटी के साथ थाने में ही मौजूद थे. एसपी राहुल लोढा ने बाप बेटी दोनों से गहन पूछताछ की. पर उन की कहानी एसपी साहब के गले नहीं उतरी. इस का कारण यह था कि शील कुमार एक निजी बस कंपनी में ड्राइवर की नौकरी करते थे. उन का वेतन इतना कम था कि घर भी ठीक से नहीं चल सकता था. जबकि उन की बेटी रुचिका एक बीमा कंपनी में 14 हजार रुपए महीने की सैलरी पर नौकरी कर रही थी.

जाहिर है, कोई बदमाश एक करोड़ रुपए की फिरौती के लिए ऐसे साधारण परिवार के बेटे का अपहरण नहीं करेगा. बाप बेटी ने यह भी बताया कि आयुष के घर से निकलने के कुछ ही घंटे बाद बदमाश ने फिरौती की रकम के लिए फोन किया था. जबकि बदमाश किसी का अपहरण कर के 2-4 दिन बाद फिरौती की मांग तब करते हैं जब पीडि़त परिवार टूट चुका होता है.

फिरौती के लिए शील कुमार के घर जो फोन काल आई थी वह भी आयुष के फोन से की गई थी. बाद में फोन स्विच्ड औफ कर दिया गया था. बहरहाल, पुलिस ने शील कुमार और उन की बेटी से जरूरी जानकारी लेने के बाद आयुष के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर ली और उन्हें यह आश्वासन दे कर घर भेज दिया कि पुलिस जल्द ही आयुष को तलाश लेगी.

इस के बाद एसपी के निर्देशन में थानापुलिस आयुष को तलाशने लगी. पुलिस ने आयुष के फोन नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया था. इस के अलावा पुलिस ने जांच कर यह भी पता लगा लिया कि जिस समय आयुष के फोन से फिरौती की काल की गई, उस समय उस की लोकेशन बीना शहर में थी.

इस के बाद फोन बंद कर दिया गया था. कोई और रास्ता मिलते न देख पुलिस अपहर्त्ताओं के फोन आने का इंतजार करने लगी. पुलिस ने शील कुमार को समझा दिया था कि उन्हें फोन पर अपहर्त्ताओं से कैसे बात करनी है.

एक तरफ पुलिस आयुष का पता लगाने में जुटी हुई थी, वहीं दूसरी ओर उस पर आयुष को सुरक्षित बरामद करने का दबाव बढ़ता जा रहा था. आयुष की बहन रुचिका और उसी क्षेत्र में रहने वाला उन के परिवार का पुराना परिचित गौरव जैन थानाप्रभारी से मिलने रोज थाने आते और आयुष के बारे में जल्द पता लगाने की मांग करते थे.

अपहर्त्ता ने बताई जगह

पुलिस ने अपने मुखबिरों का जाल फैला रखा था. आयुष के साथ पढ़ाई कर रहे उस के दोस्तों से भी आयुष के बारे में पूछताछ की कि उस की किसी से कोई दुश्मनी तो नहीं थी या किसी लड़की के साथ प्यार का चक्कर तो नहीं था. दोस्तों ने दोनों ही बातों से इनकार किया. पुलिस को कोई ऐसा ठोस सुराग हाथ नहीं मिला, जिस से जांच की काररवाई आगे बढ़ पाती.

उधर समय बीतने के साथ अपहर्त्ता बारबार फोन कर के आयुष के परिवार पर जल्द से जल्द फिरौती की रकम पहुंचाने का दबाव बना रहे थे. लेकिन समस्या यह थी कि वह हर बार नई जगह से फोन करते थे. 24 दिसंबर को एक बदमाश ने आयुष के पिता को फोन कर के धमकी दी और कहा कि वह कल यानी 25 दिसंबर को दोपहर में सीहोर के क्रिसेन वाटर पार्क पर पैसा ले कर पहुंच जाए. पैसे मिलने के बाद आयुष को रिहा कर दिया जाएगा.

शील कुमार ने यह बात एडीशनल एसपी संजय साहु और टीआई अजय नायर को बता दी. एसपी ने इस बात से अनुमान लगा लिया कि बदमाश बहुत चालाक हैं. क्योंकि 25 दिसंबर को प्रदेश में नई सरकार का शपथ ग्रहण समारोह था और आला अधिकारियों को उस समारोह में व्यस्त रहना था.

लेकिन एडीशनल एसपी संजय साहू यह मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहते थे, इसलिए उन्होंने टीआई के अलावा अन्य पुलिस टीमों को सादा कपड़ों में सुबह से ही सिहोर के क्रिसेन वाटर पार्क में तैनात कर दिया ताकि अपहर्त्ता किसी भी हाल में बच न पाएं.

पुलिस को यह पता लग गया था कि 24 दिसंबर को अपहर्त्ता के फोन की लोकेशन विदिशा जिले के गंज वासोदा में थी. बहरहाल पुलिस ने सुबह से ही क्रिसेन वाटर पार्क में घेराबंदी कर दी और शपथ ग्रहण कार्यक्रम से फुरसत होते ही एडीशनल एसपी भी सादा कपड़ों में वहां जा पहुंचे. पुलिस वहां दिनभर नजरें गड़ाए रही लेकिन शील कुमार से रुपयों से भरा बैग लेने कोई नहीं पहुंचा, इसलिए पुलिस टीम निराश हो कर शाम को वापस लौट आई. लेकिन इस बीच टीआई अजय नायर को आशा की एक किरण नजर आने लगी थी.

हुआ यूं कि घर वापस आने के कुछ देर बाद ही शील कुमार के पास अपहर्त्ता की तरफ से फोन आया जिस में उस ने पुलिस को साथ लाने के लिए उन्हें भद्दीभद्दी गालियां दीं. साथ ही धमकी भी दी कि आगे से पुलिस को साथ ले कर आए तो आयुष की लाश तुम्हारे घर भेज दी जाएगी. यह सुन कर शील कुमार घबरा गए. उन्होंने बदमाश की इस नई धमकी के बारे में टीआई अजय नायर को भी बता दिया.

पुलिस को मिली जांच की सही दिशा

अब तक पुलिस बाहरी लोगों पर ही शक कर रही थी. अब वह समझ गई कि आयुष के परिवार के साथ ऐसा व्यक्ति मिला हुआ है जो उन की सारी गतिविधियों की जानकारी बदमाशों तक पहुंचा रहा है. इसीलिए टीआई अजय नायर ने शील कुमार से पूछा कि ‘‘आप के अलावा आप के परिवार में या फिर जानपहचान वालों में से ऐसा कौन व्यक्ति है जिसे पुलिस की एकएक गतिविधि की जानकारी मिल रही है.’’

‘‘सर, मैं अपनी बेटी रुचिका के अलावा और किसी को कुछ नहीं बताता.’’ शील कुमार बोले. टीआई ने सोचा कि सगी बहन भाई का अपहरण करने वाले का साथ क्यों देगी.

एएसपी संजय साहू के निर्देश पर टीआई नायर ने रुचिका चौबे की काल डिटेल्स निकलवाई. साथ ही रुचिका के बारे में और भी जांच कराई. पता चला कि मध्यमवर्गीय परिवार से संबंध रखने वाली रुचिका की न केवल जीवनशैली हाईप्रोफाइल थी, बल्कि उस के सपने भी ऊंचे थे.

पुलिस को यह खबर भी लग गई थी रुचिका का एक बौयफ्रैंड गौरव जैन भी उस आयुष के बारे में काफी रुचि ले रहा था. गौरव जैन रुचिका का पड़ोसी था और दवा कारोबारी था. ऐसे में पुलिस के समाने शक करने के लिए 2 नाम थे. पहला रुचिका जो खुद आयुष की सगी बड़ी बहन थी और दूसरा गौरव जैन जो शहर का बड़ा थोक दवा कारोबारी था.

पुलिस ने रुचिका और गौरव जैन के फोन नंबरों की काल डिटेल्स का अध्ययन किया तो एएसपी साहू के चेहरे पर मुसकान दौड़ गई. उन्होंने देखा कि जितनी बार भी अपहर्त्ता ने शील कुमार के नंबर पर फिरौती के लिए फोन किया था, उस के कुछ देर पहले और कुछ देर बाद रुचिका ने गौरव से फोन पर बात की थी.

घर से ही खेला जा रहा था खेल

इतना ही नहीं रुचिका से बात होने के ठीक बाद गौरव ने हर बार एक दूसरे फोन नंबर पर बात की थी. यह संयोगवश नहीं हो सकता था. क्योंकि संयोग एक बार होता है, बारबार नहीं. पुलिस ने यह जानकारी भी जुटा ली कि रुचिका से बात करने के बाद गौरव जिस फोन नंबर पर बात करता था, वह उस की दुकान पर काम करने वाले नौकर अतुल का है. पुलिस टीम ने अतुल के बारे में पता कराया तो मालूम हुआ कि वह उसी दिन से छुट््टी ले कर गायब है, जिस दिन आयुष लापता हुआ था.

इस जानकारी के बाद एएसपी संजय साहू के सामने पूरी कहानी साफ हो गई. इसलिए उन्होंने पुलिस टीम को गौरव को हिरासत में लेने के निर्देश दे दिए. पता चला कि गौरव भी भोपाल में नहीं है. उस के मोबाइल की लोकेशन आगरा की आ रही थी. इसलिए ऐशबाग थाने की टीम आगरा रवाना हो गई.

लेकिन इस से पहले कि टीम आगरा पहुंचती, गौरव के मोबाइल की लोकेशन आगरा से चल कर भोपाल की तरफ बढ़ने लगी. लोकेशन बदलने के समयानुसार पुलिस ने हिसाब लगाया कि गौरव तमिलनाडु एक्सप्रेस में सवार हो कर भोपाल आ रहा है. इसलिए ट्रेन के भोपाल पहुंचने से पहले ही पुलिस की टीम ने वहां पहुंच कर टे्रन से उतरे गौरव को हिरासत में ले लिया.

जाहिर है इस बात की उम्मीद गौरव के अलावा किसी और को भी नहीं थी. जैसे ही गौरव को पूछताछ के लिए पुलिस हिरासत में थाने लाया गया. उस के पकड़े जाने की बात सुन कर रुचिका भी थाने पहुंच गई. यह देख कर एएसपी श्री साहू समझ गए कि पुलिस ने सही जगह निशाना साधा है.

गौरव आदतन अपराधी तो था नहीं, जो पुलिस को चकमा देने की कोशिश करता, इसलिए जरा सी पूछताछ में ही वह टूट गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि अपनी प्रेमिका रुचिका की आर्थिक मदद करने के लिए उस ने आयुष के अपहरण का नाटक रचा था, जिस में रुचिका के साथ खुद आयुष भी शामिल था. गौरव ने यह भी बताया कि इस काम में उस ने अपने नौकर अतुल को भी शामिल कर रखा था.

गौरव ने पुलिस को यह भी बता दिया कि कल तक आयुष और अतुल भी उस के साथ आगरा में थे. वहां से तीनों साथ ही लौटे थे. आयुष अलग डिब्बे में सवार था. आयुष भोपाल स्टेशन पर उतर कर दूसरी ट्रेन में सवार हो कर इंदौर चला गया. जबकि अतुल उस के साथ ही था. चूंकि पुलिस अतुल को नहीं पहचानती थी इसलिए जैसे ही स्टेशन पर पुलिस ने गौरव को दबोचा उस से चंद कदम पीछे चल रहा अतुल वहां से गायब हो गया.

अब आगे की काररवाई से पहले आयुष को गिरफ्तार करना जरूरी था. पुलिस ने गौरव से यह जानकारी ले ली कि आयुष इंदौर में कहां ठहरेगा. इस के बाद भोपाल पुलिस ने यह जानकारी इंदौर पुलिस को दे दी. इंदौर पुलिस ने आयुष को गिरफ्तार कर लिया और उसे लाने के लिए भोपाल पुलिस की एक टीम इंदौर के लिए रवाना हो गई.

भोपाल पुलिस टीम आयुष को इंदौर से ले कर आ गई. पूरे मामले में रुचिका का नाम पहले ही सामने आ चुका था. इसलिए पुलिस ने रुचिका को भी गिरफ्तार कर लिया. इन तीनों की गिरफ्तारी के बाद आयुष के अपहरण की सनसनीखेज कहानी सामने आई.

दवाइयों का थोक कारोबारी गौरव जैन भी ऐशबाग थाना इलाके की उसी गली में रहता था जिस में रुचिका अपने मातापिता और छोटे भाई आयुष के साथ रहती थी. सीमित आय वाले परिवार के पास जो कुछ उल्लेखनीय था वह केवल रुचिका की सुंदरता और गरीबी में भी अच्छे तरीके से रहने का उस का अंदाज था.

रुचिका के सपने भी बड़े थे. वह अपने भाई को बड़ा आदमी बनाना चाहती थी. इसलिए स्वयं की पढ़ाई पूरी करने के बाद उस ने एक निजी बीमा कंपनी में नौकरी कर ली थी. वैसे रुचिका के पिता मूलरूप से जबलपुर के रहने वाले थे.

संयोग से पड़ोस में रहने वाले गौरव जैन का अपनी दुकान पर जाने और रुचिका का औफिस के लिए निकलने का समय एक ही था, सो गली में दोनों का अकसर रोज ही आमनासामना हो जाता था. जिस के चलते पहले आंखों से आंखें टकराईं फिर एकदूसरे को देख कर चेहरे पर मुसकराहटें आनी शुरू हो गईं.

गौरव और रुचिका की प्रेम कहानी

गौरव का दिल रुचिका पर आ गया था. दूसरी ओर रुचिका के मन को भी गौरव भा गया था. आखिर रुचिका ने जल्द ही उस के बढ़े कदमों को दिल तक आने का रास्ता दे दिया. दोनों में प्यार हुआ तो पहले घर से बाहर मुलाकातों का सिलसिला चला, फिर गौरव ने रुचिका के परिवार वालों से भी मिलना शुरू कर दिया.

बाद में गौरव रुचिका के घर भी आनेजाने लगा. रुचिका के परिवार की आर्थिक स्थिति गौरव से छिपी नहीं थी. जबकि गौरव की जेब में कभी पैसों की कमी नहीं रहती थी. वह समयसमय पर रुचिका के कहने पर उस के परिवार की आर्थिक मदद करने लगा.

जाहिर सी बात है ऐसे मददगार के लिए आदमी खुद अपनी आंखें बंद कर लेता है, यह समझते हुए भी कि जवान खूबसूरत बेटी का दोस्त बिना किसी मतलब के यूं मेहरबान नहीं होता. रुचिका के मातापिता सब कुछ जान कर अंजान बने रहे. जिस से रुचिका और गौरव का प्यार दिनबदिन गहराता गया.

इतना ही नहीं गौरव रुचिका को अपने साथ ले कर घूमने जाता तो लौटने पर उस की मां भी बेटी से कोई सवाल नहीं करती. क्योंकि गौरव ने उस समय इस परिवार की मदद की थी जब पैसों के अभाव में रुचिका के छोटे भाई आयुष का दाखिला अटकता दिखाई दे रहा था.

आयुष अब बड़ा हो चुका था. वह अच्छी तरह से जानता था कि गौरव केवल उस की बहन से दोस्ती रखने के लिए ही परिवार की मदद करता है. यह जानने के बाद भी वह गौरव को पसंद करता था. इतना ही नहीं कई बार तो वह गौरव और बहन के साथ घूमने भी चला जाता था. जब उसे लगता कि उसे दोनों के साथ नहीं होना चाहिए तो वह किसी बहाने से दाएं बाएं हो जाता था. इसलिए धीरेधीरे रुचिका और गौरव का प्यार इस हद तक पहुंच गया कि उन्होंने शादी करने का फैसला कर लिया.

रुचिका के परिवार को तो इस शादी से कोई ऐतराज नहीं था. गौरव की जिद के चलते उस के परिवार वाले भी उन दोनों के विवाह के लिए मन बना चुके थे. गौरव रुचिका की लगातार आर्थिक मदद कर रहा था. लेकिन रुचिका की जरूरतें गौरव की मदद से कहीं बड़ी थीं. जरूरतें पूरी करने के लिए रुचिका ने विभिन्न बैंकों से बड़ा कर्ज ले लिया था. वह सोचती थी कि कुछ समय बाद जब गौरव से उस की शादी हो जाएगी तो गौरव उस का कर्ज चुका देगा.

 पिता ने शराब के नशे में बिगाड़ा खेल

लेकिन इसी बीच हालात ने पलटा खाया. हुआ यह कि करीब 2 साल पहले गौरव के घर में आयोजित एक पारिवारिक कार्यक्रम में रुचिका के परिवार को भी आमंत्रित किया गया. रुचिका अपनी मां और भाई के साथ उस कार्यक्रम में शामिल हुई. उस के पिता उस समय कंपनी की बस ले कर खंडवा गए थे.

संयोग से जब रुचिका का परिवार कार्यक्रम में गया हुआ था. तभी उस का पिता शील कुमार शराब पी कर घर लौट आया. घर पर ताला बंद देख कर उसे गुस्से आ गया. जब उसे पता चला कि रुचिका के साथ पूरा परिवार गौरव के यहां गया हुआ है, तो वह नशे की हालत में वहां पहुंच कर गालीगलोच करने लगा. उस ने गौरव के रिश्तेदारों के सामने रुचिका और गौरव के संबंधों को भी उजागर कर दिया.

इस घटना के बाद गौरव के घर वाले इस रिश्ते के खिलाफ हो गए, जिस के चलते गौरव को मजबूरी में रुचिका के बजाए परिवार की पसंद की लड़की से शादी करना पड़ी. इस घटना के बाद गौरव का रुचिका के घर भले ही आनाजाना कम हो गया लेकिन दोनों के प्रेमसंबंध पहले की तरह बने रहे. इस में रुचिका का भाई आयुष भी दोनों की मदद करता था.

इस के बदले गौरव भी दोनों की कुछ न कुछ मदद करता रहता था. लेकिन गौरव से शादी हो जाने के भरोसे रुचिका ने बैंकों से जो लोन लिया था, वह उस के गले की फांस बन गया. क्योंकि रुचिका की आय इतनी नहीं थी कि वह उस लोन की किश्त भी समय पर चुका पाती.

गौरव उस की मदद तो करना चाहता था पर इतनी बड़ी रकम का इंतजाम कर पाना उस के लिए भी संभव नहीं था. इसलिए आयुष, रुचिका और गौरव तीनों मिल कर इस समस्या से निपटने का रास्ता खोजने लगे. इस के लिए रुचिका और आयुष ने अपने पिता पर भी दबाव बनाया कि वह जबलपुर स्थित अपने हिस्से की पुश्तैनी जमीन बेच दे.

दोनों का मानना था कि उस से लगभग एक करोड़ रुपए हाथ आ जाएंगे. लेकिन शील कुमार इस के लिए तैयार नहीं था. गौरव की पत्नी के पेट में इन दिनों 7 महीने का गर्भ था. इसलिए गौरव ज्यादा से ज्यादा वक्त रुचिका के साथ बिताना चाहता था. उस की योजना आयुष की मदद से नए साल पर रुचिका को ले कर भोपाल से बाहर जाने की थी.

उस का विचार था कि आयुष अपनी बहन को साथ ले कर निकलेगा और पीछे से वह उन के साथ हो जाएगा. इस की योजना बनाने के लिए कुछ दिन पहले तीनों एक होटल में मिले. आयुष ने गौरव से कहा कि तुम दीदी को ले कर कहीं चले जाओ. इधर हम उस के अपहरण की बात फैला कर पिताजी से एक करोड़ रुपए की फिरौती मांग लेंगे. इस तरह आप को दीदी के साथ नया साल मनाने का मौका मिल जाएगा और हमें पैसा.

‘‘आइडिया अच्छा है, लेकिन तुम्हारी दीदी और मैं एक साथ गायब हुए तो पल भर में सब को बात समझ में आ जाएगी. हां, एक काम हो सकता है कि तुम गायब हो जाओ. तुम्हारे अपहरण के नाम पर 2-4 दिन में ही तुम्हारे पिता से मैं ओर रुचिका पैसा ले लेंगे. फिर नए साल पर हम तीनों घूमने चलेंगे.’’ गौरव ने कहा.

मिलजुल कर बनाई योजना

गौरव का सुझाया यह आइडिया तीनों को अच्छा लगा. योजना बनी कि आयुष गायब हो जाएगा और इधर बेटे को बचाने के लिए रुचिका के पिता शील कुमार आसानी से जबलपुर की जमीन बेच कर फिरौती में एक करोड़ रुपए दे देंगे. जिस से रुचिका का कर्ज भी चुक जाएगा और बाकी की जिंदगी भी आराम से गुजर जाएगी.

इस काम में फिरौती के लिए फोन करने और फिरौती की रकम लेने जाने के लिए गौरव ने अपनी दुकान के एक नौकर अतुल को पैसों का लालच दे कर शामिल कर लिया. इस के बाद पूरी योजना को फाइनल कर 12 दिसंबर को कोचिंग के नाम पर आयुष घर से निकल कर गौरव से मिला. गौरव ने उसे अतुल के साथ मिसरोद के एक होटल में ठहरा दिया. कुछ ही देर बाद अतुल ने आयुष के घर फिरौती के लिए फोन कर दिया.

एक करोड़ रुपए की फिरौती के लिए फोन आने के बाद पुलिस सक्रिय हो गई तो आयुष को मिसरोद से निकाल कर पहले कुछ दिन छतरपुर में रखा गया और फिर उसे अतुल के साथ आगरा भेज दिया गया. लेकिन इस बीच एसपी अतुल लोढ़ा के निर्देशन और एएसपी संजय साहू के नेतृत्व में आयुष की तलाश में जुटी पुलिस टीम ने एकएक कदम आगे बढ़ाते हुए केस का खुलासा कर दिया.

पुलिस ने रुचिका उस के भाई आयुष और प्रेमी गौरव जैन से विस्तार से पूछताछ के बाद उन्हें कोर्ट में पेश किया जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. जबकि कथा लेखन तक अतुल की तलाश जारी थी.

प्यार करने की खौफनाक सजा

सुबह करीब साढ़े 5 बजे आगरा के पुलिस नियंत्रण कक्ष को सूचना मिली कि आगरा-ग्वालियर की अपलाइन रेल पर शाहगंज और  सदर बाजार के बीच में एक युवक ने ट्रेन के सामने कूद कर आत्महत्या कर ली है. सूचना शाहगंज और सदर बाजार के बीच होने की मिली थी. यह बात मौके पर जा कर ही पता चल सकती थी कि घटना किस थाने में आती है, इसलिए नियंत्रणकक्ष द्वारा इत्तला शाहगंज व सदर बाजार दोनों थानों को दे दी गई.

खबर मिलने के बाद दोनों थानों की पुलिस के साथसाथ थाना राजकीय रेलवे पुलिस आगरा छावनी की पुलिस टीम भी वहां पहुंच गई. पुलिस को रेलवे लाइनों के बीच एक युवक की लाश 2 टुकड़ों में पड़ी मिली. यह 25 जुलाई, 2014 की बात है.

सब से पहले पुलिस ने यह देखा कि जिस जगह पर लाश पड़ी है, वह क्षेत्र किस थाने में आता है. जांच के बाद यह पता चला कि वह क्षेत्र थाना सदर की सीमा में आता है.

रेलवे लाइनों में लाश पड़ी होने की सूचना पा कर आसपास के गांवों के तमाम लोग वहां पहुंच गए. लोगों ने उस की शिनाख्त करते हुए कहा कि मरने वाला युवक शिवनगर के रहने वाले नत्थूलाल का बेटा मनीष है. लोगों ने जल्द ही मनीष के घर वालों को खबर कर दी तो वे भी रोते बिलखते वहां पहुंच गए. जवान बेटे की मौत पर वे फूटफूट कर रो रहे थे.

सदर बाजार के थानाप्रभारी सुनील कुमार सिंह ने एएसपी डा. रामसुरेश यादव, एसपी सिटी समीर सौरभ व एसएसपी शलभ माथुर को भी घटना की जानकारी दे दी तो वे भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

जिस तरीके से वहां लाश पड़ी थी, देख कर पुलिस अधिकारियों को मामला आत्महत्या का नहीं लगा बल्कि ऐसा लग रहा था जैसे उस की हत्या कहीं और कर के लाश ट्रैक पर डाल दी हो ताकि उस की मौत को लोग हादसा या आत्महत्या समझें.

कपड़ों की तलाशी ली तो पैंट और कमीज की जेबें खाली निकलीं. मनीष के घर वालों ने बताया कि उस के पास 2 मोबाइल फोनों के अलावा पर्स में पैसे व वोटर आईडी कार्ड व जेब में छोटी डायरी रहती थी जिस में वह लेबर का हिसाब किताब रखता था. इस से इस बात की पुष्टि हो रही थी कि किसी ने हत्या करने के बाद उस की ये सारी चीजें निकाल ली होंगी ताकि इस की शिनाख्त नहीं हो पाए.

पुलिस ने नत्थूलाल से प्रारंभिक पूछताछ  कर मनीष की लाश का पंचनामा तैयार कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी और नत्थूलाल की तहरीर पर अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर के जांच थानाप्रभारी सुनील कुमार ने संभाल ली. एसएसपी शलभ माथुर ने जांच में क्राइम ब्रांच को भी लगा दिया.

थानाप्रभारी ने सब से पहले मनीष के घर वालों से बात कर के यह जानने की कोशिश की कि उस का किसी से कोई झगड़ा या दुश्मनी तो नहीं थी. इस पर नत्थूलाल ने बताया कि मनीष पुताई के काम का ठेकेदार था. वह बहुत शरीफ था. मोहल्ले में वह सभी से हंसता बोलता था.

उन से बात करने के बाद पुलिस को यह लगा कि उस की हत्या के पीछे पुताई के काम से जुड़े किसी ठेकेदार का तो हाथ नहीं है या फिर प्रेमप्रसंग के मामले में किसी ने उस की हत्या कर दी. इसी तरह कई दृष्टिकोणों को ले कर पुलिस चल रही थी.

अगले दिन पुलिस को मनीष की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मिल गई. पुलिस को शक हो रहा था, पोस्टमार्टम रिपोर्ट से वह सही साबित हुआ. यानी मनीष ने सुसाइड नहीं किया था, बल्कि उस की हत्या की गई थी. रिपोर्ट में बताया गया कि उस की सभी पसलियां टूटी हुई थीं, उस के दोनों फेफड़े फट गए थे. गुप्तांगों पर भी भारी वस्तु से प्रहार किया गया था. इस के अलावा उस के शरीर पर घाव के अनेक निशान थे.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह बात साफ हो गई कि मनीष की हत्या कहीं और की गई थी और हत्यारे उस से गहरी खुंदक रखते थे तभी तो उन्होंने उसे इतनी बेरहमी से मारा.

मनीष के पास 2 महंगे मोबाइल फोन थे जो गायब थे. पुलिस ने उस के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. उस से पता चला कि उन की की अंतिम लोकेशन सोहल्ला बस्ती की थी.

इस बारे में उस के पिता नत्थू सिंह से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि सोहल्ला बस्ती में मनीष का कोई खास यारदोस्त तो नहीं रहता. उन्होंने यह जरूर बताया कि मनीष के 2 कारीगर मुन्ना और बंडा इस बस्ती में रहते हैं. वह उन के पास अकसर जाता रहता था.

मनीष की कालडिटेल्स पर नजर डाल रहे एएसपी डा. रामसुरेश यादव को एक ऐसा नंबर नजर आया था जिस से अकसर रात के 12 बजे से ले कर 2 बजे के बीच लगातार बातचीत की जाती थी. जिस नंबर से उस की बात होती थी, बाद में पता चला कि वह नंबर माधवी नाम की किसी लड़की की आईडी पर लिया गया था.

जांच में लड़की का नाम सामने आते ही पुलिस को केस सुलझता दिखाई दिया. क्योंकि मुन्ना और बंडा उस के भाई थे. एसएसपी को जब इस बात से अवगत कराया तो उन्होंने माधवी और उस के भाइयों से पूछताछ करने के निर्देश दिए. एक पुलिस टीम फौरन माधवी के घर दबिश देने निकल गई. लेकिन घर पहुंच कर देखा तो मुख्य दरवाजे पर ताला बंद था. यानी घर के सब लोग गायब थे.

माधवी के पिता भूपाल सिंह, भाई और अन्य लोग कहां गए, इस बारे में पुलिस ने पड़ोसियों से पूछा तो उन्होंने अनभिज्ञता जता दी. पूरे परिवार के गायब होने से पुलिस का शक और गहरा गया.

किसी तरह पुलिस को भूपाल सिंह का मोबाइल नंबर मिल गया. उसे सर्विलांस पर लगाया तो उस की लोकेशन आगरा के नजदीक धौलपुर गांव की मिली. पुलिस टीम वहां रवाना हो गई. फोन की लोकेशन के आधार पर पुलिस ने माधवी, उस के पिता भूपाल सिंह, 3 भाइयों कुंवरपाल सिंह, बंडा और मुन्ना को हिरासत में ले लिया.

थाने ला कर उन सब से मनीष की हत्या के बारे में पूछताछ की तो भूपाल सिंह ने स्वीकार कर लिया कि मनीष की हत्या उस ने ही कराई है. उस ने उस की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली.

मनीष के पिता और दादा दोनों ही रेलवे कर्मचारी थे. इसलिए उस का जन्म और परवरिश आगरा की रेलवे कालोनी में हुई थी. उस की 3 बहनें और एक छोटा भाई था. पिता नत्थूलाल रेलवे कर्मचारी थे ही, साथ ही मां विमलेश ने भी घर बैठे कमाई का अपना जरिया बना रखा था. वह आगरा कैंट रेलवे स्टेशन पर आनेजाने वाले ट्रेन चालकों व गार्डों के लिए खाने के टिफिन पैक कर के उन तक पहुंचाती थी. इस से उन्हें भी ठीक आमदनी हो जाती थी.

मनीष समय के साथ बड़ा होता चला गया. इंटरमीडिएट करने के बाद वह रेलवे के ठेकेदारों के साथ कामकाज सीखने लगा. फिर रेलवे के एक अफसर की मदद से उसे मकानों की पुताई के छोटेमोटे ठेके मिलने लगे. देखते ही देखते उस ने रेलवे की पूरी कालोनी में रंगाई पुताई का ठेका लेना शुरू कर दिया. वह ईमानदार था इसलिए उस के काम से रेलवे अधिकारी भी खुश रहते थे.

मोटी कमाई होने लगी तो मनीष के हावभाव, रहनसहन, खानपान सब बदल गया. महंगे कपड़े, ब्रांडेड जूते, नईनई बाइक पर घूमना मनीष का जैसे शौक था. 2-3 सालों में उस की आर्थिक स्थिति काफी मजबूत हो गई थी.

वह जिस तरह कमा रहा था, उसी तरह दान आदि भी करता. गांव में गरीब लड़कियों की शादी में वह अपनी हैसियत के अनुसार सहयोग करता था. मोहल्ले में भी वह अपने बड़ों को बहुत सम्मान करता था. इन सब बातों से वह गांव में सब का चहेता बना हुआ था.

करीब 4-5 साल पुरानी बात है. मनीष का कामकाज जोरों पर चल रहा था. उसे रंगाई पुताई के कारीगरों की जरूरत पड़ी तो वह पास की ही बस्ती सोहल्ला पहुंच गया. वहां पता चला कि बंडा और मुन्ना नाम के दोनों भाई यह काम करते हैं.

वह इन दोनों के पास पहुंचा और बातचीत कर के अपने काम पर ले गया. मनीष को दोनों भाइयों का काम पसंद आया तो उन से ही अपने ठेके का काम कराने लगा. वह उन्हें अच्छी मजदूरी देता था इसलिए वे भी मनीष से खुश थे.

धीरेधीरे मनीष का मुन्ना के घर पर भी आनाजाना शुरू हो गया. इसी दौरान मनीष की आंखें मुन्ना की 17-18 साल की बहन माधवी से लड़ गईं. माधवी उन दिनों कक्षा-9 में पढ़ती थी. यह ऐसी उम्र होती है जिस में युवत युवती विपरीतलिंगी को अपना दोस्त बनाने के लिए आतुर रहते हैं. माधवी और मनीष के बीच शुरू हुई बात दोस्ती तक और दोस्ती से प्यार तक पहुंच गई. फिर जल्दी ही उन के बीच शारीरिक संबंध भी कायम हो गए.

इस तरह करीब 4 सालों तक उन के बीच प्यार और रोमांस का खेल चलता रहा. माधवी भी अब इंटरमीडिएट में आ चुकी थी. प्यार के चक्कर में पड़ कर वह अपनी पढ़ाई पर भी ज्यादा ध्यान नहीं दे रही थी, जिस से वह इंटरमीडिएट में एक बार फेल भी हो गई. उस के घर वालों को यह बात पता तक नहीं चली कि उस का मनीष के साथ चक्कर चल रहा है.

माधवी सुबह साइकिल से स्कूल के लिए निकलती लेकिन स्कूल जाने की बजाय वह एक नियत जगह पहुंच जाती. मनीष भी अपनी बाइक से वहां पहुंच जाता. मनीष किसी के यहां उस की साइकिल खड़ी करा देता था. इस के बाद वह मनीष की बाइक पर बैठ कर फुर्र हो जाती.

स्कूल का समय होने से पहले वह वापस साइकिल उठा कर अपने घर चली जाती. उधर मनीष भी अपने कार्यस्थल पर पहुंच जाता. वहां माधवी के भाइयों को पता भी नहीं चल पाता कि उन का ठेकेदार उन की ही बहन के साथ मौजमस्ती कर के आ रहा है.

माधवी के पिता भूपाल सिंह गांव से दूध खरीद कर शहर में बेचते थे. वह बहुत गुस्सैल थे. आए दिन मोहल्ले में छोटीछोटी बातों पर लोगों से झगड़ना आम बात थी. झगड़े में उन के तीनों बेटे भी शरीक  हो जाते थे, जिस से मोहल्ले में एक तरह से भूपाल सिंह की धाक जम गई थी.

लेकिन इतना सब होने के बाद भी मनीष के साथ इस परिवार के संबंध मधुर थे. मुन्ना और बंडा भी मनीष के घर जाने लगे.

मनीष और माधवी एकदूसरे को दिलोजान से चाहते थे. उन्होंने शादी कर के साथसाथ रहने का फैसला कर लिया था. लेकिन उन के सामने समस्या यह थी कि उन की जातियां अलगअलग थीं. दूसरे माधवी के पिता और भाई गुस्सैल स्वभाव के थे इसलिए वे डर रहे थे कि घर वालों के सामने शादी की बात कैसे करें. लेकिन बाद में उन्होंने तय कर लिया कि उन के प्यार के रास्ते में जो भी बाधा आएगी, उस का वह मिल कर मुकाबला करेंगे.

माधवी जब घर पर अकेली होती तो मनीष को फोन कर के घर बुला लेती थी. एक बार की बात है. उस के पिता ड्यूटी गए थे भाई भी अपने काम पर चले गए थे और मां ड्राइवरों के टिफिन पहुंचाने के बाद खेतों पर गई हुई थी. माधवी के लिए प्रेमी के साथ मौजमस्ती करने का अच्छा मौका था. उस ने उसी समय मनीष को फोन कर दिया तो वह माधवी के घर पहुंच गया.

मनीष माधवी के घर तक अपनी बाइक नहीं लाया था वह उसे रेलवे फाटक के पास खड़ी कर आया था. उस समय घर में उन दोनों के अलावा कोई नहीं था इसलिए वे अपनी हसरत पूरी करने लगे. इत्तफाक से उसी समय घर का दरवाजा किसी ने खटखटाया. दरवाजा खटखटाने की आवाज सुनते ही दोनों के होश उड़ गए. उन के जहन से मौजमस्ती का भूत उड़नछू हो गया. वे जल्दीजल्दी कपड़े पहनने लगे.

तभी माधवी का नाम लेते हुए दरवाजा खोलने की आवाज आई. यह आवाज सुनते ही माधवी डर से कांपने लगी क्योंकि वह आवाज उस के पिता की थी. वही उस का नाम ले कर दरवाजा खोलने की आवाज लगा रहे थे.

माधवी पिता के गुस्से से वाकिफ थी. इसलिए उस की समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाए. कमरे में भी ऐसी कोई जगह नहीं थी जहां मनीष को छिपाया जा सके. दरवाजे के पास जाने के लिए भी उस की हिम्मत नहीं हो रही थी. उधर उस के पिता दरवाजा खोलने के लिए बारबार आवाजें लगा रहे थे.

दरवाजा तो खोलना ही था इसलिए डरते डरते वह दरवाजे तक पहुंची. दरवाजा खुलते ही मनीष वहां से भाग गया. मनीष के भागते ही भूपाल सिंह को माजरा समझते देर नहीं लगी. वह गुस्से से बौखला गया. घर में घुसते ही उस ने बेटी से पूछा कि मनीष यहां क्यों आया था.

डर से कांप रही माधवी उस के सामने मुंह नहीं खोल सकी. तब भूपाल सिंह ने उस की जम कर पिटाई की और सख्त हिदायत दी कि आइंदा वह उस से मिली तो वह दोनों को ही जमीन में जिंदा गाड़ देगा.

शाम को जब भूपाल के तीनों बेटे कुंवर सिंह, मुन्ना व बंडा घर आए तो उस ने उन्हें पूरा वाकया बताया. बेटों ने मनीष की करतूत सुनी तो वे उसी रात उसे जान से मारने उस के घर जाने के लिए तैयार हो गए. लेकिन भूपाल सिंह ने उन्हें गुस्से पर काबू कर ठंडे दिमाग से काम लेने की सलाह दी.

इस के बाद बंडा व मुन्नालाल ने मनीष के साथ काम करना बंद कर दिया था. 15 दिनों बाद माधवी की बोर्ड की परीक्षाएं थीं इसलिए उन्होंने माधवी पर भी पाबंदी लगाते हुए उस का स्कूल जाना बंद करा दिया.

4 महीने बीत गए. माधवी ने सोचा कि घर वाले इस बात को भूल गए होंगे. इसलिए उस ने मनीष से फिर से फोन पर बतियाना शुरू कर दिया. लेकिन अब वह बड़ी सावधानी बरतती थी. लेकिन माधवी की यही सोच गलत निकली. उसे पता नहीं था कि उस के घर वाले मनीष को ठिकाने लगाने के लिए कितनी खौफनाक साजिश रच चुके हैं.

योजना के अनुसार 28 जून, 2014 को सुबह के समय बंडा ने मेज पर रखा माधवी का फोन फर्श पर गिरा कर तोड़ डाला. माधवी को यह पता न था कि वह फोन जानबूझ कर तोड़ा गया है. घंटे भर बाद बंडा उस के फोन को सही कराने की बात कह कर घर से निकला.

इधर भूपाल सिंह ने यह कह कर अपनी पत्नी को मायके भेज दिया कि उस के भाई का फोन आया था कि वहां पर उस की बेटी को देखने वाले आ रहे हैं. पिता के कहने पर मां के साथ माधवी भी अपने मामा के यहां चली गई. जाते समय भूपाल सिंह ने पत्नी से कह दिया था कि मायके में वह माधवी पर नजर रखे.

उन दोनों के घर से निकलते ही बंडा घर लौट आया. उस ने तब तक माधवी का सिम कार्ड निकाल कर अपने फोन में डाल लिया. उस ने माधवी के नंबर से मनीष को एक मैसेज भेज दिया. उस ने मैसेज में लिखा कि आज घर पर कोई नहीं है. रात 8 बजे वह घंटे भर के लिए घर आ जाए.

पे्रमिका का मैसेज पढ़ते ही मनीष का दिल बागबाग हो गया. उस ने माधवी को फोन करना भी चाहा लेकिन उस ने इसलिए फोन नहीं किया क्योंकि माधवी ने उसे मैसेज के अंत में मना कर रखा था कि वह फोन न करे. केवल रात में जरूर आ जाए, ऐसा मौका फिर नहीं मिलेगा.

रात 8 बजे मनीष दबेपांव माधवी से मिलने उस के घर पर पहुंच गया. घर का मुख्य दरवाजा भिड़ा हुआ था. दरवाजा खोल जैसे ही वह सामने वाले कमरे में गया, उसे पीछे से माधवी के भाइयों ने दबोच लिया.

माधवी के भाइयों ने उस का मुंह दबा कर उस के सिर पर चारपाई के पाए से वार कर दिया. जोरदार वार से मनीष बेहोश हो कर गिर पड़ा. उस के गिरते ही उस पर उन्होंने लातघूंसों की बरसात शुरू कर दी. उन्होंने उस के गुप्तांग को पैरों से कुचल दिया. कुछ ही देर में उस की मौत हो गई.

हत्या करने के बाद लाश को ठिकाने भी लगाना था. आपस में सलाह करने के बाद उस के शव को तलवार से नाभि के पास से 2 हिस्सों में काट डाला. करीब 4 घंटे तक मनीष की लाश उसी कमरे में पड़ी रही.

लाश के टुकड़ों से खून निकलना बंद हो गया तो रात करीब 1 बजे जूट की बोरी में दोनों टुकड़े भर लिए. उन्हें रेलवे लाइन पर फेंकने के लिए मुन्ना और बंडा बाइक से निकल गए. हत्या करने के बाद उस की सभी जेबें खाली कर ली गई थीं ताकि पहचान न हो सके. उस के महंगे दोनों मोबाइल स्विच्ड औफ कर के घर पर ही रख लिए.

मुन्ना और बंडा जब लाश ले कर घर से निकल गए तो घर पर मौजूद भूपाल और उस के बेटे कुंवरपाल ने कमरे से खून के निशान आदि साफ किए. इस के बाद उन्होंने हत्या में प्रयुक्त हथियार, मनीष के दोनों मोबाइल आदि को एक मालगाड़ी के डिब्बे में फेंक दिया. वह मालगाड़ी आगरा से कहीं जा रही थी. मनीष की जेब से मिले कागजों और पर्स को भी उन्होंने जला दिया.

मुन्ना और बंडा लाश को सोहल्ला रेलवे फाटक से करीब आधा किलोमीटर दूर आगरा-ग्वालियर रेलवे ट्रैक पर ले गए. बाइक रोक कर ये लोग मनीष के शव को बोरे से निकाल कर मुख्य लाइन पर फेंकना चाह रहे थे तभी उन्हें सड़क पर अपनी ओर कोई वाहन आता दिखाई दिया.

तब तक वे शव को बोरे से निकाल चुके थे. उन्होंने तुरंत लाश के दोनों टुकड़े लाइन पर डाल दिए और बोरी उठा कर वहां से भाग निकले.

दोनों भाइयों ने रास्ते में एक खेत में वह बोरी जला दी और घर आ गए. घर आ कर मुन्ना व बंडा ने खून के निशान वाले कपड़े नहाधो कर बदल लिए. जब उन्होंने शव को पास की ही रेलवे लाइन पर फेंकने की बात अपने पिता को बताई तो भूपाल ने माथा पीट लिया.

वह समझ गया कि लाश पास में ही डालने की वजह से उस की शिनाख्त हो जाएगी और पुलिस उन के घर पहुंच जाएगी. इसलिए सभी लोग घर का ताला लगा कर रात में ही 2 बाइकों पर सवार हो कर वहां से भाग निकले.

घर से भाग कर वे चारों माधवी व उस की मां के पास पहुंचे. वहां पर भूपाल सिंह ने पत्नी को सारा वाकया बताया तो वह भी डर गई. उसे पति व बेटों पर बहुत गुस्सा आया. लेकिन अब होना भी क्या था अब तो बस पुलिस से बचना था.

वे चारों वहां से भाग कर आगरा के पास धौलपुर स्थित एक परिचित के यहां पहुंचे. लेकिन पुलिस के लंबे हाथों से बच नहीं सके. सर्विलांस टीम की मदद से वे पुलिस के जाल में फंस ही गए. हत्या में माधवी का कोई हाथ नहीं था इसलिए उसे पूछताछ के बाद छोड़ दिया.

पूछताछ के बाद सभी हत्यारोपियों को अदालत में पेश कर जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक सभी हत्यारोपी जेल की सलाखों के पीछे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों व मनीष के घर वालों के बयानों पर आधारित. माधवी परिवर्तित नाम है.