ऐसी भी एक सीता – भाग 4

पत्नी की बदचलनी की कहानी सुन कर रामानंद का खून खौल उठा था. उस ने वहीं से फोन पर सीतांजलि को सुधर जाने की नसीहत दी और न सुधरने पर इस का बुरा अंजाम भुगतने को भी डराया, लेकिन वह कहां पति से डरने वाली थी. पति जितना उसे गालियां देता था, डराताधमकाता था, वह उतनी ही प्रेमी बृजमोहन के करीब बढ़ती जाती थी.

रामानंद ने फरवरी 2023 में पत्नी को फोन कर के बता दिया था कि 5 अप्रैल, 2023 को दुबई से फ्लाइट से रवाना होगा और 6 अप्रैल को शाम तक घर पहुंच आएगा. उस के बाद जो निर्णय लेना होगा, वहीं औन द स्पौट लेगा.

सीतांजति ने जब से पति के वापसी की बात सुनी थी, उस की आंखों की नींद और दिल का चैन उड़ गया था. इस बारे में उस ने अपने प्रेमी बृजमोहन को बताया, ”अब कोई उपाय करो, वह विदेश से वापस लौट रहा है. तुम से बिछड़ कर मैं जिंदा नहीं रह सकती. मैं तुम्हारे बिना मर जाऊंगी. बड़े मर्द बनते हो न, मुझे यहां से उड़ा ले चलो, नहीं तो हमारे प्यार के रास्ते के कांटे को हमेशा के लिए उखाड़ फेंको.’‘

उस दिन के बाद से दोनों मिल कर रामानंद की हत्या की योजना बनाते रहे. इस योजना में बृजमोहन ने अपने बचपन के दोस्त अभिषेक चौहान को शामिल कर लिया था. वह उसी के गांव का रहने वाला था और मध्य प्रदेश में जौब करता था.

बृजमोहन और अभिषेक के बीच में गहरी दोस्ती थी और दोनों ही हमप्याला हमनिवाला थे. दोनों एक साथ बचपन की गलियों में खेले और बड़े हुए. साथसाथ पढ़े और शरारतें भी साथसाथ कीं.

इसलिए जब बृजमोहन ने अपने प्यार का वास्ता दे कर प्रेमिका के पति को रास्ते से हटाने की बात कही थी तो वह मना नहीं कर सका और उस की खतरनाक योजना में शामिल हो कर सच्ची दोस्ती निभाने का वायदा किया.

6 अप्रैल, 2023 की सुबह रामानंद फ्लाइट से लखनऊ पहुंचा और पत्नी को बता दिया कि वह लखनऊ पहुंच गया है और वहां से प्राइवेट बस से गोरखपुर पहुंच जाएगा. सीतांजलि ने यह बात बृजमोहन को बता दी कि पति फलां नंबर की बस में सवार है और लखनऊ से घर आ रहा है.

बृजमोहन अपने साथी अभिषेक चौहान के साथ लखनऊ में ही रुका था. इस की योजना थी रामानंद को लखनऊ में ही मौत के घाट उतार दे, ताकि किसी को उस पर शक न हो.

पते की बात तो यह थी कुछ दिनों की छुट्टी ले कर बृजमोहन दिल्ली से गोरखपुर घर आया था. घर आना तो सिर्फ एक बहाना था, असल बात प्रेम की राह के कांटा बने रामानंद को हटाना था.

5 अप्रैल, 2023 को घर वालों से बृजमोहन तथा अभिषेक यह कह कर घर से निकले कि वह अपने नौकरी पर वापस लौट रहे हैं, दिल्ली नौकरी पर जाने की बजाय दोनों लखनऊ रुक गए और रामानंद के आने का इंतजार करने लगे थे.

खैर, जिस प्राइवेट बस में रामानंद सवार था, उसी बस में सामने वाली सीट पर बृजमोहन और अभिषेक हुलिया बदल कर बैठ गए थे, ताकि रामानंद उसे पहचान न सके. दोनों ने बस में ही उसे मारने की कई बार कोशिश की, लेकिन वे अपने इरादों में कामयाब नहीं हो पाए और लखनऊ से गोरखपुर पहुंच गए.

इधर सीतांजलि पति की मौत की खबर सुनने के लिए उतावली हुई जा रही थी कि कब उस का प्रेमी फोन कर के उसे ये अच्छी खबर सुनाए.

दोपहर एक बजे के करीब जैसे ही बृजमोहन का फोन आया, सीतांजलि बड़ी उत्सुकता से फोन झपट कर कान से सटा कर बोली, ”क्या हुआ? फोन करने में इतनी देर क्यों लगा दी?’‘

”क्या करूं, बात ही कुछ ऐसी है.’‘ रोआंसी आवाज में बृजमोहन ने कहा.

” मुझे पहेलियां मत बुझाओ. क्या हुआ, साफसाफ बताओ टारगेट पूरा हुआ कि नहीं.’‘

”नहीं, टारगेट पूरा नहीं हुआ. बस में इतनी सवारियां थीं कि कहीं मौका ही नहीं मिला टारगेट पूरा करने के लिए.’‘ बृजमोहन सफाई देते हुए बोला.

”कोई बात नहीं. बाजी अभी भी हमारे हाथ में है, शिकार तो जरूर बनेगा वो हमारा.’‘ कह कर उस ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

सीतांजलि खुद के हाथों खुद का सुहाग मिटाने की जिद पर अड़ी थी. उस ने तय कर लिया था कि पति को मौत देनी है तो देनी है. विधवा बनना है तो बनना है. इस के लिए उस ने पहले कई तैयारियां कर रखी थीं. इधर बृजमोहन और अभिषेक बस से गोरखपुर उतर गए और टैंपो से सहजनवां जा पहुंचे, जो प्रेमिका के घर से 3-4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित था.

इधर रामानंद सहीसलामत घर पहुंच गया था. खाने में सीताजंलि ने रात में मटन पकाया था. उस ने अपने हिस्से का खाना निकाल कर बाकी पूरे खाने में नींद की 6 गोलियां बारीक पाउडर बना कर मिला दीं. और वही खाना पति, सास, ससुर और देवर को खिला दिया. खाना खाने के कुछ ही देर बाद सब के सब नींद की आगोश में समा गए थे. रामानंद भी अपने कमरे में जा कर खर्राटे भरने लगा था.

सीतांजलि ने पति को हिलाडुला कर देखा, वह बेसुध बिस्तर पर पड़ा हुआ था. उसे जब पूरा यकीन हो गया कि वह गहरी नींद में है तो उस ने प्रेमी बृजमोहन को घर आने के लिए फोन किया. प्रेमिका का फोन आते ही बृजमोहन दोस्त को साथ ले कर पैदल ही चल दिया और घर के पीछे से साड़ी के सहारे दोनों छत पर होते हुए दबे पांव कमरे में पहुंचे. उस समय रात के यही कोई 11 बज रहे थे.

फिर क्या था? सीतांजलि ने अपना दुपट्टा प्रेमी बृजमोहन की ओर बढ़ाया. दुपट्टा संभालते हुए बृजमोहन ने नफरत से रामानंद को देखा. उस का नथुना गुस्से से फूलपिचक रहा था. सीतांजलि ने दोनों हाथों से पति के दोनों पैर काबू किए तो अभिषेक ने उस के सीने पर सवार हो कर अपने मजबूत हाथों से उस के दोनों हाथ जकड़ लिए तभी बृजमोहन उस के गले में दुपट्टा डाल कर कस दिया. थोड़ी देर में उस के प्राणपखेरू उड़ नहीं गए.

तीनों मिल कर उसे मौत के घाट उतार चुके थे. अब लाश ठिकाने लगाने की बारी थी. इस बीच पत्नी सीतांजलि ने पति का मोबाइल फोन पटक कर तोड़ दिया था. फिर तीनों मिल कर लाश ऊपर छत पर ले गए और साड़ी के सहारे लाश नीचे उतार कर एकएक कर छत से नीचे उतरे. सीतांजलि घर में ही रह गई.

बृजमोहन और अभिषेक कपड़े में लाश को लपेट कर गांव के बाहर तालाब तक पहुंचे और कपड़े से लाश निकाल कर उसे पानी में फेंक कर बस पकड़ कर लखनऊ निकल गए. फिर जब सुबह हुई और रामानंद घर पर नहीं मिला और उस की खोजबीन शुरू हुई तो उस की लाश गांव के बाहर पानी में मिली.

पुलिस ने तीनों आरोपियों सीतांजलि, बृजमोहन विश्वकर्मा और अभिषेक चौहान के खिलाफ आईपीसी की धारा 302, 201, 120बी और 34 के तहत मुकदमा दर्ज कर के 2 आरोपियों सीताजंलि और बृजमोहन को जेल भेज दिया, जबकि तीसरा आरोपी अभिषेक चौहान कथा लिखने तक फरार था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

लौकेट का रहस्य – भाग 3

जीते के बारे में यह जानकारी मिलने के बाद मैं ने फैसला किया कि मुझे खुद ही जामनगर जा कर हकीकत मालूम करनी चाहिए. थाने का चार्ज मैं ने सबइंसपेक्टर नदीम को सौंपा और अगले दिन जामनगर के लिए रवाना हो गया.

जामनगर एक छोटा सा कस्बा था. मैं सीधा कस्बे के थाने में पहुंचा. वहां का थानेदार बख्शी मेरा पुराना दोस्त था. मैं ने उस से जीते के बाप सुरजीत के बारे में पूछा.

उस ने बताया कि वह सुरजीत को बहुत अच्छी तरह जानता है. वह निहायत ही शरीफ आदमी है और नीम वाली गली में रहता है. उस ने एक आदमी भेज कर नीम वाली गली से शेखू नाम के एक मुखबिर को बुलवा लिया. वह काफी होशियार आदमी था. इलाके के हर आदमी के बारे में उसे पूरी जानकारी थी. वह मुझे सुरजीत व उस के परिवार के बारे में बताने लगा.

उस की बातों से पता चला कि सुरजीत को नशे की लत है. उस ने शराबखोरी में अपनी पूरी जमीनजायदाद गंवा दी थी. इसी वजह से घर में क्लेश रहता था. सुरजीत अपने बेटे जीते से बहुत प्यार करता था. प्यार तो वह अपनी बीवी व छोटे बेटे से भी बहुत करता था, पर उस का जीते के साथ कुछ अधिक ही लगाव था.

लेकिन पिता की शराब की लत की वजह से जीता घर छोड़ कर अमृतसर आ गया था, ताकि पढ़लिख कर किसी काबिल बन जाए तो अपनी मां और छोटे भाई को भी अपने पास बुला ले.

शेखू ने जो कुछ बताया, उस के अनुसार नीम वाली गली में ही वली खां का घर था. वली खां का चौबारा सुरजीत के चौबारे से मिला हुआ था. दोनों परिवारों का एकदूसरे के घर काफी आनाजाना था. जब वली खां की शादी हुई, तब जीते की उम्र बमुश्किल 16 साल थी. उसे वली खां की बीवी रजिया से बहुत लगाव हो गया था. वली खां से भी उस की गहरी छनती थी. वह हर वक्त वली खां के घर में घुसा रहता था.

वक्त धीरेधीरे गुजरता रहा. हालांकि रजिया और वली खां की उम्र में खासा अंतर था. फिर भी कस्बे की बड़ी बूढि़यां उन पर अंगुली उठाने लगीं. उन्हें जीते का इस तरह रजिया से चिपके रहना पसंद नहीं था. सुरजीत ने बेटे को समझाया, पर वह बाज नहीं आया. मजबूरी में उसे उस के मामा के घर भेज दिया गया. साथ ही वली खां को भी समझा दिया गया कि वह अपनी जवान बीवी को इतनी आजादी न दे.

जीते के जाने के बाद यह मामला शांत हो गया. लेकिन थोड़े दिनों बाद जीते की मां बीमार पड़ गई. उस की देखभाल के लिए जीते को घर लौटना पड़ा. कुछ महीने बीमार रहने के बाद उस की मां चल बसी. मां की बीमारी और मौत के कारण जीते की पढ़ाई छूट गई. अब वह फिर से रजिया के घर में घुसा रहने लगा. उन्हीं दिनों वली खां रोजगार के सिलसिले में पेशावर चला गया. उस के जाने के बाद रजिया और भी आजाद हो गई.

फिर एक दिन पता चला कि रजिया ने जीते को धक्के दे कर घर से बाहर निकाल दिया और जीते ने गुस्से में नीला थोथा खा लिया. हकीम ने बड़ी मुश्किल से उस की जान बचाई थी. इस घटना से सभी हैरान थे. बाद में जो हकीकत सामने आई, वह यह थी कि जीते ने रजिया के साथ छेड़छाड़ की थी.

यह बात किसी तरह वली खां को भी पता चल गई थी. वह पहले ही लोगों की बातें सुनसुन कर भरा बैठा था. पेशावर से वापस आ कर वह जीते की जान के पीछे पड़ गया. फिर अचानक एक दिन जीता चुपचाप कहीं चला गया. काफी दिनों तक उस का कोई पता नहीं चला. बाद में किसी ने बताया कि वह अमृतसर में है.

जीते की पूरी कहानी सुनने के बाद मैं ने मुखबिर से पहला सवाल यह किया कि वली खां और उस की बीवी अब कहां है? उस ने बताया, ‘‘यहीं कस्बे में ही रहते हैं. वली खां अभी हफ्ता भर पहले ही पेशावर से आया है.’’

मैं ने पूछा, ‘‘मियांबीवी में इन दिनों कोई ताजा झगड़ा तो नहीं हुआ?’’

वह इनकार में सिर हिलाने लगा. फिर कुछ सोच कर बोला, ‘‘झगड़े से आप का क्या मतलब?’’

मैं ने कहा, ‘‘तुम मेरे मतलब की छोड़ो. जो कुछ तुम्हें पता है वह बताओ.’’

वह गहरी सांस ले कर बोला, ‘‘पिछले दिनों मुझे दीनू डाकिया मिला था. उस ने बताया कि वली खां के नाम कहीं से कुछ खत आते हैं. उन में वली खां और रजिया के नाम बड़ी गंदीगंदी गालियां लिखी होती हैं. वली खां इस बात से बहुत परेशान है.’’

मेरे दिमाग में बिजली सी कौंधी. मैं ने सोचा, खत कोई भी लिखता हो, लेकिन वली खां का ध्यान सब से पहले अपनी बीवी के आशिक जीते की तरफ ही गया होगा. उसे जीते का अमृतसर का पता भी मालूम था. संभव था उसी ने भाड़े के गुंडों से जीते को उठवा लिया हो. अगर वाकई ऐसा था तो जीते की जान को खतरा था.

मैं ने शेखू से पूछा, ‘‘क्या वली खां पेशावर से आने के बाद कस्बे से बाहर गया था?’’

वह कुछ देर सोचता रहा, फिर बोला, ‘‘मैं ठीक से नहीं बता सकता. पर इतना जानता हूं कि वह ज्यादातर अपने घर में ही रहता है. हां, कभीकभी अपने दोस्त शेरू के पास जरूर चला जाता है.’’

हम अभी बातें कर ही रहे थे कि एक सिपाही दौड़ता हुआ थाने आया और उस ने थानेदार को बताया, ‘‘जनाब, उधर नीम वाली गली में बड़ा हंगामा हो रहा है. जीता जख्मी हालत में पड़ा चीखपुकार कर रहा है.’’

मैं ने चौंक कर थानेदार बख्शी की ओर देखा. मेरा आशय समझ कर वह बोला, ‘‘आइए, चल कर देखते हैं.’’

हम थाने से निकल कर नीम वाली गली में पहुंचे. गली में लोगों का हुजूम लगा था. वे लोग किसी को संभालने की कोशिश कर रहे थे. मैं ने गौर से देखा, वह जीता ही था.  उस के होंठ सूजे हुए थे. चेहरे पर कई जगह नील निशान थे और खून रिस रहा था. उस की कमीज भी फटी हुई थी.

पुलिस को देख कर लोग हटने लगे. मुझे देख जीता गुहार लगाने लगा, ‘‘ये देखो थानेदारजी, क्या हाल किया है इन्होंने मेरा. मैं ने क्या बिगाड़ा है किसी का? क्यों लोग मुझे जीने नहीं देते?’’

थानेदार बख्शी ने पूछा, ‘‘तुम्हारी यह हालत किस ने की है?’’

जीते ने रोते हुए बताया, ‘‘मुझे वली खां और उस के गुंडों ने उठा लिया था. 5 दिन भूखाप्यासा बांध कर रखा.’’

उस ने अपना दायां हाथ दिखाया. उस की 3 अंगुलियां टूट गई थीं. पिंडलियों पर डंडों की मार के निशान थे, जहां से खून रिस रहा था.

मैं ने जीते को सांत्वना दे कर चुप करवाया और उसे भीड़ से निकाल कर थाने ले आया. वह बारबार एक ही बात कहे जा रहा था, ‘‘थानेदार साहब, मैं ने किसी को बदनाम नहीं किया. इन लोगों ने खुद ही बदनामी का इंतजाम किया है, मुझे अमृतसर से उठा लाए. 5 दिन बांध कर मेरी हड्डियां तोड़ते रहे. अब मैं भी वही करूंगा जो मेरा मन चाहेगा. मैं रजिया के बिना नहीं रह सकता. मैं उस से शादी करूंगा. अगर वह मुझे न मिली तो मैं उसी के दरवाजे पर खुदकुशी कर लूंगा.’’

थानेदार बख्शी ने उसे गुस्से से डांटा, ‘‘ओए मजनूं की औलाद, होश की दवा कर. अभी सारा भूत उतार दूंगा.’’

मैं ने थानेदार को इशारा कर के मना किया. क्योंकि जितना मैं इस मामले को जानता था, थानेदार बख्शी को पता नहीं था. वैसे भी जीता इस वक्त मुद्दई की हैसियत रखता था. उसे अगवा किया गया था. कैद में रख कर उसे यातनाएं दी गई थीं. मैं ने उस से घटना के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि उसे टैक्सी में डाल कर पहले जालंधर ले जाया गया.

वहां रात भर रखने के बाद उसे जामनगर ला कर एक अंधेरे मकान में बंद कर दिया गया. फिर रस्सियों से बांध कर भूखाप्यासा रखा गया. वली खां और उस के दोस्त शेरू ने उसे बहुत मारा था. शायद वे लोग उसे जान से ही मार डालते, लेकिन आज सुबह वे कमरे की एक खिड़की बंद करना भूल गए. जीते ने किसी तरह लोहे की जाली तोड़ी और वहां से निकल भागा.

ऐसी भी एक सीता – भाग 3

इंसपेक्टर मदन मोहन मिश्र ने केस के खुलने की जानकारी एसएसपी गौरव ग्रोवर और एसपी (नार्थ) मनोज अवस्थी को बताई तो दोनों अधिकारियों ने फरार दोनों आरोपियों को पकड़ने के लिए पुलिस की 2 टीमें गठित कीं. एक टीम को लखनऊ तो दूसरी टीम को मध्य प्रदेश रवाना कर दिया.

लखनऊ के गोमती नगर से पुलिस ने बृजमोहन विश्वकर्मा को गिरफ्तार कर अदालत में पेश कर ट्रांजिट रिमांड पर ले कर 11 अप्रैल को गोरखपुर ले आई. उसी दिन शाम 4 बजे पुलिस लाइन के मनोरंजन कक्ष में एसएसपी गौरव ग्रोवर ने एक पत्रकार वार्ता आयोजित कर पत्रकारों को इस केस के खुलासे की जानकारी दी.

पुलिस पूछताछ में रामानंद विश्वकर्मा की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

30 वर्षीय रामानंद विश्वकर्मा मूलरूप से उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के थाना गीडा के मल्हीपुर गांव का रहने वाला था. पिता रामप्रीत विश्वकर्मा के 3 बच्चों में 2 बेटे और एक बेटी थी. रामानंद दूसरे नंबर का था. बेटी रंजना सब से बड़ी थी और मंझले रामानंद से छोटा एक बेटा और था. यही रामप्रीत का खुशहाल परिवार था.

रामप्रीत किसान थे. खेतीबाड़ी कर के अपने परिवार का भरणपोषण करते थे. खैर, बेटी सयानी हो चुकी थी. उन्होंने बेटी के लिए योग्य वर तलाशना शुरू कर दिया था. उस की शादी खजनी थाना क्षेत्र के गांव रामपुर पांडेय में कर दी थी.

उस के बाद साल 2020 के सितंबर में गोरखपुर के चिलुआताल की रहने वाली सीतांजलि के साथ मंझले बेटे रामानंद की शादी कर एक और बड़ी जिम्मेदारी से मुक्त हो गए. अब बचा था एक छोटा बेटा तो वह अभी पढ़ रहा था, इसलिए उस की तरफ उन का कोई खास ध्यान नहीं था.

सीतांजलि बहुत सुंदर थी, शारीरिक रूप से भी. उसे पत्नी के रूप में पा कर रामानंद बहुत खुश था, क्योंकि उस ने जैसे जीवनसाथी का सपना देखा था, सीतांजलि उस के सपनों पर खरी उतरी थी. ऐसा नहीं था कि सपने सिर्फ रामानंद ने ही देखे, बल्कि सीतांजलि ने अपने मन में जिस राजकुमार की छवि उकेरी थी, वह रामानंद ही था.

यानी पतिपत्नी ने एकदूसरे को ले कर जो सपने देखे थे, उन के वह सपने पूरे हो चुके थे. दोनों एकदूसरे को जीवनसाथी के रूप में पा कर फूले नहीं समाए थे. वह पत्नी को सीता कह कर पुकारता था.

जिन दिनों रामानंद की शादी हुई थी, उन दिनों रामानंद कोई नौकरीचाकरी नहीं करता था. ऐसा नहीं था कि निकम्मा अथवा आलसी था बल्कि उस का सपना विदेश में रह कर नौकरी करना था और परिवार को अपने साथ रखना था. इस के लिए उस ने अपना पासपोर्ट बनवा रखा था और वीजा के लिए कानूनी प्रक्रिया शुरू कर दी थी.

फरवरी 2021 में रामानंद विश्वकर्मा दुबई नौकरी करने चला गया. वह नईनवेली पत्नी को छोड़ कर विदेश चला तो गया, लेकिन उस का मन पत्नी सीताजंलि के पास ही रह गया. उस की याद में वह दिनरात तड़पता था. उधर सीतांजलि जब भी बिस्तर पर लेटती थी, पति का खालीपन उसे काटने को दौड़ता था.

अभी तो उस ने पति को भरपूर निगाहों से देखा भी नहीं था. उस की मेहंदी का रंग हथेली से उतरा भी नहीं था कि पति उसे विरह की अग्नि में जलता हुआ छोड़ चला गया था.

रामानंद की जब शादी हुई थी, तब उस की शादी में उस के बहनोई का छोटा भाई बृजमोहन विश्वकर्मा भी आया था. जयमाल के दौरान सीतांजलि सजसंवर कर दुलहन के रूप में जब स्टेज पर आई थी, उस की मोहिनी सूरत देख कर बृजमोहन मुग्ध हो गया था. बहुत देरतक वह उसे एकटक निहारता ही रहा.

वह जन्नत की किसी हूर से कम नहीं लग रही थी, लेकिन वह तो किसी और की अमानत थी. वह हाथ मलता रह गया था. फिर यह सोच कर निश्ंिचत हो गया था कि वह आएगी तो साले के घर ही न, फिर आगे क्या करना होगा, सोचा जाएगा.

उस दिन से बृजमोहन सलहज सीतांजलि का दीवाना हो गया था. फिलहाल उस ने अपनी चाहत को अपने सीने में दबाए रखा और वक्त का इंतजार करने लगा था.

चूंकि बृजमोहन का भाई के साले रामानंद की पत्नी के साथ मजाक का रिश्ता था ही और इसी के चक्कर में उस का साले के घर आनाजाना कुछ ज्यादा ही बढ़ गया था. भाई की ससुराल जब भी वह आता था तो सीतांजलि के पास ज्यादा वक्त बिताता था. यह बात रामानंद को अच्छी नहीं लगती थी, लेकिन संकोची स्वभाव का रामानंद मना भी नहीं कर पा रहा था. अलबत्ता पत्नी को ही डांटता था. पति के इस व्यवहार से सीतांजलि दुखी रहती थी. जबकि उस के दिल में न खोट थी और न ही मन में मैल.

बृजमोहन जब भी साले रामानंद के घर आता था, तब पतिपत्नी के बीच तीखी नोंकझोंक हो जाती थी. उसे शक था कि पत्नी के साथ बृजमोहन का टांका भिड़ा हुआ है, जबकि उस की ओर से ऐसी कोई बात थी ही नहीं.

कीचड़ में खिले कमल के समान वह पवित्र थी. उस के मन मंदिर में पति की ही मूरत बसी थी, लेकिन जब पति ने उस पर ज्यादा ही शक करना शुरू किया तो उसे पति से जैसे चिढ़ हो गई. वह उस के मन से उतर गया और उस का आकर्षण बृजमोहन की ओर बढ़ गया था.

किस ने और किस तरह की रामानंद की हत्या

इसी बीच रामानंद दुबई कमाने चला गया था. पति के घर से जाते ही बृजमोहन का रास्ता खुल गया था. कहने को तो वह दिल्ली की एक प्राइवेट कंपनी में इंजीनियर की नौकरी करता था, लेकिन उस का अधिकांश समय सीतांजलि की बांहों में बीतता था.

जैसे इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपता, वैसे ही सीतांजलि और बृजमोहन का रिश्ता भी नहीं छिप सका. भले ही पति बाहर चला गया था तो क्या हुआ? घर पर उस के सासससुर रहते थे. उन की आंखों पर गांधारी वाली पट्टी बंधी थी.

उन्हें सब दिखता था और वे सब समझते थे. उन्होंने बहू को समझाया भी था कि पतन के जिस रास्ते पर वह चल पड़ी है, वहां बदनामी के सिवाय कुछ नहीं मिलता है. घरपरिवार की इज्जत की खातिर घिनौना खेल खेलना बंद कर दे. लेकिन ससुर की बात सुन कर बहू के कान पर जूं तक रेंगी थी.

बृजमोहन और सीतांजलि की मोहब्बत शबाब पर थी. प्यार में दोनों इस कदर अंधे हो चुके थे कि उन्हें सिवाय मोहब्बत के कुछ भी नहीं दिखता था. दोनों ने साथ जीनेमरने की कसमें भी खा ली थीं और यह भी फैसला कर लिया था कि उन की मोहब्बत के बीच में जो भी रोड़ा आएगा, उसे हमेशाहमेशा के लिए रास्ते से हटा दिया जाएगा, चाहे पति ही क्यों न हो.

इधर बहू सीतांजलि की घिनौनी करतूतों की वजह से गांवसमाज में रामप्रीत की थूथू हो रही थी. उन के समझाने का बहू पर कोई असर नहीं हो रहा था. अब पानी सिर के ऊपर बहने लगा था तो पूरी बात उन्होंने बेटे रामानंद को बता दी.

लौकेट का रहस्य – भाग 2

जगजीत उर्फ जीते की कहानी मैं ने गौर से सुनी. उस से कुछ सवाल पूछने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि उस की बातों में जरा भी झूठ की मिलावट नहीं है. कुसूर यकीनन उस लड़की का था. अब सवाल यह था कि खातेपीते रईस घर की लड़की ने आखिर हौकर से ही नजरें क्यों लड़ाईं?

मैं ने सोचा कि जब किसी लड़की का दिल किसी पर आता है तो वह ऊंचनीच नहीं देखती. हो सकता है बग्गा की बेटी के साथ भी यही रहा हो. जीते ने उस के प्रति जो बेरुखी दिखाई थी, वह उस से बेचैन हो गई होगी. संभव है उस ने अपने भाई की मोटरसाइकिल अपने किसी चाहने वाले से चोरी करवा दी हो. अगर ऐसा नहीं भी हुआ होगा तो उस ने मौके का फायदा उठाया होगा और मोटरसाइकिल चोरी होने पर जानबूझ कर शक की सुई जीते की ओर मोड़ दी होगी.

घटनास्थल देखने के बहाने मैं उसी दिन बग्गा की कोठी पर पहुंचा. मैं ने नौकरों और घर वालों से पूछताछ की. पम्मी भी वहीं मौजूद थी. वह खूबसूरत थी. साथ ही चालाक भी नजर आ रही थी. उस ने भी अपने बयान में वही बताया, जो उस के पिता और भाई ने बताया था.

अभी मैं कोठी में पूछताछ कर ही रहा था कि मोटरसाइकिल की पहेली हल हो गई. थाने से हवलदार बिलाल शाह चोरी की उसी मोटरसाइकिल पर सवार हो कर वहां आ गया. उस ने बताया कि मोटरसाइकिल नहर के पास से बरामद हुई है. चोर भी पकड़ा गया था. जीते ने ठीक ही कहा था. उसे सबक सिखाने के लिए पम्मी ने ही यह चोरी करवाई थी. कहने को तो यह केस यहीं खत्म हो गया था, पर हकीकत में खत्म नहीं हुआ था, बल्कि इस के बहाने एक नया मामला सामने आ गया था.

थाने आ कर जब मैं जीते को रिहा करने के लिए कागजी काररवाई कर रहा था, तभी जामातलाशी की एक चीज देख कर मैं बुरी तरह चौंका. मैं ने जीते को एक कागज पर दस्तखत करने के लिए कहा. वह दस्तखत करने के लिए मेज पर झुका तो उस के गले का लौकेट लटक कर मेरी आंखों के सामने लहराने लगा. हालांकि यह लौकेट जीते के गले में मैं पहले भी देख चुका था.

सोने के उस तिकोने लौकेट के बीचोबीच ‘ॐ’ बना हुआ था. उस के ऊपर वाले कोने पर एक लाल रंग का नग व नीचे के 2 कोनों पर सफेद नग जड़े थे. मुझे लगा कि उस लौकेट को मैं पहले भी कहीं देख चुका हूं. लेकिन याद नहीं आ रहा था कि कहां देखा है. मैं ने दिमाग पर जोर डाला तो सब कुछ याद आ गया.

करीब 5 साल पहले मेहता सेठ के घर डकैती पड़ी थी. इस डकैती में मेहता सेठ की गोली लगने से मौत हो गई थी. इस वारदात में कीमती जेवरात बच गए थे, क्योंकि वे तिजोरी के एक भीतरी खाने में पड़े थे. डकैतों ने केवल वही जेवर लूटे थे, जो मेहता की बीवी ने उस वक्त पहन रखे थे.

लूटे गए जेवरों में सोने की चूडि़यां, झुमके, लौकेट व एक अंगूठी थी. जो लौकेट लूटा गया था, उसी डिजाइन का एक लौकेट तिजोरी में रखा हुआ था. मेहता की बीवी ने वह लौकेट तिजोरी से निकाल कर मुझे दिखाते हुए बताया था कि जो लौकेट डाकू ले गए हैं, वह हूबहू ऐसा ही था.

तफ्तीश के लिए मैं उस लौकेट को मेहता की बीवी से ले आया था. बाद में वह लौकेट महीनों तक मेरी दराज में पड़ा रहा था. मैं ने उसे सैकड़ों बार देखा था. बाद में कोई सुराग न मिलने की वजह से इस केस की फाइल बंद कर दी थी और मैं ने लौकेट वापस लौटा दिया था.

गौर से देखने के बाद मैं ने जीते से पूछा, ‘‘जीते, बड़ा खूबसूरत लौकेट पहने हो. तुम्हारा ही है या किसी ने दिया है?’’

‘‘जी…हां, जी…नहीं…’’ उस ने घबरा कर हां और ना दोनों कहा तो मैं ने पूछा, ‘‘क्या मतलब, तुम्हारा नहीं है?’’

‘‘जी नहीं, यह मुझे राह चलते बाजार में पड़ा मिला था. यह कीचड़ से सना हुआ था. मैं ने धो कर काले धागे में डाल कर पहन लिया.’’

‘‘इस का मतलब यह तुम्हारे पास गैरकानूनी है?’’ मैं ने उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा तो वह घबरा गया. अचानक उस का हाथ गले की तरफ बढ़ा. वह लौकेट उतारना चाहता था. मैं ने उसे रोकते हुए कहा, ‘‘अब रहने दो. लेकिन आइंदा ध्यान रखना कि गुमशुदा चीज मिलने का मतलब यह नहीं होता कि उसे अपने पास रख लिया जाए. तुम्हें पता है, गुमशुदा चीजों से कभीकभी काम के कई सुराग मिल जाते हैं.’’

बहरहाल, मैं ने उसे समझा कर वापस भेज दिया. चूंकि उस लौकेट को मैं ने पहचान लिया था, इसलिए यह जरूरी हो गया था कि मैं जीते की निगरानी करवाऊं. क्योंकि उस लौकेट से 5 साल पुरानी डकैती और हत्या का रहस्य खुल सकता था. मैं ने उस की निगरानी का काम बिलाल शाह को सौंप दिया. बिलाल शाह ने 4 रोज बाद मुझे बताया कि जीते और बग्गा की लड़की पम्मी का मामला अभी खत्म नहीं हुआ, बल्कि और भी ज्यादा भड़क गया है.

‘‘कैसे?’’ मैं ने पूछा तो बिलाल शाह ने बताया, ‘‘सच्ची बात छिपी नहीं रहती है जी. जीते ने तो उसी दिन से बग्गा के घर अखबार डालना बंद कर दिया था. अब तो वह उस इलाके में भी नहीं जाता. लेकिन बग्गा की लड़की बड़ी तेज निकली. परसों शाम वह उस के बुकस्टाल पर जा धमकी. बुकस्टाल पर जीते का कोई बुजुर्ग रिश्तेदार बैठता है. उस के सामने वह जीते को खींच कर अपने साथ ले गई. एक होटल में उस ने चाय वगैरह मंगवाई और जीते के सामने रो कर कहने लगी कि उस से बहुत बड़ी गलती हो गई है और वह माफी चाहती है.

वह किसी भी तरह से जीते का पीछा नहीं छोड़ना चाहती थी. आखिर जीते ने अपना पीछा छुड़ाने के लिए हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘बीबी, मैं ने तुझे माफ किया. मेरे वाहेगुरु ने भी तुझे माफ किया.’’

लेकिन यह बात छिपी नहीं रह सकी. बग्गा के बेटे के एक दोस्त ने दोनों को देख लिया था. उस ने जा कर यह बात पम्मी के भाई को बता दी. उस का भाई अपने दोस्तों के साथ बुकस्टाल पर पहुंचा और जीते को उठा कर एक पार्क में ले गया. उस ने धमकी दी कि वह अपनी खैरियत चाहता है तो शहर छोड़ कर चला जाए. लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई. आज सवेरे कुछ लोगों ने जीते को अगवा कर लिया है.’’

जीते का गायब होना मामूली बात नहीं थी. उस से बड़ी बात यह थी कि उस के गले में वह लौकेट था, जो देरसवेर मुझे 5 साल पुरानी डकैती की वारदात का सुराग दे सकता था. मैं ने पम्मी और उस के भाई को बुला कर पूछताछ की. पम्मी के भाई ने स्वीकार किया कि उस ने जीते को धमकी जरूर दी थी, पर उस के अपहरण के बारे में उसे कोई जानकारी नहीं है.

मैं ने जीते के रिश्तेदार से भी इस के बारे में जानकारी एकत्र करने की नीयत से कुरेद कुरेद कर सवाल पूछे. उस ने बताया कि जीते ने किसी वजह से नाराज हो कर अपना घर छोड़ा था और उस का वापस जाने का कोई इरादा नहीं था. साथ ही यह भी कि वह यहीं अपनी पढ़ाई पूरी कर के सरकारी नौकरी करना चाहता था. वैसे वह अच्छे खातेपीते घर का है, पर इन दिनों उस का परिवार आर्थिक संकट से जूझ रहा है. उस के पिता जामनगर में ही क्लर्क की नौकरी करते हैं.

ऐसी भी एक सीता – भाग 2

पलभर में रामानंद की मौत की खबर घर पहुंच गई थी. जैसे ही ये खबर घर पहुंची, वैसे ही घर में रोना शुरू हो गया और मातम छा गया. फौरन घर के और लोग भी भागते हुए मौके पर पहुंचे, जहां जमीन पर रामप्रीत बिलखबिलख कर रो रहे थे. इस बीच भीड़ में से ही किसी ने इस की सूचना गीडा थाने को दे दी थी. घटना की सूचना मिलते ही इंसपेक्टर मदनमोहन मिश्र एसआई शिव प्रकाश सिंह, चौकी इंचार्ज पिपरौली आलोक राय आदि को ले कर मौके पर पहुंचे, जोकि थाने से करीब 5 किलोमीटर दूर दक्षिण दिशा में स्थित था.

पुलिस ने लाश तालाब से बाहर निकलवा कर उस का निरीक्षण किया और जरूरी काररवाई पूरी कर वह पोस्टमार्टम के लिए बाबा राघवदास मैडिकल कालेज भिजवा दी.

पुलिस ने मौके पर मौजूद मृतक रामानंद विश्वकर्मा के घर वालों से उस की मौत के बारे में पूछा तो घर वाले कोई उत्तर नहीं दे सके कि उस की मौत कैसे हुई. बस इतना ही बता सके थे कि 6 अप्रैल को बेटा विदेश से घर लौटा था और रात में खाना खा कर सोया, उस के बाद उस की लाश तालाब में तैरती मिली.

घर वालों का जवाब सुन कर इंसपेक्टर मदन मोहन मिश्र के पैरों तले जमीन खिसक गई थी. वह सोचने लगे कि ऐसा कैसे हो सकता है कि घर में सोए व्यक्ति की करीब एक किलोमीटर दूर लाश मिले. उन्हें मामला गंभीर दिखा और उस में हत्या की बू आने लगी है. जबकि मौके पर मौजूद गांव वाले उस की मौत पानी में डूबने से हुई बता रहे थे.

रामानंद की मौत पूरी तरह रहस्य की काली चादर में लिपटी हुई थी. हत्या के शक के आधार पर इंसपेक्टर मदन मोहन ने मौके की जांचपड़ताल की, लेकिन वहां ऐसा कोई संघर्ष का निशान नहीं मिला, जिस से यह साबित हो सके कि मृतक ने हत्यारों का कोई विरोध किया हो. खैर, लाश देख कर पुलिस किसी भी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकी थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही मौत के सही कारण के बारे में पता लग सकता था.

कागजी काररवाई करतेकरते दोपहर के 12 बज गए थे. कागजी काररवाई पूरी करने के बाद इंसपेक्टर मदन मोहन पुलिस टीम के साथ थाने वापस लौट गए थे. मृतक रामानंद के पिता रामप्रीत विश्वकर्मा को भी थाने बुला लिया था. वहां उन्होंने उस से लिखित तहरीर ले ली थी, ताकि जांच की काररवाई आगे बढ़ाई जा सके.

पुलिस को क्यों हुआ मृतक की पत्नी पर शक

अगले दिन यानी 8 अप्रैल, 2023 को रामानंद विश्वकर्मा की पोस्टमार्टम की रिपोर्ट थाने पहुंच गई. इंसपेक्टर मदन मोहन के टेबल पर पड़ी थी. रिपोर्ट पढ़ कर इंसपेक्टर मिश्र चौंके बिना नहीं रह सके थे, क्योंकि रिपोर्ट में मृतक की मौत गला दबाने से हुई बताई गई. मतलब बात शीशे की तरह साफ हो चुकी थी कि पानी में डूबने से रामानंद की मौत नहीं हुई थी, बल्कि रिपोर्ट में उस की गला दबा कर हत्या की गई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ जाने के बाद इंसपेक्टर मदन मोहन मिश्र पूरी तरह एक्टिव हो गए और उसी दिन दोपहर में अपनी टीम को ले कर वह उसी जगह पहुंच गए, जहां लाश पाई गई थी. वहां भी जांच में मौके से संघर्ष के कोई निशान नहीं मिले.

मतलब आईने की तरह साफ था कि हत्या कहीं और कर के लाश को तालाब में फेंक दिया गया था. पुलिस मौके की जांच कर के मृतक रामानंद के घर पहुंची और उस कमरे की तलाशी में जुट गई थी, जहां घटना वाली रात वह सोया था.

पुलिस ने कमरे की गहनतापूर्वक जांच की. जांच के दौरान बेड के नीचे से टूटी हुई प्रेग्नेंसी किट, एक डायरी, एक फोटो और एक टूटा हुआ मोबाइल फोन बरामद हुआ. पुलिस ने इन सामानों को बतौर साक्ष्य अपने कब्जे में ले लिया था, पता चला कि वह मोबाइल मृतक का था.

घर वालों से पूछताछ करने पर पता चला कि टूटा हुआ मोबाइल मृतक रामानंद का है. इस से एक बात तो स्पष्ट हो गई थी कि जो कुछ भी हुआ था, इसी कमरे में घटा था.

पुलिस के शक के घेरे में मृतक की पत्नी सीतांजलि आ गई थी, क्योंकि उस का बयान बारबार बदलता जा रहा था, लेकिन पुलिस ने फिलहाल जानबूझ कर उस की ओर से अपना ध्यान हटा लिया था, ताकि वह कोई ऐसी वैसी हरकत करे और पुलिस की शिकंजे में फंस जाए.

कमरे की तलाशी लेने के बाद पुलिस रामप्रीत से उन की बहू सीतांजलि और खुद रामप्रीत का सेलफोन नंबर ले कर वापस थाने लौट गई. फिर सीतांजलि के मोबाइल फोन नंबर की एक महीने की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स देख कर इंसपेक्टर मदन मोहन उछल पड़े.

मृतक रामानंद की पत्नी सीतांजलि के फोन पर अकसर एक ही नंबर से काल आता था और उसी नंबर पर इस की ओर से भी काल की जाती थी. दोनों के बीच में घंटोंघंटों तक बातें होती थीं. यही नहीं, जिस रोज रामानंद घर में सोया था और रहस्यमय तरीके से उस की लाश तालाब के किनारे मिली थी, उस रात भी उसी नंबर पर सीतांजलि ने करीब 8 बार बात की थी. इस बात ने पुलिस के शक को और पुख्ता कर दिया था कि पति की मौत में पत्नी का हाथ अवश्य है.

यही नहीं, जिस नंबर से अकसर सीतांजलि के फोन पर काल आती थी और काल जाती थी, पुलिस ने उस नंबर को भी खंगाल डाला. वह नंबर किसी बृजमोहन विश्वकर्मा के नाम पर आवंटित था, जो गोरखपुर जिले के ही खजनी थाना क्षेत्र के रामपुर पांडेय का रहने वाला था.

गुप्तरूप से पुलिस ने उस के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला वह शख्स मृतक के सगे बहनोई का छोटा भाई निकला. वह मुंबई में रह कर कमाता था. रिश्ते में सीतांजलि, बृजमोहन की सलहज लगती थी.

पुलिस छानबीन के दौरान मृतक के कमरे से डायरी और फोटोग्राफ बरामद हुआ था. उस डायरी में लिखी मजमून और फोटो ने रामानंद की हत्या होना और हत्या में पत्नी का शामिल होना दोनों साबित कर दिया था.

पुलिस के पास सीतांजलि और बृजमोहन विश्वकर्मा को गिरफ्तार करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य इकट्ठा हो गए थे. फिर देर किस बात की थी.

9 अप्रैल, 2023 को पुलिस ने सीतांजलि को हिरासत में ले उस से कड़ाई से पूछताछ की तो उस ने पलभर में ही अपना जुर्म कुबूल कर लिया. उस ने बताया कि पति की हत्या उस ने अपने प्रेमी बृजमोहन विश्वकर्मा और उस के दोस्त अभिषेक चौहान के साथ मिल कर की है. हत्या करने के बाद बृजमोहन लखनऊ तो अभिषेक मध्य प्रदेश फरार हो गया.

फरेबी के प्यार में फंसी बदनसीब कांता

बेवफा पत्नी और प्रेमी की हत्या – भाग 3

नाजायज रिश्तों का भांडा फूटा

नाजायज रिश्तों को कोई लाख छिपाने की कोशिश क्यों न करे, लेकिन वह छिप नहीं पाते. किसी तरह पड़ोसियों को रागिनी और रिंकू के अवैध संबंधों की भनक लग गई. शोभाराम के दोस्तों ने कई बार उसे उस की पत्नी और रिंकू के संबंधों की बात बताई, लेकिन उस ने उन की बातों पर ध्यान ही नहीं दिया. क्योंकि उसे पत्नी पर पूरा भरोसा था.

जबकि सच्चाई यह थी कि वह उस के साथ लगातार विश्वासघात कर रही थी. रागिनी कुंवारे रिंकू यादव की इतनी दीवानी हो गई थी कि वह पति को कुछ समझती ही नहीं थी.

नाजायज रिश्तों का भांडा तब फूटा जब एक रोज शोभाराम ने अपनी पत्नी रागिनी और रिंकू को अपने ही घर में आपत्तिजनक स्थिति में रंगेहाथों पकड़ लिया. रिंकू ने जब शोभाराम को देखा तो वह फुरती से भाग गया. उस ने भी उस से कुछ नहीं कहा. लेकिन उस ने रागिनी को खूब खरीखोटी सुनाई और दोबारा ऐसी हरकत न करने की हिदायत दे कर छोड़ दिया.

उस दिन के बाद से कुछ दिनों तक रिंकू का रागिनी के यहां आनाजाना लगभग बंद रहा. पर यह पाबंदी ज्यादा दिनों तक कायम न रह सकी. मौका मिलने पर दोनों फिर से शोभाराम की आंखों में धूल झोंकने लगे. पर अब वह काफी सावधानी बरत रहे थे.

पत्नी को समझाने का प्रयास किया

रागिनी की बेटी अब तक 8 साल की हो चुकी थी. वह अपनी उम्र से कुछ ज्यादा समझदार थी. रिंकू के घर आने पर वह ताकझांक में लगी रहती थी. बेटी उस के नापाक रिश्तों में बाधा न बने, इसलिए रागिनी ने उसे ननिहाल रहने को भेज दिया.

बेटी के ननिहाल में रहने पर रागिनी पूरी तरह आजाद हो गई. शोभाराम राजमिस्त्री था. वह सुबह घर से निकलता तो फिर शाम को ही घर आता था. दोपहर में रागिनी चालाकी के साथ रिंकू को बुला लेती फिर दोनों रंगरलियां मनाते. पति के आने से पहले रागिनी सतीसावित्री बन जाती थी.

cShobharam (Aropi)

लेकिन चालाकी के बावजूद शोभाराम ने एक रोज फिर से पत्नी को रिंकू के साथ रंगेहाथ पकड़ लिया. उस रोज शोभाराम सुबह काम पर तो गया था, लेकिन तबीयत खराब होने की वजह से वह दोपहर में ही वापस घर आ गया था. इस बार उस ने रिंकू को खूब खरीखोटी सुनाई और पत्नी की जम कर पिटाई की. इस के बाद रिंकू का घर आनाजाना बंद हो गया.

जनवरी 2023 के पहले सप्ताह में रागिनी ने एक और बेटी को जन्म दिया. बेटी के जन्म से शोभाराम को खुशी नहीं हुई, क्योंकि उसे शक था कि यह बेटी जरूर रागिनी और रिंकू के नाजायज रिश्तों की निशानी है. लेकिन समाज के डर से उस ने जुबान बंद रखी.

बेटी के जन्म के बाद शोभाराम को लगा कि रागिनी ने रिंकू के साथ संबंध खत्म कर लिए हैं. यह उस की भूल थी. रागिनी अब भी मौका मिलने पर रिंकू से मिलने का प्रयास करती रहती थी. उसे झटका तब लगा, जब उस ने एक रोज रिंकू को शाम के धुंधलके में अपने घर से निकलते देख लिया.

शोभाराम की अब गांव में खूब बदनामी होने लगी थी. गांव के युवक उसे देख कर पत्नी के चरित्र को ले कर फब्तियां कसने लगे थे. उस ने पत्नी को बड़ी बेटी की दुहाई देते हुए समझाया, लेकिन रागिनी पर कोई असर नहीं पड़ा.

आखिर अपनी इज्जत का जनाजा उठते देख कर उस का धैर्य जवाब देने लगा. अब उस से पत्नी की बेवफाई बरदाश्त नहीं हो रही थी. इसी सब का नतीजा था कि उस ने मन ही मन एक खतरनाक मंसूबा पाल लिया. वह मंसूबा था रिंकू और बेवफा पत्नी की हत्या का.

अपने मंसूबे को अमली जामा पहनाने के लिए वह दोनों पर नजर रखने लगा था. शोभाराम कभी काम पर जाता तो कभी नहीं भी जाता. कभी जाता तो घंटे-2 घंटे बाद ही लौट आता. रागिनी अच्छी तरह जान गई थी कि उस का पति उस पर नजर गड़ाए है. इसलिए वह स्वयं सतर्क थी और उस ने प्रेमी रिंकू को भी सतर्क कर दिया था कि वह उस के घर तभी आए, जब वह उसे फोन कर बुलाए.

कैसे हुआ प्रेमीप्रेमिका का मर्डर

14 जून, 2023 की सुबह 8 बजे शोभाराम काम पर चला गया. दिन भर काम करने के बाद वह शाम 6 बजे घर आया. उस समय रागिनी छत पर थी. वह कमरे में पड़े तख्त पर लेट गया और थकान दूर करने लगा. रात 8 बजे के लगभग शोभाराम ने खाना खाया फिर तख्त पर लेट गया. कुछ देर बाद ही वह गहरी नींद में सो गया.

इधर रागिनी ने घर का काम निपटाया, फिर बेटे को पति के साथ लिटा दिया और खुद छोटी बेटी के साथ कमरे में पड़ी चारपाई पर लेट गई. लेकिन नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. उसे रहरह कर प्रेमी की याद आ रही थी. महीना भर से अधिक का समय बीत गया था, वह रिंकू से मिलन नहीं कर पाई थी. जब उस से नहीं रहा गया तो उस ने फोन कर रिंकू यादव को घर बुला लिया. दोनों मकान की छत पर पहुंचे और मौजमस्ती में जुट गए.

इधर रात 12 बजे के बाद शोभाराम लघुशंका के लिए उठा तो उस की नजर कमरे में पड़ी चारपाई पर गई. चारपाई पर छोटी बेटी तो सो रही थी, लेकिन पत्नी गायब थी. उस ने चंद मिनट उस के वापस आने का इंतजार किया, फिर वह घर में उस की खोज करने लगा. उस ने घर का कोनाकोना छान मारा, लेकिन रागिनी उसे कहीं नहीं दिखी. तभी उस के मन में विचार आया कि रागिनी कहीं छत पर तो नहीं.

यह विचार आते ही शोभाराम दबे पांव सीढ़ियां चढ़ता हुआ छत पर पहुंचा. छत का दृश्य देख कर शोभाराम का खून खौल उठा. उस की भुजाएं फड़कने लगीं और कुछ कर गुजरने को तत्पर हो उठीं. दरअसल, छत पर रागिनी और रिंकू यादव अर्धनग्न अवस्था में एकदूसरे से गुथे पड़े थे. पत्नी की सीत्कार उस के कानों में गरम सीसा घोल रही थी.

शोभाराम ने पास पड़ी ईंट उठाई और रागिनी पर छाए रिंकू के सिर पर भरपूर प्रहार किया. प्रहार से रिंकू का सिर फट गया और खून की धार बहने लगी. पति के रूप में रागिनी ने साक्षात मौत को देखा तो वह प्रेमी के ऊपर लेट गई और गिड़गिड़ाने लगी, ”मेरे राजा को मत मारो, उस के बिना मैं कैसे जीवित रहूंगी?’‘

यह सुनते ही शोभाराम का गुस्सा और बढ़ गया. उस ने दूसरा वार पत्नी रागिनी के सिर पर किया तो उस का भी सिर फट गया और खून का फव्वारा छूट पड़ा. इस के बाद शोभाराम ने अनगिनत प्रहार रागिनी और रिंकू के सिर और चेहरे पर किए तथा दोनों को मौत के घाट उतार दिया.

इस के बाद वह छत पर ही बैठा बीड़ी पीता रहा. कुछ देर बाद उस ने मोबाइल फोन से डायल 112 पर पुलिस कंट्रोल रूम को डबल मर्डर की सूचना दी. सूचना पाते ही थाना पुलिस व अन्य अधिकारी घटनास्थल आ गए. पुलिस ने दोनों शवों को कब्जे में ले कर जांच शुरू की तो इन हत्याओं के पीछे अवैध संबंधों की बात सामने आई.

16 जून, 2023 को पुलिस ने हत्यारोपी शोभाराम दोहरे को औरैया की जिला अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया. मृतका रागिनी के तीनों बच्चे अपने नानानानी के घर पल रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

लौकेट का रहस्य – भाग 1

उस दिन सुबह जब मैं थाने पहुंचा तो थाने के अहाते में काले रंग की एक कार खड़ी हुई थी. कार के पास 4 लोग खड़े थे, जिन में एक ड्राइवर था. सलामदुआ के बाद अधेड़ व्यक्ति ने अपना  नाम महेश बग्गा बताया. महेश बिजनैसमैन थे और शहर के बाहर अजनाला रोड पर उन की सरिया मिल थी.

अमृतसर के पौश इलाके सिविल लाइंस में उन की आलीशान कोठी थी. उन्होंने बताया कि आज सुबह कोठी से उन के बेटे की नई मोटरसाइकिल चोरी हो गई है. उन का 22-23 साल का वह खूबसूरत जवान बेटा भी साथ था, जिस की मोटरसाइकिल चोरी हुई थी.

उस ने कहा, ‘‘मैं सैर पर जाने के लिए सुबह 5 बजे उठ जाता हूं. आज उठ कर जाने के लिए तैयार हुआ तो गैराज में मोटरसाइकिल नहीं थी. मैं ने घर वालों से पूछा, पर किसी को कुछ पता नहीं था. पड़ोसी ने बताया कि उस ने सुबह करीब पौने 5 बजे मोटरसाइकिल स्टार्ट होने की आवाज सुनी थी.’’

उस ने आगे बताया, ‘‘हमारे यहां हौकर सुबह 5 बजे अखबार डालता है. वह ज्यादातर बाहर से ही अखबार फेंकता था. पिछले कई दिनों से बारिश हो रही थी, इसलिए मैं ने दादीजी से कहा था कि वह सुबह पूजापाठ के लिए उठती हैं तो अंदर से दरवाजा खोल दिया करें, ताकि हौकर अखबार अंदर आ कर बरामदे में डाल सके. वह ऐसा ही करने लगा था.

आज का अखबार बरामदे में पड़ा हुआ था. इस का मतलब करीब 5 बजे हौकर जीता अंदर आया था. मेरी बहन पम्मी का कहना है कि चंद रोज पहले वह मोटरसाइकिल पर झुका हुआ कुछ कर रहा था. उसे देख कर वह ठिठक गया था.

झेंप कर कहने लगा, ‘पैट्रोल गिर रहा था, मैं ने बंद कर दिया है.’ लेकिन जब पम्मी ने देखा तो वहां पैट्रोल गिरने का कोई निशान नहीं था. पम्मी ने उसी दिन मुझ से कहा भी था, ‘भैया, मोटरसाइकिल नई है, अंदर रखा करें.’ मगर मैं ने ही ध्यान नहीं दिया था.’’

मामला कोई खास नहीं था. मैं ने बग्गा और उस के बेटे की तहरीर पर कच्ची रिपोर्ट लिखा दी और 2 सिपाहियों को इस निर्देश के साथ भेज दिया कि न्यूज एजेंसी जा कर हौकर जीते का पता करें. आधे घंटे बाद दोनों सिपाही जीते को थाने ले आए.

जगजीत उर्फ जीता 17-18 साल का खूबसूरत लड़का था. वह नजरें झुका कर मेरे सामने खड़ा हो गया. वह बेहद डरा हुआ था. मैं ने उस से नामपता पूछा तो उस ने बताया कि वह कस्बा जामपुर का रहने वाला है और यहां अमृतसर में अपने एक दूर के रिश्तेदार के पास रहता है. सुबह कालेज जाता है, शाम को बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता है और तड़के अखबार बांटता है.

मैं ने आवाज को थोड़ी सख्त कर के उस से पूछा, ‘‘जीते, तुम ने आज सुबह बग्गा साहब की कोठी से जो मोटरसाइकिल उठाई है, वह कहां है?’’

वह हकला कर बोला, ‘‘इंसपेक्टर साहब, यह आप क्या कह रहे हैं? यह मुझ पर सरासर झूठा इलजाम है. मैं मेहनतमजदूरी कर के चार पैसे कमाता हूं और अपनी पढ़ाई करता हूं.’’

मैं अभी जीते से बात कर ही रहा था कि न्यूज एजेंसी का मालिक और उस का वह रिश्तेदार भी आ गया, जिस के पास वह रहता था. मैं ने उन से कहा, ‘‘इस की खैरियत चाहते हो तो चोरी का माल बरामद करवा दो, वरना सब को रगड़ा लगेगा.’’

लेकिन मेरे डरानेधमकाने के बावजूद भी कोई नतीजा नहीं निकला. जीते ने स्वीकार किया कि वह 5 बजे के करीब कोठी में अखबार डालने के लिए दाखिल जरूर हुआ था, लेकिन उस ने मोटरसाइकिल को छुआ तक नहीं था. उस ने यह भी बताया कि उस वक्त मोटरसाइकिल अपनी जगह मौजूद थी.

पूछताछ में यह बात सामने आई कि जीता पिछले 4-5 दिनों से पैदल घूम कर अखबार डाल रहा था. यह बात शक पैदा करने वाली थी. मैं ने इस की वजह पूछी तो जीते की जगह उस का रिश्तेदार बोला, ‘‘इस की साइकिल कई दिनों से खराब पड़ी है जी, इसलिए इसे पैदल घूमना पड़ता है.’’

मैं ने एक हवलदार से कहा कि वह जीते को ले जा कर थोड़ा शक दूर कर ले. हवलदार ने हवालात में ले जा कर जीते के कसबल निकाल दिए. हवलदार जब उसे मेरे सामने लाया तो वह बुरी तरह कांप रहा था. उस ने हाथ जोड़ कर मुझ से कहा, ‘‘साहब, मैं आप से अकेले में बात करना चाहता हूं.’’

मैं समझ गया कि वह बग्गा और उस के बेटे से कुछ छिपाना चाहता है. इसलिए मैं ने उसे हवालात में भेज दिया, ताकि उस से वहीं बात कर सकूं.

करीब एक घंटा बाद मैं ने जीते से पूछताछ की. उस की आंखों में मर्दाना कशिश थी. डीलडौल भी अच्छा था. अगर उस का संबंध किसी रईस घर से होता, जिस्म पर अच्छा लिबास होता तो राह चलती औरतें उसे मुड़ कर जरूर देखतीं.

वह कहने लगा, ‘‘साहब, मैं गरीब इंसान हूं. सच भी बोलूंगा तो लोग झूठ समझेंगे. लेकिन मेरी जो बेइज्जती हुई है, उस से मेरा मन खून के आंसू रो रहा है. इसलिए अब मैं कुछ नहीं छिपाऊंगा. पिछले 2-3 महीनों से बग्गा साहब की लड़की पम्मी मेरे साथ अश्लील हरकतें कर रही थी. जब मैं सुबह लगभग 5 बजे अखबार फेंकने जाता था, तब वह पायजामा बनियान पहने अपने घर के पार्क में एक्सरसाइज करती मिलती थी.

उस वक्त मुझे दूसरे घरों में अखबार डालने की जल्दी होती थी, लेकिन वह बेवजह की कोई न कोई बात छेड़ कर मुझे रोक लेती थी. बाद में उस ने मुझे फूल देने शुरू कर दिए. वह शरारत करती और फिर बेवजह हंसती रहती. मैं उस से जितना बचने की कोशिश करता था, वह उतना ही सिर चढ़ती जा रही थी. मैं डरता था कि कहीं किसी दिन कोई मुसीबत खड़ी न हो जाए. आखिर वही हुआ, जिस का मुझे डर था.’’

मैं ने कहा, ‘‘मैं समझा नहीं, क्या तुम यह कहना चाहते हो कि तुम्हें फंसाया जा रहा है?’’

‘‘हां साहब, यही कहना चाहता हूं. मुझे नहीं मालूम कि मोटरसाइकिल चोरी हुई है या नहीं. लेकिन पम्मी ने मुझ पर यह जो इलजाम लगाया है कि कुछ रोज पहले मैं मोटरसाइकिल से छेड़छाड़ कर रहा था, बिलकुल गलत है. ऐसा लगता है, मुझे दोषी ठहराने में पम्मी का ही हाथ है. हो सकता है, उस ने अपने किसी चाहने वाले से मोटरसाइकिल गायब करवा दी हो.’’

‘‘तुम यकीन के साथ ऐसा कैसे कह सकते हो?’’

उस ने इधरउधर देखा, फिर संभल कर बोला, ‘‘साहब, कहना नहीं चाहिए पर वह लड़की बहुत तेज है. पिछले इतवार को उस का भाई सैर के लिए नहीं निकला था. इसलिए वह बड़ी निडर दिख रही थी.

मैं अंदर अखबार डालने गया तो वह पिछले लौन की तरफ से आ गई. कहने लगी, ‘सिर्फ अखबार ही बेचते हो या वहां कुछ जानपहचान भी है?’

मैं ने जवाब में कहा, ‘हां, थोड़ीबहुत जानपहचान है.’ इस पर वह मुझे एक फोटो दिखाते हुए बोली, ‘मेरी सहेली की है, इसे अखबार में छपवा दो.’

वह एक औरत की अर्धनग्न तसवीर थी. शायद उस ने किसी मैगजीन से काटी थी. मैं ने उस की तरफ देखा तो वह शरारत से मुसकरा रही थी. मैं ने उस से कहा, ‘‘आप पढ़ीलिखी अच्छे घर की लड़की हैं. ऐसी हरकत करते हुए आप को शरम आनी चाहिए.’’

इस पर वह छूटते ही बोली, ‘‘सारी शरम तो तुम जैसे लड़के ले गए. लड़कियों के लिए कुछ बचा ही नहीं.’’

मैं वापस जाने लगा तो वह पीछे से मेरी कमीज पकड़ कर बोली, ‘‘बड़े नखरे हैं तुम्हारे. बातें तो बड़ीबड़ी करते हो, एक छोटी सी तसवीर नहीं छपवा सकते.’’

मैं ने उस से कहा, ‘‘अपने पिताजी को दे देना, वह बड़े आदमी हैं, छपवा देंगे.’’

मेरी बात सुन वह गुस्से से लाल हो कर मुझे घूरने लगी. फिर बदतमीज कह कर पांव पटकती हुई वहां से चली गई. मैं ने सोचा था कि महीना पूरा होते ही वहां अखबार डालना छोड़ दूंगा, लेकिन इस से पहले ही यह मामला हो गया.

एक अधूरी प्रेम कहानी – भाग 3

दोस्त क्यों बना दरिंदा

नीलम और गणेश की उम्र में भले ही 10 साल का अंतर था, नीलम को गणेश और उस की बातें सुहाती थीं. वह उसके प्रति आकर्षित हो गई थी. कहने को गणेश प्यार मोहब्बत की बातें करता था, लेकिन नीलम गणेश को अपना दोस्त मानती थी.

सिकंदरा क्षेत्र के जंगल में दरिंदगी की शिकार नीलम की हालत में सुधार होने के बाद 13 मार्च, 2023 को नीलम के कोर्ट में बयान दर्ज हुए.

नीलम के गांव वालों का कहना था कि अब तक के इतिहास में गांव में यह पहली घटना है. अब तक गांव की किसी बेटी के साथ इस तरह की दरिंदगी नहीं हुई. इस घटना से गांव वाले आक्रोशित थे. उन का कहना था कि नीलम की हालत के जिम्मेदार को वह खुद अपने हाथों से सजा देंगे.

नीलम से शांति सेना ने भेंट की

14 मार्च, 2023 को महिला शांति सेना की कुंदनिका शर्मा, शीला बहल, वत्सला प्रभाकर, व रीता कपूर पीड़िता नीलम से मिलीं और अपने स्तर से उस की हरसंभव सहायता करने का भरोसा दिया.

पुलिस आयुक्त डा. प्रीतिंदर सिंह ने बताया कि घटनास्थल से किशोरी की चप्पलें, दुपट्टा, सिर पर जिस ईंट से प्रहार किया वो ईंट, अंदरूनी कपड़े, बाल, शराब की एक खाली बोतल, 2 खाली गिलास, नमकीन के खाली पाउच, पौलीथिन, प्लास्टिक बौक्स में एक पर्स, आधार कार्ड आदि सबूत जमा कर लिए.

फील्ड यूनिट ने भी अलग से नमूनेे लिए. वहीं आरोपियों का डीएनए नमूना भी लिया गया. मुकदमा में सामूहिक दुष्कर्म सहित कई धाराएं बढ़ाई गईं. दोनों आरोपियों गणेश व संतोष के खिलाफ नाबालिग को बहलाफुसला कर अगवा करने की धारा 363, 366 व 376 डी ए, हत्या का प्रयास धारा 307, गला घोंट कर जंगल में फेंक कर साक्ष्य नष्ट करना धारा 201, आरोपियों का एक राय होना धारा 34 व बच्चों के प्रति लैंगिक अपराध की धारा 5/6 पोक्सो एक्ट के तहत अभियोग दर्ज किया गया है. सनसनीखेज वारदात में दोनों आरोपियों को न्यायालय में पेश किया गया जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

अनजाने प्यार के खौफनाक अंजाम सामने आते रहते हैं. इस के बावजूद युवा पीढ़ी सबक लेने को तैयार नहीं है. बढ़ते महिला अपराधों के बीच जहां लड़कियों को लगातार सतर्क किया जा रहा है, वहीं कुछ किशोरियां ऐसी हैं, जो घर वालों से ऊपर हो कर अपनी मनमरजी से प्रेम करना और कहीं घूमना अपना अधिकार समझती हैं. समस्या तब होती है, जब ऐसी किशोरियोंं के साथ कोई अनहोनी हो जाती है.

3 जुलाई, 2023 को इस मामले में अभियोजन और बचाव पक्ष ने अपनेअपने तर्क, गवाह न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किए थे. अभियोजन पक्ष की ओर से कुल 9 गवाह पेश किए गए. इन में पीड़िता नीलम भी शामिल थी.

कौनकौन से सबूत बने सजा के आधार

घटना के 3-4 दिन बाद जब नीलम को पूरी तरह होश आया तब उस ने बताया कि उसे होली खेलने के बहाने से गांव के बाहर बुलाया गया. आरोपी उसे रुनकता ले गए. उसे मिठाई खिलाई. फिर गाड़ी को जंगल की ओर मोड़ दिया. दोनों ने उस के साथ रेप किया.

जब उस ने घर जा कर सारी बात बताने की बात कही तो दोनों ने मारने की कोशिश की. घटनास्थल व आरोपियों के कब्जे से पुलिस ने बाइक, औनलाइन भुगतान इलैक्ट्रोनिक साक्ष्य, वहीं मोबाइल की काल डिटेल, फोन की लोकेशन, सीसीटीवी फुटेज भी साक्ष्य के रूप में कोर्ट में पेश किए गए.

अभियोजन पक्ष की ओर से पेश किए 9 गवाहों में चिकित्सक डा. वंदना तुलसी, डा. के.सी. भगत, डा. मोहित गोपाल वार्ष्णेय  के अलावा पुलिसजनों हैडकांस्टेबल सत्यवीर सिंह, विवेचक एसआई कुंवरपाल सिंह, वादी मुकदमा, प्रधानाचार्य तेज प्रकाश सिंह के साथ  मुख्य गवाह सुरक्षागार्ड जयप्रकाश, जिस ने सब से पहले नीलम को जंगल में देखा था, की गवाही कराई गई. पीड़िता नीलम ने न्यायालय में कहा कि वह चाहती है कि दोनों दरिंदों को फंासी होनी चाहिए.

अभियोजन पक्ष की ओर से विशेष लोक अभियोजक (पोक्सो एक्ट) विजय किशन लवानिया और सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता सुभाष गिरि के साथ ही वादी के वरिष्ठ अधिवक्ता संतोष दीक्षित ने न्यायालय में प्रभावी पैरवी की.

रिपोर्ट में देरी व अज्ञात में दर्ज कराने पर आरोपियों के अधिवक्ताओं दिनेश नांबर व अरविंद शर्मा के तर्कों को काटते हुए उन्होंने कहा कि मी लार्ड, कोई स्त्री या लड़की जब गायब हो जाती है तो सर्वप्रथम उसे खोजने का ही प्रयास किया जाता है. प्रयास विफल होने पर ही पुलिस को सूचना दी जाती है.

लड़की के मामले में संबंधित परिवार के साथ सामाजिक निंदा व अपमान का प्रश्न भी खड़ा हो जाता है. ऐसी स्थिति में रिपोर्ट में देरी होना स्वाभाविक है. इस मामले में भी इस बात की कल्पना नहीं की जा सकती कि पीड़िता व उस का परिवार प्रथम सूचना रिपोर्ट लिखाने को अविलंब तत्पर हो जाएं.

संबंधित मामले में वादी ने अपनी तहरीर में ही कथन किया है कि पीड़िता की तलाश करते रहे और 10 मार्च, 2023 को सुबह 8 बजे उसे सूचना मिली कि उस की बेटी के साथ दुष्कर्म कर घायल अवस्था में जंगल में फेंक दिया है. 8 बजे सूचना मिलने के बाद उसी दिन 10:34 बजे थाने पर तहरीर दे कर प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करा दी थी.

न्यायालय ने माना कि प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने में कोई भी असामान्य विलंब नहीं है. दोनों अभियुक्तों गणेश व संतोष ने दोस्ती के नाम पर नीलम को धोखा दे कर उस के साथ बलात्कार किया और शिकायत करने की बात पर उसे मरणासन्न कर जंगल में फेंक कर भाग गए. स्कूल के प्रधानाचार्य ने अभिलेखों के अनुसार बताया कि घटना के समय नीलम की उम्र 14 साल थी.

अभियोजन पक्ष ने दोनों को अधिक से अधिक दंड देने की न्यायालय से अपील की. वहीं अभियुक्तों के अधिवक्ताओं ने कोर्ट से अपील करते हुए कहा कि यह अभियुक्तगणों का प्रथम अपराध है तथा अभियुक्तगण इस अपराध में लगातार जेल में निरुद्ध चले आ रहे हैं. उन का आपराधिक इतिहास नहीं है, दोनों नवयुवक हैं, इसलिए अभियुक्तों को न्यूनतम दंड दिया जाए.

दोष सिद्ध होने के बाद इस मामले की पत्रावली दंडादेश हेतु 4 जुलाई, 2023 को न्यायाधीश के समक्ष पेश की गई. अभियुक्तों गणेश व संतोष को कारागार से न्यायिक अभिरक्षा में न्यायालय में लाया गया. दोनों कोर्टरूम के कटघरे में सिर झुकाए खड़े रहे.

पोक्सो कोर्ट के जज प्रमेंद्र कुमार ने दोषसिद्ध दोनों अभियुक्तों संतोष व गणेश को नीलम व गवाहों के बयान के आधार पर सभी धाराओं में दोषी करार देते हुए यौन अपराध शिशु संरक्षण अधिनियम (पोक्सो एक्ट) 2012 की धारा 5जी/6 के अंतर्गत  कठोर आजीवन कारावास व एक लाख रुपए जुरमाना की सजा सुनाई गई. वहीं धारा 363 भादंसं में 3 वर्ष के कारावास व 5 हजार रुपए जुरमाना, धारा 366 भादंसं में 7 वर्ष के कारावास व 15 हजार के जुरमाना, धारा 307 सपठित 34 भादंसं में आजीवन कारावास व 70 हजाररुपए का जुरमाना, धारा 201 भादंसं में 5 वर्ष के कारावास व 10 हजार रुपए का जुरमाना लगाया.

लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम के नियम-7(2) एवं धारा 357-क की उपधारा (2) के अंतर्गत पीड़िता यथोचित प्रतिकर प्राप्त करेगी, जिसे दिए जाने हेतु इस निर्णय की एक प्रति जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, आगरा को प्रेषित करने व अभियुक्तगण गणेश व संतोष का सजायावी वारंट बना कर उन्हें सजा भुगतने के लिए जिला कारागार, आगरा भेजने का आदेश दिया गया.

इस केस में न्यायालय ने भी सुनवाई में तत्परता दिखाई और मात्र 116 दिनों में ही फैसला सुना दिया. सिकंदरा पुलिस ने घटना में 7 दिन में कोर्ट में चार्जशीट पेश की थी. रुनकता पुलिस चौकी प्रभारी कुंवरपाल सिंह ने मुकदमे की विवेचना की. पीड़िता को इंसाफ दिलाने में पुलिस और अभियोजन ने अहम भूमिका निभाई.द्य

—कथा पुलिस सूत्रों व कोर्ट के निर्णय पर आधारित. पीड़िता का नीलम काल्पनिक नाम है.

ऐसी भी एक सीता – भाग 1

रामानंद विश्वकर्मा 6 अप्रैल, 2023 को जब दुबई से गोरखपुर के गांव मल्हीपुर में स्थित अपने घर आया तो घर वालों की खुशियों का ठिकाना ही नहीं था. वह पूरे 2 साल 2 महीने के बाद लौटा था, इसलिए सब के चेहरे खुशी के मारे खिले हुए थे. कोई दौड़ कर उसे बिसकुट पानी ला रहा था तो कोई उस के हाथ से अटैची ले कर उस के कमरे में रख रहा था. घर वाले जानते थे कि वह सब के लिए कुछ न कुछ कीमती गिफ्ट जरूर लाया होगा.

लेकिन झील सी गहरी एक जोड़ी आंखें परदे की ओट से छिप कर रामानंद को देख रही थीं. उसे ऐसा लगा था, जैसे उसे कोई परदे के पास खड़ा एकटक देखे जा रहा हो. पलट कर उस ने जब परदे की ओर देखा तो वहां कोई नहीं था. फिर उस ने सोचा कि ये उस का कोई भ्रम रहा होगा. वहां कोई खड़ा हो कर भला उसे क्यों देखेगा. उस से मिलने भी तो आ सकता है.

थोड़ी देर मांबाप के पास बैठने और पानी पीने के बाद रामानंद उठ क र अपने कमरे में चला गया, जहां उस की पत्नी सीतांजलि, जिसे वह प्यार से सीता कहता था. वह उस के इंतजार में कब से पलकें बिछाए बैठी थी. परदे की ओट से छिप कर वही पति को निहार रही थी.

पति को देखते ही सीता का चेहरा खुशियों से खिल उठा था. वह इतनी खुश थी कि उस के मुंह से कोई बोल नहीं फूट रहे थे. रामानंद भी कम खुश नहीं था पत्नी को देख कर. सालों बाद दोनों का मिलन हुआ था.

दरअसल, शादी के 6 महीने बाद ही रामानंद पत्नी सीता को मांबाप की सेवा के लिए घर पर छोड़ कर दुबई कमाने चला गया था. उस ने पत्नी से वायदा किया था कि जब वह दुबई से लौट कर आएगा तो उसे भी विदेश अपने साथ ले जाएगा. बाकी जीवन के सुखी पल दोनों वहीं साथ बिताएंगे.

घर में उस शाम रामानंद की पसंद का खाना बनाया था. लंबा सफर तय कर रामानंद भी घर पहुंचा था, इसलिए वह भी थक कर चूर हो गया था. इसलिए बिस्तर पर लेटते ही खर्राटे भरने लगा.

इधर सीता रसोई के काम में लगी रही. चौकाबरतन से निबट कर वह भी बिस्तर की ओर हो ली. एक नजर बिस्तर पर सो रहे पति पर डाली और प्यार से उस के गाल को स्पर्श किया. वह हौले से मुसकराई फिर वह भी सो गई.

अगली सुबह यानी 7 अप्रैल की सुबह जब सीता की आंखें खुलीं तो देखा पति उस के पास बिस्तर पर नहीं था तो उठ कर बैठ गई. कमरे का दरवाजा भिड़ा हुआ था और सिटकनी खुली थी. बिस्तर पर बैठी सीता कुछ देर तक कुछ सोचती रही, फिर बिस्तर से उतर कर नित्यक्रिया में जुट गई.

विदेश से लौटा रामानंद कैसे हुआ लापता

सुबह के 8 बज चुके थे. रामानंद अभी तक कहीं नहीं दिखा तो पत्नी सीता को चिंता हुई और उस ने ससुर रामप्रीत से पति के बारे में पूछा, ”पापाजी, आप ने उन्हें देखा है? क्या आप से कुछ बोल कर कहीं गए हैं? आखिर इतना समय हो गया, वह कहीं नजर नहीं आ रहे हैं?’‘

”नहीं बहू?’‘ राममप्रीत ने आगे कहा, ”सुबह से मैं ने रामानंद को घर से बाहर कहीं जाते हुए नहीं देखा, आखिर कहां चला गया?’‘ रामप्रीत के चेहरे पर परेशानी की लकीरें उभर आई थीं.

”पापाजी, पता करिए कहां गए वो? घबराहट के मारे दिल बैठा जा रहा है.’‘

”घबराओ मत बहू,’‘ ससुर ने आगे कहा, ”बरसों बाद लौटा है, कहीं बैठा यार दोस्तों के साथ गप्पें लड़ा रहा होगा, थोड़ी देर में आ ही जाएगा.’‘

”ठीक है, पापाजी.’‘ कह कर सीता रसोई की ओर बढ़ गई और सभी के लिए नाश्ता बनाने लगी.

इधर रामप्रीत भी यह सोच कर हैरान हुए जा रहे थे कि सचमुच बेटा सुबह से कहीं नहीं दिख रहा है. न तो उसे कहीं घर से बाहर जाते हुए देखा और न आते हुए ही. आखिर वह कहां गया. वाकई ये तो चिंता वाली बात है. इतना सोच कर रामप्रीत का मन घर पर नहीं लगा और वह पत्नी से बता कर बेटे को ढूंढ़ने गांव में निकल गए.

बेटे के जो भी दोस्त उन्हें रास्ते में मिले, सब से वह बेटे रामानंद के बारे में पूछते. लेकिन किसी ने भी उन से यह नहीं कहा कि वह उस से मिला है, बल्कि उन्हें तो यह भी पता नहीं था कि रामानंद दुबई से कब घर वापस आया है. बेटे के दोस्तों का जवाब सुन कर रामप्रीत हैरान रह गए कि बेटा न घर में है, न ही दोस्तों से ही मिला तो वह गया कहां? यह सोच कर रामप्रीत का माथा चकरा गया था.

रामप्रीत यही सोच रहे थे कि अब वो कहां जाएं और किस से बेटे के बारे में पूछें. तभी गांव का किशोर नाम का एक लड़का दौड़ता हुआ सीधा रामप्रीत के पास आ कर रुका. उस के चेहरे के हावभाव से ऐसा लग रहा था, जैसे वह कोई जरूरी बात बताना चाहता है.

किशोर ने उन से कहा, ”चाचा… चाचा…’‘ जोरजोर से हांफते हुए दुबलेपतले किशोर ने सामने दाईं ओर हाथ दिखाते हुए कुछ कहना चाहा, ”उधर तालाब…’‘

”हांहां बेटा, क्या कहना चाहते हो. थोड़ा सांस तो ले लो, फिर बताओ जो कहना चाहते हो.’‘ रामप्रीत ने किशोर का ढांढस बंधाते हुए कहा.

थोड़ी देर में जब वह सामान्य स्थिति में हो गया तो किशोर ने कहा, ”चाचा, गांव के बाहर वाले तालाब के किनारे एक लाश पड़ी है. वह लाश आप के बेटे रामानंद की है.’‘

”क्या?’‘ चौंक कर रामप्रीत बोले, ”मेरे बेटे रामानंद की लाश है! मुझे तेरे कहे पर विश्वास नहीं हो रहा है बेटा, ले चलो मुझे वहां, जहां लाश पड़ी है.’‘

”भला मैं आप से मजाक क्यों करने लगा चाचा, जो मैं ने देखा, वही मैं ने कहा. मेरी बातों पर आप को यकीन नहीं है तो खुद चल कर देख लीजिए, तब तो आप को मेरी बातों पर यकीन हो जाएगा, मैं झूठ नहीं बोल रहा.’‘ किशोर ने रामप्रीत को सफाई देते हुए कहा और उन्हें अपने साथ ले कर गांव के बाहर स्थित तालाब के पास गया.

तालाब के किनारे लोगों का मजमा लगा हुआ था और तमाशबीन बन कर लोग पानी में तैर रही लाश देख रहे थे.

भीड़ देख कर रामप्रीत का कलेजा जोरजोर से धड़कने लगा था. वह भीड़ को चीरते हुए सीधे तालाब के किनारे पहुंचे, जहां लाश पड़ी हुई थी. लाश देख कर उन का शरीर थरथर कांपने लगा और वह धम्म से जमीन पर जा गिरे. मौके पर जमा भीड़ ने उन्हें संभाला और टांग कर तालाब के पास से थोड़ी दूर ला कर बैठा दिया.

कैसे हुई रामानंद की मौत

रामप्रीत सिर पर दोनों हाथ रख बिलखबिलख कर रोने लगे. लाश उन के बेटे रामानंद विश्वकर्मा की ही थी. मौके पर जमा लोग उस की तालाब में डूब कर मरने की बात कर रहे थे. यह सुन कर रामप्रीत हैरान थे कि बेटा जब घर में सो रहा था तो वह कब तालाब के पास आया कि उस की पानी में डूबने से मौत हो गई. तमाशबीन लोग भी यही सोचसोच कर हैरान थे कि अभी तो कल ही विदेश से लौट कर आया था और कैसे? क्या हुआ कि इस की मौत हो गई.