कहानी कुछ और थी : प्रेमिका का किया अपहरण

दीवार पर लगी घड़ी की ओर देखते हुए संजय गुप्ता ने बेटी को आवाज दी, ‘‘बेटी चेतना जल्दी करो, ट्यूशन के लिए देर हो रही  है.’’ चेतना ने कोई जवाब नहीं दिया तो संजय गुप्ता ने पुन: आवाज लगाई, ‘‘जल्दी करो बेटा, देर हो रही है.’’

पिता के दोबारा आवाज लगाने पर चेतना टोस्ट का टुकड़ा मुंह में ठूंसते हुए बोली, ‘‘बस आई पापा, दो मिनट.’’

कह कर चेतना ने किताबें और नोटबुक समेटीं और जल्दी से संजय गुप्ता के पास आ कर बोली, ‘‘चलिए पापा.’’

‘‘चलो.’’ कह कर संजय गुप्ता बाहर आ गए. उन्होंने स्कूटी निकाल कर स्टार्ट की तो चेतना फुर्ती से उन के पीछे बैठ गई. इस के बाद उन्होंने स्कूटी आगे बढ़ा दी. संजय गुप्ता और चेतना का यह रोज का काम था. चेतना गुप्ता जगराओं के डीएवी कालेज से बीकौम कर रही थी. वह कालेज दोपहर के बाद जाती थी, इसीलिए सुबह साढ़े 8 बजे से साढ़े 11 बजे तक ट्यूशन पढ़ने जाती थी. यही वजह थी कि दुकान पर जाते समय संजय गुप्ता चेतना को साथ लेते जाते थे. उसे ट्यूशन वाले मास्टर की गली के मोड़ पर छोड़ कर वह अपनी दुकान पर चले जाते थे.

संजय गुप्ता शरीफ और नेकदिल इंसान तो थे ही, शहर के जानेमाने व्यवसाई भी थे. जगराओं रामनगर में ‘एस.के. टेक्सटाइल्स’ नाम से उन का कपड़ों का भव्य शोरूम था. उन के परिवार में पत्नी सीमा गुप्ता के अलावा बेटा साहिल गुप्ता और बेटी चेतना गुप्ता थी. साहिल पिता के साथ शोरूम संभालता था, जबकि चेतना अभी पढ़ रही थी. चेतना छोटी थी, इसलिए संजय गुप्ता बेटे से अधिक बेटी को प्यार करते थे.

उस दिन सुबह 8 बजे के आसपास चेतना को वह गली के मोड़ पर ले कर पहुंचे तो वहां उन्हें सफेद रंग की एक मारुति स्विफ्ट कार खड़ी दिखाई दी. ड्राइविंग सीट पर एक लड़का बैठा था, जो अपना चेहरा दूसरी ओर किए था. कार की पिछली सीट पर 2 लड़के बैठे थे और 2 लड़के कार के बाहर दरवाजे के पास खड़े थे. कार के दोनों पिछले दरवाजे खुले थे.

चेतना स्कूटी से उतर कर जैसे ही कार के पास पहुंची, बाहर खड़े दोनों लड़कों ने अचानक उसे पकड़ कर कार के अंदर झोंक दिया. चेतना के कार के अंदर गिरते ही कार में बैठे लड़कों ने उसे खींच कर दबोच लिया. इस के बाद बाहर खड़े लड़के भी फुर्ती से कार में बैठ गए तो कार तेजी से चल पड़ी. यह 29 जनवरी, 2014 की बात है.

यह सब इतनी तेजी से और अचानक हुआ था कि जल्दी न संजय गुप्ता ही समझ पाए और न चेतना ही कि यह क्या हो रहा है. जब दोनों की समझ में आया कि अपहरण हो गया तो कार के अंदर से जहां चेतना चिल्लाई, ‘पापा बचाओ,’ वहीं स्कूटी संभालते हुए संजय गुप्ता भी चिल्लाए, ‘‘अरे कार रुकवाओ भई, मेरी बेटी को बदमाश उठा ले गए.’’

संजय गुप्ता चिल्लाए ही नहीं, बेटी को इस तरह आंखों के सामने उठा कर ले जाते देख चिल्लाते हुए कार के पीछे स्कूटी लगा दी. आगे उन के भाई की दुकान थी. भाई दुकान पर आ गए थे. शोरशराबा सुन कर वह भी बाहर आ गए. भाई को चिल्लाते हुए स्कूटी से कार का पीछा करते देख वह भी अपना एक्टिवा स्कूटर उठा कर कार का पीछा करने लगे. उन्हीं के साथ कुछ अन्य लोगा भी माजरा समझ कर अपने अपने वाहनों को ले कार के पीछे लपके. लेकिन लाख प्रयास के बाद भी कार पकड़ में नहीं आई और देखते देखते आंखों से ओझल हो गई.

जो भी इस तरह सरेआम अपहरण की बात सुनता, वही दौड़ पड़ता. धीरेधीरे पूरा बाजार जमा हो गया. संजय गुप्ता तो बदहवास हो कर सड़क पर ही बैठ गए थे. व्यापारी साथियों ने उन्हें सांत्वना देने के साथ ही इस घटना की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम के साथसाथ थाना जगराओं और सिटी पुलिस को भी दे दी थी.

सूचना मिलते ही थाना सिटी के थानाप्रभारी मोहम्मद जमील पुलिस दल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए और संजय गुप्ता द्वारा की गई शिकायत के आधार पर काररवाई करते हुए उन्होंने वायरलैस द्वारा संदेश दे कर जगराओं शहर से बाहर जाने वाली सभी सीमाओं को सील करवाने के साथ चेतना गुप्ता के अपहरण की रिपोर्ट मनीष मल्होत्रा और उस के 4 अज्ञात दोस्तों के खिलाफ दर्ज करा दी.

संजय गुप्ता ने रिपोर्ट दर्ज कराते समय पुलिस को बताया था कि कार की ड्राइविंग सीट पर बैठे युवक को वह पहचानते थे. उस का नाम मनीष मल्होत्रा था, जबकि उस के साथियों को वह नहीं जानते थे, लेकिन सामने आने पर वह उन्हें पहचान सकते थे. मनीष को वह इसलिए पहचानते थे, क्योंकि वह पहले भी कई बार चेतना से छेड़छाड़ कर चुका था, जिस की उन्होंने पुलिस से शिकायत भी की थी.

संजय गुप्ता ने रिपोर्ट में मनीष और उस के दोस्तों के अलावा इस अपहरण की साजिश में मनीष के पिता जोगिंदर पाल, चाचा राज मल्होत्रा, मां ऊषा रानी, चाची, बुआ के बेटे आकाश धवन उर्फ अभी के नाम भी लिखाए थे. उन का कहना था कि इन सभी लोगों ने साजिश रच कर चेतना का अपहरण करवाया है.

चूंकि अपहरण शहर के एक प्रसिद्ध व्यवसाई के बेटी, जो छात्रा भी थी, का हुआ था, इसलिए इस मामले में छात्र भी हंगामा कर सकते थे. इस बात को ध्यान में रख कर थानाप्रभारी मोहम्मद जमील ने घटना की सूचना एसपी सिटी, डीएसपी सुरेंद्र कुमार, क्राइम टीम और स्पेशल फोर्स को भी दे दी थी.

संजय गुप्ता ने चेतना के अपहर्त्ताओं में से मुख्य अभियुक्त का नाम बता दिया था, इसलिए थानाप्रभारी मोहम्मद जमील ने तुरंत मनीष मल्होत्रा के बारे में पता किया. प्राप्त जानकारी के अनुसार, मनीष मल्होत्रा जगराआें के रायकोटा रोड पर भट्ठा गुरु के नजदीक मकान नंबर 2982 में रहने वाले शहर के प्रसिद्ध व्यवसाई जोगिंदर पाल मल्होत्रा का बेटा था. उन का जगराओं में मल्होत्रा फिल स्टेशन के नाम से पेट्रेल पंप तो था ही, उन के पास कोकपेप्सी की ऐजेंसी भी थी.

जोगिंदर पाल का संयुक्त परिवार था. भाई राज मल्होत्रा भी उन्हीं के साथ रहते थे. उन के 2 बेटे थे. बड़ा बेटा विशाल शादीशुदा था. वह चाचा राज मल्होत्रा के साथ पैट्रोल पंप का कामकाज देखता था. छोटा बेटा मनीष पढ़ाई पूरी करने के बाद मटरगश्ती करता था.

थानाप्रभारी मोहम्मद जमील ने एएसआई जरनैल सिंह के साथ मनीष के घर छापा मारा तो वह घर से फरार मिला. उस के बारे में पता करने के लिए वह जोगिंदर पाल के पेट्रोल पंप और कोकपेप्सी ऐजेंसी के औफिस गए तो पुलिस के डर से वह भी भूमिगत हो गए थे. पुलिस अपनी काररवाई कर रही थी, लेकिन जनता उस से संतुष्ट नहीं थी. इसलिए आम लोगों में पुलिस के प्रति आक्रोश बढ़ता जा रहा था. शहर के व्यवसाई ही नहीं, आम लोग भी एकत्र होने लगे थे.

जब अच्छीखासी भीड़ जमा हो गई तो उन्होंने हाईवे और शहर की प्रमुख सड़कों पर धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया. शहर के बाजार और व्यापारिक गतिविधियां बंद करा दी गईं. लोग सड़कों पर ही धरने पर बैठ गए. धरने पर बैठे लोग पुलिसप्रशासन के खिलाफ नारेबाजी कर रहे थे. इस तरह पुलिस के लिए परेशानी खड़ी हो गई. प्रदर्शनकारियों को भी संभालना था और अपहर्त्ताओं की तलाश कर चेतना को सकुशल बरामद भी करना था.

जांच में परेशानी हो रही थी, क्योंकि कहींकहीं पुलिस और जनता के बीच झड़पें हो रही थीं. एक एएसआई जोगा सिंह से जनता काफी नाराज थी, क्योंकि सूचना देने के बावजूद वह घटनास्थल पर काफी देर से पहुंचे थे. धरने पर बैठे लोग अपहर्त्ताओं को जल्द से जल्द गिरफ्तार कर के चेतना को बरामद करने की मांग कर रहे थे.

जनता को धरनाप्रदर्शन करते देख नेता भी अपनी रोटियां सेंकने पहुंच गए. इनकलाबी क्लब पंजाब के नेता कमलजीत खन्ना ने धरना पर बैठे लोगों को संबोधित करते हुए यहां तक कह डाला कि यह घटना भी पंजाब के चर्चित श्रुति अपहरण कांड की ही तरह है. अपहर्त्ताओं ने पुलिस और सत्ता पार्टी में बैठे नेताओं के साथ मिल कर इस घटना को अंजाम दिया है.

विधायक एस.आर. कलेर ने हाथ जोड़ कर प्रदर्शनकारियों और धरना पर बैठे लोगों से शांत रहने की अपील की. लेकिन उन की बातों पर किसी ने ध्यान नहीं दिया. डीएसपी सुरेंद्र कुमार जब धरना पर बैठे लोगों को समझाने पहुंचे तो गुस्साए लोगों ने उन के विरोध में नारे तो लगाए ही, उलझने की भी कोशिश की.

शाम होतेहोते यह आक्रोश इस कदर बढ़ गया कि लोगों ने थाने का घेराव करने के साथ थानाप्रभारी मोहम्मद जमील के औफिस के बाहर चादर बिछा कर भीख मांगते हुए जोरजोर से चिल्ला कर कहने लगे, ‘‘हम जानते हैं, पुलिस बिना पैसा लिए कोई काम नहीं करती, इसलिए हमें भिक्षा में पैसे दो, जिसे दे कर हम चेतना बिटिया को वापस ला सकें.’’

लोग उस चादर में 10, 20, 50 और सौ रुपए डालते हुए कह रहे थे कि ‘चाहे जितने पैसे ले लो, लेकिन चेतना को अपहर्त्ताओं के चंगुल से मुक्त करा दो.’ जनता की इस हरकत से परेशान हो कर एसपी और डीएसपी ने आ कर धरना पर बैठे लोगों से माफी मांगी और अपहर्त्ताओं को शीघ्र गिरफ्तार करने का आश्वासन दिया. इस के बाद भीड़ थोड़ा शांत हुई.

पुलिस ने उस रात अपहर्त्ताओं की तलाश में कई जगह छापे मारे, लेकिन अपहर्त्ता पुलिस के हाथ नहीं लगे. उन के परिजनों और निकट संबंधियों पर शिकंजा कसा गया. मनीष के परिजनों और मित्रों को थाने ला कर पूछताछ की गई. इस तरह मनीष और पुलिस के बीच पूरी रात चूहे बिल्ली का खेल चलता रहा. अंत में 30 जनवरी की सुबह एएसआई जरनैल सिंह से मनीष के ताऊ विजय मल्होत्रा ने फोन कर के कहा कि मनीष पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करना चाहता है. इस के लिए वह कचहरी चौक पर आ जाएं. मनीष के आत्मसमर्पण की सिफारिश एक अकाली नेता ने भी की थी.

बहरहाल, पुलिस अधिक झमेले में नहीं पड़ना चाहती थी, क्योंकि वैसे ही इस मामले में अब तक पुलिस की काफी किरकिरी हो चुकी थी. इसलिए थानाप्रभारी मोहम्मद जमील के आदेश पर एएसआई जरनैल सिंह पुलिस टीम के साथ कचहरी चौक पर पहुंच गए. मनीष के कुछ रिश्तेदार वहां पहले से ही मौजूद थे.

पुलिस किसी से कुछ पूछताछ करती, उस के पहले ही वहां मौजूद लोगों में भगदड़ सी मच गई. पुलिस उन्हें संभालती, भगदड़ का फायदा उठा कर एकएक कर के सभी रिश्तेदार खिसक गए. लेकिन मनीष और चेतना पुलिस के हाथ लग गए. इस तरह चेतना सकुशल बरामद हो गई. एएसआई जरनैल सिंह दोनों को ले कर थाने आ गए.

थानाप्रभारी मोहम्मद जमील ने दोनों का सिविल अस्पताल में मैडिकल चेकअप कराया. रिपोर्ट के अनुसार मनीष और चेतना के बीच किसी प्रकार के सैक्स संबंध की पुष्टि नहीं हुई. मैडिकल चैकअप के बाद उसी दिन दोनों को इलाका मजिस्ट्रेट श्री गुरमीत सिंह की अदालत में पेश किया गया. पूछताछ के लिए पुलिस ने मनीष को 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. जबकि चेतना गुप्ता को धारा 164 के अंतर्गत बयान दिला कर उसे उस के पिता संजय गुप्ता को सौंप दिया गया. रिमांड के दौरान मनीष से की गई पूछताछ में जो कहानी प्रकाश में आई, वह अपहरण की न हो कर आपसी प्रेमसंबंधों में आई खटास की थी.

दरअसल, चेतना गुप्ता और मनीष मल्होत्रा के बीच पिछले काफी समय से प्रेमसंबंध थे. पुलिस के अनुसार, मनीष ने चेतना गुप्ता को बड़ेबड़े सपने दिखाए थे. कहने को तो उस के पिता जोगिंदर पाल के पास पेट्रोल पंप ही नहीं, कोकपेप्सी की ऐजेंसी भी थी, लेकिन सच्चाई यह थी कि उन पर काफी कर्ज था.

चूंकि मनीष चेतना को पसंद करता था और उस से शादी करना चाहता था, इसलिए लगातार उस से झूठ बोलता आ रहा था. जबकि हकीकत यह थी कि चेतना को घुमानेफिराने के लिए वह अपने यारोंदोस्तों की गाडि़यां तो मांग कर लाता ही था, उसे गिफ्ट देने के लिए भी उन्हीं से उधार पैसे ले कर खरीद कर लाता था.

चेतना को बिलकुल पता नहीं था कि मनीष और उस के परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी डांवाडोल हो चुकी है. हां, अगर मनीष सच्चाई बता कर अपनी स्थिति स्पष्ट कर देता तो शायद बात कुछ और होती. लेकिन वह उस के झूठ के मकड़जाल में फंसती चली गई और उसे दिल से चाहने लगी. जबकि मनीष उसे लगातार धोखा देता आ रहा था.

मनीष और चेतना आपस में शादी करना चाहते थे. लेकिन इस शादी में सब से बड़ी अड़चन चेतना के मातापिता की ओर से थी. क्योंकि दोनों की जाति अलग थी. चेतना गुप्ता जहां बनियों की बेटी थी, वहीं मनीष पंजाबी झांगी जाति से था. चेतना अच्छी तरह जानती थी कि उस के मातापिता इस शादी के लिए हरगिज तैयार नहीं होंगे.

अंत में काफी सोचविचार कर दोनों ने फैसला लिया कि वे चोरी से कोर्टमैरिज कर लेंगे. इस बात का जिक्र वे घर में नहीं करेंगे. अगर उन के मातापिता शादी के लिए राजी हो जाएंगे, तब तो ठीक है, अन्यथा वे मैरिज प्रमाण पत्र दिखा कर बता देंगे कि उन्होंने पहले ही शादी कर ली है. तब मजबूरन उन्हें झुकना होगा.

इस के बाद चेतना और मनीष ने वकील से बात की. वकील ने उन्हें सलाह दी कि अगर वे किसी मंदिर या गुरुद्वारे में शादी कर के वहां से शादी का प्रमाण पत्र प्राप्त कर लेते हैं तो उन्हें कोर्टमैरिज में आसानी होगी. दोनों किसी ऐसे मंदिरगुरुद्वारे की तलाश में लग गए, जहां से विवाह का प्रमाण पत्र मिल जाए. आखिर उन्हें एक ऐसा गुरुद्वारा मिल गया, जो उन के मातापिता की गैरमौजूदगी में उन की शादी करा सकता था. वह जगराओं के शेरपुरा रोड पर डीएवी कालेज के पास स्थिति गुरुद्वारा साहिब बाल खेतारामजी था.

12 सितंबर, 2013 को मनीष चेतना को ले कर गुरुद्वारा साहिब बाल खेतारामजी पहुंचा और शादी कर के कुछ फोटो खिंचवाने के बाद विवाह का प्रमाणपत्र हासिल कर लिया. इस के बाद दोनों ने चंडीगढ़ हाईकोर्ट जा कर किसी वकील के माध्यम से गुरुद्वारा द्वारा दिए गए शादी के प्रमाणपत्र के आधार पर नोटरी से शादी रजिस्टर्ड करवा ली.

अपनेअपने मातापिता से जान का खतरा बता कर उन्होंने सुरक्षा के लिए उच्च न्यायालय में आवेदन भी कर दिया. लेकिन इस के बाद जब चेतना को मनीष की आर्थिक स्थिति का पता चला तो उसे उस से नफरत हो गई. क्योंकि मनीष ने उसे प्रेमजाल में फंसाने के लिए झूठ बोला था. उसे यह भी पता चल गया था कि उसे तोहफे देने के लिए वह दोस्तों से पैसे उधार लेता रहता था.

चेतना ने जब इस बारे में मनीष से पूछा तो वह साफ मुकर गया. उस ने कहा कि यह सब झूठ है. उस के लगातार झूठ पर झूठ बोलने से चेतना को उस से इतनी घृणा हो गई कि उस ने उस से मिलना तक बंद कर दिया. यही नहीं, उस ने अपने पिता से भी कह दिया कि वह उस के लिए कोई अच्छा सा लड़का देख कर उस की शादी कर दें.

दूसरी तरफ मनीष के वे दोस्त, जो उस की शादी में गवाह थे, उसे ताना देने लगे, ‘‘यार! तू कैसा पति है. तू यहां अकेला पड़ा सड़ रहा है और पत्नी मायके में ऐश कर रही है.’’

मनीष चेतना को लाना चाहता था, जबकि वह आने को तैयार नहीं थी. क्षुब्ध हो कर उस ने दोस्तों के साथ मिल कर चेतना के अपहरण की योजना बना डाली. इस में उस ने लुधियाना के शिमला पुरी के रहने वाले अपनी बुआ के बेटे अभी की मदद लेने के साथ अपने 3 दोस्तों कालू, सीता और आकाश को शामिल किया. जिस स्विफ्ट कार से चेतना का अपहरण किया गया था, वह उस की बुआ के बेटे आकाश उर्फ अभी की ही थी. घटना के समय आकाश उर्फ अभी भी साथ था.

चेतना का अपहरण कर के वे उसे ले कर जगराओं से रायकोट पहुंचे. वहां कालू और सीता को उतार कर वे मुल्लापुर होते हुए लुधियाना के शिमलापुरी स्थित अभी के घर पहुंचे. वहां सभी ने चायनाश्ता किया. वहीं से फोन कर के मनीष ने जगराओं के मित्रों से वहां होने वाली गतिविधियों की जानकारी ली.

शाम को जब मनीष को पता चला कि पुलिस को उस के लुधियाना के शिमलापुरी में होने की जानकारी मिल गई है तो उस ने अभी से बात की. अभी ने जालंधर के रहने वाले अपने जीजा ललित मेहता को सारी बात बता कर सहायता मांगी. ललित ने उन्हें फौरन जालंधर आने को कहा.

मनीष और अभी तुरंत चेतना को ले कर जालंधर के लिए निकल पड़े. लेकिन लाडोवाल टोल ब्रिज पर पहुंच कर चेतना शोर मचाने लगी. उस के शोर मचाने पर कई लोगों का ध्यान उस की ओर चला गया. टोलनाका पर लगे कैमरों में भी चेतना का फोटो आ गया था. इसलिए डर के मारे मनीष ने वह कार वहीं छोड़ दी और ललित को फोन से स्थिति बताई तो उन्होंने अपनी टवेरा कार भेज कर उन्हें वापस जगराओं जा कर पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करने की सलाह दी. इस के बाद मनीष ने जगराओं आ कर पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. पुलिस ने ललित की टवेरा भी बरामद कर ली है.

मनीष ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए कहा था कि अगर चेतना ने उस के साथ बेवफाई न की होती तो शायद आज उसे यह अपराध न करना पड़ता. भला कौन अपनी पत्नीप्रेमिका का अपहरण करना चाहेगा. रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद पुलिस ने मनीष को पुन: अदालत में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासम में भेज दिया गया. फरार अभियुक्तों की पुलिस तलाश कर रही थी.

— कथा पुलिस सूत्रों व जन चर्चा पर आधारित

एक हत्या ऐसी भी : कौन था मंजूर का कातिल? – भाग 5

मैं 2 घंटे बाद अपने औफिस आया, गामे शाह अभी नहीं आया था. आमना आ चुकी थी. मैं ने उस से कहा, ‘‘आमना, मेरे दिल में तुम्हारे लिए हमदर्दी पैदा हो गई थी, लेकिन तुम ने सच फिर भी नहीं बोला और कहा कि पता नहीं मंजूर कहां गया था. जबकि तुम ने ही उसे रशीद के पास भेजा था.’’

आमना की हालत रशीद की तरह हो गई. मैं ने उस का हाथ अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘आमना, अब भी समय है. सच बता दो. मैं मामले को गोल कर दूंगा.’’

‘‘अब यह बताओ, तुम्हारा पति अपने दुश्मन के पास गया था, वह सारी रात वापस नहीं लौटा. क्या तुम ने पता करने की कोशिश की कि वह कहां गया है और क्या रशीद ने उस की हत्या कर के कहीं फेंक न दिया हो?’’

आमना का चेहरा लाश की तरह सफेद पड़ गया. मैं ने उस से 2-3 बार कहा लेकिन उस ने कोई जवाब नहीं दिया.

‘‘तुम कयूम को बुला कर उस से कह सकती थी कि मंजूर बाग में गया है और वापस नहीं आया. वह उसे जा कर देखे.’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘तुम ने ऐसा क्यों किया?’’

मुझे उस की हालत देख कर ऐसा लगा जैसे उस का दम निकल जाएगा.

‘‘तुम ने मंजूर को सलाह दी थी कि वह शाम को बाग में जाए. उस की हत्या के लिए तुम ने रास्ते में एक आदमी बिठा रखा था ताकि जब वह लौटे तो वह मंजूर की हत्या कर दे. वह आदमी था कयूम.’’

वह चीख पड़ी, ‘‘नहीं…नहीं, ऐसा बिलकुल नहीं है.’’

‘‘क्या रशीद ने उस की हत्या की है?’’

‘‘नहीं…’’ यह कह कर वह चौंक पड़ी.

कुछ देर चुप रही. फिर बोली, ‘‘मैं घर पर थी, मुझे क्या पता उस की हत्या किस ने की?’’

‘‘मेरी एक बात सुनो आमना,’’ मैं ने उस से प्यार से कहा, ‘‘मुझे तुम से हमदर्दी है. तुम औरत हो, अच्छे परिवार की हो. मैं तुम्हारी इज्जत का पूरा खयाल रखूंगा. मुझे पता है कि हत्या तुम ने नहीं की है. आज का दिन मैं तुम्हें अलग किए देता हूं. खूब सोच लो और मुझे सच सच बता दो. तुम्हें इस केस में बिलकुल अलग कर दूंगा. तुम्हें गवाही में भी नहीं बुलाऊंगा.’’

उस की हालत पतली हो चुकी थी. उस ने मेरी किसी बात का भी जवाब नहीं दिया. मैं ने कांस्टेबल को बुला कर कहा, इस बीबी को अंदर ले जाओ और बहुत आदर से बिठाओ. किसी बात की कमी नहीं आने देना. पुलिस वाले इशारा समझते थे कि उस औरत को हिरासत में रखना है.

गामे शाह आ गया. मेरा अनुभव कहता था कि हत्या उस ने नहीं की है. लेकिन हत्या के समय वह कुल्हाड़ी ले कर कहां गया था? मैं ने उसे अंदर बुला कर पूछा कि कुल्हाड़ी ले कर कहां गया था.

उस ने एक गांव का नाम ले कर बताया कि वह वहां अपने एक चेले के पास गया था. मैं ने एक कांस्टेबल को बुलाया और गामे शाह के चेले का और गांव का नाम बता कर कहा कि वह उस आदमी को ले कर आ जाए.

‘‘जरा ठहरना हुजूर, मैं उस गांव नहीं गया था. बात कुछ और थी.’’ उस ने कहा.

वह बेंच पर बैठा था. मैं औफिस में टहल रहा था. मैं ने उस के मुंह पर उलटा हाथ मारा और सीधे हाथ से थप्पड़ जड़ दिया. वह बेंच से नीचे गिर गया और हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया.

असल बात उस ने यह बताई कि वह उस गांव की एक औरत से मिलने गया था, जिसे उस से गांव से बाहर मिलना था. कुल्हाड़ी वह अपनी सुरक्षा के लिए ले गया था. अब हुजूर का काम है, उस औरत को यहां बुला लें या उस से किसी और तरह से पूछ लें. मैं उस का नाम बताए देता हूं. किसी की हत्या कर के मैं अपने कारोबार पर लात थोड़े ही मारूंगा.

दिन का पिछला पहर था. मैं यह सोच रहा था कि आमना को बुलाऊं, इतने में एक आदमी तेजी से आंधी की तरह आया और कुरसी पर गिर गया. वह मेज पर हाथ मार कर बोला, ‘‘आमना को हवालात से बाहर निकालो और मुझे बंद कर दो. यह हत्या मैं ने की है.’’

वह कयूम था.

वह खुशी और कामयाबी का ऐसा धचका था, जैसे कयूम ने मेरे सिर पर एक डंडा मारा हो. यकीन करें, मुझ जैसा कठोर दिल आदमी भी कांप कर रह गया.

मैं ने कहा, ‘‘कयूम भाई, थोड़ा आराम कर लो. तुम गांव से दौड़े हुए आए हो.’’

उस ने कहा, ‘‘नहीं, मैं घोड़ी पर आया हूं, मेरी घोड़ी सरपट दौड़ी है. तुम आमना को छोड़ दो.’’

वह और कोई बात न तो सुन रहा था और न कर रहा था. मैं ने प्यार मोहब्बत की बातें कर के उस से काम की बातें निकलवाई. पता यह चला कि मैं ने आमना को जब हिरासत में बिठाया था तो किसी कांस्टेबल ने गांव वालों से कह दिया था कि आमना ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया है और उसे गिरफ्तार कर लिया गया है. गांव का कोई आदमी आमना के घर पहुंचा और आमना के पकड़े जाने की सूचना दी. कयूम तुरंत घोड़ी पर बैठ कर थाने आ गया.

‘‘कयूम भाई, अगर अपने होश में हो तो अकल की बात करो.’’

उस ने कहा, ‘‘मैं पागल नहीं हूं, मुझे लोगों ने पागल बना रखा है. आप मेरी बात सुनें और आमना को छोड़ दें. मुझे गिरफ्तार कर लें.’’

कयूम के अपराध स्वीकार करने की कहानी बहुत लंबी है. कुछ पहले सुना चुका हूं और कुछ अब सुना रहा हूं. मंजूर रशीद से बहुत तंग आ चुका था. वह गुस्सा अपने अंदर रोके हुए था. एक दिन आमना ने कयूम से कहा कि रशीद की हत्या करनी है. उसे खूब भड़काया और कहा कि अगर रशीद की हत्या नहीं हुई तो वह मंजूर की हत्या कर देगा.

कयूम आमना के इशारों पर नाचता था. वह तैयार हो गया. मंजूर से बात हुई तो योजना यह बनी कि रशीद बाग से शाम होने से कुछ देर पहले घर आता है. अगर वह रात को आए तो रास्ते में उस की हत्या की जा सकती है. उस का तरीका यह सोचा गया कि मंजूर रशीद के बाग में जा कर नाटक खेले कि वह दुश्मनी खत्म करने आया है और उसे बातों में इतनी देर कर दे कि रात हो जाए. कयूम रास्ते में टीलों के इलाके में छिप कर बैठ जाएगा और जैसे ही रशीद गुजरेगा तो कयूम उस पर कुल्हाड़ी से वार कर देगा.

यह योजना बना कर ही मंजूर रशीद के पास बाग में गया था. कयूम जा कर छिप गया. अंधेरा बहुत हो गया था. एक आदमी वहां से गुजरा, जहां कयूम छिपा हुआ था. अंधेरे में सूरत तो पहचानी नहीं जा सकती थी, कदकाठी रशीद जैसी थी.

कयूम ने कुल्हाड़ी का पहला वार गरदन पर किया. वह आदमी झुका, कयूम ने दूसरा वार उस के सिर पर किया और वह गिर कर तड़पने लगा.

कयूम को अंदाजा था कि वह जल्दी ही मर जाएगा, क्योंकि उस के दोनों वार बहुत जोरदार थे. पहले वह साथ वाले बरसाती नाले में गया और कुल्हाड़ी धोई. फिर उस पर रेत मली. फिर उसे धोया और मंजूर के घर चला गया.

वहां उस ने अपने कपड़े देखे, कमीज पर खून के कुछ धब्बे थे जो आमना ने तुरंत धो डाले. कुल्हाड़ी मंजूर की थी. आमना और कयूम बहुत खुश थे कि उन्होंने दुश्मन को मार गिराया.

उस समय तक तो मंजूर को वापस आ जाना चाहिए था. तय यह हुआ था कि मंजूर दूसरे रास्ते से घर आएगा. वह अभी तक घर नहीं पहुंचा था. 2-3 घंटे बीत गए. तब आमना ने कयूम से पूछा कि उस ने रशीद को पहचान कर ही हमला किया था. उस ने कहा कि वहां से तो रशीद को ही आना था, ऐसी कोई बात नहीं है कि वह गलती से किसी और को मार आया हो.

जब और समय हो गया तो उस ने कयूम से कहा कि जा कर देखो गलती से किसी और को न मारा हो. वह माचिस ले कर चल पड़ा. जा कर उस का चेहरा देखा तो वह मंजूर ही था.

कयूम दौड़ता हुआ आमना के पास पहुंचा और उसे बताया कि गलती से मंजूर मारा गया. आमना का जो हाल होना था वह हुआ, लेकिन उस ने कयूम को बचाने की तरकीब सोच ली.

उस ने कयूम से कहा कि वह अपने घर चला जाए और बिलकुल चुप रहे. लोगों को पता ही है कि रशीद की मंजूर से गहरी दुश्मनी है. मैं भी अपने बयान में यही कहूंगी कि मंजूर को रशीद ने ही मारा है.

कयूम को गिरफ्तार कर के मैं ने आमना को बुलाया और उसे कयूम का बयान सुनाया. कुछ बहस के बाद उस ने भी बयान दे दिया.

उन्होंने जो योजना बनाई थी, वह विफल हो गई. आमना का सुहाग लुट गया. लेकिन उस ने इतने बड़े दुख में भी कयूम को बचाने की योजना बनाई. मंजूर को लगा था कि वह रशीद की इस तरह से हत्या कराएगा तो किसी को पता नहीं चलेगा कि हत्यारा कौन है.

मैं ने आमना और कयूम के बयान को ध्यान से देखा तो पाया कि आमना ने पति की मौत के दुख के बावजूद अपने दिमाग को दुरुस्त रखा और मुझे गुमराह किया. कयूम को लोग पागल समझते थे, लेकिन उस ने कितनी होशियारी से झूठ बोला.

मैं ने हत्या का मुकदमा कायम किया. कयूम ने मजिस्ट्रैट के सामने अपराध स्वीकार कर लिया. मैं ने आमना को गिरफ्तार नहीं किया था और कयूम से कहा था कि आमना का नाम न ले. यह कहे कि उसे मंजूर ने हत्या करने पर उकसाया था. कयूम को सेशन से आजीवन कारावास की सजा हुई, लेकिन हाईकोर्ट ने उसे शक का लाभ दे कर बरी कर दिया.

अपनी अपनी चाहत : क्या थी फातिमा और सकीना की चाहत?

महानगरों में कितनी ही कामवालियां ऐसी होती हैं, जो अपने छोटे बच्चे को ले कर काम पर जाती हैं और दिन भर लोगों के घरों में काम कर के अपने ठिकाने पर लौट जाती हैं. कई लोग ऐसे भी होते हैं जो यह पसंद नहीं करते कि वे अपने बच्चे को ले कर घर में आएं.

ऐसे में उन की मजबूरी होती है कि बच्चे को मालिक के घर के बाहर बैठा दें या खेलने के लिए छोड़ दें. जबकि कई बार घर के मालिक या मालकिन को तरस आ जाता है और वे बच्चे को अंदर लाने की इजाजत दे देते हैं. इस से उन्हें यह भी डर नहीं रहता कि कामवाली कोई गड़बड़ करेगी.

फुटपाथ पर या झुग्गीझोपड़ी में रहने वाली कामवालियों की यह मजबूरी होती है कि अपना और बच्चों का पेट पालने के लिए हर स्थिति को फेस करें. इन्हें कितने ही ऐसे लोग भी मिलते हैं जो इन्हें या इन के बच्चों को इंसान नहीं समझते. यह अलग बात है कि उन के घर ऐसी ही महिलाओं की वजह से साफसुथरे रहते हैं. शानू शेख भी ऐसी ही महिला थी, जिस का ठौरठिकाना भायखला, मुंबई के एक फुटपाथ पर था.

शानू शेख की बहन भी इसी तरह फुटपाथ पर रह कर घरों में कामकाज करती थी. दोनों बहनें घरेलू कामकाज के लिए रोजाना साथ निकलती थीं और घरों में काम करने के बाद भायखला रेलवे स्टेशन के बाहर मिलती थीं, जहां से वे अपने ठिकाने पर लौट जाती थीं. 16 दिसंबर, 2018 को भी दोनों बहनें साथसाथ काम पर निकलीं. शानू शेख के साथ उस की 3 साल की बेटी कुसुम शेख भी थी.

शानू शेख काम कर के वापसी के लिए दोपहर में अपनी बेटी के साथ भायखला रेलवे स्टेशन पहुंची. तब तक उस की बहन नहीं आई थी. दोनों बहनों को रोजाना की तरह साथ वापस लौटना था.

शानू दिन भर की थकी हुई थी. वह स्टेशन के बाहर ठहर कर बहन का इंतजार करने लगी. उस की बेटी कुसुम पास ही खेल रही थी. कुछ देर बाद उस की बहन तो आ गई, लेकिन इस बीच बेटी गायब हो गई थी. दोनों बहनों ने कुसुम को आसपास ढूंढा, लेकिन वह कहीं नजर नहीं आई. खोजबीन के बाद भी जब 3 साल की कुसुम नहीं मिली तो दोनों बहनें अग्रीपाड़ा पुलिस स्टेशन जा पहुंचीं.

कामवाली या गरीब औरतों पर पुलिस भी ध्यान नहीं देती. इसी सोच की वजह से दोनों बहनें डरीसहमी थीं. लेकिन अग्रीपाड़ा पुलिस स्टेशन में ऐसा नहीं हुआ. पुलिस ने दोनों बहनों को बैठा कर पहले पानी पिलाया, फिर उन से आने का कारण पूछा.

शानू शेख ने अपने और घटना के बारे में पुलिस को बता दिया. महानगरों में बच्चा चोरी की घटनाएं अकसर घटती रहती हैं. कई बच्चाचोर बच्चों को बेचने के लिए ऐसी घटनाओं को अंजाम देते हैं.

बहरहाल, बच्चा किसी का भी हो, उस का दर्द और छटपटाहट सिर्फ मां ही समझ सकती है. शानू शेख भले ही गरीब थी, लेकिन थी तो मां ही. पुलिस ने उस के दर्द, उस की छटपटाहट को महसूस कर के भादंवि की धारा 363, 34 के तहत बच्ची के किडनैपिंग का केस दर्ज कर लिया.

थाना अग्रीपाड़ा के सीनियर इंसपेक्टर सावलाराम आगवणे ने इस मामले की जानकारी एडीशनल सीपी (स्पैशल ब्रांच) रविंद्र शिसवे, डीसीपी अविनाश कुमार और अग्रीपाड़ा डिवीजन एसीपी दीपक जे. कुंडल को दी. सभी अधिकारियों ने सावलाराम आगवणे से कहा कि चाहे जैसे भी हो, उस गरीब मां की बच्ची जरूर मिलनी चाहिए.

सीनियर इंसपेक्टर सावलाराम आगवणे ने 3 वर्षीय बच्ची की तलाश की जिम्मेदारी एसआई अमित बाबर को सौंप दी. उन के सहयोग के लिए एक पुलिस टीम भी बनाई गई. अमित बाबर ने भायखला, जहां शानू शेख काम करती थी, से पूछताछ शुरू की.

बच्ची के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. चूंकि वह बच्ची भायखला रेलवे स्टेशन से ही गायब हुई थी, इसलिए एसआई अमित बाबर ने आसपास के रेलवे स्टेशनों पर जानकारी जुटाना जरूरी समझा. उन्होंने भायखला से कल्याण (पुणे) के बीच पड़ने वाले सभी स्टेशनों की जीआरपी से 3 साल की बच्ची कुसुम शेख के बारे में पूछा. लेकिन कहीं से भी बच्ची के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

एसआई अमित बाबर टीम के साथ भायखला वापस लौट आए. अब उन्होंने नए सिरे से कुसुम के गायब होने के मामले की जांच शुरू की. उन्होंने भायखला रेलवे स्टेशन के आसपास के इलाके में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज को ध्यान से देखा.

एक फुटेज में उन्हें एक महिला 3 साल की कुसुम को ले जाती दिखी. उस महिला के पास एक बैग भी था. बच्ची को ले कर वह महिला कहां गई, यह तो पता नहीं चल सका लेकिन पुलिस ने महिला के उस बैग को जब जूम कर के देखा तो उस पर धागे के सहारे एक टैग लटका हुआ दिखाई दिया. टैग से लग रहा था कि वह बैग हाल ही में खरीदा गया है. पुलिस ने उस बैग की फोटो मोबाइल में ले ली.

यह एक सूत्र काम का हो सकता था. इसलिए अमित बाबर अपनी टीम के साथ भायखला के बाजार में निकल गए. उन्होंने बैग की दुकानों पर जा कर मोबाइल में सेव उस बैग की फोटो दुकानदारों को दिखाते हुए पूछताछ की. इसी कड़ी में एक दुकानदार ने बता दिया कि एक महिला यह बैग उस की दुकान से खरीद कर ले गई थी. उस दुकानदार ने पुलिस को एक नई जानकारी देते हुए बताया कि उस महिला ने पास ही स्थित मसजिद के पास के एसटीडी बूथ से किसी को फोन भी किया था.

पुलिस उस टेलीफोन बूथ पर पहुंची तो बूथ मालिक ने बताया कि वह महिला फोन पर बात करते समय हैदराबाद एक्सप्रैस से जाने की बात कह रही थी. बूथ से महिला ने जिस फोन नंबर पर बात की थी, वह नंबर भी पुलिस ने बूथ वाले से हासिल कर लिया, नंबर हैदराबाद का था. थोड़ा समय तो लगा, लेकिन उस नंबर के आधार पर पुलिस ने वह पता भी हासिल कर लिया, जहां उस महिला ने फोन किया था.

सीनियर अधिकारियों के निर्देश पर एसआई अमित बाबर हैदराबाद के लिए रवाना हो गए. टीम में उन के साथ एएसआई हुसनूर, हैडकांस्टेबल खानविलकर, कांस्टेबल अविनाश चव्हाण भी शामिल थे.

हैदराबाद पहुंचने के बाद मुंबई पुलिस ने स्थानीय थाने की पुलिस के सहयोग से एक मकान में दबिश दी. उस मकान में एक महिला 3 साल की कुसुम के साथ मिल गई. पुलिस ने कुसुम को सुरक्षित बरामद करने के बाद उस महिला को हिरासत में ले लिया. महिला ने अपना नाम फातिमा बताया. यह बात 24 दिसंबर, 2018 की है.

फातिमा एक अमीर महिला थी. पूछताछ में उस ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. फातिमा और कुसुम को पुलिस हैदराबाद से मुंबई ले आई. फातिमा ने बताया कि उस ने इस बच्ची का अपहरण नहीं किया था, बल्कि यह अपहरण उस की देवरानी सकीना ने किया था. फातिमा ने अग्रीपाड़ा पुलिस को सकीना का मोबाइल नंबर भी दे दिया.

पुलिस ने जब उस फोन नंबर की लोकेशन का पता लगाया तो जानकारी मिली कि पिछले 3 दिनों से वह नंबर पुणे में ही कार्य कर रहा है. एसआई सुमित बाबर और अर्जुन कुदले टीम के साथ पुणे के लिए रवाना हो गए. वहां जा कर पुलिस को पता चला कि वह फोन नंबर सकीना के पास नहीं बल्कि उस के पति बिलाल के पास रहता है.

पुलिस उस फोन के सहारे बिलाल तक पहुंच गई. बिलाल उस समय पुणे में एक मसजिद के पास था. चूंकि फातिमा ने इस केस में बिलाल की पत्नी सकीना का हाथ बताया था, इसलिए पुलिस ने बिलाल की निशानदेही पर सकीना को हिरासत में ले लिया.

फातिमा और सकीना से पूछताछ के बाद कुसुम के अपहरण की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

फातिमा और सकीना एक ही परिवार से थीं. फातिमा बेगम सकीना के देवर अली बिन उमर की पत्नी थी. यानी सकीना फातिमा की जेठानी थी. अधिकांश दंपति यही चाहते हैं कि उन के परिवार में लड़का हो, जिस से वह वंश चला सके. लेकिन फातिमा उन से अलग थी. उस के 4 बेटे तो थे लेकिन बेटी नहीं थी.

फातिमा चाहती थी कि उस की एक बेटी हो. वैसे वह खुशहाल थी. दूसरी ओर उस की देवरानी सकीना के घर की हालत काफी खस्ता थी. उस के पति बिलाल को शराब की लत थी, जिस की वजह से घर के और बच्चों की पढ़ाई के खर्चे की किल्लत उठानी पड़ती थी.

आखिर अपनी गरीबी को मिटाने के लिए सकीना ने दिमाग लगाया. उस ने फातिमा के साथ एक सौदा किया. सकीना ने अपनी जेठानी से कहा कि वह कहीं से भी उसे एक बच्ची ला कर उसे देगी, लेकिन इस के बदले उसे उस के घर के खर्चे पूरे करने होंगे. फातिमा ने जवाब में कहा कि अगर ऐसा हो गया तो वह उस के मकान का किराया, बच्चों की फीस और घर का खर्च उठाती रहेगी.

सकीना के लिए यह सौदा फायदे का था, इसलिए उस ने तय कर लिया कि किसी भी तरह वह कहीं न कहीं से फातिमा के लिए एक छोटी बच्ची ला कर देगी. सकीना बच्ची की तलाश में मुंबई चली गई. मुंबई के भायखला इलाके में उस की नजर अकेली खेल रही नन्ही कुसुम पर पड़ी.

सकीना को अपने परिवार की खुशियों के अलावा कुछ नजर नहीं आ रहा था. इसलिए मौका मिलते ही उस ने कुसुम को उठाया और सीधे चल पड़ी. कुसुम को ले कर वह अपनी जेठानी फातिमा के पास पहुंच गई और बच्ची उसे सौंप दी. बच्ची पा कर फातिमा बहुत खुश हुई.

जांच में सकीना के पति बिलाल को बेकसूर पाए जाने पर घर भेज दिया गया, जबकि फातिमा और सकीना को गिरफ्तार कर उन्हें अदालत में पेश किया. अदालत ने दोनों को पहले पुलिस रिमांड पर भेजा.

रिमांड अवधि में पुलिस ने उन से पूछताछ कर कुछ सबूत जुटाए. रिमांड की अवधि खत्म होने पर उन्हें फिर से कोर्ट में पेश किया गया. कोर्ट ने दोनों को भायखला की ही महिला जेल भेज दिया.

उधर अपनी बेटी कुसुम शेख को सही सलामत पा कर शानू शेख बहुत खुश हुई. उसे उम्मीद नहीं थी कि एक गरीब औरत की बेटी को ढूंढने में पुलिस इतनी तत्परता दिखाएगी. उस ने अग्रीपाड़ा पुलिस को बेटी के सुरक्षित बरामद करने के लिए धन्यवाद दिया.

सकीना अगर गरीब न होती तो शायद वह यह अपराध न करती और फातिमा को भी अगर बेटी की जरूरत थी तो वह किसी अनाथालय से या किसी गरीब मांबाप की बच्ची को गोद ले सकती थी. इस के लिए सकीना से सौदा करने की क्या जरूरत थी.

एक हत्या ऐसी भी : कौन था मंजूर का कातिल? – भाग 4

रात को मैं थाने आ गया, जिन की जरूरत थी, उन सब को थाने ले आया. उन में रशीद भी था. रशीद मेरे लिए बहुत खास संदिग्ध था.

रात काफी हो चुकी थी. मैं आराम करने नहीं गया, बल्कि रशीद को लपेट लिया. उस की ऐसी हालत हो गई जैसे बेहोश हो जाएगा. मैं ने अपना सवाल दोहराया, तो उस की हालत और बिगड़ गई.

मैं ने उस का सिर पकड़ कर झिंझोड दिया, ‘‘तुम मंजूर के जाने के बाद जब बाग से निकले तो तुम्हारे हाथ में कुल्हाड़ी थी और तुम ने मुझे बताया कि सूरज डूबते ही तुम घर आ गए थे. मुझे इन सवालों का संतोषजनक जवाब दे दो और जाओ, फिर मैं कभी तुम्हें थाने नहीं बुलाऊंगा.’’

उस ने बताया, ‘‘हत्या करने से मुझे कुछ नहीं मिलना था. हुआ यूं था कि वह सूरज डूबने से थोड़ा पहले मेरे पास आया था. मैं उसे देख कर हैरान हो गया. मुझे यह खतरा नहीं था कि वह मेरे साथ झगड़ा करने आया था, सच बात यह है कि मंजूर झगड़ालू नहीं था.’’

‘‘क्या वह कायर या निर्लज्ज था?’’ मैं ने पूछा.

‘‘नहीं, वह बहुत शरीफ आदमी था. अब मुझे दुख हो रहा है कि मैं ने उस के साथ बहुत ज्यादती की थी. परसों वह मेरे पास आया था, मैं क्यारियों में पानी लगा रहा था. मंजूर ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे कमरे के ऊपर ले गया. मैं समझा कि वह मुझ से बंटवारे की बात करने आया है. मैं ने सोच लिया था कि उस ने उल्टीसीधी बात की तो मैं उसे बहुत पीटूंगा, लेकिन उस ने मुझ से बहुत नरमी से बात की.

‘‘उस ने कहा, ‘हम लोग एक ही दादा की संतान हैं. हमें लड़ता देख कर दूसरे लोग हंसते हैं. मैं चाहता हूं कि हम सब भाइयों की तरह से रहें.’ मैं ने उस से कहा कि बाद में फिर झगड़ा करोगे तो उस ने कहा, ‘नहीं, मैं ये सब बातें भूल चुका हूं.’ वह रात होने तक बैठा रहा और जाते समय हाथ मिला कर चला गया.

‘‘मैं उस के जाने के आधे घंटे बाद बाग से निकला. उस वक्त मेरे हाथ में एक डंडा था, वह मैं आप को दिखा सकता हूं. मेरा रास्ता वही था, जहां मंजूर की लाश पड़ी थी. मैं उस जगह पहुंचा और माचिस जला कर देखा तो वह मंजूर की लाश थी. हर ओर खून ही खून फैला था.

‘‘मैं ने माचिस जला कर दोबारा देखा तो मुझे पूरा यकीन हो गया. दूर जहां से घाटी ऊपर चढ़ती है, मैं ने वहां एक आदमी को देखा. मैं उस के पीछे दौड़ा, हत्यारा वही हो सकता था. लेकिन वह अंधेरे में गायब हो चुका था. आगे खेत थे, मुझे इतना यकीन है कि वह आदमी गांव से ही आया था.’’

‘‘तुम ने यह बात पहले क्यों नहीं बताई?’’

‘‘यही बात तो मुझे फंसा रही है,’’ उस ने कहा, ‘‘मेरा फर्ज था कि मैं आमना को बताता, फिर अपने घर वालों को बताता. शोर मचाता, थाने जा कर रिपोर्ट करता, लेकिन मुझे एक खतरा था कि मंजूर की मेरे साथ लड़ाई हुई थी. सब यही समझते कि मैं ने उसे मारा है.

‘‘पैदा करने वाले की कसम, हुजूर मैं ने सारी रात जागते हुए गुजारी है. जब आप ने बुलाया तो मेरा खून सूख गया कि आप को पता लग गया है कि मरने से पहले मंजूर मेरे पास आया था.’’

मैं ने कहा, ‘‘दुश्मनी के कारण बहुत से होते हैं, हत्याएं हो जाती हैं.’’

‘‘हां हुजूर, जमीन के बंटवारे के अलावा मैं ने आमना पर भी बुरी नजर रखी थी. उस की इज्जत पर भी हाथ डाला था. मंजूर की जगह कोई और होता तो मेरी हत्या कर देता. सच बात तो यह है कि हत्या मेरी होनी थी, लेकिन मंजूर की हो गई.’’

मैं उठ कर बाहर गया और एक कांस्टेबल से कहा कि वह आमना को ले कर आ जाए. फिर अंदर जा कर रशीद का बयान सुनने लगा. वह सब बातें खुल कर कर रहा था. मुझे आमना से यह पूछना था कि वास्तव में उस ने मंजूर को रशीद के पास भेजा था, जबकि उस ने यह कहा था कि उसे पता ही नहीं था कि मंजूर कहां गया था.

‘‘एक बात सच सच बता दो रशीद, आमना कैसे चरित्र की है?’’

‘‘आप ने लोगों से पूछा होगा आमना के बारे में, सब ने उसे सज्जन ही बताया होगा. मेरी नजरों में भी आमना एक सज्जन महिला है, क्योंकि उस ने मुझे दुत्कार दिया था. लेकिन उस ने अपनी संतुष्टि के लिए एक आदमी रखा हुआ है, वह है कयूम.’’

‘‘कयूम तो पागल है.’’

‘‘पागल बना रखा है,’’ उस ने कहा, ‘‘लेकिन अपने मतलब भर का.’’

‘‘मैं ने सुना है कि उसे कोई भी अपनी बेटी का रिश्ता नहीं देता, क्योंकि वह पागल है?’’

‘‘यह बात नहीं है हुजूर, बेटियों वाले इसी गांव में हैं. वे देख रहे हैं कि कयूम आमना के जाल में फंसा हुआ है.’’

बहुत से सवालों के जवाब के बाद मुझे यह लगा कि रशीद सच बोल रहा है, लेकिन फिर भी मुझे इधरउधर से पुष्टि करनी थी. रशीद यह भी कह रहा था कि उसे हवालात में बंद कर के तफ्तीश करें.

गामे के 3 आदमी थाने में बैठे थे, मैं ने उन्हें बारी बारी बुला कर पूछा कि हत्या की पहली रात गामे कहां था और क्या उन्हें पता है कि मंजूर की हत्या गामे शाह या तुम में से किसी ने की है.

मैं ने पहले भी बताया था कि ऐसे लोगों से थाने में पूछताछ दूसरे तरीके से होती है. ये तीनों तो पहले ही थाने के रिकौर्ड पर थे. मैं ने एक कांस्टेबल और एक एएसआई बिठा रखा था. मैं एक से सवाल करता था और फिर उन्हें इशारा कर देता था, वे उसे थोड़ी फैंटी लगा देते थे.

सुबह तक यह बात सामने आई कि गामे शाह दूसरी औरतों की तरह आमना को भी खराब करना चाहता था. गामे शाह ने उन तीनों को तैयार करना चाहा था कि वे मंजूर की हत्या कर दें, लेकिन वे तैयार नहीं हुए. उस के बाद वह आमना का अपहरण कर के उसे बहुत दूर पहुंचाना चाहता था, लेकिन हत्या कोई मामूली बात नहीं थी, जो ये छोटेमोटे जुआरी करते.

कोई भी तैयार नहीं हुआ तो गामे शाह ने कहा कि वह खुद बदला लेगा. तीनों ने बताया कि उस शाम जब वे गामे शाह के मकान पर गए तो वह घर पर नहीं मिला. वे वहीं बैठ गए. बहुत देर बाद गामे शाह आया तो उस के हाथ में कुल्हाड़ी थी. उन्होंने उस से पूछा कि वह कहां गया था, उस ने कहा कि एक शिकार के पीछे गया था. इस के अलावा उस ने कुछ नहीं बताया.

पीसी ज्वैलर्स में करोड़ों की चोरी : जीरो बना हीरो

10 दिसंबर, 2018 की बात है. कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी. सर्दी के मौसम में आमतौर  पर सुबह देरी से ही कामकाज शुरू होता है. उस दिन आसमान में बादल भी छाए हुए थे, इसलिए धूप में भी तेजी नहीं थी.

गुड़गांव के सेक्टर-14 मार्केट के सामने राजीव नगर में पीसी ज्वैलर्स का विशाल शोरूम है. यह शोरूम आमतौर पर रोजाना सुबह साढ़े 10-11 बजे तक खुल जाता है. उस दिन भी कर्मचारी सुबह करीब साढ़े 10 बजे शोरूम पर पहुंच गए. इन में गार्ड, सेल्सगर्ल्स, मैनेजर व अन्य कर्मचारी शामिल थे.

कर्मचारियों को शोरूम के बाहर ही सुरक्षा एजेंसी के 2 गार्ड तैनात मिले. गार्ड्स और कर्मचारियों में औपचारिक अभिवादन हुआ. इस के बाद कर्मचारियों ने शोरूम के गेट खोले. गेट खोल कर कर्मचारी जब शोरूम में घुसे, तो अंदर का नजारा देख कर हैरान रह गए.

शोरूम के अंदर सामान इधरउधर बिखरा पड़ा था. शोकेस में रखे कीमती गहने और हीरे जवाहरात गायब थे. शोरूम के स्ट्रांगरूम की छत में एक बड़ा सुराख बना हुआ था. लग रहा था कि स्ट्रांगरूम में सेंध लगा कर चोरी की गई है.

कर्मचारियों ने यह बात बाहर खड़ी शोरूम की स्टोर मैनेजर संगीता जैन को बताई. चोरी की बात सुन कर संगीता घबरा गईं. वे तुरंत शोरूम के अंदर गईं. अंदर का नजारा देख कर उन्हें भी समझते देर नहीं लगी कि किसी ने सुनियोजित तरीके से शोरूम में सेंधमारी की है. शोकेस पर एक नजर डालने के बाद संगीता को स्ट्रांगरूम की चिंता हुई. उन्होंने स्ट्रांगरूम खोल कर देखा तो वहां से अधिकांश ज्वैलरी और कीमती जवाहरात गायब थे.

मैनेजर संगीता जैन ने तुरंत शोरूम के मालिकों को चोरी के वारदात की सूचना दे दी. साथ ही चोरी की जानकारी पुलिस कंट्रोल रूम को भी दे दी गई. सूचना मिलते ही थाना सेक्टर-14 की पुलिस, सेक्टर-31, सेक्टर-17 की पुलिस और पालम विहार क्राइम ब्रांच की टीमें मौके पर पहुंच गईं. डीसीपी और एसीपी भी घटनास्थल पर आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने मौकामुआयना किया तो पता चला कि चोरों ने स्ट्रांगरूम की छत काटने के लिए ड्रिल मशीन और छेनी वगैरह औजारों का उपयोग किया था. इन औजारों से चोरों ने छत में इतना बड़ा छेद कर दिया था कि एक आदमी आराम से नीचे उतर जाए.

इसी छेद के रास्ते चोरों ने शोरूम में प्रवेश किया और इसी रास्ते से सारा माल बाहर निकाला था. पुलिस को शोरूम के पीछे की तरफ एक रस्सी लटकी हुई मिली. इस के अलावा पत्थर काटने का हरे रंग का एक ब्लेड भी छत पर पड़ा मिला. पुलिस ने ये दोनों चीजें जांच के लिए फोरैंसिक लैब भेज दीं.

आयताकार भूखंड पर बने पीसी ज्वैलर्स के 4 मंजिला भवन में स्ट्रांगरूम भूतल पर सब से पीछे की ओर बना हुआ था. इसी तल पर आगे की ओर शोरूम बना था. बेसमेंट के बड़े हिस्से का उपयोग भी शोरूम में किया जाता था. पहली और दूसरी मंजिल को रिकौर्ड रूम के रूप में इस्तेमाल किया जाता था.

इस भवन के भूतल की छत पूरी थी, लेकिन प्रथम तल पर पीछे की तरफ करीब 10×10 फुट का हिस्सा खुला रखा गया था. यहां से ऊपर जाने के लिए सीढि़यां बनी हुई थीं. इसी के ठीक नीचे शोरूम का स्ट्रांगरूम था. स्ट्रांगरूम में सीसीटीवी कैमरा लगा था, लेकिन चोरों ने उसे तोड़ दिया था.

पुलिस को प्रारंभिक तौर पर यह पता नहीं चल सका कि चोर इस बिल्डिंग की छत तक कैसे पहुंचे. लेकिन वारदात के तरीके को देख कर पुलिस अधिकारियों को यह आभास जरूर हो गया कि यह वारदात रैकी करने के बाद ही की गई थी.

चोरों को पुख्ता तौर पर इस बात का पता था कि स्ट्रांगरूम कहां पर है और वहां तक कैसे पहुंचा जा सकता है. इन सब बातों को देखते हुए पुलिस ने अनुमान लगाया कि इस वारदात में शोरूम का कोई मौजूदा या पुराना कर्मचारी जरूर शामिल रहा होगा.

हालांकि मौके पर पुलिस अधिकारियों को शोरूम प्रबंधन से इस बात की जानकारी नहीं मिली कि कितना माल चोरी गया है, लेकिन यह अंदाजा जरूर हो गया कि चोरी गई ज्वैलरी की कीमत करोड़ों रुपए में रही होगी.

मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस अधिकारियों ने डौग स्क्वायड और फोरैंसिक टीम को बुला कर जांचपड़ताल कराई. फोरैंसिक टीम ने शोरूम में कई जगहों से फिंगरप्रिंट लिए. डौग स्क्वायड ने भी बिल्डिंग के चारों तरफ घूम कर छानबीन की, लेकिन इस कवायद से पुलिस को चोरों के बारे में कोई सुराग नहीं मिला.

इस बीच उसी दिन शोरूम की स्टोर मैनेजर संगीता जैन ने सेक्टर-14 पुलिस थाने में चोरी की रिपोर्ट दर्ज करा दी. पुलिस ने भादंसं की धारा 380 और 457 के तहत केस दर्ज कर लिया.

जांचपड़ताल में पुलिस को पता चला कि चोर खासतौर से महंगी ज्वैलरी और डायमंड ले गए हैं. उन्होंने छोटे जेवरों पाजेब, कड़े, अंगूठी, नोज पिन, कान की बाली आदि को हाथ भी नहीं लगाया था. चोर केवल हीरे जवाहरात की ज्वैलरी, सोने के हार और अन्य कीमती आभूषण ले गए थे. शोरूम के हालात से पुलिस ने अनुमान लगाया कि वारदात में जरूर 4 से अधिक बदमाश शामिल रहे होंगे.

पिछले कुछ सालों में गुड़गांव के किसी बड़े ज्वैलरी शोरूम में इस तरह की कोई वारदात नहीं हुई थी, इसलिए पुलिस इस वारदात में दूसरे राज्य के किसी बड़े गिरोह का हाथ होने का अनुमान लगा रही थी.

पुलिस ने चोरों का सुराग लगाने के लिए शोरूम में तोड़े गए स्ट्रांगरूम के डीवीआर और अन्य जगहों पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी देखी. इस के अलावा शोरूम के बाहर रात को तैनात रहे निजी सुरक्षा कंपनी के गार्ड्स से भी पूछताछ की.

पुलिस को हैरानी इस बात की थी कि शोरूम में इतनी बड़ी वारदात हो गई थी और बाहर तैनात सुरक्षा गार्ड्स को भनक तक नहीं लगी थी. सुरक्षा गार्ड्स से पूछताछ में केवल इतना पता चला कि पिछली रात साढ़े 12 बजे से डेढ़ बजे के बीच कुत्ते जरूर भौंक रहे थे, लेकिन कोई आदमी नजर नहीं आया था. भौंक रहे कुत्तों को सुरक्षा गार्ड्स ने ही भगाया था.

शोरूम प्रबंधन ने दूसरे दिन 11 दिसंबर को पुलिस को उन आभूषणों की लिस्ट दे दी, जो चोरी हुए थे. इन आभूषणों की कीमत तो कंपनी ने नहीं बताई थी, लेकिन मोटे तौर पर यह अनुमान लगाया था कि चोरी गए आभूषणों की कीमत 20 करोड़ तक हो सकती है. इन में सब से ज्यादा डायमंड व सोने के आभूषण थे.

डीसीपी शमशेर सिंह के निर्देशन में अपराध शाखा की कई टीमों को जांच में लगा दिया गया. पुलिस अफसरों ने दूसरे दिन भी शोरूम का मौकामुआयना कर चोरों का सुराग हासिल करने का प्रयास किया. वहां आसपास की दुकानों के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी देखी गईं.

अपराध शाखा के इंसपेक्टरों के साथ पुलिस उपायुक्त शमशेर सिंह ने पीसी ज्वैलर्स की बिल्डिंग के आसपास की इमारतों की छत पर जा कर यह जानने का प्रयास किया कि चोर किस रास्ते से ज्वैलरी शोरूम में पहुंचे.

चूंकि ज्वैलरी शोरूम के मुख्य गेट पर सुरक्षा गार्ड मौजूद थे, इसलिए पुलिस अधिकारियों  ने अनुमान लगाया कि चोरों ने इमारत पर चढ़ने और माल ले कर उतरने में उस रस्सी का इस्तेमाल किया होगा, जो पुलिस को शोरूम के पीछे की तरफ लटकी हुई मिली थी. यह रस्सी पीसी ज्वैलर्स की बिल्डिंग की छत पर बने कमरे की खिड़की से बंधी हुई थी. इस से अनुमान लगाया गया कि रस्सी वारदात से पहले दिन यानी 9 दिसंबर को बांध कर लटका दी गई होगी.

इस के अलावा पुलिस ने शोरूम प्रबंधन से मौजूदा कर्मचारियों और पिछले कुछ महीनों में नौकरी छोड़ने वाले कर्मचारियों की लिस्ट ली. मौजूदा कर्मचारियों से पूछताछ की गई. साथ ही पुलिस ने अपने स्तर पर इन कर्मचारियों के चालचलन के बारे में भी पता कराया. नौकरी छोड़ने वाले पुराने कर्मचारियों के पतेठिकाने मालूम कर उन की तलाश की गई.

पुलिस की एक टीम दूसरे शहरों में हुई ऐसी वारदातों के बारे में पता करने में जुटी थी. इस टीम को पता लगा कि सन 2013 में हरियाणा के रोहतक शहर में एक ज्वैलरी शोरूम की छत काट कर इसी तरह चोरी की गई थी. यह वारदात मेरठ के रहने वाले बदमाशों ने की थी. इस वारदात का मास्टरमाइंड आरोपी जेल में बताया गया.

गुड़गांव पुलिस को जानकारी मिली कि लखनऊ में भी इसी तरह एक शोरूम की छत काट कर चोरी की गई थी. इसी आधार पर पुलिस ने मेरठ और बुलंदशहर के कुछ बदमाशों को हिरासत में ले कर पूछताछ की, लेकिन चोरों का सुराग फिर भी नहीं मिल सका.

जांचपड़ताल में पुलिस को पता चला कि स्ट्रांगरूम के ठीक ऊपर छत काट कर एक बदमाश फिल्मी अंदाज में सीधे नीचे उतरा था. छत काट कर बनाए गए सुराख से ही बाकी चोर भी शोरूम में पहुंचे.

इन चोरों को शोरूम के बारे में एकएक चीज की जानकारी थी, इसीलिए रस्सी के सहारे स्ट्रांगरूम के अंदर लटकते ही मंकी कैप पहने पहले चोर ने अंदर छत में लगे सीसीटीवी कैमरे को डंडा मार कर तोड़ दिया था. इस से आगे की वारदात कैमरे में कैद नहीं हो सकी थी.

वारदात के तरीके से पुलिस को पक्का यकीन हो गया था कि जरूर इस में किसी मौजूदा या पुराने कर्मचारी का हाथ रहा होगा. इसलिए पुलिस ने पीसी ज्वैलर्स के मौजूदा और पुराने संदिग्ध कर्मचारियों पर फोकस कर के जांच शुरू की. इस रास्ते पर जांच आगे बढ़ती गई तो कडि़यां जुड़ती चली गईं. आखिर पुलिस का शक हकीकत के रूप में सामने आ गया.

पुलिस ने इस वारदात के 3 आरोपियों को 16 दिसंबर की शाम भारत बांग्लादेश की सीमा से गिरफ्तार कर लिया. इन आरोपियों को पश्चिम बंगाल की स्थानीय अदालत में पेश कर ट्रांजिट रिमांड पर लिया गया. इस के बाद पुलिस उन्हें ले कर 18 दिसंबर की रात गुड़गांव पहुंच गई.

इन आरोपियों से की गई पूछताछ में खुलासा हुआ कि इस वारदात को 2 कर्मचारियों ने ही अपने साथियों की मदद से अंजाम दिया था. ये दोनों कर्मचारी बांग्लादेश के बौर्डर पर स्थित पश्चिम बंगाल के रहने वाले थे. करोड़ों रुपए की इस चोरी का हीरो साढ़े 3 फुट का बौना युवक जफर था.

बौना जफर बीए सेकेंड ईयर तक पढ़ा था. बाकी दोनों आरोपी 10वीं व 12वीं तक पढ़े थे. 26 साल के मास्टरमाइंड जफर रहमान ने पीसी ज्वैलर्स के शोरूम में अपने 5 अन्य साथियों की मदद से चोरी की थी. पुलिस ने इन में से जफर, शफीबुल मंडल और सुलतान मुमताज को गिरफ्तार कर लिया.

इन में जफर और शफीबुल पीसी ज्वैलर्स में काम करते थे. शफीबुल ने कुछ दिन पहले नौकरी छोड़ दी थी. गिरफ्तार तीनों आरोपियों से पूछताछ में पुलिस के सामने जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

बांग्लादेश का रहने वाला शफीबुल मंडल करीब 6 महीने से पीसी ज्वैलर्स के गुड़गांव वाले शोरूम में स्टोरकीपर की नौकरी कर रहा था. शफीबुल ने अपनी मेहनत से शोरूम प्रबंधन का भरोसा जीत लिया था. इस के बाद उस ने वारदात से कुछ दिन पहले बांग्लादेश के ही रहने वाले अपने साथी जफर रहमान को भी इसी शोरूम में नौकरी दिलवा दी.

जफर ने अपनी मेहनत और ईमानदारी दिखा कर शोरूम प्रबंधकों का विश्वास हासिल कर लिया था. जफर और शफीबुल का मुख्य काम शोरूम की साफसफाई और ग्राहकों के लिए चायपानी की व्यवस्था करना था. बाद में शफीबुल ने नौकरी छोड़ दी थी.

बौने युवक जफर ने शोरूम पर नौकरी करते हुए शफीबुल के साथ मिल कर चोरी की योजना बनानी शुरू कर दी. इसी योजना के तहत वारदात के लिए जफर और शफीबुल ने अपने 4 साथियों को गुड़गांव बुला लिया. इन साथियों को दोनों कर्मचारियों ने शोरूम की सारी बातें बता कर अच्छी तरह समझा दिया कि कहां पर क्या क्या चीजें हैं.

जफर की मदद से शफीबुल सहित 5 चोर वारदात के दिन पीसी ज्वैलर्स की बिल्डिंग में छिप कर बैठ गए. मंकी कैप पहने ये चोर उस दिन शाम करीब साढ़े 5 बजे सीढि़यों के जरिए शोरूम की छत पर जा कर बैठ गए.

छत पर पहुंच कर इन लोगों ने वहां लगे सीसीटीवी कैमरे की दिशा बदल दी. ये लोग रस्सी, 2 बैग और छत काटने के लिए ग्राइंडर व गैस कटर, छेनी, हथौड़ा वगैरह साथ ले कर आए थे. इन का साथी जफर शोरूम से पूरे घटनाक्रम पर नजर रखे हुए था. 9 दिसंबर की रात करीब पौने 9 बजे शोरूम बंद हुआ तो जफर अंदर ही रह गया. वह शोरूम से बाहर नहीं निकला और कैमरों की नजर से दूर अंदर छिप कर बैठा रहा. शोरूम के प्रबंधकों और सिक्योरिटी वालों को भी इस बात का पता नहीं चला.

रात को शोरूम बंद होने के 2-3 घंटे बाद तक सभी बदमाश चुपचाप बैठे रहे. रात करीब साढ़े 11 बजे जफर ने छत का लोहे का गेट खोल दिया. छत पर पहले से छिपे बैठे सभी बदमाश वहां से पहली मंजिल पर आ गए.

चूंकि जफर और शफीबुल को पहले से पता था कि सब से ज्यादा जेवर स्ट्रांगरूम में हैं, लेकिन स्ट्रांगरूम को खोलना हंसी खेल नहीं था. इसलिए इन लोगों ने योजना के अनुसार स्ट्रांगरूम की छत काटने का फैसला किया.

कुछ देर बाद इन्होंने ग्राइंडर और कटर की मदद से शोरूम के स्ट्रांगरूम की छत का लेंटर काटना शुरू कर दिया. करीब डेढ़ घंटे की मशक्कत के बाद छत का इतना हिस्सा कट गया कि उस में से एक आदमी निकल सके.

इसी सुराख से एक चोर रस्सी के सहारे स्ट्रांगरूम में दाखिल हुआ. अंदर लटकते ही उस ने डंडे की मदद से स्ट्रांगरूम की छत पर लगे सीसीटीवी कैमरे को तोड़ दिया. इस चोर ने स्ट्रांगरूम में रखे हीरेजवाहरात और सोने के कीमती गहने 2 बैगों में भर लिए. इस काम में उसे करीब आधे घंटे का समय लगा.

स्ट्रांगरूम की छत पर पहले से मौजूद इन के साथियों ने रस्सी की मदद से जेवरों से भरा बैग ऊपर खींच लिया. बाद में जफर व शफीबुल सहित सभी चोर शोरूम की छत पर पहुंच गए. रात करीब सवा 2 बजे छत से सभी आरोपी रस्सी के सहारे जेवरों से भरे 2 बैग ले कर मेनरोड के बजाय पीछे के रास्ते से नीचे उतरे.

वहां से आटोरिक्शा में सवार हो कर ये लोग गुड़गांव के सोहना रोड पर अपने साथी के कमरे पर गए.

दूसरे दिन पांचों चोर गुड़गांव से ओला कैब में सवार हो कर दिल्ली के लिए निकल गए, जबकि जफर वहीं रह गया. दिल्ली गए 5 चोरों में एक चोर तो उसी दिन हवाईजहाज से कोलकाता चला गया, जबकि 4 दूसरे दिन ट्रेन से कोलकाता के लिए रवाना हुए.

इधर मास्टरमाइंड जफर पूरे मामले पर नजर रखने के लिए गुड़गांव में ही रुका रहा. वह वारदात के अगले दिन अपनी ड्यूटी पर शोरूम भी पहुंचा. वहां वह चायपानी पिलाने के बहाने पुलिस अफसरों की बातें सुनता रहा. पुलिस अफसरों की बातों से उसे यकीन हो गया कि उस का और उस के साथियों का पता नहीं चल पाएगा.

जांचपड़ताल में पुलिस को पता चला कि शफीबुल ने कुछ दिन पहले ही नौकरी छोड़ी थी. यह पता लगने पर पुलिस उस की तलाश में पश्चिम बंगाल गई. वहां संबंधित थाना पुलिस ने बताया कि शफीबुल पर पहले भी चोरी के मामले दर्ज हैं.  वह जेल भी जा चुका है. इस के बाद पुलिस को यकीन हो गया कि वारदात में शफीबुल का किसी न किसी रूप में हाथ जरूर है.

शफीबुल ने जफर को नौकरी पर रखवाया था, इसलिए पुलिस ने जफर से पूछताछ करने की सोची. लेकिन तब तक जफर गायब हो चुका था. वह वारदात के बाद केवल एक दिन ही शोरूम पर आया था. इस से पुलिस को यह अनुमान हो गया कि जफर भी भाग कर पश्चिम बंगाल गया होगा.

पुलिस ने लगातार भागदौड़ कर जफर और शफीबुल को पकड़ लिया. इन से पूछताछ के बाद तीसरे आरोपी को पकड़ा गया. जफर 10 दिसंबर को नौकरी पर जाने के बाद अगले दिन पश्चिम बंगाल चला गया था और अपने घर जा पहुंचा था.

पूछताछ में सामने आया कि अगर पुलिस आरोपियों तक नहीं पहुंचती, तो ये लोग 2 दिन बाद बांग्लादेश भाग जाते. दरअसल, बांग्लादेश बौर्डर पर 2 दिन बाद ही काली माता का मेला लगना था. यह मेला 10 दिन तक चलता है. इस मेले में बौर्डर के दोनों ओर के गांवों के लोग आते हैं.

इस दौरान दोनों देशों के लोगों की आवाजाही के कारण कोई जांचपड़ताल भी नहीं होती, इसलिए जफर व शफीबुल की योजना थी कि मेले के दौरान चोरी की ज्वैलरी ले कर बांग्लादेश भाग जाएंगे.

पुलिस ने गिरफ्तार चोरों की निशानदेही पर करीब 13 करोड़ रुपए की ज्वैलरी बरामद कर ली. इस का वजन करीब 16 किलो था. गुड़गांव पुलिस के लिए पश्चिम बंगाल से इतने वजन की कीमती ज्वैलरी लाना जोखिम भरा रहा.

इन चोरों ने करीब 13 करोड़ रुपए की ज्वैलरी के साथ लगभग साढ़े 9 लाख रुपए नकद भी चुराए थे. इस में से अधिकांश नकद रकम उन्होंने नए कपड़े, मोबाइल और अन्य सामान खरीदने के अलावा टैक्सी और हवाई जहाज की यात्रा पर खर्च कर दी थी.

पुलिस ने 20 दिसंबर को तीनों गिरफ्तार चोरों को गुड़गांव की अदालत में पेश किया. अदालत ने उन्हें 6 दिन के रिमांड पर पुलिस को सौंप दिया. रिमांड अवधि के दौरान पुलिस ने चोरों के बताए अनुसार 21 दिसंबर को चोरी का सीन रीक्रिएट किया.

सीन रीक्रिएट के दौरान गुड़गांव के थाना सेक्टर-14 की पुलिस, अपराध शाखा सेक्टर-17 और फोरैंसिक विशेषज्ञों की टीम मौजूद रही. पुलिस ने आरोपियों की निशानदेही पर गुड़गांव के सेक्टर-48 स्थित एक आरोपी के कमरे से छेनी, हथौड़ा व कटर आदि बरामद किए. इन का उपयोग वारदात में किया गया था.

पुलिस का दावा है कि चोरी गए 90 फीसदी जेवर बरामद हो गए हैं. पुलिस ने गिरफ्तार आरोपियों को रिमांड अवधि पूरी होने पर 26 दिसंबर को अदालत में पेश किया. अदालत ने उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया.

एक हत्या ऐसी भी : कौन था मंजूर का कातिल? – भाग 3

रात आधी से अधिक बीत चुकी थी. मेरे सामने एक जटिल विवेचना थी. मैं थोड़ा सा आराम करने के लिए लेट गया. मेरे बुलाए गामे शाह के तीनों आदमी आ गए थे. उन से भी मुझे पूछताछ करनी थी. ऐसे लोगों से जांच थाने में ही होती है. मैं ने उन्हें यह कह कर थाने भेज दिया कि मेरा इंतजार करें.

सुबह मेरी आंख खुली. नाश्ते के बाद मैं ने सब से पहले रशीद को बुलवाया. वह भी सुंदर जवान था. मैं ने उसे अपने सामने बिठाया, वह घबराया हुआ था. उस की आंखें जैसे बाहर को आ रही थीं.

मैं ने कहा, ‘‘तुम ही कुछ बताओ रशीद, मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूं. मंजूर की हत्या किस ने की है?’’

‘‘मैं क्या बता सकता हूं सर,’’ उस के मुंह से ये शब्द मुश्किल से निकले थे.

‘‘इतना मत घबराओ, जो कुछ तुम्हें पता है, सचसच बता दो. मुझे जो दूसरों से पता चलेगा वह तुम ही बता दो. फिर देखो, मैं तुम्हें कितना फायदा पहुंचाता हूं.’’

‘‘मैं कुछ नहीं जानता सर,’’ उस ने आंखें झुका लीं.

‘‘ऊपर देखो, तुम सब कुछ जानते हो. तुम्हें बोलना ही पड़ेगा. मंजूर अपना हिस्सा लेने की कोशिश कर रहा था, तुम ने सोचा इसे दुनिया से ही उठा दो.’’

‘‘नहीं सर,’’ वह तड़प कर बोला, जैसे उस में जान आ गई हो. वह अपने आप को निर्दोष साबित करने लगा.

हत्या के जितने भी कारण बताए गए थे. मैं ने एकएक कर के उस के सामने रखे. वह सब से इनकार करता रहा. मैं ने जब उस से पूछा कि हत्या के समय वह कहां था तो उस ने बताया कि वह घर पर ही था.

‘‘सूरज डूबने के कितनी देर बाद घर आए थे?’’

‘‘मैं तो सूरज डूबते ही घर आ गया था.’’

‘‘इस से पहले कहां थे?’’

‘‘बाग में.’’

चूंकि वह मेरी नजरों में संदिग्ध था, इसलिए मैं ने उस से खास तरह की पूछताछ की. रशीद से जो बातें हुईं, मैं ने उन्हें अपने दिमाग में रखा और बाहर आ कर चौकीदार से कहा कि रशीद के बाग में जो मजदूर काम करता है, उसे और उस की पत्नी को ले आए.

रशीद को मैं ने बाहर बिठा दिया और उस के बाप को बुलाया. बाप आ गया तो मैं ने उस से पूछा, ‘‘हत्या के दिन रशीद घर किस समय आया था?’’

उस ने बताया कि वह सूरज डूबने के बाद आया था.

‘‘एक घंटा या 2 घंटे बाद?’’

‘‘डेढ़ घंटा समझ लें.’’

यह रशीद का बाप था, इसलिए मैं उस से उम्मीद नहीं रख सकता था कि वह सच बोलेगा.

रशीद का नौकर जो बाग में रहता था, मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम इन लोगों के रिश्तेदार नहीं हो, नौकर हो. इन के गले की फांसी का फंदा अपने गले में मत डलवाना. मैं जो पूछूं, सचसच बताना. तुम जानते हो कल रात मंजूर की हत्या हुई है. शाम को रशीद बाग में था, क्या यह सही है?’’

‘‘हां हुजूर, वह बाग में ही था.’’

‘‘पहले तो वह अकेला ही था,’’ मजदूर ने जवाब दिया, ‘‘पनेरी लगानी थी. रशीद हमारे साथ था, फिर मंजूर आ गया था.’’

‘‘कौन मंजूर?’’ मैं ने हैरानी से कहा.

‘‘वही मंजूर सर, जिस की हत्या हुई है.’’

मुझे ऐसा लगा, जैसे अंधेरे में रोशनी की किरन दिखाई दी हो.

‘‘हां, फिर क्या हुआ?’’ मैं ने इस आशा से पूछा कि वह यह कहेगा कि उन की लड़ाई हुई थी.

‘‘मंजूर रशीद को अलग ले गया.’’ मजदूर ने कहा, ‘‘फिर वे चारपाई पर बैठे रहे.’’

‘‘कितनी देर बैठे रहे?’’

‘‘सूरज डूबने तक बैठे रहे.’’

‘‘तुम में से किसी ने उन की बातें सुनीं?’’

‘‘नहीं हुजूर, हम दूर क्यारियों में पनेरी लगा रहे थे. जब अंधेरा हो गया तो हम काम छोड़ कर अपने कोठों में चले गए.’’

‘‘ये बताओ, क्या वे ऊंची आवाज में बातें कर रहे थे? मेरा मतलब क्या वे झगड़ रहे थे?’’

‘‘नहीं हुजूर, वे तो बड़े आराम से बातें कर रहे थे. जब अंधेरा हुआ तो दोनों ने हाथ मिलाया और मंजूर चला गया.’’

‘‘…और रशीद?’’

‘‘वह कुछ देर बाग में रहा, उस ने हम से पनेरी के बारे में पूछा और फिर वह भी चला गया.’’

‘‘तुम ने उसे जाते हुए देखा था? उस के हाथ में कुल्हाड़ी थी?’’

‘‘नहीं हुजूर,’’ उस ने जवाब दिया, ‘‘जाने से पहले वह कमरे में गया था. जब वापस आया तो अंधेरा हो गया था. उस के हाथ में क्या था, हमें दिखाई नहीं दिया.’’

मैं ने उस की पत्नी को बुला कर उस से पूछा कि क्या मंजूर पहले कभी बाग में आया था. उस ने बताया कि परसों से पहले वह तब आया था, जब उन का झगड़ा चल रहा था. मैं ने उस से पूछा कि रशीद जब बाग से निकल रहा था तो क्या उस के हाथ में कुल्हाड़ी थी?

‘‘हां थी हुजूर.’’

‘‘अंधेरे में तुम्हें कैसे पता चला कि उस के हाथ में कुल्हाड़ी है?’’

‘‘डंडा होगा या कुल्हाड़ी होगी. अंधेरे में साफसाफ नहीं दिखा.’’

मैं ने मजदूर को अंदर बुलाया और कुछ बातें पूछ कर जाने दिया. उस के बाद मेरे 2 मुखबिर आ गए. उन्होंने वही बातें बताईं जो मुझे पहले पता लग गई थीं. उन्होंने विश्वास के साथ कहा कि आमना चरित्रवान औरत है. कयूम के बारे में बताया कि वह दिमागी तौर पर कमजोर है, लेकिन बात खरी करता है. उन्होंने भी रशीद पर शक किया.

उन में से एक ने कहा, ‘‘जनाब, आप गामे शाह को भी सामने रखें. कयूम और मंजूर ने उसे ऐसी फैंटी लगाई थी कि वह काफी देर तक बेहोश पड़ा रहा था. वह बहुत जहरीला आदमी है, बदला जरूर लेता है.’’

‘‘लेकिन उस ने कयूम से तो बदला नहीं लिया?’’

‘‘वह कहता था कि मंजूर को ठिकाने लगा कर उस की बीवी का अपहरण करेगा.’’

उस समय तक मृतक का अंतिम संस्कार हो चुका था. मैं ने मंजूर की पत्नी को बुलवाया. उस की आंखें सूजी हुई थीं. लेकिन मुझे पूछताछ करनी थी. अभी तक मुझे आमना और कयूम पर ही शक था.

‘‘मैं तुम्हें परेशान नहीं करना चाहता आमना. यह समय पूछने का तो नहीं है, लेकिन मैं केस की जांच कर रहा हूं. मैं चाहता हूं कि तुम से यहीं कुछ पूछ लूं, नहीं तो तुम्हें थाने में आना पड़ता, जो अच्छा नहीं होता. तुम जरा अपने आप को संभालो और मुझे बताओ कि मंजूर और रशीद की दुश्मनी का क्या मामला था?’’

उस ने वही बातें बताईं जो पहले बता चुकी थी.

‘‘क्या रशीद ने तुम्हारे साथ कोई छेड़छाड़ की थी?’’ मैं ने आमना से पूछा. उस ने बताया कि 2 बार की थी. मैं ने तंग आ कर यह बात अपने पति को बता दी थी. कयूम को भी पता लग गया. दोनों उस का वही हाल करना चाहते थे जो उन्होंने गामे शाह का किया था.

‘‘मैं ने सुना है कि वह रशीद के बाग में गया था. वह वहां से निकला तो लेकिन घर नहीं पहुंचा. क्या तुम्हें पता है कि वह रशीद के बाग में गया था?’’

आमना ने जवाब दिया, ‘‘नहीं, वह बताता भी कैसे. आप के कहने के मुताबिक वह वहां से निकला तो लेकिन घर नहीं पहुंच सका. जाहिर है, रशीद ने उस की हत्या कर दी थी.’’

‘‘यह तो तुम कभी नहीं बताओगी कि कयूम के साथ तुम्हारे संबंध कैसे थे?’’

उस कहा, ‘‘मैं तो बता दूंगी, लेकिन आप यकीन नहीं करेंगे. वह मेरा भाई है.’’

‘‘आमना…सच्ची बात कहनी है तो खुल कर कहो. कयूम के साथ तुम्हारे संबंध कैसे हैं, मेरा इस से कुछ लेना देना नहीं. मैं ने मंजूर के हत्यारे को पकड़ना है. क्या तुम्हारे दिल में वैसी ही मोहब्बत है, जैसी कयूम के दिल में तुम्हारे लिए है.’’

‘‘नहीं,’’ आमना ने कहा, ‘‘जब वह महज 12-13 साल का था, तभी से हमारे यहां आता था. अब वह जवान हो गया है. मुझे डर था कि मेरा शौहर आपत्ति करेगा, लेकिन उस ने कोई आपत्ति नहीं की. मैं ने कयूम से कहा था, जवान औरत से जवान आदमी की मोहब्बत किसी और तरह की होती है. कयूम ने मेरी ओर हैरानी से देखा और देखते ही देखते उस की आंखों में आंसू आ गए.

‘‘वह मुझ से 4-5 साल छोटा है. मैं ने उसे अपने गले से लगा लिया तो वह हिचकियां ले कर रोने लगा. मैं ने उसे चुप कराया. वह बोला, ‘आमना, यह कहने से पहले मुझे जहर दे देती.’ इस मोहब्बत को देख कर लोगों ने उसे रिश्ते देने बंद कर दिए.

‘‘मैं ने उस से कहा, मैं तुम्हारा किसी और जगह रिश्ता करवा दूंगी. उस ने दोटूक जवाब दिया, जब तक तुम जिंदा हो, मैं कहीं शादी नहीं कर सकता. अगर किसी लड़की से मेरी शादी हो भी जाती है और वह मुझे अच्छी लगती है तो मैं उसे पत्नी नहीं समझूंगा, क्योंकि उस में मुझे तुम दिखाई दोगी और मैं तुम्हें बहुत पवित्र समझता हूं.’’

मैं ने आमना को जाने की इजाजत दे दी, लेकिन अपने दिमाग में उसे संदिग्ध ही रखा.

एक हत्या ऐसी भी : कौन था मंजूर का कातिल? – भाग 2

मैं ने दूसरों से बाहर बैठने को कहा. जब वे चले गए तो मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम्हारे खास दोस्त की हत्या हो गई. जब तुम्हें उस की हत्या की सूचना मिली तो तुम ने सोचा होगा कि हत्यारा कौन हो सकता है?’’

‘‘यह तो स्वाभाविक है. लेकिन मंजूर ऐसा आदमी था कि दुश्मनी को दबा लेता था. कोशिश करता था कि किसी के साथ लड़ाईझगड़ा न हो.’’

‘‘क्या तुम बता सकते हो कि उस के दुश्मन कौन कौन थे?’’

‘‘इतनी गहरी दुश्मनी तो उस की किसी के साथ नहीं थी, लेकिन मंजूर मुझ से एक ही आदमी की बात करता था और उस के दिल में उस आदमी से दुश्मनी बैठी हुई थी. वह उस के चाचा का लड़का है. वे 3 भाई हैं, वह बीच का है.’’

‘‘उस के साथ क्या दुश्मनी थी?’’

‘‘यह दुश्मनी जमीन के बंटवारे पर हुई थी. सब जानते हैं कि उन्होंने मंजूर की जमीन का कुछ हिस्सा धांधली से हड़प लिया था. मंजूर ने चाचा को बताया था, चाचा मान गया था कि मंजूर ठीक कहता है. उस का बड़ा बेटा भी मान गया था लेकिन बीच वाला, जिस का नाम रशीद है, वह नहीं माना था. यहां तक कि वह मरने मारने पर उतर आया था.

‘‘मंजूर अपना यह दुखड़ा मुझे सुनाता रहता था. उस के दादा का एक बाग है, जिस में उस के बाप ने कुआं, रेहट भी लगवाई थी. उस ने इस बाग में बहुत मेहनत की थी. बाप मर गया तो मंजूर ने बाग में जाना शुरू कर दिया. रशीद भी जाने लगा और धीरेधीरे बाग पर कब्जा कर लिया. मंजूर की मजबूरी यह थी कि वह अकेला था, 2-3 भाई होते तो किसी की हिम्मत नहीं होती.’’

उस ने बताया कि रशीद मंजूर को छेड़ता रहता था. 2-3 बार मंजूर सीधा हुआ तो उस ने रशीद से कहा कि मैं परिवार की इज्जत की वजह से चुप रहता हूं, अगर तुम ने अपनी जबान बंद नहीं की तो मैं तुम्हारी जबान बंद कर के दिखा दूंगा.

उन की दुश्मनी का एक और कारण था. बिरादरी के एक परिवार ने अपनी बेटी का रिश्ता मंजूर को दे दिया. बात पक्की हो गई. मंजूर ने लड़की को कपड़े और अंगूठी भेज दी. 8-10 दिन बाद अंगूठी वापस आ गई, साथ ही कपड़े भी. यह भी कहा गया था कि मंगनी तोड़ दी गई है. 2-3 दिन बाद उस की मंगेतर के घर वालों ने उस की शादी रशीद से कर दी और कुछ दिन बाद मंजूर की शादी आमना से हो गई.

‘‘आमना का चालचलन कैसा है?’’

उस ने कहा, ‘‘सर, वह चालचलन की बहुत अच्छी है.’’

‘‘यह कयूम का क्या चक्कर है?’’

‘‘कोई चक्कर नहीं है सर, उस के घर में आने पर और काफीकाफी देर तक बैठने पर न तो आमना को ऐतराज था और न मंजूर को.’’

‘‘आमना के साथ कयूम का कैसा संबंध था?’’

‘‘सर, संबंध एकदम पाक था. उस के अच्छे चरित्र का एक उदाहरण सुनाता हूं. 10 साल तक जब उसे कोई बच्चा नहीं हुआ तो आमना गामे शाह के पास गई. गामे शाह चरित्रहीन व्यक्ति है. उस के पास चरित्रहीन औरतें आती हैं और उन औरतों ने ही गामे शाह को मशहूर कर रखा है कि वह निस्संतान औरतों को संतान देता है.

‘‘आमना भी गामे शाह के घर पहुंच गई. उस ने आमना की इज्जत पर हाथ डाला तो वह गाली गलौज कर के चली आई. अगर वह चरित्रहीन होती तो उस से संतान ले कर आ जाती और मंजूर उसे अपनी संतान समझ कर पाल लेता.’’

‘‘यह घटना कब की है?’’

‘‘4-5 दिन पहले की बात है. जब आमना ने गामे शाह की बात मंजूर को बताई तब कयूम वहीं बैठा हुआ था. कयूम भड़क गया, वे दोनों उस के घर गए और उसे बाहर बुला कर इतना पीटा कि वह बहुत देर तक उठ नहीं सका. उस के पास 2-3 जुआरी शराबी रहते थे. वे गामे शाह को बचाने आए तो दोनों ने उन्हें भी पीटा.’’

‘‘अगर मैं कहूं कि मंजूर का हत्यारा कयूम है तो तुम क्या कहोगे?’’ मैं ने मंजूर के दोस्त से कहा.

‘‘मैं नहीं मानूंगा,’’ उस ने जवाब दिया, ‘‘मुझ से अगर पूछोगे तो मैं 2 आदमियों के नाम लूंगा. एक तो गामे शाह और दूसरा रशीद.’’

मैं इस सोच में पड़ गया कि हो सकता है मंजूर और रशीद का कहीं आमनासामना हो गया हो और उन का झगड़ा हुआ हो. इसी झगड़े में रशीद ने उसे मार डाला हो. यह घटना ऐसी थी, जिस का कोई प्रत्यक्ष गवाह नहीं था.

सूरज डूबने वाला था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई थी. उस में हत्या का समय लगभग सूरज छिपने के डेढ़-2 घंटे बाद का लिखा था. सर्जन ने सिर पर 2 ही घाव लिखे थे, जो मैं ने देखे थे. उस ने यह भी लिखा था कि वह इन घावों के कारण ही मरा था.

मैं ने कयूम को बुलाने के लिए कहा. कुछ देर बाद एक सुंदर जवान मेरे सामने लाया गया. नंबरदार ने बताया कि यही कयूम है.

‘‘आओ जवान,’’ मैं ने दोस्ताना तौर पर कहा, ‘‘हमें तुम्हारी जरूरत थी.’’

मैं ने नंबरदार को इशारा किया तो वह बाहर चला गया.

मेरे पूछने पर उस ने रशीद के बारे में वही सब बातें कहीं जो मंजूर के दोस्त ने सुनाई थी. मैं ने उस से सवाल किया, ‘‘एक बात बताओ कयूम, मंजूर ने कभी यह कहा था कि वह रशीद की हत्या कर देगा?’’

कयूम ने तुरंत जवाब नहीं दिया. पहले उस ने दाएंबाएं फिर ऊपर देखा. फिर मेरी ओर देख कर ऐसे सिर हिलाया, जैसे उसे पता न हो. ‘‘शायद कभी कहा हो.’’ उस ने मरी सी आवाज में कहा. फिर बोला, ‘‘मंजूर, उस से बहुत परेशान था. सरकार, उसे तो मैं ही पार लगाने वाला था, लेकिन आमना भाभी ने रोक लिया.’’

‘‘कोई खास बात हुई थी या पुरानी बातों पर तुम उसे खत्म करना चाहते थे?’’

‘‘बड़ी खास बात थी सरकार. कोई डेढ़-2 महीने पहले की बात है. रशीद मंजूर के घर किसी काम से गया था. उस कमीने ने आमना भाभी को अकेला देख कर उन्हें फांसने की कोशिश शुरू कर दी थी. आमना भाभी ने उसे उसी समय भलाबुरा कह कर घर से बाहर कर दिया था.

‘‘2-3 दिन बाद आमना भाभी खेतों में गईं तो रशीद उन्हें रोक कर बोला, ‘‘पता नहीं, तुम मंजूर जैसे कमजोर और कायर आदमी के साथ कैसे गुजर कर रही हो.’’

आमना भाभी ने कहा, ‘‘शायद तुम जिंदा नहीं रहना चाहते हो. तुम तो दुनिया में नहीं रहोगे लेकिन तुम्हारे पीछे रहने वाले लोग मान जाएंगे कि मंजूर कमजोर नहीं था.’’

मंजूर से मैं ने यह बात बहुत बाद में सुनी. मैं ने उस से कहा कि उस ने यह बात पहले क्यों नहीं बताई. जवाब में मंजूर ने कहा, ‘‘मुझे जो करना था, कर दिया.’’

मैं ने उस से पूछा कि उस ने क्या किया था. उस ने बताया कि उस ने रशीद की गरदन अपनी बांहों में ऐसे दबा ली थी कि उस की आंखें बाहर निकल आई थीं. फिर उस की गरदन छोड़ कर कहा, ‘‘जा इस बार छोड़ दिया.’’

रशीद ने दूर जा कर कहा, ‘‘मंजूरे, मैं तुझ से बदला जरूर लूंगा.’’

‘‘उस के बाद रशीद ने तो कोई हरकत नहीं की?’’

‘‘अगर करता तो आज मैं आप के सामने नहीं होता और न रशीद दुनिया में होता. मैं ने एक दिन खेत में उस का कंधा हिला कर कहा था, गांव में सिर उठा कर मत चलना. और हां, मंजूर को कमजोर मत समझना. तेरी मौत उसी के हाथों लिखी है.’’

‘‘उस ने कुछ जवाब दिया?’’

‘‘वह कांपने लगा, ऐसा लगा जैसे माफी मांग रहा हो. वास्तव में मंजूर और आमना में बहुत मोहब्बत थी.’’

‘‘आमना तो तुम से भी मोहब्बत करती थी,’’ मैं ने कहा.

‘‘सरकार, किस बहन और भाई में मोहब्बत नहीं होती. अंतर यह है कि हम दोनों के मांबाप अलग अलग थे, लेकिन मैं महसूस करता हूं कि हम दोनों एक ही मां के पेट से पैदा हुए थे.’’

‘‘मुझे किसी ने बताया था कि कोई तुम्हें अपनी बेटी का रिश्ता नहीं देता?’’

‘‘कोई रिश्ता देगा भी तो मैं कबूल नहीं करूंगा. जब तक आमना मेरे सामने मौजूद है, मैं किसी और औरत का रिश्ता कबूल नहीं करूंगा.’’

मैं ने उस का अर्थ यह निकाला कि उस का और आमना का संबंध दूसरी तरह का था. मतलब आमना को बहन कहना परदा डालने जैसा था.

मंजूर के घर से रोने और चीखने की आवाजें आ रही थीं. आमना की चीख सुनाई दी तो कयूम ने कहा, ‘‘थानेदार साहब, आप मुझे इजाजत दें, जब आप बुलाएंगे मैं हाजिर हो जाऊंगा.’’ मैं ने उसे जाने दिया.

हुस्न और नशे के जाल में फंसा खिलाड़ी – भाग 3

कोई डेढ़ दो साल पहले एक युवक के माध्यम से सुहैल को पता चला कि कोठारी के रईस किसान का खूबसूरत जवान बेटा जिम खेलने के लिए सीहोर के चक्कर लगा रहा है. नरेश देखने में था भी हैंडसम, इसलिए मोटी मुर्गी देख कर सुहैल किसी तरह नरेश से जानपहचान करने के बाद एक रोज उसे अपने घर ले गया.

वास्तव में सुहैल शिकार को फांसने के लिए हर किस्म के हथियार का इस्तेमाल करता था. इसलिए नरेश को फांसने के लिए सुहैल की पत्नी और बेटी रुकैया खुल कर अपना जादू दिखाने लगीं. नरेश भी रुकैया की खूबसूरती पर फिदा हो गया, जिस से वह अकसर सुहैल से मिलने के बहाने उस के घर आनेजाने लगा.

आखिर रुकैया उसे फांसने में सफल हो ही गई. फिर सुहैल ने धीरेधीरे नरेश को मुफ्त में कोकीन और ब्राउन शुगर का नशा करवाना शुरू कर दिया. जब वह नशे का आदी हो गया तो सुहैल ने नशे की कीमत वसूलनी शुरू कर दी.

नरेश के पास पैसों की कमी नहीं थी, इसलिए वह रुकैया के चक्कर में पैसा लुटाने लगा. योजना के अनुसार नरेश के नशे की गिरफ्त में आ जाने के बाद रुकैया को पीछे हट जाना था, लेकिन नरेश के मामले में रुकैया खुद शिकार हो चुकी थी. इसलिए वह नरेश से नजदीकी बनाए रही, जिस के चलते सुहैल को नरेश से परेशानी होने लगी. लेकिन वह खूब पैसे लुटा रहा था, इसलिए सुहैल अपनी आंखें बंद किए रहा.

नरेश खतरे को समझ नहीं पाया

धीरेधीरे नरेश के हाथ की वह रकम खत्म होने लगी, जो उस ने जिम खोलने के लिए घर से ली थी. पैसा खत्म हो गया तो सुहैल उसे उधारी में नशे की पुडि़या देने लगा. इस में सुहैल को कोई परेशानी नहीं थी. उसे डर केवल इस बात का था कि रुकैया और नरेश को ले कर समाज में कोई बवाल खड़ा न हो जाए. इसलिए वह नहीं चाहता था कि अब नरेश उस के घर आए.

लेकिन नरेश के ऊपर प्यार और कोकीन का ऐसा नशा सवार था कि गांव से निकल कर सीधे सुहैल के घर पहुंच जाता. बाद में धीरे धीरे नरेश को अपनी गलती का अहसास होने लगा था. उस का स्वास्थ्य भी गिरने लगा था इसलिए उस ने सुहैल के घर जाना कुछ कम कर दिया. सुहैल को अब अपने पैसों की चिंता होने लगी, जो नरेश के ऊपर उधार थे.

11 नवंबर को नरेश ने जिम के उपकरण खरीदने के लिए घर से 4 लाख रुपए लिए, लेकिन पैसा जेब में आया तो उसे नशे की सुध आ गई. वह सीधे सुहैल के घर जा पहुंचा, जहां सुहैल ने नशे की पुडि़या देने से पहले अपने उधार के 2 लाख रुपए मांगे. इस पर नरेश ने कहा कि पैसा तो उस के पास इस समय भी है, लेकिन वह इस से जिम का सामान खरीदने जा रहा है. बाद में जिम से पैसे कमा कर उस का सारा हिसाब चुकता कर देगा.

उस दौरान नरेश की नजरें घर में रुकैया की तलाश कर रही थीं. यह देख कर सुहैल का दिमाग खराब हो गया. उसे लगा कि अगर आज नरेश का फाइनल हिसाब कर दिया जाए तो उस का पैसा वसूल हो जाएगा. यह सोच कर उस ने कमरे में पड़ा चाकू उठा कर सीधे नरेश के सीने पर वार कर दिया.

नरेश काफी ताकतवर था. चाकू से घायल होने के बावजूद भी वह सुहैल से भिड़ गया. इधर कमरे में हल्ला सुन कर सुहैल की पत्नी इशरत और बेटा अमन अंदर पहुंचे तो वहां का नजारा देख कर चौंक गए. चूंकि नरेश सुहैल पर भारी पड़ रहा था, इसलिए सुहैल ने पत्नी और बेटे से मदद करने को कहा.

इशरत और अमन नरेश पर पिल पड़े, जिस के चलते सुहैल ने जल्द ही उस पर चाकू से कई वार कर खेल खत्म कर दिया. अब जरूरत नरेश की लाश को ठिकाने लगाने की थी. इतनी भारी लाश एक बार में चोरीछिपे नहीं ले जाई जा सकती थी. इसलिए तीनों ने मिल कर बांके की मदद से रात में ही नरेश की लाश के 8 टुकड़े कर दिए.

इस के बाद एक प्लास्टिक के बोरे में धड़ और दूसरे में सिर तथा तीसरे में हाथ व चौथे बोरे में उस के पैर एवं कपड़े और जूते भर दिए. फिर रात में 4 बजे के करीब सुहैल अपनी स्कूटी पर एकएक बोरा ले जा कर कर्बला के पास सीवन नदी में फेंक आया.

इस दौरान रात में ही नरेश के घर वाले बेटे के बारे में सुहैल से पूछताछ कर चुके थे, इसलिए वह समझ गया कि अगर वह घर पर रहा तो फंस जाएगा. योजनानुसार सुबह होते ही वह बीमारी के नाम पर भोपाल के एलबीएस अस्पताल में भरती हो गया. लेकिन एडीशनल एसपी समीर यादव के सामने उस की एक नहीं चली, जिस के चलते खुद सुहैल के हिस्से में मौत आई, जबकि आरोपी मांबेटे को मिलीं सलाखें.

इशरत और अमन से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

—कथा में रुकैया परिवर्तित नाम है

एक हत्या ऐसी भी : कौन था मंजूर का कातिल? – भाग 1

मेरी पोस्टिंग सरगोधा थाने में थी. मैं अपने औफिस में बैठा था, तभी नंबरदार, चौकीदार और 2-3 आदमी  खबर लाए कि गांव से 5-6 फर्लांग दूर टीलों पर एक आदमी की लाश पड़ी है. यह सूचना मिलते ही मैं घटनास्थल पर गया. लाश पर चादर डली थी, मैं ने चादर हटाई तो नंबरदार और चौकीदार ने उसे पहचान लिया. वह पड़ोस के गांव का रहने वाला मंजूर था.

मरने वाले की गरदन, चेहरा और कंधे ठीक थे लेकिन नीचे का अधिकतर हिस्सा जंगली जानवरों ने खा लिया था. मैं ने लाश उलटी कराई तो उस की गरदन कटी हुई मिली. वह घाव कुल्हाड़ी, तलवार या किसी धारदार हथियार का था.

मैं ने कागज तैयार कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने का प्रबंध किया. लाश के आसपास पैरों के कोई निशान नहीं थे, लेकिन मिट्टी से पता लगता था कि मृतक तड़पता रहा था. खून 2-3 गज दूर तक बिखरा हुआ था.

इधरउधर टीले टीकरियां थीं. कहीं सूखे सरकंडे थे तो कहीं बंजर जमीन. घटनास्थल से लगभग डेढ़ सौ गज दूर बरसाती नाला था, जिस में कहींकहीं पानी रुका हुआ था. मैं ने यह सोच कर वहां जा कर देखा कि हो न हो हत्यारे ने वहां जा कर हथियार धोए हों. लेकिन वहां कोई निशानी नहीं मिली.

मैं मृतक मंजूर के गांव चला गया. नंबरदार ने चौपाल में चारपाई बिछवाई. मैं मंजूर के मांबाप को बुलवाना चाहता था, लेकिन वे पहले ही मर चुके थे. 2 भाई थे वे भी मर गए थे. मृतक अकेला था. एक चाचा और उस के 2 बेटे थे. मैं ने नंबरदार से पूछा कि क्या मंजूर की किसी से दुश्मनी थी.

पारिवारिक दुश्मनी तो नहीं थी, लेकिन पारिवारिक झगड़ा जरूर था. नंबरदार ने बताया, मंजूर की उस के चाचा के साथ जमीन मिलीजुली थी, पर एक साल पहले जमीन का बंटवारा हो गया था. मंजूर का कहना था कि चाचा ने उस का हिस्सा मार लिया है, इस पर उन का झगड़ा रहता था.

‘‘उन की आपस में कभी लड़ाई हुई थी?’’

नंबरदार ने बताया, ‘‘मामूली कहासुनी और हाथापाई हुई थी. मृतक अकेला था. उस का साथ देने वाला कोई नहीं था. दूसरी ओर चाचा और उस के 3 बेटे थे, इसलिए वह उन का मुकाबला नहीं कर सकता था.’’

‘‘क्या ऐसा नहीं हो सकता था कि मंजूर ने उन से झगड़ा मोल लिया हो और उन्होंने उस की हत्या कर दी हो?’’

अगर झगड़ा होता तो गांव में सब को नहीं तो किसी को तो पता चलता. नंबरदार ने जवाब दिया, ‘‘मैं गांव की पूरी खबर रखता हूं. हालफिलहाल उन में कोई झगड़ा नहीं हुआ.’’

‘‘मंजूर के चाचा के लड़के कैसे हैं, क्या वह किसी की हत्या करा सकते हैं?’’

‘‘उस परिवार में कभी कोई ऐसी घटना नहीं हुई. लेकिन किसी के दिल की कोई क्या बता सकता है.’’ नंबरदार ने आगे कहा, ‘‘आप कयूम पर ध्यान दें. वह 25-26 साल का है. वह रोज उन के घर जाता है. मंजूर की पत्नी के कारण वह उस के घर जाता है. लोग कहते हैं कि मंजूर की पत्नी के साथ कयूम के अवैध संबंध हैं. लेकिन कुछ लोग यह भी कहते हैं कि वे दोनों मुंहबोले बहनभाई की तरह हैं.’’

‘‘कयूम शादीशुदा है?’’

‘‘नहीं,’’ नंबरदार ने बताया, ‘‘उस की पूरी उमर इसी तरह बीतेगी. उसे किसी लड़की का रिश्ता नहीं मिल सकता. एक रिश्ता आया भी था लेकिन कयूम ने मना कर दिया था.’’

‘‘रिश्ता क्यों नहीं मिल सकता?’’

‘‘देखने में तो ठीक लगता है, लेकिन उस के दिमाग में कुछ कमी है. कभी बैठेबैठे अपने आप से बातें करता रहता है. उस का बाप है, 3 भाई हैं 2 बहनें हैं. चौबारा है, अच्छा धनी जमींदार का बेटा है.’’

‘‘क्या तुम विश्वास के साथ कह सकते हो कि कयूम के मंजूर की बीवी के साथ अवैध संबंध थे?’’ मैं ने पूछा, ‘‘मैं शकशुबहे की बात नहीं सुनना चाहता.’’

‘‘मैं यकीन से नहीं कह सकता.’’

‘‘इस से तो यह लगता है कि कयूम ने मृतक को दोस्त बना रखा था.’’

‘‘बात यह भी नहीं है,’’ नंबरदार ने कहा, ‘‘मैं ने मंजूर से कहा था कि इस आदमी को मित्र मत बनाओ. कोई उलटीसीधी हरकत कर बैठेगा. वैसे भी लोग तरहतरह की बातें बनाते हैं.’’

‘‘उस की पत्नी का कयूम के साथ कैसा व्यवहार होता था?’’ मैं ने पूछा.

नंबरदार ने कहा, ‘‘मंजूर ने मुझे बताया था कि उस की पत्नी कयूम से बात कर लेती है. वास्तव में बात यह है जी, मंजूर कयूम के परिवार के मुकाबले में कमजोर था और अकेला भी, इसलिए वह कयूम को अपने घर से निकाल नहीं सकता था.’’

‘‘मृतक के कितने बच्चे हैं?’’

‘‘शादी को 10 साल हो गए हैं, लेकिन एक भी औलाद नहीं हुई.’’ नंबरदार ने बताया.

यह बात सुन कर मेरे कान खड़े हो गए, ‘‘10 साल हो गए लेकिन संतान नहीं हुई. कयूम उन के घर जाता है, मृतक को यह भी पता था कि कयूम उस की पत्नी से कुछ ज्यादा ही घुलामिला है. लेकिन मृतक में इतनी हिम्मत नहीं थी कि अपने घर में कयूम का आनाजाना बंद कर देता.’’

मैं ने इस बात से यह निष्कर्ष निकाला कि मृतक कायर और ढीलाढाला आदमी था और इसीलिए उस की पत्नी उसे पसंद नहीं करती थी. पत्नी कयूम को चाहती थी और कयूम उस पर मरता था. दोनों ने मृतक को रास्ते से हटाने का यह तरीका इस्तेमाल किया कि कयूम उस की हत्या कर दे.

2 आदमियों ने विश्वास के साथ बताया कि मृतक की पत्नी के साथ उस के अवैध संबंध थे और उन दोनों ने मृतक को धोखे में रखा हुआ था. मैं ने अपना पूरा ध्यान कयूम पर केंद्रित कर लिया, उस की दिमागी हालत से मेरा शक पक्का हो गया. मैं ने कयूम से पहले मृतक की पत्नी से पूछताछ करनी जरूरी समझी.

मेरे बुलाने पर वह आई तो उस की आंखें सूजी हुई थीं. नाक लाल हो गई थी. वह हलके सांवले रंग की थी, लेकिन चेहरे के कट्स अच्छे थे. आंखें मोटी थीं. कुल मिला कर वह अच्छी लगती थी. उस की कदकाठी में भी आकर्षण था.

मैं ने उसे सांत्वना दी. हमदर्दी की बातें कीं और पूछा कि उसे किस पर शक है?

उस ने सिर हिला कर कहा, ‘‘पता नहीं, मैं नहीं जानती कि यह सब कैसे हुआ, किस ने किया.’’

‘‘मंजूर का कोई दुश्मन हो सकता है?’’

‘‘नहीं, उस का कोई दुश्मन नहीं था. न ही वह दुश्मनी रखने वाला आदमी था.’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘मंजूर घर से कब निकला?’’

‘‘शाम को घर से निकला था.’’

‘‘कुछ बता कर नहीं गया था?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘क्या शाम को हर दिन इसी तरह जाया करता था?’’

‘‘कभीकभी, लेकिन उस ने कभी नहीं बताया कि वह कहां जा रहा है.’’

‘‘तुम्हें यह तो पता होगा कि कहां जाता था?’’ मैं ने पूछा, ‘‘दोस्तों यारों में जाता होगा. वह जुआ तो नहीं खेलता था?’’

‘‘नहीं, उस में कोई बुरी आदत नहीं थी.’’

‘‘आमना,’’ मैं ने कहा, ‘‘तुम्हारे पति की हत्या हो गई है. यह मेरा फर्ज है कि मैं उस के हत्यारे को पकड़ूं. तुम मेरी जितनी मदद कर सकती हो, दूसरा कोई नहीं कर सकता. अगर तुम यह नहीं चाहती कि हत्यारा पकड़ा जाए तो भी मैं अपना फर्ज नहीं भूल सकता. अगर कोई राज की बात है तो अभी बता दो. इस वक्त बता दोगी तो मैं परदा डाल दूंगा. आज का दिन गुजर गया तो फिर मैं मजबूर हो जाऊंगा.’’

‘‘आप अफसर हैं, जो चाहे कह सकते हैं. लेकिन आप ने यह गलत कहा कि मैं अपने पति के हत्यारे को पकड़वाना नहीं चाहती. मैं ने आप से पहले ही कह दिया है कि मुझे कुछ पता नहीं, यह सब किस ने और क्यों किया है?’’

‘‘एक बात बताओ, मंजूर ने किसी और औरत से तो रिश्ते नहीं बना लिए थे. कहीं ऐसा तो नहीं कि उस औरत के रिश्तेदारों ने उन्हें कहीं देख लिया हो?’’

‘‘नहीं, वह ऐसा आदमी नहीं था?’’ आमना ने जवाब दिया.

‘‘तुम यह बात पूरे यकीन के साथ कह सकती हो?’’

‘‘हां, वह इस तरह की हरकत करने वाला आदमी नहीं था.’’

मेरे पूछने पर उस ने 3 आदमियों के नाम बताए, जिन्हें मैं ने पूछताछ के लिए बुलवा लिया. उन तीनों से मैं ने कहा कि जो मृतक का सब से घनिष्ठ मित्र हो, वह मेरे सामने बैठ जाए.

हुस्न और नशे के जाल में फंसा खिलाड़ी – भाग 2

इस बीच पुलिस ने नरेश के मोबाइल फोन की काल डिटेल निकलवा ली थी, जिस में पता चला कि नरेश की दिन में कईकई बार सुहैल से बात होती थी. इतना ही नहीं, सुहेल की पत्नी के अलावा सुहैल की जवान बेटी रुकैया से भी नरेश की अकसर बात होने के सबूत मिले.

घटना वाले दिन भी नरेश और सुहैल के बीच कई बार बात हुई थी. जिस समय नरेश का मोबाइल बंद हुआ था, तब वह उसी टावर के क्षेत्र में था, जिस में सुहैल का घर है. अब तक पुलिस के सामने यह साफ हो चुका था कि जिस रोज नरेश गायब हुआ था, वह सुहैल के घर आया था यानी उस के साथ अच्छाबुरा जो भी हुआ इसी इलाके में हुआ था.

इस इलाके में सुहैल का मकान ही एक ऐसा ठिकाना था, जहां नरेश का लगभग रोज आनाजाना था. लेकिन पुलिस पूछताछ से पहले ही उस की मौत हो चुकी थी, इसलिए यह मामला पुलिस के सामने बड़ी चुनौती बन कर खड़ा हो गया था. पुलिस अभी और सबूत हासिल करना चाहती थी ताकि सुहैल की बीवी से पूछताछ की जा सके.

एएसआई आर.एस. शर्मा ने सुहैल के घर के आसपास के रास्तों पर लगे सीसीटीवी की फुटेज चैक की. जल्द ही इस के अच्छे परिणाम सामने आए. पता चला कि 12 नवंबर की सुबह कोई 4 बजे सुहैल 4 बार अपनी एक्टिवा से निकला और एक निश्चित  दिशा में जा कर वापस आता हुआ दिखा. जाते समय हर बार उस की एक्टिवा पर प्लास्टिक का एक बोरा रखा था, जो सफेद रंग का था.

इतनी रात में किसी काम से आदमी का एक ही दिशा में 4-4 बार जाना संदेह पैदा कर रहा था. पता नहीं उन बोरों में वह क्या ले कर गया था.

पत्नी और बेटा आए संदेह के घेरे में

इस बारे में पुलिस ने सुहैल की पत्नी इशरत और बेटे अमन से पूछताछ की. इस पर उन का कहना था कि नशा कर के वह आधी रात में कहां आतेजाते थे, इस बारे में उन्हें कुछ नहीं पता. पूछने पर वह झगड़ा करने लगते थे, इसलिए उन से कोई बात नहीं करता था.

मुख्य संदिग्ध सुहैल की मृत्यु हो चुकी थी, इसलिए ये दोनों मांबेटे सारी बात उस के ऊपर टाल कर बच निकलना चाहते थे. लेकिन पुलिस उन की मंशा जान चुकी थी. उन के साथ वह सख्ती भी नहीं करना चाहती थी. लिहाजा पुलिस टीम ने उन रास्तों की जांच की जो सुहैल के घर से निकल कर आगे जाते थे. उन रास्तों से पुलिस कर्बला तक पहुंच गई. वहीं पर पुलिस को सीवन नदी में सफेद रंग के बोरे तैरते दिखे.

प्लास्टिक के उन बोरों के ऊपर मक्खियां भिनभिना रही थीं. अब शक करने की कोई गुंजाइश नहीं रह गई थी. क्योंकि सुहैल भी हर बार अपनी एक्टिवा पर घर से सफेद रंग की प्लास्टिक के बोरे ले कर निकला था. पुलिस ने उन बोरों को बाहर निकाल कर खोला तो उन में से एक युवक का 8 टुकड़ों में कटा सड़ागला शव मिला. पुलिस को 3 बोरे मिल चुके थे. चौथा बोरा वहां नहीं था. यानी मृतक के पैर अभी नहीं मिले थे. पुलिस चौथे बोरे को भी तलाशती रही.

दूसरे दिन सुबह कुछ दूरी पर चौथी बोरा भी मिल गई, जिस में शव के पैर व खून सने कपड़े और जूते थे. इन अंगों को जब नरेश के भाई को दिखाया तो उस ने शव की पहचान अपने भाई नरेश के रूप में कर दी.

मामला अब सीहोर कोतवाली के हाथ आ चुका था, इसलिए एडीशनल एसपी समीर यादव के निर्देश पर टीआई संध्या मिश्रा की टीम ने सुहैल के घर की तलाश ली तो टीम को एक कमरे की दीवारों पर लगे खून के दाग मिल गए, जिन के नमूने जांच के लिए सुरक्षित रख लिए गए.

घर की दीवारों पर खून के धब्बे मिलने के अलावा नरेश वर्मा की लाश भी बरामद हो चुकी थी, इसलिए अब सुहैल की पत्नी और बेटे के सामने बच निकलने का कोई रास्ता नहीं था. पुलिस ने इशरत और उस के बेटे से पूछताछ की तो उन्होंने स्वीकार कर लिया कि 11 नवंबर को किसी बात पर नरेश से विवाद हो जाने पर सुहैल ने नरेश की हत्या कर दी थी.

मांबेटे द्वारा अपराध स्वीकार करने के बाद पुलिस ने उन के घर से हत्या में प्रयुक्त चाकू और बांका के अलावा खून सने कपड़े भी बरामद कर लिए. दोनों से पूछताछ के बाद नरेश वर्मा की हत्या की कहानी कुछ इस प्रकार सामने आई—

मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के कोठारी गांव के रहने वाले नरेश को बचपन से ही खेलों में रुचि थी. उम्र बढ़ने के साथ उस की खेलों में रुचि और भी बढ़ती गई. नतीजतन उस ने कराटे में ब्लैक बेल्ट हासिल कर लिया.

इस के अलावा वह पावर लिफ्टिंग जैसे खेल में भी बढ़चढ़ कर भाग लेने लगा. पावर लिफ्टिंग की राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में भाग ले कर मैडल भी हासिल किए. खेलों से उसे बेहद लगाव था, इसलिए वह इसी क्षेत्र में अपना कैरियर बनाना चाहता था.

नरेश फंसा नशे और ग्लैमर के चक्कर में

जब उसे मनमुताबिक नौकरी नहीं मिली तो उस ने सीहोर में अपना खुद का जिम खोलने की कवायद शुरू कर दी. वैसे भी उस के पिता कोठारी गांव के संपन्न किसान थे, उस के पास पैसों की कमी नहीं थी. सीहोर में ही दूल्हा बादशाह रोड पर सुहैल अपने परिवार के साथ रहता था.

सुहैल कोकीन और ब्राउन शुगर बेचता था. वह कई सालों से नए युवकों को अपने जाल में फांस कर नशे का लती बना देता था. कोकीन और ब्राउन शुगर की तस्करी के आरोप में वह कई बार गिरफ्तार हो चुका था. लेकिन जमानत पर बाहर आने के बाद फिर अपने इसी धंधे से जुड़ जाता था. केवल सुहैल ही नहीं, इस काम में उस का पूरा परिवार संलिप्त था.

सुहैल पैसे वाले युवकों से दोस्ती कर उन्हें अपने घर बुलाता, जहां उस की पत्नी इशरत और खूबसूरत बेटी रुकैया पिता के इशारे पर उस युवक पर ऐसा जादू चलातीं कि वह बारबार उस के घर के चक्कर लगाने लगता था. जब सुहैल देखता कि शिकार उस के फैलाए जाल में फंस चुका है तो पहले वह उसे कोकीन या ब्राउन शुगर का फ्री में नशा करवाता था, फिर बाद में धीरेधीरे नशे की पुडि़या के बदले पैसे वसूलने लगता.

जब युवक को नशे की लत लग जाती तो उस की पत्नी और बेटी शिकार से दूरी बना लेती थीं. लेकिन तब तक उस युवक की चाह दूसरे सुख से अधिक नशे के सुख की बन जाती थी. इसलिए वह सुहैल का गुलाम बन कर रहने के लिए भी तैयार हो जाता था, जिस के बाद सुहेल उस से तो पैसा लूटता ही, साथ ही उस की मदद से दूसरे युवकों को भी अपने नशे का आदी बना देता था.