सनक में कर बैठी प्रेमी के दोस्त की हत्या – भाग 2

तान्या रचित और टीटू को बहुत पहले से जानती थी. फिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि उसे इतना बड़ा कदम उठाना पड़ा. पुलिस पूछताछ में तान्या व उसके दोस्तों से जो जानकारी प्राप्त हुई वह इस प्रकार थी.

मध्य प्रदेश के धार जिले के बागटांडा के बरोड़ निवासी तान्या कुछ समय पहले पढ़ाई करने के लिए इंदौर आई थी. इंदौर आते ही उस ने एक ब्रोकर के माध्यम से पलासिया इलाके के गायत्री अपार्टमेंट में एक किराए का फ्लैट लिया, और वहीं रह कर उस ने अपनी पढ़ाई शुरू कर दी थी.

तान्या खातेपीते परिवार से थी. उस के पास रुपयोंपैसों की कमी नही थी. उस के मम्मीपापा उस का भविष्य सुधारने के लिए काफी रुपए खर्च कर रहे थे. खूबसूरत तान्या के कालेज में एडमिशन लेते ही उस के कई दीवाने हो गए थे. वह शुरू से ही बनठन कर रहती थी. मम्मीपापा खर्च के लिए पैसा भेजते तो वह खुले हाथ से पैसा खर्च भी करती थी.

इंदौर आते ही उस के जैसे पंख निकल आए थे. वह खुली हवा में घूमने लगी. उस की कुछ फ्रेंड गलत संगत में पड़ी हुई थीं. तान्या उन के संपर्क में आई तो उस पर भी उन का रंग चढ़ने लगा. वह भी अपनी दोस्तों के साथ शराब और सिगरेट का नशा करने लगी थी. उसी नशे के कारण उस की दोस्ती आवारा लड़कों से हो गई. जवानी के जोश में उस के कदम बहके तो वह पढ़ाई करना भूल गई.

उसी दौरान उस की मुलाकात रचित उर्फ टीटू से हुई. टीटू ने उसे एक बार प्यार से देखा तो देखता ही रह गया. दोनों के बीच परिचय हुआ और फिर जल्दी ही दोनों ने दोस्ती के लिए हाथ बढ़ा दिए थे. दोस्ती के सहारे ही उन के बीच प्यार बढ़ा और कुछ ही दिनों में वह एकदूसरे को दिलो जान से चाहने लगे.

तान्या से दोस्ती हो जाने के बाद रचित का उस के फ्लैट पर भी आनाजाना शुरू हो गया था. रचित घंटों उस के पास पड़ा रहता था. जिस के कारण उस के आसपास रहने वाले लोग परेशान रहने लगे थे. चूंकि तान्या ने वह फ्लैट किराए पर लिया था. इसी कारण उस के पड़ोसी उसे वहां से जाने के लिए भी नहीं कह सकते थे.

पहले तो उस के फ्लैट पर रचित ही आता था, लेकिन कुछ ही दिनों बाद अन्य कई युवक भी आने लगे. थे. तान्या के फ्लैट में लडकों का आनाजान शुरू हुआ तो पड़ोसियों को परेशानी हुई. .उस की हरकतों से तंग आ कर पड़ोसियों ने उस फ्लैट के मालिक से उस की शिकायत कर उस से फ्लैट खाली कराने के लिए दबाव बनाया.

पड़ोसियों के दबाव में आ कर फ्लैट मालिक ने तान्या से तुरंत ही फ्लैट खाली करने को कहा. मालिक के कहने पर तान्या ने फ्लैट खाली करने के लिए एक सप्ताह का समय मांगा. तान्या ने यह बात अपने दोस्त रचित को बताई. साथ ही उसने उस से उस के लिए एक मकान ढूंढने को कहा, लेकिन इस मामले में रचित ने उस की कोई भी सहायता करने से साफ मना कर दिया था.

रचित ने तान्या को समझाने का किया प्रयास

रचित के अलाबा तान्या का एक ओर दोस्त था छोटू. उस का भी उस के पास बहुत आना जाना लगा रहता था. यह बात उस ने छोटू के सामने रखी तो उस ने उस के लिए फ्लैट ढूंढना शुरू कर दिया. छोटू परदेशीपुरा इलाके में रहता था. छोटू एक दबंग किस्म का युवक था. छोटेमोटे अपराध और मारपीट कर उस ने अपने इलाके में दहशत फैला रखी थी. उस पर 3 मुकदमे दर्ज थे.

कुछ सयम पहले ही तान्या की उस से मुलाकात हुई थी. छोटू को लड़कियों को परखने की महारत हासिल थी. उस ने तान्या के लिए कुछ ही दिनों में एक किराए के फ्लैट की व्यवस्था कर दी. उस के बाद वह उसी के इलाके में आ कर रहने लगी थी. तान्या की छोटू से दोस्ती पक्की हो गई थी. छोटू के साथ दोस्ती हो जाने के बाद तान्या को नशे की लत भी लग गई थी. जिस के बाद उसमें अच्छा बुरा सोचने की क्षमता भी खत्म हो गई. थी.

यह बात रचित को पता चली तो उस ने उसे समझाने की कोशिश की, ”तान्या तुम पढ़ीलिखी हो, तुम्हें ऐसे आवारा किस्म के साथ दोस्ती नही करनी चाहिए. छोटू के साथ दोस्ती करने के बाद तुम पछताओगी.”

लेकिन तान्या ने उस की एक न सुनी. फिर रचित ने भी उस से बात करनी ही बंद कर दी. फिर भी तान्या रचित को छोड़ने को तैयार न थी. वह बारबार रचित को फोन लगाती, लेकिन वह उस का फोन रिसीव नहीं कर रहा था. जिस के कारण वह उस से मिल भी नहीं पा रही थी.

उस के बाद तान्या ने छोटू सेे कहा कि वह किसी भी तरह से एक बार उसे रचित से मिलवा दे. छोटू ने रचित से मिलकर तान्या का मैसेज देते हुए. मिलने को कहा, लेकिन उस के बाद भी रचित उस से नहीं मिला.

जब रचित ने तान्या से रिश्ता तोड़ लिया तो तान्या ने उसे सबक सिखाने की योजना बनाई. छोटू पहले से ही आपराधिक प्रवृत्ति का था. हर वक्त उस के साथ कई आवारा किस्म के लड़के घूमते थे. एक दिन तान्या ने छोटू से कहा कि वह रचित को धमकाना चाहती है, जिस से घबरा कर वह उसके संपर्क में आ जाए.

तान्या पर मौडल बनने का भूत था सवार

छोटू अय्याश किस्म का था. उस से ज्यादा वह हवाबाज होने के बाद शेखी बघारने में भी कम नही था. यही कारण था कि सामने वाला जल्दी ही उस की बातों में आ जाता था. तान्या उस के सम्पर्क में आई तो उसे भी लगा कि छोटू जो कहता है, उसे कर भी देता है.

तान्या इंदौर आ कर हवा में उड़ने लगी और शीघ्र उच्च स्तर की मौडल बनने का सपना देखने लगी थी. छोटू से दोस्ती करते ही उसे लगने लगा था कि वह उस के सपनों को जल्दी ही पूरा कर सकता है. तान्या उस के संपर्क में आने के बाद कई बार उस से बोल चुकी थी कि उस की मुलाकात एक दो मौडल लड़कों से करवा देना.

फेसबुकिया प्यार बना जी का जंजाल

जाना अनजाना सच : जुर्म का भागीदार – भाग 2

मेरी और मेराज की शादी भी इत्तफाक ही थी. सच कहूं तो 2 बड़े परिवारों के बीच अचानक बना एक खोखला संबंध भर. यह संबंध भी इसलिए बना था क्योंकि मेरे अब्बू अम्मी को मेरी शादी की जल्दी थी. उन की चाहत पूरी हुई और सब कुछ जल्दीजल्दी में हो गया. इस के पीछे भी एक रहस्य था जिस के लिए जिम्मेदार मैं ही थी.

बात उन दिनों की है जब मैं लखनऊ यूनिवर्सिटी में पढ़ा करती थी. एक दिन जब मैं अपनी फाइल उठा कर यूनिवर्सिटी जाने के लिए निकली तो अब्बू बोले, ‘‘सलमा, इन से मिलो, यह हैं मेरे जिगरी दोस्त जुबैर. इन के साहबजादे अनवर मियां भी लखनऊ यूनिवर्सिटी से फिजिक्स में एमएससी करने आए हैं. उन्हें हौस्टल में जगह नहीं मिल पा रही है इसलिए कुछ दिन हमारे यहां ही रहेंगे. तुम शाम तक कोठी की ऊपरी मंजिल के दोनों कमरे साफ करवा देना. अनवर शाम को आ जाएगा.’’

‘‘आदाब चचाजान’’ कह कर मैं अब्बू की तरफ मुखातिब हो कर बोली, ‘‘अब्बू, मैं शाम तक कमरे तैयार करवा दूंगी. अभी जा रही हूं, देर हुई तो मेरी क्लास छूट जाएगी.’’

खुदा हाफिज कह कर मैं सीढि़यां उतर कर चली गई. चचाजान और अब्बू हाथ हिलाते रहे. वापस आते ही मैं ने सब से पहले कमरे साफ करवाए. फूलों वाली नई चादर बिछाई, गुलदानों में नए फूल सजाए. टेबल पर अपने हाथ का कढ़ा हुआ मेजपोश बिछाया, उस पर पानी से भरा जग और नक्काशीदार ग्लास रखा.

नीचे आई तो लगा कोई दरवाजे पर दस्तक दे रहा है. मेरे कपड़े और मलिन सा चेहरा धूल से भरे हुए थे. पर मैं करती भी तो क्या, दस्तक तेज होती जा रही थी. मैं ने फाटक खोल दिया.

बाहर एक युवक खड़ा था. वह अपना परिचय देते हुए बोला, ‘‘मैं अनवर.’’

कसरती जिस्म, स्याह घुंघराले बाल, उसे देख मैं तो पलक झपकना ही भूल गई. लगा जैसे किसी ने सम्मोहन सा कर दिया हो. ‘‘आइए तशरीफ लाइए.’’ कह कर मैं ने चुन्नी सर पर डाल ली. फिर उसे कमरे में ले गई.

कमरे की सजावट देख कर वह मुसकराते हुए बोला, ‘‘ओह, तो आप कमरे की सफाई कर रही थीं, बहुत सुंदर सजाया है.’’

‘‘सुबह चचाजान से मुलाकात हुई, पता चला आप को हौस्टल में जगह नहीं मिली.’’ मैं ने कहा, ‘‘इसी बहाने हमें आप की खिदमत का मौका मिल जाएगा.’’

‘‘नाहक ही आप को परेशान किया, माफ कीजिएगा. जैसे ही वहां कमरा मिलेगा, मैं चला जाऊंगा.’’ अनवर ने कहा तो मैं बोली, ‘‘यह क्या कह रहे हैं आप? यह तो हमारी खुशकिस्मती है कि आप हमारे गरीबखाने पर तशरीफ लाए.’’

‘‘आप को एक तकलीफ और दूंगा, अगर एक कप चाय मिल जाए तो बड़ी मेहरबानी होगी.’’

‘‘ओह श्योर.’’ कह कर मैं तेजी से जीना उतरने लगी, उस वक्त मेरा दिल मेरे ही बस में नहीं था.

मैं ने उसे चाय ला कर दे दी. उस दिन बात वहीं खत्म हो गई. फिर भी न जाने क्यों मैं उसे ले कर खुश थी.

अनवर को हमारे यहां रहते लंबा वक्त गुजर गया. मैं उस का और उस की हर चीज का ध्यान रखती. उस की गैरहाजरी में उस का कमरा सजाती. अपनी ड्रैसेज पर भी खूब ध्यान देती. उस के सामने बनसंवर कर जाना, मुझे अच्छा लगता था. वह भी ऐसी ही कोशिश करता था.

मुझ में आए बदलाव पर अम्मी ने कभी भी ध्यान नहीं दिया. इस की वजह थी अब्बू का देर से घर आना. भाईभाभी अमेरिका में थे, जबकि अम्मी का ज्यादातर वक्त किटी पार्टियों में गुजरता था. घूमनेफिरने की शौकीन अम्मी को मुझ पर नजर रखने का वक्त ही नहीं मिलता था.

मैं और अनवर यूनिवर्सिटी में आतेजाते अकसर आमनेसामने पड़ जाते थे. कभी टैगोर लायब्रेरी में, कभी बौटेनिकल गार्डन में. वह जब भी मुझे देखता, उस की प्यासी नजरें कुछ पैगाम सा देती नजर आतीं. एक दिन सुबहसुबह जब मैं उस के कमरे में चाय देने गई, तो उस ने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘सलमा, क्या हम दोस्ती के लायक भी नहीं हैं?’’

यह मेरे लिए अप्रत्याशित जरूर था, लेकिन मेरे मन के किसी कोने में दबी तमन्नाओं को जैसे पंख मिल गए और मैं आसमान में उड़ने लगी. कब से दबा कर रखी चाहत ने जोर मारा तो एक झटके में मन के सभी बंधन टूट गए.

उस दिन आसमान पर कालेकाले बादल छाए थे. इतवार का दिन था, मैं ने हलका मेकअप कर के फिरोजी रंग का गरारा, कुरता और फिरोजी चूडि़यां पहनी. दरअसल उस दिन मेरी खास फ्रैंड नसीमा आने वाली थी.

अम्मी तैयार हो कर निकलते हुए बोलीं, ‘‘सलमा, मैं आज पिक्चर जा रही हूं, सभी किटी मैंबर हैं. बुआ से लंच बनवा दिया है, जल्दी ही आऊंगी. ऊपर भी लंच बुआ दे आएंगीं. वह 2 बजे दोबारा आएंगी.’’

अम्मी के जाते ही मैं यह सोच कर खुशी से उछल पड़ी कि आज नसीमा से खूब दिल की बातें करूंगी.

मैं चाय ले कर ऊपर गई तो अनवर कुछ रोमांटिक मूड में लगा. मैं ने चाय रखी तो वह मेरी तरफ देख कर बोला, ‘‘आज तो आप कयामत लग रही हैं. क्या करूं, मैं खुद को रोक नहीं पा रहा हूं.’’

मैं कुछ सोच पाती, इस से पहले ही अनवर ने मुझे बाहों में भर लिया. उस की बाहों में मुझे जन्नत नजर आ रही थी. लेकिन तभी जैसे जलजला सा आ गया. मेरे पांवों के नीचे से जमीन निकल गई.

सामने अम्मी रौद्र रूप में खड़ी थीं. वह जोर से चीख कर बोलीं, ‘‘भला हुआ जो मैं अपना पर्स भूल गई थी, वरना इस नौटंकी का पता ही नहीं चलता. इसे कहते हैं आस्तीन का सांप. जिसे फ्री में खिलापिला रहे हैं, वही हमें डंस रहा है. हम ने तुम्हें पनाह दी थी और तुम ने ही हमारा गिरेबां चाक कर दिया. जाओ, चले जाओ यहां से. यहां गुंडे मवालियों का कोई काम नहीं है.’’

मैं और अनवर दोनों ही अपराधियों की तरह मुंह लटकाए खड़े थे. अम्मी बहुत गुस्से में थीं. वह अनवर का सामान उठाउठा कर नीचे फेंकने लगीं. जरा सी देर में सारा मोहल्ला इकट्ठा हो गया. अनवर गुनहगार बना खामोश खड़ा था, उस की आंखों से अंगारे बरस रहे थे. अब जाना ही उस के लिए बेहतर था. उस ने खामोशी से अपना सामान समेटा और टैक्सी स्टैंड की ओर निकल गया.

वह तो चला गया पर मेरी जिंदगी में तूफान बरपा गया. उस के जाने के बाद अम्मी ने मोहल्ले वालों से कह दिया कि किराया नहीं देता था, कब तक रखती.

अम्मी ने मुझे खूब मारा, लेकिन उन की मार मेरे प्यार की आग को बुझा नहीं सकी. एक दिन अनवर मेरे सोशियोलौजी सोशल वर्क डिपार्टमेंट के आगे खड़ा था. रूखे बाल, उदास चेहरा. मैं दौड़ कर उस के पास जा पहुंची और उसे ऊपर से नीचे तक देखते हुए बोली, ‘‘यह क्या हाल बना रखा है अनवर, मैं तुम्हारे बगैर नहीं जी सकती.’’

अनवर मेरी तरफ देख कर बोला, ‘‘यूनिवर्सिटी के पास ही एक कमरा लिया है, अम्मी भी आई हुई हैं. मैं ने उन्हें तुम्हारे बारे में सब कुछ बता रखा है. अम्मी मेरी दुलहन को देखना चाहती हैं. 2 मिनट के लिए चल सकोगी? अम्मी हमारी शादी का कोई रास्ता निकालना चाहती हैं.’’

अनवर की आवाज में जो दर्द था, उसे देख मैं रो पड़ी और उस के पीछेपीछे चल दी.

चाहत का कहर : माशूका की खातिर – भाग 2

रामू की इस करतूत से पूरा परिवार हैरान रह गया था. यह कोई अच्छी बात नहीं थी, इसलिए मां ने ही नहीं, भाइयों ने भी रामू को रोका. मारपीट भी की, लेकिन रामू नहीं माना तो नहीं माना. कुसुमा से उसे जो सुख मिलता था, उस की चाहत में वह उस के पास पहुंच ही जाता था. परेशान हो कर एक दिन शांति कुसुमा के घर जा पहुंची और उसे बुराभला कहने लगी.

तब कुसुमा ने कहा, ‘‘काकी, मैं तुम्हारे बेटे को बुलाने नहीं जाती, वह खुद ही मेरे पास आता है. तुम उसी को क्यों नहीं रोक लेती. अब तुम्हारे ही घर कोई आएगा, तो क्या तुम उसे भगा दोगी? तुम उसे तो रोकती नहीं, मुझे बेकार में बदनाम करने चली आई.’’

शांति चुपचाप घर लौट आई. उसी बीच मुकेश गांव आया तो किसी ने उस से रामू और कुसुमा के संबंधों के बारे में बताया. उस ने इस बारे में कुसुमा से पूछा तो रोते हुए उस ने कहा, ‘‘मैं कब से कह रही हूं कि तुम मुझे अपने साथ ले चलो. बीवी को इस तरह गांव में अकेली छोड़ोगे तो दिलजले लोग ऐसी ही बातें करेंगे.’’

मुकेश को लगा कि कुसुमा सच कह रही है, इसलिए उस की बात पर विश्वास कर के वह निश्चिंत हो कर दिल्ली चला गया. लेकिन अब मुकेश जब भी घर आता, गांव का कोई न कोई आदमी कुसुमा और रामू को ले कर उसे जरूर टोकता. इन बातों से उसे लगने लगा कि कुछ न कुछ जरूर गड़बड़ है. इस के बाद उस ने कुसुमा को मारपीट कर धमकाया कि अब अगर उस ने उस के बारे में कुछ सुना तो वह उसे उस के मायके पहुंचा देगा. यही नहीं, उस ने शांति के घर जा कर उस से भी कहा कि वह रामू को रोके अन्यथा ठीक नहीं होगा.

इस पर जलीभुनी शांति ने कहा, ‘‘मैं खुद ही तुम्हारी पत्नी से परेशान हूं. इस के लिए मैं पंचायत बुलाने वाली हूं.’’

शांति की इस धमकी से मुकेश परेशान हो गया. अगर शांति ने पंचायत बुलाई तो गांव में उस की इज्जत का जनाजा निकल जाएगा. नाराज और दुखी मुकेश ने सारा गुस्सा और क्षोभ घर आ कर कुसुमा की पिटाई कर के निकाला.

अगले दिन शांति ने पंचायत बुलाई, जिस में मुकेश और कुसुमा को भी बुलाया गया. पंचायत में कुसुमा ने साफ कहा कि रामू से उस का कोई संबंध नहीं है. इस बात को ले कर उसे बेकार ही गांव में बदनाम किया जा रहा है.

पंचों ने जब मुकेश से कुछ कहना चाहा तो उस ने कहा, ‘‘मैं इस मामले में कुछ नहीं कर सकता, क्योंकि कुसुमा अब मेरे वश में नहीं है.’’

पंचायत बिना किसी फैसले के ही खत्म हो गई. मुकेश दूसरे दिन शाम को दिल्ली चला गया. इस पंचायत के बाद मोहल्ले का हर आदमी कुसुमा को अपना दुश्मन नजर आने लगा. इसलिए वह मोहल्ले के हर आदमी से पंगा ले कर उस की ऐसीतैसी करने लगी. उस की इस हरकत से हर कोई उस से घबराने लगा. अब किसी की हिम्मत उस से कुछ कहने की नहीं पड़ती थी. इस के बाद उस की और रामू की मोहब्बत की गाड़ी आराम से चलने लगी. डर के मारे मोहल्ले वालों ने उन की ओर से आंखें मूंद लीं.

शांति रामू को कुसुमा से किसी भी तरह अलग नहीं कर पाई तो उस ने सोचा कि रामू की शादी कर दे. नईनवेली दुलहन पा कर वह खुद ही कुसुमा का पीछा छोड़ देगा. उस ने रामू के लिए लड़कियां देखनी शुरू कर दीं. जल्दी ही उस ने जिला मैनपुरी के थाना एलांद के गांव सुशनगढ़ी के रहने वाले मान सिंह की बेटी सुमन से उस की शादी तय कर दी.

कुसुमा को जब पता चला कि रामू की शादी तय हो गई है तो वह सुलग उठी. वह किसी भी कीमत पर यह शादी नहीं होने देना चाहती थी. भला वह कैसे चाहती कि उस का प्रेमी किसी से शादी कर के उसे सुलगने के लिए छोड़ दे. इसलिए उस ने रामू से साफसाफ कह दिया कि अगर उस ने यह शादी की तो वह जान दे देगी.

‘‘शादी के बाद भी मैं तुम्हारा ही रहूंगा भाभी. मां बहुत परेशान हैं. मैं अब उसे और दुखी नहीं कर सकता.’’ रामू ने कुसुमा को समझाना चाहा.

‘‘वाह, क्या बात कही है? तुम्हारी वजह से मैं कितनी बदनामी झेल रही हूं, तुम्हें पता है. लोग मुझे चरित्रहीन कहते हैं. अब बीच मंझधार में तुम मुझे छोड़ कर किसी और का होना चाहते हो. कान खोल कर सुन लो, जीते जी मैं ऐसा कभी नहीं होने दूंगी.’’ कुसुमा ने चेतावनी दी.

रामू घर वालों के बारे में सोच रहा था कि वह घर वालों को क्या जवाब दे. तभी कुसुमा ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘चलो, हम कहीं दूर भाग चलते हैं. अगर तुम ने ऐसा नहीं किया तो मेरा मरा मुंह देखोगे.’’

कुसुमा के तेवर देख कर रामू को यकीन हो गया कि अगर उस ने शादी कर ली तो कुसुमा सचमुच आत्महत्या कर लेगी. तब वह फंस सकता है. काफी सोचसमझ कर उस ने गहरी सांस ले कर कहा, ‘‘ठीक है, तुम तैयारी करो. मैं तुम्हें साथ ले कर भागने को तैयार हूं.’’

1 जून, 2013 को रामू की शादी होनी थी. दोनों ओर जोरशोर से शादी की तैयारियां चल रही थीं. शादी की तारीख से 2 दिन पहले रामू घर से गायब हो गया. रामू का गायब होना घर वालों के लिए सदमे की तरह था. उन के लिए परेशानी यह थी कि वे लड़की वालों को क्या जवाब देंगे. रिश्तेदारों को कौन सा मुंह दिखाएंगे. क्योंकि अब तक कार्ड भी बंट गए थे.

कुसुमा भी घर से गायब थी, इसलिए सब को पूरा यकीन था कि जहां भी हैं, दोनों एक साथ हैं. सब से बड़ी परेशानी यह थी कि लड़की वालों को कैसे समझाया जाए. शांति बेटे मनोज को ले कर सुशनगढ़ी पहुंची. जब उस ने मान सिंह को सारी बात बताई तो उस ने अपना सिर पीट लिया. उस की बेटी का क्या होगा, कौन करेगा उस से शादी? लोग पूछेंगे कि शादी क्यों टूटी तो वह क्या जवाब देगा?

मान सिंह को इस तरह परेशान देख कर शांति ने कहा, ‘‘हम बहुत शर्मिंदा हैं समधीजी. अब इज्जत बचाने का एक ही रास्ता है. अगर आप मान जाएं तो सब ठीक हो जाएगा.’’

‘‘कौन सा रास्ता?’’ मान सिंह ने पूछा.

‘‘मेरे बेटे शिवशंकर को तो आप ने देखा ही है. वह बहुत ही नेक है. कमाताधमाता भी ठीकठाक है. वह आप की बेटी को खुश रखेगा. अगर आप तैयार हों तो…?’’

मान सिंह के पास उन की बात मानने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं था. उस ने उदास मन से कहा, ‘‘ठीक है, इज्जत बचाने के लिए शिवशंकर से ही सुमन की शादी कर देता हूं.’’

इस के बाद शिवशंकर ने चुपचाप मां की बात मान ली तो 1 जून, 2013 को सुमन से उस की शादी हो गई. इस तरह उस ने 2 परिवारों की इज्जत बचा ली.

11 जून, 2013 को रामू और कुसुमा लौट आए. पत्नी की इस हरकत की जानकारी दिल्ली में रह रहे मुकेश को भी हो गई थी. लेकिन वह हालात के सामने हारा हुआ था. इसलिए चुप्पी साधे दिल्ली में ही पड़ा रहा.

सप्ताह भर बाद रामू घर लौटा तो सभी ने उसे

खूब खरीखोटी सुनाई. इस पर उस ने कहा, ‘‘मैं सुमन को धोखा नहीं देना चाहता था, इसलिए मैं कुसुमा के साथ चला गया था.’’

शांति ने सोचा, जो होता है, वह अच्छा ही होता है.

दो बहनों का एक प्रेमी – भाग 2

11 दिसंबर, 2013 को अब्दुल रशीद और अतीक सुबह को अपने काम पर चले गए. शमीम और आफरीन घर में अकेली रह गईं. उस दिन शमीम के बड़े भाई की पत्नी जरीना ने खीर बनाई थी. शाम को 6 बजे वह एक कटोरे में खीर ले कर शमीम को देने आई. दरवाजा शमीम की जगह आफरीन ने खोला. वह जरीना को देखते ही घबराई सी बोली, ‘‘भाभी, अंदर आओ. देखो, अप्पी को पता नहीं क्या हो गया है. किसी ने उन का गला काट दिया है, लगता है मर गई हैं.’’

जरीना उस वक्त मुख्य दरवाजे की दहलीज पर खड़ी थी. आफरीन की बात सुन कर वह 2 कदम पीछे हट गई. उस ने सहमते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हारे घर में दाखिल नहीं होऊंगी. मोहल्ले के लोगों को बुला लो.’’

आफरीन ने यह बात सामने पान की गुमटी पर बैठने वाले व्यक्ति को बताई. लेकिन उस ने भी अंदर जा कर देखने की हिम्मत नहीं की. अलबत्ता उस ने यह बात आसपास के लोगों को जरूर बता दी. इस का नतीजा यह हुआ कि कुछ ही देर में यह खबर पूरे इलाके में फैल गई. अब्दुल रशीद के घर के सामने तमाम लोग जमा हो गए. लेकिन डर की वजह से कोई भी अंदर नहीं गया.

इसी बीच किसी ने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन कर दिया. शमीम और आफरीन की बड़ी बहन तहसीन और दूसरे भाई की पत्नी भी उसी मोहल्ले में रहती थीं. खबर मिलते ही वे दोनों भी आ गईं. हिम्मत कर के बड़ी बहन और भाभी अंदर गईं. अंदर शमीम की लाश खून से लथपथ पड़ी थी. वे उसे देखते ही रोने लगीं. जरा सी देर में कोहराम मच गया.

पुलिस कंट्रोल रूम से सूचना मिलते ही यशोदानगर पुलिस चौकी के इंचार्ज जय वीर सिंह अपने सहयोगियों कांस्टेबल राम नारायण, आजाद, शिव प्रताप यादव, रामलखन और राजेश सिंह के साथ घटनास्थल पर आ गए. घटनास्थल की स्थिति देखने के बाद जयवीर सिंह ने इस मामले की जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी.

राजीवनगर के एफ ब्लौक में एक युवती का कत्ल हो गया है, यह पता चलते ही थाना नौबस्ता के प्रभारी आलोक कुमार यादव कांस्टेबल सुमित नारायण यादव, नीरज कुमार यादव, रणजीत सिंह यादव, देवेश कुमार आदि के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे. पुलिस ने अंदर जा कर देखा तो शमीम तख्त के ऊपर बिस्तर पर औंधे मुंह पड़ी थी. उस के गले से काफी मात्रा में खून रिसा था, जिस से बिस्तर गीला हो गया था.

बिस्तर पर बिछी चादर के एक कोने पर संभवत: हत्यारे ने अपने खून सने हाथ पोंछे थे. वहां भी काफी खून लगा हुआ था. अभी थानाप्रभारी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सीओ रोहित मिश्र फौरेंसिक टीम के साथ आ पहुंचे.

पुलिस ने नंबर पूछ कर शमीम के पिता को इस घटना की खबर देनी चाहिए तो उन का फोन स्विच्ड औफ मिला. आफरीन कुछ नहीं बता पा रही थी, इसलिए पुलिस घर के मुखिया अब्दुल रशीद के आने का इंतजार करने लगी.

अब्दुल रशीद रात 9 बजे अपने बेटे अतीक के साथ घर लौटे तो दरवाजे पर पुलिस की जीप और पुलिस वालों को खड़ा देख परेशान हो गए. उन की समझ में नहीं आया कि उन के घर के बाहर इतनी भीड़ क्यों है. उन्होंने घर के अंदर जा कर देखा तो वह गश खा कर गिरतेगिरते बचे. 3-4 लोगों ने मिल कर उन्हें जैसेतैसे संभाला.

अब्दुल रशीद से भी कोई महत्त्वपूर्ण बात पता नहीं चली तो थानाप्रभारी आलोक कुमार यादव ने प्राथमिक काररवाई पूरी कर के मृतका शमीम की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. इस के साथ ही अब्दुल रशीद की तहरीर पर भादंवि की धारा 302/201 के तहत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया गया.

अब्दुल रशीद ने पुलिस को बताया कि दिल्ली में रहने वाले सिराज के साथ शमीम के प्रेमसंबंध थे. जबकि वह उस की शादी अपनी पसंद के लड़के से करना चाहते थे. उन्होंने उस की शादी भी तय कर दी थी. इस पर सिराज ने धमकी दी थी कि अगर शमीम की शादी कहीं और की तो उसे जान से मार देगा. अब्दुल रशीद ने यह भी बताया कि सिराज से शमीम की जानपहचान रूबीना ने ही कराई थी.

आफरीन ने अपने बयान में पुलिस को बताया कि दोपहर 2 बजे शमीम के मोबाइल पर किसी का फोन आया था. फोन पर बात करने के बाद शमीम ने उस से कहा था कि कोई उस से मिलने आ रहा है, इसलिए वह कुछ समय के लिए घर से बाहर चली जाए और उस के सामने न पड़े, क्योंकि उस की नजर अगर उस पर पड़ गई तो वह उसे पसंद कर लेगा.

आफरीन ने आगे बताया कि पहले तो वह घर से बाहर नहीं जाना चाहती थी, लेकिन जब शमीम ने आने वाले की एक फोटो दिखाई तो वह मान गई और घर से निकल कर अंबेडकर पार्क की तरफ चली गई. उस वक्त शमीम भी उस के साथ थी, क्योंकि आने वाले ने उस से अंबेडकर मूर्ति के पास मिलने को कहा था. यह साढ़े 3 बजे की बात है.

आफरीन के अनुसार वह अंबेडकर पार्क के पास से होते हुए घर के पीछे वाली गली में चली गई थी और वहीं बैठ कर बहन के फोन का इंतजार करने लगी थी. अगले 3 घंटे उस ने वहीं बिताए और जब 6 बजने को आए और अंधेरा छाने लगा तो वह वहां से उठ कर घर लौट आई. उस समय घर का दरवाजा उढ़का हुआ था. वह अंदर पहुंची तो उस ने शमीम को खून से लथपथ मरा हुआ पाया.

यह सब बताने के बाद आफरीन कमरे में गई और एक तसवीर थानाप्रभारी को देते हुए कहा कि शमीम से यही लड़का मिलने आने वाला था. उस ने यही फोटो उसे दिखाई थी.

थानाप्रभारी ने फोटो को गौर से देखा, वह किसी 16-17 साल के लड़के की फोटो थी. उस फोटो को देख कर ऐसा नहीं लगता था कि वह हत्यारा हो सकता है. दूसरी बात यह भी थी कि उस लड़के का नामपता किसी को मालूम नहीं था. ऐसे में उसे तलाश करना आसान नहीं था.

प्यार की वो आखिरी रात – भाग 2

एक रोज दोपहर को दीपक ईरिक्शा ले कर बाजार जा रहा था कि उसे बरखा दिखाई दी. उस ने ईरिक्शा रोक दी. बरखा नजदीक आई तो दीपक ने उसे छेड़ा, “भाभी, क्या भैया को छोड़ कर जा रही हो? बहुत जल्दी में दिख रही हो.”

“तुम्हारे भैया को छोड़ कर भागूंगी तो तुम्हारे साथ न.” बरखा ने बिना संकोच के कहा और उस की ईरिक्शा पर बैठ गई, “चलो, भगा ले चलो मुझे.”

“कहां?” दीपक अब सकपका गया.

“बस निकल गई हवा. बड़े आए भाभी का खयाल रखने वाले. चलो, मुझे बाजार तक छोड़ दो.” बरखा ने उसे टहोका मारा. उस रोज बाजार में बरखा ने शौपिंग की तो दीपक ने उसे इंप्रेस करने के लिए अपनी तरफ से उसे एक अच्छी सी साड़ी खरीदवा दी. फिर एक रेस्तरां में उसे बढिय़ा सा नाश्ता भी कराया.

वापसी में भी दीपक उसे साथ ले कर आया, इस दौरान दोनों काफी खुल चुके थे. दीपक ने दबे स्वर में बरखा को यह जता दिया था कि वह उसे बेइंतहा चाहता है. बरखा अपनी कटीली अदाओं से उसे घायल करती हुई मुसकराती रही.

मोहल्ले से कुछ दूर बरखा को उतारते हुए दीपक बोला, “भाभी, आज मैं ने तुम्हारी इतनी सेवा की, उस की मेवा भी मिलेगी क्या?”

“एक घंटे बाद घर आ जाना, चाय पिला दूंगी.”

“सिर्फ चाय?”

“तो दूध पी लेना,” बरखा ने कामुक आंखों से दीपक की आंखों में झांका और गहरी सांस लेते हुए अपने वक्षों को तान दिया, मानो वह कह रही हो कि इन्हें पी लेना.

दीपक घर पहुंचा. उस ने कपड़े बदले फिर मां से बहाना कर के घर से निकल गया. वह जानता था कि बरखा इस वक्त घर पर अकेली होगी. कृष्णकांत रात 9 बजे के पहले घर नहीं आता था. दीपक उसी रोज बरखा को पा लेना चाहता था, अत: वह बरखा के घर की ओर चल पड़ा.

बरखा ने दीपक को पलंग पर बिठाया. फिर मुसकराते हुए पूछा, “क्या पिओगे देवरजी, चाय या दूध..?”

“यह दूध,” दीपक ने उस की कलाई थामते हुए उस के स्तनों की तरफ इशारा किया.

“हाय दैय्या, कितने बेशरम हो तुम.” बरखा ने लाज का नाटक किया, लेकिन दीपक ने उसे खींच कर गोद में गिरा लिया और उस के वक्ष सहलाने लगा.

“देवरजी, तुम मुझे अच्छे लगते हो,” बरखा ने उस के हाथों के ऊपर हाथ रखते हुए कहा, “पर मैं तुम्हें यह दूध तभी पिलाऊंगी, जब तुम हमेशा इन के वफादार रहने की कसम खाओगे.”

“तुम्हारी कसम बरखा भाभी, तुम्हें कभी दगा नहीं दूंगा,” दीपक ने अपने सिर पर हाथ रख कर कसम खाई.

दीपक गुप्ता से हो गए अवैध संबंध

बरखा प्यासी औरत थी. उस की नजर दीपक की जवानी पर थी. दीपक ही उस की प्यास बुझा सकता था. उस का पति कृष्णकांत उस की पेट की भूख तो मिटा सकता था, पर तन की भूख नहीं. अत: उस ने एक कामुक सीत्कार भरी और बोली, “मैं पहले दरवाजा बंद कर लूं.”

दीपक ने उसे छोड़ा तो वह दरवाजा बंद कर आई. वह जैसे ही पलंग के पास आई, दीपक ने उसे बांहों में भर लिया और पलंग पर लुढक़ गया. उस के बाद तो कमरे में सीत्कार की आवाजें आने लगीं. कुछ देर बाद दोनों अलग हुए तो उन के चेहरे पर पूर्ण संतुष्टि के भाव थे.

उस रोज बरखा जहां शादी के समय दिए गए सभी वचन भूल गई और पति के साथ विश्वासघात कर बैठी, वहीं दीपक ने दोस्ती को दरकिनार कर दोस्त की पीठ में इज्जत का छुरा घोंप दिया. वह भूल गया कि बरखा उस के दोस्त की पत्नी है.

अवैध संबंधों का सिलसिला एक बार शुरू हुआ तो वक्त के साथ बढ़ता ही गया. दोनों को जब भी मौका मिलता, वे एकदूसरे में समा जाते. बरखा अब दीपक के साथ सैरसपाटा करने भी जाने लगी. दीपक बरखा को ईरिक्शा पर बैठा कर रमणीक स्थल मोतीझील ले जाता. वहां की मखमली घास पर बैठ कर दोनों घंटों तक प्यार भरी बातें करते. फिर झील में नाव पर बैठ कर खूब मस्ती करते. पति के वापस आने के पहले वह घर लौट आती थी.

दीपक का कृष्णकांत के घर आनाजाना बढ़ा तो अड़ोसपड़ोस के लोगों के कान खड़े हो गए. कई लोगों ने बरखा को दीपक के साथ बाजार में भी साथ देखा था, सो वे भी कानाफूसी करने लगे थे. कृष्णकांत को बात पता चली तो उस का माथा ठनका. उस ने बरखा से कहा तो कुछ नहीं, लेकिन उस पर शक करने लगा.

बरखा पति के सामने बनी सतीसावित्री

एक रोज कृष्णकांत सुबह काम पर गया, लेकिन दोपहर को ही वापस लौट आया. उस समय बरखा घर पर ही थी. कृष्णकांत यह सोच कर घर वापस आया था कि बरखा के साथ प्यार भरे कुछ लम्हे बिताएगा, लेकिन ज्यों ही वह अपने कमरे में दाखिल होने को हुआ, बरखा की आवाज उस के कानों से टकराई, “उस के साथ मेरा विवाह हो गया तो क्या हुआ? मेरा जिस्म और मेरी आत्मा तुम्हारे ही रहेंगे. हमें कोई रोक नहीं सकता.”

कृष्णकांत के कानों में मानो किसी ने पिघला हुआ शीशा डाल दिया हो. उस का चेहरा गुस्से से लाल हो गया. मारे गुस्से और नफरत के उस के जबड़े भिंच गए. दरवाजे को धकेलते हुए वह कमरे में दाखिल हुआ तो उसे अचानक सामने पति को देख कर बरखा के चेहरे का रंग उड़ गया.

कृष्णकांत उसे घूरते हुए दहाड़ा, “बताओ कौन है वह, जिस से तू फोन पर बातें कर रही थी. जरूर वह तेरा आशिक ही होगा.”

बरखा चुपचाप कृष्णकांत की बात सुनती रही. उस के चेहरे पर ग्लानि या क्षोभ के कोई भाव नहीं थे. बजाय झुकने के बरखा सख्त लहजे में बोली, “तुम्हें यह जानना है न कि मैं किस से बातें कर रही थी तो जान लो, मैं अपनी सहेली से बात कर रही थी. अगर यकीन न हो, तो ये लो फोन और नंबर मिला कर कर लो उस से बात.” कह कर उस ने फोन पति को पकड़ा दिया.

बरखा ने जिस आत्मबिश्वास के साथ यह सब कहा था, उस से कृष्णकांत को लगा कि वह सच बोल रही है. उसे लगा कि पूरी बात जाने बिना उस ने बेकार में पत्नी पर शक किया. यही नहीं, उस ने बरखा से माफी मांगी और उसे मनाने लगा.

बरखा के जब से दीपक के साथ जिस्मानी संबंध बने थे, तब से उस ने पति को भुला ही दिया था, लेकिन उस दोपहर जब माफी मांगने के बाद कृष्णकांत ने बरखा से प्यार भरी बातें की और उसे अपनी बांहों में भरा तो वह पति को समर्पित हो गई. कृष्णकांत खुश था कि आज उस ने बीवी को पा लिया है, पर वह यह नहीं जानता था कि बीवी ने उस के शक को दूर करने के लिए उस के समक्ष जिस्म की गिरह खोली थी.

कातिल निगाहों ने बनाया कातिल – भाग 2

सोनाली देखने भालने में खूबसूरत थी. दोनों ही एक साथ काम करते थे. साथ रहते रहते दोनों में दोस्ती हुई और फिर वही दोस्ती प्यार में बदल गई. दोनों के प्यार मोहब्बत की बात ज्यादा दिनों तक सोनाली के घर वालों से नहीं छिप सकी. उस के पापा दिलीप सिंह ठेके पर धान की रोपाई का काम करते थे.

दिलीप सिंह के 2 बेटियां थीं. उन के कोई बेटा नहीं था. संजय यादव देखनेभालने में ठीकठाक था, ऊपर से सोनाली के साथ ही काम भी करता था. वह सोनाली को पसंद भी था. यही कारण रहा कि सोनाली के घर वालों ने दोनों के प्यार को देखते हुए जल्दी ही शादी करने की रजामंदी दे दी थी.

घर वालों की तरफ से रजामंदी मिलते ही सोनाली के साथसाथ संजय यादव को भी बहुत खुशी हुई थी. संजय यादव ने यह बात अपने घर वालों को बता दी. इस सिलसिले में जल्दी ही सोनाली के पापा दिलीप सिंह संजय यादव के घर वालों से जा कर मिले. हालांकि दोनों की जाति बिरादरी अलगअलग थी. लेकिन जब 2 परिवार प्यार से मिले तो दोनों ही शादी के लिए राजी हो गए. जिस के बाद दोनों परिवारों की तरफ से हां होते ही शादी की तैयारी शुरू हो गई. एक शुभ मूहूर्त पर दोनों ही शादी के बंधन में बंध भी गए.

सोनाली का कोई भाई नहीं था. उस का परिवार भी छोटा ही था. संजय यादव इस से पहले एक किराए के मकान में रहता था. लेकिन शादी हो जाने के बाद वह भी अपनी ससुराल में घरजमाई बन कर रहने लगा था. उस के कुछ समय बाद ही सोनाली की मां ने उन्हें ट्रांजिट कैंप में एक घर खरीद कर दे दिया और वह भी उन्हीं के साथ रहने लगी थी.

दोनों ही शादी बंधन में बंधने के बाद हंसीखुशी से रहने लगे थे. संजय यादव जितना सोनाली को प्यार करता था, उस से कहीं ज्यादा वह भी उस का ध्यान रखती थी. वक्त के साथ सोनाली एक बच्चे की मां बनी. उस बच्चे का दोनों ने प्यार से जय नाम रखा. जय के जन्म लेने के बाद उन के परिवार में और अधिक खुशहाली आ गई थी.

सोनाली की खूबसूरती पर मर मिटा जगदीश

कुछ समय पहले जगदीश ने सोनाली के घर के सामने ही मिश्री लाल के घर में एक किराए का कमरा लिया. जगदीश मूलरूप से अनावा थाना पुवायां, जिला शाहजहांपुर का रहने वाला था. वह भी कई साल पहले नौकरी की तलाश में रुद्रपुर आया था. उस दौरान उसे नौकरी नहीं मिली तो उस ने राजमिस्त्रियों के साथ काम करना शुरू कर दिया.

राजमिस्त्रियों के साथ काम करतेकरते वह भी राजमिस्त्री बन गया था. उस वक्त जगदीश ने अपना नाम राजवीर रख रखा था. किराए के मकान में रहते हुए ही एक दिन उस की नजर सोनाली पर पड़ी. सोनाली जितनी देखनेभालने में सुंदर थी, उस से कहीं ज्यादा बोलनेचालने में मृदुभाषी. उस के रहनसहन को देख कर वह उस की सुंदरता का दीवाना बन गया. वह मन ही मन सोनाली को प्यार करने लगा था.

उस वक्त जगदीश को हर रोज काम नहीं मिलता था. जिस दिन उसे काम नहीं मिलता तो वह अपने कमरे पर ही रहता था. उस दौरान वह मकान की छत पर ही घूमता रहता था. उसी दौरान एक दिन उस की नजर छत पर खड़ी सोनाली पर पड़ी, उस ने सोनाली को पास से देखा तो वह उस के लिए पागल हो गया. उस के बाद वह हर वक्त उसे ही निहारता रहता था.

पड़ोसीे होने के नाते जल्दी ही उस ने सोनाली से जानपहचान भी बढ़ा ली थी. उसी जानपहचान के जरिए वह सोनाली के घर भी आनेजाने लगा था. एक पड़ोसी होने के नाते सोनाली जगदीश से अच्छा व्यवहार रखती थी. लेकिन जगदीश उसे मन ही मन चाहने लगा था.

उस की बदनीयत हर वक्त सोनाली की सुंदरता पर काली छाया बन कर मंडराती रहती थी, लेकिन सोनाली ने कभी भी जगदीश को प्रेम भरी निगाहों से नहीं देखा था. जगदीश हर तरफ से कोशिश कर के हार चुका तो वह उस के पति संजय यादव से ही नफरत करने लगा था.

उसी दौरान देश में कोरोना फैल गया. कोरोना से जगदीश का काम भी प्रभावित हुआ था. उस का काम बंद हुआ तो वह आर्थिक स्थिति से गुजरने लगा. जिस के कारण उस की स्थिति ऐसी हो गई कि वह कई महीने से अपने कमरे का किराया भी नहीं चुका पाया था. लौकडाउन लगने के बाद मजबूरन उसे मिश्रीलाल का कमरा छोड़ कर जाना पड़ा. उस के बाद उस ने शमशान घाट रोड पर एक सस्ता कमरा किराए पर लिया और वहीं रहने लगा.

एकतरफा प्यार ने डाली गृहस्थी में फूट

साल 2020 में कोरोना काल में वह रुद्रपुर छोड़ कर दिल्ली चला गया. कुछ समय तक उस ने वहां पर नौकरी की और सन 2022 में फिर से रुद्रपुर आ गया. रुद्रपुर आने के बाद उस ने वेल्डिंग का काम करना शुरू किया. तब उस ने रैन बसेरा, मंदिर और अन्य जगहों पर शरण ले कर वेल्डिंग का काम किया.

उस के बाद भी वह संजय यादव और सोनाली से जानपहचान का फायदा उठाते हुए उन के घर आताजाता रहा. जिस के बाद से सोनाली ने उस से बात करना कुछ कम कर दी थी. जब जगदीश को लगने लगा कि सोनाली किसी भी कीमत पर उसे भाव देने वाली नहीं है तो उस ने उस की पड़ोसन की तरफ निगाहें डालनी शुरू कर दी.

वह महिला भी सोनाली के घर के सामने ही रहती थी. सोनाली की उस महिला से अच्छी दोस्ती थी. वह महिला भी देखनेभालने में सुंदर थी. उस ने कई बार सोनाली से उस महिला का मोबाइल नंबर मांगा, लेकिन सोनाली ने उस का नंबर देने से मना कर दिया था.

सोनाली जान चुकी थी कि उस की नीयत साफ नहीं है. उस की बदनीयती को देखते हुए सोनाली उस से कटने लगी थी. लेकिन जगदीश कभी भी उस के घर आ जाता और उस महिला का मोबाइल नंबर मांगने लगता था. उस के बाद सोनाली ने उसे अपने घर आने के लिए भी मना कर दिया था.

इतना सब कुछ करने के बाद भी वह सोनाली का पीछा छोडऩे को तैयार नहीं था. उस की दीवानगी की हद तो उस दिन हो गई, जब उस ने सोनाली के घर पर एक गुलदस्ता, कीपैड मोबाइल फोन व उस के साथ एक परची डाली, जिस में उस ने लिखा था कि वह उसे दिलोजान से चाहता है और उस के प्यार में कुछ भी करने को तैयार है. अगर उसे उस का यह तोहफा पसंद आया तो जवाब जरूर देना.

प्रेमिका को गोली मार की खुदकुशी – भाग 2

नित्या ने दिल में बसा लिया विशाल को

एक दिन महाविद्यालय में आयोजित एक संयुक्त प्रोग्राम में विशाल और नित्या ने गीतों में अपनीअपनी प्रस्तुतियां दीं तो महाविद्यालय के सभी छात्रछात्राओं ने जम कर तालियां बजा कर दोनों का उत्साहवर्धन किया. उसी शाम दोनों की नजरें एकदूसरे से मिलीं, वे दोनों एकटक एकदूसरे की ओर काफी देर तक अपनी नजरें चाह कर भी हटा न सके. एक अजीब कशिश और एक अनोखा सा आकर्षण सा उन दोनों के बीच स्थापित हो चुका था.

दोनों को अपने दिल में यह महसूस सा होने लगा था, मानो वे दोनों केवल एकदूसरे के लिए बने हैं. अब तक न तो विशाल को किसी युवती से न ही नित्या को किसी युवक से प्यार हुआ हुआ था. दोनों के दिल में बस एक यही बात थी कि कब हमें एकदूसरे से बात करने का अवसर मिल पाएगा.

अब तक नित्या यह बात अच्छी तरह से समझ चुकी थी कि विशाल की ओर से तो पहल होने से रही, उसे ही अपनी ओर से पहल करनी पड़ेगी, तभी बात कुछ आगे बढ़ सकती है. दोनों एकदूसरे से मिलते भी थे, पर बातें चाह कर भी नहीं कर पा रहे थे.

एक दिन हिम्मत कर के जब दोनों का आमनासामना हुआ तो नित्या ने विशाल से कहा, आप से एक बात करनी है, क्या आप के पास समय है?

‘जी जरूर. आप के लिए तो मेरे पास हर वक्त समय ही समय है.” विशाल ने मुसकराते हुए कहा.

“ठीक है, कल को शाम 4 बजे यहीं पर आप से मिलती हूं” यह कहते हुए नित्या मुसकरा कर वहां से चली गई थी.

दूसरे दिन शाम को नियत समय पर दोनों मिले तो विशाल ने कहा, कहिए, कहां चलना है?”

एकदूसरे के करीब आए दोनों

इस के बाद विशाल नित्या को अपनी बाइक पर बिठा कर काफी दूर सुनसान से इलाके में ले गया. विशाल ने अपनी बाइक रोक कर किनारे खड़ी कर दी.

‘जी कहिए, मुझ से क्या चाहती हैं आप?” विशाल ने कहा.

“विशाल, आप मुझे बड़े अजीब से इंसान लगे. पता नहीं क्यों यूं अकेलेअकेले से, गुमसुम से रहते हो. कुछ परेशानी या दुख तो नहीं है न आप के जीवन में?” नित्या ने पूछा.

“नित्याजी, मुझे अकेलापन बड़ा अच्छा लगता है. इस अकेलेपन में बड़ा सुकून सा मिलता है. आजकल की दुनिया बड़ी मायावी सी लगती है, इसीलिए कुछ दूरी बना कर रखता हूं.” विशाल ने कहा.

“अच्छा, एक बात बताओ विशाल, तुम्हें क्या कभी से किसी लड़की से रोमांस या प्यार हुआ है? किसी लड़की ने कभी तुम्हारा दिल तो नहीं तोड़ा न?” नित्या ने कहा.

“देखिए, मैं ने कभी इस बारे में सोचा ही नहीं. न किसी से कभी प्यार हुआ और न ही रोमांस तो मेरा दिल भला कैसे टूट सकता है?” विशाल बोला.

“अच्छा, ये बताओ तुम्हारे मातापिता ने बचपन में तुम्हारा रिश्ता कहीं फिक्स तो नहीं किया हुआ है. मेरा मतलब तुम्हारी बचपन से कोई मंगेतर तो नहीं है न!”नित्या ने पूछा.

“ऐसी कोई बात नहीं है, मुझे मेरे परिवार वाले बहुत स्नेह और दुलार से रखते हैं. मैं परिवार में हमेशा खुश रहता हूं, मेरे जीवन में न तो अभी तक कोई लड़की आई है, जिस ने मेरा दिल तोड़ा हो. मगर मेरी समझ में यह बात नहीं आ रही है कि तुम ऐसे फिजूल से प्रश्न मुझ से क्यों पूछ रही हो?” विशाल ने कहा.

देखो विशाल, तुम मेरे परफैक्ट मैच हो. देखो, जरा मेरी बातों को ध्यान से सुनो और समझने का प्रयास करो. तुम सुन रहे हो न मेरी बात?” नित्या ने कहा.

हांहां, मैं सब कुछ अपने कानों से आप की बातें सुन रहा हूं. मगर तुम्हारी बातें मेरी समझ में पता नहीं क्यों नहीं आ रही हैं? जरा विस्तार से बताओ आखिर तुम चाहती क्या हो मुझ से?” विशाल ने भी अपने दिल की बात साफसाफ लफ्जों में कह दी.

देखिए विशालजी, मेरा बचपन से बस एक सपना था कि मुझे जब कोई मेरी सोच जैसा आइडियल नौजवान मिलेगा, जो हर गुण संपन्न हो, साहसी हो, शरीफ हो, नारी का दिल से सम्मान करता हो, जिस का अभी तक किसी युवती से प्यार न हुआ हो, वही मेरा परफैक्ट होगा. इतनी कोशिशों के बाद जब मैं ने तुम्हें देखा तो तुम से मुझे सचमुच प्यार सा हो गया. यदि तुम अपने दिल से मुझे स्वीकार करते हो तो मैं तुम्हारे मन मंदिर में हमेशा के लिए बस जाना चाहती हूं.” नित्या ने अपने दिल की बात अपनी जुबां से कह ही डाली.

जीवन भर साथ निभाने के किए वादे

विशाल ने जब यह बात सुनी तो वह मन ही मन बहुत खुश हो गया था. मगर वह भी अपने दिल की बात साफ साफ बता देना चाहता भी था.

देखो नित्या, यह मामला अभी क्षणिक प्रेम का नहीं, जब हम किसी से प्यार करते हैं तो अपने दिल से करते हैं. कहीं तुम मुझे बीच मंझधार में छोड़ गई तो फिर मैं टूट सा जाऊंगा, इसलिए अपना फैसला करने से पहले अपने दिल की इजाजत ले लो. मुझे जीवन में प्यार करना पसंद है पर हमेशा हमेशा के लिए जुदाई और बेवफाई मैं कभी भी सह न पाऊंगा.” विशाल ने कहा.

विशाल, मैं हमेशा हमेशा के लिए तुम्हारी ही रहूंगी.” यह कहते हुए नित्या ने जब अपनी बाहें फैलाई तो विशाल ने उसे आगे बढ़ कर अपने सीने से लगा लिया था. उस के बाद उन दोनों की प्रेम कहानी जो शुरू हुई तो वह पूरे कालेज और पूरे इलाके में एक मिसाल बन गई थी.

उन दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा था. विशाल अपनी प्रेमिका नित्या को उस के जन्मदिन पर अच्छेअच्छे उपहार देता था. बदले में नित्या भी उस की हर ख्वाहिश का ध्यान रखती थी. दोनों एकदूसरे के पूरक से बनते जा रहे थे.

दोनों ने पढ़ाई के बाद एकदूसरे से शादी करने का वादा भी कर लिया था. उन दोनों का यह प्रेम प्रसंग करीब करीब पूरे डेढ़ साल तक चलता रहा, इस दौरान नित्या बीटीसी द्वितीय वर्ष में आ गई थी तो विशाल भी बीए द्वितीय वर्ष में पहुंच चुका था. दोनों का बस एक ही मकसद था कि जल्द से जल्द दोनों की पढ़ाई पूरी हो जिस से वह सदासदा के लिए कर एकदूसरे के बन जाएं.

एक दिन विशाल ने अपने दिल की बात अपने बड़े भाई अनिल को बताते हुए कहा, भैया, मैं एक लड़की से प्यार करने लगा है, उसी से शादी करना चाहता हूं.”

“देख विशाल, अभी तुम छोटे हो. देखो भाई, अभी तो तुम्हारे दोनों बड़े भाइयों की भी शादी नहीं हुई है. तुम्हारा नंबर तो सब से आखिर में है. इसलिए प्रेम के बजाय अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो. अच्छी नौकरी पाने की कोशिश करो तो हम तुम्हारा विवाह वहीं करवा देंगे, जहां तुम चाहते हो.” अनिल ने उसे समझाते हुए कहा.

यह बात सुन कर विशाल भी समझ गया कि अभी जल्दबाजी करनी उचित भी नहीं है. इसलिए वह अपनी पढ़ाई और करिअर पर फोकस करने लगा था, मगर नित्या से उस का मिलनाजुलना व प्यार बिलकुल भी कम नहीं हुआ था.

कैसे हुईं 9 दिन में 3 बहनें गायब – भाग 2

बहनों को लापता हुए डेढ़ महीने का समय हो गया था. भाई सलमान अहमद डेढ़ महीने से अपनी छोटी बहनों की तलाश में लगा था. इस दौरान वह अच्छी तरह से रात में सोया भी नहीं. हर समय बहनों की चिंता उसे सताती रहती थी. पता नहीं बहनें किन हालात में होंगी. उस के लिए उस की बहनें ही सब कुछ थीं. वह पिता के साथ शासन-प्रशासन से यही गुहार लगा रहा था कि उस की बहनों को ढंूढने की काररवाई की जाए, नहीं तो वह कोई गलत कदम उठा लेगा.

रोरो कर मां की सूज चुकी थीं आंखें

9 दिन में अपनी तीनों बेटियों के इस तरह लापता हो जाने से मां आहत थी. बोली, “हम अपनी बड़ी बेटी निशा के लिए लडक़ा देख रहे थे. हमें जरा सा भी एहसास नहीं था कि हमारे साथ कुछ ऐसा भी हो जाएगा.”

बेटियों को याद कर के मां की आंखों से आंसूू बहने लगते. वह रोतेरोते बेहोश हो जाती.

तीनों बेटियों के लापता हुए डेढ़ महीना बीत गया था. बेटियों का नाम ले कर उन्हें बारबार पुकारतीं और कहती कि अपनी बेटियों के बिना वह मर जाएगी. कहती अपहत्र्ता उन्हें तड़पा रहे होंगे, मार डालेंगे. इतने दिन हो गए पुलिस भी कुछ नहीं कर पा रही है. हम गरीब हैं, पता नहीं हमें न्याय कब मिलेगा? उसे इस बात का भी डर सता रहा था कि बेटियों के साथ कोई अनहोनी न हो जाए.

एसपी विनोद कुमार ने यही भरोसा दिया कि पुलिस अपराधियों तक पहुंचने की पूरी कोशिश में लगी हुई है. रम्पुरा की एक लडक़ी की लोकेशन पंजाब में मिली थी. पहले पिता व बाद में पुलिस भी वहां गई थी. अब पुलिस की एक स्पैशल टीम को वहां भेजा गया है. उन्होंने जानकारी दी कि अपराधियों को पकडऩे के लिए सर्विलांस और स्वाट टीमों को भी तैनात किया गया है. लड़कियों को जल्द से जल्द बरामद कर लिया जाएगा.

पूरा परिवार आ गया दहशत में

तीनों बेटियों के इस तरह लापता हो जाने से शमशाद का पूरा परिवार दहशत में आ गया. शमशाद ने अपना दर्द बयां करते हुए कहा कि पुलिस किडनैप हुई तीनों बेटियों को बरामद करने में गंभीरता नहीं दिखा रही है.

9 जनवरी को बेटी से जब बात हुई तो बेटी ने डरी हुई आवाज में कहा, “पापा, अब मैं वापस नहीं आ पाऊंगी.”

फोन पर वे लोग पीछे से बेटी को धमका रहे थे और उस से अपने मनमुताबिक कहलवा रहे थे. पुलिस ने उस मोबाइल की लोकेशन ट्रैक की. तब 10 जनवरी को पुलिस के साथ पंजाब के लिए निकले. रास्ते में एक स्थान पर पुलिस रात में रुकी. दूसरे दिन जब पुलिस आरोपी के घर पहुंची तो घर पर ताला लटका हुआ था. हम लोगों को दूसरी बार खाली हाथ आना पड़ा. पुलिस को गाड़ी से ले जाने और भागदौड़ में काफी खर्चा भी हो गया. बेटियों की तलाश में जो कुछ धन उस के पास था, सब खर्च हो गया, अब सब्जी खरीदने लायक पैसे भी नहीं बचे थे.

शमशाद को अपनी बेटियों की चिंता सता रही थी कि वे किन हालात में हैं. एकदूसरे के साथ भी हैं या नहीं. सब से छोटी बेटी मनतारा से बात हो गई थी, लेकिन बाकी 2 बेटियों की कोई जानकारी नहीं मिली थी. वे पंजाब में ही हैं या किसी अन्य जगह. पता नहीं मनतारा अपनी 2 बड़ी बहनों के गायब होने की बात जानती है या नहीं. परिजन अब पूरी तरह पुलिस के भरोसे ही थे. पुलिस ही उन्हें उन की तीनों बेटियां वापस दिला सकती थी.

पुलिस सरगरमी से तलाश में जुटी

परिवार अपनी तीनों गायब हुई बेटियों की तलाश में दिनरात एक कर रहा था. वहीं उन की बरामदगी के लिए पुलिस भी अपने स्तर से शमशाद की बड़ी बेटी निशा व उस के साथियों का नंबर ट्रैस कर रही थी. इसी दौरान पुलिस को आरोपी के मोबाइल की लोकेशन पंजाब की मिली. पुलिस टीम ने बिना देर किए दबिश दे कर 20 वर्षीय आरोपी भारत निवासी गोशाला वाली गली, टिस्बी साहेब रोड, मुक्तसर, पंजाब को हिरासत में ले लिया. उस के कब्जे से सब से छोटी बेटी मनतारा को 4 फरवरी, 2023 को बरामद कर लिया.

मनतारा को ले कर कुर्रा थाना पुलिस मैनपुरी आई. यहां मनतारा का मैडिकल कराया गया. तब पता चला कि मनतारा गर्भवती है. पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश किया. न्यायालय ने नाबालिग मनतारा को परिजनों की सुपुर्दगी में दे दिया.

रहस्यमय तरीके से गायब हुई बहनों के संबंध में बरामद सब से छोटी बहन मनतारा ने पुलिस को जो बताया, उसे सुन कर पुलिस सकते में आ गई. इस मामले में मनतारा ने सनसनीखेज खुलासा कर सभी को चौंका दिया.

बड़ी बेटी निशा ने ही रची थी साजिश

सब से छोटी बेटी 14 वर्षीय मनतारा ने बताया, “हमारे परिवार की हालत बहुत खराब थी. हम लोगों की जरूरतें पूरी नहीं हो पाती थीं, न हम लोग पढ़ पा रहे थे न ढंग से जी पा रहे थे. इस वास्ते से हम लोग परेशान रहते थे. हम तीनों बहनें अकसर इस पर बात किया करते थे. मुझे याद है कि 18 दिसंबर, 2022 को मैं अपनी बड़ी बहन निशा के साथ घर से बाहर गई हुई थी.

“दीदी से मिलने वहां पर कोई राहुल नाम का लडक़ा आया था. शायद दीदी उस को पहले से जानती थीं. उस ने हम लोगों को वहां चाय पिलाई. फिर हम लोगों ने गोलगप्पे भी खाए. इस के बाद वह लडक़ा हम लोगों को सुंदर सुंदर कपड़े अपने मोबाइल में दिखाने लगा. उस का मोबाइल भी बहुत अच्छा था. उस ने अपने मोबाइल से मेरी फोटो भी खींची थी. उस ने मुझ से पूछा कि क्या तुम ये सब लेना चाहती हो? इस पर मनतारा ने हां बोल दिया.

“उस के बाद राहुल हंसने लगा. फिर उस ने मिठाई दिलाई और कुछ रुपए भी दिए. फिर मैं दीदी के साथ घर वापस आ गई. दीदी ने घर पर ये बात किसी को बताने से मना कर दिया था. उस के बाद दूसरे दिन फिर से दीदी मुझे राहुल से मिलवाने ले गई. उस दिन वह बाइक से आया था. मैं पहली बार बाइक पर बैठ कर घूमी थी. बहुत मजा आया था.”

दिल्ली में जौब दिलाने की बात कही

मनतारा ने आगे बताया कि उस रात दीदी ने मुझ से कहा कि हम लोगों के घर में बहुत परेशानी रहती है. राहुल मेरा दोस्त है. ये हम लोगों को दिल्ली में जौब दिला देगा. ऐसे हम लोग अपने परिवार की सहायता कर पाएंगे. जौब लग जाएगी, उस के बाद घर में सब को ये बात बता देंगे. घरवालों को भी दिल्ली बुला लेंगे.

निशा की बात मनतारा को बहुत अच्छी लगी. उसे लगा कि वह कमा कर घर के दुख दूर कर देगी. फिर बड़ी बहन तो वहां उस के साथ रहेगी ही. इसलिए उस ने निशा को तुरंत ही दिल्ली साथ चलने के लिए हां बोल दिया. उस के बाद निशा ने उस से कपड़े का बैग पैक करने के लिए कहा. निशा ने कहा कि हम लोग रात में चुपचाप घर से निकल जाएंगे, फिर दिल्ली पहुंच कर जौब लगते ही घर में अब्बा, अम्मी और भाई सब को बता देंगे.

21 दिसंबर, 2022 की आधी रात को जब सभी घर के सदस्य गहरी नींद में थे. मनतारा बड़ी बहन निशा के साथ घर से निकल गई. घर से थोड़ी दूर पर उन्हें राहुल मिल गया, वह बाइक से उन्हें स्टेशन ले गया. वहां पर कोई भारत नाम का युवक उन का इंतजार कर रहा था.

दगा दे गई सोशल मीडिया की गर्लफ्रैंड – भाग 1

अजमेर के जयपुर रोड पर स्थित मुख्य रोडवेज बस स्टेंड से प्रसिद्ध मेंंयो कालेज की तरफ जाने वाली प्रमुख सड़क पर मंगलवार होने के बावजूद भी ज्यादा भीड़ नहीं थी. वैसे इस रास्ते पर हर मंगलवार की शाम को भारी भीड़ होती है, क्योंकि यह रास्ता नगर के प्राचीन हनुमान मंदिर की तरफ भी जाता है. इस के अलावा यही रास्ता नगर के सब से खूबसूरत पर्यटन स्थल आनासागर लेक पर बनी चौपाटी तक भी जाता है, जहां पर रोजाना हजारों लोग घूमने आते हैं.

16 मई, 2023 की शाम करीब 4 बजे इसी सड़क पर एक घबराई हुई खूबसूरत युवती तेजी से स्कूटी दौड़ाती हुई चली जा रही थी. उस युवती का एक परिचित युवक पीछा कर रहा था. इसलिए वह बारबार पीछा कर रहे उस युवक को साइड मिरर में देख रही थी.

उस की घबराहट और बढ़ती जा रही थी, क्योंकि पीछा कर रहे युवक के इरादे उसे ठीक नहीं लग रहे थे. इसी दौरान उस ने साइड मिरर में एक कार देखी. कार उस ने पहचान ली, क्योंकि वह उस के एक परिचित की थी. कार को देख कर उस की घबराहट खत्म हो गई और वह मुस्कराने लगी.

सीआरपीएफ ग्राउंड से आगे जैसे ही वह ओवर ब्रिज को पार कर मेंयो कालेज की तरफ घूमी तो उस की नजर मदार पुलिस चौकी पर पड़ी तो कुछ सोच कर उस ने मदार पुलिस चौकी के सामने फुटपाथ पर अपनी स्कूटी रोक दी और पीछे आ रही कार के पास पहुचने का इंतजार करने लगी.

उसे उम्मीद थी कि पुलिस चौकी होने के कारण वह युवक उसे परेशान करने की हिम्मत नहीं करेगा पर उस युवक पर तो जैसे जुनून सवार था. उस युवक ने पुलिस चौकी के पास आ कर अपना स्कूटर रोक दिया. स्कूटर को चालू हालत में छोड़ कर वह उस युवती के पास जा कर कुछ बोला. जिसे सुन कर युवती अपना आपा खो बैठी और चीखते हुए बोली, “नहीं करूंगी शादी तुम से. मुझे परेशान मत करो वरना मैं पुलिस… इस से पहले कि वह आगे कुछ कहती, युवक ने अपने बैग से चाकू निकाल कर दिनदहाड़े उस युवती पर जानलेवा हमला कर दिया.

युवती को चाकू से घायल कर के वह तुरंत अपने स्कूटर पर सवार हो कर राजा साइकिल चौराहे की तरफ फरार हो गया, जबकि खून से लथपथ युवती जमीन पर गिर कर तड़पने लगी. दिनदहाड़े अलवर गेट थाने की मदार पुलिस चौकी के पास हुई इस सनसनी खेज वारदात से सनसनी फैल गई.

घटनास्थल के ठीक सामने फुटपाथ की थड़ी पर दोस्तों के साथ चाय पी रहे पास की कालोनी में रहने वाले युवक पिंटू सांखला और उस के साथियों ने पहले तो हमलावर युवक को पकडऩे की कोशिश की, लेकिन वह उन के हाथ नहीं आया.

तब तक युवती के परिचित युवक की कार भी वहां आ गई. उस ने उस युवती की शिनाख्त धौलाभाटा निवासी तृप्ति सोनी चौहान के रूप में की. युवक ने गंभीर रूप से घायल तृप्ति को पिंटू सांखला और उस के साथियों की मदद से उठाया और वहां से करीब एक किलोमीटर दूर स्थित अजमेर के जेएलएन राजकीय चिकित्सालय की तरफ चल दिया.

अस्पताल पहुंचने से पहले तोड़ा दम

अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में मौजूद डाक्टरों ने घायल तृप्ति की जांच कर बताया कि काफी ज्यादा खून बहने के कारण कुछ देर पहले ही उस की मौत हो चुकी हैै. हमलावर ने उस के दिल पर 3 वार किए थे, जिस से उस का दिल कट गया था और अधिक खून बहने के कारण उस की मौत हो गई.

डाक्टरों की बात सुन कर तृप्ति को ले कर आए मददगार और कार से आए युवक अनिल शर्मा की आंखें भर आईं. इसी बीच अजमेर के एसपी चूना राम जाट, सीओ सुनील सिहाग, सहित पुलिस विभाग के आला अधिकारी और थाना अलवर गेट के एसएचओ श्याम सिंह चारण भी अस्पताल पहुंच गए.

उधर घटना की रिपोर्ट 16 मई, 2023 की शाम को मृतका महिला टीचर के मित्र अनिल शर्मा ने अलवर गेट थाने में दर्ज कराते हुए बताया कि वह महिला टीचर का मित्र है और इंजनियरिंग कालेज अजमेर में प्रोफेसर है. उन्होंने हमलावर विवेक सिंह उर्फ विवान पर आरोप लगाते हुए पुलिस को बताया कि तृप्ति सोनी उसे सिर्फ अपना दोस्त मानती थी, जबकि विवेक सिंह उस पर शादी करने का दबाव डाल रहा था.

इसी मामले को ले कर उस ने दोनों को समझाने की कोशिश भी की थी, लेकिन उन्हें इस बात की उम्मीद भी नहीं थी कि कोई प्यार करने का दम भरने वाला युवक ऐसी बेरहमी से किसी की जान भी ले सकता है.

उन की सलाह पर ही परेशान तृप्ति ने पुलिस से उस की शिकायत करने का मन बना लिया था, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकी और अनहोनी हो गई. पुलिस अधिकारयों ने हत्याकांड के प्रत्यक्षदर्शी पिंटू सांखला से भी घटना की जानकारी हासिल की.

घटनास्थल पर पड़ी स्कूटी और मृतका की चप्पलों के साथ ही पुलिस टीम ने वहां से साक्ष्य उठाने फोटोग्राफ लेने सहित अन्य जरूरी काररवाई पूरी की. तब तक बड़ी संख्या में मीडिय़ाकर्मी भी वहां जुट चुके थे और सोशल मीडिया के जरिए युवती की हत्या की खबर वायरल हो गई.

मृतका युवती की शिनाख्त धौलाभाटा कालोनी निवासी तृप्ति सोनी चौहान पत्नी सूरज चौहान के रूप में हो चुकी थी. स्कूटी की मालकिन ने बताया कि तृप्ति अपनी बेटी को उस के घर छोड़ कर कोई जरूरी काम बोल कर उस की स्कूटी ले गई थी. पुलिस ने मृतका टीचर के परिजनों को भी बुला कर बयान लिए पर वह भी घटना के बारे में ज्यादा कुछ नहीं बता सके.

पुलिस चौकी से चंद कदमों के फासले पर हुए इस हत्याकांड से शहर की सुरक्षा व्यवस्था पर सवालिया निशान उठने लगे. एसपी चूना राम जाट ने हत्याकांड की जांच थाना अलवर गेट के एसएचओ श्याम सिंह चारण को सौंप दी.

अगले दिन आरोपी हुआ गिरफ्तार

अजमेर जैसी धार्मिक एवं शांत नगरी में सरेराह, दिनदहाड़े महिला टीचर की हत्या की जांच एसएचओ ने शुरू कर दी. उन्होंने अपने मुखबिरों को भी अलर्ट कर दिया. इस का सकारात्मक परिणाम भी निकला. उन्होंने आरोपी विवेक  सिंह उर्फ विवान को अगले ही दिन 17 मई, 2023 को शहर के बाहर स्थित पहाडिय़ों से गिरफ्तार कर लिया. जहां वह वारदात करने के बाद जा कर छिप गया था.