राजनीति का DNA : चालबाज रुपमती की कहानी – भाग 5

लेकिन मुमताज को सत्ता की हवस थी. जब उस ने बारबार अपना शरीर देने की बात कही, तो सूरजभान को गुस्सा आ गया. वह चीख पड़ा, ‘‘क्या कीमत है तुम्हारे जिस्म की? मैं करोड़ों रुपए दे रहा हूं. बाजार में हजार भी नहीं मिलते. शादी कर के घर बसातीतो 5-10 लाख रुपए दहेज देती, तब कहीं जा कर कोई मिडिल क्लास लड़का मिलता. मुझ पर शोषण करने का आरोप लगाने से पहले सोचा है कि तुम जैसी लड़कियां हम जैसे बड़े लोगों का माली शोषण करती हो. अपने शरीर के दाम लगा कर सत्ता तक पहुंचने का रास्ता बनाती हो.’’

मुमताज ने सूरजभान की नाराजगी देख कर कहा, ‘‘मैं ने आप की रासलीला को कैमरे में कैद कर लिया है. मैं आप का राजनीतिक कैरियर तो तबाह करूंगी ही, दूसरी पार्टी से पैसे और चुनाव का टिकट भी लूंगी.’’

बस, फिर क्या था. दूसरे दिन ही मुमताज की लाश मिली. खूब हल्ला हुआ. सूरजभान पर सीबीआई का शिकंजा कसा. खूब थूथू हुई. उस के खिलाफ कोई सुबूत था नहीं, इसलिए वह बाइज्जत रिहा हो गया.

एक और बात सूरजभान की यादों में बनी रही. जब वह पार्टी की एक महिला मंत्री, जिस की उम्र तकरीबन 40 साल रही होगी, के साथ अकेले डिनर पर था. उस ने पूछा था. ‘‘आप यहां तक कैसे पहुंचीं?’’

महिला मंत्री ने बड़ी बेबाकी से जवाब दिया था, ‘‘औरत के लिए तो एक ही रास्ता रहता है. मैं जवान थी. खूबसूरत थी. पार्टी हाईकमान के बैडरूम से सफर शुरू किया और धीरेधीरे उन की जरूरत बन गई. उन की सारी कमजोरियां समझ लीं. वे मुझ पर निर्भर हो गए. लेकिन हां, कभी उन पर हावी होने की कोशिश नहीं की.

‘‘धीरेधीरे उन की नजरों में मैं चढ़ गई. एक चुनाव जीतने में उन की मदद ली, बाकी अपनी मेहनत.

‘‘हां, अब मैं जब चाहे अपनी पसंद के मर्द को बिस्तर तक लाती हूं. सब ताकत का. सत्ता का खेल है.’’

अब सूरजभान राजनीति का चाणक्य कहलाता था. वह राज्य सरकार से ले कर केंद्र सरकार में मंत्री पदों पर रह चुका था. जब उस की पार्टी की सरकार नहीं बनी, तब भी वह हजारों वोटों से चुनाव जीत कर विपक्ष का ताकतवर नेता होता था लेकिन अब उस की उम्र ढल रही थी. नए नेता उभर कर आ रहे थे. ऐसे में सूरजभान के पास संयास लेने के अलावा कोई चारा नहीं था. फिर भी पार्टी का वरिष्ठ नेता होने के चलते पार्टी उसे राष्ट्रपति पद देने के लिए विचार कर रही थी.

तभी रूपमती ने नया धमाका किया. यह धमाका सूरजभान के लिए बड़ा सिरदर्द था. वह जानता था कि रूपमती एक कुटिल औरत थी. उस ने अपनी जवानी से अच्छेअच्छों को घायल किया था. और बुढ़ापे में उस ने अपनी औलाद को ढाल बना कर इस्तेमाल किया. लेकिन इस बार उस का मुकाबला घाघ राजनीतिबाज से था. वैसे, रूपमती के पास कहने को बहुतकुछ था. उस के पति की हत्या, सूरजभान के के साथ उस के नाजायज संबंध. जब सूरजभान पहली बार मंत्री बना था, तो वह उस से मिलने आई थी और उस ने डरते हुए कहा था कि अब आप के पास पैसा और ताकत दोनों हैं. आप मुझे कभी भी मरवा सकते हैं. मैं आज के बाद आप से कभी नहीं मिलूंगी. आप मुझे 5 करोड़ रुपए दे दीजिए, हर महीने का झंझट खत्म. आप का बेटा बड़ा हो रहा है. मैं शादी कर के कहीं ओर बस जाऊंगी.

सूरजभान ने भी सोचा कि चलो पीछा छूट जाएगा. इस के बाद वह कभी नहीं आई.

आज जब कि सूरजभान की जिंदगी ही आखिरी पडा़व थी, पार्टी उन्हें राष्ट्रपति पद के लिए बतौर उसी प्रकार तय कर चुकी थी ऐसे में रूपमती का आरोप था कि उस के बेटे सुरेश का पिता सूरजभान है और वह उसे अपना बेटा स्वीकार करे. इस में रूपमती का क्या फायदा हो सकता था? विरोधी पार्टी द्वारा मोटी रकम? क्या कोई राजनीतिक पद पाने की इच्छा?  जब मीडिया में बातें होने लगीं, तो सूरजभान ने कहा, ‘‘मैं इस औरत को जानता तक नहीं. यह औरत झूठ बोल रही है.’’

रूपमती ने भी मीडिया को बताया,  ‘‘इस से मेरे पुराने संबंध थे. गांव की राजनीति शुरू करने से पहले.’’

सूरजभान ने बयान दिया, ‘‘यह उस के पति का बच्चा होगा. मेरा कैसे हो सकता है?’’

‘‘नहीं, यह बच्चा सूरजभान का ही है,’’ रूपमती ने जवाब दिया.

‘‘इतने दिनों बाद सुध कैसे आई?’’

‘‘बेटे को उस का हक दिलाने के लिए.’’

मामला कोर्ट में चला गया. अनुपमा ने भी पति सूरजभान का पक्ष लिया. उन का बेटा विदेश में था. उसे इन सब बातों की खबर थी, लेकिन वह क्या कहता?

अनुपमा से पूछने पर उस ने कहा,  ‘‘मेरे पति देवता हैं. उन्हें बदनाम करने की साजिश की जा रही है, ताकि वे राष्ट्रपति पद के दावेदार न रहें.’’

जब कोर्ट ने डीएनए टैस्ट कराने का और्डर दिया, तो सूरजभान समझ गया कि पुराने पाप सामने आ कर दंड दे रहे हैं. इतनी ऊंचाई पर पहुंचने के लिए पाप की जो सीढि़यां लगाई थीं, आज वही सीढि़यां ऊंचाई से उतार फेंकने के लिए कोई दूसरा लगा रहा है.

सूरजभान ने सोचा, ‘जितना पाना था, पा चुका. जितना जीना था जी चुका अब तो जिंदगी की कुरबानी भी देनी पड़ी, तो दूंगा. डीएनए टैस्ट हो गया, तो सब साफ हो जाएगा. इस से बचना मुश्किल है, क्योंकि अदालत, मीडिया तक बात जा चुकी है. विपक्ष हंगामा कर रहा है.’

सूरजभान ने बहुत सोचा, फिर एक चिट्ठी लिखी. वह चिट्ठी भी राजनीति की तरह एकदम झूठी थी.

चिट्ठी इस तरह थी : ‘रूपमती नाम की औरत को मैं निजी तौर पर नहीं जानता. इस के बुरे दिनों में मैं ने इस के पति की कई बार पैसे से मदद की थी एक दिन यह मुझ से मिलने आई और कहने लगी कि राष्ट्रपति के चुनाव से हट जाओ या सौ करोड़ रुपए दो. मैं राष्ट्रपति पद से हटता हूं, तो यह मेरी पार्टी की बेइज्जती होगी. मैं ने जिंदगी भर देश की सेवा की है. सेवक के पास सौ करोड़ रुपए कहां से आएंगे? पार्टी और जनसेवा मेरी जिंदगी का मकसद रहे हैं. मैं तो पूरे देश की जनता को अपनी औलाद मानता हूं.

‘देश के 150 करोड़ लोग मेरे भाई, मेरे बेटे ही तो हैं, तो इस का बेटा भी मेरा हुआ. पर मैं ब्लैकमेल होने के लिए राजी नहीं हूं. मुझे डीएनए टैस्ट कराने से भी एतराज नहीं है, लेकिन विपक्ष इस समय कई राज्यों में है. उस के लिए डीएनए रिपोर्ट बदलवाना कोई मुश्किल काम नहीं है. मेरे चलते पार्र्टी की इमेज मिट्टी में मिले, यह मैं बरदाश्त नहीं कर सकता. रूपमती नाम की औरत झूठी है. यह विपक्ष की चाल है. मैं इस बुढ़ापे में तमाशा नहीं बनना चाहता. सो, जनहित पार्टी हित और इस औरत द्वारा बारबार ब्लैकमेल किए जाने से दुखी हो कर मैं अपनी जिंदगी को खत्म कर रहा हूं. जनता और पार्टी इस औरत को माफ कर दे. प्रशासन इस के खिलाफ कोई कदम न उठाए.’

दूसरे दिन राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार नेता सूरजभान को डाक्टरों ने मृत घोषित कर दिया. वह जहर खा चुका था और रूपमती को पुलिस ने आत्महत्या के लिए मजबूर करने के आरोप में हिरासत में ले लिया.

पार्टी में शोक की लहर थी. जनता को अपने नेता के मरने का गहरा दुख हुआ. दाह संस्कार के बाद सूरजभान के बेटे को पार्टी प्रमुख ने महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी. बेटा अपने पिता की विरासत को संभालने के लिए तैयार था. जनता के सामने साफ था कि नेता के बेटे को हर हाल में चुनाव में भारी वोटों से जिताना है. यही उस की अपने महान नेता के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी.

सहानुभूति की इस लहर में सूरजभान का बेटा भारी वोटों से चुनाव जीता. सूरजभान के नाम पर शहर में मूर्तियां लगाए गईं. अब इस बात पर विचार किया जाता रहा था कि हवाईअड्डे का नाम भी सूरजभान एअरपोर्ट रखा जाए. कई फिल्मकार उस पर फिल्म बनाना चाहते थे.

राजनीति इसी को कहते हैं कि आदमी ठीक समय पर मरे, तो महान हो जाता है. इस बार रूपमती नाकाम हो गई. उस की कुटिलता, उस की चालाकी इस दफा हार गई. क्यों न हो, राजनीतिबाजों से जीतना किसी के बस की बात नहीं. उन्हें तो केवल इस्तेमाल करना आता है. सूरजभान ने तो अपनी मौत तक का इस्तेमाल कर लिया था.

राजनीति का DNA : चालबाज रुपमती की कहानी – भाग 4

राजनीति और सैक्स तो चोलीदामन के साथ जैसा है. सत्ता की ताकत और बेहिसाब पैसे से कौन प्रभावित नहीं होता. कितनी लड़कियां कभी नौकरी के लिए उस के पास आईं. वह कइयों के साथ संबंध भी बनाता गया.

इस तरह सूरजभान एक सरपंच के बेटे से ले कर देश की संसद में मंत्री बना था. इतना लंबा सफर तय करने में कितने लोग मारे गए, कितनी बेईमानियां, कितने घोटाले, कितने दंगेफसाद, कितने झूठ, कितने पाप करने पड़े, खुद उसे भी याद नहीं.

आज सूरजभान 70 साल का बूढ़ा हो चुका था. उसे याद रहा, तो सिर्फ इतना कि एक रूपमती थी. एक अवध था. वह अपनी पत्नी अनुपमा को एक बार मुख्यमंत्री के बिस्तर पर भी भेज चुका था. उस के बाद उस की अनुपमा से आंख मिलाने की हिम्मत नहीं हुई. उस ने अनुपमा के लिए बंगला ले, गाड़ी, नौकरचाकर, तगड़े बैंक बेलैंस का इंतजाम कर दिया था और अनुपमा को समझा दिया था कि बहुतकुछ पाने के लिए कुछ तो खोना ही पड़ता है. राजनीति का ताज पहनने के लिए उस ने अपनी पत्नी को सीढ़ी की तरह इस्तेमाल किया था. उस का बेटा विदेश में बस चुका था.

सूरजभान को यह भी याद था कि विधानपरिषद में मंत्री चुने जाने के बाद दूसरी बार जब वह मंत्री चुना गया था, तब वह अनुपमा के पास गया था. तब उस ने वहां दारा को देखा था. दारा ने उस के पैर छुए थे उस ने अनुपमा से पूछा था कि दारा यहां कैसे? तो उस ने तीखे लहजे में जवाब दिया था, ‘‘मेरे कहने पर ही इस ने अवध की हत्या की थी, तो मेरा फर्ज बनता है कि मैं इसे पनाह दूं. तुम्हारे पास तो न मेरे लिए पहले समय था, न अब. मुझे भी तो कोई विश्वासपात्र चाहिए. तुम तो छत पर चढ़ने के लिए सब को सीढ़ी बना लेते हो और ऊपर पहुंचने के बाद सीढ़ी को लात मार देते हो. कल उतरने की बारी आएगी, तो बिना सीढ़ी के कैसे उतरोगे?’’ अनुपमा बहुतकुछ कह चुकी थी.

सूरजभान कुछ नहीं बोला. वह फिर कभी अनुपमा से मिलने नहीं गया. रही सीढ़ी की बात, तो वह जानता था कि राजनीति में ऊपर उठने के लिए चाहे हजारों को सीढ़ी बना कर इस्तेमाल करो, लेकिन उतरने की जरूरत नहीं पड़ती. राजनीति में जब पतन होता है, तो आदमी सीधा गिर कर खत्म होता है.

सूरजभान का सब से मुश्किल भरा समय था मुमताज कांड. तब उस की काफी बदनामी हुई थी. हाईकमान ने यह कह कर फटकारा था कि या तो इस मामले को निबटाइए या इस्तीफा दे दीजिए. पार्टी की बदनामी हो रही है.

मुमताज की उम्र महज 23 साल थी. खूबसूरत, नाजुक अदाएं, लटकेझटकों से भरपूर. कालेज अध्यक्ष का चुनाव जीत कर वह खुश थी.

वह सूरजभान से मिलने आई. सूरजभान ने आशीर्वाद दिया, बधाई दी और अकेले में भोजन पर बुलाया.

भोजन के समय सूरजभान ने पूछा, ‘‘यह तो हुई तुम्हारी मेहनत की जीत. आगे बढ़ना है या बस यहीं तक?’’

‘‘नहीं सर, आगे बढ़ना है,’’

‘‘गौडफादर के बिना आगे बढ़ना मुश्किल है.’’

‘‘सर, आप का आशीर्वाद रहा तो…’’

‘‘नगरनिगम के चुनाव के बाद महापौर, फिर विधायक और मंत्री पद भी.’’

‘‘क्या सर, मैं ये सब भी बन सकती हूं.’’ उस ने हैरानी से पूछा?

‘‘यह तो तुम पर है कि तुम कितना समझौता करती हो.’’

‘‘सर, मैं कुछ भी कर सकती हूं.’’

‘‘कुछ भी नहीं, सबकुछ.’’

‘‘हां सर, सबकुछ.’’

‘‘तो कुछ कर के दिखाओ.’’

मुमताज समझ गई कि उसे क्या करना है. उसी रात भोजन के बाद वह सूरजभान के बिस्तर पर थी.

लेकिन जब मुमताज को लगा कि उसे झूठे सपने दिखाए जा रहे हैं, तो उस ने शिकायत की कि ‘‘मुझे विधायकी का टिकट चाहिए.’’

सूरजभान ने समझाया, ‘‘देखो, तुम पहले नगरनिगम का चुनाव लड़ो. पार्टी में कई सीनियर नेता हैं. उन्हें टिकट न देने पर पार्टी में असंतोष फैलेगा. मुझे सब का ध्यान रखना पड़ता है. फिर हमें भी हाईकमान का फैसला मानना पड़ता है. सबकुछ मेरे हाथ में नहीं है.’’

वह चीख पड़ी, ‘‘सबकुछ आप के हाथ में ही है. आप चाहते ही नहीं कि मैं आगे बढूं. मैं ने अपना जिस्म आप को सौंप दिया. आप को अपना सबकुछ माना. आप पर भरोसा किया और आप मुझे धोखा दे रहे हैं.’’

‘‘इस में धोखे की क्या बात है? चाहो तो मैं तुम्हारे अकाउंट में 5-10 करोड़ रुपए जमा करवा दूं.’’

राजनीति का DNA : चालबाज रुपमती की कहानी – भाग 3

एक दिन सूरजभान ने घर छोड़ा, तो नशे में अवध ने कहा, ‘‘हर बार बाहर से चले जाते हो. इसे अपना ही घर समझो. चलो, कुछ खा लेते हैं.’’

सूरजभान ने कहा, ‘‘भैया, घर पहुंचने में देर हो जाएगी. रात हो रही है, फिर कभी सही.’’

‘‘नहीं, रोज यही कहते हो. देर हो जाए तो यहीं रुक जाना. मोबाइल से घर पर बता दो कि अपने दोस्त के यहां रुक गए हो…’’ फिर अवध ने रूपमती को आवाज दी, ‘‘कुछ बनाओ मेरा दोस्त, मेरा भाई आया है.’’

रूपमती को तो मनचाही मुराद मिल गई. जिस से छिपछिप कर मिलना पड़ता था, उसे उस का पति घर ले कर आ रहा है. खा पीकर अवध तो नशे में सोता, तो सीधा अगले दिन के 10-11 बजे ही उठता. इस बीच रूपमती और सूरजभान का मधुर मिलन हो जाता और सुबह जल्दी उठ कर वह अपने घर चला जाता.

सूरजभान की पत्नी अनुपमा गुस्से की आग में जल रही थी. उस का जलना लाजिमी भी था. उस का पति महीनों से रातरात भर गायब रहता था. सुबह आ कर सो जाता और खाना खाने के बाद जो दोपहर से काम पर जाने के बहाने से निकलता, फिर दूसरे दिन सुबह ही वापस आता.

अनुपमा जानती थी कि उस का पति रातभर किसी बाजारू औरत के आगोश में रहता होगा. वह अपने पति को रिझाने का हर जतन कर चुकी थी, लेकिन उसे सिवाय गालियों के कुछ और नहीं मिलता था.

ससुर से शिकायत करने पर भी अनुपमा को यही जवाब मिला कि पतिपत्नी के बीच में हम क्या बोल सकते हैं. काम पर आतेजाते उस की नजर नौकर दारा पर पड़ती रहती. उस के कसे हुए शरीर, ऊंची कदकाठी, कसरती बदन को देख कर अनुपमा के बदन में चींटियां सी रेंगने लगतीं.

एक दिन अनुपमा ने दारा को बुला कर कहा, ‘‘तुम केवल मेरे पति के नौकर नहीं हो, बल्कि इस पूरे परिवार के भरोसेमंद हो. पूरे परिवार के प्रति तुम्हारी जिम्मेदारी है.’’

‘‘जी मालकिन,’’ दारा ने सिर झुका कर कहा.

‘‘तो बताओ कि तुम्हारे मालिक कहां और किस के पास आतेजाते हैं? उन की रातें कहां गुजरती हैं?’’ क्या तुम्हें अपनी छोटी मालकिन का जरा भी खयाल नहीं है?’’ अनुपमा ने अपनेपन की मिश्री घोलते हुए कहा.

‘‘मालकिन, अगर मालिक को पता चल गया कि मैं ने आप को उन के बारे में जानकारी दी है, तो वे मुझे जिंदा नहीं छोड़ेंगे,’’ दारा ने अपनी मजबूरी जताई.

‘‘तुम निश्चिंत रहो. तुम्हारा नाम नहीं आएगा.’’

‘‘लेकिन मालकिन.’’

अनुपमा ने अपना पल्लू गिराते हुए कहा, ‘‘इधर देखो. मैं भी औरत हूं. मेरी भी कुछ जरूरतें हैं.’’

दारा ने सिर उठा कर देखा. मालकिन की साड़ी का पल्लू नीचे गिरा हुआ था. उस ने ब्लाउज में मालकिन को पहली बार देखा था. पेट से ले कर कमर तक बदन की दूधिया चमक से दारा का मन चकाचौंध हो रहा था. उस के शरीर में तनाव आने लगा, तभी मालकिन ने अपनी साड़ी के पल्लू को ठीक किया.

‘‘सुनो दारा, मालिक वही जो मालिकन के साथ रहे. तुम भी मालिक बन सकते हो. लेकिन तुम्हें कुछ करना होगा,’’ अनुपमा ने अपने शरीर का जाल दारा पर फें का. उस की स्वामीभक्ति भरभरा कर गिर पड़ी.

‘‘आप का हुक्म सिरआंखों पर. आप जो कहेंगी, आज से दारा वही करेगा. आज से मैं केवल आप का सेवक बनूंगा,’’ दारा ने कहा.

‘‘तो सुनो, उस कलमुंही का कुछ ऐसा इंतजाम करो कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे,’’ अनुपमा ने कहा.

‘‘जो हुक्म,’’ कह कर दारा चला गया.

दारा के सामने मालकिन का दूधिया शरीर घूम रहा था. सब से पहले उस ने रूपमती के पति अवध को खत्म करने की योजना बनाई.

इस बार रात में रूपमती ने सूरजभान से कहा, ‘‘मेरा मरद तो अब किसी काम का है नहीं. अब तो वह हमें  साथ देख लेने के बाद भी चुप रहता है. वह तो शराब का गुलाम हो चुका है. उस ने शराब पीने में खेतीबारी बेच दी. तुम ने उसे जुए की लत में ऐसा उलझाया कि यह घर तक गिरवी रखवा दिया. कम से कम अब तो मुझे औलाद का सुख मिलना चाहिए. आज की रात मुझे तुम से औलाद का बीज चाहिए.’’

सूरजभान ने रूपमती की बंजर जमीन में अपने बीज डाल दिए.

सुबह सूरजभान के निकलते ही दारा शराब की बोतल ले कर पहुंचा और उस ने अवध को जगाया.

‘‘तुम्हारा मालिक तो चला गया,’’ अवध ने दरवाजा खोल कर कहा.

‘‘हां, लेकिन उन्होंने तुम्हारे लिए शराब भेजी है,’’ दारा ने शराब की बोतल थमाते हुए कहा.

‘‘अरे वाह, क्या बात है तुम्हारे मालिक की,’’ कह कर अवध ने बोतल मुंह से लगा ली.

थोड़ी ही देर में शराब में मिला हुआ जहर अपना असर दिखाने लगा. अवध को जलन से भयंकर पीड़ा होने लगी. वह कसमसाने लगा, लेकिन ज्यादा नशे के चलते उस के मुंह से आवाज तक नहीं निकल पा रही थी. वह उसी हालत में तड़पता रहा और हमेशा के लिए सो गया.

दारा ने सोचा तो यह था कि रूपमती के पति की हत्या के आरोप में सूरजभान जेल चले जाएंगे और वह मालकिन के शरीर का मालिक बनेगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. दरअसल, रूपमती ने दारा को शराब की बोतल देते देख लिया था. वह समझ चुकी थी कि सूरजभान का खानदान उस के पीछे लग चुका है और उस की जान को भी खतरा हो सकता है. सूरजभान उस के पति की जान नहीं ले सकता. उस ने तो उसे हर ओर से नकारा बना दिया था. फिर ऐसा करने से पहले वह उस से पूछता जरूर. इस का साफ मतलब था कि इस में सूरजभान के परिवार के लोग शामिल हो चुके हैं और अगला नंबर उस का होगा.

रूपमती ने सूरजभान को बताया, तो सूरजभान ने कहा, ‘‘तुम यहां से कहीं दूर चली जाओ और अपनी नई जिंदगी शुरू करो. मैं तुम्हें हर महीने रुपए भेजता रहूंगा. अगर तुम्हारी कोई औलाद हुई, तो उस की जिम्मेदारी भी मेरी. लेकिन ध्यान रखना कि यह संबंध और होने वाली औलाद दोनों नाजायज हैं. भूल कर भी मेरा नाम नहीं आना चाहिए.’’

अपनी जान के डर से रूपमती को दूर शहर में जाना पड़ा. जाने से पहले वह अपने पति के कातिल दारा को जेल भिजवा चुकी थी. सूरजभान या उस की पत्नी अनुपमा ने उसे बचाने की कोई कोशिश नहीं की थी.

वजह, चुनाव होने वाले थे. वे दारा से मिलने या उसे बचाने की कोशिश में जनता के साथसाथ विपक्ष को भी कोई होहल्ला मचाने का मौका नहीं देना चाहते थे.

इस के बाद सूरजभान की जिंदगी में न जाने कितनी रूपमती आई होंगी. अब वह राजनीति का उभरता सितारा था. अपने पिता की विरासत को गांव की सरपंची से निकाल कर वह विधानसभा तक में कामयाबी के झंडे गाड़ चुका था. उस के काम से खुश हो कर पार्टी ने उसे मंत्री पद भी दे दिया था.

Lady Don अस्मिता गोहिल, जिसका नाम सुनते लोग थर्रा उठते

गुजरात के सिल्क और डायमंड सिटी सूरत की गलियों में जिस समय खतरनाक हथियारों के साथ लेडी डौन (Lady Don) अस्मिता गोहिल उर्फ भूरी निकलती थी, उस समय लोग थर्रा उठते थे. शहर के कारोबारियों और दुकानदारों की रूह कांप जाती थी. वे यह सोच कर डर जाते थे कि अब पता नहीं किस का नंबर आने वाला है. यह लेडी डौन सिर्फ गुंडागर्दी कर के रंगदारी ही नहीं वसूलती बल्कि फेसबुक और यूट्यूब पर भी काफी एक्टिव रहती थी.

सोशल मीडिया पर उस के 13 हजार से अधिक फालोअर्स हैं और ढाई हजार के करीब दोस्त हैं. आए दिन वह अपने फेसबुक एकाउंट पर नईनई वीडियो पोस्ट करती रहती है. कई वीडियो में वह अपने हाथों में नंगी तलवार और रिवौल्वर ले कर लोगों से रंगदारी वसूलती दिखी.

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अपराध की दुनिया में अस्मिता उर्फ डीकू उर्फ भूरी अपने आप को बीते जमाने की लेडी डौन उर्फ गौड मदर संतोषबेन जाडेजा के रूप में देखना चाहती थी. यह प्रेरणा उसे संतोषबेन जाडेजा के जीवन पर बनी फिल्म ‘गौड मदर’ से मिली थी. यह फिल्म अस्मिता ने कई बार देखी थी. इस फिल्म का अस्मिता गोहिल पर गहरा असर पड़ा था.

जिस धमाके के साथ अस्मिता गोहिल उर्फ डीकू उर्फ भूरी ने सूरत की जमीन पर कदम रखा था, उसे देख कर सूरत के अधिकांश लोगों को लेडी डौन गौड मदर संतोषबेन जाडेजा की याद ताजा हो गई थी.

सारा शहर उस के कारनामों से भयभीत हो गया था. उस का खौफ सूरत शहर के लोगों के बीच कुछ इस प्रकार घर कर गया था कि कोई भी उस के खिलाफ पुलिस के पास जाने और बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था. मजबूरन पुलिस को उस के वायरल हुए वीडियो को सबूत के तौर पर मान कर उस के खिलाफ काररवाई करनी पड़ी थी.

13 मार्च, 2017 के इस वीडियो में जहां सूरत के वराछा इलाके में लोग होली का त्यौहार मनाने में मस्त थे तो वहीं अस्मिता गोहिल अपने कारनामों में व्यस्त थी. वह अपने प्रेमी संजय हिम्मतभाई वाघेला और गोपाल विट्ठल जाधव के साथ हाथों में नंगी तलवार और चाकू लिए उन के बीच पहुंची थी. फिर उस ने भागीरथी मार्केट की गलियों में वहां के लोगों को डरातेधमकाते हुए वहां भय का माहौल बना दिया था. उस के डर से लोग सहम गए थे.

इस वीडियो के वायरल होते ही सूरत के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के कान खड़े हो गए थे. वे पता लगाने लगे कि ये कौन सी डौन थी, जिस के आतंक से वहां के लोग इतने सहमे हुए थे. मामले की गंभीरता को देखते हुए सीनियर पुलिस अधिकारियों ने वराछा के थानाप्रभारी मयूर पटेल से उस वीडियो की सच्चाई जानने के निर्देश दिए. सीनियर अधिकारियों के निर्देश पर थानाप्रभारी मामले की जांच में जुट गए.

जांच में थानाप्रभारी को पता लग गया कि वह लेडी और कोई नहीं, बल्कि अस्मिता गोहिल उर्फ डीकू उर्फ भूरी है. पुलिस को यह जानकारी मिल गई कि इस लेडी डौन का प्रेमी संजय हिम्मतभाई वाघेला उर्फ भूरा तो सूरत शहर का कुख्यात अपराधी है.

वह शहर के एक ट्रिपल मर्डर केस में वांछित है, जिस की काफी दिनों से पुलिस को तलाश है. इस के पहले कि वह पुलिस के हत्थे चढ़ता अस्मिता गोहिल उर्फ भूरी ने उस के साथ मिल कर वराछा की भागीरथी सोसायटी और मार्केट में कुछ इस तरह से अपना आतंक फैलाया कि मजबूरन लोगों की सुरक्षा के लिए पुलिस को वहां अपनी एक चौकी स्थापित करनी पड़ी थी.

उच्चाधिकारियों के आदेश पर थानाप्रभारी के नेतृत्व में गठित पुलिस टीम ने अस्मिता और उस के प्रेमी की तलाश शुरू कर दी. उन के कई ठिकानों पर छापा मारने के बाद आखिरकार पुलिस को कामयाबी मिली और अस्मिता गोहिल पुलिस के हत्थे चढ़ गई. उस से पूछताछ करने के बाद उसे जेल भेज दिया गया. पुलिस ने अस्मिता के खिलाफ अदालत में आरोपपत्र दाखिल किया. लेकिन सबूतों के अभाव में उसे जमानत मिल गई थी. यानी 3 महीने बाद वह जेल से बाहर आ गई थी.

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3 महीने जेल में रहने के बाद भी अस्मिता उर्फ भूरी में कोई बदलाव नहीं आया था, बल्कि जेल जाने के बाद वह पूरी तरह निडर हो गई और पहले से ज्यादा आपराधिक मामलों में शामिल हो गई थी. वह संजय भूरा के जिगरी दोस्त राहुल उर्फ गोदो बामनिया और उस के दोस्तों को साथ ले कर सरेआम लोगों से रंगदारी वसूलती. इतना ही नहीं, वह लोगों के पैसे भी छीनने लगी.

20 वर्षीय सुंदरी अस्मिता गोहिल उर्फ डीकू उर्फ भूरी गुजरात के सौराष्ट्र काठियावाड़ के उसी इलाके की रहने वाली थी, जिस इलाके की लेडी डौन संतोषबेन जाडेजा थी. काले साम्राज्य की दुनिया में वह भी संतोषबेन जाडेजा की तरह अपना दबदबा बना कर सूरत शहर के लोगों पर गौड मदर बन कर राज कायम करना चाहती थी.

गरीब परिवार की थी लेडी डौन अस्मिता

अस्मिता गोहिल काठियावाड़ के जिला सोमनाथ तालुका ऊना के गांगडा गांव के रहने वाले एक गरीब किसान जीमुआभाई गोहिल की बेटी थी. गांव में उन की थोड़ी सी जमीन थी, जिस पर वह काश्तकारी करते थे. परिवार बड़ा होने के नाते उन्हें बाहर भी मेहनतमजदूरी करनी पड़ती थी. तब कहीं जा कर उन के परिवार की गाड़ी आगे सरकती थी.

उन के परिवार में पत्नी जसुबेन के अलावा एक बेटा और 6 बेटियां थीं. बेटा सब से छोटा था. अस्मिता गोहिल बड़ी बेटी होने के नाते पूरे परिवार की प्यारी और दुलारी थी. पिता ने तो अस्मिता को बेटे का स्थान दिया था.

चंचल स्वभाव की अस्मिता गोहिल का बचपन गरीबी में बीता था. यही कारण था कि वह अपनी उम्र के साथ तेजतर्रार और उग्र स्वभाव की महत्त्वाकांक्षी युवती बन गई थी. जिन चीजों का उस के पास अभाव था, वह उन्हें पाने के सपने देखा करती थी. उन सपनों को पूरा करने का आइडिया उसे लेडी डौन संतोष बेन जाडेजा की जिंदगी पर बनी फिल्म ‘गौड मदर’ देख कर मिल चुका था.

अस्मिता के पिता गरीब जरूर थे, लेकिन गांव में उन का मानसम्मान था. अन्य बच्चों की तरह वह अस्मिता को भी पढ़ाना चाहते थे लेकिन अस्मिता का मन स्कूल की पढ़ाई में कम और ग्लैमरस व आपराधिक गतिविधियों की तरफ अधिक रहता था.

किसी भी बात को ले कर वह अकसर अपने सहपाठियों से उलझ जाया करती थी. वह लड़कियों के बजाय लड़कों के साथ दिखना पसंद करती थी. यही वजह थी कि उस के दोस्तों में लड़कों की संख्या अधिक थी. उस की यह आदत घर वालों को पसंद नहीं थी.

सन 2015 के दौरान वह अपने ही गांव के एक बिगड़े हुए लड़के के साथ घर से गायब हो गई. थाने में उस के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई गई. लेकिन उस का कोई पता नहीं चला था. करीब एक साल तक गायब रहने के बाद एक दिन अस्मिता अपने प्रेमी के साथ खुद पुलिस थाने में हाजिर हो गई. दोनों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने प्रेमी को जेल भेज दिया और अस्मिता को उस के मांबाप के हवाले कर दिया था.

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अस्मिता गोहिल के घर वालों ने उस के सारे गुनाह माफ कर के उसे अपने गले लगा लिया था, लेकिन एक साल तक बिगड़े हुए रईसजादे के साथ रहने के बाद अस्मिता को अपने घर का माहौल रास नहीं आया तो वह एक रात चुपके से घर से भाग कर सूरत में रहने वाले अपने मामा और मामी के पास चली गई थी. यहीं पर उस की मुलाकात भावनगर के रहने वाले कुख्यात अपराधी संजय हिम्मतभाई वाघेला उर्फ भूरा से हुई थी, जिस पर लूटपाट, मारपीट और मर्डर आदि के दरजनों मामले चल रहे थे.

संजय हिम्मतभाई वाघेला उर्फ भूरा और अस्मिता गोहिल की दोस्ती का पता जब उस के मामामामी को चला तो उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उन्होंने अस्मिता को समझानेबुझाने की काफी कोशिश की, लेकिन उन की कोई भी बात अस्मिता गोहिल के गले से नीचे नहीं उतरी थी.

प्रेमी के साथ रखा अपराध में कदम

मामामामी की बातों पर ध्यान देने के बजाय अस्मिता उन का घर छोड़ कर संजय उर्फ भूरा के साथ रहने के लिए चली गई और उस के साथ लिवइन में रहने लगी. संजय के साथ रहने और उस के साथ आपराधिक गतिविधियों में शामिल होने के कारण लोग अस्मिता को भूरी डौन के नाम से पुकारने लगे थे.

ब्यूटी डौन बनी अस्मिता गोहिल उर्फ डीकू उर्फ भूरी का इलाके में खासा नाम हो गया था. जब उस के पास पैसा आया तो वह अच्छे रहनसहन के साथ अपने शौक पूरे करने में लग गई. क्रूजर मोटरसाइकिल, लग्जरी कार उस की पसंद बन गई थी, जिस के साथ फोटो खिंचवा कर वह फेसबुक और इंस्टाग्राम पर डालती रहती थी.

लोग उस की सुंदरता और अदाओं पर जम कर कमेंट करते थे. लेकिन जब वह उस का अपराधों से भरा प्रोफाइल देखते तो उन का सिर चकरा जाता था. अस्मिता गोहिल उर्फ डीकू उर्फ भूरी अपने इन्हीं वाहनों पर सवार हो कर के लोगों से रंगदारी वसूलती थी.

आतंक का पर्याय बन चुकी लेडी डौन अस्मिता गोहिल के अपराधों की जानकारी तो समयसमय पर पुलिस को मिलती रहती थी, लेकिन किसी शिकायतकर्ता के सामने न आने के कारण पुलिस बेबस रहती थी. वह चाह कर भी उस के खिलाफ काररवाई नहीं कर पाती थी.

मगर पुलिस भी हाथों पर हाथ रख कर नहीं बैठी थी. वह उस की हर हरकत पर नजर रख रही थी और इस में उसे सफलता भी मिली. पुलिस के हाथ अस्मिता गोहिल का एक और वीडियो लग गया, जिस से अस्मिता गोहिल और उस के साथियों के कारनामों का परदा हट गया था.

21 मई, 2018 को वायरल हुए इस वीडियो में अस्मिता गोहिल और उस के साथियों का चेहरा सामने आ गया था. उस दिन सुबह के साढ़े 6 बजे ही भागीरथी सोसायटी की मार्केट के एक एंब्रायडरी कारखाने में तोड़फोड़ करते हुए व उस के मालिक को डरातेधमकाते हुए अस्मिता उर्फ भूरी और उस के साथी कैमरे में कैद हो गए.

इस के एक घंटे बाद ही वह अपने एक और साथी राहुल उर्फ गोदो बामनिया के साथ अपनी क्रूजर मोटरसाइकिल पर सवार हो कर वर्षा सोसायटी की एक पान की दुकान पर पहुंची. दुकानदार को डरा कर उस ने उस के गल्ले का सारा पैसा ले लिया. इतना ही नहीं, उस ने उसे भद्दी गालियां भी दीं.

आतंक बढ़ने पर कस गया शिकंजा

वह अपने हाथों में जिस समय नंगी तलवार ले कर पान की दुकान पर आई थी, उसी समय दुकान पर इक्केदुक्के ग्राहक चुपचाप वहां से खिसक गए. पान वाले के साथ ही साथ वहां से गुजरने वाला एक दूध वाला भी उस का शिकार बन गया था. राहुल और भूरी ने उसे रोक कर उस के पास से सारे पैसे छीन लिए थे.

एक ही दिन में अस्मिता गोहिल के अपराधों के 2 वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होते ही पुलिस प्रशासन में हड़कंप मच गया था. सूरत पुलिस कमिश्नर सतीश शर्मा ने वराछा और शहर के अन्य थानों के थानाप्रभारियों को आड़े हाथों लिया और उन्हें सख्त काररवाई के आदेश दिए थे. पुलिस कमिश्नर के सख्त आदेश पर पुलिस और क्राइम ब्रांच ने अस्मिता गोहिल उर्फ भूरी को घटना के 5 दिनों बाद ही उस के साथियों के साथ गिरफ्तार कर लिया.

अस्मिता गोहिल उर्फ डीकू उर्फ भूरी के खिलाफ सूरत शहर के विभिन्न थानों में एक दरजन से अधिक मामले दर्ज हैं. लेडी डौन से विस्तृत पूछताछ कर पुलिस ने इस बार उस पान वाले और एंब्रायडरी कारखाने के मालिक को भी ढूंढ कर उन की शिकायत ली फिर सीसीटीवी के फुटेज भी जब्त कर लिए.

इस के आधार पर भूरी के खिलाफ मामला दर्ज कर उस के साथी राहुल उर्फ गोदो बामनिया, भावेशभाई, रणछोड़ देसाई, संजय मनुभाई को 26 मई, 2018 को कोर्ट में पेश कर लाजपोर जेल भेज दिया.

लेडी डौन अस्मिता गोहिल उर्फ भूरी और उस के साथियों के जेल जाने के बाद सूरत शहर के कारखाना मालिकों और दुकानदारों के साथ ही साथ आम जनता ने भी राहत की सांस ली. लेकिन उस के डर से वे पूरी तरह मुक्त नहीं हुए हैं.

उन का मानना है कि आज नहीं तो कल वह जेल से बाहर आएगी, मगर पुलिस का यह दावा है कि इस बार लेडी डौन अस्मिता गोहिल उर्फ भूरी के जेल से बाहर आने की संभावना न के बराबर है. क्योंकि इस बार उन के पास अस्मिता गोहिल के खिलाफ पुख्ता सबूत हैं. पुलिस के दावों में कितना दम है, यह तो वक्त ही बताएगा.

कथा लिखे जाने तक अस्मिता गोहिल अपने साथियों के साथ जेल की सलाखों में बंद अपनी रिहाई के दिन गिन रही थी.

राजनीति का DNA : चालबाज रुपमती की कहानी – भाग 1

रूपमती चीखनेचिल्लाने लगी. प्रेमी के ऊपर से हट कर वह अपने कपड़े ले कर अवध की तरफ ऐसे दौड़ी मानो अवध की गैरहाजिरी में उस की पत्नी के साथ जबरदस्ती हो रही थी.

प्रेमी जान बचाने के लिए भागा और अवध अपनी पत्नी के साथ रेप करने वाले को मारने के लिए दौड़ा. जैसा रूपमती साबित करना चाहती थी, अवध को वैसा ही लगा.

जब रूपमती ने देखा कि अवध कुल्हाड़ी उठा कर प्रेमी की तरफ दौड़ने को हुआ है, तो उस के अंदर की प्रेमिका ने प्रेमी को बचाने की सोची.

रूपमती ने अवध को रोकते हुए कहा, ‘‘मत जाओ उस के पीछे. आप की जान को खतरा हो सकता है. उस के पास तमंचा है. आप को कुछ हो गया, तो मेरा क्या होगा?’’

तमंचे का नाम सुन कर अवध रुक गया. वैसे भी वह गुस्से में दौड़ा था. कदकाठी में सामने वाला उस से दोगुना ताकतवर था और उस के पास तमंचा भी था.

रूपमती ने जल्दीजल्दी कपड़े पहने. खुद को उस ने संभाला, फिर अवध से लिपट कर कहने लगी, ‘‘अच्छा हुआ कि आप आ गए. आज अगर आप न आते, तो मैं किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहती.’’

अवध अभी भी गुस्से में था. रूपमती उस के सीने से चिपटी हुई यह जानना चाहती थी कि वह क्या सोच रहा है? कहीं उसे उस पर शक तो नहीं हुआ है?

अवध ने कहा, ‘‘लेकिन, तुम तो उस के ऊपर थीं.’’

रूपमती घबरा गई. उसे इसी बात का डर था. लेकिन औरतें तो फरिश्तों को भी बेवकूफ बना सकती हैं, फिर उसे तो एक मर्द को, वह भी अपने पति को बेवकूफ बनाना था.

सब से पहले रूपमती ने रोना शुरू किया. औरत वही जो बातबात पर आंसू बहा सके, सिसकसिसक कर रो सके. उस के रोने से जो पिघल सके, उसी को पति कहते हैं.

अवध पिघला भी. उस ने कहा, ‘‘देखो, मैं ठीक समय पर आ गया और वह भाग गया. तुम्हारी इज्जत बच गई. अब रोने की क्या बात है?’’

‘‘आप मुझ पर शक तो नहीं कर रहे हैं?’’ रूपमती ने रोते हुए पूछा.

‘‘नहीं, मैं सिर्फ पूछ रहा हूं,’’ अवध ने उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा.

रूपमती समझ गई कि सिर पर हाथ फेरने का मतलब है अवध को उस पर यकीन है, लेकिन जो सीन अवध ने अपनी आंखों से देखा है, उसे झुठलाना है.

पहले रूपमती ने सोचा कि कहे, ‘उस आदमी ने मुझे दबोच कर अपनी ताकत से जबरदस्ती करते हुए ऊपर किया, फिर वह मुझे नीचे करने वाला ही था कि आप आ गए.’

लेकिन जल्दी ही रूपमती ने सोचा कि अगर अवध ने ज्यादा पूछताछ की, तो वह कब तक अपने झूठ में पैबंद लगाती रहेगी. कब तक झूठ को झूठ से सिलती रहेगी. लिहाजा, उस ने रोतेसिसकते एक लंबी कहानी सुनानी शुरू की, ‘‘आज से 6 महीने पहले जब आप शहर में फसल बेचने गए थे, तब मैं कुएं से पानी लेने गई थी. दिन ढल चुका था.

‘‘मैं ने सोचा कि अंधेरे में अकेले जाना ठीक नहीं होगा, लेकिन तभी दरवाजा खुला होने से न जाने कैसे एक सूअर अंदर आ गया. मैं ने उसे भगाया और घर साफ करने के लिए घड़े का पानी डाल दिया. अब घर में एक बूंद पानी नहीं था.

‘‘मैं ने सोचा कि रात में पीने के लिए पानी की जरूरत पड़ सकती है. क्यों न एक घड़ा पानी ले आऊं.

‘‘मैं पानी लेने पनघट पहुंची. वहां पर उस समय कोई नहीं था. तभी वह आ धमका. उस ने बताया कि मेरा नाम ठाकुर सूरजभान है और मैं गांव के सरपंच का बेटा हूं.

‘‘वह मेरे साथ जबरदस्ती करने लगा. उस ने मेरी इच्छा के खिलाफ मेरे कपड़े उतार डाले. मैं दौड़ते हुए कुएं के पास पहुंच गई.

‘‘मैं ने रो कर कहा कि अगर मेरे साथ जबरदस्ती की, तो मैं कुएं में कूद कर अपनी जान दे दूंगी. उस ने डर कर कहा कि अरे, तुम तो पतिव्रता औरत हो. आज के जमाने में तुम जैसी सती औरतें भी हैं, यह तो मैं ने सोचा ही नहीं था.

‘‘लेकिन तभी उस ने कैमरा निकाल कर मेरे फोटो खींच लिए और माफी मांग कर चला गया.

‘‘मैं डरी हुई थी. जान और इज्जत तो बच गई, पर फोटो के बारे में याद ही नहीं रहा.

‘‘दूसरे दिन मैं हिम्मत कर के उस के घर पहुंची और कहा कि तुम ने मेरे जो फोटो खींचे हैं, वे वापस कर दो, नहीं तो मैं बड़े ठाकुर और गांव वालों को बता दूंगी. थाने में रिपोर्ट लिखाऊंगी.

‘‘उस ने डरते हुए कहा कि मैं फोटो तुम्हें दे दूंगा, पर अभी तुम जाओ. वैसे भी चीखनेचिल्लाने से तुम्हारी ही बदनामी होगी और सब बिना कपड़ों की तुम्हारे फोटो देखेंगे, तो अच्छा नहीं लगेगा. मैं तुम्हारे पति की गैरहाजिरी में तुम्हें फोटो दे जाऊंगा.

‘‘आप 2 दिन की कह कर गए थे. मैं ने ही उसे खबर पहुंचाई कि मेरे पति घर पर नहीं हैं. फोटो ला कर दो.

‘‘सूरजभान फोटो ले कर आया, लेकिन मुझे अकेला देख उस के अंदर का शैतान जाग उठा. उस ने फिर मेरे कपड़े उतारने की कोशिश की और मुझे नीचे पटका.

‘‘मैं ने पूरी ताकत लगाई. खुद को छुड़ाने के चक्कर में मैं ने उसे धक्का दिया. वह नीचे हुआ और मैं उस के ऊपर आ गई. अभी मैं उठ कर भागने ही वाली थी कि आप आ गए…’’

रूपमती ने अवध की तरफ रोते हुए देखा. उसे लगा कि उस के ऊपर उठने वाले सवाल का जवाब अवध को मिल गया था और उस का निशाना बिलकुल सही था, क्योंकि अवध उस के सिर पर प्यार से दिलासा भरा हाथ फिरा रहा था.

अवध ने कहा, ‘‘मुझे इस बात की खुशी है कि तुम ने पनघट पर अकेले बिना कपड़ों के हो कर भी जान पर खेल कर अपनी इज्जत बचाई और आज मैं आ गया. तुम्हारा दामन दागदार नहीं हुआ.’’

रूपमती ने बनावटी गुस्से से कहा, ‘‘आप क्या सोचते हैं कि मैं उसे कामयाब होने देती? मैं ने नीचे तो गिरा ही दिया था बदमाश को. उस के बाद उठ कर कुल्हाड़ी से उस की गरदन काट देती. और अगर कहीं वह कामयाब हो जाता, तो तुम्हारी रूपमती खुदकुशी कर लेती.’’

‘‘तुम ने मुझे बताया नहीं. अकेले इतना सबकुछ सहती रही…’’ अवध ने रूपमती के माथे को चूमते हुए कहा, ‘‘मैं बड़े ठाकुर, गांव वालों और पुलिस से बात करूंगा. तुम्हें डरने की जरा भी जरूरत नहीं है. जब तुम इतना सब कर सकती हो, तो मैं भी पति होने के नाते सूरजभान को सजा दिला सकता हूं. वे फोटो लाना मेरा काम है,’’ अवध ने कहा.

‘‘नहीं, ऐसा मत करना. मेरी बदनामी होगी. मैं जी नहीं पाऊंगी. आप के कुछ करने से पहले वह मेरे फोटो गांव वालों को दिखा कर मुझे बदनाम कर देगा.

‘‘पुलिस के पास जाने से क्या होगा? वह लेदे कर छूट जाएगा. इस से अच्छा तो यह है कि आप मुझे जहर ला कर दे दें. मैं मर जाऊं, फिर आप जो चाहे करें,’’ रूपमती रोतेरोते अवध के पैरों पर गिर पड़ी.

‘‘तो क्या मैं हाथ पर हाथ धरे बैठा रहूं? कुछ न करूं?’’ अवध ने कहा, ‘‘तुम्हारी इज्जत, तुम्हारे फोटो लेने वाले को मैं यों ही छोड़ दूं?’’

‘‘मैं ने ऐसा कब कहा? लेकिन हमें चालाकी से काम लेना होगा. गुस्से में बात बिगड़ सकती है,’’ रूपमती ने अवध की आंखों में झांक कर कहा.

‘‘तो तुम्हीं कहो कि क्या किया जाए?’’ अवध ने हथियार डालने वाले अंदाज में पूछा.

‘‘आप सिर्फ अपनी रूपमती पर भरोसा बनाए रखिए. मुझ से उतना ही प्यार कीजिए, जितना करते आए हैं,’’ कह कर रूपमती अवध से लिपट गई. अवध ने भी उसे अपने सीने से लगा लिया.

अगले दिन गांव के बाहर सुनसान हरेभरे खेत में सूरजभान और रूपमती एकदूसरे से लिपटे हुए थे.

सूरजभान ने कहा ‘‘तुम तो पूरी गिरगिट निकलीं.’’

‘‘ऐसी हालत में और क्या करती? वह 2 दिन की कह कर गया था. मुझे क्या पता था कि वह अचानक आ जाएगा. तुम ने अंदर से कुंडी बंद करने का मौका भी नहीं दिया था…’’ रूपमती ने सूरजभान के बालों को सहलाते हुए कहा, ‘‘मुझे कहानी बनानी पड़ी. तुम भागते हुए मेरे कुछ फोटो खींचो. कहानी के हिसाब से मुझे तुम से अपने वे फोटो हासिल करने हैं. तुम से फोटो ले कर मैं उसे दिखा कर फोटो फाड़ दूंगी, तभी मेरी कहानी पूरी होगी.’’

सूरजभान ने कैमरे से उस के कुछ फोटो लेते हुए कहा, ‘‘लेकिन आज नहीं मिल पाएंगे. 1-2 दिन लगेंगे.’’

‘‘ठीक है, लेकिन सावधान रहना. फोटो मिलने के बाद वह मेरी इज्जत लूटने वाले के खिलाफ कुछ भी कर सकता है,’’ रूपमती ने हिदायत दी.

‘‘तुम चिंता मत करो. मैं निबट लूंगा,’’ सूरजभान ने कहा.

कुकर्मी बाप की बेटियां

महाराष्ट्र के सतारा जिले की रहने वाली योगिता की शादी करीब 5 साल पहले संजय देवरे से हुई थी. पतिपत्नी दोनों पढ़ेलिखे थे और कमाते भी थे. संजय एक अच्छी कंपनी में काम करता था, तो बीकौम की पढ़ाई कर चुकी योगिता एक एकाउंटेंट के यहां नौकरी करती थी.

जब दोनों कमा रहे थे तो उन की गृहस्थी हंसीखुशी से चलनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं था. भले ही दोनों पढ़ेलिखे थे लेकिन उन के विचारों में काफी अंतर था. दोनों छोटीछोटी बात पर बहस करने लगते थे, जिस से उन के बीच विवाद हो जाता था.
जिस से संजय योगिता की पिटाई कर देता था. यह बात योगिता को बहुत बुरी लगती थी. योगिता ने पति के साथ गृहस्थी को चलाने के तमाम सपने देखे थे. लेकिन शादी के कुछ ही दिनों बाद उसे पति से प्यार के बजाए पिटाई मिल रही थी. जिस से उस के सारे सपने बिखरते दिख रहे थे. लिहाजा उस ने तय कर लिया कि वह ऐेसे पति के साथ नहीं रहेगी.

इसी दौरान योगिता ने एकाउंटेंट के यहां से नौकरी छोड़ कर एक बिल्डर के यहां नौकरी करनी शुरू कर दी. वहीं पर उस की मुलाकात सुशील मिश्रा नाम के युवक से हुई. सुशील मूल रूप से उत्तर प्रदेश का रहने वाला था. वह काम की तलाश में मुंबई आया था और अपनी बीवी बच्चों के साथ पालघर जिले के नालासोपारा में रहता था.

जिस बिल्डर के यहां योगिता नौकरी करती थी, सुशील उस के यहां बिल्डिंग बनाने का ठेका लेता था. इस वजह से सुशील का योगिता से अकसर मिलनाजुलना होता रहता था. बातूनी स्वभाव के सुशील ने जल्दी ही योगिता से दोस्ती कर ली. इस के बाद योगिता उस से अपने सुखदुख की बातें शेयर करने लगी.

सुशील अय्याश प्रवृत्ति का था. पार्वती नाम की एक महिला के साथ भी उस के अवैध संबंध थे. पार्वती बिल्डरों के यहां बेगार करती थी.

खिलाड़ी था सुशील

शादीशुदा पार्वती शराबी पति से त्रस्त हो कर पति और बच्ची को गांव में छोड़ कर अकेली ही नालासोपारा में रहने लगी थी. पार्वती अकेली ही रहती थी. सुशील ने उस के अकेलेपन का फायदा उठाया. पार्वती से नजदीकियां बन जाने पर जब उस का मन होता वह पार्वती के कमरे पर मौजमस्ती करने चला जाता था. कभीकभी वह उसे खर्चे आदि के पैसे भी दे देता था.

सुशील का मन पार्वती से भर चुका था, इसलिए अब वह योगिता से नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश में जुट गया. वह योगिता से इस तरह बात करता कि योगिता को भी उस में अपनापन झलकने लगा.

एक दिन योगिता ने उसे पति से दूर रहने की वजह बता दी. सुशील ने उस से सहानुभूति जताते हुए कह दिया कि वह खुद को अकेला महसूस न करे. कभी भी किसी भी चीज की जरूरत हो तो उसे बता दे. जब भी वह उसे याद करेगी, हाजिर हो जाएगा.

योगिता को सुशील पसंद आ गया. जिस तरह के सुख व सहानुभूति वह पति से चाहती थी, वह सारे सुशील दे सकता था. लिहाजा एक दिन योगिता ने सुशील के सामने अपने प्यार का इजहार कर दिया. सुशील की खुशी का ठिकाना नहीं रहा.
मौका देख सुशील ने उस से कहा, ‘‘योगिता मैं भी तुम्हें दिलोजान से चाहता हूं, लेकिन मेरे साथ समस्या यह है कि मैं शादीशुदा और 2 बेटियों का पिता हूं और उन्हें छोड़ नहीं सकता.’’

यह सुन कर योगिता कुछ पल चुप रहने के बाद बोली, ‘‘कोई बात नहीं, मुझे मंजूर है. यदि आप मेरे साथ शादी नहीं करोगे तब भी मैं बिना शादी के आप के साथ रह लूंगी. आप अपनी पत्नी को गांव छोड़ देना, यहां पर मैं दोनों बेटियों को अच्छे से संभाल लूंगी.’’

योगिता के इस प्रस्ताव से सुशील मन ही मन बहुत खुश हुआ. वह योगिता के प्यार में इतना डूब चुका था कि उस ने पार्वती के पास जाना बंद कर दिया.
पार्वती इस बात को समझ गई थी कि योगिता ने उस के प्रेमी सुशील को उस से छीन लिया है, इसलिए वह योगिता से नफरत करने लगी.

दूसरी ओर सुशील पत्नी को गांव भेजने का उपाय खोजने लगा. एक दिन उस ने पत्नी को विश्वास में लेते हुए कहा, ‘‘गांव में मातापिता की तबीयत खराब है. ऐसा करो, तुम उन की देखभाल के लिए गांव चली जाओ. यहां बच्चों को मैं संभाल लूंगा, वैसे भी हमारी दोनों बेटियां अब बड़ी हो चुकी हैं.’’

पत्नी ने सुशील की बात मान ली तो वह उसे गांव छोड़ आया. इस के बाद योगिता अपने पति को कुछ बोल कर अपने कपड़े आदि ले कर सुशील के घर चली आई. उसे आया देख सुशील की लड़कियां समझ गईं कि इसी महिला के लिए उन के पिता ने मां को गांव का रास्ता दिखा दिया.

उस दिन सुशील को योगिता के साथ अपनी हसरत पूरी करनी थी, इसलिए शाम का खाना खाने के बाद वह योगिता को ले कर बेडरूम में घुस गया. रात में दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं. इस से दोनों ही खुश थे.

अब योगिता सुशील के घर पत्नी की तरह रहने लगी. उसे वहां रहते हुए लगभग एक साल हो चुका था. योगिता का व्यवहार भी बदल चुका था जो सुशील की बेटियों को पसंद नहीं था. जब सुशील घर पर नहीं होता तब दोनों लड़कियां योगिता से झगड़ा मोल लेती थीं. शाम को जब सुशील घर लौटता तब योगिता उस से उन दोनों की शिकायत करती थी.

योगिता की बात पर वह बच्चों को ही डांट देता था. पिता के इस रवैये से दोनों लड़कियां काफी दुखी थीं. दोनों यही सोचती रहती थीं कि इस औरत से कैसे छुटकारा पाया जाए. क्योंकि उसी की वजह से उन की मां उन से दूर चली गई थी.

उसी की वजह से उन्हें रोजाना पिता की डांट भी सुननी पड़ती थी. सुशील की बड़ी बेटी सुधा और छोटी बेटी सुजाता (काल्पनिक नाम) की एक दिन पार्वती माने से जानपहचान हो गई थी.

फिर दोनों बहनों ने पार्वती को अपना दुखड़ा सुनाया और उस से योगिता को घर से बाहर करने का उपाय पूछा.

योगिता का बुरा वक्त

पार्वती भी योगिता से चिढ़ी हुई थी. क्योंकि उस ने उस के प्रेमी सुशील को उस से छीन लिया था. इसलिए वह दोनों बहनों की मदद करने को तैयार हो गई. पार्वती ने कहा कि इस का एक ही उपाय है कि योगिता का पता ही साफ कर दिया जाए. एक दिन सुशील को शादी के किसी कार्यक्रम में शामिल होने के लिए गुजरात जाना पड़ा. अच्छा मौका देख पार्वती, सुजाता और सुधा के प्रेमी शैलेश काले ने मिल कर योगिता की हत्या की साजिश रच डाली.

वारदात के दिन पार्वती और शैलेश काले सुजाता के घर के नजदीक पहुंचे. इमारत के गेट पर मौजूद सुरक्षा गार्ड को शराब का लालच दे कर वे दोनों इमारत में प्रवेश कर गए. उस वक्त योगिता कमरे में बेड पर गहरी नींद में सोई थी. उसी का फायदा उठा कर उन्होंने नींद में ही योगिता का गला चुनरी से घोंट दिया.

उस की हत्या करने के बाद शैलेश काले ने सुजाता के प्रेमी नीरज मिश्रा को फोन कर के आटो रिक्शा लाने को कहा. उस ने नीरज को बताया कि योगिता की तबीयत खराब है, उसे डाक्टर के पास ले जाना है. फिर पार्वती ने योगिता की लाश एक कंबल में लपेट कर आटो रिक्शा में रख दी. उन्होंने जंगल में ले जा कर लाश फेंक दी.

पहली अप्रैल, 2019 को किसी शख्स की नजर लाश पर गई तो उस ने फोन पर यह जानकारी पुलिस को दे दी. सूचना पा कर थाना तुलिंज के सीनियर पीआई डानियल बेन, पीआई राकेश, हवलदार दीपक पाटिल, नायक नवनाथ वारडे को ले कर मौके पर पहुंच गए. लाश किसी महिला की थी और छिन्नभिन्न अवस्था में थी.

मौके की काररवाई के बाद पुलिस ने लाश की शिनाख्त करानी चाही लेकिन मृतका को कोई नहीं पहचान पाया. तब पुलिस ने लाश मोर्चरी में रखवा दी. हत्यारों तक पहुंचने से पहले महिला की लाश की शिनाख्त जरूरी थी, इसलिए पुलिस ने जिस जगह पर लाश मिली, उस जगह के सारे रास्तों के सीसीटीवी फुटेज की जांच की. इस में पुलिस को सफलता मिल गई.

फुटेज में एक आटोरिक्शा दिखाई दिया, जिस पर जाह्नवी लिखा था. पता लगाने पर जानकारी मिली कि आटोरिक्शा नीरज नाम के युवक का था. पुलिस ने नीरज को हिरासत में ले कर पूछताछ की तो उस ने सारी कहानी बता दी. इस के बाद पुलिस ने पार्वती माने को भी हिरासत में ले लिया.

पार्वती ने पुलिस के सामने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने पुलिस को योगिता की हत्या की सारी कहानी सुना दी. जिस के बाद पुलिस ने 3 अप्रैल, 2019 को शैलेश काले, सुधा और सुजाता को भी हिरासत में ले लिया. पुलिस ने सभी को कोर्ट में पेश कर न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया.

कथा लिखे जाने तक दोनों बहनों की जमानत हो चुकी थी. मामले की तफ्तीश पीआई राकेश के. जाधव कर रहे थे.

सौजन्य- मनोहर कहानियां, मई 2019

रहस्य में लिपटी विधायक की मौत: आखिर किसने की सत्यजीत बिस्वास की हत्या

37 वर्षीय विधायक सत्यजीत बिस्वास पश्चिम बंगाल के नदिया शहर स्थित कृष्णानगर मोहल्ले में अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में मांबहन के अलावा पत्नी रूपाली और 7 माह का बच्चा था. विधायक सत्यजीत बिस्वास काफी मिलनसार, मृदुभाषी और आकर्षक व्यक्तित्व के धनी थे, जिस की वजह से वह अपने विधानसभा क्षेत्र कृष्णागंज में काफी लोकप्रिय थे.

उन की लोकप्रियता का एक कारण यह भी था कि वह दिनरात क्षेत्र के विकास के लिए तत्पर रहते थे. क्षेत्र के लोगों की मदद के लिए वह हर समय तैयार रहते थे. इसी के चलते क्षेत्र के लोग उन से खुश रहते थे.

वह 9 फरवरी, 2019 की खुशनुमा शाम थी. तृणमूल कांग्रेस के विधायक सत्यजीत बिस्वास अपनी पत्नी रूपाली बिस्वास के साथ डाइनिंग रूम में बैठे बातचीत करते हुए चाय की चुस्की ले रहे थे. उस वक्त उन का चेहरा खुशी से चमक रहा था.

पति के चेहरे पर खुशी की ऐसी चमक रूपाली ने पहले कभी नहीं देखी थी. वह भी  पति की खुशी से खुश हो कर उन्हें निहार रही थीं. चाय की चुस्की के दौरान बीचबीच में विधायक की नजरें कलाई पर बंधी घड़ी पर चली जाती थीं.

‘‘क्या बात है जो आज इतने मुसकरा रहे हैं जनाब?’’ रूपाली ने पति को गुदगुदाने की कोशिश की.

‘‘अपने घर में बैठा हूं. खूबसूरत बीवी की छत्रछाया में. खुश होना मना है क्या?’’

यह सुन कर रूपाली शरमाने के बजाए संजीदा हो गईं. फिर पति को कुछ याद दिलाते हुए बोलीं, ‘‘नेताजी, यहां बैठेबैठे यूं ही बातें करते रहेंगे या जिस के लिए तैयार हो कर बैठे हैं, वहां भी जाएंगे.’’

‘‘अच्छा किया, तुम ने याद दिला दिया मैडम. ऐसा करो तुम भी तैयार हो जाओ. इसी बहाने तुम्हारा भी मूड बदल जाएगा और हमारा साथ भी बना रहेगा.’’ कलाई पर नजर डालते हुए सत्यजीत आगे बोले, ‘‘जल्दी करो, मेरे पास ज्यादा टाइम नहीं बचा है. तुम तैयार हो जाओ. तब तक मैं एक काल कर लेता हूं.’’

इस के बाद रूपाली तैयार होने के लिए चली गई. 10 मिनट में वह तैयार हो कर पति के पास आ गईं. उन्होंने 7 महीने के बेटे को भी तैयार कर दिया था.

दरअसल, विधायक सत्यजीत बिस्वास को फुलबारी इलाके में सरस्वती पूजन के उद्घाटन कार्यक्रम में शरीक होना था, जिस में उन्हें मुख्य अतिथि बनाया गया था. इन के अलावा उस कार्यक्रम में तृणमूल कांग्रेस नेता गौरीशंकर, लघु उद्योग मंत्री रत्ना घोष सहित शहर के तमाम सम्मानित लोगों को भी आमंत्रित किया गया था.

सत्यजीत बिस्वास का वहां पहुंचना जरूरी था. इस के बाद वह अपनी पत्नी और बेटे के साथ अपनी कार से कार्यक्रम स्थल फुलबारी पहुंच गए. कार्यक्रम स्थल उन के आवास से बमुश्किल 300 मीटर दूर स्थित था. वहां पहुंचने में उन्हें 3-4 मिनट का समय लगा होगा.

बुला रही थी मौत

बहुत बड़े मैदान में लगे पंडाल में कतार से कुर्सियां बिछी हुई थीं. आगे की कतार में बिछी स्पैशल कुर्सियों पर तमाम वीआईपी और नेता बैठे थे. आयोजकों की आंखें बारबार मुख्यद्वार पर जा कर टिक रही थीं. उन की परेशान आंखों से यही पता चल रहा था कि वह बड़ी बेसब्री से किसी के आने का इंतजार कर रहे थे.

जैसे ही विधायक सत्यजीत बिस्वास ने पंडाल में प्रवेश किया, वहां का माहौल खुशनुमा हो गया. सरस्वती पूजन के उद्घाटन की सारी तैयारियां पहले से कर ली गई थीं. दीप प्रज्जवलन का कार्यक्रम मंच पर ही होना था. विधायक बिस्वास के पहुंचते ही आयोजक उन्हें, उन की पत्नी रूपाली बिस्वास और कुछ अन्य गणमान्य लोगों को मंच पर ले गए और दीप प्रज्जवलन का कार्यक्रम संपन्न कराया गया.

दीप प्रज्जवलित करने के बाद विधायक सहित तमाम अतिथि कुर्सियों पर जा बैठे. उस के थोड़ी देर बाद अतिथियों के स्वागत में रंगारंग कार्यक्रम शुरू हुए. कार्यक्रम ने अतिथियों का मन मोह लिया. वे उस में तन्मयता से लीन हो कर लुत्फ उठा रहे थे. उस समय रात के करीब 9 बजे थे.

रंगारंग कार्यक्रम शुरू हुए अभी 5 मिनट भी नहीं हुए थे कि 2 नकाबपोश फुरती से पंडाल में पहुंचे. इस से पहले कि लोग कुछ समझ पाते, उन्होंने पीछे से विधायक सत्यजीत बिस्वास पर निशाना साध कर गोलियां चलानी शुरू कर दीं. गोलियां बरसा कर वे दोनों वहां से फरार हो गए. भागते हुए उन्होंने असलहे को वहीं पर फेंक दिया.

विधायक को 3 गोलियां लगी थीं. गोलियां लगते ही वह कुरसी पर गिर कर तड़पने लगे. गोली चलने से हाल में भगदड़ मच गई. जरा सी देर में वहां अफरातफरी का माहौल बन गया. तृणमूल कांग्रेस के नेता गौरीशंकर, रत्ना घोष सहित अन्य लोग आननफानन में गंभीर रूप से घायल विधायक बिस्वास को कार से जिला अस्पताल ले गए. लेकिन डाक्टरों ने उन्हें देखते ही मृत घोषित कर दिया.

टीएमसी विधायक सत्यजीत बिस्वास की हत्या की सूचना मिलते ही सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के खून में उबाल आ गया. कार्यकर्ता चारों ओर तोड़फोड़ करने लगे. तमाम लोग अपने लोकप्रिय युवा नेता को देखने अस्पताल भी पहुंचे.

उधर मौके पर मौजूद रही विधायक की पत्नी रूपाली बिस्वास को अभी भी अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि उन्होंने जो देखा, वो सच है. सत्यजीत बिस्वास उन को हमेशा के लिए अकेला छोड़ कर दुनिया से चले गए थे. रोरो कर उन का बुरा हाल हो गया था. किसी तरह रूपाली और उन के 7 माह के दुधमुंहे बेटे को घर पहुंचाया गया. विधायक बेटे की हत्या की खबर जैसे ही बूढ़ी मां को मिली, उन की तो आंखें पथरा गईं. घर में कोहराम मच गया था.

पार्टी महासचिव पार्थ चटर्जी ने विधायक बिस्वास की हत्या पर गहरा दुख प्रकट करते हुए कहा कि कातिल चाहे जितना भी कद्दावर क्यों हो, उसे बख्शा नहीं जाएगा.

विधायक सत्यजीत की हत्या की सूचना मिलते ही एसपी रूपेश कुमार, एएसपी अमनदीप, डीएसपी सुब्रत सरकार, हंसखली के थानाप्रभारी अनिंदय बसु, कृष्णानगर के थानाप्रभारी राजशेखर पौल सहित जिले के तमाम पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर पहुंच गए थे. पुलिस ने घटनास्थल को चारों ओर से घेर लिया था.

संदेह से भरे सवाल

एसपी रूपेश कुमार ने घटना के लिए हंसखली थाने के थानाप्रभारी अनिंदय बसु को जिम्मेदार मानते हुए उन्हें तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया. विधायक सत्यजीत बिस्वास की सुरक्षा में एक सुरक्षागार्ड लगाया गया था. घटना के समय वह मौके पर नहीं था.

जांचपड़ताल में पता चला कि सुरक्षागार्ड दिनेश कुमार उसी दिन छुट्टी ले कर घर चला गया था. यह बात किसी भी अधिकारी के गले नहीं उतर रही थी कि दिनेश आज ही छुट्टी पर घर क्यों गया? जिस तरह से विधायक बिस्वास की हत्या की गई थी, वह सुनियोजित थी. सुरक्षा गार्ड दिनेश कुमार को जिम्मेदार मानते हुए उसे भी निलंबित कर दिया.

बात यहीं पर खत्म नहीं हुई थी. टीएमसी कार्यकर्ता अपने लोकप्रिय विधायक की हत्या के लिए भाजपा के सांसद मुकुल राय को जिम्मेदार मान कर उन्हें हत्या का आरोपी बनाने के लिए पुलिस पर दबाव बना रहे थे. टीएमसी कार्यकर्ताओं के बीच से फैलता हुआ यह आरोप फिजाओं में घुल रहा था. लोग कह रहे थे कि सांसद मुकुल राय के इशारे पर शूटर अभिजीत पुंडरी, सूरज मंडल और कार्तिक मंडल ने विधायक की हत्या को अंजाम दिया.

विधायक की पत्नी रूपाली बिस्वास भी पति की हत्या के लिए सांसद और कद्दावर नेता मुकुल राय को जिम्मेदार मान रही थीं. रूपाली की तहरीर पर हंसखली थाने में 4 आरोपियों मुकुल राय, अभिजीत पुंडरी, सूरज मंडल और कार्तिक मंडल के खिलाफ हत्या का नामजद मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के आदेश पर मुकदमा दर्ज होने के कुछ देर बाद जांच थाना पुलिस से सीबीसीआईडी को सौंप दी गई. जांच की जिम्मेदारी मिलते ही सीबीसीआईडी की टीम भवानी भवन से मौके पर जा पहुंची और जांच शुरू कर दी.

सूरज मंडल और कार्तिक मंडल फुलबारी माठ के आसपास रहते थे. पुलिस जानती थी कि जांच में जितना विलंब होगा, उतना ही आरोपी पकड़ से दूर होते जाएंगे. बगैर वक्त गंवाए सीबीसीआईडी ने रात में ही सूरज मंडल के घर दबिश दी. सूरज मंडल गिरफ्तार कर लिया गया. सूरज की निशानदेही पर ही कार्तिक मंडल को उस के घर से गिरफ्तार किया गया. अभिजीत पुंडरी को नहीं पकड़ा जा सका. वह फरार हो गया था.

गिरफ्तार दोनों आरोपियों सूरज मंडल और कार्तिक मंडल को सीआईडी गिरफ्तार कर के पूछताछ के लिए हंसखली थाने ले आई उन से पूरी रात पूछताछ की गई. पर वे दोनों खुद को बेकसूर बताते रहे.

अगले दिन अधिकारियों की मौजूदगी में उन से फिर पूछताछ की गई. सूरज मंडल ने पुलिस के सामने घुटने टेक दिए. उस ने विधायक बिस्वास की हत्या में खुद और कार्तिक मंडल के शामिल होने की बात स्वीकार कर ली. पूछताछ के दौरान सूरज ने बताया कि उस ने अपने घर के पास एक कटार, बातचीत में इस्तेमाल किए गए सिमकार्ड और कुछ अन्य दस्तावेज छिपा रखे हैं.

अगली सुबह सीआईडी की टीम उसे ले कर उस के घर पहुंची. उस के घर के बाहर पुलिस टीम ने जमीन की खुदाई की तो धारदार हथियार और बड़ी संख्या में सिमकार्ड बरामद किए, जो बंगाल के अलावा दूसरे राज्यों के भी थे. इस के अलावा उस के घर की तलाशी लेने पर वहां से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तसवीरें भी मिलीं. इस बरामदगी के बाद नाराज स्थानीय लोगों ने सूरज मंडल के घर के पास एकत्र हो कर विरोध प्रदर्शन किए.

इस मामले में एक नया मोड़ तब आया जब सांसद मुकुल राय को पता चला कि विधायक की हत्या में उन्हें भी नामजद आरोपी बनाया गया है.

मुकुल राय की सफाई

अपना नाम घसीटे जाने को ले कर सांसद मुकुल राय ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि मैं कोलकाता में बैठा हूं और हत्या यहां से 120 किलोमीटर दूर नदिया जिले में विधायक के घर के पास हुई है. यह पूरी तरह से तृणमूल कांग्रेस की आपसी गुटबाजी और पश्चिम बंगाल सरकार की विफलता है.

उन्होंने कहा कि घटना की जांच सीबीआई से कराई जानी चाहिए, ताकि पूरे रहस्य से परदा उठ सके. आरोपों का खंडन करते हुए सांसद मुकुल राय ने कहा कि अभी ऐसी स्थिति है कि जो कुछ भी होगा, उस के लिए मेरा नाम घसीटा जाएगा. अगर दम है तो इस की निष्पक्ष एजेंसी से जांच करा लें. दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा.

प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष ने सांसद मुकुल राय का समर्थन करते हुए घटना की सीबीआई जांच की मांग कर दी. उन्होंने भी यही कहा कि विधायक बिस्वास की हत्या आपसी गुटबाजी में की गई है. यही नहीं, जब भी तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ कुछ होता है तो वह उस का आरोप भाजपा पर मढ़ देती है.

कई बार तृणमूल खुद ऐसे काम कर के राजनैतिक विरोधियों को फंसाने की पूरी कोशिश करती है. सालों से टीएमसी में आपसी गुटबाजी चरम पर है, यह बात किसी से छिपी नहीं है.

खैर, सांसद मुकुल राय गिरफ्तारी से बचने के लिए कोलकाता उच्च न्यायालय की शरण में पहुंच गए. 12 फरवरी, 2019 को उन्हें बड़ी राहत मिल गई. कोलकाता हाईकोर्ट ने उन्हें अग्रिम जमानत दे दी. हाईकोर्ट ने वरिष्ठ भाजपा नेता मुकुल राय की गिरफ्तारी पर 7 मार्च, 2019 तक रोक लगा दी. टीएमसी पार्टी ने आखिर सांसद मुकुल राय पर हत्या जैसा गंभीर आरोप क्यों लगाया, यह तो जांच का विषय है और पुलिस अपनी काररवाई कर रही है. आइए जानें कि यह मुकुल राय हैं कौन?

65 वर्षीय मुकुल राय मूलरूप से पश्चिम बंगाल के उत्तरी 24 परगना के कंचरपाड़ा के रहने वाले हैं. इन के परिवार में पत्नी कृष्णा राय के अलावा एक बेटा है. भाजपा के सांसद मुकुल राय का राजनीतिक सफर युवा कांग्रेस के लीडर के रूप में शुरू हुआ था. कांग्रेस के साथ लंबी पारी खेलने के दौरान पिछली मनमोहन सिंह की सरकार में वह केंद्रीय रेल मंत्री थे.

11 जुलाई, 2011 को असम में एक रेल दुर्घटना हुई थी. मुकुल राय रेलमंत्री होने के बावजूद मौके पर नहीं पहुंचे तो प्रधानमंत्री ने उन्हें पद से हटा दिया था और उन की जगह दिनेश त्रिवेदी को यह भार सौंप दिया था.

इस से पहले ममता बनर्जी के साथ मुकुल राय की खूब निभती थी. 1998 में जब ममता बनर्जी कांग्रेस से अलग हुईं तो उन्होंने एक नई पार्टी तृणमूल कांग्रेस का गठन किया. तब उन्होंने मुकुल राय को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया था.

पहली बार सन 2001 में मुकुल राय को टीएमसी से एमएलए का टिकट मिला. वह जगतदला विधानसभा से चुनाव लड़े लेकिन चुनाव हार गए थे. इस चुनाव में वह दूसरे स्थान पर रहे थे. इस के बाद वह निरंतर पार्टी की सेवा करते रहे.

बाद में तृणमूल कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा का सदस्य बना दिया. वह 28 मई, 2009 से 20 मार्च, 2012 तक राज्यसभा के सदस्य रहे. सन 2012 में मुकुल राय सांसद चुन लिए गए. फिर 3 अप्रैल, 2012 से 11 अक्तूबर, 2017 तक वह राज्यसभा के सदस्य रहे.

राजनीति के मंझे खिलाड़ी हैं मुकुल राय

सारदा स्कीम घोटाले में सन 2015 में मुकुल राय और ममता बनर्जी का नाम आया. घोटाले में नाम आने के बाद ममता बनर्जी और मुकुल राय के बीच दूरी बन गई. फिर वे कभी एक नहीं हो सके.

तृणमूल कांग्रेस से मुकुल राय का मन भंग होने लगा था. ममता बनर्जी को उन पर संदेह होने लगा था कि वह पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त हैं. फिर क्या था, ममता बनर्जी ने उन्हें पार्टी से 6 साल के लिए निकाल दिया.

पार्टी से निकाले जाने के बाद मुकुल राय ने 25 सितंबर, 2017 को पार्टी से इस्तीफा दे दिया. इस के बाद 11 अक्तूबर, 2017 को उन्होंने राज्यसभा की सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया और 3 नवंबर, 2017 को भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली. तब से वह भाजपा में हैं.

भाजपा का दामन थामने के बाद से मुकुल राय पश्चिम बंगाल में भाजपा की जमीन बनाने में लग गए. उन्होंने टीएमसी के कार्यकर्ताओं को तोड़ कर भाजपा में शामिल करना शुरू कर दिया. वैसे भी वह पुराने सियासी खिलाड़ी थे. उन्हें जोड़तोड़ की राजनीति अच्छी तरह आती थी. इस से टीएमसी पार्टी घबरा गई. इस बीच नदिया जिले में उन का कई बार दौरा हो चुका था.

विधायक सत्यजीत बिस्वास मतुआ समुदाय से आते थे, जिस का बंगाल में अच्छाखासा आधार है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनवरी 2019 के अंतिम सप्ताह में मतुआ समुदाय को लुभाने के लिए ठाकुरनगर आए थे.

ठाकुरनगर के साथसाथ यह संप्रदाय नदिया और उत्तरी 24 परगना जिले में करीब 30 लाख की संख्या में मौजूद है और राज्य भर की कम से कम 10 से अधिक लोकसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका में काम करता है. मतुआ समुदाय पर सत्यजीत बिस्वास की अच्छीखासी पकड़ बनी हुई थी. उन की हत्या का एक कारण यह भी माना जा रहा है.

बहरहाल, आरोपी सूरज मंडल और कार्तिक मंडल ने पूछताछ में पुलिस को बताया था कि विधायक की हत्या की योजना में निर्मल घोष और कालीपद मंडल भी शामिल थे. जांच में यह बात सच पाई गई.

इस के बाद पुलिस ने आरोपी निर्मल घोष और कालीपद मंडल को भी गिरफ्तार कर लिया. पुलिस को पूछताछ में निर्मल और कालीपद मंडल ने बताया कि हत्या की साजिश अभिजीत पुंडरी ने रची थी और गोली मैं ने और कालीपद ने मारी थी. यह हत्या उन्होंने क्यों की, इस बारे में वे कुछ नहीं बता सके.

आरोपी निर्मल घोष और कालीपद मंडल की निशानदेही पर पुलिस ने उसी दिन अभिजीत पुंडरी को पश्चिम मिदनापुर जिले के राधामोहनपुर इलाके से गिरफ्तार कर लिया. जामातलाशी में उस से एक पिस्टल बरामद की गई.

पूछताछ में अभिजीत पुंडरी ने हत्या की साजिश रचने की बात कबूल ली थी. उसे हत्या की सुपारी किस ने दी थी, यह बात उस ने पुलिस को नहीं बताई. विधायक की हत्या में सांसद मुकुल राय की क्या भूमिका थी, इस की जांच पुलिस कथा लिखने तक कर रही थी.

विधायक सत्यजीत बिस्वास की हत्या क्यों की गई, यह राज कहीं राज न रह जाए. आपसी गुटबाजी कह कर हत्या पर जो परदा डाला जा रहा है, क्या वह पर्याप्त वजह है? यह एक जलता हुआ सवाल है. इस सवाल का जवाब पुलिस को ही ढूंढना होगा.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अनचाहा पति : परेशानी बनी मौत का कारण

घटना मध्य प्रदेश के बैतूल जिले की है. 16 मार्च, 2019 को थाना शाहपुरा के गांव सारकुंड के डैम के पास लोगों की भीड़ जमा थी. लोग डैम के पानी पर तैर रही बोरी को देख रहे थे. उस बोरी को देख कर लोग अनुमान लगा रहे थे कि उस में किसी की लाश हो सकती है. जितने लोग उतनी बातें वहां होने लगीं.

सूचना मिलने पर गांव का चौकीदार गंगाराम भी वहां पहुंच गया. उस ने भी बोरी देखी तो उसे भी मामला संदिग्ध लगा. उस ने इस की सूचना थाना शाहपुरा के टीआई दीपक पाराशर को दे दी. आखिर बोरी में क्या है, जानने के लिए टीआई भी डैम के किनारे पहुंच गए.

उन्होंने 2 लोगों को डैम से वह बोरी निकलवाने के लिए भेजा. जब वे दोनों बोरी के पास पहुंचे तो पता चला बोरी वहां खड़े एक सूखे पेड़ के तने के निचले भाग से रस्सी से बंधी है. बोरी से तेज दुर्गंध आ रही थी. किसी तरह वे दोनों बोरी को डैम के बाहर ले आए. बोरी खुलवाई तो उस में एक जवान युवक की सड़ीगली लाश निकली. लाश की हालत देख कर लग रहा था कि युवक की हत्या एकडेढ़ हफ्ता पहले की गई होगी.

हत्यारों ने लाश की बोरी को पानी में खड़े सूखे पेड़ के तने के निचले हिस्से से इसलिए बांध दिया था, ताकि वह पानी से ऊपर न आए और पानी में सड़ कर ही नष्ट हो जाए लेकिन डैम के पानी का स्तर कम होने की वजह से बोरी दिख गई. इस से पुलिस को आभास हो गया कि हत्यारे बेहद शातिर हैं.

टीआई ने इस की सूचना उच्चाधिकारियों को दी तो एसपी कार्तिकेयन, एडिशनल एसपी गजेंद्र सिंह कंवर और डीएसपी महेंद्र मीणा भी मौके पर पहुंच गए.

एफएसएल टीम भी वहां आ चुकी थी. शव के क्षतिग्रस्त हो जाने की वजह से कोई भी उसे नहीं पहचान सका. बुरी तरह डैमेज हो चुके शव का पोस्टमार्टम जिला अस्पताल में होना संभव नहीं था, इसलिए टीआई दीपक पाराशर ने उसे पोस्टमार्टम के लिए मैडिको लीगल संस्थान भेज दिया.

टीआई पाराशर के लिए यह मामला किसी चुनौती से कम नहीं था. इस चुनौती से निपटने के लिए पहली जरूरत मृतक की शिनाख्त की थी. इसलिए टीआई ने बैतूल के अलावा आसपास के जिलों के थानों में भी युवक के शव की फोटो के साथ अज्ञात लाश मिलने की जानकारी भेज दी.

टीआई पाराशर को जल्द ही जिले के चिचौली थाने में दर्ज हुई एक गुमशुदगी के बारे में जानकारी मिली. पता चला कि चिचोली थाने में 21 फरवरी, 2019 को 22 वर्षीय राजकुमार की गुमशुदगी दर्ज हुई थी, जिस का अभी तक पता नहीं चल पाया था.

बरामद लाश और राजकुमार का हुलिया मिलताजुलता था. इसलिए टीआई ने राजकुमार के परिवार वालों को शाहपुरा बुला कर शव के कपड़े और कलाई में पहना कड़ा दिखाया तो उन्होंने बताया कि कपड़े और कड़ा तो राजकुमार के ही हैं.

इन चीजों से उस अज्ञात लाश की शिनाख्त राजकुमार के रूप में हो गई. इस के बाद टीआई ने मृतक के परिवार वालों से पूछताछ की तो उन्होंने राजकुमार के ससुराल वालों पर हत्या का शक जाहिर किया.

राजकुमार की ससुराल चिचौली थाने के आमढाना गांव में थी. यह गांव लाश मिलने के स्थान से ज्यादा दूर नहीं था. राजकुमार के परिवार वालों ने यह भी बताया कि दीवाली के बाद से राजकुमार की पत्नी लक्ष्मी उर्फ गौरा अपने मायके में रह रही थी.

राजकुमार पत्नी को लाने के लिए कई बार ससुराल जा चुका था. पर वह आने का नाम नहीं ले रही थी. इस बात को ले कर कई बार उस का ससुराल वालों से विवाद भी हुआ था. घर वालों ने बताया कि राजकुमार घर से नई साड़ी ले कर ससुराल से पत्नी को लाने की बात कह कर घर से निकला था, जिस के बाद वह घर वापस नहीं लौटा.

इस जानकारी से टीआई दीपक पाराशर का शक राजकुमार की ससुराल वालों पर जा कर ठहर गया. लेकिन उन्होंने जल्दबाजी में सीधे हाथ डालने के बजाए पहले अपने मुखबिरों से जानकारी जुटाई कि जिस रोज राजकुमार घर से ससुराल के लिए निकला था. उस रोज उस की ससुराल की गतिविधियों में क्या कुछ नया था.

जल्द ही पता चल गया कि उस रोज राजकुमार की ससुराल में रात भर संदिग्ध गतिविधियां चलती रही थीं. उस का साला रामरतन और कुछ अन्य लोग रात को बाइक ले कर कहीं गए भी थे. इस जानकारी के बाद थानाप्रभारी ने एक टीम भेज कर राजकुमार की पत्नी लक्ष्मी और उस के साले रामरतन को पूछताछ के लिए उठवा लिया.

दोनों से पूछताछ की गई तो वे इस बारे में कुछ भी जानने से इंकार करते रहे. उन्होंने बताया कि फरवरी के तीसरे हफ्ते में राजकुमार ससुराल आया ही नहीं था. जबकि आमढाना के कुछ लोग उस रोज राजकुमार के आमढाना में देखे जाने की बात बता चुके थे. इस से लग रहा था कि भाईबहन दोनों झूठ बोल रहे हैं.

इस के बाद टीआई ने दोनों से सख्ती बरती तो जल्द ही लक्ष्मी और रामरतन टूट ही गए. उन्होंने स्वीकार किया कि राजकुमार की आए दिन मारपीट से तंग आ कर उस की हत्या की गई थी. दोनों ने अपने उन साथियों के नाम भी बता दिए जो हत्या में साथ थे.

उन के द्वारा अन्य लोगों के नाम बताए जाने पर पाराशर ने त्वरित काररवाई करते हुए अन्य आरोपियों पप्पू निवासी शीतलझीरी और रिकेश निवासी नहरपुर, आमढाना को भी गिरफ्तार कर लिया.

साथ ही उन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त लाठी, डंडे और 2 मोटरसाइकिलें बरामद कर लीं. इन्हीं मोटरसाइकिलों पर राजकुमार की लाश को लाद कर डैम तक ले जाया गया था. इस के बाद विस्तार से की गई पूछताछ में पूरी कहानी इस प्रकार सामने आई—

चोली थाने के अंतर्गत गोधरा गांव का रहने वाला 22 वर्षीय राजकुमार मजदूरों की ठेकेदारी का काम करता था. वह इलाके के मजदूरों को ठेकेदार के तौर पर आसपास के इलाकों में मजदूरी के लिए ले जाता था. इस से राजकुमार की माली हालत दूसरे मजदूरों से अच्छी थी, साथ ही मजदूरों का मुखिया होने के कारण वह अपने आप को खास समझता था.

राजकुमार चढ़ती जवानी के जोश में था सो जिन युवतियों को वह मजदूरी करवाने ले जाता था. उन के यौवन पर पहला हक भी खुद का समझता था. मजदूर युवती की अपनी मजबूरी होती थी. राजकुमार इस का भरपूर फायदा उठाता था.

इसी बीच सन 2017 के अंत में राजकुमार अपने साथ जिन मजदूरों की टोली को ले कर बैतूल में चीनी के क्रेशर पर काम करने गया था, उस टोली में आमढाना इलाके में सब से खूबसूरत मानी जाने वाली 19 साल की लक्ष्मी उर्फ गौरा भी शामिल थी. लक्ष्मी राजकुमार की टोली में पहली बार मजदूरी करने के लिए शामिल हुई थी.

राजकुमार की नजरें ऐसी नई युवतियों की तलाश में रहती थीं, सो लक्ष्मी को देखते ही उस ने उस का शिकार करने की ठान ली. इतना ही नहीं जिस रोज वह टोली को ले कर बैतूल पहुंचा उसी रात उस ने जबरदस्ती कर लक्ष्मी के साथ संबंध बना भी लिए. राजकुमार कई मजदूर युवतियों को शिकार बना चुका था. लेकिन गौरा उर्फ लक्ष्मी की बात कुछ और थी. लक्ष्मी की खूबसूरती और मादकता में राजकुमार का ऐसा मन रमा कि वह उसे भुला नहीं सका.

इतना ही नहीं, जब टोली काम खत्म कर वापस आई तो राजकुमार ने लक्ष्मी को अपने घर पर जबरन साथ रख लिया. आदिवासी समाज में यूं तो अवैध संबंधों का चलन कम नहीं है, लेकिन इस तरह बिना शादी किए किसी को साथ रखने की सामाजिक मान्यता नहीं थी.

इसलिए जब परिवार और समाज का दबाव बढ़ा तो राजकुमार ने लक्ष्मी की मरजी के बिना उस से शादी कर ली. क्योंकि वह उसे किसी भी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहता था. गरीबी के कारण राजकुमार की वासना को चुपचाप सहन कर रही लक्ष्मी को भरोसा था कि कभी तो उस की देह से इस पापी का मन भरेगा और उसे छुटकारा मिल जाएगा.

जबरन शादी करने के बाद लक्ष्मी के दिल में राजकुमार के प्रति नफरत का सैलाब उमड़ने लगा. इधर कुछ दिनों बाद वही हुआ जो लक्ष्मी ने सोचा था. राजकुमार को आए दिन लड़कियां बदलने की आदत थी. वह फिर और दूसरी मजदूर युवती के संग रासलीला रचाने लगा.

राजकुमार लक्ष्मी को दूसरी मजदूर लड़कियों की तरह गुलाम समझता था. जब वह उस के साथ जबान लड़ाने लगी तो राजकुमार को यह सब बुरा लगने लगा. उस की बढ़ती हिम्मत देख राजकुमार ने सुबहशाम उस की पिटाई करनी शुरू कर दी. यह जानकारी जब लक्ष्मी के भाई रामरतन को हुई तो उस ने राजकुमार को समझाने की कोशिश की. लेकिन राजकुमार ने रामरतन की भी पिटाई कर दी.

साथ ही वह लक्ष्मी को भी रोजाना पीटने लगा. इस से तंग आ कर लक्ष्मी दीवाली के मौके पर राजकुमार को छोड़ कर अपने मायके चली गई.  लक्ष्मी के जाने के 2 दिन बाद राजकुमार ससुराल पहुंचा तो पता चला कि लक्ष्मी वहां से अपनी बहन के पास हरदा चली गई है. इस पर राजकुमार को शक हो गया कि लक्ष्मी के हरदा में अपने बहनोई से अवैध संबंध हैं.

उस ने हरदा जा कर लक्ष्मी और उस की बहन के पति दोनों के साथ मारपीट की और वापस घर आ गया. लक्ष्मी अब राजकुमार के साथ हरगिज नहीं रहना चाहती थी. इसलिए वह हरदा से चुपचाप होशंगाबाद चली गई. वहां रह कर वह मजदूरी करने लगी.

वहीं दूसरी ओर राजकुमार आए दिन आमढाना जा कर लक्ष्मी के लिए गालीगलौज करने लगा, वह उन्हें तंग कर के लक्ष्मी का पता मालूम करने की कोशिश करता. पता बताने के लिए कभी वह ससुर को पीट देता तो कभी साले को. और तो और कभी गुस्से में आ कर ससुराल के आंगन में घूम रहे मुरगामुरगी को पकड़ कर उन की गरदन मरोड़ देता. इस सब से ससुराल वाले उस से तंग आ चुके थे.

इसी बीच पास के एक गांव में लक्ष्मी के भाई रामरतन का रिश्ता पक्का हो गया. इस बात की खबर लगने पर राजकुमार समझ गया कि लक्ष्मी जहां भी होगी भाई की शादी में शामिल होने के लिए अपने घर जरूर आएगी.

इसलिए वह उस के मायके पर नजर रखने लगा. फरवरी में भाई की सगाई के मौके पर लक्ष्मी गांव आ गई. जिस दिन उस का पूरा घर सगाई करने पास के गांव गया, मौका देख कर राजकुमार अपनी ससुराल आमढाना पहुंच गया और लक्ष्मी को खींच कर अपने साथ लाने लगा.

लक्ष्मी के विरोध करने पर वह उस के संबंध बनाने की जिद पर अड़ गया. इस पर लक्ष्मी ने योजना से काम किया. उस ने राजकुमार से कहा, ‘‘मैं साथ चलने को राजी हूं लेकिन घर वालों को आ जाने दो. फिर तुम दामाद की तरह आना और मैं पत्नी की तरह तुम्हारे साथ चलूंगी.’’

‘‘लेकिन नहीं चली तो याद रखना, तेरे घर वालों के सामने ही मैं तुझे जमीन पर गिरा कर क्या हाल करूंगा तूने सोचा भी नहीं होगा.’’ राजकुमार ने पत्नी को धमकी दी.

‘‘कर लेना बाबा, लेकिन तभी ना जब मैं साथ चलने को मना करूंगी. मैं ने घर वालों से बात कर ली है. वे सब तैयार हैं.’’ लक्ष्मी बोली.

राजकुमार पत्नी की बातों में आ कर वापस घर लौट गया और शाम को पत्नी के लिए नई साड़ी ले कर उसे लेने के लिए घर से निकल गया. दूसरी तरफ लक्ष्मी के परिवार वाले भाई की सगाई कर वापस आए तो उस ने उन्हें रोते हुए राजकुमार के वहां आने की बात बता दी थी.

घर वाले राजकुमार से पहले से ही तंग आ चुके थे. इसलिए उन्होंने उस का काम तमाम करने की ठान ली. शाम के समय राजकुमार जैसे ही गांव के पास पहुंचा तो लक्ष्मी के साथ उस के भाई रामरतन, शीतलझीरी निवासी पप्पू और नहरपुर आमढाना निवासी रिकेश ने उसे घेर कर लाठियों से पीटपीट कर अधमरा कर दिया.

इस के बाद उस के गले में कपड़ा लपेट कर उस की हत्या कर दी. फिर उस की लाश को बोरे में भर कर डैम में खड़े एक पेड़ के तने के निचले भाग से बांध दिया. ताकि लाश पानी में ही गल कर तहसनहस हो गए.

लेकिन गरमी बढ़ने से पानी का स्तर घटा तो लाश पानी से ऊपर आ गई. केस का खुलासा हो गया. शाहपुरा टीआई दीपक पाराशर ने लक्ष्मी, रामरतन, पप्पू और रिंकेश से पूछताछ के बाद उन्हें कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

कहानी सौजन्यसत्यकथा,  जुलाई 2019

5 सालों का रहस्य : किस वजह से जागीर को जान गंवानी पड़ी

मनप्रीत कौर सालों के बाद मामा के घर आई थी. गुरप्रीत सिंह और उस की पत्नी ने मनप्रीत की खूब खातिरदारी की. मामामामी और मनप्रीत के बीच खूब बातें हुईं. बातोंबातों में मनप्रीत ने गुरप्रीत से पूछा, ‘‘मामाजी, बड़े मामा जागीर सिंह के क्या हालचाल हैं. उन से मुलाकात होती है या नहीं?’’

‘‘नहीं, हम 5 साल पहले मिले थे अनाजमंडी में. जागीर उस समय परेशान भी था और दुखी भी. गले लग कर खूब रोया. उस ने बताया कि भाभी (मंजीत कौर) के किसी कुलवंत सिंह से संबंध हैं और दोनों मिल कर उस की हत्या भी कर सकते हैं.’’

गुरप्रीत ने यह भी बताया कि उस ने जागीर सिंह से कहा था कि वह भाभी का साथ छोड़ कर मेरे साथ मेरे घर में रहे. लेकिन उस ने इनकार कर दिया. वजह वह भी जानता था और मैं भी. उस ने मुझे समझाने के लिए कहा कि वह भाभी को अपने ढंग से संभाल लेगा. बस उस के बाद जागीर सिंह मुझे नहीं मिला.

‘‘वाह मामा वाह, बड़े मामा ने तुम से अपनी हत्या की आशंका जताई और आप ने 5 साल से उन की खबर तक नहीं ली?’’

‘‘खबर कैसे लेता, भाभी ने तो लड़झगड़ कर घर से निकाल दिया था. मैं उस के घर कैसे जाता? जाता तो गालियां सुननी पड़तीं.’’ गुरमीत ने अपनी स्थिति साफ कर दी.

बात चिंता वाली थी. मनप्रीत ने खुद ही बड़े मामा जागीर सिंह का पता लगाने का निश्चय किया. उस ने मामा के पैतृक गांव से ले कर गुरमीत द्वारा बताई गई संभावित जगह रेलवे बस्ती, गुरु हरसहाय नगर तक पता लगाया. उस की इस छानबीन में जागीर सिंह का तो कोई पता नहीं लगा, पर यह जानकारी जरूर मिल गई कि जागीर सिंह की पत्नी मंजीत कौर रेलवे बस्ती में किसी कुलवंत सिंह नाम के व्यक्ति के साथ रह रही है.

सवाल यह था कि मंजीत कौर अगर किसी दूसरे आदमी के साथ रह रही थी तो जागीर सिंह कहां था? मंजीत ने ये सारी बातें छोटे मामा गुरमीत को बताईं. इन बातों से साफ लग रहा था कि जागीर सिंह के साथ कोई दुखद घटना घट गई थी. सोचविचार कर गुरमीत और मंजीत ने थाना गुरसहाय नगर जा कर इस बारे में पूरी जानकारी थानाप्रभारी रमन कुमार को दी.

बठिंडा (पंजाब) के रहने वाले गुरदेव सिंह के 2 बेटे थे जागीर सिंह और गुरमीत सिंह. उन के पास खेती की कुछ जमीन थी, जिस से जैसेतैसे घर का खर्च चलता था. सालों पहले उन के परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा था. पत्नी के बीमार होने पर उन्हें अपनी जमीन बेचनी पड़ी. इस के बावजूद वह उसे बचा नहीं पाए थे.

पत्नी की मौत के बाद गुरदेव सिंह टूट से गए थे. जैसेतैसे उन्होंने अपने दोनों बेटों की परवरिश की. आज से करीब 15 साल पहले गुरदेव सिंह भी दुनिया छोड़ कर चले गए. पर मरने से पहले गुरदेव सिंह यह सोच कर बड़े बेटे जागीर सिंह का विवाह अपने एक जिगरी दोस्त की बेटी मंजीत कौर के साथ कर गए थे कि वह जिम्मेदारी के साथ उस का घर संभाल लेगी.

मंजीत कौर तेजतर्रार और झगड़ालू किस्म की औरत थी. उस ने घर की जिम्मेदारी तो संभाल ली, लेकिन पति और देवर की कमाई अपने पास रखती थी. दोनों भाई जमींदारों के खेतों में मेहनतमजदूरी कर के जो भी कमा कर लाते, मंजीत कौर के हाथ पर रख देते. लेकिन पत्नी की आदत को देखते हुए जागीर सिंह कुछ पैसे बचा कर रख लेता था.

इसी बीच जागीर सिंह ने जैसेतैसे अपने छोटे भाई गुरमीत की भी शादी कर दी थी. गुरमीत की शादी के बाद मंजीत कौर और गुरमीत की पत्नी के बीच आए दिन लड़ाईझगड़े होने लगे थे. रोज के क्लेश से दुखी हो कर गुरमीत सिंह अपनी पत्नी को ले कर अलग हो गया. उस के अलग होने के बाद दोनों भाइयों का आपस में मिलना कभीकभार ही हो पाता था. ऐसे ही दोनों भाइयों का जीवनयापन हो रहा था.

समय का चक्र अपनी गति से चलता रहा. इस बीच जागीर सिंह और मंजीत कौर के बीच की दूरियां बढ़ती गईं. उन के घर में हर समय क्लेश रहने लगा था.

जागीर सिंह की समझ में यह नहीं आ रहा था कि अब मंजीत कौर घर में टेंशन क्यों करती है. पहले तो उस के भाई गुरमीत की पत्नी की वजह से वह घर में झगड़ा करती थी, पर अब उसे भी घर से अलग हुए कई साल हो गए थे. फिर एक दिन जागीर सिंह को पत्नी द्वारा घर में कलह रखने का कारण समझ आ गया था.

दरअसल, मंजीत कौर के पड़ोसी गांव जुवाए सिंघवाला निवासी कुलवंत सिंह के साथ गलत संबंध थे. दोनों के बीच के संबंधों के बारे में उसे कई लोगों ने बताया था. लेकिन उसे लोगों की बातों पर विश्वास नहीं हुआ. जब एक दिन उस ने दोनों को अपनी आंखों से देखा और रंगेहाथों पकड़ लिया तो अविश्वास की कोई वजह नहीं बची.

उस दिन वह सिरदर्द होने की वजह से समय से पहले ही काम से घर लौट आया था. तभी उसे पत्नी की सच्चाई पता चली थी. पत्नी की यह करतूत देख कर उसे गहरा आघात लगा.

शोर मचाने पर उस के घर की ही बदनामी होती, इसलिए उस ने पत्नी को समझाना उचित समझा. उस ने उस से कहा, ‘‘मंजीत, तुम जो कर रही हो उस से बदनामी के अलावा कुछ नहीं मिलेगा. समझदारी से काम लो. अब तक जो हुआ, उसे मैं भी भूल जाता हूं और तुम भी यह सब भूल कर आगे से एक नया जीवन शुरू करो.’’

उस समय तो मंजीत कौर ने अपनी गलती मान कर पति से माफी मांग ली, पर उस ने अपने प्रेमी कुलवंत से मिलनाजुलना बंद नहीं किया. बल्कि कुछ समय बाद ही उस ने कुलवंत के साथ मिल कर जागीर सिंह को ही रास्ते से हटाने की योजना बना ली.

मंजीत कौर ने घर में क्लेश कर पति जागीर सिंह को इस बात के लिए राजी कर लिया कि वह गांव वाला घर छोड़ कर गुरुसहाय नगर की रेलवे बस्ती में किराए का मकान ले कर रहे.

मकान बदलने की योजना कुलवंत ने बनाई थी. उसी के कहने पर मंजीत कौर ने यह फैसला लिया था. उस ने जानबूझ कर पति को मकान बदलने के लिए मजबूर किया था. पत्नी की बातों और हावभाव से जागीर सिंह को इस बात की आशंका होने लगी थी कि कहीं जागीर कौर उस की हत्या न करा दे. अचानक उन्हीं दिनों अनाजमंडी में जागीर सिंह की मुलाकात अपने छोटे भाई गुरमीत सिंह से हुई.

दोनों भाई आपस में गले मिल कर बहुत रोए. अपनेअपने मन का गुबार शांत करने के बाद जागीर सिंह ने अपने और मंजीत कौर के रिश्तों के बारे में उसे बताते हुए यह भी शक जताया था कि मंजीत कौर किसी दिन उस की हत्या करा सकती है.

गुरमीत सिंह ने बड़े भाई से कहा कि घर का माहौल ऐसा है तो उस का मंजीत कौर के साथ रहना ठीक नहीं है. उस ने जागीर सिंह को यह सलाह भी दी कि वह मंजीत कौर को छोड़ दे और बाकी जिंदगी उस के घर आ कर गुजारे. लेकिन जागीर सिंह ने उसे आश्वासन देते हुए कहा, ‘‘तुम चिंता मत करो, मैं मंजीत को समझा कर उसे सीधे रास्ते पर ले आऊंगा.’’

इस बातचीत के बाद दोनों भाई अपनेअपने रास्ते चले गए थे. उस दिन के बाद वे दोनों आपस में फिर कभी नहीं मिले. यह बात सन 2013 के आसपास की है.

गुरमीत सिंह 5 वर्ष पहले अपने भाई से हुई मुलाकात को भूल गया था. एक दिन उस के घर उस के साले बलदेव सिंह की बड़ी बेटी मनप्रीत कौर मिलने के लिए आई और बातोंबातों में उस ने पूछ लिया, ‘‘मामाजी, बड़े मामा जागीर सिंह के क्या हाल हैं और आजकल वह कहां रह रहे हैं?’’

गुरमीत सिंह ने उसे बताया कि करीब 5 साल पहले अनाजमंडी में मुलाकात हुई थी. तब उन्होंने बताया था कि वह गुरु हरसहाय नगर में रह रहे हैं. उस दिन के बाद फिर कभी उन से नहीं मिला.

बहरहाल, 20 सितंबर 2018 को गुरमीत सिंह की तहरीर पर एसएचओ रमन कुमार ने मंजीत कौर और कुलवंत सिंह के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी. जरूरी जांच के बाद उन्होंने अगले दिन ही मंजीत कौर और कुलवंत को हिरासत में ले लिया.

थाने ला कर जब दोनों से जागीर सिंह के बारे में पूछताछ की तो मंजीत कौर ने बताया कि उस के पति के किसी महिला के साथ नाजायज संबंध थे. उस महिला की वजह से वह उससे मारपीट किया करता था. फिर 5 साल पहले एक दिन वह उस से झगड़ा और मारपीट करने के बाद घर से निकल गया. इस के बाद वह कहां गया, पता नहीं.

रमन कुमार समझ गए कि मंजीत झूठ बोल रही है. इसलिए उन्होंने उस से और उस के प्रेमी से सख्ती से पूछताछ की. आखिर उन्होंने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि 5 साल पहले 23 अप्रैल, 2013 को उन्होंने जागीर सिंह की हत्या कर उस की लाश घर के सीवर में डाल दी थी.

मंजीत कौर ने बताया कि पिछले लगभग 12 सालों से कुलवंत के साथ उस के अवैध संबंध थे, जिन का जागीर सिंह को पता लग गया था और वह इस बात को ले कर उस से झगड़ा किया करता था. इसीलिए उस ने अपने प्रेमी कुलवंत के साथ मिल कर पति को अपने रास्ते से हटाने के लिए उस की हत्या करने की योजना बनाई.

योजनानुसार 23 अप्रैल, 2013 को जागीर सिंह को चाय में नशे की गोलियां मिला कर पिला दीं. जब वह बेहोश हो गया तो गला दबा कर उस की हत्या करने के बाद उन्होंने उस की लाश सीवर में डाल दी.

एसएचओ रमन कुमार ने मंजीत कौर और कुलवंत सिंह को 21 सितंबर, 2018 को अदालत में पेश कर 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया. रिमांड के दौरान दोनों की निशानदेही पर गांव वालों, गांव के सरपंच और मजिस्ट्रैट की मौजूदगी में उस के घर के सीवर से हड्डियां बरामद कीं.

उस समय म्युनिसिपल कारपोरेशन के अधिकारियों के साथ एफएसएल टीम भी मौजूद थी. पुलिस ने जरूरी काररवाई के बाद हड्डियां एफएसएल टीम के सुपुर्द कर दीं.

दोनों हत्यारोपियों से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने 23 सितंबर, 2018 को मंजीत कौर और कुलवंत सिंह को अदालत में पेश कर जिला जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कहानी सौजन्यसत्यकथा, मई 2019

कामुक तांत्रिक की काम विधा

मध्य प्रदेश के इंदौर शहर की रहने वाली तबस्सुम बेहद खूबसूरत थी. उस की शादी शहर के ही रहने वाले नफीस अहमद से हुई थी. नफीस का अपना कारोबार था जिस से उसे अच्छीखासी आमदनी हो जाती थी. नफीस से निकाह कर के तबस्सुम खुश थी. उसे नफीस अपने सपनों के राजकुमार की तरह ही मिला था. नफीस भी तबस्सुम को बहुत प्यार करता था. तबस्सुम के व्यवहार की वजह से उस के सासससुर भी उसे बहुत चाहते थे. धीरेधीरे उन्होंने भी घर की बागडोर बहू तबस्सुम को सौंप दी थी. इस तरह हंसीखुशी के साथ उस का समय बीत रहा था.

हर सासससुर की तरह तबस्सुम के सासससुर भी यही चाहते थे कि उन की बहू जल्द मां बन जाए और यदि पहली बार में ही बेटे का जन्म हो जाए तो बात ही कुछ और होगी. फिर वह अपने पोते के साथ ही लगे रहेंगे. पर शादी को डेढ़दो साल हो गए, लेकिन वह मां नहीं बनी. धीरेधीरे 4 साल बीत गए लेकिन तबस्सुम गर्भवती नहीं हुई.

इस के बाद तो सासससुर ही नहीं बल्कि खुद तबस्सुम और नफीस भी परेशान रहने लगे. नफीस पत्नी को ले कर डाक्टर के पास गया. दोनों की कई तरह की जांच कराई गईं, जो सामान्य आईं. डाक्टर भी हैरान था कि सब कुछ सामान्य होने के बावजूद भी आखिर तबस्सुम को गर्भ क्यों नहीं ठहर रहा. फिर भी डाक्टर ने अपने हिसाब से उन दोनों का इलाज किया. इस के बावजूद भी तबस्सुम की कोख सूनी रही.

इस से तबस्सुम बहुत चिंतित रहने लगी. परेशान हाल इंसान को समाज में तमाम सलाहकार फ्री में मिल जाते हैं. लोग नफीस और तबस्सुम को भी तरहतरह की सलाह देने लगे. और वह सलाह भी उदाहरण के साथ देते थे कि फलां औरत वहां गई थी या उस डाक्टर, हकीम से इलाज कराया तो वह मां बन गई.

अपने मन में उम्मीद ले कर तबस्सुम भी लोगों की सलाह के अनुसार कई डाक्टरों, हकीमों के पास गई. तमाम धार्मिक स्थलों पर जा कर उस ने माथा टेका लेकिन उस की इच्छा पूरी नहीं हुई.

इस तरह शादी के 7 साल बाद भी तबस्सुम  की कोख नहीं भरी तो मोहल्ले के लोग ही नहीं, बल्कि सासससुर भी उसे बांझ समझने लगे. जो सास उसे सरआंखों पर बिठाए रहती थी वह ही उसे ताने देने लगी.

बातबात पर वह उसे बांझ कहती. अब तबस्सुम की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. हां, नफीस उसे समझाने की कोशिश करता था. केवल उस का पति ही था, जो हमेशा उस की हिम्मत बढ़ाता था.

तबस्सुम को जिस घर की जिम्मेदारी दी गई थी, सास के तानों ने उस का उसी घर में रहना दूभर कर दिया था. उस के जीवन में शांति तो जैसे कोसों दूर चली गई थी, इसलिए उस घर में रहना उसे अब अच्छा नहीं लगता था.

अब वह उस घर के बजाए कहीं और रहना चाहती थी. इस बारे में उस ने पति से बात की तो नफीस ने उस का साथ दिया और वह अपना घर छोड़ कर शहर की ही एडवोकेट कालोनी में किराए पर एक मकान में रहने लगा.

नफीस जिस कालोनी में रहता था, वह मकान शफीउल्लाह नाम के एक तांत्रिक का था. उस ने शहर के ही चंदननगर के एक मकान में अपना औफिस बना रखा था. वह यह धंधा कर के मोटी रकम कमा रहा था.

किराए के मकान में रहने पर तबस्सुम को एक सुकून यह मिल रहा था कि उसे यहां ताने देने वाला कोई नहीं था. इस तरह वह वहां रह कर शांति महसूस कर रही थी.

इस मकान में आए हुए तबस्सुम को करीब 20-22 दिन ही हुए थे कि एक दिन दोपहर के समय में जब वह कमरे में अकेली थी तभी मकान मालिक तांत्रिक शफीउल्लाह उस के कमरे में आया और उस का हालचाल पूछने लगा.

औपचारिकतावश तबस्सुम ने उसे चाय बना कर पिलाई. इसी दौरान शफी ने उस से कहा, ‘‘मैं जानता हूं कि तुम संतान न होने की वजह से परेशान हो.  लेकिन अब चिंता मत करो. ऊपर वाले ने तुम्हारी गोद भरने के लिए ही तुम्हें मेरे यहां किराएदार बना कर भेजा है.’’

तबस्सुम की कुछ समझ में नहीं आया तो शफी ने उसे बताया कि वह तंत्रमंत्र का बड़ा जानकार है. तंत्रमंत्र से संतानहीन महिला की गोद भरने में उसे महारथ हासिल है. न मालूम कितनी महिलाएं उस से यह लाभ ले चुकी हैं. जिस के चलते लोग उसे गोद स्पेशलिस्ट बाबा भी कहते हैं.

तुम चिंता मत करो जल्द ही वक्त आने पर वह अपनी तांत्रिक शक्ति से उस की गोद भर देगा. साथ ही उस ने यह भी सलाह दी कि वह इस बारे में अपने पति से कोई बात नहीं करे. शफी की बात सुन कर तबस्सुम खुश हो गई. उसे लगा कि सचमुच अब उस का सपना सच हो जाएगा.

उस दिन के बाद शफी उसे अकसर अपने एक कमरे में उस के पति की गैरमौजूदगी में पूजा के लिए बुलाने लगा. चूंकि पूजा के बारे में पति को कुछ भी बताने से तांत्रिक शफी ने उसे मना कर रखा था इसलिए यह सारे काम तबस्सुम अपने शौहर से छिपा कर कर रही थी.

शुरुआती दौर में तो शफी पूजा के दौरान पूरी शराफत दिखाता था लेकिन बाद में धीरेधीरे वह उसे कभीकभार छूने भी लगा. तबस्सुम को छूने का उस का लगातार क्रम बढ़ता गया. कभीकभार वह पूजा के नाम पर उस के वक्षस्थल पर भी हाथ रख देता था. तबस्सुम को यह अजीब सा लगा.

उसे तांत्रिक शफी की नीयत पर शक होने लगा. इसलिए वह उस की पूजा में अरुचि दिखाने लगी. इस से शफीउल्लाह को इस बात का अंदाजा होने लगा कि यह उस से दूरी बनाने लगी है. चिडि़या कहीं पिंजरे से उड़ न जाए, यह सोच कर शफी ने भी वक्त जाया करना उचित नहीं समझा.

19 सितंबर, 2018 को शफी को इस का मौका भी मिल गया. एक रात तबस्सुम का पति नफीस इंदौर से बाहर गया था. यह देख कर शफी ने उसे रात में पूजा करने को बुलाया.

तबस्सुम का मन तो नहीं हुआ लेकिन जब शफी ने उसे पूजा को अधूरा बीच में छोड़ देने  के नुकसान बता कर डराया तो वह उस रोज तांत्रिक के कहने पर आधी रात में नहाने के बाद खुले गीले बाल ले कर उस के कमरे में चली गई. पूजा करते समय शफीउल्लाह ने उसे पीने के लिए जन्नती जल के नाम पर पीला सा पानी दिया, जिसे पी कर तबस्सुम को चक्कर सा आने लगा.

इस के बाद पूजा करने के नाम पर शफी  काफी देर तक उस के शरीर से छेड़छाड़ करता रहा, फिर उस ने उसे जमीन पर लिटा दिया और खुद भी उस के ऊपर लेट गया. तबस्सुम पर बेहोशी सी छाई हुई थी. उस समय वह उस का विरोध करने की हालत में नहीं थी. शफी ने उस के साथ बलात्कार किया.

इस के बाद तबस्सुम को होश आया तो उस ने शफी को खरीखोटी सुनाई. उस के तेवर देख शफी ने कहा कि यह सब उस ने उस की भलाई के लिए ही किया है. अब पूजा पूरी हो गई है. वह अपने पति के साथ पहली बार सोते ही गर्भधारण कर लेगी. शफी ने उसे धमकाया कि इस बारे में यदि उस ने किसी को बताया तो वह अपनी व पति की जान खो देगी.

तबस्सुम जान गई थी कि यह पूरा नाटक शफी ने उसे हासिल करने के लिए किया था. उसे खुद से नफरत हो रही थी, इसलिए उस ने कमरे पर पहुंचने के बाद अगले दिन गले में फंदा डाल कर आत्महत्या करने की कोशिश की. लेकिन अचानक पति के आ जाने के बाद वह ऐसा नहीं कर सकी.

पति ने उसे बचा लिया. फिर तबस्सुम ने पति को सारी कहानी बता दी. नफीस ने उसी दिन तांत्रिक का कमरा खाली कर दिया. चूंकि तांत्रिक शफीउल्लाह ने तबस्सुम को डरा दिया था इसलिए उस के पति की भी तांत्रिक के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने की हिम्मत नहीं हुई.

इस वाकये को हुए करीब 3 सप्ताह गुजर गए. तभी तबस्सुम के दिमाग में आया कि तांत्रिक के खिलाफ पुलिस से शिकायत जरूर करनी चाहिए वरना वह किसी और को अपना शिकार बनाएगा.

इस के बाद वह 9 अक्तूबर, 2018 को पति को साथ ले कर खजराना थाने पहुंच गई. टीआई कमलेश शर्मा को तबस्सुम ने सारी बात विस्तार से बता दी. उस की शिकायत पर पुलिस ने तांत्रिक शफीउल्लाह के खिलाफ बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज कर ली.

रिपोर्ट दर्ज करने के बाद पुलिस ने शफीउल्लाह के घर दबिश डाली लेकिन वह घर पर नहीं मिला. वह फरार हो चुका था. तब पुलिस ने उस के पीछे मुखबिर लगा दिए.

10 अक्तूबर, 2018 को टीआई कमलेश शर्मा को मुखबिर द्वारा तांत्रिक के बारे में सूचना मिली. सूचना के बाद टीआई कमलेश शर्मा पुलिस टीम के साथ चंदननगर में स्थित एक मकान के पास पहुंचे.

उस समय रात हो चुकी थी. घर से लोभान के सुलगने की महक आ रही थी. टीआई ने उस मकान का दरवाजा खटखटाया तो कुछ देर बाद एक 26-27 साल की बेहद खूबसूरत युवती ने दरवाजा खोला. उस वक्त रात के 10 बजे थे. उस युवती के लंबे खुले बालों से टपकती पानी की बूंदों को देख कर लग रहा था कि वह अभीअभी नहा कर निकली है.

इतनी रात को उस के नहाने की बात आसानी से टीआई शर्मा के गले नहीं उतर रही थी. परंतु टीआई कमलेश शर्मा का टारगेट वह युवती नहीं बल्कि शफीउल्लाह था. उन्होंने उस युवती से शफीउल्लाह के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि बाबा अभी पूजा पर बैठ चुके हैं.

यह सुन कर टीआई ने कहा कि बाबा की पूजा हम थाने में करवा देंगे. फिर वह कमरे में घुस गए. पूजा का ढोंग कर रहे तांत्रिक शफीउल्लाह को उन्होंने गिरफ्तार कर लिया और इस की सूचना डीआईजी हरिनारायण चारी को दे दी. उन के निर्देश पर उन्होंने तांत्रिक के खिलाफ काररवाई शुरू की.

टीआई कमलेश शर्मा ने थाने ले जा कर शफीउल्लाह से पूछताछ की तो पहले तो वह खुद को नेक बंदा साबित करने पर तुला रहा. लेकिन पुलिस ने सख्ती की तो उस ने तंत्रमंत्र के नाम पर तबस्सुम को धोखे में रख कर उस के साथ बलात्कार करने की बात स्वीकार कर ली.

उस ने बताया कि वह आज फिर यही काम एक दूसरी महिला के साथ करने वाला था. वह अपने मकसद में सफल हो पाता उस से पहले वह पुलिस के हत्थे चढ़ गया.

तथाकथित तांत्रिक शफीउल्लाह से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने शफीउल्लाह का मैडिकल करवा कर उसे अदालत में पेश किया जहां से उसे जेल भेज दिया गया.        द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, कथा में तबस्सुम और नफीस अहमद परिवर्तित नाम हैं.

सौजन्य- सत्यकथामार्च 2018