जिस दिन मल्लिका को प्रवीण के साथ जाना था, वह सास से बाजार जाने की बात कह कर घर से निकली थी. सुबह की निकली मल्लिका जब रात तक घर नहीं लौटी तो सास ने उस की तलाश शुरू की. घर में कोई था नहीं, इसलिए फोन कर के खासखास रिश्तेदारों को बुला लिया. जब मल्लिका का कुछ पता नहीं चला तो कृष्णा को फोन किया गया.
पत्नी के लापता होने की सूचना मिलते ही कृष्णा आ गया. उस ने पत्नी की गुमशुदगी दर्ज करा दी तो पुलिस भी मल्लिका की तलाश करने लगी.
प्रवीण मल्लिका को ले कर पहले जरार में रह रही अपनी बहन के यहां गया. बहन प्रीति ने जब मल्लिका के बारे में पूछा तो प्रवीण ने बताया कि यह उस की पत्नी है. उस ने उस से शादी कर ली है. खूबसूरत मल्लिका को देख कर प्रीति बहुत खुश हुई. उस ने भाई और कथित भाभी मल्लिका की खूब आवभगत की.
बहन के घर रहते हुए प्रवीण ने मल्लिका के साथ नागपुर जाने की योजना बनाई. 18 अक्टूबर, 2014 को छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस से उस ने रिजर्वेशन भी करवा लिया. लेकिन न जाने क्यों उस ने रिजर्वेशन कैंसिल करा दिया और मल्लिका को ले कर रुनकता स्थित अपने कमरे पर आ गया.
मल्लिका ने रुनकता स्थित प्रवीण का कमरा और क्लिनिक देखा तो सन्न रह गई. वह जो सोच कर प्रवीण के साथ आई थी, यहां उस का एकदम उलटा था. प्रवीण की असलियत जान कर वह बेचैन हो उठी. उस ने गाड़ीबंगला, नौकरचाकर का जो सपना देखा था, उस सब पर पानी फिर गया था.
मल्लिका समझ गई कि उस के साथ धोखा हुआ है. लेकिन अब वह फंस चुकी थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे. सिर्फ शारीरिक सुख से तो जिंदगी बीत नहीं सकती थी, इसलिए वह इस बात पर विचार करने लगी कि आगे क्या किया जाए.
प्रवीण अगले दिन मल्लिका को ताजमहल दिखाने ले गया. वहां उस ने उस के साथ फोटो भी खिंचवाए. प्रवीण शायद मल्लिका के मन की बात भांप गया था, इसलिए वह उसे समझाने लगा कि जल्दी ही वह दूसरा मकान ले लेगा. बाजार में कोई अच्छी सी दुकान ले कर बढि़या क्लिनिक खोल लेगा. अभी तक वह अकेला रहता था, इसलिए उसे किसी बात की चिंता नहीं थी, लेकिन उस के आ जाने से उसे चिंता होने लगी है.
दीवाली पर प्रवीण मल्लिका के साथ अपनी बहन के यहां जरार गया, लेकिन अगले ही दिन वापस आ गया. प्रवीण की लाख कोशिश के बावजूद मल्लिका का मन बदल चुका था. वह समझ गई थी कि यहां जल्दी कुछ बदलने वाला नहीं है. उसे बेटे की भी याद आने लगी थी. उसे अपनी गलती का अहसास हो गया था, इसलिए उस ने जरार से रुनकता आते समय रास्तें में ही प्रवीण से कह दिया था कि इस स्थिति में वह उस के साथ नहीं रह सकती.
घर पहुंच कर मल्लिका वापस जाने की तैयारी करने लगी. प्रवीण उसे समझाने लगा कि अब वह उस के बिना अकेला नहीं रह पाएगा. प्रवीण को इस बात की भी चिंता सता रही थी कि मल्लिका अपने साथ जो लाखों के गहने और नकद ले आई है, उसे भी अपने साथ ले जाएगी. फिर तो इतनी मेहनत कर के भी वह कंगाल का कंगाल रह जाएगा.
25 अक्टूबर को भैया दूज थी, इसलिए क्लिनिक बंद थी. पूरा दिन प्रवीण मल्लिका को समझाता रहा, लेकिन किसी भी तरह मल्लिका रुकने को तैयार नहीं थी. प्रवीण को मल्लिका के जाने की उतनी चिंता नहीं थी, जितनी चिंता उस के गहनों और रुपयों को साथ ले जाने की थी. इसलिए उस ने सोच लिया कि भले ही उसे मल्लिका की हत्या करनी पड़े, लेकिन वह साथ लाया माल मल्लिका को ले नहीं जाने देगा.
यही सोच कर वह रात 8 बजे के आसपास मुस्तकीम की दुकान से कोल्ड ड्रिंक की 2 बोतलें खरीद लाया. मल्लिका की नजर बचा कर उस ने एक बोतल में नशे की दवा मिला दी. इस के बाद उस बोतल को मल्लिका को दे कर दूसरी बोतल खुद पीने लगा. कोल्ड ड्रिंक पीते हुए भी उस ने मल्लिका से कहा कि वह जिद छोड़ दे.
लेकिन मल्लिका ने साफसाफ कह दिया कि अब वह यहां रुक कर जिंदगी बरबाद करने वाली नहीं है. इस के बाद प्रवीण चुप हो गया. कोल्ड ड्रिंक पी कर मल्लिका बेहोश हो गई तो खिड़की दरवाजा बंद कर के प्रवीण ने बांका से मल्लिका का गला रेत दिया. बेहोश होने की वजह से मल्लिका चीख भी नहीं सकी.
गुस्से में प्रवीण ने मल्लिका की हत्या तो कर दी, लेकिन लाश देख कर परेशान हो उठा कि अब क्या करे. उसे पुलिस और कानून का डर सताने लगा.
पुलिस से बचने के लिए उस ने कहीं और भाग जाने का विचार किया. लाश को कंबल से ढक कर वह कमरे से बाहर निकल कर दरवाजे पर ताला लगा कर सड़क पर चलने लगा. मल्लिका के कुछ गहने और 15 सौ रुपए नकद उस के पास थे. वह उन्हीं से कहीं दूर जा कर अपनी गृहस्थी बसाना चाहता था. लेकिन उसे लग रहा था कि वह कहीं भी चला जाए, पुलिस और कानून से बच नहीं पाएगा.
सुबह किसी ने कस्बे से थोड़ी दूर पर रेल की पटरी के किनारे एक क्षतविक्षत लाश देखी. पुलिस को सूचना दी गई तो थाना सिंकदरा के थानाप्रभारी आशीष कुमार सिंह पुलिस बल के साथ वहां पहुंच गए. मृतक के पास एक बैग था, जिस की तलाशी में कुछ कपड़े और गहने के साथ 15 सौ रुपए मिले. इस के बाद मृतक की तलाशी में उस की जेब से आधार कार्ड मिल गया, जिस से उस की शिनाख्त हो गई. वह लाश किसी और की नहीं, रुनकता कस्बे में क्लिनिक चलाने वाले डा. प्रवीण विश्वास की थी.
पुलिस को जब बताया गया कि इस के घर में इस की नवविवाति पत्नी भी है तो थानाप्रभारी ने उसे सूचना देने के लिए एक सिपाही को भेजा. कमरे में बाहर से ताला बंद था. अब सवाल यह था कि उस की पत्नी कहां गई. किसी ने खिड़की की झिरी से झांक कर देखा तो अंदर एक महिला की लाश दिखाई दी. पुलिस ने ताला तोड़वाया तो पता चला कि अंदर पड़ी लाश उस की नवविवाहिता पत्नी की थी.
पुलिस ने काररवाई कर के दोनों लाशें पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दीं. प्रवीण के कमरे में मिली डायरी से उस के बहनोई श्रवण विश्वास का फोन नंबर मिल गया तो पुलिस ने उसे फोन कर के डा. प्रवीण की आत्महत्या और उस की पत्नी की हत्या की सूचना दे दी. श्रवण पत्नी प्रीति के साथ रुनकता पहुंचा. इस के बाद पुलिस ने उसी की ओर से प्रवीण के खिलाफ मल्लिका की हत्या का मुकदमा दर्ज करने के बाद आत्महत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.
पुलिस को डा. प्रवीण विश्वास के पास से एक मंगलसूत्र, एक जोड़ी कान के टौप्स, 2 जोड़ी बच्चों के चांदी के कड़े और 15 सौ रुपए नकद मिले थे. मल्लिका कान में टौप्स, गले में चेन, अंगूठियां और नाक में जो कील पहने थी, वे उस के शरीर पर मौजूद थे.
पुलिस ने मल्लिका के पास से मिले मोबाइल फोन से एक नंबर मिलाया, संयोग से वह उस के पति कृष्णा का था. बातचीत के बाद पुलिस ने जब उसे मल्लिका की हत्या की सूचना दी तो उस ने जल्दी से जल्दी आगरा पहुंचने की बात कही.
कृष्णा ने कहा ही नहीं, बल्कि अगले दिन अपने चाचा विश्वजीत के साथ आगरा आ पहुंचा. उस ने आगरा में ही मल्लिका का अंतिम संस्कार कर दिया. उस का कहना था कि मल्लिका अपने साथ लाखों के गहने और नकदी ले कर आई थी. डा. प्रवीण के घर वालों ने भी उस का आगरा में ही अंतिम संस्कार कर दिया था. इस तरह स्वार्थ में अंधे प्रवीण ने प्यार की हत्या तो की ही, आत्महत्या कर के अपने साथ एक और घर बरबाद कर दिया.
जब मल्लिका की बातों ने उसे प्यार में पागल कर दिया तो कामधाम छोड़ कर प्रवीण 24 परगना जा पहुंचा. मल्लिका को उस ने अपने आने की सूचना दे दी थी, इसलिए घर पहुंचते ही उस ने मल्लिका से मिलने का स्थान और समय तय कर लिया.
मल्लिका ने उसे अगले दिन 24 परगना के बसस्टाप पर दोपहर को बुलाया था. प्रवीण तय जगह पर खड़ा इधरउधर देख रहा था. थोड़ी देर में उसे एक खूबसूरत औरत आती दिखाई दी. वह मन ही मन सोचने लगा कि अगर यही मल्लिका होती तो कितना अच्छा होता.
प्रवीण उस औरत को एकटक ताकते हुए मल्लिका के बारे में सोच रहा था कि तभी वह औरत फोन निकाल कर किसी को फोन करने लगी. प्रवीण के फोन की घंटी बजी तो उस का दिल धड़क उठा. उस ने जल्दी से फोन रिसीव किया तो दूसरी ओर से पूछा गया, ‘‘कहां हो तुम?’’
‘‘तुम्हारे सामने ही तो खड़ा हूं.’’ प्रवीण के मुंह से यह वाक्य अपने आप निकल गया.
कान से फोन लगाए हुए ही उस औरत ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘तो तुम हो प्रवीण?’’
‘‘हां, मैं ही प्रवीण हूं, जिसे तुम इतने दिनों से तड़पा रही हो.’’
‘‘अब तड़पने की जरूरत नहीं है. क्योंकि मैं तुम्हारे सामने खड़ी हूं.’’
मल्लिका को देख कर प्रवीण फूला नहीं समाया, क्योंकि उस ने अपने ख्वाबों में मल्लिका की जो तसवीर बनाई थी, वह उस से कहीं ज्यादा खूबसूरत थी. वह लग भी ठीकठाक परिवार की रही थी.
‘‘यहीं खड़े रहोगे या चल कर कहीं एकांत में बैठोगे.’’ मल्लिका ने कहा तो प्रवीण को होश आया.
प्रवीण उसे एक रेस्टोरैंट में ले गया. चायनाश्ते के साथ बातचीत शुरू हुई तो मल्लिका ने गंभीरता से कहा, ‘‘प्रवीण, तुम सचसच बताना, मुझे कितना प्यार करते हो और मेरे लिए क्या कर सकते हो?’’
‘‘अगर प्यार करने की कोई नापतौल होती तो नापतौल कर बता देता. बस इतना समझ लो कि मैं तुम्हें जान से भी ज्यादा प्यार करता हूं. अब इस से ज्यादा क्या कह सकता हूं.’’ प्रवीण ने मल्लिका के हाथ पर अपना हाथ रख कर कहा.
‘‘जब तुम मुझे इतना प्यार करते हो तो मुझे भी अब तुम्हें अपने बारे में सब कुछ बता देना चाहिए, क्योंकि मैं ने अभी तक तुम्हें अपने बारे में कुछ नहीं बताया है. प्रवीण मैं शादीशुदा ही नहीं, मेरा 10 साल का एक बेटा भी है. मेरा पति कुवैत में रहता है, जिस की वजह से हमारी मुलाकातें 2 साल में सिर्फ कुछ दिनों के लिए हो पाती हैं. मैं यहां सासससुर के साथ रहती हूं. पति के उतनी दूर रहने की वजह से प्यार के लिए तड़पती रहती हूं.’’
मल्लिका की सच्चाई जानसुन कर प्रवीण सन्न रह गया. जैसे किसी ने उसे आसमान से जमीन पर पटक दिया हो. जिसे वह जान से ज्यादा प्यार करता था, वह किसी और की अमानत थी, यह जान कर उस के मुंह से शब्द नहीं निकले. उस की हालत देख कर मल्लिका ने कहा, ‘‘तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं प्रवीण. मैं भी तुम्हें उतना ही प्यार करती हूं, जितना तुम. मैं तुम्हारे लिए पति और बेटा तो क्या, यह दुनिया तक छोड़ सकती हूं.’’
प्रवीण ने होश में आ कर कहा, ‘‘सच, तुम मेरे लिए सब को छोड़ सकती हो?’’
‘‘हां, तुम्हारे लिए मैं सब को छोड़ ही नहीं सकती, जान तक दे सकती हूं, लेकिन तुम मुझे मंझधार में मत छोड़ना. तुम डाक्टर हो, इसलिए मेरे दिल का दर्द अच्छी तरह समझ सकते हो. बोलो, धोखा तो नहीं दोगे?’’ मल्लिका गिड़गिड़ाई.
मल्लिका की इस बात से प्रवीण ने थोड़ी राहत महसूस की. इस के बाद कुछ सोचते हुए बोला, ‘‘अच्छा, यह बताओ. अब तुम सिर्फ मेरी बन कर रहोगी न?’’
‘‘हां, अब मैं सिर्फ तुम्हारी ही हो कर रहना चाहती हूं, सिर्फ तुम्हारी,’’ मल्लिका ने कहा, ‘‘चलो, अब यहां से कहीं और चलते हैं.’’
प्रवीण मल्लिका को पूरी तरह अपनी बनाना चाहता था, इसलिए उस ने एक मध्यमवर्गीय होटल में कमरा बुक कराया और मल्लिका को उसी में ले गया. एकांत में होने वाली बातचीत में प्रवीण जान गया कि मल्लिका के मायके और ससुराल वाले काफी संपन्न लोग हैं. उस का पति कुवैत में नौकरी करता था. उस समय भी वह लगभग 4-5 तोले सोने के गहने पहने थी.
होटल के उस कमरे में एकांत का लाभ उठा कर प्रवीण ने मल्लिका को अपनी बना लिया. उस ने मल्लिका के बारे में तो सब कुछ जान लिया, लेकिन अपने बारे में उस ने सिर्फ इतना ही बताया था कि वह डाक्टर है और अभी उस की शादी नहीं हुई है.
प्रवीण के डाक्टर होने का मतलब मल्लिका ने यह लगाया था कि वह पढ़ालिखा होगा, इसलिए अन्य डाक्टरों की तरह यह भी खूब पैसे कमा रहा होगा. यही सोच कर वह उस के साथ रहने के बारे में सोच रही थी.
जबकि स्थिति इस के विपरीत थी. प्रवीण झोला छाप डाक्टर था. उस ने क्लिनिक जरूर खोल ली थी, लेकिन उस की कमाई से किसी तरह उस का खर्च पूरा होता था. मल्लिका के बारे में जान कर अब वह उस की बदौलत अपना भाग्य बदलने के बारे में सोच रहा था.
मल्लिका की शादी 24 परगना के थाना गोपालपुर के कस्बा चलमंडल के रहने वाले कृष्णा से हुई थी. 24 परगना शहर में उस की विशाल कोठी थी. ससुराल में मल्लिका को किसी चीज की कमी नहीं थी. कमी सिर्फ यही थी कि पति कुवैत में रहता था और वह यहां सासससुर के साथ रहती थी. वह पति के साथ रहना चाहती थी, जबकि कृष्णा उसे कुवैत ले जाने को तैयार नहीं था. उस का कहना था कि अगर दोनों कुवैत चले गए तो मांबाप यहां अकेले पड़ जाएंगे.
मल्लिका बेटे अपूर्ण में मन लगाने की कोशिश करती थी, लेकिन बेटा बड़ा हो गया तो उसे पति की कमी खलने लगी थी. उस की जवान उमंगे तनहाई में दम तोड़ने लगी थीं. उस के जिस्म की भूख उसे बेचैन करने लगी थी. ऐसे में ही उस का फोन गलती से प्रवीण के मोबाइल पर लग गया तो दोनों की दोस्ती ही नहीं हुई, अब मेलमिलाप भी हो गया था. उस के बाद उस की जैसे दुनिया ही बदल गई थी.
मुलाकात के बाद जिस्म की भूख भी बढ़ गई और प्यार भी. कुछ दिन गांव में रह कर प्रवीण वापस आ गया. अब दोनों के बीच लंबीलंबी बातें होने लगीं. मल्लिका उस के सहारे आगे की जिंदगी गुजारने के सपने देखने लगी थी. क्योंकि उसे पता था कि कृष्णा में कोई बदलाव आने वाला नहीं है, इसलिए उस की परवाह किए बगैर एक दिन उस ने प्रवीण से कहा, ‘‘भई, इस तरह कब तक चलेगा. आखिर हमें कोई न कोई फैसला तो लेना ही होगा.’’
‘‘इस विषय पर फोन पर बात नहीं हो सकती. दुर्गा पूजा पर मैं घर आऊंगा तो बैठ कर बातें करेंगे.’’ प्रवीण ने कहा और घर जाने की तैयारी करने लगा.
दुर्गा पूजा के दौरान दोनों की मुलाकात हुई तो तय हुआ कि इस बार प्रवीण आगरा जाएगा तो मल्लिका भी उस के साथ चलेगी. वहां दोनों शादी कर के आराम से रहेंगे. उस समय मल्लिका ने यह भी नहीं सोचा कि कृष्णा घरपरिवार से उतनी दूर उस के और बच्चे के सुख के लिए ही पड़ा है. अपने जिस्म की भूख मिटाने के लिए उस ने अपने 10 साल के बेटे की चिंता भी नहीं की.
पश्चिम बंगाल के जिला 24 परगना के थाना गोपालनगर के गांव पावन के रहने वाले प्रभात विश्वास गांव में रह कर खेती करते थे. पत्नी, 2 बेटों और एक बेटी के उन के परिवार का गुजरबसर इसी खेती की कमाई से होता था. उसी की कमाई से वह बच्चों को पढ़ालिखा भी रहे थे और सयानी होने पर बेटी की शादी भी कर दी थी.
प्रभात ने बेटी प्रीति की शादी अपने ही जिले के गांव चलमंडल के रहने वाले श्रवण विश्वास के साथ की थी. श्रवण विश्वास झोला छाप डाक्टर था, जो चांदसी दवाखाना के नाम से उत्तर प्रदेश के जिला आगरा के थाना वाह के कस्बा जरार में अपनी क्लिनिक चलाता था.
श्रवण की क्लिनिक बढि़या चल रही थी, इसलिए उस से प्रेरणा ले कर प्रभात विश्वास का बड़ा बेटा प्रवीण भी बहनोई की तरह झोला छाप डाक्टर बनने के लिए पढ़ाई के साथसाथ किसी डाक्टर के यहां कंपाउंडरी करने लगा था. ग्रेजुएशन करतेकरते वह डाक्टरी के काफी गुण सीख गया तो बहनोई की तरह अपनी क्लिनिक खोलने के बारे में सोचने लगा.
क्लिनिक खोलने की पूरी तैयारी कर के प्रवीण आगरा के कस्बा जरार में क्लिनिक चला रहे अपने बहनोई श्रवण के पास आ गया. कुछ दिनों तक बहनोई के साथ काम करने के बाद जब उसे लगा कि अब वह खुद क्लिनिक चला सकता है तो वह अपनी क्लिनिक खोलने के लिए स्थान खोजने लगा.
प्रवीण के एक परिचित पी.के. राय आगरा के ही कस्बा रुनकता में क्लिनिक चलाते थे. उन्हीं की मदद से उस ने रुनकता में एक दुकान ले कर बंगाली दवाखाना के नाम से क्लिनिक खोल ली. रहने के लिए हाजी मुस्तकीम के मकान में 8 सौ रुपए महीने किराए पर एक कमरा ले लिया. मुस्तकीम का अपना परिवार सामने वाले मकान में रहता था. उस मकान में केवल किराएदार ही रहते थे. डा. प्रवीण का कमरा अन्य किराएदारों से एकदम अलग था.
प्रवीण विश्वास दिन भर अपनी क्लिनिक पर रहता था और रात को कमरे पर आ जाता. अकेला होने की वजह से उसे अपने सारे काम खुद ही करने पड़ते थे. वह जिस हिसाब से मेहनत कर रहा था, उस हिसाब से उस की कमाई नहीं हो रही थी. इसलिए अपने हालात से वह खुश नहीं था. लेकिन उस का व्यवहार ऐसा था कि उस से हर कोई खुश रहता था.
इस के बावजूद प्रवीण की किसी से दोस्ती नहीं हो पाई थी. इस की वजह शायद यह भी थी कि वह एक ऐसे प्रांत का रहने वाला था, जहां का खानपान, रहनसहन और बात व्यवहार सब कुछ वहां के रहने वालों से अलग था.
इस स्थिति में प्रवीण थोड़ा परेशान सा रहता था. एक दिन वह किसी सोच में डूबा था कि उस के फोन की घंटी बजी. उस का फोन डुअल सिम वाला था. एक सिम उस ने आगरा के नंबर का डाल रखा तो दूसरा सिम 24 परगना के नंबर का था. वैसे यहां 24 परगना वाले नंबर की कोई जरूरत नहीं थी, लेकिन उस ने अपना पुराना नंबर इसलिए बंद नहीं किया था कि घर जाने पर शायद इस की जरूरत पड़े.
घंटी बजी तो प्रवीण की नजर मोबाइल के स्क्रीन पर गई. फोन 24 परगना वाले सिम के नंबर पर आया था. स्क्रीन पर जो नंबर उभरा था, वह भी 24 परगना का ही लग रहा था. प्रवीण ने जल्दी से फोन रिसीव कर लिया, ‘‘हैलो, कौन…?’’
उस के हैलो कहते ही दूसरी ओर से किसी लड़की ने मधुर आवाज में कहा, ‘‘सौरी, गलती से आप का नंबर लग गया.’’
प्रवीण कुछ कहता, उस के पहले ही फोन कट गया. लड़की की आवाज ऐसी थी, जैसे किसी ने कान में शहद घोल दिया है. प्रवीण का मन एक बार फिर उस की आवाज सुनने के लिए होने लगा. आवाज पलट कर फोन कर के ही सुनी जा सकती थी. लेकिन यह ठीक नहीं था. इसलिए वह सोचने लगा कि फोन करने पर लड़की बुरा मान सकती है. लेकिन मन नहीं माना तो डरतेडरते उस ने पलट कर फोन कर ही दिया.
दूसरी ओर से फोन रिसीव कर के लड़की ने कहा, ‘‘अपनी गलती के लिए मैं ने सौरी तो कह दिया. अब कितनी बार माफी मांगूं?’’
‘‘आप गलत सोच रही हैं. मैं ने आप को फोन इसलिए नहीं किया कि आप दोबारा माफी मांगें. आप की आवाज मुझे बहुत प्यारी लगी, उसे सुनने के लिए मैं ने फोन किया है. मैं आप की आवाज सुनना चाहता हूं. इसलिए आप कुछ अपनी कहें और कुछ मेरी सुनें.’’
प्रवीण का इतना कहना था कि उस के कानों में खिलखिला कर हंसने की आवाज पड़ी. प्रवीण खुश हो गया कि लड़की ने उस की इस हरकत का बुरा नहीं माना. हंसी रोक कर उस ने कहा, ‘‘तो यह क्यों नहीं कहते कि आप मुझ से दोस्ती करना चाहते हैं.’’
‘‘यही समझ लीजिए,’’ प्रवीण ने कहा, ‘‘आप को मेरा प्रस्ताव मंजूर है?’’
‘‘क्यों नहीं, बातचीत से तो आप अच्छेखासे पढे़लिखे लगते हैं?’’
‘‘जी, मैं डाक्टर हूं.’’
‘‘कहां नौकरी करते हैं?’’ लड़की ने पूछा.
‘‘नौकरी नहीं करता, मेरी अपनी क्लिनिक है.’’
‘‘तब तो मैं आप को अपना दोस्त बनाने को तैयार हूं.’’
इस तरह दोनों में दोस्ती हो गई तो बातचीत का सिलसिला चल पड़ा. प्रवीण 24 परगना का रहने वाला था तो वह लड़की भी वहीं की रहने वाली थी. लड़की ने अपना नाम मल्लिका बताया था. लेकिन सब उसे मोनिका कह कर बुलाते थे. प्रवीण ने भी उसे अपना नाम बता दिया था.
दोनों की ही भाषा बंगाली थी, इसलिए दोनों अपनी भाषा में बात करते थे. प्रवीण ने मल्लिका को यह भी बता दिया था कि वह रहने वाला तो 24 परगना का है, लेकिन उस की क्लिनिक उत्तर प्रदेश के आगरा के एक कस्बे में है.
धीरेधीरे दोनों में लंबीलंबी बातें होने लगीं. इसी तरह 6 महीने बीत गए. प्रवीण ने मल्लिका को अपने बारे में काफी कुछ बता दिया था, लेकिन मल्लिका ने अपने बारे में कभी कुछ नहीं बताया था. वह प्रवीण के लिए रहस्य बनी रही.
प्रवीण ने जब उस पर दबाव डाला तो एक दिन उस ने कहा, ‘‘यही क्या कम है कि मैं तुम से प्यार करती हूं. बस तुम मुझे अपनी प्रेमिका के रूप में जानो.’’
मल्लिका ने जब कहा कि वह उस से प्यार करती है तो प्रवीण ने कहा, ‘‘मैं तुम से मिलना चाहता हूं.’’
‘‘यह तो बड़ी अच्छी बात है. मैं भी तुम से मिलना चाहती हूं. तुम्हारी जब इच्छा हो, आ जाओ. समझ लो मैं तुम्हारा इंतजार कर रही हूं.’’ मल्लिका ने कहा.
मल्लिका का इस तरह आमंत्रण पा कर प्रवीण फूला नहीं समाया. वह इस बात पर विचार करने लगा कि मल्लिका को अपनी जिंदगी में आने के लिए तैयार कैसे करे. अब वह सपनों में जीने लगा था. इस तरह के सपनों की दुनिया बहुत ही रंगीन और हसीन होती है. उस ने अपने प्यार को कल्पनाओं का रंग दे कर एक खूबसूरत चेहरे का अक्स बना लिया था. हर वक्त वह उसी में खोया रहता था. वह 24 परगना जा कर मल्लिका से मिलना चाहता था, लेकिन मौका नहीं मिल रहा था.
इस बीच मैं हवालात जा कर जीते से लौकेट उतरवा लाया था. वह लौकेट मैं ने वली खां के सामने रख कर पूछा, ‘‘ध्यान से देख कर बताओ, ये लौकेट किस का है?’’
वली खां ने जब उस लौकेट को गौर से देखा तो उस के चेहरे का रंग बदल गया. वह हकला कर बोला, ‘‘जनाब, यह तो मेरी बीवी रजिया का लौकेट है.’’
‘‘बीवी को इसे तुम ने ही दिया होगा. कहां से आया यह तुम्हारे पास?’’
‘‘जी, मेरी वालिदा ने बनवाया था. इस के अलावा और भी गहने थे?’’
मैं ने कहा, ‘‘तुम्हारी वालिदा ने बनवाया था या तुम ने डाके में छीना था?’’
‘‘डाका…कैसा डाका…यह आप क्या कह रहे हैं जनाब?’’ उस का मुंह हैरत से खुला रह गया.
‘‘वही डाका जो तुम ने 5 साल पहले अमृतसर में मेहता सेठ के घर डाला था और तुम्हारी गोली लगने से मेहता की मौत हो गई थी.’’
थानेदार बख्शी हैरानी से देख रहा था. उस की नजर में वली खां एक शरीफ इंसान था. पर मैं पूरे दावे के साथ कह सकता था कि वह एक नामीगिरामी डाकू था. मैं ने करीब खड़े हवलदार नादिर से कहा, ‘‘वली खां को हथकड़ी लगा कर इस के सही ठिकाने पर पहुंचाओ.’’
वली खां को हवालात में बंद कर दिया गया. पूछताछ के दौरान पता चला कि उस का नाम वली खां नहीं, बल्कि अब्दुल सत्तार था. चोरीडकैती और अपहरण उस का मुख्य धंधा था. जामनगर में वह नाम बदल कर रह रहा था.
मैं और थानेदार बख्शी अभी वली खां से पूछताछ कर ही रहे थे कि एक सिपाही घबराया हुआ आया. उस ने हमें अलग ले जा कर बताया कि हवालाती जीते की जान खतरे में है. वली खां ने सिपाही कीमतीलाल को रिश्वत दे कर एक खत अपने दोस्त शेरू तक पहुंचाने के लिए भेजा है. वली खां ने खत में लिखा है कि वह उस की बीवी का काम तमाम कर दे और फरार हो जाए.
बख्शी ने सिपाही से पूछा, ‘‘शेरू कहां है?’’
सिपाही ने बताया, ‘‘मुझे नहीं पता, लेकिन कीमतीलाल को पता होगा. वह खत ले कर उसी के पास गया है.’’
थानेदार बख्शी ने गुस्से में पूछा, ‘‘तुम्हें यह सब कैसे मालूम हुआ?’’
सिपाही ने डरते हुए कहा, ‘‘पहले वली खां ने यह पेशकश मेरे सामने रखी थी. उस ने अपनी जांघों के बीच कुछ रुपए छिपा कर रखे थे. वह मुझे 2 सौ रुपयों का लालच देता रहा. मैं नहीं माना तो उस ने कीमतीलाल को फंसा लिया.’’
थानेदार बख्शी ने पूछा, ‘‘उस हरामी को हवालात में कागज कलम किस ने दिया?’’
‘‘जी, यह कीमतीलाल का ही काम है.’’
सिपाही का चेहरा बता रहा था कि वह सच बोल रहा था. मैं ने थानेदार से कहा, ‘‘बख्शी, हमें फौरन कुछ करना होगा. तुम थाने में रहो, मैं जा कर देखता हूं.’’
बख्शी के रोकने के बावजूद मैं थाने से निकल गया. 2 सिपाही मेरे साथ थे. उन में से एक के पास बंदूक थी. हम लगभग भागतेभागते नीम वाली गली तक पहुंचे. गली के मोड़ पर मैं ने रुक कर देखा. वली खां का तिमंजिला मकान मेरी नजरों के सामने था.
मकान के आसपास कोई हलचल नहीं थी. सिपाहियों के साथ मैं एक करीबी दुकान में जा घुसा. दुकानदार ने हमारे लिए कुर्सियां लगवा कर चाय मंगवा दी. वहीं बैठ कर हम वली खां के मकान पर नजर रखे हुए थे. लगभग आधेपौने घंटे बाद जब हम मायूस हो कर लौटने की सोच रहे थे, तभी अचानक एक टमटम गली में दाखिल हुई और सीधे वली खां के मकान के सामने जा रुकी. टमटम से शेरू उतरा. उस ने अपने शरीर को काले रंग की एक चादर से ढक रखा था. वह तेजी से दरवाजे की ओर बढ़ा तो मैं ने दौड़ कर उसे पीछे से जा दबोचा.
शेरू को गिरफ्तार कर लिया गया. तलाशी के दौरान उस के पास से एक भरे हुए रिवाल्वर के अलावा वह खत भी बरामद हुआ, जो वली खां ने हवालात से भेजा था.
उस खत में लिखा था, ‘‘शेरे, मैं पकड़ा गया हूं. पुलिस तुझे ढूंढ़ रही है. बेहतर है तू यहां से भाग जा. लेकिन भागने से पहले मेरा एक काम कर देना. मैं नहीं चाहता कि मेरे बाद रजिया जिंदा रहे. उसे खत्म कर देना. वह इस वक्त घर में अकेली है. तख्तपोश के नीचे मेरा रिवाल्वर पड़ा है. वह ले जाना, लेकिन कोशिश करना कि गोली न चलानी पड़े. अगर खुद न जा सको तो जुमे या दीनू को भेज कर ये काम करवा देना. खुदा हाफिज, तुम्हारा सरदार यार.’’
शेरू के अलावा जुमा और दीनू भी गिरफ्तार कर लिए गए. इस के बाद तफ्तीश और अदालती काररवाई का लंबा सिलसिला शुरू हुआ. जीते को मैं ने रिहा कर दिया. उस पर कोई इलजाम नहीं था. वह अपहरण व मारपीट के मामले में मुद्दई था.
रजिया एक ऐसी औरत थी, जो एक ही वक्त में 2 अलगअलग दिशाओं में सफर कर रही थी. उस के मांबाप ने उस का हाथ ऐसे शख्स को सौंप दिया था, जो बाहर से कुछ और, अंदर से कुछ और था. रजिया काफी हद तक अपने शौहर की हकीकत समझ गई थी. वह जान गई थी कि उस का शौहर अपराध की अंधेरी दुनिया से ताल्लुक रखता था. वह भीतर ही भीतर कुढ़ती रहती थी. लेकिन शौहर की हकीकत कभी उस के होंठों तक नहीं आई थी.
जिस तरह पानी अपना रास्ता खुद तलाश लेता है, उसी तरह जज्बात भी अपने इजहार का कोई न कोई तरीका ढूंढ़ लेते हैं. रजिया के भी दबे हुए जज्बात ने अपने इजहार का रास्ता तलाश कर लिया था. लोग उस पर अंगुलियां उठाते थे, मगर वह सब कुछ जानतेसमझते हुए अनजान और ढीठ बनी हुई थी.
वह जीते से बेपनाह मोहब्बत करती थी और उस मोहब्बत को चाह कर भी कोई मुनासिब नाम नहीं दे पाती थी. वह उसे धक्के दे कर घर से भी निकालती थी और फिर उस की एक झलक पाने के लिए बेचैन भी रहती थी. वह एक मजबूर औरत थी.
यह तय था कि वली खां और उस के साथियों को उम्रकैद होगी. रजिया द्वारा अदालत में दी गई दरख्वास्त पर उस के और वली खां के बीच तलाक अमल लाया गया. रजिया और जीते की प्रेमकहानी का यह बड़ा ही सुखद अंजाम था. दोनों ने शादी कर के वह कस्बा हमेशा के लिए छोड़ दिया.
यह बात अपनी जगह सच है कि कई बार छोटी सी घटना से इंसान की जिंदगी का रुख और दिशाएं बदल जाती हैं. इसी तरह कडि़यों से कडि़यां जुड़ कर कभीकभी बड़े खुलासे हो जाते हैं. अगर अखबार बेचने वाला जीता रईसजादी पम्मी के इशारों को नजरअंदाज न करता और उस पर चोरी का इलजाम न लगता तो शायद वली खां जैसे डाकू और उस के साथियों के चेहरे बेनकाब न होते.
जीते को साथ ले कर हम उसी वक्त उस मकान पर गए, जहां उसे कैद रखा गया था. वह मकान वली खां के दोस्त शेरू का था. वहां वाकई एक कमरे की जाली टूटी हुई थी. वहां ऐसे सुबूत भी थे, जिस से साबित होता था कि उसे उसी जगह कैद कर के रखा गया था. वली खां और शेरू दोनों गायब थे.
मेरी हिदायत पर थानेदार बख्शी ने अपने स्टाफ से उन्हें तलाश करने को कहा. लेकिन कुछ किया जाता, इस से पहले ही शाम करीब 7 बजे वे दोनों खुद ही थाने आ गए. उन के साथ एक सरकारी अफसर भी था. उस ने बताया कि इन दोनों का भागने का कोई इरादा नहीं था. वे केवल डर की वजह से थाने नहीं आए थे.
मैं ने वली खां से कहा कि वह अपनी सफाई में कुछ कहना चाहता है तो कह दे. इस पर उस ने जेब से कुछ खत निकाल कर हमारे सामने रख दिए. वे खत क्या थे, गालियों का पुलिंदा था. उन में ऐसी ऐसी गालियां लिखी थीं जो मैं ने कभी नहीं सुनी थीं. खत लिखने वाले ने कोशिश की थी कि वली खां और उस की बीवी को जितना ज्यादा हो सके, जलील किया जाए.
वली खां ने रुआंसे हो कर कहा, ‘‘जनाब, कुछ खत तो बरदाश्त से बाहर थे, इसलिए मैं ने फाड़ कर फेंक दिए थे.’’
उन खतों को पढ़ कर किसी भी शरीफ आदमी का दिमाग घूम सकता था. वली खां ने बताया कि ये गंदगी उस के घर में 3 महीने से फेंकी जा रही है. उस का मानना था कि ये काम जीते के अलावा और कोई नहीं कर सकता.
वली खां ने यह भी बताया कि मजबूर हो कर वह अमृतसर गया और जीते से मिल कर उसे समझाने की कोशिश की. लेकिन वह उल्टे उसे ही डरानेधमकाने लगा. इस पर उस का दिमाग घूम गया. वह उसे टैक्सी में डाल कर यहां ले आया. वली खां ने माना कि उस ने जीते को 4-5 दिन शेरू के घर में रखा था. वह सिर्फ यह चाहता था कि वह उन मियांबीवी की जिंदगी से निकल जाए.

वली खां के साथ आए सरकारी अफसर ने भी कहा कि वली खां शरीफ आदमी है. अगर जीता उस की इज्जत को न ललकारता तो यह वाकया कभी न होता. मैं ने वली खां और शेरू को गिरफ्तार न कर के उन्हें तफ्तीश के दायरे में रखा. जीते को हवालात में रखना जरूरी था, क्योंकि अगर उसे छोड़ा जाता तो वह फिर से वली खां के घर जा कर हंगामा कर सकता था. हम ने डाक्टर बुला कर उस की मरहमपट्टी करा दी थी.
जीते को हवालात में छोड़ कर मैं उस के घर पहुंचा और उस के पिता सुरजीत से मुलाकात की. मैं काफी देर तक सुरजीत से जीते के बारे में बातें करता रहा. जब मैं उस के पास से उठने लगा तो दरवाजे के पीछे से चूडि़यों की खनक सुनाई दी. एक औरत जल्दी से अंदर आई थी और मुझे देख कर ठिठक गई थी. वह जवान औरत थी. उस के हाथ में एक छोटा सा लिफाफा था. वह असमंजस में थी कि आगे जाए या वापस लौट जाए.
लेकिन लौटने के बजाए वह हिम्मत कर बोली, ‘‘सुरजीत चचा, ये दवा खा लो. बस 2 दिन और खानी है.’’
सुरजीत ने उसे घूर कर देखते हुए कहा, ‘‘रजिया तुझे कितनी बार कहा है, यहां मत आया कर. रही दवा की बात तो मुझे एक बार ही ला कर दे दे. मैं खुद ही खा लिया करूंगा. बिना वजह रिश्तेदारी मत बना हम से. हम पहले ही बहुत दुखी हैं.’’
रजिया ने दवा वाला लिफाफा सुरजीत के सामने रखते हुए कहा, ‘‘आज तो खा लो, कल बाकी दवा भिजवा दूंगी.’’
सुरजीत ने दवा ले कर मजबूरी में कहा, ‘‘जा, पानी ले कर आ.’’
वह मुझे उलझन भरी नजरों से देख कर बाहर चली गई. मैं समझ गया कि यह वही रजिया है, जो इस फसाद की जड़ है. उस के बाहर जाते ही सुरजीत बोला, ‘‘पागल है यह लड़की, हम सब को भी पागल बना रखा है. यह सोच कर बहाने से दवा देने आई है कि शायद जीता घर पर हो. एक तरफ उसे धक्के दे कर घर से निकालती है, दूसरी तरफ उस की दीवानी हुई फिरती है. पता नहीं क्या चाहती है यह नादान लड़की.’’
रजिया पानी ले आई. जब वह सुरजीत को दवा खिला कर जाने लगी तो मैं ने उसे आवाज दे कर रोक लिया. वह ठिठक गई. सुरजीत ने उस से मेरा परिचय करवाते हुए बताया कि इन इंसपेक्टर साहब ने जीते की बहुत मदद की है.
मेरा परिचय सुन कर वह डर गई. फिर संभल कर बोली, ‘‘जी फरमाइए.’’
मैं ने कहा, ‘‘मैं तुम से कुछ जरूरी बातें करना चाहता हूं. तुम्हारा शौहर घर में ही है?’’
‘‘जी नहीं,’’ वह बोली, ‘‘वह शेरू के साथ थाने गए हैं.’’
‘‘चलो ठीक है, यहीं बात कर लेते हैं.’’ मैं ने सुरजीत की ओर देख कर कहा, ‘‘आप हमें चंद मिनट दीजिए.’’
मेरी बात समझ कर वह उठ खड़ा हुआ और जातेजाते बोला, ‘‘इंसपेक्टर साहब, वाहेगुरु के वास्ते इसे समझाएं. इस के दिमाग से यह जुनून निकाल दें. इसे समझाएं कि न अपना घर उजाड़े और न हमें बरबाद करे.’’
सुरजीत बाहर चला गया तो मैं ने रजिया को सामने पड़ी कुरसी पर बैठने को कहा. वह वाकई खूबसूरत औरत थी. मैं ने उस से पूछा, ‘‘बीबी, तुम जानती हो कि तुम्हारी वजह से कितना हंगामा हो रहा है? आखिर तुम चाहती क्या हो?’’
उस ने सिर झुका लिया. उस के होंठ कांपने लगे. वह कुछ कहना चाहती थी, पर कह नहीं पा रही थी. मैं ने कहा, ‘‘तुम्हारा शौहर शरीफ आदमी है. तुम से बेपनाह मोहब्बत भी करता है. फिर तुम यह खेल क्यों खेल रही हो?’’
मेरी बात सुन कर उस की आंखों से आंसू निकल आए. मैं ने बहुत कोशिश की कि वह अपने दिल की बात बताए. लेकिन वह अपने होंठों को सी कर बैठ गई. आखिर मैं ने कहा, ‘‘खामोश रहने से काम नहीं चलेगा. यह मत भूलो कि तुम्हारा व्यवहार तुम्हें अदालत तक भी ले जा सकता है और जेल भी.’’
उस ने रोतेरोते सिर्फ इतना कहा, ‘‘मैं बेबस हूं.’’
वह टस से मस नहीं हुई. बस खामोश बैठी आंसू बहाती रही. निस्संदेह वह कोई अहम बात छिपा रही थी. अपनी आंखें पोंछने के बाद उस ने कानों पर गिरे अपने बालों को पीछे किया तो मेरी निगाह उस के कान के झुमके पर पड़ी. मैं ने उस झुमके को गौर से देखा तो चौंका. इतनी देर में रजिया ने अपने कानों पर ओढ़नी डाल दी थी. मैं ने कहा, ‘‘बीबी, जरा कानों से ओढ़नी हटाओ.’’
वह मेरी बात नहीं समझी. जब मैं ने दूसरी बार गुस्से से कहा तो उस ने ओढ़नी हटाई. मैं ने आगे हो कर उस के झुमके का मुआयना किया. शक की कोई गुंजाइश नहीं थी. यह उस लौकेट के साथ का उसी डिजाइन का झुमका था जो जीते के गले में था. मैं ने पूछा, ‘‘बीबी, यह झुमका तुम्हें कहां से मिला?’’
‘‘मेरी शादी का है.’’ उस ने बताया.
‘‘मांबाप ने दिया था?’’
‘‘नहीं, ससुराल की तरफ से मिला था.’’
‘‘इस के साथ का और कोई जेवर भी है तुम्हारे पास?’’
‘‘जी नहीं, बस झुमके ही हैं.’’
‘‘देखो बीबी, मैं जो भी पूछूं, सचसच बताना वरना तुम सब बहुत बड़ी मुसीबत में फंस जाओगे.’’
रजिया मेरी बातों से पहले ही परेशान नजर आ रही थी. जब मैं ने मुसीबत की बात कही तो वह घबरा गई. कहने लगी, ‘‘पता नहीं, आप क्या पूछना चाहते हैं. बेहतर होगा आप मेरे शौहर से बात कर लें.’’
‘‘घबराने की कोई बात नहीं है. सच बोलोगी तो मैं हर तरह से मदद करूंगा. लेकिन झूठ बोला तो मैं तुम्हें नहीं बचा पाऊंगा.’’
उस के चेहरे का रंग पीला पड़ गया. वह ऐसे सिमट कर बैठ गई जैसे खुद में ही छिपने की कोशिश कर रही हो. मैं ने कहा, ‘‘इस झुमके के साथ का एक लौकेट मैं ने जीते के गले में देखा है. वह कहां से आया?’’
उस ने सिर झुका कर जवाब दिया, ‘‘वह लौकेट उसे मैं ने दिया था.’’
‘‘तुम्हारे शौहर को मालूम है?’’
‘‘जी नहीं.’’
‘‘क्या तुम यह जानती हो कि तुम्हारे शौहर के पास ये जेवर कहां से आए?’’
वह सादगी से बोली, ‘‘ये जेवर शादी से पहले के हैं.’’
मैं ने रजिया से कुछ सवाल और पूछे फिर उसे घर जाने की इजाजत देते हुए कहा कि न तो वह घर से बाहर कहीं जाएगी और न इस बात का जिक्र किसी से करेगी. वहां से फारिग हो कर मैं थाने पहुंचा. मैं ने थानेदार से कहा कि वह एक सिपाही भेज कर शेरू को बुलाए. साथ ही मैं ने एक एएसआई को यह कह कर भेज दिया कि वली खां जहां भी मिले उसे फौरन मेरे पास ले आए. लगभग आधे घंटे बाद एएसआई वली खां को ले आया. वह थोड़ी देर पहले ही थाने से गया था.