जमीन हड़पने वाले भूमाफिया – भाग 3

जांच में पता चला कि इस गिरोह के लोग देहरादून में काफी समय से खाली पड़ी जमीनों पर नजर रखते थे. ऐसी जमीनों के जो मालिक विदेशों में होते थे, सब से पहले वह उन्हीं को अपना निशाना बनाते थे. इस के बाद मौका मिलते ही जमीनों के फरजी कागजात तैयार कर लिए जाते थे. उन कागजों को दिखा कर जमीन अन्य लोगों को बेच दिया करते थे.

रजिस्ट्री में फरजीवाड़ा करने के लिए 30 से 50 साल पुराने स्टांप पेपरों का इस्तेमाल किया जाता था. ताकि इन्हें उसी वक्त के बैनामे के तौर पर दर्शाया जा सके.

इस के बाद रजिस्ट्रार कार्यालय में फरजी व्यक्तियों के नाम पर इन जमीनों को दर्ज किया गया. इस बाबत कोतवाली (नगर) देहरादून में 9 मुकदमे दर्ज किए जा चुके थे. जब इस की जांचपड़ताल हुई, तब 6 अक्तूबर को एक आरोपी अजय मोहन पालीवाल गिरफ्तार कर लिया गया. उस के बारे में बड़ा खुलासा हुआ.

उस ने बताया कि अजय मोहन फोरैंसिक एक्सपर्ट था. उस ने आरोपी कमल विरमानी, के.पी. सिंह आदि के साथ मिल कर कई बड़े फरजीवाड़े किए थे. जमीनों के फरजी बैनामों में फरजी राइटिंग और सिग्नेचर बनाए गए थे.

इन्होंने ही एनआरआई महिला रक्षा सिन्हा की राजपुर रोड पर स्थित जमीन का फरजी बैनामा तैयार किया था. इस जमीन के कागज को रामरतन शर्मा के नाम से बनाया गया था. पहले भी कई विवादित जमीनों में इस की संलिप्तता रही है.

जांच में जब फरजीवाड़ा सही पाया गया, तब संदीप श्रीवास्तव ने एसआईटी में इस फरजीवाडे का मुकदमा अपराध क्रमांक 281/2023 पर आईपीसी की धाराओं 120बी, 420, 467, 468 व 471 के तहत दर्ज करा दिया था. इस के बाद ही जिले के नए एसएसपी अजय सिंह ने एसआईटी की 4 टीमों का गठन किया था और उन्हें इन भूमाफियाओं को गिरफ्तार करने के लिए लगा दिया था.

रजिस्ट्रार कार्यालय की रही संदिग्ध भूमिका

संदीप श्रीवास्तव ने एसआईटी को बताया था कि सबरजिस्ट्रार कार्यालय के कुछ दस्तावेजों पर जो मोहरें व स्याही लगी हुई थी, उन मोहरों का साइज सबरजिस्ट्रार कार्यालय की मोहरों के साइज से मेल नहीं खा रहा था. साथ ही स्याही के रंग में भी काफी अंतर था.

जिलाधिकारी देहरादून के जनता दरबार में भी अकसर सबरजिस्ट्रार कार्यालय में जमीनों के फरजी नाम परिवर्तन की शिकायतें ज्यादा आने के बाद ही एसआईटी ने जमीनों के फरजीवाड़े के मुकदमे दर्ज किए गए थे.

7 अक्तूबर, 2023 को टीम ने आरोपियों संजय शर्मा, ओमवीर तोमर और सतीश को गिरफ्तार किया था. टीम ने जब इन तीनों से इस फरजीवाड़े की बाबत पूछताछ की, तब कुछ फरजी दस्तावेजों पर अजय मोहन पालीवाल द्वारा बनाए गए हस्ताक्षर के बारे में भी जानकारी मिली.

पता चला कि ओमवीर तोमर की जानपहचान सहारनपुर निवासी के.पी. सिंह से थी. उसे के.पी. सिंह से जानकारी मिलती थी कि किस की जमीनें कहां हैं और वे कहां रहते हैं. इस के बाद ये लोग उस जमीन के फरजी कागजात तैयार करते थे. इस काम में एडवोकेट कमल विरमानी द्वारा उन दस्तावेजों को सबरजिस्ट्रार कार्यालय में भेजा जाता था.

तीनों आरोपियों से पूछताछ करने के बाद एसएसपी अजय सिंह ने इन्हें 8 अक्तूबर, 2023 को मीडिया के सामने पेश कर दिया था. तीनों कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिए गए थे. इन्हें गिरफ्तार करने वाली टीम में एसआईटी के इंसपेक्टर राकेश गुसाईं, एसओजी के इंसपेक्टर नंद किशोर भट्ट, एसएसआई प्रदीप रावत, एसआईटी के थानेदार मनमोहन नेगी, थानेदार हर्ष अरोड़ा, अमित मोहन ममगई और सिपाही किरण, ललित, देवेंद्र, पंकज आदि ने अहम भूमिका निभाई थी.

आरोपियों का आपराधिक इतिहास खंगाले जाने के बाद पाया कि आरोपी ओमवीर तोमर के खिलाफ देहरादून के थाना क्लेमेंटाउन में वर्ष 2014 में धोखाधडी का मुकदमा दर्ज हुआ था. इस के बाद उस के खिलाफ वर्ष 2015 में अपहरण व हत्या के प्रयास का मुकदमा दर्ज हुआ था तथा वर्ष 2017 में उस के खिलाफ जालसाजी, मारपीट करने व धमकी देने के मुकदमे दर्ज हुए थे.

19 आरोपी हुए गिरफ्तार

इस के बाद जांच टीम ने दिल्ली, उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखंड में जा कर भूमाफियाओं और जालसाजों के ठिकानों पर दबिशें देनी शुरू कर दी थीं. इस बारे में प्रशासन और सबरजिस्ट्रार कार्यालय के आला अधिकारियों का कहना था कि सबरजिस्ट्रार कार्यालय का रिकौर्ड स्थाई किस्म का है तथा वह संपत्ति स्वामित्व का मूल आधार है.

भूमाफियाओं और जालसाजों द्वारा उक्त रिकौर्ड के साथ छेड़छाड़ करना और उन के प्रपत्रों के माध्यम से मूल विलेख को बदलना गंभीर अपराध है. भूमाफियाओं का यह कृत्य भूस्वामियों के अधिकार का तो हनन करता ही है साथ ही यह अनावश्यक विवाद को जन्म भी देता है.

एसआईटी ने इस मामले में जिन्हें गिरफ्तार किया था, उन के नामपते इस प्रकार हैं—

  1. मक्खन सिंह निवासी माधवतुंडा, पीलीभीत, उत्तर प्रदेश.
  2. संतोष अग्रवाल निवासी बोगीबिल डिब्रूगढ़, असम.
  3. दीपचंद अग्रवाल निवासी चलखोवा डिब्रूगढ़, असम.
  4. डालचंद निवासी रेसकोर्स, देहरादून.
  5. इमरान निवासी बल्लूपुर, देहरादून.
  6. अजय छेत्री निवासी बल्लूपुर, देहरादून.
  7. रोहताश पुत्र महेंद्र ग्राम पुनिसका जिला रेवाड़ी, हरियाणा.
  8. विकास पांडे निवासी बंजारवाला, देहरादून.
  9. एडवोकेट कमल विरमानी निवासी चकरौता रोड, देहरादून.
  10. कंवरपाल सिंह उर्फ के.पी. सिंह निवासी कस्बा नकुड, सहारनपुर, उत्तर प्रदेश.
  11. विशाल निवासी गांव कूकड़ा, जिला मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश.
  12. महेश निवासी मोहल्ला पुष्पांजलि, सहारनपुर, उत्तर प्रदेश.
  13. अजय मोहन पालीवाल निवासी आदर्श नगर मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश.
  14. सुखदेव सिंह निवासी कोटला, अफगान रोड साहनेवाल, लुधियाना, पंजाब.
  15. हुमायूं परवेज निवासी काजी सराय नगीना जिला बिजनौर.
  16. देवराज तिवारी निवासी टीएचडीसी कालोनी, मधुर विहार देहरादून.
  17. सतीश निवासी जनकपुरी, जिला मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश.
  18. संजय शर्मा निवासी पंचेड़ा रोड, जिला मुजफ्फरनगर.
  19. ओमवीर सिंह तोमर निवासी डिफेंस कालोनी, देहरादून, उत्तराखंड.

इस फरजीवाड़े की कहानी लिखे जाने तक एसआईटी की जमीनों के घोटाले की लगभग 81 शिकायतें प्राप्त हो चुकी थीं. शिकायतों की जांच उन की प्रकृति के अनुसार की जा रही थी.

टीम का कार्यकाल नवंबर माह तक का था. जबकि यह अनुमान लगाया गया कि शिकायतों की संख्या में और भी बढ़ोत्तरी हो सकती है. फरजीवाड़े के बड़े रूप को देखते हुए टीम आम जनता से सीधे भी शिकायतें प्राप्त करने लगी थी.

स्टांप एवं रजिस्ट्रैशन मुख्यालय स्थित एसआईटी के कार्यालय में एस.एस. रावत जमीनों के फरजीवाड़े की शिकायतें प्राप्त करने के लिए मौजूद होते थे. प्राप्त शिकायतों को उस की प्रकृति और श्रेणी के अनुसार जांच हेतु तहसील अथवा उपजिलाधिकारी कार्यालय भेजा जाता है.

कथा लिखे जाने तक जमीनों के फरजीवाड़े में पकड़े गए 19 आरोपी अभी तक जेल में थे तथा एसआईटी द्वारा जांच जारी थी. एसआईटी द्वारा गिरफ्तार आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट लगाने के बाद अब एसआईटी उन के खिलाफ गैंगस्टर ऐक्ट लगाने पर भी विचार कर रही थी.

जोरू और जमीन : लालची प्रेमी ने पहुंचाया जेल – भाग 1

इलाके की गश्त से लौटते लौटते मुझे सुबह के 4 बज गए थे. थाने आते ही मैं ने एक सिपाही से चाय बना कर लाने को कहा. पूरी रात गश्त करने की वजह से काफी थकान महसूस  हो रही थी, इसलिए कमर सीधी करने की गरज से मैं रेस्टरूम में पड़े बेड पर लेट गया.

सिपाही चाय बना कर लाता, उस के पहले ही मुंशी ने मेरे पास आ कर कहा, ‘‘सर, अभीअभी मुंडियां चौकी से वायलैस संदेश आया है कि गुरु तेगबहादुर नगर की गली नंबर-3 में किसी की हत्या कर दी गई है.’’

चूंकि संदेश स्पष्ट नहीं था, इसलिए अधिक जानकारी नहीं मिल सकी थी. लेकिन उस के बाद चौकीइंचार्ज सबइंसपेक्टर वरनजीत सिंह ने फोन कर के मुझे जल्दी घटनास्थल पर पहुचंने को कहा है. मुंशी अपना काम कर के चला गया था. हत्या की जानकारी मिलने पर चाय पीने का होश कहां रहा. चाय की बात भूल कर मैं उठा और परिसर में खड़ी जीप पर सवार हो कर ड्राइवर से मुंडिया चौकी की ओर चलने को कहा. मेरे जीप पर सवार होते ही मेरे साथ गश्त कर रहे सिपाही भी जीप पर सवार हो गए थे. सब के सवार होते ही जीप चल पड़ी थी.

मुंडिया चौकी, लुधियाना-चंडीगढ़ रोड पर मुंडियां गांव से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर थी. सड़क से गांव जाने वाली टूटीफूटी सड़क पर हम हिचकोले खाते हुए लगभग 25 मिनट में मुंडिया चौकी पहुंचे. चौकी का मुंशी हेडकांस्टेबल सुखविंदर सिंह चौकी पर ही मिल गया था. उसे साथ ले कर मैं घटनास्थल पर जा पहुंचा.

चौकीइंचार्ज वरनजीत सिंह और हेडकांस्टेबल हरभजन सिंह वहां पहले ही पहुंच गए थे. जिस घर में वारदात हुई थी, उस के सामने काफी भीड़ जमा थी. उन्हीं लोगों के बीच 24-25 साल की एक खूबसूरत औरत दहाड़े मार कर रो रही थी. पूछने पर पता चला कि इस का नाम प्रीति है और इसी के पति की हत्या हुई है.

‘‘जिस की हत्या हुई है, उस का नाम क्या है?’’ मैं ने सबइंसपेक्टर वरनजीत से पूछा तो उस ने बताया, ‘‘सर, एक नहीं, 2 लोग मारे गए हैं. यह महिला रो रही है, इस के पति का नाम विजय कुमार था. दूसरा उस का साथी नरेश था. उस की लाश ऊपर के कमरे में पड़ी है.’’

एक ही मकान में 2-2 हत्याओं की बात सुन कर मैं चकरा गया. प्रीति का रोरो कर बुरा हाल था. वह छाती पीटपीट कर रो रही थी. आसपड़ोस की औरतें उसे संभालने की कोशिश कर रही थीं. फिलहाल वह कुछ बताने की स्थिति में नहीं थी, इसलिए मैं ने मोहल्ले वालों से घटना के बारे में पूछना शुरू किया. उन लोगों ने बताया कि 2 गोलियां चली थीं.

उस के बाद प्रीति गली में खड़ी हो कर चिल्ला रही थी, ‘‘मार दिया रे, मेरे पति को गोली मार दिया रे… पकड़ो… गोली मार कर वे भागे जा रहे है.’’

उस की चीखपुकार सुन कर ही लोग बाहर आए थे. मैं उन लोगों से जानना चाहता था कि गोली मारने वाले कौन थे, कहां से आए थे, उन्होंने दोनों को गोली क्यों मारी? लेकिन इस बारे में आसपड़ोस वाले कुछ नहीं बता सके थे. इस घटना की सूचना अधिकारियों को देने के साथ सुबूत जुटाने के लिए मैं ने क्राइम टीम को भी घटनास्थल पर बुला लिया. चौकीइंचार्ज वरनजीत सिंह के साथ मैं ने घटनास्थल और लाशों का बारीकी से निरीक्षण किया.

लगभग 35-40 गज का वह 2 मंजिला मकान था. भूतल पर एक कमरा, रसोई, टायलेट था, तो ऊपर वाली मंजिल पर सिर्फ एक कमरा और उस के सामने बरामदा बना हुआ था. मारा गया विजय कुमार पत्नी प्रीती के साथ भूतल पर रहता था. ऊपर वाले कमरे में उस का दोस्त नरेश अकेला ही रहता था. वह विजय के साथ ही काम करता था और उस का खानापीना भी उसी के साथ होता था.

विजय कुमार की लाश नीचे वाले कमरे में बेड पर पड़ी थी. वह 26-27 साल का अच्छाखासा जवान था. उस के सीने पर एक सुराख था, जिस से उस समय तक खून रिस रहा था. सीने के उस सुराख को देख कर लग रहा था कि हत्यारे ने उस पर एकदम करीब से गोली चलाई थी.

मैं ने कमरे में एक नजर डाली. कमरे का सारा सामान यथावत था. किसी भी चीज के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं हुई थी. अच्छी तरह निरीक्षण करने के बाद भी वहां से ऐसा कोई सुबूत नहीं मिला, जिस से हत्यारों तक पहुंचने में मदद मिलती.

इस के बाद मैं सबइंसपेक्टर वरनजीत सिंह के साथ ऊपर वाले कमरे में गया. उस कमरे का हाल भी लगभग नीचे वाले कमरे जैसा ही था. नरेश की उम्र भी 26-27 साल थी. उस की भी सीने में गोली मर कर हत्या की गई थी. कमरे में पड़े बेड के पास ही 3 कुरसियां और एक टेबल रखी थी. टेबल पर कांच के 4 खाली गिलास, बीयर की 4 खाली बोतलें, एक शराब की खाली बोतल, पानी का जग और एक प्लेट रखी थी, जिस में शायद खानेपीने का कोई सामान रखा गया था. इस का मतलब था कि हत्याएं होने से पहले सब ने एकसाथ बैठ कर शराब पी थी.

मेरे कहने पर वरनजीत सिंह ने वह सारा सामान कब्जे में ले लिया. क्राइम टीम ने भी अपना काम निबटा लिया तो अन्य औपचारिक काररवाई पूरी कर के मैं ने दोनों लाशें पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भिजवा दीं. इस के बाद थाने लौट कर मैं ने अज्ञात लोगों के खिलाफ इस मामले का मुकदमा दर्ज करा कर जांच शुरू कर दी.

प्रीति का बयान लेने की गरज से उसी दिन दोपहर को मैं उस के घर पहुंचा. सांत्वना दे कर मैं ने उस से पूरी घटना के बारे में विस्तार से बताने को कहा.

प्रीति गुरु तेगबहादुर नगर की गली नंबर 3 निहाल सिंह वाली मुंडियां में स्थित मकान में अपने पति विजय कुमार के साथ किराए पर रहती थी. विजय कुमार ने वह पूरा मकान किराए पर ले रखा था. इसी मकान के ऊपर वाले कमरे में उस का दोस्त नरेश रहता था.

विजय अपने साथी नरेश के साथ मकानों और औफिसों में एल्युमिनियम की खिड़कीदरवाजे लगाने का काम करता था. काम न होने की वजह से उस दिन सुबह से ही दोनों घर पर थे. प्रीति एक ब्यूटीपार्लर में काम करती थी. उस दिन उस की साप्ताहिक छुट्टी थी, इसलिए वह भी घर पर थी.

करीब 3 बजे विजय ने प्रीति से कहा, ‘‘तुम 2-3 घंटे के लिए ब्यूटीपार्लर वाली अपनी सहेली के यहां चली जाओ. बाहर से मेरे कुछ दोस्त आ रहे हैं. उन से हमें कुछ व्यक्तिगत बातें करनी हैं, जो तुम्हारे सामने नहीं हो सकतीं.’’

विजय कुमार के कहने पर प्रीति अपनी सहेली के घर चली गई. उसी के साथ विजय और नरेश भी स्कूटर से अपने आने वाले दोस्तों को लेने के लिए समराला चौक की ओर रवाना हो गए थे. शाम 7 बजे के आसपास प्रीति वापस आई तो ऊपर वाले कमरे से बातचीत और हंसने की आवाजें आ रही थीं. प्रीति ने ऊपर जा कर कमरे में झांक कर देखा तो विजय और नरेश के साथ 2 लड़के बैठे थे. सब शराब पीते हुए आपस में हंसीमजाक कर रहे थे.

विजय के साथ बैठे उन लड़कों को प्रीति ने इस के पहले कभी नहीं देखा था. उसे देख कर विजय उठा और उस के पास आ कर बोला, ‘‘अच्छा हुआ तुम आ गईं. मैं तुम्हें फोन करने वाला था. तुम नीचे जाओ और सभी के लिए खाने का इंतजाम करो.’’

प्रीति नीचे आ गई और खाना बनाने लगी. 10 बजे तक उस का खाना बन गया तो वह बेड पर लेट गई, क्योंकि अभी तक ऊपर उन लोगों की महफिल जमी हुई थी. रात करीब 11 बजे विजय ने प्रीति से खाना लगाने को कहा तो उस ने खाना लगा दिया. खाना खा कर नरेश और बाहर से आए दोनों लड़के ऊपर वाले कमरे में सोने चले गए तो विजय और प्रीति नीचे वाले कमरे में लेट गए.

नशे में होने की वजह से विजय तुरंत सो गया, लेकिन प्रीति को नींद नहीं आ रही थी. लगभग आधे घंटे बाद विजय के दोनों दोस्तों में से एक ने नीचे आ कर कमरे का दरवाजा खटखटाया. प्रीति ने सोचा किसी को पानी वगैरह चाहिए, इसलिए उस ने दरवाजा खोल दिया. विजय का वह दोस्त धीरे से अंदर आ गया और कमरे में पड़े बेड पर बैठ गया. खटर पटर से विजय की भी आंख खुल गई थी. दोस्त को देख कर वह भी उठ कर बैठ गया.

जमीन हड़पने वाले भूमाफिया – भाग 2

एसआईटी को मिली शिकायत

जांच टीम ने अगले ही पल फरजीवाड़े की जांच शुरू कर दी थी. जांच की शुरुआत जमीनों के दस्तावेज तैयार करने वालों पर नजर रखने से की गई. दस्तावेज में जमीन के नकली मालिक और खरीदारों के नाम आदि की जांच करना, वह भी बगैर किसी सबूत के एक बड़ी चुनौती थी.

एसआईटी जांच में तेजी लाने के लिए एसएसपी ने जिले के सभी थानों के एसएचओ को जमीन से जुड़ी किसी भी तरह की शिकायत की डिटेल्स मांगी थी. जल्द ही टीम को दिल्ली के पंजाबी बाग के रहने वाले दीपांकुर मित्तल की शिकायत भी मिल गई. मित्तल ने अपनी शिकायत 16 मार्च, 2023 को की थी

उन्होंने अपनी शिकायत में लिखा था, ‘‘नवादा में मेरी एक जमीन है, जो मुझे पिता की 2 साल पहले देहांत के बाद मिल गई थी. यह मेरी पुश्तैनी जमीन है. उस जमीन पर हम खेती करते हैं. हालांकि मेरा उसी जमीन को ले कर ताऊ रवि मित्तल के साथ अदालत में एक विवाद भी चल रहा है.’’

उन्होंने आगे लिखा कि देहरादून तहसील में मेरी उसी जमीन का दाखिल खारिज अपने नाम कराने के लिए सुखदेव सिंह पुत्र बलवीर सिंह ने आवेदन दिया हुआ है. सुखदेव सिंह ने इस के लिए जो कागजात बनाए हैं, वे नकली और मनगढ़ंत हैं. जबकि यह जमीन काफी समय से मेरे परिवार वालों के नाम ही चली आ रही है.

मित्तल ने अपनी शिकायत में यह भी लिखा कि हम में से किसी ने भी सुखदेव को कोई जमीन नहीं बेची है. एक समय में हम ने इस जमीन पर ईंटभट्ठा भी शुरू किया था. इस जमीन पर चल रहे बिजली और पानी के कनेक्शन पहले से ही हमारे परिवार वालों के नाम हैं.

इसी के साथ मित्तल ने आशंका जताते हुए लिखा, ‘‘मुझे लगता है कि देहरादून में सक्रिय कुछ भूमाफियाओं द्वारा हमारी जमीन के फरजी स्टांप बनवा लिए गए हैं और सुखदेव हमारी जमीन हड़पना चाहता है.’’

इसी शिकायत के साथ मित्तल ने एसएचओ से मांग की कि आप मुझे सुरक्षा प्रदान करते हुए मेरी प्राथमिकी दर्ज कर भूमाफियाओं और जालसाजों के खिलाफ काररवाई करने की कृपा करें.

दीपांकुर मित्तल द्वारा कोतवाली (नगर) में आईपीसी की धाराओं 420, 467, 468 व 471 के तहत दर्ज शिकायत की जांच के लिए एसआईटी ने कोतवाल राकेश गुसाईं और थानेदार नवीन जुराल को लगा दिया.

जांच के दौरान मित्तल के बयान के साथसाथ उन से मालिकाना हक के कागजों की फोटोकौपी भी ली गई. टीम ने मित्तल के प्रपत्रों को सबरजिस्ट्रार कार्यालय और सरकारी वकील को दिखाया. इसी के साथ सुखदेव के मालिकाना कागजों की फोटोकौपी तहसील से हासिल की गई.

जब दोनों दस्तावेजों की जांच की गई, तब टीम ने पाया कि मित्तल के दस्तावेज सही हैं. सुखदेव के दस्तावेज ही संदिग्ध पाए गए. उस के बाद टीम सुखदेव के बारे में अन्य जानकारी मालूम करने में जुट गई. टीम ने पाया कि सुखदेव मूलरूप से पंजाब में लुधियाना स्थित कोटला, अफगान रोड, निहाल फील्ड, साहनेवाल जिले का रहने वाला है. इस के बाद पुलिस सुखदेव की तलाश में जुट गई.

पुलिस ने भूमाफियाओं पर कसा शिकंजा

मित्तल की शिकायत और जांच की शुरुआत के बाद एसआईटी ने भूमाफियाओं के फरजीवाड़े पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया था. इसी दौरान एक नया मामला एक एनआरआई महिला रक्षा सिन्हा का भी आ गया. उन की देहरादून की राजपुर रोड पर मधुबन होटल के सामने ढाई बीघा जमीन थी.

रक्षा सिन्हा इंगलैंड में रहती हैं, जबकि उन के पिता पी.सी. निश्चल देहरादून में ही रहते थे. उन की मृत्यु हो चुकी है. रक्षा सिन्हा काफी सालों से देहरादून नहीं आई थीं. रक्षा सिन्हा को जब पता चला कि उस की जमीन को कोई अपना बता कर बेचने वाला है, तब वह सतर्क हो गई थीं.

टीम ने उन के जमीन के कागजातों की भी जांच की. साथ ही सबरजिस्ट्रार कार्यालय में भी कागजों की जांच की. रक्षा सिन्हा द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, उन की जमीन मुजफ्फरनगर निवासी रामरतन शर्मा के नाम हो गई है. जबकि सबरजिस्ट्रार कार्यालय के रिकौर्ड में भी रक्षा सिन्हा के पिता पी.सी. निश्चल द्वारा वर्ष 1979 में रामरतन शर्मा को बेचने के कागज लगे थे.

इस के बाद एसआईटी को यह जानकारी मिली कि सबरजिस्ट्रार कार्यालय में ही इन भूमाफियाओं के गुर्गे तैनात हैं और वे यहीं से भूमाफियाओं के लिए काम कर रहे हैं. इस सिलसिले में जब एसआईटी ने रक्षा सिन्हा की जमीन के बारे में जानकारी मालूम की कि कौन उन की जमीन को अपना बता कर बेच रहा है तो 3 जालसाजों के नाम सामने आ गए.

उन में एक नाम संजय पुत्र रामरतन शर्मा निवासी पंचेडा रोड, मुजफ्फरनगर का था. दूसरा नाम ओमवीर तोमर पुत्र ओम प्रकाश, निवासी डिफेंस कालोनी देहरादून का था, जबकि तीसरा नाम सतीश कुमार पुत्र फूल सिंह निवासी जनकपुरी, मुजफ्फरनगर था.

ऐसे हुआ बड़ा खुलासा

यहां इंगलैंड निवासी एनआरआई महिला की करोड़ों की भूमि के फरजी दस्तावेज बनाए गए थे. आखिरकार पुलिस ने फरजी दस्तावेज बनाने वाले गिरोह का पता लगा ही लिया.

इस सिलसिले में यह कहानी लिखे जाने तक 16 शातिर आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया था. गिरोह के सदस्य ओमवीर सिंह के खिलाफ जमीन धोखाधड़ी के कई मुकदमे पहले से दर्ज थे.

उस का जमीनों के फरजीवाड़े का आपराधिक इतिहास रहा है. पहले भी कई विवादित जमीनों में इस की संलिप्तता पाई गई. इस जांच के बाद ही टीम ने कुछ वैसे जालसाजों को चिह्निïत किया था, जो इस फरजीवाड़े में शामिल थे. 6 अक्तूबर, 2023 को टीम के हत्थे एक जालसाज अजय मोहन पालीवाल चढ़ गया था. वह पहले विधि विज्ञान प्रयोगशाला में फोरैंसिक एक्सपर्ट था.

उस ने एडवोकेट कमल विरमानी, के.पी. सिंह आदि कई जालसाजों के साथ मिल कर कई जमीनों के कूट रचित विलेख फरजी हैंडराइटिंग के आधार पर तैयार किए थे. उन फरजी प्रपत्रों को सबरजिस्ट्रार कार्यालय के बाइंडर सोनू द्वारा रिकौर्ड में चस्पा कर दिया जाता था.

रजिस्ट्रार कार्यालय के रिकौर्ड में फरजी विलेख लग जाने के कारण रिकौर्ड फरजी भूस्वामियों के नामपते शो करने लगे थे. इस से असली भूस्वामी परदे के पीछे चले गए थे, जबकि फरजी लोग प्रौपर्टी मालिक बन गए थे. इस के बाद इन भूमाफियाओं व जालसाजों ने अब उन जमीनों को आगे बेचना शुरू कर दिया था.

भूमाफियाओं द्वारा सबरजिस्ट्रार कार्यालय में फरजीवाड़ा करने की जानकारी जब एडीएम (वित्त) देहरादून व सहायक महानिरीक्षक निबंधन संदीप श्रीवास्तव को मिली तो सब से पहले उन्होंने ही इस बाबत जांच की थी.

कालिंदी की जिद : पत्नी या प्रेमिका?

जमीन हड़पने वाले भूमाफिया – भाग 1

जमीन हड़पने वाले गिरोह के लोग देहरादून में काफी समय से खाली पड़ी जमीनों पर नजर रखते थे. जिन जमीनों के मालिक विदेशों में होते थे, सब से पहले वे उसी जमीन को अपना निशाना बनाते थे. उस के बाद मौका मिलते ही जमीनों के फरजी कागजात तैयार कर लिए जाते थे. उन कागजों को दिखा कर जमीन अन्य लोगों को बेच दिया करते थे.

रजिस्ट्री में फरजीवाड़ा करने के लिए 30 से 50 साल पुराने स्टांप पेपरों का इस्तेमाल किया जाता था, ताकि उन्हें उसी वक्त के बैनामे के तौर पर दर्शाया जा सके. इस के बाद रजिस्ट्रार कार्यालय में फरजी व्यक्तियों के नाम पर उन जमीनों को दर्ज कर दिया जाता था.

उन्हीं दिनों सालों से पुराने स्टांप इकट्ठा करने वाले एक माफिया के.पी. सिंह से जुड़ा मामला भी उजागर हो गया था. इस धंधे में उस ने करोड़ों रुपए कमाए थे और मालामाल हो गया था. सहारनपुर का एक भूमाफिया इस फरजीवाड़े के लिए लंबे समय से पुराने स्टांप इकट्ठा कर रहा था. वह इन स्टांपों को देहरादून और सहारनपुर के स्टांप वेंडरों से खरीदता था. इस के लिए एक स्टांप के लाखों रुपए तक अदा किए गए थे. इन्हीं के आधार पर पुराने मूल बैनामों की प्रतियां जला कर नष्ट कर दी गई थीं और इन के बदले स्टांप को लगा कर नए दस्तावेज बना लिए गए थे.

उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी सरकार ने 16 जुलाई, 2022 को अचानक एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाते हुए देहरादून के डीएम और एसएसपी का तबादला कर दिया था. प्रशासनिक स्तर पर डा. आर. राजेश कुमार की जगह सोनिका को जिला मजिस्ट्रैट बनाए जाने की काफी चर्चा हुई थी. कारण सोनिका अपर सचिव के पद पर तैनात थीं और उन्हें अतिरिक्त जिम्मेदारी के तौर पर जिलाधिकारी का कार्यभार सौंपा गया था.

यह कदम अपने आप में बेहद हैरानी भरा इसलिए था, क्योंकि जिला मजिस्ट्रैट की जिम्मेदारियां आमतौर पर एक पूर्णकालिक कार्य माना जाता है और इन्हें अतिरिक्त सचिव जैसी जिम्मेदारियों के साथ मिलाना सामान्य तौर पर नहीं देखा जाता है.

इस चर्चा के बीच सोनिका के सामने चुनौती दोहरी जिम्मेदारी के निर्वहन की आ गई थी, लेकिन तब तक उन्हें शायद ही मालूम हो पाया था कि उन के सामने भूमाफियाओं का मकडज़ाल है और उन के कारनामों से निपटने की भी नई चुनौती आने वाली है.

पद संभालते ही जमीन की खरीदबिक्री में हेराफेरी और फरजीवाड़े की शिकायतें मिलने लगी थीं. कुछ शिकायतें पहले की भी थीं. वे शिकायतें न केवल थानों में दर्ज नई पुरानी एफआईआर की थीं, बल्कि कार्यालय के फोन पर भी पीडि़त मोटी रकम ठगे जाने को ले कर इंसाफ की गुहार करने लगे थे.

शिकायतों में गलत प्लौट बता कर पैसे ठग लेना या फिर एक ही प्लौट को कई लोगों के हाथों बेचने के साथसाथ नकली कागजात बनाने की भी थीं. डीएम सोनिका को यह जान कर आश्चर्य तब हुआ, जब उन्हें मालूम हुआ कि इस धंधे में न केवल भूमाफिया, बल्कि राजस्व अधिकारी, स्टांप वेंडर और दूसरे छोटेबड़े चपरासी से ले कर क्लर्क तक शामिल हैं.

जब उन्होंने पीडि़तों की शिकायतें पढ़ीं, तब वह हैरान रह गईं कि बेची और खरीदी जाने वाली अधिकतर जमीनों के मालिक विदेशों में बसे हुए थे और उन्हें पता ही नहीं था कि उन की पुश्तैनी जमीन भूमाफियाओं के लिए दुधारू गाय बन चुकी है.

साल 2023 के शुरुआत के महीनों में डीएम सोनिका की टेबल पर जमीन से संबंधित शिकायतों का पुलिंदा और भी मोटा हो गया था. इस संबंध में वह कई दफा अपने अधीनस्थ उपजिलाधिकारियों, तहसीलदारों और राजस्व अधिकारियों की बैठकें कर चुकी थीं. उन्हें उन की जिम्मेदारियों से अवगत करवाते हुए आवश्यक निर्देश और जांच के आदेश भी दे चुकी थीं. फिर भी काररवाई के नाम पर कोई नतीजा नहीं आ रहा था.

अंकुर शर्मा ने डीएम को दी गोपनीय जानकारी

इसी सिलसिले में डीएम कार्यालय में एक दिन अंकुर शर्मा नाम के व्यक्ति का फोन आया. शर्मा ने अपनी बात डीएम साहिबा से करवाने की जिद की. उस ने कहा कि उस के पास जमीन फरजीवाड़े के संबंध में कई महत्त्वपूर्ण गोपनीय जानकारियां हैं. डीएम औफिस के कर्मचारी ने उस के आग्रह को गंभीरता से लिया और सीधे डीएम सोनिका से ही बात करवा दी.

शर्मा ने अपना परिचय एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में दिया. उन्हें बताया कि रजिस्ट्रार औफिस में फरजीवाड़े का गोरखधंधा काफी समय से चल रहा है. वहां के अधिकारियों और शहर के भूमाफिया की जबरदस्त सांठगांठ बनी हुई है. एक भूमाफिया गिरोह देहरादून में आसपास की खाली पड़ी उन जमीनों पर नजर रखे हुए है, जिन के मालिक शहर से बाहर या विदेशों में रहते हैं.

यह गिरोह सबरजिस्ट्रार कार्यालय में अधिकारियों और दूसरे कर्मचारियों से मिल कर जमीन के दस्तावेज से असली मालिक का नाम ही बदलवा लेता है. उस के बाद उस जमीन को नए ग्राहक के हाथों बेच देते हैं. इस काम में कई ग्राहक ठगे भी जा चुके हैं. उन्हें लाखों का चूना लग चुका है.

इसी के साथ शर्मा ने बताया कि यह धंधा देहरादून को साल 2000 में उत्तराखंड के नए राज्य की राजधानी बनने के बाद ही शुरू हो गया था. तब से गिरोह की जड़ें काफी मजबूत हो चुकी हैं. पहले वे बेशकीमती जमीनों पर कब्जा करने के लिए सबरजिस्ट्रार कार्यालय से किसी भी प्रौपर्टी के मालिकाना हक की सत्यापित नकल निकाल लेते हैं. उसे खरीदार को दिखा कर जमीन बेच देते हैं.

डीएम सोनिका के लिए यह जानकारी काफी चौंकाने वाली थी. उसी दिन उन्होंने अपने आला अधिकारियों और आयुक्त गढ़वाल रेंज से इस बारे में विचारविमर्श किया. काफी विचारविमर्श के बाद फरजीवाडे की जांच और जालसाज भूमाफियाओं को पकडऩे के लिए एसआईटी गठन करने की योजना बनाई गई.

डीएम द्वारा जल्द ही इस के गठन का निर्देश जारी कर दिया गया और उसे एसएसपी दिलीप सिंह कुंवर के दिशानिर्देश पर एसआईटी गठित भी कर दी गई. टीम में सर्वेश पंवार एसपी (ट्रैफिक) प्रभारी बनाया गया, जबकि सीओ नीरज सेमवाल, कोतवाल (नगर) राकेश गुसाईं, एसआई नवीनचंद जुराल, एसआई प्रदीप रावत और एसओजी के एसआई हर्ष अरोड़ा शामिल कर लिए गए.

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शिवचरन खून का घूंट पी कर रह गया. उस समय उस ने न तो नीलम से कुछ कहा और न ही जगराम सिंह से. लेकिन उस के हावभाव से नीलम समझ गई कि उस के मन में क्या चल रहा है. उस ने अपने भयभीत चेहरे पर मुसकान लाने की कोशिश तो बहुत की, लेकिन तनाव में होने की वजह से सफल नहीं हो पाई.

शिवचरन सोच ही रहा था कि वह क्या करे, तभी जगराम जम्हुआई लेते हुए उठा और शिवचरन को देख कर बोला, ‘‘अरे तुम इतनी जल्दी कैसे आ गए, तबीयत तो ठीक है?’’

शिवचरन ने जगराम सिंह के चेहरे पर नजरें जमा कर दबे स्वर में कहा, ‘‘तबीयत तो ठीक है, लेकिन दिमाग ठीक नहीं है.’’

इतना कह कर ही शिवचरन बाहर चला गया. उस ने जिस तरह यह बात कही थी, उसे सुन कर जगराम ने वहां रुकना उचित नहीं समझा और चुपचाप बाहर निकल गया. उस के जाते ही शिवचरन वापस लौटा और नीलम की चोटी पकड़ कर बोला, ‘‘बदलचन औरत, इस उम्र में तुझे यह सब करते शरम भी नहीं आई? वह भी उस आदमी के साथ जो तेरा भाई लगता है.’’

नीलम की चोरी पकड़ी गई थी, इसलिए वह कुछ बोल नहीं पाई. गुस्से में तप रहे शिवचरन ने नीलम को जमीन पर पटक दिया और लात घूसों से पिटाई करने लगा. नीलम चीखतीचिल्लाती रही, लेकिन शिवचरन ने उसे तभी छोड़ा, जब वह उसे मारते मारते थक गया.

इस के बाद शिवचरन नीलम पर नजर रखने लगा था. उस ने बेटों से भी कह दिया था कि जब भी मामा घर आए, वे उस से बताएं. जिस दिन शिवचरन को पता चलता कि जगराम आया था, उस दिन शिवचरन नीलम पर कहर बन कर टूटता था. अब जगराम और नीलम काफी सावधानी बरतने लगे थे. वह तभी नीलम से मिलने आता था, जब उसे पता चलता था कि घर पर न बेटे हैं और न शिवचरन.

इसी बात की जानकारी के लिए जगराम सिंह ने नीलम को एक मोबाइल फोन खरीद कर दे दिया था. इस से दोनों की रोजाना बातें तो होती ही रहती थीं, इसी से मिलने का समय भी तय होता था. एक दिन शिवचरन ने नीलम को जगराम से बातचीत करते पकड़ लिया तो मोबाइल फोन छीन कर पटक दिया. लेकिन अगले ही दिन जगराम ने उसे दूसरा मोबाइल फोन खरीद कर दे दिया.

काफी प्रयास के बाद भी शिवचरन नीलम और जगराम को अलग नहीं कर सका तो उस ने जगराम के घर जा कर उस की पत्नी लक्ष्मी से सारी बात बता दी. इस के बाद जगराम के घर कलह शुरू हो गई. यह कलह इतनी ज्यादा बढ़ गई कि लक्ष्मी ने बच्चों के साथ आत्मदाह करने की धमकी दे डाली.

पत्नी की इस धमकी से जगराम डर गया. उस ने पत्नी से वादा किया कि अब वह नीलम से संबंध तोड़ लेगा. उस ने नीलम से मिलना कम कर दिया तो इस से नीलम नाराज हो गई. इधर उस ने पैसों की मांग भी अधिक कर दी थी, जिस से जगराम को परेशानी होने लगी थी.

एक ओर जगराम सिंह अपनी पत्नी और बच्चों को छोड़ नहीं सकता था. दूसरी ओर अब नीलम से भी पीछा छुड़ाना आसान नहीं रह गया था. वह बदनाम करने की धमकी देने लगी थी. उस की धमकी और मांगों से तंग आ कर जगराम सिंह ने नीलम से पीछा छुड़ाने के लिए अपने साले लक्ष्मण के साथ मिल कर उसे खत्म करने की योजना बना डाली.

संयोग से उसी बीच नीलम ने बच्चों की ड्रेस, फीस, कापीकिताब और घर के खर्च के लिए जगराम से 10 हजार रुपए मांगे. जगराम ने कहा कि पैसों का इंतजाम होने पर वह उसे फोन से बता देगा.

24 जुलाई, 2014 की शाम 4 बजे जगराम सिंह ने नीलम को फोन किया कि पैसों का इंतजाम हो गया है, वह श्यामनगर चौराहे पर आ कर पैसे ले ले. फोन पर बात होने के बाद नीलम ने बेटों से कहा कि वह उन की ड्रेस लेने दर्जी के पास जा रही है और उधर से ही वह घर का सामान भी लेती आएगी.

नीलम श्यामनगर चौराहे पर पहुंची तो जगराम अपने साले लक्ष्मण सिंह के साथ कार में बैठा था. नीलम को भी उस ने कार में बैठा लिया. कार चल पड़ी तो नीलम ने जगराम से पैसे मांगे. लेकिन उस ने पैसे देने से मना कर दिया. तब नीलम नाराज हो कर उसे बदनाम करने की धमकी देने लगी.

नीलम की बातों से जगराम को भी गुस्सा आ गया. वह उस से छुटकारा तो पाना ही चाहता था, इसलिए पैरों के नीचे रखी लोहे की रौड निकाली और नीलम के सिर पर पूरी ताकत से दे मारा. उसी एक वार में नीलम लुढ़क गई. इस के बाद जगराम ने नीलम की साड़ी गले में लपेट कर कस दी. नीलम मर गई तो चाकू से उस के चेहरे को गोद दिया.

जगराम अपना काम करता रहा और लक्ष्मण कार चलाता रहा. चलती कार में नीलम की बेरहमी से हत्या कर के जगराम और लक्ष्मण ने देर रात उस की लाश को नौबस्ता ले जा कर हाईवे के किनारे फेंक दिया और खुद कार ले कर अपने घर चले गए.

पूछताछ के बाद 10 जुलाई, 2014 को थाना नौबस्ता पुलिस ने अभियुक्त सबइंसपेक्टर जगराम सिंह को कानपुर की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उस की जमानत नहीं हुई थी. उस का साला लक्ष्मण फरार था. पुलिस उस की तलाश में जगहजगह छापे मार रही थी.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित