जांच में पता चला कि इस गिरोह के लोग देहरादून में काफी समय से खाली पड़ी जमीनों पर नजर रखते थे. ऐसी जमीनों के जो मालिक विदेशों में होते थे, सब से पहले वह उन्हीं को अपना निशाना बनाते थे. इस के बाद मौका मिलते ही जमीनों के फरजी कागजात तैयार कर लिए जाते थे. उन कागजों को दिखा कर जमीन अन्य लोगों को बेच दिया करते थे.
रजिस्ट्री में फरजीवाड़ा करने के लिए 30 से 50 साल पुराने स्टांप पेपरों का इस्तेमाल किया जाता था. ताकि इन्हें उसी वक्त के बैनामे के तौर पर दर्शाया जा सके.
इस के बाद रजिस्ट्रार कार्यालय में फरजी व्यक्तियों के नाम पर इन जमीनों को दर्ज किया गया. इस बाबत कोतवाली (नगर) देहरादून में 9 मुकदमे दर्ज किए जा चुके थे. जब इस की जांचपड़ताल हुई, तब 6 अक्तूबर को एक आरोपी अजय मोहन पालीवाल गिरफ्तार कर लिया गया. उस के बारे में बड़ा खुलासा हुआ.
उस ने बताया कि अजय मोहन फोरैंसिक एक्सपर्ट था. उस ने आरोपी कमल विरमानी, के.पी. सिंह आदि के साथ मिल कर कई बड़े फरजीवाड़े किए थे. जमीनों के फरजी बैनामों में फरजी राइटिंग और सिग्नेचर बनाए गए थे.
इन्होंने ही एनआरआई महिला रक्षा सिन्हा की राजपुर रोड पर स्थित जमीन का फरजी बैनामा तैयार किया था. इस जमीन के कागज को रामरतन शर्मा के नाम से बनाया गया था. पहले भी कई विवादित जमीनों में इस की संलिप्तता रही है.
जांच में जब फरजीवाड़ा सही पाया गया, तब संदीप श्रीवास्तव ने एसआईटी में इस फरजीवाडे का मुकदमा अपराध क्रमांक 281/2023 पर आईपीसी की धाराओं 120बी, 420, 467, 468 व 471 के तहत दर्ज करा दिया था. इस के बाद ही जिले के नए एसएसपी अजय सिंह ने एसआईटी की 4 टीमों का गठन किया था और उन्हें इन भूमाफियाओं को गिरफ्तार करने के लिए लगा दिया था.
रजिस्ट्रार कार्यालय की रही संदिग्ध भूमिका
संदीप श्रीवास्तव ने एसआईटी को बताया था कि सबरजिस्ट्रार कार्यालय के कुछ दस्तावेजों पर जो मोहरें व स्याही लगी हुई थी, उन मोहरों का साइज सबरजिस्ट्रार कार्यालय की मोहरों के साइज से मेल नहीं खा रहा था. साथ ही स्याही के रंग में भी काफी अंतर था.
जिलाधिकारी देहरादून के जनता दरबार में भी अकसर सबरजिस्ट्रार कार्यालय में जमीनों के फरजी नाम परिवर्तन की शिकायतें ज्यादा आने के बाद ही एसआईटी ने जमीनों के फरजीवाड़े के मुकदमे दर्ज किए गए थे.
7 अक्तूबर, 2023 को टीम ने आरोपियों संजय शर्मा, ओमवीर तोमर और सतीश को गिरफ्तार किया था. टीम ने जब इन तीनों से इस फरजीवाड़े की बाबत पूछताछ की, तब कुछ फरजी दस्तावेजों पर अजय मोहन पालीवाल द्वारा बनाए गए हस्ताक्षर के बारे में भी जानकारी मिली.
पता चला कि ओमवीर तोमर की जानपहचान सहारनपुर निवासी के.पी. सिंह से थी. उसे के.पी. सिंह से जानकारी मिलती थी कि किस की जमीनें कहां हैं और वे कहां रहते हैं. इस के बाद ये लोग उस जमीन के फरजी कागजात तैयार करते थे. इस काम में एडवोकेट कमल विरमानी द्वारा उन दस्तावेजों को सबरजिस्ट्रार कार्यालय में भेजा जाता था.
तीनों आरोपियों से पूछताछ करने के बाद एसएसपी अजय सिंह ने इन्हें 8 अक्तूबर, 2023 को मीडिया के सामने पेश कर दिया था. तीनों कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिए गए थे. इन्हें गिरफ्तार करने वाली टीम में एसआईटी के इंसपेक्टर राकेश गुसाईं, एसओजी के इंसपेक्टर नंद किशोर भट्ट, एसएसआई प्रदीप रावत, एसआईटी के थानेदार मनमोहन नेगी, थानेदार हर्ष अरोड़ा, अमित मोहन ममगई और सिपाही किरण, ललित, देवेंद्र, पंकज आदि ने अहम भूमिका निभाई थी.
आरोपियों का आपराधिक इतिहास खंगाले जाने के बाद पाया कि आरोपी ओमवीर तोमर के खिलाफ देहरादून के थाना क्लेमेंटाउन में वर्ष 2014 में धोखाधडी का मुकदमा दर्ज हुआ था. इस के बाद उस के खिलाफ वर्ष 2015 में अपहरण व हत्या के प्रयास का मुकदमा दर्ज हुआ था तथा वर्ष 2017 में उस के खिलाफ जालसाजी, मारपीट करने व धमकी देने के मुकदमे दर्ज हुए थे.
19 आरोपी हुए गिरफ्तार
इस के बाद जांच टीम ने दिल्ली, उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखंड में जा कर भूमाफियाओं और जालसाजों के ठिकानों पर दबिशें देनी शुरू कर दी थीं. इस बारे में प्रशासन और सबरजिस्ट्रार कार्यालय के आला अधिकारियों का कहना था कि सबरजिस्ट्रार कार्यालय का रिकौर्ड स्थाई किस्म का है तथा वह संपत्ति स्वामित्व का मूल आधार है.
भूमाफियाओं और जालसाजों द्वारा उक्त रिकौर्ड के साथ छेड़छाड़ करना और उन के प्रपत्रों के माध्यम से मूल विलेख को बदलना गंभीर अपराध है. भूमाफियाओं का यह कृत्य भूस्वामियों के अधिकार का तो हनन करता ही है साथ ही यह अनावश्यक विवाद को जन्म भी देता है.
एसआईटी ने इस मामले में जिन्हें गिरफ्तार किया था, उन के नामपते इस प्रकार हैं—
- मक्खन सिंह निवासी माधवतुंडा, पीलीभीत, उत्तर प्रदेश.
- संतोष अग्रवाल निवासी बोगीबिल डिब्रूगढ़, असम.
- दीपचंद अग्रवाल निवासी चलखोवा डिब्रूगढ़, असम.
- डालचंद निवासी रेसकोर्स, देहरादून.
- इमरान निवासी बल्लूपुर, देहरादून.
- अजय छेत्री निवासी बल्लूपुर, देहरादून.
- रोहताश पुत्र महेंद्र ग्राम पुनिसका जिला रेवाड़ी, हरियाणा.
- विकास पांडे निवासी बंजारवाला, देहरादून.
- एडवोकेट कमल विरमानी निवासी चकरौता रोड, देहरादून.
- कंवरपाल सिंह उर्फ के.पी. सिंह निवासी कस्बा नकुड, सहारनपुर, उत्तर प्रदेश.
- विशाल निवासी गांव कूकड़ा, जिला मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश.
- महेश निवासी मोहल्ला पुष्पांजलि, सहारनपुर, उत्तर प्रदेश.
- अजय मोहन पालीवाल निवासी आदर्श नगर मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश.
- सुखदेव सिंह निवासी कोटला, अफगान रोड साहनेवाल, लुधियाना, पंजाब.
- हुमायूं परवेज निवासी काजी सराय नगीना जिला बिजनौर.
- देवराज तिवारी निवासी टीएचडीसी कालोनी, मधुर विहार देहरादून.
- सतीश निवासी जनकपुरी, जिला मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश.
- संजय शर्मा निवासी पंचेड़ा रोड, जिला मुजफ्फरनगर.
- ओमवीर सिंह तोमर निवासी डिफेंस कालोनी, देहरादून, उत्तराखंड.
इस फरजीवाड़े की कहानी लिखे जाने तक एसआईटी की जमीनों के घोटाले की लगभग 81 शिकायतें प्राप्त हो चुकी थीं. शिकायतों की जांच उन की प्रकृति के अनुसार की जा रही थी.
टीम का कार्यकाल नवंबर माह तक का था. जबकि यह अनुमान लगाया गया कि शिकायतों की संख्या में और भी बढ़ोत्तरी हो सकती है. फरजीवाड़े के बड़े रूप को देखते हुए टीम आम जनता से सीधे भी शिकायतें प्राप्त करने लगी थी.
स्टांप एवं रजिस्ट्रैशन मुख्यालय स्थित एसआईटी के कार्यालय में एस.एस. रावत जमीनों के फरजीवाड़े की शिकायतें प्राप्त करने के लिए मौजूद होते थे. प्राप्त शिकायतों को उस की प्रकृति और श्रेणी के अनुसार जांच हेतु तहसील अथवा उपजिलाधिकारी कार्यालय भेजा जाता है.
कथा लिखे जाने तक जमीनों के फरजीवाड़े में पकड़े गए 19 आरोपी अभी तक जेल में थे तथा एसआईटी द्वारा जांच जारी थी. एसआईटी द्वारा गिरफ्तार आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट लगाने के बाद अब एसआईटी उन के खिलाफ गैंगस्टर ऐक्ट लगाने पर भी विचार कर रही थी.