ये कैसा बदला : सुनीता ने क्यों की एक मासूम की हत्या?

चीचली गांव कहने भर को ही भोपाल का हिस्सा है, नहीं तो बैरागढ़ और कोलार इलाके से लगे इस गांव में अब गिनेचुने घर ही बचे हैं. बढ़ते शहरीकरण के चलते चीचली में भी जमीनों के दाम आसमान छू रहे हैं. इसलिए अधिकतर ऊंची जाति वाले लोग यहां की अपनी जमीनें बिल्डर्स को बेच कर कोलार या भोपाल के दूसरे इलाकों में शिफ्ट हो गए हैं.

इन गिनेचुने घरों में से एक घर है विपिन मीणा का. पेशे से इलैक्ट्रिशियन विपिन की कमाई भले ही ज्यादा न थी, लेकिन घर को घर बनाने में जिस संतोष की जरूरत होती है वह जरूर उस के यहां था. विपिन के घर में बूढ़े पिता नारायण मीणा के अलावा मां और पत्नी तृप्ति थी. लेकिन घर में रौनक साढ़े 3 साल के मासूम वरुण से रहती थी. नारायण मीणा वन विभाग से नाकेदार के पद से रिटायर हुए थे और अपनी छोटीमोटी खेती का काम देखते हैं.

इस खुशहाल घर को 14 जुलाई, 2019 को जो नजर लगी, उस से न केवल विपिन के घर में बल्कि पूरे गांव में मातम सा पसर गया. उस दिन शाम को विपिन जब रोजाना की तरह अपने काम से लौटा तो घर पर उस का बेटा वरुण नहीं मिला. उस समय यह कोई खास चिंता वाली बात नहीं थी क्योंकि वरुण घर के बाहर गांव के बच्चों के साथ खेला करता था. कभीकभी बच्चों के खेल तभी खत्म होते थे, जब अंधेरा छाने लगता था.

थोड़ी देर इंतजार के बाद भी वरुण नहीं लौटा तो विपिन ने तृप्ति से उस के बारे में पूछा. जवाब वही मिला जो अकसर ऐसे मौकों पर मिलता है कि खेल रहा होगा यहीं कहीं बाहर, आ जाएगा.

varun-meena-murder-chichli

वरुण 

विपिन वरुण को ढूंढने अभी निकला ही था कि घर के बाहर उस के पिता मिल गए. उन से पूछने पर पता चला कि कुछ देर पहले वरुण चौकलेट खाने की जिद कर रहा था तो उन्होंने उसे 10 रुपए दिए थे.

चूंकि शाम गहराती जा रही थी और विपिन घर के बाहर ही गया था, इसलिए उस ने सोचा कि दुकान नजदीक ही है तो क्यों न वरुण को वहीं जा कर देख लिया जाए. लेकिन वह उस वक्त चौंका जब वरुण के बारे में पूछने पर जवाब मिला कि वह तो आज उस की दुकान पर आया ही नहीं.

घबराए विपिन ने इधरउधर नजर दौड़ाई तो उसे कोई बच्चा खेलता नजर नहीं आया, जिस से वह बेटे के बारे में पूछता. एक बार घर जा कर और देख लिया जाए, शायद वरुण आ गया हो. यह सोच कर वह घर की तरफ चल पड़ा.

घर आने पर भी विपिन को निराशा ही हाथ लगी क्योंकि वरुण अभी भी घर नहीं आया था. लिहाजा अब पूरा घर परेशान हो उठा. उसे ढूंढने के लिए विपिन ने गांव का चक्कर लगाया तो जल्द ही उस के लापता होने की बात भी फैल गई और गांव वाले भी उसे ढूंढने में लग गए.

रात 10 बजे तक सभी वरुण को हर उस मुमकिन जगह पर ढूंढ चुके थे, जहां उस के होने की संभावना थी. जब वह कहीं नहीं मिला और न ही कोई उस के बारे में कुछ बता पाया तो विपिन सहित पूरा घर किसी अनहोनी की आशंका से घबरा उठा.

वरुण की गुमशुदगी को ले कर तरह तरह की हो रही बातों के बीच गांव वालों ने एक क्रेटा कार का जिक्र किया, जो शाम के समय गांव में देखी गई थी. लेकिन उस का नंबर किसी ने नोट नहीं किया था.

हालांकि चीचली गांव में बड़ीबड़ी कारों का आना कोई नई बात नहीं है, क्योंकि अकसर प्रौपर्टी ब्रोकर्स ग्राहकों को जमीन दिखाने यहां लाते हैं. लेकिन उस दिन वरुण गायब हुआ था, इसलिए क्रेटा कार लोगों के मन में शक पैदा कर रही थी.

थकहार कर कुछ गांव वालों के साथ विपिन ने कोलार थाने जा कर टीआई अनिल बाजपेयी को बेटे के गुम होने की जानकारी दे दी. उन्होंने वरुण की गुमशुदगी दर्ज कर तुरंत वरिष्ठ अधिकारियों को इस घटना से अवगत भी करा दिया.

टीआई पुलिस टीम के साथ कुछ ही देर में चीचली गांव पहुंच गए. गांव वालों से पूछताछ करने पर पुलिस का पहला और आखिरी शक उसी क्रेटा कार पर जा रहा था, जिस के बारे में गांव वालों ने बताया था.

पूछताछ में यह बात उजागर हो गई थी कि मीणा परिवार की किसी से कोई रंजिश नहीं थी जो कोई बदला लेने के लिए बच्चे को अगवा करता और इतना पैसा भी उन के पास नहीं था कि फिरौती की मंशा से कोई वरुण को उठाता.

तो फिर वरुण कहां गया. उसे जमीन निगल गई या फिर आसमान खा गया, यह सवाल हर किसी की जुबान पर था. क्रेटा कार पर पुलिस का शक इसलिए भी गहरा गया था क्योंकि कोलार के बाद केरवा चैकिंग पौइंट पर कार में बैठे युवकों ने खुद को पुलिस वाला बता कर बैरियर खुलवा लिया था और दूसरा बैरियर तोड़ कर वे कार को जंगलों की तरफ ले गए थे.

चीचली और कोलार इलाके में मीणा समुदाय के लोगों की भरमार है, इसलिए लोग रात भर वरुण को ढूंढते रहे. 15 जुलाई की सुबह तक वरुण कहीं नहीं मिला और लाख कोशिशों के बाद भी पुलिस कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाई तो लोगों का गुस्सा भड़कने लगा.

यह जानकारी डीआईजी इरशाद वली को मिली तो वह खुद चीचली पहुंच गए. उन्होंने वरुण को ढूंढने के लिए एक टीम गठित कर दी, जिस की कमान एसपी संपत उपाध्याय को सौंपी गई. दूसरी तरफ एसडीपीओ अनिल त्रिपाठी के नेतृत्व में एक पुलिस टीम जंगलों में जा कर वरुण को खोजने लगी.

पुलिस टीम ने 15 जुलाई को जंगलों का चप्पाचप्पा छान मारा लेकिन वरुण कहीं नहीं मिला और न ही उस के बारे में कोई सुराग हाथ लगा. इधर गांव भर में भी पुलिस उसे ढूंढ चुकी थी. एक बार नहीं कई बार पुलिस वालों ने गांव की तलाशी ली लेकिन हर बार नाकामी ही हाथ लगी तो गांव वालों का गुस्सा फिर से उफनने लगा.

बारबार की पूछताछ में बस एक ही बात सामने आ रही थी कि वरुण अपने दादा नारायण से 10 रुपए ले कर चौकलेट खरीदने निकला था, इस के बाद उसे किसी ने नहीं देखा. इस से यह संभावना प्रबल होती जा रही थी कि हो न हो, बच्चे को घर से निकलते ही अगवा कर लिया गया हो.

विपिन का मकान मुख्य सड़क से चंद कदमों की दूरी पर पहाड़ी पर है, इसलिए यह अनुमान भी लगाया गया कि इसी 50 मीटर के दायरे से वरुण को उठाया गया है.

लेकिन वह कौन हो सकता है, यह पहेली पुलिस से सुलझाए नहीं सुलझ रही थी. क्योंकि पूरे गांव व जंगलों की खाक छानी जा चुकी थी इस पर भी हैरत की बात यह थी कि बच्चे को अगवा किए जाने का मकसद किसी की समझ नहीं आ रहा था.

chichli-me-police-team

अगर पैसों के लिए उस का अपहरण किया गया होता तो अब तक अपहर्त्ता फोन पर अपनी मांग रख चुके होते और वरुण अगर किसी हादसे का शिकार हुआ होता तो भी उस का पता चल जाना चाहिए था. चीचली गांव की हालत यह हो चुकी थी कि अब वहां गांव वाले कम पुलिस वाले ज्यादा नजर आ रहे थे. इस पर भी लोग पुलिसिया काररवाई से संतुष्ट नहीं थे, इसलिए माहौल बिगड़ता देख गांव में डीजीपी वी.के. सिंह और आईजी योगेश देशमुख भी आ पहुंचे.

2 बड़े शीर्ष अधिकारियों को अचानक आया देख वहां मौजूद पुलिस वालों के होश उड़ गए. चंद मिनटों की मंत्रणा के बाद तय किया गया कि एक बार फिर से गांव का कोना कोना देख लिया जाए.

इत्तफाक से इसी दौरान टीआई अनिल बाजपेयी की टीम की नजर विपिन के घर से चंद कदमों की दूरी पर बंद पड़े एक मकान पर पड़ी. उन का इशारा पा कर 2 पुलिसकर्मी उस सूने मकान की दीवार लांघ कर अंदर दाखिल हो गए. दाखिल तो हो गए लेकिन अंदर का नजारा देख कर भौचक रह गए क्योंकि वहां किसी बच्चे की अधजली लाश पड़ी थी.

बच्चे का अधजला शव मिलने की खबर गांव में आग की तरह फैली तो सारा गांव इकट्ठा हो गया. दरवाजा खोलने के बाद पुलिस और गांव वालों ने बच्चे की लाश देखी तो उस का चेहरा बुरी तरह झुलसा हुआ था. लेकिन विपिन ने उस लाश की शिनाख्त अपने साढ़े 3 साल के बेटे वरुण के रूप में कर दी.

varun-ki-mother-tripti

                           रोती बिलखती वरुण मीणा की मां तृप्ति 

सभी लोग इस बात से हैरान थे कि पिछले 2 दिनों से जिस वरुण की तलाश में लोग आकाश पाताल एक कर रहे थे, उस की लाश घर के नजदीक ही पड़ोस में पड़ी है, यह बात किसी ने खासतौर से पुलिस वालों ने भी नहीं सोची थी.

वरुण के मांबाप और दादादादी होश खो बैठे, जिन्हें संभालना मुश्किल काम था. घर वाले ही क्या, गांव वालों में भी खासा दुख और गुस्सा था. अब यह बात कहने सुनने और समझने की नहीं रही थी कि मासूम वरुण का हत्यारा कोई गांव वाला ही है, लेकिन वह कौन है और उस ने उस बच्चे को जला कर क्यों मारा, यह बात भी पहेली बनती जा रही थी.

गुस्साए गांव वालों को संभालती पुलिसिया काररवाई अब जोरों पर आ गई थी. देखते ही देखते खोजी कुत्ते और फोरैंसिक टीम चीचली पहुंच गई.

डीआईजी इरशाद वली ने बारीकी से वरुण के शव का मुआयना किया तो उन्हें समझते देर नहीं लगी कि जिस किसी ने भी उसे जलाया है, उस ने धुआं उठने के डर से तुरंत लाश पर पानी भी डाला है. वरुण के शव पर गेहूं के दाने भी चिपके हुए थे, इसलिए यह अंदाजा भी लगाया गया कि उसे गेहूं में दबा कर रखा गया होगा. यानी हत्या कहीं और की गई है और लाश यहां सूने मकान में ला कर ठिकाने लगा दी गई है.

इस मकान के बारे में गांव वाले कुछ खास नहीं बता पाए सिवाए इस के कि कुछ दिनों पहले ही इसे भोपाल के किसी शख्स ने खरीदा है. पूछताछ करने पर विपिन ने बताया कि उस की किसी से भी कोई दुश्मनी नहीं है.

इस के बाद पुलिस ने लाश से चिपके गेहूं के आधार पर ही जांच शुरू कर दी. अच्छी बात यह थी कि खाली पड़े उस मकान से जराजरा से अंतराल पर गेहूं के दानों की लकीर दूर तक गई थी.

डीआईजी के इशारे पर पुलिस वाले गेहूं के दानों के पीछे चले तो गेहूं की लाइन विपिन के घर के ठीक सामने रहने वाली सुनीता के घर जा कर खत्म हुई. यह वही सुनीता थी जो कुछ देर पहले तक वरुण के न मिलने की चिंता में आधी हुई जा रही थी और उस का बेटा भी गांव वालों के साथ वरुण को ढूंढने में जीजान से लगा हुआ था.

पुलिस ने सुनीता से पूछताछ की तो उस का चेहरा फक्क पड़ गया. वह वही सुनीता थी, जो एक दिन पहले तक एक न्यूज चैनल पर गुस्से से चिल्लाती दिखाई दे रही थी. वह चीखचीख कर कह रही थी कि हत्यारों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए.

इस बीच पूछताछ में उजागर हुआ था कि सुनीता सोलंकी का चालचलन ठीक नहीं है और उस के घर तरह तरह के अनजान लोग आते रहते हैं. पर यह सब बातें उसे हत्यारी ठहराने के लिए नाकाफी थीं, इसलिए पुलिस ने सख्ती दिखाई तो सच गले में फंसे सिक्के की तरह बाहर आ गया.

वरुण जब चौकलेट लेने घर से निकला तो सुनीता को देख कर उस के घर पहुंच गया. मासूमियत और हैवानियत में क्या फर्क होता है, यह उस वक्त समझ आया जब भूखे वरुण ने सुनीता से रोटी मांगी. बदले की आग में जल रही सुनीता ने उसे सब्जी के साथ रोटी खाने को दे दी, लेकिन सब्जी में उस ने चींटी मारने वाली जहरीली दवा मिला दी.

वरुण दवा के असर के चलते बेहोश हो गया तो सुनीता ने उसे मरा समझ कर उस के हाथपैर बांधे और पानी के खाली पड़े बड़े कंटेनर में डाल दिया. इधर जैसे ही वरुण की खोजबीन शुरू हुई तो वह भी भीड़ में शामिल हो गई. इतना ही नहीं, उस ने दुख में डूबे अपने पड़ोसी विपिन मीणा के घर जा कर उन्हें चाय बना कर दी और हिम्मत भी बंधाती रही.

जबकि सच सिर्फ वही जानती थी कि वरुण अब इस दुनिया में नहीं है. उस की तो वह बदले की आग के चलते हत्या कर चुकी है. हादसे की शाम सुनीता का बेटा घर आया तो उसे बिस्तर के नीचे से कुछ आवाज सुनाई दी. इस पर सुनीता ने उसे यह कहते हुए टरका दिया कि चूहा होगा, तू जा कर वरुण को ढूंढ.

बाहर गया बेटा रात 8 बजे के लगभग फिर वापस आया तो नजारा देख कर सन्न रह गया, क्योंकि सुनीता वरुण की लाश को पानी के कंटेनर से निकाल कर गेहूं के कंटेनर में रख रही थी. इस पर बेटे ने ऐतराज जताया तो उस ने उसे झिड़क कर खामोश कर दिया. सुनीता ने मासूम की लाश को पहले गेहूं से ढका फिर उस पर ढेर से कपड़े डाल दिए थे.

16 जुलाई, 2019 की सुबह तड़के 5 बजे सुनीता ने घर के बाहर झांका तो वहां उम्मीद के मुताबिक सूना पड़ा था. वरुण की तलाश करने वाले सो गए थे. उस ने पूरी ऐहतियात से लाश हाथों में उठाई और बगल के सूने मकान में ले जा कर फेंक दी.

लाश को फेंक कर वह दोबारा घर आई और माचिस के साथसाथ कुछ कंडे (उपले) भी ले गई और लाश को जला दिया. धुआं ज्यादा न उठे, इस के लिए उस ने लाश पर पानी डाल दिया. जब उसे इत्मीनान हो गया कि अब वरुण की लाश पहचान में नहीं आएगी तो वह घर वापस आ गई.

हत्या सुनीता ने की है, यह जान कर गांव वाले बिफर उठे और उसे मारने पर आमादा हो आए तो उन्हें काबू करने के लिए पुलिस वालों को बल प्रयोग करना पड़ा. इधर दुख में डूबे विपिन के घर वाले हैरान थे कि सुनीता ने वरुण की हत्या कर उन से कौन से जन्म का बदला लिया है.

दरअसल बीती 16 जून को सुनीता 2 दिन के लिए गांव से बाहर गई थी. तभी उस के घर से कोई आधा किलो चांदी के गहने और 30 हजार रुपए नकदी की चोरी हो गई थी. सुनीता जब वापस लौटी तो विपिन के घर में पार्टी हो रही थी.

इस पर उस ने अंदाजा लगाया कि हो न हो विपिन ने ही चोरी की है और उस के पैसों से यह जश्न मनाया जा रहा है. यह सोच कर वह तिलमिला उठी और मन ही मन  विपिन को सबक सिखाने का फैसला ले लिया.

सुनीता सोलंकी दरअसल भोपाल के नजदीक बैरसिया के गांव मंगलगढ़ की रहने वाली थी. उस की शादी दुले सिंह से हुई थी, जिस से उस के 3 बच्चे हुए. इस के बाद भी पति से उस की पटरी नहीं बैठी क्योंकि उस का चालचलन ठीक नहीं था.

इस पर दोनों में विवाद बढ़ने लगा तो दुले सिंह ने उसे छोड़ दिया. इस के बाद मंगलगढ़ गांव के 2-3 युवकों के साथ रंगरलियां मनाते उस के फोटो वायरल हुए थे, जिस के चलते गांव वालों ने उसे भगा दिया था. वे नहीं चाहते थे कि उस के चक्कर में आ कर गांव के दूसरे मर्द बिगड़ें.

इस के बाद तो सुनीता की हालत कटी पतंग जैसी हो गई. उस ने कई मर्दों से संबंध बनाए और कुछ से तो बाकायदा शादी भी की लेकिन ज्यादा दिनों तक वह किसी एक की हो कर नहीं रह पाई. आखिर में वह चीचली में ठीक विपिन के घर के सामने आ कर बस गई.

चीचली में भी रातबिरात उस के घर मर्दों का आनाजाना आम बात थी. इन में उस की बेटी का देवर मुकेश सोलंकी तो अकसर उस के यहां देखा जाता था. इस से उस की इमेज चीचली में भी बिगड़ गई थी. लेकिन सुनीता जैसी औरतें समाज और दुनिया की परवाह ही कहां करती हैं. गांव में हर कोई जानता था कि सुनीता के पास पैसे कहां से आते हैं, लेकिन कोई कुछ नहीं बोलता था.

चोरी के कुछ दिन पहले विपिन का भाई उस के यहां घुस आया था और उस ने सुनीता को आपत्तिजनक अवस्था में देख लिया था. इस पर भी विपिन के घर वालों से उस की कहासुनी हुई थी. यह बात तो आईगई हो गई थी, लेकिन वह चोरी के शक की आग में जल रही थी इसलिए उस ने बदला मासूम वरुण की हत्या कर के लिया.

गांव वालों के मुताबिक यह पूरा सच नहीं है बल्कि तंत्रमंत्र और बलि का चक्कर है. गांव वाले इसे चंद्रग्रहण से जोड़ कर देख रहे हैं. गांव वालों के मुताबिक वरुण की लाश के पास से मिठाई भी मिली थी. घटनास्थल के पास से अगरबत्ती और कटे नींबू मिलने की बात भी कही गई. इस के अलावा वरुण की लाश को लाल रंग के कपड़े से ही क्यों लपेटा गया, इस की भी चर्चा चीचली में है.

गांव वालों की इस दलील में दम है कि अगर वाकई सुनीता के यहां चोरी हुई थी तो उस ने इस का जिक्र किसी से क्यों नहीं किया था और न ही पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई थी.

वरुण के नाना अनूप मीणा तो खुल कर बोले कि उन के नाती की हत्या की असली वजह तंत्रमंत्र का चक्कर है. उन्होंने घटनास्थल पर मिले नींबू के अलावा घर के बाहर पेड़ पर लटकी काली मटकी का भी जिक्र किया.

वरुण की हत्या चोरी का बदला थी या तंत्रमंत्र इस की वजह थी, इस पर पुलिस बोलने से बच रही है. लेकिन उस की लापरवाही और नकारापन लोगों के निशाने पर रहा. चीचली के लोगों ने साफसाफ कहा कि लाश एकदम बगल वाले घर में थी और पुलिस वाले यहांवहां वरुण को ढूंढ रहे थे.

गांव वालों का यह भी कहना है कि अगर डीजीपी और आईजी गांव में नहीं आते तो ये लोग उस सूने मकान में भी नहीं झांकते और वरुण की लाश पता नहीं कब मिलती. उम्मीद के मुताबिक इस हत्याकांड पर राजनीति भी खूब गरमाई. मुख्यमंत्री कमलनाथ ने हादसे पर अफसोस जाहिर किया तो पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बिगड़ती कानूनव्यवस्था को ले कर सरकार को कटघरे में खड़ा करते रहे.

हैरानी तो इस बात की भी है कि गुमशुदगी का बवाल मचने के बाद भी सुनीता ने वरुण की लाश बड़े इत्मीनान से जला दी और किसी को खबर भी नहीं लगी. सुनीता को अपने किए का कोई पछतावा नहीं है. इस से लगता है कि बात कुछ और भी हो सकती है.

पुलिस ने सुनीता से पूछताछ करने के बाद उस के नाबालिग बेटे को भी हिरासत में ले लिया. उस का कसूर यह था कि हत्या की जानकारी होने के बाद भी उस ने पुलिस को नहीं बताया था. पुलिस ने सुनीता को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया जबकि उस के नाबालिग बेटे को बालसुधार गृह भेजा गया.

22 साल से लापता बेटा जब संन्यासी बन कर लौटा

किसी चमत्कार के इंतजार में सालों से दिन गुजार रहे रतिपाल और घर वालों को 22 साल बाद साधु वेश में अपना खोया बेटा पिंकू मिला तो सब की आंखें छलक उठीं थीं. बेटा मिलने की खुशी में रतिपाल ने दिल्ली से अपनी पत्नी माया देवी को भी बुला लिया. खोए बेटे पिंकू को साधु वेश में देखते ही मां भावुक हो गई. उस के आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे.

दरअसल, संन्यासी की पारंपरिक पोशाक में आए एक युवक ने सारंगी बजा कर भिक्षा देने की गुहार लगा कर जैसे ही एक रुदन गीत गाना शुरू किया तो उसे सुन कर बड़ी संख्या में गांववाले एकत्र हो गए. जोगी ने अपने आप को गांव के ही रहने वाले रतिपाल सिंह का गायब हुआ बेटा बताया. रुदन गीत सुन कर गांव की महिलाओं और पुरुषों के साथ ही रतिपाल के घर वालों की आंखों से आंसू झरने लगे.

दरअसल, 22 साल से लापता अरुण उर्फ पिंकू के लौटने की खुशी में पूरा गांव रो पड़ा. घर वालों के आंसू तो थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे. यह दृश्य उत्तर प्रदेश के अमेठी जिले के थाना जायज के गांव खरौली का था. तारीख थी 28 जनवरी, 2024.

Jogi or Sathi ke Ane Par Ekatra Ganv Wale

बताते चलें कि साधु के वेश में अपने एक साथी के साथ आया वह युवक गांव के ही रतिपाल सिंह का बेटा अरुण उर्फ पिंकू था, जो 22 साल से अधिक समय तक लापता रहने के बाद अब संन्यासी के वेश में उन के सामने था. जब पिंकू लापता हुआ, उस समय वह 11 साल का था. अब पिंकू जोगी बन कर अपने गांव में मां से भिक्षा लेने पहुंचा था. इतने लंबे समय बाद अपने खोए बेटे को संन्यासी के रूप में सामने देख पिता व अन्य परिजन भावुक हो गए.

मां माया देवी, पिता रतिपाल के अलावा पिंकू की बुआओं उर्मिला व नीलम ने भी साधु वेश में आए पिंकू से गृहस्थ जीवन में लौटने की मिन्नतें कीं. लेकिन युवक की जुबान पर एक ही रट थी, ‘आप से भिक्षा लिए बिना मेरी दीक्षा पूरी नहीं होगी. गुरु का आदेश है कि मां के हाथ से भिक्षा पाने के बाद ही योग सफल होगा.’ उस ने कहा, ‘मां, यदि आप भिक्षा नहीं दोगी तो मैं दरवाजे की मिट्टी को ही भिक्षा के रूप में स्वीकार कर चला जाऊंगा.’

अब बेटा नहीं संन्यासी हूं मैं

साधु ने कहा, ”माई, मैं अब आप का बेटा पिंकू नहीं, बल्कि संन्यासी हूं. मैं भिक्षा ले कर वापस झारखंड स्थित पारसनाथ मठ में दीक्षा पूरी करने के लिए चला जाऊंगा.’’

साधु की बातें सुन कर रतिपाल और उन की पत्नी का कलेजा बैठ गया. उन्होंने उसे मनाने के साथ ही कहीं भी जाने से मना किया.

साधु खरौली गांव में 22 जनवरी, 2024 से ही आनेजाने लगा था. वह साथी के साथ आधे गांव में चक्कर लगा कर सारंगी व ढपली पर भजन गाता था. इस के बाद शाम होते ही वापस चला जाता.

रतिपाल मूलरूप से गांव खरौली के रहने वाले हैं. गांव में उन का छोटा भाई जसकरन सिंह, भतीजे व अन्य लोग रहते हैं. गांव में उन की खेती की जमीन भी है. 11वीं पास करने के बाद उन की शादी हो गई थी. साल 1986 में वह दिल्ली आ गए. यहां उन के एक बेटा हुआ, जिस का नाम उन्होंने अरुण रखा. घर में सभी प्यार से उसे पिंकू के नाम से पुकारते थे.

Arun Pankoo Birthday Par Kek Khata Huaa

                                      पिंकू के बचपन की तस्वीर

जब पिंकू 5-6 साल का था, उस की मां भानुमति बीमार हो गई. 3 साल तक उन का दिल्ली में इलाज चलता रहा, लेकिन उन की मृत्यु हो गई. रतिपाल ने बच्चे की परवरिश व अपनी आगे की जिंदगी के लिए वर्ष 1998 में माया देवी से दूसरी शादी कर ली. सब कुछ ठीक चल रहा था.

डांटने से गुस्से में घर से चला गया था पिंकू

कंचे खेलने पर मां की डांट से गुस्से में आ कर साल 2002 में 11 साल की उम्र में पिंकू अपने घर से कहीं चला गया. उस समय वह दिल्ली के शहादतपुर स्थित स्कूल में 5वीं कक्षा में पढ़ता था. घर वालों ने पिंकू को काफी तलाश किया, लेकिन उस का कोई सुराग नहीं मिलने पर पिता रतिपाल ने दिल्ली के थाना खजूरी खास में उस की गुमशुदगी दर्ज कराई.

समय गुजरता गया लेकिन लापता बेटा नहीं मिला. रतिपाल हफ्ते दस दिन में थाने जा कर पुलिस से अपने खोए बेटे के बारे में जानकारी लेते, लेकिन उन्हें हर बार एक ही जबाव मिलता कि तलाशने पर भी आप का बच्चा नहीं मिल रहा है.

रतिपाल ने अपने स्तर से भी बच्चे को तलाश किया, लेकिन उस का कोई सुराग नहीं मिला. अपने इकलौते बेटे के इस तरह घर से चले जाने पर मातापिता ने कलेजे पर पत्थर रख कर सब्र कर लिया.

27 जनवरी, 2024 को खरौली में रह रहे भतीजे दीपक ने दिल्ली रतिपाल के पास फोन किया, ”चाचा, साधु भेष में एक युवक 22 जनवरी से गांव में आया हुआ है, जो अपने को आप का खोया हुआ बेटा अरुण उर्फ पिंकू बता रहा है. जब उस से पिंकू की कोई पहचान बताने को कहा तो उस ने कहा कि पिता जब खुद देख कर बताएंगे, तभी पहचान सभी गांव वालों को दिखाऊंगा. चाचा, आप गांव आ कर देख लो. साधु कल आने की बात कह कर रायबरेली से लगभग 30 किलोमीटर दूर बछगांव स्टेशन जाने की बात कह कर चला गया है.’’

बेटे से मिलने की चाहत और मन में ढेरों सवाल लिए रतिपाल अपनी बहन नीलम के साथ दिल्ली से गांव खरौली 28 जनवरी को ही पहुंच गए. दूसरे दिन वह साधु अपने एक साथी के साथ सुबह 11 बजे गांव आया. आधे गांव का चक्कर लगाता और सारंगी पर भजन गाते हुए साधु रतिपाल के घर पर पहुंचा.

pinku-nikla-nafees-amethi

पिंकू निकला नफीस

साधु ने देखते ही पापा व बुआओं को पहचान लिया. साधु ने उन्हें बताया कि वह वास्तव में उन का बेटा पिंकू है. वह संन्यासी हो गया है, भिक्षा मांगने आया हुआ है. रतिपाल ने उस के पेट पर बचपन की चोट के निशान को देखने के बाद अपने खोए बेटे अरुण उर्फ पिंकू के रूप में उस की पहचान की.

बेटे की खातिर रतिपाल सब कुछ न्यौछावर करने को हो गया तैयार

बचपन में खोए बेटे को 22 साल बाद दरवाजे पर देख पिता व परिजनों की उम्मीद लौट आई थी. आंखों से आंसुओं की धारा फूट पड़ी. स्नेह ऐसा जागा कि भींच कर उसे सीने से लगा लिया. बेटे को घर लाने के लिए पिता सब कुछ न्यौछावर करने को तैयार था.

खोए बेटे के मिलने पर रतिपाल ने घर पर साधु व उस के साथी के साथ भोजन भी किया. अब साधु रतिपाल को पापा तथा रतिपाल उसे पिंकू कह कर पुकारने लगे थे. रतिपाल ने खोए बेटे के मिलने की खुशखबरी अपनी रिश्तेदारी में भी दे दी थी. इस पर कई रिश्तेदार गांव आ गए थे.

एक सप्ताह तक वह जोगी अपने साथी के साथ रोजाना गांव आता और शाम होते ही वापस चला जाता. इस दौरान उस की रतिपाल और परिजनों से बातें भी होतीं. भोजन भी पापा के साथ करता. अपने पापामम्मी व अन्य घर वालों के प्यार को देख कर पिंकू का झुकाव भी उन की ओर होने लगा.

वहीं रतिपाल की बूढ़ी आंखों ने अपने खोए बेटे को 22 साल बाद देखा तो प्यार फफक पड़ा. खोए बेटे को किसी भी तरह वापस पाने के लिए परिवार तड़प उठा. सभी के प्रयास विफल होने पर रतिपाल ने जोगी से किसी भी तरह घर लौटने की गुजारिश की.

इस पर उस ने कहा, ”पापा, आप मेरे गुरु महाराज से बात कर मुझे आश्रम से छुड़ा लो.’’

”पापा, आश्रम से गुरुजी ने मुझे दीक्षा के दौरान लंगोटी, कमंडल व अंगवस्त्र दिए हैं. मठ की प्रक्रिया पूरी करनी होगी. मठ का सामान वापस करना होगा.’’

तब रतिपाल ने कहा, ”बेटा, तुम गुरुजी से बात कर प्रक्रिया के बारे में बताना. मैं तुम्हें घर लाने के लिए प्रक्रिया पूरी कर दूंगा.’’

अनाज व नकदी दे कर किया विदा

दिल पर पत्थर रख कर घर वालों व गांव वालों ने भिक्षा के रूप में उसे 13 क्ंिवटल अनाज और रतिपाल ने जोगी बने बेटे पिंकू को संपर्क में बने रहने के लिए एक नया मोबाइल फोन व नकदी दे कर पहली फरवरी को विदा किया. रतिपाल की बाराबंकी में रहने वाली बहन निर्मला ने पिंकू द्वारा बताए खाते में 11 हजार रुपए की रकम ट्रांसफर कर दी.

पिंकू ने कहा कि वह यहां से सभी सामान ले कर अयोध्या जाएगा, जहांं साधुओं को भंडारा कराएगा. सामान पहुंचाने के लिए रतिपाल ने एक वाहन का इंतजाम कर दिया. पहली फरवरी, 2024 को जोगी अपने साथी के साथ सामान ले कर चला गया. रतिराम, पत्नी माया देवी परिजनों के साथ ही गांव वालों ने भारी मन से जोगी को विदा किया.

22-saal-baad-lauta-pinku

घर से भिक्षा ले कर जाने के बाद संन्यासी बेटे पिंकू का मन पसीज गया. दूसरे दिन उस ने फोन कर पिता से घर लौटने की इच्छा जताई. बेटे के गृहस्थ जीवन में लौटने की बात सुन कर रतिराम की खुशी का पारावार नहीं रहा. उस ने बताया कि गुरु महाराज का कहना है कि गृहस्थ आश्रम में लौटने के लिए दीक्षा के रूप में 10.80 लाख रुपए चुकाने पड़ेंगे.

रतिपाल ने इतनी बड़ी रकम देने में असमर्थता जताई. इतना ही नहीं, पिंकू ने पिता की मठ के गुरु महाराज से फोन पर बात भी कराई. लेकिन इतनी बड़ी रकम देने की उन की हैसियत नहीं थी. तब 4.80 लाख देने की बात कही गई.

गुरुओं की दीक्षा चुकाने की शर्त पर पिता ने आखिरकार बेटे को पाने के लिए 3 लाख 60 हजार रुपए में हां कर दी.

मठ का खाता न बताने पर हुआ शक

बेटे को वापस पाने के लिए मजबूर पिता ने 14 बिस्वा जमीन का सौदा गांव के ही अनिल कुमार वर्मा से 11 लाख 20 हजार रुपए में तय कर लिया. 3-4 दिन रतिपाल को पैसों का इंतजाम करने में लग गए.

इस के बाद साधु पिंकू की ओर से बताए गए आईसीआईसीआई बैंक खाते में पैसा ट्रांसफर करने भाई जसकरन व भतीजे धर्मेश के साथ पहुंचे. रतिपाल ने बताया, बैंक मैनेजर ने उन से कहा कि एक दिन में 25 हजार से ज्यादा रुपए ट्रांसफर नहीं हो सकते. पिंकू ने यूपीआई से भुगतान करने को कहा.

रतिपाल ने पिंकू से कहा कि अपने मठ के ट्रस्ट का बैंक खाते का नंबर दे दो, उस पर भुगतान कर देंगे. इस के बाद वहां आ कर तुम्हें अपने साथ घर ले आएंगे तो साधु ने मना कर दिया. यहीं से रतिपाल को कुछ शक होने लगा. तब प्रशासन से उन्होंने मदद मांगी.

रतिपाल सिंह समझ गए कि बेटे पिंकू के रूप में आया जोगी कोई ठग है. उस ने उन की भावनाओं का सौदा किया है. रतिपाल ने 10 फरवरी, 2024 को थाना जायस में 2 अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ भादंवि की धारा 420, 419 के अंतर्गत रिपोर्ट दर्ज कराई.

एसएचओ देवेंद्र सिंह ने रिपोर्ट दर्ज करने के बाद इस केस की जांच बहादुरपुर चौकी प्रभारी राजकुमार सिंह को सौंपी. आरोपी का मोबाइल बंद आने पर उसे सर्विलांस पर लगा दिया गया.

इस के बाद रतिपाल को जब शंका हुई तो उन्होंने अपने स्तर से जांचपड़ताल करनी शुरू कर दी. उन के हाथ उसी साधु बने युवक के कई फोटो और वीडियो लग गए हैं. रतिपाल ने बताया कि उन्होंने झारखंड के एसपी से फोन पर बात की. पूरा प्रकरण बताया. एसपी को जोगी का मोबाइल नंबर भी दिया.

उन्होंने अपने स्तर से जांच कराई फिर फोन कर बताया कि यह नंबर झारखंड में नहीं, बल्कि गोंडा में चल रहा है. इस के साथ ही झारखंड में पारसनाथ नाम का कोई मठ है ही नहीं. उन्होंने कहा कि उसे पकड़ा जाए और यदि वह गलत है तो सजा मिले.

जोगी की सच्चाई पता करने के लिए रतिपाल ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. जिस गुरु का नाम बताया, वह भी गलत निकला. दीक्षा में मिले 13 क्विंटल अनाज व अन्य सामान को पिकअप में ले कर साधु अयोध्या जाने की कह कर गया था. पिकअप चालक  के साथ रतिपाल अयोध्या पहुंचे तो वहां कोई नहीं मिला. पिकअप चालक ने बताया कि अरुण अयोध्या न जा कर उसे गोंडा ले गया था, वहीं सारा सामान उतरवाया था.

गोंडा की जिस आईसीआईसीआई बैंक के खाते का नंबर साधु ने रतिपाल को दिया था वह खाता आशीष कुमार गुप्ता, आशीष जनरल स्टोर मुंबई का निकला. बाराबंकी में रहने वाली रतिपाल की बहन निर्मला ने उसी खाते में 11 हजार रुपए की धनराशि ट्रांसफर की थी.

रतिपाल ने बताया कि उन्होंने पुलिस को बैंक स्टेटमेंट सौंप दिया है. उन्होंने बताया कि उन्हें मीडिया के माध्यम से पता चला है कि साधु के भेष में आया युवक जो अपने को उन का खोया बेटा पिंकू बताता था, उस युवक का नाम नफीस है.

ठगी के लिए साधु का वेश धारण किया

सीओ (तिलोई) अजय सिंह ने बताया कि मामला ठगी से जुड़ा हुआ है. पूरे मामले पर मुकदमा पंजीकृत कर मामले की छानबीन की जा रही है. जल्द से जल्द इस पूरे मामले में कड़ी से कड़ी काररवाई की जाएगी. उन्होंने बताया कि 10 फरवरी को जायस थाना क्षेत्र के खरौली गांव निवासी रतिपाल सिंह ने रिपोर्ट दर्ज कराई थी.

गोंडा के एसपी विनीत जायसवाल ने बताया, ”टिकरिया गांव में रहने वाले कई लोगों द्वारा जोगी बन कर जालसाजी करने की शिकायत मिली है. 2 आरोपियों द्वारा अमेठी जिले में भी साधु वेश बना किसी को झांसा देने का मामला प्रकाश में आया है. पुलिस को तलाश के निर्देश दिए गए हैं.’’

रिपोर्ट दर्ज होने और उच्चाधिकारियों के निर्देश के बाद जायस थाने की पुलिस सक्रिय हो गई. रतिपाल ने बताया कि 16 फरवरी, 2024 को एक प्राइवेट वाहन से जायस पुलिस के साथ गोंडा कोतवाली देहात की सालपुर पुलिस चौकी पहुंचे. वहां के चौकी इंचार्ज पवन कुमार सिंह से मिले, उन्होंने जांच में पूरा सहयोग करने की बात कही. इस चौकी से कुछ दूरी पर ही टिकरिया गांव है.

उन्होंने कहा कि गोंडा की सालपुर चौकी पर उन्हें 5 घंटे तक बैठाया गया. कहा कि आप यहीं बैठो, पुलिस दबिश देने जा रही है. नफीस के घर पहुंची पुलिस टीम सब से पहले नफीस के परिवार से मिली. उस समय घर पर बुजुर्ग महिलाएं ही थीं. उन्होंने बताया कि 25 वर्षीय नफीस करीब एक महीने से घर से बाहर है.

पुलिस को आया देख कर आरोपी गन्ने के खेत में भाग गया था. पुलिस ने उसे पकडऩे का प्रयास किया, लेकिन वह हाथ नहीं आया. पुलिस ने बताया, पिंकू बन कर घर पहुंचा ठग टिकरिया निवासी सिजाम का बेटा नफीस है, जो ठगी के मामले में पहले भी जेल जा चुका है.

जबकि उस का भाई राशिद 29 जुलाई, 2021 को जोगी बन कर मिर्जापुर के गांव सहसपुरा परसोधा निवासी बुधिराम विश्वकर्मा के यहां उन का 14 साल पहले लापता हुआ बेटा रवि उर्फ अन्नू बन कर पहुंचा था. मां से भिक्षा मांगी ताकि उस का जोग सफल हो जाए. परिजनों ने बेटा मान कर उसे घर में रख लिया. कुछ दिन बाद वह लाखों रुपए ले कर फरार हो गया था. बाद में पकड़ा गया और जेल गया.

पुलिस की दस्तक के चलते नफीस, उस के दोनों भाई दिलावर और राशिद समेत अधिकांश तथाकथित साधु अंडरग्राउंड हो गए. उस का एक रिश्तेदार असलम भी ऐसे मामले में वांछित चल रहा है. नफीस का मोबाइल बंद है.

पड़ताल में सामने आया कि नफीस के ससुर का भाई असलम उर्फ लंबू घोड़ा भी वाराणसी में जेल जा चुुका है. तब पुलिस ने शिकायत के आधार पर एक परिवार को इसी तरह जोगी का झांसा दे कर ठगने के बाद उसे दबोच लिया था.

पेट के टांकों को देख कर की पहचान

रतिपाल ने बताया कि 22 साल पहले उस का 11 वर्षीय बेटा अरुण उर्फ पिंकू घर से कहीं चला गया था. एक बार वह सीढ़ी से गिर गया था, जिस से उस के पेट में अंदरूनी चोट आई थी. इस बात का 6 माह तक पता नहीं चला. पिंकू की आंत सड़ गई थी, जिस के चलते उस का औपरेशन दिल्ली के कृष्णा नगर स्थित होली चाइल्ड अस्पताल में हुआ था. उस के 14 टांके आए थे.

साधु के भेष में आए व्यक्ति ने उन्हें टांकों के निशान दिखाए थे. लेकिन वे असली थे या बनाए हुए थे, ये नहीं पता. रतिपाल सिंह पहले अपनी बहन नीलम के साथ खरौली गांव पहुंचे थे. खबर दिए जाने पर बहन उर्मिला भी आ गई थी. उन्होंने अपनी पत्नी माया देवी को घर पर ही बच्चों की देखभाल के लिए छोड़ दिया था. खोए पिंकू की पहचान हो जाने के बाद उन्होंने पत्नी को भी गांव बुला लिया था.

रतिपाल की दूसरी शादी के बाद 4 बच्चे हुए. 2 बेटी व 2 बेटे हैं. बड़ी बेटी 24 वर्ष की है. दोनों बेटियों की शादी हो चुकी है. एक बेटा 12वीं तथा सब से छोटा 9वीं में पढ़़ रहा है. वे घर पर ही बर्थडे में बच्चों के लगाए जाने वाली कैप बनाने का कार्य पत्नी के सहयोग से कर गुजरबसर करते हैं.

पूरा परिवार जिस युवक को अपना खोया बेटा पिंकू मान कर प्यार लुटा रहा था. असल में वह जालसाज गोंडा जिले के टिकरिया गांव  का नफीस निकला. टिकरिया के 20-25 लोगों का गैंग कई राज्यों में सक्रिय है. वह खोए बच्चों के बारे में जानकारी करने के बाद परिजनों की भावनाओं से खिलवाड़ कर ठगी करने का काम करते हैं.

साइबर सेल प्रभारी बृजेश सिंह का कहना है कि किसी गांव में बच्चों के खोने या लापता होने पर परिजन खुद उस का प्रचार प्रसार करते हैं. इस प्रचार से उन्हें आस होती है कि शायद कोई व्यक्ति उन की खोई संतान को वापस मिला देगा. पैंफ्लेट व अखबारों से भी पहचान के लिए चोट के निशानों का उल्लेख किया जाता है. ठगों का यह गैंग स्थानीय स्तर पर जानकारी एकत्र कर इसी का फायदा उठा कर ठगी करता है.

मातापिता की भावनाओं से खेल कर संपत्ति व धन हड़पने का नफीस का षडयंत्र विफल हो गया. 22 साल पहले लापता बेटा पिंकू बन कर गांव जायसी पहुंचा साधु वेशधारी पुलिस जांच में गोंडा के गांव टिकरिया निवासी नफीस और उस का साथी पट्टर  निकला. गांव वालों ने वायरल वीडियो में भी दोनों की तस्दीक की. पुलिस की सक्रियता से ठगी की मंशा का खुलासा हुआ तो ठग और उस का साथी दोनों फरार हो गए.

गोंडा में पड़ताल करने पर पता चला कि टिकरिया गांव के कुछ परिवार इस तरह की ठगी करते हैं. उन का एक गैंग ठगी का काम करता है. ठगी जेल तक जा चुकी है. उन्हीं में से एक नफीस का भी परिवार है.

नफीस मुकेश (मुसलिम) का दामाद है. उस की पत्नी का नाम पूनम है. उस का एक बेटा अयान है. ठग साधु कहता था कि उस ने झारखंड के पारसनाथ मठ में दीक्षा ली है. मठ के गुरु का आदेश था कि अयोध्या में दर्शन के बाद गांव जा कर अपनी मां से भिक्षा मांगना, तभी दीक्षा पूरी होगी. सच यह है कि झारखंड में पारसनाथ नाम का कोई मठ है ही नहीं. बेटा बन कर अब तक नफीस कई लोगों को चूना लगा चुका है.

रतिपाल का कहना है कि दोनों ठगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद भी पुलिस हाथ पर हाथ रखे बैठी है. दोनों ठग अब तक पुलिस की गिरफ्त से बाहर हैं. जिस बैंक खाते में 11 हजार रुपए बहन निर्मला ने जमा कराए थे, उस खाते वाले को पकड़ा जाए, जिस से स्थिति स्पष्ट हो जाएगी और इन ठगों का गैंग पकडऩे में मदद मिलेगी.

पुलिस फरार चल रहे दोनों साधु वेशधारी ठगों की सरगरमी से तलाश में जुटी है. पुलिस का कहना है कि समय रहते इन ठगों का भेद खुल जाने से रतिपाल व उन का परिवार बहुत बड़ी ठगी व मुसीबत से बच गए.

पिता रतिपाल को पुत्र वियोग और मिलन के बाद उसे दोबारा पाने की चाह है, लेकिन किसी षडयंत्र की आशंका भी है. उन का कहना है कि खोया हुआ बेटा इस समय 33 वर्ष का होता.

—कथा पुलिस व परिजनों से की गई बातचीत पर आधारित

दलदल में डूबी जन्नत

15 जून,  2019 शनिवार की सुबह की बात है. कुछ लोग नहर के किनारे घूम रहे थे. तभी उनकी नजर सूखी नहर में पड़ी एक महिला पर पड़ी. महिला को ऐसी हालत में देख कर लोग इधरउधर खिसक लिए. लेकिन गांव नंदपुर के रहने वाले कुलदीप माहेश्वरी ने हिम्मत जुटाते हुए इस की सूचना रामनगर कोतवाली को दे दी.

सूचना मिलते ही कोतवाली प्रभारी रवि कुमार सैनी पुलिस टीम के साथ बताई गई जगह पर पहुंच गए. वहां पहले से ही कुछ लोग जमा थे. महिला की लाश नहर में पड़ी थी और उस के हाथपांव बंधे थे. उस की पहचान मिटाने के लिए उस के चेहरे को भी जलाने की कोशिश की गई थी. कोतवाली प्रभारी ने यह सूचना अपने अफसरों को दे दी.

घटना की सूचना पर एएसपी (हल्द्वानी), सीओ तथा फोरैंसिक टीम भी वहां पहुंच गई. पुलिस अधिकारियों ने मौका मुआयना किया. महिला की लाश के पास एक तौलिया, एक चादर और एक रुमाल पड़ा था. महिला का चेहरा इतनी बुरी तरह से झुलसा हुआ था कि उसे पहचान पाना मुश्किल था.

सब से पहले पुलिस ने नहर में सीढ़ी लगा कर शव को बाहर निकाला. युवती ने लाल रंग की कमीज और सलवार पहन रखी थी. मौका मुआयना करने पर जाहिर हो रहा था कि उस की हत्या कहीं दूसरी जगह कर के लाश वहां डाली गई है.

पुलिस ने वहां पर मौजूद लोगों से उस की शिनाख्त करानी चाही तो कोई भी मृतका को नहीं पहचान सका. उसी वक्त चिल्किया का रहने वाला छोटे नाम का एक व्यक्ति वहां पहुंचा. उस ने पुलिस को बताया कि उस की बीवी पिछले 4 महीने से लापता है, जिस की गुमशुदगी वह थाने में दर्ज करा चुका है.

पुलिस ने नन्हे को लाश दिखाई तो उस ने कहा कि वह उस की पत्नी की लाश नहीं है. छोटे ने पुलिस को बताया कि उस की बीवी के हाथ पर उस का नाम गुदा हुआ था, लेकिन उस महिला के किसी भी हाथ पर कुछ भी गुदा हुआ नहीं था.

काफी प्रयास के बाद भी जब उस महिला की शिनाख्त नहीं हो पाई तो पुलिस ने अपनी काररवाई आगे बढ़ाते हुए शव को मोर्चरी में रखवा दिया. इस के बाद पुलिस उस के फोटो ले कर आसपास के क्षेत्र व स्थानीय होटलों में जा कर उस की शिनाख्त कराने की कोशिश करने लगी. लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. इस पर पुलिस ने युवती की शिनाख्त के लिए समाचार पत्रों में उस का फोटो छपवाया, साथ ही पैंफ्लेट छपवा कर सीमा से सटे जिलों और दिल्ली में लगवा दिए गए.

मृतका की शिनाख्त के लिए पुलिस इधरउधर हाथपांव मारती रही. इसी दौरान 22 जून, 2019 को दिल्ली के भजनपुरा का रहने वाला अंकित शर्मा रामनगर कोतवाली पहुंचा.

अंकित शर्मा ने पुलिस को बताया कि अखबार में जिस महिला की लाश का फोटो छपा है, वह उस की बीवी जन्नत निखत अंसारी से मिलता जुलता है, जो चिल्किया में किराए का कमरा ले कर अकेली रहती थी.

पुलिस ने अंकित शर्मा को मोर्चरी में रखी युवती की लाश दिखाई तो उस ने उस की शिनाख्त अपनी बीवी जन्नत निखत के रूप में की. लाश की शिनाख्त हो जाने पर पुलिस टीम ने राहत की सांस ली. लेकिन पुलिस इस बात को ले कर हैरत में थी कि अंकित ब्राह्मण है और उस की बीवी मुसलिम.

पुलिस को अंकित पर ही शक हुआ कि कहीं उसी ने या उस के परिवार वालों ने जन्नत के दूसरे समुदाय की होने की वजह से उसे मौत के घाट तो नहीं उतार दिया. अपना शक दूर करने के लिए पुलिस ने अंकित शर्मा से इस मामले में पूछताछ की. लेकिन अंकित बेकसूर लगा.

पूछताछ पूरी हो जाने के बाद अंकित शर्मा ने पुलिस को एक लिखित तहरीर देते हुए बताया कि मुझे अपनी पत्नी की हत्या का शक उसी के जीजा सोनू पर है, जो रामनगर में ही रहता है. अंकित की तहरीर पर पुलिस ने सोनू के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर उस की तलाश शुरू कर दी.

इसी दौरान पुलिस ने अंकित शर्मा से विस्तृत जानकारी लेते हुए इस मामले से संबंधित सारे तथ्य जुटा लिए. पुलिस सोनू के ठिकाने पर पहुंची तो वह अपने घर से फरार मिला. कई पुलिस टीमें उस की तलाश में लग गईं.

22 जून की शाम को पुलिस को एक मुखबिर ने सूचना दी कि सोनू इस वक्त चोरपानी स्टोन क्रेशर के पीछे छिपा हुआ है. पुलिस ने उस जगह की घेराबंदी कर के सोनू को हिरासत में ले लिया. कोतवाली में उस से पूछताछ की गई तो एक चौंका देने वाली सच्चाई सामने आई, जो कालगर्ल रैकेट से जुड़ी हुई थी.

उत्तराखंड के जिला नैनीताल से 56 किलोमीटर दूर पहाड़ों पर स्थित है रामनगर. यह आबादी के हिसाब से छोटा शहर ही सही, लेकिन सदियों से पर्यटकों के लिए पसंदीदा पर्यटन स्थल रहा है. इस की वजह वनों और पहाड़ों वाला रमणीक स्थल तो है ही, लेकिन इस से भी बड़ी वजह है जिम कार्बेट नैशनल पार्क, जहां शेर और हाथी जैसे जीवों को खुले जंगल में घूमते देखा जा सकता है.

यहां पर हर साल देशविदेश से लाखों पर्यटक घूमने के लिए आते हैं. रामनगर में पर्यटकों के हिसाब से होटलों और रिसोर्टों की भी भरमार है. जिन के सहारे यहां पर कालगर्ल्स का धंधा फलफूल रहा है.

सोनू सैनी रामनगर के चोरपानी इलाके में स्टोन क्रैशर के पीछे रहता था. शादी से पहले वह आवारा और झगड़ालू प्रवृत्ति का था. उस की हरकतों से आजिज आ कर उस के पिता पूरन सैनी ने उस की शादी उत्तर प्रदेश के अमरोहा शहर के मोहल्ला रफतपुरा की रहने वाली मीना से कर दी थी. पूरन सिंह को उम्मीद थी कि वह शादी के बाद सुधर जाएगा, लेकिन शादी के बाद वह और भी ज्यादा बिगड़ गया था.

उस के कई औरतों से अनैतिक संबंध थे. अपनी मोटी कमाई वह अपने इस शौक पर उड़ा देता था. बाद में वह धीरेधीरे जिस्मफरोशी के धंधे में उतर गया. यह काम करते हुए वह ऐसी कई औरतों के संपर्क में आ गया, जो पहले से देहव्यापार से जुड़ी थीं.

सोनू उन के साथ मौजमस्ती करने के अलावा उन के लिए ग्राहक भी लाने लगा. ग्राहक लाने पर उसे भी दलाली के रूप में कमाई होने लगी थी. सोनू इस धंधे में पड़ कर खुश था.

कुछ समय बाद उस की पत्नी भी उस के इस धंधे से वाकिफ हो गई. घर में बिना करेधरे पैसा आए तो किसे बुरा लगता है. घर की बढ़ी आमदनी को देखते हुए उस की बीवी भी उस के रंग में रंग गई. बीवी ने उस के इस धंधे में भागीदारी करनी शुरू कर दी. फिर तो वह बिना किसी खौफ के ग्राहकों को अपने घर पर बुला लेता और मोबाइल से फोन कर के कालगर्ल को भी वहीं आने को कह देता था.

उस का यह धंधा बिना किसी रुकावट के काफी समय तक चलता रहा. लेकिन जब गांव वालों को उस की कारगुजारी का पता चला तो उन्होंने विरोध किया. गांव में सोनू की इस पोल का खुलासा होते ही हंगामा हो गया. इसे ले कर उस की गांव वालों से मारपीट हो जाती थी. कई बार मारपीट होने पर यह मामला थाने तक पहुंचा, तो सोनू फरार हो गया.

बाद में उस ने रामनगर के पास पीरूमदारा में किराए पर कमरा ले लिया. उस ने वहां पर रह कर फिर से देहव्यापार की दलाली का काम शुरू कर दिया. इसी धंधे के दौरान उस की मुलाकात उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर के कस्बा नूरपुर की रुखसार उर्फ प्रिया से हुई. प्रिया देखने भालने में खूबसूरत और गदराए शरीर की कमसिन युवती थी.

पहली मुलाकात में ही सोनू का दिल प्रिया पर आ गया. उस ने प्रिया को अपनी मीठी मीठी बातों में फंसा कर उस के साथ शादी कर ली. समय के साथसाथ रुखसार भी उस के 2 बच्चों की मां बन गई. पैसों के लालच में उस ने रुखसार को भी धंधे में लगा दिया.

रुखसार की एक छोटी बहन थी जन्नत निखत, जो अपनी अम्मी सलीमा के साथ दिल्ली के भजनपुरा इलाके में रहती थी. रुखसार की अम्मी सलीमा पहले से ही देहव्यापार से जुड़ी थी.

सलीमा हालांकि दिल्ली में रह कर अपना धंधा चला रही थी. लेकिन वह जानती थी कि यह काम रामनगर जैसे क्षेत्र में ज्यादा फलेगा फूलेगा. यही सोच कर उस ने अपनी बेटी रुखसार के पास आनाजाना बढ़ा दिया था. सोनू उसे पहले से ही जानता था. सोनू के संपर्क में आने के बाद उस ने दिल्ली से रामनगर तक इस धंधे से जुड़ी युवतियों की सप्लाई शुरू कर दी.

अंकित शर्मा दिल्ली के भजनपुरा इलाके में सलीमा के घर के सामने ही रहता था. आमने सामने रहने के कारण सलीमा ने अंकित शर्मा से जानपहचान बढ़ा ली. उसी दौरान अंकित की मुलाकात जन्नत निखत से हुई. जन्नत देखनेभालने में खूबसूरत थी. जन्नत की खूबसूरती अंकित को ऐसी भायी कि वह उसे दिल दे बैठा. इतना ही नहीं, बल्कि शादी करने को भी तैयार हो गया.

यह बात जब जन्नत की अम्मी सलीमा को पता चली तो उस ने खुशीखुशी जन्नत की शादी अंकित शर्मा से कर दी. शादी के बाद जन्नत मां को छोड़ कर अंकित के साथ रहने लगी.

शादी से पहले अंकित को सलीमा या जन्नत की हकीकत मालूम नहीं थी. लेकिन जब उस का सलीमा के घर आनाजाना शुरू हुआ तो वह सच्चाई जान गया. हकीकत सामने आते ही अंकित सलीमा से कन्नी काटने लगा. धीरेधीरे उस ने अपनी बीवी जन्नत और उस की मां के मिलने पर पाबंदी लगा दी. जिस की वजह से दोनों परिवारों में विवाद की स्थिति पैदा हो गई थी.

इस के बाद सलीमा अंकित को ले कर कई बार रामनगर रुखसार के पास आई, जो अंकित को बिलकुल पसंद नहीं था. उस की सास देहव्यापार के धंधे से जुड़ी है, जान कर उसे बहुत दुख हुआ था. यह जानकारी मिलते ही उस ने अपनी बीवी जन्नत को उस की अम्मी से दूर करने की कोशिश शुरू की थी, लेकिन जन्नत ने उस की एक नहीं सुनी.

अंकित और जन्नत के बीच विवाद इतना बढ़ा कि मामला पुलिस तक जा पहुंचा, जिस के बाद जन्नत ने अपने पति अंकित से अलग रहना शुरू कर दिया. दोनों का विवाद अभी तक दिल्ली न्यायालय में विधाराधीन है.

बाद में जन्नत दिल्ली छोड़ कर रामनगर में अपनी बहन के साथ आ कर रहने लगी थी. उसी समय सोनू और रुखसार के बीच देह व्यापार के धंधे को ले कर इतना विवाद बढ़ा कि रुखसार भी सोनू को छोड़ कर अलग कमरा ले कर रहने लगी.

रामनगर आते ही जन्नत को जीजा की याद सताने लगी थी. हालांकि वह अपनी बहन और सोनू के रिश्तों के बारे में भलीभांति जान चुकी थी, लेकिन इस के बावजूद उस से सोनू से मिलना जुलना शुरू कर दिया. उस समय तक सोनू का जिस्मफरोशी का धंधा ठीकठाक चल रहा था. उस ने रामनगर के कई इलाकों में किराए के कमरे ले रखे थे.

चूंकि सोनू सैनी रामनगर क्षेत्र में काफी समय से देहव्यापार से जुड़ा था, इसीलिए आसपास के क्षेत्र में उस की काफी लोगों से जानपहचान हो गई थी. कई सफेदपोश भी उस के संपर्क में थे. जब उस के पास लड़कियों की डिमांड आती तो वह फोन कर उन्हें देह के पुजारियों से मिलवा देता. उसे सिर्फ अपने कमीशन से मतलब था.

कभीकभी तो सोनू एक ही सौदे में 10 हजार रुपए तक कमा लेता था. कमाई बढ़ने पर उसने एक नई वैगनआर कार भी खरीद ली. वह पार्टियों की डिमांड पर युवतियों को उसी कार में बिठा कर उन के पते तक छोड़ आता था.

इसी दौरान एक दिन जन्नत अपनी बहन रुखसार को बिना बताए सोनू से मिलने जा पहुंची. जन्नत को देखते ही सोनू खुश हो गया. उस दिन उस की और सोनू की काफी देर बातचीत हुई. उसी दौरान जन्नत ने सोनू को बताया कि उस का अपने पति अंकित से विवाद हो गया था, जिस कारण वह उसे छोड़ कर रामनगर चली आई.

जन्नत की यह बात सुनते ही सोनू के मन में लड्डू फूटने लगे. उस की दूसरी बीवी रुखसार उसे पहले ही छोड़ कर जा चुकी थी, इसलिए जन्नत को देखते ही उस ने ठान लिया कि वह उसे किसी भी तरह अपने विश्वास में ले कर उस से शादी करेगा. हुआ भी यही. वह रोजाना जन्नत को फोन करने लगा.

कुछ ही दिनों में दोनों के बीच अच्छे संबंध बन गए. सोनू जानता था कि जन्नत के आते ही उस का जिस्मफरोशी का धंधा और भी फलने फूलने लगेगा. सोनू की मेहनत रंग लाई. उस ने कुछ ही दिनों में जन्नत को विश्वास में ले कर उसे अपने साथ रहने को मजबूर कर दिया. अंतत: जन्नत उसी के साथ रहने लगी.

जन्नत को अपने जाल में फंसाने के बाद सोनू ने उसे पीरूमदारा स्थित साईं मंदिर के पास एक कमरे में ठहरा दिया था. उस की देखरेख और खाने पीने की व्यवस्था के लिए उस ने रेखा नाम की एक महिला उस के पास छोड़ दी थी, जो उसे सारी सुविधाएं मुहैया कराती थी. कुछ दिनों से जन्नत और सोनू पीरूमदारा के उसी कमरे में मियांबीवी की तरह साथ रह रहे थे.

सोनू जन्नत के परिवार की कमजोरी पहले ही पकड़ चुका था. उसे पता था कि जन्नत शुरू शुरू में भले ही इस धंधे में आने से मना करे, लेकिन वह बाद में अपने आप लाइन पर आ जाएगी. जन्नत देखने में मौडल जैसी लगती थी. सोनू जानता था कि देहव्यापार के बाजार में उस के दाम भी अच्छे मिलेंगे.

यही सोच कर उस ने जन्नत की मजबूरी का लाभ उठाते हुए उसे दलदल में धकेलने की कोशिश की. लेकिन अंकित के साथ शादी करने के बाद वह फिर से उस दलदल में नहीं फंसना चाहती थी.

सोनू ने उसे समझाने की कोशिश की कि वह सीधेसीधे रास्ते पर आ जाए, लेकिन जब वह उस के बहकावे में नहीं आई तो उसे दूसरा रास्ता अख्तियार करना पड़ा. उस ने कई रईसों को उस के फोटो भेज रखे थे. जिस के लिए उसे मुंहमांगी रकम भी मिली थी.

सोनू ने एक दिन उसे कोल्डड्रिंक में नशे की गोली डाल कर पिला दी. कोल्डड्रिंक पीने के कुछ देर बाद वह नशे में बेसुध हो गई. मौके का फायदा उठा कर सोनू ने उस के साथ अवैध संबंध बनाए. जब इस बात की जानकारी जन्नत को हुई तो उसे गहरा सदमा पहुंचा. लेकिन उस वक्त वह मजबूर थी. उसे छोड़ कर वह कहीं जा भी नहीं सकती थी.

अंतत: वह सोनू पर शादी के लिए दबाव बनाने लगी. जबकि सोनू जानता था कि जब उस की बहन ही उस की न हुई तो वह उस के साथ क्या निभा पाएगी. यही सोचते हुए उस ने जन्नत के साथ शादी से साफ मना कर दिया.

सोनू के साथ रहते हुए जन्नत भी शराब की आदी हो गई थी. वह सोनू के साथ बैठ कर पीती थी. एक दिन उस ने सोनू के पीछे शराब पी और घर में पूरी तरह से उत्पात मचाया. उस ने सोनू की गैरमौजूदगी में उस की पहली बीवी मीना और उस के भाई गुड्डू को बहुत बुराभला कहते हुए देख लेने की धमकी दी.

यह बात मीना और गुड्डू को नागवार लगी. सोनू के घर आते ही उन दोनों ने उस के कान भर दिए. मीना ने सोनू से कहा कि वह अपनी चहेती साली से सावधान रहे. वह कभी भी उस की जान ले सकती है.

यह जानकारी मिलते ही सोनू ने उसे समझाने की कोशिश की. लेकिन जन्नत ने सोनू से भी साफ शब्दों में कह दिया कि या तो वह उस से शादी कर ले वरना वह उसे किसी भी लायक नहीं छोड़ेगी, पुलिस में जा कर उस का भंडाफोड़ कर देगी. जन्नत की इस धमकी के बाद सोनू गंभीर हो गया. इस के बाद सोनू जन्नत को मौत की नींद सुलाने का रास्ता खोजने लगा.

14 जून, 2019 को सोनू शराब ले कर कमरे पर पहुंचा. उस दिन उस का साला गुड्डू भी उस के साथ था. शाम को गुड्डू और जन्नत ने एक साथ बैठ कर शराब पी. जल्दी ही नशा जन्नत के सिर चढ़ कर बोलने लगा. उस दिन भी शराब के नशे में जन्नत ने सोनू के सामने शादी वाली बात रखी, जिस पर सोनू ने साफ शब्दों में कहा कि वह एक बीवी के होते दूसरी शादी नहीं कर सकता.

इतना सुनने के बाद जन्नत आपे से बाहर हो गई. उस ने सोनू के साथ हाथापाई तक कर डाली थी. जिस से बौखला कर सोनू ने जन्नत को उठा कर जमीन पर पटक दिया.

जमीन पर गिरते ही जन्नत बेहोश हो गई. उस के बाद वह अपने साले गुड्डू की मदद से उसे कमरे में ले गया. फिर वहां पड़े बिजली के तार से उस का गला घोंट दिया, जिस से उस की मौत हो गई.

जन्नत को मौत की नींद सुलाने के बाद सोनू ने अपने साले की मदद से उस की लाश वैगनआर कार से ले जा कर पीरूमदारा रेलवे लाइन की तरफ सूखी नहर में डाल दी. नहर में डालने के बाद लाश की पहचान छिपाने के लिए दोनों ने उस के चेहरे को जलाने की योजना बनाई. लाश नहर में डालने के बाद दोनों कार से भवानीगंज पैट्रोलपंप पर पहुंचे. वहां से पैट्रोल ले कर वापस उसी जगह गए, जहां नहर में लाश डाली थी.

सोनू ने जन्नत के सोने के कुंडल और अंगूठी उतार कर अपने पास रख लीं. फिर जन्नत के चेहरे और कपड़ों पर पैट्रोल डाल कर आग लगा दी. बाद में दोनों ही अपने कमरे पर चले आए.

यह संयोग ही रहा कि मृतका के चेहरे और उस के कपड़ों पर पैट्रोल डालने के बाद भी न तो पूरी तरह से उस का चेहरा जल पाया था और न ही उस के कपड़े. जिस के आधार पर ही उस की पहचान हो पाई वरना जन्नत की मौत राज बन कर रह जाती.

सोनू ने अपनी पहली बीवी मीना के अलावा 2 और बीवियां रखनी चाहीं. वह सभी को देहव्यापार में उतारना चाहता था. लेकिन उस की यह मंशा पूरी नहीं हो सकी.

इस केस का खुलासा होने के बाद पुलिस ने अभियुक्त सोनू की निशानदेही पर पीरूमदारा में किराए के मकान से हत्या में इस्तेमाल किया गया बिजली का तार, चोरपानी वाले मकान की अलमारी से मृतका के कुंडल तथा अंगूठी भी बरामद कर ली. इस के अलावा पुलिस ने इस हत्याकांड में इस्तेमाल की गई वैगनआर कार भी अपने कब्जे में ले ली. पूछताछ के बाद पुलिस ने दोनों अभियुक्तों सोनू और गुड्डू को कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया.

रेनू जिंदा है तो वो कौन थी?

23 नवंबर, 2018 को कार्तिक पूर्णिमा थी. उस रोज उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के करमैनी घाट पर मेला लगा हुआ था. यहां पर यह मेला हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन लगता है. इस दिन दूरदूर से लोग नदी में नहाने आते हैं. मेले में भारी भीड़ जुटती है. इसी जिले के पीपीगंज इलाके के रामूघाट की रहने वाली 18 वर्षीया रेनू साहनी भी अपने दोनों भांजों के साथ मेला देखने आई थी.

रेनू अपनी बड़ी बहन लीलावती के साथ उस की ससुराल मूसाबार (पीपीगंज) में रहती थी. जबकि उस की मां चंद्रावती और पिता ब्रह्मदेव रामूघाट गांव में ही रहते थे. उस का एक भाई था जो कानपुर में रह कर वहीं नौकरी करता था.

बहरहाल, रेनू कई दिन पहले से मेला देखने की तैयारी कर रही थी. चूंकि मूसाबार से करमैनी घाट की दूरी ज्यादा नहीं थी, इसलिए वह अपनी बहन लीलावती के दोनों बेटों को साथ ले घर से खुशी खुशी पैदल ही मेला देखने चली गई थी.

रेनू को घर से निकले करीब 6 घंटे बीत चुके थे, लेकिन वह वापस नहीं लौटी थी. लीलावती को बेटों को ले कर फिक्र हो रही थी. जब दोपहर के 2 बज गए और रेनू घर नहीं लौटी तो लीलावती ने पति इंद्रजीत से पता लगाने को कहा. उस दिन इंद्रजीत घर पर ही था. वैसे इंद्रजीत ने रेनू से कहा भी था कि अकेले जाने के बजाए वह उस के साथ मेला देखने चले. लेकिन रेनू ने बहन और बहनोई से कहा कि वह मेला देख कर थोड़ी देर में घर लौट आएगी. इसलिए वह दोनों भांजों को अपने साथ ले कर चली गई थी.

रेनू की बात मान कर लीलावती और इंद्रजीत ने उसे मना नहीं किया और बच्चों के साथ जाने की अनुमति दे दी. जब काफी देर बाद भी वह घर नहीं आई तो इंद्रजीत बाइक ले कर साली रेनू और बच्चों को ढूंढने करमैनी घाट जा पहुंचा. इंद्रजीत ने अपनी बाइक खड़ी कर के बच्चों और साली को ढूंढने के लिए पूरा मेला छान मारा लेकिन न बच्चे मिले और न रेनू.

रहस्यमय ढंग से गायब हुई रेनू

इंद्रजीत परेशान हो गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे. कुछ नहीं सूझा तो वह घाट से थोड़ी दूर स्थित करमैनी पुलिस चौकी जा पहुंचा. वहां पहुंचते ही वह चौंक गया. क्योंकि वहां उस के दोनों बच्चे कुरसी पर बैठे रो रहे थे. पुलिस वाले उन्हें चुप कराने की कोशिश कर रहे थे. बच्चों ने जब अपने पिता को देखा तो भावावेश में और जोर जोर से रोने लगे.

इंद्रजीत ने झट से दोनों बच्चों को सीने से लगा लिया. जब वे चुप हुए तो उन से उन की रेनू मौसी के बारे में पूछा. बच्चों ने बताया कि रेनू मौसी मेले में कहीं गायब हो गईं. नहीं मिलीं तो हम रोने लगे. पुलिस वालों ने इंद्रजीत से पूछा कि बात क्या है? मेले में बच्चे रोते हुए दिखे तो हम यहां ले आए. इस के बाद इंद्रजीत ने पुलिस वालों को पूरी बात बता दी और उन से रेनू को ढूंढने में मदद मांगी.

चूंकि मामला एक अविवाहित लड़की से जुड़ा हुआ था इसलिए पुलिस वालों ने उसे समझाया कि पहले घर जा कर देख लें. हो सकता है कि वह घर पहुंच गई हो. अगर वह घर पर नहीं मिले तो गुमशुदगी की सूचना कैंपियरगंज थाने में लिखवा दे. बच्चों के मिल जाने से इंद्रजीत को थोड़ी तसल्ली तो हुई लेकिन साली के न मिलने पर वह परेशान था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि घर जा कर वह पत्नी और फिर सासससुर को क्या जवाब देगा.

इंद्रजीत बच्चों को बाइक पर बैठा कर घर पहुंचा. घर पहुंच कर उस ने सब से पहले पत्नी से रेनू के बारे में पूछा. लीलावती ने मना कर दिया तो वह और परेशान हो गया. उस ने पत्नी से बता दिया कि रेनू मेले से गायब हो गई है. उस का कहीं पता नहीं चल रहा.

छोटी बहन के रहस्यमय तरीके से गायब होने की जानकारी मिलते ही लीलावती रोने लगी. वह बारबार एक ही बात दोहरा रही थी कि मां जब रेनू के बारे में पूछेगी तो उन्हें क्या जवाब देगी.

इंद्रजीत पत्नी के साथ उसी शाम अपनी ससुराल रामूघाट पहुंचा और उस ने सासससुर को रेनू के गायब होने की पूरी बात बता दी. बेटी के गायब होने की जानकारी मिलते ही वे दोनों परेशान हो गए. उन्होंने अपनी रिश्तेदारियों में कई जगह फोन कर के रेनू के बारे में पूछा पर वह किसी भी रिश्तेदारी में नहीं पहुंची थी.

धीरेधीरे शाम ढल गई और रात पांव पसारने लगी. फिर धीरेधीरे रात पूरी बीत गई. न रेनू घर लौटी और न ही उस की कोई खबर मिली. जवान बेटी के घर से गायब होने की पीड़ा क्या होती है, चंद्रावती महसूस कर रही थी. उस ने बेटी की चिंता में पूरी रात आंखोंआंखों में काट दी थी.

दूसरा दिन भी रेनू की तलाश में बीत गया, लेकिन उस की कोई खबर नहीं मिली. 25 नवंबर को चंद्रावती दामाद इंद्रजीत के साथ कैंपियरगंज थाने पहुंची और बेटी की गुमशुदगी की सूचना दे दी. रेनू की गुमशुदगी दर्ज करने के बाद पुलिस हरकत में आई. 3 दिन बाद 28 नवंबर, 2018 को कैंपियरगंज थाने के माधोपुर बांध के पास झाड़ी से एक युवती की लाश बरामद हुई.

उस के गले में रस्सी कसी हुई थी. स्थानीय समाचारपत्रों ने इस समाचार को प्रमुखता से प्रकाशित किया. अखबार में प्रकाशित खबर इंद्रजीत साहनी ने भी पढ़ी. युवती की लाश उसी इलाके से बरामद हुई थी, जहां से रेनू गायब हुई थी. उस के मन में बुरेबुरे खयाल आने लगे थे.

30 नवंबर को इंद्रजीत सास चंद्रावती को साथ ले कर कैंपियरगंज थाने जा कर विक्रम सिंह से मिला. उस ने मेले से रेनू के गायब होने की बात उन्हें बताई. थानेदार साहब ने मालखाने से युवती के कपड़े और फोटो मंगवाए.

फोटो देखते ही चंद्रावती और इंद्रजीत फफक फफक कर रोने लगे. उन्होंने युवती की लाश की शिनाख्त रेनू के रूप में कर दी. लाश की शिनाख्त होने के बाद पुलिस ने थोड़ी राहत की सांस ली और मोर्चरी में रखी लाश पोस्टमार्टम के बाद घर वालों के सुपुर्द कर दी. इस के बाद घर वालों ने रेनू का अंतिम संस्कार कर दिया.

बेटी के दाह संस्कार के 2 दिनों बाद चंद्रावती दामाद इंद्रजीत के साथ कैंपियरगंज थाने पहुंची और बेटी की हत्या की नामजद तहरीर थानेदार को सौंप दी. तहरीर में उस ने बताया कि उस की बेटी रेनू की हत्या उस के पट्टीदार रेलकर्मी रामसजन साहनी और उस के फौजी बेटे ज्ञानेंद्र साहनी ने मिल कर की है. पुलिस ने तहरीर के आधार पर रामसजन और उस के बेटे ज्ञानेंद्र साहनी के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर के आवश्यक काररवाई शुरू कर दी.

रिपोर्ट दर्ज करने के बाद पुलिस आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए रामूघाट स्थित उन के घर पहुंची तो दोनों ही घर पर नहीं मिले. घर वालों से पता चला कि दोनों अपनी ड्यूटी पर गए हैं. रामसजन रोज सुबह नौकरी पर निकल जाते हैं और बेटा सीमा पर तैनात है. यह बात पुलिस को बड़ी अजीब सी लगी कि फौज में सीमा पर तैनात ज्ञानेंद्र ने यहां आ कर हत्या कैसे कर दी?

थानेदार ने यह जानकारी एसएसपी डा. सुनील गुप्ता, एसपी (नौर्थ) अरविंद कुमार पांडेय और सीओ (कैंपियरगंज) रोहन प्रमोद बोत्रे को दी. एसएसपी डा. सुनील गुप्ता ने एसपी (नौर्थ) अरविंद पांडेय को आरोपियों को गिरफ्तार करने के निर्देश दिए.

इस के बाद एसपी (नौर्थ) अरविंद पांडेय और सीओ रोहन प्रमोद बोत्रे ने पहले घटनास्थल का दौरा किया, जहां से रेनू गायब हुई थी और उस स्थान का भी मुआयना किया, जहां उस की लाश पाई गई थी.

जांच के दौरान अधिकारियों के गले से एक बात नहीं उतर रही थी कि जब मेले में रेनू दोनों भांजों को साथ ले कर गई थी, तो भीड़भाड़ वाली जगह से रेनू का अपहरण करने वालों ने बच्चों का अपहरण क्यों नहीं किया?

उधर थानेदार को एक चौंकाने वाली बात पता चली. घटना वाले दिन रामसजन और उस का बेटा ज्ञानेंद्र सचमुच गांव में नहीं थे. दोनों अपनी अपनी ड्यूटी पर थे. इस से पुलिस को लगा कि उन दोनों को रंजिश के तहत फंसाया जा रहा है. इधर चंद्रावती आरोपियों को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस अधिकारियों पर दबाव बनाए हुई थी.

एसएसपी डा. सुनील गुप्ता ने अपने औफिस में एक जरूरी बैठक बुलाई. बैठक में एसपी (नौर्थ) अरविंद पांडेय, सीओ रोहन प्रमोद बोत्रे और थानेदार विक्रम सिंह शामिल थे. मीटिंग में जांच के उन सभी पहलुओं पर चर्चा हुई जो विवेचना के दौरान प्रकाश में आए थे. इन बिंदुओं में बच्चों का अपहरण न होना प्रमुख था.

पुलिस को लग रहा था जैसे चंद्रावती और उस का दामाद इंद्रजीत कुछ छिपा रहे हों. जिस घर में एक जवान बेटी की मौत हुई हो, उस घर में पुलिस को मातम जैसी कोई बात नहीं दिख रही थी. बेटी की मौत का गम न तो मां चंद्रावती के चेहरे पर था और न ही लीलावती या इंद्रजीत के चेहरे पर.

यह बात पुलिस को बुरी तरह उलझा रही थी, इसीलिए  एसएसपी गुप्ता ने अपने मातहतों से चंद्रावती और उस के परिवार पर नजर रखने के लिए कह दिया था. धीरेधीरे 6 महीने का समय बीत गया.

बात अप्रैल, 2019 की है. मुखबिर ने पुलिस को एक बेहद चौंका देने वाली सूचना दी. उस ने पुलिस को बताया कि चंद्रावती और उस का परिवार एक अनजान व्यक्ति से बराबर बातें करते हैं. रात के अंधेरे में एक औरत और मर्द आते हैं और फिर रात में ही वे लौट जाते हैं.

मुखबिर की यह बात पुलिस को हैरान कर देने वाली लगी. थानेदार ने यह बात सीओ बोत्रे से बताई तो उन्होंने एसपी साहब से बात कर के चंद्रावती का मोबाइल फोन सर्विलांस पर लगवा दिया. सर्विलांस के जरिए पुलिस को एक ऐसे नंबर का पता चला, जिस की लोकेशन 23 नवंबर को करमैनी घाट की मिली. इस का मतलब यह हुआ कि उस दिन रेनू मेले से जब गायब हुई थी तो वह व्यक्ति भी मेले में मौजूद था.

जांच करने पर वह नंबर जिला अयोध्या के थाना इनायतनगर के गांव पलिया रोहानी निवासी आनंद यादव का निकला. फिलहाल उस की लोकेशन कानपुर के काकादेव इलाके में आ रही थी.

रेनू निकली जीवित

जांचपड़ताल में एक बेहद चौंकाने वाली सूचना मिली. जिस रेनू की हत्या किए जाने की बात कही जा रही थी दरअसल वह जिंदा थी. रेनू के जिंदा होने वाली बात जैसे ही पुलिस अधिकारियों को पता चली तो वे आश्चर्यचकित रह गए. पुलिस ने यह बात अपने तक गुप्त रखी क्योंकि वह रेनू को किसी भी हालत में जिंदा ही पकड़ना चाहती थी.

पुलिस की एक टीम आनंद यादव को पकड़ने के लिए कानपुर रवाना कर दी गई. पता नहीं कैसे आनंद को पुलिस के आने की भनक मिल गई. वह काकादेव इलाका छोड़ कर कहीं और जा कर छिप गया.

पुलिस कई दिनों तक आनंद की तलाश में कानपुर की गलियों की खाक छानती रही. लेकिन वह पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ा, लिहाजा पुलिस खाली हाथ गोरखपुर लौट आई.

बहरहाल 14 मई, 2019 की रात करीब 9 बजे मुखबिर ने थानेदार विक्रम सिंह को रेनू के बारे में एक महत्त्वपूर्ण सूचना दी. सूचना मिलते ही थानेदार पुलिस टीम के साथ कैंपियरगंज रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर-1 पर पहुंच गए.

वहां एक कोने में समीज सलवार पहने रेनू एक युवक के साथ बैठी मिली. पुलिस ने दोनों को हिरासत में ले लिया. पूछताछ करने पर रेनू ने बताया कि जिस युवक के साथ है, वह उस का पति आनंद यादव है. पुलिस दोनों को थाने ले आई.

थाने ला कर दोनों से कड़ाई से पूछताछ की गई तो दोनों ने जो जानकारी पुलिस को दी, वह वाकई हैरान कर देने वाली थी.

कैंपियरगंज पुलिस के हाथ बड़ी कामयाबी लगी थी. जिस रेनू की परिवार वालों ने हत्या किए जाने का दावा किया था, वह जिंदा मिल गई थी. रेनू हत्याकांड की गुत्थी सुलझा कर पुलिस की बांछें खिल उठीं. बाद में थानेदार ने अधिकारियों को सूचना दे दी.

अगले दिन 15 मई, 2019 को एसपी (नौर्थ) अरविंद कुमार पांडेय और सीओ रोहन प्रमोद बोत्रे ने पत्रकारवार्ता आयोजित की. इस पत्रकारवार्ता में रेनू के घर वालों को भी बुलाया गया था. वे वहां उपस्थित थे.

पत्रकारों के सामने पुलिस ने रेनू और आनंद को पेश किया तो गोरखपुर के 2 पुराने मामलों शिखा दूबे और वैशाली श्रीवास्तव उर्फ ब्यूटी कांड की यादें ताजा हो गई थीं. उस के बाद रेनू ने खुद पूरी घटना पत्रकारों के सामने बयान कर दी, जिसे सुन कर मीडियाकर्मी भी चौंक गए. रेनू के घर वालों ने जब वहां रेनू को देखा तो उन के चेहरे का रंग उड़ गया.

पत्रकारवार्ता के बाद पुलिस ने दोनों प्रेमी युगल रेनू साहनी उर्फ कनक मिश्रा और आनंद यादव उर्फ आनंद मिश्रा को हिरासत में ले कर जेल भेज दिया.

रेनू के साथसाथ उस की मां चंद्रावती, बड़ी बहन लीलावती और जीजा इंद्रजीत साहनी को भी गिरफ्तार कर लिया गया. तीनों ने मिल कर एक बड़ी साजिश रची थी. अपनी कुटिलता से वे पुलिस को नाहक परेशान करते रहे. आखिर उन्होंने इतनी बड़ी साजिश क्यों रची, पूछने पर एक रोमांचक कहानी सामने आई—

18 वर्षीय रेनू साहनी मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर के पीपीगंज इलाके के रामूघाट की रहने वाली थी. उस के पिता का नाम ब्रह्मदेव साहनी था. ब्रह्मदेव के 3 बच्चों में रेनू सब से छोटी थी. रेनू से बड़ा एक भाई और बहन लीलावती थी. ब्रह्मदेव दोनों बच्चों की शादी कर चुके थे. अब केवल रेनू की शादी करनी बाकी थी.

ब्रह्मदेव कानपुर में नौकरी करते थे और परिवार के साथ रहते थे. वह जिस मोहल्ले में किराए पर रहते थे, वहीं पर पड़ोस में आनंद यादव अकेला रहता था. वह अयोध्या जिले के इनायतनगर के पलिया रोहानी का रहने वाला था. आनंद के परिवार वाले अयोध्या में रहते थे. जबकि वह कानपुर में रह कर प्राइवेट नौकरी करता था. दोनों के मकान ठीक आमने सामने थे.

स्मार्ट और कसरती बदन वाले आनंद की नजरें घर से निकलते हुए कभीकभार बालकनी में खड़ी खूबसूरत रेनू से टकरा जाती थीं. नजर पड़ते ही वह हौले से मुसकराते हुए आगे बढ़ जाता था. बदले में रेनू भी उसी अंदाज में मुसकरा कर जवाब दे दिया करती थी. बात आई गई हो गई, न तो आनंद ने इसे दिल से लिया था और न ही रेनू ने.

लेकिन पड़ोसी होने के नाते आनंद कभीकभार रेनू के घर चला जाया करता था. दरअसल रेनू का एक भाई आनंद की उम्र का था. उस से आनंद की अच्छी निभती थी. रेनू के भाई की वजह से ही आनंद का उस के घर में आनाजाना शुरू हुआ था. यह बात सन 2016 की है.

घर आनेजाने से आनंद की नजर रेनू पर पड़ जाती थी. नजदीक से जब उस ने रेनू को देखा तो उस के दिल में चाहत पैदा हो गई. गजब की खूबसूरत रेनू उस के दिल में उतरती चली गई. उसे रेनू से प्यार हो गया था. ऐसा नहीं था कि यह प्यार एकतरफा था. रेनू भी आनंद में आनंद लेने लगी थी. वह भी उस से प्यार करने लगी थी.

मौका देख कर दोनों ने एकदूसरे से प्यार का इजहार कर लिया था. इस के बाद आनंद का रेनू के घर आनेजाने का सिलसिला बढ़ गया था. अचानक आनंद का घर में ज्यादा आनाजाना शुरू हुआ तो ब्रह्मदेव को कुछ अजीब लगा. अनुभवी ब्रह्मदेव ने पत्नी से कह दिया कि आनंद घर में जब भी आए, तो उस पर नजर रखना. मामला कुछ गड़बड़ लगता है. मुझे उस के लक्षण कुछ अच्छे नहीं दिख रहे.

पति की बातों को चंद्रावती ने भी गंभीरता से लिया. जल्द ही सब कुछ सामने आ गया था. पति का शक नाहक नहीं था. रेनू और आनंद के बीच में कुछ खिचड़ी जरूर पक रही थी. बेटी की हरकतें देख कर चंद्रावती का पारा सातवें आसमान को छू गया. फिर उस ने सोचा कि गुस्से से नहीं, ठंडे दिमाग से काम लेना चाहिए. क्योंकि बेटी सयानी है, कहीं कुछ ऊंचनीच हो गया तो समाजबिरादरी को क्या मुंह दिखाएंगे.

मां ने समझाया रेनू को

एक दिन चंद्रावती ने बेटी को समझाने के लिए अपने पास बुला कर कहा, ‘‘बेटी, मैं एक बात पूछती हूं. सच बताएगी क्या?’’

‘‘पूछो मां, क्या बात है?’’ रेनू बोली.

‘‘रेनू, मैं देख रही हूं कि आजकल तुम्हारे पांव कुछ ज्यादा ही बहक रहे हैं.’’ चंद्रावती बोली.

‘‘तुम कहना क्या चाहती हो मां, मैं कुछ समझी नहीं.’’ रेनू ने उत्तर दिया.

‘‘नहीं समझ रही तो मैं समझाए देती हूं. मैं यह कह रही हूं कि तुम्हारे पापा को तुम्हारी करतूतों के बारे में सब पता चल चुका है. आनंद से मेलजोल बढ़ाने की जरूरत नहीं है. अभी भी वक्त है, अपने बहके हुए कदमों को रोक लो वरना कयामत आ जाएगी.’’ मां की बातें सुनते ही रेनू सन्न रह गई और सोचने लगी कि मां को उस के प्यार के बारे में कैसे पता चल गया.

‘‘क…कौन आनंद?’’ हकलाती हुई रेनू मां के पास से उठ खड़ी हुई और आगे बोली, ‘‘मेरा आनंद से कोई लेनादेना नहीं है मां. फिर तुम ने यह कैसे सोच लिया कि मेरा आनंद के साथ कोई चक्कर है. क्या तुम्हें अपनी बेटी पर भरोसा नहीं है?’’

‘‘भरोसा ही तो टूटता हुआ दिखाई दे रहा है बेटी, तभी तो तुम्हें आगाह कर रही हूं कि अभी भी वक्त है. तुम खुद को संभाल लो, नहीं तो आगे तुम खुद ही भुगतोगी.’’ मां ने एक तरह से चेतावनी भी दी.

मां की बात अनसुनी करते हुए रेनू कमरे में चली गई. वह ये सोच कर हैरान थी कि मां को उस के रिश्तों के बारे में आखिर कैसे पता चला. रेनू ने यह बात आनंद से बता कर उसे सावधान कर दिया कि उन के प्यार के बारे में उस के घर वालों को पता चल चुका है, इसलिए सतर्क हो जाए नहीं तो हमारा मिलना बहुत मुश्किल हो जाएगा.

रेनू के समझाने पर आनंद मान गया था. इस के बाद उस ने उस के घर आनाजाना कम कर दिया. वह कभी जाता भी था तो केवल रेनू के भाई से बातचीत कर के थोड़ी देर में अपने कमरे पर वापस लौट आता था. इसी बीच आनंद ने सब से नजरें बचाते हुए एक एंड्रायड मोबाइल फोन खरीद कर रेनू को गिफ्ट कर दिया था ताकि घर वालों के पाबंदी लगाए जाने पर उस से उस की लगातार बातें होती रहें.

रेनू पर लगा दी गई पाबंदी

रेनू के मांबाप ने उस पर सख्त पाबंदी लगा दी थी. इस के बावजूद भी उन्हें महसूस हो गया था कि लाख मना करने के बावजूद रेनू ने आनंद से मिलनाजुलना बंद नहीं किया है. अब तो पानी सिर से ऊपर गुजरने लगा था. क्योंकि वह खुलेआम आनंद से मिलती और बातें करती थी.

रेनू की ये हरकतें उन से सहन नहीं हो रही थीं. वे अपनी मानमर्यादा को बचाने में लगे हुए थे. उन्हें इस बात का डर था कि बेटी के साथ कहीं ऊंचनीच हो गई तो वे समाज में क्या मुंह दिखाएंगे.

आखिर बेटी की हरकतों से परेशान हो कर ब्रह्मदेव ने कानपुर छोड़ गोरखपुर लौटने का फैसला कर लिया. सन 2018 के अक्तूबर के पहले हफ्ते में नौकरी छोड़ कर ब्रह्मदेव बच्चों के साथ गोरखपुर वापस आ गया.

गोरखपुर आने के बाद चंद्रावती ने रेनू को अपनी बड़ी बेटी लीलावती के पास उस की ससुराल मूसावार, कैंपियरगंज भेज दिया. सोचा कि वह बड़ी बहन के पास रहेगी तो उस का मन भी लगा रहेगा और निगरानी भी करती रहेगी.

जैसेतैसे एक सप्ताह बीता. रेनू अपने प्रेमी आनंद से मिलने के लिए बेताब हो रही थी. वह जानती थी कि ऐसा कदापि संभव नहीं है लेकिन वह उस की यादों में तिलतिल कर तड़प रही थी. वह फोन से बातें कर के अपने मन को समझाबुझा लेती थी. रेनू जानती थी कार्तिक पूर्णिमा के दिन कैंपियरगंज के करमैनी घाट पर बड़ा मेला लगता है. घर से भागने के लिए उसे वही उचित समय लगा. सोचा कि मेला देखने के बहाने वह घर से निकल जाएगी.

महीनों इंतजार के बाद आखिरकार वह दिन भी आ गया. 23 नवंबर, 2018 को करमैनी घाट पर कार्तिक पूर्णिमा का मेला लगा हुआ था. मेला के एक दिन पहले 22 नवंबर, 2018 को रेनू ने प्रेमी आनंद को फोन कर के साथ भागने के लिए गोरखपुर करमैनी घाट में पहुंचने के लिए कह दिया था.

प्रेमिका का फोन आते ही आनंद उसी रात ट्रेन द्वारा कानपुर से गोरखपुर पहुंच गया. फिर वहां से बस द्वारा कैंपियरगंज चला गया. वहां से सवारी कर के करमैनी घाट मेला पहुंचा और निर्धारित जगह पर रेनू का इंतजार करने लगा. बहाने से रेनू दोनों भांजों को साथ ले कर मेला देखने के बहाने करमैनी घाट पहुंच गई.

भांजों को थोड़ी देर मेला घुमाने के बाद उन्हें खाने के सामान दिलवा दिए और थोड़ी देर में लौट आने को कह कर वह बच्चों को मेले में एक जगह छोड़ कर प्रेमी आनंद से मिलने चली गई, जो करमैनी पुलिस चौकी से कुछ दूर खड़ा उसी का इंतजार कर रहा था.

रेनू जैसे ही प्रेमी आनंद के पास पहुंची तो वह खुश हो गया. फिर वे दोनों वहां से टैंपो में सवार हुए और सीधे कैंपियरगंज बस स्टाप पहुंचे. वहां से बस में सवार हो कर गोरखपुर आए. गोरखपुर से ट्रेन से अगले दिन कानपुर पहुंच गए.

इधर रेनू को घर से निकले करीब 5-6 घंटे बीत चुके थे. जब रेनू घर नहीं लौटी तो घर वाले परेशान हो गए थे. बाद में उन्होंने गुमशुदगी की सूचना थाने में लिखवा दी.

रेनू के गायब होने के चौथे दिन 27 नवंबर, 2018 को चंद्रावती के पास एक अनजान नंबर से फोन आया. फोन आनंद यादव ने किया था. उस ने रेनू की मां को बता दिया कि उस की बेटी रेनू उस के पास सुरक्षित है. उस ने यह भी कहा कि हम दोनों ने कानपुर के बारादेई मंदिर में आर्यसमाज विधि से विवाह कर लिया है.

यह सुन कर चंद्रावती के होश उड़ गए. उस ने कोई जवाब नहीं दिया. आनंद खुद को आनंद मिश्रा और रेनू को कनक मिश्रा के रूप में लोगों को परिचय देता था. अगले दिन 28 नवंबर को कैंपियरगंज के करमैनी घाट के माधोपुर बांध की झाड़ी से एक 18 वर्षीया युवती की लाश पाई गई.

इस खबर के बाद चंद्रावती के दिमाग में एक कपोलकल्पित कहानी उपज गई. उस ने सोचा कि रेनू घर वालों के मुंह पर कालिख पोत कर भागी है, तो क्यों न उसे सदा के लिए मरा मान लिया जाए. दामाद इंद्रजीत से पूरी बात बता कर उस से ऐसा ही करने को कहा तो इंद्रजीत सास की बात टाल न सका. उस ने वही किया जो उसे सास ने करने के लिए कहा था.

फिर 30 नवंबर को चंद्रावती दामाद इंद्रजीत को साथ ले कर कैंपियरगंज थाने पहुंची. 2 दिन पहले माधोपुर बांध से पाई गई लाश को अपनी बेटी की लाश बता उस का अंतिम संस्कार कर दिया.

बेटी का अपहरण और अपहरण के बाद हत्या का आरोप चंद्रावती ने अपने पट्टीदार रामसजन और उस के बेटे ज्ञानेंद्र पर लगाया. दरअसल चंद्रावती और रामसजन के बीच जमीन को ले कर काफी दिनों से विवाद चल रहा था. इसी विवाद का लाभ चंद्रावती उठाना चाहती थी.

रामसजन पर झूठा मुकदमा दर्ज करा कर वह उस से पैसे ऐंठने की फिराक में भी थी. लेकिन उस की दाल नहीं गली. फिर अंत में 7 महीने बाद 14 मई, 2019 को रेनू की हत्या की झूठी कहानी से राजफाश हो गया. पुलिस ने चंद्रावती सहित पांचों अभियुक्तों को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया.

अब सवाल यह उठ रहा था कि जिस युवती को रेनू की लाश समझा जा रहा था, वह तो जिंदा निकली तो फिर वह कौन थी जिस की लाश का चंद्रावती ने अंतिम संस्कार किया था. पुलिस इस रहस्यमय गुत्थी को सुलझाने में लगी हुई है. देखना यह है कि क्या पुलिस उस युवती की हत्या के मामले को सुलझाने में कामयाब हो सकेगी या यूं ही यह मामला रहस्य की चादर में लिपटा रह जाएगा.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

गर्लफ्रेंड के लिए विमान का अपहरण

गर्लफ्रेंड के लिए विमान का अपहरण – भाग 3

बिरजू का इश्क कहां तक था कि इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह अपने प्यार के लिए रायल एयरलाइंस कंपनी खोलने को तैयार हो गए. उन्होंने यह भी सोच लिया था कि उन की इस एयरलाइंस का सारा कामकाज उन की गर्लफ्रेंड ही देखेगी, लेकिन उस का हेडक्वार्टर मुंबई होगा. क्योंकि सल्ला यही चाहते थे कि वह मुंबई आए.

बिरजू ने इशारे इशारे में यह बात अपनी गर्लफ्रेंड को बता भी दी, लेकिन वह इस के लिए भी तैयार नहीं हुई. उस का कहना था कि यह एक तरह का मजाक है, इसलिए वह जहां नौकरी कर रही है, उसे करने दें.

जब बिरजू को लगा कि अब गर्लफ्रेंड किसी भी तरह मुंबई नहीं जाने वाली तो उन्होंने एक साजिश रची. उन्होंने सोचा कि वह ऐसा क्या करें कि जेट एयरवेज ही बंद हो जाए या फिर उस का दिल्ली का औफिस बंद हो जाए. इस के लिए उन्होंने उसे बदनाम करने की योजना बनाई.

इसी के बाद उन्होंने प्लेन हाइजैकिंग की यह साजिश रची और उन्होंने जो लेटर लिखा, उस में लिखा कि अगर यह प्लेन दिल्ली लैंड करेगा तो ब्लास्ट हो जाएगा. उन का सोचना था कि दिल्ली आने के बाद पैसेंजर शोर मचाएंगे तो यह मीडिया में आएगा, जिस से जेट एयरवेज की बदनामी होगी.

हो सकता है इस के बाद जेट एयरवेज अपना दिल्ली का औफिस बंद कर दे. इस के बाद तो उन की गर्लफ्रेंड मजबूरन मुंबई आ जाएगी, क्योंकि जब दिल्ली में नौकरी ही नहीं रहेगी तो वह मुंबई आ ही जाएगी. यही सोच कर उन्होंने यह साजिश रची थी.

यहां तक तो ठीक था, लेकिन बिरजू सल्ला की बदनसीबी यह थी कि इस घटना के 9-10 महीने पहले 2016 में संसद ने एक कानून बनाया था ‘एंटी हाइजैकिंग ऐक्ट 2016’. इस ऐक्ट में यह था कि अगर कोई व्यक्ति किसी प्लेन को हाइजैक करता है और उस हाइजैकिंग के दौरान किसी मुसाफिर या क्रू मेंबर की मौत हो जाती है तो एंटी हाइजैकिंग ऐक्ट के तहत उस पर मुकदमा चलेगा और इस की सजा मौत होगी.

ऐक्ट में यह भी लिखा था कि अगर कोई व्यक्ति प्लेन को हाइजैक करने की कोशिश करता है या किसी तरह की अफवाह फैलाता है यानी बम या हाइजैक करने की खबर देता है तो उस व्यक्ति पर भी एंटी हाइजैकिंग ऐक्ट के तहत मुकदमा चलेगा और उस व्यक्ति को उम्रकैद तक की सजा हो सकती है.

2016 में यह कानून बन गया था. बिरजू को इस कानून के बारे में जानकारी नहीं थी. उन का सोचना था कि अगर वह पकड़े भी गए तो छोटा मोटा मामला है, 2-4 महीने में बाहर आ जाएंगे. लेकिन उन की बदनसीबी ही थी कि 2016 में यह कानून बना और 2017 में 30 अक्तूबर को उन्होंने यह कांड कर दिया.

पूरी जांच के बाद यह मामला एनआईए को सौंप दिया गया. क्योंकि यह आतंकवाद से जुड़ी घटना थी. इसलिए यह पता करना था कि कहीं इस में किसी आतंकवादी संगठन का हाथ तो नहीं है. एनआईए ने पूरे मामले की जांच की और फिर एनआईए की स्पैशल कोर्ट में चार्जशीट दाखिल कर दी.

चार्जशीट दाखिल होने के बाद बिरजू सल्ला पर एनआईए की स्पैशल कोर्ट में मुकदमा चला. 11 जून, 2019 लोअर कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया. यह फैसला बिरजू सल्ला की सोच से बिलकुल अलग था. एंटी हाइजैकिंग ऐक्ट बनने के बाद यह पहला मुकदमा था, जो बिरजू के खिलाफ चला था.

चूंकि कानून बन चुका था कि हाइजैकिंग के दौरान किसी की मौत हो जाती है तो मौत की सजा और हाइजैकिंग की कोशिश की जाती है, वह भले ही ड्रामा ही क्यों न हो, हाइजैकर को उम्रकैद की सजा होगी.

यह दूसरी चीज बिरजू के खिलाफ थी, क्योंकि उन्होंने झूठ में कहा था कि प्लेन में हाइजैकर हैं और कार्गो में बम रखा है. अगर प्लेन पीओके नहीं ले जाया गया तो सभी मारे जाएंगे. इस तरह 30-35 मिनट सभी पैसेंजरों ने जो कष्ट भोगा यानी ऐसी स्थिति में मौत सामने नजर आती है, इस बात को बड़ी गंभीरता से लिया गया और 2016 के उस एंटी हाइजैकिंग ऐक्ट की धारा 3(1), 3(2)(ए), 4बी के तहत दोषी ठहराते हुए एनआईए की स्पैशल कोर्ट ने बिरजू सल्ला को बाकी जीवन के लिए आजीवन कारावास की सजा सुना दी थी.

हाईकोर्ट के फैसले से मिली राहत

इश्क में पागल बिरजू सल्ला कहां अपनी गर्लफ्रेंड को मुंबई लाना चाहते थे और कहां अब उन की पूरी उम्र जेल में गुजरने वाली थी. 11 जून, 2019 को यह सजा सुनाई गई थी. पर इतना ही नहीं, उन की तमाम प्रौपर्टी भी जब्त करने का आदेश दिया गया था. उन पर 5 करोड़ रुपए का जुरमाना भी लगाया गया था.

5 करोड़ की इस राशि के बारे में कहा गया था बिरजू से मिलने वाली इस राशि को चालक दल और यात्रियों में बांट दिया जाए. इस में से एकएक लाख रुपए पायलटों को, 75-75 हजार रुपए एयरहोस्टेस को तो 25-25 हजार रुपए सवारियों को बांटने का आदेश दिया गया था.

birju-salla-with-rohit-roy

सजा सुनाए जाने के बाद बिरजू सल्ला को अहमदाबाद की साबरमती जेल भेज दिया गया. घर वालों ने एनआईए के इस फैसले के खिलाफ गुजरात हाईकोर्ट में अपील की. जिस की सुनवाई साल 2023 में शुरू हुई और 8 अगस्त, 2023 को हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति ए.एस. सुपेहिया और एम.आर. मेंगडे की पीठ ने अपने फैसले में बिरजू सल्ला को बरी करते हुए कहा कि एनआईए यह साबित नहीं कर पाई कि विमान के वाशरूम में पाया गया नोट बिरजू सल्ला ने ही रखा था.

न्यायमूर्ति श्री सुपेहिया ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह भी साबित नहीं कर सका कि आरोपी ने अकेले अपने औफिस में बैठ कर वह धमकी भरा नोट तैयार किया था.

उच्च न्यायालय ने कहा कि जैसा कि शुरुआती जांच में कहा गया है कि सल्ला ने बताया है कि जेट एयरवेज की कर्मचारी अपनी प्रेमिका के लिए एयरलाइन को बदनाम करने के लिए उन्होंने यह अपराध किया था, लेकिन आगे चल कर जांच के दौरान उस के इस मकसद ने अपना महत्त्व खो दिया. इसलिए जो भी सबूत पेश किए गए हैं, उन के अध्ययन से पता चलता है कि वे संदेहात्मक हैं, जो आरोपी को अपराधी नहीं घोषित करते.

जो भी सबूत हैं, वे स्पष्ट रूप से अपीलकर्ता को अपहरण जैसे गंभीर आरोप में दोषी सिद्ध नहीं करते. इसलिए संदेह से भरे सबूतों के आधार पर अपहरण के अपराध में अपीलकर्ता दोषी ठहराने और सजा देने के ट्रायल कोर्ट के फैसले से सहमत नहीं हैं और अपीलकर्ता को बरी करने का आदेश दिया जाता है.

बिरजू सल्ला को अपहरण के आरोप से बरी करते हुए उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि बिरजू सल्ला पर लगाए गए 5 करोड़ रुपए के जुरमाने को भी रद्द किया जाता है.

एयरलाइन के पायलट और चालक दल को ट्रायल कोर्ट ने जिन्हें रुपए देने का आदेश दिया था, अगर उन्होंने रुपए लिए हैं तो वे पैसे वापस करें. जुरमाने की राशि उच्च न्यायालय ने बिरजू को वापस करने का आदेश दिया. इसी के साथ यह भी आदेश दिया कि अगर राज्य सरकार यह रुपया वापस नहीं ले पाती तो खुद यह पैसा अपने पास से सल्ला को वापस करे.

इस तरह बिरजू को हाईकोर्ट से राहत तो मिल गई, लेकिन वह गर्लफ्रेंड के चक्कर में 6 साल की जेल काट कर बाहर आए.

गर्लफ्रेंड के लिए विमान का अपहरण – भाग 2

जैसे ही फ्लाइट ने एयरपोर्ट पर लैंड किया, पुलिस ने डौग स्क्वायड, बम स्क्वायड के साथ प्लेन को घेर लिया. इस के बाद सारे यात्रियों को उतार कर एक जगह इकट्ठा कर लिया गया और जहाज की तलाशी ली गई. जहाज में कहीं कोई बम नहीं मिला.

इस के बाद सारे यात्रियों की सूची निकाली गई. इन 116 यात्रियों में 12 हाइजैकर कौन हो सकते हैं, उन की शिनाख्त की जाने लगी. पता चला कि इन 116 यात्रियों में से कोई भी व्यक्ति संदिग्ध नहीं था. सभी के टिकट या आईडी पर जो डाटा था, वह सही और जैनुइन था.

इस से यह साफ हो गया कि यह फेक काल थी यानी मजाक था. फिर सवाल उठा कि इस तरह का खतरनाक मजाक किया किस ने, अब इस की जांच शुरू हुई.

प्लेन का जो क्रू स्टाफ था, उस से पूछताछ शुरू हुई. इस पूछताछ में शिवानी मल्होत्रा जिस ने सब से पहले देखा था कि बिजनैस क्लास के टायलेट में टिश्यू पेपर खत्म हो गए हैं, उस ने बताया कि जब प्लेन ने टेकआफ किया यानी लाइट बंद हो गई और अब टायलेट यूज किया जा सकता था तो बिजनैस क्लास में बैठे एक आदमी ने उस से ब्लैंकेट मांगा था. वह उस का कंबल लेने गई फिर लौट कर देखा, वह सीट पर नहीं था.

करीब 5 मिनट बाद वह लौटा. इस पर उस ने ध्यान दिया कि उतने समय में उस आदमी के अलावा बिजनैस क्लास के किसी दूसरे आदमी ने टायलेट का यूज नहीं किया था.

शिवानी के बताए अनुसार, टेकआफ के बाद उस टायलेट का उपयोग सिर्फ उसी एक यात्री ने किया था. इस के बाद उस यात्री को बुलाया गया. वह यात्री सामने आया. पूछताछ में पता चला कि उस यात्री का नाम था बिरजू सल्ला उर्फ अमर सोनी पुत्र किशोर सोनी है. उस की उम्र 37 साल थी.

plane-hijack-birju-salla-with-karishma

जब उस से टायलेट जाने के बारे में पूछा गया तो उस ने स्वीकार किया कि हां वह टायलेट गया था. लेकिन इस के आगे उस ने कुछ नहीं बताया.

अरबपति व्यापारी निकला बिरजू सल्ला

इस के बाद मुंबई पुलिस को सूचना दे कर सल्ला के बारे में जानकारी जुटाई गई. मुंबई पुलिस से जो जानकारी मिली, उस से पता चला कि बिरजू सल्ला कोई छोटी मोटी हस्ती नहीं है. सल्ला सोनेचांदी, हीरे जवाहरातों के जाने माने बिजनेसमैन हैं. वह बहुत ही सम्मानित परिवार से हैं.

वह मूलरूप से गुजरात के रहने वाले हैं. मुंबई के दादर बाजार में ज्वैलरी की उन की बहुत बड़ी दुकान है. इस के अलावा भी उन के कई बिजनैस हैं. कुल मिला कर वह अरबपति आदमी हैं और मुंबई के पौश इलाके में उन की विशाल कोठी है.

बिरजू सल्ला के बारे में जान कर पुलिस को लगा कि कहीं कुछ गड़बड़ हो रहा है. इतना बड़ा बिजनैसमैन और सम्मानित आदमी इस तरह का काम क्यों करेगा? फिर भी पुलिस की एक टीम इस मामले की जांच में लग गई. पुलिस के पास सबूत के तौर पर 2 लेटर थे, एक अंगरेजी में और दूसरा उर्दू में.

इस के अलावा जांच में यह भी साबित हो गया कि सल्ला के अलावा और दूसरा कोई अदमी टायलेट गया नहीं था. अगर वे लेटर बिरजू ने नहीं रखे तो फिर किस ने रखे? उस के बाद एयरहोस्टेस गई थीं टायलेट. वे ऐसा कर नहीं सकती थीं. इसलिए जो सबूत थे, वे बिरजू सल्ला की ओर ही इशारा कर रहे थे कि उसी ने यह काम किया है.

बाकी यात्री जो रुके थे, उन्हें दूसरी फ्लाइट से दिल्ली भेज दिया गया. बिरजू सल्ला को संदिग्ध मान कर अहमदाबाद में ही रोक लिया गया. उन से पूछताछ की जाने लगी. पर वह लगातार मना करते रहे कि उन्होंने यह काम नहीं किया.

उसी बीच पुलिस की एक टीम उन के घर गई. इसी के साथ यह भी पता किया जाने लगा कि जो दोनों लेटर टायलेट से मिले थे, वह कहां टाइप किए गए थे और इन का प्रिंट कहां निकाला गया था?

बिरजू सल्ला के घर में जो प्रिंटर था, उस का सैंपल लिया गया. इस के बाद लेटर से उस सैंपल को मैच कराया गया तो वह मैच कर गया. जिस प्रिंटर से वह बाकी के काम करते थे, उसी प्रिंटर से वह लेटर प्रिंट किए गए थे.

अब 2 चीजें बिरजू सल्ला के खिलाफ थीं. एक वह चश्मदीद एयरहोस्टेस, जिस ने बताया था कि एकलौते वही थे, जिन्होंने टायलेट का उपयोग किया था और दूसरा वह प्रिंटर, जिस से वह धमकी भरे लेटर प्रिंट किए गए थे.  इस के बाद लैपटाप और कंप्यूटर को खंगाला गया, इस से पता चला कि लेटर उसी में टाइप किए गए थे. जो लेटर उर्दू में था, उस के बारे में पता चला कि अंगरेजी वाले लेटर को गूगल से ट्रांसलेट किया गया था.

पुलिस के लिए इतने सबूत काफी थे बिरजू को घेरने के लिए. इस के बाद अहमदाबाद की क्राइम ब्रांच पुलिस ने जब तसल्ली से बिरजू को सवालों के जाल में उलझाया तो मजबूरन बिरजू को अपना अपराध स्वीकार करना पड़ा. उन्होंने कहा कि ये दोनों लेटर टायलेट में उन्होंने ही रखे थे, लेकिन बम की खबर फेक थी. न तो प्लेन में कोई हाइजैकर थे और न ही बम था.

हर हालत में गर्लफ्रेंड को मुंबई बुलाना चाहते थे बिरजू सल्ला

अब इस के बाद यह सवाल उठा कि आखिर उन्होंने ऐसा किया क्यों? पुलिस ने कहा कि अगर कोई फेक काल करता या इस तरह का लेटर रखता तो वह बाहर रह कर ऐसा करता. जबकि वह तो इसी प्लेन में बैठे थे, तब उन्होंने ऐसा क्यों किया? क्या उन्हें अहमदाबाद आना था या कोई और काम था?

इस के बाद बिरजू सल्ला ने ऐसा करने के पीछे जो कहानी सुनाई, उस पर अहमदाबाद की क्राइम ब्रांच को विश्वास ही नहीं हो रहा था, लेकिन जब पुलिस ने आगे जांच की तो पता चला कि बिरजू ने जो भी बताया था, वह पूरी तरह सच था. बिरजू ने यह सब करने के पीछे जो कहानी सुनाई थी, वह इस प्रकार थी.

बिरजू सल्ला एक अरबपति कारोबारी थे. वह मुंबई के एक पौश इलाके में शानदार कोठी में परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी, 2 बच्चे और 70 साल के पिता किशोरभाई थे. बिजनैस के लिए अकसर वह देश के अन्य शहरों में आयाजाया करते थे. वह दिल्ली भी आतेजाते रहते थे.

दिल्ली आनेजाने के दौरान ही जेट एयरवेज की एक ग्राउंड स्टाफ से उन की दोस्ती हो गई. दोस्ती होने के बाद अकसर दोनों का मिलनाजुलना होने लगा. इस का नतीजा यह निकला कि 35-36 साल के बिरजू को उस युवती से प्यार हो गया.

बिरजू को ही उस युवती से प्यार नहीं हुआ, वह युवती भी बिरजू से प्यार करने लगी थी. क्योंकि उस युवती को यह पता नहीं था कि वह जिस से प्यार कर रही है, वह शादीशुदा है. जब प्यार गहराया तो बात विवाह करने की होने लगी. बिरजू चाहते थे कि वह युवती नौकरी छोड़ कर मुंबई चले और उन का घर संभाले. जबकि युवती न नौकरी छोडऩा चाहती थी और न मुंबई ही जाना चाहती थी. वह इन दोनों चीजों से मना कर रही थी.

जबकि बिरजू उस युवती से बहुत ज्यादा प्यार करते थे. बिरजू ने उसे बहुत समझाने की कोशिश की, बारबार मनाया, कई बार ऐसा भी हुआ कि वह केवल उस से मिलने दिल्ली आए. कई बार वह कहती कि इस समय तो उस की ड्यूटी है. फ्लाइट की ड्यूटी होती थी, जिसे अटेंड करना ही होता था. इस तरह वह बिरजू को समय नहीं दे पाती थी.

इस सब को ले कर बिरजू के मन में आता कि यह सब क्या है, आखिर यह कैसी नौकरी है? उस ने प्रेमिका से कहा कि वह यहां के बजाय मुंबई में नौकरी जौइन कर ले या किसी दूसरी एयरलाइंस में नौकरी कर ले, पर वह न तो नौकरी छोडऩे को तैयार थी और न ही कहीं दूसरी जगह जाने को. उस का कहना था कि वह नौकरी करेगी तो यहीं दिल्ली में ही करेगी.

गर्लफ्रेंड की बातों ने कुछ ऐसा कर दिया कि बिरजू को एयरलाइंस की नौकरी से ही नफरत हो गई. साथ ही वह यह भी सोचने लगे कि वह ऐसा क्या करें कि उन की गर्लफ्रेंड उन के पास मुंबई आ जाए.

उसी दौरान 2017 में बिरजू के एक दोस्त की बेटी की शादी थी. उस ने बिरजू से कहा कि उस के कुछ गेस्ट आ रहे हैं. उन्हें ले आने और ले जाने के लिए 2 चार्टर्ड प्लेन किराए पर चाहिए. इस के लिए बिरजू दिल्ली आए और गल्फ की एक कंपनी से करीब सवा करोड़ में 2 चार्टर्ड की डील कर ली.

इसी बात से बिरजू को खयाल आया कि गर्लफ्रेंड मुंबई नहीं चल रही और नौकरी नहीं छोड़ रही तो क्यों न वह अपनी इस गर्लफ्रेंड के लिए एक एयरलाइंस कंपनी खोल दें. प्लेन डील करने में उन्हें एयरलाइंस के बारे में काफी जानकारी हो गई थी.

गर्लफ्रेंड के लिए विमान का अपहरण – भाग 1

8 अगस्त, 2023 को गुजरात हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति ए.एस. सुपेहिया और एम.आर. मेंगडे की डिवीजन बेंच में बिरजू सल्ला उर्फ अमर सोनी बनाम गुजरात सरकार की सुनवाई चल रही थी. 2019 में बिरजू सल्ला को एनआईए की स्पैशल कोर्ट से आजीवन कारावास एवं 5 करोड़ रुपए के जुरमाने की सजा सुनाई गई थी. इस के अलावा उन की तमाम प्रौपर्टी भी जब्त करने का आदेश दिया गया था. इस के बाद बिरजू सल्ला ने इस सजा के खिलाफ गुजरात हाईकोर्ट में अपील की थी.

बिरजू सल्ला ने खुद को निर्दोष साबित करने के लिए हाईकोर्ट के सीनियर वकीलों की पूरी फौज खड़ी कर दी थी. उन की ओर से सीनियर एडवोकेट हार्दिक मोध अपने सहयोगियों के साथ बहस के लिए खड़े थे. उन के सहायक भी उन के साथ खड़े थे.

एडवोकेट हार्दिक मोध ने कहा, ”माई लार्ड, मेरा मुवक्किल एक बहुत बड़ा बिजनैसमैन है, जिसकी समाज में ही नहीं, व्यापार जगत में बड़ी इज्जत है. जैसा कि उस के बारे में कहा गया है कि उस ने एक लड़की के लिए जेट एयरवेज को बदनाम करने के लिए जेट एयरवेज के हवाई जहाज के टायलेट में एक धमकी भरा पत्र रखा था कि अगर हवाई जहाज को पीओके यानी पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर नहीं ले जाया गया तो उसे उड़ा दिया जाएगा.

सबूत के तौर पर वह पत्र अदालत में पेश किया गया था. अब सवाल यह उठता है कि पुलिस ने यह कैसे साबित कर दिया कि टायलेट में वह पत्र हमारे मुवक्किल ने ही रखा था?’’

फाइल पलट रहे दोनों न्यायाधीशों ने एक बार सीनियर एडवोकेट हार्दिक मोध की ओर देखा, उस के बाद सरकारी वकील की ओर देखा तो सरकार की ओर से मुकदमे की पैरवी करने के लिए खड़ी सीनियर एडवोकेट सुश्री वृंदा सी शाह ने कहा, ”माई लार्ड, उस पत्र को भले ही किसी ने बिरजू सल्ला को रखते नहीं देखा, पर क्रू मेंबर की एक एयरहोस्टेस शिवानी मल्होत्रा ने उन्हें टायलेट की ओर जाते देखा था. उस का कहना था कि बिरजू सल्ला के अलावा उस समय तक और कोई दूसरा बिजनैस क्लास के उस टायलेट में नहीं गया था.’’

न्यायाधीश श्री सुपेहिया ने कहा, ”आप यह दावे के साथ कैसे कह सकती हैं कि बिरजू सल्ला के पहले बिजनैस क्लास से कोई और टायलेट नहीं गया था.’’

”माई लार्ड एयरहोस्टेस का यही कहना है,’’ एडवोकेट वृंदा शाह ने कहा.

”किसी एक आदमी के कह देने से आप ने उसे दोषी मान लिया और आजीवन कारावास की सजा दे दी यानी उस की पूरी जिंदगी बरबाद कर दी.’’ न्यायाधीश श्री मेंगड़े ने कहा.

”नहीं सर, टायलेट में जो पत्र मिला था, वह बिरजू सल्ला के ही कंप्यूटर से टाइप किया गया था और उन्हीं के प्रिंटर से प्रिंट हुआ था,’’ एडवोकेट वृंदा शाह ने कहा.

जवाब में बिरजू सल्ला के एडवोकेट हार्दिक मोध ने कहा, ”माई लार्ड, इस का क्या सबूत है कि वह पत्र बिरजू सल्ला के कंप्यूटर में ही टाइप किया गया था और उन के प्रिंटर से ही प्रिंट किया गया था.’’

”माई लार्ड पत्र की जो स्याही थी, वह बिरजू सल्ला के प्रिंटर से मेल खा रही थी,’’ वृंदा शाह बोलीं.

”तो क्या वह स्याही केवल बिरजू सल्ला के प्रिंटर के लिए ही बनाई गई थी?’’ न्यायाधीश श्री सुपेहिया ने पूछा.

”जी नहीं माई लार्ड, कंपनी ने केवल बिरजू सल्ला के लिए स्याही नहीं बनाई थी.’’ वृंदा शाह ने कहा.

”तब यह क्यों मान लिया गया कि वह पत्र बिरजू सल्ला के ही प्रिंटर से प्रिंट हुआ था? यह तो कोई इस तरह का साक्ष्य नहीं है कि उस के आधार पर किसी को दोषी मान लिया जाए.’’

”माई लार्ड, बिरजू सल्ला ने खुद स्वीकार किया है कि उस ने कंपनी को बदनाम करने के लिए यह सब किया था, जिस से जेट एयरवेज का दिल्ली का औफिस बंद हो जाए और उस की गर्लफ्रेंड की नौकरी छूट जाए, जिस से वह मुंबई चली जाए.’’ एडवोकेट वृंदा शाह बोलीं.

इस पर बिरजू सल्ला के एडवोकेट हार्दिक मोध ने कहा, ”माई लार्ड, यह भी कोई बात हुई. किसी के द्वारा अपहरण का धमकी भरा एक पत्र रख देने से भला इतनी बड़ी कंपनी का औफिस बंद हो जाएगा. माई लार्ड इस मामले में मेरा मुवक्किल निर्दोष है. पुलिस ने इस मामले में कायदे से जांच नहीं की और एक इज्जतदार बिजनैसमैन को फंसा दिया.

”पुलिस की लापरवाही की वजह से मेरे मुवक्किल को 8 साल जेल में बिताने पड़े. उसे 5 करोड़ रुपए जुरमाना भी भरना पड़ा, साथ ही उस की तमाम संपत्ति भी जब्त कर ली गई. माई लार्ड, मेरी आप से यही विनती है कि बिरजू सल्ला को बाइज्जत बरी किया जाए.’’

इस बहस के बाद डिवीजन बेंच के न्यायाधीश श्री सुपेहिया और श्री मेंगड़े ने अपना जो फैसला सुनाया, वह जानने से पहले आइए यह पूरी कहानी जान लेते हैं.

हाइजैक की सूचना पर प्लेन की हुई इमरजेंसी लैंडिंग

बात 30 अक्तूबर, 2017 की है. जेट एयरवेज की उड़ान मुंबई से दिल्ली जा रही थी. इस के उडऩे का समय दोपहर 2 बज कर 55 मिनट था. इस हवाई जहाज में कुल 116 यात्री सवार थे. मुंबई से दिल्ली की लगभग 2 घंटे की दूरी थी. इस का मतलब 5 बजे इस हवाई जहाज को दिल्ली में लैंड करना था. इस प्लेन में बिजनैस क्लास भी था और इकोनामी क्लास भी. प्लेन ने अपने निश्चित समय 2 बज कर 55 मिनट पर उड़ान भरी.

करीब 25 मिनट बाद 3 बज कर 20 मिनट पर यानी प्लेन को हवा में 25 मिनट बीत चुके थे, तभी एक केबिन रूम एयरहोस्टेस शिवानी मल्होत्रा बिजनैस क्लास के टायलेट में गई. टायलेट में जा कर उस ने देखा कि वहां रखे सारे टिश्यू पेपर लगभग खत्म हो गए हैं.

यह देख कर वह दंग रह गई. क्योंकि प्लेन को उड़े अभी 25 मिनट ही हुए थे. ज्यादा पैसेंजर टायलेट गए भी नहीं थे, तब भी टिश्यू पेपर खत्म गया था.

टायलेट से निकल कर उस ने यह बात अपनी सहयोगी निकिता जुनेजा से बता कर कहा कि बिजनैस क्लास के टायलेट में टिश्यू पेपर खत्म हो गए हैं, इसलिए जा कर फिर से टिश्यू पेपर रिफिल कर दे.

निकिता ने टिश्यू पेपर का दूसरा बंडल निकाला और टायलेट में जा कर उसे रखने लगी तो उसे लगा कि अंदर कुछ फंसा हुआ है. जब तक वह निकलेगा नहीं, तब तक दूसरा पेपर अंदर जा नहीं सकता. उस ने पेपर अंदर डालने की काफी कोशिश की, पर जब किसी भी तरह पेपर अंदर नहीं गया तो उस ने उस के अंदर हाथ डाला तो उसे लगा कि अंदर पेपर जैसा कुछ फंसा हुआ है.

निकिता ने उसे बाहर निकाला तो उस ने देखा कि उन पेपरों में कुछ लपेट कर अंदर डाला गया था. उस ने उसे खोल कर देखा तो उस में 2 पत्र थे. दोनों पत्रों में एक अंगरेजी में था तो दूसरा उर्दू में. वे दोनों पत्र कंप्यूटर द्वारा टाइप किए हुए थे.

निकिता को उर्दू तो आती नहीं थी, इसलिए उस ने अंगरेजी वाला लेटर पढ़ा. लेटर पढ़ कर उस के चेहरे पर हवाइयां उडऩे लगीं. उस लेटर में अंगरेजी में जो लिखा था, उस का हिंदी में अर्थ यह था, ‘फ्लाइट नंबर 9डब्ल्यू 339 में हाइजैकर हैं और प्लेन को हाइजैक कर लिया गया है.’

‘इस प्लेन में इस समय यात्रियों के बीच कुल 12 हाइजैकर हैं. इस प्लेन को यहां से सीधे पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर यानी पीओके ले चलें और अगर ऐसा नहीं किया गया तो थोड़ी देर में इसे उड़ा दिया जाएगा. आप इसे मजाक मत समझिए, क्योंकि कार्गो एरिया में एक बम रखा गया है और अगर आप ने इसे पीओके के बजाय दिल्ली में लैंड करने की कोशिश की तो धमाका हो जाएगा और प्लेन उड़ जाएगा.’

लेटर पढऩे के बाद निकिता ने उस लेटर को सीधे ला कर कैप्टन जय जरीवाला को थमा दिया. इस लेटर को देखने के बाद कैप्टन को लगा कि मामला तो बहुत ही संवेदनशील है. उस समय प्लेन गुजरात के अहमदाबाद के नजदीक था. उन्होंने तुरंत अहमदाबाद के (एयर ट्रैफिक कंट्रोल) एटीसी से संपर्क किया और कहा कि इमरजेंसी के तहत वह अपना हवाई जहाज अहमदाबाद में लैंड करना चाहते हैं.

जब अहमदाबाद एयरपोर्ट के अधिकारियों ने पूछा कि ऐसी क्या इमरजेंसी है कि उन्हें अपना प्लेन अहमदाबाद में लैंड करने की जरूरत पड़ गई तो उन्होंने बताया कि दरअसल प्लेन में धमकी भरे लेटर मिले है. प्लेन में हाइजैकर हैं और उन्होंने कार्गो में बम रखा है.

इतना सुन कर अहमदाबाद एयरपोर्ट के अधिकारी तुरंत हरकत में आ गए. मैनेजर ने बड़े अधिकारियों से बात की. इस के बाद कैप्टन को इजाजत दी गई कि वह अहमदाबाद एयरपोर्ट के रनवे पर अपना हवाई जहाज लैंड कर सकते हैं.

अहमदाबाद एयरपोर्ट पर हुई सख्त जांच

इसी के बाद अहमदाबाद एयरपोर्ट पर तैयारी शुरू हो गई, क्योंकि कैप्टन के बताए अनुसार प्लेन में बम भी था और हाइजैकर भी. इसलिए लोकल पुलिस को भी सूचना दे गई थी और फायरब्रिगेड को भी बुला लिया गया था.

सूचना पा कर थाना एयरपोर्ट की पुलिस तो मौके पर पहुंच ही गई थी, क्राइम ब्रांच की भी पूरी टीम एयरपोर्ट पर पहुंच गई थी. थोड़ी देर में फ्लाइट नंबर 9डब्ल्यू 339 ने सहीसलामत एयरपोर्ट पर लैंड किया.