साजिश का तोहफा – भाग 5

इस का मतलब साफ था कि रमेश और शशांक पहले ही उन्हें अपने हिसाब से सब कुछ बता चुके थे. ऐसे में उन से कुछ अच्छी उम्मीद नहीं की जा सकती थी. दूसरी ओर से फोन कट चुका था. नवीन ने भी मायूसी से रिसीवर रख दिया.

‘‘गवाही देने सोमनाथ सोलकर अदालत आ रहे हैं, यह मीडिया वालों के लिए बे्रकिंग न्यूज थी. वह बर्फ की तरह सफेद बालों वाले लंबे कद के प्रभावशाली व्यक्तित्त्व के थे. मनोज सोलकर भी अदालत में मौजूद था. उस ने अदालत के सामने सच्चाई रख कर मुकदमा जारी रखने की दरख्वास्त की. सोमनाथ सोलकर ने काफी दिलचस्पी से उस का बयान सुना. रमेश के वकील ने उस के बयान को मनगढ़ंत कहानी बताया.’’

नवीन ने सोमनाथ सोलकर को जिरह के लिए कटघरे में बुलाया. गीता पर हाथ रख कर शपथ लेते समय वह बड़ी नागवारी से नवीन को देख रहे थे. नवीन ने बड़े सधे स्वर में कहा, ‘‘मैं ने समाचार पत्रों की सहायता से आप के बारे में कुछ जानकारियां जुटाई हैं. इस के अलावा कुछ सावित्री सोलकर ने बताया है. आप की उम्र 90 साल के करीब है.’’

‘‘मैं 90 का अंक पार कर चुका हूं,’’ सोमनाथ ने कहा, ‘‘तुम मेरी उम्र को छोड़ो और जो पूछना है, वह पूछो.’’

‘‘मैं पूछने चल रहा हूं,’’ नवीन ने संयम से कहा, ‘‘आप ने 1980 में अपनी कंपनी से रिटायरमेंट लिया और अपने नाम पर इस्टीटयूट स्थापित किया. क्या यह सही है?’’

‘‘सही है.’’ सोमनाथ ने कहा.

‘‘जहां तक आप के निजी जीवन का संबंध है, आप की पत्नी को मरे काफी अरसा गुजर चुका है और आप ने उस के बाद शादी नहीं की. आप का एकलौता बेटा अनिल 1981 में हवाई जहाज की दुर्घटना में मारा गया. उस के संबंध में सुनने में आया है कि वह जालसाज था. मैं इस तकलीफ भरे विषय पर बहस नहीं करना चाहता था. लेकिन मि. रमेश ने मुझे इस बारे में जानने के लिए विवश किया है. क्या मैं पूछ सकता हूं कि उन्होंने ऐसा क्या किया था, जिस से उन्हें जालसाज बताया जा रहा है?’’

‘‘मैं इस बारे में कोई बात नहीं करना चाहता.’’ सोमनाथ ने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा.

‘‘आप का पोता आप के लिए अजनबी है, लेकिन आप ने दुनिया देखी है. आप उस की ओर देखें, वह आप को चोर और बेइमान नजर आता है,’’ नवीन ने पैंतरा बदला, ‘‘क्या आप को लगता है, वह झूठ बोल रहा है?’’

‘‘वकील अपने मुवक्किलों को तरह तरह की कहानियां रटा देते हैं.’’ सोमनाथ ने कहा. उन की बात से यही लगा कि वह किसी भी स्थिति में नरम होने को तैयार नहीं हैं.

‘‘क्या आप को यह बात विचित्र नहीं लगती कि मि. रमेश ने आप को बगैर बताए आप के पोते को इंस्टीटयूट में नौकरी पर रख लिया था?’’

रमेश और शशांक उन्हें हर बात के लिए पहले से ही तैयार कर के लाए थे सोमनाथ ने कहा, ‘‘इस की नौबत ही नहीं आई. उस के पहले ही लड़के ने खुद को चोर साबित कर दिया. अच्छा हुआ कि रमेश ने मुझे हालात से आगाह कर दिया. अब इंस्टीटयूट में गड़बड़ी सिद्ध करने की कोशिशें की जा रही हैं, ताकि एक चालाक वकील कुछ रकम कमा सके.

‘‘मैं चाहता तो अदालत में आने से मना कर सकता था, लेकिन मैं इसलिए आया हूं कि इंस्टीटयूट के बारे में किसी तरह का स्कैंडल न खड़ा हो. इंसटीटयूट में इस तरह की व्यवस्था की गई है कि किसी भी तरह से गड़बड़ी संभव नहीं है. रमेश और शशांक मेरे पुराने, विश्वसनीय और ईमानदार साथी ही नहीं हैं, बल्कि रमेश तो हमारे दूर के रिश्तेदार भी हैं.’’

सोमनाथ सोलकर ने इंस्टीटयूट के संबंध में शुरुआती इन्वेस्टमेंट, उस के गठन और अन्य आर्थिक मामलों की जानकारी देने से मना कर दिया था. नवीन को मालूम था कि इंस्टीटयूट एक ट्रस्ट की देखरेख में काम कर रहा था. शहर में वकीलों की 4 ही ऐसी फर्में थीं, जो ट्रस्टों के गठन के लिए नियमावली आदि तैयार करती थीं. ऐसे में यह मालूम करना मुश्किल नहीं था कि किस फर्म ने इंस्टीटयूट के गठन की रूपरेखा तैयार की थी. इस के बाद उस फर्म से उस के कागजातों की कापी अदालत में पेश कराई जा सकती थी.

नवीन ने 2 घंटे के लिए जज से अदालती कार्यवाही स्थगित करा ली. रमेश ने बहुत शोर मचाया कि विपक्षी वकील विभिन्न बहानों से मुकदमे की कार्यवाही लंबी खींच रहा है. लेकिन जज ने मुकदमे के महत्त्व को देखते हुए नवीन की मांग मान ली थी.

दोबारा मुकदमे की कार्यवाही लंच के बाद शुरू हुई. अदालत में मौजूद लोगों के मन में एक अजीब सी बेचैनी थी कि पता नहीं क्या होने वाला है. नवीन ने ठाकुर ट्रस्ट कंपनी के अधिकारी को पेश कर के कहा, ‘‘इन्हीं की फर्म की देखरेख में इंस्टीटयूट चल रहा है. इन्हीं के पास इंस्टीटयूट में निवेश से संबंधित सारे कागजात हैं, जिन्हें अदालत में पेश करने या किसी वकील को निरीक्षण के लिए देने में मुझे कोई हर्ज नहीं लगता, क्योंकि यह कोई चोरी का काम नहीं है. ट्रस्ट एक तरह से जनता की संपत्ति होती है.’’

इस के बाद नवीन ने उस आदमी की फाइल से एक पेपर ले कर सोमनाथ सोलकर को दूर से दिखाते हुए कहा, ‘‘इस पेपर के अनुसार आप ने शुरू में निवेश के तौर पर ठाकुर ट्रस्ट कंपनी को 100 करोड़ रुपए दिए थे, ताकि इंस्टीटयूट को स्थापित किया जा सके.’’

नवीन ने देखा, वकील शशांक का चेहरा कुछ बदला बदला सा लग रहा था, जिसे वह छिपाने की कोशिश कर रहा था. अब उस का प्रतिरोध भी कुछ कम हो रहा था. वह चिल्लाया, ‘‘मुझे आपत्ति है यो रऔनर, मौजूदा केस से इस ट्रस्ट का कोई संबंध नहीं है.’’

‘‘अदालत इस बारे में बहस करने का आदेश दे चुकी है.’’ जज ने कहा.

नवीन ने उस कागज को पढ़ते हुए कहा, ‘‘इस में लिखा है कि निश्चित समय पर ट्रस्ट की आमदनी की रिपोर्ट मि. सोमनाथ सोलकर को दी जाती रहेगी. इस के अलावा इस से भी महत्त्वपूर्ण यह है कि सोमनाथ सोलकर जब भी चाहेंगे, किसी भरोसेमंद व्यक्ति के माध्यम से ट्रस्ट की शर्तों, प्रबंधन या इंस्टीटयूट को चलाने के तरीके के बारे में कोई भी बदलाव कर सकेंगे.’’

इस के बाद नवीन ने सोमनाथ सोलकर की ओर देखते हुए कहा, ‘‘क्या आप के वकील मि. शशांक ने इस बारे में कभी आप को कुछ बताया था?’’

‘‘यह मेरा आपस का मामला था’’ सोमनाथ सोलकर ने सख्ती से कहा.

अय्याशी में डबल मर्डर : होटल मालिक और गर्लफ्रेंड की हत्या – भाग 3

रवि ठाकुर ममता की मजबूरी का फायदा उठाते हुए आए दिन उसे अपनी हवस का शिकार बनाने लगा था. जब ममता उस की हरकतों से परेशान हो गई तो उस ने यह बात एक दिन अपने पति को यह बात बता दी.

यह बात सुनते ही नितिन बौखला उठा. इस जानकारी के बाद नितिन और ममता के बीच काफी मनमुटाव भी पैदा हो गया था. जिस के कारण कई दिनों तक दोनों के बीच लड़ाई झगड़ा भी हुआ था.

ममता ने पति को यह भी बता दिया कि इस सब की जिम्मेदार सरिता ठाकुर ही है. उसी ने उस के साथ संबंध बनाने के लिए उसे मजबूर किया था. इस के बाद नितिन और ममता उस से पीछा छुड़ाने के लिए किसी रास्ते की तलाश में लग गए. रास्ता भी ऐसा कि जिस से उन्हें रवि का पैसा भी न देना पड़े और उस से हमेशा हमेशा के लिए पीछा भी छूट जाए.

सलाह मशविरा के बाद दोनों ने सरिता ठाकुर और रवि ठाकुर को मौत के घाट उतारने का फैसला कर लिया. प्लानिंग के लिए उन्होंने करीब एक महीने तक क्राइम सीरियल देखे. तब पतिपत्नी दोनों ने मिल कर दोनों को मौत के घाट उतारने की योजना बनाई. फिर वह उसी योजना के तहत रवि ठाकुर के फोन आने का इंतजार करने लगे.

सरिता के घर पहुंच कर ममता और उस के पति ने क्या किया

9 दिसंबर, 2023 को रवि ठाकुर ने ममता को फोन कर होटल आने के लिए कहा. इस पर ममता ने कह दिया, ”मैं आज आप के होटल पर नहीं आ सकती. अगर आप को आना है तो आप सरिता ठाकुर के घर आ जाना.’’

सरिता ठाकुर के घर जाने में रवि को कोई परेशानी वाली बात नहीं थी. उस के बाद रवि ठाकुर ने ममता से कह दिया कि ठीक है, वह सरिता के घर पर ही पहुंच जाएगा.

उसी वक्त ममता ने सरिता को फोन कर बता दिया कि रवि ठाकुर और मैं आप के घर आने वाले हैं. यह बात सुनते ही सरिता ठाकुर ममता और रवि ठाकुर के आने का इंतजार करने लगी. उस वक्त सरिता का पति ऋषि भी किसी काम से बाहर गया हुआ था.

दोनों की हत्या की योजना बनाने के बाद ममता अपने पति नितिन को साथ ले कर सरिता के घर पहुंची, लेकिन ममता के साथ उस के पति नितिन को देख कर उसे कुछ हैरानी भी हुई.

सरिता ने ममता को एक तरफ बुला कर उस के पति के आने का कारण पूछा तो उस ने बताया कि वह किसी काम से बाहर जा रहे थे. फिर बोले कि मुझे भी उधर ही जाना है. वह मुझे छोडऩे के लिए ही आए हैं.

यह जानकारी मिलते ही सरिता ठाकुर दोनों के लिए चाय बनाने के लिए किचन में चली गई. सरिता ठाकुर के किचन में जाते ही नितिन ने उस के घर का दरवाजा अंदर से बंद कर दिया. उस के बाद उस ने उस के घर में ही रखी तलवार से सरिता ठाकुर की हत्या कर दी.

सरिता की हत्या करने के बाद ममता ने दरवाजे पर लगा कुंदा खोल दिया. उस के बाद नितिन सरिता के अंदर वाले कमरे में छिप गया. उस के बाद जैसे ही रवि ठाकुर सरिता के घर पर पहुंचा तो ममता ने फिर से सरिता के घर का बाहर वाला दरवाजा अंदर से बंद कर दिया.

उस के बाद उस ने रवि ठाकुर को बाहर वाले कमरे में ही रोक लिया. रवि ठाकुर ने उस वक्त सरिता के बारे में पूछा तो ममता ने कहा कि सरिता दीदी बहुत ही चालाक हैं, वह बाजार का बहाना बना कर इसलिए चली गई, ताकि हम दोनों खुल कर मौजमस्ती कर सकें.

इतना कहते ही ममता ने रवि बाबू पर अपना प्यार दिखाते हुए उस के होंठों पर एक जोरदार किस कर दी. आप चिंता न करें, वह इतनी जल्दी घर वापस आने वाली नहीं.

इतना कहने के बाद ही ममता ने रवि ठाकुर को अपनी आगोश में ले लिया. फिर वह रवि ठाकुर के साथ अश्लील हरकतें करने लगी. जिस के बाद ममता को अकेला पा कर रवि ठाकुर भी उस के साथ संबंध बनाने के लिए बैचेन हो उठा था.

हत्या करने के बाद ममता ने सरिता की बेटी को क्या मैसेज भेजा

रवि ठाकुर के कामुक होते ही ममता ने उस के कपड़े उतार दिए. उस के बाद रवि ठाकुर ने भी उस से कपड़े उतारने को कहा तो उस ने कहा कि उसे आप के सामने कपड़े उतारते हुए शर्म आती है. यह कहते ही ममता ने रवि ठाकुर की आंखों पर पट्टी बांध दी.

रवि ठाकुर की आंखों पर पट्टी बांधते ही नितिन तलवार ले कर आया और सामने खड़े रवि पर ताबड़तोड़ बार कर दिए. जिस के तुरंत बाद उस की भी मौके पर ही मौत हो गई.

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हत्यारे ममता और नितिन 

सरिता ठाकुर और रवि ठाकुर की हत्या करने के बाद ममता और नितिन ने दोनों को एक ही कमरे में ले जा कर डाल दिया. उन्होंने सरिता के भी कपड़े उतार कर नग्न कर दिया था. उस के बाद ममता ने ही सरिता के मोबाइल से उस की बेटी को मारने का मैसेज भेज दिया था. ताकि उस की बेटी को उन पर किसी तरह का कोई शक न हो.

दोनों को बेरहमी से खत्म करने के बाद पतिपत्नी ने वहां पर फैले खून को साफ करने की कोशिश की. उस के बाद दोनों उस के कमरे से निकल कर बाहर से दरवाजा बंद करने के बाद आटो से फरार हो गए.

ममता ने रवि ठाकुर और सरिता का मोबाइल भी अपने पास रख लिए थे. अपने घर पहुंचते ही दोनों ने अपने पहने कपड़े जला दिए.

इस हत्याकांड के खुलासे के बाद पुलिस ने आरोपियों की निशानदेही पर आरोपियों के जले कपड़े और दोनों मृतकों के कपड़े के साथसाथ हत्या में प्रयुक्त तलवार भी बरामद कर ली.

—कथा लिखने तक पुलिस मामले की तफ्तीश कर रही थी.

साजिश का तोहफा – भाग 6

अदलत में मौजूद हर आदमी उत्सुक था, जबकि नवीन को अपनी मेहनत बेकार जाती महसूस हो रही थी. उन्होंने महसूस किया कि सोमनाथ सोलकर पर उन के सवालों का कोई असर नहीं हो रहा है.

उन्होंने वह कागज हवा में लहराते हुए भावनात्मक लहजे में कहा, ‘‘मि. सोमनाथ, इंस्टीटयूट की स्थापना का निर्णय आप का एक महान कार्य था, इस के पीछे आप की नेक भावना थी. यही वजह थी, उस समय आप ने 100 करोड़ रुपए का निवेश किया. लेकिन जो लाइन मैं ने पढ़ी है, उस के शब्दों के महत्त्व का आप अंदाजा नहीं लगा सके. उस लाइन को स्वीकार कर के वास्तव में आप ने 2 साजिश करने वालों को अपनी नेक भावना से खेलने की इजाजत दे दी. आप को लगता नहीं कि आप से भी गलती हो सकती है, आप को भी तो कोई मूर्ख बना सकता है?’’

नवीन ने कागज सोमनाथ के सामने रख कर कहा, ‘‘एक बार फिर आप इसे ध्यान से पढि़ए और उस के अर्थ व उद्देश्य की तह तक पहुंचने की कोशिश कीजिए.’’

तभी शशांक ने उन के पास आ कर कहा, ‘‘विश्वास कीजिए मि. सोमनाथ, इस में चिंता की ऐसी कोई बात नहीं है, ये सभी बातें हम ने आपस में सलाह कर के तय की थीं.’’

सोमनाथ सोलकर के चेहरे के भाव बदल गया. उन्होंने अपने वकील को घूरते हुए कहा, ‘‘शायद तुम मुझे इसे पढ़ने से रोकने की कोशिश कर रहे हो?’’

उन्होंने बड़े ही ध्यान से उस लाइन को पढ़ा. इस के बाद नवीन की ओर देखते हुए थोड़ी नरमी से कहा, ‘‘मुझे तो बताया गया था कि ट्रस्ट को सही ढंग से चलाने के लिए यह लाइन बहुत जरूरी है. बहरहाल मैं ने कभी ऐसे किसी पेपर पर हस्ताक्षर नहीं किए, जिस से ट्रस्ट की शर्तों और नियमों या दूसरे मामलों में कोई भी परिवर्तन लाया जा सके.’’

‘‘हो सकता है, आप ने अनजाने में ऐसे किसी कागज पर हस्ताक्षर कर दिए हों.’’ नवीन ने कहा. उन का दिमाग तेजी से काम कर रहा था. उन्हें विश्वास था कि रमेश ओर शशांक के पास ऐसा कोई कागज जरूर मौजूद था, जिस का फायदा वे सोमनाथ सोलकर के जीवन में भले नहीं उठा सकते थे, लेकिन उन की मौत के बाद उन्हें फायदा हो सकता था. शायद इसीलिए वे उन की मौत का इंतजार कर रहे थे. अब वह कौन सा कागज हो सकता था.

‘‘क्या आप ने मि. शशांक से अपना कोई वसीयतनामा तैयार कराया है?’’ नवीन ने अचानक पूछा.

‘‘हां, मैं अपना मकान और कुछ रकम रमेश के नाम छोड़ना चाहता था. मेरे विचार से वह इस का अधिकारी भी है. वसीयतनामा शशांक ही तैयार कर के लाया था और वह उसी के पास रखा भी है. उस में वही कुछ लिखा है, जो मैं चाहता था.’’

‘‘आप को याद होगा कि वह वसीयत औपचारिक अंदाज में शुरू हुई होगी कि अगर कोई कर्ज हो तो उसे अदा कर दिया जाए, फलां नौकर को यह दे दिया जाए. इस तरह की छोटी छोटी और कम महत्त्व की बातें शुरू में लिखी गई होंगी?’’ नवीन ने पूछा.

‘‘हां, शायद कुछ इसी तरह लिखा था.’’ सोमनाथ सोलकर अपने दिमाग पर जोर डालते हुए बोले, ‘‘और मकान आदि रमेश के नाम करने का जिक्र अंत में था. लेकिन यह सब भी उसी पहले पेज पर था.’’

‘‘योर औनर, अदालत को उस वसीयत को एक नजर जरूर देखना चाहिए.’’ नवीन ने कहा, ‘‘संभव है, वसीसयतनामे का पहला पेज बदल दिया गया हो. क्योंकि वसीयत करने वाले और गवाहों के हस्ताक्षर आमतौर पर अंतिम पेज पर होते हैं.’’

‘‘मुझे आपत्ति है, योरऔनर.’’ शशांक ने बैठी बैठी सी आवाज में कहा. उस का चेहरा सफेद पड़ चुका था. वह सोमनाथ सोलकर की ओर देख कर दयनीय स्वर में बोला, ‘‘मैं आप को विश्वास दिलाता हूं मि. सोमनाथ…’’

लेकिन सोमनाथ ने उस की बात को बीच में ही काट कर कहा, ‘‘मैं वह वसीयतनामा देखना चाहता हूं.’’

नवीन ने जल्दी से कहा, ‘‘मुझे पूरा विश्वास है कि वसीयतनामा का पहला पेज बदला जा चुका है. इसीलिए रमेश और शशांक मनोज सोलकर के इंस्टीटयूट में आने जाने से डर गए थे, क्योंकि मि. सोमनाथ इंस्टीटयूट के मुआयने पर आते रहते थे.

इन दोनों महानुभावों को लगा कि अगर कहीं दादा पोते की मुलाकात हो गई और उन के संबंध सुधर गए तो मि. सोमनाथ सोलकर उसे अपनी वसीयत में शामिल करने के लिए वसीयत निकलवा सकते हैं. उस के बाद वह वसीयतनामा बेकार हो जाता और जिस जालसाजी के सहारे रमेश और शशांक जीवन गुजार रहे थे, वह किसी काम की न रहती. अब मैं मि. रमेश से कहूंगा कि वह उठ कर अदालत को असलियत बताएं.’’

रमेश अपने स्थान से उठा तो उस का चेहरा सफेद पड़ चुका था, जो बिना कहे ही सारी सच्चाई कह रहा था. वह मरियल सी आवाज में बोला, ‘‘मैं सम्मानित जज महोदय से अकेले में कुछ बात करना चाहता हूं, क्योंकि सब के सामने कहने लायक मेरे पास अब कुछ नहीं बचा है.’’

‘‘मुझ से कहने सुनने से कुछ नहीं होगा. तुम लोगों ने जो साजिश रची है, उस से अब तुम्हें मि. सोमनाथ और मनोज ही बचा सकते हैं. इसलिए जो कुछ कहना है, उन्हीं से कहो.’’ जज ने कहा.

‘‘काम तो इन लोगों ने जेल भिजवाने वाला किया है, लेकिन रमेश ने मेरी बहुत सेवा की है. भले ही लालच में की है, लेकिन की तो है ही, इस के अलावा वह मेरा रिश्तेदार भी है. इसलिए इस के गुनाहों की सिर्फ यही सजा है कि यह अपने पद से इस्तीफा दे कर चुपचाप इंस्टीट्यूट छोड़ दे. उसी के साथ यह ठाकरे भी अपना इस्तीफा सौंप दे.’’ सोमनाथ सोलकर ने कहा.

अब कहने सुनने को कुछ रह ही नहीं गया था, इसलिए इस के बाद अदालत उठ गई.

शाम को नवीन के घर पर एक प्रेस कांफे्रंस आयोजित की गई, जिस में सोमनाथ सोलकर बहू और पोते के साथ सोमनाथ सोलकर भी मौजूद थे. बहू और पोते के साथ वह काफी प्रसन्न नजर आ रहे थे. संवाददाताओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘मुझे आज पता चला है कि अपने बेटे की मौत के बाद मैं ने उस की विधवा और अपने पोते के साथ कितना अत्याचार किया है. लेकिन रमेश ने मेरी आंखों पर ऐसी पट्टी बांध दी थी कि मैं असलियत देख ही नहीं पाया.

वह मेरी इलेक्ट्रिक कंपनी में कैशियर था. कुछ जाली चैक दिखा कर वह यह विश्वास दिलाने में सफल हो गया था कि वह जालसाजी अनिल द्वारा की गई थी. तब तक अनिल मर चुका था, इसलिए असलियत सामने नहीं आ सकी थी.

‘‘उस का सोचना था कि बेटे से विमुख होने के बाद मैं उसे अपना वारिस बना लूंगा. लेकिन जब उस ने देखा कि मैं ने अपनी ज्यादातर संपत्ति से इंस्टीटयूट स्थापित कर दिया है और उसे ट्रस्ट के अंतर्गत कर दिया है तो उस ने शशांक के साथ मिल कर इंस्टीटयूट को ही नहीं, मेरी मौत के बाद सारी चलअचल संपत्ति ही हड़प लेने की योजना बना डाली.

‘‘लेकिन संयोग से नवीन करमाकर, जिन्होंने अपनी इज्जत दांव पर लगा कर वीच आए तो न केवल इस साजिश का पर्दाफाश किया, बल्कि मुझे मेरी बहू और पोते से भी मिलवा दिया. अब मैं शायद उन ज्यादतियों की कुछ भरपाई कर सकूंगा, जो मैं ने इन के साथ की हैं.’’

हीरा कारोबारी हत्याकांड में फंसी ‘गोपी बहू’- भाग 2

मृतक राजेश्वर उदानी की काल डिटेल्स में पुलिस को मुंबई और नवी मुंबई की कई लड़कियों के मोबाइल नंबर मिले, जिस में अधिकतर बार बालाएं, डांसर और टीवी एक्ट्रैस थीं. मगर टीवी अभिनेत्री देवोलीना से उन की अधिक बात होती थी, इसलिए पुलिस को देवोलीना पर ज्यादा शक था.

पुलिस जब उस के निवास पर पहुंची तो पता चला कि वह भी उसी दिन अपने पैतृक घर गुवाहाटी चली गई थी, जिस दिन सचिन पवार गायब हुआ था. इस पर पुलिस अधिकारियों ने असम की गुवाहाटी पुलिस से संपर्क कर उसे इस मामले की जानकारी दी और फिर अपनी एक स्पैशल टीम गुवाहाटी के लिए रवाना कर दी.

मुंबई पुलिस ने गुवाहाटी पुलिस की मदद से टीवी अभिनेत्री देवोलीना भट्टाचार्य को गिरफ्तार कर लिया. साथ ही सचिन पवार भी गुवाहाटी से गिरफ्तार हो गया. सचिन पवार और देवोलीना भट्टाचार्य को पुलिस मुंबई ले आई.

जब उन दोनों से पूछताछ की गई तो उन्होंने न सिर्फ राजेश्वर उदानी की हत्या में अपना हाथ होने की बात स्वीकार की, बल्कि हत्या में शामिल 5 और लोगों के नाम भी उजागर कर दिए. उन में उसी थाने का एक निलंबित कांस्टेबल दिनेश दिलीप पवार भी शामिल था, जिस पर पहले से ही बलात्कार का एक मुकदमा दर्ज था. फिलहाल वह जमानत पर बाहर था.

इस के अलावा जो अन्य 4 लोग थे, उन में एक मौडल निखिल उर्फ जारा मोहम्मद खान, शाइस्ता सरबर खान उर्फ डौली, महेश भास्कर भोईर और प्रवीण भोईर शामिल थे. इन सब को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ के आधार पर हीरा व्यापारी और बिल्डर राजेश्वर उदानी की मर्डर मिस्ट्री की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

इस मर्डर मिस्ट्री का मास्टरमाइंड सचिन पवार था. वह महत्त्वाकांक्षी युवक था. उस के पिता दिवाकर पवार एक निजी कंपनी में नौकरी करते थे और मां महानगर पालिका के स्कूल में टीचर थीं. सचिन पवार अपने 6 भाईबहनों में सब से छोटा था.

पिता की मृत्यु के बाद परिवार की सारी जिम्मेदारी उस की मां के कंधों पर आ गई थी. ऐसे में घर की आर्थिक स्थिति चरमरा गई. इस के बावजूद मां ने बच्चों की परवरिश बड़ी मेहनत और लगन से की.

सचिन पवार की प्रारंभिक पढ़ाई कौनवेंट स्कूल में हुई थी. मां को सचिन से काफी आशाएं थीं, इसलिए वह उस पर बहुत ध्यान देती थीं. मां सचिन को एक कामयाब इंसान बनाना चाहती थीं. सचिन पवार भी मां के सपनों की इज्जत करता था. उस की पढ़ाई का बोझ मां के कंधों पर ज्यादा न पड़े, इस के लिए वह एक डेयरी से दूध ले कर घरघर जा कर सप्लाई करता था.

सचिन पवार पढ़ाई में होशियार तो था ही, इस के अलावा वह बेहद चालाक भी था. वह अकसर अपने फायदे के रास्ते खोजा करता था. कालेज की पढ़ाई के बाद उस का रुझान राजनीति की तरफ हो गया. वह घाटकोपर भाजपा के नगर सेवक मंगलदास भानुशाली और ए.एस. राव के संपर्क में आ गया था.

वहां वह जिम्मेदारी से काम करने लगा. पार्टी के प्रति उस के समर्पण को देख कर विधायक प्रकाश मेहता उस से बहुत प्रभावित हुए. उन्होंने उसे अपने यहां रख लिया और उसे भाजपा युवा मोर्चा का पदाधिकारी बना दिया.

इस बीच जब प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी तो प्रकाश मेहता को प्रदेश सरकार में गृह कल्याण मंत्री बना दिया गया. उन्होंने सचिन पवार को अपना सचिव नियुक्त कर लिया. मंत्री के औफिस में रह कर सचिन ने पैसे तो कमाए ही, साथ ही अपनी पहचान महाराष्ट्र से ले कर दिल्ली तक बना ली.

इसी पहचान की बदौलत वह राजनीति में अपना अलग मुकाम हासिल करना चाहता था. सन 2009 में जब घाटकोपर के रमाबाई अंबेडकर नगर में महानगर पालिका का चुनाव आया तो सचिन पवार ने भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ने के लिए पार्टी से टिकट मांगा, लेकिन पार्टी ने वहां का टिकट किसी और को दे दिया.

यह बात सचिन को अच्छी नहीं लगी. चुनाव लड़ने की बात को उस ने अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया, इसलिए पार्टी पदाधिकारियों के मना करने के बावजूद वह निर्दलीय रूप से पालिका सदस्य का चुनाव लड़ा. इस पर विधायक प्रकाश मेहता नाराज हो गए और उन्होंने उसे अपने सचिव पद से हटा दिया. इस से उस का युवा मोर्चा का पद भी चला गया.

सन 2002 से ले कर 2009 तक सचिन पवार ने विधायक प्रकाश मेहता के साथ किया था. इस बीच वह शहर के कई छोटेबड़े कारोबारियों के संपर्क में आया था. उस ने उन के काम भी कराए थे. इन्हीं कारोबारियों में एक नाम करोड़पति हीरा व्यापारी और बिल्डर राजेश्वर उदानी का भी था.

राजेश्वर उदानी के संपर्क में आने के बाद सचिन पवार ने उन के कंस्ट्रक्शन कारोबार में काफी पैसे भी लगाए थे, जिस से दोनों की गहरी दोस्ती हो गई थी.

सचिन पवार पार्टी पद से हटाए जाने के बाद भी चुप नहीं बैठा. वह घाटकोपर भाजपा इकाई में पार्टी कार्यकर्ता के रूप में जुड़ा रहा और पार्टी विरोधी काम करने लगा. अपने फेसबुक प्रोफाइल में उस ने खुद को विधायक प्रकाश मेहता का सचिव ही दर्शाया. जब पार्टी के स्थानीय पदाधिकारियों को पता चला कि वह पार्टी विरोधी गतिविधियों में संलिप्त है तो पार्टी ने उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया.

पार्टी ने भले ही सचिन को निकाल दिया था लेकिन वह खुद को भाजपा से जुड़ा हुआ दिखाता बताता रहा. किसी न किसी तरह वह अपनी पत्नी साक्षी पवार को पार्टी में शामिल करवाने में कामयाब हो गया.

2017 में सचिन ने रमाबाई अंबेडकर नगर के महानगर पालिका का चुनाव भाजपा के टिकट पर पत्नी को लड़वा दिया. उस की पत्नी साक्षी ने तो भाजपा में अपनी पैठ बना ली लेकिन सचिन पवार को वह जगह नहीं मिली, जिस की उसे चाह थी.

हां, इतना जरूर हुआ कि पत्नी की सिफारिश से सचिन पवार को वापस पार्टी में ले लिया गया, लेकिन उसे कोई पद न दे कर पार्टी के आउटडोर विज्ञापन का काम सौंप दिया था.

भाजपा के विज्ञापनों का काम करतेकरते सचिन बौलीवुड की कई हस्तियों के संपर्क में आया तो उस का झुकाव बौलीवुड की तरफ हो गया.

अपने संपर्कों के आधार पर वह फिल्मों में भी अपनी किस्मत आजमाने की कोशिश करने लगा. उसे कई फिल्मों में छोटेमोटे रोल मिले, लेकिन कामयाबी नहीं मिली. अलबत्ता इस से वह कई एक्स्ट्रा एक्ट्रैस और टीवी एक्ट्रैस के संपर्क में जरूर आ गया.

देवोलीना भट्टाचार्य भी उन्हीं में एक थी. उस समय वह भी बौलीवुड और टीवी धारावाहिकों में अपना कैरियर तलाश रही थी. इसी दौरान सचिन पवार और देवोलीना भट्टाचार्य की मुलाकात हुई और दोनों में गहरी दोस्ती हो गई. यह दोस्ती इतनी आगे तक जा पहुंची कि वह सचिन पवार के साथ लिवइन रिलेशन में रहने लगी.

हनीमून पर दी हत्या की सुपारी – भाग 2

एनी का जन्म स्वीडन के मेरिस्टाड शहर में हुआ था. इस के पहले उस का परिवार युगांडा में रहता था. लेकिन जब युगांडा में ईदी अमीन का शासन हुआ तो उस ने एशियाई लोगों को युगांडा छोड़ने पर मजबूर कर दिया था. सभी को स्वीडन के मेरिस्टाड शहर भेज दिया गया था. तभी एनी का परिवार भी वहां आ गया था. यहीं एनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर के नौकरी कर रही थी.

सारी जानकारी जुटा कर श्रीन के घर वाले एनी के घर रिश्ता मांगने पहुंचे तो उस के घर वालों को जैसे विश्वास ही नहीं हुआ. रिश्ता खुद उन के घर चल कर आया था. वे लोग भी उन्हीं की तरह भारतीय मूल के थे. आर्थिक स्थिति भी बेहतर थी.

लड़का सुंदर और सुशील होने के साथ व्यवसाय में लगा था. कोई ऐब भी नहीं था. इस सब के अलावा सब से बड़ी बात यह थी कि लड़का और लड़की एकदूसरे को प्यार करते थे. इसलिए न करने का सवाल ही नहीं था.

दोनों परिवारों की सहमति पर शादी तय हो गई. इस के बाद पेरिस के होटल रिट्ज में रिंग सेरेमनी हो गई. चूंकि दोनों परिवार भारतीय मूल के थे, उन के अधिकतर रिश्तेदार भारत में रहते थे, इसलिए तय हुआ कि शादी वे भारत में करेंगे. शादी का दिन और जगह भी तय कर ली गई.

29 अक्तूबर, 2010 को बाहरी मुंबई के लेक पोवई रिसौर्ट में हिंदू रीतिरिवाजों से श्रीन और एनी शादी के पवित्र बंधन में बंध गए. श्रीन के अरमानों की डोली में बैठ कर एनी लंदन आ गई. शादी की खुशी में यहां भी दोस्तों और परिचितों के लिए एक पार्टी आयोजित की गई.

एनी हिंडोचा अब एनी देवानी बन गई. एनी हनीमून मनाने साउथ अफ्रीका जाना चाहती थी, जबकि श्रीन पश्चिम के किसी देश जाना चाहता था. कई दिनों तक दोनों में इसी विषय पर चर्चा होती रही. लेकिन दोनों ही अपनी जिद पर अड़े थे.

एनी साउथ अफ्रीका घूमना चाहती थी, जबकि श्रीन इस के लिए तैयार नहीं था. वह यह जरूर कह रहा था कि फिर कभी वह उसे साउथ अफ्रीका घुमा लाएगा. लेकिन अचानक श्रीन का मन बदल गया.

उस ने साउथ अफ्रीका जाने के लिए हां कर करते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हें इतना प्यार करता हूं कि इस छोटी सी बात के लिए तुम्हें निराश नहीं कर सकता. और फिर फर्क ही क्या पड़ता है, हनीमून पश्चिम के किसी देश में मनाया जाए या साउथ अफ्रीका में.’’

नवंबर के दूसरे सप्ताह में हनीमून पर जाने की तैयारी हो गई. 11 नवंबर को दोनों साउथ अफ्रीका के केपटाउन पहुंच गए. कमरे वगैरह पहले से ही बुक थे, इसलिए उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई. अगले दिन सुबह तैयार हो कर श्रीन कहीं जाने लगा तो एनी ने कहा, ‘‘अकेलेअकेले कहां जा रहे हो?’’

‘‘पता करने जा रहा हूं कि यहां कौन कौन सी जगह घूमने लायक है. फिर टैक्सी का भी तो इंतजाम करना होगा. मैं सब पता कर के कुछ देर में आता हूं.’’ कह कर श्रीन चला गया. श्रीन ने लौट कर बताया कि कल सुबह ही टैक्सी आ जाएगी. टैक्सी ड्राइवर अच्छा मिल गया है. वही गाइड का भी काम करेगा. उसे अंगरेजी अच्छी आती है.

13 नवंबर, 2010 को 10 बजे के आसपास श्रीन एनी को ले कर होटल से निकला. टैक्सी गेट पर खड़ी थी. टैक्सी ड्राइवर था जोला टोंगो. वह वहीं का रहने वाला था.

पूरा दिन टोंगो श्रीन और एनी को घुमाता रहा. रात का खाना भी उन लोगों ने बाहर ही खाया. वे काफी दूर निकल गए थे. लौटते समय रात 11 बजे के करीब उन की टैक्सी केपटाउन से 5-6 किलोमीटर दूर टाउनशिप गुगुलेथू से गुजर रही थी तो 2 लोगों ने अचानक सामने आ कर टैक्सी रोक ली.

एनी ने जोला टोंगो से कहा भी कि इतनी रात को गाड़ी रोकना ठीक नहीं है. पता नहीं ये लोग कौन हैं. लेकिन उस ने उस की बात नहीं मानी और गाड़ी रोक दी.

टोंगो ने शीशा खोल कर जानना चाहा कि उन्होंने गाड़ी क्यों रुकवाई है तो दोनों में से एक व्यक्ति ने ड्राइवर टोंगो की कनपटी से रिवाल्वर सटा कर टैक्सी से नीचे आने को कहा. टोंगो चुपचाप नीचे आ गया. पीछे की सीट पर बैठे एनी और श्रीन हैरान परेशान थे.  डर के मारे एनी की तो आवाज ही नहीं निकल रही थी.

टोंगो के उतरने के बाद रिवाल्वर सटाने वाला आदमी ड्राइविंग सीट पर बैठ गया तो उस का साथी उस की बगल वाली सीट पर बैठ गया. दोनों ने अपनी भाषा में कुछ बात की और फिर ड्राइवर की बगल वाली सीट पर बैठे व्यक्ति ने एनी और श्रीन की ओर रिवाल्वर तान कर कहा, ‘‘चुपचाप बैठे रहना. अगर शोर मचाया तो गोली मार दूंगा.’’

एनी एवं श्रीन और ज्यादा डर गए. ड्राइवर जोला टोंगो को वहीं छोड़ कर टैक्सी चल पड़ी. टैक्सी हरारे पहुंची तो श्रीन को सड़क पर फेंक कर टैक्सी फिर आगे बढ़ गई. श्रीन किसी तरह नजदीकी पुलिस स्टेशन पर पहुंचा और एनी के अपहरण की सूचना दी.

पुलिस तुरंत हरकत में आ गई. 14 नवंबर, 2010 की सुबह टैक्सी वेस्ट लिंगेलिथ में लावारिस हालत में खड़ी मिली. टैक्सी की पिछली सीट पर एनी देवानी की लाश पड़ी थी. उस की गरदन में गोली मारी गई थी. सीने और जांघों पर खरोंच के निशान थे. ऊपर का कपड़ा कमर तक उठा हुआ था और अंडरवियर घुटनों के नीचे तक खिसकी हुई थी.

वेस्टर्न केप पुलिस ने अपहरण, डकैती और हत्या का मामला दर्ज कर लिया. मामला विदेशी पर्यटक से जुड़ा था, इसलिए वेस्टर्न के विनिस्टर एल्बर्ट फ्रिटज ने लोगों से अपील की कि अगर कोई इस हत्या के बारे में कोई जानकारी दे सकता है तो आगे आ कर पुलिस की मदद करे. पुलिस को भी त्वरित काररवाई के आदेश दिए गए थे.

मामला काफी संगीन था. पुलिस ने अपनी पूरी ताकत लगा दी. परिणामस्वरूप तीसरे दिन 16 नवंबर को पुलिस ने एक आदमी को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने खुद को निर्दोष बताते हुए 26 वर्षीय जोलाइल मंगेनी पर शक जाहिर किया. इस के बाद उस की निशानदेही पर 17 नवंबर को जोलाइल मंगेनी को गिरफ्तार कर लिया गया.

जोलाइल मंगेनी से पुलिस ने सख्ती से पूछताछ की तो उस ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि उसी ने गोली चला कर एनी देवानी की हत्या की थी. इस वारदात में टैक्सी ड्राइवर जोला टोंगो और मजिवामाडोडा क्वेब भी शामिल था. जोला टोंगो के कहने पर ही उस ने और मजिवामाडोडा क्वेब ने एनी की हत्या की थी. इस के लिए उन्हें मोटी रकम दी गई थी.

सोने की चेन ने बनाया कातिल – भाग 2

इस के बाद पुलिस ने पंफलेट में छपे मोबाइल नंबर और पते के आधार पर कूलर बनाने वाले को पकड़ लिया. वह पास के ही तिलक नगर का रहने वाला था. उस से पूछताछ की गई तो उस ने स्वयं को निर्दोष बताया. इस के बाद उस की शिनाख्त उन लड़कियों से कराई गई तो उन्होंने भी कहा कि यह वह आदमी नहीं है.

इस के बाद पुलिस ने सामने वाले घर में लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज देखी. उस में लाल रंग की शर्ट पहने एक आदमी साइकिल ले कर जाता हुआ दिखाई दिया. उस की साइकिल के पीछे एक बाक्स जैसा कुछ बंधा था. लड़कियों ने बताया था कि शकुंतला बुआ के घर आने वाला आदमी लाल रंग की शर्ट पहने था. वह आया भी साइकिल से था और उस की साइकिल में वेल्डिंग करने वाली मशीन बंधी थी.

पुलिस को लगा कि यही आदमी हो सकता है, जो मृतका बहनों के यहां कूलर बनाने आया था. लेकिन फुटेज में उस का चेहरा स्पष्ट नहीं था, इसलिए यह फुटेज पुलिस के किसी काम की नहीं निकली थी. थाना पलासिया पुलिस ने लूट और शकुंतला मिश्रा एवं अनिता दुबे की हत्या का मुकदमा दर्ज कर अनिता के गायब मोबाइल को आधार बना कर जांच आगे बढ़ाई.

पुलिस ने उस मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस में आखिरी फोन उन्हीं के विभाग के एक चपरासी को किया गया था. चपरासी को बुला कर पूछताछ की गई तो उस ने बताया, ‘‘मैडम ने ही मुझे फोन कर के बुलाया था. दरअसल मेरी साइकिल चोरी हो गई थी. तब मैडम ने कहा था कि उन के यहां एक पुरानी साइकिल पड़ी है. उसी को देने के लिए उन्होंने बुलाया था. जब मैं वहां पहुंचा तो उन्होंने मुझे छुट्टी की अर्जी भी दी थी. उन्होंने कहा था कि उन्हें बुखार है, इसलिए वह औफिस नहीं आएंगी.’’

पूछताछ के बाद पुलिस ने चपरासी के बारे में उस के औफिस में पता किया तो पता चला कि वह सच कह रहा था. उस दिन वह पूरे समय औफिस में ही रहा था. छुट्टी के बाद वह घर चला गया था. हत्या की खबर मिलने पर वह आया भी था.

पड़ोसियों के अनुसार दोनों बहनों का व्यवहार बहुत अच्छा था. दोनों ही बहनें सब से हिलमिल कर रहती थीं. कालोनी के सभी बच्चे उन्हें बुआ कहते थे. इस की वजह यह थी कि उन के मायके वाले भी उसी कालोनी में रहते थे. पुलिस ने यह भी पता किया था कि कहीं प्रौपर्टी का कोई झंझट तो नहीं था. लेकिन इस मामले में भी पुलिस के हाथ कुछ नहीं लगा था. क्योंकि उन के घर वाले इतने संपन्न थे कि वे उन की संपत्ति से कोई मतलब नहीं रखते थे.

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संयोग से 1 मई को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह इंदौर में ही थे. वह मजदूर दिवस के अवसर पर किसी कार्यक्रम में भाग लेने आए थे. इस लूटपाट और 2-2 हत्याओं की सूचना उन्हें मिली तो वह पुलिस अधिकारियों पर काफी नाराज हुए. उन्होंने पुलिस अधिकारियों को जल्द से जल्द हत्यारों को पकड़ने के आदेश दिए.

हत्यारे तक पहुंचने के लिए पुलिस ने अनिता के मोबाइल फोन का सहारा लिया. उसे तत्काल सर्विलांस पर लगवा दिया गया. वह फोन कभी बंद हो रहा था तो कभी चालू. एक बार फोन की लोकेशन इंदौर के बाणगंगा इलाके की मिली. लेकिन जल्दी ही फोन का स्विच औफ हो गया, इसलिए पुलिस कोई काररवाई नहीं कर पाई. इस के बाद फोन की लोकेशन निमाड़ जिले के ठीकरी कस्बे की मिली.

जब सर्विलांस के माध्यम से हत्यारे तक नहीं पहुंचा जा सका तो पुलिस ने दूसरी तकनीक अपनाई. यह तकनीक थी पीएसटीएन (पब्लिक स्विच्ड टेलीकौम नेटवर्क). पुलिस ने इस तकनीक से पता किया कि उस समय (एक निश्चित समय में) वहां कितने मोबाइल चल रहे थे. सर्विलांस के माध्यम से अनिता के मोबाइल की आखिरी  लोकेशन निमाड़ जिले के थाना ठीकरी की मिली थी.

पुलिस को लगा कि अनिता का मोबाइल ठीकरी के आसपास का ही कोई आदमी ले गया है. और जो भी वह फोन ले गया है, उसी आदमी ने इस वारदात को अंजाम दिया है. उस आदमी के बारे में पता करने के लिए पुलिस ने अनिता के घर के पास घटना के समय संचालित होने वाले मोेबाइल फोनों के नंबर निकलवाए. पता चला कि वारदात के समय यानी 3 घंटे के बीच वहां से 3 लाख फोन संचालित हुए थे.

इस के बाद पुलिस ने ठीकरी के टावर से होने वाले मोबाइल नंबरों को निकलवाए. इस के बाद दोनों सूचियों की स्कैनिंग की गई. इन में अनिता के मोबाइल नंबर के अलावा पुलिस को ऐसा मोबाइल नंबर मिला, जो दोनों सूचियों में था.

पुलिस ने उस नंबर के बारे में पता किया तो वह नंबर ठीकरी के पास घटवा गांव रहने वाले हरि सिंह का था. इस के बाद पुलिस ने हरि सिंह के बारे में पता किया. अब पुलिस को उसे गिरफ्तार करना था. थाना पलासिया की एक टीम उसे गिरफ्तार करने के लिए निमाड़ के लिए रवाना हो गई.

थानाप्रभारी शिवपाल सिंह कुशवाह ने स्थानीय थाना ठीकरी पुलिस और पटवारी से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि वहां वर्दी में जाने पर मामला बिगड़ सकता है. गांव वाले उसे बचाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं. उस स्थिति में उसे पकड़ा नहीं जा सकता. फिर जब उस के यहां विवाह समारोह चल रहा हो तो पुलिसिया काररवाई और भी ज्यादा खतरनाक हो सकती थी.

इस स्थिति में थानाप्रभारी शिवपाल सिंह 4 सिपाहियों के साथ पुलिस वर्दी उतार कर बाराती बन कर गांव घटवा जा पहुंचे. हरि सिंह की पहचान के लिए वे अपने साथ बगल के गांव का एक आदमी ले आए थे.

उस आदमी ने जिस आदमी को हरि सिंह बताया, वह लाल रंग की शर्ट पहने था. कैमरे की फुटेज में पुलिस को साइकिल लिए जो आदमी दिखाई दिया था, वह भी लाल रंग की शर्ट पहने था. बाराती बनी पुलिस उस के पीछे लग गई.

साजिश का तोहफा – भाग 3

अदालत में मौजूद सभी लोगों की नजरें नवीन पर जम गईं. सभी उन्हें शक की नजरों से देख रहे थे. नवीन के लिए अब यह मामला मनोज की ही नहीं, अपनी भी इज्जत का सवाल बन गया था.

उस ने रमेश गायकवाड़ को कठघरे में बुला कर जिरह शुरू की, ‘‘क्या यह सही नहीं है कि मनोज सोलकर को इंस्टीटयूट में आते जाते देख कर आप ने खुद नौकरी के लिए औफर दिया था? क्या आप इस वास्तविकता से परिचित नहीं थे कि वह संस्था के संस्थापक सोमनाथ सोलकर का पोता है?’’

‘‘जी हां, इसीलिए तो मैं ने औफर दी थी. किसी छोटे मोटे झगड़े की वजह से दादा पोते एक दूसरे से दूर हो गए थे, इसलिए मैं ने सोचा कि यहां आने पर दोनों कभी मिल सकते हैं. लेकिन वह तो चोर निकला.’’

इस के बाद लंबी सांस ले कर उस ने घटना के बारे में बताना शुरू किया, ‘‘एक दिन मेरे पास आ कर उस ने कहा कि वह शादी कर रहा है. मैं ने उसे मुबारकबाद देने के साथ एक सप्ताह की छुट्टी दे दी. उसी बीच एक जरूरी काम से मैं औफिस से 1-2 मिनट के लिए बाहर जाना पड़ा. जरूरत के लिए कुछ रकम हमारे औफिस की तिजोरी में पड़ी रहती है. मैं वापस आया तो वह काफी घबराया हुआ लग रहा था.

उस समय मैं ने ध्यान नहीं दिया. लेकिन अगले दिन रकम गिनी तो उस में 10 हजार रुपए कम निकले. तब मेरा ध्यान मनोज पर गया. उस की घबराहट से मुझे लगा कि वह रकम उसी ने ली है, इसीलिए वह परेशान था.’’

‘‘तुम ने उसे चोरी में फंसाने के लिए तिजोरी खुली छोड़ी थी. जबकि 10 हजार रुपए तुम ने खुद उसे यह कह कर दिए थे कि संस्थान की परंपरा है कि कर्मचारी की शादी पर रुपए उपहार में देता है.’’

‘‘यह झूठ है,’’ रमेश ने थोड़ी ऊंची आवाज में कहा, ‘‘मनोज हनीमून से वापस आया तो मैं ने उसे बताया कि उस की चोरी पकड़ी जा चुकी है. अपनी हरकत की वजह से वह जेल जा सकता है. लेकिन अगर वह चोरी की गई रकम वापस कर दे तो मैं उस के खिलफ कोई कारर्रवाई नहीं करूंगा. उस ने भी यही बात कह कर बरगलाने की कोशिश की थी, जो आप कह रहे हैं. फिर भी उस ने 10 हजार रुपए भिजवा दिए. अब ऐसे आदमी को कौन नौकरी पर रखेगा, मैं ने भी उसे नौकरी से निकाल दिया.’’

‘‘योर औनर, हकीकत यह थी कि इन लोगों को इस बात का डर सता रहा था कि कहीं दादा और पोते की मुलाकात हो गई और फिर उन में मेलजोल हो गया तो…?’’ नवीन ने कहा, ‘‘लेकिन इस डर का भी कोई न कोई आधार होगा? यह आदमी इंस्टीटयूट में सब से बड़े पद पर आसीन है और यह काला सफेद कुछ भी कर सकता है. मुझे लगता है कि इंस्टीटयूट में जरूर कोई गड़बड़ी हो रही है. इसलिए मैं दरख्वास्त करता हूं कि इंस्टीटयूट के आर्थिक और इंतीजामी मामलों की कायदे से जांच कराई जाए.’’

इस पर इंस्टीटयूट के कानूनी सलाहकार शशांक ठाकरे ने कहा, ‘‘माननीय अदालत को यह बताना जरूरी है कि हर साल इंस्टीटयूट का एकाउंटस सही समय पर आडिट कराया जाता है. इसी के साथ यह भी बता दूं कि पिछले कई सालों से रमेशजी इंस्टीटयूट को कायदे से चला रहे हैं. आज तक इन पर कोई दाग नहीं लगा है. इन का रहन सहन भी अपनी आमदनी के हिसाब से ही है.’’

इस जिरह से इस मुकदमे में जान तो पैदा हो गई थी, लेकिन न्यायाधीश ने यह कहते हुए इंस्टीटयूट के खातों की जांच कराने से मना कर दिया कि वह जरा से संदेह पर इंस्टीटयूट के एकाउंटस की जांच और उस के मामलों में दखल देने की इजाजत नहीं दे सकते.

बहरहाल, नवीन ने कुछ तर्क दे कर अगले दिन सुनवाई के लिए न्यायाधीश को तैयार कर लिया. उन्होंने वादा किया कि कल वह मनोज को अदालत में अवश्य पेश करेंगे. उन की पत्नी अवंतिका को पूरा विश्वास था कि मनोज लोनावाला में अपनी मां के पास गया होगा. अगर वहां नहीं हुआ तो उस की मां को जरूर मालूम होगा कि वह कहां है.

मनोज सचमुच मां के यहां ही था. नवीन और आवंतिका को वहां देख कर वह हैरान रह गया था. पहले तो उस का मन हुआ था कि वह उन से मिले ही न. लेकिन उसे लगा कि एक गलती तो उस ने पहले ही की है. अब उन से मुंह छिपा कर दोबारा गलती करना ठीक नहीं है. वह शर्मिंदा तो था ही, फिर भी मिला.

लेकिन नवीन और अवंतिका उस से जिस तरह मिले थे, उस से उस की सारी झिझक और शर्मिंदगी दूर हो गई थी. उन्हें अंदर ला कर उस ने अपनी मां का परिचय कराया. मां के बालों में भले ही सफेदी झलक रही थी, मगर वह अब भी एक आकर्षक व्यक्तित्व की स्वामिनी थीं. उन का नाम सावित्री सोलकर था.

स्वाति भी आ गई थी. सावित्री अभी तक मनोज के हालात से अनजान थीं. जब नवीन ने उन्हें सारी बात बताई तो लंबी सांस लेते हुए उन्होंने कहा, ‘‘इसे देख कर ही मुझे लग रहा था कि यह मुझ से कुछ छिपा रहा है.’’

इस के बाद नवीन ने मनोज की ओर देखते हुए कहा, ‘‘तुम्हारे चले आने के बावजूद मैं ने तुम्हारे पत्र के आधार पर अदालती काररवाई शुरू करा दी है, क्योंकि मुझे पूरा विश्वास है कि वह पत्र तुम ने अपनी मर्जी से नहीं लिखा था.’’

अय्याशी में डबल मर्डर : होटल मालिक और गर्लफ्रेंड की हत्या – भाग 2

पुलिस कैसे पहुंची हत्यारों तक

सरिता ठाकुर इंदौर में ही एक ब्यूटीपार्लर चलाती थी. सरिता ठाकुर का ब्यूटीपार्लर भी ठीकठाक चलता था. ब्यूटीपार्लर चलाने के दौरान उस के पास हर तरह की महिलाएं आती थीं. यही कारण था कि सरिता ठाकुर अधिकांश महिलाओं की कुंडली भलीभांति जानती थी.

सरिता ठाकुर और रवि ठाकुर के बीच काफी समय से प्रेम प्रसंग चला आ रहा था. उसी के चलते सरिता रवि ठाकुर के पैसे से मालामाल हो गई थी. यही कारण था कि सरिता ठाकुर हर वक्त रवि ठाकुर के लिए कुछ भी करने को तैयार रहती थी.

रवि ठाकुर काफी पैसे वाला था. अपना पैसा वह ब्याज पर भी देने का काम करता था. इस सब में सरिता ठाकुर की ही भागीदारी होती थी. वही उस के लिए ऐसे ग्राहक ढूंढ कर लाती थी, जिन्हें पैसों की जरूरत होती थी.

सरिता ठाकुर के पास हर रोज ऐसी कई महिलाएं आती थीं, जिन्हें पैसों की सख्त जरूरत होती थी. उस के बाद सरिता उन को रवि ठाकुर के पास ले जा कर उस से मिलवाती और फिर उसे उस की जरूरत के हिसाब से उसे पैसा दिलवाती थी. उस पैसे की वापसी की जिम्मेदारी भी सरिता ठाकुर की ही होती थी.

अगर कोई महिला उस का पैसा नहीं लौटा पाती तो वह उसे अपने होटल पर बुलाता और फिर उस की मजबूरी का फायदा उठा कर उस के साथ अवैध संबंध बना लेता था. वह इसी धंधे के सहारे अपनी मनमाफिक महिलाओं के साथ अवैध संबंध बना कर अपनी हवस को मिटाने लगा था.

धीरेधीरे रवि ठाकुर और सरिता ठाकुर के बीच बने संबंध इतने मजबूत हो गए थे कि वह अपने घर भी बहुत ही कम जाता था. उस का सरिता के पास ही ज्यादातर आनाजाना था. सरिता ने अशोक नगर में एक 3 मंजिला मकान में ऊपर का फ्लोर ले रखा था. वह अधिकांश रातें उसी के पास गुजारता था.

सरिता ठाकुर रवि के पास क्यों लाती थी नईनई महिलाएं

ममता देवी भी सरिता ठाकुर की जानपहचान की थी. उस की जानपहचान भी उसी के ब्यूटीपार्लर में हुई थी. सरिता ठाकुर का व्यवहार ममता को बहुत ही अच्छा लगा था. यही कारण था कि कुछ ही दिनों में दोनों में अच्छी दोस्ती हो गई.

उसी दौरान ममता को किसी काम के लिए कुछ पैसों की जरूरत आ पड़ी. उस के लिए उस ने सरिता से जिक्र किया तो सरिता ने कहा, ”बहन, तुम्हें मेरे होते परेशान होने की जरूरत नहीं. तुम्हें जितने पैसे चाहिए, मैं उस की व्यवस्था करा दूंगी.’’

उस के बाद वह एक दिन टाइम निकाल कर उसे साथ ले कर रवि ठाकुर के होटल पहुंची. ममता देखने भालने में सुंदर थी. उस को देखते ही रवि ठाकुर उस की खूबसूरती पर मर मिटा.

सरिता ने रवि ठाकुर से ममता का परिचय कराया. उस के बाद सरिता के कहने पर उस ने उसे कुछ रुपए उधार दे दिए. ममता को पैसे देते वक्त रवि ठाकुर ने उस का मोबाइल नंबर भी ले लिया था.

ममता के मोबाइल लेने के बाद रवि ठाकुर उसे टाइम बेटाइम फोन करता रहता था. जिस के कारण ममता भी खुश थी कि कई होटलों का मालिक होते हुए भी रवि उसे फोन कर उस की खैर खबर लेता रहता है, जिस के कारण ममता भी उस पर बहुत विश्वास करने लगी थी.

उसी विश्वास के चलते एक दिन रवि ठाकुर ने ममता को अपने होटल में बुलाया और उस के साथ शारीरिक संबंध स्थापित कर लिए. उस समय तो ममता ने उस का विरोध नहीं किया, लेकिन इस के बाद में रवि ठाकुर आए दिन उस को होटल में बुलाने लगा था, जो बाद में ममता को खलने लगा. वह उस के पास जाने से आनाकानी करती तो वह उस से अपने रुपए वापस करने की धौंस देने लगा था.

रवि ठाकुर अय्याशी केवल ममता के साथ ही नहीं करता था. बल्कि उस ने इसी तरह से कई महिलाओं को अपने जाल में फंसा रखा था. उन महिलाओं की मजबूरी ही ऐसी थी कि वह न तो रुपए ही लौटा सकती थीं और न ही उस के पास जाने से मना कर सकती थीं.

ममता को यह भी पता चल गया था कि इस सब में सरिता ठाकुर की मिलीजुली साजिश थी. वो ही औरतों को फंसाती और फिर रवि ठाकुर के सामने परोस देती थी. उसे इस दलदल से निकलने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था.

एक दिन रवि ठाकुर ने ममता को फोन मिलाया तो वह उस वक्त टायलेट में गई हुई थी. रवि ठाकुर ने कई बार उसे फोन मिलाया, लेकिन वह उसे उठा नहीं पाई. उसी वक्त उस का पति नितिन बाहर से घर आ गया. ममता का फोन बारबार बजने के कारण नितिन ने ही उसे रिसीव किया. नितिन के रिसीव करते ही रवि ठाकुर ने फोन काट दिया.

उस के बाद नितिन ने अपनी ओर से उसे फोन लगाया तो उस ने रिसीव नहीं किया, जिस से नितिन को कुछ शक हो गया. तब तक ममता भी टायलेट से बाहर आ गई थी. नितिन ने उस के आते ही बताया कि रवि ठाकुर का फोन था.

रवि ने ममता के पास क्यों भेजी अश्लील वीडियो

तब ममता ने बात टालने के लिए कह दिया कि वह अपने पैसे वापस मांग रहा है. तब नितिन ने ममता से कहा कि उस से कह देना कि उस के पैसे वापस करने में कुछ और वक्त लगेगा. उस के बाद नितिन कुछ काम से घर से निकल गया.

तब ममता ने रवि ठाकुर को फोन किया तो उस ने रिसीव करते हुए कहा कि आज शाम वक्त निकाल कर कुछ समय के लिए होटल आ जाना. ममता ने आने से मना किया तो थोड़ी देर बाद ही रवि ठाकुर ने उस के मोबाइल पर एक वीडियो सेंट कर दी. ममता ने उसे देखा तो उस के होश ही उड़ गए.

यह वीडियो उसी के साथ बनाए गए संबंधों की थी. उस के थोड़ी देर बाद ही रवि ठाकुर का फोन आ गया, ”ममता रानी, हमारी वीडियो आप को कैसी लगी? अगर आप को सही लगी तो यह आप के पति के नंबर पर भी भेज दूं. शायद उसे भी पसंद आ जाए.’’

यह बात सुनते ही ममता को दिन में तारे नजर आ गए. उस ने सोचा कि यह वीडियो उस के पति ने देख ली तो वह तो उस की जान ही ले लेगा.

उस दिन उसे पहली बार लगा कि वह बुरी तरह से फंस चुकी है. उस ने इस बात की शिकायत सरिता से की तो सरिता ने भी उसे उलटा जबाव दिया, ”अगर तुम्हें यह सब बुरा लग रहा है तो रवि बाबू के पैसे लौटा दो.’’

सरिता की यह बात ममता को बहुत ही बुरी लगी. फिर वह सरिता से भी नफरत करने लगी थी, लेकिन उसे उस दलदल से निकलने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था.

साजिश का तोहफा – भाग 4

एक पल की खामोशी के बाद मनोज दबी आवाज में बोला, ‘‘कल शाम 7 बजे के आसपास रमेश ने मुझे फोन कर के कहा कि वह नहीं चाहता कि उस की वजह से उसे और उस की मां को तकलीफ पहुंचे. इस के बाद उस ने जो कुछ कहा, मैं उसी के शब्दों में आप को बता रहा हूं.

उस ने कहा था, ‘‘तुम्हारा बाप नंबर एक का बदमाश और जालसाज था. लेकिन उस की मृत्यु के बाद इस बात को दबा दिया गया था. अगर तुम चाहते हो कि यह बात अभी भी उसी तरह दबी रहे तो तुरंत किसी आदमी के हाथ अपने वकील को एक पत्र भेज कर उसे यह मुकदमा वापस लेने को कह दो और शहर छोड़ कर चले जाओ. अगर तुम ने ऐसा नहीं किया तो जहां तुम्हारी मां रहती है, उस पूरे इलाके में उन के बारे में बता कर उन्हें बदनाम कर दिया जाएगा. उस के बाद तुम्हारी मां की क्या हालत होगी, यह तुम जानते ही हो.’’

‘‘मैं ने और स्वाति ने इस बात पर गहराई से विचार किया. हम ने सोचा कि इस उम्र में मां को क्यों परेशान किया जाए. वह चैन से रह रही हैं तो उन्हें उसी तरह चैन से रहने दिया जाए. यही सोच कर हम यहां चले आए. लेकिन जब आप यह मुकदमा लड़ ही रहें हैं और मां को सच्चाई का पता चल ही गया है तो अब आप जो कहेंगे, हम वही करेंगे.’’

‘‘एक घंटे पहले रमेश का फोन यहां भी आया था. इत्तेफाक से फोन मैं ने रिसीव किया था. वह मनोज से बात करना चाहता था, स्वाति ने कहा, लेकिन मैं ने डांट कर फोन काट दिया.’’

‘‘बहुत अच्छा किया,’’ सावित्री सोलकर ने कहा, ‘‘बेटा, यह तुम्हारा फर्ज था कि मेरे बारे में सोच कर तुम ने यह मुकदमा वापस लेने का निर्णय लिया. लेकिन जो गलत है, उस से भी भागना ठीक नहीं है. मैं अभी भी अपनी समस्याओं से निपटने की क्षमता रखती हूं. मुझे इस बात का दुख है कि तुम ने रमेश की बात पर विश्वास कर लिया कि वह तुम्हारे पिता के बारे में जो कहा, वह सही है.’’

‘‘पापा की जिंदगी पर सदैव रहस्य का परदा पड़ा रहा, शायद इसीलिए ऐसा हुआ.’’ मनोज ने सिर झुका कर कहा, ‘‘बहरहाल, मैं अपनी इस गलती पर शर्मिंदा हूं.’’

‘‘क्या आप मनोज के पिता के बारे में मुझे कुछ बताएंगी?’’ नवीन ने कहा.

‘‘क्यों नहीं,’’ सावित्री ने कहा. इस के बाद वह अतीत में खो गईं. थोड़ी देर बाद वह संभल कर बोलीं, ‘‘जब अनिल से मेरी शादी हुई, वह अपने पिता की ही कंपनी में काम करते थे, जिस में उन के पिता सोमनाथ सोलकर के आविष्कार किए हुए बिजली के सामान बनते थे. मेरे ससुर का सोचना था कि मैं ने उन के बेटे को बरबाद कर दिया है. मेरी वजह से वह निकम्मा हो गया है. जबकि सच्चाई यह थी कि अनिल को घूमने फिरने और उन स्थानों के बारे में लिखने का शौक था. अपने इसी शौक की वजह से उन्होंने कंपनी छोड़ने का निर्णय लिया.

‘‘जबकि उन के इस निर्णय में मेरी कोई भूमिका नहीं थी. उन के निर्णय पर सोमनाथ सोलकर ने खूब हंगामा किया. उन का कहना था कि मेरी वजह से उन का एकलौता बेटा अपनी राह से भटक गया है. कंपनी से अलग हो कर अनिल ने एक हवाई जहाज खरीदा और इधर उधर की यात्रा करने लगे. ट्रैवल से संबंधित उन के अनेक लेख विभिन्न पत्रिकाओं में छपने लगे.

‘‘मनोज के जन्म के बाद मेरा उन के साथ जाना कम हो गया. अब वह अकसर अकेले ही जाने लगे थे. 1985 के अप्रैल में जयपुर से आगे रेगिस्तान में उड़ते समय अनिल का जहाज दुर्घटनाग्रस्त हो गया. इस दुर्घटना में केवल जहाज का मलबा मिला था, अनिल की लाश नहीं मिली थी.’’

पल भर की चुप्पी के बाद सावित्री सोलकर ने आगे कहा, ‘‘मुझे जो याद आता है, उस के हिसाब से रमेश गायकवाड़ का मेरे ससुर सोमनाथ सोलकर से दूर का कोई संबंध है. वह उन दिनों कंपनी में ही काम करता था. अनिल की मौत के बाद वह मेरे पास आया था. उस ने मुझ से कहा था कि अनिल के बारे में कुछ ऐसी सच्चाई सामने आई है, जिस का राज बना रहना ठीक है.

‘‘उस ने मुझे कुछ पैसे देते हुए कहा कि इन्हें मेरे ससुर ने भेजे हैं और उन्होंने कहा है कि भविष्य में वह मुझ से कोई संबंध नहीं रखना चाहते. मैं ने पैसे वापस करते हुए कहा था कि मैं वे बातें जरूर जानना चाहूंगी, जिन की वजह से मेरे ससुर मुझ से संबंध खत्म करना चाहते हैं. अनिल ने ऐसा क्या किया था, जिस से उन्हें शर्मिंदगी महसूस हो रही है.

‘‘मैं ने उन से संपर्क करने की कोशिश की, उन्हें पत्र लिखे, समय मांगा, फोन पर बात करने की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली. मजबूर हो कर मैं शांत हो गई. अनिल की मौत के एक साल बाद मुझे पता चला कि मेरे ससुर ने कोई इंस्टीटयूट बनवाया है, जिस का डायरेक्टर रमेश गायकवाड़ को बनाया है. इस से मुझे लगा कि उस ने अनिल पर जो आरोप लगाए थे, वे किसी साजिश के तहत लगाए थे. अब मनोज को वह चोर बता रहा है तो इस के पीछे भी कोई साजिश है.’’

‘‘मुझे लगता है कि अपनी वकील शशांक ठाकरे के साथ मिल कर वह इंस्टीटयूट में कुछ गड़बड़ कर रहा है,’’ नवीन ने कहा, ‘‘लेकिन दोनों यह काम इस तरह कर रहे हैं कि पकड़ में नहीं आ रहे हैं. रमेश रहता भी बहुत साधारण तरीके से है. शायद वे गड़बड़ी इस तरह कर रहे हैं कि इस का लाभ उन्हें भविष्य में मिले. मेरी समझ में यह नहीं आता कि सोमनाथ सोलकर अपने इंस्टीटयूट को पूरी तरह कैसे भूल गए. उन्हें इंस्टीटयूट के बारे में सब से ज्यादा मालूम होगा, क्योंकि यह उन्हीं का बनवाया है. वह कभी नहीं चाहेंगे कि उन का इंस्टीटयूट बरबाद हो. अगर किसी तरह मि. सोमनाथ सोलकर से संपर्क हो जाए तो…?

‘‘अब वह काफी बूढ़े हो चुके हैं, इसलिए बहुत कम लोगों से मिलते हैं?’’ सावित्री ने कहा, ‘‘उन का फोन नंबर भी डायरेक्टरी में नहीं है. लेकिन संयोग से मेरे पास है.’’

नवीन ने वह नंबर डायल किया तो दूसरी ओर से एक कमजोर सी आवाज आई, ‘‘सोमनाथ सोलकर स्पीकिंग.’’

नवीन ने अपना नाम बताया तो उस आवाज में थोड़ी तेजी आई, ‘‘तुम यकीनन गवाह के तौर पर मुझे अदालत में बुलाना चाहते होगे?’’

‘‘जी हां,’’ नवीन ने कहा, ‘‘इस के अलावा मैं आप को इस केस के बारे में भी कुछ बताना चाहता हूं.’’

‘‘मुझे केस के बारे में सब पता है और तुम्हारे बारे में भी.’’ सोमनाथ सोलकर ने बेरुखी से कहा, ‘‘बहरहाल मैं कल सुबह अदालत पहुंच जाऊंगा.’’

हीरा कारोबारी हत्याकांड में फंसी ‘गोपी बहू’ – भाग 1

29 नवंबर, 2018 को मुंबई के उपनगर घाटकोपर, कामा लेन, महालक्ष्मी अपार्टमेंट के रहने वाले राजेश्वर किशोरी लाल उदानी का बेटा रौनक उदानी अपने 2-3 सगे संबंधियों के साथ पंतनगर थाने पहुंचा. राजेश्वर उदानी एक बड़े बिजनैसमैन थे.

थानाप्रभारी रोहिणी काले राजेश्वर किशोरी लाल उदानी और उन के परिवार वालों को अच्छी तरह से जानते थीं. रोहिणी काले ने रौनक उदानी और उस के साथ आए लोगों को सामने रखी कुरसियों पर बैठने का इशारा किया. इस के बाद उन्होंने उन के आने का कारण पूछा. रौनक उदानी ने उन्हें जो कुछ बताया, उसे सुन कर थानाप्रभारी रोहिणी काले के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं.

रौनक उदानी ने उन्हें बताया कि उस के पिता राजेश्वर उदानी 28 नवंबर की रात करीब साढ़े 9 बजे अपने अंधेरी औफिस से घर के लिए निकले थे. रास्ते में उन्हें किसी का फोन आया. इस के बाद उन्होंने अपने ड्राइवर से विक्रोली हाइवे के पंतनगर मार्केट के पास कार रोकने को कहा. वह कार से उतर गए और करीब 50 गज की दूरी पर खड़ी एक दूसरी कार में बैठ कर कहीं चले गए.

जाते समय उन्होंने ड्राइवर से कहा कि वह कार ले जा कर घर पर खड़ी कर दे, वह कुछ देर बाद घर पर आ जाएंगे. लेकिन 24 घंटे का समय निकल जाने के बाद न तो वह घर आए और न ही उन का कोई फोन आया. उन का फोन भी स्विच्ड औफ आ रहा है. उन्हें ले कर घर में सभी को बहुत चिंता हो रही है.

रौनक उदानी की शिकायत पर थानाप्रभारी ने उस के पिता की गुमशुदगी दर्ज कर ली और रौनक उदानी को आश्वासन दिया कि पुलिस जल्द से जल्द उन्हें ढूंढने की कोशिश करेगी.

राजेश्वर उदानी मुंबई के उपनगर घाटकोपर के बहुत बड़े हीरा व्यापारी थे. इस के अलावा उन का एक बड़ा कंस्ट्रक्शन प्रोजैक्ट भी चल रहा था. ऐसे आदमी का गायब होना पुलिस के लिए किसी परेशानी से कम नहीं था.

थानाप्रभारी ने इस बात को गंभीरता से लिया और मामले की जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों के अलावा पुलिस कंट्रोल रूम को भी दे दी. इस मामले की जांच पीआई लता सुतार को सौंप दी गई.

जांच अधिकारी ने गुमशुदा राजेश्वर उदानी की फोटो शहर के सभी पुलिस थानों को सर्कुलेट करने के साथसाथ सीसीटीवी कैमरों के फुटेज और काल डिटेल्स खंगालनी शुरू कर दी. इस से पुलिस को जानकारी मिली कि वह जिस कार में थे, वह एलोरी टोल नाके से होते हुए नवी मुंबई की तरफ गई थी.

उन का फोन जिला रायगढ़, पनवेल में जा कर बंद हो गया था. इस जांच में पुलिस के 6 दिन निकल गए तो उदानी परिवार की चिंता और बढ़ गई थी.

4 दिसंबर, 2018 को रौनक उदानी वापस पुलिस थाने आया और उस ने थानाप्रभारी से अपने पिता के अपहृत होने की आशंका जताई.

हालांकि थानाप्रभारी रोहिणी काले और जांच अधिकारी पीआई लता सुतार भी समझ रही थीं कि इतने बड़े आदमी का गायब होना संयोग नहीं हो सकता. जरूर वह किसी षडयंत्र का शिकार हुए हैं. थानाप्रभारी ने अधिकारियों से विचारविमर्श करने के बाद राजेश्वर उदानी के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर ली.

इस के दूसरे दिन ही पनवेल पुलिस को नेरे गांव के जंगलों में एक शव पड़ी होने की जानकारी मिली. शव इतना खराब हो चुका था कि उस की शिनाख्त करना मुश्किल था.

पनवेल पुलिस ने लाश बरामद करने के बाद पोस्टमार्टम के लिए भेज दी थी. इस के बाद पनवेल पुलिस ने लाश के कपड़े, हुलिया आदि की सूचना कंट्रोलरूम से प्रसारित करा दी.

अज्ञात आदमी की लाश मिलने की जानकारी जब पंतनगर थानाप्रभारी रोहिणी काले को मिली तो वह चौकन्नी हो गईं. उन्होंने तुरंत राजेश्वर उदानी के परिवार वालों को थाने बुलाया और जांच अधिकारी पीआई लता सुतार के साथ नवी मुंबई के पनवेल थाने पहुंच गईं.

पनवेल पुलिस ने उदानी परिवार को लाश के फोटो और कपड़े आदि दिखाए. चूंकि लाश क्षतिग्रस्त थी, इसलिए चेहरा तो पहचान में नहीं आया. लेकिन कपड़ों, जूतों, बेल्ट, घड़ी आदि से रौनक उदानी ने उस लाश की शिनाख्त अपने पिता के रूप में कर दी. उदानी परिवार के सदस्यों का रोरो कर बुरा हाल था. पुलिस ने उन्हें सांत्वना दी.

मामला एक संभ्रांत परिवार के  बड़े हीरा कारोबारी का होने की वजह से पुलिस अधिकारी सक्रिय हो गए. उन्होंने इस मामले को ले कर मीटिंग की, जिस में तमाम संभावनाओं और इनवैस्टीगेशन के बिंदुओं पर बात हुई. एडीशनल सीपी ने थाना पुलिस के साथसाथ क्राइम ब्रांच को भी तफ्तीश में लगा दिया.

आजकल तकनीक इतनी एडवांस हो गई है कि अपराध कितना भी पेचीदा और रहस्यमय क्यों न हो, पुलिस शीघ्र से शीघ्र सौल्व कर ही लेती है. पीआई लता सुतार ने अपने सहयोगियों के साथ राजेश्वर उदानी हत्याकांड की तेजी से जांच करनी शुरू कर दी.

उन्होंने जब राजेश्वर उदानी के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स की गहराई से जांच की तो उस में कुछ ऐसे नाम सामने आए, जिस से यह मामला हाईप्रोफाइल श्रेणी में आ कर खड़ा हो गया. मीडिया वाले भी केस को प्रमुखता से हाइलाइट कर रहे थे. पूरे शहर में इस मामले को ले कर तरहतरह की चर्चाएं चल रही थीं.

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प्रदेश के गृह निर्माण मंत्री प्रकाश मेहता का पूर्वसचिव सचिन पवार, स्टार टीवी के धारावाहिक ‘साथ निभाना साथिया’ की अभिनेत्री देवोलीना भट्टाचार्य जो गोपी बहू के रूप में जानी जाती है, का नाम जुड़ने से लोग स्तब्ध थे.

राजेश्वर उदानी हत्याकांड की काल डिटेल्स में सचिन पवार और अभिनेत्री देवोलीना भट्टाचार्य उर्फ गोपी बहू के नाम भी शामिल थे. जिस दिन राजेश्वर उदानी गायब हुए थे, उस दिन सचिन पवार ने उदानी को सुबह से ले कर शाम तक 13 काल्स की थीं, जिस की वजह से सचिन पवार जांच टीम के राडार पर आ गया था.

यह शक तब और गहरा गया जब सचिन पवार पुलिस टीम को अपने घर पर नहीं मिला. उस का फोन भी स्विच्ड औफ आ रहा था. जांच में पता चला कि सचिन पवार 29 नवंबर, 2018 से ही घर नहीं आया था.

सचिन को घर पर न पा कर पुलिस को थोड़ी निराश हुई. यह निराशा अभिनेत्री देवोलीना भट्टाचार्य की मदद से दूर हो सकती थी. लेकिन ऐसा हुआ नहीं.