UP News: मोहब्बत की बुनियाद पर रची साजिश

UP News: सना ने प्यार की बुनियाद रखी तो थी प्रेमी सौरभ सक्सेना के साथ, लेकिन महत्त्वाकांक्षाओं ने उस के कदम खुरशीद आलम की तरफ मोड़ दिए. फिर सना ने सौरभ को रास्ते से हटाने के लिए खुरशीद के साथ मिल कर ऐसी साजिश रची कि…

मुरादाबाद शहर की रामगंगा विहार फेज-2 कालोनी का रहने वाला सौरभ सक्सेना रोज की तरह 6 फरवरी, 2015 को भी सुबह साढ़े 6 बजे मौर्निंग वौक के लिए घर से निकला. वह घूमटहल कर घंटे-2 घंटे में घर लौट आता था, लेकिन उस दिन वह 2-3 घंटे तक नहीं लौटा तो पिता के.सी. सक्सेना  ने यह जानने के लिए उसे फोन लगाया कि वह कहां है और अब तक घर क्यों नहीं लौटा? लेकिन उस का फोन बंद था. घर वालों ने सौरभ के दोस्तों को फोन किया तो पता चला कि वह उन के पास भी नहीं गया. उस का कहीं पता न चलने पर घर वाले परेशान हो गए.

सौरभ ने कुछ दिनों पहले ही आशियाना मोहल्ले में स्थित बौडी फ्यूल फिटनेस एकेडमी जिम जाना शुरू किया था. यह बात उस के बड़े भाई गौरव को पता थी. सौरभ जिम गया था या नहीं, यह जानने के लिए वह वहां गया तो उस के गेट पर ताला लटका मिला. वहां से वह निराश हो कर घर लौट आया. दोपहर के समय के.सी. सक्सेना के फोन पर सौरभ का फोन आया तो वह खुश हुए कि बेटे का फोन आ गया. उन्होंने जैसे ही हैलो कहा, दूसरी ओर से कहा गया, ‘‘पापा, मैं इस समय नवीननगर में हूं.’’

इस के बाद दूसरी तरफ से फोन काट दिया गया. के.सी. सक्सेना उस आवाज को सुन कर हैरान थे, क्योंकि वह आवाज सौरभ की नहीं थी. वह सोच में पड़ गए कि आखिर कौन है, जो सौरभ बन कर बात कर रहा है. उसी दिन सौरभ के फोन से हिमांशु के फोन पर भी फोन आया था कि उस के पास पापा का फोन तो नहीं आया था? हिमांशु सौरभ का दोस्त था. वह आवाज सुन कर हिमांशु भी चौंका था, क्योंकि वह आवाज सौरभ की नहीं थी. हिमांशु ने यह बात सौरभ के पिता के.सी. सक्सेना को बता दी थी. के.सी. सक्सेना अब और ज्यादा परेशान हो गए कि उन का जवान बेटा न जाने कहां है और उस के फोन से न जाने कौन बात कर रहा है? वह अपने परिचितों को ले कर थाना सिविल लाइंस पहुंचे और बेटे की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

सौरभ की चिंता में उस के घर वाले रात भर परेशान रहे. अगले दिन के.सी. सक्सेना एसएसपी लव कुमार से मिले. मामले की गंभीरता को समझते हुए एसएसपी ने उसी समय एसपी (सिटी) प्रदीप गुप्ता को अपने औफिस में बुलवाया और इस मामले में आवश्यक काररवाई करने को कहा. के.सी. सक्सेना ने एसपी (सिटी) प्रदीप गुप्ता को विस्तार से पूरी बात बता कर कहा कि जिस शख्स ने सौरभ के फोन से बात की थी, वह उस शख्स को नहीं जानते. उन्होंने पुलिस को यह भी बताया कि उन की किसी से कोई रंजिश वगैरह भी नहीं है. जिस समय के.सी. सक्सेना के फोन पर सौरभ के फोन से बात की गई थी, उस समय उस की लोकेशन कहां थी, यह जानने के लिए एसपी (सिटी) प्रदीप गुप्ता ने सौरभ के फोन की काल डिटेल्स निकलवाने के साथ उस के फोन नंबर को सर्विलांस पर लगवा दिया.

एसपी (सिटी) के निर्देश पर सिविल लाइंस के सीओ मोहम्मद इमरान ने सौरभ की काल डिटेल्स का अध्ययन किया तो पता चला कि 6 फरवरी को उस के फोन से दोपहर एक बजे के करीब मुरादाबाद शहर के ही पीली कोठी इलाके से बात की गई थी. इसी के साथ एक फोन नंबर ऐसा भी मिल गया, जिस से सौरभ के मोबाइल पर 6 फरवरी को सुबह 6 बज कर 25 मिनट पर बात की गई थी. उसी नंबर से 26 जनवरी, 2015 से 7 फरवरी, 2015 तक सौरभ के मोबाइल पर 6 बार बात हुई थी. यह फोन नंबर यूनिनार कंपनी का था.

यूनिनार कंपनी का यह फोन नंबर पुलिस के शक के दायरे में आ गया. मोहम्मद इमरान ने यूनिनार कंपनी के इस फोन नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई. इस में पुलिस को चौंकाने वाली यह जानकारी मिली कि इस नंबर से केवल सौरभ के मोबाइल पर ही बातें की गई थीं. इस से पुलिस को यह समझने में देर नहीं लगी कि यह नंबर केवल सौरभ से बात करने के लिए ही लिया गया था. अब पुलिस यह जानने में लग गई कि यूनिनार कंपनी का यह नंबर किस के नाम से लिया गया था. पुलिस को यूनिनार कंपनी से जो जानकारी मिली, उस से पता चला कि वह नंबर रेलवे हरथला कालोनी के दुकानदार मुन्ना पहाड़ी से खरीदा गया था. नंबर लेते समय 2-2 आईडी प्रूफ लगे थे.

ताज्जुब की बात यह थी कि दोनों आईडी पर अलगअलग लोगों के फोटो लगे थे. एक आईडी संभल के किसी आदमी की थी तो दूसरी मुरादाबाद के आदमी की थी. दोनों ही पतों पर पुलिस टीमें भेजी गईं, लेकिन दोनों पते फरजी निकले. इस से पुलिस की जांच जहां की तहां रुक गई. कहीं से कोई सुराग मिले, इस के लिए पुलिस टीम फिर से यूनिनार के उस फोन नंबर की काल डिटेल्स खंगालने लगी. पता चला कि इस नंबर की 3 दिन पहले की लोकेशन आशियाना इलाके की थी. सीओ मोहम्मद इमरान ने के.सी. सक्सेना से पूछा कि आशियाना इलाके में सौरभ का कोई परिचित तो नहीं रहता? इस पर उन्होंने बताया कि आशियाना इलाके के बौडी फ्यूल फिटनेस एकेडमी नाम के जिम में सौरभ जाता था.

सौरभ के गायब होने का राज कहीं इस जिम में तो नहीं छिपा, यह जानने के लिए मोहम्मद इमरान बौडी फ्यूल फिटनेस एकेडमी नाम के उस जिम में पहुंचे. वहां जिम संचालक खुरशीद आलम और जिम की रिसैप्शनिस्ट सना उर्फ सदफ मिली. उन्होंने दोनों से सौरभ के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि सौरभ उन के जिम में आता तो था, लेकिन 6 फरवरी से वह जिम नहीं आ रहा है. उन से बात करने के बाद सीओ साहब अपने औफिस लौट आए. कई दिन बीत जाने के बाद भी पुलिस को सौरभ के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली थी. उस का मोबाइल फोन बंद था. सौरभ अगवानपुर के एक इंटर कालेज से इंटरमीडिएट की पढ़ाई कर रहा था. मोहल्ले में और कालेज में उस के जो भी नकदीकी दोस्त थे, पुलिस ने उन सब से पूछताछ की. उन से भी सौरभ के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

11 फरवरी, 2015 को मुरादाबाद के ही थाना मझोला के अंतर्गत आने वाले भोला सिंह की मिलक के पास नाले में एक ड्रम देखा गया. ड्रम का आधा भाग पानी में डूबा था और आधा पानी के ऊपर दिखाई दे रहा था. शक होने पर किसी ने इस की सूचना थाना मझोला पुलिस को दे दी. मझोला पुलिस ने मौके पर पहुंच कर उस ड्रम को नाले से निकलवाया तो उस में से प्लास्टिक के बोरे में बंद एक युवक की लाश निकली. वह युवक ट्रैक सूट और स्पोर्ट्स शूज पहने था. मझोला पुलिस ने लाश का हुलिया बताते हुए इस बात की सूचना वायरलैस द्वारा जिला पुलिस कंट्रोलरूम को दे दी.

सिविल लाइंस के थानाप्रभारी ने वायरलैस की यह सूचना सुनी तो वह चौंके, क्योंकि लाश का जो हुलिया बताया गया था, वही हुलिया उन के क्षेत्र के गायब युवक सौरभ सक्सेना का था. थानाप्रभारी ने फोन कर के तुरंत सौरभ के पिता को थाने बुलाया और उन्हें ले कर भोला सिंह की मिलक के पास उस जगह पहुंच गए, जहां ड्रम में लाश मिली थी. जैसे ही के.सी. सक्सेना ने लाश देखी, वह दहाड़ें मार कर रोने लगे. क्योंकि वह लाश उन के 19 वर्षीय बेटे सौरभ की ही थी. उस का सिर फूटा हुआ था. उस के मुंह में एक लंगोट ठूंसा हुआ था और दूसरे लंगोट से उस की नाकमुंह को कवर करते हुए गले को बांधा गया था. देख कर ही लग रहा था किसी भारी चीज से उस के सिर पर कई वार किए गए थे. सौरभ की हत्या की खबर मिलते ही उस के घर में कोहराम मच गया. परिवार के लोग और संबंधी रोतेबिलखते घटनास्थल पर पहुंच गए.

सूचना मिलने के बाद एसएसपी लव कुमार और अन्य पुलिस अधिकारी भी मौके पर पहुंच गए थे. जरूरी काररवाई के बाद पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. 11 फरवरी की शाम को ही डाक्टरों के एक पैनल ने सौरभ सक्सेना की लाश का पोस्टमार्टम किया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार सौरभ की हत्या करीब 5 दिनों पहले की गई थी यानी जिस दिन वह गायब हुआ था, उस के कुछ घंटे बाद ही उसे मार दिया गया था. हत्यारों ने लोहे की रौड जैसी किसी भारी चीज से उस के सिर पर 18 वार किए थे. वार इतनी ताकत से किए गए थे कि उस के सिर की हड्डियां तक टूट गई थीं. इस के बाद सिर को बुरी तरह कुचला गया था. डाक्टरों ने मौत की वजह हेड इंजरी बताया था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ने के बाद पुलिस ने अनुमान लगाया कि हत्यारों ने सौरभ के मुंह में लंगोट ठूंस कर दूसरे लंगोट से जिस तरह उस की नाक और मुंह को बांधा था, हत्या करने वालों की संख्या 2 से अधिक रही होगी. ऐसा उन्होंने इसलिए किया होगा, ताकि उस की चीख न निकल सके. यह सब किस ने किया था, यह पता लगाना पुलिस के लिए आसान नहीं था. लाश के पास ऐसा कोई सुबूत नहीं मिला था, जिस से हत्यारों तक जल्दी पहुंचा जा सके. लंगोट और ड्रम के सहारे पुलिस ने जांच आगे बढ़ाने की कोशिश शुरू की. सब से पहले पुलिस ने के.सी. सक्सेना से पूछा कि सौरभ लंगोट बांधता था क्या?

‘‘नहीं, वह घर पर कभी लंगोट नहीं बांधता था. हो सकता है कि जिम में एक्सरसाइज करते समय लंगोट बांधता रहा हो.’’ के.सी. सक्सेना ने बताया तो सीओ मोहम्मद इमरान के नेतृत्व में एक पुलिस टीम एक बार फिर आशियाना कालोनी स्थित जिम बौडी फ्यूल फिटनेस एकेडमी पहुंची. उस जिम के बाईं ओर रेड सफायर नाम का बैंक्वेट हाल था. उस के बाहर सीसीटीवी कैमरे लगे थे. जिम के दाईं ओर एक अस्पताल था, उस के बाहर भी सीसीटीवी कैमरे लगे थे. 6 फरवरी को सौरभ जिम में आया था या नहीं, यह बात सीसीटीवी फुटेज से पता लग सकती थी. पुलिस ने बैंक्वेट हाल और अस्पताल के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी तो उस में 6 फरवरी की सुबह सौरभ एक लड़की के साथ जिम की तरफ आता दिखाई दिया.

सौरभ के भाई गौरव ने उस लड़की को तुरंत पहचान कर बताया कि यह लड़की उस के घर में काम करने वाली नौकरानी की बेटी सना उर्फ सदफ है. यह बौडी फ्यूल फिटनेस जिम में नौकरी करती है. फुटेज देखने के बाद पुलिस को इस बात पर हैरानी हुई कि जिम संचालक खुरशीद आलम और सना ने उस से यह झूठ क्यों बोला कि 6 फरवरी को सौरभ जिम नहीं आया था. जबकि फुटेज में वह सना के साथ जिम में जाता दिखाई दिया था. पुलिस टीम खुरशीद आलम के जिम पहुंची. सीओ मोहम्मद इमरान को देखते ही खुरशीद घबरा गया. उस से बात किए बिना ही पुलिस ने जिम की तलाशी ली तो वहां उसी तरह के लंगोट टंगे हुए मिले, जिस तरह के मृतक सौरभ के मुंह और गरदन पर बंधे मिले थे. उसी दौरान खुरशीद ने मोहम्मद इमरान से पूछा, ‘‘सर, सौरभ के हत्यारों का कुछ पता चला?’’

‘‘देखो, अभी पता चल जाएगा,’’ कह कर उन्होंने एक थप्पड़ खुरशीद आलम के गाल पर जड़ दिया.

खुरशीद को ऐसी उम्मीद नहीं थी. वह हक्काबक्का रह गया. उस के मुंह से कोई जवाब नहीं निकला. सीओ ने पूछा, ‘‘तुम लोगों ने सौरभ को क्यों मारा?’’

रिसैप्शनिस्ट सना उर्फ सदफ यह देख कर घबरा गई. सीओ के निर्देश पर महिला पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया. दोनों को हिरासत में ले कर इमरान मोहम्मद ने उन से सौरभ की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उन्होंने स्वीकार कर लिया कि सौरभ की हत्या उन्होंने ही इसी जिम में की थी. उन्होंने उस की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी. मुरादाबाद महानगर के सिविल लाइंस में है एक कालोनी रामगंगा विहार फेज-2. इसी कालोनी में के.सी. सक्सेना अपनी पत्नी अलका सक्सेना और 3 बच्चों के साथ रहते थे. बच्चों में बेटा गौरव, सौरभ और बेटी साक्षी थी. के.सी. सक्सेना प्रथमा बैंक में शाखा प्रबंधक थे और उन की पोस्टिंग महानगर से 10 किलोमीटर दूर पाकबड़ा शाखा में थी. अपने छोटे परिवार के साथ वह हंसीखुशी से रह रहे थे.

पढ़ाई पूरी करने के बाद बड़ा बेटा गौरव सक्सेना चड्ढा ग्रुप के मुरादाबाद स्थित वेब मौल में नौकरी करने लगा था, जबकि सौरभ अभी अगवानपुर के एक कालेज से 12वीं की पढाई कर रहा था. के.सी. सक्सेना के यहां किसी तरह की आर्थिक समस्या नहीं थी. लेकिन वह शारीरिक रूप से अस्वस्थ थे. वह हार्ट पेशेंट थे. उन की 2 बार हार्ट सर्जरी हो चुकी थी. उन के साथसाथ उन की पत्नी अलका भी अकसर बीमार रहती थीं. जिस से उन्हें घर के काम करने और खाना बनाने में परेशानी होती थी. घर के काम करने और खाना बनाने के लिए उन्होंने शबनम को रख लिया था.

शबनम रामगंगा विहार की ही ईडब्ल्यूएस कालोनी में रहने वाले मोहम्मद इमरान की पत्नी थी. मोहम्मद इमरान टूव्हीलर मैकेनिक था और उस की 2 बीवियां थीं. शबनम उस की दूसरी बीवी थी. कभीकभी शबनम अपनी बेटी सना उर्फ सदफ को भी ले आती थी. सना के.सी. सक्सेना की बेटी साक्षी की ही उम्र की थी, इसलिए उन दोनों में दोस्ती हो गई थी. सना भी पढ़ाई कर रही थी. कभी शबनम को के.सी. सक्सेना के यहां आने में देर हो जाती तो सौरभ बाइक से उस के घर पहुंच जाता और उसे बाइक पर बैठा कर ले आता. शबनम की बेटी सना जवान और सुंदर थी. वह महानगर के ही दयानंद डिग्री कालेज से बीए की पढ़ाई कर रही थी.

घर आनेजाने की वजह से सौरभ और सना के बीच दोस्ती हो गई. धीरेधीरे यही दोस्ती प्यार में बदल गई. प्यार जब परवान चढ़ा तो उन के बीच जिस्मानी संबंध भी बन गए. हालांकि दोनों के सामाजिक स्तर में जमीनआसमान का अंतर था. इस के अलावा वे अलगअलग धर्मों से भी थे, फिर भी उन्होंने शादी कर के जिंदगी भर साथ रहने की कसमें खाईं. काफी दिनों तक उन के संबंधों की भनक किसी को नहीं लगी. सना सौरभ पर शादी के लिए दबाव डालने लगी तो वह बोला, ‘‘सना, हमारे और तुम्हारे बीच सब से बड़ी बाधा धर्म की है. तुम मुसलिम हो और मैं हिंदू.’’

सौरभ की बात पूरी होने से पहले ही सना ने कहा, ‘‘यह तुम क्या कह रहे हो सौरभ? यह बात तो तुम्हें पहले सोचनी चाहिए थी.’’

‘‘सना, तुम नाराज मत होओ. देखो, जब तक बड़े भाई गौरव की शादी नहीं हो जाती, तब तक इस बारे में घर वालों से बात करना बेकार है. गौरव की शादी के बाद मैं घर वालों को समझाने की कोशिश करूंगा.’’ सौरभ ने सना को सममझाया.

झूठी दिलासा के सहारे 3 साल गुजर गए. सना मन ही मन यही सपना संजोए बैठी थी कि सौरभ से शादी करने के बाद वह ऐश की जिंदगी जिएगी. लेकिन प्रेमी के झूठे वादों से उसे अपने सपने धूमिल होते नजर आ रहे थे. इसलिए उस ने सौरभ से दूरी बनानी शुरू कर दी.

सना पढ़ीलिखी खूबसूरत युवती थी. उसे अब अपने भविष्य की चिंता सताने लगी. अपने पैरों पर खड़ी होने के लिए उस ने नौकरी तलाशनी शुरू कर दी. कोशिश करने पर उसे महानगर में कांठ रोड पर स्थित एक जिम में रिसैप्शनिस्ट की नौकरी मिल गई. बाद में वह उसी जिम में ट्रेनर हो गई. वहां नौकरी पर लगे उसे कुछ ही दिन हुए थे कि उसे पता चला कि आशियाना कालोनी में बौडी फ्यूल फिटनेस एकेडमी नाम का एक नया जिम खुला है और वहां रिसैप्शनिस्ट की जगह खाली है. यह खबर मिलते ही वह नौकरी के लिए उस जिम में पहुंच गई, ताकि वहां उसे ज्यादा तनख्वाह मिल सके. वहां उस की बात बन गई. यानी बौडी फ्यूल जिम में उसे रिसैप्शनिस्ट व महिला ट्रेनर की नौकरी मिल गई. यह जिम हरथला कालोनी के रहने वाले खुरशीद आलम का था.

जब लोगों को पता चला कि जिम में महिला ट्रेनर भी है तो वहां महिलाओं ने भी आना शुरू कर दिया, जिस से जिम की आमदनी बढ़ने लगी. दिन भर जिम में साथ रहने की वजह से सना और खुरशीद एकदूसरे के काफी नजदीक आ गए. उन के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए. खुरशीद की बांहों में जाने के बाद सना सौरभ को भूल चुकी थी. वह खुरशीद के साथ ही बाइक पर घूमती. चूंकि दोनों एक ही धर्म के थे, इसलिए खुरशीद ने सना से शादी का वादा किया. उधर जब सौरभ को सना और खुरशीद के संबंधों के बारे में पता चला तो उसे बहुत दुख हुआ. उस ने इस बारे में सना से फोन पर बात करनी चाही, लेकिन सना ने उस का फोन रिसीव नहीं किया. जबकि इस से पहले उस की सना से फोन पर कभीकभार बात हो जाया करती थी.

तब सौरभ उस से मिलने के लिए बौडी फ्यूल फिटनेस एकेडमी जिम जाने लगा. इतना ही नहीं, वह सना पर जिम की नौकरी छोड़ने के लिए दबाव भी बनाने लगा. लेकिन सना ऐसा करने को तैयार नहीं थी. सौरभ के बारबार जिम जाने पर खुरशीद को शक हो गया. खुरशीद ने सना से सौरभ के बारे में पूछा. तब सना ने खुरशीद को सौरभ के साथ रहे अपने संबंधों के बारे में बता दिया. उस ने यह भी बता दिया कि सौरभ उस पर जिम से नौकरी छोड़ने को कह रहा है. सना ने सौरभ से जिम आने से मना करते हुए कहा कि बेहतर यही होगा कि वह उसे भूल जाए. पर सौरभ उसे भूलने को तैयार नहीं था. उस ने कहा कि वह उस के बिना जिंदा नहीं रह सकता. इतना ही नहीं, उस ने सना को धमकी भी दे दी कि अगर उस ने खुरशीद से शादी कर ली तो वह उस के अश्लील फोटो इंटरनेट पर डाल देगा.

इस धमकी से सना डर गई. उस ने फोटो वाली बात खुरशीद को बता कर इस का कोई वाजिब हल निकालने को कहा. खुरशीद सना के प्यार में पागल था. वह उस पर अंधाधुंध पैसे खर्च कर रहा था. अकसर सना के साथ घूमनेफिरने से उस के धंधे पर भी असर पड़ना शुरू हो गया था. उस का लगातार नुकसान हो रहा था, जिस से वह लोगों का कर्जदार भी हो गया था. पिछले 2 महीने से उस ने सना की तनख्वाह और बिल्डिंग का किराया भी नहीं दिया था. लगातार हो रहे घाटे से वह परेशान रहने लगा था. खुरशीद ने एक दिन अपनी परेशानी सना को बताई और कहा कि वह कोई ऐसा काम करना चाहता है, जिस में एक ही झटके में लाखों रुपए आ सकें.

सना ने सौरभ के घरपरिवार के बारे में खुरशीद को पहले ही बता दिया था. इसलिए दोनों ने प्लान बनाया कि अगर सौरभ का अपहरण कर लिया जाए तो उस के घर वालों से लाखों रुपए की फिरौती मिल सकती है. क्योंकि उस के पिता बैंक में मैनेजर हैं. खुरशीद का बचपन का एक दोस्त था निहाल जैदी. निहाल जैदी के पिता सैयद अली आजम जैदी व खुरशीद के पिता निजामुद्दीन अंसारी दोनों ही रेलवे में टीटीई थे और एक साथ मुरादाबाद मंडल में रह चुके थे. दोनों के घर वालों का एकदूसरे के यहां आनाजाना था. इसीलिए खुरशीद और निहाल जैदी में गहरी दोस्ती थी.

सैयद अली आजम जैदी मूलरूप से मुफ्तीगंज लखनऊ के रहने वाले थे. रिटायर होने के बाद वह लखनऊ चले गए थे. निहाल जैदी आवारा किस्म का था, इसलिए घर वालों ने उसे घर से निकाल दिया था. लखनऊ से वह अपने दोस्त खुरशीद के पास चला आया और उसी के साथ ही रह रहा था. निहाल जैदी भी जिम का काम देखता था. सना और खुरशीद ने निहाल को भी अपनी योजना में शामिल कर लिया था. तीनों ने योजना बनाई थी कि सौरभ का अपहरण कर उस के घर वालों से 10 लाख रुपए की फिरौती वसूल कर उसे ठिकाने लगा देंगे. योजना को सुरक्षित ढंग से अंजाम देने के लिए खुरशीद ने फरजी आईडी पर एक सिम खरीदा. यह सिम उस ने महानगर की ही रेलवे हरथला कालोनी के दुकानदार मुन्ना पहाड़ी से खरीदा था. उस सिम को उस ने अपने फोन में डालने के बजाय इस के लिए एक चाइनीज फोन खरीदा.

इस के बाद सौरभ को झांसे में लेने की जिम्मेदारी सना को सौंप दी गई. सना ने 26 जनवरी, 2015 से इसी नए नंबर से सौरभ से बात करनी शुरू कर दी. सौरभ ने फिर उस से नौकरी छोड़ने की बात कही. 26 जनवरी को सना ने सौरभ को फोन कर के कहा था, ‘‘सौरभ, मैं काम छोड़ने को तैयार हूं, लेकिन खुरशीद ने 2 महीने से मेरी तनख्वाह नहीं दी है. ऐसा करो, तुम भी जिम जौइन कर लो. हम यहीं पर मिलते रहेंगे और जैसे ही मेरी तनख्वाह मिल जाएगी, मैं नौकरी छोड़ दूंगी.’’

यह बात सौरभ की समझ में आ गई और उस ने बौडी फ्यूल फिटनेस एकेडमी जौइन कर ली. यह बात घटना से 4 दिन पहले की थी. जिम जाने की बात उस ने अपने बड़े भाई गौरव को बता दी थी. 6 फरवरी, 2015 को सुबहसुबह सौरभ के मोबाइल पर सना का फोन आया, ‘‘सौरभ, तुम अभी तक जिम नहीं आए. जल्दी आ जाओ. इस समय यहां कोई नहीं है.’’

‘‘बस, मैं थोड़ी देर में पहुंच रहा हूं.’’ सौरभ ने कहा.

सौरभ मौर्निंग वौक के लिए निकलता था. इस के बाद वह उधर से ही जिम चला जाता था. लेकिन उस दिन उस का फोन आने पर वह सीधा जिम चला गया था. जिम के पास सना उस का पहले से ही इंतजार कर रही थी. उसे देखते ही सौरभ खुश हो गया. सना ने गर्मजोशी से उस का स्वागत किया और उसे अपने साथ जिम ले गई. जिम में पहुंच कर सना ने कहा, ‘‘सौरभ, तुम चेंजिंग रूम में कपड़े बदल लो, मैं यहीं बैठी हूं. सौरभ चेंजिंग रूम में गया तो वहां पहले से ही खुरशीद और निहाल जैदी मौजूद थे. दोनों ने उस की पिटाई शुरू कर दी. सौरभ चीखने लगा तो उन्होंने जिम में रखा एक लंगोट उस के मुंह में ठूंस दिया और दूसरा उस के मुंह और नाक में लपेट कर गले में बांध दिया.

इस के बाद भी वह हाथपैर चलाने लगा तो खुरशीद ने लोहे की रौड से उस के सिर पर कई वार कर दिए, जिस से उस का सिर फट गया और खून बहने लगा. इस के बाद सौरभ उन का मुकाबला नहीं कर सका और जमीन पर गिर गया. उधर सना ने डेक बजा कर उस की आवाज तेज कर दी थी, जिस से सौरभ चीखचिल्लाहट की आवाज बाहर किसी को सुनाई नहीं दी. खुरशीद और निहाल ने देखा कि सौरभ मर गया है तो उन्होंने सना को बुला लिया. सना ने कहा कि किसी भी हालत में अब यह जिंदा नहीं बचना चाहिए. वह एक सीरिंज में बाथरूम में रखा तेजाब भर लाई और तेजाब का इंजेक्शन उस के सीने में लगा दिया.

तीनों को लगा कि सौरभ मर गया है तो उन्होंने उस की लाश पहले से ला कर रखे पौलीथिन के एक बैग में भर दी. अब उन के सामने समस्या यह थी कि वह लाश को ठिकाने लगाने के लिए बाहर कैसे ले जाएं. हरथला में ही खुरशीद के बहनोई नदीम रहते थे. उन का वहीं पर एक कौनवेंट स्कूल था. उन्होंने ही खुरशीद को यशवीर चौधरी का बड़ा हौल किराए पर दिलवाया था, जिस का किराया 20 हजार रुपए महीना था. लाश ठिकाने लगाने के लिए तीनों ने एक प्लान तैयार कर लिया. प्लान के अनुसार खुरशीद अकेला जिम से चला गया और अपने एक परिचित की माल ढोने वाली छोटी टाटा मैजिक गाड़ी ले आया.

जिम के बराबर वाली इमारत में यशवीर चौधरी का प्रौपर्टी डीलिंग का औफिस था. उन्होंने जिम के बाहर माल ढोने वाली टाटा मैजिक गाड़ी देखी तो उन्हें लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि खुरशीद उन का किराया दिए बिना हौल खाली कर के जा रहा है. क्योंकि खुरशीद ने उन का 2 महीने का किराया नहीं दिया था, इसलिए जब उन्होंने जिम के सामने गाड़ी खड़ी देखी तो खुरशीद से पूछा. तब खुरशीद ने बताया कि दौड़ने वाली मशीन खराब हो गई है, उसे ठीक कराने ले जाना है. खुरशीद, सना और निहाल ने मिल कर एक इलैक्ट्रौनिक मशीन जिम से निकाल कर उस गाड़ी में रख दी. उसे खुरशीद व निहाल ले कर चले गए.

करीब आधे घंटे बाद खुरशीद और निहाल जैदी उस मशीन को ले कर वापस आ गए. वह अपने साथ एक ड्रम भी ले आए थे. वह ड्रम एक निर्माणाधीन इमारत से लाए थे. मशीन और ड्रम को वह जिम में ले गए. उस ड्रम में उन्होंने सौरभ की लाश डाल दी. फिर उस ड्रम को उसी टाटा मैजिक गाड़ी में रख लिया. पुन: गाड़ी देख कर मकान मालिक यशवीर चौधरी ने खुरशीद से ड्रम के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि कुछ मशीनों के पार्ट्स खराब हो गए हैं. इस ड्रम में वही खराब पार्ट्स हैं, जिन्हें सही करा कर लाना है. यशवीर चौधरी को उस पर विश्वास नहीं हुआ तो उस ने खुरशीद के बहनोई नदीम को फोन किया, जिन की जमानत पर चौधरी ने उसे कमरा किराए पर दिया था.

नदीम ने भी उसे यही बताया कि उस की कुछ मशीनें खराब हो गई हैं. नदीम के कहने पर यशवीर चौधरी को विश्वास हो गया. वह अपने औफिस में बैठ कर पार्टी से बात करने लगे. खुरशीद, सना और निहाल लाश वाला ड्रम गाड़ी में रख कर निकल गए और जिम में ताला लगा दिया. वहां से खुरशीद सीधे हरथला स्थित अपने बहनोई के स्कूल पहुंचा. स्कूल के कंप्यूटर लैब में उस ने लाश वाला ड्रम रखवा दिया. बहनोई को भी उस ने यही बताया कि ड्रम में मशीनों के पुरजे हैं. अगले दिन 7 फरवरी, 2015 की रात को वह टाटा मैजिक गाड़ी से वह उस ड्रम को ले कर निकल गया और उसे भोला सिंह की मिलक के पास नाले में फेंक आया. लाश ठिकाने लगा कर वह अपने घर चला गया. डर की वजह से उन्होंने घर वालों को फिरौती के लिए फोन नहीं किया.

सना और खुरशीद से पूछताछ के बाद पुलिस ने तीसरे अभियुक्त निहाल जैदी की तलाश शुरू कर दी. पता चला कि वह लखनऊ भाग गया है. एक पुलिस टीम निहाल जैदी की तलाश में लखनऊ भेजी गई, लेकिन वह वहां भी नहीं मिला. पुलिस ने सना और खुरशीद को मुरादाबाद के एसीजेएम प्रथम की अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक तीसरा अभियुक्त निहाल जैदी गिरफ्तार नहीं हो सका था. UP News

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Love Story in Hindi: दिलजला दोस्त

Love Story in Hindi: सकीना कासिम को प्यार करती थी, जबकि कासिम का दोस्त शाहीन सकीना को प्यार करता था. यह बात शाहीन को बिलकुल अच्छी नहीं लगी. आखिर शाहीन ने ऐसा क्या किया कि सकीना न कासिम की रही और न उस की. सपने पूरे हों या न हों, लेकिन देखने में कोई बुराई नहीं है. आज हर कोई ज्यादा से ज्यादा पाने की कोशिश में लगा है. इसी ज्यादा पाने की कोशिश में कभी आदमी कुछ गलत भी कर बैठता है. कासिम और शाहीन भले ही निम्न मध्यमवर्गीय परिवार से थे, लेकिन टीवी और मोबाइल ने उन्हें महत्त्वाकांक्षी बना दिया था. छोटा परदा उन्हें नएनए सपने दिखाता था और उस पर दिखाई देने वाली लड़कियां दोनों को बहुत अच्छी लगती थीं.

इटावा के मोहल्ला गाड़ीपुरा का रहने वाला इश्तियाक मजदूरी कर के अपने परिवार को पाल रहा था. लेकिन उस का बेटा कासिम सपनों की दुनिया में जीने वाला युवक था. मोहल्ले के ही रहने वाले सलीम के बेटे शाहीन से उस की पक्की दोस्ती थी, दोनों अक्सर साथसाथ रहते थे. इसलिए दोनों को एकदूसरे का हर राज पता होता था. एक दिन मोहल्ले के ही रहने वाले शकील की बेटी सकीना से कासिम की नजरें लड़ीं तो वह मुसकरा उठी. कासिम दिल थाम कर रह गया. सकीना की मुसकराहट ने उस के दिल पर जादुई असर किया था. इस के बाद वह अपने दिल की बात कहने को बेचैन रहने लगा था.

उसी दिन के बाद से कासिम सकीना के घर के इर्दगिर्द मंडराने लगा था. वह उस से दिल की बात कहना चाहता था, लेकिन यह इतना आसान नहीं था. इसलिए वह मौका तलाश रहा था कि सकीना कब अकेले में मिले. जहां चाह होती है, वहां राह मिल ही जाती है. ऐसा ही कुछ कासिम के साथ भी हुआ. मोहल्ले में होने वाली एक शादी समारोह में कासिम की मुलाकात सकीना से हो गई. उस ने उस के पास जा कर कहा, ‘‘सकीना, मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं.’’

कासिम भले ही मोहल्ले का रहने वाला था, लेकिन सकीना से उस की कभी बात नहीं हुई थी. इसलिए उस ने झिझकते हुए पूछा, ‘‘कोई खास काम है क्या?’’

‘‘खास काम है, तभी तो कह रहा हूं.’’

‘‘तो बताओ न क्या काम है?’’ सकीना ने पूछा.

‘‘इस भीड़ में नहीं कह सकता. अकेले में मिलोगी, तब कहूंगा.’’ कसिम ने सकीना को चाहत भरी नजरों से ताकते हुए कहा.

‘‘ठीक है, कल शाम को सब्जी मंडी सब्जी लेने आऊंगी, वहीं मिलना. तुम अपना मोबाइल नंबर दे दो, मैं तुम्हें फोन कर दूंगी.’’ सकीना ने कहा.

कासिम ने सकीना को मोबाइल नंबर दे दिया. सकीना तो चली गई, पर कासिम के दिल में हलचल मचा गई. कासिम को उस रात नींद नहीं आई. वह यही सोचता रहा कि दिल की बात सकीना से कैसे कहेगा? सकीना ने मिलने के लिए हामी भर दी थी, जिस से वह इतना तो समझ ही गया था कि सकीना उस की बात को हवा में नहीं उड़ाएगी.

अगले दिन सुबह से ही उसे सकीना के फोन का इंतजार था. 5 बजे के आसपास घंटी बजते ही उस का दिल धड़क उठा. सकीना के बुलाने पर वह सब्जी मंडी पहुंच गया. सकीना वहां उस का इंतजार कर रही थी. कासिम उसे चाट के एक ठेले पर ले गया. गोलगप्पे खाते हुए सकीना ने कहा, ‘‘तुम कुछ कहना चाहते थे न?’’

‘‘हां, पहले गोलगप्पे खा लो, उस के बाद कह दूंगा.’’ कासिम ने कहा.

गोलगप्पे खाने के बाद मुंह पोंछते हुए सकीना ने कहा, ‘‘जो भी कहना है, जल्दी कहो, मुझे घर भी जाना है. तुम्हारे साथ किसी ने देख लिया तो…?’’

‘‘सकीना, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो, इसलिए मैं तुम से प्यार करने लगा हूं. मन करता है, तुम्हें ही देखता रहूं.’’ कासिम ने बिना किसी भूमिका के दिल की बात कह दी.

कासिम की इस बात पर सकीना गंभीर हो कर बोली, ‘‘कासिम, तुम्हें पता होना चाहिए कि हमारे यहां प्यारमोहब्बत कोई मायने नहीं रखता. हमारे यहां तो वैसे भी आए दिन मेरी शादी की बात होती रहती है.’’

कासिम ने सकीना का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘सकीना, मैं तुम्हारे बिना जिंदा नहीं रह सकता. अब तुम्हीं बताओ, मैं अपने इस दिल का क्या करूं जो तुम पर आ गया है.’’

सकीना का दिल तेजी से धड़कने लगा था. उस ने कासिम का हाथ मुट्ठी में ले कर कहा, ‘‘अधर में तो नहीं छोड़ दोगे, निभाओगे मेरा साथ?’’

अपना दूसरा हाथ सकीना के हाथ पर रख कर कासिम बोला, ‘‘वादा करता हूं, मरते दम तक मैं तुम्हारा ही रहूंगा सकीना. हम और तुम एकदूसरे के लिए बने हैं, तभी तो अचानक तुम मुझे अच्छी लगने लगी हो.’’

उस दिन के बाद कासिम और सकीना की जिंदगी बदल गई. दोनों ही एकदूसरे के साथ जिंदगी बिताने के सपने बुनने लगे. लेकिन ये सपने आगे चल कर किस कदर महंगे पड़ने वाले हैं, यह कोई नहीं जानता था. मोहब्बत के रंग लाते ही दोनों के रात और दिन खुशियों से भर गए. समय के साथ दोनों एकदूसरे के करीब आते गए. वे जब भी मिलते, दिल की बातें करते और भविष्य के सपने बुनते. इन बहारों के दिन में दोनों बहुत खुश थे, पर उन की खुशियों को नजर लगते देर नहीं लगी.

सकीना से प्यार होने के बाद कासिम का दोस्तों से मिलनाजुलना काफी कम हो गया. एक दिन शाहीन ने उसे टोका, ‘‘क्या बात है भई, कहां रहता है, जो दिखाई नहीं देता?’’

‘‘अब्बा के साथ काम पर जाता हूं. सोचता हूं, कुछ कमाईधमाई कर लूं, जो आगे जरूरत पड़ने पर काम आएगी.’’

‘‘यार, अभी तो तेरी उम्र मौजमस्ती करने की है. तू कहां कमाईधमाई के चक्कर में पड़ गया? तेरा बाप तो वैसे भी 5 सौ रुपए रोज के ले आता है.’’

कासिम ज्यादा बहस नहीं करना चाहता था, इसलिए उस ने कहा, ‘‘भाई शाहीन, निठल्ले बैठे रहना ठीक नहीं है. अब तुझे भी कामधाम करना चाहिए.’’

कासिम की सलाह पर शाहीन को हैरानी हुई. उस की समझ में नहीं आया कि कासिम को अचानक क्या हो गया कि वह कमाई के चक्कर में पड़ गया. लेकिन ज्यादा दिनों तक उसे हैरान नहीं रहना पड़ा. जल्दी ही उसे पता चल गया कि कासिम की दोस्ती मोहल्ले की ही सकीना से हो गई है. पूरी बात उस की समझ में आ गई, लेकिन इस बात से उसे गहरा धक्का लगा, क्योंकि वह खुद भी सकीना को पसंद करता था. उस ने कई बार सकीना से बात करने की कोशिश भी की थी, पर सकीना ने उसे मौका नहीं दिया था. उसे कासिम से ईर्ष्या हो गई.

सकीना और कासिम के प्रेमसंबंधों का पता चलते ही शाहीन सकीना को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश करने लगा. उसे ऐसे मौके की तलाश रहने लगी, जब सकीना से वह दिल की बात कह सके. आखिर एक दिन वह बाजार में मिल गई तो उस ने कहा, ‘‘यहां बाजार में क्या कर रही हो सकीना?’’

‘‘बाजार में कोई क्या करने आता है?’’ सकीना ने पलट कर पूछा.

‘‘मुझे तुम से कुछ कहना था सकीना.’’ शाहीन ने कहा तो सकीना बोली, ‘‘अगर तुम्हें कुछ कहना है तो मेरे घर आ जाना. यहां बाजार में कोई बात नहीं हो सकती. अम्मीअब्बू को पसंद नहीं कि मैं बाहर सड़क पर किसी से बातें करूं.’’

सकीना की इस बात से शाहीन को बहुत गुस्सा आया. लेकिन गुस्से का वहां कोई मतलब नहीं था. उस ने एक बार और कोशिश की, ‘‘मेरी बात तो सुन लो सकीना.’’

‘‘शाहीन, अगर तुम ने मुझे परेशान किया तो मैं अब्बू से तुम्हारी शिकायत कर दूंगी. तुम्हें क्या कहना है, मुझे पता है. एक बात ध्यान से सुन लो, फिर कभी मेरे सामने आए तो ठीक नहीं होगा.’’ कह कर सकीना चली गई.

शाहीन का दिल जल उठा. आखिर कासिम में ऐसी क्या खासियत है, जो सकीना उस से प्यार करने लगी. जबकि उस की बात तक सुनने को तैयार नहीं है. लौटते समय उसे तसलीम मिल गया. वह भी मोहल्ले के रहने वाले मोहम्मद सरवर का बेटा था. शाहीन की उस से दोस्ती थी. उस ने सारी बात तसलीम को बताई तो उस ने हंसते हुए कहा, ‘‘भई उन दोनों का प्यार पूरे शबाब पर है. ऐसे में वह तुम्हें क्यों घास डालेगी.’’

‘‘भई, तुम्हें कैसे पता कि दोनों का प्यार शबाब पर है?’’

‘‘मैं ने खुद दोनों को स्कूल के पास बातें करते देखा है. आखिर तू सकीना को ले कर इतना परेशान क्यों है? मोहल्ले में और भी तो लड़कियां हैं.’’ तसलीम ने कहा.

‘‘जो बात सकीना में है, वह किसी और में नहीं है. सब से बड़ी बात तो यह है कि कासिम से उस ने प्यार कर लिया और मुझ से बात तक नहीं करना चाहती.’’

शाहीन किसी भी तरह सकीना से प्यार करना चाहता था, साथ ही ईर्ष्या की आग में जल रहा था. इसीलिए जब भी कासिम मिलता, उस पर दगाबाजी के लिए ताने कसता, दोस्तों के बीच उसे नीचा दिखाने की कोशिश करता. एक दिन उस ने कासिम से कहा, ‘‘यार कासिम, एक बार मुझे भी सकीना से मिलवा दे.’’

कासिम सन्न रह गया. उस ने हैरानी से कहा, ‘‘मैं तुझे उस से कैसे मिलवा सकता हूं?’’

‘‘भाई मुझे पता है कि तू सकीना से प्यार करता है, इसलिए तू चाहे तो मुझे उस से मिलवा सकता है.’’ शाहीन ने कहा तो कासिम को गुस्सा आ गया. उस ने कहा, ‘‘मैं सकीना से प्यार करता हूं तो भाई तुझे क्यों परेशानी हो रही है? जब देखो, तब उलटीसीधी बातें किया करता है.’’

‘‘भाई, मैं यह बात इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि हम दोस्त हैं तो हमें मिलबांट कर खाना चाहिए न?’’ शाहीन ने हंसते हुए कहा.

कासिम को शाहीन की यह बात बुरी तो बहुत लगी, पर उस ने कहा कुछ नहीं, जबकि दूसरी ओर शाहीन ने मन ही मन तय कर लिया कि सकीना अगर उस की नहीं हो सकती तो वह उसे कासिम की भी नहीं होने देगा. शकील सकीना के लिए लड़का तलाश रहा था, इसलिए कासिम सोच रहा था कि उस के पास कुछ पैसे हो जाएं तो वह सकीना को ले कर कहीं दूर निकल जाए और अपनी दुनिया बसा ले. सकीना को भी कासिम पर पूरा विश्वास था, लेकिन उसे यह भी पता था कि वह अपने प्यार को आसानी से छिपा नहीं सकती.

शाहीन को पूरा विश्वास था कि सकीना उसे किसी भी कीमत पर मिलने वाली नहीं है, इसलिए उस ने तय कर लिया कि जैसे भी होगा, वह कासिम को सकीना से अलग कर देगा. यही सोच कर एक दिन वह शकील से मिला और उस से कहा, ‘‘अंकल, आप को कुछ मालूम भी है, आप के घर में क्या हो रहा है?’’

‘‘क्या हो रहा है भाई?’’ शकील ने पूछा.

‘‘या तो आप को पता नहीं है या फिर आप जानबूझ कर अनजान बन रहे हैं कि आजकल आप की बेटी क्या गुल खिला रही है?’’

‘‘क्या बकवास कर रहा है तू?’’ शकील गुस्से से बोला.

‘‘बकवास नहीं कर रहा, बल्कि सच कह रहा हूं. सकीना कासिम के साथ खुलेआम इश्क फरमा रही है. यह बात पूरे मोहल्ले को पता है, जबकि तुम कह रहे हो कि तुम्हें कुछ नहीं पता ही है. लगता है तुम बड़े भोले हो.’’ शाहीन ने कहा और चल दिया.

शाहीन तो चला गया, लेकिन शकील के दिल में आग लगा गया. गुस्से में भरा वह घर पहुंचा और बिना कुछ पूछे सकीना को धुन दिया.

‘‘यह सब क्या हो रहा है?’’ शकील की बीवी आमना ने पूछा तो उस ने पूरी बात उसे बता दी. इस के बाद आमना ने कहा, ‘‘यह तो चिंता की बात है. हमें तुरंत इस के लिए लड़का ढूंढना चाहिए, वरना यह हमारी नाक कटा देगी.’’

इस के बाद सकीना का घर से निकलना बंद हो गया और उस के लिए लड़के की तलाश तेजी से शुरू हो गई. किसी दिन सकीना के हाथ फोन लग गया तो उस ने कासिम को फोन कर के सारी बात बता दी. उस ने यह भी बता दिया कि शाहीन ने ही उस के अब्बू से चुगली की है. कासिम हैरान था कि उस के दोस्त ने ऐसा क्यों किया? लेकिन अब वह क्या कर सकता था. घर वालों से सकीना के बारे में बता नहीं सकता था और उस के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह सकीना को ले कर भाग जाता. इस के बावजूद उस ने कोशिश की. हिम्मत कर के उस ने इश्तियाक से कहा, ‘‘अब्बू, मैं सकीना से प्यार करता हूं और उस से निकाह करना चाहता हूं.’’

इश्तियाक ने कहा, ‘‘बेटा, मौजमस्ती के लिए पूरी जिंदगी पड़ी है. पहले कुछ कमाईधमाई कर के घर की गाड़ी चलाने की कोशिश करो. उस के बाद निकाह की सोचो.’’

सकीना उस से अलग न हो जाए, यह सोच कर कासिम तनाव में रहने लगा. उस का मन भी काम में नहीं लग रहा था. गुस्से में भरा वह शाहीन के पास पहुंचा. उस ने शाहीन का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘तू तो बड़ा कमीना निकला. मैं तो तुझे अपना दोस्त समझता था, जबकि तू ने मेरी पीठ में छुरा घोंप दिया.’’

‘‘मैं ने क्या किया, पूरा मोहल्ला जानता है कि तू सकीना से प्यार करता है. किसी से उस के घर वालों को पता चला गया होगा.’’

कासिम समझ गया कि शाहीन सचमुच गद्दार दोस्त है. दोस्त की वजह से वह परेशानी में पड़ गया, लेकिन अभी तो बहुत कुछ होना बाकी था. शाहीन खुश था कि उस ने सकीना को कासिम से अलग कर दिया था. अब वह खुद शकील के घर के इर्दगिर्द मंडराने लगा कि कासिम से अलग होने के बाद शायद सकीना उस की हो जाए.

एक दिन उस ने मौका पा कर सकीना से कहा, ‘‘सकीना, मैं तुम से प्यार करता हूं.’’

यह सुनते ही सकीना भड़क उठी, ‘‘खबरदार, तुम मुझ से दूर ही रहना, वरना मुझ से बुरा कोई नहीं होगा. तू कितना कमीना है, मैं यह अच्छी तरह जानती हूं.’’

सकीना की बात सुन कर शाहीन सन्न रह गया. यह सब कासिम की वजह से हुआ था. उस ने तय कर लिया कि किसी भी कीमत पर कासिम को नहीं छोड़ेगा, क्योंकि उस के रहते सकीना उसे कभी नहीं मिलेगी. वह सकीना और कासिम को सबक जरूर सिखाएगा. उस ने तय कर लिया कि कासिम को खत्म कर देगा. लेकिन यह काम वह अकेला नहीं कर सकता था, इसलिए उस ने अपने दोस्त तसलीम से बात की. तब तसलीम ने कहा, ‘‘लेकिन ऐसा करने से सकीना तो तुझे मिलेगी नहीं.’’

‘‘भले न मिले, लेकिन कासिम की वजह से मेरी जो बेइज्जती हुई है, उस का बदला तो ले लूंगा.’’

शाहीन अब कासिम की जान ले कर ही मानेगा, यह सोच कर तसलीम ने बिना सोचेसमझे उस का साथ देने के लिए हामी भर दी. शाहीन के संबंध कासिम से बिगड़ चुके थे, इसलिए उसे बहलाफुसला कर कहीं एकांत में लाने की जिम्मेदारी उस ने तसलीम को सौंप दी. योजना के अनुसार तसलीम ने कासिम के पास जा कर कहा, ‘‘यार, मैं चाहता हूं कि हम तीनों दोस्तों को एक बार फिर से एक साथ होना चाहिए.’’

‘‘अब इन बातों के लिए दिल में कोई जगह नहीं है. फिर मैं अपना काम छोड़ कर आवारागर्दी नहीं कर सकता.’’ कासिम ने कहा. तसलीम अपनी बातों से कासिम को फुसलाता रहा. अंतत: उस ने कासिम को इस बात के लिए तैयार कर लिया कि वह शाहीन के साथ घूमने चलेगा. न चाहते हुए भी कासिम मान गया.

22 मई, 2014 को देर रात कासिम घर नहीं पहुंचा तो घर वालों को चिंता हुई. पूरे मोहल्ले में उसे तलाशा गया, दोस्तों और रिश्तेदारों को फोन किए गए, लेकिन कासिम का कुछ पता नहीं चला. अगले दिन इश्तियाक परिजनों के साथ कोतवाली पहुंचा और कोतवाली प्रभारी एफ.एस. जाफरी को सारी बात बता कर कासिम की गुमशुदगी दर्ज करा दी. पूरा घर परेशान था कि कासिम किसी को बिना कुछ बताए कहां चला गया, जबकि वह ऐसा कभी नहीं करता था.

अगले दिन कोतवाली पुलिस को सूचना मिली कि कब्रिस्तान में एक युवक की लाश पड़ी है. कोतवाली प्रभारी ने इस बात की सूचना इश्तियाक को दे कर खुद पुलिस बल के साथ कब्रिस्तान पहुंच गए. युवक की हत्या ईंटपत्थर से मार कर की गई थी. लाश देख कर इश्तियाक दहाड़ें मार कर रोने लगा. इस से साफ हो गया कि मृतक युवक इश्तियाक का गुमशुदा बेटा कासिम था. पूछताछ में वह यह नहीं बता सका कि हत्या किस ने की होगी. पुलिस ने मुखबिरों का जाल फैलाया तो पता चला कि शकील की बेटी सकीना से कासिम का प्रेमसंबंध था. पुलिस ने मोहल्ले में पूछताछ की तो पता चला कि घटना वाले दिन से कासिम के 2 दोस्त शाहीन और तसलीम गायब हैं.

गायब होने से पुलिस को उन्हीं दोनों पर शक हुआ. पुलिस ने शकील से पूछताछ की तो उस ने बताया कि एक दिन शाहीन कासिम के खिलाफ उस के कान भरने आया तो था, पर कासिम के साथ उस के संबंध कैसे थे, यह उसे नहीं मालूम. पुलिस को इस से पूरा विश्वास हो गया कि कासिम की हत्या में शाहीन और तसलीम का हाथ है. पकड़े जाने के डर से दोनों फरार हैं. दोनों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने बहुत हाथपैर मारे, लेकिन वे पकड़ में नहीं आए. घर वाले भी दोनों के बारे में कुछ नहीं बता पा रहे थे. आखिर कोई कब तक छिपा रह सकता है.

6 दिसंबर को शाहीन तसलीम के साथ दिल्ली से इटावा आने वाली ट्रेन से उतरा तो किसी मुखबिर ने उसे देख लिया. इस के बाद उस ने पुलिस को यह बात बताई तो कोतवाली प्रभारी एफ.एस. जाफरी ने पुलिस टीम के साथ पहुंच कर दोनों को पकड़ लिया. पुलिस के शिकंजे में फंसने पर दोनों हैरान रह गए. उन्होंने सोचा था कि अब तक सब ठीक हो गया होगा. थाने ला कर दोनों से पूछताछ की गई तो उन्होंने कासिम की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. शाहीन ने बताया कि वह सकीना से प्यार करता था, जबकि कासिम ने उस का अपमान किया. उसी का बदला लेने के लिए उस ने तसलीम के साथ कासिम को ठिकाने लगा दिया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक दोनों की जमानत नहीं हुई थी. Love Story in Hindi

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Romantic Story: प्यार के पंछी

Romantic Story: ठाकुर जोरावर सिंह ने प्रेमरस में डूबी खूबसूरत चांदनी को पाने की पूरी कोशिश की. यहां तक कि उस ने चांदनी से जबरन विवाह भी रचा लिया. लेकिन प्यार की पंछी चांदनी उस के हाथ आने वाली कहां थी, वह अपने प्रेमी जय के साथ लंबी उड़ान पर उड़ गई. दी नगढ़ के ठाकुर जोरावर सिंह अपने पड़ोसी जागीरदार विक्रम सिंह के बेटे किशन सिंह की शादी में शामिल होने गए थे. बारात काठा जा रही थी. इंतजाम इतना भव्य था, जैसे किसी राजामहाराजा का विवाह हो. किशन सिंह ने तिजोरियों के मुंह खोल दिए थे. आसपास के पचासों गांवों से खासखास लोगों को आमंत्रित किया गया था.

पूरा गांव रोशनियों से जगमगा रहा था. गांव भर के लोग शादी में निमंत्रित थे. एक हफ्ते तक लगातार खुला रसोड़ा चला, गलीगली में सजावट हुई, जगहजगह गीत गाए गए. बाहर से आने वालों की विशेष खातिरदारी हुई. सारा गांव नाचगाने और रागरंग में डूब गया. प्रभावशाली और अत्यधिक धनी लोग ऐसे मौकों पर धन बहाने में अपनी शानोशौकत समझते हैं. वे चाहते हैं कि ऐसा कुछ करें कि लोग सदियों तक याद रखें. विक्रम सिंह ने भी यही किया. उन्होंने अपने पुत्र किशन सिंह की शादी में कोई कोरकसर नहीं छोड़ी.

लगभग 5 सौ लोगों की बारात सजी. दूल्हा हाथी पर बैठा. माणक मोती की झालरें और चांदी का हौदा. दूल्हे की आरती उतारी गई. मंगल गीत गाए गए. हवेली से बाग तक कालीन बिछाए गए. फिर हाथी पर सवार विक्रम सिंह के पुत्र किशन सिंह की बारात निकली. बारात की रवानगी के समय सोने की मोहरें उछाली गईं. मार्ग के दोनों ओर भीड़ उमड़ पड़ी. उन के सामने एक यादगार दृश्य था. सब से आगे कई गांवों के नामीगिरामी मांगणहार शहनाईनौबत बाजे बजाते निकले. फिर मंगल कलश ले कर बालिकाएं, मंगल गीत गाती महिलाएं. उन के पीछे सजेधजे घोड़ों पर रियासत के हाकिम, ठाकुर, अमीरउमराव चल रहे थे. घोड़ों के पीछे माणिकमोती की झालरें और सोने का मुकुट पहने चांदी के हौदे में बैठे दूल्हे किशन सिंह का हाथी था. उस के पीछे तमाम बाराती.

गांव के बाहर बाग के पास सोनेचांदी के काम वाला 4 घोड़ों से युक्त एक रथ खड़ा था, जो चारों तरफ से बंद था. हाथी से उतार कर दूल्हे को इसी रथ में बैठाया गया. सारे बाराती अपनेअपने सजेधजे ऊंट और घोड़ों पर सवार हो गए. विक्रम सिंह ने ‘मोहरें’ उछाल कर बारात रवाना की. बारात के पड़ावों की जगह पहले से तय थीं. खानेपीने और रागरंग का भी पूरा इंतजाम था. बाराती हो या कोई और, रास्ते में सब के लिए रसोड़ा खुला था. रास्ते के गांवों में जबरदस्त हलचल थी. दूरदूर से लोग बारात देखने आ रहे थे. कुछ बारात में शामिल भी हो रहे थे. ठाकुर सा की तरफ से सब को छूट थी, जो चाहे चल सकता था.

ठाकुर सा चाहते थे कि लोगों की 7 पीढि़यों को याद रहे कि विक्रम सिंह के बेटे की बारात कैसे निकली थी. इसीलिए कई लोग यह सोच कर भी शामिल हो गए थे कि कुछ दिन खाने के लिए पकवान मिलेंगे. गत 2 वर्षों से रियासत में भयंकर अकाल पड़ा हुआ था. नदी, नाले, तालाब सूखे हुए थे. बरसात शुरू नहीं हुई थी. तपता हुआ ज्येष्ठ झुलसा कर चला गया था, आषाढ़ दस्तक दे चुका था. कुओं में पानी था, लेकिन जिस इलाके से बारात गुजरती, वहां के कुएं खाली हो जाते. घास के मैदान साफ हो जाते. वहां की घास बारात के घोड़े, ऊंट और बैल साफ कर देते. स्थानीय लोग खुद को लुटा हुआ महसूस करते.

चौथे दिन बारात काठा पहुंची. बड़ी संख्या में लोगों को आते देख गांव की प्रोलें बंद कर दी गईं. उन्हें आशंका हुई कि बारात के मुगालते में दीनगढ़ वाले आक्रमण करने आए हैं. वे युद्ध की तैयारी करने लगे. यह तय था कि बारात सेठ की हवेली में रुकेगी. गांव के ठाकुर मोहन सिंह ने अपने दीवान के साथ कुछ सैनिक बारात के पास भेज कर वस्तु स्थिति का पता किया. जब उन्हें भरोसा हो गया कि यह बारात ही है तो जा कर उसे सेठजी की हवेली में आने की इजाजत दी गई. रात में फेरे हो गए और खूब खातिरदारी भी.

सुबह का सूरज निकल आया था. दीनगढ़ के ठाकुर जोरावर सिंह हवेली के झरोखें में बैठे सुबह की ताजी हवा का आनंद ले रहे थे कि उन्हें खिलखिलाती हंसी की गूंज सुनाई दी, सोनचिड़ी की चिहुंक सी मिठास. बरसाती हवा सी ठंडक, सैकड़ों झांझरों की खनक, चिर प्रतीक्षा के बाद मिले प्रियतम सा रोमांच, दूर से आती विह्वल पुकार सी गूंज. मीठी हंसी ने कानों में जैसे अमृत उड़ेल दिया. जोरावर सिंह का रोमरोम स्पंदित हो उठा. दिल जैसे छाती से निकल सामने आ खड़ा हुआ. लगा जैसे वह यही है, जिस की तलाश में मन जन्मभर भटकता रहा. इसी की तलाश में कई नीड़ उजाड़े, कई दिशाएं लूटीं.

हवा में तैरती खिलखिलाती हंसी दिलोदिमाग पर छा गई. अंतर मन में खनक गूंजने लगी. दिल बेचैन हो उठा. मन चंचल, निगाहें भटकने लगीं. बाहर देखा तो केसर सी दमक वाली अप्सरा सी सुंदरी, लाल चूनर ओढ़े खड़ी थी. उगते सूरज की किरणों ने उस पर अपनी आभा का पीला रंग चढ़ा दिया था. पृष्ठभूमि में उठी गोधूलि के परदे पर एक ऋषि कन्या सी सुंदर सुकोमल षोडसी अपने यौवन से बेखबर अज-शावक के साथ खेलते हुए उसे पकड़ने का प्रयत्न कर रही थी. लेकिन वह बारबार हाथ से छूट कर भाग जाता था. आखिर उस ने उसे पकड़ ही लिया.

वह विजयनी की तरह उसे पकड़े दर्प से चल रही थी कि उस की नजर सामने खुली खिड़की से निहारते जोरावर पर पड़ी, वह कांप उठी, हाथ से शावक छूट गया. उस के होठ थरथरा उठे, माथे पर पसीना आ गया, आंखें फटी की फटी रह गईं. जोरावर अपलक लगातार उस के सौंदर्य का पान कर रहा था. पर पुरुष को इस तरह घूरते देख वह घबरा कर भाग खड़ी हुई. जोरावर चकित था. काठा में इतनी सुंदर कन्या है और उसे पता तक नहीं. यह लड़की कुछ अलग है, कुछ विशेष. उस के अंतर के तार झंकृत हो उठे थे. वह सोचने लगा, इसे हासिल करना ही है, वह भी शाम तक. युवती घबराई हुई वापस घर में घुसी. वह बुरी तरह कांप रही थी. वह आ कर बिस्तर पर औंधी पड़ गई.

घर की सारी औरतें और लड़कियां आसपास आ खड़ी हुईं. ‘क्या हुआ…क्या हुआ’ का शोर मच गया. कोई हवा करने लगी, कोई पानी ले आई, कोई सिर और पीठ सहलाने लगी. मगर वह न तो पलट कर सीधी हो रही थी, न ही आंखें खोल रही थी. पूरे मामले की प्रत्यक्षदर्शी उस की सहेली चंपा बोली, ‘‘मैं बताती हूं क्या हुआ है. चांदनी को मैं ने मना किया था कि जहां बारात का डेरा है, उस हवेली की तरफ मत जाना. वहां ठाकुर सा ठहरे हुए हैं. अगर तू उन की नजर में आ गई तो सोच लेना तू गई. इस ने मेरा मजाक उड़ाया और वहां चली गई. खिड़की से ठाकुर सा ने इसे देख लिया है. अब कांप रही है.’’

चंपा की बात खत्म होते ही सन्नाटा छा गया. जैसे उस ने सब के हलक में हाथ डाल कर आवाज निकाल फेंकी.

‘‘उन्हें देखते ही इस के हाथ का मेमना छूट गया. मेमना नहीं, मैं तो कहती हूं कि जमारा छूट गया.’’ चंपा ने फिर खामोशी तोड़ी.

यह सुन कर चांदनी पलट कर बोली, ‘‘मैं किसी से नहीं डरती.’’

‘‘तो कांप क्यों रही थी?’’ चंपा ने पूछा.

‘‘उस की नजरें बहुत बुरी थीं. लगा जैसे मुझे खा जाएगा.’’ चांदनी की आवाज भर्राने लगी. जैसे भय उस के अंतरमन में उतर गया था. उस की मां ने उस के मुंह पर हाथ फेरा, लोटा भर पानी पिलाया. फिर उस का माथा सीने से लगाती हुई बोली, ‘‘बारात आज नहीं तो कल चली ही जाएगी. अब तू बाहर मत निकलना. हम कोई उस की रियाया हैं, जो खा जाएगा.’’

चांदनी के पिता चंदन सिंह काठा के ही रहने वाले थे. सच्चे राजपूत अपनी आन, बान और शान के लिए जान तक न्यौछावर करने वाले. लेकिन जोरावर सिंह से कमजोर होने के कारण वह उस से टक्कर नहीं ले सकते थे. इसलिए बेटी को छिपा कर रखना चाहते थे. मगर काइंया ठाकुर जोरावर सिंह ने चांदनी को जब टेढ़ी नजर से देख लिया था तो उस का बचना मुश्किल था. ठाकुर जोरावर ने अपने खासमखास आदमी को उस की टोह में लगा दिया. उस का आदमी जानता था कि वह लड़की राजपूत हुई तो ठाकुर सा ब्याह कर लेंगे और किसी अन्य जाति की हुई तो मसल कर फेंक देंगे. थोड़ी देर में सब पता लग गया.

ठाकुर जोरावर सिंह ने पंडित को बुलवा कर विवाह का मुहूर्त निकलवाया. फिर चंदन सिंह को बुला कर कहा, ‘‘आज रात्रि में मैं आप की पुत्री का विवाह संस्कार करूंगा. सारी तैयारी कर ली जाए. आप की भीतीजी का विवाह तो कल संपन्न हो चुका है, आज हमारा होगा. बारात आज भी रुकी रहेगी.’’

चंदन सिंह हाथ जोड़े पत्थर की तरह खड़े रहे. ठाकुर जोरावर 50 का और उन की बेटी 17 बरस की. उन्होंने अपनी बेटी चांदनी की सगाई देवीकोट में कर रखी थी. इसलिए बोले, ‘‘क्षमा करें हुकम, मेरी बेटी का सगपण (सगाई) हो चुकी है, वरना आप की कृपा तो भाग्यशालियों को मिलती है.’’

‘‘भूल जाओ उसे. मैं ठाकुर जोरावर सिंह रियासत के राजा का सगा छोटा भाई हूं. आज से आप की बेटी हमारी हवेली की शोभा होगी. अब वह किसी ढ़ाणी के झोपड़े में नहीं रहेगी.’’ फिर उस ने चंदन सिंह के बड़े भाई की ओर देख कर कहा, ‘‘अवतार सिंहजी, आप ही अपने भाई को समझाओ.’’

ठाकुर ने अपने स्वभाव के अनुसार ही आदेशात्मक प्रार्थना की.

‘‘चंदन सिंह, यह तो अपना अहोभाग्य है कि ठाकुर सा से सूर्यवंशी नाता जोड़ रहे हैं. आप की बेटी भाग्यशाली है, जिस की ठाकुर सा ने मांग कर ली है. पीछे मत हटो.’’

जोरावर की तरफ मुखातिब हो कर अवतार सिंह आगे बोले, ‘‘हुकम, आप निश्चिंत रहें. सब तैयारी हो जाएगी. आज ही विवाह हो जाएगा हुकम, आज ही. चलो चंदन सिंह, समय कम है.’’

चंदन सिंह को ले कर अवतार सिंह घर आए. रास्ते में उन्होंने एक ही बात कही, ‘‘ठाकुर सा की हवेली में रह कर राज करेगी चांदनी.’’

‘‘मगर उन की उम्र.’’ चंदन सिंह ने कहा तो अवतार सिंह ने बात काट दी, ‘‘आदमी की उम्र का क्या? राजपुरुष कभी बूढे़ होते हैं क्या? आप भी क्या भोली बातें कर रहे हैं.’’

उन की बात यहीं खत्म हो गईं. मगर औरतों में बात यहीं पर खत्म नहीं हुई. सुनते ही चांदनी बिफर उठी, ‘‘मैं ठाकुर से विवाह नहीं करूंगी. मेरी उम्र के उस के पुत्रपुत्रियां हैं. मैं मर जाऊंगी, मगर उस से विवाह नहीं करूंगी.’’

उस की आंखों के आगे उस के मंगेतर जय सिंह का चेहरा घूम रहा था, जिस से वह कई बार चुपकेचुपके मिलती और बातें करती रही थी. वह उसी की उम्र का लड़का था. जब वह हवेली की तरफ गई थी तो उस ने सोचा भी नहीं था कि वह किसी ऐसे गर्त की तरफ जा रही है, जहां से कभी वापस नहीं लौट पाएगी. वह दिन भर रोतीबिलखती बिसूरती रही, वह एकएक कर सब से इस विवाह को टाल देने की प्रार्थना करती रही. जिबह के लिए ले जाए जाने वाले जानवर की तरह तड़पती रही. लेकिन सब जगह से उसे निराशा ही मिली. सब के चेहरों पर लाचारी पुती हुई थी. सब की आंखों में जोरावर सिंह के भय की दहशत टपक रही थी. वह हार गई.

चांदनी ने अपने संगीसाथी राम सिंह से कहा, ‘‘रामू, किसी तरह यह समाचार देवीकोट जा कर जय सिंह तक पहुंचा दो. मैं तुम्हारा अहसान उम्र भर नहीं भूलूंगी. मेरे तनमन पर सिर्फ जय सिंह का हक है, अगर वह नहीं मिला तो मैं मर जाना पसंद करूंगी.’’

चांदनी ने रोरो कर राम सिंह को अंदर तक हिला दिया था. वह अपने ऊंट पर सवार हो कर चांदनी के दिल की बात जय सिंह तक पहुंचाने के लिए देवीकोट के लिए निकल पड़ा. सुबह का निकला राम सिंह देर रात देवीकोट जा पहुंचा. जय सिंह को चांदनी का पैगाम सुना कर उस ने कहा, ‘‘जय सिंह, अब तक चांदनी से जोरावर का पाणिग्रहण संस्कार तो हो चुका होगा और सुबह होते ही वह उसे विदा करा कर बारात के साथ दीनगढ़ के लिए रवाना हो जाएगा. 4 दिनों बाद बारात दीनगढ़ पहुंचेगी. तुम्हें रास्ते में मौका देख कर चांदनी से मिल कर आगे की योजना बनानी होगी.’’

सुन कर जय सिंह ने एक लंबी सांस छोड़ी. उस ने क्याक्या सपने संजोए थे मगर जोरावर रूपी राक्षस ने सब कुछ उजाड़ कर रख दिया था. उस ने राम सिंह का तहेदिल से शुक्रिया अदा कर सुबह आने को कहा. जय सिंह ने सुबह होने से पहले अपने घोड़े पर सवार हो कर काठा की राह पकड़ ली. उस का घोड़ा उसे पीठ पर लादे उड़ा जा रहा था. वह मन ही मन योजना बनाते हुए आगे बढ़ा जा रहा था. उधर चांदनी ने मन ही मन कसम खा ली थी कि वह जोरावर को कभी भी अपने तनमन पर हक नहीं जमाने देगी. भले ही दुनिया की नजर में वह उस की ब्याहता रहे, उस के मन में तसवीर सिर्फ जय सिंह की ही रहेगी. अपनी इसी सोच के साथ वह अल्हड़, चुलबुली युवती अपनी खिलखिलाती आत्मिक हंसी को 7 तालों में बंद कर के ठाकुर जोरावर सिंह की ब्याहता बन गई.

अगली सुबह बारात की विदाई हो गई. चांदनी को दहेज में उस की सहेली चंपा जो दासी थी, दी गई. वह चांदनी के साथ दीनगढ़ के लिए रवाना हो गई. चांदनी का रोरो कर बुरा हाल था, वह चंपा से बोली, ‘‘चंपा, आज मेरी डोली नहीं अर्थी उठी हैं. मैं अब इन गलियों में कभी लौट कर नहीं आऊंगी. मुझे विश्वास है, मेरे इस अंतिम सफर में जय मेरा साथ जरूर देगा, वह जरूर आएगा. उसे एक बार जी भर कर देख लूं, उस के बाद उस के साथ अंतिम सफर पर चली जाऊंगी?’’

चंपा कुछ भी नहीं समझ पाई. चांदनी का मन उन गलियों में भटकने लगा, जहां दोनों बचपन से ले कर अब तक खेलकूद कर जवान हुई थीं. मांबाप, बहनभाई के चेहरे उस के सामने घूम रहे थे. वे कभी हंसते, कभी मुसकराते, कभी उदास हो जाते, तो कभी रो पड़ते. चांदनी खुद को संभाल नहीं पा रही थी, वह रोने लगी. चंपा दिलासा दे कर उसे संभालने की कोशिश जरूर कर रही थी, मगर सब व्यर्थ? चांदनी मन ही मन कल्पना कर रही थी कि उस का सिर अपने प्रेमी जय की छाती पर रखा है. जय की छाती आंसुओं से तर हो चुकी है. वह उस के सिर पर धीरेधीरे हाथ फिराते हुए रो रहा है. रोतेरोते वह जैसे कह रहा है, ‘‘चांदनी, अच्छी प्रीत निभाई तू ने, ठाकुर मिला तो छोड़ गई मुझे. बड़ी खुदगर्ज निकली तू.’’

वह उसे आश्वस्त करना चाहती थी, उस के चेहरे को प्यार से छूना चाहती थी. लेकिन उस का चेहरा खयालों से अचानक गायब हो गया. तभी हल्ले की आवाज सुनाई पड़ी. चांदनी ने पूछा, ‘‘चंपा, यह हल्ला कैसा?’’

चंपा बाहर का नजारा देख रही थी. वह बोली, ‘‘पता नहीं, शायद कोई झगड़ा हो रहा है?’’

बारात के वापस लौटते समय रास्ते के गांव वालों से झगड़े शुरू हो गए थे. झगड़े का कारण था अकाल के समय लोगों को सहायता के बदले उन का चारापानी बारात के घोड़ोंऊंटों और बैलों द्वारा खापी जाना. पानी पीपी कर उन्होंने कुएं सुखा दिए थे. अकाल के समय इस बारात ने कोढ़ में खाज का काम किया था. इस बात ने लोगों पर गहरा असर किया था. बारात से लौटते बारातियों के साथ ग्रामीणों के झगड़े शुरू हो गए थे. उसी की आवाज चांदनी व चंपा को सुनाई दे रही थी. कई जगह मारपीट और खूनखराबा हुआ. कई लोग मारे गए. ज्यादा नुकसान बारातियों का हुआ. उन पर अचानक हमले हुए, उन्हें लूट लिया गया.

बाराती कई ग्रामीणों के मवेशी ले कर भाग गए. दोनों दूल्हों और खासखास बारातियों को लूटा गया. उन का सोना, चांदी, बरतन, ऊंट, घोड़े छीन लिए गए. कुछ लोगों ने दूल्हादुल्हनों को सुरक्षित निकाल कर दीनगढ़ का रास्ता पकड़ा. उधर दोपहर में जय सिंह काठा पहुंचा और वहां से पता कर के बारात के पीछे निकल गया. बारात धीरेधीरे जा रही थी और लड़ाईझगड़े के कारण तितरबितर हो गई थी. खैर, जय सिंह उस मार्ग पर बढ़ता गया, जिस रास्ते से बारात गुजरी थी. जब शाम का धुंधलका गहराने लगा तो जय सिंह बारात से जा मिला. उस ने अपना परिचय दे कर कहा, ‘‘रिश्तेदारी में जा रहा हूं.’’ उस की बात सुन कर जोरावर ने साथ चलने का प्रस्ताव रखते हुए कहा, ‘‘हमारे साथ ही चलो. अच्छेखासे मर्द हो, काम आओगे.’’

‘‘ठीक है?’’ जय सिंह ने कहा. वह यही चाहता भी था.

रात गहराने लगी तो एक कुएं के पास तंबू गाड़ दिया गया. जनाना तंबू अलग गाड़ा गया, जिस में किशन सिंह की नवब्याहता और जोरावर सिंह की दुलहन चांदनी के अलावा दहेज में आई दासियों को ठहराया गया. जय सिंह और दीनगढ़ के ठाकुर अफीम और मदिरा पान करने लगे. जय सिंह ने कम शराब पी. जनाना तंबू में बैठी चांदनी को जब जय सिंह की आवाज सुनाई दी तो वह निहाल हो उठी. रात का दूसरा प्रहर लगते ही सब लोग खापी कर सो गए. जय सिंह और चांदनी की आंखों से नींद कोसों दूर थी. दिन भर की थकान व नशे के कारण सब लोग सो गए, तो जय सिंह धीरेधीरे सरक कर जनाना तंबू के गेट पर आ खड़ा हुआ.

उस ने हौले से पुकारा, ‘‘चांदनी, ओ चांदनी?’’

सुन कर चांदनी दौड़ी चली आई. अपने प्रियतम को देख कर उस की आंखों से सावनभादो की बरसात होने लगी. वह जय के सीने में धंसती चली गई. दोनों वहां से निकल कर कुएं के पास आ बैठे. वहां पर दोनों रात भर अपने मन की बातें करते रहे. चांदनी बोली, ‘‘मैं ने कहा था न जय कि मैं जन्मजन्म तक तुम्हारी ही रहूंगी. इस जन्म में हम एकसाथ नहीं रह सके, मगर अगले जन्म में हम जरूर मिलेंगे.’’

‘‘हमारा प्यार पवित्र है, हम प्यार के पंछी एकदूजे के बिना नहीं रह सकते. हम भले ही साथ नहीं जी सके, लेकिन मर तो साथ सकते हैं?’’

दोनों प्रेमी अगले जन्म में मिलने के वादे के साथ अपने कपड़े व जूते कुएं की पाट पर रख कर कुएं में कूद गए. सुबह जब जोरावर को सच पता चला तो वह हाथ मलता रह गया. दोनों के मृत शरीर कुएं से निकाल कर वहीं पर उन्हें एक चिता पर लेटा कर अंतिम यात्रा पर विदा किया गया. उस कुएं का नाम आज भी प्रेमियों के कुएं के नाम से जाना जाता है. ठाकुर जोरावर सिंह कभी किसी से नहीं हारा था, मगर आज वह पहली बार सच्ची मोहब्बत से हार गया था. जब तक ठाकुर जोरावर सिंह जिंदा रहा, उसे यह घटना उद्वेलित करती रही. Romantic Story

 

UP News : खोखले निकले मौहब्बत के वादे

UP News : मनोरंजन तिवारी ने गीता यादव को पहली मुलाकात में ही अपने दिल में बसा लिया था. तभी तो उस ने उस से अंतरजातीय विवाह किया था. लेकिन शादी के कई साल बाद भी उन के बच्चा न हुआ तो उन दोनों के बीच ऐसा क्या हुआ कि उन की मोहब्बत के वादे खोखले साबित हुए…

राजधानी दिल्ली से सटे गाजियाबाद का वसुंधरा इलाका नवधनाढ्यों का ऐसा इलाका है, जहां देश के सभी प्रांतों एवं धर्मों के लोग रहते हैं. दिल्ली व आसपास के इलाकों में सरकारी, गैरसरकारी संस्थानों में काम करने वालों से ले कर कारखानों में काम करने वाले श्रमिकों से ले कर छोटेबड़े कारोबारी तक इस इलाके में रहते हैं. मूलरूप से ओडिशा के जगतसिंहपुर के गांव अछिंदा का रहने वाला मनोज उर्फ मनोरंजन 1999 में नई विकसित वसुंधरा कालोनी में रोजीरोटी की तलाश में आया था. वसुंधरा इलाके में ओडिशा के कुछ लोग पहले से रहते थे. मनोरंजन फोटोग्राफी का काम जानता था. इसलिए उस ने अपने परिचितों की मदद से एक फोटोग्राफर की दुकान पर नौकरी कर ली.

कुछ महीनों में जब वह काम में पारंगत हो गया तो इलाके में कुछ लोगों से उस की जानपहचान हो गई तो उस ने वसुंधरा के सेक्टर-15 में एक दुकान किराए पर ले कर फोटो स्टूडियो खोल लिया. संयोग से काम भी ठीक चलने लगा. चेहरे पर भोली मुसकान और बातचीत में बेहद सरल और विनम्र स्वभाव के मनोरंजन का काम उस की मेहनत और लगन के कारण जल्द ही चल निकला. मनोरंजन उर्फ मनोज तिवारी जाति से ही ब्राह्मण नहीं था, बल्कि कर्म से भी वह ब्राह्मण ही था. माथे पर तिलक सदकर्मों के कारण क्षेत्र के लोग उसे पंडितजी के नाम से पुकारने लगे. मनोरंजन के पिता भी ओडिशा में पंडिताई का काम करते हैं. बड़ी बहन की शादी हो चुकी थी. गांव में अब मातापिता ही रहते हैं.

3-4 साल में उस का कामधंधा ठीकठाक चलने लगा. खूब पैसा कमाने लगा था. वसुंधरा सैक्टर 15 में ही मनोरंजन ने रहने के लिए एक अच्छा फ्लैट भी किराए पर ले लिया. इसी तरह वक्त तेजी से गुजरने लगा. मनोरजंन के पास अब सब कुछ था. किराए का ही सही एक अच्छा घर था, जिस में सुखसुविधा का हर सामान मौजूद था. फोटोग्राफी का अच्छा कारोबार चल रहा था, जिस से हर महीने डेढ़ से 2 लाख रुपए कमा लेता था. लेकिन ऐसा कोई नहीं था, जो उस का सुखदुख बांट सके. जिंदगी में कमी थी तो एक जीवनसाथी की, जो उस की तनहा जिंदगी का अकेलापन दूर कर सके. मातापिता ने गांव से बिरादरी की कई लड़कियों की तसवीरें भेजी थीं, लेकिन पता नहीं क्यों कोई भी उस की आंखों को पसंद नहीं आई.

गाजियाबाद में रहने वाले ओडिशा के परिचितों ने भी मनोरंजन को शादी करने के लिए कई रिश्ते बताए, लेकिन संयोग से यहां भी कोई लड़की उसे पसंद नहीं आई. दरअसल, मनोरंजन बेहद संवेदनशील और भावुक किस्म का इंसान था. जिंदगी में वही काम करता था, जिस के लिए दिल कहता. अभी तक उस ने जिन लड़कियों को भी देखा था, उन में से कोई भी ऐसी नहीं थी जिसे देख कर उसके दिल में कोई उमंग या खुशी की भावना जगी हो. इसलिए उसे एक ऐसी लड़की का इंतजार था, जिसे देख कर पहली ही नजर में दिल से आवाज निकले कि हां ये सिर्फ मेरे लिए बनी है. वक्त तेजी से गुजरता गया. लेकिन 2006 में अचानक एक ऐसा भी दिन आया जब एक लड़की को देख कर उस के दिल से वो आवाज निकली, जिस का उसे इंतजार था.

हुआ यूं कि एक दिन एक लड़की, जिस का नाम गीता यादव था. वह उस के स्टूडियो में फोटो खिंचवाने आई. करीब 20 साल की अल्हड़ उम्र थी और चेहरे पर चंचल मासूमियत देख कर पता नहीं मनोरजन का दिल पहली बार एक अजीब से अहसास के साथ धड़का. गीता जब खिलखिला कर हंसती तो उस के गालों के बीच पड़ने वाले डिंपल किसी भी इंसान को उस का दीवाना बना देने के लिए काफी थे. मूलरूप से इटावा की रहने वाली गीता यादव पिछले 10 सालों से अपने परिवार के साथ किराए के मकान में कनावनी गांव में रहती थी. परिवार में मां शांति के अलावा एक बड़ा भाई था राजेश यादव. भाई एक फैक्ट्री में नौकरी कर के अपनी पत्नी, बच्चे के साथ मां और बहन का पेट पालता था.

कुल मिला कर गीता निम्न मध्यमवर्गीय परिवार की लड़की थी. परिवार उन दिनों गीता की शादी को ले कर चिंतित था. गीता तीखे नाकनक्श वाली बेहद खूबसूरत थी. परिवार चाहता था कि गीता की शादी बिरादरी में ही किसी अच्छे परिवार के ठीकठाक कमाई करने वाले लड़के से हो. लेकिन जहां भी पसंद का लड़का मिलता तो दहेज की ऐसी मांग होती कि गीता के परिवार के लिए दहेज की मांग पूरी करना मुश्किल हो जाता. इसीलिए गीता की उम्र तेजी से बढ़ रही थी और गीता के परिवार की चिंताएं भी. पहली मुलाकात में हो गया था दीवाना लेकिन जब मनोरंजन ने गीता को देखा तो उसे पहली ही नजर में उस से प्यार हो गया. कुछ समय पहले तक वह नहीं मानता था कि किसी लड़की को देख कर उस के मन में ऐसा मीठामीठा अहसास जगेगा.

जब उस ने गीता को देखा था, तब उस से कुछ पल की मुलाकात हुई थी. लेकिन तभी से न जाने कब उस का दिल खो सा गया. हालांकि मनोरंजन ने गीता से भी ज्यादा हसीन लड़कियां देखी थीं. लेकिन गीता की हसीन मुसकराहट और खिलखिलाहट भरी खनखनाती मीठी आवाज ने उस पर अजीब सा जादू कर दिया था. पहली बार किसी लड़की की याद में उस ने एक शेर लिख डाला ‘न तीर न तलवार से, उन की नजर के वार से, हम तो घायल हो गए, उन की भोली सी मुसकान पे.’ उस दिन रात भर नींद की तलाश में मनोरजन करवटें बदलता रहा. लेकिन आंखें बंद करते ही कानों में उस की मीठी आवाज गूंजने लगती थी. इस अहसास के बाद उसे लगने लगा कि सालों बाद हो रहा ये अहसास प्यार है.

अगला पूरा दिन मनोरंजन ने गीता के इंतजार में बिता दिया. क्योंकि उसे अपने फोटो लेने के लिए आना था. आंखें उस का इंतजार करते हुए थक गईं लेकिन वह नहीं आई. फिर उस रात वही बेकरारी, रात भर उस का खयाल और यही सोचना… आखिर ये प्यार क्या चीज है. 3 दिन हो गए लेकिन गीता फोटो लेने नहीं आई. इंतजार जैसेजैसे बढ़ता जा रहा था, बेकरारी भी उसी तरह बढ़ती जा रही थी. आखिर चौथे दिन जब गीता अपना फोटो लेने के लिए उस के स्टूडियो पर आई तो दिल को वैसे ही सुकून मिला, जैसे तपती रेत पर पानी गिरने से ठंडक का अहसास होता है. संयोग ये भी था कि पहले दिन जब गीता फोटो खिंचाने आई थी तो उस के साथ पड़ोस में रहने वाली कोई महिला थी. लेकिन उस दिन वह अकेली पहुंची.

‘‘आप की फोटो उतनी खूबसूरत नहीं आई, जितनी खूबसूरत आप हो.’’ फोटो का लिफाफा गीता के हाथ में थमाते हुए मनोरंजन ने कहा.

‘‘फिर तो मैं फोटो का कोई पैसा नहीं दूंगी.’’ गीता बोली.

‘‘आप की खूबसूरती को कैमरे में कैद करने की गुस्ताखी तो हम कर चुके हैं, इसलिए आप का पैसा नहीं देना हमें मंजूर है.’’ मनोरंजन ने हिम्मत जुटा कर थोड़ा सा खुलना शुरू किया.

‘‘वैसे अगर आप मांग में सिंदूर और माथे पर बिंदी लगातीं तो आप की फोटो और भी खूबसूरत आती.’’ कुछ जानकारी की जिज्ञासा लिए मनोरंजन ने कहा.

मनोरंजन के इतना कहते ही गीता ने नाक सिकोड़ते हुए कह, ‘‘छि: हम क्यों मांग में सिंदूर लगाएं, वो तो शादीशुदा औरतें लगाती हैं. हमारी तो अभी शादी भी नहीं हुई.’’

गीता ने नाराजगी का इजहार किया तो मनोरंजन का दिल खुशियों से उछलता हुआ सीने से बाहर आने को हो गया. क्योंकि घुमाफिरा कर वह यही तो पूछना चाहता था कि गीता शादीशुदा है या नहीं. उस का काम हो गया क्योंकि जो लड़की उसे पसंद आई थी वो सिंगल है या शादीशुदा, यह जानना उस के लिए जरूरी था. बस, उस के बाद मनोरंजन के लिए गीता से दोस्ती करना आसान हो गया. गीता की तरह वह भी भोलाभाला था. उस ने गीता का नामपता पूछा, उस के परिवार के बारे में जानकारी ली और उस का मोबाइल नंबर हासिल कर उसे भी अपना मोबाइल नंबर दे दिया.

गीता भी चाहने लगी मनोरंजन को गीता को उस ने यह बात इशारेइशारे में बता दी कि वह उस को पसंद करता है और फोन पर उस से बात करेगा. इस के बाद दोनों के बीच फोन पर बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया. कुछ दिनों बाद दोनों एकदूसरे से मुलाकात भी करने लगे. साथ में सिनेमा देखने, रेस्टोरेंट में साथ जा कर खाना खाने का सिलसिला भी शुरू हो गया. एकदो महीने के बाद मनोरंजन की तरह गीता भी उसे पूरे दिल से प्यार करने लगी. एक दिन मनोरंजन ने अपने दिल का इजहार करते हुए गीता से कह दिया. गीता क्या तुम मेरी सूनी जिंदगी में आ कर उसे रोशन कर सकती हो. गीता खुद भी मनोरंजन से कुछ ऐसा ही कहना चाहती थी. दोनों ने उस दिन साथ जीनेमरने की सौगंध खा ली.

बस, एक ही अड़चन थी. मनोरंजन जाति से ब्राह्मण था, जबकि गीता यादव बिरादरी से थी. मनोरंजन को तो कोई ऐतराज नहीं था. लेकिन गीता के परिवार को ऐतराज न हो, इसलिए उस ने गीता से अपने परिवार की राय जानने के लिए कहा. गीता ने जब अपनी मां शांति व भाई राजेश यादव को मनोरंजन के बारे में बताया तो पहले उन्होंने नाराजगी दिखाई कि एक गैरबिरादरी के लड़के से हम कैसे उस की शादी कर दें. लेकिन फिर यही सवाल उठा कि बिरादरी में अच्छे लड़के तो मोटा दहेज मांग रहे हैं. जबकि मनोरंजन अच्छा लड़का भी है और कमाता भी अच्छा है. ऊपर से वह गीता को बेहद प्यार भी करता है. अगर वह मनोरंजन से गीता की शादी करते हैं तो अच्छा लड़का भी मिल जाएगा और दहेज भी नहीं देना पड़ेगा.

ना ना करतेकरते गीता की मां और भाई दोनों मान गए और उन्होंने शादी के लिए हां कर दी. फरवरी, 2007 में दोनों परिवार वालों की रजामंदी से मंदिर में जा कर मनोरंजन और गीता ने शादी कर ली. शादी के बाद मनोरंजन को मानो जीने का मकसद मिल गया. उस की चाहत गीता उस की जिंदगी की रोशनी बन चुकी थी. 6 महीने कैसे बीत गए, पता ही नहीं चला. मनोरंजन पूरी तरह गीता के प्यार के आगोश में डूब चुका था. वक्त का पहिया तेजी से घूमने लगा. महीने गुजरे फिर साल गुजरने लगे. दोनों के प्यार की तपिश के वक्त के साथ तेजी से बढ़ती गई. लेकिन 2 साल गुजर गए तो एक कमी दोनों को खलने लगी. उन की चाहत थी कि घरआंगन में एक बच्चे की किलकारी गूंजे. लेकिन वो चाहत पूरी नहीं हो रही थी.

3 साल हो गए, लेकिन गीता मां नहीं बन सकी. जब मनोरंजन अपनी इस चाहत का जिक्र कर गीता से इस कमी को पूरा करने की फरमाइश करता तो वह कहती, ‘‘इस में मेरा क्या दोष है. तुम्हारी मर्दानगी में कमी होगी, जो बच्चा पैदा नहीं हो रहा.’’

गीता जब उस की फरमाइश पर ऐसी बात बोलती तो मनोरंजन के तनबदन में जैसे आग लग जाती. वैसे भी दुनिया का कोई मर्द सबकुछ बरदाश्त कर सकता है लेकिन अगर कोई उस की मर्दानगी को ले कर सवाल उठाए तो भले ही उस में सच्चाई हो लेकिन इस बात से उस के अहम को चोट लगती है. जब ऐसा होता तो वह भी गीता से कह देता, ‘‘खोट मेरी मर्दानगी में नहीं बल्कि तुम्हारी जमीन ही बंजर है, जिस में फसल पैदा करने की ताकत नहीं है.’’

औरत की कोख पर कोई अंगुली उठाए तो यह बात एक औरत को भी कभी बरदाश्त नहीं होती. अब अकसर ऐसा होने लगा कि बच्चे की चाहत में मनोरंजन और गीता एकदूसरे में कमियां गिनाने लगे. लेकिन जब बात आती कि चलो किसी डाक्टर को दिखा लें तो दोनों ही एकदूसरे पर तोहमत लगाने लगते कि उस में कोई कमी नहीं है. तुम अपना इलाज कराओ. हकीकत यह थी कि दोनों ही अहं की लड़ाई लड़ते थे. पता किसी को नहीं था कि बच्चा पैदा न होने की कमी किस में है. मनोरंजन ने जब बच्चा नहीं होने की बात अपने मातापिता को बताई तो उन्होंने कहा कि वह गीता को ले कर ओडिशा आ जाए. वहां वह इलाज करा कर सब ठीक कर देंगे.

जब मनोरंजन ने गीता से सब कुछ छोड़ कर उस के साथ ओडिशा चलने की बात कही तो गीता ने साफ इंकार कर दिया कि वह गाजियाबाद को छोड़ कर कहीं नहीं जाएगी. इस बात से मनोरंजन गीता से और भी ज्यादा नाराज हो गया. कुछ दिन और बीते तो बच्चे को ले कर बात इतनी बढ़ने लगी कि मुंह बहस के बाद दोनों में मारपीट तक की नौबत आने लगी. इसी परेशानी में मनोरंजन ने शराब भी पीनी शुरू कर दी. गीता जब इस पर ऐतराज जताती तो मनोरंजन इस का जिम्मेदार भी उसी को ठहरा देता. इस के बाद फिर दोनों के बीच मारपीट होती. अब ऐसा होने लगा कि शायद ही ऐसा कोई दिन गुजरता कि जब पतिपत्नी के बीच कोई कलह या मारपीट न होती हो.

गीता को अब मनोरंजन से शादी करने का अफसोस होने लगा. कई बार तो उस का मन चाहता कि वह घर छोड़ कर चली जाए. उधर, मनोरंजन को भी अब गीता से शादी करने का मलाल होने लगा. दोनों ही लड़ाई झगड़े के दौरान अपने इस पछतावे की बात एकदूसरे पर जाहिर भी कर देते. ऐसे में मनोरंजन गीता को ताना देते हुए कह देता कि मैं ही था जो तुझ पर मर मिटा और शादी कर ली, वरना तुझे कोई रखैल बना कर भी नहीं रखेगा. यह बात गीता को इस तरह चुभ जाती, जिस से उस के अस्तित्व पर ही सवाल खड़ा हो जाता. आखिर पानी सर से ऊपर गुजर गया. एक दिन दोनों के बीच लड़ाईझगड़ा इस कदर बढ़ा कि उस दिन गीता ने घर छोड़ने का फैसला कर लिया.

मनोरंजन ने भी उस के इस फैसले का विरोध नहीं किया. अप्रैल, 2011 में गीता ने मनोरंजन का घर छोड़ दिया. चूंकि मनोरंजन से शादी करने का फैसला उस का अपना था और परिवार की हैसियत भी ऐसी नहीं थी कि गीता पति को छोड़ कर फिर से परिवार पर बोझ बन कर उन के साथ रहे. गीता के पास बैंक में थोडे़बहुत पैसे थे. उस ने प्रह्लादगढ़ी में किराए का एक कमरा ले लिया. रहनेखाने के लिए थोड़ा सामान भी जुटा लिया और एकांत जीवन बसर करने लगी. थोड़े ही दिन में प्रयास करने पर उसे वसुंधरा में एक नर्सिंगहोम में मेड का काम भी मिल गया, जिस से भरणपोषण की समस्या भी खत्म हो गई. लेकिन एकाएक टूट कर प्यार करने वाले पति से अलग होने की कमी को भुलाए नहीं भूल रही थी.

29 सितंबर, 2012 शनिवार की रात के करीब साढे़ 9 बजे का वक्त था. तत्कालीन इंदिरापुरम थानाप्रभारी गोरखनाथ यादव को सूचना मिली कि एक महिला को सेक्टर 16 में मोटरसाइकिल सवार किसी बदमाश ने सड़क पर जाते हुए गोली मार दी है. इंदिरापुरम थानाप्रभारी टीम के साथ मौके पर पहुंचे. गोली महिला की पीठ में लगी थी. तत्कालीन एसपी (सिटी) शिवशंकर भी फोरैंसिक टीम को ले कर घटनास्थल पर पहुंचे. घटनास्थल के निरीक्षण के बाद गोली लगने से घायल महिला को तत्काल अस्पताल भिजवाया गया. लेकिन पता चला कि उस की मौत हो चुकी है. बाद में छानबीन करने पर पता चला कि मृतक महिला का नाम गीता यादव (26) है.

जानकारी यह भी मिली कि गीता यादव प्रह्लाद गढ़ी में किराए का कमरा ले कर अपने पति से अलग रहती थी. गीता के मायके वालों के बारे में जानकारी मिली तो उस का भाई राजेश और मां शांति देवी इंदिरापुरम थाने पहुंचे. उन्होंने अपनी बेटी की हत्या के पीछे अपने दामाद मनोरंजन का हाथ होने का शक जताया. पति मनोरंजन के खिलाफ लिखाई रिपोर्ट इंदिरापुरम पुलिस ने उसी दिन हत्या की धारा 302 में मुकदमा पंजीकृत कर लिया. थानाप्रभारी गोरखनाथ यादव ने एसआई धर्मवीर सिंह के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी. पुलिस टीम ने परिजनों के शक की बुनियाद पर जब सेक्टर 15 में मनोरंजन तिवारी के फ्लैट पर छापा मारा तो पता चला कि वह घर पर नहीं है.

पता चला कि वह 2 दिन से अपना सामान कमरे से निकाल कर कहीं ले जा रहा था. पुलिस टीम जब अगले दिन मनोरंजन तिवारी की दुकान पर पहुंची तो पता चला कि उस ने किसी को अपनी दुकान सामान समेत बेच दी है. गीता के परिजनों ने पुलिस को बताया था कि उस का पति मनोरंजन तिवारी उस के साथ लड़ाईझगड़ा करता था, इसलिए उन की बेटी डेढ़ साल से उस से अलग रह रही थी और खुद कमा कर अपना पेट पालती थी. परिवार वालों ने यह भी बताया था कि मनोरंजन ने गीता को कई बार धमकी दी थी. गीता की हत्या के बाद जिस तरह मनोरंजन अपना घर व दुकान छोड़ कर भाग गया था, उस से साफ था कि गीता की हत्या में उसी का हाथ है.

लिहाजा पुलिस ने उस के फोन को सर्विलांस पर लगा दिया. लेकिन उस का फोन स्विच्ड औफ हो चुका था. काफी मशक्कत के बाद पुलिस को मनोरंजन तिवारी के ओडिशा स्थित घर का पता मिल गया. पुलिस की एक टीम वहां पहुंची तो पता चला कि वह अपने घर भी नहीं पहुंचा था. तब निराश हो कर पुलिस टीम ओडिशा से वापस लौट आई. इस के बाद पुलिस ने काफी दिनों तक तिवारी को इधरउधर तलाश किया, लेकिन वह कहीं नहीं मिला. आखिर पुलिस ने उस के खिलाफ अदालत से कुर्की वारंट हासिल कर उस के ओडिशा स्थित घर की कुर्की कर ली. बाद में पुलिस ने अदालत में प्रार्थना पत्र दे कर उसे भगौड़ा घोषित कर दिया. पुलिस ने पहले उस की गिरफ्तारी पर 25 हजार रुपए का ईनाम घोषित किया. बाद में 2 साल बाद ईनाम की धनराशि 50 हजार रुपए कर दी.

पुलिस दल ने 2-3 बार मनोरंजन की तलाश में ओडिशा में छापे मारे, लेकिन वह कभी भी पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ा. वक्त तेजी से गुजरता रहा. इंदिरापुरम थाने में एक के बाद एक कई थानाप्रभारी बदल गए. हर अधिकारी आने के बाद गीता हत्याकांड के फरार आरोपी मनोरंजन की फाइल देखता, एक नई पुलिस टीम का गठन होता और फिर उस की फाइल धूल फांकने लगती. इसी तरह 9 साल बीत गए. जुलाई 2021 में इंदिरापुरम सर्किल में सीओ अभय कुमार मिश्रा और इंदिरापुरम थानाप्रभारी के रूप में इंसपेक्टर संजय पांडे की नियुक्ति हुई. दोनों ही अधिकारियों को पुराने मामलों को सुलझाने में महारथ हासिल थी. उन्होंने जब गीता हत्याकांड की फाइल देखी तो उन्होंने इस बार फाइल को अलमारी में रखने की जगह इस मामले को चुनौती के रूप में ले कर फरार मनोरंजन तिवारी को गिरफ्तार करने की रणनीति बनाई.

दरअसल, सीओ अभय कुमार मिश्रा के एक परिचित अधिकारी जगतसिंहपुर जिले में तैनात हैं, जहां का मनोरंजन तिवारी मूल निवासी है. अभय मिश्रा को अपराधियों के मनोविज्ञान से इतना तो समझ में आ रहा था कि इतना लंबा वक्त बीत जाने के बाद हो न हो, मनोरंजन तिवारी को अपने परिवार के साथ जरूर कुछ संपर्क होगा. भले ही वह उन के साथ नहीं रहता हो, मगर उन से संपर्क जरूर करता होगा. अगर थोड़ा सा प्रयास किया जाए तो वह पकड़ में जरूर आ सकता है. लिहाजा अभय कुमार मिश्रा ने ओडिशा के जगतसिंहपुर में तैनात अपने परिचित अधिकारी को गीता हत्याकांड की सारी जानकारी दे कर मनोरंजन को गिरफ्तार कराने में मदद मांगी.

संबधित अधिकारी ने स्थानीय स्तर पर अपनी पुलिस को मनोरंजन तिवारी के गांव अछिंदा में घर के आसपास सादे लिबास में तैनात कर दिया. वहां तैनात पुलिस टीम को पता चला कि पास के गांव में एक मंदिर का पुरोहित, जिस का नाम मनोज है, वह अकसर मनोरंजन तिवारी के घर आताजाता रहता है. लेकिन चेहरे मोहरे व हुलिए से वह एकदम मनोरंजन तिवारी जैसा है. जगतसिंहपुर पुलिस ने जब यह बात इंदिरापुरम सीओ अभय कुमार मिश्रा को बताई तो वे समझ गए कि हो न हो मनोरंजन तिवारी अपने गांव के आसापास ही कहीं वेशभूषा बदलकर रह रहा है. पुलिस ने 9 साल बाद ढूंढ निकाला मनोरंजन को अभय मिश्रा ने इंदिरापुरम थानाप्रभारी संजय पांडे को तत्काल एक टीम गठित कर ओडिशा रवाना करने का आदेश दिया.

आदेश मिलते ही इंसपेक्टर संजय पांडे ने अभयखंड चौकीप्रभारी एसआई भुवनचंद शर्मा, नरेश सिंह और कांस्टेबल अमित कुमार की टीम गठित की. टीम को आवश्यक दिशानिर्देश दे कर ओडिशा रवाना कर दिया गया, जहां पुलिस टीम ने जगतसिंहपुर में स्थानीय बालिंदा थाने की पुलिस से संपर्क साधा. सीओ अभय मिश्रा के परिचित अधिकारी के निर्देश पर स्थानीय पुलिस पहले ही मनोज पुरोहित के बारे में तमाम जानकारी जुटा चुकी थी. 25 जुलाई, 2021 को इंदिरापुरम थाने से गई पुलिस टीम ने बालिंदा थाने की पुलिस टीम की मदद से मनोरंजन तिवारी को दबोच लिया. वह मनोज तिवारी के नाम से मंदिर का पुरोहित बन कर रह रहा था और वेषभूषा बदलने के लिए उस ने दाढ़ी तक बढ़ा ली थी.

लेकिन जब उस ने अपने मातापिता के घर आनाजाना शुरू कर दिया तो लोगों को उस पर शक हो गया. हालांकि जब पुलिस टीम ने उसे पकड़ा तो उस ने पुलिस को बरगलाने का प्रयास किया. लेकिन थोड़ी सी सख्ती के बाद ही उस ने कबूल कर लिया कि वही मनोरंजन तिवारी उर्फ मनोज तिवारी है. आवश्यक लिखापढ़ी व कानूनी काररवाई के बाद पुलिस टीम अगले दिन गीता हत्याकांड के 9 साल से फरार चल रहे आरोपी मनोरंजन को गिरफ्तार कर गाजियाबाद ले आई. इंसपेक्टर संजय पांडे और सीओ अभय कुमार मिश्रा के अलावा एसपी (सिटी हिंडन पार) के सामने मनोरंजन तिवारी ने कबूल किया कि उसी ने सोचसमझ कर गीता की हत्या की थी.

तिवारी ने बताया कि 2011 में उस के साथ विवाद के बाद जब गीता अलग हो कर किराए का कमरा ले कर रहने लगी और कहीं नौकरी करने लगी तो उस के संबंध सचिन यादव नाम के एक ठेकेदार से हो गए थे. जब उसे इस बात की खबर लगी तो वह मन मसोस कर रह गया. भले ही गीता से उस का झगड़ा हो गया था और वह अलग रहता था लेकिन इस के बावजूद भी वह उस से मोहब्बत करता था. यह बात उसे मंजूर नहीं थी कि बिना तलाक लिए गीता किसी गैरमर्द के बिस्तर की शोभा बने. मनोरंजन अकसर गीता पर नजर रखने लगा. उस ने गीता को एकदो बार समझाया भी कि अगर वह किसी गैर के साथ संबध रखेगी तो वह उस की जान ले लेगा. लेकिन गीता ने उस की बात को हंसी में उड़ा दिया. उस ने उलटा मनोरंजन को धमकी दी कि अगर वह उस के रास्ते में आएगा तो सचिन उसी का काम तमाम कर देगा.

मनोरंजन समझ गया कि गीता पर गैरमर्द से आशिकी का भूत सवार हो चुका है. वह जानता था कि यादव बिरादरी के जिस शख्स से इन दिनों गीता की आशिकी चल रही है, वह न सिर्फ स्थानीय है बल्कि ऐसे लोगों के लिए खून कराना कोई बड़ी बात नहीं. मनोरंजन की सचिन यादव से तो कोई दुश्मनी नहीं थी. इसलिए मनोरंजन ने तय कर लिया कि इस से पहले कि गीता अपने आशिक से कह कर उस पर वार कराए, वह उसी का काम तमाम कर देगा. मनोरंजन ने साजिश रची. गीता की हत्या के बाद गाजियाबाद से फौरन भागने की उस ने पूरी प्लानिंग बना ली. 29 सितंबर, 2012 की शाम को गीता जब अपने काम से घर लौट रही थी. मनोरंजन ने उसे रोक लिया और गोली मार दी. गोली गीता को ऐसी जगह लगी थी कि उस की मौके पर ही मौत हो गई. इत्मीनान होने के बाद मनोरंजन मौके से फरार हो गया.

गीता की हत्या करने के फौरन बाद उस ने अपने परिवार वालों को इस बात की सूचना दे दी थी और उन्हें सतर्क कर दिया था कि पुलिस अगर उन तक पहुंचे तो वे उसके बारे में अंजान बने रहें. कई महीनों तक इधरउधर रहने के बाद पुलिस की गतिविधियां जब शांत हो गईं तो वह एक रात अपने परिवार वालों से जा कर मिला. उस ने उन्हें बता दिया कि अब वह पड़ोस के ही गांव के मंदिर में नाम व वेशभूषा बदल कर पुरोहित के रूप में रहेगा और उन से अकसर मिलता रहेगा. कहते हैं कि अपराधी कितना भी चालाक क्यों न हो, कानून व पुलिस के हाथ एक दिन उस की गरदन तक पहुंच ही जाते हैं चाहे वह सात समंदर पार जा कर छिप जाए.

मनोरंजन तिवारी को इस बात का भ्रम था कि ओडिशा गाजियाबाद से इतनी दूर है कि 9 साल बीत जाने पर पुलिस बारबार उस की तलाश में न तो उस के गांव आएगी और न ही इतनी बारीकी से तहकीकात करेगी. लेकिन यह उस की भूल साबित हुई. क्योंकि पुलिस चाहे किसी भी प्रदेश की हो, लेकिन कानून के गुनहगार को पकड़ने के लिए प्रदेश की दूरियां मिनटों में खत्म हो जाती हैं. UP News

—कथा पुलिस की जांच, अभियुक्त से पूछताछ व परिजनों से मिली जानकारी पर आधारित

Hindi love Story : अधेड़ उम्र का इश्क

Hindi love Story : 45 साल की जसवंती विधवा जरूर थी, लेकिन अपनी कदकाठी की वजह से वह 35 की दिखती थी. वह अपने दोनों बच्चों की शादी कर चुकी थी. इस के बावजूद भी मदन सेन से उस के संबंध हो गए. अधेड़ उम्र का यह इश्क जब सार्वजनिक हो गया तो एक दिन…

रवि को मदन सेन के साथ अपनी मां जसवंती के अवैध संबंधों की पूरी जानकारी थी. वह यह भी जानता था मदन अब उस की मां से तंग आ चुका था. इसलिए रवि ने अपनी मां को मौत के घाट उतारने के लिए मदन से संपर्क किया तो वह भी जसवंती की हत्या में शामिल हो गया. 15 मार्च, 2021 की सुबह 10 बजे का वक्त था. जब बैतूल जिले की मुलताई थाने की सीमा में बसे छोटे से गांव काथम की रहने वाली जसवंती और उस की 11 वर्षीया नातिन लविशा की हत्या की खबर गांव में आग की तरह फैली थी, जिस से घटना की जानकारी लगने पर टीआई मुलताई सुरेश सोलंकी भी कुछ देर में टीम ले कर मौके पर पहुंच गए.

कमरे के अंदर बिछे पलंग पर जसवंती और उस की नातिन के शव खून से लथपथ पडे़ थे. दोनों के सिर पर घातक चोटें थीं. टीआई सोलंकी ने घटना की जानकारी बैतूल एसपी सिमला प्रसाद के अलावा एएसपी श्रद्धा जोशी और एसडीपीओ नम्रता सोधिया को भी दे दी. जिस से कुछ ही देर में उक्त अधिकारी भी मौके पर पहुंच गए. शुरुआती पूछताछ में पता चला कि पति की मौत के बाद जसवंती अपने बेटे रवि और बहू के साथ रहती थी. वह स्थानीय कलारी की रसोई में खाना बनाने का काम करती थी. कुछ दिनों में उस की नातिन लविशा भी आ कर उस के साथ रहने लगी.

जबकि घटना से 4 दिन पहले ही जसवंती ने लड़झगड़ कर बेटेबहू को उन के ढाई महीने के बच्चे के साथ घर से निकाल दिया था. जिस से रवि अपनी पत्नी को ले कर पास के गांव परसोडी में रहने वाले अपने मामा ससुर के घर जा कर रहने लगा था. जसवंती का हालिया विवाद बेटे से हुआ था. इस के अलावा गांव में उस की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. लेकिन छोटी बात पर बेटा मां की हत्या करेगा, इस बात पर आसानी  से भरोसा नहीं किया जा सकता था. इसलिए पुलिस ने इस दोहरे हत्याकांड में दूसरे एंगल से जांच करनी शुरू कर दी, जिस में पता चला कि जसवंती 45 की जरूर थी, लेकिन शारीरिक बनावट और खूबसूरती के चलते वह 35 से अधिक नहीं दिखती थी.

उस के पति की मौत कई साल पहले हो चुकी थी. इसलिए पुलिस जसंवती के अवैध संबंधों की जानकारी जुटाने में लग गई. जांच में पता चला कि जसवंती का प्रेम प्रसंग कई सालों से कलौरी में काम करने वाले मदन सेन के साथ चल रहा था. मदन सेन मूलरूप से सागर जिले के बंडा का रहने वाला था. लेकिन कलारी में नौकरी के चलते यहां जसवंती के घर के पास ही किराए पर रहने लगा था. पूरे गांव को मदन और जसवंती के इश्क की जानकारी थी. लेकिन उन के बीच विवाद का कोई वाकया सामने नहीं आया था. पुलिस ने मदन से पूछताछ की, जिस में उस ने कबूल कर लिया कि उस के जसंवती से संबंध थे, किंतु उस की हत्या में उस ने अपना हाथ होने से मना कर दिया.

इसलिए एसपी सिमला प्रसाद ने इस दोहरे हत्याकांड को सुलझाने के लिए एएसपी श्रद्धा जोशी के निर्देशन में और एसडीपीओ सोधिया के नेतृत्व में थानाप्रभारी मुलताई सुरेश सोलंकी की एक टीम गठित कर दी. टीम ने जांच शुरू करते हुए चौतरफा प्रयास शुरू कर दिए, लेकिन जब इस में सफलता मिलती नहीं दिखाई दी तो एसपी सिमला प्रसाद ने साइबर सेल के एसआई राजेंद्र राजवंशी को मदन सेन के अलावा मृतक के बेटे रवि के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकालने के निर्देश दिए. काल डिटेल्स में चौंका देने वाली जानकारी निकल कर सामने आई कि घटना के 2 दिन पहले से ही अचानक जसवंती के प्रेमी मदन की उस के बेटे से फोन पर कई बार बात हुई थी.

इतना ही नहीं, घटना की रात को रवि और उस के मामा ससुर दिलीप के मोबाइल की लोकेशन गांव में मदन सेन के मोबाइल के पास मिल रही थी. उस रात भी मदन और रवि के बीच कई बार बात हुई थी. जबकि 15 मार्च के बाद से मदन और रवि के बीच इक्कादुक्का बार बात हुई थी, वह भी बहुत कम समय के लिए. साइबर सेल को रवि के मोबाइल की लोकेशन 15 मार्च को कामथ में मिली थी. इस का सीधा मतलब था कि वह घटना वाली रात को कामथ आया था. इसलिए रवि पर अपना शक पुख्ता करने के लिए टीआई सोलंकी ने रवि को थाने बुला कर बातोंबातों मे उस से पूछा, ‘‘जिस रात तुम्हारी मां का कत्ल हुआ, उस रात तुम कहां थे?’’

‘‘कहां होता साहब, मां ने घर से धक्का मार कर निकाल दिया था. इसलिए मैं अपने मामा ससुर के यहां जा कर रहने लगा. उस रात भी वहीं था.’’ रवि ने बताया.

‘‘ठीक है. इस मदन सेन के बारे में तुम्हारा क्या खयाल है? लोग बताते हैं कि मदन की तुम्हारी मां के साथ अच्छी दोस्ती थी.’’ टीआई ने कहा.

‘‘आप ने सही सुना है, साहब. मुझे तो अपनी मां कहने में भी शर्म आने लगी थी. मदन हमारे घर के पास ही रहता है. कई बार वही आधी रात में भी मेरी मां से मिलने आया करता था. यह सब मेरी पत्नी ने अपनी आंखों से देखा था. इसलिए वह इस बात को ले कमुझे ताने दिया करती थी.’’ रवि बोला.

‘‘तुम ने मदन को रोका नहीं?’’ टीआई ने पूछा.

‘‘रोका था साहब. हमारे बीच काफी झगड़ा भी हो चुका है. लेकिन खुद मेरी मां ही उसे घर बुलाती थी.’’ वह बोला.

‘‘मदन से तुम्हारी बात होती थी कभी?’’

‘‘पहले होती थी, लेकिन जब पता चला कि उस के मेरी मां से अवैध संबंध हैं, तब हमारे बीच झगड़ा हुआ था. फिर उस से बातचीत बंद हो गई थी.’’

‘‘फोन पर तो होती होगी बात तुम्हारी मदन से.’’

‘‘नहीं, कभी नहीं.’’

जैसे ही रवि ने मदन से फोन पर बात होने से इनकार किया. तभी पुलिस ने उस के साथ थोड़ी सख्ती दिखाई तो वह टूट गया. फिर उस ने इस दोहरे हत्याकांड का राज उगल दिया. उस ने बताया कि इस हत्याकांड में मामा ससुर दिलीप के अलावा मां का प्रेमी मदन भी शामिल था. रवि की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त मूसल एवं हथौड़ी भी बरामद कर ली. पुलिस ने रवि के मामा ससुर दिलीप व मां के प्रेमी मदन सेन को भी गिरफ्तार कर लिया. हत्या करने के बाद वह जसवंती का मंगलसूत्र और लविशा की पायल ले गए थे, इसलिए पुलिस ने आरोपियों से ये दोनों जेवर भी बरामद कर लिए. उन से पूछताछ के बाद इस दोहरे हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

पति की मृत्यु के बाद जसवंती ने न केवल परिवार संभाला, बल्कि बेटे की शादी भी धूमधाम से की. रवि मां का हाथ बंटाने के लिए छोटामोटा काम किया करता था, लेकिन लौकडाउन में काम छूट जाने से वह घर में कुछ महीनों से बैठा था. जसवंती पिछले 5 सालों से कलारी के औफिस में खाना बनाने का काम करती थी. जसवंती सुंदर तो थी ही, साथ ही आकर्षक भी थी. कलारी में सागर जिले का मदन सेन मैनेजर की हैसियत से पूरा हिसाबकिताब देखता था. मदन यहां अकेला रहता था, इसलिए उसे एक औरत की और जवानी में पति की मौत हो जाने से जसवंती को एक मर्द की आवश्यकता यदाकदा महसूस होती रहती थी.

ऐसे में मदन की नजर जसवंती पर थी. वह जानता था कि जसंवती का पति नहीं है, इसलिए उस तक पहुंचना उस के लिए ज्यादा मुश्किल नहीं था. उस ने काफी सोचसमझ कर ही जसवंती के पड़ोस में किराए का मकान ले कर उस में रहना शुरू किया. कुछ समय बाद मदन ने धीरेधीरे जसवंती की तरफ बढ़ना शुरू किया तो अपनी खुद की जरूरतों से परेशान जसवंती ने भी अपने मन की लगाम ढीली छोड़ दी और मदन को अपनी मौन स्वीकृति दे दी, जिस से एक रोज आधी रात में मदन शराब पी कर जसवंती के घर पहुंचा तो जसवंती ने भी पहली मुलाकात में उस के सामने समर्पण कर दिया.

कहना नहीं होगा कि दोनों को एकदूसरे की जरूरत थी, इसलिए मदन और जसवंती दोनों ही कुछ दिनों बाद खुल कर अपनी प्रेम लीला करने लगे. जसवंती की बेटी की शादी पहले ही हो चुकी थी. सो वह अपनी ससुराल में थी. बेटा रवि अपनी मां के साथ रहता था, उसे काबू में रखने के लिए मदन ने रवि को शराब पीने की आदत डाल दी और रोज ही उसे कलारी में शराब पीने के लिए पैसे देने लगा. मदन के साथ मां के संबंध की बात पता होने के बाद भी शराब के लालच में रवि ने उस का कोई विरोध नहीं किया. यहां तक कि 2 साल पहले रवि की शादी हो जाने के बाद बहू के आ जाने पर भी मदन और जसवंती के संबंधों पर कोई फर्क नहीं पड़ा.

लेकिन कहते हैं कि अवैध संबंधों की एक उम्र होती है. क्योंकि वक्त के साथ जहां औरत अपने प्रेमी पर ज्यादा अधिकार जताने लगती है, वहीं पे्रमी का मन उस से ऊबने लगता है. यही इस मामले में होने लगा था. जसवंती मदन पर पूरा हक जमाने लगी थी. यहां तक कि वह उस पर दबाव बनाने लगी थी कि वह गांव में रहने वाली अपनी पत्नी को छोड़ कर उस के साथ उस के घर में पति की तरह रहे. लेकिन मदन इस के लिए राजी नहीं था. इस से मदन और जसंवती के बीच विवाद होने लगा. लौकडाउन में काम बंद हो जाने से रवि पूरी तरह मां पर निर्भर हो गया. इसलिए वह जब भी मां से खर्च के पैसे मांगता तो मां उसे खरीखोटी सुना देती थी.

ढाई महीने पहले ही रवि की पत्नी ने एक बच्चे को जन्म दिया था, जिस से जसवंती रवि पर रोज कोई न कोई काम करने के लिए उस पर दबाव बनाने लगी थी. लेकिन रवि को कोई काम नहीं मिल पा रहा था. इस दौरान जसवंती की बेटी की बेटी लवीशा भी उस के साथ आ कर रहने लगी, जिस से जसंवती रवि को खर्च के पैसे देने में और आनाकानी करने लगी. इस से रवि अपनी भांजी से भी नफरत करने लगा. घटना के 4 दिन पहले रवि ने अपनी मां से खर्च के लिए पैसे मांगे तो जसवंती ने उसे बुरी तरह झिड़का ही नहीं, बल्कि पत्नी और बच्चे के साथ घर से निकलने का फरमान भी सुना दिया. जिस से गुस्से में आ कर रवि अपनी पत्नी और बच्चे को ले कर अपने मामा ससुर दिलीप के वहां चला गया.

रवि को इस बात का डर था कि कहीं मां पूरी जायदाद भांजी लवीशा के नाम न लिख दे, जो उस के साथ आ कर रहने लगी थी. इसलिए उस ने मामा ससुर के साथ मिल कर मां की हत्या की योजना बना कर मदन को फोन किया. वास्तव में रवि को पता था कि मां का प्रेमी मदन सेन भी अब उस से तंग आ चुका है. इसलिए रवि ने मदन को अपनी योजना बताई तो मदन इस में साथ देने को राजी हो गया. जिस के बाद घटना वाले दिन मामा ससुर दिलीप और रवि गांव पहुंचे तो वहां से मदन भी उन के साथ हो गया. आधी रात के बाद तीनों ने चुपचाप घर में घुस कर सो रही जसवंती और उस की नातिन के सिर पर मूसल और हथौड़ी से वार कर उन की हत्या कर दी.

पुलिस इस घटना को लूट की वारदात समझे, इसलिए रवि हत्या के बाद जसवंती का मंगलसूत्र और लविशा की पायल उतार कर साथ ले गया. तीनों को भरोसा था कि पुलिस उन पर कभी शक नहीं करेगी. लेकिन पुलिस ने 7 दिनों में ही मामले का खुलासा कर दिया. Hindi love Story

बेवफाई का बदला : क्या था बच्ची का कसूर

दिल्ली के पुल प्रह्लादपुर में रहने वाली विवाहिता गीता के नाजायज संबंध पड़ोसी कालूचरण से हो गए थे, जिस की वजह से उस ने अपने पति घनश्याम से भी दूरी बना ली थी. इसी दौरान ऐसा क्या हुआ कि कालूचरण ने गीता को सबक सिखाने के लिए उस की 6 साल की बेटी गुनीषा की हत्या कर दी…

समय- रात साढ़े 3 बजे

दिन-29 मई, बुधवार

स्थान- राजस्थान का कोटा शहर

कोटा के तुल्लापुर स्थित पुरानी रेलवे कालोनी के सेक्टर-3 के क्वार्टर नंबर 169 से गुनीषा नाम की 6 साल की बच्ची गायब हो गई. यह क्वार्टर श्रीकिशन कोली का था जो रेलवे कर्मचारी था. 6 वर्षीय गुनीषा श्रीकिशन की बेटी गीता की बेटी थी. रात को जब परिवार के सभी सदस्य गहरी नींद में थे, तभी कोई गुनीषा को उठा ले गया था. बच्ची के गायब होने से सभी हैरान थे, क्योंकि गीता अपनी बेटी गुनीषा के साथ दालान में सो रही थी. क्वार्टर का मुख्य दरवाजा बंद था. किसी के भी अंदर आने की संभावना नहीं थी.

श्रीकिशन के क्वार्टर में शोरशराबा हुआ तो अड़ोसपड़ोस के सब लोग एकत्र हो गए. पता चला घर में 9 सदस्य थे, जिन में गुनीषा गायब थी. जिस दालान में ये लोग सो रहे थे, उस के 3 कोनों में कूलर लगे थे. रात में करीब एक बजे गीता की मां पुष्पा पानी पीने उठी तो उस ने गुनीषा को सिकुड़ कर सोते देखा. कूलरों की वजह से उसे ठंड लग रही होगी, यह सोच कर पुष्पा ने उसे चादर ओढ़ा दी और जा कर अपने बिस्तर पर सो गई. रात को साढ़े 3 बजे गीता जब बाथरूम जाने के लिए उठी तो बगल में लेटी गुनीषा को गायब देख चौंकी. उस ने मम्मीपापा को उठाया. उन का शोर सुन कर बाकी लोग भी उठ गए. गुनीषा को घर के कोनेकोने में ढूंढ लिया गया, लेकिन वह नहीं मिली. उन लोगों के रोनेचीखने की आवाजें सुन कर पासपड़ोस के लोग भी आ गए.

मासूम बच्चियों के साथ हो रही दरिंदगी की सोच कर लोगों ने श्रीकिशन कोली को सलाह दी कि हमें तुरंत पुलिस के पास जाना चाहिए. पड़ोसियों और घर वालों के साथ श्रीकिशन कोली जब रेलवे कालोनी थाने पहुंचा, तब तक सुबह के 4 बज चुके थे. गुनीषा की गुमशुदगी दर्ज करने के बाद थानाप्रभारी अनीस अहमद ने इस की सूचना एसपी सुधीर भार्गव को दी और श्रीकिशन के साथ पुलिस की एक टीम घटनास्थल की छानबीन के लिए भेज दी. अनीस अहमद ने पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना देते हुए अलर्ट भी जारी करवा दिया. मौके पर पहुंची पुलिस टीम ने पूरे मकान को खंगाला. पुलिस टीम को श्रीकिशन की इस बात पर नहीं हुआ कि मकान का मुख्य दरवाजा भीतर से बंद रहते कोई अंदर नहीं आ सकता. लेकिन जब पुलिस की नजर पिछले दरवाजे पर पड़ी तो उन की धारणा बदल गई.

पिछले दरवाजे की कुंडी टूटी हुई थी. दरवाजा तकरीबन आधा खुला हुआ था. 3 कमरों वाले उस क्वार्टर में एक रसोई के अलावा बीच में दालान था. मकान की छत भी करीब 10 फीट से ज्यादा ऊंची नहीं थी. पूरे मकान का मुआयना करते हुए एसआई मुकेश की निगाहें बारबार पिछले दरवाजे पर ही अटक जाती थीं. इसी बीच एक पुलिसकर्मी रामतीरथ का ध्यान छत की तरफ गया तो उस ने श्रीकिशन से छत पर जाने का रास्ता पूछा. लेकिन उस ने यह कह कर इनकार कर दिया कि ऊपर जाने के लिए सीढि़यां नहीं हैं. आखिर पुलिसकर्मी कुरसी लगा कर छत पर पहुंचा तो उसे पानी की टंकी नजर आई. उस ने उत्सुकतावश टंकी का ढक्कन उठा कर देखा तो उस के होश उड़ गए. रस्सियों से बंधा बच्ची का शव टंकी के पानी में तैर रहा था.

बच्ची की लाश देख कर पुलिसकर्मी रामतीरथ वहीं से चिल्लाया, ‘‘सर, बच्ची की लाश टंकी में पड़ी है.’’

रामतीरथ की बात सुन कर सन्नाटे में आए एसआई मुकेश तुरंत छत पर पहुंच गए. यह रहस्योद्घाटन पूरे परिवार के लिए बम विस्फोट जैसा था. बालिका की हत्या और शव की बरामदगी की सूचना मिली तो थानाप्रभारी अनीस अहमद भी मौके पर पहुंच गए. उन्होंने देखा कि बच्ची का गला किसी बनियाननुमा कपड़े से बुरी तरह कसा हुआ था. गुनीषा की हत्या ने घर में हाहाकार मचा दिया. यह खबर कालोनी में आग की तरह फैली. पुलिस टीम ने गुनीषा के शव को कब्जे में कर तत्काल रेलवे हौस्पिटल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. बच्ची की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने के बाद पुलिस ने यह मामला धारा 302 में दर्ज कर लिया.

एडिशनल एसपी राजेश मील और डीएसपी भगवत सिंह हिंगड़ भी घटनास्थल पर पहुंच गए थे. पुलिस ने मौके पर पहुंचे अपराध विशेषज्ञों तथा डौग स्क्वायड टीम की भी सहायता ली. लेकिन ये प्रयास निरर्थक रहे. न तो अपराध विशेषज्ञ घटनास्थल से कोई फिंगरप्रिंट ही उठा सके और न ही खोजी कुत्ते कोई सुराग ढूंढ सके. लेकिन एडिशनल एसपी राजेश मील को 3 बातें चौंकाने वाली लग रही थीं, पहली यह कि जब घर में पालतू कुत्ता था तो वह भौंका क्यों नहीं. इस का मतलब बच्ची का अपहर्त्ता परिवार के लिए कोई अजनबी नहीं था.

दूसरी बात यह थी कि गीता का अपने पति घनश्याम यानी गुनीषा के पिता से तलाक का केस चल रहा था. कहीं इस वारदात के पीछे घनश्याम ही तो नहीं था. श्रीकिशन कोली ने भी घनश्याम पर ही शक जताया. उस ने मौके से 3 मोबाइल फोन के गायब होने की बात बताई. राजेश मील यह नहीं समझ पा रहे थे कि आखिर उन मोबाइलों में क्या राज छिपा था कि किसी ने उन्हें गायब कर दिया. गुरुवार 30 मई को पोस्टमार्टम के बाद बच्ची का शव घर वालों को सौंप दिया गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बच्ची का गला घोंटा जाना ही मृत्यु का मुख्य कारण बताया गया.

जिस निर्ममता से बच्चों की हत्या की गई थी, उस का सीधा मतलब था कि किसी पारिवारिक रंजिश के चलते ही उस की हत्या की गई थी. पुलिस अधिकारियों के साथ विचारविमर्श के बाद एसपी सुधीर भार्गव ने एडिशनल एसपी राजेश मील के नेतृत्व में एक टीम गठित की, जिस में डीएसपी भगवत सिंह हिंगड़, रोहिताश्व कुमार और सीआई अनीस अहमद को शामिल किया गया. पूरे घटनाक्रम का अध्ययन करने के बाद एएसपी राजेश मील ने हर कोण से जांच करने के लिए पहले श्रीकिशन के उन नातेरिश्तेदारों को छांटा, जो परिवार के किसी भलेबुरे को प्रभावित कर सकते थे. साथ ही इलाके के ऐसे बदमाशों की लिस्ट भी तैयार की, जिन की वजह से परिवार के साथ कुछ अच्छाबुरा हो सकता था.

पुलिस ने गीता से उस के पति  घनश्याम से चल रहे विवाद के बारे में पूछा तो वह सुबकते हुए बोली, ‘‘वह शराब पी कर मुझ से मारपीट करता था. इसलिए मुझे उस से नफरत हो गई थी. मैं तलाक दे कर उस से अपना रिश्ता खत्म कर लेना चाहती थी.’’

उस का कहना था कि उस की वजह से मैं पहले ही अपनी एक औलाद खो चुकी हूं. यह बात संदेह जताने वाली थी, इसलिए डीएसपी भगवत सिंह हिंगड़ ने फौरन पूछा, ‘‘क्या घनश्याम पहले भी तुम्हारे बच्चे की हत्या कर चुका है?’’

गीता ने जवाब दिया तो हिंगड़ हैरान हुए बिना नहीं रहे. उस ने बताया, ‘‘साहबजी, उस के साथ लड़ाईझगड़े के दौरान मेरा गर्भपात हो गया था.’’

पुलिस संभवत: इस विवाद की छानबीन कर चुकी थी, इसलिए हिंगड़ ने पूछा कि तुम ने तो घनश्याम के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज करा रखा है. गीता जवाब देने के बजाए इधरउधर देखने लगी तो हिंगड़ को लगा कि कुछ न कुछ ऐसा है, जिसे छिपाया जा रहा है. थाने में चली लगातार 12 घंटे की पुलिस पूछताछ में श्रीकिशन यह तो नहीं बता पाया कि गुनीषा के गले में कसा पाया गया बनियान किस का था, लेकिन 2 बातें पुलिस के लिए काफी अहम थीं. पहली, जब आरोपी गुनीषा को उठा कर ले जा रहा था तो उस ने चीखनेचिल्लाने की कोशिश की होगी. लेकिन उस की आवाज किसी को सुनाई क्यों नहीं दी?

इस सवाल पर श्रीकिशन सोचते हुए बोला, ‘‘साहबजी, आवाज तो जरूर हुई होगी, लेकिन अपहरण करने वाले ने बच्ची का मुंह दबा दिया होगा. यह भी संभव है कि हलकीफुलकी चीख निकली भी होगी, तो 3 कूलरों की आवाज में सुनाई नहीं दी होगी.’’

पुलिस ने श्रीकिशन से पूछा कि मौके से जो 3 मोबाइल गायब हुए, वे किसकिस के थे. इस बात पर श्रीकिशन ने भी हैरानी जताई. फिर उस ने बताया कि उस का, गीता का और उस के बेटे राजकुमार के मोबाइल गायब थे. पुलिस अधिकारियों ने घटना के समय घर में मौजूद सभी परिजनों के अलावा अन्य नातेरिश्तेदारों, इलाके में नामजद अपराधियों सहित करीब 100 लोगों से पूछताछ की, लेकिन कोई ठोस जानकारी नहीं मिल पाई. संदेह के घेरे में आए गीता के पति घनश्याम की टोह लेने के लिए थानाप्रभारी अनीस अहमद गुरुवार 30 मई को तड़के उडि़या बस्ती स्थित उस के घर जा पहुंचे. उस का पता भी श्रीकिशन कोली ने ही बताया था. पुलिस जब घनश्याम तक पहुंची तो वह अपने घर में सो रहा था.

इतनी सुबह आधीअधूरी नींद से जगाए जाने और एकाएक सिर पर खड़े पुलिस दस्ते को देख कर घनश्याम के होश फाख्ता हो गए. अजीबोगरीब स्थिति से हक्काबक्का घनश्याम बुरी तरह सन्नाटे में आ गया. उस के घर वाले भी जाग गए. घनश्याम के पिता मच्छूलाल और परिवार के लोगों ने ही पूछने का साहस जुटाया, ‘‘साहब, आखिर हुआ क्या? क्या कर दिया घनश्याम ने?’’

उसे जवाब देने के बजाए थानाप्रभारी अनीस अहमद ने उसे डांट दिया. मच्छूलाल ने एक बार अपने रोआंसे बेटे की तरफ देखा, फिर हिम्मत कर के बोला, ‘‘साहब, आप बताओ तभी तो पता चलेगा?’’

‘‘गुनीषा बेटी है न घनश्याम की?’’ थानाप्रभारी ने कड़कते स्वर में कहा, ‘‘तुम्हारा बेटा सुबह 3 बजे उस की हत्या कर के यहां आ कर सो गया.’’

मच्छूलाल तड़प कर बोला, ‘‘क्या कहते हो साहब, घनश्याम तो रात एक बजे ही दिल्ली से आया है. वहीं नौकरी करता है. खानेपीने के बाद हमारे साथ बातें करते हुए सुबह 4 बजे सोया था.’’

थानाप्रभारी अनीस अहमद के चेहरे पर असमंजस के भाव तैरने लगे. लेकिन उन का शक नहीं गया. उन्होंने घनश्याम को थाने चलने को कहा. घनश्याम के साथ तमाम लोग थाने आए. भीड़ में उन्हें दिलीप नामक शख्स ऐतबार के काबिल लगा. उस का कहना था, ‘‘साहब, खूनखराबा घनश्याम के बस का नहीं है. यह तो अपनी बेटी से इतना प्यार करता था कि उस के बारे में बुरा करना तो दूर, सोच भी नहीं सकता. वैसे भी यह दिल्ली रेलवे में नौकरी करता है. कल रात ही तो आया था. नहीं साहब, किसी ने आप को गलत सूचना दी है.’’

घनश्याम के पक्ष की बातें सुन कर अनीस अहमद को उस की डोर ढीली छोड़ना ही बेहतर लगा. उन्होंने उसे अगले दिन सुबह आने को कह कर जाने दिया. शुक्रवार 31 मई को घनश्याम नियत समय पर थाने पहुंच गया. इस से पहले कि पुलिस उस से कुछ पूछती, उस की आंखों में आंसू आ गए, ‘‘साहब, गीता से तो मेरी नहीं पटी पर अपनी बेटी गुनीषा से मुझे बहुत प्यार था. मुझे गीता से अलग होने का कोई दुख नहीं था लेकिन मुझे बेटी गुनीषा की बहुत याद आती थी. इतना घिनौना काम तो मैं…’’

‘‘तुम्हारे बीच अलगाव कैसे हुआ?’’ पूछने पर घनश्याम कुछ देर जमीन पर नजरें गड़ाए रहा. उस ने डबडबाई आंखों को छिपाने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘सर, छोटी तनख्वाह में बड़े अरमान कैसे पूरे हो सकते हैं?’’

कोटा शहर में रेलवे कर्मचारियों के लिए बनाए गए आवास 2 कालोनियों में बंटे हुए हैं. अधिकारी और उन के मातहत कर्मचारी नई कालोनी में रहते हैं. यह कालोनी कोटा रेलवे जंक्शन से सटी हुई है. नई कालोनी करीब 2 रकबों में फैली है. जबकि चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को नजदीक की तुल्लापुर इलाके में आवास आवंटित किए गए हैं. रेलवे स्टेडियम के निकट बनी इस कालोनी को पुरानी रेलवे कालोनी के नाम से जाना जाता है. लगभग 300 क्वार्टरों वाली इस कालोनी में क्वार्टर नंबर 169 में श्रीकिशन रह रहा था. श्रीकिशन की पत्नी का नाम पुष्पा था.

इस दंपति के गीता और मीनाक्षी 2 बेटियों के अलावा 2 बेटे राजकुमार और राहुल थे. श्रीकिशन की संगीता और जैमा नाम की 2 बहनें भी थीं. दोनों बहनें विवाहित थीं. लेकिन घटना के दिन श्रीकिशन के घर आई हुई थीं. लगभग 25 साल की सब से बड़ी बेटी गीता विवाहित थी. लापता हुई 6 वर्षीया गुनीषा उसी की बेटी थी. करीब 7 साल पहले गीता का विवाह तुल्लापुरा के निकट ही उडि़या बस्ती में रहने वाले मच्छूलाल के बेटे घनश्याम से हुआ था.

घनश्याम दिल्ली स्थित तुगलकाबाद रेलवे स्टेशन पर नौकरी कर रहा था. घनश्याम और गीता का दांपत्य जीवन करीब 4 साल ही ठीकठाक चला. बाद में उन के बीच झगड़े शुरू हो गए. पतिपत्नी के रिश्ते इतने तनावपूर्ण हो गए थे कि नौबत तलाक तक आ पहुंची. गीता पिछले 3 सालों से अपने पिता के पास कोटा में ही रह रही थी. तलाक का मामला कोटा अदालत में विचाराधीन था. गीता ने कोटा के महिला थाने में घनश्याम के खिलाफ दहेज प्रताड़ना का मामला भी दर्ज करा रखा था.

छानबीन के इस दौर में पुलिस के सामने 3 बातें आईं. इन गुत्थियों को सुलझा कर ही  हत्यारे तक पहुंचा जा सकता था. पहली यह कि आरोपी जो भी था, घर के चप्पेचप्पे से वाकिफ था. ऐसा कोई परिवार का सदस्य भी हो सकता था और परिवार से बेहद घुलामिला व्यक्ति भी, जिस निर्दयता से मासूम बच्ची की हत्या की गई थी, निश्चित रूप से वह गीता से गहरी नफरत करता होगा. गीता ज्यादा कुछ बोलनेबताने की स्थिति में नहीं थी. वह सदमे में थी और बारबार बेहोश हो रही थी. वैवाहिक विवाद की स्थिति में घनश्याम सब से ज्यादा संदेहास्पद पात्र था. पुलिस ने हर कोण और हर तरह से उस से पूछताछ की लेकिन वह कहीं से भी अपराधी नहीं लगा. आखिर उसे इस हिदायत के साथ जाने दिया गया कि वह पुलिस को बताए बिना कोटा से बाहर न जाए.

राजेश मील को यह बात बारबार कचोट रही थी कि गीता जवान है, कमोबेश खूबसूरत भी है. लेकिन ऐसा क्या था कि अपनी बसीबसाई गृहस्थी छोड़ कर पिता के पास रह रही थी. पति घनश्याम के बारे में जो जानकारी पुलिस ने जुटाई थी, उस से उस का हत्या का कोई ताल्लुक नहीं दिखाई दे रहा था. इस बीच पुलिस को यह भी पता चल चुका था कि वह सीधासादा नेकनीयत का आदमी था. इतना सीधा कि उसे कोई भी घुड़की दे कर डराधमका सकता था. सवाल यह था कि दिल्ली जैसे शहर में रहते हुए क्या पतिपत्नी के बीच कोई तीसरा भी था? ऐसे किस्से की तसदीक तो मोबाइल ही हो सकती है. लिहाजा राजेश मील ने फौरन सीआई को हिदायत देते हुए कहा, ‘‘अनीस, गीता के गायब हुए मोबाइल का नंबर है न तुम्हारे पास? फौरन उस की काल डिटेल्स ट्रैस करने का बंदोबस्त करो.’’

अनीस अहमद फौरन इस काम पर लग गए. काल ट्रैसिंग के नतीजे वाकई चौंकाने वाले थे. अनीस अहमद ने जो कुछ बताया, उस ने एसपी राजेश मील की आंखों में चमक पैदा कर दी. गीता के मोबाइल की मौजूदगी दिल्ली के तुगलकाबाद में होने की तसदीक कर रही था. साफ मतलब था कि आरोपी दिल्ली के तुगलकाबाद में मौजूद था. सीआई अनीस अहमद के नेतृत्व में दिल्ली पहुंची पुलिस टीम ने जो जानकारी जुटाई, उस के मुताबिक आरोपी का नाम कालूचरण बेहरा था. कालूचरण को पुलिस ने घनश्याम के पुल प्रह्लादपुर स्थित घर के पास वाले मकान से धर दबोचा.

कालूचरण घनश्याम का पड़ोसी निकला. गीता के दिल्ली में रहते हुए कालूचरण से प्रेमिल संबंध बन गए थे. घनश्याम और गीता के बीच अलगाव की बड़ी वजह यह भी थी. दिल्ली गई पुलिस टीम ने घनश्याम के मकान सहित अन्य जगहों से कई महत्त्वपूर्ण सुराग एकत्र किए. कालूचरण दिल्ली स्थित कानकोर में औपरेटर था. पुलिस कालूचरण बेहरा को दिल्ली से हिरासत में ले कर सोमवार 3 जून को कोटा पहुंची. यहां शुरुआती पूछताछ के बाद पुलिस ने उस की गिरफ्तारी दिखा कर मंगलवार 4 जून को न्यायालय में पेश कर 3 दिन के रिमांड पर ले लिया. पुलिस की शुरुआती पूछताछ में मासूम गुनीषा की हत्या को ले कर कालूचरण ने जो खुलासा किया, वह चौंकाने वाला था.

दक्षिणपूर्वी दिल्ली के पुल प्रह्लादपुर में घनश्याम के पड़ोस में रहने के दौरान ही कालूचरण के घनश्याम की पत्नी गीता से प्रेमिल संबंध बन गए थे. गीता के कोटा चले जाने के बाद भी कालू कोटा आ कर गीता से मिलताजुलता रहा. लेकिन पिछले कुछ दिनों से गीता के किसी अन्य युवक से संबंध बन गए थे. नतीजतन उस ने कालू से कन्नी काटनी शुरू कर दी थी. कालू ने जब उसे समझाने की कोशिश की तो उस ने उसे बुरी तरह दुत्कार दिया था. बेवफाई और अपमान की आग में सुलगते कालू ने गीता को सबक सिखाने की ठान ली. इस रंजिश की बलि चढ़ी मासूम गुनीषा.

पड़ोसी होने के नाते घनश्याम और कालू के बीच अच्छा दोस्ताना था. पतिपत्नी के बीच अकसर होने वाले झगड़े में कालू गीता का पक्ष लेता था. नतीजतन गीता का झुकाव कालू की तरफ होने लगा. गीता का रंगरूप बेशक गेहुआं था, लेकिन भरे हुए बदन की गीता के नैननक्श काफी कटीले थे. कालू से निकटता बढ़ी तो गीता पति की अनुपस्थिति में कालू के कमरे पर भी आने लगी. यहीं दोनों के बीच अनैतिक संबंध बने. अनैतिक संबंध बनाने के लिए कालू ने उसे अपने प्यार का भरोसा दिलाते हुए कहा था कि वह शादी नहीं करेगा और सिर्फ उसी का हो कर रहेगा.

दिल्ली में पतिपत्नी के बीच झगड़े इस कदर बढे़ कि गीता ने घनश्याम को छोड़ने का फैसला कर लिया और बेटी गुनीषा को ले कर कोटा आ गई. पिता के लिए बेटी का साझा दुख था. इसलिए उस ने भी बेटी का साथ दिया. यह 3 साल पहले की बात है. इस बीच गीता ने घनश्याम पर दहेज उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए तलाक का मुकदमा दायर कर दिया था. यह मामला अभी अदालत में विचाराधीन है. गीता के कोटा आ जाने के बावजूद कालू के साथ उस के संबंध बने रहे. कालू अकसर कोटा आता रहता था और 4-5 दिन गीता के घर पर ही रुकता था. कालू ने गीता को खुश रखने के लिए पैसे लुटाने में कोई कसर नहीं रखी थी.

पिछले करीब 6 महीने से कालू को अपने और गीता के रिश्तों में कुछ असहजता महसूस होने लगी. दिन में 10 बार फोन करने वाली गीता न सिर्फ उस का फोन काटने लगी थी, बल्कि अपने फोन को व्यस्त भी दिखाने लगी थी. कालू ने गीता की बेरुखी का सबब जानने की जुगत लगाई तो पता चला कि उस की माशूका किसी और के हाथों में खेल रही है. उस ने अपने रसूखों से इस बात की तसदीक भी कर ली.

हालात भांपने के लिए जब वह कोटा पहुंचा तो गीता में पहले जैसा जोश नहीं था. उस ने कालू को यहां तक कह दिया कि अब वह यहां न आया करे. गुस्से में उबलता हुआ कालू दिल्ली लौटा तो इसी उधेड़बुन में जुट गया कि गीता को कैसे उस की बेवफाई का ताजिंदगी याद रखने वाला सबक सिखाए. उस ने गीता की बेटी और पूरे परिवार की चहेती गुनीषा को मारने का तानाबाना बुन लिया. अपनी योजना को अंजाम देने के लिए वह 29 मई की रात को ट्रेन से कोटा आया. घर का चप्पाचप्पा उस का देखाभाला था.  30 मई की देर रात वह करीब 2 बजे पीछे के रास्ते से घर में घुसा और सब से पहले उस ने तख्त पर पड़े तीनों मोबाइल कब्जे में किए. फिर गीता के पास सोई गुनीषा को चद्दर समेत ही उठा लिया.

नींद में गाफिल गुनीषा कुनमुनाई भी, लेकिन कालू ने उस का मुंह बंद कर दिया. कूलरों के शोर में वैसे भी गुनीषा की कुनमुनाहट दब गई. गुनीषा का गला घोंट कर टंकी में डालने की योजना वह पहले ही बना चुका था. छत पर जाने का रास्ता भी उसे पता था. गुनीषा को दबोचे हुए वह छत पर पहुंचा. अलगनी से उठाई गई बनियान से उस का गला घोंट कर कालू ने उसे पानी की टंकी में डाल दिया फिर वह जिस खामोशी से आया था, उसी खामोशी से बाहर निकल गया. मोबाइल इस मंशा से उठाए थे, ताकि इस बात की तह तक पहुंचा जा सके कि गीता के आजकल किस से संबंध थे. लेकिन मोबाइल ही उस की गिरफ्तारी का कारण बन गए.