Pune News : सुनसान सड़क पर मैरिड गर्लफ्रेंड का दबाया गला

Pune News : रामकिशन राजुरे विवाहित सवित्रा को बहलाफुसला कर शहर के सपने दिखा कर गांव से पुणे ले आया था. 2 सालों तक उस ने उस के साथ ऐश की. लेकिन जब उस ने अपना हक मांगा तो…

आदिवासी गांव और देहात की युवतियां कोमल मन भी होती हैं और चंचल स्वभाव की भी. उन के मन में तमाम तरह की जिज्ञासाएं होती हैं. उन के सामने शहर की किसी चीज की प्रशंसा करो, तो उसे पाने या देखने के लिए विचलित हो जाती हैं चालाक और मनचले युवक इसी बात का फायदा उठाते हैं. जिस का अंजाम ज्यादातर दुखदाई होता है. 20 वर्षीय सवित्रा दिगंबर अंकुलवार की शादी हुए अभी 6 महीने भी नहीं हुए थे कि उस की आंखों में शहर के सुनहरे सपने तैरने लगे थे. यह सपने दिखाने वाला था उस के पति का दोस्त अविनाश रामकिशन राजुरे, जो चालाक और रंगीन तबीयत का था.

सांवले रंग की तीखे नाकनक्श वाली सवित्रा अपनी ससुराल आ कर अभी पति के परिवार को अच्छी तरह समझ भी नहीं पाई थी कि उस की स्वाभाविक चंचलता वहां के लोगों को लुभाने लगी थी. उसे जो एक बार देखता था, उसे पसंद करने लगता था. शहर से अपने गांव आए अविनाश राजुरे के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. जब से अविनाश राजुरे की नजर में सवित्रा आई थी, उस की रातों की नींद उड़ गई थी. वह उस का दीवाना हो गया था. अविनाश राजुरे सालों बाद शहर से अपने गांव आया था. दूसरे दिन जब वह अपने गांव के लोगों और दोस्तों से मिलने घर के बाहर निकला तो अपने दोस्त दिगंबर के घर भी गया.

उस का दोस्त दिगंबर तो नहीं मिला लेकिन दरवाजे पर पति के इंतजार में खड़ी सवित्रा से जब उस की नजर लड़ी तो वह उसे देखता रह गया था. अविनाश राजुरे औरतों के मामले में काफी अनुभवी था. वह सवित्रा के हावभाव देख कर काफी कुछ समझ गया. चूंकि वह उस के गहरे दोस्त की बीवी और गांव का मामला था, इसलिए वह बिना कुछ बात किए घर लौट आया. लेकिन घर लौट कर उसे चैन नहीं मिला. उस रात वह ठीक से सो नहीं पाया. उस की आंखों के सामने रहरह कर सवित्रा का कसा हुआ बदन, उभरा यौवन और नशीली आंखें घूम रही थीं. दूसरे दिन वह मौका देख कर दिगंबर के घर पहुंच गया.

दिगंबर ने उस का स्वागत गर्मजोशी से किया, साथसाथ पत्नी सवित्रा का भी परिचय कराया. पतिपत्नी दोनों ने मिल कर उस की अच्छी खातिरदारी की. उस दिन तो अविनाश राजुरे ने दिगंबर के सामने सिर्फ उस की पत्नी सवित्रा की तारीफों के सिवा ज्यादा बातें नहीं कीं. लेकिन दूसरी बार अपने दोस्त दिगंबर के घर पर न रहने पर वह आया तो उसे देख कर पहले तो सवित्रा घबरा गई, लेकिन दूसरे ही पल वह उस ने सोचा कि पति का दोस्त है, उसे घर के बरामदे में बिठाया. चायपानी के बाद जब सवित्रा ने उस के कामधंधे के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि वह पुणे शहर की एक मल्टीनैशनल कंपनी में सर्विस करता है.

जहां उसे अच्छा वेतन मिलता है. मस्ती से रहता, घूमताफिरता और अपने शौक पूरे करता है.

‘‘पुणे, मुंबई का बड़ा नाम सुना है, कैसा शहर है?’’ सवित्रा ने पूछा तो अविनाश राजुरे ने बताया, ‘‘बहुत अच्छा और स्वर्ग की तरह सुंदर है. काफी कुछ देखने और सुनने लायक है. मुंबई शहर पुणे के काफी करीब है. रेसकोर्स, म्यूजियम, जुहू चौपाटी, बड़ेबड़े फिल्मी कलाकारों के बंगले हैं, जहां मेला लगा रहता है. पुणे का बोट क्लब, खंडाला घाट जहां की छवि निराली है.’’

अविनाश राजुरे की लंबीचौड़ी बातें सुन कर सवित्रा बोली, ‘‘यह सब मुझे बताने का क्या फायदा, मेरे ऐसे नसीब कहां कि मैं पुणे और मुंबई जैसे शहरों के दर्शन करूं. मुझे तो इस गांव की मिट्टी और पति के साथ जिंदगी गुजारनी है.’’

सवित्रा की मायूसी भरी बातों और चाहतों का अविनाश राजुरे ने पूरापूरा फायदा उठाया. अब उसे जब भी मौका मिलता, वह सवित्रा की भावनाओं को भड़काने आ जाता और कहता कि वह मायूस न हो. अगर वह चाहेगी तो वह उस की मदद कर सकता है. बस इस के लिए थोड़ी सी हिम्मत की जरूरत होगी.

‘‘सच?’’ सवित्रा ने चौंक कर मुसकराते हुए कहा. फिर गंभीर हो गई, ‘‘लेकिन मैं अपने पति का क्या करूंगी?’’

सवित्रा को भावनात्मक स्तर पर बहकते देख कर अविनाश राजुरे तरंग में आ गया. वह सवित्रा को कमजोर पड़ते देख बोला, ‘‘भाभीजी, कुछ पाने के लिए कुछ खोना और कई तरह के समझौते करने पड़ते हैं. एक बार घर की ड्योढ़ी पार कर के देखो दुनिया कितनी रंगीन और सुंदर है. सब कुछ भूल जाओगी. वैसे भी तुम्हारी जैसी हसीनों को शहरों में होना चाहिए, गांवखलिहानों में क्या रखा है.’’

सवित्रा अविनाश राजुरे की निगाहों में चढ़ गई थी. वह किसी भी तरह उसे पाना और भोगना चाहता था. उसे लग रहा था कि थोड़ा सा प्रयास करेगा तो वह कटे पर वाले पंछी की तरह उस की बांहों में आ कर गिरेगी. इसलिए वह अपनी कोशिशों में लगा रहा. अब जब भी उसे मौका मिलता था, वह सवित्रा के घर पर पहुंच जाता. कभी अकेले में तो कभी अपने दोस्त दिगंबर के साथ. नतीजा यह हुआ कि दोनों धीरेधीरे एकदूसरे के साथ घुलमिल गए. दोनों के बीच पहले मीठीमीठी बातें, छेड़छाड़ और फिर हंसीमजाक शुरू हो गया. आखिरकार वही हुआ जो अविनाश राजुरे चाहता था. उस के मन की मुराद पूरी हो गई और वह दिन भी आ गया जब दोनों अपना गांव छोड़ कर पुणे आ गए.

गांव में थोड़ीबहुत हलचल हुई. बाद में सब शांत हो गया. आदिवासी समाज में इस सब का कोई विशेष महत्त्व नहीं होता. सब गांव की पंचायतों में ठीक हो जाता है. 25 वर्षीय अविनाश राजुरे मजबूत कदकाठी का स्वस्थ और महत्त्वाकांक्षी युवक था. वह उसी समाज और गांव का रहने वाला था, जिस गांव और समाज की सवित्रा दिगंबर अंकुलवार थी. उस के पिता का नाम रामकिशन राजुरे था. उस का भरापूरा परिवार था. उस के पिता एक साधारण किसान थे. वह खेतीकिसानी करते थे. अविनाश राजुरे उन का दूसरे नंबर का बेटा था. उस का खेती में जरा भी मन नहीं लगता था.

गांव से हाईस्कूल पास करने के बाद वह नौकरी की तलाश में पुणे आ गया था. यहां उसे एक कंपनी में काम मिल गया और कंपनी की ही बस्ती में किराए का एक कमरा ले कर रहने लगा. उस के शौक, मौजमजा और खानेपीने के बाद जो पैसा बचता था, उसे अपने गांव भेज देता था. साल में एक बार उसे गांव आने का मौका मिलता था. शहर के सुनहरे सपनों के आकर्षण में सवित्रा अपने दांपत्य को दांव पर लगा कर अविनाश राजुरे के साथ पुणे आ गई, जहां दोनों एक साथ पतिपत्नी की तरह रहने लगे. शुरूशुरू में अविनाश राजुरे सवित्रा को कुछ इधरउधर जगहों पर ले गया. उसे घुमायाफिराया और उस से शादी का वादा कर के उसके तनमन सौंदर्य से अपनी वासना की प्यास बुझाई.

2 साल तक सवित्रा के तन का उपभोग करने के बाद जब उस का मन भर गया तो सवित्रा उसे बोझ लगने लगी. वह अब उस से छुटकारा पाना चाहता था, लेकिन कैसे? यह उस की समझ में नहीं आ रहा था. उस की वजह से वह 2 साल से गांव नहीं जा पा रहा था. सवित्रा के साथ अगर गांव जाता तो वहां बखेड़ा खड़ा हो सकता था. उधर 2 साल तक अविनाश राजुरे के साथ रह कर सवित्रा भी अविनाश के इरादों को समझ गई थी. इसलिए वह अविनाश राजुरे पर आए दिन शादी का दबाव बनाने लगी थी. उस का मानना था कि इतने दिनों तक एक पराए पुरुष के साथ रहने के बाद वह अब कहां जाएगी. जिस से अविनाश राजुरे बौखला गया था.

काफी सोचनेविचारने के बाद आखिरकार उस ने सवित्रा के प्रति दिल दहला देने वाला खतरनाक फैसला ले लिया और मौके की तलाश में रहने लगा. और यह मौका उसे कोरोना के लौकडाउन में दीपावली के समय मिला. लौकडाउन की वजह से आम जनता को सार्वजनिक त्यौहारों में आनेजाने के लिए बहुत कम इजाजत थी. ऐसे में अविनाश राजुरे ने सवित्रा को यह कह कर विश्वास में लिया कि इस बार दीपावली का त्यौहार वह अपनी मोटरसाइकिल से गांव जा कर मनाएगा और परिवार वालों को मना कर उस से शादी करेगा. अविनाश राजुरे की यह बात सवित्रा ने खुशीखुशी स्वीकार कर ली और उस के साथ गांव जाने के लिए राजी हो गई.

दीपावली के एक दिन पहले 13 नवंबर, 2020 को सवित्रा खुशीखुशी गांव जाने के लिए सुबह से ही तैयार बैठी थी. पुणे शहर से उन के गांव की दूरी लगभग 7-8 घंटे की थी. यह दूरी तय करने के लिए उन्हें सुबहसुबह पुणे से निकलना था. लेकिन अविनाश राजुरे अपनी योजना के अनुसार शाम 4 बजे के आसपास निकला ताकि रास्ते में ही अपनी योजना को आसानी से पूरा कर सके. रात 12 बजे के करीब उसने वैसा ही किया जैसी कि उस की प्लानिंग थी. एक तो वह पुणे से देर शाम निकला था, दूसरे उस ने अपनी मोटरसाइकिल की गति धीमी रखी थी.

रात साढ़े 10 बजे के करीब वह जिला बीड तालुका बेकनूर के थेवल घाट पहुंचा और वहां के गिट्टी निकलवाने वाले मजदूरों के कैंप के पास अपनी मोटरसाइकिल खड़ी कर देखा कि बरसात के कारण काम और औफिस दोनों बंद थे. दूरदूर तक अंधेरा और सन्नाटों के सिवा कुछ नहीं था. ऐसे में उस ने सवित्रा को भरोसे में ले कर कहा कि बरसाती कीड़ोंमकोड़ों से उसे गाड़ी चलाने में परेशानी हो रही है. बाकी रात हम इसी औफिस में बिताएं. सुबह होते ही हम गांव के लिए निकल जाएंगे. जगह और औफिस दोनों सुनसान थे मगर सवित्रा अपनी मौत से अनभिज्ञ अविनाश राजुरे की बातों में आ गई.

14 नवंबर की सुबह लोग जागे, रोड चालू हुआ. सब अपनेअपने कामधंधे में लग गए. लेकिन लगभग 8 घंटों से तड़पतीकराहती मंगल औफिस के पीछे खाड़ी के पास पड़ी सवित्रा पर किसी का ध्यान नहीं गया. यह एक संयोग था कि घाट के एक चरवाहे की गाय उस तरफ चली आई और पूरे घाट में यह खबर आग की तरफ फैल गई. देखते ही देखते घटनास्थल पर भारी भीड़ एकत्र हो गई. इस भीड़ में से किसी ने घटना की जानकारी पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. पुलिस कंट्रोलरूम से खबर मिलते ही थाना नेकनूर के सहायक इंसपेक्टर लक्ष्मण केंद्रे हरकत में आ गए. अपने सीनियर अधिकारियों को मामले से अवगत करा वह तत्काल घटनास्थल पर आ गए.

मामला संगीन था, इसलिए उन्होंने अपने सहायकों के साथ युवती का सरसरी तौर पर निरीक्षण किया और एंबुलैंस बुला कर तुरंत उसे स्थानीय अस्पताल और वहां से फिर प्राथमिक उपचार के बाद बीड़ के जिला अस्पताल भेज दिया. डीसीपी भास्कर सावंत थानाप्रभारी व अपने सहायकों के साथ घटनास्थल का निरीक्षण कर बीड़ जिला अस्पताल पहुंच गए. वहां के डाक्टरों  के बयान के मुताबिक 90 प्रतिशत जख्मी सवित्रा का बयान दर्ज किया था. 10 मिनट के लिए होश में आई सवित्रा ने रात 11 बजे के करीब हमेशा के लिए इस बेरहम दुनिया को अलविदा कह दिया था.

उस 10 मिनट के बयान में सवित्रा ने अपना पूरा परिचय और अपने साथ घटी घटना के सारे रहस्यों को खोल दिया था, जिसे सुन कर पुलिस और वहां मौजूद लोग हैरान रह गए. उस के शव का पंचनामा कर उसे पोस्टमार्टम के लिए भेजने के बाद जांच अधिकारी एपीआई लक्ष्मण केंद्रे ने डीसीपी भास्कर सावंत के निर्देशन में अपनी जांच तेजी से शुरू कर दी. उन्होंने अपने सहायकों की 2 टीमें बना कर एक पुणे शहर तो दूसरी अविनाश राजुरे की तलाश में उस के गांव रवाना कर दी. पुणे गई टीम के हाथ तो कुछ नहीं लगा, लेकिन गांव पहुंची पुलिस को यह जानकारी मिली कि अविनाश राजुरे गांव आया था. उस ने 15 नवंबर को गांव में जम कर दीपावली का त्यौहार मनाया.

दूसरे दिन काम का बहाना कर नांदेड़ के देगलूर अपने एक रिश्तेदार के यहां चला गया था. यह जानकारी मिलते ही बीड़ पुलिस की जांच टीम ने नांदेड़ के थाना देगलूर को अविनाश राजुरे की पूरी जानकारी दे दी. यह जानकारी पाते ही थाना देगलूर पुलिस तुरंत हरकत में आ गई और अविनाश राजुरे को गिरफ्तार कर थाना नेकनूर पुलिस को सौंप दिया. थाना नेकनूर लाए गए अविनाश राजुरे से खुद डीसीपी भास्कर सावंत ने पूछताछ की. पहले तो वह उन्हें गुमराह करता रहा. लेकिन थोड़ी सख्ती के बाद वह टूट गया और फिर उस ने बताया कि वह सवित्रा को मारना नहीं चाहता था मगर फिर मजबूरन उसे यह कदम उठाना पड़ा.

पहले उस ने उसे काफी समझाया. उसे उस के मायके मातापिता या ससुराल भेजने की कोशिश की. मगर वह इस के लिए राजी नहीं हुई. वह उस से शादी के लिए अड़ी थी. ऐसे में वह करता भी तो क्या करता. परिवार के डर से उस ने प्लान बना कर पहले से ही एक बोतल तेजाब खरीद कर अपनी मोटरसाइकिल में रख लिया था. बीड़ के येवलघाट मंगल औफिस के पास गाड़ी खड़ी कर के वह उसे अंदर ले गया. वहां जब सवित्रा को हलकी सी नींद आई तो उस ने उस की छाती पर चढ़ कर उस का गला दबा दिया. इस के बाद अर्द्धबेहोशी की हालत में उठा कर कार्यालय के पीछे खाड़ी के पास ले गया.

वहां उस ने पहले सबूत और पहचान मिटाने के लिए उस के चेहरे पर तेजाब डाला. उस के बाद गाड़ी से पैट्रोल निकाल कर उस के शरीर पर डाल कर आग लगा दी. इतना करने के बाद उसे लगा कि अब उस का बचना मुश्किल है तो वह वहां से अपने गांव आ गया. दूसरे दिन यह बात जब दैनिक अखबारों में छपी और टीवी पर दिखाई गई तो वह डर गया और गांव छोड़ कर बचने के लिए नांदेड़ के देगलूर में स्थित अपने रिश्तेदार के यहां चला गया. डीसीपी भास्कर सावंत और जांच अधिकारी एपीआई लक्ष्मण केंद्रे ने अविनाश रामकिशन राजुरे से विस्तृत पूछताछ करने के बाद उस के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 326ए के तहत मुकदमा दर्ज कर उसे बीड़ जिला मजिस्ट्रैट के सामने पेश कर पुलिस हिरासत में जेल भेज दिया. – Pune News

Alwar News : फैक्ट्री मालिक से बनाया अवैध संबंध फिर कराया पति का कत्ल

Alwar News : कुसुम की घरगृहस्थी जब ठीकठाक चल रही थी तो उसे अपनी फैक्ट्री के मालिक नरेश कुमार सैनी के साथ गुलछर्रे उड़ाने की क्या जरूरत थी. ऐसा कर के उस ने अपने ही सुहाग को ऐसी मुसीबत में डाला कि…

उस दिन 15 फरवरी, 2021 सोमवार का दिन था. राजस्थान के अलवर के थाना एमआईए के थानाप्रभारी शिवराम को सुबहसुबह फोन द्वारा सूचना मिली कि कल्पतरू गोदाम, हिंद कैमिकल फैक्ट्री के पास एक युवक की खून से लथपथ लाश पड़ी है. सूचना मिलते ही एमआईए थानाप्रभारी शिवराम पुलिस टीम के साथ तत्काल घटनास्थल पर जा पहुंचे. घटनास्थल पर खून से लथपथ एक युवक की लाश पड़ी थी. मृतक के सिर, गरदन व छाती पर धारदार हथियार के गहरे चोट के निशान थे. थानाप्रभारी ने वहां मौजूद लोगों से मृतक की शिनाख्त करने को कहा. मगर कोई उस की पहचान नहीं कर सका. थानाप्रभारी ने इस घटना की खबर उच्चाधिकारियों को दे दी.

खबर पा कर सीओ ओमप्रकाश मीणा, एएसपी सरिता सिंह और एसपी तेजस्विनी गौतम भी घटनास्थल पर आ पहुंचीं. पुलिस अधिकारियों ने एफएसएल और डौग स्क्वायड को भी मौके पर बुला लिया. मृतक की तलाशी में ऐसी कोई चीज बरामद नहीं हुई, जिस से उस की शिनाख्त होती. एफएसएल टीम ने अपना काम पूरा किया. तब मृतक के शव को पोस्टमार्टम के लिए राजीव गांधी सामुदायिक केंद्र की मोर्चरी में ले जाया गया. घटना की खबर आसपास के गांवों में फैल गई. खबर पा कर देसूला खोड़ निवासी रणजीत सिंह ग्रामीणों के साथ अस्पताल पहुंचे, क्योंकि उन का 28 साल का बेटा सोहन सिंह शेखावत कल से लापता था.

मोर्चरी ले जा कर पुलिस ने जैसे ही उन्हें लाश दिखाई तो उन की चीख निकल गई. क्योंकि खून से सनी वह लाश उन के बेटे की ही थी. बेटे की लाश देख कर रणजीत सिंह गश खा कर गिर पड़े. गांव वालों ने मुश्किल से उन्हें संभाला और सांत्वना दे कर चुप कराया. लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद थानाप्रभारी ने रणजीत सिंह की तरफ से हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया. कुछ ही देर में सैकड़ों की संख्या में लोग थाने के बाहर और अस्पताल में जमा हो गए. सभी आक्रोशित थे. परिजनों और गांव वालों ने पहले पोस्टमार्टम कराने और फिर शव उठाने से इनकार कर दिया. उन की मांग थी कि जब तक हत्यारे गिरफ्तार नहीं होते, वे शव नहीं उठाएंगे.

पुलिस अधिकारियों ने ग्रामीणों और परिजनों को काफी समझाया और आश्वासन दिया कि हत्यारे बहुत जल्द पकड़ लिए जाएंगे. तब परिजन मृतक का शव लेने को राजी हुए. पोस्टमार्टम के बाद मृतक का शव ले कर उस के परिजन देर शाम अपने गांव लौट आए. वहां उस का अंतिम संस्कार कर दिया गया. एसपी ने सीओ ओमप्रकाश और थानाप्रभारी शिवराम को निर्देश दे कर तत्काल हत्याकांड का परदाफाश कर हत्यारों की गिरफ्तारी के निर्देश दिए. थानाप्रभारी ने साइबर सेल की मदद से हत्याकांड के मुलजिमों की तलाश शुरू की. जांच के दौरान पुलिस टीम को पता चला कि मृतक सोहन सिंह मेरठ, उत्तर प्रदेश की एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में सुपरवाइजर था.

वह मेरठ से एक दिन पहले ही देसूला खोड़ अपने घर आया था. सोहन सिंह 2 महीने बाद मेरठ से घर लौटा था. इसलिए दिन भर वह घर पर ही था. 14 फरवरी, 2021 वैलेंटाइन डे की शाम को करीब 7 बजे उस के मोबाइल पर किसी का फोन आया. सोहन सिंह फोन पर बात करने के बाद पत्नी कुसुम उर्फ कुमकुम चौहान से बोला, ‘‘कुसुम,मैं एक दोस्त से मिलने जा रहा हूं. 10-15 मिनट में वापस आता हूं.’’

यह कह कर वह घर से चला गया. जब वह वापस नहीं लौटा तो कुसुम को चिंता हुई. फिर सोचा कि दोस्त के साथ गपशप कर रहे होंगे. सोहन सिंह रात भर नहीं आया तब कुसुम ने अपनी ससुराल फोन कर के कहा, ‘‘कल 7 बजे किसी का फोन आने पर सोहन 10-15 मिनट में आने को कह कर गए थे. लेकिन वह अब तक नहीं लौटे. मुझे डर लग रहा है कि उन के साथ कहीं कोई अनहोनी न हो गई हो.’’

सुन कर ससुराल वालों ने कहा, ‘‘चिंता मत करो, दोस्त के पास ही रुक गया होगा. अभी फोन करते हैं कि वह है कहां.’’

इस के बाद सोहन सिंह के फोन पर उस के पिता रणजीत सिंह वगैरह ने फोन किया मगर उस का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ था. ऐसे में उन्हें चिंता होने लगी थी. वह कुछ करते, उस से पहले ही उन के बेटे की लाश मिलने की खबर आ पहुंची थी. इस के बाद रणजीत सिंह गांव से शहर की ओर भागे आए थे. पुलिस टीम ने सोहन सिंह की पत्नी, आसपड़ोस वालों, मृतक के दोस्तों और भी कई लोगों से पूछताछ की. अपने मुखबिरों को भी लगा दिया. साइबर सेल ने मृतक के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. पुलिस टीम को पूछताछ में पता चला कि 14 फरवरी की रात सोहन सिंह शेखावत को गुर्जर कालोनी, बख्तल की चौकी निवासी नरेश सैनी के साथ देर रात तक देखा गया था.

पुलिस टीम ने तब नरेश सैनी को हिरासत में ले कर सख्ती से पूछताछ की. नरेश सैनी पहले तो टालमटोल करता रहा लेकिन जब पुलिस ने सख्त रुख अपनाया तो वह टूट गया. उस ने सोहन सिंह हत्याकांड का राज उगल दिया. नरेश सैनी ने पुलिस को बताया कि मृतक की पत्नी कुसुम उर्फ कुमकुम उस की फैक्ट्री दीप कैम इंडस्ट्री में काम करती थी, जिस से उस के अवैध संबंध हो गए. वे दोनों सोहन सिंह को रास्ते से हटा कर अपना निजी जीवन जीना चाहते थे.

मृतक काफी समय से मेरठ में काम करता था और कभीकभार घर आता था. 14 फरवरी को पहले उसे शराब पिलाई और फिर हत्या कर दी. नरेश ने सोहन की हत्या अपने छोटे भाई नवीन उर्फ कपिल के सहयोग से की थी. तब पुलिस टीम ने मृतक की बीवी कुसुम और नवीन उर्फ कपिल सैनी को भी हिरासत में ले लिया. पूछताछ में इन दोनों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. पुलिस ने सोहन सिंह की हत्या में प्रयुक्त नरेश सैनी की डस्टर कार, खून सना चाकू, लकड़ी का डंडा और मृतक का मोबाइल फोन भी उन की निशानदेही पर बरामद कर लिया. चाकू और मोबाइल झाडि़यों से बरामद किया गया. वहीं डंडा डस्टर कार से बरामद किया गया था.

एसपी तेजस्विनी गौतम, एएसपी सरिता सिंह, सीओ ओमप्रकाश मीणा ने सोहन सिंह के हत्यारोपियों से पूछताछ कर के हत्याकांड का 17 फरवरी को खुलासा कर दिया. अलवर एसपी तेजस्विनी ने प्रैसवार्ता कर के हत्याकांड का खुलासा किया. सोहन सिंह की हत्या अवैध संबंधों के चलते की गई. मृतक की पत्नी और उस का प्रेमी नरेश अपने बीच में किसी तीसरे को रोड़ा नहीं बनने देना चाहते थे. वे अपना जीवन अपने हिसाब से खुल कर जीना चाहते थे. ऐसे में वैलेंटाइन डे पर जब सोहन सिंह मेरठ से घर आया तो वह पत्नी कुसुम और उस के प्रेमी नरेश की आंखों में ऐसा खटका कि उसे वैलेंटाइन डे पर मौत का तोहफा दे दिया. सोहनसिंह शेखावत हत्याकांड की जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार से है—

राजस्थान के अलवर जिले की बानसूर तहसील के गांव गिरुड़ी के रहने वाले रणजीत सिंह शेखावत का बेटा था सोहन सिंह. सोहन ने पढ़ाई के बाद प्राइवेट नौकरी करनी शुरू कर दी. वह गांव से अलवर शहर आ गया. वहीं पर कामधंधा करने लगा. बेटा जब चार पैसे कमाने लगा तो रणजीत ने चौहान परिवार में उस की शादी कर दी. कुसुम 10वीं पास सुंदर लड़की थी. उस की शादी सोहन सिंह से हो गई. खूबसूरत गोरे रंग की बीवी पा कर सोहन सिंह अपने भाग्य पर इतराता था. सोहन सरल स्वभाव का शरीफ व्यक्ति था. कई दिनों तक बीवी कुसुम को गांव गिरुड़ी में रखने के बाद वह उसे अपने साथ देसूला खोड़, थाना एमआईए ले आया.

देसूला खोड़ में प्लौट ले कर सोहन ने मकान बना लिया. वह अपनी बीवी कुसुम के साथ वहीं रहने लगा. आज से करीब 6 साल पहले कुसुम ने एक बेटे को जन्म दिया. सोहन अपनी बीवी एवं बच्चे से बहुत प्यार करता था. वह दिन में काम पर जाता था रात में ड्यूटी से लौट आता था. इस दौरान सब कुछ ठीकठाक था. कुसुम के आसपास के घरों की महिलाएं दीप कैम इंडस्ट्री में लेबर के रूप में काम करने जाती थीं. कुसुम घर में दिन भर अकेली रह कर बोर हो  जाती थी. उस ने भी पड़ोस की महिलाओं के साथ काम करने की इच्छा पति से जताई.

पति ने पहले तो मना कर दिया मगर कुसुम के बारबार यह कहने पर कि वह दिन भर अकेली घर में बोर हो जाती है. फैक्ट्री में काम करने से उस का टाइम पास भी हो जाएगा और घर खर्च भी आसानी से चलेगा. तब सोहन सिंह मान गया. कुसुम ने दीप कैम इंडस्ट्री में लेबर के रूप में काम करना शुरू कर दिया. वह अपने बेटे को साथ ही ले जाती थी काम पर. दीप कैम इंडस्ट्री एमआईए इलाके में ही थी. यह इंडस्ट्री नरेश कुमार सैनी ने अपने एक दोस्त के साथ पार्टनरशिप में ली थी. नरेश कुमार सैनी ही इस की देखरेख करता था. कह सकते हैं कि वही इस का मालिक था. कुसुम को नरेश सैनी ने देखा तो वह उस की खूबसूरती पर मर मिटा. वह कुसुम के आगेपीछे भंवरे की तरह मंडराने लगा.

इसी दौरान सोहन सिंह जिस कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम करता था, उसे सड़क बनाने का ठेका मेरठ में मिल गया. इस के बाद सोहन सिंह मेरठ चला आया. वह वहां पर सुपरवाइजर के पद पर काम करता था. छुट्टी मिलने पर सोहन अपने बीवीबच्चों से मिलने अलवर आता रहता था. छुट्टी पूरी होने पर 5-7 दिन बाद वापस मेरठ चला जाता था. नरेश ने जब से कुसुम को अपनी फैक्ट्री में देखा था, वह उस पर मरमिटा था. नरेश उस के इर्दगिर्द मंडराते हुए उस के सौंदर्य की तारीफें करता रहता था. कहते हैं कि औरत को अपनी तारीफ अच्छी लगती है. यही कुसुम के साथ हुआ.

वह अपने सौंदर्य की तारीफ के पुल बांधने वाले नरेश की तरफ खिंचती चली गई. नरेश उस से काम भी कम करवाता था. कभी छुट्टी लेती तो पगार भी नहीं काटता था. इस तरह वह नरेश को अपना समझने लगी और ऐसे में जब एक दिन नरेश ने मौका मिलने पर कुसुम को बांहों में भरा तो वह चुप रही. कुसुम की मौन स्वीकृति ने नरेश का उत्साह बढ़ा दिया. उस दिन दोनों तनमन से एक हो गए. एक बार वासना के दलदल में गिरे तो फिर धंसते ही चले गए. दोनों के बीच अवैध संबंध बने तो नरेश ने कुसुम को लेबर काम से हटा कर एकाउंटेंट बना दिया. कुसुम 10वीं पास थी. उस ने उस की तनख्वाह भी बढ़ा दी.

सोहन सिंह को जब बीवी ने बताया कि वह एकाउंटेंट बन गई है तो वह बहुत खुश हुआ. मगर उसे यह पता नहीं था कि उस की बीवी ने तन सौंप कर यह पद हासिल किया है. इसी दौरान करीब डेढ़ साल पहले कुसुम के यहां एक बेटी हुई. वहीं नरेश की भी अपने समाज में शादी हो गई. नरेश शादीशुदा हो कर कुसुम से संबंध जारी रखे था. वह अपनी बीवी से ज्यादा कुसुम से प्यार करता था. कुसुम अपने पति से विश्वासघात कर गैरमर्द की बांहों में झूल रही थी. समय के साथ उन दोनों ने तय कर लिया कि वे आजीवन साथ रहेंगे. उन के बीच में जो आएगा वह जिंदा नहीं बचेगा.

पिछले 2 महीने से सोहन सिंह मेरठ में था. इस दौरान नरेश और कुसुम ने तय कर लिया कि उन के बीच सोहन सिंह नाम का जो कांटा है, उस को देसूला खोड़ आने पर हमेशा के लिए हटा दिया जाएगा. सोहन सिंह 2 महीने बाद देसूला आने वाला था. नरेश के एक बेटी है जो इस समय करीब 4 महीने की है. सोहन सिंह मेरठ से देसूला आया तो इस की सूचना कुसुम ने नरेश को दे दी. नरेश ने 14 फरवरी, 2021 वैलेंटाइन डे की शाम करीब 7 बजे सोहन को फोन कर बुलाया. सोहन सिंह ने पत्नी कुसुम से 10-15 मिनट में आने को कहा और नरेश के पास चला गया. सोहन जब नरेश के पास पहुंचा तब वह अपनी डस्टर कार ले कर खड़ा था. नरेश ने कहा, ‘‘सोहनसिंह जी आप को यहीं फैक्ट्री में अच्छी नौकरी दिला देते हैं.’’

‘‘यह तो आप की मेहरबानी होगी. वैसे अगर यहां नौकरी मिल जाए तो कौन बीवीबच्चों से दूर रहना चाहेगा.’’ सोहन बोला.

तब नरेश ने झांसा दिया कि आओ बात करते हैं. सोहन सिंह डस्टर कार में बैठ गया. नरेश कार में बिठा कर सोहन सिंह को तिजारा फाटक के पास शादी समारोह में ले गया. यहां सोहन सिंह को शराब में धुत कर दिया.

इस के बाद नरेश ने शिव कालोनी से शादी समारोह में से अपने छोटे भाई नवीन उर्फ कपिल सैनी को साथ लिया. इस के बाद एमआईए फैक्ट्री की तरफ गाड़ी रोक कर सोहन सिंह को और शराब पिलाई. उसी समय नरेश ने अपने सगे भाई नवीन के साथ मिल कर सोहन की चाकू व लाठी से हमला कर हत्या कर दी. सोहन सिंह की गरदन पर नवीन ने चाकू से वार किए. फिर नरेश ने सोहन के सिर पर लाठी से वार किए. शराब के नशे में धुत सोहन अपना बचाव भी नहीं कर सका. वह थोड़ी देर में ही तड़प कर मर गया. इस के बाद दोनों भाइयों ने लाश कल्पतरू गोदाम के पास फेंक दी. वहां से जाते वक्त नवीन ने चाकू और मृतक का मोबाइल झाडि़यों में फेंक दिया.

जेब से आधारकार्ड और पर्स भी ले लिया. डंडे को कार में रख कर अपने घर ले गए. आरोपियों की निशानदेही पर पुलिस ने चाकू, डंडा और मोबाइल बरामद कर लिए. हत्या में प्रयोग की गई डस्टर कार भी जब्त कर ली. पुलिस ने पूछताछ के बाद कुसुम, उस के प्रेमी नरेश कुमार सैनी और नवीन उर्फ कपिल सैनी को कोर्ट में पेश कर के न्यायिक हिरासत में भेज दिया – Alwar News

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अधूरा इश्क बना मौत की वजह : प्रेमी कपल ने पेड़ से लटक कर दी जान

Love Story : विकास और आरती एक ही कुनबे के भाईबहन थे, इस के बावजूद वे रिश्ते को दरकिनार करते हुए शादी करना चाहते थे. लेकिन दोनों के घर वालों ने उन की मांग सिरे से ठुकरा दी तो…

कानपुर शहर से करीब 40 किलोमीटर दूर पश्चिम में थाना बिल्हौर के तहत एक गांव है  अलौलापुर. ज्ञान सिंह कमल इसी गांव के रहने वाले थे. उन के परिवार में पत्नी गीता कमल के अलावा 2 बेटे विकास, आकाश तथा 2 बेटियां शोभा व विभा थीं. ज्ञान सिंह कमल किसान थे. उन के पास 10 बीघा उपजाऊ भूमि थी, जिस में अच्छी पैदावार होती थी. कृषि उपज से ही वह परिवार का भरणपोषण करते थे. ज्ञान सिंह का बेटा विकास अपने भाईबहनों में सब से बड़ा था. इंटरमीडिएट पास करने के बाद उस ने नौकरी पाने के लिए दौड़धूप की. लेकिन जब नौकरी नहीं मिली तो वह पिता के कृषि कार्य में हाथ बंटाने लगा.

उस ने ट्रैक्टर चलाना सीख लिया था. ट्रैक्टर से वह अपनी खेती तो करता ही था, दूसरे काम कर वह अतिरिक्त आमदनी भी करता था. विकास किसानी का काम जरूर करता था, लेकिन ठाटबाट से रहता था. ज्ञान सिंह के घर से चंद कदम दूर सुरेश कमल का घर था. उस के परिवार में पत्नी ममता के अलावा 2 बेटियां आरती, प्रीति तथा एक बेटा नंदू था. सुरेश और ज्ञान सिंह एक ही कुनबे के थे और रिश्ते में भाईभाई थे. सुरेश भी किसान था. उस की आर्थिक स्थिति कमजोर थी. लेकिन दोनों में खूब पटती थी. दोनों का एकदूसरे के घर आनाजाना लगा रहता था और सुखदुख में एकदूसरे का साथ देते थे.

दोनों परिवारोें के बच्चों का बचपन भी साथसाथ खेलते बीता था. विकास को  बचपन से ही चाचा सुरेश कमल की बेटी आरती से बहुत लगाव था. आरती भी विकास के साथ ज्यादा खेलती थी. दोनों के इस लगाव पर घर वालों ने कभी ध्यान नहीं दिया, क्योंकि बच्चे अकसर इसी तरह खेलते हैं. बचपन के दिन गुजर जाने के बाद विकास और आरती ने जवानी की दहलीज पर कदम रखा तो उन के बीच का लगाव पहले की ही तरह बना रहा. लेकिन उन के नजरिए में बदलाव जरूर आ गया था. अब उन की चंचलता खामोशी के साथ दूसरा मुकाम अख्तियार कर चुकी थी. उन के दिल में प्यार के बीज अंकुरित हो चुके थे. इसलिए अब जब भी उन्हें मौका मिलता, वे प्यार भरी बातें करते.

आरती की आंखों के सामने जब भी विकास होता, वह उसी को देखा करती. उस पल उस के चेहरे पर जो खुशी होती थी, कोई भी देख कर भांप सकता था कि दोनों के बीच जरूर कुछ चल रहा है. विकास को भी उस का इस तरह से देखना भाता था, क्योंकि उस का दिल भी तो आरती के प्यार का मरीज था. दोनों की आंखों में एकदूसरे के लिए प्यार साफ झलकता था. वे इस बात को महसूस भी करते थे. लेकिन दिल की बात एकदूसरे से कह नहीं पा रहे थे. प्यार का किया इजहार एक दिन विकास आरती के घर पहुंचा, तो उस समय वह घर में अकेली थी. आरती को देखते ही उस का दिल तेजी से धड़क उठा.

उसे लगा कि दिल की बात कहने का उस के लिए यह सब से अच्छा मौका है. आरती उसे कमरे में बिठा कर फटाफट 2 कप चाय बना लाई. चाय की चुस्कियों के बीच दोनों बातें करने लगे. अचानक विकास गंभीर हो कर बोला, ‘‘आरती मुझे तुम से एक बात कहनी है.’’

‘‘कहो, क्या कहना चाहते हो?’’ आरती भी गंभीर हो गई.

‘‘आरती, मैं तुम से प्यार करता हूं. यह प्यार आज का नहीं, बरसों का है, जो आज किसी तरह हिम्मत जुटा कर कह पाया हूं. ये आंखें सिर्फ तुम्हें देखना पसंद करती हैं. मैं तुम्हारे प्यार में इतना दीवाना हो चुका हूं कि अगर तुम ने मेरा प्यार स्वीकार नहीं किया, तो मैं पागल हो जाऊंगा.’’

आखिर विकास ने दिल की बात कह ही दी, जिसे सुन कर आरती का चेहरा शरम से लाल हो गया, पलकें झुक गईं. होंठों ने कुछ कहना चाहा, लेकिन जुबान ने साथ नहीं दिया. आरती की हालत देख कर विकास बोला, ‘‘कुछ तो कहो आरती, क्या मैं तुम से प्यार करने लायक नहीं हूं.’’

‘‘कहना जरूरी है क्या? तुम खुद को दीवाना कहते हो और मेरी आंखों में बसी चाहत को नहीं देख सकते. जो हाल तुम्हारा है, वही मेरा भी है. मैं ने भी तुम्हें बहुत पहले से दिल में बसा लिया है. डरती थी कि कहीं यह मेरा एकतरफा प्यार न हो.’’ आरती ने भी चाहत का इजहार कर दिया. आरती की बात सुन कर विकास खुशी से झूम उठा. उसे लगा कि सारी दुनिया की दौलत, आरती के रूप में उस की झोली में आ कर समा गई है. दोनों के बीच प्यार का इजहार हो गया तो फिर एकांत में भी मिलनेजुलने का सिलसिला शुरू हो गया. दोनों गांव के बाहर सुनसान जगह पर मिलने लगे.

वे एकदूसरे पर जम कर प्यार बरसाते और हमेशा एकदूसरे का साथ निभाने की कसमें खाते. जैसेजैसे समय बीतता गया, दोनों की चाहत बढ़ती और प्रगाढ़ होती गई. घर वालों को उन पर किसी तरह का शक इसलिए नहीं हुआ, क्योंकि दोनों पारिवारिक रिश्ते में भाईबहन थे. इसी रिश्ते की आड़ में वे घर वालों को बेवकूफ बनाते रहे. उन के बीच जो प्यार उपजा था, वह भाईबहन के रिश्ते को भूल गया था. मर्यादाओं में रहते हुए वे जीवन के हसीन ख्वाब देखने लगे थे. लेकिन उन के संबंध ज्यादा दिनों तक छिपे न रह सके. एक दिन आरती की मां ममता ने उस की और विकास की बातें सुन लीं.

इस के बाद वह आरती और विकास के ज्यादा मिलने का मतलब समझ गई. शाम को उस ने इस बारे में बेटी से पूछा तो उस ने मुसकराते हुए कह दिया कि उस का विकास से इस तरह का कोई संबंध नहीं है. ममता ने भी जमाना देखा था. वह समझ गई कि बेटी झूठ बोल रही है. इसलिए उस ने उस से सख्ती से पूछताछ की तो आरती को सच उगलना ही पड़ा. उस ने डरतेडरते कह दिया कि वह विकास से प्यार करती है.

इस के बाद ममता का गुस्सा फट पड़ा. वह आरती की पिटाई करते हुए बोली, ‘‘कुलच्छिनी, तुझे शर्म नहीं आई. जानती है, वह तेरा क्या लगता है? कम से कम अपने रिश्ते का तो लिहाज किया होता.’’

‘‘मम्मी, वह कोई सगा भाई थोड़े ही है और जब प्यार होता है, तो वह रिश्ता नहीं देखता. हम दोनों ही एकदूसरे को चाहते हैं.’’ आरती ने रोते हुए कहा.

‘‘अच्छा, बहुत जुबान चल रही है, अभी खींचती हूं तेरी जुबान,’’ कहते हुए ममता ने उस पर लात और थप्पड़ों की बरसात कर दी. लेकिन आरती यही कहती रही कि चाहे वह उसे कितना भी मार ले, वह विकास को नहीं छोड़ेगी. आरती की पिटाई करतेकरते जब ममता हांफने लगी तो एक ओर बैठ कर उसे भलाबुरा कहने लगी. साथ ही उस ने धमकी दी, ‘‘आने दे तेरे बाप को, वही तेरी ठीक से खबर लेंगे. बहुत उड़ने लगी है न तू. अब तेरे पर कतरने ही पड़ेंगे.’’

आरती सुबकती रही. शाम को जब सुरेश आया तो ममता ने सारी बात उसे बता दी. सुरेश को गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन उस ने समझदारी से काम लिया. उस ने उसे दूसरे कमरे में ले जा कर समझाया, उसे भाईबहन के रिश्ते की गहराई बताते हुए कहा कि उस के इस कदम से गांव में रहना दूभर हो जाएगा. किसी के सामने वह सिर तक नहीं उठा सकेगा. पिता के समझाने का हुआ असर पिता की बातें आरती को अच्छी तो लगीं, लेकिन उस के सामने समस्या यह थी कि वह विकास से उस के साथ जीनेमरने का वादा कर चुकी थी. अब उस के सामने एक ओर पिता की इज्जत थी तो दूसरी ओर वह प्यार था, जिस के लिए वह कुछ भी करने का वादा कर चुकी थी.

अंत में वह इस नतीजे पर पहुंची कि वह घर वालों की इज्जत के लिए अपने प्यार को एक सपने की तरह भुलाने की कोशिश करेगी. इसलिए उस ने पिता से वादा कर लिया कि अब वह विकास से नहीं मिलेगी. यह बात करीब एक साल पहले की है. आरती की पिटाई वाली बात विकास को पता चल चुकी थी. उस के मन में इस बात का डर था कि कहीं चाचा सुरेश यह शिकायत उस की मां से न कर दें. इसी डर की वजह से उस ने आरती के घर जाना बंद कर दिया. दूसरी ओर आरती उसे भुलाने की कोशिश करने लगी थी. इसलिए उस ने भी विकास की देहरी नहीं लांघी.

लेकिन यह सिलसिला ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सका. चूंकि दोनों लंबे समय से एकदूसरे को प्यार करते आ रहे थे, इसलिए उन की यादें जेहन में घूम रही थीं, जो उन्हें विचलित कर रही थीं. विकास का मन आरती से मिलने को विचलित था. लेकिन समस्या यह थी कि वह उस से कैसे मिले?

आरती का व्यवहार देख कर उस के घर वालों ने यही समझा कि वह विकास को भूल चुकी है. इसलिए उन्होंने उस पर निगरानी बंद कर दी. एक दिन आरती घर में अकेली थी तो विकास उस से मिलने पहुंच गया. अचानक घर में विकास को देख कर आरती बोली, ‘‘तुम यहां क्यों आ गए? कोई आ गया तो मुसीबत खड़ी हो जाएगी.’’

‘‘मैं तुम से सिर्फ यह पूछने आया हूं कि तुम मुझे इतनी जल्दी भूल कैसे गई?’’ विकास ने पूछा.

‘‘भूली नही हूं, मजबूरी है. मेरी जगह तुम होते तो तुम भी यही करते.’’ आरती ने कहा.

आरती की इस बात से विकास खुश हो गया और उस ने आरती को झट से अपने गले लगा कर कहा, ‘‘तुम चिंता मत करो, मैं मुलाकात का कोई न कोई रास्ता निकाल लूंगा.’’

प्रेमी से मिलने के बाद आरती अपने पिता से किए गए वादे को भूल गई. वह भी विकास से खूब बातें करना चाहती थी. लेकिन उसे इस बात का डर था कि कहीं उस की मां या पिता न आ जाएं. इसलिए उस ने विकास से कहा, ‘‘विकास, इस से पहले कि यहां कोई आ जाए, तुम चले जाओ.’’

विकास वहां से चला गया. प्रेमिका से मिल कर उसे बड़ा सुकून मिला था. 2-3 दिन बाद उस ने एक मोबाइल फोन खरीद कर आरती को दे दिया. इस के बाद आरती चोरीछिपे विकास से बातें करने लगी. इस से उन के मिलने में आसानी हो गई. इस तरह उन का प्यार पहले की तरह ही चलने लगा. लेकिन उन का चोरीछिपे मिलनेमिलाने का यह खेल ज्यादा दिनों तक नहीं चल सका. एक रात अचानक आरती की मां ममता की आंखें खुलीं तो उस ने आरती को चारपाई से गायब पाया. बेटी की तलाश में वह छत पर पहुंची तो वह वहां उसे कुरसी पर बैठी देख कर चौंकी.

मां की आहट पाते ही आरती ने प्रेमी से चल रही बातचीत बंद कर दी और मोबाइल फोन छिपाने लगी. ममता ने उसे कुछ छिपाते देख तो लिया था, लेकिन उसे यह पता नहीं था कि उस ने क्या छिपाया है. उस ने आरती से इतनी रात को छत पर अकेली बैठने की वजह पूछी, तो वह सकपका गई. तब उस ने पूछा, ‘‘तूने अभी क्या छिपाया है, दिखा?’’

‘‘कुछ नहीं छिपाया है मम्मी.’’ आरती घबरा कर बोली.

ममता ने कोई चीज रखते हुए देखा था. बेटी की बात सुन कर ममता को लगा कि वह झूठ बोल रही है. उस ने आरती के सीने पर हाथ डाला, तो वहां मोबाइल देख कर पूछा, ‘‘यह किस का मोबाइल है और किस से बातें कर रही थी?’’

‘‘किसी से नहीं मम्मी.’’ आरती सकपका कर बोली.

बेटी के झूठ बोलने पर ममता समझ गई कि वह विकास से ही बातें कर रही थी. इस का मतलब वह जरूर हमारी आंखों में धूल झोंक कर उस से लगातार मिल रही है. ममता ने रात में हंगामा करना उचित नहीं समझा. सुबह उस ने सारी सच्चाई पति को बता दी. सुरेश कमल समझ गया कि बेटी को कितना भी समझा ले, वह विकास से मिलना नहीं छोड़ेगी. इस से पहले कि समाज में उन की बदनामी हो, उस ने उस के हाथ पीले करने का फैसला कर लिया. आरती की मां ममता ने भी अपनी जेठानी गीता से उस के बेटे विकास की शिकायत कर दी. ममता की शिकायत पर गीता को बेटे पर बहुत गुस्सा आया. उस ने ममता को भरोसा दिया कि वह विकास को समझाएगी.

गीता ने विकास से इस बाबत बात की तो डरने के बजाय उस ने बेबाक कह दिया कि वह आरती से प्यार करता है और शादी भी उसी से करेगा. विकास की दोटूक बात सुन कर गीता को आश्चर्य हुआ. तब गुस्से में उस ने उसे 2-3 थप्पड़ जड़ दिए और बोली, ‘‘तुझे अपनी बहन के साथ शादी करने की बात कहते हुए शर्म नहीं आई?’’

लेकिन विकास अपनी जिद पर अड़ा रहा. मां के गुस्से का उस पर कोई असर न पड़ा. इधर सुरेश कमल अपनी इज्जत बचाने के लिए बेटी के लिए लड़का खोजने लगा तो आरती घबरा उठी. उस ने एक रोज किसी तरह विकास से मुलाकात की और बताया कि उस के घर वाले जल्द ही उस का रिश्ता तय करने वाले हैं. लेकिन वह किसी और की दुलहन बनने के बजाय मौत को गले लगाना पसंद करेगी. उस ने जो वादा किया है, वह जरूर निभाएगी. आरती की शादी की बात सुन कर विकास भी घबरा गया. उस ने कहा, ‘‘आरती, तुम्हारी जुदाई मैं बरदाश्त नहीं कर पाऊंगा. फिर तो एक ही रास्ता बचा है.’’

‘‘वह क्या?’’ आरती ने पूछा.

‘‘यही कि हम साथ जीनेमरने का वादा पूरा करे.’’

‘‘शायद, तुम ठीक कहते हो विकास.’’ इस के बाद दोनों ने एक साथ आत्महत्या करने का निश्चय किया. प्यार की विदाई. 3 जनवरी, 2021 की रात 10 बजे जब घर के लोग सो गए, तब आरती ने विकास को फोन कर के बात की. विकास ने उसे बताया कि वह घर से निकल रहा है. वह गांव के बाहर अनिल के बाग में उस का इंतजार करेगा. जितनी जल्दी हो सके आ जाए. आरती ने कमरे में सो रहे अपने मांबाप पर एक नजर डाली. फिर चुपके से दरवाजे की कुंडी खोल कर घर के बाहर आ गई और तेज कदमों से अनिल के बाग की ओर चल पड़ी.

कुछ देर बाद वह बगीचे में पहुंची तो आम के पेड़ के नीचे विकास उस का इंतजार कर रहा था. पेड़ के नीचे कुछ देर तक दोनों बातें करते रहे. उस के बाद विकास ने पेड़ की डाल में रस्सी बांध कर 2 फंदे बनाए. फिर एकएक फंदा गले में डाल कर दोनों फांसी के फंदे पर झूल गए. इधर सुबह ममता की आंखें खुलीं तो आरती को चारपाई पर न पा कर उस का माथा ठनका. उस ने घरबाहर आरती की खोज की लेकिन कुछ पता न चला. उस ने सोचा कहीं विकास आरती को बहलाफुसला कर भगा तो नहीं ले गया. वह विकास के घर जा पहुंची. विकास भी घर से गायब था. अब दोनों के घर वाले विकास और आरती की खोज करने लगे.

ज्ञान सिंह व सुरेश अपने साथियों के साथ दोनों की तलाश में गांव के बाहर अनिल के बाग में पहुंचे तो उन के मुंह से चीख निकल गई. विकास और आरती पेड़ की डाल से बंधी रस्सी के सहारे फांसी के फंदे पर झूल रहे थे. इस के बाद तो पूरे गांव में सनसनी फैल गई. देखते ही देखते सैकड़ों लोग घटनास्थल पर आ गए. ममता और गीता अपने बच्चों को फांसी के फंदे पर झूलता देख कर फफक कर रो पड़ीं. इसी बीच गांव के किसी युवक ने थाना बिल्हौर पुलिस को सूचना दे दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी प्रेम नारायण बाजपेई घटनास्थल आ गए. उन की सूचना पर एसपी (पश्चिम) अनिल कुमार तथा सीओ अशोक कुमार सिंह भी आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया तथा दोनों के घर वालों से पूछताछ की. मृतक विकास की उम्र 22 वर्ष के आसपास थी तथा मृतका आरती की उम्र 20 साल थी. निरीक्षण के बाद दोनों शवों को फांसी के फंदे से उतार कर पोस्टमार्टम के लिए हैलट अस्पताल भिजवा दिया गया. थानाप्रभारी प्रेम नारायण बाजपेई को पूछताछ से पता चला कि विकास और आरती प्रेमीप्रेमिका थे. घर वालों को उन का रिश्ता मंजूर न था. अत: दोनों ने आत्महत्या कर ली.

थानाप्रभारी बाजपेई ने आत्महत्या प्रकरण को थाने में दर्ज तो किया, लेकिन दोनों की मौत हो जाने से प्रकरण को बंद कर दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Love Crime News : शक्की बॉयफ्रेंड ने गर्लफ्रेंड को मारी गोली

Love Crime News : मनोज जुनूनी और शक्की था. इसी के चलते उस ने अपने प्यार को तो मिटा ही दिया, अपनी जिंदगी भी बरबाद कर ली. अगर प्रतिभाशाली मेघा समय रहते उस की हरकतों से उसे समझ पाती तो…

उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले का एक बड़ा कस्बा है गजरौला. यह कस्बा मुरादाबाद से दिल्ली जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग-24 पर स्थित है. गजरौला की पहचान एक औद्योगिक नगर के रूप में भी है क्योंकि यहां पर कई बड़े कारखाने और फैक्ट्रियां हैं. मेघा चौधरी इसी कस्बे की अवंतिका कालोनी में सुधारानी के मकान में रहती थी. मेघा चौधरी गजरौला थाने में कांस्टेबल थी. 31 जनवरी, 2021 की शाम करीब 6 बजे की बात है. मेघा चौधरी किचन में खाना बनाने की तैयारी कर रही थी, तभी मनोज ढल उस के पास आया. मनोज उस का प्रेमी था.

वह भी उत्तर प्रदेश पुलिस में कांस्टेबल था और उस की पोस्टिंग अमरोहा जिले के सैदनगली थाने में थी. मनोज अकसर मेघा चौधरी से मिलने आता रहता था. उस के आने के बाद उन दोनों के बीच कुछ देर तक बातचीत चलती रही. इसी दौरान उन की बातों में इतना तीखापन आ गया कि आवाजें कमरे से बाहर तक जाने लगीं. लग रहा था जैसे उन के बीच झगड़ा हो रहा हो. उसी समय मेघा के कमरे से गोली चलने की 2 आवाजें आईं. बराबर के कमरे में मेघा की दोस्त महिला कांस्टेबल प्रिया भी किराए पर रहती थी. गोली की आवाज सुनते ही प्रिया तुरंत मेघा के कमरे में पहुंची. गोली की आवाज सुन कर  मकान मालकिन भी वहां आ गई थी.

उन लोगों ने देखा तो वहां का दृश्य देख कर हक्कीबक्की रह गईं. कमरे में मेघा और मनोज लहूलुहान पड़े थे. दोनों को गोली लगी थी और कमरे में खून फैला हुआ था. मनोज के पास ही एक देसी तमंचा पड़ा हुआ था. प्रिया समझ गई कि दोनों को उसी तमंचे से गोली लगी है. प्रिया खुद कांस्टेबल थी. उस ने तुरंत गजरौला थाने में फोन कर के इस की सूचना दे दी. यह बात सुबह करीब सवा 6  बजे की है. थानाप्रभारी आर.पी. शर्मा रात की गश्त से लौट कर अपने क्वार्टर में आराम कर रहे थे. एसएसआई प्रमोद पाठक थाने में मौजूद थे. उन्होंने जब इस घटना के बारे में सुना तो यह जानकारी थानाप्रभारी को दी और खुद पुलिस टीम के साथ अवंतिका कालोनी में घटनास्थल पर पहुंच गए.

चूंकि मामला पुलिसकर्मियों से जुड़ा हुआ था, इसलिए थानाप्रभारी ने इस घटना से उच्च अधिकारियों को भी सूचित कर दिया. इस के बाद वह खुद घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस तुरंत दोनों घायलों को गजरौला के अस्पताल ले गई, लेकिन उन की हालत गंभीर थी इसलिए गजरौला से उन्हें मुरादाबाद के साईं अस्पताल रेफर कर दिया गया. सूचना मिलते ही सीओ विजय कुमार, एएसपी अजय प्रताप सिंह व एसपी सुनीति भी घटनास्थल पर पहुंच गईं. उन्होंने घटनास्थल का मुआयना किया और मकान मालकिन व कांस्टेबल प्रिया से पूछताछ की. पूछताछ के बाद पुलिस को पता चला कि मेघा चौधरी और मनोज ढल का काफी दिनों से प्रेम संबंध चल रहा था.

अब तक की जांच के बाद पुलिस इस नतीजे पर पहुंची की इस घटना को कांस्टेबल मनोज ढल ने ही अंजाम दिया होगा. पुलिस ने मौके से मिले सबूत अपने कब्जे में लिए. उधर मुरादाबाद के साईं अस्पताल में भरती कांस्टेबल मेघा और मनोज की हालत गंभीर बनी हुई थी. डाक्टरों की टीम दोनों के इलाज में तत्परता से जुटी थी. मामला पुलिसकर्मियों से जुड़ा हुआ था, इसलिए सूचना पाते ही मुरादाबाद रेंज के आईजी रमित शर्मा, एसएसपी प्रभाकर चौधरी, एसपी (सिटी ) अमित कुमार आनंद भी साईं अस्पताल पहुंच गए. आईजी रमित शर्मा ने अमरोहा पुलिस को आदेश दिए कि वह इस मामले में निष्पक्ष तरीके से काररवाई करे.

आईजी साहब के आदेश पर अमरोहा जिले की एसपी सुनीति ने गजरौला के थानाप्रभारी आर.पी. शर्मा के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बना दी. थानाप्रभारी ने सिपाही मनोज ढल के खिलाफ भारतीय दंड विधान की धारा 452, 307 व आर्म्स ऐक्ट के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी. उधर इलाज के दौरान कांस्टेबल मेघा चौधरी ने 31 जनवरी की रात करीब 11 बजे दम तोड़ दिया. पुलिस मेघा चौधरी और मनोज ढल के घर वालों को पहले ही सूचना दे चुकी थी, इसलिए सुबह होते ही दोनों के घर वाले साईं अस्पताल पहुंच गए.

मेघा चौधरी के घर वालों को जब पता चला कि उस की मौत हो चुकी है तो उन का रोरो कर बुरा हाल हो गया. मेघा के भाई सागर चौधरी ने थानाप्रभारी को मनोज ढल के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कराने की तहरीर दी. पहली फरवरी को मुरादाबाद में मेघा का पोस्टमार्टम कराने के बाद पुलिस ने उस की लाश उस के घर वालों को सौंप दी. मेघा मूलरूप से मुजफ्फरनगर जिले के सरलाखेड़ी गांव की रहने वाली थी, इसलिए घर वाले उस का शव अपने गांव ले कर चले गए. उधर मनोज की हालत में निरंतर सुधार हो रहा था. 3 फरवरी, 2021 को जब उसे अस्पताल से छुट्टी मिल गई तो पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.

थाना गजरौला ले जा कर उस से इस संबंध में पूछताछ की गई. एसपी सुनीति भी उस से पूछताछ करने के लिए थाना गजरौला पहुंच गईं. पूछताछ में मनोज ढल ने स्वीकार कर लिया कि उस ने ही मेघा को गोली मार कर खुद को भी गोली मारी थी. इस के पीछे की उस ने जो कहानी बताई, वह प्रेम संबंधों की बुनियाद पर रचीबसी निकली—

मेघा चौधरी और मनोज ढल वर्ष 2018 बैच के कांस्टेबल थे. करीब डेढ़ साल पहले मेघा चौधरी और मनोज ढल की तैनाती अमरोहा जिले की तहसील हसनपुर के थाना आदमपुर में थी. आदमपुर बेहद पिछड़ा हुआ इलाका है. ग्रामीण क्षेत्र में तैनाती होने के कारण मनोज अकसर मेघा की मदद कर दिया करता था. जिस कारण दोनों में घनिष्ठता बढ़ गई थी. दोनों ही अविवाहित थे. उन के बीच नजदीकियां बढ़ीं तो मामला प्यार में बदल गया. दोनों एकदूसरे को चाहने लगे. ड्यूटी के दौरान दोनों समय निकाल कर अकसर मिलते रहते थे. मनोज मेघा के प्यार में आकंठ डूब चुका था.

उस के सिर पर प्यार का ऐसा नशा सवार हुआ कि वह अपनी ड्यूटी के प्रति भी लापरवाह रहने लगा. आदमपुर के थानाप्रभारी ने मनोज और मेघा को कई बार समझाया कि वह जिम्मेदारी से अपनी ड्यूटी करें. ड्यूटी के प्रति लापरवाही ठीक नहीं है. लेकिन दोनों ने उन की बात पर ध्यान नहीं दिया तो उन्होंने उन दोनों को हिदायत दी.  मनोज तो मेघा का जैसे दीवाना हो चुका था. इसलिए अपने प्यार के चलते उस ने थानाप्रभारी की चेतावनी को नजरअंदाज कर दिया. तब थानाप्रभारी ने अमरोहा के तत्कालीन एसपी डा. विपिन कुमार टांडा से कांस्टेबल मेघा चौधरी और मनोज की शिकायत कर दी.

उन की शिकायत पर एसपी ने मेघा चौधरी का तबादला आदमपुर से गजरौला थाने में कर दिया और मनोज का तबादला कर के उसे थाना सैदनगली भेज दिया गया. मेघा चौधरी ने 10 सितंबर, 2020 को गजरौला थाने पहुंच कर अपनी आमद दर्ज करा दी. गजरौला थाने में ड्यूटी जौइन करते ही मेघा ने अपने कार्यों से पूरे पुलिस स्टाफ को प्रभावित किया. वह बहुत ही  महत्त्वाकांक्षी थी. उस के मन में आगे बढ़ने की लगन थी. थानाप्रभारी मेघा चौधरी के कार्य से संतुष्ट थे. उस के काम को देखते हुए उन्होंने उसे महिला डेस्क की जिम्मेदारी सौंपी.

इस के अलावा वह पुलिस की एंटी रोमियो टीम के साथ भी काम करने लगी. नारी शक्ति अभियान से जुड़ी एंटी रोमियो टीम का काम स्कूलकालेज की छात्राओं को जागरूक करना होता है. मेघा चौधरी इस काम को बड़ी गंभीरता से कर रही थी. वह स्कूलकालेज में जा कर छात्राओं को जागरूक करती थी. वह उन्हें बताती थी कि यदि रास्ते में कोई मनचला उन के साथ छेड़छाड़ या परेशान करे तो उस से कैसे निपटा जाए. वह उन्हें यह भी बताती थी कि कुछ युवक छात्राओं को अपनी चिकनीचुपड़ी बातों में फंसा लेते हैं, जिस से छात्राओं का कैरियर समाप्त हो जाता है. ऐसे लोगों से उन्हें कैसे बचना है. इस के बारे में भी वह छात्राओं को अच्छी तरह समझाती थी.

गजरौला थाने में पोस्टिंग होने के बाद एक तरह से मेघा और ज्यादा जागरूक और अपने कैरियर के प्रति गंभीर हो गई थी. उस ने तय कर लिया था कि वह शादी से पहले अपना कैरियर बनाएगी. नारी शक्ति अभियान के तहत छात्राओं को जागरूक करतेकरते मेघा एक अच्छी वक्ता बन गई थी. वह बहुत प्रभावशाली भाषण देती थी. अनेक कार्यक्रमों में मुख्य अतिथि बन कर पहुंचे पुलिस अधिकारियों ने भी जब मेघा के भाषण सुने तो वे बहुत प्रभावित हुए. अधिकारी जब उस की तारीफ करते तो वह खुश होती थी. जब वह उच्चाधिकारियों के साथ मीटिंग में बैठती थी तब उस का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता था. वह सोचती कि वह एक मामूली सिपाही होते हुए भी इतने बड़े अधिकारियों के बीच बैठती है.

यहीं से उस के मन में आगे बढ़ने की लालसा पैदा हुई. उस ने तय कर लिया कि केवल सिपाही की नौकरी के बूते वह अपनी जिंदगी नहीं काटेगी बल्कि  कंपटीशन की तैयारी कर कोई अच्छी नौकरी पाने की कोशिश करेगी. मेघा ने बीटीसी का भी फार्म भर रखा था, जिस का एग्जाम पहली फरवरी, 2021 को था. इस एग्जाम की वजह से मेघा ने 31 जनवरी को अपनी 3 दिन की छुट्टी स्वीकृत करा ली थी. छुट्टी ले कर वह परीक्षा की तैयारी कर रही थी. मेघा और उस के प्रेमी मनोज की तैनाती अलगअलग थानों में थी, इस के बावजूद मनोज मेघा से मिलने के लिए उस के पास आता रहता था. मेघा ने जब गजरौला की अवंतिका कालोनी में सुधारानी के यहां एक किराए का कमरा लिया था तो वह वहां भी मेघा से मिलने आता रहता था.

मेघा और मनोज ने अपने प्यार के बारे में अपनेअपने घर वालों को भी बता दिया था. इतना ही नहीं, उन्होंने कह दिया था कि वे शादी करना चाहते हैं. तब दोनों के घर वालों ने एकदूसरे का घरबार देखने के बाद शादी के लिए हामी भर दी थी. मनोज हरियाणा के जिला कैथल के थाना कुंडली के गांव पाई का निवासी था जबकि मेघा चौधरी उत्तर प्रदेश के जिला मुजफ्फरनगर के थाना  तितली के गांव खेड़ी की रहने वाली थी. अलगअलग थानों में दोनों का ट्रांसफर हो जाने के बाद उन की मुलाकात पहले की तरह तो नहीं हो पाती थी, लेकिन दोनों फोन पर खूब बातें करते थे. लेकिन इस से मनोज का दिल नहीं भरता था. वह चाहता था कि जल्दी से जल्दी मेघा से उस की शादी हो जाए.

मनोज मेघा पर शादी करने का दबाव बना रहा था, लेकिन मेघा उसे यह कह कर टाल देती थी कि अभी उसे अपना कैरियर बनाना है. वह कैरियर बनाने के बाद ही शादी करेगी, क्योंकि सिपाही की नौकरी से वह संतुष्ट नहीं है. मनोज ने उस से कहा, ‘‘शादी के बाद भी तुम परीक्षा की तैयारी कर सकती हो.’’

तब मेघा ने कहा, ‘‘शादी के बाद घरगृहस्थी के तमाम काम होते हैं, जिस की वजह से तैयारी ढंग से नहीं हो पाएगी. इस समय मेरी तैयारी बहुत अच्छी चल रही है और इसी तरह चलती रही तो साल भर के अंदर मुझे कहीं न कहीं अच्छी नौकरी जरूर मिल जाएगी. इसलिए अभी मैं शादी के बंधन में फंसना नहीं चाहती.’’

इस बात को मनोज भी अच्छी तरह जानता था कि मेघा बहुत मेहनत से परीक्षा की तैयारी में जुटी है. लेकिन उसे इस बात की भी आशंका थी कि यदि मेघा की कहीं अच्छी जगह नौकरी लग गई तो जरूरी नहीं कि वह उस के साथ ही शादी करे. क्योंकि औफिसर बन जाने के बाद वह एक मामूली सिपाही से शादी नहीं करेगी. इसी आशंका को देखते हुए मनोज उस पर लगातार शादी का दबाव बना रहा था. शादी की बात को ले कर उन दोनों के बीच अकसर कहासुनी भी हो जाया करती थी. रोज के झगड़ों से तंग आ कर मेघा ने मनोज से फोन पर बात करनी भी कम कर दी थी. वह अपना सारा ध्यान कंपटीशन की तैयारी में लगा रही थी.

उधर मनोज के दिमाग में फितूर बैठ चुका था कि अच्छी जगह नौकरी लग जाने के बाद वह उस से शादी से इनकार कर देगी. इसी आशंका को ले कर वह अकसर खोयाखोया सा रहने लगा था. एक दिन उस ने मेघा से कह भी दिया कि यदि तुम मुझे नहीं मिली तो मैं तुम्हारे साथसाथ अपने आप को भी खत्म कर दूंगा. मेघा ने उसे बहुत समझाया कि ऐसी कोई बात नहीं है. बस, एग्जाम क्लियर कर लेने दो, फिर सब ठीक हो जाएगा. पर मनोज को सब्र कहां था. मनोज जब उसे बारबार फोन करता रहा तो तंग आ कर मेघा ने उस का फोन रिसीव करना बंद कर दिया. इस पर मनोज उस से मिल ने उस के कमरे पर पहुंच जाता. उस की एक ही जिद थी कि मेघा जल्द शादी कर ले. मेघा उस से फिलहाल शादी को मना कर देती तो वह उस से लड़झगड़ कर लौट आता था.

मेघा के व्यवहार में आए बदलाव को देख कर मनोज के मन में एक दूसरा शक यह पैदा हो गया कि कहीं मेघा का किसी और से चक्कर तो नहीं चल रहा, जिस की वजह से वह उसे लगातार इग्नोर कर रही है. वह यही सोचता कि दाल में जरूर कुछ काला है. सच्चाई जाने बिना ही वह मेघा के बारे में गलत सोचने लगा. इसी दरम्यान उस ने तय कर लिया कि वह मेघा को एक बार और समझाने की कोशिश करेगा. यदि वह शादी के लिए तैयार नहीं हुई तो फिर वही करेगा जो उस ने तय कर रखा है. इस के लिए मनोज ने एक भयंकर योजना तैयार कर ली थी.

सिपाही होने की वजह से वह कई क्रिमिनलों को जानता था. एक क्रिमिनल के सहयोग से  उस ने .315 बोर का एक तमंचा और कारतूसों का इंतजाम कर लिया. मनोज से मेघा की बेवफाई बरदाश्त नहीं हो रही थी. हर समय वह उस के बारे में ही सोचता रहता था. घटना से 3 दिन पहले मनोज ने मेघा को फोन किया तो मेघा ने उस का फोन रिसीव नहीं किया. तब वह और ज्यादा परेशान हो गया. 30 जनवरी, 2021 की रात्रि ड्यूटी करने के बाद सुबह को उस ने 2 दिन का अपना रेस्ट मंजूर करा लिया. उस के दिमाग में मेघा के अलावा और कुछ नहीं था.

31 जनवरी को जब मेघा ने उस का फोन रिसीव नहीं किया तो वह शाम करीब 6 बजे मेघा के कमरे पर  पहुंच गया. मनोज ने मेघा का दरवाजा खटखटाया तो उस ने गुस्से में दरवाजा नहीं खोला. वह उस समय किचन में थी. इस के बाद वह कमरे में चली गई. तब मनोज दरवाजे के बाहर से ही जोरजोर से अनापशनाप बकने लगा. मेघा के कमरे के बराबर में ही उस का किचन था. किचन का दरवाजा खुला हुआ था. मेघा ने कमरे का दरवाजा नहीं खोला तो मनोज किचन में पहुंच गया. किचन से एक खिड़की मेघा के कमरे में खुलती थी. उसी खिड़की के रास्ते वह मेघा के कमरे में दाखिल हो गया.

उसे देख कर मेघा भड़क गई. उस ने कहा, ‘‘तुम्हें इस तरह से खिड़की के रास्ते से नहीं आना चाहिए था.’’ मनोज तो वैसे ही गुस्से से भरा हुआ था. उस ने कहा, ‘‘मेघा, मैं आज तुम से साफसाफ यह पूछना चाहता हूं कि तुम अभी शादी करोगी या नहीं क्योंकि मैं अब ज्यादा दिनों तक शादी के लिए नहीं रुक सकता.’’

इस पर मेघा ने कहा, ‘‘कुछ दिन और रुक जाओ. जब मेरा कैरियर बन जाएगा तब मैं शादी करूंगी.’’

मगर मनोज को तसल्ली कहां थी. वह तेज आवाज में झगड़ने लगा. मेघा उस की योजना से अनजान थी. वह भी गुस्से में उस से झगड़ने लगी. दोनों के चीखनेचिल्लाने की आवाजें कमरे से बाहर जाने लगीं. मेघा के पास में रहने वाली प्रिया जानती थी कि मनोज मेघा का प्रेमी है. उस ने उन के झगड़े में दखल देना उचित नहीं समझा. सोचा थोड़ी देर में दोनों सामान्य हो जाएंगे. लेकिन उसे क्या पता था कि वहां कुछ देर में खून बहने वाला है. झगड़े के दौरान मनोज को गुस्सा आया तो उस ने अपनी अंटी में खोंसा हुआ तमंचा निकाल कर मेघा के ऊपर फायर कर दिया. मेघा के सीने में गोली लगी. गोली लगते ही वह फर्श पर गिर पड़ी. तभी खुद को भी मिटाने के लिए मनोज ने दूसरी गोली अपने पेट पर  मार ली.

गोलियों की आवाज सुनते ही मकान मालकिन और बराबर में रह रही सिपाही प्रिया मेघा के कमरे पर पहुंच गईं. फिर इस की सूचना पुलिस को दे दी गई. मनोज के गिरफ्तार होने के बाद एसपी सुनीति भी थाने पहुंच गई थीं. उन्होंने भी करीब डेढ़ घंटे तक मनोज से पूछताछ की. इस के बाद थानाप्रभारी ने हत्या के आरोप में गिरफ्तार मनोज को 3 फरवरी, 2021 को कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. उसी दिन एसपी सुनीति ने कांस्टेबल मनोज ढल को बरखास्त कर दिया. अब मामले की जांच थानाप्रभारी आर.पी. शर्मा कर रहे हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Noida News : प्यार में फंसाया फिर किया अपहरण और मांगी 70 लाख की फिरौती

Noida News : गौरव हलधर डाक्टरी की पढ़ाई करतेकरते प्रीति मेहरा के जाल में ऐसा फंसा कि जान के लाले पड़ गए. डा. प्रीति को गौरव को रंगीन सपने दिखाने की जिम्मेदारी उस के ही साथी डा. अभिषेक ने सौंपी थी. भला हो नोएडा एसटीएफ का जिस ने समय रहते…

एसटीएफ औफिस नोएडा में एसपी कुलदीप नारायण सिंह डीएसपी विनोद सिंह सिरोही के साथ बैठे किसी का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. तभी अचानक दरवाजा खुला और सामने वर्दी पर 3 स्टार लगाए एक इंसपेक्टर प्रकट हुए. उन्होंने अंदर आने की इजाजत लेते हुए पूछा, ‘‘मे आई कम इन सर.’’

‘‘इंसपेक्टर सुधीर…’’ कुलदीप सिंह ने सवालिया नजरों से आगंतुक की तरफ देखते हुए पूछा.

‘‘यस सर.’’

‘‘आओ सुधीर, हम लोग आप का ही इंतजार कर रहे थे.’’ एसपी कुलदीप सिंह ने सामने बैठे विनोद सिरोही का परिचय कराते हुए कहा,  ‘‘ये हैं हमारे डीएसपी विनोद सिरोही. आप के केस को यही लीड करेंगे. जो भी इनपुट है आप इन से शेयर करो फिर देखते हैं क्या करना है.’’

कुछ देर तक उन सब के बीच बातें होती रहीं. उस के बाद कुलदीप सिंह अपनी कुरसी से खड़े होते हुए बोले, ‘‘विनोद, मैं एक जरूरी मीटिंग के लिए मेरठ जा रहा हूं. आप दोनों केस के बारे में डिस्कस करो. हम लोग लेट नाइट मिलते हैं.’’

इस बीच उन्होंने एसटीएफ के एएसपी राजकुमार मिश्रा को भी बुलवा लिया था. कुलदीप सिंह ने उन्हें निर्देश दिया कि गौरव अपहरण कांड में अपहर्त्ताओं को पकड़ने में वह इस टीम का मार्गदर्शन करें. एसपी के जाते ही वे एक बार फिर बातों में मशगूल हो गए. सुधीर कुमार सिंह डीएसपी विनोद सिरोही और एएसपी मिश्रा को उस केस के बारे में हर छोटीबड़ी बात बताने लगे, जिस के कारण उन्हें पिछले 24 घंटे में यूपी के गोंडा से ले कर दिल्ली के बाद नोएडा में स्पैशल टास्क फोर्स के औफिस का रुख करना पड़ा था. इस से 2 दिन पहले 19 जनवरी, 2021 की बात है. उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के एसपी शैलेश पांडे के औफिस में सन्नाटा पसरा हुआ था. क्योंकि मामला बेहद गंभीर था और पेचीदा भी.

पड़ोसी जिले बहराइच के पयागपुर थाना क्षेत्र के काशीजोत की सत्संग नगर कालोनी के रहने वाले डा. निखिल हलधर का बेटा गौरव हलधर गोंडा के हारीपुर स्थित एससीपीएम कालेज में बीएएमएस प्रथम वर्ष का छात्र था. वह कालेज के हौस्टल में रहता था. गौरव 18 जनवरी की शाम तकरीबन 4 बजे से गायब था. इस के बाद गौरव को न तो हौस्टल में देखा गया न ही कालेज में. 18 जनवरी की रात को गौरव के पिता डा. निखिल हलधर के मोबाइल फोन पर रात करीब 10 बजे एक काल आई. काल उन्हीं के बेटे के फोन से थी, लेकिन फोन पर उन का बेटा गौरव नहीं था.

फोन करने वाले ने बताया कि उस ने गौरव का अपहरण कर लिया है. गौरव की रिहाई के लिए आप को 70 लाख रुपए की फिरौती देनी होगी. जल्द पैसों का इंतजाम कर लें, वह उन्हें बाद में फोन करेगा. डा. निखिल हलधर ने कालबैक किया तो फोन गौरव ने नहीं, बल्कि उसी शख्स ने उठाया, जिस ने थोड़ी देर पहले बात की थी. डा. निखिल ने बेटे से बात कराने के लिए कहा तो उस ने उन्हें डांटते हुए कहा, ‘‘डाक्टर, लगता है सीधी तरह से कही गई बात तेरी समझ में नहीं आती. तू क्या समझ रहा है कि हम तुझ से मजाक कर रहे हैं? अभी तेरे बेटे की लेटेस्ट फोटो वाट्सऐप कर रहा हूं देख लेना उस की क्या हालत है.

और हां, एक बात कान खोल कर सुन ले, यकीन करना है या नहीं ये तुझे देखना है. यह समझ लेना कि पैसे का इंतजाम जल्द नहीं किया तो बेटा गया तेरे हाथ से. ज्यादा टाइम नहीं है अपने पास.’’

अभी तक इस बात को मजाक समझ रहे निखिल हलधर समझ गए कि उस ने जो कुछ कहा, सच है. कुछ देर बाद उन के वाट्सऐप पर गौरव की फोटो आ गई, जिस में वह बेहोशी की हालत में था. जैसे ही परिवार को इस बात का पता चला कि गौरव का अपहरण हो गया है तो सब हतप्रभ रह गए. निखिल हलधर संयुक्त परिवार में रहते थे. उन के पूरे घर में चिंता का माहौल बन गया. बात फैली तो डा. निखिल के घर उन के रिश्तेदारों और परिचितों का हुजूम लगना शुरू हो गया. डा. निखिल हलधर शहर के जानेमाने फिजिशियन थे, शहर के तमाम प्रभावशाली लोग उन्हें जानते थे. उन्होंने शहर के एसपी डा. विपिन कुमार मिश्रा से बात की.

उन्होंने बताया कि गौरव गोंडा में पढ़ता था और घटना वहीं घटी है, इसलिए वह तुरंत गोंडा जा कर वहां के एसपी से मिलें. डा. निखिल हलधर रात को ही अपने कुछ परिचितों के साथ गोंडा रवाना हो गए. 19 जनवरी की सुबह वह गोंडा के एसपी शैलेश पांडे से मिले. शैलेश पांडे को पहले ही डा. निखिल हलधर के बेटे गौरव के अपहरण की जानकारी एसपी बहराइच से मिल चुकी थी. डा. निखिल हलधर ने शैलेश पांडे को शुरू से अब तक की पूरी बात बता दी. एसपी पांडे ने परसपुर थाने के इंचार्ज सुधीर कुमार सिंह को अपने औफिस में बुलवा लिया था. क्योंकि गौरव जिस एससीपीएम मैडिकल कालेज में पढ़ता था, वह परसपुर थाना क्षेत्र में था.

सारी बात जानने के बाद एसपी शैलेश पांडे ने कोतवाली प्रभारी आलोक राव, सर्विलांस टीम के इंचार्ज हृदय दीक्षित तथा स्वाट टीम के प्रभारी अतुल चतुर्वेदी के साथ हैडकांस्टेबल श्रीनाथ शुक्ल, अजीत सिंह, राजेंद्र , कांस्टेबल अमित, राजेंद्र, अरविंद व राजू सिंह की एक टीम गठित कर के उन्हें जल्द से गौरव हलधर को बरामद करने के काम पर लगा दिया. एसपी पांडे ने टीम का नेतृत्व एएसपी को सौंप दिया. पुलिस टीम तत्काल सुरागरसी में लग गई. पुलिस टीमें सब से पहले गौरव के कालेज पहुंची, जहां उस के सहपाठियों तथा हौस्टल में छात्रों के अलावा कर्मचारियों से जानकारी हासिल की गई. नहीं मिली कोई जानकारी मगर गौरव के बारे में पुलिस को कालेज से कोई खास जानकारी नहीं मिल सकी.

इंसपेक्टर सुधीर सिंह डा. निखिल हलधर के साथ परसपुर थाने पहुंचे और उन्होंने निखिल हलधर की शिकायत के आधार पर 19 जनवरी, 2021 की सुबह भादंसं की धारा 364ए के तहत फिरौती के लिए अपहरण का मामला दर्ज कर लिया. एसपी शैलेश पांडे के निर्देश पर इंसपेक्टर सुधीर कुमार सिंह ने खुद ही जांच की जिम्मेदारी संभाली. साथ ही उन की मदद के लिए बनी 6 पुलिस टीमों ने भी अपने स्तर से काम शुरू कर दिया. चूंकि मामला एक छात्र के अपहरण का था, वह भी फिरौती की मोटी रकम वसूलने के लिए. इसलिए सर्विलांस टीम को गौरव हलधर के मोबाइल की काल डिटेल निकालने के काम पर लगा दिया गया.

मोबाइल की सर्विलांस में उस की पिछले कुछ घंटों की लोकेशन निकाली गई तो पता चला कि इस वक्त उस की लोकेशन दिल्ली में है. पुलिस टीमें यह पता करने की कोशिश में जुट गईं कि गौरव का किसी से विवाद या दुश्मनी तो नहीं थी. लेकिन ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली. गौरव और उस से जुड़े लोगों के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर ले लिया गया था. पुलिस की टीमें लगातार एकएक नंबर की डिटेल्स खंगाल रही थीं. गौरव के फोन की लोकेशन संतकबीर नगर के खलीलाबाद में भी मिली थी. पुलिस की एक टीम बहराइच तो 2 टीमें खलीलाबाद व गोरखपुर रवाना कर दी गईं. खुद इंसपेक्टर सुधीर सिंह एक पुलिस टीम ले कर दिल्ली रवाना हो गए.

20 जनवरी की सुबह दिल्ली पहुंचने के बाद उन्होंने सर्विलांस टीम की मदद से उस इलाके में छानबीन शुरू कर दी, जहां गौरव के फोन की लोकेशन थी. लेकिन अब उस का फोन बंद हो चुका था इसलिए इंसपेक्टर सुधीर सिंह को सही जगह तक पहुंचने में कोई मदद नहीं मिली. इस दौरान गोंडा में मौजूद गौरव के पिता डा. निखिल हलधर को अपहर्त्ता ने एक और फोन कर दिया था. उस ने अब फिरौती की रकम बढ़ा कर 80 लाख कर दी थी और चेतावनी दी थी कि अगर 22 जनवरी तक रकम का इंतजाम नहीं किया गया तो गौरव की हत्या कर दी जाएगी.

दूसरी तरफ जब गोंडा एसपी शैलेश पांडे को पता चला कि दिल्ली पहुंची पुलिस टीम को बहुत ज्यादा कामयाबी नहीं मिल रही है तो उन की चिंता बढ़ गई. अंतत: उन्होंने एसटीएफ के एडीजी अमिताभ यश को लखनऊ फोन कर के गौरव अपहरण कांड की सारी जानकारी दी और इस काम में एसटीएफ की मदद मांगी. अमिताभ यश ने एसपी शैलेश पांडे से कहा कि वे अपनी टीम को नोएडा में एसटीएफ के औफिस भेज दें. एसटीएफ के एसपी कुलदीप नारायण गोंडा पुलिस की पूरी मदद करेंगे.

पांडे ने दिल्ली में मौजूद इंसपेक्टर सुधीर सिंह को एसटीएफ के एसपी कुलदीप नारायण से बात कर के उन के पास पहुंचने की हिदायत दी तो दूसरी तरफ एडीजी अमिताभ यश ने नोएडा फोन कर के एसपी कुलदीप नारायण सिंह को गौरव हलधर अपहरण केस की जानकारी दे कर गोंडा पुलिस की मदद करने के निर्देश दिए. यह बात 20 जनवरी की दोपहर की थी. गोंडा कोतवाली के इंसपेक्टर सुधीर सिंह नोएडा में एसटीएफ औफिस पहुंच कर एसपी एसटीएफ कुलदीप नारायण सिंह तथा डीएसपी विनोद सिरोही से मिले.

विनोद सिरोही बेहद सुलझे हुए अधिकारी हैं. उन्होंने अपनी सूझबूझ से कितने ही अपहरण करने वालों और गैंगस्टरों को पकड़ा है. उन्होंने उसी समय अपहर्त्ताओं को दबोचने के लिए इंसपेक्टर सौरभ विक्रम सिंह, एसआई राकेश कुमार सिंह तथा ब्रह्म प्रकाश के साथ एक टीम का गठन कर दिया. काल डिटेल्स से मिले सुराग अपराधियों तक पहुंचने का सब से बड़ा हथियार इन दिनों इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस है. एसटीएफ की टीम ने उसी समय गौरव के फोन की सर्विलांस के साथ उस की सीडीआर खंगालने का काम शुरू कर दिया. गौरव के फोन की काल डिटेल्स खंगाली तो उस में एक ऐसा नंबर मिला, जिस में उस के फोन पर कुछ दिनों से एक नए नंबर से न सिर्फ काल की जा रही थी, बल्कि यह नंबर गौरव की कौन्टैक्ट लिस्ट में ‘माई लव’ के नाम से सेव था.

दोनों नंबरों पर 5 से 18 जनवरी तक 40 बार बात हुई थी और हर काल का औसत समय 10 से 40 मिनट था. इस नंबर से गौरव के वाट्सऐप पर अनेकों काल, फोटो, वीडियो का भी आदानप्रदान हुआ था. इस नंबर के बारे में जानकारी एकत्र की गई तो यह नंबर दिल्ली के एक पते पर पंजीकृत पाया गया. लेकिन जब पुलिस की टीम उस पते पर पहुंची तो पता फरजी निकला. जब इस नंबर की लोकेशन खंगाली गई तो पुलिस टीम यह जान कर हैरान रह गई कि 18 जनवरी की दोपहर से शाम तक इस नंबर की लोकेशन गोंडा में हर उस जगह थी, जहां गौरव के मोबाइल की लोकेशन थी.

पुलिस टीम समझ गई कि जिस के पास भी यह नंबर है, उसी ने गौरव का अपहरण किया है. पुलिस टीमों ने इसी नंबर की सीडीआर खंगालनी शुरू कर दी. पता चला कि यह नंबर करीब एक महीना पहले ही एक्टिव हुआ था और इस से बमुश्किल 4 या 5 नंबरों पर ही फोन काल्स की गई थीं या वाट्सऐप मैसेज आएगए थे.   एसटीएफ के पास ऐसे तमाम संसाधन और नेटवर्क होते हैं, जिन से वह इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस के माध्यम से अपराधियों की सटीक जानकारी एकत्र करने के साथ उन की लोकेशन का भी सुराग लगा लेती है. एसटीएफ ने रात भर मेहनत की. जो भी फोन नंबर इस फोन के संपर्क में थे, उन सभी की कडि़यां जोड़ कर उन की मूवमेंट पर नजर रखी जाने लगी.

रात होतेहोते यह बात साफ हो गई कि अपहर्त्ता नोएडा इलाके में मूवमेंट करने वाले हैं. वे अपहृत गौरव को छिपाने के लिए दिल्ली से किसी दूसरे ठिकाने पर शिफ्ट करना चाहते हैं. बस इस के बाद सर्विलांस टीमों ने अपराधियों की सटीक लोकेशन तक पहुंचने का काम शुरू कर दिया और गोंडा पुलिस के साथ एसटीएफ की टीम ने औपरेशन की तैयारी शुरू कर दी. 21 जनवरी की देर रात गोंडा पुलिस व एसटीएफ की टीमों ने ग्रेटर नोएडा में यमुना एक्सप्रेसवे जीरो पौइंट के पास अपना जाल बिछा दिया. पुलिस टीमें आनेजाने वाले हर वाहन पर कड़ी नजर रख रही थीं. किसी वाहन पर जरा भी संदेह होता तो उसे रोक कर तलाशी ली जाती. इसी बीच एक सफेद रंग की स्विफ्ट डिजायर कार पुलिस की चैकिंग देख कर दूर ही रुक गई.

उस गाड़ी ने जैसे ही रुकने के बाद बैक गियर डाल कर पीछे हटना और यूटर्न लेना शुरू किया तो पुलिस टीम को शक हो गया. एसटीएफ की टीम एक गाड़ी में पहले से तैयार थी. पुलिस की गाड़ी उस कार का पीछा करने लगी जो यूटर्न ले कर तेजी से वापस दौड़ने लगी थी. देखते ही पहचान लिया गौरव को मुश्किल से एक किलोमीटर तक दौड़भाग होती रही. आखिरकार नालेज पार्क थाना क्षेत्र में एसटीएफ की टीम ने डिजायर कार को ओवरटेक कर के रुकने पर मजबूर कर दिया. खुद को फंसा देख कार में सवार 3 लोग तेजी से उतरे और अलगअलग दिशाओं में भागने लगे. एसटीएफ को ऐसे अपराधियों को पकड़ने का तजुर्बा होता है. पीछा करते हुए एसटीएफ तथा गोंडा पुलिस की दूसरी टीम भी वहां पहुंच चुकी थी.

पुलिस टीमों ने जैसे ही हवाई फायर किए, कार से उतर कर भागे तीनों लोगों के कदम वहीं ठिठक गए. पुलिस टीमों ने तीनों को दबोच लिया. उन्हें दबोचने के बाद जब पुलिस टीमों ने स्विफ्ट डिजायर कार की तलाशी ली तो एक युवक कार की पिछली सीट पर बेहोशी की हालत में पड़ा था. इंसपेक्टर सुधीर सिंह युवक की फोटो को इतनी बार देख चुके थे कि बेहोश होने के बावजूद उन्होेंने उसे पहचान लिया. वह गौरव ही था. पुलिस टीमों की खुशी का ठिकाना न रहा, क्योंकि अभियान सफल हो गया था. पुलिस टीमें तीनों युवकों के साथ गौरव व कार को ले कर एसटीएफ औफिस आ गईं.

इंसपेक्टर सुधीर सिंह ने गौरव के पिता डा. निखिल व एसपी गोंडा शैलेश पांडे को गौरव की रिहाई की सूचना दे दी. वे भी तत्काल नोएडा के लिए रवाना हो गए. गौरव के अपहरण में पुलिस ने जिन 3 लोगों को गिरफ्तार किया था, उन में से एक की पहचान डा. अभिषेक सिंह निवासी अचलपुर वजीरगंज, जिला गोंडा के रूप में हुई. वही इस गिरोह का सरगना था और फिलहाल बाहरी दिल्ली के बक्करवाला में डीडीए के ग्लोरिया अपार्टमेंट के फ्लैट नंबर 310 में किराए पर रहता था. डा. अभिषेक सिंह पेशे से चिकित्सक था और नांगलोई-नजफगढ़ रोड पर स्थित राठी अस्पताल में काम करता था.

उस के साथ पुलिस ने जिन 2 अन्य लोगों को गिरफ्तार किया, उन में नीतेश निवासी थाना निहारगंज, धौलपुर, राजस्थान तथा मोहित निवासी परौली, थाना करनलगंज गोंडा शामिल थे. जब उन तीनों से पूछताछ की गई, तो अपहरण की जो कहानी सामने आई, वह काफी दिलचस्प थी.  डा. अभिषेक सिंह ने गौरव का अपहरण करने के लिए हनीट्रैप का इस्तेमाल किया था. यानी गौरव को पहले एक खूबसूरत लड़की के जाल में फंसाया गया था. जब गौरव खूबसूरती के जाल में फंस गया तो उस का फिरौती वसूलने के लिए अपहरण कर लिया गया.

मूलरूप से गोंडा के अचलपुर का रहने वाला डा. अभिषेक सिंह 2013-2014 में बेंगलुरु के राजीव गांधी यूनिवर्सिटी औफ हेल्थ साइंस से बीएएमएस की पढ़ाई करने के बाद जब अपने शहर लौटा तो उस के दिल में बड़े अरमान थे. डाक्टरी के पेशे से बहुत सारी कमाई करने और बड़ा सा बंगला बनाने के सपने देखे थे. लेकिन कुछ समय बाद ही ये सपने चकनाचूर होने लगे. अच्छी नौकरी नहीं मिली तो बन गया अपराधीउसे गोंडा के किसी भी अस्पताल में ऐसी नौकरी नहीं मिली, जिस से अच्छे से गुजरबसर हो सके. छोटेछोटे अस्पतालों में नौकरी करने के बाद तंग आ कर डा. अभिषेक 2018 में दिल्ली आ गया. यहां कई अस्पतालों में नौकरी करने के बाद वह सन 2019 में नजफगढ़ के राठी अस्पताल में नौकरी करने लगा.

हालांकि इस अस्पताल में उसे पहले के मुकाबले तो अच्छी तनख्वाह मिलती थी, लेकिन इस के बावजूद वह अपनी जिंदगी से संतुष्ट नहीं था. इसी दौरान डा. अभिषेक की दोस्ती उसी अस्पताल में काम करने वाली एक लेडी डाक्टर प्रीति मेहरा से हो गई. प्रीति भी बीएएमएस डाक्टर थी. खूबसूरत और जवान प्रीति प्रतिभाशाली थी. उस के दिल में भी अपना अस्पताल बनाने की महत्त्वाकांक्षा पल रही थी. लेकिन इस सपने को पूरा करने में समर्थ नहीं होने के कारण अक्सर मानसिक परेशानी से घिरी रहती थी. जब अभिषेक से उस की दोस्ती हुई तो लगा कि वे दोनों एक ही मंजिल के मुसाफिर हैं. दोनों की दोस्ती जल्द ही प्यार में बदल गई.

दोनों के सपने भी एक जैसे थे, लाचारी भी एक जैसी थी. लेकिन सपनों को पूरा करने की धुन दोनों पर सवार थी. पिछली दीपावली पर नवंबर, 2019 में जब अभिषेक अपने घर गोंडा गया तो उस की मुलाकात अपनी बुआ के बेटे रोहित से हुई. बुआ की शादी बहराइच के पयागपुर इलाके में हुई थी. रोहित भी पयागपुर में ही रहता था. रोहित की जानपहचान मोहित सिंह से भी थी. मोहित सिंह गोंडा में रहने वाले अभिषेक के दोस्त राकेश सिंह का साला था. मोहित दिल्ली के करोलबाग की एक दुकान में काम करता है. रोहित भी मोहित को जानता है. रोहित व मोहित दोनों की जानपहचान एससीपीएम कालेज गोंडा से आयुर्वेदिक चिकित्सा की पढ़ाई कर रहे गौरव हलधर से थी.

दोनों ही गौरव के अलावा उस के परिवार के बारे में भी अच्छी तरह से जानते थे. अभिषेक जब दीपावली पर अपने घर गया तो पयागपुर से बुआ का बेटा रोहित उस के घर आया हुआ था. रोहित के सामने अभिषेक का दर्द छलक गया. शराब पीने के बाद उस ने रोहित से यहां तक कह दिया कि अगर उसे चोरी, डाका या किसी का अपहरण भी करना पड़े तो वह पीछे नहीं हटेगा. अभिषेक की बात सुनते ही रोहित का माथा ठनक गया. पहले तो उस ने अभिषेक को समझाना चाहा. लेकिन अभिषेक नहीं माना और बोला भाई बस तू एक बार किसी ऐसे शिकार के बारे में बता दे, जिस से मेरा सपना पूरा करने के लिए रकम मिल सकती हो.

अभिषेक नहीं माना तो रोहित ने उसे गौरव हलधर के बारे में बताया और उस के पूरे परिवार की जानकारी भी दे दी. रोहित ने अभिषेक को बताया कि डा. निखिल हलधर का बेटा गौरव गोंडा में ही फर्स्ट ईयर की पढ़ाई कर रहा है. अगर किसी तरीके से उस का अपहरण कर लिया जाए तो फिरौती के रूप में बड़ी रकम मिल सकती है. डा. अभिषेक ने जब डा. प्रीति मेहरा को गौरव का अपहरण करने की अपनी योजना के बारे में बताया तो उस ने नाराजगी नहीं जताई बल्कि खुश हुई और उस ने ही अपनी तरफ से सुझाव दिया कि गौरव का अपहरण करने में वह खुद उस की मदद करेगी.

प्रीति ने अभिषेक को बताया कि एक जवान लड़के का अगर अपहरण करना हो तो किसी जवान लड़की को उस के सामने चारा बना कर डाल दो, वह खुदबखुद उस जाल में फंस जाएगा. अभिषेक से उस ने गौरव का नंबर देने के लिए कहा तो अभिषेक ने उसे रोहित से गौरव का नंबर ले कर दे दिया. इस के बाद डा. प्रीति मेहरा ने एक रौंग नंबर के बहाने गौरव को काल कर बातचीत का सिलसिला शुरू कर दिया. पहली ही बार में बात करने के बाद गौरव उस के जाल में फंस गया और दोनों का एकदूसरे से परिचय कुछ ऐसा हुआ कि उस दिन के बाद वे दोनों एकदूसरे से बात करने लगे.

प्रीति मेहरा वीडियो काल के जरिए जब गौरव से बात करती तो कई बार गौरव को अपने नाजुक अंग दिखा कर अपने लिए उसे बेचैन कर देती. दरअसल, साजिश के इस मुकाम तक पहुंचने से पहले डा. अभिषेक ने इसे अंजाम देने के लिए कुछ लोगों को भी अपने साथ जोड़ लिया था. करोलबाग में कपड़े की दुकान पर काम करने वाले मोहित को जब अभिषेक ने गौरव का अपहरण करने की योजना बताई और उस से मदद मांगी तो मोहित ने अभिषेक को अपने एक दोस्त  नितेश से मिलवाया. दरअसल, नितेश व मोहित एक ही जिम में व्यायाम करने के लिए जाते थे. इसीलिए दोनों के बीच दोस्ती थी. नितेश इंश्योरेंस कराने का काम करता था.

इंश्योरेंस के साथ वह लोगों के बैंक में खाते खुलवाने से ले कर उन्हें लोन दिलाने का काम करता था. इसीलिए फरजी आईडी से ले कर जाली आधार कार्ड व पैन कार्ड बनाने में उसे महारथ हासिल थी. मोहित ने उसे मोटी रकम मिलने का सब्जबाग दिखा कर अपहरण की इस वारदात में अपने साथ मिला लिया. इस के बाद नितेश ने 3 आईडी तैयार कीं और उन्हीं आईडी के आधार पर उस ने 3 सिमकार्ड खरीदे. फरजी आईडी से खरीदे गए तीनों सिम कार्ड डा. प्रीति मेहरा, डा. अभिषेक व मोहित ने अपने पास रख लिए. डा. प्रीति ने तो अपने सिम कार्ड का इस्तेमाल गौरव हलधर से दोस्ती करने के लिए शुरू कर दिया. लेकिन अभिषेक व मोहित ने अपहरण करने से चंद रोज पहले ही अपने सिम कार्ड का इस्तेमाल किया था.

प्रीति मेहरा ने गौरव को अपने प्रेमजाल में इस तरह फंसा लिया कि वह उस के एक इशारे पर कुछ भी करने को तैयार था. जब सब ने यह देख लिया कि शिकार जाल में फंसने का तैयार है तो प्रीति ने गौरव को वाट्सऐप मैसेज दिया कि वह 18 जनवरी को उस से मिलने गोंडा आ रही है. रोहित भी उस समय दिल्ली आया हुआ था. दिल्ली से स्विफ्ट डिजायर कार ले कर डा. अभिषेक, डा. प्रीति मेहरा, मोहित, रोहित व नितेश गोंडा पहुंच गए. गोंडा पहुंचने से पहले रोहित बहराइच में ही उतर गया. इधर गोंडा पहुंच कर डा. प्रीति ने एक राहगीर से किसी बहाने फोन ले कर गौरव को मिलने के लिए फोन किया और उस के कालेज से एक किलोमीटर दूर एक जगह पर बुलाया.

प्रीति मेहरा का रंगीन वार प्रीति के मोहपाश में फंसा गौरव वहां चला आया. गौरव को प्रीति ने अपने साथ कार में बैठा लिया, जहां बैठे बाकी अन्य लोगों ने उसे दबोच कर नशे का इंजेक्शन दे दिया. इस के बाद वे गोंडा से चल दिए. उन की योजना गौरव को संतकबीर नगर के खलीलाबाद में रहने वाले सतीश के घर पर छिपाने की थी. वे वहां पहुंच भी गए, लेकिन बाद में इरादा बदल दिया और कुछ ही देर में कार से दिल्ली के लिए रवाना हो गए. 18 जनवरी की रात को ही दिल्ली पहुंच गए. रास्ते में गाजियाबाद के पास उन्होंने गौरव के फोन से गौरव के पिता निखिल को फिरौती के लिए पहला फोन कर 70 लाख की फिरौती की मांग की.

इसके बाद उन्होंने गौरव को अभिषेक के बक्करवाला स्थित डीडीए फ्लैट में छिपा दिया. नितेश या मोहित उसे खाना देने जाते थे और डा. अभिषेक व प्रीति उसे लगातार नशे के इंजेक्शन देते थे ताकि वह होश में आ कर शोर न मचा दे. उन लोगों ने कई बार गौरव के साथ मारपीट भी की. इधर रोहित ने जब गोंडा व बहराइच में गौरव के अपहरण कांड को ले कर छप रही खबरों के बारे में अभिषेक को बताया कि पुलिस की एक टीम दिल्ली में गौरव की तलाश कर रही है तो अभिषेक ने गौरव को अपने फ्लैट से कहीं दूसरी जगह रखने की योजना बनाई.

इसीलिए डा. अभिषेक मोहित व नितेश के साथ 21 जनवरी की रात को गौरव को बेहोशी का इंजेक्शन दे कर उसे कार से ले कर ग्रेटर नोएडा जा रहा था, तभी पुलिस ने सर्विलांस के जरिए उन की लोकेशन का पता लगा कर उन्हें दबोच लिया. नितेश के पिता व गोंडा पुलिस के नोएडा पहुंचने के बाद एसटीएफ ने उन्हें  गोंडा पुलिस के हवाले कर दिया. इधर पुलिस को जब इस में रोहित व सतीश नाम के 2 और लोगों के शामिल होने की खबर लगी तो गोंडा पुलिस की टीम ने दबिश दे कर उसी रात रोहित व सतीश को भी गिरफ्तार कर लिया.

लेकिन इस पूरे घटनाक्रम की खबर पा कर डा. प्रीति फरार हो चुकी थी. उस की तलाश में एसटीएफ और गोंडा पुलिस ने कई जगह छापे मारे, लेकिन वह पुलिस की पकड़ में नहीं आई. गोंडा पुलिस ने प्रीति की गिरफ्तारी पर 25 हजार के इनाम की घोषणा की थी. जिस के बाद गोंडा पुलिस ने 1 फरवरी को प्रीति को उस के गांव धौर जिला झज्जर, हरियाणा से गिरफ्तार कर लिया. मूलरूप से हरियाणा की प्रीति मेहरा वर्तमान में दिल्ली के प्रेमनगर में रहती थी. फिलहाल सभी आरोपी न्यायिक हिरासत में जेल में हैं. कैसी विडंबना है कि सालों की मेहनत के बाद डाक्टर बनने वाले अभिषेक व प्रीति अपने अधूरे ख्वाब को पूरा करने के लिए शार्टकट से पैसा कमाने के चक्कर में जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गए.

डीजीपी ने फिरौती के लिए हुए अपहरण कांड का खुलासा कर आरोपियों को गिरफ्तार करने वाली गोंडा पुलिस की टीम को पुरस्कृत करने की घोषणा की है.

—कथा पुलिस की जांच, पीडि़त व अभियुक्तों के बयान पर आधारित

 

अवैध संबंध का खौफनाक अंजाम : प्रेमी से करवाया पति का मफलर से गला घोंटकर कत्ल

Agra News : कमाऊ पति प्रमोद को छोड़ कर शिखा ने 5 बच्चों के पिता अतिराज से शादी कर ली. इसी दौरान अतिराज का दिल एक दूसरी औरत से लग गया. शिखा भी कम नहीं थी. उस ने पड़ोसी युवक ऋषिकेश को फांस लिया. बिस्तर की तरह औरत बदलने का परिणाम यह निकला कि…

ताज नगरी आगरा की तहसील बाह का एक थाना है बासौनी. इसी थाने के गांव लखनपुरा के बाहर स्थित घूरे पर मायाराम की 15 वर्षीय बेटी स्नेहा सुबह करीब 7 बजे कूड़ा डालने आई  थी.  अचानक उस की नजर कुछ दूरी पर खेत के किनारे कंटीले तारों के पास संदिग्ध अवस्था में पड़े एक व्यक्ति पर गई. वह उसे देखते ही पहचान गई. वह उसी के गांव का अतिराज सिंह था. स्नेहा ने वहां से लौट कर इस की जानकारी अतिराज की पत्नी शिखा के साथ ही गांव वालों को दी. जानकारी मिलते ही वहां अतिराज के घर वाले पहुंच गए. अतिराज को गांव वालों ने हिलायाडुलाया लेकिन वह मर चुका था. घटना की जानकारी होते ही गांव में हड़कंप मच गया. बड़ी संख्या में गांव वालों की भीड़ जुट गई. इसी बीच किसी ने पुलिस को सूचना दे दी. यह बात 4 जनवरी, 2021 की है.

घटना की जानकारी मिलते ही मौके पर थानाप्रभारी दीपकचंद्र दीक्षित अपनी टीम के साथ पहुंच गए. 42 वर्षीय मृतक अतिराज सिंह बघेल किसान था. मामले की गंभीरता को देखते हुए थानाप्रभारी ने अपने उच्चाधिकारियों को घटना की जानकारी दी. इस पर एसपी (पूर्वी) अशोक वैंकट, सीओ (बाह) प्रदीप कुमार फोरैंसिक टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. पुलिस ने जांचपड़ताल शुरू कर दी. मृतक के गले व सीने पर चोट के निशान दिखाई दे रहे थे. इस से अनुमान लगाया गया कि युवक की हत्या गला दबा कर की गई है. वहीं फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल से साक्ष्य जुटाए. शव के पास ही पुलिस को शराब का एक खाली पव्वा भी मिला. पुलिस ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद शव मोर्चरी भिजवा दिया.

तब तक मृतक के बेटे नोएडा से आ गए थे. बड़े बेटे विक्रम सिंह बघेल ने पुलिस को बताया कि पिताजी रात को खेत की रखवाली को गए थे. सुबह उन की लाश दूसरे खेत में मिली. उस ने बताया कि हमारी रंजिश गांव की राधा देवी व उस के देवर फौरन सिंह से चल रही है. उन्होंने एक साल पहले पिताजी को हत्या की धमकी दी थी. उन्होंने ही पिताजी की हत्या की है. पति की हत्या की जानकारी मिलते ही पत्नी शिखा का रोरो कर बुरा हाल था. पुलिस का खोजी कुत्ता भी राधा के घर वाली गली तक जा कर रुक गया था. राधा का परिवार घर पर न मिलने से पुलिस का शक गहरा गया.

इस संबंध में विक्रम बघेल ने 38 वर्षीय विधवा राधा देवी, उस के देवर फौरन सिंह तथा राधा देवी के भाई सोहन (काल्पनिक) निवासी दिमनी, मुरैना, मध्य प्रदेश के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई. एसएसपी (आगरा) बबलू कुमार ने इस घटना के शीघ्र परदाफाश के लिए एसपी (पूर्वी) अशोक वैंकट, सीओ प्रदीप कुमार व थानाप्रभारी बासौनी की टीम गठित कर आवश्यक दिशानिर्देश दिए. ग्रामीणों से पुलिस ने इस संबंध में पूछताछ की. जानकारी में आया कि मृतक अतिराज की राधा देवी से दोस्ती थी. राधा के पति करन सिंह की मौत हो चुकी थी. करन सिंह और अतिराज दोनों मित्र थे. इस के चलते राधा और अतिराज के बीच प्रेमसंबंध हो गए. राधा के घर वाले इस का विरोध करते थे. इसी के चलते उस पर हत्या का शक गया.

पुलिस ने राधा, उस के देवर फौरन सिंह व भाई सोहन को हिरासत में ले लिया. पुलिस तीनों को ले कर थाने आई. यहां पर तीनों से इस संबंध में गहनता से पूछताछ की गई. लेकिन तीनों ने अपने को निर्दोष बताया. जांच में भी अतिराज की हत्या में उन की कोई भूमिका नहीं दिखाई दी. इस बीच पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई. रिपोर्ट में गला दबा कर हत्या करना बताया गया था. इस दौरान पुलिस को पता चला कि अतिराज की हत्या में उस की दूसरी पत्नी शिखा व उस के प्रेमी का हाथ है. इस के बाद पुलिस ने अभियोग में भादंवि की धारा 120बी की बढ़ोत्तरी कर दी. सही खुलासे के लिए जांच में जुटी पुलिस टीम ने सर्विलांस सैल की भी मदद ली.

पुलिस ने 7 जनवरी, 2021 को अतिराज की दूसरी पत्नी शिखा, उस के प्रेमी ऋषिकेश तथा प्रेमी के दोस्त सुशील उर्फ भूरा को गांव से गिरफ्तार कर लिया. ऋषिकेश का घर लखनपुरा में शिखा के घर के पास ही है, जबकि सुशील बाह के गांव खोडन का निवासी है तथा वर्तमान में पश्चिमी दिल्ली के थाना निहाल विहार के गांव निलौठी में रहता है. हत्यारोपियों को गिरफ्तार करने वाली टीम में थानाप्रभारी दीपकचंद्र दीक्षित, एसआई सुमित कुमार, हैडकांस्टेबल सुनील कुमार,गजेंद्र सिंह, अमित कुमार, कांस्टेबल सूरज कुमार, रनवीर सिंह, कपिल कुमार, महिला कांस्टेबल ज्योति व शांति सिंह शामिल थीं.

तीनों हत्यारोपियों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. मृतक के बेटे ने जिन 3 लोगों को रिपोर्ट में नामजद किया था, वे जांच में निर्दोष पाए गए. इस तरह 3 निर्दोष जेल जाने से बच गए. हकीकत यह थी कि अतिराज की हत्या दूसरी पत्नी ने अपने पड़ोसी युवक से प्रेमसंबंधों के चलते की थी. एसएसपी बबलू कुमार ने प्रैस कौन्फ्रैंस में हत्याकांड का खुलासा करते हुए वास्तविक हत्यारोपियों की गिरफ्तारी की जानकारी दी. इस सनसनीखेज हत्याकांड के पीछे की जो कहानी सामने आई, वह चौंकाने वाली निकली—

शिखा विश्वकर्मा कानपुर देहात की रहने वाली थी. उस की पहली शादी सन 2002 में औरैया जिले के गांव सराय निवासी प्रमोद विश्वकर्मा के साथ हुई थी. प्रमोद से शिखा के 3 बेटे हुए, इन में रोहित, मोहित व निक्की शामिल हैं. शिखा का पति प्रमोद पंजाब में स्थित एक सरिया मिल में काम करता था. एक दिन शिखा पति को फोन लगा रही थी कि गलती से उस का रौंग नंबर अतिराज को लग गया. दूसरी ओर से अंजान व्यक्ति की आवाज सुनते ही शिखा ने फोन काट दिया. रौंग नंबर लगने के बाद अतिराज ने उसे काल बैक किया. शिखा ने कहा, गलती से आप का नंबर लग गया था. अतिराज ने कहा, ‘‘कोई बात नहीं, क्या मैं जान सकता हूं कि आप कहां रहती हैं और क्या करती हैं?’’

इस पर शिखा ने कहा, ‘‘हम तो कानपुर (देहात) में रहते हैं. पति पंजाब में काम करते हैं.’’ फिर दोनों ने एकदूसरे के बारे में जानकारी की. धीरेधीरे बातों का सिलसिला आगे बढ़ता गया. बाद में हाल यह हो गया कि दोनों दिन में जब तक कई बार बात नहीं कर लेते, दोनों को चैन नहीं मिलता था. अतिराज ने उसे बताया, ‘‘मेरी पत्नी की मृत्यु हो चुकी है. अब मुझ से अकेला नहीं रहा जाता.’’

पति के पंजाब में काम करने से शिखा भी अकेली हो गई थी. दोनों के दिलों में धधक रही प्यार की आग की गरमी बढ़ती जा रही थी. दिल में लगी आग जब बुझाए नहीं बुझी तब सन 2010 में शिखा ने भाग कर अतिराज से कोर्टमैरिज कर ली. अतिराज सिंह की पहली पत्नी से 5 बच्चे थे. दोनों बेटियों की शादी हो चुकी थी. तीनों बेटे नोएडा में टेंट आदि का काम करते थे. शिखा से दूसरी शादी करने के बाद दोनों पतिपत्नी गांव में ही रहने लगे. सन 2012 में शिखा और अतिराज के घर एक बेटी अंशिका पैदा हुई. इस बीच अतिराज के गांव की 38 वर्षीय एक विधवा राधा देवी से अवैध संबंध हो गए. जब राधा से प्रेमसंबंधों की जानकारी शिखा को हुई तो उस ने इस का विरोध किया.

वह पति को राधा से संबंध तोड़ने की कहती तो वह उस के साथ मारपीट करता. खर्चे के लिए रुपए भी नहीं देता था. इस से शिखा परेशान रहने लगी. घटना से करीब एक साल पहले शिखा की पड़ोस में ही रहने वाले 32 वर्षीय ऋषिकेश से नजरें टकरा गईं. इस के बाद रोज ही शिखा उसे अपने घर से टकटकी लगाए देखती रहती थी. इस का आभास ऋषिकेश को भी हो गया. पति की बेरुखी के चलते उस का झुकाव ऋषिकेश की तरफ होने लगा. लेकिन समाज के डर से वह उस से बात नहीं कर पाती थी. इस पर ऋषिकेश ने एक छोटा मोबाइल फोन ला कर उसे दे दिया. अब पति के काम पर चले जाने के बाद शिखा ऋषिकेश को फोन मिला लेती.

दोनों मोबाइल पर बातें करते और एकदूसरे से बातें करते और अपने दिल का हाल बताते. बात करने के बाद शिखा मोबाइल को स्विच औफ कर एक पाइप में छिपा देती थी. ऋषिकेश अतिराज का पड़ोसी था. अतिराज शराब पीने का आदी था. ऋषिकेश के साथ भी उस की दिल्ली से आने पर शराब पार्टी हो जाती थी. ऋषिकेश दिल्ली में ऊबर कंपनी में टैक्सी चलाता था. शिखा और ऋषिकेश में घटना से एक साल पहले से प्रेम संबंध चल रहे थे. शिखा फोन पर अपने प्रेमी ऋषि को बताती थी कि उस का पति अतिराज शराब पी कर घर आता है और मारपीट करता है. इस बात पर ऋषिकेश ने कहा कि वह उसे दिल्ली ले जाएगा.

तब शिखा ने कहा, पहले रास्ता साफ करो तब तुम्हारे साथ दिल्ली चल कर रहूंगी, क्योंकि अतिराज के जिंदा रहते मैं तुम्हारे साथ नहीं जा सकती. वह मुझे ढूंढ कर मार डालेगा. शिखा की इस बात पर ऋषिकेश सोच में पड़ गया. उस ने अपने दूर के रिश्ते की मौसी के बेटे सुशील उर्फ भूरा से संपर्क किया, उसे सारी बात बताई और लखनपुरा के अतिराज की हत्या करने की बात की. सुशील हत्या के लिए तैयार हो गया, उस ने इस की एवज में 50 हजार रुपए की मांग की. ऋषिकेश ने शिखा के दिल्ली आने पर उस के जेवर बेच कर देने की बात कही. सुशील के राजी हो जाने के बाद 2 जनवरी, 2021 की रात को वैगनआर कार से दोनों 3 जनवरी की सुबह लखनपुरा पहुंच गए. दोपहर में अतिराज को फोन कर उस के घर पहुंच गए. शिखा व अतिराज घर पर मिले.

दोस्त के घर आने पर उस ने शिखा से दाल, रोटी बनवाई. उसी समय अतिराज किसी काम से चला गया. तब तीनों में अतिराज को मारने की योजना बनी. दोपहर डेढ़ बजे जब अतिराज घर आया उसे ऋषिकेश और सुशील शराब पीने के लिए वैगनआर कार से जरार ले गए. गाड़ी में शराब पहले से ही रखी थी. सभी ने गाड़ी में शराब पी. अतिराज को ज्यादा शराब पिलाई. इस के बाद बाह में माधव सिंह के ढाबे पर पहुंचे, जहां तीनों ने चिकन खाया. शाम को ढाबे से सभी लोग गांव के लिए वापस चल दिए. ऋषिकेश ने अपनी बगल वाली सीट पर आगे अतिराज को बैठाया. पीछे की सीट पर सुशील बैठ गया. अतिराज को मारने के लिए गाड़ी को आगरा-बाह रोड पर गुगावली जाने वाले सुनसान मार्ग पर ले गए.

सर्दियों के चलते जल्दी ही अंधेरा घिरने लगा था. अतिराज शराब के नशे में बेसुध था. दोनों को इसी का इंतजार था. इस बीच ऋषिकेश और शिखा की मोबाइल पर कई बार बात हुई. शिखा ने कहा, नशा रहते उसे जल्दी मार दो, होश में आने के बाद उसे नहीं मार पाओगे. लेकिन जब वे लोग आगे नहर के किनारे चल कर खेतों की तरफ पहुंचे. यहां गांव वाले खेतों की रखवाली कर रहे थे. इसलिए गाड़ी नहीं रोकी. आगे चल कर खिल्ला पड़कौली पहुंचे तथा गांव लखनपुरा की तरफ कार मोड़ दी. तब तक रात के 9 बज गए थे. रास्ते में अच्छा मौका देख कर गाड़ी रोक ली. ऋषिकेश के इशारे पर सुशील ने सीट बेल्ट जो पहले से ही काट ली थी, का फंदा अतिराज के गले में डाल कर गला दबा कर जान से मारने का प्रयास किया, लेकिन सफलता नहीं मिली.

तब सुशील ने अपने मफलर का फंदा उस के गले में डाल दिया और दोनों ने एकएक सिरा खींच कर अतिराज की हत्या कर दी. हत्या के बाद लाश पीछे की सीटों के बीच लिटा दी. इस के बाद षडयंत्र के तहत अतिराज के मोबाइल से उस की प्रेमिका राधा के मोबाइल पर काल की थी. उधर से राधा हैलोहैलो करती रही, लेकिन हत्यारों ने कोई जवाब नहीं दिया. अतिराज के मोबाइल से काल राधा को फंसाने के लिए की गई थी. अतिराज की हत्या के बाद लाश को गाड़ी में ही ले कर दोनों लखनपुरा अतिराज के घर के पास पहुंचे. गाड़ी कुछ दूरी पर खड़ी कर तथा सुशील को गाड़ी में ही बैठा कर ऋषिकेश रात में ही शिखा के घर पहुंचा. उस समय उस की बेटी अंशिका सोई हुई थी. ऋषिकेश ने पूरी जानकारी शिखा को दी.

दोनों ने लाश ठिकाने लगाने के लिए आपस में बातचीत की. ऋषिकेश ने कहा, तुम कहो तो अतिराज की लाश चंबल नदी में फेंक दें, मगरमच्छ खा जाएंगे. किसी को कुछ पता नहीं चलेगा. इस पर शिखा ने कहा, नहीं लाश को राधा के घर की तरफ गांव के किनारे फेंक दो. सभी का शक उसी पर जाएगा. रास्ते के रोड़े को हटाने की खुशी का जश्न दोनों ने रात में ही अपने शरीर की भूख मिटा कर मनाया. जश्न के बाद ऋषिकेश कार ले कर गांव से करीब 100 मीटर दूर पहुंचा. दोनों ने महेश भदौरिया के खेत के बीच कूड़े के ढेर के पास अतिराज की लाश लिटा दी और उस के पास शराब का एक खाली पव्वा भी रख दिया. इस के बाद दोनों कार से दिल्ली निकल गए.

ऋषिकेश व सुशील अतिराज के परिवार वालों के बुलाने व पड़ोसी होने के नाते कार द्वारा दिल्ली से गांव आ गए थे. ऋषिकेश ने आगरा-बाह रोड पर हनुमान नगर के पास अपनी रिश्तेदारी में कार खड़ी की और दोनों गांव पहुंच गए. उन्होंने अतिराज की मौत पर दुख जताते हुए उस के घर वालों को सांत्वना भी दी. पुलिस ने हत्यारों की निशानदेही पर आलाकत्ल मफलर, शीट बेल्ट, वैगनआर कार तथा शिखा, ऋषिकेश व अतिराज के मोबाइल फोन बरामद कर लिए. पुलिस ने हत्यारोपियों को न्यायालय में पेश किया, जहां से तीनों को जेल भेज दिया गया. घटना का परदाफाश करने वाली पुलिस टीम को एसएसपी बबलू कुमार ने ईनाम के साथ प्रशस्ति पत्र देने की घोषणा की.

कहते हैं कि दूसरी औरत से शादी कर लो, लेकिन दूसरे की औरत से नहीं. अतिराज ने दूसरे की औरत से शादी कर के जो भूल की उसे उस का परिणाम अपनी जान दे कर भुगतना पड़ा.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Haryana News : भाई ने बहन की कोर्ट मैरिज से नाराज होकर जीजा को चाकुओं से गोद डाला

Haryana News : नीरज को पड़ोस में रहने वाले गहरे दोस्त विजय की बहन कोमल से प्यार हो गया तो दोनों ने कोर्ट मैरिज कर ली. इस से कोमल के भाई विजय के दिल में इंतकाम की ऐसी आग भड़की कि…

उस दिन पहली जनवरी, 2021 की तारीख थी. नए साल का पहला दिन होने की वजह से लोग अपनेअपने अंदाज में सेलीब्रेशन करने में जुटे थे. पानीपत के बधावा राम कालोनी की रहने वाली कोमल वर्मा भी अपने तरीके से नए साल के सेलीब्रेशन की तैयारी में जुटी थी. कोमल के सासससुर और जेठजेठानी भी उस का हाथ बंटाने में जुटे थे. काम करतेकरते कोमल की नजर बारबार मुख्यद्वार की ओर चली जाती थी. झील सी गहरी आंखें पति नीरज के आने की बाट जोह रही थीं. कोमल मन ही मन सोच रही थी, ‘अपनीअपनी ड्यूटी से जेठजी और ससुर घर आ गए, ये (नीरज) ही घर नहीं लौटे.

आखिर कहां रह गए? आज जल्दी घर आने के लिए कह गए थे. कितने लापरवाह हो गए हैं, न ही काल कर के बताया कि कहां हैं.’

कोमल ने कई बार नीरज का फोन नंबर डायल किया, लेकिन फोन हर बार स्विच्ड औफ ही मिला. उस समय रात के करीब साढ़े 9 बज रहे थे. नीरज घर लौटने में कभी इतनी देर नहीं करता था. यह देख कर कोमल परेशान हो गई. परेशान कोमल कमरे से निकली और ससुर के कमरे में जा कर उन्हें पूरी बात बताई तो वह भी परेशान हो गए. उन्होंने भी अपने फोन से नीरज के मोबाइल पर काल की तो उस का फोन बंद ही आ रहा था. पिता विकासचंद ने बड़े बेटे जगदीश को उस का पता लगाने के लिए भेजा. जगदीश बाइक ले कर अकेला ही भाई को ढूंढने निकल गया. उस समय रात के करीब 10 बज रहे थे.

वह घर से 500 मीटर दूर गया होगा, तभी भावना चौक मोड़ पर सड़क के बीच खून में डूबे एक युवक को देख जगदीश रुक गया. वह युवक उस का छोटा भाई नीरज था और उस की मौत हो चुकी थी. पल भर के लिए जगदीश के दिमाग ने काम करना बंद कर दिया. बाइक से नीचे उतर कर वह भाई की लाश से लिपट गया और जोरजोर से चीखनेचिल्लाने लगा. जब थोड़ी देर बाद वह सामान्य हुआ तो फोन कर के पापा को पूरी बात बता दी. जगदीश के मुंह से नीरज की मौत की बात सुन कर पिता के हाथ से मोबाइल फोन नीचे गिरतेगिरते बचा. बदहवास विकासचंद के मुंह से एक ही शब्द निकला,  ‘हाय! इतना बड़ा अनर्थ मेरे साथ क्यों हो गया?’ वह सिर पर हाथ रख फफकफफक कर रोने लगे.

अचानक विकासचंद को रोता देख घर वाले घबरा गए. आखिर ऐसा क्या हुआ जो वह दहाड़ें मार कर रोने लगे. जरूर कोई बड़ी बात रही होगी. कोमल ने फोन उठा कर देखा तो पता चला काल उस के जेठ जगदीश ने की थी. उस के बाद कोमल ने जेठ को फोन मिला कर पूछा कि आप ने पापाजी से ऐसा क्या कह दिया जो वह नर्वस हो गए. जगदीश ने कोमल को भी वही सब बता दिया. जेठ की बात सुन कर कोमल जैसे काठ हो गई. उस के हाथ से फोन छूट कर नीचे फर्श पर जा गिरा और वह बदहवास हो कर धम्म से गिर पड़ी और बेहोश हो गई. थोड़ी देर बाद जब उसे होश आया तो दहाड़ मारमार कर रोने लगी.

जवान बेटे की मौत की खबर सुन कर विकासचंद इतना साहस नहीं जुटा पाए कि बेटे की लाश तक जा सकें. घर में कोहराम मच गया था. अचानक रोनेचिल्लाने की आवाज सुन कर पड़ोसी जुट गए कि वर्माजी के घर में क्या हो गया, जो सब के सब रोए जा रहे हैं. सच जानने के लिए पड़ोसी उन के घर पहुंचे. जब उन्होंने नीरज की हत्या की बात सुनी तो वे भी दंग रह गए. पड़ोसी घटनास्थल पर पहुंच गए, जहां जगदीश भाई की लाश के पास बैठा रो रहा था. उसी रात पड़ोसियों ने घटना की सूचना पुलिस कंट्रोलरूम को दे दी. घटना बधावा राम कालोनी के पास घटी थी. यह इलाका सिटी थाने में आता था. इसलिए कंट्रोलरूम ने घटना की सूचना वायरलैस के जरिए सिटी थाने को दे दी.

सूचना मिलते ही थानाप्रभारी योगेश कटारिया अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. रात होने के बावजूद वहां काफी लोग जुट गए थे. थानाप्रभारी कटारिया ने लाश का गहन निरीक्षण किया. हत्यारों ने नीरज के सीने और पेट में ताबड़तोड़ चाकू घोंप कर बड़ी बेरहमी से कत्ल किया था. जब थानाप्रभारी ने जगदीश से नीरज की किसी से दुश्मनी की बात पूछी तो वह चीखता हुआ बोला, ‘‘मेरे भाई को उन के सालों ने ही मार डाला. हमें जिस बात का डर था आखिरकार वहीं हुआ. भाई की सुरक्षा के लिए थाने में कई बार एप्लीकेशन भी दी थी, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. अगर काररवाई हुई होती तो आज मेरा भाई जिंदा होता.’’ कह कर जगदीश रोने लगा.

बहरहाल, थानाप्रभारी योगेश कटारिया ने जगदीश की पूरी बात सुनी. उन्होंने आरोपियों के खिलाफ सख्त काररवाई का आश्वासन दिया और इस की सूचना डीएसपी वीरेंद्र सैनी, एसपी और एसएसपी को दे दी.

सूचना मिलने के बाद आला अफसर मौके पर पहुंच गए. इधर मामले की गंभीरता को देखते हुए थानाप्रभारी कटारिया ने फटाफट लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दी. उस के बाद जगदीश की तहरीर पर पुलिस ने मृतक के साले विजय उर्फ छोटा के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर के आगे की काररवाई शुरू कर दी. पुलिस की काररवाई करतेकरते रात के 2 बज गए थे. खुशियों में लगा ग्रहण नए साल के पहले दिन ने ही विकासचंद वर्मा की खुशियों में ग्रहण लगा दिया था. कुछ क्षण पहले तक जहां घर वालों की खिलखिलाहट से घर का कोनाकोना गुलजार था, वहां पल भर में ही मातम छा गया था.

नीरज के जाने के गम में सब का बुरा हाल था. कोमल की आंखें रोरो कर सूज गई थीं. उस का तो संसार ही उजड़ गया था. दोनों ने डेढ़ साल पहले ही लव मैरिज की थी. जिस दिन कोमल के साथ नीरज की शादी हुई थी, उसी दिन उस के भाई विजय ने शहर छोड़ देने की धमकी दी थी. ऐसा न करने पर उस ने बहनोई नीरज को बुरा अंजाम भुगतने की भी चेतावनी दी थी. खैर, मुकदमा दर्ज कर के पुलिस नीरज के कातिलों की सुरागरसी में जुट गई. घटनास्थल से थोड़ी दूर एक गली में एक घर के बाहर सीसीटीवी कैमरा लगा था. पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज को खंगाला. फुटेज में मुंह ढंके 2 युवक तेजी से घटनास्थल से गली की ओर भागते साफ दिख रहे थे.

उस फुटेज में भाग रहे युवकों की जब पुलिस ने जगदीश से शिनाख्त कराई तो वह पहचान गया. उन दोनों युवकों में से एक विजय उर्फ छोटा था, जबकि दूसरा उस का ममेरा भाई पवन था. दोनों ही विजय नगर के रहने वाले थे. 3 जनवरी, 2021 की सुबहसुबह सीआईए-2 सतीश कुमार वत्स के नेतृत्व में सिटी थाने की पुलिस ने विजय नगर में पवन और विजय के घर पर दबिश दे कर दोनों को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें थाने ले आई. थाने ला कर पुलिस ने दोनों आरोपियों से गहन पूछताछ की तो विजय ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. पूछताछ में उस ने पुलिस को बताया, ‘‘वह और नीरज पड़ोसी थे. दोनों ही पचरंगा बाजार में हैंडलूम पर काम करते थे. नीरज ने विश्वासघात कर मेरी बहन कोमल से प्रेम विवाह कर लिया था.

‘‘कहता था उस का जीजा लगता है. यह बात कांटे की तरह मेरे सीने में चुभती थी. मैं ने उसे शहर छोड़ने के लिए कहा था लेकिन दोनों ने शहर नहीं छोड़ा. इस से समाज और दोस्तों में हमारी बदनामी हो रही थी, इसलिए मैं ने यह कदम उठाया और उसे मार डाला. मुझे इस का कोई मलाल नहीं है.’’

विस्तार से पूछने के बाद इस हत्याकांड की पूरी कहानी इस तरह सामने आई—

23 वर्षीय नीरज वर्मा मूलरूप से पानीपत के सिटी थाने के बधावा राम नगर मोहल्ले में परिवार के साथ रहता था. नीरज विकासचंद का दूसरे नंबर का बेटा था. नीरज से बड़ा जगदीश और उस से छोटी एक बेटी थी.  दोनों बेटे अपनी काबिलियत के बल पर अपने पैरों पर खड़े थे. विकासचंद को अपने दोनों बेटों पर बहुत नाज था. उन की एक आवाज पर दोनों बेटे हमेशा तत्पर खड़े रहते थे. शिवाकांत विकासचंद के पड़ोसी थे. दोनों पड़ोसियों में गहरी छनती थी. दोनों परिवारों का एकदूसरे के घरों में आनाजाना था. दोनों ही परिवार एकदूसरे के सुखदुख में एकदूसरे की मदद के लिए खड़े रहते थे. लगता ही नहीं था कि 2 अलगअलग परिवार हैं.

शिवाकांत एक फैक्ट्री में नौकरी करते थे. उन के परिवार में कुल 5 सदस्य थे. पतिपत्नी और 3 बच्चे. 2 बेटे और एक बेटी. बेटों में सब से बड़ा विजय था. फिर बेटी कोमल, उस से छोटा एक और बेटा. यही शिवाकांत का परिवार था. शिवाकांत का बड़ा बेटा विजय और विकासचंद का मझला बेटा नीरज दोनों ही हमउम्र थे. एकदूसरे के घर आतेजाते दोनों में गहरी दोस्ती हो गई थी. उठनाबैठना, खेलनाकूदना और पढ़नालिखना सब साथसाथ होता था. दोनों परिवार एकदूसरे के बच्चों पर, उन की दोस्ती पर फख्र करते थे. आहिस्ताआहिस्ता कोमल बचपन की गलियों को पीछे छोड़ जवानी की दहलीज पर आ खड़ी हुई थी. चंचल, चपल कोमल के दमकते चेहरे और महकते बदन की खुशबू से नीरज पिघल गया था.

रेशमी जुल्फों वाली खूबसूरत कोमल को जब से उस ने देखा था, उस की मोहिनी सूरत की छवि उस के दिल में घर कर गई थी. कोमल भी छिपछिप कर नीरज को प्रेमिल नजरों से देखती थी.कोमल नीरज को दिल की गहराइयों से भी ज्यादा प्यार करने लगी थी. प्यार की आग दोनों दिलों में सुलग रही थी. बस, थोड़ी सी हवा मिलने की जरूरत थी ताकि अपने प्यार का इजहार कर सकें. एक दिन मौका देख कर दोनों ने अपने दिलों का हाल एकदूसरे के सामने बयान कर दिया. उस दिन के बाद से दोनों की दुनिया ही बदल गई. आलम यह हो गया था कि एकदूसरे को देखे बिना पल भर जीने की कल्पना नहीं कर सकते थे. किसी न किसी बहाने दोनों मिल ही लेते थे.

जवां हो गई मोहब्बत नीरज और कोमल दोनों की मोहब्बत जवां हो रही थी. प्रेम के रथ पर सवार दोनों भविष्य की कल्पनाओं में रमे हुए थे. एक दिन दोपहर का वक्त था. नीरज कोमल के भाई विजय से मिलने उस के घर आया. इत्तफाक से उस समय घर पर न तो विजय था और न ही उस के पापा. घर पर कोमल की मां और कोमल थी. नीरज को देख कर कोमल का चेहरा खिल उठा तो नीरज के होंठों पर भी मुसकान उतर आई. नीरज ने कोमल से विजय के बारे में पूछा तो उस ने जवाब दिया ‘नहीं हैं’. यह सुन कर नीरज को बड़ी तसल्ली हुई कि आज वह दिल खोल कर कोमल से प्यारभरी बातें करेगा. कोमल की मां ने बेटी और नीरज को बात करते देखा तो वहां से उठ कर घर के कामों में जुट गई.

वह जानती थी कि दोनों भले ही जवान हो गए हैं लेकिन उन के बीच के रिश्ते एकदम पाकसाफ हैं. उन्हें क्या पता था कि उन की बेटी उन की पीठ पीछे नीरज संग इश्क लड़ा रही है. कोमल ने कमरे का दरवाजा भिड़ा दिया. कमरे में उन दोनों के अलावा कोई नहीं था. कोमल की गोरी कलाइयों को नीरज अपने हाथों में लिए उस की आंखों में आंखें डाले उसे एकटक देख रहा था. तभी कोमल बोली, ‘‘ऐसे क्या देख रहे हो?’’

‘‘एकदम चुप रहो, कुछ मत कहो, इन झील सी आंखों में आज उतर जाने दो मुझे.’’ नीरज ने जवाब दिया.

‘‘ऐसे ही देखना है तो मुझ से शादी क्यों नहीं कर लेते?’’ वह बोली.

‘‘वह भी कर लूंगा जान. थोड़ा और सब्र कर लो.’’ नीरज ने कहा.

‘‘सब्र ही तो नहीं होता मुझ से अब. तुम्हारी दूरियां मुझ से बरदाश्त नहीं होतीं. रात को बिस्तर पर जाती हूं तो तुम्हारी यादें मुझे सोने नहीं देतीं, नश्तर बन कर दिल में चुभती हैं.’’

‘‘कुछ ऐसा ही मेरा भी हाल है लेकिन मैं चाहता हूं तुम्हें तुम्हारे घर से विदा करा कर ले जाऊं.’’

‘‘तब तो तुम्हारे सपने धरे के धरे रह जाएंगे.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘तुम तो जानते हो हमारे घर वाले इस रिश्ते के लिए कभी भी राजी नहीं होंगे.’’ कोमल बोली.

‘‘क्यों राजी नहीं होंगे? आखिर क्या कमी है मुझ में?’’ नीरज की बात सुन कर कोमल उदास हो गई.

‘‘ऐसे भी नादान नहीं हो तुम. क्या तुम नहीं जानते कि हमारे घर वाले जातपात को ले कर कितने संजीदा हैं. फिर हम दोनों की जाति भी अलग हैं. पापा और भैया इस रिश्ते के लिए कभी तैयार नहीं होंगे.’’

‘‘मैं तुम से वादा करता हूं कोमल कि मैं तुम्हें अपना जीवनसाथी बना कर रहूंगा. हमें एक होने से कोई नहीं रोक सकता. यह मेरा तुम से वादा है.’’

इस के बाद दोनों घंटों प्यारभरी बातें करते रहे. फिर नीरज कोमल से साथसाथ जीनेमरने की कसमें खा कर अपने घर वापस लौट आया, कोमल भी अपनी मां के पास दूसरे कमरे में चली आई और उन से लिपट गई. उस समय वह बहुत खुश थी. चर्चे हो गए आम धीरेधीरे नीरज और कोमल के प्यार के चर्चे पूरे कालोनी में फैल गए. यह बात कोमल के भाई विजय तक पहुंची तो वह नीरज पर भड़क उठा. उसे नीरज से ऐसी उम्मीद कतई नहीं थी कि वह दोस्ती की आड़ में विश्वासघात करेगा. उस दिन से विजय ने नीरज पर नजरें गड़ा दीं कि वह कब उस के घर आता है, कब बहन से मिलता है. वह उसे रंगेहाथ पकड़ना चाहता था.

विजय के रवैए से नीरज को लगा कि विजय को उस पर शक हो गया है. विजय उस के प्यार के बारे में जान चुका है. यह बात नीरज ने कोमल को बताई और उसे सावधान भी कर दिया. उस दिन के बाद से कोमल और नीरज दोनों सब की नजरों से बच कर मिलने लगे. विजय के साथसाथ उस के मांबाप को भी दोनों पर शक हो गया था. शिवाकांत ने सोचा कि इस से पहले कोई ऊंचनीच हो जाए, उन्हें ठोस कदम उठाना होगा.  चूंकि विजय और नीरज दोनों के परिवार पड़ोसी थे और उन में संबंध भी गहरे थे. लेकिन नीरज के कारण उन के रिश्तों में खटास आ गई थी. नीरज के पिता विकासचंद बेटे की करतूत से शर्मसार थे. नीरज और कोमल के प्यार के रिश्ते ने दोनों परिवारों के बीच दुश्मनी की दीवार खड़ी कर दी थी.

विजय के पिता शिवाकांत सुलझे हुए सिद्धांतवादी इंसान थे. समझदारी का परिचय देते हुए उन्होंने वहां से हटना ही मुनासिब समझा. उन्होंने वहां का मकान छोड़ दिया और परिवार सहित विजय नगर में आ कर रहने लगे. विजय भी यही चाहता था कि नीरज की परछाईं कोमल पर न पड़े. पिता के फैसले से विजय बहुत खुश था. खुश इसलिए कि वह नीरज से अब खुल कर इंतकाम ले सकता था. क्योंकि नीरज की वजह से उस के परिवार की मोहल्ले में बदनामी हुई थी. बात घटना से 3 महीने पहले की है. कोमल घर से अचानक गायब हो गई. विजय को पूरा शक था कि कोमल को नीरज ही भगा ले गया है.

विजय नीरज की तलाश में जुटा तो नीरज अपने घर पर ही मिल गया लेकिन कोमल वहां नहीं मिली. इस पर उस ने नीरज से पूछा कि उस की बहन को कहां छिपा कर रखा है, बता दे नहीं तो इस का अंजाम बहुत बुरा होगा. नीरज ने उस से साफ शब्दों में कह दिया कि न तो वह कोमल के बारे में जानता है और न ही उसे कहीं छिपाया है. उस से जो बन पड़े, कर ले. वह गीदड़भभकियों से डरने वाला नहीं है. उस के बाद विजय वहां से वापस घर लौट आया. नीरज ने विजय से झूठ बोला था. जबकि उस ने कोमल को अपने घर में ही छिपा कर रखा था. उस के घर वालों को पता था कि कोमल और नीरज एकदूसरे से प्रेम करते हैं. उन्होंने नीरज को समझाया भी था कि वह जिद छोड़ दे.

लेकिन नीरज ने मांबाप की बातों को दरकिनार करते हुए कह दिया कि वह कोमल से प्यार करता है और शादी भी उसी से करेगा. आखिरकार मांबाप को बेटे के सामने झुकना ही पड़ा. घर वाले जानते थे कि कोमल को ज्यादा दिनों तक छिपा कर नहीं रख सकते. एक न एक दिन भेद खुल ही जाएगा. तब मामला बिगड़ सकता है. कोमल की सुरक्षा को देखते हुए विकासचंद ने उसे हिसार में अपने एक परिचित के घर भेज दिया. इधर विजय कोमल को ढूंढता रहा, लेकिन कोमल का कहीं पता नहीं चला. इसी तरह डेढ़ महीना बीत गया. समाज में बदमानी के डर से उस ने जानबूझ कर कोमल के गायब होने का मुकदमा दर्ज नहीं कराया था.

वह जान रहा था कि अगर मामला पुलिस में चला गया तो इज्जत की धज्जियां उड़ जाएंगी. इसलिए उस के घर वाले अपने हिसाब से उस की तलाश करते रहे. कर ली कोर्ट मैरिज आखिरकार नीरज ने कोमल से कोर्टमैरिज कर ली. डेढ़ महीने बाद नवंबर, 2020 के आखिरी हफ्ते में विजय को कहीं से भनक लगी कि कोमल नीरज के साथ उस के घर में ही रह रही है. दोनों ने चंद दिनों पहले कोर्टमैरिज भी कर ली है. खबर सौ फीसदी सच थी. नीरज और कोमल कोर्टमैरिज कर चुके थे और पतिपत्नी के रूप में रह रहे थे. विजय को यह बात बरदाश्त नहीं हुई. उस ने नीरज और कोमल दोनों को रास्ते से हटाने की योजना बना ली.

अपनी योजना में विजय उर्फ छोटा ने अपने ममेरे भाई पवन को भी शामिल कर लिया. पवन अपने परिवार के साथ जावा कालोनी में रहता था. पवन अपराधी प्रवृत्ति का था. उस के खिलाफ पानीपत के कई थानों में गंभीर अपराध के मुकदमे दर्ज थे. पुलिस के लिए वह वांछित था. बेटी के घर छोड़ कर जाने से मांबाप दुखी थे. उन्होंने उसे उस के हाल पर छोड़ दिया. उन का तर्क था कि जब बेटी ने ही उन की पगड़ी की लाज नहीं रखी तो वह उस के लिए चिंता क्यों करें. लेकिन विजय अपनी जिद पर अड़ा था कि कोमल और नीरज ने जो भी किया है वह माफ करने लायक नहीं है.

पहले वह नीरज को रास्ते से हटाएगा फिर कोमल को उस के किए का सजा देगा. योजना बनाने के बाद विजय ने नौकरी छोड़ दी और नीरज की निगरानी में दोनों जुट गया कि वह घर से कब निकलता है, कहांकहां जाता है, रात में नौकरी से घर कब लौटता है. डेढ़ महीने तक विजय और पवन ने नीरज की रेकी की. वारदात को दिया अंजाम जब वे पूरी तरह आश्वस्त हो गए तो नए साल के पहले दिन नीरज की हत्या की योजना बनाई ताकि विकासचंद के घर की खुशियां मातम में बदल जाएं. पहली जनवरी, 2021 की रात विजय और पवन बधावा राम कालोनी की उस गली में घात लगा कर बैठ गए, जिस से नीरज अपनी बाइक से आताजाता था.

नीरज जैसे ही कालोनी के मोड़ पर पहुंचा विजय और पवन उस की बाइक के सामने आ खड़े हुए. अचानक दोनों ने धक्का दिया तो नीरज बाइक सहित नीचे गिर गया. दोनों उस पर टूट पड़े और चाकुओं से ताबड़तोड़ प्रहार कर उस की हत्या कर दी. फिर भावना चौक गली के रास्ते भाग निकले. ज्यादा खून बहने से कुछ ही पलों में नीरज की मौत हो गई. विजय और पवन दोनों भाग कर राजाखेड़ी गांव की तरफ एक खेत में जा कर छिप गए. फिर दोनों ने शराब पी और नीरज की मौत का जश्न मनाया. नीरज की वजह से उन की बदनामी हो रही थी. बदनामी का एक विकेट गिर गया था. अब कोमल को मौत के घाट उतारने की बारी थी, जिस के चलते परिवार ने खून के आंसू रोए थे.

इस से पहले कि दोनों अपने इस खतरनाक मकसद में कामयाब हो पाते, थानाप्रभारी योगेश कटियार ने 3 जनवरी, 2021 को सेक्टर-24 के एमजेआर स्कूल के पास से दोनों को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में दोनों ने अपना जुर्म कबूल लिया और हत्या में इस्तेमाल चाकू भी बरामद करा दिया. विजय को नीरज की मौत का कोई अफसोस नहीं था. अफसोस इस बात का था कि कोमल जिंदा बच गई थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Love Crime News : प्रेमिका ने शादी से किया इनकार तो प्रेमी ने मारी गोली

Love Crime News : प्यार एक अहसास है, जब होता है तो अनूठी अनुभूति होती है. ऐसा न हो तो समझ लीजिए महज आकर्षण है. चंद्रशेखर रूपा के आकर्षण को प्यार समझ बैठा, यही  उस की भूल थी और इसी भूल में  उस ने वह कर डाला जो…

रूपा परेशान थी. सड़क किनारे खड़ी वह कभी सड़क पर आतीजाती गाडि़यों को देखती तो कभी कलाई घड़ी की ओर. जैसेजैसे घड़ी की सुइयां आगे को सरक रही थीं, उस की बेचैनी भी बढ़ती जा रही थी. परेशान लहजे में वह स्वयं ही बड़बड़ाई, ‘लगता है, आज फिर लेट हो जाऊंगी कालेज के लिए.’

उस के चेहरे पर झुंझलाहट के भाव नुमाया हो रहे थे. एक बार फिर उस ने उम्मीद भरी निगाहों से दाईं ओर देखा. कोई चार पहिया मार्शल गाड़ी आ रही थी. रूपा ने इशारा कर के गाड़ी रुकवा ली. ड्राइवर ने उस से पूछा, ‘‘कहां जाना है?’’

‘‘मैं कालेज जाने को लेट हो रही हूं. कोई साधन नहीं मिल रहा. अगर आप मुझे लिफ्ट दे देंगे तो मेहरबानी होगी.’’ रूपा बोली.

‘‘हां हां, मैं कालेज की ओर ही जा रहा हूं. आओ, मैं तुम्हें छोड़ दूंगा.’’ कहते हुए ड्राइवर ने गेट खोल दिया. रूपा तनिक झिझकी फिर ड्राइवर की बगल वाली सीट पर जा बैठी. बेलसोंडा से उस का कालेज करीब 8 किलेमीटर दूर महासमुंद में था. वह करीब 10 मिनट में अपने कालेज पहुंच गई. कालेज के सामने पहुंचते ही ड्राइवर ने गाड़ी रोक दी. उतर कर रूपा थैंक यू कह कर तेज कदमों से चली ही थी कि ड्राइवर ने उसे आवाज दी, ‘‘सुनो…’’

सुनते ही रूपा ने ड्राइवर की तरफ पलट कर देखा तो ड्राइवर ने रुमाल उठा कर रूपा की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘ये शायद आप का है.’’

गुलाबी रंग के उस रुमाल के एक किनारे पर सफेद रंग के थागे से कढ़ाई की गई थी. उस पर रूपा लिखा हुआ था.

‘‘हां, मेरा ही है.’’ रूपा उस से रुमाल लेते हुए बोली.

‘‘आप का नाम रूपा है?’’ ड्राइवर ने पूछा. रूपा ने हौले से सिर हिला दिया और मुसकरा कर कालेज की तरफ चली गई. ड्राइवर तब तक रूपा को देखता रहा जब तक वह दिखाई देती रही. रूपा के ओझल होते होने के बाद ही वह वहां से गया. युवक ड्राइवर का नाम चंद्रशेखर था और वह नदी मोड़ घोड़ारी का रहने वाला था. रूपा से वह बहुत प्रभावित हुआ. इस रूट पर उस का अकसर आनाजाना होता था. इस के बाद वह रूपा के आनेजाने के समय उस रोड पर चक्कर लगाने लगा. जब भी रूपा उसे मिलती, वह ऐसा जाहिर करता मानो अचानक उस से मुलाकात हो गई हो. वह रूपा को कार से उस के कालेज तक और कभी कालेज से उस के घर के पास तक छोड़ देता.

रूपा इस बात को समझने लगी थी कि इत्तफाक बारबार नहीं होता. महीने में वह कई बार महासमुंद से बेलसोंडा और बेलसोंडा से महासमुंद आईगई होगी. सफर भले ही 10 मिनट का होता था लेकिन दोनों को सुकून चौबीस घंटे के लिए मिल जाया करता था. इस बीच दोनों एकदूसरे के बारे  में काफी कुछ जान चुके थे. इस छोटी सी यात्रा के दरमियान दोनों एकदूसरे से खुल गए थे. धीरेधीरे दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ती गईं और कभीकभी वे गाड़ी से लंबी दूरी के लिए घूमने निकलने लगे. एक दिन चंद्रशेखर लौंग ड्राइव पर निकला तो मार्शल गाड़ी के मालिक ने उसे देख लिया. मालिक ने उस समय तो कुछ नहीं कहा लेकिन शाम को उस ने चंद्रशेखर से पूछा, ‘‘तुम गाड़ी में किस लड़की को बिठा कर घूमते हो?’’

‘‘साहब, किसी को ले कर नहीं घूमता. बस एकदो बार बेलसोंडा की रहने वाली एक लड़की को उस के कालेज तक छोड़ा था. इस से ज्यादा कुछ नहीं.’’

चंद्रशेखर ने आगे कहा, ‘‘साहब,मैं पूरी ईमानदारी के साथ आप की सेवा करता रहा हूं. आप के हर आदेश पर मैं ने तुरंत अमल किया है और आप इतनी सी बात को ले कर मुझ पर नाराज हो रहे हैं.’’

मार्शल के मालिक ने साफसाफ कह दिया, ‘‘तुम्हारे लिए यह इतनी सी बात होगी लेकिन कल को कोई ऊंचनीच हो गई तो जवाबदेही तो मेरी होगी. अगर तुम्हें नौकरी करनी है तो ठीक से करो. सैरसपाटे के इतने ही शौकीन हो तो खुद की गाड़ी खरीद लो. फिर जहां चाहो, जिसे चाहो बिठा कर घूमते रहना.’’ मालिक ने दोटूक कह दिया. चंद्रशेखर को मालिक की बात चुभ गई. उस ने बिना किसी पूर्वसूचना के नौकरी छोड़ दी. दूसरेतीसरे दिन वह रूपा से एक निश्चित जगह पर मिलने पहुंचा. वह अपनी बाइक से गया था. बाइक की सीट पर बैठा वह रूपा का इंतजार कर रहा था. कुछ देर बाद रूपा वहां पहुंची. रूपा के बोलने से पहले ही चंद्रशेखर ने कहा, ‘‘बाइक पर बैठो.’’

रूपा बाइक पर बैठ गई तो वह बाइक ले कर चल दिया. उस वक्त उस की बाइक का रुख महासमुंद की ओर न हो कर रायपुर जाने वाली सड़क की ओर था. रूपा को यह पता नहीं था कि उस के प्रेमी ने नौकरी छोड़ दी है. रास्ते में उस ने एक पेड़ के नीचे बाइक खड़ी की. फिर रूपा को मालिक से हुई तकरार के बारे में बताया. सुन कर रूपा गंभीर हो गई. वह बोली, ‘‘उन्होंने जो कुछ कहा, वह अपनी जगह सही है. अच्छाखासा काम हाथ से निकल गया.’’

‘‘तुम क्यों परेशान हो रही हो रूपा, काम चला गया तो क्या हुआ. हाथपैर और मेरा हुनर थोड़े ही चला गया है.’’ चंद्रशेखर ने उसे समझाया, ‘‘काम करना है तो कहीं भी कर लेंगे. तुम पर ऐसी दरजनों गाडि़यां और नौकरियां कुरबान.’’

फिर चंद्रशेखर जेब के अंदर हाथ डाल कर बंद मुट्ठी निकाल कर बोला, ‘‘गेस करो रूपा, इस मुट्ठी में क्या है?’’

‘‘मुझे क्या मालूम.’’ वह बोली.

‘‘सोचो न.’’

‘‘टौफी है क्या?’’ रूपा ने पूछा.

‘‘नहीं…और कुछ, बताओ.’’

रूपा ने दिमाग पर जोर डाला. फिर उस ने अनभिज्ञता से कंधे उचकाए. तभी चंद्रशेखर बोला, ‘‘चलो, अपनी आंखें बंद करो…और हाथ आगे बढ़ाओ.’’

रूपा ने आंखें बंद कर के अपनी हथेलियां उस के सामने खोल दीं. तभी चंद्रशेखर ने रूपा की हथेली पर कुछ रख कर क हा, ‘‘अब अपनी आंखें खोलो.’’

रूपा ने आंखें खोलीं. एक अंगूठी थी जो अमेरिकन डायमंड की थी और जगमगा रही थी. अंगूठी पर पेड़ के पत्तों से छन कर आती हुई सूर्य की किरणें पड़ रही थीं. और रिफ्लेक्ट हो कर सात रंगों की किरणें बिखर रही थीं. अंगूठी देख कर रूपा बहुत खुश हुई.

‘‘कैसा लगा?’’ चंद्रशेखर ने पूछा.

‘‘बहुत सुंदर…बहुत ही प्यारा है.’’

‘‘पहन कर दिखाओ जरा.’’

‘‘जब लाए ही हो तो तुम्हीं पहना दो न.’’ कहती हुई रूपा ने अपना हाथ चंद्रशेखर की ओर बढ़ा दिया. रूपा के हाथ से अंगूठी ले कर रूपा को पहना दी. उस की अंगुली में अंगूठी अच्छी लग रही थी. सड़क के किनारे गन्ने का एक खेत था. चंद्रशेखर ने उस ओर इशारा किया तो रूपा बोली, ‘‘गन्ना खाना चाहते हो तो जाओ ले आओ.’’

‘‘ऐसा करते हैं दोनों वहीं खेत में चलते हैं.’’

‘‘नहीं…नहीं मुझे गन्ने के झुरमुटों से डर लगता है. मैं नहीं जाऊंगी.’’

चंद्रशेखर ने जिद की तो रूपा को झुकना पड़ा. फिर दोनों गन्ने के खेत की ओर बढ़े और खेत में भीतर घुस गए. दोचार कदम चलने के बाद रूपा ठिठकी. तो चंद्रशेखर बोला, ‘‘अरे, आओ न… आओ, आती क्यों नहीं. अच्छा सा गन्ना तोडें़गे.’’

डरतीझिझकती रूपा चंद्रशेखर के पीछे चलने लगी. गन्ने के सूखे भूरे पत्ते पैरों में दब कर चर्रमर्र की आवाज कर रहे थे. जब दोनों काफी भीतर घुस गए तब चंद्रशेखर ने अपनी बाइक और सड़क की ओर देखा. लेकिन झुरमुटों की वजह से कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था. अचानक चंद्रशेखर ठिठका. उसे ठिठकते देख कर रूपा भी ठिठक पड़ी. चंद्रशेखर उस की ओर देखते हुए मुसकराया, ‘‘रूपा, यहां तक चली आई. गन्ना ही खाना होता तो इतनी दूर आने की क्या जरूरत थी. पहले ही न तोड़ लेता.’’

‘‘फिर क्यों आए इतनी दूर? मैं अभी भी नहीं समझी.’’

चंद्रशेखर के होंठों पर शरारत उभर आई. वह रूपा के करीब पहुंचा और उस के हाथों को अपने हाथ में ले लिया, ‘‘रूपा…’’

चंद्रशेखर ने तर्जनी अंगुली को अंगुली पर रखा तो रूपा बोली, ‘‘ओह… इसलिए मुझे यहां इतनी दूर लाए हो.’’

‘‘हां, तुम तो जानती हो कि वहां तो ऐसा कुछ कर नहीं पाते, जगह भी मुफीद नहीं थी. यहां भला हमें कौन देखेगा.’’ कह कर चंद्रशेखर ने रूपा को अपने बाहुपाश में लेना चाहा. वह कोई ठोस निर्णय ले पाता कि उस ने देखा रूपा उस के पीछे देख रही है. वह पीछे पलटा तो एक गाय तेजी से दौड़ती आ रही थी. गाय के पीछे से रखवाली करने वाले किसान की हा…हू.. की आवाज उन दोनों के कानों तक पहुंची. रूपा बोली, ‘‘चलो, यहां से. गाय आ रही है. लगता है, किसान गांव के पीछेपीछे आ रहा है.’’

फिर कई गायों का झुंड गन्ने में घुस आया. किसान की आवाज भी करीब आती जा रही थी. फिर रूपा वहां नहीं ठहरी. वह हाथों से गन्ने के पत्तों को अलग करती हुई वहां से भागी. चंद्रशेखर भी हड़बड़ाए अंदाज में बाइक की ओर भागा. रूपा हांफ रही थी. वह हांफती हुई बोली, ‘‘खा लिए गन्ने? ऊपर से देखो…’’ उस के सैंडिल की पट्टी एक ओर से उखड़ गई थी. पत्तों से हाथपैर अलग छिल गए थे.

रूपा बोली, ‘‘कहां ला कर फंसा दिया.’’

फिर दोनों वहां ठहरे नहीं. बाइक पर बैठ कर चले गए. इस के बाद दोनों की मेलमुलाकातों की चर्चाएं पहले कानाफूसी में तब्दील हुईं. फिर बेलसोंडा में दोनों की मुलाकात और प्यार की चर्चाएं होने लगीं. यह बात रूपा के पिता सुरेंद्र और मां जमुना के कानों तक भी पहुंची. चूंकि लड़की बालिग हो चुकी थी और बगावत पर उतर सकती थी. इसलिए सुरेंद्र ने रूपा को अपनी बड़ी बेटी हेमलता की ससुराल में उस के पास भेज दिया. रूपा हेमलता के यहां 20-25 दिन रह कर पिता के घर आ गई. इस बीच चंद्रशेखर ट्रक चलाने लगा था. गुजरे हुए समय में रूपा और चंद्रशेखर ने सैकड़ों ख्वाब देखे थे. गांव आने के बाद कुछ समय तक सब कुछ ठीक चलता रहा.

20-25 दिनों की जुदाई के बाद चंद्रशेखर और रूपा की मुलाकात हुई. चंद्रशेखर ने उस से शिकायत की, ‘‘रूपा, तुम अपनी बहन के पास रायपुर जा कर इतनी मशगूल हो गईं कि एक फोन तक नहीं किया.’’

‘‘मेरे पास फोन था ही कहां,’’ रूपा सफाई में बोली.

‘‘क्यों, कहां गया तुम्हारा फोन?’’

‘‘घर वालों ने ले लिया था.’’

‘‘नंबर तो जानती हो. फोन किसी से मांग लेती.’’

‘‘मैं दीदी की देखभाल में थी.’’

‘‘यह क्यों नहीं कहतीं कि मैं याद ही नहीं रहा तुम्हें.’’ चंद्रशेखर ने कहा.

‘‘नहीं…नहीं, ऐसी बात नहीं है. हमारा मिलना और हमारा प्यार गांव वालों की नजरों में आ चुका है. अब ऐसा लगता है कि हमें एकदूसरे से नहीं मिलना चाहिए.’’ रूपा बोली.

‘‘रूपा…तुम मिलने की बात पर अटकी हो, मैं तो तुम से शादी करना चाहता हूं.’’ चंद्रशेखर बोला.

‘‘हमारे चाहने से क्या होगा? घर वालों और समाज की मंजूरी भी जरूरी है.’’ रूपा तनिक चिढ़ गई.

‘‘रूपा, तुम्हारी यह बात गलत है. बताओ, जब तुम ने मुझ से प्यारर किया था तो क्या घर, समाज और परिवार से पूछ कर किया था?’’

‘‘नहीं, उस वक्त मुझ पर घरपरिवार और समाज का दबाव नहीं था. और आज मैं इन तीनों की निगाहों में हूं. मुझ में इतनी ताकत नहीं है कि मैं इन से लड़ कर विद्रोह कर सकूं.’’ रूपा ने कहा.

‘‘यह बात तुम्हें उस वक्त सोचनी चाहिए थी, जब प्यार की डगर पर चंद कदम ही बढ़ी थीं. अब तो हम बहुत दूर निकल आए हैं रूपा. इस का मतलब, तुम मेरा साथ नहीं दोगी?’’

‘‘माना कि हम दोनों साल भर साथ रहे, दोस्त की तरह. लेकिन इस अपनेपन को प्यार का नाम नहीं दिया जा सकता.’’

कुछ पलों तक हैरानगी, बेचारगी से रूपा की ओर देख कर चंद्रशेखर बोला, ‘‘ऐसा मत कहो रूपा. हमारी चाहत को अपनेपन का लबादा मत ओढ़ाओ. मैं ने तुम्हें और खुद को ले कर ढेरों ख्वाब देखे हैं. तुम्हारे विचार जान कर जी चाहता है कि इसी सड़क पर किसी वाहन के नीचे कुचल कर मर जाऊं.’’

वह गहरी सांस ले कर फिर बोला, ‘‘सचमुच मैं बहुत दूर निकल आया हूं तुम्हारे साथ, अब वापस लौटना मुमकिन नहीं.’’

‘‘सड़क पर सिर पटक कर मरना चाहते हो, ऐसा कर के क्या यह जाहिर करना चाह रहे हो कि तुम मेरे बिना जी नहीं सकते?’’ रूपा तीखे शब्दों में बोली. चंद्रशेखर रूपा की बात सुन कर पहली बार आपे से बाहर होता हुआ बोला, ‘‘मत भूलो रूपा कि जिस सड़क पर मैं स्वयं को फना करने का माद्दा रखता हूं. यहीं इस सड़क पर तुम्हारे साथ भी कर सकता हूं.’’

वह फिर गिड़गिड़ाया, ‘‘प्लीज रूपा, ऐसा मत कहो.’’

‘‘चंद्रशेखर, तुम समझने का प्रयास नहीं कर रहे हो या फिर समझना नहीं चाहते.’’

‘‘रूपा, तुम क्या समझाना चाह रही हो? और मैं क्या नहीं समझ रहा हूं?’’

‘‘तो सुनो, फिर कह रही हूं कि जिसे तुम प्यार समझ रहे हो, वह प्यार नहीं. सिर्फ दोस्ती थी.’’ इस के बाद चंद्रशेखर के होंठों से बेबसी में शब्द निकले, ‘‘रूपा, जिस प्यार को तुम दोस्ती का नाम दे रही हो, इस से अच्छा है कि इसे बेनाम ही रहने दो. मैं देख रहा हूं तुम्हारा व्यवहार बदल रहा है.’’

चंद्रशेखर अभी कुछ और बोलने ही जा रहा था कि रूपा यह कहते हुए वहां से चली गई कि तुम्हें जो समझना है, समझते रहो. इतना मान कर चलो कि अब मैं तुम से कभी नहीं मिलूंगी. उस ने चंद्रशेखर की आवाज को कोई तरजीह नहीं दी. फिर वह उस ओर चला गया, जहां एक पेड़ के नीचे उस की बाइक खड़ी थी. सोचों का बवंडर चंद्रशेखर को झकझोरने लगा था. रूपा आखिर इतनी निर्मोही, बेमुरव्वत कैसे हो गई. वह अपने गांव की ओर बढ़ चला. 2 पखवाड़े बाद उस ने रूपा से मिलने का मंसूबा बनाया. किसी तरह से वह रूपा से मिलने में कामयाब भी रहा. अब की बार वह रूपा से मिल कर ठोस निर्णय लेने के पक्ष में था. वह उस स्थान पर खड़ा रहा, जहां पर रूपा से मिलना था.

रूपा वहां आई, काफी इंतजार करवाने के बाद वह चंद्रशेखर से मिली. चंद्रशेखर ने किसी तरह की भूमिका नहीं बांधी. वह सीधे मुद्दे पर आ गया, ‘‘रूपा, मैं तुम से शादी करना चाहता हूं.’’

रूपा ने उसी अंदाज में जवाब दिया, ‘‘मैं तुम से शादी नहीं कर सकती.’’

चंद्रशेखर रूपा की ओर टकटकी लगा कर देखता हुआ बोला, ‘‘आखिर, तुम मुझ से शादी क्यों नहीं कर सकतीं? अच्छाभला कमा लेता हूं. घर से भी संपन्न हूं. अपनी हैसियत से बढ़ कर तुम्हें वह सब कुछ देने का प्रयास करूंगा, जिस की तुम ख्वाहिश रखती होगी.’’

‘‘चंद्रशेखर, मैं साफसाफ बता देती हूं कि मैं तुम से किसी भी कीमत पर शादी नहीं कर सकती.’’

चंद्रशेखर कुछ बोलने वाला ही था कि रूपा ने हाथ उठा कर चुप रहने का इशारा किया, ‘‘मेरे घर के लोग मेरी शादी जहां करेंगे, मुझे मंजूर होगा. उन की इच्छा के विरुद्ध मैं कुछ नहीं कर पाऊंगी. मैं पहले ही कह चुकी हूं कि मैं तुम से प्यार नहीं करती. और हां, अभी तक जो कुछ तुम ने मुझे दिया है. जस के तस लौटा रही हूं.’’ रूपा ने एक कैरीबैग चंद्रशेखर की ओर बढ़ा दिया.

‘‘अपने पास ही रखो इसे, मैं दी हुई चीज वापस नहीं लेता.’’

‘‘तुम्हारी मरजी. और हां, यह खयाल रखना कि आइंदा मुझ से मिलने की कोशिश मत करना.’’

रूपा जाने को हुई तो चंद्रशेखर ने धमकी दी, ‘‘रूपा, तुम्हारी शादी होगी तो सिर्फ मुझ से होगी. मैं तुम्हें किसी और की दुलहन बनते नहीं देख सकता. तुम मेरी नहीं हो सकतीं तो किसी और की भी नहीं बन पाओगी, याद रखना.’’

कुछ दिनों तक चंद्रशेखर के हवास पर रूपा का इनकार डंक मारता रहा. जलन की आग ने चंद्रशेखर को बुरी तरह सुलगा रखा था. उसे करार तभी आता जब या तो रूपा उस की हो जाती या वह रूपा के वजूद को मिटा देता. उस पर पागलपन काबिज हो चुका था. दिमागी संतुलन खोता जा रहा था. आखिर उस ने एक योजना बना ली. उसी के तहत वह रूपा की रैकी करने लगा. 11 फरवरी, 2021 को दोपहर करीब सवा बजे रूपा अपनी बहन हेमलता के साथ दवा लेने एक मैडिकल स्टोर पर पहुंची. चंद्रशेखर कई दिनों से रूपा की टोह में लगा था. किसी छलावे की तरह चंद्रशेखर रूपा के सामने पहुंच गया. उस के साथ बाइक पर उस के 2 दोस्त भरत निषाद और गोपाल यादव भी थे.

अप्रत्याशित रूप से अपने सामने चंद्रशेखर को देख कर रूपा घबरा गई. चंद्रशेखर ने दोनों को अपने साथ इसलिए रखा था कि किसी तरह का व्यवधान आने पर भरत निषाद और गोपाल यादव उस की मदद करेंगे. तभी फुरती से देशी तमंचा निकाल कर चंद्रशेखर रूपा की ओर तानते हुए बोला, ‘‘रूपा, तुम मेरी नहीं तो किसी की नहीं.’’

चंद्रशेखर का खूंखार चेहरा देख कर रूपा ने डर कर भागना चाहा तभी चंद्रशेखर ने उस की कलाई पकड़ ली. उस की बड़ीबहन हेमलता ने बीचबचाव करने की कोशिश की. जब तक वह कामयाब होती तब तक गोली रूपा की कनपटी के बाहर हो चुकी थी. गोली लगते ही रूपा जमीन पर गिर पड़ी. किसी को कुछ समझ में नहीं आया. वे तीनों बाइक पर बैठ कर वहां से भाग गए. चंद्रशेखर के कहने पर उस के दोस्तों ने उसे नदी मोड़ के पास बाइक से उतार दिया. वारदात को अंजाम देने के बाद दोपहर सवा 2 बजे चंद्रशेखर सीधे थाना सिटी कोतवाली, महासमुंद पहुंचा और आत्मसमर्पण कर दिया. पुलिस को उस ने रूपा की हत्या करने की बात बता दी.

थानाप्रभारी ने उसे हिरासत में ले लिया और पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. थानाप्रभारी ने यह सूचना उच्चाधिकारियों को दे दी. कुछ ही देर में एडिशनल एसपी मेघा टेंभुरकर साहू, एसपी प्रफुल्ल ठाकुर के अलावा पुलिस अधिकारी शेर सिंह बंदे, यू.आर. साहू, संजय सिंह राजपूत (साइबर सेल प्रभारी) योगेश कुमार सोनी, टीकाराम सारथी आदि भी घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस ने मृतका के घर वालों से पूछताछ करने के बाद रूपा की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. इस के बाद उसी दिन शाम के समय आरोपी भरत निषाद और गोपाल यादव को उन्हीं के गांव मुडैना से गिरफ्तार कर लिया गया.

तीनों आरोपियों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें कोर्ट में पेश कर 15 फरवरी तक पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि पूरी होने से पहले ही पुलिस ने उन्हें फिर से कोर्ट में पेश कर महासमुंद जेल भेज दिया.

Love Crime News : ईंट से कई वार करके शादीशुदा प्रेमिका का किया कत्ल

Love Crime News : 2 बच्चों की मां बनने के बावजूद भी सरिता का शारीरिक आकर्षण बरकरार था. तभी तो जब उस का पति अरविंद दोहरे काम करने कुछ दिनों के लिए घर से बाहर गया तो वह पति के दोस्त दलबीर सिंह की बांहों में चली गई. इस का खामियाजा सरिता को ही इस तरह भुगतना पड़ा कि…

अरविंद दोहरे अपने काम से शाम को घर लौटा तो उस की पत्नी सरिता के साथ दलबीर सिंह घर में मौजूद था. उस समय दोनों हंसीठिठोली कर रहे थे. उन दोनों को इस तरह करीब देख कर अरविंद का खून खौल उठा. अरविंद को देखते ही दलबीर सिंह तुरंत बाहर चला गया. उस के जाते ही अरविंद पत्नी पर बरस पड़ा, ‘‘तुम्हारे बारे में जो कुछ सुनने को मिल रहा है, उसे सुन कर अपने आप पर शरम आती है मुझे. मेरी नहीं तो कम से कम परिवार की इज्जत का तो ख्याल करो.’’

‘‘तुम्हें तो लड़ने का बस बहाना चाहिए, जब भी घर आते हो, लड़ने लगते हो. मैं ने भला ऐसा क्या गलत कर दिया, जो मेरे बारे में सुनने को मिल गया.’’ सरिता ने तुनकते हुए कहा तो अरविंद ताव में बोला, ‘‘तुम्हारे और दलबीर के नाजायज रिश्तों की चर्चा पूरे गांव में हो रही है. लोग मुझे अजीब नजरों से देखते हैं. मेरा भाई मुकुंद भी कहता है कि अपनी बीवी को संभालो. सुन कर मेरा सिर शरम से झुक जाता है. आखिर मेरी जिंदगी को तुम क्यों नरक बना रही हो?’’

‘‘नरक तो तुम ने मेरी जिंदगी बना रखी है. पत्नी को जो सुख चाहिए, तुम ने कभी दिया है मुझे? अपनी कमाई जुआ और शराब में लुटाते हो और बदनाम मुझे कर रहे हो.’’ सरिता  तुनक कर बोली. पत्नी की बात सुन कर अरविंद का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. उस ने उस की पिटाई करनी शुरू कर दी. वह उसे पीटते हुए बोला, ‘‘साली, बदजात एक तो गलती करती है, ऊपर से मुझ से ही जुबान लड़ाती है.’’

सरिता चीखतीचिल्लाती रही, लेकिन अरविंद के हाथ तभी रुके जब वह पिटतेपिटते बेहाल हो गई. पत्नी की जम कर धुनाई करने के बाद अरविंद बिस्तर पर जा लेटा. सरिता और अरविंद के बीच लड़ाईझगड़ा और मारपीट कोई नई बात नहीं थी. दोनों के बीच आए दिन ऐसा होता रहता था. उन के झगड़े की वजह था अरविंद का दोस्त दलबीर सिंह. अरविंद के घर दलबीर सिंह का आनाजाना था. अरविंद को शक था कि सरिता और दलबीर सिंह के बीच नाजायज संबंध हैं. इस बात को ले कर गांव वालों ने भी उस के कान भरे थे. बीवी की किसी भी पुरुष से दोस्ती चाहे जायज हो या नाजायज, कोई भी पति बरदाश्त नहीं कर सकता.

अरविंद भी नहीं कर पा रहा था. जब भी उस के दिमाग में शक का कीड़ा कुलबुलाता, वह बेचैन हो जाता था. उत्तर प्रदेश के औरैया जिले के फफूंद थाना क्षेत्र में एक गांव है लालपुर. अरविंद दोहरे अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी सरिता के अलावा 2 बच्चे थे. अरविंद के पास मामूली सी खेती की जमीन थी. वह जमीन इतनी नहीं थी कि मौजमजे से गुजर हो पाती. फिर भी वह सालों तक हालात से उबरने की जद्दोजहद करता रहा. सरिता अकसर अरविंद को कोई और काम करने की सलाह देती थी. लेकिन अरविंद पत्नी की बात को नजरअंदाज करते हुए अपनी खेतीकिसानी में ही खुश था.

पत्नी की बात न मानने के कारण ही दोनों में अकसर झगड़ा होता रहता था. अरविंद अपनी जमीन पर खेती करने के साथसाथ गांव के दूसरे लोगों की जमीन भी बंटाई पर ले लेता था. फिर भी परिवार के भरणपोषण के अलावा वह कुछ नहीं कर पाता था. अगर बाढ़ या सूखे से फसल चौपट हो जाती, तो उसे हाथ मलने के अलावा कुछ नहीं मिल पाता था. इसी सब के चलते जब अरविंद पर कर्ज हो गया तो वह खेती की देखभाल के साथ फफूंद कस्बे में एक ठेकेदार के पास मजदूरी करने लगा. वहां से उस का रोजाना घर आना संभव नहीं था, इसलिए वह फफूंद कस्बे में ही किराए का कमरा ले कर रहने लगा.

अब वह हफ्ता-15 दिन में ही घर आता और पत्नी के साथ 1-2 रातें बिता कर वापस चला जाता. 30 वर्षीय सरिता उन दिनों उम्र के उस दौर से गुजर रही थी, जब औरत को पुरुष की नजदीकियों की ज्यादा चाहत होती है. जैसेतैसे कुछ वक्त तो गुजर गया. लेकिन फिर सरिता का जिस्म अंगड़ाइयां लेने लगा. एक रोज उस की नजर दलबीर सिंह पर पड़ी तो उस ने बहाने से उसे घर बुला लिया. दलबीर सिंह गांव के दबंग छोटे सिंह का बड़ा बेटा था. उस की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. दूध के व्यवसाय से वह खूब कमाता था. दलबीर सिंह और उस के पति अरविंद हमउम्र थे. दोनों में खूब पटती थी.

अरविंद जब गांव आता था, तो शाम को दोनों बैठ कर शराब पीते थे. सरिता को वह भाभी कहता था. घर के अंदर आते ही सरिता ने पूछा, ‘‘देवरजी, हम से नजरें चुरा कर कहां जा रहे थे?’’

‘‘भाभी, अभीअभी तो घर से आ रहा हूं. खेत की ओर जा रहा था कि आप ने बुला लिया.’’ दलबीर सिंह ने मुसकरा कर जवाब दिया. उस दिन दलबीर सिंह को सरिता ज्यादा खूबसूरत लगी. उस की निगाहें सरिता के चेहरे पर जम गईं. यही हाल सरिता का भी था. दलबीर सिंह को इस तरह देखते सरिता बोली, ‘‘ऐसे क्या देख रहे हो मुझे. क्या पहली बार देखा है? बोलो, किस सोच में डूबे हो?’’

‘‘नहीं भाभी, ऐसी कोई बात नहीं है, मैं तो यह देख रहा था कि साधारण मेकअप में भी तुम कितनी सुंदर लग रही हो. अड़ोसपड़ोस में तुम्हारे अलावा और भी हैं, पर तुम जैसी सुंदर कोई नहीं है.’’

‘‘बस… बस रहने दो, बहुत बातें बनाने लगे हो. तुम्हारे भैया तो कभी तारीफ नहीं करते. महीना-15 दिन में आते हैं, वह भी किसी न किसी बात पर झगड़ते रहते हैं.’’

‘‘अरे भाभी, औरत की खूबसूरती सब को रास थोड़े ही आती है. अरविंद भैया तो अनाड़ी हैं. शराब में डूबे रहते हैं. इसलिए तुम्हारी कद्र नहीं करते.’’

‘‘और तुम?’’ सरिता ने आंखें नचाते हुए पूछा.

‘‘मुझे सचमुच तुम्हारी कद्र है भाभी. यकीन न हो तो परख लो. अब मैं तुम्हारी खैरखबर लेने आता रहूंगा. छोटाबड़ा जो भी काम कहोगी, करूंगा.’’ दलबीर सिंह ने सरिता की चिरौरी सी की. दलबीर सिंह की यह बात सुन कर सरिता खिलखिला कर हंस पड़ी. फिर बोली, ‘‘तुम आराम से चारपाई पर बैठो. मैं तुम्हारे लिए चाय बनाती हूं.’’

थोड़ी देर में सरिता 2 कप चाय ले आई. दोनों पासपास बैठ कर गपशप लड़ाते हुए चाय पीते रहे और चोरीछिपे एकदूसरे को देखते रहे. दोनों के दिलोदिमाग में हलचल सी मची हुई थी. सच तो यह था कि सरिता दलबीर पर फिदा हो गई थी. वह ही नहीं, दलबीर सिंह भी सरिता का दीवाना बन गया था. दोनों के दिल एकदूसरे के लिए धड़के तो नजदीकियां खुदबखुद बन गईं. इस के बाद दलबीर सिंह अकसर सरिता से मिलने आने लगा. सरिता को दलबीर सिंह का आना अच्छा लगता था. जल्द ही वे एकदूसरे से खुल गए और दोनों के बीच हंसीमजाक होने लगा. सरिता चाहती थी कि पहल दलबीर सिंह करे, जबकि दलबीर चाहता था कि जिस्म की भूखी सरिता स्वयं उसे उकसाए.

आखिर जब सरिता से नहीं रहा गया तो एक रोज रात में उस ने दलबीर सिंह को अपने घर रोक लिया. फिर तो उस रात दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं. हर रिश्ता टूट कर बिखर गया और एक नए रिश्ते ने जन्म लिया, जिस का नाम है अवैध संबंधों का रिश्ता. उस दिन के बाद सरिता और दलबीर सिंह अकसर एकांत में मिलने लगे. लेकिन यह सच है कि ऐसे संबंध ज्यादा दिनों तक छिपते नहीं हैं. उन का भांडा एक न एक दिन फूट ही जाता है. सरिता और दलबीर के साथ भी ऐसा ही हुआ. एक रात जब सरिता और दलबीर सिंह देह मिलन कर रहे थे तो सरिता की देवरानी आरती ने छत से दोनों को देख लिया.

उस ने यह बात अपने पति मुकुंद को बताई. फिर तो यह बात गांव में फैल गई. और उन के नाजायज रिश्तों की चर्चा पूरे गांव में होने लगी. सरिता के पति अरविंद दोहरे को जब सरिता और दलबीर सिंह के संबंधों का पता चला तो उस के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई. उस ने इस बारे में पत्नी व दोस्त दलबीर से बात की तो दोनों मुकर गए और साफसाफ कह दिया कि ऐसी कोई बात नहीं है. गांव के लोग उन्हें बेवजह बदनाम कर रहे हैं. लेकिन एक रोज अरविंद ने जब दोनों को हंसीठिठोली करते अचानक देख लिया तो उस ने सरिता की पिटाई की तथा दलबीर सिंह को भी फटकारा. लेकिन उन दोनों पर इस का कोई असर नहीं हुआ. दोनों पहले की तरह ही मिलते रहे.

पत्नी की इस बेवफाई से अरविंद टूट चुका था. महीना-15 दिन में जब वह घर आता था तो दलबीर को ले कर सरिता से उस की जम कर तकरार होती थी. कई बार नौबत मारपीट तक आ जाती थी. अरविंद का पूरा परिवार और गांव वाले इस बात को जान गए थे कि दोनों के बीच तनाव सरिता और दलबीर सिंह के नाजायज संबंधों को ले कर है. अरविंद की जब गांव में ज्यादा बदनामी होने लगी तो उस ने फफूंद कस्बे में रहना जरूरी नहीं समझा और अपने गांव आ कर रहने लगा. पर सरिता तो दलबीर सिंह की दीवानी थी. उसे न तो पति की परवाह थी और न ही परिवार की इज्जत की. वह किसी न किसी बहाने दलबीर से मिल ही लेती थी.

हां, इतना जरूर था कि अब वह उस से घर के बजाय बाहर मिल लेती थी. दरअसल घर से कुछ दूरी पर अरविंद का प्लौट था. इस प्लौट में एक झोपड़ी बनी हुई थी. इसी झोपड़ी में दोनों का मिल लेते थे. जुलाई, 2020 में सरिता का छोटा बेटा नीरज उर्फ जानू बीमार पड़ गया. उस के इलाज के लिए सरिता ने अपने प्रेमी दलबीर सिंह से पैसे मांगे, लेकिन उस ने धंधे में घाटा होने का बहाना बना कर सरिता को पैसे देने से इनकार कर दिया. उचित इलाज न मिल पाने से एक महीने बाद सरिता के बेटे जानू की मौत हो गई. बेटे की मौत का सरिता को बेहद दुख हुआ.

विपत्ति के समय आर्थिक मदद न करने के कारण सरिता दलबीर सिंह से नाराज रहने लगी थी. वह न तो स्वयं उस से मिलती और न ही दलबीर को पास फटकने देती. सरिता सोचती, ‘जिस प्रेमी के लिए उस ने पति से विश्वासघात किया. परिवार की मर्यादाओं को ताक पर रख दिया, उसी ने बुरे वक्त पर धोखा दे दिया. समय रहते यदि उस ने आर्थिक मदद की होती, तो आज उस का बेटा जीवित होता.’

सरिता ने प्रेमी से दूरियां बनाईं तो दलबीर सिंह परेशान हो उठा. वह उसे मनाने की कोशिश करता, लेकिन सरिता उसे दुत्कार देती. दलबीर सरिता को भोगने का आदी बन चुका था. उसे सरिता के बिना कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था. आखिर जब उस से नहीं रहा गया तो उस ने सरिता को मनाने के लिए उसे प्लौट में बनी झोपड़ी में बुलाया. सरिता वहां पहुंची तो दलबीर ने उस से पूछा, ‘‘सरिता, तुम मुझ से दूरदूर क्यों भागती हो. मैं तुम्हें बेइंतहा प्यार करता हूं.’’

‘‘तुम मुझ से नहीं, मेरे शरीर से प्यार करते हो. तुम्हारा प्यार स्वार्थ का है. सच्चे प्रेमी सुखदुख में एकदूसरे का साथ देते हैं. लेकिन तुम ने हमारे दुख में साथ नहीं दिया. जब तुम स्वार्थी हो, तो अब मैं भी स्वार्थी बन गई हूं. अब मुझे भी तन के बदले धन चाहिए.’’

‘‘क्या तुम प्यार की जगह अपने तन का सौदा करना चाहती हो?’’ दलबीर ने पूछा.

‘‘जब प्यार की जगह स्वार्थ पनप गया हो तो समझ लो कि मैं भी तन का सौदा करना चाहती हूं. अब तुम मेरे शरीर से तभी खेल पाओगे, जब एक लाख रुपया मेरे हाथ में थमाओगे.’’

‘‘यदि रुपयों का इंतजाम न हो पाया तो..?’’ दलबीर ने पूछा.

‘‘…तो मुझे भूल जाना.’’

दलबीर को सपने में भी उम्मीद न थी कि सरिता तन के सौदे की बात करेगी. उसे उम्मीद थी कि वह उस से माफी मांग कर तथा कुछ आर्थिक मदद कर उसे मना लेगा. पर ऐसा नहीं हुआ बल्कि सरिता ने उस से बड़ी रकम की मांग कर दी. इस के बाद सरिता और दलबीर में दूरियां और बढ़ गईं. जब कभी दोनों का आमनासामना होता और दलबीर सरिता को मनाने की कोशिश करता तो वह एक ही जवाब देती, ‘‘मुझे तन के बदले धन चाहिए.’’

13 जनवरी, 2021 की सुबह 5 बजे दलबीर सिंह ने सरिता को फोन कर के अपने प्लौट में बनी झोपड़ी में बुलाया. सरिता को लगा कि शायद दलबीर ने रुपयों का इंतजाम कर लिया है. सो वह वहां जा पहुंच गई. सरिता के वहां पहुंचते ही दलबीर उस के शरीर से छेड़छाड़ तथा प्रणय निवेदन करने लगा. सरिता ने छेड़छाड़ का विरोध किया और कहा कि वह तभी राजी होगी, जब उस के हाथ पर एक लाख रुपया होगा. सरिता के इनकार पर दलबीर सिंह जबरदस्ती करने लगा. सरिता ने तब गुस्से में उस की नाक पर घूंसा जड़ दिया. नाक पर घूंसा पड़ते ही दलबीर तिलमिला उठा. उस ने पास पड़ी ईंट उठाई और सरिता के सिर पर दे मारी.

सरिता का सिर फट गया और खून की धार बह निकली. इस के बाद उस ने उस के सिर पर ईंट से कई प्रहार किए. कुछ देर छटपटाने के बाद सरिता ने दम तोड़ दिया. सरिता की हत्या के बाद दलबीर सिंह फरार हो गया. इधर कुछ देर बाद सरिता की देवरानी आरती किसी काम से प्लौट पर गई तो वहां उस ने झोपड़ी में सरिता की खून से सनी लाश देखी. वह वहां से चीखती हुई घर आई और जानकारी अपने पति मुकुंद तथा जेठ अरविंद को दी. दोनों भाई प्लौट पर पहुंचे और सरिता का शव देख कर अवाक रह गए. इस के बाद तो पूरे गांव में सनसनी फैल गई और मौके पर भीड़ जुटने लगी.

इसी बीच परिवार के किसी सदस्य ने थाना फफूंद पुलिस को सरिता की हत्या की सूचना दे दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी राजेश कुमार सिंह पुलिस फोर्स के साथ लालपुर गांव की ओर रवाना हो लिए. रवाना होने से पहले उन्होंने पुलिस अधिकारियों को भी सूचित कर दिया था. कुछ देर बाद ही एसपी अपर्णा गौतम, एएसपी कमलेश कुमार दीक्षित तथा सीओ (अजीतमल) कमलेश नारायण पांडेय भी लालपुर गांव पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया तथा मृतका सरिता के पति अरविंद दोहरे तथा अन्य लोगों से पूछताछ की. फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर साक्ष्य जुटाए तथा फिंगरप्रिंट लिए.

एसपी अपर्णा गौतम ने जब मृतका के पति अरविंद दोहरे से हत्या के संबंध में पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस की पत्नी सरिता के दलबीर सिंह से नाजायज संबंध थे, जिस का वह विरोध करता था. इसी नाजायज रिश्तों की वजह से सरिता की हत्या उस के प्रेमी दलबीर सिंह ने की है. दलबीर और सरिता के बीच किसी बात को ले कर मनमुटाव चल रहा था. अवैध रिश्तों में हुई हत्या का पता चलते ही एसपी अपर्णा गौतम ने थानाप्रभारी राजेश कुमार सिंह को आदेश दिया कि वह आरोपी के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर उसे गिरफ्तार करें. आदेश पाते ही राजेश कुमार सिंह ने मृतका के पति अरविंद दोहरे की तहरीर पर भादंवि की धारा 302 तथा (3) (2) अ, एससी/एसटी ऐक्ट के तहत दलबीर सिंह के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया तथा उस की तलाश में जुट गए.

15 जनवरी, 2021 की शाम चैकिंग के दौरान थानाप्रभारी राजेश कुमार सिंह को मुखबिर से सूचना मिली कि हत्यारोपी दलबीर सिंह आरटीओ औफिस की नई बिल्डिंग के अंदर मौजूद है. मुखबिर की सूचना पर थानाप्रभारी ने आरटीओ औफिस की नई बिल्डिंग से दलबीर सिंह को गिरफ्तार कर लिया. उस की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त खून सनी ईंट तथा खून सने कपड़े बरामद कर लिए. दलबीर सिंह ने बताया कि सरिता से उस का नाजायज रिश्ता था. सरिता उस से एक लाख रुपए मांग रही थी. इसी विवाद में उस ने सरिता की हत्या कर दी.

राजेश कुमार सिंह ने सरिता की हत्या का खुलासा करने तथा आरोपी दलबीर सिंह को गिरफ्तार करने की जानकारी एसपी अपर्णा गौतम को दी, तो उन्होंने पुलिस लाइन सभागार में प्रैसवार्ता की और आरोपी दलबीर सिंह को मीडिया के समक्ष पेश कर हत्या का खुलासा किया. 16 जनवरी, 2021 को पुलिस ने अभियुक्त दलबीर सिंह को औरैया कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

UP News : शराब की बोतल तोड़ी, नुकीले हिस्से से पति पर वार कर किया कत्ल

UP News : यह सच्चाई है कि अवैध संबंधों को ज्यादा दिनों तक छिपाए नहीं रखा जा सकता. खुलासा होने पर ये आपराधिक वारदात को जन्म देते हैं. काश! इस बात को पेशे से अध्यापक रहे इंद्रपाल और उस की पत्नी सीमा समझ पाती तो शायद…

कन्नौज जिले का एक बड़ा कस्बा है सौरिख. इसी कस्बे के नगरिया तालपार में शिक्षक इंद्रपाल रहते थे. उन के पिता श्रीकृष्ण मुर्रा गांव के निवासी थे. वहां उन का पुश्तैनी मकान तथा खेती की जमीन है. उन के बेटे इंद्रपाल ने सौरिख कस्बे में दोमंजिला मकान बनवा लिया था. इंद्रपाल की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. वह शिक्षक संघ का अध्यक्ष भी था. वर्ष 2001 में इंद्रपाल का विवाह फर्रुखाबाद (गदराना) निवासी सरयू प्रसाद की बेटी सुधा के साथ हुआ था. सुधा साधारण रंगरूप वाली युवती थी. लगभग 2 साल तक दोनों का दांपत्य जीवन हंसीखुशी से बीता, उस के बाद कड़वाहट घुलने लगी.

कड़वाहट का पहला कारण था, इंद्रपाल का शराब पी कर घर आना तथा दूसरा कारण था झगड़ा और मारपीट करना. सुधा शराब पीने को मना करती तो वह उसे ही दोषी ठहराता और उस के चरित्र पर अंगुली उठाता, सुधा तब परेशान हो कर मायके चली जाती. सुधा जब पहले मायके आती थी तो उल्लास से भरे उस के पैर एक स्थान पर नहीं टिकते थे. लेकिन अब जब भी आती थी तो वह गुमसुम और उदास रहती थी. उस की मां तारावती ने कई बार उस से पूछा भी कि बेटी, क्या ससुराल में तुम्हें किसी तरह का दुख या परेशानी है?

‘‘नहीं मां सब ठीक है. ऐसा कुछ भी गलत नहीं है कि उसे सही करने के लिए तुम्हें दखल देने की जरूरत हो.’’ कह कर सुधा हर बार टाल देती.

तारावती के सीने में मां का दिल था. वह खूब समझ रही थी कि सुधा असल बात बता नहीं रही, कुछ छिपाए हुए है. इस बारे में उस ने पति से राय ली तो सरयू प्रसाद ने कहा कि उन लोगों का कोई घरेलू और आपसी मामला होगा. उन्हें ही सुलझाने दो. हमें दखल देने की जरूरत नहीं है. हम दखल देंगे, तो बात बनने के बजाय बिगड़ने का अंदेशा है. लेकिन तारावती का मन बेटी की उदासी को स्वाभाविक मतभेद मानने को तैयार नहीं था. उसे लग रहा था कि कोई तो बात है, जो सुधा को घुन की तरह खाए जा रही है. उस ने तय कर लिया कि अब की बार सुधा आई, तो वह उस से जान कर रहेगी कि उस की उदासी का कारण क्या है?

कुछ दिनों बाद सुधा मायके आई तो उस के चेहरे पर पहले की तरह उदासी की परछाइयां कायम थीं. उचित समय पर तारावती ने सुधा को पास बिठा कर स्नेह से उस के सिर पर हाथ फेरा, ‘‘बेटी मां से बड़ी शुभचिंतक और हितैषी कोई दूसरी नहीं होती. न ही मां से बेहतर कोई सहेली होती है.’’

सुधा ने सिर उठा कर मां को सूनीसूनी आंखों से देखा, लेकिन कुछ बोली नहीं. तारावती ने अपनी रौ में बोलना जारी रखा, ‘‘सुधा, मैं तुम्हें दुखी और उदास नहीं देख सकती. मां न सही सहेली ही समझ कर आज तुम अपना दुख कह दो.’’

संभवत: उस दिन सुधा का अंतस कुछ अधिक भरा हुआ था. ममता की आंच से वह पिघल गई. उस की आंखों से आंसुओं की धारा बह निकली. कुछ देर बाद सुधा के आंसू थमे तो वह बोली, ‘‘मां मेरा दुख यह है कि कुछ महीनों से इंद्रपाल पहले जैसे नहीं रहे, वह बहुत बदल गए हैं.’’

सुधा ने रुंधे कंठ से बताया, ‘‘न वह सीधे मुंह बात करते है. न प्यार से पेश आते हैं. शराब पी कर झगड़ा भी करते हैं. मैं थाली परोसती हूं तो, वह उस पर नजर तक नहीं डालते. मेरे साथ सोते जरूर हैं, पर पीठ कर के.’’

सुधा की बात सुन कर तारावती की आंखें हैरत से फैल गईं. वह जान गई कि बेटी का जीवन अंधकारमय है. तारावती ने इस बाबत इंद्रपाल से बात की तो वह झगड़े पर उतारू हो गया. उस ने साफ कह दिया कि वह सुधा को पसंद नहीं करता. वह उस से तलाक चाहता है. दामाद की बात सुन कर तारावती सन्न रह गई. उस ने दोनों के बीच तनाव खत्म करने के लिए अनेक उपाय किए. रिश्तेदारों के बीच समझौते का प्रयास किया. लेकिन जब बात नहीं बनी तो मामला कोर्टकचहरी तक जा पहुंचा. आखिर में दोनों की रजामंदी से इंद्रपाल और सुधा का तलाक हो गया. फिर सुधा मायके में रहने लगी.

सुधा से तलाक होने के बाद इंद्रपाल दूसरी शादी के लिए प्रयास करने लगा. परिवार के लोग भी चाहते थे कि इंद्रपाल का दूसरा विवाह हो जाए, तो वह भी प्रयास करने लगे. घर वालों को कई रिश्ते पसंद भी आए, लेकिन इंद्रपाल ने रिश्ता नकार दिया. परिवार के लोग भी समझ गए कि इंद्रपाल अपनी मनपसंद युवती से ही शादी करेगा. इंद्रपाल फर्रूखाबाद शहर के आरबीआरडी इंटर कालेज में पढ़ाता था. वह प्राइवेट शिक्षक था. इसी कालेज में सीमा पाल नाम की लड़की पढ़ती थी. इंटरमीडिएट में पढ़ाई के दौरान सीमा और इंद्रपाल एकदूसरे की ओर आकर्षित हुए. कुछ दिनों बाद दोनों की मुलाकातें कालेज के बाहर भी होने लगीं.

सीमा पाल के पिता अवध पाल, हुसैनपुर के रहने वाले थे. परिवार में पत्नी के अलावा बेटा मनोज तथा बेटी सीमा थी. अवध पाल किसान थे. सीमा उन की होनहार बेटी थी. पढ़ने में भी तेज थी, सो वह उसे पढ़ालिखा कर अपने पैरों पर खड़ा करना चाहते थे. सीमा, छरहरी काया और तीखे नाकनक्श वाली लड़की थी. उस की मुसकान सामने वाले पर गहरा असर करती थी. सीमा की खूबसूरती और मुसकान इंद्रपाल के दिल पर भी असर कर गई थी. एक दिन इंद्रपाल ने उस से अपने मन की बात भी कह दी, ‘‘सीमा हंसते हुए तुम बहुत अच्छी लगती हो. इसी तरह हंसती रहा करो. यदि तुम मेरा प्यार कबूल कर लोगी तो मैं खुद को दुनिया का सब से खुशनसीब आदमी समझूंगा.’’

सीमा उम्र के जिस पायदान पर थी, उस में लड़कियों को ऐसी बातें गुदगुदा देती हैं. सीमा का भी दिलोदिमाग सुखद सनसनी से भर गया. उस ने इंद्रपाल की आंखों में देखा. उन आंखों में प्यार का सागर ठाठे मार रहा था. उस की आंखों में देखते हुए कुछ देर तक वह सोच में डूबी रही, उस के बाद बोली, ‘‘अगर मैं तुम्हारा प्यार कबूल कर लूं तो तुम्हारा अगला कदम क्या होगा?’’

‘‘शादी.’’ इंद्रपाल ने तपाक से जवाब दिया.

‘‘लेकिन मेरे घर वाले राजी नहीं हुए तो..?’’ सीमा ने पूछा.

‘‘…तो हम दोनों प्रेम विवाह कर लेंगे.’’

सीमा मुसकराई और फिर नजरें झुका कर स्वीकृति में सिर हिला दिया. इंद्रपाल का दिल बल्लियां उछल पड़ा. उस ने तो एक मुट्ठी आसमान की तमन्ना की थी, लेकिन यहां तो पूरा का पूरा आसमान उस का हो गया था. कुछ दिनों बाद इंद्रपाल के कहने पर सीमा ने घर वालों को अपने प्रेम से अवगत कराया और विवाह की इच्छा प्रकट की तो उन्होंने सीमा को समझाया, ‘‘बेटी, इंद्रपाल पहली पत्नी को धोखा दे चुका है. तुम्हें भी धोखा दे सकता है. बेहतर यही होगा कि उस का खयाल अपने मन से निकाल दो.’’

सीमा ने मुलाकात कर ये सारी बातें इंद्रपाल को बताईं, तो उस ने पूछा, ‘‘तुम क्या चाहती हो? तुम्हारे जवाब पर ही सब कुछ निर्भर है.’’

‘‘मैं तुम्हें पाना चाहती हूं.’’ सीमा ने जवाब दिया. इस के बाद वर्ष 2007 में सीमा पाल ने अपने घर वालों की मरजी के बिना इंद्रपाल के साथ प्रेम विवाह कर लिया और उस की दुलहन बन कर इंद्रपाल के साथ रहने लगी. इंद्रपाल के घर वालों ने भी सीमा को बहू के रूप में स्वीकार कर लिया. चूंकि सीमा और इंद्रपाल ने प्रेम विवाह किया था. अत: दोनों खुश थे. वैसे भी संपन्न घर और शिक्षक पति पा कर सीमा फूली नहीं समा रही थी. सौरिख कस्बे के नगरिया तालपार स्थित 2 मंजिला मकान की ऊपरी मंजिल पर वह पति इंद्रपाल के साथ रहती थी, भूतल और प्रथम तल पर किराएदार रहते थे. हंसीखुशी से 3 साल कब बीत गए, दोनों को पता ही न चला.

इन 3 सालों में सीमा ने एक बेटी रक्षा को जन्म दिया. रक्षा के जन्म के 3 साल बाद सीमा ने एक और बेटी दीक्षा को जन्म दिया. दोनों बेटियों को सीमा और इंद्रपाल बेहद प्यार करते थे. सीमा पाल की इच्छा टीचर बनने की थी. अत: उस ने इंद्रपाल से प्रेम विवाह करने के बावजूद पढ़ाई जारी रखी. इस में इंद्रपाल ने भी उस का सहयोग किया. बीए पास करने के बाद उस ने बीएड किया. फिर जब शिक्षकों की भरती निकली तो उस ने भी आवेदन किया. सीमा पाल के भाग्य ने साथ दिया और उस का चयन प्राथमिक पाठशाला की शिक्षिका के लिए हो गया. चयन होने के बाद सीमा पाल प्राथमिक पाठशाला, चिकनपुर में सहायक अध्यापिका के तौर पर पढ़ाने लगी.

सीमा पाल को सरकारी नौकरी मिली तो उस की खुशी का ठिकाना न रहा. अब वह मायके भी जाने लगी थी. उस का भाई मनोज पाल भी उस के घर आनेजाने लगा था. इंद्रपाल का भी ससुराल आनाजाना शुरू हो गया था. मनोज की शादी में सीमा और इंद्रपाल ने मनोज की हरसंभव मदद भी की थी. वैसे भी मनोज को जब भी आर्थिक परेशानी होती थी, इंद्रपाल उस की मदद कर देता था. सीमा और इंद्रपाल की जिंदगी खुशियों से भरी थी. दोनों खूब कमाते थे. सीमा सरकारी टीचर थी, तो इंद्रपाल ने भाउलपुर में अपना निजी विद्यालय खोल लिया था. दोनों की खुशियों में ग्रहण तब लगा, जब एक रोज मनोज अपने जीजा इंद्रपाल की शिकायत करने बहन के घर आया.

उस ने सीमा को बताया कि जीजाजी ने उस के घर आतेजाते उस की पत्नी शिखा को अपने प्रेम जाल में फंसा कर उस से नाजायज रिश्ता बना लिया है. बहन आप उन को समझाओ कि वह उस का घर बरबाद न करें. भाई की बात सुन कर सीमा के तनबदन में आग लग गई. शाम को इंद्रपाल जब विद्यालय से घर आया तो सीमा ने शिखा को ले कर सवालजवाब किया. इस पर इंद्रपाल हंस कर बोला, ‘‘शिखा हमारी सलहज है. उस से मैं हंसबोल कर अपना मन बहला लेता हूं. उस से हमारा कोई नाजायज रिश्ता नहीं है. किसी ने जरूर तुम्हारे कान भरे हैं.’’

लेकिन सीमा को पति की बात पर यकीन नहीं हुआ. उसे पता था कि उस का भाई झूठ नहीं बोल सकता. इस के बाद तो शिखा को ले कर अकसर सीमा और इंद्रपाल में झगड़ा होने लगा. कभीकभी झगड़ा इतना ज्यादा बढ़ जाता कि दोनों के बीच मारपीट हो जाती. इंद्रपाल शराब तो पहले से ही पीता था, लेकिन अब वह कुछ ज्यादा ही पीने लगा और सीमा से झगड़ा करने लगा. इसी लड़ाईझगड़े के बीच सीमा ने तीसरी बेटी दिशा को जन्म दिया. सीमा और इंद्रपाल के बीच में अब गहरी दरार पड़ गई थी. वह दोनों रहते जरूर एक छत के नीचे थे, लेकिन दोनों के बिस्तर अलग हो गए थे.

सीमा अपने बच्चों के साथ अलग कमरें में रहने लगी थी. इंद्रपाल दूसरे कमरे में बिस्तर पर करवटें बदलता रहता था. कईकई दिनों तक दोनों में बातचीत भी नहीं होती थी. पतिपत्नी के बीच तनाव चल ही रहा था कि इसी बीच अशोक ने सीमा के घर आनाजाना शुरू किया. अशोक, सौरिख में ही रहता था और रिश्ते में इंद्रपाल का भाई लगता था. वह कार चलाता था और खूब सजसंवर कर रहता था. अशोक को सीमा और इंद्रपाल के बीच तनाव की बात पता चली तो वह सीमा को रिझाने की कोशिश करने लगा. वह जब भी आता, सीमा से मीठीमीठी बातें करता तथा उस के रूप की प्रशंसा भी करता. सीमा पति की उपेक्षा की शिकार थी.

इस कारण धीरेधीरे सीमा, अशोक की ओर आकर्षित होने लगी. दोनों के बीच देवरभाभी का रिश्ता था, सो हंसीमजाक भी होने लगी. सीमा और अशोक के बीच चाहत बढ़ी तो अवैध रिश्ता कायम होने में भी देर नहीं लगी. अशोक का सीमा से मिलनाजुलना बढ़ा तो इंद्रपाल के कान खड़े हो गए. उस ने दोनों पर नजर रखनी शुरू की तो एक रोज दोनों को रंगे हाथ पकड़ लिया. फिर तो उस रोज इंद्रपाल ने सीमा की जम कर पिटाई की और सारा गुबार निकाला. इस के बाद तो यह रवैया ही चल पड़ा. जिस रोज इंद्रपाल को पता चल जाता कि अशोक आया था, वह सीमा की जम कर पिटाई करता. कई बार उस का अशोक से भी झगड़ा हुआ.

सीमा, अशोक की इतनी दीवानी बन गई थी कि वह पति की पिटाई के बावजूद उस का साथ छोड़ने को तैयार नहीं थी. एक दिन तो सीमा ने हद ही कर दी. उस ने अपनी तीनों बेटियों को बहाने से अपनी सास माया के पास छोड़ा और प्रेमी अशोक के साथ भाग गई. इंद्रपाल और उस के घरवालों को जानकारी हुई तो वह सब दंग रह गए. उन्होंने थाना सौरिख में शिकायत दर्ज कराई. तब पुलिस ने कई रोज बाद सीमा को अशोक के एक रिश्तेदार के घर से बरामद किया. घरवालों के मनाने व समझाने के बाद सीमा, इंद्रपाल के साथ रहने को राजी हुई. सीमा और इंद्रपाल में समझौता तो हो गया था, लेकिन उन के दिलों में गांठ पड़ गई थी. दोनों एक दूसरे पर शक भी करते थे.

उन के बीच तूतू मैंमैं अब भी होती रहती थी. कभीकभी मारपीट भी हो जाती थी. सीमा ने अशोक से संबंध अब भी खत्म नहीं किए थे. वह उस से चोरीछिपे मिलती रहती थी. 28 नवंबर, 2020 की सुबह 4 बजे सीमा चीखनेचिल्लाने लगी कि उस के पति इंद्रपाल की किसी ने हत्या कर दी. उस की चीख सुन कर उस के मकान में रहने वाले किराएदर आ गए. इन्हीं में से किसी ने इंद्रपाल के घर वालोें को सूचना दे दी. उस के बाद तो घर में सनसनी फैल गई. इंद्रपाल के पिता श्रीकृष्ण, मां माया देवी, चाचा लंकुश तथा चचेरा भाई राजू आ गया. इंद्रपाल का शव देख कर वह सब हैरान रह गए. कुछ देर बाद श्रीकृष्ण ने बेटे की हत्या की सूचना थाना सौरिख पुलिस को दी.

सूचना पाते ही थानाप्रभारी विजय बहादुर वर्मा पुलिस दल के साथ रवाना हो लिए. रवाना होने से पहले उन्होंने शिक्षक इंद्रपाल की हत्या की सूचना पुलिस अधिकारियों को भी दे दी थी. थानाप्रभारी विजय बहादुर वर्मा जिस समय इंद्रपाल के नगरिया तालपार स्थित मकान पर पहुंचे. उस समय वहां भारी भीड़ जुटी थी. श्री वर्मा पुलिसकर्मियों के साथ मकान के द्वितीय तल स्थित उस कमरे में पहुंचे जहां इंद्रपाल की लाश पड़ी थी. श्री वर्मा ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. इंद्रपाल की हत्या बड़ी बेरहमी से की गई थी. उस के शरीर पर चोटों के कई निशान थे. शरीर को किसी नुकीली चीज से गोदा गया था. शव के पास ही शराब की टूटी बोतल पड़ी थी. संभवत: इसी टूटी बोतल से उस के शरीर को गोदा गया था.

हत्या संभवत: मुंह नाक दबा कर की गई थी. कमरे में खून फैला था. मृतक की उम्र लगभग 45 वर्ष के आसपास थी. पुलिस ने शराब की टूटी बोतल को साक्ष्य के तौर पर सुरक्षित कर लिया. थानाप्रभारी विजय बहादुर वर्मा अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह तथा डीएसपी शिवकुमार थापा मौका ए वारदात आ गए. उन्होंने मौके पर फौरेंसिक टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तथा मृतक की पत्नी व घर वालों से पूछताछ की. फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर साक्ष्य जुटाए. उस के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए कन्नौज के जिला अस्पताल भेज दिया गया.

हत्या का खुलासा करने के लिए एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह ने डीएसपी शिवकुमार थापा के निर्देशन में पुलिस टीम का गठन कर दिया. इस टीम में थानाप्रभारी विजय बहादुर वर्मा, स्वाट टीम प्रभारी राकेश कुमार सिंह तथा सर्विलांस प्रभारी शैलेंद्र सिंह को शामिल किया गया. गठित टीम ने सब से पहले घटनास्थल का निरीक्षण किया फिर मृतक की पत्नी सीमा पाल से पूछताछ की. सीमा ने बताया कि पति की हत्या उस के मकान में रहने वाले किराएदार प्रवीण उर्फ विक्की ने की है. उस का पति से झगड़ा हुआ था. टीम ने प्रवीण को हिरासत में ले कर पूछताछ की तो उस ने बताया कि इंद्रपाल ने प्लौट खरीदने के लिये डेढ़ लाख रुपए उस से उधार लिया था, जिस में 70 हजार रुपए वह लौटा चुका था.

उस का इंद्रपाल से कोई झगड़ा न था. सीमा उसे गलत फंसा रही है. जबकि सच्चाई यह है कि इंद्रपाल की हत्या का रहस्य सीमा के ही पेट में छिपा है. प्रवीण से पूछताछ के बाद पुलिस टीम ने मृतक के पिता श्रीकृष्ण, चाचा लंकुश, मां माया देवी तथा चचेरे भाई राजू से पूछताछ की. उन सब ने बताया कि सीमा बदचलन है. उस ने अपने प्रेमी अशोक के साथ मिल कर इंद्रपाल की हत्या की है. यदि उस से सख्ती से पूछताछ की जाए तो आज ही हत्या का भेद खुल सकता है. सीमा संदेह के घेरे में आई तो पुलिस टीम ने उसे घर से गिरफ्तार कर लिया तथा उस का मोबाइल कब्जे में ले लिया. सर्विलांस प्रभारी शैलेंद्र सिंह ने उस के मोबाइल को खंगाला तो 27 नवंबर की रात 11 बजे उस ने 2 मोबाइल नंबरों पर बात की थी.

इन नंबरों को खंगाला गया तो पता चला कि एक मोबाइल नंबर सीमा के भाई मनोज पाल का है तथा दूसरा सीमा के प्रेमी अशोक का है. पुलिस टीम ने इन फोन नंबरों के आधार पर सीमा से कड़ाई से पूछताछ की तो वह टूट गई और पति इंद्रपाल की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. सीमा ने बताया कि अशोक के साथ उस के नाजायज संबंध थे, जिस का विरोध इंद्रपाल करता था और उस के साथ मारपीट करता था. इस मारपीट से वह आजिज आ गई थी और पति से छुटकारा पाना चाहती थी. 27 नवंबर की रात 10 बजे इंद्रपाल शराब पी कर घर आया और अशोक को ले कर झगड़ा करने लगा. उस ने उसे खूब पीटा. तब उस ने फोन कर अपने भाई मनोज पाल व प्रेमी अशोक को बुलवा लिया. अशोक अपने भाई राजेश को भी साथ लाया था.

उन चारों ने मिल कर इंद्रपाल की हत्या की योजना बनाई. इंद्रपाल उस समय अपने कमरे में नशे में धुत पड़ा था. उन चारों ने मिल कर पहले इंद्रपाल की पिटाई की फिर शराब की बोतल जो कमरे में लुढ़की पड़ी थी, अशोक ने उसी बोतल को तोड़ कर उस के नुकीले भाग से उस के शरीर को गोदा. उस के बाद नाकमुंह दबा कर उस की हत्या कर दी. फिर अशोक, राजेश व मनोज फरार हो गए. उन के जाने के बाद वह रोनेधोने का ड्रामा करने लगी. सीमा से पूछताछ करने के बाद पुलिस टीम ने अन्य आरोपियों को पकड़ने के लिए मुखबिरों को लगाया. दूसरे ही दिन एक मुखबिर की सूचना पर मनोज पाल को सौरिख विधूना मार्ग स्थित बिजलीघर के पास से गिरफ्तार कर लिया.

थाने ला कर जब उस से पूछताछ की गई तो उस ने सहज ही हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. अशोक व राजेश पुलिस की गिरफ्त में न आ सके. चूंकि सीमा व मनोज पाल ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था. अत: थानाप्रभारी विजय बहादुर वर्मा ने मृतक के पिता श्रीकृष्ण की तरफ से भादंवि की धारा 302 के तहत सीमा, मनोज, अशोक तथा राजेश के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली तथा सीमा व मनोज को विधि सम्मत गिरफ्तार कर लिया. 2 दिसंबर 2020 को पुलिस ने अभियुक्त सीमा व मनोज पाल को कन्नौज कोर्ट में पेश किया. जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. अशोक व राजेश फरार थे. आरोपी सीमा की बेटियां बाबा श्रीकृष्ण के संरक्षण में पल रही थीं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित