Gangster राजू ठेहठ : अपराध की दुनिया का बादशाह

आनंदपाल की मौत के बाद राजू ठेहठ के गैंग की ताकत बढ़ गई है. वह जेल से ही अपने गैंग को संचालित करता है. राजू यह बात अच्छी तरह जानता है कि कोई भी गैंगस्टर स्वाभाविक मौत नहीं मरता. या तो वह पुलिस की गोली का निशाना बनता है या फिर अपने दुश्मन की गोली का. इसलिए अब वह किसी तरह राजनीति में आने की कोशिश कर रहा है.

राजस्थान के सीकर जिले के ठेहठ गांव का रहने वाला राजेंद्र उर्फ राजू ठेहठ और बलबीर बानूड़ा में गहरी दोस्ती थी. दोनों पक्के दोस्त थे. वे साथ में शराब के ठेके लिया करते थे. दिनरात एकदूजे के साथ रहते थे. साथ में खाना तो होता ही था, दोनों एकदूसरे से कोई बात भी नहीं छिपाते थे. उन में गहरी छनती थी. राजू ठेहठ और बलबीर बानूड़ा शराब के ठेके ले कर अच्छा मुनाफा कमा रहे थे. कहते हैं न कि दोस्ती के बीच जब धन बेशुमार आने लगता है, तब दोस्ती में यह धन दरार पैदा करा देता है. यही बात इन दोनों में हुई. इन में मतभेद हुए तो ये शराब के ठेके अलगअलग लेने लगे.

ऐसे में दोनों के बीच होड़ लग गई कि कौन ज्यादा पैसे कमाए. वैसे तो दोनों ही व्यवहारिक थे लेकिन जब उन के पास मोटा पैसा आया तो वे अकड़ दिखाने लगे. उन के शराब ठेकों पर अकसर मारपीट होने लगी. यानी वह रौबरुतबा कायम करने लगे. उन की दोस्ती टूटने की भी एक वजह थी. दरअसल, बलबीर बानूड़ा का रिश्ते में साला लगता था विजयपाल. विजयपाल शराब के ठेके पर सेल्समैन था. सन 2005 की बात है. विजयपाल की किसी बात को ले कर राजू ठेहठ से अनबन हो गई. राजू ठेहठ ने अपने गुर्गों के साथ विजयपाल की जबरदस्त पिटाई की, जिस से विजयपाल की मौत हो गई.

बस, उसी दिन से राजू ठेहठ और बलबीर बानूड़ा की दोस्ती टूट गई. दोनों एकदूसरे के खून के प्यासे हो गए. उन्होंने अपनेअपने गैंग बना कर एकदूसरे पर हमले शुरू कर दिए. विजयपाल की हत्या का बदला लेने के लिए बलबीर बानूड़ा उतावला हो रहा था. बलबीर बानूड़ा के गैंग से उन्हीं दिनों आनंदपाल आ जुड़ा. बस फिर क्या था. वे राजू ठेहठ का काम तमाम करने का मौका तलाशने लगे.

राजू ठेहठ गैंग और बलबीर बानूड़ा गैंग के गुंडे आपस में जबतब टकराने लगे. जिस गैंग का व्यक्ति मारा जाता, उस गैंग के लोग बदला ले लेते. इस तरह दोनों गैंग के बीच खूनी खेल शुरू हो गया था. गैंगवार से पुलिस की नींद उड़ गई थी. पुलिस इन सभी के पीछे हाथ धो कर पड़ी थी. आनंदपाल, बलबीर बानूड़ा और राजू ठेहठ के ऊपर अलगअलग थानों में मुकदमे दर्ज होने लगे.

राजू ठेहठ पर विजयपाल की हत्या का मुकदमा चल रहा था. आनंदपाल ने अपने मित्र की मौत का बदला जीवनराम गोदारा की हत्या कर ले लिया. इस तरह कुख्यात अपराधी राजू ठेहठ और आनंदपाल की गहरी दुश्मनी हो गई. दोनों एकूसरे के खून के प्यासे बन गए थे. सन 2012 में पुलिस ने जयपुर से बलबीर बानूड़ा को गिरफ्तार कर लिया था. इस के 8 महीने बाद ही आनंदपाल को भी गिरफ्तार कर लिया गया. दोनों जेल में रह कर ही अपने गैंग का संचालन कर रहे थे.

आनंदपाल और राजू ठेहठ में हो गई दुश्मनी

इस के बाद सन 2013 में राजू ठेहठ भी पकड़ा गया. जेल में रहते हुए ही आनंदपाल और बलबीर बानूड़ा ने सुभाष को राजू ठेहठ की हत्या के लिए तैयार कर दिया. मौका मिलने पर सुभाष ने सीकर जेल में ही राजू ठेहठ को गोली मारी, जो उस के जबड़े में लगी लेकिन वह बच गया. इस के बाद राजू ठेहठ ने इस का बदला लेने के लिए बीकानेर जेल में बंद आनंदपाल पर अपने आदमियों से फायरिंग करवाई, जिस में आनंदपाल तो बच गया लेकिन बलबीर बानूड़ा चपेट में आ गया और जेल में ही उस की मौत हो गई.

इस वारदात को अंजाम देने वाले राजू ठेहठ के आदमी को उसी वक्त जेल में पीटपीट कर मार दिया गया था. राजू ठेहठ का भाई ओम ठेहठ भी गैंग से जुड़ा था और वह भाई राजू के कंधे से कंधा मिला कर गैंग चलाता था. इन शातिर गैंगस्टरों के एक इशारे पर धन्नासेठ लाखों रुपए दे देते थे. राजू ठेहठ और आनंदपाल का इतना खौफ था कि उन के आदमी फोन कर के सेठ लोगों को धमकी देते कि ‘सेठ जीना है तो 20 लाख शाम तक पहुंचा देना.’ सेठ की क्या मजाल कि वह इन्हें मना करे. मना करने वाले को ये लोग दूसरी दुनिया में भेज देते थे. इन की नागौर, सीकर, चुरू, बीकानेर, जयपुर, अजमेर आदि जिलों में तूती बोलती थी.

बाद में आनंदपाल पेशी के दौरान फरार हो गया और इस के बाद पुलिस द्वारा किए गए एक एनकाउंटर में वह मारा गया था. उस की मौत से राजू ठेहठ एकमात्र ऐसा गैंगस्टर था, जिस को सब से ज्यादा खुशी हुई. वह बलबीर बानूड़ा को पहले ही निपटा चुका था. अब पुलिस ने आनंदपाल को निपटा कर उसे दोहरी खुशी दे दी थी. सीकर जिले के रानोली गांव के विजयपाल हत्याकांड में आरोपी गैंगस्टर राजू ठेहठ और उस के साथी मोहन माडोता को कोर्ट ने सन 2018 में उम्रकैद की सजा सुनाई. 23 जून, 2005 को ठेहठ ने विजयपाल की हत्या कर दी थी. सीकर अपर सेशन न्यायाधीश सुरेंद्र पुरोहित ने यह सजा सुनाई.

सीकर और शेखावटी में बदमाशों के बीच गैंगवार शुरू होने के बाद थमने का नाम ही नहीं ले रही थी. राजू ठेहठ को उम्रकैद की सजा के बाद लगा था कि गैंग खत्म होगा, मगर ऐसा नहीं हो सका. पुलिस सूत्रों के अनुसार जेल से ही राजू और उस का भाई ओम ठेहठ गैंग को संचालित कर रहे थे. खैर, आनंदपाल गैंग के सब से बड़े दुश्मन राजू ठेहठ की जान को खतरा था. सीकर पुलिस को आशंका थी राजू ठेहठ के दुश्मन मौका मिलते ही उसे गोलियों से छलनी कर देंगे. यही वजह थी कि सीकर पुलिस राजू ठेहठ की कोर्ट में पेशी के दौरान भारी पुलिस सुरक्षा और बुलेटप्रूफ जैकेट पहना कर ले जाती थी.

कांवडि़ए के रूप में किया गिरफ्तार

उस के साथ जाने वाले पुलिसकर्मी भी बुलेटप्रूफ जैकेट व आधुनिक हथियार से लैस होते थे. राजू ठेहठ और उस का साथी मोहन मांडोता को विजयपाल की हत्या के आरोप में एटीएस ने 16 अगस्त, 2013 को झारखंड के देवघर से गिरफ्तार किया था. उस समय राजू ठेहठ और मोहन मांडोता पीले कपड़े पहन कर कांवड़ ला रहे थे. एटीएस ने पकड़ कर दोनों को रानोली थाना पुलिस को सौंप दिया था.

दोनों आरोपियों ने विजयपाल की हत्या के बाद असम, बंगाल, झारखंड, महाराष्ट्र सहित देश के अलगअलग स्थानों पर 8 साल तक फरारी काटी. आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद पूछताछ कर के न्यायिक हिरासत में जेल भेजा गया. आखिर जेल से ही वे पेशी पर आतेजाते रहे. उन्हें उम्रकैद की सजा होने के बाद पहले सीकर और फिर जयपुर जेल में रखा गया. मगर राजू ठेहठ ने वहीं जेल से गैंग को संचालित कर रखा था.

जमानत के बाद बनाया नया ठिकाना

राजू ठेहठ ने जयपुर जेल में उम्रकैद की सजा काटने के दौरान विवादित जमीनों और सट्टा कारोबार से जुड़े बदमाशों से संपर्क बढ़ाए. सीकर के बाद जयपुर में अपने कारोबार को बढ़ाने के लिए वह गैंग के लोगों को आदेश देता था. वह जयपुर को अपना नया ठिकाना बना रहा है. ऐसी जानकारी पुलिस को लगी. इसी दौरान करीब 8 साल बाद राजू ठेहठ को दिसंबर 2021 में जमानत मिली. विजयपाल की हत्या के बाद गिरफ्तार होने के दिन यानी 16 अगस्त, 2013 से राजू ठेहठ जेल में ही बंद था. उस की जमानत हुई तो वह बड़ी ठसक के साथ बाहर आया.

पुलिस उस पर कड़ी निगाह रखे थे कि वह क्या कुछ नया गुल खिलाता है. जमानत पर बाहर आ कर राजू ठेहठ ने जयपुर के महेशनगर स्थित स्वेज फार्म में बीजेपी नेता (पूर्व विधायक) प्रेम सिंह बाजोर के मकान को ठिकाना बनाया था. सुरक्षा के लिए घर पर 30 से ज्यादा सीसीटीवी कैमरे लगाए थे. 3 गनमैन भी राजू ठेहठ के साथ रहते थे. 6 फरवरी, 2022 को राजू ठेहठ ने गृह प्रवेश किया था. इस से पहले राजू ठेहठ ने कालोनी के गेट को गली के कोने से हटवा दिया था. यह गेट गैंगस्टर ठेहठ के जमानत पर आने के बाद से ही लौक कर दिया गया था. खास मेंबर की एंट्री के लिए ही यह गेट खोला जाता था. वहां पास के खाली प्लौट में गाडि़यां पार्क कराई जाती थीं.

सुरक्षा की दृष्टि से गेट के अलावा राजू ठेहठ ने कई तरह के और इंतजाम किए थे. मकान के चारों ओर निगाह रखने के लिए 30 सीसीटीवी कैमरे लगाए गए थे. इस के जरिए आसपास की हर छोटीबड़ी गतिविधियों पर निगाह रखी जाती थी. बिना नंबर की सफेद फौर्च्युनर में बैठ कर ही राजू ठेहठ आताजाता था. राजू ने स्वेज फार्म को ठिकाना बनाया है. इस के बारे में जब लोगों को पता चला तो पूरे इलाके में दहशत का माहौल बन गया. हमेशा गनमेन राजू ठेहठ के साथ घूमते रहते थे. इस की वजह से आसपास के लोग उधर से निकलने से कतराते थे. ज्यादातर समय राजू ठेहठ स्वेज फार्म में ही रहता था.

मानसरोवर के मांग्यावास पर बने फार्महाउस पर लोगों से मुलाकात करता था. राजू ठेहठ ने विवादित जमीन और सट्टा कारोबार पर ध्यान देना शुरू किया.

जमीनें कब्जाने पर देने लगा ध्यान

सीकर के बाद जयपुर में अपने कारोबार को बढ़ाने के लिए जमानत मिलने पर सीकर के बजाय जयपुर में ही रहने लगा. इन लोगों के साथ गैंग बनाने की योजना बनाने लगा. जमानत पर बाहर आते ही राजू ठेहठ गैंग को सक्रिय कर जमीनों पर कब्जे करने लगा था. मार्च 2022 के पहले हफ्ते में जयपुर के भांकरोटा थाने में मानसर खेड़ी बस्सी निवासी 57 वर्षीय रामचरण शर्मा ने एक मामला दर्ज कराया था. रिपोर्ट में बताया कि वह कालोनाइजर है. साल 2004 में रामचंदपुरा में 9 बीघा 17 बिस्वा जमीन खरीदी थी, जिस की देखभाल बनवारीलाल कर रहा था.

कुछ समय पहले मांगीलाल यादव ने जमीन के कुछ हिस्से पर कब्जा कर लिया. थाने में आरोपी मांगीलाल के खिलाफ मामला दर्ज कराया था. 24 फरवरी को बनवारी के मोबाइल पर के.के. यादव नाम के व्यक्ति ने काल कर राजू ठेहठ का आदमी बता कर मांगीलाल के खिलाफ बयान देने को ले कर धमकाया, जिस के बाद दोबारा फोन आया. फोन करने वाले ने अपना नाम राजू ठेहठ बताया. उस ने मांगीलाल से सेटलमेंट कर रुपए दिलवाने का दबाव बनाया. पीडि़त की शिकायत पर पुलिस ने मांगीलाल, के.के. यादव, जगदीश ढाका और राजू ठेहठ के खिलाफ मामला दर्ज किया.

इस के बाद राजू ठेहठ सहित 8 साथियों को शांति भंग करने के आरोप में महेशनगर थाना पुलिस ने गिरफ्तार कर के कोर्ट में पेश किया, जहां से सभी को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

लग्जरी लाइफ जीने का है शौकीन

स्वेज फार्म स्थित मकान में रहने के दौरान राजू ठेहठ से कई लोग मिलने आते थे. एडिशनल कमिश्नर अजयपाल लांबा का कहना है कि राजू ठेहठ से मिलने आए लोगों के बारे में जानकारी जुटाई जा रही है.

जयपुर (साउथ) एसपी मृदुल कच्छावा के नेतृत्व में गठित टीम घर में लगे सीसीटीवी फुटेजों के आधार पर मिलने आए उन सभी लोगों की पहचान कर रही है, जिस के बाद सभी लोगों की भूमिका और गतिविधियों की जांच करेगी. गैंगस्टर राजू ठेहठ लग्जरी लाइफ जीने का शौकीन है. वह महंगी कार और बाइक पर काफिले के साथ घूमता था. गैंगस्टर राजू ठेहठ को सीकर बौस के नाम से बुलाया जाने लगा है. उसे जयपुर के स्वेज फार्म में जिस मकान से पकड़ा, उस की कीमत 3 करोड़ रुपए बताई जा रही है.

राजस्थान में गैंगस्टर्स आनंदपाल सिंह और राजू ठेहठ में करीब 2 दशक वर्चस्व की लड़ाई चली थी. आनंदपाल के एनकाउंटर के बाद राजू ठेहठ का वर्चस्व हो गया. जेल में बंद होने के दौरान भी राजू ठेहठ के रंगदारी वसूलने के कई मामले सामने आए थे. दिसंबर 2021 में राजू ठेहठ 8 साल बाद जमानत पर जेल से बाहर आया. जमानत पर बाहर आने के बाद वह गैंग को बढ़ाने में लग गया. उस ने अपना वर्चस्व तो बना लिया. लोगों में सक्रिय रहने के लिए वह रील बना कर सोशल मीडिया पर भी एक्टिव हो गया.

उस ने कभी अकेले बाइक राइडिंग के तो कभी नई लग्जरी कार चलाते हुए वीडियो शूट किए. अपने गनमैन और कारों के काफिले के साथ वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर अपलोड किए. गैंगस्टर राजू ठेहठ बीजेपी नेता प्रेम सिंह बाजौर के जिस मकान में रह रहा था, वह महेशनगर थाने की चौकी से महज 100 मीटर की दूरी पर है. बीट प्रणाली की बात करें या संदिग्धों व बदमाशों को निगरानी की, महेशनगर थाना पुलिस फेल नजर आ रही है.

राजस्थान का एक बड़ा गैंगस्टर खुलेआम काफिले और अकेले रोड पर घूमता, लेकिन थाना पुलिस तो दूर सीएसटी और डीएसटी तक को पता नहीं चला. सोशल मीडिया पर सक्रिय राजू ठेहठ ने भरतपुर के जिला प्रमुख राजवीर, जयपुर के सांगानेर पंचायत समिति के ग्राम पंचायत पवालियां सरपंच रामराज चौधरी और चाकसू विधानसभा यूथ कांग्रेस अध्यक्ष कैलाश चौधरी के साथ फोटो शेयर कर रखी हैं.

माना जा रहा है कि राजू ठेहठ राजनीति में सक्रिय अपने परिचितों से संपर्क साध कर चर्चा करता रहता है और वह राजनीति में जल्द से जल्द सक्रिय होना चाहता है. उस के राजनीतिक लोगों के साथ मीटिंग के दौरान शूट किए गए फोटो भी चर्चा में बने रहते हैं. बदमाशों की टोली के साथ घूमने, खानेपीने की फोटो भी राजू ठेहठ ने शूट कर शेयर की हैं. राजस्थान के सीकर जिले के जीणमाता के पास स्थित अरावली शिक्षण संस्थान की फरजी कार्यकारिणी बनाने के मामले में गैंगस्टर राजू ठेहठ का मामला भी सामने आया.

बताया जाता है कि संस्थान की आईडी और पासवर्ड लेने के लिए राजू ठेहठ ने संचालक को अपने घर बुला कर धमकाया था. साथ ही आईडी पासवर्ड नहीं देने पर जान से मारने की धमकी दी थी. इस मामले में भी पुलिस को राजू की तलाश है. राजू ठेहठ की जान लेने के लिए उस के दुश्मन तैयार बैठे हैं. बलबीर बानूड़ा का बेटा और भतीजे भी मौके की तलाश में हैं.

चाचा की मौत का बदला लेने की फिराक में है पवन

इस कहानी की शुरुआत करीब साढ़े 8 साल पहले हुई थी. 14 साल का बच्चा था सुभाष. 10वीं की पढ़ाई कर रहा था. बौक्सिंग  में स्टेट चैंपियनशिप खेल चुका था. स्किल्स में और निखार लाने के लिए हिसार में बौक्सिंग की ट्रेनिंग ले रहा था. इसी तरह सुभाष का बड़ा भाई पवन इलाहाबाद बैंक में नौकरी कर रहा था. 6 महीने ही हुए थे नौकरी लगे. एक महीने पहले शादी हुई थी. जिंदगी में सब कुछ सही चल रहा था, लेकिन फिर आया 23 जुलाई, 2014 का वह खौफनाक दिन. बीकानेर जेल में गोलियां चलीं और दोनों भाइयों की जिंदगी हमेशा के लिए बदल दी.

दोनों भाइयों के नाम के आगे लगे बौक्सर और बैंकर शब्द हट गए. एक कालिख उन के नाम के साथ जुड़ गई. और दोनों भाई बन गए गैंगस्टर. इस के बाद वह अपराध के दलदल में ऐसे फंसे कि घर छूटा, सरकारी नौकरी चली गई. भूखा तक रहना पड़ा. अच्छीखासी जिंदगी बिखर गई. 23 जुलाई, 2014 को राजस्थान के बीकानेर जेल में 2 खूंखार गैंगस्टर आनंदपाल और बलबीर बानूड़ा पर अटैक हुआ था. बलबीर की गोली लगने से मौत हो गई थी. बलबीर बानूड़ा की मौत ने एक झटके में उस के परिवार के पैरों तले की जमीन खींच ली.

जयपुर से 135 किलोमीटर दूर सीकर में बानूड़ा गांव है. बानूड़ा गांव से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर एक ढाणी में 4 घर बने हुए हैं. यहीं है बलबीर बानूड़ा का मकान. मनोहर कहानियां की टीम वहां पहुंची तो वहां बलबीर की मां और पत्नी मिलीं. जब उन से बात की तो बलबीर के घर वालों ने कहा कि परिवार ने बहुत दुख झेला है, जख्मों को कुरेदने से कोई फायदा नहीं है.

बलबीर बानूड़ा का बेटा सुभाष फरार है. पवन जोकि बलबीर का भतीजा है, वह भी अपने चाचा बलबीर की मौत का बदला राजू ठेहठ से लेना चाहता है. बलबीर का बेटा सुभाष बानूड़ा भी अपने पिता के हत्यारों राजू ठेहठ गैंग से बदला लेना चाहता है.

सुभाष के बड़े भाई पवन ने बताया, ‘‘काका बलबीर को बीकानेर जेल में मार दिया, तभी तय कर लिया था कि बदला लूंगा.’’

राजू ठेहठ राजनीति में कूदने को है लालायित

पवन का कहना है कि पुलिस ने उस पर कई झूठे मुकदमे लगा दिए हैं. 4 महीने पहले भी लड़ाईझगड़े में मुकदमा लगा दिया. इस की जांच चल रही है. कहीं कुछ भी होता है तो पवन का नाम लगा देते हैं. पवन को जेल से छूटे 21 महीने हो गए हैं. मनोज ओला पर फायरिंग की थी. जेल से आने के बाद 3 से 4 बार ही घर गया हूं. रात को घर जा कर सुबहसवेरे घर से निकलना पड़ता है. पवन के पिता प्रिंसिपल हैं. परिवार पूरी तरह से संपन्न है. खुद का भी काम ठीक चल रहा है. पवन के 2 बेटियां हैं और एक बड़ा भाई है. सुभाष का भाई विकास दुबई में रहता है. मांबाप काफी समझाते हैं, लेकिन अब क्या करें. अब तो काका की हत्या का बदला ले कर ही मानेंगे.

आनंदपाल और राजू ठेहठ गैंग में कट्टर दुश्मनी हो गई. शेखावटी में 2016 तक 15 से ज्यादा हत्याएं हो चुकी थीं. आनंदपाल और बलबीर बानूड़ा की मौत के बाद राजू ठेहठ का वर्चस्व बरकरार है. राजू ठेहठ जेल जाता है और बाहर आने के बाद फिर से गलत धंधे करता है. बस, पुलिस उसे फिर जेल में डाल देती है. राजू ठेहठ निकट भविष्य में राजनीति में आ सकता है. मगर राजू ठेहठ के इतने दुश्मन पैदा हो चुके हैं कि वे उस की जान लेने पर आमादा हैं.

गैंगस्टर का जीवन वैसे भी दुश्मन की गोली या फिर पुलिस की गोली से ही समाप्त होता है. ऐसा कोई विरला गैंगस्टर आज के युग में होगा कि वह अपनी मौत मरे.

राजू ठेहठ अपराध की दुनिया का चमकता गैंगस्टर बन कर कभी जेल तो कभी बाहर आ कर ऐशोआराम से जी रहा है. देखना होगा कि भविष्य में राजू ठेहठ क्या कुछ नया करता है. राजू ठेहठ पर ढाई दरजन से ज्यादा मुकदमे दर्ज हैं.

खुद का पाला सांप : मौसी के प्यार में भाई की हत्या

थाना गोला का मंदिर के थानाप्रभारी प्रवीण शर्मा क्षेत्र में गश्त कर के अभीअभी लौटे थे. तभी उन के थाना क्षेत्र की गोवर्धन कालोनी में रहने वाली 29-30 वर्षीय रश्मि नाम की महिला कन्हैया, तेजकरण व कुछ अन्य लोगों के साथ थाने पहुंची.

प्रवीण शर्मा ने रश्मि से आने का कारण पूछा. इस पर उस ने बताया कि वह अपने 14-15 साल के 2 बेटों के साथ गोवर्धन कालोनी में रहती है. सुबह उस का बेटा सत्यम रोज की तरह आदर्श नगर में कोचिंग के लिए गया था, पर वह वापस नहीं लौटा. रश्मि के साथ 25-26 साल का एक युवक विवेक उर्फ राहुल राजावत भी था. रश्मि ने उसे अपनी बहन का बेटा बताया.

थानाप्रभारी प्रवीण शर्मा पूछताछ कर ही रहे थे कि राहुल ने उन्हें बताया कि करीब 2-ढाई महीने पहले सत्यम का इलाके के कुछ लड़कों से झगड़ा हुआ था. उन लड़कों ने सत्यम को बंधक बना कर मारपीट भी की थी. उसे शक है कि सत्यम के गायब होने के पीछे उन्हीं लड़कों का हाथ है.

मामला गंभीर था, इसलिए प्रवीण शर्मा ने सत्यम की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कर के इस घटना की जानकारी पुलिस अधीक्षक ग्वालियर नवनीत भसीन व सीएसपी मुनीष राजौरिया को दे दी. इस के साथ ही उन्होंने अपनी टीम को सत्यम की खोज में लगा दिया.

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पूरी रात गुजर गई, लेकिन न तो पुलिस को सत्यम के बारे में कुछ खबर मिली और न ही सत्यम घर लौटा. अगले दिन सुबहसुबह राहुल रश्मि को ले कर थाने पहुंच गया. उस ने थानाप्रभारी प्रवीण शर्मा से उन 3 लड़कों के खिलाफ काररवाई करने को कहा, जिन के साथ सत्यम का झगड़ा हुआ था.

बच्चों के झगड़े होते रहते हैं, जो खुद ही सुलझ भी जाते हैं. टीआई शर्मा को बच्चों के झगड़े को इतना तूल देने की बात गले नहीं उतर रही थी. सत्यम को लापता हुए 24 घंटे हो चुके थे लेकिन उस का कुछ पता नहीं चल पा रहा था.

इस घटना की जानकारी ग्वालियर रेंज के डीआईजी मनोहर वर्मा को मिली तो उन्होंने अपराधियों के खिलाफ तत्काल सख्त काररवाई का निर्देश दिया. थानाप्रभारी प्रवीण शर्मा ने विवेक उर्फ राहुल के शक के आधार पर उन तीनों लड़कों को थाने बुला लिया, जिन के साथ सत्यम का झगड़ा हुआ था.

प्रवीण शर्मा ने तीनों लड़कों से पूछताछ की. उन से पूछताछ कर के टीआई शर्मा समझ गए कि सत्यम के गायब होने में उन तीनों की कोई भूमिका नहीं है. इसलिए पूछताछ के बाद उन तीनों को छोड़ दिया गया.

इस बात पर राहुल उखड़ गया और पुलिस पर मिलीभगत का आरोप लगाने लगा. इतना ही नहीं, उस ने शहर के एकदो राजनीति से जुड़े रसूखदार लोगों से भी टीआई प्रवीण शर्मा को फोन करवा कर दबाव बनाने की कोशिश की. उस का कहना था कि पुलिस उन 3 लड़कों के खिलाफ सत्यम के अपहरण का केस दर्ज नहीं कर रही है.

लापता हो जाने के बाद से ही राहुल राजावत अपनी रिश्ते की मौसी के साथ सत्यम की खोज में लगा था. लेकिन इस दौरान थानाप्रभारी ने यह बात नोट कर ली थी कि राहुल की रुचि सत्यम से अधिक उन 3 लड़कों को आरोपी बनवाने में है, जिन के साथ सत्यम का झगड़ा हुआ था.

यह बात खुद राहुल को संदेह के दायरे में ला रही थी. इसी के मद्देनजर टीआई प्रवीण शर्मा ने अपने कुछ लोगों को राहुल की हरकतों पर नजर रखने के लिए तैनात कर दिया.

इतना ही नहीं, वह इस बात की जानकारी जुटा चुके थे कि जिस रोज सत्यम गायब हुआ था, उस रोज राहुल खुद ही उसे अपनी कार से कोचिंग सेंटर छोड़ने आदित्यपुरम गया था. इस बारे में उस का कहना था कि उस ने सत्यम को कोचिंग सैंटर के पास पैट्रोल पंप पर छोड़ दिया था.

इस पर पुलिस ने राहुल को बिना कुछ बताए कोचिंग सेंटर के आसपास लगे सीसीटीवी के फुटेज खंगाले, जिन में न तो राहुल वहां दिखाई दिया और न ही उस की कार दिखी.

सब से बड़ी बात यह थी कि उस रोज सत्यम कोचिंग सेंटर पहुंचा ही नहीं था. इस से राहुल पुलिस के राडार पर आ गया. टीआई शर्मा ने इस बात पर भी गौर किया कि राहुल सत्यम के बारे में पूछताछ करने उस की मां के साथ तो थाने आता था, लेकिन सत्यम के पिता के साथ वह कभी नहीं आया.

इसलिए पुलिस ने राहुल की घटना वाले दिन की गतिविधियों के बारे में जानकारी जुटाई, जिस से यह बात सामने आई कि उस रोज राहुल के साथ जौरा में रहने वाली उस की बुआ का बेटा सुमित सिंह भी देखा गया था. लेकिन राहुल को घेरने के लिए पुलिस को अभी और मजबूत आधार की जरूरत थी.

यह आधार पुलिस को घटना से 4 दिन बाद 10 जनवरी को मिला. हुआ यह कि उस दिन सुबह सुबह जौरा थाने के बुरावली गांव के पास से हो कर गुजरने वाली नहर में एक किशोर का शव तैरता मिला. चूंकि सत्यम की गुमशुदगी की सूचना आसपास के सभी थानों को दे दी गई थी, इसलिए पुलिस ने शव के मिलने की खबर गोला का मंदिर थानाप्रभारी प्रवीण शर्मा को दे दी.

नहर में मिलने वाले किशोर के शव का हुलिया सत्यम से मिलताजुलता था, इसलिए पुलिस सत्यम के परिजनों को ले कर मौके पर जा पहुंची. घर वालों ने शव की पहचान सत्यम के रूप में कर दी.

शव जौरा के पास के गांव बुरावली के निकट नहर में तैरता मिला था. जिस दिन सत्यम गायब हुआ था, उस दिन इस मामले का संदिग्ध राहुल जौरा में रहने वाली अपनी बुआ के बेटे के साथ देखा गया था. राहुल द्वारा सत्यम को कोचिंग सेंटर के पास छोड़े जाने की बात पहले ही गलत साबित हो चुकी थी, इसलिए पुलिस ने बिना देर किए राहुल उर्फ विवेक राजावत और उस की बुआ के बेटे सुमित को हिरासत में ले लिया.

नतीजतन अब तक पुलिस के सामने शेर बन रहा राहुल हिरासत में लिए जाते ही भीगी बिल्ली बन गया. इस के बावजूद उस ने अपना अपराध छिपाने की काफी कोशिश की, लेकिन पुलिस की थोड़ी सी सख्ती से वह टूट गया.

उस ने सुमित के साथ मिल कर राहुल को नहर में डुबा कर मारने की बात स्वीकार कर ली. पुलिस ने राहुल की वह कार भी जब्त कर ली, जिस में सत्यम को बैठा कर वह सबलगढ़ ले गया था. इस के बाद रिश्तों में आग लगा देने वाली यह कहानी इस प्रकार सामने आई—

सत्यम के पिता मूलरूप से विजयपुर मेवारा के रहने वाले हैं. वह इंदौर के एक होटल में नौकरी करते हैं, जबकि बच्चों की पढ़ाई के लिए मां रश्मि दोनों बेटों के साथ ग्वालियर में रहती थी. रश्मि का परिवार पहले आदित्यपुरम में रहता था.

लेकिन कुछ महीने पहले रश्मि ने आदित्यपुरम का मकान छोड़ कर गोला का मंदिर थाना इलाके की गोवर्धन कालोनी में किराए का दूसरा मकान ले लिया था. ग्वालियर के पास ही रश्मि के एक दूर के रिश्ते की बहन भी रहती थी.

विवेक उर्फ राहुल राजावत उसी का बेटा था. चूंकि रश्मि रिश्ते में राहुल की मौसी लगती थी, इसलिए उस का रश्मि के घर काफी आनाजाना हो गया था. वह जब भी ग्वालियर आता, रश्मि से मिलने उस के घर जरूर जाता था.

35 साल की रश्मि 2 बच्चों की मां होने के बाद भी जवान युवती की तरह दिखती थी. अनजान आदमी उसे देख कर उस की उम्र 25-27 साल समझने का धोखा खा जाता था. धीरेधीरे राहुल की रश्मि से काफी पटने लगी थी. पहले दोनों के बीच रिश्ते का लिहाज था, लेकिन वक्त के साथ उन के बीच दुनिया जहान की बातें होने लगीं. इस से दोनों के रिश्ते में दोस्ती की झलक दिखाई देने लगी.

इसी बीच राहुल पढ़ाई करने गांव से ग्वालियर आया तो रश्मि ने अपने पति से कह कर राहुल को अपने ही घर में रख लिया. चूंकि रश्मि के पति इंदौर में नौकरी करते थे सो उन्हें भी लगा कि राहुल के साथ रहने से रश्मि और बच्चों को सुविधा हो जाएगी. इसलिए उन्होंने भी राहुल को साथ रखने की अनुमति दे दी, जिस से राहुल ग्वालियर में रश्मि के साथ रहने लगा.

इस से दोनों के बीच पहले ही कायम हो चुके दोस्ताना रिश्ते में और भी खुलापन आने लगा. दूसरी तरफ काम की मजबूरी के चलते रश्मि के पति 4-6 महीने में हफ्ते 10 दिन के लिए ही घर आ पाते थे. इस में भी पिता के आने पर बच्चे उन से चिपके रहते, इसलिए वह चाह कर भी रश्मि को अकेले में अधिक समय नहीं दे पाते थे.

फलस्वरूप पति के आने पर भी रश्मि की शारीरिक जरूरतें अधूरी रह जाती थीं. ऐसे में एक बार रश्मि के पति ग्वालियर आए तो लेकिन मामला कुछ ऐसा उलझा कि वह एक बार भी उसे एकांत में समय नहीं दे सके. इस से रश्मि का गुस्सा सातवें आसमान को छूने लगा.

राहुल यह बात समझ रहा था, इसलिए उस ने रश्मि को गुस्से में देखा तो मजाक में कह दिया, ‘‘क्या बात है मौसी, मौसाजी चले गए इसलिए गुस्से में हो?’’

‘‘राहुल, तुम कभी अपनी पत्नी से दूर मत जाना.’’

राहुल की बात का जवाब देने के बजाए रश्मि ने अलग ही बात कही. सुन कर राहुल चौंक गया. उस ने सहज भाव से पूछ लिया, ‘‘क्यों, ऐसा क्या हो गया जो आज आप इतने गुस्से में हो?’’

राहुल की बात सुन कर रश्मि को अपनी गलती का अहसास हुआ तो उस ने बात बदल दी. लेकिन राहुल समझ गया था कि असली बात क्या है. बस यहीं से उस के मन में यह बात आ गई कि अगर कोशिश की जाए तो मौसी की नजदीकी हासिल हो सकती है.

इसलिए उस ने धीरेधीरे रश्मि की तरफ कदम बढ़ाना शुरू कर दिया. कभी वह रश्मि की तारीफ करता तो कभी उस की सुंदरता की. धीरेधीरे रश्मि को भी राहुल की बातों में रस आने लगा और वह उस की तरफ झुकने लगी. इस का फायदा उठा कर एक दिन राहुल ने डरते डरते रश्मि को गलत इरादे से छू लिया.

रश्मि शादीशुदा थी, राहुल के स्पर्श के तरीके से सब समझ गई. उस ने तुरंत तुरुप का पत्ता खेलते हुए कहा, ‘‘यूं डर कर छूने से आग और भड़कती है राहुल. इसलिए या तो पूरी हिम्मत दिखाओ या मुझ से दूर रहो.’’

राहुल के लिए इतना इशारा काफी था. उस ने आगे बढ़ कर रश्मि को अपनी बांहों में जकड़ लिया, जिस के बाद रश्मि उसे मोहब्बत की आखिरी सीमा तक ले गई. बस इस के बाद दोनों में रोज पाप का खेल खेला जाने लगा. दोनों के बीच रिश्ता ऐसा था कि कोई शक भी नहीं कर सकता था.

वैसे भी राहुल घर में ही रहता था, इसलिए दोनों बेटों के स्कूल जाते ही राहुल और रश्मि दरवाजा बंद कर पाप की दुनिया में डूब जाते थे. रश्मि अनुभवी थी, जबकि राहुल अभी कुंवारा था. रश्मि को जहां अपना अनाड़ी प्रेमी मन भा गया था, वहीं राहुल अनुभवी मौसी पर जान छिड़कने लगा था.

समय के साथ दोनों के बीच नजदीकी कुछ ऐसी बढ़ी कि रात में दोनों बच्चों के सो जाने के बाद रश्मि अपने बिस्तर से उठ कर राहुल के बिस्तर में जा कर सोने लगी. अब जब कभी रश्मि का पति इंदौर से ग्वालियर आता तो रश्मि और राहुल दोनों ही उस के वापस जाने का इंतजार करने लगते.

राहुल लंबे समय से रश्मि के घर में रह रहा था. मोहल्ले में कभी उस के खिलाफ बातें नहीं हुई थीं. लेकिन जब बच्चों के स्कूल जाने के बाद रश्मि और राहुल दरवाजा बंद कर घंटों अंदर रहने लगे तो पासपड़ोस के लोगों ने पहले तो उन के रिश्ते का लिहाज किया, लेकिन बाद में उन के बीच पक रही खिचड़ी चर्चा में आ गई.

बाद में यह बात इंदौर में बैठे सत्यम के पिता तक भी पहुंच गई. इसलिए कुछ महीने पहले उन्होंने ग्वालियर आ कर न केवल आदित्यपुरम इलाके का मकान खाली कर दिया, बल्कि राहुल को भी अलग मकान ले कर रहने को बोल दिया.

इतना ही नहीं, उन्होंने राहुल को आगे से घर में कदम रखने से भी मना कर दिया. इंदौर वापस जाने से पहले उन्होंने अपने बड़े बेटे सत्यम को हिदायत दी कि अगर राहुल घर आए तो वह इस की जानकारी उन्हें दे दे.

अब राहुल और रश्मि का मिल पाना मुश्किल हो गया. क्योंकि एक तो रश्मि आदित्यपुरम छोड़ कर गोवर्धन कालोनी में रहने आ गई थी. दूसरे चौकीदार के रूप में सत्यम का डर था कि वह राहुल के घर आने की खबर पिता को दे देगा. लेकिन दोनों एकदूसरे से दूर भी नहीं रह सकते थे, इसलिए एक दिन मौका देख कर राहुल रश्मि से मिलने उस के घर जा पहुंचा.

राहुल को देखते ही रश्मि पागलों की तरह उस के गले लग गई. उसे ले कर वह सीधे बिस्तर पर लुढ़क गई. राहुल भी सब कुछ भूल कर रश्मि के साथ वासना में डूब गया. लेकिन इस से पहले कि दोनों अपनी मंजिल पर पहुंचते, अचानक घर लौटे सत्यम ने मां और मौसेरे भाई का पाप अपनी आंखों से देख लिया. सत्यम को आया देख कर राहुल और रश्मि दोनों घबरा गए.

फंसने से बचने के लिए राहुल सत्यम को चाट खिलाने ले गया, जहां बातोंबातों में उस ने सत्यम से कहा, ‘‘यार मेरे घर आने की बात पापा को मत बताना.’’

‘‘ठीक है, नहीं बताऊंगा. लेकिन इस से मुझे क्या फायदा होगा?’’ सत्यम ने शातिर अंदाज से कहा तो राहुल बोला, ‘‘जो तू कहेगा, कर दूंगा. बस तू पापा को मत बोलना.’’

राहुल को लगा कि सत्यम राजी हो जाएगा. लेकिन सत्यम तेज था, वह बोला, ‘‘ठीक है, मुझे 2 हजार रुपए दो, दोस्तों को पार्टी देनी है.’’

राहुल के पास पैसों की कमी नहीं थी. उस ने सत्यम को 2 हजार रुपए दे कर उसे बाजार घूमने के लिए भेज दिया और खुद वापस रश्मि के पास लौट आया.

सत्यम बिक गया, यह जान कर रश्मि भी खुश हुई. इस से दोनों के बीच पाप की कहानी फिर शुरू हो गई. आदित्यपुरम में रश्मि और राहुल के रिश्ते की भले ही चर्चा हुई हो, लेकिन नए मोहल्ले में पहले जैसी परेशानी नहीं थी और सत्यम भी चुप रहने के लिए राजी हो गया था.

इस बात का फायदा उठा कर जहां राहुल और रश्मि अपने पाप की दुनिया में जी रहे थे, वहीं सत्यम भी इस का पूरा फायदा उठा रहा था. वह राहुल से चुप रहने के लिए पैसे लेने लगा. लेकिन धीरेधीरे सत्यम की मांगें बढ़ने लगीं.

कुछ दिन पहले उस ने राहुल को ब्लैकमेल करते हुए उस से 20 हजार रुपए का मोबाइल खरीदवा लिया. राहुल रश्मि के नजदीक रहने के लिए सत्यम की हर मांग पूरी करता रहा. कुछ दिन पहले अचानक सत्यम ने उस से नई मोटरसाइकिल खरीद कर देने को कहा.

राहुल के पास इतना पैसा नहीं था. और था भी तो वह एक लाख रुपए रिश्वत में खर्च नहीं करना चाहता था. लेकिन सत्यम अड़ गया. उस ने कहा कि अगर वह मोटरसाइकिल नहीं दिलाएगा तो वह पापा से उस के घर आने की बात कह देगा.

इस से राहुल परेशान हो गया. इसी दौरान करीब 2-3 महीने पहले सत्यम का 3 लड़कों से झगड़ा हो गया, जिस में उन्होंने सत्यम के साथ काफी मारपीट की. यह झगड़ा भी राहुल ने ही शांत करवाया था. लेकिन इस सब से उस के दिमाग में आइडिया आ गया कि इस झगड़े की ओट में सत्यम को हमेशा के लिए अपने और रश्मि के बीच से हटाया जा सकता है.

इस के लिए उस ने अपनी बुआ के बेटे सुमित से बात की तो वह इस शर्त पर साथ देने को राजी हो गया कि काम हो जाने के बाद वह उसे रश्मि के संग एकांत में मिलने का मौका ही नहीं देगा, बल्कि रश्मि को इस के लिए राजी भी करेगा.

राहुल ने उस की शर्त मान ली तो सुमित ने उसे किसी दिन सत्यम को जौरा लाने को कहा. घटना वाले दिन राहुल रश्मि से मिलने उस के घर पहुंचा तो सत्यम वहां मौजूद था.

राहुल को इस से कोई दिक्कत नहीं थी. क्योंकि राहुल जब भी रश्मि से मिलने आता था, तब सत्यम किसी न किसी बहाने से कुछ देर के लिए वहां से हट जाता था. लेकिन उस रोज वह वहीं पर अड़ कर बैठ गया.

राहुल ने उस से बाहर जाने को कहा तो सत्यम बोला, ‘‘पहले मोटरसाइकिल दिलाओ.’’

इस पर राहुल ने उसे समझाया कि तुम बाहर चलो, मैं आधे घंटे में आता हूं. फिर तुम्हारी बाइक का इंतजाम कर दूंगा. इस पर सत्यम राहुल को अपनी मां से अकेले में मिलने का मौका देने की खातिर घर से बाहर चला गया. रश्मि के साथ कुछ समय बिताने के बाद राहुल बाहर जा कर सत्यम से मिला. उस ने सत्यम से जौरा चलने को कहा.

राहुल ने उसे बताया कि जौरा में उसे एक आदमी से उधारी का काफी पैसा लेना है. वहां से पैसा मिल जाएगा तो वह उसे बाइक दिलवा देगा.

बाइक के लालच में सत्यम राहुल के साथ जौरा चला गया, जहां बुआ के घर जा कर राहुल ने सुमित को साथ लिया और तीनों वहां से आ कर सबलगढ़ के बदेहरा गांव की पुलिया पर खड़े हो गए. राहुल ने सत्यम को बताया कि जिस से पैसा लेना है, वह यहीं आने वाला है. इस दौरान सत्यम ने मुरैना ब्रांच कैनाल में झांक कर देखा तो राहुल और सुमित ने उसे पानी में धक्का दे दिया.

सत्यम को तैरना नहीं आता था, फलस्वरूप वह गहरे पानी में डूब गया. इस के बाद सुमित और राहुल ग्वालियर आ गए. इधर सत्यम के कोचिंग से वापस न आने पर रश्मि परेशान हो गई. उस ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवा दी तो राहुल सत्यम के अपहरण में उन युवकों को फंसाने की कोशिश करने लगा, जिन के साथ सत्यम का झगड़ा हुआ था.

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उस का मानना था कि तीनों के खिलाफ अपहरण का मामला दर्ज हो जाएगा तो लाश मिलने पर उन्हें हत्यारा बनाना पुलिस की मजबूरी बन जाएगी, जिस से वह साफ बच जाएगा. लेकिन ग्वालियर पुलिस ने लाश बरामद होते ही राहुल की कहानी खत्म कर दी.

—पुलिस सूत्रों पर आधारित

अंजाम-ए-साजिश : एक निर्दोष लड़की की हत्या

 रेलवे लाइनों के किनारे पड़ी बोरी को लोग आश्चर्य से देख रहे थे. बोरी को देख कर सभी अंदाजा लगा रहे थे कि बोरी में शायद किसी की लाश होगी. मामला संदिग्ध था, इसलिए वहां मौजूद किसी शख्स ने फोन से यह सूचना दिल्ली पुलिस के कंट्रोलरूम को दे दी.

कुछ ही देर में पुलिस कंट्रोलरूम की गाड़ी मौके पर पहुंच गई. पुलिस ने जब बोरी खोली तो उस में एक युवती की लाश निकली. लड़की की लाश देख कर लोग तरहतरह की चर्चाएं करने लगे.

जिस जगह लाश वाली बोरी पड़ी मिली, वह इलाका दक्षिणपूर्वी दिल्ली के थाना सरिता विहार क्षेत्र में आता है. लिहाजा पुलिस कंट्रोलरूम से यह जानकारी सरिता विहार थाने को दे दी गई. सूचना मिलते ही एसएचओ अजब सिंह, इंसपेक्टर सुमन कुमार के साथ मौके पर पहुंच गए.

एसएचओ अजब सिंह ने लाश बोरी से बाहर निकलवाने से पहले क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को मौके पर बुला लिया और आला अधिकारियों को भी इस की जानकारी दे दी. कुछ ही देर में डीसीपी चिन्मय बिस्वाल और एसीपी ढाल सिंह भी वहां पहुंच गए. फोरैंसिक टीम का काम निपट जाने के बाद डीसीपी और एसीपी ने भी लाश का मुआयना किया.

मृतका की उम्र करीब 24-25 साल थी. वहां मौजूद लोगों में से कोई भी उस की शिनाख्त नहीं कर सका तो यही लगा कि लड़की इस क्षेत्र की नहीं है. पुलिस ने जब उस के कपड़ों की तलाशी ली तो उस के ट्राउजर की जेब से एक नोट मिला.

उस नोट पर लिखा था, ‘मेरे साथ अश्लील हरकत हुई और न्यूड वीडियो भी बनाया गया. यह काम आरुष और उस के 2 दोस्तों ने किया है.’

नोट पर एक मोबाइल नंबर भी लिखा था. पुलिस ने नोट जाब्जे में ले कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

पुलिस के सामने पहली समस्या लाश की शिनाख्त की थी. उधर बरामद किए गए नोट पर जो फोन नंबर लिखा था, पुलिस ने उस नंबर पर काल की तो वह उत्तरी दिल्ली के बुराड़ी में रहने वाले आरुष का निकला. नोट पर भी आरुष का नाम लिखा हुआ था.

सरिता विहार एसएचओ अजब सिंह ने आरुष को थाने बुलवा लिया. उन्होंने मृतका का फोटो दिखाते हुए उस से संबंधों के बारे में पूछा तो आरुष ने युवती को पहचानने से इनकार कर दिया. उस ने कहा कि वह उसे जानता तक नहीं है. किसी ने उसे फंसाने के लिए यह साजिश रची है.

आरुष के हावभाव से भी पुलिस को लग रहा था कि वह बेकसूर है. फिर भी अगली जांच तक उन्होंने उसे थाने में बिठाए रखा. उधर डीसीपी ने जिले के समस्त बीट औफिसरों को युवती की लाश के फोटो देते हुए शिनाख्त कराने की कोशिश करने के निर्देश दे दिए. डीसीपी चिन्मय बिस्वाल की यह कोशिश रंग लाई.

पता चला कि मरने वाली युवती दक्षिणपूर्वी जिले के अंबेडकर नगर थानाक्षेत्र के दक्षिणपुरी की रहने वाली सुरभि (परिवर्तित नाम) थी. उस के पिता सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करते हैं. पुलिस ने सुरभि के घर वालों से बात की. उन्होंने बताया कि नौकरी के लिए किसी का फोन आया था. उस के बाद वह इंटरव्यू के सिलसिले में घर से गई थी.

पुलिस ने सुरभि के घर वालों से उस की हैंडराइटिंग के सैंपल लिए और उस हैंडराइटिंग का मिलान नोट पर लिखी राइटिंग से किया तो दोनों समान पाई गईं. यानी दोनों राइटिंग सुरभि की ही पाई गईं.

पुलिस ने आरुष को थाने में बैठा रखा था. सुरभि के घर वालों से आरुष का सामना कराते हुए उस के बारे में पूछा तो घर वालों ने आरुष को पहचानने से इनकार कर दिया.

नौकरी के लिए फोन किस ने किया था, यह जानने के लिए एसएचओ अजब सिंह ने मृतका के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. उस में एक नंबर ऐसा मिला, जिस से सुरभि के फोन पर कई बार काल की गई थीं और उस से बात भी हुई थी. जांच में वह फोन नंबर संगम विहार के रहने वाले दिनेश नाम के शख्स का निकला. पुलिस काल डिटेल्स के सहारे दिनेश तक पहुंच गई.

थाने में दिनेश से सुरभि की हत्या के संबंध में सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने कबूल कर लिया कि अपने दोस्तों के साथ मिल कर उस ने पहले सुरभि के साथ सामूहिक बलात्कार किया. इस के बाद उन लोगों ने उस की हत्या कर लाश ठिकाने लगा दी.

उस ने बताया कि वह सुरभि को नहीं जानता था. फिर भी उस ने उस की हत्या एक ऐसी साजिश के तहत की थी, जिस का खामियाजा जेल में बंद एक बदमाश को उठाना पड़े. उस ने सुरभि की हत्या की जो कहानी बताई, वह किसी फिल्मी कहानी की तरह थी—

दिल्ली के भलस्वा क्षेत्र में हुए एक मर्डर के आरोप में धनंजय को जेल जाना पड़ा. जेल में बंटी नाम के एक कैदी से धनंजय का झगड़ा हो गया था. बंटी उत्तरी दिल्ली के बुराड़ी क्षेत्र का रहने वाला था.

बंटी भी एक नामी बदमाश था. दूसरे कैदियों ने दोनों का बीचबचाव करा दिया. दोनों ही बदमाश जिद्दी स्वभाव के थे, लिहाजा किसी न किसी बात को ले कर वे आपस में झगड़ते रहते थे. इस तरह उन के बीच पक्की दुश्मनी हो गई.

उसी दौरान दिनेश झपटमारी के मामले में जेल गया. वहां उस की दोस्ती धीरेंद्र नाम के एक बदमाश से हुई. जेल में ही धीरेंद्र की दुश्मनी बुराड़ी के रहने वाले बंटी से हो गई. धीरेंद्र ने जेल में ही तय कर लिया कि वह बंटी को सबक सिखा कर रहेगा.

करीब 2 महीने पहले दिनेश और धीरेंद्र जमानत पर जेल से बाहर आ गए. जेल से छूटने के बाद दिनेश और धीरेंद्र एक कमरे में साथसाथ संगम विहार इलाके में रहने लगे.

उन्होंने बंटी के परिवार आदि के बारे में जानकारी जुटानी शुरू कर दी. उन्हें पता चला कि बंटी के पास 200 वर्गगज का एक प्लौट है. उस प्लौट की देखभाल बंटी का भाई आरुष करता है. कोशिश कर के उन्होंने आरुष का फोन नंबर भी हासिल कर लिया.

इस के बाद दिनेश और धीरेंद्र एक गहरी साजिश का तानाबाना बुनने लगे. उन्होंने सोचा कि बंटी के भाई आरुष को किसी गंभीर केस में फंसा कर जेल भिजवा दिया जाए. उस के जेल जाने के बाद उस के 200 वर्गगज के प्लौट पर कब्जा कर लेंगे. यह फूलप्रूफ प्लान बनाने के बाद वह उसे अंजाम देने की रूपरेखा बनाने लगे.

दिनेश और धीरेंद्र ने इस योजना में अपने दोस्त सौरभ भारद्वाज को भी शामिल कर लिया. पहले से तय योजना के अनुसार दिनेश ने अपनी गर्लफ्रैंड के माध्यम से उस की सहेली सुरभि को नौकरी के बहाने बुलवाया. सुरभि अंबेडकर नगर में रहती थी.

गर्लफ्रैंड ने सुरभि को नौकरी के लिए दिनेश के ही मोबाइल से फोन किया. सुरभि को नौकरी की जरूरत थी, इसलिए सहेली के कहने पर वह 25 फरवरी, 2019 को संगम विहार स्थित एक मकान पर पहुंच गई.

उसी मकान में दिनेश और धीरेंद्र रहते थे. नौकरी मिलने की उम्मीद में सुरभि खुश थी, लेकिन उसे क्या पता था कि उस की सहेली ने विश्वासघात करते हुए उसे बलि का बकरा बनाने के लिए बुलाया है.

सुरभि उस फ्लैट पर पहुंची तो वहां दिनेश, धीरेंद्र और सौरभ भारद्वाज मिले. उन्होंने सुरभि को बंधक बना लिया. इस के बाद उन तीनों युवकों ने सुरभि के साथ गैंपरेप किया. नौकरी की लालसा में आई सुरभि उन के आगे गिड़गिड़ाती रही, लेकिन उन दरिंदों को उस पर जरा भी दया नहीं आई.

चूंकि इन बदमाशों का मकसद जेल में बंद बंटी को सबक सिखाना और उस के भाई आरुष को फंसाना था, इसलिए उन्होंने सुरभि के मोबाइल से आरुष के मोबाइल नंबर पर कई बार फोन किया. लेकिन किन्हीं कारणों से आरुष ने उस की काल रिसीव नहीं की थी.

इस के बाद तीनों बदमाशों ने हथियार के बल पर सुरभि से एक नोट पर ऐसा मैसेज लिखवाया जिस से आरुष झूठे केस में फंस जाए. उस नोट पर इन लोगों ने आरुष का फोन नंबर भी लिखवा दिया था.

फिर वह नोट सुरभि के ट्राउजर की जेब में रख दिया. सुरभि उन के अगले इरादों से अनभिज्ञ थी. वह बारबार खुद को छोड़ देने की बात कहते हुए गिड़गिड़ा रही थी. लेकिन उन लोगों ने कुछ और ही इरादा कर रखा था.

तीनों बदमाशों ने सुरभि की गला घोंट कर हत्या कर दी. बेकसूर सुरभि सहेली की बातों पर विश्वास कर के मारी जा चुकी थी. इस के बाद वे उस की लाश ठिकाने लगाने के बारे में सोचने लगे. उन्होंने उस की लाश एक बोरी में भर दी.

इस के बाद इन लोगों ने अपने परिचित रहीमुद्दीन उर्फ रहीम और चंद्रकेश उर्फ बंटी को बुलाया. दोनों को 4 हजार रुपए का लालच दे कर इन लोगों ने वह बोरी कहीं रेलवे लाइनों के किनारे फेंकने को कहा.

पैसों के लालच में दोनों उस लाश को ठिकाने लगाने के लिए तैयार हो गए तो दिनेश ने 7800 रुपए में एक टैक्सी हायर की. रात के अंधेरे में उन्होंने वह लाश उस टैक्सी में रखी और रहीमुद्दीन और चंद्रकेश उसे सरिता विहार थाना क्षेत्र में रेलवे लाइनों के किनारे डाल कर अपने घर लौट गए.

लाश ठिकाने लगाने के बाद साजिशकर्ता इस बात पर खुश थे कि फूलप्रूफ प्लानिंग की वजह से पुलिस उन तक नहीं पहुंच सकेगी, लेकिन दिनेश द्वारा सुरभि को की गई काल ने सभी को पुलिस के चंगुल में पहुंचा दिया. मामले का खुलासा हो जाने के बाद एसएचओ अजब सिंह ने हिरासत में लिए गए आरुष को छोड़ दिया.

दिनेश से की गई पूछताछ के बाद पुलिस ने उस की निशानदेही पर उस के अन्य साथियों सौरभ भारद्वाज, चंद्रकेश उर्फ बंटी और रहीमुद्दीन उर्फ रहीम को भी गिरफ्तार कर लिया. पांचवां बदमाश धीरेंद्र पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ सका, वह फरार हो गया था. गिरफ्तार किए गए बदमाशों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

पुलिस को इस मामले में दिनेश की प्रेमिका को भी हिरासत में ले कर पूछताछ करनी चाहिए थी, क्योंकि सुरभि की हत्या की असली जिम्मेदार तो वही थी. उसी ने ही सुरभि को नौकरी के बहाने दिनेश के किराए के कमरे पर बुलाया था.

बहरहाल, दूसरे को फांसने के लिए जाल बिछाने वाला दिनेश खुद अपने बिछाए जाल में फंस गया. पहले वह झपटमारी के आरोप में जेल गया था, जबकि इस बार वह सामूहिक बलात्कार और हत्या के आरोप में जेल गया. पुलिस मामले की जांच कर रही है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

डेढ़ करोड़ का विश्वास

घटना 14 जुलाई, 2020 की है. उस रोज राम गोयल सो कर उठे तो घर का अस्तव्यस्त हाल देख कर उन के होश उड़ गए. कमरे में तिजोरी खुली पड़ी थी, जिस में रखी कई किलोग्राम सोनाचांदी व नकदी सब गायब थी. यह देख कर घर में हड़कंप मच गया.

राम गोयल को पता चला कि घर से 3 किलो सोने और चांदी के आभूषण, नकदी और अन्य कीमती सामान गायब है. इस के अलावा परिवार के साथ रह रही बेटी की नौकरानी अनुष्का, जो दिल्ली से आई थी, वह भी गायब थी. अनुष्का राम गोयल की बेटीदामाद की नौकरानी थी. वह उन के बच्चों की देखभाल करती थी.

जून, 2020 महीने में राम गोयल की बेटी एक समारोह में शामिल होने के लिए दिल्ली से राजगढ़ अपने पिता के यहां आई थी. बेटी के बच्चों की देखभाल के लिए अनुष्का भी उस के साथ आ गई थी. इसलिए पिछले एक महीने से वह राम गोयल के घर पर ही रह रही थी.

वह एक नेपाली लड़की थी. नेपाली अपनी बहादुरी और ईमानदारी के लिए बहुत प्रसिद्ध हैं. राम गोयल की भी अनुष्का के प्रति यही सोच थी. लेकिन कुछ ही समय में अनुष्का अपना असली रंग दिखा कर करोड़ों का माल साफ कर के भाग चुकी थी.

घटना की रात अनुष्का ने अपने हाथ से कढ़ी और खिचड़ी बना कर पूरे परिवार को खिलाई थी. खाने के बाद पूरा परिवार गहरी नींद में सो गया. जाहिर था, खाने में कोई नशीली चीज मिलाई गई थी, जिस के असर से घर में हलचल होने के बावजूद किसी सदस्य की आंख नहीं खुली.

इस बात की खबर मिलते ही थाना पचोर के टीआई डी.पी. लोहिया तुरंत पुलिस टीम के साथ राम गोयल के यहां पहुंचे तथा उन्होंने मौकामुआयना कर सारी घटना की जानकारी एसपी प्रदीप शर्मा को दी. कुछ ही देर में एसपी शर्मा भी मौके पर पहुंच गए.

घटनास्थल की जांच करने के बाद एसपी प्रदीप शर्मा ने आरोपियों को पकड़ने के लिए एडिशनल एसपी नवलसिंह सिसोदिया के निर्देशन में एक टीम गठित कर दी.

टीम में एसडीपीओ पदमसिंह बघेल, टीआई डी.पी. लोहिया, एसआई धर्मेंद्र शर्मा, शैलेंद्र सिंह, साइबर सैल टीम प्रभारी रामकुमार रघुवंशी, एसआई जितेंद्र अजनारे, आरक्षक मोइन खान, दिनेश किरार, शशांक यादव, रवि कुशवाह एवं आरक्षक राजकिशोर गुर्जर, राजवीर बघेल, दुबे अर्जुन राजपूत, अजय राजपूत, सुदामा, कैलाश और पल्लवी सोलंकी को शामिल किया गया.

इधर लौकडाउन के चलते पुलिस का एक काम आसान हो गया था. टीआई लोहिया जानते थे कि लौकडाउन के दिनों में ट्रेन, बस बंद हैं इसलिए लुटेरी नौकरानी अनुष्का ने पचोर से भागने के लिए किसी प्राइवेट वाहन का उपयोग किया होगा.

क्योंकि इतनी बड़ी चोरी एक अकेली लड़की नहीं कर सकती, इसलिए उस के कुछ साथी भी जरूर रहे होंगे. अनुष्का कुछ समय पहले ही दिल्ली से आई थी. टीआई लोहिया ने अनुष्का का मोबाइल नंबर हासिल कर उसे सर्विलांस पर लगा दिया. इस के अलावा उस के फोन की काल डिटेल्स भी निकलवाई.

काल डिटेल्स से पता चला कि अनुष्का एक फोन नंबर पर लगातार बातें करती थी और ताज्जुब की बात यह थी कि वारदात वाले दिन उस फोन नंबर की लोकेशन पचोर टावर क्षेत्र में थी. जाहिर था कि वह मोबाइल वाला व्यक्ति अनुष्का का कोई साथी रहा होगा, जो उस के बुलाने पर ही घटना को अंजाम देने राजगढ़ आया होगा.

एसपी प्रदीप शर्मा के निर्देश पर टीआई लोहिया की टीम पचोर क्षेत्र में हर चौराहे, हर पौइंट, हर क्रौसिंग पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगालने में जुट गई. इसी कवायद में एक संदिग्ध कार पुलिस की नजर में आई, जिस का रजिस्ट्रेशन नंबर यूपी-14एफ-टी2355 था.

टीआई लोहिया समझ गए कि चोर शायद इसी गाड़ी में सवार हो कर पचोर आए और घटना को अंजाम दे कर फरार हो गए. इसलिए पुलिस की एक टीम ने पचोर से व्यावह हो कर गुना और ग्वालियर तक के रास्ते में पड़ने वाले टोल नाकों के कैमरे चैक कर उस गाड़ी के आनेजाने का रूट पता कर लिया.

जांच में पता चला कि उक्त नंबर की कार दिल्ली के उत्तम नगर के रहने वाले मनोज कालरा के नाम से रजिस्टर्ड थी, इसलिए तुरंत एक टीम दिल्ली भेजी गई. टीम ने मनोज कालरा को तलाश कर उस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह किराए पर गाडि़यां देने का काम करता है. उक्त नंबर की कार उस ने एक नौकर पवन उर्फ पद्म नेपाली के माध्यम से 12 जुलाई को इंदौर के लिए बुक की थी.

जबकि इस कार के ड्राइवर से पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि 13 जुलाई, 2020 को 3 युवक उसे शादी में जाने की बात बोल कर पचोर ले गए थे. दिल्ली पहुंची पुलिस टीम सारी जानकारी एसपी प्रदीप शर्मा से शेयर कर रही थी. इस से एसपी प्रदीप शर्मा समझ गए कि उन की टीम सही दिशा में आगे बढ़ रही है.

लेकिन वे जल्द से जल्द चोरों को पकड़ना चाहते थे, क्योंकि उन्हें आशंका थी कि देर होने पर आरोपी माल सहित नेपाल भाग सकते हैं. ड्राइवर ने यह भी बताया कि वापसी में सभी लोगों को उस ने दिल्ली में बदरपुर बौर्डर पर बस स्टैंड के पास छोड़ा था.

अब पुलिस को जरूरत थी उन तीनों नेपाली लड़कों की पहचान कराने की, जो दिल्ली से गाड़ी ले कर पचोर आए थे.

इस के लिए पुलिस ने दिल्ली में रहने वाले सैकड़ों नेपाली परिवारों से संपर्क किया. शक के आधार पर 16 लोगों को हिरासत में ले कर पूछताछ की. जिस में एक नया नाम सामने आया बिलाल अहमद का, जो लोगों को घरेलू नौकर उपलब्ध कराने के लिए एशियन मेड सर्विस की एजेंसी चलाता था.

बिलाल ने पुलिस को बताया कि अनुष्का उस के पास आई थी, उस की सिफारिश सरिता पति नवराज शर्मा ने की थी. जिसे उस ने दिल्ली में एक बच्ची की देखभाल के लिए नौकरी पर लगवा दिया था.

जांच के दौरान पुलिस टीम को पवन थापा के बारे में जानकारी मिली. पता चला कि पवन ही वह आदमी है जो उन तीनों लोगों को दिल्ली से पचोर ले कर आया था. पवन भी पुलिस के हत्थे चढ़ गया. उस ने पूछताछ में बताया कि उत्तम नगर के सम्राट उर्फ वीरामान ने टैक्सी बुक की थी, जिस के लिए उसे15 हजार रुपए एडवांस भी दिए थे.

इस से पुलिस को पूरा शक हो गया कि इस मामले में सम्राट की खास भूमिका हो सकती है. दूसरी बात यह पुलिस समझ चुकी थी कि इस बड़ी चोरी के सभी आरोपी उत्तम नगर के आसपास के हो सकते हैं. इसलिए न केवल पुलिस सतर्क हो गई, बल्कि अन्य आरोपियों की रैकी भी करने लगी.

आरोपी लगातार अपना ठिकाना बदल रहे थे, इसलिए तकनीकी टीम के प्रभारी एसआई रामकुमार रघुवंशी और आरक्षक मोइन खान ने चाय व समोसे वाला बन कर उन की रैकी करनी शुरू कर दी, जिस से जल्द ही जानकारी हासिल कर सम्राट उर्फ वीरामान धामी को गिरफ्तार कर लिया गया.

पूछताछ में वीरामान पहले तो कुछ भी बताने की राजी नहीं था. लेकिन जब उस ने मुंह खोला तो चौंकाने वाला सच सामने आया.

वास्तव में वीरामान खुद वारदात करने के लिए पचोर जाने वाली टीम में शामिल था. अन्य 2 पुरुषों और महिला के बारे में पूछताछ की तो सम्राट ने बताया कि अनुष्का अपने प्रेमी तेज के साथ नई दिल्ली के बदरपुर इलाके में रहती है.

पुलिस ने बदरपुर इलाके में छापेमारी कर के दोनों को वहां से गिरफ्तार कर उन के पास से चोरी का माल बरामद कर लिया. यहां तेज रोक्यो और अनुष्का उर्फ आशु उर्फ कुशलता भूखेल के साथ उन का तीसरा साथी भरतलाल थापा भी पुलिस गिरफ्त में आ गए.

मौके पर की गई पूछताछ के बाद दिल्ली गई पुलिस टीम ने दिल्ली पुलिस की मदद से मामले के मुख्य आरोपी वीरामान उर्फ सम्राट मूल निवासी धनगढ़ी, नेपाल, अनुष्का उर्फ आशु उर्फ कुशलता भूखेल निवासी जनकपुर, तेज रोक्यो मूल निवासी जिला अछम, नेपाल, भरतलाल थापा को गिरफ्तार करने में सफलता हासिल की थी.

इस के अलावा आरोपियों को पचोर तक कार बुक करने वाला पवन थापा निवासी उत्तम नगर नई दिल्ली, बेहोशी की दवा उपलब्ध कराने वाला कमल सिंह ठाकुर निवासी जिला बजरा नेपाल, चोरी के जेवरात खरीदने वाला मोहम्मद हुसैन निवासी जैन कालोनी उत्तम नगर, जेवरात को गलाने में सहायता करने वाला विक्रांत निवासी उत्तम नगर भी पुलिस के हत्थे चढ़ गए.

अनुष्का को कंपनी में काम पर लगवाने वाली सरिता शर्मा निवासी किशनपुरा, नोएडा तथा अनुष्का को नौकरानी के काम पर लगाने वाला बिलाल अहमद उर्फ सोनू निवासी जामिया नगर, नई दिल्ली को गिरफ्तार कर के बरामद माल सहित पचोर लौट आई. जहां एसपी श्री शर्मा ने पत्रकार वार्ता में महज 7 दिनों के अंदर जिले में हुई चोरी की सब से बड़ी घटना का राज उजागर कर दिया.

अनुष्का ने बताया कि राम गोयल का पूरा परिवार उस पर विश्वास करता था. इसलिए परिवार के अन्य लोगों की तरह अनुष्का भी घर में हर जगह आतीजाती थी. एक दिन उस के सामने घर की तिजोरी खोली गई तो उस में रखी ज्वैलरी और नकदी देख कर उस की आंखें चौंधिया गईं और उस के मन में लालच आ गया. यह बात जब उस ने दिल्ली में बैठे अपने प्रेमी तेज रोक्यो को बताई तो उसी ने उसे तिजोरी पर हाथ साफ करने की सलाह दी.

योजना को अंजाम देने के लिए उस का प्रेमी तेज रोक्यो ही दिल्ली से बेहोशी की दवा ले कर पचोर आया था. वह दवा उस ने रात में खिचड़ी में मिला कर पूरे परिवार को खिला दी. जिस से खिचड़ी खाते ही पूरा परिवार गहरी नींद में सो गया. तब अनुष्का अलमारी में भरा सारा माल ले कर पे्रमी के संग चंपत हो गई. पुलिस ने आरोपियों की निशानदेही पर एक करोड़ 53 लाख रुपए का चोरी का सामान और नकदी बरामद कर ली.

पुलिस ने सभी अभियुक्तों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. मामले की जांच टीआई डी.पी. लोहिया कर रहे थे.

साजिश के चक्रव्यूह में मासूम

11 वर्षीय आदर्श सिंह अपने कमरे में बैठा पढ़ रहा था, तभी उस के कानों में आवाज आई, ‘‘हैलो आदर्श!’’  आदर्श ने पलट कर देखा तो कमरे के दरवाजे पर मुकेश खड़ा था. आदर्श मुकेश पांडेय को अच्छी तरह जानता था. वह पड़ोस में रहने वाली चांदमती का भतीजा था. मुकेश बुआ के पास घूमने आया था. मुकेश को देखते ही आदर्श बोला, ‘‘नमस्ते मुकेश भैया.’’

‘‘नमस्ते नमस्ते, क्या कर रहे हो आदर्श?’’ मुकेश ने सामने खाली पड़ी कुरसी पर बैठते हुए पूछा.

‘‘कुछ भी नहीं भैया, किताबों में मन नहीं लग रहा था इसलिए चंपक पढ़ रहा हूं.’’ आदर्श ने शालीनता से उत्तर दिया.

‘‘अच्छा, मुझे भी बचपन में चंपक पढ़ने का बड़ा शौक था,’’ मुकेश ने कहा, ‘‘लगता है तुम्हें कहानियों और कार्टून का बहुत शौक है.’’

‘‘हां भैया,’’ आदर्श ने कहा.

‘‘तो ठीक है, मैं तुम्हें तुम्हारे ही काम की एक चीज दिखाता हूं.’’

कहने के बाद मुकेश ने अपनी पैंट की जेब से एक बड़े आकार का चमचमाता हुआ सेलफोन निकाला. नया मोबाइल फोन देख कर आदर्श के चेहरे पर मुसकान थिरक उठी. मुकेश के हाथ से मोबाइल ले कर आदर्श उत्सुकतावश उसे उलटपलट कर देखने लगा, ‘‘ये तो काफी महंगा होगा भैया?’’

‘‘हां, महंगा तो है,’’ मुकेश ने जवाब दिया, फिर उस की ओर देख कर पूछा, ‘‘तुम्हें पसंद हो तो तुम इसे अपने पास रख सकते हो.’’

आदर्श उस की तरफ आश्चर्य से देखते हुआ बोला, ‘‘इतना महंगा फोन भला कोई दूसरे को देता है क्या, जो आप मुझे दे दोगे.’’

‘‘तुम्हारे लिए यह फोन क्या चीज है, आदर्श मैं तो तुम्हारे लिए जान भी दे दूं, एक बार कह कर तो देखो.’’

‘‘नहीं भैया, मुझे आप की जान नहीं चाहिए. आप सहीसलामत रहें. यही मेरे लिए काफी होगा. आप मुझे एक काम की कोई चीज दिखा रहे थे. वो क्या है?’’ आदर्श ने पूछा.

‘‘ठीक है बाबा, दिखाता हूं तुम्हें वो चीज, तुम भी क्या याद रखोगे कि मुकेश भैया जो कहता है वह कर के दिखाता भी है.’’

मुकेश ने अपने फोन में इंटरनेट औन कर के बच्चों वाली एक कार्टून फिल्म चला दी. फिल्म चालू कर के उस ने फोन उस के हाथों में थमा दिया. कार्टून फिल्म देख कर आदर्श का चेहरा खुशियों से खिल उठा और वह पूरी तन्मयता से फिल्म देखने लगा.

मोबाइल के जरिए मुकेश और आदर्श के बीच धीरेधीरे दोस्ती गहरी होती गई. शाम के वक्त जब भी आदर्श स्कूल से घर लौटता, उस के थोड़ी देर बाद ही मुकेश उस के पास पहुंच जाता था.

फिर मोबाइल में उस की पसंदीदा कार्टून फिल्म चालू कर के उसे मोबाइल पकड़ा देता था. आदर्श भी स्कूल का काम छोड़कर घंटों फिल्म देखने में मशगूल हो जाता था. ये देख कर आदर्श की मां और पिता दोनों परेशान रहते थे कि मुकेश मोबाइल में फिल्म दिखा कर उन के बेटे को बिगाड़ रहा है.

एक दिन जयप्रकाश सिंह ने आदर्श को अपने पास बैठा कर बड़े लाड़प्यार से घंटों तक समझाया कि वह मुकेश से दूर रहा करे. मुकेश अच्छा लड़का नहीं है, जिस तरह वह तुम्हें मोबाइल दे कर बिगाड़ रहा है, उस की हरकतें उन्हें पसंद नहीं हैं. बेटा, तुम उस से दूर ही रहा करो, यही तुम्हारे लिए बेहतर होगा.

आदर्श पिता की बातें बड़े ध्यान से सुन रहा था. उस ने पिता की बातों पर अमल भी किया. उस दिन के बाद आदर्श ने मुकेश के मोबाइल पर कार्टून फिल्म देखनी बंद कर दी. इतना ही नहीं, उस ने मुकेश से मिलना भी कम कर दिया.

बात 4 अक्तूबर, 2018 की है. शाम के 5 बज रहे थे. आदर्श अब तक स्कूल से घर नहीं लौटा था. उस की मां पूनम सिंह बेटे को ले कर बेहद परेशान और चिंतित थी. पूनम के 2 और बेटे रितिक व बैजनाथ भी भाई की वजह से परेशान थे. जबकि तीनों बच्चे एक ही स्कूल में पढ़ते थे.

उन की स्कूल की छुट्टी भी साथ ही होती थी और साथ ही घर से निकलते भी थे. लेकिन उस दिन पता नहीं कैसे तीनों का साथ छूट गया. उस दिन घर के लिए आगे पीछे निकले थे. रितिक और बैजनाथ तो घर लौट आए थे, लेकिन आदर्श नहीं लौटा था.

पूनम ने बच्चों से आदर्श के बारे में पूछा तो रितिक ने कहा कि वह आ रहा होगा. हो सकता है, छुट्टी के समय हम से पहले निकल लिया होगा, तभी छुट्टी होने पर हमें दिखाई नहीं दिया था. थोड़ी देर इधरउधर तलाशने के बाद जब वह हमें नहीं मिला तो हम यह सोच कर घर आ गए कि वह घर पहुंच गया होगा. शायद अपने दोस्तों के साथ पीछे आ रहा होगा. बेटे का जवाब सुन कर पूनम चुप हो गई और अपने कामों में लग गई.

शाम के 5 बज रहे थे. अब से पहले आदर्श को घर लौटने में इतनी देर कभी नहीं हुई थी. बेटे की चिंता में पूनम का दिल बुरी तरह घबरा रहा था. उस ने पति जयप्रकाश सिंह को फोन कर के यह बात बता दी. बेटे के स्कूल से घर न लौटने की बात सुन कर जयप्रकाश सिंह घर पहुंच गए.

उन्होंने अपने मोहल्ले के लोगों के साथ बेटे को संभावित जगहों पर ढूंढा लेकिन उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. वह मायूस हो कर घर लौट आए.

रहस्यमय तरीके से गायब बेटे को ले कर जयप्रकाश सिंह काफी परेशान थे. धीरेधीरे अंधेरा भी घिरता जा रहा था. जयप्रकाश सिंह की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें. मोहल्ले के लोग भी उन्हें तरह तरह की सलाह देने लगे.

अंतत: अपने शुभचिंतकों के साथ वह अपने नजदीकी थाने सिकरीगंज पहुंच गए. यह थाना गोरखपुर जिले के अंतर्गत आता है. जयप्रकाश ने वहां मौजूद इंसपेक्टर दिनेश मिश्र को बेटे के गायब होने की जानकारी दे दी.

पुलिस ने आदर्श की गुमशुदगी दर्ज कर जांच शुरू कर दी. दूसरे दिन शाम को पुलिस को एक अहम सुराग हाथ लगा. किसी ने इंसपेक्टर को बताया कि बीती शाम लगभग 4 बजे आदर्श स्कूल ड्रेस और बैग लिए गांव के ही मुकेश पांडेय और गौतम पांडेय के साथ गांव के बाहर पुलिया के पास कहीं जाते हुए दिखा था.

पुलिस ने जयप्रकाश सिंह से मुकेश और गौतम के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि मुकेश और गौतम पड़ोस में रहने वाली चांदमती का भतीजा और नाती हैं. ये दोनों कई दिनों से यहां आ कर रह रहे हैं. इतना ही नहीं पिछले कई दिनों से मुकेश घर आ कर आदर्श से मिलता था.

आदर्श उस के साथ घंटों मोबाइल पर खेलता था. उन्होंने कई बार बेटे को समझाया भी, पर वह नहीं माना. यह सुन कर पुलिस का माथा ठनका कि कहीं आदर्श के गायब होने में उन दोनों का हाथ तो नहीं है.

उसी शाम पुलिस चांदमती देवी के घर पहुंची और उस से मुकेश और गौतम के बारे में से पूछताछ की. पूछताछ के दौरान पता चला कि मुकेश और गौतम बीती रात अपने अपने घर चले गए. मुकेश गोपालगंज (बिहार) के मीरगंज के बड़कागांव में रहता था, जबकि गौतम संत कबीर नगर जिले की धनघटा के मझौरा का रहने वाला था.

यह बात पुलिस को कुछ हजम नहीं हुई कि आदर्श के अचानक लापता होते ही मुकेश और गौतम भी गांव से अचानक गायब क्यों हो गए. यह बात इत्तफाक नहीं हो सकती थी. इस में उन्हें जरूर कोई न कोई लोचा दिखाई दिया.

2 दिन बीत जाने के बाद आदर्श का कहीं पता नहीं चला तो गांव वालों के दिलों में पुलिस के प्रति आक्रोश बढ़ने लगा. धीरेधीरे माहौल विस्फोटक बनता जा रहा था. इंसपेक्टर दिनेश मिश्र माहौल को भांप गए और इस से एसएसपी को अवगत करा दिया. एसएसपी शलभ माथुर ने गुत्थी को सुलझाने के लिए इंसपेक्टर दिनेश मिश्र को अहम दिशानिर्देश दिए.

एसएसपी के आदेश पर इंसपेक्टर दिनेश मिश्र ने आदर्श के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर ली. चूंकि आदर्श के पिता ने गौतम और मुकेश पर शक जताया था, इसलिए इन की तलाश में एक पुलिस टीम उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर और दूसरी टीम बिहार के गोपालगंज रवाना कर दी गई. लेकिन दोनों जगहों पर गईं पुलिस टीमें खाली हाथ वापस लौट आईं.

पता चला कि मुकेश और गौतम अपने गांव नहीं पहुंचे थे. इस से यह बात साफ हो गई कि आदर्श के अपहरण में दोनों का कहीं न कहीं हाथ जरूर है, तभी दोनों पुलिस से बचने के लिए इधरउधर भागते फिर रहे थे.

इधर पुलिस अपहरण की गुत्थी सुलझाने की कोशिश में जुटी हुई थी कि 8 अक्तूबर, 2018 की दोपहर बारी गांव के बाहर रामपाल अपने धान के खेत में सिंचाई करने गया तो उस ने वहां लाश पड़ी देखी. वह उलटे पैर गांव लौट आया और यह सूचना थाना सिकरीगंज को दे दी.

सूचना मिलते ही इंसपेक्टर दिनेश मिश्र मय फोर्स के मौके पर पहुंच गए. उन्होंने लाश का मुआयना किया तो वह किसी बच्चे की लाश निकली. लाश इतनी क्षतविक्षत थी कि उसे पहचाना नहीं जा सकता था. जंगली जानवरों और चील कौओं ने उसे नोचनोच कर खा लिया था. साथ ही तेज बदबू भी आ रही थी.

लाश की सूचना मिलते ही मौके पर गांव वालों का मजमा लग गया. सूचना मिलते ही जयप्रकाश सिंह भी मौके पर पहुंच गए. उन्होंने जब वह लाश देखी तो उस की कमर पर अंडरवियर के अलावा कोई कपड़ा नहीं था. उस की कदकाठी और चेहरे की बनावट देख कर जयप्रकाश सिंह पहचान गए. उन्होंने उस की पुष्टि अपने बेटे आदर्श के रूप में की.

बेटे की लाश देख कर जयप्रकाश सिंह वहीं गश खा कर गिर पड़े. थोड़ी देर बाद जब उन्हें होश आया तो वह दहाड़ें मार कर रोने लगे. इंसपेक्टर दिनेश मिश्र ने अपहरण हुए बच्चे की लाश मिलने की सूचना एसएसपी शलभ माथुर, एसपी (साउथ) और सीओ (बासगांव) को दे दी.

सूचना मिलते ही पुलिस अधिकारी मौके पर पहुंच गए. पुलिस ने लाश का मुआयना कर के अंदाजा लगाया कि आदर्श जिस दिन लापता हुआ था, शायद उसी दिन उस की हत्या कर दी गई होगी.

पुलिस ने मौके की आवश्यक काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल गोरखपुर भिजवा दी. पुलिस ने पहले से दर्ज अपहरण की रिपोर्ट में भादंवि की धारा 302 और 201 और जोड़ दीं.

4 दिनों से रहस्यमय तरीके से गायब आदर्श की हत्या से परिवार वाले दुखी थे. वे यह नहीं समझ पा रहे थे कि बदमाशों ने उन के मासूम बेटे की हत्या क्यों की थी? उन्हें उन के बेटे या उन से क्या चाहिए था? जिस की वजह से उस की हत्या कर दी.

पुलिस ने दोनों नामजद आरोपियों की तलाश तेज कर दी. कहीं से पुलिस को दोनों आरोपियों मुकेश और गौतम के मोबाइल नंबर मिल गए. दोनों नंबरों को पुलिस ने सर्विलांस पर लगा दिया और उन का पता लगाने के लिए मुखबिर भी लगा दिए.

5वें दिन यानी 12 अक्तूबर, 2018 को पुलिस को बड़ी सफलता मिली. इंसपेक्टर दिनेश मिश्र को मुखबिर से सूचना मिली कि दोनों आरोपी मुकेश और गौतम सिकरीगंज के पिपरी तिराहे के पास खड़े हैं. वे कहीं भागने की फिराक में हैं.

मुखबिर की सूचना मिलते ही इंसपेक्टर दिनेश मिश्र सादे कपड़ों में अपनी टीम के साथ पिपरी चौराहा पहुंच गए. सरकारी जीप उन्होंने चौराहे से थोड़ी दूर खड़ी कर दी और आरोपियों को चारों ओर से घेर लिया ताकि वे भाग न सकें.

सादा वेश में कुछ लोगों को अपनी ओर आता देख मुकेश और गौतम समझ गए कि शायद वे पुलिस वाले हैं. जैसे ही वह भागने को हुए तो पुलिस टीम ने दोनों को पकड़ लिया. पुलिस दोनों को थाने ले आई.

थाने ला कर इंसपेक्टर दिनेश मिश्र ने मुकेश और गौतम से अलगअलग पूछताछ की. पूछताछ के दौरान दोनों आरोपी पुलिस के सामने टूट गए और आदर्श का अपहरण करने के बाद उस की हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया.

उन की निशानदेही पर पुलिस ने चांदमती के घर से हत्या में इस्तेमाल चाकू, खून से सनी शर्ट, ताबीज, स्कूल के जूतेमोजे और स्कूल बैग बरामद कर लिया. पूछताछ के बाद आदर्श सिंह अपहरण और हत्याकांड की सनसनीखेज कहानी इस तरह सामने आई—

मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर के सिकरीगंज थाने के बारीगांव के रहने वाले जयप्रकाश के 3 बेटे थे, जिन में 11 वर्षीय आदर्श कुमार सिंह मंझले नंबर का था. आदर्श पढ़ाई में बहुत होशियार था. जयप्रकाश सिंह एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे. उन के वेतन से परिवार का भरणपोषण होता था.

जयप्रकाश अपनी सैलरी के सारे पैसे पत्नी के हाथों पर रख देते थे. आदर्श अकसर पिता द्वारा मां को पैसे देते देखता था. पैसे देख कर उस के बालमन को लगता था कि उस के पिता की महीने की कमाई लाखों रुपए है. उस के पापा के पास बहुत सारा पैसा है.

यह बात आदर्श अकसर बाहर वालों को बता भी देता था कि उस के पापा के पास बहुत सारा पैसा है. वह पैसे घर की अलमारी में रखते हैं.

यह बात आदर्श के पड़ोस में रहने वाली 80 वर्षीय विधवा चांदमती देवी के 30 वर्षीय भतीजे मुकेश पांडेय ने भी सुन ली थी. उस ने मासूम आदर्श के मुंह से जब से रुपए वाली बात सुनी थी, उस दिन से उस के दिमाग में शैतानी कीड़े कुलबुलाने लगे थे.

चूंकि मुकेश अपनी बुआ चांदमती के यहां अकसर आता रहता था, इसलिए गांव वाले उसे अच्छी तरह जानते और पहचानते थे. जयप्रकाश सिंह के यहां भी मुकेश का आनाजाना लगा रहता था. वह मोबाइल चार्ज करने के बहाने जयप्रकाश सिंह के घर आता था और घंटों बैठा रहता था.

धीरेधीरे उस ने आदर्श की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया. मुकेश आदर्श को अपने फोन में कार्टून फिल्म दिखाता था. आदर्श चूंकि बच्चा था, इसलिए वह उस की बातों में फंसता गया.

30 वर्षीय मुकेश पांडेय मूलरूप से बिहार के गोपालगंज के मीरगंज थाना क्षेत्र के बड़का गांव का रहने वाला था. वह पढ़ालिखा और परिश्रमी युवक था. पढ़लिख कर उस ने सरकारी नौकरी पाने की कोशिश की थी, लेकिन उसे नौकरी नहीं मिली थी.

मुकेश कुछ ऐसा करना चाहता था जिस से कम मेहनत और कम समय में वह लखपति बन जाए. वह जिस गांव में रहता था, उस गांव में कम ही लोगों के घरों में शौचालय थे. सरकार गांवों में शौचालय बनवाने के लिए गांव वालों को प्रोत्साहन राशि मुहैया कराती थी.

मुकेश के दिमाग में आया कि क्यों न वह सरकारी योजनाओं का लाभ उठाए, जिस से गांव वालों को भी लाभ पहुंचे और उस की भी जेब गरम होती रहे. मुकेश ने सरकार से मिलने वाली योजनाओं का लाभ गांव वालों को समझाया कि शौचालय बनवाने के लिए कुछ पैसे सरकार उन्हें दे रही है और कुछ पैसे उन्हें अपने पास से लगाने होंगे. तब जा कर एक बेहतर शौचालय बन सकता है.

मुकेश ने गांव वालों को इस शातिराना अंदाज से बातों में फंसाया कि वे उस के झांसे में आ गए. करीब 20-25 लोगों ने उसे 10-10 हजार रुपए इकट्ठा कर के दे दिए. इस तरह उस के पास जब ढाई लाख रुपए जमा हो गए तो वह गांव से गायब हो गया. महीनों बीत गए, न तो मुकेश का पता चला और न ही उन के शौचालय बने.

गांव वालों को अपने साथ धोखे का अहसास हुआ तो वे मुकेश के घर वालों पर रुपए लौटाने के लिए दबाव बनाने लगे. मुकेश ने सारे पैसे खर्च कर डाले थे. उस के पास फूटी कौड़ी तक नहीं बची थी. तब वह बिहार से भाग कर उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले की सिकरीगंज थाने के बारीगांव में अपनी बुआ चांदमती के यहां जा कर छिप गया.

उधर गांव वाले रुपए को ले कर उस के घर वालों पर जबरदस्त दबाव बनाए हुए थे. मुकेश का दिमाग काम नहीं कर रहा था कि वह दो ढाई लाख रुपयों का इंतजाम कहां से करे. उसे डर था कि अगर उस ने उन के रुपए वापस नहीं किए तो वह उस पर मुकदमा कर देंगे. इस से मुकेश डर गया. वह नहीं चाहता था कि उस पर पुलिस केस हो. पुलिस केस हो जाने से उस का जीवन बरबाद हो सकता था.

इसी बीच उस की मुलाकात गांव के जयप्रकाश सिंह के बेटे आदर्श से हो गई. आदर्श ने बताया कि उस के पिता के पास लाखों रुपए हैं. आदर्श को ले कर मुकेश के दिमाग में एक खतरनाक योजना यह पनपी कि यदि आदर्श का अपहरण कर लिया जाए तो फिरौती के तौर पर उसे 10-20 लाख रुपए आसानी से मिल सकते हैं.

वह उन्हीं रुपयों से गांव वालों के रुपए लौटा देगा और बाकी के रुपयों से ऐश करेगा. यह बात दिमाग में आते ही उस के चेहरे पर शैतानी मुसकान थिरक उठी.

यह काम मुकेश के अकेले के वश का नहीं था. इत्तफाक से उन्हीं दिनों चांदमती की बेटी का बेटा यानी उन का नाती गौतम पांडेय अपनी ननिहाल में रहने के लिए आया. मुकेश और गौतम रिश्ते में मामाभांजे थे. मुकेश ने रुपए का लालच दे कर भांजे गौतम को अपनी योजना में शामिल कर लिया.

योजना के मुताबिक, मुकेश फोन चार्ज करने के बहाने जयप्रकाश सिंह के घर जाया करता था और आदर्श को मोबाइल पर कार्टून फिल्म दिखा कर उस से घर का सारा भेद ले लेता था. भावावेश में आ कर मासूम आदर्श घर की सारी जानकारी मुकेश को दे देता था. जानकारी पाने के बाद मुकेश ने अपनी योजना गौतम को बताई.

योजना के अनुसार आदर्श का अपहरण करने के बाद उसी दिन उस की हत्या कर देनी थी. उस के बाद उस के कपड़े, बैग, जूते आदि को हथियार बना कर आदर्श को जिंदा बताया जाता. फिर उस के पिता जयप्रकाश से 15 लाख की फिरौती वसूली जाती. यह योजना गौतम को जंच गई. यह 4 अक्तूबर, 2018 की बात है.

योजना के अनुसार 4 अक्तूबर की शाम आदर्श के स्कूल से आने की प्रतीक्षा में मुकेश और गौतम गांव के बाहर पुलिया के पास खड़े हो गए. आदर्श को अकेला आता देख कर दोनों के चेहरे पर शातिराना मुसकान थिरक उठी.

जैसे ही आदर्श पुलिया के पास पहुंचा मुकेश ने मोबाइल फोन दिखा कर उसे अपनी बातों में उलझा लिया और पुलिया से ही उसे दूसरी ओर ले कर चल दिया. गौतम भी उस के साथ था. गांव के एक युवक ने आदर्श को मुकेश और गौतम के साथ जाते हुए देख लिया था. उसी ने पुलिस को यह जानकारी दी थी.

गौतम और मुकेश आदर्श को अपनी बातों के जाल में उलझा कर शाम ढलने की प्रतीक्षा कर रहे थे. शाम ढलते ही दोनों आदर्श को ले कर रामपाल के धान के खेत में पहुंचे. खेत में पहुंचते ही मुकेश ने आदर्श का गला घोंट कर उस की हत्या कर दी. फिर चाकू से उस का गला रेत दिया ताकि वह जीवित न बचे. क्योंकि उस के जीवित रहने से उन्हें जेल की हवा खानी पड़ती.

आदर्श की हत्या के बाद मुकेश और गौतम ने उस के कपड़े, जूते, बैग और गले में पहना ताबीज अपने पास रख लिया ताकि वह जयप्रकाश सिंह को यह विश्वास दिला सकें कि उन का बेटा जिंदा है, जिस से फिरौती की रकम आसानी से वसूली जा सके.

मुकेश और गौतम चांदमती के जिस कमरे में रह रहे थे, उसी में उन्होंने आदर्श का सामान छिपा कर रख दिया. जब आदर्श की खोज तेज हुई और मामला पुलिस तक पहुंचा तो दोनों डर गए और गांव छोड़ कर भाग गए.

लेकिन एक चश्मदीद गवाह ने मुकेश के इरादों पर पानी फेर दिया और वे दोनों जा पहुंचे जेल. कथा लिखे जाने तक दोनों जेल में बंद थे. पुलिस अदालत में दोनों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल कर चुकी है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्यार करने की खौफनाक सजा

सुबह करीब साढ़े 5 बजे आगरा के पुलिस नियंत्रण कक्ष को सूचना मिली कि आगरा-ग्वालियर की अपलाइन रेल पर शाहगंज और  सदर बाजार के बीच में एक युवक ने ट्रेन के सामने कूद कर आत्महत्या कर ली है. सूचना शाहगंज और सदर बाजार के बीच होने की मिली थी. यह बात मौके पर जा कर ही पता चल सकती थी कि घटना किस थाने में आती है, इसलिए नियंत्रणकक्ष द्वारा इत्तला शाहगंज व सदर बाजार दोनों थानों को दे दी गई.

खबर मिलने के बाद दोनों थानों की पुलिस के साथसाथ थाना राजकीय रेलवे पुलिस आगरा छावनी की पुलिस टीम भी वहां पहुंच गई. पुलिस को रेलवे लाइनों के बीच एक युवक की लाश 2 टुकड़ों में पड़ी मिली. यह 25 जुलाई, 2014 की बात है.

सब से पहले पुलिस ने यह देखा कि जिस जगह पर लाश पड़ी है, वह क्षेत्र किस थाने में आता है. जांच के बाद यह पता चला कि वह क्षेत्र थाना सदर की सीमा में आता है.

रेलवे लाइनों में लाश पड़ी होने की सूचना पा कर आसपास के गांवों के तमाम लोग वहां पहुंच गए. लोगों ने उस की शिनाख्त करते हुए कहा कि मरने वाला युवक शिवनगर के रहने वाले नत्थूलाल का बेटा मनीष है. लोगों ने जल्द ही मनीष के घर वालों को खबर कर दी तो वे भी रोते बिलखते वहां पहुंच गए. जवान बेटे की मौत पर वे फूटफूट कर रो रहे थे.

सदर बाजार के थानाप्रभारी सुनील कुमार सिंह ने एएसपी डा. रामसुरेश यादव, एसपी सिटी समीर सौरभ व एसएसपी शलभ माथुर को भी घटना की जानकारी दे दी तो वे भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

जिस तरीके से वहां लाश पड़ी थी, देख कर पुलिस अधिकारियों को मामला आत्महत्या का नहीं लगा बल्कि ऐसा लग रहा था जैसे उस की हत्या कहीं और कर के लाश ट्रैक पर डाल दी हो ताकि उस की मौत को लोग हादसा या आत्महत्या समझें.

कपड़ों की तलाशी ली तो पैंट और कमीज की जेबें खाली निकलीं. मनीष के घर वालों ने बताया कि उस के पास 2 मोबाइल फोनों के अलावा पर्स में पैसे व वोटर आईडी कार्ड व जेब में छोटी डायरी रहती थी जिस में वह लेबर का हिसाब किताब रखता था. इस से इस बात की पुष्टि हो रही थी कि किसी ने हत्या करने के बाद उस की ये सारी चीजें निकाल ली होंगी ताकि इस की शिनाख्त नहीं हो पाए.

पुलिस ने नत्थूलाल से प्रारंभिक पूछताछ  कर मनीष की लाश का पंचनामा तैयार कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी और नत्थूलाल की तहरीर पर अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर के जांच थानाप्रभारी सुनील कुमार ने संभाल ली. एसएसपी शलभ माथुर ने जांच में क्राइम ब्रांच को भी लगा दिया.

थानाप्रभारी ने सब से पहले मनीष के घर वालों से बात कर के यह जानने की कोशिश की कि उस का किसी से कोई झगड़ा या दुश्मनी तो नहीं थी. इस पर नत्थूलाल ने बताया कि मनीष पुताई के काम का ठेकेदार था. वह बहुत शरीफ था. मोहल्ले में वह सभी से हंसता बोलता था.

उन से बात करने के बाद पुलिस को यह लगा कि उस की हत्या के पीछे पुताई के काम से जुड़े किसी ठेकेदार का तो हाथ नहीं है या फिर प्रेमप्रसंग के मामले में किसी ने उस की हत्या कर दी. इसी तरह कई दृष्टिकोणों को ले कर पुलिस चल रही थी.

अगले दिन पुलिस को मनीष की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मिल गई. पुलिस को शक हो रहा था, पोस्टमार्टम रिपोर्ट से वह सही साबित हुआ. यानी मनीष ने सुसाइड नहीं किया था, बल्कि उस की हत्या की गई थी. रिपोर्ट में बताया गया कि उस की सभी पसलियां टूटी हुई थीं, उस के दोनों फेफड़े फट गए थे. गुप्तांगों पर भी भारी वस्तु से प्रहार किया गया था. इस के अलावा उस के शरीर पर घाव के अनेक निशान थे.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह बात साफ हो गई कि मनीष की हत्या कहीं और की गई थी और हत्यारे उस से गहरी खुंदक रखते थे तभी तो उन्होंने उसे इतनी बेरहमी से मारा.

मनीष के पास 2 महंगे मोबाइल फोन थे जो गायब थे. पुलिस ने उस के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. उस से पता चला कि उन की की अंतिम लोकेशन सोहल्ला बस्ती की थी.

इस बारे में उस के पिता नत्थू सिंह से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि सोहल्ला बस्ती में मनीष का कोई खास यारदोस्त तो नहीं रहता. उन्होंने यह जरूर बताया कि मनीष के 2 कारीगर मुन्ना और बंडा इस बस्ती में रहते हैं. वह उन के पास अकसर जाता रहता था.

मनीष की कालडिटेल्स पर नजर डाल रहे एएसपी डा. रामसुरेश यादव को एक ऐसा नंबर नजर आया था जिस से अकसर रात के 12 बजे से ले कर 2 बजे के बीच लगातार बातचीत की जाती थी. जिस नंबर से उस की बात होती थी, बाद में पता चला कि वह नंबर माधवी नाम की किसी लड़की की आईडी पर लिया गया था.

जांच में लड़की का नाम सामने आते ही पुलिस को केस सुलझता दिखाई दिया. क्योंकि मुन्ना और बंडा उस के भाई थे. एसएसपी को जब इस बात से अवगत कराया तो उन्होंने माधवी और उस के भाइयों से पूछताछ करने के निर्देश दिए. एक पुलिस टीम फौरन माधवी के घर दबिश देने निकल गई. लेकिन घर पहुंच कर देखा तो मुख्य दरवाजे पर ताला बंद था. यानी घर के सब लोग गायब थे.

माधवी के पिता भूपाल सिंह, भाई और अन्य लोग कहां गए, इस बारे में पुलिस ने पड़ोसियों से पूछा तो उन्होंने अनभिज्ञता जता दी. पूरे परिवार के गायब होने से पुलिस का शक और गहरा गया.

किसी तरह पुलिस को भूपाल सिंह का मोबाइल नंबर मिल गया. उसे सर्विलांस पर लगाया तो उस की लोकेशन आगरा के नजदीक धौलपुर गांव की मिली. पुलिस टीम वहां रवाना हो गई. फोन की लोकेशन के आधार पर पुलिस ने माधवी, उस के पिता भूपाल सिंह, 3 भाइयों कुंवरपाल सिंह, बंडा और मुन्ना को हिरासत में ले लिया.

थाने ला कर उन सब से मनीष की हत्या के बारे में पूछताछ की तो भूपाल सिंह ने स्वीकार कर लिया कि मनीष की हत्या उस ने ही कराई है. उस ने उस की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली.

मनीष के पिता और दादा दोनों ही रेलवे कर्मचारी थे. इसलिए उस का जन्म और परवरिश आगरा की रेलवे कालोनी में हुई थी. उस की 3 बहनें और एक छोटा भाई था. पिता नत्थूलाल रेलवे कर्मचारी थे ही, साथ ही मां विमलेश ने भी घर बैठे कमाई का अपना जरिया बना रखा था. वह आगरा कैंट रेलवे स्टेशन पर आनेजाने वाले ट्रेन चालकों व गार्डों के लिए खाने के टिफिन पैक कर के उन तक पहुंचाती थी. इस से उन्हें भी ठीक आमदनी हो जाती थी.

मनीष समय के साथ बड़ा होता चला गया. इंटरमीडिएट करने के बाद वह रेलवे के ठेकेदारों के साथ कामकाज सीखने लगा. फिर रेलवे के एक अफसर की मदद से उसे मकानों की पुताई के छोटेमोटे ठेके मिलने लगे. देखते ही देखते उस ने रेलवे की पूरी कालोनी में रंगाई पुताई का ठेका लेना शुरू कर दिया. वह ईमानदार था इसलिए उस के काम से रेलवे अधिकारी भी खुश रहते थे.

मोटी कमाई होने लगी तो मनीष के हावभाव, रहनसहन, खानपान सब बदल गया. महंगे कपड़े, ब्रांडेड जूते, नईनई बाइक पर घूमना मनीष का जैसे शौक था. 2-3 सालों में उस की आर्थिक स्थिति काफी मजबूत हो गई थी.

वह जिस तरह कमा रहा था, उसी तरह दान आदि भी करता. गांव में गरीब लड़कियों की शादी में वह अपनी हैसियत के अनुसार सहयोग करता था. मोहल्ले में भी वह अपने बड़ों को बहुत सम्मान करता था. इन सब बातों से वह गांव में सब का चहेता बना हुआ था.

करीब 4-5 साल पुरानी बात है. मनीष का कामकाज जोरों पर चल रहा था. उसे रंगाई पुताई के कारीगरों की जरूरत पड़ी तो वह पास की ही बस्ती सोहल्ला पहुंच गया. वहां पता चला कि बंडा और मुन्ना नाम के दोनों भाई यह काम करते हैं.

वह इन दोनों के पास पहुंचा और बातचीत कर के अपने काम पर ले गया. मनीष को दोनों भाइयों का काम पसंद आया तो उन से ही अपने ठेके का काम कराने लगा. वह उन्हें अच्छी मजदूरी देता था इसलिए वे भी मनीष से खुश थे.

धीरेधीरे मनीष का मुन्ना के घर पर भी आनाजाना शुरू हो गया. इसी दौरान मनीष की आंखें मुन्ना की 17-18 साल की बहन माधवी से लड़ गईं. माधवी उन दिनों कक्षा-9 में पढ़ती थी. यह ऐसी उम्र होती है जिस में युवत युवती विपरीतलिंगी को अपना दोस्त बनाने के लिए आतुर रहते हैं. माधवी और मनीष के बीच शुरू हुई बात दोस्ती तक और दोस्ती से प्यार तक पहुंच गई. फिर जल्दी ही उन के बीच शारीरिक संबंध भी कायम हो गए.

इस तरह करीब 4 सालों तक उन के बीच प्यार और रोमांस का खेल चलता रहा. माधवी भी अब इंटरमीडिएट में आ चुकी थी. प्यार के चक्कर में पड़ कर वह अपनी पढ़ाई पर भी ज्यादा ध्यान नहीं दे रही थी, जिस से वह इंटरमीडिएट में एक बार फेल भी हो गई. उस के घर वालों को यह बात पता तक नहीं चली कि उस का मनीष के साथ चक्कर चल रहा है.

माधवी सुबह साइकिल से स्कूल के लिए निकलती लेकिन स्कूल जाने की बजाय वह एक नियत जगह पहुंच जाती. मनीष भी अपनी बाइक से वहां पहुंच जाता. मनीष किसी के यहां उस की साइकिल खड़ी करा देता था. इस के बाद वह मनीष की बाइक पर बैठ कर फुर्र हो जाती.

स्कूल का समय होने से पहले वह वापस साइकिल उठा कर अपने घर चली जाती. उधर मनीष भी अपने कार्यस्थल पर पहुंच जाता. वहां माधवी के भाइयों को पता भी नहीं चल पाता कि उन का ठेकेदार उन की ही बहन के साथ मौजमस्ती कर के आ रहा है.

माधवी के पिता भूपाल सिंह गांव से दूध खरीद कर शहर में बेचते थे. वह बहुत गुस्सैल थे. आए दिन मोहल्ले में छोटीछोटी बातों पर लोगों से झगड़ना आम बात थी. झगड़े में उन के तीनों बेटे भी शरीक  हो जाते थे, जिस से मोहल्ले में एक तरह से भूपाल सिंह की धाक जम गई थी.

लेकिन इतना सब होने के बाद भी मनीष के साथ इस परिवार के संबंध मधुर थे. मुन्ना और बंडा भी मनीष के घर जाने लगे.

मनीष और माधवी एकदूसरे को दिलोजान से चाहते थे. उन्होंने शादी कर के साथसाथ रहने का फैसला कर लिया था. लेकिन उन के सामने समस्या यह थी कि उन की जातियां अलगअलग थीं. दूसरे माधवी के पिता और भाई गुस्सैल स्वभाव के थे इसलिए वे डर रहे थे कि घर वालों के सामने शादी की बात कैसे करें. लेकिन बाद में उन्होंने तय कर लिया कि उन के प्यार के रास्ते में जो भी बाधा आएगी, उस का वह मिल कर मुकाबला करेंगे.

माधवी जब घर पर अकेली होती तो मनीष को फोन कर के घर बुला लेती थी. एक बार की बात है. उस के पिता ड्यूटी गए थे भाई भी अपने काम पर चले गए थे और मां ड्राइवरों के टिफिन पहुंचाने के बाद खेतों पर गई हुई थी. माधवी के लिए प्रेमी के साथ मौजमस्ती करने का अच्छा मौका था. उस ने उसी समय मनीष को फोन कर दिया तो वह माधवी के घर पहुंच गया.

मनीष माधवी के घर तक अपनी बाइक नहीं लाया था वह उसे रेलवे फाटक के पास खड़ी कर आया था. उस समय घर में उन दोनों के अलावा कोई नहीं था इसलिए वे अपनी हसरत पूरी करने लगे. इत्तफाक से उसी समय घर का दरवाजा किसी ने खटखटाया. दरवाजा खटखटाने की आवाज सुनते ही दोनों के होश उड़ गए. उन के जहन से मौजमस्ती का भूत उड़नछू हो गया. वे जल्दीजल्दी कपड़े पहनने लगे.

तभी माधवी का नाम लेते हुए दरवाजा खोलने की आवाज आई. यह आवाज सुनते ही माधवी डर से कांपने लगी क्योंकि वह आवाज उस के पिता की थी. वही उस का नाम ले कर दरवाजा खोलने की आवाज लगा रहे थे.

माधवी पिता के गुस्से से वाकिफ थी. इसलिए उस की समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाए. कमरे में भी ऐसी कोई जगह नहीं थी जहां मनीष को छिपाया जा सके. दरवाजे के पास जाने के लिए भी उस की हिम्मत नहीं हो रही थी. उधर उस के पिता दरवाजा खोलने के लिए बारबार आवाजें लगा रहे थे.

दरवाजा तो खोलना ही था इसलिए डरते डरते वह दरवाजे तक पहुंची. दरवाजा खुलते ही मनीष वहां से भाग गया. मनीष के भागते ही भूपाल सिंह को माजरा समझते देर नहीं लगी. वह गुस्से से बौखला गया. घर में घुसते ही उस ने बेटी से पूछा कि मनीष यहां क्यों आया था.

डर से कांप रही माधवी उस के सामने मुंह नहीं खोल सकी. तब भूपाल सिंह ने उस की जम कर पिटाई की और सख्त हिदायत दी कि आइंदा वह उस से मिली तो वह दोनों को ही जमीन में जिंदा गाड़ देगा.

शाम को जब भूपाल के तीनों बेटे कुंवर सिंह, मुन्ना व बंडा घर आए तो उस ने उन्हें पूरा वाकया बताया. बेटों ने मनीष की करतूत सुनी तो वे उसी रात उसे जान से मारने उस के घर जाने के लिए तैयार हो गए. लेकिन भूपाल सिंह ने उन्हें गुस्से पर काबू कर ठंडे दिमाग से काम लेने की सलाह दी.

इस के बाद बंडा व मुन्नालाल ने मनीष के साथ काम करना बंद कर दिया था. 15 दिनों बाद माधवी की बोर्ड की परीक्षाएं थीं इसलिए उन्होंने माधवी पर भी पाबंदी लगाते हुए उस का स्कूल जाना बंद करा दिया.

4 महीने बीत गए. माधवी ने सोचा कि घर वाले इस बात को भूल गए होंगे. इसलिए उस ने मनीष से फिर से फोन पर बतियाना शुरू कर दिया. लेकिन अब वह बड़ी सावधानी बरतती थी. लेकिन माधवी की यही सोच गलत निकली. उसे पता नहीं था कि उस के घर वाले मनीष को ठिकाने लगाने के लिए कितनी खौफनाक साजिश रच चुके हैं.

योजना के अनुसार 28 जून, 2014 को सुबह के समय बंडा ने मेज पर रखा माधवी का फोन फर्श पर गिरा कर तोड़ डाला. माधवी को यह पता न था कि वह फोन जानबूझ कर तोड़ा गया है. घंटे भर बाद बंडा उस के फोन को सही कराने की बात कह कर घर से निकला.

इधर भूपाल सिंह ने यह कह कर अपनी पत्नी को मायके भेज दिया कि उस के भाई का फोन आया था कि वहां पर उस की बेटी को देखने वाले आ रहे हैं. पिता के कहने पर मां के साथ माधवी भी अपने मामा के यहां चली गई. जाते समय भूपाल सिंह ने पत्नी से कह दिया था कि मायके में वह माधवी पर नजर रखे.

उन दोनों के घर से निकलते ही बंडा घर लौट आया. उस ने तब तक माधवी का सिम कार्ड निकाल कर अपने फोन में डाल लिया. उस ने माधवी के नंबर से मनीष को एक मैसेज भेज दिया. उस ने मैसेज में लिखा कि आज घर पर कोई नहीं है. रात 8 बजे वह घंटे भर के लिए घर आ जाए.

पे्रमिका का मैसेज पढ़ते ही मनीष का दिल बागबाग हो गया. उस ने माधवी को फोन करना भी चाहा लेकिन उस ने इसलिए फोन नहीं किया क्योंकि माधवी ने उसे मैसेज के अंत में मना कर रखा था कि वह फोन न करे. केवल रात में जरूर आ जाए, ऐसा मौका फिर नहीं मिलेगा.

रात 8 बजे मनीष दबेपांव माधवी से मिलने उस के घर पर पहुंच गया. घर का मुख्य दरवाजा भिड़ा हुआ था. दरवाजा खोल जैसे ही वह सामने वाले कमरे में गया, उसे पीछे से माधवी के भाइयों ने दबोच लिया.

माधवी के भाइयों ने उस का मुंह दबा कर उस के सिर पर चारपाई के पाए से वार कर दिया. जोरदार वार से मनीष बेहोश हो कर गिर पड़ा. उस के गिरते ही उस पर उन्होंने लातघूंसों की बरसात शुरू कर दी. उन्होंने उस के गुप्तांग को पैरों से कुचल दिया. कुछ ही देर में उस की मौत हो गई.

हत्या करने के बाद लाश को ठिकाने भी लगाना था. आपस में सलाह करने के बाद उस के शव को तलवार से नाभि के पास से 2 हिस्सों में काट डाला. करीब 4 घंटे तक मनीष की लाश उसी कमरे में पड़ी रही.

लाश के टुकड़ों से खून निकलना बंद हो गया तो रात करीब 1 बजे जूट की बोरी में दोनों टुकड़े भर लिए. उन्हें रेलवे लाइन पर फेंकने के लिए मुन्ना और बंडा बाइक से निकल गए. हत्या करने के बाद उस की सभी जेबें खाली कर ली गई थीं ताकि पहचान न हो सके. उस के महंगे दोनों मोबाइल स्विच्ड औफ कर के घर पर ही रख लिए.

मुन्ना और बंडा जब लाश ले कर घर से निकल गए तो घर पर मौजूद भूपाल और उस के बेटे कुंवरपाल ने कमरे से खून के निशान आदि साफ किए. इस के बाद उन्होंने हत्या में प्रयुक्त हथियार, मनीष के दोनों मोबाइल आदि को एक मालगाड़ी के डिब्बे में फेंक दिया. वह मालगाड़ी आगरा से कहीं जा रही थी. मनीष की जेब से मिले कागजों और पर्स को भी उन्होंने जला दिया.

मुन्ना और बंडा लाश को सोहल्ला रेलवे फाटक से करीब आधा किलोमीटर दूर आगरा-ग्वालियर रेलवे ट्रैक पर ले गए. बाइक रोक कर ये लोग मनीष के शव को बोरे से निकाल कर मुख्य लाइन पर फेंकना चाह रहे थे तभी उन्हें सड़क पर अपनी ओर कोई वाहन आता दिखाई दिया.

तब तक वे शव को बोरे से निकाल चुके थे. उन्होंने तुरंत लाश के दोनों टुकड़े लाइन पर डाल दिए और बोरी उठा कर वहां से भाग निकले.

दोनों भाइयों ने रास्ते में एक खेत में वह बोरी जला दी और घर आ गए. घर आ कर मुन्ना व बंडा ने खून के निशान वाले कपड़े नहाधो कर बदल लिए. जब उन्होंने शव को पास की ही रेलवे लाइन पर फेंकने की बात अपने पिता को बताई तो भूपाल ने माथा पीट लिया.

वह समझ गया कि लाश पास में ही डालने की वजह से उस की शिनाख्त हो जाएगी और पुलिस उन के घर पहुंच जाएगी. इसलिए सभी लोग घर का ताला लगा कर रात में ही 2 बाइकों पर सवार हो कर वहां से भाग निकले.

घर से भाग कर वे चारों माधवी व उस की मां के पास पहुंचे. वहां पर भूपाल सिंह ने पत्नी को सारा वाकया बताया तो वह भी डर गई. उसे पति व बेटों पर बहुत गुस्सा आया. लेकिन अब होना भी क्या था अब तो बस पुलिस से बचना था.

वे चारों वहां से भाग कर आगरा के पास धौलपुर स्थित एक परिचित के यहां पहुंचे. लेकिन पुलिस के लंबे हाथों से बच नहीं सके. सर्विलांस टीम की मदद से वे पुलिस के जाल में फंस ही गए. हत्या में माधवी का कोई हाथ नहीं था इसलिए उसे पूछताछ के बाद छोड़ दिया.

पूछताछ के बाद सभी हत्यारोपियों को अदालत में पेश कर जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक सभी हत्यारोपी जेल की सलाखों के पीछे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों व मनीष के घर वालों के बयानों पर आधारित. माधवी परिवर्तित नाम है.

अंधविश्वास में दी मासूम बच्ची की बलि

खूनी नशा : एक गलती ने खोला दोहरे हत्याकांड का राज

गुरुवार 31 जनवरी को थोड़ी देर पहले बारिश हुई थी, इसलिए ठंड बढ़ गई थी. रात 8 बजते बजते ठंड से ठिठुरता भीमगंज मंडी कुहासे की चादर में लिपट गया था. इस के बावजूद बाजारों की चहलपहल में कोई कमी नहीं आई थी. इलाके में जैन मंदिर, राम मंदिर और गुरुद्वारा होने की वजह से आम दिनों की तरह उस दिन भी लोगों की अच्छीखासी आवाजाही थी.

सर्राफा कारोबारी राजेंद्र विजयवर्गीय का दोमंजिला मकान जैन मंदिर के सामने ही था. उन के परिवार में पिता चांदमल के अलावा 45 वर्षीय पत्नी गायत्री और 18 वर्षीय बेटी पलक थी. स्टेशन रोड पर उन की विजय ज्वैलर्स के नाम से सर्राफे की दुकान थी. राजेंद्र विजयवर्गीय के पिता चांदमल का रोजाना का नियम था कि शाम 7 बजे जब जैन मंदिर में आरती होती थी. वे घर से राम मंदिर जाने के लिए निकल जाते थे. मंदिर से वह स्कूटर से दुकान पर पहुंचते और दुकान बंद करने के बाद घर लौट आते थे, तब तक साढ़े 8 बज जाते थे.

पितापुत्र दोनों अकसर साथ ही घर लौटते थे. उस दिन राजेंद्र कुछ जरूरी काम निपटाने की वजह से दुकान पर ही रुक गए थे. जबकि चांदमल लगभग साढ़े 8 बजे नौकर के साथ घर लौट आए थे. नौकर को बाहर से ही रुखसत कर चादंमल ऊपरी मंजिल स्थित अपने निवास पर पहुंचे. उन्होंने गेट पर लगी कालबेल बजाई.

लेकिन रोजाना फौरन खुल जाने वाले दरवाजे पर कोई हलचल नहीं हुई. जबकि कालबेल की आवाज बाहर तक सुनाई दे रही थी. उन्होंने दरवाजे पर दस्तक देने की कोशिश की तो यह देख कर हैरान रह गए कि दरवाजा अंदर से लौक्ड नहीं था. वह एक ही धक्के में खुल गया. ऐसा पहली बार ही हुआ था.

चांदमल ने बहू गायत्री के कमरे की तरफ बढ़ते हुए आवाज लगाई तो वहीं खड़े रह गए. गायत्री के कमरे के बाहर खून बिखरा पड़ा था. बहू की खामोशी और फर्श पर बिखरे खून ने उन्हें इस कदर डरा दिया कि वे बुरी तरह चीख पड़े.

चांदमल के चिल्लाने की आवाज ग्राउंड फ्लोर पर रहने वाली किराएदार रश्मि ने सुनी तो चौंकी. वह तभी मंडी से सब्जी ले कर लौटी थी. वह हड़बड़ाई सी सीढि़यों की तरफ दौड़ी. बदहवास से खड़े चांदमल ने कमरे में बिखरे खून की तरफ इशारा किया तो रश्मि ने पहले चांदमल को संभाला. फिर गायत्री की तलाश में कमरे की तरफ बढ़ी.

वहां का दृश्य देख कर चांदमल और रश्मि दोनों की आंखें फटी रह गईं. ड्राइंगरूम के फर्श पर गायत्री की खून से लथपथ लाश पड़ी थी. चांदमल को संभालने की कोशिश में रश्मि को थोड़ा आगे पलक पड़ी दिखाई दी. उस के आसपास खून का दरिया सा बना हुआ था. साफ लगता था कि दोनों मर चुकी हैं.

चांदमल ने इस वीभत्स दृश्य को देखा तो उन के रहे सहे होश भी उड़ गए. सन्नाटे में खड़े चांदमल समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर ये सब कैसे हो गया. अंतत: उन्होंने जैसेतैसे रश्मि की मदद से खुद को संभाला और मोबाइल से बेटे राजेंद्र को इत्तला दी. इस के बाद उन्होंने रश्मि को फोन दे कर पुलिस को सूचना देने को कहा.

पुलिस को खबर देने के बाद रश्मि ने मोहल्ले के लोगों को आवाज दी. जरा सी देर में पूरा मोहल्ला इकट्ठा हो गया. जैन मंदिर से भीमगंज मंडी पुलिस स्टेशन का फासला बमुश्किल एक किलोमीटर का है. थानाप्रभारी श्रीचंद्र सिंह ने फोन कर के उच्चाधिकारियों को घटना के बारे में बताया.

पुलिस अधिकारी पहुंचे घटनास्थल पर

इस के बाद श्रीचंद्र सिंह पुलिस टीम के साथ 15-20 मिनट में राजेंद्र विजयवर्गीय के मकान पर पहुंच गए. दोहरे हत्याकांड ने कोटा के पुलिस महकमे को हिला दिया था. आईजी विपिन कुमार पांडे, एसपी दीपक भार्गव, एडीएम पंकज ओझा सहित आधा दरजन थानों की पुलिस मौके पर पहुंच गई. डौग स्क्वायड और फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया गया. विजयवर्गीय परिवार के घर के बाहर भारी भीड़ जुट गई थी.

पुलिस अधिकारियों ने देखा कि खून तो बैडरूम में फैला था, लेकिन गायत्री और पलक दोनों के शव ड्राइंगरूम में पड़े थे. पुलिस को लगा कि हत्यारों ने मांबेटी दोनों को उन के कमरों में मारा होगा और फिर शवों को घसीटते हुए ड्राइंगरूम में ला कर पटक दिया होगा.

दोनों के कमरों से ड्राइंगरूम तक खिंची खून की लकीर भी इसी ओर इशारा कर रही थी. जिस दरिंदगी से मांबेटी की हत्या की गई थी, उस से लगता था कि दोनों की हत्याएं किसी रंजिश की वजह से गई थीं.

इस बारे में राजेंद्र विजयवर्गीय का कहना था कि हम लोग तो सीधी सच्ची जिंदगी जी रहे थे. दुश्मनी या रंजिश का तो कोई सवाल ही नहीं है. लेकिन एसपी दीपक भार्गव राजेंद्र के जवाब से संतुष्ट नहीं थे. क्योंकि घटनास्थल का वीभत्स दृश्य साफ साफ रंजिश की ओर इशारा कर रहा था. हत्यारों ने किसी वजनी हथियार से दोनों के सिर, गरदन और हाथों पर इतने घातक वार किए थे कि उन का भेजा तक बाहर आ गया था.

मौका मुआयना करने के दौरान पुलिस को बैड पर 2 सरिए पड़े नजर आए. खून सना चाकू बैड के नीचे पड़ा था. चाकू पर लगा खून बता रहा था कि मांबेटी के गले उस चाकू से ही रेते गए होंगे. बैडरूम में रखी अलमारियों के टूटे हुए ताले बता रहे थे कि वारदात को चोरी डकैती के लिए अंजाम दिया गया था.

लेकिन राजेंद्र विजयवर्गीय सदमे की वजह से कुछ भी बताने की स्थिति में नहीं थे. पुलिस ने भी उन पर दबाव नहीं बनाया. एसपी भार्गव का मानना था कि हत्यारे 2 या 2 से ज्यादा रहे होंगे. प्रारंभिक जांच और मौकामुआयना के बाद पुलिस ने दोनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए एमबीएस अस्पताल भिजवा दिया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में दोनों की मौत हैड इंजरी से होनी बताई गई. गायत्री के सिर पर 5 चोटें थीं, साथ ही सिर में मल्टीपल फ्रैक्चर भी थे. सिर की कई हड्डियां टूट गई थीं. जबकि पलक के सिर में 2 चोटें थीं. इन में एक चोट इतनी घातक थी कि भेजा ही बाहर आ गया था.

हथियार सरियों के रूप में सामने आ चुके थे. गायत्री और पलक दोनों के हाथों पर भी गहरी खरोंचें और चोटें थीं.

मौके पर टूटी हुई चूडि़यों के टुकड़े भी पाए गए थे. इस का मतलब उन्होंने अपने बचाव के लिए बदमाशों से काफी संघर्ष किया था. मांबेटी के नाखूनों में त्वचा और मांस के अंश थे, जो हत्यारों के हो सकते थे. इस का पता लगाने के लिए नेल स्क्रैपिंग का सैंपल भी लिया गया. पुलिस की फोरैंरिक टीम ने भी मौके से फिंगरप्रिंट और फुटप्रिंट उठाए.

विजयवर्गीय के घर से एक सड़क सीधी स्टेशन की तरफ जाती थी और दूसरी हटवाड़े से होते हुए शहर की ओर. यही सड़क शहर के अलावा सैन्य क्षेत्र की तरफ भी जाती थी. यही वजह रही होगी कि हत्यारे बिना किसी की नजर में आए वारदात कर के आसानी से फरार हो गए थे.

नहीं मिल रहा था कोई क्लू

पुलिस यह सोच कर भी चल रही थी कि वारदात को अंजाम देने के लिए हत्यारों ने कम से कम 5-7 दिन तक रैकी की होगी. खोजी कुत्ते भी इसीलिए भटक कर रह गए थे. वारदात को जिस तरह अंजाम दिया गया था, उस से लगता था कि आरोपी विजयवर्गीय परिवार के अच्छे खासे परिचित रहे होंगे.

जिस घर में वारदात हुई, उस का मुख्यद्वार लोहे का था. लेकिन कुंडी ऐसी थी जो अंदर बाहर दोनों तरफ से आसानी से खोली जा सकती थी. ऐसे में घर में किसी के घुसने की खबर लगने का कोई मतलब ही नहीं था. राजेंद्र विजयवर्गीय की पत्नी गायत्री और ससुर चांदमल सामाजिक गतिविधियों से भी जुड़े हुए थे. इसलिए उन के यहां लोग अकसर आतेजाते रहते थे.

राजेंद्र विजयवर्गीय का कहना था कि घर में 5 सीसीटीवी कैमरे लगे हुए थे. जब कोई घर में ऊपर आता था तो गायत्री या पलक कैमरे में देख कर ही दरवाजा खोलती थीं. जाहिर है, इस का मतलब था आने वाले परिचित ही रहे होंगे.

दरअसल पुलिस को सभी कैमरे टूटे हुए मिले थे. उन की हार्डडिस्क भी गायब थी. इस का मतलब हत्यारे घर के चप्पेचप्पे से वाकिफ थे. घर की दोनों तिजोरियों के ताले तोड़े गए थे. मतलब बदमाशों को पता रहा होगा कि घर की दौलत उन्हीं तिजोरियों में है.

पोस्टमार्टम के बाद जब मांबेटी का अंतिम संस्कार किया गया. उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए हजारों लोग एकत्र हुए. व्यापारी संघ के लोगों में इस वारदात को ले कर अच्छाभला रोष था. उन्होंने पुलिस पर दबाव बनाने के लिए धरनेप्रदर्शन की चेतावनी भी दी.

अगले दिन यानी पहली फरवरी को एसपी दीपक भार्गव ने राजेंद्र से घर से चोरी गए सामान की बाबत पूछा तो उन्होंने बताया कि तिजोरियों में करीब एक करोड़ रुपए की नकदी और जेवर गायब हैं. इस का मतलब वारदात को धन के लालच में अंजाम दिया गया था. इस बात को राजेंद्र ने भी स्वीकार किया. इस से पुलिस को तफ्तीश की एक दिशा मिल गई. निस्संदेह इस वारदात में विजयवर्गीय परिवार का कोई करीबी ही शामिल रहा होगा.

10 टीमें जुटीं जांच में

दोहरे हत्याकांड का खुलासा करने के लिए डीजीपी विपिन पांडे के निर्देशन में एसपी दीपक भार्गव ने 10 टीमों का गठन किया. हत्या और लूट के मामले से जुड़े संदिग्ध और आदतन अपराधियों से पूछताछ का काम डीएसपी भंवर सिंह हाड़ा को सौंपा गया. उन की मदद के लिए हर थाने से 10 जवानों की टीम बनाई गई.

सीसीटीवी कैमरों को खंगालने की जिम्मेदारी उद्योगनगर पुलिस इंसपेक्टर विजय शंकर शर्मा और उन की टीम ने संभाली. इस के अलावा मामले से जुड़ी हर सूचना के एकत्रीकरण और पुलिस प्रशासनिक बंदोबस्त का प्रभारी थाना भीमगंज मंडी के इंसपेक्टर श्री चंद्र सिंह को बनाया गया.

पुलिस ने इलाके में वारदात के उस एक घंटे में किए गए सभी मोबाइल काल्स को राडार पर ले लिया. सौ से डेढ़ सौ कैमरों से सीसीटीवी फुटेज भी ली गई.

कैमरे खंगालने के लिए एडीशनल एसपी राजेश मील और प्रशिक्षु आईपीएस अमृता दुहन पूरी मुस्तैदी से लगे रहे. पुलिस की अलगअगल टीमों ने अपराधियों की तलाश में होटलों और धर्मशालाओं को भी खंगाला. एसपी दीपक भार्गव ने तो भीमगंज मंडी थाने में ही पड़ाव डाल दिया. वह पुलिस टीमों से पलपल की जानकारी लेते रहे. इस बीच पुलिस ने पूरी रेंज में हाई अलर्ट जारी कर दिया था. शहर की सीमाओं पर पूरी तरह नाकेबंदी कर दी गई थी ताकि अपराधी शहर छोड़ कर भागना चाहे तो धर लिया जाए.

अंगौछा बना सूत्र

इस दोहरे हत्याकांड की जांच में एक मोड़ शनिवार 2 फरवरी को उस समय आया जब पुलिस को घटनास्थल से सफेद रंग का एक अंगौछा मिला. संभवत: हत्यारे अफरातफरी में अंगौछा छोड़ गए थे.

पुलिस ने अंगौछे की पहचान को ले कर जब राजेंद्र विजयवर्गीय से पूछा, तो वे कुछ नहीं बता सके. अलबत्ता मुखबिरों में से एक ने संदेह जताया कि यह अंगौछा राजेंद्र की दुकान पर मुनीमी करने वाले मस्तराम का हो सकता है.

पुलिस जांच में मस्तराम जैसे सैकड़ों लोग राडार पर थे. रविवार 3 फरवरी की शाम पुलिस को एक मुखबिर से सूचना मिली कि राजेंद्र विजयवर्गीय परिवार का एक पुराना कर्मचारी आजकल जम कर पैसे उड़ा रहा है. उस ने 70 हजार का मोबाइल और महंगे कपड़े खरीदे हैं.

कहावत है कि अपराधी वारदात करने के बाद किसी न किसी बहाने मौकाएवारदात पर जरूर आता है. कई बार यही चूक उस के पकड़े जाने का सबब बनती है. इस मामले में भी ऐसा ही हुआ. 3 फरवरी को गायत्री और  पलक की शोकसभा थी. शोकसभा में मातमपुर्सी के लिए आया एक व्यक्ति फूटफूट कर रोने लगा. वह बारबार कह रहा था, ‘‘यह सब कैसे हो गया?’’

राजेंद्र को दिलासा देने के लिए जब वह उन के पास गया तो उस के मुंह से निकलती शराब की बदबू विजय की नाक तक पहुंच गई. उन्होंने उसे वहां से जबरन हटाने का प्रयास किया लेकिन वह और ज्यादा जोरों से रोने लगा.

शोकसभा में सादे कपड़ों में भीमगंज मंडी थानाप्रभारी श्रीचंद्र सिंह भी मौजूद थे. उन्हें यह सब कुछ अटपटा लगा तो उन्होंने राजेंद्र विजयवर्गीय से पूछा कि वह कौन है. राजेंद्र ने बताया कि उस का नाम मस्तराम मीणा है और वह बूंदी के बड़ा तीरथ गांव का रहने वाला है. उन्होंने यह भी बताया कि मस्तराम उन का बहुत विश्वस्त नौकर था. 3 साल पहले वह उन की दुकान पर मुनीम था.

नतीजतन मस्तराम पुलिस की नजर में चढ़ गया. पुलिस उसे उठा कर थाने ले आई. जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो पूरी कहानी पता चल गई. पता चला कि इस वारदात को मस्तराम ने अपने एक साथी लोकेश मीणा, जो उसी के गांव का रहने वाला था, के साथ मिल कर अंजाम दिया था.

मस्तराम मीणा और लोकेश मीणा एक ही गांव के रहने वाले थे और दोनों दोस्त थे. बूंदी जिले की केशोराय पाटन तहसील के बड़ा तीरथ गांव के रहने वाले 3 भाइयों के परिवार में 28 साल का मस्तराम अविवाहित था. उस के पिता किसान प्रभुलाल मीणा की 3 साल पहले मौत हो गई थी.

इस के बाद तीनों भाइयों ने पुश्तैनी जमीन 18 लाख में बेच दी थी और रकम का बंटवारा कर लिया था. मस्तराम को बंटवारे में 6 लाख रुपए मिले. उस ने यह रकम अय्याशी में उड़ा दी. मस्तराम ने केशवराय पाटन इंस्टीट्यूट से इलेक्ट्रिशियन ट्रेड में आईटीआई की परीक्षा पास की थी. शराब के नशे में हुड़दंग करने पर वह गांव वालों से कई बार पिट चुका था.

इस वारदात में मस्तराम का सहयोगी रहा लोकेश मीणा 10वीं में फेल होने के बाद से ही आवारागर्दी करने लगा था. उस ने आरसीसी पाइप्स की ठेकेदारी भी की थी. लेकिन झगड़ा फसाद करने के कारण धंधा नहीं चल पाया. केशोराय पाटन थाने में उस के खिलाफ कई मुकदमे दर्ज थे.

कुछ समय पहले वह अपनी भाभी को भी ले कर भाग गया था. तभी से उस के घर वालों ने उस से किनारा कर लिया था. मस्तराम और लोकेश मीणा दोनों सोचते थे कि किसी बड़ी लूट को अंजाम दें और ऐशोआराम की जिंदगी जिएं.

मक्कारी में 2 कत्ल कर डाले

मस्तराम मीणा सर्राफ राजेंद्र विजयवर्गीय की दुकान पर नौकरी कर चुका था. उसे पता था कि घर का कौन सदस्य कब आताजाता है, नकदी जेवर कहां रखे हैं. उस ने लोकेश को अपनी योजना बताई कि एकदो को मारना तो पड़ेगा लेकिन मोटा माल मिलेगा. लोकेश इस के लिए तैयार हो गया.

कह सकते हैं कि इस हत्याकांड का मास्टरमाइंड मस्तराम ही था. पूछताछ में उस ने बताया कि दोनों ने वारदात से पहले दुकान और घर दोनों जगहों की रेकी की. रेकी के बाद वारदात का वक्त शाम के 7 बजे का रखा गया. उस समय राजेंद्र विजयवर्गीय दुकान पर होते थे और उन के पिता चांदमल को राम मंदिर में दर्शन करते हुए दुकान पर पहुंचना होता था.

रात साढ़े 8-9 बजे से पहले दोनों में से कोई नहीं लौटता था. ग्राउंड फ्लोर की किराएदार रश्मि अकेली रहती थी और उस वक्त सब्जी मंडी चली जाती थी. लूट के लिए हत्या करना पहले ही तय था, इसलिए दोनों सरिए और चाकू साथ ले कर आए थे. मांबेटी गायत्री और पलक दोनों उन्हें जानती थीं, इसलिए कालबेल बजाने पर दरवाजा खुलवाने में कोई दिक्कत नहीं थी.

दरवाजा खोलते ही गायत्री सामने नजर आई. दोनों को बैठने को कह कर जैसे ही वह अपने कमरे की तरफ बढ़ी, दोनों ने मौका दिए बगैर सरिए से उन के सिर पर ताबड़तोड़ वार कर दिए. फिर भीतर जा कर पलक का भी यही हाल किया. दोनों में जान न रह जाए, यह सोच कर मस्तराम और केशव ने चाकू से दोनों का गला रेत कर उन की मौत की तसल्ली कर ली.

बाद में दोनों ने मांबेटी की लाशों को घसीट कर ड्राइंगरूम में डाल दिया. मस्तराम को पता था कि जेवर और नकदी गायत्री के कमरे की तिजोरी में रखे होते हैं. मस्तराम और लोकेश अपने साथ बैग ले कर आए थे. तिजोरी तोड़ कर जितनी भी रकम और जेवर मिले, उन्होंने बैग में भरे और वहां से फुरती से निकल गए. बस पकड़ कर दोनों सीधे गांव पहुंचे और गहने व रकम का बड़ा हिस्सा घर में छिपा दिया.

फिर दोनों ने रात में ही बूंदी से रोडवेज की बस पकड़ी और जयपुर चले गए. जयपुर में दोनों बसस्टैंड के पास ही एक होटल में रुके. अगले दिन दोनों ने जम कर खरीदारी की और शराब पी. दोनों ने अपने लिए 70-70 हजार के महंगे मोबाइल फोन, कपड़े और अन्य सामान खरीदा. शनिवार 2 फरवरी को दोनों वापस कोटा आ गए.

मस्तराम को अपने पकड़े जाने का डर नहीं था. फिर भी अपनी इस तसल्ली के लिए कि किसी को उस पर शक न हो, वह शोक जताने का दिखावा करने चला गया. बस उस की यही सोच उसे ले डूबी. राजेंद्र विजयवर्गीय ने पुलिस को बताया कि हत्यारों ने करीब एक करोड़ की लूट की थी.

पुलिस ने दोनों आरोपियों के कब्जे से लूटे गए 37 लाख में से 21.70 लाख रुपए और 2 किलो 26 ग्राम सोना, साढ़े 13 किलो चांदी के जेवर बरामद कर लिए. मस्तराम ने बताया कि गायत्री और पलक जो गहने पहने थी, उन्होंने वे भी उतार लिए थे. सीआई श्रीचंद्र सिंह ने बताया कि आरोपियों के कब्जे से सोने की चेन और कंगन भी बरामद कर लिए गए.

लोकेश ने वारदात करने के बाद 8 लाख रुपए, कंगन और चेन अपने गांव जा कर खेत में गाड़ दिए. लूट की रकम का बंटवारा करने के बाद मस्तराम पाटन के एक गांव में अपने रिश्तेदारों के पास गया था. उस ने उन्हें 8 लाख रुपए यह कह कर रखने को दिए कि रकम जमीन बेच कर मिली है, थोड़े दिन रख लो फिर आ कर ले जाऊंगा.

वारदात खुलने के बाद मस्तराम के रिश्तेदारों ने यह रकम पुलिस को यह कहते हुए सौंप दी कि उन्हें इस घटना के बारे में कोई जानकारी नहीं थी.

इस मामले में भीमगंज मंडी के थानाप्रभारी श्रीचंद सिंह की भूमिका महत्त्वपूर्ण रही. शोकसभा में मस्तराम मीणा के हावभाव उन्हें खटके तो उन्होंने पूरा ध्यान उसी पर लगा दिया. इस कोशिश में उन्हें उस की कलाइयों पर खरोंचों के निशान नजर आए, जिस से उन का शक पुख्ता हो गया. उन्होंने कांस्टेबल शिवराज को उसे फौरन उठाने को कहा.

सीआई श्रीचंद्र सिंह ने बताया कि जयपुर में अच्छीखासी खरीदारी के बाद दोनों हत्यारे वापस होटल नहीं पहुंचे थे. अगले दिन होटल मालिक ने कमरे की सफाई करवाई तो प्लास्टिक की थैली में कपड़े मिले, जिन्हें स्टोर में रखवा दिया गया था. श्रीचंद्र सिंह ने वह थैली भी बरामद कर ली.

इस मामले को केस औफिसर स्कीम में लिया गया है और 15 दिन में कोर्ट में चालान पेश किया जाएगा. इस केस को सुलझाने में एएसपी राकेश मील, उमेश ओझा, प्रशिक्षु आईपीएस अमृता दुहन, डीएसपी भंवर सिंह, राजेश मेश्राम, सीआई महावीर सिंह, मुनींद्र सिंह, मदनलाल और विजय शंकर शर्मा सहित 200 पुलिसकर्मी शामिल रहे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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