Social Crime Stories : 5 लाख रुपए के डिमांड ड्राफ्ट से हुई लाश की पहचान

Social Crime Stories : उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से पहाड़ों की रानी मंसूरी जाने वाले राजपुर रोड पर आनंदमयी आश्रम के पास पड़ी लाश पर सुबहसुबह किसी की नजर पड़ी तो धीरेधीरे  वहां भीड़ लग गई. एकदूसरे को देख कर उत्सुकतावश लोग वहां रुकने लगे थे. लाश देख कर सभी के चेहरों पर दहशत थी. इस की  वजह यह थी कि लाश देख कर ही लग रहा था कि उस की हत्या की गई थी. किसी ने लाश पड़ी होने की सूचना थाना राजपुर को दी तो थानाप्रभारी अमरजीत सिंह पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए थे. लाश और घटनास्थल का निरीक्षण शुरू हुआ. मृतक की उम्र 50 साल के आसपास थी. उस के गले पर दबाए जाने का निशान साफ झलक रहा था. इस का मतलब था कि उस की हत्या गला दबा कर की गई थी. उस की कनपटी पर भी चोट का निशान था.

मामला हत्या का था और यह भी साफ था कि हत्यारों ने कहीं और हत्या कर के शव को यहां ला कर फेंका था. क्योंकि वहां संघर्ष का कोई निशान नहीं था. फिर उस व्यस्त मार्ग पर किसी की हत्या करना भी आसान नहीं था. कब कौन सा मामला पुलिस के लिए महत्त्वपूर्ण बन जाए, इस बात को खुद पुलिस भी नहीं जानती. हत्या की वारदात में जांच को आगे बढ़ाने के लिए मृतक की पहचान जरूरी होती है. इसलिए सब से पहले पुलिस ने वहां एकत्र लोगों से लाश की शिनाख्त करानी चाही. लेकिन जब कोई उस की पहचान नहीं कर सका तो पुलिस ने इस आशय से उस की जेबों की तलाशी ली कि शायद ऐसा कुछ मिल जाए, जिस से उस की शिनाख्त हो सके.

पुलिस की यह युक्ति काम कर गई. तलाशी में उस के पास से 2 मोबाइल फोन, एटीएम कार्ड और कुछ कागजात के साथ 5 लाख रुपए का एक डिमांड ड्राफ्ट मिला. इस सब से मृतक की पहचान हुई तो पुलिस विभाग में हड़कंप मच गया, क्योंकि मृतक राज्य के रसूखदार कृषि मंत्री हरक सिंह रावत का निजी सचिव रहा था. वैसे तो वह जिला रुद्रप्रयाग के जखोली ब्लाक का रहने वाला था, लेकिन देहरादून में वह यमुना कालोनी स्थित हरक सिंह रावत के सरकारी आवास में रहता था.

घटना की सूचना पा कर एसएसपी केवल खुराना, एसपी (सिटी) डा. जगदीशचंद्र और सीओ (मंसूरी) जया बलूनी भी घटनास्थल पर पहुंच गए थे. घटनास्थल से पुलिस को ऐसा कोई सुबूत नहीं मिला था, जिस से हत्यारों तक पहुंचा जा सकता. पुलिस ने लाश का पंचनामा भर कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. मृतक का नाम युद्धवीर था. चूंकि वह एक मंत्री से जुड़ा था, इसलिए राजनीतिक गलियारों में सनसनी फैल गई. यह 1 अगस्त, 2013 की घटना थी.

मामला राजनीतिक व्यक्ति से जुड़ा था, इसलिए पुलिस की जवाबदेही बढ़ गई थी. पुलिस महानिदेशक बी.एस. सिद्धू और आईजी (कानून व्यवस्था) राम सिंह मीणा ने इस मामले का जल्द से जल्द खुलासा करने के निर्देश दिए. डीआईजी अमित कुमार सिन्हा ने अधीनस्थ अधिकारियों से बातचीत कर के जांच में थाना पुलिस की मदद के लिए स्पेशल औपरेशन गु्रप के प्रभारी रवि सैना को भी टीम के साथ लगा दिया था. सूचना पा कर मृतक युद्धवीर का भाई प्रदीप रावत देहरादून आ गया था. जिस की ओर से थाना राजपुर में अज्ञात हत्यारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया था.

अब तक की जांच में पता चला था कि युद्धवीर 2 मोबाइल नंबरों का उपयोग करता था. ये दोनों ही नंबर  ड्यूअल सिम वाले मोबाइल में उपयोग में लाए जाते थे. पुलिस ने दोनों ही नंबरों की काल डिटेल्स और लोकेशन निकलवा ली. पूछताछ में पता चला था कि 9 अगस्त को वह सुबह ही घर से निकल गए थे. चलते समय उन्होंने कोठी के माली का मोबाइल फोन मांग लिया था. ऐसा उन्होंने पहली बार किया था.

पुलिस ने उन लोगों से पूछताछ शुरू की, जिन की युद्धवीर से 8 अगस्त को बात हुई थी. उन्हीं में से एक बलराज था. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में बलराज ने पुलिस को बताया था कि उस ने एसजीआरआर मैडिकल कालेज में अपनी भांजी का एडमिशन कराने के लिए युद्धवीर से बात की थी. इस के लिए उस ने उस से 60 लाख रुपए मांगे थे. उस ने उन्हें 5 लाख रुपए का ड्राफ्ट और 14 लाख रुपए नकद दे भी दिए थे. बाकी रकम एडमिशन होने के बाद देनी थी. लेकिन एडमिशन नहीं हुआ तो वह अपने 14 लाख रुपए वापस मांगने लगा था.

उन्हीं पैसों के लिए बलराज भी सुबह उस के पास गया था. तब उस ने उस से कहा था कि वह उस का इंतजार करे. आज वह एडमिशन करा कर आएगा या फिर पैसे वापस ले कर आएगा. कई घंटे तक वह उस का इंतजार करता रहा. जब वह नहीं आया तो उस ने उसे कई बार फोन किया. लेकिन उस ने कोई जवाब नहीं दिया. तब वह लौट गया था. रात में उस के मोबाइल फोन का स्विच औफ हो गया था.

आवास पर रहने वाले अन्य लोगों ने भी पुलिस को बताया था कि बलराज वहां आया था. उन्हीं लोगों से पूछताछ में पता चला था कि युद्धवीर दोपहर 2 बजे तक कृषि मंत्री हरक सिंह रावत के पीएसओ प्रदीप चौहान के साथ था. उस ने कहीं जाने की बात कही थी तो प्रदीप चौहान ने उसे 3 बजे के आसपास दरबार साहिब पर छोड़ा था. अंतिम लोकेशन और पूछताछ से पता चला था कि युद्धवीर शाम 6 बजे चकराता रोड स्थित नटराज सिनेमा के बाहर दिखाई दिया था.

मृतक राजनीतिक आदमी से तो जुड़ा ही था, उस का अपना भी राजनीतिक वजूद था. वह रुद्रप्रयाग के अगस्त्य मुनि क्षेत्र से जिला पंचायत सदस्य और जखोली ब्लाक का ज्येष्ठ प्रमुख भी रह चुका था. मंत्री हरक सिंह रावत ने भी उस के परिजनों को सांत्वना दे कर घटना का शीघ्र से शीघ्र खुलासे का आश्वासन दिया था. हत्या को ले कर रंजिश, राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और प्रेमप्रसंग Social Crime Stories को ले कर चर्चाएं हो रही थीं. पुलिस को लूटपाट की भी संभावना लग रही थी. लेकिन यह बात समझ में नहीं आ रही थी कि वह माली का मोबाइल फोन मांग कर क्यों ले गया था.

पुलिस ने अपना सारा ध्यान इसी बात पर केंद्रित कर दिया. जांच में यह भी पता चला था कि युद्धवीर छात्र छात्राओं के एडमिशन कराने का काम करता था. ऐसे में यह भी संभावना थी कि एडमिशन न होने से खफा हो कर किसी व्यक्ति ने उस की हत्या कर दी हो. तरहतरह के सवाल उठ रहे थे, जिन का माकूल जवाब पुलिस के पास नहीं था. जांच कर रही पुलिस टीम के हाथ एक सुबूत यह लगा था कि युद्धवीर को चकराता रोड पर जब अंतिम बार देखा गया था, तब उस के साथ एक महिला थी. अब पुलिस को यह पता लगाना था कि वह महिला कौन थी? पुलिस ने काल डिटेल्स की बारीकी से जांच की तो उस में देहरादून के ही पौश इलाके इंदिरानगर की रहने वाली सुधा पटवाल का नंबर सामने आया.

पुलिस ने उस के बारे में पता किया तो मिली जानकारी चौंकाने वाली थी. सुधा प्रौपर्टी डीलिंग से ले कर मैडिकल और इंजीनियरिंग कालेजों में एडमिशन कराने वाली शहर की जानीमानी रसूखदार लौबिस्ट थी. कई राजनैतिक लोगों से भी उस के घनिष्ठ रिश्ते थे. पुलिस को उस पर शक हुआ तो उस के मोबाइल फोन की लोकेशन और काल डिटेल्स निकलवाई. इस से पता चला कि उस के मोबाइल की लोकेशन चकराता रोड और लाश मिलने के स्थान की भी थी. इस के साथ एक और मोबाइल की लोकेशन मिल रही थी, जिस से सुधा की लगातार बात होती रहती थी.

उस नंबर के बारे में पता किया गया तो वह नंबर हरिओम वशिष्ठ उर्फ बिट्टू का निकला. वह उत्तर प्रदेश के जिला मेरठ के थाना नौचंदी के शास्त्रीनगर के रहने वाले बृजपाल का बेटा था. उस के मोबाइल को सर्विलांस पर लगा कर एक पुलिस टीम उस की गिरफ्तारी के लिए निकल पड़ी. आखिर सर्विलांस से मिल रही लोकेशन के आधार पर पुलिस ने सुधा और हरिओम को हिरासत में ले लिया.

पहले तो सुधा ने अपने राजनीतिक संपर्कों की धौंस दिखा कर पुलिस को रौब में लेने कोशिश की थी. लेकिन पुलिस के पास ऐसे सुबूत थे कि उस की यह धौंस जरा भी नहीं चली. फिर तो पूछताछ में उस ने पुलिस के सामने जो खुलासा किया, सुन कर पुलिस दंग रह गई. दरअसल युद्धवीर की हत्या की साजिश सुधा ने ही रची थी. उस ने शातिर चाल चल कर एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की थी.

सुधा और हरिओम से की गई पूछताछ में युद्धवीर की हत्या की चौंकाने वाली जो कहानी निकल कर सामने आई, वह इस प्रकार थी. मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला बुलंदशहर की रहने वाली सुधा का परिवार कई साल पहले मेरठ में आ कर बस गया था. मेरठ आने के बाद सुधा ने देहरादून के रहने वाले देवराज पटवाल से विवाह कर लिया था. देवराज कंप्यूटर इंस्टिट्यूट तो चलाता ही था, साथ ही कंप्यूटर का बिजनेस भी करता था. वह बड़ेबड़े व्यापारिक और सरकारी संस्थानों में कंप्यूटर सप्लाई करता था.

सुधा बेहद महत्त्वाकांक्षी और शातिर दिमाग महिला थी. अंगे्रजी के अलावा फे्रंच पर भी उस की अच्छी पकड़ थी. जिंदगी को जीने का उस का अपना एक अलग ही अंदाज था. उसे रसूख भी पसंद था और ऊंचे ओहदे वाले लोगों से रिश्ता भी. इस के लिए वह कांगे्रस पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर के रसूख वाले लोगों से संपर्क बनाने लगी.

पैसे कमाने के लिए सुधा पार्टटाइम प्रौपर्टी डीलिंग के साथसाथ छात्रछात्राओं के बड़े कालेजों में एडमिशन कराने लगी. करीब 4 साल पहले सुधा के पति देवराज को लकवा मार गया, जिस से वह चलनेफिरने में लाचार हो गया. इस का असर उस के बिजनेस पर पड़ा. घटतेघटते एक दिन ऐसा आया कि उस का बिजनेस पूरी तरह से बंद हो गया.

पति के बिस्तर पर पड़ने के बाद सुधा आजाद हो गई. दौड़धूप कर के उस ने तमाम छोटेबड़े नेताओं से संबंध बना लिए. इस का उसे लाभ भी मिलने लगा. संपर्कों की ही वजह से उस का दलाली का काम बढि़या चल निकला. अब सब कुछ सुधा के हाथ में था. उस की एक बेटी थी, जो दिल्ली से बीटेक कर रही थी. वह बेटी को पढ़ाई के लिए विदेश भेजना चाहती थी. सुधा की पकड़ मोहल्ले से ले कर सत्ता के गलियारों तक हो गई थी. दलाली की कमाई से वह ठाठबाट से रह रही थी. इंदिरानगर की वह जिस कोठी में रहती थी, उस का किराया 20 हजार रुपए महीने था. ऐशोआराम की जिंदगी के लिए वह पैसा पानी की तरह बहाती थी. लोगों पर रौब गांठने के लिए वह नेताओं से अपने संबंधों की धमकी देती थी.

हरक सिंह रावत के यहां भी सुधा का आनाजाना था. इसी आनेजाने में उस की मुलाकात युद्धवीर से हुई तो बातचीत में पता चला कि वह भी एडमिशन कराता है. दोनों की राह एक थी, इसलिए उन में अच्छी पटने लगी. जुलाई में युद्धवीर ने मैडिकल कालेज में एडमिशन कराने की बात की तो उस ने 60 लाख रुपए मांगे. युद्धवीर ने एडमिशन कराने के लिए 14 लाख रुपए एडवांस के रूप में सुधा को दे दिए. लेकिन दिक्कत तब आई, जब एडमिशन नहीं हुआ. ये 14 लाख रुपए बलराज के थे. वह अपने रुपए वापस मांगने लगा तो युद्धवीर सुधा को टोकने लगा.

सुधा इस पेशे की खिलाड़ी थी. ऐसे लोगों को टरकाना उसे अच्छी तरह आता था. इसी तरह के एक मामले में उस पर थाना पिलखुआ में ठगी का एक मुकदमा भी दर्ज हो चुका था. लौबिस्ट के रूप में उस की पहचान बन चुकी थी, इसलिए तमाम लोग उस के पास एडमिशन के लिए आते रहते थे. ऐसे में इस तरह की बातें उस के लिए आम थीं. हरिओम वशिष्ठ भी उस का ऐसा ही शिकार था. सुधा से उस की मुलाकात मेरठ में हुई थी. बातचीत में उस ने हरिओम से देहरादून में प्रौपर्टी में पैसा लगाने को कहा. सुधा की बातचीत और ठाठबाट से हरिओम समझ गया कि यह बेहद प्रभावशाली महिला है. कुछ महीने पहले देहरादून के झाझरा इलाके में 4 बीघा जमीन दिलाने के नाम पर सुधा ने हरिओम से 8 लाख रुपए ले लिए.

बाद में जमीन के कागज फर्जी निकले तो हरिओम को अपने ठगे जाने का भान हुआ. उस ने सुधा से रुपए मांगे तो वह उसे टरकाने लगी. लेकिन हरिओम भी कमाजेर नहीं था. वह उस के पीछे पड़ गया. मजबूर हो कर सुधा ने गहने बेच कर उस के 3 लाख रुपए लौटाए, बाकी रुपए देने का वादा कर लिया. हरिओम को सुधा झेल ही रही थी. अब युद्धवीर वाला मामला भी फंस गया था. दोनों ही पैसे वापस करने के लिए उस पर दबाव बना रहे थे. हरिओम रकम डूबने से काफी खफा था. वैसे तो इस तरह के मामले सुधा अपने रसूख के बल पर दबा देती थी, लेकिन युद्धवीर और हरिओम का मामला ऐसा था, जिस में उस का रसूख काम नहीं कर रहा था. उस की परेशानी तब और बढ़ गई, जब जुलाई के अंतिम सप्ताह में हरिओम ने उसे फोन कर के पैसे वापस करने के लिए धमकी दे दी.

हरिओम की धमकी से सुधा की चिंता बढ़ गई. वह समझ गई कि अगर उस ने हरिओम के पैसे नहीं लौटाए तो वह कुछ भी कर सकता है. आदमी के दिमाग में कब क्या आ जाए, कोई नहीं जानता. परेशानी में दिमाग बचाव के लिए तरहतरह के रास्ते खोजता है. सुधा भी बचाव के Social Crime Stories लिए दिमाग दौड़ाने लगी. फिर उस के दिमाग में जो आया, उस से उसे लगा कि इस से वह सुकून से रह सकेगी. इंसान की फितरत भी है कि वह अपने हिसाब से सिर्फ अपने पक्ष में ही सोचता है. ऐसे में उसे गलत रास्ता भी सही नजर आता है. सुधा के साथ भी ठीक ऐसा ही हो रहा था.

सुधा का एक आपराधिक प्रवृत्ति का दोस्त था उमेश चौधरी. वह हरिद्वार के थाना कनखल के रहने वाले मदनपाल का बेटा था. उस के खिलाफ अलगअलग जिलों में हत्या के 4 मुकदमे दर्ज थे. उमेश की दोस्ती सुधा से भी थी और हरिओम से भी. बात कर के सुधा ने युद्धवीर को खत्म करने के लिए उमेश को 5 लाख रुपए की सुपारी दे दी. रकम काम होने के बाद देना था.

उमेश तैयार हो गया तो सुधा ने कहा, ‘‘तुम्हें हरिओम के साथ ही देहरादून आना है, लेकिन तुम इस बारे में उसे कुछ नहीं बताओगे.’’

‘‘सुपारी ली है मैडम तो बात भी मानूंगा.’’ उमेश ने कहा.

इस के बाद सुधा ने हरिओम को फोन किया, ‘‘1 अगस्त को तुम देहरादून आ जाना. इंतजाम कर के तुम्हारे पैसे दे दूंगी.’’

सुधा की इस बात से खुश हो कर हरिओम ने कहा, ‘‘इस बार मुझे मेरे पूरे पैसे देने होंगे.’’

‘‘ठीक है, हरिओम मैं खुद ही तुम्हारे पैसे दे देना चाहती हूं. लेकिन मेरी भी कुछ मजबूरियां हैं. और हां, तुम एक काम करना.’’

‘‘क्या?’’

‘‘आते समय अपने साथ उमेश को भी लेते आना.’’

‘‘ठीक है.’’ इस के बाद फोन काट दिया गया.

1 अगस्त को हरिओम अपनी स्कार्पियो से पहले हरिद्वार पहुंचा और वहां से उमेश को ले कर देहरादून पहुंच गया. वह उमेश के साथ त्यागी रोड स्थित एक होटल में ठहरा. सुधा हरिओम से मिलने आई तो 3-4 दिनों में उस ने रुपए देने की बात कही. इस के बाद भी सुधा की हरिओम से मोबाइल पर तो बात होती ही रहती थी, वह उस से मिलने भी आती रही. वह हरिओम को एकएक दिन कर के टाल रही थी. 8 अगस्त को हरिओम ने हरिद्वार के रहने वाले अपने दोस्त संजीव को फोन कर के बुला लिया. उसी दिन सुधा ने हरिओम को बताया कि उसे युद्धवीर की हत्या करनी है, क्योंकि युद्धवीर को 14 लाख रुपए वापस करने हैं. अगर उस ने उस के पैसे नहीं लौटाए तो वह उस की हत्या करा देगा. इस काम में उसे उस का साथ देना होगा. इस के बाद वह उस के बाकी पैसे वापस कर देगी.

उसी बीच उमेश ने सुधा का समर्थन करते हुए कहा, ‘‘क्या फर्क पड़ता है यार हरिओम. मुझे इस काम के लिए मैडम ने 5 लाख रुपए देने को कहा है. काम होने पर उस में से मैं आधे तुम्हें दे दूंगा. इस के अलावा तुम्हें अपनी डूबी रकम भी मिल जाएगी. इसलिए तुम्हें मैडम का साथ देना चाहिए.’’

हरिओम इस बात से बेखबर था कि युद्धवीर की हत्या Social Crime Stories का उमेश से पहले ही सौदा हो चुका है. आखिर कुछ देर की बातचीत के बाद हरिओम साथ देने को तैयार हो गया. सुधा का सोचना था कि युद्धवीर की हत्या के बाद उसे 14 लाख रुपए वापस नहीं करने पड़ेंगे. इस के अलावा अगर युद्धवीर का लाया एडमिशन हो गया तो 60 लाख में से बाकी के 46 लाख रुपए भी उसे मिल जाएंगे. इस के बाद वह हरिओम को भी ब्लैकमेल करतेहुए उस के रुपए देने से मना कर देगी.

8 अगस्त को बलराज अपने पैसे लेने आया तो युद्धवीर ने सुधा को फोन किया. सुधा ने उसे गुरुद्वारा साहिब पहुंचने को कहा. प्रदीप चौहान ने उसे गुरुद्वारा साहिब छोड़ दिया. इस के बाद सुधा ने उसे चकराता रोड आने को कहा. उस ने हरिओम को भी वहीं बुला लिया था. हरिओम अपने साथियों के साथ स्कार्पियो से था, जबकि सुधा अपनी स्कूटी से आई थी. उस ने हरिओम का परिचय छद्म नाम से कराते हुए युद्धवीर से कहा, ‘‘यह अनिल श्रीवास्तव हैं.यही कालेज के एडमिशन हेड हैं. इन्हीं को मैं ने 14 लाख रुपए दिए थे. हमें राजपुर रोड चलना होगा. वहीं यह हमें पैसे देंगे.’’

युद्धवीर को क्या पता था कि उसे जाल में उलझाया जा रहा है. पैसों के लिए वह साथ चलने को तैयार हो गया. सुधा युद्धवीर को स्कूटी से ले कर आगेआगे चलने लगी तो उस के पीछेपीछे हरिओम भी अपने साथियों के साथ स्कार्पियो से चल पड़ा. राजपुर रोड पर आ कर सभी रुक गए. सुधा ने अपनी स्कूटी वहीं खड़ी कर दी और गाड़ी चला रहे हरिओम के बगल वाली सीट पर बैठ गई. युद्धवीर पिछली सीट पर उमेश और संजीव के साथ बैठ गया. स्कार्पियो एक बार फिर चल पड़ी. उन लोगों के मन में क्या है, युद्धवीर को पता नहीं था. चलते हुए ही युद्धवीर ने रुपए लौटाने की बात शुरू की तो सुधा का चेहरा तमतमा उठा.

सुधा के इस अंदाज और अंजान लोगों के साथ होने से युद्धवीर को उस पर शक हुआ तो उस ने भागना चाहा. लेकिन स्कार्पियो के दरवाजे से सिर टकरा जाने की वजह से वह गाड़ी के अंदर ही गिर गया. तभी उमेश ने उस के गले में रस्सी डाल कर एकदम से कस दिया. युद्धवीर जान बचाने के लिए छटपटाया, लेकिन उन की पकड़ इतनी मजबूत थी कि वह कुछ नहीं कर सका. अंतत: उस की मौत हो गई. युद्धवीर की हत्या कर के वे उस की लाश को सहस्रधारा नदी की उफनती धारा में फेंकना चाहते थे. युद्धवीर की लाश को उन्होंने बाएं दरवाजे की ओर इस तरह बैठा दिया कि देखने वाले को लगे कि वह सो रहा है. युद्धवीर के मोबाइल फोन जेब से निकाल कर स्विच औफ कर दिए.

रास्ते में एक जगह पुलिस वाहनों की चैकिंग कर रही थी, जिसे देख कर हरिओम घबरा गया और आगे जाने से मना कर दिया. सुधा और उमेश ने उसे बहुत समझाया, लेकिन वह नहीं माना और गाड़ी घुमा ली. लौटते हुए ही उन्होंने लाश आनंदमयी आश्रम के पास सड़क के किनारे फेंक दी. सुधा अपनी स्कूटी ले कर अपने घर चली गई, जबकि हरिओम, उमेश और संजीव स्कार्पियो से हरिद्वार चले गए.

युद्धवीर की हत्या कर सुधा निश्चिंत हो गई कि अब उसे किसी के पैसे नहीं देने पड़ेंगे. उसे विश्वास था कि अगर उस का नाम सामने आया भी तो अपने Social Crime Stories प्रभाव से वह छूट जाएगी. लेकिन उस के मंसूबों पर पानी फिर गया. हरिओम और सुधा से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त रस्सी भी बरामद कर ली. पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

इस के बाद पुलिस ने उमेश को भी गिरफ्तार कर लिया. जबकि संजीव हरिद्वार में अपने खिलाफ पहले से दर्ज छेड़छाड़ के एक मामले की जमानत रद्द करवा कर जेल चला गया. कथा लिखे जाने तक किसी भी आरोपी की जमानत नहीं हुई थी. सुधा ने महत्त्वाकांक्षाओं में जिंदगी को न उलझाया होता और युद्धवीर ने उस पर विश्वास न किया होता तो शायद यह नौबत न आती.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

महिला ने लगाया आरोप काली गाड़ी में हुआ गैंगरेप

Gang Rape Case  : नगेश शर्मा, रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना पर झूठा आरोप लगा कर उन्हें ब्लैकमेल करना चाहता था. इस के लिए उस ने शालू को मोहरा बनाया, शालू ने दोनों पर बलात्कार का आरोप भी लगाया पर…

19 फरवरी 2014 की बात है. करीब 8 बजे गाजियाबाद, हापुड़ रोड पर सड़क किनारे बने एक स्थानीय बस स्टैंड के पास 25-26 साल की एक लड़की के रोने की आवाज सुन कर लोगों का ध्यान उस की ओर चला गया. लग रहा था कि लड़की किसी हादसे का शिकार हुई है. उस के कपड़े अस्तव्यस्त थे और वह नशे की वजह से ठीक से नहीं बोल पा रही थी. उस की हालत देख कर किसी व्यक्ति ने इस की सूचना 100 नंबर पर पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. कुछ ही देर में इलाकाई गश्ती पुलिस की जीप वहां पहुंच गई. पुलिस को आया देख वहां मौजूद तमाशबीन इधरउधर हट गए. पुलिस ने लड़की से पूछताछ की तो उस ने अपना नाम शालू शर्मा बताया. वह मेरठ की रहने वाली थी.

शालू ने बताया कि वह आज सुबह ही काम की तलाश में गाजियाबाद आई थी. यहां कुछ लोगों ने उस का अपहरण कर के उस के साथ बलात्कार किया और उसे एक काली गाड़ी से यहां फेंक कर भाग गए. सामूहिक दुष्कर्म की बात सुन कर पुलिस टीम ने इस घटना की सूचना उच्चाधिकारियों को दे दी और पीडि़ता को जीप में बिठा कर महिला थाना ले आई. अभी पुलिस शालू से पूछताछ कर ही रही थी कि एक अन्य महिला पीडि़ता को ढूंढते हुए थाने पहुंच गई. उस औरत ने अपना नाम बृजेश कौशिक बताते हुए कहा कि वह मेरठ की रहने वाली है और शालू की चाची है.

बृजेश के अनुसार वह शालू को ढूंढ रही थी. तभी उसे बस स्टैंड के पास अस्तव्यस्त हालत में मिली एक लड़की के बारे में पता चला तो वह थाने आ गई. इस मामले की सूचना पा कर थाना कविनगर के थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह, सीओ (द्वितीय) अतुल कुमार यादव, एसपी (सिटी) शिवहरि मीणा व एसएसपी धर्मेंद्र कुमार यादव भी महिला थाना आ गए. पीडि़ता ने पूछताछ में बताया कि उस का नाम सुनीता शर्मा उर्फ शालू शर्मा है और वह पति से अनबन की वजह से अलग किराए के मकान में रहती है. आज सुबह ही वह काम की तलाश में मेरठ से गाजियाबाद आई थी.

बेहोश करके किया सामूहिक दुष्कर्म

गाजियाबाद में कलेक्ट्रेट के पास उस की मुलाकात कामेश सक्सेना नाम के व्यक्ति से हुई, जिस ने उसे काम दिलाने का भरोसा दिया. बातचीत के बाद वह उसे अपनी मोटरसाइकिल पर बिठा कर लोनी स्थित विधि विभाग के औफिस ले गया. इस के बाद वह उसे कुछ उच्च अधिकारियों से मिलवाने का बहाने बैंक कालोनी गाजियाबाद स्थित मित्रगण सहकारी आवास समिति के औफिस ले गया. वहां शाम 6 बजे कामेश ने उसे रविंद्र कुमार सैनी व कुछ अन्य लोगों से यह कह कर मिलवाया कि ये सब गाजियाबाद के बड़े लोग हैं. ये काम भी दिलवाएंगे और पैसा भी देंगे. वहीं पर उसे एक कप चाय पिलाई गई, जिसे पी कर वह बेहोश हो गई. बेहोशी की ही हालत में उन सभी ने उस के साथ सामूहिक Gang Rape Case दुष्कर्म किया. बाद में वे उसे एक काली कार मे डाल कर हापुड़ रोड पर गोविंदपुरम के पास फेंक कर भाग गए.

शालू जिस तरह बात कर रही थी, उस से पुलिस को कतई नहीं लग रहा था कि उस के साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ है. दूसरे बिना किसी सूचना के उस की चाची का थाने आना भी पुलिस को अजीब लग रहा था. इसलिए पुलिस ने आगे बढ़ने से पहले दोनों से ठीक से पूछताछ कर लेना उचित समझा. पूछताछ में शालू ने बताया था कि पति से अलग रहने की वजह से उस का और उस के बेटे का खर्चा नहीं चल पा रहा था. उसे नौकरी की तलाश थी. उस ने नौकरी के लिए अपने पड़ोस में रहने वाली अपनी चाची बृजेश कौशिक से कह रखा था. वह चूंकि समाजसेविका थी और उस के संपर्क भी अच्छे लोगों से थे इसलिए वह उसे नौकरी दिला सकती थी.

काम दिलाने के नाम पर ले गया

19 फरवरी की सुबह उस की चाची का फोन आया कि वह गाजियाबाद आ जाए. वह उसे नौकरी दिला देगी. उस ने यह भी कहा कि वह उसे गाजियाबाद कलेक्ट्रेट के पास मिलेगी. चाची के कहने पर ही वह गाजियाबाद कलेक्ट्रेट पहुंची थी. वहां चाची तो नहीं मिली, कामेश सक्सेना मिल गया. वह काम दिलाने के नाम पर उसे अपने साथ ले गया था. उधर बृजेश ने बताया था कि जब वह कलेक्ट्रेट पहुंची तो शालू उसे वहां नहीं मिली. उस के बाद वह दिन भर उसे ढूंढती रही. उसे शालू की बहुत चिंता हो रही थी. फिर रात गए जब उसे पता चला कि हापुड़ रोड के एक बसस्टैंड के पास एक लड़की पड़ी मिली है और उसे महिला थाने ले जाया गया है तो वह यहां आ गई. यहां पता चला कि वह लड़की शालू ही थी और उस के साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ था.

शालू और बृजेश के बयानों में काफी विरोधाभास था. पुलिस को शक हुआ तो उस ने शालू और बृजेश से पूछा कि जब दोनों के पास मोबाइल फोन थे तो उन्होंने एकदूसरे से फोन पर बात क्यों नहीं की. इस पर दोनों नेटवर्क का रोना रोने लगीं. यह बात पुलिस के गले नहीं उतरी, जिस से उसे शालू और बृजेश की बातों पर कुछ शक हुआ. बहरहाल, पुलिस ने शालू शर्मा के बयान के आधार पर नामजद अभियुक्तों के खिलाफ रात साढ़े 8 बजे धारा 342, 506 व 376 के तहत केस दर्ज कर लिया. इस के साथ ही उसे मैडिकल जांच के लिए जिला अस्पताल भेज दिया गया. मैडिकल जांच में इस बात की पुष्टि हो गई कि शालू के साथ दुष्कर्म हुआ था. चूंकि शालू गैंगरेप की बात कर रही थी, इसलिए मामले की गंभीरता को समझते हुए पुलिस उच्चाधिकारियों ने मीटिंग की और इस की जांच का जिम्मा सीओ (द्वितीय) अतुल यादव को सौंप दिया. उन्हें निर्देश दिया गया कि आरोपियों को गिरफ्तार कर के जल्द से जल्द मामले का खुलासा करें.

पुलिस को हुआ शालू की बातों पर शक

सीओ अतुल कुमार यादव, थानाप्रभारी कविनगर अरुण कुमार सिंह, महिला थानाप्रभारी अंजू सिंह तेवतिया व सबइंस्पेक्टर अमन सिंह ने इस मामले पर आपस में विचारविमर्श किया तो उन्हें शालू और बृजेश के बयानों में विरोधाभास नजर आया. रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना के फोन नंबर शालू से ही मिल गए. पुलिस ने उन से संपर्क किया तो बात भी हो गई. दोनों ही सम्मानित व्यक्ति थे. रविंद्र सैनी प्रौपर्टी का काम करते थे, जबकि कामेश सक्सेना बिजली विभाग में जूनियर इंजीनियर थे. चूंकि Gang Rape Case दुष्कर्म का मामला दर्ज हो चुका था, इसलिए पुलिस ने रात में ही रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना को थाने बुला लिया. दोनों का ही कहना था कि उन पर यह झूठा आरोप लगाया जा रहा है, पुलिस चाहे तो उन की काल डिटेल्स रिकलवा कर उन की लोकेशन पता कर सकती है. चूंकि पुलिस को शालू की बातों पर शक था, इसलिए पुलिस ने रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना का उस से आमनासामना नहीं कराया.

इस की जगह उन्होंने एक बार फिर पीडि़ता शालू से गहन पूछताछ का मन बनाया, ताकि सच्चाई सामने आ सके. लेकिन इस से पहले पुलिस टीम में पीडि़ता और दोनों नामजद आरोपियों के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवा कर चैक कर लिया. तीनों की काल डिटेल्स की पड़ताल से पता चला कि पूरे दिन शालू और कामेश सक्सेना के फोन लोकेशन कलेक्ट्रेट या लोनी के आसपास नहीं थी. जबकि शालू अपने बयान में दावा कर रही थी कि वह कामेश से कलक्ट्रेट पर मिली थी. काल डिटेल्स से यह भी पता चला कि रविंद्र सैनी का कामेश सक्सेना या पीडि़ता से एक बार भी मोबाइल फोन से संपर्क नहीं हुआ था. इस से पुलिस को लगा कि शालू संभवत: कामेश सक्सेना और रविंद्र सैनी को जानती ही नहीं है.

पुलिस ने काल डिटेल्स निकलवाई तो किसका नंबर निकला

ऐसी स्थिति में इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता था कि हो न हो शालू किसी लालच के तहत या किसी के कहने पर रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना पर आरोप लगा रही हो. इस सच्चाई का पता लगाने के लिए पुलिस ने रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना सहित 8 लोगों को शालू के सामने खड़ा कर के पूछा कि वह दुष्कर्मियों को पहचाने. लेकिन वह रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना में से किसी को नहीं पहचान सकी. इस का मतलब वह झूठ बोल रही थी. पुलिस की इस काररवाई ने जांच की दिशा ही बदल दी. अब शालू खुद ही जांच के दायरे में आ गई. दोनों आरोपियों की काल डिटेल्स से यह साबित हो गया था कि वे दोनों भी एकदूसरे के संपर्क में नहीं थे. जबकि पीडि़ता ने अपने बयान में कहा था कि कामेश ने ही उसे रविंद्र से सोसाइटी के औफिस में मिलवाया था. अगर ऐसा होता तो दोनों के बीच बातचीत जरूर हुई होती.

इसी बात को ध्यान में रख कर जब शालू की काल डिटेल्स को फिर से जांचा गया तो उस में एक खास नंबर पर पुलिस की निगाह पड़ी. शालू ने मेरठ से गाजियाबाद आने के बाद उस नंबर पर दिन में कई बार बात की थी. काल डिटेल्स से यह बात भी सामने आ गई थी कि शालू और उस नंबर से फोन करने वाले की ज्यादातर लोकेशन नवयुग मार्केट, गाजियाबाद के आसपास थी. शालू की तथाकथित चाची बृजेश के मोबाइल नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई गई थी. जांच में पता चला कि दिनभर वह भी उस नंबर के संपर्क में रही थी. उस नंबर से उस के मोबाइल पर कई बार फोन आए थे. जब उस संदिग्ध फोन नंबर की आईडी निकलवाई गई तो पता चला कि वह नंबर नगेशचंद्र शर्मा, निवासी गांव रामपुर, जिला हापुड़ का है.

पुलिस ने उस नंबर पर फोन किया तो वह बंद मिला. इस से पुलिस को पक्का यकीन हो गया कि इस मामले में कोई न कोई झोल जरूर है. अगले दौर की पूछताछ के लिए शालू उर्फ सुनीता शर्मा को एक बार फिर से तलब किया गया. इस बार शालू से जब उस के फोन की काल डिटेल्स को आधार बना कर पूछताछ की गई तो वह अधिक देर तक पुलिस के सवालों का सामना नहीं कर सकी. उस ने इस फरजी दुष्कर्म कांड का सारा राज खोल दिया. मेरठ रोड, नई बस्ती निवासी तेजपाल शर्मा की बेटी सुनीता शर्मा उर्फ शालू भले ही अभावों में पलीबढ़ी थी, लेकिन थी महत्त्वाकांक्षी, जब वह 16 साल की थी, तभी उस की शादी मेरठ के ही प्रवीण शर्मा से हो गई. मायके में तो गरीबी थी ही, शालू की ससुराल की आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं थी. शादी के 2 साल बाद ही शालू प्रवीण के बेटे की मां बन गई.

शालू और प्रवीण में वैचारिक मतभेद रहते थे, जो धीरेधीरे बढ़ते गए. जब दोनों में झगड़ा रहने लगा तो शालू ससुराल छोड़ कर अपने बेटे के साथ मायके में रहने आ गई. अपने और बेटे के पालनपोषण के लिए चूंकि नौकरी करना जरूरी था, इसलिए वह नौकरी की तलाश में लग गई. नौकरी तो उसे नहीं मिली, पर राजकुमार गुर्जर उर्फ राजू भैया जरूर मिल गया, जो बसपा के टिकिट पर जिला पंचायत का चुनाव लड़ रहा था. राजनीति की नैया पर सवार हो कर आगे बढ़ने की चाह में शालू ने राजकुमार गुर्जर से नजदीकियां बना लीं और उस के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने लगी. लेकिन कुछ दिनों बाद शालू को लगने लगा कि उसे अपने और अपने बेटे के लिए नौकरी तो करनी ही पड़ेगी. नौकरी की जरूरत महसूस हुई तो शालू ने पड़ोस में रहने वाली अपनी रिश्ते की चाची बृजेश कौशिक से मदद मांगी. उस के कहने पर ही वह गाजियाबाद आई थी.

पुलिस को दिए अपने इकबालिया बयान में शालू शर्मा ने बताया था कि वह अपनी चाची बृजेश कौशिक के माध्यम से नगेशचंद्र शर्मा को जानती थी और उसी के बुलाने पर 19 फरवरी को मेरठ से गाजियाबाद आई थी. नगेशचंद्र का औफिस नवयुग मार्केट में था. उस के नवयुग मार्केट स्थित औफिस पहुंचने के कुछ देर बाद उस की चाची बृजेश कौशिक भी वहां आ गई थी. नगेशचंद्र शर्मा ने शालू को एक परचा लिख कर दिया, जिस पर 2 आदमियों के नाम व फोन नंबर लिखे थे. इन में एक नाम रविंद्र सैनी का और दूसरा कामेश सक्सेना का था. नगेश ने उन दोनों के फोटो शालू को दिखा कर कहा कि उसे उन के खिलाफ दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज कराना है. जब वह एफआईआर दर्ज करा देगी तो उसे 20 हजार रुपए दिए जाएंगे. उस कागज को पढ़ कर शालू ने चाची की ओर देखा तो उस ने कहा कि अगर पैसों की ज्यादा जरूरत है तो यह काम कर दे. इस काम में वह भी उस की मदद करेगी.

अर्द्धबेहोशी की हालत में किया दुष्कर्म

इस के बाद नगेश ने फोन कर के लोनी के एक लड़के शहजाद को बुलाया. उस के आने के बाद नगेश ने उसे कप में डाल कर चाय पिलाई, जिसे पी कर शालू अर्द्धबेहोशी की हालत में आ गई. इस बीच नगेश शहजाद को वहीं छोड़ कर चाची के साथ बाहर चला गया. अर्द्धबेहोशी की हालत में शहजाद ने उस के साथ दुष्कर्म किया. शालू ने आगे बताया कि उस ने अपनी पहली एफआईआर में रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना का नाम नगेशचंद्र शर्मा के कहने पर लिखवाया है, जिन्हें वह जानती तक नहीं थी. शालू शर्मा के इस इकबालिया बयान को अगले दिन धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज कराया गया. शालू के इस बयान के बाद इस मामले की सभी बिखरी कडि़यां जुड़ गई थीं.

पुलिस ने मुखबिरों की निशानदेही और फोन लोकेशन के आधार पर जाल बिछा कर 20 फरवरी, 2014 की सुबह साढ़े 9 बजे बसअड्डे के सामने संतोष अस्पताल के गेट के पास से नगेशचंद्र शर्मा, शहजाद निवासी बंगाली पीर, कस्बा लोनी और बृजेश कौशिक निवासी शिवपुरम, मेरठ को गिरफ्तार कर लिया. उस समय ये तीनों काली वैगनआर कार से कहीं भागने की फिराक में थे. तीनों को थाने ला कर पूछताछ की गई तो नगेश चंद्र शर्मा ने बताया कि वह रविंद्र सैनी व कामेश सक्सेना को पहले से ही जानता था. दोनों ही करोड़पति हैं. उन्हें वह दुष्कर्म के झूठे केस में फंसा कर मोटी रकम वसूलना चाहता था. नगेशचंद्र शर्मा खुद को एटूजेड न्यूज चैनल का पत्रकार बताता था. इसी नाम से उस ने नवयुग मार्केट में औफिस भी खोल रखा था. जबकि शहजाद फोटोग्राफर था और नगेशचंद्र शर्मा के साथ ही रहता था. वैसे एटूजेड चैनल का कहना है कि उस ने नगेशचंद्र शर्मा को काफी पहले निकाल दिया था.

बहरहाल, आरोपी शहजाद ने बताया कि उस ने जो भी किया, नगेशचंद्र शर्मा के कहने पर किया था, वह भी रविंद्र और कामेश को नहीं जानता था. बृजेश कौशिक का भी यही कहना था कि उस ने भी जो किया वह नगेशचंद्र शर्मा के कहने पर किया था. वह भी रविंद्र सैनी या कामेश सक्सेना को नहीं जानती थी. 66 वर्षीय रविंद्र सैनी अपने परिवार के साथ सैक्टर 9, राजनगर गाजियाबाद में रहते थे. उन के दोनों बेटे उच्च शिक्षा प्राप्त थे और अपनेअपने परिवार के साथ अमेरिका और बंगलूरु में रहते थे. रविंद्र सैनी स्टेट बैंक औफ इंडिया की महाराजपुर, गाजियाबाद शाखा से 1998 में रिटायर हुए थे. डिप्टी मैनेजर के पद पर कार्य करते हुए उन्होंने रिटायर होने से पहले एक आवासीय समिति बनाई थी. यह उस समय की बात है, जब दिल्ली और एनसीआर में जमीनों के दाम बहुत कम थे. तब जमीनें आसानी से उपलब्ध थीं.

उसी जमाने में रविंद्र सैनी ने किसानों से 14 एकड़ जमीन खरीद कर एक सोसायटी बनाई, जिस का नाम रखा गया राष्ट्रीय बैंककर्मी एवं मित्रगण आवास समिति. यह आवासीय समिति सदरपुर गाजियाबाद के पास है. इस आवास समिति के पहले चुनाव में प्रमोद कुमार त्यागी को अध्यक्ष व रविंद्र सैनी को सचिव पद के लिए चुना गया था. इस समिति के 203 सदस्य हैं. इस समिति ने जो आवासीय कालोनी बनाई उस का नाम संयोगनगर रखा गया. यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि समिति के पहले चुनाव में ही रविंद्र सैनी को सर्वसम्मति से आजीवन सचिव बनाया गया था. इस पद पर कार्य करते हुए अध्यक्ष प्रमोद त्यागी को जब कई तरह की वित्तीय अनियमितताओं में लिप्त पाया गया तो 2005 के चुनाव में उन्हें पद से हटा दिया गया. उन की जगह वीरेंद्र त्यागी को अध्यक्ष चुना गया. प्रमोद त्यागी ने पद से हटाए जाने का कारण रविंद्र सैनी को माना और उन से रंजिश रखने लगे.

करीब 2 साल तक चुप रहने के बाद प्रमोद त्यागी ने अधिगृहीत जमीन के किसानों के साथ मिल कर कई तरह की अनियमितताओं की शिकायतें जीडीए व अन्य सरकारी विभागों में कीं. लेकिन जब कोई सफलता नहीं मिली तो उन्होंने अपने एक दोस्त विजय पाल त्यागी द्वारा सितंबर, 2010 में रविंद्र सैनी के खिलाफ गाजियाबाद की सिविल कोर्ट में एक मुकदमा दर्ज कराया. इस में कहा गया था कि रविंद्र सैनी ने गाजियाबाद के डूंडाहेड़ा इलाके में उन्हें एक भूखंड दिलाने की एवज में 3 किश्तों में 16 लाख 10 हजार रुपए लिए थे, जिन्हें हड़प लिया है और जमीन की रजिस्ट्री भी नहीं कराई है. यह मुकदमा आज भी अदालत में विचाराधीन है. 18 अक्टूबर 2013 को दोपहर करीब 1 बजे रविंद्र सैनी को जैन नाम के किसी व्यक्ति ने फोन कर के कहा कि वह उन का मकान किराए पर लेना चाहता है.

लेकिन रविंद्र सैनी जब वहां पहुंचे तो बंदूक और रिवाल्वर की नोक पर उन्हें बंधक बना कर उन के बैंक कालोनी स्थित मकान की तीनों मंजिलों की रजिस्ट्री उन के नाम करने, 15 लाख रुपए नकद देने तथा समिति के सचिव पद से हट जाने को कहा गया. ऐसा न करने पर उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी गई. इस घटना की तहरीर उसी दिन देर शाम रविंद्र सैनी ने थाना कविनगर में दर्ज कराने की कोशिश की. लेकिन पुलिस ने रिपोर्ट लिखने से इनकार कर दिया. इस पर रविंद्र सैनी ने अदालत की शरण ली. अदालत के आदेश पर नामजद अभियुक्तों प्रमोद कुमार त्यागी और विजय पाल त्यागी के खिलाफ 18 अक्तूबर, 2013 को भादंवि की धारा 384, 323, 386, 452, 504 व 506 के तहत मुकदमा दर्ज तो कर लिया गया, लेकिन कोई भी काररवाई नहीं की गई.

कोई काररवाई न होती देख रवींद्र सैनी ने अपनी व्यथा एसएसपी गाजियाबाद, डीआईजी मेरठ जोन, मंडलायुक्त मेरठ, डीजीपी लखनऊ, मानव अधिकार आयोग व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तक भी पहुंचाई. लेकिन सिवाय आश्वासनों के उन्हें कुछ नहीं मिला. अभी तक यह लड़ाई और रंजिश व्यक्तिगत थी, लेकिन अब उन्हें एक और झूठे दुष्कर्म केस में फंसाने की कोशिश की गई. इस मामले में नाम आने पर रवींद्र सैनी और उन के परिवार की काफी बदनामी होती, लेकिन पुलिस की तत्परता से वह बालबाल बच गए. इस कथित दुष्कर्म कांड में नामजद दूसरे आरोपी कामेश सक्सेना, गाजियाबाद के बिजली विभाग में कार्यरत हैं और परिवारसहित विजयनगर में रहते हैं.

20 फरवरी, 2014 को रवींद्र सैनी द्वारा दी गई तहरीर के आधार पर भादंवि धारा 384/511 व 120बी के तहत एक एफआईआर दर्ज की गई, जिस में नगेशचंद्र शर्मा, शहजाद व बृजेश कौशिक को आरोपी बनाया गया. इसी मामले में एक अन्य एफआईआर कथित पीडि़ता सुनीता शर्मा उर्फ शालू द्वारा भी दर्ज कराई गई, जिस में नगेशचंद्र शर्मा, शहजाद और बृजेश कौशिक को आरोपी बनाया गया. इन के खिलाफ धारा 376, 342, 506 व 120बी के तहत मामला दर्ज कर काररवाई की गई. गिरफ्तार किए गए तीनों आरोपियों को उसी दिन गाजियाबाद कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों व जनचर्चा पर आधारित है

Social Crime Stories : 20 लाख के लिए साले ने किया जीजा के भाई का कत्ल

Social Crime Stories : आगरा के संजय पैलेस स्थित आईसीआईसीआई बैंक के कैशियर के सामने जैसे ही एक करोड़ रुपए का चैक आया, उस ने नजरें उठा कर चैक रखने वाले को देखा तो एकदम से उस के मुंह से निकल गया, ‘‘नमस्कार इमरान भाई, कहो कैसे हो?’’

‘‘ठीक हूं भाईजान, आप कैसे हैं?’’ जवाब में इमरान ने कहा.

‘‘मैं भी ठीक हूं्.’’ कैशियर ने कहा.

‘‘भाईजान थोड़ा जल्दी कर देंगे, बड़े भाईजान का फोन आ चुका है. वह मेरा ही इंतजार कर रहे हैं.’’ इमरान ने कहा.

कैशियर अपनी सीट से उठा और मैनेजर के कक्ष में गया. थोड़ी देर बाद लौट कर उस ने कहा, ‘‘इमरानभाई, आज तो बैंक में इतनी रकम नहीं है. जो है वह ले लीजिए, बाकी का भुगतान कल कर दूं तो..?’’

‘‘कोई बात नहीं. आज कितना कर सकते हैं?’’ इमरान ने पूछा.

‘‘20-25 लाख होंगे. ऐसा है, आप को आज 20 लाख दे देता हूं. बाकी कल ले लीजिएगा.’’ कैशियर ने कहा तो इमरान ने एक करोड़ वाला चैक वापस ले कर 20 लाख का दूसरा चैक दे दिया. कैशियर ने उसे 20 लाख रुपए दिए तो उन्हें बैग में डाल कर वह बाहर खड़ी अपनी मारुति 800 से शहर से 15 किलोमीटर दूर कुबेरनगर स्थित अपने ताऊ के बेटे पूर्व विधायक जुल्फिकार अहमद भुट्टो के स्लाटर हाउस (कट्टीखाने) की ओर चल पड़ा.

यह शाम के सवा 4 बजे की बात थी. साढे़ 4 बजे के आसपास इमरान पैसे ले कर वाटर वर्क्स चौराहे पर पहुंचा था कि उस के बड़े भाई इरफान का फोन आ गया. फोन रिसीव कर के उस ने कहा, ‘‘भाईजान, बैंक से 20 लाख रुपए ही मिल सके हैं. मैं उन्हें ले कर 10-15 मिनट में पहुंच रहा हूं.’’

इमरान ने 10-15 मिनट में पहुंचने को कहा था. लेकिन एक घंटे से भी ज्यादा समय हो गया और वह स्लाटर हाउस नहीं पहुंचा तो उस के बड़े भाई इरफान को चिंता हुई. उस ने इमरान को फोन किया तो पता चला कि उस के दोनों फोन बंद हैं. इरफान परेशान हो उठा.  वह बारबार नंबर मिला कर इमरान से संपर्क करने की कोशिश करता रहा, लेकिन फोन बंद होने की वजह से संपर्क नहीं हो पाया. अब तक शाम के 7 बज गए थे. इरफान को हैरानी के साथसाथ चिंता भी होने लगी.

इमरान और इरफान आगरा छावनी से बसपा के विधायक रह चुके जुल्फिकार अहमद भुट्टो के चचेरे भाई थे. दोनों भाई आगरा शहर से यही कोई 15 किलोमीटर दूर कुबेरपुर स्थित जुल्फिकार अहमद भुट्टो के स्लाटर हाउस (कट्टीखाने) का कामकाज देखते थे. इरफान फैक्ट्री का एकाउंट संभालता था तो उस से छोटा इमरान फील्ड का काम देखता था. बैंक में रुपए जमा कराने, निकाल कर लाने आदि का काम वही करता था.

चूंकि उन के चचेरे भाई बसपा के विधायक रह चुके थे, इसलिए यह काम इमरान अकेला ही करता था. अपने साथ वह कोई हथियार भी नहीं रखता था. इस की वजह यह थी कि वह खुद तो साहसी था ही, फिर सिर पर बड़े भाई का हाथ भी था. लेकिन जब से उस के बड़े भाई इरफान का साला भोलू स्लाटर हाउस से जुड़ा था, वह इमरान के साथ रहने लगा था. बड़े भाई का साला होने की वजह से भोलू भरोसे का आदमी था. इसीलिए बैंक आनेजाने में इमरान उसे साथ रखने लगा था.

लेकिन 3 दिसंबर को भोलू ने फोन कर के कहा था कि वह जानवरों की खरीदारी के लिए शमसाबाद जा रहा है, इसलिए आज नहीं आ पाएगा. भोलू ने यह बात इमरान और इरफान दोनों भाइयों को बता दी थी, जिस से वे उस का इंतजार न करें. भोलू नहीं आया तो इमरान अकेला ही बैंक चला गया था. वह चला तो गया था, लेकिन लौट कर नहीं आया था.

7 बजे के आसपास पैसे ले कर इमरान के वापस न आने की बात इरफान ने बड़े भाई जुल्फिकार अहमद भुट्टो को बताई तो वह भी परेशान हो उठे. उन्हें पैसों की उतनी चिंता नहीं थी, जितनी भाई की थी. वह इमरान को बहुत पसंद करते थे. इसीलिए उन्होंने उसे अपने यहां रखा था. उन के यहां काम करते उसे लगभग ढाई साल हो गए थे. इस बीच उस ने एक पैसे की भी हेराफेरी नहीं की थी.

जुल्फिकार अहमद भुट्टो ने भी इमरान के दोनों नंबरों पर फोन किया. जब दोनों नंबर बंद मिले तो वह इरफान के अलावा फैक्ट्री के 20-25 लोगों को 6-7 गाडि़यों से ले कर वाटर वर्क्स चौराहे पर जा पहुंचे, क्योंकि इमरान ने वहीं से बड़े भाई इरफान को आखिरी फोन किया था. इधरउधर तलाश करने के बाद वहां के दुकानदारों से ही नहीं, बीट पर मौजूद सिपाहियों से भी पूछा गया कि यहां कोई हादसा तो नहीं हुआ था.

वाटर वर्क्स चौराहे पर इमरान के बारे में कुछ पता नहीं चला तो वाटर वर्क्स चौराहे से फैक्ट्री तक ही नहीं, पूरे शहर में उस की तलाश की गई. लेकिन उस के बारे में कहीं कुछ पता नहीं चला. सब हैरानपरेशान थे. लोगों की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर इमरान कहां चला गया. ऐसे में जब कुछ लोगों ने आशंका व्यक्त की कि कहीं पैसे ले कर इमरान भाग तो नहीं गया, तब पूर्व विधायक जुल्फिकार अहमद ने चीख कर कहा था, ‘भूल कर भी ऐसी बात मत करना. वह मेरा भाई है, ऐसा हरगिज नहीं कर सकता.’

सुबह होते ही फिर इमरान की खोज शुरू हो गई थी. उस के इस तरह गायब होने से उस के घर में कोहराम मचा हुआ था. घर के किसी भी सदस्य के आंसू थम नहीं रहे थे. सब को इस बात की आशंका सता रही थी कि कहीं इमरान के साथ कोई अनहोनी तो नहीं घट गई. बैंक जा कर भी इमरान के बारे में पूछा गया. बैंक में लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज भी देखी गई. पता चला, वह बैंक में अकेला ही आया था और अकेला ही गया था.

अब इमरान के घर वालों के पास इमरान की गुमशुदगी दर्ज कराने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं बचा था. जुल्फिकार अहमद भुट्टो पुलिस अधीक्षक (नगर) पवन कुमार से मिले और उन्हें सारी बात बताई. उन्होंने तुरंत थाना हरिपर्वत के थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार और क्षेत्राधिकारी समीर सौरभ को इस मामले को प्राथमिकता से देखने का आदेश दिया. थाना हरि पर्वत पुलिस ने इमरान की गुमशुदगी दर्ज कर इमरान के दोनों नंबर सर्विलांस सेल को दे कर उन की काल डिटेल्स और आखिरी लोकेशन बताने का आग्रह किया.

पुलिस अधीक्षक (नगर) पवन कुमार ने इस मामले की जानकारी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर को भी दे दी थी. पुलिस इस मामले में तत्परता से लग गई. इमरान के मोबाइल जब बंद हुए थे, तब वे वाटर वर्क्स और रामबाग चौराहे के टावरों की सीमा में थे. काल डिटेल्स में ऐसा कोई भी नंबर नहीं था, जिस पर संदेह किया जाता. जो भी फोन आए थे या किए गए थे, वे अपनों को ही किए गए थे या आए थे. जैसे कि इरफान, पूर्व विधायक के घर के नंबरों व भोलू के नंबरों के थे. एक दिन पहले भी इरफान या भोलू के फोन आए थे या इन्हें ही किए गए थे. चूंकि पुलिस को इन फोनों में कुछ नया या संदेहास्पद नजर नहीं आया, इसलिए पुलिस अन्य बातों पर विचार करने लगी.

इस काल डिटेल्स और लोकेशन की एकएक कौपी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर, पुलिस अधीक्षक पवन कुमार और क्षेत्राधिकारी समीर सौरभ को भी दी गई थी. इन अधिकारियों ने जब काल डिटेल्स और लोकेशन का अध्ययन किया तो उन्हें एक नंबर पर संदेह हुआ. पुलिस ने उस नंबर की लोकेशन निकलवाई तो यह संदेह और बढ़ गया. यह आदमी कोई और नहीं, इरफान का साला भोलू था, जो इमरान के साथ बैंक आता जाता था.

पुलिस ने भोलू को थाने बुलाया तो उस के साथ पूरा परिवार ही चला आया. सभी पुलिस से उस पर शक की वजह पूछने लगे तो क्षेत्राधिकारी समीर सौरभ ने कहा, ‘‘पुलिस शक के आधार पर ही अभियुक्तों तक पहुंचती है. हम किसी पर भी शक कर सकते हैं. वह सगा हो या पराया. आप लोग निश्चिंत रहें, हम किसी निर्दोष व्यक्ति को कतई नहीं फंसाएंगे.’’

क्षेत्राधिकारी के इस आश्वासन पर सभी को विश्वास हो गया कि भोलू को सिर्फ पूछताछ के लिए बुलाया गया है. क्योंकि वही उस के साथ बैंक आताजाता था. पुलिस भोलू से पूछताछ करती रही, जबकि वह स्वयं को निर्दोष बताते हुए पुलिस की इस काररवाई को अपने साथ अन्याय कहता रहा था. इस तरह 4 दिसंबर का दिन भी बीत गया. कोई जानकारी न मिलने से इमरान के घर वालों की चिंता बढ़ती ही जा रही थी. 5 दिसंबर की सुबह आगरा से यही कोई 20 किलोमीटर दूर यमुना एक्सप्रेसवे से सटे गांव चौगान के पंचमुखी महादेव मंदिर के पुजारी ने एक्सप्रेसवे से सटे एक गड्ढे में एक Social Crime Stories युवक की लाश देखी. चूंकि लाश खून से लथपथ थी, इसलिए उसे समझते देर नहीं लगी कि किसी ने इस अभागे को मार कर यहां फेंक दिया है.

पुजारी ने इस घटना की सूचना ग्रामप्रधान को दी तो उस ने इस बात की जानकारी थाना एत्मादपुर पुलिस को दे दी. थाना एत्मादपुर पुलिस तुरंत घटनास्थल पर पहुंची और लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश की. लाश की शिनाख्त नहीं हो सकी तो उन्होंने इस बात की सूचना जिले के वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. साथ ही उन्होंने मृतक का हुलिया भी बता दिया था. थाना एत्मादपुर पुलिस ने मृतक का जो हुलिया बताया था, वह 3 दिसंबर की शाम से लापता इमरान से हुबहू मिल रहा था. इसलिए वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण-पश्चिम) बबीता साहू, क्षेत्राधिकारी अवनीश कुमार, समीर सौरभ के अलावा कई थानों का पुलिस बल एवं इमरान के घर वालों को साथ ले कर गांव चौगान पहुंच गए.

शव इमरान का ही था. हत्यारों ने उसे बड़ी बेरहमी से मारा था. उसे गोली तो मारी ही थी, उस का गला भी काट दिया था. पुलिस ने जहां लाश पड़ी थी, वहीं से थोड़ी दूरी पर पड़े चाकू और पिस्टल को भी बरामद कर लिया था. साफ था, इन्हीं से इमरान की हत्या की गई थी. हत्या करने वाले दोनों चीजें वहीं फेंक गए थे. घटनास्थल की काररवाई निपटा कर पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए आगरा मैडिकल कालेज भिजवा दिया. लाश बरामद होने से साफ हो गया कि इमरान की हत्या हो चुकी है. लाश के पास उस की कार और पैसे नहीं मिले थे, इस का मतलब यह हत्या उन्हीं पैसों के लिए की गई थी, जो वह बैंक से ले कर चला था. लाश बरामद होने के बाद पुलिस ने भोलू से सख्ती से पूछताछ शुरू की. इस की वजह यह थी कि पुलिस के पास उस के खिलाफ अब तक पुख्ता सुबूत मिल चुके थे.

पुलिस ने उस के मोबाइल फोन की 3 दिसंबर की लोकेशन निकलवाई तो चौगान की मिली थी. पुलिस ने इसी लोकेशन को आधार बना कर भोलू के साथ सख्ती की तो उसे इमरान की हत्या की बात स्वीकार करनी ही पड़ी. इस के बाद उस ने अपने उस साथी का भी नाम बता दिया, जिस के साथ मिल कर उस ने इस घटना को अंजाम दिया था. इमरान की हत्या का राज खुला तो इमरान के घर वाले ही नहीं, रिश्तेदार और दोस्त यार भी हैरान रह गए. हैरान होने वाली बात ही थी. इमरान की हत्या करने वाला भोलू इमरान के बड़े भाई का साला तो था ही, इमरान का पक्का दोस्त भी था. इस के बावजूद उस ने हत्या कर दी थी. आइए, अब यह जानते हैं कि आखिर भोलू ने ऐसा क्यों किया था?

हाजी सलीमुद्दीन और हाजी मोहम्मद आशिक, दोनों सगे भाई आगरा के ताजगंज के कटरा उमर खां में रहते हैं. हाजी मोहम्मद आशिक के बड़े बेटे मोहम्मद जुल्फिकार अहमद भुट्टो उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी के विधायक भी रह चुके हैं. मायावती प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं तो भुट्टो की प्रदेश में खासी इज्जत थी. इस की वजह यह थी कि वह मायावती के खासमखास नसीमुद्दीन सिद्दीकी के खासमखास थे. भुट्टो के विधायक रहते हुए आगरा के कुबेरपुर स्थित उन के स्लाटर हाउस ने खासी तरक्की की. इस की खपत एकाएक बढ़ गई. काम बढ़ा तो वर्कर भी बढ़ गए. तभी उन्होंने अपने चाचा सलीमुद्दीन के बड़े बेटे इरफान को अपने स्लाटर हाउस का हिसाबकिताब देखने के लिए रख लिया. इरफान को यह काम पसंद आ गया तो 2 साल पहले उस ने अपने छोटे भाई इमरान को भी अपनी मदद के लिए स्लाटर हाउस में रख लिया.

20 वर्षीय इमरान मेहनती युवक था. स्लाटर हाउस में नौकरी करने से पहले वह ताजमहल में गाइड का काम करता था. वहां वह ठीकठाक कमाई कर रहा था, लेकिन जब भुट्टो ने उस से इरफान की मदद के लिए स्लाटर हाउस में काम करने को कहा तो उस ने गाइड का काम छोड़ दिया और भाई के स्लाटर हाउस का काम देखने लगा. 5 भाइयों में सब से छोटे Social Crime Stories इमरान ने स्लाटर हाउस में आते ही रुपयों के लेनदेन से ले कर बाहर के सारे काम संभाल लिए. इस तरह इमरान ने आते ही इरफान का बोझ आधा कर दिया.

इरफान की शादी हो चुकी थी. उस का विवाह आगरा शहर के ही वजीरपुरा के रहने वाले अहसान की बेटी सीमा के साथ हुआ था. उस के ससुर दरी के अच्छे कारीगर थे, इसलिए उन का दरियों का कारोबार था. उन के इंतकाल के बाद इस पुश्तैनी काम में ज्यादा मुनाफा नहीं दिखाई दिया तो उन के सब से छोटे बेटे भोलू ने जूतों के डिब्बे बनाने का काम शुरू कर दिया. जबकि उस के 3 अन्य भाई और चाचा दरी का पुश्तैनी कारोबार ही करते रहे. भोलू का जूतों के डिब्बे बनाने का काम बढि़या चल निकला. उसी की कमाई से जल्दी ही उस ने मारुति स्विफ्ट कार खरीद ली. भोलू अपनी बहन सीमा के यहां आताजाता ही रहता था. इसी आनेजाने में उस ने महसूस किया कि स्लाटर हाउस में जो लोग जानवर सप्लाई करते हैं, उन की अच्छीखासी कमाई होती है. उस के पास पैसे तो थे ही, उस ने अपने बहनोई इरफान से इस संबंध में बात की तो उस ने भुट्टो से बात कर के भोलू को जानवर खरीद कर लाने के लिए कह दिया.

इस के बाद भोलू आगरा के जानवरों के बाजारों, किरावली, शमसाबाद, बटेश्वर आदि से सस्ते दामों में जानवर खरीद कर बहनोई की मार्फत स्लाटर हाउस में बेचने लगा. इस काम में उसे अच्छीखासी कमाई होने लगी. जूतों के डिब्बों का उस का काम चल ही रहा था. इस तरह महीने में वह एक लाख रुपए से अधिक की कमाई करने लगा. किरावली बाजार में जानवरों की खरीदारी के दौरान भोलू की मुलाकात सलमान से हुई तो उसे यह आदमी भा गया. सलमान भी जानवरों की खरीदफरोख्त करता था. इस की वजह यह थी कि एक तो भोलू को कई काम देखने पड़ते थे, दूसरे सलमान इस काम में काफी तेज था. इसीलिए पहली मुलाकात में ही भोलू ने सलमान को बिजनैस पार्टनर बना लिया था. इस के बाद दोनों मिल कर जानवर खरीदने और बेचने लगे.

भोलू ने सलमान को बिजनैस पार्टनर तो बना लिया, लेकिन उस के बारे में उसे ज्यादा कुछ पता नहीं था. उस के बारे में उसे सिर्फ इतना पता था कि वह किरावली का रहने वाला है और उस का मोबाइल नंबर यह है. भोलू के साथ रहने में सलमान को फायदा दिखाई दिया, इसलिए वह उस के साथ रहने लगा. बड़े भाई का साला होने की वजह से इमरान की भोलू से खूब पटती थी. जिस दिन भोलू पशु मेले या बाजार नहीं गया होता था, सारा दिन इमरान उसे अपने साथ रखता था. उसी के सामने वह बैंक से पैसे भी निकालता था और जमा भी कराता था. 50 लाख से ले कर करोड़ रुपए निकालना उस के लिए आम बात थी.

भोलू ने कभी कोई ऐसी वैसी हरकत नहीं की थी, इसलिए इमरान उस पर पूरा विश्वास करने लगा था. भोलू का काम दोनों ओर से ठीकठाक चल रहा था. उस की कमाई महीने में लाख रुपए से ऊपर थी. लेकिन कमाई बढ़ी तो उस की पैसों की भूख भी बढ़ गई थी. अब वह करोड़पति बनने के सपने देखने लगा.

एक दिन शाम को वह सलमान के साथ बैठा था तो उस के मुंह से निकला, ‘‘यार सलमान, मेरे पास एक ऐसी योजना है, जिस के तहत हमें एक करोड़ रुपए आसानी से मिल सकते हैं.’’

‘‘कैसे?’’ सलमान ने पूछा.

इस के बाद भोलू ने उसे जो योजना बताई, सुन कर सलमान की रूह कांप उठी. लेकिन जब भोलू ने उसे पूरी योजना समझा कर मिलने वाली रकम का लालच दिया तो वह उस की योजना में शामिल हो गया.  3 दिसंबर को उन्होंने अपनी इस योजना को अंजाम देने की तैयारी भी कर ली. 2 दिसंबर यानी सोमवार को भोलू इमरान के साथ ही रहा. उस दिन बैंक का कोई काम नहीं था, इसलिए बैंक जाना नहीं हुआ. लेकिन उस दिन भोलू को पता चल गया कि अगले दिन इमरान को बैंक जाना है और लगभग एक करोड़े रुपए निकाल कर लाना है. शाम को घर जाते समय इमरान ने भोलू को वाटर वर्क्स चौराहे पर छोड़ दिया तो वहां से वह वजीरपुरा स्थित अपने घर चला गया.

इमरान की गाड़ी से उतरते ही भोलू ने सलमान को फोन कर के अगले दिन चाकू और पिस्तौल ले कर तैयार रहने के लिए कह दिया था. अगले दिन यानी 3 दिसंबर, 2013 दिन मंगलवार को योजनानुसार 10 बजे के आसपास भोलू ने अपने बहनोई इरफान को फोन कर के बताया कि आज वह सलमान के साथ जानवरों की खरीदारी करने शमसाबाद जा रहा है. इसलिए वह देर शाम तक ही स्लाटर हाउस आ पाएगा. तब इरफान ने उस से कहा था, ‘‘आज इमरान को बैंक से बड़ी रकम निकाल कर लाना है, हो सके तो तुम यह काम करा कर जाओ.’’

इस पर भोलू ने कहा, ‘‘दरअसल वहां कुछ व्यापारी सस्ते जानवर ले कर आने वाले हैं, अगर उन से सौदा पट गया तो काफी मोटा मुनाफा हो सकता है. इसलिए वहां जाना जरूरी है.’’

इस के बाद भोलू ने इमरान को भी फोन कर के कहा था, ‘‘इमरानभाई, मैं सलमान के साथ शमसाबाद जानवर खरीदने जा रहा हूं. इसलिए तुम अकेले ही बैंक चले जाना. क्योंकि मैं देर शाम तक ही वापस आ पाऊंगा.’’

योजनानुसार न तो भोलू शमसाबाद गया न सलमान. दोनों साए की तरह इमरान के पीछे इस तह लगे रहे कि वह उन्हें देख न पाए. इस बीच इमरान को फोन कर के वह पूछता रहा कि वह क्या कर रहा है? लेकिन उस ने यह नहीं पूछा था कि आज वह कितने रुपए निकाल रहा है?

इमरान जैसे ही रुपए ले कर बैंक से निकला, भोलू और सलमान टूसीटर से उस से पहले वाटर वर्क्स चौराहे पर पहुंच गए और वहीं खड़े हो कर इमरान पर नजर रखने लगे. जब उन्हें लगा कि इमरान वाटर वर्क्स चौराहे पर पहुंच गया होगा तो भोलू ने उसे फोन किया, ‘‘इमरानभाई, मैं शमसाबाद से लौट आया हूं और वाटर वर्क्स चौराहे पर खड़ा हूं. इस समय तुम कहां हो?’’

‘‘मैं यहीं वाटर वर्क्स चौराहे पर जाम में फंसा हूं. जहां से जवाहर पुल शुरू होता है, तुम वहीं पहुंचो. मैं वहीं से तुम्हें ले लूंगा.’’

भोलू सलमान के साथ जवाहर पुल के पास जा कर खड़ा हो गया. 5-7 मिनट बाद इमरान वहां पहुंचा तो भोलू इमरान की बगल वाली सीट पर बैठ गया तो सलमान पीछे वाली सीट पर. गाड़ी आगे बढ़ गई. इमरान को बातों में उलझा कर भोलू ने डैशबोर्ड पर रखे उस के दोनों मोबाइल फोन के स्विच औफ कर दिए. कार जैसे ही कुबेरपुर के पास पहुंची, भोलू ने कहा, ‘‘इमरानभाई, मेरे 2 दोस्त चौगान गांव के पास एक्सप्रेसवे के नीचे मेरा इंतजार कर रहे हैं. अगर तुम मुझे वहां तक छोड़ देते तो अच्छा रहता.’’

इमरान ने नानुकुर की, लेकिन चौगान गांव वहां से कोई बहुत ज्यादा दूर नहीं था. फिर भोलू पर उसे पूरा विश्वास था, इसलिए साथ में इतने रुपए होने के बावजूद इमरान ने कार चौगान गांव की ओर मोड़ दी. चौगान से कोई आधा किलोमीटर पहले ही सुनसान जंगली रास्ते पर लघुशंका के बहाने भोलू ने इमरान से कार रुकवा ली. भोलू नीचे उतरा और इधरउधर देख कर अंदर बैठे सलमान को इशारा किया. जैसे ही सलमान नीचे उतरा, भोलू ने तमंचा निकाल कर ड्राइविंग सीट पर बैठे इमरान के सीने पर गोली मार दी. उस ने दूसरी गोली मारनी चाही, लेकिन तमंचा धोखा दे गया. गोली लगते ही इमरान के मुंह से हलकी सी चीख निकली और वह छटपटाने लगा. भोलू ने सलमान से छुरा ले कर इमरान पर कई वार करने के साथ गला भी काट दिया कि कहीं यह बच न जाए. चाकू चलाने के दौरान भोलू के दोनों हाथ जख्मी हो गए, जिस में उस ने रूमाल बांध ली.

इस के बाद इमरान की लाश घसीट कर दोनों ने हाईवे से सटे एक गड्ढे में फेंक दी. वहीं पास ही उन्होंने चाकू और तमंचा भी फेंक दिया. इस के बाद कार ले कर भाग निकले. रास्ते में एक हैंडपंप पर कार रोक कर थोड़ीबहुत धुलाई की. वहां से थोड़ा आगे आ कर एक्सप्रेसवे पर उन्होंने रकम गिनी तो पता चला कि ये तो सिर्फ 20 लाख रुपए ही हैं. जबकि उन्हें एक करोड़ रुपए होने की उम्मीद थी. दोनों ने ही अपना अपना सिर पीट लिया. बहरहाल अब तो जो होना था, वह हो गया था. दोनों ने आधीआधी रकम ले ली. भोलू ने  सलमान को कार ठिकाने लगाने के लिए दे कर एक जगह रकम छिपाई और खुद स्लाटर हाउस पहुंच गया.

स्लाटर हाउस में इमरान के न आने की वजह से इरफान परेशान था. बहनोई से हालचाल पूछ कर वह इमरान की तलाश करने के बहाने बाहर आ गया. इरफान ने उस के हाथों पर रूमाल बंधी देखी तो उस के बारे में पूछा था. तब उस ने बहाना बना दिया था. स्लाटर हाउस से निकल कर भोलू ने छिपा कर रखे रुपए अपने एक परिचित के पास रखे और वापस जा कर इरफान के साथ इमरान की तलाश करने लगा.

दूसरी ओर इमरान की कार ले कर गया सलमान वहां से 5 किलोमीटर दूर एक ढाबे पर पहुंचा और एक दुर्घटनाग्रस्त ट्रेलर के पीछे कार खड़ी कर के ढाबे के एक कर्मचारी को 5 सौ रुपए का नोट दे कर कहा कि वह दिल्ली जा रहा है, इसलिए एक दिन के लिए अपनी इस कार को यहीं खड़ी कर रहा है. ढाबे के उस कर्मचारी को क्या ऐतराज होता, उस ने कह दिया कि खड़ी कर दो. सलमान ने वहीं अपने फोन का स्विच औफ किया और रुपए ले कर फरार हो गया.

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पुलिस ने मोबाइल फोन की लोकेशन के आधार पर इमरान की हत्या में भोलू को गिरफ्तार किया था. इस की वजह यह थी कि उस ने सब से कहा था कि वह शमसाबाद जा रहा है, जबकि उस के मोबाइल फोन की लोकेशन आईसीआईसीआई बैंक से ले कर जहां से इमरान की लाश बरामद हुई थी, वहां तक मिली थी. मामले का खुलासा होने के बाद पुलिस ने इमरान की कार तो उस ढाबे से बरामद कर ली थी, लेकिन सलमान का मोबाइल बंद होने की वजह से उसे नहीं पकड़ पाई. पूछताछ के बाद पुलिस ने भोलू को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया था.

सलमान की तलाश में आगरा के कई थानों की पुलिस तो लगी ही है, मृतक इमरान के घर वाले भी उस की खोज में लगे हैं. उन्हें 10 लाख रुपयों से ज्यादा इमरान के हत्यारे को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने की चिंता है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Superstition : 10 साल में 12 कत्ल करने वाले तांत्रिक का खौफनाक रहस्य

Superstition : एक ऐसा सीरियल किलर जो बेहद शातिर और खतरनाक था, 6 महीने तक ड्राइवर बन कर छिपा रहा और लोगों व पुलिस की आंखों में धूल झोंकता रहा।

पुलिस भी उस की असलियत नहीं जान पाई थी. इस मास्टरमाइंड ने अपनी चालाकी और रहस्यमयी पहचान से लंबे समय तक कानून को मात देता रहा. इस सनकी कातिल ने 12 लोगों की हत्या की थी मगर लाख कोशिशों के बावजूद पुलिस को चकमा दे कर फरार हो जाता था। मगर कहते हैं न कि कानून के हाथ लंबे होते हैं और यही हुआ भी। एक दिन पुलिस के शिकंजे में यह आ ही गया।

उसे पकड़ने के लिए पुलिस को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था. मीडिया की सुर्खियों में रही इस कातिल की कहानी ने सब को हैरान कर दिया था। जानते हैं, इस कातिल की रहस्य से जुड़ी क्राइम स्टोरी :

हम बात कर रहे हैं गुजरात के राजकोट में पुलिस हिरासत में लिए गए नवल सिंह और उसे पकड़वाने वाला शख्स जिगर गोहिल की. नवल सिंह नगमा (काल्पनिक नाम) महिला से प्यार करता था. दोनों के बीच प्यार हुआ तो फिर जिस्मानी ताल्लुकात भी बन गए। इस बीच नगमा उस पर शादी करने का दबाव डालने लगी। लेकिन वह शादी करने का झांसा देता रहता. इस के बाद प्यार का झूठा वायदा करने वाले इस तांत्रित प्रेमी ने उस महिला से पीछा छुड़ाने के लिए उस का कत्ल कर कर दिया. जब नगमा के मांबाप और उस के भाई को पता चला कि नगमा गुम है तो उस की तलाशी हुई. मांबाप और उस के भाई को नहीं पता था कि उस के तांत्रिक प्रेमी ने नगमा की हत्या कर उसे दफना दिया है.

पुलिस में शिकायत

जब नगमा के घर वाले अपनी बेटी को ढूंढ़ने में कामयाब नहीं हो पाए तो उन्होंने पुलिस में शिकायत दर्ज करा दी. तांत्रिक डरा हुआ था और जब उसे लगा कि पुलिस मेरे पास पहुंच सकती है तो उस ने एक साजिश रची. उस ने नगमा के मांबाप और भाई से बताया कि वह अपनी तंत्र (Superstition) विद्या से नगमा को ढूंढ़ सकता है मगर इस के लिए सब को एक सुनसान दरगाह पर आना होगा.

फिर तांत्रिक अपने षड्यंत्र में कामयाब हो गया और तीनों को प्रसाद में खतरनाक जहर मिला कर खिला दिया, जिस से तत्काल तीनों की मौत हो गई.

मौत के घाट उतार कर उस ने उन तीनों के पास एक सुसाइड नोट रख दिया. इस मर्डर में सीरियल किलर जिगर गोहिल भी था. पुलिस ने इस अपराधी को पकड़ कर हिरासत में रखा था, लेकिन अचानक लौकअप में उस की तबियत बिगड़ गई और वह मर गया.

इस की मौत को लेकर पुलिस खुद ताज्जुब कर रही थी। इस के बाद पुलिस द्वारा इस सीरियल किलर का पोस्टमार्टम कराया गया. जब पुलिस को पता चला कि उस की मौत हार्ट अटैक से हुई है तो पुलिस सोच में पड़ गई क्योंकि जिन 12 लोगों की मौत हुई थी उन की भी हार्ट अटैक से मौतें हुई थीं.

कौन था नवल

नवल एक तांत्रिक था। वह अपने झूठे तंत्रमंत्र का डर दिखा कर लोगों को फंसाता और उन के पैसे लूट कर मौत के घाट उतार दिया करता था. यह तांत्रिक अहमदाबाद के सुरेंद्र नगर में काला जादू किया करता था. इस को तांत्रिक बनने का आइडिया एक तांत्रिक को देख कर आया था. बाकी इस ने टीवी पर आने वाले क्राइम शो पर सीखा.

तांत्रिक जानता था कि बहुत से लोग लालच में पैसे या सोना डबल कराने के लिए तांत्रिक का सहारा लिया करते हैं. बस, इसी बात को जान कर उस ने लोगों को फायदा उठाना चालू कर दिया. इस तांत्रिक का काला जादू चल पडा. इस के बाद वह लोगों को ठगता चला गया.

2021 के एक रोड ऐक्सिडैंट में एक नौजवान की मौत हो गई थी. पुलिस इसे रोड ऐक्सिडैंट मान कर फाइल बंद कर दी। मगर उस के भाई को शक था कि उस का भाई रोड ऐक्सिडैंट में नहीं बल्कि किसी ने उस की हत्या की है. भाई की मौत का पता लगाने के लिए वह पुलिस के चक्कर काटता रहा, लेकिन पुलिस ने उस की एक भी बात नहीं मानी. इस के बाद वह अपने भाई के कातिल का पता करने में लग गया.

कौन था हत्यारा

उसे पता चला कि 1 महीने पहले उस का भाई एक तांत्रिक (Superstition) के संपर्क में आया था. उस का नाम नवल था. इस के बाद वह नवल के करीब जाने लग गया। उस को पता चला कि उस के पास भी एक कार है जिसे रात में टैक्सी के रूप में चलवाता है. नवल को एक टैक्सी ड्राइवर की जरूरत थी और वह उस के पास जा पहुंचा और पार्ट टाइम टैक्सी चलाने लगा.

उस का ड्राइवर बनने के बाद जिगर को पता चला कि तंत्रमंत्र के अलावा उस के और भी कई रूप हैं. इस के बाद जिगर 7 महीने तक उस का ड्राइवर बना और तंत्रमंत्र के अलावा सारी जानकारी इकट्ठा करने लगा.

जिगर ने नवल का भरोसा इतना जीत लिया था कि उसे अपने पूरे रहस्य बता दिया करता था. नवल ने जिगर से कहा कि एक बिजनैसमैन मेरे पास पैसे डबल कराने आने वाला है. फिर क्या था, नवल जिगर को लालच दे कर बोला कि कार की स्टैपनी में एक बोतल और उस में सोडियम नाइट्रेट नाम का रसायन छिपा हुआ है.

इस के साथ ही एक शराब की बोतल भी है. नवल ने प्लान बनाया था कि वह आदमी उस के पास पैसे डबल कराने आएगा तो तुम उसे इस शराब को पिला देना जिस से उस की मौत हो जाएगी. उस ने बताया कि इस रसायन को पिला कर उस ने कई लोगों को मौत के घाट उतार दिया है. उस ने बताया कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत की वजह हार्ट अटैक आती है. इस बात को सुन कर जिगर को यकीन हो गया था कि उस के भाई की भी मौत इस ने ही की है, क्योंकि पोस्टमार्टम में भी इसी रसायन का नाम आया था. इस के बाद वह पुलिस को मैसेज के जरिए इस बात की जानकारी देता है और अपनी लोकेशन भी बता देता है.

इस के बाद नवल को अरेस्ट कर लिया गया। पुलिस ने पूछताछ की तो उस की बात सुन कर हैरान हो गई थी क्योंकि पुलिस ने एक आम आदमी को अरेस्ट नहीं किया था बल्कि एक सीरियल किलर को अरेस्ट किया था क्योंकि यह किलर 10 साल में 12 कत्ल कर चुका था. पहला कत्ल दादी, दूसरा कत्ल मां और तीसरा कत्ल अपने चाचा का. पुलिस का कहना है कि नवल एक पैसे वाले तांत्रिक (Superstition) को जानता था जो इसी रसायन का प्रयोग किया करता था. पुलिस का मानना है कि 12 कत्ल से भी ज्यादा मौतों का आंकड़ा भी हो सकता था. इस से पूरी पूछताछ करने से पहले ही इस की मौत हो चुकी है.

Social News : जेवरों से लदी महिला को फसाता था पत्रकार

Social News : तथाकथित पत्रकार जगदीश परमार ने अंजना को विश्वास में ले कर न सिर्फ उस का शारीरिक शोषण किया, बल्कि उस से मोटी रकम भी ऐंठ ली. इस शातिर पत्रकार ने अंजना को ही नहीं बल्कि कई और महिलाओं को अपने झांसे में ले कर…

बात 17 मई, 2018 की है. मध्य प्रदेश के उज्जैन रेंज के आईजी राकेश गुप्ता अपने औफिस में विभागीय कार्य निपटा रहे थे, तभी अंजना नाम की एक युवती उन के पास अपनी शिकायत ले कर पहुंची. अंजना उज्जैन के ही पटेल नगर में अपने पति और 2 बच्चों के साथ रहती थी. जो शिकायत ले कर वह आईजी साहब के पास पहुंची थी, वह शिकायत इलैक्ट्रौनिक मीडिया के एक तथाकथित पत्रकार जगदीश परमार के खिलाफ थी.

महिला ने आरोप लगाया कि उज्जैन के सेठी नगर के रहने वाले जगदीश परमार ने न सिर्फ उस के साथ बलात्कार किया बल्कि उस से लाखों रुपए भी ठगे हैं. चूंकि मामला गंभीर और नारी अपराध से जुड़ा था, इसलिए आईजी राकेश गुप्ता ने मामले को गंभीरता से लेते हुए उस की प्रारंभिक जांच कराई तो उस के आरोपों में सच्चाई नजर आई. इस के बाद उन के निर्देश पर एडीशनल एसपी रंजन भट्टाचार्य खुद अंजना को ले कर महिला थाने पहुंचे. वहां पर अंजना की तरफ से जगदीश परमार के खिलाफ भादंवि की धारा 376, 384, 506 के तहत रिपोर्ट दर्ज कराई. इस के बाद महिला थानाप्रभारी रेखा वर्मा ने सरकारी अस्पताल में रात में ही अंजना का मैडिकल परीक्षण कराया.

चूंकि यह काररवाई आईजी साहब के निर्देश पर की गई थी इसलिए एडीशनल एसपी ने की गई काररवाई की जानकारी आईजी राकेश गुप्ता को दे दी. पुलिस को अगली काररवाई पत्रकार जगदीश परमार के खिलाफ करनी थी. चूंकि जगदीश परमार के जिले के अधिकांश अधिकारियों के साथ अच्छे संबंध थे, इसलिए आईजी राकेश गुप्ता ने उस की गिरफ्तारी के लिए एक विशेष टीम का गठन करने के बाद टीम को स्पष्ट निर्देश दे दिया था कि उस की गिरफ्तारी में कोई भी कोताही न बरती जाए.

विशेष टीम ने सेठीनगर में स्थित जगदीश परमार के घर दबिश दी, लेकिन शायद उसे इस बात की भनक लग चुकी थी, इसलिए वह पुलिस के पहुंचने से पहले ही भूमिगत हो चुका था. तब एसपी सचिन अतुलकर ने क्राइम ब्रांच के एडीशनल एसपी प्रमोद सोनकर व महिला थाने की प्रभारी रेखा वर्मा को उस की गिरफ्तारी की जिम्मेदारी सौंपी. दोनों अधिकारियों ने जगदीश के छिपने के संभावित ठिकानों पर ताबड़तोड़ दबिशें डालीं. लेकिन उस का पता नहीं चल सका. लेकिन जगदीश को अपने साथियों की मदद से पुलिस काररवाई की सारी जानकारी मिल रही थी.

पत्रकारिता की ओट ले कर जगदीश परमार ने पिछले कुछ सालों में जिले के अनेक अधिकारियों के बीच अपनी जो पहचान बना रखी थी, उसे देखते हुए उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि पुलिस उस के खिलाफ ऐसी काररवाई भी कर सकती है. पुलिस काररवाई को देखते हुए जगदीश समझ गया था कि अब उस का बच पाना (Social News) मुश्किल है, इसलिए 2 दिन बाद ही उस ने खुद महिला थाने पहुंच कर आत्मसमर्पण कर दिया. उसे गिरफ्तार करने के बाद पुलिस ने सब से पहले उस का मोबाइल फोन और लैपटाप बरामद कर लिया.

पुलिस ने उस से पूछताछ की तो पहले तो वह खुद को निर्दोष साबित करने की कोशिश करता रहा लेकिन बाद में उस ने अंजना के साथ अपने संबंध होना तो स्वीकार कर लिया, लेकिन उस ने ब्लैकमेलिंग और बलात्कार की बात से इनकार किया. उस का कहना था कि हम दोनों के बीच संबंध पूरी तरह आपसी सहमति से बने थे. अंजना ने उसे जो लाखों रुपए दिए थे, उस के सबूत वह पुलिस को सौंप चुकी थी. उन सबूतों के आधार पर पुलिस ने जब जगदीश से पूछताछ की तो वह इस आरोप को झुठला नहीं सका. वह पुलिस की कार्यप्रणाली से वाकिफ था.

वह जानता था कि पुलिस किसी न किसी तरह सच्चाई उगलवा ही लेती है. लिहाजा उस ने झूठ बोलने के बजाय सच्चाई पुलिस को बता दी. इस के बाद वाहन चोर से पत्रकार बने जगदीश परमार के ब्लैकमेलर बनने की कहानी इस प्रकार सामने आई—

जगदीश परमार मूलरूप से बड़नगर तहसील में खरसोद कला गांव का रहने वाला था. बचपन से ही वह शातिर और तिकड़मी था, जिस के कारण घर वाले इस से खासे परेशान रहते थे. उस का पढ़ाई में मन नहीं लगा था और गलत बच्चों की संगति में पड़ गया, जिस से वह फेल हो गया. तब उस के पिता ने उसे गुस्से में डांट कर घर से निकल जाने को कह दिया तो जगदीश सचमुच में घर छोड़ कर इंदौर भाग आया. इंदौर के खजराना इलाके में वह पहुंचा तो उस की मुलाकात शाकिर नाम के युवक से हुई. शाकिर एक जानामाना वाहन चोर था, इसलिए जगदीश भी उस के साथ मिल कर वाहन चोरी करने लगा. इस मामले में वह पहली बार पंडरीनाथ पुलिस के हाथ लग गया.

पुलिस ने कानूनी काररवाई कर के उसे जेल भेज दिया. वह 3 महीने जेल में रहा. गैंग के लोगों ने ही उस की जमानत कराई. उसे लगा कि यह गलत काम उस के लिए ठीक नहीं है. तब वह अपने गांव पहुंच गया और घर जा कर अपने पिता से माफी मांगते हुए वह उन के कदमों में गिर गया. पिता का दिल पिघल गया और उन्होंने उसे घर में पनाह दे दी. जगदीश को तिकड़म की कमाई खाने की आदत पड़ चुकी थी, इसलिए उस ने गांव में गैस सिलेंडर की कालाबाजारी करनी शुरू कर दी. लेकिन इतने से उस का मन नहीं भर रहा था. वह जल्द मोटी कमाई करने के चक्कर में था.

फिर कुछ दिनों बाद गांव के ही एक आदमी के साथ मिल कर वह सट्टा लगवाने का काम करने लगा. जिस के चलते जगदीश परमार का नाम पूरे इलाके में मशहूर हो गया. उस का यह धंधा भी बहुत ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाया. थाना भाटपचाला पुलिस को इस की जानकारी हुई तो तत्कालीन थानाप्रभारी धर्मेंद्र तोमर ने उसे गिरफ्तार कर के उस का पूरे गांव में जुलूस निकाला. इस से पूरे गांव में उस की बहुत बदनामी हुई. जगदीश की जिंदगी में यह वह मोड़ था जब उसे लगा कि अपराध की दुनिया में जमे रहने के लिए पुलिस से संबंध बनाना जरूरी है. इस के लिए उस ने पत्रकारिता का रास्ता चुना.

जगदीश ने उज्जैन से प्रकाशित होने वाले एक छोटे से अखबार में संपर्क बना कर उस के लिए काम करना शुरू कर दिया. इस के बाद उस ने पुलिस अधिकारियों से दोस्ती की और उन के लिए मुखबिरी और दलाली करने लगा. फिर इन संबंधों की ओट में वह लोगों को ब्लैकमेल करने लगा. बताया जाता है कि कुछ समय पहले जगदीश ने महिदपुर की एक महिला को भी ब्लैकमेल करने की कोशिश की थी. उस महिला की शिकायत पर उसे जेल भी जाना पड़ा था. इस के बाद जगदीश ने उज्जैन को अपना ठिकाना बनाया. यहां आ कर वह अफसरों की चाटुकारिता करने लगा.

बताते हैं कि वह पहले अफसरों को लाभ पहुंचा कर बाद में खुद उन से फायदा उठाने की नीति पर काम करता था इसलिए जल्द ही वह सभी विभागों में अधिकारियों का कृपापात्र बन गया. उज्जैन आ कर उस ने एक लोकल न्यूज चैनल में बात की और वहां कैमरामैन बन गया. इस के साथ वह अफसरों के लिए दलाली कर अपना उल्लू सीधा करने लगा. कहानी की दूसरी किरदार अंजना की कहानी भी काफी उतारचढ़ाव भरी है. पटेल नगर में रहने वाली अंजना की आंखें किशोरावस्था में ही मोहल्ले के रहने वाले संजय से लड़ गई थीं.

अति संपन्न किसान परिवार से संबंध रखने वाला संजय उतना ही स्मार्ट था जितनी कि खूबसूरत अंजना थी, इसलिए दोनों की दोस्ती परवान चढ़ी और प्यार में बदल गई. अंजना उस समय बीकौम कर रही थी. बीकौम की डिग्री पूरी होते ही दोनों ने प्रेम विवाह कर लिया. बाद में इन के 2 बच्चे हुए. अंजना की जिंदगी हंसीखुशी से बीत रही थी कि अचानक शराब ने उस के खुशहाल जीवन में जहर घोल दिया. संजय को दोस्तों के साथ शराब पीने की ऐसी लत लगी कि वह दिनरात शराब के नशे में डूबा रहने लगा. अंजना ने उसे रोकने की कोशिश की तो संजय उस के साथ मारपीट करने लगा. अंजना के लिए यह बात किसी अजूबे से कम नहीं थी क्योंकि कभी उस के लिए जान देने की बातें करने वाला संजय उस पर हाथ जो उठाने लगा था. ऐसे में अंजना अपने पति को रास्ते पर लाने के प्रयास करने लगी.

जाहिर है कि उज्जैन में लोगों के संकट के समय सब से पहले महाकाल ही याद आते हैं, इसलिए अंजना नियमित रूप से महाकाल के दरबार में प्रार्थना करने के लिए जाने लगी. दुर्भाग्य से खबरों के जुगाड़ में जगदीश परमार अकसर इस मंदिर में मौजूद रहता था. जगदीश ने 1-2 बार अंजना को मंदिर में भगवान के सामने आंसू बहाते देखा था. दूसरे अंजना के शरीर पर कीमती जेवर देख कर वह समझ गया कि पार्टी पैसे वाली होने के साथसाथ परेशान हालत में है. इसलिए आसानी से इसे जाल में फंसाया जा सकता है. यह बात 2 साल पहले की है.

इस के बाद जगदीश ने अंजना को फांसने के लिए उस के चारों तरफ जाल बुनना शुरू कर दिया. एक दिन मंदिर में काफी भीड़ थी, अपना प्रभाव जमाने के लिए जगदीश खुद अंजना के पास पहुंचा और बोला, ‘‘मैं देख रहा हूं कि आप बहुत परेशान हैं. आइए, मैं आप को दर्शन करवा देता हूं. आप शायद मुझे नहीं जानतीं लेकिन मैं ने अकसर आप को यहां आंसू बहाते देखा है. मैं एक पत्रकार हूं, इस वजह से आप को आसानी से दर्शन करवा सकता हूं. आप को परेशान देख कर शायद महाकाल ने ही मुझे आप की मदद के लिए भेज दिया है.’’

जगदीश की बातों से अंजना काफी प्रभावित हुई और उसी समय उस के साथ हो गई. तब जगदीश ने वीआईपी गेट से ले जा कर अंजना को महाकाल के दर्शन करवा दिए. इस के बाद जगदीश अंजना को अकसर मंदिर में मिलता और वीआईपी गेट से अंदर ले जा कर उसे दर्शन करा देता. इस से कुछ ही दिनों में दोनों के बीच दोस्ताना ताल्लुकात बन गए. जब जगदीश को भरोसा हो गया कि लोहा चोट करने योग्य गरम हो चुका है तो उस ने एक दिन अंजना से पूछा, ‘‘अगर आप बुरा न मानें तो क्या मैं पूछ सकता हूं कि आप की परेशानी क्या है, जिस के लिए आप रोज महाकाल के दरबार में हाजिरी लगा रही हैं?’’

अब तक अंजना जगदीश को भला आदमी समझने लगी थी, इसलिए उस ने किशोरावस्था में हुए प्यार से ले कर अब तक की अपनी सारी कहानी उसे बता दी. तब जगदीश बोला, ‘‘आप की समस्या सुन कर अब मुझे विश्वास हो गया कि सचमुच ही महाकाल ने आप की सहायता के लिए ही मुझे आप से मिलवाया है.’’

‘‘वो कैसे?’’ अंजना ने पूछा.

‘‘वो ऐसे कि मक्सी रोड पर एक नशा मुक्ति केंद्र है. वहां मेरी अच्छी पकड़ है. आप चिंता न करें, मैं वहां से आप के पति का नशा छुड़ाने का इलाज करवा दूंगा, जिस से वह बिलकुल ठीक हो जाएंगे.’’ जगदीश ने कहा.

‘‘अगर ऐसा है तो मैं आप का अहसान जिंदगी भर नहीं भूलूंगी.’’

‘‘अहसान भले ही अगले दिन भूल जाना, लेकिन हम दोनों की दोस्ती जिंदगी भर याद रखना. सच मानिए, मेरी जिंदगी में अब तक आप के जैसा कोई दोस्त नहीं आया, इसलिए मैं आप को खोना नहीं चाहता.’’ जगदीश परमार ने अंजना को अपनी गिरफ्त में ले भावुक हो कर कहा.

बात ही जगदीश ने ऐसी कही थी कि अंजना भी भावुक हो गई और उस ने जगदीश से जिंदगी भर यह दोस्ती निभाने का वादा कर लिया. इस के अगले दिन वह अंजना को अपने साथ नशा मुक्ति केंद्र ले गया, जहां उस ने अपनी पत्रकारिता का प्रभाव दिखा कर अंजना को उस के पति का नशा छुड़ाने की दवा दिलवा दी. अब तक अंजना जगदीश परमार पर आंख बंद कर के भरोसा करने लगी थी. जगदीश को इसी मौके का इंतजार था, इसलिए उस ने 2 जुलाई, 2016 को अंजना को अपने घर दवाई लेने बुलाया. अंजना बिना किसी संकोच के जगदीश के घर पहुंच गई जो उस की सब से बड़ी भूल साबित हुई.

जगदीश को अब अपनी हसरतें पूरी करनी थीं. उस ने अंजना को अपने घर में कैद करने के बाद डराधमका कर उस के साथ न केवल बलात्कार किया, इस की वीडियो भी बना ली और अंजना के निर्वस्त्र फोटो भी अपने मोबाइल फोन में कैद कर लिए. इतना ही नहीं, इस बात का जिक्र किसी से करने पर उसे व उस के बच्चों को जान से मारने की धमकी भी दी. साथ ही यह भी कहा कि उस ने मुंह खोला तो उस के अश्लील फोटो और वीडियो पूरे उज्जैन में वायरल कर देगा. अंजना को जगदीश से इतने बड़े धोखे की उम्मीद नहीं थी. वह जगदीश को उस के पाप की सजा दिलाना चाहती थी, लेकिन उस की धमकी से डर कर वह चुप रही.

अंजना को इस घटना का इतना सदमा लगा कि वह इस के बाद 15 दिन तक मंदिर भी नहीं गई. उस का सोचना था कि न वह मंदिर जाएगी और न उस धोखेबाज से उस की मुलाकात होगी. लेकिन जगदीश का काम अभी पूरा कहां हुआ था. वह अंजना का तन तो लूट चुका था, धन लूटना तो अभी बाकी था इसलिए कुछ दिनों बाद उस ने अंजना को फोन कर अकेले में मिलने के लिए बुलाया. इतना ही नहीं, उस ने साथ में बड़ी रकम भी लाने को कहा. अंजना ने मना किया तो जगदीश ने उसे अश्लील वीडियो और फोटो वायरल करने की धमकी दी. जिस से न चाहते हुए भी उसे उस के द्वारा मांगी गई रकम ले कर उस से मिलने के लिए जाना पड़ा. उस से पैसे लेने के बाद जगदीश ने एक बार फिर अंजना के साथ बलात्कार किया.

अंजना ने पुलिस को बताया कि पिछले 22 महीनों में जगदीश ने कई बार उस का यौनशोषण किया. उस ने यह भी बताया कि अब तक वह उसे 10 लाख रुपए और अपने जेवर भी दे चुकी है. अब घर से पैसे दे पाना संभव नहीं था, लेकिन वह उस के तन से तो खिलवाड़ कर ही रहा था साथ में लगातार ब्लैकमेल भी कर रहा था. अंजना ने बताया कि उस ने जगदीश को सारी स्थिति बता दी थी कि अब किसी स्थिति में वह उसे और पैसे नहीं दे सकती, लेकिन जगदीश के मन में इतना जहर भरा था कि वह हर हाल में उस से पैसे चाहता था.

इसी दौरान अंजना को पता चला कि जगदीश उस की तरह और भी कई लड़कियों का शारीरिक ही नहीं बल्कि आर्थिक शोषण कर रहा है, तब उस ने उस के खिलाफ कानून की मदद लेने का फैसला किया. और फिर इस के अलावा उस के पास कोई रास्ता नहीं बचा था. इसलिए वह शिकायत ले कर आईजी राकेश गुप्ता के पास पहुंची थी. इस संबंध में जांच अधिकारी रेखा वर्मा का कहना है कि तथाकथित पत्रकार जगदीश परमार के खिलाफ पुख्ता सबूत इकट्ठे हो गए हैं. उस का मोबाइल और लैपटाप भी बरामद कर के जांच के लिए भेज दिया गया है.

जगदीश परमार से विस्तार से पूछताछ करने के बाद उसे न्यायालय में पेश कर के पुलिस ने उसे न्यायिक हिरासत में पहुंचा दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित और कथा में अंजना नाम परिवर्तित है.

 

प्रेमिका को पाने के लिए बड़े भाई ने छोटे भाई का घोंटा गला

दुश्मनी में भाई भाई का कत्ल कर सकता है. लेकिन अपनी प्रेमिका को पाने के लिए बड़ा भाई 15 वर्षीय छोटे भाई का इसलिए कत्ल कर दे, जिस से प्रेमिका के पति और घर वालों को फंसाया जा सके, तो आश्चर्य होगा ही. आरिस ने ऐसा ही कुछ किया. आखिर क्यों…

उत्तर प्रदेश के महानगर मुरादाबाद की विश्वपटल पर पीतल नगरी के नाम से पहचान बनी हुई है. मुरादाबाद के थाना कटघर क्षेत्र में आने वाली वरबला खास मियां कालोनी में मुनव्वर अली अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी नूरजहां और 6 बच्चे थे, जिन में 2 बेटे आरिस व अरबाज के अलावा 4 बेटियां थीं. मुनव्वर एक मैटल फर्म में काम करता था. उस ने अपने बड़े बेटे आरिस को एक टैंपो खरीद कर दे दिया था. उसी से वह बिल्डिंग मैटीरियल सप्लाई कर के अच्छीखासी कमाई कर लेता था. छोटे बेटे अरबाज को मुनव्वर ने एक मोटरसाइकिल मैकेनिक के पास काम सीखने के लिए लगा दिया था.

4 जुलाई, 2018 को अरबाज मोटरसाइकिल मैकेनिक की दुकान से रात 8 बजे घर पहुंचा. भाई को आया देख बड़ी बहन ने उसे पैसे दे कर पास की दुकान से दूध की थैली लाने के लिए भेज दिया. उस ने दूध ला कर बहन को दे दिया. दूध दे कर वह बाहर जाने लगा, तो बहन ने टोका, ‘‘अब कहां जा रहा है, खाने का टाइम हो गया है. खाना तो खाता जा.’’

‘‘थोड़ी देर में आऊंगा, तभी खा लूंगा.’’ कह कर अरबाज घर से निकल गया. अरबाज को गए हुए काफी देर हो गई लेकिन वह घर नहीं लौटा तो घर वाले परेशान हो गए. यह स्वाभाविक ही था, क्योंकि इस से पहले वह कभी घर से इतनी देर के लिए गायब नहीं हुआ था. घर वाले उसे ढूंढने के लिए निकल गए. उन्होंने पूरी कालोनी छान मारी लेकिन अरबाज नहीं मिला. उन्होंने उस के साथियों, दोस्तों से भी पूछा पर कोई जानकारी नहीं मिली. थकहार कर घर वाले रात 12 बजे घर लौट आए.

मुनव्वर का बड़ा बेटा आरिस बजरी ले कर कहीं गया हुआ था. वह भी घर नहीं लौटा था. उस का मोबाइल फोन भी बंद था. घर वालों ने समझा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि अरबाज भी आरिस के साथ चला गया हो. यही सोच कर वे आरिस के लौटने का इंतजार करने लगे. आरिस रात करीब डेढ़ बजे घर पहुंचा. अरबाज उस के साथ नहीं था. घर वालों ने आरिस से पूछा कि अरबाज तुम्हारे साथ तो नहीं गया था. इस पर आरिस ने कहा, ‘‘नहीं, वह मेरे साथ नहीं था. मैं तो अकेला ही गया था. उस की बात सुन कर सभी आश्चर्यभरी निराशा में डूब गए.’’

मुनव्वर ने बेटे से कहा, ‘‘बेटा, रात करीब साढ़े 8 बजे से अरबाज गायब है. पता नहीं कहां चला गया. हम ने सब जगह ढूंढ लिया.’’

अब्बू की बात सुन कर आरिस भी परेशान होते हुए बोला, ‘‘कहां गया होगा वह?’’ इस के बाद वह घर वालों के साथ 15 वर्षीय अरबाज को ढूंढने के लिए निकल पड़ा. करीब एक घंटे बाद आरिस भी निराश हो कर घर लौट आया. घर वाले अरबाज की चिंता में रात भर ऐसे ही बैठे रहे. यह बात 3-4 जुलाई, 2018 की है. अगले दिन सुबह करीब 6 बजे कालोनी के लोगों ने रेलवे क्रौसिंग के पास नवनिर्मित दुकान के अंदर अरबाज का शव पड़ा देखा तो इस की सूचना मुनव्वर अली को दी.

पूरा परिवार घटनास्थल पर पहुंच गया. अरबाज की लाश देख कर सब लोग बिलखबिलख कर रोने लगे. कुछ ही देर में वहां तमाम लोग जमा हो गए. इसी बीच किसी ने इस की सूचना पुलिस को दे दी. खबर मिलते ही थाना कटघर पुलिस मौके पर पहुंच गई. थानाप्रभारी संजय गर्ग ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. अरबाज की लाश औंधे मुंह पड़ी थी. उस के सिर व हाथपैरों पर गहरी चोटों के निशान थे. गले पर लगे निशानों से लग रहा था कि उस की गला दबा कर हत्या की गई थी और उस के सिर पर किसी भारी चीज से वार किया गया था. सीओ सुदेश कुमार भी वहां आ गए थे. डौग स्क्वायड टीम को भी बुलवा लिया गया.

खोजी कुत्ता निर्माणाधीन दुकान के अंदर गया और वहां से टूटी दीवार से निकल कर खाली प्लौट से होता हुआ सिद्दीकी कालोनी में पहुंच गया. करीब 200 मीटर चलने के बाद वह वापस आ गया. मामला शहर की घनी आबादी के बीच का था, इसलिए वहां सैकड़ों की संख्या में लोग जमा हो गए. अरबाज की लहूलुहान लाश देख कर लोगों में गुस्सा बढ़ता जा रहा था. खबर मिलते ही एसपी (सिटी) अंकित मित्तल भी घटनास्थल पर पहुंच गए. गुस्साए लोगों ने अरबाज की लाश अपने कब्जे में ले कर सड़क पर रख दी और वहीं बैठ गए. इस से मुरादाबाद लखनऊ राजमार्ग व मुरादाबाद रामनगर मार्ग पर लंबा जाम लग गया. भीड़ हत्यारों को शीघ्र गिरफ्तार करने की मांग कर रही थी.

जाम की सूचना पर मुरादाबाद के एसएसपी जे. रविंद्र गौड़ भी घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों के समझाने पर करीब डेढ़ घंटे बाद लोगों ने जाम खोला. पुलिस ने फटाफट मौके की काररवाई पूरी कर के लाश पोस्टमार्टम के लिएभेज दी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि अरबाज की हत्या गला घोंट कर की गई थी. उस के एक हाथ की हड्डी भी टूटी पाई गई. कातिलों ने अरबाज के सिर पर भारी डंडे या धातु की रौड से वार किए थे, जिस से सिर की हड्डियां भी टूट गई थीं.

डाक्टरी रिपोर्ट से यह बात साफ हो गई थी कि हत्यारे किसी भी सूरत में अरबाज की जान लेना चाहते थे.  मामले का जल्द खुलासा करने के लिए एसएसपी जे. रविंद्र गौड़ ने 3 टीमों का गठन किया, जिन का नेतृत्व सीओ सुदेश कुमार, थानाप्रभारी संजय गर्ग और एसएसआई दिनेश शर्मा को करना था. निर्देशन का काम एसपी (सिटी) अंकित मित्तल को सौंपा गया. पुलिस ने इस बारे में अरबाज के घर वालों से पूछताछ की, तो मृतक के बड़े भाई आरिस ने शहर के ही 7 लोगों सफदर, अशरफ, मुर्सलीम, सद्दाम, आसिफ, वाजिद व बड़े मियां (रामपुर वाले) पर शक जताया.

तीनों टीमें अपनेअपने तरीके से केस की जांच में जुट गईं. कुछ पुलिसकर्मियों को घटनास्थल के आसपास सादे कपड़ों में तैनात कर दिया गया, जो पलपल की रिपोर्ट अधिकारियों को दे रहे थे. आरिस ने जिन 7 लोगों पर शक जताया था. पुलिस टीम से उन के घर दबिश दी, तो वे सभी लोग अपनेअपने घरों से फरार मिले. पुलिस ने वरबला खास के संभ्रांत लोगों से नामजद आरोपियों के बारे में बात की तो उन्होंने बताया कि नामजद लोग बेहद गरीब हैं. उन का कोई आपराधिक रिकौर्ड भी नहीं है. उन्हें इस मामले में रंजिशन फंसाया जा रहा है.

इसी दौरान पुलिस को एक खास बात यह पता चली कि आरोपी मुर्सलीम की पत्नी अजरा से अरबाज के बड़े भाई आरिस के साथ अवैध संबंध थे. इस बात को ले कर दोनों पक्षों में आए दिन झगड़ा होता रहता था. थानाप्रभारी संजय गर्ग ने महिला पुलिस को साथ ले कर नामजद अभियुक्त मुर्सलीम की पत्नी अजरा से भी पूछताछ की. अजरा ने स्वीकार किया कि उस के आरिस के साथ संबंध हैं. आरिस उसे इतना चाहता है कि उस से शादी करने को तैयार है. इतना ही नहीं, वह उसे भगा कर ले जाने की बात करता है.

कुल मिला कर आरिस उसे ले कर पागल बना हुआ था. अजरा ने बताया कि यह बात उस के पति मुर्सलीन को भी पता चल चुकी थी, जिस की वजह से मुर्सलीन और आरिस के बीच कई बार झगड़ा भी हुआ. अजरा ने बताया कि लड़ाई होना अलग बात है, लेकिन उस का पति और ससुराल वाले हत्या जैसा काम नहीं कर सकते. यह बात थानाप्रभारी की भी समझ में आ गई. लेकिन यह उन की समझ में नहीं आ रही थी कि अजरा के पति मुर्सलीन और उस के घर वालों की दुश्मनी आरिस से थी तो उन्हें आरिस को मारना चाहिए था न कि अरबाज को. अजरा से पूछताछ कर के थानाप्रभारी लौट आए.

उधर आरिस पुलिस पर नामजद अभियुक्तों को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने का दबाव बना रहा था. पुलिस जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाना चाहती थी, इसलिए वह आरिस को यह समझाबुझा कर घर भेज देती थी कि आरोपियों की तलाश में जगहजगह दबिश दी जा रही हैं. थानाप्रभारी संजय गर्ग ने एसएसआई दिनेश शर्मा, एसआई मुकेश शुक्ला, कांस्टेबल गौरव कुमार और सत्यवीर पहलवान को आरिस की गतिविधियां चैक करने पर लगा दिया. इस पुलिस टीम को आरिस की गतिविधियां संदिग्ध लगीं. इस के बाद पुलिस ने आरिस के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो उन्हें 2 फोन नंबर ऐसे मिले, जिन पर आरिस ने वारदात वाले दिन कई बार बात की थी. जिन नंबरों पर उस की बात हुई थी, उन की भी काल डिटेल्स निकलवाई गई तो उन नंबरों की लोकेशन घटनास्थल के पास पाई गई.

अब पुलिस के शक की सुई आरिस की तरफ घूम गई. जिन 2 नंबरों पर आरिस ने बात की थी, वह नंबर रामपुर दोराहा, बरवाला मझला निवासी सुलतान व जामा मसजिद निवासी जुनैद के निकले. पुलिस ने उन दोनों को पूछताछ के लिए उठा लिया. उन से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने सब कुछ बता दिया है. उन्होंने बताया कि अरबाज की हत्या में उस का बड़ा भाई आरिस भी शामिल था. यह सुन कर एसपी अंकित मित्तल सहित सभी यह सोच कर सन्न रह गए कि प्रेमिका को पाने के लिए सगा भाई इस हद तक जा सकता है कि प्रेमिका के पति और उस के परिवार को हत्या में फंसाने के लिए षडयंत्र रच कर अपने सगे भाई की हत्या करवा दे.

अभियुक्त सुलतान व जुनैद द्वारा अपना अपराध स्वीकार करने के बाद पुलिस ने आरिस को भी गिरफ्तार कर लिया. पुलिस जब आरिस को गिरफ्तार कर थाने ला रही थी तो आरिस ने पुलिस से पूछा कि मुझे थाने क्यों ले जाया जा रहा है. इस पर थानाप्रभारी संजय गर्ग ने कहा कि तुम्हारे भाई के हत्यारे पकड़े जा चुके हैं. थाने चल कर देख लो, वह कौन है. थाने पहुंच कर पुलिस ने आरिस का सामना अभियुक्त सुलतान व जुनैद से करवाया तो उस के होश उड़ गए. थानाप्रभारी को गुस्सा आया तो उन्होंने आरिस के गाल पर एक तमाचा जड़ते हुए कहा कि इतने दिनों से नाटक कर हमें बेवकूफ बना रहा था.

उन्होंने आरिस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि गांव के मुर्सलीन की पत्नी अजरा से उस के नाजायज संबंध हैं. प्रेमिका के पति और उस के घर वालों ने उस के साथ कई बार मारपीट की थी. उन्हें सबक सिखाने के लिए ही उस ने अपने छोटे भाई अरबाज की हत्या कर के मुर्सलीन और उस के घर वालों को फंसाने की योजना बनाई थी. यह काम करने के लिए उस ने अपने दोस्त सुलतान और जुनैद से बात की तो वे उस का साथ देने के लिए तैयार हो गए. 3 जुलाई, 2018 को अरबाज जब दूध की थैली लेने गया था तो बाहर उसे आरिस मिल गया. उस ने अरबाज से कहा कि दूध की थैली घर रख कर आ जाना. मुझे पार्टी से पैसे लेने के लिए जाना है. पैसे मिलेंगे तो तुझे भी दूंगा. और हां, घर पर कुछ मत बताना.

भाई की बात मान कर अरबाज दूध की थैली घर रख कर तुरंत बड़े भाई के पास आ गया. उस समय बिजली गुल थी. आरिस अरबाज को अपने साथ ले गया. घर से करीब 100 मीटर दूर ताजपुर रेलवे क्रौसिंग के पास उसे जुनैद और सुलतान मिल गए. वे तीनों 15 वर्षीय अरबाज को वहीं पास में एक निर्माणाधीन दुकान के अंदर ले गए. फिर तीनों ने अरबाज का गला घोंट कर हत्या कर दी. बाद में रौड से उस के सिर पर कई वार भी किए. इस से पहले अरबाज ने कहा भी था कि भाई मुझे क्यों मार रहे हो, मैं ने क्या बिगाड़ा है. उस ने भागने की कोशिश भी की थी. लेकिन सुलतान ने उसे नीचे गिरा दिया था. जुनैद ने पैर पकडे़ और आरिस ने खुद ही अपने छोटे भाई का गला घोंटा था.

तीनों आरोपियों से पूछताछ के बाद एसपी (सिटी) ने आरिस के मामा व मां नूरजहां को भी थाने बुलवा लिया. उन के सामने आरिस ने अपना गुनाह कबूल कर लिया. आरिस ने बताया कि उस ने यह सब इसलिए किया था कि अरबाज की हत्या के आरोप में मुर्सलीन व उस के घर वाले जेल चले जाएं. उन के जेल जाने के बाद वह अपनी प्रेमिका अजरा से बिना किसी डर के मिलता रहता और उस से निकाह कर लेता. लेकिन एक तीर से दो शिकार करने का उस का मकसद सफल नहीं हो सका. इस में उस ने अपने भाई को तो खो ही दिया साथ ही उसे खुद भी जेल जाना पड़ा.

तीनों आरोपियों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें मुरादाबाद जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

इंस्पेक्टर ने Bitcoin डीलर को छोड़ने के लिए मांगे 32 करोड़

जापान के सतोषी नाकामोतो सन 2010 में जब ब्लौकचेन पर आधारित वर्चुअल करेंसी बिटकौइन ले कर आए थे, तब इस की कीमत मात्र .003 डालर (करीब 18 पैसे) थी. लेकिन आज इस की कीमत लगभग 5 लाख रुपए है. तेजी से बढ़ती कीमत की वजह से एक आईपीएस अधिकारी भी ऐसा जुर्म कर बैठे कि…

वर्चुअल करेंसी की बात करें तो आजकल देश में सब से ज्यादा चर्चा बिटकौइन की होती है. केवल भारत में ही नहीं, बल्कि इस के चरचे दुनिया के कई देशों में हैं. बिटकौइन न तो कोई सोने का सिक्का है और न कागजी रकम. यह डिजिटल करेंसी है. आप इसे आभासी मुद्रा भी कह सकते हैं, जो क्रिप्टो करेंसी की श्रेणी में आती है. बिटकौइन की खरीदफरोख्त औनलाइन होती है. हालांकि भारतीय रिजर्व बैंक ने इसी साल 6 अप्रैल को एक अधिसूचना जारी कर के क्रिप्टो करेंसी के लेनदेन पर रोक लगा दी थी, लेकिन अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है.

देश की सर्वोच्च अदालत में दायर कुछ याचिकाओं में बिटकौइन जैसी क्रिप्टो करेंसी के रेगुलेशन के लिए दिशानिर्देश बनाने का आग्रह किया गया है, जबकि कुछ याचिकाओं में सरकार से इस क्रिप्टो करेंसी की खरीदफरोख्त को रोकने का आग्रह किया गया है. इसी साल 20 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली जस्टिस ए.एम. खानविलकर और जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की बैंच ने इन याचिकाओं की सुनवाई की. इस में रिजर्व बैंक की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने कहा कि बिटकौइन जैसी क्रिप्टो करेंसी में सौदों की अनुमति देने से गैरकानूनी लेनदेन को बढ़ावा मिलेगा. यह सरकारी नियंत्रण से बाहर की डिजिटल मुद्रा है.

खैर, सुप्रीम कोर्ट का फैसला जब आएगा, तब आएगा. अभी तो हाल यह है कि लोगों को बिटकौइन की डिजिटल मुद्रा में सोने नहीं हीरे जैसी चमक नजर आ रही है. देश भर में रोजाना अरबों रुपए के बिटकौइन की औनलाइन खरीदफरोख्त हो रही है. बिटकौइन के चक्कर में तमाम लोग ठगे भी जा रहे हैं. कई नामीगिरामी हस्तियां बिटकौइन के मामले में फंस चुकी हैं. ऐसे मामलों में फिल्म अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी के पति राज कुंद्रा भी शामिल हैं. बिटकौइन के चक्कर में खाकी वरदी भी दागदार हुई है. गुजरात की राजधानी अहमदाबाद के बहुचर्चित बिटकौइन मामले में एक एसपी सहित करीब 10 पुलिसकर्मी गिरफ्तार हुए हैं. एक पूर्व विधायक को तो अदालत ने भगोड़ा घोषित कर रखा है. कई बड़े अफसर और नेता भी इस मामले में फंसे हुए हैं.

पिछले दिनों राजस्थान की राजधानी जयपुर में एक महिला थानेदार ने बिटकौइन केस में फंसाने की धमकी दे कर एक औनलाइन फर्म के संचालकों से 50 हजार रुपए की रिश्वत मांगी थी. यह महिला थानेदार रिश्वत की पहली किस्त में 5 लाख रुपए लेते हुए रंगे हाथ गिरफ्तार हुई, साथ में उस का वकील पति भी पकड़ा गया था. उस दिन तारीख थी 7 अगस्त. जयपुर के मानसरोवर इलाके के थाना शिप्रापथ में महिला एसआई बबीता चौधरी किसी मुकदमे से संबंधित फाइल देख रही थीं. इसी बीच उन के मोबाइल पर कोई काल आई तो वह अपनी कुरसी से उठ कर थाने के बरामदे में टहलते हुए बात करने लगीं.

बबीता जब मोबाइल पर बात कर रही थीं, तभी उन्होंने एक अच्छी कदकाठी के युवक को थाने के अंदर आते देखा. उस युवक के पास एक बैग था. बबीता युवक को जानती थीं. उस का नाम मोहित (बदला हुआ) था. मोहित ने बबीता को देख लिया था. वह बबीता से ही मिलने आया था. बबीता ने उसे 7 अगस्त को बुलाया था. मोहित को देख कर बबीता ने मोबाइल पर हो रही बात जल्दी खत्म की और मोहित को इशारा कर के अपने पास बुलाया. मोहित ने बबीता के पास पहुंच कर कहा, ‘‘मैडम, मैं अपने वादे का पक्का हूं. आप से जो वादा किया था, उसे पूरा करने आया हूं.’’

‘‘ठीक है.’’ एसआई बबीता ने एक तिरछी नजर डाल कर मोहित के बैग का जायजा लिया. फिर उस से कहा, ‘‘चलो सामने रेस्टोरेंट में बैठ कर चाय पीते हैं, वहीं पर गपशप कर लेंगे.’’

‘‘मैडम, काफी गरमी है, चाय पीने की इच्छा नहीं है, फिर भी आप कह रही हैं तो चाय पी लेते हैं.’’ मोहित ने कहा.

‘‘मोहित, ज्यादा भाव मत खाओ, पुलिस वाले दूसरों से चाय पीते हैं, मैं तो तुम्हें अपने पैसों से चाय पिला रही हूं’’ बबीता ने मोहित को आंखें दिखाईं.

‘‘नहीं मैडम, मैं तो मजाक कर रहा था.’’ मोहित ने एसआई बबीता के नाराजगी वाले हावभाव देख कर कहा.

इसी के साथ बबीता थाने से निकल कर सामने वाले रेस्टोरेंट में चली गईं. मोहित भी उन के पीछेपीछे था. रेस्टोरेंट में उस समय ज्यादा भीड़भाड़ नहीं थी. बबीता ने कोने की टेबल की तरफ इशारा करते हुए मोहित से कहा, ‘‘चलो उस टेबल पर बैठते हैं.’’

टेबल के एक तरफ कुरसी पर बबीता बैठ गई और सामने वाली कुरसी पर मोहित. उन के बैठते ही वेटर टेबल पर आ गया. उस ने 2 गिलास ठंडा पानी रख कर और्डर पूछा. बबीता ने वेटर से 2 कप चाय और कुछ नमकीन लाने को कहा.

वेटर चला गया तो बबीता ने मोहित से पूछा, ‘‘तुम कौन सा वादा पूरा करने की बात कह रहे थे?’’

‘‘मैडम, आप ने जो कहा था, मैं ले आया हूं.’’ मोहित बोला.

बबीता ने पूछा, ‘‘कितने हैं?’’

मोहित ने अपने हाथ की पांचों अंगुलियां दिखाते हुए कहा, ‘‘इस बैग में हैं.’’

‘‘ठीक है.’’ कहते हुए बबीता ने टेबल पर रखा अपना मोबाइल उठा कर एक नंबर मिलाया. 2-3 घंटियां बजने पर दूसरी ओर काल रिसीव कर ली गई. काल रिसीव होने पर बबीता ने कहा, ‘‘डियर, मैं थाने के सामने रेस्टोरेंट पर बैठी हूं, छोटा सा काम है, इधर आ जाओ.’’

‘‘हां, मैं अभी आता हूं.’’ दूसरी ओर से आवाज आई. इतनी देर में वेटर ने चाय के कप ला कर टेबल पर रख दिए. एक प्लेट में नमकीन भी थी. बबीता ने मोहित से कहा, ‘‘लो चाय पीयो.’’

दोनों चाय पीने लगे. इस बीच, बबीता के मोबाइल पर फिर काल आ गई तो वह बात करने लगीं. करीब 10 मिनट बाद जब बात खत्म हुई तब तक बबीता की चाय ठंडी हो चुकी थी. मोहित ने कहा भी कि मैडम आप के लिए दूसरी चाय मंगा लेते हैं. इस पर बबीता बोलीं, ‘‘नहीं रहने दो, आज कई चाय पी चुकी हूं.’’ मोहित चुप हो गया. बबीता प्लेट में रखी नमकीन खाने लगीं. नमकीन खातेखाते बबीता ने मोहित से उस की फर्म और काम धंधे के बारे में पूछा. मोहित ने नपेतुले शब्दों में बबीता की बातों का जवाब दे दिया.

जब दोनों बात कर रहे थे तभी एक आदमी रेस्टोरेंट में आया. उस ने रेस्टोरेंट में इधरउधर झांक कर देखा तो बबीता कोने की टेबल पर नजर आ गईं. उस आदमी को देख कर बबीता ने आवाज दी, ‘‘अमर यहां आ जाओ.’’

वह आदमी बबीता की टेबल पर चला गया. मोहित उसे पहले से जानता था. वह एसआई बबीता का पति अमरदीप चौधरी था. अमरदीप ने वहां खाली पड़ी एक कुरसी पर बैठते हुए मोहित से हाथ मिलाया. फिर बिना किसी औपचारिकता के बबीता से कहा, ‘‘कैसे बुलाया?’’

‘‘अमर, ये मोहित जी का बैग है, इसे ले जाओ. इस में कुछ खास सामान है, संभाल कर रखना.’’ बबीता के कहते ही मोहित ने अमर को बैग दे दिया. अमरदीप बैग ले कर रेस्टोरेंट से बाहर निकला. उस के साथ बबीता और मोहित भी बाहर आ गए. ये लोग जैसे ही रेस्टोरेंट से बाहर आए वैसे ही 4-5 लोगों ने बबीता और अमरदीप को घेर कर पकड़ लिया. बबीता उस समय वरदी में थी. बबीता ने उन लोगों को हड़काया तो उन्होंने कहा कि वे भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो यानी एसीबी से हैं.

एसीबी का नाम सुनते ही बबीता और अमरदीप के चेहरे काले पड़ गए. एसीबी अधिकारियों ने उन की तलाशी ली. तलाशी में 5 लाख रुपए मिले. यह रकम बबीता ने मोहित से रिश्वत के रूप में ली थी. एसीबी अधिकारियों ने 5 लाख रुपए जब्त कर के आवश्यक काररवाई की. इस के बाद बबीता व अमरदीप के घर की तलाशी ली गई. इन लोगों का घर जयपुर के वैशाली नगर में गांधीपथ स्थित गुरु जंभेश्वर नगर में था, तलाशी की काररवाई दूसरे दिन 8 अगस्त को भी चली.

इन के मकान की तलाशी में 5 लाख 81 हजार रुपए नकद मिले. इस के अलावा 19 मकान, दुकान और जमीनों के दस्तावेज भी मिले. इन में 7 मकान, दुकान और जमीनें बबीता और उस के पति के नाम थीं और बाकी दस्तावेज दूसरे लोगों के नाम पर थे. बबीता और उस के पति के नाम की अचल संपत्तियां जयपुर के कालबाड़ रोड, सीकर रोड, निवारू रोड, जगतपुरा, टोंक व देवली आदि में थीं. इतनी अचल संपत्ति होने के बावजूद बबीता अपने परिवार के साथ किराए के मकान में रहती थीं. बबीता के घर से एक लक्जरी गाड़ी, करीब 100 ग्राम सोने के जेवर और ज्वैलरी शोरूम के बिल मिले. इन बिलों के हिसाब से करीब 10 लाख रुपए की ज्वैलरी खरीदी गई थी.

एसीबी अधिकारियों के अनुसार, परिवादी मोहित (बदला हुआ नाम) की ओर से की गई शिकायत और आरोपियों से पूछताछ में जो कहानी उभर कर सामने आई. वह इस तरह थी. दो युवक जयपुर के महारानी फार्म में स्थित किराए की बिल्डिंग में साइबर नेटिक्स सौल्यूशन नाम की फर्म चलाते थे. उसी औफिस में संचालकों की एक अन्य फर्म भी थी. इस फर्म का काम औनलाइन मार्केटिंग और विज्ञापन डिजाइनिंग का था. फर्म के मैनेजर मोहित ने एसीबी में शिकायत की थी कि उन की फर्म में काम करने वाले सोनू नाम के एक एजेंट ने करीब 3 घंटे फर्म के फोन की रिकौडिंग की थी. इस के अलावा लेनदेन का डेटा भी चुरा लिया था.

सोनू ने यह रिकौर्डिंग और लेनदेन का डेटा एक पेन ड्राइव में एसआई बबीता के पति अमरदीप चौधरी को दे दिया था. अमरदीप वकील भी है. रिकौर्डिंग में अमेरिका सहित कई अन्य देशों से आने वाली काल और बिटकौइन की खरीदफरोख्त का जिक्र था. आरोप है कि अमरदीप इस रिकौर्डिंग के नाम पर बिटकौइन की खरीदफरोख्त करने के मामले में बबीता के मार्फत फर्म के संचालकों को आईटी एक्ट में मुकदमा दर्ज करने की धमकी दे रहा था. अमरदीप करीब 10 दिन पहले फर्म संचालकों से मिला भी था.

अमरदीप और बबीता ने फर्म संचालकों को मुकदमा दर्ज करने से बचाने के लिए 50 लाख रुपए मांगे. दबाव बनाने के लिए एसआई बबीता ने 3 दिन में 15 से ज्यादा बार फोन कर के फर्म संचालकों को थाने बुलाया था. फर्म संचालकों ने पुलिस के पचड़े से बचने के लिए बातचीत शुरू की. उन्होंने नया बिजनेस होने और 50 लाख रुपए देने में असमर्थता जताई तो बबीता ने 45 लाख रुपए किस्तों में देने की बात कही. इस पर फर्म संचालक राजी हो गए. इसी के तहत पहली किस्त के रूप में 5 लाख रुपए 7 अगस्त को देने की बात तय हुई थी.

इस मामले की शिकायत मिलने पर एसीबी के आईजी सचिन मित्तल ने एडिशनल एसपी नरोत्तम लाल वर्मा को जांच सौंपी. एसीबी अधिकारियों ने शिकायत की पुष्टि कराई और पुष्टि होने पर बबीता और अमर को रंगे हाथों पकड़ने के लिए जाल बिछाया. इसी योजना के तहत फर्म के मैनेजर मोहित को एसआई बबीता को 5 लाख रुपए देने के लिए भेजा गया था. आखिर बबीता और उन के पति अमरदीप एसीबी अधिकारियों की पकड़ में आ गए. एसीबी की जांच में यह बात भी सामने आ गई कि फर्म के संचालकों ने डेढ़ साल में बिटकौइन के नाम पर करोड़ों रुपए कमाए थे.

इस फर्म के मैनेजर और संचालक दिल्ली और चंडीगढ़ के रहने वाले थे. इन लोगों ने डेढ़ साल पहले जयपुर आ कर महारानी फार्म के पास डेढ़ लाख रुपए महीना किराए पर बिल्डिंग ले कर साइबरनेटिक्स वेब सौल्यूशन नाम की फर्म शुरू की थी. इस फर्म का दूसरा औफिस जयपुर में शिप्रापथ विजयपथ तिराहे के पास था. फर्म संचालकों ने अपने औफिस में कई युवकयुवतियों को नौकरी पर रखा था. ज्यादातर काम रात को होता था. एसीबी अब इस बात की भी जांच कर रही है कि बबीता और अमरदीप के पास ऐसे कौन से सबूत थे जिन के आधार पर वे फर्म संचालकों को ब्लैकमेल कर रहे थे. एसीबी को जांच में कुछ तथ्य मिले तो इस फर्म के संचालक भी गिरफ्तार हो सकते हैं.

बबीता चौधरी 2010 बैच की पुलिस सबइंपेक्टर थीं. नौकरी में आने के बाद 2 साल के प्रोवेशन पीरियड के बाद उन्हें जयपुर के प्रतापनगर थाने में नियुक्ति मिली थी. उस दौरान बबीता पर रेप का एक केस दर्ज नहीं करने और आरोपियों का पक्ष लेने के आरोप लगे थे. तत्कालीन डीसीपी (ईस्ट) कुंवर राष्ट्रदीप ने इस मामले में बबीता को सस्पेंड कर के एसीपी से जांच कराई थी. जांच में बबीता को दोषमुक्त कर दिया गया. इस पर उन्हें वापस प्रतापनगर थाने में लगा दिया था. बाद में उन्हें पुलिस लाइन भेज दिया गया. करीब 5 महीने पहले ही बबीता को जयपुर कमिशनरेट पुलिस लाइन से शिप्रापथ थाने में लगाया गया था. एसीबी की काररवाई के बाद बबीता को फिर सस्पेंड कर दिया गया.

मजेदार बात यह है कि बबीता के मोबाइल पर उन के पति एडवोेकेट अमरदीप चौधरी का मोबाइल नंबर ट्रूकौलर पर एसीपी क्राइम ब्रांच के नाम से प्रदर्शित होता था. एसीबी ने 8 अगस्त को बबीता और उन के पति अमरदीप को अदालत में पेश कर के न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया था. सूरत का रहने वाला बिल्डर और कारोबारी शैलेश भट्ट और उस का पार्टनर किरीट पालडिया डिजिटल करेंसी बिटकौइन की डील करते थे. शैलेश भट्ट नवंबर 2016 में नोटबंदी के दौरान सूरत के व्यापारी किरीट पालडि़या के संपर्क में आया था. किरीट ने ही भट्ट को बिटकौइन में पैसा निवेश करने की सलाह दी. बाद में भट्ट और किरीट पार्टनरशिप में बिटकौइन की डील करने लगे थे. कुछ समय बाद दोनों की पार्टनरशिप टूट गई थी.

इसी साल फरवरी के महीने में पुलिस इंसपेक्टर अनंत पटेल ने अपनी पुलिस टीम के साथ अहमदाबाद और गांधीनगर के बीच एक पैट्रोल पंप से भट्ट और उस के 2 साथियों को उठा कर बंधक बना लिया था. इन लोगों को एक फार्महाउस में रखा गया. इस दौरान पुलिस इंसपेक्टर अनंत पटेल ने एनकाउंटर की धमकी दे कर शैलेश के वौलेट से 200 बिटकौइन अपने मोबाइल के जरिए किरीट पालडि़या के खाते में ट्रांसफर करवा लिए. इन बिटकौइन की कीमत करीब 12 करोड़ रुपए बताई गई. इस के बाद पुलिस इंसपेक्टर ने इन लोगों को छोड़ने के एवज में भट्ट से 32 करोड़ रुपए की फिरौती मांगी.

बिल्डर भट्ट ने फिरौती की रकम पहुंचाने का आश्वासन दिया. इस के बाद पुलिस ने भट्ट और उस के साथियों को छोड़ दिया. बाद में बिल्डर शैलेश भट्ट ने इस मामले की शिकायत गुजरात सरकार और सीआईडी क्राइम ब्रांच में कर दी. भट्ट ने आरोप लगाया कि इस मामले में उस के पुराने पार्टनर किरीट पालडि़या और गुजरात के पूर्व विधायक नलिन कोटडि़या के अलावा स्टेट सीबीआई के एक अधिकारी का भी हाथ है. करीब एक महीने की जांचपड़ताल के बाद गुजरात के अमरेली जिले के पुलिस इंसपेक्टर अनंत पटेल सहित 8 पुलिसकर्मियों और सूरत के एक वकील और जमीनों के दलाल केतन पटेल के खिलाफ  केस दर्ज किया गया. बाद में इस केस में अमरेली के एसपी जगदीश पटेल और अन्य लोगों के नाम भी जोडे़ गए.

गुजरात पुलिस की सीआईडी क्राइम ब्रांच ने इस मामले में सब से पहले 8 अप्रैल को अमरेली जिला पुलिस की लोकल क्राइम ब्रांच के हैडकांस्टेबल बाबूभाई डेर और कांस्टेबल विजय वाढेर व सूरत के वकील केतन पटेल को गिरफ्तार किया. बाद में 19 अप्रैल को पुलिस इंसपेक्टर अनंत पटेल को भी गिरफ्तार कर लिया गया. इस मामले में तब महत्त्वपूर्ण मोड़ आ गया जब गिरफ्तार पुलिस इंसपेक्टर अनंत पटेल ने यह खुलासा किया कि बिटकौइन हड़पने का षडयंत्र एसपी जगदीश पटेल के निर्देश पर रचा गया था. इस खुलासे के बाद सीआईडी क्राइम ब्रांच ने एसपी को पूछताछ के लिए बुलाया, लेकिन वह नहीं आए.

इस के बाद सीआईडी क्राइम ब्रांच की टीम अमरेली में उन के आवास पहुंची और पूछताछ के लिए मुख्यालय ले गई. करीब 18 घंटे लंबी पूछताछ के बाद अमरेली के एसपी जगदीश पटेल को 23 अप्रैल को गिरफ्तार कर लिया गया. इस दौरान क्राइम ब्रांच के मुखिया आशीष भाटिया ने दावा किया कि इस मामले का मुख्य सूत्रधार एसपी जगदीश पटेल ही था. जांच एजेंसी के पास इस के सबूत हैं. गुजरात के बहुचर्चित सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले के बाद पहली बार किसी आईपीएस औफिसर की गिरफ्तारी हुई थी. जांच में सामने आया कि एसपी जगदीश पटेल ने शैलेश भट्ट के पास बिटकौइन होने की जानकारी मिलने पर इंसपेक्टर अनंत पटेल को उसे उठाने को कहा था. एसपी के निर्देश पर इंसपेक्टर अनंत अमरेली से गांधीनगर आया था.

बिटकौइन और पैसों के लेनदेन के मामले में एसपी ने वकील केतन पटेल और अनंत पटेल से मोबाइल पर बातचीत की थी. पैसे लेने के लिए अमरेली के 6 पुलिसकर्मी मुंबई गए थे. वहां से ये लोग इनोवा कार से भरूच गए थे. पुलिसकर्मियों को भरूच से लाने के लिए एसपी जगदीश पटेल के आदेश पर अमरेली पुलिस की एक गाड़ी भरूच भेजी गई थी. सीआईडी क्राइम ब्रांच ने इस मामले में अप्रैल में ही पूर्व विधायक नलिन कोटडि़या के भतीजे संजय कोटडि़या से भी पूछताछ की थी. इस से पूर्व विधायक कोटडि़या पर दबाव बढ़ने लगा तो कोटडि़या ने दावा किया कि शैलेश भट्ट ने सूरत के पीयूष सावलिया और धवल मवाणी का अपहरण कर के 240 करोड़ रुपए के 2300 बिटकौइन हड़प लिए थे.

बाद में पीयूष सावलिया ने सीआईडी क्राइम ब्रांच व सरकार को हलफनामा भेज कर पूर्व विधायक के दावे को झुठला दिया. इस से पूर्व विधायक नलिन कोटडि़या को करारा झटका लगा. इस बीच, मई के पहले सप्ताह में सीआईडी क्राइम ब्रांच ने किरीट पालडि़या को भी गिरफ्तार कर लिया. इस के अलावा पूर्व विधायक कोटडि़या के करीबी समझे जाने वाले राजकोट निवासी ननकूभाई आहिर को गिरफ्तार करने पर 25 लाख रुपए की नकदी बरामद हुई. यह रकम किरीट पालडि़या ने पूर्व विधायक को दी जाने वाली 66 लाख रुपए की राशि के हिस्से के तौर पर ननकूभाई के पास भेजी थी. मई के दूसरे सप्ताह में सीआईडी क्राइम ब्रांच ने शैलेश भट्ट को धमकी दे कर ट्रांसफर करवाए गए बिटकौइन में से 119 बिटकौइन किरीट पालडि़या के वौलेट से जब्त कर लिए.

सीआईडी क्राइम ब्रांच ने पूर्व विधायक नलिन कोटडि़या को पूछताछ के लिए बुलाने के लिए सम्मन भी भेजे, लेकिन वह हाजिर नहीं हुए. ननकूभाई से 25 लाख रुपए जब्त किए जाने के बाद कोटडि़या ने सोशल मीडिया के माध्यम से बयान दे कर खुद के एनकाउंटर की आशंका जताई. उन्होंने कहा कि बिटकौइन  मामले में सबूत मिटाने के लिए उन का एनकाउंटर किया जा सकता है. अहमदाबाद स्थित भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो की विशेष अदालत ने बिटकौइन मामले में 18 जून को पूर्व विधायक नलिन कोटडि़या को भगोड़ा घोषित कर दिया. इसी मामले में 27 जुलाई को अमरेली के 7 अन्य पुलिसकर्मियों को भी गिरफ्तार किया गया.

कांग्रेस ने नोटबंदी के बाद गुजरात में बिटकौइन के जरिए 5 हजार करोड़ से ज्यादा के घोटाले और इस में भाजपा के नेताओं के शामिल होने का आरोप लगाते हुए इस की जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में कराने की मांग की. इस पूरे मामले की जांच के दौरान शैलेश भट्ट के भी बडे़ पैमाने पर बिटकौइन धोखाधड़ी में शामिल होने की बातें सामने आईं. इसलिए जांच एजेंसी भट्ट के खिलाफ भी शिकंजा कस सकती है. गिरफ्तार वकील केतन पटेल के छोटे भाई जतिन पटेल इस मामले में फरार हैं. अदालत ने उस की गिरफ्तारी का वारंट जारी कर दिया है.

बहरहाल, सीआईडी इस मामले की करीब 6 महीने से जांच कर रही है. अब तक एक दरजन से ज्यादा गिरफ्तारियां हो चुकी हैं. 3 मुकदमे दर्ज किए गए हैं. इन में एक मुकदमे में शैलेश भट्ट भी आरोपी है. आईपीएस औफिसर, पूर्व विधायक और बड़े कारोबारियों के अलावा पुलिसकर्मियों के लिप्त होने से यह मामला अब हाईप्रोफाइल बन चुका है. इस से बिटकौइन की चकाचौंध कम होने के बजाए बढ़ी है. भारत में बिटकौइन की चमक अभी कायम रहेगी या घटेगी, यह सुप्रीम कोर्ट में 11 सितंबर को होने वाली अगली सुनवाई में तय हो सकता है.

 

Crime Story : 27 साल बाद बदले की आग में 5 हत्याएं

बचपन में जिस विक्की ने अपने मांबाप का खून होते हुए अपनी आंखों से देखा था, उसे वह चाह कर भी भुला नहीं पाया था. उस के अंदर जल रही बदले की आग 27 साल बाद जब ज्वाला बनी तो उस में 5 लोग भस्म हो गए. आखिर कौन थे वो लोग?

इस बार दीपावली के पहले 33 वर्षीय विशाल उर्फ विक्की गुप्ता अहमदाबाद से घर आया और अपनी दादी शारदा देवी से बोला, ”दादी, मैं दीवाली के दिन मम्मीपापा के हत्यारे को जिंदा नहीं छोड़ूंगा. उस दिन दीवाली के पटाखों के शोर में किसी को पता भी नहीं चलेगा.’’

अपने पोते के मुंह से यह बात सुनते ही शारदा देवी चिंता में पड़ गईं. उन्होंने विक्की को पास बुलाया और उस के सिर पर हाथ फेरते हुए उसे समझाते हुए बोलीं, ”देख विक्की, जो बीत गया, उसे भूल जा. वैसे ही मेरे पास बस यही एक बेटा राजेंद्र बचा है. बेटा, इस तरह का खयाल मन से निकाल दे, खूनखराबा करने से आखिर क्या हासिल होगा.’’

”दादी, आखिर मैं कैसे भूल जाऊं कि 27 साल पहले राजेंद्र ताऊ ने मेरे मम्मीपापा को किस तरह मेरे सामने गोलियों से भून दिया था और तो और, जेल से आने के बाद दादाजी को मरवा डाला था.’’ विक्की आवेश में आते हुए बोला.

”मुझे देख ले बेटा, तेरे दादाजी की मौत का गम सह कर भी मैं ने राजेंद्र को माफ कर दिया है. आखिर इतना बड़ा कारोबार संभालता कौन? दीवाली खुशियों का त्यौहार है, इसे मातम में मत बदल देना.’’ शारदा देवी उसे पुचकारते हुए बोलीं.

”आखिर हम कब तक ताऊ के टुकड़ों पर पलेंगे, हमारा भी तो हक है इस प्रौपर्टी पर. हम बेगानों की तरह इस घर में कब तक रहेंगे?’’ विक्की ने दादी से कहा.

”विक्की बेटा, थोड़ा धीरज रख, मैं तुझे प्रौपर्टी का हिस्सा भी दिला दूंगी. मगर कोई ऐसा कदम मत उठाना कि मुझे इस बुढ़ापे में बुरे दिन देखने पड़ें.’’ शारदा देवी के समझाने के बाद विक्की चला गया.

वाराणसी के भदैनी इलाके में पावर हाउस के सामने की गली में 56 साल के शराब कारोबारी राजेंद्र गुप्ता का 5 मंजिला मकान है. मकान के अगले हिस्से में पहले, दूसरे और तीसरे तल पर राजेंद्र का एकएक फ्लैट है, जबकि अन्य फ्लैट और उस से सटे टिनशेड में 40 किराएदार रहते हैं. राजेंद्र गुप्ता के साथ घर में 80 साल की मां शारदा देवी के अलावा उस की पत्नी नीतू, 24 साल का बेटा नवनेंद्र व 15 साल का सुबेंद्र और 17 साल की बेटी गौरांगी रहते थे.

विक्की राजेंद्र के भाई कृष्णा गुप्ता का बेटा था, जो तमिलनाडु के वेल्लोर से एमसीए करने के बाद अहमदाबाद में सौफ्टवेयर डेवलेपर था. अक्तूबर महीने के आखिरी हफ्ते में अपने घर वाराणसी आया हुआ था. विक्की का एक छोटा भाई प्रशांत उर्फ जुगनू और एक बहन अनुप्रिया है, जिस की शादी हो चुकी है.

उस दिन 5 नवंबर, 2024 की सुबह 11 बजे घर में काम करने वाली नौकरानी रीता जैसे ही फ्लैट में घुसी तो अम्मा ने ऊपर की मंजिल से आवाज दे कर पूछा, ”क्यों रीता, खाना बनाने वाली रेनू आई है कि नहीं?’’

”अभी तक तो नहीं आई अम्मा.’’ रीता ने नीचे से चिल्ला कर कहा.

”देख तो जरा नीतू क्या अभी तक सो कर नहीं उठी, कोई आवाज नहीं आ रही.’’ अम्मा ने पूछा.

”अम्मा, अभी दरवाजा लगा हुआ है. हो सकता है बाहर गई हों. फिर भी मैं देख कर बताती हूं.’’ रीता ने कहा.

इतना कह कर रीता ने झाड़ू उठाई और सफाई करते हुए नीतू भाभी के कमरे तक पहुंची. रीता ने प्रथम तल स्थित फ्लैट पर पहुंच कर दरवाजा खटखटाया, लेकिन अंदर से कोई आवाज नहीं आई. थोड़ा इंतजार के बाद रीता ने दरवाजे पर धक्का दिया तो दरवाजा खुल गया. अंदर जाने पर रीता ने जो दृश्य देखा तो उस की चीख निकल गई. कमरे में नीतू फर्श पर खून से लथपथ निढाल पड़ी थी. रीता चिल्लाती हुई दूसरी मंजिल की तरफ गई, जहां नीतू के बड़े बेटे नवनेंद्र का कमरा था. उस ने बाहर से ही आवाज दे कर पुकारा, ”बाबू भैया, बाबू भैया, नीचे जा कर तो देखो, मम्मी को क्या हुआ है.’’

कोई उत्तर नहीं मिलने पर उस ने अंदर जा कर देखा तो वहां एक कमरे में नवनेंद्र फर्श पर खून से लथपथ पड़ा था और गौरांगी एक कोने में मृत पड़ी थी. तो सुबेंद्र का शव बाथरूम में मिला. रीता फ्लैट के नीचे आई और आसपास के लोगों को उस ने घटना की जानकारी दी. आसपास रहने वाले लोगों ने घटना की सूचना पुलिस को दी. पुलिस ने इस वारदात की मौके पर पहुंच कर जांच शुरू की. सभी के सिर और सीने में एकएक गोली मारी गई थी. जबकि इतनी बड़ी वारदात के बावजूद हैरानी की बात यह थी कि घर का मुखिया राजेंद्र गुप्ता गायब था.

पुलिस जिसे कातिल समझ रही थी, उस का भी हो गया मर्डर

पूछताछ में पता चला कि राजेंद्र गुप्ता कुछ समय से पत्नी से अनबन के चलते परिवार से अलग रह रहा था. लोगों के साथ पुलिस को लगा कि शायद इन चारों कत्ल के पीछे राजेंद्र गुप्ता का ही हाथ है, जिस ने किसी वजह से अपने पूरे परिवार की जान ले ली और खुद फरार हो गया. आखिरी नतीजे पर पहुंचने से पहले पुलिस के लिए इस बात की तस्दीक जरूरी थी. जब पुलिस ने राजेंद्र गुप्ता के मोबाइल फोन की लोकेशन ट्रेस की तो फोन की लोकेशन मौकाएवारदात से दूर रोहनिया पुलिस थाना के मीरापुर-रामपुर गांव में मिल रही थी.

पुलिस यह सोच कर हैरान थी कि जिस के पूरे परिवार का कत्ल हो गया, वह शहर से दूर एक गांव में आखिर क्या कर रहा है? पुलिस की एक टीम फौरन मीरापुर-रामपुर गांव के लिए रवाना हुई. मोबाइल की लोकेशन के मुताबिक टीम एक अंडर कंस्ट्रक्शन मकान में पहुंची. यहां पुलिस को जो कुछ मिला, वो और भी हैरान करने वाला था. इस मकान के अंदर बिस्तर पर राजेंद्र गुप्ता की लाश पड़ी थी. ठीक अपने परिवार के बाकी लोगों की तरह उस के भी सिर और सीने में एकएक गोली लगी थी.

इस वारदात में एक बात परिवार के बाकी लोगों से अलग थी, वो थी राजेंद्र गुप्ता की लाश का बिलकुल बिना कपड़ों के होना. राजेंद्र गुप्ता की इस हाल में मिली लाश ने इस केस को मानो अचानक से पलट दिया. क्योंकि अब तक पुलिस यह मान कर चल रही थी कि राजेंद्र गुप्ता ने ही अपने पूरे परिवार की हत्या की होगी. कुछ लोग यह भी मान रहे थे कि हत्या करने के बाद उस ने खुद को भी गोली मार कर जान दे दी होगी, लेकिन वहां जिस तरह से उस के सिर और सीने में एकएक गोली लगी थी, उस से साफ था कि राजेंद्र गुप्ता ने कम से कम खुदकुशी तो नहीं की है. क्योंकि खुदकुशी करने वाला आदमी अपने सिर और सीने में एकएक कर 2 गोलियां नहीं मार सकता. और फिर जिस हथियार से खुद को गोली मारी, वह भी वहीं होना चाहिए था.

पुलिस के सामने सब से बड़ा सवाल यह था कि आखिर कातिल कौन है? पुलिस ने घटनास्थल से मिले खोखे के आधार पर यह दावा किया कि हत्या में .32 बोर की पिस्टल का इस्तेमाल किया गया था. उत्तर प्रदेश के शहर वाराणसी के भेलूपुर थाना इलाके में हुई इस घटना से पूरे इलाके में दहशत फैल गई. काशी जोन के डीसीपी गौरव बांसवाल के निर्देश पर पुलिस ने सभी लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, राजेंद्र गुप्ता को 3 गोलियां मारी गई थीं, 2 उस के सिर पर और एक सीने पर. उस के बड़े बेटे नवनेंद्र को 4 गोलियां मारी गई थीं, जिन में 2 सिर पर और 2 सीने पर थीं.

नीतू गुप्ता को भी 4 गोलियां मारी गईं, जबकि बेटी गौरांगी और छोटे बेटे सुबेंद्र को 2-2 गोलियां मारी गईं. रिपोर्ट के अनुसार, एक ही प्रकार की पिस्टल से गोली मारी गई थी, इस से पता चलता है कि यह सुनियोजित हत्याएं थीं. 6 नवंबर को सभी 5 शवों का पोस्टमार्टम करवाने के बाद पुलिस की मौजूदगी में अंतिम संस्कार करवाया गया. जब घर से एक साथ 5 अर्थियां उठीं तो देखने वालों की आंखें नम हो गईं. वाराणसी में पिता, पत्नी और 3 बच्चों के शव हरिश्चंद्र घाट पर जैसे ही पहुंचे, वैसे ही श्मशान घाट पर लोगों का जमावड़ा लग गया. हर कोई एक साथ परिवार के सभी सदस्यों की एक साथ जलती चिताओं को देख हैरान था.

वाराणसी के हरिश्चंद्र घाट पर भतीजे प्रशांत उर्फ जुगनू ने अपने ताऊ राजेंद्र गुप्ता, ताई नीतू, चचेरी बहन गौरांगी और चचेरे भाइयों सुबेंद्र के साथ नवनेंद्र के शवों का अंतिम संस्कार करते हुए मुखाग्नि दी. अंतिम संस्कार के बाद भतीजे जुगनू को पुलिस ने हिरासत में रखा. अंतिम संस्कार के दौरान हरिश्चंद्र घाट पर राजेंद्र गुप्ता की मां शारदा भी मौजूद रहीं और नम आंखों से अपने परिवार के सदस्यों की जलती चिताओं को देर तक निहारती रहीं.

वाराणसी पुलिस की तफ्तीश आगे बढ़ी और अब पुलिस ने परिवार में जिंदा बची सब से बुजुर्ग महिला राजेंद्र गुप्ता की मां शारदा देवी से पूछताछ की. शारदा देवी ने इस कत्ल को ले कर जो कहानी सुनाई, उस ने मामले को एक और ही नया मोड़ दे दिया. शारदा देवी ने शक जताया कि इस वारदात के पीछे उन का पोता और राजेंद्र का भतीजा विशाल उर्फ विक्की गुप्ता हो सकता है. असल में विक्की पहले भी राजेंद्र गुप्ता के पूरे परिवार के कत्ल की बात कह चुका था और विक्की की अपने ही ताऊ राजेंद्र गुप्ता से पुरानी दुश्मनी भी थी.

राजेंद्र ने क्यों किया था छोटे भाई व भाभी का मर्डर

फिल्म ‘गैंग्स औफ वासेपुर’ में नवाजुद्दीन सिद्ïदीकी का फैजल खान वाला रोल आज भी याद है. उस के डायलौग की डिलीवरी इतनी परफेक्ट थी कि वह फिल्म दर्शकों पर जादू छोड़ गई थी. विशाल गुप्ता उर्फ विक्की ने भी जब फिल्म ‘गैंग्स औफ वासेपुर’ देखी और नवाजुद्ïदीन सिद्ïदीकी द्वारा बोला गया डायलौग ‘बाप का, दादा का, भाई का, सब का बदला लेगा रे तेरा फैजल’ सुना तो इस डायलौग ने किसी चिंगारी की तरह सीने में पड़ी सुस्त राख में दबी बदले की आग को सुलगा दिया.

उस के मन में दबी बदले की आग फिर से ज्वाला बनने को बेताब होने लगी. आखिर उसे अपने मम्मीपापा के कत्ल का बदला जो लेना था. 27 साल पहले 1997 में विक्की केवल 5 साल का मासूम बच्चा था, लेकिन उसे याद है कि किस तरह उस के पापा कृष्णा गुप्ता और मम्मी बबीता का बेरहमी से मर्डर कर दिया गया था. मर्डर करने वाला कोई गैर नहीं, बल्कि विक्की का सगा ताऊ राजेंद्र गुप्ता था. असल में वाराणसी के भदैनी इलाके में रहने वाले राजेंद्र गुप्ता के पिता लक्ष्मी नारायण गुप्ता बनारस के बड़े कारोबारी थे. उन का प्रौपर्टी और शराब का लंबाचौड़ा काम था.

लक्ष्मी नारायण के 2 बेटे राजेंद्र गुप्ता और कृष्णा गुप्ता थे. लेकिन लक्ष्मी नारायण अपने बड़े बेटे राजेंद्र गुप्ता के लापरवाह रवैए को ले कर हमेशा नाखुश रहते थे, क्योंकि राजेंद्र कारोबार पर ध्यान देने के बजाय अय्याशी की राह पर चल पड़ा था. इस वजह से उन्होंने अपने कारोबार का ज्यादातर हिस्सा अपने छोटे बेटे कृष्णा गुप्ता के हवाले कर दिया था. इस बात को ले कर राजेंद्र का अपने पिता से झगड़ा भी होता था. इस का नतीजा यह हुआ कि गुस्से में आ कर राजेंद्र ने 1997 के नवंबर महीने में एक रोज अपने छोटे भाई कृष्णा गुप्ता और उस की पत्नी की सोते समय गोली मार कर हत्या कर दी थी.

इस घटना के बाद राजेंद्र को पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया, लेकिन इस वारदात से अपने बड़े बेटे राजेंद्र पर लक्ष्मी नारायण गुप्ता का गुस्सा और बढ़ गया. मांबाप का साया छिन जाने के बाद लक्ष्मी नारायण ने कृष्णा के दोनों बेटों विक्की और जुगनू को काम सिखाना शुरू कर दिया.

उधर, जेल में बंद राजेंद्र अब भी अपने पिता के रवैए से गुस्से में था. करीब 6 साल जेल में गुजारने के बाद साल 2003 में उसे जैसे ही पैरोल मिली, बाहर आ कर उस ने एक और बड़ी वारदात को अंजाम दे दिया. असल में राजेंद्र अपने पिता से प्रौपर्टी और कारोबार का हिस्सा मांग रहा था, लेकिन लक्ष्मी नारायण इस के लिए तैयार नहीं थे.

राजेंद्र ने क्यों कराया पिता का मर्डर

अचानक एक रोज वाराणसी शहर के आचार्य रामचंद्र शुक्ल चौराहे के पास गुमनाम कातिलों ने लक्ष्मी नारायण गुप्ता और उन के पर्सनल सिक्योरिटी गार्ड की गोली मार कर हत्या कर दी. इस मामले में पुलिस के शक की सूई पहले ही दिन से बेटे राजेंद्र गुप्ता पर ही थी. ऐसे में जब जांच आगे बढ़ी तो पुलिस को पता चला कि राजेंद्र गुप्ता ने ही सुपारी दे कर अपने पिता और उन के सिक्योरिटी गार्ड का कत्ल करवा दिया.

राजेंद्र की पहली शादी 1995 में हुई थी, पहली पत्नी से उसे एक बेटा भी हुआ था. राजेंद्र के जिद्ïदी स्वभाव और हिंसक होने से पहली पत्नी बुरी तरह डर गई. उसे हर पल यही डर सताता कि जो शख्स अपने सगे भाई का मर्डर कर सकता है, वह उसे भी नुकसान पहुंचा सकता है. इसलिए राजेंद्र के जेल जाते ही पहली पत्नी अपने मायके पश्चिम बंगाल के आसनसोल चली गई. इस के बाद साल 2003 में जब राजेंद्र जेल से बाहर आया तो उस ने नीतू से दूसरी शादी की, जिस से उसे 3 बच्चे नवनेंद्र, सुबेंद्र और गौरांगी हुए. इन बच्चों के सिर पर तो खैर मांबाप का साया था, लेकिन राजेंद्र की वजह से ही कृष्णा के बच्चे कई साल अनाथ की तरह रहे.

कहने को तो विक्की, जुगनू और उन की बहन अनुप्रिया को राजेंद्र ने ही पाला था, लेकिन परवरिश के मामले में भी उस का परिवार अपने भतीजों के साथ सौतेला व्यवहार करता था. राजेंद्र हर समय अपने भतीजों के साथ गालीगलौज करता था और यह धमकी भी देता था कि उन के मम्मीपापा की तरह उन का भी कत्ल कर देगा. जैसेजैसे राजेंद्र के भतीजे बड़े हो रहे थे, वे गुस्से और बदले की आग में जल रहे थे. और अब जब ये वारदात हुई तो शक की सूई राजेंद्र के बड़े भतीजे विक्की पर ही जा कर टिक गई थी. क्योंकि पुलिस को उस के खिलाफ कई सबूत भी मिल चुके थे और वारदात के बाद से ही वह फरार भी था. राजेंद्र की बुजुर्ग मां शारदा देवी ने भी पुलिस को बताया था कि विक्की अपने चाचा से बदला लेना चाहता था.

विक्की और उस का भाई जुगनू दोनों दिल्ली एनसीआर में ही रह कर अपना काम करते थे. इस वारदात के बाद जुगनू तो बनारस पहुंच गया, लेकिन विक्की का कोई पता नहीं चला. इस बीच जब पुलिस ने विक्की के बारे में जानकारी जुटाई तो ये पता चला कि उस ने अपने करीबियों से कई बार राजेंद्र गुप्ता और उस के परिवार को जान से मार डालने की बात कही थी. पुलिस ने इस वारदात के बाद विक्की के बहनोई को नोएडा से हिरासत में लिया, जिस ने पूछताछ में इस बात पर मुहर लगाई. बहनोई ने बताया कि विक्की ने उस से कहा था कि इस बार दीवाली में वो अपने ताऊ और उस के परिवार को मार डालेगा.

पुलिस को मामले की छानबीन के दौरान मिली एक पर्सनल डायरी ने इस मौत की गुत्थी को और भी उलझा दिया. यह डायरी वारदात में मारे गए शख्स राजेंद्र गुप्ता की थी. डायरी में राजेंद्र ने किसी से उस की लड़की के साथ शादी करने की इच्छा जताई थी और खुद को एक काबिल, कर्मठ, सच्चा और संस्कारी लड़का बता रहा था.

डायरी से उजागर हुए राज

डायरी में लिखी लाइनों के साथ एक सवाल यह भी खड़ा हो गया कि क्या राजेंद्र गुप्ता तीसरी शादी करना चाहता था? क्योंकि डायरी में ये बातें जिन पन्नों पर लिखी थीं, उस के साथ वाले दूसरे पन्ने पर 6 नवंबर, 2016 की तारीख है.

जेल से बाहर आने के बाद राजेंद्र ने दूसरा प्रेम विवाह अपने ही घर के सामने रहने वाली ब्राह्मण परिवार की नीतू से किया था. हत्याकांड के बाद अब राजेंद्र गुप्ता का खुद लिखा हुआ लगभग ढाई पन्ने का हैंडनोट मिला, जो नवंबर 2016 का था. इस हैंडनोट में राजेंद्र किसी के सामने अपनी सफाई पेश कर रहा था कि वह किस तरह का निहायत सीधा और सरल इंसान है. साथ ही उस का पहली पत्नी से तलाक हो चुका है. इतना ही नहीं, डायरी में तमाम लोगों के नाम, नंबर और बनाई गई कुंडलियां पेन से कट की गई थीं.

राजेंद्र गुप्ता वर्ष 2016 में तीसरी शादी करने की फिराक में था. अधेड़ हो चुका राजेंद्र कहीं न कहीं अपने दिल में तीसरी शादी का सपना बुन रहा था. हैंडनोट में वह कथित तौर पर लड़की के पिता को अंकल कह कर संबोधित कर रहा था. ऐसे में पुलिस ने आशंका जताई कि कहीं यही बात तो उस की हत्या की वजह नहीं बन गई? शायद कातिल नहीं चाहता था कि राजेंद्र की अकूत संपत्ति का कोई नया वारिस आए या उस की जिदंगी में तीसरी औरत की एंट्री हो.

राजेंद्र के हैंडनोट में लिखा मिला, ‘नमस्ते अंकल, सौ बात की एक बात मैं आप से कहना चाहता हूं कि मुझ जैसा काबिल, कर्मठ, सच्चा, संस्कारी, चरित्रवान कुल मिला कर सर्वगुण संपन्न इंसान आप को ढूंढने से भी शायद न मिले. मैं अपने अंदर हमेशा कमी ढूंढता रहता हूं, लेकिन आज तक मुझे अपने अंदर कभी कोई कमी नहीं मिली. फोन पर थोड़ी देर बात कर के कोई भी, किसी को कितना समझ सकता है, फ्री माइंड हो कर आप से ठीक से बात नहीं कर पाया. घबराहट में शायद गलत बोल गया.’

हैंडनोट में राजेंद्र ने आगे लिखा था, ‘मेरा तलाक फाइनल हो चुका है, जो एकदम सत्य है. मेरी पत्नी ने अब दूसरी शादी कर ली है. मेरी ससुराल बहुत संपन्न है. बच्चों की पढ़ाई का मुझे कोई खर्च नहीं देना, सब हो चुका. हालांकि, बच्चों के लगाव की वजह से कुछ भेज देता हूं, इसलिए कि बच्चे नफरत न करें. बच्चे अपनी मां के साथ ही रहते हैं. मैं अकेला हूं. ‘अब आप लोग जो कहेंगे वो करूंगा. जीवनसाथी से कई फोन काल आते रहते हैं, लेकिन मुझे कुंडली मिला कर ही शादी करनी है. इसलिए सब को सौरी कहना पड़ रहा है. आप मुझे गलत मत समझिए. आप की बेटी से कुंडली मिला, तभी मैं ने इंटरेस्ट भेजा, नहीं मिलता तो नहीं भेजता.

‘कुंडली को गुरुजी को भी दिखाया, उन्होंने ओके बोल दिया. यदि आप की बेटी की शादी होती है तो मैं विश्वास दिलाता हूं कि उस को लाइफ में कोई कष्ट नहीं होने दूंगा. दुनिया की सब से बेहतरीन लाइफ उसे मिलेगी. आप एक राजा के घर शादी कर रहे हैं. मैं जानता हूं कि आप एक ऐसे पिता हैं, जिसे अपनी बेटी के भविष्य की चिंता है.’

विक्की को हर महीने 10 हजार रुपए क्यों भेजती थी ताई

विक्की भले ही अपने ताऊ से नफरत करता था और उन से बदला भी लेना चाहता था, मगर उस की ताई नीतू उस की काफी चिंता करती थी. विक्की की हर जरूरत का ध्यान नीतू रखती थी. विशाल का बैंक अकाउंट खंगालने पर चौंकाने वाली बात यह सामने आई कि नीतू गुप्ता यानी विशाल की ताई (राजेंद्र गुप्ता की पत्नी) उस के खर्च के लिए हर महीने 10 हजार रुपए भेजती थी.

सालों बाद इस बार दीवाली पर जब विक्की घर आया तो यम द्वितीया पर नीतू की बेटी गौरांगी ने विशाल की लंबी उम्र की कामना करते हुए भाई दूज पर टीका लगाया था और काफी वक्त एक साथ बिताया था. इन सब के बावजूद भी पुलिस को यह समझ नहीं आ रहा कि आखिर विशाल के हाथ अपनों पर गोली दागने से पहले कांपे क्यों नहीं?

राजेंद्र गुप्ता ने विक्की की बहन और अपनी भतीजी अनुप्रिया की शादी कपड़ा फैक्ट्री मालिक से करने के लिए झूठ बोला था. पुलिस को यह बात अनुप्रिया के पति ने बताई, जब उन से सवाल किया कि 4 हत्याओं के आरोपी के घर उस ने शादी कैसे की?

जिस पर अनुप्रिया के पति ने बताया कि राजेंद्र ने उन से झूठ बोलते हुए कहा था, ”मेरे छोटे भाई कृष्णा और उन की पत्नी बबीता की रोड एक्सीडेंट में मौत हो गई. इसलिए भतीजी के मम्मीपापा मैं और मेरी पत्नी नीतू ही हैं. अनुप्रिया भी मुझ से यह बात छिपाए रही. मुझे सच्चाई की जानकारी 5 हत्याओं से संबंधित खबर मीडिया में पढऩे के बाद हो पाई.’’

राजेंद्र गुप्ता से विक्की को इतनी नफरत थी कि वह बहन अनुप्रिया की शादी में नहीं आया था. जब उसे अनुप्रिया ने फोन लगा कर कहा था कि विक्की मेरी शादी में आना है तो उस ने फोन कर के बोला था, ”दीदी तुम शादी कर लो, मेरा आना ठीक नहीं रहेगा.’’

वह महीने-2 महीने में एक बार अनुप्रिया को जरूर फोन कर के उस का हालचाल पूछ लेता था. अपनी बहन पर वह बहुत प्यार दर्शाता था. इस बार भी दीवाली की मिठाई भी उस ने औनलाइन भेजी थी.

 

दादी का लाडला था विक्की

27 साल पुरानी चली आ रही इस रंजिश की असली वजह जायदाद है. इस केस में कई चौंका देने वाले खुलासे भी हुए हैं. 5 लोगों की हत्या करने का आरोपी विक्की अपनी दादी शारदा देवी से काफी क्लोज था. इस वारदात से पहले वह उन के पास घर पर आया था. दादी ने उस के लिए खाने में रोटियां भी बनवाई थीं. इस के लिए उन्होंने राजेंद्र गुप्ता की दूसरी पत्नी नीतू से कहा था कि वो नौकरानी से 3 रोटी अधिक बनवा ले.

डीसीपी गौरव बंसवाल और उन की टीम को इस हत्याकांड में पहले यह शक हुआ था कि मर्डर की इस घटना में कई शूटर शामिल होंगे, लेकिन गहराई से हुई जांच और पूछताछ में दादी शारदा देवी ने स्पष्ट बताया कि विक्की ने मंशा जाहिर की थी कि वह पूरे परिवार को खत्म कर देगा. विक्की ने 22 अक्तूबर से ही अपना मोबाइल बंद कर लिया. उस की कोई लोकेशन भी नहीं मिली. वह बगैर फोन के ही दीवाली के समय आ कर घर में रुका भी था. डीसीपी ने आगे बताया कि वारदात वाली रात में राजेंद्र गुप्ता को सोते हालत में ही उन के रोहनिया स्थित निर्माणाधीन मकान में सिर में 2 गोलियां मारी गई थीं. उस के बाद विक्की ने भदैनी के घर पर सुबह 5-6 बजे के बीच में आ कर 4 मर्डर किए थे.

विक्की घर के हर कोने से वाकिफ था. पहले उस ने पहली मंजिल पर सो रही नीतू को गोली मारी फिर वह सेकेंड फ्लोर पर गया, जहां गौरांगी और छोटू सो रहे थे. उस ने उन दोनों को भी गोली मार दी. उन की मच्छरदानी में भी गोलियों से छेद हो गए. गौरांगी का शव फर्श पर मिला था. ऐसा लगता है कि उस ने संघर्ष किया था, जबकि दूसरे बड़े बेटे का शव बाथरूम में मिला था. ऐसे में कहा जा सकता है कि दोनों ने संघर्ष कर के अपनी जान बचाने की पूरी कोशिश की थी.

विक्की की गतिविधियों को खंगालने पर पता चला है कि अहमदाबाद में उस ने 22-24 नवंबर के बीच अपना मोबाइल फोन बंद कर दिया था. इस के बाद वह बनारस आया था और यहीं पर भाईदूज तक रुका था.

कथा लिखने तक पुलिस को आरोपी विशाल विक्की के बारे में कहीं से कोई सुराग नहीं मिल सका था. पुलिस उस की तलाश में जुटी थी.

—कथा मीडिया रिपोर्ट पर आधारित

आतंक के ग्लैमर में फंसा सैफुल्ला

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान जिस तरह से मध्य प्रदेश पुलिस की सूचना पर लखनऊ में आतंकी सैफुल्ला मारा गया, उसे राजनीतिक नफानुकसान से जोड़ कर देखना ठीक नहीं है. सैफुल्ला की कहानी से पता चलता है कि हद से अधिक धार्मिक दिखने वाले लोगों के पीछे कुछ न कुछ राज अवश्य हो सकता है. धर्म के नाम पर लोग दूसरों पर आंख मूंद कर भरोसा कर लेते हैं. ऐसे में धर्म की आड़ में आतंक को फैलाना आसान हो गया है. अगर बच्चा आक्रामक लड़ाईझगड़े वाले वीडियो गेम्स और फिल्मों को देखने में रुचि ले रहा है तो घर वालों को सचेत हो जाना चाहिए. यह किसी बीमार मानसिकता की वजह से हो सकता है.

मातापिता बच्चों को पढ़ालिखा कर अपने बुढ़ापे का सहारा बनाना चाहते हैं. अगर बच्चे गलत राह पर चल पड़ते हैं तो यही कहा जाता है कि मातापिता ने सही शिक्षा नहीं दी. जबकि कोई मांबाप नहीं चाहता कि उस का बेटा गलत राह पर जाए. हालात और मजबूरियां सैफुल्ला जैसे युवाओं को आतंक के ग्लैमर से जोड़ देती हैं.

धर्म की शिक्षा इस में सब से बड़ा रोल अदा करती है. धर्म के नाम पर अगले जन्म, स्वर्ग और नरक का भ्रम किसी को भी गुमराह कर सकता है. सैफुल्ला आतंकवाद और धर्म के फेर में कुछ इस कदर उलझ गया था कि मौत ही उस से पीछा छुड़ा पाई. कानपुर के एक मध्यमवर्गीय परिवार का सैफुल्ला भी अन्य युवाओं जैसा ही था.

सैफुल्ला का परिवार उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर की जाजमऊ कालोनी के मनोहरनगर में रहता था. उस के पिता सरताज कानपुर की एक टेनरी (चमड़े की फैक्ट्री) में नौकरी करते थे. उन के 2 बेटे खालिद और मुजाहिद भी यही काम करते थे. उन की एक बेटी भी थी. 4 बच्चों में सैफुल्ला तीसरे नंबर पर था.

सैफुल्ला के पिता सरताज 6 भाई हैं, जिन में नूर अहमद, ममनून, सरताज और मंसूर मनोहरनगर में ही रहते थे. बाकी 2 भाई नसीम और इकबाल तिवारीपुर में रहते है. सैफुल्ला बचपन से ही पढ़ने में अच्छा था. जाजमऊ के जेपीआरएन इंटरकालेज से उस ने इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई की थी. इंटर में उस ने 80 प्रतिशत नंबर हासिल किए थे.

सन 2015 में उस ने मनोहरलाल डिग्री कालेज में बीकौम में दाखिला लिया. इसी बीच उस की मां सरताज बेगम का निधन हो गया तो वह पूरी तरह से आजाद हो गया. घरपरिवार के साथ उस के संबंध खत्म से हो गए. उसे एक लड़की से प्रेम हो गया, जिसे ले कर घर में लड़ाईझगड़ा होने लगा.

सैफुल्ला के पिता चाहते थे कि वह नौकरी करे, जिस से घरपरिवार को कुछ मदद मिल सके. पिता की बात का असर सैफुल्ला पर बिलकुल नहीं हो रहा था. जब तक वह पढ़ रहा था, घर वालों को कोई चिंता नहीं थी. लेकिन उस के पढ़ाई छोड़ते ही घर वाले उस से नौकरी करने के लिए कहने लगे थे. जबकि सैफुल्ला को पिता और भाइयों की तरह काम करना पसंद नहीं था.

वह कुछ अलग करना चाहता था. अब तक वह पूरी तरह से स्वच्छंद हो चुका था. सोशल मीडिया पर सक्रिय होने के साथ वह आतंकवाद से जुड़ने लगा था. फेसबुक और तमाम अन्य साइटों के जरिए आतंकवाद की खबरें, उस की विचारधारा को पढ़ता था.

यहीं से सैफुल्ला धर्म के कट्टरवाद से जुड़ने लगा. ऐसे में आईएसआईएस जैसे आतंकी संगठन के कारनामे उसे प्रेरित करने लगे. टीवी और इंटरनेट पर उसे वीडियो गेम्स खेलना पसंद था. इन में लड़ाईझगड़े और मारपीट वाले गेम्स उसे बहुत पसंद थे.शार्ट कौंबैट यानी नजदीकी लड़ाई वाले गेम्स उसे खास पसंद थे. वह यूट्यूब पर ऐसे गेम्स खूब देखता था. इस तरह की अमेरिकी फिल्में भी उसे खूब पसंद थीं. यूट्यूब के जरिए ही उस ने पिस्टल खोलना और जोड़ना सीखा.

कानपुर में रहते हुए सैफुल्ला कई लोगों से मिल चुका था, जो आतंकवाद को जेहाद और आजादी की लड़ाई से जोड़ कर देखते थे. वह आतंक फैलाने वालों की एक टीम तैयार करने के मिशन पर लग गया. फेसबुक पर तमाम तरह के पेज बना कर वह ऐसे युवाओं को खुद से जोड़ने लगा, जो आर्थिक रूप से कमजोर थे. सैफुल्ला ऐसे लोगों के मन में नफरत के भाव भी पैदा करने लगा था. उस का मकसद था युवाओं को खुद से जोड़ना और आईएसआईएस जैसे आतंकी संगठन की राह पर चलते हुए भारत में भी उसी तरह का संगठन खड़ा करना. युवाओं को वह सुविधाजनक लग्जरी लाइफ और मोटी कमाई का झांसा दे कर खुद से जोड़ने लगा था.

कानपुर में लोग सैफुल्ला का पहचानते थे, इसलिए इस तरह के काम के लिए उस का कानपुर से बाहर जाना जरूरी था. आखिर एक दिन वह घर छोड़ कर भाग गया. घर वालों ने भी उस के बारे में पता नहीं किया. उस ने इस के लिए उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ को चुना. वहां मुसलिम आबादी भी ठीकठाक है और प्रदेश तथा शहरों से सीधा जुड़ा हुआ भी है. इन सब खूबियों के कारण लखनऊ उस के निशाने पर आ गया.

नवंबर 2016 में सैफुल्ला लखनऊ के काकोरी थाने की हाजी कालोनी में बादशाह खान का मकान 3 हजार रुपए प्रति महीने के किराए पर ले लिया. यह जगह शहर के ठाकुरगंज इलाके से पूरी तरह से सटी हुई है, जिस से वह शहर और गांव दोनों के बीच रह सकता था. यहां से कहीं भी भागना आसान था.

बादशाह खान का मकान सैफुल्ला को किराए पर पड़ोस में रहने वाले कयूम ने दिलाया था. वह मदरसा चलाता था. बादशाह खान दुबई में नौकरी करता था. उस की पत्नी आयशा और परिवार मलिहाबाद में रहता था. मकान को किराए पर लेते समय उस ने खुद को खुद्दार और कौम के प्रति वफादार बताया था.

सैफुल्ला ने कहा था कि वह मेहनत से अपनी पढ़ाई पूरी करने के साथ अपनी कौम के बच्चों को कंप्यूटर की शिक्षा देना चाहता है. अपने खर्च के बारे में उस ने बताया था कि वह कम फीस पर बच्चों को कंप्यूटर के जरिए आत्मनिर्भर बनाने का काम करता है.इसी से सैफुल्ला ने अपना खर्च चलाने की बात कही थी.

उस की दिनचर्या ऐसी थी कि कोई भी उस से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था. अपनी दिनचर्या का पूरा चार्ट बना कर उस ने कमरे की दीवारों पर लगा रखा था. वह सुबह 4 बजे उठ जाता था खुद को फिट रखने के लिए. वह पांचों वक्त नमाज पढ़ता था. कुरआन के अनुवाद तफ्सीर पढ़ता था. वह पूरी तरह से धर्म में रचबस गया था. हजरत मोहम्मद साहब के वचनों हदीस पर अमल करता था. अपना खाना वह खुद पकाता था. दोपहर 3 बजे उस का लंच होता था. शरीयत से जुड़ी किताबें पढ़ता था. रात 10 बजे तक सो जाता था.

रमजान के दिनों में वह पूरी तरह से उस में डूब जाता था. वह बिना देखे कुरआन की हिब्ज पढ़ता था. वह खुद को पूरी तरह से मोहम्मद साहब के वचनों पर चलने वाला मानता था. उसे करीब से देखने वाला समझता था कि इस से अच्छा लड़का कोई दुनिया में नहीं हो सकता. हाजी कालोनी के जिस मकान में सैफुल्ला रहता था, उस में कुल 4 कमरे थे. मकान के दाएं हिस्से में महबूब नामक एक और किराएदार अपने परिवार के साथ रहता था. बाईं ओर के कमरे में महबूब का एक और साथी रहता था. इस के आगे दोनों के किचन थे. दाईं ओर का कमरा खाली पड़ा था और उस के आगे भी बाथरूम और किचन बने थे.

असल में बादशाह खान ने अपने इस मकान को कुछ इस तरह से बनवाया था कि कई परिवार एक साथ किराए पर रह सकें. कोई किसी से परेशान न हो, ऐसे में सब के रास्ते, स्टोररूम और बाथरूम अलगअलग थे. मकान खुली जगह पर था, इसलिए चोरीडकैती से बचने के लिए सुरक्षा के पूरे उपाय किए गए थे. सैफुल्ला ने किराए पर लेते समय इन खूबियों को ध्यान में रखा था और उसे यह जगह भा गई थी.

सैफुल्ला को यह जगह काफी मुफीद लगी थी. जैसे यह उसी के लिए ही तैयार की गई हो. वह समय पर किराया देता था. अपने आसपास वालों से वह कम ही बातचीत करता था. ज्यादा समय वह अपने कंप्यूटर पर देता था. इस में वह सब से ज्यादा यूट्यूब देखता था, जिस में आईएसआईएस से जुड़ी जानकारियों पर ज्यादा ध्यान देता था.

7 मार्च, 2017 को भोपाल-उज्जैन पैसेंजर रेलगाड़ी में बम धमाका हुआ. वहां पुलिस को बम धमाके से जुड़े कुछ परचे मिले, जिस में लिखा था, ‘हम भारत आ चुके हैं—आईएस’. यह संदेश पढ़ने के बाद भारत की सभी सुरक्षा एजेंसियां और पुलिस सक्रिय हो गई. ट्रेन में हुआ बम धमाका बहुत शक्तिशाली नहीं था, जिस से बहुत ज्यादा नुकसान नहीं हुआ था.

पर यह संदेश सुरक्षा एजेंसियों और सरकार की नींद उड़ाने वाला था. पुलिस जांच में पता चला कि यह काम भारत में काम करने वाले किसी खुरासान ग्रुप का है, जो सीधे तौर पर आईएस की गतिविधियों से जुड़ा हुआ नहीं है, पर उस से प्रभावित हो कर उसी तरह के काम कर रहा है. यह खुरासान ग्रुप तहरीके तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) का एक हिस्सा है, जो आईएस से जुड़ा है.

मध्य प्रदेश पुलिस ने जब पकड़े गए 3 आतंकवादियों से पूछताछ की तो कानपुर की केडीए कालोनी में रहने वाले दानिश अख्तर उर्फ जफर, अलीगढ़ के इंदिरानगर निवासी सैयद मीर हुसैन हमजा और कानपुर के जाजमऊ के रहने वाले आतिश ने माना कि वे 3 साल से सैफुल्ला को जानते हैं. वह उन्हें वीडियो दिखा कर कहता था, ‘एक वे हैं और एक हम. कौम के लिए हमें भी कुछ करना होगा.’

उन्होंने बताया था कि सैफुल्ला का इरादा भारत में कई जगह बम विस्फोट करने का है. इस जानकारी के बाद पुलिस को सैफुल्ला की जानकारी और लोकेशन दोनों ही मिल गई थी. इस के बाद पुलिस ने दोपहर करीब ढाई बजे सैफुल्ला के घर पर दस्तक दी. लखनऊ की पुलिस पूरी तरह से अलर्ट थी. उस के साथ एटीएस के साथ एसटीएफ भी थी.

सैकड़ों की संख्या में पुलिस और दूसरे सुरक्षा बलों ने घर को घेर लिया था. आसपास रहने वालों को जब पता चला कि सैफुल्ला आतंकवादी है और मध्य प्रदेश में हुए बम विस्फोट में उस का हाथ है तो सभी दंग रह गए. सुरक्षा बलों ने पूरे 10 घंटे तक घर को घेरे रखा. वे सैफुल्ला को आत्मसमर्पण के लिए कहते रहे, पर वह नहीं माना.

घर के अंदर से सैफुल्ला पुलिस पर गोलियां चलाता रहा. ऐसे में रात करीब 2 बजे पुलिस ने लोहे के गेट को फाड़ कर उस पर गोलियां चलाईं. तब जा कर वह मरा. पुलिस को उस के कमरे के पास से .32 बोर की 8 पिस्तौलें, 630 जिंदा कारतूस, 45 ग्राम सोना और 4 सिमकार्ड मिले.

इस के साथ डेढ़ लाख रुपए नकद, एटीएम कार्ड, किताबें, काला झंडा, विदेशी मुद्रा रियाल, आतिफ के नाम का पैनकार्ड और यूपी78 सीपी 9704 नंबर की डिसकवर मोटरसाइकिल मिली. इस के अलावा बम बनाने का सामान, वाकीटाकी फोन के 2 सेट और अन्य सामग्री भी मिली.

पुलिस को उस के कमरे से 3 पासपोर्ट भी मिले, जो सैफुल्ला, दानिश और आतिफ के नाम के थे. आतिफ सऊदी अरब हो आया था. बाकी दोनों ने कोई यात्रा इन पासपोर्ट से नहीं की थी. सैफुल्ला का ड्राइविंग लाइसेंस और पासपोर्ट मनोहरनगर के पते पर ही बने थे, जहां उस का परिवार रहता था.

सैफुल्ला के आतंकी होने और पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारे जाने की खबर जब उस के पिता सरताज अहमद को मिली, तब वह समझ पाए कि उन का बेटा क्या कर रहा था. पुलिस ने जब उन से शव लेने और उसे दफनाने के लिए कहा तो उन्होंने कहा कि सैफुल्ला ने ऐसा कोई काम नहीं किया कि उस का जनाजा निकले.

वह गद्दार था. उस के शव को ले कर वह अपना ईमान खराब नहीं करेंगे.  इस के बाद पुलिस ने सैफुल्ला को लखनऊ के ही ऐशबाग कब्रगाह में दफना दिया था.

सैफुल्ला की कहानी किसी भी ऐसे युवक के लिए सीख देने वाली हो सकती है कि आतंक की पाठशाला में पढ़ाई करना किस अंजाम तक पहुंचा सकता है. ऐसे शहरी या गांव के लोगों के लिए भी सीख देने वाली हो सकती है, जिन के आसपास रहने वाला इस तरह धार्मिक प्रवृत्ति का हो.

आतंकवाद का ग्लैमर दूर से देखने में अच्छा लग सकता है, पर उस का करीबी होना बदबूदार गंदगी की तरह होता है. धर्म के नाम पर दुकान चलाने वाले लोग मासूम युवाओं को गुमराह करते हैं. सोशल मीडिया का उपयोग करने वाले लोगों को प्रभावित करना आसान होता है.

ऐसे में जरूरत इस बात की है कि युवा और उन के घर वाले होशियार रहें, जिस से उन के घर में कोई सैफुल्ला न बन सके. बच्चे आतंकवादी नहीं होते, उन्हें धर्म पर काम करने वाले कट्टरपंथी लोग आतंक से जोड़ देते हैं. पैसे कमाने और बाहुबली बनने का शौक बच्चों को आतंक के राह पर ले जाता है.

कुछ इस तरह धरा गया दुर्गेश शर्मा

पिछले 15 सालों से दुर्गेश शर्मा और पटना पुलिस के बीच चूहे बिल्ली का खेल चल रहा था. पिछले दिनों उस की गिरफ्तारी के बाद पटना पुलिस ने जरूर चैन की सांस ली होगी.

22 जुलाई, 2017 को एसटीएफ ने दुर्गेश शर्मा को ‘राजेंद्रनगर न्यू तिनसुकिया ऐक्सप्रैस’ रेलगाड़ी में बख्तियारपुर रेलवे स्टेशन के पास पकड़ा. उस समय उस की बीवी और बच्चे भी साथ थे. एसटीएफ ने जब नाम पूछा, तो दुर्गेश ने अपना नाम राजीव शर्मा बताया. उस ने रेलगाड़ी का टिकट भी राजीव शर्मा के नाम से रिजर्व करा रखा था. उस ने राजीव शर्मा के नाम का पैनकार्ड, आधारकार्ड और वोटर आईडी भी एसटीएफ को दिखाया. कुछ देर के लिए एसटीएफ की टीम भी चकरा गई.

टीम को लगा कि कहीं उस ने गलत आदमी पर तो हाथ नहीं डाल दिया, पर एसटीएफ के पास दुर्गेश शर्मा का फोटो था, जिस से उस की पहचान हो सकी. दुर्गेश शर्मा से पूछताछ के बाद पुलिस को कई सुराग और राज पता चले हैं. उस ने अपने तकरीबन 15 गुरगों के नाम पुलिस को बताए, जिन के दम पर वह रंगदारी वसूलता था.

16 जनवरी, 2016 में उस ने एसके पुरी थाने के राजापुर पुल के पास सोना कारोबारी रविकांत की हत्या कर दी थी.उस हत्या के बारे में दुर्गेश शर्मा ने कहा कि उस की हत्या गलती से हो गई थी. उस के गुरगे करमू राय ने शराब के नशे में रविकांत की हत्या कर दी थी. दुर्गेश शर्मा पटना के मैनपुरा, बोरिंग रोड, राजा बाजार, दीघा और पाटलीपुत्र कालौनी जैसे महल्लों के बड़े कारोबारियों से ले कर छोटे दुकानदारों तक से रंगदारी वसूलता था.

दुर्गेश शर्मा पटना हाईकोर्ट से फर्जी तरीके से जमानत भी ले चुका है. साल 2011 में फर्जी जमानत पर फरार होने के बाद दुर्गेश शर्मा ने सिलीगुड़ी को अपना ठिकाना बना लिया था. पटना में जीतू उपाध्याय दुर्गेश शर्मा का खासमखास गुरगा था और वही पटना में रंगदारी वसूली का काम किया करता था और नैट बैंकिंग के जरीए दुर्गेश शर्मा के खाते में रुपए ट्रांसफर कर देता था.

सिलीगुड़ी के अलावा दुर्गेश उर्फ राहुल उर्फ राजीव ने पुलिस से बचने के लिए पटना के बाहर कई शहरों में अपना ठिकाना बना रखा था. कोलकाता के साल्ट लेक इलाके में भी उस का ठिकाना था. झारखंड के धनबाद शहर में भी उस का मकान था. असम के तिनसुकिया शहर के सुबोचनी रोड पर सटू दास के मकान में वह किराएदार था. रांची, जमशेदपुर में भी उस के मकान होने का पता चला है.

पटना के बोरिंग रोड इलाके में बन रहे एक मौल में भी दुर्गेश शर्मा की हिस्सेदारी है. साथ ही, पटना के मैनपुरा इलाके और पश्चिमी पटना की कई कीमती जमीनों पर भी वह कब्जा करने की फिराक में था. दुर्गेश शर्मा शंकर राय की हत्या करने के लिए पटना आया था. उस के बाद उस ने समर्पण करने की सोची थी. दुर्गेश शर्मा और शंकर राय के बीच इलाके के दबदबे को ले कर टकराव चलता रहा है. इस में दोनों गुटों के कई लोग मारे जा चुके हैं.

पटना के कई थानों में उस के खिलाफ 32 मामले दर्ज हैं, जिन में से 20 संगीन हैं. साल 2015 में ठेकेदार संतोष की हत्या के मामले में पुलिस उसे ढूंढ़ रही थी. तकरीबन 10 साल पहले वह पटना के अपराधी सुलतान मियां का दायां हाथ हुआ करता था. वह सुलतान मियां गैंग का शार्प शूटर था. साल 2008 में उस ने सुलतान मियां से नाता तोड़ कर अपना अलग गैंग बना लिया.

साल 2015 में शंकर राय से सुपारी ले कर दुर्गेश शर्मा ने संतोष की हत्या की थी. काम हो जाने के बाद भी शंकर ने उसे रकम नहीं दी थी. उस हत्या के मामले में शंकर को जेल हो गई थी. उस रकम को ले कर दोनों के बीच तनाव काफी बढ़ चुका था.

पटना नगर निगम चुनाव के समय दुर्गेश शर्मा को पता चला कि शंकर की बीवी पटना नगर निगम के वार्ड नंबर-24 से चुनाव लड़ रही है. दुर्गेश को लगा कि अगर शंकर की बीवी चुनाव जीत गई, तो उस का राजनीतिक कद बढ़ जाएगा और वह उस पर भारी पड़ने लगेगा.शंकर की हत्या करने का उसे यही बेहतरीन मौका लगा. चुनाव प्रचार के दौरान वह शंकर को आसानी से मार सकता है. दुर्गेश पटना पहुंचा, पर शंकर की हत्या न कर सका.

दुर्गेश शर्मा पहली बार साल 2003 में पुलिस के चंगुल में फंसा था और साल 2006 में वह जमानत पर छूटा था. उस के बाद उस का खौफ इतना बढ़ गया था कि साल 2011 में राज्य सरकार ने उस की गिरफ्तारी पर 50 हजार रुपए का इनाम रखा. उस के बाद भी वह पिछले 6 सालों तक पुलिस को चकमा देने में कामयाब रहा.

दुर्गेश की बीवी कविता ने पुलिस को बताया कि वह कामाख्या पूजा के लिए जा रही थी कि रास्ते में उस के पति को गिरफ्तार कर लिया गया. पूजा से लौटने के बाद दुर्गेश कोर्ट या पुलिस के सामने सरैंडर करने का मन बना चुका था.

रविकांत की हत्या

16 फरवरी को 45 साला रविकांत पौने 10 बजे अपनी दुकान न्यू सोनाली ज्वैलर्स पहुंचे. दुकान का ताला खुलवाने के बाद साफसफाई की गई. उस के बाद 9 बज कर, 55 मिनट पर रविकांत काउंटर पर बैठ गए. काउंटर पर बैठ कर वे बहीखाता देख रहे थे कि 10 बजे 3 लड़के दुकान में घुसे.एक लड़के ने रविकांत से कहा कि वे सोने की चेन और 2 लाख रुपए तुरंत निकाल दें, नहीं तो जान से मार देंगे.

रविकांत ने कहा कि बारबार रंगदारी देने की उन की हैसियत नहीं है. लड़के ने फिर धमकाया कि रुपया निकालो, नहीं तो बुरा अंजाम होगा. इसी बात को ले कर दोनों के बीच बहस होने लगी. तमतमाए लड़के ने 315 बोर के देशी कट्टे से रविकांत के सीने में कई गोलियां दाग दीं. रविकांत वहीं ढेर हो गए. रविकांत के करीबियों ने बताया कि पिछले 3 महीने से रविकांत से 10 लाख रुपए की रंगदारी मांगी जा रही थी.

अपराधी दुर्गेश शर्मा और मुनचुन गोप कई दिनों से रंगदारी मांग रहे थे.जब रविकांत ने इतनी बड़ी रकम देने में असमर्थता जताई, तो अपराधी सोने के गहनों की मांग करने लगे. एक बार रविकांत ने 36 ग्राम सोने की चेन का बना कर दी, पर इस के बाद भी रंगदारी की मांग जारी रही. रविकांत ने जब रंगदारी देने से मना किया, तो उन की हत्या कर दी गई. रविकांत की दिनदहाड़े हत्या में दुर्गेश शर्मा का नाम सामने आने के बाद भी पुलिस उसे दबोच न सकी. पुलिस उस के गुरगों को ही पकड़ सकी.

दुर्गेश शर्मा का करीबी पगला विक्रम उर्फ राजा समेत रंजीत उर्फ भोला, जितेंद्र कुमार और पप्पू कुमार को पकड़ लिया गया. ये लोग दुर्गेश शर्मा के इशारे पर बोरिंग रोड, राजापुर, मैनपुरा, मंदिरी और दानापुर इलाके में कारोबारियों और ठेकेदारों से रंगदारी वसूलते थे. रविकांत को गोली मारने वाले करमू राय तक पुलिस के हाथ नहीं पहुंच सके.

पगला विक्रम दुर्गेश शर्मा का दाहिना हाथ माना जाता है. मूल रूप से नालंदा का रहने वाला पगला विक्रम रामकृष्णा नगर इलाके में रहता है. राजापुर पुल के पास उस का अड्डा है. पिछले साल जब पगला विक्रम जेल गया, तो दुर्गेश शर्मा ही उस के घर का खर्च चलाता था.

जेल से बाहर आने के बाद पगला विक्रम उस के लिए खुल कर काम करने लगा. दुर्गेश शर्मा की गैरमौजूदगी में वही गिरोह को चलाता था. पिछले साल 12 फरवरी को मैनपुरा के राजकीय मध्य विद्यालय के पास पार्षद रह चुके रंतोष के भाई संतोष की हत्या में भी दुर्गेश शर्मा का नाम आया था. उस के कुछ दिन पहले ही राजापुर पुल के पास मधु सिंह की हत्या में भी उस का नाम उछला था.

छपरा जिले के गरखा थाने के फुलवरिया गांव के रहने वाले दुर्गेश शर्मा ने साल 2000 के आसपास पटना के मैनपुरा इलाके में अपना अड्डा बनाया था. उस के खिलाफ पहला केस 10 अक्तूबर, 2000 को बुद्धा कालोनी थाने में डकैती के लिए दर्ज किया गया था. शुरुआत में उस ने सुलतान मियां के शूटर के रूप में काम किया और सुलतान के गायब होने के बाद उस ने गिरोह की कमान थाम ली थी.

साल 2008 में उस ने आरा में बैंक डकैती की और पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया था. उसे बेऊर जेल में बंद किया गया था, पर वह हाईकोर्ट से फर्जी जमानत और्डर पर बाहर निकला था, उस के बाद वह पुलिस के लिए दूर की कौड़ी हो गया. दुर्गेश शर्मा पिछले कई सालों से आरा में रह कर अपना गैंग चला रहा था. वह अकसर अपने गिरोह के लोगों से मिलने पटना और आरा के बीच नेउरा स्टेशन पर आता था. आखिरी बार वह फरवरी, 2015 में पटना आया था.

दुर्गेश शर्मा ने कोलकाता में अपना कारोबार फैला रखा है और वह मोबाइल टावर लगाने का काम कर रहा है. राजापुर पुल के पास वह शौपिंग कौंप्लैक्स बना रहा है. उस में संतोष हत्याकांड में नामजद पप्पू, बबलू, गिरीश और गुड्डू सिंह पार्टनर हैं. एसएसपी मनु महाराज ने बताया कि दुर्गेश शर्मा और उस के गिरोह के लोगों की जायदाद का पता कर उसे जब्त करने की कार्यवाही शुरू की गई है.